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AKSHUN BHARAT

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Tu e s d a y, A u g u s t 2 8 , 2 0 1 8

बाबा बालक नाथ चालीसा

गुरु चरणों में सीस धर करुं प्रथम प्रणाम

बखशो मुझ को बाहुबल सेव करुं निष्‍काम

रोम रोम में रम रहा, रुप तुम्‍हारा नाथ

दूर करो अवगुण मेरे, पकड़ो मेरा हाथ

बालक नाथ ज्ञान (गिआन) भंडारा,

दिवस रात जपु नाम तुम्‍हारा,

तुम हो जपी तपी अविनाशी,

तुम हो मथुरा काशी,

तुमरा नाम जपे नर नारी,

तुम हो सब भक्‍तन हितकारी,

तुम हो शिव शंकर के दासा,

पर्वत लोक तुम्‍हारा वासा,

सर्वलोक तुमरा जस गावें,

ॠषि(रिशी) मुनि तब नाम ध्‍यावें,

कन्‍धे पर मृगशाला विराजे,

हाथ में सुन्‍दर चिमटा साजे,

सूरज के सम तेज तुम्‍हारा,

मन मन्दिर में करे उजारा,

बाल रुप धर गऊ चरावे,

रत्‍नों की करी दूर वलावें,

अमर कथा सुनने को रसिया,

महादेव तुमरे मन वसिया,

शाह तलाईयां आसन लाये,

जिसम विभूति जटा रमाये,

रत्‍नों का तू पुत्र कहाया,

जिमींदारों ने बुरा बनाया,

ऐसा चमत्‍कार दिखलाया,

सबके मन का रोग गवाया,

रिदिध सिदिध नवनिधि के दाता,

मात लोक के भाग विधाता,

जो नर तुमरा नाम ध्‍यावें,

जन्‍म जन्‍म के दुख विसरावे,

अन्‍तकाल जो सिमरण करहि,

सो नर मुक्ति भाव से मरहि,

संकट कटे मिटे सब रोगा,

बालक नाथ जपे जो लोगा,

लक्ष्‍मी पुत्र शिव भक्‍त कहाया,

बालक नाथ जन्‍म प्रगटाया,

दूधाधारी सिर जटा रमाये,

अंग विभूति का बटना लाये,

कानन मुंदरां नैनन मस्‍ती,

दिल विच वस्‍से तेरी हस्‍ती,

अद्भुत तेज प्रताप तुम्‍हारा,

घट-घट के तुम जानन हारा,

बाल रुप धरि भक्‍त रिमाएं,

निज भक्‍तन के पाप मिटाये,

गोरख नाथ सिद़ध जटाधारी,

तुम संग करी गोष्‍ठी भारी,

जब उस पेश गई न कोई,

हार मान फि‍र मित्र होई,

घट घट के अन्‍तर की जानत,

भले बुरी की पीड़ पछानत,

सूखम रुप करें पवन आहारा,

पौनाहारी हुआ नाम तुम्‍हारा,

दर पे जोत जगे दिन रैणा,

तुम रक्षक भय कोऊं हैना,

भक्‍त जन जब नाम पुकारा,

तब ही उनका दुख निवारा,

सेवक उस्‍तत करत सदा ही,

तुम जैसा दानी कोई ना ही,

तीन लोक महिमा तव गाई,

अकथ अनादि भेद नहीं पाई,

बालक नाथ अजय अविनाशी,

करो कृ पा सबके घट वासी,

तुमरा पाठ करे जो कोई,

वन्‍ध छू ट महा सुख होई,

त्राहि-त्राहि में नाथ पुकारुं ,

दहि अक्‍सर मोहे पार उतारो,

लै त्रशूल शत्रुगण मारो,

भक्‍त जना के हिरदे ठारो,

मात पिता वन्‍धु और भाई,

विपत काल पूछ नहीं काई,

दुधाधारी एक आस तुम्‍हारी,

आन हरो अब संकट भारी,

पुत्रहीन इच्‍छा करे कोई,

निश्‍चय नाथ प्रसाद ते होई,

बालक नाथ की गुफा न्‍यारी,

रोट चढ़ावे जो नर नारी,

ऐतवार व्रत करे हमेशा,

घर में रहे न कोई कलेशा,

करुं वन्‍दना सीस निवाये,

नाथ जी रहना सदा सहाये,

बैंस करे गुणगान तुम्‍हारा,

भव सागर करो पार उतारा।

आरती बाबा बालक नाथ जी की

ओम् जय कलाधारी हरे, स्‍वामी जय पोणाहारी हरे

भगत जनों की नेय्‍या, भव से पार करें। ओम् जय…

बालक उम्र सुहानी, नाम बाबा बालक नाथा

अमर हुए शंकर से, सुन कर अमर कथा। ओम् जय…

शीश पे बाल सुनहरी, गल रुद्राक्षी माला

हाथ में झोली चिमटा, आसन मृग शाला। ओम् जय…

सुन्‍दर सेली सिंगी, वेरागन सोह

गो पालक रखवाला, भगतन मन मोह। ओम् जय…

अंग भभूत रमाई, मूर्ति प्रभू अंगी

भय भंजन दुख नाशक, भर्तरी के संगी। ओम् जय…

रोट चढ़त रविवार को, फू ल मिश्री मेवा

धूप दीप चन्‍दन से, आनन्‍द सिद़ध देवा। ओम् जय…

भगतन हित अवतार लियो, स्‍वामी देख के कलि काला

दुष्‍ट दमन शत्रुध्‍न, भगतन प्रति पाला। ओम् जय…

बाबा बालक नाथ जी की आरती, जो नित गावे

कहत है सेवक तेरे, सुख सम्‍पति पावे। ओम् जय…

pahlapahar
at
12:37 PM

2 comments:

Gurpreet March 22, 2022 at 9:55 AM


Jai babe di 🙏🙏
Reply
Anonymous May 21, 2022 at 7:02 AM
Jai babe di ji
Reply

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About Me

pahlapahar
मुझे बचपन से ही कु छ कर गुजरने की तमन्ना थी, परंतु जैसे-जैसे बड़ी होती गई हालात जिंदगी की सच्चाई को सामने लाने लगे। सपने एक-एक कर चूर
होने लगे। जिंदगी का सच और सपने में क्या अंतर है यह समझ आने लगा। अंतर्मुखी होने के कारण अपनी व्यथा किसी से नहीं कह पाती थी, परंतु
अब ब्लाग के जरिए अपने कु छ सपनों को हकीकत में बदलते हुए देखना चाहती हूं।
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