You are on page 1of 14

ch-,p-vkbZ-lh--133 % Hkkjr dk bfrgkl% C.

1206-1707
v/;kid tk¡p l=h; dk;Z
ikB~;Øe dksM% BHIC-133
l=h; dk;Z dksM % ch-,p-vkbZ-lh -133 /,-,l-,l-Vh-/TMA/2020-21
vf/kdre vad% 100

uksV% ;g l=h; dk;Z rhu Hkkxksa esa foHkkftr gSaA vkidks rhuksa Hkkxksa ds lHkh iz'uksa ds mRrj nsus gSaA

l=h; dk;Z - I
fuEufyf[kr o.kZukRed Js.kh iz'uksa ds mÙkj yxHkx 500 'kCnksa ¼izR;sd½ esa nhft,A ÁR;sd Á'u 20
vadksa dk gSA
1½ ^eaxksyksa ds vkØe.kksa dk lkeuk djus ds fy, fnYyh ds lqYrkuksa us i`Fkdrk] rq"Vhdj.k
rFkk fojks/k] bu rhu 'kL=ksa dk vuqlj.k fd;k*A O;k[;k dhft,A 20
2½ Hkkjr esa lwQh vkUnksyu ds fodkl dk vkykspukRed ijh{k.k dhft,A 20

l=h; dk;Z - II
fuEufyf[kr e/;e Js.kh iz'uksa ds mÙkj yxHkx 250 'kCnksa ¼izR;sd½ esa nhft,A ÁR;sd Á'u 10 vadksa
dk gSA
3½ fot;uxj lkezkT; esa czkã.kksa dh Hkwfedk vkSj dk;ksZa dh laf{kIr esa ppkZ dhft,A 10
4½ eqxy eulc iz.kkyh ij ,d fVIi.kh fyf[k,A 10
5½ Hkkjr esa 13-15oha 'krkfCn;ksa esa iz;qDr fofHkUu Ñf"k rduhfd;ksa dk o.kZu dhft,A 10

l=h; dk;Z - III


fuEufyf[kr y?kq Js.kh iz'uksa ds mÙkj yxHkx 100 'kCnksa ¼izR;sd½ esa nhft,A ÁR;sd Á'u 6 vadksa
dk gSA
6½ vjch vkSj Qkjlh bfrgkl ys[ku ijEijk 6
7½ {ks=h; 'kfDr;ksa ds vkfoHkkZo laca/kh fofHkUu n`f"Vdks.k% {ks=h; jkT;] lkezkT; dk ntkZ D;ksa
ugha izkIr dj lds\ 6
8½ eqxyksa ds v/khu LFkkuh; iz'kklu 6
9½ eqxyksa ds v/khu jktLo ewY;kadu ds rjhds 6
10½ fnYyh lYrur dkyhu jktuhfr esa efgykvksa dh Hkwfedk 6

1
ASSIGNMENT SOLUTIONS GUIDE (2020-21)

BHIC-133
Hkkjr dk bfrgkl% C. 1206&1707
BHIC-133/ASS/TMA/2020-21
Disclaimer/Special Note: These are just the sample of the Answers/Solutions to some of the Questions
given in the Assignments. These Sample Answers/Solutions are prepared by Private
Teacher/Tutors/Authors for the help and guidance of the student to get an idea of how he/she can
answer the Questions given the Assignments. We do not claim 100% accuracy of these sample
answers as these are based on the knowledge and capability of Private Teacher/Tutor. Sample
answers may be seen as the Guide/Help for the reference to prepare the answers of the Questions
given in the assignment. As these solutions and answers are prepared by the private teacher/tutor so
the chances of error or mistake cannot be denied. Any Omission or Error is highly regretted though
every care has been taken while preparing these Sample Answers/Solutions. Please consult your own
Teacher/Tutor before you prepare a Particular Answer and for up-to-date and exact information, data
and solution. Student should must read and refer the official study material provided by the
university.

l=kh; dk;Z -I
fuEufyf[kr o.kZukRed Js. kh iz'uksa ds mÙkj yxHkx 500 'kCnksa (izR ;sd) esa nhft,A izR ;sd iz'u 20 vadksa dk gSA

mÙkjµ 1303 म�, चगताई खानते क� एक मंगोल सेना ने �दल्ली सल्तनत पर आ�मण �कया, जब �दल्ली सेना क� दो �मुख
इकाइयाँ शहर से दूर थ�। �दल्ली सुल्तान अलाउ�ीन खलजी, जो िच�ौड़ से दूर थे, जब मंगोल� ने अपना माचर् शु� �कया, जल्दी
म� �दल्ली लौट आए। हालां�क, वह पयार्� यु� क� तैयारी करने म� असमथर् थे, और िनमार्णाधीन िसरोही �कले म� एक अच्छी तरह
से संरिक्षत िशिवर म� शरण लेने का फै सला �कया। तारागाई के नेतृत्व म� मंगोल� ने दो महीने तक �दल्ली क� घेराबंदी क� और
इसके उपनगर� म� तोड़फोड़ क�। अंततः, उन्ह�ने पीछे हटने का फै सला �कया, जो अलाउ�ीन के िशिवर को तोड़ने म� असमथर् थे।
आ�मण भारत के सबसे गंभीर मंगोल आ�मण� म� से एक था, और अलाउ�ीन को इसक� पुनरावृि� को रोकने के िलए कई उपाय
करने के िलए �े�रत �कया। उन्ह�ने भारत के िलए मंगोल माग� के साथ सैन्य उपिस्थित को मजबूत �कया, और एक मजबूत सेना
को बनाए रखने के िलए पयार्� राजस्व धारा� को सुिनि�त करने के िलए आ�थक सुधार� को लागू �कया।
मंगोल� को दो या तीन बार �दल्ली सेना के मोहरे का सामना करना पड़ा। इन संघष� म� �कसी भी पक्ष ने िनणार्यक जीत हािसल
नह� क�, और मंगोल अलाउ�ीन के िसरी िशिवर म� �वेश करने म� असमथर् थे।
हालाँ�क िसरी से िनरस्त, मंगोल वतर्मान �दल्ली के अन्य िहस्स� म� चले गए। बरनी ने इन भाग� को चौतारा- I सुभानी, मोरी,
�द�ड़ी और शाही ट�क (हौज-आई सुल्तान) के नाम से जाना। इन क्षे�� क� आधुिनक पहचान िनि�त नह� है; हौज़-ए सुल्तानी
शायद हौज़-ए-शम्सी को संद�भत करता है। मंगोल� ने शाही दुकान� म� भी तोड़फोड़ क�, और मकई और अन्य वस्तु� को सस्ते
दर पर जनता को बेच �दया। आ�मणका�रय� ने �दल्ली और उसके आसपास दो महीने िबताए, ले�कन अलाउ�ीन के िसरी
िशिवर को तोड़ने म� असमथर् थे। तारागाई को एहसास �आ �क श�ुतापूणर् क्षे� म� रहने से उनक� सेना को अिनि�त िस्थित म�
डाल �दया जाएगा। इसिलए, उन्ह�ने उस �बदु तक एक� �ए लूट के साथ लौटने का फै सला �कया। ताराघाई क� वापसी भी उनके

2
देश म� डु वा और छापर के बीच संघषर् से �भािवत हो सकती है। बाद म� एक �टप्पणी म� दावा �कया गया �क सूफ� संत िनजामु�ीन
औिलया क� �ाथर्ना� के प�रणामस्व�प तारागाई पीछे हट गए।
िज़याउ�ीन बरनी, जो उस समय �दल्ली के िनवासी थे, ने बाद म� िलखा था �क इस शहर ने मंगोल� का ऐसा डर कभी नह� देखा
था। उनके अनुसार, य�द ताराघई ने एक और महीने के िलए �दल्ली म� रहने का फै सला �कया था, तो शहर उनके िलए िगर गया
होगा।
मंगोल आिमर अपनी योजना को अमल म� ला सकते थे, अलाउ�ीन के एज�ट� को सािजश के बारे म� पता चला। अलाउ�ीन ने तब
एक गोपनीय आदेश जारी �कया, अपने शाही अिधका�रय� को िनद�श �दया �क वह एक िन�द� �दन म� अपने सा�ाज्य के सभी
मंगोल लोग� को मार डाले। पीिड़त� क� पि�य� और ब�� को हत्यार� को स�प �दया जाना था। इस घटना का उल्लेख 14 व�
शताब्दी के �ांितका�रय� िजयाउ�ीन बरनी और इसामी ने �कया है। बाद के �ॉसर या�ा ने भी तराईख-ए-मुबारकशाही म� इस
घटना का उल्लेख �कया है, ले�कन वह अलाउ�ीन के गुजरात अिभयान के दौरान मंगोल िव�ोह के साथ इसे �िमत करता है।
बारानी के ता�रख-ए-�फ़रोज़ शाही क� एक पांडुिलिप म� कहा गया है �क अलाउ�ीन का आदेश नए मुसलमान� को मारने का था
िजन्ह�ने जागीर (सामंती भूिम अनुदान) पर कब्जा �कया था। हालां�क, बारानी के �दन� म� जागीर शब्द का इस्तेमाल नह� �कया
गया था और लगता है �क यह एक नकल करने वाला है। अलाउ�ीन ने �दल्ली सल्तनत के सभी नए मुिस्लम पु�ष� को मारने का
आदेश �दया। बरनी के अनुसार, अलाउ�ीन के आदेश� के प�रणामस्व�प 20,000 या 30,000 मंगोल लोग� का नरसंहार �कया
गया था। उनक� मिहला� और ब�� को बेसहारा म� बदल �दया गया। ज्यादातर पीिड़त अलाउ�ीन के िखलाफ सािजश से
अनजान थे।
इितहासकार पीटर जैक्सन के अनुसार, इस नरसंहार के िशकार म� मंगोल कमांडर अली बेग और ताटर् क शािमल हो सकते ह�, िजन्ह�ने
भारत के 1305 मंगोल आ�मण का नेतृत्व �कया था। इसामी का कहना है �क परािजत होने और जेल जाने के बाद, वे अलाउ�ीन क�
सेवा म� भत� हो गए थे (संभवत: अपने उ� पद के कारण), ले�कन बाद म� अलाउ�ीन के आदेश पर उन्ह� मार �दया गया।
इल्तुतिमश ने अलोफ़नेस क� नीित का पालन �कया। �दल्ली सुल्तान� को ए डी 1221 के �प म� मंगोिलयाई खतरे का सामना
करना पड़ा था जब च�ज़ीज़ खान भारतीय सीमा पर प�ंच गए थे। चंगज़ े ख़ान ने इल्तुतिमश के दरबार म� अपना दूत भेजने क�
सूचना दी। सुल्तान क� �ित��या के बारे म� कु छ भी कहना मुिश्कल है, ले�कन जब तक च�ज़ीज़ खान जीिवत था (डीएडी 1227),
इल्तुतिमश ने उ�र-पि�म क्षे� म� िवस्तारवादी नीित नह� अपनाई। एक दूसरे के िखलाफ गैर-आ�ामकता क� समझ संभवतः पर
आ गई होगी। इल्तुतमिस्लन ने ख्वा�रज़्म ��स के साथ �कसी भी राजनीितक गठबंधन से परहेज �कया, जो च�ज़ीज़ खान �ारा
मांगा गया था। 'अलोफ़नेस' क� इल्तुतिमश नीित से 'तु�ीकरण' क� एक पारी लाहौर और मुल्तान तक क� सल्तनत के िवस्तार का
प�रणाम थी िजसने सल्तनत को मंगोल शासक� के िलए सीधे उजागर कर �दया, जो उनके बीच कोई बफर राज्य नह� बचा था।
रिजया सुल्तान ने मंगोल िवरोधी गठबंधन म� शािमल न होकर तु�ीकरण क� नीित का भी पालन �कया।
1240-66 के बीच, मंगोल� ने पहली बार भारत के िवनाश क� नीित को अपनाया और इस तरह �दल्ली के साथ गैर-आ�मण
समझौते का अंत �आ। इस चरण के दौरान, सल्तनत गंभीर मंगोल खतरे म� रही। मुख्य कारण मध्य एिशया म� िस्थित म� बदलाव
था। �ान्सोिक्सयाना के मंगोल खान ने फारसी खानते क� ताकत का सामना करना मुिश्कल पाया और इस �कार, अपनी �कस्मत
को सुधारने के िलए भारत पर हमला �कया।
�दल्ली सुल्तान क� नीित म� एक अलग बदलाव बलबन के शासनकाल से देखा जा सकता है। कु ल िमलाकर, यह �ितरोध का चरण
था। बड़े पैमाने पर, बलब �दल्ली म� रहे और उनक� ऊजार् मुख्य �प से मंगोल� को दूर रखने म� क� ��त रही, कम से कम ब्यास से।
बलबन ने मंगोल� के िखलाफ 'बल और कू टनीित' दोन� का इस्तेमाल �कया। उसने अपनी रक्षा क� रे खा को मजबूत करने के िलए
कु छ उपाय �कए। ब्यास से परे �कसी भी मंगोल अि�म क� जांच करने के िलए भ�टडा, सुनाम और समाना म� �कले को मजबूत
�कया गया था। बलबन मुल्तान और उख पर कब्ज़ा करने म� सफल रहा, ले�कन पंजाब म� उसक� सेना भारी मंगोल दबाव म� रही।
अलाउ�ीन िखलजी के शासनकाल के दौरान, मंगोल अवतार आगे बढ़ा और उन्ह�ने कु तुलुग ख्वाजा के तहत ए डी 1299 म� पहली
बार �दल्ली म� तोड़फोड़ करने का �यास �कया। तब से, �दल्ली मंगोल� का एक िनयिमत ल�य बन गया और 1303 ई। म� �फर से
तबाह हो गया। स्थायी मंगोल हमल� ने स्थायी समाधान के बारे म� सोचने के िलए अलाउ�ीन को दबाया। उसने एक िवशाल
खड़ी सेना क� भत� क� और सीमावत� �कल� को मजबूत �कया। नतीजतन, मंगोल� को 1306 और 1308 म� िनरस्त कर �दया
गया। इसके बाद मंगोल नाग�रक गृहयु� म� उलझ गए और उनक� शि� कमजोर हो गई, िजससे �दल्ली सल्तनत को अपने मोच�
को बढ़ाने और मजबूत करने म� मदद िमली।

mÙkjµ मध्यकालीन आन्दोलन� म� सूफ� मत का उल्लेख करना भी आवश्यक है । सूफ� मत इस्लाम के रहस्यवादी, उदारवादी
तथा समन्वयवादी दशर्न क� संज्ञा है । सू�फय� ने कु रान क� रहस्यवादी एवं उदार �ाख्या क� िजसे तरीकत कहा गया । सूफ�
आन्दोलन का �विस्थत �प अब्बािसय� के िखलाफत युग म� �दखायी पड़ता है ।
एक धमर् के �प म� सूफ� मत का िवकास ईसा क� नव� शती म� �आ । सूफ�वाद म� संसार क� सभी �मुख धा�मक िवचारधारा�
को सिम्मिलत �कया गया । इस्लाम धमर् के अित�र� इस धमर् पर िहन्दु वेदान्त, बौ�, यूनानी, ईसाई आ�द मत� के िस�ान्त� का
भी समावेश �कया गया था ।

3
सूफ� मत भी दार-उल-हबर् को दार-उल-इस्लाम म� बदलना चाहता था । िसफर् अन्तर इतना था �क सूफ� प�रवतर्न के िलए
शािन्तपूणर् एवं नैितक साधन� का �योग करना चाहते थे । सूफ� सन्त� तथा फक�र� ने भी िहन्दु-मुिस्लम सामंजस्य स्थािपत करने
क� �दशा म� महत्वपूणर् कायर् �कया ।
�त्येक सूफ� को कु छ अवस्था� से गुजरना पड़ता था-उबू�दयत, तरीकत (इश्क), मा�रफात, हक�कत, फना (बका) । मुिस्लम
रहस्यवाद का जन्म बहादातुल बुजूद (आत्मा-परमात्मा) क� एकता के िस�ान्त से �आ । इसम� हक को परमात्मा और खल्क को
सृि� माना गया है ।
इस िस�ान्त के �ितपादक शेख मुहीउ�ीन इ�ुल अरबी थे । फतुहात-ए-म��या ने इस िवचार को इन शब्द� म� �� �कया-ई�र
के िसवा कु छ नह� है, ई�र के िसवा वहाँ �कसी का अिस्तत्व नह� ह�, यहाँ तक �क ‘वहाँ’ जैसा भी कु छ नह� है, सभी चीज� का
सार एक ही ह� । परमात्मा म� लीन हो जाने के इस आदशर् को सूफ� मा�रफात या वस्ल कहते ह� ।
ई�र को िन�वकार एवं िन�वकल्प मानते �ए उसके साथ तादात्म स्थािपत करने पर उन्ह�ने बल �दया । यह �ेम के �ारा ही
सम्भव है । अहंभाव क� समाि� ही साधक क� सफलता का रहस्य है । इस मत के अनुसार मनुष्य को अपनी इच्छा-शि� का दमन
कर अपने को पूणर्तया ई�र म� सम�पत कर देना चािहए ।
मनुष्य क� इच्छाय� जब समा� हो जाती ह�, तब वह �� (अल्लाह) म� िमल जाता है । इसे ‘अन-अल्हक’ अथार्त् ‘म� ही �� �ँ’
कहा गया है । यही सूफ� दशर्न का चरम ल�य है । सूफ� सृि� के �त्येक कण म� ई�र के रहस्य को देखते थे । इसी कारण उन्ह�ने
सभी जीव� के साथ �ेम एवं दया करने का उपदेश �दया ।
सूफ� मत म� गु� �फर का काफ� महत्व था । िशष्य को मुरीद कहते थे । िशष्यता �हण करते समय एक अनु�ान होता था िजसे
‘बैयत’ कहते थे । इसम� िशष्य अपना िसर मुड़वाते थे । यह भारतीय परम्परा के अनुकूल थी । इस अनु�ान म� सूफ� जमाल और
हस्त क� बात करते थे । सू�फय� ने भी मोक्ष क� प�रकल्पना क� थी ।
मनुष्य के पा�थव अिस्तत्व के अन्त को फना कहा गया है । िजसम� ई�र के �ित पूणर् समथर्क हो जाने पर मनुष्य उसम� एकाकार
हो जाता था । जब अिस्तत्व अनन्तावस्था को �ा� कर लेता था उसे वका कहते थे । सू�फय� के मुख्यतः दो उ�ेश्य थे- आध्याित्मक
उ�ित और मानवता क� सेवा ।
सू�फय� ने अपने आदश�, शब्द� तथा आचरण से एक नैितक मानक �स्तुत �कया । उन्ह�ने अन्ध-िव�ास तथा धमर् और भि� के
बीच के अन्तर को दूर करने का �यास �कया । उन्ह�ने उपदेश �दये तथा उसके अनुसार �वहार करने के आवश्यकता पर बल
�दया ।
सूफ� सन्त� ने सूफ� मत को आजीिवका का साधन नह� बनाया । उन्ह�ने जीिवकोपाजर्न के महत्व पर बल �दया । कु छ सन्त� ने
अपने अहम को कु चलने के िलए िभक्षावृि� करना पसन्द �कया । इससे उन्ह�ने यह भी अनुभव �कया �क �त्येक वस्तु ई�र क� है
और �ि� उसके अिभरक्षक मा� होते है।
आध्याित्मक उपलिब्ध के िलए ��चयर् और संसार के पूणर् त्याग पर उन्ह�ने जोर नह� �दया । िववाह और गृहस्थ जीवन से उन्ह�
घृणा नह� थी । िविश� भौितकतावादी दृि�कोण पसन्द नह� �कया जाता था, ले�कन जीवन क� आवश्यकता� को पूरा करना
आवश्यक माना जाता था ।
भारत म� िवशेषकर िचश्ती और सुहरावद� िसलिसल� के सू�फय� ने ई�र के आराधना के �प म� समा और रक्स (संगीत और
नृत्य) को अपनाया । उन्ह�ने �कसी �कार के मनोरं जनपूणर् संगीत का आ�य नह� िलया । मजिलस-ए-समा, मजिलस-ए-तराव या
संगीतमय मनोरं जन से पूणर्तया िभ� था सू�फय� के िलए संगीत �कसी ल�य का एकमा� साधन था । समा से उनक� आध्याित्मक
शि� सजीव हो उठती थी तथा उनके व ई�र के बीच का पदार् उठ जाता था िजससे उन्ह� भाव �वण तन्मयता क� चरमावस्था
�ा� करने म� मदद िमलती थी ।
भारत म� सूफ�वाद का �वेश अरब� क� िसन्ध िवजय के बाद �आ । महमूद गजनवी के समय भारत म� शेख अली �ज्वीरी आये,
िजन्ह�ने लाहौर को अपना के न्द बनाया और ऊंशकु ल लुक, नामक �न्थ क� रचना क� । भारत म� सू�फय� के कई सम्�दाय थे और
16व� सदी के उ�राधर् म� अबुल-फजल ने 14 िसलिसल� का उल्लेख �कया है । इनम� िचिश्तया, सुहराव�दया, नक्शबं�दया,
का�दरी, कलंद�रया और श�ा�रया सम्�दाय महत्वपूणर् है । इन्ह� सम्�दाय� को िसलिसला कहा जाता है । इनम� िचश्ती और
सुहरावद� िसलिसले भारत म� ज्यादा लोकि�य थे ।
कु छ �मुख िसलिसले इस �कार है—
1. िचश्ती िसलिसला—इसक� स्थापना खुरासान म� अबू इशाक ने �कया । भारत म� िचिश्तया सम्�दाय के �थम संत शेख
उस्मान के िशष्य शेख मुईनु�ीन िचश्ती थे उनक� जब अजमेर म� है और जनसाधारण इनको ख्वाजा के नाम से जानता
था । ख्वाजा वेदान्त दशर्न व संगीत से काफ� �भािवत थे । िहन्दु� के �ित उदार दृि�कोण रखते थे ।

4
ख्वाजा का कहना था �क जब वा� बन्धन� को पार कर जाते ह� और चार� और देखते ह� तो �ेमी-�ेिमका स्टैर स्वयं �ेम
एक ही लगते है, अथार्त एके �र के समक्ष वे सभी एक है । इनके िशष्य� म� शेख हमीउ�ीन और शेख बिख्तयार काक�
काफ� लोकि�य थे ।
शेख हमीउ�ीन को ख्वाजा ने ‘सुल्लान तारी�कन’ क� उपािध �दान क� थी शेख हमीउ�ीन गैर-मुसलमान� के
अध्याित्मक गुण� को भी पहचान लेते थे और उनक� कद करते थे । कु तुबु�ीन बिख्तयार काक� का जन्म भारत म� �आ
था । वे पहले मुल्लान म� बसे, �फर इल्तुतिमश के समय �दल्ली आ गये ।
उन्ह�ने ‘शेख-उल-इस्लाम’ का पद ठु करा �दया । बाद म� माजमु�ीन सुगरा (शेख-उल-इस्लाम) से सम्बन्ध िबगड़ जाने
पर अजमेर जाने का फै सला �कया । शेख कु तुबु�ीन रहस्यवादी गीत� के बड़े �ेमी थे । इनके िशष्य� म� शेख फरीदु�ीन
मसूद गज-ए-िशकार अिधक �िस� है । इन्ह� के �यास� से िचिश्तया िसलिसला एक अिखल �प धारण �कया ।
इनको जनसाधारण म� शेख फरीद या बाबा फरीद के नाम से जाना गया । ये गु�नानक से काफ� �भािवत थे । शेख
िनजामु�ीन औिलया शेख फरीद के सवार्िधक �िस� िशष्य थे । अजोधान म� औिलया शेख फरीद के िशष्य बने थे ।
शेख िनजामु�ीन ने अपने �ार िशष्य� के िलए खोल �दये और उन्ह�ने अमीर� तथा सामान्य �ि�य�, धनी तथा
िनधर्न�, िनरक्षर�, शह�रय� और देहाितय�, सैिनक� तथा यो�ा�, स्वतं� �ि�य� तथा गुलाम� को अंगीकार कर
िलया था ।
िनजामु�ीन औिलया ने �दल्ली के सात सुल्तान� के राज्यकाल देखे । गयासु�ीन तुगलक से इनक� नह� पटती थी । इस
शासक न 53 उलेमा� के अदालत म� मुकदमा चलाया था �क वे व�जत संगीत गोि�य� म� भाग लेते थे । परन्तु शेख
वरी हो गये ।
सुल्तान गयासु�ीन ने बंगाल अिभयान के समय शेख को एक प� िलखा था िजसके �त्यु�र म� शेख िनजामु�ीन ने कहा
�क ”हनोज �दल्ली दूर अस्त” । संयोगवश एक घटना म� सुल्तान �दल्ली के बाहर ही मर गया । शेख िनजामु�ीन को
‘महबूवे इलाही’ के नाम से भी जाना गया । शेख िनजामु�ीन एकमा� अिववािहत िचश्ती सूफ� संत थे ।
िनजामु�ीन औिलया के बाद शेख नािस��ीन िचराग और सलीम िचश्ती ही �िस� िचश्ती मत �ए । इनम� भी शेख
िचराग को ही अिखल भारतीय �िसि� िमली । शेख िचराग को कु तुबु�ीन मुबारक शाह तथा मुहम्मद िबन तुगलक के
कारण कु छ समस्या� का सामना भी करना पड़ा शेख सलीम िचश्ती को अकबर शेखू बाबा कहता था ।
िचश्ती सम्�दाय के गेसूदराज ने गुलबगार् को के न्� बनाकर द�न म� �चार �कया । िचश्ती सम्�दाय के संत सादगी और
िनधर्नता म� आस्था रखते थे । वे �ि�गत सम्पि� को अपने अध्याित्मक जीवन के िवकास म� बाधक मानते थे । वे
फू तूह तथा नजुर (िबना माँगे �ए �ा� धन और भ�ट) पर अपना िनवार्ह करते थे ।
कहा जाता है �क शेख फरीद गज-ए-िशकार भूख� मरते थे, पर �कसी से भोजन व धन नह� माँगते थे । िचश्ती सूफ� संत
िन� इच्छा� के दमन के िलए उपवास �कया करते थे । उनके व� भी िन� स्तर के होते थे । अिधकांश सूफ� संत� के
गृहस्थ जीवन सुखमय होते थे ले�कन िनजामु�ीन औिलया आजीवन अिववािहत रहे ।
िचिश्तय� के िस�ान्त कु छ इस �कार थे—
• कमर्काण्ड� का िवरोध करना,
• जनकल्याण पर पूरा ध्यान देना,
• राजनीित म� दूर रहना ।
• इस्लाम म� पूणर् अस्था रखते �ए सवर्धमर् समभाव पर समान �प से बल देना,
• िन� वग� के �ित ज्यादा स��यता ।
• संगीत समारोह का अयोजन करना तथा उनम� भाग लेना ।
2. सुहरावद� िसलिसला—यह सम्�दाय भारत के उ�र-पि�मी सीमा क्षे� म� अिधक �चिलत था । शेख िशहाबु�ीन
सुहरावद� इस सम्�दाय के �णेता थे । उनके िशष्य� म� शेख हमीदु�ीन नागौरी और मुल्लान के शेख बहाउ�ीन
जका�रया िवशेष �िस� थे । भारत म� इस िसलिसला को संग�ठत करने का �ेय बहाउ�ीन जका�रया को है ।
सभी सूफ� संत� म� जका�रया अिधक धनी थे । इन्ह�ने िचश्ती िसलिसला �ारा अपनायी गयी रीित-�रवाज� का त्याग
कर �दया । जक�रया को धन इक�ा करने से नफरत थी । वे राजनीितक मसल� म� भी भाग लेते थे । बहाउ�ीन के पु�
सह��ीन आ�रफ मुल्तान म� तथा िशष्य सैयद जलालु�ीन खुशर् बुखारी िसन्ध म� स��य थे । सुहरावद� सम्�दाय का
सामािजक आधार उ� वगर् था ।
ये सुहरावद� धमर् प�रवतर्न पर जोर देते थे । सुहरावद� सूफ� सम्�दाय क� एक �मुख शाखा �फरदीिसया थी । इसका
मुख्य कायर् क्षे� िबहार था और शेख शफुर् दृिन य�ा इसके �िस� िव�ान थे । इन्ह�ने काफ� प� छोड़े है िजनको ‘बात’ के
नाम से जाना जाता है । शेख शफुर् �ीन िव�ान और िवचारक होने के साथ-साथ स��य पथ-�दशर्क भी थे और मानवता
क� सेवा पर जोर देते थे ।
3. का�दरी िसलिसला—का�दरी सम्�दाय क� स्थापना बगदाद के शेख अब्दुल का�दर िजलानी ने 12व� सदी म� क� थी ।
भारत म� इस सम्�दाय के पहले संत शाह िनयामत उल्ला और नािस��ीन महमूद िजलानी थे । शेख अब्दुल जा�कर
फतेहपुर सीकरी के दीवान-ए-आम म� नमाज पढ़ते थे िजस पर अकबर ने िवरोध �कया तो शेख ने उ�र �दया- ”मेरे
बादशाह, यह आपका सा�ाज्य नह� है �क आप आदेश द� ।” शाहजहाँ का ज्ये� पु� दारािशकोह का�दरी सूफ� सम्�दाय

5
का अनुयायी बन गया था और ‘िमयां मीर’ से लाहौर म� मुलाकात क� थी । बाद म� दारािशकोह मुल्लाशाह बदख्शी का
िशष्य बन गया ।
4. नक्सबंदी सम्�दाय—इस िसलिसला क� स्थापना 14व� सदी म� ख्वाजा वहाउ�ीन नक्शबंद ने क� थी �कन्तु भारत म�
इसका �चार ख्वाजा बक� िबल्लाह (1563-1603 ई.) ने �कया था । य लोग सनातन इस्लाम म� आस्था रखते थे और
पैगम्बर �ारा �ितपा�दत िनयम� का ही पालन करते थे ।
यह िसलिसला धमर् म� प�रवतर्न� का पूणर् �प से िवरोधी था । ख्वाजा बक� िवल्लाह के िशष्य� म� शेख अहमद सरिहन्दी
�मुख थे िजनको मुजहीद के नाम से भी जाना जाता था । उन्ह�ने बहादतुल बुजूद के िस�ान्त के जगह पर बहादतुल
शु�द (�त्यक्षवाद) का िस�ान्त �ितपा�दत �कया, शेख सरिहन्दी का कहना था �क ”मनुष्य और ई�र म� सम्बन्ध
स्वामी और सेवक का है, �ेमी और �ेिमका का नह�”।
शेख अहमद सरिहन्दी के प�� का संकलन मक्यूवाद-ए-रब्बानी के नाम से �िस� है । उन्ह�ने िशया सम्�दाय तथा
दीन-इलाही क� आलोचना �कया । मुगल शासक जहांगीर भी इनका िशष्य था । क�रवादी औरं गजेब इनके पु� ‘शेख
मासूम’ का िशष्य बन गया । न�ावदी सम्�दाय के दूसरे महासन्त �दल्ली के वहीदुल्ला (1707-62 ई.) थे ।
इन्ह�ने बहादतुल बुजूद और वहादतुल शु�द के दोन� िस�ान्त� को एक दूसरे म� समिन्वत कर �दया । इन्ह�ने कहा �क
इन दोन� िस�ान्त� म� कोई अन्तर नह� है, इस शाखा के अंितम िवख्यात संत ‘ख्व्जा मीर ददर्’ थे । मीर ददर् ने एक
अपना मत चलाया िजसे ‘इल्मे इलाही मुहम्मद’ कहते थे । मीर ददर् उदूर् और फारसी के अच्छे किव भी थे ।
इन िसलिसल� के अित�र� श�ा�रया शाखा, कलन्दा�रया शाखा और मदा�रया शाखा का नाम िलया जा सकता है ।
श�ा�रया शाखाके �वतर्क शेख अब्दुल्ला श�ार थे । इस शाखा के दूसरे सन्त शाह मुहम्मद गौस थे । इनके दो �िस�
�न्थ थे जवािहर-ए-खस्मा और अवरार-ए-गौिसया ।
इस शाखा के अिन्तम �िस� संत शाह वजीउ�ीन थे । कलद�रया शाखा के सवर्�थम सत अबल अजीज प�� को माना
जाता है । इनके िशष्य िख��मी कलंदर खपरादरी थे । इनके वजह से िचिश्तया-कलंद�रगा उपशाखा का जन्म �आ
तथा सैय्यद नजमु�ीन कलंदर ने इस शाखा का खुब �चार �कया । इस शाखा के अिन्तम महान सन्त कु तुबु�ीन कलंदर
�ए िजन्ह� सरं दाज क� संज्ञा दी गयी थी । मुंिडत के श को भी इसी शाखा का सत माना जाता है । इसके अित�र�
मदा�रया शाखा भी िमलती है िजसके �वतर्क शेख बदीउ�ीनशाह मदार थे ।
5. िसन्ध म� नव-सूफ�वाद—िसन्ध भी नव-सूफ�वाद का महान के न्� था । यहाँ ब�त से सूफ� सत पैदा �ये । रहस्यवाद क�
शु�आत शाह करीम ने लगभग 1600 ई. म� क� िजन्ह� धा�मक �ेरणा अहमदाबाद के पास एक वैष्णव सन्त से िमली
िजसने ॐ के रहस्य� से उनका प�रचय कराया ।
दूसरे उल्लेखनीय रहस्यवादी शाह इनायत थे िजनका कहना था �क ई�र �कसी िविश� सम्�दाय क� सम्पि� नह� है । िसन्ध के
सूफ� संत� म� शाह लतीफ का स्थान सबसे ऊंचा है । वे महान किव और गायक और उनके गीत अभी भी गाये जाते है । इसके
अलावा आज भी सूफ� रहस्यवादी किवय� बे�दल और बेकस के िलखे गीत �सधी समाज म� लोकि�य ह� ।
सूफ� सन्त बुल्ले शाह िसन्ध के सबसे ि�य किव है । वे कु रान और अन्य सभी धमर्�न्थ� के भयंकर आलोचक थे । उनका कथन है
‘आपको ई�र न तो मिस्जद म� न ही काबा म�, न कु रान और अन्य पिव� अन्य� म� न ही औपचा�रक �ाथर्ना म� िमलेगा । बुल्ला
तुम्ह� मुि� न तो म�ा म�, न ही गंगा म� िमलेगी, तुम्ह� मुि� के वल उसी समय िमलेगी जब तुम अपना अहंकार छोड़ दोगे ।’

l=kh; dk;Z -II


fuEufyf[kr eè;e Js. kh iz'uksa ds mÙkj yxHkx 250 'kCnksa (izR ;sd) esa nhft,A izR ;sd iz'u 10 vadksa dk gSA

mÙkjµ िवजयनगर सा�ाज्य (1336-1646) मध्यकालीन का एक सा�ाज्य था। इसके राजा� ने 310 वषर् तक राज �कया।
इसका वास्तिवक नाम कनार्टक सा�ाज्य था। इसक� स्थापना ह�रहर और बु�ा राय नामक दो भाइय� ने क� थी। पुतर्गाली इस
सा�ाज्य को िबसनागा राज्य के नाम से जानते थे।
लगभग सवा दो सौ वषर् के उत्कषर् के बाद सन 1565 म� इस राज्य क� भारी पराजय �ई और राजधानी िवजयनगर को जला
�दया गया। उसके प�ात क्षीण �प म� यह 70 वषर् और चला। राजधानी िवजयनगर के अवशेष आधुिनक कनार्टक राज्य
म� हम्पी शहर के िनकट पाये गये ह� और यह एक िव� िवरासत स्थल है। पुराताि�वक खोज से इस सा�ाज्य क� शि� तथा धन-
सम्पदा का पता चलता है।
�वजयनगर साम्राज्य म� सामािजक व्यवस्था सैद्धां�तक रूप से शास्त्रीय परं पराओं पर आधा�रत था। यह भारतीय इ�तहास
का अं�तम साम्राज्य था जो वणार्श्रम व्यवस्था पर आधा�रत सरु ��त और संबं�धत करना अपना कत्तर्व्य समझता था।
सम्राट समाज के सभी वग� क� र�ा करना अपना कत्तर्व्य समझते थे। चार� वण� म� ब्राह्मण सवर्प्रमख
ु थे परं तु वणार्श्रम
व्यवस्था के दस
ू रे अंग ��त्रय� के संबंध म� कोई जानकार� प्राप्त नह�ं होती।

6
�ा�ण� को अनेक िवशेषािधकार �ा� थे िजसम� सबसे महत्वपूणर् िवशेषािधकार यह था �क उन्ह� मृत्यु दंड नह� �दया जा सकता
था। िवजयनगर क� सेना एवं शासन �वस्थाम� उन्ह� ऊंचे पद �ा� थे। मध्य वग� म� शे�ी या चे�ी नामक एक ब�त बङा समूह था।
इनक� अनेक शाखाएं या उपशाखाएं थी। इनका िवजयनगर युग म� ब�त �भाव था। अिधकांश �ापार इन्ह� के हाथ� म� था। चे��
ब�त अच्छे िलिपक एवं काय� म� दक्ष थे। चे��य� के ही समतुल्य �ापार करने वाले तथा दस्तकार वगर् के लोग� को वीरपांचाल
कहा जाता था।
िवजयनगर राज्य म� िविभ� तरह के मं�ालय बनाए गये िजसम� शासन मं�ालय भी था िजसका इस्तेमाल तब होता था जब राजा
सही फै सला न ले पाए। िवजयनगर म� �तापी एवं शि�शाली नरे श� क� कमी न थी। यु�ि�य होने के अित�र�, सभी �हदू
संस्कृ ित के रक्षक थे। स्वयं किव तथा िव�ान� के आ�यदाता थे। कृ ष्ण देव राय संगम नामक चरवाहे के पु� थे उनको उनके राज्य
से िनकाल �दया गया था । अतएव उन्होने संगम स�ाट् के नाम से शासन �कया। िवजयनगर राज्य के संस्थापक शंकर �थभ ने
थोड़े समय के प�ात् अपने व�र� तथा योग्य बंधु महादेव राय को राज्य का उ�रािधकारी घोिषत �कया। संगम वंश के तीसरे
�तापी नरे श संगम महावीर ि�तीय ने िवजयनगर राज्य को दिक्षण का एक िवस्तृत, शि�शाली तथा सुदढ़ृ सा�ाज्य बना �दया।
ह�रहर ि�तीय के समय म� सायण तथा माधव ने वेद तथा धमर्शा� पर िनबंधरचना क�। उनके वंशज� म� ि�तीय देवराय का नाम
उल्लेखनीय है िजसने अपने राज्यािभषेक के प�ात् संगम राज्य को उ�ित का चरम सीमा पर प�ँचा �दया। मुग़ल �रयासत� से
यु� करते �ए, देबराय �जापालन म� संल� रहा। राज्य क� सुरक्षा के िनिम� तुक� घुड़सवार िनयु� कर सेना क� वृि� क�। उसके
समय म� अनेक नवीन मं�दर तथा भवन बने।
िवजयनगर क� स्थापना के साथ ही ह�रहर तथा बु�ा के सामने कई क�ठनाईयां थ�। वारं गल का शासक कापाया नायक तथा
उसका िम� �ोलय वेम और वीर बल्लाल तृतीय उसके िवरोधी थे। देविग�र का सूबेदार कु तलुग खाँ भी िवजयनगर के स्वतं�
अिस्तत्व को न� करना चाहता था। ह�रहर ने सवर्�थम बादामी, उदयिग�र तथा गुटी के दुग� को सुदढ़ृ �कया। उसने कृ िष क�
उ�ित पर भी ध्यान �दया िजससे सा�ाज्य म� समृि� आयी। होयसल सा�ाट वीर बल्लाल मदुरै के िवजय अिभयान म� लगा �आ
था। इस अवसर का लाभ उठाकर ह�रहर ने होयसल सा�ाज्य के पूव� बाग पर अिधकार कर िलया। बाद म� वीर बल्लाल तृतीय
मदुरा के सुल्तान �ारा 1342 म� मार डाला गया। बल्लाल के पु� तथा उ�रािधकारी अयोग्य थे। इस मौके को भुनाते �ए ह�रहर
ने होयसल सा�ाज्य पर अिधकार कर िलया। आगे चलकर ह�रहर ने कदम्ब के शासक तथा मदुरा के सुल्तान को परािजत करके
अपनी िस्थित सुदढ़ृ कर ली। ह�रहर के बाद बु�ा स�ाट बना हंलाँ�क उसने ऐसी कोई उपािध धारण नह� क�।
उसने तिमलनाडु का राज्य िवजयनगर सा�ाज्य म� िमला िलया। कृ ष्णा नदी को िवजयनगर तथा बहमनी क� सीमा मान ली गई।
बु�ा के बाद उसका पु� ह�रहर ि�तीय स�ासीन �आ। ह�रहर ि�तीय एक महान यो�ा था। उसने अपने भाई के सहयोग से
कनारा, मैसूर, ि�चनापल्ली, कांची, �चगलपुट आ�द �देश� पर अिधकार कर िलया।

mÙkjµ मुगल� द्वारा �वक�सत मनसबदार� व्यवस्था (Mansabdari System) ऐसी थी िजसका भारत के बाहर कोई उदाहरण
नह�ं �मलता. मनसबदार� व्यवस्था क� उत्पित्त संभवतः �वश्व�वख्यात मंगोल �वजेता और आक्रमणकार� चंगेज खां के
काल म� हुई थी िजसने अपनी सेना को दशमलव के आधार पर संग�ठत �कया था. इसम� सबसे छोटा एकांश (unit या इकाई)
दस का था और सबसे ऊँचा दस हजार (तोमान) का था िजसके सेनाध्य� को खान कहकर पुकारा जाता था. मंगोल क� इस
सैन्यव्यवस्था ने कुछ सीमा तक �दल्ल� सल्तनत क� सैन्यव्यवस्था को प्रभा�वत �कया क्य��क इस काल म� हम एक सौ और
एक हजार के सेनाध्य�� (सद� और हजारा) के बारे म� सुनते ह�. ले�कन बाबर और हुमायूँ के काल म� मनसबदार� प्रथा थी या
नह�ं इस बारे म� इ�तहासकार अभी तक कुछ भी �ात नह�ं कर सके ह�. इस�लए मनसबदार� व्यवस्था क� उत्पित्त को लेकर
इ�तहासकार� म� काफ� मतभेद है . वतर्मान प्रमाण के आधार पर ऐसा लगता है �क मनसबदार� व्यवस्था का प्रारम्भ अकबर
ने अपने शासन काल के उन्नीसव� वषर् (1575) म� �कया था.
मनसब” फारसी भाषा का शब्द है . इस शब्द का अथर् है पद, दजार् या ओहदा. िजस व्यिक्त को सम्राट् मनसब दे ता था, उस
व्यिक्त को मनसबदार (Mansabdar) कहा जाता था. अकबर ने अपने प्रत्येक सै�नक और असै�नक अ�धकार� को कोई-न-
कोई मनसब (पद) अवश्य �दया. इन पद� को उसने जात या सवार नामक दो भाग� म� �वभािजत �कया. जात का अथर् है
व्यिक्तगत पद या ओहदा और सवार का अथर् घुड़सवार� क� उस �निश्चत संख्या से है िजसे �कसी मनसबदार को अपने
अ�धकार म� रखने का अ�धकार होता था. इस तरह मनसब शब्द केवल सै�नक व्यवस्था का ह� शब्द नह�ं अ�पतु इसका अथर्
है वह पद िजसपर सै�नक और गैर-सै�नक अ�धकार� को �नयुक्त �कया जाता या रखा जाता था. दस
ू रे शब्द� म�, मनसब पद
प्र�तष्ठा अथवा अ�धकार प्राप्त करने क� िस्थ�त थी. इससे व्यिक्त का पद, स्थान और वेतन �नधार्�रत होता था. इसके सह�
अथर् को समझने के �लए इसक� �वशेषताओं क� जानकार� प्राप्त करना आवश्यक है .

7
मनसबदार� व्यवस्था क� �वशेषताएँ
मनसबदार� का श्रे�णय� म� �वभाजन—अकबर ने जात और सवार मनसबदार� को तीन �ेिणय� म� िवभािजत �कया था—
1. िजस व्यिक्त को िजतना अ�धक ऊँचा जात (व्यिक्तगत) मनसब �दया जाता था, वह उतने ह� अ�धक घुड़सवार
रखने का अ�धकार� भी होता था और उसे प्रथम श्रेणी का मनसब कहा जाता था. अकबर के काल म� सबसे छोटा या
�नम्न मनसब (पद) दस �सपा�हय� के ऊपर अ�धकार रखने का था और उच्चतम दस हजार घुड़सवार� पर अ�धकार
रखने का था. बाद म� अकबर ने उच्चतम मनसब क� सीमा बढ़ाकर 12 हजार कर द� थी.
2. जो मनसबदार अपने जात (व्यिक्तगत) से आधी संख्या या आधे से अ�धक घुड़सवार रख सकता था, वह दस
ू र�
श्रेणी का मनसबदार होता था.
3. िजस मनसबदार को अपने जात (व्यिक्तगत पद) से आधे से कम घुड़सवार रखने का अ�धकार था, उसे तीसर�
श्रेणी का मनसबदार कहा जाता था.
सभी मनसबदार� को एक घुड़सवार के िलए दो घोड़े रखने अिनवायर् होते थे. �कसी भी मनसबदार को जात पद के अनुसार ही
सवार रखने क� अनुमित थी.
मनसबदार� क� �नयुिक्त—मनसबदार� क� िनयुि� स�ाट् स्वयं करता था और उसक� मज� होने तक ही वे पद पर बने रह सकते
थे. �ायः सात हजार का मनसब राजघराने के लोग� या ब�त ही मह�वपूणर् और िव�सनीय सरदार� जैसे राजा मान�सह, िमजार्
शाह�ख और िमजार् अजीज कोका को ही �दया गया. स�ाट् ने राजकु मार� को ही 12 हजार तक मनसब �दए.
मनसबदार� का वेतन—मुग़ल मनसबदार� को ब�त अच्छा वेतन िमलता था. उन्ह� �ायः नकद म� वेतन �दया जाता था. परन्तु
कभी-कभी जागीर का राजस्व भी वेतन के स्थान पर दे �दया जाता था. उन्ह� अपनी �ि�गत आय और वेतन से ही अपने स्वयं के
अधीन घुड़सवार� और घोड़� का खचर् चलाना होता था. इतना होने पर भी अकबर के काल म� मनसबदार ब�त सुखी और ठाट का
जीवन गुजारते थे क्य��क उस समय उनको आय-कर नह� देना होता था और �पये क� �य-शि� आज क� तुलना म� ब�त ही
अिधक थी. �थम �ेणी के प�हजारी मनसबदार को 30,000 �पये �ितमास, ि�तीय �ेणी के प�हजारी को 29,000 �पये �ित
मास और तृतीय �ेणी के प�हजारी को 28,000 �पये �ित मास वेतन िमलता था. इसके अित�र� मनसबदार को �त्येक सवार
के िलए दो �पये �ित मास के िहसाब से अित�र� वेतन भी िमलता था.
मनसबदार� के कायर्—मनसबदार सैिनक-अिभयान� म� भेजे जा सकते थे. उन्ह� िव�ोह रोकने, नए �देश जीतने आ�द के साथ-साथ
अपने पद से सम्बन्धी और समय-समय पर स�पे गए गैर-सैिनक और �शासिनक कायर् भी करने पड़ते थे.
मनसबदार� पर पाबंद�—अकबर ने मनसबदार� को अपनी मनमानी करने से रोकने के िलए इस बात का िवशेष ध्यान रखा �क वे
के वल अनुभवी और कु शल सवार� को ही भत� करे . उसके अधीन �त्येक सवार का �िलया (खाता रखना) नोट करने क� और घोड़े
को दागने क� �था भी शु� क� गई. समय-समय पर बादशाह स्वयं उसक� सेना का िनरीक्षण करता था या वह खुद �कसी सिमित
को उनक� सेना-िनरीक्षण हेतु िनयु� भी कर सकता था. मनसबदार� को �त्येक घुड़सवार के पीछे अरबी या ईराक� नस्ल के दो
घोड़े रखने होते थे. हर माह अपने (य�द नकद हो तो) वेतन लेने के िलए स्वयं स�ाट् के पास आना होता था. मृत्यु हो जाने पर
उसक� संिचत पूँजी जब्त कर ली जाती थी. इन पाबं�दय� ने मुगल� क� सैिनक शि� को ब�त सुदढ़ृ कर �दया.
�म�श्रत सवार—अकबर ने इस बात क� �वस्था क� �क मनसबदार� के सवार� म� िमि�त अथार्त् सभी जाितय� (मुग़ल, पठान,
राजपूत आ�द) के सैिनक और घुड़सवार ह�. �ारम्भ म� मुग़ल और राजपूत मनसबदार� को इस बात क� छू ट थी �क वे अपनी-
अपनी जाित के ही सवार रख� ले�कन धीरे -धीरे उसने भी िमि�त सवार� क� प�ित को अपनाया. इस तरह अकबर ने सेना म�
जाित और िविश�ता क� भावना को िनबर्ल करने का �यास �कया ता�क तुक� का वचर्स्व बना रहे.
अनेक तरह के सै�नक कायर् करने वाल� क� भत�—मुग़ल सेना म� घुड़सवार� के अित�र� तीरं दाज, बंदक
ू ची, खन्दक खोदने वाले भी
भत� �कये जाते थे. इनके वेतन अलग-अलग होते थे. ईरानी और तुक� सवार� को अिधक वेतन �दया जाता था ले�कन शेष सभी
सवार� का औसत वेतन 20 �. �ित मास था. पैदल सैिनक का वेतन ब�त कम होता था. उसे के वल 3 �. �ित माह वेतन िमलता था.

mÙkjµ प्राचीन काल क� भाँ�त मुगलकाल म� भी भारतीय अथर्व्यवस्था कृ�ष प्रधान थी। मुगल साम्राज्य क� लगभग 85
प्र�तशत जनसंख्या गाँव� म� �नवास करती थी, िजसम� कृ�ष पर आधा�रत वगर् क� बहुतायत थी। लघु उद्योग एवं व्यापार
आ�द क� अच्छ� व�ृ द्ध के बाद भी तत्काल�न आ�थर्क ग�त�व�धय� म� कृ�ष कायर् सव�प�र था। ऐ�तहा�सक स्रोत� एवं �वदे शी

8
या�त्रय� के �ववरण से हम� इसक� जानकार� प्राप्त होती है , परं तु उस काल म� कृ�ष फसल� का उत्पादन �कस �वधा से होता था?
प�रिस्थ�तय� के अनुरूप कृ�ष कार्य को ढालकर उत्पादन म� �व�शष्टता का सूत्रपात कैसे �कया जाता था? अथार्त तत्काल�न
कृ�ष प्रणाल� पर �ववरण अत्यल्प है , �फर भी यत्र-तत्र इस संदभर् म� जो भी �ववरण प्राप्त होते ह� उसके आधार पर एक मोट�
धारणा अवश्य बनती है , िजसके आधार पर तत्काल�न कृ�षगत तकनीक� �व�शष्टता का आंकलन संभव है
�संचाई तकनीक- मुगलकाल म� कृ�ष उत्पादन मानसून के साथ जुए सा व्यवसाय था, क्य��क जल का मुख्य स्रोत वषार् ह�
थी। अ�धक या कम वषार् होने पर कृषक क�ठनाई म� पड़ जाता था। कृषक को अवषर्ण क� िस्थ�त म� मानसन
ू पर �नभर्रता से
मुक्त होने के �लये �संचाई के कृ�त्रम साधन� पर आ�श्रत होना पड़ता था। बाबर के अनुसार, चौदहवीं एवं पन्द्रहवीं शताब्द� म�
भारत क� भू�म बहुत उपजाऊ थी तथा वषार् भी अच्छ� होती थी। कृषक� को �संचाई के कृ�त्रम साधन� क� जानकार� भी थी,
फलत: उत्पादन भी अच्छा होता था। �संचाई के कृ�त्रम साधन� के अन्तगर्त कुएँ, तालाब तथा नहर� आ�द �संचाई के कृ�त्रम
साधन के मुख्य श्रोत थे
कुएँ—कुएँ �संचाई के मख्
ु य स्रोत थे। मग
ु ल काल म� अ�धकतर कुएँ कच्चे होते थे। दरअसल इट के पक्के कँु ओं का �नमार्ण
बहुत खच�ला था। सन 1660 म� अजमेर के मेड़ता परगना म� अविस्थत लगभग 6000 कुँओं म� मात्र 20 कुएँ पक्के थे। सत्रहवीं
शताब्द� के उत्तराधर् तक भी पूव� राजस्थान के 18 गाँव� के 528 कुँओं म� से मात्र 41 कुएँ ह� पक्के थे। मुगलकाल म� गंगा के
ऊपर� मैदानी �ेत्र� तथा द��णी भाग म� कुएँ �संचाई के मुख्य स्रोत थे, िजससे इन �ेत्र� म� कृ�ष उत्पादन अच्छ� िस्थ�त म�
था। कुएँ से पानी �नकाल कर उसे ना�लय� के माध्यम से खेत� तक पहुँचाने क� कई �व�धयाँ थीं।
रहट—रहट या अरहट िजसे अंग्रेज� द्वारा प�सर्यन व्ह�ल नाम से संबो�धत �कया गया है , �संचाई हे तु प्रयक्
ु त क� जाने वाल�
एक �वल�ण मशीन थी, जो चेन तथा गीयर पर आधा�रत थी। मुगलकाल म� लाहौर, �दपालपुर, तथा सर�हंद म� इसका
व्यापक प्रयोग होता था। भारत म� रहट के प्रवेश का वास्त�वक समय तेरहवीं या चौदहवीं शताब्द� म� माना जाता है �कं तु
इसका सवर्प्रथम एवं �वस्तत
ृ वणर्न बाबर द्वारा सोलहवीं शताब्द� म� �कया गया है । प्रारं भ म� लकड़ी क� इस �वल�ण मशीन
पर केवल धनी �कसान� का ह� अ�धपत्य बना रहा, परं तु सोलहवीं शताब्द� तक धीरे -धीरे यह आम �कसान� क� पहुँच के भीतर
हो गया। रहट से पानी �नकालने क� प्र�क्रया यह थी �क कुएँ क� गहराई के अनस
ु ार दो समान लंबाई क� रिस्सय� के एक �सरे
क� ओर लकड़ी का एक लट्ठा बाँध �दया जाता था, िजसके साथ घड़े बंधे होते थे।
दोन� रिस्सय� को उस चखर् पर चढ़ाते हुए जो कुएँ पर लगा होता था, घड़� को लट्ठे स�हत कुएँ म� ढ�ला छोड़ा जाता था। इस चखर् से
धुरे से एक दस
ू र� चख� जुड़ी रहती थी, िजसे बैल घुमाता था। इस चख� के दाँते दस
ू र� चख� के दाँत� से फँसे होने के कारण बैल� के
घूमने पर खड़े वाल� चख� भी घूमती थी और इस प्र�क्रया से पानी कुएँ से बाहर �नकाला जाता था। कुएँ से बाहर आने पर घड़े का
पानी कुएँ के पास ह� िस्थ�त एक कठौते म� �गराया जाता था, जो ना�लय� के माध्यम से अपे��त खेत� तक पहुँचता था। �संचाई
कायर् म� प्रयुक्त होने वाले इस महत्त्वपूणर् यंत्र ने �संचाई क� संभावना को पयार्प्त बढ़ा �दया। �संचाई क� इस प्र�क्रया म� बैल� के
प्रयोग से मानव ऊजार् क� बचत होती थी। िजसका प्रयोग कृ�ष से संबं�धत अन्य उद्यम� म� �कया गया।
चरस—कुएँ से पानी �नकालने क� दस
ू र� सामान्य �व�ध चरस थी। बाबर के अनुसार आगरा, चंदवार, बयाना आ�द �ेत्र� म�
चरस द्वारा �संचाई होती थी। इस �व�ध म� कुएँ क� �घरनी पर रस्सी चढ़ाकर उसके एक �सरे म� चमड़े का बड़ा बैग बाँधा जाता
था। जब�क दस
ू रा �सरा एक बैल से बंधा होता था। बैल को कुएँ के समीप खड़ा कर पानी का बैग कुएँ म� ढ�ला छोड़ा जाता था।
बैग म� पयार्प्त पानी भर जाने के बाद एक व्यिक्त बैल को हांकता हुआ कुएँ से दरू ले जाता था और इस प्रकार खींचकर कुएँ से
बाहर आये पानी से भरे बैग को कुएँ पर खड़ा एक दस
ू रा व्यिक्त एक कठौते म� खाल� करता जाता था। कठौते से जुड़ी ना�लय�
द्वारा पानी खेत� तक पहुँच जाता था
बाबर ने इस �व�ध को अत्यंत घ�ृ णत बताया है क्य��क जब बैल पानी का बैग एक बार खींचकर प्र�क्रया दह
ु राने के �लये पुन:
कुएँ क� ओर लौटता था तो रस्सी, मागर् के पड़े गोबर एवं मत्र
ू आ�द को लथेड़ती जाती थी िजससे यह गंदगी रस्सी द्वारा कुएँ
म� चल� जाती थी, और कुएँ का जल द�ू षत हो जाता था। �संचाई क� चरस तकनीक से ढ� कल� के मुकाबले अ�धक गहरे कुएँ से
पानी खींचा जा सकता था। अत: यह तकनीक उन �ेत्र� के �लये अ�धक उपयोगी थी जहाँ कुएँ का जलस्तर अपे�ाकृत अ�धक
नीचे होता था। इस उपकरण के माध्यम से ढ� कल� क� अपे�ा अ�धक मात्रा म� पानी �नकाला जा सकता था अत: इसके प्रयोग
द्वारा अ�धक बड़े खेत� क� �संचाई संभव थी।

9
ढ� कल�—िजन �ेत्र� म� कँु ओं का जलस्तर अपे�ाकृत ऊँचाई पर होता था वहाँ ल�वर �सद्धांत पर आधा�रत ढ� कल� नामक
उपकरण �संचाई हे तु प्रयुक्त होता था। वाराणसी के भारत कला भवन म� संग्र�हत मग
ृ ावत क� �च�त्रत हस्त�ल�प, िजसका
�चत्रण उत्तर प्रदे श म� 1525-70 के बीच हुआ, इस उपकरण को दशार्ती है । उस उपकरण के नीचे उथले कुएँ के �कनारे पर एक
खूंट� गड़ी होती थी और दस
ू रे �कनारे पर एक कांटेनुमा �हस्सा लगा रहता था। इस कांटे के बीच म� एक लंबा खंभा उत्तोलक के
�सद्धांत के अनुसार लगा रहता था। इस खंभे म� कुएँ के �कनारे पर एक बाल्ट� लटक� होती थी और दस
ू रे �कनारे पर भार�
पत्थर रहता था। एक आदमी रस्सी खींचकर इस यंत्र को चला सकता था। रस्सी को कुएँ के अंदर खींचा जाता था और पानी से
भर� बाल्ट� खंभे से उठाकर खोल द� जाती थी, िजससे पानी खेत� म� पहुँच जाए|
इस यंत्र द्वारा कुएँ से पानी बाहर �नकालने के �लये कड़े श्रम क� आवश्यकता थी, �फर भी कम खच�ला होने के कारण यह
साधारण �कसान� क� पहुँच म� था। कुँओं से पानी �नकालकर �संचाई करने क� उपयक् ुर् त �व�धय� के अलावा एक सामान्य
�व�ध पानी को ढोकर खेत� तक पहुँचाने क� थी। बाबर के अनुसार कुछ स्थान� पर आवश्यकतानुसार स्त्री-पुरूष कँु ओं से डोल
या मटक� म� पानी भर-भरकर खेत� म� पहुँचाते थे। मग
ु लकाल�न �कल� म� सीढ़�दार पक्के कँु ओं, िजन्ह� बावल� कहा जाता था,
का �नमार्ण भी महत्त्वपूणर् था। इन बाव�लय� के पानी का प्रयोग �कले से संबद्ध बाग-बगीच� क� �संचाई हे तु �कया जाता था।
इस प्रकार मुगलकाल म� कुँओं के �नमार्ण एवं �व�वध तकनीक से उनम� से पानी �नकालकर �संचाई क� व्यवस्था से कृ�ष
भू�म के �वस्तार एवं खेत� से अ�धक उत्पादन क� आशा क� जा सकती है । यह अनुमान लगाना भी क�ठन नह�ं है �क इसके
कारण कृ�ष को अ�धक सूचारू व्यवस्था प्रदान क� जा सक�, क्य��क इससे जहाँ एक ओर �संचाई का जल �नयं�त्रत करने म�
सहायता �मल� वह�ं फसल� को जला�धक्य से बचाया भी जा सका। �वशेषकर पक्के कँु ओं के �वकास एवं फारसी रहट पर पँज
ू ी
�नवेश अ�धक मूल्य वाल� फसल� क� ओर बढ़ने का संकेत दे ता है । अतएव कृ�ष क� प्रग�त क� दृिष्ट से यह �वकास अ�त
महत्त्वपूणर् था।
नहर� —�संचाई के उद्देश्य से सोलहवीं शताब्द� के आरं �भक वष� म� बाबर ने भारत म� नहर� क� कृ�त्रम व्यवस्था का अभाव
बताया है �कं तु बाद म� कृ�ष भू�म �सं�चत करने हे तु कुछ नहर� के �नमार्ण के �ववरण �मलते ह�। भारत के उत्तर� मैदान,
�वशेष रूप से ऊपर� गंगा एवं �संधु �ेत्र, म� �संचाई हे तु अनेक नहर� �न�मर्त क� गई। नहर� दो प्रकार क� होती थीं, प्राकृ�तक एवं
मानव �न�मर्त। न�दय� द्वारा अपना मागर् बदल लेने के कारण प्राकृ�तक रूप से नहर� का उद्भव हो जाता था। ऐसी नहर� मुख्य
नद� से शाखाओं म� बँटकर प्रणा�लकाओं के रूप म� बहती थी, िजनका प्रयोग �संचाई हे तु �कया जाता था
मुगलकाल म� इस प्रकार से �न�मर्त कुछ प्राकृ�तक नहर� बहुत �वशाल थी। द��ण भारत म� इस काल म� कुछ छोट� नहर� के
प्रमाण �मलते ह�, �कं तु उत्तर� भारत म� वास्त�वक रूप से कई बड़ी नहर� का �नमार्ण �संचाई सु�वधाओं के �वस्तार और उन्ह�
प्रभावी बनाने क� दृिष्ट से �कया गया। सत्रहवीं शताब्द� म� शाहजहाँ द्वारा बड़ी संख्या म� नहर� के �नमार्ण का �ववरण
�मलता है । पूव� यमुना क� पुरानी नहर शाहजहाँ के ह� काल म� खोद� गई। �फरोजशाह के काल म� कृ�ष भू�म को �सं�चत करने
क� दृिष्ट से यमुना नद� के दस
ू रे �कनारे पर �न�मर्त करायी गई नहर क� मरम्मत अकबर के काल म� क� गई। बाद म� यह नहर
पुन: नष्ट हो गई िजसे शाहजहाँ ने अपने शासनकाल म� नये रूप म� बनवाया। फसल� क� बुवाई क� अव�ध म� इस नहर के
पानी को बाँटने क� व्यवस्था क� गई थी।

l=kh; dk;Z -III


fuEufyf[kr y?kq Js. kh iz'uksa ds mÙkj yxHkx 100 'kCnksa (izR ;sd) esa nhft,A izR ;sd iz'u 6 vadksa dk gSA

mÙkjµ

10
mÙkjµ क्षे�वाद को समझने के िलए, हम� क्षे� के िविभ� आयाम� को जानना होगा। भौगोिलक इकाई के �प म� क्षे�, एक दूसरे के
�प म� सीमां�कत है। एक सामािजक �णाली के �प म� क्षे�, िविभ� मनुष्य� और समूह� के बीच संबध ं को दशार्ता है। क्षे�
सांस्कृ ितक, आ�थक, राजनीितक या सैन्य क्षे�� म� एक संग�ठत सहयोग ह�। क्षे� िविश� पहचान, भाषा, संस्कृ ित और परं परा के
साथ एक िवषय के �प म� कायर् करता है।
क्षे�वाद एक िवचारधारा और राजनीितक आंदोलन है जो क्षे�� के कारण� को आगे बढ़ाना चाहता है। एक ���या के �प म� यह
रा� के भीतर और साथ ही रा� के बाहर यानी अंतरार्�ीय स्तर पर भूिमका िनभाता है। दोन� �कार के क्षे�वाद के अलग-अलग
अथर् ह� और सकारात्मक होने के साथ-साथ समाज, राजनीित, कू टनीित, अथर्�वस्था, सुरक्षा, संस्कृ ित, िवकास, वातार् आ�द पर
नकारात्मक �भाव पड़ता है।

11
अंतररा�ीय स्तर पर, क्षे�ीयता एक सामान्य ल�य को पूरा करने या साझा समस्या को हल करने के िलए �ांसनैशनल सहयोग को
संद�भत करती है या यह भूगोल, इितहास या आ�थक सुिवधा� से जुड़े पि�मी यूरोप, या दिक्षण पूवर् एिशया जैसे देश� के समूह
को संद�भत करती है। इस अथर् म� �यु�, क्षे�ीयता का अथर् इन देश� क� आ�थक िवशेषता� के बीच संबंध� को सुदढ़ृ करने के
�यास� से है।
रा�ीय स्तर पर क्षे�ीयता शब्द का दूसरा अथर् एक ऐसी ���या को संद�भत करता है िजसम� उप-राज्य अिभनेता तेजी से
शि�शाली हो जाते ह�, शि� क� �ीय स्तर से क्षे�ीय सरकार� तक जाती है। ये देश के भीतर के क्षे� ह�, जो संस्कृ ित, भाषा और अन्य
सामािजक-सांस्कृ ितक कारक� म� �िति�त ह�।
रा� के भीतर क्षे�वाद
य�द एक क्षे� या एक राज्य का िहत पूरे देश के िखलाफ या �कसी अन्य क्षे� / राज्य के िखलाफ श�ुतापूणर् तरीके से �कया जाता
है, और य�द इस तरह के किथत िहत� से टकराव को बढ़ावा �दया जाता है, तो इसे क्षे�वाद कहा जा सकता है।
य�द कोई �कसी के राज्य या क्षे� को िवकिसत करने या गरीबी दूर करने और वहां सामािजक न्याय बनाने के िलए िवशेष �यास
कर रहा है या कर रहा है, तो उसे क्षे�ीयता नह� कहा जा सकता है। क्षे�वाद का अथर् संिवधान क� संघीय िवशेषता� का बचाव
नह� करना है। अलग राज्य, स्वाय� क्षे� या राज्य स्तर से नीचे क� शि� के िवचलन के िलए कोई भी मांग, कभी-कभी क्षे�ीयता
के �प म� भी �िमत होती है।

mÙkjµ मुगल सा�ाज्य को "सुबास" म� िवभािजत �कया गया था िजसे आगे "सरकार", "परगना", और "�ाम" म� िवभािजत �कया
गया। अकबर के शासनकाल म� 15 सुबास (�ांत) थे, जो बाद म� औरं गज़ेब के शासनकाल म� बढ़कर 20 हो गए। अकबर ने
मनसबदारी �णाली शु� क�। "मंसब" शब्द धारक के पद को दशार्ता है। मनसबदारी नाग�रक और सैन्य दोन� थी। मुगल �शासन
के दौरान राजस्व सं�ह के 3 तरीके थे, यानी कं कु ट, राय और ज़बती।
लगभग 200 वष� तक भारतीय उपमहा�ीप म� एक दृढ़ शासन क� स्थापना करते �ए, मुगल� ने न के वल महान राजनीितक
ताकत के साथ एक ऐसा सा�ाज्य खड़ा �कया, बिल्क एक ऐसा �शासिनक सेटअप भी बनाया जो एक सुचा� कामकाज के िलए
शि� �दान करता हो। स�ा के क� �ीकरण से आ�थक और सांस्कृ ितक िवकास के िलए अनुकूल प�रिस्थितय� का िनमार्ण करने के
िलए, मुगल� ने �शासिनक मामल� को बड़ी गंभीरता और सटीकता के साथ देखा।
अकबर ने �ांतीय इकाइय� के क्षे�� को ठीक करके और स्थानीय प�रिस्थितय� के अनु�प मामूली संशोधन के अधीन एक समान
�शासिनक मॉडल क� स्थापना करके �ांतीय �शासन के िलए दृढ़ आधार िनधार्�रत �कया। �त्येक �ांत म� राज्य गितिविध क�
शाखा� का �ितिनिधत्व करने वाले अिधका�रय� का एक समूह होता था, जो �ांत� पर िनयं�ण अिधक �भावी बनाता था।
�ांतीय �शासिनक संरचना क� � सरकार क� �ितकृ ित थी।
िसपाह सालारोर नािज़म (गवनर्र) िजसे सबदर नाम से जाना जाता है, को सीधे स�ाट �ारा िनयु� �कया गया था और �त्येक
सूबे क� नाग�रक और �शासिनक िजम्मेदारी को देखने वाला मुख्य अिधकारी था।
बख्शी या भुगतान करने वाला अगला �ांतीय �ािधकरण था िजसम� सैन्य �ित�ान, मानसबदार� का वेतन और �ांत� के िलए
समाचार लेखन जैसे सामियक कतर्� थे।
हर सूबा (�ांत) म� दग चोक� क� स्थापना क� गई जो खु�फया और डाक सेवा का संचालन करती थी। वक़� नवीस और वक़�
िनगार ने राजा को सीधी �रपोटर् दी और सावनी िनगार गोपनीय �रपोटर् �दाता थे।
�ांतीय सदर, काजी आ�द ने क� �ीय �शासन के अिधका�रय� के �प म� �ांत� के भीतर समान कतर्�� का पालन �कया।
फौजदार (िजले के �शासिनक �मुख) और कोतवाल (कायर्कारी और मं�ी कतर्�� का पालन करते �ए)

mÙkjµ पहले दो मुगल शासक�-बाबर और �मायूँ के अधीन राजस्व �शासन का संचालन जारी रहा क्य��क यह �दल्ली के
सुल्तान� के अधीन था। बाबर अपने चार वष� के शासनकाल म� िविभ� यु�� म� इतना तल्लीन था �क उसे राजस्व मामल� को
सम�पत करने के िलए शायद ही कोई समय िमल सका।
उनके उ�रािधकारी, �मायूं ने भी �सहासन पर प�ंचने के तुरंत बाद खुद को मुसीबत म� पाया और अपना अिधकांश जीवन
िनवार्सन म� िबताया। तदनुसार, उन्ह� राजस्व �शासन म� सुधार करने का कोई मौका नह� िमला।
यह शेरशाह सूरी था, िजसने �मायूँ और अकबर के बीच हस्तक्षेप �कया, िजसने एक उत्कृ � भूिम राजस्व �णाली �दान क�।
उन्ह�ने राजस्व �णाली के काम का अच्छा ज्ञान हािसल �कया है, सेहसराम, खवासपुर और टांडा के जागीरदार के �प म�। जब वे
भारत के स�ाट बने तो उन्ह�ने इस �णाली को बड़े पैमाने पर लागू करने का �यास �कया। सबसे पहले उसने एक समान मानक
के अनुसार भूिम क� माप का आदेश �दया।
खेती योग्य भूिम को तीन �ेिणय� म� िवभािजत �कया गया था — अच्छी, बहरी और खराब। इन तीन� का औसत �ित बीघा भूिम
के उत्पादन को िनधार्�रत करने के िलए िलया गया था। सकल उपज का एक ितहाई िहस्सा राज्य का िहस्सा तय करता था। यह
नकद और तरह दोन� म� भुगतान �कया जा सकता है, हालां�क पूवर् को �ाथिमकता दी गई थी।

12
इसके अित�र� �त्येक कृ षक को राज्य को �दए जाने वाले राजस्व का 21/2 �ितशत का भुगतान करना होता था, इसके बदले
उसे अकाल और अन्य िवपि�य� के समय ब�त सस्ती दर� पर अनाज िमलता था। राजस्व का भुगतान या तो माओदम� के
माध्यम से �कया जा सकता है या सीधे परगना कोषागार म�।
शेरशाह ने �कसान� के कल्याण पर ब�त ध्यान �दया और इसिलए आपदा� के समय म� राजस्व को कम या कम �कया। उन्ह�ने
मूल्यांकन के समय राजस्व अिधका�रय� को उ�रदायी होने के िलए िविश� िनद�श जारी �कए थे, ले�कन एक बार मूल्यांकन �कए
जाने के बाद कर को गंभीरता के साथ एक� �कया जाना था।
सुल्तान ने उनके आचरण पर नज़र रखी ता�क वे �कसान� का शोषण या अत्याचार न कर� । शेर शाह ने फसल� को न� करने पर
सैिनक� को कड़ी सजा दी। इस �कार शेर शाह �ारा स्थािपत राजस्व �णाली कु शल और लोचदार थी।
शेर शाह क� मृत्यु के बाद कु छ समय के िलए देश म� पूणर् अ�वस्था थी और राजस्व �शासन के क्षे� म� उनके �ारा �कए गए
ब�मूल्य काय� को न� कर �दया गया था।
अकबर, जो �मायूँ के उ�रािधकारी थे, उनके प�र�हण के समय के वल एक ब�ा था। उसने पहले सा�ाज्य क� सुरक्षा और समेकन
पर ध्यान �दया। बाद म� उन्ह�ने खुद को �सहासन पर बैठा िलया, उन्ह�ने राजस्व �शासन पर ध्यान �दया और शेरशाह �ारा
स्थािपत राजस्व �णाली म� सुधार के �यास �कए। इसम� उन्ह� मुज़फ़्फ़र ख़ान, इितमाद ख़ान और राजा टोडर मल जैसे िवशेषज्ञ�
का सहयोग िमला।
सबसे पहले अकबर ने भूिम के बारे म� पूरी जानकारी एक� क� और पूरी भूिम राजस्व �णाली को पुनगर्�ठत �कया। उसने अपने
सा�ाज्य के आठ �ांत� म� ज़बती �णाली क� शु�आत क�। इस �णाली के तहत खेती योग्य जमीन� को जरीब के �प म� जाना जाने
वाला मानक गज से मापा जाता था जो शेर शाह �ारा अपनाई गई माप िविधय� पर एक सुधार था।
अफसर� को सख्त िनद�श �दए गए थे, �क नापी का काम ईमानदारी से कर� और काश्तकार� से कोई �र�त न ल�।
भूिम क� मापी के बाद उसने राज्य के भू-राजस्व के िहस्से का िनधार्रण करने के उ�ेश्य से भूिम क� उपज का पता लगाने क�
कोिशश क�। इस �योजन के िलए भूिम को चार �ेिणय� म� वग�कृ त �कया गया था। पोलाज भूिम क� पहली �ेणी थी जो हमेशा
खेती म� होती थी।
पूरे मौसम म� मौसम के अनुसार इसक� कु छ फसल तैयार थी। भूिम क� दूसरी �ेणी पा�ती थी, िजसे उवर्रता को �ा� करने के
िलए एक या दो साल के िलए परती छोड़ना पड़ा। चचर भूिम क� तीसरी �ेणी थी िजसे उवर्रता हािसल करने के िलए तीन या
चार साल तक खेती से बाहर रहना पड़ता था।
भूिम क� चौथी �ेणी बंजार या बंजर भूिम के �प म� जानी जाती थी। इसे पांच साल या उससे अिधक के िलए छोड़ �दया जाना
था। भूिम क� पहली दो �ेिणय� को उनक� उवर्रता के अनुसार तीन �कार� म� उप-िवभािजत �कया गया था - अच्छा, गँवार और
बुरा। तीन �ेड क� भूिम क� उपज क� गणना क� गई और उनके औसत को भूिम क� वास्तिवक उपज माना गया। इस वास्तिवक
उपज के आधार पर राज्य का िहस्सा तय �कया गया था।
राज्य का यह िहस्सा िम�ी क� उवर्रता और िपछले दस वष� क� उपज के आधार पर भूिम क� िविभ� �ेिणय� के िलए िनधार्�रत
�कया गया था। पोलाज और िपनाउटी के संबंध म� राज्य क� िहस्सेदारी तीन �ेड क� औसत उपज का एक ितहाईतय क� गई थी।
चहार भूिम पर राज्य का िहस्सा पहले वषर् म� 1/15, दूसरे वषर् म� 2/15, तीसरे वषर् म� 1/5, चौथे वषर् म� 1/4 और पांचव� वषर् म�
1/3 था।

mÙkjµ �दल्ली सल्तनत के �प म� जाना जाने वाला ममलुक वंश कई मामल� म� भारत क� िपछली स�ा से अलग था। यह
इस्लािमक िस�ांत� पर भारत म� स्थािपत होने वाला पहला राज्य था, हालां�क श�रया संचािलत नह� था। यह पूवर्वत� शासक� के
मु� दास यो�ा� �ारा शािसत एक राजवंश भी था। इस �कार पदानु�म के िवचार, िजस पर भारतीय राजनीित अब तक खड़ी
थी, कु छ हद तक िहल गया था। इससे भी महत्वपूणर् बात यह है �क एक पु�ष शासक राजनीितक माहौल म� �सहासन के िलए एक
मिहला शासक को खड़ा करना भी एकमा� राजवंश था। रिज़या क� िनयुि� इल्तुतमुश के वा�रस के �प म� और �फर शासक के
�प म� जमकर लड़ी गई और गुटीय राजनीित के कारण उसका शासनकाल ब�त कम कट गया क्य��क वह एक मिहला थी।
रिज़या सुल्तान—ममलुक वंश क� न�व कु तुब-उद-ऐबक ने रखी थी ले�कन इल्तुतमुश �ारा मजबूत �कया गया। उसने 1210-
1230 तक शासन �कया। इल्तुतमुश के तीन बेटे और एक बेटी थी। सबसे बड़ा पु� नािसर-उद-दीन महमूद था, िजसे इल्तुतमुश ने
अपना उ�रािधकारी नािमत �कया था, ले�कन बंगाल म� शासन करते समय उसक� अचानक मृत्यु हो गई। उसके अन्य पु� राज्य
पर शासन करने क� िजम्मेदारी लेने म� असमथर् थे और इल्तुतमुश यह जानता था। इस �कार उन्ह�ने अपनी बेटी रिजया को एक
राजा क� भूिमका के िलए मानना शु� कर �दया। वह स्वाभािवक �प से सक्षम और अच्छी तरह से िशिक्षत थी। अपनी क्षमता�
का परीक्षण करने के िलए इल्तुतमश ने उसे ग्वािलयर अिभयान पर जाते समय �दल्ली का �शासन करने का िजम्मा �दया।
रिजया ने अपने कतर्�� का कु शलता से िनवर्हन �कया और अपने िपता से �शंसा �ा� क�। तुरंत, इल्तुतमुश ने उसे अपना
उ�रािधकारी घोिषत �कया और इल्तुतमुश और रिज़या के नाम� के साथ िस�े इस घटना (हबीब और िनज़ामी, 230 231) को
मनाने के िलए अटक गए। हालाँ�क, स्वयं राजा �ारा उसके उ�रािधकार क� सावर्जिनक घोषणा के बावजूद, �सहासन पर उसका
�वेश आसान नह� था। इल्तुतमुश क� मृत्यु के तुरंत बाद, उनके बेटे म� से एक �कनु�ीन �फरोज को �ांतीय अिधका�रय� के
शि�शाली अनुभाग �ारा �सहासन पर िबठाया गया। उ�रािधकार मु�े के संबंध म� �दवंगत राजा क� अंितम इच्छा के संबंध म�

13
कु छ िववाद है। बरनी, का मानना है �क ��ु �ीन और रिजया को इल्तुतमुश �ारा उनक� मृत्यु शय्या पर वा�रस नह� बनाया गया
था, िजसका िविधवत पालन उनके अिधकारी करते थे, िजनम� से अिधकांश गुलाम इल्तुतमुश खुद (हबीब और िनज़ामी, 232)
�ारा लाए और उठाए गए। हालाँ�क, बरनी को पढ़ते समय हम� उनके खाते म� िनिहत पूवार्�ह� और सामान्य �प से राजनीित म�
मिहला� के िलए उनक� नापसंदगी और िवशेष �प से शासक के �प म� रिजया को नह� भूलना चािहए।
मुगल� ने मध्यकालीन भारत का सबसे बड़ा सा�ाज्य स्थािपत �कया और उनक� वैधता भारतीय इितहास म� अि�तीय थी। बाबर
ने �दल्ली को जीतकर 1525-26 म� सा�ाज्य क� न�व रखी। मुगल� ने भारतीय भूिम पर लंबे समय तक चलने वाली िमसाल� और
संस्थाएँ स्थािपत क�। बाबर का पौ� अकबर िजसके अधीन सा�ाज्य भौगोिलक �प से िवकिसत �आ और सांस्कृ ितक �प से भी
इस सा�ाज्य का वास्तुकार था। उनके शासन के बाद से कई बदलाव �ए, कु छ अच्छे तो कु छ अच्छे नह�। मुगल सा�ाज्य क�
राजनीित म� मिहला� क� भूिमका भी कई मायन� म� अनूठी थी। इस मु�े पर अहंकार के साथ हम मुगल युग को पूवर्-अकबर और
अकबर को भाग� म� िवभािजत कर सकते ह�। अकबर के अधीन सा�ाज्य ने अपने दृि�कोण म� संस्थागत भ�ता और कु छ कठोरता
का अिध�हण �कया। इसके कई कारण थे िजन पर बाद म� चचार् क� जाएगी। हालां�क अकबर से पहले, राजनीितक िस्थित ब�त
अिधक तरल थी और इसिलए खुली थी, इस तथ्य को देखते �ए �क बाबर और �मायूँ दोन� ने अपना अिधकांश समय जगह-जगह
भटकने (अिनि�त जीवन) और राजनीितक और �ि�गत अिस्तत्व के िलए लगभग िनरं तर यु� म� िबताया। इस तरलता ने
अपने समय क� मिहला� को महत्वपूणर् और �त्यक्ष राजनीितक भूिमकाएँ िनभाने क� अनुमित दी, अथार्त,् मध्यस्थता और
�शासन करने आ�द।

14

You might also like