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पाल‌‌वंश‌‌का‌‌इतिहास‌‌

   ‌
 ‌
पाल‌वं‌ श‌के
‌ ‌शा‌ सकों‌ने ‌ ‌पू
‌ र्वी‌‌भारत‌प ‌ र‌लं‌ बे‌स
‌ मय‌के‌ ‌लि
‌ ए‌न ‌ ‌के
‌ वल‌रा‌ जनीतिक‌स्‌ थायित्व‌प्र ‌ दान‌कि
‌ या‌ब ‌ ल्कि‌वे
‌ ‌स्थि
‌ र‌जी‌ वन‌‌ 
की‌‌परिस्थितियां‌‌भी‌प्र
‌ दान‌कि‌ ये।‌उ ‌ न्होंने‌कृ
‌ षि‌के
‌ ‌वि
‌ कास‌‌के ‌‌लिए‌‌तालाबों-नहरों‌का ‌ ‌नि‌ र्माण‌व
‌ ‌वि
‌ कास‌कि ‌ या‌,‌‌व्या
‌ पार ‌‌
वाणिज्य‌को‌ ‌ब ‌ ढ़ावा‌दि
‌ या‌,‌‌‌कला‌‌व‌सा ‌ हित्य‌को ‌ ‌सं‌ रक्षण‌प्र
‌ दान‌कि‌ या‌,‌‌मं
‌ दिरों‌का
‌ ‌नि
‌ र्माण‌क ‌ राया‌त‌ था‌पु
‌ राने‌वि
‌ श्वविद्यालय‌का
‌  ‌‌
जीर्णोद्धार‌व
‌ ‌‌नए‌‌विश्वविद्यालय‌‌का‌नि ‌ र्माण‌भी ‌ ‌क‌ राया।  ‌‌ ‌
पाल‌‌शासकों‌‌ने‌प्र
‌ तिहारों‌‌व‌‌राष्ट्र कू टों‌के
‌ ‌सा‌ थ‌‌कन्नौज‌के ‌ ‌त्रि
‌ पक्षीय‌सं
‌ घर्ष‌में
‌ ‌म
‌ हत्वपूर्ण‌भू
‌ मिका‌नि‌ भाई‌औ ‌ र‌क ‌ ई‌बा
‌ र‌स‌ फलता‌‌ 
भी‌प्रा
‌ प्त‌‌किये।‌‌   ‌
 ‌
 ‌

पाल‌‌वंश‌‌:‌【
‌ ‌770ई०‌‌–‌‌1161ई०‌】 ‌ ‌
 ‌
 ‌
जानकारी‌के ‌ ‌स्रो
‌ त‌:‌ ‌पा‌ ल‌‌वंश‌‌की‌जा ‌ नकारी‌ह ‌ में‌पु
‌ रातात्विक‌‌,‌‌साहित्यिक‌त ‌ था‌वि
‌ देशी‌वि‌ वरणों‌ती
‌ नों‌से
‌ ‌हो
‌ ती‌है
‌ ।‌  ‌
पुरातात्विक‌स्रो
‌ तों‌में
‌ ‌इ‌ स‌‌वंश‌‌के ‌कु
‌ छ‌प्र
‌ मुख‌ले‌ ख‌आ ‌ ते‌हैं
‌ ‌।‌ ‌ये
‌ ‌‌निम्नवत्‌हैं
‌ ‌‌–‌‌   ‌
धर्मपाल‌का‌ ‌खा
‌ लिमपुर‌ले ‌ ख‌‌,‌‌दे वपाल‌का ‌ ‌मुं
‌ गेर‌ले
‌ ख‌‌,‌‌नारायण‌पा ‌ ल‌का‌ ‌भा ‌ गलपुर‌ता ‌ म्रपत्र‌अ
‌ भिलेख‌‌,‌ना
‌ रायण‌पा‌ ल‌का ‌  ‌‌
बादल‌स्तं
‌ भ‌‌लेख‌‌,‌म‌ हिपाल‌प्र ‌ थम‌के ‌ ‌बा
‌ नगढ़‌‌,‌‌नालंदा‌त ‌ था‌मु ‌ जफ्फरपुर‌से ‌ ‌प्रा
‌ प्त‌ले
‌ ख‌आ‌ दि।‌‌   ‌
‌साहित्यिक‌स्रो
‌ तों‌में‌ ‌सं
‌ ध्याकर‌‌नन्दीकृ त‌‌'रामचरित'‌‌‌उल्लेखनीय‌है ‌ ।‌इ
‌ सके ‌अ ‌ लावा‌ति
‌ ब्बती‌ले‌ खक‌ता‌ रानाथ‌के‌ ‌ग्रं
‌ थ‌भी
‌ ‌इ‌ स‌‌ 
वंश‌की‌ ‌‌महत्वपूर्ण‌‌जानकारियां‌‌दे ते‌हैं‌ ।‌  ‌
 ‌

पाल‌‌वंश‌‌के ‌‌पूर्व‌‌व्याप्त‌अ
‌ राजकता–‌  ‌
 ‌
बंगाल‌प ‌ र‌‌हर्ष‌की
‌ ‌वि
‌ जय‌औ ‌ र‌बा
‌ द‌में
‌ ‌6‌ 37‌ई‌ ०‌में
‌ ‌‌गौड़‌न ‌ रे श‌श ‌ शांक‌की ‌ ‌‌मृत्यु‌‌‌के ‌प
‌ श्चात‌बं
‌ गाल‌‌में‌‌अराजकता‌का ‌ ‌दौ‌ र‌‌ 
शुरू‌हु
‌ आ।‌य ‌ ह‌ल
‌ गभग‌‌1‌श‌ ताब्दी‌त
‌ क‌च ‌ ला।‌बा
‌ द‌में
‌ ‌ह
‌ र्षवर्धन‌की‌ ‌मृ‌ त्यु‌के
‌ ‌बा
‌ द‌क ‌ श्मीर‌के ‌ ‌शा
‌ सक‌ल ‌ लितादित्य‌‌ 
मुक्तापीड़‌‌‌ने‌‌कन्नौज‌‌पर‌अ ‌ धिकार‌क ‌ रने‌‌के ‌बा
‌ द‌बं‌ गाल‌के‌ ‌क्षे
‌ त्र‌में
‌ ‌‌भी‌आ‌ क्रमण‌कि ‌ या‌औ ‌ र‌लू
‌ टपाट‌क ‌ रके ‌ही
‌ ‌सं
‌ तुष्ट‌हो
‌ कर‌‌ 
लौट‌ग‌ या।‌इ ‌ सी‌‌बीच‌बं
‌ गाल‌‌को‌कु
‌ छ‌अ ‌ न्य‌बा
‌ ह्य‌आ‌ क्रमणों‌‌का‌भी ‌ ‌सा‌ मना‌क ‌ रना‌प ‌ ड़ा‌क्यों
‌ कि‌उ ‌ स‌स‌ मय‌व ‌ ह‌क्षे
‌ त्र‌शा
‌ सक‌‌ 
विहीन‌‌क्षेत्र‌‌था‌जि
‌ स‌प ‌ र‌को
‌ ई‌भी
‌ ‌आ
‌ सानी‌‌से‌अ ‌ भियान‌क ‌ र‌स ‌ कता‌था ‌ ।‌‌   ‌

वहां‌के
‌ ‌‌लोगों‌द्वा
‌ रा‌‌गोपाल‌‌को‌‌शासक‌चु
‌ नना‌‌:  
‌‌ ‌
 ‌
ऐसे‌में
‌ ‌व
‌ हां‌के
‌ ‌स्‌ थानीय‌कु
‌ लीनों‌‌द्वारा‌य
‌ ह‌अ‌ नुभव‌कि
‌ या‌ग‌ या‌कि
‌ ‌य‌ दि‌य
‌ हां‌ए
‌ क‌श‌ क्तिशाली‌कें
‌ द्रीय‌शा
‌ सन‌स्‌ थापित‌कि ‌ या‌‌ 
जाता‌‌तो‌इ ‌ स‌प्र
‌ कार‌की‌ ‌अ‌ राजकता‌व ‌ ‌अ
‌ व्यवस्था‌की
‌ ‌‌स्थिति‌‌को‌सु
‌ धारा‌जा
‌ ‌स‌ कता‌था‌ ।‌अ
‌ तः ‌‌8वीं‌स
‌ दी‌के
‌ ‌म‌ ध्य‌में
‌ ‌अ‌ शांति‌‌ 
एवं‌अ
‌ व्यवस्था‌‌से‌‌ऊब‌क ‌ र‌बं
‌ गाल‌के ‌ ‌प्र
‌ मुख‌ना
‌ गरिकों‌ने
‌ ‌गो
‌ पाल‌ना‌ मक‌ए ‌ क‌सु
‌ योग्य‌से
‌ नानायक‌को ‌ ‌अ‌ पना‌शा ‌ सक‌चु ‌ न‌‌ 
लिया।‌इ ‌ से‌म‌ त्स्य‌न्या
‌ य‌‌‌कहा‌ग ‌ या।‌‌   ‌
 ‌

पाल‌‌वंश‌‌की‌‌स्थापना‌‌:  
‌‌ ‌
 ‌
सेनानायक‌चु ‌ ना‌‌जाने‌के
‌ ‌उ
‌ परांत‌‌गोपाल‌‌‌ने‌7‌ 50‌ई
‌ ०‌में
‌ ‌ए
‌ क‌न
‌ ए‌रा
‌ जवंश‌‌की‌स्‌ थापना‌की
‌ ‌जो ‌ ‌भा
‌ रतीय‌इ ‌ तिहास‌में
‌ ‌'‌पाल‌वं
‌ श'‌‌ 
के ‌‌रूप‌में
‌ ‌वि
‌ ख्यात‌हु
‌ आ।‌य ‌ ह‌‌एक‌क्ष
‌ त्रिय‌रा
‌ जवंश‌था‌ ‌जि
‌ सने‌बं
‌ गाल‌में
‌ ‌ल
‌ गभग‌4 ‌ 00‌व
‌ र्षों‌‌‌तक‌रा
‌ ज्य‌‌किया।‌इ ‌ तने‌‌ 
दीर्घकालिक‌शा ‌ सनकाल‌में ‌ ‌पा
‌ ल‌‌वंश‌के
‌ ‌इ‌ तिहास‌में
‌ ‌रा
‌ जनीतिक‌ए ‌ वं‌सां
‌ स्कृ तिक‌‌‌दोनों‌‌के ‌‌दृश्यों‌से
‌ ‌बं
‌ गाल‌की
‌ ‌‌अभूतपूर्व‌‌ 
प्रगति‌हु
‌ ई।‌  ‌
 ‌

पाल‌‌वंश‌‌का‌‌इतिहास‌‌: ‌‌  ‌
 ‌
पाल‌‌वंश‌‌का‌शा
‌ सन‌पू
‌ र्वी‌भा
‌ रत‌प ‌ र‌7
‌ 50‌ई‌ ०‌से‌ ‌1 ‌ 161‌‌ई०‌‌‌तक‌र‌ हा।‌इ‌ सका‌प्र‌ थम‌शा
‌ सक‌‌गोपाल‌र‌ हा‌इ‌ सने‌ही
‌ ‌पा
‌ ल‌वं ‌ श‌‌ 
की‌‌स्थापना‌‌750‌‌ई०‌में
‌ ‌की
‌ ‌‌थी।‌‌उसका‌पु ‌ त्र‌ध
‌ र्मपाल‌इ‌ स‌वं
‌ श‌का
‌ ‌प ‌ हला‌म‌ हान‌शा‌ सक‌हु‌ आ।‌इ‌ सके ‌ही
‌ ‌स
‌ मय‌में
‌ ‌पा
‌ ल‌वं ‌ श‌‌ 
का‌‌विस्तार‌हु
‌ आ‌औ
‌ र‌इ ‌ सी‌के‌ ‌स
‌ मय‌में
‌ ‌क
‌ न्नौज‌त्रि‌ पक्षीय‌‌संघर्ष‌‌‌का‌आ‌ रं भ‌‌हुआ।‌इ‌ सके ‌बा
‌ द‌दे
‌ वपाल‌शा‌ सक‌ब ‌ ना।‌‌   ‌

 ‌

गोपाल‌‌:‌‌750–770‌‌ई०‌  ‌
 ‌
पाल‌वं ‌ श‌की ‌ ‌स्‌ थापना‌‌‌का‌श्रे ‌ य‌गो
‌ पाल‌‌‌को‌जा ‌ ता‌‌है ।‌‌गोपाल‌क्ष‌ त्रिय‌था
‌ ‌‌तथा‌इ‌ सके ‌पि‌ ता‌का‌ ‌ना ‌ म‌व ‌ प्यात‌‌‌था‌‌जो‌से
‌ नानी‌के
‌  ‌‌
रूप‌में
‌ ‌प्र
‌ सिद्ध‌था ‌ ।‌‌   ‌
गोपाल‌‌चुनाव‌के ‌ ‌स ‌ मय‌का ‌ ‌‌एक‌‌मुख्य‌ने‌ ता‌था ‌ ‌जि
‌ स‌का ‌ रण‌उ ‌ सने‌शा ‌ सक‌औ ‌ र‌से‌ नानी‌के ‌ ‌रू‌ प‌में
‌ ‌प्र
‌ सिद्धि‌पा‌ ई।‌गो‌ पाल‌ने
‌  ‌‌
बंगाल‌में‌ ‌शां
‌ ति‌‌और‌सु ‌ व्यवस्था‌स्‌ थापित‌की ‌ ‌त ‌ था‌वि
‌ जयें‌की‌ ।‌ उ ‌ सका‌आ ‌ रं भिक‌रा ‌ ज्य‌पू
‌ र्वी‌बं
‌ गाल‌में
‌ ‌था
‌ ‌किं
‌ तु‌अं ‌ तिम‌स‌ मय‌‌ 
तक‌‌उसने‌‌पूरे ‌बं ‌ गाल‌प ‌ र‌अ‌ पना‌अ ‌ धिकार‌‌सुदृढ़‌क ‌ र‌लि‌ या।‌‌   ‌
देवपाल‌‌के ‌मुं ‌ गेर‌ले‌ ख‌में ‌ ‌व
‌ र्णन‌मि
‌ लता‌है‌ ‌कि
‌ ‌गो ‌ पाल‌ने ‌ ‌स
‌ मुद्र‌त
‌ ट‌त ‌ क‌की
‌ ‌पृ‌ थ्वी‌की
‌ ‌वि‌ जय‌की ‌ ।‌किं
‌ तु‌य‌ ह‌व ‌ र्णन‌अ
‌ लंकारिक‌‌ 
मात्र‌है
‌ ‌‌संभवत‌उ ‌ सने‌‌बंगाल‌‌के ‌‌समुद्र‌त ‌ ट‌त ‌ क‌वि ‌ जय‌की ‌ ‌थी
‌ ।‌व ‌ र्तमान‌स
‌ मय‌में‌ ‌ह
‌ में‌गो
‌ पाल‌की ‌ ‌रा
‌ जनीतिक‌उ ‌ पलब्धियों‌के
‌  ‌‌
विषय‌‌में‌‌इससे‌अ ‌ धिक‌‌कु छ‌ज्ञा ‌ त‌‌नहीं‌है
‌ ।‌‌   ‌
 ‌
गोपाल‌‌एक‌बौ ‌ द्ध‌म ‌ तावलंबी‌शा ‌ सक‌था ‌ ‌‌तथा‌उ ‌ सने‌ना‌ लंदा‌में‌ ‌ए
‌ क‌‌विहार‌का ‌ ‌नि
‌ र्माण‌क ‌ रवाया।‌ता ‌ रानाथ‌‌‌बताता‌‌है ‌कि‌  ‌‌
गोपाल‌‌ने‌ओ ‌ तान्तपुर‌का ‌ ‌प्र
‌ सिद्ध‌वि‌ हार‌‌‌बनवाया।‌‌   ‌

 ‌

धर्मपाल‌‌:‌‌(770‌‌ई०‌‌–‌‌810‌ई
‌ ०)‌  ‌
 ‌
गोपाल‌‌के ‌बा
‌ द‌उ ‌ सका‌उ ‌ त्तराधिकारी‌उ ‌ सका‌पु ‌ त्र‌‌धर्मपाल‌‌‌पाल‌वं‌ श‌की
‌ ‌ग
‌ द्दी‌प
‌ र‌‌बैठा।‌‌   ‌
‌इस‌स‌ मय‌त ‌ क‌‌उत्तर‌भा ‌ रत‌की ‌ ‌रा‌ जनीतिक‌स्थि‌ ति‌का ‌ फी‌ज ‌ टिल‌हो ‌ ‌चु
‌ की‌थी
‌ ।‌उ ‌ सके ‌प्र
‌ तिद्वंदी‌के ‌ ‌रू‌ प‌में
‌ ‌‌राजपूताना‌औ ‌ र‌‌ 
मालवा‌के‌ ‌‌क्षेत्र‌‌में‌गु
‌ र्जर‌प्र
‌ तिहारों‌‌का‌उ‌ दय‌हो ‌ ‌चु
‌ का‌है ‌ ‌त
‌ था‌द
‌ क्षिण‌भा
‌ रत‌के
‌ ‌द‌ क्कन‌क्षे‌ त्र‌प
‌ र‌रा
‌ ष्ट्र कू ट‌शा
‌ सन‌क ‌ र‌र‌ हे‌थे
‌ ।‌इ
‌ न्ही‌‌ 
के ‌‌साथ‌उ
‌ त्तर‌भा ‌ रत‌‌में‌व ‌ र्चस्व‌के
‌ ‌‌लिए‌ध
‌ र्मपाल‌का‌ ‌सं ‌ घर्ष‌हु
‌ आ।‌   ‌
 ‌
 ‌
प्रारम्भिक‌प
‌ राजय‌‌:  
‌‌ ‌
 ‌
जिस‌स ‌ मय‌पा ‌ ल‌वं
‌ श‌में ‌ ‌ध‌ र्मपाल‌का
‌ ‌शा ‌ सन‌था ‌ ‌उ ‌ स‌स‌ मय‌उ ‌ सका‌प्र
‌ तिहार‌प्र‌ तिद्वंदी‌व‌ त्सराज‌‌‌था।‌‌इससे‌प ‌ हले‌‌कि‌ध ‌ र्मपाल‌‌ 
अपनी‌स्थि‌ ति‌म ‌ जबूत‌क ‌ र‌पा ‌ ता‌व
‌ त्सराज‌ने ‌ ‌ध
‌ र्मपाल‌प ‌ र‌आ
‌ क्रमण‌क ‌ र‌गं
‌ गा‌के ‌ ‌दो
‌ आब‌में ‌ ‌कि‌ सी‌स्‌ थान‌प ‌ र‌उ‌ से‌प
‌ राजित‌‌ 
किया।‌रा ‌ धनपुर‌ले ‌ ख‌में ‌ ‌‌वर्णन‌है
‌ ‌कि
‌ ‌"‌ वत्सराज‌ने ‌ ‌गौ
‌ ड़‌‌(बंगाल)‌रा‌ जा‌‌का‌रा ‌ जकीय‌ऐ ‌ श्वर्य‌सु
‌ गमतापूर्वक‌ह ‌ स्तगत‌क ‌ र‌लि‌ या‌‌ 
,‌‌वह‌गौ
‌ ड़‌रा‌ जा‌का
‌ ‌‌2‌श्वे‌ त‌रा‌ जक्षत्रों‌को
‌ ‌उ ‌ ठाकर‌ले ‌ ‌ग
‌ या।‌‌   ‌
 ‌
परं तु‌ब
‌ च्चा‌‌राजा‌रा
‌ ष्ट्र कू ट‌शा‌ सक‌ध्रु ‌ व‌‌‌से‌प
‌ राजित‌‌हुआ‌‌और‌रा ‌ जपूताना‌के‌ ‌रे‌ गिस्तान‌में‌ ‌भा
‌ गने‌को ‌ ‌वि
‌ वश‌हु ‌ आ।‌ध्रु
‌ व‌ने
‌  ‌‌
धर्मपाल‌को ‌ ‌भी‌ ‌प
‌ राजित‌कि ‌ या‌औ ‌ र‌द ‌ क्षिण‌की
‌ ‌ओ ‌ र‌लौ‌ ट‌ग ‌ या।‌इ
‌ सका‌ध ‌ र्मपाल‌ने ‌ ‌पू
‌ रा‌ला
‌ भ‌उ ‌ ठाया।‌‌   ‌
x‌  ‌

कन्नौज‌‌विजय‌‌:  
‌‌ ‌
 ‌
ध्रुव‌द्वा
‌ रा‌‌वत्सराज‌‌की‌प ‌ राजय‌का ‌ ‌ध‌ र्मपाल‌को‌ ‌भ‌ रपूर‌‌लाभ‌ मि‌ ला।‌स ‌ र्वप्रथम‌ध ‌ र्मपाल‌ने ‌ ‌क
‌ न्नौज‌प ‌ र‌आ ‌ क्रमण‌‌‌के ‌क ‌ र‌व ‌ हां‌‌ 
के ‌‌शासक‌इ ‌ न्द्रायुध‌‌को‌प
‌ राजित‌क ‌ र‌अ ‌ पने‌अ ‌ धीन‌शा
‌ सक‌च ‌ क्रायुध‌‌‌को‌बै‌ ठाया।‌ इ ‌ सके ‌‌बाद‌उ ‌ सने‌क‌ न्नौज‌में
‌ ‌ए
‌ क‌द ‌ रबार‌‌ 
का‌‌आयोजन‌कि ‌ या।‌‌इसमें‌ब ‌ हुत‌से
‌ ‌सा
‌ मंत‌स ‌ रदार‌स‌ म्मिलित‌हु ‌ ए‌जि
‌ नमें‌भो ‌ ज‌‌,‌‌मत्स्य‌‌,‌‌मद्र‌‌,‌कु
‌ रु‌‌,‌‌यदु‌‌,‌‌यवन‌‌,‌‌अवन्ति‌‌, ‌‌
गंधार‌‌और‌की ‌ र‌के ‌ ‌शा
‌ सक‌प्र‌ मुख‌हैं
‌ ।‌‌   ‌
खलिमपुर‌‌तथा‌‌भागलपुर‌के ‌ ‌ले
‌ खों‌से
‌ ‌प‌ ता‌च‌ लता‌है
‌ ‌कि
‌ ‌ कि
‌ न‌शा ‌ सकों‌ने ‌ ‌ध‌ र्मपाल‌के ‌ ‌द‌ रबार‌‌में‌कां‌ पते‌हु‌ ए‌मु‌ कु ट‌से
‌  ‌‌
सम्मानपूर्वक‌सि ‌ र‌झु ‌ काया‌औ‌ र‌‌उसकी‌अ ‌ धिराजी‌स्वी
‌ कार‌‌की।‌इ ‌ स‌प्र
‌ कार‌व ‌ ह‌इ‌ स‌का ‌ ल‌मे ‌ ‌स‌ मस्त‌उ ‌ त्तरापथ‌का ‌ ‌स्वा
‌ मी‌ब ‌ न‌‌ 
बैठा।‌‌   ‌
11वीं‌स ‌ दी‌के
‌ ‌गु‌ जरात‌‌के ‌क‌ वि‌सो‌ ड्ढल‌‌‌ने‌‌धर्मपाल‌को
‌ ‌‌'उ
‌ त्तरापथस्वामी‌'‌‌की‌‌उपाधि‌से ‌ ‌वि
‌ भूषित‌कि ‌ या।‌‌   ‌
 ‌

धर्मपाल‌‌की‌‌पुनः ‌‌पराजय‌‌: ‌ ‌
 ‌
धर्मपाल‌उ ‌ त्तर‌भा‌ रत‌के‌ ‌‌नवस्थापित‌सा ‌ म्राज्य‌को ‌ ‌अ
‌ क्षुण्ण‌न
‌ हीं‌‌रख‌स ‌ का।‌शी‌ घ्र‌ही‌ ‌ध‌ र्मपाल‌को
‌ ‌ए‌ क‌औ ‌ र‌चु ‌ नौती‌का ‌ ‌सा‌ मना‌‌ 
करना‌प ‌ ड़ा।‌  ‌
‌प्रतिहार‌शा‌ सक‌ना ‌ गभट्ट‌‌द्वितीय‌ने ‌ ‌क
‌ न्नौज‌वि ‌ जय‌‌‌कर‌‌लिया‌औ ‌ र‌उ ‌ सके ‌शा‌ सक‌‌चक्रायुध‌को ‌ ‌व ‌ हाँ‌से
‌ ‌ख
‌ देड़‌‌दिया।अतः  ‌‌
नागभट‌द्वि ‌ तीय‌औ ‌ र‌ध ‌ र्मपाल‌का ‌ ‌‌युद्ध‌अ
‌ वश्यम्भावी‌था ‌ ।‌स ‌ म्भवतः ‌मुं‌ गेर‌के
‌ ‌नि
‌ कट‌ए ‌ क‌घ ‌ मासान‌यु ‌ द्ध‌हु
‌ आ‌जि ‌ समें‌ना ‌ गभट्ट‌ने ‌  ‌‌
धर्मपाल‌को ‌ ‌प ‌ रास्त‌कि
‌ या।‌‌   ‌
किन्तु‌ए‌ क‌बा ‌ र‌फि ‌ र‌रा‌ ष्ट्र कू ट‌शा
‌ सक‌गो ‌ विंद‌‌तृतीय‌‌‌ने‌‌नागभट्ट‌द्वि ‌ तीय‌को ‌ ‌प ‌ राजित‌क ‌ र‌दि
‌ या।‌इ ‌ सके ‌बा‌ द‌ध ‌ र्मपाल‌औ ‌ र‌‌ 
चक्रायुध‌ने ‌ ‌य
‌ ह‌सो‌ चकर‌‌उसकी‌अ ‌ धीनता‌स्वी ‌ कार‌ली ‌ ‌कि‌ ‌गो
‌ विंद‌‌तृतीय‌के ‌ ‌पु
‌ नः ‌लौ
‌ टने‌के ‌ ‌बा
‌ द‌व‌ ह‌फि‌ र‌से ‌ ‌क‌ न्नौज‌व ‌ ‌उ‌ त्तर‌‌ 
भारत‌का ‌ ‌स्वा
‌ मी‌ब ‌ न‌जा‌ येगा।‌‌   ‌
 ‌
उसकी‌आ ‌ शानुरूप‌ऐ ‌ सा‌ही ‌ ‌हु
‌ आ।‌शी ‌ घ्र‌ही
‌ ‌गो‌ विंद‌तृ
‌ तीय‌द ‌ कन‌लौ ‌ ट‌ग ‌ या‌औ‌ र‌ध ‌ र्मपाल‌को‌ ‌ए‌ कबार‌पु ‌ नः ‌अ‌ वसर‌मि ‌ ला‌‌ 
अपनी‌सै ‌ निक‌आ ‌ कांक्षाओं‌की ‌ ‌पू
‌ र्ति‌का
‌ ।‌व ‌ ह‌ए‌ क‌बा
‌ र‌फि‌ र‌से
‌ ‌क‌ न्नौज‌प ‌ र‌अ
‌ धिकार‌क ‌ रके ‌‌एक‌वि
‌ स्तृत‌सा ‌ म्राज्य‌का ‌ ‌शा‌ सक‌‌ 
बन‌ग ‌ या‌औ ‌ र‌अ ‌ पने‌अं‌ त‌त ‌ क‌ब ‌ ना‌र‌ हा।‌‌   ‌
 ‌
अपनी‌म ‌ हानता‌‌के ‌‌अनुरूप‌उ ‌ सने‌प ‌ रमेश्वर‌,‌‌प ‌ रमभट्टारक‌,‌‌म ‌ हाराजाधिराज‌‌‌की‌उ ‌ पाधियां‌प्रा
‌ प्त‌की‌ ।‌इ ‌ स‌‌प्रकार‌निः‌ संदेह‌‌ 
वह‌‌पाल‌‌वंश‌‌का‌ए ‌ क‌म ‌ हान‌शा ‌ सक‌था ‌ ।‌‌   ‌
सम्राज्य‌वि
‌ स्तार‌‌:  
‌‌ ‌
 ‌
‌धर्मपाल‌‌का‌सा‌ म्राज्य‌ती ‌ न‌भा
‌ गों‌में
‌ ‌ब
‌ टा‌हु‌ आ‌था‌ ।‌बं
‌ गाल‌औ ‌ र‌बि ‌ हार‌का
‌ ‌उ ‌ सके ‌प्र
‌ त्यक्ष‌अ‌ धिकार‌में‌ ‌थे
‌ ।‌ क
‌ न्नौज‌का
‌ ‌रा‌ ज्य‌‌ 
उसके ‌अ ‌ धीन‌‌था‌क्यों
‌ कि‌‌वहां‌उ ‌ सने‌शा‌ सक‌नि ‌ युक्त‌कि‌ या‌था ‌ ‌।‌ ‌पं
‌ जाब‌‌,‌‌राजपूताना‌‌,‌मा‌ लवा‌औ ‌ र‌ब ‌ रार‌के
‌ ‌शा
‌ सक‌उ ‌ सकी‌‌ 
प्रभुता‌मा
‌ नते‌‌थे।‌‌   ‌
तिब्बती‌इ ‌ तिहासकार‌‌तारानाथ‌के ‌ ‌अ‌ नुसार‌ध ‌ र्मपाल‌का
‌ ‌सा ‌ म्राज्य‌बं
‌ गाल‌की‌ ‌खा
‌ ड़ी‌से ‌ ‌ले
‌ कर‌दि ‌ ल्ली‌त‌ क‌त‌ था‌जा
‌ लंधर‌से ‌  ‌‌
लेकर‌विं‌ ध्य‌‌पर्वत‌त ‌ क‌‌फै ल‌ग‌ या‌‌था।‌  ‌
 ‌
वह‌‌एक‌बौ ‌ द्ध‌ध‌ र्मानुयायी‌‌‌शासक‌‌था।‌‌उसके ‌ले ‌ खों‌‌में‌‌उसे‌‌'प
‌ रमसौगात‌'‌‌कहा‌‌गया‌है ‌ ।‌उ
‌ सने‌वि
‌ क्रमशिला‌त ‌ था‌सो
‌ मपुरी‌में ‌  ‌‌
प्रसिद्ध‌‌विहारों‌की
‌ ‌स्‌ थापना‌की‌ ।‌उ ‌ सने‌वि ‌ क्रमशिला‌वि ‌ श्वविद्यालय‌की ‌ ‌‌स्थापना‌‌‌की‌त ‌ था‌ना
‌ लंदा‌वि‌ श्वविद्यालय‌का ‌  ‌‌
पुनुरुद्धार‌‌‌किया।‌‌   ‌
तारानाथ‌के ‌ ‌अ
‌ नुसार‌‌उसने‌‌50‌‌धार्मिक‌वि ‌ द्यालयों‌की
‌ ‌स्‌ थापना‌की ‌ ‌थी
‌ ।‌कि
‌ न्तु‌शा
‌ सक‌के ‌ ‌रू
‌ प‌में
‌ ‌उ
‌ सकी‌धा‌ र्मिक‌अ ‌ सहिष्णुता‌‌ 
एवं‌क‌ ट्टरता‌न‌ हीं‌‌थी।‌‌   ‌
 ‌

देवपाल‌‌:‌‌(810‌‌ई०‌‌–‌‌850‌ई
‌ ०)‌  ‌
धर्मपाल‌की
‌ ‌मृ‌ त्यु‌के
‌ ‌बा
‌ द‌‌उसका‌पु ‌ त्र‌दे
‌ वपाल‌‌‌सिंहासन‌प ‌ र‌‌बैठा।‌‌वह‌‌सुयोग्य‌‌पिता‌का
‌ ‌सु
‌ योग्य‌पु‌ त्र‌था
‌ ।‌उ
‌ सने‌न‌ ‌के
‌ वल‌अ ‌ पने‌ 
पैतृक‌सा
‌ म्राज्य‌को
‌ ‌‌बनाए‌र‌ खा‌‌बल्कि‌उ ‌ समें‌वृ
‌ द्धि‌भी
‌ ‌की
‌ ।‌य ‌ ह‌पा‌ ल‌वं‌ श‌का‌ ‌स
‌ बसे‌श‌ क्तिशाली‌शा ‌ सक‌था ‌ ।‌त‌ था‌उ‌ सने‌अ
‌ पने‌‌ 
पिता‌के
‌ ‌ही
‌ ‌स‌ मान‌प ‌ रमेश्वर‌,‌‌प
‌ रमभट्टारक‌,‌‌म ‌ हाराजाधिराज‌‌‌जैसी‌उ ‌ पाधियां‌धा
‌ रण‌कीं
‌ ।‌‌   ‌
 ‌
ऐसा‌ब‌ ताया‌ग ‌ या‌‌है ‌कि
‌ ‌हि
‌ मालय‌से ‌ ‌विं
‌ ध्य‌त
‌ क‌औ ‌ र‌पू
‌ र्वी‌सा
‌ गर‌से ‌ ‌प
‌ श्चिमी‌सा
‌ गर‌त‌ क‌स‌ मस्त‌उ ‌ त्तरी‌‌भारत‌के‌ ‌शा
‌ सकों‌से‌  ‌
उसने‌शु‌ ल्क/कर‌प्रा ‌ प्त‌‌किया‌था‌ ।‌‌   ‌
 ‌

देवपाल‌की
‌ ‌‌विजयें‌‌: ‌ 
 ‌
उसने‌उ ‌ त्कलों‌को ‌ ‌न ‌ ष्ट‌कि
‌ या‌‌,‌‌प्रगज्योतिषपुर‌अ ‌ थवा‌अ ‌ सम‌का ‌ ‌वि‌ जय‌कि ‌ या‌‌,‌‌हूणों‌का
‌ ‌द ‌ म्भ‌चू‌ र‌‌किया‌औ ‌ र‌गु ‌ र्जरों‌त
‌ था‌‌ 
द्रविड़‌‌शासकों‌‌को‌भी ‌ ‌नी‌ चा‌दि‌ खाया।‌‌   ‌
 ‌
आभिलेखिक‌‌स्रोतों‌से ‌ ‌‌पता‌च ‌ लता‌है‌ ‌कि
‌ -‌ज ‌ ब‌ज ‌ यपाल‌के ‌ ‌ने
‌ तृत्व‌में
‌ ‌दे
‌ वपाल‌की ‌ ‌से‌ नाएँ ‌नि
‌ कट‌आ ‌ यीं‌तो‌ ‌प्रा
‌ ग्ज्योतिष‌‌(असम)‌‌ 
के ‌‌राजा‌ने‌ ‌बि
‌ ना‌यु ‌ द्ध‌‌किए‌स ‌ मर्पण‌क ‌ र‌दि ‌ या।‌  ‌
‌उसी‌प्र
‌ कार‌उ ‌ त्कल‌के ‌ ‌‌राजा‌ने‌ ‌‌भी‌‌राजधानी‌छो ‌ ड़‌दी ‌ ‌औ
‌ र‌भा ‌ ग‌ग ‌ या।‌‌   ‌
हूणों‌के
‌ ‌छो
‌ टे-छोटे‌‌कई‌रा ‌ ज्य‌‌थे।‌उ‌ नमें‌से‌ ‌ए ‌ क‌उ ‌ त्तरापथ‌में‌ ‌हि
‌ मालय‌के ‌ ‌नि
‌ कट‌था ‌ ।‌उ ‌ से‌दे‌ वपाल‌ने ‌ ‌वि
‌ जय‌कि ‌ या।‌‌   ‌
वहाँ‌‌से‌व‌ ह‌क ‌ म्बोज‌‌की‌ओ ‌ र‌‌गया।‌‌   ‌
नागभट‌द्वि ‌ तीय‌के ‌ ‌पु
‌ त्र‌रा
‌ मभद्र‌‌प्रतिहार‌प ‌ र‌दे‌ वपाल‌ने ‌ ‌आ
‌ क्रमण‌कि ‌ या‌औ ‌ र‌उ ‌ से‌प
‌ रास्त‌कि‌ या।‌रा ‌ जा‌भो ‌ ज‌प्र ‌ तिहार‌को ‌ ‌भी ‌ ‌‌ 
देवपाल‌‌ने‌प ‌ रास्त‌कि ‌ या।‌‌   ‌
देवपाल‌‌को‌रा ‌ ष्ट्र कू टों‌की
‌ ‌ती‌ न‌पी‌ ढ़ियों‌से
‌ ‌सं ‌ घर्ष‌क ‌ रना‌प‌ ड़ा।‌कि ‌ न्तु‌स
‌ भी‌‌कठिनाइयों‌के ‌ ‌सा
‌ मने‌‌उसने‌उ ‌ त्तरी‌भा
‌ रत‌में ‌ ‌अ
‌ पनी‌‌ 
सर्वोच्चता‌को ‌ ‌‌स्थिर‌र‌ खा।‌प्र ‌ तीत‌‌होता‌है ‌ ‌कि ‌ ‌दे ‌ वपाल‌ने ‌ ‌रा
‌ ष्टकू ट‌शा‌ सक‌अ ‌ मोघवर्ष‌को ‌ ‌भी‌ ‌प ‌ रास्त‌कि‌ या।‌य ‌ ह‌स ‌ म्भवतः ‌‌उसने‌‌ 
उन‌रा ‌ ज्यों‌की
‌ ‌स ‌ हायता‌से ‌ ‌कि
‌ या‌जो ‌ ‌रा
‌ ष्ट्र कू टों‌को
‌ ‌अ ‌ पना‌श ‌ त्रु‌स
‌ मझते‌थे ‌ ।‌  ‌
 ‌
देवपाल‌‌भी‌बौ ‌ द्ध‌म
‌ त‌का
‌ ‌आ ‌ श्रयदाता‌‌‌था।‌‌इसने‌म
‌ गध‌‌में‌‌अनेक‌‌मंदिर‌औ ‌ र‌वि ‌ हार‌ब‌ नवाए‌त ‌ था‌क
‌ ला‌औ ‌ र‌शि
‌ ल्पकला‌को ‌  ‌‌
संवेग‌प्र
‌ दान‌‌किया।‌इ ‌ सके ‌स
‌ मय‌मे
‌ ‌भी
‌ ‌ना
‌ लंदा‌बौ
‌ द्ध‌ज्ञा
‌ न‌के
‌ ‌कें
‌ द्र‌के
‌ ‌रू
‌ प‌में
‌ ‌पू‌ र्ववत‌वि
‌ द्यमान‌र‌ हा।‌  ‌
‌इस‌प्र
‌ कार‌दे ‌ वपाल‌‌अपने‌वं‌ श‌का
‌ ‌म‌ हानतम‌शा ‌ सक‌‌‌था‌‌।जिसके ‌ने ‌ तृत्व‌में
‌ ‌पा‌ ल‌सा
‌ म्राज्य‌अ
‌ पने‌उ‌ त्कर्ष‌की
‌ ‌प
‌ राकाष्ठा‌प
‌ र‌‌ 
पहुंच‌‌गया।‌‌   ‌
 ‌

देवपाल‌‌के ‌‌उत्तराधिकारी‌‌:  
‌‌ ‌
 ‌
देवपाल‌‌का‌शा
‌ सन‌पा
‌ ल‌‌वंश‌‌के ‌‌चर्मोत्कर्ष‌को
‌ ‌‌व्यक्त‌क
‌ रता‌है
‌ ।‌दे
‌ व‌पा
‌ ल‌की
‌ ‌मृ
‌ त्यु‌के
‌ ‌बा
‌ द‌पा
‌ ल‌वं
‌ श‌प
‌ तनोन्मुख‌हो
‌ ‌उ
‌ ठा।‌‌   ‌
 ‌

विग्रहपाल‌‌:‌‌(850‌से
‌ ‌‌853-54‌ई
‌ ०)‌  ‌
 ‌
देवपाल‌‌की‌मृ‌ त्यु‌‌के ‌‌बाद‌वि
‌ ग्रहपाल‌शा ‌ सक‌ब ‌ ना।‌कु
‌ छ‌वि
‌ द्वान‌उ‌ से‌दे
‌ वपाल‌का ‌ ‌पु‌ त्र‌तो
‌ ‌कु
‌ छ‌उ‌ से‌भ ‌ तीजा‌मा ‌ नते‌हैं
‌ ।‌व ‌ हीं‌‌ 
देवपाल‌‌के ‌ए
‌ क‌पु‌ त्र‌रा
‌ ज्यपाल‌की ‌ ‌मृ ‌ त्यु‌उ
‌ सके ‌शा
‌ सनकाल‌में ‌ ‌ही
‌ ‌हो
‌ ‌ग
‌ यी‌थी‌ ।‌‌  
विग्रहपाल‌ने
‌ ‌‌के वल‌‌3‌या ‌ ‌‌4‌‌वर्ष‌‌राज्य‌कि
‌ या‌उ ‌ सके ‌बा
‌ द‌उ
‌ सने‌अ ‌ पने‌पु
‌ त्र‌ना
‌ रायणपाल‌‌‌के ‌प ‌ क्ष‌‌में‌‌राज्य‌त्या
‌ ग‌क‌ र‌सा ‌ धु‌ब‌ न‌‌ 
गया।‌‌   ‌
 ‌

नारायणपाल‌‌:‌‌(854‌‌ई०‌‌–‌‌908‌ई
‌ ०)‌  ‌
 ‌
विग्रहपाल‌के ‌ ‌बा‌ द‌‌नारायणपाल‌रा ‌ जा‌ब ‌ ना।‌ य ‌ ह‌भी‌ ‌शां
‌ त‌औ ‌ र‌धा
‌ र्मिक‌प्र‌ वृत्ति‌का
‌ ‌शा‌ सक‌था ‌ ।‌इ ‌ सने‌‌50‌व ‌ र्ष‌से
‌ ‌अ
‌ धिक‌‌ 
शासन‌कि ‌ या।‌‌   ‌
860‌‌ई०‌के ‌ ‌आ ‌ स‌पा ‌ स‌ ‌राष्ट्र कू टों‌पा‌ ल‌शा ‌ सक‌को ‌ ‌प ‌ राजित‌कि ‌ या‌जि‌ सका‌ला ‌ भ‌प्र ‌ तिहार‌शा‌ सकों‌को ‌ ‌मि ‌ ला।‌प्र ‌ तिहार‌शा‌ सक‌‌ 
भोज‌‌तथा‌‌महेंद्रपाल‌ने ‌ ‌इ
‌ न्हें‌प
‌ राजित‌क ‌ र‌पू ‌ र्व‌की
‌ ‌ओ ‌ र‌अ ‌ पना‌सा
‌ म्राज्य‌वि
‌ स्तृत‌कि ‌ या।‌पा ‌ ल‌शा ‌ सक‌‌के ‌हा ‌ थ‌म ‌ गध‌त ‌ था‌‌ 
दक्षिणी‌बि ‌ हार‌नि ‌ कल‌ग ‌ या‌त ‌ था‌उ‌ त्तरी‌बं‌ गाल‌प ‌ र‌भी
‌ ‌कु‌ छ‌स ‌ मय‌त ‌ क‌प्र
‌ तिहारों‌का ‌ ‌अ‌ धिकार‌र‌ हा।‌इ ‌ सके ‌सा ‌ थ‌ही ‌ ‌उ
‌ ड़ीसा‌‌ 
और‌‌असम‌के ‌ ‌पा
‌ ल‌सा ‌ मंतो‌ने ‌ ‌‌भी‌‌विद्रोह‌क ‌ र‌न ‌ ‌के
‌ वल‌स्व ‌ यं‌को
‌ ‌स्व
‌ तंत्र‌कि
‌ या‌‌बल्कि‌रा ‌ जसी‌उ ‌ पाधियां‌भी ‌ ‌धा
‌ रण‌की ‌ ।‌‌   ‌
इस‌‌समय‌पा ‌ ल‌‌शासक‌‌नारायणपाल‌का ‌ ‌रा ‌ ज्य‌बं ‌ गाल‌के ‌ ‌ए
‌ क‌‌भाग‌त ‌ क‌सी‌ मित‌हो ‌ ‌ग
‌ या।‌‌   ‌
किन्तु‌‌908‌‌ई०‌‌में‌‌अपनी‌मृ ‌ त्यु‌के
‌ ‌पू
‌ र्व‌ना
‌ रायणपाल‌ने ‌ ‌प्र
‌ तिहारों‌से
‌ ‌उ‌ त्तरी‌बं
‌ गाल‌औ ‌ र‌द ‌ क्षिणी‌बि ‌ हार‌‌वापस‌ले ‌ ‌लि
‌ ए।‌य ‌ ह‌‌ 
राष्ट्र कू टों‌द्वा
‌ रा‌‌प्रतिहारों‌की ‌ ‌प ‌ राजय‌के ‌ ‌बा
‌ द‌ही ‌ ‌स ‌ म्भव‌हो ‌ ‌स
‌ का।‌सं
‌ भव‌है ‌ ‌कि
‌ ‌ना‌ रायणपाल‌को ‌ ‌भी ‌ ‌रा
‌ ष्ट्र कू ट‌कृ‌ ष्ण‌द्वि
‌ तीय‌ने ‌  ‌‌
परास्त‌कि ‌ या‌हो ‌ ‌।‌  ‌ ‌
किं तु‌जो ‌ ‌‌भी‌हो ‌ ‌‌908‌‌ई०‌में ‌ ‌अ ‌ पनी‌मृ ‌ त्यु‌के
‌ ‌प ‌ हले‌ना ‌ रायण‌पा ‌ ल‌ने
‌ ‌बं
‌ गाल‌औ ‌ र‌बि‌ हार‌प ‌ र‌अ‌ पना‌प्र ‌ भुत्व‌स्‌ थापित‌क ‌ र‌लि‌ या‌था‌ ।‌  ‌

राज्यपाल‌➝
‌ ‌‌गोपाल‌द्वि
‌ तीय‌‌➝‌वि
‌ ग्रहपाल‌द्वि
‌ तीय‌‌:‌‌
   ‌
 ‌
नारायणपाल‌के ‌ ‌प ‌ श्चात‌पा
‌ ल‌वं
‌ श‌का
‌ ‌अं‌ तिम‌शा‌ सकों‌‌ने‌‌80‌‌वर्ष‌त
‌ क‌शा
‌ सन‌कि ‌ या।‌ इ ‌ न‌शा
‌ सकों‌के ‌ ‌स
‌ मय‌में
‌ ‌पा
‌ ल‌श‌ क्ति‌का
‌ ‌‌ 
लगातार‌‌ह्रास‌‌होता‌र‌ हा।‌वि
‌ ग्रहपाल‌द्वि
‌ तीय‌के‌ ‌स
‌ मय‌त‌ क‌आ ‌ ते-आते‌पा ‌ लों‌का‌ ‌बं‌ गाल‌प ‌ र‌से
‌ ‌शा
‌ सन‌स‌ माप्त‌हो
‌ ‌ग
‌ या।‌अ
‌ ब‌वे
‌  ‌‌
के वल‌बि
‌ हार‌‌में‌‌शासन‌‌कर‌र‌ हे‌‌थे।‌अ
‌ र्थात‌पा
‌ ल‌वं
‌ श‌ल
‌ गभग‌प ‌ तन‌को‌ ‌‌प्राप्त‌हो
‌ ‌चु
‌ का‌था
‌ ।‌‌   ‌
 ‌
महीपाल‌‌प्रथम‌‌:‌‌(988‌ई
‌ ‌‌–‌‌1038‌‌ई०)‌  ‌
 ‌
पाल‌‌साम्राज्य‌ल ‌ गभग‌‌समाप्त‌ही ‌ ‌हो‌ ने‌वा
‌ ला‌था ‌ ‌कि
‌ ‌इ ‌ स‌वं
‌ श‌की
‌ ‌ग ‌ द्दी‌प
‌ र‌म‌ हिपाल‌प्र‌ थम‌जै ‌ सा‌ए ‌ क‌श‌ क्तिशाली‌शा ‌ सक‌बै ‌ ठा।‌‌   ‌
उसके ‌अ ‌ भिलेखों‌की ‌ ‌प्रा
‌ प्ति‌‌स्थानों‌से
‌ ‌प्र
‌ तीत‌हो ‌ ता‌है
‌ ‌कि
‌ ‌उ‌ सके ‌अ‌ धीन‌पा ‌ ल‌सा‌ म्राज्य‌की ‌ ‌‌शक्ति‌ए ‌ क‌बा‌ र‌पु
‌ नः ‌जा‌ गृत‌हु ‌ ई।‌‌ 
महीपाल‌प्र ‌ थम‌‌के ‌रा‌ ज्य‌में
‌ ‌दि
‌ नाजपुर‌‌,‌‌मुजफ्फरपुर‌‌,‌‌पटना‌‌,‌‌गया‌औ ‌ र‌ति ‌ प्पेरा‌जै
‌ से‌दू‌ र‌दू‌ र‌स्‌ थान‌शा
‌ मिल‌थे ‌ ।‌‌   ‌
शासक‌ब ‌ नने‌के‌ ‌बा
‌ द‌‌महीपाल‌प्र ‌ थम‌ने ‌ ‌कं
‌ बोज‌वं ‌ श‌की‌ ‌ए‌ क‌गौ
‌ ड़‌शा ‌ सक‌से ‌ ‌उ‌ त्तरी‌बं
‌ गाल‌छी ‌ ना।‌सा ‌ रनाथ‌ले ‌ ख‌(‌ 1026‌‌ 
ई०‌)‌‌काशी‌क्षे
‌ त्र‌प
‌ र‌‌उसके ‌अ ‌ धिकार‌‌का‌सू ‌ चक‌है ‌ ।‌इ
‌ स‌प्र
‌ कार‌य ‌ ह‌दे‌ वपाल‌के ‌ ‌बा
‌ द‌स ‌ बसे‌श ‌ क्तिशाली‌शा ‌ सक‌था ‌ ।‌‌   ‌
 ‌
किन्तु‌क
‌ र्णाकों‌के‌ ‌सा
‌ थ‌म ‌ हिपाल‌‌के ‌यु ‌ द्ध‌में
‌ ‌ती
‌ रभुक्ति‌के‌ ‌छी
‌ न‌जा‌ ने‌का ‌ ‌उ ‌ ल्लेख‌मि‌ लता‌है ‌ ।‌इ ‌ सके ‌अ ‌ लावा‌म ‌ हीपाल‌को ‌  ‌‌
1023‌ई ‌ ०‌में
‌ ‌रा
‌ जेन्द्र‌चो
‌ ल‌‌द्वारा‌भी ‌ ‌प‌ राजित‌‌‌होना‌प ‌ ड़ा‌‌किन्तु‌व
‌ ह‌चो‌ लों‌को‌ ‌‌गंगा‌के‌ ‌पा‌ र‌हो ‌ ने‌न ‌ हीं‌दि
‌ या।‌कि ‌ न्तु‌इ ‌ ससे‌पा ‌ लों‌‌ 
का‌‌बहुत‌‌नुकसान‌‌नहीं‌हु ‌ आ‌कि ‌ न्तु‌म‌ हीपाल‌के ‌ ‌रा
‌ ज्य‌के
‌ ‌अं
‌ त‌में
‌ ‌उ‌ सके ‌रा‌ ज्य‌‌विस्तार‌में ‌ ‌क ‌ मी‌अ ‌ वश्य‌हु ‌ ई।‌‌   ‌
 ‌
महिपाल‌प्र ‌ थम‌‌ने‌भी‌ ‌बौ
‌ द्ध‌ध ‌ र्म‌‌‌को‌पु
‌ नः ‌प्र
‌ तिष्ठित‌कि
‌ या‌‌तथा‌‌उसने‌मं ‌ दिर‌औ ‌ र‌वि ‌ हार‌ब ‌ नवाए।‌  ‌
 ‌

जयपाल‌‌/‌न
‌ यपाल‌‌:‌‌(1038‌ई
‌ ०‌‌–‌‌1055‌ई
‌ ०)‌  ‌
 ‌
महीपाल‌की‌ ‌मृ
‌ त्यु‌के
‌ ‌‌बाद‌पा
‌ ल‌वं‌ श‌‌की‌‌अवनति‌आ ‌ रम्भ‌‌हुई।‌‌‌जयपाल‌म‌ हीपाल‌‌का‌उ
‌ त्तराधिकारी‌हु‌ आ।‌इ ‌ सके ‌का
‌ ल‌में‌  ‌‌
कालचुरी‌‌शासक‌गां ‌ गेयदेव‌का
‌ ‌पु
‌ त्र‌क
‌ र्ण‌ने
‌ ‌पा
‌ ल‌सा
‌ म्राज्य‌प
‌ र‌आ
‌ क्रमण‌कि
‌ या‌किं
‌ तु‌न
‌ यपाल‌ने
‌ ‌क
‌ र्ण‌को
‌ ‌प‌ रास्त‌क‌ रने‌में
‌  ‌‌
सफलता‌‌पाई।‌‌   ‌
 ‌

विग्रहपाल‌तृ
‌ तीय‌‌:‌‌(1055‌ई
‌ ०‌‌–‌‌1070‌ई
‌ ०)‌  ‌
नयपाल‌के ‌ ‌बा
‌ द‌‌उसका‌पु ‌ त्र‌‌विग्रहपाल‌तृ‌ तीय‌रा‌ जा‌ब ‌ ना।‌इ‌ स‌स
‌ मय‌भी‌ ‌पा
‌ ल‌औ‌ र‌का ‌ लचुरियों‌में ‌ ‌फि
‌ र‌सं‌ घर्ष‌हु
‌ आ‌कि
‌ न्तु‌‌ 
इसमें‌पा
‌ लों‌‌ने‌वि
‌ जय‌‌पाई।‌का ‌ लचुरी‌शा ‌ सक‌क ‌ र्ण‌को
‌ ‌प ‌ राजय‌के‌ ‌बा
‌ द‌अ‌ पनी‌पु
‌ त्री‌यौ
‌ वनश्री‌का ‌ ‌वि
‌ वाह‌वि ‌ ग्रहपाल‌से
‌ ‌क
‌ रना‌‌ 
पड़ा।‌‌   ‌
किन्तु‌‌1068‌ई ‌ ०‌‌से‌‌थोड़ा‌प ‌ हले‌वि ‌ ग्रहपाल‌तृ‌ तीय‌ने‌ ‌चा
‌ लुक्य‌शा‌ सक‌वि ‌ क्रमादित्य‌ष ‌ ष्ठ‌‌‌से‌प
‌ राजय‌का‌ ‌सा ‌ मना‌‌किया।‌कि
‌ न्तु‌‌ 
आभिलेखिक‌‌स्रोतों‌से ‌ ‌‌पता‌च ‌ लता‌है ‌ ‌कि
‌ ‌वि
‌ ग्रहपाल‌‌तृतीय‌का ‌ ‌अ
‌ ब‌भी
‌ ‌गौ
‌ ड़‌‌(बंगाल)‌‌और‌म ‌ गध‌दो ‌ नों‌प
‌ र‌अ‌ धिकार‌था
‌ ।‌  ‌
 ‌

महीपाल‌‌द्वितीय‌‌:  
‌‌ ‌
 ‌
विग्रह‌पा
‌ ल‌‌की‌मृ ‌ त्यु‌‌के ‌बा
‌ द‌उ‌ सके ‌ती
‌ न‌पु‌ त्रों‌‌-‌म
‌ हिपाल‌‌द्वितीय‌‌,‌शू
‌ रपाल‌त ‌ था‌रा
‌ मपाल‌के ‌ ‌म‌ ध्य‌उ‌ त्तराधिकार‌का ‌ ‌सं‌ घर्ष‌‌ 
हुआ।‌म ‌ हीपाल‌द्वि ‌ तीय‌‌‌ने‌‌अपने‌दो ‌ नों‌‌भाईयों‌‌को‌का ‌ रागार‌में‌ ‌डा
‌ ल‌क ‌ र‌इ‌ समें‌स
‌ फलता‌पा ‌ ई।‌‌   ‌
इसके ‌स‌ मय‌मे‌ ‌‌उसके ‌सा ‌ मंत‌अ ‌ धिक‌श ‌ क्तिशाली‌हो ‌ ‌ग
‌ ए।‌उ‌ नमें‌ए
‌ क‌ग ‌ या‌म‌ ण्डल‌का‌ ‌सा
‌ मंत‌‌विश्वादित्य‌था‌ ‌औ ‌ र‌दू‌ सरा‌‌ 
ढे क्करी‌का
‌ ‌शा
‌ सक‌ई ‌ श्वरघोष‌था ‌ ।‌इ
‌ न्होंने‌वि
‌ द्रोह‌कि ‌ या‌त‌ था‌इ‌ सी‌बी
‌ च‌चा‌ शिकै वर्त‌‌(माहिष्य)‌‌जाति‌के ‌ ‌लो
‌ गों‌ने‌ ‌दि
‌ व्य‌‌ 
(दिव्योक)‌‌के ‌‌नेतृत्व‌में
‌ ‌वि
‌ द्रोह‌कि
‌ या।‌दि‌ व्य‌ने ‌ ‌म ‌ हीपाल‌द्वि
‌ तीय‌की ‌ ‌ह‌ त्या‌क
‌ र‌दी
‌ ‌औ‌ र‌‌स्वयं‌ग
‌ द्दी‌प
‌ र‌बै
‌ ठा।‌‌   ‌
 ‌
दिव्य‌के
‌ ‌‌बाद‌उ‌ सका‌‌भतीजा‌‌भीम‌शा ‌ सक‌ब ‌ ना।‌इ ‌ स‌बी
‌ च‌रा‌ मपाल‌कि ‌ सी‌त ‌ रह‌का
‌ रागार‌से ‌ ‌भा
‌ ग‌नि ‌ कला।‌  ‌
रामपाल‌‌:‌ ‌(1077–1120‌‌ई०)‌  ‌
 ‌
कारागार‌से ‌ ‌मु
‌ क्त‌‌होने‌के
‌ ‌‌बाद‌रा
‌ मपाल‌ने ‌ ‌रा
‌ ष्ट्र कू टों‌की
‌ ‌म
‌ दद‌से ‌ ‌ए
‌ क‌से
‌ ना‌तै
‌ यार‌की
‌ ‌त
‌ था‌भी
‌ म‌को
‌ ‌मा‌ रकर‌अ‌ पने‌पै
‌ तृक‌‌ 
राज्य‌‌को‌प्रा‌ प्त‌‌किया‌त ‌ था‌1 ‌ 120‌‌‌तक‌शा ‌ सन‌कि ‌ या।‌उ ‌ सने‌उ‌ त्तरी‌बि‌ हार‌औ‌ र‌अ ‌ सम‌की
‌ ‌वि
‌ जय‌भी
‌ ‌की
‌ ।‌इ
‌ सके ‌बा
‌ द‌उ ‌ सने‌‌ 
कलिंग‌औ ‌ र‌का ‌ मरूप‌प ‌ र‌‌आक्रमण‌कि ‌ या।‌‌   ‌
पूर्वी‌‌बंगाल‌के ‌ ‌‌राजा‌या
‌ दववर्मा‌ने‌ ‌‌रामपाल‌‌का‌सं ‌ रक्षण‌प्रा
‌ प्त‌क ‌ रने‌की
‌ ‌चे
‌ ष्टा‌की
‌ ।‌कि
‌ सी‌का
‌ रण‌से
‌ ‌ल
‌ गभग‌‌1120‌में‌ ‌रा
‌ मपाल‌‌ 
ने‌‌गंगा‌में
‌ ‌कू
‌ दकर‌आ ‌ त्महत्या‌क ‌ र‌‌ली।‌‌   ‌
 ‌
कु छ‌‌विद्वान‌‌इसे‌ही ‌ ‌पा
‌ लवंश‌का ‌ ‌अं‌ तिम‌‌शासक‌‌‌मानते‌हैं ‌ ।‌‌   ‌
 ‌

रामपाल‌‌के ‌‌बाद‌‌:  
‌‌ ‌
 ‌
अभिलेखों‌में‌ ‌‌रामपाल‌के‌ ‌बा
‌ द‌‌कु मारपाल‌‌,‌‌गोपाल‌द्वि
‌ तीय‌त ‌ था‌म
‌ दनपाल‌के ‌ ‌ना
‌ म‌मि ‌ लते‌हैं
‌ ‌।‌ ‌ये
‌ ‌शा
‌ सक‌अ‌ त्यंत‌नि
‌ र्बल‌औ
‌ र‌‌ 
अयोग्य‌थे‌ ।‌‌मदनपाल‌‌ने‌‌1161‌ई ‌ ०‌त‌ क‌पा‌ ल‌वं
‌ श‌की
‌ ‌बा‌ गडोर‌स ‌ म्हाले‌र‌ खा।‌कि‌ न्तु‌पा
‌ ल‌वं
‌ श‌का ‌ ‌वि
‌ घटन‌ल ‌ गातार‌हो‌ ‌र
‌ हा‌‌ 
था‌‌जो‌1‌ 161‌‌ई०‌में
‌ ‌पू
‌ र्ण‌हो
‌ ‌ग
‌ या।‌‌   ‌
 ‌
इस‌‌प्रकार‌‌12वीं‌‌सदी‌के‌ ‌‌अंत‌‌मे‌‌पाल‌रा‌ ज्य‌से
‌ नवंश‌‌‌के ‌अ
‌ धिकार‌‌में‌च
‌ ला‌ग ‌ या।‌‌   ‌

पाल‌‌शासन‌‌का‌‌महत्व‌‌:‌‌
   ‌
 ‌
➣‌पा‌ ल‌वं‌ श‌का
‌ ‌‌शासन‌‌प्राचीन‌भा ‌ रतीय‌इ ‌ तिहास‌की ‌ ‌उ ‌ न‌रा
‌ जवंशों‌में ‌ ‌से‌ ‌ए ‌ क‌म ‌ हत्वपूर्ण‌शा ‌ सन‌था ‌ ‌जि‌ न्होंने‌ए ‌ क‌लं‌ बे‌स
‌ मय‌‌ 
तक‌‌किसी‌‌क्षेत्र‌‌में‌‌शासन‌‌किया।‌‌   ‌
➣‌पा‌ ल‌शा‌ सकों‌ने ‌ ‌‌लगभग‌‌400‌‌वर्षो‌त ‌ क‌बं ‌ गाल‌औ ‌ र‌‌बिहार‌के ‌ ‌क्षे
‌ त्र‌में
‌ ‌रा
‌ जनीतिक‌व ‌ ‌सां
‌ स्कृ तिक‌दृ ‌ ष्टियों‌से
‌ ‌‌अभूतपूर्व‌‌ 
विकास‌कि ‌ या।‌‌   ‌
➣‌पा‌ ल‌शा‌ सक‌बौ ‌ द्ध‌म ‌ तानुयायी‌‌‌थे‌‌जिन्होंने‌प ‌ तनोन्मुखी‌बौ ‌ द्ध‌ध ‌ र्म‌को
‌ ‌न ‌ ‌के
‌ वल‌रा ‌ जकीय‌प्र ‌ श्रय‌प्र
‌ दान‌कि ‌ या‌ब ‌ ल्कि‌उ‌ सका‌‌ 
पुनरुद्धार‌‌किया।‌  ‌
➣‌पा‌ लों‌‌ने‌बि
‌ हार‌‌और‌बं ‌ गाल‌में
‌ ‌अ‌ नेक‌चै ‌ त्य‌,‌‌वि
‌ हार‌ए ‌ वं‌मू
‌ र्तियां‌ब ‌ नवायीं।‌‌‌किन्तु‌‌वे‌‌कु छ‌ह ‌ द‌त‌ क‌ध ‌ र्म‌स‌ हिष्णु‌भी
‌ ‌थे
‌ ।‌‌ 
उन्होंने‌ब्रा
‌ म्हणों‌को ‌ ‌भी‌ ‌दा ‌ न‌‌‌दिया‌त ‌ था‌मं
‌ दिरों‌का ‌ ‌नि‌ र्माण‌‌‌भी‌‌कराया।‌‌   ‌
➣‌पा‌ ल‌वं‌ श‌के
‌ ‌‌शासकों‌‌ने‌शि ‌ क्षा‌औ ‌ र‌सा‌ हित्य‌को ‌ ‌भी‌ ‌सं‌ रक्षित‌कि‌ या।‌इ ‌ स‌उ ‌ द्देश्य‌से
‌ ‌उ‌ न्होंने‌सो
‌ मपुरी‌‌,‌‌उदंतपुरी‌त ‌ था‌‌ 
विक्रमशिला‌में ‌ ‌शि
‌ क्षण‌सं ‌ स्थाओं‌की ‌ ‌स्‌ थापना‌की ‌ ।‌इ ‌ नमें‌से
‌ ‌वि
‌ क्रमशिला‌का ‌ लांतर‌में ‌ ‌ए ‌ क‌ख्या
‌ ति‌प्रा ‌ प्त‌अं ‌ तराष्ट्रीय‌‌ 
विश्वविद्यालय‌ब ‌ न‌ग ‌ या।‌इ ‌ सका‌म ‌ हत्व‌ना‌ लंदा‌वि ‌ श्वविद्यालय‌‌‌से‌थो ‌ ड़ा‌ही ‌ ‌क ‌ म‌‌था।‌इ ‌ सकी‌स्‌ थापना‌ध ‌ र्मपाल‌ने ‌ ‌की
‌ ‌थी‌ ।‌‌12वीं‌‌ 
सदी‌त ‌ क‌‌इस‌वि ‌ श्वविद्यालय‌की ‌ ‌उ ‌ न्नति‌हो
‌ ती‌र‌ ही‌।‌ ‌‌1203‌ई ‌ ०‌में
‌ ‌मु
‌ स्लिम‌आ ‌ क्रांता‌मु ‌ हम्मद‌बि ‌ न‌ब ‌ ख्तियार‌खि ‌ लजी‌‌‌ने‌‌इसे‌‌ 
ध्वस्त‌‌कर‌‌दिया‌।‌   ‌‌ ‌
➣‌इ ‌ स‌का
‌ ल‌के ‌ ‌प्र
‌ मुख‌सं ‌ रक्षित‌वि
‌ द्वानों‌में
‌ ‌‌संध्याकर‌नं ‌ दी‌का
‌ ‌ना‌ म‌उ ‌ ल्लेखनीय‌है ‌ ।‌इ
‌ न्होंने‌‌'रामचरित'‌‌नामक‌ऐ ‌ तिहासिक‌‌ 
काव्य‌ग्र
‌ न्थ‌की
‌ ‌र‌ चना‌की ‌ ।‌ ‌अन्य‌वि ‌ द्वानों‌में
‌ ‌ह‌ रिभद्र‌‌,‌‌चक्रपाणि‌द ‌ त्त‌‌,‌‌वज्रदत्त‌आ ‌ दि‌के ‌ ‌ना
‌ म‌प्र‌ सिद्ध‌हैं‌ ।‌‌   ‌
 ‌

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