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9/11/2019 तल

ु सीदास :: :: :: रामच रतमानस :: क वता

मख
ु पृ ठ उप यास कहानी क वता यं य नाटक नबंध आलोचना वमश

बाल सा ह य सं मरण या ा व ृ तांत सनेमा व वध कोश सम -संचयन आ डयो/वी डयो अनव


ु ाद

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क वता

रामच रतमानस
तल
ु सीदास

पीछे
अनु म कि कंधाकांड
आगे

कु दे द वरसंद
ु राव तबलौ व ानधामावभ
ु ौ
शोभा यौ वरधि वनौ ु तनत
ु ौ गो व वंद
ृ यौ।
मायामानष
ु पणौ रघव
ु रौ स मवम हतौ
सीता वेषणत परौ प थगतौ भि त दौ तौ ह नः॥ 1॥

कंु दपु प और नीलकमल के समान संद


ु र गौर एवं यामवण, अ यंत बलवान, व ान के धाम, शोभा
संप न, े ठ धनध
ु र, वेद के वारा वं दत, गौ एवं ा मण के समह
ू के य (अथवा ेमी), माया से
मनु य प धारण कए हुए, े ठ धम के लए कवच व प, सबके हतकार , सीता क खोज म लगे हुए,
प थक प रघक
ु ु ल के े ठ राम और ल मण दोन भाई न चय ह हम भि त द ह ॥ 1॥

मा भो धसमु वं क लमल वंसनं चा ययं


ीम छ भम
ु ख
ु े दस
ु ंद
ु रवरे संशो भतं सवदा।
संसारामयभेषजं सख
ु करं ीजानक जीवनं
ध या ते कृ तनः पबं त सततं ीरामनामामत
ृ म॥् 2॥

वे सक
ु ृ ती (पु या मा पु ष) ध य ह जो वेद पी समु (के मथने) से उ प न हुए क लयग
ु के मल को
सवथा न ट कर दे नेवाले, अ वनाशी, भगवान शंभु के संद
ु र एवं े ठ मखु पी चं मा म सदा शोभायमान,
ज म-मरण पी रोग के औषध, सबको सख
ु दे नेवाले और ी जानक के जीवन व प ी राम नाम पी
अमत
ृ का नरं तर पान करते रहते ह॥ 2॥

सो० - मिु त ज म म ह जा न यान खान अघ हा न कर।


जहँ बस संभु भवा न सो कासी सेइअ कस न॥

जहाँ शव-पावती बसते ह, उस काशी को मिु त क ज मभू म, ान क खान और पाप का नाश


करनेवाल जानकर उसका सेवन य न कया जाए?

जरत सकल सरु बंद


ृ बषम गरल जे हं पान कय।
ते ह न भज स मन मंद को कृपाल संकर स रस॥

िजस भीषण हलाहल वष से सब दे वतागण जल रहे थे उसको िज ह ने वयं पान कर लया, रे मंद मन!
तू उन शंकर को य नह ं भजता? उनके समान कृपालु (और) कौन है ?

आग चले बहु र रघरु ाया। र यमक


ू पबत नअराया॥
तहँ रह स चव स हत सु ीवा। आवत दे ख अतल
ु बल सींवा॥

रघन
ु ाथ फर आगे चले। ऋ यमक
ू पवत नकट आ गया। वहाँ (ऋ यमक
ू पवत पर) मं य स हत सु ीव
रहते थे। अतल
ु नीय बल क सीमा राम और ल मण को आते दे खकर -

अ त सभीत कह सन
ु ु हनम
ु ाना। पु ष जग
ु ल बल प नधाना॥
ध र बटु प दे खु त जाई। कहे सु जा न िजयँ सयन बझ
ु ाई॥

सु ीव अ यंत भयभीत होकर बोले - हे हनम


ु ान! सन
ु ो, ये दोन पु ष बल और प के नधान ह। तम

मचार का प धारण करके जाकर दे खो। अपने दय म उनक यथाथ बात जानकर मझ
ु े इशारे से
समझाकर कह दे ना।
शीष पर
पठए बा ल हो हं मन मैला। भाग तरु त तज यह सैला॥ जाएँ
ब प ध र क प तहँ गयऊ। माथ नाइ पछत अस भयऊ॥
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र तह ऊ। इ छत अस
ू ऊ॥

य द वे मन के म लन बा ल के भेजे हुए ह तो म तरु ं त ह इस पवत को छोड़कर भाग जाऊँ। (यह


सन
ु कर) हनम
ु ान ा मण का प धरकर वहाँ गए और म तक नवाकर इस कार पछ ू ने लगे -

को तु ह यामल गौर सर रा। छ ी प फरहु बन बीरा॥


क ठन भू म कोमल पद गामी। कवन हे तु बचरहु बन वामी॥

हे वीर! साँवले और गोरे शर रवाले आप कौन ह, जो य के प म वन म फर रहे ह? हे वामी!


कठोर भू म पर कोमल चरण से चलनेवाले आप कस कारण वन म वचर रहे ह?

मद
ृ ल
ु मनोहर संद
ु र गाता। सहत दस
ु ह बन आतप बाता ॥
क तु ह ती न दे व महँ कोऊ। नर नारायन क तु ह दोऊ॥

मन को हरण करनेवाले आपके संद


ु र, कोमल अंग ह, और आप वन के दःु सह धप
ू और वायु को सह रहे
ह। या आप मा, व ण,ु महे श - इन तीन दे वताओं म से कोई ह, या आप दोन नर और नारायण ह।

दो० - जग कारन तारन भव भंजन धरनी भार।


क तु ह अ खल भव
ु न प त ल ह मनज
ु अवतार॥ 1॥

अथवा आप जगत के मल
ू कारण और संपण
ू लोक के वामी वयं भगवान ह, िज ह ने लोग को
भवसागर से पार उतारने तथा प ृ वी का भार न ट करने के लए मनु य प म अवतार लया है ?॥ 1॥

कोसलेस दसरथ के जाए। हम पतु बचन मा न बन आए॥


नाम राम ल छमन दोउ भाई। संग ना र सक
ु ु मा र सह
ु ाई॥

(राम ने कहा -) हम कोसलराज दशरथ के पु ह और पता का वचन मानकर वन आए ह। हमारे राम-


ल मण नाम ह, हम दोन भाई ह। हमारे साथ संद
ु र सक
ु ु मार ी थी।

इहाँ हर न सचर बैदेह । ब फर हं हम खोजत तेह ॥


आपन च रत कहा हम गाई। कहहु ब नज कथा बझ
ु ाई॥

यहाँ (वन म) रा स ने (मेर प नी) जानक को हर लया। हे ा मण! हम उसे ह खोजते फरते ह।
हमने तो अपना च र कह सन
ु ाया। अब हे ा मण! अपनी कथा समझाकर क हए।

भु प हचा न परे उ ग ह चरना। सो सख


ु उमा जाइ न हं बरना॥
पल
ु कत तन मख
ु आव न बचना। दे खत चर बेष कै रचना॥

भु को पहचानकर हनम
ु ान उनके चरण पकड़कर प ृ वी पर गर पड़े। ( शव कहते ह -) हे पावती! वह
सख
ु वणन नह ं कया जा सकता। शर र पल
ु कत है , मख
ु से वचन नह ं नकलता। वे भु के संद
ु र वेष
क रचना दे ख रहे ह!

पु न धीरजु ध र अ तु त क ह । हरष दयँ नज नाथ ह ची ह ॥


मोर याउ म पछ
ू ा सा । तु ह पछ
ू हु कस नर क ना ॥

फर धीरज धर कर तु त क । अपने नाथ को पहचान लेने से दय म हष हो रहा है । ( फर हनम


ु ान ने
कहा -) हे वामी! मने जो पछ
ू ा वह मेरा पछ
ू ना तो याय था, परं तु आप मनु य क तरह कैसे पछ
ू रहे
ह?

तव माया बस फरउँ भल
ु ाना। ताते म न हं भु प हचाना॥

ू ा फरता हूँ; इसी से मने अपने


म तो आपक माया के वश भल वामी (आप) को नह ं पहचाना।

दो० - एकु म मंद मोहबस कु टल दय अ यान।


पु न भु मो ह बसारे उ द नबंधु भगवान॥ 2॥

ू रे मोह के वश म हूँ, तीसरे


एक तो म य ह मंद हूँ, दस दय का कु टल और अ ान हूँ, फर हे द नबंधु
भगवान! भु (आप) ने भी मझ ु े भल
ु ा दया!॥ 2॥

जद प नाथ बहु अवगुन मोर। सेवक भु ह परै ज न भोर॥


नाथ जीव तव मायाँ मोहा। सो न तरइ तु हारे हं छोहा॥

हे नाथ! य य प मझ ु म बहुत-से अवगुण ह, तथा प सेवक वामी क व म ृ त म न पड़े (आप उसे न


भलू जाएँ)। हे नाथ! जीव आपक माया से मो हत है । वह आप ह क कृपा से न तार पा सकता है ।

ता पर म रघब
ु ीर दोहाई। जानउँ न हं कछु भजन उपाई॥
सेवक सत
ु प त मातु भरोस। रहइ असोच बनइ भु पोस॥

उस पर हे रघव ु ाई (शपथ) करके कहता हूँ क म भजन-साधन कुछ नह ं जानता। सेवक


ु ीर! म आपक दह
वामी के और पु माता के भरोसे नि चंत रहता है । भु को सेवक का पालन-पोषण करते ह बनता है
(करना ह पड़ता है )।

अस क ह परे उ चरन अकुलाई। नज तनु गट ी त उर छाई॥


तब रघप
ु त उठाई उर लावा। नज लोचन जल सीं च जड़
ु ावा॥

शीष पर
ऐसा कहकर हनम
ु ान अकुलाकर भु के चरण पर गर पड़े, उ ह ने अपना असल शर र कट कर दया। जाएँ
उनके दय म ेम छा गया। तब रघनाथ ने उ ह उठाकर दय से लगा लया और अपने ने के जल
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उ द छ । त र ु उ ह उ र द स ल ल और अ ल
से सींचकर शीतल कया।

सन
ु ु क प िजयँ मान स ज न ऊना। त मम य ल छमन ते दन
ू ा॥
समदरसी मो ह कह सब कोऊ। सेवक य अन य ग त सोऊ॥

( फर कहा -) हे क प! सन
ु ो, मन म ला न मत मानना (मन छोटा न करना)। तम
ु मझ
ु े ल मण से भी
दन
ू े य हो। सब कोई मझ
ु े समदश कहते ह (मेरे लए न कोई य है न अ य) पर मझ
ु को सेवक
य है , य क वह अन यग त होता है (मझ
ु े छोड़कर उसको कोई दस
ू रा सहारा नह ं होता)।

दो० - सो अन य जाक अ स म त न टरइ हनम


ु ंत।
म सेवक सचराचर प वा म भगवंत॥ 3॥

और हे हनम
ु ान! अन य वह है िजसक ऐसी बु कभी नह ं टलती क म सेवक हूँ और यह चराचर
(जड़-चेतन) जगत मेरे वामी भगवान का प है ॥ 3॥

दे ख पवनसत
ु प त अनक
ु ू ला। दयँ हरष बीती सब सल
ू ा॥
नाथ सैल पर क पप त रहई। सो सु ीव दास तव अहई॥

वामी को अनक
ु ू ल ( स न) दे खकर पवन कुमार हनम
ु ान के दय म हष छा गया और उनके सब दःु ख
जाते रहे । (उ ह ने कहा -) हे नाथ! इस पवत पर वानरराज सु ीव रहते ह, वह आपका दास है ।

ते ह सन नाथ मय ी क जे। द न जा न ते ह अभय कर जे॥


सो सीता कर खोज कराइ ह। जहँ तहँ मरकट को ट पठाइ ह॥

हे नाथ! उससे म ता क िजए और उसे द न जानकर नभय कर द िजए। वह सीता क खोज करवाएगा
और जहाँ-तहाँ करोड़ वानर को भेजेगा।

ए ह ब ध सकल कथा समझ


ु ाई। लए दऔ
ु जन पी ठ चढ़ाई॥
जब सु ीवँ राम कहुँ दे खा। अ तसय ज म ध य क र लेखा॥

इस कार सब बात समझाकर हनम


ु ान ने (राम-ल मण) दोन जन को पीठ पर चढ़ा लया। जब सु ीव
ने राम को दे खा तो अपने ज म को अ यंत ध य समझा।

सादर मलेउ नाइ पद माथा। भटे उ अनज


ु स हत रघन
ु ाथा॥
क प कर मन बचार ए ह र ती। क रह हं ब ध मो सन ए ीती॥

सु ीव चरण म म तक नवाकर आदर स हत मले। रघन


ु ाथ भी छोटे भाई स हत उनसे गले लगकर
मले। सु ीव मन म इस कार सोच रहे ह क हे वधाता! या ये मझ
ु से ी त करगे?

दो० - तब हनम
ु ंत उभय द स क सब कथा सन
ु ाइ।
पावक साखी दे इ क र जोर ीत ढ़ाइ॥ 4॥

तब हनम
ु ान ने दोन ओर क सब कथा सन
ु ाकर अि न को सा ी दे कर पर पर ढ़ करके ी त जोड़ द
(अथात अि न क सा ी दे कर त ापव
ू क उनक मै ी करवा द )॥ 4॥

कि ह ी त कछु बीच न राखा। ल छमन राम च रत सब भाषा॥


कह सु ीव नयन भ र बार । म ल ह नाथ म थलेसकुमार ॥

दोन ने ( दय से) ी त क , कुछ भी अंतर नह ं रखा। तब ल मण ने राम का सारा इ तहास कहा।


सु ीव ने ने म जल भरकर कहा - हे नाथ! म थलेशकुमार जानक मल जाएँगी।

मं ह स हत इहाँ एक बारा। बैठ रहे उँ म करत बचारा॥


गगन पंथ दे खी म जाता। परबस पर बहुत बलपाता॥

म एक बार यहाँ मं य के साथ बैठा हुआ कुछ वचार कर रहा था। तब मने पराए के वश म पड़ी बहुत
वलाप करती हुई सीता को आकाश माग से जाते दे खा था।

राम राम हा राम पक


ु ार । हम ह दे ख द हे उ पट डार ॥
मागा राम तरु त ते हं द हा। पट उर लाइ सोच अ त क हा॥

हम दे खकर उ ह ने 'राम! राम! हा राम!' पक


ु ारकर व गरा दया था। राम ने उसे माँगा, तब सु ीव ने
तरु ं त ह दे दया। व को दय से लगाकर राम ने बहुत ह सोच कया।

कह सु ीव सन
ु हु रघब
ु ीरा। तजहु सोच मन आनहु धीरा॥
सब कार क रहउँ सेवकाई। जे ह ब ध म ल ह जानक आई॥

सु ीव ने कहा - हे रघव
ु ीर! सु नए, सोच छोड़ द िजए और मन म धीरज लाइए। म सब कार से आपक
सेवा क ँ गा, िजस उपाय से जानक आकर आपको मल।

दो० - सखा बचन सु न हरषे कृपा संधु बलसींव।


कारन कवन बसहु बन मो ह कहहु सु ीव॥ 5॥

कृपा के समु और बल क सीमा राम सखा सु ीव के वचन सन


ु कर ह षत हुए। (और बोले -) हे सु ीव!
मझ
ु े बताओ, तम
ु वन म कस कारण रहते हो?॥ 5॥
शीष पर
नाथ बा ल अ म वौ भाइ। ी त रह कछु बर न न जाई॥ जाएँ
मयसत मायावी ते ह नाऊँ। आवा सो भ हमर गाऊँ॥
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सत
ु तह ऊ। आ सु ु ह र ऊ॥

(सु ीव ने कहा -) हे नाथ! बा ल और म दो भाई ह। हम दोन म ऐसी ी त थी क वणन नह ं क जा


सकती। हे भो! मय दानव का एक पु था, उसका नाम मायावी था। एक बार वह हमारे गाँव म आया।

अध रा त परु वार पक
ु ारा। बाल रपु बल सहै न पारा॥
धावा बा ल दे ख सो भागा। म पु न गयउँ बंधु सँग लागा॥

उसने आधी रात को नगर के फाटक पर आकर पक


ु ारा (ललकारा)। बा ल श ु के बल (ललकार) को सह
नह ं सका। वह दौड़ा, उसे दे खकर मायावी भागा। म भी भाई के संग लगा चला गया।

ग रबर गुहाँ पैठ सो जाई। तब बाल ं मो ह कहा बझ


ु ाई॥
प रखेसु मो ह एक पखवारा। न हं आव तब जानेसु मारा॥

वह मायावी एक पवत क गुफा म जा घस


ु ा। तब बा ल ने मझ
ु े समझाकर कहा - तम
ु एक पखवाड़े
(पंदरह दन) तक मेर बाट दे खना। य द म उतने दन म न आऊँ तो जान लेना क म मारा गया।

मास दवस तहँ रहे उँ खरार । नसर धर धार तहँ भार ॥


बा ल हते स मो ह मा र ह आई। सला दे इ तहँ चलेउँ पराई॥

हे खरा र! म वहाँ मह ने भर तक रहा। वहाँ (उस गुफा म से) र त क बड़ी भार धारा नकल । तब (मने
समझा क) उसने बा ल को मार डाला, अब आकर मझ
ु े मारे गा। इस लए म वहाँ (गुफा के वार पर) एक
शला लगाकर भाग आया।

मं ह परु दे खा बनु सा । द हे उ मो ह राज ब रआ ॥


बाल ता ह मा र गह
ृ आवा। दे ख मो ह िजयँ भेद बढ़ावा॥

मं य ने नगर को बना वामी (राजा) का दे खा, तो मझ


ु को जबद ती रा य दे दया। बा ल उसे मारकर
घर आ गया। मझ
ु े (राज संहासन पर) दे खकर उसने जी म भेद बढ़ाया (बहुत ह वरोध माना)। (उसने
समझा क यह रा य के लोभ से ह गुफा के वार पर शला दे आया था, िजससे म बाहर न नकल
सकँू और यहाँ आकर राजा बन बैठा)।

रपु सम मो ह मारे स अ त भार । ह र ल ह स सबसु अ नार ॥


ताक भय रघब
ु ीर कृपाला। सकल भव
ु न म फरे उँ बहाला॥

उसने मझ ु े श ु के समान बहुत अ धक मारा और मेरा सव व तथा मेर ी को भी छ न लया। हे


कृपालु रघवु ीर! म उसके भय से सम त लोक म बेहाल होकर फरता रहा।

इहाँ साप बस आवत नाह ं। तद प सभीत रहउँ मन माह ं॥


सन
ु सेवक दःु ख द नदयाला फर क उठ ं वै भज
ु ा बसाला॥

वह शाप के कारण यहाँ नह ं आता, तो भी म मन म भयभीत रहता हूँ। सेवक का दःु ख सन


ु कर द न पर
दया करनेवाले रघन
ु ाथ क दोन वशाल भ ज
ु ाएँ फड़क उठ ।

दो० - सन
ु ु सु ीव मा रहउँ बा ल ह एक हं बान।
म सरनागत गएँ न उब र हं ान॥ 6॥

(उ ह ने कहा -) हे सु ीव! सन
ु ो, म एक ह बाण से बा ल को मार डालँ ग
ू ा। मा और क शरण म
जाने पर भी उसके ाण न बचगे॥ 6॥

जे न म दख
ु हो हं दख
ु ार । त ह ह बलोकत पातक भार ॥
नज दख
ु ग र सम रज क र जाना। म क दख
ु रज मे समाना॥

जो लोग म के दःु ख से दःु खी नह ं होते, उ ह दे खने से ह बड़ा पाप लगता है । अपने पवत के समान
दःु ख को धल
ू के समान और म के धल
ू के समान दःु ख को सम
ु े (बड़े भार पवत) के समान जाने।

िज ह क अ स म त सहज न आई। ते सठ कत ह ठ करत मताई॥


कुपथ नवा र सप
ु ंथ चलावा। गन
ु गटै अवगन
ु ि ह दरु ावा॥

िज ह वभाव से ह ऐसी बु ा त नह ं है , वे मख
ू हठ करके य कसी से म ता करते ह? म का
धम है क वह म को बरु े माग से रोककर अ छे माग पर चलावे। उसके गुण कट करे और अवगुण
को छपावे।

दे त लेत मन संक न धरई। बल अनम


ु ान सदा हत करई॥
बप त काल कर सतगुन नेहा। ु त कह संत म गुन एहा॥

दे ने-लेने म मन म शंका न रखे। अपने बल के अनस


ु ार सदा हत ह करता रहे । वपि त के समय तो
सदा सौगुना नेह करे । वेद कहते ह क संत ( े ठ) म के गुण (ल ण) ये ह।

आग कह मद
ृ ु बचन बनाई। पाछ अन हत मन कु टलाई॥
जाकर चत अ ह ग त सम भाई। अस कु म प रहरे हं भलाई॥

जो सामने तो बना-बनाकर कोमल वचन कहता है और पीठ-पीछे बरु ाई करता है तथा मन म कु टलता
रखता है - हे भाई! (इस तरह) िजसका मन साँप क चाल के समान टे ढ़ा है , ऐसे कु म को तो यागने
म ह भलाई है ।
शीष पर
सेवक सठ नप
ृ कृपन कुनार । कपट म सल
ू सम चार ॥ जाएँ
सखा सोच यागह बल मोर। सब ब ध घटब काज म तोर॥
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ु सीदास :: :: :: रामच रतमानस :: क वता
स स हु ल र। स त र॥

मख
ू सेवक, कंजस
ू राजा, कुलटा ी और कपट म - ये चार शल
ू के समान पीड़ा दे नेवाले ह। हे सखा!
मेरे बल पर अब तम
ु चंता छोड़ दो। म सब कार से तु हारे काम आऊँगा (तु हार सहायता क ँ गा)।

कह सु ीव सन
ु हु रघब
ु ीरा। बा ल महाबल अ त रनधीरा॥
दं द
ु ु भ अि थ ताल दे खराए। बनु यास रघन
ु ाथ ढहाए॥

सु ीव ने कहा - हे रघव
ु ीर! सु नए, बा ल महान बलवान और अ यंत रणधीर है । फर सु ीव ने राम को
दं द
ु ु भ रा स क ह डयाँ व ताल के व ृ दखलाए। रघन
ु ाथ ने उ ह बना ह प र म के (आसानी से)
ढहा दया।

दे ख अ मत बल बाढ़ ीती। बा ल बधब इ ह भइ परतीती॥


बार-बार नावइ पद सीसा। भु ह जा न मन हरष कपीसा॥

राम का अप र मत बल दे खकर सु ीव क ी त बढ़ गई और उ ह व वास हो गया क ये बा ल का वध


अव य करगे। वे बार-बार चरण म सर नवाने लगे। भु को पहचानकर सु ीव मन म ह षत हो रहे थे।

उपजा यान बचन तब बोला। नाथ कृपाँ मन भयउ अलोला॥


सख
ु संप त प रवार बड़ाई। सब प रह र क रहउँ सेवकाई॥

जब ान उ प न हुआ तब वे ये वचन बोले क हे नाथ! आपक कृपा से अब मेरा मन ि थर हो गया।


सख
ु , संपि त, प रवार और बड़ाई (बड़ पन) सबको यागकर म आपक सेवा ह क ँ गा।

ए सब राम भग त के बाधक। कह हं संत तव पद अवराधक॥


स ु म सख
ु दख
ु जग माह ं। मायाकृत परमारथ नाह ं॥

य क आपके चरण क आराधना करनेवाले संत कहते ह क ये सब (सख


ु -संपि त आ द) राम भि त के
वरोधी ह। जगत म िजतने भी श -ु म और सख
ु -दःु ख (आ द वं व) ह, सब के सब मायार चत ह,
परमाथतः (वा तव म) नह ं ह।

बा ल परम हत जासु सादा। मलेहु राम तु ह समन बषादा॥


सपन जे ह सन होइ लराई। जाग समझ ु त मन सकुचाई॥

हे राम! बा ल तो मेरा परम हतकार है , िजसक कृपा से शोक का नाश करनेवाले आप मझ


ु े मले और
िजसके साथ अब व न म भी लड़ाई हो तो जागने पर उसे समझकर मन म संकोच होगा ( क व न म
भी म उससे य लड़ा)।

अब भु कृपा करहु ए ह भाँ त। सब तिज भजनु कर दन राती॥


सु न बराग संजतु क प बानी। बोले बहँ स रामु धनप
ु ानी॥

हे भो! अब तो इस कार कृपा क िजए क सब छोड़कर दन-रात म आपका भजन ह क ँ । सु ीव क


वैरा ययु त वाणी सन
ु कर (उसके णक वैरा य को दे खकर) हाथ म धनष
ु धारण करनेवाले राम
मस
ु कराकर बोले -

जो कछु कहे हु स य सब सोई। सखा बचन मम मष


ृ ा न होई॥
नट मरकट इव सब ह नचावत। रामु खगेस बेद अस गावत॥

तम
ु ने जो कुछ कहा है , वह सभी स य है ; परं तु हे सखा! मेरा वचन म या नह ं होता (अथात बा ल मारा
जाएगा और तु ह रा य मलेगा)। (काकभश
ु ंु ड कहते ह क -) हे प य के राजा ग ड़! नट (मदार ) के
बंदर क तरह राम सबको नचाते ह, वेद ऐसा कहते ह।

लै सु ीव संग रघन
ु ाथा। चले चाप सायक ग ह हाथा॥
तब रघप
ु त सु ीव पठावा। गज स जाइ नकट बल पावा॥

तदनंतर सु ीव को साथ लेकर और हाथ म धनष


ु -बाण धारण करके रघन
ु ाथ चले। तब रघन
ु ाथ ने सु ीव
को बा ल के पास भेजा। वह राम का बल पाकर बा ल के नकट जाकर गरजा।

सन
ु त बा ल ोधातरु धावा। ग ह कर चरन ना र समझ
ु ावा॥
सन
ु ु प त िज ह ह मलेउ सु ीवा। ते वौ बंधु तेज बल सींवा॥

बा ल सन
ु ते ह ोध म भरकर वेग से दौड़ा। उसक ी तारा ने चरण पकड़कर उसे समझाया क हे
नाथ! सु नए, सु ीव िजनसे मले ह वे दोन भाई तेज और बल क सीमा ह।

कोसलेस सत
ु ल छमन रामा। कालहु जी त सक हं सं ामा॥

वे कोसलाधीश दशरथ के पु राम और ल मण सं ाम म काल को भी जीत सकते ह।

दो० - कह बाल सन
ु ु भी य समदरसी रघन
ु ाथ।
ज कदा च मो ह मार हं तौ पु न होउँ सनाथ॥ 7॥

शीष पर
बा ल ने कहा - हे भी ! (डरपोक) ये! सन
ु ो, रघन
ु ाथ समदश ह। जो कदा चत वे मझ
ु े मारगे ह तो म जाएँ
सनाथ हो जाऊँगा (परमपद पा जाऊँगा)॥ 7॥
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स ह ऊ ( र द ऊ ु )॥ ॥

अस क ह चला महा अ भमानी। तन


ृ समान सु ीव ह जानी॥
भरे उभौ बाल अ त तजा। मु ठका मा र महाधु न गजा॥

ऐसा कहकर वह महान अ भमानी बा ल सु ीव को तनके के समान जानकर चला। दोन भड़ गए। बा ल
ने सु ीव को बहुत धमकाया और घस
ूँ ा मारकर बड़े जोर से गरजा।

तब सु ीव बकल होइ भागा। मिु ट हार ब सम लागा॥


म जो कहा रघब
ु ीर कृपाला। बंधु न होइ मोर यह काला॥

तब सु ीव याकुल होकर भागा। घस


ूँ े क चोट उसे व के समान लगी। (सु ीव ने आकर कहा -) हे
कृपालु रघव
ु ीर! मने आपसे पहले ह कहा था क बा ल मेरा भाई नह ं है , काल है ।

एक प तु ह ाता दोऊ। ते ह म त न हं मारे उँ सोऊ॥


कर परसा सु ीव सर रा। तनु भा कु लस गई सब पीरा॥

(राम ने कहा -) तम
ु दोन भाइय का एक-सा ह प है । इसी म से मने उसको नह ं मारा। फर राम
ने सु ीव के शर र को हाथ से पश कया, िजससे उसका शर र व के समान हो गया और सार पीड़ा
जाती रह ।

मेल कंठ सम
ु न कै माला। पठवा पु न बल दे इ बसाला॥
पु न नाना ब ध भई लराई। बटप ओट दे ख हं रघरु ाई॥

तब राम ने सु ीव के गले म फूल क माला डाल द और फर उसे बड़ा भार बल दे कर भेजा। दोन म
पन
ु ः अनेक कार से यु हुआ। रघन
ु ाथ व ृ क आड़ से दे ख रहे थे।

दो० - बहु छल बल सु ीव कर हयँ हारा भय मा न।


मारा बा ल राम तब दय माझ सर ता न॥ 8॥

सु ीव ने बहुत-से छल-बल कए, कं तु (अंत म) भय मानकर दय से हार गया। तब राम ने तानकर


बा ल के दय म बाण मारा॥ 8॥

परा बकल म ह सर के लाग। पु न उ ठ बैठ दे ख भु आगे॥


याम गात सर जटा बनाएँ। अ न नयन सर चाप चढ़ाएँ॥

बाण के लगते ह बा ल याकुल होकर प ृ वी पर गर पड़ा। कं तु भु राम को आगे दे खकर वह फर उठ


बैठा। भगवान का याम शर र है , सर पर जटा बनाए ह, लाल ने ह, बाण लए ह और धनष
ु चढ़ाए ह।

पु न पु न चतइ चरन चत द हा। सफ


ु ल ज म माना भु ची हा॥
दयँ ी त मख
ु बचन कठोरा। बोला चतइ राम क ओरा॥

बा ल ने बार-बार भगवान क ओर दे खकर च त को उनके चरण म लगा दया। भु को पहचानकर


उसने अपना ज म सफल माना। उसके दय म ी त थी, पर मख
ु म कठोर वचन थे। वह राम क ओर
दे खकर बोला -

धम हे तु अवतरे हु गोसा । मारे हु मो ह याध क ना ॥


म बैर सु ीव पआरा। अवगुन कवन नाथ मो ह मारा॥

हे गोसा ! आपने धम क र ा के लए अवतार लया है और मझ


ु े याध क तरह ( छपकर) मारा? म
बैर और सु ीव यारा? हे नाथ! कस दोष से आपने मझ
ु े मारा?

अनज
ु बधू भ गनी सत
ु नार । सन
ु ु सठ क या सम ए चार ॥
इ ह ह कु ि ट बलोकइ जोई। ता ह बध कछु पाप न होई॥

(राम ने कहा -) हे मख
ू ! सन
ु , छोटे भाई क ी, ब हन, पु क ी और क या - ये चार समान ह।
इनको जो कोई बरु ि ट से दे खता है , उसे मारने म कुछ भी पाप नह ं होता।

मढ़
ू तो ह अ तसय अ भमाना। ना र सखावन कर स न काना॥
मम भज
ु बल आ त ते ह जानी। मारा चह स अधम अ भमानी॥

हे मढ़
ू ! तझ
ु े अ यंत अ भमान है । तन
ू े अपनी ी क सीख पर भी कान ( यान) नह ं दया। सु ीव को
मेर भज
ु ाओं के बल का आ त जानकर भी अरे अधम अ भमानी! तन
ू े उसको मारना चाहा!

दो० - सन
ु हु राम वामी सन चल न चातरु मो र।
भु अजहूँ म पापी अंतकाल ग त तो र॥ 9॥

(बा ल ने कहा -) हे राम! सु नए, वामी (आप) से मेर चतरु ाई नह ं चल सकती। हे भो! अंतकाल म
आपक ग त (शरण) पाकर म अब भी पापी ह रहा?॥ 9॥

सन
ु त राम अ त कोमल बानी। बा ल सीस परसेउ नज पानी॥
अचल कर तनु राखहु ाना। बा ल कहा सन
ु ु कृपा नधाना॥

बा ल क अ यंत कोमल वाणी सन


ु कर राम ने उसके सर को अपने हाथ से पश कया (और कहा -) म
तु हारे शर र को अचल कर दँ ,ू तम
ु ाण को रखो। बा ल ने कहा - हे कृपा नधान! सु नए -
शीष पर
ज म ज म मु न जतनु कराह ं। अंत राम क ह आवत नाह ं॥ जाएँ
जास नाम बल संकर कासी। दे त सब ह सम ग त अ बनासी॥
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सु ल स र स । दत स ु ह स त अ स॥

मु नगण ज म-ज म म ( येक ज म म) (अनेक कार का) साधन करते रहते ह। फर भी अंतकाल म
उ ह 'राम' नह ं कह आता (उनके मख
ु से राम नाम नह ं नकलता)। िजनके नाम के बल से शंकर काशी
म सबको समान प से अ वना शनी ग त (मिु त) दे ते ह।

मम लोचन गोचर सोई आवा। बहु र क भु अस ब न ह बनावा॥

वह राम वयं मेरे ने के सामने आ गए ह। हे भो! ऐसा संयोग या फर कभी बन पड़ेगा?

छं ० - सो नयन गोचर जासु गुन नत ने त क ह ु त गावह ं।


िज त पवन मन गो नरस क र मु न यान कबहुँक पावह ं॥
मो ह जा न अ त अ भमान बस भु कहे उ राखु सर रह ।
अस कवन सठ ह ठ का ट सरु त बा र क र ह बबरू ह ॥

ु तयाँ 'ने त-ने त' कहकर नरं तर िजनका गुणगान करती रहती ह, तथा ाण और मन को जीतकर एवं
इं य को ( वषय के रस से सवथा) नीरस बनाकर मु नगण यान म िजनक कभी व चत ह झलक
पाते ह, वे ह भु (आप) सा ात मेरे सामने कट ह। आपने मझ
ु े अ यंत अ भमानवश जानकर यह कहा
क तम
ु शर र रख लो। परं तु ऐसा मख
ू कौन होगा जो हठपव
ू क क पव ृ को काटकर उससे बबरू के बाड़
लगावेगा (अथात पण
ू काम बना दे नेवाले आपको छोड़कर आपसे इस न वर शर र क र ा चाहे गा)?

अब नाथ क र क ना बलोकहु दे हु जो बर मागऊँ।


जे ह जो न ज म कम बस तहँ राम पद अनरु ागऊँ॥
यह तनय मम सम बनय बल क यान द भु ल िजऐ।
ग ह बाँह सरु नर नाह आपन दास अंगद क िजऐ॥

ु पर दया ि ट क िजए और म जो वर माँगता हूँ उसे द िजए। म कमवश िजस यो न म


हे नाथ! अब मझ
ज म लँ ,ू वह ं राम (आप) के चरण म ेम क ँ ! हे क याण द भो! यह मेरा पु अंगद वनय और बल
म मेरे ह समान है , इसे वीकार क िजए। और हे दे वता और मनु य के नाथ! बाँह पकड़कर इसे अपना
दास बनाइए।

दो० - राम चरन ढ़ ी त क र बा ल क ह तनु याग।


सम
ु न माल िज म कंठ ते गरत न जानइ नाग॥ 10॥

राम के चरण म ढ़ ी त करके बा ल ने शर र को वैसे ह (आसानी से) याग दया जैसे हाथी अपने
गले से फूल क माला का गरना न जाने॥ 10॥

राम बा ल नज धाम पठावा। नगर लोग सब याकुल धावा॥


नाना ब ध बलाप कर तारा। छूटे केस न दे ह सँभारा॥

राम ने बा ल को अपने परम धाम भेज दया। नगर के सब लोग याकुल होकर दौड़े। बा ल क ी तारा
अनेक कार से वलाप करने लगी। उसके बाल बखरे हुए ह और दे ह क सँभाल नह ं है ।

तारा बकल दे ख रघरु ाया। द ह यान ह र ल ह माया॥


छ त जल पावक गगन समीरा। पंच र चत अ त अधम सर रा॥

तारा को याकुल दे खकर रघन


ु ाथ ने उसे ान दया और उसक माया (अ ान) हर ल । (उ ह ने कहा -)
प ृ वी, जल, अि न, आकाश और वायु - इन पाँच त व से यह अ यंत अधम शर र रचा गया है ।

गट सो तनु तव आगे सोवा। जीव न य के ह ल ग तु ह रोवा॥


उपजा यान चरन तब लागी। ल हे स परम भग त बर मागी॥

वह शर र तो य तु हारे सामने सोया हुआ है , और जीव न य है । फर तम


ु कसके लए रो रह हो?
जब ान उ प न हो गया, तब वह भगवान के चरण लगी और उसने परम भि त का वर माँग लया।

उमा दा जो षत क ना । सब ह नचावत रामु गोसा ॥


तब सु ीव ह आयसु द हा। मत
ृ क कम ब धवत सब क हा॥

( शव कहते ह -) हे उमा! वामी राम सबको कठपत


ु ल क तरह नचाते ह। तदनंतर राम ने सु ीव को
आ ा द और सु ीव ने व धपव
ू क बा ल का सब मत
ृ क कम कया।

राम कहा अनज


ु ह समझ
ु ाई। राज दे हु सु ीव ह जाई॥
रघप
ु त चरन नाइ क र माथा। चले सकल े रत रघन
ु ाथा॥

तब राम ने छोटे भाई ल मण को समझाकर कहा क तम


ु जाकर सु ीव को रा य दे दो। रघन
ु ाथ क
ेरणा (आ ा) से सब लोग रघन
ु ाथ के चरण म म तक नवाकर चले।

दो० - ल छमन तरु त बोलाए परु जन ब समाज।


राजु द ह सु ीव कहँ अंगद कहँ जब
ु राज॥ 11॥

ल मण ने तरु ं त ह सब नगरवा सय को और ा मण के समाज को बल


ु ा लया और (उनके सामने)
सु ीव को रा य और अंगद को यव
ु राज-पद दया॥ 11॥

शीष पर
उमा राम सम हत जग माह ं। गु पतु मातु बंधु भु नाह ं॥ जाएँ
सर नर म न सब कै यह र ती। वारथ ला ग कर हं सब ी त॥
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सरु र ु स ह रत। र ल रह स त॥

हे पावती! जगत म राम के समान हत करनेवाला गु , पता, माता, बंधु और वामी कोई नह ं है ।
दे वता, मनु य और मु न सबक यह र त है क वाथ के लए ह सब ी त करते ह।

बा ल ास याकुल दन राती। तन बहु न चंताँ जर छाती॥


सोइ सु ीव क ह क पराऊ। अ त कृपाल रघब
ु ीर सभ
ु ाऊ॥

जो सु ीव दन-रात बा ल के भय से याकुल रहता था, िजसके शर र म बहुत-से घाव हो गए थे और


िजसक छाती चंता के मारे जला करती थी, उसी सु ीव को उ ह ने वानर का राजा बना दया। राम का
वभाव अ यंत ह कृपालु है ।

जानतहूँ अस भु प रहरह ं। काहे न बप त जाल नर परह ं॥


पु न सु ीव ह ल ह बोलाई। बहु कार नपृ नी त सखाई॥

जो लोग जानते हुए भी ऐसे भु को याग दे ते ह, वे य न वपि त के जाल म फँस? फर राम ने


सु ीव को बल
ु ा लया और बहुत कार से उ ह राजनी त क श ा द ।

कह भु सन
ु ु सु ीव हर सा। परु न जाउँ दस चा र बर सा॥
गत ीषम बरषा रतु आई। र हहउँ नकट सैल पर छाई॥

फर भु ने कहा - हे वानरप त सु ीव! सन


ु ो, म चौदह वष तक गाँव (ब ती) म नह ं जाऊँगा। ी मऋतु
बीतकर वषाऋतु आ गई। अतः म यहाँ पास ह पवत पर टक रहूँगा।

अंगद स हत करहु तु ह राज।ू संतत दयँ धरे हु मम काज॥



जब सु ीव भवन फ र आए। रामु बरषन ग र पर छाए॥

तम
ु अंगद स हत रा य करो। मेरे काम का दय म सदा यान रखना। तदनंतर जब सु ीव घर लौट
आए, तब राम वषण पवत पर जा टके।

दो० - थम हं दे व ह ग र गुहा राखेउ चर बनाइ।


राम कृपा न ध कछु दन बास कर हंगे आइ॥ 12॥

दे वताओं ने पहले से ह उस पवत क एक गफ


ु ा को संद
ु र बना (सजा) रखा था। उ ह ने सोच रखा था क
कृपा क खान राम कुछ दन यहाँ आकर नवास करगे॥ 12॥

संद
ु र बन कुसु मत अ त सोभा। गंज
ु त मधप
ु नकर मधु लोभा॥
कंद मल
ू फल प सह
ु ाए। भए बहुत जब ते भु आए॥

संद
ु र वन फूला हुआ अ यंत सश ु ो भत है । मधु के लोभ से भ र के समह
ू गंज
ु ार कर रहे ह। जब से भु
आए, तब से वन म संद ु र कंद, मलू , फल और प त क बहुतायत हो गई।

दे ख मनोहर सैल अनप


ू ा। रहे तहँ अनज
ु स हत सरु भप
ू ा॥
मधक
ु र खग मग
ृ तनु ध र दे वा। कर हं स मु न भु कै सेवा॥

मनोहर और अनप
ु म पवत को दे खकर दे वताओं के स ाट राम छोटे भाई स हत वहाँ रह गए। दे वता, स
और मु न भ र , प य और पशओ
ु ं के शर र धारण करके भु क सेवा करने लगे।

मंगल प भयउ बन तब ते। क ह नवास रमाप त जब ते॥


फ टक सला अ त सु सह
ु ाई। सख
ु आसीन तहाँ वौ भाई॥

जब से रमाप त राम ने वहाँ नवास कया तब से वन मंगल व प हो गया। संद


ु र फ टक म ण क एक
अ यंत उ वल शला है , उस पर दोन भाई सख
ु पव
ू क वराजमान ह।

कहत अनज
ु सन कथा अनेका। भग त बरत नप
ृ नी त बबेका॥
बरषा काल मेघ नभ छाए। गरजत लागत परम सह
ु ाए॥

राम छोटे भाई ल मण से भि त, वैरा य, राजनी त और ान क अनेक कथाएँ कहते ह। वषाकाल म


आकाश म छाए हुए बादल गरजते हुए बहुत ह सह
ु ावने लगते ह।

दो० - ल छमन दे खु मोर गन नाचत बा रद पे ख।


गह
ृ ु गत कहुँ दे ख॥ 13॥
बर त रत हरष जस ब नभ

(राम कहने लगे -) हे ल मण! दे खो, मोर के झंड


ु बादल को दे खकर नाच रहे ह, जैसे वैरा य म
अनरु त गह
ृ थ कसी व णभ
ु त को दे खकर ह षत होते ह॥ 13॥

घन घमंड नभ गरजत घोरा। या ह न डरपत मन मोरा॥


दा म न दमक रह न घन माह ं। खल कै ी त जथा थर नाह ं॥

आकाश म बादल घम
ु ड़-घम
ु ड़कर घोर गजना कर रहे ह, या (सीता) के बना मेरा मन डर रहा है ।
बजल क चमक बादल म ठहरती नह ं, जैसे द ु ट क ी त ि थर नह ं रहती।

बरष हं जलद भू म नअराएँ। जथा नव हं बध


ु ब या पाएँ।
बँद
ू अघात सह हं ग र कैस। खल के बचन संत सह जैस॥

शीष पर
बादल प ृ वी के समीप आकर (नीचे उतरकर) बरस रहे ह, जैसे व या पाकर व वान ् न हो जाते ह। जाएँ
बँद क चोट पवत कैसे सहते ह, जैसे द ट के वचन संत सहते ह।
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ू त स सहत ह, स दु सत सहत ह।

छु नद ं भ र चल ं तोराई। जस थोरे हुँ धन खल इतराई॥


भू म परत भा ढाबर पानी। जनु जीव ह माया लपटानी॥

छोट न दयाँ भरकर ( कनार को) तड़ ु ाती हुई चल ं, जैसे थोड़े धन से भी द ु ट इतरा जाते ह (मयादा का
याग कर दे ते ह)। प ृ वी पर पड़ते ह पानी गँदला हो गया है , जैसे शु जीव के माया लपट गई हो।

स म ट स म ट जल भर हं तलावा। िज म सदगुन स जन प हं आवा॥


स रता जल जल न ध महुँ जाई। होइ अचल िज म िजव ह र पाई॥

जल एक हो-होकर तालाब म भर रहा है , जैसे स गुण (एक-एककर) स जन के पास चले आते ह। नद


का जल समु म जाकर वैसे ह ि थर हो जाता है , जैसे जीव ह र को पाकर अचल (आवागमन से मु त)
हो जाता है ।

दो० - ह रत भू म तन
ृ संकुल समु झ पर हं न हं पंथ।
िज म पाखंड बाद त गु त हो हं सद ंथ॥ 14॥

प ृ वी घास से प रपण
ू होकर हर हो गई है , िजससे रा ते समझ नह ं पड़ते। जैसे पाखंड-मत के चार से
स ंथ गु त (लु त) हो जाते ह॥ 14॥

दादरु धु न चहु दसा सह


ु ाई। बेद पढ़ हं जनु बटु समद
ु ाई॥
नव प लव भए बटप अनेका। साधक मन जस मल बबेका॥

चार दशाओं म मेढक क व न ऐसी सह


ु ावनी लगती है , मानो व या थय के समद
ु ाय वेद पढ़ रहे ह ।
अनेक व ृ म नए प ते आ गए ह, िजससे वे ऐसे हरे -भरे एवं सश
ु ो भत हो गए ह जैसे साधक का मन
ववेक ( ान) ा त होने पर हो जाता है ।

अक जवास पात बनु भयऊ। जस सरु ाज खल उ यम गयऊ॥


खोजत कतहुँ मलइ न हं धरू । करइ ोध िज म धरम ह दरू ॥

मदार और जवासा बना प ते के हो गए (उनके प ते झड़ गए)। जैसे े ठ रा य म द ु ट का उ यम


जाता रहा (उनक एक भी नह ं चलती)। धल
ू कह ं खोजने पर भी नह ं मलती, जैसे ोध धम को दरू
कर दे ता है (अथात ोध का आवेश होने पर धम का ान नह ं रह जाता)।

स स संप न सोह म ह कैसी। उपकार कै संप त जैसी॥


न स तम घन ख योत बराजा। जनु दं भ ह कर मला समाजा॥

अ न से यु त (लहलहाती हुई खेती से हर -भर ) प ृ वी कैसी शो भत हो रह है , जैसी उपकार पु ष क


संपि त। रात के घने अंधकार म जग
ु नू शोभा पा रहे ह, मानो दं भय का समाज आ जट ु ा हो।

महाबिृ ट च ल फू ट कआर ं। िज म सत
ु ं भएँ बगर हं नार ं॥
कृषी नराव हं चतरु कसाना। िज म बध
ु तज हं मोह मद माना॥

भार वषा से खेत क या रयाँ फूट चल ह, जैसे वतं होने से ि याँ बगड़ जाती ह। चतरु कसान
खेत को नरा रहे ह (उनम से घास आ द को नकालकर फक रहे ह)। जैसे व वान लोग मोह, मद और
मान का याग कर दे ते ह।

दे खअत च बाक खग नाह ं। क ल ह पाइ िज म धम पराह ं॥


ऊषर बरषइ तन
ृ न हं जामा। िज म ह रजन हयँ उपज न कामा॥

च वाक प ी दखाई नह ं दे रहे ह; जैसे क लयग


ु को पाकर धम भाग जाते ह। ऊसर म वषा होती है ,
पर वहाँ घास तक नह ं उगती, जैसे ह रभ त के दय म काम नह ं उ प न होता।

ब बध जंतु संकुल म ह ाजा। जा बाढ़ िज म पाइ सरु ाजा॥


जहँ तहँ रहे प थक थ क नाना। िज म इं य गन उपज याना॥

प ृ वी अनेक तरह के जीव से भर हुई उसी तरह शोभायमान है , जैसे सरु ा य पाकर जा क व ृ होती
है । जहाँ-तहाँ अनेक प थक थककर ठहरे हुए ह, जैसे ान उ प न होने पर इं याँ ( श थल होकर वषय
क ओर जाना छोड़ दे ती ह)।

दो० - कबहुँ बल बह मा त जहँ तहँ मेघ बला हं।


िज म कपत
ू के उपज कुल स म नसा हं॥ 15(क)॥

कभी-कभी वायु बड़े जोर से चलने लगती है , िजससे बादल जहाँ-तहाँ गायब हो जाते ह। जैसे कुपु के
उ प न होने से कुल के उ तम धम ( े ठ आचरण) न ट हो जाते ह॥ 15(क)॥

कबहु दवस महँ न बड़ तम कबहुँक गट पतंग।


बनसइ उपजइ यान िज म पाइ कुसंग सस
ु ंग॥ 15(ख)॥

कभी (बादल के कारण) दन म घोर अंधकार छा जाता है और कभी सय


ू कट हो जाते ह। जैसे कुसंग
पाकर ान न ट हो जाता है और सस
ु ंग पाकर उ प न हो जाता है ॥ 15(ख)॥

बरषा बगत सरद रतु आई। लछमन दे खहु परम सह


ु ाई॥
फूल कास सकल म ह छाई। जनु बरषाँ कृत गट बढ़
ु ाई॥
शीष पर
हे ल मण! दे खो, वषा बीत गई और परम संद
ु र शर ऋतु आ गई। फूले हुए कास से सार प ृ वी छा जाएँ
गई। मानो वषा ऋत ने (कास पी सफेद बाल के प म) अपना बढ़ापा कट कया है ।
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ई। ऋतु ( स सु द ल ) अ ढ़
ु ह।

उ दत अगि त पंथ जल सोषा। िज म लोभ हं सोषइ संतोषा॥


स रता सर नमल जल सोहा। संत दय जस गत मद मोहा॥

अग य के तारे ने उदय होकर माग के जल को सोख लया, जैसे संतोष लोभ को सोख लेता है । न दय
और तालाब का नमल जल ऐसी शोभा पा रहा है जैसे मद और मोह से र हत संत का दय!

रस रस सख
ू स रत सर पानी। ममता याग कर हं िज म यानी॥
जा न सरद रतु खंजन आए। पाइ समय िज म सक
ु ृ त सह
ु ाए॥

नद और तालाब का जल धीरे -धीरे सख


ू रहा है । जैसे ानी ( ववेक ) पु ष ममता का याग करते ह।
शरद ऋतु जानकर खंजन प ी आ गए। जैसे समय पाकर संद
ु र सक
ु ृ त आ जाते ह (पु य कट हो जाते
ह)।

पंक न रे नु सोह अ स धरनी। नी त नपन


ु नप
ृ कै ज स करनी॥
जल संकोच बकल भइँ मीना। अबध
ु कुटुंबी िज म धनह ना॥

न क चड़ है न धल
ू ; इससे धरती ( नमल होकर) ऐसी शोभा दे रह है जैसे नी त नपण
ु राजा क करनी!
जल के कम हो जाने से मछ लयाँ याकुल हो रह ह, जैसे मख
ू ( ववेकशू य) कुटुंबी (गह
ृ थ) धन के
बना याकुल होता है ।

बनु घन नमल सोह अकासा। ह रजन इव प रह र सब आसा॥


कहुँ कहुँ बिृ ट सारद थोर । कोउ एक भाव भग त िज म मोर ॥

बना बादल का नमल आकाश ऐसा शो भत हो रहा है जैसे भगव त सब आशाओं को छोड़कर
सश
ु ो भत होते ह। कह ं-कह ं ( वरले ह थान म) शरद ऋतु क थोड़ी-थोड़ी वषा हो रह है । जैसे कोई
वरले ह मेर भि त पाते ह।

दो० - चले हर ष तिज नगर नप


ृ तापस ब नक भखा र।
िज म ह रभग त पाइ म तज हं आ मी चा र॥ 16॥

(शरद ऋतु पाकर) राजा, तप वी, यापार और भखार ( मशः वजय, तप, यापार और भ ा के लए)
ह षत होकर नगर छोड़कर चले। जैसे ह र क भि त पाकर चार आ मवाले (नाना कार के साधन पी)
म को याग दे ते ह॥ 16॥

सख
ु ी मीन जे नीर अगाधा। िज म ह र सरन न एकऊ बाधा॥
फूल कमल सोह सर कैसा। नगुन म सगुन भएँ जैसा॥

जो मछ लयाँ अथाह जल म ह, वे सख
ु ी ह, जैसे ह र के शरण म चले जाने पर एक भी बाधा नह ं रहती।
कमल के फूलने से तालाब कैसी शोभा दे रहा है , जैसे नगुण म सगुण होने पर शो भत होता है ।

गंज
ु त मधक
ु र मख
ु र अनप
ू ा। संद
ु र खग रव नाना पा॥
च बाक मन दख
ु न स पेखी। िज म दज
ु न पर संप त दे खी॥

भ रे अनपु म श द करते हुए गँज


ू रहे ह, तथा प य के नाना कार के संद ु र श द हो रहे ह। रा
दे खकर चकवे के मन म वैसे ह दःु ख हो रहा है , जैसे दस
ू रे क संपि त दे खकर द ु ट को होता है ।

चातक रटत तष
ृ ा अ त ओह । िज म सख
ु लहइ न संकर ोह ॥
सरदातप न स स स अपहरई। संत दरस िज म पातक टरई॥

पपीहा रट लगाए है , उसको बड़ी यास है , जैसे शंकर का ोह सख


ु नह ं पाता (सख
ु के लए झीखता
रहता है ), शर ऋतु के ताप को रात के समय चं मा हर लेता है , जैसे संत के दशन से पाप दरू हो
जाते ह।

दे ख इंद ु चकोर समद


ु ाई। चतव हं िज म ह रजन ह र पाई॥
मसक दं स बीते हम ासा। िज म वज ोह कएँ कुल नासा॥

चकोर के समद
ु ाय चं मा को दे खकर इस कार टकटक लगाए ह जैसे भगव त भगवान को पाकर
उनके ( न नमेष ने से) दशन करते ह। म छर और डाँस जाड़े के डर से इस कार न ट हो गए जैसे
ा मण के साथ वैर करने से कुल का नाश हो जाता है ।

दो० - भू म जीव संकुल रहे गए सरद रतु पाइ।


सदगुर मल जा हं िज म संसय म समद
ु ाइ॥ 17॥

(वषा ऋतु के कारण) प ृ वी पर जो जीव भर गए थे, वे शर ऋतु को पाकर वैसे ह न ट हो गए जैसे


स गु के मल जाने पर संदेह और म के समह
ू न ट हो जाते ह॥ 17॥

बरषा गत नमल रतु आई। सु ध न तात सीता कै पाई॥


ु जी त न मष महुँ आन ॥
एक बार कैसेहुँ सु ध जान । कालह

वषा बीत गई, नमल शर ऋतु आ गई। परं तु हे तात! सीता क कोई खबर नह ं मल । एक बार कैसे भी
पता पाऊँ तो काल को भी जीतकर पल भर म जानक को ले आऊँ।

शीष पर
कतहुँ रहउ ज जीव त होई। तात जतन क र आनउँ सोई॥ जाएँ
स ीवहँ स ध मो र बसार । पावा राज कोस पर नार ॥
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सु हु सु र सर। र ु स रु र॥

कह ं भी रहे , य द जीती होगी तो हे तात! य न करके म उसे अव य लाऊँगा। रा य, खजाना, नगर और


ी पा गया, इस लए सु ीव ने भी मेर सध
ु भल
ु ा द।

जे हं सायक मारा म बाल । ते हं सर हत मढ़


ू कहँ काल ॥
जासु कृपाँ छूट हं मद मोहा। ता कहुँ उमा क सपनेहुँ कोहा॥

िजस बाण से मने बा ल को मारा था, उसी बाण से कल उस मढ़


ू को मा ँ ! ( शव कहते ह -) हे उमा!
िजनक कृपा से मद और मोह छूट जाते ह, उनको कह ं व न म भी ोध हो सकता है ? (यह तो ल ला
मा है )।

जान हं यह च र मु न यानी। िज ह रघब


ु ीर चरन र त मानी॥
ल छमन ोधवंत भु जाना। धनष
ु चढ़ाई गहे कर बाना॥

ानी मु न िज ह ने रघन
ु ाथ के चरण म ी त मान ल है (जोड़ ल है ), वे ह इस च र (ल ला रह य)
को जानते ह। ल मण ने जब भु को ोधयु त जाना, तब उ ह ने धनष
ु चढ़ाकर बाण हाथ म ले लए।

दो० - तब अनज
ु ह समझ
ु ावा रघप
ु त क ना सींव।
भय दे खाइ लै आवहु तात सखा सु ीव॥ 18॥

तब दया क सीमा रघन


ु ाथ ने छोटे भाई ल मण को समझाया क हे तात! सखा सु ीव को केवल भय
दखलाकर ले आओ (उसे मारने क बात नह ं है )॥ 18॥

इहाँ पवनसत
ु दयँ बचारा। राम काजु सु ीवँ बसारा॥
नकट जाइ चरनि ह स नावा। चा रहु ब ध ते ह क ह समझ
ु ावा॥

यहाँ ( कि कंधा नगर म) पवनकुमार हनम


ु ान ने वचार कया क सु ीव ने राम के काय को भल
ु ा दया।
उ ह ने सु ीव के पास जाकर चरण म सर नवाया। (साम, दान, दं ड, भेद) चार कार क नी त कहकर
उ ह समझाया।

सु न सु ीवँ परम भय माना। बषयँ मोर ह र ल हे उ याना॥


अब मा तसत
ु दत
ू समह
ू ा। पठवहु जहँ तहँ बानर जह
ू ा॥

हनम
ु ान के वचन सनु कर सु ीव ने बहुत ह भय माना। (और कहा -) वषय ने मेरे ान को हर लया।
अब हे पवनसतु ! जहाँ-तहाँ वानर के यथ
ू रहते ह, वहाँ दत
ू के समह
ू को भेजो।

कहहु पाख महुँ आव न जोई। मोर कर ता कर बध होई॥


तब हनमु ंत बोलाए दत
ू ा। सब कर क र सनमान बहूता॥

और कहला दो क एक पखवाड़े म (पंदरह दन म) जो न आ जाएगा, उसका मेरे हाथ वध होगा। तब


हनम
ु ान ने दत
ू को बल
ु ाया और सबका बहुत स मान करके -

भय अ ी त नी त दे खराई। चले सकल चरनि ह सर नाई॥


ए ह अवसर ल छमन परु आए। ोध दे ख जहँ तहँ क प धाए॥

सबको भय, ी त और नी त दखलाई। सब बंदर चरण म सर नवाकर चले। इसी समय ल मण नगर
म आए। उनका ोध दे खकर बंदर जहाँ-तहाँ भागे।

दो० - धनष
ु चढ़ाइ कहा तब जा र करउँ परु छार।
याकुल नगर दे ख तब आयउ बा लकुमार॥ 19॥

तदनंतर ल मण ने धनष
ु चढ़ाकर कहा क नगर को जलाकर अभी राख कर दँ ग
ू ा। तब नगरभर को
याकुल दे खकर बा लपु अंगद उनके पास आए॥ 19॥

चरन नाइ स बनती क ह । ल छमन अभय बाँह ते ह द ह ॥


ोधवंत ल छमन सु न काना। कह कपीस अ त भयँ अकुलाना॥

अंगद ने उनके चरण म सर नवाकर वनती क ( मा-याचना क )। तब ल मण ने उनको अभय बाँह


द (भज
ु ा उठाकर कहा क डरो मत)। सु ीव ने अपने कान से ल मण को ोधयु त सन
ु कर भय से
अ यंत याकुल होकर कहा -

सन
ु ु हनम
ु ंत संग लै तारा। क र बनती समझ
ु ाउ कुमारा॥
तारा स हत जाइ हनम
ु ाना। चरन बं द भु सज
ु स बखाना॥

हे हनम
ु ान! सन
ु ो, तम
ु तारा को साथ ले जाकर वनती करके राजकुमार को समझाओ (समझा-बझ
ु ाकर
शांत करो)। हनम
ु ान ने तारा स हत जाकर ल मण के चरण क वंदना क और भु के संद
ु र यश का
बखान कया।

क र बनती मं दर लै आए। चरन पखा र पलँ ग बैठाए॥


तब कपीस चरनि ह स नावा। ग ह भज
ु ल छमन कंठ लगावा॥

वे वनती करके उ ह महल म ले आए तथा चरण को धोकर उ ह पलँ ग पर बैठाया। तब वानरराज


सु ीव ने उनके चरण म सर नवाया और ल मण ने हाथ पकड़कर उनको गले से लगा लया।

शीष पर
नाथ वषय सम मद कछु नाह ं। मु न मन मोह करइ छन माह ं। जाएँ
सनत बनीत बचन सख पावा। ल छमन ते ह बह ब ध समझावा॥
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सु त त सु । ल छु तह ह ु स झ ॥

(सु ीव ने कहा -) हे नाथ! वषय के समान और कोई मद नह ं है । यह मु नय के मन म भी णमा


म मोह उ प न कर दे ता है ( फर म तो वषयी जीव ह ठहरा)। सु ीव के वनययु त वचन सन
ु कर
ल मण ने सख
ु पाया और उनको बहुत कार से समझाया।

पवन तनय सब कथा सन


ु ाई। जे ह ब ध गए दत
ू समद
ु ाई॥

तब पवनसत
ु हनम
ु ान ने िजस कार सब दशाओं म दत
ू के समह
ू गए थे वह सब हाल सन
ु ाया।

दो० - हर ष चले सु ीव तब अंगदा द क प साथ।


रामानज
ु आग क र आए जहँ रघन
ु ाथ॥ 20॥

तब अंगद आ द वानर को साथ लेकर और राम के छोटे भाई ल मण को आगे करके (अथात उनके
पीछे -पीछे ) सु ीव ह षत होकर चले और जहाँ रघन
ु ाथ थे वहाँ आए॥ 20॥

नाइ चरन स कह कर जोर ॥ नाथ मो ह कछु ना हन खोर ॥


अ तसय बल दे व तव माया॥ छूटइ राम करहु ज दाया॥

रघन
ु ाथ के चरण म सर नवाकर हाथ जोड़कर सु ीव ने कहा - हे नाथ! मझ
ु े कुछ भी दोष नह ं है । हे
दे व! आपक माया अ यंत ह बल है । आप जब दया करते ह, हे राम! तभी यह छूटती है ।

बषय ब य सरु नर मु न वामी॥ म पावँर पसु क प अ त कामी॥


ना र नयन सर जा ह न लागा। घोर ोध तम न स जो जागा॥

हे वामी! दे वता, मनु य और मु न सभी वषय के वश म ह। फर म तो पामर पशु और पशओ


ु ं म भी
अ यंत कामी बंदर हूँ। ी का नयन-बाण िजसको नह ं लगा, जो भयंकर ोध पी अँधेर रात म भी
जागता रहता है ( ोधांध नह ं होता)।

लोभ पाँस जे हं गर न बँधाया। सो नर तु ह समान रघरु ाया॥


यह गुन साधन त न हं होई। तु हर कृपा पाव कोइ कोई॥

और लोभ क फाँसी से िजसने अपना गला नह ं बँधाया, हे रघन


ु ाथ! वह मनु य आप ह के समान है । ये
गण
ु साधन से नह ं ा त होते। आपक कृपा से ह कोई-कोई इ ह पाते ह।

तब रघप
ु त बोले मस
ु क
ु ाई। तु ह य मो ह भरत िज म भाई॥
अब सोइ जतनु करह मन लाई। जे ह ब ध सीता कै सु ध पाई॥

तब रघन
ु ाथ मस
ु कराकर बोले - हे भाई! तम
ु मझ
ु े भरत के समान यारे हो। अब मन लगाकर वह उपाय
करो िजस उपाय से सीता क खबर मले।

दो० - ए ह ब ध होत बतकह आए बानर जथ


ू ।
नाना बरन सकल द स दे खअ क स ब थ॥ 21॥

इस कार बातचीत हो रह थी क वानर के यथ


ू (झंड
ु ) आ गए। अनेक रं ग के वानर के दल सब
दशाओं म दखाई दे ने लगे॥ 21॥

बानर कटक उमा म दे खा। सो मू ख जो करन चह लेखा॥


आइ राम पद नाव हं माथा। नर ख बदनु सब हो हं सनाथा॥

( शव कहते ह -) हे उमा! वानर क वह सेना मने दे खी थी। उसक जो गनती करना चाहे वह महान
मख
ू है । सब वानर आ-आकर राम के चरण म म तक नवाते ह और (स दय-माधय
ु न ध) मख
ु के दशन
करके कृताथ होते ह।

अस क प एक न सेना माह ं। राम कुसल जे ह पछ


ू नाह ं॥
यह कछु न हं भु कइ अ धकाई। ब व प यापक रघरु ाई॥

सेना म एक भी वानर ऐसा नह ं था िजससे राम ने कुशल न पछ


ू हो, भु के लए यह कोई बड़ी बात
नह ं है ; य क रघन
ु ाथ व व प तथा सव यापक ह (सारे प और सब थान म ह)।

ठाढ़े जहँ तहँ आयसु पाई। कह सु ीव सब ह समझ


ु ाई॥
राम काजु अ ू जाहु चहुँ ओरा॥
मोर नहोरा। बानर जथ

आ ा पाकर सब जहाँ-तहाँ खड़े हो गए। तब सु ीव ने सबको समझाकर कहा क हे वानर के समह


ू ! यह
राम का काय है और मेरा नहोरा (अनरु ोध) है ; तम
ु चार ओर जाओ।

जनकसतु ा कहुँ खोजहु जाई। मास दवस महँ आएहु भाई॥


अव ध मे ट जो बनु सु ध पाएँ। आवइ ब न ह सो मो ह मराएँ॥

और जाकर जानक को खोजो। हे भाई! मह ने भर म वापस आ जाना। जो (मह ने भर क ) अव ध


बताकर बना पता लगाए ह लौट आएगा उसे मेरे वारा मरवाते ह बनेगा (अथात मझ
ु े उसका वध
करवाना ह पड़ेगा)।

दो० - बचन सन
ु त सब बानर जहँ तहँ चले तरु ं त।
तब सु ीवँ बोलाए अंगद नल हनम
ु ंत॥ 22॥
शीष पर
सु ीव के वचन सन
ु ते ह सब वानर तरु ं त जहाँ-तहाँ ( भ न- भ न दशाओं म) चल दए। तब सु ीव ने जाएँ
अंगद, नल, हनमान आ द धान- धान यो ाओं को बलाया (और कहा -)॥ 22॥
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ु सीदासओ:: :: :: रामच रतमानस :: क वता
अ द, ल, ह ु आद ुल (और ह )॥ ॥

सन
ु हु नील अंगद हनम
ु ाना। जामवंत म तधीर सज
ु ाना॥
सकल सभ
ु ट म ल दि छन जाहू। सीता सु ध पँछ
ू े हु सब काहू॥

हे धीरबु और चतरु नील, अंगद, जा बवान और हनम


ु ान! तम
ु सब े ठ यो ा मलकर द ण दशा
को जाओ और सब कसी से सीता का पता पछ
ू ना।

मन म बचन सो जतन बचारे हु। रामचं कर काजु सँवारे हु॥


भानु पी ठ सेइअ उर आगी। वा म ह सब भाव छल यागी॥

मन, वचन तथा कम से उसी का (सीता का पता लगाने का) उपाय सोचना। ी रामचं का काय संप न
(सफल) करना। सय
ू को पीठ से और अि न को दय से (सामने से) सेवन करना चा हए। परं तु वामी
क सेवा तो छल छोड़कर सवभाव से (मन, वचन, कम से) करनी चा हए।

तिज माया सेइअ परलोका। मट हं सकल भवसंभव सोका॥


दे ह धरे कर यह फलु भाई। भिजअ राम सब काम बहाई॥

माया ( वषय क ममता-आसि त) को छोड़कर परलोक का सेवन (भगवान के द य धाम क ाि त के


लए भगव सेवा प साधन) करना चा हए, िजससे भव (ज म-मरण) से उ प न सारे शोक मट जाएँ। हे
भाई! दे ह धारण करने का यह फल है क सब काम (कामनाओं) को छोड़कर राम का भजन ह कया
जाए।

सोइ गुन य सोई बड़भागी। जो रघब


ु ीर चरन अनरु ागी॥
आयसु मा ग चरन स नाई। चले हर ष सु मरत रघरु ाई॥

स गण
ु को पहचाननेवाला (गण
ु वान) तथा बड़भागी वह है जो रघन
ु ाथ के चरण का ेमी है । आ ा
माँगकर और चरण म फर सर नवाकर रघन
ु ाथ का मरण करते हुए सब ह षत होकर चले।

पाछ पवन तनय स नावा। जा न काज भु नकट बोलावा॥


परसा सीस सरो ह पानी। करमु का द ि ह जन जानी॥

सबके पीछे पवनसत


ु हनम
ु ान ने सर नवाया। काय का वचार करके भु ने उ ह अपने पास बल
ु ाया।
उ ह ने अपने कर-कमल से उनके सर का पश कया तथा अपना सेवक जानकर उ ह अपने हाथ क
अँगठ
ू उतारकर द ।

बहु कार सीत ह समझ


ु ाएहु। क ह बल बरह बे ग तु ह आएहु॥
हनमु त ज म सफ
ु ल क र माना। चलेउ दयँ ध र कृपा नधाना॥

(और कहा -) बहुत कार से सीता को समझाना और मेरा बल तथा वरह ( ेम) कहकर तम
ु शी लौट
आना। हनम
ु ान ने अपना ज म सफल समझा और कृपा नधान भु को दय म धारण करके वे चले।

ज यप भु जानत सब बाता। राजनी त राखत सरु ाता॥

य य प दे वताओं क र ा करनेवाले भु सब बात जानते ह, तो भी वे राजनी त क र ा कर रहे ह


(नी त क मयादा रखने के लए सीता का पता लगाने को जहाँ-तहाँ वानर को भेज रहे ह)।

दो० - चले सकल बन खोजत स रता सर ग र खोह।


राम काज लयल न मन बसरा तन कर छोह॥ 23॥

सब वानर वन, नद , तालाब, पवत और पवत क कंदराओं म खोजते हुए चले जा रहे ह। मन राम के
काय म लवल न है । शर र तक का ेम (मम व) भल
ू गया है ॥ 23॥

कतहुँ होइ न सचर स भेटा। ान ले हं एक एक चपेटा॥


बहु कार ग र कानन हे र हं। कोउ मु न मलइ ता ह सब घेर हं॥

कह ं कसी रा स से भट हो जाती है , तो एक-एक चपत म ह उसके ाण ले लेते ह। पवत और वन


को बहुत कार से खोज रहे ह। कोई मु न मल जाता है तो पता पछ
ू ने के लए उसे सब घेर लेते ह।

ला ग तष
ृ ा अ तसय अकुलाने। मलइ न जल घन गहन भल
ु ाने॥
मन हनम
ु ान क ह अनम
ु ाना। मरन चहत सब बनु जल पाना॥

इतने म ह सबको अ यंत यास लगी, िजससे सब अ यंत ह याकुल हो गए। कं तु जल कह ं नह ं


मला। घने जंगल म सब भल
ु ा गए। हनम
ु ान ने मन म अनम
ु ान कया क जल पए बना सब लोग
मरना ह चाहते ह।

च ढ़ ग र सखर चहूँ द स दे खा। भू म बबर एक कौतकु पेखा॥


च बाक बक हं स उड़ाह ं। बहुतक खग बस हं ते ह माह ं॥

उ ह ने पहाड़ क चोट पर चढ़कर चार ओर दे खा तो प ृ वी के अंदर एक गुफा म उ ह एक कौतक



(आ चय) दखाई दया। उसके ऊपर चकवे, बगुले और हं स उड़ रहे ह और बहुत-से प ी उसम वेश कर
रहे ह।

ग र ते उत र पवनसतु आवा। सब कहुँ लै सोइ बबर दे खावा॥


आग कै हनमु ंत ह ल हा। पैठे बबर बलंबु न क हा॥
शीष पर
पवन कुमार हनम
ु ान पवत से उतर आए और सबको ले जाकर उ ह ने वह गुफा दखलाई। सबने हनम
ु ान जाएँ
को आगे कर लया और वे गफा म घस गए, दे र नह ं क ।
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ु ससीदास :: :: :: रामच रतमानस :: क वता
आ र ल और ु ु ए, दर ह ।

दो० - द ख जाइ उपबन बर सर बग सत बहु कंज।


मं दर एक चर तहँ बै ठ ना र तप पंज
ु ॥ 24॥

अंदर जाकर उ ह ने एक उ तम उपवन (बगीचा) और तालाब दे खा, िजसम बहुत-से कमल खले हुए ह।
वह ं एक संद
ु र मं दर है , िजसम एक तपोमू त ी बैठ है ॥ 24॥

द ू र ते ता ह सबि ह स नावा। पछ
ू नज ब ृ तांत सन
ु ावा॥
ते हं तब कहा करहु जल पाना। खाहु सरु स संद
ु र फल नाना॥

दरू से ह सबने उसे सर नवाया और पछ


ू ने पर अपना सब व ृ तांत कह सन
ु ाया। तब उसने कहा -
जलपान करो और भाँ त-भाँ त के रसीले संद
ु र फल खाओ।

म जनु क ह मधरु फल खाए। तासु नकट पु न सब च ल आए॥


ते हं सब आप न कथा सन
ु ाई। म अब जाब जहाँ रघरु ाई॥

(आ ा पाकर) सबने नान कया, मीठे फल खाए और फर सब उसके पास चले आए। तब उसने अपनी
सब कथा कह सन
ु ाई (और कहा -) म अब वहाँ जाऊँगी जहाँ रघन
ु ाथ ह।

मद
ू हु नयन बबर तिज जाहू। पैहहु सीत ह ज न प छताहू॥
नयन मू द पु न दे ख हं बीरा। ठाढ़े सकल संधु क तीरा॥

तम
ु लोग आँख मँद
ू लो और गुफा को छोड़कर बाहर जाओ। तम
ु सीता को पा जाओगे, पछताओ नह ं
( नराश न होओ)। आँख मँद
ू कर फर जब आँख खोल ं तो सब वीर या दे खते ह क सब समु के तीर
पर खड़े ह।

सो पु न गई जहाँ रघन
ु ाथा। जाइ कमल पद नाए स माथा॥
नाना भाँ त बनय ते हं क ह । अनपायनी भग त भु द ह ॥

और वह वयं वहाँ गई जहाँ रघन


ु ाथ थे। उसने जाकर भु के चरण कमल म म तक नवाया और बहुत
कार से वनती क । भु ने उसे अपनी अनपा यनी (अचल) भि त द ।

दो० - बदर बन कहुँ सो गई भु अ या ध र सीस।


उर ध र राम चरन जग ु जे बंदत अज ईस॥ 25॥

भु क आ ा सर पर धारण कर और राम के यग
ु ल चरण को, िजनक मा और महे श भी वंदना
करते ह, दय म धारण कर वह ( वयं भा) बद रका म को चल गई॥ 25॥

इहाँ बचार हं क प मन माह ं। बीती अव ध काज कछु नाह ं॥


सब म ल कह हं पर पर बाता। बनु सु ध लएँ करब का ाता॥

यहाँ वानरगण मन म वचार कर रहे ह क अव ध तो बीत गई, पर काम कुछ न हुआ। सब मलकर
आपस म बात करने लगे क हे भाई! अब तो सीता क खबर लए बना लौटकर भी या करगे!

कह अंगद लोचन भ र बार । दह


ु ुँ कार भइ म ृ यु हमार ॥
इहाँ न सु ध सीता कै पाई। उहाँ गएँ मा र ह क पराई॥

अंगद ने ने म जल भरकर कहा क दोन ह कार से हमार म ृ यु हुई। यहाँ तो सीता क सध


ु नह ं
मल और वहाँ जाने पर वानरराज सु ीव मार डालगे।

पता बधे पर मारत मोह । राखा राम नहोर न ओह ॥


पु न पु न अंगद कह सब पाह ं। मरन भयउ कछु संसय नाह ं॥

वे तो पता के वध होने पर ह मझ
ु े मार डालते। राम ने ह मेर र ा क , इसम सु ीव का कोई एहसान
नह ं है । अंगद बार-बार सबसे कह रहे ह क अब मरण हुआ, इसम कुछ भी संदेह नह ं है ।

अंगद बचन सन
ु क प बीरा। बो ल न सक हं नयन बह नीरा॥
छन एक सोच मगन होइ रहे । पु न अस बचन कहत सब भए॥4॥

वानर वीर अंगद के वचन सन


ु ते ह, कं तु कुछ बोल नह ं सकते। उनके ने से जल बह रहा है । एक ण
के लए सब सोच म म न हो रहे । फर सब ऐसा वचन कहने लगे-

हम सीता कै सु ध ल ह बना। न हं जैह जब


ु राज बीना॥
अस क ह लवन संधु तट जाई। बैठे क प सब दभ डसाई॥

हे सय
ु ो य यव
ु राज! हम लोग सीता क खोज लए बना नह ं लौटगे। ऐसा कहकर लवणसागर के तट पर
जाकर सब वानर कुश बछाकर बैठ गए।

जामवंत अंगद दख
ु दे खी। कह ं कथा उपदे स बसेषी॥
तात राम कहुँ नर ज न मानहु। नगुन म अिजत अज जानहु॥

जा बवान ने अंगद का दःु ख दे खकर वशेष उपदे श क कथाएँ कह ं। (वे बोले -) हे तात! राम को मनु य
न मानो, उ ह नगुण म, अजेय और अज मा समझो।

हम सब सेवक अ त बड़भागी। संतत सगुन म अनरु ागी॥


शीष पर
हम सब सेवक अ यंत बड़भागी ह, जो नरं तर सगुण म (राम) म ी त रखते ह। जाएँ

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9/11/2019 तल
ु सीदास :: :: :: रामच रतमानस :: क वता
दो० - नज इ छाँ भु अवतरइ सरु मह गो वज ला ग।
सगन
ु उपासक संग तहँ रह हं मो छ सब या ग॥ 26॥

दे वता, प ृ वी, गो और ा मण के लए भु अपनी इ छा से ( कसी कमबंधन से नह ं) अवतार लेते ह।


वहाँ सगुणोपासक (भ तगण सालो य, सामी य, सा य, साि ट और सायु य) सब कार के मो को
यागकर उनक सेवा म साथ रहते ह॥ 26॥

ए ह ब ध कथा कह हं बहु भाँती। ग र कंदराँ सन


ु ी संपाती॥
बाहे र होइ दे ख बहु क सा। मो ह अहार द ह जगद सा॥

इस कार जा बवान बहुत कार से कथाएँ कह रहे ह। इनक बात पवत क कंदरा म स पाती ने सनु ीं।
बाहर नकलकर उसने बहुत-से वानर दे खे। (तब वह बोला -) जगद वर ने मझ
ु को घर बैठे बहुत-सा
आहार भेज दया!

आजु सब ह कहँ भ छन करऊँ। दन बहु चले अहार बनु मरऊँ॥


कबहुँ न मल भ र उदर अहारा। आजु द ह ब ध एक हं बारा॥

आज इन सबको खा जाऊँगा। बहुत दन बीत गए, भोजन के बना मर रहा था। पेटभर भोजन कभी नह ं
मलता। आज वधाता ने एक ह बार म बहुत-सा भोजन दे दया।

डरपे गीध बचन सु न काना। अब भा मरन स य हम जाना॥


क प सब उठे गीध कहँ दे खी। जामवंत मन सोच बसेषी॥

गीध के वचन कान से सन


ु ते ह सब डर गए क अब सचमच
ु ह मरना हो गया। यह हमने जान लया।
फर उस गीध (स पाती) को दे खकर सब वानर उठ खड़े हुए। जा बवान के मन म वशेष सोच हुआ।

कह अंगद बचा र मन माह ं। ध य जटायू सम कोउ नाह ं॥


राम काज कारन तनु यागी। ह र परु गयउ परम बड़भागी॥

अंगद ने मन म वचार कर कहा- अहा! जटायु के समान ध य कोई नह ं है । राम के काय के लए शर र


छोड़कर वह परम बड़भागी भगवान के परमधाम को चला गया।

सु न खग हरष सोक जत
ु बानी। आवा नकट क प ह भय मानी॥
त ह ह अभय क र पछ
ू े स जाई। कथा सकल त ह ता ह सन
ु ाई॥

हष और शोक से यु त वाणी (समाचार) सन


ु कर वह प ी (स पाती) वानर के पास आया। वानर डर गए।
उनको अभय करके (अभय वचन दे कर) उसने पास जाकर जटायु का व ृ तांत पछ
ू ा, तब उ ह ने सार कथा
उसे कह सन
ु ाई।

सु न संपा त बंधु कै करनी। रघप


ु त म हमा बहु ब ध बरनी॥

भाई जटायु क करनी सन


ु कर स पाती ने बहुत कार से रघन
ु ाथ क म हमा वणन क ।

दो० - मो ह लै जाहु संधत


ु ट दे उँ तलांज ल ता ह।
बचन सहाइ कर ब म पैहहु खोजहु जा ह॥ 27॥

(उसने कहा -) मझ
ु े समु के कनारे ले चलो, म जटायु को तलांज ल दे दँ ।ू इस सेवा के बदले म
तु हार वचन से सहायता क ँ गा (अथात सीता कहाँ ह सो बतला दँ ग
ू ा), िजसे तम
ु खोज रहे हो उसे पा
जाओगे॥ 27॥

अनज
ु या क र सागर तीरा। क ह नज कथा सन
ु हु क प बीरा॥
हम वौ बंधु थम त नाई। गगन गए र ब नकट उड़ाई॥

समु के तीर पर छोटे भाई जटायु क या ( ा आ द) करके स पाती अपनी कथा कहने लगा- हे वीर
वानर ! सन
ु ो, हम दोन भाई उठती जवानी म एक बार आकाश म उड़कर सय
ू के नकट चले गए।

तेज न स ह सक सो फ र आवा। म अ भमानी र ब नअरावा॥


जरे पंख अ त तेज अपारा। परे उँ भू म क र घोर चकारा॥

वह (जटाय)ु तेज नह ं सह सका, इससे लौट आया। ( कं त)ु म अ भमानी था इस लए सय


ू के पास चला
गया। अ यंत अपार तेज से मेरे पंख जल गए। म बड़े जोर से चीख मारकर जमीन पर गर पड़ा।

मु न एक नाम चं मा ओह । लागी दया दे ख क र मोह ॥


बहु कार ते हं यान सन
ु ावा। दे हज नत अ भमान छुड़ावा॥

वहाँ चं मा नाम के एक मु न थे। मझ ु े दे खकर उ ह बड़ी दया लगी। उ ह ने बहुत कार से मझ


ु े ान
सन
ु ाया और मेरे दे हज नत (दे ह संबंधी) अ भमान को छुड़ा दया।


े ाँ म मनज
ु तनु ध रह । तासु ना र न सचर प त ह रह ॥
तासु खोज पठइ ह भ ु दत
ू ा। त ह ह मल त होब पन
ु ीता॥

(उ ह ने कहा -) त
े ायग
ु म सा ात पर म मनु य शर र धारण करगे। उनक ी को रा स का राजा
हर ले जाएगा। उसक खोज म भ ु दत
ू भेजगे। उनसे मलने पर तू प व हो जाएगा।

शीष पर
ज मह हं पंख कर स ज न चंता। त ह ह दे खाइ दे हेसु त सीता॥ जाएँ
म न कइ गरा स य भइ आज। स न मम बचन करह भ काज॥
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9/11/2019 तलसीदास :: :: रह
:: रामच रतमानस :: क वता
ु इ र स इ आ ।ू सु ु ु ु ॥

और तेरे पंख उग आएँगे, चंता न कर। उ ह तू सीता को दखा दे ना। मु न क वह वाणी आज स य


हुई। अब मेरे वचन सन
ु कर तम
ु भु का काय करो।

गर कूट ऊपर बस लंका। तहँ रह रावन सहज असंका॥


तहँ असोक उपबन जहँ रहई। सीता बै ठ सोच रत अहई॥

कूट पवत पर लंका बसी हुई है । वहाँ वभाव से ह नडर रावण रहता है । वहाँ अशोक नाम का उपवन
(बगीचा) है , जहाँ सीता रहती ह। (इस समय भी) वे सोच म म न बैठ ह।

दो० - म दे खउँ तु ह नाह ं गीध ह ि ट अपार।


बढ़
ू भयउँ न त करतेउँ कछुक सहाय तु हार॥ 28॥

म उ ह दे ख रहा हूँ, तम
ु नह ं दे ख सकते, य क गीध क ि ट अपार होती है (बहुत दरू तक जाती है )।
या क ँ ? म बढ़
ू ा हो गया, नह ं तो तु हार कुछ तो सहायता अव य करता॥ 28॥

जो नाघइ सत जोजन सागर। करइ सो राम काज म त आगर॥


मो ह बलो क धरहु मन धीरा। राम कृपाँ कस भयउ सर रा॥

जो सौ योजन (चार सौ कोस) समु लाँघ सकेगा और बु नधान होगा, वह राम का काय कर सकेगा।
मझ
ु े दे खकर मन म धीरज धरो। दे खो, राम क कृपा से मेरा शर र कैसा हो गया ( बना पंख का बेहाल
था, पंख उगने से संद
ु र हो गया)!

पा पउ जा कर नाम सु मरह ं। अ त अपार भवसागर तरह ं॥


तासु दत
ू तु ह तिज कदराई। राम दयँ ध र करहु उपाई॥

पापी भी िजनका नाम मरण करके अ यंत अपार भवसागर से तर जाते ह। तम


ु उनके दत
ू हो, अतः
कायरता छोड़कर राम को दय म धारण करके उपाय करो।

अस क ह ग ड़ गीध जब गयऊ। त ह क मन अ त बसमय भयऊ॥


नज नज बल सब काहूँ भाषा। पार जाइ कर संसय राखा॥

(काकभश
ु ंु ड कहते ह -) हे ग ड़! इस कार कहकर जब गीध चला गया, तब उन (वानर ) के मन म
अ यंत व मय हुआ। सब कसी ने अपना-अपना बल कहा। पर समु के पार जाने म सभी ने संदेह
कट कया।

जरठ भयउँ अब कहइ रछे सा। न हं तन रहा थम बल लेसा॥


जब हं ब म भए खरार । तब म त न रहे उँ बल भार ॥

ऋ राज जा बवान कहने लगे - म बढ़


ू ा हो गया। शर र म पहले वाले बल का लेश भी नह ं रहा। जब
खरा र (खर के श ु राम) वामन बने थे, तब म जवान था और मझ
ु म बड़ा बल था।

दो० - ब ल बाँधत भु बाढ़े उ सो तनु बर न न जाइ।


उभय घर महँ द ह ं सात दि छन धाइ॥ 29॥

ब ल के बाँधते समय भु इतने बढ़े क उस शर र का वणन नह ं हो सकता, कं तु मने दो ह घड़ी म


दौड़कर (उस शर र क ) सात द णाएँ कर ल ं॥ 29॥

अंगद कहइ जाउँ म पारा। िजयँ संसय कछु फरती बारा॥


जामवंत कह तु ह सब लायक। पठइअ क म सबह कर नायक॥

अंगद ने कहा - म पार तो चला जाऊँगा, परं तु लौटते समय के लए दय म कुछ संदेह है । जा बवान ने
कहा - तम
ु सब कार से यो य हो, परं तु तम
ु सबके नेता हो, तु हे कैसे भेजा जाए?

कहइ र छप त सन
ु ु हनम
ु ाना। का चप
ु सा ध रहे हु बलवाना॥
पवन तनय बल पवन समाना। बु ध बबेक ब यान नधाना॥

ऋ राज जा बवान ने हनम


ु ान से कहा - हे हनम
ु ान! हे बलवान! सन
ु ो, तम
ु ने यह या चप
ु साध रखी है ?
तम
ु पवन के पु हो और बल म पवन के समान हो। तम
ु बु - ववेक और व ान क खान हो।

कवन सो काज क ठन जग माह ं। जो न हं होइ तात तु ह पाह ं॥


राम काज ल ग तव अवतारा। सन
ु त हं भयउ पबताकारा॥

जगत म कौन-सा ऐसा क ठन काम है जो हे तात! तम


ु से न हो सके। राम के काय के लए ह तो
तु हारा अवतार हुआ है । यह सन
ु ते ह हनम
ु ान पवत के आकार के (अ यंत वशालकाय) हो गए।

कनक बरन तन तेज बराजा। मानहुँ अपर ग र ह कर राजा॥


संहनाद क र बार हं बारा। ल ल हं नाघउँ जल न ध खारा॥

उनका सोने का-सा रं ग है , शर र पर तेज सश


ु ो भत है , मानो पवत का दस
ू रा राजा सम
ु े हो। हनम
ु ान ने
बार-बार संहनाद करके कहा - म इस खारे समु को खेल म ह लाँघ सकता हूँ।

स हत सहाय रावन ह मार । आनउँ इहाँ कूट उपार ॥


जामवंत म पँछ
ू उँ तोह । उ चत सखावनु द जहु मोह ॥
शीष पर
और सहायक स हत रावण को मारकर कूट पवत को उखाड़कर यहाँ ला सकता हूँ। हे जा बवान! म जाएँ
तमसे पछता हँ, तम मझे उ चत सीख दे ना ( क मझे या करना चा हए)।
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9/11/2019 तलसीदास :: :: झ :: रामच रतमानस :: क वता
तु स छ
ू त हू, तु झ
ु उ त स ु द ( ु र हए)।

एतना करहु तात तु ह जाई। सीत ह दे ख कहहु सु ध आई॥


तब नज भज ु बल रािजवनैना। कौतक
ु ला ग संग क प सेना॥

(जा बवान ने कहा -) हे तात! तम


ु जाकर इतना ह करो क सीता को दे खकर लौट आओ और उनक
खबर कह दो। फर कमलनयन राम अपने बाहुबल से (ह रा स का संहार कर सीता को ले आएँगे,
केवल) खेल के लए ह वे वानर क सेना साथ लगे।

छं ० - क प सेन संग सँघा र न सचर रामु सीत ह आ नह।



ै ोक पावन सज
ु सु सरु मु न नारदा द बखा नह॥
जो सन
ु त गावत कहत समझ
ु त परम पद नर पावई।
रघब
ु ीर पद पाथोज मधक
ु र दास तल
ु सी गावई॥

वानर क सेना साथ लेकर रा स का संहार करके राम सीता को ले आएँगे। तब दे वता और नारदा द
मु न भगवान के तीन लोक को प व करने वाले संद
ु र यश का बखान करगे, िजसे सन
ु ने, गाने, कहने
और समझने से मनु य परमपद पाते ह और िजसे रघव
ु ीर के चरण कमल का मधक
ु र ( मर) तल
ु सीदास
गाता है ।

दो० - भव भेषज रघन


ु ाथ जसु सन
ु हं जे नर अ ना र।
त ह कर सकल मनोरथ स कर हं सरा र॥ 30 (क)॥

रघव
ु ीर का यश भव (ज म-मरण) पी रोग क (अचक
ू ) दवा है । जो पु ष और ी इसे सन
ु गे, शरा
के श ु राम उनके सब मनोरथ को स करगे॥ 30(क)॥

सो० - नीलो पल तन याम काम को ट सोभा अ धक।


सु नअ तासु गुन ाम जासु नाम अघ खग ब धक॥ 30(ख)॥

िजनका नीले कमल के समान याम शर र है , िजनक शोभा करोड़ कामदे व से भी अ धक है और


िजनका नाम पाप पी प य को मारने के लए ब धक ( याध) के समान है , उन राम के गुण के समह

(ल ला) को अव य सन
ु ना चा हए॥ 30(ख)॥

इत ीम ामच रतमानसे सकलक लकलष


ु व वंसने चतथ
ु : सोपान: समा त:।

क लयग
ु के संपण
ू पाप को व वंस करने वाले ी रामच रतमानस का यह चौथा सोपान समा त हुआ।

( कि कंधाकांड समा त)

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मख
ु पृ ठ उप यास कहानी क वता यं य नाटक नबंध आलोचना वमश

बाल सा ह य व वध सम -संचयन अनव


ु ाद हमारे रचनाकार हंद लेखक परु ानी वि ट वशेषांक खोज

संपक व व व यालय

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