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मख
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रामच रतमानस
तल
ु सीदास
पीछे
अनु म कि कंधाकांड
आगे
कु दे द वरसंद
ु राव तबलौ व ानधामावभ
ु ौ
शोभा यौ वरधि वनौ ु तनत
ु ौ गो व वंद
ृ यौ।
मायामानष
ु पणौ रघव
ु रौ स मवम हतौ
सीता वेषणत परौ प थगतौ भि त दौ तौ ह नः॥ 1॥
वे सक
ु ृ ती (पु या मा पु ष) ध य ह जो वेद पी समु (के मथने) से उ प न हुए क लयग
ु के मल को
सवथा न ट कर दे नेवाले, अ वनाशी, भगवान शंभु के संद
ु र एवं े ठ मखु पी चं मा म सदा शोभायमान,
ज म-मरण पी रोग के औषध, सबको सख
ु दे नेवाले और ी जानक के जीवन व प ी राम नाम पी
अमत
ृ का नरं तर पान करते रहते ह॥ 2॥
िजस भीषण हलाहल वष से सब दे वतागण जल रहे थे उसको िज ह ने वयं पान कर लया, रे मंद मन!
तू उन शंकर को य नह ं भजता? उनके समान कृपालु (और) कौन है ?
रघन
ु ाथ फर आगे चले। ऋ यमक
ू पवत नकट आ गया। वहाँ (ऋ यमक
ू पवत पर) मं य स हत सु ीव
रहते थे। अतल
ु नीय बल क सीमा राम और ल मण को आते दे खकर -
अ त सभीत कह सन
ु ु हनम
ु ाना। पु ष जग
ु ल बल प नधाना॥
ध र बटु प दे खु त जाई। कहे सु जा न िजयँ सयन बझ
ु ाई॥
मद
ृ ल
ु मनोहर संद
ु र गाता। सहत दस
ु ह बन आतप बाता ॥
क तु ह ती न दे व महँ कोऊ। नर नारायन क तु ह दोऊ॥
अथवा आप जगत के मल
ू कारण और संपण
ू लोक के वामी वयं भगवान ह, िज ह ने लोग को
भवसागर से पार उतारने तथा प ृ वी का भार न ट करने के लए मनु य प म अवतार लया है ?॥ 1॥
यहाँ (वन म) रा स ने (मेर प नी) जानक को हर लया। हे ा मण! हम उसे ह खोजते फरते ह।
हमने तो अपना च र कह सन
ु ाया। अब हे ा मण! अपनी कथा समझाकर क हए।
भु को पहचानकर हनम
ु ान उनके चरण पकड़कर प ृ वी पर गर पड़े। ( शव कहते ह -) हे पावती! वह
सख
ु वणन नह ं कया जा सकता। शर र पल
ु कत है , मख
ु से वचन नह ं नकलता। वे भु के संद
ु र वेष
क रचना दे ख रहे ह!
तव माया बस फरउँ भल
ु ाना। ताते म न हं भु प हचाना॥
ता पर म रघब
ु ीर दोहाई। जानउँ न हं कछु भजन उपाई॥
सेवक सत
ु प त मातु भरोस। रहइ असोच बनइ भु पोस॥
शीष पर
ऐसा कहकर हनम
ु ान अकुलाकर भु के चरण पर गर पड़े, उ ह ने अपना असल शर र कट कर दया। जाएँ
उनके दय म ेम छा गया। तब रघनाथ ने उ ह उठाकर दय से लगा लया और अपने ने के जल
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ु सीदास-क वता-रामच रतमानस.cspx 2/17
9/11/2019 तल
ु सीदास :: :: :: रामच रतमानस :: क वता
उ द छ । त र ु उ ह उ र द स ल ल और अ ल
से सींचकर शीतल कया।
सन
ु ु क प िजयँ मान स ज न ऊना। त मम य ल छमन ते दन
ू ा॥
समदरसी मो ह कह सब कोऊ। सेवक य अन य ग त सोऊ॥
( फर कहा -) हे क प! सन
ु ो, मन म ला न मत मानना (मन छोटा न करना)। तम
ु मझ
ु े ल मण से भी
दन
ू े य हो। सब कोई मझ
ु े समदश कहते ह (मेरे लए न कोई य है न अ य) पर मझ
ु को सेवक
य है , य क वह अन यग त होता है (मझ
ु े छोड़कर उसको कोई दस
ू रा सहारा नह ं होता)।
और हे हनम
ु ान! अन य वह है िजसक ऐसी बु कभी नह ं टलती क म सेवक हूँ और यह चराचर
(जड़-चेतन) जगत मेरे वामी भगवान का प है ॥ 3॥
दे ख पवनसत
ु प त अनक
ु ू ला। दयँ हरष बीती सब सल
ू ा॥
नाथ सैल पर क पप त रहई। सो सु ीव दास तव अहई॥
वामी को अनक
ु ू ल ( स न) दे खकर पवन कुमार हनम
ु ान के दय म हष छा गया और उनके सब दःु ख
जाते रहे । (उ ह ने कहा -) हे नाथ! इस पवत पर वानरराज सु ीव रहते ह, वह आपका दास है ।
हे नाथ! उससे म ता क िजए और उसे द न जानकर नभय कर द िजए। वह सीता क खोज करवाएगा
और जहाँ-तहाँ करोड़ वानर को भेजेगा।
दो० - तब हनम
ु ंत उभय द स क सब कथा सन
ु ाइ।
पावक साखी दे इ क र जोर ीत ढ़ाइ॥ 4॥
तब हनम
ु ान ने दोन ओर क सब कथा सन
ु ाकर अि न को सा ी दे कर पर पर ढ़ करके ी त जोड़ द
(अथात अि न क सा ी दे कर त ापव
ू क उनक मै ी करवा द )॥ 4॥
म एक बार यहाँ मं य के साथ बैठा हुआ कुछ वचार कर रहा था। तब मने पराए के वश म पड़ी बहुत
वलाप करती हुई सीता को आकाश माग से जाते दे खा था।
कह सु ीव सन
ु हु रघब
ु ीरा। तजहु सोच मन आनहु धीरा॥
सब कार क रहउँ सेवकाई। जे ह ब ध म ल ह जानक आई॥
सु ीव ने कहा - हे रघव
ु ीर! सु नए, सोच छोड़ द िजए और मन म धीरज लाइए। म सब कार से आपक
सेवा क ँ गा, िजस उपाय से जानक आकर आपको मल।
अध रा त परु वार पक
ु ारा। बाल रपु बल सहै न पारा॥
धावा बा ल दे ख सो भागा। म पु न गयउँ बंधु सँग लागा॥
हे खरा र! म वहाँ मह ने भर तक रहा। वहाँ (उस गुफा म से) र त क बड़ी भार धारा नकल । तब (मने
समझा क) उसने बा ल को मार डाला, अब आकर मझ
ु े मारे गा। इस लए म वहाँ (गुफा के वार पर) एक
शला लगाकर भाग आया।
दो० - सन
ु ु सु ीव मा रहउँ बा ल ह एक हं बान।
म सरनागत गएँ न उब र हं ान॥ 6॥
(उ ह ने कहा -) हे सु ीव! सन
ु ो, म एक ह बाण से बा ल को मार डालँ ग
ू ा। मा और क शरण म
जाने पर भी उसके ाण न बचगे॥ 6॥
जे न म दख
ु हो हं दख
ु ार । त ह ह बलोकत पातक भार ॥
नज दख
ु ग र सम रज क र जाना। म क दख
ु रज मे समाना॥
जो लोग म के दःु ख से दःु खी नह ं होते, उ ह दे खने से ह बड़ा पाप लगता है । अपने पवत के समान
दःु ख को धल
ू के समान और म के धल
ू के समान दःु ख को सम
ु े (बड़े भार पवत) के समान जाने।
िज ह वभाव से ह ऐसी बु ा त नह ं है , वे मख
ू हठ करके य कसी से म ता करते ह? म का
धम है क वह म को बरु े माग से रोककर अ छे माग पर चलावे। उसके गुण कट करे और अवगुण
को छपावे।
आग कह मद
ृ ु बचन बनाई। पाछ अन हत मन कु टलाई॥
जाकर चत अ ह ग त सम भाई। अस कु म प रहरे हं भलाई॥
जो सामने तो बना-बनाकर कोमल वचन कहता है और पीठ-पीछे बरु ाई करता है तथा मन म कु टलता
रखता है - हे भाई! (इस तरह) िजसका मन साँप क चाल के समान टे ढ़ा है , ऐसे कु म को तो यागने
म ह भलाई है ।
शीष पर
सेवक सठ नप
ृ कृपन कुनार । कपट म सल
ू सम चार ॥ जाएँ
सखा सोच यागह बल मोर। सब ब ध घटब काज म तोर॥
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ु सीदास-क वता-रामच रतमानस.cspx 4/17
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ु सीदास :: :: :: रामच रतमानस :: क वता
स स हु ल र। स त र॥
मख
ू सेवक, कंजस
ू राजा, कुलटा ी और कपट म - ये चार शल
ू के समान पीड़ा दे नेवाले ह। हे सखा!
मेरे बल पर अब तम
ु चंता छोड़ दो। म सब कार से तु हारे काम आऊँगा (तु हार सहायता क ँ गा)।
कह सु ीव सन
ु हु रघब
ु ीरा। बा ल महाबल अ त रनधीरा॥
दं द
ु ु भ अि थ ताल दे खराए। बनु यास रघन
ु ाथ ढहाए॥
सु ीव ने कहा - हे रघव
ु ीर! सु नए, बा ल महान बलवान और अ यंत रणधीर है । फर सु ीव ने राम को
दं द
ु ु भ रा स क ह डयाँ व ताल के व ृ दखलाए। रघन
ु ाथ ने उ ह बना ह प र म के (आसानी से)
ढहा दया।
तम
ु ने जो कुछ कहा है , वह सभी स य है ; परं तु हे सखा! मेरा वचन म या नह ं होता (अथात बा ल मारा
जाएगा और तु ह रा य मलेगा)। (काकभश
ु ंु ड कहते ह क -) हे प य के राजा ग ड़! नट (मदार ) के
बंदर क तरह राम सबको नचाते ह, वेद ऐसा कहते ह।
लै सु ीव संग रघन
ु ाथा। चले चाप सायक ग ह हाथा॥
तब रघप
ु त सु ीव पठावा। गज स जाइ नकट बल पावा॥
सन
ु त बा ल ोधातरु धावा। ग ह कर चरन ना र समझ
ु ावा॥
सन
ु ु प त िज ह ह मलेउ सु ीवा। ते वौ बंधु तेज बल सींवा॥
बा ल सन
ु ते ह ोध म भरकर वेग से दौड़ा। उसक ी तारा ने चरण पकड़कर उसे समझाया क हे
नाथ! सु नए, सु ीव िजनसे मले ह वे दोन भाई तेज और बल क सीमा ह।
कोसलेस सत
ु ल छमन रामा। कालहु जी त सक हं सं ामा॥
दो० - कह बाल सन
ु ु भी य समदरसी रघन
ु ाथ।
ज कदा च मो ह मार हं तौ पु न होउँ सनाथ॥ 7॥
शीष पर
बा ल ने कहा - हे भी ! (डरपोक) ये! सन
ु ो, रघन
ु ाथ समदश ह। जो कदा चत वे मझ
ु े मारगे ह तो म जाएँ
सनाथ हो जाऊँगा (परमपद पा जाऊँगा)॥ 7॥
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ु सीदास-क वता-रामच रतमानस.cspx 5/17
9/11/2019 तलसीदास :: :: :: रामच रतमानस :: क वता
स ह ऊ ( र द ऊ ु )॥ ॥
ऐसा कहकर वह महान अ भमानी बा ल सु ीव को तनके के समान जानकर चला। दोन भड़ गए। बा ल
ने सु ीव को बहुत धमकाया और घस
ूँ ा मारकर बड़े जोर से गरजा।
(राम ने कहा -) तम
ु दोन भाइय का एक-सा ह प है । इसी म से मने उसको नह ं मारा। फर राम
ने सु ीव के शर र को हाथ से पश कया, िजससे उसका शर र व के समान हो गया और सार पीड़ा
जाती रह ।
मेल कंठ सम
ु न कै माला। पठवा पु न बल दे इ बसाला॥
पु न नाना ब ध भई लराई। बटप ओट दे ख हं रघरु ाई॥
तब राम ने सु ीव के गले म फूल क माला डाल द और फर उसे बड़ा भार बल दे कर भेजा। दोन म
पन
ु ः अनेक कार से यु हुआ। रघन
ु ाथ व ृ क आड़ से दे ख रहे थे।
अनज
ु बधू भ गनी सत
ु नार । सन
ु ु सठ क या सम ए चार ॥
इ ह ह कु ि ट बलोकइ जोई। ता ह बध कछु पाप न होई॥
(राम ने कहा -) हे मख
ू ! सन
ु , छोटे भाई क ी, ब हन, पु क ी और क या - ये चार समान ह।
इनको जो कोई बरु ि ट से दे खता है , उसे मारने म कुछ भी पाप नह ं होता।
मढ़
ू तो ह अ तसय अ भमाना। ना र सखावन कर स न काना॥
मम भज
ु बल आ त ते ह जानी। मारा चह स अधम अ भमानी॥
हे मढ़
ू ! तझ
ु े अ यंत अ भमान है । तन
ू े अपनी ी क सीख पर भी कान ( यान) नह ं दया। सु ीव को
मेर भज
ु ाओं के बल का आ त जानकर भी अरे अधम अ भमानी! तन
ू े उसको मारना चाहा!
दो० - सन
ु हु राम वामी सन चल न चातरु मो र।
भु अजहूँ म पापी अंतकाल ग त तो र॥ 9॥
(बा ल ने कहा -) हे राम! सु नए, वामी (आप) से मेर चतरु ाई नह ं चल सकती। हे भो! अंतकाल म
आपक ग त (शरण) पाकर म अब भी पापी ह रहा?॥ 9॥
सन
ु त राम अ त कोमल बानी। बा ल सीस परसेउ नज पानी॥
अचल कर तनु राखहु ाना। बा ल कहा सन
ु ु कृपा नधाना॥
मु नगण ज म-ज म म ( येक ज म म) (अनेक कार का) साधन करते रहते ह। फर भी अंतकाल म
उ ह 'राम' नह ं कह आता (उनके मख
ु से राम नाम नह ं नकलता)। िजनके नाम के बल से शंकर काशी
म सबको समान प से अ वना शनी ग त (मिु त) दे ते ह।
ु तयाँ 'ने त-ने त' कहकर नरं तर िजनका गुणगान करती रहती ह, तथा ाण और मन को जीतकर एवं
इं य को ( वषय के रस से सवथा) नीरस बनाकर मु नगण यान म िजनक कभी व चत ह झलक
पाते ह, वे ह भु (आप) सा ात मेरे सामने कट ह। आपने मझ
ु े अ यंत अ भमानवश जानकर यह कहा
क तम
ु शर र रख लो। परं तु ऐसा मख
ू कौन होगा जो हठपव
ू क क पव ृ को काटकर उससे बबरू के बाड़
लगावेगा (अथात पण
ू काम बना दे नेवाले आपको छोड़कर आपसे इस न वर शर र क र ा चाहे गा)?
राम के चरण म ढ़ ी त करके बा ल ने शर र को वैसे ह (आसानी से) याग दया जैसे हाथी अपने
गले से फूल क माला का गरना न जाने॥ 10॥
राम ने बा ल को अपने परम धाम भेज दया। नगर के सब लोग याकुल होकर दौड़े। बा ल क ी तारा
अनेक कार से वलाप करने लगी। उसके बाल बखरे हुए ह और दे ह क सँभाल नह ं है ।
शीष पर
उमा राम सम हत जग माह ं। गु पतु मातु बंधु भु नाह ं॥ जाएँ
सर नर म न सब कै यह र ती। वारथ ला ग कर हं सब ी त॥
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ु सीदास :: :: :: रामच रतमानस :: क वता
सरु र ु स ह रत। र ल रह स त॥
हे पावती! जगत म राम के समान हत करनेवाला गु , पता, माता, बंधु और वामी कोई नह ं है ।
दे वता, मनु य और मु न सबक यह र त है क वाथ के लए ह सब ी त करते ह।
कह भु सन
ु ु सु ीव हर सा। परु न जाउँ दस चा र बर सा॥
गत ीषम बरषा रतु आई। र हहउँ नकट सैल पर छाई॥
तम
ु अंगद स हत रा य करो। मेरे काम का दय म सदा यान रखना। तदनंतर जब सु ीव घर लौट
आए, तब राम वषण पवत पर जा टके।
संद
ु र बन कुसु मत अ त सोभा। गंज
ु त मधप
ु नकर मधु लोभा॥
कंद मल
ू फल प सह
ु ाए। भए बहुत जब ते भु आए॥
संद
ु र वन फूला हुआ अ यंत सश ु ो भत है । मधु के लोभ से भ र के समह
ू गंज
ु ार कर रहे ह। जब से भु
आए, तब से वन म संद ु र कंद, मलू , फल और प त क बहुतायत हो गई।
मनोहर और अनप
ु म पवत को दे खकर दे वताओं के स ाट राम छोटे भाई स हत वहाँ रह गए। दे वता, स
और मु न भ र , प य और पशओ
ु ं के शर र धारण करके भु क सेवा करने लगे।
कहत अनज
ु सन कथा अनेका। भग त बरत नप
ृ नी त बबेका॥
बरषा काल मेघ नभ छाए। गरजत लागत परम सह
ु ाए॥
आकाश म बादल घम
ु ड़-घम
ु ड़कर घोर गजना कर रहे ह, या (सीता) के बना मेरा मन डर रहा है ।
बजल क चमक बादल म ठहरती नह ं, जैसे द ु ट क ी त ि थर नह ं रहती।
शीष पर
बादल प ृ वी के समीप आकर (नीचे उतरकर) बरस रहे ह, जैसे व या पाकर व वान ् न हो जाते ह। जाएँ
बँद क चोट पवत कैसे सहते ह, जैसे द ट के वचन संत सहते ह।
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ु सीदास :: :: :: रामच रतमानस :: क वता
द
ू त स सहत ह, स दु सत सहत ह।
छोट न दयाँ भरकर ( कनार को) तड़ ु ाती हुई चल ं, जैसे थोड़े धन से भी द ु ट इतरा जाते ह (मयादा का
याग कर दे ते ह)। प ृ वी पर पड़ते ह पानी गँदला हो गया है , जैसे शु जीव के माया लपट गई हो।
दो० - ह रत भू म तन
ृ संकुल समु झ पर हं न हं पंथ।
िज म पाखंड बाद त गु त हो हं सद ंथ॥ 14॥
प ृ वी घास से प रपण
ू होकर हर हो गई है , िजससे रा ते समझ नह ं पड़ते। जैसे पाखंड-मत के चार से
स ंथ गु त (लु त) हो जाते ह॥ 14॥
महाबिृ ट च ल फू ट कआर ं। िज म सत
ु ं भएँ बगर हं नार ं॥
कृषी नराव हं चतरु कसाना। िज म बध
ु तज हं मोह मद माना॥
भार वषा से खेत क या रयाँ फूट चल ह, जैसे वतं होने से ि याँ बगड़ जाती ह। चतरु कसान
खेत को नरा रहे ह (उनम से घास आ द को नकालकर फक रहे ह)। जैसे व वान लोग मोह, मद और
मान का याग कर दे ते ह।
प ृ वी अनेक तरह के जीव से भर हुई उसी तरह शोभायमान है , जैसे सरु ा य पाकर जा क व ृ होती
है । जहाँ-तहाँ अनेक प थक थककर ठहरे हुए ह, जैसे ान उ प न होने पर इं याँ ( श थल होकर वषय
क ओर जाना छोड़ दे ती ह)।
कभी-कभी वायु बड़े जोर से चलने लगती है , िजससे बादल जहाँ-तहाँ गायब हो जाते ह। जैसे कुपु के
उ प न होने से कुल के उ तम धम ( े ठ आचरण) न ट हो जाते ह॥ 15(क)॥
अग य के तारे ने उदय होकर माग के जल को सोख लया, जैसे संतोष लोभ को सोख लेता है । न दय
और तालाब का नमल जल ऐसी शोभा पा रहा है जैसे मद और मोह से र हत संत का दय!
रस रस सख
ू स रत सर पानी। ममता याग कर हं िज म यानी॥
जा न सरद रतु खंजन आए। पाइ समय िज म सक
ु ृ त सह
ु ाए॥
न क चड़ है न धल
ू ; इससे धरती ( नमल होकर) ऐसी शोभा दे रह है जैसे नी त नपण
ु राजा क करनी!
जल के कम हो जाने से मछ लयाँ याकुल हो रह ह, जैसे मख
ू ( ववेकशू य) कुटुंबी (गह
ृ थ) धन के
बना याकुल होता है ।
बना बादल का नमल आकाश ऐसा शो भत हो रहा है जैसे भगव त सब आशाओं को छोड़कर
सश
ु ो भत होते ह। कह ं-कह ं ( वरले ह थान म) शरद ऋतु क थोड़ी-थोड़ी वषा हो रह है । जैसे कोई
वरले ह मेर भि त पाते ह।
(शरद ऋतु पाकर) राजा, तप वी, यापार और भखार ( मशः वजय, तप, यापार और भ ा के लए)
ह षत होकर नगर छोड़कर चले। जैसे ह र क भि त पाकर चार आ मवाले (नाना कार के साधन पी)
म को याग दे ते ह॥ 16॥
सख
ु ी मीन जे नीर अगाधा। िज म ह र सरन न एकऊ बाधा॥
फूल कमल सोह सर कैसा। नगुन म सगुन भएँ जैसा॥
जो मछ लयाँ अथाह जल म ह, वे सख
ु ी ह, जैसे ह र के शरण म चले जाने पर एक भी बाधा नह ं रहती।
कमल के फूलने से तालाब कैसी शोभा दे रहा है , जैसे नगुण म सगुण होने पर शो भत होता है ।
गंज
ु त मधक
ु र मख
ु र अनप
ू ा। संद
ु र खग रव नाना पा॥
च बाक मन दख
ु न स पेखी। िज म दज
ु न पर संप त दे खी॥
चातक रटत तष
ृ ा अ त ओह । िज म सख
ु लहइ न संकर ोह ॥
सरदातप न स स स अपहरई। संत दरस िज म पातक टरई॥
चकोर के समद
ु ाय चं मा को दे खकर इस कार टकटक लगाए ह जैसे भगव त भगवान को पाकर
उनके ( न नमेष ने से) दशन करते ह। म छर और डाँस जाड़े के डर से इस कार न ट हो गए जैसे
ा मण के साथ वैर करने से कुल का नाश हो जाता है ।
वषा बीत गई, नमल शर ऋतु आ गई। परं तु हे तात! सीता क कोई खबर नह ं मल । एक बार कैसे भी
पता पाऊँ तो काल को भी जीतकर पल भर म जानक को ले आऊँ।
शीष पर
कतहुँ रहउ ज जीव त होई। तात जतन क र आनउँ सोई॥ जाएँ
स ीवहँ स ध मो र बसार । पावा राज कोस पर नार ॥
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ु सीदास-क वता-रामच रतमानस.cspx 10/17
9/11/2019 तलसीदास :: :: :: रामच रतमानस :: क वता
सु हु सु र सर। र ु स रु र॥
ानी मु न िज ह ने रघन
ु ाथ के चरण म ी त मान ल है (जोड़ ल है ), वे ह इस च र (ल ला रह य)
को जानते ह। ल मण ने जब भु को ोधयु त जाना, तब उ ह ने धनष
ु चढ़ाकर बाण हाथ म ले लए।
दो० - तब अनज
ु ह समझ
ु ावा रघप
ु त क ना सींव।
भय दे खाइ लै आवहु तात सखा सु ीव॥ 18॥
इहाँ पवनसत
ु दयँ बचारा। राम काजु सु ीवँ बसारा॥
नकट जाइ चरनि ह स नावा। चा रहु ब ध ते ह क ह समझ
ु ावा॥
हनम
ु ान के वचन सनु कर सु ीव ने बहुत ह भय माना। (और कहा -) वषय ने मेरे ान को हर लया।
अब हे पवनसतु ! जहाँ-तहाँ वानर के यथ
ू रहते ह, वहाँ दत
ू के समह
ू को भेजो।
सबको भय, ी त और नी त दखलाई। सब बंदर चरण म सर नवाकर चले। इसी समय ल मण नगर
म आए। उनका ोध दे खकर बंदर जहाँ-तहाँ भागे।
दो० - धनष
ु चढ़ाइ कहा तब जा र करउँ परु छार।
याकुल नगर दे ख तब आयउ बा लकुमार॥ 19॥
तदनंतर ल मण ने धनष
ु चढ़ाकर कहा क नगर को जलाकर अभी राख कर दँ ग
ू ा। तब नगरभर को
याकुल दे खकर बा लपु अंगद उनके पास आए॥ 19॥
सन
ु ु हनम
ु ंत संग लै तारा। क र बनती समझ
ु ाउ कुमारा॥
तारा स हत जाइ हनम
ु ाना। चरन बं द भु सज
ु स बखाना॥
हे हनम
ु ान! सन
ु ो, तम
ु तारा को साथ ले जाकर वनती करके राजकुमार को समझाओ (समझा-बझ
ु ाकर
शांत करो)। हनम
ु ान ने तारा स हत जाकर ल मण के चरण क वंदना क और भु के संद
ु र यश का
बखान कया।
शीष पर
नाथ वषय सम मद कछु नाह ं। मु न मन मोह करइ छन माह ं। जाएँ
सनत बनीत बचन सख पावा। ल छमन ते ह बह ब ध समझावा॥
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सु त त सु । ल छु तह ह ु स झ ॥
ु
तब पवनसत
ु हनम
ु ान ने िजस कार सब दशाओं म दत
ू के समह
ू गए थे वह सब हाल सन
ु ाया।
तब अंगद आ द वानर को साथ लेकर और राम के छोटे भाई ल मण को आगे करके (अथात उनके
पीछे -पीछे ) सु ीव ह षत होकर चले और जहाँ रघन
ु ाथ थे वहाँ आए॥ 20॥
रघन
ु ाथ के चरण म सर नवाकर हाथ जोड़कर सु ीव ने कहा - हे नाथ! मझ
ु े कुछ भी दोष नह ं है । हे
दे व! आपक माया अ यंत ह बल है । आप जब दया करते ह, हे राम! तभी यह छूटती है ।
तब रघप
ु त बोले मस
ु क
ु ाई। तु ह य मो ह भरत िज म भाई॥
अब सोइ जतनु करह मन लाई। जे ह ब ध सीता कै सु ध पाई॥
तब रघन
ु ाथ मस
ु कराकर बोले - हे भाई! तम
ु मझ
ु े भरत के समान यारे हो। अब मन लगाकर वह उपाय
करो िजस उपाय से सीता क खबर मले।
( शव कहते ह -) हे उमा! वानर क वह सेना मने दे खी थी। उसक जो गनती करना चाहे वह महान
मख
ू है । सब वानर आ-आकर राम के चरण म म तक नवाते ह और (स दय-माधय
ु न ध) मख
ु के दशन
करके कृताथ होते ह।
दो० - बचन सन
ु त सब बानर जहँ तहँ चले तरु ं त।
तब सु ीवँ बोलाए अंगद नल हनम
ु ंत॥ 22॥
शीष पर
सु ीव के वचन सन
ु ते ह सब वानर तरु ं त जहाँ-तहाँ ( भ न- भ न दशाओं म) चल दए। तब सु ीव ने जाएँ
अंगद, नल, हनमान आ द धान- धान यो ाओं को बलाया (और कहा -)॥ 22॥
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ु सीदासओ:: :: :: रामच रतमानस :: क वता
अ द, ल, ह ु आद ुल (और ह )॥ ॥
सन
ु हु नील अंगद हनम
ु ाना। जामवंत म तधीर सज
ु ाना॥
सकल सभ
ु ट म ल दि छन जाहू। सीता सु ध पँछ
ू े हु सब काहू॥
मन, वचन तथा कम से उसी का (सीता का पता लगाने का) उपाय सोचना। ी रामचं का काय संप न
(सफल) करना। सय
ू को पीठ से और अि न को दय से (सामने से) सेवन करना चा हए। परं तु वामी
क सेवा तो छल छोड़कर सवभाव से (मन, वचन, कम से) करनी चा हए।
स गण
ु को पहचाननेवाला (गण
ु वान) तथा बड़भागी वह है जो रघन
ु ाथ के चरण का ेमी है । आ ा
माँगकर और चरण म फर सर नवाकर रघन
ु ाथ का मरण करते हुए सब ह षत होकर चले।
(और कहा -) बहुत कार से सीता को समझाना और मेरा बल तथा वरह ( ेम) कहकर तम
ु शी लौट
आना। हनम
ु ान ने अपना ज म सफल समझा और कृपा नधान भु को दय म धारण करके वे चले।
सब वानर वन, नद , तालाब, पवत और पवत क कंदराओं म खोजते हुए चले जा रहे ह। मन राम के
काय म लवल न है । शर र तक का ेम (मम व) भल
ू गया है ॥ 23॥
ला ग तष
ृ ा अ तसय अकुलाने। मलइ न जल घन गहन भल
ु ाने॥
मन हनम
ु ान क ह अनम
ु ाना। मरन चहत सब बनु जल पाना॥
अंदर जाकर उ ह ने एक उ तम उपवन (बगीचा) और तालाब दे खा, िजसम बहुत-से कमल खले हुए ह।
वह ं एक संद
ु र मं दर है , िजसम एक तपोमू त ी बैठ है ॥ 24॥
द ू र ते ता ह सबि ह स नावा। पछ
ू नज ब ृ तांत सन
ु ावा॥
ते हं तब कहा करहु जल पाना। खाहु सरु स संद
ु र फल नाना॥
(आ ा पाकर) सबने नान कया, मीठे फल खाए और फर सब उसके पास चले आए। तब उसने अपनी
सब कथा कह सन
ु ाई (और कहा -) म अब वहाँ जाऊँगी जहाँ रघन
ु ाथ ह।
मद
ू हु नयन बबर तिज जाहू। पैहहु सीत ह ज न प छताहू॥
नयन मू द पु न दे ख हं बीरा। ठाढ़े सकल संधु क तीरा॥
तम
ु लोग आँख मँद
ू लो और गुफा को छोड़कर बाहर जाओ। तम
ु सीता को पा जाओगे, पछताओ नह ं
( नराश न होओ)। आँख मँद
ू कर फर जब आँख खोल ं तो सब वीर या दे खते ह क सब समु के तीर
पर खड़े ह।
सो पु न गई जहाँ रघन
ु ाथा। जाइ कमल पद नाए स माथा॥
नाना भाँ त बनय ते हं क ह । अनपायनी भग त भु द ह ॥
भु क आ ा सर पर धारण कर और राम के यग
ु ल चरण को, िजनक मा और महे श भी वंदना
करते ह, दय म धारण कर वह ( वयं भा) बद रका म को चल गई॥ 25॥
यहाँ वानरगण मन म वचार कर रहे ह क अव ध तो बीत गई, पर काम कुछ न हुआ। सब मलकर
आपस म बात करने लगे क हे भाई! अब तो सीता क खबर लए बना लौटकर भी या करगे!
वे तो पता के वध होने पर ह मझ
ु े मार डालते। राम ने ह मेर र ा क , इसम सु ीव का कोई एहसान
नह ं है । अंगद बार-बार सबसे कह रहे ह क अब मरण हुआ, इसम कुछ भी संदेह नह ं है ।
अंगद बचन सन
ु क प बीरा। बो ल न सक हं नयन बह नीरा॥
छन एक सोच मगन होइ रहे । पु न अस बचन कहत सब भए॥4॥
हे सय
ु ो य यव
ु राज! हम लोग सीता क खोज लए बना नह ं लौटगे। ऐसा कहकर लवणसागर के तट पर
जाकर सब वानर कुश बछाकर बैठ गए।
जामवंत अंगद दख
ु दे खी। कह ं कथा उपदे स बसेषी॥
तात राम कहुँ नर ज न मानहु। नगुन म अिजत अज जानहु॥
जा बवान ने अंगद का दःु ख दे खकर वशेष उपदे श क कथाएँ कह ं। (वे बोले -) हे तात! राम को मनु य
न मानो, उ ह नगुण म, अजेय और अज मा समझो।
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ु सीदास :: :: :: रामच रतमानस :: क वता
दो० - नज इ छाँ भु अवतरइ सरु मह गो वज ला ग।
सगन
ु उपासक संग तहँ रह हं मो छ सब या ग॥ 26॥
इस कार जा बवान बहुत कार से कथाएँ कह रहे ह। इनक बात पवत क कंदरा म स पाती ने सनु ीं।
बाहर नकलकर उसने बहुत-से वानर दे खे। (तब वह बोला -) जगद वर ने मझ
ु को घर बैठे बहुत-सा
आहार भेज दया!
आज इन सबको खा जाऊँगा। बहुत दन बीत गए, भोजन के बना मर रहा था। पेटभर भोजन कभी नह ं
मलता। आज वधाता ने एक ह बार म बहुत-सा भोजन दे दया।
सु न खग हरष सोक जत
ु बानी। आवा नकट क प ह भय मानी॥
त ह ह अभय क र पछ
ू े स जाई। कथा सकल त ह ता ह सन
ु ाई॥
(उसने कहा -) मझ
ु े समु के कनारे ले चलो, म जटायु को तलांज ल दे दँ ।ू इस सेवा के बदले म
तु हार वचन से सहायता क ँ गा (अथात सीता कहाँ ह सो बतला दँ ग
ू ा), िजसे तम
ु खोज रहे हो उसे पा
जाओगे॥ 27॥
अनज
ु या क र सागर तीरा। क ह नज कथा सन
ु हु क प बीरा॥
हम वौ बंधु थम त नाई। गगन गए र ब नकट उड़ाई॥
समु के तीर पर छोटे भाई जटायु क या ( ा आ द) करके स पाती अपनी कथा कहने लगा- हे वीर
वानर ! सन
ु ो, हम दोन भाई उठती जवानी म एक बार आकाश म उड़कर सय
ू के नकट चले गए।
त
े ाँ म मनज
ु तनु ध रह । तासु ना र न सचर प त ह रह ॥
तासु खोज पठइ ह भ ु दत
ू ा। त ह ह मल त होब पन
ु ीता॥
(उ ह ने कहा -) त
े ायग
ु म सा ात पर म मनु य शर र धारण करगे। उनक ी को रा स का राजा
हर ले जाएगा। उसक खोज म भ ु दत
ू भेजगे। उनसे मलने पर तू प व हो जाएगा।
शीष पर
ज मह हं पंख कर स ज न चंता। त ह ह दे खाइ दे हेसु त सीता॥ जाएँ
म न कइ गरा स य भइ आज। स न मम बचन करह भ काज॥
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:: रामच रतमानस :: क वता
ु इ र स इ आ ।ू सु ु ु ु ॥
ू
कूट पवत पर लंका बसी हुई है । वहाँ वभाव से ह नडर रावण रहता है । वहाँ अशोक नाम का उपवन
(बगीचा) है , जहाँ सीता रहती ह। (इस समय भी) वे सोच म म न बैठ ह।
म उ ह दे ख रहा हूँ, तम
ु नह ं दे ख सकते, य क गीध क ि ट अपार होती है (बहुत दरू तक जाती है )।
या क ँ ? म बढ़
ू ा हो गया, नह ं तो तु हार कुछ तो सहायता अव य करता॥ 28॥
जो सौ योजन (चार सौ कोस) समु लाँघ सकेगा और बु नधान होगा, वह राम का काय कर सकेगा।
मझ
ु े दे खकर मन म धीरज धरो। दे खो, राम क कृपा से मेरा शर र कैसा हो गया ( बना पंख का बेहाल
था, पंख उगने से संद
ु र हो गया)!
(काकभश
ु ंु ड कहते ह -) हे ग ड़! इस कार कहकर जब गीध चला गया, तब उन (वानर ) के मन म
अ यंत व मय हुआ। सब कसी ने अपना-अपना बल कहा। पर समु के पार जाने म सभी ने संदेह
कट कया।
अंगद ने कहा - म पार तो चला जाऊँगा, परं तु लौटते समय के लए दय म कुछ संदेह है । जा बवान ने
कहा - तम
ु सब कार से यो य हो, परं तु तम
ु सबके नेता हो, तु हे कैसे भेजा जाए?
कहइ र छप त सन
ु ु हनम
ु ाना। का चप
ु सा ध रहे हु बलवाना॥
पवन तनय बल पवन समाना। बु ध बबेक ब यान नधाना॥
वानर क सेना साथ लेकर रा स का संहार करके राम सीता को ले आएँगे। तब दे वता और नारदा द
मु न भगवान के तीन लोक को प व करने वाले संद
ु र यश का बखान करगे, िजसे सन
ु ने, गाने, कहने
और समझने से मनु य परमपद पाते ह और िजसे रघव
ु ीर के चरण कमल का मधक
ु र ( मर) तल
ु सीदास
गाता है ।
रघव
ु ीर का यश भव (ज म-मरण) पी रोग क (अचक
ू ) दवा है । जो पु ष और ी इसे सन
ु गे, शरा
के श ु राम उनके सब मनोरथ को स करगे॥ 30(क)॥
क लयग
ु के संपण
ू पाप को व वंस करने वाले ी रामच रतमानस का यह चौथा सोपान समा त हुआ।
( कि कंधाकांड समा त)
मख
ु पृ ठ उप यास कहानी क वता यं य नाटक नबंध आलोचना वमश
संपक व व व यालय
शीष पर
जाएँ
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