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मोहन राकेश - - - आधे-अधूरे -
मोहन राकेश - - - आधे-अधूरे -
हमारे रचनाकार हद लेखक पुरानी व वशेषांक खोज संपक व व ालय सं हालय लॉग समय
तीन दरवाजे तीन तरफ से कमरे म झाँकते ह। एक दरवाजा कमरे को पछले अहाते से जोड़ता है , एक अंदर के कमरे से
और एक बाहर क नया से। बाहर का एक रा ता अहाते से हो कर भी है। रसोई म भी अहाते से हो कर जाना होता है। परदा
उठने पर सबसे पहले चाय पीने के बाद डाइ नग टे बल पर छोड़ा गया अधटू टा ट -सेट आलो कत होता है। फर फट कताब
और टू ट कु सय आ द म से एक-एक। कुछ सेकंड बाद काश सोफे के उस भाग पर क त हो जाता है जहाँ बैठा काले सूट
वाला आदमी सगार के कश ख च रहा है। उसके सामने रहते काश उसी तरह सी मत रहता है , पर बीच-बीच म कभी यह
कोना और कभी वह कोना साथ आलो कत हो उठता है।
का.सू.वा. : (कुछ अंतमुख भाव से सगार क राख झाड़ता) फर एक बार, फर से वही शु आत...।
म नह जानता आप या समझ रहे ह म कौन ँ और या आशा कर रहे ह म या कहने जा रहा ँ। आप शायद सोचते ह क म
इस नाटक म कोई एक न त इकाई ँ - अ भनेता, तुतकता, व थापक या कुछ और; परंतु म अपने संबंध म न त प से कुछ
भी नह कह सकता - उसी तरह जैसे इस नाटक के संबंध म नह कह सकता। य क यह नाटक भी अपने म मेरी ही तरह अ न त है।
अ न त होने का कारण यह है क...परंतु कारण क बात करना बेकार है। कारण हर चीज का कुछ-न-कुछ होता है, हालाँ क यह
आव यक नह क जो कारण दया जाए, वा त वक कारण वही हो। और जब म अपने ही संबंध म न त नह ,ँ तो और कसी चीज के
कारण-अकारण के संबंध म न त कैसे हो सकता ँ ?
म वा तव म कौन ँ ? - यह एक ऐसा सवाल है जसका सामना करना इधर आ कर मने छोड़ दया है जो म इस मंच पर ँ, वह
यहाँ से बाहर नह ँ और जो बाहर ँ...ख़ैर, इसम आपक या दलच पी हो सकती है क म यहाँ से बाहर या ँ ? शायद अपने बारे म
इतना कह दे ना ही काफ है क सड़क के फुटपाथ पर चलते आप अचानक जस आदमी से टकरा जाते ह, वह आदमी म ँ। आप सफ
घूर कर मुझे दे ख लेते ह - इसके अलावा मुझसे कोई मतलब नह रखते क म कहाँ रहता ँ, या काम करता ँ, कस- कससे मलता ँ
और कन- कन प र थ तय म जीता ँ। आप मतलब नह रखते य क म भी आपसे मतलब नह रखता, और टकराने के ण म आप
मेरे लए वही होते ह जो म आपके लए होता ँ। इस लए जहाँ इस समय म खड़ा ँ, वहाँ मेरी जगह आप भी हो सकते थे। दो
टकरानेवाले होने के नाते आपम और मुझम, ब त बड़ी समानता है। यही समानता आपम और उसम, उसम और उस सरे म, उस
शीष पर
सरे म और मुझम...बहरहाल इस ग णत क पहेली म कुछ नह रखा है। बात इतनी है क वभा जत हो कर म कसी-न- कसी अंश म
जाएँ
आपम से हर-एक ँ और यही कारण है क नाटक के बाहर हो या अंदर, मेरी कोई भी एक न त भू मका नह है।
कमरे के एक ह से से सरे ह से म टहलने लगता है।
मने कहा था, यह नाटक भी मेरी ही तरह अ न त है। उसका कारण भी यही है क म इसम ँ और मेरे होने से ही सब कुछ इसम
नधा रत या अ नधा रत है। एक वशेष प रवार, उसक वशेष प र थ तयाँ ! प रवार सरा होने से प र थ तयाँ बदल जात , म वही
रहता। इसी तरह सब कुछ नधा रत करता। इस प रवार क ी के थान पर कोई सरी ी कसी सरी तरह से मुझे झेलते - या वह
ी मेरी भू मका ले लेती और म उसक भू मका ले कर उसे झेलता। नाटक अंत तक फर भी इतना ही अ न त बना रहता और यह
नणय करना इतना ही क ठन होता क इसम मु य भू मका कसक थी - मेरी, उस ी क , प र थ तय क , या तीन के बीच से उठते
कुछ सवाल क ।
फर दशक के सामने आ कर खड़ा हो जाता है। सगार मुँह म लए पल-भर ऊपर क तरफ दे खता रहता है। फर ' हँह '
के वर के साथ सगार मुँह से नकाल कर उसक राख झाड़ता है।
पर हो सकता है, म एक अ न त नाटक म एक अ न त पा होने क सफाई-भर पेश कर रहा ँ। हो सकता है, यह नाटक एक
न त प ले सकता हो - क ह पा को नकाल दे ने से, दो-एक पा और जोड़ दे ने से, कुछ भू मकाएँ बदल दे ने से, या प र थ तय म
थोड़ा हेर-फेर कर दे ने से। हो सकता है, आप पूरा दे खने के बाद, या उससे पहले ही, कुछ सुझाव दे सक इस संबंध म। इस अ न त पा
से आपक भट इस बीच कई बार होगी...।
हलके अ भवादन के प म सर हलाता है जसके साथ ही उसक आकृ त धीरे-धीरे धुँधला कर अँधेरे म गुम हो जाती
है। उसके बाद कमरे के अलग-अलग कोने एक-एक करके आलो कत होते ह और एक आलोक व था म मल जाते ह।
कमरा खाली है। तपाई पर खुला आ हाई कूल का बैग पड़ा है जसम आधी का पयाँ और कताब बाहर बखरी ह। सोफे पर
दो-एक पुराने मैगजीन , एक कची और कुछ कट -अधकट त वीर रखी ह। एक कुरसी क पीठ पर उतरा आ पाजामा झूल
रहा है। ी कई-कुछ सँभाले बाहर से आती ह। कई-कुछ म कुछ घर का है , कुछ द तर का , कुछ अपना। चेहरे पर दन-भर
के काम क थकान है और इतनी चीज के साथ चल कर आने क उलझन। आ कर सामान कुरसी पर रखती ई वह पूरे कमरे
पर एक नजर डाल लेती है।
ी: (थकान नकालनेवाले वर म) ओह् होह् होह् होह् ! (कुछ हताश भाव से) फर घर म कोई नह । (अंदर के दरवाज़े क तरफ
दे ख कर) क ी !...होगी ही नह , जवाब कहाँ से दे ? ( तपाई पर पड़े बैग को दे ख कर) यह हाल है इसका! (बैग क एक कताब उठा
कर) फर फाड़ लाई एक और कताब ! जरा शरम नह क रोज-रोज कहाँ से पैसे आ सकते ह नयी कताब के लए ! (सोफे के पास आ
कर) और अशोक बाबू यह कमाई करते रहे ह दन-भर ! (त वीर उठा कर दे खती) ए लजाबेथ टे लर...आ ेबन...शल मै लेन !
पाजामे को मरे जानवर क तरह उठा कर दे खती है और कोने म फकने को हो कर फर एक झटके के साथ उसे तहाने
लगती है।
पाजामे कबड म रखने से पहले डाइ नग टे बल पर पड़े चाय के सामान को दे ख कर और खीज जाती है , पाजामे को
कुरसी पर पटक दे ती है और या लयाँ वैगरह े म रखने लगती है।
े उठा कर अहाते के दरवाजे क तरफ बढ़ती ही है क पु ष एक उधर से आ जाता है। ी ठठक कर सीधे उसक
आँख म दे खती है , पर वह उससे आँख बचाता पास से नकल कर थोड़ा आगे आ जाता है।
पु ष एक : कह नह । यह बाहर था - माकट म।
ी : (उसका पाजामा हाथ म ले कर) पता नह यह या तरीका है इस घर का ? रोज आने पर पचास चीज यहाँ-वहाँ बखरी
मलती ह।
गु से म कबड खोल कर पाजामे को जैसे उसम कैद कर दे ती है। पु ष एक फालतू-सा इधर-उधर दे खता है , फर एक
कुरसी क पीठ पर हाथ रख लेता है।
अहाते के दरवाजे से हो कर पीछे रसोईघर म चली जाती है। पु ष एक लंबी ' 'ँ के साथ कुरसी को झुलाने लगता है। ी
प ले से हाथ प छती रसोईघर से वापस आती है।
ी : (और चीज को समेटने म त) मुझे या पता कतनी दे र के लए नकले थे।...वह आज फर आएगा अभी थोड़ी दे र म।
तब तो घर पर रहोगे तुम ?
ी : उसे कसी के यहाँ के खाना खाने आना है इधर। पाँच मनट के लए यहाँ भी आएगा।
पु ष एक : कस व आएगा ?
पु ष एक : ( छले ए वर म) यह अ छा है...।
ी : लोग को ई या है मुझसे, क दो बार मेरे यहाँ आ चुका है। आज तीसरी बार आएगा।
कची , मैगजीन और त वीर समेट कर पढ़ने क मेज क दराज म रख दे ती है। कताब बैग म बंद करके उसे एक तरफ
सीधा खड़ा कर दे ती है।
ी:( त) वह तो आज भी हो जाएगा तु ह।
पु ष एक : (ओछा पड़कर) जाना तो है आज भी मुझे...पर तुम ज री समझो मेरा यहाँ रहना, तो...।
ी : मेरे लए कने क ज रत नह । (यह दे खती क कमरे म और कुछ तो करने को शेष नह ) तु ह और याली चा हए चाय क
? म बना रही ँ अपने लए।
: सुनो।
पु ष एक : पर होगी भी ?
चली जाती है। पु ष एक सर हला कर इधर-उधर दे खता है क अब वह अपने को कैसे त रख सकता है। फर जैसे
याद हो आने से शाम का अखबार जेब से नकाल कर खोल लेता है। हर सुख पढ़ने के साथ उसके चेहरे का भाव और तरह
का हो जाता है- उ साहपूण , ं यपूण, तनाव-भरा या प त। साथ मुँह से 'ब त अ छे ! 'मार दया, 'लो' और 'अब'? जैसे श द
नकल पड़ते ह। ी रसोईघर से लौट कर आती है।
पु ष एक : (अखबार हटा कर ी को दे खता) हड़ताल तो आजकल सभी जगह हो रही ह। इसम दे खो...।
पु ष एक : फलहाल उसे दे ने के लए पैसा नह है, तो कम-से-कम मुँह तो उसे दखाते रहना चा हए।
पु ष एक : वह छह महीने बाहर रह कर आया है। हो सकता है, कोईनया कारोबार चलाने क सोच रहा हो जसम मेरे लए...
पु ष एक : (कुढ़ कर सोफे पर बैठता) तो नह जाता मै ! अपने अकेले के लए जाना है मुझे! अब तक तकद र ने साथ नह दया
तो इसका यह मतलब तो नह क...
: (बड़बड़ाती) पहली बार ेस म जो आ सो आ। सरी बार फर या हो गया ? वही पैसा जुनेजा ने लगाया, वही तुमने गाया।
एक ही फै टरी लगी, एक ही जगह जमा-खच आ। फर भी तकद र ने उसका साथ दे दया, तु हारा नह दया।
ी : खड़े य हो गए ?
पु ष एक : य , म खड़ा नह हो सकता ?
पु ष एक : ( कसी तरह गु सा नगलता) मेरी जगह तुम ह सेदार होती न फै टरी क , तो तु ह पता चल जाता क...
पु ष एक : (बड़बड़ाता) उन दन पैसा लया था फै टरी से ! जो कुछ लगाया था, यह सारा तो शु म ही नकाल- नकाल कर खा
लया और....
ी : तुम लड़ भी सकते हो इस व , ता क उसी बहाने चले जाओ घर से।....वह आदमी आएगा, तो जाने या सोचेगा क य
हर बार इसके आदमी को कोई-न-कोई काम हो जाता है बाहर। शायद समझे क म ही जान-बूझ कर भेज दे ती ँ।
ी : कह ँ गी, आगे से तय करके आया करे तुमसे। तुम इतने बजी आदमी जो हो। पता नह कब कस बोड क मी टग म जाना
पड़ जाए।
पु ष एक : (पूरी श समेट कर सामना करता) तुम फर वही बात उठाना चाहती हो ? अगर रहा भी ँ कभी तीन दन घर से
बाहर, तो आ खर कस वजह से ?
ी : वजह का पता तो तु ह पता होगा या तु हारे लड़के को। वह भी तीन-तीन दन दखाई नह दे ता घर पर।
ी : नह , उसका मुकाबला तुमसे करती ँ। जस तरह तुमने वार क अपनी जदगी, उसी तरह वह भी...
पु ष एक : और लड़क तु हारी? उसने अपनी जदगी वार करने क सीख कससे ली है ? (अपने जाने भारी पड़ता) मने तो
कभी कसी के साथ घर से भागने क बात नह सोची थी।
सोफे पर पर बैठ कर फर अखबार खोल लेता है , पर यान पढ़ने म लगा नही पाता ।
ी : मुझे भी पता है, पानी हो गया होगा । म जब भी कसी को बुलाती ँ यहाँ, मुझे पता होता है तुम यही सब बात करोगे।
ी : वैसे हजार बार कहोगे लड़के क नौकरी के लए कसी से बात य नही करती। और जब म मौका नकलती ँ उसके लए
तो...
पु ष-एक : म नह शु मनाता ? जब-जब कसी नए आदमी का आना- जाना शु होता है यहाँ, म हमेशा शु मानता ँ। पहले
जगमोहन आया करता था। फर मनोज आने लगा था...।
ी : (गहरी वतृ णा के साथ) जतने नाशु े आदमी तुम हो, उससे तो मन करता है क आज ही म...
शीष पर
कहती ई अहाते के दरवाजे क तरफ मुड़ती ही है क बाहर से बड़ी लड़क क आवाज सुनाई दे ती है।
जाएँ
बड़ी लड़क : ममा !
बड़ी लड़क : ममा !
ी : ब ी आई है बाहर ।
ी : जा कर दे ख लोगे या चा हए उसे ?
पु ष एक कसी अनचाही थ त का सामना करने क तरह बाहर के दरवाजे क तरफ बढ़ता है।
बाहर नकल जाता है। ी पल-भर उधर दे खती रह कर अहाते के दरवाजे से रसोईघर म चली जाती है। बड़ी लड़क
बाहर से आती है। पु ष एक उसके पीछे -पीछे आ कर इस तरह कमरे म नजर दौड़ाता है जैसे ी के उस कमरे म न होने से
अपने को गलत जगह पर अकेला पा रहा हो।
ी : या हाल ह तेरे ?
बड़ी लड़क : ठ क ह ।
ी : चाय लेगी?
बड़ी लड़क : अभी नह , पहले हाथ-मुँह धो लूँ गुसलखाने म जा कर। सारा ज म इस तरह चप चपा रहा है क बस....
अहाते के दरवाजे से चली जाती है। पु ष एक अथपूण से ी को दे खता उसके पास जाता है।
ी : चाय ले लो।
ी : या पता कह और से आ रही हो !
ी : या पूछूँ ?
पु ष एक : यह म बताऊँगा तु ह ?
: (पल भर उ र क ती ा करने के बाद) मेरी उस आदमी के बारे म कभी अ छ राय नह थी। तु ह ने हवा बाँध रखी थी क
मनोज यह है, वह है - जाने या है ! तु हारी शह से उसका घर म आना-जाना न होता, तो या यह नौबत आती क लड़क उसके साथ जा
कर बाद म इस तरह...?
ी : य नह पूछ सकते ?
ी : (उठती ई) तो पता नह और या बबाद ई होती। जो दो रोट आज मल जाती है मेरी नौकरी से, वह भी नह मल पाती।
लड़क भी घर म रह कर ही बुढ़ा जाती, पर यह न सोचा होता कसी ने क....
ज द -ज द अपनी याली खाली करके ी को दे दे ती है। बड़ी लड़क पहले से काफ सँभली ई वापस आती है।
बड़ी लड़क : (आती ई) ठं डे पानी के छ टे मुँह पर मारे, तो कुछ होश आया। आजकल के दन म तो बस.... (उन दोन को थर
से अपनी ओर दे खते पा कर) या बात है, ममा? आप लोग इस तरह य दे ख रहे ह मुझे ?
अहाते के दरवाजे से चली जाती है। पु ष एक भी आँख हटा कर त होने का बहाना खोजता है।
ी : उ ह से य नह पूछती ?
पु ष एक : (बीच म ही) अगर तुम अपनी तरफ से नह जानना चाहत तो रहने दो।
ी : बात सफ इतनी है क जस तरह से तू आजकल आती है वहाँ से, उससे इ ह कह लगता है क...
पु ष एक : तु ह जैसे नह लगता।
ी : तू खुश है वहाँ पर ?
ी : सचमुच खुश है ?
बड़ी लड़क : (तुनक कर) तो जवाब या तभी होता है अगर म कहती क म खुश नह ,ँ ब त खी ँ?
बड़ी लड़क : मेरे चेहरे से या झलकता है ? क मुझे तपे दक हो गया है? म घुल-घुल कर मरी जा रही ँ ?
शीष पर
बड़ी लड़क : तो और या- या होता है ? आँख से दखाई दे ना बंद हो जाता है? नाक-कान तरछे हो जाते ह ? ह ठ झाड़ कर गर
जाएँ
जाते ह ? मेरे चेहरे से ऐसा या नजर आता है आपको ?
पु ष एक : (कुढ़कर लौटता) तेरी माँ ने तुझसे पूछा है, तू उसी से बात कर। म इस मारे कभी पड़ता ही नह इन चीज म।
सोफे पर जा कर अखबार खोल लेता है। पर पल-भर बाद यान हो आने से क वह उसने उलटा पकड़ रखा है , सीधा
कर लेता है।
ी : (बड़ी लड़क से) अ छा, छोड़ अब इस बात को। आगे से यह सवाल म नह पूछूँगी तुझसे।
बड़ी लड़क : पूछने म रखा भी या है, ममा ! जदगी कसी तरह कटती ही चलती है हर आदमी क ।
पु ष एक : म या कह रहा ँ ? चुप ही बैठा ँ यहाँ। (अखबार म पढ़ता) नाले का बाँध पूरा करने के लए बारह साल के लड़के
क ब ल (अखबार से बाहर) आप चाहे जो कह ले, मेरे मुँह से एक ल ज भी न नकले। ( फर अखबार म से) उदयपुर म म ा गाँव म बाँध
के ठे केदार का अमानु षक कृ य। (अखबार से बाहर) हद होती है हर चीज क ।
ी बड़ी लड़क के कंधे पर हाथ रखे उसे पढ़ने क मेज के पास ले जाती है।
ी : यहाँ बैठ ।
ी : तो ?
ी : तो ?
ी : जैसे ?
बड़ी लड़क : मेरा मतलब है... क शाद से पहले मुझे लगता था क मनोज को ब त अ छ तरह जानती ँ। पर अब आ
कर...अब आ कर लगाने लगा है क वह जानना बलकुल जानना नह था।
बड़ी लड़क : नह । उसके च र म ऐसा कुछ नह है। इस लहाज से ब त साफ आदमी है वह।
बड़ी लड़क : नह वभाव उसका हर आदमी जैसा है, ब क आम आदमी से यादा खुश दल कहना चा हए उसे।
ी : उसक आ थक थ त ठ क है ?
ी : सेहत ?
ी : (पु ष एक से) तुम बात समझने भी दोगे ? (बड़ी लड़क से) जब इनम से कसी बात क शकायत नह है तुझे, तब या तो
कोई ब त खास वजह होनी चा हए, या...
बड़ी लड़क : या ?
पु ष एक : ( नराशा भाव से सर हला कर , मुँह फर सरी तरफ करता) य ह वजह बताई है इसने...हवा!
शीष पर
बड़ी लड़क : (उठती ई) म शायद समझा भी नह सकती (अ थर भाव से कुछ कदम चलती) कसी सरे को तो या, अपने
जाएँ
को भी नह समझा सकती। (सहसा क कर) ममा, ऐसा भी होता है या क...
ी: क?
बड़ी लड़क : क दो आदमी जतना यादा साथ रह, एक हवा म साँस ल, उतना ही यादा अपने को एक- सरे से अजनबी
महसूस कर ?
ी : तूने जो बात कही है, वह अगर सच है, तो उसके पीछे या कोई-न-कोई ऐसी अड़चन नह है जो...
बड़ी लड़क : पर कौन-सी अड़चन ?...उसके हाथ से छलक गई चाय क याली, या उसके द तर से लौटने म आधा घंटे क दे री-
ये छोट -छोट बात अड़चन नह होत , मगर अड़चन बन जाती ह। एक गुबार-सा है जो हर व भरा रहता है और म इंतजार म रहती ँ
जैसे क कब कोई बहाना मले जससे उसे बाहर नकाल लूँ। और आ खर... ?
: आ खर वह सीमा आ जाती है जहाँ प ँच कर वह नढाल हो जाता है। जहाँ प ँच कर वह नढाल हो जाता है। ऐसे म वह एक
बात कहता है।
बड़ी लड़क : क म इस घर से ही अपने अंदर कुछ ऐसी चीज ले कर गई ँ जो कसी भी थ त म मुझे वाभा वक नह रहने
दे त ।
ी : वह या ?
बड़ी लड़क : क इसका पता मुझे अपने अंदर से, या इस घर के अंदर से चल सकता है। वह कुछ नह बता सकता।
ी : तु हारा घर ! हँह !
ी : नह होने पाएँगे यारह साल... इसी तरह चलता रहा सब- कुछ तो।
पु ष एक : (एकटक उसे दे खता , काट के साथ) नह होने पाएँगे सचमुच...? काफ अ छा आदमी है जगमोहन ! और फर द ली
म उसका ांसफर भी हो गया है। मला था उस दन कनॉट लेस म। कह रहा था, आएगा कसी दन मलने।
ी : खूब करो तारीफ...और भी जस- जस क हो सके तुमसे। (बड़ी लड़क से) मनोज आज जो तुमसे कहता है यह सब, पहले
जब खुद यहाँ आता रहा है, रात- दन यह रहता रहा है, तब या उसे पता नह चला क...
ी : पर य नह पूछती ?
बड़ी लड़क : य क मुझे कह लगता है क...कैसे बताऊँ, या लगता है? वह जतने व ास के साथ यह बात कहता है, उससे...
मुझे अपने से एक अजीब सी चढ़ होने लगती है। मन करता है आस-पास क हर चीज को तोड़-फोड़ डालूँ। कुछ ऐसा कर डालूँ
जससे....
ी : जससे ?
बड़ी लड़क : जससे उसके मन को कड़ी-से-कड़ी चोट प ँचा सकूँ। उसे मेरे लंबे बाल अ छे लगते ह। इस लए सोचती ँ, इ ह जा
कर कटा आऊँ। वह मेरे नौकरी करने के हक म नह है। इस लए चाहती ँ कह भी, कोई भी छोट -मोट नौकरी कर लूँ। कुछ भी ऐसी
बात जससे एक बार तो वह अंदर से वह तल मला उठे । पर कर म कुछ भी नह पाती और जब नह कर पाती, तो खीज कर...
बड़ी लड़क : नह ।
ी : तो ?
शीष पर
बड़ी लड़क : कई-कई दन के लए अपने को उससे काट लेती ँ। पर धीरे-धीरे हर चीज फर उसी ढर पर लौट आती है। सब-
जाएँ
कुछ उसी तरह होने लगता है जब तक क हम... जब तक क हम नए सरे से उसी खोह म नह प ँच जाते। म यहाँ आती ँ... यहाँ आती
ँ ो
ँ तो सफ इस लए क...
क को शश कर दे खूँ क या चीज है वह इस घर म जसे ले कर बार-बार मुझे हीन कया जाता है। (लगभग टू टे वर म) तुम बता
सकती हो ममा, क या चीज है वह? और कहाँ है वह ? इस घर के खड़ कय -दरवाज म ? छत म? द वार म ? तुमम ? डैडी म ?
क ी म अशोक म ? कहाँ छपी है वह मन स चीज जो वह कहता है मै इस घर से अपने अंदर ले कर गई ँ ?
काफ लंबा व फा। कुछ दे र बड़ी लड़क के हाथ ी क बाँह पर के रहते ह। और दोन क आँख मली रहती ह।
धीरे-धीरे पु ष एक क गरदन उनक तरफ मुड़ती है। तभी ी आ ह ता से बड़ी लड़क के हाथ अपनी बाँह से हटा दे ती है।
उसक आँख पु ष एक से मलती ह और वह जैसे उससे कुछ कहने के लए कुछ कदम उसक तरफ बढ़ाती है। बड़ी लड़क
जैसे अब भी अपने सवाल का जवाब चाहती , अपनी जगह पर क उन दोन को दे खती रहती है। पु ष एक ी को अपनी
ओर आते दे ख आँख उधर से हटा लेता है और एक-दो पल असमंजस म रहने के बाद अनजाने म ही अखबार को गोल करके
दोन हाथो से उसक र सी बटने लगता है। ी आधे रा ते म ही कुछ कहने का वचार छोड़ कर अपने को सहेजती है। फर
बड़ी लड़क के पास वापस जा कर हलके से उसके कंधे को छू ती है। बड़ी लड़क पल-भर आँख मूँदे रह कर अपने आवेग
दबाने का य न करती है , फर ी का हाथ कंधे से हटा कर एक कुरसी का सहारा लए उस पर बैठ जाती है। ी यह समझ
न आने से क अब उसे या करना चा हए, पल-भर वधा म हाथ उलझाए रहती है। उसक आँख फर एक बार पु ष एक से
मल जाती ह। और वह जैसे आँख से ही उसका तर कार कर अपने को एक मोढ़े क थ त बदलने म त कर लेती है।
पु ष एक अपनी जगह से उठ पड़ता है। अखबार क र सी अपने हाथ म दे ख कर अटपटा महसूस करता है। और कुछ दे र
अ न त खड़ा रहने के बाद फर से बैठ कर उस र सी के टु कड़े करने लगता है। तभी छोट लड़क बाहर के दरवाजे से आती
है और उन तीन को उस तरह दे ख कर अचानक ठठक जाती है।
ी : या कह रही है तू ?
छोट लड़क : बताओ चलता है कुछ पता ? कूल से आई ँ, तो तुम भी हो डैडी भी ह, ब -द भी ह- पर सबलोग ऐसे चुप ह
जैस.े ..
छोट लड़क : कह भी चली गई थी। घर पर था कोई जसके पास बैठती यहाँ ? ध गरम आ है मेरा ?
छोट लड़क : अभी आ जाता है ! कूल म भूख लगे तो कोई पैसा नह होता पास
ी : कहा है न तुमसे, अभी गरम आ जाता है। (पु ष एक से) तुम उठ रहे हो या म जाऊँ ?
अखबार के टु कड़े पर इस तरह नजर डाल लेता है जैसे क वह कोई मह वपूण द तावेज था जसे टु कड़े-टु कड़े कर दया
है।
छोट लड़क : अपने आप फट गई, तो म या क ँ ? आज सलाई क लास म फर वही आ मेरे साथ। मस ने कहा....
छोट लड़क : रोज कहती हो, बाद म करना। आज भी मुझे रील ला कर न द , तो म कूल नह जाऊँगी कल से। मस ने सारी
लास के सामने मुझसे कहा क...
छोट लड़क : तो उठा लो न मुझे कूल से। जैसे शोक मारा-मारा फरता है सारा दन, म भी फरती रहा क ँ गी।
बड़ी लड़क इस बीच काफ अ थर महसूस करती छोट लड़क को दे खती है।
बड़ी लड़क : (अपने को रोक पाने म असमथ) तुझे तमीज से बात करना नह आता ? बड़ा भाई है तेरा।
बड़ी लड़क : क ी !
छोट लड़क : तुम यहाँ थ , तो या कुछ कहा करती थ उसके बारे म? तु हारा भी तो बड़ा भाई है। चाहे एक ही साल बड़ा है, है
तो बड़ा ही।
पु ष एक : (अहाते के दरवाजे क तरफ चलता) कहना या है ? कहता ही नह कभी । म ध गरम कर रहा ँ इसका ।
शीष पर
दरवाजे से नकल जाता है ।
जाएँ
छोट लड़क : कल मझे रील का ड बा ज र चा हए और मस बैनज ने सब लड़ कय से कहा है आज क फाऊंडस डे पी ट
छोट लड़क : कल मुझ रील का ड बा ज र चा हए और मस बनज न सब लड़ कय स कहा ह आज क फाऊडस-ड पी. ट .
के लए तीन-तीन नए कट...
ी : कतने ?
ी : (जैसे अपने को उस करण से बचाने क को शश म) अ छा, दे ख... कूल से आ कर तू अपना बैग यहाँ खुला छोड़ गई थी !
मने आ कर बंद कया है। पहले इसे अंदर रख कर आ।
ी : सुन ली है।
छोट लड़क : तो जवाब य नह दया कुछ? (कोने से बैग उठा कर झटके से अंदर को चलती) मै कर रही ँ लप और मोज
क बात और कह रही ह बैग रख कर आ अंदर ।
बड़ी लड़क : हम कह पाते थे कभी इतनी बात ? आधी बात भी कह द इससे, तो रास इस तरह कस द जाती थ क बस !
बड़ी लड़क : मने कहा क...(सहसा ी के भाव के त सचेत हो कर) तुम सोच रही थ कुछ ?
ी : नह ...सोच नह रही थी (इधर-उधर नजर डालती) दे ख रही थी क और कुछ समेटने को तो नह है। अभी कोई आनेवाला है
बाहर से और....।
गलास डाय नग टे बल पर छोड़ कर बना कसी क तरफ दे खे वापस चला जाता है। ी कड़ी नजर से उसे जाते दे खती
है। बड़ी लड़क ी के पास जाती है।
ी : कुछ नह ।
बड़ी लड़क : फर भी ?
वहाँ से हट कर कबड के पास चली जाती है और उसे खोल कर अंदर से कोई चीज ढूँ ढ़ने लगती है।
ी उसका वा य पूरा होने तक क रहती है फर जाकर तपाई का मेजपोश बदलने लगती है।
ी के बदलते भाव को दे ख कर बीच म ही क जाती है। ी पुराने मेजपोश को हाथ म लए एक नजर उसे दे खती है ,
फर उमड़ते आवेग को रोकने क को शश म चेहरा मेजपोश से ढँ क लेती है।
पु ष एक अहाते के दरवाजे से आता है-दो जले टो ट एक लेट म लए। ी के श द उसके कानो म पड़ते ह , पर वह
जानबूझ कर अपने चेहरे से कोई त या नह होने दे ता। लेट ध के गलास के पास छोड़ कर कताब के शे फ क
तरफ चला जाता है और उसके नचले ह से म रखी फाइल म से जैसे कोई खास फाइल ढूँ ढ़ने लगता है। बड़ी लड़क बात
करने से पहले पल भर को व फा ले कर उसे दे खती है।
बड़ी लड़क : ( वशेष प से उसी को सुनाती , ी से) जो तुमसे नह सँभलता, वह और कससे सँभल सकता है इस घर म...
जान सकती ँ ?
पु ष एक जैसे फाइल क धूल झाड़ने के लए उसे दो-एक जोर के हाथ लगा कर पीट दे ता है।
: जब से बड़ी ई ँ तभी से दे ख रही ँ। तुम सब-कुछ सह कर भी रात- दन अपने को इस घर के लए हलाक करती रही हो और...
शीष पर
ी : पर आ या है उससे?
जाएँ
न सह पाने क नजर से प ष एक क तरफ दे ख कर मोढ़े से उठ पड़ती है। प ष एक दोन फाइल को जोर जोर आपस
न सह पान क नजर स पु ष एक क तरफ दख कर मोढ़ स उठ पड़ती ह। पु ष एक दोन फाइल को जोर-जोर आपस
म से टकराता है।
जैसे-तैसे फाइल को उसक जगह म वापस ठूँ सने लगता है। छोट लड़क पाँव पटकती अंदर से आती है।
छोट लड़क : पड़ा सो रहा था अब तक। मने जा कर जगा दया, तो लगा मेरे बाल ख चने।
लड़का : (अपने चेहरे को छू ता) चकट रखने क सोच रहा ँ। कैसी लगेगी मेरे चेहरे पर ?
छोट लड़क : (उतावली पकड़ कर) मेरी बात सुनी नह कसी ने। अंदर मेरे बाल ख च रहा था और बाहर आ कर अपनी चकट
बता रहा है।
लड़का : पूछो ।
ी : इस लड़क क या उ है ?
छोट लड़क लड़के क तरफ जबान नकालती है। पु ष एक फाइल को कसी तरह समेट कर उठ पड़ता है।
ी : ज र माननी चा हए... ।
छोट लड़क : झूठ बोल रहा है। मने कोई कताब नह ली इसक ।
छोट लड़क : (कमजोर पड़ कर ढ ठपन के साथ) तू त कए के नीचे रख कर सोए, तो भी नह । मने जरा नकाल कर दे ख दे ख-
भर ली, तो...।
लड़का : ( कताब वापस बुशट म रखता) नह ...आपके दे खने क नह है। ( ी से) अब फर पूछो मुझसे क इसक उ कतने
साल है ?
शीष पर
पु ष : (ऊँचे वर म) ठहरो (बारी-बारी से उन सबक ओर दे खता) पहले म यह जान सकता ँ यहाँ कसी से क मेरी उ कतने
जाएँ
साल क है ?
कुछ पल का वधान , जसम सफ छोट लड़क क मुँह और टाँग चलती रहती ह ।
पु ष : (एक-एक श द पर जोर दे ता) म पूछ रहा ँ क मेरी उ कतने साल क है ? कतने साल है मेरी उ ?
पु ष एक : हाँ, पूछ कर ही जानना है आज। कतने साल हो चुके ह मुझे जदगी का भार ढोते ? उनम से कतने साल बीते ह मेरे
प रवार क दे ख-रेख करते ? और उस सबके बाद म आज प ँचा कहाँ ँ ? यहाँ क जसे दे खो वही मुझसे उलटे ढं ग से बात करता है ?
जसे दे खो, वही मुझसे बदतमीजी से पेश आता है ?
पु ष एक : हर-एक के पास एक-न-एक वजह होती है। इसने इस लए कहा था। उसने उस लए कहा था। म जानना चाहता ँ क
मेरी या यही है सयत है इस घर म क जो जब जस वजह से जो भी कह दे म चुपचाप सुन लया क ँ ? हर व क कार, हर व
क क च, बस यही कमाई है यहाँ मेरी इतने साल क ...
पु ष एक : कसे सुना सकता ँ ? कोई है जो सुन सकता है ? ज ह सुनना चा हए, वे सब तो एक रबड़- टप के सवा कुछ
समझते ही नह मुझे। सफ ज रत पड़ने पर इस टप का ठ पा लगा कर...
ी : मुझे सफ इतना पूछ लेने दे इनसे क रबड़- टप के माने या होते ह? एक अ धकार, एक तबा, एक इ जत यही न ?
ी : ( बना कसी तरफ यान दए) यह सब कब-कब मला है इनसे कसी को भी इस घर म ? कस माने म ये कहते है क....?
: नह बता सकता न ?
पु ष एक : ( सर हलाता) हाँ...छोट -सी बात ही तो है यह। अ धकार, तबा, इ जत - यह सब बाहर के लोग से मल सकता है
इस घर को। इस घर का आज तक कुछ बना है, या आगे बन सकता है, तो सफ बाहर के लोग के भरोसे। मेरे भरोसे तो सब-कुछ
बगड़ता आया है और आगे बगड़-ही- बगड़ सकता है। (लड़के क तरफ इशारा करके) यह आज तक बेकार य घूम रहा है ? मेरी
वजह से। (बड़ी लड़क क तरफ इशारा करके) यह बना बताए एक रात घर से य भाग गई थी ? मेरी वजह से। ( ी के बलकुल
सामने आ कर) और तुम भी...तुम भी इतने साल से य चाहती रही हो क... ?
पु ष एक : अपनी जदगी चौपट करने का ज मेदार म ँ। इन सबक जद गयाँ चौपट करने का ज मेदार म ँ। फर भी म इस
घर से चपका ँ य क अंदर से म आराम-तलब ँ, घरघुसरा ँ, मेरी ह य म जंग लगा है।
पु ष : सचमुच महसूस करता ँ। मुझे पता है, म एक क ड़ा ँ जसने अंदर-ही-अंदर इस घर को खा लया है (बाहर के दरवाजे क
तरफ चलता) पर अब पेट भर गया है मेरा। हमेशा के लए भर गया है (दरवाजे के पास क कर) और बचा भी या है जसे खाने के लए
और रहता र ँ यहाँ ?
चला जाता है। कुछ दे र के लए सब लोग जड़-से हो रहते ह। फर छोट लड़क हाथ के टो ट को मुँह क ओर ले जाती
है।
छोट लड़क : नह आऊँगी। (सहसा उठ कर बाहर को चलती) अंदर जाओ, तो बाल ख चे जाते ह। बाहर आओ, तो कट पट-
कट पट- कट पट और खाने को कोयला - अब उधर आ कर इनके तमाचे और खाने ह।
लड़का : (उसके पीछे जाने को हो कर) म दे खता ँ इसे कम-से-कम लड़क को तो मुझ.े ..
ी : सुन।
शीष पर
लड़का : ( कसी तरह नकल जाने क को शश म) पहले म जा कर इसे...
जाएँ
ी : (काफ स त वर म) पहले त आ कर यहाँ बात सन मेरी।
ी : (काफ स त वर म) पहल तू आ कर यहा... बात सुन मरी।
लड़का कसी ज री काम पर जाने से रोक लए जाने क मु ा म लौट कर ी के पास आ जाता है।
लड़का : बताओ।
लड़का : दो बार।
लड़का : इसी घर म।
ी : (बड़ी लड़क से) दोन बार के लए बुलाया था मने उसे, आज भी इसी क खा तर?
लड़का : चुकंदर है। वह आदमी है जसे बैठने का शऊर है, न बात करने का।
लड़का : पाँच हजार तन वाह है, पूरा द तर सँभलता है, पर इतना होश नह है क अपनी पतलून के बटन...
ी : अशोक !
लड़का : तु हारा बॉस न होता, तो उस दन म कान से पकड़ कर घर से नकाल दया होता। सोफे पे टाँग पसारे आप सोच कुछ रहे
ह, जाँघ खुजलाते दे ख कसी तरफ रहे है और बात मुझसे कर रहे ह... (नकल उतारता) 'अ छा, यह बतलाइए क आपके राजनी तक
वचार या ह?' राजनी तक वचार ह मेरी खुजली और उसक मरहम !
ी : (अपना माथा सहला कर बड़ी लड़क से) ये लोग ह जनके लए म जानमारी करती ँ रात- दन।
लड़का : पहले पाँच सेकंड आदमी क आँख म दे खता रहेगा फर ह ठ के दा हने कोनो से जरा-सा मु कुराएगा। फर एक-एक
ल ज को चबाता आ पूछेगा... (उसके वर म) 'आप या सोचते ह, आजकल युवा लोग म इतनी अराजकता य है?' ढूँ ढ़-ढूँ ढ़ कर
सरकारी हद के ल ज लाता है-युवा लोग म ! अराजकता !
ी : तो फर ?
लड़का : तो फर या ?
ी : तो फर या मरजी है तेरी ?
लड़का : कस चीज को ले कर ?
ी : अपने-आपको।
लड़का : मुझे या आ ?
ी : पढ़ाई थी, तो तूने पूरी नह क । एयर- ज म नौकरी दलवाई थी, तो वहाँ से छह ह ते बाद छोड़ कर चला आया। अब म
नए सरे से को शश करना चाहती ँ तो...
ी : दलच पी तो तेरी...।
ी : तू ठहर, मुझे बात करने दे । (लड़के से) दलच पी तो तेरी सफ तीन चीज म है- दन-भर ऊँघने म, त वीरे काटने म
और...घर क यह चीज वह चीज ले जा कर....
शीष पर
लड़का : म इसे...
जाएँ
बड़ी लड़क : (उसे बोलने न दे ने के लए) दे ख अशोक ममा के यह सब कहने का मतलब सफ इतना है क
बड़ी लड़क : (उस बोलन न दन क लए) दख अशोक, ममा क यह सब कहन का मतलब सफ इतना ह क...
ी : कैसी बात कर रही ँ ? यहाँ पर सब लोग समझते या ह मुझे ? एक मशीन, जो क सबके लए आटा पीस कर रात को दन
और दन को रात करती रहती है? मगर कसी के मन म जरा- सा भी खयाल नह है इस चीज के लए क कैसे म.. ।
पु ष दो : अ छा-अ छा यही है वह लड़क । तुम चचा कर रही थ इसक । इसका ऑपरेशन आ था न पछले साल...न-न-न न।
वह तो मसेज माथुर क लड़क का ? नह शायद...पर आ था कसी क लड़क का।
सोफे क तरफ बढ़ते ए पु ष दो क आँख लड़के से मल जाती ह। लड़का चलते ढं ग से उसे हाथ जोड़ दे ता है। पु ष दो
फर उसी अ य त ढं ग से उ र दे ता है।
पु ष दो : (बैठता आ) इतने लोग से मलना-जुलना होता है क...(अपनी घड़ी दे ख कर) पाँच मनट ह सात म। उनका अनुरोध
था, सात तक अव य प ँच जाऊँ। कई लोग को बुला रखा है उ ह ने - वशेष प से मलने के लए (बड़ी लड़क को यान से दे खता,
ी से) तुमने बताया था कुछ इसके वषय म। कस कॉलेज म है यह?
ी : अब कॉलेज म नह है...
पु ष दो : हाँ-हाँ-हाँ...बताया था तुमने। (बड़ी लड़क से) बैठो न। ( ी से) बैठो तुम भी।
ी सोफे के पास कुरसी पर बैठ जाती है। बड़ी लड़क कुछ वधा म खड़ी रहती है।
पु ष दो : ना, बलकुल नह ।...अंतररा ीय संपक ह कंपनी के, सो सभी दे श के लोग मलने आते रहते ह। जापान से तो पूरा
त न ध-मंडल ही आया आ था पछले दन ...। कुछ भी क हए, जापान ने सबक नाक म नकेल कर रखी है आजकल। अभी उस दन
म जापान क पछले वष क औ ो गक सां यक दे ख रहा था... ।
ी : तुमसे कहा है, क अभी थोड़ी दे र। (पु ष दो से) आप कॉफ पसंद करते ह , तो...
पु ष दो : न चाय, न कॉफ । एक घटना सुनाऊँ आपको, कॉफ पीने के संबंध म। आज क बात नह , ब त साल पहले क है। तब
क जब म व व ालय क सा ह य-सभा का मं ी था। (मन म उस बात का रस लेता) ह-ह-ह-ह-हाँ-ह।...सा ह यक ग त व धय म च
आरंभ से ही थी। सो... (बड़ी लड़क और लड़के से) बैठ जाओ तुम लोग।
लड़के को बैठने के लए क च कर अहाते के दरवाजे से चली जाती है। लड़का असंतु भाव से उसे दे खता है , फर
टहेलता आ पढ़ने क मेज के पास चला जाता है। बड़ी लड़क से आँख मलने पर हलके से मुँह बनाता है और कुरसी का ख
थोड़ा सोफे क तरफ करके बैठ जाता है।
पु ष दो : कसी इंटर ू म ?
बड़ी लड़क : या ?
पु ष दो : क ब त-से लोग एक- सरे जैसे होते ह। हमारे अंकल ह एक। पीठ से दे खो - मोरारजी भाई लगते ह।
शीष पर
लड़का इस बीच मेज क दराज खोल कर त वीर नकाल लेता है और उ ह मेज पर फैलाने लगता है।
जाएँ
लड़का : हमारी आंट ह एक। गरदन काट कर दे खो जीता लोलो जदा नजर आती ह।
लड़का : हमारी आट ह एक। गरदन काट कर दखो - जीता लोलो जदा नजर आती ह।
पु ष दो : हाँ !...कई लोग होते ह ऐसे। जीवन क व च ता क ओर यान दे ने लग, तो कई बार तो लगता है क... (सहसा जेब
टटोलता) भूल तो नह आया घर पर ?(जेब से च मा नकाल कर वापस रखता) नह । तो म कह रहा था क... या कह रहा था ?
ी : ली जए थोड़ा-सा।
पु ष दो : ब त वा द है।
ी : याद है न आपको ?
पु ष दो : याद है। कुछ बात क थी तुमने एक बार। अपनी कसी क जन के लए कहा था...नह वह तो मसेज म हो ा ने कहा
था। तुमने कसके लए कहा था ?
ी : मने बताया था। बी॰ एससी॰ कर रहा था... तीसरे साल म बीमार हो गया इस लए...
ी : एयर- जम
फर घूम कर लड़के क ओर क तरफ दे ख लेता है। लड़का फर उसी तरह मु कुरा दे ता है।
पु ष दो : अ छा-अ छा दे श का जलवायु ही ऐसा है, या कया जाए? जलवायु क से जो दे श मुझे सबसे पसंद है, वह है
इटली। पछले वष काफ या ा पर रहना पड़ा। पूरा यूरोप घूमा, पर जो बात मुझे इटली म मली, वह और कसी दे श म नह । इटली क
सबसे बड़ी वशेषता पता है, या है ?...ब त ही वा द ट है। कहाँ से लाती हो ? (घड़ी दे ख कर) सात पाँच यह हो गए। तो...
पु ष दो : अ छ कान है। म ायः कहा करता ँ क खाना और पहनना, इन दो य से... वह अमरीकन भी यही बात कह रहा
था क जतनी व वधता इस दे श के खान-पान और पहनावे म है...और वही या, सभी वदे शी लोग इस बात को वीकार करते ह। या
सी, या जमन ! म कहता ँ, संसार म शीत यु को कम करने म हमारी कुछ वा त वक दे न है, तो यही क...तुम अपनी इस साड़ी को
ही लो। कतनी साधारण है, फर भी...यह हड़ताल -हड़ताल का च कर न चलता अपने यहाँ, तो हमारा व उ ोग अब तक...अ छा,
तुमने वह नो टस दे खा है जो यू नयन ने मैनेजमट को दया है ?
: कतनी बेतुक बात ह उसम !हमारे यहाँ डी॰ए॰ पहले ही इतना है क...
लड़का दराज से एक पैड नकाल कर दराज बंद करता है। पु ष दो फर घूम कर उस तरफ दे ख लेता है। लड़का फर
मु कुरा दे ता है। पु ष दो के मुँह मोड़ने के साथ ही वह पैड पर प सल से लक र ख चने लगता है।
ी : कह रहे थे... ।
ी : थोड़ा और ली जए।
पु ष दो : और नह अब।
शीष पर
ी : थोड़ा-सा...दे खए, जैसे भी हो, इसके लए आपको कुछ-न-कुछ ज र करना है ?
जाएँ
प ष दो : ज र । कसके लए या करना है ?
पु ष दो : ज र...। कसक लए या करना ह ?
पु ष दो : हाँ-हाँ... ज र। वह तो है ही। (लड़के क तरफ मुड़ कर) बी॰एससी॰ म कौन-सा डवीजन था आपका ?
: कौन-सा ?
पु ष दो : अ छा-अ छा...हाँ।...ठ क ह...दे खूँगा म। (घड़ी दे ख कर) अब चलना चा हए। ब त समय हो गया है। (उठता आ) तुम
घर पर आओ कसी दन। ब त दन से नह आई।
पु ष दो : वह पूछती रहती है, आंट इतने दन से य नह आई ? ब त यार करती है अपनी आं टय से। माँ के न होने से
बेचारी...।
ी : अशोक से।
ी : ये जा रहे ह, अशोक !
पु ष दो : (घड़ी दे खता) सोचा नह था, इतनी दे र कूँगा।(बाहर से दरवाजे क तरफ बढ़ता बड़ी लड़क से) तुम नह करती
नौकरी ?
बड़ी लड़क : जी नह ।
ी : डरती है।
पु ष दो : डरती है ?
ी : अपने प त से।
पु ष दो : प त से ?
पु ष दो : यह लड़क ?
पु ष दो : अ छा-अ छा...हाँ...।
पु ष दो : इसके लए ?
पु ष दो : हाँ-हाँ-हाँ-हाँ-हाँ...तुम आओगी ही घर पर। द तर क भी कुछ बात करन ह। वही जो यू नयन-ऊनीयन का झगड़ा है।
पु ष दो : (घड़ी दे ख कर) ब त दे र हो गई। (लड़के से) अ छा, एक बात बताएँगे आप क ये जो हड़ताल हो रही ह सब े म
आजकल, इनके वषय म आप या सोचते ह ?
लड़का ऐसे उचक जाता है जैसे कोई क ड़ा पतलून के अंदर चला आया हो।
लड़का : ओह ! ओह ! ओह !
बड़ी लड़क : या आ ?
शीष पर
बड़ी लड़क : क ड़ा ?
जाएँ
प ष दो : अपने दे श म तो ।
पु ष दो : अपन दश म तो...।
लड़का : नरोध मह ष ?
पु ष दो : हाँ-हाँ-हाँ...यही नाम है न ? इतना अ छा भाषण दे ते ह...ज म-कुंडली भी बनाते ह... वैसे आप भाषण? वाह-वाह-वाह !
अं तम श द के साथ दरवाजा लाँघ जाता है। ी भी साथ ही बाहर चली जाती है।
लड़का : हाहा !
लड़का : ए टं ग दे खा ?
लड़का : मेरा।
लड़का : य ?
लड़का : नह है ?
बड़ी लड़क : सर पर या है यह ?
बड़ी लड़क पैड उसके हाथ से ले कर दे खती है। ी लौट कर आती है।
लड़का : य ?
लड़का : या आ ?
बड़ी लड़क : (पैड उसक तरफ बढ़ाती) ऐसे ही...पता नह या बना रहा था ! बैठे-बैठे इसे भी बस... ?
ी : लगता तो है कुछ-कुछ।
बड़ी लड़क : वह तो इस आदमी का चेहरा बना रहा था...यह जो अभी गया है।
ी : इधर आ।
लड़का : (पास आता) गाड़ी का इंजन तो फर भी ध के से चल जाता है, पर जहाँ तक (माथे क तरफ इशारा करके) इस इंजन
का सवाल है...
ी : तू या बना रहा था ?
लड़का : एक आ दम बन-मानुस ।
ी : या ?
लड़का : बन-मानुस।
लड़का उ र न दे कर पढ़ने क मेज क तरफ बढ़ जाता है और वहाँ से त वीर उठा कर दे खने लगता है।
: सुन रहा है या नह ?
: नह कहना है ?
ी : मत कह, नह कह सकता तो। पर म म त-खुशामत से लोग को घर पर बुलाऊँ और तू आने पर उनका मजाक उड़ाए,
उनके काटू न बनाए... ऐसी चीज अब मुझे बलकुल बरदा त नह ह। सुन लया? बलकुल- बलकुल बरदा त नह ह।
लड़का : जनके आने से हम जतने छोटे ह, उससे और छोटे हो जाते ह अपनी नजर म।
लड़का : मतलब वही जो मैने कहा है। आज तक जस कसी को बुलाया है तुमने, जस वजह से बुलाया है ?
लड़का : उसक कसी 'बड़ी' चीज क वजह से। एक को क वह इंटेले चुअल ब त बड़ा है। सरे को क उसक तनखाह पाँच
हजार है। तीसरे को क उसक त ती चीफ क म र क है। जब भी बुलाया है, आदमी को नह -उसक तन वाह को, नाम को, तबे को
बुलाया है।
ी : और म उ ह इस लए बुलाती ँ क...
लड़का : पता नह कस लए बुलाती हो, पर बुलाती सफ ऐसे ही लोग को हो। अ छा, तु ह बताओ, कस लए बुलाती हो ?
ी : इस लए क कसी तरह इस घर का कुछ बन सके, क मेरे अकेली के ऊपर ब त बोझ है इस घर का। जसे कोई और भी मेरे
साथ दे नेवाला हो सके। अगर म कुछ खास लोग के साथ संबंध बना कर रखना चाहती ँ तो अपने लए नह , तुम लोग के लए। पर तुम
लोग इससे छोटे होते हो, तो म छोड़ ँ गी को शश। ह, इतना कह कर क म अकेले दम इस घर क ज मेदा रयाँ नह उठाती रह सकती
और एक आदमी है जो घर का सारा पैसा डु बो कर साल से हाथ धरे बैठा है। सरा अपनी को शश से कुछ करना तो र, मेरे सर फोड़ने
से भी कसी ठकाने लगाना अपना अपमान समझता है। ऐसे म मुझसे भी नह नभ सकता। जब और कसी को यहाँ दद नह कसी
चीज का, तो अकेली म ही य अपने को चीथती र ँ रात- दन ? म भी य न सुख हो कर बैठ र ँ अपनी जगह ? उससे तो तुमम से
कोई छोटा नह होगा।
शीष पर
: चुप य है अब ? बता न, अपने बड़ पन से जदगी काटने का या तरीका सोच रखा है तूने ?
जाएँ
लड़का : बात को रहने दो ममा ! नह चाहता मेरे मँह से कछ ऐसा नकल जाए जससे तम
लड़का : बात को रहन दो, ममा ! नह चाहता, मर मुह स कुछ ऐसा नकल जाए जसस तुम...
ी : कुछ नई तैना है तुझे। बैथ दा तुलछ पल औल तछवील तात । ततनी तछवील ताती अब तत लाजे मु े ने ? अगर कुछ
नह कहना था तुझे तो पहले ही य नह अपनी जबान....?
बड़ी लड़क : (पास आ कर उसक बाँह थामती) क जाओ ममा, म बात क ँ गी इससे (लड़के से) दे ख अशोक... ।
ी : य कर रही है बात तू इससे ? कोई ज री नह कसी से बात करने क । आज व आ गया है जब खुद ही मुझे अपने लए
कोई-न-कोई फैसला....
ी : तो कह य नह रहा है ?
लड़का : कहना पड़ रहा है य क...जब नह नभता इनसे यह सब, तो य नभाए जाती ह इसे ?
लड़का बना कहे मैगजीन खोल कर उसम से एक त वीर काटने लगता है। लड़का उसी तरह चुपचाप त वीर काटता
रहता है।
: पता है न ?
: तो ठ क है। आज से म सफ अपनी जदगी को दे खूँगी - तुम लोग अपनी-अपनी जदगी को खुद दे ख लेना।
: मेरे पास अब ब त साल नह ह जीने को। पर जतने ह, उ ह म इसी तरह और नभते ए नह काटूँ गी। मेरे करने से जो कुछ हो
सकता था इस घर का, हो चुका आज तक। मेरे तरफ से यह अंत है उसका न त अंत !
एक खँडहर क आ मा को करता हलका संगीत। लड़का अपनी कट त वीर पल-भर हाथ म ले कर दे खता है ,
फर चक-चक उसे बड़े-बड़े टु कड़ म कतरने लगता है जो नीचे फश पर बखरते जाते ह। काश आकृ तय पर धुँधला कर
शीष पर
कमरे के अलग-अलग कोन म समटता वलीन होने लगता है। मंच पर पूरा अँधेरा होने के साथ संगीत क जाता है। पर कची
जाएँ
क चक-चक फर भी कुछ ण सुनाई दे ती रहती है।
[अंतराल वक प]
दो अलग-अलग काश-वृ म लड़का और बड़ी लड़क । लड़का सोफे पर धा लेट कर टाँग हलाता सामने 'पेशस'
के प े फैलाए। बड़ी लड़क पढ़ने क मेज पर लेट म रखे लायस पर म खन लगाती। पूरा काश होने पर कमरे म वह
बखराव नजर आता है जो एक दन ठ क से दे ख-रेख न होने से आ सकता है। यहाँ-वहाँ चाय क खाली या लयाँ , उतरे ए
कपड़े और ऐसी ही अ त- त चीज।
लड़का : तूने कहा था जो-जो उधार मल सके, ले आ ब नए से। म उधार म एक फोन भी कर आया।
लड़का : नह ।
बड़ी लड़क : तो ?
लड़का : नह ।
लड़का : मने सोचा, चीज सड वच तुझे खुद पसंद है, इस लए कह रही है।
बड़ी लड़क : मने कहा नह था क ममा के द तर से लौटने तक डैडी भी आ जाएँ शायद ? चीज सड वच दोन को पसंद ह ।
बड़ी लड़क : ममा का मूड वैसे ही ऑफ है, ऊपर से वे आ कर बात करगे। तो...चेहरा दे खा था ममा का सुबह द तर जाते व ?
बड़ी लड़क : रात से ही चुप थ , सुबह तो...। इतनी चुप पहले कभी नह दे खा।
बड़ी लड़क : मने सोचा द तर से कह और जाएँगी वह। कहा, साढ़े पाँच तक आ जाएँगी - रोज क तरह।
बड़ी लड़क : इस लए पूछा था क म भी उसी हसाब से अपना ो ाम...पर सच कुछ पता नह चला।
लड़का : कस चीज का ?
बड़ी लड़क : क मन म या सोच रही ह। कहा तो क साढ़े पाँच तक लौट आएँगी, पर चेहरे पर लगता था जैसे...
लड़का : जैसे ?
लड़का : अ छा नह है यह ?
बड़ी लड़क : या हो ?
शीष पर
लड़का : कुछ भी। जो चीज बरस से एक जगह क है, वह क ही नह चा हए।
जाएँ
बड़ी लड़क : तो त सचमच चाहता है क
बड़ी लड़क : तो तू सचमुच चाहता ह क...
लड़का : (अपनी बाजी का अं तम प ा चलता) सचमुच चाहता ँ क बात कसी भी एक नतीजे तक प ँच जाए। तू नह चाहती ?
बड़ी लड़क : पता नह ...सही भी नह लगत हालाँ क...। (ड बा और टन-कटर हाथ म ले कर) यह ड बा.... ?
बड़ी लड़क : तो या कर फर ?
बड़ी लड़क : म कैसे बता सकती ँ ? म तो इतनी बेगानी महसूस करती ँ अब इस घर म क...
लड़का : महसूस करना ही महसूस नह होता था। और कुछ-कुछ महसूस होना शु आ, तो पहला मौका मलते ही घर से चली
गई ।
लड़का : बुरा य मानती है ? म खुद अपने को बेगाना महसूस करता ँ यहाँ...और महसूस करना शु कया है मने तेरे जाने के
दन से ।
लड़का : महसूस शायद पहले भी करता था, पर सोचना तभी से शु कया है।
लड़का : ठ क है, ठ क है। उस चीज को जान कर भी न जानना ही बेहतर है शायद। पर सरे को धोखा दे भी ले आदमी, अपने
आपको कैसे दे ?
बड़ी लड़क : तू तो बस हमेशा ही ..... दे ख, ऐसा है क.... म कह रही थी तुझसे क... भाई, यह ड बा खुला कर ला पहले कह
से। या अगर नही खुलेगा, तो...
लड़का : हाथ काँप य रहा है तेरा ? (ड बा लेता ) अभी खुल जाता है यह। तेज औजार चा हए... एक मनट नह लगेगा।
बाहर के दरवाजे से चला जाता है। बड़ी लड़क काम जारी रखने क को शश करती है , पर हाथ नह चलते, तो छोड़ दे ती
है।
बड़ी लड़क : (माथे पर हाथ फेरती , श थल वर म) कैसे कहता है यह? ...म सचमुच जानती ँ या ?
सर को झटक लेती है-जैसे अंदर एक बवंडर उठ रहा हो। को शश से अपने को सहेज कर उठ पड़ती है और अंदर के
दरवाजे के पास जा कर आवाज दे ती है।
: क ी!
: कहाँ चली जाती है ? सुबह कूल जाने से पहले रोना क जब तक चीज नह आएँगी, नह जाएगी। और अब दन-भर पता नह ,
कब घर म है, कब बाहर है।
लड़का : चल अंदर।
छोट लड़क अपने को बचा कर बाहर जाती भाग जाना चाहती है , पर वह उसे बाँह से पकड़ लेता है।
लड़का : ( ड बा उसे दे ता) यह ड बा ले। खुल गया है (छोट लड़क पर तमाचा उठा कर) इसे तो म अभी... ।
: बता न, या कर रही थी ?
बड़ी लड़क : या ?
बड़ी लड़क : या ? ? ?
लड़का : पूछ ले इससे। अभी बता दे गी तुझे सब...जो सुरेखा को बता रही थी बाहर।
छोट लड़क : (सुबकने के बीच) वह बता रही थी मुझे क म उसे बता रही थी ?
लड़का : तू बता रही थी। अचानक मुझ पर नजर पड़ी क म पीछे खड़ा सुन रहा ँ तो...
लड़का : तू भागी थी और मने पकड़ लया दौड़ कर, तो लगी च ला कर आस-पास को सुनाने क यह ममा से मेरी शकायत
करता है और ममा घर पर नह ह। इस लए म इसे पीट रहा ँ ।
छोट लड़क : बात सुरेखा से क थी। वह बता रही थी क कैसे उसके म मी-डैडी...
बड़ी लड़क : (स त पड़ कर) और तुझे शौक है जानने का क कैसे उसके म मी-डैडी आपस म...?
छोट लड़क : इससे कभी कुछ नह कहता कोई। रोज कसी- कसी बात पर मुझे पीट दे ता है।
बड़ी लड़क : वह जो है इसक ...कभी मेरी बथडे जट क चू ड़याँ दे आता है उसे, कभी-कभी मेरे ाइज का फाउंटेन पेन। म
अगर ममा से कह दे ती ँ, अकेले म मेरा गला दबाने लगता है।
छोट लड़क : वही उ ोग सटरवाली, जसके पीछे जू तयाँ चटकाता फरता है।
लड़का : ( फर से उसे पकड़ने को हो कर) तू ठहर जा, आज म तेरी जान नकाल कर र ँगा।
छोट लड़क उससे बचने के लए इधर-उधर भागती है। लड़का उसका पीछा करता है।
छोट लड़क : (जाती ई) वणा उ ोग सटरवाली लड़क ... वणा उ ोग सटरवाली लड़क ! वणा उ ोग सटरवाली लड़क !!
लड़का उसके पीछे बाहर जाने ही लगता है क अचानक ी को अंदर आते दे ख कर ठठक जाता है। ी अंदर आती है
जैसे वहाँ क कसी चीज से उसे मतलब ही नह है। वातावरण के त उदासीनता के अ त र चेहरे पर संक प और
असमंजस का मला-जुला भाव। उन लोग क ओर न दे ख कर वह हाथ का सामान परे क एक कुरसी पर रखती है। लड़का
अपने को एक भ ड़ी थ त म पाता है , इस चीज उस चीज को छू कर दे खने लगता है। बड़ी लड़क लेट, लाइस और चीज
का ड बा लए अहाते के दरवाजे क तरफ चल दे ती है।
ी : मुझे नह चा हए।
चली जाती है। ी कमरे के बखराव पर एक नजर डालती है , पर सवाय अपने साथ लाई चीज को यथा थान रखने
के और कसी चीज को हाथ नह लगती। बड़ी लड़क लौट कर आती है।
ी : म नह लूँगी चाय।
लड़का : मेरे लए नह ।
ी : लेने आएगा वो य ?
बड़ी लड़क : अशोक ने फोन कया था। कह रहे थे, कुछ बात करनी है।
ी : करने दे ना इंतजार ।
कबड से दो-तीन पस नकाल कर दे खाती है क उनम से कौन-सा साथ रखना चा हए। बड़ी लड़क एक नजर लड़के को
दे ख लेती है जो लगता है कसी तरह वहाँ से जाने के बहाना ढूँ ढ़ रहा है।
बड़ी लड़क : (उस पस के लए) यह और भी अ छा है।....। अगर पूछ कहाँ गई ह, कसके साथ गई ह ?
ी: य ?
शीष पर
बड़ो लड़क : फर भी थोड़ा ज द आ सको तुम, तो....
जाएँ
ी : मझे उससे कछ ज री बात करनी ह। उसे कई काम थे शाम को जो उसने मेरी खा तर क सल कए ह। बेकार आदमी नह है
ी : मुझ उसस कुछ ज री बात करनी ह। उस कई काम थ शाम को जो उसन मरी खा तर क सल कए ह। बकार आदमी नह ह
वह क जब चाहा बुला लया, जब चाहा कह दया जाओ अब ।
: कम से कम प ी ले कर तो दे जाता।
ी : (जैसे कहने से पहले तैयारी करके) तुमसे एक बात करना चाहती थी।
बड़ी लड़क : यह सब छोड़ आऊँ अंदर। वहाँ भी कतना कुछ बखरा है। सोचती ँ, जगमोहन अंकल के आने से पहले...।
बड़ी लड़क : तो ?
बड़ी लड़क पल-भर चुपचाप उसे दे खती खड़ी रहती है। फर सोचते भाव से अंदर को चल दे ती है।
ी : कब तक और ?
गले क माला को उँगली से लपेटते ए झटके लगाने से माला टू ट जाती है। परेशान हो कर माला को उतार दे ती है और
कबड से सरी माला नकाल लेती है।
: एक दन.... सरा दन !
कबड के नीचे रखे जूते च पल को पैर से टटोल कर एक च पल नकालने क को शश करती है ; पर सरा पैर नह
मलता, तो सबको ठोकर लगा कर पीछे हटा दे ती है।
: अब भी और सोचूँ थोड़ा !
े सग टे बल के सामने चली जाती है। कुछ पल असमंजस म रहती है क वहाँ य आई है। फर यान हो आने से आईने
म दे ख कर माला पहनने लगती है। पहन कर अपने को यान से दे खती है। गरदन उठा कर और खाल को मसल कर चेहरे क
झु रयाँ नकालने क को शश करती है।
: कब तक...? य ...?
फर समझ म नह आता क या करना है। े सग टे बल क कुछ चीज को ऐसे ही उठाती-रखती है। म क शीशी
हाथ म आ जाने पर पल-भर उसे दे खती रहती है। फर खोल लेती है।
: घर द तर...घर द तर !
म चेहरे पर लगते ए यान आता है क वह इस व नह लगानी थी। उसे एक और शीशी उठा लेती है। उसम से
लोशन ई पर ले कर सोचती है। कहाँ लगाए और कह का नह सूझता , तो उससे कलाइयाँ साफ करने लगती है।
शीष पर
: सोचो...सोचो।
जाएँ
यान सर के बाल म अटक जाता है। अनमनेपन म लोशनवाली ई सर पर लगाने लगती है पर बीच म ही हाथ रोक
यान सर क बाल म अटक जाता ह। अनमनपन म लोशनवाली ई सर पर लगान लगती ह , पर बीच म ही हाथ रोक
कर उसे अलग रख दे ती है। उँग लय से टटोल कर दे खती है क कहाँ सफेद बाल यादा नजर आ रहे ह। कंघी ढूँ ढ़ती है, पर वह
मलती नह । उतावली म सभी खाने-दराज दे ख डालती है। आ खर कंघी वह तौ लए के नीचे से मल जाती है।
कंघी से सफेद बाल को ढँ कने लगती है। यान आँख क झाँइय पर चला जाता है तो कंघी रख कर उ ह सहलाने लगती
है। तभी पु ष तीन बाहर के दरवाजे से आता है... सगरेट के कश ख च कर छ ले बनाता है। ी उसे नह दे खती , तो वह राख
झाड़ने के लए तपाई पर रखी ऐश- े क तरफ बढ़ जाती है। ी पाउडर क ड बी खोल कर आँख के नीचे पाउडर लगती
है। ड बीवाला हाथ काँप जाने से थोड़ा पाउडर बखर जाता है।
उठा खड़ी होती है , एक बार अपने को अ छ तरह आईने म दे ख लेती है। पु ष तीन पहले सगरेट से सरा सगरेट
सुलगता है।
सोफे क तरफ मुड़ती ही है क पु ष तीन पर नजर पड़ने से ठठक जाती है , आँख म एक चमक भर आती है।
ी : समझो यानी क नह ।
पु ष तीन : नाउ-आउ।...दो मनट का बस, पोल टोर म। एक डजाइन दे ना था उनका। फर घर जा कर नहाया और सीधे....।
पु ष तीन : (छ ले बनाता) तुम नह बदल बलकुल। उसी तरह डाँटती हो आज भी। पर बात-सी है कुकू डयर, क द तर के
कपड़ म सारी शाम उलझन होती इसी लए सोचा क....
पु ष तीन : (सोफे पर बैठता है) कह लो जो जी चाहे। बना वजह लगाम ख चे जाना मेरे लए भी नई चीज नह है।
ी : ब ी है अंदर ।
ी : हाँ ! पर आई ई है कल से ।
ी : अब आ रही होगी बाहर। दे खो, तुमसे ब त-ब त बात करनी ह मुझे आज।
ी : म ब त....वो थी उस व ।
पु ष तीन : वह तो इस व भी हो।
ी : तुम कतनी अ छ तरह समझते हो मुझ.े .. कतनी अ छ तरह ! इस व मेरी जो हालत है अंदर से...।
शीष पर
वर भरा जाता है ।
जाएँ
प ष तीन : लीज !
पु ष तीन : लीज !
ी : जोग !
पु ष तीन : बोलो !
ी : बताओ।
ी : ना-ना यहाँ नह ।
पु ष तीन : य ?
ी : यहाँ हो ही नह सकेगी बात मुझसे। हाँ, तुम कुछ वैसा समझते हो बाहर चलने म मेरे साथ, तो...
पु ष तीन : कैसी बात करती हो ?तुम जहाँ भी कहो, चलते ह। म तो इसी लए कह रहा था क...
ी : अ छा, उस छोटे रे तराँ म चले जहाँ के कबाब तु ह ब त पसंद ह? म तब के बाद कभी वहाँ नह गई।
पु ष तीन : ( हच कचाट के साथ) वहाँ ? जाता नह वैसे म वहाँ अब। …पर तु हारा वह के लए मन हो तो चल भी सकते ह।
पु ष तीन : हाँ-हाँ ?
ी : वैसे उन दन भी सुनी होगी तुमने ऐसी बात मेरे मुँह से...पर इस बार सचमुच कर लया है।
पल-भर क खामोशी जसम वह कुछ सोचता आ इधर-उधर दे खता है फर जैसे कसी कताब पर आँख अटक जाने
से उठ कर शे फ क तरफ चला जाता है।
ी : उधर य चले गए ?
पु ष तीन : (शे फ से कताब नकलता) ऐसे ही ।...यह कताब दे खना चाहता था जरा।
ी : मेरे लए पहले भी असंभव था यहाँ यह सब सहना। तुम जानते ही हो। पर आ कर बलकुल- बलकुल असंभव हो गया है।
ी : म तु ह बता नह सकती क मुझे हमेशा कतना अफसोस रहा है इस बात का क मेरी वजह से तु ह भी...तु ह भी इतनी
तकलीफ उठानी पड़ी है जदगी म।
ी : मुझे याद है तुम कहा करते थे, 'सोचने से कुछ होना हो, तब तो सोचे भी आदमी।'
बड़ी लड़क : ममा, अंदर जो कपड़े इ तरी के लए रखे ह... (पु ष तीन को दे ख कर) हलो अंकल !
पु ष तीन : याद है, कैसे मेरे हाथ पर काटा था इसने एक बार ? ब त ही शैतान थी ।
चली जाती है ।
ी : (अपने पस म माल ढूँ ढ़ती) कहाँ गया ? ( माल मल जाने से पस बंद करती है।) है यह इसम...तो कब तक लौट आऊँगी
म ? इस लए पूछ रही ँ क उसी तरह कह जाऊँ इससे ता क...
ी : जुनेजा। वही आदमी जसक वजह से...तुम जानते ही हो सब । (अहाते क तरफ दे खती) ब ी! (जवाब न मलने से) ब ी!
...कहाँ चली गई यह ?
पु ष तीन : इंतजार कर लो ।
ी : नह , वह आदमी आ गया तो, मु कल हो जाएगी । मुझे ब त ज री बात करनी है तुमसे। आज ही। अभी ।
ी : (इस तरह कमरे को दे खती जैसे क कोई चीज वहाँ छू ट जा रही हो) हाँ...आओ ।
पु ष तीन पहले नकल जाता है। ी फर से पस खोल कर उसम कोई चीज ढूँ ढ़ती पीछे - पीछे । कुछ ण मंच खाली
रहता है। फर बाहर से छोट लड़क के ससक कर रोने का वर सुनाई दे ता है। वह रोती ई अंदर आ कर सोफे पर धे हो
जाती है। फर उठ कर कमरे के खालीपन पर नजर डालती है और उसी तरह रोती- ससकती अंदर के कमरे म चली जाती है।
मंच फर दो-एक ण खाली रहता है। उसके बाद बड़ी लड़क चाय क े के लए अहाते के दरवाजे से आती है।
े डाय नग टे बल पर छोड़ कर बाहर के दरवाजे तक आती है , एक बार बाहर दे ख लेती है और कुछ ण अंतमुख भाव
से वह क रहती है। फर अपने क झटक कर वापस डाय नग टे बल क तरफ चल दे ती है।
शीष पर
रा ते म े सग टे बल के बखराव को दे ख कर क जाती है और ज द से वहाँ क चीज को सहेज दे ती है।
जाएँ
: जरा यान न दे आदमी जंगल हो जाता है सब।
: जरा यान न द आदमी...जगल हो जाता ह सब।
वहाँ से हट कर डाय नग टे बल के पास आ जाती है और अपने लए चाय क याली बनाने लगती है। छोट लड़क उसी
तरह ससकती अंदर से आती है।
छोट लड़क : जब नह हो-होना होता, तो सब लोग होते ह सर पर। और जब हो-होना होता है तो कोई भी नह द- दखता कह ।
बड़ी लड़क चाय बनाना बीच म छोड़ कर उसक तरफ बढ़ आती है।
बड़ी लड़क : म चाय क प ी लाने चली गई थी ।... कसने, अशोक ने मारा है तुझे ?
छोट लड़क : वह भी क-कहाँ था इस व ? मेरे कान खचने के लए तो पता नह क-कहाँ से चला आएगा। पर ज-जब सुरेखा
क ममी से बात करने क बात क थी, त- ो ?
छोट लड़क : अशोक को दे ख लया था सबने हम लोग को डाँटते। सुरेखा क ममी ने सुरखा को घ-घर म ले जा कर पटा, तो
उसने...उसने म-मेरा नाम लगा दया।
बड़ी लड़क : तो...सुरेखा क ममी ने मुझे बुलाया इस तरह डाँटा है जैसे...पहले बताओ, ममा कहाँ ह ? म उ ह अभी स-साथ ले
कर जाऊँगी। क-कहती ह, म उनक लड़क को बगाड़ रही ँ। और भी बु-बुरी बात हमारे घर को ले कर।
छोट लड़क : (और बफरती) तु-तुम भी मुझी को डाँट रही हो ? ममा नह ह तो तुम चलो मेरे साथ।
ज द से अहाते के दरवाजे से चली जाती है। छोट लड़क व ोह के भाव से कुरसी पर जम जाती है। बड़ी लड़क पु ष
चार के साथ वापस आती है।
: (आती ई) मने सोचा क कौन हो सकता है पीछे का दरवाजा खटखटाए। आपका पता था, आप आनेवाले ह। पर आप तो
हमेशा आगे के दरवाजे से ही आते ह, इस लए...।
पु ष चार : म उसी दरवाजे से आता, ले कन...(छोट लड़क को दे ख कर) इसे या आ है ? इस तरह य बैठ है वहाँ ?
बड़ी लड़क : (छोट लड़क से) जुनेजा अंकल आए ह, इधर आ कर बात तो कर इनसे।
छोट लड़क मुँह फेर कर कुरसी क पीठ पर बैठ कर बाँह फैला लेती है।
शीष पर
पु ष चार : (छोट लड़क के पास आता) अरे ! यह तो रो रही है। (उसके सर पर हाथ फेरता) य ? या आ मु नया को ?
जाएँ
कसने नाराज कर दया ? (पुचकारता) उठो बेटे, इस तरह अ छा नह लगता। अब आप बड़े हो गए ह, इस लए....।
छोट लड़क : (सहसा उठ कर बाहर को चलती) हाँ...बड़े हो गए ह। पता नह कस व छोटे हो जाते ह, कस व बड़े हो जाते
ह ! (बाहर के दरवाजे के पास से) हम नह लौट कर आएँगे अब...जब तक ममा नह आ जात ।
: म थोड़ी दे र पहले गया था। बाहर सड़क पर यू इं डया क गाड़ी दे खी, तो कुछ दे र पीछे को घूमने नकल गया। तेरे डैडी ने बताया
था, जगमोहन आजकल यह है - फर से ांसफर हो कर आ गया है।...वह ऐसे ही आया था मलने, या...?
पु ष चार : बस टाप पर खड़ा था। मने पूछा, तो बोला क आप ही के यहाँ जा रहा ँ डैडी का हालचाल पता करने। कहने लगा,
आप भी च लए, बाद म साथ ही आएँगे पर मने सोचा क एक बार जब इतनी र आ ही गया ,ँ तो सा व ी से मल कर ही जाऊँ । फर
उसे भी जस हाल म छोड़ आया ँ, उसक वजह से... ।
पु ष चार : तबीयत भी ठ क नह और वैसे भी...म तो समझता ँ, मह नाथ खुद ज मेदार है अपनी यह हालत करने के लए ।
पु ष चार : (चाय का समान दे ख कर) कसके लए बनाई बैठ थी इतनी चाय ? पी नह लगता कसी ने ?
पु ष चार : (जैसे बात को समझ कर) वे लोग चले गए ह गे।...सा व ी को पता था न, म आनेवाला ँ ?
पु ष चार : यह भी बताया नह मुझे अशोक ने...पर उसके लहजे से ही मुझे लग गया था क...( फर जैसे कोई बात समझ म आ
जाने से) अ छा, अ छा, अ छा ! काफ समझदार लड़का है ।
पु ष चार : चीनी बलकुल नह । मुझे मना है चीनी। वह शायद इसी लए मुझे वापस ले चलना चाहता था क... क उसे मालूम
होगा जगमोहन का।
बड़ी लड़क : ध ?
पु ष चार : नह ।
पु ष चार : ओ, हाँ !
वही एक कुरसी ख च कर बैठ जाता है। बड़ी लड़क एक याली उसे दे कर सरी याली खुद ले कर बैठ जाती है। कुछ
पल खामोशी।
फर कुछ पल खामोशी।
पु ष चार : अभी नह ।
फर कुछ पल खामोशी।
पु ष चार : सोच कर तो ब त-सी बात आया था। सा व ी होती तो शायद कुछ बात करता भी पर अब लग रहा है बेकार ही है
सब।
पु ष चार : (उठता आ) कोई समझा सकता है उसे ? वह इस औरत को इतना चाहता है अंदर से क...
बड़ी लड़क : (उठती ई) कैसे सही हो सकती है? (अंतमुख भाव से)...आप नह जानते, हमने इन दोन के बीच या- या गुजरते
दे खा है इस घर म।
बड़ी लड़क : इतने साधारण ढं ग से उड़ा दे ने क बात नह है, अंकल ! म यहाँ थी, तो मुझे कई बार लगता था क म एक घर म
नह , च ड़याघर के एक पजरे म रहती ँ जहाँ...आप शायद सोच भी नह सकते क या- या होता रहा है यहाँ। डैडी का चीखते ए
ममा के कपड़े तार-तार कर दे ना...उनके मुँह पर प बाँध कर उ ह बंद कमरे म पीटना...ख चते ए गुसलखाने म कमोड पर ले जा कर...
( सहर कर) म तो बयान भी नह कर सकती क कतने- कतने भयानक य दे खे ह इस घर म मने। कोई भी बाहर का आदमी उस
सबको दे खता-जानता, तो यही कहता क य नह ब त पहले ही ये लोग...?
पु ष चार : तूने नई बात नह बताई कोई। महे नाथ खुद मुझे बताता रहा है यह सब।
बड़ी लड़क : कैसे कहते ह यह आप ? दो आदमी जो रात- दन एक- सरे क जान न चने म लगे रहते ह ...?
पु ष चार : बलकुल मानता ँ, इसी लए कहता ँ क अपनी आज क हलात के लए ज मेदार महे नाथ खुद है। अगर ऐसा न
होता, तो आज सुबह से ही र रया कर मुझसे न कह रहा होता क जैसा भी हो म इससे बात करके इसे समझाऊँ। मै इस व यहाँ न
आया होता, तो पता है या होता ?
पु ष चार : महे खुद यहाँ चला आया होता। बना परवाह कए क यहाँ आ कर इस लेड ेशर म उसका या हाल होता और
ऐसा पहली बार न होता, तुझे पता ही है। मैने कतनी मु कल से समझा-बुझा कर उसे रोका है, म ही जानता ँ। मेरे मन म थोड़ा-सा
भरोसा बाक था क शायद अब भी कुछ हो सके... मेरे बात करने से ही कुछ बात बन सके। पर आ कर बाहर यू इं डया क गाड़ी दे खी,
तो मुझे लगा क नही, कुछ नह हो सकता। कुछ नही हो सकता। बात करके मै सफ आपको...मेरा खयाल है चलना चा हए अब। जाते
ए मुझे उसके लए दवाई भी ले जानी है।...अ छा।
बाहर के दरवाजे क तरफ चल दे ता है। बड़ी लड़क अपनी जगह पर जड़-सी खड़ी रहती है। फर-एक कदम उसक
तरफ बढ़ जाती है।
पु ष चार : कौन-सी ?
पु ष चार : (हलके से आँख मूँद कर खोलता) म न भी बताऊँ शायद पर कुछ फक नह पड़ने का उससे।...बैठ तू।
बाहर से ी के वर सुनाई दे ते ह।
पु ष चार : हाँ।
बाहर जाने के बजाय ह ठ चबाता डाइ नग टे बल क तरफ बढ़ जाता है। ी छोट लड़क के साथ आती है। छोट
लड़क उसे बाँह से बाहर ख च रही है।
शीष पर
ी : (बाँह छु ड़ाती) तू हटे गी या नह ?
जाएँ
छोट लड़क : नह हटँ गी। उस व तो घर पर नह थी और अब कहती हो ।
छोट लड़क : नह हटू गी। उस व तो घर पर नह थी, और अब कहती हो... ।
ी : नह छोड़ेगी ? (गु से से बाँह छु ड़ा कर उसे परे धकेलती) बड़ा जोम चढ़ने लगा है तुझे !
छोट लड़क : हाँ, चढ़ने लगा है। जब-जब कोई बात कहता मुझसे, यहाँ कसी को फुरसत नह होती चल कर उससे पूछने क ।
छोट लड़क : (अपने को छु ड़ाने के लए संघष करती) या कहा है मने ? पूछो इनसे जब मने आ कर इ ह बताया था, तो...।
पल-भर क खामोशी जसम सबक नजर थर हो रहती ह - छोट लड़क क ी पर और शेष सबक छोट लड़क
पर।
पु ष चार : (उनक तरफ आता) छोड़ दो लड़क को, सा व ी ! उस पर इस व पागलपन सवार है, इस लए...।
ी : आप मत प ड़ए बीच म।
पु ष चार : दे खो...।
ी : आपसे कहा है, आप मत प ड़ए बीच म। मुझे अपने घर म कससे कस तरह बरतना चा हए, यह म और से बेहतर जानती
ँ। (छोट लड़क के एक और चपत जड़ती) इस व चुपचाप चली जा उस कमरे म। मुँह से एक ल ज भी और कहा, तो खैर नह तेरी।
छोट लड़क के केवल ह ठ हलते ह। श द उसके मुँह से कोई नह नकल पाता। वह घायल नजर से ी को दे खती उसी
तरह खड़ी रहती है।
: जा उस कमरे म। सुना नह ?
: नह जाएगी ?
छोट लड़क दाँत पीस कर बना कुछ कहे एकाएक झटके से अंदर के कमरे म चली जाती है। ी जा कर पीछे से
दरवाजे क कुंडी लगा दे ती है।
बड़ी लड़क : तुम थक ई हो। अ छा होगा जो भी बात करनी हो, बैठ कर आराम से कर लो।
पु ष चार : उलट बात नह है। तुमने जस तरह से बाँध रखा है उसे अपने साथ.... ।
ी : उ ह बाँध रखा है ? मने अपने साथ... ? सवा आपके कोई नह कह सकता यह बात।
पु ष चार : मह नाथ के बारे म, हाँ। और जान कर ही कहता ँ क तुमने इस तरह शकंजे म कस रखा है उसे क वह अब अपने
दो पैर पर चल सकने लायक भी नह रहा।
पु ष चार : कभी बात य करती हो ? जब तुमने उसे जाना, तब से दस साल पहले से म उसे जानता ँ।
पु ष चार : नह । पहले तुम बात कर लो (बड़ी लड़क से) तू बेटे, जरा उधर चली जा थोड़ी दे र।
पु ष चार : ठ क है यह रह तू, ब ी !
बड़ी लड़क आ ह ता से आँख झपका कर उन दोन से थोड़ी र डाय नग टे बल क कुरसी पर जा बैठती है।
: कह डालो अब जो भी कहना है तु ह।
ी : कहने से पहले एक बात पूछनी है आप से। आदमी कस हालत म सचमुच एक आदमी होता है ?
ी : यूँ तो जो कोई भी एक आदमी क तरह चलता- फरता, बात करता ह, वह आदमी ही होता है...। पर असल म आदमी होने के
लए या ज री नह क उसम अपना एक मा ा, अपनी एक श सयत हो ?
ी : इस लए कह रही ँ क जब से मने उसे जाना है, मने हमेशा हर चीज के लए कसी-न- कसी का सहारा ढूँ ढ़ते पाया है। खास
तौर से आपका। यह करना चा हए या नह - जुनेजा से राय ले लूँ। कोई छोट -से-छोट चीज खरीदनी है, तो भी जुनेजा क पसंद से। कोई
बड़े-से-बड़ा खतरा उठाता है - तो भी जुनेजा क सलाह से। यहाँ तक क मुझसे याह करने का फैसला भी कैसे कया उसने ? जुनेजा के
हामी भरने से।
ी : और उस भरोसे का नतीजा ?... क अपने-आप पर उसे कभी कसी चीज के लए भरोसा नह रहा। जदगी म हर चीज क
कसौट - जुनेजा। जो जुनेजा सोचता है, जो जुनेजा चाहता है, जो जुनेजा करता है, वही उसे भी सोचना है, वही उसे भी चाहना है, वही
उसे भी करना है। य क जुनेजा तो खुद एक पूरे आदमी का आधा-चौथाई भी नह ह।
ी : (खड़ी होती) मुझे उस अस लयत क बात करने द जए जसे म जानती ँ।...एक आदमी है। घर बसाता है। य बसाता है ?
एक ज रत पूरी करने के लए। कौन-सी ज रत ? अपने अंदर से कसी उसको...एक अधूरापन कह द जए उसे...उसको भर सकने
क । इस तरह उसे अपने लए...अपने म पूरा होना होता है । क ह सर के पूरा करते रहने म ही जदगी नह काटनी होती। पर आपके
मह के लए जदगी का मतलब रहा है...जैसे सफ सर के खाली खाने भरने क ही चीज है वह। जो कुछ वे सरे उससे चाहते ह,
उ मीद करत ह...या जस तरह वे सोचते ह उनक जदगी म उसका इ तेमाल हो सकता है।
पु ष चार : मह नाथ ब त ज दबाजी बरतता था इस मामले म, म जानता ँ। मगर वजह इसक ...
ी : वजह इसक म थी-यही कहना चाहते ह न ? वह मुझे खुश रखने के लए ह यह लोहा-लकड़ी ज द -से-ज द घर म भर कर
हर बार अपनी बरबाद क न व खोद लेता था। पर असल म उसक बरबाद क न व या चीज खोद रही थी... या चीज और कौन
आदमी...अपने दल म तो आप भी जानते ह गे।
ी : (आवेश म उसक तरफ मुड़ती) मत क हए मुझे मह क प नी। मह भी एक आदमी है, जसके अपना घर-बार है, प नी है,
यह बात मह को अपना कहनेवाल को शु से ही रास नह आई। मह ने याह या कया, आप लोग क नजर म आपका ही कुछ
आपसे छ न लया। मह अब पहले क तरह हँसता नह । मह अब दो त म बैठ कर पहले क तरह खलता नह ! मह अब पहलेवाला
मह रह ही नह गया ! और मह ने जी-जान से को शश क , वह वही बना रहे कसी तरह। कोई यह न कह सके जससे क वह
पहलेवाला मह रह ही नह गया। और इसके लए मह घर के अंदर रात- दन छटपटाता है। द वार से सर पटकता है। ब च को पीटता
है। बीवी के घुटने तोड़ता है। दो त को अपना फुरसत का व काटने के लए उसक ज री है। मह के बगैर कोई पाट जमती नह !
मह के बगैर कसी पक नक का मजा नह आता था ! दो त के लए जो फुरसत काटने का वसीला है, वही मह के लए उसका मु य
काम है जदगी म। और उसका ही नह , उसके घर के लोग का भी वही मु य काम होना चा हए। तुम फलाँ जगह चलने से इ कार कैसे
कर सकती हो ? फलाँ से तुम ठ क तरह से बात य नह करत ? तुम अपने को पढ़ - लखी कहती हो ?...तु ह तो लोग के बीच उठने-
बैठने क तमीज नह । एक औरत को इस तरह चलना चा हए, इस तरह बात करनी चा हए, इस तरह मु कराना चा हए। य तुम लोग के
बीच हमेशा मेरी पोजीशन खराब करती हो? और वही महे जो दो त के बीच द बू-सा बना हलके-हलके मु कराता है, घर आ कर एक
दा रदा बन जाता है। पता नह , कब कसे नोच लेगा, कब कसे फाड़ खाएगा ! आज वह ताव म अपनी कमीज को आग लगा लेता है।
कल वह सा व ी क छाती पर बैठ कर उसका सर जमीन से रगड़ने लगता है। बोल, बोल, बोल, चलेगी उस तरह क नह जैसे म चाहता
ँ ? मानेगी वह सब क नह जो म कहता ँ ? पर सा व ी फर भी नही चलती। वह सब नह मानती। वह नफरत करती है इस सबसे -
इस आदमी के ऐसा होने से। वह एक पूरा आदमी चाहती है अपने लए एक...पूरा...आदमी। गला फाड़ कर वह यह बात कहती है। कभी
इस आदमी को ही यह आदमी बना सकने क को शश करती है। कभी तड़प कर अपने को इससे अलग कर लेना चाहती है। पर अगर
उसक को शश से थोड़ा फक पड़ने लगता है इस आदमी म, तो दो त म इनका गम मनाया जाने लगता है। सा व ी महे क नाक म
नकेल डाल कर उसे अपने ढं ग से चला रही है। सा व ी बेचारे महे क रीढ़ तोड़ कर उसे कसी लायक नह रहने दे रही है ! जैसे क
आदमी न हो कर बना हाड़-मांस का टु कड़ा हो वह एक - बेचारा महे !
शीष पर
हाँफती ई चुप कर जाती है। बड़ी लड़क कुह नयाँ मेज पर रखे और मु य पर चहेरा टकाए पथराई आँख से चुपचाप
जाएँ
दोन को दे खती है।
पु ष चार : (उठता आ) बना हड़-मांस का पुतला, या जो भी कह लो तुम उसे - पर मेरी नजर म वह हर आदमी जैसे एक
आदमी है- सफ इतनी ही कमी है उसम।
पु ष चार : जो-जो बात तुमने कही ह अभी, वे गलत नह ह अपने म। ले कन बाईस साल जी कर जानी ई बात वे नह ह। आज
से बाईस साल पहले भी एक बार लगभग ऐसी ही बात म त हारे मुँह से सुन चुका ँ - तु ह याद ह ?
पु ष चार : मेरे घर ई थी वह बात। तुम बात करने के लए खास आई थ वहाँ, और मेरे कंधे पर सर रखे दे र तक रोती रही थ ।
तब तुमने कहा था क...
पु ष चार : या हज है अगर यह यह रहे तो ? जब आधी बात उसके सामने ई है, तो बाक़ आधी भी इसके सामने ही हो जानी
चा हए।
: ( ी से) उस दन पहली बार मने तु ह उस तरह ढु लते दे खा था। तब तुमने कहा था क...।
पु ष चार : ब ची थ या जो भी थ , पर बात बलकुल इसी तरह करती थ जैसे आज करती हो। उस दन भी बलकुल इसी तरह
तुमने महे को मेरे सामने उधेड़ा था। कहा था क वह ब त लज लजा और चप चपा-सा आदमी है। पर उसे वैसा बनानेवाल म नाम
तब सर के थे। एक नाम था उसक माँ का और सरा उसके पता का...।
ी : दे खए...।
पु ष चार : उतावली य होती हो ? मुझे बात कह लेने दो। मुझसे उस व तुम या चाहती थ , म ठ क-ठ क नह जानता।
ले कन तु हारी बात से इतना ज र जा हर था क महे को तुम तब भी वह आदमी नह समझती थ जसके साथ तुम जदगी काट
सकत ...।
पु ष चार : पर हर सरे-चौथे साल अपने को उससे झटक लेने क को शश करती ई। इधर-उधर नजर दौड़ाती ई कब कोई
ज रया मल जाए जससे तुम अपने को उससे अलग कर सको। पहले कुछ दन जुनेजा एक आदमी था तु हारे सामने। तुमने कहा है तब
तुम उसक इ जत करती थ । पर आज उसके बारे म जो सोचती हो, वह भी अभी बता चुक हो। जुनेजा के बाद जससे कुछ दन
चकाच ध रह तुम, वह था शवजीत। एक बड़ी ड ी, बड़े-बड़े श द और पूरी नया घूमने का अनुभव। पर असल चीज वही क वह जो
भी था और ही कुछ था-मह नह था। पर ज द ही तुमने पहचानना शु कया क वह नहायत दोगला क म का आदमी है। हमेशा दो
तरह क बात करता है। उसके बाद सामने आया जगमोहन। ऊँचे संबंध, जबान क मठास, टपटॉप रहने क आदत और खच क द रया-
दली। पर तीर क असली नोक फर भी उसी जगह पर- क उसम जो कुछ भी था, जगमोहन का-सा नह था। पर शकायत तु ह उससे
भी होने लगी थी क वह सब लोग पर एक सा पैसा य उड़ता है ? सरे क स त-से-स त बात को एक खामोश मु कराहट के साथ
य पी जाता है ? अ छा आ, वह ांसफर हो कर चला गया यहाँ से, वरना.... ।
ी : यह खामखाह का तानाबाना य बुन रहे ह ? जो असल बात कहना चाहते ह, वही य नह कहते ?
पु ष चार : असल बात इतनी ही क मह क जगह इनम से कोई भी आदमी होता तु हारी जदगी म, तो साल-दो-साल बाद तुम
यही महसूस करत क तुमने गलत आदमी से शाद कर ली है। उसक जदगी म भी ऐसे ही कोई मह , कोई जुनेजा, कोई शवजीत या
मनमोहन होता जसक वजह से तुम यही सब सोचती, यही सब महसूस करती। य क तु हारे लए जीने का मतलब रहा है- कतना-
कुछ एक साथ हो कर, कतना-कुछ एक साथ पा कर और कतना-कुछ एक साथ ओढ़ कर जीना। वह उतना-कुछ कभी तु ह कसी एक
जगह न मल पाता। इस लए जस- कसी के साथ भी जदगी शु करती, तुम हमेशा इतनी ही खाली, इतनी ही बेचैन बनी रहती। वह
आदमी भी इसी तरह तु ह अपने आसपास सर पटकता और कपड़े फाड़ता नजर आता और तुम...
ी : (साड़ी का प लू दाँतो म लए सर हलाती हँसी और लाई के बीच के वर म) हहहहहहहह हःह- हहहहह-हःहहः हःह हःह।
ी : कस आ खरी को शश म ?
पु ष चार : मनोज का बड़ा नाम था। उस नाम क डोर पकड़ कर ही कह प ँच सकने क आ खरी को शश म। पर तुम एकदम
बौरा ग जब तुमने पाया क वह उतने नामवाला आदमी तु हारी लड़क को साथ ले कर रात -रात इस घर से...।
पु ष चार : मजबूर हो कर कहना पड़ रहा है, ब ी ! तू शायद मनोज को अब भी उतना नह जानती जतना...!
पु ष चार : ... जतना यह जानती है। इसी लए आज यह उसे बरदा त भी नह कर सकती। ( ी से) ठ क नह है यह ? ब ी के
मनोज के साथ चले जाने के बाद तुमने एक अंधाधुंध को शश शु क - कभी महे को ही और झकझोरने क , कभी अशोक को ही
चाबुक लगाने क , और कभी उन दोन से धीरज खो कर कोई और ही रा ता, कोई और ही चारा ढूँ ढ़ सकने क । ऐसे म पता चला
जगमोहन यहाँ लौट आया है। आगे के रा ते बंद पा कर तुमने फर पीछे क तरफ दे खना चाहा। आज अभी बाहर गई थ उसके साथ।
या बात ई ?
पु ष चार : न सही ! पर म बना पूछे ही बता सकता ँ क या बात ई होगी। तुमने कहा, तुम ब त-ब त खी हो आज। उसने
कहा, उसे ब त-ब त हमदद है तुमसे। तुमने कहा, तुम जैसे भी हो अब इस घर से छु टकारा पा लेना चाहती हो। उसने कहा, कतना
अ छा होता अगर इस नतीजे पर तुम कुछ साल पहले प ँच सक होत । तुमने कहा, जो तब नह आ, वह अब तो हो ही सकता है।
उसने कहा, वह चाहता है हो सकता, पर आज इसम ब त-सी उलझन सामने ह - ब च क जदं गी को ले कर, इसको-उसको ले कर।
फर भी क इस नौकरी म उनका मन नह लग रहा, पता नह कब छोड़ दे , इसी लए अपने को ले कर भी उसका कुछ तय नह है इस
समय। तुम गुमशुम हो कर सुनती रह और माल से आँख प छती रह । आ खर उसने कहा क तु ह दे र हो रही है, अब लौट चलना
चा हए। तुम चुपचाप उठ कर उसके साथ गाड़ी म आ बैठ । रा ते म उसके मुँह से यह भी नकला शायद क तु ह अगर पए-पैसे क
ज रत है इस व तो वह...
ी : बस बस बस बस बस बस ! जतना सुनना चा हए था, उससे ब त यादा सुन लया है आपसे मने। बेहतर यही है क अब
आप यहाँ से चले जाएँ य क...
पु ष चार : म जगमोहन के साथ ई तु हारी बातचीत का सही अंदाज लगा सकता ,ँ य क उसक जगह म होता, तो म भी
तुमसे यही सब कहा होता। वह कल-परस फर फोन करने को कह कर घर के बाहर उतार गया। तुम मन म एक घुटन लए घर म दा खल
ई और आते ही तुमने ब ची को पीट दया। जाते ए वह सामने थी एक पूरी जदगी - पर लौटने तक का कुल हा सल?... उलझे हाथ
का गज गजा पसीना और...।
ी : मने आपसे कहा है न, बस ! सब-के-सब...सब-के-सब! एक-से! बलकुल एक-से ह आप लोग ! अलग-अलग मुखोटे , पर
चेहरा? चेहरा सबका एक ही !
पु ष चार : फर भी तु ह लगता रहा है क तुम चुनाव कर सकती हो। ले कन दाँए से हट कर बाँए, सामने से हट कर पीछे , इस
कोने से हट कर उस कोने म... या सचमुच कह कोई चुनाव नजर आया है तु ह ? बोलो, आया है नजर कह ?
कुछ पल खामोशी जसम बड़ी लडक चेहरे से हाथ हटा कर पलक झपकाती उन दोन को दे खती है। फर अंदर के
दरवाजे पर खट् -खट् सुनाई दे ती है।
ी : रहने दे अभी।
पु ष चार : तु हारा घर है। तुम बेहतर जानती हो कम-से-कम मान कर यही चलती हो। इसी लए ब त-कुछ चाहते ए मुझे अब
कुछ भी संभव नजर नह आता। और इसी लए फर एक बार पूछना चाहता ँ, तुमसे... या सचमुच कसी तरह उस आदमी को तुम
छु टकारा नह दे सकत ?
पु ष चार : इस लए क आज वह अपने को बलकुल बेसहारा समझता है। उसके मन म यह व ास बठा दया है तुमने क सब
कुछ होने पर भी उसके जए जदं गी म तु हारे सवा कोई चारा, कोई उपाय नह है। और ऐसा या इसी लए नही कया तुमने क जदं गी
म और कुछ हा सल न हो, तो कम-से-कम यह नामुराद मोहरा तो हाथ म बना ही रहे ?
ी : य - य - य -आप और-और बात करते जाना चाहते ह ? अभी आप जाइए और को शश करके उसे हमेशा के लए अपने
पास रख र खए। इस घर म आना और रहना सचमुच हत म नह है उसके। और मुझे भी...मुझे भी अपने पास उस मोहरे क बलकुल-
बलकुल ज रत नह है जो न खुद चलता है, न कसी और को चलने दे ता है।
पु ष चार : (पल-भर चुपचाप उसे दे खते रह कर हताश नणय के वर म) तो ठ क है वह नह आएगा। वह कमजोर है, मगर इतना
कमजोर नह है। तुमसे जुड़ा आ है, मगर इतना जुड़ा आ नह है। उतना बेसहारा भी नह है जतना वह अपने को समझता है। वह
ठ क से दे ख सके, तो एक पूरी नया है उसके आसपास। म को शश क ँ गा क वह आँख खोल कर दे ख सके।
शीष पर
ी : ज र-ज र। इस तरह उसका तो उपकार करेग ही आप, मेरा भी इससे बड़ा उपकार जदं गी म नह कर सकगे।
जाएँ
प ष चार : तो अब चल रहा ँ म। तमसे जतनी बात कर सकता था कर चका ँ। और बात उसी से जा कर क ँ गा। मझे पता है
पु ष चार : तो अब चल रहा म। तुमस जतनी बात कर सकता था, कर चुका । और बात उसी स जा कर क गा। मुझ पता ह
क कतना मु कल होगा यह... फर भी यह बात म उसके दमाग म बठा कर र ँगा इस बार क...
लड़का बाहर से आता है। चेहरा काफ उतरा आ है-जैसे कोई बड़ी-सी चीज कह हार कर आया हो।
लड़का उससे बना आँख मलाए बड़ी लड़क क तरफ बढ़ जाता है।
लड़का : डैडी को कूटर र शा से उतार लाना है उनक तबीयत काफ खराब है।
पु ष चार के चेहरे पर था क रेखाएँ उभर आती ह और उसक आँख ी से मल कर झुक जाती ह। ी एक कुरसी
क पीठ थामे चुप खड़ी रहती है। शरीर म ग त दखाई दे ती है , तो सफ साँस के आने-जाने क ।
: क ी ! दरवाजा खोल ज द से ।
सहसा हाथ क जाता है। बाहर से ऐसा श द सुनाई दे ता है , जैसे पाँव फसल जाने से कसी ने दरवाजे का सहारा ले
कर अपने को बचाया हो।
लड़का : (उससे आगे जाता) डैडी ही ह गे। उतर कर चले आए ह गे ऐसे ही। (दरवाजे से नकलता) आराम से डैडी, आराम से ।
पु ष चार : (एक नजर ी पर डाल कर दरवाजे से नकलता) सँभल कर महे नाथ, सँभल कर....
उन दोन के आगे बढ़ाने के साथ संगीत अ धक प और अँधेरा अ धक गहरा होता जाता है।
संपक व व ालय
शीष पर
जाएँ