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मुखपृ उप यास कहानी क वता ंय नाटक नबंध आलोचना वमश

बाल सा ह य सं मरण या ा वृ ांत सनेमा व वध कोश सम -संचयन आ डयो/वी डयो अनुवाद

हमारे रचनाकार हद लेखक पुरानी व वशेषांक खोज संपक व व ालय सं हालय लॉग समय

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नाटक
कहा नयाँ
आधे-अधूरे अप र चत
आ ा
मोहन राकेश उसक रोट
एक और ज़ दगी
लेखक को जा नए ज म
का.सू.वा. (काले सूटवाला आदमी) जो क पु ष एक, पु ष दो, पु ष तीन तथा पु ष चार क भू मका म भी है। उ लगभग उनचास- जानवर और जानवर
पचास। चेहरे क श ता म एक ं य। पु ष एक के प म वेशा तर : पतलून-कमीज। जदगी से अपनी लड़ाई हार चुकने क जी नयस
छटपटाहट लए। पु ष दो के प म : पतलून और बंद गले का कोट। अपने आपसे संतु , फर भी आशं कत। पु ष तीन के प म : परमा मा का कु ा
पतलून-ट शट। हाथ म सगरेट का ड बा। लगातार सगरेट पीता। अपनी सु वधा के लए जीने का दशन पूरे हाव-भाव म। पु ष चार के फौलाद का आकाश
प म : पतलून के साथ पुरानी कोट का लंबा कोट। चेहरे पर बुजु़ग होने का खासा एहसास। काइयाँपन। मद
मलबे का मा लक
ी। उ चालीस को छू ती। चेहरे पर यौवन क चमक और चाह फर भी शेष। लाउज और साड़ी साधारण होते ए भी मवाली
मस पाल
सु चपूण। सरी साड़ी वशेष अवसर क ।
सुहा गन
बड़ी लड़क । उ बीस से ऊपर नह । भाव म प र थ तय से संघष का अवसाद और उतावलापन। कभी-कभी उ से बढ़ कर सीमाएँ
नाटक
बड़ पन। साड़ी : माँ से साधारण। पूरे व म एक बखराव।
अंडे के छलके
आधे-अधूरे
छोट लड़क । उ बारह और तेरह के बीच। भाव, वर, चाल-हर चीज म व ोह। ॉक चु त, पर एक मोजे म सूराख।
आषाढ़ का एक दन
लड़का। उ इ क स के आसपास। पतलून के अंदर दबी भड़क ली बु शट धुल-धुल कर घसी ई। चेहरे से, यहाँ तक क हँसी से सपाही क माँ
नबंध
भी, झलकती खास तरह क कड़वाहट।
कहानी वषयक नबंध
रंगमंच वषयक
थान : म य- व ीय तर से ढह कर न न-म य- व ीय तर पर आया एक घर।
डायरी
सब प म इ तेमाल होनेवाला वह कमरा जसम उस घर के तीत तर के कई एक टू टते अवशेष - सोफा-सेट , डायरी
या ावृ
डाइ नग टे बल, कबड और े सग टे बल आ द - कसी-न- कसी तरह अपने लए जगह बनाए ह। जो कुछ भी है, वह अपनी
आ ख़री च ान तक
अपे ा के अनुसार न हो कर कमरे क सीमा के अनुसार एक और ही अनुपात से है। एक चीज का सरी चीज से र ता अय
ता का लक सु वधा क माँग के कारण लगभग टू ट चुका है। फर भी लगता है क वह सु वधा कई तरह क असु वधा से डॉ. काल कपोला से
समझौता करके क गई है - ब क कुछ असु वधा म ही सु वधा खोजने क को शश क गई है। सामान म कह एक तपाई , बातचीत
कह दो-एक मोढ़े , कह फट -पुरानी कताब का एक शे फ और कह पढ़ने क एक मेज-कुरसी भी है। ग े ,परदे , मेजपोश फाँसी का औ च य
और पलंगपोश अगर ह, तो इस तरह घसे, फटे या सले ए क समझ म नह आता क उनका न होना या होने से बेहतर नह बाल सा ह य
था ? गर गट का सपना

तीन दरवाजे तीन तरफ से कमरे म झाँकते ह। एक दरवाजा कमरे को पछले अहाते से जोड़ता है , एक अंदर के कमरे से
और एक बाहर क नया से। बाहर का एक रा ता अहाते से हो कर भी है। रसोई म भी अहाते से हो कर जाना होता है। परदा
उठने पर सबसे पहले चाय पीने के बाद डाइ नग टे बल पर छोड़ा गया अधटू टा ट -सेट आलो कत होता है। फर फट कताब
और टू ट कु सय आ द म से एक-एक। कुछ सेकंड बाद काश सोफे के उस भाग पर क त हो जाता है जहाँ बैठा काले सूट
वाला आदमी सगार के कश ख च रहा है। उसके सामने रहते काश उसी तरह सी मत रहता है , पर बीच-बीच म कभी यह
कोना और कभी वह कोना साथ आलो कत हो उठता है।

का.सू.वा. : (कुछ अंतमुख भाव से सगार क राख झाड़ता) फर एक बार, फर से वही शु आत...।

जैसे को शश से अपने को एक दा य व के लए तैयार करके सोफे से उठ पड़ता है।

म नह जानता आप या समझ रहे ह म कौन ँ और या आशा कर रहे ह म या कहने जा रहा ँ। आप शायद सोचते ह क म
इस नाटक म कोई एक न त इकाई ँ - अ भनेता, तुतकता, व थापक या कुछ और; परंतु म अपने संबंध म न त प से कुछ
भी नह कह सकता - उसी तरह जैसे इस नाटक के संबंध म नह कह सकता। य क यह नाटक भी अपने म मेरी ही तरह अ न त है।
अ न त होने का कारण यह है क...परंतु कारण क बात करना बेकार है। कारण हर चीज का कुछ-न-कुछ होता है, हालाँ क यह
आव यक नह क जो कारण दया जाए, वा त वक कारण वही हो। और जब म अपने ही संबंध म न त नह ,ँ तो और कसी चीज के
कारण-अकारण के संबंध म न त कैसे हो सकता ँ ?

सगार के कश ख चता पल-भर सोचता-सा खड़ा रहता है।

म वा तव म कौन ँ ? - यह एक ऐसा सवाल है जसका सामना करना इधर आ कर मने छोड़ दया है जो म इस मंच पर ँ, वह
यहाँ से बाहर नह ँ और जो बाहर ँ...ख़ैर, इसम आपक या दलच पी हो सकती है क म यहाँ से बाहर या ँ ? शायद अपने बारे म
इतना कह दे ना ही काफ है क सड़क के फुटपाथ पर चलते आप अचानक जस आदमी से टकरा जाते ह, वह आदमी म ँ। आप सफ
घूर कर मुझे दे ख लेते ह - इसके अलावा मुझसे कोई मतलब नह रखते क म कहाँ रहता ँ, या काम करता ँ, कस- कससे मलता ँ
और कन- कन प र थ तय म जीता ँ। आप मतलब नह रखते य क म भी आपसे मतलब नह रखता, और टकराने के ण म आप
मेरे लए वही होते ह जो म आपके लए होता ँ। इस लए जहाँ इस समय म खड़ा ँ, वहाँ मेरी जगह आप भी हो सकते थे। दो
टकरानेवाले होने के नाते आपम और मुझम, ब त बड़ी समानता है। यही समानता आपम और उसम, उसम और उस सरे म, उस
शीष पर
सरे म और मुझम...बहरहाल इस ग णत क पहेली म कुछ नह रखा है। बात इतनी है क वभा जत हो कर म कसी-न- कसी अंश म
जाएँ
आपम से हर-एक ँ और यही कारण है क नाटक के बाहर हो या अंदर, मेरी कोई भी एक न त भू मका नह है।
कमरे के एक ह से से सरे ह से म टहलने लगता है।

मने कहा था, यह नाटक भी मेरी ही तरह अ न त है। उसका कारण भी यही है क म इसम ँ और मेरे होने से ही सब कुछ इसम
नधा रत या अ नधा रत है। एक वशेष प रवार, उसक वशेष प र थ तयाँ ! प रवार सरा होने से प र थ तयाँ बदल जात , म वही
रहता। इसी तरह सब कुछ नधा रत करता। इस प रवार क ी के थान पर कोई सरी ी कसी सरी तरह से मुझे झेलते - या वह
ी मेरी भू मका ले लेती और म उसक भू मका ले कर उसे झेलता। नाटक अंत तक फर भी इतना ही अ न त बना रहता और यह
नणय करना इतना ही क ठन होता क इसम मु य भू मका कसक थी - मेरी, उस ी क , प र थ तय क , या तीन के बीच से उठते
कुछ सवाल क ।

फर दशक के सामने आ कर खड़ा हो जाता है। सगार मुँह म लए पल-भर ऊपर क तरफ दे खता रहता है। फर ' हँह '
के वर के साथ सगार मुँह से नकाल कर उसक राख झाड़ता है।

पर हो सकता है, म एक अ न त नाटक म एक अ न त पा होने क सफाई-भर पेश कर रहा ँ। हो सकता है, यह नाटक एक
न त प ले सकता हो - क ह पा को नकाल दे ने से, दो-एक पा और जोड़ दे ने से, कुछ भू मकाएँ बदल दे ने से, या प र थ तय म
थोड़ा हेर-फेर कर दे ने से। हो सकता है, आप पूरा दे खने के बाद, या उससे पहले ही, कुछ सुझाव दे सक इस संबंध म। इस अ न त पा
से आपक भट इस बीच कई बार होगी...।

हलके अ भवादन के प म सर हलाता है जसके साथ ही उसक आकृ त धीरे-धीरे धुँधला कर अँधेरे म गुम हो जाती
है। उसके बाद कमरे के अलग-अलग कोने एक-एक करके आलो कत होते ह और एक आलोक व था म मल जाते ह।
कमरा खाली है। तपाई पर खुला आ हाई कूल का बैग पड़ा है जसम आधी का पयाँ और कताब बाहर बखरी ह। सोफे पर
दो-एक पुराने मैगजीन , एक कची और कुछ कट -अधकट त वीर रखी ह। एक कुरसी क पीठ पर उतरा आ पाजामा झूल
रहा है। ी कई-कुछ सँभाले बाहर से आती ह। कई-कुछ म कुछ घर का है , कुछ द तर का , कुछ अपना। चेहरे पर दन-भर
के काम क थकान है और इतनी चीज के साथ चल कर आने क उलझन। आ कर सामान कुरसी पर रखती ई वह पूरे कमरे
पर एक नजर डाल लेती है।

ी: (थकान नकालनेवाले वर म) ओह् होह् होह् होह् ! (कुछ हताश भाव से) फर घर म कोई नह । (अंदर के दरवाज़े क तरफ
दे ख कर) क ी !...होगी ही नह , जवाब कहाँ से दे ? ( तपाई पर पड़े बैग को दे ख कर) यह हाल है इसका! (बैग क एक कताब उठा
कर) फर फाड़ लाई एक और कताब ! जरा शरम नह क रोज-रोज कहाँ से पैसे आ सकते ह नयी कताब के लए ! (सोफे के पास आ
कर) और अशोक बाबू यह कमाई करते रहे ह दन-भर ! (त वीर उठा कर दे खती) ए लजाबेथ टे लर...आ ेबन...शल मै लेन !

त वीर वापस रख कर बैठने लगती है क नजर झूलते पाजामे पर जा पड़ती है।

(उस तरफ जाती) बड़े साहब वहाँ अपनी कारगुजारी कर गए ह।

पाजामे को मरे जानवर क तरह उठा कर दे खती है और कोने म फकने को हो कर फर एक झटके के साथ उसे तहाने
लगती है।

दन-भर घर पर रह कर आदमी और कुछ नह , तो अपने कपड़े तो ठकाने पर रख ही सकता है।

पाजामे कबड म रखने से पहले डाइ नग टे बल पर पड़े चाय के सामान को दे ख कर और खीज जाती है , पाजामे को
कुरसी पर पटक दे ती है और या लयाँ वैगरह े म रखने लगती है।

इतना तक नह क चाय पी है, तो बरतन रसोईघर म छोड़ आएँ। म ही आ कर उठाऊँ, तो उठाऊँ...।

े उठा कर अहाते के दरवाजे क तरफ बढ़ती ही है क पु ष एक उधर से आ जाता है। ी ठठक कर सीधे उसक
आँख म दे खती है , पर वह उससे आँख बचाता पास से नकल कर थोड़ा आगे आ जाता है।

पु ष एक : आ ग द तर से ? लगता है, आज बस ज द मल गई।

ी : ( े वापस मेज पर रखती) यह अ छा है क द तर से आओ, तो कोई घर पर दखे ही नह । कहाँ चले गए थे तुम ?

पु ष एक : कह नह । यह बाहर था - माकट म।

ी : (उसका पाजामा हाथ म ले कर) पता नह यह या तरीका है इस घर का ? रोज आने पर पचास चीज यहाँ-वहाँ बखरी
मलती ह।

पु ष एक : (हाथ बढ़ा कर) लाओ, मुझे दे दो।

ी : ( सरे पाजामे को झाड़ कर फर से तहाती ई) अब या दे ँ ! पहले खुद भी तो दे ख सकते थे।

गु से म कबड खोल कर पाजामे को जैसे उसम कैद कर दे ती है। पु ष एक फालतू-सा इधर-उधर दे खता है , फर एक
कुरसी क पीठ पर हाथ रख लेता है।

(कबड के पास आ कर े उठाती) चाय कस- कसने पी थी?

पु ष एक : (अपराधी वर म) अकेले मने।

ी : तो अकेले के लए या ज री था क पूरी े क े ... क ी को ध दे दया था ?

पु ष एक : वह मुझे दखी ही नह अब तक।

ी : ( े ले कर चलती है) दखे तब न जो घर पर रहे कोई।

अहाते के दरवाजे से हो कर पीछे रसोईघर म चली जाती है। पु ष एक लंबी ' 'ँ के साथ कुरसी को झुलाने लगता है। ी
प ले से हाथ प छती रसोईघर से वापस आती है।

पु ष एक : म बस थोड़ी दे र के लए नकला था बाहर।

ी : (और चीज को समेटने म त) मुझे या पता कतनी दे र के लए नकले थे।...वह आज फर आएगा अभी थोड़ी दे र म।
तब तो घर पर रहोगे तुम ?

पु ष एक : (हाथ रोक कर) कौन आएगा ? सघा नया ?

ी : उसे कसी के यहाँ के खाना खाने आना है इधर। पाँच मनट के लए यहाँ भी आएगा।

पु ष एक फर उसी तरह ' 'ँ के साथ कुरसी को झुलाने लगता है।


शीष पर
: मुझे यह आदत अ छ नह लगती तु हारी। कतनी बार कह चुक ँ।
जाएँ
प ष एक करसी से हाथ हटा लेता है।
पु ष एक कुरसी स हाथ हटा लता ह।

पु ष एक : तु ह ने कहा होगा आने के लए।

ी : कहना फज नह बनता मेरा ? आ खर बॉस है मेरा।

पु ष एक : बॉस का मतलब यह थोड़े ही है न क...?

ी : तुम यादा जानते हो ? काम तो म ही करती ँ उसके मातहत।

पु ष एक फर से कुरसी को झुलाने को हो कर एकाएक हाथ हटा लेता है।

पु ष एक : कस व आएगा ?

ी : पता नह जब गुजरेगा इधर से।

पु ष एक : ( छले ए वर म) यह अ छा है...।

ी : लोग को ई या है मुझसे, क दो बार मेरे यहाँ आ चुका है। आज तीसरी बार आएगा।

कची , मैगजीन और त वीर समेट कर पढ़ने क मेज क दराज म रख दे ती है। कताब बैग म बंद करके उसे एक तरफ
सीधा खड़ा कर दे ती है।

पु ष एक : तो लोग को भी पता है वह आता है यहाँ ?

ी : (एक तीखी नजर डाल कर) य , बुरी बात है ?

पु ष एक : मने कहा है बुरी बात है ? म तो ब क कहता ँ, अ छ बात है।

ी : तुम जो कहते हो, उसका सब मतलब समझ म आता है मेरी।

पु ष एक : तो अ छा यही है क म कुछ न कह कर चुप रहा क ँ । अगर चुप रहता ँ, तो...।

ी : तुम चुप रहते हो। और न कोई।

अपनी चीज कुरसी से उठा कर उ ह यथा थान रखने लगती है।

पु ष एक : पहले जब-जब आया है वह, मने कुछ कहा है तुमसे ?

ी : अपनी शरम के मारे ! क दोन बार तुम घर पर नह रहे।

पु ष एक : उसम या है ! आदमी को काम नह हो सकता बाहर ?

ी:( त) वह तो आज भी हो जाएगा तु ह।

पु ष एक : (ओछा पड़कर) जाना तो है आज भी मुझे...पर तुम ज री समझो मेरा यहाँ रहना, तो...।

ी : मेरे लए कने क ज रत नह । (यह दे खती क कमरे म और कुछ तो करने को शेष नह ) तु ह और याली चा हए चाय क
? म बना रही ँ अपने लए।

पु ष एक : बना रही हो तो बना लेना एक मेरे लए भी।

ी अहाते के दरवाजे क तरफ जाने लगती है।

: सुनो।

ी क कर उसक तरफ दे खती है।

: उसका या आ...वह जो हड़ताल होनेवाली थी तु हारे द तर म ?

ी : जब होगी पता चल ही जाएगा तु ह।

पु ष एक : पर होगी भी ?

ी : तुम उसी के इंतजार म हो या ?

चली जाती है। पु ष एक सर हला कर इधर-उधर दे खता है क अब वह अपने को कैसे त रख सकता है। फर जैसे
याद हो आने से शाम का अखबार जेब से नकाल कर खोल लेता है। हर सुख पढ़ने के साथ उसके चेहरे का भाव और तरह
का हो जाता है- उ साहपूण , ं यपूण, तनाव-भरा या प त। साथ मुँह से 'ब त अ छे ! 'मार दया, 'लो' और 'अब'? जैसे श द
नकल पड़ते ह। ी रसोईघर से लौट कर आती है।

पु ष एक : (अखबार हटा कर ी को दे खता) हड़ताल तो आजकल सभी जगह हो रही ह। इसम दे खो...।

ी : (उस ओर से वर ) तु ह सचमुच कह जाना है या? कहाँ जाने क बात कर रहे थे तुम?

पु ष एक : सोच रहा था, जुनेजा के यहाँ हो आता।

ी : ओऽऽ जुनेजा के यहाँ !...हो आओ।

पु ष एक : फलहाल उसे दे ने के लए पैसा नह है, तो कम-से-कम मुँह तो उसे दखाते रहना चा हए।

ी : हाँऽऽ, दख आओ मुँह जा कर।

पु ष एक : वह छह महीने बाहर रह कर आया है। हो सकता है, कोईनया कारोबार चलाने क सोच रहा हो जसम मेरे लए...

ी : तु हारे लए तो पता नह या- या करेगा वह जदगी म! पहले ही कुछ कम नह कया है।

झाड़न ले कर कुर सय वगैरह को झड़ना शु कर दे ती है।

: इतनी गद भरी रहती है हर व इस घर म ! पता नह कहाँ से चली आती है !


शीष पर
पु ष एक : तुम नाहक कोसती रहती हो उस आदमी को। उसने तो अपनी तरफ से हमेशा मेरी मदद ही क है !
जाएँ
ी : न करता मदद तो उतना नकसान तो न होता जतना उसके मदद करने से आ है।
ी : न करता मदद, तो उतना नुकसान तो न होता जतना उसक मदद करन स आ ह।

पु ष एक : (कुढ़ कर सोफे पर बैठता) तो नह जाता मै ! अपने अकेले के लए जाना है मुझे! अब तक तकद र ने साथ नह दया
तो इसका यह मतलब तो नह क...

ी : यहाँ से उठ जाओ। मुझे झाड़ लेने दो जरा।

पु ष एक उठ कर फर बैठने क ती ा म खड़ा रहता है।

: उस कुरसी पर चले जाओ। वह साफ हो गई है।

पु ष एक गाली दे ती नजर से उसे दे ख कर उस कुरसी पर जा बैठता है।

: (बड़बड़ाती) पहली बार ेस म जो आ सो आ। सरी बार फर या हो गया ? वही पैसा जुनेजा ने लगाया, वही तुमने गाया।
एक ही फै टरी लगी, एक ही जगह जमा-खच आ। फर भी तकद र ने उसका साथ दे दया, तु हारा नह दया।

पु ष एक : (गु से से उठता है) तुम तो ऐसी बात करती हो जैस.े ..

ी : खड़े य हो गए ?

पु ष एक : य , म खड़ा नह हो सकता ?

ी : (हलका व फा ले कर तर कारपूण वर म) हो तो सकते हो,पर घर के अंदर ही।

पु ष एक : ( कसी तरह गु सा नगलता) मेरी जगह तुम ह सेदार होती न फै टरी क , तो तु ह पता चल जाता क...

ी : पता तो मुझे तब भी चल ही रहा है। नह चल रहा ?

पु ष एक : (बड़बड़ाता) उन दन पैसा लया था फै टरी से ! जो कुछ लगाया था, यह सारा तो शु म ही नकाल- नकाल कर खा
लया और....

ी : कसने खा लया ? मने ?

पु ष एक : नह , मने ! पता है कतना खच था उन दन इस घर का, चार सौ पए महीने का मकान था। टै सय म आना-जाना


होता था। क त पर ज खरीदा गया था। लड़के-लड़क क का वट क फ स जाती थ ... ।

ी : शराब आती थी। दावत उड़ती थ । उन सब पर पैसा तो खच होता ही था।

पु ष एक : तुम लड़ना चाहती हो ?

ी : तुम लड़ भी सकते हो इस व , ता क उसी बहाने चले जाओ घर से।....वह आदमी आएगा, तो जाने या सोचेगा क य
हर बार इसके आदमी को कोई-न-कोई काम हो जाता है बाहर। शायद समझे क म ही जान-बूझ कर भेज दे ती ँ।

पु ष एक : वह मुझसे तय करके आता नह क म उसके लए मौजूद रहा क ँ घर पर।

ी : कह ँ गी, आगे से तय करके आया करे तुमसे। तुम इतने बजी आदमी जो हो। पता नह कब कस बोड क मी टग म जाना
पड़ जाए।

पु ष एक : (कुछ धीमा पड़ कर , परा जत भाव से) तुम तो बस आमादा ही रहती हो हर व ।

ी : अब जुनेजा आ गया है न लौट कर, तो रहा करना फर तीन-तीन दन घर से गायब।

पु ष एक : (पूरी श समेट कर सामना करता) तुम फर वही बात उठाना चाहती हो ? अगर रहा भी ँ कभी तीन दन घर से
बाहर, तो आ खर कस वजह से ?

ी : वजह का पता तो तु ह पता होगा या तु हारे लड़के को। वह भी तीन-तीन दन दखाई नह दे ता घर पर।

पु ष एक : तुम मेरा मुकाबला उससे करती हो ?

ी : नह , उसका मुकाबला तुमसे करती ँ। जस तरह तुमने वार क अपनी जदगी, उसी तरह वह भी...

पु ष एक : और लड़क तु हारी? उसने अपनी जदगी वार करने क सीख कससे ली है ? (अपने जाने भारी पड़ता) मने तो
कभी कसी के साथ घर से भागने क बात नह सोची थी।

ी : (एकटक उसक आँख म दे खती) तुम कहना या चाहते हो?

पु ष एक : कहना या है...जा कर चाय बना लो, पानी हो गया होगा।

सोफे पर पर बैठ कर फर अखबार खोल लेता है , पर यान पढ़ने म लगा नही पाता ।

ी : मुझे भी पता है, पानी हो गया होगा । म जब भी कसी को बुलाती ँ यहाँ, मुझे पता होता है तुम यही सब बात करोगे।

पु ष एक : (जैसे अखबार म कुछ पढ़ता आ) ँ- ँ- ँ- ँ ।

ी : वैसे हजार बार कहोगे लड़के क नौकरी के लए कसी से बात य नही करती। और जब म मौका नकलती ँ उसके लए
तो...

पु ष-एक : हाँ, सघा नया तो लगवा ही दे गा ज र। इसी लए बेचारा आता है यहाँ चल कर ।

ी : शु नह मानते क इतना बड़ा आदमी, सफ एक बार कहने-भर से...

पु ष-एक : म नह शु मनाता ? जब-जब कसी नए आदमी का आना- जाना शु होता है यहाँ, म हमेशा शु मानता ँ। पहले
जगमोहन आया करता था। फर मनोज आने लगा था...।

ी : ( थर से उसे दे खती) और या- या बात रह गई है कहने को बाक ? वह भी कह डालो ज द से।

पु ष एक : य ...जगमोहन का नाम मेरी जबान पर आया नह क तु हारे हवास गुम होने शु ए?

ी : (गहरी वतृ णा के साथ) जतने नाशु े आदमी तुम हो, उससे तो मन करता है क आज ही म...

शीष पर
कहती ई अहाते के दरवाजे क तरफ मुड़ती ही है क बाहर से बड़ी लड़क क आवाज सुनाई दे ती है।
जाएँ
बड़ी लड़क : ममा !
बड़ी लड़क : ममा !

ी क कर उस तरफ दे खती है। चेहरा कुछ फ का पड़ जाता है।

ी : ब ी आई है बाहर ।

पु ष एक न चाहते मन से अखबार लपेट कर उठ खड़ा होता है।

पु ष एक : फर उसी तरह आई होगी।

ी : जा कर दे ख लोगे या चा हए उसे ?

बड़ी लड़क क आवाज फर सुनाई दे ती है।

बड़ी लड़क : ममा, टू टे पचास पैसे दे ना जरा।

पु ष एक कसी अनचाही थ त का सामना करने क तरह बाहर के दरवाजे क तरफ बढ़ता है।

ी : पचास पैसे है न तु हारी जेब म ? होगे तो सही ध के पैस से बचे ए।

पु ष एक : मने सफ पाँच पैसे खच कए ह अपने पर... इस अखबार के।

बाहर नकल जाता है। ी पल-भर उधर दे खती रह कर अहाते के दरवाजे से रसोईघर म चली जाती है। बड़ी लड़क
बाहर से आती है। पु ष एक उसके पीछे -पीछे आ कर इस तरह कमरे म नजर दौड़ाता है जैसे ी के उस कमरे म न होने से
अपने को गलत जगह पर अकेला पा रहा हो।

पु ष एक : (अपने अटपनेपन को ढँ क पाने म असमथ , बड़ी लड़क से) बैठ तू।

बड़ी लड़क : ममा कहाँ ह ?

पु ष एक : उधर होगी रसोई म।

बड़ी लड़क : (पुकार कर) ममा !

ी दोन हाथ म चाय क या लयाँ लए अहाते के दरवाजे से आती है।

ी : या हाल ह तेरे ?

बड़ी लड़क : ठ क ह ।

पु ष एक ी को हाथ के इशारे से बतलाने क को शश करता है क वह अपने साथ सामान कुछ भी नह लाई।

ी : चाय लेगी?

बड़ी लड़क : अभी नह , पहले हाथ-मुँह धो लूँ गुसलखाने म जा कर। सारा ज म इस तरह चप चपा रहा है क बस....

ी : तेरी आँख ऐसी य हो रही है ?

बड़ी लड़क : कैसी हो रही ह ?

ी : पता नह कैसी हो रही ह !

बड़ी लड़क : तु ह ऐसे ही लग रहा। म अभी आती ँ हाथ-मुँह धो कर।

अहाते के दरवाजे से चली जाती है। पु ष एक अथपूण से ी को दे खता उसके पास जाता है।

पु ष एक : मुझे तो यह उसी तरह आई लगती है।

ी चाय क याली उसक तरफ बढ़ा दे ती है।

ी : चाय ले लो।

पु ष एक : (चाय ले कर) इस बार कुछ समान भी नह है साथ म।

ी : हो सकता है। थोड़ी दे र के लए आई हो।

पु ष एक : पस म केवल एक ही पया था। कूटर- र शा का पूरा


कराया भी नह ।

ी : या पता कह और से आ रही हो !

पु ष एक : तुम हमेशा बात को ढँ कने क को शश य करती हो ? एक बार इससे पूछती य नह खुल कर ?

ी : या पूछूँ ?

पु ष एक : यह म बताऊँगा तु ह ?

ी चाय के घूँट भरती एक कुरसी पर बैठ जाती है।

: (पल भर उ र क ती ा करने के बाद) मेरी उस आदमी के बारे म कभी अ छ राय नह थी। तु ह ने हवा बाँध रखी थी क
मनोज यह है, वह है - जाने या है ! तु हारी शह से उसका घर म आना-जाना न होता, तो या यह नौबत आती क लड़क उसके साथ जा
कर बाद म इस तरह...?

ी : (तंग पड़ कर) तो खुद ही य नह पूछ लेते उससे जो पूछना चाहते हो ?

पु ष एक : म कैसे पूछ सकता ँ ?

ी : य नह पूछ सकते ?

पु ष एक : मेरा पूछना इस लए गलत है क...


शीष पर
ी : तु हारा कुछ भी करना कसी-न- कसी वजह से गलत होता है। मुझे पता नह है ?
जाएँ
बड़े बड़े घँट भर कर चाय क याली खाली कर दे ती है।
बड़-बड़ घूट भर कर चाय क याली खाली कर दती ह।

पु ष एक : तु ह सब पता है ! अगर सब कुछ मेरे कहने से होता इस घर म...

ी : (उठती ई) तो पता नह और या बबाद ई होती। जो दो रोट आज मल जाती है मेरी नौकरी से, वह भी नह मल पाती।
लड़क भी घर म रह कर ही बुढ़ा जाती, पर यह न सोचा होता कसी ने क....

पु ष एक : (अहाते के दरवाजे क तरफ संकेत करके) वह आ रही है।

ज द -ज द अपनी याली खाली करके ी को दे दे ती है। बड़ी लड़क पहले से काफ सँभली ई वापस आती है।

बड़ी लड़क : (आती ई) ठं डे पानी के छ टे मुँह पर मारे, तो कुछ होश आया। आजकल के दन म तो बस.... (उन दोन को थर
से अपनी ओर दे खते पा कर) या बात है, ममा? आप लोग इस तरह य दे ख रहे ह मुझे ?

ी : म या लयाँ रख कर आ रही ँ अंदर से।

अहाते के दरवाजे से चली जाती है। पु ष एक भी आँख हटा कर त होने का बहाना खोजता है।

बड़ी लड़क : या बात है, डैडी ?

पु ष एक : बात ?...बात कुछ भी नह ।

बड़ी लड़क : (कमजोर पड़ती) है तो सही कुछ-न-कुछ बात।

पु ष एक : ऐसे ही तेरी ममा कुछ कह रही थी...

बड़ी लड़क : या कह रही थ ।

पु ष एक : मतलब वह नह , म कह रहा था उससे...।

बड़ी लड़क : या कह रहे थे ?

पु ष एक : तेरे बारे म बात कर रहा था

बड़ी लड़क : या बात कर रहे थे ?

ी लौट कर आ जाती है।

पु ष एक : वह आ गई है, खुद ही बता दे गी तुझे ।

जैसे अपने को थ त से बाहर रखने के लए थोड़ा परे चला जाता है।

बड़ी लड़क : ( ी से) डैडी मेरे म या बात कर रहे थे, ममा ?

ी : उ ह से य नह पूछती ?

बड़ी लड़क : वे कहते है क तुम बतलाओगी और तुम कहती हो उ ह से य नह पूछती !

ी : तेरे डैडी तुमसे यह जानना चाहते ह क...

पु ष एक : (बीच म ही) अगर तुम अपनी तरफ से नह जानना चाहत तो रहने दो।

बड़ी लड़क : पर बात ऐसी है या जानने क ?

ी : बात सफ इतनी है क जस तरह से तू आजकल आती है वहाँ से, उससे इ ह कह लगता है क...

पु ष एक : तु ह जैसे नह लगता।

बड़ी लड़क : (जैसे कठघरे म खड़ी) या लगता है ?

ी : क कुछ है जो तू अपने मन म छपाए रखती है, हम नह बतलाती।

बड़ी लड़क : मेरी कस बात से लगता है ऐसा ?

ी : (पु ष एक से) अब कहो न इसके सामने वह सब, जो मुझसे कह रहे थे ।

पु ष एक : तुमने शु क है बात, तु ह पूरा कर डालो अब ।

ी : (बड़ी लड़क से) म तुमसे एक सीधा सवाल पूछ सकती ँ ?

बड़ी लड़क : ज र पूछ सकती हो ।

ी : तू खुश है वहाँ पर ?

बड़ी लड़क : (बचते वर म) हाँ, ब त खुश ँ ।

ी : सचमुच खुश है ?

बड़ी लड़क : और या ऐसे ही कह रही ँ ?

पु ष एक : ( बलकुल सरी तरफ मुँह कए) यह तो कोई जवाब नह है।

बड़ी लड़क : (तुनक कर) तो जवाब या तभी होता है अगर म कहती क म खुश नह ,ँ ब त खी ँ?

पु ष एक : आदमी जो जवाब दे , उसके चेहरे से भी तो झलकना चा हए।

बड़ी लड़क : मेरे चेहरे से या झलकता है ? क मुझे तपे दक हो गया है? म घुल-घुल कर मरी जा रही ँ ?

पु ष एक : एक तपे दक ही होता है बस आदमी को ?

शीष पर
बड़ी लड़क : तो और या- या होता है ? आँख से दखाई दे ना बंद हो जाता है? नाक-कान तरछे हो जाते ह ? ह ठ झाड़ कर गर
जाएँ
जाते ह ? मेरे चेहरे से ऐसा या नजर आता है आपको ?
पु ष एक : (कुढ़कर लौटता) तेरी माँ ने तुझसे पूछा है, तू उसी से बात कर। म इस मारे कभी पड़ता ही नह इन चीज म।

सोफे पर जा कर अखबार खोल लेता है। पर पल-भर बाद यान हो आने से क वह उसने उलटा पकड़ रखा है , सीधा
कर लेता है।

ी : (बड़ी लड़क से) अ छा, छोड़ अब इस बात को। आगे से यह सवाल म नह पूछूँगी तुझसे।

बड़ी लड़क क आँख छलछला आती ह ।

बड़ी लड़क : पूछने म रखा भी या है, ममा ! जदगी कसी तरह कटती ही चलती है हर आदमी क ।

पु ष एक : (अखबार का प ा उलटता) यह आ कुछ जवाब !

ी : (पु ष एक से) तुम चुप नह रह सकते थोड़ी दे र ?

पु ष एक : म या कह रहा ँ ? चुप ही बैठा ँ यहाँ। (अखबार म पढ़ता) नाले का बाँध पूरा करने के लए बारह साल के लड़के
क ब ल (अखबार से बाहर) आप चाहे जो कह ले, मेरे मुँह से एक ल ज भी न नकले। ( फर अखबार म से) उदयपुर म म ा गाँव म बाँध
के ठे केदार का अमानु षक कृ य। (अखबार से बाहर) हद होती है हर चीज क ।

ी बड़ी लड़क के कंधे पर हाथ रखे उसे पढ़ने क मेज के पास ले जाती है।

ी : यहाँ बैठ ।

बड़ी लड़क पलक झपकती वहाँ कुरसी पर बैठ जाती है।

: सच-सच बता, तुझे वहाँ कसी चीज क शकायत है ?

बड़ी लड़क : शकायत कसी चीज क नह ...।

ी : तो ?

बड़ी लड़क : और हर चीज क है।

ी : फर भी कोई खास बात ?

बड़ी लड़क : खास बात कोई भी नह ...

ी : तो ?

बड़ी लड़क : और सभी बात खास ह ।

ी : जैसे ?

बड़ी लड़क : जैस.े .. सभी बात।

ी : तो मेरा मतलब है क... ?

बड़ी लड़क : मेरा मतलब है... क शाद से पहले मुझे लगता था क मनोज को ब त अ छ तरह जानती ँ। पर अब आ
कर...अब आ कर लगाने लगा है क वह जानना बलकुल जानना नह था।

ी : (बात क गहराई तक जाने क तरह) ँ !... तो या उसके च र म कुछ ऐसा है जो... ?

बड़ी लड़क : नह । उसके च र म ऐसा कुछ नह है। इस लहाज से ब त साफ आदमी है वह।

ी : तो फर या उसके वभाव म कोई ऐसी बात है जससे...?

बड़ी लड़क : नह वभाव उसका हर आदमी जैसा है, ब क आम आदमी से यादा खुश दल कहना चा हए उसे।

ी : (और भी गहराई म जा कर कारण खोजती) तो फर ?

बड़ी लड़क : यही तो म भी नह समझ पाती। पता नह कहाँ पर या है जो गलत है !

ी : उसक आ थक थ त ठ क है ?

बड़ी लड़क : ठ क है।

ी : सेहत ?

बड़ी लड़क : ब त अ छ है।

पु ष एक : ( बना उधर दे खे) सब-कुछ अ छा-ही-अ छा है फर तो...। शकायत कस बात क है ?

ी : (पु ष एक से) तुम बात समझने भी दोगे ? (बड़ी लड़क से) जब इनम से कसी बात क शकायत नह है तुझे, तब या तो
कोई ब त खास वजह होनी चा हए, या...

बड़ी लड़क : या ?

ी : या...या...म अभी नह कह सकती।

बड़ी लड़क : वजह सफ वह हवा है जो हम दोन के बीच से गुजरती है।

पु ष एक : (उस ओर दे ख कर) या कहा... हवा ?

बड़ी लड़क : हाँ, हवा।

पु ष एक : ( नराशा भाव से सर हला कर , मुँह फर सरी तरफ करता) य ह वजह बताई है इसने...हवा!

ी : (बड़ी लड़क के चेहरे को आँख से टटोलती) म तेरा मतलब नह समझी ?

शीष पर
बड़ी लड़क : (उठती ई) म शायद समझा भी नह सकती (अ थर भाव से कुछ कदम चलती) कसी सरे को तो या, अपने
जाएँ
को भी नह समझा सकती। (सहसा क कर) ममा, ऐसा भी होता है या क...
ी: क?

बड़ी लड़क : क दो आदमी जतना यादा साथ रह, एक हवा म साँस ल, उतना ही यादा अपने को एक- सरे से अजनबी
महसूस कर ?

ी : तुम दोन ऐसा महसूस करते हो ?

बड़ी लड़क : कम-से-कम अपने लए तो कह ही सकती ँ।

ी : (पल-भर उसे दे खती रह कर) तू बैठ कर य नह बात करती ?

बड़ी लड़क : म ठ क ँ इसी तरह।

ी : तूने जो बात कही है, वह अगर सच है, तो उसके पीछे या कोई-न-कोई ऐसी अड़चन नह है जो...

बड़ी लड़क : पर कौन-सी अड़चन ?...उसके हाथ से छलक गई चाय क याली, या उसके द तर से लौटने म आधा घंटे क दे री-
ये छोट -छोट बात अड़चन नह होत , मगर अड़चन बन जाती ह। एक गुबार-सा है जो हर व भरा रहता है और म इंतजार म रहती ँ
जैसे क कब कोई बहाना मले जससे उसे बाहर नकाल लूँ। और आ खर... ?

ी चुपचाप आगे सुनने क ती ा करती है।

: आ खर वह सीमा आ जाती है जहाँ प ँच कर वह नढाल हो जाता है। जहाँ प ँच कर वह नढाल हो जाता है। ऐसे म वह एक
बात कहता है।

बड़ी लड़क : क म इस घर से ही अपने अंदर कुछ ऐसी चीज ले कर गई ँ जो कसी भी थ त म मुझे वाभा वक नह रहने
दे त ।

ी : (जैसे कसी ने उसे तमाचा मार दया हो) या चीज ?

बड़ी लड़क : म पूछती ँ या चीज,तो भी उसका एक ही जवाब होता है।

ी : वह या ?

बड़ी लड़क : क इसका पता मुझे अपने अंदर से, या इस घर के अंदर से चल सकता है। वह कुछ नह बता सकता।

पु ष एक : ( फर उस तरफ मुड़ कर) यह सब कहता है वह ? और या- या कहता है ?

ी : वह इस व तुमसे बात नह कर रही।

पु ष एक : पर बात तो मेरे घर क हो रही है।

ी : तु हारा घर ! हँह !

पु ष एक : तो मेरा घर नह है यह ? कह दो, नह है।

ी : सचमुच तुम अपना घर समझते इसे तो...

पु ष एक : कह दो, कह दो, जो कहना चाहती हो।

ी : दस साल पहले कहना चा हए था मुझ.े ..जो कहना चाहती ँ।

पु ष एक : कह दो अब भी...इससे पहले क दस- यारह साल हो जाएँ।

ी : नह होने पाएँगे यारह साल... इसी तरह चलता रहा सब- कुछ तो।

पु ष एक : (एकटक उसे दे खता , काट के साथ) नह होने पाएँगे सचमुच...? काफ अ छा आदमी है जगमोहन ! और फर द ली
म उसका ांसफर भी हो गया है। मला था उस दन कनॉट लेस म। कह रहा था, आएगा कसी दन मलने।

बड़ी लड़क : (धीरज खो कर) डैडी !

पु ष एक : ऐसी या बात कही है मने? तारीफ ही क है उस आदमी क ।

ी : खूब करो तारीफ...और भी जस- जस क हो सके तुमसे। (बड़ी लड़क से) मनोज आज जो तुमसे कहता है यह सब, पहले
जब खुद यहाँ आता रहा है, रात- दन यह रहता रहा है, तब या उसे पता नह चला क...

बड़ी लड़क : यह म उससे नह पूछती।

ी : पर य नह पूछती ?

बड़ी लड़क : य क मुझे कह लगता है क...कैसे बताऊँ, या लगता है? वह जतने व ास के साथ यह बात कहता है, उससे...
मुझे अपने से एक अजीब सी चढ़ होने लगती है। मन करता है आस-पास क हर चीज को तोड़-फोड़ डालूँ। कुछ ऐसा कर डालूँ
जससे....

ी : जससे ?

बड़ी लड़क : जससे उसके मन को कड़ी-से-कड़ी चोट प ँचा सकूँ। उसे मेरे लंबे बाल अ छे लगते ह। इस लए सोचती ँ, इ ह जा
कर कटा आऊँ। वह मेरे नौकरी करने के हक म नह है। इस लए चाहती ँ कह भी, कोई भी छोट -मोट नौकरी कर लूँ। कुछ भी ऐसी
बात जससे एक बार तो वह अंदर से वह तल मला उठे । पर कर म कुछ भी नह पाती और जब नह कर पाती, तो खीज कर...

ी : यहाँ चली आती है ?

बड़ी लड़क पल-भर चुप रह कर सर हला दे ती है।

बड़ी लड़क : नह ।

ी : तो ?

शीष पर
बड़ी लड़क : कई-कई दन के लए अपने को उससे काट लेती ँ। पर धीरे-धीरे हर चीज फर उसी ढर पर लौट आती है। सब-
जाएँ
कुछ उसी तरह होने लगता है जब तक क हम... जब तक क हम नए सरे से उसी खोह म नह प ँच जाते। म यहाँ आती ँ... यहाँ आती
ँ ो
ँ तो सफ इस लए क...

ी : तेरा अपना घर है।

बड़ी लड़क : मेरा अपना घर !...हाँ। और म आती ँ क एक बार फर खोजने

क को शश कर दे खूँ क या चीज है वह इस घर म जसे ले कर बार-बार मुझे हीन कया जाता है। (लगभग टू टे वर म) तुम बता
सकती हो ममा, क या चीज है वह? और कहाँ है वह ? इस घर के खड़ कय -दरवाज म ? छत म? द वार म ? तुमम ? डैडी म ?
क ी म अशोक म ? कहाँ छपी है वह मन स चीज जो वह कहता है मै इस घर से अपने अंदर ले कर गई ँ ?

( ी क दोन बाँह हाथ म ले कर) बताओ ममा, या है ? कहाँ है वह इस घर म ?

काफ लंबा व फा। कुछ दे र बड़ी लड़क के हाथ ी क बाँह पर के रहते ह। और दोन क आँख मली रहती ह।
धीरे-धीरे पु ष एक क गरदन उनक तरफ मुड़ती है। तभी ी आ ह ता से बड़ी लड़क के हाथ अपनी बाँह से हटा दे ती है।
उसक आँख पु ष एक से मलती ह और वह जैसे उससे कुछ कहने के लए कुछ कदम उसक तरफ बढ़ाती है। बड़ी लड़क
जैसे अब भी अपने सवाल का जवाब चाहती , अपनी जगह पर क उन दोन को दे खती रहती है। पु ष एक ी को अपनी
ओर आते दे ख आँख उधर से हटा लेता है और एक-दो पल असमंजस म रहने के बाद अनजाने म ही अखबार को गोल करके
दोन हाथो से उसक र सी बटने लगता है। ी आधे रा ते म ही कुछ कहने का वचार छोड़ कर अपने को सहेजती है। फर
बड़ी लड़क के पास वापस जा कर हलके से उसके कंधे को छू ती है। बड़ी लड़क पल-भर आँख मूँदे रह कर अपने आवेग
दबाने का य न करती है , फर ी का हाथ कंधे से हटा कर एक कुरसी का सहारा लए उस पर बैठ जाती है। ी यह समझ
न आने से क अब उसे या करना चा हए, पल-भर वधा म हाथ उलझाए रहती है। उसक आँख फर एक बार पु ष एक से
मल जाती ह। और वह जैसे आँख से ही उसका तर कार कर अपने को एक मोढ़े क थ त बदलने म त कर लेती है।
पु ष एक अपनी जगह से उठ पड़ता है। अखबार क र सी अपने हाथ म दे ख कर अटपटा महसूस करता है। और कुछ दे र
अ न त खड़ा रहने के बाद फर से बैठ कर उस र सी के टु कड़े करने लगता है। तभी छोट लड़क बाहर के दरवाजे से आती
है और उन तीन को उस तरह दे ख कर अचानक ठठक जाती है।

छोट लड़क : कुछ पता ही नह चलता यहाँ तो।

तीन म से केवल एक ही ी उसक तरफ दे खती है।

ी : या कह रही है तू ?

छोट लड़क : बताओ चलता है कुछ पता ? कूल से आई ँ, तो तुम भी हो डैडी भी ह, ब -द भी ह- पर सबलोग ऐसे चुप ह
जैस.े ..

ी : ( ी उसक तरफ आती है) तू अपना बता क आते ही चली कहाँ गई थी ?

छोट लड़क : कह भी चली गई थी। घर पर था कोई जसके पास बैठती यहाँ ? ध गरम आ है मेरा ?

ी : अभी आ जाता है।

छोट लड़क : अभी आ जाता है ! कूल म भूख लगे तो कोई पैसा नह होता पास

म। और घर आने पर घंटा-घंटा ध ही नह होता गरम।

ी : कहा है न तुमसे, अभी गरम आ जाता है। (पु ष एक से) तुम उठ रहे हो या म जाऊँ ?

पु ष एक अखबार के टु कड़े को दोन हाथ म समेटे उठ खड़ा होता है।

पु ष एक : (कोई भी कड़वी चीज नगलने क तरह) जा रहा ँ म ही...।

अखबार के टु कड़े पर इस तरह नजर डाल लेता है जैसे क वह कोई मह वपूण द तावेज था जसे टु कड़े-टु कड़े कर दया
है।

ी : (छोट लड़क से) तू फर एक कताब फाड़ लाई है आज ?

पु ष एक चलते-चलते क जाता क इस मह वपूण करण का भी नपटारा भी दे ख ही ले।

छोट लड़क : अपने आप फट गई, तो म या क ँ ? आज सलाई क लास म फर वही आ मेरे साथ। मस ने कहा....

ी : तू मस क बात बाद म करना। पहले यह बता क..

छोट लड़क : रोज कहती हो, बाद म करना। आज भी मुझे रील ला कर न द , तो म कूल नह जाऊँगी कल से। मस ने सारी
लास के सामने मुझसे कहा क...

ी : तू और तेरी मस ! रोग लगा रखा है जान को !

छोट लड़क : तो उठा लो न मुझे कूल से। जैसे शोक मारा-मारा फरता है सारा दन, म भी फरती रहा क ँ गी।

बड़ी लड़क इस बीच काफ अ थर महसूस करती छोट लड़क को दे खती है।

बड़ी लड़क : (अपने को रोक पाने म असमथ) तुझे तमीज से बात करना नह आता ? बड़ा भाई है तेरा।

छोट लड़क : य ... फरता नह मारा-मारा सारा दन ?

बड़ी लड़क : क ी !

छोट लड़क : तुम यहाँ थ , तो या कुछ कहा करती थ उसके बारे म? तु हारा भी तो बड़ा भाई है। चाहे एक ही साल बड़ा है, है
तो बड़ा ही।

बड़ी लड़क : ( ी से) ममा, तुमने इस लड़क क जबान ब त खोल द है।

पु ष एक : अगर यही बात म कह ँ ना इससे....।

ी : पहले जो-जो कहना है, वह कह लो तुम। उसके बाद दे ख लेना अगर...

पु ष एक : (अहाते के दरवाजे क तरफ चलता) कहना या है ? कहता ही नह कभी । म ध गरम कर रहा ँ इसका ।

शीष पर
दरवाजे से नकल जाता है ।
जाएँ
छोट लड़क : कल मझे रील का ड बा ज र चा हए और मस बैनज ने सब लड़ कय से कहा है आज क फाऊंडस डे पी ट
छोट लड़क : कल मुझ रील का ड बा ज र चा हए और मस बनज न सब लड़ कय स कहा ह आज क फाऊडस-ड पी. ट .
के लए तीन-तीन नए कट...

ी : कतने ?

छोट लड़क : तीन-तीन। सब लड़ कय को बनाने ह। और तुमने कहा था लप और मोजे इस ह ते ज र आ जाएँग,े आ गए ह


? कतनी शरम आती है मुझे फटे मोजे पहन कर कूल जाते!

पल-भर क औघड़ खामोशी।

ी : (जैसे अपने को उस करण से बचाने क को शश म) अ छा, दे ख... कूल से आ कर तू अपना बैग यहाँ खुला छोड़ गई थी !
मने आ कर बंद कया है। पहले इसे अंदर रख कर आ।

छोट लड़क : तुमने मेरी बात सुनी है ?

ी : सुन ली है।

छोट लड़क : तो जवाब य नह दया कुछ? (कोने से बैग उठा कर झटके से अंदर को चलती) मै कर रही ँ लप और मोज
क बात और कह रही ह बैग रख कर आ अंदर ।

चली जाती है। बड़ी लड़क कुरसी से उठ पड़ती है।

बड़ी लड़क : हम कह पाते थे कभी इतनी बात ? आधी बात भी कह द इससे, तो रास इस तरह कस द जाती थ क बस !

ी पल-भर अपने म डू बी खड़ी रहती है।

ी : (चे ा से अपने को सहेज कर) या कहा तूने ?

बड़ी लड़क : मने कहा क...(सहसा ी के भाव के त सचेत हो कर) तुम सोच रही थ कुछ ?

ी : नह ...सोच नह रही थी (इधर-उधर नजर डालती) दे ख रही थी क और कुछ समेटने को तो नह है। अभी कोई आनेवाला है
बाहर से और....।

बड़ी लड़क : कौन आनेवाला है ?

पु ष एक ध के गलास म चीनी हलाता अहाते के दरवाजे से आता है।

पु ष एक : सघा नया। इसका बॉस। वह नया आना शु आ है आजकल।

गलास डाय नग टे बल पर छोड़ कर बना कसी क तरफ दे खे वापस चला जाता है। ी कड़ी नजर से उसे जाते दे खती
है। बड़ी लड़क ी के पास जाती है।

बड़ी लड़क : ममा !

ी क आँख घूम कर बड़ी लड़क के चेहरे पर अ थर होती ह। कह कुछ नह पाती।

: या बात है, ममा !

ी : कुछ नह ।

बड़ी लड़क : फर भी ?

ी : कहा है ना, कुछ नह ।

वहाँ से हट कर कबड के पास चली जाती है और उसे खोल कर अंदर से कोई चीज ढूँ ढ़ने लगती है।

बड़ी लड़क : (उसके पीछे जा कर) ममा !

ी कोई उ र न दे कर कबड म से एक मेजपोश नकाल लेती और कबड बंद कर दे ती है।

: तुम तो आद हो रोज-रोज ऐसी बात सुनने क । कब तक इ ह मन पर लाती रहोगी ?

ी उसका वा य पूरा होने तक क रहती है फर जाकर तपाई का मेजपोश बदलने लगती है।

: (उसक तरफ आती) एक तु ह करनेवाली हो सब-कुछ इस घर म। अगर तु ह ....

ी के बदलते भाव को दे ख कर बीच म ही क जाती है। ी पुराने मेजपोश को हाथ म लए एक नजर उसे दे खती है ,
फर उमड़ते आवेग को रोकने क को शश म चेहरा मेजपोश से ढँ क लेती है।

: (काफ धीमे वर म) ममा !

ी आ ह ता से मोढ़े पर बैठती ई मेजपोश चेहरे से हटाती है।

ी : ( लाई लए वर म) अब मुझसे नह होता, ब ी। अब मुझसे नह सँभलता।

पु ष एक अहाते के दरवाजे से आता है-दो जले टो ट एक लेट म लए। ी के श द उसके कानो म पड़ते ह , पर वह
जानबूझ कर अपने चेहरे से कोई त या नह होने दे ता। लेट ध के गलास के पास छोड़ कर कताब के शे फ क
तरफ चला जाता है और उसके नचले ह से म रखी फाइल म से जैसे कोई खास फाइल ढूँ ढ़ने लगता है। बड़ी लड़क बात
करने से पहले पल भर को व फा ले कर उसे दे खती है।

बड़ी लड़क : ( वशेष प से उसी को सुनाती , ी से) जो तुमसे नह सँभलता, वह और कससे सँभल सकता है इस घर म...
जान सकती ँ ?

पु ष एक जैसे फाइल क धूल झाड़ने के लए उसे दो-एक जोर के हाथ लगा कर पीट दे ता है।

: जब से बड़ी ई ँ तभी से दे ख रही ँ। तुम सब-कुछ सह कर भी रात- दन अपने को इस घर के लए हलाक करती रही हो और...

पु ष एक अब एक और फाइल को उससे भी तेज और यादा बार पीट दे ता है

शीष पर
ी : पर आ या है उससे?
जाएँ
न सह पाने क नजर से प ष एक क तरफ दे ख कर मोढ़े से उठ पड़ती है। प ष एक दोन फाइल को जोर जोर आपस
न सह पान क नजर स पु ष एक क तरफ दख कर मोढ़ स उठ पड़ती ह। पु ष एक दोन फाइल को जोर-जोर आपस
म से टकराता है।

: (एकाएक पु ष एक क थप-थप से उतावली पड़ कर) तु ह सारे घर म यह धूल इसी व फैलानी है या ?

पु ष एक : जुनेजा क फाइल ढूँ ढ़ रहा था। नह ढूँ ढ़ता।

जैसे-तैसे फाइल को उसक जगह म वापस ठूँ सने लगता है। छोट लड़क पाँव पटकती अंदर से आती है।

छोट लड़क : दे ख लो ममा, यह मुझे फर तंग कर रहा है।

बड़ी लड़क : (लगभग डाँटती) तू च ला य रही है इतना ?

छोट लड़क : च ला रही ँ य क शोक अंदर मुझ.े ..

बड़ी लड़क : शोक -शोक या होता है ? तू अशोक भापाजी नह कह सकती ?

छोट लड़क : अशोक भापाजी ?... वह ?

ं य के साथ हँसती है।

ी : अशोक अंदर या कर रहा है इस व ? म सोचती थी क वह...

छोट लड़क : पड़ा सो रहा था अब तक। मने जा कर जगा दया, तो लगा मेरे बाल ख चने।

लड़का अंदर से आता है। लगता है , दो-तीन दन से उसने शेव नह क ।

लड़का : कौन सो रहा था ? म ? बलकुल झूठ।

बड़ी लड़क : शेव करना छोड़ दया है या तूने ?

लड़का : (अपने चेहरे को छू ता) चकट रखने क सोच रहा ँ। कैसी लगेगी मेरे चेहरे पर ?

छोट लड़क : (उतावली पकड़ कर) मेरी बात सुनी नह कसी ने। अंदर मेरे बाल ख च रहा था और बाहर आ कर अपनी चकट
बता रहा है।

डाय नग टे बल से ध का गलास ले कर गटगट ध पी जाती है। पु ष एक इस बीच शे फ और फाइल से उलझा रहता


है। एक फाइल को कसी तरह अंदर समाता है तो कुछ और फाइल बाहर को गर आती है , उ ह सँभालता है, तो पहले क
फाइल पीछे गर जाती ह।

ी : (लड़के के पास आती) तुमसे एक बात पूछूँ ?

लड़का : पूछो ।

ी : इस लड़क क या उ है ?

लड़का : यही तो मै तुमसे पूछना चाहता ँ क बारह साल क उ म यह लड़क ... ?

बड़ी लड़क : तेरह साल क उ म।

ी : तेरह साल क लड़क कतनी बड़ी होती है?

ी : तेरह साल क लड़क तेरह साल बड़ी होती है और तेरह साल

बड़ी ही होनी चा हए उसे, जब क यह लड़क ....

ी : ब ची नह है अब जो तू इसके बाल ख चता रहे।

छोट लड़क लड़के क तरफ जबान नकालती है। पु ष एक फाइल को कसी तरह समेट कर उठ पड़ता है।

लड़का : तब तो सचमुच मुझे गलती माननी चा हए।

ी : ज र माननी चा हए... ।

लड़का : क मने खामखाह इसके हाथ से वह कताब छ न ली।

पु ष एक : (अपनी तट थता बनाए रखने म असमथ , आगे आता) कौन- सी कताब ?

छोट लड़क : झूठ बोल रहा है। मने कोई कताब नह ली इसक ।

टो ट वाली लेट हाथ म लए मेज पर बैठ जाती है।

पु ष एक : (लड़क के पास प ँच कर) कौन-सी कताब ?

लड़का : (बुशट के अंदर से कताब नकाल कर दखाता) यह कताब।

छोट लड़क : झूठ, बलकुल झूठ। मने दे खी भी नह यह कताब।

लड़का : (आँखे फाड़ कर उसे दे खता) नह दे खी ?

छोट लड़क : (कमजोर पड़ कर ढ ठपन के साथ) तू त कए के नीचे रख कर सोए, तो भी नह । मने जरा नकाल कर दे ख दे ख-
भर ली, तो...।

पु ष एक : (हाथ बढ़ा कर) म दे ख सकता ँ ?

लड़का : ( कताब वापस बुशट म रखता) नह ...आपके दे खने क नह है। ( ी से) अब फर पूछो मुझसे क इसक उ कतने
साल है ?

बड़ी लड़क : य अशोक... यह वही कताब है न कैसानोवा... ?

शीष पर
पु ष : (ऊँचे वर म) ठहरो (बारी-बारी से उन सबक ओर दे खता) पहले म यह जान सकता ँ यहाँ कसी से क मेरी उ कतने
जाएँ
साल क है ?
कुछ पल का वधान , जसम सफ छोट लड़क क मुँह और टाँग चलती रहती ह ।

ी : ऐसी या बात कह द कसी ने क...

पु ष : (एक-एक श द पर जोर दे ता) म पूछ रहा ँ क मेरी उ कतने साल क है ? कतने साल है मेरी उ ?

ी : (उठ रही थ त के लए तैयार हो कर) यह तु ह पूछ कर जानना है या ?

पु ष एक : हाँ, पूछ कर ही जानना है आज। कतने साल हो चुके ह मुझे जदगी का भार ढोते ? उनम से कतने साल बीते ह मेरे
प रवार क दे ख-रेख करते ? और उस सबके बाद म आज प ँचा कहाँ ँ ? यहाँ क जसे दे खो वही मुझसे उलटे ढं ग से बात करता है ?
जसे दे खो, वही मुझसे बदतमीजी से पेश आता है ?

लड़का : (अपनी सफाई दे ने क को शश म) मने तो सफ इस लए कहा था, डैडी, क...

पु ष एक : हर-एक के पास एक-न-एक वजह होती है। इसने इस लए कहा था। उसने उस लए कहा था। म जानना चाहता ँ क
मेरी या यही है सयत है इस घर म क जो जब जस वजह से जो भी कह दे म चुपचाप सुन लया क ँ ? हर व क कार, हर व
क क च, बस यही कमाई है यहाँ मेरी इतने साल क ...

ी : ( वतृ णा से उसे दे खती) यह सब कसे सुना रहे हो तुम ?

पु ष एक : कसे सुना सकता ँ ? कोई है जो सुन सकता है ? ज ह सुनना चा हए, वे सब तो एक रबड़- टप के सवा कुछ
समझते ही नह मुझे। सफ ज रत पड़ने पर इस टप का ठ पा लगा कर...

ी : यह ब त बड़ी बात नह कह रहे तुम ?

लड़का : (उसे रोकने क को शश म) ममा...!

ी : मुझे सफ इतना पूछ लेने दे इनसे क रबड़- टप के माने या होते ह? एक अ धकार, एक तबा, एक इ जत यही न ?

लड़का : ( फर उसी को शश म) सुनो तो सही, ममा... !

ी : ( बना कसी तरफ यान दए) यह सब कब-कब मला है इनसे कसी को भी इस घर म ? कस माने म ये कहते है क....?

पु ष-एक : कसी माने म नह । म इस घर म एक रबड़- टप भी नह , सफ एक रबड़ का टु कड़ा ँ--बार-बार घसा जानेवाला


रबड़ का टु कड़ा। इसके बाद या कोई मुझे वजह बता सकता है, एक भी ऐसी वजह, क य मुझे रहना चा हए इस घर म?

सब लोग चुप रहते ह।

: नह बता सकता न ?

ी : मने एक छोट -सी बात पूछ है तुमसे...

पु ष एक : ( सर हलाता) हाँ...छोट -सी बात ही तो है यह। अ धकार, तबा, इ जत - यह सब बाहर के लोग से मल सकता है
इस घर को। इस घर का आज तक कुछ बना है, या आगे बन सकता है, तो सफ बाहर के लोग के भरोसे। मेरे भरोसे तो सब-कुछ
बगड़ता आया है और आगे बगड़-ही- बगड़ सकता है। (लड़के क तरफ इशारा करके) यह आज तक बेकार य घूम रहा है ? मेरी
वजह से। (बड़ी लड़क क तरफ इशारा करके) यह बना बताए एक रात घर से य भाग गई थी ? मेरी वजह से। ( ी के बलकुल
सामने आ कर) और तुम भी...तुम भी इतने साल से य चाहती रही हो क... ?

ी : (बौखला कर , शेष तीन से) सुन रहे हो तुम लोग ?

पु ष एक : अपनी जदगी चौपट करने का ज मेदार म ँ। इन सबक जद गयाँ चौपट करने का ज मेदार म ँ। फर भी म इस
घर से चपका ँ य क अंदर से म आराम-तलब ँ, घरघुसरा ँ, मेरी ह य म जंग लगा है।

ी : म नह जानती, तुम सचमुच ऐसा महसूस करते हो या.. ?

पु ष : सचमुच महसूस करता ँ। मुझे पता है, म एक क ड़ा ँ जसने अंदर-ही-अंदर इस घर को खा लया है (बाहर के दरवाजे क
तरफ चलता) पर अब पेट भर गया है मेरा। हमेशा के लए भर गया है (दरवाजे के पास क कर) और बचा भी या है जसे खाने के लए
और रहता र ँ यहाँ ?

चला जाता है। कुछ दे र के लए सब लोग जड़-से हो रहते ह। फर छोट लड़क हाथ के टो ट को मुँह क ओर ले जाती
है।

बड़ी लड़क : तु हारा खयाल है, ममा...?

ी : लौट आएँगे रात तक। हर शु -शनीचर यही सब होता है यहाँ।

छोट लड़क : (जूठे टो ट को लेट म वापस पटकती है) थू:-थू:।

बड़ी लड़क : (काफ गु से के साथ) तुझे या हो रहा है वहाँ ?

छोट लड़क : मुझे या हो रहा है यहाँ ? यह टो ट है, कोयला है ?

ी : (दाँत भ चे) तू इधर आएगी एक मनट ?

छोट लड़क : नह आऊँगी।

बड़ी लड़क : नह आएगी ?

छोट लड़क : नह आऊँगी। (सहसा उठ कर बाहर को चलती) अंदर जाओ, तो बाल ख चे जाते ह। बाहर आओ, तो कट पट-
कट पट- कट पट और खाने को कोयला - अब उधर आ कर इनके तमाचे और खाने ह।

चली जाती है।

लड़का : (उसके पीछे जाने को हो कर) म दे खता ँ इसे कम-से-कम लड़क को तो मुझ.े ..

दरवाजे के पास प ँचता ही है क पीछे से ी आवाज दे कर उसे रोक लेती है।

ी : सुन।
शीष पर
लड़का : ( कसी तरह नकल जाने क को शश म) पहले म जा कर इसे...
जाएँ
ी : (काफ स त वर म) पहले त आ कर यहाँ बात सन मेरी।
ी : (काफ स त वर म) पहल तू आ कर यहा... बात सुन मरी।

लड़का कसी ज री काम पर जाने से रोक लए जाने क मु ा म लौट कर ी के पास आ जाता है।

लड़का : बताओ।

ी : कम-से-कम तुझे इस व कह नह जाना है। वह आज फर आनेवाला है थोड़ी दे र म और...

लड़का : ('मुझे या, कोई आनेवाला है तो ?' क मु ा म) कौन आनेवाला है?

बड़ी लड़क : ममा का बॉस... या नाम है उसका ?

लड़का : अ छा, वह... आदमी !

बड़ी लड़क : तू मला है उससे ?

लड़का : दो बार।

बड़ी लड़क : कहाँ ?

लड़का : इसी घर म।

ी : (बड़ी लड़क से) दोन बार के लए बुलाया था मने उसे, आज भी इसी क खा तर?

लड़का : (कुछ तीखा पड़ कर) मेरी खा तर ? मुझे या लेना-दे ना है उससे ?

बड़ी लड़क : ममा उसके ज रए तेरी नौकरी के लए को शश कर रही ह गी न... ।

लड़का : मुझे नह चा हए नौकरी। कम-से-कम उस आदमी के ज रए हर गज नह ।

बड़ी लड़क : य , उस आदमी को या है ?

लड़का : चुकंदर है। वह आदमी है जसे बैठने का शऊर है, न बात करने का।

ी : पाँच हजार तन वाह है उसक । पूरा द तर सँभलता है।

लड़का : पाँच हजार तन वाह है, पूरा द तर सँभलता है, पर इतना होश नह है क अपनी पतलून के बटन...

ी : अशोक !

लड़का : तु हारा बॉस न होता, तो उस दन म कान से पकड़ कर घर से नकाल दया होता। सोफे पे टाँग पसारे आप सोच कुछ रहे
ह, जाँघ खुजलाते दे ख कसी तरफ रहे है और बात मुझसे कर रहे ह... (नकल उतारता) 'अ छा, यह बतलाइए क आपके राजनी तक
वचार या ह?' राजनी तक वचार ह मेरी खुजली और उसक मरहम !

ी : (अपना माथा सहला कर बड़ी लड़क से) ये लोग ह जनके लए म जानमारी करती ँ रात- दन।

लड़का : पहले पाँच सेकंड आदमी क आँख म दे खता रहेगा फर ह ठ के दा हने कोनो से जरा-सा मु कुराएगा। फर एक-एक
ल ज को चबाता आ पूछेगा... (उसके वर म) 'आप या सोचते ह, आजकल युवा लोग म इतनी अराजकता य है?' ढूँ ढ़-ढूँ ढ़ कर
सरकारी हद के ल ज लाता है-युवा लोग म ! अराजकता !

ी : तो फर ?

लड़का : तो फर या ?

ी : तो फर या मरजी है तेरी ?

लड़का : कस चीज को ले कर ?

ी : अपने-आपको।

लड़का : मुझे या आ ?

ी : जदगी म तुझे भी कुछ करना-धरना है या बाप ही क तरह...?

लड़का : ( फर तीखा पकड़ कर) हर बात म खामखाह उनका ज य बीच म लाती हो ?

ी : पढ़ाई थी, तो तूने पूरी नह क । एयर- ज म नौकरी दलवाई थी, तो वहाँ से छह ह ते बाद छोड़ कर चला आया। अब म
नए सरे से को शश करना चाहती ँ तो...

लड़का : पर य करना चाहती हो ? मने कहा है तुमसे को शश करने के लए ?

बड़ी लड़क : तो तेरा मतलब है क तू... जदगी-भर कुछ भी नह करना चाहता?

लड़का : ऐसा कहा है मने ?

बड़ी लड़क : तो नौकरी के सवा ऐसा या है जो तू....?

लड़का : यह म नह कह सकता। सफ इतना कह सकता ँ क जस चीज म मेरी अंदर से दलच पी नह है...।

ी : दलच पी तो तेरी...।

बड़ी लड़क : ठहरो ममा... !

ी : तू ठहर, मुझे बात करने दे । (लड़के से) दलच पी तो तेरी सफ तीन चीज म है- दन-भर ऊँघने म, त वीरे काटने म
और...घर क यह चीज वह चीज ले जा कर....

लड़का : (कड़वी नजर से उसे दे खता) इसे घर कहती हो तुम ?

ी : तो तू इसे या समझ कर रहता है यहाँ ?

शीष पर
लड़का : म इसे...
जाएँ
बड़ी लड़क : (उसे बोलने न दे ने के लए) दे ख अशोक ममा के यह सब कहने का मतलब सफ इतना है क
बड़ी लड़क : (उस बोलन न दन क लए) दख अशोक, ममा क यह सब कहन का मतलब सफ इतना ह क...

लड़का : म नह जानता मतलब ? तू चली गई है यहाँ से, म तो अभी यह रहता ँ।

ी : (हताश भाव से) तो य नह तू भी फर... ?

बड़ी लड़क : ( झड़कने के वर म) कैसी बात कर रही हो, ममा !

ी : कैसी बात कर रही ँ ? यहाँ पर सब लोग समझते या ह मुझे ? एक मशीन, जो क सबके लए आटा पीस कर रात को दन
और दन को रात करती रहती है? मगर कसी के मन म जरा- सा भी खयाल नह है इस चीज के लए क कैसे म.. ।

इस बीच ही बाहर के दरवाजे पर पु ष दो क आकृ त दखाई दे ती है जो कवाड़ को हलके से खटखटा दे ता है। ी


च क कर उधर दे खती है और अपनी अधकही बात को बीच म ही चबा जाती है।

:( वर को कसी तरह सँभालती) आप?.. आ गए ह आप ? ...आइए-आइए अंदर।

बड़ी लड़क : (दा य वपूण ढं ग से दरवाजे क तरफ बढ़ती) आइए।

पु ष दो अ य त मु ा म उनके अ भवादन का उ र दे ता अंदर आ जाता है।

ी : यह मेरी बड़ी लड़क ब ी। अशोक तो आपसे मल ही चुका है।

पु ष दो : अ छा-अ छा यही है वह लड़क । तुम चचा कर रही थ इसक । इसका ऑपरेशन आ था न पछले साल...न-न-न न।
वह तो मसेज माथुर क लड़क का ? नह शायद...पर आ था कसी क लड़क का।

ी : यहाँ आ जाइए सोफे पर !

सोफे क तरफ बढ़ते ए पु ष दो क आँख लड़के से मल जाती ह। लड़का चलते ढं ग से उसे हाथ जोड़ दे ता है। पु ष दो
फर उसी अ य त ढं ग से उ र दे ता है।

पु ष दो : (बैठता आ) इतने लोग से मलना-जुलना होता है क...(अपनी घड़ी दे ख कर) पाँच मनट ह सात म। उनका अनुरोध
था, सात तक अव य प ँच जाऊँ। कई लोग को बुला रखा है उ ह ने - वशेष प से मलने के लए (बड़ी लड़क को यान से दे खता,
ी से) तुमने बताया था कुछ इसके वषय म। कस कॉलेज म है यह?

ी : अब कॉलेज म नह है...

पु ष दो : हाँ-हाँ-हाँ...बताया था तुमने। (बड़ी लड़क से) बैठो न। ( ी से) बैठो तुम भी।

ी सोफे के पास कुरसी पर बैठ जाती है। बड़ी लड़क कुछ वधा म खड़ी रहती है।

ी : बैठ जा, खड़ी य है ?

बड़ी लड़क : ये ज द चले जाएँग,े सोच रही थी चाय का पानी... ।

पु ष दो : नह -नह , चाये-वाय नह इस समय। वैसे भी ब त कम पीता ँ। एक लेख था कह रजड डाइजे ट म था?... क


अ धक चाय पीने से (जाँघ खुजलाता) रीडस डाइजे ट भी या चीज नकालते ह ! अपने यहाँ तो बस ये कहा नयाँ वो कहा नयाँ, कोई
अ छ प का मलती ही नह दे खने को। एक अमे रकन आया आ था पछले दन । बता रहा था क...

लड़का जो इतनी दे र परे खड़ा रहता है , अब बढ़ कर उनके पास आ जाता ह।

लड़का : ( ी से) ऐसा है ममा, क...

ी : क अभी। (पु ष दो से) एक याली भी नह लगे ?

पु ष दो : ना, बलकुल नह ।...अंतररा ीय संपक ह कंपनी के, सो सभी दे श के लोग मलने आते रहते ह। जापान से तो पूरा
त न ध-मंडल ही आया आ था पछले दन ...। कुछ भी क हए, जापान ने सबक नाक म नकेल कर रखी है आजकल। अभी उस दन
म जापान क पछले वष क औ ो गक सां यक दे ख रहा था... ।

लड़का : म मा चा ँगा य क...

ी : तुमसे कहा है, क अभी थोड़ी दे र। (पु ष दो से) आप कॉफ पसंद करते ह , तो...

पु ष दो : न चाय, न कॉफ । एक घटना सुनाऊँ आपको, कॉफ पीने के संबंध म। आज क बात नह , ब त साल पहले क है। तब
क जब म व व ालय क सा ह य-सभा का मं ी था। (मन म उस बात का रस लेता) ह-ह-ह-ह-हाँ-ह।...सा ह यक ग त व धय म च
आरंभ से ही थी। सो... (बड़ी लड़क और लड़के से) बैठ जाओ तुम लोग।

बड़ी लड़क बैठ जाती है।

लड़का : बात यह है क...

ी : (उठती ई) ! म थोड़ा नमक न ले कर आ रही ँ।

लड़के को बैठने के लए क च कर अहाते के दरवाजे से चली जाती है। लड़का असंतु भाव से उसे दे खता है , फर
टहेलता आ पढ़ने क मेज के पास चला जाता है। बड़ी लड़क से आँख मलने पर हलके से मुँह बनाता है और कुरसी का ख
थोड़ा सोफे क तरफ करके बैठ जाता है।

पु ष दो : (बड़ी लड़क से) तु ह पहले कह दे खा है... नह दे खा ?

बड़ी लड़क : मुझे ?...आपने ?

पु ष दो : कसी इंटर ू म ?

बड़ी लड़क : नह तो।

पु ष दो : फर भी लगता है दे खा है।...कोई और होगी। बलकुल तु हारे जैसी थी। व च बात नह है यह ?

बड़ी लड़क : या ?

पु ष दो : क ब त-से लोग एक- सरे जैसे होते ह। हमारे अंकल ह एक। पीठ से दे खो - मोरारजी भाई लगते ह।
शीष पर
लड़का इस बीच मेज क दराज खोल कर त वीर नकाल लेता है और उ ह मेज पर फैलाने लगता है।
जाएँ
लड़का : हमारी आंट ह एक। गरदन काट कर दे खो जीता लोलो जदा नजर आती ह।
लड़का : हमारी आट ह एक। गरदन काट कर दखो - जीता लोलो जदा नजर आती ह।

पु ष दो : हाँ !...कई लोग होते ह ऐसे। जीवन क व च ता क ओर यान दे ने लग, तो कई बार तो लगता है क... (सहसा जेब
टटोलता) भूल तो नह आया घर पर ?(जेब से च मा नकाल कर वापस रखता) नह । तो म कह रहा था क... या कह रहा था ?

बड़ी लड़क : क जीवन क व च ता क ओर यान दे ने लग, तो...

लड़का : जापान क औ ो गक... या थी वह ? उसक बात नह कर रहे थे ?

ी इस बीच नमक न क लेट लए अहाते के दरवाजे से आ जाती है।

ी : कोई घटना सुना रहे थे कॉफ पीने के संबंध म।

पु ष दो : हाँ...तो...तो...तो वह...वह जो...।

ी : ली जए थोड़ा-सा।

पु ष दो : हाँ-हाँ... ज र (बड़ी लड़क से) लो तुम भी ( ी से) बैठ जाओ अब।

ी : (मोढ़े पर बैठती) उस वषय म सोचा आपने कुछ ?

पु ष दो : (मुँह चलाता) कस वषय म ?

ी : वह जो मने बात क थी आपसे... क कोई ठ क-सी जगह हो आपक नजर म, तो...

पु ष दो : ब त वा द है।

ी : याद है न आपको ?

पु ष दो : याद है। कुछ बात क थी तुमने एक बार। अपनी कसी क जन के लए कहा था...नह वह तो मसेज म हो ा ने कहा
था। तुमने कसके लए कहा था ?

ी : (लड़के क तरफ दे खती) इसके लए।

पु ष दो घूम कर लड़के क तरफ दे खता है , तो लड़का एक बनावट मु कुराहट मु कुरा दे ता है।

पु ष दो : ँ- ँ... । या पास कया है इसने ? बी॰ कॉम॰ ?

ी : मने बताया था। बी॰ एससी॰ कर रहा था... तीसरे साल म बीमार हो गया इस लए...

पु ष दो : अ छा-अ छा...हाँ...बताया था तुमने क कुछ दन एयर इं डया म...

ी : एयर- जम

पु ष दो : हाँ, एयर- ज म।... ँ- ँ... ँ।

फर घूम कर लड़के क ओर क तरफ दे ख लेता है। लड़का फर उसी तरह मु कुरा दे ता है।

: इधर आ जाइए आप। वहाँ र य बैठे ह ?

लड़का : (अपनी नाक क तरफ इशारा करता) जी, मुझे जरा…

पु ष दो : अ छा-अ छा दे श का जलवायु ही ऐसा है, या कया जाए? जलवायु क से जो दे श मुझे सबसे पसंद है, वह है
इटली। पछले वष काफ या ा पर रहना पड़ा। पूरा यूरोप घूमा, पर जो बात मुझे इटली म मली, वह और कसी दे श म नह । इटली क
सबसे बड़ी वशेषता पता है, या है ?...ब त ही वा द ट है। कहाँ से लाती हो ? (घड़ी दे ख कर) सात पाँच यह हो गए। तो...

ी : यह कोने पर एक कान है।

पु ष दो : अ छ कान है। म ायः कहा करता ँ क खाना और पहनना, इन दो य से... वह अमरीकन भी यही बात कह रहा
था क जतनी व वधता इस दे श के खान-पान और पहनावे म है...और वही या, सभी वदे शी लोग इस बात को वीकार करते ह। या
सी, या जमन ! म कहता ँ, संसार म शीत यु को कम करने म हमारी कुछ वा त वक दे न है, तो यही क...तुम अपनी इस साड़ी को
ही लो। कतनी साधारण है, फर भी...यह हड़ताल -हड़ताल का च कर न चलता अपने यहाँ, तो हमारा व उ ोग अब तक...अ छा,
तुमने वह नो टस दे खा है जो यू नयन ने मैनेजमट को दया है ?

ी 'हाँ' के लए सर हला दे ती है।

: कतनी बेतुक बात ह उसम !हमारे यहाँ डी॰ए॰ पहले ही इतना है क...

लड़का दराज से एक पैड नकाल कर दराज बंद करता है। पु ष दो फर घूम कर उस तरफ दे ख लेता है। लड़का फर
मु कुरा दे ता है। पु ष दो के मुँह मोड़ने के साथ ही वह पैड पर प सल से लक र ख चने लगता है।

: तो म कह रहा था क... या कह रहा था ?

ी : कह रहे थे... ।

बड़ी लड़क : कई बात कह रहे थे।

पु ष दो : पर बात शु कहाँ से क थी मने ?

लड़का : इटली क सबसे बड़ी वशेषता से।

पु ष : हाँ, पर उसके बाद... ?

लड़का : खान-पान और पहनावे क व वधता...अमरीकन, जमन, सी... शीत-यु , हड़ताल...व -उ ोग...डी॰ए॰।

पु ष दो : ब त अ छ मरण श है लड़के क । तो कहने का मतलब था क...

ी : थोड़ा और ली जए।

पु ष दो : और नह अब।
शीष पर
ी : थोड़ा-सा...दे खए, जैसे भी हो, इसके लए आपको कुछ-न-कुछ ज र करना है ?
जाएँ
प ष दो : ज र । कसके लए या करना है ?
पु ष दो : ज र...। कसक लए या करना ह ?

ी : (लड़के क तरफ दे ख कर) इसके लए कुछ-न-कुछ।

पु ष दो : हाँ-हाँ... ज र। वह तो है ही। (लड़के क तरफ मुड़ कर) बी॰एससी॰ म कौन-सा डवीजन था आपका ?

लड़का उँगली से हाथ म सफर ख च दे ता है।

: कौन-सा ?

लड़का : (तीन चार बार उँगली घुमा कर) ओ !

पु ष दो : (जैसे बात समझ कर) ओ !

ी : तीसरे साल म बीमार हो गया था, इस लए...

पु ष दो : अ छा-अ छा...हाँ।...ठ क ह...दे खूँगा म। (घड़ी दे ख कर) अब चलना चा हए। ब त समय हो गया है। (उठता आ) तुम
घर पर आओ कसी दन। ब त दन से नह आई।

ी और बड़ी लड़क साथ ही उठ खड़ी होती ह।

ी : म भी सोच रही थी आने के लए। बेबी से मलने।

पु ष दो : वह पूछती रहती है, आंट इतने दन से य नह आई ? ब त यार करती है अपनी आं टय से। माँ के न होने से
बेचारी...।

ी : ब त ही यारी ब ची है। म पूछ लूँगी कसी दन आपसे। इससे भी कह ँ , आ कर मल ले आप से एक बार।

पु ष दो : (बड़ी लड़क को दे खता) कससे ? इससे ?

ी : अशोक से।

पु ष दो : हाँ-हाँ... य नह । पर तुम तो आओगी ही। तु ह को बता ँ गा।

ी : ये जा रहे ह, अशोक !

लड़का : (जैसे पहले पता न चला हो) जा रहे ह आप !

उठ कर पास आ जाता है।

पु ष दो : (घड़ी दे खता) सोचा नह था, इतनी दे र कूँगा।(बाहर से दरवाजे क तरफ बढ़ता बड़ी लड़क से) तुम नह करती
नौकरी ?

बड़ी लड़क : जी नह ।

ी : चाहती है करना, पर...(बड़ी लड़क से) चाहती है न ?

बड़ी लड़क : हाँ...नह ...ऐसा है क...।

ी : डरती है।

पु ष दो : डरती है ?

ी : अपने प त से।

पु ष दो : प त से ?

ी : हाँ...उसे पसंद नह है।

पु ष दो : यह लड़क ?

ी : नह , इसका नौकरी करना।

पु ष दो : अ छा-अ छा...हाँ...।

ी : तो आपको यान रहेगा न इसके लए...?

पु ष दो : इसके लए ?

ी : मेरा मतलब है उसके लए...।

पु ष दो : हाँ-हाँ-हाँ-हाँ-हाँ...तुम आओगी ही घर पर। द तर क भी कुछ बात करन ह। वही जो यू नयन-ऊनीयन का झगड़ा है।

ी : म तो आऊँगी ही। यह भी अगर मल ले...?

पु ष दो : (घड़ी दे ख कर) ब त दे र हो गई। (लड़के से) अ छा, एक बात बताएँगे आप क ये जो हड़ताल हो रही ह सब े म
आजकल, इनके वषय म आप या सोचते ह ?

लड़का ऐसे उचक जाता है जैसे कोई क ड़ा पतलून के अंदर चला आया हो।

लड़का : ओह ! ओह ! ओह !

जैसे बाहर से क ड़ा पकड़ने क को शश करने लगता है।

बड़ी लड़क : या आ ?

ी : (कुछ खीज के साथ) उ ह ने या पूछा है ?

लड़का : (बड़ी लड़क से) आ कुछ नह ...क ड़ा है एक।

शीष पर
बड़ी लड़क : क ड़ा ?
जाएँ
प ष दो : अपने दे श म तो ।
पु ष दो : अपन दश म तो...।

लड़का : पकड़ा गया।

पु ष दो : ...इतनी तरह का क ड़ा पाया जाता है क...

लड़का : मसल दया ।

पु ष दो : मसल दया ? शव- शव- शव ! यह हसा क भावना...

ी : ब त है इसम। कोई क ड़ा हाथ लग जाए सही।

लड़का : और क ड़ा चाहे जतनी हसा करता रहे ?

पु ष दो : मू य का है। म ायः कहा करता ँ...बैठो तुम लोग।

ी : म सड़क तक चल रही ँ साथ।

पु ष दो : इस दे श म नै तक मू य के उ थान के लए...तुमने भाषण सुना है...वे जो आए ए ह आजकल, या नाम है उनका?

लड़का : नरोध मह ष ?

पु ष दो : हाँ-हाँ-हाँ...यही नाम है न ? इतना अ छा भाषण दे ते ह...ज म-कुंडली भी बनाते ह... वैसे आप भाषण? वाह-वाह-वाह !

अं तम श द के साथ दरवाजा लाँघ जाता है। ी भी साथ ही बाहर चली जाती है।

लड़का : हाहा !

बड़ी लड़क : यह कस बात पर ?

लड़का : ए टं ग दे खा ?

बड़ी लड़क : कसका ?

लड़का : मेरा।

बड़ी लड़क : तो या तू...?

लड़का : उ लू बना रहा था उसे।

बड़ी लड़क : पता नह , असल म कौन उ लू बना रहा था।

लड़का : य ?

ब ड़ी लड़क : उसे तो फर भी पाँच हजार तनखाह मल जाती है।

लड़का : चेहरा दे खा है पाँच हजार तनखाहवाले का ?

पैड पर बनाया गया खाका ला कर उसे दखाता है।

बड़ी लड़क : यह उसका चेहरा है।

लड़का : नह है ?

बड़ी लड़क : सर पर या है यह ?

लड़का : स ग बनाए थे, काट दए। कहते ह...स ग नह होते।

बड़ी लड़क पैड उसके हाथ से ले कर दे खती है। ी लौट कर आती है।

ी : तू एक मनट जाएगा बाहर।

लड़का : य ?

ी : गाड़ी चल नह रही उनक ?

लड़का : या आ ?

ी : बैटरी डाउन हो गई है। ध का लगाना पड़ेगा।

लड़का : अभी से ? अभी तो नौकरी क बात तक नह क उसने...।

ी : ज द चला जा। उ ह पहले ही दे र हो गई है।

लड़का : अगर सचमुच दला द उसने नौकरी, तब तो पता नह ...।

बाहर के दरवाजे से चला जाता है।

ी : कुछ समझ म नह आता, या होने को है इस लड़के का...यह तेरे हाथ म या है?

बड़ी लड़क : मेरे हाथ म? यह तो वह है...वह जो बना रहा था।

ी : या बना रहा था ?...दे खूँ !

बड़ी लड़क : (पैड उसक तरफ बढ़ाती) ऐसे ही...पता नह या बना रहा था ! बैठे-बैठे इसे भी बस... ?

ी पल-भर खाके को ले कर दे खती रहती है।

ी : यह चेहरा कुछ-कुछ वैसा नह है ?

बड़ी लड़क : कैसा ?


शीष पर
ी : तेरे डैडी जैसा ?
जाएँ
बड़ी लड़क : डैडी जैसा ? नह तो।
बड़ी लड़क : डडी जसा ? नह तो।

ी : लगता तो है कुछ-कुछ।

बड़ी लड़क : वह तो इस आदमी का चेहरा बना रहा था...यह जो अभी गया है।

ी : ( यौरी डाल कर) यह करतूत कर रहा था ?

लड़का लौट कर आ जाता है।

लड़का : (जैसे हाथ से गद झाड़ता) या तो अपनी सूरत है और या गाड़ी क !

ी : इधर आ।

लड़का : (पास आता) गाड़ी का इंजन तो फर भी ध के से चल जाता है, पर जहाँ तक (माथे क तरफ इशारा करके) इस इंजन
का सवाल है...

ी : (कुछ स त वर म) यह या बना रहा था तू ?

लड़का : तु ह या लगता है?

ी : तू या बना रहा था ?

लड़का : एक आ दम बन-मानुस ।

ी : या ?

लड़का : बन-मानुस।

ी : नाटक मत कर। ठ क से बता।

लड़का : दे ख नह रही यह लपलपाती जीभ, ये रसती गुफा जैसी आँख, ये...

ी : मुझे तेरी ये हरकत बलकुल पसंद नह ह। सुन रहा है तू ?

लड़का उ र न दे कर पढ़ने क मेज क तरफ बढ़ जाता है और वहाँ से त वीर उठा कर दे खने लगता है।

: सुन रहा है या नह ?

लड़का : सुन रहा ँ।

ी : सुन रहा है, तो कुछ कहना नह है तुझे ?

लड़का उसी तरह त वीर दे खता रहता है।

: नह कहना है ?

लड़का : (त वीर वापस मेज पर रख दे ता) या कह सकता ँ ?

ी : मत कह, नह कह सकता तो। पर म म त-खुशामत से लोग को घर पर बुलाऊँ और तू आने पर उनका मजाक उड़ाए,
उनके काटू न बनाए... ऐसी चीज अब मुझे बलकुल बरदा त नह ह। सुन लया? बलकुल- बलकुल बरदा त नह ह।

लड़का : नह बरदा त है, तो बुलाती य हो ऐसे लोग को घर पर क जनके आने से... ?

ी : हाँ-हाँ...बता, या होता है जनके आने से ?

लड़का : रहने दो। म इसी लए चला जाना चाहता था पहले ही।

ी : तू बात पूरी कर अपनी।

लड़का : जनके आने से हम जतने छोटे ह, उससे और छोटे हो जाते ह अपनी नजर म।

ी : (कुछ त ध हो कर) मतलब ?

लड़का : मतलब वही जो मैने कहा है। आज तक जस कसी को बुलाया है तुमने, जस वजह से बुलाया है ?

ी : तू या समझता है, कस वजह से बुलाया है ?

लड़का : उसक कसी 'बड़ी' चीज क वजह से। एक को क वह इंटेले चुअल ब त बड़ा है। सरे को क उसक तनखाह पाँच
हजार है। तीसरे को क उसक त ती चीफ क म र क है। जब भी बुलाया है, आदमी को नह -उसक तन वाह को, नाम को, तबे को
बुलाया है।

ी : तू कहना या चाहता है इससे क ऐसे लोग के आने से इस घर के लोग छोटे हो जाते ह ?

लड़का : ब त-ब त छोटे हो जाते ह।

ी : और म उ ह इस लए बुलाती ँ क...

लड़का : पता नह कस लए बुलाती हो, पर बुलाती सफ ऐसे ही लोग को हो। अ छा, तु ह बताओ, कस लए बुलाती हो ?

ी : इस लए क कसी तरह इस घर का कुछ बन सके, क मेरे अकेली के ऊपर ब त बोझ है इस घर का। जसे कोई और भी मेरे
साथ दे नेवाला हो सके। अगर म कुछ खास लोग के साथ संबंध बना कर रखना चाहती ँ तो अपने लए नह , तुम लोग के लए। पर तुम
लोग इससे छोटे होते हो, तो म छोड़ ँ गी को शश। ह, इतना कह कर क म अकेले दम इस घर क ज मेदा रयाँ नह उठाती रह सकती
और एक आदमी है जो घर का सारा पैसा डु बो कर साल से हाथ धरे बैठा है। सरा अपनी को शश से कुछ करना तो र, मेरे सर फोड़ने
से भी कसी ठकाने लगाना अपना अपमान समझता है। ऐसे म मुझसे भी नह नभ सकता। जब और कसी को यहाँ दद नह कसी
चीज का, तो अकेली म ही य अपने को चीथती र ँ रात- दन ? म भी य न सुख हो कर बैठ र ँ अपनी जगह ? उससे तो तुमम से
कोई छोटा नह होगा।

लड़का चुप रह कर मेज क दराज खोलने-बंद करने लगता है।

शीष पर
: चुप य है अब ? बता न, अपने बड़ पन से जदगी काटने का या तरीका सोच रखा है तूने ?
जाएँ
लड़का : बात को रहने दो ममा ! नह चाहता मेरे मँह से कछ ऐसा नकल जाए जससे तम
लड़का : बात को रहन दो, ममा ! नह चाहता, मर मुह स कुछ ऐसा नकल जाए जसस तुम...

ी : जससे म या ? कह, जो भी कहना है तुझे।

लड़का : (कुरसी पर बैठता) कुछ नह कहना है मुझे।

उड़ते मन से एक मैगजीन और कची दराज से नकाल कर उसे जोर बंद कर दे ता है।

ी : कुछ नई तैना है तुझे। बैथ दा तुलछ पल औल तछवील तात । ततनी तछवील ताती अब तत लाजे मु े ने ? अगर कुछ
नह कहना था तुझे तो पहले ही य नह अपनी जबान....?

बड़ी लड़क : (पास आ कर उसक बाँह थामती) क जाओ ममा, म बात क ँ गी इससे (लड़के से) दे ख अशोक... ।

लड़का : तेरा इस व बात करना ज री है या ?

बड़ी लड़क : म तुझसे सफ इतना पूछना चाहती ँ क...?

लड़का : पर य पूछना चाहती ह ? म इस व कसी क कसी भी बात का जवाब नह दे ना चाहता।

बड़ी लड़क : (कुछ क कर) यह तू भी जानता है क ममा ने ही आज तक...

लड़का : तू फर भी कह रही है बात !

ी : य कर रही है बात तू इससे ? कोई ज री नह कसी से बात करने क । आज व आ गया है जब खुद ही मुझे अपने लए
कोई-न-कोई फैसला....

लड़का : ज र कर लेना चा हए।

बड़ी लड़क : अशोक!

लड़का : म कहना नह चाहता था, ले कन..

ी : तो कह य नह रहा है ?

लड़का : कहना पड़ रहा है य क...जब नह नभता इनसे यह सब, तो य नभाए जाती ह इसे ?

ी : म नभाए जाती ँ य क...

लड़का : कोई और नभानेवाला नह है। यह बात ब त बार कही जा चुक है इस घर म।

बड़ी लड़क : तो तू सोचता है क म मा जो कुछ भी करती ह यहाँ...?

लड़का : म पूछता ँ य करती ह ? कसके लए करती ह...?

बड़ी लड़क : मेरे लए करती थ ... ।

लड़का : तू घर छोड़ कर चली गई।

बड़ी लड़क : क ी के लए करती ह... ।

लड़का : वह दन-ब- दन पहले से बदतमीज होती जा रही है।

बड़ी लड़क : डैडी के लए करती ह...।

लड़का : और म ही शायद इस घर म सबसे यादा नाकारा ँ।...पर य ँ?

बड़ी लड़क : यह...यह म कैसे बता सकती ँ ?

लड़का : कम-से-कम अपनी बात तो बता ही सकती है। तू यह घर छोड़ कर य चली गई थी ?

बड़ी लड़क : (अ तभ हो कर) म चली गई थी...चली गई थी... य क...

लड़का : य क तू मनोज से ेम करती थी।...खुद तुझे ही यह गु कमजोर नह लगती ?

बड़ी लड़क : ( ँ आसी पड़ कर) तो तू मुझसे... मुझसे भी कह रहा है क....?

श थल होती एक मोढ़े पर बैठ जाती है।

लड़का : मने कहा था क मुझसे...मत कर बात।

ी आ ह ता से दो कदम चल कर लड़के के पास आ जाती है।

ी : (अ य धक गंभीर) तुझे पता है न, तूने या बात कही है ?

लड़का बना कहे मैगजीन खोल कर उसम से एक त वीर काटने लगता है। लड़का उसी तरह चुपचाप त वीर काटता
रहता है।

: पता है न ?

लड़का उसी तरह चुपचाप तसवीर काटता रहता है।

: तो ठ क है। आज से म सफ अपनी जदगी को दे खूँगी - तुम लोग अपनी-अपनी जदगी को खुद दे ख लेना।

बड़ी लड़क एक हाथ से सरे हाथ के नाखून को मसलने लगती है।

: मेरे पास अब ब त साल नह ह जीने को। पर जतने ह, उ ह म इसी तरह और नभते ए नह काटूँ गी। मेरे करने से जो कुछ हो
सकता था इस घर का, हो चुका आज तक। मेरे तरफ से यह अंत है उसका न त अंत !

एक खँडहर क आ मा को करता हलका संगीत। लड़का अपनी कट त वीर पल-भर हाथ म ले कर दे खता है ,
फर चक-चक उसे बड़े-बड़े टु कड़ म कतरने लगता है जो नीचे फश पर बखरते जाते ह। काश आकृ तय पर धुँधला कर
शीष पर
कमरे के अलग-अलग कोन म समटता वलीन होने लगता है। मंच पर पूरा अँधेरा होने के साथ संगीत क जाता है। पर कची
जाएँ
क चक-चक फर भी कुछ ण सुनाई दे ती रहती है।
[अंतराल वक प]

दो अलग-अलग काश-वृ म लड़का और बड़ी लड़क । लड़का सोफे पर धा लेट कर टाँग हलाता सामने 'पेशस'
के प े फैलाए। बड़ी लड़क पढ़ने क मेज पर लेट म रखे लायस पर म खन लगाती। पूरा काश होने पर कमरे म वह
बखराव नजर आता है जो एक दन ठ क से दे ख-रेख न होने से आ सकता है। यहाँ-वहाँ चाय क खाली या लयाँ , उतरे ए
कपड़े और ऐसी ही अ त- त चीज।

बड़ी लड़क : यह ड बा खोल दे गा तू ?

लड़का : (प म त) मुझसे नह खुलेगा।

बड़ी लड़क : नह खुलेगा तो लाया कस लए था ?

लड़का : तूने कहा था जो-जो उधार मल सके, ले आ ब नए से। म उधार म एक फोन भी कर आया।

बड़ी लड़क : कहाँ ?

लड़का : जुनेजा अंकल के यहाँ।

बड़ी लड़क : डैडी से बात ई ?

लड़का : नह ।

बड़ी लड़क : तो ?

लड़का : जुनेजा अंकल से ई।

बड़ी लड़क : कुछ कहा उ ह ने ?

लड़का : बात ई, इसका यह मतलब नह क...

बड़ी लड़क : मतलब डैडी के घर आने के बारे म।

लड़का : कहा - नह आएँगे।

बड़ी लड़क : नह आएँगे ?

लड़का : नह ।

बड़ी लड़क : तो पहले य नह बताया तूने ? म ऐसे ही ये सड वच- ड वच...?

लड़का : मने सोचा, चीज सड वच तुझे खुद पसंद है, इस लए कह रही है।

बड़ी लड़क : मने कहा नह था क ममा के द तर से लौटने तक डैडी भी आ जाएँ शायद ? चीज सड वच दोन को पसंद ह ।

लड़का : जुनेजा अंकल को भी पसंद ह। वे आएँगे, उ ह खला दे ना।

बड़ी लड़क : कहा है आएँगे ?

लड़का : ममा से बात करना चाहते ह। छह-साढ़े छह तक आएँ शायद।

बड़ी लड़क : ममा का मूड वैसे ही ऑफ है, ऊपर से वे आ कर बात करगे। तो...चेहरा दे खा था ममा का सुबह द तर जाते व ?

लड़का : म पड़ा ही नह सामने।

बड़ी लड़क : रात से ही चुप थ , सुबह तो...। इतनी चुप पहले कभी नह दे खा।

लड़का : बात ई थी तेरी तेरी कुछ ?

बड़ी लड़क : यही चाय-वाय के बारे म।

लड़का : साड़ी तो ब त ब ढ़या बाँध कर गई ह - जैसे कसी याह का यौता हो।

बड़ी लड़क : दे खा था तूने ?

लड़का : झलक पड़ी थी जब बाहर नकल रही थ ।

बड़ी लड़क : मने सोचा द तर से कह और जाएँगी वह। कहा, साढ़े पाँच तक आ जाएँगी - रोज क तरह।

लड़का : तूने पूछा था ?

बड़ी लड़क : इस लए पूछा था क म भी उसी हसाब से अपना ो ाम...पर सच कुछ पता नह चला।

लड़का : कस चीज का ?

बड़ी लड़क : क मन म या सोच रही ह। कहा तो क साढ़े पाँच तक लौट आएँगी, पर चेहरे पर लगता था जैसे...

लड़का : जैसे ?

बड़ी लड़का : जैसे सचमुच मन म कोई फैसला कर लया हो और...

लड़का : अ छा नह है यह ?

बड़ी लड़क : अ छा कहता है इसे ?

लड़का : इस लए क हो सकता है, कुछ-न-कुछ हो इससे।

बड़ी लड़क : या हो ?

शीष पर
लड़का : कुछ भी। जो चीज बरस से एक जगह क है, वह क ही नह चा हए।
जाएँ
बड़ी लड़क : तो त सचमच चाहता है क
बड़ी लड़क : तो तू सचमुच चाहता ह क...

लड़का : (अपनी बाजी का अं तम प ा चलता) सचमुच चाहता ँ क बात कसी भी एक नतीजे तक प ँच जाए। तू नह चाहती ?

प े समेटता उठ खड़ा होता है।

बड़ी लड़क : मुझे तेरी बात से डर लगता है आजकल।

लड़का : (उसक तरफ आता) पर गलत तो नह लगत मेरी बात?

बड़ी लड़क : पता नह ...सही भी नह लगत हालाँ क...। (ड बा और टन-कटर हाथ म ले कर) यह ड बा.... ?

लड़का : इस टन-कटर से नह खुलेगा। इसक नोक इतनी मर चुक है क...

बड़ी लड़क : तो या कर फर ?

लड़का : कोई और चीज नह है ?

बड़ी लड़क : म कैसे बता सकती ँ ? म तो इतनी बेगानी महसूस करती ँ अब इस घर म क...

लड़का : पहले नह करती थी ?

बड़ी लड़क : पहले ? पहले तो....।

लड़का : महसूस करना ही महसूस नह होता था। और कुछ-कुछ महसूस होना शु आ, तो पहला मौका मलते ही घर से चली
गई ।

बड़ी लड़क : (तीखी पड़ कर ) तू फर कलवाली बात कह रहा है ?

लड़का : बुरा य मानती है ? म खुद अपने को बेगाना महसूस करता ँ यहाँ...और महसूस करना शु कया है मने तेरे जाने के
दन से ।

बड़ी लड़क : मेरे जाने के दन से ?

लड़का : महसूस शायद पहले भी करता था, पर सोचना तभी से शु कया है।

बड़ी लड़क : और सोच कर जाना है क...

लड़का : एक खास चीज है इस घर के अंदर जो...

बड़ी लड़क : (अ थर हो कर) तू भी यही कहता है ?

लड़का : और कौन कहता है ?

बड़ी लड़क : कोई भी...पर कौन-सी चीज है वह ?

लड़का : ( थर से उसे दे खता) तू नह जानती ?

बड़ी लड़क : (आँख बचाती) म ? म कैसे ?

लड़का : तुझसे तो मने जाना है उसे, और तू कहती है, तू कैसे ?

बड़ी लड़क : तूने मुझसे जाना है उसे - म नह समझी ?

लड़का : ठ क है, ठ क है। उस चीज को जान कर भी न जानना ही बेहतर है शायद। पर सरे को धोखा दे भी ले आदमी, अपने
आपको कैसे दे ?

बड़ी लड़क इस तरह हो जाती है क उसका हाथ ठ क से लाइस पर म खन नह लगा पाता ।

बड़ी लड़क : तू तो बस हमेशा ही ..... दे ख, ऐसा है क.... म कह रही थी तुझसे क... भाई, यह ड बा खुला कर ला पहले कह
से। या अगर नही खुलेगा, तो...

लड़का : हाथ काँप य रहा है तेरा ? (ड बा लेता ) अभी खुल जाता है यह। तेज औजार चा हए... एक मनट नह लगेगा।

बाहर के दरवाजे से चला जाता है। बड़ी लड़क काम जारी रखने क को शश करती है , पर हाथ नह चलते, तो छोड़ दे ती
है।

बड़ी लड़क : (माथे पर हाथ फेरती , श थल वर म) कैसे कहता है यह? ...म सचमुच जानती ँ या ?

सर को झटक लेती है-जैसे अंदर एक बवंडर उठ रहा हो। को शश से अपने को सहेज कर उठ पड़ती है और अंदर के
दरवाजे के पास जा कर आवाज दे ती है।

: क ी!

जवाब नह मलाता , तो एक बार अंदर झाँक कर लौट आती है।

: कहाँ चली जाती है ? सुबह कूल जाने से पहले रोना क जब तक चीज नह आएँगी, नह जाएगी। और अब दन-भर पता नह ,
कब घर म है, कब बाहर है।

लड़का बाहर के दरवाजे से छोट लड़क को अंदर ढकेलता है।

लड़का : चल अंदर।

छोट लड़क अपने को बचा कर बाहर जाती भाग जाना चाहती है , पर वह उसे बाँह से पकड़ लेता है।

: कहा है, अंदर चल।

बड़ी लड़क : (ताव से) यह या हो रहा है ?

छोट लड़क : दे ख लो ब ी द , यह मुझे...


शीष पर
झटके से हाथ छु ड़ाने क को शश करती है , पर लड़का उसे स ती से ख च कर अंदर ले आता है।
जाएँ
लड़का : इधर आना पता चलता है तझे
लड़का : इधर आना, पता चलता ह तुझ....

बड़ी लड़क पास आ कर छोट लड़क क बाँह छु ड़ाती है।

लड़का : छोड़ दे इसे। कया या है इसने जो... ?

लड़का : ( ड बा उसे दे ता) यह ड बा ले। खुल गया है (छोट लड़क पर तमाचा उठा कर) इसे तो म अभी... ।

बड़ी लड़क : (उसका हाथ रोकती) सर फर गया तेरा ?

लड़का : फर नह , फर जाएगा।....बाई जोव !

बड़ी लड़क : या बात है ?

लड़का : इससे पूछ, या बात ई है।.... माई गॉड !

बड़ी लड़क : या बात ई है, क ी ? या कर रही थी तू ?

छोट लड़क जवाब न दे कर सुबकने लगती है ।

: बता न, या कर रही थी ?

छोट लड़क चुपचाप सुबकती रहती है।

लड़का : कर नह , कह रही थी कसी से कुछ।

बड़ी लड़क : या ?

लड़का : इसी से पूछ ।

बड़ी लड़क : (छोट लड़क से) बोलती य नह ? जबान सल गई है तेरी ?

लड़का : सल नह , थक गई है। बताने म क औरत और मद कस तरह से आपस म...

बड़ी लड़क : या ? ? ?

लड़का : पूछ ले इससे। अभी बता दे गी तुझे सब...जो सुरेखा को बता रही थी बाहर।

छोट लड़क : (सुबकने के बीच) वह बता रही थी मुझे क म उसे बता रही थी ?

लड़का : तू बता रही थी।

छोट लड़क : वह बता रही थी।

लड़का : तू बता रही थी। अचानक मुझ पर नजर पड़ी क म पीछे खड़ा सुन रहा ँ तो...

छोट लड़क : सुरेखा भागी थी क म भागी थी ?

लड़का : तू भागी थी।

छोट लड़क : सुरेखा भागी थी।

लड़का : तू भागी थी और मने पकड़ लया दौड़ कर, तो लगी च ला कर आस-पास को सुनाने क यह ममा से मेरी शकायत
करता है और ममा घर पर नह ह। इस लए म इसे पीट रहा ँ ।

बड़ी लड़क : (छोट लड़क से) यह सच कहा रहा है।

छोट लड़क : बात सुरेखा से क थी। वह बता रही थी क कैसे उसके म मी-डैडी...

बड़ी लड़क : (स त पड़ कर) और तुझे शौक है जानने का क कैसे उसके म मी-डैडी आपस म...?

लड़का : आपस म नह । यही तो बात थी खास ।

बड़ी लड़क : चुप रह, अशोक !

छोट लड़क : इससे कभी कुछ नह कहता कोई। रोज कसी- कसी बात पर मुझे पीट दे ता है।

बड़ी लड़क : य पीट दे ता है ?

छोट लड़क : य क म सब चीज इसे नह ले जाने दे ती उसे दे ने।

बड़ी लड़क : कसे दे ने ?

बड़ी लड़क : वह जो है इसक ...कभी मेरी बथडे जट क चू ड़याँ दे आता है उसे, कभी-कभी मेरे ाइज का फाउंटेन पेन। म
अगर ममा से कह दे ती ँ, अकेले म मेरा गला दबाने लगता है।

बड़ी लड़क : (लड़के से) कसक बात कर रही है यह ?

लड़का : ऐसे ही बक रही है। झूठ-मूठ।

छोट लड़क : झूठ-मूठ? मेरी फाउंटेन पेन वणा के पास नह है ?

बड़ी लड़क : वणा कौन ?

छोट लड़क : वही उ ोग सटरवाली, जसके पीछे जू तयाँ चटकाता फरता है।

लड़का : ( फर से उसे पकड़ने को हो कर) तू ठहर जा, आज म तेरी जान नकाल कर र ँगा।

छोट लड़क उससे बचने के लए इधर-उधर भागती है। लड़का उसका पीछा करता है।

बड़ी लड़क : अशोक !


शीष पर
लड़का : आज म नह छोड़ने का इसे। इसक जबान जस तरह से खुल गई है उससे...
जाएँ
छोट लड़क रा ता पा कर बाहर के दरवाजे से नकल जाती है।
छोट लड़क रा ता पा कर बाहर क दरवाज स नकल जाती ह।

छोट लड़क : (जाती ई) वणा उ ोग सटरवाली लड़क ... वणा उ ोग सटरवाली लड़क ! वणा उ ोग सटरवाली लड़क !!

लड़का उसके पीछे बाहर जाने ही लगता है क अचानक ी को अंदर आते दे ख कर ठठक जाता है। ी अंदर आती है
जैसे वहाँ क कसी चीज से उसे मतलब ही नह है। वातावरण के त उदासीनता के अ त र चेहरे पर संक प और
असमंजस का मला-जुला भाव। उन लोग क ओर न दे ख कर वह हाथ का सामान परे क एक कुरसी पर रखती है। लड़का
अपने को एक भ ड़ी थ त म पाता है , इस चीज उस चीज को छू कर दे खने लगता है। बड़ी लड़क लेट, लाइस और चीज
का ड बा लए अहाते के दरवाजे क तरफ चल दे ती है।

बड़ी लड़क : ( ी के पास से गुजरती) म चाय ले कर आती ँ अभी।

ी : मुझे नह चा हए।

बड़ी लड़क : एक याली ले लेना।

चली जाती है। ी कमरे के बखराव पर एक नजर डालती है , पर सवाय अपने साथ लाई चीज को यथा थान रखने
के और कसी चीज को हाथ नह लगती। बड़ी लड़क लौट कर आती है।

: (प ी का खाली पैकेट दखाती) प ी ख म हो गई।

ी : म नह लूँगी चाय।

बड़ी लड़क : सबके लए बना रही ँ एक-एक याली।

लड़का : मेरे लए नह ।

बड़ी लड़क : य ? पानी रख रही ,ँ सफ प ी लानी है...।

लड़का : अपने लए बनानी है, बना ले।

बड़ी लड़क : म अकेले पयूँगी ? इतने चाव से चीज-सड वच बना रही ँ?

लड़का : मेरा मन नह है।

ी : मुझे चाय के लए बाहर जाना है।

बड़ी लड़क : तो तुम घर पर नह रहोगी इस व ?

ी : नह , जगमोहन आएगा लेने।

बड़ी लड़क : यहाँ आएँगे वो ?

ी : लेने आएगा वो य ?

बड़ी लड़क : वो भी आनेवाले ह अभी...जुनेजा अंकल।

ी : उनका कैसे पता है, आनेवाले ह ?

बड़ी लड़क : अशोक ने फोन कया था। कह रहे थे, कुछ बात करनी है।

ी : ले कन मुझे कोई बात नह करनी है।

बड़ी लड़क : फर भी जब वे आएँगे ही, तो...

ी : कह दे ना, म घर पर नह ँ। पता नह , कब लौटूँ गी ।

बड़ी लड़क : कह, इंतजार करते ह, तो ?

ी : करने दे ना इंतजार ।

कबड से दो-तीन पस नकाल कर दे खाती है क उनम से कौन-सा साथ रखना चा हए। बड़ी लड़क एक नजर लड़के को
दे ख लेती है जो लगता है कसी तरह वहाँ से जाने के बहाना ढूँ ढ़ रहा है।

बड़ी लड़क : (एक पस को छू कर) यह अ छा है इनम।...कब तक सोचती हो लौट आओगी ?

ी : (उस पस को रख कर सरा नकालती) पता नह । बात करने म दे र भी हो सकती है।

बड़ी लड़क : (उस पस के लए) यह और भी अ छा है।....। अगर पूछ कहाँ गई ह, कसके साथ गई ह ?

ी : कहना बताया नह ...या जगमोहन आया था लेने।

(एक नजर फर कमरे म डाल कर) कतना गंदा पड़ा है !

बड़ी लड़क : समेट रही ँ। ( त होती) बताना ठ क होगा उ ह ?

ी: य ?

बड़ी लड़क : ऐसे ही वे जा कर डैडी से बतलाएँगे खामखाह....।

ी : तो या होगा ? (कुछ चीज खुद उठा कर उसे दे ती) अंदर रख आ अभी।

बड़ी लड़क : होगा यही क....

ी : एक आदमी के साथ चाय पीने जा रही ँ म, कह चोरी करने तो नह ।

बड़ी लड़क : तु ह तो पता ही है, डैडी जगमोहन अंकल को....

ी : पसंद भी करते ह तेरे डैडी कसी को ?

शीष पर
बड़ो लड़क : फर भी थोड़ा ज द आ सको तुम, तो....
जाएँ
ी : मझे उससे कछ ज री बात करनी ह। उसे कई काम थे शाम को जो उसने मेरी खा तर क सल कए ह। बेकार आदमी नह है
ी : मुझ उसस कुछ ज री बात करनी ह। उस कई काम थ शाम को जो उसन मरी खा तर क सल कए ह। बकार आदमी नह ह
वह क जब चाहा बुला लया, जब चाहा कह दया जाओ अब ।

लड़का अ थर भाव से टहेलता दरवाजे के पास प ँच जाता है।

लड़का : म जरा जा रहा ँ ब ी !

बड़ी लड़क : तू भी ?...तू कहाँ जा रहा है ?

लड़का : यह तक जरा। आ जाऊँगा थोड़ी दे र म।

बड़ी लड़क : तो जुनेजा अंकल के आने पर म.... ?

लड़का : आ जाऊँगा तब तक शायद ।

बड़ी लड़क : शायद ?

लड़का : नह ...आ ही जाऊँगा।

चला जाता है।

बड़ी लड़क : (पीछे से) सुन। (दरवाजे क तरफ बढ़ती) अशोक !

लड़का नह कता तो ह ठ सकोड़ ी क तरफ लौट आती है।

: कम से कम प ी ले कर तो दे जाता।

ी : (जैसे कहने से पहले तैयारी करके) तुमसे एक बात करना चाहती थी।

बड़ी लड़क : यह सब छोड़ आऊँ अंदर। वहाँ भी कतना कुछ बखरा है। सोचती ँ, जगमोहन अंकल के आने से पहले...।

ी : मुझे जरा-सी बात करनी ह।

बड़ी लड़क : बताओ ।

ी : अगली बार आने पर पर म यहाँ न मलूँ शायद।

बड़ी लड़क : कैसी बात कर रही हो ?

ी : जगमोहन को आज मने इसी लए फोन कया था ।

बड़ी लड़क : तो ?

ी : तो अब जो भी हो। म जानती थी एक दन आना ही है ऐसा।

बड़ी लड़क : तो तुमने पूरी तरह सोच लया है क...

ी : (हलके से आँख मूँद कर) बलकुल सोच लया है (आँख झपकाती) जा तू अब ।

बड़ी लड़क पल-भर चुपचाप उसे दे खती खड़ी रहती है। फर सोचते भाव से अंदर को चल दे ती है।

बड़ी लड़क : (चलते-चलते) और सोच लेती थोडा...।

चली जाती है।

ी : कब तक और ?

गले क माला को उँगली से लपेटते ए झटके लगाने से माला टू ट जाती है। परेशान हो कर माला को उतार दे ती है और
कबड से सरी माला नकाल लेती है।

: साल पर साल....इसका यह हो जाए, उसका वह हो जाए।

माला का ड बा रख कर कबड को बंद करना चाहती है , पर बीच क चीज के अ व थत हो जाने से कबड ठ क


से बंद नह होती।

: एक दन.... सरा दन !

नह ही बंद होता , तो उसे पूरा खोल कर झटके से बंद करती है।

: एक साल... सरा साल !

कबड के नीचे रखे जूते च पल को पैर से टटोल कर एक च पल नकालने क को शश करती है ; पर सरा पैर नह
मलता, तो सबको ठोकर लगा कर पीछे हटा दे ती है।

: अब भी और सोचूँ थोड़ा !

े सग टे बल के सामने चली जाती है। कुछ पल असमंजस म रहती है क वहाँ य आई है। फर यान हो आने से आईने
म दे ख कर माला पहनने लगती है। पहन कर अपने को यान से दे खती है। गरदन उठा कर और खाल को मसल कर चेहरे क
झु रयाँ नकालने क को शश करती है।

: कब तक...? य ...?

फर समझ म नह आता क या करना है। े सग टे बल क कुछ चीज को ऐसे ही उठाती-रखती है। म क शीशी
हाथ म आ जाने पर पल-भर उसे दे खती रहती है। फर खोल लेती है।

: घर द तर...घर द तर !

म चेहरे पर लगते ए यान आता है क वह इस व नह लगानी थी। उसे एक और शीशी उठा लेती है। उसम से
लोशन ई पर ले कर सोचती है। कहाँ लगाए और कह का नह सूझता , तो उससे कलाइयाँ साफ करने लगती है।

शीष पर
: सोचो...सोचो।
जाएँ
यान सर के बाल म अटक जाता है। अनमनेपन म लोशनवाली ई सर पर लगाने लगती है पर बीच म ही हाथ रोक
यान सर क बाल म अटक जाता ह। अनमनपन म लोशनवाली ई सर पर लगान लगती ह , पर बीच म ही हाथ रोक
कर उसे अलग रख दे ती है। उँग लय से टटोल कर दे खती है क कहाँ सफेद बाल यादा नजर आ रहे ह। कंघी ढूँ ढ़ती है, पर वह
मलती नह । उतावली म सभी खाने-दराज दे ख डालती है। आ खर कंघी वह तौ लए के नीचे से मल जाती है।

: चख-चख.... कट... कट...चख-चख... कट- कट। या सोचो?

कंघी से सफेद बाल को ढँ कने लगती है। यान आँख क झाँइय पर चला जाता है तो कंघी रख कर उ ह सहलाने लगती
है। तभी पु ष तीन बाहर के दरवाजे से आता है... सगरेट के कश ख च कर छ ले बनाता है। ी उसे नह दे खती , तो वह राख
झाड़ने के लए तपाई पर रखी ऐश- े क तरफ बढ़ जाती है। ी पाउडर क ड बी खोल कर आँख के नीचे पाउडर लगती
है। ड बीवाला हाथ काँप जाने से थोड़ा पाउडर बखर जाता है।

: (उसाँस के साथ) कुछ मत सोचो।

उठा खड़ी होती है , एक बार अपने को अ छ तरह आईने म दे ख लेती है। पु ष तीन पहले सगरेट से सरा सगरेट
सुलगता है।

: होने दो जो होता है।

सोफे क तरफ मुड़ती ही है क पु ष तीन पर नजर पड़ने से ठठक जाती है , आँख म एक चमक भर आती है।

पु ष तीन : (काफ कोमल वर म) हलो, कुकू !

ी : अरे ! पता ही नह चला तु हारे आने का ।

पु ष तीन : मने दे खा, अपने से ही बात कर रही हो कुछ। इसी लए...।

ी : इंतजार म ही थी म। तुम सीधे आ रहे हो द तर से ?

पु ष तीन कश ख च कर छ ले बनाता है।

पु ष तीन : सीधा ही समझो।

ी : समझो यानी क नह ।

पु ष तीन : नाउ-आउ।...दो मनट का बस, पोल टोर म। एक डजाइन दे ना था उनका। फर घर जा कर नहाया और सीधे....।

ी : सीधा कहते हो इसे ?

पु ष तीन : (छ ले बनाता) तुम नह बदल बलकुल। उसी तरह डाँटती हो आज भी। पर बात-सी है कुकू डयर, क द तर के
कपड़ म सारी शाम उलझन होती इसी लए सोचा क....

ी : ले कन मने कहा नह था, बलकुल सीधे आना ? बना एक भी मनट जाया कए ?

पु ष तीन : जाया कहाँ कया एक मनट भी ? पोल टोर म तो....

ी : रहने दो अब। तु हारी बहानेबाजी नई चीज नह है मेरे लए।

पु ष तीन : (सोफे पर बैठता है) कह लो जो जी चाहे। बना वजह लगाम ख चे जाना मेरे लए भी नई चीज नह है।

ी : बैठ रहे हो - चलना नह है ?

पु ष तीन : एक मनट चल ही रहे ह बस। बैठो।

ी अनमने ढं ग से सोफे पर बैठ जाती है।

: जस तरह फोन कया तुमने अचानक, उससे मुझे कह लगा क...

ी क आँख उमड़ आती ह।

ी : (उसके हाथ पर हाथ रख कर ) जोग !

पु ष तीन : (हाथ सहलाता) या बात है, कुकू ?

ी : म वहाँ प ँच गई ँ जहाँ प ँचने से डरती रही ँ जदगी-भर। मुझे आज लगता है क...

पु ष तीन : (हाथ पर हलक थप कयाँ दे ता) परेशान नह होते इस तरह।

ी : म सच कह रही ँ। आज अगर तुम मुझसे कहो क.... ।

पु ष तीन : (अंदर क तरफ दे ख कर) घर पर कोई नह है ?

ी : ब ी है अंदर ।

हाथ हटा लेता है।

पु ष तीन : यह है वह ? उसका तो सुना था क...

ी : हाँ ! पर आई ई है कल से ।

पु ष तीन : तब का दे खा है उसे। कतने साल ही गए !

ी : अब आ रही होगी बाहर। दे खो, तुमसे ब त-ब त बात करनी ह मुझे आज।

पु ष तीन : म सुनने के लए ही तो आया ँ। फोन पर तु हारी आवाज से ही मुझे लग गया था क...

ी : म ब त....वो थी उस व ।

पु ष तीन : वह तो इस व भी हो।

ी : तुम कतनी अ छ तरह समझते हो मुझ.े .. कतनी अ छ तरह ! इस व मेरी जो हालत है अंदर से...।
शीष पर
वर भरा जाता है ।
जाएँ
प ष तीन : लीज !
पु ष तीन : लीज !

ी : जोग !

पु ष तीन : बोलो !

ी : तुम जानते हो, म...एक तु ह हो जस पर म...

पु ष तीन : कहती य हो ? कहने क बात है यह ?

ी : फर भी मुँह से नकल जाती है। दे खो ऐसा है क....नह । बाहर चल कर ही बात क ँ गी।

पु ष तीन : एक सुझाव है मेरा।

ी : बताओ।

पु ष तीन : बात यह कर लो जो करनी है उसके बाद....

ी : ना-ना यहाँ नह ।

पु ष तीन : य ?

ी : यहाँ हो ही नह सकेगी बात मुझसे। हाँ, तुम कुछ वैसा समझते हो बाहर चलने म मेरे साथ, तो...

पु ष तीन : कैसी बात करती हो ?तुम जहाँ भी कहो, चलते ह। म तो इसी लए कह रहा था क...

ी : म जानती ँ सब। तु हारी बात गलत नह समझती म कभी।

पु ष तीन : तो बताओ, कहाँ चलोगी ?

ी : जहाँ ठ क समझो तुम।

पु ष तीन : म ठ क समझूँ ? हमेशा तु ह नह तय कया करती थी ?

ी : गजा कैसा रहेगा ?....वहाँ वही कोनेवाली टे बल खाली मल जाए शायद।

पु ष तीन : पूछो नह । यह कहो - गजा।

ी : या या स ? वहाँ इस व यादा लोग नह होते।

पु ष तीन : मने कहा न...

ी : अ छा, उस छोटे रे तराँ म चले जहाँ के कबाब तु ह ब त पसंद ह? म तब के बाद कभी वहाँ नह गई।

पु ष तीन : ( हच कचाट के साथ) वहाँ ? जाता नह वैसे म वहाँ अब। …पर तु हारा वह के लए मन हो तो चल भी सकते ह।

ी : दे खो एक बात तो बता ही ँ तु ह चलने से पहले।

पु ष तीन : (छ ले छोड़ता) या बात?

ी : मने...कल एक फैसला कर लया है मन म।

पु ष तीन : हाँ-हाँ ?

ी : वैसे उन दन भी सुनी होगी तुमने ऐसी बात मेरे मुँह से...पर इस बार सचमुच कर लया है।

पु ष तीन : (जैसे बात को आ मसात करता) ँ ।

पल-भर क खामोशी जसम वह कुछ सोचता आ इधर-उधर दे खता है फर जैसे कसी कताब पर आँख अटक जाने
से उठ कर शे फ क तरफ चला जाता है।

ी : उधर य चले गए ?

पु ष तीन : (शे फ से कताब नकलता) ऐसे ही ।...यह कताब दे खना चाहता था जरा।

ी : तु ह शायद व ास नह आया मेरी बात पर ?

पु ष तीन : सुन रहा ँ म।

ी : मेरे लए पहले भी असंभव था यहाँ यह सब सहना। तुम जानते ही हो। पर आ कर बलकुल- बलकुल असंभव हो गया है।

पु ष तीन : (प े पलटता) तो मतलब है....?

ी : ठ क सोच रहे हो तुम।

पु ष तीन : ( कताब वापस रखता) ँ !

ी उठ कर उसक तरफ आती है।

ी : म तु ह बता नह सकती क मुझे हमेशा कतना अफसोस रहा है इस बात का क मेरी वजह से तु ह भी...तु ह भी इतनी
तकलीफ उठानी पड़ी है जदगी म।

पु ष तीन : (अपनी गरदन सहलाता) दे खो...सच पूछो, तो म अब यादा सोचता ही नह इस बारे म।

टहलता आ उसके पास से आगे नकाल आता है।

ी : मुझे याद है तुम कहा करते थे, 'सोचने से कुछ होना हो, तब तो सोचे भी आदमी।'

पु ष तीन : हाँ...वही तो।

ी : पर यह भी क कल और आज म फक होता है। होता है न


शीष पर
पु ष तीन : हाँ...होता है। ब त-ब त।
जाएँ
ी : इसी लए कहना चाहती ँ तमसे क ।
ी : इसी लए कहना चाहती तुमस क....।

बड़ी लड़क अंदर से आती है।

बड़ी लड़क : ममा, अंदर जो कपड़े इ तरी के लए रखे ह... (पु ष तीन को दे ख कर) हलो अंकल !

पु ष तीन : हलो, हलो !...अरे वह ! यह तू ही है या ?

बड़ी लड़क : आपको या लगता है ?

पु ष तीन : इतनी-सी थी तू तो ! ( ी से) कतनी बड़ी नजर आने लगी अब

ी : हाँ...यह चेहरा नकल आया है !

पु ष तीन : उन दन ाक पहना करती थी... ।

बड़ी लड़क : (सकुचाती) पता नह कन दन !

पु ष तीन : याद है, कैसे मेरे हाथ पर काटा था इसने एक बार ? ब त ही शैतान थी ।

ी : ( सर हला कर) धरी रह जाती है सारी शैतानी आ खर ।

बड़ी लड़क : बै ठए आप । म अभी आती ँ उधर से ।

अहाते के दरवाजे क तरफ चल दे ती है।

पु ष तीन : भाग कहाँ रही है ?

बड़ी लड़क : आ रही ँ बस ।

चली जाती है ।

पु ष तीन : कतनी गदराई ई लड़क थी ! गाल इस तरह फुले-फुले थे...

ी : सब पचक जाते ह गाल-वाल !

पु ष तीन : पर मने तो सुना था क...अपनी मज से ही इसने...?

ी : हाँ, अपनी मज से ही। अपनी मज का ही तो फल है यह क...

पु ष तीन : बात ले कन काफ बड़ पन से करती है?...

ी : यह उ और इतना बड़ पन ?... हाँ, तो चल अब फर ?

पु ष तीन : जैसा कहो ।

ी : (अपने पस म माल ढूँ ढ़ती) कहाँ गया ? ( माल मल जाने से पस बंद करती है।) है यह इसम...तो कब तक लौट आऊँगी
म ? इस लए पूछ रही ँ क उसी तरह कह जाऊँ इससे ता क...

पु ष तीन : तुम पर है यह। जैसा भी कह दो ।

ी : कह दे ती ँ-शायद दे र हो जाए मुझे । कोई आनेवाला है, उसे भी बता दे गी ।

पु ष तीन : कोई और आनेवाला है ?

ी : जुनेजा। वही आदमी जसक वजह से...तुम जानते ही हो सब । (अहाते क तरफ दे खती) ब ी! (जवाब न मलने से) ब ी!
...कहाँ चली गई यह ?

अहाते के दरवाजे से जा कर उधर दे ख लेती है और कुछ उ े जत-सी हो कर लौट आती है।

: पता नह कहाँ चली गई यह लड़क भी अब... !

पु ष तीन : इंतजार कर लो ।

ी : नह , वह आदमी आ गया तो, मु कल हो जाएगी । मुझे ब त ज री बात करनी है तुमसे। आज ही। अभी ।

पु ष तीन : (नया सगरेट सुलगता) तो ठ क है। एट योर ड पोजल ।

ी : (इस तरह कमरे को दे खती जैसे क कोई चीज वहाँ छू ट जा रही हो) हाँ...आओ ।

पु ष तीन : (चलते-चलते क कर ) ले कन...घर इस तरह अकेला छोड़ जाओगी ?

ी : नह , अभी आ जाएगा कोई-न-कोई ।

पु ष तीन : (छ ले छोड़ता ) तु हारे ऊपर है जैसा भी ठ क समझो ।

ी : ( फर एक नजर कमरे पर डाल कर) मेरे लए तो...आओ

पु ष तीन पहले नकल जाता है। ी फर से पस खोल कर उसम कोई चीज ढूँ ढ़ती पीछे - पीछे । कुछ ण मंच खाली
रहता है। फर बाहर से छोट लड़क के ससक कर रोने का वर सुनाई दे ता है। वह रोती ई अंदर आ कर सोफे पर धे हो
जाती है। फर उठ कर कमरे के खालीपन पर नजर डालती है और उसी तरह रोती- ससकती अंदर के कमरे म चली जाती है।
मंच फर दो-एक ण खाली रहता है। उसके बाद बड़ी लड़क चाय क े के लए अहाते के दरवाजे से आती है।

बड़ी लड़क : अरे ! चले भी गए ये लोग ?

े डाय नग टे बल पर छोड़ कर बाहर के दरवाजे तक आती है , एक बार बाहर दे ख लेती है और कुछ ण अंतमुख भाव
से वह क रहती है। फर अपने क झटक कर वापस डाय नग टे बल क तरफ चल दे ती है।

: कैसे पथरा जाता है सर कभी-कभी।

शीष पर
रा ते म े सग टे बल के बखराव को दे ख कर क जाती है और ज द से वहाँ क चीज को सहेज दे ती है।
जाएँ
: जरा यान न दे आदमी जंगल हो जाता है सब।
: जरा यान न द आदमी...जगल हो जाता ह सब।

वहाँ से हट कर डाय नग टे बल के पास आ जाती है और अपने लए चाय क याली बनाने लगती है। छोट लड़क उसी
तरह ससकती अंदर से आती है।

छोट लड़क : जब नह हो-होना होता, तो सब लोग होते ह सर पर। और जब हो-होना होता है तो कोई भी नह द- दखता कह ।

बड़ी लड़क चाय बनाना बीच म छोड़ कर उसक तरफ बढ़ आती है।

बड़ी लड़क : क ी ! यह फर या आ तुझे ? बाहर से कब आई तू ?

छोट लड़क : कब आई म ! यहाँ पर को- कोई भी य नह था ? तू-तुम भी कहाँ थी थोड़ी दे र पहले ?

बड़ी लड़क : म चाय क प ी लाने चली गई थी ।... कसने, अशोक ने मारा है तुझे ?

छोट लड़क : वह भी क-कहाँ था इस व ? मेरे कान खचने के लए तो पता नह क-कहाँ से चला आएगा। पर ज-जब सुरेखा
क ममी से बात करने क बात क थी, त- ो ?

बड़ी लड़क : सुरेखा क ममी ने कुछ कहा है तुमसे ?

छोट लड़क : ममा कहाँ ह ? मुझे उ ह स-साथ ले कर जाना है वहाँ।

बड़ी लड़क : कहाँ ? सुरेखा के घर ?

छोट लड़क : सुरेखा क ममी बुला रही ह उ ह। कहती ह, अभी ले-ले कर आ।

बड़ी लड़क : पर कस बात के लए ?

छोट लड़क : अशोक को दे ख लया था सबने हम लोग को डाँटते। सुरेखा क ममी ने सुरखा को घ-घर म ले जा कर पटा, तो
उसने...उसने म-मेरा नाम लगा दया।

बड़ी लड़क : या कहा ?

छोट लड़क : क म सखाती ँ उसे वे सब ब-बात।

बड़ी लड़क : तो...सुरेखा क ममी ने मुझे बुलाया इस तरह डाँटा है जैसे...पहले बताओ, ममा कहाँ ह ? म उ ह अभी स-साथ ले
कर जाऊँगी। क-कहती ह, म उनक लड़क को बगाड़ रही ँ। और भी बु-बुरी बात हमारे घर को ले कर।

बड़ी लड़क : ममा बाहर गई ह।

छोट लड़क : बाहर कहाँ ?

बड़ी लड़क : तुझे सब जगह का पता है क कहाँ-कहाँ जाया जा सकता है बाहर ?

छोट लड़क : (और बफरती) तु-तुम भी मुझी को डाँट रही हो ? ममा नह ह तो तुम चलो मेरे साथ।

बड़ी लड़क : म नह चल सकती।

छोट लड़क : (ताव म) य नह चल सकती ?

बड़ी लड़क : नह चल सकती कह दया न।

छोट लड़क : (उसे परे धकेलती) मत चलो, नह चल सकती तो।

बड़ी लड़क : (गु से से) क ी !

छोट लड़क : बात मत करो मुझसे। क ी !

बड़ी लड़क : तुझे बलकुल तमीज नह है या ?

छोट लड़क : नह है मुझे तमीज।

बड़ी लड़क : दे ख, तू मुझसे ही मार खा बैठेगी आज।

छोट लड़क : मार लो न तुम।...इनसे ही म-मार खा बैठँ ू गी आज।

बड़ी लड़क : तू इस व यह रोना बंद करेगी या नह ।

छोट लड़क : नह क ँ गी।...रोना बंद करेगी या नह ?

बड़ी लड़क : तो ठ क है। रोती रह बैठ कर।

छोट लड़क : रो-रोती रह बैठ कर।

अहाते के पीछे से दरवाजे क कुंडी खटखटाने क आवाज सुनाई दे ती है।

बड़ी लड़क : (उधर दे ख कर) यह...यह इधर से कौन आया हो सकता है इस व ?

ज द से अहाते के दरवाजे से चली जाती है। छोट लड़क व ोह के भाव से कुरसी पर जम जाती है। बड़ी लड़क पु ष
चार के साथ वापस आती है।

: (आती ई) मने सोचा क कौन हो सकता है पीछे का दरवाजा खटखटाए। आपका पता था, आप आनेवाले ह। पर आप तो
हमेशा आगे के दरवाजे से ही आते ह, इस लए...।

पु ष चार : म उसी दरवाजे से आता, ले कन...(छोट लड़क को दे ख कर) इसे या आ है ? इस तरह य बैठ है वहाँ ?

बड़ी लड़क : (छोट लड़क से) जुनेजा अंकल आए ह, इधर आ कर बात तो कर इनसे।

छोट लड़क मुँह फेर कर कुरसी क पीठ पर बैठ कर बाँह फैला लेती है।

शीष पर
पु ष चार : (छोट लड़क के पास आता) अरे ! यह तो रो रही है। (उसके सर पर हाथ फेरता) य ? या आ मु नया को ?
जाएँ
कसने नाराज कर दया ? (पुचकारता) उठो बेटे, इस तरह अ छा नह लगता। अब आप बड़े हो गए ह, इस लए....।
छोट लड़क : (सहसा उठ कर बाहर को चलती) हाँ...बड़े हो गए ह। पता नह कस व छोटे हो जाते ह, कस व बड़े हो जाते
ह ! (बाहर के दरवाजे के पास से) हम नह लौट कर आएँगे अब...जब तक ममा नह आ जात ।

चली जाती है।

पु ष चार : (लौट कर बड़ी लड़क के तरफ आता) सा व ी बाहर गई है?

बड़ी लड़क सफ सर हला दे ती है।

: म थोड़ी दे र पहले गया था। बाहर सड़क पर यू इं डया क गाड़ी दे खी, तो कुछ दे र पीछे को घूमने नकल गया। तेरे डैडी ने बताया
था, जगमोहन आजकल यह है - फर से ांसफर हो कर आ गया है।...वह ऐसे ही आया था मलने, या...?

बड़ी लड़क : ममा को पता होगा। म नह जानती ।

पु ष चार : अशोक ने ज नह कया मुझसे। उसे भी पता नह होगा शायद।

बड़ी लड़क : अशोक मला है आपसे ?

पु ष चार : बस टाप पर खड़ा था। मने पूछा, तो बोला क आप ही के यहाँ जा रहा ँ डैडी का हालचाल पता करने। कहने लगा,
आप भी च लए, बाद म साथ ही आएँगे पर मने सोचा क एक बार जब इतनी र आ ही गया ,ँ तो सा व ी से मल कर ही जाऊँ । फर
उसे भी जस हाल म छोड़ आया ँ, उसक वजह से... ।

बड़ी लड़क : कसक बात कर रहे ह....डैडी क ?

पु ष चार : हाँ, मह नाथ क ही। एक तो सारी रात सोया नह वह। सरे...।

बड़ी लड़क : तबीयत ठ क नह उनक ?

पु ष चार : तबीयत भी ठ क नह और वैसे भी...म तो समझता ँ, मह नाथ खुद ज मेदार है अपनी यह हालत करने के लए ।

बड़ी लड़क : (उस करण से बचना चाहती) चाय बनाऊँ आपके लए ?

पु ष चार : (चाय का समान दे ख कर) कसके लए बनाई बैठ थी इतनी चाय ? पी नह लगता कसी ने ?

बड़ी लड़क : (असमंजस म) यह मने बनाई थी य क... य क सोच रही थी क...

पु ष चार : (जैसे बात को समझ कर) वे लोग चले गए ह गे।...सा व ी को पता था न, म आनेवाला ँ ?

बड़ी लड़क : (आ ह ता से) पता था।

पु ष चार : यह भी बताया नह मुझे अशोक ने...पर उसके लहजे से ही मुझे लग गया था क...( फर जैसे कोई बात समझ म आ
जाने से) अ छा, अ छा, अ छा ! काफ समझदार लड़का है ।

बड़ी लड़क : (चीनीदानी हाथ म लए) चीनी कतनी ?

पु ष चार : चीनी बलकुल नह । मुझे मना है चीनी। वह शायद इसी लए मुझे वापस ले चलना चाहता था क... क उसे मालूम
होगा जगमोहन का।

बड़ी लड़क : ध ?

पु ष चार : हमेशा जतना।

बड़ी लड़क : कुछ नमक न लाऊँ अंदर से ?

पु ष चार : नह ।

बड़ी लड़क : बैठ जाइए ।

पु ष चार : ओ, हाँ !

वही एक कुरसी ख च कर बैठ जाता है। बड़ी लड़क एक याली उसे दे कर सरी याली खुद ले कर बैठ जाती है। कुछ
पल खामोशी।

बड़ी लड़क : कहाँ-कहाँ घूम आए इस बीच? सुना था कह बाहर गए थे ?

पु ष चार : ह, गया था बाहर। पर कसी नई जगह नह गया।

फर कुछ पल खामोशी।

बड़ी लड़क : सुषमा का या हाल है ?

पु ष चार : ठ क-ठाक है अपने घर म।

बड़ी लड़क : कोई ब चा-अ चा ?

पु ष चार : अभी नह ।

फर कुछ पल खामोशी।

बड़ी लड़क : आप तो बलकुल चुप बैठे ह। कोई बात क जए न !

पु ष चार : (उसाँस के साथ) या बात क ँ ?

बड़ी लड़क : कुछ भी ।

पु ष चार : सोच कर तो ब त-सी बात आया था। सा व ी होती तो शायद कुछ बात करता भी पर अब लग रहा है बेकार ही है
सब।

फर कुछ पल खामोशी। दोन लगभग एक साथ अपनी-अपनी याली खाली करके रख दे ते ह।


शीष पर
बड़ी लड़क : एक बात पूछूँ - डैडी को फर से वही दौरा तो नह पड़ा, लड ेशर का ?
जाएँ
प ष चार : यह भी पछने क बात है ?
पु ष चार : यह भी पूछन क बात ह ?

बड़ी लड़क : आप उ ह समझाते य नह क....

पु ष चार : (उठता आ) कोई समझा सकता है उसे ? वह इस औरत को इतना चाहता है अंदर से क...

बड़ी लड़क : यह आप कैसे कह सकते ह ?

पु ष चार : तुझे लगता है यह बात सही नह है ?

बड़ी लड़क : (उठती ई) कैसे सही हो सकती है? (अंतमुख भाव से)...आप नह जानते, हमने इन दोन के बीच या- या गुजरते
दे खा है इस घर म।

पु ष चार : दे खा जो कुछ भी हो....

बड़ी लड़क : इतने साधारण ढं ग से उड़ा दे ने क बात नह है, अंकल ! म यहाँ थी, तो मुझे कई बार लगता था क म एक घर म
नह , च ड़याघर के एक पजरे म रहती ँ जहाँ...आप शायद सोच भी नह सकते क या- या होता रहा है यहाँ। डैडी का चीखते ए
ममा के कपड़े तार-तार कर दे ना...उनके मुँह पर प बाँध कर उ ह बंद कमरे म पीटना...ख चते ए गुसलखाने म कमोड पर ले जा कर...
( सहर कर) म तो बयान भी नह कर सकती क कतने- कतने भयानक य दे खे ह इस घर म मने। कोई भी बाहर का आदमी उस
सबको दे खता-जानता, तो यही कहता क य नह ब त पहले ही ये लोग...?

पु ष चार : तूने नई बात नह बताई कोई। महे नाथ खुद मुझे बताता रहा है यह सब।

बड़ी लड़क : बताते रहे ह ? फर भी आप कहते ह क... ?

पु ष चार : फर भी कहता ँ क वह इसे ब त यार करता है।

बड़ी लड़क : कैसे कहते ह यह आप ? दो आदमी जो रात- दन एक- सरे क जान न चने म लगे रहते ह ...?

पु ष चार : म दोन क नह , एक क बात कह रहा ँ ।

बड़ी लड़क : तो आप सचमुच मानते ह क...?

पु ष चार : बलकुल मानता ँ, इसी लए कहता ँ क अपनी आज क हलात के लए ज मेदार महे नाथ खुद है। अगर ऐसा न
होता, तो आज सुबह से ही र रया कर मुझसे न कह रहा होता क जैसा भी हो म इससे बात करके इसे समझाऊँ। मै इस व यहाँ न
आया होता, तो पता है या होता ?

बड़ी लड़क : या होता ?

पु ष चार : महे खुद यहाँ चला आया होता। बना परवाह कए क यहाँ आ कर इस लेड ेशर म उसका या हाल होता और
ऐसा पहली बार न होता, तुझे पता ही है। मैने कतनी मु कल से समझा-बुझा कर उसे रोका है, म ही जानता ँ। मेरे मन म थोड़ा-सा
भरोसा बाक था क शायद अब भी कुछ हो सके... मेरे बात करने से ही कुछ बात बन सके। पर आ कर बाहर यू इं डया क गाड़ी दे खी,
तो मुझे लगा क नही, कुछ नह हो सकता। कुछ नही हो सकता। बात करके मै सफ आपको...मेरा खयाल है चलना चा हए अब। जाते
ए मुझे उसके लए दवाई भी ले जानी है।...अ छा।

बाहर के दरवाजे क तरफ चल दे ता है। बड़ी लड़क अपनी जगह पर जड़-सी खड़ी रहती है। फर-एक कदम उसक
तरफ बढ़ जाती है।

बड़ी लड़क : अंकल !

पु ष चार : ( क कर) कहो।

बड़ी लड़क : आप जा कर डैडी को यह बात बता दगे ?

पु ष चार : कौन-सी ?

बड़ी लड़क : यही ...जगमोहन अंकल के आने क ?

पु ष चार : य ...नही बतानी चा हए ?

बड़ी लड़क : ऐसा है क...

पु ष चार : (हलके से आँख मूँद कर खोलता) म न भी बताऊँ शायद पर कुछ फक नह पड़ने का उससे।...बैठ तू।

दरवाजे से बाहर जाने लगता है।

बड़ी लड़क : अंकल ?

पु ष चार : (और फर क कर) हाँ, बेटे !

बड़ी लड़क : सचमुच कुछ नही हो सकता या ?

पु ष चार : एक दन के लए हो सकता है शायद। दो दन के लए हो सकता है। पर हमेशा के लए... कुछ भी नह ।

बड़ी लड़क : तो उस हालत से या यह बेहतर नह क... ?

बाहर से ी के वर सुनाई दे ते ह।

ी : छोड़ दे मेरा हाथ। छोड़ भी ।

बड़ी लड़क : आ गई ह वे लौट कर।

पु ष चार : हाँ।

बाहर जाने के बजाय ह ठ चबाता डाइ नग टे बल क तरफ बढ़ जाता है। ी छोट लड़क के साथ आती है। छोट
लड़क उसे बाँह से बाहर ख च रही है।

छोट लड़क : चलती य नह तुम मेरे साथ ? चलो न !

शीष पर
ी : (बाँह छु ड़ाती) तू हटे गी या नह ?
जाएँ
छोट लड़क : नह हटँ गी। उस व तो घर पर नह थी और अब कहती हो ।
छोट लड़क : नह हटू गी। उस व तो घर पर नह थी, और अब कहती हो... ।

ी : छोड़ मेरी बाँह ।

छोट लड़क : नह छोडँगी ।

ी : नह छोड़ेगी ? (गु से से बाँह छु ड़ा कर उसे परे धकेलती) बड़ा जोम चढ़ने लगा है तुझे !

छोट लड़क : हाँ, चढ़ने लगा है। जब-जब कोई बात कहता मुझसे, यहाँ कसी को फुरसत नह होती चल कर उससे पूछने क ।

बड़ी लड़क : उ ह साँस तो लेने दे । वे अभी घर म दा खल नह ई क तूने...।

छोट लड़क : तुम बात मत करो। म के ल दे क तरह हली नह जब मने...।

ी : (उसे ाक से पकड़ कर) फर से कह जो कहा है तूने !

छोट लड़क : (अपने को छु ड़ाने के लए संघष करती) या कहा है मने ? पूछो इनसे जब मने आ कर इ ह बताया था, तो...।

पल-भर क खामोशी जसम सबक नजर थर हो रहती ह - छोट लड़क क ी पर और शेष सबक छोट लड़क
पर।

छोट लड़क : (अपने आवेश से बेबस) म के ल दे !...सब-के-सब म के ल दे !

पु ष चार : (उनक तरफ आता) छोड़ दो लड़क को, सा व ी ! उस पर इस व पागलपन सवार है, इस लए...।

ी : आप मत प ड़ए बीच म।

पु ष चार : दे खो...।

ी : आपसे कहा है, आप मत प ड़ए बीच म। मुझे अपने घर म कससे कस तरह बरतना चा हए, यह म और से बेहतर जानती
ँ। (छोट लड़क के एक और चपत जड़ती) इस व चुपचाप चली जा उस कमरे म। मुँह से एक ल ज भी और कहा, तो खैर नह तेरी।

छोट लड़क के केवल ह ठ हलते ह। श द उसके मुँह से कोई नह नकल पाता। वह घायल नजर से ी को दे खती उसी
तरह खड़ी रहती है।

: जा उस कमरे म। सुना नह ?

छोट लड़क फर भी खड़ी रहती है।

: नह जाएगी ?

छोट लड़क दाँत पीस कर बना कुछ कहे एकाएक झटके से अंदर के कमरे म चली जाती है। ी जा कर पीछे से
दरवाजे क कुंडी लगा दे ती है।

: तुझसे समझूँगी अभी थोड़ी दे र म।

बड़ी लड़क : बै ठए, अंकल !

पु ष चार : नह , म अभी जाऊँगा।

ी : (उसक तरफ आती) आपको कुछ बात करनी थी मुझसे...बताया था इसने।

पु ष चार : हाँ...पर इस व तुम ठ क मूड म नह हो...।

ी : म बलकुल ठ क मूड म ँ। बताइए आप।

बड़ी लड़क : अंकल कह रहे थे, डैडी क तबीयत फर ठ क नह है।

ी : घर से जा कर तबीयत ठ क कब रहती है उनक ? हर बार का यही एक क सा नह है ?

बड़ी लड़क : तुम थक ई हो। अ छा होगा जो भी बात करनी हो, बैठ कर आराम से कर लो।

ी : म ब त आराम से ँ (पु ष चार से) बताइए आप ।

पु ष चार : यादा बात अब नह करना चाहता। सफ एक ही बात कहना चाहता ँ तुमसे।

ी : (पल-भर ती ा करने के बाद) क हए।

पु ष चार : तुम कसी तरह छु टकारा नह दे सकती उस आदमी को ?

ी : छु टकारा ? म ? उ ह ? कतनी उ ट बात है !

पु ष चार : उलट बात नह है। तुमने जस तरह से बाँध रखा है उसे अपने साथ.... ।

ी : उ ह बाँध रखा है ? मने अपने साथ... ? सवा आपके कोई नह कह सकता यह बात।

पु ष चार : य क और कोई जानता भी तो नह उतना जतना म जानता ँ।

ी : आप हमेशा यही मानते आए है क आप ब त यादा जानते ह। नह ?

पु ष चार : मह नाथ के बारे म, हाँ। और जान कर ही कहता ँ क तुमने इस तरह शकंजे म कस रखा है उसे क वह अब अपने
दो पैर पर चल सकने लायक भी नह रहा।

ी : अपने दो पैर पर ! अपने दो पैर कभी थे भी उसके पास ?

पु ष चार : कभी बात य करती हो ? जब तुमने उसे जाना, तब से दस साल पहले से म उसे जानता ँ।

ी : इसी लए शायद जब मने जाना, तब तक अपने दो पैर रहे नह थे उसके पास।

पु ष चार : म जानता ँ सा व ी, क तुम मेरे बारे म या- या सोचती और कहती हो...।


शीष पर
ी : ज र जानते ह गे...ले कन फर भी कतना कुछ है जो सा व ी कभी कसी के सामने नह कहती।
जाएँ
प ष चार : जैसे ?
पु ष चार : जस ?

ी : जैस.े ..पर बात तो आप करने आए ह।

पु ष चार : नह । पहले तुम बात कर लो (बड़ी लड़क से) तू बेटे, जरा उधर चली जा थोड़ी दे र।

बड़ी लड़क चुपचाप जाने लगती है।

ी : सुन लेने द जए इसे भी, अगर मुझे बात करनी है तो।

पु ष चार : ठ क है यह रह तू, ब ी !

बड़ी लड़क : पर म सोचती ँ क...।

ी : म चाहती ँ तू यहाँ रहे, तो कसी वजह से ही चाहती ँ।

बड़ी लड़क आ ह ता से आँख झपका कर उन दोन से थोड़ी र डाय नग टे बल क कुरसी पर जा बैठती है।

पु ष चार : ( ी से) बैठ जाओ तुम भी।

कटता आ खुद सोफे पर बैठ जाता है। ी एक मोढ़ा ले लेती है।

: कह डालो अब जो भी कहना है तु ह।

ी : कहने से पहले एक बात पूछनी है आप से। आदमी कस हालत म सचमुच एक आदमी होता है ?

पु ष चार : पूछो कुछ नह । जो कहना है, कह डालो।

ी : यूँ तो जो कोई भी एक आदमी क तरह चलता- फरता, बात करता ह, वह आदमी ही होता है...। पर असल म आदमी होने के
लए या ज री नह क उसम अपना एक मा ा, अपनी एक श सयत हो ?

पु ष चार : मह को सामने रख कर यह तुम इस लए कह रही हो क...

ी : इस लए कह रही ँ क जब से मने उसे जाना है, मने हमेशा हर चीज के लए कसी-न- कसी का सहारा ढूँ ढ़ते पाया है। खास
तौर से आपका। यह करना चा हए या नह - जुनेजा से राय ले लूँ। कोई छोट -से-छोट चीज खरीदनी है, तो भी जुनेजा क पसंद से। कोई
बड़े-से-बड़ा खतरा उठाता है - तो भी जुनेजा क सलाह से। यहाँ तक क मुझसे याह करने का फैसला भी कैसे कया उसने ? जुनेजा के
हामी भरने से।

पु ष चार : म दो त ँ उसका। उसे भरोसा रहा है मुझ पर।

ी : और उस भरोसे का नतीजा ?... क अपने-आप पर उसे कभी कसी चीज के लए भरोसा नह रहा। जदगी म हर चीज क
कसौट - जुनेजा। जो जुनेजा सोचता है, जो जुनेजा चाहता है, जो जुनेजा करता है, वही उसे भी सोचना है, वही उसे भी चाहना है, वही
उसे भी करना है। य क जुनेजा तो खुद एक पूरे आदमी का आधा-चौथाई भी नह ह।

पु ष चार : तुम इस नजर से दे ख सकती हो इस चीज को; पर अस लयत इसक यह है क...

ी : (खड़ी होती) मुझे उस अस लयत क बात करने द जए जसे म जानती ँ।...एक आदमी है। घर बसाता है। य बसाता है ?
एक ज रत पूरी करने के लए। कौन-सी ज रत ? अपने अंदर से कसी उसको...एक अधूरापन कह द जए उसे...उसको भर सकने
क । इस तरह उसे अपने लए...अपने म पूरा होना होता है । क ह सर के पूरा करते रहने म ही जदगी नह काटनी होती। पर आपके
मह के लए जदगी का मतलब रहा है...जैसे सफ सर के खाली खाने भरने क ही चीज है वह। जो कुछ वे सरे उससे चाहते ह,
उ मीद करत ह...या जस तरह वे सोचते ह उनक जदगी म उसका इ तेमाल हो सकता है।

पु ष चार : इ तेमाल हो सकता है?

ी : नह ? इस काम के लए और कोई नह जा सकता, मह चला जाएगा। इस बोझ को और कोई नह ढो सकता, मह नाथ ढो


लेगा। ेस खुला, तो भी। फै टरी शु ई, तो भी। खाली खाने भरने क जगह पर मह नाथ अपना ह सा पहले ही ले चुका है, पहले ही
खा चुका है। और उसका ह सा ? (कमरे के एक-एक सामान क तरफ इशारा करती) ये ये ये ये ये सरे-तीसरे-चौथे दरजे क घ टया
चीज जनसे वह सोचता था, उसका घर बन रहा है ?

पु ष चार : मह नाथ ब त ज दबाजी बरतता था इस मामले म, म जानता ँ। मगर वजह इसक ...

ी : वजह इसक म थी-यही कहना चाहते ह न ? वह मुझे खुश रखने के लए ह यह लोहा-लकड़ी ज द -से-ज द घर म भर कर
हर बार अपनी बरबाद क न व खोद लेता था। पर असल म उसक बरबाद क न व या चीज खोद रही थी... या चीज और कौन
आदमी...अपने दल म तो आप भी जानते ह गे।

पु ष चार : कहती रहो तुम। म बुरा नह मान रहा। आ खर तुम मह क प नी हो और...

ी : (आवेश म उसक तरफ मुड़ती) मत क हए मुझे मह क प नी। मह भी एक आदमी है, जसके अपना घर-बार है, प नी है,
यह बात मह को अपना कहनेवाल को शु से ही रास नह आई। मह ने याह या कया, आप लोग क नजर म आपका ही कुछ
आपसे छ न लया। मह अब पहले क तरह हँसता नह । मह अब दो त म बैठ कर पहले क तरह खलता नह ! मह अब पहलेवाला
मह रह ही नह गया ! और मह ने जी-जान से को शश क , वह वही बना रहे कसी तरह। कोई यह न कह सके जससे क वह
पहलेवाला मह रह ही नह गया। और इसके लए मह घर के अंदर रात- दन छटपटाता है। द वार से सर पटकता है। ब च को पीटता
है। बीवी के घुटने तोड़ता है। दो त को अपना फुरसत का व काटने के लए उसक ज री है। मह के बगैर कोई पाट जमती नह !
मह के बगैर कसी पक नक का मजा नह आता था ! दो त के लए जो फुरसत काटने का वसीला है, वही मह के लए उसका मु य
काम है जदगी म। और उसका ही नह , उसके घर के लोग का भी वही मु य काम होना चा हए। तुम फलाँ जगह चलने से इ कार कैसे
कर सकती हो ? फलाँ से तुम ठ क तरह से बात य नह करत ? तुम अपने को पढ़ - लखी कहती हो ?...तु ह तो लोग के बीच उठने-
बैठने क तमीज नह । एक औरत को इस तरह चलना चा हए, इस तरह बात करनी चा हए, इस तरह मु कराना चा हए। य तुम लोग के
बीच हमेशा मेरी पोजीशन खराब करती हो? और वही महे जो दो त के बीच द बू-सा बना हलके-हलके मु कराता है, घर आ कर एक
दा रदा बन जाता है। पता नह , कब कसे नोच लेगा, कब कसे फाड़ खाएगा ! आज वह ताव म अपनी कमीज को आग लगा लेता है।
कल वह सा व ी क छाती पर बैठ कर उसका सर जमीन से रगड़ने लगता है। बोल, बोल, बोल, चलेगी उस तरह क नह जैसे म चाहता
ँ ? मानेगी वह सब क नह जो म कहता ँ ? पर सा व ी फर भी नही चलती। वह सब नह मानती। वह नफरत करती है इस सबसे -
इस आदमी के ऐसा होने से। वह एक पूरा आदमी चाहती है अपने लए एक...पूरा...आदमी। गला फाड़ कर वह यह बात कहती है। कभी
इस आदमी को ही यह आदमी बना सकने क को शश करती है। कभी तड़प कर अपने को इससे अलग कर लेना चाहती है। पर अगर
उसक को शश से थोड़ा फक पड़ने लगता है इस आदमी म, तो दो त म इनका गम मनाया जाने लगता है। सा व ी महे क नाक म
नकेल डाल कर उसे अपने ढं ग से चला रही है। सा व ी बेचारे महे क रीढ़ तोड़ कर उसे कसी लायक नह रहने दे रही है ! जैसे क
आदमी न हो कर बना हाड़-मांस का टु कड़ा हो वह एक - बेचारा महे !
शीष पर
हाँफती ई चुप कर जाती है। बड़ी लड़क कुह नयाँ मेज पर रखे और मु य पर चहेरा टकाए पथराई आँख से चुपचाप
जाएँ
दोन को दे खती है।
पु ष चार : (उठता आ) बना हड़-मांस का पुतला, या जो भी कह लो तुम उसे - पर मेरी नजर म वह हर आदमी जैसे एक
आदमी है- सफ इतनी ही कमी है उसम।

ी : यह आप मुझे बता रहे ह ? जसने बाईस साल साथ जी कर जाना है उस आदमी को ?

पु ष चार : जया ज र है तुमने उसके साथ...जाना भी है उसे कुछ हद तक...ले कन...

ी : (हताशा से सर हलती है) ओ फ़ोह! ओ फ़ोह! ओ फ़ोह !

पु ष चार : जो-जो बात तुमने कही ह अभी, वे गलत नह ह अपने म। ले कन बाईस साल जी कर जानी ई बात वे नह ह। आज
से बाईस साल पहले भी एक बार लगभग ऐसी ही बात म त हारे मुँह से सुन चुका ँ - तु ह याद ह ?

ी : आप आज ही क बात नह कर सकते ? बाईस साल पहले पता नह कस जदगी क बात ह वह ?

पु ष चार : मेरे घर ई थी वह बात। तुम बात करने के लए खास आई थ वहाँ, और मेरे कंधे पर सर रखे दे र तक रोती रही थ ।
तब तुमने कहा था क...

ी : दे खए, उन दन क बात अगर छे ड़ना ही चाहते ह आप, तो म चा ँगी क यह लड़क ...

पु ष चार : या हज है अगर यह यह रहे तो ? जब आधी बात उसके सामने ई है, तो बाक़ आधी भी इसके सामने ही हो जानी
चा हए।

बड़ी लड़क : (उठने को हो कर) ले कन अंकल... !

पु ष चार : ( ी से) तुम समझती हो क इसके सामने मुझे नह करनी चा हए यह बात ?

ी : म अपनी खयाल से नह कह रही थी।...ठ क है। आप क जए बात।

कहती ई एक कुरसी पर बैठ जाती है।

: ( ी से) उस दन पहली बार मने तु ह उस तरह ढु लते दे खा था। तब तुमने कहा था क...।

ी : म बलकुल ब ची थी तब तक, अभी और...।

पु ष चार : ब ची थ या जो भी थ , पर बात बलकुल इसी तरह करती थ जैसे आज करती हो। उस दन भी बलकुल इसी तरह
तुमने महे को मेरे सामने उधेड़ा था। कहा था क वह ब त लज लजा और चप चपा-सा आदमी है। पर उसे वैसा बनानेवाल म नाम
तब सर के थे। एक नाम था उसक माँ का और सरा उसके पता का...।

ी : ठ क है। उन लोग क भी कुछ कम दे न नह रही उसे ऐसा बनाने म।

पु ष चार : पर जुनेजा का नाम तब नह था ऐसा लोग म। य नह था, कह ँ न यह भी ?

ी : दे खए...।

पु ष चार : ब त पुरानी बात है। कह दे ने म कोई हज नह है। मेरा नाम इस लए नह था क...

ी : म इ जत करती थी आपक ...बस, इतनी-सी बात थी।

पु ष चार : तुम इ जत कह सकती हो उसे...पर वह इ जत कस लए करती थ ? इस लए नह क एक आदमी के तौर पर म


महे से कुछ बेहतर था तु हारी नजर म; ब क सफ इस लए क...

ी : क आपके पास ब त पैसा था? और आपका दबदबा था इन लोग के बीच?

पु ष चार : नह । सफ इस लए क म जैसा भी था जो भी था-महे नह था।

ी : (एकाएक उठती है) तो आप कहना चाहते ह क...?

पु ष चार : उतावली य होती हो ? मुझे बात कह लेने दो। मुझसे उस व तुम या चाहती थ , म ठ क-ठ क नह जानता।
ले कन तु हारी बात से इतना ज र जा हर था क महे को तुम तब भी वह आदमी नह समझती थ जसके साथ तुम जदगी काट
सकत ...।

ी : हालाँ क उसके बाद भी आज तक उसके साथ जदगी काटती आ रही ँ...

पु ष चार : पर हर सरे-चौथे साल अपने को उससे झटक लेने क को शश करती ई। इधर-उधर नजर दौड़ाती ई कब कोई
ज रया मल जाए जससे तुम अपने को उससे अलग कर सको। पहले कुछ दन जुनेजा एक आदमी था तु हारे सामने। तुमने कहा है तब
तुम उसक इ जत करती थ । पर आज उसके बारे म जो सोचती हो, वह भी अभी बता चुक हो। जुनेजा के बाद जससे कुछ दन
चकाच ध रह तुम, वह था शवजीत। एक बड़ी ड ी, बड़े-बड़े श द और पूरी नया घूमने का अनुभव। पर असल चीज वही क वह जो
भी था और ही कुछ था-मह नह था। पर ज द ही तुमने पहचानना शु कया क वह नहायत दोगला क म का आदमी है। हमेशा दो
तरह क बात करता है। उसके बाद सामने आया जगमोहन। ऊँचे संबंध, जबान क मठास, टपटॉप रहने क आदत और खच क द रया-
दली। पर तीर क असली नोक फर भी उसी जगह पर- क उसम जो कुछ भी था, जगमोहन का-सा नह था। पर शकायत तु ह उससे
भी होने लगी थी क वह सब लोग पर एक सा पैसा य उड़ता है ? सरे क स त-से-स त बात को एक खामोश मु कराहट के साथ
य पी जाता है ? अ छा आ, वह ांसफर हो कर चला गया यहाँ से, वरना.... ।

ी : यह खामखाह का तानाबाना य बुन रहे ह ? जो असल बात कहना चाहते ह, वही य नह कहते ?

पु ष चार : असल बात इतनी ही क मह क जगह इनम से कोई भी आदमी होता तु हारी जदगी म, तो साल-दो-साल बाद तुम
यही महसूस करत क तुमने गलत आदमी से शाद कर ली है। उसक जदगी म भी ऐसे ही कोई मह , कोई जुनेजा, कोई शवजीत या
मनमोहन होता जसक वजह से तुम यही सब सोचती, यही सब महसूस करती। य क तु हारे लए जीने का मतलब रहा है- कतना-
कुछ एक साथ हो कर, कतना-कुछ एक साथ पा कर और कतना-कुछ एक साथ ओढ़ कर जीना। वह उतना-कुछ कभी तु ह कसी एक
जगह न मल पाता। इस लए जस- कसी के साथ भी जदगी शु करती, तुम हमेशा इतनी ही खाली, इतनी ही बेचैन बनी रहती। वह
आदमी भी इसी तरह तु ह अपने आसपास सर पटकता और कपड़े फाड़ता नजर आता और तुम...

ी : (साड़ी का प लू दाँतो म लए सर हलाती हँसी और लाई के बीच के वर म) हहहहहहहह हःह- हहहहह-हःहहः हःह हःह।

पु ष चार : (अचकचा कर) तुम हँस रही हो ?

ी : हाँ...पता नह ...हँस ही रही ँ शायद। आप कहते र हए ।


शीष पर
पु ष चार : आज मह एक कुढ़नेवाला आदमी है। पर एक व था जब वह सचमुच हँसता था। अंदर से हँसता था पर यह तभी
जाएँ
था जब कोई सा बत करनेवाला नह था क कैसे हर लहाज से वह हीन और छोटा है - इससे, उससे, मुझसे, तुमसे, सभी से। जब कोई
े े ो ो ै ी ी े ो औ ो ै
उससे यह कहनेवाला नह था क जो-जो वह नह है, वही-वही उसे होना चा हए और जो वह है... ।

ी : एक उसी उस को दे खा है आपने इस बीच - या उसके आस-पास भी कसी के साथ कुछ गुजरते दे खा है ?

पु ष चार : वह भी दे खा है। दे खा है क जस मु म तुम कतना-कुछ एक साथ भर लेना चाहती थ , उसम जो था वह भी धीरे-


धीरे बाहर फसलता गया है क तु हारे मन म लगातार एक डर समाता गया जसके मारे कभी तुम घर का दामन थामती रही हो, कभी
बाहर का और क वह डर एक दहशत म बदल गया। जस दन तु ह एक ब त बड़ा झटका खाना पड़ा...अपनी आ खरी को शश म।

ी : कस आ खरी को शश म ?

पु ष चार : मनोज का बड़ा नाम था। उस नाम क डोर पकड़ कर ही कह प ँच सकने क आ खरी को शश म। पर तुम एकदम
बौरा ग जब तुमने पाया क वह उतने नामवाला आदमी तु हारी लड़क को साथ ले कर रात -रात इस घर से...।

बड़ी लड़क : (सहसा उठती) यह आप या कह रहे ह, अंकल ?

पु ष चार : मजबूर हो कर कहना पड़ रहा है, ब ी ! तू शायद मनोज को अब भी उतना नह जानती जतना...!

बड़ी लड़क : (हाथ म चेहरा छपाए ढह कर बैठती) ओह !

पु ष चार : ... जतना यह जानती है। इसी लए आज यह उसे बरदा त भी नह कर सकती। ( ी से) ठ क नह है यह ? ब ी के
मनोज के साथ चले जाने के बाद तुमने एक अंधाधुंध को शश शु क - कभी महे को ही और झकझोरने क , कभी अशोक को ही
चाबुक लगाने क , और कभी उन दोन से धीरज खो कर कोई और ही रा ता, कोई और ही चारा ढूँ ढ़ सकने क । ऐसे म पता चला
जगमोहन यहाँ लौट आया है। आगे के रा ते बंद पा कर तुमने फर पीछे क तरफ दे खना चाहा। आज अभी बाहर गई थ उसके साथ।
या बात ई ?

ी : आप समझते ह आपको मुझसे जो कुछ भी जानने का जो कुछ भी पूछने का हक हा सल है ?

पु ष चार : न सही ! पर म बना पूछे ही बता सकता ँ क या बात ई होगी। तुमने कहा, तुम ब त-ब त खी हो आज। उसने
कहा, उसे ब त-ब त हमदद है तुमसे। तुमने कहा, तुम जैसे भी हो अब इस घर से छु टकारा पा लेना चाहती हो। उसने कहा, कतना
अ छा होता अगर इस नतीजे पर तुम कुछ साल पहले प ँच सक होत । तुमने कहा, जो तब नह आ, वह अब तो हो ही सकता है।
उसने कहा, वह चाहता है हो सकता, पर आज इसम ब त-सी उलझन सामने ह - ब च क जदं गी को ले कर, इसको-उसको ले कर।
फर भी क इस नौकरी म उनका मन नह लग रहा, पता नह कब छोड़ दे , इसी लए अपने को ले कर भी उसका कुछ तय नह है इस
समय। तुम गुमशुम हो कर सुनती रह और माल से आँख प छती रह । आ खर उसने कहा क तु ह दे र हो रही है, अब लौट चलना
चा हए। तुम चुपचाप उठ कर उसके साथ गाड़ी म आ बैठ । रा ते म उसके मुँह से यह भी नकला शायद क तु ह अगर पए-पैसे क
ज रत है इस व तो वह...

ी : बस बस बस बस बस बस ! जतना सुनना चा हए था, उससे ब त यादा सुन लया है आपसे मने। बेहतर यही है क अब
आप यहाँ से चले जाएँ य क...

पु ष चार : म जगमोहन के साथ ई तु हारी बातचीत का सही अंदाज लगा सकता ,ँ य क उसक जगह म होता, तो म भी
तुमसे यही सब कहा होता। वह कल-परस फर फोन करने को कह कर घर के बाहर उतार गया। तुम मन म एक घुटन लए घर म दा खल
ई और आते ही तुमने ब ची को पीट दया। जाते ए वह सामने थी एक पूरी जदगी - पर लौटने तक का कुल हा सल?... उलझे हाथ
का गज गजा पसीना और...।

ी : मने आपसे कहा है न, बस ! सब-के-सब...सब-के-सब! एक-से! बलकुल एक-से ह आप लोग ! अलग-अलग मुखोटे , पर
चेहरा? चेहरा सबका एक ही !

पु ष चार : फर भी तु ह लगता रहा है क तुम चुनाव कर सकती हो। ले कन दाँए से हट कर बाँए, सामने से हट कर पीछे , इस
कोने से हट कर उस कोने म... या सचमुच कह कोई चुनाव नजर आया है तु ह ? बोलो, आया है नजर कह ?

कुछ पल खामोशी जसम बड़ी लडक चेहरे से हाथ हटा कर पलक झपकाती उन दोन को दे खती है। फर अंदर के
दरवाजे पर खट् -खट् सुनाई दे ती है।

छोट लड़क : (अंदर से) दरवाजा खोलो। दरवाजा खोलो?

बड़ी लड़क : ( ी) या करना है, ममा ? खोलना है दरवाजा ?

ी : रहने दे अभी।

पु ष चार : ले कन इस तरह बंद रखोगी, तो...

ी : मने पहले भी कहा था, मेरा घर है। म बेहतर जानती ँ।

छोट लड़क : (दरवाजा खटखटाती) खोलो ! (हताश हो कर) मत खोलो !

अंदर से कुंडी लगाने क आवाज।

: अब खुलवा लेना मुझसे भी।

पु ष चार : तु हारा घर है। तुम बेहतर जानती हो कम-से-कम मान कर यही चलती हो। इसी लए ब त-कुछ चाहते ए मुझे अब
कुछ भी संभव नजर नह आता। और इसी लए फर एक बार पूछना चाहता ँ, तुमसे... या सचमुच कसी तरह उस आदमी को तुम
छु टकारा नह दे सकत ?

ी : आप बार-बार कस लए कह रहे ह यह बात ?

पु ष चार : इस लए क आज वह अपने को बलकुल बेसहारा समझता है। उसके मन म यह व ास बठा दया है तुमने क सब
कुछ होने पर भी उसके जए जदं गी म तु हारे सवा कोई चारा, कोई उपाय नह है। और ऐसा या इसी लए नही कया तुमने क जदं गी
म और कुछ हा सल न हो, तो कम-से-कम यह नामुराद मोहरा तो हाथ म बना ही रहे ?

ी : य - य - य -आप और-और बात करते जाना चाहते ह ? अभी आप जाइए और को शश करके उसे हमेशा के लए अपने
पास रख र खए। इस घर म आना और रहना सचमुच हत म नह है उसके। और मुझे भी...मुझे भी अपने पास उस मोहरे क बलकुल-
बलकुल ज रत नह है जो न खुद चलता है, न कसी और को चलने दे ता है।

पु ष चार : (पल-भर चुपचाप उसे दे खते रह कर हताश नणय के वर म) तो ठ क है वह नह आएगा। वह कमजोर है, मगर इतना
कमजोर नह है। तुमसे जुड़ा आ है, मगर इतना जुड़ा आ नह है। उतना बेसहारा भी नह है जतना वह अपने को समझता है। वह
ठ क से दे ख सके, तो एक पूरी नया है उसके आसपास। म को शश क ँ गा क वह आँख खोल कर दे ख सके।
शीष पर
ी : ज र-ज र। इस तरह उसका तो उपकार करेग ही आप, मेरा भी इससे बड़ा उपकार जदं गी म नह कर सकगे।
जाएँ
प ष चार : तो अब चल रहा ँ म। तमसे जतनी बात कर सकता था कर चका ँ। और बात उसी से जा कर क ँ गा। मझे पता है
पु ष चार : तो अब चल रहा म। तुमस जतनी बात कर सकता था, कर चुका । और बात उसी स जा कर क गा। मुझ पता ह
क कतना मु कल होगा यह... फर भी यह बात म उसके दमाग म बठा कर र ँगा इस बार क...

लड़का बाहर से आता है। चेहरा काफ उतरा आ है-जैसे कोई बड़ी-सी चीज कह हार कर आया हो।

: या बात है, अशोक ? तू चला य आया वहाँ से ?

लड़का उससे बना आँख मलाए बड़ी लड़क क तरफ बढ़ जाता है।

लड़का : उठ ब ी ! अंदर से छड़ी नकाल दे जरा।

बड़ी लड़क : (उठती ई) छड़ी ! वह कस लए चा हए तुझे ?

लड़का : डैडी को कूटर र शा से उतार लाना है उनक तबीयत काफ खराब है।

बड़ी लड़क : डैडी लौट आए ह।

पु ष चार : तो...आ ही गया है वह आ खर ?

लड़का : (उसक ओर दे ख कर मुरझाए वर म) हाँ... आ ही गए ह।

पु ष चार के चेहरे पर था क रेखाएँ उभर आती ह और उसक आँख ी से मल कर झुक जाती ह। ी एक कुरसी
क पीठ थामे चुप खड़ी रहती है। शरीर म ग त दखाई दे ती है , तो सफ साँस के आने-जाने क ।

: (बड़ी लड़क से) ज द से नकाल दे छड़ी, य क...

बड़ी लड़क : (अंदर से दरवाजे क तरफ बढ़ती ) अभी दे रही ँ।

जाकर दरवाजा खटखटाती है।

: क ी ! दरवाजा खोल ज द से ।

छोट लड़क : ( अंदर से ) नह खुलेगा दरवाजा।

बड़ी लड़क : तेरी शामत तो नह आई है ? कह रही ँ। खोल ज द से ।

छोट लड़क : आने दो शामत। दरवाजा नह खुलेगा ।

बड़ी लड़क : (जोर से खटखटाती) क ी !

सहसा हाथ क जाता है। बाहर से ऐसा श द सुनाई दे ता है , जैसे पाँव फसल जाने से कसी ने दरवाजे का सहारा ले
कर अपने को बचाया हो।

पु ष चार : (बाहर से दरवाजे क तरफ बढ़ता) यह कौन फसला है ोढ़ म ?

लड़का : (उससे आगे जाता) डैडी ही ह गे। उतर कर चले आए ह गे ऐसे ही। (दरवाजे से नकलता) आराम से डैडी, आराम से ।

पु ष चार : (एक नजर ी पर डाल कर दरवाजे से नकलता) सँभल कर महे नाथ, सँभल कर....

काश खं डत हो कर ी और बड़ी लड़क तक सी मत रह जाता है। ी थर आँख से बाहर क तरफ दे खती


आ ह ता से कुरसी पर बैठ जाती है। बड़ी लड़क उसक तरफ एक बार दे खती है , फर बाहर क तरफ। हलका मातमी संगीत
उभरता है जसके साथ उन दोन पर भी काश म म पड़ने लगता है। तभी, लगभग अँधेरे म लड़के क बाँह थामे पु ष एक
क धुँधली आकृ त अंदर आती दखाई दे ती है।

लड़का : (जैसे बैठे गले से) दे ख कर डैडी, दे ख कर...

उन दोन के आगे बढ़ाने के साथ संगीत अ धक प और अँधेरा अ धक गहरा होता जाता है।

     

मुखपृ उप यास कहानी क वता ंय नाटक नबंध आलोचना वमश

बाल सा ह य व वध सम -संचयन अनुवाद हमारे रचनाकार हद लेखक पुरानी व वशेषांक खोज

संपक व व ालय

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