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प्रदूषित पर्यावरण बना मानव के लिए खतरा

आज के इस आधनि ु क दौर में तेजी से मैदान होते जा रहे जगं ल, दषि ू त हो रहे जल और वाय,ु पर्यावरण को सबसे
ज्यादा नक
ु सान पहुचँ ा रहे है। ऐसे में दषि
ू त होता जा रहा पर्यावरण मानव जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा पैदा हो गया
है। यही वजह है कि प्राकृ तिक सन्तल ु न गड़बड़ा गया और साल दर साल पर्यावरण का अस्तित्व भी खतरे में पड़ता
गया। जो बेहद चितं ा का विषय है। आज विश्व पर्यावरण दिवस पर हमें पर्यावरण सरं क्षण की शपथ लेनी होगी।
हाइटेक यगु में मनष्ु य ने तरक्की के कई सोपान रचे है। आज मानव लगभग हर मोर्चे पर सफल है। कल कारखानों,
आधनि ु क मशीनों व वैज्ञानिक तकनीक से घण्टों का काम अब चदं मिनट में सिमट गया है। ज्यों-ज्यों मानव ने उन्नति
के मार्ग पर तेजी दिखाई है, त्यों-त्यों कहीं न कहीं पर्यावरण को नक
ु सान भी पहुचँ ा है। आज हम बात करे जंगल की तो
हरे भरे पेड़ पौधे हमारे पर्यावरण को सबसे ज्यादा शद्ध ु रखते है। मानव आबादी बढ़ने के साथ-साथ जब रहने की
समस्या सामने आयी, तो इसान ने हरे भरे जंगल को अपने निजी स्वार्थ में अंधे होकर मैदान बनाना शरू ु कर दिया।
नतीजा जंगल की भमि ू पर मकान और कल कारखाने स्थापित होने लगे। साल दर साल तेजी से जंगल कटे और उनके
स्थान पर गगनचम्ु बी इमारतें खड़ी होने लगीं। इसके सापेक्ष वृक्षारोपण में लोगों ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। फलस्वरूप,
विशालकाय पेड़ तो गायब होते चले गये , लेकिन नये वृक्ष तैयार नहीं हो पाये। हालाकि प्रत्येक वर्ष वन विभाग व अन्य
विभागों द्वारा वृक्षारोपण कराया जाता है, इसके बावजदू नये पौधे उन्नति नहीं कर पाते। ऐसे में पर्यावरण को भारी
नक ु सान पहुचँ रहा है। मौजदू ा समय में पर्यावरण तेजी से दषि
ू त होता जा रहा है। इसी प्रकार कल कारखानों, गटर, आदि
का पानी बाध, तालाब व नदियों में जा रहा है। ऐसे में इनका पानी भी प्रदषि ू त होता जा रहा है। शासन प्रशासन द्वारा
बाँध, तालाब व नदियों में जा रहे कारखानों के अपशिष्ट पदार्थों को रोकने के लिए कार्ययोजना तो बनायी जाती है,
निर्देश भी दिये जाते है, लेकिन इस पर सख्ती से अमल नहीं किया जाता। यही वजह है कि जल प्रदषू ण नहीं रुक पाता।
आज हालात यह है कि शायद ही कोई ऐसी नदी व जलाशय हो, जो प्रदषि ू त न हो रहा हो। जल प्रदषू ण से भी पर्यावरण
को बड़ा खतरा है। इसे रोकने के लिए जिम्मेदारो के आगे न आने से हालात साल दर साल भयावह होते जा रहे है। इसी
प्रकार वायु प्रदषू ण भी तेजी से बढ़ रहा है। जो पर्यावरण को एक बड़ा खतरा बनकर उभरा है। फै क्ट्रियों, वाहनों के धएु ं
से भी पर्यावरण को नक ु सान पहुचँ रहा है। इसे रोकने के लिए अब तक ठोस कदम नहीं उठाये गये। संचार के क्षेत्र में देश
ने काफी उन्नति की, जगह-जगह लगाये गये मोबाइल टावर्स से भी पर्यावरण को नक ु सान पहुचँ रहा है। आज विश्व
पर्यावरण दिवस पर हमें पर्यावरण संरक्षण की शपथ लेनी होगी। यही नहीं अधिक से अधिक पेड़ लगाकर जल व वायु
को प्रदषू ण से मक्तु होने के लिए लोगों को जागरुक करने की आवश्यकता है।
शहर की शहजादी कही जाने वाली शहजाद नदी को आज जल प्रदषू ण ने लील लिया है। किसी समय इसके स्वच्छ
निर्मल जल में लोगों को अठखेलियाँ करते देखा जाता था। आज जानवर भी इसका पानी नहीं पीते। गटर और
कारखानों का अपशिष्ट पदार्थ इस नदी के अस्तित्व को खतरा बन गया है। इसी प्रकार शहर के सम्ु मेरा तालाब क्षेत्र में
लगाया गया मोबाइल टावर भी पर्यावरण को खतरा है। पर्यावरण प्रदषू ण जीव-जन्तओ ु ं व पश-ु पक्षियों को भी आज
सबसे बड़ा खतरा बन गये है। मोबाइल टावर्स से पक्षियों के जीवन को खतरा है। साथ ही मोबाइल टावर्स से निकलने
वाली रे डियो एक्टिव तरगों से भी उनकी प्रजनन क्षमता पर भी बरु ा असर पड़ रहा है। वहीं जल प्रदषू ण से प्रवासी
पक्षियों के साथ-साथ मगरमच्छ, कछुआ, मछली, घोंघा, कें कड़ा आदि जीवों के लिए भी खतरा पैदा हो गया है।
कछुआ व कें कड़ा के विलप्तु होने का सबसे बड़ा कारण जल प्रदषू ण ही है। वहीं तेजी से कट रहे जगं ल के कारण
जंगली जानवरों की कई प्रजातियाँ जहा विलप्तु हो गयी है, तो वहीं कई विलप्तु होने की कगार पर हैं। जब-जब मनष्ु य ने
प्रकृ ति और पर्यावरण से खिलवाड़ किया, तब-तब उसे इसकी भारी कीमत चक ु ानी पड़ी। इतिहास में ऐसे कई प्रमाण
मौजदू है। प्रकृ ति व पर्यावरण से छे ड़छाड़ का ही नतीजा है कि सख ू ा, अकाल, अतिवृष्टि, बाढ़ आदि विभीषिकायें
मानव ने झेली है। कुल मिलाकर पर्यावरण प्रदषू ण मौसम को भी प्रभावित करता है।
पॉलीथिन के बढ़ते प्रयोग से पर्यावरण को भारी क्षति पहुचँ ायी जा रही है और तो और मवेशियों के लिए भी यह घातक
है। हालाँकि शासन प्रशासन द्वारा पॉलीथिन पर रोक भी लगा दी गयी है , लेकिन इसका सख्ती से पालन न होने से
धड़ल्ले से पॉलीथिन प्रयोग में लायी जा रही है। स्वयंसेवी संस्था मानव ऑर्गनाइजेशन द्वारा इन दिनों पॉलीथिन के
प्रयोग पर रोक लगाने के लिए लोगों को कपड़े के थैले बाँटकर जागरुकता फै लायी जा रही है , जो सराहनीय है।
पॉलीथिन का प्रयोग पर्यावरण के लिए खतरा है।
स्रोत- https://www.jagran.com/uttar-pradesh/lalitpur-18042444.html

पाठाश
ं के आधार पर सही उत्तर चनि
ु ए।
1 मानव जीवन के लिए सबसे ज्यादा खतरा क्या है? (दषि
ू त पर्यावरण, आधनिु क मशीनें, सड़कें , अधिक कार्य)
2 कछुआ व कें कड़ा के विलप्तु होने का सबसे बड़ा कारण है। (जल प्रदषू ण, वायु प्रदषू ण, ध्वनि प्रदषू ण, अधिक
जनसँख्या)
3 मवेशियों के लिए क्या घातक है? (पॉलीथिन के बढ़ते प्रयोग, कारों की बढ़ती सख्ं या, वायु प्रदषू ण, बेमौसम
बारिश)

सही या गलत कथन की पहचान कीजिए।


4 पॉलीथिन के बढ़ते प्रयोग को रोकने के लिए कपड़े का थैला प्रयोग करना चाहिए। (सही)
5 मोबाइल टावर्स से पक्षियों के जीवन को खतरा है। (सही)
6 फै क्ट्रियों, वाहनों के धएु ं से पर्यावरण को कोई नक
ु सान नहीं पहुचँ रहा है। (गलत)

रिक्त स्थान भरें ।


7 ........का गन्दा पानी पहुचँ कर नदियों को दषि
ू त कर रहा है। (कारखानों का, खेतों का, घरों का, पीने का)
8 जल व वायु को प्रदषू ण से मक्त ु होने के लिए लोगों को......लगाना चाहिए। (मोबाइल टावर, पेड़, पंखा,
कारखाना)
9 आपको यह लेख कै सा लगा? इस लेख की कोई दो विशेषताएं बताइए। दो बिंदओ ु ं के रूप में अपना उत्तर
लिखिए।
अपना उत्तर सक्ष
ं ेप में लिखें।
10 प्रत्येक वर्ष वन विभाग व अन्य विभागों द्वारा वृक्षारोपण कराया जाता है, इसके बावजदू नये पौधे क्यों नहीं
उन्नति नहीं कर पाते। । इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
11 मनष्ु य और प्रकृ ति क्या दोनों एक दसू रे पर निर्भर है? पक्ष और विपक्ष में अपना उत्तर लिखिए।
अथवा
जल प्रदषू ण को कम करने के लिए क्या उपाए करने चाहिए? अपने विचार लिखिए।

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