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जल में निहित बाहरी पदार्थ जब जल के स्वाभाविक गुणों को इस प्रकार परिवर्तित कर देते हैं कि वह

मानव स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो जाए या उसकी उपयोगिता कम हो जाए तो


यह जल प्रदूषण कहलाता है। जो वस्तुएं एवं पदार्थ जल की शुद्धता एवं गुणों को नष्ट
करते हैं वे जल प्रदूषक कहलाते हैं।

मुख्य रूप से जल प्रदूषण के कारणों को निम्न शीर्षकों में विभक्त किया जा सकता है -

1 . नगरीय अपशिष्ट एवं शहरीकरण

बढ़ती हुई अनियंत्रित जनसंख्या के कारण जल स्रोतों के निकट कचरा पैदा होता जाता है। जिसमें

मुख्यतः सड़े-गले पदार्थ, मल-मूत्र, गोबर, पॉलीथिन की थैलियां प्रमुख हैं।

2 . औद्योगिक अपशिष्ट

हजारों उद्योग एवं प्रतिष्ठान सैकड़ों तरह के अव ष्ट विषैले पदार्थों का उत्पादन करते
हैं। उन्हें ठिकाने लगाने का सबसे सरल, सस्ता एवं निकटतम स्थान नदी या झील ही हैं। इन
अवशिष्टों में अनेक प्रकार के लवण, अम्ल, क्षार, भारी धातु, लौह धातु एवं विभिन्न प्रकार की गैस
एवं रसायन घुले रहते हैं। ये पदार्थ नदी में मिलने पर जलीय जंतुओं के लिए विष का
कार्य करते हैं।

3 . अपमार्जक ( डिटर्जेंट)

बढ़ती हुई औद्योगिक प्रगति के कारण सफाई के लिए नित नए अपमार्जक बाजारों में आ रहे हैं। ये

अपमार्जक जल में घुल कर जलाशयों में पहुंचते हैं तथा जल की सतह पर इनके ठोस कणों की पतली

परत बन जाती हैं इन परतों के कारण सूर्य का प्रकाश जल के भीतर प्रवेश नहीं कर पाता हैं जिससे

जल में ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में घुल नहीं पाती हैं और जल प्रदूषित हो जाता है।

4 . कृ षि-जनित जल प्रदूषण

उत्पादन में वृद्धि हेतु आज कल रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग अत्यधिक किया जा रहा है। ये उर्वरक

फसल के पचात तश्चा


वर्षा काल में मृदा के साथ पानी में घुलकर नदियों में पहुंचते हैं अथवा भूमि में से

जल के साथ रिसकर भूजल में मिल जाते हैं।

6 . खनन
खनन से पूर्व खदानों से पानी को नलकूप लगा कर निकाल दिया जाता है ताकि विस्फोट आसानी से हो सके। यह जल

सीधे नदी-नालो में छोड़ दिया जाता है। यह जल अम्लीय होता है तथा जलस्रोत को अम्लीय कर देता है। इसी

प्रकार वर्षा ऋतुओं में खदानों में खनन कचरे के साथ पानी बहकर जल-स्रोतों को प्रदूषित कर देता है।

7 . धार्मिक कार्यकलाप

वाराणसी, हरिद्वार एवं प्रयाग आदि हरों का पवित्र गंगा के कारण बहुत धार्मिक महत्व है। इन शहरों में गंगा के

किनारे शवों को जलाया जाता है। यहाँ तक कि शवों को नदी में प्रवाहित भी कर दिया जाता हैं। इन शवों के सड़ने व

गलने से पानी में जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होती है, जल सड़ाँध देता है और जल प्रदूषित होता ही है।

जल प्रदूषण तीन प्रकार का होता है-

1. भौतिक जल प्रदूषण - भौतिक जल प्रदूषण से जल की गन्ध, स्वाद एवं ऊष्मीय गुणों में परिवर्तन हो जाता है।

2. रासायनिक जल प्रदूषण - रासायनिक जल प्रदूषण, जल में विभिन्न उद्योगों एवं अन्य स्रोतों से मिलने वाले

रासायनिक पदार्थों के कारण होता है।

3. जैविक जल प्रदूषण - जल में विभिन्न रोग जनक जीवों के प्रवेश के कारण प्रदूषित जल को जैविक जल प्रदूषण

कहा जाता है।

जल प्रदूषण से उत्पन्न समस्यायें –

जल प्रदूषण का प्रभाव जलीय जीवन एवं मनुष्य दोनों पर पड़ता है, जल प्रदूषण का प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर जल

द्वारा जल के सम्पर्क से एवं जल में उपस्थित रासायनिक पदार्थों द्वारा पड़ता है।

पेय जल के साथ रोग वाहक बैक्टीरिया, वायरस, प्रोटोजोआ, एवं कृमि मानव शरीर में पहुँच जाते हैं और हैजा,

टाइफाइड, पेचिश, पीलिया, अतिसार, एनकायलो, नारू, लेप्टोस्पाइरासिस जैसे भयंकर रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

जल प्रदूषण से बचाव-
जल प्रदूषण से बचाव के लिये सरकारी तंत्र, स्वयंसेवी संस्थाओं एवं व्यक्तिगत रूप से
निम्न प्रक्रियाओं को व्यवहार में लाना होगा-

1. घरों से निकलने वाले मलिन जल एवं वाहित मल को एकत्र करके सं धन


धनशो
संयंत्रों
में पूर्ण रूप से शोधन के उपरान्त जलस्रोत में विसर्जित किया जाय।

2. तालाब, पोखरों इत्यादि के चारों ओर दीवार बनाकर विभिन्न प्रकार की गंदगियों को


रोका जाय तथा साथ ही साथ उनमें नहाने, कपड़े धोने आदि पर भी रोकथाम करनी
चाहिये।

3. जल स्रोतों के निकट स्थापित उद्योगों के निःसृत जल का सं धन


धनशो
कर उन्हें पुनः
जलस्रोतों में विसर्जित किया जाय तथा भविष्य में जलस्रोतों के निकट उद्योगों की
स्थापना पर प्रतिबन्ध लगाया जाय।

4. समय-समय पर प्रदूषित जलाशयों के आधार पर एकत्रित अनावयक


कयगन्दगी व कीचड़ों
को बाहर निकाला जाना चाहिये।

5. सबसे प्रमुख जनसाधारण के मध्य जल के प्रदूषण के कारणों, दुष्प्रभावों व रोकथाम


की विधियों के विषय में जागरूकता बढ़ानी होगी, क्योंकि सर्वाधिक प्रदूषण मानव द्वारा
होता है, अतः मनुष्य वर्ग में इस प्रकार का संदेश प्रेषित कर कुछ हद तक जल के
प्रदूषण को नियन्त्रित किया जा सकेगा।

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