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भारत सरकार

जल संसाधन मत्रालय

राçट्रीय जल नीित (2012)


1.प्रèतावना

1.1 जल एक दलभ
ु र् प्राकितक
ृ ससाधन
ं है जो जीवन, जीिवका, खाɮय सरक्षा
ु और
िनरं तर िवकास का आधार है । भारत मɅ ससार
ं की 18% से अिधक आबादी है जबिक
िवæव का केवल 4% नवीकरणीय जल ससाधन
ं और िवæव के भू क्षेत्र का 2.4% भू क्षत्र

है । इसके अितिरक्त, समय और èथान के साथ असमान िवतरण के कारण जल की
उपयोग योग्य मात्रा भी सीिमत है , इसके अलावा, दे श के िकसी न िकसी िहèसे मɅ प्राय:
बाढ़ और सख
ू े की चुनौितयɉ का भी सामना करना पड़ता है । एक तेजी से िवकासशील
राçट्र मɅ जनसंख्या बढ़ने तथा आवæयकताओं मɅ बढ़ोतरी और जलवायु पिरवतन
र् के
प्रभावɉ को दे खते हुए, भिवçय मɅ उपयोग योग्य जल की और कमी होगी तथा िविभÛन
प्रयोक्ता समह
ू ɉ के बीच जल िववादɉ के और गहराने की संभावना है । जनता मɅ जल की
कमी तथा उसके जीवन रक्षक और आिथर्क मह×व के िवषय मɅ जागǾकता की कमी के
कारण जल का कुप्रबधन,
ं जल की बबार्दी और अकुशल उपयोग होता है और प्रदषण
ू तथा
Ûयूनतम पािरिèथितकीय आवæयकताओं से भी कम प्रवाह हो पाता है । इसके अितिरक्त,
जल संसाधनɉ का बंटवारा असमान है तथा जल संसाधनɉ की आयोजना, प्रबंधन और
उपयोग के िवषय मɅ समǾप पिरप्रेêय की कमी है । राçट्रीय जल नीित का उƧæय
े मौजद
ू ा
िèथित का संज्ञान लन,
े े िनयमɉ और संèथाओं की प्रणाली के सजन
ृ और समǾप राçट्रीय
पिरप्रेêय समेत कायर् योजना हे तु ढाच
ं े का प्रèताव रखना है ।

1.2 भारत मɅ जल ससाधनɉ


ं और उनके प्रबंधन संबंधी वतर्मान पिरǺæय से कई प्रकार
की िचंताएं सामने आई हɇ िजनमɅ से मह×वपण
ू र् िचताएं
ं इस प्रकार हɇ :-

(i) भारत के बड़े िहèसɉ मɅ पहले ही जल की कमी हो चकी


ु है । जनसख्या
ं विद्ध,

शहरीकरण और जीवन शैली मɅ पिरवतर्न के कारण जल की मांग मɅ तेजी से बढ़ोतरी की
वजह से जल सरक्षा
ु के िवषय मे गंभीर चनौितय
ु ां बन गई ह।ɇ
(ii) जल सचालन
ं संबंधी मƧɉ
ु पर भी पयाÜत
र् Ǿप से Úयान नहीं िदया गया है । जल
संसाधनɉ के खराब प्रबंधन से दश
े के कई िहèसɉ मɅ गंभीर िèथित बन गई ह।ै

(iii) जल की उपलÞधता मɅ भारी èथािनक और कािलक अंतर है जो जलवायु पिरवतर्न से


और अिधक बढ़ सकता है िजसके कारण जल संकट और गहराएगा तथा जल संबधी

आपदाओं अथार्त बाढ़, अिधक भ-कटाव
ू तथा सख
ू े की बार-बार होने वाली घटनाओं आिद
मɅ विद्ध
ृ होगी।

(iv) जलवायु पिरवतर्न से समद्र


ु जल का èतर भी बढ़ सकता है । इसकी वजह से भजल

जलभतɉ/सतह
ृ ी जल मɅ लवणता का प्रवश
े हो सकता है और तटीय क्षत्रɉ
े मɅ तटीय जल-
Üलावन बढ़ सकता है िजसका इन क्षेत्रɉ मɅ िनवास èथानɉ, कृिष और उɮयोग पर बरा

असर पड़ेगा।

(v) कई क्षेत्रɉ मɅ èवÍछ पेयजल और अÛय घरे लू आवæयकताओं के िलए जल की


उपलÞधता की समèया अभी भी है । िविभÛन क्षत्रɉ
े मɅ और एक ही क्षत्र
े के िविभÛन लोगɉ
के बीच जल उपलÞधता िवषम है और इससे सामािजक अराजकता हो सकती है ।

(vi) भजल
ू हालािक
ं जल िवज्ञानीय चक्र और सामदाियक
ु ससाधन
ं का िहèसा है लेिकन
इसे अभी भी वैयिक्तक सपि×त
ं मानकर इसकी िनरतरता
ं के िवषय मɅ सोचे समझे िबना
इसका असमान दोहन िकया जाता है िजसके कारण कई क्षेत्रɉ मɅ अित-दोहन की िèथित
बन गई है ।

(vii) जल संसाधन पिरयोजनाएं जो िक यɮयिप बहु संख्यक भागीदारɉ वाली बहआयामी



पिरयोजनाएं होती ह,ɇ की आयोजना और कायाÛवयन,
र् अनकलतम
ु ू उपयोग, पयावरण
र् का
èथािय×व और लोगɉ को समग्र लाभ के िवषय पर कोई Úयान िदए िबना िवखंिडत Ǿप से
िकया जा रहा है ।

(viii) जल की िहèसदारी
े के संबंध मɅ अंतराचल,
ं अंतराÏयीय,
र् अंत:राÏयीय और
अंतरक्षत्रीय
े िववादɉ के कारण, संबधɉ
ं मɅ तनाव तथा बेिसन/उप बेिसन आधार पर
वैज्ञािनक योजना के माÚयम से जल के अनकलतम
ु ू उपयोग मɅ बाधा आती ह।ै
(ix) मौजदा
ू िसचाई
ं अवसंरचनाओं के कल
ु िमलाकर अपयार्Üत अनरक्षण
ु के फलèवǾप
उपलÞध संसाधनɉ की बबादी
र् होती है और उपयोग कम हो पाता है । सिजत
ृ िसचाई
ं क्षमता
और उपयोग की गई िसंचाई क्षमता मɅ भारी अंतर ह।ै

(x) प्राकृितक जल िनकायɉ और जल िनकास मागɟ पर अितक्रमण िकया जा रहा है और


उÛहɅ अÛय प्रयोजनɉ के िलए उपयोग िकया जा रहा ह।ै भ-जल
ू पनभरण
ु र् क्षत्र
े प्राय: बद

रहते हɇ।

(xi) जल İोतɉ मɅ बढ़ता प्रदषण,


ू िवशषकर
े औधोिगक बिह:İावɉ के जिरए, पयार्वरण और
èवाèØय के िलए खतरा पैदा करने के साथ-साथ èवÍछ जल की उपलÞधता को भी
प्रभािवत कर रहा ह।ै दश
े के कई िहèसɉ मɅ नदी का बड़ा क्षेत्र बहु त अिधक प्रदिषत
ू होने
के साथ-साथ जलीय पािरिèथितकी, सांèकृ ितक आवæयकताओं तथा सɋदयर्बोध मɅ सहायता
दे ने हे तु प्रवाहमयी होने से भी वंिचत रह जाता है ।

(xii) साफ-सफाई और èवÍछता के िलए जल की उपलÞधता तो और अिधक गàभीर


समèया है । अपयाÜत
र् साफ-सफाई और मल-जल पिरशोधन की कमी के कारण जल
संसाधन प्रदिषत
ू हो रहे ह।ɇ

(xiii) जल की समग्र कमी और आिथर्क मह×व के िवषय मɅ लोगɉ मɅ कम जागǾकता


होने के कारण जल की बबार्दी और अकुशल उपयोग होता है।

(xiv) वज्ञािनक
ै आयोजना, सचना
ू प्रौɮयोिगकी का प्रयोग करके आधिनक
ु तकनीक और
िवæलेषणा×मक क्षमताओं के उपयोग हे तु पयाÜत
र् प्रिशिक्षत किमयɉ
र् की कमी के कारण
अÍछे जल प्रबंधन मɅ बाधा आती ह।ै

(xv) जल संबधी
ं समèयाओं के िवषय मɅ समग्र और अंतर-िवषयक Ǻिçटकोण नहीं ह।ै

(xvi) जल संबधी
ं िनणय
र् लन
े े वाले प्रभारी सावर्जिनक अिभकरण भागीदारɉ से परामशर्
िकए बगैर अपने आप िनणर्य लत
े े हɇ िजसके कारण प्राय: खराब और अिवæवसनीय सवाएं

िमलती हɇ िजनमɅ िविभÛन प्रकार की असमानताएं होती हɇ।
(xvii) जलधाराओं, निदयɉ के आवाह-क्षेत्रɉ और जलदायी èतर के पनभरण
ु र् क्षत्रɉ
े की
िवशेषताएं बदल रही हɇ िजसके फलèवǾप भिम
ू उपयोग और शािमल भिम
ू म
Ʌ पिरवतन
र्
हो रहा है िजससे जल संसाधन उपलÞधता और गणव×ता
ु प्रभािवत हो रह
ी है ।

1.3 जल ससाधनɉ
ं के िवषय मɅ सावजिनक
र् नीितयɉ का सचालन
ं कितपय बिनयादी

िनयमɉ ɮवारा करने की आवæयकता है, तािक जल संसाधनɉ की आयोजना, िवकास और
प्रबंधन के Ǻिçटकोणɉ मɅ कुछ साझापन हो। ये बिनयादी
ु िनयम इस प्रकार हɇ :-

(i) जल संसाधनɉ की आयोजना, िवकास और प्रबधन,


ं èथानीय, क्षत्रीय
े , राÏयीय और
राçट्रीय संदभर् मɅ मानवीय, सामािजक और आिथर्क आवæयकताओं को Úयान म
Ʌ रखते
हए,
ु एकीकत
ृ और पयार्वरिणक तौर पर सǺढ़
ु आधार वाले साझे एकीकत

पिरप्रेêय मɅ
संचािलत करने की आवæयकता ह।ै

(ii) जल के उपयोग और आवंटन मɅ समानता और सामािजक Ûयाय का िनयम अपनाया


जाना चािहए।

(iii) समानता, सामािजक Ûयाय और èथािय×व के िलए सिचत


ू पारदशीर् िनणर्य ɮवारा
अÍछा संचालन बहत ु जǾरी है । साथर्क गहन सहभािगता, पारदिशता
र् और जवाबदे ही से
िनणर्य लन
े े और जल संसाधनɉ के िविनयमन मɅ मागर्दशन
र् दना
े चािहए।

(iv) खाɮय सरक्षा,


ु जीिवका तथा सभी के िलए समान और èथायी िवकास हत
े ु राÏय
ɮवारा सावर्जिनक धरोहर के िसद्धात
ं के तहत जल का प्रबधन
ं सामदाियक
ु ससाधन
ं के Ǿप
मɅ िकए जाने की आवæयकता है ।

(v) जल, पािरिèथितकी को बनाए रखने के िलए आवæयक है और इसिलए Ûयनतम



पािरिèथितकीय आवæयकताओं को समिचत
ु मह×व िदया जाना चािहए।

(vi) जल को, पेयजल, सफाई के िलए सवप्रथम


र् आवæयकता और अÛय घरल
े ू
आवæयकताओं (पशओ
ु ं की आवæयकताओं समेत) खाɮय सरक्ष
ु ा हािसल करने, सàपोषक
कृिष को संबल दने
े और Ûयनतम
ू पािरिèथितकीय आवæयकताओं के िलए उÍच
प्राथिमकता वाले आवंटन के बाद आिथर्क वèतु माना जाना चािहए तािक इसका संरक्षण
और कुशल उपयोग बढ़ सके।
(vii) जल चक्र के सभी घटक अथार्त वाçप-वाçपो×सजर्न, वषण,
र् अपवाह, नदी, झील,Ʌ मदा

नमी और भिम
ू जल, समद्र
ु आिद परèपर आधािरत होते हɇ तथा मलभत
ू ू जल िवज्ञानीय
इकाई नदी बेिसन है िजसे आयोजना के िलए मलभत
ू ू इकाई माना जाना चािहए।

(viii) उपयोÏय जल संसाधनɉ की उपलÞधता को बढ़ाने संबधी


ं बताई गई सीमाओं और
जलवायु पिरवतर्न के कारण आपूितयɉ
र् मɅ अिधक पिरवितर्ता को दे खते हए
ु भिवçय की
आवæयकताओं को पूरा करना मांग प्रबधन
ं पर अिधक िनभरर् होगा और इसिलए इस,े
िवशेषकर (क) एक ऐसी कृ िष प्रणाली िवकिसत करके िजससे जल उपयोग को िमतåययी
बनाया जा सके और जल से अिधकतम लाभ िमल सके तथा (ख) जल के अिधकतम
दक्ष उपयोग को लागू करने और जल की बबार्दी को रोककर, उÍच प्राथिमकता दे ने की
आवæयकता है ।

(ix) जल गणव×ता
ु और मात्रा एक दसर
ू े से जड
ु े हुए हɇ और इनके एकीकत
ृ ढगं से प्रबधन

की आवæयकता है िजसके िलए अÛय बातɉ के साथ-साथ लगातार प्रदषण ू और जल
बबादी
र् को कम करने हत
े ु आिथक
र् प्रो×साहन और दड
ं िविधयɉ के उपयोग समेत åयापक
पयार्वरणीय प्रबंधन Ǻिçटकोण अपनाने की आवæयकता है ।

(x) जल संसाधनɉ की उपलÞधता पर जलवायु पिरवतर्न का प्रभाव, जल प्रबधन


ं सबधी
ं ं
िनणर्यɉ मɅ एक घटक होना चािहए । èथानीय भ-जलवाय
ू ु िवषयक और जल-िवज्ञानीय
िèथित को Úयान मɅ रखते हुए जल के उपयोग वाले कायकलापɉ
र् को िविनयिमत करने की
आवæयकता है ।

2. जल सबं
ं धी ढांचागत कानन

2.1 यɮयिप, यह माना जाता है िक जल के सबं


ं ध मɅ समिचत
ु नीितया,ं कानन
ू बनाए/
कायार्िÛवत करने और / या िविनयमन करने का अिधकार राÏय का है तथािप, जल
संबधी
ं सामाÛय िसद्धातɉ
ं का åयापक राçट्रीय जल सबधी
ं ं ढ़ाचागत
ं कानन
ू तयार
ै करने की
आवæयकता है । इससे दश
े के प्र×येक राÏय मɅ जल के संचालन हे तु आवæयक िवधान
बनाने तथा èथानीय जल िèथित से िनपटने के िलए सरकार के िनचले èतरɉ पर
आवæयक प्रािधकार सɋपने का मागर् प्रशèत हो सकेगा।
2.2 ऐसे ढांचागत कानन
ू मɅ जल को कवल
े दलभ
ु र् ससाधन
ं ही नहीं बिãक जीवन और
पािरिèथितकी को बनाए रखने के साधन के Ǿप मɅ भी माÛयता दी जानी चािहए। अत:
खाɮय सरक्षा,
ु जीिवका और सभी के िलए समान और िनरतर
ं िवकास हे तु राÏय ɮवारा
सावर्जिनक िवæवास के िसद्धांत के अंतगत
र् जल िवशषकर
े भजल
ू का सामदाियक
ु ससाधन

के Ǿप मɅ प्रबधन
ं करने की आवæयकता है । मौजदा
ू अिधिनयमɉ के अनसार
ु ईसमɅ
संशोधन िकया जाना चािहए।

2.3 जल के सभी Ǿपɉ (वषा,र् मदा


ृ नमी, भिम
ू और सतही जल समेत) इसके समǾप
पिरप्रेêय मɅ बेिसन/उप बिसन
े को इकाई मानकर भिम
ू और जल ससाधन
ं ɉ की वैज्ञािनक
आयोजना सिु निæचत करने और आवाह एवं कमान दोनɉ क्षेत्रɉ का समग्र व सत
ं िु लत
िवकास सिनिæचत
ु करने के िलए अंतर-राÏयीय समÛवय को सलभ
ु बनाने हे तु अतर

राÏयीय निदयɉ और नदी घािटयɉ के अनक
ु ू लतम िवकास के वाèते एक åयापक िवधान
की आवæयकता है । इस िवधान मɅ अÛय बातɉ के साथ-साथ बेिसनɉ मɅ संबिधत
ं राÏयɉ
को शािमल करते हु ये जल उपयोग की आयोजना, प्रबंधन और िविनयमन हे तु बेिसन
प्रािधकरणɉ को समिचत
ु शिक्तयां सɋपने की आवæयकता ह।ै

3. जल के उपयोग

3.1 जल घरे लू उपयोग, कृिष, जल िवɮयुत, ताप िवɮयत


ु , नौवहन, मनोरं जन इ×यािद
के िलए आवæयक है । इन िविभÛन प्रकार के उपयोगɉ के िलए जल का इçटतम उपयोग
िकया जाना चािहए तथा जल को एक दलभ
ु र् ससाधन
ं मानने के िलए जागǾकता फलानी

चािहए।

3.2 कद्र,
Ʌ राÏयɉ और èथानीय िनकायɉ (सचालक
ं संèथाए)ं को अपने सभी नागिरकɉ
को आवæयक èवाèØय और èवÍछता के िलए èवÍछ जल की Ûयनतम
ू मात्रा की
उपलÞधता सिनिæचत
ु करनी चािहए, िजससे सभी पिरवारɉ को शƧ
ु जल आसानी से प्राÜत
हो सके।

3.3 यह मानते हुए िक नदी प्रवाह मɅ Ûयून अथवा शÛय


ू प्रवाह, लघु बाढ़ (फ्रे शेɪस),
बड़ी बाढ़ आिद के Ǿप मɅ िविवधता होती है , नदी की पािरिèथितकी आवæयकताएं
िवकासा×मक आवæयकताओं को शािमल करते हुए वज्ञािनक
ै अÚययन ɮवारा िनधार्िरत की
जानी चािहए। नदी प्रवाह का एक िहèसा पािरिèथितकीय आवæयकता को परू ा करने के
िलए अलग रखा जाना चािहए िजससे यह सिनिæचत
ु हो सके िक Ûयन
ू और अिधक प्रवाह
िविनयिमत भिम
ू जल उपयोग के माÚयम से कम प्रवाह वाले मौसम मɅ आधार प्रवाह
सहयोग के साथ प्राकितक
ृ प्रवाह पद्धित के अनपाितक
ु हो।

3.4 निदयɉ और अÛय जल िनकायɉ मɅ जहां तक सभव


ं हो नौवहन सिवधा
ु का
िवकास िकया जाना चािहये और बहउƧशीय
ु े जन िनकाय पिरयोजनाओं मɅ आयोजना èतर
से ही नौवहन का Úयान रखा जाए।

3.5 भारत के िवपल


ु जल मात्रा वाले पूवीर् और पूवȾ×तर क्षत्र
े मɅ जल उपयोग
अवसंरचना कमजोर है, खाɮय सरक्षा
ु के िलए इसे सǺढ़
ु िकए जाने की आवæयकता ह।ै

3.6 लàबी दरी


ू से जल अंतरण ɮवारा जल उपलÞध कराने से पहले समदाय
ु को इस
बात के िलये सग्रािहत
ु और प्रो×सािहत िकया जाना चािहए िक वह प्राथिमक ǽप से
èथानीय क्षत्रɉ
े मɅ जल की उपलÞधता के अनसार
ु जल का उपयोग कर।Ʌ समदाय

आधािरत जल प्रबंधन को एक सèथागत
ं ǽप दना
े चािहए और सǺढ़
ु िकया जाना चािहए।

4. जलवायु पिरवतन
र् के अनǾप
ु अनकलन
ु ू

4.1 जलवायु पिरवतन


र् से जल ससाधनɉ
ं की पिरवितता
र् मɅ बढ़ोतरी होने की सभावना

है , िजससे मानव èवाèØय और जीिवका प्रभािवत होगी। इसिलए सêम
ू èतर पर
जलवायु के अनǾप
ु प्रौɮयोिगकीय िवकãप अपनाने के िलए समदाय
ु की क्षमता बढ़ाने हे तु
िवशेष जोर िदया जाना चािहए।

4.2 जलवायु पिरवतन


र् के कारण जल की उपलÞधता के वैिभÛय मɅ प्र×यािशत विद्ध

को जल भÖडारणɉ को उनके िविभÛन Ǿपɉ नामतः मदा
ृ नमी, तालाबɉ, भ-ू जल, लघु और
बड़े जलाशयɉ और उनके संयोजन को बढाकर िनपटा जा सकता है । राÏयɉ को उनकी
जल भडारण
ं क्षमता बढाने के िलये प्रो×सािहत िकया जाना चािहए िजसमɅ ईसके साथ-
साथ पारàपिरक जल हावȶिèटं ग तंत्र तथा जल िनकायɉ का पनरोद्धार
ु भी शािमल है ।

4.3 अनक
ु ू लन कायनीितयɉ
र् मɅ िवशेषत: संगत कृिष कायर्नीितयां और फसलीय चक्रɉ
तथा जल अनप्रयोग
ु पद्धितयɉ जसे
ै भिम
ू समतलीकरण तथा/अथवा टपक/िछड़काव िसचाई

को अपनाकर बेहतर मांग प्रबधन
ं को भी शािमल िकया जा सकता है क्यɉिक इससे जल
उपयोग दक्षता मɅ विद्ध
ृ होती है तथा जलवायु पिरवतर्न के कारण िवषमता के बढ़ने का
समाधान करने के िलए क्षमता प्राÜत की जा सकती है । इसी तरह औɮयोिगक प्रिक्रयाओं
की जलीय दक्षता को भी बढ़ाया जाना चािहए।

4.4 िविभÛन किषगत


ृ कायनीितयɉ
र् को िवकिसत करक,
े मदा
ृ कटाव को कम करके
और मदा
ृ उवर्रता मɅ सधार
ु करने के िलए èथानीय शोध और शैिक्षक संèथानɉ से
वैज्ञािनक ज्ञान-आधािरत भिम-मदा-जल
ू ृ प्रबधन
ं मɅ भागीदारɉ की सहभािगता को प्रो×सािहत
करना चािहए। पहाड़ी क्षेत्रɉ की िविशçट समèयाओं जैसे अचानक जल अपवाह, मदा
ृ की
कमजोर जल पकड़ क्षमता, कटाव व तलछट पिरवहन और पहाड़ी ढलान जलभतɉ
ृ की
िरचािजर्ंग आिद पर पयाÜत
र् Ǿप से Úयान िदया जाना चािहए।

4.5 जल संसाधन संरचनाओं अथार्त बांध, बाढ़ सरक्षा


ु तटबंध, Ïवार सरक्षा
ु तटबध

आिद की आयोजना और प्रबंधन मɅ संभािवत जलवायु पिरवतर्नɉ से िनपटने वाली
कायर्नीितयां शािमल होनी चािहए। सभािवत
ं जलवायु पिरवतर्न के मƧनजर
े नई जल
संसाधन पिरयोजनाओं को èवीकित
ृ के मानदÖड का पन:िनधारण
ु र् करने की आवæयकता
है ।

5. उपयोग हे तु उपलÞध जल मɅ विद्ध


ृ करना

5.1 दे श के िविभÛन बेिसनɉ तथा राÏयɉ के िविभÛन िहèसɉ मɅ जल ससाधन


ं की
उपलÞधता तथा इनके उपयोग का वैज्ञािनक पद्धित से आकलन और आविधक Ǿप से
अथार्त प्र×येक पाच
ं वषर् म,Ʌ समीक्षा िकये जाने की आवæयकता है । जल संसाधन
आयोजना के दौरान ही जलवायु पिरवतन
र् सिहत िविभÛन घटकɉ के कारण जल
उपलÞधता के Ǿझानɉ का आकलन कर Úयान मɅ रखना चािहए।

5.2 जल की उपलÞधता सीिमत है परÛतु जनसख्या


ं विद्ध,
ृ तजी
े से हो रहे शहरीकरण,
औɮयोिगकीकरण और आिथर्क िवकास के कारण जल की मांग मɅ तेजी से विद्ध
ृ हो रही है
इसिलये जल की बढ़ती हु ई मांग को परा
ू करने के िलए उपयोग हे तु जल की उपलÞधता
को बढ़ाए जाने की आवæयकता है । उपयोग योग्य जल संसाधन मɅ विद्ध
ृ के िलए वषार् का
प्र×यक्ष उपयोग एवं अपिरहायर् वाçप-वाçपो×सजन
र् को कम करना नई अितिरक्त
कायर्नीितयां हɇ।
5.3 दश
े मɅ भजल
ू ससाधन
ं (पनभरणीय
ु र् एवं गर-पनभरणीय
ै ु र् दोनɉ) की मात्रा एवं
गणव×ता
ु जानने के िलए जलभतɉ
ृ की िèथित का पता लगाने की आवæयकता है । इस
प्रिक्रया मɅ èथानीय समदायɉ
ु को शािमल करते हुए पणर्
ू Ǿप से सहभािगता को बढ़ाया
जाना चािहए। इसे आविधक Ǿप से अɮयतन िकया जाए।

5.4 अित-दोिहत क्षेत्रɉ मɅ जल उपयोग की उÛनत तकनीकɅ अपना कर, जल के कुशल


उपयोग को प्रो×साहन दे कर और जलभतɉ
ृ के समदाय
ु आधािरत प्रबधन
ं को बढ़ावा दकर

भजल
ू èतर मɅ िगरावट को रोके जाने की आवæयकता ह।ै इसके अितिरक्त जहां आवæयक
हो कित्रम
ृ पनभरण
ु र् पिरयोजनाएं शǾ
ु की जानी चािहए िजससे जल की िनकासी जल के
पनभ
ु रण
र् से कम हो। इससे जलभतɉ
ृ से सतही प्रणाली को आधारभत
ू प्रवाह उपलÞध हो
सकेगा और पिरिèथितकी बनाए रखी जा सकेगी।

5.5 अतरबिसन
ं े अंतरण के वल उ×पादन बढ़ाने के िलए नहीं होता बिãक आधारभत

मानवीय आवæयकताओं को पूरा करने के िलए और समानता एवं सामािजक Ûयाय
हािसल करने के िलए भी होता है । जल के अंतबिसन
ȶ अतरण
ं को प्र×येक मामले को
उसकी िवशेषताओं के आधार पर ऐसे अतरणɉ
ं के पयावरणीय,
र् आिथक
र् और सामािजक
प्रभावɉ का मãयाकन
ू ं करके िवचार िकया जाना चािहए।

5.6 मदा
ृ मɅ नमी बढ़ान,े गाद मɅ कमी लाने एवं समग्र भिम
ू व जल उ×पादकता को
बढ़ाने के िलए जल ग्रहण क्षेत्र िवकास िक्रयाकलापɉ को åयापक Ǿप से िक्रयािÛवत िकये
जाने की आवæयकता है । िकसानɉ ɮवारा खेत के तालाबɉ एवं अÛय मदा
ृ व जल सरक्षण

उपाय अपना कर वषार् जल संचयन के िलए मनरे गा (एमजीएनआरईजीए) जैसे वतर्मान
कायर्क्रमɉ का लाभ उठाया जा सकता ह।ै

6. माग
ं प्रबंधन एवं जल उपयोग दक्षता

6.1 िविभÛन प्रयोजनɉ के िलए जल उपयोग हे तु बɅचमाकर् िवकिसत करने की एक


प्रणाली अथार्त जल के कशल
ु उपयोग को प्रो×सािहत करने एवं बढ़ावा दने
े के िलये
िविभÛन प्रयोजनɉ के िलए जल उपयोग हे तु मानदं ड िनधार्िरत करने की प्रणाली अथात
र्
जल खपत-èतर और जल लेखा-जोखा िवकिसत िकया जाना चािहए । ‘’पिरयोजना’’ एवं
‘’बेिसन’’ जल उपयोग कशलता
ु मɅ सतत जल सत
ं ल
ु न तथा जल लेखा अÚययन के
माÚयम से सधार
ु लाये जाने की आवæयकता ह।ै इस उƧæय
े से जल के कशल
ु उपयोग के
प्रो×साहन, िविनयमन एवं िनयत्रण
ं के िलए राçट्रीय èतर पर एक सèथागत
ं åयवèथा की
जाएगी।

6.2 िवशषत:
े औɮयोिगक पिरयोजनाओं के िलए जल उपयोग हत
े ु पिरयोजना मãयां
ू कन
एवं पयार्वरणीय प्रभाव अÚययन से अÛय बातɉ के साथ-साथ जल उपयोग हत
े ु जल
फुटिप्रंटɉ के िवæलेषण को शािमल करना चािहए।

6.3 वापसी के प्रवाह सिहत जल के पुन:चक्रण एवं पन


ु : उपयोग को बढ़ावा दे ना
सामाÛय िनयम होना चािहए।

6.4 पिरयोजना िव×तपोषण की सरचना


ं इस प्रकार होनी चािहए िक जल के कुशल एवं
िमतåययी उपयोग को बढ़ावा िमले और चालू पिरयोजनाओं को शीघ्र परा
ू करने को सगम

बनाया जा सके।

6.5 िसचाई
ं उपयोग मɅ जल बचाना अ×यिधक मह×वपणर्
ू ह।ै प्राकितक
ृ ससाधन
ं अक्षय
िनिध के अनसार
ु फसल प्रणाली, सêम
ू िसंचाई (टपक, िछड़काव, आिद), èवचािलत
िसंचाई प्रचालन, वाçपीकरण-वाçपो×सजर्न Ûयनीकरण
ू आिद जसी
ै पद्धितय
ɉ को बढ़ावा एवं
प्रो×साहन िदया जाना चािहए। भजल
ू के संयक्त
ु उपय
ोग से नहर के िरसाव जल का
पन
ु :चक्रण िकये जाने पर भी िवचार िकया जा सकता है ।

6.6 छोटे बधɉ,


ं खेत तालाबɉ, किष
ृ एवं अिभयाित्रकी
ं पद्धितयɉ और जल ग्रहण क्षत्र

िवकास के तरीकɉ आिद के माÚयम से अ×यिधक लघु èथानीय èतर की िसचाई
ं को
बढ़ावा िदये जाने की आवæयकता है । तथािप, उनकी बाéयताओ,ं सकारा×मक एवं
नकारा×मक दोनɉ जैसे अनप्रवाह
ु मɅ गाद मɅ कमी आना तथा जल उपलÞधता मɅ कमी
आना, को Úयान मɅ रखा जाए।

6.7 यिद जल उपयोग पद्धित से भजल


ू मɅ अèवीकायर् िगरावट अथवा विद्ध,
ृ लवणता,
क्षारीयता अथवा इसी प्रकार की गुणव×ता समèयाएं आिद जैसी समèयाएं आिद होती है
तो उपयक्त
ु उपायɉ की आयोजना की Ǻिçट से िनगरानी के िलए प्रयोक्ताओं को शािमल
करते हए
ु एक समवतीर्तत्र
ं होना चािहए।
7. जल का मãय
ू िनधारण
र्

7.1 जल के मãय
ू िनधारण
र् ɮवारा इसका प्रभावी उपयोग तथा सरक्षण
ं को बढावा दना

सिनिæचत
ु िकया जाय। सभी भागीदारɉ से åयापक िवचार िवमशर् करके प्र×येक राÏय
ɮवारा èथािपत èवतंत्र जल िविनयामक प्रािधकरण के माÚयम से सभी के िलये जल की
समान उपलÞधता तथा पेयजल और अÛय उपयोगɉ जस
ै े साफ-सफाई, किष
ृ तथा उɮयोगɉ
के िलये इसका उिचत मãय
ू िनधारण
र् िकया जाय।

7.2 समानता, दक्षता तथा आिथर्क िसद्धांतो को प्राÜत करने के िलये जल प्रभार
अिधमानत:/िनयम के तौर पर èवैिÍछक आधार पर तय िकये जाने चािहये। ऐसे प्रभारɉ
की आविधक समीक्षा की जाए।

7.3 जल का िविशçट मानकɉ से उपचार करने के बाद पन


ु :चक्रण तथा पन
ु :उपयोग को
भी उिचत Ǿप से िनयोिजत शãक
ु प्रणाली के तहत प्रो×सािहत िकया जाए।

7.4 पेयजल तथा साफ-सफाई के िलए जल के उपयोगɉ के क्रय से पवर्


ू िनधार्रण तथा
गरीबɉ के िलये खाɮय़ सरक्ष
ु ा तथा आजीिवका सिनिæचत
ु करने को उÍच प्राथिमकता दे ते
हुये अलग-अलग मãय
ू िनधारण
र् के िसद्धात
ं को बनाये रखा जा सकता ह।ै उपयक्त
ुर्
आवæयकताओं की पूित र् के पæचात उपलÞध जल का अिधकतम Ǿप से आबंटनो और
आिथर्क िसद्धातɉ के आधार पर मãय
ू िनधार्रण िकया जाना चािहए िजससे जल को
अनावæयक Ǿप से उपयोग करके åयथर् न िकया जाए तथा उसका अिधक लाभकारी
उपयोग िकया जाए।

7.5 जल प्रयोक्ता संघɉ को जल शãक


ु एकित्रत करने एवं एक िहèसा रखन,े उÛहɅ
आवंिटत जल की मात्रा का प्रबधन
ं करने और उनके अिधकार क्षेत्र मɅ िवतरण प्रणाली के
रखरखाव के िलए वधािनक
ै शिक्तयां दी जानी चािहए। जल प्रयोक्ता सघɉ
ं को डÞãयआरए

ɮवारा िनधार्िरत की गई मल
ू दरɉ के अनुसार दरɉ को िनयत करने की èवतंत्रता दी जानी
चािहए।

7.6 भजल
ू के दोहन हत
े ु िवɮयत
ु के उपयोग का िविनयमन करके भजल
ू के अिधकतम
दोहन को कम से कम िकया जाना होगा। कृिष हत
े ु उपयोग के िलए भजल
ू को पàप
करने के िलये अलग िवɮयत
ु फीडसर् के उपयोग पर िवचार िकया जाना चािहए।
8. नदी मागɟ, जल िनकायɉ एवं अवसरचनाओं
ं का सरक्षण

8.1 निदयɉ, नदी मागɟ, जल िनकायɉ एवं अवसरचनाओं


ं का संरक्षण सामदाियक

सहभािगता के माÚयम से एक वैज्ञािनक ǽप से िनयोिजत पद्धित से शǾ
ु िकया जाना
चािहए। बाढ़, पयार्वरण एवं सामािजक मƧɉ
ु मɅ संतलन
ु लाने के िलए जल İोतɉ एवं जल
मागɟ और/अथवा संबिधत
ं नम भिम,
ू बाढ़ मदानɉ,
ै पािरिèथितकीय बफर और िविशçट
सɋदयर्परक मनोरं जना×मक और/अथवा सामािजक आवæयकताओं हे तु आवæयक क्षेत्रɉ की
भंडारण क्षमताओं का प्रबंधन हर सभव
ं सीमा तक एक समेिकत Ǿप से लागू िनयमɉ के
आधार पर िकया जाए।

8.2 जल İोतɉ (जस


ै े निदया,ं झीलɅ, टɇक, तालाब, आिद) और जल िनकास मागɟ
(िसंिचत क्षत्र
े और शहरी क्षत्र
े जल िनकास) का अितक्रमण एवं अÛय उपयोगɉ मɅ नहीं
होने दे ना चािहए, और जहां भी ऐसा हुआ है , इसे åयवहायर् सीमा तक पन
ु :èथािपत कर
समिचत
ु Ǿप से अनरिक्षत
ु िकया जाना चािहए।

8.3 संरिक्षत प्रितप्रवाह क्षेत्रɉ के जलाशयɉ/जल िनकायɉ के आसपास शहरी èथापनाओ,ं


अितक्रमण तथा अÛय िवकासा×मक गितिविधयां िजनसे संदषण,
ू प्रदषण,
ू कम पनभरण
ु र्
को संभािवत खतरा हो तथा वÛय एवं मानवी जीवन संकट मɅ पड़ जाए उनका कड़ाई से
िविनयमन िकया जाना चािहए ।

8.4 योजना बनाते समय िहमालय क्षेत्रɉ, जलीय पािरिèथितकी, नम भिू म तथा तटबध

बाढ़ मैदानɉ की पयावरण
र् ीय आवæयकताओं को Úयान मɅ रखना चािहए।

8.5 जल के उɮगम èथलɉ तथा जल İोतɉ को प्रदिषत


ू नहीं होने दना
े चािहए ।
िनिæचत समय अविध मɅ तीसरा पक्ष िनरीक्षण की प्रणाली िवकिसत की जानी चािहए
और प्रदषण
ू के िलए िजàमेदार लोगɉ के िवǾद्ध कड़ी दÖडा×मक कारवाई
र् की जानी चािहए।

8.6 भज
ू ल के िलए गुणव×ता को बनाए रखना और इसमɅ सध
ु ार और भी अिधक
मह×वपूणर् ह,ɇ चंिक
ू इसकी सफाई करना अ×यत
ं किठन है। यह सिनिæचत
ु िकये जाने की
आवæयकता हɇ िक औɮयोिगक बिह:İाव, èथानीय उपकर पोखरɉ, उवर्रकɉ एवं रसायनɉ के
अवशेष आिद भजल
ू तक न पहुं चɅ।
8.7 अभीçट लाभ प्राÜत करना जारी रखने के िलए जल संसाधन अवसंरचना का उिचत
रखरखाव िकया जाना होगा। मरàमत एवं रखरखाव के िलए एकित्रत जल शãक
ु के साथ-
साथ अवसंरचना िवकास की लागत का एक उिचत प्रितशत िहèसा अलग रखा जाए।
पिरयोजनाओं के िनमार्ण के िलए संिवदा मɅ उिचत रखरखाव की अिधक लंबी अविध एवं
अवसंरचना को अÍछी हालत मɅ सɋपने का प्रावधान अंतिनिहत
र् होना चािहए।

8.8 राÏयɉ मɅ और कÛद्र


े मɅ भी काननी
ू अिधकार प्राÜत बाध
ं सरक्षा
ु सवाए
े ं सिनिæचत

िकये जाने की आवæयकता है । प्र×येक बाध
ं हे तु अनुप्रवाह बाढ़ प्रबधन
ं सिहत उपयक्त

सरक्षा
ु उपाय सवȾÍच प्राथिमकता पर शǾ
ु िकये जाने चािहए।

9. पिरयोजना की आयोजना एवं कायार्Ûवयन

9.1 भारत मɅ जल की कमी की वतमान


र् िèथित�यɉ और जलवायु पिरवतन
र् एवं अÛय
कारकɉ के कारण भिवçय मɅ िèथित� और खराब होने की संभावना को Úयान मɅ रखते
हुए जल ससाधन
ं पिरयोजनाओं की आयोजना िविभÛन िèथित�यɉ के िलए िनधार्िरत
दक्षता मानदं डɉ के अनसार
ु की जानी चािहए।

9.2 अतिवषयक
ं र् प्रकृित की होने के कारण जल संसाधन पिरयोजनाओं की आयोजना
के समय पिरयोजना प्रभािवत एवं लाभाथीर् पिरवारɉ के साथ परामशर् से तकनीकी-आिथर्क
मƧɉ
ु के अितिरक्त सामािजक एवं पयार्वरणीय पक्षɉ पर भी िवचार िकया जाना चािहए।
जल संसाधन पिरयोजनाओं की आयोजना एवं प्रबंधन के िलए अिधकतर भागीदारɉ हे तु
Ûयायोिचत एवं सामाÛयत: èवीकायर् समाधान खोजने पर जोर दे ते हुए एकीकृत जल
संसाधन प्रबधन
ं अपनाया जाना चािहए।

9.3 पिरयोजनाओं के कायाÛवयन


र् मɅ िवलंब के कारण हए
ु भारी आिथक
र् नुकसान को
Úयान मɅ रखते हए
ु पयार्वरणीय एवं िनवेश èवीकित�यɉ
ृ सिहत सभी èवीकृ ित�यां
समयबद्ध ǽप से िमलनी चािहए।

9.4 िनधार्िरत समय एवं लागत से उपर समय व लागत से बचने के िलए समय पर
िनरीक्षण हे तु राÏय एवं केÛद्र èतर पर पिरयोजना की समवतीर् िनगरानी शǾ
ु की जानी
चािहए।
9.5 जल संसाधन पिरयोजनाओं के सभी घटकɉ की आयोजना एवं िनçपादन समǾप
प्रकार से िकया जाना चािहए िजससे अभीçट लाभ तरु ं त िमलने शुǾ हो जाएं और सिजत

क्षमता व उपयोग की गई क्षमता के बीच कोई अतर
ं न हो।

9.6 èथानीय शासी िनकायɉ जैसे पंचायतɉ, नगरपािलकाओं िनगमɉ आिद और जल


प्रयोक्ता संघɉ को, जहां भी ये हɉ, को पिरयोजनाओं की आयोजना मɅ शािमल िकया
जाएगा । अनुसिचत
ू जाित एवं जनजाित, मिहलाओं और समाज के अÛय कमजोर वगɟ
की अनÛय जǾरतɉ और आकांक्षाओं की ओर पयार्Üत Úयान िदया जाना चािहए।

9.7 जल िवɮयत
ु पिरयोजनाओं सिहत सभी जल संसाधन पिरयोजनाओं की आयोजना
अिधकतम åयवहायर् सीमा तक बहुउƧशीय
े पिरयोजनाओं के Ǿप मɅ की जानी चािहए
िजनमɅ उपलÞध èथलाकृ ित एवं जल संसाधन से अिधकतम लाभ लेने के िलए भंडारण
का प्रावधान हो।

10. बाढ़ एवं सख


ू े के िलए प्रबंधन

10.1 जहां संरचना×मक एवं गैर-सरचन


ं ा×मक उपायɉ के माÚयम से बाढ़ एवं सख
ू े जैसी
जल संबधी
ं आपदाओं को रोकने के िलए हर संभव प्रयास िकया जाना चािहए, वहीं बाढ़/
सख
ू े से िनपटने के िलए तंत्र सिहत पव
ू र् तैयारी पर एक िवकãप के Ǿप मɅ जोर िदया
जाना चािहए। प्राकित�क
ृ जल िनकास प्रणाली के पनèथार्
ु पन पर अ×यिधक जोर िदया
जाना चािहए।

10.2 सखे
ू से िनपटने के िलए िविभÛन कृ िष कायनीितयɉ
र् को िवकिसत करने तथा मदा

एवं जल उ×पादकता मɅ सधार
ु करने के िलए èथानीय, अनसधान
ु ं एवं वैज्ञािनक सèथानɉ

से प्राÜत वैज्ञािनक जानकारी सिहत भिम,
ू मदा,
ृ ऊजार् एवं जल प्रबंधन करना चािहए।
आजीिवका सहायता और गरीबी उपशमन के िलए समेिकत खेती प्रणािलयɉ और गैर किष

िवकास पर भी िवचार िकया जा सकता है ।

10.3 नदी ɮवारा िकए गए भिम


ू कटाव, िजससे èथायी नकसान
ु होता है , की हािन को
रोकने के िलए पलèतर लगाने, èपर, तटबधɉ
ं इ×यािद के िनमार्ण हत
े ु आयोजना,
िनçपादन, िनगरानी और अनुरक्षण भ-ू आकृित िवज्ञानीय अÚययनɉ के आधार पर िकया
जाना चािहए। यह और भी अ×यत
ं मह×वपणर्
ू होता जा रहा है चंिक
ू जलवायु पिरवतर्न के
कारण अ×यिधक तीĭ वषार् होने तथा मदा
ृ कटाव होने की संभावना ह।ै

10.4 बाढ़ का सामना करने के िलए तैयार रहने के िलए बाढ़ पूवानमान
र् ु अित मह×वपण
ू र्
है तथा इसका दे श भर मɅ सघन िवèतार िकया जाना चािहए और वाèतिवक समय
आंकड़ा सग्रहण ं प्रणाली का उपयोग करते हएु आधिनकीकरण
ु िकया जाना चािहए और
इसे पूवानमान
र् ु मॉडल से जोड़ा जाना चािहए। पूवानमान
र् ु समय को बढ़ाने के िलए िविभÛन
बेिसन भागɉ के िलए भौितक मॉडल िवकिसत करने के प्रयास िकये जाने चािहए, िजÛहɅ
आपस मɅ और मÚयम अविध के बाढ़ पूवानमान
र् ु से जोड़ा जाना चािहए।

10.5 जलाशयɉ के संचालन की प्रिक्रया को िवकिसत करने तथा इसका कायाÛवयन


र् इस
प्रकार करना चािहए तािक बाढ़ के मौसम के दौरान बाढ़ को सहन करने संबधी
ं क्षमता
प्राÜत हो सके तथा अवसादन के असर को कम िकया जा सके। ये प्रिक्रयाएं ठोस िनणय
र्
सहयोग प्रणाली पर आधािरत होनी चािहए।

10.6 बाढ़ प्रवण तथा सखा


ू प्रवण समèत क्षत्रɉ
े का सरक्षण
ं करना åयवहायर् नहीं हो
पाएगा; अत: बाढ़ तथा सखे
ू से िनपटने के िलए पद्धितयɉ को बढ़ावा िदया जाना आवæयक
है । बाढ़ से िनपटने की कायनीितयɉ
र् को िवकिसत करने के िलए बारबारता
ं आधािरत बाढ़
आÜलावन मानिचत्रɉ को तैयार िकया जाना चािहए िजसमɅ बाढ़ के दौरान एवं इसके तुरत

बाद सरिक्षत
ु जल की आपितर्
ू करने की पवर्
ू तैयारी शािमल है । बाढ/सखे
ू की िèथितयɉ से
िनपटने के िलए कायर् योजना तैयार करने की प्रिक्रया मɅ समदाय
ु को शािमल िकये जाने
की आवæयकता है ।

10.7 आकिèमक और अचानक बाढ़ से संबिधत


ं आपदाओं से िनपटने के िलए तयारी
ै के
िलए प्रभािवत समदायɉ
ु को शािमल करते हए
ु बाध
ं / तटबध
ं क्षित सबधी
ं ं अÚययन िकए
जाने चािहए तथा आपातकालीन कारवाई
र् योजनाओ/आपदा
ं प्रबधन
ं योजनाओं को तयार

िकया जाना चािहए और इÛहɅ आविधक आधार पर अɮयतन िकया जाना चािहए।
पवर्तीय क्षत्रɉ
े मɅ ग्लेिशयर झील टटने
ू से बाढ़ तथा भ-èखलन
ू बाध
ं टू टने से बाढ़ आने
संबधी
ं अÚययन िकए जाने चािहए और यत्रीकरण
ं आिद सिहत आविधक िनगरानी की
जानी चािहए।
11. जल आपिू तर् एवं èवÍछता

11.1 शहरी तथा ग्रामीण क्षत्रɉ


े मɅ जल आपूितर् के िनधारण
र् के बीच अ×यािधक
असमानता को हटाने की आवæयकता है। ग्रामीण क्षत्रɉ
े मɅ समिु चत सीवेज åयवèथा के
साथ जल आपित
ू र् मɅ सधार
ु करने के िलए प्रयास िकए जाने चािहए। कम जल के प्रयोग
वाली èवÍछता एवं मल जल िनकास प्रणािलयɉ के साथ िवकेिÛद्रत मल जल पिरशोधन
संयत्रɉ
ं को प्रो×साहन िदया जाना चािहए।

11.2 भजल
ू एवं वषार् जल के साथ सतही जल से ग्रामीण एवं नगरीय धरल
े ू जल
आपित
ू र् प्राथिमकता के आधार पर िकया जाना चािहए। जहां आपित
ू र् का िवकãप उपलÞध
हो, वहां घरे लू जल आपित
ू र् के िलए बेहतर िवæवसनीयता और गणव×ता
ु के İोत को चना

जाना चािहए ।घरल
े ू जल की आपितर्
ू को प्राथिमकता दते
े हए
ु उपयोग के िलए İोतɉ का
अदल-बदल संभव होना चािहए । साथ ही शहरɉ मɅ रसोई और èनानागारɉ से बिहİािवत
जल को प्रारं िभक पिरशोधन के पæचात ् प्रसाधनɉ की सफाई के िलए पन
ु : इèतेमाल करने
को बढ़ावा दना
े चािहए, िजसमɅ मानव संपकर् न होना सिनिæचत
ु िकया जाए।

11.3 शहरी घरे लू जल प्रणािलयɉ मɅ जल लखा


े जोखा का सग्रहण
ं करके जल के िरसाव
और चोरी को दशार्ते हु ए जल लेखा परीक्षा िरपोटɏ प्रकािशत करने की आवæयकता है
िजÛहɅ सामािजक मƧɉ
ु पर िविधवत ् धयान
् दे ते हए
ु कम िकया जाना चािहए।

11.4 शहरी और औɮयोिगक क्षेत्रɉ मɅ उपयोÏय जल की उपलÞधता मɅ विद्ध


ृ करने हे तु
जहां तकनीकी-आिथर्क Ǿप से åयवहायर् हो, वषार् जल सचयन
ं तथा अलवणीकरण िकए
जाने को बढ़ावा िदया जाना चािहए। वषार् जल संचयन के कायार्Ûवयन मɅ जल
भिवज्ञान,भजल
ू ू सदषण,
ं ू प्रदषण
ू एवं झरनɉ से होने वाले िनèसरण जस
ै े मानकɉ की
वैज्ञािनक िनगरानी शािमल की जानी चािहए।

11.5 शहरी जल आपूित र् और मलजल पिरशोधन पिरयोजनाओं का समेकन और


िनçपादन साथ-साथ िकया जाना चािहए । जल आपिू तर् िबलɉ मɅ जल िनकास प्रभारɉ
को शािमल करना चािहए ।

11.6 जल की कमी वाले क्षेत्रɉ मɅ उɮयोगɉ को या तो कम जल से काम चलाने की


अनमित
ु दी जाए या उÛहɅ िफर बिहİाव से उपचािरत जल को जल िवज्ञानीय प्रणाली के
िविशçट मानक के अनसार
ु वापस करने का दािय×व अपनाना चािहए। संयत्र
ं मɅ उपचार न
करके जल का अनावæयक उपयोग करने अथवा भिम
ू जल को प्रदिषत
ू करने की प्रवितयɉ

को रोकने की आवæयकता है ।

11.7 औɮयोिगक प्रदषक


ू ɉ को रोकने तथा जल के पन:चक्रण
ु / पन:
ु उपयोग को बढ़ावा
दे ने के िलए सिÞसडी और नकद प्रो×साहन िदया जाना चािहए, िजसमɅ अÛयथा बहुत पंूजी
लगती हɇ।

12 सèथागत
ं åयवèथाएं

12.1 पक्षकार राÏयɉ के बीच जल से सब


ं िधत
ं मƧɉ
ु पर िवचार िवमशर् करने तथा मतैक्य
बनाने, सहयोग और सलह
ु करने हे तु राçट्रीय èतर पर एक मंच होना चािहए। प्र×येक
राÏय मɅ जल के िविभÛन प्रयोक्ताओं की जल की प्रितèपधीर् मांगɉ सबधी
ं ं मतभेदɉ तथा
राÏय के िविभÛन भागɉ के बीच के िववादɉ का भी सौहादर् पूणर् समाधान करने के िलए
इसी तरह का तंत्र èथािपत िकया जाना चािहए।

12.2 िववादɉ का सàयक तरीके से तीĭ समाधान करने के िलए केÛद्र मɅ एक èथायी
जल िववाद अिधकरण èथािपत िकया जाना चािहए। िववादɉ के समाधान के िलए केÛद्र
अथवा राÏय सरकारɉ के अÍछे कायालयɉ
र् के अलावा, माÚयèथम एवं मÚयèथता का
राèता जैसा मामला हो, भी अपनाया जाना चािहए।

12.3 जल संसाधन पिरयोजनाओं एवं सेवाओं का प्रबंधन सामदाियक


ु सहभािगता से
िकया जाना चािहए। जहां भी राÏय सरकारɅ अथवा èथानीय शासी िनकाय ऐसा िनणर्य लɅ
वहां िनजी क्षत्र
े को असफलता के िलए जमार्
ु ने सिहत सेवा प्रदान करने की सहमत शतɟ
को पूरा करने हे तु सावर्जिनक िनजी सहभािगता मɅ एक सेवा प्रदाता बनने के िलए
प्रो×सािहत िकया जा सकता है ।

12.4 नदी बेिसन/उप बिसन


े को एकक के Ǿप मɅ लेते हुए समिकत
े जल ससाधनं
प्रबंधन (आईडÞãयआरएम)
ू करना जल संसाधनɉ की आयोजना, िवकास और प्रबंधन का
मख्य
ु िसद्धात
ं होना चािहए । कÛद्र/राÏय
े सरकार èतरɉ के िवभागɉ / सगठनɉ
ं का
पुनगठन
र् िकया जाना चािहए और तदनसार
ु इÛहɅ बहु-िवषयक बनाया जाना चािहए।
12.5 वषार्, नदी प्रवाहɉ, फसल एवं İोत ɮवारा िसंिचत क्षत्र,
े सतही और भिम
ू जल दोनɉ
ɮवारा िविभÛन प्रयोजनɉ के िलए िदए गए जल के उपयोग के संबध
ं मɅ िनयिमत आधार
पर समग्र आंकड़ɉ का सग्रहण
ं करके सचीबद्ध
ू करने के िलए और प्र×येक नदी बेिसन के
समिचत
ु जल बजट और जल िवज्ञानीय मापनɉ के आधार पर तयार
ै िकए गए जल लखɉ

के साथ प्र×येक वषर् दस दिनक
ै आधार पर जल लखɉ
े का प्रकाशन करने के िलए प्र×यक

नदी बेिसन हे तु उपयक्त
ु सèथागत
ं åयवèथा की जानी चािहए। इसके अितिरक्त प्र×येक
जलभत
ृ के िलए जल बजट तैयार िकया जाना चािहए और जल लेखा परीक्षा की जानी
चािहए।

12.6 सतही और भ-ू जल दोनɉ की जल गण


ु व×ता की िनगरानी के िलए प्र×येक नदी
बेिसन हे तु समिचत
ु सèथागत
ं åयवèथा को िवकिसत िकया जाना चािहए।

12.7 राÏयɉ को जल संसाधनɉ के संबध


ं मɅ नवप्रवतर्न-कारी कायर् करने, सरक्षण
ं करने
और इनका कुशल उपयोग करने के िलए सधार
ु ɉ और िवकासा×मक उपायɉ को प्रारं भ करने
के िलए प्रो×साहन और नकद सहायता प्रदान की जानी चािहए।

13 सीमा पार की निदयां

13.1 åयवहायर्ता और सरल अनपालन


ु ा के आधार पर बेिसन को िवकास की एक इकाई
के Ǿप मɅ मानने के िसद्धांत को èवीकार करते समय भी पड़ोसी दशɉ
े से ɮिवपक्षीय
आधार पर अंतरार्çट्रीय निदयɉ के जलिवज्ञानी आंकड़ɉ का लगभग वाèतिवक समय आधार
पर आदान-प्रदान करने के िलए अंतराçट्रीय
र् समझौते करने के प्रयास िकए जाने चािहए।

13.2 अंतराçट्रीय
र् निदयɉ के जल के बंटवारे और प्रबंधन हे तु सवȾपिर राçट्रीय िहतɉ को
Úयान मɅ रखते हुए तटवतीर् राÏयɉ के परामशर् से ɮिवपक्षीय आधार पर िवचार-िवमशर्
िकया जाना चािहए। अंतरार्çट्रीय समझौतɉ को लागू करने के िलए कÛद्र
े मɅ पयाÜत
र्
संèथागत åयवèथा की जानी चािहए।

14 डाटाबेस एवं सचना


ू प्रणाली

14.1 राçट्रीय सरक्षा


ु से संबंिधत संवदनशील
े Įणी
े के मामलɉ को छोड़कर समèत
जलिवज्ञानीय आंकड़ɉ को सावजिनक
र् िकया जाना चािहए। तथािप आकड़ɉ
ं को सवदनशील
ं े
सची
ू से बाहर करने के िलए आविधक समीक्षा की जाए। संपण
ू र् दश
े से िनयिमत Ǿप से
जलिवज्ञानी आंकड़ɉ का संग्रहण, सचीबद्ध
ू करने और प्रिक्रयाÛवयन करने के िलए एक
राçट्रीय जल सचना
ू के Ûद्र को èथािपत करना चािहए तथा इनका प्रारिभक
ं प्रिक्रयाÛवयन
करना चािहए, और जीआईएस Üलेटफॉमर् पर खुले ओर पारदशीर् तरीके से रखरखाव िकया
जाना चािहए।

14.2 संभािवत जलवायु पिरवतर्न को Úयान मɅ रखते हुए िहम और ग्लेिशयरɉ,


वाçपीकरण, Ïवारीय जलिवज्ञान तथा जलिवज्ञानी अÚययन, नदी Ïयािमितक पिरवतनɉ,
र्
कटाव, अवसादन इ×यािद के संबध
ं मɅ अित िवèतत
ृ आकड़ɉ
ं का संग्रहण करने की
आवæयकता है । ऐसे आंकड़े के सग्रहण
ं के कायक्रम
र् को िवकिसत और कायािÛवत
र् करने
की आवæयकता है ।

14.3 जल से संबिधत
ं समèत आकड़ɉ
ं जस
ै े वषार्, िहम वषार्, भ-ू आकृितिवज्ञान, जलवाय,ु
भ-िवज्ञानी,
ू सतही जल, भजल,
ू जल गणव×त
ु ा, पािरिèथितकी, जल िनकासी एवं उपयोग,
िसंिचत क्षत्र,
े ग्लिशयर
े इ×यािद से संबिधत
ं आकड़ɉ
ं को सपिरभािषत
ु प्रिक्रया से समेिकत
िकया जाना चािहए तथा आंकड़ɉ को ऑनलाईन अɮयतन करने तथा जल के प्रबंधन के
िलए पूणर् सचन
ू ा के आधार पर िनणर्य लन
े े हे तु डाटाबेस िवकिसत करने की åयवèथा हे तु
आंकड़ɉ के èथांतरण को सिनिæचत
ु करने के िलए प्राǾप तैयार िकया जाना चािहए।

15 अनसं
ु धान एवं प्रिशक्षण की आवæयकता

15.1 जल क्षत्र
े के मƧɉ
ु का वैज्ञािनक पद्धित से समाधान करने के िलए िनरतर

अनुसधान
ं और प्रौɮयोिगकी की प्रगित को अवæय बढ़ावा िदया जाएगा। जल संसाधन
क्षेत्र मɅ नवाचार कायɟ को प्रो×साहन, माÛयता और परèक
ु ृ त िकया जाना चािहए।

15.2 राÏयɉ को प्रौɮयोिगकी, अिभकãप पद्धितयɉ, आयोजना और प्रबधन


ं पद्धितयɉ को
अɮयतन करने, èथान ओर बेिसन हत
े ु वािषर्क जल मापनɉ और लखɉ
े को तयार
ै करन,े
जल प्रणािलयɉ हे तु जलिवज्ञानी मापनɉ को तैयार करने तथा बचमािकग
Ʌ र्ं और िनçपादन
मãयाकन
ू ं करने हे तु पयार्Üत अनदान
ु िदया जाना आवæयक ह।ै

15.3 इस तØय को माÛयता िदए जाने की आवæयकता है िक िवकिसत दे शɉ मɅ जल


क्षेत्र की क्षत्रीय
े पद्धितयɉ मɅ सचन
ू ा प्रौɮयोिगकी और िवæलषणा×मक
े क्षमताओं मɅ प्रगित
ɮवारा क्रांित आई ह।ै भारत मɅ िनजी और सावर्जिनक दोनɉ क्षत्रɉ
े मɅ सभी èतरɉ पर जल
आयोजकɉ ओर प्रबंधकɉ हे तु एक पन:
ु प्रिशक्षण एवं गणव×ता
ु सधार
ु कायक्रम
र् प्रारं भ करने
की आवæयकता है ।

15.4 जल संसाधन के बदलते पिरǺæय हे तु नीित िनणर्यɉ के प्रभावɉ का मãयाकन


ू ं करने
तथा नीित िनदȶ शɉ को िवकिसत करने के िलए जल नीित मɅ अनसधान
ु ं हे तु एक èवाय×त
केÛद्र की भी èथापना की जानी चािहए।

15.5 जल क्षेत्र मɅ कुशल Įिमकɉ की आवæयकताओं को परा


ू करने के िलए जल प्रबधन

मɅ िनयिमत प्रिशक्षण और शैक्षिणक पाɫयक्रमɉ को बढ़ावा िदया जाना चािहए। प्रिशक्षण
एवं शैक्षिणक सèथानɉ
ं को प्रगितशील अवसरचन
ं ा िवकिसत करने की ओर बढ़ते हुए
अनप्रय
ु ुक्त अनुसधान
ं को बढ़ावा दने
े के िलए िनयिमत Ǿप से अɮयतन िकया जाना
चािहए िजससे उÛहɅ िवæलेषण की प्रचिलत प्रिक्रया मɅ सधार
ु करने तथा सबं
ं िधत िवभागɉ
मɅ तथा समदायɉ
ु ɮवारा पणर्
ू सचना
ू के अनसार
ु िनणय
र् लेने मɅ सहायता प्राÜत होगी। जल
क्षेत्र मɅ िविभÛन भागीदारɉ के क्षमता िनमार्ण के िलए जल साक्षरता हे तु एक राçट्रीय
अिभयान शǾ
ु िकये जाने की आवæयकता है ।

16. राçट्रीय जल नीित का कायार्Ûवयन

16.1 राçट्रीय जल बोडर् को राçट्रीय जल नीित के कायार्Ûवयन की िनयिमत िनगरानी के


िलए राçट्रीय जल संसाधन पिरषद के अनमोदन
ु के अनसार
ु राçट्रीय जल नीित के आधार
पर एक कायर् योजना तयार
ै करनी चािहए।

16.2 राÏय जल नीितयɉ का प्राǾप/संशोधन, आधारभत


ू समèयाओं एवं िसद्धांतɉ को
Úयान मɅ रखते हुए और एक एकीकृत राçट्रीय पिरप्रेêय को भी Úयान मɅ रखते हुए इस
नीित के अनसार
ु िकये जाने की आवæयकता हो सकती ह।ै

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