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Geography Notes3 Hindi Vision
Geography Notes3 Hindi Vision
in
भूगोल
2019
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ववषय सूची
1. ससचाइ के साधन: एक पररचय ____________________________________________________________________ 3
7. त्वररत ससचाइ लाभ काययक्रम (Accelerated Irrigation Benefits Programme : AIBP) ______________________ 15
8. जलीय वनकायों की मरम्मत, नवीकरण एवं पुनर्सथायपन हेतु योजना (ररपेयर, रे नोवेशन एंड
ररर्सटोरे शन ऑफ़ वाटर बॉडीज र्सकीम) _______________________________________________________________ 15
9 वचुऄ
य ल वाटर (Virtual Water) __________________________________________________________________ 16
1. ससचाइ के साधन: एक पररचय
ककसी भी देश में कृ वष ववकास पयायवरणीय, राजनीवतक, संर्सथात्मक एवं अधारभूत संरचनात्मक
कारकों द्वारा प्रभाववत होता है। अधारभूत संरचनात्मक कारकों के ऄंतगयत ससचाइ, ववद्युत
अपूर्तत, रासायवनक एवं जैववक ईवयरक, ईन्नत बीज आत्याकद को शावमल ककया जाता है। ये कारक
समवि एवं व्यवि, दोनों र्सतरों पर वववशि भूवमका का वनवायहन करते हैं।
ससचाइ कृ वत्रम वववधयों द्वारा खेतों को जल ईपलब्ध कराना है। ऄत: नहर, कु एं, नलकू प, तालाब
अकद साधनों के माध्यम से फसलों को जल अपूर्तत ककये जाने की प्रकक्रया को ससचाइ कहा जाता है।
फसलों की वृवद्ध, शुष्क क्षेत्रों में ऄसंतुवलत मृदा (disturbed soils) में पौधों के पुन: ववकास तथा
ऄपयायप्त वषाय के दौरान जल अपूर्तत के वलए ससचाइ का ईपयोग ककया जाता है। आसके ववपरीत
सीधे वषाय जल पर अवित कृ वष को वषाय ससवचत कृ वष कहते हैं। आसके ऄलावा बहुत कम वषाय वाले
क्षेत्रों में सीवमत नमी को संवचत करके तथा वबना ससचाइ वाली कृ वष शुष्क भूवम कृ वष कहलाती है।
प्राचीन काल से ही मानव जावत ससचाइ प्रणाली से लाभावववत हो रही है। पुरातत्व संबंधी जांच में
ईन र्सथानों पर ससचाइ के प्रमाण वमले हैं जहां फसल ईत्पादन के वलए प्राकृ वतक वषाय ऄपयायप्त थी।
ईदाहरण के वलए, मेसोपोटावमया के मैदानी क्षेत्रों में बारहमासी ससचाइ की जाती थी, सीररया में
सीढ़ीदार खेत ससचाइ, वमस्र में बेवसन ससचाइ अकद। 20वीं शताब्दी में डीजल और आलेवरिक
वाटर पंप मोटरों के अगमन के पश्चात् मनुष्यों ने भूजल का ऄवधकावधक दोहन कर एवं नहरों
अकद को ववर्सतृत कर ससवचत कृ वष क्षेत्र में वृवद्ध की।
भारतीय मानसून की प्रकृ वत ऄत्यंत ऄवनयवमत होती है। मानसून की ववफलता की वर्सथवत में फसल
नि हो जाती है। आसके ववपरीत ऄत्यवधक वषाय बाढ़ का कारण बन सकती है लेककन कम वषाय से
फसल ईत्पादन में काफी कमी हो सकती है तथा चरम दशाओं में फसल पूणयतया नि हो सकती है।
भारत के ऄवधकांश भागों में वषाय ससवचत कृ वष की जाती है।
भारत की जनसंख्या बहुत ऄवधक है तथा ऐसा ऄनुमान है कक बढ़ती जनसंख्या की मांग को पूरा
करने के वलए भारत को ऄनाज के ईत्पादन को बढ़ाने की अवश्यकता है। वषय 2050 में जल की
मांग वषय 2000 की तुलना में लगभग 50 गुना ऄवधक होने का ऄनुमान है, वहीं दूसरी ओर खाद्य
पदाथों की मांग भी दोगुना होने का ऄनुमान है। औसतन, एक टन ऄनाज का ईत्पादन करने के
वलए लगभग एक हजार टन जल की अवश्यकता होती है। जलवायु पररवतयन के पररणामर्सवरूप
ऄपेक्षाकृ त ऄवधक ऄवनयवमत जलवायु दशाएँ ईत्पन्न होंगी और आस प्रकार फसलें वषाय में ईच्च
पररवतयनशीलता के प्रवत तुलनात्मक रूप से ऄवधक प्रवण हो जाएँगी। ससवचत भूवम की वतयमान
ईत्पादकता 2.5 टन / हेरटेयर है तथा वषाय ससवचत कृ वष भूवमयों की ईत्पादकता 0.5 टन/ हेरटेयर
से भी कम है। आस संदभय में, ससचाइ रणनीवतयों की योजना बनाने और ईवहें लागू करने की एक
त्वररत अवश्यकता है।
भारत ववश्व की नकदयों के कु ल औसत वार्तषक जल प्रवाह का 4% प्राप्त करता है। प्राकृ वतक जल
प्रवाह की प्रवत व्यवि जल ईपलब्धता कम से कम 1100 घन मीटर प्रवत वषय है। जल की मात्रा जो
वार्सतव में लाभदायक ईपयोग के वलए प्रयुि की जा सकती है, वह मात्रा भौवतक एवं र्सथलाकृ वतक
ऄवरोधों, ऄंतरराज्यीय मुद्दों और वतयमान प्रौद्योवगकी द्वारा अरोवपत कठोर प्रवतबंधों के कारण
बहुत कम है।
1.1 ससचाइ के लाभ
फसल ईत्पादन में वृवद्ध: सही समय पर प्रत्येक फसल के ऄनुरूप ईवचत मात्रा में जल ईपलब्ध
कराकर लगभग सभी प्रकार की फसलों के ईत्पादन में वृवद्ध की जा सकती है। जल की आस प्रकार
की वनयंवत्रत अपूर्तत के वल ससचाइ के माध्यम से ही संभव है।
सूखे से संरक्षण: ककसी भी क्षेत्र में ससचाइ सुववधाओं की ईपलब्धता सूखे से होने वाली फसल हावन
या सूखे के कारण ईत्पन्न होने वाली ऄकाल की वर्सथवत के ववरुद्ध संरक्षण सुवनवश्चत करती है।
सतही और भूवमगत जल की ईपलब्धता भूवम की ढलान, वमट्टी की प्रकृ वत और ककसी क्षेत्र में ईगाइ गइ
फसलों के प्रकार के अधार पर ससचाइ के कइ स्रोतों का ईपयोग ककया जाता है। देश के वववभन्न भागों में
प्रयुि ससचाइ के मुख्य स्रोत हैं (वचत्र 1):
कु एं एवं नलकू प
नहरें
तालाब
ऄवय स्त्रोत – फव्वारों द्वारा ससचाइ, बूंद-बूंद ससचाइ, कु हल, ढेंकली, डोंग और बोक्का अकद।
भूजल से ससचाइ के यह स्त्रोत (कु एं) प्राचीन काल से ही प्रचवलत है। वतयमान में देश के कु ल ससवचत
क्षेत्र के 62 प्रवतशत भाग पर कु ओं और ट्यूबवेल द्वारा ससचाइ की जाती है। यह ससचाइ का सबसे
सुगम स्रोत है। आस ससचाइ स्त्रोत को ऄल्प समयाववध में र्सथावपत ककया जा सकता है, हालांकक यह
महंगा है। ऄसंधारणीय तरीके से आनके द्वारा भूजल दोहन ककये जाने से भूजल-र्सतर में कमी अ रही
है। ट्यूबवेल के माध्यम से सवायवधक ससचाइ ईिर प्रदेश में की जाती है तत्पश्चात राजर्सथान,
पंजाब, मध्य प्रदेश, गुजरात और वबहार का र्सथान है।
2.1.2 नहर
1950-51 में नहर को ससचाइ का मुख्य स्रोत माना जाता था तथा भारत के कु ल ससवचत क्षेत्र के
लगभग 50 प्रवतशत नहरों द्वारा सींचा जाता था। 1960 के दशक में, सरकार के प्रोत्साहन द्वारा
ट्यूबवेल द्वारा ससवचत क्षेत्र में ऄत्यवधक वृवद्ध हुइ। नतीजतन, नहर द्वारा ससवचत क्षेत्र घटकर 40
प्रवतशत से भी कम रह गया और 2009-10 में यह 26 प्रवतशत हो गया।
नहरें वनम्न एवं समतल क्षेत्रों, ईत्पादक मैदानी क्षेत्रों में ऄवधक प्रभावी होती हैं, जहां सतही जल
वनकासी का बारहमासी स्रोत ईपलब्ध है। ऐसी वर्सथवतयां अदशय रूप में भारत के ईिरी मैदानों,
कश्मीर एवं मवणपुर की घारटयों और पूवी तटीय मैदानों में पाइ जाती हैं (वचत्र 2)। नहरों का ईच्च
घनत्व ईिर प्रदेश में गंगा नहर प्रणाली तथा पंजाब, हररयाणा और पवश्चमी राजर्सथान में आं कदरा
गांधी नहर के साथ पाया जाता है। प्रायद्वीपीय क्षेत्र में, दामोदर, महानदी, गोदावरी, कृ ष्णा,
नमयदा अकद नकदयों में महत्वपूणय नहर प्रणावलयाँ है। नहर ससचाइ में ईिर प्रदेश का पहला र्सथान
है, तत्पश्चात अंध्र प्रदेश का र्सथान है।
2.1.3 तालाब
ससचाइ तालाब या तालाब ककसी भी अकार में वनर्तमत एक कृ वत्रम जलाशय है। आसमें संरचना के
भाग के रूप में प्राकृ वतक या मानव वनर्तमत झरने भी शावमल हो सकते हैं। देश के कु छ भागों में ,
ववशेषकर प्रायद्वीपीय भारत में तालाब ससचाइ का एक महत्वपूणय स्रोत है। कु ल ससवचत क्षेत्र का
लगभग 3 प्रवतशत भाग तालाब ससचाइ के ऄंतगयत अता है।
भारत में ससचाइ पररयोजनाओं को कृ वष योग्य कमांड क्षेत्र (Culturable Command Area: CCA)
के अधार पर तीन वगों में वगीकृ त ककया गया है:
वृहद- वे पररयोजनाएं वजनमे 10,000 हेरटेयर से ऄवधक ववर्सतृत CCA सवम्मवलत हैं ईवहें वृहद
पररयोजनाएं कहा जाता है।
मध्यम - वे ससचाइ पररयोजनाएं वजनमें 10,000 हेरटेयर से कम लेककन 2,000 हेरटेयर से ऄवधक
ववर्सतृत CCA क्षेत्र सवम्मवलत हो, ईवहें मध्यम पररयोजनाएं कहा जाता है।
लघु - ईन ससचाइ पररयोजनाओं को वजनका CCA 2,000 हेरटेयर या ईससे कम क्षेत्र में ववर्सतृत
है ईवहें लघु पररयोजनाओं के रूप में जाना जाता है।
कृ वष योग्य कमांड एररया (CCA) - सकल कमान क्षेत्र में ऄनुपजाउ बंजर भूवम, क्षारीय वमट्टी, र्सथानीय
तालाब, गांव और वनवास र्सथान के रूप में ऄवय क्षेत्र शावमल हैं। आन क्षेत्रों को 'ऄनकल्चरे बल एररया' कहा
जाता है। शेष क्षेत्र जहाँ संतोषजनक ढंग से फसल ईत्पादन ककया जा सकता है ईवहें कृ वष योग्य कमान
क्षेत्र (CCA) के रूप में जाना जाता है। कृ वष योग्य कमांड एररया को 2 वगों में ववभावजत ककया जा
सकता है:
कल्चरे बल कल्टीवेटेड एररया: वह क्षेत्र जहाँ फसल एक ववशेष समय या फसल की ऊतु में ईगाइ
जाती है।
कल्चरे बल ऄनकल्टीवेटेड एररया: वह क्षेत्र जहाँ फसल ककसी ववशेष ऊतु में नहीं ईगाइ जाती है।
ऐसा अकवलत ककया गया है कक देश की वृहद एवं मध्यम ससचाइ पररयोजनाओं की सवायवधक ससचाइ
क्षमता लगभग 64 वमवलयन-हेरटेयर है। आन पररयोजनाओं की ससचाइ क्षमता का 66% समग्र देश के
वलए वनर्तमत ककया गया है। 1951 से 1997 तक वृहद और मध्यम पररयोजनाओं के माध्यम से ससचाइ
क्षमता के वनमायण की औसत दर प्रवत वषय 0.51 वमवलयन हेरटेयर है। वषय 1997 से 2005 के दौरान,
क्षमता वनमायण की दर प्रवत वषय 0.92 वमवलयन हेरटेयर पाइ गइ है। क्षमता वनमायण की दर में यह वृवद्ध
संभवत: आन पररयोजनाओं की सफलता के कारण हुइ है, जो कक AIBP (Accelerated Irrigation
Benefit Programme: त्वररत ससचाइ लाभ काययक्रम) के माध्यम से बढ़ी हुइ सहायता के कारण तीव्र
हो गइ है।
सतही एवं भूजल दोनों का लघु ससचाइ पररयोजनाओं में स्रोत के रूप में ईपयोग ककया जाता है, जबकक
वृहद एवं मध्यम पररयोजनाओं में मुख्यत: सतही जल संसाधनों का दोहन ककया जाता है। भूजल लघु
ससचाइ मुख्य रूप से संर्सथागत ववि और ककसानों की र्सवयं की बचत द्वारा ईनके व्यविगत और
सहकारी प्रयासों के माध्यम से की जाती है। सतही जल लघु ससचाइ योजनाएँ अम तौर पर के वल
सावयजवनक क्षेत्र से ही ववि पोवषत की जाती हैं। लघु ससचाइ योजनाओं की सवायवधक ससचाइ क्षमता
75.84 वमवलयन हेरटेयर अकवलत की गइ है, वजनमे से कु छ भाग (58.46 वमवलयन हेरटेयर) भूजल
अधाररत होगा तथा जो कु ल क्षमता का लगभग दो वतहाइ है।
नहीं हो सकता है। आन र्सथानों के वलए लघु ससचाइ योजनाएं सबसे ईपयुि होंगी। आसके ऄवतररि,
भूवम धारण आस तरह से ववभावजत ककया जा सकता है कक लघु ससचाइ ऄपररहायय हो। हालांकक,
ससचाइ क्षमता के ववकास की समग्र लागत को कम करने के वलए जहां भी संभव हो, वृहद और
मध्यम पररयोजनाओं का वनमायण ककया जाना चावहए।
स्रोत से प्राप्त जल को खेत के भीतर ववतररत करने के मामले में वववभन्न प्रकार की ससचाइ तकनीक
ऄलग-ऄलग होती हैं। सामावय तौर पर, ससचाइ का लक्ष्य पूरे खेत में समान रूप से जल की अपूर्तत
करना है ताकक प्रत्येक पौधे को अवश्यक मात्रा में जल प्राप्त हो सके , न तो बहुत ज्यादा और न ही
बहुत कम। वववभन्न ससचाइ तकनीक वनम्नानुसार हैं:
सतही ससचाइ: सतही ससचाइ प्रणावलयों में, जल सरल गुरुत्वाकषयण प्रवाह द्वारा खेत को तर करने
के वलए और वमट्टी में ररसने के वलए सम्पूणय भूवम पर बहता है। आसे प्राय: बाढ़ ससचाइ कहा जाता
है। आस प्रकार की ससचाइ के पररणाम कृ वष भूवम में बाढ़ अने की वर्सथवत के समान होते हैं। सतही
ससचाइ को वनम्नवलवखत वगों में ईपववभावजत ककया जा सकता है:
o बेवसन ससचाइ का ईपयोग ऐवतहावसक रूप से छोटे क्षेत्रों में ककया जाता है, ये क्षेत्र भूवम के
ककनारे से वघरी हुइ समतल सतह हैं (वचत्र 3)। पूरे बेवसन में शीघ्रता से जल प्रवावहत ककया
जाता है और जल भूवम में ररसता है। बेवसन क्रवमक रूप से जुड़े हो सकते हैं ताकक वमट्टी में
अवश्यक जल अपूर्तत होने के बाद एक बेवसन से ऄगले बेवसन में जल की वनकासी हो जाती
है।
o कुं ड ससचाइ खेत में प्रभावी ढाल की कदशा में छोटी-छोटी समानांतर नहरें बनाकर की जाती है
(वचत्र 4)। प्रत्येक कुं ड के उपरी छोर पर जल छोड़ा जाता है और गुरुत्वाकषयण के प्रभाव के
तहत जल खेत में नीचे की ओर प्रवावहत होता है।
o सीमावत पट्टी, वजसे बॉडयर चेक या बे आरीगेशन के रूप में भी जाना जाता है। सीमावत पट्टी को
लेवल बेवसन और कुं ड ससचाइ का वमवित रूप माना जा सकता है। खेत कइ खंडों या परट्टयों
में ववभावजत ककया जाता है; प्रत्येक पट्टी ऄवय पट्टी के उपर ईठे हुए चेक बैंरस (सीमावतों)
द्वारा ऄलग की जाती है। ये परट्टयां अमतौर पर बेवसन ससचाइ की तुलना में ऄवधक लंबी और
संकरी होती हैं और ये खेत की ढाल के साथ लंबाइ में संरेवखत होती हैं।
र्सथानीयकृ त ससचाइ: र्सथानीयकृ त ससचाइ एक ऐसी प्रणाली है वजसमें एक पूवय वनधायररत पैटनय में
पाआप नेटवकय के माध्यम से वनम्न दाब में जल ववतररत ककया जाता है तथा आस प्रणाली में ऄल्प
मात्रा में प्रत्येक पौधे या आसके वनकट वर्सथत पौधों को जल अपूर्तत की जाती है। आसे वनम्न प्रवाह
ससचाइ प्रणाली/ऄल्प मात्रा ससचाइ/सूक्ष्म ससचाइ के रूप में भी जाना जाता है। विप ससचाइ, र्सप्रे
या सूक्ष्म वछड़काव ससचाइ (माआक्रो सर्सप्रकलर आरीगेशन) और बबलर आरीगेशन (bubbler
irrigation) ससचाइ वववधयों के आस वगय से संबंवधत हैं।
o विप ससचाइ: जैसाकक आस पद्धवत के नाम से र्सपि है विप ससचाइ को टपक ससचाइ के रूप में
भी जाना जाता है (वचत्र 5)। जल प्रत्येक बूँद के माध्यम से पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता
है। यकद ईवचत ढंग से प्रबंवधत ककया जाए तों यह पद्धवत ससचाइ की सबसे जल-कु शल पद्धवत
हो सकती है, रयोंकक वाष्पीकरण और जल ऄपवाह को वयूनतम ककया जाता है। विप ससचाइ
की खेत जल दक्षता 80 से 90 प्रवतशत है। अधुवनक कृ वष में वाष्पीकरण को कम करने एवं
ईवयरक के ववतरण के वलए विप ससचाइ को प्राय: प्लावर्सटक मल्च के साथ सयुंि ककया जाता
है। आसे फर्टटगेशन के रूप में जाना जाता है।
द्वारा संचावलत होते हैं। गन का ईपयोग के वल ससचाइ के वलए ही नहीं ककया जाता है, बवल्क
ये डर्सट सेप्रेशन और लॉसगग जैसे औद्योवगक ऄनुप्रयोगों के वलए भी प्रयुि की जाती हैं।
सर्सप्रकलसय पाआप द्वारा जल के स्रोत से जुड़े गवतशील प्लेटफामय से भी जोड़े जा सकते हैं।
र्सवचावलत रूप से गवतशील प्रणाली वजसे िेवसलग सर्सप्रकलसय (वचत्र 7) से भी जाना जाता है,
द्वारा छोटे खेतों, खेल के मैदानों, बगीचों और चरागाहों अकद जैसे क्षेत्रों में ससचाइ की जा
सकती है। सर्सप्रकलर ससचाइ में खेत की जल दक्षता 60 से 70% है।
यकद ससचाइ प्रणाली को ईवचत ढंग से र्सथावपत नहीं ककया जाता है तो जल, समय और फसल की
बबायदी होती है। आन प्रणावलयों के वलए भूवम र्सथलाकृ वत, वमट्टी, जल, फसल, कृ वष-जलवायु
दशाओं, और विप ससचाइ प्रणाली एवं आसके घटकों की ईपयुिता अकद जैसे सभी संबंवधत कारकों
का सावधानीपूवयक ऄध्ययन करना अवश्यक है।
कृ वष भूवम में जल अपूर्तत करने के तरीके के अधार पर भी ससचाइ प्रणावलयों को वगीकृ त ककया जा
सकता है, जैसे :
फ्लो आरीगेशन वसर्सटम: वजसमे ससचाइ जल ससवचत क्षेत्र की ओर प्रवावहत करते हुए पहुँचाया
जाता है। आसे पुन: वनम्नवलवखत वगों में वगीकृ त ककया जा सकता है-
o प्रत्यक्ष ससचाइ: जहां ससचाइ जल वबना ककसी मध्यवती भंडारण के सीधे नदी से प्राप्त ककया
जाता है। आस प्रकार की ससचाइ, नदी के र्सतर को बढ़ाने के वलए एक नदी पर बाँध या बैराज
का वनमायण करके की जाती है तथा आस प्रकार यह ककसी वनकटवती नहर के माध्यम से नदी के
प्रवाह के कु छ भाग को ऄलग कर देता है, नहर में प्रवाह गुरुत्वाकषयण द्वारा होता है।
o जलाशय / तालाब / भंडारण ससचाइ: आस प्रणाली के ऄंतगयत ससचाइ जल नदी से प्राप्त ककया
जाता है, जहां नदी प्रवाह में ऄवरोध का वनमायण कर (जैसे बांध) जल का भंडारण ककया
जाता है। आससे सुवनवश्चत होता है कक जब भी नदी प्रवाह में जल की कमी होती है या जल
प्रवावहत नहीं होता है, तो भी पयायप्त मात्रा में भंडाररत जल ववद्यमान होता है आस भंडाररत
जल द्वारा नहरों की एक प्रणाली के माध्यम से खेतों की ससचाइ जारी रखी जा सकती है।
वलफ्ट आरीगेशन वसर्सटम: आस प्रणाली में जल का र्सतर भूवम के र्सतर की तुलना में नीचे होता है ऄत:
ससचाइ हेतु जल को पंपों या ऄवय यांवत्रक ईपकरणों द्वारा उपर ईठाया जाता है तथा गुरुत्वाकषयण
के तहत प्रवावहत होने वाली नहरों के माध्यम से कृ वष भूवम में पहुंचाया जाता है। ईदाहरण के
वलए, राजर्सथान में आं कदरा गांधी नहर के एक बड़े भाग में वलफ्ट ससचाइ प्रणाली द्वारा जलापूर्तत की
जाती है।
2.5 जल अपू र्तत की ऄववध के अधार
जल अपूवत की ऄववध के अधार पर भी ससचाइ प्रणावलयों का वगीकरण ककया जा सकता है, जैसे:
जलमग्न/ बाढ़ तुल्य ससचाइ प्रणाली: कृ वष भूवम की ससचाइ हेतु आस प्रणाली में बाढ़ के दौरान नदी
में प्रवावहत होने वाले जल की बड़ी मात्रा में अपूर्तत की जाती है, आस प्रकार वमट्टी को संतप्त
ृ ककया
जाता है। ऄवतररि जल बह जाता है और आस भूवम का ईपयोग कृ वष के वलए ककया जाता है। आस
प्रकार की ससचाइ में नदी के बाढ़ के जल का ईपयोग ककया जाता है और आसवलए यह प्रणाली वषय
के एक वनवश्चत समय तक ही सीवमत होती है। अमतौर पर नदी डेल्टा के वनकटवती क्षेत्रों में आस
प्रकार की ससचाइ की जाती है,जहां नदी और भूवम की ढलान मंद होती है। दुभायग्य से, कइ नकदयों
वजनके तटों पर पहले यह ससचाइ प्रणाली प्रयुि की गइ थी, वपछली शताब्दी में ईन पर बाँध बना
कदए गए हैं और आस प्रकार आस ससचाइ प्रणाली के प्रयोग में कमी अइ है।
बारहमासी ससचाइ प्रणाली: आस प्रणाली में फसल के पूरे जीवन चक्र के दौरान वनयवमत ऄंतरालों
पर फसल के वलए अवश्यक जल की मात्रा के ऄनुसार ससचाइ जल की अपूर्तत की जाती है। आस
प्रकार की ससचाइ के वलए जल नकदयों से या कुँ ओं से प्राप्त ककया जा सकता है। आस प्रकार स्रोत या
तो सतही जल या भूजल स्त्रोत हो सकता है तथा जल अपूर्तत जल प्रवाह या वलफ्ट ससचाइ प्रणाली
द्वारा की जा सकती है।
2.6 ससचाइ पद्धवत का चयन
जैसा कक हमने उपर चचाय की है, फसलों तक जल अपूर्तत करने के कइ तरीके हैं। हालांकक, ईवचत
पद्धवत का चयन एक चुनौती है। यह पद्धवत ववशेष फसल एवं वमट्टी के ऄनुकूल होनी चावहए तथा
वन:संदह
े जल की ईपलब्धता पर वनभयर करती है। ईदाहरण के वलए, नीचे वववभन्न प्रकार की
फसलों के ऄनुरूप ईपलब्ध तरीकों की एक सूची दी गइ है।
वजन र्सथानों पर जल की कमी पाइ जाती है तथा लागत की तुलना में जल के संरक्षण को ऄवधक
प्राथवमकता दी जाती है, ऐसे र्सथानों पर सर्सप्रकलर और विप ससचाइ प्रणाली जैसी ऄवय पद्धवतयाँ
ऄपनाइ जाती हैं। यद्यवप ऄवधकांश ईन्नत देश आन पद्धवतयों को ऄपना रहे हैं, लेककन भारत में
मुख्य में रूप से अर्तथक बाधाओं के कारण आन पद्धवतयों का प्रयोग नहीं ककया गया है। हालांकक,
समय बीतने के साथ भूवम और जल संसाधन में कमी होती जाती है, ऄत: भारत में भी आन
पद्धवतयों को ऄपनाना अवश्यक हो जाएगा।
3. ससचाइ दक्षता
ससचाइ दक्षता को पौधों की जड़ों के साथ ववद्यमान वमट्टी की गहराइ में संग्रहीत जल तथा ससचाइ
प्रणाली द्वारा अपूर्तत ककए गए जल के ऄनुपात के रूप में पररभावषत ककया जाता है। आस प्रकार,
ससचाइ प्रणाली द्वारा ईपलब्ध कराए गए और पौधों की जड़ों के वलए ईपलब्ध नहीं कराए गए जल
का ईपयोग नहीं हो पाता है तथा आससे ससचाइ दक्षता कम हो जाती है। वनम्न ससचाइ दक्षता का
प्रमुख कारण ऄवतररि ससचाइ जल की सकक्रय जड़ों की गहराइ की तुलना में ऄवधक गहराइ में
वर्सथत वमट्टी की परतों से वनकासी है। ससचाइ के जल का गहराइ में वर्सथत वमट्टी की परतों से ररसाव
भूजल र्सतर के प्रदूषण का कारण हो सकता है। ऄत्यवधक ससचाइ और ऄल्प ससचाइ फसलों के वलए
हावनकारक हैं। आस प्रकार, ससचाइ का समय और जल अपूर्तत की मात्रा फसल की पयायप्त ईपज के
वलए महत्वपूणय है। ईदाहरण के वलए गेहं के मामले में, ससचाइ के ईवचत समय एवं ऄंतराल से जल
के कम ईपयोग के साथ ईपज में 50 प्रवतशत की वृवद्ध होती है।
ऄवधकांश अधुवनक ससचाइ प्रणावलयों के बावजूद 100 प्रवतशत ससचाइ दक्षता नहीं पाइ जाती है।
ईच्च ससचाइ दक्षता प्राप्त करने में प्रमुख ऄवरोध साआल रूट ज़ोन की गहराइ के पुनभयरण हेतु
अवश्यक जल की मात्रा का ईवचत ऄनुमान प्राप्त करने में ऄसमथयता तथा मूलरोमों की मृदा में
वार्सतववक गहराइ से संबंवधत ईवचत एवं ररयल टाआम जानकारी का ऄभाव हैं ।
परं परागत ऄनुमानों के ऄनुसार आितम प्रबंधन प्रकक्रयाओं के तहत 70 प्रवतशत औसत ससचाइ
दक्षता होने का ऄनुमान है। आस प्रकार, सर्सप्रकलर और विप ससचाइ के तहत औसत जल हावन 30
प्रवतशत है, लेककन कुं ड एवं बाढ़ ससचाइ के तहत यह 50 प्रवतशत से ऄवधक हो सकती है। सवोिम
प्रयासों के साथ विप ससचाइ द्वारा 90 प्रवतशत तक दक्षता प्राप्त की जा सकती है। शहरी ससचाइ
और लैंडर्सके प आरीगेशन के तहत ससचाइ जल की हावन, अपूर्तत ककये गए जल की 50 प्रवतशत तक
हो सकती है।
भारत के राष्ट्रीय जल वमशन का ईद्देश्य जल ईपयोग दक्षता में 20 प्रवतशत की वृवद्ध करना है। देश
में कु ल जल ईपयोग का 80 प्रवतशत से ऄवधक कृ वष गवतवववधयों से सम्बद्ध है। आसवलए, आस
वमशन का मुख्य फोकस वृहद एवं मध्यम ससचाइ पररयोजनाओं, CAP&WM (कमान क्षेत्र
काययक्रम एवं जल प्रबंधन) और AIBP (त्वररत ससचाइ लाभ काययक्रम) अकद जैसी वववभन्न ससचाइ
पररयोजनाओं की दक्षता में सुधार पर है।
प्रत्येक जल वनकाय के सतत प्रबंधन हेतु सामुदावयक भागीदारी एवं र्सवावलंबी व्यवर्सथा;
बेहतर जल प्रबंधन हेतु समुदायों की क्षमता वनमायण करना।
ववद्यमान है, तो 'बचाए' गए जल का ककसी ऄवय कायय में ईपयोग ककया जा सकता है। यकद
वनयायतक देश में जल की कमी है, तो भी यह 1,300 रयूवबक मीटर का वचुयऄल वाटर का वनयायत
करता है रयोंकक गेहं की वृवद्ध के वलए प्रयुि जल ऄवय प्रयोजनों के वलए ईपलब्ध नहीं रहता है।
आज़राआल जैसे देश जहाँ जल की कमी है, ववश्व के वववभन्न वहर्ससों में बड़ी मात्रा में जल के वनयायत
को रोकने के वलए संतरा (ईत्पादन में ऄपेक्षाकृ त ऄवधक जल की अवश्यकता) के वनयायत को
हतोत्सावहत करते हैं।
वचुऄ
य ल वाटर के अकलन की सीमाएँ
वचुयऄल वाटर का अकलन आस धारणा पर वनभयर करता है कक जल चाहे वषाय के रूप में प्राप्त हो या
ससचाइ प्रणाली के माध्यम से प्रदान ककया गया हो, जल के सभी स्रोत समान मूल्य के हैं।
पूणत
य या यह माना जाता है कक ईन गवतवववधयों वजनमे ऄवधक जल का ईपयोग ककया जाता है, को
कम कर बचाए गए जल का ईपयोग ईन गवतवववधयों में ककया जाएगा वजनमे ऄपेक्षाकृ त कम जल
का ईपयोग ककया जाएगा। ईदाहरण के वलए, ऄंतर्तनवहत धारणा यह है कक रें जलैंड बीफ़ ईत्पादन
में प्रयोग ककया जाने वाला जल ककसी वैकवल्पक ईत्पाद, कम जल-गहन गवतवववध के वलए ईपलब्ध
होगा।
संक्षेप में, वचुयऄल वाटर िेड जल से सम्बंवधत समर्सयाओं पर एक नवीन, ववर्सताररत पररप्रेक्ष्य
प्रर्सतुत करता है। जल संसाधनों के मांग-ईवमुख प्रबंधन से अपूर्तत-ईवमुख प्रबंधन तक के हाल के
घटनाक्रमों के फ्रेमवकय में यह प्रशासन के नए क्षेत्र ईपलब्ध कराता है तथा यह वववभन्न दृविकोण,
अधारभूत वर्सथवतयों और वहतों के ववभेदन और संतुलन की सुववधा प्रदान करता है। ववश्लेषणात्मक
रूप से यह ऄवधारणा हमें वैवश्वक, क्षेत्रीय और र्सथानीय र्सतरों और ईनके संबंधों के बीच ऄंतर
करने में सक्षम बनाती है। आस प्रकार वचुऄ
य ल वाटर िेड जल-के वद्रीयता के संकीणय वाटरशेड
दृविकोण को दूर कर सकता है।
भूगोल
34. मानव बस्ततयाां
ाऄब मनुष्य ाऄांतररि में बस्ततयाां बसाने का सपना देख रहा है। बतती में रहने के स्लए मकान, पशुओं
के स्लए बाड़े (घेर) और औजारों, ाईपकरणों और ाईत्पाकदत वततुओं को रखने के स्लए भांडार गृह
और ाआन गृहों को जोड़ने वाली सड़क शास्मल है।
मकान या घर मनुष्य की मूलभूत ाअवश्यकता है। बस्ततयाां साांतकृ स्तक भूदश्ृ य का मूल लिण है।
ककसी िेत्र की बस्ततयों की स्तथस्त, ाअकृ स्त और स्वतरण का प्रस्तरूप ाईसके पयाभवरण से सांबांस्धत
होता है। बस्ततयों से लोगों की जीवन पद्धस्त का भी पता चलता है। स्वस्शष्ट व्यावसास्यक
ाअवश्यकताओं और स्नवास्सयों के तथान की जरूरतों के कारण बस्ततयों में काइ पररवतभन ककए जाते
हैं।
शुरुाअत में मनुष्य भोजन सांग्राहक और ाअखेटकों के िोटे-िोटे समूह में रहता था। मनुष्य के वल
घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करता था। कु ि समय बाद मनुष्य ने पशुपालन प्रारां भ ककया और बाद में
कृ स्ष। ाआन पररवतभनों के कारण मनुष्यों को बतती बनाकर रहना पड़ा। कृ स्ष और पशुपालन से हर
समय भोजन की ाईपलब्धता के कारण तथााइ बस्ततयाां बसना शुरू हो गाइ। धीरे -धीरे ककसानों के
पास ाऄपने ाईपभोग के बाद भी खाद्यान्न बचने लगे। ाआससे कु ि लोग गैर कृ स्ष कायभ करने लगे। जैसे-
बतभन बनाना, कपड़ा बुनना, लकड़ी और धातु की ाईपयोगी वततुएां बनाना ाअकद। ाआस तरह
ाऄस्तररक्त वततुओं की ाऄदला-बदली शुरू हाइ। धीरे -धीरे यह व्यापार का रूप लेने लगा। ाइसा से
लगभग 2500 वषभ पूवभ नगरों का स्वकास हाअ। ाआस प्रकार बस्ततयों के रूप और कायभ बदलने लगे।
बस्ततयों को प्रायाः दो वगों में स्वभास्जत ककया जाता है। (i) नगरीय बस्ततयाां (ii) ग्रामीण बस्ततयाां।
व्यवसायाः ग्रामीण बस्ततयों में रहने वाले लोग नगरीय बस्ततयों के लोग ाईद्योग व्यापार, पररवहन
कृ स्ष जैसे प्राथस्मक व्यवसायों में लगे होते हैं।
और सेवाओं जैसे स्ितीयक, तृतीयक और चतुथभक
व्यवसायों में लगे होते है।
ाअकार: ये बस्ततयाां िोटी होती हैं। ाआनमें घरों ये बस्ततयाां बड़ी होती हैं। कु ि नगर तो स्वशाल िेत्र
की सांख्या कम भी होती है। में फै ले होते हैं। ाआनमें हजारों, लाखों घर होते हैं।
कोलकाता और कदल्ली ऐसे ही महानगर हैं।
ाअस्ित जनसांख्या : ये बस्ततयाां बड़ी जनसांख्या ाआन बस्ततयों में रोजगार के ाऄवसर ाऄस्धक होते हैं। ये
का पालन नहीं कर सकती है। बड़ी जनसांख्या का पालन-पोषण कर सकती हैं।
जन घनत्व: ाआनमें जनसांख्या का घनत्व कम जनसांख्या का घनत्व ाऄस्धक होता है। एक हेक्टेयर
होता है। भूस्म पर हजारों लोग रहते हैं। ाआनमें कम से कम जन
घनत्व 400 व्यस्क्त प्रस्त वगभ कक.मी. होना चास्हए।
मकानों से बना ऐसा प्रस्तरूप जो चारों ओर से खेतों से स्घरा है ाईसे ग्रामीण बतती कहते हैं। कृ स्ष
की स्वस्धयों की खोज के साथ ही मानव ने बस्ततयाां बसा कर रहना शुरू ककया। ये प्रारां स्भक
बस्ततयाां गाांव ही थे। गााँव के स्नवासी मुख्यत: प्राथस्मक कक्रयाएां करते है। एम.डी.क्लाकभ के ाऄनुसार
‘गााँव एक सामस्जक-मनोवैज्ञास्नक पयाभवरण होता है’।
बस्ततयों के स्वभाजन का सावभभौम और सवभमान्य मापदांड नहीं है। ाईदाहरण के स्लए भारत और
चीन जैसे ाऄत्यांत सघन बसे देशों में ाऄनेक गाांव ऐसे हैं स्जनकी जनसांख्या पस्िमी यूरोप और सां. रा.
ाऄमेररका के ाऄनेक नगरों से कहीं ाऄस्धक है।
प्रकीणभ बस्ततयााँ (Dispersed Settlement)
ाआस प्रकार की बस्ततयों में लोगों के घर एक-दूसरे से कु ि दूरी पर बने होते हैं। स्वस्शष्ट प्रकीणभ बतती
में लोग ाऄपने खेतों पर घर बनाकर रहने लगते हैं। ाआस प्रकार घर खेतों के साथ स्बखरे होते हैं। ाऄत:
ाआन्हें एकाकी बस्ततयााँ भी कहा जाता है। पूजातथल ाऄथवा कतबा ाआन बस्ततयों के लोगों को ाअपस
में जोड़े रहता है। ाआथोस्पया (ाऄफ्रीका) की ाईच्च भूस्म पर प्रकीणभ बस्ततयाां पााइ जाती है। ाअतरेस्लया,
कनाडा और सांयुक्त राज्य ाऄमेररका, द. पू. एस्शया के बागानी, कृ स्ष के िेत्रों तथा ब्राजील में कहवा
के बागानी िेत्र में भी ऐसी बस्ततयाां स्मलती है।
ाआन बस्ततयों का ाअर्थथक दृस्ष्ट से लाभ होता है लेककन सामास्जक दृस्ष्ट से ाऄनुकूल नहीं होती है।
खेतों में रहने वाला कृ षक ाऄपनी कृ स्ष की ाईन्नस्त बेहतर ढांग से कर सकता है। दूसरी तरफ ाआस
प्रकार की बस्ततयों में रहने वाले व्यस्क्त को सामास्जक जीवन का लाभ नहीं स्मल पाता है, क्योकक
ाआस प्रकार के घर गााँव से दूर खेतों में एकाकी ही व्यवस्तथत होते है।
प्रकीणभ बस्ततयों की स्वशेषताएां :
i. ाआनमें मकान एक-दूसरे से दूर बने होते है। कभी-कभी मकानों के बीच में काइ खेत होते हैं।
ii. ाआनमें लोग ाऄलग-थलग एकाकी रहते हैं।
iii. ाआन बस्ततयों के लोग व्यस्क्तवादी और तवतांत्र जीवन यापन करते हैं।
iv. ाआनमें पड़ोसी धमभ की भावना, सामुदास्यक ाऄांतर्थनभरता और सामास्जक ाऄांतर्क्रक्रया नहीं होती।
v. एकाकी स्नवास करने वालों को एकसाथ स्मलकर रहने वाले लोगों के स्वपरीत िम-स्वभाजन
का लाभ भी नहीं स्मलता है।
ाआस प्रकार की बस्ततयों को बढ़ावा देने वाले कारको में भौस्तक (ाईच्चावच, वनीय िेत्र, जल की
प्रचुरता) तथा मानवीय (प्रस्त-व्यस्क्त कृ स्षभूस्म, पशुचारण, जास्त-प्रथा, सुरिा) कारक स्जम्मेदार
है।
सांहत या कें रीय बस्ततयाां (Compact or nucleated Settlements)
ाआन बस्ततयों में सभी लोगों के ाअवास होते हैं। सुरिा की दृस्ष्ट से एक-दूसरे से सटे तथा दो मकानों
की साझा दीवारें होती हैं। एक ित से दूसरी ित पर ाअ-जा सकते हैं। घरों में या घरों के पास ही
चारा, ाइधन ाअकद के भांण्डारण और पशुओं के स्लए बाड़े बनाए जाते हैं। ऐसी बस्ततयाां नकदयों की
ाईपजााउ घारटयों और तटीय मैदानों में पााइ जाती हैं।
2. भारत की बस्ततयााँ
मकान रहने की मूलभूत ाआकााइ है। घरों के समूह से बतती बनती है। बतती में 6 से लेकर 12 तक
झोपस्ड़याां हो सकती हैं या दस-बीस या सैकड़ों घरों का एक गााँव। बस्ततयाां िोटे-बड़े नगरों के रूप
में भी हो सकती है। नगर, महानगरों, ाऄथवा स्वश्वनगरों (Ecumenopolis) का रूप भी धारण
कर सकते हैं। ाऄस्भन्यास (प्लान) वाले मकानों और झोपस्ड़यों के समूह को बतती कहते हैं। बतती में
ाआन बस्ततयों को पुरवा बस्ततयाां (Hamleted Settlements) भी कहा जाता है। ाआन्हें ाऄधभ स्बखरी
बस्ततयाां (Semi-Sprinkled Settlements) भी कहा है। ये सांस्हत बस्ततयाां मालवा के पठारी
िेत्र तथा नमभदा घाटी में पााइ जाती है।
ाऄधभ गुस्छित बस्ततयों की स्वशेषताएां
i. मकान एक दूसरे से ाऄलग लेककन एक ही बतती में होते है।
ii. बतती ाऄनेक पुरवों में स्वभास्जत होती है।
iii. कभी-कभी िोटी-िोटी बस्ततयाां, लेककन ाऄसांबद्ध रूप में कदखााइ पड़ती है।
iv. प्रायाः जमीन के मास्लक धनी और प्रभावशाली व्यस्क्त गाांव के मध्य में रहते हैं और गाांव का
एक ही नाम होता है।
v. ाऄलग-ाऄलग पुरवों में प्रायाः ाऄलग-ाऄलग जास्तयों के लोग रहते हैं।
vi. पुरवों के नाम जास्त के नामों पर रखे जाते हैं।
जल की प्रयाभप्त मात्रा, (ii) भू-जलततर का धरातल के स्नकट होना, (iii) कृ स्ष मजदूरों का
बाहल्य (iv) भू-तवास्मयों िारा भूस्म को ठे के पर देना, (v) बस्ततयों का सुरस्ित होना, (vi)
कम लागत में हैण्डपांप और कु एां बनाना।
स्वतरण:
o भारत का ाईतरी मैदान।
o पस्िम बांगाल, ब्रह्मपुत्र नदी घाटी।
o बुांदल
े खांड एवां बघेलखांड।
o ाअांध्रप्रदेश एवां तस्मलनाडु के मैदानी भाग।
o मस्णपुर तथा िोटानागपुर िेत्र में नदी ककनारों पर, तटीय िेत्रों में ाआस प्रकार की बस्ततयाां
मिु ाअरों के गाांवों के रूप में हो सकती हैं।
o ये सघन बस्ततयााँ नहीं होती हैं, स्जनके साथ एक या ाआससे ाऄस्धक पुरवे भी होते हैं। ये वाततव
में मध्यम प्रकार की बस्ततयाां हैं, जो प्रकीणभ और सघन बस्ततयों के मध्य पााइ जाती हैं।
o पल्ली बस्ततयों की स्वशेषताएां:
i. ाआनमें मकान ाऄस्धक सटे नहीं होते हैं।
ii. ाआनका स्वततार ाऄपेिाकृ त बड़े िेत्र में होता है।
iii. मुख्य बतती के साथ एक या ाईससे ाऄस्धक पुरवे होते हैं।
iv. भीड़ बढ़ जाने पर बतती के कें रीय भाग से स्नकलकर लोग गाांव की सीमा से लगे खेतों में घर
बनाकर रहने लगते हैं।
ाआन्हे पररस्िप्त (Dispersed), एकाकी (isolated), स्बखरी हाइ (Sprinkled) बस्ततयाां भी कहते
हैं। भारत के स्हमाचल प्रदेश, ाईिराखांड, स्सकक्कम और ाईिरी बांगाल में प्रकीणभ बस्ततयाां पााइ जाती
है। भारत के पठारी भाग में भी ऐसी बस्ततयाां हैं।
स्वशेषताएां :
i. ाआनमें मकान एक-दूसरे से दूर बन होते है। कभी-कभी मकानों के बीच में काइ खेत होते हैं।
ii. ाआनमें लोग ाऄलग-थलग एकाकी रहते हैं।
iii. ाआन बस्ततयों के लोग व्यस्क्तवादी और तवतांत्र जीवन यापन के ाऄभ्यतत होते हैं।
iv. ाआनमें पड़ोसी धमभ की भावना, सामुदास्यक ाऄांतर्थनभरता और सामास्जक ाऄांतर्क्रक्रया नहीं होती।
स्वतरणाः
i. स्हमालय िेत्र में कश्मीर से लेकर ाऄरूणाचल प्रदेश तक ऐसी बस्ततयाां पााइ जाती हैं।
ii. स्हमालय का तरााइ और भाबर िेत्र।
iii. पस्िमी ाईिर प्रदेश का गांगा के खादर का िेत्र।
iv. पस्िमी घाट पर महाराष्ट्र से के रल तक की ाईच्चभूस्म पर।
v. पांजाब एवां हररयाणा का मैदानी िेत्र।
vi. थार मरुतथल।
2. क्रास की ाअकृ स्त की बतती (Cross Shaped Settlemen): ऐसी बस्ततयों का स्वकास चौराहों
पर प्रारां भ होता हैं जहााँ चौराहे से चारों कदशाओं में बसाव ाअरां भ हो जाता है।
5. 'T'ाअकृ स्त की बतती ('T' Shape Settlement): ऐसी बस्ततयाां वहाां स्वकस्सत होती हैं जहाां कोाइ
सड़क मुख्य सड़क से ाअकर स्मलती है और वहीं खत्म हो जाती है। ाऄथाभत् ऐसी बस्ततयाां सड़क के
स्तराहे पर स्वकस्सत होती हैं। ऐसे तथानों पर सड़कों के ककनारे बने मकानों से 'T'ाअकृ स्त की बतती
स्वकस्सत हो जाती है।
6. ‘Y’ ाअकार की बतती ('Y' Shape Settlement):- ऐसी बस्ततयों का स्नमाभण ाईन िेत्रों में होता
है जहााँ दो मागभ ाअकर तीसरे मागभ से स्मलते हैं।
7. वृिाकार बतती (Circular Pattern): ऐसी बस्ततयाां मुख्य रूप से ककसी तालाब, झील, हरे -भरे
मैदान या बाग के चारों ओर स्वकस्सत हो जाती है। प. बांगाल के गाांव में तालाब या पोखर ाऄवश्य
होता है। कभी-कभी गाांव ाआस प्रकार स्नयोस्जत ककया जाता है कक मध्यवती भाग खुला रहे। मध्य में
स्तथत ाआस खुले तथान का ाईपयोग रास्त्र में पशुओं को जांगीली जानवरों से सुरस्ित रखने के स्लए
ककया जाता है।
12. हेररग बोन प्रस्तरुप: ाआस प्रस्तरूप के ाऄांतगभत एक ाअयताकार िेत्र में एक मुख्य सड़क से सभी ाईप-
सड़कें स्नस्ित कोण पर ाअकर स्मलती हैं। यह प्रस्तरूप हेररग मिली के कां काल समान स्वकस्सत
होता है।
4. ग्रामीण बस्ततयों के प्रकायभ (Functions of Rural
Settlements)
ग्रामीण बस्ततयाां प्राथस्मक कक्रयाकलापों पर ाअधाररत होती हैं। स्जन गाांवों में कृ स्ष महत्वपूणभ
कक्रया है ाईस गाांव को कृ स्ष गाांव कहते हैं। ऐसे ाऄस्धकतर गाांव ाईपजााउ मैदानों और नदी घारटयों में
स्वकस्सत होते हैं। घास भूस्मयों में रहने वाले लोग सामान्यताः पशुपालन में लगे होते हैं। ऐसे लोगों
की बस्ततयों को पशुचारस्णक गाांव कहा जाता है।
खस्नज सांपन्न िेत्रों में खस्नजों के ाईपयोग करने से काइ बस्ततयाां बस जाती हैं खनन कक्रया में लगे
िस्मकों िारा बसी बस्ततयों को खनन बस्ततयाां कहा जा सकता है। ाआसी प्रकार जलाशयों के स्नकट
बसी बस्ततयों को जहाां बहसांख्यक लोग मत्तयन कक्रयाकलाप में लगे हैं। मत्तयन गाांव कहलाते हैं।
जो लोग वनों के स्नकट लकड़ी काटने या लकड़ी ाआकट्ठा करने ाऄथवा वन ाईत्पादों को ाआकट्ठा करने में
लगे हैं, ाईनके िारा बसााइ बस्ततयों को वनखांड गाांव कहते हैं।
नगर की पहचान
हम सभी नगरों को देखते, महसूस करते और ाईनमें स्नवास भी करते रहे हैं। लेककन नगर वाततव में
ककस बतती को कहा जाता हैं? नगर, ककस तरह से गाांवों से स्भन्न है। ाआन प्रश्नों के ाईिर ाऄांस्तम रूप
से नहीं कदए जा सके है। नगरों की स्जतनी भी पररभाषाएां दी गाइ, ाईनमें कोाइ न कोाइ त्रुरट रह ही
जाती थी। ाऄस्धकतर भूगोलवेिाओं ने नगरों को गाांवों से ाऄलग करने के स्लए जनसांख्या के
सांकेन्रण और लोगों के गैर-कृ स्ष कायों में लगे होने को ाअधार बनाया हैं।
प्रस्सद्ध मानव भूगोलवेिा ब्लाश (फ्राांस) के ाऄनुसार ‘‘नगर एक व्यापक िेत्र वाला सामास्जक
सांगठन होता है, यह मानव सभ्यता की ाईस सीढ़ी का प्रस्तस्नस्धत्व करता है, स्जस तक कु ि िेत्र
नहीं पहांच पाए हैं और जहाां शायद कभी पहांच भी न सकें ।’’ नगरों ाऄथवा नगरीय िेत्रों की
पररभाषा एक-दूसरे देश में स्भन्न-स्भन्न होती है।
ाआनके ाऄस्तररक्त प्रमुख स्नयोस्जत कालोस्नयों, सघन औद्योस्गक स्वकास िेत्रों, रे लवे कालोस्नयों,
प्रमुख पयभटन के न्रों ाअकद को भी नगर की पररभाषा में रखा गया है। ाआनके साथ ही मुख्य नगर से
सटकर बसााइ गाइ नाइ बस्ततयाां जैसे रे लवे कालोनी, स्वश्वस्वद्यालय पररसर, पिन िेत्र, सैस्नक
िावनी ाअकद को भी नगर ही माना गया है।
7.1. नगरों की स्तथस्त और स्वन्यास
o नगर ाऄपने स्लए खाद्य ाअपूर्थत, कच्चे माल तथा ाऄन्य सेवाएां ाऄपने ाआदभ-स्गदभ के ग्रामीण िेत्रों से
प्राप्त करते हैं।
o ग्रामीण िेत्रों को तैयार वततुएां तथा सेवाएां प्रदान करते हैं।
o नगर वततुओं और सेवाओं के ाअदान-प्रदान के कें र के रूप में काम करते हैं।
o नगर पूरे राज्य ाऄथवा देश के प्रशासन और राजनीस्तक गस्तस्वस्धयों के कें र भी होते है।
ग्रामीण और नगरीय बस्ततयाां एक-दूसरे की पूरक हैं। गाांवों के कृ स्ष ाईत्पादों की नगरवास्सयों को
जरूरत होती है। ग्रामवासी नगरों पर औद्योस्गक वततुओं, स्चककत्सा और स्शिा सुस्वधाओं के स्लए
ाअस्ित रहते हैं। ाआस दृस्ष्ट से गाांव और नगर एक-दूसरे के प्रस्ततपधी नहीं ाऄस्पतु पूरक है। गाांव और
नगर सड़कों या रे लों िारा एक-दूसरे से जुड़े हए हैं तथा एक-दूसरे पर ाअस्ित हैं। गाांव और नगरों
में स्नम्नस्लस्खत चार प्रकार के सांबांध स्वकस्सत होते हैं:
o व्यापाररक सांबध
ां : ग्रामीण बस्ततयाां व्यापार के माध्यम से नगरों और कतबों से जुड़ी है।
गाांववासी ाऄपने ाऄस्धशेष ाईत्पादों को ले जाकर नगरों में बेचते हैं। ाआनके बदले में वे ाईद्योगों में
स्नर्थमत ाऄपने ाईपभोग की वततुएां खरीदते हैं। नगर व्यापार और ाईद्योगों के के न्र होते हैं। नगर
के ाऄनेक व्यापारी ाऄपने ग्रामीण ग्राहकों को ध्यान में रखकर ही दुकानों में वे सब वततुएां रखते
हैं, स्जनकी गाांवों में माांग होती है।
o सामास्जक सांबध
ां : नगर साांतकृ स्तक और मनोरां जन की गस्तस्वस्धयों के के न्र होते हैं। स्सनेमा,
मेल,े धार्थमक ाअयोजन, प्रदशभनी ाअकद नगरों की ही स्वशेषताएां हैं। यकद गाांववासी ाआन सेवाओं
का मनोरां जन के स्लए ाईपयोग करते हैं तो ये काइ सामास्जक बुरााआयाां दूर करने में मदद कर
सकते हैं। नगर गाांवों के स्लए रोजगार और स्शिा की सुस्वधाओं का सृजन करते हैं।
o पररवहनीय सांबध
ां : ग्रामवासी काम के स्लए, मनोरां जन और खरीददारी ाअकद के स्लए, जब
नगरों में जाते हैं, तो पररवहन के साधनों का ाईपयोग करते हैं। यह नगरवास्सयों की ाअय का
एक स्रोत है।
o परतपर पूरकता: यद्यस्प काइ स्विान यह सोचते हैं कक ग्रामीण और नगर िेत्र एक-दूसरे से पूरी
तरह स्भन्न हैं, परां तु यह वाततस्वकता नहीं है। गाांव और कतबे या नगर सामास्जक और ाअर्थथक
िेत्रों में एक-दूसरे के पूरक है। ाईनकी ाअर्थथक, सामास्जक और पयाभवरणीय ाअवश्यकताओं के
सांतल
ु न से दोनों के योगदानों को बढ़ाया जा सकता है।
नगरों में रहने वाली जनसांख्या को नगरीय जनसांख्या तथा गाांवों में रहने वाली जनसांख्या को ग्रामीण
जनसांख्या कहते हैं। गाांवों और नगरों के लिण स्भन्न होते हैं। ाआन्हीं लिणों के ाअधार पर ाईन्हें गाांव या
नगर कहा जाता हैाः
o जनसांख्या का ाअकाराः नगरों को गाांवों से ाऄलग करने के स्लए ककसी स्नस्ित जनसांख्या को
ाअधार माना जाता है। जैसे डेनमाकभ , तवीडन और कफनलैण्ड में 250 लोगों की बतती को नगर
कहा जाता है। ाआसके स्वपरीत भारत में 5,000 लोगों की बतती ही नगर कहलाती है।
सामान्यताः नगरीय बस्ततयाां ग्रामीण बस्ततयों से बड़ी होती है। जनसांख्या के ाअकार के ाअधार
कक्रयाकलापों में लगी होती है। भारत में नगरों की पररभाषा में 75% से ाऄस्धक जनसांख्या
गैर-कृ स्ष कायों में लगी होती है। भारत में नगरों की पररभाषा में 75% से ाऄस्धक जनसांख्या
गैर-कृ स्ष कायों में लगी होनी चास्हए।
o प्रशासस्नक ाअधाराः नगरों की पररभाषा में प्रशासन भी एक मुख्य ाअधार है। भारत में वही
बतती नगर कहलाती है, जहाां नगर स्नगम, नगरपास्लका, िावनी बोडभ ाऄथवा नोटीफााआड
टााईन एररया कमेटी हो। कु ि देशों में प्रशासस्नक कायभ करने वाली िोटी से िोटी बतती को
भी नगर कहा जाता है। लैरटन ाऄमेररकी देशों, ब्राजील और बोस्लस्वया में िोटे से िोटा
प्रशासस्नक के न्र नगर कहलाता है।
ककसी स्वशेष कायभ के ाअधार पर नगर प्रस्सद्ध हो जाते हैं। जैसे-हररिार एक तीथभ तथान (धार्थमक
नगर) है। यह ाऄलग बात है कक ाऄब यहाां स्बजली के बड़े ाईपकरण बनाने वाला ाईद्योग भी स्वकस्सत
हो गया है। वाराणसी प्राचीन काल से स्वद्या का के न्र रहा है। लेककन नगरों के कायभ सदैव एक से
नहीं रहते। वे समय और ाअवश्यकता के ाऄनुसार बदलते रहते हैं। जो नगर कभी गाांवों के हाट
बाजार थे, ाअज औद्योस्गक नगर बन गए हैं। प्रकायों के ाअधार पर नगरों का स्नम्न प्रकार से
वगीकरण ककया जा सकता हैं यह ाऄलग बात है कक एक स्वस्शष्ट वगभ के नगर में ाऄन्य कायभ भी
महत्वपूणभ हो सकते हैं:
प्रशासकीय नगराः ये नगर देश या राज्यों की राजधास्नयाां होती हैं। यहीं से के न्र और राज्यों का
प्रशासन चलाया जाता है। यहीं से के न्र और राज्यों का प्रशासन चलाया जाता हैं कु ि नगर स्जलों
के मुख्यालय भी होते है। नाइ कदल्ली, कै नबरा (ऑतरेस्लया), मातको, बीबजग, ाअकदस ाऄबाबा
(ाआथोस्पया), वाबशगटन डी.सी., पेररस और लांदन राष्ट्रीय राजधास्नयाां हैं।
सुरिा नगराः ाआन नगरों को सुरिा की दृस्ष्ट से बसाया गया था। ये तीन प्रकार के हैाः
o ककला नगराः प्राचीनकाल में राजा-महाराजा ाऄपनी सुरिा के स्लए ककले बनवाते थे। ककलों के
चारों ओर नगर बस जाता था। जोधपुर, स्चिौडगढ़ ाअकद ऐसे ही नगर हैं।
o गैरीसन नगराः ऐसे नगरों में सेना के दतते रहते हैं। एक ऐसा ही नगर महू, ाआां दौर के स्नकट है।
खेतड़ी, ाऄांकलेश्वर, कालगूली एवां कु लगाडी (ऑतरेस्लया) ऐसे ही प्रस्सद्ध खनन के न्र हैं।
o औद्योस्गक नगराः कु ि नगर औद्योस्गक के न्रों के रूप में स्वकस्सत होते हैं। जमशेदपुर से पहले
वहाां साक्ची नाम का गाांव था। जमशेदजी टाटा के वहाां लोहे व ाआतपात का कारखाना खोलने
के बाद वह िोटा-सा गाांव एक बड़ा नगर बन गया। दुगाभपुर, कानपुर, स्भलााइ, ाऄहमदाबाद,
कोयम्बटू र ाअकद भारत के औद्योस्गक नगर हैं। स्पट्सबगभ, एसेन, तुलौन(फ्राांस), बर्ममघम (यू.
के .) योकोहामा (जापान) ाअकद भी ऐसे ही नगर हैं।
o व्यापाररक नगर: कु ि व्यापाररक के न्र व्यापार में वृस्द्ध के साथ बड़े नगरों का रूप ले लेते हैं।
ाआन नगरों में व्यापार की सुस्वधा के स्लए बैंक, भांडारघर ाअकद की व्यवतथा होती है। भारत के
ाअगरा, मुजफ्फरनगर, हापुड़ ाअकद व्यापाररक के न्र हैं। चीन का काश्गर, लाहौर
(पाककततान), जमभनी का डु सल
े डोफभ , कनाडा का स्वनीपेग तथा ाआराक का बगदाद व्यापाररक
के न्र हैं।
पररवहन नगराः पररवहन के के न्र भी नगरों के रूप में स्वकस्सत हो जाते हैं। ाआसके दो प्रमुख प्रकार
नीचे कदये गए हैं:
o पिन नगराः समुर के तट पर बसे कु ि नगर ाअयात और स्नयाभत के के न्र हैं। यहाां जहाजों के
स्लए पोतािय होता है। ऐसे नगरों के लोगों को व्यापार और पररवहन में ही रोजगार स्मला
होता है। भारत के मुबाइ, मांगलौर, तूतीकोररन, चेन्नाइ, पारािीप, स्वशाखापिनम नगरों के
ाईदाहरण हैं। न्यूयाकभ , लांदन, हाांगकाांग, शांघााइ, न्यूाअर्थलयन्स, ररयो-स्ड-जनेररयो, राटरडम,
हैम्बगभ ाअकद सांसार के कु ि पिन नगर हैं।
o रे ल जांक्शन नगर: रे ल मागों के जांक्शन भी नगरों के रूप में स्वकस्सत हो जाते हैं। भारत के
मुगलसराय, ाआटारसी, नागपुर और बीना रे ल जांक्शन नगर हैं। घाना (ाऄफ्रीका) का कु मासी
तथा ाआांग्लैंड का नार्थवच(Norwich) नगर पररवहन के न्र हैं।
मनोरां जन या पयभटन नगर: कु ि नगर ाऄपने प्राकृ स्तक सौंदयभ, तवात्यप्रद जलवायु या ऐस्तहास्सक
भव्य ाआमारतों ाअकद के कारण पयभटकों के ाअकषभण का के न्र बन जाते हैं। पवभतीय नगर स्शमला,
नैनीताल, दार्थजबलग, धमभशाला, मनाली, मसूरी पयभटन नगरों के रूप में स्वकस्सत हो गए हैं।
फतेहपुरी सीकरी ऐस्तहास्सक नगर होने के साथ-साथ पयभटन के न्र भी हैं।
नगरों में गरीबों का ाअवासीय िेत्र, स्जसकी भूस्म पर ाईनक वैध ाऄस्धकार नहीं होता है। ऐसे लोग
सरकारी या स्नजी भूस्म पर कब्जा कर लेते हैं।
स्वकासशील देशों में ही नहीं स्वकस्सत देशों में भी 5-6 करोड़ लोग मस्लन बस्ततयों में रहते हैं।
न्यूयाकभ में ‘ब्रौक्स’ (Bronx) तथा भारत की ‘धारावी’ (मुांबाइ) मस्लन बततयों के एक ाईत्कृ ष्ट
ाईदाहरण है।
कायभ जो वहाां ककए जाते हैं। ककसी कतबे ाऄथवा नगर का रूप ाऄथवा ाअकृ स्त रै स्खक, ाअयताकार,
ताराकार ाऄथवा चापाकार हो सकती है।
ाऄस्धकतर प्राचीन नगर ाऄस्नयोस्जत ढांग से स्वकस्सत हए हैं। काइ मामलों में तो ाआनका स्वकास
बहत ही ाऄव्यवस्तथत रूप में होता है। ऐसे मामलों में ाईनकी ाअकृ स्त का स्वकास तथान की
स्वशेषताओं तथा ऐस्तहास्सक और राजनीस्तक कारकों का ही पररणाम होता है। ाईदाहरण के स्लए,
ककला नगरों की ाअकृ स्त गोलाकार होती है क्योंकक लोग जहाां तक सांभव होता है ककले की सुरिा के
स्नकट ही रहना पसांद करते हैं। ऐसी बस्ततयाां ाऄस्धक सघन होती है। काइ एक पुराने कतबे और
नगरों के चारों ओर दीवार होती थी। ाआनके स्वततार के कारण ाऄब ये दीवार से बाहर स्वकस्सत हए
है। दूसरी ओर कतबे और नगर जो महामागों ाऄथवा समुर के ककनारे ाईभरे हैं, ाईनकी ाअकृ स्त रै स्खक
होती है।
प्राचीन ाऄस्नयोस्जत नगरों के स्वपरीत ाअधुस्नक स्नयोस्जत नगरों का सुस्नस्ित प्रस्तरूप होता है
जो ाईनके कायों िारा स्नधाभररत होता है। चांढीगढ़ और कै नबरा स्नयोस्जत नगरों के ाईदाहरण हैं।
चांढीगढ़ को एक प्रशासस्नक नगर के रूप में, ाईनके कायभ को ध्यान में रखते हए स्वस्भन्न सेक्टरों में
बाांटा गया है।
नगरीकरण का ाऄथभ है देश की कु ल जनसांख्या में नगरीय िेत्रों में रहने वाले लोगों की सांख्या में
वृस्द्ध, स्जसे प्रस्तशत में व्यक्त करते हैं।
नगरीयता का ाऄथभ नगरीय जीवन की स्वशेषताओं से है। स्वषमता, स्नभभरता, कदखावा ाअकद ाआसकी
स्वशेषताएां है।
ाऄनेक बस्ततयाां बस गाइ हैं, जहाां नगरों में काम करने वाले लोग रहते हैं और काम के स्लए प्रस्तकदन
नगरों में चले जाते हैं।
ाऄनुषग
ां ी नगर (Satellite town): एक बड़े शहर से ाऄलग ककतु ाईससे सांबद्ध िोटे-िोटे ाऄन्य नगर
जो ाऄनेक ाअवश्यक कायों एवां सेवाओं के स्लए ाईस (बड़े शहर) पर स्नभभर रहते हैं। ाआन नगरों को
सेटेलााआट नगर या ररग नगर भी कहा जाता है। जैसे ाईिर प्रदेश राज्य में स्तथत नोएडा, मेरठ,
गास्जयाबाद राष्ट्रीय राजधानी िेत्र कदल्ली का एक ाऄनुषांगी नगर है।
ाअकाररकी का ाऄथभ है नगरों के ाअकारों या तवरूपों के स्वषय में ाऄध्ययन करना है। दूसरे ाऄथों में
ाआसका ाअशय नगरीय िेत्रों की प्रकृ स्त, कायों, तवरूपों, िेत्रों की पातपररक स्तथस्त, एक-दूसरे पर
सामास्जक स्नभभरता का ाऄध्ययन करना, स्जससे कक नगरीय िेत्रों का भौगोस्लक वणभन ककया जा
सके ।
शहरों में स्वद्यमान सड़क, रे ल, गस्लयााँ ाअकद के कारण ाईत्पन्न स्वस्वधताओं का स्नयोस्जत ाऄध्ययन
नगरीय ाअकाररकी के माध्यम से ककया जाता है। ाऄत: ाआसके ाऄांतगभत नगर के ाअांतररक स्वन्यास
तथा बाह्य प्रस्तरूपों का ाऄध्ययन ककया जाता है।
नगरीय ाअकाररकी के सांघटक तत्व: व्यवहाररक दृस्ष्ट से ाआसे स्नम्नस्लस्खत तीन भागों में बााँटा जा
सकता है:
o भौस्तक ाअकाररकी: ाआसके ाऄांतगभत नगर के ाऄांदर यातायात मागों, भवनों की बनावट, स्तथस्त
ाअकद का ाऄध्ययन ककया जाता है। नगर के ाअांतररक एवां बाह्य स्वन्यास का भी ाऄध्ययन ककया
जाता है।
o कायाभत्मक ाअकाररकी: नगर के ाऄांदर भूस्म का स्वस्भन्न कायो के स्लए ाईपयोग ककया जाता है,
जैसे बैंक, कायाभलय ाअकद। ाआसके ाऄांतगभत यह ाऄध्ययन ककया जाता है नगर के ककस भाग में
नगरों की बसाव स्तथस्त को देखा जाता है। ाईदाहरण के स्लए खुले एवां सपाट मैदानों में नगरों
का स्वकास चारों ओर समान रूप से होता है वही दूसरी तरफ नदी या समुर के ककनारों पर
नगरों का स्वकास ककनारे -ककनारे होता है।
o सामास्जक-साांतकृ स्तक कारण: नगरों में स्नवास करने वाले लोगों के रीस्त-ररवाज, धार्थमक
मान्यताएाँ, ऐस्तहास्सक बाज़ार, धार्थमक तथल ाअकद नगरों की ाअकाररकी को प्रभास्वत करते
यह ककसी भी नगर का सबसे महत्त्वपूणभ भाग होता है। CBD में मुख्य रूप से व्यापाररक कायभ ही
ककये जाते है। ाआस िेत्र में नगर की ाऄस्धकाांश दुकानें, स्सनेमाघर, सरकार और स्नजी कायभकाल, बैंक
ाअकद ाऄवस्तथत होते है। यह िेत्र पूरे नगर के साथ-साथ नगरीय प्रभाव िेत्र को ाअसानी से सेवाएाँ
प्रदान करता है।
ज्यादातर पुराने नगरों का CBD कें र में ही ाऄवस्तथत होता था लेककन वतभमान में CBD नगर के
कें र भाग में न होकर नगर के सीमाांत भाग में भी हो सकता है।
CBD की मुख्य स्वशेषताएाँ:
o ाआस िेत्र में व्यापार की प्रधानता होती है।
o सरकारी एवां स्नजी कायाभलयों का सांकेन्रण पाया जाता है।
o यहााँ पररवहन मागों का के न्रीकरण होता है।
o बहमांस्जली ाआमारतों का बह-ाईद्देशीय ाईपयोग ककया जाता है, जैसे एक ही ाआमारत में बैंक,
सरकारी व स्नजी कायाभलय ाअकद की स्तथस्त होती है।
o ाआस िेत्र में स्नमाभण ाईद्योगों की ाईनुपस्तथस्त होती है।
o ाअवासीय एवां तथायी जनसांख्यााँ का ाऄभाव पाया जाता है। ाआस िेत्र में लोग कदन के समय
कायभ करते है तथा रात में ाऄपने घरों को लौट जाते है।
CBD की सांरचना
o CBD को मुख्य रूप से तीन भागों में वगीकृ त ककया जाता है:
कोर िेत्र: यह भाग CBD के कें र में ाऄवस्तथत होता है। यह ाऄत्यस्धक भीड़-भाड़ वाला
िेत्र होता है।
मध्य िेत्र: यह िेत्र कोर भाग के चारों फै ला होता है। यह िेत्र कोर भाग की ाऄपेिा कम
भीड़-भाड़ वाला होता है। यहााँ पर बैंक, कायाभलय ाअकद ाऄवस्तथत होते है।
बाह्य िेत्र: यह नगर का सबसे बाहरी िेत्र होता है, स्जसमे मुख्य रूप से थोक की दुकानें
या गोदाम ाऄवस्तथत होते है। ाआस िेत्र में मुख्य रूप से स्नम्न ाअय वाले लोग रहते है।
o भारत के CBD िेत्र: कदल्ली में कनॉट प्लेस, चााँदनी चौक, लुस्धयाना का चौड़ा बाज़ार
ाअकद।
पस्िमी देशों में CBD (यूरोप, ाऄमेररका) पूवी देशों में CBD (एस्शया)
CDB की ाऄवस्तथस्त काफी सुव्यवस्तथत तरीके से। CDB की ाऄवस्तथस्त सुबद्ध तरीके से नहीं।
फु टकर दुकानों पर स्बकने वाली वततुओं की फु टकर दुकानों पर स्बकने वाली वततुओं में
स्वस्वधता ाऄस्धक। स्वस्वधता कम देखने को स्मलती है।
CBD का तपष्ट सीमाांकन ककया जा सकता है। CBD का तपष्ट सीमाांकन नहीं ककया जा सकता
है।
CBD में के वल क्रय-स्वक्रय का कायभ ककया जाता है। CBD में क्रय-स्वक्रय के साथ-साथ कु ि वततु
स्नमाभण का कायभ भी ककया जाता है।
नगरीय िेत्र के सांदभभ में ाईन ाऄस्धवासों को के न्रीय तथल माना जाता जो ाऄपने चारों ओर स्तथत
पररिेत्र को ाअवश्यक वततुएां एवां सेवाएाँ प्रदान करते है। के न्रीय िेत्र ाऄपने चारों ओर या सहायक
िेत्र से कायाभत्मक रूप से जुड़ा होता है। ाआसी कारण के न्रीय तथल को सेवा कें र के रूप में भी जाना
जाता है।
के रीय तथल स्वस्भन्न ाअकार का हो सकता है। ककसी प्रदेश में स्तथत के न्रीय तथल के ाअकार,
सांख्या, प्रदान की जाने वाली सेवाएाँ, ाईसके िारा ककये जाने वाले कायों की प्रकृ स्त तथा पारतपररक
तथास्नक दूररयों में घस्नष्ठ सांबांध पाया जाता है।
के न्रीय तथल का स्नधाभरण एवां ाईसका वणभन सवभप्रथम कक्रतटोलर िारा ककया गया था। ाआन्होने
बताया कक ककसी भी समतल प्रदेश में स्वस्भन्न पदानुक्रम वाले के न्रीय तथल स्तथत होते है। ाईन्होंने
ाआसको 7 भागों में बाांटा, जो स्नम्न प्रकार है:
1. बाज़ार कें र
2. टााईनस्शप कें र
3. कााईन्टी स्सटी
4. जनपदीय नगर
5. लघुराज्य राजधानी
6. प्राांतीय प्रधा न नगर
7. प्रादेस्शक राजधानी नगर
ाअकार, ाईपलब्ध सेवाओं और ककए जाने वाले कायों के ाअधार पर नगरीय के न्रों को स्नम्नस्लस्खत
नाम कदए जा सकते है।
o कतबा (Towns): कतबे सबसे िोटी नगरीय बस्ततयाां है। ाअकार के ाअधार पर कतबा, ग्रामीण
बतती-‘गाांव’ से ाऄलग ककया जा सकता है। कतबा कायों के ाअधार पर भी गाांव से स्भन्न है।
कतबों और नगरों में लोगों के प्रमुख व्यवसाय के ाअधार पर ाऄांतर ककया जाता हैं कतबे में
बहसांख्यक लोग गैर-कृ षीय स्वशेष कक्रयाकलापों; जैस-े खुदरा और थोक व्यापार और ाऄन्य
व्यावसास्यक सेवाओं में लगे होते हैं, जबकक गाांववासी प्राथस्मक व्यवसाय में लगे होते हैं।
o नगर (City) : नगर को ाऄग्रणी कतबा कह सकते हैं, जो ाऄपने तथानीय या प्रादेस्शक
प्रस्तिांकदयों से ाअगे स्नकल गया है। लेस्वस ममफोडभ के ाऄनुसार, “नगर ाईच्चतम और ाऄत्यस्धक
जरटल प्रकार के सहचारी जीवन के मूतभ रूप हैं नगर कतबों की तुलना में बहत बड़े होते हैं।
ाआनमें ाअर्थथक कक्रयाएां भी ाऄस्धक होती है। ाआनमें पररवहन के ाऄांस्तम तटेशन, प्रमुख स्विीय
सांतथाएां और प्रादेस्शक प्रशासस्नक कायाभलय होते हैं। जब ाआनकी जनसांख्या दस लाख से ाऄस्धक
हो जाती है, तो ाआन्हें स्मस्लयन स्सटी कहते हैं।
है, स्जसका ाऄथभ है, महान नगर। ाआस शब्द को 1957 में जीन गोटमैन ने लोकस्प्रयता प्रदान की
थी। मेगालोपोस्लस में काइ ाईपनगरीय समूहन शास्मल होते हैं। यह ाऄस्त स्वस्शष्ट महानगरीय
o स्मस्लयन स्सटी (Million city): कोाइ नगर स्जसकी जनसांख्या 10 लाख या 10 लाख से
ाऄस्धक हो वह स्मस्लयन स्सटी कहलाते है। सांसार में ऐसे नगरों की सांख्या में ाऄभूतपूवभ वृस्द्ध हो
रही है। सन् 1800 में लांदन की जनसांख्या दस लाख की सीमा के पार हाइ। ाआसके बाद 1950
में पेररस और 1960 में न्यूयाकभ ने यह सीमा पार की। 1950 में 84 स्मस्लयन स्सटी थी। प्रस्त
तीन दशक में स्मस्लयन स्सटी की वृस्द्ध तीन गुनी थी। 1970 में 162 दस स्मस्लयन स्सटी थी
स्वकासशील देशों के नगरों की जनसांख्या में ाऄभूतपूवभ वृस्द्ध देखी जा रही है। ाईदाहरण के स्लए
लांदन की 5 लाख जनसांख्या 190 वषों के बाद दस लाख हाइ। ाआस प्रकार न्यूयाकभ की जनसांख्या को
5 लाख से दस लाख होने में 140 वषभ लगे। ाआसके स्वपरीत स्वकासशील देशों के मैस्क्सको नगर,
साओपालो, कोलकाता, स्सयोल और मुम्बाइ की 5 लाख जनसांख्या के वल 75 वषों में ही बढ़कर दस
लाख हो गाइ।
ाऄस्त नगरीकरण या ाऄस्नयांस्त्रत नगरीकरण से झुग्गी-झोंपस्ड़यों या मस्लन बस्ततयों का जन्म हाअ
है। सम्पूणभ सांसार में एक ाऄरब लोग जीवन के स्लए खतरनाक पररस्तथस्तयों में रह रहे हैं। यही नहीं
एतबेतटस, खपरे ल वाले गृह बना स्लए जाते हैं और वहाां लोग रहने लगते हैं।
o मस्लन बस्ततयों में सावभजस्नक सुस्वधाओं-सड़क, शुद्ध पेय जल, स्वद्युत ाअकद का पूणत
भ या या
लगभग ाऄभाव पाया जाता है। जल स्नकास (नास्लयों) के ाऄभाव में गांदा जल रातते पर फै ला
रहता है।
o मस्लन बस्ततयाां पयाभवरण प्रदूषण के साथ ही सामास्जक प्रदूषण की भी के न्र होती हैं जहाां
शराब पीने, जुाअ खेलने, वेश्यावृस्त, चोरी, बलात्कार, हत्या जैसी ाऄनेक सामास्जक बुरााआयाां
पनपती हैं। ाआन गांदी बस्ततयों में पनपने वाली बुरााआयाां के वल ाआन्हीं तक सीस्मत नहीं होती हैं
बस्ल्क ाआनका दुष्प्रभाव बड़े िेत्रों या पूरे नगर पर पड़ता है।
मस्लन बस्ततयों के ाईद्भव के स्लए ाईिरादायी कारक:
नगरों में मस्लन बस्ततयों के स्वकास के स्लए ाऄनेक ाअर्थथक, सामास्जक तथा राजनीस्तक कारक
ाईिरदायी होते हैं स्जनमें प्रमुख स्नम्नाककत हैं-
o औद्योगीकरण (Industrialization) - नगरों में तीव्र औद्योगीकरण ने मस्लन बस्ततयों को
जन्म कदया है। कारखानों में काम करने के स्लए ग्रामीण िेत्रों से बड़ी सांख्या में लोग नगर में
एकस्त्रत होते हैं और ाऄपने कायभतथल (working place) के स्नकट रहना चाहते हैं। जब
ाऄल्पाय वाले िस्मकों को रहने के स्लए कम ककराये पर योग्य मकान नहीं स्मल जाते हैं तब वे
पुराने, जजभर और स्गराये जाने योग्य और गांदगी पूणभ मकानों में रहने लगते हैं ाऄथवा कहीं
समीप में खाली पड़ी सावभजस्नक भूस्म पर ाऄनस्धकृ त कब्जा करके कच्चे घर बना लेते हैं और
ाईसमें रहते हैं। ाआस प्रकार कारखानों के ाअस-पास मस्लन बस्ततयों का स्वकास होता है।
o स्नधभनता (Poverty) - स्वश्व के ाऄस्धकाांश देशों में नगर की लगभग जनसांख्या न तो नगर के
ाईां चे मूल्य वाली भूस्म को क्रय करने तथा मकान बनवाने में समथभ होती है और न ही वह
सुस्वधा सम्पन्न मकानों का ककराया देने में ही सिम होती है । ऐसी स्तथस्त में स्नधभन िस्मक
ररक्शा-ताांगा चालक कु ली, खोंचा लगाने वाले, गाांवों से ाअये हए बेरोजगार तथा ाआसी प्रकार
जीस्वका के पयाभप्त साधन जुटा पाने में ाऄसमथभ लोग ऐसे ाअिय की खोज करते हैं जहाां वे रह
सकें और ककसी तरह जीवन स्नवाभह कर सकें । स्नधभनता के कारण ाऄसांख्या लोग मस्लन
बस्ततयों की शरण लेते हैं।
o ग्रामीण बेरोजगारी (Rural Poverty) - ग्रामों में ाईद्योग और कृ स्ष िेत्र के कम स्वकस्सत होने
पर वहाां रोजगार की कमी हो जाती है। प्रस्त वषभ ग्रामीण िेत्रों से रोजगार की खोज में बड़ी
सांख्या में लोग समीपवती नगरों तथा दूरवती महानगरों में जाते हैं।
जनसांख्या का घनत्व कम से कम 400 व्यस्क्त प्रस्त वगभ कक.मी. (1,000 प्रस्त वगभ मील)
हो।
नगरों और शहरों का प्रकायाभत्मक वगीकरण (Functional Classification of Towns and Cities)
कतबे और नगर ाऄपनी जनसांख्या तथा ाऄपने पृष्ठ प्रदेशों के स्लए स्वस्भन्न कायभ करते हैं। यद्यस्प
प्रत्येक कतबा ाऄथवा नगर बड़ी सांख्या में कायभ करते हैं। ाआनमें से कु ि कायभ ाऄन्य की ाऄपेिा ाऄस्धक
महत्वपूणभ हो जाते हैं। नगरों के स्वस्शष्ट या प्रमुख कायों के ाअधार पर नगरों को स्नम्नस्लस्खत रूप
में वगीकृ त ककया जा सकता है।
o प्रशासस्नक नगर: ऐसे नगर राज्यों/देश की राजधास्नयों के रूप में प्रस्सद्ध हो जाते हैं।
प्रशासस्नक कायों की महिा के कारण ाआन्हें प्रशासस्नक नगर कहते हैं- ाईदाहरण नाइ कदल्ली,
चांडीगढ़, भोपाल, गाांधी नगर ाअकद।
o औद्योस्गक नगराः ऐसे नगरों में ाअस-पास के या बाहर से मांगाए गए कच्चे माल से वततुओं का
स्नमाभण ककया जाता है। एक नगर में काइ प्रकार के ाईद्योग भी हो सकते हैं। ाईदाहरण मुांबाइ,
व्यापाररक के न्र, औद्योस्गक नगर, पररवहन नगर ाअकद के रूप में महत्वपूणभ बन गए हैं।
o प्राचीन नगर: भारत में नगरों की परां परा बड़ी पुरानी है। 5,000 वषों से भी ाऄस्धक पुरानी
बसधु घाटी सभ्यता के मोहन जोदड़ो, हड़प्पा, कालीबांगा, लोथल, धौलावीरा ाअकद नगरों के
ध्वांसावशेष ाआसी त्य की पुस्ष्ट करते हैं ये नगर सुस्नयोस्जत और स्वशाल थे। वैकदक काल के
थानेश्वर, पानीपत, सोनीपत ाअकद नगर ाईल्लेखनीय हैं। महाभारत काल में हस्ततनापुर के
ाऄलावा ाईज्जस्यनी, कन्नौज, पाटस्लपुत्र (पटना) नागपिनम (दस्िण भारत) ाअकद प्रमुख नगर
थे। बौद्धकाल तो नगरों के स्वकास की दृस्ष्ट से भारत का तवणभयग
ु था। मौयभवांश और गुप्तवांश के
शासकों ने सुस्नयोस्जत नगर बसाए थे। ाआस काल के तिस्शला, नालन्दा, कौशाांबी, साांची
ाअकद नगर महत्वपूणभ हैं।
o मध्यकालीन नगर: ाआस काल में लगभग 101 वतभमान नगरों का स्वकास हाअ। ाआस काल के
नगरों का स्वकास मुख्य रूप से ररयासतों और राज्यों के मुख्यालयों या राजधास्नयों के रूप में
हाअ। फतेहपुर सीकरी, ाऄहमदनगर, औरां गाबाद ाअकद ाआसके ाईदाहरण हैं। ाआनमें से ाऄस्धकतर
वे नगर हैं, जहाां ककले बनाए गए थे। ाआस काल के नगर ाआन्हीं के खांडहरों पर बसे हए हैं। ाआस
काल के प्रमुख नगर हैं : कदल्ली, हैदराबाद, ाऄहमदाबाद, जयपुर, जोधपुर, ाअगरा, लखनाउ,
नगरों (पहाड़ी नगर नैनीताल, स्शमला ाअकद) का स्वकास ककया। ाआसी दौरान जमशेदपुर जैसे
औद्योस्गक ाईद्योग नगरों का स्वकास भी हाअ।
o तवतांत्रता के बाद स्वकस्सत नगर: ाअजादी के बाद देश में योजनानुसार ाऄनेक प्रशासस्नक और
औद्योस्गक नगर बसाए गए। चांडीगढ़, भुवनेश्वर, गाांधी नगर (ाऄहमदाबाद) कदसपुर ाअकद
प्रशासस्नक कें र हैं। दुगाभपरु , स्भलााइ, स्सन्दरी, बरौनी ाअकद औद्योस्गक नगर हैं।
o प्राचीन नगरों के ाईपनगराः कु ि पुराने नगरों और महानगरों के ाअस-पास ाऄनेक ाईपनगर
स्वकस्सत हो गए। ाईदाहरण के स्लए कदल्ली के चारों ओर स्वकस्सत, गास्जयाबाद, नोएडा,
बहादुरगढ़, गुड़गाांव ाअकद ऐेसे ही औद्योस्गक ाईपनगर हैं। ाअर्थथक स्वकास के साथ-साथ देश में
ाऄनेक िोटे नगरों और कतबों का भी स्वकास हाअ है। बड़े गाांव कतबे बनकर ग्रामीण िेत्र के
स्लए औद्योस्गक वततुओं और ाऄन्य सेवाओं के कें र के रूप में कायभ करने लगे हैं।
भारत को ाऄभी भी गाांवों का देश कहा जाता है। सांसार के ाऄनेक देशों में 90 प्रस्तशत से ाऄस्धक
लोग नगरों में रहते हैं। ाआसके स्वपरीत भारत में नगरीय जनसांख्या के वल 31 प्रस्तशत ही है। लेककन
भारत की नगरीय कु ल जनसांख्या सांसार के काइ देशों की कु ल जनसांख्या से ाऄस्धक है। 1901 में कु ल
नगरीय जनसांख्या 10.84 प्रस्तशत ाऄथाभत् ढााइ करोड़ ही थी। ाअज भारत में 37.7 (2011) लोग
नगरवासी हैं। भारत में नगरों की जनसांख्या दो तरह से बढ़ी हैाः (i) पुराने नगरों का स्वततार तथा
(ii) नए नगरों की तथापना। गाांवों से नगरों के लोगों के प्रवास के कारण भारत में नगरों का तेजी से
स्वकास हो रहा है।
नगरीय के न्रों का वगीकरण (Classification of Urban Centres)
नगरों के वगीकरण के मुख्य रूप से दो ही ाअधार हैं : (i) जनसांख्या की दृस्ष्ट से ाअकार, (ii) नगरों
जनसांख्या के ाअकर के ाअधार पर कतबों और नगरों का वगीकरण (Towns and Cities based
के नगरों को िाः वगों में स्वभास्जत ककया है। 2001 की जनगणना ररपोटों में एक लाख से कम
जनसांख्या वाली नगरीय बस्ततयों को नगर (Town) तथा एक लाख से ाऄस्धक जनसांख्या वाली
नगरीय बस्ततयों को स्सटी (City) कहा गया है। 10 से 50 लाख की सांख्या वाले नगरीय बस्ततयों
को महानगर या मेरोपोस्लटन स्सटी (Metropolitan Cities) कहा जाता है। लेककन 50 लाख से
ाऄस्धक जनसांख्या वाली नगरीय बस्ततयों को मेगा स्सटी (Mega Cities) कहा गया है।
महानगर और मेगास्सटी वाततव में नगरीय सांकुल (Urban Agglomeration) है। जनगणना
2001 के ाऄनुसार, ‘‘भारतीय सांकुल’’ (समूह) सतत् नगरीय फै लाव से बनता है।
99,999
49,999
19,999
जनसांख्या के वल 423 नगरों में रहती है। ये नगर कु ल नगरों का के वल 8.2% हैं। ाआन 423 नगरों
में से 10 लाख से ाऄस्धक की जनसांख्या वाले 35 महानगर हैं। ऐसे नगरों को स्मस्लयन प्लस स्सटी
(Million plus cities) भी कहते हैं। ाआनमें से 50 लाख से ाऄस्धक की जनसांख्या वाले िाः मेगा
भारत के नगरों में स्वशेषताः महानगरों में मस्लन बस्ततयों की स्वकराल समतया है। भारत में
नगरीय जनसांख्या का लगभग 20 प्रस्तशत और महानगरों का लगभग 30 प्रस्तशत मस्लन बस्ततयों
में रहता है। जनगणना 1991 के ाऄनुसार देश की लगभग 5 करोड़ नगरीय जनसांख्या मस्लन
बस्ततयों में रहती थी।
भारतीय महानगरों की मस्लन बस्ततयों में स्नवास करने वाले व्यस्क्तयों का जीवन ततर ाऄत्यस्धक
ख़राब या स्नकृ ष्ट और पयाभवरण ाऄतवात्यकर होता है। ाऄल्पाय, स्नरिरता, ाऄकु शलता ाअकद के
कारण ाईनमें ाऄनेक सामास्जक बुरााआयाां जैसे शराब पीना, जुाअ खेलना, चोरी, हत्या ाअकद ाऄनुषांगी
बन जाती है। मस्लन बस्ततयों में मकान ाऄव्यवस्तथत, ाऄस्धक सघन, िोटे-िोटे कमरों और प्रायाः
कच्चे एवां झोपड़ी के रूप में पाए जाते हैं।
भारत में नगरीय स्नयोजन का ाआस्तहास ाऄत्यांत लम्बा हैं ाअज से लगभग 5000 वषभ पूवभ स्सन्धु
घाटी में मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, लोथल ाअकद नगरों के भग्नावशेष प्राप्त हए हैं स्जससे स्वकदत होता हैं
कक ये नगर स्नयोस्जत ढांग से बसाये गये थे। मोहनजोदड़ो स्नयोस्जत नगर था स्जसकी सड़कें सीधी
तथा एक दूसरे को लम्बवत काटती हाइ चैक पट्टी स्वन्यास पर ाअधाररत थीं। नगर में जल स्नकास
और जलापूर्थत की ाईिम व्यवतथा की गयी थी। ाआसी प्रकार की योजना के प्रमाण हड़प्पा और
लोथल तथानों पर खुदााइ से भी प्राप्त हए है।
तवतांत्रता प्रास्प्त से पहले भारत में कोाइ तपष्ट नगरीय नीस्त नहीं थी और ाईस समय तक देश की
लगभग 17 प्रस्तशत जनसांख्या ही नगरों में रहती थी। स्नयोजन काल के ाअरां भ (1951) में भारत
की 6.24 करोड़ (17.3 प्रस्तशत) जनसांख्या िोटे-बड़े कु ल 3059 नगरों में स्नवास करती थी।
स्नयोजन काल के 50 वषों में ाअर्थथक स्वकास के साथ-साथ ग्रामों से नगरों के स्लए बड़ी सांख्या में
जनसांख्या के तथानाांतरण की गस्त तीव्र होती गयी। तीव्र नगरीकरण से ाऄनेक प्रकार की सामास्जक,
ाअर्थथक, जनाांकककीय एवां पयाभवरणीय समतयाएां ाईत्पन्न होती हैं स्जनके स्नराकरण तथा तवतथ
नगरीय जीवन के समुस्चत नगरीय नीस्त का स्नधाभरण ाऄस्नवायभ है। भारत की राष्ट्रीय नगरीय नीस्त
की प्रमुख स्वशेषताएां स्नम्नस्लस्खत हैं:
तमाटभ स्सटी स्मशन रणनीस्त: पूरे शहर के स्लए पहल स्जसमे कम से कम एक तमाटभ समाधान
शहरभर में लागू ककया गया है-िेत्र का कदम-दर-कदम स्वकास
िेत्र के ाअधार पर प्रगस्त के तीन मॉडल, रे रोकफरटग, पुनर्थवकास और हररतिेत्र।
भूगोल
35. विश्व पररिहन
6. बन्दरगाह _________________________________________________________________________________ 15
पररिहन के साधन मानि सभ्यता के विकास के वलए सदैि महत्िपूणम रहे हैं। वनरं तर विकास में
सुचारू और समवन्ित पररिहन प्रणाली की महत्त्िपूणम भूवमका होती है। पररिहन के साधनों के
द्वारा विश्व में ऄज्ञात भागों को खोजा गया है। विश्व के विषम स्थलाकृ वत िाले भागों को पार क्रकया
गया है तथा विश्व के दुगमम एिं दूरस्थ भागों तक पहंच बनाइ गइ है। विश्व के विवभन्न भागों के
वनिासी पररिहन के साधनों के कारण परस्पर सम्पकम स्थावपत कर सांस्कृ वतक अदान-प्रदान कर
पाए हैं। प्रशासन, सुरक्षा, युद्ध तथा क्रकसी प्राकृ वतक अपदा की वस्थवत में पररिहन का महत्िपूणम
स्थान होता है। पररिहन का प्रभाि जनसंख्या के वितरण और घनत्ि पर पड़ता है। पररिहन की
महत्िपूणम भूवमका ईद्योगों के स्थानीकरण एिं विकास में रहती है।
विश्व की ितममान अर्थथक व्यिस्था में पररिहन का सिामवधक महत्ि है। विश्व ऄथमव्यिस्था का
के न्रीय लक्षण विवनमय है। प्राकृ वतक संसाधन के क्षेत्र, विवनमामण की क्षमता के क्षेत्र तथा खपत
िाले क्षेत्र एक दूसरे से दूर-दूर वस्थत होते हैं। आनके मध्य कच्चा माल और तैयार माल का
स्थानान्तरण पररिहन के साधनों के माध्यम से होता है। ऄतः ईत्पादन, ईपभोग और व्यापार के
विकास के वलए पररिहन महत्िपूणम है। पररिहन विवभन्न प्रदशों के मध्य अर्थथक सम्बन्धों को
अकार देता है। पररिहन व्यिस्था से क्रकसी देश की औद्योवगक और व्यािसावयक ईन्नवत का सहज
ऄनुमान लगाया जा सकता है। आसके साथ ही पररिहन व्यिस्था से प्रत्यक्ष ि ऄप्रत्यक्ष रूप से
रोजगार सृजन होते है। विकवसत देशों में पररिहन के साधन कम विकवसत हैं। विकवसत देशों की
7% से 10% जनसंख्या, विकासशील देशों की 3% से 5% जनसंख्या तथा वपछड़े देशों की 2%से
कम जनसंख्या पररिहन व्यिसाय में संलग्न है।
1.2. पररिहन के प्रकार
विवभन्न प्रकार के पररिहन के साधनों का ईपयोग विश्व के वभन्न-वभन्न भागों में िहां की भौगोवलक
वस्थवत, स्थलीय संरचना, अर्थथक संसाधनों की ईपलब्धता तथा तकनीकी स्तर को दृविगत रखते
हए क्रकया जाता है, ईदाहरणाथमः-
o ऄनेक स्थानों पर विशेष रूप से पिमतीय क्षेत्रों में भार िाहक के रूप में मनुष्य ऄपनी पीठ
ऄथिा कं धों का ईपयोग करता है।
पशुओं का ईपयोग भी पररिहन हेतु क्रकया जाता है, जैस-े घोड़े, गधे, खच्चर, टट्टू , उँट, बैल अक्रद
का ईपयोग बैलगावड़यों, घोड़ागावड़यों, उँटगावड़यों अक्रद में क्रकया जाता है।
सबसे ऄवधक महत्िपूणम स्थलीय पररिहन का साधन रे लिे ही है। आस पररिहन का ईपयोग
औद्योवगक िांवत की देन है। आसके मुख्य लाभों में आसके द्वारा लम्बी दूररयों तक तीव्र गवत से भारी
और िृहत अकार के सामानों को ले जाने तथा िृहत संख्या में यावत्रयों को शीघ्र, सुरवक्षत एिं
अराम से यात्रा करिाने का साधन है। रे लमागम पररिहन ढोने िाले सामानों के पररिहन में प्रथम
स्थान हैं। विवभन्न महाद्वीपों एिं देशों में वनर्थमत रे ल मागों की लम्बाइ को क्रकलोमीटरों में देखने
पर ज्ञात होता है क्रक आनके वितरण में बहत वभन्नता है। संयुि राज्य ऄमेररका, यूरोप और पूिम
सोवियत संघ में पूरे विश्व के लगभग 65 प्रवतशत रे लमागों का विस्तार है, जबक्रक चीन, भारत,
जापान अक्रद एवशयाइ देशों में लगभग 12 प्रवतशत, लेरटन ऄमेररका में 12 प्रवतशत, ऄफ्रीका में 5
प्रवतशत तथा ऑस्ट्रेवलया एिं न्यूजीलैड में लगभग 3 प्रवतशत रे लमागों का विस्तार है।
सड़क मागों का प्रयोग थल मागों में सबसे प्राचीन है। मानि, पशु तथा विवभन्न गावड़यों को आन
मागों पर चलाया जाता है। आनका प्रारम्भ ऄव्यिवस्थत गवलयों एिं पगडंवडयों के रूप में हअ,
वजन्होंने विस्ताररत होते हए मागम का रूप वलया। पूिम में नगरों तक ही पक्की सड़कों का ऄवधकतम
विस्तार होता था तथा सामान्यतः सड़कों पर के िल बैलगाड़ी, घोड़ागाड़ी अक्रद का ही ईपयोग
होता था। ऄवधकांश माल ट्रकों के द्वारा ढोया जाता है जो सुगम, कम खचीले तथा सुरवक्षत माने
जाते हैं।
जल पररिहन को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है: महासागरीय पररिहन तथा
स्थलीय जल पररिहन। ऄन्तरामष्ट्रीय व्यापार के वलये विश्व के ऄवधकतर व्यापाररक सामान का
पररिहन महासागरीय पोतों द्वारा होता है। पृथ्िी सतह पर दूर वस्थत क्षेत्रों में ईत्पाक्रदत मालों को
भी महासागरीय पररिहन द्वारा ऄन्तरामष्ट्रीय बाजार में पहंचना असान कर क्रदया है। महासागरीय
पररिहन सस्ता होने के कारण भारी सामानों को जल पररिहन द्वारा ही भेजा जाता है। आसी
प्रकार स्थलीय जलमागों का ईपयोग भी भारी माल को भेजने के वलए क्रकया जाता है, क्योंक्रक यह
सड़क पररिहन ऄथिा रे ल पररिहन की ऄपेक्षा सस्ता होता है। स्थलीय जलमागम भी दो प्रकार के
होते हैं, प्रथम प्राकृ वतक जलमागम के ऄन्तगमत नक्रदयां और झीलें तथा वद्वतीय कृ वत्रम जलमागम के
ऄंतगमत नहरें ।
प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् विश्व के िायुमागों का विकास हअ। ितममान में पररिहन के आस साधन
का बहत ऄवधक महत्ि है। यह पररिहन का सबसे तेज गवत िाला माध्यम होने से समय की बचत
होती है, लम्बी यात्राओं के वलए यह अरामदायक पररिहन का साधन हैं, जहां पररिहन के ऄन्य
साधन नहीं पहंच पाते हैं, ईन दुगमम स्थानों पर यह पहंच जाते हैं। आसका ऄवधकांश ईपयोग
यावत्रयों को लाने, ले जाने के वलए होता है। जहां तक िस्तुओं का सम्बन्ध में आसके द्वारा मुख्य रूप
से यावत्रयों, डाक, ऄवधक मूल्य िाले हल्के सामान तथा शीध्र नि होने िाले खाद्य पदाथों का
पररिहन होता है। विश्व में मुख्य रूप से ऄंतममहाद्वीपीय िायुमागम, महाद्वीपीय िायुमागम, राष्ट्रीय
िायुमागम, प्रादेवशक िायुमागम, स्थानीय िायुमागम, सैवनक युद्धनीवतक तथा राजनीवतक महत्ि के
िायु मागम पाये जाते हैं।
संसाधन ऄसमान रूप से वितररत हैं, ईन्हें ईपयोग में लाए जाने के वलए पररिहन विकवसत क्रकया
गया है। ऄथामत् पररिहन का मुख्य कायम ईत्पादनकताम एिं ईपभोिा के मध्य दूरी एिं समय की
खाइ को पाटना है। पररिहन के विवभन्न माध्यमों से बने विवभन्न के न्रों को अपस में जोड़ने िाले
मागों के जाल को पररिहन जाल कहते हैं।
देश के अन्तररक एिं सीवमत पररिहन सुविधाओं िाले भागों से िस्तुएँ सड़क एिं रे लमागों से
संकवलत करके औद्योवगक के न्रों ऄथिा बन्दरगाहों तक पहंचाइ जाती है, आसी की विपरीत क्रिया
सामवियों की खपत के वलए ऄपनाइ जाती है। पररिहन जाल पर चवलत पररिहन के साधनों की
संख्या को पररिहन प्रिाह कहते हैं।
प्रदेशों के मध्य अर्थथक सम्बन्ध, पररिहन के साधनों की ईपलब्धता तथा पररिहन लागत का
प्रभाि पररिहन प्रिाह पर पड़ता है। जब क्रकसी िस्तु के अवधक्य िाले क्षेत्र से ईसे क्रकसी
ऄपयामप्तता या न्यूनता िाले क्षेत्र की ओर भेजा जाता है तब ईस िस्तु के मूल्य में िृवद्ध हो जाती है,
क्योंक्रक पररिहन पर हअ व्यय जोड़ क्रदया जाता है। जैसे खाड़ी के देशों से मंगाए गए खवनज तेज
का मूल्य भारत में ऄवधक है और वनयामतक देश में कम। ऄतः पररिहन पर अइ लागत को पररिहन
लागत कहते हैं।
3. भू त ल पररिहन
व्यवियों और िस्तुओं के पृथ्िी के स्थलीय भाग पर अिागमन को भूतल पररिहन कहते हैं। यह
पररिहन का प्राचीनतम माध्यम है। भूतल पररिहन क्रकसी देश या महाद्वीप के विकास में सबसे
महत्िपूणम स्थान पर है। भूतल पररिहन को दो िृहत भागों में बांटा जा सकता है (1) सड़क
पररिहन और (2) रे ल पररिहन। भूतल पररिहन के विकास को प्रभावित करने िाले प्रमुख कारक
वनम्ांक्रकत हैं-
o स्थलाकृ वत: स्थलाकृ वत भूतल पररिहन के वनमामण को स्पितः प्रभावित करती है। मैदानी
भागों में कोमल एिं मुलायम संरचना तथा न्यून ढाल प्रिणता के कारण भूतल मागों का
वनमामण सरल, सस्ता और कम समय लेने िाला होता है। ईबड़-खाबड़ पठारी भागों और
पिमतीय भागों में कठोर संरचना, तीव्र ढाल तथा कटे-फटे धरातल पर पुलों एिं कहीं-कहीं
सुंरंगों की अिश्यकता के कारण भूतल मागों का वनमामण करठन, महंगा और ऄवधक समय लेने
िाला होता है। पहाड़ी भागों में ढाल के सहारे बनाए जाने िाले गोलाकार मागों से भूतल
मागम की लम्बाइ बढ़ जाती है। ऄवधकांश रे लमागम वगररपदीय भागों से अगे नहीं जाते हैं।
सीवमत मात्रा में छोटी लाआन पर चलने िाली रे लगावड़यां ऄत्यवधक समय लेती है तथा भार
िहन की दृवि से ऄवधक ईपयागी नहीं होती हैं। विश्व के ऄवधकाश मैदानी भागों में भूतल
पररिहन के माध्यमों का सघन जाल-सा वबछा है।
o जलिायु: जलिायु भूतल पररिहन मागों के रख-रखाि को प्रभावित करने िाला प्रमुख कारक
है। ऄवधक िषाम ि ऄवधक वहमपात िाले प्रदेशों में ऄत्यवधक िषमण से रे ल की पटररयाँ ईखड़
जाती हैं, सड़कें कट जाती हैं तथा पुल टू ट जाते हैं। आन प्रदेशों में िषमण काल में मागम बावधत
होने के साथ नि भी हो जाते हैं। मरुभूवमयों पर चलने िाली तीव्रगामी पिनें भूतल मागों को
रे त से ढक देती हैं। ऄत्यन्त कम तापमान से रे ल की पटररयां चटक जाती हैं तथा ईच्च तापमान
से सड़कों का डामर वपघल कर आधर ईधर एकवत्रत हो जाता है वजससे सड़क समतल ि सपाट
नहीं रह पाती है।
सड़के पररिहन का प्राचीनतम माध्यम हैं। सड़कों का महत्ि अक्रदकाल से ही रहा है। ितममान युग
के औद्योवगक एिं व्यािसावयक विकास ने सड़कों के महत्ि को बहमुखी कर क्रदया है, ऄतः यह
माध्यम अज भी विकास की ऄिस्था में है।
सड़क पररिहन का क्षेत्र सिामवधक व्यापक है। मानि बसाि के प्रत्येक भाग तक सड़कों द्वारा पहंचा
जा सकता है। विश्व के सभी दुगम
म , दूरस्थ एिं अन्तररक भागों तक सड़कें जाती हैं।
सड़कें पररिहन का सरलता से प्रयोग में लाए जाने िाला माध्यम है। आनका ईपयोग क्रकसी भी
समय क्रकया जा सकता है। आन पर िाहनों की अिृवत्त सिामवधक रहती है।
सड़क मागों पर अिश्यकतानुसार विवभन्न क्षमताओं िाले िाहन काम में लाए जा सकते हैं। सड़कें
पररिहन का सुविधाजनक माध्यम हैं।
सड़क पररिहन के ऄन्य सभी माध्यमों का अधार हैं, क्योंक्रक सड़कों द्वारा ही पररिहन के ऄन्य
माध्यमों तक पहंचा जा सकता है। क्रकसी ऄन्य माध्यम से व्यवियों एिं िस्तुओं का स्थानान्तरण
करने पर भी सड़कों की अिश्यकता होती है।
छोटी दूररयों पर अिागमन हेतु सड़क मागम सस्ते और कम समय लेने िाले होने के कारण सिोतम
होते हैं। सड़क पररिहन पर अरवम्भक वनिेश शेष सभी पररिहन के माध्यमों की तुलना में न्यूनतम
होता है।
सड़कें द्वार से द्वार तक पररिहन सेिा ईपलब्ध कराती हैं। आनके द्वारा ईत्पादक क्षमता िाले स्थानों
से सीधे ईपभोिा स्थल तक पहंचा जा सकता है।
शीघ्र खराब होन िाली एिं भार खोने िाली िस्तुओं जैसे दूध, फल, सब्जी, मांस, ऄण्डा, गन्ना
अक्रद के पररिहन के वलए सड़कें सिमश्रेष्ठ माध्यम हैं।
सड़कें सांस्कृ वतक अदान प्रदान में सहायक होती हैं।
सड़कों से राष्ट्रीय एकता की भािना का संचार होता है।
3.2. रे ल पररिहन
ितममान मशीन युग की पररिहन सम्बन्धी सिोत्तम ईपलवब्ध रे ल पररिहन है। भूतल पररिहन में
रे ल पररिहन का सिामवधक महत्ि है। विश्व के ितममान औद्योवगक स्िरूप के वनमामण में रे ल
पररिहन का विवशि योगदान रहा है। रे ल पररिहन ने विश्व के सभी प्रदेशों के के न्रों को परस्पर
वनकट लाने के ऄवतररि कृ वष, खनन, िावनकी, व्यापाररक पशुपालन, ईद्योग, व्यापार, संचार,
जनसंख्या के संकेन्रण, ईपनगरीय ऄवधिासों के स्थानीयकरण तथा राष्ट्रीय एकता की भािना को
प्रभावित क्रकया है।
रे ल पररिहन की विशेषताएं :
o रे ल पररिहन का विकास वपछले मात्र 170 िषों में हअ है ऄथामत् पररिहन का यह माध्यम
सिामवधक तीव्रता से विकवसत हअ है।
विश्व में विवभन्न महाद्वीपों तथा देशों में रे लमागों के वितरण में ऄत्यवधक विषमता पाइ जाती है।
ईत्तरी ऄमेररका एिं यूरोप में विश्व के 55% रे लमागम हैं, जबक्रक दवक्षणी ऄमेररका, ऄफ्रीका और
अस्ट्रेवलया के रे लमागम में विश्व का 20 प्रवतशत ही हैं। विश्व के अर्थथक दृवि से सम्पन्न देशों में
रे लमागों का विस्तार ऄवधक हअ है। विश्व स्तर रे लमागों का वितरण आस प्रकार है-
o ईत्तरी ऄमेररका: ईत्तरी ऄमेररका के संयुि राज्य ऄमेररका में विश्व के सिामवधक विस्तृत
रे लमागम हैं। विश्व के 25% रे लमागम संयुि राज्य ऄमेररका में हैं। देश के तीन चैथाइ से ऄवधक
रे लमागम पूिी संयुि राज्य ऄमेररका में 100 वडिी पूिम देशान्तर के पूिम में वस्थत हैं। यहाँ
रे लमागम रे खीय प्रवतरूप में विकवसत हए हैं। ईन्नीसिीं शताब्दी के ईत्तराद्धम में पहले रे लमागम
बने और ईनके सहारे -सहारे ईद्योग तथा ऄवधिास विकवसत होते गए। देश के पूिी भाग में
पहले रे लमागम बने और ईसके सहारे -सहारे ईद्योग तथा ऄवधिास विकवसत होते गए। देश के
पूिी भाग में ऄवधकांश रे लमागम दोहरे पथ के हैं। संयुि राज्य ऄमेररका में पूि-म पवश्चम क्रदशाओं
को जोड़ने िाली तीन प्रमुख रे लमागम ईत्तरी, मध्य तथा दवक्षणी ट्रान्स महाद्वीपीय रे लमागम हैं।
वशकागो, न्यूयॉकम , क्रफलाडेवल्फया अक्रद प्रमुख रे लमागम के न्र है। कनाडा में विश्व के 5%
रे लमागम हैं तथा रे लमागों की लम्बाइ की दृवि से कनाडा का विश्व में तीसरा स्थान है। दवक्षणी
कनाडा में संयुि राज्य ऄमेररका की सीमा के सहारे -सहारे कनाडा के प्रमुख रे लमागम फै ले हैं।
o यूरोप - पवश्चम यूरोपीय देशों में विश्व की सिामवधक सघन रे ल पररिहन व्यिस्था पाइ जाती
है। यूरोप में विश्व के 25% रे लमागम हैं। यूरोप के ऄवधकांश रे लमागम दोहरे पथ के हैं। यूरोपीय
रे लमागम ऄरीय प्रवतरूप के हैं, जो बड़े औद्योवगक एिं व्यापाररक नगरों पर के वन्रत होते हैं।
लन्दन, पेररस, बॉन, बर्थलन, ज्यूररख, वमलान, मेविड, वियना, ब्ुसेल्स ऐसे प्रमुख के न्र हैं।
o रूस तथा सी.अइ.एस. देश - रूस (CIS देश सवहत) का रे लमागों की दृवि से विश्व में दूसरा
स्थान है तथा यहां विश्व के 10% रे लमागम हैं। जल पररिहन सुविधाओं के ऄभाि के कारण
रूस विवनमय सम्बन्धी अिश्यकताओं के वलए रे ल पररिहन पर सिामवधक वनभमर करता है।
देश के विशाल अकार, समतल मैदानी भाग, खनन के न्रों तथा ऄन्य संसाधनों के क्षेत्रों की
औद्योवगक ि व्यापाररक क्षेत्रों से ऄत्यवधक दूरी रे ल पररिहन पर ऄत्यवधक वनभमरता के ऄन्य
रे लमागों का राष्ट्रीय तथा ऄन्तरामष्ट्रीय दोनों स्तरों पर व्यवियों और िस्तुओं के स्थानांतरण में
ऄत्यवधक महत्ि है। मध्यम दूररयों पर विवनमय के वलए जो रे लमागम श्रेष्ठ हैं ही क्रकन्तु, महाद्वीपों की
लम्बी दूररयों में जहां क्रकन्ही भौगोवलक पररवस्थवतयों के कारण जलमागों का ईपयोग नहीं क्रकया
जा सकता है, िहाँ विवनमय तथा ऄन्तरामष्ट्रीय व्यापार के वलए रे लमागाम बहत ईपयोग वसद्ध होते
हैं।
महाद्वीपों के दूरस्थ के न्रों के मध्य विकवसत रे लमागों को ऄंतममहाद्वीपीय महाद्वीपीय रे लमागम कहते
हैं। ऐसे रे लमागम महाद्वीपों के विवभन्न देशों को परस्पर वनकट लाते हैं।
o ट्रान्स साआबेररयन रे लमागम- ट्रान्स साआबेररयन रे लमागम विश्व का सबसे लम्बा रे लमागम है। रूस
में वस्थत आस रे लमागम की लम्बाइ पवश्चम में बावल्टक सागर के तट पर वस्थत समुर पतन नगर
पर सैण्ट पीटसमबगम (लेवननिाड) से लेकर सुदरू पूिम में जापान सागर के तट पर वस्थत समुर
पत्तन नगर ब्लाडीिोस्टक तक 9560 क्रक.मी. है। आस रे लमागम के बन जाने से साआबेररया के
कोयला, लौह ऄयस्क, मैंगनीज, बाक्साआट, ऄभ्रक, गन्धक अक्रद खवनज पदाथम, िनों के
पदाथम, पशु पदाथम तथा कृ वष ईपजों की प्रावप्त सम्भि हो सकी। यूरोपीय रूस से मशीनरी,
कृ वष ईपकरण, वनर्थमत सामान अक्रद साआबेररयाइ नगरों को भेजे जाते हैं। साआबेररया में कृ वष,
पशुपालन तथा ईद्योगों के विकास के वलए ट्रान्स साआबेररयन रे लामागम के सहारे -सहारे नगरों
की स्थापना हइ है। आस रे लमागम द्वारा रूस से के विवभन्न प्रदेश तो परस्पर वनकट अए ही हैं ,
साथ ही विपुल प्राकृ वतक संसाधनों िाले अर्थथक रूप से वपछड़े साआबेररया का सन्तुवलत
विकास भी सम्भि हअ है।
स्थलीय भागों में झीलों, नक्रदयों, नहरों तथा अन्तररक सागरों में होने िाला जल पररिहन
अन्तररक जल पररिहन कहलाता है। विश्व में अन्तररक जलमागों का पररिहन के वलए ऄवधक
ईपयोग संयुि राज्य ऄमेररका, यूरोपीय देशों तथा चीन में हअ है। अन्तररक जल पररिहन की
ईपयोवगता वनम् कारकों पर वनभमर करती हैः
o अन्तररक जल मागों में िषमभर पयामप्त जल रहना चावहए।
o अन्तररक जलमागों में जल प्रिाह की सामान्य तीव्रता रहनी चावहए। नक्रदयों के ऄत्यन्त मन्द
या ऄत्यवधक तीव्र प्रिाह नौ संचालन के ऄनुकूल नहीं होते हैं।
o अन्तररक जल मागों में जल-प्रपातों तथा तीव्र मोड़ों का ऄभाि होना चावहए।
o अन्तररक जलमागों का जल शीत ऊतु में जमना ऄथिा शुष्क काल में सूखना नहीं चावहए।
o अन्तररक जलमागों में रे त अक्रद का ऄवधक वनक्षेपण नहीं होना चावहए।
o प्रदेश में पररिहन के ऄन्य माध्यमों जैसे रे ल ऄथिा सड़क का ऄवधक विकास नहीं होना
चावहए।
o प्रशासवनक नीवतयां, प्रदेश का औद्योवगक तथा व्यािसावयक स्तर, जल पररिहन की
अिश्यकता, जनसंख्या घनत्ि अक्रद ऄन्य कारक हैं, वजनका प्रभाि अन्तररक जल पररिहन
के विकास पर पड़ता है।
ईत्तरी ऄमेररका के अन्तररक जलमागम- संयुि राज्य ऄमेररका तथा कनाडा के मध्य वस्थत महान
झीलें िषम भर नाव्य रहती है। सुपीररयर, वमशीगन, ह्यूरॉन, आरी तथा ओण्टाररयो झील से होकर
सेंट लॉरें स नदी तक का जलमागम ईत्तरी ऄमेररका का प्रमुख व्यापाररक मागम है। संयुि राज्य
ऄमेररका के मैदानी भाग में वमसीवसपी-वमसौरी नक्रदयां जल पररिहन के वलए महत्िपूणम हैं। शीत
ऊतु में नक्रदयों का जम जाना अन्तररक जल पररिहन को बावधत करता है। ईत्तरी ऄमेररका के
अन्तररक जलमागम लौह ऄयस्क, कोयला, ऄन्य धावत्िक खवनज, लकड़ी, गेह,ँ मक्का, कपास अक्रद
के पररिहन के वलए महत्त्िपूणम हैं।
यूरोप के अन्तररक जलमागम- अन्तररक जल पररिहन की दृवि से यूरोप का स्थान सिोपरर है।
यूरोप की नक्रदयां ईच्च पिमतीय भागों से शुरु होकर सघन अबाद समुन्नत मैदानी भागों से होकर
ईत्तर पवश्चम में ऄटलावण्टक महासागर तथा दवक्षण में भूमध्यसागर में जाकर वमलती हैं। यूरोप में
अन्तररक जल पररिहन की अदशम दशाएं पाइ जाती हैं। राआन नदी विश्व की सिामवधक महत्िपूणम
तथा व्यस्ततम नदी है। यह नदी जममनी, फ्रांस, स्िीटजरलैण्ड, बैवल्जयम तथा नीदरलैण्ड के मध्य
खवनज तेज, आस्पात, खाद्यान्न, रासायवनक ईिमरक, ऄन्य वनर्थमत सामान का पररिहन ईि नक्रदयों
द्वारा होता है। रॉटरडम, बोन, कोलोन, अक्रद राआन के तट के प्रमुख नगर हैं। यूरोप में, सीन, रोन,
डैन्यूब, लॉयर, थेम्स ऄन्य प्रमुख नक्रदयां हैं वजनका अन्तररक जल पररिहन की दृवि से प्रमुख
महत्ि है।
एवशया के अन्तररक जलमागम-एवशया में चीन में अन्तररक जलमागों का सिामवधक ईपयोग हअ
है। यांगत्सीक्यांग नदी एवशया की व्यस्ततम नदी है। यह चीन सागर में ऄपने मुहाने पर शंघाइ
नगर से चीन के अन्तररक भाग में चुंगककग तक 2400 क्रक.मी. तक नाव्य है। ईत्तरी चीन में
ह्िांगहो तथा दवक्षणी चीन में वसयांग नक्रदयां महत्िपूणम अन्तररक जलमागम हैं। चीन में चाय, तुंग
का तेल, रे शम, खाद्यान्न, कोयला अक्रद का पररिहन अन्तररक जलमागों के माध्यम से होता है।
भारत में गंगा और ब्हपुत्र अन्तररक जल पररिहन की ऄिणी नक्रदयां हैं। आनके द्वारा खाद्यान्न, जूट,
कोयला, चाय अक्रद का पररिहन होता है। पवश्चमी बंगाल, वबहार ि झारखण्ड के औद्योवगक क्षेत्र
आससे लाभावन्ित होते हैं। भारत में रे ल ि सड़क मागों के ऄवधक ईपयोग के कारण अन्तररक जल
पररिहन का कम विकास हअ है। दवक्षणी पूिी एवशया की आरािदी, मीनाम तथा मीकांग नक्रदयां
नाव्य हैं।
रूस तथा CIS देश- रूस एक विशाल देश है, यहां ऄनेक लम्बी नाव्य नक्रदयां हैं, क्रकन्तु शीत प्रधान
जलिायु के कारण नक्रदयां िषम पयमन्त नाव्य नहीं रहती हैं। दवक्षण की ओर बहने िाली िोल्गा,
यूराल, डान, नीपर, नीस्टर अक्रद नक्रदयां यूरोपीय रूस तथा CIS देशों में बहकर कै वस्पयन, एजोि
तथा काला सागर में वगरती है। ईतर की ओर बहने िाली नक्रदयां ओब, येनस
े ी, लीना अक्रद हैं। रूस
की सिामवधक महत्िपूणम नदी िोल्गा है, जो मैदानी भाग से होकर वनकलती है तथा िोल्गोिाद,
विश्व का ऄवधकांश ऄन्तरामष्ट्रीय व्यापार महासागरीय जल पररिहन के माध्यम से होता है। सागरों-
महासागरों में जलयान क्रकसी भी मागम का स्ितन्त्रतापूिमक ईपयोग कर सकते हैं। ऄवनधामररत मागों,
बन्दरगाहों तथा समय के ऄनुसार चलने िाले जलयानों को ट्रम्प जलयान कहते हैं। अजकल आनका
महत्ि नहीं रहा है। विश्व के ऄवधकांश व्यापाररक जलयान कु छ वनवश्चत मागों पर ही चलते हैं। आन
पहले से वनधामररत मागों, समय की ऄिवध तथा बन्दरगाहों से होकर जाने िाले जलयानों को कागो
लाआनर कहा जाता है। वहमवशलाओं ि जलमग्न कटकों से बचकर चलने के वलए पूिम वनधामररत मागो का
चयन क्रकया जाता है।
ईत्तरी ऄटलावण्टक जलमागम: ईत्तरी ऄटलावण्टक जलमागम विश्व का व्यस्तम तथा सिामवधक
महत्िपूणम जलमागम है। यह जलमागम विश्व के दो सिामवधक समृद्ध तथा समुन्नत प्रदेशों ईत्तरी
ऄमेररका तथा पवश्चमी यूरोप को जोड़ता है। आन दोनों क्षेत्रों में विविध खवनज संसाधन, विपुल
कृ वष ईपज, औद्योगीकरण, तकनीकी विकास तथा जनसंख्या संकेन्रण के गुण देखे जा सकते हैं।
दोनों क्षेत्रों के व्यापाररक सम्बन्ध ईत्तरी ऄटलावण्टक जलमागों द्वारा सम्पन्न होते हैं। विश्व व्यापार
का एक चौथाइ भाग आस जलमागम से होता है।
आस जलमागम के पवश्चम में ईत्तरी ऄमेररका के पूिी तट के सागर पत्तन वस्थत हैं, वजनमें संयुि राज्य
ऄमेररका के बोस्टन, न्यूयॉकम , हैलीफै क्स अक्रद प्रमुख हैं। ईत्तरी ऄटलावण्टक जलमागम के पूिी भाग
में वब्टेन, के लन्दन, मैनचैस्टर, ग्लासगो, वलिरपूल, नीदरलैण्ड के एमस्टरडम, रोटरडम जममनी का
हैम्बगम, डेनमाकम का कोपन हेगन, फ्रांस के ली हािरी, बेस्ट, नेन्टीज, पुतमगाल का वलस्बन अक्रद
प्रमुख सागर पत्तन हैं।
ये सागर पत्तन विशाल पोताश्रयों से युि हैं तथा आनके पृष्ठ प्रदेश ऄत्यन्त समृद्ध हैं। संयुि राज्य
ऄमेररका से कपास, मक्का, गेह,ं सोयाबीन, कोयला, खवनज तेल, मशीनरी, कृ वष यन्त्र, आस्पात,
मोटर गावड़यां, िस्त्र तथा कनाडा से गेह,ँ मछली, लकड़ी, कागज, तांबा, जस्ता, चांदी,
एल्यूवमवनयम अक्रद का वनयामत यूरोपीय देशों को मांस, मछली, कागज की लुग्दी, ईिमरक, उनी
िस्त्र, चीनी वमट्टी के बतमन, िैज्ञावनक िस्तुएं अक्रद भेजी जाती हैं। ईत्तरी ऄमेररका से यूरोप को
भेजी जाने िाली सामिी का भार यूरोप से मंगाए जाने िाले पदाथों की तुलना में लगभग चार
गुना ऄवधक होता है।
पवश्चम यूरोप-भूमध्य सागर-वहन्द महासागर जलमागम: यह विश्व का दूसरा सबसे महत्िपूणम तथा
सिामवधक लम्बा महासागरीय जलमागम है। यह जलमागम विश्व के मध्य भाग से होकर वनकलता है
तथा विश्व के बड़े थल भागों तथा ऄवधकतम जनसंख्या को सेिाएँ प्रदान करता है। यह जलमागम
पवश्चम यूरोप से भूमध्य सागर, स्िेज नहर, लाल सागर, वहन्द महासागर, पूिी ऄफ्रीका, खाड़ी के
देश, भारत, दवक्षणी-पूिी एवशया तथा ऑस्ट्रेवलया-न्यूजीलैण्ड तक फै ला हअ है। आस जलमागम की
एक शाखा चीन, कोररया, तथा जापान को जाती है। यह जलमागम पहले ऄफ्रीका की पररिमा कर
के प ऑफ़ गुड होप से हेाकर गुजरता था, क्रकन्तु सन् 1869 में स्िेज नहर के बनने के बाद से
भूमध्यसागर ि लाल सागर होकर वनकलता है।
आस जलमागम के प्रमुख सागर पत्तन यूरोप के लेवननिाड, हैम्बगम, एम्स्टरडम, लन्दन, वलिरपूल,
वलस्बन, वजब्ाल्टर, रोम, वजनेिा, एथेन्स अक्रद, वमस्र का पोटम सइद ि पोटम स्िेज, यमन का ऄदन,
ओमान का मस्कट, पाक्रकस्तान का कराची, भारत के मुम्बइ, चेन्नइ, कोलकाता अक्रद, श्रीलंका का
है। ईत्तरी ऄटलांवण्टक जलमागम के बन्दरगाहों, फारस की खाड़ी, दवक्षण एिं दवक्षणी पूिी एवशया
तथा ऑस्ट्रेवलया-न्यूजीलैण्ड के बन्दरगाहों के ऄवतररि आस जलमागम में दवक्षण ऄमेररका के ररयो
डी जेनरे ो, सेण्टोस, माण्टेविवडयो एिं ब्यूनस अयसम अक्रद तथा ऄफ्रीका के लोवबटो, के पटाउन,
डरबन, मपूटो, मोजावम्बक, जन्जीबार अक्रद बन्दरगाह आस जलमागम में सवम्मवलत हैं।
प्रशान्त महासागरीय जलमागम: प्रशान्त महासागर विश्व का विशालतम महासागर है क्रकन्तु आससे
होकर जाने िाले जलमागों का व्यापाररक महत्ि बहत कम है। प्रशान्त महासागर में द्वीपों के
ऄभाि तथा ईत्तरी ऄमेररका के ऄटलावण्टक महासागर तटीय क्षेत्र में औद्योवगक संकेन्रण की
ऄवधकता के कारण प्रशान्त महासागरीय जलमागम पर व्यापाररक पररिहन की मात्रा कम है। यह
जलमागम ईत्तरी ऄमेररका के पवश्चम तट एिं एवशया के पूिी तट के मध्य सम्पकम स्थावपत करता है।
आस जलमागम ईत्तरी ऄमेररका के सप्रस रूपटम, िैंकूिर, सैन फ्रांवसस्को, लॉस एंवजल्स अक्रद, दवक्षण
ऄमेररका के िाल परे सो, एण्टो फागस्टा अक्रद, अस्ट्रेवलया-न्यूजीलैण्ड के वसडनी, िाआस्टचचम,
िैसलगटन अक्रद तथा पूिी एवशया के मनीला, हांगकांग, टीन्टवसन, शंघाइ, ओसाका, कोबे,
याकोहामा, टोक्रकयो अक्रद महत्िपूणम बन्दरगाह हैं। पनामा नहर मागम के बन जाने से आस जलमागम
का सम्पकम क्षेत्र पवश्चम यूरोपीय देशों तक फै ला है।
दवक्षणी ऄटलावण्टक जलमागम: यह जलमागम दवक्षण ऄमेररका के पूिी तथा ईत्तरी-पूिी बन्दरगाहों
को पवश्चमी यूरोप तथा ऄफ्रीका के पवश्चम तट के बन्दरगाहों से जोड़ता है। दवक्षणी ऄमेररकी देशों
जैसे िेनज
े ुएला, ब्ाजील, युरूग्िे तथा ऄजेण्टाआना अक्रद से गेह,ँ मक्का, मांस, चमड़ा, उन, कहिा,
तम्बाकू , चीनी, कपास, लकड़ी, लौह ऄयस्क, मैंगनीज, ऄभ्रक, बाकसाआट अक्रद ईत्तरी ऄमेररका
तथा यूरोप भेजे जाते हैं। दवक्षण ऄमेररकी देश आस मागम के माध्यम से मशीनें, िस्त्र, रसायन, विद्युत
ईपकरण, लोहा आस्पात, रे ल आं जन, मोटरगावड़यां, िस्त्र तथा ऄन्य वनर्थमत सामवियां प्राप्त करते हैं।
5. पररिहन नहरें
नक्रदयों, झीलों, बांधों के जलाशयों से ससचाइ, मत्स्य िहण, नौ संचालन, पयमटन, हररत पेटी के विकास
अक्रद ऄनेक ईदेश्यों से नहरों का वनमामण क्रकया जाता है। विश्व की कु छ नहरों ने ऄन्तरामष्ट्रीय तथा
अन्तररक व्यापार के पररिहन की दृवि से विशेष महत्ता ऄर्थजत की है। स्िेज, पनामा, सू, कील,
मैनचेस्टर, िोल्गा-डान िैसर-एल्ब, वमडलैण्ड, लुडसिड, एल्बटम अक्रद विश्व की मुख्य पररिहन नहरों हैं।
स्िेज नहर: स्िेज नहर विश्व व्यापार में सिामवधक महत्िपूणम पररिहन नगर मागम है। स्िेज नहर
वमस्त्र में वस्थत है। यह नहर भूमध्य सागर तथा लाल सागर को परस्पर जोड़ती है। सन् 1859 में
फ्रांवससी आन्जीवनयर फर्थडनैण्ड-डी-लैसेप्स के वनदेशन में स्िेज नहर की खुदाइ अरम्भ हइ। सन्
1869 में आस नहर का वनमामण कायम पूणम हअ तथा आस पर जलयानों का अिागमन अरम्भ हो
गया। सन् 1956 में वमस्र द्वारा आस नहर के राष्ट्रीयकरण से पूिम स्िेज नहर फ्रांस तथा गे्रट वब्टेन
के ऄवधकार क्षेत्र में थी। सन् 1967 में संयुि राष्ट्र संघ ने आस राष्ट्रीयकरण का ऄनुमोदन कर क्रदया
था। स्िेज नहर के वनमामण से पहले पवश्चमी यूरोप तथा ईत्तरी ऄमेररका के पूिी भाग से दवक्षणी
तथा पूिी एवशया को जाने िाले जलयान के प ऑफ़ गुड होप मागम होकर जाते थे। स्िेज नहर के
बनने से ऄफ्रीका की पररिमा पर लगने िाले लगभग दो सप्ताह के ऄवधक समय, इधन और धन की
आस्पात, मशीनों, आलेक्ट्रावनक्स ईपकरण, औषवधयों, मोटर गावड़यों, िैज्ञावनक ईपकरण अक्रद का
अयात क्रकया जाता है।
पनामा नहर: पनामा नहर विश्व व्यापार में दूसरा सिामवधक महत्िपूणम पररिहन नहर मागम है।
पनामा नहर पनामा में वस्थत है। यह नहर ऄटलावण्टक महासागर तथा प्रशान्त महासागर को
परस्पर जोड़ती है। मध्य ऄमेररका में ऄटलावण्टक महासागर के पवश्चम में वस्थत कै ररवबयन सागर
के तट पर पनामा के ईत्तरी भाग में कोलोन से दवक्षण-पूिम की ओर प्रशान्त महासागर से संलि
पनामा की खाड़ी के शीषम पर वस्थत पनामा तक आस नहर का वनमामण पनामा स्थल संवध को
काटकर क्रकया गया है। पनामा स्थल संवध की भूवम पहाड़ी होने के कारण कठोर है तथा आसके दोनों
और वस्थत महासागरों के जल स्तर में िृहत ऄन्तर है। नहर के वनमामण के वलए कु लेबरा पहाड़ी को
काटा गया तथा तीन स्थानों पर जल ऄिरोधक फाटक बनाए गए। आन तीन लाक्स के नाम गाटू न,
पैडरो तथा वमराफ्लोक्स हैं। जल ऄिरोधक फाटक पनामा नहर में जल स्तर को वनयवन्त्रत करते
हैं। पनामा नहर के वनमामण से पहले पवश्चमी यूरोप तथा ईत्तरी ऄमेररका के पूिी भाग से ईत्तरी एिं
दवक्षणी ऄमेररका के पवश्चमी तट, ऑस्ट्रेवलया, न्यूजीलैण्ड, चीन, जापान अक्रद को जाने िाले
जलयान के प हॉनम होकर जाते थे। पनामा नहर के बनने से दवक्षणी ऄमेररका की पररिमा पर लगने
िाले लगभग दो सप्ताह के समय, इधन और धन की बचत हइ है।
6. बन्दरगाह
बन्दरगाह ऄथिा सागर पत्तन क्रकसी जलमागम पर ऄिवस्थत िह स्थान है, जहां व्यापाररक माल को
लादने तथा ईतारने के वलए जलयान ठहर सकते हैं। बन्दरगाह िस्तुतः क्रकसी देश के सागर, नदी,
झील अक्रद के तट पर वस्थत एक ऐसा सुरवक्षत स्थान है, जहां से जलयान वनयामत हेतु सामिी, प्राप्त
करते हैं तथा अयावतत सामिी को ईतारते हैं।
बन्दरगाहों का ऄन्तरामष्ट्रीय व्यापार में ऄत्यन्त महत्िपूणम स्थान है। आन्हें क्रकसी देश के ऄन्तरामष्ट्रीय
व्यापार का प्रिेश द्वार ऄथिा द्वार मागम माना जाता है। कोइ भी बन्दरगाह सागर से भूवम की ओर
जाने का ऄथिा भूवम से सागर की ओर यात्रा करने का नावभ-वबन्दु होता है। बन्दरगाह का सम्बन्ध
रे ल, सड़क ऄथिा अन्तररक जलमागों द्वारा िृहत स्थलीय भागों से होता है। बन्दरगाह की
पृष्ठभूवम का भू-भाग वजसके ईत्पाक्रदत माल का वनयामत के ईद्देश्य से बन्दरगाह पर एकत्रण होता है
तथा जहां विविध अयावतत माल का ईपभोग के ईद्देश्य से वितरण होता है, को बन्दरगाह का पृष्ठ
प्रदेश कहा जाता है। प्रत्येक बन्दरगाह का एक पृष्ठ प्रदेश होता है। बन्दरगाह ऄपने पृष्ठ ऄपने पृ ष्ठ
प्रदेश के वलए सामवियों के प्रिेश एिं वनकास के द्वार का कायम करता है।
बन्दरगाहों को सिमसुविधा सम्पन्न बनाने के वलए भारी अरवम्भक वनिेश करना पड़ता है।
बन्दरगाहों पर ऄनेक जलयानों को ठहराने एिं सामवियों को लादने तथा ईतारने के वलए विशाल
वलए िे नें, डैररकें अक्रद यन्त्रों-ईपकरणों की सहायता ली जाती है। आनके ऄवतररि जलयानों के
रखरखाि की कायमशालाएं, गोदाम, इधन भण्डार कायामलय, रे लपथ, सामवियों के एकत्रण एिं
वितरण हेतु प्रयुि ट्रेको के स्टैण्ड, विश्राम गृह अक्रद संरचनात्मक सुविधाओं को वनमामण बन्दरगाह
क्षेत्र में क्रकया जाता है। बन्दरगाह आन अधारभूत संरचनात्मक सुविधाओं को टर्थमनल सुविधाएं
कहते हैं।
बन्दरगाह के विकास के वनधामरक कारक
बन्दरगाह के विकास के वलए कु छ विशेष वनधामरक कारकों का होना ऄवनिायम है, वजनमें मुख्य वनम्ित
हैः
सुरवक्षत पोताश्रयः दन्तुररत (कटी-फटी) तटरे खाओं में सुरवक्षत पोताश्रय बनाने की सुविधा होती
है। तट रे खा में प्राकृ वतक कटान के कारण सागरीय जल स्थलीय सीमाओं से वघर जाता है, वजससे
जलयानों को तूफानों में भी सुरवक्षत खड़े रहने का स्थान वमल जाता है। भारत में मुम्बइ बन्दरगाह
को प्राकृ वतक पोताश्रय की सुविधा प्राप्त है जबक्रक चेन्नइ बन्दरगाह को तट से लगभग तीन क्रक.मी
दूर सागर में कं करीट की दो जलतोड़ दीिारों से घेर कर कृ वत्रम पोताश्रय की सुविधा दी गइ है।
ऄवधक गहराइः पोताश्रय की गहराइ ऄवधक होनी चावहए ताक्रक बड़े जलयान सरलता से पहंचे
सकें एिं लम्बे समय तक ठहर सके । ज्िार के समय जल का ईत्थान पयामप्त ईं चाइ तक होना
चावहए। पोताश्रय के पैंदे में नक्रदयों द्वारा रे त अक्रद जमा होते रहने पर आसे हटाने की सुविधा
ईपलब्ध होनी चावहए।
ऄनुकूल जलिायुः सागर साल भर खुले रहने चावहए तथा तटीय क्षेत्र का मौसम शांत रहना
चावहए। अंधी, तूफान, कु हरा, वहम अक्रद कारणों से व्यापाररक गवतविवधयां प्रभावित होती हैं,
साथ ही जलयान के क्षवतिस्त होने की सम्भािना रहती है। रूस के ईत्तरी बन्दरगाह वहमाच्छादन
काल में बंद हो जाते हैं। भारत आस दृवि से सौभाग्यशाली है, क्योंक्रक आसके बन्दरगाह िषमभर खुले
रहते हैं।
समृद्ध पृष्ठ प्रदेश- क्रकसी बन्दरगाह की ईन्नवत ईसके पृष्ठ प्रदेश पर वनभमर करती है। ईपजाउ, सघन
अबाद तथा औद्योवगक दृवि से ईन्नत पृष्ठ प्रदेशों से बन्दरगाहों को वनयामत के वलए पयामप्त ईत्पादन
तथा अयावतत सामिी का विशाल ईपभोिा िगम प्राप्त होता हे। पृष्ठ प्रदेश ही क्रकसी बन्दरगाह की
व्यापाररक गवतविवधयों का अधार क्षेत्र होता है। भारत में कोलकाता सिामवधक व्यापक पृष्ठ प्रदेश
िाला बन्दरगाह है, वजसमें समृद्व पृष्ठ प्रदेश के सभी गुण दशमनीय है।
पररिहन मागों का जालः बन्दरगाह का ऄपने पृष्ठ प्रदेश से सड़क, रे ल ऄथिा अन्तररक जलमागों
से जुड़ा होना ऄत्यािश्यक है। आससे सामवियों के एकत्रण एिं वितरण का कायम सरलता तथा
शीघ्रता से होता है।
टर्थमनल सुविधाएं: बन्दरगाह पर सभी प्रकार की अिश्यक टर्थमनल सुविधाएं होनी चावहए। निीन
तकनीकी पर अधाररत टर्थमनल सुविधाओं से बन्दरगाह की समृवद्ध में सहायता वमलती है।
ऄिवस्थत- बन्दरगाहों की वस्थवत महत्िपूणम सागरीय मागों पर होने से ऄन्तरामष्ट्रीय व्यापार में
बन्दरगाहों की वहस्सेदारी बढ़ जाती है। जैसे प्रशान्त महासागर में होनोलूलू ईत्तरी एिं दवक्षणी
प्रशान्त महासागरीय जलमागों का ऄत्यन्त महत्िपूणम बन्दरगाह है।
इधन की ईपलब्धता- जलयानों के वलए कोयला, डीजल अक्रद इधन ईपलब्ध कराने की सुविधा
ईपलब्ध कराने िाले क्षेत्र बन्दरगाहों के विकास को प्रभावित करते हैं
कायम विवशिता के अधार पर बन्दरगाह: ऄवधकांश बन्दरगाह एक से ऄवधक ईद्देश्य की पूर्थत करते
हैं क्रकन्तु कु छ बन्दरगाह क्रकसी कायम विशेष के वलए ही प्रवसद्ध हो जाते हैं, जैस-े
o सिारी बन्दरगाहः ऐसे बन्दरगाहों पर सामान्यतः यावत्रयों का अिागमन ऄवधक होने के
कारण ऄपेक्षाकृ त छोटे एिं तीव्रगामी जलयानों की भरमार होती है। ऐसे बन्दरगाहों के
वनकट बस टर्थमनल ऄथिा रे ल जंक्शन होते हैं। जैसे लन्दन, मुम्बइ अक्रद।
o िावणवज्यक बन्दरगाहः िावणवज्यक बन्दरगाहों का मुख्य ईद्देश्य विविध सामवियों का अयात
एिं वनयामत करना होता है। जैसे वलिपरपूल, ग्लासगो, न्यूयॉकम , न्यू अर्थलयन्स अक्रद।
o टैंकर बन्दरगाहः ये िे बन्दरगाह हैं वजनका सम्बन्ध तेल के व्यापार एिं शोधन से होता है।
जैसे रट्रपोली (लीवबया) , माराकाआबो (िेनज
े ए
ु ला) अक्रद।
o पुनर्थनयामत बन्दरगाहः वजन बन्दरगाहों पर ऄनेक देशों से विविध सामवियों का अयात कर
एकवत्रत करने के बाद क्रकसी एक देश को वनयामत कर क्रदया जाता है, िे पुनर्थनयामत बन्दरगाह
होते हैं। जैसे लन्दन, हैम्बगम, आस्ताम्बुल, ससगापुर अक्रद।
o नौसैवनक बन्दरगाहः सामररक दृवि से विकवसत बन्दरगाहों को नौसैवनक बन्दरगाह कहते हैं।
ऐसे बन्दरगाहों में ऄत्याधुवनक युद्ध सामवियों, लड़ाकू विमान, सैवनक छािनी अक्रद की
सुविधा होती है। जैसे वजब्ाल्टर, कोचीन, कोपहेगन अक्रद।
अकार के अधार पर बन्दरगाह: बन्दरगाह का अकार ईस पर सम्पन्न होने िाली व्यापाररक
गवतविवधयों द्वारा वनधामररत होता है। क्रकसी बन्दरगाह पर अने िाले तथा िहाँ से जाने िाले
जलयानों की संख्या, सामवियों के भार, जलयानों से प्राप्त चुग
ं ी, अयावतत ऄथिा वनयामवतत
सामिी के मूल्य अक्रद से व्यापाररक महत्ि का अकलन होता है। अकार के अधार पर बन्दरगाह
बड़े, मध्यम एिं छोटे प्रकार के होते हैं। बड़े बन्दरगाहों का महत्ि ऄन्तरामष्ट्रीय स्तर का, मध्यम
बन्दरगाहों का राष्ट्रीय स्तर का तथा छोटे बन्दरगाहों का महत्ि स्थानीय स्तर पर होता है।
यातायात के अधार पर दस लाख टन भार से ऄवधक िार्थषक यातायात सम्भालने िाले बन्दरगाहों
को बड़े, एक लाख से दस लाख टन भार के िार्थषक यातायात सम्भलने िाले बन्दरगाहों को मध्यम
तथा एक लाख टन भार से कम िार्थषक यातायात सम्भालने िाले बन्दरगाहों को छोटे बन्दरगाहों
की श्रेणी में िगीकृ त क्रकया गया है।
नागररक ईड्डयन: राष्ट्रीय, ऄन्तरामष्ट्रीय, एिं प्रादेवशक स्तर पर िायु पररिहन का ईत्तरोत्तर
विकास हअ है तथा िायु पररिहन की मांग में िृवद्ध हइ है।
मालिाहन: हल्के , मूल्यिान और शीघ्र नि होने िाले सामान ढोये जाने हेतु िायु पररिहन का
व्यापाररक महत्त्ि बढ़ गया है।
राहत कायमः ऄकाल, बाढ़, भूकम्प, सुनामी अक्रद अपदाओं के समय तुरन्त राहत पहंचाने हेतु
विमानों का तत्काल राहत सेिा में महत्ि बढ़ गया है।
सैवनक महत्िः िायु सेना में बमिषमक, टोही यान, माल िाहक एिं सैवनक िाहक के रूप में आनका
सामररक महत्ि बढ़ गया है।
संसाधन सिेक्षण एिं फोटोिाफीः िायुयान से ऄत्याधुवनक कै मरों द्वारा वलए गए वचत्रों से
संसाधन वितरण का ऄध्ययन क्रकया जाता है।
हल्के विमानों से फसलों पर कीटनाशक घोल का वछड़काि क्रकया जाता है।
िायु पररिहन के हेतु िांवछत दशाएं (Prerequisits for Development of Air Transport)
कठोर ि समतल धरातलः िायु पररिहन परट्टयों का वनमामण करने के वलए विस्तृत कठोर ि समतल
भूवम की अिश्यकता होती है।
अर्थथक-प्राविवधक क्षमताः वजन देशों के पास महंगे विमान खरीदने की पूंजी और आनके वनमामण की
तकनीकी होती है, िहां िायु पररिहन का ऄवधक विस्तार वमलता है।
मौसम सम्बन्धी सूचनाः ईड़ान हेतु ऄपेवक्षत ईत्तम मौसम की जानकारी के वलए एयरपोटम पर
मौसम विभाग स्थावपत करना पड़ता है।
सुरक्षाः हिाइ सुरक्षा, यात्री ि सामान की सुरक्षा हेतु समुवचत व्यिस्था िायु पररिहन विकास की
दृवि से ऄपररहायम है।
राजनैवतक कारकः दूसरे देशों के अकाश से गुजरने के वलए तथा ईनकी हिाइ परट्टयों पर ईतरने के
वलए ऄन्तरामष्ट्रीय सम्बन्धों में मधुरता रखनी पड़ती है।
8. पाआपलाआन्स (Pipelines)
तेल पररिहन (Oil Transportation)
पेट्रोवलयम ईन थोड़े से तरल पदाथों में से एक है, वजसका बड़ी मात्रा में लम्बी दूररयों तक व्यापार
होता है। सड़कों के रास्ते तेल टैंक िैगनों में, समुर के रास्ते तेल टैंकर जलयानों द्वारा और रक्षा
कायों एिं अपातकाल में िायुयानों द्वारा भी आसका पररिहन क्रकया जाता है। क्रकन्तु तेल ईत्पादक
क्षेत्रों से कच्चे तेल का सिामवधक पररिहन पाआप लाआनों के द्वारा क्रकया जाता है।
तेल क्षेत्रों से शोधनशालाओं एिं तटिती व्यापाररक टर्थमनलों तक पूरे विश्व में तेल एिं गैस पाआप
लाआनों का विस्तृत जाल वबछा हअ है। पाआप लाआन वबछाना काफी महंगा पड़ता है और एक बार
वबछाने के बाद आसका मागम बदला नहीं जा सकता। ऄतः पाआप लाआन वबछाने से पूिम तेल कम्पनी
को यह सुवनवश्चत करना पड़ता है क्रक ईनमें तेल का लगातार प्रिाह जारी रहेगा तथा दूसरे छोर पर
बाजार में ईसके तेल की मांग बनी रहेगी।
यक्रद यह सुवनवश्चत हो जाता है तो पाआप लाआन तेल पररिहन का सस्ता, सुगम, रटकाउ और
सुरवक्षत माध्यम है। पेट्रोवलयम जैसा ज्िलनशील तरल पदाथम पाआप लाआनों में पररिहन करना
सिामवधक सुरवक्षत रहता है। राजनैवतक कारणो से या तेल की मांग में ईतार-चढ़ाि होने के कारणों
से यक्रद पाआप लाआनें ऄसुरवक्षत हों तो समुरी रास्ते से तेल टैंकरों द्वारा आसका पररिहन ईवचत
होता है।
प्रमुख तेल क्षेत्र एिं पाआप लाआनें (Oil Fields & Pipelinnes)
मध्य पूिम : दवक्षण-पवश्चम एवशया में विश्व के कु ल संवचत भण्डार का अधे से ऄवधक खवनज तेल
वमलने के ऄनुमान लगाए गए हैं। सउदी ऄरब, इरान, आराक एिं कु िैत मध्यपूिम के सिामवधक तेल
ईत्पादक देश हैं। कम अबादी और कम पूज
ं ी िाले आन देशों में ऄन्तरामष्ट्रीय तेल कम्पवनयों द्वारा तेल
का ईत्पादन क्रकया जाता था, क्रकन्तु ऄब स्थानीय सरकारों ने ईन पर वनयन्त्रण स्थावपत कर वलया
है। आस क्षेत्र की ऄवधकतर पाआप लाआनें अंतररक स्थल भाग से या फ़ारस की खाड़ी क्षेत्र से
भूमध्यसागरीय तट तक वबछी हइ हैं। स्िेज नहर के रास्ते छोटे जहाजों तथा ईत्तम अशा ऄंतरीप
(के प ऑफ गुड होप) के रास्ते विशाल टैंकरों द्वारा तेल पररिहन की सस्ती दरों पर िैकवल्पक
व्यिस्था भी आस क्षेत्र में ईपलब्ध हैं।
सउदी ऄरब : सिमप्रथम 1938 में यहां दम्मान (Damman) तेल क्षेत्र में तेल वनकाला गया, क्रकन्तु
अज धरान (Dharan) क्षेत्र ऄवधक महत्िपूणम है। अबकाआक, अआनेदार, घािार तथा ऄपटतीय
क्षेत्र साफावनया के तेलकू पों से यहां सिामवधक तेल प्राप्त क्रकया जाता है। सउदी ऄरब के ऄवधकांश
तेल का दोहनी ऄरबी-ऄमेररकी तेल कम्पनी-अरामोकों (Arabian American Oil Company-
Aramoco) द्वारा क्रकया जाता है। ऄरब का कच्चा तेल पाआप लाआनों द्वारा वनयामत करने ऄथिा
शोधन के वलए फारस की खाड़ी के तट पर भेजा जाता है। यहां आसे रास तनूरा (Ras Tanura)
बहरीन (Bahrein) या ऄन्य शोधनशाला में साफ क्रकया जाता है ऄथिा भूमध्यसागरीय बन्दरगाह
सैदा (Saida or Sidon) भेज क्रदया जाता है। फारस की खाड़ी के तेल क्षेत्रों को भूमध्यसागर तट
पर लेबनान में सैदा तक 1707 क्रकलोमीटर (1067 मील) लम्बी लाआन लाआन द्वारा जोड़ा गया है।
आसे टेपलाआन (Tapline i.e. Trans Arabian Pipeline) कहा जाता है, जो क्रक मध्यपूिम की
सिामवधक लम्बी पाआप लाआन है। सैदा (Saida) में साफ क्रकया गया कच्चा तेल पुनः वनयामत कर
क्रदया जाता है।
भूगोल
36. विश्व के खवनज संसाधन एिं ईनका वितरण
संसाधनों का िगीकरण ऄनेक प्रकार से ककया जा सकता है। ककसी संसाधन को ककस श्रेणी में रखा
जाए, यह आस बात पर वनभथर करे गा कक ईनके िगीकरण का क्या अशय है। आन संसाधनों का
िगीकरण वनम्न प्रकार से ककया जा सकता है:
1. समाप्यता के अधार पर: निीकरण और गैर-निीकरण
2. ईत्पवि के अधार पर: जैि और ऄजैि
3. स्िावमत्ि के अधार पर: व्यवगगत, सामुदावयक, राष्ट्रीय और ऄंतराथष्ट्रीय
4. विकास के स्तर के अधार पर: संभािी, विकवसत, भंडार और संवचत कोष
संसाधनों का ईपयोग शुरू करने के पश्चात यह चचता स्िभाविक है कक िह ककतने कदनों तक पयाथप्त होंगे।
कु छ संसाधन जल्दी समाप्त होते हैं तो कु छ ऄसमाप्त होते है। आस दृवष्टकोण से आनका िगीकरण
निीकरणीय ऄथिा गैर-निीकरणीय संसाधनों में ककया जाता है।
कु छ संसाधन ऐसे हैं वजनका ईपयोग वनरं तर होता रहता है और बार-बार शुि करके ईसे पुनः ईपयोग
में लाया जाता है, ईदाहरण के वलए जल। घरे लू तथा औद्योवगक प्रयोग के वलए जल को साफ करके पुनः
ईपयोग में लाया जा सकता है। आस प्रकार के संसाधनों को चक्रीय संसाधन कहा जाता है।
निीकरणीय संसाधन: िे संसाधन वजन्हें भौवतक, रासायवनक या यांविक प्रकक्रयाओं द्वारा निीकृ त
या पुनः ईत्पन्न ककया जा सकता है, ईन्हें निीकरण योग्य ऄथिा पुनः पूर्तत योग्य संसाधन कहा
जाता है। ईदाहरणाथथ सौर एिं पिन उजाथ, जल, िन ि िन्य जीिन। आन संसाधनों को सतत्
ऄथिा प्रिाह संसाधनों में विभावजत ककया गया है।
गैर-निीकरणीय संसाधन: आन संसाधनों का विकास एक लंबे भू-िैज्ञावनक ऄंतराल में होता है।
खवनज और जीिाश्म ईंधन आस प्रकार के संसाधनों के ईदाहरण हैं। आनके बनने में लाखों िषथ लग
जाते हैं। आनमें से कु छ संसाधन जैसे धातुएाँ पुनः चक्रीय हैं और कु छ संसाधन जैसे जीिाश्म ईंधन
ऄचक्रीय हैं िे एक बार के प्रयोग के साथ ही समाप्त हो जाते हैं। ऄतः आन्हें गैर-निीकरणीय संसाधन
कहा जाता है।
पृथ्िी पर पाए जाने िाले आन संसाधनों को क्रमशः दो िगों में बांटा जाता है - जैि तथा ऄजैि। कोयला
एिं खवनज तेल भी जीिांश से ही बनते हैं। आनमें से कु छ संसाधन निीकरणीय योग्य है परं तु कु छ गैर
निीकरणीय भी है। ईदाहरण के वलए पशुधन का निीकरण तो संभि है परं तु कोयले एिं खवनज तेल
का निीकरण संभि नहीं है। सभी संसाधन वजनका वनमाथण ऄजैविक तत्िों से होता है ईन्हें ऄजैि
संसाधन कहा जाता है। ईदाहरण के वलए लोहा, तांबा, सोना अकद ऄजैि ऄथिा ऄकाबथवनक पदाथथ
कहलाते हैं। यह पदाथथ पृथ्िी में विवभन्न प्रक्रमों के फलस्िरुप बनते हैं। आनके बनने की गवत बहुत धीमी
होती है। ऄतः ईपयोग के बाद आनके भंडार समाप्त होने लगते है। कु छ ऄजैि संसाधन पृथ्िी पर विस्तृत
क्षेि में पाए जाते हैं, परं तु कु छ बहुत ही सीवमत क्षेि में ईपलब्ध है। ईदाहरण के वलए लोहा तथा
एल्युवमवनयम का क्षेि बहुत ही विस्तृत है परं तु सोना एिं चांदी का क्षेि सीवमत है।
जैि-संसाधन: आन संसाधनों की प्रावप्त जीिमंडल से होती है, जैसे - मनुष्य, िनस्पवतजात,
प्रावणजात, मत्स्य जीिन, पशुधन अकद।
ऄजैि संसाधन: िे सारे संसाधन जो वनजीि िस्तुओं/ऄजैविक तत्िों से होता है ईन्हें ऄजैि संसाधन
कहा जाता है। ईदाहरणाथथ चट्टानें और धातुएाँ।
1.1.3. स्िावमत्ि के अधार पर
व्यवगगत संसाधन: वजनका स्िावमत्ि वनजी व्यवगयों के हाथों में होता है। ईदाहरण: गााँि में
ककसी ककसान की जमीन, घर, अकद। शहरों में भूखंड, घर, कार अकद।
सामुदावयक स्िावमत्ि िाले संसाधन: ये संसाधन समुदाय के सभी सदस्यों को ईपलब्ध होते हैं।
गााँि की चारण भूवम, श्मशान भूवम, तालाब आत्याकद और नगरीय क्षेिों के सािथजवनक पाकथ ,
वपकवनक स्थल और खेल के मैदान, िहााँ रहने िाले सभी लोगों के वलए ईपलब्ध हैं।
राष्ट्रीय संसाधन: तकनीकी तौर पर देश में पाये जाने िाले सभी संसाधन राष्ट्रीय हैं। देश की
सरकार को कानूनी ऄवधकार है कक िह व्यवगगत संसाधनों को भी अम जनता के वहत में
ऄवधग्रवहत कर सकती है। आस प्रकार के संसाधन है - सड़के , नहरें और रे ल लाआनें अकद।
ऄंतराथष्ट्रीय संसाधन: कु छ ऄंतराथष्ट्रीय संस्थाएाँ संसाधनों को वनयंवित करती हैं। तट रे खा से 200
ककमी की दूरी (ऄनन्य अर्तथक क्षेि, EEZ) से परे खुले महासागरीय संसाधनों पर ककसी देश का
ऄवधकार नहीं होता है। आन संसाधनों को ऄंतराथष्ट्रीय संस्थाओं तथा कानूनों की सहमवत के वबना
ईपयोग नहीं ककया जा सकता।
1.1.4. विकास के स्तर के अधार पर
संभािी संसाधन: यह िे संसाधन हैं जो ककसी प्रदेश में विद्यमान होते हैं परं तु आनका ईपयोग नहीं
ककया गया है। ईदाहरण के तौर पर भारत के पवश्चमी भाग, विशेषकर राजस्थान और गुजरात में
पिन और सौर उजाथ संसाधनों की ऄपार संभािना है, परं तु आनका सही ढंग से विकास नहीं हुअ
है।
विकवसत संसाधन: िे संसाधन वजनका सिेक्षण ककया जा चुका है और ईनके ईपयोग की गुणििा
और मािा वनधाथररत की जा चुकी है, विकवसत संसाधन कहलाते हैं। संसाधनों का विकास
प्रौद्योवगकी और ईनकी संभाव्यता के स्तर पर वनभथर करता है।
भंडार: पयाथिरण में ईपलब्ध िे पदाथथ जो मानि की अिश्यकताओं की पूर्तत कर सकते हैं परं तु
ईपयुग प्रौद्योवगकी के ऄभाि में ईसकी पहुाँच से बाहर हैं, भंडार में शावमल संसाधन हैं। ईदाहरण
के वलए जल दो ज्िलनशील गैसों यथा हाआड्रोजन और ऑक्सीजन का यौवगक है तथा यह उजाथ का
मुख्य स्रोत बन सकता है। परं तु आस ईद्देश्य से, आनका प्रयोग करने के वलए हमारे पास अिश्यक
तकनीकी ज्ञान नहीं है।
उजाथ संसाधन: उजाथ ईत्पादन के वलए खवनज ईंधन ऄवनिायथ है। ईजाथ की अिश्यकता कृ वष, ईद्योग,
पररिहन तथा ऄथथव्यिस्था के ऄन्य क्षेिों में होती है। कोयला, पेट्रोवलयम तथा प्राकृ वतक गैस, परमाणु
उजाथ अकद उजाथ के परं परागत स्रोत हैं। ये परं परागत स्रोत समाप्य संसाधन हैं।
समाप्य संसाधन:
कोयला: कोयला महत्िपूणथ खवनजों में से एक है वजसका मुख्य प्रयोग ताप विद्युत ईत्पादन तथा
लौह ऄयस्क के प्रगलन के वलए ककया जाता है।
पेट्रोवलयम: कच्चा पेट्रोवलयम, द्रि और गैसीय ऄिस्था के हाआड्रोकाबथन से युग होता है तथा आसकी
रासायवनक संरचना, रं ग और घनत्ि में वभन्नता पाइ जाती है। यह मोटर-िाहनों, रे लिे तथा
िायुयानों के ऄंतर-दहन ईंधन के वलए उजाथ का एक ऄवनिायथ स्रोत है। आसके ऄनेक सह-ईत्पाद
पेट्रो-रसायन ईद्योगों, जैसे कक ईिथरक, कृ विम रबर, कृ विम रे शे अकद पदाथथ प्राप्त ककए जाते हैं।
कू पों से वनकाला गया तेल ऄपररष्कृ त तथा ऄनेक ऄशुकद्दयों से पररपूणथ होता है। आसे सीधे प्रयोग में
नहीं लाया जा सकता। ऄत: आसे शोवधत ककए जाने की अिश्यकता होती है।
नावभकीय उजाथ: हाल के िषों में नावभकीय उजाथ एक व्यिहायथ स्रोत के रूप में ईभरा है।
यूरेवनयम, थोररयम जैसे रे वडयो सकक्रय पदाथों की विखंडन प्रकक्रया से बड़ी मािा में उजाथ ईत्पन्न
की जाती है।
ऄसमाप्य संसाधन:
ये सतत पोषणीय तथा पयाथिरण-ऄनुकूल उजाथ के स्रोत के रूप में जाने जाते हैं जैसे- सौर, पिन, जल,
भूतापीय उजाथ जैिभार ;बायोमास अकद। आन स्रोतों के माध्यम से ऄवधक रटकाउ, पाररवस्थवतक-
ऄनुकूल तथा सस्ती उजाथ प्राप्त की जाती हैं।
सौर उजाथ: फोटोिोवल्टक सेलों में सूयथ प्रकाश को उजाथ में पररिर्ततत ककया जा सकता है, आस उजाथ
को सौर उजाथ के नाम से जाना जाता है। सौर उजाथ को काम में लाने के वलए वजन दो प्रक्रमों को
बहुत ही प्रभािी माना जाता है िे हैं फोटोिोवल्टक और सौर-तापीय प्रौद्योवगकी। ऄन्य सभी
ऄनिीकरणीय उजाथ स्रोतों की ऄपेक्षा सौर-तापीय प्रौद्योवगकी ऄवधक लाभप्रद है। यह लागत
प्रवतस्पधी, पयाथिरण ऄनुकूल तथा वनमाथण में असान है। सौर उजाथ कोयला ऄथिा तेल अधाररत
संयंिों की ऄपेक्षा 7 प्रवतशत ऄवधक और नावभकीय उजाथ से 10 प्रवतशत ऄवधक प्रभािी है। दृष्टि
है कक USA सौर सेलों का सबसे बड़ा वनमाथता देश है।
पिन उजाथ: पिन उजाथ पूणरू
थ प से प्रदूषण मुग तथा उजाथ का ऄसमाप्य स्रोत है। पिन की गवतज
उजाथ को टरबाआन के माध्यम से विद्युत-उजाथ में बदला जाता है। सन्मागी ि पछु िा जैसी स्थायी
पिन प्रणावलयााँ और मानसून पिनों को उजाथ के स्रोत के रूप में प्रयोग ककया जाता है। आनके
ऄलािा स्थानीय हिाओं, स्थलीय और जलीय पिनों को भी विद्युत पैदा करने के वलए प्रयुग ककया
जा सकता है।
ज्िारीय तथा तरं ग उजाथ: महासागरीय धाराएाँ उजाथ का ऄपररवमत भंडार है। महासागर की
तापांतर, तरं ग,े ज्चार-भाटा और महासागरीय धाराओं जैसी विशेषताओं के कारण यह
निीकरणीय उजाथ का स्रोत बना है, वजससे पयाथिरण-ऄनुकूल उजाथ ईत्पन्न की जा सकती है।
ितथमान में ईन्नत प्रौद्योवगकी की कमी एिं सीवमत संसाधनों के कारण समुद्री उजाथ का पूणथ ईपयोग
नहीं ककया जा रहा है।
लौह ऄयस्क: लौह ऄयस्क चट्टानें एिं खवनज हैं वजनसे धावत्िक लोहे का अर्तथक वनष्कषथण ककया
जा सकता है। यह मैंगनीज तथा क्रोमाआट अकद जैसे लौह खवनज धातु अधाररत ईद्योगों के विकास
के वलए एक सुदढ़ृ अधार प्रदान करता हैं। विश्व के कु ल संवचत लौह भंडार का दो-वतहाइ USA,
CIS, ब्रािील, चीन, फ्ांस, UK, भारत अकद देशों में संवचत है। मुख्य ईत्पादक क्षेि है:
लोहे के प्रकार:
मैग्नट े ाआट आसमें सिोिम प्रकार का ऄयस्क है। आसमें िाष्प की मािा बहुत कम होती है। आसमें लोहे
का ऄंश 72 प्रवतशत तक पाया जाता है।
हैमटे ाआट में लगभग 70 प्रवतशत लोहे का ऄंश पाया जाता है। यह सबसे ऄच्छी गुणििा िाला लोहा
होता है।
वलमोनाआट में शुि लौहांश लगभग 60 प्रवतशत तक होता है। यह भूरे रं ग का होता है।
वसडेराआट वनम्न कोरट का लौहा है। आसमें लोहांश 30 से 40 प्रवतशत तक पाया जाता है। यह लोहे
और काबथन का वमश्रण होता है।
मैंगनीज: आसका ईपयोग लौह, स्टील, रासायवनक एिं कांच ईद्योग में ककया जाता है। आसके मुख्य
ऄयस्क साआलोमैलीन, पाआरोलुसाआट अकद हैं। मैंगनीज वनक्षेप लगभग सभी भूगर्तभक संरचनाओं में
पाया जाता है। मुख्य ईत्पादक क्षेि:
o यूक्रेन - वनकोपोल क्षेि।
o CIS - यूराल क्षेि।
o चीन - ककयांग्सी, हूनान।
o ऑस्ट्रेवलया - याकथ प्रायद्वीप
दवक्षणी ऄफ्ीका - पोस्ट मैस्बगथ, क्रुग्स ड्राप
भारत - ओवड़सा, महाराष्ट्र, कनाथटक अकद
वनककल: प्रमुख ईत्पादन क्षेि:
o कनाडा - महत्त्िपूणथ क्षेि सडबरी है।
o CIS - कोला प्रायद्वीप, यूराल क्षेि।
o ऑस्ट्रेवलया - कालगूली एिं कु लगाडी।
o भारत - ओवडशा (कटक, मयूरभंज)।
तााँबा: वबजली की मोटरें , ट्रांसफामथर तथा जनरे टसथ अकद बनाने तथा विद्युत ईद्योग के वलए तााँबा
एक ऄपररहायथ धातु है। अभूषणों को सुदढ़ृ ता प्रदान करने के वलए आसे स्िणथ के साथ भी वमलाया
जाता है। मुख्य ईत्पादक क्षेि:
o USA - एररिोना, ईटाह, मोंटाना।
o कनाडा - सडबरी, वललन-ललोन प्रमुख खाने हैं।
o वचली - एंडीज पिथत पर वस्थत चुक्कीकमाटा विश्व की सबसे बड़ी खान है।
o भारत - झारखंड (घाटवशला), राजस्थान (खेतड़ी, दरीबा), मध्यप्रदेश।
ऄधावत्िक खवनज या तो काबथवनक ईत्पवि के होते हैं जैसे कक जीिाश्म ईंधन, वजन्हें खवनज ईंधन के
नाम से जानते हैं या िे पृथ्िी में दबे प्राणी एिं पादप जीिों से प्राप्त होते हैं जैसे कक कोयला और
पेट्रोवलयम अकद। ऄन्य प्रकार के ऄधावत्िक खवनज ऄकाबथवनक ईत्पवि के होते हैं जैसे ऄभ्रक, चूना-
काबथन की मािा के अधार पर कोयले को वनम्नवलवखत चार भागों मे बांटा गया हैं -
एन्रेसाआट (90%), यह ईच्च कोरट का कोयला है।
वबटु वमनस (70-90%)
वलग्नाआट (40-70%)
पीट (30% से कम)
पट्रोवलयम: पेट्रोवलयम ऄिसादी शैलों से प्राप्त ककया जाता है, आसे अग्नेय तथा कायान्तररत शैलों से
नहीं प्राप्त ककया जा सकता। िस्तुतः जीिों, िनस्पवतयों के उपर वनक्षेपण कक्रया तथा अंतररक ताप
एिं दाब के फलस्िरूप लाखों िषों में खवजन तेल का वनमाथण होता है। मुख्य ईत्पादक क्षेि:
o िेनज
े ए
ु ला - माराकाआबो तथा ओररवनको बेवसन प्रमुख क्षेि है।
o चीन - कान्सू, िेचिान अकद।
o आं डोनेवशया - सुमािा, बोर्तनयो।
o म्यांमार - आरािदी नदी बेवसन।
o CIS - िोल्गा-यूराल क्षेि, क्रीवमया।
आस संगठन का ईद्देश्य सदस्य देशों की पेट्रोवलयम नीवतयों में समन्िय स्थावपत करना, अतंररक
तेल मूल्यों के वस्थरीकरण करना,अपूर्तत में ईतार-चढ़ाि को समाप्त करना तथा ईन्हें तकनीकी एिं
अर्तथक सहायता प्रदान करना है।
आसके सदस्य देश है: ऄल्जीररया, ऄंगोला, आक्वेडोर, इरान, आराक, कु िैत, लीवबया, नाआजीररया,
गबोन, वगनी, क़तर, सउदी ऄरब, संयग
ु ऄरब ऄमीरात और िेनज
े ए
ु ला।
अिश्यकता होती है। खनन का यह तरीका जोवखम भरा होता है क्योंकक जहरीले गैसों, अग एिं
बाढ़ के कारण कइ बार दुघथटनाएं होने की संभािना रहती है।
विकवसत ऄथथव्यिस्था िाले देश ईत्पादन की खनन, प्रसंस्करण एिं शोधन कायथ से पीछे हट रहे हैं
क्योंकक आसमें श्रवमक लागत ऄवधक होती है। जबकक विकासशील देश ऄपने विशाल श्रवमक शवग
के बल के कारण खनन कायथ को महत्ि दे रहे हैं। ऄफ्ीका के कइ देशों, दवक्षण ऄमेररका के कु छ देशों
एिं एवशया में अय के साधनों का 50 प्रवतशत तक खनन कायथ से ही प्राप्त ककया जाता है।
4. सं साधनों की ईपयोवगता
ऄपनी अिश्यकताओं की पूर्तत के वलए मानि प्रारं भ से ही संसाधनों का ईपयोग करता रहा है। यह
प्रकक्रया ‘संसाधन ईपयोग’ कहलाती है। आस प्रकार संसाधन मनुष्य द्वारा वनर्तमत ककए जाते हैं। ककतु
ईसे आन वनवष्क्रय ईपादानों को मूल्यिान संसाधनों में पररिर्ततत करने के वलए संस्कृ वत की सहायता
की अिश्यकता होती है। संस्कृ वत के ऄंतगथत समस्त ईपकरण एिं मशीनें, पररिहन एिं संचार के
साधन साथ ही प्रभािी प्रबंधन, सामूवहक सहयोग, मनोरं जन, बौविक कायथ, वशक्षा, प्रवशक्षण,
ईन्नत स्िास्थ्य एिं वशक्षा शावमल हैं। संस्कृ वत के वबना मनुष्य की कायथ एिं ईत्पादन की क्षमता
सीवमत है।
मनुष्य की क्षमता एिं योग्यता बढ़ा दी है। ईदाहरण के वलए, संयुग राज्य ऄमेररका ि पवश्चम
यूरोपीय देशों ईन्नत तकनीकी द्वारा प्राकृ वतक सम्पदा के प्रभािी ईपयोग से ‘ईच्च विकवसत
ऄथथव्यिस्थाए’ बन गयी है। दूसरी ओर, ऄफ्ीका, एवशया ि लैरटन ऄमेररका के कइ देशों में प्रचुर
प्राकृ वतक संसाधनों के होते हुए भी विकास के स्तरों में काफी पीछे हैं क्योंकक ये देश अधुवनक
तकनीकी के मामले में काफी पीछे हैं।
5. सं साधनों का क्षरण
प्राकृ वतक संसाधन ककसी भी देश के सामावजक-अर्तथक विकास में साथथक भूवमका वनभाते है। ककसी
भी देश की विशाल खवनज सम्पदा ईस देश को औद्योवगक रूप से विकवसत होने में समथथ बनाती
है। हाल के दशकों में न के िल तेजी से बढ़ती जनसंख्या को भोजन ईपलब्ध कराने बवल्क विशाल
जनसंख्या के अर्तथक कल्याणों को गवत प्रदान करने की आच्छा ने संसाधनों के ईपयोग को
चमत्काररक रूप से बढ़ा कदया है।
संसाधनों के ऄधारणीय ईपयोग के कारण आसने पयाथिरणीय एिं पररवस्थवतकीय ऄसंतल
ु न को
बढ़ाया है। संसाधनों का ईपयोग कु ल सामावजक लाभों को ऄवधक करने के स्थान पर ईत्पादन एिं
लाभों को ऄवधकतम करने की प्ररे णा से ककया गया। मृदा ऄपरदन, िन नाश, ऄवत चराइ तथा
िनों के ऄसािधानीपूणथ प्रबंधन के कारण मृदा जैसे मूल्यिान संसाधन का ह्रास हो रहा है।
तीव्र गवत से बढ़ती जनसंख्या के दबाि के कारण ईपलब्ध जल संसाधनों का शोषण हो रहा है वजस
कारण ये तेजी से कम हो रहे हैं। तकनीकी कमी के कारण भी संसाधनों का ऄिैज्ञावनक तरीके से
दोहन ककया जा रहा है।
उजाथ संकट
उजाथ संकट एक अपूर्तत संकट है। ितथमान में उजाथ बढ़ती जनसंख्या तथा तेजी से विकवसत होती
ऄथथव्यिस्था की मांग को पूरा नहीं कर पा रही है। पररणामस्िरूप, विकास पर प्रवतकू ल प्रभाि पड़ा
है।
उजाथ ईत्पाकदत स्थापनाओं के कु प्रबंधन और वनम्न कायथक्षमता भी आसके वलए विम्मेदार है।
ऄत: संसाधनों की सीवमत प्रकृ वत को ध्यान में रखते हुए, प्रभािपूणथ तरीके से गैर-परम्परागत ईजाथ
स्रोतों का विकास ककया जाये साथ ही आन्हें संरवक्षत करने के वलए कदम ईठाये जाने चावहए।
ऄत: यकद उजाथ संकट से बचना है तो िैवश्वक स्तर पर एक समग्र कायथिाही ऄपनाने की अिश्यकता
है।
6. सं साधनों का सं र क्षण
संसाधनों के वििेकपूणथ ईपयोग के वलए वनयोजन एक सिथमान्य रणनीवत है। संसाधनो के संरक्षण
से तात्पयथ ईनके वििेकपूणथ ि वनयोवजत ईपयोग के साथ ही ईनके ऄपव्यय, दुरुपयोग ि ऄवत-
ईपयोग से बचाि करते हुए प्राकृ वतक संसाधनों का पुनः ईपयोग करना है।
अज संसाधनों का कम होना चचता का सबसे बड़ा विषय है। ईत्पादन की ऄवधकतम सीमा तक
पहुंचने के क्रम में हम ईन सभी संसाधनों का प्रयोग कर रहे हैं, जो भािी पीढ़ी की संपवि हैं। सतत
पोषणीय विकास के विचार के ऄनुसार संसाधन विरासत हैं, जो कक मानि समाज की एक पीढ़ी से
दूसरी पीढ़ी में हस्तांतररत होते हैं। निीकरण के ऄयोग्य संसाधन कु छ समय बाद समाप्त हो सकते
हैं, आसवलए जनसंख्या िृवि ि संसाधनों के ईपयोग के मध्य एक संतुलन बनाना अिश्यक है।
7. सं र क्षण की विवधयााँ
संसाधनों के संरक्षण से तात्पयथ ईनके वििेकपूणथ ि वनयोवजत ईपयोग के साथ ही ईनके ऄपव्यय,
दुरूपयोग तथा ऄवत-ईपयोग से बचाि करते हुए प्राकृ वतक संसाधनों का पुनः ईपयोग करना है।
यह अिश्यक है कक लोगों के मध्य संसाधनों के परररक्षण ि संरक्षण के बारे में जागरूकता ईत्पन्न
की जाए। प्राकृ वतक संसाधनों के बड़े पैमाने पर विनाश के घातक पररणामों के बारे में लोगों को
जागरूक बनाना चावहए।
ऄपररपक्व तथा युिा िृक्षों को काटने से रोकना तथा लोगों में िृक्षों के रोपण तथा पोषण के बारे में
जागरूकता ईत्पन्न करना, िनों के संरक्षण में सहायक हो सकते हैं।
पहाड़ी क्षेिों में सीढ़ीदार कृ वष, समोच्च रे खाओं के ऄनुरूप जुताइ, झूचमग कृ वष पर वनयंिाण,
ऄवतचराइ तथा ऄिनावलकाओं को रोकना, मृदा संरक्षण की कु छ महत्िपूणथ विवधयााँ हैं।
िषाथ जल को रोकने के वलए बााँधों का वनमाथण, फव्िारा, वड्रप या चस्प्रकल चसचाइ तकनीकों का
ईपयोग, औद्योवगक या घरे लू ईपयोग हेतु जल का पुनचथक्रण ऄमूल्य जल संसाधन के संरक्षण में
सहायता करें गे।
खवनज ऄनिीकरणीय संसाधन है, आसवलए कु शल ईपयोग, शोधन की ज्यादा ऄच्छी तकनीकों का
विकास, खवनजों का पुनचथक्रण तथा स्थानापन्नों के ईपयोग द्वारा आनका संरक्षण ककया जाना
चावहए।
उजाथ के पारम्पररक स्त्रोतों को बचाने के वलए, उजाथ के गैर-परम्परागत स्त्रोतों जैस-े सौर, पिन या
जल का विकास करना।
भूगोल
37. द्वितीयक क्रियाकलाप: द्विश्व ईद्योग- कारक एिं िगीकरण
कपास से पहले रूइ, रूइ से धागा, धागों से कपड़ा अक्रद तैयार क्रकए जाते हैं।
ईपयुयि सभी क्रियाएं ईद्योग हैं। ध्यान देने योग्य महत्िपूणय बात यह है क्रक कच्चे माल का द्वजतना ऄद्वधक
पररष्कृ त क्रकया जाता है, िह ईतना ही ऄद्वधक मूल्यिान बन जाता है, क्योंक्रक कच्चे माल से बनाए गए
ईत्पादन का मूल्य ऄद्वधक होता है।
द्विद्वनमायण शब्द का शाद्वब्दक ऄथय है ‘हाथ से बनाना’ यद्यद्वप आसमें यंत्रों िारा बनाया गया सामान भी
सद्वम्मद्वलत क्रकया जाता है। आसमें कच्चे माल को दूरस्थ बाजार में बेचने के द्वलए ऄपेक्षाकृ त ऄद्वधक मूल्य के
तैयार माल में पररिर्ततत क्रकया जाता है। जबक्रक ईद्योग एक द्विद्वनमायण आकाइ होती है द्वजसकी भौगोद्वलक
द्वस्थद्वत ऄलग होती है एिं प्रबंध तंत्र के ऄंतगतय लेखा-बही एिं ररकॉडय का रख-रखाि क्रकया जाता है।
ईद्योग एक व्यापक नाम है और आसे द्विद्वनमायण के पयाययिाची के रूप में देखा जाता है। जब कोइ आस्पात
ईद्योग और रासायद्वनक ईद्योग शब्दािली ईपयोग करता है तब ईसके मद्वस्तष्क में कारखाने एिं
कारखानों में होने िाली द्विद्वभन्न प्रक्रियाओं का द्विचार ईत्पन्न होता है। लेक्रकन कइ गौण क्रियाएँ है जो
कारखानों में संपन्न नहीं होती जैसे क्रक पययटन ईद्योग या मनोरं जन ईद्योग आत्याक्रद।
पूंजी-द्वनिेश की मात्रा, कामगारों की संख्या तथा ईत्पादन के पररमाण के अधार पर ईद्योगों का अधार
2. लघु ईद्योग
भारत में कु टीर ईद्योग द्विशेषतः पररिार के सदस्यों िारा ही संचाद्वलत होते हैं। आसमें सीद्वमत
मात्रा में श्रम और पूज
ं ी की अिश्यकता होती है। कु टीर ईद्योग या घरे लू ईद्योग की द्विशेषताएं
द्वनम्नद्वलद्वखत हैं:
(i) द्वनमायण की सबसे छोटी आकाइयां जहां द्वशल्पी एिं कलाकार कायय करते हैं।
(ii) ईपयोगी िस्तुएं बनाने के द्वलए स्थानीय स्रोतों िारा असानी से प्राप्त सामद्वग्रयों का ईपयोग
क्रकया जाता है ।
(iii) सामान्यतः स्िद्वनर्तमत ईपकरणों का प्रयोग क्रकया जाता है।
(iv) िस्तुएं स्थानीय बाजार में द्वबक जाती हैं या ईत्पादक स्ियं ईपभोग कर लेते हैं।
(v) आन ईद्योगों का ईत्पाद व्यापार में प्रिेश नहीं करता। द्वनिेश बहुत कम तथा ईत्पादन लागत
सामान्यतः कम होती है।
(vi) ईत्पादों के ईदाहरणः आस क्षेत्र में खाद्य ईत्पाद, िस्त्र, चटाइ, द्विद्विध प्रकार के बतयन, ईपकरण,
िनीचर, लकड़ी की मूर्ततयां और ऄन्य सजािटी सामान (कनायटक में महोगनी और लौह काष्ठ की
िस्तुएं तथा सहारनपुर में शीशम की लकड़ी की िस्तुएं), जूत,े चप्पल तथा चमड़े की ऄन्य िस्तुएं
(कोल्हापुर महाराष्ट्र की चप्पलें), द्वमट्टी के बतयन की मूर्ततयां और कलाकृ द्वतयां (जयपुर और अगरा
में संगमरमर की िस्तुएं), सोना, चांदी और कांसे के अभूषण (जयपुर, क्रदल्ली, सूरत अक्रद प्रद्वसर्द्
के न्द्र), बांस और बेंत की िस्तुएं (ऄसम तथा ऄन्य ईत्तर-पूिी राज्यों में बांस की सुन्दर िस्तुएं)।
कु टीर ईद्योगों में प्रयुि होने िाला ऄद्वधकतर कच्चा माल कृ द्वष क्षेत्र से अता है ऄतः क्रकसानों के
द्वलये ऄद्वतररि अय की व्यिस्था कर यह भारत की कृ द्वष-ऄथयव्यिस्था को बल प्रदान करता है।
आनमें कम पूज
ं ी लगाकर ऄद्वधक ईत्पादन क्रकया जा सकता है और बड़ी मात्रा में ऄकु शल बेरोज़गारों
को रोज़गार मुहय
ै ा कराया जा सकता है।
कु टीर ईद्योग अर्तथक गद्वतद्विद्वधयों के द्विकें द्रीकरण के माध्यम से अय और संपद्वत्त तथा क्षेत्रीय
ऄसमानता एिं ऄसंतल
ु न को भी कम करने में सहायक होते हैं। आनकी ईत्पादन प्रक्रिया से
पयायिरण को भी कम नुकसान होता है।
ये ईद्योग कृ द्वष क्षेत्र में संलग्न ऄद्वतररि काययबल को िास्तद्विक ईत्पादक प्रक्रियाओं से जुड़ने का
ऄिसर देते हैं और कृ द्वष क्षेत्र में ऄनािश्यक दबाि को कम करते हैं।
ये ईद्योग औपचाररक कौशल से िंद्वचत लोगों की ईद्यमशीलता का द्विकास करने में भी महत्त्िपूणय
भूद्वमका द्वनभाते हैं।
कु टीर ईद्योग के कु छ ईत्पाद द्विद्वभन्न समुदायों की संस्कृ द्वत और कला से भी जुड़े होते हैं जैसे –
बस्तर का काष्ठ द्वशल्प। ऐसे ईत्पादों को बाज़ार ईपलब्ध करिाना आनकी कला-संस्कृ द्वत के संरक्षण
का महत्त्िपूणय प्रयास कहलाएगा।
लघु ईद्योग की द्विशेषताएं (Small-scale Industry)
लघु ईद्योग की प्रमुख द्विशेषताएं द्वनम्नद्वलद्वखत है:
(i) यह कु टीर ईद्योग से बड़ी आकाइ होती है I
(ii) द्वनमायण स्थल के रूप में घर या घर के बाहर छोटे कारखाने को प्रयुि क्रकया जा सकता है
(iii) कच्चा माल के रूप में स्थानीय स्रोतों से प्राप्त या कारखानों से ऄर्द्यद्वनर्तमत िस्तुएं प्रयोग में
लायी जाती हैं द्वजनसे बड़ी मशीनों के द्वलए पुजे बनाए जाते हैं।
(iv) छोटी मशीनें, कम उजाय चाद्वलत तथा ऄर्द्य कु शल कामगार
रहा है ताक्रक लोगों के रोजगार द्वमल सके । ये द्वखलौने, शद्वि चाद्वलत करघों पर िस्त्र, द्विद्युत
ईपकरण तथा मशीनों के पुजे आत्याक्रद जैसे ईत्पाद बनाते हैं।
(vi) लघु ईद्योग रोजगार-द्वनमायण में मदद करते हैं।
(iii) ये ईद्योग दूरिती बाजारों तक भी ऄपने माल को बेचते हैं और ईनकी िस्तुएं ऄंतरराष्ट्रीय
बाजार में भी प्रिेश करती हैं।
(iv) ईदाहरणः लोहे और आस्पात के बड़े कारखाने, तेल पररष्करण शालाएं, मोटर िाहन ईद्योग।
(v) पद्विमी यूरोप में औद्योद्वगक िांद्वत के बाद बड़े पैमाने का द्विकास द्विगत 200 िषों में हुअ है।
सू क्ष्म, लघु और मध्यम ईद्यम (MSMEs) क्षे त्र द्वपछले पां च दशको में भारतीय ऄथय व्य िस्था में
एक जीिं त एिं गद्वतशील क्षे त्र के रूप में ईभरा है । आस क्षे त्र ने भारत की ऄथय व्य िस्था को
अर्तथक मं दी के समय मं दी में िसने से बचाया था। कु ल द्वमलाकर यह क्षे त्र दे श की ऄथय व्य िस्था
के द्वलए रीढ़ की हड्डी जै सा रोल द्वनभा रहा है ।
सूक्ष्म, लघु और मध्यम ईद्यम द्विकास द्वबल- 2005 (जो 12 मइ, 2005 को संसद में प्रस्तुत क्रकया गया
था) को राष्ट्रपद्वत िारा स्िीकृ द्वत दे दी गइ है और आस प्रकार यह एक ऄद्वधद्वनयम बन गया था। आस
ऄद्वधद्वनयम को सूक्ष्म, लघु और मध्यम ईद्यम द्विकास ऄद्वधद्वनयम, 2006 के रूप में नाद्वमत क्रकया गया है।
अआये जानते है क्रक आस ऄद्वधद्वनयम के ऄनुसार सूक्ष्म, लघु और मध्यम ईद्यम क्रकन्हें कहा जायेगा?
नइ पररभाषा 7 ऄप्रैल,2018 से लागू है। आस पररितयन के बाद ऄब “प्लांट और मशीनरी” में द्वनिेश की
मध्यम ईद्योग: िार्तषक टनय ओिर रु. 75 करोड़ से 250 करोड़ के बीच
सेिा क्षेत्र
सूक्ष्म ईद्योग: िार्तषक टनय ओिर रु. 5 करोड़ से कम
मध्यम ईद्योग: िार्तषक टनय ओिर रु. 75 करोड़ से 250 करोड़ के बीच
िनों से ईद्योगों के द्वलए ऄनेक प्रकार का कच्चा माल प्राप्त क्रकया जाता है। िनीचर के द्वलए लकड़ी,
कागज के द्वलए लकड़ी, घास और बांस, लाख और कत्था ईद्योगों के द्वलए कच्चा माल िनों से ही अता है।
चमडेऺ के ईद्योग के द्वलए खालें, जीि-जन्तुओं से ही द्वमलती हैं। उनी िस्त्रों का द्वनमायण भेड़ों से प्राप्त उन
से क्रकया जाता है।
ऐसे ईद्योग द्वजनमें तैयार ईत्पाद को सीधे तौर पर ईपभोग क्रकया जाता है। ईदाहरणः डबलरोटी,
द्वबस्कु ट, चाय, साबुन, प्रसाधन का सामान, द्वलखने के द्वलए कागज, टेलीद्विजन, रे द्वडयो, घड़ी, पेन, और
पेंद्वसल अक्रद ईपभोिा ईद्योग के ईदाहरण हैं।
(3) पूज
ँ ीगत ईद्योग:
ऐसे मशीन को बनाया जाता है द्वजसका प्रयोग ऄन्य िस्तुओं के ईत्पादन के द्वलए क्रकया जा सकता है -
सूती द्वमल और चीनी ईद्योग के द्वलए मशीन का ईत्पादन
(4) ऄर्द्य द्विद्वनर्तमत ईद्योग:
ऄन्य ईद्योगों के द्वलए कच्चे माल का ईत्पादन करना - प्लाद्वस्टक ग्रेन्स ईद्योग
क्रकसी देश की ऄथयव्यिस्था के तीव्र अर्तथक द्विकास में ईद्योगों की महत्िपूणय भूद्वमका होती है ,द्वजसे
द्वनम्नद्वलद्वखत ईदाहरण से समझा जा सकता है :
औद्योगीकरण ↑
↓
द्वनिेश ↑
↓
ईत्पादन ↑→द्वनयायत ↑→द्विदेशी मुद्रा भण्डार ↑→भुगतान संतुलन में सुधार
↓
अधारभूत संरचना का द्विकास
↓
रोजगार ↑
↓
प्रद्वत व्यद्वि अय↑
↓
जीिन स्तर में सुधार
↓
गरीबी और बेरोजगारी का प्रद्वतशत ↓
ईपयुयि ईदाहरण से स्पष्ट है क्रक देश में औद्योगीकरण की प्रक्रिया तेज़ होने से एक ओर ईत्पादन में िृद्वर्द्
,अधारभूत संरचना का द्विकास,रोजगार में िृद्वर्द्,प्रद्वत व्यद्वि अय में िृद्वर्द् तथा जीिन-स्तर में सुधार
एिं गरीबी और बेरोजगारी के प्रद्वतशत में कमी अती है और साथ ही दूसरी ओर ईत्पादन बढ़ने से
द्वनयायत ,द्विदेशी मुद्रा भण्डार एिं भुगतान संतल
ु न में भी सुधार होता है I
संसार में ईद्योगों का द्वितरण स्पष्टतः एक-दूसरे से द्वभन्न है। आस द्वभन्नता का अधार प्रत्येक ईद्योग की
कच्चे माल, द्वनमायण-प्रक्रिया, द्वनर्तमत िस्तु और बाजार की अिश्यकताओं में द्वभन्नता का होना है। ऄतः
प्रत्येक ईद्योग की ऄिद्वस्थद्वत के कारक द्वभन्न होते हैं।
ईद्योग की ऄद्विस्थद्वत के कारक (Factors of Localisation of Industries)
कच्चा माल: प्राकृ द्वतक संसाधन की ईपलब्धता द्वजसे कच्चे माल पूज
ँ ी द्वनिेश
के रूप में प्रयुि क्रकया जा सकता हैI ऊण की ईपलब्धता
जाता है जहां कच्चा माल भरपूर मात्रा में ईपलब्ध होता है। यह पद्विम बंगाल में जूट ईद्योग, ईत्तर
प्रदेश में चीनी ईद्योग एिं छत्तीसगढ़ और पद्विम बंगाल राज्यों में भारी ईद्योगों के स्थानीयकरण
का मुख्य कारण है।
यक्रद कच्चा माल भारी और मूल्य में कम है,तो कच्चे माल के क्षेत्रों में ईद्योग स्थाद्वपत क्रकए जाते हैं।
लौह गलाने, ईंट बनाने, सीमेंट द्वनमायण आसके सबसे ऄच्छे ईदाहरण हैं।
जमशेदपुर (झारखंड), राईरके ला (ईड़ीसा), द्वभलाइ (छत्तीसगढ़) और दुगायपुर (पद्विम बंगाल) में
लौह और आस्पात संयंत्र कच्चे माल के स्रोतों के पास स्थाद्वपत क्रकए गए हैं।
कु छ एद्वशयाइ देशों में, जहां लोग गरीब हैं, ऐसे ईद्योग जो सस्ते और जरूरी सामानों के द्वनमायण में
लगे हैं जैसे मोटे कपड़े ईनके द्वलए यह बड़ा बाज़ार होता है I यह बताता है क्रक क्यों द्विकद्वसत देशों
की घनी अबादी िाले क्षेत्रों में द्विद्वनमायण ईद्योग खराब हैं।
3. प्रबंधन (Management): प्रबंधन एक ऄद्वत द्विद्वशष्ट प्रकार का श्रम है। ईद्योग की स्थापना के चुनाि
के द्वलए स्थान चुनते समय प्रबन्धन का द्विशेष ध्यान रखा जाता है। स्थान चुनते समय यह जानना
अिश्यक हो जाता है क्रक िहां ऄच्छे प्रबंधक अ सकें गे या नहीं।
कु छ ईद्योगों के क्रकसी द्विशेष स्थान पर के द्वन्द्रत होने से िहां के लोगों में पारं पररक कौशल और प्रबंधन
की योग्यता द्विकद्वसत हो जाती है। मछली के ईत्पाद, द्वसगरे ट, िस्त्र, रे शम, रे यान अक्रद ईद्योगों का
कु शल प्रबंधन िहीं के लोगों के िारा होता है, जहां ये ईद्योग परं परा से प्रद्वसर्द् हो गए हैं; जैस-े िाराणसी
के साड़ी ईद्योग का कु शल प्रबंधन िहां के स्थानीय लोग ही कर सकते हैं।
4. सरकारी नीद्वतयां और हस्क्षेप (Government Policies and Interventions)
अजकल लगभग प्रत्येक देश में ईद्योगों के स्थानीयकरण में सरकार की महत्त्िपूणय भूद्वमका होती है।
सरकार के हस्तक्षेप के मुख्य रूप से दो ईद्देश्य होते हैं:
(i) प्रादेद्वशक ऄसमानता दूर करनाः सभी कल्याणकारी सरकारें पूरे देश का समान रूप से द्विकास करना
चाहती हैं। ऄतः सरकार ईद्योगपद्वतयों को ऄनेक प्रकार की छू ट, द्विशेष रूप से करों में छू ट देकर द्वपछड़े
हुए क्षेत्रों में ईद्योगों की स्थापना करिाती है। आस प्रकार अर्तथक द्विकास की ऄसमानताओं को दूर करने
के प्रयास क्रकए जाते हैं।
(ii) सुरक्षा के कारणः युर्द् के समय शत्रुओं से सुरक्षा की दृद्वष्ट से सरकार सैन्य सामग्री बनाने िाले या
ईनसे संबंद्वधत ईद्योगों को सुरद्वक्षत स्थानों में लगाना चाहती है। भारत के ऄंतररक्ष से संबंद्वधत ईद्योग
दद्वक्षण भारत में ऄद्वधक हैं।
एक ऐसा ईद्योग जो क्रकसी स्थान द्विशेष या देश से सम्बर्द् नहीं होता है और बदलती अर्तथक द्वस्थद्वतयों
के ऄनुसार राष्ट्र की सीमाओं में कहीं भी स्थानांतररत क्रकया जा सकता है ईसे स्िच्छंद ईद्योग कहते है।
ऐसे ईद्योग प्रायः स्थानीयकरण के कारकों से प्रभाद्वित नहीं होते हैं। आन्हें सुद्विधाजनक रूप से कहीं भी
लगाया जा सकता है। ईच्च ईद्योगों के द्वलए नगरों के बाहर स्िच्छन्द पयायिरण में प्रौद्योद्वगकी तथा
द्विज्ञान पाकय बनाए गए हैं।
लोहा-आस्पात ईद्योग अज भी महत्िपूणय और अधारभूत ईद्योग हैं। अजकल ईच्च प्रौद्योद्वगकी ईद्योग
बहुत महत्िपूणय हो गए हैं। तत्काल ईत्पादन ईच्च प्रौद्योद्वगकी ईद्योगों की द्विशेषता है। सूक्ष्म आलेक्रॉद्वनक
ईपकरण, लेजर, द्वचक्रकत्सा ईपकरण आन्हीं ईद्योगों के ईत्पाद हैं। सूती िस्त्र ईद्योग पुराने के न्द्रों के स्थान
पर ऄल्पद्विकद्वसत देशों के नए के न्द्रों पर द्विकद्वसत हो रहे हैं।
स्िच्छंद ईद्योग की द्विशेषताएं(Characteristics of Footloose Industry)
(i) ये हल्के ईद्योग होते हैं।
(ii) ये प्रायः कच्चे माल के स्थान पर पुजों (Component)का ईपयोग करते हैं।
(iii) शद्वि के साधनों में प्रायः राष्ट्रीय द्वग्रड से प्राप्त द्वबजली का ईपयोग करते हैं।
(iv) ईत्पाद छोटे तथा असानी से पररिहन के योग्य होते हैं।
(v) कम लोग काम करते हैं।
(vi) स्िच्छ और प्रदूषण मुि होते हैं। ऄतः अिासीय बद्वस्तयों के द्वनकट भी स्थाद्वपत क्रकए जा सकते हैं।
(vii) ऄद्वभगम्यता को सिोच्च प्राथद्वमकता। ऄतः सड़कों के जाल के द्वनकट लगाए जाते हैं।
(viii) ये संसाधन और बाजारोन्मुख नहीं होते।
(ix) स्थानीयकरण के ऄनेक द्विकल्प होते हैं।
अज ईच्च प्रौद्योद्वगकी का युग है। मनुष्य औद्योद्वगक युग और ईत्तर- औद्योद्वगक युग से रास्ता तय करते
हुए आस युग तक पहुंचा है। अज मनुष्य करोड़ों क्रक.मी. दूर ऄंतररक्ष में यान भेजता है तथा पृथ्िी पर से
ही ईपकरणों की मदद से ईनका संचालन करता है। ऄंतररक्ष में घूमते ऄपने ईपग्रहों से पृथ्िी के चप्पे-
चप्पे की खोज खबर लेता रहता है। आन ईपकरणों तथा आन जैसे ऄन्य ईपकरणों को ईच्च प्रौद्योद्वगकी के
िारा ही बनाया जाता है।
ईच्च प्रौद्योद्वगकी पररभाषा नहीं ऄद्वपतु एक संकल्पना है। आसमें गहन ऄनुसंधान, शोध तथा द्विकास के
प्रयत्नों िारा ऄद्वतद्विकद्वसत िैज्ञाद्वनक और आंजीद्वनयरी के ईपकरण बनाए जाते हैं। आन ईद्योगों की
श्रमशद्वि में गोल्ड कालर (Gold Collar) ऄध्यिसाद्वययों की संख्या ऄद्वधक होती है। आनमें शोध
िैज्ञाद्वनक, आं जीद्वनयर और प्रद्वशद्वक्षत तकनीद्वशयन शाद्वमल हैं। आन ऄत्यन्त कु शल द्विशेषज्ञों के साथ ही
कं धे से कं धा द्वमलाकर प्रशासक, द्वनरीक्षक, द्वििय द्विशेषज्ञ तथा ऄन्य ऐसे ही ऄनेक व्यद्वि आन ईद्योगों
में कायय करते हैं।
आनके ऄद्वतररि ईपभोिा की आलेक्रॉद्वनक िस्तुएं भी ईच्च प्रौद्याद्वगकी में सद्वम्मद्वलत हैं। आसमें रं गीन और
श्वेत-श्याम, टी. िी. सेट, रे द्वडयो, द्विद्वडयो कै सेट ररकॉडयर, ऑद्वडयो टेप ररकॉडयर, ररकॉडय प्लेयर, हाइ-
िाइ ईपकरण-जेबी (पॉके ट) आलेक्रॉद्वनक संगणक, खेल अक्रद शाद्वमल हैं।
ईच्च प्रौऺद्योद्वगकी िारा द्वनर्तमत ईत्पाद ऄल्पजीिी होते हैं। ऄनेक स्थानों पर द्वनरं तर शोध और द्विकास के
पररणामस्िरूप बाजार में द्वनत नए, पररष्कृ त और ऄद्वधक ईपयोगी ईत्पाद अ जाते हैं। नए ईत्पादों के
समाने पुराने ईत्पाद ऄनुपयोगी हो जाते हैं। कम्प्यूटर एक ऐसा ईपकरण है, द्वजसके नए-नए मॉडल
थोड़े-थोड़े समय बाद ही बाजार में अ जाते हैं। ऄतः प्रौद्योद्वगकी ईद्योगों में शोध और द्विकास (R & D
Research and Development)ऄद्वनिायय हैं। कं पद्वनयां ऄपने लाभ का कािी बड़ा भाग शोध पर
व्यय करती हैं।
आन ईद्योगों का संकेन्द्रण मुख्यतः द्विकद्वसत देशों में ही हुअ है। द्विकद्वसत देश ही शोध, ऄनुसंधान और
द्विकास पर बड़ी धनराद्वश व्यय कर सकते हैं। ईच्च प्रौद्योद्वगकी ईद्योगों के द्विकास की दृद्वष्ट से संयुि
राज्य ऄमेररका ऄग्रणी है। यहां 1960 के दशक में आन ईद्योगों का प्रारं भ हुअ। 1977 और 1995 के
आं ग्लैड, न्यूजसी, टेक्सास, और द्वडलािेयर राज्यों में यह ईद्योग बहुत द्विकद्वसत हुअ है। सैन फ़्ांद्वसस्को के
द्वनकट द्वसद्वलकान घाटी आस ईद्योग का बहुत बड़ा के न्द्र है।
ईच्च प्रौद्योद्वगकी ईद्योगों के स्थानीयकरण के कारक
1. द्विश्वद्विद्यालयों और शोध संस्थानों से द्वनकटता
3. स्थानीय पूंजी
4. महानगरों से द्वनकटता
आनके ऄद्वतररि द्वसयाटल के द्वनकट द्वसद्वलकॉन िारे स्ट, ईत्तरी कै रोद्वलना का शोध द्वत्रकोण और यूटाह की
सॉफ्टिेयर घाटी, ईच्च प्रौद्याद्वगकी ईद्योगों के के न्द्र हैं। द्वमद्वनयोपोद्वलस और क्रिलाडेद्वल्िया में द्वचक्रकत्सा
ईपकरण, पूिी िर्तजद्वनया और टेक्सास के अद्वस्टन नगर में कम्प्यूटर और सेमी कं डक्टर, सैन एण्टोद्वनयो
(टेक्सास) में जैि प्रौद्योद्वगकी तथा न्यूजसी के द्वप्रसटन कौरीडोर में जैि प्रौद्योद्वगकी और दूरसंचार
ईपकरण बनाए जाते हैं।
द्विश्व के प्रमुख ईद्योग
लौह आस्पात ईद्योग
सूती िस्त्र ईद्योग
ऑटोमोबाआल ईद्योग
रासायद्वनक ईद्योग
जहाज द्वनमायण ईद्योग
तेल शोधन / ररिाआनरी ईद्योग
कागज ईद्योग
ईद्योग, यांद्वत्रक आंजीद्वनयरी ईद्योग, रासायद्वनक और सम्बर्द् ईद्योग, िस्त्र ईद्योग, खाद्य संसाधन
ईद्योग, आलेक्रॉद्वनक, संचार ईद्योग अक्रद। आन्हीं से संबंद्वधत द्विद्वभन्न ईद्योगों का िणयन नीचे क्रकया गया
है।
लौह आस्पात ईद्योग
लौह आस्पात ईद्योग एक अधारभूत ईद्योग है। आसे क्रकसी देश के ऄर्तथक द्विकास की धुरी माना जाता है।
आससे मशीन, औजार पररिहन, द्वनमायण, कृ द्वष ईपकरण अक्रद कइ ईद्योगों को कच्चे माल की अपूर्तत
होती है। िस्तुतः लौह-आस्पात का ईत्पादन क्रकसी भी देश के औद्योद्वगक द्विकास का सूचक है। लौह-
आस्पात ईद्योग सभी ईद्योगों का अधार है आसद्वलए आसे अधारभूत ईद्योग भी कहा जाता है। यह
अधारभूत ईद्योग आसद्वलए है क्योंक्रक यह ऄन्य ईद्यागों जैसे क्रक मशीन औजार जो अगे ईत्पादों के द्वलए
प्रयोग क्रकए जाते हैं, ईनको कच्चा माल प्रदान करता है। आसे भारी ईद्योग भी कहा जाता है, क्योंक्रक
आसमें बडीऺ मात्रा में भारी-भरकम कच्चा माल ईपयोग में लाया जाता है।
द्विश्व के ऄग्रणी ईत्पादक देश चीन, जापान, संयुि राज्य ऄमेररका, रूस, जमयनी, दद्वक्षणी कोररया,
ब्राजील, यूिेन, भारत, आटली, फ्रांस, यूनाआटेड ककगडम, कनाडा, बेद्वल्जयम, पोलैंड अक्रद हैं।
लोहा-आस्पात ईद्योग के स्थानीयकरण के कारक:
अधुद्वनक लौह-आस्पात संयंत्र द्विशाल अकार तथा समय क्रकतने प्रकार के होते हैं। समेक्रकत आस्पात
संयंत्रों में कोक- भरट्टयां, दहन-भरट्टयाँ, आस्पात भरट्टयाँ तथा रोबलग द्वमल एक ही स्थान पर द्वमलते हैं।
ऄतएि एक द्विशाल आस्पात संयत्र
ं लोहा-आस्पात ईद्योग हेतु द्वनम्नद्वलद्वखत तत्ि अिश्यक होते हैं:
पयायप्त मात्रा में जल अपूर्तत
कोककग कोयला
पयायप्त मात्रा में पूज
ं ी तथा कु शल श्रम, प्रौद्योद्वगकी
ड्युलथ
ु ), ऄल्बामा तथा ऄटलांरटक तट (स्पैरोज पोआं ट एिं मोररसद्विले) हैं।
कनाडा में हैद्वमल्टन, नोिा स्कोद्वशया,
भारत में जमशदेपुर, दुगायपुर, राईरके ला, द्वभलाइ, बोकारो, सलेम, द्विशाखापत्तनम एिं भद्रािती।
संयि
ु राज्य ऄमेररका का द्वपट्सबगय यंगस्टाईन लौह आस्पात प्रदेश
आस प्रदेश में द्वपट्सबगय में सियप्रथम आस्पात कारखाना स्थाद्वपत हुअ। गृह युर्द् के पूिय तथा पिात् में रे लों
के द्विस्तार के कारण आस्पात की मांग में भारी िृद्वर्द् हुइ। द्वपट्सबगय रे ल िारा पद्विमी पेनद्वसलिेद्वनया के
कोयला क्षेत्र तथा पूिय के औद्योद्वगक क्षेत्रों से जुड़ा था। सस्ते जल पररिहन की सुद्विधा प्राप्त थी।
सुपीररयर झील क्षेत्र की मीनोद्वमनी तथा मेसाबी श्रेद्वणयों के लौह ऄयस्क प्राप्त होने से आस क्षेत्र का
िास्तद्विक द्विकास हुअ। एप्लेद्वशयन के कोयला तथा बाजार की सुद्विधा होने आस प्रदेश को 1970 तक
देश का द्विशालतम आस्पात कें द्र बना क्रदया। यह प्रदेश देश का एक द्वतहाइ आस्पात ईत्पादन करता है
ककतु द्वितीय द्विश्वयुर्द् के बाद ईसका महत्ि कम हो गया है। दृष्टव्य है क्रक आस क्षेत्र को ‘जंग का कटोरा’
के नाम से जाना जाता है।
मुब
ं इ ओसाका, जापान
कच्चा माल कपास के द्वलए महाराष्ट्र की काली द्वमट्टी काली लािा मृदा = कपास की खेती के
ऄच्छी (लघु, मध्यम स्टेपल) द्वलए ऄच्छा है लेक्रकन मांग को पूरा करने
के द्वलए पयायप्त नहीं है
बंदरगाह स्थान = द्वमस्र, द्विदेशी िस्त्र
ओसाका = बंदरगाह स्थान, भारत, द्वमस्र
मशीनरी से लंबी-लंबी कपास अयात करना
असान है अक्रद से अयाद्वतत कपास से ऄद्वधक
ईत्पादन हुअ।
जलिायु समुद्र के द्वनकट जलिायु स्थान = अद्रय जलिायु = थ्रेड्स नहीं टू टते हैं
शद्वि/उजाय पद्विमी घाट में टाटा पनद्वबजली द्वग्रड से ओसाका के पास हाआडल पािर स्टेशन
पररिहन मुंबइ = रे ल, सड़क, िायुमागय, समुद्री मागो ओसाका = समुद्री बंदरगाह + महत्िपूणय
के माध्यम से ऄच्छी तरह से जुड़ा हुअ है। रे लिे जंक्शन।
बाजार मुंबइ और भारत = बड़ी अबादी = द्विशाल स्थानीय बाजार +ऑस्रेद्वलया, ऄमेररका
बाजार तक समुद्र से द्वनयायत + जापान भी
एमएिजी के द्वलए पेरो-ररिाआनरी ईप-
ईत्पादों का ईपयोग करता है। जैसे
संश्लेद्वषत रे शम।
उजाय औद्योद्वगक िांद्वत के प्रारं द्वभक चरण में, अकय राइट की कताइ मशीन चलाने के द्वलए
पेद्वनन पहाद्वड़यों से प्राप्त जल को उजाय के स्रोत के रूप में आस्तेमाल क्रकया गया था।
बाद में, ईत्तरी आं ग्लैंड और िेल्स से कोयले का ईपयोग।
श्रम "िद्वस्टयन" नामक एक कपड़े का 1600 इ. में ईत्पादन का शुभारं भ आं ग्लैंड में क्रकया गया
था।
फ़द्वस्टयन द्वनमायता आस क्षेत्र में बस गए क्योंक्रक नमी कपास कताइ में मदद करता था।
महत्िपूणय क्षेत्र-
संयिु राज्य ऄमेररका का मोटर ईद्योग
संयुि राज्य ऄमेररका का मोटर ईद्योग ऄमेररकी गाड़ी ईद्योग का ही संशोद्वधत रूप था। मध्य पद्विम के
गाड़ी द्वनमायताओं ने नए क्रकस्म के िाहन बनाने का बीड़ा ईठाया। आस ईद्योग हेतु महान झील प्रदेश में
सभी सुद्विधाएं ईपलब्ध थी। यहां लकड़ी, भारी धातु, सस्ता जल पररिहन ईपलब्ध था। महान झीलों से
सस्ते जल पररिहन की सुद्विधा प्राप्त थी। आस प्रदेश में रे ल पररिहन पहले से द्विकद्वसत था। यहां सघन
अबादी थी। आन सब सुद्विधाओं ने आस प्रदेश में मोटर ईद्योग को प्रोत्साद्वहत क्रकया। डेरॉआट शीघ्र ही
मोटर ईद्योग का कें द्र बन गया।
डेरॉआट
पररिहन-
डेरॉआट नदी के क्रकनारे पर, ह्यूरोन झील से जुड़ा हुअ है तथा ग्रेट लेक्स द्वजससे सस्ता एिं सुगम
पररिहन ईपलब्ध होता है
डेरोआट नदी के पार बिडसर, सुरंग के माध्यम से कनाडा से जुड़ा हुअ है डेराआट कारों का बाजार
कनाडा में भी ईपलब्ध हो जाता हैं
सर्ककट और िोडय, जीएम और क्रिसलर की ररद्वनटी के द्वलए द्विद्वभन्न कार सहायक ईपकरण के
द्वलए कच्चे माल ईपलब्ध कराने िाले पहले से स्थाद्वपत कइ मध्यिती ईद्योग हैं।
कनाडा में बिडसर बताओ टाटा मोटसय का प्रमुख ईद्योग कें द्र हैं।
यूरोप में मोटर ईद्योग
o ग्रेट द्वब्रटेन- यह द्विश्व का तृतीय िृहत्तम मोटर द्वनमायता के देश है। किेंरी, ग्रेटर लंदन, बर्ममघम,
ऑक्सिोडय, कीि अक्रद कु छ प्रमुख मोटर द्वनमायण कें द्र हैं।किेंरी को द्वब्रटेन का डेराआट कहा
जाता है। ग्रेटर लंदन मोटर िाहनों का बड़ा द्वनयायतक भी है।
o फ्रांस- पेररस, जमयनी में िुल्फ्िगय, रूस में गोकी, आटली में त्युररन एिं द्वमलान यूरोप के प्रमुख
मोटर गाड़ी द्वनमायण कें द्र हैं। जमयनी की िॉक्सिैगन, द्वब्रटेन की रोल्स रॉयस, फ्रांस की रे नॉल्ट
तथा आटली की क्रिएट मोटर ईद्योग द्विश्व के प्रद्वतद्वष्ठत मोटर िाहन ईद्योग के नाम हैं।
o पूिय सोद्वियत संघ के ऄद्वधकांश मोटर द्वनमायण कें द्र यूराल के पद्विम में द्वस्थत है। मास्को,
िृद्वर्द् कर रहा है। यात्री कार, लग्जरी कार अक्रद के मॉडल द्विकद्वसत हुए हैं। गुड़गांि में मारुती
सुजक
ु ी सबसे बड़ी कार द्वनमायता कं पनी है। मुब
ं इ, कोलकाता, चेन्नइ, जमशेदपुर ऄन्य प्रमुख कें द्र है।
(द्विस्तृत द्वििरण के द्वलए भारत के द्विद्वनमायण ईद्योग िाले ऄध्याय को देखें।)
टोयोटा-नागोया क्षेत्र, जापान-
एद्वशया के 90% मोटर िाहन जापान में बनते हैं। जापान का मोटर ईद्योग लोहा आस्पात शद्वि
तथा सघन अबादी के क्षेत्रों में द्वस्थत है। संयंत्रों में बड़े पैमाने पर ऄसेंबली लाआन तकनीकी का
प्रयोग होता है। जापान द्विश्व में मोटरसाआक्रकल का सबसे बड़ा द्वनमायता तथा द्वनयायतक देश है।
मोटर ईद्योग के प्रमुख कें द्र टोक्यो, द्वहरोद्वशमा, कोरोमों, योकोहामा है।
द्वितीय द्विश्वयुर्द् के बाद से जापान में िामय ईपकरण द्वनमायण का भारी द्विकास हुअ। जापान का िामय
मशीनरी ईद्योग सात प्रमुख क्षेत्रों में द्विकद्वसत हुअ है:
2. कोबे- ओसाका
3. नागोया
4. द्वहरोद्वशमा
5. नागासाकी
श्रम-
o कोरोमों में टोयोटा मोटर कं पनी ने ऄपना प्लांट स्थाद्वपत क्रकया। कोरमो जहाँ रे शम ईद्योग
समाप्त हो रहे थे, बेरोजगारी में िृद्वर्द् हुइ द्वजनसे नए ईद्योग हेतु सस्ता श्रम बल ईपलब्ध हुअ।
तकनीकी-
o ररिसय आंजीद्वनयररग यूएस प्रौद्योद्वगकी िारा
पररिहन-
o अस-पास के नागोया, मेरोपॉद्वलटन एररया जो सहायक कारपोरे ट सर्तिसेज के द्वलए अदशय था
तथा बंदरगाह से ऄमेररका और एद्वशया के ऄन्य देशों में कारों के द्वनयायत को बढ़ािा द्वमला।
सरकारी नीद्वतयां-
o कोरोमो की स्थानीय सरकार ने कारखाने के द्वलए सस्ती जमीन प्रदान की।
रासायद्वनक ईद्योग (Chemical Industry)
रासायद्वनक ईद्योग एक कुं जी ईद्योग है द्वजसपर ऄनेक ईद्योग ऄपने ईत्पादों हेतु द्विद्वनमायण के द्वलए
द्वनभयर करते हैं। आस ईद्योग के ईत्पाद ऄन्य क्रकसी ईद्योग की ऄपेक्षा ऄत्यद्वधक द्विद्विधतापूणय हैं। आसके
ऄंतगयत िे ईद्योग अते हैं, जो औद्योद्वगक रसायनों का ईत्पादन करते हैं। आस ईद्योग को ऄथयव्यिस्था की
रीढ़ कहा जा सकता है। अधुद्वनक रासायद्वनक ईद्योग द्विज्ञान तथा प्रौद्योद्वगकी पर द्वनभयर है, आसकी
द्विद्वशष्ट अर्तथक एिं तकनीकी द्विशेषताएं होती हैं। अर्तथक द्विशेषताओं में तीव्र स्पधाय तीव्र ह्रास मूल्यों
की सापेक्ष द्वस्थरता तथा ईच्च पूज
ं ी द्वनिेश सद्वम्मद्वलत है। तकनीकी द्विशेषताओं में ऄनेक रासायद्वनक
पदाथों का ईत्पादन बहुत जरटल होता है। कइ प्रिम से सह-ईत्पाद प्राप्त होते हैं।
रसायनों का िगीकरण ऄनेक प्रकार से क्रकया जाता है- काबयद्वनक एिं ऄकाबयद्वनक, हल्के या भारी या
क्रिर आनके प्रकार, ईपयोग, कच्ची सामग्री के स्रोत तथा ईत्पादन के अधार पर।
ऄपररष्कृ त पेरोल से कइ प्रकार की िस्तुएँ तैयार की जाती हैं जो ऄनेक नए ईद्योगों के द्वलए कच्चा माल
ईपलब्ध कराती हैं, आन्हें सामूद्वहक रूप से पेरो-रसायन ईद्योग के नाम से जाना जाता है। ईद्योगों के आस
िगय को चार ईपिगों में द्विभाद्वजत क्रकया गया है: 1. पॉलीमर, 2. कृ द्वत्रम रे शे, 3. आलैस्टोमसय, 4. पृष्ठ
संक्रियक (Surfacant Intermediate)। आस ईद्योग को द्वनम्नद्वलद्वखत भागों में बांटा जा सकता है:
काबयद्वनक - आसमें पेरो-रसायन जैसे कृ द्वत्रम िस्त्र, कृ द्वत्रम रबड़, एद्वथलीन, यूररया, प्लाद्वस्टक,
दिाइयाँ अक्रद शाद्वमल है।
ऄकाबयद्वनक - आसमें सल्फ्यूररक ऄम्ल, नाआररक ऄम्ल, ऄमोद्वनया अक्रद को शाद्वमल क्रकया जाता है।
रासायद्वनक ईद्योग की स्थापना में ऄिद्वस्थद्वत (location) तथा द्वस्थद्वत (site) प्रमुख द्विचारणीय तथ्य
है।
ऄिद्वस्थद्वत कारक: ऄन्य ईद्योगों की भांद्वत रासायद्वनक ईद्योग की ऄिद्वस्थद्वत भी बाजार, कच्चे माल,
सस्ते पररिहन, शद्वि, प्रचुर जल तथा सरकारी नीद्वत पर द्वनभयर करती है।
द्वस्थद्वतक कारक: रसायन ईद्योग के कारखाने की द्वस्थद्वत को द्वनधायररत करने िाले कारक सस्ती
तथा समतल भूद्वम, शुर्द् िायु, ऄपद्वशष्ट पदाथय को हटाने की व्यिस्था, दक्ष श्रद्वमक, श्रद्वमकों के रहने
USA - ईत्तर-पूिय भाग में - बाद्वल्टमोर, न्यूयांकय, बोस्टन तथा पद्विम भाग में - कै द्वलफ़ोर्तनया,
द्वशकागो अक्रद।
रूस - मास्को, लेद्वननग्राड अक्रद।
जमयनी: कील,ल्यूबक
े ।
ऄलकतरा अक्रद प्रमुख हैं। 1918 में खद्वनज तेल से 25% तक पेरोल द्वनकाला जाता था ककतु प्राद्विद्वधक
द्विश्व का 90% कागज काष्ठ लुगदी से तैयार क्रकया जाता है। द्वशक्षा का प्रचार-प्रसार, व्यापार, बैंककग,
ईद्योग तथा सरकारी ि गैर-सरकारी संस्थानों या प्रद्वतष्ठानों में कागज का बहुधा प्रयोग क्रकया जाता है।
कागज एक ‘बायोद्वडग्रेडब
े ल’ पदाथय है एिं आसका ‘पुनचयिण’ क्रकया जा सकता है।
कागज ईद्योग के स्थानीयकरण में कच्चे माल की सुद्विधा सिायद्वधक महत्िपूणय है। ऄन्य कारकों में जल
द्विद्युत की अपूर्तत एिं बाजार की सुद्विधा महत्िपूणय है। यही कारण है क्रक द्विश्व के ऄद्वधकांश ऄखबारी
कागज एिं काष्ठ लुग्दी के कारखानें ईत्तरी गोलाधय में शंकुधारी िनों के दद्वक्षणी क्रकनारे पर द्वस्थत हैं। आस
ईद्योग की ऄिद्वस्थद्वत द्वनम्नद्वलद्वखत देशों में है -
कनाडा
USA
जापान
स्िीडन