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Classroom Study Material


PART-3

भूगोल
2019
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ववषय सूची
1. ससचाइ के साधन: एक पररचय ____________________________________________________________________ 3

1.1 ससचाइ के लाभ ____________________________________________________________________________ 3

2. ससचाइ पररयोजनाओं का वगीकरण ________________________________________________________________ 4

2.1.स्त्रोतों के अधार पर ________________________________________________________________________ 4


2.1.1 कु एं एवं नलकू प________________________________________________________________________ 5
2.1.2 नहर _______________________________________________________________________________ 5
2.1.3 तालाब______________________________________________________________________________ 5

2.2 अकार के अधार पर ________________________________________________________________________ 7

2.3 जल ववतरण की तकनीक के अधार पर ____________________________________________________________ 8

2.4 जल के ईपयोग के तरीके के अधार पर ___________________________________________________________ 11

2.5 जल अपूर्तत की ऄववध के अधार _______________________________________________________________ 11

2.6 ससचाइ पद्धवत का चयन _____________________________________________________________________ 11

3. ससचाइ दक्षता ______________________________________________________________________________ 12

4. ससचाइ एवं राष्ट्रीय जल नीवत____________________________________________________________________ 13

5. कमान क्षेत्र ववकास एवं जल प्रबंधन (CADWM) ______________________________________________________ 13

6. सहभागी ससचाइ प्रबंधन (Participatory Irrigation Management : PIM) ________________________________ 14

7. त्वररत ससचाइ लाभ काययक्रम (Accelerated Irrigation Benefits Programme : AIBP) ______________________ 15

8. जलीय वनकायों की मरम्मत, नवीकरण एवं पुनर्सथायपन हेतु योजना (ररपेयर, रे नोवेशन एंड
ररर्सटोरे शन ऑफ़ वाटर बॉडीज र्सकीम) _______________________________________________________________ 15

9 वचुऄ
य ल वाटर (Virtual Water) __________________________________________________________________ 16
1. ससचाइ के साधन: एक पररचय
 ककसी भी देश में कृ वष ववकास पयायवरणीय, राजनीवतक, संर्सथात्मक एवं अधारभूत संरचनात्मक
कारकों द्वारा प्रभाववत होता है। अधारभूत संरचनात्मक कारकों के ऄंतगयत ससचाइ, ववद्युत
अपूर्तत, रासायवनक एवं जैववक ईवयरक, ईन्नत बीज आत्याकद को शावमल ककया जाता है। ये कारक
समवि एवं व्यवि, दोनों र्सतरों पर वववशि भूवमका का वनवायहन करते हैं।
 ससचाइ कृ वत्रम वववधयों द्वारा खेतों को जल ईपलब्ध कराना है। ऄत: नहर, कु एं, नलकू प, तालाब
अकद साधनों के माध्यम से फसलों को जल अपूर्तत ककये जाने की प्रकक्रया को ससचाइ कहा जाता है।
फसलों की वृवद्ध, शुष्क क्षेत्रों में ऄसंतुवलत मृदा (disturbed soils) में पौधों के पुन: ववकास तथा
ऄपयायप्त वषाय के दौरान जल अपूर्तत के वलए ससचाइ का ईपयोग ककया जाता है। आसके ववपरीत
सीधे वषाय जल पर अवित कृ वष को वषाय ससवचत कृ वष कहते हैं। आसके ऄलावा बहुत कम वषाय वाले
क्षेत्रों में सीवमत नमी को संवचत करके तथा वबना ससचाइ वाली कृ वष शुष्क भूवम कृ वष कहलाती है।
 प्राचीन काल से ही मानव जावत ससचाइ प्रणाली से लाभावववत हो रही है। पुरातत्व संबंधी जांच में
ईन र्सथानों पर ससचाइ के प्रमाण वमले हैं जहां फसल ईत्पादन के वलए प्राकृ वतक वषाय ऄपयायप्त थी।
ईदाहरण के वलए, मेसोपोटावमया के मैदानी क्षेत्रों में बारहमासी ससचाइ की जाती थी, सीररया में
सीढ़ीदार खेत ससचाइ, वमस्र में बेवसन ससचाइ अकद। 20वीं शताब्दी में डीजल और आलेवरिक
वाटर पंप मोटरों के अगमन के पश्चात् मनुष्यों ने भूजल का ऄवधकावधक दोहन कर एवं नहरों
अकद को ववर्सतृत कर ससवचत कृ वष क्षेत्र में वृवद्ध की।
 भारतीय मानसून की प्रकृ वत ऄत्यंत ऄवनयवमत होती है। मानसून की ववफलता की वर्सथवत में फसल
नि हो जाती है। आसके ववपरीत ऄत्यवधक वषाय बाढ़ का कारण बन सकती है लेककन कम वषाय से
फसल ईत्पादन में काफी कमी हो सकती है तथा चरम दशाओं में फसल पूणयतया नि हो सकती है।
भारत के ऄवधकांश भागों में वषाय ससवचत कृ वष की जाती है।
 भारत की जनसंख्या बहुत ऄवधक है तथा ऐसा ऄनुमान है कक बढ़ती जनसंख्या की मांग को पूरा
करने के वलए भारत को ऄनाज के ईत्पादन को बढ़ाने की अवश्यकता है। वषय 2050 में जल की
मांग वषय 2000 की तुलना में लगभग 50 गुना ऄवधक होने का ऄनुमान है, वहीं दूसरी ओर खाद्य
पदाथों की मांग भी दोगुना होने का ऄनुमान है। औसतन, एक टन ऄनाज का ईत्पादन करने के
वलए लगभग एक हजार टन जल की अवश्यकता होती है। जलवायु पररवतयन के पररणामर्सवरूप
ऄपेक्षाकृ त ऄवधक ऄवनयवमत जलवायु दशाएँ ईत्पन्न होंगी और आस प्रकार फसलें वषाय में ईच्च
पररवतयनशीलता के प्रवत तुलनात्मक रूप से ऄवधक प्रवण हो जाएँगी। ससवचत भूवम की वतयमान
ईत्पादकता 2.5 टन / हेरटेयर है तथा वषाय ससवचत कृ वष भूवमयों की ईत्पादकता 0.5 टन/ हेरटेयर
से भी कम है। आस संदभय में, ससचाइ रणनीवतयों की योजना बनाने और ईवहें लागू करने की एक
त्वररत अवश्यकता है।
 भारत ववश्व की नकदयों के कु ल औसत वार्तषक जल प्रवाह का 4% प्राप्त करता है। प्राकृ वतक जल
प्रवाह की प्रवत व्यवि जल ईपलब्धता कम से कम 1100 घन मीटर प्रवत वषय है। जल की मात्रा जो
वार्सतव में लाभदायक ईपयोग के वलए प्रयुि की जा सकती है, वह मात्रा भौवतक एवं र्सथलाकृ वतक
ऄवरोधों, ऄंतरराज्यीय मुद्दों और वतयमान प्रौद्योवगकी द्वारा अरोवपत कठोर प्रवतबंधों के कारण
बहुत कम है।
1.1 ससचाइ के लाभ

 फसल ईत्पादन में वृवद्ध: सही समय पर प्रत्येक फसल के ऄनुरूप ईवचत मात्रा में जल ईपलब्ध
कराकर लगभग सभी प्रकार की फसलों के ईत्पादन में वृवद्ध की जा सकती है। जल की आस प्रकार
की वनयंवत्रत अपूर्तत के वल ससचाइ के माध्यम से ही संभव है।
 सूखे से संरक्षण: ककसी भी क्षेत्र में ससचाइ सुववधाओं की ईपलब्धता सूखे से होने वाली फसल हावन
या सूखे के कारण ईत्पन्न होने वाली ऄकाल की वर्सथवत के ववरुद्ध संरक्षण सुवनवश्चत करती है।

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ससचाइ के ऄभाव वाले क्षेत्रों में, ककसानों को फसलों की वृवद्ध के वलए के वल वषाय पर ही वनभयर
रहना पड़ता है चूकं क प्रत्येक वषय वषाय से फसल के वलए अवश्यक पयायप्त जल प्राप्त नहीं होता है,
आसवलए ककसानों को सदैव जोवखम का सामना करना पड़ता है।
 कृ वष के ऄंतगयत नए क्षेत्र: ससचाइ से नए क्षेत्रों में कृ वष संभव हो पाती है और ससवचत कृ वष के
ऄंतगयत अने वाले शुद्ध क्षेत्र में वृवद्ध होती है।
 मुख्य फसलों की कृ वष: ससचाइ के वलए जल की वनवश्चत अपूर्तत के कारण ककसान मुख्य फसलों या
यहां तक कक ऄवय फसलों की कृ वष के बारे में सोच सकते हैं, जो ऄत्यवधक मात्रा में ईपज प्रदान
करती हैं। आन फसलों का ईत्पादन वषाय ससवचत क्षेत्रों में संभव नहीं है रयोंकक ईपयुि समय पर
जल की ऄल्प ईपलब्धता के कारण भी ये फसलें नि हो सकती हैं और वनवेश की गइ सभी पूंजी
बबायद हो सकती है।
 वमवित फसल का ईवमूलन: वषाय ससवचत क्षेत्रों में ककसानों में एक ही क्षेत्र में एक से ऄवधक प्रकार
की फसल पैदा करने की प्रवृवि होती है, ईनके ऄनुसार भले ही कोइ फसल जल की अवश्यक
मात्रा के ऄभाव में नि हो जाए परवतु कम से कम बाकी बोइ गयी फसलों से ईपज प्राप्त होने की
सम्भावना ऄवधक होती है। हालांकक, आस प्रवृवत से क्षेत्र के कु ल ईत्पादन में कमी होती है। ससचाइ
द्वारा वनवश्चत मात्रा में जल की अपूर्तत के कारण ककसान ककसी भी समय एक ही क्षेत्र में के वल एक
ककर्सम की फसल की कृ वष करने में सक्षम होते है, पररणामर्सवरूप कु ल ईपज में वृवद्ध होती है।
 अर्तथक ववकास: वनवश्चत ससचाइ द्वारा ककसानों को वषय भर फसल ईत्पादन के माध्यम से
ऄपेक्षाकृ त ऄवधक लाभ प्राप्त होता है। साथ ही सरकार ववर्सताररत ससचाइ सुववधाओं के प्रसार से
ईत्पादन में वृवद्ध लाभ होता है।
 जल ववद्युत ईत्पादन: अमतौर पर ससचाइ की नहर प्रणाली में कु छ र्सथानों पर नहर के अधार की
उंचाइ में ऄंतर या ववववधता होती है। हालांकक यह ऄंतर बहुत ऄवधक नहीं होता, कफर भी उँचाइ
में ववद्यमान आस ऄंतर के सफलतापूवयक ईपयोग से ववद्युत ईत्पादन ककया जा सकता है। गंगा नहर,
शारदा नहर, यमुना नहर अकद जैसी कइ नहरों में बल्ब-टबायआन का ईपयोग कर लघु जल ववद्युत
ईत्पादन पररयोजनाओं की र्सथापना की गइ है।
 घरे लू और औद्योवगक जल की अपूर्तत: ससचाइ नहरों से कु छ जल का ईपयोग वनकट वर्सथत क्षेत्रों में
घरे लू और औद्योवगक जल अपूर्तत के वलए ककया जा सकता है। घरे लू और औद्योवगक ईपयोगों के
वलए अवश्यक जल की मात्रा ससचाइ हेतु अवश्यक जल की मात्रा की तुलना में कम होती है और
यह कु ल प्रवाह को भी ज्यादा प्रभाववत नहीं करती है। ईदाहरण के वलए, पवश्चम बंगाल के
दार्तजसलग वजले में वसलीगुड़ी कर्सबे के वनवावसयों को तीर्सता-महानंदा सलक नहर द्वारा जल अपूर्तत
की जाती है।
2. ससचाइ पररयोजनाओं का वगीकरण
 जलवायववक पररर्सथवतयों और भौवतक संरचनाओं पर अधाररत एवं प्रभाववत जल की ईपलब्धता,
भूवम की ईपलब्धता तथा तकनीकी व्यवहाययता अकद में ऄंतर के कारण ववश्व में ससचाइ की
वववभन्न तकनीकें पाइ जाती हैं। ससचाइ प्रणाली को वववभन्न योजनाओं के तहत वगीकृ त ककया गया
है जैसा कक नीचे बताया गया है:
2.1.स्त्रोतों के अधार पर

सतही और भूवमगत जल की ईपलब्धता भूवम की ढलान, वमट्टी की प्रकृ वत और ककसी क्षेत्र में ईगाइ गइ
फसलों के प्रकार के अधार पर ससचाइ के कइ स्रोतों का ईपयोग ककया जाता है। देश के वववभन्न भागों में
प्रयुि ससचाइ के मुख्य स्रोत हैं (वचत्र 1):
 कु एं एवं नलकू प
 नहरें
 तालाब
 ऄवय स्त्रोत – फव्वारों द्वारा ससचाइ, बूंद-बूंद ससचाइ, कु हल, ढेंकली, डोंग और बोक्का अकद।

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2.1.1 कु एं एवं नलकू प

 भूजल से ससचाइ के यह स्त्रोत (कु एं) प्राचीन काल से ही प्रचवलत है। वतयमान में देश के कु ल ससवचत
क्षेत्र के 62 प्रवतशत भाग पर कु ओं और ट्यूबवेल द्वारा ससचाइ की जाती है। यह ससचाइ का सबसे
सुगम स्रोत है। आस ससचाइ स्त्रोत को ऄल्प समयाववध में र्सथावपत ककया जा सकता है, हालांकक यह
महंगा है। ऄसंधारणीय तरीके से आनके द्वारा भूजल दोहन ककये जाने से भूजल-र्सतर में कमी अ रही
है। ट्यूबवेल के माध्यम से सवायवधक ससचाइ ईिर प्रदेश में की जाती है तत्पश्चात राजर्सथान,
पंजाब, मध्य प्रदेश, गुजरात और वबहार का र्सथान है।

वचत्र 1: स्त्रोतों द्वारा ससवचत वनवल क्षेत्र

2.1.2 नहर

 1950-51 में नहर को ससचाइ का मुख्य स्रोत माना जाता था तथा भारत के कु ल ससवचत क्षेत्र के
लगभग 50 प्रवतशत नहरों द्वारा सींचा जाता था। 1960 के दशक में, सरकार के प्रोत्साहन द्वारा
ट्यूबवेल द्वारा ससवचत क्षेत्र में ऄत्यवधक वृवद्ध हुइ। नतीजतन, नहर द्वारा ससवचत क्षेत्र घटकर 40
प्रवतशत से भी कम रह गया और 2009-10 में यह 26 प्रवतशत हो गया।
 नहरें वनम्न एवं समतल क्षेत्रों, ईत्पादक मैदानी क्षेत्रों में ऄवधक प्रभावी होती हैं, जहां सतही जल
वनकासी का बारहमासी स्रोत ईपलब्ध है। ऐसी वर्सथवतयां अदशय रूप में भारत के ईिरी मैदानों,
कश्मीर एवं मवणपुर की घारटयों और पूवी तटीय मैदानों में पाइ जाती हैं (वचत्र 2)। नहरों का ईच्च
घनत्व ईिर प्रदेश में गंगा नहर प्रणाली तथा पंजाब, हररयाणा और पवश्चमी राजर्सथान में आं कदरा
गांधी नहर के साथ पाया जाता है। प्रायद्वीपीय क्षेत्र में, दामोदर, महानदी, गोदावरी, कृ ष्णा,
नमयदा अकद नकदयों में महत्वपूणय नहर प्रणावलयाँ है। नहर ससचाइ में ईिर प्रदेश का पहला र्सथान
है, तत्पश्चात अंध्र प्रदेश का र्सथान है।

2.1.3 तालाब

 ससचाइ तालाब या तालाब ककसी भी अकार में वनर्तमत एक कृ वत्रम जलाशय है। आसमें संरचना के
भाग के रूप में प्राकृ वतक या मानव वनर्तमत झरने भी शावमल हो सकते हैं। देश के कु छ भागों में ,
ववशेषकर प्रायद्वीपीय भारत में तालाब ससचाइ का एक महत्वपूणय स्रोत है। कु ल ससवचत क्षेत्र का
लगभग 3 प्रवतशत भाग तालाब ससचाइ के ऄंतगयत अता है।

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 2000-01 में की गइ तीसरी लघु ससचाइ गणना के ऄनुसार, देश में लगभग 5.56 लाख तालाब हैं,
वजनमें से ऄवधकांश तालाब वनम्नवलवखत राज्यों में पाए जाते हैं:
 पवश्चम बंगाल: देश में ववद्यमान कु ल तालाबों का 21.2 प्रवतशत
 अंध्र प्रदेश: 13.6 प्रवतशत

 महाराष्ट्र: 12.5 प्रवतशत


 छिीसगढ़: 7.7 प्रवतशत
 मध्यप्रदेश: 7.2 प्रवतशत

 तवमलनाडु : 7.0 प्रवतशत


 कनायटक: 5.0 प्रवतशत

वचत्र 2: भारत– ससचाइ के स्त्रोत


 हालांकक ग्रीष्म ऊतु के दौरान जब तुलनात्मक रूप से ऄवधक ससचाइ की अवश्यकता होती है, तब
कइ तालाब सूख जाते हैं। आन 15 प्रवतशत तालाबों का ईपयोग नहीं कर पाने के कारण लगभग 1

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वमवलयन-हेरटेयर ससचाइ क्षमता नि हो जाती है। साथ ही तालाबों के कम ईपयोग के कारण
लगभग 2 वमवलयन-हेरटेयर क्षमता नि हो जाती है। ससचाइ के वलए तालाबों का ईपयोग नहीं
ककये जाने के कारण मेघालय, राजर्सथान और ऄरुणाचल प्रदेश में क्षमता हावन तुलनात्मक रूप से
ऄवधक (30% से ऄवधक) है, जबकक गुजरात, नागालैंड, राजर्सथान, ऄंडमान एवं वनकोबार द्वीप
तथा दादर एवं नगर हवेली में तालाबों के ऄल्प ईपयोग के कारण ससचाइ क्षमता में हावन 50% से
ऄवधक है।
2.2 अकार के अधार पर

भारत में ससचाइ पररयोजनाओं को कृ वष योग्य कमांड क्षेत्र (Culturable Command Area: CCA)
के अधार पर तीन वगों में वगीकृ त ककया गया है:
 वृहद- वे पररयोजनाएं वजनमे 10,000 हेरटेयर से ऄवधक ववर्सतृत CCA सवम्मवलत हैं ईवहें वृहद
पररयोजनाएं कहा जाता है।
 मध्यम - वे ससचाइ पररयोजनाएं वजनमें 10,000 हेरटेयर से कम लेककन 2,000 हेरटेयर से ऄवधक
ववर्सतृत CCA क्षेत्र सवम्मवलत हो, ईवहें मध्यम पररयोजनाएं कहा जाता है।
 लघु - ईन ससचाइ पररयोजनाओं को वजनका CCA 2,000 हेरटेयर या ईससे कम क्षेत्र में ववर्सतृत
है ईवहें लघु पररयोजनाओं के रूप में जाना जाता है।

कृ वष योग्य कमांड एररया (CCA) - सकल कमान क्षेत्र में ऄनुपजाउ बंजर भूवम, क्षारीय वमट्टी, र्सथानीय
तालाब, गांव और वनवास र्सथान के रूप में ऄवय क्षेत्र शावमल हैं। आन क्षेत्रों को 'ऄनकल्चरे बल एररया' कहा
जाता है। शेष क्षेत्र जहाँ संतोषजनक ढंग से फसल ईत्पादन ककया जा सकता है ईवहें कृ वष योग्य कमान
क्षेत्र (CCA) के रूप में जाना जाता है। कृ वष योग्य कमांड एररया को 2 वगों में ववभावजत ककया जा
सकता है:
 कल्चरे बल कल्टीवेटेड एररया: वह क्षेत्र जहाँ फसल एक ववशेष समय या फसल की ऊतु में ईगाइ
जाती है।
 कल्चरे बल ऄनकल्टीवेटेड एररया: वह क्षेत्र जहाँ फसल ककसी ववशेष ऊतु में नहीं ईगाइ जाती है।

ऐसा अकवलत ककया गया है कक देश की वृहद एवं मध्यम ससचाइ पररयोजनाओं की सवायवधक ससचाइ
क्षमता लगभग 64 वमवलयन-हेरटेयर है। आन पररयोजनाओं की ससचाइ क्षमता का 66% समग्र देश के
वलए वनर्तमत ककया गया है। 1951 से 1997 तक वृहद और मध्यम पररयोजनाओं के माध्यम से ससचाइ
क्षमता के वनमायण की औसत दर प्रवत वषय 0.51 वमवलयन हेरटेयर है। वषय 1997 से 2005 के दौरान,
क्षमता वनमायण की दर प्रवत वषय 0.92 वमवलयन हेरटेयर पाइ गइ है। क्षमता वनमायण की दर में यह वृवद्ध
संभवत: आन पररयोजनाओं की सफलता के कारण हुइ है, जो कक AIBP (Accelerated Irrigation
Benefit Programme: त्वररत ससचाइ लाभ काययक्रम) के माध्यम से बढ़ी हुइ सहायता के कारण तीव्र
हो गइ है।
सतही एवं भूजल दोनों का लघु ससचाइ पररयोजनाओं में स्रोत के रूप में ईपयोग ककया जाता है, जबकक
वृहद एवं मध्यम पररयोजनाओं में मुख्यत: सतही जल संसाधनों का दोहन ककया जाता है। भूजल लघु
ससचाइ मुख्य रूप से संर्सथागत ववि और ककसानों की र्सवयं की बचत द्वारा ईनके व्यविगत और
सहकारी प्रयासों के माध्यम से की जाती है। सतही जल लघु ससचाइ योजनाएँ अम तौर पर के वल
सावयजवनक क्षेत्र से ही ववि पोवषत की जाती हैं। लघु ससचाइ योजनाओं की सवायवधक ससचाइ क्षमता
75.84 वमवलयन हेरटेयर अकवलत की गइ है, वजनमे से कु छ भाग (58.46 वमवलयन हेरटेयर) भूजल
अधाररत होगा तथा जो कु ल क्षमता का लगभग दो वतहाइ है।

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देश भर में बढ़ती ससचाइ में लघु ससचाइ योजनाओं का मुख्य योगदान है। ईपयोग में ली गइ कु ल
ससचाइ क्षमता का लगभग 65% लघु ससचाइ योजनाओं से प्राप्त होता है। लघु ससचाइ योजना को मोटे
तौर पर वनम्नवलवखत पांच प्रमुख प्रकारों में वगीकृ त ककया गया है:
 कु एं
 कम गहरी ट्यूबवेल
 गहरी ट्यूबवेल (नलकू प)
 सतही प्रवाह योजनाएं
 सतही जल वलफ्ट योजनाएं
वृहद एवं मध्यम की तुलना में लघु ससचाइ योजना
 ससचाइ ववकास के वलए रणनीवतयाँ तैयार करते समय, जल संसाधन योजनाकार को र्सथानीय
दशाओं पर अधाररत प्रत्येक प्रकार की पररयोजना के लाभों की जानकारी होनी चावहए। ईदाहरण
के वलए, वृहद/ मध्यम पररयोजनाओं के माध्यम से दूरर्सथ क्षेत्रों को लाभावववत करना सदैव संभव

नहीं हो सकता है। आन र्सथानों के वलए लघु ससचाइ योजनाएं सबसे ईपयुि होंगी। आसके ऄवतररि,

भूवम धारण आस तरह से ववभावजत ककया जा सकता है कक लघु ससचाइ ऄपररहायय हो। हालांकक,

ससचाइ क्षमता के ववकास की समग्र लागत को कम करने के वलए जहां भी संभव हो, वृहद और
मध्यम पररयोजनाओं का वनमायण ककया जाना चावहए।

2.3 जल ववतरण की तकनीक के अधार पर

 स्रोत से प्राप्त जल को खेत के भीतर ववतररत करने के मामले में वववभन्न प्रकार की ससचाइ तकनीक
ऄलग-ऄलग होती हैं। सामावय तौर पर, ससचाइ का लक्ष्य पूरे खेत में समान रूप से जल की अपूर्तत

करना है ताकक प्रत्येक पौधे को अवश्यक मात्रा में जल प्राप्त हो सके , न तो बहुत ज्यादा और न ही
बहुत कम। वववभन्न ससचाइ तकनीक वनम्नानुसार हैं:
 सतही ससचाइ: सतही ससचाइ प्रणावलयों में, जल सरल गुरुत्वाकषयण प्रवाह द्वारा खेत को तर करने
के वलए और वमट्टी में ररसने के वलए सम्पूणय भूवम पर बहता है। आसे प्राय: बाढ़ ससचाइ कहा जाता
है। आस प्रकार की ससचाइ के पररणाम कृ वष भूवम में बाढ़ अने की वर्सथवत के समान होते हैं। सतही
ससचाइ को वनम्नवलवखत वगों में ईपववभावजत ककया जा सकता है:
o बेवसन ससचाइ का ईपयोग ऐवतहावसक रूप से छोटे क्षेत्रों में ककया जाता है, ये क्षेत्र भूवम के

ककनारे से वघरी हुइ समतल सतह हैं (वचत्र 3)। पूरे बेवसन में शीघ्रता से जल प्रवावहत ककया
जाता है और जल भूवम में ररसता है। बेवसन क्रवमक रूप से जुड़े हो सकते हैं ताकक वमट्टी में
अवश्यक जल अपूर्तत होने के बाद एक बेवसन से ऄगले बेवसन में जल की वनकासी हो जाती
है।
o कुं ड ससचाइ खेत में प्रभावी ढाल की कदशा में छोटी-छोटी समानांतर नहरें बनाकर की जाती है
(वचत्र 4)। प्रत्येक कुं ड के उपरी छोर पर जल छोड़ा जाता है और गुरुत्वाकषयण के प्रभाव के
तहत जल खेत में नीचे की ओर प्रवावहत होता है।
o सीमावत पट्टी, वजसे बॉडयर चेक या बे आरीगेशन के रूप में भी जाना जाता है। सीमावत पट्टी को
लेवल बेवसन और कुं ड ससचाइ का वमवित रूप माना जा सकता है। खेत कइ खंडों या परट्टयों
में ववभावजत ककया जाता है; प्रत्येक पट्टी ऄवय पट्टी के उपर ईठे हुए चेक बैंरस (सीमावतों)
द्वारा ऄलग की जाती है। ये परट्टयां अमतौर पर बेवसन ससचाइ की तुलना में ऄवधक लंबी और
संकरी होती हैं और ये खेत की ढाल के साथ लंबाइ में संरेवखत होती हैं।

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वचत्र 3: बेवसन ससचाइ वचत्र 4: साआफन ट्युब्स के ईपयोग से कुं ड ससचाइ

 र्सथानीयकृ त ससचाइ: र्सथानीयकृ त ससचाइ एक ऐसी प्रणाली है वजसमें एक पूवय वनधायररत पैटनय में
पाआप नेटवकय के माध्यम से वनम्न दाब में जल ववतररत ककया जाता है तथा आस प्रणाली में ऄल्प
मात्रा में प्रत्येक पौधे या आसके वनकट वर्सथत पौधों को जल अपूर्तत की जाती है। आसे वनम्न प्रवाह
ससचाइ प्रणाली/ऄल्प मात्रा ससचाइ/सूक्ष्म ससचाइ के रूप में भी जाना जाता है। विप ससचाइ, र्सप्रे
या सूक्ष्म वछड़काव ससचाइ (माआक्रो सर्सप्रकलर आरीगेशन) और बबलर आरीगेशन (bubbler
irrigation) ससचाइ वववधयों के आस वगय से संबंवधत हैं।

o विप ससचाइ: जैसाकक आस पद्धवत के नाम से र्सपि है विप ससचाइ को टपक ससचाइ के रूप में
भी जाना जाता है (वचत्र 5)। जल प्रत्येक बूँद के माध्यम से पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता
है। यकद ईवचत ढंग से प्रबंवधत ककया जाए तों यह पद्धवत ससचाइ की सबसे जल-कु शल पद्धवत
हो सकती है, रयोंकक वाष्पीकरण और जल ऄपवाह को वयूनतम ककया जाता है। विप ससचाइ
की खेत जल दक्षता 80 से 90 प्रवतशत है। अधुवनक कृ वष में वाष्पीकरण को कम करने एवं
ईवयरक के ववतरण के वलए विप ससचाइ को प्राय: प्लावर्सटक मल्च के साथ सयुंि ककया जाता
है। आसे फर्टटगेशन के रूप में जाना जाता है।

वचत्र 5: विप ससचाइ प्रणाली


o सर्सप्रकलर ससचाइ: सर्सप्रकलर (वछड़काव) या ओवरहेड आरीगेशन में, खेत में एक या एक से
ऄवधक कें द्रीय र्सथानों पर जल पाआप के माध्यम से पहुँचाया जाता है तथा उपरी ईच्च दाब

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वाले सर्सप्रकलर या गन द्वारा ववतररत ककया जाता है (वचत्र 6)। आस पद्धवत में र्सथायी रूप से
र्सथावपत खड़े पाआप के उपर जुड़े र्सप्रे या गन का ईपयोग ककया जाता है तथा यह प्राय: एक
सुदढ़ृ ससचाइ प्रणाली के रूप में जानी जाती है। ईच्च दबाव वाले सर्सप्रकलसय घूमते रहते हैं, आन
सर्सप्रकलसय को रोटर कहा जाता है तथा ये बॉल िाआव, वगयर िाआव या आम्पैरट मैकेवनज्म

द्वारा संचावलत होते हैं। गन का ईपयोग के वल ससचाइ के वलए ही नहीं ककया जाता है, बवल्क
ये डर्सट सेप्रेशन और लॉसगग जैसे औद्योवगक ऄनुप्रयोगों के वलए भी प्रयुि की जाती हैं।
सर्सप्रकलसय पाआप द्वारा जल के स्रोत से जुड़े गवतशील प्लेटफामय से भी जोड़े जा सकते हैं।
र्सवचावलत रूप से गवतशील प्रणाली वजसे िेवसलग सर्सप्रकलसय (वचत्र 7) से भी जाना जाता है,
द्वारा छोटे खेतों, खेल के मैदानों, बगीचों और चरागाहों अकद जैसे क्षेत्रों में ससचाइ की जा
सकती है। सर्सप्रकलर ससचाइ में खेत की जल दक्षता 60 से 70% है।

वचत्र 6: सर्सप्रकलर आरीगेशन वचत्र 7: िेवसलग सर्सप्रकलर आरीगेशन


 ईप-ससचाइ: ईप ससचाइ को सीपेज आरीगेशन भी कहा जाता है तथा ईच्च जल र्सतर वाले क्षेत्रों में
खेतो में कइ वषों से ईप ससचाइ का ईपयोग ककया जाता है। यह जल र्सतर में कृ वत्रम रूप से वृवद्ध
करने की एक वववध है ताकक पौधों के जड़ क्षेत्र से नीचे की वमट्टी को नम ककया जा सके । ये
प्रणावलयां प्राय: वनम्न भूवमयों या नदी घारटयों में र्सथायी घास के मैदानों पर वर्सथत होती हैं और
जल वनकासी से सम्बद्ध ऄवसंरचना से जुड़ी होती हैं। यह पसम्पग र्सटेशनों, नहरों, बांधों और प्रवेश
द्वारों की एक प्रणाली है जो नहरों के नेटवकय में जल र्सतर में वृवद्ध या कमी करती है और आस प्रकार
जल र्सतर को वनयंवत्रत करती हैं। ईप-ससचाइ का आर्सतेमाल वावणवज्यक ग्रीनहाईस ईत्पादन में भी
ककया जाता है, अमतौर पर ग्रीनहाईस में लगे पौधों के वलए। आसमें ऄवतररि जल को
ररसाआसरलग के वलए एकवत्रत ककया जाता है।
ससचाइ के आन र्सथानीयकृ त रूपों को ऄपनाने में कइ चुनौवतयां हैं। ईनमें से कु छ नीचे सूचीबद्ध हैं:
 व्यय: प्रारं वभक लागत ओवरहेड वसर्सटम से ऄवधक हो सकती है।
 ऄपवशि: सौययताप विप ससचाइ के वलए ईपयोग ककए जाने वाले ट्यूब्स को प्रभाववत कर सकता है,
वजससे ईनके ईपयोग की ऄववध कम हो सकती है।
 ऄवरोधक: यकद जल को ईवचत ढंग से कफ़ल्टडय नहीं ककया जाता है और ईपकरण की ठीक से
देखरे ख नहीं की जाती है, तो पररणामर्सवरूप यह ऄवरोध ईत्पन्न कर सकता है।

 यकद ससचाइ प्रणाली को ईवचत ढंग से र्सथावपत नहीं ककया जाता है तो जल, समय और फसल की
बबायदी होती है। आन प्रणावलयों के वलए भूवम र्सथलाकृ वत, वमट्टी, जल, फसल, कृ वष-जलवायु
दशाओं, और विप ससचाइ प्रणाली एवं आसके घटकों की ईपयुिता अकद जैसे सभी संबंवधत कारकों
का सावधानीपूवयक ऄध्ययन करना अवश्यक है।

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2.4 जल के ईपयोग के तरीके के अधार पर

कृ वष भूवम में जल अपूर्तत करने के तरीके के अधार पर भी ससचाइ प्रणावलयों को वगीकृ त ककया जा
सकता है, जैसे :
 फ्लो आरीगेशन वसर्सटम: वजसमे ससचाइ जल ससवचत क्षेत्र की ओर प्रवावहत करते हुए पहुँचाया
जाता है। आसे पुन: वनम्नवलवखत वगों में वगीकृ त ककया जा सकता है-
o प्रत्यक्ष ससचाइ: जहां ससचाइ जल वबना ककसी मध्यवती भंडारण के सीधे नदी से प्राप्त ककया
जाता है। आस प्रकार की ससचाइ, नदी के र्सतर को बढ़ाने के वलए एक नदी पर बाँध या बैराज
का वनमायण करके की जाती है तथा आस प्रकार यह ककसी वनकटवती नहर के माध्यम से नदी के
प्रवाह के कु छ भाग को ऄलग कर देता है, नहर में प्रवाह गुरुत्वाकषयण द्वारा होता है।
o जलाशय / तालाब / भंडारण ससचाइ: आस प्रणाली के ऄंतगयत ससचाइ जल नदी से प्राप्त ककया
जाता है, जहां नदी प्रवाह में ऄवरोध का वनमायण कर (जैसे बांध) जल का भंडारण ककया
जाता है। आससे सुवनवश्चत होता है कक जब भी नदी प्रवाह में जल की कमी होती है या जल
प्रवावहत नहीं होता है, तो भी पयायप्त मात्रा में भंडाररत जल ववद्यमान होता है आस भंडाररत
जल द्वारा नहरों की एक प्रणाली के माध्यम से खेतों की ससचाइ जारी रखी जा सकती है।
 वलफ्ट आरीगेशन वसर्सटम: आस प्रणाली में जल का र्सतर भूवम के र्सतर की तुलना में नीचे होता है ऄत:
ससचाइ हेतु जल को पंपों या ऄवय यांवत्रक ईपकरणों द्वारा उपर ईठाया जाता है तथा गुरुत्वाकषयण
के तहत प्रवावहत होने वाली नहरों के माध्यम से कृ वष भूवम में पहुंचाया जाता है। ईदाहरण के
वलए, राजर्सथान में आं कदरा गांधी नहर के एक बड़े भाग में वलफ्ट ससचाइ प्रणाली द्वारा जलापूर्तत की
जाती है।
2.5 जल अपू र्तत की ऄववध के अधार

जल अपूवत की ऄववध के अधार पर भी ससचाइ प्रणावलयों का वगीकरण ककया जा सकता है, जैसे:
 जलमग्न/ बाढ़ तुल्य ससचाइ प्रणाली: कृ वष भूवम की ससचाइ हेतु आस प्रणाली में बाढ़ के दौरान नदी
में प्रवावहत होने वाले जल की बड़ी मात्रा में अपूर्तत की जाती है, आस प्रकार वमट्टी को संतप्त
ृ ककया
जाता है। ऄवतररि जल बह जाता है और आस भूवम का ईपयोग कृ वष के वलए ककया जाता है। आस
प्रकार की ससचाइ में नदी के बाढ़ के जल का ईपयोग ककया जाता है और आसवलए यह प्रणाली वषय
के एक वनवश्चत समय तक ही सीवमत होती है। अमतौर पर नदी डेल्टा के वनकटवती क्षेत्रों में आस
प्रकार की ससचाइ की जाती है,जहां नदी और भूवम की ढलान मंद होती है। दुभायग्य से, कइ नकदयों
वजनके तटों पर पहले यह ससचाइ प्रणाली प्रयुि की गइ थी, वपछली शताब्दी में ईन पर बाँध बना
कदए गए हैं और आस प्रकार आस ससचाइ प्रणाली के प्रयोग में कमी अइ है।
 बारहमासी ससचाइ प्रणाली: आस प्रणाली में फसल के पूरे जीवन चक्र के दौरान वनयवमत ऄंतरालों
पर फसल के वलए अवश्यक जल की मात्रा के ऄनुसार ससचाइ जल की अपूर्तत की जाती है। आस
प्रकार की ससचाइ के वलए जल नकदयों से या कुँ ओं से प्राप्त ककया जा सकता है। आस प्रकार स्रोत या
तो सतही जल या भूजल स्त्रोत हो सकता है तथा जल अपूर्तत जल प्रवाह या वलफ्ट ससचाइ प्रणाली
द्वारा की जा सकती है।
2.6 ससचाइ पद्धवत का चयन

 जैसा कक हमने उपर चचाय की है, फसलों तक जल अपूर्तत करने के कइ तरीके हैं। हालांकक, ईवचत
पद्धवत का चयन एक चुनौती है। यह पद्धवत ववशेष फसल एवं वमट्टी के ऄनुकूल होनी चावहए तथा
वन:संदह
े जल की ईपलब्धता पर वनभयर करती है। ईदाहरण के वलए, नीचे वववभन्न प्रकार की
फसलों के ऄनुरूप ईपलब्ध तरीकों की एक सूची दी गइ है।

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पद्धवत ईपयुि फसलें

सीमा पट्टी ससचाइ गेह,ँ पिेदार सवब्जयाँ, चारा

कुं ड ससचाइ कपास, गन्ना, अलू

बेवसन ससचाइ बागान

तावलका 1: वववभन्न फसलों के वलए ससचाइ पद्धवत

 वजन र्सथानों पर जल की कमी पाइ जाती है तथा लागत की तुलना में जल के संरक्षण को ऄवधक
प्राथवमकता दी जाती है, ऐसे र्सथानों पर सर्सप्रकलर और विप ससचाइ प्रणाली जैसी ऄवय पद्धवतयाँ
ऄपनाइ जाती हैं। यद्यवप ऄवधकांश ईन्नत देश आन पद्धवतयों को ऄपना रहे हैं, लेककन भारत में
मुख्य में रूप से अर्तथक बाधाओं के कारण आन पद्धवतयों का प्रयोग नहीं ककया गया है। हालांकक,
समय बीतने के साथ भूवम और जल संसाधन में कमी होती जाती है, ऄत: भारत में भी आन
पद्धवतयों को ऄपनाना अवश्यक हो जाएगा।
3. ससचाइ दक्षता
 ससचाइ दक्षता को पौधों की जड़ों के साथ ववद्यमान वमट्टी की गहराइ में संग्रहीत जल तथा ससचाइ
प्रणाली द्वारा अपूर्तत ककए गए जल के ऄनुपात के रूप में पररभावषत ककया जाता है। आस प्रकार,
ससचाइ प्रणाली द्वारा ईपलब्ध कराए गए और पौधों की जड़ों के वलए ईपलब्ध नहीं कराए गए जल
का ईपयोग नहीं हो पाता है तथा आससे ससचाइ दक्षता कम हो जाती है। वनम्न ससचाइ दक्षता का
प्रमुख कारण ऄवतररि ससचाइ जल की सकक्रय जड़ों की गहराइ की तुलना में ऄवधक गहराइ में
वर्सथत वमट्टी की परतों से वनकासी है। ससचाइ के जल का गहराइ में वर्सथत वमट्टी की परतों से ररसाव
भूजल र्सतर के प्रदूषण का कारण हो सकता है। ऄत्यवधक ससचाइ और ऄल्प ससचाइ फसलों के वलए
हावनकारक हैं। आस प्रकार, ससचाइ का समय और जल अपूर्तत की मात्रा फसल की पयायप्त ईपज के
वलए महत्वपूणय है। ईदाहरण के वलए गेहं के मामले में, ससचाइ के ईवचत समय एवं ऄंतराल से जल
के कम ईपयोग के साथ ईपज में 50 प्रवतशत की वृवद्ध होती है।
 ऄवधकांश अधुवनक ससचाइ प्रणावलयों के बावजूद 100 प्रवतशत ससचाइ दक्षता नहीं पाइ जाती है।
ईच्च ससचाइ दक्षता प्राप्त करने में प्रमुख ऄवरोध साआल रूट ज़ोन की गहराइ के पुनभयरण हेतु
अवश्यक जल की मात्रा का ईवचत ऄनुमान प्राप्त करने में ऄसमथयता तथा मूलरोमों की मृदा में
वार्सतववक गहराइ से संबंवधत ईवचत एवं ररयल टाआम जानकारी का ऄभाव हैं ।
 परं परागत ऄनुमानों के ऄनुसार आितम प्रबंधन प्रकक्रयाओं के तहत 70 प्रवतशत औसत ससचाइ
दक्षता होने का ऄनुमान है। आस प्रकार, सर्सप्रकलर और विप ससचाइ के तहत औसत जल हावन 30
प्रवतशत है, लेककन कुं ड एवं बाढ़ ससचाइ के तहत यह 50 प्रवतशत से ऄवधक हो सकती है। सवोिम
प्रयासों के साथ विप ससचाइ द्वारा 90 प्रवतशत तक दक्षता प्राप्त की जा सकती है। शहरी ससचाइ
और लैंडर्सके प आरीगेशन के तहत ससचाइ जल की हावन, अपूर्तत ककये गए जल की 50 प्रवतशत तक
हो सकती है।
 भारत के राष्ट्रीय जल वमशन का ईद्देश्य जल ईपयोग दक्षता में 20 प्रवतशत की वृवद्ध करना है। देश
में कु ल जल ईपयोग का 80 प्रवतशत से ऄवधक कृ वष गवतवववधयों से सम्बद्ध है। आसवलए, आस
वमशन का मुख्य फोकस वृहद एवं मध्यम ससचाइ पररयोजनाओं, CAP&WM (कमान क्षेत्र
काययक्रम एवं जल प्रबंधन) और AIBP (त्वररत ससचाइ लाभ काययक्रम) अकद जैसी वववभन्न ससचाइ
पररयोजनाओं की दक्षता में सुधार पर है।

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4. ससचाइ एवं राष्ट्रीय जल नीवत
 भारत ने 1987 में राष्ट्रीय जल नीवत ऄपनाइ। 2002 में आस नीवत को संशोवधत ककया गया। यह
नीवत आस तथ्य पर बल देती है कक जल संसाधनों का वनयोजन, ववकास और प्रबंधन राष्ट्रीय
दृविकोण से संचावलत ककए जाने की अवश्यकता है। आस नीवत के ससचाइ से सम्बंवधत कु छ पहलु
वनम्नवलवखत हैं:
 ककसी व्यविगत पररयोजना में या ककसी वाटरशेड में ससचाइ योजना के तहत भूवम की ससचाइ
क्षमता, जल के सभी ईपलब्ध स्रोतों से प्राप्त संभव लागत प्रभावी ससचाइ ववकल्प और जल ईपयोग
दक्षता को ऄवधकतम करने के वलए ईपयुि ससचाइ तकनीकों को पूणयतया ध्यान में रखा जाना
चावहए। ईत्पादन को ऄवधकतम करने की अवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ससचाइ गहनता ऐसी
होनी चावहए ककऄवधक से ऄवधक खेतों को ससचाइ का लाभ प्राप्त हो सके ।
 जल ईपयोग और भूवम ईपयोग नीवतयों के मध्य गहन समेकन होना चावहए।
 ककसी ससचाइ पद्धवत में जल का ववतरण समानता एवं सामावजक वयाय के अधार पर होना
चावहए। चक्रीय जल ववतरण प्रणाली तथा ऄवधकतम मूल्य एवं तकय संगत मूल्य वनधायरण के तहत
ऄनुमापी अधार पर अपूर्तत कर बड़े एवं छोटे खेतों के मध्य व्याप्त जल की ईपलब्धता में
ऄसमानताओं को दूर करना चावहए।
 यह सुवनवश्चत करने के वलए ठोस प्रयास ककए जाने चावहए कक ससचाइ क्षमता का पूरी तरह
ईपयोग ककया जाए। आस ईद्देश्य के वलए, सभी ससचाइ पररयोजनाओं में कमान क्षेत्र ववकास
दृविकोण ऄपनाया जाना चावहए।
 र्सवच्छ जल का सवायवधक ईपभोग ससचाइ के वलए ककया जाता है ऄत: जल की प्रत्येक आकाइ पर
ऄवधकतम ईत्पादकता प्राप्त करना ससचाइ का लक्ष्य होना चावहए। जहाँ संभव हो वैज्ञावनक प्रबंधन
खेत प्रणावलयाँ तथा सर्सप्रकलर एवं विप ससचाइ पद्धवत ऄपनाइ जानी चावहए।
 वैज्ञावनक एवं लागत प्रभावी ईपायों द्वारा जल-प्लाववत या लवण प्रभाववत क्षेत्रों का भूवम-सुधार
करना कमान क्षेत्र ववकास काययक्रम का भाग होना चावहए।

5. कमान क्षे त्र ववकास एवं जल प्रबं ध न (CADWM)


 पहली पंचवषीय योजना (1951-56) के पश्चात् ससचाइ क्षेत्र का योजनाबद्ध ववकास व्यापक पैमाने
पर शुरू हुअ। दूसरी पंचवषीय योजना, तीसरी पंचवषीय योजना और वार्तषक योजनाओं 1966-
69 के तहत नइ पररयोजनाएं अरम्भ की गइ। चौथी पंचवषीय योजना के दौरान चालू योजनाओं
को पूरा करने पर जोर कदया गया।
 पांचवीं योजना (1974-78) में संभाववत वनमायण और ईपयोग के बीच बढ़ते ऄंतराल का ऄनुभव
ककया गया तथा तदनुसार 1974-75 में कें द्रीय प्रायोवजत योजना के रूप में कमान क्षेत्र ववकास
काययक्रम (CADP) का अरम्भ ककया गया। CADP देश में प्रमुख और मध्यम ससचाइ
पररयोजनाओं के कमान क्षेत्रों के वलए एक एकीकृ त क्षेत्र ववकास दृविकोण है। आस काययक्रम का
ईद्देश्य कमान क्षेत्र में वनर्तमत की गइ ससचाइ क्षमता और ईपयोग में ली जा रही ससचाइ् क्षमता के
बीच ववद्यमान ऄंतराल को कम करना है।
 प्रारं भ में CADP को 1974 में आं कदरा गाँधी नहर कमान क्षेत्र में प्रर्सतुत ककया गया था। माचय
1998 तक 21.78 वमवलयन हेरटेयर के कृ वष योग्य कमान क्षेत्र (CCA) तथा 23 राज्यों और 2
कें द्रशावसत प्रदेशों में ववर्सतार के साथ कमान क्षेत्र ववकास के वलए अरम्भ की गइ पररयोजनाओं की
कु ल संख्या 217 हो गइ।
 1 ऄप्रैल, 2004 को आस काययक्रम को पुनगयरठत ककया गया तथा आसमें मुख्य रूप से कृ वष ववभाग
द्वारा संचावलत गवतवववधयों को आस काययक्रम से हटा कर कवतपय ऄवय गवतवववधयों का समावेश
करते हुए 'कमान क्षेत्र ववकास एवं जल प्रबंधन काययक्रम' (CADWMP) के रूप में संशोवधत ककया

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गया है। यह योजना 11 वीं पंचवषीय योजना (2008-09 से 2011-12) के दौरान राज्य क्षेत्र की
योजना के रूप में लागू की जा रही है। बारहवीं योजना के दौरान, आस योजना को त्वररत ससचाइ
लाभ काययक्रम (AIBP) के साथ समान रूप से कक्रयावववत ककया जाना है। लगभग 7.6 Mha को
कवर करने हेतु बारहवीं योजना (कें द्र का वहर्ससा) के वलए कु ल प्रर्सताववत पररव्यय 15,000 करोड़
रुपये है।
 आस काययक्रम में खेतों पर नहरों का वनमायण और खेत में वनकासी व्यवर्सथा, भूवम का समतलन एवं
वनधायरण तथा सतही जल एवं भूजल के संयुि ईपयोग जैसे खेत संबंधी ववकास कायों का
वनष्पादन सवम्मवलत है। ककसानों को जल की समान और समय पर अपूर्तत सुवनवश्चत करने के वलए
वारबंदी या जल ववतरण की चक्रीय प्रणाली अरम्भ की गइ है।
 फसल प्रवतरूप के ववववधीकरण पर फोकस ककया गया है ताकक जल का ऄवधकतम ईपयोग
सुवनवश्चत ककया जा सके और भूवम की ईत्पादकता में वृवद्ध हो। आस तरह के पररवतयन के दौरान
वतलहन, दलहन अकद के ईत्पादन पर बल कदया जाएगा ताकक ईनकी कमी की पूर्तत की जा सके ।
 CADP के ऄंतगयत, जल संसाधन मंत्रालय ने CAD पररयोजनाओं में जागरूकता लाकर और
ककसानों के संघों को वविीय सहायता प्रदान कर सहभागी ससचाइ प्रबंधन (नीचे चचाय की गइ है)
को प्रर्सतुत ककया है और प्रोत्सावहत भी ककया है। ससवचत कमान क्षेत्रों में जलग्रर्सत क्षेत्रों में भूवम
सुधार करना भी आस काययक्रम का एक महत्वपूणय घटक है।
 आस काययक्रम के शुरू होने के बाद से माचय, 2012 के ऄंत तक लगभग 20.149 वमवलयन हेरटेयर
क्षेत्र को आसके तहत कवर ककया गया है।
6. सहभागी ससचाइ प्रबं ध न (Participatory Irrigation
Management : PIM)
 कोइ भी ससचाइ पररयोजना तब तक सफल नहीं हो सकती, जब तक कक वह साझेदारों से सम्बद्ध
नहीं हो। ये साझेदार ककसान र्सवयं होते है। वार्सतव में, र्सवतंत्रता प्रावप्त के पूवय के समय में खेत की
नहरों के नवीनीकरण और रखरखाव में लोगों की सहभावगता एक प्रमुख परम्परा थी।
 हालांकक, र्सवतंत्रता के बाद आस प्रथा पर नौकरशाही ने ऄवतक्रमण कर वलया और आस बात की
ऄनुभूवत हुइ कक ककसानों की भागीदारी के वबना ककसी ससचाइ पररयोजना का पूणय सामथ्यय प्राप्त
नहीं हो सकता है।
 ससचाइ प्रणाली के प्रबंधन में ककसानों की भागीदारी की ऄवधारणा को भारत सरकार की नीवत के
रूप में र्सवीकार ककया गया है और आसे 1987 में ऄपनाइ गइ राष्ट्रीय जल नीवत में शावमल ककया
गया है। यह कहा गया है कक
 “ससचाइ प्रणाली के प्रबंधन के वववभन्न पहलुओं में, ववशेष रूप से जल ववतरण और जल दरों के
संग्रहण में ककसानों को ऄवधकावधक शावमल करने के प्रयास ककए जाने चावहए। जल के कु शल
ईपयोग और जल प्रबंधन के सम्बवध में ककसानों को वशवक्षत करने के वलए र्सवैवच्छक संर्सथाओं की
सहायता प्राप्त की जानी चावहए।”
 कें द्र प्रायोवजत कमान क्षेत्र ववकास काययक्रम के तहत आन क्षेत्रों में ककसानों की भागीदारी के वलए
नीवतगत कदशा-वनदेश तैयार ककए गए थे। PIM के ईद्देश्यों में से एक ईपयोगकतायओं के बीच
ससचाइ प्रणाली और जल संसाधनों के र्सवावमत्व की भावना लाना ताकक जल के ईपयोग और
ससचाइ प्रणाली के संरक्षण में ऄथयव्यवर्सथा को बढ़ावा कदया जा सके ।
 पररचालन र्सतर पर, जल ईपभोिा संघ (WUA), ववतरण सवमवत और पररयोजना सवमवतयों का
गठन ककया गया है। कें द्र सरकार द्वारा ऄवधवनयवमत एक मॉडल ऄवधवनयम की सहायता से
वववभन्न राज्यों ने PIM के वलए कानून बनाए हैं। 2010 में सभी राज्यों में वववभन्न WUA के तहत
कवर ककया गया कु ल क्षेत्र लगभग 15 वमवलयन हेरटेयर है।

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7. त्वररत ससचाइ लाभ कायय क्र म (Accelerated
Irrigation Benefits Programme : AIBP)
 भारत सरकार ने 1996-97 में त्वररत ससचाइ लाभ काययक्रम (AIBP) अरं भ ककया। यह काययक्रम
कें द्रीय ऊण सहायता (CLA) द्वारा कु छ ऄपूणय प्रमुख ससचाइ पररयोजनाओं तथा काययक्रमों को पूरा
करने के वलए राज्यों को प्रोत्सावहत करने हेतु प्रारम्भ ककया गया था, ये पररयोजनाएँ तथा
काययक्रम पूरा होने के ऄवग्रम चरण में थे। वनमायण के ऄवग्रम चरण से यह अशय होगा कक:
 पहले से ही खचय ककए गए नवीनतम र्सवीकृ त ऄनुमावनत पररयोजना लागत का कम से कम 50%
रावश खचय की जा चुकी है;
 पररयोजना के अवश्यक कायों की कम से कम 50% भौवतक प्रगवत हो चुकी है; तथा
 AIBP के तहत पररयोजना को शावमल करने के वलए राज्य का प्रर्सताव एक ववश्वसनीय वनमायण
ऄनुसूची द्वारा समर्तथत होना चावहए। यह ऄनुसच
ू ी लागू ककये जा चुके कायों तथा अगे वनष्पाकदत
ककये जाने वाले कायों को ईनकी लागतों के साथ दशायती है।
 आस काययक्रम में ईन वृहद, मध्यम तथा ववर्सतार, नवीनीकरण और अधुवनकीकरण (एरसटेंशन,
रे नोवेशन एंड मॉडनायआजेशन :ERM) ससचाइ पररयोजनाओं को आस काययक्रम में शावमल ककए जाने
के वलए ववचार ककया गया था, वजवहें योजना अयोग से वनवेश मंजूरी प्राप्त थी, जो वनमायण के
ऄवग्रम चरण में थी और ऄगले चार वविीय वषय में पूरी की जा सकती थी लेककन आवहें ककसी भी
प्रकार की वविीय सहायता प्राप्त नहीं थी।
8. जलीय वनकायों की मरम्मत, नवीकरण एवं पु न र्सथाय प न हे तु
योजना (ररपे य र, रे नोवे श न एं ड ररर्सटोरे श न ऑफ़ वाटर बॉडीज
र्सकीम)
 भारत में समुदायों की वववभन्न अवश्यकताओं को पूरा करने हेतु ककए गए जल संरक्षण में तालाबों
और झीलों ने पारं पररक रूप से महत्वपूणय भूवमका वनभाइ है। ससचाइ क्षमता का 6.27 वमवलयन
हेरटेयर लघु ससचाइ स्रोतों (तालाब आत्याकद) में वनवहत है। लगभग 15-20 प्रवतशत स्त्रोतों का
ककवही कारणों से ईपयोग नहीं ककया जाता है, आसके पररणामर्सवरूप ससचाइ क्षमता का 1
वमवलयन हेरटेयर समाप्त हो जाता है तथा ऄवय ससचाइ क्षमता का लगभग 2 वमवलयन हेरटेयर
तालाबों के कम ईपयोग के कारण समाप्त हो जाता है।
 भारत सरकार ने जनवरी 2005 में "कृ वष से जुड़े जल वनकायों की मरम्मत, नवीनीकरण और
पुनर्सथायपना (RRR) के वलए राष्ट्रीय पररयोजना" हेतु एक पायलट योजना को मंजूरी दी। कें द्र और
राज्य की वविीय भागीदारी 3:1 के ऄनुपात में है। आस योजना के ईद्देश्य जल वनकायों की भंडारण
क्षमता को पुनः र्सथावपत करना और बढ़ाना तथा ईनकी पहले जैसी ससचाइ क्षमता को पुन: प्राप्त
करना एवं ससचाइ क्षमता में वृवद्ध करना अकद थे। आसके पायलट चरण में, 1.73 लाख हेरटेयर की
ससचाइ क्षमता प्राप्त की गइ।
 आस पायलट योजना की सफलता के साथ, आस योजना की ऄववध 12वीं पंचवषीय योजना तक
बढ़ा दी गइ। आस योजना के तहत 6235 करोड़ रु की के वद्रीय सहायता के साथ 10,000 जल
वनकायों में RRR कायय शुरू करने की पररकल्पना की गइ। आन 10,000 जल वनकायों में से 9,000
जल वनकायों के ग्रामीण क्षेत्रों से होने का प्रर्सताव है तथा शेष 1000 जल वनकाय शहरी क्षेत्रों में
होंगे। ईन जल वनकायों के प्रर्सताव को जल वनकायों की RRR योजना के ऄंतगयत शावमल माना
जाएगा, वजन पर एकीकृ त जल प्रबंधन काययक्रम (IWMP) कायायवववत ककया गया है।

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आस योजना के मुख्य ईद्देश्य
 जल वनकायों की पुनर्सथायपना एवं व्यापक सुधार के पररणामर्सवरूप तालाब भण्डारण क्षमता में
वृवद्ध।
 भूजल पुनभयरण
 पेयजल की ईपलब्धता में वृवद्ध
 कृ वष/बागवानी संबंधी ईत्पादकता में सुधार
 तालाब कमानों के जलग्रहण क्षेत्रों की वृवद्ध
 पयायवरण संबंधी लाभों के माध्यम से संशोवधत जल ईपयोग दक्षता; सतही जल एवं भूजल के

संयुि ईपयोग में वृवद्ध;

 प्रत्येक जल वनकाय के सतत प्रबंधन हेतु सामुदावयक भागीदारी एवं र्सवावलंबी व्यवर्सथा;
 बेहतर जल प्रबंधन हेतु समुदायों की क्षमता वनमायण करना।

9 वचुय ऄ ल वाटर (Virtual Water)


 "वचुयऄल वाटर" की ऄवधारणा 1990 के दशक के अरम्भ में प्रोफे सर एलन द्वारा प्रर्सतुत की गइ
थी तथा वचुयऄल वाटर से अशय कृ वष वर्सतुओं के ईत्पादन के वलए अवश्यक जल से है या ऄवय
शब्दों में कृ वष ईत्पादों में "ऄंतवनर्तहत" जल से है। ईदाहरण के वलए, एक मीरिक टन गेहं का

ईत्पादन करने के वलए औसतन 1,600 घन मीटर जल की अवश्यकता होती है। आस जल को


अभासी माना जाता है रयोंकक गेहं के बढ़ने के बाद आसके ईत्पादन में प्रयुि जल गेहं में सवम्मवलत
नहीं रहता है। वचुयऄल वाटर की ऄवधारणा हमें यह समझने में सहायता करती है कक वववभन्न
वर्सतुओं और सेवाओं का ईत्पादन करने के वलए ककतने जल की अवश्यकता होती है। ऄधय-शुष्क
और शुष्क क्षेत्रों में ईपलब्ध दुलभ
य जल का कु शलतम ईपयोग वनधायररत करने में ककसी वर्सतु या
सेवा के वचुऄ
य ल वाटर का मूल्य ईपयोगी हो सकता है। वचुऄ
य ल वाटर िेड से अशय आस ववचार से
है कक जब वर्सतुओं और सेवाओं का अदान-प्रदान ककया जाता है, तो वचुयऄल वाटर का अदान-
प्रदान भी होता है। जब कोइ देश घरे लू र्सतर पर ईत्पादन के बजाय एक टन गेहं का अयात करता
है, तो वह देश 1,300 घन मीटर र्सवदेशी जल की बचत करता है। यकद ककसी देश में जल की कमी

ववद्यमान है, तो 'बचाए' गए जल का ककसी ऄवय कायय में ईपयोग ककया जा सकता है। यकद

वनयायतक देश में जल की कमी है, तो भी यह 1,300 रयूवबक मीटर का वचुयऄल वाटर का वनयायत
करता है रयोंकक गेहं की वृवद्ध के वलए प्रयुि जल ऄवय प्रयोजनों के वलए ईपलब्ध नहीं रहता है।
आज़राआल जैसे देश जहाँ जल की कमी है, ववश्व के वववभन्न वहर्ससों में बड़ी मात्रा में जल के वनयायत
को रोकने के वलए संतरा (ईत्पादन में ऄपेक्षाकृ त ऄवधक जल की अवश्यकता) के वनयायत को
हतोत्सावहत करते हैं।
वचुऄ
य ल वाटर के अकलन की सीमाएँ
 वचुयऄल वाटर का अकलन आस धारणा पर वनभयर करता है कक जल चाहे वषाय के रूप में प्राप्त हो या
ससचाइ प्रणाली के माध्यम से प्रदान ककया गया हो, जल के सभी स्रोत समान मूल्य के हैं।

 पूणत
य या यह माना जाता है कक ईन गवतवववधयों वजनमे ऄवधक जल का ईपयोग ककया जाता है, को
कम कर बचाए गए जल का ईपयोग ईन गवतवववधयों में ककया जाएगा वजनमे ऄपेक्षाकृ त कम जल
का ईपयोग ककया जाएगा। ईदाहरण के वलए, ऄंतर्तनवहत धारणा यह है कक रें जलैंड बीफ़ ईत्पादन

में प्रयोग ककया जाने वाला जल ककसी वैकवल्पक ईत्पाद, कम जल-गहन गवतवववध के वलए ईपलब्ध
होगा।

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 यह माप पयायवरणीय हावन के एक संकेतक के रूप में ववफल रहती है और न ही यह कोइ संकेत
प्रदान करती है कक रया जल संसाधनों का ईपयोग संधारणीय वनकास सीमा के भीतर ककया जा
रहा है या नहीं। आसवलए वचुयऄल वाटर के ऄनुमानों का ईपयोग नीवत वनमायताओं के वलए कोइ
मागयदशयन प्रदान नहीं करता है ताकक पयायवरण के ईद्देश्यों को पूरा ककया जा सके ।
 खाद्य अयात करने से भववष्य में राजनीवतक वनभयरता का खतरा ईत्पन्न हो सकता है।
"अत्मवनभयरता" की धारणा कइ देशों के लोगों के बीच गौरव की बात है।

वचत्र 8: प्रदेशों में वचुऄ


य ल वाटर का प्रवाह

 संक्षेप में, वचुयऄल वाटर िेड जल से सम्बंवधत समर्सयाओं पर एक नवीन, ववर्सताररत पररप्रेक्ष्य
प्रर्सतुत करता है। जल संसाधनों के मांग-ईवमुख प्रबंधन से अपूर्तत-ईवमुख प्रबंधन तक के हाल के
घटनाक्रमों के फ्रेमवकय में यह प्रशासन के नए क्षेत्र ईपलब्ध कराता है तथा यह वववभन्न दृविकोण,
अधारभूत वर्सथवतयों और वहतों के ववभेदन और संतुलन की सुववधा प्रदान करता है। ववश्लेषणात्मक
रूप से यह ऄवधारणा हमें वैवश्वक, क्षेत्रीय और र्सथानीय र्सतरों और ईनके संबंधों के बीच ऄंतर
करने में सक्षम बनाती है। आस प्रकार वचुऄ
य ल वाटर िेड जल-के वद्रीयता के संकीणय वाटरशेड
दृविकोण को दूर कर सकता है।

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भूगोल
34. मानव बस्ततयाां

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स्वषय सूची
1. मानव बस्ततयाां : एक पररचय _____________________________________________________________________ 3

1.1 बस्ततयों का वगीकरण _______________________________________________________________________ 3


1.1.1. ग्रामीण एवां नगरीय बस्ततयों में ाऄांतर ________________________________________________________ 3
1.1.2. ग्रामीण बस्ततयों के प्रकार ________________________________________________________________ 4

2. भारत की बस्ततयााँ ____________________________________________________________________________ 5

2.1. भारत के स्वशेष सन्दभभ में ग्रामीण बस्ततयों के प्रकार __________________________________________________ 6


2.1.1. गुस्छित बस्ततयाां (Clustered Settlements) _________________________________________________ 6
2.1.2. ाऄधभ गुस्छित बस्ततयाां (Semi Clustered Settlements) _________________________________________ 6
2.1.3. पल्ली बस्ततयााँ (Hamleted Settlements) __________________________________________________ 7
2.1.4. पररस्िप्त बस्ततयाां (Dispersed or Scattered Settlement)______________________________________ 7

3. ग्रामीण बस्ततयों के प्रस्तरूप (Patterns of Rural Settlements) __________________________________________ 8

4. ग्रामीण बस्ततयों के प्रकायभ (Functions of Rural Settlements) _________________________________________ 10

5. ग्रामीण बस्ततयों को प्रभास्वत करने वाले कारक _______________________________________________________ 11

6. ग्रामीण बस्ततयों की समतयाएां (Problems of rural Settlements) _______________________________________ 12

7. नगरीय बस्ततयाां: एक पररचय ___________________________________________________________________ 13

7.1. नगरों की स्तथस्त और स्वन्यास ________________________________________________________________ 14

7.2. नगरीय- ग्रामीण ाऄांतसंबांध (Town-Village Inter-relationship) ______________________________________ 15

7.3. नगरीय बस्ततयों का वगीकरण ________________________________________________________________ 15

7.4. नगरों का प्रकायाभत्मक वगीकरण (Functional Classification of Towns) _______________________________ 16

7.5. नगरीय ाअकाररकी (Urbun Morphology)______________________________________________________ 19

7.6. नगरों का के न्रीय व्यापाररक िेत्र (CBD) ________________________________________________________ 20

7.7. नगर के सांदभभ में के न्रीयतथल की सांकल्पना (Central Place) __________________________________________ 21

7.8. नगरीय बस्ततयों के प्रकार (Types of Urban Setements) __________________________________________ 21

7.9. नगरीय बस्ततयों की समतयाएां (Problems of Urban Settlements) ___________________________________ 23

8. भारत में नगरीय बस्ततयाां (Urban Settlements in India) _____________________________________________ 27

8.1. भारत में नगरीकरण (Urbanisation in Indian) __________________________________________________ 30

8.2. भारत में मस्लन बस्ततयाां (Slums in India)______________________________________________________ 32

8.3. भारत में नगर स्नयोजन (Urban Planning in India) ______________________________________________ 34


8.3.1. भारत की नगरीय नीस्त (India's Urban Policy) _____________________________________________ 35

9. नगरीकरण से सांबस्ां धत नवीनतम घटनाक्रम __________________________________________________________ 37


1. मानव बस्ततयाां : एक पररचय
 रोटी, कपड़ा और मकान मनुष्य की तीन मूलभूत ाअवश्यकताएां हैं। भले ही ाआस कथन में मकान को
तीसरे तथान पर रखा गया है, लेककन ाआससे मकान का महत्व कम नहीं हो जाता। गमी, सदी और
बरसात से बचाव के स्लए मकान ाऄस्नवायभ है। ाअकद काल की सामान्य सी गुफाओं एवां झोपस्ड़यों से
प्रारां भ करके सभ्यता के स्वकास क्रम में मनुष्य, स्वशालकाय गगनचुांबी भवनों तक पहांच गया है।

ाऄब मनुष्य ाऄांतररि में बस्ततयाां बसाने का सपना देख रहा है। बतती में रहने के स्लए मकान, पशुओं
के स्लए बाड़े (घेर) और औजारों, ाईपकरणों और ाईत्पाकदत वततुओं को रखने के स्लए भांडार गृह
और ाआन गृहों को जोड़ने वाली सड़क शास्मल है।
 मकान या घर मनुष्य की मूलभूत ाअवश्यकता है। बस्ततयाां साांतकृ स्तक भूदश्ृ य का मूल लिण है।
ककसी िेत्र की बस्ततयों की स्तथस्त, ाअकृ स्त और स्वतरण का प्रस्तरूप ाईसके पयाभवरण से सांबांस्धत
होता है। बस्ततयों से लोगों की जीवन पद्धस्त का भी पता चलता है। स्वस्शष्ट व्यावसास्यक
ाअवश्यकताओं और स्नवास्सयों के तथान की जरूरतों के कारण बस्ततयों में काइ पररवतभन ककए जाते
हैं।
 शुरुाअत में मनुष्य भोजन सांग्राहक और ाअखेटकों के िोटे-िोटे समूह में रहता था। मनुष्य के वल
घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करता था। कु ि समय बाद मनुष्य ने पशुपालन प्रारां भ ककया और बाद में
कृ स्ष। ाआन पररवतभनों के कारण मनुष्यों को बतती बनाकर रहना पड़ा। कृ स्ष और पशुपालन से हर
समय भोजन की ाईपलब्धता के कारण तथााइ बस्ततयाां बसना शुरू हो गाइ। धीरे -धीरे ककसानों के
पास ाऄपने ाईपभोग के बाद भी खाद्यान्न बचने लगे। ाआससे कु ि लोग गैर कृ स्ष कायभ करने लगे। जैसे-
बतभन बनाना, कपड़ा बुनना, लकड़ी और धातु की ाईपयोगी वततुएां बनाना ाअकद। ाआस तरह
ाऄस्तररक्त वततुओं की ाऄदला-बदली शुरू हाइ। धीरे -धीरे यह व्यापार का रूप लेने लगा। ाइसा से
लगभग 2500 वषभ पूवभ नगरों का स्वकास हाअ। ाआस प्रकार बस्ततयों के रूप और कायभ बदलने लगे।

1.1 बस्ततयों का वगीकरण

बस्ततयों को प्रायाः दो वगों में स्वभास्जत ककया जाता है। (i) नगरीय बस्ततयाां (ii) ग्रामीण बस्ततयाां।

1.1.1. ग्रामीण एवां नगरीय बस्ततयों में ाऄां त र

ग्रामीण बस्ततयाां (Rural Settlements) नगरीय बस्ततयाां (Urban Settlements)

व्यवसायाः ग्रामीण बस्ततयों में रहने वाले लोग नगरीय बस्ततयों के लोग ाईद्योग व्यापार, पररवहन
कृ स्ष जैसे प्राथस्मक व्यवसायों में लगे होते हैं।
और सेवाओं जैसे स्ितीयक, तृतीयक और चतुथभक
व्यवसायों में लगे होते है।
ाअकार: ये बस्ततयाां िोटी होती हैं। ाआनमें घरों ये बस्ततयाां बड़ी होती हैं। कु ि नगर तो स्वशाल िेत्र
की सांख्या कम भी होती है। में फै ले होते हैं। ाआनमें हजारों, लाखों घर होते हैं।
कोलकाता और कदल्ली ऐसे ही महानगर हैं।
ाअस्ित जनसांख्या : ये बस्ततयाां बड़ी जनसांख्या ाआन बस्ततयों में रोजगार के ाऄवसर ाऄस्धक होते हैं। ये
का पालन नहीं कर सकती है। बड़ी जनसांख्या का पालन-पोषण कर सकती हैं।
जन घनत्व: ाआनमें जनसांख्या का घनत्व कम जनसांख्या का घनत्व ाऄस्धक होता है। एक हेक्टेयर
होता है। भूस्म पर हजारों लोग रहते हैं। ाआनमें कम से कम जन
घनत्व 400 व्यस्क्त प्रस्त वगभ कक.मी. होना चास्हए।

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कायाभत्मक सांबध ां : ाआन बस्ततयों के कायाभत्मक ये ाअर्थथक स्वकास के बबदु होते हैं। ाआनके ाऄपने पृष्ठ
सांबांध नगरों से होते हैं। प्रदेश से ाअर्थथक सांबांध होते हैं।
सामास्जक सांबध ां : ाईनके ाअपसी सांबांध घस्नष्ठ नगर में रहने वाले लोगों का जीवन बड़ा जरटल और
होते हैं। प्रायाः सभी एक-दूसरे को जानते हैं तथा तेज होता है। यहाां ाअपसी सांबध
ां के वल औपचाररक
एक-दूसरे के सुख-दुाःख में साथ स्नभाते हैं। होते हैं।
ाअधुस्नक सुस्वधाएां: टेलीफोन, तार, ाऄतपताल, ऐसी सुस्वधाएां खूब होती है।
स्बजली जैसी सुस्वधाएां बहत कम होती हैं।

1.1.2. ग्रामीण बस्ततयों के प्रकार

 मकानों से बना ऐसा प्रस्तरूप जो चारों ओर से खेतों से स्घरा है ाईसे ग्रामीण बतती कहते हैं। कृ स्ष
की स्वस्धयों की खोज के साथ ही मानव ने बस्ततयाां बसा कर रहना शुरू ककया। ये प्रारां स्भक
बस्ततयाां गाांव ही थे। गााँव के स्नवासी मुख्यत: प्राथस्मक कक्रयाएां करते है। एम.डी.क्लाकभ के ाऄनुसार
‘गााँव एक सामस्जक-मनोवैज्ञास्नक पयाभवरण होता है’।
 बस्ततयों के स्वभाजन का सावभभौम और सवभमान्य मापदांड नहीं है। ाईदाहरण के स्लए भारत और
चीन जैसे ाऄत्यांत सघन बसे देशों में ाऄनेक गाांव ऐसे हैं स्जनकी जनसांख्या पस्िमी यूरोप और सां. रा.
ाऄमेररका के ाऄनेक नगरों से कहीं ाऄस्धक है।
प्रकीणभ बस्ततयााँ (Dispersed Settlement)
 ाआस प्रकार की बस्ततयों में लोगों के घर एक-दूसरे से कु ि दूरी पर बने होते हैं। स्वस्शष्ट प्रकीणभ बतती
में लोग ाऄपने खेतों पर घर बनाकर रहने लगते हैं। ाआस प्रकार घर खेतों के साथ स्बखरे होते हैं। ाऄत:
ाआन्हें एकाकी बस्ततयााँ भी कहा जाता है। पूजातथल ाऄथवा कतबा ाआन बस्ततयों के लोगों को ाअपस
में जोड़े रहता है। ाआथोस्पया (ाऄफ्रीका) की ाईच्च भूस्म पर प्रकीणभ बस्ततयाां पााइ जाती है। ाअतरेस्लया,
कनाडा और सांयुक्त राज्य ाऄमेररका, द. पू. एस्शया के बागानी, कृ स्ष के िेत्रों तथा ब्राजील में कहवा
के बागानी िेत्र में भी ऐसी बस्ततयाां स्मलती है।
 ाआन बस्ततयों का ाअर्थथक दृस्ष्ट से लाभ होता है लेककन सामास्जक दृस्ष्ट से ाऄनुकूल नहीं होती है।
खेतों में रहने वाला कृ षक ाऄपनी कृ स्ष की ाईन्नस्त बेहतर ढांग से कर सकता है। दूसरी तरफ ाआस
प्रकार की बस्ततयों में रहने वाले व्यस्क्त को सामास्जक जीवन का लाभ नहीं स्मल पाता है, क्योकक
ाआस प्रकार के घर गााँव से दूर खेतों में एकाकी ही व्यवस्तथत होते है।
 प्रकीणभ बस्ततयों की स्वशेषताएां :
i. ाआनमें मकान एक-दूसरे से दूर बने होते है। कभी-कभी मकानों के बीच में काइ खेत होते हैं।
ii. ाआनमें लोग ाऄलग-थलग एकाकी रहते हैं।
iii. ाआन बस्ततयों के लोग व्यस्क्तवादी और तवतांत्र जीवन यापन करते हैं।
iv. ाआनमें पड़ोसी धमभ की भावना, सामुदास्यक ाऄांतर्थनभरता और सामास्जक ाऄांतर्क्रक्रया नहीं होती।
v. एकाकी स्नवास करने वालों को एकसाथ स्मलकर रहने वाले लोगों के स्वपरीत िम-स्वभाजन
का लाभ भी नहीं स्मलता है।
 ाआस प्रकार की बस्ततयों को बढ़ावा देने वाले कारको में भौस्तक (ाईच्चावच, वनीय िेत्र, जल की
प्रचुरता) तथा मानवीय (प्रस्त-व्यस्क्त कृ स्षभूस्म, पशुचारण, जास्त-प्रथा, सुरिा) कारक स्जम्मेदार
है।
सांहत या कें रीय बस्ततयाां (Compact or nucleated Settlements)
 ाआन बस्ततयों में सभी लोगों के ाअवास होते हैं। सुरिा की दृस्ष्ट से एक-दूसरे से सटे तथा दो मकानों
की साझा दीवारें होती हैं। एक ित से दूसरी ित पर ाअ-जा सकते हैं। घरों में या घरों के पास ही
चारा, ाइधन ाअकद के भांण्डारण और पशुओं के स्लए बाड़े बनाए जाते हैं। ऐसी बस्ततयाां नकदयों की
ाईपजााउ घारटयों और तटीय मैदानों में पााइ जाती हैं।

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 गाांवों का ाअकार भूस्म के िेत्रफल और ाईसके ाईपजााउपन पर स्नभभर करता है। ाईपजााउ कृ स्ष भूस्म
वाले गाांव में 1000 या ाईससे भी ाऄस्धक लोग रहते हैं। ाआन बस्ततयों में रहने वाले लोग कृ स्ष कायभ
ाअपस में स्मलकर करते है।
 ाआन बस्ततयों के स्वकास के स्लए स्जम्मेदार कारक ाआस प्रकार है - सामान्यत: मनुष्य ाऄके ला नहीं
रहना चाहता है, कृ स्ष कायों में ाऄस्धक लोगों की ाअवश्यकता का होना, सुरिा सांबांधी कारण,
धार्थमक प्रवृस्तयााँ, ाउपजााउ स्मट्टी ाअकद।
पल्ली बस्ततयााँ (Hamleted Settlements)
 ये सघन बस्ततयााँ नहीं होती हैं, स्जनके साथ एक या ाआससे ाऄस्धक पुरवे भी होते हैं। ये वाततव में
मध्यम प्रकार की बस्ततयाां हैं, जो प्रकीणभ और सघन बस्ततयों के मध्य पााइ जाती हैं।ाआन बस्ततयों को
पुरवा बस्ततयाां (Hamleted Settlements) भी कहा जाता है।
 पल्ली बस्ततयों की स्वशेषताएां:
i. ाआनमें मकान ाऄस्धक सटे नहीं होते हैं।
ii. ाआनका स्वततार ाऄपेिाकृ त बड़े िेत्र में होता है।
iii. मुख्य बतती के साथ एक या ाईससे ाऄस्धक पुरवे होते हैं।
iv. भीड़ बढ़ जाने पर बतती के कें रीय भाग से स्नकलकर लोग गाांव की सीमा से लगे खेतों में घर
बनाकर रहने लगते हैं।
v. ककसी स्वशाल गााँव का ऐसा खांडीभवन प्राय: सामास्जक एवां मानवजातीय कारकों िारा
ाऄस्भप्रेररत होता है।
vi. ाआन ाआकााआयों को देश के स्वस्भन्न भागों में तथानीय ततर पर पान्ना, पाड़ा, पाली, नगला, ढााँणी
ाआत्याकद कहा जाता है।
ाऄधभ गुस्छित बस्ततयाां (Semi Clustered Settlements)
 ाआन्हें ाऄधभ स्बखरी बस्ततयाां (Semi-Sprinkled Settlements) भी कहा जाता है।
 ाऄधभ गुस्छित बस्ततयों की स्वशेषताएां :
i. मकान एक दूसरे से ाऄलग लेककन एक ही बतती में होते है।
ii. बतती ाऄनेक पुरवों में स्वभास्जत होती है।
iii. ऐसी स्तथस्त में ग्रामीण समाज के एक ाऄथवा ाऄस्धक वगभ तवेछिा से ाऄथवा बलपूवभक मुख्य
गुछि ाऄथवा गााँव से थोड़ी दूरी पर रहने लगते हैं।
iv. कभी-कभी िोटी-िोटी बस्ततयाां, लेककन ाऄसांबद्ध रूप में कदखााइ पड़ती है।
v. प्रायाः जमीन के मास्लक धनी और प्रभावशाली व्यस्क्त गाांव के मध्य में रहते हैं जबकक समाज
के स्नचले तबके के लोग और स्नम्न कायों में सांलग्न लोग गााँव के बाहरी स्हतसों में बसते हैं।
vi. ाऄलग-ाऄलग पुरवों में प्रायाः ाऄलग-ाऄलग जास्तयों के लोग रहते हैं।
vii. पुरवों के नाम जास्त के नामों पर रखे जाते हैं।
 ाऄधभ गुस्छित बस्ततयों की ाईत्पस्ि में प्रभावी कारक : (i) भू-जल की प्रयाभप्त मात्रा, (ii) भू-जलततर
का धरातल के स्नकट होना, (iii) कृ स्ष मजदूरों का बाहल्य (iv) भू-तवास्मयों िारा भूस्म को ठे के पर
देना, (v) बस्ततयों का सुरस्ित होना, (vi) कम लागत में हैण्डपांप और कु एां बनाना।

2. भारत की बस्ततयााँ
 मकान रहने की मूलभूत ाआकााइ है। घरों के समूह से बतती बनती है। बतती में 6 से लेकर 12 तक
झोपस्ड़याां हो सकती हैं या दस-बीस या सैकड़ों घरों का एक गााँव। बस्ततयाां िोटे-बड़े नगरों के रूप
में भी हो सकती है। नगर, महानगरों, ाऄथवा स्वश्वनगरों (Ecumenopolis) का रूप भी धारण
कर सकते हैं। ाऄस्भन्यास (प्लान) वाले मकानों और झोपस्ड़यों के समूह को बतती कहते हैं। बतती में

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रहने के स्लए मकान, पशुओं के स्लए बाड़े, औजारों, ाईपकरणों और ाईत्पाकदत वततुओं को रखने के
स्लए भांडार गृह एवां ाआन गृहों को जोड़ने वाली सड़क शास्मल है।
 वतभमान में कृ स्ष और पररवहन के साधनों के मशीनीकरण से ककसानों की जरूरते बदल गईं हैं। ाऄब
ाईसके कृ स्षयांत्र ऐसे नहीं स्जसे गाांव के बढ़ाइ-लोहार ठीक कर सकें या बना सके । ाआसीस्लए ाऄब गाांवों
में नए यांत्रों की मरम्मत के स्लए कायभशालाएां खुलने लगी हैं। गाांव की ाअर्थथक समृस्द्ध के साथ ाऄब
मकान के वल तथानीय घास फू स, लकड़ी और स्मट्टी-गारे से ही नहीं ाऄस्पतु पक्की ईंटों, सीमेंट, कां क्रीट
और लोहे से बनने लगे हैं। शौचालय और रसोाइ का ाअधुस्नकीकरण हाअ है, लेककन ाऄभी भी
ाऄस्धकतर घर पुराने ढांग के ही हैं।
2.1. भारत के स्वशे ष सन्दभभ में ग्रामीण बस्ततयों के प्रकार

 ग्रामीण बस्ततयों के प्रकारों का मुख्य ाअधार ाईनके स्बखराव (Dispersion) और सघनता


(Nucleation) की मात्रा है। बतती के प्रकार का स्नणभय करते समय मकानों की सांख्या और मकानों
के बीच की पारतपररक दूरी को ध्यान में रखा जाता है। भौस्तक और साांतकृ स्तक तत्व ग्रामीण
बस्ततयों के प्रकारों को प्रभास्वत करते हैं। ाआनके प्रभाव से बस्ततयाां सघन या प्रकीणभ हो जाती हैं।
कें रोमुखी (Centrepetal) शस्क्तयों के प्रभाव से बस्ततयाां सघन तथा ाऄपके न्री (Centrifugal)
शस्क्त के प्रभाव से ये प्रकीणभ/स्बखरी हो जाती है। बस्ततयों को स्नम्नस्लस्खत प्रकारों में बाांटा जा
सकता है:
2.1.1. गु स्छित बस्ततयाां (Clustered Settlements)

o गुस्छित बस्ततयों को ाऄनेक भूगोलवेिाओं ने सांकेस्न्रत (Concentrated), गुस्छित (Clustered),


के स्न्रत (Nucleated), और सांकुस्लत (Agglomerated) बस्ततयाां भी कहा है।
o ये प्रायाः खेतों के मध्य ककसी ाउाँचे और बाढ़ ाअकद से सुरस्ित तथानों पर बसी होती हैं।
o ाआनमें सभी मकान एक दूसरे से सटाकर बनाए जाते है।
o गली के दोनों ओर मकानों की दीवारें एक दूसरे से स्मली होती हैं बीच में कोाइ खाली तथान नहीं
होता है।
o कभी-कभी ये ज्यास्मतीय प्रस्तरूप जैसे-ाअयातों, ाऄथवा वगों के रूप में कदखााइ पड़ती है, जबकक
कु ि दूर से ढेर के रूप में कदखााइ पड़ती है।
o ाआन बस्ततयों का ाअकार स्भन्न होता है। ाईच्च घनत्व वाले िेत्रों में िोटी बस्ततयाां 30-40 मकानों से
लेकर सैकड़ों मकानों की होती है।
o ाआस प्रकार की बड़ी बस्ततयों में हजारों की सांख्या में लोग एक-एक बतती में रहते हैं।
2.1.2. ाऄधभ गु स्छित बस्ततयाां (Semi Clustered Settlements)

 ाआन बस्ततयों को पुरवा बस्ततयाां (Hamleted Settlements) भी कहा जाता है। ाआन्हें ाऄधभ स्बखरी
बस्ततयाां (Semi-Sprinkled Settlements) भी कहा है। ये सांस्हत बस्ततयाां मालवा के पठारी
िेत्र तथा नमभदा घाटी में पााइ जाती है।
 ाऄधभ गुस्छित बस्ततयों की स्वशेषताएां
i. मकान एक दूसरे से ाऄलग लेककन एक ही बतती में होते है।
ii. बतती ाऄनेक पुरवों में स्वभास्जत होती है।
iii. कभी-कभी िोटी-िोटी बस्ततयाां, लेककन ाऄसांबद्ध रूप में कदखााइ पड़ती है।
iv. प्रायाः जमीन के मास्लक धनी और प्रभावशाली व्यस्क्त गाांव के मध्य में रहते हैं और गाांव का
एक ही नाम होता है।
v. ाऄलग-ाऄलग पुरवों में प्रायाः ाऄलग-ाऄलग जास्तयों के लोग रहते हैं।
vi. पुरवों के नाम जास्त के नामों पर रखे जाते हैं।

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 ाऄधभ गुस्छित बस्ततयों की ाईत्पस्ि में प्रभावी कारक
o जास्त सांरचना के ाऄलावा ाआन बस्ततयों को स्नम्नस्लस्खत कारक भी प्रभास्वत करते है: (i) भू-

जल की प्रयाभप्त मात्रा, (ii) भू-जलततर का धरातल के स्नकट होना, (iii) कृ स्ष मजदूरों का

बाहल्य (iv) भू-तवास्मयों िारा भूस्म को ठे के पर देना, (v) बस्ततयों का सुरस्ित होना, (vi)
कम लागत में हैण्डपांप और कु एां बनाना।
 स्वतरण:
o भारत का ाईतरी मैदान।
o पस्िम बांगाल, ब्रह्मपुत्र नदी घाटी।
o बुांदल
े खांड एवां बघेलखांड।
o ाअांध्रप्रदेश एवां तस्मलनाडु के मैदानी भाग।
o मस्णपुर तथा िोटानागपुर िेत्र में नदी ककनारों पर, तटीय िेत्रों में ाआस प्रकार की बस्ततयाां
मिु ाअरों के गाांवों के रूप में हो सकती हैं।

2.1.3. पल्ली बस्ततयााँ (Hamleted Settlements)

o ये सघन बस्ततयााँ नहीं होती हैं, स्जनके साथ एक या ाआससे ाऄस्धक पुरवे भी होते हैं। ये वाततव

में मध्यम प्रकार की बस्ततयाां हैं, जो प्रकीणभ और सघन बस्ततयों के मध्य पााइ जाती हैं।
o पल्ली बस्ततयों की स्वशेषताएां:
i. ाआनमें मकान ाऄस्धक सटे नहीं होते हैं।
ii. ाआनका स्वततार ाऄपेिाकृ त बड़े िेत्र में होता है।
iii. मुख्य बतती के साथ एक या ाईससे ाऄस्धक पुरवे होते हैं।
iv. भीड़ बढ़ जाने पर बतती के कें रीय भाग से स्नकलकर लोग गाांव की सीमा से लगे खेतों में घर
बनाकर रहने लगते हैं।

2.1.4. पररस्िप्त बस्ततयाां (Dispersed or Scattered Settlement)

 ाआन्हे पररस्िप्त (Dispersed), एकाकी (isolated), स्बखरी हाइ (Sprinkled) बस्ततयाां भी कहते

हैं। भारत के स्हमाचल प्रदेश, ाईिराखांड, स्सकक्कम और ाईिरी बांगाल में प्रकीणभ बस्ततयाां पााइ जाती
है। भारत के पठारी भाग में भी ऐसी बस्ततयाां हैं।
 स्वशेषताएां :
i. ाआनमें मकान एक-दूसरे से दूर बन होते है। कभी-कभी मकानों के बीच में काइ खेत होते हैं।
ii. ाआनमें लोग ाऄलग-थलग एकाकी रहते हैं।
iii. ाआन बस्ततयों के लोग व्यस्क्तवादी और तवतांत्र जीवन यापन के ाऄभ्यतत होते हैं।
iv. ाआनमें पड़ोसी धमभ की भावना, सामुदास्यक ाऄांतर्थनभरता और सामास्जक ाऄांतर्क्रक्रया नहीं होती।
 स्वतरणाः
i. स्हमालय िेत्र में कश्मीर से लेकर ाऄरूणाचल प्रदेश तक ऐसी बस्ततयाां पााइ जाती हैं।
ii. स्हमालय का तरााइ और भाबर िेत्र।
iii. पस्िमी ाईिर प्रदेश का गांगा के खादर का िेत्र।
iv. पस्िमी घाट पर महाराष्ट्र से के रल तक की ाईच्चभूस्म पर।
v. पांजाब एवां हररयाणा का मैदानी िेत्र।
vi. थार मरुतथल।

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3. ग्रामीण बस्ततयों के प्रस्तरूप (Patterns of Rural
Settlements)
 प्रस्तरूप शब्द से ककसी स्नस्ित ाअकृ स्त या ाईनके क्रमबद्धता पर जमावट का बोध होता हैं, बस्ततयों
के प्रकार में प्रस्तरूप का ाऄथभ ाईसके तथास्नक बसावट के गुणों का बोध कराता है। ग्रामीण बस्ततयों
के प्रस्तरूप स्नधाभरण में ाईनके पयाभवरण की महत्वपूणभ भूस्मका होती है। गाांवों में मकान एक-दूसरे
के साथ ककस प्रकार बनाए गए हैं, ाआसकी झलक ग्रामीण बस्ततयों के प्रस्तरूपों में कदखााइ पड़ती है।
गाांव की ाअकृ स्त और ाअकार ाईसकी स्तथस्त, तथलाकृ स्त और भूभाग(Terrain)के ाउाँचे-स्नचलेपन से
प्रभास्वत होते हैं।
ग्रामीण बस्ततयों का वगीकरण (Classification of Rural Settlements)
ग्रामीण बस्ततयों को स्नम्नस्लस्खत मापदांडों के ाअधार पर वगीकृ त ककया जा सकता हैाः
 स्वन्यास के ाअधार पर (On the Basis of Setting): ाआस वगभ के मुख्य प्रकार ये हैं: मैदानी गाांव,
पठारी गाांव, तटीय गाांव, वन-गाांव और मरूतथलीय गाांव।
 कायों के ाअधार पर (On the basis of functions): ाआस वगभ में कृ षीय गाांव, मिु ाअरों के गाांव,
लकड़हारों के गाांव चरवाहों के गाांव ाअकद ाअते हैं।
 ाअकृ स्त के ाअधार पर बस्ततयाां (On the basis of forms of Shapes of the Settlements):
ाआसमें ज्यामीस्तय रूप और ाअकृ स्त के गाांव हो सकते हैं।
1. रै स्खक ाअकृ स्त की बतती (Linear Pattern): ऐसी बस्ततयों का स्वकास सड़कों, रे ल मागों,
नकदयों, नहरों या सीधे समुर तट के साथ-साथ होता है। ाआन बस्ततयों में मकान और बाड़े, सड़कों,
और नहरों और नकदयों के समाांतर बने होते हैं तथा एक िृांखला में िेणीबद्ध मकान होते है। पवभतीय
िेत्र में भी ऐसी बस्ततयाां नकदयों के ककनारे स्वकस्सत हो जाती है।

2. क्रास की ाअकृ स्त की बतती (Cross Shaped Settlemen): ऐसी बस्ततयों का स्वकास चौराहों
पर प्रारां भ होता हैं जहााँ चौराहे से चारों कदशाओं में बसाव ाअरां भ हो जाता है।

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3. ाअयताकार प्रस्तरूप (Rectangular Pattern) : यह बहत ही सामान्य प्रकार है, जो कृ स्ष जोतों
के चारों ओर स्वकस्सत होता है। ाआनका स्नमाभण समतल िेत्रों में होता है यहााँ सड़कें एक दूसरे को
समकोण पर काटती हैं।
4. तारक ाअकृ स्त की बतती (Star like Pattern): कभी-कभी काइ सड़क मागभ स्वस्भन्न कदशाओं से
ाअकर एक बबदु पर स्मलते हैं। ऐसे तथानों पर बसे गाांवों में सभी कदशाओं से ाअने वाली सड़कों के
ककनारे मकान बने होते हैं। स्जनके एक तारे जैसी ाअकृ स्त बन जाती है।

5. 'T'ाअकृ स्त की बतती ('T' Shape Settlement): ऐसी बस्ततयाां वहाां स्वकस्सत होती हैं जहाां कोाइ
सड़क मुख्य सड़क से ाअकर स्मलती है और वहीं खत्म हो जाती है। ाऄथाभत् ऐसी बस्ततयाां सड़क के
स्तराहे पर स्वकस्सत होती हैं। ऐसे तथानों पर सड़कों के ककनारे बने मकानों से 'T'ाअकृ स्त की बतती
स्वकस्सत हो जाती है।
6. ‘Y’ ाअकार की बतती ('Y' Shape Settlement):- ऐसी बस्ततयों का स्नमाभण ाईन िेत्रों में होता
है जहााँ दो मागभ ाअकर तीसरे मागभ से स्मलते हैं।
7. वृिाकार बतती (Circular Pattern): ऐसी बस्ततयाां मुख्य रूप से ककसी तालाब, झील, हरे -भरे
मैदान या बाग के चारों ओर स्वकस्सत हो जाती है। प. बांगाल के गाांव में तालाब या पोखर ाऄवश्य
होता है। कभी-कभी गाांव ाआस प्रकार स्नयोस्जत ककया जाता है कक मध्यवती भाग खुला रहे। मध्य में
स्तथत ाआस खुले तथान का ाईपयोग रास्त्र में पशुओं को जांगीली जानवरों से सुरस्ित रखने के स्लए
ककया जाता है।

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8. युग्म ाअकृ स्त की बतती (Double Pattern): ऐसी बस्ततयाां सामान्यताः वहाां बसती है जहाां कोाइ
सड़क ककसी नहर या नदी पर बने पुल से गुजरती है। ाआन तथानों पर नदी, नहर और सड़क के
ककनारे पर मकान बन जाते हैं। ाआनसे युग्म ाअकृ स्त की बतती का प्रस्तरूप बन जाता है।
9. ाऄरीय स्त्रज्या ाअकृ स्त (Radial Pattern): ाआस प्रकार के प्रस्तरूप में काइ सड़कें या गस्लयाां ककसी
के न्रीय तथान जैसे जल का स्रोत (तालाब, कु ाअाँ ), मांकदर, मस्तजद, व्यावसास्यक गस्तस्वस्ध के कें र
या खुली जगह की ओर ाऄस्भमुख होती हैं।
10. पांखनुमा ाअकृ स्त (Fan Pattern): ाआस प्रकार का प्रस्तरूप नदी डेल्टाओं, जलोढ़ पांख वाले िेत्रों में
देखने को स्मलता है। ाईदाहरण के स्लए स्हमालय में जलोढ़ पख िेत्रों में तथा गोदावरी, कृ ष्णा नदी
डेल्टा िेत्र में।
11. सीढ़ीनुमा प्रस्तरूप: यह प्रस्तरूप पहाड़ी ढलानों पर स्मलते है। ाआन्हीं ढलानों पर लोगों िारा
सीढ़ीनुमा खेती भी की जाती है। घरों की स्तथस्त कें रीकृ त या स्बखरे हए रूप में स्मलती है।
ाईदाहरण के स्लए स्हमालय, ाअल्प्स, रॉकी पवभतमालाओं पर।

12. हेररग बोन प्रस्तरुप: ाआस प्रस्तरूप के ाऄांतगभत एक ाअयताकार िेत्र में एक मुख्य सड़क से सभी ाईप-
सड़कें स्नस्ित कोण पर ाअकर स्मलती हैं। यह प्रस्तरूप हेररग मिली के कां काल समान स्वकस्सत
होता है।
4. ग्रामीण बस्ततयों के प्रकायभ (Functions of Rural
Settlements)
 ग्रामीण बस्ततयाां प्राथस्मक कक्रयाकलापों पर ाअधाररत होती हैं। स्जन गाांवों में कृ स्ष महत्वपूणभ
कक्रया है ाईस गाांव को कृ स्ष गाांव कहते हैं। ऐसे ाऄस्धकतर गाांव ाईपजााउ मैदानों और नदी घारटयों में
स्वकस्सत होते हैं। घास भूस्मयों में रहने वाले लोग सामान्यताः पशुपालन में लगे होते हैं। ऐसे लोगों
की बस्ततयों को पशुचारस्णक गाांव कहा जाता है।
 खस्नज सांपन्न िेत्रों में खस्नजों के ाईपयोग करने से काइ बस्ततयाां बस जाती हैं खनन कक्रया में लगे
िस्मकों िारा बसी बस्ततयों को खनन बस्ततयाां कहा जा सकता है। ाआसी प्रकार जलाशयों के स्नकट
बसी बस्ततयों को जहाां बहसांख्यक लोग मत्तयन कक्रयाकलाप में लगे हैं। मत्तयन गाांव कहलाते हैं।
जो लोग वनों के स्नकट लकड़ी काटने या लकड़ी ाआकट्ठा करने ाऄथवा वन ाईत्पादों को ाआकट्ठा करने में
लगे हैं, ाईनके िारा बसााइ बस्ततयों को वनखांड गाांव कहते हैं।

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 बस्ततयों के प्रकायभ वे कक्रयाकलाप हैं जो वहाां के रहने वाले ाऄस्धकतर लोग करते हैं। ाआसका
ाऄस्भप्राय यह नहीं है कक प्रत्येक बतती का के वल एक ही प्रकायभ है। हो सकता है कक कु ि लोग सेवा
प्रदान करने में लगे हो। ाईदाहरण के स्लए हर गाांव में लोगों की कदन-प्रस्तकदन की ाअवश्यकताओं
की पूर्थत के स्लए एक -दो दुकानें होती हैं। गाांवों में कु ि एक कारीगर भी होते हैं जो औजार बनाते
हैं ाऄथवा औजारों की मरम्मत करते हैं। परां तु प्रमुख व्यवसाय के ाअधार पर ही बतती के प्रकायभ का
प्रकार स्नधाभररत ककया जाता है।

5. ग्रामीण बस्ततयों को प्रभास्वत करने वाले कारक


 ऐसे ाऄनेक कारक हैं जो ग्रामीण बस्ततयों के प्रकार को स्नधाभररत करते हैं। ककसी भी बतती को
बसाने से पूवभ लोग काइ बातों पर स्वचार करते हैं। लोगों और पशुओं के पीने के स्लए पानी की
ाईपलब्धता ाईपजााउ भूस्म, ाआमारती सामान ाअकद को ध्यान में रखकर ही बतती का तथान चुना
जाता था। ग्रामीण बतती के स्लए स्तथस्त के चुनाव में मुख्य रूप से स्नम्नस्लस्खत ाअधारों पर ध्यान
रखा जाता था:
o भौस्तक दशाएां : ाईच्चावच, मृदा, प्राकृ स्तक वनतपस्त, समुर तल से ाउाँचााइ, जलवायु।

o जल (Water Supply): ककसी बतती के स्वकास के स्लए जल-ाअपूर्थत के स्नयस्मत स्रोत


ाअवश्यक है। ाआसस्लए बस्ततयाां हमेशा जल के स्रेात के स्नकट; जैस-े नदी ाऄथवा झील ाऄथवा
जहाां भौम जल ाअसानी से सुलभ हो, बसााइ जाती है। जल के वल घरे लू ाईपयोग के स्लए ही
ाअवश्यक नहीं होता है, ाऄस्पतु बसचााइ, मत्तयन और नौसांचालन ाअकद के स्लए भी ाअवश्यक
है।
o साांतकृ स्तक और नृजातीय कारक : गाांव में कौन-सी जास्तयाां या जनजास्तयाां रहती हैं तथा
लोग ककन धमों के ाऄनुयायी हैं, ाअर्थथक एवां सामास्जक ाऄांतरस्नभभरता, सामास्जक ाईत्सव,
सामास्जक सांगठन।
o प्राथस्मक सांसाधनों के ाईपयोग करने की सहजता (Ease of Using Primary
Resources): ग्रामीण बस्ततयाां प्राथस्मक सांसाधनों पर स्नभभर होने के कारण वहीं बसााइ
जाती है, जहाां प्राथस्मक सांसाधन सहज सुलभ होते हैं और स्जनका ाअसानी से ाईपयोग ककया
जा सके । ाआस प्रकार खेस्तहर बस्ततयाां ाईपजााउ मृदा वाले िेत्रों में स्वकस्सत होती हैं। मिली
पकड़ने वालों की ग्रामीण बस्ततयाां जल खांडो के स्नकट पनपती हैं। ाआसी प्रकार जो बस्ततयाां
ाऄपने स्नवभहन के स्लए वनों पर स्नभभर हैं वे वन िेत्रों के पास पनपती हैं। यूरोप में लोग
दलदली ाऄथवा स्नचले िेत्रों में रहना पसांद नहीं करते। ाआसस्लए यहाां गाांव लहरदार िेत्रों में
ाअ बसते हैं। दस्िण पूवभ एस्शया में लोग नदी घारटयों तटीय मैदानों और स्नचले भू-भागों में
रहना पसांद करते हैं जहाां चावल जैसी फसलें ाईगााइ जा सकें । ाआस प्रकार की बतती ‘ाअरभ बबदु
बस्ततयाां’ कहलाती है।
o ाईच्च भूस्म बस्ततयाां (Upland Settlements): जहाां ककसी बतती को पनपने के स्लए जल
ाअवश्यक है, वहाां ाआसकी ाऄस्धकता भी हास्नकारक है। बाढ़ प्रवण िेत्रों में बस्ततयाां ाईच्च भूस्म
पर स्वकस्सत होती हैं। ाआस प्रकार की बस्ततयों को शुष्क बबदु बस्ततयाां कहा जाता है। नदी
घारटयों में बस्ततयाां वेकदकाओं और तटबांधों पर स्वकस्सत होती हैं। भारी वषाभ वाले िेत्रों तथा
दलदल दशाओं वाले िेत्रों में लोग ाऄपने घरों कों बासों के खम्भों पर बनाते हैं।
o ाआमारती सामान की ाईपलब्धता (Building Material): बतती बसाते समय ाआमारती सामान
की ाईपलब्धता का भी ध्यान रखा जाता है। जैसे खान से पत्थर और वनों से लकड़ी स्मल जाती
है। वनों में मकान प्रायाः लकड़ी के ही बनाए जाते है।

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o सुरिा (Defence): मनुष्य सुरस्ित तथान पर रहना पसांद करता है। चोर, डाकु ओं, शत्रु
समुदायों से सुरिा के ाईपाय ककए जाते थे। ाऄताः राजनैस्तक ाऄस्तथरता, युद्ध और शत्रुता रखने
वाले पड़ोस्सयों से सुरिा के स्लए सुरस्ित पहास्ड़यों और िीपों पर बस्ततयाां बसाते थे।
नााआजीररया में लोग ाआन्सेलबगभ पर बस्ततयाां बसाते थे, क्योंकक यह एक सुरस्ित तथान होता
था। भारत के ाऄस्धकतर ककले ाईां चे तथानों या पहास्ड़यों पर बने होते हैं।
o स्नयोस्जत बस्ततयाां (Planned settlements):कु ि गाांव भी स्नयोस्जत होते हैं। ऐसे गाांव
सरकार िारा ाऄस्धग्रहीत भूस्म पर बसाए जाते हैं। ऐसे गाांवों का स्नयोजन सरकार करती है।
स्नवास्सयों की ाआसमें कोाइ भूस्मका नहीं होती। सरकार ऐसे स्नयोस्जत गाांवों के ाअवास, जल
की सुस्वधाएां और ाऄन्य ाऄवसांरचनाएां ाईपलबध कराती है। ाआस्थयोस्पया में ग्रामीकरण की
योजना तथा भारत में ाआां कदरा गाांधी नहर कमाांड िेत्र में नहर कालोनी, स्नयोस्जत गाांवों के
ाऄछिे ाईदाहरण हैं।
6. ग्रामीण बस्ततयों की समतयाएां (Problems of rural
Settlements)
सांसार के स्वकासशील देशों में ग्रामीण बस्ततयों की बड़ी भारी सांख्या है। ाआनमें ाऄवसांरचनात्मक
सुस्वधाओं की बहत कमी है। योजनाकारों के सामने ये बहत बड़ी चुनौती और ाऄवसर है कक गाांवों को
ककस प्रकार सुस्वधा सांपन्न बनाया जाए। गाांवों की समतयाएां स्नम्न हैं:
 पेयजल का ाऄभावाः सांसार के ाऄस्धकतर गाांवों में पेयजल की बड़ी भारी समतया है। मस्हलाओं को
काइ-काइ कक.मी. दूर से पानी लाना पड़ता है। पानी के कमी का ाऄथभ बसचााइ की सुस्वधाओं के
ाऄभाव से भी है। पानी की कमी से फसलों को नुकसान होता हैं।
 जल वास्हत रोगाः पेयजल की गुणविा ठीक न होने से जल वास्हत रोग जैसे-हैजा, पीस्लया ाअकद
फै लते हैं।
 बाढ़ और सूखााः दस्िण एस्शया के देशों के गाांव बाढ़ और सूखे दोनों की ही मार सहने को ाऄस्भशप्त
है। सूखे और बाढ़ की पुनरावृस्ि हर वषों में चक्रीय रूप में होती रहती है। बसचााइ के ाऄभाव में
सूखा पड़ने पर जन-धन की भारी हास्न होती है।
 शौचालयों और कचरे की समतयााः गाांव में शौचालयों के न होने से मस्हलाओं को बहत परे शानी
ाईठानी पड़ती है। वे ाआसी कारण ाऄनेक रोगों की स्शकार हो जाती है। गाांवों में कचरे की स्नपटान
की कोाइ सुचारु व्यवतथा नहीं है। गाांवों के चारों ओर कचरे के ढेर, ाआसी कहानी का बखान करते हैं।
 मकानों की गुणविा: स्वस्भन्न पयाभवरणों में स्भन्न प्रकार के मकान बनाए जाते हैं। स्मट्टी, घास-फू स
और लकड़ी से बने मकानों को ाअग, बाढ़, भारी वषाभ ाअकद से बहत नुकसान होता है। हर साल
ाआनकी मरम्मत जरूरी होती है। ाआन मकानों में प्रकाश और हवा के ाअने की व्यवतथा प्रायाः नहीं
होती।
 मानव और पशु एक साथाः पशुओं को और ाईनके चारे को ाऄपने घर में या घर के ाऄस्त स्नकट घेर में
रहना ककसान की मजबूरी है। लेककन ाआससे ाऄनेक रोगों के फै लने का खतरा बना रहता है।
 पररवहन और सांचाराः भारत में गाांव का प्रशासन पांचायत जैसी तथानीय सांतथाओं के हाथों में होता
है स्जससे पास पक्की सड़कें और ाअधुस्नक सांचार सुस्वधाएां ाईपलब्ध कराने के स्लए पयाभप्त सांसाधन
नहीं होते हैं। ाऄताः ाअपातकाल में गाांव शेष दुस्नया से कट जाते हैं। ाऄनेक गाांव वषाभ ाऊतु में सांपकभ
स्वहीन बने रहते हैं।
 तवात्य और स्शिााः गाांवों में तवात्य और स्शिा की सुस्वधाओं की कमी है। तवात्य और स्शिा
सेवाओं के ाऄभाव में गाांवों के लोग ाऄपनी कु शलताओं और व्यस्क्तत्व में भली प्रकार से स्वकास नहीं
कर पाते हैं।
 पयाभवरणीय समतयाएां: कृ स्ष व्यवतथा में पररवतभन से ाईत्पन्न स्वस्भन्न समतयाएां, मृदा स्नम्नीकरण,
प्रदूषण ाअकद।
 ाईपरोक्त समतयाएां ाईन गाांवों में और भी ज्यादा हैं जहाां ग्रामीकरण सही ढांग से नहीं हाअ है और घर
दूर-दूर पर फै ले हैं।

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7. नगरीय बस्ततयाां : एक पररचय
 ‘नगर’ शब्द की ाईत्पस्ि ग्रीक शब्द ाऄबभन्स (URBANUS) से हाइ है। स्जसका ाऄथभ भर ाऄथवा स्शष्ट
और सुसांतकृ त है। िोटी नगर बस्ततयों को कतबा कहा जाता है और बड़ी नगर बस्ततयों को नगर
कहते हैं। नगरों का ाईद्भव स्वगत 7000 वषों में गैर-कृ षीय बस्ततयों के रूप में हाअ है। नगरों ने
ाअर्थथक, प्रशासस्नक, सामास्जक और राजनीस्तक प्रकायों के स्लए ाअदशभ कें रों के रूपों में सेवा की
है। नगरीय िेत्रों में रहने वाले लोग गैर-कृ षीय कक्रयाकलापों जैसे - व्यापार वास्णज्य, प्रशासस्नक
तथा प्रबांध कायों में लगे होते हैं। ाआस प्रकार ाआन बस्ततयों में स्ितीयक, तृतीयक तथा चतुथक

कक्रयाकलाप ाऄस्धक ककये जाते हैं।
 नगर ाअर्थथक प्रगस्त के सांचालक रहे हैं। स्वकाशील देशों के सकल राष्ट्रीय ाईत्पाद में नगरों का
योगदान 60 से 80 प्रस्तशत तक हैं। नगर ाअर्थथक स्वकास के साथ-साथ समतयाओं को भी जन्म देते
हैं। नगरीकरण से ग्रामीण और नगरीय दोनों बस्ततयाां ही प्रभास्वत होती हैं। नगरीकरण को कु ि
लोग ग्रामीण जनसांख्या से नगरीय जनसांख्या में रूपान्तरण मात्र मानते हैं। लेककन यह धारणा सही
नहीं है। नगरीकरण में ग्रामीण जनसांख्या के नगरीय जनसांख्या में रूप पररवतभन मात्रात्मक (ाऄस्धक
जनसांख्या, ाऄस्धक मकान, ाऄस्धक सड़कें ाअकद) तथा गुणात्मक (बेहतर जीवन ततर, सुख-सुस्वधाएां
ाअकद) हैं।
 ाईपनगरीय: स्वगत कु ि वषों में बस्ततयों का एक नया वगभ ाईभरा है। ाआन्हें ाईपनगर (Suburban
settlement) या नगरोन्मुख ग्राम (Rurban Settlement) कहते हैं। नगरों के ाअस-पास ऐसी
ाऄनेक बस्ततयाां बस गाइ हैं, जहाां नगरों में काम करने वाले लोग रहते हैं और काम के स्लए प्रस्तकदन
नगरों में चले जाते हैं।
 मेगास्सटी: सांयुक्त राष्ट्र की पररभाषा के ाऄनुसार 1 करोड़ से ाऄस्धक जनसांख्या वाला नगर
मेगास्सटी कहलाता है। लेककन कु ि भूगोलवेिा ऐसे नगरों को मेगास्सटी मानते हैं, स्जनकी
जनसांख्या महानगर के समान हैं।
 नगरीकरण में ग्रामीण जनसांख्या के नगरीय जनसांख्या के रूप में पररवतभन के साथ सामास्जक और
ाअर्थथक पररवतभन भी होते हैं। ये पररवतभन मात्रात्मक (ाऄस्धक जनसांख्या, ाऄस्धक मकान, ाऄस्धक
सड़कें ाअकद) तथा गुणात्मक (बेहतर जीवन ततर, सुख सुस्वधाएां ाअकद) हैं। वतभमान में स्वश्व की
लगभग 50 प्रस्तशत जनसांख्या नगरों में रहती है। सन् 1750 में के वल 3 प्रस्तशत जनसांख्या
नगरीय थी, जो 1900 में बढ़कर 14 प्रस्तशत हो गाइ एवां 1950 में 30 प्रस्तशत हो गाइ। 1950 में
के वल 83 नगर (दस लाख) जनसांख्या वाले थे। 1996 में ाआनकी सांख्या 280 थी। सन् 2015 तक
सांसार में दस लाखी नगरों की सांख्या 500 से ाऄस्धक हो जाएगी। लांदन सांसार का पहला ऐसा नगर
है, स्जसकी जनसांख्या सन् 1810 में ही दस लाख हो गाइ थी।
वषभ प्रस्तशत
1800 3
1850 6
1900 14
1950 30
1982 37
2008 49
2016 54.5
2030 60
(नगरीय िेत्रों में रहने वाली स्वश्व की जनसांख्या का प्रस्तशत)

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 सबसे ाऄस्धक नगरीय जनसांख्या वाले देशाः बसगापुर (100%), बेस्ल्जयम (97%), ाआजरायल
(91%), ाउरुग्वे (91%), नीदरलैंड और यू. के . (89%)।
 सबसे कम नगरीय जनसांख्या वाले देशाः रवाांडा (6%), भूटान (8%), बुरुांडी (8%), नेपाल
(11%), तवाजीलैण्ड (12%)।

नगर की पहचान
 हम सभी नगरों को देखते, महसूस करते और ाईनमें स्नवास भी करते रहे हैं। लेककन नगर वाततव में
ककस बतती को कहा जाता हैं? नगर, ककस तरह से गाांवों से स्भन्न है। ाआन प्रश्नों के ाईिर ाऄांस्तम रूप
से नहीं कदए जा सके है। नगरों की स्जतनी भी पररभाषाएां दी गाइ, ाईनमें कोाइ न कोाइ त्रुरट रह ही
जाती थी। ाऄस्धकतर भूगोलवेिाओं ने नगरों को गाांवों से ाऄलग करने के स्लए जनसांख्या के
सांकेन्रण और लोगों के गैर-कृ स्ष कायों में लगे होने को ाअधार बनाया हैं।
 प्रस्सद्ध मानव भूगोलवेिा ब्लाश (फ्राांस) के ाऄनुसार ‘‘नगर एक व्यापक िेत्र वाला सामास्जक
सांगठन होता है, यह मानव सभ्यता की ाईस सीढ़ी का प्रस्तस्नस्धत्व करता है, स्जस तक कु ि िेत्र
नहीं पहांच पाए हैं और जहाां शायद कभी पहांच भी न सकें ।’’ नगरों ाऄथवा नगरीय िेत्रों की
पररभाषा एक-दूसरे देश में स्भन्न-स्भन्न होती है।
 ाआनके ाऄस्तररक्त प्रमुख स्नयोस्जत कालोस्नयों, सघन औद्योस्गक स्वकास िेत्रों, रे लवे कालोस्नयों,
प्रमुख पयभटन के न्रों ाअकद को भी नगर की पररभाषा में रखा गया है। ाआनके साथ ही मुख्य नगर से
सटकर बसााइ गाइ नाइ बस्ततयाां जैसे रे लवे कालोनी, स्वश्वस्वद्यालय पररसर, पिन िेत्र, सैस्नक
िावनी ाअकद को भी नगर ही माना गया है।
7.1. नगरों की स्तथस्त और स्वन्यास

 स्तथस्त से ाऄस्भप्राय नगरों की ाऄवस्तथस्त से है और स्वन्यास का ाऄथभ नगरों के चारों ओर का िेत्र।


नगरों और कतबों के प्रकायों को स्नधाभररत करने में दोनों ही महत्वपूणभ हैं। प्राचीन काल में जल की
ाईपलब्धता, भवन स्नमाभण सामग्री और ाईपजााउ भूस्मयाां नगरीय बस्ततयों की स्तथस्त का ाअधार
हाअ करती थी। ाअज भी ये ाअधार साथभक हैं परां तु प्रौद्योस्गकी महत्वपूणभ भूस्मका स्नभाती है।
ाईदाहरण के स्लए िु ट्टी मनाने के स्लए ाईपयुक्त तथल, औद्योस्गक नगर से स्भन्न स्तथस्त हो सकती है।
ाईनकी ाऄनुकूल स्तथस्त और स्वन्यास के कारण काइ नगरीय कें र बहप्रकार्थयय हो गए हैं। सामररक
नगर जैसे - िावनी नगर प्राकृ स्तक सुरिा वाली स्तथस्त चाहते हैं। पिन नगरों को स्भन्न प्रकार की
स्तथस्त व स्वन्यास ाऄपेस्ित होती है।
 ाआस स्तथस्त के ाऄस्तररस्क्त स्वन्यास ककसी तथान की बनावट तथा भौस्तक पदाथों की ाईपलस्ब्ध
स्नधाभररत करता है। यह नगरों के भावी स्वकास में महत्वपूणभ भूस्मका स्नभाता है। ाईदाहरण के स्लए
जो नगर कें र महत्वपूणभ व्यापार मागभ के स्नकट स्तथत होते हैं वे तीव्र स्वकास का ाऄनुभव करते हैं।
ाअधुस्नक नगर वतभमान ाईपलब्ध प्रौद्योस्गकी के ाअधार पर सुदरू वती ाऄवस्तथस्तयों पर भी तथास्पत
ककए जा सकते हैं। ाऄवस्तथस्त और स्तथस्त की तुलना में स्वन्यास नगरीय मूल्यों और स्वततार लाने
में बीच की भूस्मका स्नभाता है।
 प्राचीन काल में नगरीय बस्ततयों की स्तथस्त के ाअधार जल की ाईपलब्धता, ाआमारती सामान (भवन
स्नमाभण सामग्री) तथा ाईपजााउ भूस्म हाअ करती थी। ाअज भी ाआन ाअधारों का पयाभप्त महत्व है।
लेककन ाअधुस्नक प्रौद्योस्गकी के बलबूते पर नगर ाआन ाअधारों से दूर भी बसाए जा सकते हैं। जल
पााआपलााआन िारा लाया जा सकता है तथा भवन स्नमाभण सामग्री सड़कों, रे लों या जहाजों िारा
दूरतथ तथानों से भी लााइ जा सकती है।
 स्तथस्त (site) और ाऄवस्तथस्त (Situation): स्तथस्त की तुलना में ाऄवस्तथस्त नगरों के स्वततार में
महत्वपूणभ भूस्मका स्नभाती है। महत्वपूणभ व्यापाररक मागभ पर बसे नगरों का स्वततार ाऄपेिाकृ त
ाऄस्धक तेजी से हाअ है।

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नगरों की स्वशेषताएाँ
o सघन जनसांख्या
o बस्ततयों का कें रीकरण
o स्मली-जुली राजनीस्तक, सामास्जक तथा ाअर्थथक सांरचना

o नगर ाऄपने स्लए खाद्य ाअपूर्थत, कच्चे माल तथा ाऄन्य सेवाएां ाऄपने ाआदभ-स्गदभ के ग्रामीण िेत्रों से
प्राप्त करते हैं।
o ग्रामीण िेत्रों को तैयार वततुएां तथा सेवाएां प्रदान करते हैं।
o नगर वततुओं और सेवाओं के ाअदान-प्रदान के कें र के रूप में काम करते हैं।
o नगर पूरे राज्य ाऄथवा देश के प्रशासन और राजनीस्तक गस्तस्वस्धयों के कें र भी होते है।

7.2. नगरीय- ग्रामीण ाऄां त सं बां ध (Town-Village Inter-relationship)

 ग्रामीण और नगरीय बस्ततयाां एक-दूसरे की पूरक हैं। गाांवों के कृ स्ष ाईत्पादों की नगरवास्सयों को
जरूरत होती है। ग्रामवासी नगरों पर औद्योस्गक वततुओं, स्चककत्सा और स्शिा सुस्वधाओं के स्लए
ाअस्ित रहते हैं। ाआस दृस्ष्ट से गाांव और नगर एक-दूसरे के प्रस्ततपधी नहीं ाऄस्पतु पूरक है। गाांव और
नगर सड़कों या रे लों िारा एक-दूसरे से जुड़े हए हैं तथा एक-दूसरे पर ाअस्ित हैं। गाांव और नगरों
में स्नम्नस्लस्खत चार प्रकार के सांबांध स्वकस्सत होते हैं:
o व्यापाररक सांबध
ां : ग्रामीण बस्ततयाां व्यापार के माध्यम से नगरों और कतबों से जुड़ी है।
गाांववासी ाऄपने ाऄस्धशेष ाईत्पादों को ले जाकर नगरों में बेचते हैं। ाआनके बदले में वे ाईद्योगों में
स्नर्थमत ाऄपने ाईपभोग की वततुएां खरीदते हैं। नगर व्यापार और ाईद्योगों के के न्र होते हैं। नगर
के ाऄनेक व्यापारी ाऄपने ग्रामीण ग्राहकों को ध्यान में रखकर ही दुकानों में वे सब वततुएां रखते
हैं, स्जनकी गाांवों में माांग होती है।
o सामास्जक सांबध
ां : नगर साांतकृ स्तक और मनोरां जन की गस्तस्वस्धयों के के न्र होते हैं। स्सनेमा,

मेल,े धार्थमक ाअयोजन, प्रदशभनी ाअकद नगरों की ही स्वशेषताएां हैं। यकद गाांववासी ाआन सेवाओं
का मनोरां जन के स्लए ाईपयोग करते हैं तो ये काइ सामास्जक बुरााआयाां दूर करने में मदद कर
सकते हैं। नगर गाांवों के स्लए रोजगार और स्शिा की सुस्वधाओं का सृजन करते हैं।
o पररवहनीय सांबध
ां : ग्रामवासी काम के स्लए, मनोरां जन और खरीददारी ाअकद के स्लए, जब
नगरों में जाते हैं, तो पररवहन के साधनों का ाईपयोग करते हैं। यह नगरवास्सयों की ाअय का
एक स्रोत है।
o परतपर पूरकता: यद्यस्प काइ स्विान यह सोचते हैं कक ग्रामीण और नगर िेत्र एक-दूसरे से पूरी
तरह स्भन्न हैं, परां तु यह वाततस्वकता नहीं है। गाांव और कतबे या नगर सामास्जक और ाअर्थथक
िेत्रों में एक-दूसरे के पूरक है। ाईनकी ाअर्थथक, सामास्जक और पयाभवरणीय ाअवश्यकताओं के
सांतल
ु न से दोनों के योगदानों को बढ़ाया जा सकता है।

7.3. नगरीय बस्ततयों का वगीकरण

नगरों में रहने वाली जनसांख्या को नगरीय जनसांख्या तथा गाांवों में रहने वाली जनसांख्या को ग्रामीण
जनसांख्या कहते हैं। गाांवों और नगरों के लिण स्भन्न होते हैं। ाआन्हीं लिणों के ाअधार पर ाईन्हें गाांव या
नगर कहा जाता हैाः
o जनसांख्या का ाअकाराः नगरों को गाांवों से ाऄलग करने के स्लए ककसी स्नस्ित जनसांख्या को
ाअधार माना जाता है। जैसे डेनमाकभ , तवीडन और कफनलैण्ड में 250 लोगों की बतती को नगर
कहा जाता है। ाआसके स्वपरीत भारत में 5,000 लोगों की बतती ही नगर कहलाती है।
सामान्यताः नगरीय बस्ततयाां ग्रामीण बस्ततयों से बड़ी होती है। जनसांख्या के ाअकार के ाअधार

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पर नगरीय बस्ततयों और ग्रामीण बस्ततयों में ाऄांतर का कोाइ सवभमान्य मापदांड नहीं है। जापान
में नगरीय बस्ततयाां कहलाने के स्लए 30,000 जनसांख्या ाऄपेस्ित है। ाआसके ाऄलावा नगरीय
बस्ततयाां कहलाने के स्लए जनसांख्या के घनत्व को भी ध्यान में रखा जाता है। यह भी तवीकारा
गया है कक नगरों में जनसांख्या घनत्व ग्रामीण िेत्रों से ाऄस्धक होता है। भारत में नगरीय बतती
को पररभास्षत करने के स्लए कम से कम जनसांख्या घनत्व 400 व्यस्क्त प्रस्तवगभ ककलोमीटर
होना चास्हए।
o ाअर्थथक ाअधार या व्यावसास्यक सांरचनााः कु ि देशों में नगर की पररभाषा में वहाां की
जनसांख्या की ाअर्थथक सांरचना को भी ाअधार बनाया जाता है। गाांवों के ाऄस्धकतर लोग कृ स्ष
कायों में तथा नगरों में ाऄस्धकतर लोग गैर-कृ स्ष कायों में लगे होते हैं। ाआटली में वह बतती
नगर कहलाती है स्जससे 50 प्रस्तशत से ाऄस्धक ाअर्थथक रूप से ाईत्पादक जनसांख्या गैर-कृ षीय

कक्रयाकलापों में लगी होती है। भारत में नगरों की पररभाषा में 75% से ाऄस्धक जनसांख्या
गैर-कृ स्ष कायों में लगी होती है। भारत में नगरों की पररभाषा में 75% से ाऄस्धक जनसांख्या
गैर-कृ स्ष कायों में लगी होनी चास्हए।
o प्रशासस्नक ाअधाराः नगरों की पररभाषा में प्रशासन भी एक मुख्य ाअधार है। भारत में वही
बतती नगर कहलाती है, जहाां नगर स्नगम, नगरपास्लका, िावनी बोडभ ाऄथवा नोटीफााआड
टााईन एररया कमेटी हो। कु ि देशों में प्रशासस्नक कायभ करने वाली िोटी से िोटी बतती को
भी नगर कहा जाता है। लैरटन ाऄमेररकी देशों, ब्राजील और बोस्लस्वया में िोटे से िोटा
प्रशासस्नक के न्र नगर कहलाता है।

7.4. नगरों का प्रकायाभ त्मक वगीकरण (Functional Classification of Towns)

 ककसी स्वशेष कायभ के ाअधार पर नगर प्रस्सद्ध हो जाते हैं। जैसे-हररिार एक तीथभ तथान (धार्थमक
नगर) है। यह ाऄलग बात है कक ाऄब यहाां स्बजली के बड़े ाईपकरण बनाने वाला ाईद्योग भी स्वकस्सत
हो गया है। वाराणसी प्राचीन काल से स्वद्या का के न्र रहा है। लेककन नगरों के कायभ सदैव एक से
नहीं रहते। वे समय और ाअवश्यकता के ाऄनुसार बदलते रहते हैं। जो नगर कभी गाांवों के हाट
बाजार थे, ाअज औद्योस्गक नगर बन गए हैं। प्रकायों के ाअधार पर नगरों का स्नम्न प्रकार से
वगीकरण ककया जा सकता हैं यह ाऄलग बात है कक एक स्वस्शष्ट वगभ के नगर में ाऄन्य कायभ भी
महत्वपूणभ हो सकते हैं:
 प्रशासकीय नगराः ये नगर देश या राज्यों की राजधास्नयाां होती हैं। यहीं से के न्र और राज्यों का
प्रशासन चलाया जाता है। यहीं से के न्र और राज्यों का प्रशासन चलाया जाता हैं कु ि नगर स्जलों
के मुख्यालय भी होते है। नाइ कदल्ली, कै नबरा (ऑतरेस्लया), मातको, बीबजग, ाअकदस ाऄबाबा
(ाआथोस्पया), वाबशगटन डी.सी., पेररस और लांदन राष्ट्रीय राजधास्नयाां हैं।
 सुरिा नगराः ाआन नगरों को सुरिा की दृस्ष्ट से बसाया गया था। ये तीन प्रकार के हैाः
o ककला नगराः प्राचीनकाल में राजा-महाराजा ाऄपनी सुरिा के स्लए ककले बनवाते थे। ककलों के
चारों ओर नगर बस जाता था। जोधपुर, स्चिौडगढ़ ाअकद ऐसे ही नगर हैं।
o गैरीसन नगराः ऐसे नगरों में सेना के दतते रहते हैं। एक ऐसा ही नगर महू, ाआां दौर के स्नकट है।

महू (Mhow) स्मस्लरी हेडक्वाटभर ऑफ वार का सांस्िप्त रूप है।


o नौसैस्नक नगराः नौसैस्नक गस्तस्वस्धयों के के न्रों ने भी नगरों का रूप धारण कर स्लया है।
भारत के पस्िमी तट पर कोस्च्च और कारवार नौसैस्नक नगर हैं।
 साांतकृ स्तक नगराः ये नगर सामान्यताः ाईच्च स्शिा, कला-सांतकृ स्त और मनोरां जन ाअकद के के न्र होते
हैं। ाआनमें से कु ि तीथभतथान भी होते हैं। ाआस दृस्ष्ट से ये तीन प्रकार के हो सकते हैं:

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o स्शिा के न्राः ये नगर ाईच्च स्शिा के के न्र होते हैं। ाआन नगरों में स्शिा की प्राचीन परां परा होती
है। ये नगर ाअधुस्नकतम स्शिा सुस्वधाओं से पूणभ होते हैं। ऑक्सफ़ोडभ, कै स्म्ब्रज, वाराणसी
(काशी), स्पलानी (राजतथान) ाअकद ऐसे ही नगर हैं। प्राचीनकाल में भारत में तिस्शला और
नालांदा स्शिा के स्लए स्वश्व स्वख्यात नगर थे।
o धार्थमक नगराः ाआन नगरों का सांबध
ां ककसी न ककसी धमभ से होता है। धमभप्राण तीथभ यात्री ाआन
नगरों में ाअते रहते हैं। ाआन नगरों में यास्त्रयों की सुस्वधाओं के स्लए धमभशालाएां ाअकद बनााइ
जाती हैं। हररिार, ाऄयोध्या, पुरी (ओस्डशा), जेरुशलम, मक्का-मदीना, ाऄमृतसर ऐसे ही
धार्थमक नगर हैं।
o मनोरां जन के न्राः कु ि नगर मनोरां जन की सुस्वधाओं के के न्र बन जाते हैं। लास वेगास (सां. रा.
ाऄमेररका), दार्थजबलग (भारत) तथा पटाया (थााइलैंण्ड) ऐसे ही नगर हैं।
 ाअर्थथक कक्रयाओं से सांबस्ां धत नगराः कु ि नगरों का स्वकास व्यापार और ाईद्योग जैसी ाअर्थथक
कक्रयाओं के के न्र के रूप में होता है। ऐसे नगर ाऄपनी प्रमुख ाअर्थथक कक्रया के ाअधार पर काइ प्रकार
के हो सकते हैं।
o खनन के न्राः कु ि नगर खस्नजों के िेत्र में खनन के न्र के रूप में स्वकस्सत हो जाते हैं। धनबाद,

खेतड़ी, ाऄांकलेश्वर, कालगूली एवां कु लगाडी (ऑतरेस्लया) ऐसे ही प्रस्सद्ध खनन के न्र हैं।
o औद्योस्गक नगराः कु ि नगर औद्योस्गक के न्रों के रूप में स्वकस्सत होते हैं। जमशेदपुर से पहले
वहाां साक्ची नाम का गाांव था। जमशेदजी टाटा के वहाां लोहे व ाआतपात का कारखाना खोलने
के बाद वह िोटा-सा गाांव एक बड़ा नगर बन गया। दुगाभपुर, कानपुर, स्भलााइ, ाऄहमदाबाद,
कोयम्बटू र ाअकद भारत के औद्योस्गक नगर हैं। स्पट्सबगभ, एसेन, तुलौन(फ्राांस), बर्ममघम (यू.
के .) योकोहामा (जापान) ाअकद भी ऐसे ही नगर हैं।
o व्यापाररक नगर: कु ि व्यापाररक के न्र व्यापार में वृस्द्ध के साथ बड़े नगरों का रूप ले लेते हैं।
ाआन नगरों में व्यापार की सुस्वधा के स्लए बैंक, भांडारघर ाअकद की व्यवतथा होती है। भारत के
ाअगरा, मुजफ्फरनगर, हापुड़ ाअकद व्यापाररक के न्र हैं। चीन का काश्गर, लाहौर
(पाककततान), जमभनी का डु सल
े डोफभ , कनाडा का स्वनीपेग तथा ाआराक का बगदाद व्यापाररक
के न्र हैं।
 पररवहन नगराः पररवहन के के न्र भी नगरों के रूप में स्वकस्सत हो जाते हैं। ाआसके दो प्रमुख प्रकार
नीचे कदये गए हैं:
o पिन नगराः समुर के तट पर बसे कु ि नगर ाअयात और स्नयाभत के के न्र हैं। यहाां जहाजों के
स्लए पोतािय होता है। ऐसे नगरों के लोगों को व्यापार और पररवहन में ही रोजगार स्मला
होता है। भारत के मुबाइ, मांगलौर, तूतीकोररन, चेन्नाइ, पारािीप, स्वशाखापिनम नगरों के
ाईदाहरण हैं। न्यूयाकभ , लांदन, हाांगकाांग, शांघााइ, न्यूाअर्थलयन्स, ररयो-स्ड-जनेररयो, राटरडम,
हैम्बगभ ाअकद सांसार के कु ि पिन नगर हैं।
o रे ल जांक्शन नगर: रे ल मागों के जांक्शन भी नगरों के रूप में स्वकस्सत हो जाते हैं। भारत के
मुगलसराय, ाआटारसी, नागपुर और बीना रे ल जांक्शन नगर हैं। घाना (ाऄफ्रीका) का कु मासी
तथा ाआांग्लैंड का नार्थवच(Norwich) नगर पररवहन के न्र हैं।
 मनोरां जन या पयभटन नगर: कु ि नगर ाऄपने प्राकृ स्तक सौंदयभ, तवात्यप्रद जलवायु या ऐस्तहास्सक
भव्य ाआमारतों ाअकद के कारण पयभटकों के ाअकषभण का के न्र बन जाते हैं। पवभतीय नगर स्शमला,

नैनीताल, दार्थजबलग, धमभशाला, मनाली, मसूरी पयभटन नगरों के रूप में स्वकस्सत हो गए हैं।
फतेहपुरी सीकरी ऐस्तहास्सक नगर होने के साथ-साथ पयभटन के न्र भी हैं।

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 स्नयोस्जत नगराः वतभमान युग की ाअवश्यकता के ाऄनुसार कु ि तथानों पर नगर योजनाबद्ध तरीके
से बसाए गए हैं। चांढीगढ़ (भारत), ाआतलामाबाद (पाककततान), ब्रासीस्लया (ब्राजील), कै नबरा

(ाअतरेस्लया), कालभस्त्रूही (जमभनी) स्नयोस्जत और ाऄपेिाकृ त नए नगर हैं।


तवतथ नगर:
स्वश्व तवात्य सांगठन (WHO) के ाऄनुसार ाऄन्य बातों (सुस्वधाओं) के साथ-साथ एक तवतथ नगर में ये
सब होना चास्हएाः
 तवछि और सुरस्ित पयाभवरण।
 ‘सभी’ स्नवास्सयों की ‘मूल ाअवश्यकताएां’ पूरी होती है।
 तथानीय प्रशासन में समुदाय की भागीदारी हो।
 सभी को तवात्य (स्चककत्सा) सुस्वधाएां ाअसानी से स्मलती हो।
ाऄवैध/ाऄनस्धकृ त बतती क्या है?

 नगरों में गरीबों का ाअवासीय िेत्र, स्जसकी भूस्म पर ाईनक वैध ाऄस्धकार नहीं होता है। ऐसे लोग
सरकारी या स्नजी भूस्म पर कब्जा कर लेते हैं।
 स्वकासशील देशों में ही नहीं स्वकस्सत देशों में भी 5-6 करोड़ लोग मस्लन बस्ततयों में रहते हैं।

न्यूयाकभ में ‘ब्रौक्स’ (Bronx) तथा भारत की ‘धारावी’ (मुांबाइ) मस्लन बततयों के एक ाईत्कृ ष्ट
ाईदाहरण है।

रचना के ाअधार पर नगरों का वगीकरण (Classification of Towns on the Basis of Forms)


 सभी नगर देखने में एक जैसे नहीं होते हैं। ाईनकी ाअकृ स्त और रूप में स्भन्नता होती है। सभी नगरों
का ाऄपना ाऄलग प्रस्तरूप और स्वशेषताएां होती हैं। नगरीय बतती की ाअकृ स्त और रूप काइ कारकों
पर स्नभभर करता है जैसे तथान जहाां ाईनका ाईद्भव हाअ है, राजनीस्तक साांतकृ स्तक दशाएां और प्रमुख

कायभ जो वहाां ककए जाते हैं। ककसी कतबे ाऄथवा नगर का रूप ाऄथवा ाअकृ स्त रै स्खक, ाअयताकार,
ताराकार ाऄथवा चापाकार हो सकती है।
 ाऄस्धकतर प्राचीन नगर ाऄस्नयोस्जत ढांग से स्वकस्सत हए हैं। काइ मामलों में तो ाआनका स्वकास
बहत ही ाऄव्यवस्तथत रूप में होता है। ऐसे मामलों में ाईनकी ाअकृ स्त का स्वकास तथान की
स्वशेषताओं तथा ऐस्तहास्सक और राजनीस्तक कारकों का ही पररणाम होता है। ाईदाहरण के स्लए,
ककला नगरों की ाअकृ स्त गोलाकार होती है क्योंकक लोग जहाां तक सांभव होता है ककले की सुरिा के
स्नकट ही रहना पसांद करते हैं। ऐसी बस्ततयाां ाऄस्धक सघन होती है। काइ एक पुराने कतबे और
नगरों के चारों ओर दीवार होती थी। ाआनके स्वततार के कारण ाऄब ये दीवार से बाहर स्वकस्सत हए
है। दूसरी ओर कतबे और नगर जो महामागों ाऄथवा समुर के ककनारे ाईभरे हैं, ाईनकी ाअकृ स्त रै स्खक
होती है।
 प्राचीन ाऄस्नयोस्जत नगरों के स्वपरीत ाअधुस्नक स्नयोस्जत नगरों का सुस्नस्ित प्रस्तरूप होता है
जो ाईनके कायों िारा स्नधाभररत होता है। चांढीगढ़ और कै नबरा स्नयोस्जत नगरों के ाईदाहरण हैं।
चांढीगढ़ को एक प्रशासस्नक नगर के रूप में, ाईनके कायभ को ध्यान में रखते हए स्वस्भन्न सेक्टरों में
बाांटा गया है।
 नगरीकरण का ाऄथभ है देश की कु ल जनसांख्या में नगरीय िेत्रों में रहने वाले लोगों की सांख्या में
वृस्द्ध, स्जसे प्रस्तशत में व्यक्त करते हैं।

 नगरीयता का ाऄथभ नगरीय जीवन की स्वशेषताओं से है। स्वषमता, स्नभभरता, कदखावा ाअकद ाआसकी
स्वशेषताएां है।

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 ाईपनगरीय: स्वगत कु ि वषों में बस्ततयों का एक नया वगभ ाईभरा है। ाआन्हें ाईपनगर (Suburban

settlement) या नगरोन्मुख ग्राम (Rurban Settlement)कहते हैं। नगरों के ाअस-पास ऐसी

ाऄनेक बस्ततयाां बस गाइ हैं, जहाां नगरों में काम करने वाले लोग रहते हैं और काम के स्लए प्रस्तकदन
नगरों में चले जाते हैं।
 ाऄनुषग
ां ी नगर (Satellite town): एक बड़े शहर से ाऄलग ककतु ाईससे सांबद्ध िोटे-िोटे ाऄन्य नगर
जो ाऄनेक ाअवश्यक कायों एवां सेवाओं के स्लए ाईस (बड़े शहर) पर स्नभभर रहते हैं। ाआन नगरों को
सेटेलााआट नगर या ररग नगर भी कहा जाता है। जैसे ाईिर प्रदेश राज्य में स्तथत नोएडा, मेरठ,
गास्जयाबाद राष्ट्रीय राजधानी िेत्र कदल्ली का एक ाऄनुषांगी नगर है।

7.5. नगरीय ाअकाररकी (Urbun Morphology)

 ाअकाररकी का ाऄथभ है नगरों के ाअकारों या तवरूपों के स्वषय में ाऄध्ययन करना है। दूसरे ाऄथों में
ाआसका ाअशय नगरीय िेत्रों की प्रकृ स्त, कायों, तवरूपों, िेत्रों की पातपररक स्तथस्त, एक-दूसरे पर

सामास्जक स्नभभरता का ाऄध्ययन करना, स्जससे कक नगरीय िेत्रों का भौगोस्लक वणभन ककया जा

सके ।
 शहरों में स्वद्यमान सड़क, रे ल, गस्लयााँ ाअकद के कारण ाईत्पन्न स्वस्वधताओं का स्नयोस्जत ाऄध्ययन

नगरीय ाअकाररकी के माध्यम से ककया जाता है। ाऄत: ाआसके ाऄांतगभत नगर के ाअांतररक स्वन्यास
तथा बाह्य प्रस्तरूपों का ाऄध्ययन ककया जाता है।
 नगरीय ाअकाररकी के सांघटक तत्व: व्यवहाररक दृस्ष्ट से ाआसे स्नम्नस्लस्खत तीन भागों में बााँटा जा
सकता है:
o भौस्तक ाअकाररकी: ाआसके ाऄांतगभत नगर के ाऄांदर यातायात मागों, भवनों की बनावट, स्तथस्त

ाअकद का ाऄध्ययन ककया जाता है। नगर के ाअांतररक एवां बाह्य स्वन्यास का भी ाऄध्ययन ककया
जाता है।
o कायाभत्मक ाअकाररकी: नगर के ाऄांदर भूस्म का स्वस्भन्न कायो के स्लए ाईपयोग ककया जाता है,

जैसे बैंक, कायाभलय ाअकद। ाआसके ाऄांतगभत यह ाऄध्ययन ककया जाता है नगर के ककस भाग में

कौन-सी कक्रयाएाँ सांपन्न की जा रही है और वो कक्रयाएाँ वही क्यों की जा रही है।


o जनाांकककीय ाअकाररकी: ाआसके ाऄांतगभत नगर के ाऄांदर रहने वाले लोगों से सांबांस्धत स्वस्भन्न
पिों का ाऄध्ययन ककया जाता है। ाईदाहरण के स्लए जनसाँख्या घनत्व, ाअयु सांरचना,

बलगानुपात, सािरता, कायाभत्मक सांरचना ाअकद का ाऄध्ययन ककया जाता है।

 नगरीय ाअकाररकी को प्रभास्वत करने वाले कारण:


o प्राकृ स्तक कारण: ाआसके ाऄांतगभत नदी, सपाट मैदान, पठार, समुर के ककनारे ाअकद तथलों पर

नगरों की बसाव स्तथस्त को देखा जाता है। ाईदाहरण के स्लए खुले एवां सपाट मैदानों में नगरों
का स्वकास चारों ओर समान रूप से होता है वही दूसरी तरफ नदी या समुर के ककनारों पर
नगरों का स्वकास ककनारे -ककनारे होता है।
o सामास्जक-साांतकृ स्तक कारण: नगरों में स्नवास करने वाले लोगों के रीस्त-ररवाज, धार्थमक

मान्यताएाँ, ऐस्तहास्सक बाज़ार, धार्थमक तथल ाअकद नगरों की ाअकाररकी को प्रभास्वत करते

है। जैसे जयपुर, मदुराइ ाअकद नगरों का स्वकास।

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7.6. नगरों का के न्रीय व्यापाररक िे त्र (CBD)

 यह ककसी भी नगर का सबसे महत्त्वपूणभ भाग होता है। CBD में मुख्य रूप से व्यापाररक कायभ ही

ककये जाते है। ाआस िेत्र में नगर की ाऄस्धकाांश दुकानें, स्सनेमाघर, सरकार और स्नजी कायभकाल, बैंक
ाअकद ाऄवस्तथत होते है। यह िेत्र पूरे नगर के साथ-साथ नगरीय प्रभाव िेत्र को ाअसानी से सेवाएाँ
प्रदान करता है।
 ज्यादातर पुराने नगरों का CBD कें र में ही ाऄवस्तथत होता था लेककन वतभमान में CBD नगर के
कें र भाग में न होकर नगर के सीमाांत भाग में भी हो सकता है।
 CBD की मुख्य स्वशेषताएाँ:
o ाआस िेत्र में व्यापार की प्रधानता होती है।
o सरकारी एवां स्नजी कायाभलयों का सांकेन्रण पाया जाता है।
o यहााँ पररवहन मागों का के न्रीकरण होता है।
o बहमांस्जली ाआमारतों का बह-ाईद्देशीय ाईपयोग ककया जाता है, जैसे एक ही ाआमारत में बैंक,
सरकारी व स्नजी कायाभलय ाअकद की स्तथस्त होती है।
o ाआस िेत्र में स्नमाभण ाईद्योगों की ाईनुपस्तथस्त होती है।
o ाअवासीय एवां तथायी जनसांख्यााँ का ाऄभाव पाया जाता है। ाआस िेत्र में लोग कदन के समय
कायभ करते है तथा रात में ाऄपने घरों को लौट जाते है।
 CBD की सांरचना

o CBD को मुख्य रूप से तीन भागों में वगीकृ त ककया जाता है:

 कोर िेत्र: यह भाग CBD के कें र में ाऄवस्तथत होता है। यह ाऄत्यस्धक भीड़-भाड़ वाला
िेत्र होता है।
 मध्य िेत्र: यह िेत्र कोर भाग के चारों फै ला होता है। यह िेत्र कोर भाग की ाऄपेिा कम
भीड़-भाड़ वाला होता है। यहााँ पर बैंक, कायाभलय ाअकद ाऄवस्तथत होते है।

 बाह्य िेत्र: यह नगर का सबसे बाहरी िेत्र होता है, स्जसमे मुख्य रूप से थोक की दुकानें
या गोदाम ाऄवस्तथत होते है। ाआस िेत्र में मुख्य रूप से स्नम्न ाअय वाले लोग रहते है।
o भारत के CBD िेत्र: कदल्ली में कनॉट प्लेस, चााँदनी चौक, लुस्धयाना का चौड़ा बाज़ार
ाअकद।

पस्िमी देशों में CBD (यूरोप, ाऄमेररका) पूवी देशों में CBD (एस्शया)

ाआमारतें बहमांस्जली एवां काफी ाउाँची होती है। ाऄपेिाकृ त कम ाउाँची।

CDB की ाऄवस्तथस्त काफी सुव्यवस्तथत तरीके से। CDB की ाऄवस्तथस्त सुबद्ध तरीके से नहीं।

फु टकर दुकानों पर स्बकने वाली वततुओं की फु टकर दुकानों पर स्बकने वाली वततुओं में
स्वस्वधता ाऄस्धक। स्वस्वधता कम देखने को स्मलती है।

CBD का तपष्ट सीमाांकन ककया जा सकता है। CBD का तपष्ट सीमाांकन नहीं ककया जा सकता
है।

CBD में के वल क्रय-स्वक्रय का कायभ ककया जाता है। CBD में क्रय-स्वक्रय के साथ-साथ कु ि वततु
स्नमाभण का कायभ भी ककया जाता है।

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7.7. नगर के सां द भभ में के न्रीयतथल की सां क ल्पना ( Central Place)

 नगरीय िेत्र के सांदभभ में ाईन ाऄस्धवासों को के न्रीय तथल माना जाता जो ाऄपने चारों ओर स्तथत
पररिेत्र को ाअवश्यक वततुएां एवां सेवाएाँ प्रदान करते है। के न्रीय िेत्र ाऄपने चारों ओर या सहायक
िेत्र से कायाभत्मक रूप से जुड़ा होता है। ाआसी कारण के न्रीय तथल को सेवा कें र के रूप में भी जाना
जाता है।
 के रीय तथल स्वस्भन्न ाअकार का हो सकता है। ककसी प्रदेश में स्तथत के न्रीय तथल के ाअकार,

सांख्या, प्रदान की जाने वाली सेवाएाँ, ाईसके िारा ककये जाने वाले कायों की प्रकृ स्त तथा पारतपररक
तथास्नक दूररयों में घस्नष्ठ सांबांध पाया जाता है।
 के न्रीय तथल का स्नधाभरण एवां ाईसका वणभन सवभप्रथम कक्रतटोलर िारा ककया गया था। ाआन्होने
बताया कक ककसी भी समतल प्रदेश में स्वस्भन्न पदानुक्रम वाले के न्रीय तथल स्तथत होते है। ाईन्होंने
ाआसको 7 भागों में बाांटा, जो स्नम्न प्रकार है:

1. बाज़ार कें र
2. टााईनस्शप कें र
3. कााईन्टी स्सटी
4. जनपदीय नगर
5. लघुराज्य राजधानी
6. प्राांतीय प्रधा न नगर
7. प्रादेस्शक राजधानी नगर

7.8. नगरीय बस्ततयों के प्रकार (Types of Urban Setements)

 ाअकार, ाईपलब्ध सेवाओं और ककए जाने वाले कायों के ाअधार पर नगरीय के न्रों को स्नम्नस्लस्खत
नाम कदए जा सकते है।
o कतबा (Towns): कतबे सबसे िोटी नगरीय बस्ततयाां है। ाअकार के ाअधार पर कतबा, ग्रामीण

बतती-‘गाांव’ से ाऄलग ककया जा सकता है। कतबा कायों के ाअधार पर भी गाांव से स्भन्न है।
कतबों और नगरों में लोगों के प्रमुख व्यवसाय के ाअधार पर ाऄांतर ककया जाता हैं कतबे में
बहसांख्यक लोग गैर-कृ षीय स्वशेष कक्रयाकलापों; जैस-े खुदरा और थोक व्यापार और ाऄन्य

व्यावसास्यक सेवाओं में लगे होते हैं, जबकक गाांववासी प्राथस्मक व्यवसाय में लगे होते हैं।

o नगर (City) : नगर को ाऄग्रणी कतबा कह सकते हैं, जो ाऄपने तथानीय या प्रादेस्शक

प्रस्तिांकदयों से ाअगे स्नकल गया है। लेस्वस ममफोडभ के ाऄनुसार, “नगर ाईच्चतम और ाऄत्यस्धक
जरटल प्रकार के सहचारी जीवन के मूतभ रूप हैं नगर कतबों की तुलना में बहत बड़े होते हैं।
ाआनमें ाअर्थथक कक्रयाएां भी ाऄस्धक होती है। ाआनमें पररवहन के ाऄांस्तम तटेशन, प्रमुख स्विीय
सांतथाएां और प्रादेस्शक प्रशासस्नक कायाभलय होते हैं। जब ाआनकी जनसांख्या दस लाख से ाऄस्धक
हो जाती है, तो ाआन्हें स्मस्लयन स्सटी कहते हैं।

o महानगर (Megalopolis): मेगालोपोस्लस ाऄांग्रज


े ी के शब्द की व्यत्पुस्ि यूनानी शब्द से हाइ

है, स्जसका ाऄथभ है, महान नगर। ाआस शब्द को 1957 में जीन गोटमैन ने लोकस्प्रयता प्रदान की
थी। मेगालोपोस्लस में काइ ाईपनगरीय समूहन शास्मल होते हैं। यह ाऄस्त स्वस्शष्ट महानगरीय

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प्रदेश हैं, जो दूर तक फै ला होता है। महानगर का सबसे ाऄछिा ाईदाहरण सांयुक्त राज्य
ाऄमेररका में ाईिर के बोतटन नगर से लेकर वाबशगटन के दस्िण तक फै ला नगरीय िेत्र है।
महानगर की स्वशालता का ाऄनुमान ाआसी से लगाया जा सकता है कक बोतटन और वाबशगटन
के बीच न्यूयाकभ , कफलाडेस्ल्फया और बाल्टीमोर जैसे तीन महानगर है।

o स्मस्लयन स्सटी (Million city): कोाइ नगर स्जसकी जनसांख्या 10 लाख या 10 लाख से
ाऄस्धक हो वह स्मस्लयन स्सटी कहलाते है। सांसार में ऐसे नगरों की सांख्या में ाऄभूतपूवभ वृस्द्ध हो
रही है। सन् 1800 में लांदन की जनसांख्या दस लाख की सीमा के पार हाइ। ाआसके बाद 1950

में पेररस और 1960 में न्यूयाकभ ने यह सीमा पार की। 1950 में 84 स्मस्लयन स्सटी थी। प्रस्त

तीन दशक में स्मस्लयन स्सटी की वृस्द्ध तीन गुनी थी। 1970 में 162 दस स्मस्लयन स्सटी थी

तथा 2007 में ाआनकी सांख्या बढ़कर 468 हो गाइ।

नगरों के क्रस्मक स्वकास की ाऄवतथाएाँ


 ाआयोपोस्लस (Eopolis): यह प्रारां स्भक ाऄवतथा है स्जसमें गााँव एवां िोटे-िोटे ाईद्योगों का स्वकास
होना प्रारम्भ होता है।
 पोस्लस (Polis): ाआस ाऄवतथा में गौण का रूप कतबे में पररवर्थतत हो जाता है। व्यापार का िेत्र
बढ़ने लगता है।
 मेरोपोस्लस (Metropolis): बड़े-बड़े नगरों का स्वकास होता है, स्जनमें ाईद्योग, व्यापार,
प्रशासस्नक कक्रयाएाँ ाअकद का ाईच्च ततर पाया जाता है।
 मेगालोपोस्लस (Megalopolis): यह ाऄवतथा नगर स्वकास की ाऄांस्तम/चरम ाऄवतथा है।

 टायरनोपोस्लस (Tyranopolis): ाआस ाऄवतथा में सामास्जक-ाअर्थथक या ाऄन्य कारणों से नगरों का


स्वकास ाऄवरुद्ध हो जाता है और नगर का पतन होना शुरू हो जाता है।
 नेक्रोपोस्लस (Nekropolis): यह नगरों के नष्ट होने की ाऄवतथा होतो है।

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7.9. नगरीय बस्ततयों की समतयाएां (Problems of Urban Settlements)

 स्वकासशील देशों के नगरों की जनसांख्या में ाऄभूतपूवभ वृस्द्ध देखी जा रही है। ाईदाहरण के स्लए
लांदन की 5 लाख जनसांख्या 190 वषों के बाद दस लाख हाइ। ाआस प्रकार न्यूयाकभ की जनसांख्या को

5 लाख से दस लाख होने में 140 वषभ लगे। ाआसके स्वपरीत स्वकासशील देशों के मैस्क्सको नगर,
साओपालो, कोलकाता, स्सयोल और मुम्बाइ की 5 लाख जनसांख्या के वल 75 वषों में ही बढ़कर दस
लाख हो गाइ।
 ाऄस्त नगरीकरण या ाऄस्नयांस्त्रत नगरीकरण से झुग्गी-झोंपस्ड़यों या मस्लन बस्ततयों का जन्म हाअ
है। सम्पूणभ सांसार में एक ाऄरब लोग जीवन के स्लए खतरनाक पररस्तथस्तयों में रह रहे हैं। यही नहीं

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30 करोड़ लोग स्नम्नततरीय गरीबी का जीवन जीने को मजबूर हैं। भारत में चार करोड़ से ाऄस्धक
लोग नगरों में मस्लन बस्ततयों में रहते हैं, जो कु ल नगरीय जनसांख्या का 22.58 प्रस्तशत है।
 नगरीय िेत्रों की ाऄस्धकतर समतयाएां ाईनके ाऄस्नयोस्जत स्वकास के कारण गाांवों से नगरों में लोगों
का प्रवास है। एक ओर गाांवों में यह िम की कमी का कारण बनता है वहाां नगरीय िेत्रों के
सांसाधनों पर ाऄनावश्यक दबाव बढ़ाता है। नगरों की कु ि महत्वपूणभ समतयाएां यहाां दी गाइ हैाः
 ाअर्थथक समतयाएां (Economic Problems)
o स्वकासशील देशों में ग्रामीण और िोटे कतबों में रोजगार के ाऄवसर स्नरां तन घट रहे हैं।
o गाांवों में रोजगार न स्मलने के कारण लोग नगरों की ओर पलायन कर रहे हैं।
o नगरों में बड़ी सांख्या में प्रवासी जनसांख्या के कारण ाऄकु शल और ाऄद्धभ कु शल िस्मकों की
सांख्या बढ़ रही है |
o नगरों में पहले से ही िस्मकों की सांख्या ाअवश्यकता से ाऄस्धक है।
o कम वेतन के कारण लोगों को गरीबी और कु पोषण की दशाओं में जीवनयापन करना पड़ता
है।
 सामास्जक-साांतकृ स्तक समतयाएां (Socio-Cultural Problems)
o प्रवासी जनसांख्या को काम नहीं स्मल पाता है जो शहर के स्वकास/स्तथस्त को हास्न पहाँचाता
है। कु ि बेरोजगार लोग गैर-कानूनी गस्तस्वस्धयों में शास्मल हो जाते हैं।
o शहरों की सुस्वधाओं पर ाऄस्धक दबाव पड़ता है। यहाां तक सामास्जक ाअवश्यकताओं की भी
कमी हो जाती है।
o स्वश्व के स्वकासशील देशों के ाऄस्धकतर नगरों में मकानों, तवात्य सेवाओं और स्शिा की
कमी जैसी समतयाएां बनी हाइ हैं। ाईपलब्ध स्शिा और तवात्य सुस्वधाएां नगरीय गरीबों की
पहांच से बाहर हैं
o स्वकासशील देशों के नगरों में तवात्य के सांकेतक ाऄांधकारमय ततवीर ही प्रततुत करते हैं।
o गाांवों से नगरों की ओर जनसांख्या के प्रवास, नगरीय िेत्रों का बलग ाऄनुपात तथा जनसांख्या
की प्राकृ स्तक वृस्द्ध दर को बदल देता है।
o बेरोजगारी ाऄनेक प्रकार की बुरााइयों को जन्म देती है।
 पयाभवरणीय समतयाएां (Environmental Problems)
o जल की समतयााः स्वकासशील देशों में नगरों की स्वशाल जनसांख्या ाऄत्यस्धक मात्रा में जल का
ाईपयोग करती है। पररणाम तवरूप ाआसकी ाऄसाधारण कमी होती जा रही है।
o जल के ाऄस्धक ाईपयोग से ाऄस्धक मल-जल पैदा होता है।
o मल-जल के स्नपटान की समतया स्वकट रूप धारण कर रही हैं। ाआससे तवात्य के स्लए
हास्नकारक पररस्तथस्तयाां ाईत्पन्न हो रही है।
o पीने के स्लए, घरे लू और औद्योस्गक ाईपयोग के स्लए नगरों में जल की कमी हो गाइ है। नगर,
माांग के ाऄनुसार जल की ाअपूर्थत करने में ाऄसमथभ है।
o वायु प्रदूषणाः घरों और ाईद्योगों में पारां पररक ईंधन के ाईपयोग से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है।
o ाऄपस्शष्ट (Waste) की समतयााः घरे लू और औद्योस्गक ाऄपस्शष्ट भारी मात्रा में स्नकलता है।
ाआसे स्बना ककसी ाईपचार के सीवर में या बाहर सड़कों में कहीं भी फें क कदया जाता है।
o ाउष्मािीप: स्वशाल जनसांख्या को ाअवास ाईपलब्ध कराने के स्लए कां क्रीट की स्वशालकाय
ाआमारतों के बनने से ‘ाउष्मािीप’ बन गए हैं। नगरों और ाईनके ाअस-पास िेत्रों में तापमान का
ाऄांतर ाऄनुभव ककया जाता है।
o ध्वस्न प्रदूषण का ाईच्च ततर भी एक समतया है, स्जसका ाअज बड़े नगर सामना कर रहे हैं।

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मस्लन बस्ततयाां एवां ाईनकी स्वशेषताएां (Characteristics of Slums): नगरीय मस्लन बस्ततयों की
सामान्य स्वशेषताएां स्नम्नाांककत हैं -
o मस्लन बस्ततयों की सवाभस्धक महत्वपूणभ तथा सावभभौस्मक स्वशेषता स्नधभरता है। मस्लन
बस्ततयों में सामान्यताः कम ाअय वाले लोग रहते हैं। ाऄल्प ाअय वाले मजदूर, ररक्शा-ताांगा या
टैक्सी चालक, गााँवों से पालास्यत बेरोजगार ाअकद मस्लन बस्ततयों में कम ककराये वाले
ाअियों में स्नवास करते हैं।
o मस्लन बस्ततयाां ाऄस्धकाांशताः नगर के भीतरी भाग में के न्रीय व्यापाररक िेत्र (C.B.D.) के
पीिे ाऄथवा कारखानों के समीप पायी जाती हैं। नगर के भीतर पुराने तथा जजभर भवनों वाले
िेत्र (Bright area) में ाऄल्पायु वाले िस्मक समूह स्नवास करते हैं जहाां वे कम ककराये पर
मकान पा जाते हैं।
o कारखानों के समीप ाऄथवा ाऄन्य खुली सरकारी या सावभजस्नक भूस्मयों को ाऄवैध रूप से
ाऄस्धग्रहीत करके ाईन पर ाऄस्नयोस्जत तथा ाऄव्यवस्तथत रूप से झोपड़ी, िप्पर, टीन,

एतबेतटस, खपरे ल वाले गृह बना स्लए जाते हैं और वहाां लोग रहने लगते हैं।
o मस्लन बस्ततयों में सावभजस्नक सुस्वधाओं-सड़क, शुद्ध पेय जल, स्वद्युत ाअकद का पूणत
भ या या
लगभग ाऄभाव पाया जाता है। जल स्नकास (नास्लयों) के ाऄभाव में गांदा जल रातते पर फै ला
रहता है।
o मस्लन बस्ततयाां पयाभवरण प्रदूषण के साथ ही सामास्जक प्रदूषण की भी के न्र होती हैं जहाां
शराब पीने, जुाअ खेलने, वेश्यावृस्त, चोरी, बलात्कार, हत्या जैसी ाऄनेक सामास्जक बुरााआयाां
पनपती हैं। ाआन गांदी बस्ततयों में पनपने वाली बुरााआयाां के वल ाआन्हीं तक सीस्मत नहीं होती हैं
बस्ल्क ाआनका दुष्प्रभाव बड़े िेत्रों या पूरे नगर पर पड़ता है।
मस्लन बस्ततयों के ाईद्भव के स्लए ाईिरादायी कारक:
 नगरों में मस्लन बस्ततयों के स्वकास के स्लए ाऄनेक ाअर्थथक, सामास्जक तथा राजनीस्तक कारक
ाईिरदायी होते हैं स्जनमें प्रमुख स्नम्नाककत हैं-
o औद्योगीकरण (Industrialization) - नगरों में तीव्र औद्योगीकरण ने मस्लन बस्ततयों को
जन्म कदया है। कारखानों में काम करने के स्लए ग्रामीण िेत्रों से बड़ी सांख्या में लोग नगर में
एकस्त्रत होते हैं और ाऄपने कायभतथल (working place) के स्नकट रहना चाहते हैं। जब
ाऄल्पाय वाले िस्मकों को रहने के स्लए कम ककराये पर योग्य मकान नहीं स्मल जाते हैं तब वे
पुराने, जजभर और स्गराये जाने योग्य और गांदगी पूणभ मकानों में रहने लगते हैं ाऄथवा कहीं
समीप में खाली पड़ी सावभजस्नक भूस्म पर ाऄनस्धकृ त कब्जा करके कच्चे घर बना लेते हैं और
ाईसमें रहते हैं। ाआस प्रकार कारखानों के ाअस-पास मस्लन बस्ततयों का स्वकास होता है।
o स्नधभनता (Poverty) - स्वश्व के ाऄस्धकाांश देशों में नगर की लगभग जनसांख्या न तो नगर के
ाईां चे मूल्य वाली भूस्म को क्रय करने तथा मकान बनवाने में समथभ होती है और न ही वह
सुस्वधा सम्पन्न मकानों का ककराया देने में ही सिम होती है । ऐसी स्तथस्त में स्नधभन िस्मक
ररक्शा-ताांगा चालक कु ली, खोंचा लगाने वाले, गाांवों से ाअये हए बेरोजगार तथा ाआसी प्रकार
जीस्वका के पयाभप्त साधन जुटा पाने में ाऄसमथभ लोग ऐसे ाअिय की खोज करते हैं जहाां वे रह
सकें और ककसी तरह जीवन स्नवाभह कर सकें । स्नधभनता के कारण ाऄसांख्या लोग मस्लन
बस्ततयों की शरण लेते हैं।
o ग्रामीण बेरोजगारी (Rural Poverty) - ग्रामों में ाईद्योग और कृ स्ष िेत्र के कम स्वकस्सत होने
पर वहाां रोजगार की कमी हो जाती है। प्रस्त वषभ ग्रामीण िेत्रों से रोजगार की खोज में बड़ी
सांख्या में लोग समीपवती नगरों तथा दूरवती महानगरों में जाते हैं।

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o तीव्र नगरीकरण (Rapid Urbanization) - ग्रामीण िेत्रों से नगरों के स्लए बड़ी सांख्या में
जनसांख्या तथानाांतरण के कारण नगरीय जनसांख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। ककन्तु स्जस गस्त
से जनसांख्या ाअकार में वृस्द्ध हो रही है ाईसी गस्त से नगर में ाअवासीय गृहों का स्नमाभण नहीं
हो पाता है, स्जसके कारण गृहों का ाऄभाव होने लगता है।
o नगरीय ाअकषभण (Urban Attraction) - नगरों में रोजगार, स्शिा, स्चककत्सा, मनोरां जन,
स्वद्युत ाअकद काइ सुस्वधाएां स्वद्यमान होती हैं स्जन का ग्रामीण िेत्रों में प्रायाः ाऄभाव पाया
जाता है। नगरीय सुस्वधाओं से ाअकर्थषत हेाकर प्रस्त वषभ बड़ी सांख्या में ग्रामीण-नगरीय
तथानाांतरण के पररणामतवरूप नगरीय जनसांख्या में वृस्द्ध हो जाती है।
o घरों का ाऄभाव (Shortage of Houses) - नगरों में मकानों के ाऄभाव के कारण लाखों
लोगों को मस्लन बस्ततयों में रहने के स्लए स्ववश होना पड़ता है। मकानों की माांग की तुलना
में पूर्थत बहत कम होने के कारण एक तरफ तो कमरों के ककराऐ बढ़ जाते हैं और दूसरी ओर
भूतवामी तथा मकान मास्लक ाऄत्यांत िोटे-िोटे कमरे बनवाकर ककराये पर देते हैं जहाां
स्नानागार, शौचालाय, जलापूर्थत ाअकद का सामूस्हक प्रयोग करना होता है ाऄथवा वे ाआन
सुस्वधाओं से भी वांस्चत रहते हैं।
o नगरीय प्रदूषण (Urban Pollution) - महानगरों के पुराने बसे हए भागों (प्रायाः C.B.D. के
पीिे) में जहाां मकान ाऄत्यांत पुराने, जजभर, स्गराने योग्य तथा स्नवास के ाऄयोग्य होत हैं वहाां
पर पाये जाने वाले शोर-शराबा, भीड़-भाड़ तथा ाऄन्य प्रदूषणों से ाउबकर ाईच्च वगीय तथा
सम्पन्न पररवार ाईसे नगर के बाह्य भागों की ओर तथानाांतररत हो जाते हैं।
o सरकारी प्रयासों का ाऄभाव (Lack of Government Efforts) - महानगरों में मस्लन
बस्ततयों के स्वकास के स्लए सरकारें और महानगरीय प्रशासन भी ाईिरदायी होते हैं। प्रशासन
िारा िस्मक बस्ततयों में सफााइ, स्बजली, स्चककत्सा, जलापूर्थत ाअकद ाअवश्यक सुस्वधाओं की
व्यवतथा के प्रस्त ाईपेिात्मक व्यवहार मस्लन बस्ततयों के तवरूप को और ाऄस्धक स्वकृ त बना
देता है।
स्वश्व में मस्लन बस्ततयाां (Slums in the World)
 स्वश्व के लगभग सभी महानगरों में मस्लन बस्ततयाां ककसी न ककसी रूप् में पायी जाती हैं। मस्लन
बस्ततयों की समतया के वल स्वकासशील देशों तक ही सीस्मत नहीं है बस्ल्क ाऄनेक पािात्य
स्वकस्सत देशों के महानगरों में भी ाआस प्रकार की ाअवासीय समतयाएां पााइ जाती हैं।
 स्वश्व के सुन्दरतम नगर पेररस में जहाां एक ओर ाअधुस्नक साज-सज्जा से युक्त बहमांस्जला भव्य
भवन देखने को स्मलते हैं, वहीं दूसरी ओर नगर के कु ि स्हतसों में स्नधभन लोगों की स्नम्न ततरीय
बस्ततयाां भी पायी जाती हैं स्जन्हें मस्लन बस्ततयों की ही िेणी में रखा जा सकता है।
 ाआां ग्लैड में स्वदेशी ाऄश्वेत लोग स्वस्भन्न नगरों के पुराने भागों में जहाां मकान ाऄत्यांत पुराने और जजभर
हो चुके हैं, वहाां स्नवास करते हैं। एक ाऄनुमान के ाऄनुसार मेनचेतटर और बर्ममघम में 20 प्रस्तशत
और होल में 30 प्रस्तशत ाअवासीय गृह ाऄत्यांत प्राचीन और स्गराने योग्य है जहाां स्नम्न ाअय वगीय
जनसांख्या ने शरण ले रखा है।
 सांयक्त
ु राज्य ाऄमेररका के न्यूयाकभ , स्शकागो, बर्थमघम, डेरायट, सैन फ्राांस्सतको ाअकद के काइ
महानगरों में जहाां नीग्रो लोगों की बस्ततयाां हैं, मकानों का ककराया कम होता है ककन्तु मकानों की
मरम्मत, सफााइ, पाकभ तथा जनोपयोगी सामान्य सुस्वधाएां प्रायाः ाईपेस्ित होती हैं।
 रोम और नेपल्स कस्तपय भागों में भी मस्लन बस्ततयाां पायी जाती हैं जो मुख्यताः नगर के भीतर
और के न्रीय व्यापार िेत्र के पीिे स्तथत हैं।
 ब्राजील के बास्हया नगर में ग्रामीण िेत्रों से ाअये हए स्नम्न ाअय वगीय लोगों ने स्पलुररन्हों पहाड़ी
पर स्नवास बना स्लया है। ाआस मस्लन बस्तत में ियरोग तथा वेश्यावृस्ि जैसी सामास्जक बुरााआयाां
चरमसीमा पर बतायी गयी हैं।

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8. भारत में नगरीय बस्ततयाां (Urban Settlements in
India)
 नगरीकरण की ाअधुस्नक प्रवृस्ियों का सबसे ाऄछिा ाईदाहरण एस्शया महािीप में देखा जा सकता
है। कभी का गाांवों का महािीप ाऄब नगरों और कतबों का महािीप बन गया है। एस्शया की कु ल
जनसांख्या 2008 में 4.052 ाऄरब थी, स्जसमें से 1.7 ाऄरब से ाऄस्धक नगरीय जनसांख्या थी। स्वगत
5 दशकों में एस्शया की नगरीय जनसांख्या में 5 गुनी वृस्द्ध हाइ है। एस्शया में सांसार की 52%
नगरीय जनसांख्या का स्नवास है।
 भारत की जनगणना 2001 में ाऄपनााइ गाइ नगरीय िेत्र की पररभाषा ाआस प्रकार हैाः
o नगर पास्लका, नगर स्नगम, िावनी बोडभ, या ाऄस्धसूस्चत नगर िेत्र सस्मस्त, ाअकद सस्हत

सभी साांस्वस्धक (Statutory) तथान।


o ऐसा तथान जो एक साथ स्नम्नस्लस्खत तीन शतों को पूरा करता हो -
 कम से कम 5,000 की जनसांख्या
 कम से कम 75 प्रस्तशत पुरूष जनसांख्या, जो गैर कृ स्ष कायभकलापों में कायभरत हो और

 जनसांख्या का घनत्व कम से कम 400 व्यस्क्त प्रस्त वगभ कक.मी. (1,000 प्रस्त वगभ मील)
हो।
नगरों और शहरों का प्रकायाभत्मक वगीकरण (Functional Classification of Towns and Cities)
 कतबे और नगर ाऄपनी जनसांख्या तथा ाऄपने पृष्ठ प्रदेशों के स्लए स्वस्भन्न कायभ करते हैं। यद्यस्प
प्रत्येक कतबा ाऄथवा नगर बड़ी सांख्या में कायभ करते हैं। ाआनमें से कु ि कायभ ाऄन्य की ाऄपेिा ाऄस्धक
महत्वपूणभ हो जाते हैं। नगरों के स्वस्शष्ट या प्रमुख कायों के ाअधार पर नगरों को स्नम्नस्लस्खत रूप
में वगीकृ त ककया जा सकता है।
o प्रशासस्नक नगर: ऐसे नगर राज्यों/देश की राजधास्नयों के रूप में प्रस्सद्ध हो जाते हैं।
प्रशासस्नक कायों की महिा के कारण ाआन्हें प्रशासस्नक नगर कहते हैं- ाईदाहरण नाइ कदल्ली,
चांडीगढ़, भोपाल, गाांधी नगर ाअकद।
o औद्योस्गक नगराः ऐसे नगरों में ाअस-पास के या बाहर से मांगाए गए कच्चे माल से वततुओं का
स्नमाभण ककया जाता है। एक नगर में काइ प्रकार के ाईद्योग भी हो सकते हैं। ाईदाहरण मुांबाइ,

सेलम, कोयम्बटू र, जमशेदपुर, हगली, मोदी नगर, दुगाभपुर, स्भलााइ ाअकद।


o ऐसे नगर ाअदशभ स्तथस्तयों में स्वकस्सत होते हैं जहाां सड़कें ाऄथवा रे लमागभ ाअपस में स्मलते हैं।
o पररवहन नगराः ये नगर पररवहन मागों के स्मलन स्बन्दु पर स्वकस्सत हो जाते है। ऐसे नगरों
के ाईदाहरण के रूप में ाअगरा, धूस्लया, मुगल सराय, कटनी, ाआटारसी, जैसलमेर और
पठानकोट के नाम स्लए जा सकते हैं। कु ि नगर समुरतट पर ाअयात-स्नयाभत के िार के रूप में
भी स्वकस्सत हो जाते हैं। काांडला, कोस्च्च, कालीकट, स्वशाखापतनम, हस्ल्दया, पारादीप ाअकद
ऐसे ही नगर हैं।
o व्यापाररक नगराः प्रारां भ में ाआन नगरों का स्वकास स्वतरण के न्र के रूप में होता है। पररवहन
और सांचार साधनों के स्वकास के साथ ाआनका स्वकास भी होता जाता है। धीरे -धीरे यहाां
ाईद्योग भी स्वकस्सत होने लगते हैं। कोलकाता, सतना, सहारनपुर, हापुड़, मेरठ, िी
गांगानगर, रायपुर ाअकद व्यापाररक नगर है।
o खनन नगराः ये नगर खानों के स्नकट बसे होते हैं। ाईदाहरण झररया, रानीगांज, हजारीबाग,

बिदवाड़ा कोलार, कोडरमा, स्डगबोाइ, ाऄांकलेश्वर ाअकद।

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o िावनीनगराः ये वे नगर हैं, जहाां सैस्नक टु कस्ड़याां रहती हैं तथा ाईनके शस्त्रों के भांडार होते हैं।
ाऄांबाला, मेरठ, रूड़की, महू, जबलपुर, सागर ाअकद शैस्िक नगर हैं।
o शैस्िक नगराः कु ि नगर स्शिा के न्रों के रूप में प्रस्सद्ध हो जाते हैं। ाऄलीगढ़, स्पलानी, रूड़की,

खड़गपुर, शास्न्त-स्नके तन, पांतनगर, सागर ाअकद शैस्िक नगर हैं।


o धार्थमक और साांतकृ स्तक नगराः ऐसे नगरों का स्वकास नकदयों के ककनारे , समुर तट पर या
पहाड़ी िेत्रों में हाअ है। कु रूिेत्र, मथुरा, गया, पुरी, वाराणसी, प्रयाग, मदुरै और स्तरुपस्त
धार्थमक और साांतकृ स्तक नगर हैं।
o पयभटन नगराः मनभावन पयाभवरण तथा सुखद जलवायु वाले तथानों का पयभटन के के न्रों के रूप
में स्वकास हो जाता हैं ाईदाहरण, पांचमढ़ी, स्शमला, मसूरी, ाउटी, मााईां टाअबू, डलहौजी ाअकद।
o समय के साथ नगर ाआतने स्वकस्सत हो जाते हैं कक ाईनका एक ही कायभ प्रधान नहीं रह जाता।
वे बह-प्रकायाभत्मक हो जाते हैं- जैसे कदल्ली और मुब
ां ाइ प्रशासस्नक, ऐस्तहास्सक, पयभटन,

व्यापाररक के न्र, औद्योस्गक नगर, पररवहन नगर ाअकद के रूप में महत्वपूणभ बन गए हैं।

प्राथस्मक नगर (Primate City):


 ककसी भी देश के सबसे बड़े नगर को ाईस देश का प्राथस्मक नगर कहा जाता है। यह नगर ाईस देश
की प्रमुख सामास्जक-साांतकृ स्तक, राजनीस्तक, ाअर्थथक, व्यापाररक ाअकद गस्तस्वस्धयों का प्रमुख कें र
होता है। ाआस नगर का स्वकास ाऄन्य नगरों की ाऄपेिा ाऄस्धक तीव्र गस्त से होता है।
 ‘प्राथस्मक नगर’ ककसी भी देश की प्रवृस्त तथा प्रभाव को बताता है। यह नगर स्वकस्सत एवां
स्वकासशील दोनों देशों में पाया जाता है।
 भारत में राष्ट्रीय ततर पर कोाइ प्राथस्मक नगर नहीं है, क्योंकक कोाइ भी ऐसा नगर नहीं है जो
पूणभरूप से राष्ट्र को प्रभास्वत करता हो। ाआसके स्लए देश का स्वशाल ाअकार, ाईपस्नवेशवादी
स्वरासत ाअकद कारण स्जम्मेदार रहे है।
 ाआसके ाऄस्तररक्त भारत में राज्य ततर पर कु ि प्रमुख नगर ाऄवस्तथत है। ये नगर मुख्य रूप से राज्यों
की राजधास्नयों के रूप में स्वकस्सत हए है। ाईदाहरण के स्लए कोलकाता, चेन्नाइ, गुवाहाटी,
ाऄहमदाबाद ाअकद।
सन्नगर (Conurbation)
 ाआसका ाऄथभ है व्यापक िेत्र में नगरों का स्वकास होना। यह दो नगरों के मध्य स्नर्थमत िेत्र को व्यक्त
करता है। दो नगर धीरे -धीरे ाआमारतों, कारखानों, व्यापाररक गस्तस्वस्धयों ाअकद के कारण ाअपस में
स्मल जाते है।
 सन्नगर का स्वकास स्नम्न पररस्तथस्तयों के कारण होता है:
o जब के वल एक ही नगर फै लकर ाअसपास के िेत्रों को ाऄपने में स्मला लेता है।
o जब दो स्नकटवती नगर ाअपस में स्मलकर स्वततृत नगरीय िेत्र का स्नमाभण करते हो।
ाईदाहरण के स्लए कोलकाता-हावड़ा नगरीय िेत्र।
o जब दो से ाऄस्धक नगर ाअपस में स्मलकर एक बड़े नगरीय िेत्र का स्नमाभण करते हो।
ाईदाहरण के स्लए कदल्ली-फरीदाबाद-गुरुग्राम-नॉएडा -बहादुरगढ़ नगरीय िेत्र।
ाऄनुषग
ां ी नगर (Satellite City)
 ाऄनुषांगी वह नगर होता है स्जसका स्वकास मुख्य नगर की ाऄस्तररक्त जनसांख्या को बसाने के स्लए
ककया जाता है। ाआसे ाईपग्रह नगर के नाम से भी जाना जाता है। ये नगर मुख्य नगर से काफी दूरी
पर ाऄवस्तथत होते है।

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 सामान्यत: मुख्य नगर एवां ाऄनुषग
ां ी नगर के बीच ाअवागमन कम होता है, लेककन ाअधुस्नक समय
में प्रस्तकदन लोग रोज़गार के स्लए मुख्य नगर की यात्रा करते रहते है। मुख्य नगर के लोग खुले
वातावरण, लागत में कमी का लाभ ाईठाने के स्लए ाऄनुषांगी नगरों में ाअकर बस जाते है। ाआसी
कारण ाऄनुषांगी नगरों में ाईद्योग, तवात्य, स्शिा जैसी सुस्वधाओं का स्वकास हो जाता है।
 ाऄनुषांगी नगर एवां मुख्य नगर के बीच ाअर्थथक गस्तस्वस्धयों के कारण घस्नष्ट सांबांध होता है। दृष्टव्य
है कक ाऄनुषांगी नगरों की ाऄपेिा ाईपनगर मुख्य नगर के ाऄस्धक स्नकट होते है।
 ाऄनुषांगी नगर ग्रामीण-नगर ाईपाांत (Rural-Urbun Fringe) िेत्र से बाहर ाऄवस्तथत होते है
जबकक ाईपनगर ाआस िेत्र के ाऄांदर ाऄवस्तथत होते है।
 ाऄनुषांगी नगरों की स्वशेषताएां है - लघु औद्योस्गक कें र, सामान्यत: ाअत्मस्नभभर, यहााँ स्तथत ाईद्योगों
में ाअसपास के िेत्रों से लोग काम करने के स्लए ाअते है।
 ाईदाहरण के स्लए: ाआन ाऄनुषांगी नगरों का ाऄत्यस्धक स्वकास सांयक्त
ु राज्य ाऄमेररका में हाअ है। यहााँ
का लगभग 50% शहरी जनसाँख्या का 25% ाऄनुषांगी नगरों में स्नवास करती है। भारत में
ाऄस्धकाांश ाऄनुषग
ां ी नगर ाअवासीय नगर है। ाआन नगरों के स्नवासी प्रस्तकदन ाअजीस्वका कमाने के
स्लए मुख्य नगर की यात्रा करते है तथा रात को ाऄपने घर वापस लौट ाअते है। रे वाड़ी, मेरठ,
पानीपत ाअकद कदल्ली के ाऄनुषग
ां ी नगर हैं।

नगरों का ऐस्तहास्सक पररप्रेक्ष्य (A Historical Perspective of City)


 नगर ाआस्तहासकार भारत के नगरों को तीन वगों में बाांटते हैं : (i) प्राचीन नगर, (ii) मध्यकालीन
नगर और (iii) ाअधुस्नक नगर।

o प्राचीन नगर: भारत में नगरों की परां परा बड़ी पुरानी है। 5,000 वषों से भी ाऄस्धक पुरानी
बसधु घाटी सभ्यता के मोहन जोदड़ो, हड़प्पा, कालीबांगा, लोथल, धौलावीरा ाअकद नगरों के
ध्वांसावशेष ाआसी त्य की पुस्ष्ट करते हैं ये नगर सुस्नयोस्जत और स्वशाल थे। वैकदक काल के
थानेश्वर, पानीपत, सोनीपत ाअकद नगर ाईल्लेखनीय हैं। महाभारत काल में हस्ततनापुर के
ाऄलावा ाईज्जस्यनी, कन्नौज, पाटस्लपुत्र (पटना) नागपिनम (दस्िण भारत) ाअकद प्रमुख नगर
थे। बौद्धकाल तो नगरों के स्वकास की दृस्ष्ट से भारत का तवणभयग
ु था। मौयभवांश और गुप्तवांश के
शासकों ने सुस्नयोस्जत नगर बसाए थे। ाआस काल के तिस्शला, नालन्दा, कौशाांबी, साांची
ाअकद नगर महत्वपूणभ हैं।
o मध्यकालीन नगर: ाआस काल में लगभग 101 वतभमान नगरों का स्वकास हाअ। ाआस काल के
नगरों का स्वकास मुख्य रूप से ररयासतों और राज्यों के मुख्यालयों या राजधास्नयों के रूप में
हाअ। फतेहपुर सीकरी, ाऄहमदनगर, औरां गाबाद ाअकद ाआसके ाईदाहरण हैं। ाआनमें से ाऄस्धकतर
वे नगर हैं, जहाां ककले बनाए गए थे। ाआस काल के नगर ाआन्हीं के खांडहरों पर बसे हए हैं। ाआस
काल के प्रमुख नगर हैं : कदल्ली, हैदराबाद, ाऄहमदाबाद, जयपुर, जोधपुर, ाअगरा, लखनाउ,

नागपुर, ाईदयपुर और मैसूर।


o ाअधुस्नक नगर: ये नगर दो प्रकार के हैं: स्ब्ररटश कालीन तथा तवतांत्रता के बाद के नगर।
 औपस्नवेस्शक नगर: ाऄांग्रेज, फ्राांसीसी, डच और पुतभगाली यूरोप से ाअए थे। भारत में
ाऄपनी सिा को मजबूत करते के स्लए ाईन्होनें समुर तट पर नगर बसाए। ये व्यापाररक
पिन थे। ाआनमें प्रमुख हैं: सूरत, दमन, गोवा और पाांस्डचेरी। ाअगे चलकर ाऄांग्रज
े ों ने मुांबाइ
चेन्नाइ और कोलकाता जैसे नगर बसाये जो पहले िोटे-िोटे मत्तयन गाांव मात्र थे।

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 ाईपस्नवेश काल के दौरान ाऄस्ततत्व में ाअए नगरों में कु ि ाऄन्य महत्वपूणभ नगर भी स्वकस्सत हए।
स्जनमें िावनी और स्सस्वल लााआन ाईल्लेखनीय थे। ाऄांग्रज
े ों ने ाऄनेक प्रशासस्नक नगरों, पयभटन

नगरों (पहाड़ी नगर नैनीताल, स्शमला ाअकद) का स्वकास ककया। ाआसी दौरान जमशेदपुर जैसे
औद्योस्गक ाईद्योग नगरों का स्वकास भी हाअ।
o तवतांत्रता के बाद स्वकस्सत नगर: ाअजादी के बाद देश में योजनानुसार ाऄनेक प्रशासस्नक और
औद्योस्गक नगर बसाए गए। चांडीगढ़, भुवनेश्वर, गाांधी नगर (ाऄहमदाबाद) कदसपुर ाअकद

प्रशासस्नक कें र हैं। दुगाभपरु , स्भलााइ, स्सन्दरी, बरौनी ाअकद औद्योस्गक नगर हैं।
o प्राचीन नगरों के ाईपनगराः कु ि पुराने नगरों और महानगरों के ाअस-पास ाऄनेक ाईपनगर
स्वकस्सत हो गए। ाईदाहरण के स्लए कदल्ली के चारों ओर स्वकस्सत, गास्जयाबाद, नोएडा,

बहादुरगढ़, गुड़गाांव ाअकद ऐेसे ही औद्योस्गक ाईपनगर हैं। ाअर्थथक स्वकास के साथ-साथ देश में
ाऄनेक िोटे नगरों और कतबों का भी स्वकास हाअ है। बड़े गाांव कतबे बनकर ग्रामीण िेत्र के
स्लए औद्योस्गक वततुओं और ाऄन्य सेवाओं के कें र के रूप में कायभ करने लगे हैं।

8.1. भारत में नगरीकरण (Urbanisation in Indian)

 भारत को ाऄभी भी गाांवों का देश कहा जाता है। सांसार के ाऄनेक देशों में 90 प्रस्तशत से ाऄस्धक

लोग नगरों में रहते हैं। ाआसके स्वपरीत भारत में नगरीय जनसांख्या के वल 31 प्रस्तशत ही है। लेककन

भारत की नगरीय कु ल जनसांख्या सांसार के काइ देशों की कु ल जनसांख्या से ाऄस्धक है। 1901 में कु ल

नगरीय जनसांख्या 10.84 प्रस्तशत ाऄथाभत् ढााइ करोड़ ही थी। ाअज भारत में 37.7 (2011) लोग

नगरवासी हैं। भारत में नगरों की जनसांख्या दो तरह से बढ़ी हैाः (i) पुराने नगरों का स्वततार तथा

(ii) नए नगरों की तथापना। गाांवों से नगरों के लोगों के प्रवास के कारण भारत में नगरों का तेजी से
स्वकास हो रहा है।
नगरीय के न्रों का वगीकरण (Classification of Urban Centres)

 नगरों के वगीकरण के मुख्य रूप से दो ही ाअधार हैं : (i) जनसांख्या की दृस्ष्ट से ाअकार, (ii) नगरों

के कायभ (प्रशासस्नक, पिन ाअकद)

 जनसांख्या के ाअकर के ाअधार पर कतबों और नगरों का वगीकरण (Towns and Cities based

on Population Size) : भारतीय जनगणना स्वभाग ने जनसांख्या के ाअकार के ाअधार पर भारत

के नगरों को िाः वगों में स्वभास्जत ककया है। 2001 की जनगणना ररपोटों में एक लाख से कम

जनसांख्या वाली नगरीय बस्ततयों को नगर (Town) तथा एक लाख से ाऄस्धक जनसांख्या वाली

नगरीय बस्ततयों को स्सटी (City) कहा गया है। 10 से 50 लाख की सांख्या वाले नगरीय बस्ततयों

को महानगर या मेरोपोस्लटन स्सटी (Metropolitan Cities) कहा जाता है। लेककन 50 लाख से

ाऄस्धक जनसांख्या वाली नगरीय बस्ततयों को मेगा स्सटी (Mega Cities) कहा गया है।

 महानगर और मेगास्सटी वाततव में नगरीय सांकुल (Urban Agglomeration) है। जनगणना

2001 के ाऄनुसार, ‘‘भारतीय सांकुल’’ (समूह) सतत् नगरीय फै लाव से बनता है।

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वषभ नगरों की नगरीय जनसांख्या (हजार में) कु ल जनसांख्या का दशकीय वृस्द्ध (%)
सांख्या प्रस्तशत
1901 1827 25891.9 10.84 -

1911 1815 25941.6 10.29 0.35

1921 1949 28086.2 11.18 8.27

1931 2072 33456. 11.99 19.12

1941 2250 44153.3 13.86 31.97

1951 2843 62443.7 17.29 41.42

1961 2365 78936.6 17.97 26.41

1971 2590 109113.9 19.91 28.23

1981 3378 159462.5 23.34 24.16

1991 4689 217611.0 25.71 36.47

2001 5161 285543.7 27.80 31.13

2011 - 3,77,196.9 31.16 -

वगभ जनसांख्या का नगरों की जनसांख्या कु ल नगरीय जनसांख्या प्रस्तशत वृस्द्ध


ाअकार सांख्या करोड़ में का प्रस्तशत 1991-2001
िेणी 5161 28.554 100 31.13

I 1,00,000 और 423 17.204 61.48 23.12


ाऄस्धक
II 50,000- 498 3.443 12.30 43.45

99,999

III 20,000- 1386 4.197 15.00 46.19

49,999

IV 10,000- 1560 2.260 8.08 32.94

19,999

V 5,000-999 1057 0.798 2.85 41.49

VI 5,000 और कम 227 0.080 0.29 21.21

(भारताः जनसांख्या ाअकार के ाऄनुसार नगरीय के न्रों को ाईपयुक्त


भ 6 िेस्णयों में बाांटा गया है)

 ाईपयुभक्त तास्लका के ाऄध्ययन से यह पता चलता है कक भारत की 61 प्रस्तशत से ाऄस्धक नगरीय

जनसांख्या के वल 423 नगरों में रहती है। ये नगर कु ल नगरों का के वल 8.2% हैं। ाआन 423 नगरों

में से 10 लाख से ाऄस्धक की जनसांख्या वाले 35 महानगर हैं। ऐसे नगरों को स्मस्लयन प्लस स्सटी

(Million plus cities) भी कहते हैं। ाआनमें से 50 लाख से ाऄस्धक की जनसांख्या वाले िाः मेगा

स्सटी (Megacities) भी है।

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 ाआन िाः नगरों में देश की 21 प्रस्तशत से ाऄस्धक नगरीय जनसांख्या रहती हैं। देश के 35 महानगरों
में (िाः मेगा स्सटी सस्हत) भारत की लगभग 38% नगरीय जनसांख्या का स्नवास है। 20,000 से
कम जनसांख्या वाले नगरों (Towns) की कु ल सांख्या 2,844 है, जो नगरों की कु ल सांख्या का
55% से ाऄस्धक है। ाआन 2,844 नगरों में देश की 11 प्रस्तशत नगरीय जनसांख्या रहती है। देश के
मध्यम ाअकार (वगभ II व III के नगरों की सांख्या 1884 है। ाआनमें भारत की 27.30 प्रस्तशत नगरीय
जनसांख्या रहती है। 1999-2001 के दशक में ाआन नगरों की सांख्या सबसे ाऄस्धक बढ़ी है। 1991 में
मध्यम ाअकार के नगरों में 24.3 प्रस्तशत जनसांख्या रहती थी, जो 2001 में बढ़कर 27.3 प्रस्तशत
हो गाइ। यही सांख्या 2011 में बढ़कर 31.16 प्रस्तशत हो गयी है।
भारत के महानगर (Metropolitan Cities)
 1991-2001 के बीते दशक में स्मस्लयन प्लस नगरों की सांख्या 23 से बढ़कर 35 हो गाइ है। यही
सांख्या बढ़कर 2011 में 53 हो गयी है। ाआनमें से बृहिर मुांबाइ (1.64 करोड़) सबसे बड़ा नगर हैं
कोलकाता, चेन्नाइ ाअकद 13 नगरों की जनसांख्या 20 लाख से ाऄस्धक है। ाआन 35 महानगरों की कु ल
जनसांख्या 10.788 करोड़ है। 1991 में ऐसे 23 नगरों की कु ल जनसांख्या 6.94 करोड़ थी, जो कु ल
नगरीय जनसांख्या का 32.5 प्रस्तशत थी।

8.2. भारत में मस्लन बस्ततयाां (Slums in India)

 भारत के नगरों में स्वशेषताः महानगरों में मस्लन बस्ततयों की स्वकराल समतया है। भारत में
नगरीय जनसांख्या का लगभग 20 प्रस्तशत और महानगरों का लगभग 30 प्रस्तशत मस्लन बस्ततयों
में रहता है। जनगणना 1991 के ाऄनुसार देश की लगभग 5 करोड़ नगरीय जनसांख्या मस्लन
बस्ततयों में रहती थी।
 भारतीय महानगरों की मस्लन बस्ततयों में स्नवास करने वाले व्यस्क्तयों का जीवन ततर ाऄत्यस्धक
ख़राब या स्नकृ ष्ट और पयाभवरण ाऄतवात्यकर होता है। ाऄल्पाय, स्नरिरता, ाऄकु शलता ाअकद के
कारण ाईनमें ाऄनेक सामास्जक बुरााआयाां जैसे शराब पीना, जुाअ खेलना, चोरी, हत्या ाअकद ाऄनुषांगी
बन जाती है। मस्लन बस्ततयों में मकान ाऄव्यवस्तथत, ाऄस्धक सघन, िोटे-िोटे कमरों और प्रायाः
कच्चे एवां झोपड़ी के रूप में पाए जाते हैं।

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 मुम्बाइ महानगर के स्वस्भन्न भागों में स्बखरी हाइ मस्लन बस्ततयों में लगभग 44 प्रस्तशत जनसांख्या
का स्नवास हैं। ाआनमें रहने वाले तीन-चौथााइ से ाऄस्धक लोग ाऄल्प ाअय वाले हैं। रोजगार ाअकद के
स्लए ग्रामीण िेत्रों और िोटे नगरों से भी बड़ी सांख्या में लोग मुम्बाइ ाअते रहे हैं स्जससे यहाां
जनसांख्या तीव्रता से बढ़ती गयी ककन्तु तथानीय प्रशासन िारा ाअवास पर ाईस्चत ध्यान नहीं कदया
जाता है।
 कोलकाता महानगर में औद्योस्गक िेत्रों के स्नकटवती भागों में िोटे-िोटे मकानों और झोपस्ड़यों
वाली सघन बस्ततयाां स्मलती हैं जहाां जल स्नकास, शौचालय, स्नानागार ाअकद की ाईस्चत व्यवतथा
न होने के कारण सड़क पर गांदगी फै ली रहती है और नास्लयों से दुगभन्ध स्नकलती रहती है स्जसके
कारण वहाां रहने वाले नागररकों का जीवन ाऄत्यांत ाऄतवतथकर रहता है।
 कदल्ली के बाहरी भागों में काम करने वाले िस्मकों तथा स्नम्न ाअय वगभ के ाऄन्य व्यस्क्तयों की
झुग्गी-झोपस्ड़यों वाली मस्लन बस्ततयाां कदखायी पड़ती है स्जनमें से ाऄस्धकाांश कारखानों के
समीपवती भागों में स्तथत हैं।
 चेन्नाइ की मस्लन बस्ततयों को चेरी के नाम से जाना जाता है। चेरी में ाऄस्धकाांशताः झोपस्ड़याां और
कच्चे मकान पाये जाते हैं स्जनमें कम ाअय वाले मजदूर ाअकद रहते हैं।
 ाऄहमदाबाद महानगर की मस्लन बस्ततयाां ाऄस्धकाांशताः सूती वस्त्र स्मलों के स्नकटवती भागों में
स्तथत है जहाां ाऄस्धकाांश गृह टीन, खपरै ल, एतबेतटस ाअकद से ढके होते हैं और प्रायाः कच्ची या ाइट
की दीवारों वाले हैं।
 औद्योस्गक नगर कानपुर की लगभग 35 प्रस्तशत जनसांख्या मस्लन बस्ततयों में रहती है। कानपुर
की मस्लन बस्ततयाां ‘कटरा’ या ‘ाऄहाता’ के नाम से जानी जाती हैं। यह एक बड़ा ाऄहाता
(enclosure) होता है ाआनमें ाऄनेक िोटे-िोटे मकान बने होते हैं स्जनमें एक या दो पररवार ाअिय
प्राप्त करते हैं।
मस्लन बस्ततयों के दुष्पररणाम (Bad Effects of Slums)
 भारत के स्वस्भन्न महानगरों में मस्लन बस्ततयों की ाईपस्तथस्त एक गांभीर समतया बन गयी है
स्जसके ाऄनेक दूरगामी दुष्पररणाम होते हैं जो काइ प्रकार से ाअर्थथक, सामास्जक, साांतकृ स्तक एवां
राजनीस्तक िस्त पहांचाते हैं। मस्लन बस्ततयों के कु ि प्रमुख दुष्पररणाम स्नम्नाांककत हैं-
o तवात्य में ह्रास - मस्लन बस्ततयों में सफााइ, शुद्ध पेयजल, रोशनी ाअकद के ाऄभाव तथा
प्रदूस्षत पयाभवरण के कारण यहाां ाऄनेक प्रकार की बीमाररयाां फै लती रहती हैं स्जनका जन-
तवात्य पर स्वपरीत प्रभाव पड़ता हैं।
o कायभ िमता में ह्रास - प्रदूस्षत पयाभवरण और कु पोषण के कारण मस्लन बस्ततयों के स्नवास्सयों
का तवात्य प्रायाः ाऄछिा नहीं होता है और वे ककसी न ककसी बीमारी से पीस्ड़त होते रहते हैं।
तवात्य ाऄछिा न रहने और स्विाम के स्लए पयाभप्त एवां ाईपयुक्त तथान के ाऄभाव में िस्मकों
की कायभ िमता घट जाती है। व्यापक ाऄस्शिा के कारण ाऄस्धकाांश िस्मक ाऄकु शल होते हैं।
o नैस्तक पतन तथा ाऄपराध में वृस्द्ध - दूस्षत पयाभवरण, ाऄस्शिा तथा ाऄसामास्जक तत्वों की
सांगस्त ाअकद के कारण बहत से बालक और युवक ाऄपराधी बन जाते हैं। मस्लन बस्ततयों में
चोरी, शराब पीने, जुाअ खेलने, वेश्यावृस्त, हत्या, बाल ाऄपराध, बलात्कार ाअकद सामास्जक
बुरााआयाां फै ली होती हैं स्जसके पररणामतवरूप ाआसके स्नवास्सयों का नैस्तक पतन होता है जो
सभ्य समाज और देश के स्लए गांभीर खतरा बन जाता है।
o जीवन-ततर में ह्रास - ाईस्चत तवात्य, स्शिा तथा कायभिमता में कमी का मस्लन बतती के
स्नवास्सयों की ाअय पर स्वपरीत प्रभाव पड़ता है। ाअय कम होने तथा भौस्तक एवां सामास्जक
रूप से प्रदूस्षत पयाभवरण में रहते हए लोगों का जीवन-ततर ाऄत्यांत स्नम्न और दयनीय हो
जाता है। ाऄल्पायु के कारण ाऄस्धकाांश लोग पररवार की दैस्नक ाअवश्यक ाअवश्यकताओं को
भी पूरा करने में ाऄसमथभ होते हैं।

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o पाररवाररक एवां सामास्जक स्वघटन - मस्लन बतती के स्नवासी िस्मकों को मनोरां जन, स्विाम
ाअकद की ाअवश्यक सुस्वधाएां नहीं स्मल पाती हैं स्जससे वे मानस्सक स्चन्ता, बेचन
ै ी, स्नराशा
ाअकद के स्शकार हो जाते हैं और मादक वततुओं का सेवन करने लगते हैं, बुरी ाअदतों में फां स
जाते हैं और ाईनका पररवार के प्रस्त लगाव समाप्त होने लगता है। यह प्रवृस्ि पाररवाररक
स्वखराव को जन्म देती है। पाररवाररक स्बखराव तथा ाऄसामास्जक प्रवृस्ियों के बढ़ने से
सामास्जक स्वघटन होने लगता है।
मस्लन बस्ततयों के सुधार हेतु सुझाव -
 महानगरों में ाअवास तथा मस्लन बस्ततयों की समतया को हल करने के स्लए के न्र एवां राज्य
सरकारों, नगर स्नगमों, स्वि एवां बीमा कम्पस्नयों तथा तवैस्छिक सामास्जक सांगठनों िारा समय-
समय पर प्रयास ककये जाते रहे हैं। भारत की ाऄनेक पांचषीय योजनाओं में ाअवासीय सुस्वधाएां
जुटाने के स्लए प्रततास्वत धनरास्श में स्नरन्तर वृस्द्ध की जाती है।
 महानगरों में मस्लन बस्ततयों की समतयाओं के स्नराकरण हेतु कस्तपय सुझाव स्नम्नाांककत हैं:
o स्वके स्न्रत ाऄथभव्यवतथा - बडेऺ-बड़े नगरों के रूप में जनसांख्या का सांकेरण के न्रीकृ त
ाऄथभव्यवतथा का पररणाम है। ाईद्योग, व्यापार ाअकद ाअर्थथक कक्रयाओं के कु ि स्वस्शष्ट तथानों
(महानगरों) में के न्रीभूत हो जाने के कारण ाआन तथलों पर जनसांख्या पूज
ां ीभूत (सांकेस्न्रत)
होती रहती है।
o बहमुखी ग्रामीण स्वकास - महानगरों में ाअवासीय गृहों की कमी और मस्लन बस्ततयों के
स्वकास के स्लए सवाभस्धक ाईिरदायी कारक है ग्रामों से नगरों की ओर जनसांख्या का
तथानाांतरण। ाऄपेस्ित रोजगार, स्शिा, तवात्य, मनोरां जन ाअकद सुस्वधाओं से वांस्चत ाऄसांख्या
ग्रामीण युवक प्रस्तवषभ गाांव िोड़कर नगरों में पहांचते हैं स्जससे नगरीय जनसांख्या में वृस्द्ध और
ाअवसीय (मस्लन बस्ततयों) की समतयाएां बढ़ती जाती हैं।
o स्नम्न ाअय वगभ के स्लए कालोस्नयों का स्नमाभण - मस्लन बस्ततयों की समतया से मुस्क्त के स्लए
ऐसी ाअवास योजनाओं के कक्रयान्वयन की महती ाअवश्यकता है स्जससे ाआन बस्ततयों के
स्नवास्सयों को ाऄन्यत्र बसाया जा सके । सरकारी प्रयास से स्नम्न ाअय वगभ की ाअवासीय
कालोस्नयों के स्नमाणभ िारा बहत से लोगों को बसाया जा सके ।
o मस्लन बस्ततयों का सुधार - नगरीय ाअवासीय समतयाओं को हल करने की स्वस्भन्न योजनाओं
के साथ ही मस्लन बस्ततयों के सुधार पर ध्यान देना ाऄस्नवायभ है। सड़कों तथा नास्लयों के
स्नमाभण स्बजली, पेयजल, शौचालायों ाअकद ाअवश्यक सुस्वधाओं को प्रदान करके तथा
औषधालय, तकू ल, खेल के मैदान, पाकभ ाअकद की सुस्वधाएां ाईपलब्ध कराकर मस्लन बस्ततयों
के स्नवास्सयों के जीवन-ततर में सुधार लाया जा सकता है।
o ाऊण की समतया - लघु भवनों के स्नमाभण तथा पुराने भवनों की मरम्मत के स्लए
ाअवश्यकतानुसार ाऊण प्रदान करने की व्यवतथा की जा सकती है। ाअसान ककततों पर सुगमता
से ाऊण प्राप्त हो जाने पर ाऄनेक पररवार तवयां ही ाअवासीय समतयाओं को दूर करने में समथभ
हो सकें गे।
8.3. भारत में नगर स्नयोजन (Urban Planning in India)

 भारत में नगरीय स्नयोजन का ाआस्तहास ाऄत्यांत लम्बा हैं ाअज से लगभग 5000 वषभ पूवभ स्सन्धु
घाटी में मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, लोथल ाअकद नगरों के भग्नावशेष प्राप्त हए हैं स्जससे स्वकदत होता हैं
कक ये नगर स्नयोस्जत ढांग से बसाये गये थे। मोहनजोदड़ो स्नयोस्जत नगर था स्जसकी सड़कें सीधी
तथा एक दूसरे को लम्बवत काटती हाइ चैक पट्टी स्वन्यास पर ाअधाररत थीं। नगर में जल स्नकास
और जलापूर्थत की ाईिम व्यवतथा की गयी थी। ाआसी प्रकार की योजना के प्रमाण हड़प्पा और
लोथल तथानों पर खुदााइ से भी प्राप्त हए है।

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 प्राचीन भारतीय ग्रांथों में वर्थणत त्यों से पता चलता है कक वैकदक काल में ाऄनेक नगर स्वकस्सत थे
जो सुस्नयोस्जत रूप से बसाये गये थे स्जनमें ाऄलग-ाऄलग कायाभत्मक िेत्र स्तथत थे। ाऄयोध्या,
काशी, हस्ततनापुर, वैशाली, पाटस्लपुत्र, कौशाम्बी, मदुरा, काांचीपुरम, साांची ाअकद ाआसी प्रकार के
वैकदक कालीन नगर थे। प्राचीन भारत में ाऄनेक दुगभ नगरों या राजधानी नगरों को स्नयोस्जत
पद्धस्त से तथास्पत ककया गया था।
 मुगल काल में देश के स्वस्भन्न भागों में बहत से नये नगर बसाये गये और ाईनके स्नयोस्जत स्वकास
के प्रयास ककये गये। शाहजहानाबाद (वतभमान पुरानी कदल्ली), ाअगरा, िीनगर, फतेहपुर सीकरी,
बुलन्दशहर ाअकद तत्कालीन स्नयोस्जत नगरों के ाईदाहरण हैं।
 मध्यकाल में बसाये गये नगरों में जयपुर का स्वस्शष्ट तथान है स्जसे 1727 ाइ. में महाराजा सवााइ
जय बसह ने सुस्नयोस्जत ढांग से बसाया था। ाअयताकार प्रस्तरूप वाले जयपुर को स्ग्रडरान या
शतरां जी स्वन्यास के ाऄनुसार बसाया गया है स्जसकी सड़कें एक-दूसरे को लम्बवत काटती हैं।
 स्ब्ररटश काल में ाऄांग्रज
े ों िारा भारत में पािात्य नगर योजना के ाऄनुसार काइ नगरों या नगरों के
कु ि स्हतसों को स्वकस्सत ककया गया। स्ब्ररटश काल में मुख्यताः प्रशासकीय नगरों, िावस्नयों तथा
बन्दरगाहों (समुर पिनों) को तथास्पत करने पर स्वशेष ध्यान कदया गया। प्रशासकीय नगरों में
ाऄस्धकाररयों तथा ाऄांग्रज
े ों के रहने के स्लए चौड़ी-चौड़ी सड़कों तथा खुले तथान वाले स्सस्वल
लााआन्स को स्वकस्सत ककया गया। प्रस्सद्ध स्ब्ररटश नगर स्नयोजक पैररक गेस्डस (P. Geddes) के
सुझाव पर भारत में नगर स्नयोजन का कायभ नगरपास्लकाओं को कदया गया और सवभप्रथम 1898
में बम्बाइ में सुधार न्यास (Improvement Trust) की तथापना की गयी। ाआसके पिात् मैसूर
(1903), कलकिा (1911), कानपुर (1919), लखनाउ (1919), ाआलाहाबाद (1920) ाअकद नगरों
में सुधार न्यास तथास्पत ककये गये।
 1950 के पिात् स्नयोजन काल में स्वस्भन्न पांचवषीय योजनाओं में नगरीय स्नयोजन पर महत्वपूणभ
कायभ हए। औद्योस्गक एवां व्यापाररक स्वकास के स्लए तथा प्रशासकीय के न्र के रूप में ाऄनेक नये
नगर योजनाबद्ध तरीके से बसाये गये। साथ ही पाककततान से ाअये स्वतथास्पतों को बसाने के स्लए
भी ाऄनेक नगर तथास्पत ककये गये। तवतांत्र भारत में तथास्पत स्नयोस्जत नगरों में प्रशासकीय नगर
चांढीगढ़, भुवनेश्वर, गाांधीनगर, ाइटानगर ाअकद; औद्योस्गक नगर दुगाभपरु , रााईरके ला, स्भलााइ,
बोकारो, स्वजयनगर ाअकद और पिन नगर काांडला, पारादीप ाअकद स्वशेष ाईल्लेखनीय हैं। वतभमान
समय में नगरों की स्वस्भन्न समतयाओं के स्नराकरण हेतु सुधारात्मक तथा नवस्नमाभण योजनाओं में
तथानीय पयाभवरण को ध्यान में रखते हए तैयार करने पर बल कदया गया है और नगर को तवछि,
सुस्वधापूणभ और सुन्दर बनाने का प्रयास ककया गया है। ाऄस्धकाांश बड़े नगरों के स्लए मातटर प्लान
तैयार ककये गये हैं जो नगर की भावी ाअवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाया गया हैं।
8.3.1. भारत की नगरीय नीस्त (India's Urban Policy)

 तवतांत्रता प्रास्प्त से पहले भारत में कोाइ तपष्ट नगरीय नीस्त नहीं थी और ाईस समय तक देश की
लगभग 17 प्रस्तशत जनसांख्या ही नगरों में रहती थी। स्नयोजन काल के ाअरां भ (1951) में भारत
की 6.24 करोड़ (17.3 प्रस्तशत) जनसांख्या िोटे-बड़े कु ल 3059 नगरों में स्नवास करती थी।
स्नयोजन काल के 50 वषों में ाअर्थथक स्वकास के साथ-साथ ग्रामों से नगरों के स्लए बड़ी सांख्या में
जनसांख्या के तथानाांतरण की गस्त तीव्र होती गयी। तीव्र नगरीकरण से ाऄनेक प्रकार की सामास्जक,
ाअर्थथक, जनाांकककीय एवां पयाभवरणीय समतयाएां ाईत्पन्न होती हैं स्जनके स्नराकरण तथा तवतथ
नगरीय जीवन के समुस्चत नगरीय नीस्त का स्नधाभरण ाऄस्नवायभ है। भारत की राष्ट्रीय नगरीय नीस्त
की प्रमुख स्वशेषताएां स्नम्नस्लस्खत हैं:

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o नगरीय स्वकास में स्नजी तथा सावभजस्नक दोनों िेत्रों के सहयोग को तवीकार ककया गया है।
मस्लन बस्ततयों के सुधार तथा ाऄल्प ाअय वगभ के लोगों के स्लए ाअवास सुलभ कराने का
ाईिरदास्यत्व सावभजस्नक िेत्र को प्रदान ककया गया है क्योंकक मध्यम तथा ाईच्च ाअय वगभ के
लोग स्नजी ततर पर ाअवास की व्यवतथा कर सकते हैं।
o राष्ट्रीय नगर नीस्त में ग्रामीण-नगरीय सातव्य के स्वकास को प्रमुख लक्ष्य बनया गया है स्जसके
ाऄनुसार ग्राम के क्रस्मक स्वकास से ाईसकी पदोन्नस्त लघु नगर (कतबा) तथा नगर (स्सटी) के
रूप में होती है। यद्यस्प नव नगर भी तथास्पत ककये जा सकते हैं ककन्तु ऐसे नगरों की ाअवृस्ि
ाऄत्यांत सीस्मत है।
o महानगरों में मस्लन बस्ततयों की समतया के समाधान के स्लए दो मुख्य ाईपाय हैं- (i) मस्लन
बस्ततयों को ध्वतत कराकर ाईनके स्नवास्सयों को ाऄन्यत्र तथास्पत ाअवासीय कालोस्नयों में
बसाना, और (ii) मस्लन बस्ततयों को हटाने के बजाय ाईनमें सड़क, जल स्नकास, पेयजल,
स्बजली, सफााइ ाअकद ाअवश्यक सुस्वधाएां प्रदान करके ाईनका सुधार करना। राष्ट्रीय नगरीय
नीस्त में दूसरे ाईपाय ाऄथाभत मस्लन बस्ततयों के सुधार पर बल कदया गया है।
o नगरों स्वशेषताः वृहत नगरों में ाअवास स्वकास प्रास्धकरण (Urban Develoopment
Authorities) तथास्पत ककये गये हैं जो नगर के वतभमान तथा भावी स्वकास के स्लए कायभक्रमों
तथा नीस्तयों का स्नधाभरण करते हैं और ाईनके ाऄनुपालन को सुस्नस्ित करते हैं। ये प्रास्धकरण
सामान्यताः नगर पास्लकाओं एवां नगर स्नगमों के सहयोग से कायभ करते हैं। ाअवास स्वकास
प्रास्धकरण नगर के मध्य खाली पड़ी भूस्म ाऄथवा समीप स्तथत भूस्म को ाअवश्यक सुस्वधाएां
(सड़क, स्बजली, टेलीफोन, पेयजल, जल स्नकास ाअकद) प्रदान करके स्वकस्सत करते हैं और
ाअवासीय कालोस्नयों का स्नमाभण करते हैं।
o नगरीय िेत्रों में ाअवास स्नमाभण हेतु प्लाट खरीदने ाऄथवा मकान बनवाने हेतु स्वस्भन्न स्विीय
सांतथाओं जैसे हडको (HUDCO), भारतीय जीवन बीमा स्नगम, राष्ट्रीय बैकों ाअकद िारा
ाअसान ककततों पर ाऊण के रूप में स्विीय सहायता प्रदान करने का प्रावधान ककया गया है।
o राज्य सरकारों तथा तथानीय स्नकायों को सावभजस्नक ाईपयोग जैसे कारखाना या सांयांत्र
तथास्पत करने, सड़क या पाकभ बनाने ाअकद के स्लए व्यस्क्तगत सम्पस्ि, भूस्म ाअकद को समुस्चत
िस्तपूर्थत प्रदान करके ाऄस्धग्रहण का ाऄस्धकार प्रदान ककया गया है।
o नगरीय भूस्म (ाऄस्धकतम सीमा एवां स्नयमन) ाऄस्धस्नयम 1976 के ाऄांतगभत राज्य सरकारों को
नागररकों के स्लए नगरीय भूस्म की ाऄस्धकतम सीमा स्नधाभररत करने का ाऄस्धकार प्रदान
ककया गया है स्जससे नगरीय िेत्र में भूस्म का समुस्चत ाअवांटन ककया जा सके ।
o नगरीय नीस्त की प्राथस्मकताओ में लघु तथा मध्यम िेणी के नगरों में सांरचनात्मक
(infrastructure) सुस्वधाओं को स्वकस्सत करना सवभप्रमुख है। ाआसके िार नगर ग्रामीण िेत्रों
के मध्य के न्र तथल (central place) की भूस्मका ाऄदा कर सकें गे।
o नगर के भावी स्वततार तथा तदनुकूल सुस्वधाओं की ाअपूर्थत सुस्नस्ित करने के ाईद्देश्य से
राष्ट्रीय नीस्त के ाऄांतगभत सभी लघु, मध्यम एवां वृहत नगरों के स्लए मातटर प्लान तैयार करना
ाऄस्नवायभ कर कदया गया है।
o नगरों की प्रबांध व्यवतथा तथा स्वकास का ाईिरदास्यत्व सम्बस्न्धत राज्य सरकारों को प्रदान
ककया गया है जो ाआसे तथानीय स्नकायों के माध्यम से सम्पन्न कराती है।
o महानगरों में भीड़-भाड़ तथा प्रदूषण को कम करने के ाईद्देश्य से लघु एवां मध्यम िेणी के नगरों
के स्वकास पर ाऄस्धक बल देने का प्रावधान है। ाईद्यस्मयों िारा लघु एवां मध्यम िेणी के नगरों
में नये ाईद्योगों को लगाने पर काइ तरह की ररयायतें प्रदान करने की व्यवतथा है।
o राष्ट्रीय नगरीय नीस्त का मुख्य ाईद्देश्य ऐसे सुदढ़ृ नगरीय ढाांचे का स्नमाभण करना है जो ग्रामीण
स्वकास का पूरक बन सके और देश के सवांगीण स्वकास में योगदान दे सके ।
o नगरीय नीस्त में नगरीय समतयाओं तथा स्वकास से सम्बस्न्धत स्वस्भन्न त्यों पर शोध करने
तथा समुस्चत सुझाव प्रदान करने के साथ ही ाईपयोग नीस्त स्नधाभरण की भी व्यवतथा है।

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क्या होता है मातटर प्लान
 ककसी स्वद्यमान नगर में सुधार करना या नए नगर के स्नमाभण के स्लए भावी ाअवश्यकताओं को
ध्यान में रखते हए ाईस नगर के स्लए बनायी गयी स्वततृत योजना को ही ‘मातटर प्लान' कहा जाता
है। ाआसके ाऄांदर नगर की वतभमान दशा को सुधारने के ाईद्देश्य से स्नर्थमत प्रततावों की रुपरे खा होती है।
 मातटर प्लान एक दीघभकास्लक योजना होती है स्जसके ाऄांतगभत 20 या 30 या ाआससे ाऄस्धक वषों की
योजना बनायी जाती है। ाआस प्लान के ाऄांदर सम्पूणभ नगर को एक ाआकााइ माना जाता है। ाआसी प्लान
में नगर की वतभमान के साथ-साथ भावी ाअवश्यकताओं एवां समतयाओं को ध्यान में रखते हए
योजनाएां तैयार की जाती है।
 यह प्लान एक बहाईद्देशीय योजना होता है स्जसका ाईद्देश्य नगर को तवछि, सुांदर, प्रदूषण मुक्त,
ाअवश्यक जन सुस्वधाओं की ाईपलब्धता ाअकद योग्य बनाना है। ाआसका मुख्य ाईद्देश्य नगर का बहमुखी
स्वकास करना है।
 ाआसके ाऄांतगभत नगर की भावी ाअवश्यकताओं को ध्यान में ाईद्योग, व्यापार, प्रशासन, स्शिा,
यातायात ाअकद के स्लए ाईपयुक्त िेत्रों का स्नधाभरण ककया जाता है तथा ाईसके ाऄनुसार नगरीय
पुनर्थनमाभण और नवीन स्नमाभण पपर बल कदया जाता है।
 ाआस प्लान के ाऄांतगभत ाआस पर भी बल कदया जाता है कक नगरीय भूखांड पर स्नमाभण कायभ करने से पूवभ
भू-तवामी को नगर स्वकास प्रास्धकरण से ाऄनुमस्त प्राप्त करनी होगी तथा स्नमाभण कायभ भी मातटर
प्लान के ाऄनुसार ही होना चास्हए।
 भारत में मातटर प्लान के ाईदाहरण: 1915 में सबसे पहले मुम्बाइ के स्लए मातटर प्लान तैयार ककया
गया था, ाआसके बाद 1920 में चेन्नाइ के स्लए मातटर प्लान तैयार ककया गया था। वतभमान समय में
ज़्यादातर 1 लाख से ाऄस्धक जनसांख्या वाले नगरों के स्लए मातटर प्लान तैयार ककये जा चुके है।

9. नगरीकरण से सां बां स्धत नवीनतम घटनाक्रम


तमाटभ स्सटी स्मशन
 भारत की वतभमान जनसांख्या का लगभग 31% शहरों में बसता है और ाआनका सकल घरे लू ाईत्पाद
में 63% (जनगणना 2011) का योगदान हैं। ऐसी ाईम्मीद है कक वषभ 2030 तक शहरी िेत्रों में
भारत की ाअबादी का 40% स्नवास करने लगेगा और भारत के सकल घरे लू ाईत्पाद में ाआसका
योगदान 75% का होगा । ाआसके स्लए भौस्तक, सांतथागत, सामास्जक और ाअर्थथक बुस्नयादी ढाांचे
के व्यापक स्वकास की ाअवश्यकता है। ये सभी जीवन की गुणविा में सुधार लाने एवां लोगों और
स्नवेश को ाअकर्थषत करने, स्वकास एवां प्रगस्त के एक गुणी चक्र की तथापना करने में महत्वपूणभ हैं।
तमाटभ स्सटी का स्वकास ाआसी कदशा में एक कदम है।
 ाआस स्मशन में 100 शहरों को शास्मल ककया गया है और ाआसकी ाऄवस्ध पाांच साल (स्विीय वषभ
2015-16 से स्विीय वषभ 2019-20) की होगी। स्वशेष ध्यान रटकााउ और समावेशी स्वकास पर है
और एक रे स्प्लके बल मॉडल बनाने के स्लए है जो ऐसे ाऄन्य ाआछिु क शहरों के स्लए प्रकाश पुज
ां का
काम करे गा।
 तमाटभ स्सटी स्मशन ऐसा ाईदाहरण प्रततुत करने के स्लए है स्जसे तमाटभ स्सटी के भीतर और बाहर
दोहराया जा सके , स्वस्भन्न िेत्रों और देश के स्हतसों में भी ाआसी तरह के तमाटभ स्सटी के सृजन को
ाईत्प्रेररत ककया जा सके ।

 तमाटभ स्सटी स्मशन रणनीस्त: पूरे शहर के स्लए पहल स्जसमे कम से कम एक तमाटभ समाधान
शहरभर में लागू ककया गया है-िेत्र का कदम-दर-कदम स्वकास
िेत्र के ाअधार पर प्रगस्त के तीन मॉडल, रे रोकफरटग, पुनर्थवकास और हररतिेत्र।

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 कोर बुस्नयादी सुस्वधाओं के तत्व: पयाभप्त पानी की ाअपूर्थत, स्नस्ित स्वद्युत ाअपूर्थत, ठोस ाऄपस्शष्ट,
प्रबांधन सस्हत तवछिता, कु शल शहरी गस्तशीलता और सावभजस्नक पररवहन, ककफायती ाअवास,
स्वशेष रूप से गरीबों के स्लए, सुदढ़ृ ाअाइटी कनेस्क्टस्वटी और स्डस्जटलीकरण, सुशासन, स्वशेष
रूप से ाइ-गवनेंस और नागररक भागीदारी, रटकााउ पयाभवरण, नागररकों की सुरिा और सांरिा,
स्वशेष रूप से मस्हलाओं, बच्चों एवां बुजुगों की सुरिा, तवात्य और स्शिा।
 तमाटभ स्सटी स्मशन के ाऄांतस्भ नस्हत लाभ:
o यह पहली बार है जब एक एमओयूडी कायभक्रम के स्वि-पोषण के स्लए शहरों का चयन करने
के स्लए 'चैलज
ें ' या प्रस्तयोस्गता स्वस्ध का ाईपयोग और िेत्र के ाअधार पर स्वकास की एक
रणनीस्त का प्रयोग ककया गया है। यह 'प्रस्ततपधी और सहकारी सांघवाद' की भावना को
दशाभता है।
o राज्य और शहरी तथानीय स्नकायों को तमाटभ स्सटी के स्वकास में एक महत्वपूणभ सहायक
भूस्मका स्नभानी होगी। ाआस ततर पर तमाटभ नेतृत्व और दृस्ष्ट एवां स्नणाभयक कारभ वााइ करने की
िमता स्मशन की सफलता का स्नधाभरण करने में महत्वपूणभ कारक होगी।
o नीस्त स्नमाभताओं, कायाभन्वयन करने वालों एवां ाऄन्य स्हतधारकों िारा स्वस्भन्न ततरों पर
रे रोकफरटग की ाऄवधारणाओं को समझना, पुनर्थवकास और ग्रीनफील्ड स्वकास हेतु िमता
सहायता की जरूरत होगी। चैलज ें में भाग लेने से पूवभ योजना बनाने के दौर में ही समय और
सांसाधनों में प्रमुख स्नवेश करना होगा।
o तमाटभ स्सटी स्मशन को सकक्रय रूप से प्रशासन और सुधारों में भाग लेने वाले तमाटभ लोगों की
ाअवश्यकता है। नागररक भागीदारी शासन में एक औपचाररक भागीदारी की तुलना में काफी
ाऄस्धक है। तमाटभ लोगों की भागीदारी ICT के बढ़ते ाईपयोग, स्वशेष रूप से मोबााआल
ाअधाररत ाईपकरणों के माध्यम से तपेशल पपभज व्हीकल (SPV) िारा सकक्रय ककया जायेगा।
ाऄटल शहरी नवीकरण और पररवतभन स्मशन (ाऄमृत)
 ाआस स्मशन में एक लाख से ाऄस्धक ाअबादी वाले 500 शहरों को शास्मल ककया जायेगा। स्मशन में
जलापूर्थत, सीवरे ज सुस्वधाएां, बाढ़ को कम करना, पैदल-मागभ, गैर-मोटरीकृ त और सावभजस्नक
पररवहन सुस्वधाएां, पार्ककग तथल पर ध्यान देना, बच्चों के स्लए हररत तथलों और पाकों और
मनोरां जन के न्रों का स्नमाभण करना ाअकद प्रमुख िेत्रों पर ध्यान कदया जाएगा।
 स्मशन घटक : स्मशन घटकों का वणभन नीचे कदया गया है:-
o जलापूर्थत: स्वद्यमान जलापूर्थत में वृस्द्ध करना, जलाशयों का पुनरुद्धार करना, दुगभम, पहाड़ी
और तटीय िेत्रों के स्लए जलापूर्थत की व्यवतथा करना।
o सीवरे ज: स्वद्यमान सीवरे ज प्रणास्लयों और सीवरे ज शोधन सांयांत्रों में सुधार करना।
o वषाभ जल स्नकासी: बाढ़ को कम करने के स्लए नालों और वषाभ जल नालों का स्नमाभण करना
तथा स्वद्यमान व्यवतथा में सुधार करना।
o शहरी पररवहन प्रणाली: गैर मोटरीकृ त पररवहन (जैसे सााइककलों) के स्लए फु टपाथ, पटरी,
फु ट ओवरस्ब्रज, बहततरीय पार्ककग जैसी सुस्वधाओं का स्नमाभण करना।
o हररत तथल और पाकभ का स्नमाभण करना।
o िमता स्नमाभण: ाआसके दो घटक हैं –व्यस्क्तगत और साांतथास्नक िमता स्नमाभण करना।
प्रधानमांत्री ाअवास योजना (शहरी)
 ाआस योजना की शुरुवात 25 जून, 2015 को हाइ थी। ाआस स्मशन के तहत देश के सभी बेघरों और
कछचे घरों में रहने वाले लोगों को ाअवश्यक बुस्नयादी सुस्वधाओं से युक्त बेहतर पक्के मकान 2022
तक सुलभ कराये जायेंगे। यह योजना सभी 29 राज्यों और 7 कें र शास्सत प्रदेशों के सभी 4,041
शहरों और कतबों में कायाभस्न्वत की जा रही है।

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भूगोल
35. विश्व पररिहन

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विषय सूची
1. पररिहन: एक पररचय _________________________________________________________________________ 3

1.1. पररिहन का महत्ि ________________________________________________________________________ 3

1.2. पररिहन के प्रकार _________________________________________________________________________ 3


1.2.1. रे ल पररिहन (Rail Transport)___________________________________________________________ 4
1.2.2. सड़क पररिहन (Road Transport) ________________________________________________________ 4
1.2.3. जल पररिहन (Water Transport) ________________________________________________________ 5
1.2.4 िायु पररिहन (Air Transport) ___________________________________________________________ 5

2. पररिहन जाल, पररिहन प्रिाह एिं पररिहन लागत ____________________________________________________ 5

3. भूतल पररिहन ______________________________________________________________________________ 6

3.1. सड़क पररिहन: सड़क पररिहन की प्रमुख विशेषताएं आस प्रकार हैं_________________________________________ 7

3.2. रे ल पररिहन _____________________________________________________________________________ 7


3.2.1. ऄन्तममहाद्वीपीय रे लमागम _________________________________________________________________ 9

4. जल पररिहन (Water Transport) ______________________________________________________________ 10

4.1. अन्तररक जल पररिहन ____________________________________________________________________ 11

4.2. महासागरीय जल पररिहन __________________________________________________________________ 12

5. पररिहन नहरें ______________________________________________________________________________ 14

6. बन्दरगाह _________________________________________________________________________________ 15

7. िायु पररिहन (Air Transport) _________________________________________________________________ 18

8. पाआपलाआन्स (Pipelines) _____________________________________________________________________ 19


1. पररिहन: एक पररचय
 “पररिहन मागम न के िल धरातल के भौवतक स्िरूप में पररितमन लाते हैं, िरन् ये मानि जनसंख्या
की यात्रा, गुण और ईसकी प्रकृ वत को भी बदल देते हैं।“ - जीन ब्ुज

 व्यवियों के अने जाने एिं माल को ईत्पादन स्थल से ईपभोग स्थल पर ले जाने की प्रक्रिया
पररिहन कहलाती है। ितममान में पररिहन सुविधाएं औद्योवगक तथा व्यािसावयक ईन्नवत के वलये
ऄत्यािश्यक हैं, साथ ही व्यापार भी पररिहन एिं संचार साधनों पर अधाररत रहता है।
ईत्पादन, वितरण और ईपभोग में सहायता देने हेतु तीव्र और सक्षम पररिहन व्यिस्था की
अिश्यकता होती है। पररिहन तंत्र राज्य रूपी शरीर में रििावहनी वशराओं के समान है।
 पररिहन एक प्रदेश के अर्थथक विकास का अधार और क्षेत्रीय प्रगवत का सूचक माना जाता है।
सामान्यतया अर्थथक विकास और पररिहन का विस्तार साथ-साथ होता है। ये दोनों एक दूसरे के
पूरक हैं, ऄथामत् कभी पररिहन के विस्तार से अर्थथक विकास को प्रोत्साहन वमलता है तो कभी
अर्थथक विकास से पररिहन के विस्तार को बल वमलता है। ऄतः यह कहा जा सकता है क्रक
अधुवनक ऄन्तरामष्ट्रीय सम्पकम ितममान पररिहन व्यिस्था की देन है।
1.1. पररिहन का महत्ि

 पररिहन के साधन मानि सभ्यता के विकास के वलए सदैि महत्िपूणम रहे हैं। वनरं तर विकास में
सुचारू और समवन्ित पररिहन प्रणाली की महत्त्िपूणम भूवमका होती है। पररिहन के साधनों के
द्वारा विश्व में ऄज्ञात भागों को खोजा गया है। विश्व के विषम स्थलाकृ वत िाले भागों को पार क्रकया
गया है तथा विश्व के दुगमम एिं दूरस्थ भागों तक पहंच बनाइ गइ है। विश्व के विवभन्न भागों के
वनिासी पररिहन के साधनों के कारण परस्पर सम्पकम स्थावपत कर सांस्कृ वतक अदान-प्रदान कर
पाए हैं। प्रशासन, सुरक्षा, युद्ध तथा क्रकसी प्राकृ वतक अपदा की वस्थवत में पररिहन का महत्िपूणम
स्थान होता है। पररिहन का प्रभाि जनसंख्या के वितरण और घनत्ि पर पड़ता है। पररिहन की
महत्िपूणम भूवमका ईद्योगों के स्थानीकरण एिं विकास में रहती है।
 विश्व की ितममान अर्थथक व्यिस्था में पररिहन का सिामवधक महत्ि है। विश्व ऄथमव्यिस्था का
के न्रीय लक्षण विवनमय है। प्राकृ वतक संसाधन के क्षेत्र, विवनमामण की क्षमता के क्षेत्र तथा खपत
िाले क्षेत्र एक दूसरे से दूर-दूर वस्थत होते हैं। आनके मध्य कच्चा माल और तैयार माल का
स्थानान्तरण पररिहन के साधनों के माध्यम से होता है। ऄतः ईत्पादन, ईपभोग और व्यापार के
विकास के वलए पररिहन महत्िपूणम है। पररिहन विवभन्न प्रदशों के मध्य अर्थथक सम्बन्धों को
अकार देता है। पररिहन व्यिस्था से क्रकसी देश की औद्योवगक और व्यािसावयक ईन्नवत का सहज
ऄनुमान लगाया जा सकता है। आसके साथ ही पररिहन व्यिस्था से प्रत्यक्ष ि ऄप्रत्यक्ष रूप से
रोजगार सृजन होते है। विकवसत देशों में पररिहन के साधन कम विकवसत हैं। विकवसत देशों की
7% से 10% जनसंख्या, विकासशील देशों की 3% से 5% जनसंख्या तथा वपछड़े देशों की 2%से
कम जनसंख्या पररिहन व्यिसाय में संलग्न है।
1.2. पररिहन के प्रकार

 विवभन्न प्रकार के पररिहन के साधनों का ईपयोग विश्व के वभन्न-वभन्न भागों में िहां की भौगोवलक
वस्थवत, स्थलीय संरचना, अर्थथक संसाधनों की ईपलब्धता तथा तकनीकी स्तर को दृविगत रखते
हए क्रकया जाता है, ईदाहरणाथमः-
o ऄनेक स्थानों पर विशेष रूप से पिमतीय क्षेत्रों में भार िाहक के रूप में मनुष्य ऄपनी पीठ
ऄथिा कं धों का ईपयोग करता है।
 पशुओं का ईपयोग भी पररिहन हेतु क्रकया जाता है, जैस-े घोड़े, गधे, खच्चर, टट्टू , उँट, बैल अक्रद
का ईपयोग बैलगावड़यों, घोड़ागावड़यों, उँटगावड़यों अक्रद में क्रकया जाता है।

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 सड़क मागों द्वारा बसों, ट्रकों, ट्रेक्टर-ट्रावलयों, मोटर-गावड़यों अक्रद से पररिहन कायम होता है।
 रे ल मागों द्वारा विवभन्न यात्री गावड़यों, माल गावड़यों, पासमल ट्रेनों अक्रद द्वारा पररिहन।
 के बल मागों तथा रोप िे द्वारा पररिहन।
 गैस, पेट्रोवलयम, जल अक्रद का पाआप लाआनों द्वारा पररिहन।
 नक्रदयों, झीलों, नहरों अक्रद द्वारा स्थलीय जलमागम पररिहन।
 महासागरीय पररिहन।
 िायु पररिहन।
 ितममान में तीनों मुख्य प्रकार के पररिहनों यथा स्थल, जल और िायु पररिहन के विकास में यंत्रों
के प्रयोग की प्रधानता है। पररिहन की लागत का व्यापार में सिामवधक महत्ि है, व्यापारी ऄपना
माल सस्ते पररिहन मागम द्वारा भेजना चाहता है। जल्दी खराब होने िाला सामान वजनमें मक्खन,
दूध, फल, सब्जी, मछली अक्रद को ताजा रूप में बाजार में पहचाने के वलये सबसे शीघ्र पहंचने
िाले मागम का ईपयोग क्रकया जाता है, चाहे ईसका भाड़ा या क्रकराया ऄवधक हो।
 रे लिे, मोटर और ट्रक स्थल पररिहन में सिामवधक शीघ्रगामी और ईत्तम पररिहन के साधन हैं।
रे लिे द्वारा मोटर पररिहन की ऄपेक्षा ऄवधक भार ढोया जाता है तथा रे लिे लम्बी दूरी के
पररिहन के वलये लाभदायक है। आसी प्रकार मोटर गाड़ी ऄथामत् सड़क द्वारा पररिहन छोटी दूरी के
वलए ऄवधक ईत्तम है। पेट्रोवलयम, प्राकृ वतक गैस, जल अक्रद तरल पदाथों का पररिहन पाआप
लाआनों द्वारा ऄपेक्षाकृ त ऄवधक सस्ता है। थल पररिहन से जल पररिहन सामान्यतः ऄवधक सस्ता
होता है। यद्यवप जल पररिहन की गवत ऄन्य पररिहनों की तुलना में धीमी होती है, क्रकन्तु िृहत
मात्रा में माल के पररिहन के वलए जल पररिहन न के िल ऄवधक सस्ता ऄवपतु विशेष ईपयुि भी
होता है।

1.2.1. रे ल पररिहन (Rail Transport)

 सबसे ऄवधक महत्िपूणम स्थलीय पररिहन का साधन रे लिे ही है। आस पररिहन का ईपयोग
औद्योवगक िांवत की देन है। आसके मुख्य लाभों में आसके द्वारा लम्बी दूररयों तक तीव्र गवत से भारी
और िृहत अकार के सामानों को ले जाने तथा िृहत संख्या में यावत्रयों को शीघ्र, सुरवक्षत एिं
अराम से यात्रा करिाने का साधन है। रे लमागम पररिहन ढोने िाले सामानों के पररिहन में प्रथम
स्थान हैं। विवभन्न महाद्वीपों एिं देशों में वनर्थमत रे ल मागों की लम्बाइ को क्रकलोमीटरों में देखने
पर ज्ञात होता है क्रक आनके वितरण में बहत वभन्नता है। संयुि राज्य ऄमेररका, यूरोप और पूिम
सोवियत संघ में पूरे विश्व के लगभग 65 प्रवतशत रे लमागों का विस्तार है, जबक्रक चीन, भारत,
जापान अक्रद एवशयाइ देशों में लगभग 12 प्रवतशत, लेरटन ऄमेररका में 12 प्रवतशत, ऄफ्रीका में 5
प्रवतशत तथा ऑस्ट्रेवलया एिं न्यूजीलैड में लगभग 3 प्रवतशत रे लमागों का विस्तार है।

1.2.2. सड़क पररिहन (Road Transport)

 सड़क मागों का प्रयोग थल मागों में सबसे प्राचीन है। मानि, पशु तथा विवभन्न गावड़यों को आन
मागों पर चलाया जाता है। आनका प्रारम्भ ऄव्यिवस्थत गवलयों एिं पगडंवडयों के रूप में हअ,
वजन्होंने विस्ताररत होते हए मागम का रूप वलया। पूिम में नगरों तक ही पक्की सड़कों का ऄवधकतम
विस्तार होता था तथा सामान्यतः सड़कों पर के िल बैलगाड़ी, घोड़ागाड़ी अक्रद का ही ईपयोग
होता था। ऄवधकांश माल ट्रकों के द्वारा ढोया जाता है जो सुगम, कम खचीले तथा सुरवक्षत माने
जाते हैं।

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1.2.3. जल पररिहन (Water Transport)

 जल पररिहन को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है: महासागरीय पररिहन तथा
स्थलीय जल पररिहन। ऄन्तरामष्ट्रीय व्यापार के वलये विश्व के ऄवधकतर व्यापाररक सामान का
पररिहन महासागरीय पोतों द्वारा होता है। पृथ्िी सतह पर दूर वस्थत क्षेत्रों में ईत्पाक्रदत मालों को
भी महासागरीय पररिहन द्वारा ऄन्तरामष्ट्रीय बाजार में पहंचना असान कर क्रदया है। महासागरीय
पररिहन सस्ता होने के कारण भारी सामानों को जल पररिहन द्वारा ही भेजा जाता है। आसी
प्रकार स्थलीय जलमागों का ईपयोग भी भारी माल को भेजने के वलए क्रकया जाता है, क्योंक्रक यह
सड़क पररिहन ऄथिा रे ल पररिहन की ऄपेक्षा सस्ता होता है। स्थलीय जलमागम भी दो प्रकार के
होते हैं, प्रथम प्राकृ वतक जलमागम के ऄन्तगमत नक्रदयां और झीलें तथा वद्वतीय कृ वत्रम जलमागम के
ऄंतगमत नहरें ।

1.2.4 िायु पररिहन (Air Transport)

 प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् विश्व के िायुमागों का विकास हअ। ितममान में पररिहन के आस साधन
का बहत ऄवधक महत्ि है। यह पररिहन का सबसे तेज गवत िाला माध्यम होने से समय की बचत
होती है, लम्बी यात्राओं के वलए यह अरामदायक पररिहन का साधन हैं, जहां पररिहन के ऄन्य

साधन नहीं पहंच पाते हैं, ईन दुगमम स्थानों पर यह पहंच जाते हैं। आसका ऄवधकांश ईपयोग

यावत्रयों को लाने, ले जाने के वलए होता है। जहां तक िस्तुओं का सम्बन्ध में आसके द्वारा मुख्य रूप

से यावत्रयों, डाक, ऄवधक मूल्य िाले हल्के सामान तथा शीध्र नि होने िाले खाद्य पदाथों का

पररिहन होता है। विश्व में मुख्य रूप से ऄंतममहाद्वीपीय िायुमागम, महाद्वीपीय िायुमागम, राष्ट्रीय

िायुमागम, प्रादेवशक िायुमागम, स्थानीय िायुमागम, सैवनक युद्धनीवतक तथा राजनीवतक महत्ि के
िायु मागम पाये जाते हैं।

2. पररिहन जाल, पररिहन प्रिाह एिं पररिहन लागत


 पररिहन का मूल ईद्देश्य िस्तुओं एिं सेिाओं से सम्बवन्धत मांग और अपूर्थत के ईन क्षेत्रों को
वनकट लाना है, जो क्रकन्हीं भौवतक बाधाओं के कारण सम्बन्ध नहीं बना पाते हैं। पृथ्िी पर विवभन्न

संसाधन ऄसमान रूप से वितररत हैं, ईन्हें ईपयोग में लाए जाने के वलए पररिहन विकवसत क्रकया
गया है। ऄथामत् पररिहन का मुख्य कायम ईत्पादनकताम एिं ईपभोिा के मध्य दूरी एिं समय की
खाइ को पाटना है। पररिहन के विवभन्न माध्यमों से बने विवभन्न के न्रों को अपस में जोड़ने िाले
मागों के जाल को पररिहन जाल कहते हैं।

 देश के अन्तररक एिं सीवमत पररिहन सुविधाओं िाले भागों से िस्तुएँ सड़क एिं रे लमागों से
संकवलत करके औद्योवगक के न्रों ऄथिा बन्दरगाहों तक पहंचाइ जाती है, आसी की विपरीत क्रिया
सामवियों की खपत के वलए ऄपनाइ जाती है। पररिहन जाल पर चवलत पररिहन के साधनों की
संख्या को पररिहन प्रिाह कहते हैं।
 प्रदेशों के मध्य अर्थथक सम्बन्ध, पररिहन के साधनों की ईपलब्धता तथा पररिहन लागत का
प्रभाि पररिहन प्रिाह पर पड़ता है। जब क्रकसी िस्तु के अवधक्य िाले क्षेत्र से ईसे क्रकसी
ऄपयामप्तता या न्यूनता िाले क्षेत्र की ओर भेजा जाता है तब ईस िस्तु के मूल्य में िृवद्ध हो जाती है,
क्योंक्रक पररिहन पर हअ व्यय जोड़ क्रदया जाता है। जैसे खाड़ी के देशों से मंगाए गए खवनज तेज
का मूल्य भारत में ऄवधक है और वनयामतक देश में कम। ऄतः पररिहन पर अइ लागत को पररिहन
लागत कहते हैं।

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 पररिहन की सस्ती लागत का व्यापार और ईद्योग दोनों में बड़ा महत्ि होता है। दूरी बढ़ने के
साथ-साथ पररिहन लागत बढ़ती जाती है। विवभन्न ऄिरोधों और करठनाआयों के कारण स्थलीय
भागों को पार करना जलीय भागों को पार करने की तुलना में महंगा पड़ता है। मांस, फल, सब्जी
अक्रद को प्रशीतन सुविधाएं ईपलब्ध कराने से आनकी पररिहन लागत बढ़ जाती है, जबक्रक ऐसा
औद्योवगक कच्चा माल वजसका भार ऄवधक हो, जो ऄवधक स्थान घेरे तथा वजसके वलए समय का
साधारण महत्ि हो जैसे लोहा, कोयला, खवनज तेल अक्रद का जल मागों से पररिहन सस्ता पड़ता
है।
 पररिहन लागत के ऄंतगमत िस्तुतः पररिहन माध्यम के ईपयोगकताम को पररिहन के िास्तविक
व्यय तथा पररिहक को ईसके कायम पर वमलने िाले लाभ दोनों का ही भुगतान करना पड़ता है।
पररिहन की सस्ती लागत के वलए सस्ते मागम का चयन क्रकया जाता है। लम्बी दूररयों तक बाधा
रवहत, सीधे ि समतल मागम, विशाल अकार के पोत या िाहन तथा लाने ले जाने की दोनों
क्रदशाओं में ढोने के वलए सामिी के ईपलब्ध होते रहने से पररिहन लागत कम अती है।
 प्रत्येक पररिहन माध्यम में पररिहन लागत ऄन्य से वभन्न अती है। िायु पररिहन में अरवम्भक
वनिेश सिामवधक है तथा दूरी के साथ-साथ पररिहन लागत सदैि सिामवधक रहती है। वनःसन्देह यह
माध्यम सबसे महंगा है। जल पररिहन में अरवम्भक वनिेश सड़क ि रे ल पररिहन की तुलना में
ऄवधक है। क्रकन्तु दूरी बढ़ने के साथ-साथ पररिहन लागत शेष दोनों से कम होने लगती है। जल
पररिहन के मागों के प्राकृ वतक रूप से ईपलब्ध होने के कारण आनके वनमामण या रख रखाि पर व्यय
नहीं करना पड़ता है। सड़क पररिहन में आसके विपरीत अरवम्भक व्यय कम है क्रकन्तु दूरी बढ़ने के
साथ-साथ पररिहन लागत बढ़ती जाती है। रे ल पररिहन की वस्थवत मध्यिती है। सड़क पररिहन
छोटी दूररयों के वलए सबसे सस्ता है, रे ल पररिहन मध्यम दूररयों के वलए सबसे सस्ता है तथा जल
पररिहन लम्बी दूररयों के वलए सबसे सस्ता माध्यम है।

3. भू त ल पररिहन
 व्यवियों और िस्तुओं के पृथ्िी के स्थलीय भाग पर अिागमन को भूतल पररिहन कहते हैं। यह
पररिहन का प्राचीनतम माध्यम है। भूतल पररिहन क्रकसी देश या महाद्वीप के विकास में सबसे
महत्िपूणम स्थान पर है। भूतल पररिहन को दो िृहत भागों में बांटा जा सकता है (1) सड़क
पररिहन और (2) रे ल पररिहन। भूतल पररिहन के विकास को प्रभावित करने िाले प्रमुख कारक
वनम्ांक्रकत हैं-
o स्थलाकृ वत: स्थलाकृ वत भूतल पररिहन के वनमामण को स्पितः प्रभावित करती है। मैदानी
भागों में कोमल एिं मुलायम संरचना तथा न्यून ढाल प्रिणता के कारण भूतल मागों का
वनमामण सरल, सस्ता और कम समय लेने िाला होता है। ईबड़-खाबड़ पठारी भागों और
पिमतीय भागों में कठोर संरचना, तीव्र ढाल तथा कटे-फटे धरातल पर पुलों एिं कहीं-कहीं
सुंरंगों की अिश्यकता के कारण भूतल मागों का वनमामण करठन, महंगा और ऄवधक समय लेने
िाला होता है। पहाड़ी भागों में ढाल के सहारे बनाए जाने िाले गोलाकार मागों से भूतल
मागम की लम्बाइ बढ़ जाती है। ऄवधकांश रे लमागम वगररपदीय भागों से अगे नहीं जाते हैं।
सीवमत मात्रा में छोटी लाआन पर चलने िाली रे लगावड़यां ऄत्यवधक समय लेती है तथा भार
िहन की दृवि से ऄवधक ईपयागी नहीं होती हैं। विश्व के ऄवधकाश मैदानी भागों में भूतल
पररिहन के माध्यमों का सघन जाल-सा वबछा है।
o जलिायु: जलिायु भूतल पररिहन मागों के रख-रखाि को प्रभावित करने िाला प्रमुख कारक
है। ऄवधक िषाम ि ऄवधक वहमपात िाले प्रदेशों में ऄत्यवधक िषमण से रे ल की पटररयाँ ईखड़
जाती हैं, सड़कें कट जाती हैं तथा पुल टू ट जाते हैं। आन प्रदेशों में िषमण काल में मागम बावधत
होने के साथ नि भी हो जाते हैं। मरुभूवमयों पर चलने िाली तीव्रगामी पिनें भूतल मागों को
रे त से ढक देती हैं। ऄत्यन्त कम तापमान से रे ल की पटररयां चटक जाती हैं तथा ईच्च तापमान
से सड़कों का डामर वपघल कर आधर ईधर एकवत्रत हो जाता है वजससे सड़क समतल ि सपाट
नहीं रह पाती है।

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o पूज
ं ी: भूतल पररिहन मागों के वनमामण हेतु बहत ऄवधक अरवम्भक पूज ँ ी वनिेश की
अिश्यकता होती है। पूज
ं ी के ऄभाि में कइ विकासशील और वपछड़े देशों में सड़क मागम
दयनीय दशा में हैं और ईनके रे लमागम कम लम्बाइ में पाए जाते हैं। विवभन्न ऄन्तरामष्ट्रीय
संगठन जैसे विश्व बैंक, एवशयाइ विकास बैंक ऐसे देशों को भूतल पररिहन मागों के वनमामण
एिं सुधार हेतु ऊण ईपलब्ध कराते हैं।
o मांग: मांग एक प्रमुख अर्थथक कारक है जो पररिहन के विकास को प्रभावित करता है। सघन
एिं ऄवधक जनसंख्या प्रदेशों में स्ितः ही भूतल पररिहन की मांग ईत्पन्न हो जाती है। वजन
देशों में कृ वष, खनन, पशुपालन, विवनमामण ईद्योग, व्यापार अक्रद की गवतविवधयां ऄवधक
होती है िहां भूतल पररिहन को ऄवनिायमतः विकवसत क्रकया जाता है, ताक्रक ईत्पादन,
ईपभोग और व्यापार वनबामध रूप से चलता रहे।
3.1. सड़क पररिहन: सड़क पररिहन की प्रमु ख विशे ष ताएं आस प्रकार हैं

 सड़के पररिहन का प्राचीनतम माध्यम हैं। सड़कों का महत्ि अक्रदकाल से ही रहा है। ितममान युग
के औद्योवगक एिं व्यािसावयक विकास ने सड़कों के महत्ि को बहमुखी कर क्रदया है, ऄतः यह
माध्यम अज भी विकास की ऄिस्था में है।
 सड़क पररिहन का क्षेत्र सिामवधक व्यापक है। मानि बसाि के प्रत्येक भाग तक सड़कों द्वारा पहंचा
जा सकता है। विश्व के सभी दुगम
म , दूरस्थ एिं अन्तररक भागों तक सड़कें जाती हैं।
 सड़कें पररिहन का सरलता से प्रयोग में लाए जाने िाला माध्यम है। आनका ईपयोग क्रकसी भी
समय क्रकया जा सकता है। आन पर िाहनों की अिृवत्त सिामवधक रहती है।
 सड़क मागों पर अिश्यकतानुसार विवभन्न क्षमताओं िाले िाहन काम में लाए जा सकते हैं। सड़कें
पररिहन का सुविधाजनक माध्यम हैं।
 सड़क पररिहन के ऄन्य सभी माध्यमों का अधार हैं, क्योंक्रक सड़कों द्वारा ही पररिहन के ऄन्य
माध्यमों तक पहंचा जा सकता है। क्रकसी ऄन्य माध्यम से व्यवियों एिं िस्तुओं का स्थानान्तरण
करने पर भी सड़कों की अिश्यकता होती है।
 छोटी दूररयों पर अिागमन हेतु सड़क मागम सस्ते और कम समय लेने िाले होने के कारण सिोतम
होते हैं। सड़क पररिहन पर अरवम्भक वनिेश शेष सभी पररिहन के माध्यमों की तुलना में न्यूनतम
होता है।
 सड़कें द्वार से द्वार तक पररिहन सेिा ईपलब्ध कराती हैं। आनके द्वारा ईत्पादक क्षमता िाले स्थानों
से सीधे ईपभोिा स्थल तक पहंचा जा सकता है।
 शीघ्र खराब होन िाली एिं भार खोने िाली िस्तुओं जैसे दूध, फल, सब्जी, मांस, ऄण्डा, गन्ना
अक्रद के पररिहन के वलए सड़कें सिमश्रेष्ठ माध्यम हैं।
 सड़कें सांस्कृ वतक अदान प्रदान में सहायक होती हैं।
 सड़कों से राष्ट्रीय एकता की भािना का संचार होता है।
3.2. रे ल पररिहन

 ितममान मशीन युग की पररिहन सम्बन्धी सिोत्तम ईपलवब्ध रे ल पररिहन है। भूतल पररिहन में
रे ल पररिहन का सिामवधक महत्ि है। विश्व के ितममान औद्योवगक स्िरूप के वनमामण में रे ल
पररिहन का विवशि योगदान रहा है। रे ल पररिहन ने विश्व के सभी प्रदेशों के के न्रों को परस्पर
वनकट लाने के ऄवतररि कृ वष, खनन, िावनकी, व्यापाररक पशुपालन, ईद्योग, व्यापार, संचार,
जनसंख्या के संकेन्रण, ईपनगरीय ऄवधिासों के स्थानीयकरण तथा राष्ट्रीय एकता की भािना को
प्रभावित क्रकया है।
रे ल पररिहन की विशेषताएं :
o रे ल पररिहन का विकास वपछले मात्र 170 िषों में हअ है ऄथामत् पररिहन का यह माध्यम
सिामवधक तीव्रता से विकवसत हअ है।

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o रे ल पररिहन व्यवियों और िस्तुओं को शीघ्रता से पहंचाने की क्षमता रखता है। बाधा रवहत
यात्रा तथा शविशाली आन्जनों के प्रयोग के कारण रे ल पररिहन ऄत्यन्त तीव्रगामी हो गया है।
o रे ल पररिहन मध्यम दूरी तथा लम्बी दूरी की यात्राओं के वलए सड़क पररिहन की तुलना में
सस्ता प्रमावणत होता है। अरवम्भक पूँजी विवनयोग सड़क पररिहन की तुलना में ऄवधक होते
हए भी स्थावयत्ि, कम रखरखाि, ईपयोवगता, इधन की कम खपत, विद्युतीकरण अक्रद के
कारण कालान्तर में रे ल पररिहन सस्ता प्रमावणत होता है।
o रे ल पररिहन भारी और ऄवधक स्थान घेरने िाले कच्चे माल को िृहत मात्राओं में
स्थानान्तररत करने का सिामवधक ईपयुि माध्यम है।
o रे ल पररिहन में व्यवियों एिं िस्तुओं की यात्रा ऄपेक्षाकृ त रूप से ऄवधक सुरवक्षत होती है।
o रे ल पररिहन से की गइ यात्रा अरामदायक ि सुविधाजनक होती है।
o रे ल पररिहन ने विश्व के कइ दूरस्थ अन्तररक ईपजाउ भागों में कृ वष को ईन्नतशील बनाने में
सक्रिय योगदान क्रदया है।
o रे ल पररिहन के विस्तार ने विश्व के कइ भागों में खवनज सम्पदा के ईत्खनन को प्रेररत क्रकया
है।
o सम्पूणम विश्व के ऄवधकांश बड़े पैमाने के ईद्योग रे ल मागों के वनकट स्थावपत क्रकए जाते हैं।
विश्व में औद्योवगक एिं व्यािसावयक ईन्नवत में रे ल पररिहन की प्रमुख भूवमका रही है।
o रे ल पररिहन सांस्कृ वतक अदान-प्रदान एिं राष्ट्रीय एकता में सहयोग होते हैं।

रे लमागों का विश्व वितरण

 विश्व में विवभन्न महाद्वीपों तथा देशों में रे लमागों के वितरण में ऄत्यवधक विषमता पाइ जाती है।
ईत्तरी ऄमेररका एिं यूरोप में विश्व के 55% रे लमागम हैं, जबक्रक दवक्षणी ऄमेररका, ऄफ्रीका और
अस्ट्रेवलया के रे लमागम में विश्व का 20 प्रवतशत ही हैं। विश्व के अर्थथक दृवि से सम्पन्न देशों में
रे लमागों का विस्तार ऄवधक हअ है। विश्व स्तर रे लमागों का वितरण आस प्रकार है-
o ईत्तरी ऄमेररका: ईत्तरी ऄमेररका के संयुि राज्य ऄमेररका में विश्व के सिामवधक विस्तृत
रे लमागम हैं। विश्व के 25% रे लमागम संयुि राज्य ऄमेररका में हैं। देश के तीन चैथाइ से ऄवधक
रे लमागम पूिी संयुि राज्य ऄमेररका में 100 वडिी पूिम देशान्तर के पूिम में वस्थत हैं। यहाँ
रे लमागम रे खीय प्रवतरूप में विकवसत हए हैं। ईन्नीसिीं शताब्दी के ईत्तराद्धम में पहले रे लमागम
बने और ईनके सहारे -सहारे ईद्योग तथा ऄवधिास विकवसत होते गए। देश के पूिी भाग में
पहले रे लमागम बने और ईसके सहारे -सहारे ईद्योग तथा ऄवधिास विकवसत होते गए। देश के
पूिी भाग में ऄवधकांश रे लमागम दोहरे पथ के हैं। संयुि राज्य ऄमेररका में पूि-म पवश्चम क्रदशाओं
को जोड़ने िाली तीन प्रमुख रे लमागम ईत्तरी, मध्य तथा दवक्षणी ट्रान्स महाद्वीपीय रे लमागम हैं।
वशकागो, न्यूयॉकम , क्रफलाडेवल्फया अक्रद प्रमुख रे लमागम के न्र है। कनाडा में विश्व के 5%
रे लमागम हैं तथा रे लमागों की लम्बाइ की दृवि से कनाडा का विश्व में तीसरा स्थान है। दवक्षणी
कनाडा में संयुि राज्य ऄमेररका की सीमा के सहारे -सहारे कनाडा के प्रमुख रे लमागम फै ले हैं।
o यूरोप - पवश्चम यूरोपीय देशों में विश्व की सिामवधक सघन रे ल पररिहन व्यिस्था पाइ जाती
है। यूरोप में विश्व के 25% रे लमागम हैं। यूरोप के ऄवधकांश रे लमागम दोहरे पथ के हैं। यूरोपीय
रे लमागम ऄरीय प्रवतरूप के हैं, जो बड़े औद्योवगक एिं व्यापाररक नगरों पर के वन्रत होते हैं।
लन्दन, पेररस, बॉन, बर्थलन, ज्यूररख, वमलान, मेविड, वियना, ब्ुसेल्स ऐसे प्रमुख के न्र हैं।
o रूस तथा सी.अइ.एस. देश - रूस (CIS देश सवहत) का रे लमागों की दृवि से विश्व में दूसरा
स्थान है तथा यहां विश्व के 10% रे लमागम हैं। जल पररिहन सुविधाओं के ऄभाि के कारण
रूस विवनमय सम्बन्धी अिश्यकताओं के वलए रे ल पररिहन पर सिामवधक वनभमर करता है।
देश के विशाल अकार, समतल मैदानी भाग, खनन के न्रों तथा ऄन्य संसाधनों के क्षेत्रों की
औद्योवगक ि व्यापाररक क्षेत्रों से ऄत्यवधक दूरी रे ल पररिहन पर ऄत्यवधक वनभमरता के ऄन्य

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कारण हैं। मास्को, नोिोवसवबस्र्क, वचवलयावबन्स्क अक्रद प्रमुख के न्र है। विश्व का सबसे लम्बा
रे लमागम ट्रान्स साआबेररयन रे लमागम रूस में वस्थत है।
o एवशया - एवशया में रे लमागों का ऄत्यन्त ऄल्प विकास हअ है। विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप
होते हए भी पिमतीय, मरुस्थलीय, ऄनुपजाउ एिं वनजमन भागों के ऄवधक विस्तार तथा
अर्थथक दशा के कारण विश्व के 14% रे लमागम ही आस महाद्वीप में हैं। एवशया के लगभग 90%
रे लमागम भारत, चीन तथा जापान में हैं। भारत में विश्व के लगभग 4.5% रे लमागम हैं। भारत
के ईत्तरी मैदानों में रे लमागों की सघनता ऄवधक है। चीन का रे लमागों की दृवि से विश्व में
पाचंिा तथा एवशया में दूसरा स्थान है। चीन के पूिी तथा ईत्तर-पूिी भाग में रे लमागों की
सघनता ऄवधक हैं। जापान के क्ांटों मैदान में रे लमागम ऄत्यवधक सघन हैं। जापान के सभी
रे लमागम विद्युतीकृ त हैं।
o ऄफ्रीका, दवक्षण ऄमेररका तथा अस्ट्रेवलया- विश्व के 45% क्षेत्रफल पर फै ले आन तीन
महाद्वीपों में विश्व के रे लमागों का मात्र 21% वमलता है। स्थलाकृ वतक विषमताओं तथा ऄल्प
अर्थथक विकास (अस्ट्रेवलया के ऄवतररि) के कारण रे लमागम कम विकवसत हो पाए हैं।
ऄफ्रीका में द. ऄफ्रीका, मोजावम्बक, कीवनया, वमस्र ि सुडान के लाल सागर तटीय क्षेत्र,
मोरक्को ि ऄल्जीररया के भूमध्य सागरीय तटीय क्षेत्र, मोरक्को ि ऄल्जीररया के भूमध्य
सागरीय तटीय क्षेत्र तथा पवश्चमी तट रे खीय क्षेत्र में रे लमागम विकवसत हए हैं। दवक्षण
ऄमेररका में पूिी ऄजेंटीना, ईरुग्िे, ब्ाजील के पूिी तट, वचली, पेरू ि िेनज
े ुएला में रे लमागम
विकवसत हए हैं। अस्ट्रेवलया के दवक्षण-पूिी तथा दवक्षण-पवश्चमी भागों में रे लमागम विकवसत
हए हैं।
3.2.1. ऄन्तमम हाद्वीपीय रे लमागम

 रे लमागों का राष्ट्रीय तथा ऄन्तरामष्ट्रीय दोनों स्तरों पर व्यवियों और िस्तुओं के स्थानांतरण में
ऄत्यवधक महत्ि है। मध्यम दूररयों पर विवनमय के वलए जो रे लमागम श्रेष्ठ हैं ही क्रकन्तु, महाद्वीपों की
लम्बी दूररयों में जहां क्रकन्ही भौगोवलक पररवस्थवतयों के कारण जलमागों का ईपयोग नहीं क्रकया
जा सकता है, िहाँ विवनमय तथा ऄन्तरामष्ट्रीय व्यापार के वलए रे लमागाम बहत ईपयोग वसद्ध होते
हैं।
 महाद्वीपों के दूरस्थ के न्रों के मध्य विकवसत रे लमागों को ऄंतममहाद्वीपीय महाद्वीपीय रे लमागम कहते
हैं। ऐसे रे लमागम महाद्वीपों के विवभन्न देशों को परस्पर वनकट लाते हैं।

विश्व के प्रमुख ऄन्तममहाद्वीपीय रे लमागम आस प्रकार हैं-

o ट्रान्स साआबेररयन रे लमागम- ट्रान्स साआबेररयन रे लमागम विश्व का सबसे लम्बा रे लमागम है। रूस
में वस्थत आस रे लमागम की लम्बाइ पवश्चम में बावल्टक सागर के तट पर वस्थत समुर पतन नगर
पर सैण्ट पीटसमबगम (लेवननिाड) से लेकर सुदरू पूिम में जापान सागर के तट पर वस्थत समुर
पत्तन नगर ब्लाडीिोस्टक तक 9560 क्रक.मी. है। आस रे लमागम के बन जाने से साआबेररया के
कोयला, लौह ऄयस्क, मैंगनीज, बाक्साआट, ऄभ्रक, गन्धक अक्रद खवनज पदाथम, िनों के
पदाथम, पशु पदाथम तथा कृ वष ईपजों की प्रावप्त सम्भि हो सकी। यूरोपीय रूस से मशीनरी,
कृ वष ईपकरण, वनर्थमत सामान अक्रद साआबेररयाइ नगरों को भेजे जाते हैं। साआबेररया में कृ वष,
पशुपालन तथा ईद्योगों के विकास के वलए ट्रान्स साआबेररयन रे लामागम के सहारे -सहारे नगरों
की स्थापना हइ है। आस रे लमागम द्वारा रूस से के विवभन्न प्रदेश तो परस्पर वनकट अए ही हैं ,
साथ ही विपुल प्राकृ वतक संसाधनों िाले अर्थथक रूप से वपछड़े साआबेररया का सन्तुवलत
विकास भी सम्भि हअ है।

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o कनैडीयन पैसक्रे फक रे लमागम-कनैडीयन पैसेक्रफक रे लमागम कनाडा के दवक्षण में संयुि राज्य
ऄमेररका की सीमा के समानान्तर विस्तृत है। कनाडा के पूिम में ऄटलावण्टक महासागरीय तट
पर वस्थत समुर पत्तन नगर हैलीफै क्स से प्रारम्भ होकर यह रे लमागम पवश्चम में प्रशान्त
महासागरीय तट पर वस्थत िैंकूिर समुर पत्तन नगर पर समाप्त होता है। कनैडीयन पैसेक्रफक
रे लमागम का कनाडा के अर्थथक विकास में विशेष योगदान है। यह रे लमागम शीत ऊतु में
वहमाच्छादन से जलमागों के बन्द हो जाने पर भी बाधा रवहत पररिहन ईपलब्ध कराकर
कनाडा के सुदरू पवश्चमी भागों को दूरिती पूिी भागों से जोड़ता है। कनाडा के पवश्चम में कृ वष
ि पशुपालन के विकास, मध्यभाग से कृ वष ईपजों एिं खवनज पदाथों को पूिम के औद्योवगक
के न्रों तक पहंचाने तथा पूिम में िन व्यिसाय के विकास में आस रे लमागम का सक्रिय योगदान
रहा है। कनाडा की ऄवधकांश जनसंख्या बसाि आसी रे लमागम के असपास है।
o संयि ु राज्य ऄमेररका के ऄन्तममहाद्वीपीय रे लमागम- संयुि राज्य ऄमेररका में ऄटलावण्टक
महासागरीय तट पर वस्थत न्यूयाकम पत्तन तथा महानगर से प्रशान्त महासागरीय तट पर
वस्थत समुर पत्तन नगरों वसएटल, सैन फ्रांवसस्कों और लॉस एंवजल्स से वमलाने िाले रे लमागों
को िमशः ईत्तरी, मध्य तथा दवक्षणी ऄन्तममहाद्वीपीय रे लमागम कहते हैं। संयुि राज्य ऄमेररका
के ऄन्तममहाद्वीपीय रे लमागों ने पूिी तथा पवश्चम भागों को परस्पर जोड़ा है तथा वशकागो,
पीट्सबगम अक्रद महत्िपूणम औद्योवगक के न्रों को चीन, जापान अक्रद दूरस्थ बाजारों से जोड़ने में
सहयोग प्रदान क्रकया है।
o के प-कावहरा रे लमागम- यह ऄफ्रीका का सिामवधक महत्िपूणम ऄन्तममहाद्वीपीय रे लमागम है। यह
एक ऄधूरा रे लमागम है। आस प्रस्तावित ऄन्तममहाद्वीपीय रे लमागम द्वारा दवक्षण ऄफ्रीका के
समुरपत्तन नगर के पटाउन को ऄफ्रीका के ईत्तर पूिम में वमस्र की राजधानी कावहरा से जोड़ा
जाएगा। आसकी कु ल लम्बाइ 14000 क्रक.मी. है। के प कावहरा रे लमागम के बन जाने पर ईत्तर
से लेकर दवक्षण तक के ऄफ्रीका भू-भाग जुड़ जायेंग,े वजससे आस महाद्वीप के विपुल प्राकृ वतक
संसाधनों का सरलता से दोहन हो सके गा तथा अर्थथक विकास की गवत बढ़ेगी।
o अस्ट्रेवलयन ऄन्तममहाद्वीपीय रे लमागम- यह ऑस्ट्रेवलया का सिामवधक लम्बा और महत्िपूणम
रे लमागम है, जो आस महाद्वीप की दवक्षणी सीमा के वनकट दवक्षण पवश्चम में पथम को दवक्षण-पूिम
में वसडनी नगर से जोड़ता हैं आस रे लमागम की लम्बाइ लगभग 3200 क्रक.मी है। अस्ट्रेवलया के
ऄवधकांश मुख्य नगर आसी रे लमागम पर वस्थत हैं। आस रे लमागम के द्वारा अस्ट्रेवलया में कृ वष
ईपज, खवनज संसाधनों तथा वनर्थमत सामान का वितरण होता है।
o ओररयण्ट एक्सप्रेस रे लमागम- यह यूरोप का सिामवधक महत्त्िपूणम रे लमागम है। यह रे लमागम
यूरोप के सात देशों में से होकर गुजरता है तथा ऄनेक महत्त्िपूणम औद्योवगक तथा व्यापाररक
नगरों को जोड़ता है। यह रे लमागम पवश्चम में फ्रांस की राजधानी पेररस से होकर यूरोपीय तुकी
की राजधानी आस्ताम्बुल में समाप्त होता है। पवश्चम से पूिम की ओर यूरोप के हृदय प्रदेश से
होकर वनकलता ओररयण्ट एक्सप्रेस रे लमागम यावत्रयों तथा धावत्िक खवनजों, कोयला, फलों,
वडब्बाबन्द मांस, मशीनरी अक्रद के व्यापार के वलए ऄत्यन्त महत्िपूणम है।

4. जल पररिहन (Water Transport)


 पृथ्िी के जलीय भागों के माध्यम से होने िाला व्यवियों और िस्तुओं का अिागमन जल पररिहन
कहलाता है। अज विश्व ऄथमव्यिस्था में ईद्योग ि व्यापार की िृवद्ध के साथ-साथ विश्व के महाद्वीपों
को जोड़ने के सस्ते तथा सुलभ साधन के रूप में जल पररिहन का महत्ि बढ़ गया है।
जल पररिहन की प्रमुख विशेषताएं आस प्रकार हैं -
o जल पररिहन सबसे सस्ता पररिहन साधन है। जल पररिहन के वलए क्रकसी मागम के वनमामण
की अिश्यकता नहीं पड़ती है।
o जल पररिहन सबसे धीमी गवत का पररिहन साधन है। पररिहन क्रकए जा रहे माल के वलए
समय का साधारण महत्ि हो तो जल पररिहन सिोतम हैं।

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o जल पररिहन भारी तथा ऄवधक स्थान घेरने िाले कच्चे माल को ढोने के वलए विशेष ईपयुि
होता है। ऄन्तरामष्ट्रीय व्यापार में कच्ची धातुएं, खवनज तेल, कोयला, लकड़ी, रासायवनक
पदाथम, भारी मशीनें, िस्त्र, िाहन, सीमेन्ट अक्रद का अिागमन जल पररिहन द्वारा ही होता
है।
o जलयानों के संचालन में कम इधन, कम धन तथा कम व्यवियों की अिश्यकता रहती है।
o जल पररिहन में जल मागों को गहरा करने, पोताश्रयों के वनमामण करने, विशाल जलयानों को
तैयार करने अक्रद पर व्यय के कारण अरवम्भक व्यय ऄवधक करना पड़ता है।
o जल पररिहन ने पृथ्िी के दूरस्थ क्षेत्रों तक भारी सामान को पहंचाना सम्भि क्रकया है।
 जल पररिहन को दो िगों में बांटा जा सकता है:
o अन्तररक जल पररिहन एिं
o महासागरीय जल पररिहन।

4.1. अन्तररक जल पररिहन

 स्थलीय भागों में झीलों, नक्रदयों, नहरों तथा अन्तररक सागरों में होने िाला जल पररिहन
अन्तररक जल पररिहन कहलाता है। विश्व में अन्तररक जलमागों का पररिहन के वलए ऄवधक
ईपयोग संयुि राज्य ऄमेररका, यूरोपीय देशों तथा चीन में हअ है। अन्तररक जल पररिहन की
ईपयोवगता वनम् कारकों पर वनभमर करती हैः
o अन्तररक जल मागों में िषमभर पयामप्त जल रहना चावहए।
o अन्तररक जलमागों में जल प्रिाह की सामान्य तीव्रता रहनी चावहए। नक्रदयों के ऄत्यन्त मन्द
या ऄत्यवधक तीव्र प्रिाह नौ संचालन के ऄनुकूल नहीं होते हैं।
o अन्तररक जल मागों में जल-प्रपातों तथा तीव्र मोड़ों का ऄभाि होना चावहए।
o अन्तररक जलमागों का जल शीत ऊतु में जमना ऄथिा शुष्क काल में सूखना नहीं चावहए।
o अन्तररक जलमागों में रे त अक्रद का ऄवधक वनक्षेपण नहीं होना चावहए।
o प्रदेश में पररिहन के ऄन्य माध्यमों जैसे रे ल ऄथिा सड़क का ऄवधक विकास नहीं होना
चावहए।
o प्रशासवनक नीवतयां, प्रदेश का औद्योवगक तथा व्यािसावयक स्तर, जल पररिहन की
अिश्यकता, जनसंख्या घनत्ि अक्रद ऄन्य कारक हैं, वजनका प्रभाि अन्तररक जल पररिहन
के विकास पर पड़ता है।

अन्तररक जल पररिहन की दृवि से विश्व के महत्िपूणम क्षेत्र आस प्रकार हैं-

 ईत्तरी ऄमेररका के अन्तररक जलमागम- संयुि राज्य ऄमेररका तथा कनाडा के मध्य वस्थत महान
झीलें िषम भर नाव्य रहती है। सुपीररयर, वमशीगन, ह्यूरॉन, आरी तथा ओण्टाररयो झील से होकर
सेंट लॉरें स नदी तक का जलमागम ईत्तरी ऄमेररका का प्रमुख व्यापाररक मागम है। संयुि राज्य
ऄमेररका के मैदानी भाग में वमसीवसपी-वमसौरी नक्रदयां जल पररिहन के वलए महत्िपूणम हैं। शीत
ऊतु में नक्रदयों का जम जाना अन्तररक जल पररिहन को बावधत करता है। ईत्तरी ऄमेररका के
अन्तररक जलमागम लौह ऄयस्क, कोयला, ऄन्य धावत्िक खवनज, लकड़ी, गेह,ँ मक्का, कपास अक्रद
के पररिहन के वलए महत्त्िपूणम हैं।
 यूरोप के अन्तररक जलमागम- अन्तररक जल पररिहन की दृवि से यूरोप का स्थान सिोपरर है।
यूरोप की नक्रदयां ईच्च पिमतीय भागों से शुरु होकर सघन अबाद समुन्नत मैदानी भागों से होकर
ईत्तर पवश्चम में ऄटलावण्टक महासागर तथा दवक्षण में भूमध्यसागर में जाकर वमलती हैं। यूरोप में
अन्तररक जल पररिहन की अदशम दशाएं पाइ जाती हैं। राआन नदी विश्व की सिामवधक महत्िपूणम
तथा व्यस्ततम नदी है। यह नदी जममनी, फ्रांस, स्िीटजरलैण्ड, बैवल्जयम तथा नीदरलैण्ड के मध्य

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ऄन्तरामष्ट्रीय व्यापार की सुविधा प्रदान करती है। राआन नदी के दोनों क्रकनारों पर ऄनेक औद्योवगक
नगर वस्थत हैं। िैंसर, एल्ब तथा ओडर नक्रदयां राआन से नहरों द्वारा जुड़ी हैं। लौह ऄयस्क, कोयला,

खवनज तेज, आस्पात, खाद्यान्न, रासायवनक ईिमरक, ऄन्य वनर्थमत सामान का पररिहन ईि नक्रदयों

द्वारा होता है। रॉटरडम, बोन, कोलोन, अक्रद राआन के तट के प्रमुख नगर हैं। यूरोप में, सीन, रोन,

डैन्यूब, लॉयर, थेम्स ऄन्य प्रमुख नक्रदयां हैं वजनका अन्तररक जल पररिहन की दृवि से प्रमुख
महत्ि है।
 एवशया के अन्तररक जलमागम-एवशया में चीन में अन्तररक जलमागों का सिामवधक ईपयोग हअ
है। यांगत्सीक्यांग नदी एवशया की व्यस्ततम नदी है। यह चीन सागर में ऄपने मुहाने पर शंघाइ
नगर से चीन के अन्तररक भाग में चुंगककग तक 2400 क्रक.मी. तक नाव्य है। ईत्तरी चीन में

ह्िांगहो तथा दवक्षणी चीन में वसयांग नक्रदयां महत्िपूणम अन्तररक जलमागम हैं। चीन में चाय, तुंग

का तेल, रे शम, खाद्यान्न, कोयला अक्रद का पररिहन अन्तररक जलमागों के माध्यम से होता है।

भारत में गंगा और ब्हपुत्र अन्तररक जल पररिहन की ऄिणी नक्रदयां हैं। आनके द्वारा खाद्यान्न, जूट,

कोयला, चाय अक्रद का पररिहन होता है। पवश्चमी बंगाल, वबहार ि झारखण्ड के औद्योवगक क्षेत्र
आससे लाभावन्ित होते हैं। भारत में रे ल ि सड़क मागों के ऄवधक ईपयोग के कारण अन्तररक जल
पररिहन का कम विकास हअ है। दवक्षणी पूिी एवशया की आरािदी, मीनाम तथा मीकांग नक्रदयां
नाव्य हैं।
 रूस तथा CIS देश- रूस एक विशाल देश है, यहां ऄनेक लम्बी नाव्य नक्रदयां हैं, क्रकन्तु शीत प्रधान

जलिायु के कारण नक्रदयां िषम पयमन्त नाव्य नहीं रहती हैं। दवक्षण की ओर बहने िाली िोल्गा,

यूराल, डान, नीपर, नीस्टर अक्रद नक्रदयां यूरोपीय रूस तथा CIS देशों में बहकर कै वस्पयन, एजोि

तथा काला सागर में वगरती है। ईतर की ओर बहने िाली नक्रदयां ओब, येनस
े ी, लीना अक्रद हैं। रूस

की सिामवधक महत्िपूणम नदी िोल्गा है, जो मैदानी भाग से होकर वनकलती है तथा िोल्गोिाद,

कु आवबशेि, कजान अक्रद औद्योवगक नगर आसके तट पर वस्थत हैं।


 विश्व के ऄन्य अन्तररक जलमागम
o ऄफ्रीका-कांगो ऄफ्रीका की सबसे महत्िपूणम नाव्य नदी है। नील तथा नाआजर डेल्टाइ प्रदेशों में
नाव्य हैं।
o दवक्षण ऄमेररका-ऄमेजन दवक्षण ऄमेररका की सबसे महत्िपूणम नाव्य नदी है। मैग्डालीना,

पराना, पराग्िे, ला प्लाटा अक्रद ऄन्य प्रमुख नाव्य नक्रदयां हैं।


o अस्ट्रेवलया-मरे तथा डार्ललग नक्रदयां सीवमत भाग तक नाव्य हैं।

4.2. महासागरीय जल पररिहन

विश्व का ऄवधकांश ऄन्तरामष्ट्रीय व्यापार महासागरीय जल पररिहन के माध्यम से होता है। सागरों-
महासागरों में जलयान क्रकसी भी मागम का स्ितन्त्रतापूिमक ईपयोग कर सकते हैं। ऄवनधामररत मागों,
बन्दरगाहों तथा समय के ऄनुसार चलने िाले जलयानों को ट्रम्प जलयान कहते हैं। अजकल आनका
महत्ि नहीं रहा है। विश्व के ऄवधकांश व्यापाररक जलयान कु छ वनवश्चत मागों पर ही चलते हैं। आन
पहले से वनधामररत मागों, समय की ऄिवध तथा बन्दरगाहों से होकर जाने िाले जलयानों को कागो
लाआनर कहा जाता है। वहमवशलाओं ि जलमग्न कटकों से बचकर चलने के वलए पूिम वनधामररत मागो का
चयन क्रकया जाता है।

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विश्व के प्रमुख महासागरीय जलमागम वनम्वलवखत हैं-

 ईत्तरी ऄटलावण्टक जलमागम: ईत्तरी ऄटलावण्टक जलमागम विश्व का व्यस्तम तथा सिामवधक
महत्िपूणम जलमागम है। यह जलमागम विश्व के दो सिामवधक समृद्ध तथा समुन्नत प्रदेशों ईत्तरी
ऄमेररका तथा पवश्चमी यूरोप को जोड़ता है। आन दोनों क्षेत्रों में विविध खवनज संसाधन, विपुल

कृ वष ईपज, औद्योगीकरण, तकनीकी विकास तथा जनसंख्या संकेन्रण के गुण देखे जा सकते हैं।
दोनों क्षेत्रों के व्यापाररक सम्बन्ध ईत्तरी ऄटलावण्टक जलमागों द्वारा सम्पन्न होते हैं। विश्व व्यापार
का एक चौथाइ भाग आस जलमागम से होता है।
आस जलमागम के पवश्चम में ईत्तरी ऄमेररका के पूिी तट के सागर पत्तन वस्थत हैं, वजनमें संयुि राज्य
ऄमेररका के बोस्टन, न्यूयॉकम , हैलीफै क्स अक्रद प्रमुख हैं। ईत्तरी ऄटलावण्टक जलमागम के पूिी भाग
में वब्टेन, के लन्दन, मैनचैस्टर, ग्लासगो, वलिरपूल, नीदरलैण्ड के एमस्टरडम, रोटरडम जममनी का

हैम्बगम, डेनमाकम का कोपन हेगन, फ्रांस के ली हािरी, बेस्ट, नेन्टीज, पुतमगाल का वलस्बन अक्रद
प्रमुख सागर पत्तन हैं।
ये सागर पत्तन विशाल पोताश्रयों से युि हैं तथा आनके पृष्ठ प्रदेश ऄत्यन्त समृद्ध हैं। संयुि राज्य
ऄमेररका से कपास, मक्का, गेह,ं सोयाबीन, कोयला, खवनज तेल, मशीनरी, कृ वष यन्त्र, आस्पात,

मोटर गावड़यां, िस्त्र तथा कनाडा से गेह,ँ मछली, लकड़ी, कागज, तांबा, जस्ता, चांदी,
एल्यूवमवनयम अक्रद का वनयामत यूरोपीय देशों को मांस, मछली, कागज की लुग्दी, ईिमरक, उनी
िस्त्र, चीनी वमट्टी के बतमन, िैज्ञावनक िस्तुएं अक्रद भेजी जाती हैं। ईत्तरी ऄमेररका से यूरोप को
भेजी जाने िाली सामिी का भार यूरोप से मंगाए जाने िाले पदाथों की तुलना में लगभग चार
गुना ऄवधक होता है।
 पवश्चम यूरोप-भूमध्य सागर-वहन्द महासागर जलमागम: यह विश्व का दूसरा सबसे महत्िपूणम तथा
सिामवधक लम्बा महासागरीय जलमागम है। यह जलमागम विश्व के मध्य भाग से होकर वनकलता है
तथा विश्व के बड़े थल भागों तथा ऄवधकतम जनसंख्या को सेिाएँ प्रदान करता है। यह जलमागम
पवश्चम यूरोप से भूमध्य सागर, स्िेज नहर, लाल सागर, वहन्द महासागर, पूिी ऄफ्रीका, खाड़ी के
देश, भारत, दवक्षणी-पूिी एवशया तथा ऑस्ट्रेवलया-न्यूजीलैण्ड तक फै ला हअ है। आस जलमागम की
एक शाखा चीन, कोररया, तथा जापान को जाती है। यह जलमागम पहले ऄफ्रीका की पररिमा कर

के प ऑफ़ गुड होप से हेाकर गुजरता था, क्रकन्तु सन् 1869 में स्िेज नहर के बनने के बाद से
भूमध्यसागर ि लाल सागर होकर वनकलता है।
आस जलमागम के प्रमुख सागर पत्तन यूरोप के लेवननिाड, हैम्बगम, एम्स्टरडम, लन्दन, वलिरपूल,
वलस्बन, वजब्ाल्टर, रोम, वजनेिा, एथेन्स अक्रद, वमस्र का पोटम सइद ि पोटम स्िेज, यमन का ऄदन,
ओमान का मस्कट, पाक्रकस्तान का कराची, भारत के मुम्बइ, चेन्नइ, कोलकाता अक्रद, श्रीलंका का

कोलम्बो, म्यानमार का यांगन


ू , ससगापुर तथा ऑस्ट्रेवलया के पथम, मेल्बोनम, वसडनी अक्रद हैं। पूिी
ऄफ्रीका के मोम्बासा, जन्जीबार, डरबन अक्रद तथा पूिी एवशया में चीन के शंघाइ, जापान के
टोक्यो अक्रद तक यह जलमागम विस्तृत है।
 के प ऑफ़ गुड होप जलमागम: यह जलमागम ईत्तरी एिं दवक्षण ऄमेररकी पूिी तट तथा पवश्चम
यूरोपीय देशों को ऄफ्रीका, फारस की खाड़ी, दवक्षण एिं दवक्षण-पूिी एवशया तथा अस्ट्रेवलया-
न्यूजीलैण्ड से जोड़ता है। स्िेज नहर के वनमामण से पूिम पवश्चमी यूरोप से चलने िाले जलयानों को
फारस की खाड़ी के देशों और दवक्षणी-पूिी एवशयाइ देशों तक पहंचने के वलये सम्पूणम ऄफ्रीका
महाद्वीप का चक्कर लगाना पड़ता था। स्िेज नहर के बन जाने से आस जलमागम का महत्ि कम हअ

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है। आसकी लम्बाइ ऄवधक होने के कारण समय ऄवधक लगता है, क्रकन्तु स्िेज नहर का भारी कर
नहीं चुकाने की वस्थवत में यह सस्ता पड़ता है। ऐसे भारी पदाथम, वजन्हें ऄत्यन्त विशाल जलपोतों से
भेजा जाता है तथा वजनके वलए विशेष शीघ्रता नहीं होती है, को आस जलमागम से भेजा जा सकता

है। ईत्तरी ऄटलांवण्टक जलमागम के बन्दरगाहों, फारस की खाड़ी, दवक्षण एिं दवक्षणी पूिी एवशया
तथा ऑस्ट्रेवलया-न्यूजीलैण्ड के बन्दरगाहों के ऄवतररि आस जलमागम में दवक्षण ऄमेररका के ररयो
डी जेनरे ो, सेण्टोस, माण्टेविवडयो एिं ब्यूनस अयसम अक्रद तथा ऄफ्रीका के लोवबटो, के पटाउन,
डरबन, मपूटो, मोजावम्बक, जन्जीबार अक्रद बन्दरगाह आस जलमागम में सवम्मवलत हैं।
 प्रशान्त महासागरीय जलमागम: प्रशान्त महासागर विश्व का विशालतम महासागर है क्रकन्तु आससे
होकर जाने िाले जलमागों का व्यापाररक महत्ि बहत कम है। प्रशान्त महासागर में द्वीपों के
ऄभाि तथा ईत्तरी ऄमेररका के ऄटलावण्टक महासागर तटीय क्षेत्र में औद्योवगक संकेन्रण की
ऄवधकता के कारण प्रशान्त महासागरीय जलमागम पर व्यापाररक पररिहन की मात्रा कम है। यह
जलमागम ईत्तरी ऄमेररका के पवश्चम तट एिं एवशया के पूिी तट के मध्य सम्पकम स्थावपत करता है।
आस जलमागम ईत्तरी ऄमेररका के सप्रस रूपटम, िैंकूिर, सैन फ्रांवसस्को, लॉस एंवजल्स अक्रद, दवक्षण
ऄमेररका के िाल परे सो, एण्टो फागस्टा अक्रद, अस्ट्रेवलया-न्यूजीलैण्ड के वसडनी, िाआस्टचचम,
िैसलगटन अक्रद तथा पूिी एवशया के मनीला, हांगकांग, टीन्टवसन, शंघाइ, ओसाका, कोबे,

याकोहामा, टोक्रकयो अक्रद महत्िपूणम बन्दरगाह हैं। पनामा नहर मागम के बन जाने से आस जलमागम
का सम्पकम क्षेत्र पवश्चम यूरोपीय देशों तक फै ला है।
 दवक्षणी ऄटलावण्टक जलमागम: यह जलमागम दवक्षण ऄमेररका के पूिी तथा ईत्तरी-पूिी बन्दरगाहों
को पवश्चमी यूरोप तथा ऄफ्रीका के पवश्चम तट के बन्दरगाहों से जोड़ता है। दवक्षणी ऄमेररकी देशों
जैसे िेनज
े ुएला, ब्ाजील, युरूग्िे तथा ऄजेण्टाआना अक्रद से गेह,ँ मक्का, मांस, चमड़ा, उन, कहिा,

तम्बाकू , चीनी, कपास, लकड़ी, लौह ऄयस्क, मैंगनीज, ऄभ्रक, बाकसाआट अक्रद ईत्तरी ऄमेररका
तथा यूरोप भेजे जाते हैं। दवक्षण ऄमेररकी देश आस मागम के माध्यम से मशीनें, िस्त्र, रसायन, विद्युत
ईपकरण, लोहा आस्पात, रे ल आं जन, मोटरगावड़यां, िस्त्र तथा ऄन्य वनर्थमत सामवियां प्राप्त करते हैं।

5. पररिहन नहरें
नक्रदयों, झीलों, बांधों के जलाशयों से ससचाइ, मत्स्य िहण, नौ संचालन, पयमटन, हररत पेटी के विकास
अक्रद ऄनेक ईदेश्यों से नहरों का वनमामण क्रकया जाता है। विश्व की कु छ नहरों ने ऄन्तरामष्ट्रीय तथा
अन्तररक व्यापार के पररिहन की दृवि से विशेष महत्ता ऄर्थजत की है। स्िेज, पनामा, सू, कील,
मैनचेस्टर, िोल्गा-डान िैसर-एल्ब, वमडलैण्ड, लुडसिड, एल्बटम अक्रद विश्व की मुख्य पररिहन नहरों हैं।
 स्िेज नहर: स्िेज नहर विश्व व्यापार में सिामवधक महत्िपूणम पररिहन नगर मागम है। स्िेज नहर
वमस्त्र में वस्थत है। यह नहर भूमध्य सागर तथा लाल सागर को परस्पर जोड़ती है। सन् 1859 में
फ्रांवससी आन्जीवनयर फर्थडनैण्ड-डी-लैसेप्स के वनदेशन में स्िेज नहर की खुदाइ अरम्भ हइ। सन्
1869 में आस नहर का वनमामण कायम पूणम हअ तथा आस पर जलयानों का अिागमन अरम्भ हो
गया। सन् 1956 में वमस्र द्वारा आस नहर के राष्ट्रीयकरण से पूिम स्िेज नहर फ्रांस तथा गे्रट वब्टेन
के ऄवधकार क्षेत्र में थी। सन् 1967 में संयुि राष्ट्र संघ ने आस राष्ट्रीयकरण का ऄनुमोदन कर क्रदया
था। स्िेज नहर के वनमामण से पहले पवश्चमी यूरोप तथा ईत्तरी ऄमेररका के पूिी भाग से दवक्षणी
तथा पूिी एवशया को जाने िाले जलयान के प ऑफ़ गुड होप मागम होकर जाते थे। स्िेज नहर के
बनने से ऄफ्रीका की पररिमा पर लगने िाले लगभग दो सप्ताह के ऄवधक समय, इधन और धन की

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बचत हइ है। भूमध्य सागर और लाल सागर के जल स्तरों में ऄवधक ऄन्तर नहीं होने के कारण आस
नहर में ऄिरोधक फाटकों को बनाने की अिश्यकता नहीं हइ। स्िेज नहर की लम्बाइ पनामा नहर
की तुलना में दुगनी होते हए भी आस वनमामण व्यय लगभग एक वतहाइ ही रहा, क्योंक्रक झीलों के
कारण कम दूरी पर खुदाइ की गइ, धरातलीय संरचना ऄपेक्षाकृ त कोमल है तथ ऄिरोधक फाटक
नहीं बनाने पड़े। स्िेज नहर से विशाल जलयान नहीं गुजर सकते हैं तथा आससे गुजरने के वलए
जलयानों को भारी कर चुकाना पड़ता है। स्िेज नहर मागम से फारस की खाड़ी के देशों से खवनज
तेल, भारत तथा ऄन्य एवशयाइ देशों से ऄभ्रक, लौह-ऄयस्क, मैंगनीज, चाय, कहिा, जूट, रबर,
कपास, उन, मसाले, चीनी, चमड़ा, खालें, सागिान लकड़ी, सूती िस्त्र, हस्तवशल्प सामिी अक्रद
पवश्चमी यूरोपीय देशों तथा ईत्तरी ऄमेररका को भेजी जाती है तथा आन देशों से रासायवनक पदाथम,

आस्पात, मशीनों, आलेक्ट्रावनक्स ईपकरण, औषवधयों, मोटर गावड़यों, िैज्ञावनक ईपकरण अक्रद का
अयात क्रकया जाता है।
 पनामा नहर: पनामा नहर विश्व व्यापार में दूसरा सिामवधक महत्िपूणम पररिहन नहर मागम है।
पनामा नहर पनामा में वस्थत है। यह नहर ऄटलावण्टक महासागर तथा प्रशान्त महासागर को
परस्पर जोड़ती है। मध्य ऄमेररका में ऄटलावण्टक महासागर के पवश्चम में वस्थत कै ररवबयन सागर
के तट पर पनामा के ईत्तरी भाग में कोलोन से दवक्षण-पूिम की ओर प्रशान्त महासागर से संलि
पनामा की खाड़ी के शीषम पर वस्थत पनामा तक आस नहर का वनमामण पनामा स्थल संवध को
काटकर क्रकया गया है। पनामा स्थल संवध की भूवम पहाड़ी होने के कारण कठोर है तथा आसके दोनों
और वस्थत महासागरों के जल स्तर में िृहत ऄन्तर है। नहर के वनमामण के वलए कु लेबरा पहाड़ी को
काटा गया तथा तीन स्थानों पर जल ऄिरोधक फाटक बनाए गए। आन तीन लाक्स के नाम गाटू न,
पैडरो तथा वमराफ्लोक्स हैं। जल ऄिरोधक फाटक पनामा नहर में जल स्तर को वनयवन्त्रत करते
हैं। पनामा नहर के वनमामण से पहले पवश्चमी यूरोप तथा ईत्तरी ऄमेररका के पूिी भाग से ईत्तरी एिं
दवक्षणी ऄमेररका के पवश्चमी तट, ऑस्ट्रेवलया, न्यूजीलैण्ड, चीन, जापान अक्रद को जाने िाले
जलयान के प हॉनम होकर जाते थे। पनामा नहर के बनने से दवक्षणी ऄमेररका की पररिमा पर लगने
िाले लगभग दो सप्ताह के समय, इधन और धन की बचत हइ है।

6. बन्दरगाह
 बन्दरगाह ऄथिा सागर पत्तन क्रकसी जलमागम पर ऄिवस्थत िह स्थान है, जहां व्यापाररक माल को
लादने तथा ईतारने के वलए जलयान ठहर सकते हैं। बन्दरगाह िस्तुतः क्रकसी देश के सागर, नदी,
झील अक्रद के तट पर वस्थत एक ऐसा सुरवक्षत स्थान है, जहां से जलयान वनयामत हेतु सामिी, प्राप्त
करते हैं तथा अयावतत सामिी को ईतारते हैं।
 बन्दरगाहों का ऄन्तरामष्ट्रीय व्यापार में ऄत्यन्त महत्िपूणम स्थान है। आन्हें क्रकसी देश के ऄन्तरामष्ट्रीय
व्यापार का प्रिेश द्वार ऄथिा द्वार मागम माना जाता है। कोइ भी बन्दरगाह सागर से भूवम की ओर
जाने का ऄथिा भूवम से सागर की ओर यात्रा करने का नावभ-वबन्दु होता है। बन्दरगाह का सम्बन्ध
रे ल, सड़क ऄथिा अन्तररक जलमागों द्वारा िृहत स्थलीय भागों से होता है। बन्दरगाह की
पृष्ठभूवम का भू-भाग वजसके ईत्पाक्रदत माल का वनयामत के ईद्देश्य से बन्दरगाह पर एकत्रण होता है
तथा जहां विविध अयावतत माल का ईपभोग के ईद्देश्य से वितरण होता है, को बन्दरगाह का पृष्ठ
प्रदेश कहा जाता है। प्रत्येक बन्दरगाह का एक पृष्ठ प्रदेश होता है। बन्दरगाह ऄपने पृष्ठ ऄपने पृ ष्ठ
प्रदेश के वलए सामवियों के प्रिेश एिं वनकास के द्वार का कायम करता है।
 बन्दरगाहों को सिमसुविधा सम्पन्न बनाने के वलए भारी अरवम्भक वनिेश करना पड़ता है।
बन्दरगाहों पर ऄनेक जलयानों को ठहराने एिं सामवियों को लादने तथा ईतारने के वलए विशाल

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घाटों का वनमामण क्रकया जाता है। भारी सामान, कण्टेनर, मशीनों अक्रद को स्थानान्तररत करने के

वलए िे नें, डैररकें अक्रद यन्त्रों-ईपकरणों की सहायता ली जाती है। आनके ऄवतररि जलयानों के

रखरखाि की कायमशालाएं, गोदाम, इधन भण्डार कायामलय, रे लपथ, सामवियों के एकत्रण एिं

वितरण हेतु प्रयुि ट्रेको के स्टैण्ड, विश्राम गृह अक्रद संरचनात्मक सुविधाओं को वनमामण बन्दरगाह
क्षेत्र में क्रकया जाता है। बन्दरगाह आन अधारभूत संरचनात्मक सुविधाओं को टर्थमनल सुविधाएं
कहते हैं।
बन्दरगाह के विकास के वनधामरक कारक

बन्दरगाह के विकास के वलए कु छ विशेष वनधामरक कारकों का होना ऄवनिायम है, वजनमें मुख्य वनम्ित
हैः
 सुरवक्षत पोताश्रयः दन्तुररत (कटी-फटी) तटरे खाओं में सुरवक्षत पोताश्रय बनाने की सुविधा होती
है। तट रे खा में प्राकृ वतक कटान के कारण सागरीय जल स्थलीय सीमाओं से वघर जाता है, वजससे
जलयानों को तूफानों में भी सुरवक्षत खड़े रहने का स्थान वमल जाता है। भारत में मुम्बइ बन्दरगाह
को प्राकृ वतक पोताश्रय की सुविधा प्राप्त है जबक्रक चेन्नइ बन्दरगाह को तट से लगभग तीन क्रक.मी
दूर सागर में कं करीट की दो जलतोड़ दीिारों से घेर कर कृ वत्रम पोताश्रय की सुविधा दी गइ है।
 ऄवधक गहराइः पोताश्रय की गहराइ ऄवधक होनी चावहए ताक्रक बड़े जलयान सरलता से पहंचे
सकें एिं लम्बे समय तक ठहर सके । ज्िार के समय जल का ईत्थान पयामप्त ईं चाइ तक होना
चावहए। पोताश्रय के पैंदे में नक्रदयों द्वारा रे त अक्रद जमा होते रहने पर आसे हटाने की सुविधा
ईपलब्ध होनी चावहए।
 ऄनुकूल जलिायुः सागर साल भर खुले रहने चावहए तथा तटीय क्षेत्र का मौसम शांत रहना
चावहए। अंधी, तूफान, कु हरा, वहम अक्रद कारणों से व्यापाररक गवतविवधयां प्रभावित होती हैं,
साथ ही जलयान के क्षवतिस्त होने की सम्भािना रहती है। रूस के ईत्तरी बन्दरगाह वहमाच्छादन
काल में बंद हो जाते हैं। भारत आस दृवि से सौभाग्यशाली है, क्योंक्रक आसके बन्दरगाह िषमभर खुले
रहते हैं।
 समृद्ध पृष्ठ प्रदेश- क्रकसी बन्दरगाह की ईन्नवत ईसके पृष्ठ प्रदेश पर वनभमर करती है। ईपजाउ, सघन
अबाद तथा औद्योवगक दृवि से ईन्नत पृष्ठ प्रदेशों से बन्दरगाहों को वनयामत के वलए पयामप्त ईत्पादन
तथा अयावतत सामिी का विशाल ईपभोिा िगम प्राप्त होता हे। पृष्ठ प्रदेश ही क्रकसी बन्दरगाह की
व्यापाररक गवतविवधयों का अधार क्षेत्र होता है। भारत में कोलकाता सिामवधक व्यापक पृष्ठ प्रदेश
िाला बन्दरगाह है, वजसमें समृद्व पृष्ठ प्रदेश के सभी गुण दशमनीय है।

 पररिहन मागों का जालः बन्दरगाह का ऄपने पृष्ठ प्रदेश से सड़क, रे ल ऄथिा अन्तररक जलमागों
से जुड़ा होना ऄत्यािश्यक है। आससे सामवियों के एकत्रण एिं वितरण का कायम सरलता तथा
शीघ्रता से होता है।
 टर्थमनल सुविधाएं: बन्दरगाह पर सभी प्रकार की अिश्यक टर्थमनल सुविधाएं होनी चावहए। निीन
तकनीकी पर अधाररत टर्थमनल सुविधाओं से बन्दरगाह की समृवद्ध में सहायता वमलती है।
 ऄिवस्थत- बन्दरगाहों की वस्थवत महत्िपूणम सागरीय मागों पर होने से ऄन्तरामष्ट्रीय व्यापार में
बन्दरगाहों की वहस्सेदारी बढ़ जाती है। जैसे प्रशान्त महासागर में होनोलूलू ईत्तरी एिं दवक्षणी
प्रशान्त महासागरीय जलमागों का ऄत्यन्त महत्िपूणम बन्दरगाह है।
 इधन की ईपलब्धता- जलयानों के वलए कोयला, डीजल अक्रद इधन ईपलब्ध कराने की सुविधा
ईपलब्ध कराने िाले क्षेत्र बन्दरगाहों के विकास को प्रभावित करते हैं

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बन्दरगाहों के प्रकार
बन्दरगाहों का िगीकरण ईनकी वस्थवत, कायम विवशिता तथा अकार के अधार पर क्रकया जा सकता है।
 वस्थवत के अधार पर बन्दरगाह
o खुले बन्दरगाहः ये गहरे समुर में बनाए जाते हैं। आनमें जलयानों के वलए सुरवक्षत पोताश्रय
का ऄभाि होता है। आन्हें बाह्य बन्दरगाह भी कहते हैं। जैसे चेन्नइ, एण्टो फागेस्टा अक्रद। बड़े
जलयान जो छोटे अन्तररक बंदरगाह तक नहीं पहंच पाते है, िे खुले बन्दरगाहों पर खड़े हाते
हैं।
o अन्तररक बन्दरगाहः खावड़यों, नक्रदयों के क्रकनारों पर बने बन्दरगाह मुख्य सागर से दूर होते
हैं। क्रकन्तु ये काफी गहरे और सुरवक्षत होते हैं। जैसे मैनचेस्टर, हइसबगम, लन्दन, कोलकाता
अक्रद। अन्तररक बन्दरगाहों में जलयान दीघामिवध तक खड़े रह सकते हैं।

 कायम विवशिता के अधार पर बन्दरगाह: ऄवधकांश बन्दरगाह एक से ऄवधक ईद्देश्य की पूर्थत करते
हैं क्रकन्तु कु छ बन्दरगाह क्रकसी कायम विशेष के वलए ही प्रवसद्ध हो जाते हैं, जैस-े
o सिारी बन्दरगाहः ऐसे बन्दरगाहों पर सामान्यतः यावत्रयों का अिागमन ऄवधक होने के
कारण ऄपेक्षाकृ त छोटे एिं तीव्रगामी जलयानों की भरमार होती है। ऐसे बन्दरगाहों के
वनकट बस टर्थमनल ऄथिा रे ल जंक्शन होते हैं। जैसे लन्दन, मुम्बइ अक्रद।
o िावणवज्यक बन्दरगाहः िावणवज्यक बन्दरगाहों का मुख्य ईद्देश्य विविध सामवियों का अयात
एिं वनयामत करना होता है। जैसे वलिपरपूल, ग्लासगो, न्यूयॉकम , न्यू अर्थलयन्स अक्रद।
o टैंकर बन्दरगाहः ये िे बन्दरगाह हैं वजनका सम्बन्ध तेल के व्यापार एिं शोधन से होता है।
जैसे रट्रपोली (लीवबया) , माराकाआबो (िेनज
े ए
ु ला) अक्रद।
o पुनर्थनयामत बन्दरगाहः वजन बन्दरगाहों पर ऄनेक देशों से विविध सामवियों का अयात कर
एकवत्रत करने के बाद क्रकसी एक देश को वनयामत कर क्रदया जाता है, िे पुनर्थनयामत बन्दरगाह
होते हैं। जैसे लन्दन, हैम्बगम, आस्ताम्बुल, ससगापुर अक्रद।
o नौसैवनक बन्दरगाहः सामररक दृवि से विकवसत बन्दरगाहों को नौसैवनक बन्दरगाह कहते हैं।
ऐसे बन्दरगाहों में ऄत्याधुवनक युद्ध सामवियों, लड़ाकू विमान, सैवनक छािनी अक्रद की
सुविधा होती है। जैसे वजब्ाल्टर, कोचीन, कोपहेगन अक्रद।
 अकार के अधार पर बन्दरगाह: बन्दरगाह का अकार ईस पर सम्पन्न होने िाली व्यापाररक
गवतविवधयों द्वारा वनधामररत होता है। क्रकसी बन्दरगाह पर अने िाले तथा िहाँ से जाने िाले
जलयानों की संख्या, सामवियों के भार, जलयानों से प्राप्त चुग
ं ी, अयावतत ऄथिा वनयामवतत
सामिी के मूल्य अक्रद से व्यापाररक महत्ि का अकलन होता है। अकार के अधार पर बन्दरगाह
बड़े, मध्यम एिं छोटे प्रकार के होते हैं। बड़े बन्दरगाहों का महत्ि ऄन्तरामष्ट्रीय स्तर का, मध्यम
बन्दरगाहों का राष्ट्रीय स्तर का तथा छोटे बन्दरगाहों का महत्ि स्थानीय स्तर पर होता है।
यातायात के अधार पर दस लाख टन भार से ऄवधक िार्थषक यातायात सम्भालने िाले बन्दरगाहों
को बड़े, एक लाख से दस लाख टन भार के िार्थषक यातायात सम्भलने िाले बन्दरगाहों को मध्यम
तथा एक लाख टन भार से कम िार्थषक यातायात सम्भालने िाले बन्दरगाहों को छोटे बन्दरगाहों
की श्रेणी में िगीकृ त क्रकया गया है।

 विश्व के प्रमुख बन्दरगाह


o यूरोप के प्रमुख बन्दरगाहः हैम्बगम, रॉटरडम, लन्दन, वलिरपूल, ग्लासगो, मासेल्स, बोर्थडक्स,
ओस्लो, एमस्टरडम, कोपेनहेगन, वजब्ाल्टर, सैण्ट पीटसमबगम, रोम अक्रद।

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o ईत्तरी ऄमरीका के प्रमुख बन्दरगाहः न्यूयॉकम , न्यू अर्थलयन्स, सैन फ्रांवसस्को, लास एंवजवलस,
बोस्टन, मावण्ट्रयल, िैंकूिर, क्यूबक
ै अक्रद।
o दवक्षणी ऄमरीका के प्रमुख बन्दरगाहः ब्यूनस अयसम, ररयो डी वजनेररयो, मोण्टेविवडयो, िाल
परे सो, एण्टो फागेस्टा, माराकायबो अक्रद।
o एवशया के प्रमुख बन्दरगाहः टोक्रकयो, याकोहामा, शंघाइ, हांगकांग, कै प्टन, ससगापुर, मुम्बइ,
कोलकाता, काण्डला, चेन्नइ, विशाखापट्टनम, कराची, कोलम्बो अक्रद।
o ऄफ्रीका के प्रमुख बन्दरगाहः वसकन्दररया, वत्रपोली, पोटम स्िेज, के पटाउन, मोम्बासा, डरबन,
अक्रद।
o अस्ट्रेवलया के प्रमुख बन्दरगाहः वसडनी, मैल्बोनम, एडीलेड, पथम अक्रद।

7. िायु पररिहन (Air Transport)


िायु पररिहन सबसे तीव्रगामी क्रकन्तु महंगा पररिहन साधन है। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद संसार में िायु
मागों का विकास हअ है। सिमप्रथम 1919 इ. में पेररस से ब्ूसल्े स के मध्य िायु पररिहन की व्यिस्था
की गइ थी। वद्वतीय विश्व युद्ध के बाद िायु मागों का तीव्र गवत से विकास हअ। िायुयानों से यावत्रयों के
ऄलािा डाक, हल्के और कीमती सामान, शीघ्र नि होने िाले पदाथम भी ढोये जाते हैं। ऄन्तरामष्ट्रीय
सम्मेलनों, पयमटन एिं व्यापार में िायु पररिहन का ऄवधकावधक ईपयोग बढ़ रहा है। विकवसत देशों में
िायु पररिहन का सिामवधक ईपयोग हअ है।
ईपयोग एिं महत्ि (Utility and Importance)

 नागररक ईड्डयन: राष्ट्रीय, ऄन्तरामष्ट्रीय, एिं प्रादेवशक स्तर पर िायु पररिहन का ईत्तरोत्तर
विकास हअ है तथा िायु पररिहन की मांग में िृवद्ध हइ है।
 मालिाहन: हल्के , मूल्यिान और शीघ्र नि होने िाले सामान ढोये जाने हेतु िायु पररिहन का
व्यापाररक महत्त्ि बढ़ गया है।
 राहत कायमः ऄकाल, बाढ़, भूकम्प, सुनामी अक्रद अपदाओं के समय तुरन्त राहत पहंचाने हेतु
विमानों का तत्काल राहत सेिा में महत्ि बढ़ गया है।
 सैवनक महत्िः िायु सेना में बमिषमक, टोही यान, माल िाहक एिं सैवनक िाहक के रूप में आनका
सामररक महत्ि बढ़ गया है।
 संसाधन सिेक्षण एिं फोटोिाफीः िायुयान से ऄत्याधुवनक कै मरों द्वारा वलए गए वचत्रों से
संसाधन वितरण का ऄध्ययन क्रकया जाता है।
 हल्के विमानों से फसलों पर कीटनाशक घोल का वछड़काि क्रकया जाता है।

िायु पररिहन के हेतु िांवछत दशाएं (Prerequisits for Development of Air Transport)
 कठोर ि समतल धरातलः िायु पररिहन परट्टयों का वनमामण करने के वलए विस्तृत कठोर ि समतल
भूवम की अिश्यकता होती है।
 अर्थथक-प्राविवधक क्षमताः वजन देशों के पास महंगे विमान खरीदने की पूंजी और आनके वनमामण की
तकनीकी होती है, िहां िायु पररिहन का ऄवधक विस्तार वमलता है।
 मौसम सम्बन्धी सूचनाः ईड़ान हेतु ऄपेवक्षत ईत्तम मौसम की जानकारी के वलए एयरपोटम पर
मौसम विभाग स्थावपत करना पड़ता है।
 सुरक्षाः हिाइ सुरक्षा, यात्री ि सामान की सुरक्षा हेतु समुवचत व्यिस्था िायु पररिहन विकास की
दृवि से ऄपररहायम है।
 राजनैवतक कारकः दूसरे देशों के अकाश से गुजरने के वलए तथा ईनकी हिाइ परट्टयों पर ईतरने के
वलए ऄन्तरामष्ट्रीय सम्बन्धों में मधुरता रखनी पड़ती है।

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 यावत्रयों की ईपलब्धताः िायु पररिहन पयामप्त खचीला साधन है। आसके वलए जमीन और अकाश
में कु शल तकनीवशयन ि चालकदल की अिश्यकता होती है। यावत्रयों की पयामप्त ईपलब्धता
सुवनवश्चत होनी चावहये।

8. पाआपलाआन्स (Pipelines)
तेल पररिहन (Oil Transportation)

 पेट्रोवलयम ईन थोड़े से तरल पदाथों में से एक है, वजसका बड़ी मात्रा में लम्बी दूररयों तक व्यापार
होता है। सड़कों के रास्ते तेल टैंक िैगनों में, समुर के रास्ते तेल टैंकर जलयानों द्वारा और रक्षा
कायों एिं अपातकाल में िायुयानों द्वारा भी आसका पररिहन क्रकया जाता है। क्रकन्तु तेल ईत्पादक
क्षेत्रों से कच्चे तेल का सिामवधक पररिहन पाआप लाआनों के द्वारा क्रकया जाता है।
 तेल क्षेत्रों से शोधनशालाओं एिं तटिती व्यापाररक टर्थमनलों तक पूरे विश्व में तेल एिं गैस पाआप
लाआनों का विस्तृत जाल वबछा हअ है। पाआप लाआन वबछाना काफी महंगा पड़ता है और एक बार
वबछाने के बाद आसका मागम बदला नहीं जा सकता। ऄतः पाआप लाआन वबछाने से पूिम तेल कम्पनी
को यह सुवनवश्चत करना पड़ता है क्रक ईनमें तेल का लगातार प्रिाह जारी रहेगा तथा दूसरे छोर पर
बाजार में ईसके तेल की मांग बनी रहेगी।
 यक्रद यह सुवनवश्चत हो जाता है तो पाआप लाआन तेल पररिहन का सस्ता, सुगम, रटकाउ और
सुरवक्षत माध्यम है। पेट्रोवलयम जैसा ज्िलनशील तरल पदाथम पाआप लाआनों में पररिहन करना
सिामवधक सुरवक्षत रहता है। राजनैवतक कारणो से या तेल की मांग में ईतार-चढ़ाि होने के कारणों
से यक्रद पाआप लाआनें ऄसुरवक्षत हों तो समुरी रास्ते से तेल टैंकरों द्वारा आसका पररिहन ईवचत
होता है।
प्रमुख तेल क्षेत्र एिं पाआप लाआनें (Oil Fields & Pipelinnes)
 मध्य पूिम : दवक्षण-पवश्चम एवशया में विश्व के कु ल संवचत भण्डार का अधे से ऄवधक खवनज तेल
वमलने के ऄनुमान लगाए गए हैं। सउदी ऄरब, इरान, आराक एिं कु िैत मध्यपूिम के सिामवधक तेल
ईत्पादक देश हैं। कम अबादी और कम पूज
ं ी िाले आन देशों में ऄन्तरामष्ट्रीय तेल कम्पवनयों द्वारा तेल
का ईत्पादन क्रकया जाता था, क्रकन्तु ऄब स्थानीय सरकारों ने ईन पर वनयन्त्रण स्थावपत कर वलया
है। आस क्षेत्र की ऄवधकतर पाआप लाआनें अंतररक स्थल भाग से या फ़ारस की खाड़ी क्षेत्र से
भूमध्यसागरीय तट तक वबछी हइ हैं। स्िेज नहर के रास्ते छोटे जहाजों तथा ईत्तम अशा ऄंतरीप
(के प ऑफ गुड होप) के रास्ते विशाल टैंकरों द्वारा तेल पररिहन की सस्ती दरों पर िैकवल्पक
व्यिस्था भी आस क्षेत्र में ईपलब्ध हैं।

 सउदी ऄरब : सिमप्रथम 1938 में यहां दम्मान (Damman) तेल क्षेत्र में तेल वनकाला गया, क्रकन्तु
अज धरान (Dharan) क्षेत्र ऄवधक महत्िपूणम है। अबकाआक, अआनेदार, घािार तथा ऄपटतीय
क्षेत्र साफावनया के तेलकू पों से यहां सिामवधक तेल प्राप्त क्रकया जाता है। सउदी ऄरब के ऄवधकांश
तेल का दोहनी ऄरबी-ऄमेररकी तेल कम्पनी-अरामोकों (Arabian American Oil Company-
Aramoco) द्वारा क्रकया जाता है। ऄरब का कच्चा तेल पाआप लाआनों द्वारा वनयामत करने ऄथिा
शोधन के वलए फारस की खाड़ी के तट पर भेजा जाता है। यहां आसे रास तनूरा (Ras Tanura)
बहरीन (Bahrein) या ऄन्य शोधनशाला में साफ क्रकया जाता है ऄथिा भूमध्यसागरीय बन्दरगाह
सैदा (Saida or Sidon) भेज क्रदया जाता है। फारस की खाड़ी के तेल क्षेत्रों को भूमध्यसागर तट
पर लेबनान में सैदा तक 1707 क्रकलोमीटर (1067 मील) लम्बी लाआन लाआन द्वारा जोड़ा गया है।
आसे टेपलाआन (Tapline i.e. Trans Arabian Pipeline) कहा जाता है, जो क्रक मध्यपूिम की
सिामवधक लम्बी पाआप लाआन है। सैदा (Saida) में साफ क्रकया गया कच्चा तेल पुनः वनयामत कर
क्रदया जाता है।

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 कु िैत : मात्र 16000 िगम क्रक.मी िाले छोटे से क्षेत्र में बसा कु िैत विश्व के ज्ञात भण्डार का 8
प्रवतशत तेल रखता है। यहां प्रवतिषम विश्व का 3 प्रवतशत तेल वनकाला जाता है। वजसके ईत्पादन
की 50 प्रवतशत रॉयल्टी ऄके ले शेख को जाती है, जो विश्व के सबसे धनी व्यवियों में से एक है।
कु िैत के बुरघान तेल क्षेत्र (Burghan oil field), कु िैत-ऄरब न्यूटरल जोन तथा ऄपतटीय तेल
क्षेत्र में सन् 1947 से ईत्पादन हो रहा है। यहां के तेल में वब्टेन, ऄमेररका, डेनमाकम और जापान की
विशेष रूवच रहती है। कु िैत का लगभग 80 प्रवतशत कच्चा तेल वनयामत कर क्रदया जाता है तथा शेष
साफ क्रकया जाता है। बुरघान से कच्चा तेल कु िैत के बन्दरगाह मीना-ऄल-ऄहमदी (Mina-al-
Ahmadi), तक पाआप लाआन द्वारा पहंचाया जाता है।
 इरान : इरान में सिमप्रथम 1913 में तेल वनकाला गया। आस देश के दवक्षणी-पवश्चमी भाग में तेल
ईत्पादक क्षेत्र में पाये जाते हैं। मवस्जदे सुलम
े ान, नफ्तेशाह, लाली, ऄघाजरी, बहरे गान, हफ्तके ल,
गच सारान, कु म और के रमनशाह इरान के ईल्लेखनीय तेल क्षेत्र हैं। आन तेल क्षेत्रों से फारस की
खाड़ी पर वस्थत ऄबादान शोधनशाला तक पाआपलाआनों द्वारा तेल पहंचाया जाता है। ऄबादान
शोधनशाला विश्व की बड़ी शोधनशालाओं में से एक है, जहां इरान के तेल का शोधन क्रकया जाता
है। के रमनशाह में भी इरानी तेल का शोधन क्रकया जाता है। यहां से कच्चा तेल और पेट्रोवलयम
पदाथम, दोनों ही वनयामत क्रकये जाते हैं। 1951 तक तेल का ईत्पादन ि वनयामत एंग्लो-इरावनयन
ऑआल कम्पनी द्वारा क्रकया जाता था। क्रकन्तु बाद में रॉयल्टी वििाद के कारण तेल ईद्योग का
राष्ट्रीयकरण कर क्रदया गया। फलस्िरूप इरान में तेल ईत्पादन और वनयामत में क्रफर से िृवद्ध हइ।
आराक के साथ युद्ध के दौरान भी तेल के ईत्पादन और वनयामत में वगरािट अइ। आससे पूिम यहां
2820 लाख टन तेल वनकाला जाने लगा था, जो विश्व ईत्पादन का लगभग 1/10 भाग था। इरान
में विश्व के संवचत भण्डार का 7 प्रवतशत से ऄवधक तेल पाया जाता है।
 आराक : आराक के ईत्तरी भाग में क्रकरकु क (Kirkuk) तेल क्षेत्र में 1927 से ईत्पादन हो रहा है।
नफ्तखाना, बुटमाह, जुबैर और रूमाआला आराक के ऄन्य तेल क्षेत्र हैं। आराक का ऄवधकांश तेल
भूमध्यसागर के तट पर ऄिवस्थत सीररया के बन्दरगाह बवनयास (Banias) तथा लेबनान के
बन्दरगाह वत्रपोली तक पाइप लाआनों द्वारा पहंचाया जाता है। िहां से आसे साफ करके वनयामत
क्रकया जाता है। आजराआल में हैफा (Haifa) तक भी कभी आराक का तेल पाआप लाआन द्वारा भेजा
जाता था। ऄरब-आजराआल संघषम के दौरान आस पाआप लाआन को नि कर क्रदया गया। आराक के
ईत्तरी तेल क्षेत्र बगदाद के समीप दौरा (Daura) शोधनशाला से जुड़े हए हैं। ईत्तर में मोसुल और
खाड़ी के पास बसरा के पवश्चम में भी तेल वनकाला जाने लगा है। इराक में विश्व के संवचत
भण्डारण का 3.7 प्रवतशत तेल अंका गया है।
 मध्यपूिम के ऄन्य तेल ईत्पादक क्षेत्रों में संयुि ऄरब ऄमीरात, बहरीन और कतर के तेल क्षेत्र
ईल्लेखनरीय हैं। बहरीन द्वीप और कतर प्रायद्धीप में ऄपेक्षाकृ त कम तेल पाया जाता है, क्रकन्तु
संयुि ऄरब ऄमीरात में विश्व का 4 प्रवतशत तेल भण्डार ईपलब्ध है। अबूधाबी में संयुि ऄरब
ऄमीरात (UAE) का 82 प्रवतशत तेल प्राप्त क्रकया जाता हैं। शुष्क जलिायु और विरल जनसंख्या
िाले आन देशों में के िल खवनज तेल ही अय का प्रमुख स्रोत है। मध्यपूिी देशों में खवनज तेल ही
अय का प्रमुख स्रोत है। मध्यपूिी देशों में खवनज तेल और पेट्रोवलयम पदाथों का सिामवधक वनयामत
क्रकया जाता है। कु िैत के वनयामत का लगभग 100 प्रवतशत, सउदी ऄरब का 99 प्रवतशत, आराक का
90 प्रवतशत और इरान का 85 प्रवतशत वनयामतक मूल्य खवनज तेल और पेट्रोवलयम पदाथों से ही
प्राप्त होता है। मध्यपूिम के नगरों, सड़कों, रे लों, वशक्षा ि स्िास्थ्य सेिा एिं िहां की सम्पूणम
ऄथमव्यिस्था का विकास तेल से प्राप्त अय पर ऄिलवम्बत है।

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 पूिम सोवियत संघ : कै वस्पयन सागर तटीय क्षेत्र में 1870 से ही पारम्पररक तेल ईत्पादन क्रकया
जाता था। िोल्गा-यूराल क्षेत्र, िोजनी ि माआकोप क्षेत्र यहां के प्रमुख तेल ईत्पादक क्षेत्र हैं। िोल्गा-
यूराल क्षेत्र से सिामवधक तेल वनकाला जाता है। टाटाररया (Tataria), बशकीररया (Bashkiria)
पमम (Perm), कु आवबशेि (Kuybyshev) तथा ओरे नबगम (Orenberg) यहां के प्रमुख तेल क्षेत्र हैं।
बाकू , िोजनी, पमम, कु आवबशेि अक्रद ईत्पादक स्थलों पर ही तेल साफ कर वलया जाता है। पवश्चमी
प्रदेशों की ओर साफ तेल तथा ऄन्य तेल-ईत्पाद के पररिहन के वलए लम्बी पाआप लाआनों का जाल
वबछाया गया है। यहां से पूिी यूरोपीय देशों-हंगरी, चेक गणराज्य स्लोिेाक्रकया, जममनी, आटली
तथा जापान तक पाआप लाआनों द्वारा तेल का वनयामत क्रकया जाता है। ईपरोि तेल क्षेत्रों के ऄलािा
सखावलन द्वीप, वपचैरा घाटी, लीना बेवसन, ओब बेवसन तथा कोवलमा बेवसन में भी खवनज तेल का
दोहन क्रकया जाता है। प्रायः सभी तेल क्षेत्र पाआप लाआनों द्वारा शोधन शालाओं, बन्दरगाहों या
बाजारों तक जुड़ जाने से कच्चे ि साफ तेल का पररिहन सुगमता से क्रकया जाता है।
 संयि
ु राज्य ऄमेररका : ऄमेररका में पाआप लाआन द्वारा तेल पररिहन का प्रारम्भ पैंवसलिेवनया में
1861 में हअ। संयुि राज्य ऄमेररका की मुख्य भूवम तक ऄलास्का के ईत्तरी तट पर परूदो खाड़ी
से तेल पाआप लाआनों द्वारा लाया गया। संयुि राज्य ऄमेररका में तेल पाआप लाआनों की ऄपेक्षा ऄब
गैस पाआप लाआनों का ऄवधक बड़ा जाल वबछाया जा चुका है। न्यूयाकम , बोस्टन, वशकागो, लाॅस
एंवजल्स और सैन फ्राँवसस्को जैसे नगरों को गैस की अपूर्थत पाआप लाआनों द्वारा की जाती है।
ऄमेररका के छः प्रमुख तेल ईत्पादक क्षेत्रों से पाआप लाआनों द्वारा तेल का पररिहन क्रकया जाता है-
(i) मध्यिती क्षेत्र (The mid-Continent Region)
(ii) खाड़ी तटीय क्षेत्र (The Gulf Coast Region)
(iii) रॉकी पिमतीय क्षेत्र (Rocky Mountain Region)
(iv) कै लीफोर्थनया क्षेत्र (The California Region)
(v) ऄप्लेवशयन ि मध्य पूिी क्षेत्र (The Appalachian and Eastern Interior Region)
(vi) ऄलास्का क्षेत्र (the Alaskan Region)
 मैवक्सको : मैवक्सको ईत्तरी ऄमेररका का दूसरा लेक्रकन विश्व का सातिां बड़ा खवनज तेल ईत्पादक
देश है। जहां 15 करोड़ मीटरी टन तेल ईत्पादन होता है जो विश्व का लगभग 5 प्रवतशत है। यहां
के तेल क्षेत्र टैवम्पको से टक्सपान तक तथा पेबुको ि तोमसी नक्रदयों के मध्य आबानो और पेलक
ु ो के
पास वस्थत हैं। मैवक्सको में प्राकृ वतक गैस भी प्रचुर मात्रा में ईपलब्ध है।
 कनाडा : कनाडा के प्रमुख तेल क्षेत्र एडमंडन, पवम्बयाना, रे डिाटर, कै लवगरी और टनमरिैली के
पास वस्थत हैं। वब्रटश कोलवम्बया, मेनीटोबा और ओण्टाररयो में भी कु छ मात्रा में खवनज तेल के
भण्डार पाये गये हैं। संयुि राज्य ऄमेररका की तरह कनाडा में भी प्राकृ वतक गैस का समुवचत
ईपयेाग क्रकया जाता है। यहां पर गैस पाआप लाआनें, तेल पाआप लाआनों की ऄपेक्षा ऄवधक विस्तृत
क्षेत्र में वबछी हइ हैं। ऄलिटाम के िांड प्रेयरी और ईत्तरी वब्रटश कोलवम्बया के क्लाकम लेक, बुक
िीक ि ब्लूबरे ी से िेंकूिर और शीटर तक गैस की अपूर्थत पाआप लाआन द्वारा की जाती है।
 िेनज
े ए
ु ला : िेनज
े ुएला में माराकाआबो झील क्षेत्र, ओररनीको नदी बेवसन और अपुरे नदी बेवसन
प्रमुख तेल क्षेत्र हैं। यहां 1918 से तेल का ईत्पादन क्रकया जाता है। माराकाआबो झील क्षेत्र के
लागुवनल्लास, रटअजुअना, तासलीना, बचाकु एरो, मेनेिांड,े मराम ि तराम ईल्लेखनीय ईप क्षेत्र हैं।
यहां से कच्चा तेल कारडोन और पुण्टा तेल शोधनशालाओं तक पाआप लाआन द्वारा पररिहन क्रकया
जाता है। ओरोनीको नदी बेवसन में क्रकररक्ायर, जुसेवबन और ओफवसयाना ईल्लेखनीय ईपक्षेत्र हैं,
जहां से तेल पाआप लाआनों द्वारा प्यूरटोलाकू रज तथा के रीवपटो बन्दरगाहों तक शोधन ि वनयामत
करने हेतु पररिहन क्रकया जाता है। अपूरे नदी बेवसन का तेल पाआप लाआन द्वारा प्यूरटोके बेलो की
शोधनशाला को पररिहन क्रकया जाता है। िेनज े ए
ु ला में तेल भण्डारों के साथ प्राकृ वतक गैस भी
पाइ जाती है। रट्रवनडाड द्वीप में भी थोड़ी मात्रा में तेल के भण्डार वमले हैं।

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 ऄफ्रीका : मध्य और दवक्षणी प्राचीन चट्टानों िाले प्रदेश में तेल का लगभग ऄभाि पाया जाता है।
सहारा प्रदेश में ऄल्जीररया और लीवबया में तेल वमलता है। वमश्र में कु छ तेल प्राप्त हअ है।
नाआजीररया के नाआजर डेल्टा में विशाल तेल भण्डार पाये गये हैं।
 नाआजीररया : नाआजीररया में 1937 से तेल की खोज शुरू की गइ और 1957 में तेल वमल गया।
डेल्टा एिं ऄपतटीय क्षेत्र से ऄवधकांश तेल प्राप्त क्रकया जाता है। तेल पाआप लाआन से पोटम हारकोटम
(Port Harcourt) पहंचाया जाता है। नाआजीररया में तेल एिं प्राकृ वतक गैस दोनों का ईत्पादन
क्रकया जाता है। यहां से यूरोप तथा ईत्तरी ि दवक्षणी ऄमेररका को आसका वनयामत क्रकया जाता है।
ओलोइवबरी ि ईघेरी यहां के मुख्य तेल क्षेत्र हैं। यहां विश्व के 3% भंडार मौजूद हैं।
 लीवबया : लीवबया में दाहरा (Dahra), बेदा (Beda), जेल्टन (Zelten) और वसरटे खाड़ी (Gulf
of Sirte) के दवक्षण में तेल और प्राकृ वतक गैस के भण्डार वमले हैं। ऄसुविधाजनक रे वगस्तानी क्षेत्र
में लम्बी खोज के बाद 1957 में तेल वमला था। यहां तेल के कु एं गहरे हैं तथा ईत्पादन लागत
ऄवधक अती है। ऄवधकांश तेल का वनयामत कर क्रदया जाता है। यहां विश्व के 2.8% तेल भण्डारण
होने का ऄनुमान है।
 ऄल्जीररया : ऄल्जीररया में तेल और प्राकृ वतक गैस सिमप्रथम 1956 में प्राप्त हअ था। यहां के प्रमुख
तेल क्षेत्रों में हासीऄर मेल (Hassi R'Mel), हासीमसूद (Hasi Masoud) ि ऄदजेल ईल्लेखनीय
हैं। हासी ऄर मेल विश्व के बड़े प्राकृ वतक गैस भण्डारों में से एक है। यहां से पाआप लाआन द्वारा गैस
अज्र्यू (Arzew) तक भेजी जाती है।
 दवक्षण, दवक्षणी-पूिी, एिं पूिी एवशया : एवशयाइ सम्भागों में लम्बे समय तक तेल का दोहन
बावधत रहा। ितममान में चीन, आन्डोनेवशया, भारत, मलेवशया, म्यान्मार, थाआलैण्ड, जापान,
ताआिान, क्रफलीपीन्स तथा ब्ूनइ
े में तेल का ईत्पादन क्रकया जा रहा है।
 चीन - चीन का नाम विश्व के बड़े तेल ईत्पादक देशों में वलया जाता है। कांसू क्षेत्र में जुंगेररया
बेवसन में करमाइ, तुशान्त्जे ि सैदाम बेवसन में मानराइ एिं तासैदाम क्षेत्रों में तेल भण्डार पाये
गए हैं। जेचिान प्रदेश में वचयासलग िाटी, क्ीचाई-युन्नान प्रदेश में तथा मंचूररया में वलयाओ तथा
सुंगेरी घारटयों के मध्य तेल भण्डार पाये गए हैं। करमाइ (Karamai) तेल क्षेत्र से कच्चा तेल पाआप
लाआनों द्वारा दुशान्जी (Dushanzi) तथा ईरूमकी (Urmqi) शोधनशालाओं को पहंचाया जाता
है। यूमेन (Yumen) और लान्झउ (Lanzhou) के मध्य पाआप लाआन वबछाइ गइ है। फांगशान,
बीसजग, वजन्क्सी, टीसलग, फु थु और दाककग तेल क्षेत्र एिं शोधन शालाएं पाआप लाआनों द्वारा जोड़
क्रदये गए हैं। ककवजयांग का तेल सजगमान शोधनशाला को पाआप लाआन द्वारा पहंचाया जाता है।
चीन में विश्व का 2.5% प्रवतशत तेल होने के ऄनुमान है। चीन में प्राकृ वतक गैस का ईत्पादन भी
बड़ी मात्रा में होता है।
 आण्डोनेवशया : आं डोनेवशया में विश्व का 6% तेल होने का ऄनुमान है। सुमात्रा में यहां का सिामवधक
तेल प्राप्त होता है। पालेम्बांग, जाम्बी, मीनास एिं पेंगकलान में तेल वमला है। पालेम्बांग ि जाम्बी
में तेल साफ क्रकया जाता है या क्रफर ससगापुर भेज क्रदया जाता है। बोर्थनयो द्वीप में कालीमन्तान में
तेल के भण्डार वमले हैं। बरूनी (ईत्तरी बोर्थनयो) में भी तेल के भण्डार पाये गए हैं। लूटोंग एिं
सारािाक में तेल साफ क्रकया जाता है, या क्रफर ससगापुर भेज क्रदया जाता है।
 भारत : भारत में ऄसम, गुजरात, ईत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और बॉम्बे हाइ में तेल और
प्राकृ वतक गैस के प्रचुर भण्डार पाये जाते हैं। आन तेल ि गैस क्षेत्रों से शोधनशालाओं एिं बाजार
क्षेत्रों तक पाआप लाआनें वबछाने के समुवचत प्रयत्न क्रकये जा रहे हैं।

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भूगोल
36. विश्व के खवनज संसाधन एिं ईनका वितरण

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विषय सूची
1. संसाधनों का पररचय __________________________________________________________________________ 3

1.1. संसाधनों का िगीकरण ______________________________________________________________________ 3


1.1.1. ईपयोग की वनरं तरता / समाप्यता के अधार पर _________________________________________________ 3
1.1.2. ईत्पवि के अधार पर ___________________________________________________________________ 4
1.1.3. स्िावमत्ि के अधार पर __________________________________________________________________ 4
1.1.4. विकास के स्तर के अधार पर ______________________________________________________________ 4
1.1.5. ईपयोग के ईद्देश्य के अधार पर ____________________________________________________________ 5

2. खवनज संसाधन ______________________________________________________________________________ 6

2.1. धावत्िक खवनज ___________________________________________________________________________ 6


2.1.1. लौह खवनज _________________________________________________________________________ 6
2.1.2. ऄलौह खवनज ________________________________________________________________________ 7

2.2. ऄधावत्िक खवनज__________________________________________________________________________ 8

3. संसाधनों का खनन एिं खनन की विवधयााँ ___________________________________________________________ 10

4. संसाधनों की ईपयोवगता _______________________________________________________________________ 10

5. संसाधनों का क्षरण ___________________________________________________________________________ 11

6. संसाधनों का संरक्षण __________________________________________________________________________ 11

7. संरक्षण की विवधयााँ __________________________________________________________________________ 12


1. सं साधनों का पररचय
 संसाधन िे प्राकृ वतक सम्पदाएाँ होती है, वजनका ईपयोग मनुष्य ऄपनी भौवतक एिं ऄभौवतक
अिश्यकताओं की पूर्तत के वलए करता है। दूसरे शब्दों में कोइ भी िस्तु, पदाथथ या तत्ि वजसका
ईपयोग संभि हो तथा ईसके रूपांतरण से ईसकी ईपादेयता (ईपयोवगता) एिं मूल्य में िृवि हो
जाए, ईन्हें संसाधन कहा जाता है। आसका अशय है कक प्रत्येक संसाधन से मूल्यिान िस्तुओं का
ईत्पादन संभि है। आसी सन्दभथ में प्रवसि भूगोलिेिा E. W. विम्मरमैन ने कहा था कक “संसाधन
होते नहीं है, बवल्क बनाये जाते है”। ऄथाथत् कोइ भी िस्तु जो प्रकृ वत में हमेशा से मौिूद रही हो
लेककन िह संसाधन तभी बनती है जब मनुष्य ऄपनी अिश्यकताओं एिं क्षमताओं द्वारा ईनमें
लाभप्रद ईपयोवगता प्रदान करता है। भूवम, िन, पशु, खवनज तथा स्ियं मनुष्य भी महत्त्िपूणथ
संसाधनों के ईदाहरण है।
 दृष्टव्य है कक कोइ भी साधन, संसाधन तभी बनता है जब ईसके रूपांतरण के वलए अिश्यक
प्रौद्योवगकी ईपलब्ध हो। यही कारण है कक विश्व के बहुत से विकासशील देश आसवलए वपछड़े नहीं
है कक ईनके पास संसाधन नहीं है बवल्क आसवलए वपछड़े हुए है क्योंकक ईनके पास विकवसत देशों
की भांवत प्रौद्योवगकी और पूज
ं ी का ऄभाि है। प्रौद्योवगकी वजतनी ऄवधक सक्षम और कु शल होगी
संसाधनों का ईपयोग ईतनी ही कु शलता से ककया जा सकता है तथा देश एिं समाज का अर्तथक
विकास तीव्र गवत से अगे बढ़ाया जा सकता है।
1.1. सं साधनों का िगीकरण

 संसाधनों का िगीकरण ऄनेक प्रकार से ककया जा सकता है। ककसी संसाधन को ककस श्रेणी में रखा
जाए, यह आस बात पर वनभथर करे गा कक ईनके िगीकरण का क्या अशय है। आन संसाधनों का
िगीकरण वनम्न प्रकार से ककया जा सकता है:
1. समाप्यता के अधार पर: निीकरण और गैर-निीकरण
2. ईत्पवि के अधार पर: जैि और ऄजैि
3. स्िावमत्ि के अधार पर: व्यवगगत, सामुदावयक, राष्ट्रीय और ऄंतराथष्ट्रीय
4. विकास के स्तर के अधार पर: संभािी, विकवसत, भंडार और संवचत कोष

1.1.1. ईपयोग की वनरं तरता/समाप्यता के अधार पर

संसाधनों का ईपयोग शुरू करने के पश्चात यह चचता स्िभाविक है कक िह ककतने कदनों तक पयाथप्त होंगे।
कु छ संसाधन जल्दी समाप्त होते हैं तो कु छ ऄसमाप्त होते है। आस दृवष्टकोण से आनका िगीकरण
निीकरणीय ऄथिा गैर-निीकरणीय संसाधनों में ककया जाता है।
कु छ संसाधन ऐसे हैं वजनका ईपयोग वनरं तर होता रहता है और बार-बार शुि करके ईसे पुनः ईपयोग
में लाया जाता है, ईदाहरण के वलए जल। घरे लू तथा औद्योवगक प्रयोग के वलए जल को साफ करके पुनः
ईपयोग में लाया जा सकता है। आस प्रकार के संसाधनों को चक्रीय संसाधन कहा जाता है।
 निीकरणीय संसाधन: िे संसाधन वजन्हें भौवतक, रासायवनक या यांविक प्रकक्रयाओं द्वारा निीकृ त
या पुनः ईत्पन्न ककया जा सकता है, ईन्हें निीकरण योग्य ऄथिा पुनः पूर्तत योग्य संसाधन कहा
जाता है। ईदाहरणाथथ सौर एिं पिन उजाथ, जल, िन ि िन्य जीिन। आन संसाधनों को सतत्
ऄथिा प्रिाह संसाधनों में विभावजत ककया गया है।
 गैर-निीकरणीय संसाधन: आन संसाधनों का विकास एक लंबे भू-िैज्ञावनक ऄंतराल में होता है।
खवनज और जीिाश्म ईंधन आस प्रकार के संसाधनों के ईदाहरण हैं। आनके बनने में लाखों िषथ लग
जाते हैं। आनमें से कु छ संसाधन जैसे धातुएाँ पुनः चक्रीय हैं और कु छ संसाधन जैसे जीिाश्म ईंधन
ऄचक्रीय हैं िे एक बार के प्रयोग के साथ ही समाप्त हो जाते हैं। ऄतः आन्हें गैर-निीकरणीय संसाधन
कहा जाता है।

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1.1.2. ईत्पवि के अधार पर

पृथ्िी पर पाए जाने िाले आन संसाधनों को क्रमशः दो िगों में बांटा जाता है - जैि तथा ऄजैि। कोयला
एिं खवनज तेल भी जीिांश से ही बनते हैं। आनमें से कु छ संसाधन निीकरणीय योग्य है परं तु कु छ गैर
निीकरणीय भी है। ईदाहरण के वलए पशुधन का निीकरण तो संभि है परं तु कोयले एिं खवनज तेल
का निीकरण संभि नहीं है। सभी संसाधन वजनका वनमाथण ऄजैविक तत्िों से होता है ईन्हें ऄजैि
संसाधन कहा जाता है। ईदाहरण के वलए लोहा, तांबा, सोना अकद ऄजैि ऄथिा ऄकाबथवनक पदाथथ
कहलाते हैं। यह पदाथथ पृथ्िी में विवभन्न प्रक्रमों के फलस्िरुप बनते हैं। आनके बनने की गवत बहुत धीमी
होती है। ऄतः ईपयोग के बाद आनके भंडार समाप्त होने लगते है। कु छ ऄजैि संसाधन पृथ्िी पर विस्तृत
क्षेि में पाए जाते हैं, परं तु कु छ बहुत ही सीवमत क्षेि में ईपलब्ध है। ईदाहरण के वलए लोहा तथा
एल्युवमवनयम का क्षेि बहुत ही विस्तृत है परं तु सोना एिं चांदी का क्षेि सीवमत है।
 जैि-संसाधन: आन संसाधनों की प्रावप्त जीिमंडल से होती है, जैसे - मनुष्य, िनस्पवतजात,
प्रावणजात, मत्स्य जीिन, पशुधन अकद।
 ऄजैि संसाधन: िे सारे संसाधन जो वनजीि िस्तुओं/ऄजैविक तत्िों से होता है ईन्हें ऄजैि संसाधन
कहा जाता है। ईदाहरणाथथ चट्टानें और धातुएाँ।
1.1.3. स्िावमत्ि के अधार पर

 व्यवगगत संसाधन: वजनका स्िावमत्ि वनजी व्यवगयों के हाथों में होता है। ईदाहरण: गााँि में
ककसी ककसान की जमीन, घर, अकद। शहरों में भूखंड, घर, कार अकद।
 सामुदावयक स्िावमत्ि िाले संसाधन: ये संसाधन समुदाय के सभी सदस्यों को ईपलब्ध होते हैं।
गााँि की चारण भूवम, श्मशान भूवम, तालाब आत्याकद और नगरीय क्षेिों के सािथजवनक पाकथ ,
वपकवनक स्थल और खेल के मैदान, िहााँ रहने िाले सभी लोगों के वलए ईपलब्ध हैं।
 राष्ट्रीय संसाधन: तकनीकी तौर पर देश में पाये जाने िाले सभी संसाधन राष्ट्रीय हैं। देश की
सरकार को कानूनी ऄवधकार है कक िह व्यवगगत संसाधनों को भी अम जनता के वहत में
ऄवधग्रवहत कर सकती है। आस प्रकार के संसाधन है - सड़के , नहरें और रे ल लाआनें अकद।
 ऄंतराथष्ट्रीय संसाधन: कु छ ऄंतराथष्ट्रीय संस्थाएाँ संसाधनों को वनयंवित करती हैं। तट रे खा से 200
ककमी की दूरी (ऄनन्य अर्तथक क्षेि, EEZ) से परे खुले महासागरीय संसाधनों पर ककसी देश का
ऄवधकार नहीं होता है। आन संसाधनों को ऄंतराथष्ट्रीय संस्थाओं तथा कानूनों की सहमवत के वबना
ईपयोग नहीं ककया जा सकता।
1.1.4. विकास के स्तर के अधार पर

 संभािी संसाधन: यह िे संसाधन हैं जो ककसी प्रदेश में विद्यमान होते हैं परं तु आनका ईपयोग नहीं
ककया गया है। ईदाहरण के तौर पर भारत के पवश्चमी भाग, विशेषकर राजस्थान और गुजरात में
पिन और सौर उजाथ संसाधनों की ऄपार संभािना है, परं तु आनका सही ढंग से विकास नहीं हुअ
है।
 विकवसत संसाधन: िे संसाधन वजनका सिेक्षण ककया जा चुका है और ईनके ईपयोग की गुणििा
और मािा वनधाथररत की जा चुकी है, विकवसत संसाधन कहलाते हैं। संसाधनों का विकास
प्रौद्योवगकी और ईनकी संभाव्यता के स्तर पर वनभथर करता है।
 भंडार: पयाथिरण में ईपलब्ध िे पदाथथ जो मानि की अिश्यकताओं की पूर्तत कर सकते हैं परं तु
ईपयुग प्रौद्योवगकी के ऄभाि में ईसकी पहुाँच से बाहर हैं, भंडार में शावमल संसाधन हैं। ईदाहरण
के वलए जल दो ज्िलनशील गैसों यथा हाआड्रोजन और ऑक्सीजन का यौवगक है तथा यह उजाथ का
मुख्य स्रोत बन सकता है। परं तु आस ईद्देश्य से, आनका प्रयोग करने के वलए हमारे पास अिश्यक
तकनीकी ज्ञान नहीं है।

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 संवचत कोष: यह संसाधन भंडार संसाधनों का ही वहस्सा है, वजन्हें ईपलब्ध तकनीकी ज्ञान की
सहायता से प्रयोग में लाया जा सकता है, परं तु आनका ईपयोग ऄभी अरं भ नहीं हुअ है। आनका
ईपयोग भविष्य में अिश्यकता पूर्तत के वलए ककया जा सकता है। नकदयों के जल को विद्युत पैदा
करने में प्रयुग ककया जा सकता है, परं तु ितथमान समय में आसका ईपयोग सीवमत पैमाने पर ही हो
रहा है।
1.1.5. ईपयोग के ईद्दे श्य के अधार पर

उजाथ संसाधन: उजाथ ईत्पादन के वलए खवनज ईंधन ऄवनिायथ है। ईजाथ की अिश्यकता कृ वष, ईद्योग,
पररिहन तथा ऄथथव्यिस्था के ऄन्य क्षेिों में होती है। कोयला, पेट्रोवलयम तथा प्राकृ वतक गैस, परमाणु
उजाथ अकद उजाथ के परं परागत स्रोत हैं। ये परं परागत स्रोत समाप्य संसाधन हैं।
समाप्य संसाधन:
 कोयला: कोयला महत्िपूणथ खवनजों में से एक है वजसका मुख्य प्रयोग ताप विद्युत ईत्पादन तथा
लौह ऄयस्क के प्रगलन के वलए ककया जाता है।
 पेट्रोवलयम: कच्चा पेट्रोवलयम, द्रि और गैसीय ऄिस्था के हाआड्रोकाबथन से युग होता है तथा आसकी
रासायवनक संरचना, रं ग और घनत्ि में वभन्नता पाइ जाती है। यह मोटर-िाहनों, रे लिे तथा
िायुयानों के ऄंतर-दहन ईंधन के वलए उजाथ का एक ऄवनिायथ स्रोत है। आसके ऄनेक सह-ईत्पाद
पेट्रो-रसायन ईद्योगों, जैसे कक ईिथरक, कृ विम रबर, कृ विम रे शे अकद पदाथथ प्राप्त ककए जाते हैं।
कू पों से वनकाला गया तेल ऄपररष्कृ त तथा ऄनेक ऄशुकद्दयों से पररपूणथ होता है। आसे सीधे प्रयोग में
नहीं लाया जा सकता। ऄत: आसे शोवधत ककए जाने की अिश्यकता होती है।
 नावभकीय उजाथ: हाल के िषों में नावभकीय उजाथ एक व्यिहायथ स्रोत के रूप में ईभरा है।
यूरेवनयम, थोररयम जैसे रे वडयो सकक्रय पदाथों की विखंडन प्रकक्रया से बड़ी मािा में उजाथ ईत्पन्न
की जाती है।
ऄसमाप्य संसाधन:

ये सतत पोषणीय तथा पयाथिरण-ऄनुकूल उजाथ के स्रोत के रूप में जाने जाते हैं जैसे- सौर, पिन, जल,
भूतापीय उजाथ जैिभार ;बायोमास अकद। आन स्रोतों के माध्यम से ऄवधक रटकाउ, पाररवस्थवतक-
ऄनुकूल तथा सस्ती उजाथ प्राप्त की जाती हैं।
 सौर उजाथ: फोटोिोवल्टक सेलों में सूयथ प्रकाश को उजाथ में पररिर्ततत ककया जा सकता है, आस उजाथ
को सौर उजाथ के नाम से जाना जाता है। सौर उजाथ को काम में लाने के वलए वजन दो प्रक्रमों को
बहुत ही प्रभािी माना जाता है िे हैं फोटोिोवल्टक और सौर-तापीय प्रौद्योवगकी। ऄन्य सभी
ऄनिीकरणीय उजाथ स्रोतों की ऄपेक्षा सौर-तापीय प्रौद्योवगकी ऄवधक लाभप्रद है। यह लागत
प्रवतस्पधी, पयाथिरण ऄनुकूल तथा वनमाथण में असान है। सौर उजाथ कोयला ऄथिा तेल अधाररत
संयंिों की ऄपेक्षा 7 प्रवतशत ऄवधक और नावभकीय उजाथ से 10 प्रवतशत ऄवधक प्रभािी है। दृष्टि
है कक USA सौर सेलों का सबसे बड़ा वनमाथता देश है।
 पिन उजाथ: पिन उजाथ पूणरू
थ प से प्रदूषण मुग तथा उजाथ का ऄसमाप्य स्रोत है। पिन की गवतज
उजाथ को टरबाआन के माध्यम से विद्युत-उजाथ में बदला जाता है। सन्मागी ि पछु िा जैसी स्थायी
पिन प्रणावलयााँ और मानसून पिनों को उजाथ के स्रोत के रूप में प्रयोग ककया जाता है। आनके
ऄलािा स्थानीय हिाओं, स्थलीय और जलीय पिनों को भी विद्युत पैदा करने के वलए प्रयुग ककया
जा सकता है।
 ज्िारीय तथा तरं ग उजाथ: महासागरीय धाराएाँ उजाथ का ऄपररवमत भंडार है। महासागर की
तापांतर, तरं ग,े ज्चार-भाटा और महासागरीय धाराओं जैसी विशेषताओं के कारण यह
निीकरणीय उजाथ का स्रोत बना है, वजससे पयाथिरण-ऄनुकूल उजाथ ईत्पन्न की जा सकती है।
ितथमान में ईन्नत प्रौद्योवगकी की कमी एिं सीवमत संसाधनों के कारण समुद्री उजाथ का पूणथ ईपयोग
नहीं ककया जा रहा है।

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 भूतापीय उजाथ: जब पृथ्िी के गभथ से मैग्मा वनकलता है तो ऄत्यवधक उष्मा वनमुथग होती है। आस
तापीय उजाथ को सफलतापूिक थ काम में लाया जा सकता है और आसे विद्युत उजाथ में पररिर्ततत
ककया जा सकता है। आसके ऄलािा, गीजर कू पों से वनकलते गमथ पानी से ताप उजाथ पैदा की जा
सकती है। आसे लोकवप्रय रूप में भूतापी उजाथ के नाम से जाना जाता हैं। आस उजाथ को ऄब एक
प्रमुख उजाथ स्रोत के रूप में माना जा रहा है वजसे एक िैकवल्पक स्रोत के रूप में विकवसत ककया जा
सकता है। आटली, न्यूिीलैंड, अआसलैंड, भारत में भू-तापीय उजाथ का ईपयोग ककया जा रहा है।
 जैि-उजाथ: जैि-उजाथ ईस उजाथ को कहा जाता है वजसे जैविक ईत्पादों से प्राप्त ककया जाता है,
वजसमें कृ वष ऄिशेष, औद्योवगक तथा ऄन्य ऄपवशष्ट शावमल होते हैं। जैि-उजाथ, उजाथ पररितथन का
एक संभावित स्रोत है। आसे विद्युत-उजाथ, ताप-उजाथ ऄथिा खाना पकाने के वलए गैस में पररिर्ततत
ककया जा सकता है। यह उजाथ का एक महत्िपूणथ स्रोत है यह विकासशील देशों में पयाथिरण
प्रदूषण घटाने, ईनकी अत्मवनभथरता बढ़ाने तथा जलाने योग्य लकड़ी पर दबाि कम करने पर
महत्िपूणथ भूवमका वनभाता है।
2. खवनज सं साधन
 खवनजों की कु छ वनवश्चत विशेषताएाँ होती हैं। खवनज ऄसमान रूप से वितररत होते हैं। खवनजों की
गुणििा और मािा के बीच प्रवतलोमी संबंध पाया जाता है ऄथाथत् ऄवधक गुणििा िाले खवनज,
कम गुणििा िाले खवनजों की तुलना में कम मािा में पाए जाते हैं। तीसरी प्रमुख विशेषता यह है
कक ये सभी खवनज समय के साथ समाप्त हो जाते हैं। भूगर्तभक दृवष्ट से आन्हें बनने में लंबा समय
लगता है और अिश्यकता के समय आनका तुरंत पुनभथरण नहीं ककया जा सकता। ऄतः आनका वबना
दुरुपयोग ककये संरक्षण एिं वििेकानुसार ईपयोग ककया जाना चावहए क्योंकक आन्हें पुन: ईत्पन्न
नहीं ककया जा सकता।

वचि: खवनजों का िगीकरण


 खवनज ऐसे भौवतक पदाथथ हैं जो खान से खोदकर वनकाले जाते हैं। यह वनवश्चत रासायवनक एिं
भौवतक गुणधमों के साथ काबथवनक या ऄकाबथवनक गुणधमों से युग प्राकृ वतक पदाथथ होते है वजनका
अर्तथक वनष्कषथण ककया जा सकता है। धावत्िक खवनजों को लौह एिं ऄलौह धावत्िक श्रेणी में भी
बााँटा गया है। जैसे - िे सभी प्रकार के खवनज, वजनमें लौह ऄंश समावहत होता है िे लौह धावत्िक
होते हैं और वजनमें लौह ऄंश नहीं होता है, िे ऄलौह धावत्िक खवनज श्रेणी में अते है:

2.1 धावत्िक खवनज

2.1.1 लौह खवनज

 लौह ऄयस्क: लौह ऄयस्क चट्टानें एिं खवनज हैं वजनसे धावत्िक लोहे का अर्तथक वनष्कषथण ककया
जा सकता है। यह मैंगनीज तथा क्रोमाआट अकद जैसे लौह खवनज धातु अधाररत ईद्योगों के विकास
के वलए एक सुदढ़ृ अधार प्रदान करता हैं। विश्व के कु ल संवचत लौह भंडार का दो-वतहाइ USA,
CIS, ब्रािील, चीन, फ्ांस, UK, भारत अकद देशों में संवचत है। मुख्य ईत्पादक क्षेि है:

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o यूक्रेन - यह यूरोप का महत्त्िपूणथ लौह ईत्पादक क्षेि है। यहााँ का सबसे बड़ा ईत्पादक क्षेि
कक्रिायरॉग है।
o USA - आस देश के महत्त्िपूणथ ईत्पादक क्षेि है - सुपीररयर झील क्षेि, ऄप्लेवसयन/ऄल्बामा
क्षेि, पवश्चमी क्षेि में ऄिवस्थत ईटाह, नेिादा, कै वलफ़ोर्तनया अकद तथा मेसाबी श्रेणी।
o UK - ईिरी लंकाशायर, नॉदथम्बरलैंड, बर्ममघम अकद।
o फ्ांस - लॉरे न पठार, नारमेंडी, वपरानीज श्रेणी अकद।
o जमथनी - सार एिं िेस्टफे वलया क्षेि।
o भारत - ओवडशा (मयुरभंज, क्योंझर), छिीसगढ़ (बैलाडीला, डल्ली रजहारा), कनाथटक
(वचकमंगलूर, कु द्रेमुख)

लोहे के प्रकार:
 मैग्नट े ाआट आसमें सिोिम प्रकार का ऄयस्क है। आसमें िाष्प की मािा बहुत कम होती है। आसमें लोहे
का ऄंश 72 प्रवतशत तक पाया जाता है।
 हैमटे ाआट में लगभग 70 प्रवतशत लोहे का ऄंश पाया जाता है। यह सबसे ऄच्छी गुणििा िाला लोहा
होता है।
 वलमोनाआट में शुि लौहांश लगभग 60 प्रवतशत तक होता है। यह भूरे रं ग का होता है।
 वसडेराआट वनम्न कोरट का लौहा है। आसमें लोहांश 30 से 40 प्रवतशत तक पाया जाता है। यह लोहे
और काबथन का वमश्रण होता है।

 मैंगनीज: आसका ईपयोग लौह, स्टील, रासायवनक एिं कांच ईद्योग में ककया जाता है। आसके मुख्य
ऄयस्क साआलोमैलीन, पाआरोलुसाआट अकद हैं। मैंगनीज वनक्षेप लगभग सभी भूगर्तभक संरचनाओं में
पाया जाता है। मुख्य ईत्पादक क्षेि:
o यूक्रेन - वनकोपोल क्षेि।
o CIS - यूराल क्षेि।
o चीन - ककयांग्सी, हूनान।
o ऑस्ट्रेवलया - याकथ प्रायद्वीप
 दवक्षणी ऄफ्ीका - पोस्ट मैस्बगथ, क्रुग्स ड्राप
 भारत - ओवड़सा, महाराष्ट्र, कनाथटक अकद
 वनककल: प्रमुख ईत्पादन क्षेि:
o कनाडा - महत्त्िपूणथ क्षेि सडबरी है।
o CIS - कोला प्रायद्वीप, यूराल क्षेि।
o ऑस्ट्रेवलया - कालगूली एिं कु लगाडी।
o भारत - ओवडशा (कटक, मयूरभंज)।

2.1.2. ऄलौह खवनज

 तााँबा: वबजली की मोटरें , ट्रांसफामथर तथा जनरे टसथ अकद बनाने तथा विद्युत ईद्योग के वलए तााँबा
एक ऄपररहायथ धातु है। अभूषणों को सुदढ़ृ ता प्रदान करने के वलए आसे स्िणथ के साथ भी वमलाया
जाता है। मुख्य ईत्पादक क्षेि:
o USA - एररिोना, ईटाह, मोंटाना।
o कनाडा - सडबरी, वललन-ललोन प्रमुख खाने हैं।
o वचली - एंडीज पिथत पर वस्थत चुक्कीकमाटा विश्व की सबसे बड़ी खान है।
o भारत - झारखंड (घाटवशला), राजस्थान (खेतड़ी, दरीबा), मध्यप्रदेश।

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 बॉक्साआट: यह एल्युवमवनयम का ऄयस्क है। बॉक्साआट मुख्य रूप से ईष्णकरटबंधीय क्षेिों में पाया
जाता हैं। एल्युवमवनयम एक हल्की धातु होती है, आसको ऄन्य धातुओं में वमलाकर कठोर वमश्र
धातुओं का वनमाथण ककया जाता है। मुख्य ईत्पादक क्षेि है:
o ऑस्ट्रेवलया - क्वीन्सलैंड के िीपा क्षेि, न्यू-साईथ िेल्स।

o िमैका - सेंट मेरी प्रमुख क्षेि।

o CIS - यूराल क्षेि।

o सूरीनाम, फ्ांस, हंगरी अकद।


 सीसा-िस्ता: गैलेना सीसे का महत्त्िपूणथ ऄयस्क है। यह ऄिसादी चट्टानों की वशरा प्रस्तरों में पाया
जाता है। सामान्यत: सीसा-िस्ता एक ही साथ पाये जाते है। आसीवलए आन्हें ‘जुड़िााँ’ खवनज कहा
जाता है। मुख्य ईत्पादन क्षेि:
o ऑस्ट्रेवलया - ब्रोकन श्रेणी एिं आसा पिथत।
o कनाडा - सुलीिन, वललन-ललोन क्षेि।

o मैवक्सको - वचहुिा हुअ, िैरली।

o भारत - राजस्थान (जािर खान), अंद्र प्रदेश (ऄवग्न गुंडाला), ओवडशा।


 सोना: सामान्यत: सोना शुि रूप में पाया जाता है। यह प्लेसर वनक्षेप एिं चट्टानों की नशों में
पाया जाता है। मुख्य ईत्पादन क्षेि:
o दवक्षणी ऄफ्ीका - यह विश्व का सबसे बड़ा सोना ईत्पादक देश है। यह रैं ड पहाड़ी (विटिाटसथ

रैं ड), ककम्बरले।

o CIS - लीना नदी, यूराल अकद।

o ऑस्ट्रेवलया - कालगूली एिं कु लगाडी, माईं ट मॉगथन, विक्टोररया अकद।

2.2. ऄधावत्िक खवनज

ऄधावत्िक खवनज या तो काबथवनक ईत्पवि के होते हैं जैसे कक जीिाश्म ईंधन, वजन्हें खवनज ईंधन के
नाम से जानते हैं या िे पृथ्िी में दबे प्राणी एिं पादप जीिों से प्राप्त होते हैं जैसे कक कोयला और
पेट्रोवलयम अकद। ऄन्य प्रकार के ऄधावत्िक खवनज ऄकाबथवनक ईत्पवि के होते हैं जैसे ऄभ्रक, चूना-

पत्थर, ग्रेफाआट अकद।


 ऄभ्रक: ऄभ्रक का ईपयोग मुख्यतः विद्युत एिं आलेक्ट्रोवनक्स ईद्योगों में ककया जाता है। आसे पतली
चादरों में विघरटत ककया जा सकता है जो काफी सख्त और सुनम्य होती है। मुख्य ईत्पादन क्षेि:
o ब्रािील - सांता लूवसया।

o दवक्षणी ऄफ्ीका - मोरोगारो।

o भारत - झारखंड (वगररडीह, कोडरमा), अंध्र प्रदेश (नेल्लोर), राजस्थान (भीलिाडा,


ऄजमेर)।
 कोयला: कोयला ईंधन का प्रमुख स्रोत है। यह ऄिसादी चट्टानों में पाया जाता है। आसका वनमाथण
घनी िनस्पवत के ऄनेक िषो तक धरातल के नीचे दब जाने तथा ईसके रूप पररिर्ततत होने से
होता है, दृष्टि है कक आस प्रकक्रया को काबथनीकरण कहा जाता है। मुख्य ईत्पादन क्षेि:

o चीन - शांसी क्षेि, शातुंग, हैनान अकद क्षेि।

o USA - पेवन्सल्िेवनया, ऄप्लेवसयन, CIS (डोनबास, कु जनेत्स्क, कारागांडा, मास्को-तुला

क्षेि, यूराल क्षेि अकद)

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o वब्रटेन - स्कॉटलैंड, याकथ शायर, वमडलैंड, लंकाशायर. िेल्स अकद।
o फ्ांस - सार क्षेि।
o जमथनी - रुर क्षेि, सैक्सोनी अकद क्षेि।

o पोलैंड - साआलेवशया क्षेि।


o दवक्षणी ऄफ्ीका - ट्रांसिाल, नेटाल अकद।
o ऑस्ट्रेवलया - न्यू-साईथ िेल्स, लट्रोब घाटी।

काबथन की मािा के अधार पर कोयले को वनम्नवलवखत चार भागों मे बांटा गया हैं -
 एन्रेसाआट (90%), यह ईच्च कोरट का कोयला है।
 वबटु वमनस (70-90%)
 वलग्नाआट (40-70%)
 पीट (30% से कम)

 पट्रोवलयम: पेट्रोवलयम ऄिसादी शैलों से प्राप्त ककया जाता है, आसे अग्नेय तथा कायान्तररत शैलों से
नहीं प्राप्त ककया जा सकता। िस्तुतः जीिों, िनस्पवतयों के उपर वनक्षेपण कक्रया तथा अंतररक ताप
एिं दाब के फलस्िरूप लाखों िषों में खवजन तेल का वनमाथण होता है। मुख्य ईत्पादक क्षेि:

o USA - ऄप्लेशीयन क्षेि (पेवन्सल्िेवनया), टेक्सास-ओकलाहोमा का अंतररक एिं तटीय क्षेि,


कै वलफोर्तनया (सन-िोिेककन घाटी)।
o कनाडा - ओंटोररयो एिं ऄल्बटाथ।

o िेनज
े ए
ु ला - माराकाआबो तथा ओररवनको बेवसन प्रमुख क्षेि है।
o चीन - कान्सू, िेचिान अकद।
o आं डोनेवशया - सुमािा, बोर्तनयो।
o म्यांमार - आरािदी नदी बेवसन।
o CIS - िोल्गा-यूराल क्षेि, क्रीवमया।

o आराक - ककरकु क, मोसुल, रुमावलया, बसरा।


o इरान - ऄबादान, मवस्जद-ए-सुलम
े ान अकद।
o सउदी ऄरब - ऄबककक, घािर।

पेट्रोवलयम वनयाथतक राष्ट्र संगठन (OPEC)


 आस संगठन में विश्व के बड़े तेल वनयाथतक देश शावमल है। 1960 में आसकी स्थापना बगदाद (आराक)
में की गयी थी, वजसका मुख्यालय विएना में वस्थत है।

 आस संगठन का ईद्देश्य सदस्य देशों की पेट्रोवलयम नीवतयों में समन्िय स्थावपत करना, अतंररक
तेल मूल्यों के वस्थरीकरण करना,अपूर्तत में ईतार-चढ़ाि को समाप्त करना तथा ईन्हें तकनीकी एिं
अर्तथक सहायता प्रदान करना है।
 आसके सदस्य देश है: ऄल्जीररया, ऄंगोला, आक्वेडोर, इरान, आराक, कु िैत, लीवबया, नाआजीररया,
गबोन, वगनी, क़तर, सउदी ऄरब, संयग
ु ऄरब ऄमीरात और िेनज
े ए
ु ला।

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 प्राकृ वतक गैस: यह स्ितंि रूप में या पट्रोवलयम के साथ पाइ जाती है। प्राकृ वतक गैस का ईपयोग
उजाथ ईत्पादन और ईिथरकों के वनमाथण में ककया जाता है। विश्व की कु ल उजाथ का लगभग 20%
प्राकृ वतक गैस से ही प्राप्त ककया जाता है। विश्व के मुख्य ईत्पादन क्षेि है:
o CIS - साआबेररया वस्थत ईरें गोइ क्षेि से सबसे ऄवधक ईत्पादन होता है।

o USA - टेक्सास, लुवसअना, कै वलफोर्तनया अकद।

o सउदी ऄरब, इरान, आराक, कु िैत, भारत अकद।


 यूरेवनयम: विश्व में आसके मुख्य ईत्पादन क्षेि वनम्नवलवखत है:
o कनाडा - यूरेवनयम वसटी, ग्रेट बीिर झील अकद।

o ऑस्ट्रेवलया - पोटथ डार्तिन, मेरी कै थरीन।


o ऄफ्ीका - कटंगा क्षेि।
o भारत - जादुगोडा (झारखंड)।
o किाककस्तान, USA, रूस अकद।

3. सं साधनों का खनन एिं खनन की विवधयााँ


 ईपवस्थवत की ऄिस्था एिं ऄयस्क की प्रिृवि के अधार पर खनन के दो प्रकार हैं: धरातलीय एिं
भूवमगत खनन। धरातलीय खनन को वििृत खनन भी कहा जाता है। यह खवनजों के खनन का
सबसे सस्ता तरीका है, क्योंकक आस विवध में सुरक्षात्मक पूिोपायों एिं ईपकरणों पर ऄवतररग खचथ
ऄपेक्षाकृ त कम होता है एिं ईत्पादन शीघ्र ि ऄवधक होता है। जब ऄयस्क धरातल के नीचे गहराइ
में होता है तब भूवमगत खनन विवध का प्रयोग ककया जाता है। आस विवध में लंबित गहराइ िाली
भूवमगत गैलररयां खवनजों तक पहुाँचने के वलए फै ली होती हैं। आन मागों से होकर खवनजों का
वनष्कषथण एिं पररिहन धरातल तक ककया जाता है।
 खदान में कायथ करने िाले श्रवमकों तथा वनकाले जाने िाले खवनजों के सुरवक्षत और प्रभािी
अिागमन हेतु आसमें विशेष प्रकार की वललट, माल गावड़यााँ तथा िायु संचार प्रणाली की

अिश्यकता होती है। खनन का यह तरीका जोवखम भरा होता है क्योंकक जहरीले गैसों, अग एिं
बाढ़ के कारण कइ बार दुघथटनाएं होने की संभािना रहती है।
 विकवसत ऄथथव्यिस्था िाले देश ईत्पादन की खनन, प्रसंस्करण एिं शोधन कायथ से पीछे हट रहे हैं
क्योंकक आसमें श्रवमक लागत ऄवधक होती है। जबकक विकासशील देश ऄपने विशाल श्रवमक शवग
के बल के कारण खनन कायथ को महत्ि दे रहे हैं। ऄफ्ीका के कइ देशों, दवक्षण ऄमेररका के कु छ देशों

एिं एवशया में अय के साधनों का 50 प्रवतशत तक खनन कायथ से ही प्राप्त ककया जाता है।

4. सं साधनों की ईपयोवगता
 ऄपनी अिश्यकताओं की पूर्तत के वलए मानि प्रारं भ से ही संसाधनों का ईपयोग करता रहा है। यह
प्रकक्रया ‘संसाधन ईपयोग’ कहलाती है। आस प्रकार संसाधन मनुष्य द्वारा वनर्तमत ककए जाते हैं। ककतु
ईसे आन वनवष्क्रय ईपादानों को मूल्यिान संसाधनों में पररिर्ततत करने के वलए संस्कृ वत की सहायता
की अिश्यकता होती है। संस्कृ वत के ऄंतगथत समस्त ईपकरण एिं मशीनें, पररिहन एिं संचार के

साधन साथ ही प्रभािी प्रबंधन, सामूवहक सहयोग, मनोरं जन, बौविक कायथ, वशक्षा, प्रवशक्षण,
ईन्नत स्िास्थ्य एिं वशक्षा शावमल हैं। संस्कृ वत के वबना मनुष्य की कायथ एिं ईत्पादन की क्षमता
सीवमत है।

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 अधुवनक युग में, विज्ञान एिं तकनीकी के ईपयोग ने ईत्पादन हेतु संसाधनों के प्रभािी ईपयोग की

मनुष्य की क्षमता एिं योग्यता बढ़ा दी है। ईदाहरण के वलए, संयुग राज्य ऄमेररका ि पवश्चम

यूरोपीय देशों ईन्नत तकनीकी द्वारा प्राकृ वतक सम्पदा के प्रभािी ईपयोग से ‘ईच्च विकवसत

ऄथथव्यिस्थाए’ बन गयी है। दूसरी ओर, ऄफ्ीका, एवशया ि लैरटन ऄमेररका के कइ देशों में प्रचुर
प्राकृ वतक संसाधनों के होते हुए भी विकास के स्तरों में काफी पीछे हैं क्योंकक ये देश अधुवनक
तकनीकी के मामले में काफी पीछे हैं।

5. सं साधनों का क्षरण
 प्राकृ वतक संसाधन ककसी भी देश के सामावजक-अर्तथक विकास में साथथक भूवमका वनभाते है। ककसी
भी देश की विशाल खवनज सम्पदा ईस देश को औद्योवगक रूप से विकवसत होने में समथथ बनाती
है। हाल के दशकों में न के िल तेजी से बढ़ती जनसंख्या को भोजन ईपलब्ध कराने बवल्क विशाल
जनसंख्या के अर्तथक कल्याणों को गवत प्रदान करने की आच्छा ने संसाधनों के ईपयोग को
चमत्काररक रूप से बढ़ा कदया है।
 संसाधनों के ऄधारणीय ईपयोग के कारण आसने पयाथिरणीय एिं पररवस्थवतकीय ऄसंतल
ु न को
बढ़ाया है। संसाधनों का ईपयोग कु ल सामावजक लाभों को ऄवधक करने के स्थान पर ईत्पादन एिं
लाभों को ऄवधकतम करने की प्ररे णा से ककया गया। मृदा ऄपरदन, िन नाश, ऄवत चराइ तथा
िनों के ऄसािधानीपूणथ प्रबंधन के कारण मृदा जैसे मूल्यिान संसाधन का ह्रास हो रहा है।
 तीव्र गवत से बढ़ती जनसंख्या के दबाि के कारण ईपलब्ध जल संसाधनों का शोषण हो रहा है वजस
कारण ये तेजी से कम हो रहे हैं। तकनीकी कमी के कारण भी संसाधनों का ऄिैज्ञावनक तरीके से
दोहन ककया जा रहा है।

उजाथ संकट
 उजाथ संकट एक अपूर्तत संकट है। ितथमान में उजाथ बढ़ती जनसंख्या तथा तेजी से विकवसत होती
ऄथथव्यिस्था की मांग को पूरा नहीं कर पा रही है। पररणामस्िरूप, विकास पर प्रवतकू ल प्रभाि पड़ा
है।
 उजाथ ईत्पाकदत स्थापनाओं के कु प्रबंधन और वनम्न कायथक्षमता भी आसके वलए विम्मेदार है।
 ऄत: संसाधनों की सीवमत प्रकृ वत को ध्यान में रखते हुए, प्रभािपूणथ तरीके से गैर-परम्परागत ईजाथ
स्रोतों का विकास ककया जाये साथ ही आन्हें संरवक्षत करने के वलए कदम ईठाये जाने चावहए।
 ऄत: यकद उजाथ संकट से बचना है तो िैवश्वक स्तर पर एक समग्र कायथिाही ऄपनाने की अिश्यकता
है।

6. सं साधनों का सं र क्षण
 संसाधनों के वििेकपूणथ ईपयोग के वलए वनयोजन एक सिथमान्य रणनीवत है। संसाधनो के संरक्षण
से तात्पयथ ईनके वििेकपूणथ ि वनयोवजत ईपयोग के साथ ही ईनके ऄपव्यय, दुरुपयोग ि ऄवत-
ईपयोग से बचाि करते हुए प्राकृ वतक संसाधनों का पुनः ईपयोग करना है।
 अज संसाधनों का कम होना चचता का सबसे बड़ा विषय है। ईत्पादन की ऄवधकतम सीमा तक
पहुंचने के क्रम में हम ईन सभी संसाधनों का प्रयोग कर रहे हैं, जो भािी पीढ़ी की संपवि हैं। सतत

पोषणीय विकास के विचार के ऄनुसार संसाधन विरासत हैं, जो कक मानि समाज की एक पीढ़ी से
दूसरी पीढ़ी में हस्तांतररत होते हैं। निीकरण के ऄयोग्य संसाधन कु छ समय बाद समाप्त हो सकते
हैं, आसवलए जनसंख्या िृवि ि संसाधनों के ईपयोग के मध्य एक संतुलन बनाना अिश्यक है।

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 िास्ति में आस प्रकार का संतल
ु न समय ि स्थान के संदभथ में वभन्न होता है। वनःसंदह
े , हमें ककसी
क्षेि या देश में जनसंख्या ि संसाधनों के मध्य स्थैवतक की जगह गवतशील संतल
ु न कायम करना
होगा। आन दोनों में से ककसी एक में ऄसंतुलन हमारे अर्तथक, सामावजक और सांस्कृ वतक विकास की
वनरं तरता को भंग कर सकता है। आसवलए, संसाधनों का वनयोवजत ढंग से ईपयोग ककया जाना
चावहए ताकक ऄसंतुलन न ईत्पन्न हो सके । सतत पोषणीय विकास की चुनौती के वलए अर्तथक
विकास की चाह का पयाथिरणीय मुद्दों से समन्िय अिश्यक है।
 संसाधन ईपयोग के परं परागत तरीकों के पररणामस्िरूप बड़ी मािा में ऄपवशष्ट के साथ-साथ
ऄन्य पयाथिरणीय समस्याएाँ भी पैदा होती हैं। ऄतएि, सतत पोषणीय विकास भािी पीकढ़यों के
वलए संसाधनों के संरक्षण का अह्िान करता है। संसाधनों का संरक्षण ऄत्यंत अिश्यक है। आसके
वलए उजाथ के िैकवल्पक स्रोतों, जैसे - सौर उजाथ, पिन, भूतापीय अकद उजाथ के ऄसमाप्य स्रोतों
का विकास करना चावहए।
 धावत्िक खवनजों के मामले में, धातुओं का पुनचथक्ररण ककया जाना चावहए। तााँबा, सीसा एिं जस्ते
जैसी धातुओं के स्क्रैप का प्रयोग विशेष रूप से साथथक है। ऄत्यल्प धातुओं के वलए प्रवतस्थापनों का
ईपयोग भी ईनकी खपत को घटा सकता है। सामररक और ऄत्यल्प खवनजों के वनयाथत को भी
घटाना चावहए ताकक ितथमान अरवक्षत भंडारों का लंबे समय तक प्रयोग ककया जा सके ।

7. सं र क्षण की विवधयााँ
संसाधनों के संरक्षण से तात्पयथ ईनके वििेकपूणथ ि वनयोवजत ईपयोग के साथ ही ईनके ऄपव्यय,
दुरूपयोग तथा ऄवत-ईपयोग से बचाि करते हुए प्राकृ वतक संसाधनों का पुनः ईपयोग करना है।
 यह अिश्यक है कक लोगों के मध्य संसाधनों के परररक्षण ि संरक्षण के बारे में जागरूकता ईत्पन्न
की जाए। प्राकृ वतक संसाधनों के बड़े पैमाने पर विनाश के घातक पररणामों के बारे में लोगों को
जागरूक बनाना चावहए।
 ऄपररपक्व तथा युिा िृक्षों को काटने से रोकना तथा लोगों में िृक्षों के रोपण तथा पोषण के बारे में
जागरूकता ईत्पन्न करना, िनों के संरक्षण में सहायक हो सकते हैं।
 पहाड़ी क्षेिों में सीढ़ीदार कृ वष, समोच्च रे खाओं के ऄनुरूप जुताइ, झूचमग कृ वष पर वनयंिाण,
ऄवतचराइ तथा ऄिनावलकाओं को रोकना, मृदा संरक्षण की कु छ महत्िपूणथ विवधयााँ हैं।
 िषाथ जल को रोकने के वलए बााँधों का वनमाथण, फव्िारा, वड्रप या चस्प्रकल चसचाइ तकनीकों का
ईपयोग, औद्योवगक या घरे लू ईपयोग हेतु जल का पुनचथक्रण ऄमूल्य जल संसाधन के संरक्षण में
सहायता करें गे।
 खवनज ऄनिीकरणीय संसाधन है, आसवलए कु शल ईपयोग, शोधन की ज्यादा ऄच्छी तकनीकों का
विकास, खवनजों का पुनचथक्रण तथा स्थानापन्नों के ईपयोग द्वारा आनका संरक्षण ककया जाना
चावहए।
 उजाथ के पारम्पररक स्त्रोतों को बचाने के वलए, उजाथ के गैर-परम्परागत स्त्रोतों जैस-े सौर, पिन या
जल का विकास करना।

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भूगोल
37. द्वितीयक क्रियाकलाप: द्विश्व ईद्योग- कारक एिं िगीकरण

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द्विषय सूची
1. द्वितीयक क्रियाकलाप: एक पररचय _________________________________________________________________ 3

1.1. ईद्योगों का िगीकरण (Classification of Industries) ______________________________________________ 4


1.1.1. अकार के अधार पर ईद्योगों का िगीकरण ____________________________________________________ 5
1.1.2. कच्चे माल पर अधाररत ईद्योगों का िगीकरण __________________________________________________ 8
1.1.3 ईत्पादों के अधार पर िगीकरण ____________________________________________________________ 9
1.1.4 स्िाद्वमत्ि के अधार पर िगीकरण __________________________________________________________ 10
1.1.5 प्रमुख कायय के अधार पर िगीकरण ________________________________________________________ 10
1.1.6 ज्ञान अधाररत ईद्योग __________________________________________________________________ 10
1.1.7 बड़े पैमाने के अधुद्वनक ईद्योगों की द्विशेषताएं _________________________________________________ 11
1.1.8 ईद्योग क्षेत्र का महत्ि __________________________________________________________________ 13
1.1.9 ईद्योगों की ऄिद्वस्थद्वत (The Location of Industries) _________________________________________ 13
1.1.10 स्िच्छंद ईद्योग (Footloose Industry) ___________________________________________________ 19
1.1.11 बड़े पैमाने के पारं पररक औद्योद्वगक प्रदेश ____________________________________________________ 19

1.2 ईच्च प्रौद्योद्वगकी ईद्योग (Hi-tech Industries) ____________________________________________________ 20


1.2.1 ईच्च प्रौद्योद्वगकी ईद्योगों के ईदाहरण ________________________________________________________ 20
1.2.2 ऄल्पजीिी ईत्पाद (Products with Short Life) ______________________________________________ 21
1.2.3 ईच्च प्रौद्योद्वगकी ईद्योगों का द्वितरण ________________________________________________________ 21
1. द्वितीयक क्रियाकलाप: एक पररचय
 प्राथद्वमक क्रियाकलापों से प्राप्त ईत्पादों से नइ, ऄद्वधक ईपयोगी और मूल्यिान िस्तुओं के द्वनमायण
की क्रिया को द्वितीयक क्रियाकलाप कहते हैं। कपास का सीद्वमत ईपयोग है परन्तु तंतु में पररितयन
के बाद यह और ऄद्वधक ईपयोगी और मूल्यिान हो जाता है। द्वितीयक क्रियाकलाप द्विद्वनमायण,
प्रसंस्करण और द्वनमायण (ऄिसंरचना ) ईद्योग से संबंद्वधत है। ईद्योगों का िगीकरण अकार,
ईत्पादों का स्िरूप, कच्चे माल का स्िरूप और स्िाद्वमत्ि के अधार पर क्रकया जाता है। ईद्योग सियत्र
द्विकद्वसत नहीं होते हैं। ईद्योगों के स्थानीयकरण के प्रमुख कारक कच्चा माल, उजाय के स्रोत,
पररिहन, जल-अपूर्तत, श्रद्वमक िेतन एिं ईपलब्धता, प्रबंधन और पूज
ं ी। सरकारी नीद्वतयां,
पयायिरण, औद्योद्वगक जड़त्ि तथा मानिीय कारक भी ईद्योगों के स्थानीयकरण को प्रभाद्वित करते
हैं।
 द्वितीयक क्रियाकलाप हमारे ऄद्वस्तत्ि के द्वलए ऄत्यन्त महत्िपूणय बन गए हैं। ये क्रियाकलाप
ऄथयव्यिस्था के द्वलए एक आंजन की तरह कायय करते हैं।ये द्वनधयनता और बेरोजगारी को दूर करने में
सहायक हैं, तथा पारं पररक समाज को अधुद्वनक समाज में बदलने में आनकी प्रमुख भूद्वमका होती है।
अधुद्वनक युग में आनका महत्ि आतना बढ़ गया है क्रक क्रकसी देश की अर्तथक शद्वि को द्वितीयक
क्रियाकलापों िारा द्वनर्तमत िस्तुओं और ईत्पादों के संदभय में मापा जाता है। संसार के द्विकद्वसत
देशों की ऄथयव्यिस्था में तृतीयक क्रियाकलापों के बाद आनका ही सबसे बड़ा योगदान है।
द्वितीयक क्रियाकलाप क्या हैं? (What are Secondary Activities?)
 प्राथद्वमक क्रियाकलापों; जैस-े कृ द्वष, िाद्वनकी, मछली पकड़ना (मत्स्य ग्रहण) और खनन से प्राप्त
प्राथद्वमक ईत्पादों का प्रसंस्करण (Processing) नइ िस्तुओं या ईत्पादों की रचना और द्वनमायण
की क्रिया को ही द्वितीयक क्रियाकलाप कहते हैं।
 द्वितीयक क्रियाकलाप पूणय रूप से प्राथद्वमक क्रियाकलापों पर द्वनभयर करता है ऄथायत द्वितीयक
क्रियाकलाप में ईत्पादन करने हेतु प्राथद्वमक क्रियाकलाप से संसाधन जुटाने होते हैं। ईदाहरण के
द्वलए यक्रद हमें चीनी का ईत्पादन करना है तो आसके द्वलए गन्ना बहुत जरूरी है तथा हम जानते हैं
क्रक गन्ने का ईत्पादन प्राथद्वमक क्षेत्र के ऄन्तगयत अता है। द्वितीयक क्रियाकलाप में संलग्न लोगों को
ब्लू कॉलर श्रद्वमक(Blue-Collar Worker) कहते हैं।
ईद्योग का ऄथय (Meaning of Industry)
 ईद्योग का ऄथय ऐसी ईच्च अर्तथक क्रियाओं से है, द्वजनका सम्बन्ध िस्तुओं एिं सेिाओं के ईत्पादन
और ईनके संिर्द्यन से होता है I अजकल लोग सामान्य भाषा में क्रिल्म ईद्योग, मत्स्य ईद्योग,
आस्पात ईद्योग, पययटन ईद्योग अक्रद शब्दों का प्रयोग करते हैं। लेक्रकन आनमें से प्रत्येक शब्द-युग्म
एक द्वभन्न प्रकार की अर्तथक क्रिया को प्रकट करता है। द्वनमायण से जुड़ी क्रियाओं के द्वलए ‘ईद्योग’
शब्द का प्रयोग क्रकया जाता है।
द्विद्वनमायण का ऄथय (Meaning of Manufacturing)
 अजकल द्विद्वनमायण शब्द का प्रयोग मशीनों के िारा द्वनर्तमत िस्तुओं को संदभय में क्रकया जाता है।
आसे कच्चे माल को ऄद्वधक मूल्य के तैयार माल में बदलने की क्रिया के रूप में समझा जा सकता है।
ईदाहरणः
(i) लकड़ी से लुग्दी बनाइ जाती है, लुग्दी से कागज और कागज मुद्रण ईद्योग का अधार है।
(ii) लौह ऄयस्क से लोहे की चादरें और छड़ें, लोहे की चादरों से कार के द्विद्वभन्न पुजे और क्रिर पूरी
कार को तैयार क्रकया जाता है ।

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(iii) कपास प्राथद्वमक क्रियाकलाप (कृ द्वष) का ईत्पाद है। मानि के ईपयोग लायक बनाने के द्वलए

कपास से पहले रूइ, रूइ से धागा, धागों से कपड़ा अक्रद तैयार क्रकए जाते हैं।
ईपयुयि सभी क्रियाएं ईद्योग हैं। ध्यान देने योग्य महत्िपूणय बात यह है क्रक कच्चे माल का द्वजतना ऄद्वधक
पररष्कृ त क्रकया जाता है, िह ईतना ही ऄद्वधक मूल्यिान बन जाता है, क्योंक्रक कच्चे माल से बनाए गए
ईत्पादन का मूल्य ऄद्वधक होता है।

द्विद्वनमायण शब्द का शाद्वब्दक ऄथय है ‘हाथ से बनाना’ यद्यद्वप आसमें यंत्रों िारा बनाया गया सामान भी
सद्वम्मद्वलत क्रकया जाता है। आसमें कच्चे माल को दूरस्थ बाजार में बेचने के द्वलए ऄपेक्षाकृ त ऄद्वधक मूल्य के
तैयार माल में पररिर्ततत क्रकया जाता है। जबक्रक ईद्योग एक द्विद्वनमायण आकाइ होती है द्वजसकी भौगोद्वलक
द्वस्थद्वत ऄलग होती है एिं प्रबंध तंत्र के ऄंतगतय लेखा-बही एिं ररकॉडय का रख-रखाि क्रकया जाता है।
ईद्योग एक व्यापक नाम है और आसे द्विद्वनमायण के पयाययिाची के रूप में देखा जाता है। जब कोइ आस्पात
ईद्योग और रासायद्वनक ईद्योग शब्दािली ईपयोग करता है तब ईसके मद्वस्तष्क में कारखाने एिं
कारखानों में होने िाली द्विद्वभन्न प्रक्रियाओं का द्विचार ईत्पन्न होता है। लेक्रकन कइ गौण क्रियाएँ है जो
कारखानों में संपन्न नहीं होती जैसे क्रक पययटन ईद्योग या मनोरं जन ईद्योग आत्याक्रद।

1.1. ईद्योगों का िगीकरण (Classification of Industries)

ईद्योगों का िगीकरण कइ प्रकार से क्रकया जाता है।


 अकार, पूज
ँ ी द्वनिेश और श्रमशद्वि के अधार पर ईद्योगों को िृहत, मध्यम, लघु और कु टीर
ईद्योगों में िगीकृ त क्रकया जाता है।
 स्िाद्वमत्ि के अधार पर, ईद्योगों को साियजद्वनक, द्वनजी, द्वमद्वश्रत और सहकारी क्षेत्र में द्विभि
क्रकया गया हैं। साियजद्वनक क्षेत्र के ईद्यम सरकार िारा द्वनयंद्वत्रत कम्पद्वनयाँ या द्वनगम हैं द्वजन्हें
सरकार िारा द्वित्त क्रदया जाता हैं। साियजाद्वनक क्षेत्र में सामान्यतः सामररक और राष्ट्रीय महत्ि के
ईद्योग-धंधे सद्वम्मद्वलत हैं।
 ईद्योगों का िगीकरण ईनके ईत्पादों के ईपयोग के अधार पर भी क्रकया जाता है जैसे: अधारभूत,

पूंजीगत, मध्यिती और ईपभोिा पदाथय ईद्योग।


 ईद्योगों िारा प्रयोग क्रकए जाने िाले कच्चे माल के अधार पर भी ईनका िगीकरण क्रकया गया है।
आसके ऄनुसार ईद्योग कृ द्वष अधाररत, िन अधाररत, खद्वनज अधाररत और ईद्योग िारा संसाद्वधत
कच्चे माल पर अधाररत हो सकते हैं।
 ईद्योगों का दूसरा प्रचद्वलत िगीकरण द्वनर्तमत ईत्पादों की प्रकृ द्वत पर अधाररत है।
 आस तरह से पहचाने जाने िाले ईद्योगों के अठ िगय हैं:
o धातुकमय ईद्योग
o यांद्वत्रक आं जीद्वनयररग ईद्योग
o रासायन और संबर्द् ईद्योग
o िस्त्र ईद्योग
o खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग
o द्विद्युत् ईत्पादन
o आलेक्रॉद्वनक्स और
o संचार ईद्योग।

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अकार, कच्चे माल, ईत्पाद के स्िरुप तथा स्िाद्वमत्ि के अधार पर ईद्योगों का िगीकरण क्रकया गया है।

पूंजी-द्वनिेश की मात्रा, कामगारों की संख्या तथा ईत्पादन के पररमाण के अधार पर ईद्योगों का अधार

द्वनद्वित क्रकया जाता है।

1.1.1. अकार के अधार पर ईद्योगों का िगीकरण

अकार के अधार पर ईद्योग तीन प्रकार के होते हैं:


1. कु टीर या घरे लू ईद्योग

2. लघु ईद्योग

3. बड़े पैमाने के ईद्योग।

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कु टीर ईद्योग या घरे लू ईद्योग (Cottage Industries or Household Industries)

 भारत में कु टीर ईद्योग द्विशेषतः पररिार के सदस्यों िारा ही संचाद्वलत होते हैं। आसमें सीद्वमत
मात्रा में श्रम और पूज
ं ी की अिश्यकता होती है। कु टीर ईद्योग या घरे लू ईद्योग की द्विशेषताएं
द्वनम्नद्वलद्वखत हैं:
(i) द्वनमायण की सबसे छोटी आकाइयां जहां द्वशल्पी एिं कलाकार कायय करते हैं।

(ii) ईपयोगी िस्तुएं बनाने के द्वलए स्थानीय स्रोतों िारा असानी से प्राप्त सामद्वग्रयों का ईपयोग
क्रकया जाता है ।
(iii) सामान्यतः स्िद्वनर्तमत ईपकरणों का प्रयोग क्रकया जाता है।
(iv) िस्तुएं स्थानीय बाजार में द्वबक जाती हैं या ईत्पादक स्ियं ईपभोग कर लेते हैं।

(v) आन ईद्योगों का ईत्पाद व्यापार में प्रिेश नहीं करता। द्वनिेश बहुत कम तथा ईत्पादन लागत
सामान्यतः कम होती है।
(vi) ईत्पादों के ईदाहरणः आस क्षेत्र में खाद्य ईत्पाद, िस्त्र, चटाइ, द्विद्विध प्रकार के बतयन, ईपकरण,
िनीचर, लकड़ी की मूर्ततयां और ऄन्य सजािटी सामान (कनायटक में महोगनी और लौह काष्ठ की
िस्तुएं तथा सहारनपुर में शीशम की लकड़ी की िस्तुएं), जूत,े चप्पल तथा चमड़े की ऄन्य िस्तुएं

(कोल्हापुर महाराष्ट्र की चप्पलें), द्वमट्टी के बतयन की मूर्ततयां और कलाकृ द्वतयां (जयपुर और अगरा
में संगमरमर की िस्तुएं), सोना, चांदी और कांसे के अभूषण (जयपुर, क्रदल्ली, सूरत अक्रद प्रद्वसर्द्
के न्द्र), बांस और बेंत की िस्तुएं (ऄसम तथा ऄन्य ईत्तर-पूिी राज्यों में बांस की सुन्दर िस्तुएं)।
 कु टीर ईद्योगों में प्रयुि होने िाला ऄद्वधकतर कच्चा माल कृ द्वष क्षेत्र से अता है ऄतः क्रकसानों के
द्वलये ऄद्वतररि अय की व्यिस्था कर यह भारत की कृ द्वष-ऄथयव्यिस्था को बल प्रदान करता है।
 आनमें कम पूज
ं ी लगाकर ऄद्वधक ईत्पादन क्रकया जा सकता है और बड़ी मात्रा में ऄकु शल बेरोज़गारों
को रोज़गार मुहय
ै ा कराया जा सकता है।
 कु टीर ईद्योग अर्तथक गद्वतद्विद्वधयों के द्विकें द्रीकरण के माध्यम से अय और संपद्वत्त तथा क्षेत्रीय
ऄसमानता एिं ऄसंतल
ु न को भी कम करने में सहायक होते हैं। आनकी ईत्पादन प्रक्रिया से
पयायिरण को भी कम नुकसान होता है।
 ये ईद्योग कृ द्वष क्षेत्र में संलग्न ऄद्वतररि काययबल को िास्तद्विक ईत्पादक प्रक्रियाओं से जुड़ने का
ऄिसर देते हैं और कृ द्वष क्षेत्र में ऄनािश्यक दबाि को कम करते हैं।
 ये ईद्योग औपचाररक कौशल से िंद्वचत लोगों की ईद्यमशीलता का द्विकास करने में भी महत्त्िपूणय
भूद्वमका द्वनभाते हैं।
 कु टीर ईद्योग के कु छ ईत्पाद द्विद्वभन्न समुदायों की संस्कृ द्वत और कला से भी जुड़े होते हैं जैसे –
बस्तर का काष्ठ द्वशल्प। ऐसे ईत्पादों को बाज़ार ईपलब्ध करिाना आनकी कला-संस्कृ द्वत के संरक्षण
का महत्त्िपूणय प्रयास कहलाएगा।
लघु ईद्योग की द्विशेषताएं (Small-scale Industry)
लघु ईद्योग की प्रमुख द्विशेषताएं द्वनम्नद्वलद्वखत है:
(i) यह कु टीर ईद्योग से बड़ी आकाइ होती है I
(ii) द्वनमायण स्थल के रूप में घर या घर के बाहर छोटे कारखाने को प्रयुि क्रकया जा सकता है
(iii) कच्चा माल के रूप में स्थानीय स्रोतों से प्राप्त या कारखानों से ऄर्द्यद्वनर्तमत िस्तुएं प्रयोग में
लायी जाती हैं द्वजनसे बड़ी मशीनों के द्वलए पुजे बनाए जाते हैं।
(iv) छोटी मशीनें, कम उजाय चाद्वलत तथा ऄर्द्य कु शल कामगार

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(v) ईदाहरणः भारत, चीन, आं डोनेद्वशया अक्रद देशों में श्रम प्रधान लघु ईद्योगों को बढ़ािा क्रदया जा

रहा है ताक्रक लोगों के रोजगार द्वमल सके । ये द्वखलौने, शद्वि चाद्वलत करघों पर िस्त्र, द्विद्युत
ईपकरण तथा मशीनों के पुजे आत्याक्रद जैसे ईत्पाद बनाते हैं।
(vi) लघु ईद्योग रोजगार-द्वनमायण में मदद करते हैं।

बड़े पैमाने के ईद्योगों की द्विशेषताएं (Large-scale Industries)


बड़े पैमाने के ईद्योगों की द्विशेषताएं द्वनम्नद्वलद्वखत है:
(i) भारी मात्रा में पूज
ँ ी, ऄद्वधक मात्रा में कच्चा माल, और उजाय तथा ऄद्वधक संख्या में कु शल और

द्विद्वशष्ट श्रद्वमकों का ईपयोग, सामान्यतः पररष्कृ त और ईन्नत प्रौद्योद्वगकी, समानुिम ईत्पादन

(Assembly Line Production) भारी मात्रा/संख्या में ईत्पादन।

(ii) आन ईद्योगों में 24 घंटे ईत्पादन होता है।

(iii) ये ईद्योग दूरिती बाजारों तक भी ऄपने माल को बेचते हैं और ईनकी िस्तुएं ऄंतरराष्ट्रीय
बाजार में भी प्रिेश करती हैं।
(iv) ईदाहरणः लोहे और आस्पात के बड़े कारखाने, तेल पररष्करण शालाएं, मोटर िाहन ईद्योग।

(v) पद्विमी यूरोप में औद्योद्वगक िांद्वत के बाद बड़े पैमाने का द्विकास द्विगत 200 िषों में हुअ है।

सू क्ष्म, लघु और मध्यम ईद्यम (MSMEs) क्षे त्र द्वपछले पां च दशको में भारतीय ऄथय व्य िस्था में
एक जीिं त एिं गद्वतशील क्षे त्र के रूप में ईभरा है । आस क्षे त्र ने भारत की ऄथय व्य िस्था को
अर्तथक मं दी के समय मं दी में िसने से बचाया था। कु ल द्वमलाकर यह क्षे त्र दे श की ऄथय व्य िस्था
के द्वलए रीढ़ की हड्डी जै सा रोल द्वनभा रहा है ।
सूक्ष्म, लघु और मध्यम ईद्यम द्विकास द्वबल- 2005 (जो 12 मइ, 2005 को संसद में प्रस्तुत क्रकया गया
था) को राष्ट्रपद्वत िारा स्िीकृ द्वत दे दी गइ है और आस प्रकार यह एक ऄद्वधद्वनयम बन गया था। आस
ऄद्वधद्वनयम को सूक्ष्म, लघु और मध्यम ईद्यम द्विकास ऄद्वधद्वनयम, 2006 के रूप में नाद्वमत क्रकया गया है।

अआये जानते है क्रक आस ऄद्वधद्वनयम के ऄनुसार सूक्ष्म, लघु और मध्यम ईद्यम क्रकन्हें कहा जायेगा?

सूक्ष्म, लघु और मध्यम ईद्यम (MSMEs) द्विकास ऄद्वधद्वनयम -2006 की नइ पररभाषा;

नइ पररभाषा 7 ऄप्रैल,2018 से लागू है। आस पररितयन के बाद ऄब “प्लांट और मशीनरी” में द्वनिेश की

जगह “टनयओिर” के अधार पर MSMEs का िगीकरण क्रकया जायेगा।

सूक्ष्म, लघु और मध्यम ईद्यम की पररभाषा


द्विद्वनमायण क्षेत्र के द्वलए
 सूक्ष्म ईद्योग: िार्तषक टनय ओिर रु. 5 करोड़ से कम

 लघु ईद्योग: िार्तषक टनय ओिर रु. 5 करोड़ से 75 करोड़ के बीच

 मध्यम ईद्योग: िार्तषक टनय ओिर रु. 75 करोड़ से 250 करोड़ के बीच
सेिा क्षेत्र
 सूक्ष्म ईद्योग: िार्तषक टनय ओिर रु. 5 करोड़ से कम

 लघु ईद्योग: िार्तषक टनय ओिर रु. 5 करोड़ से 75 करोड़ के बीच

 मध्यम ईद्योग: िार्तषक टनय ओिर रु. 75 करोड़ से 250 करोड़ के बीच

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1.1.2. कच्चे माल पर अधाररत ईद्योगों का िगीकरण

(Classification of Industries on the Basis of Raw Materials)


मुख्य द्विशेषताएँ :
 कृ द्वष ईत्पाद का कच्चे माल के रूप में प्रयोग
 कच्चे माल के रूप में खद्वनज का ईपयोग
 िनों से प्राप्त िस्तुओं का कच्चे माल के रूप में प्रयोग
 ऄन्य ईद्योगों के द्वलए तैयार माल का ईपयोग कच्चे माल के रूप में
ईत्पादन के द्वलए प्रयुि कच्चे माल के अधार पर ईद्योग पांच प्रकार के होते हैं:
(1) कृ द्वष अधाररत
(2) खद्वनज अधाररत
(3) रसायन अधाररत
(4) िन्य ईत्पाद अधाररत
(5) जीि-जन्तु ईत्पाद अधाररत।
(1) कृ द्वष ईत्पाद अधाररत ईद्योगः
आस िगय के ईद्योग कृ द्वष क्षेत्र िारा ईत्पाक्रदत कच्चे माल पर द्वनभयर होते हैं। आनके ईत्पादों में सामान्यतः
ईपभोग क्रकये जाने िाले सामान शाद्वमल हैं। द्विद्वभन्न कृ द्वष अधाररत ईद्योगों का सन्दभय द्वनम्नित है:
 सूती िस्त्र ईद्योग: कु ल कपड़ा ईत्पादन में सूती कपड़े का योगदान लगभग 70 प्रद्वतशत है। मुंबइ में
पारसी ईद्यद्वमयों िारा सियप्रथम सूती कपड़ा द्वमल स्थाद्वपत की गयी थी।
 रे शमी िस्त्र ईद्योग: रे शम कीट पालन अधाररत गहन श्रम िाला ईद्योग है। यह भी कृ द्वष अधाररत
ईद्योग है।
 जूट ईद्योग: जूट ईद्योग का राष्ट्रीय ऄथयव्यिस्था में एक महत्िपूणय स्थान है। पूिोत्तर क्षेत्र, द्विशेष
रूप से पद्विम बंगाल में यह प्रमुख ईद्योगों में से एक है। जूट (पटसन) क्षेत्र का सामाद्वजक-अर्तथक
महत्ि न के िल आसके िारा द्वनयद्वमत और करों तथा लेिी िारा कमाइ से राष्ट्रीय कोष में योगदान
से है, ऄद्वपतु यह कृ द्वष और औद्योद्वगक क्षेत्र में ऄद्वधक रोजगार भी प्रदान करता है।
 चीनी ईद्योग: चीनी ईद्योग भारत का दूसरा सबसे प्रमुख कृ द्वष-अधाररत ईद्योग है। आसके द्वलए
मूलभूत कच्चा माल गन्ना है।
 िनस्पद्वत तेल ईद्योग: िनस्पद्वत तेल भारतीय अहार में िसा का एक प्रमुख स्रोत है। िनस्पद्वत तेल
हाआड्रोजेनेटेड तेल होता है। द्विद्वभन्न क्षेत्रों में िनस्पद्वत तेल द्वनमायण के द्वलए ऄलग-ऄलग कच्चे मालों
का प्रयोग क्रकया जाता है।
 चाय ईद्योग: चाय भारत अधाररत ईद्योगों में प्रमुख स्थान रखता है ।भारत में चाय के बागान
मुख्यतः पूिोत्तर भारत एिं दद्वक्षणी भारत के ग्रामीण, द्वपछड़े एिं पहाड़ी आलाकों में द्वस्थत है।
 कॉिी ईद्योग: रोपण िसलों में, कॉिी ने द्वपछले कु छ दशकों में भारतीय ऄथयव्यिस्था में महत्िपूणय
योगदान क्रदया है।
 चमय ईद्योग: आस क्षेत्र का महत्ि व्यापक द्विस्तार, ऄत्यद्वधक रोजगार तथा द्वनयायत संभािनाओं में
द्वनद्वहत है। खाल भेड़ों एिं ऄन्य जानिरों से प्राप्त की जाती है।
 खाद्य प्रसंस्करणः कृ द्वष ईत्पादों के प्रसंस्करण में मुख्य रूप से द्वडब्बाबन्द, िीम द्वनकालना, िलों का
प्रसंस्करण (जैम, जैली, ऄचार, मुरब्बे), द्वमठाआयां शाद्वमल हैं।
कृ द्वष ईत्पादों के प्रसंस्करण में सुखाने, क्रकण्िन (Fermentation)और ऄचार डालना अक्रद शाद्वमल है।
भारत में आन प्रक्रियाओं का ईपयोग प्राचीन काल से हो रहा है। ऄनेक िलों के असि (द्राक्षासि) अक्रद
औषद्वधयों के रूप में प्रयोग होते हैं। लेक्रकन प्राचीन पर्द्द्वत से ईत्पादन सीद्वमत होता था तथा औद्योद्वगक
िाद्वन्त के पूिय के युग की मांग पूरी नहीं हो पाती थी।

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कृ द्वष व्यापार
कृ द्वष व्यापार औद्योद्वगक पैमाने पर व्यापाररक कृ द्वष है। आसमें प्रायः बड़े-बड़े ईद्योगपद्वत पैसा लगाते हैं।
जैसे टाटा ऄनेक प्रकार के ईद्योग चलाता है तथा चाय के बागान के क्षेत्र में भी ऄपनी पूज
ं ी लगाइ है।
कृ द्वष व्यापार के िामों के ये द्विशेषताएं हैं- यंत्रीकरण, बड़ा अकार, साधनों का ईपयोग तथा प्रबंधन की
अधुद्वनक प्रणाली।
(2) खद्वनज अधाररत ईद्योगः
ऐसे ईद्योग ईत्पादन के द्वलए खद्वनजों का कच्चे माल के रूप में ईपयोग करते हैं।
 लौह खद्वनज अधाररत ईद्योगः जैसे लोहा-आस्पात ईद्योग।
 ऄलौह खद्वनज अधाररत ईद्योगः तांबा और एल्युद्वमद्वनयम प्रगलन।
 ऄधाद्वत्िक खद्वनज अधाररत ईद्योगः आसमें सीमेंट और पाॅटरी (चीनी द्वमट्टी के बतयन) शाद्वमल हैं।
सीमेंट के क्षेत्र में द्वबड़ला, ACC अक्रद कं पद्वनयों के बड़े-बड़े सीमेंट के कारखाने हैं।

(3) रसायन अधाररत ईद्योगः


ऐसे ईद्योगों में प्राकृ द्वतक रसायन खद्वनजों का कच्चे माल के रूप में ईपयोग क्रकया जाता है। पेरो रसायन
ईद्योग और कृ द्वत्रम िस्त्र ईद्योग आस प्रकार के ईद्योगों के ईदाहरण हैं। नमक और ईियरक ईद्योग भी आसी
िगय में अते हैं।
(4) िन्य ईत्पादों का कच्चे माल के रूप में ईपयोग करने िाले ईद्योगः

िनों से ईद्योगों के द्वलए ऄनेक प्रकार का कच्चा माल प्राप्त क्रकया जाता है। िनीचर के द्वलए लकड़ी,

कागज के द्वलए लकड़ी, घास और बांस, लाख और कत्था ईद्योगों के द्वलए कच्चा माल िनों से ही अता है।

(5) जीि-जंतु ईत्पादः

चमडेऺ के ईद्योग के द्वलए खालें, जीि-जन्तुओं से ही द्वमलती हैं। उनी िस्त्रों का द्वनमायण भेड़ों से प्राप्त उन
से क्रकया जाता है।

1.1.3 ईत्पादों के अधार पर िगीकरण

(Classification of Industries Based on Products)

(1) अधारभूत ईद्योगः


आसके िारा तैयार ईत्पाद का आस्तेमाल ऄन्य ईद्योगों के द्वलए कच्चे माल के रूप में क्रकया जाता है।मशीनें
और ईपकरण लोहें और आस्पात से बनाये जाते हैं। कु छ कारखाने लोहा और आस्पात बनाते हैं। ऐसे
ईद्योग अधारभूत ईद्योग कहलाते हैं।
(2) ईपभोिा िस्तु ईद्योगः

ऐसे ईद्योग द्वजनमें तैयार ईत्पाद को सीधे तौर पर ईपभोग क्रकया जाता है। ईदाहरणः डबलरोटी,

द्वबस्कु ट, चाय, साबुन, प्रसाधन का सामान, द्वलखने के द्वलए कागज, टेलीद्विजन, रे द्वडयो, घड़ी, पेन, और
पेंद्वसल अक्रद ईपभोिा ईद्योग के ईदाहरण हैं।
(3) पूज
ँ ीगत ईद्योग:
ऐसे मशीन को बनाया जाता है द्वजसका प्रयोग ऄन्य िस्तुओं के ईत्पादन के द्वलए क्रकया जा सकता है -
सूती द्वमल और चीनी ईद्योग के द्वलए मशीन का ईत्पादन
(4) ऄर्द्य द्विद्वनर्तमत ईद्योग:
ऄन्य ईद्योगों के द्वलए कच्चे माल का ईत्पादन करना - प्लाद्वस्टक ग्रेन्स ईद्योग

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1.1.4 स्िाद्वमत्ि के अधार पर िगीकरण

(Classification of Industries Based on Ownership)


(1) साियजद्वनक ईद्योगः
ऐसे ईद्योगों का स्िाद्वमत्ि सरकार के पास होता है और िही आनका प्रबंधन भी करती है। भारत में
कागज, एल्युद्वमद्वनयम,लौह-आस्पात और भारी आंजीद्वनयररग के कइ कारखानों की माद्वलक स्ियं सरकार
है। साम्यिादी देशों में कभी सभी कारखानों की माद्वलक सरकार होती थी। लेक्रकन ऄब द्वनजी कारखाने
तेजी से चल रहे हैं।
(2) द्वनजी क्षेत्र के ईद्योगः
ऐसे ईद्योगों का स्िाद्वमत्ि एक व्यद्वि या कं पनी के रूप में ऄनेक व्यद्वियों के पास होता है। ऐसे ईद्योगों
का प्रबंधन व्यद्वि या द्वनजी कं पद्वनयां चलाती हैं। पूंजीिादी देशों सं.रा.ऄमेररका, यूके, जमयनी अक्रद में
ईद्योगों का स्िाद्वमत्ि सामान्यतया द्वनजी हाथों में हैं। भारत में भी कइ बड़े पैमाने के ईद्योग द्वनजी क्षेत्र
में द्विकद्वसत हो रहे हैं।
(3) संयि
ु क्षेत्र के ईद्योगः
कु छ ईद्योगों का संचालन सरकार और द्वनजी कं पद्वनयां द्वमलकर करती है। आन्हें संयुि क्षेत्र के ईद्योग
कहा जाता है। ऐसे ईद्योगों का प्रमुख ईदाहरण मारुद्वत ईद्योग है, द्वजसे भारत सरकार और जापान की
सुजक
ु ी कं पनी द्वमलकर चलाती है।
(4) सामुदाद्वयक क्षेत्र के ईद्योगः
कच्चे माल के ईत्पादकों के सहकारी सद्वमद्वत स्थाद्वपत ईद्योग - चीनी ईद्योग (महाराष्ट्र), ऄमूल (गुजरात)
(5) बहुराष्ट्रीय कम्पद्वनयाँ:
द्विदेशी कं पद्वनयों का भारतीय कम्पद्वनयों के साथ स्थाद्वपत ईद्योग- जैसे जमयनी के BMW कार द्वनमायता

1.1.5 प्रमु ख कायय के अधार पर िगीकरण

ईद्योगों के प्रकार, द्विशेषताएँ और ईदाहरण :


 अधारभूत ईद्योग - आसके िारा तैयार ईत्पाद का आस्तेमाल ऄन्य ईद्योगों में कच्चे माल के रूप में
क्रकया जाता है - जैसे लौह-आस्पात ईद्योग
 ईपभोिा िस्तु ईद्योग - आसके तैयार ईत्पाद सीधे तौर ईपभोग के द्वलए है - जैसे टू थपेस्ट, साबुन,
चीनी ईद्योग
 पूजँ ीगत ईद्योग - ऐसी मशीनों को बनाया जाता है द्वजसका प्रयोग ऄन्य िस्तुओं के ईत्पादन के
द्वलए क्रकया जा सकता है - जैसे सूती द्वमल और चीनी ईद्योग के द्वलए मशीन का ईत्पादन
 ऄर्द्य द्विद्वनर्तमत ईद्योग - ऄन्य ईद्योगों के द्वलए कच्चे माल का ईत्पादन करना - जैसे प्लाद्वस्टक ग्रेन्स
ईद्योग

1.1.6 ज्ञान अधाररत ईद्योग

ईद्योगों की द्विशेषताएँ और ईदाहरण : ईच्च तकनीकी अधाररत द्विद्वनमायण, ऄद्वभयांद्वत्रकी और प्रबंधन,


तीव्र द्विकास दर के द्विशेष प्रकार के ज्ञान का ईपयोग। जैसे- सॉफ्टिेयर ईद्योग
द्विद्वनर्तमत िस्तुएँ
 लौह अधाररत
 यांद्वत्रक ऄद्वभयांद्वत्रकी
 रसायन और आससे संबंद्वधत क्रियाकलाप
 िस्त्र
 ईियरक
 द्विद्युत एिं संबंद्वधत ईपकरण

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1.1.7 बड़े पै माने के अधु द्वनक ईद्योगों की द्विशे ष ताएं

(Characteristics of Large-scale Modern Industries)


बड़े पैमाने के अधुद्वनक ईद्योगों की द्विशेषताएं
1. कौशल का द्विद्वशष्टीकरण
2. मशीनों का ईपयोग
3. प्रौऺद्योद्वगकीय खोज
4. बहुराष्ट्रीय कं पद्वनयां
5. ईत्पादन का बाह्म-स्रोतीकरण
6. पुराने ईद्योगों के स्थान पर नए ईद्योग
7. ईच्च तकनीकी से पररष्कृ त ईत्पाद
8. भारी मात्रा में उजाय का ईपयोग
9. संगठनात्मक संरचना, स्तरीकण तथा ऄन्य द्विशेषताएं
(i) जरटल मशीनी प्रौद्योद्वगकी
(ii) कम श्रम और कम कीमत पर ईत्पादन
(iii) ऄद्वधक पूज
ं ी
(iv) द्विशाल संगठन
(v) द्वनष्पादन

(1) कौशल का द्विद्वशष्टीकरण/ईत्पादन की द्विद्वधयां:


 दस्तकारी (हस्तद्वशल्प) और अधुद्वनक ईद्योगों की ईत्पादन प्रक्रियाओं में ऄन्तर होता है। दस्तकार
ग्राहकों से ऑडयर द्वमलने पर कु छ िस्तुएं ही बनाते हैं। सहारनपुर के दस्तकार शीशम की लकड़ी पर
नक्काशी और पच्चीकारी करके मेज-कु र्तसयां अक्रद बनाते हैं। नक्काशी करते समय थोड़ी बहुत गलती
को सुधार द्वलया जाता है।
 मेज-कु सी अक्रद को थोड़ी-सी कमी के कारण नष्ट नहीं क्रकया जाता। अधुद्वनक ईद्योगों में बड़े पैमाने
पर भारी संख्या में िस्तुएं बनाइ जाती हैं। एक व्यद्वि क्रकसी संपूणय मशीन के एक पुजे के क्रकसी एक
ही काम को बार-बार करता है। आस प्रकार प्रद्वतक्रदन हजारों पुजे बनते हैं।
(2) मशीनों का ईपयोग (यंत्रीकरण):
 ईत्पादन के द्वलए द्विद्विध प्रकार की मशीनों और ईपकरणों (Gadgets) का ईपयोग ही यंत्रीकरण
है। स्िचलन (Automatic) द्वनमायण प्रक्रिया के दौरान मनुष्य के मद्वस्तष्क की कम से कम सहायता
के द्वबना कायय, यंत्रीकरण की ईच्च ऄिस्था है।
 अज सारी दुद्वनया में कम्पयूटर िारा द्वनयंद्वत्रत मशीनों के िारा ही काम होने लगा है। जापान के
ओसाका नगर द्वस्थत पैनासोद्वनक के आलेक्रॉद्वनक ईपकरणों के द्वनमायण के कारखानों में ईत्पादन
ऄत्यद्वधक स्िचाद्वलत मशीनों से होता है।
(3) प्रौद्योद्वगकीय ऄद्वभनि पररितयनः
 अधुद्वनक ईद्योगों की प्रमुख द्विशेषता हैः गुणित्ता द्वनयंत्रण ऄथायत् ऄच्छी से ऄच्छी िस्तुएं बनाना,
ईत्पादन के दौरान हर प्रकार की (सामान, मानि श्रम अक्रद) की बबायदी और ऄक्षमता को रोकना,
तथा प्रदूषण पर द्वनयंत्रण करना।
 आस हेतु स्थाद्वपत प्रयोगशालाओं में द्वनरं तर शोध और द्विकास के काम चलते रहते हैं। आन्हीं के
पररणामस्िरूप प्रौद्योद्वगकीय ऄद्वभनि पररितयन क्रकए जाते हैं।

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(4) बहुराष्ट्रीय तथा राष्ट्रपारीय कं पद्वनयां:
 अजकल कइ देशों की बड़ी-बड़ी कं पद्वनयां द्वमलकर एक कं पनी बना लेती हैं तथा सामान्यतः
द्विकासशील देशों में ऄपने कारखाने लगाती हैं।
 आन कारखानों में भी बनी कु छ िस्तुएं तो स्थानीय बाजार में द्वबक जाती हैं और कु छ का द्वनयायत
कर क्रदया जाता है।
(5) ईत्पादन का बाह्य स्रोतीकरणः
 महंगे और पररष्कृ त ईत्पादन बनाने िाली द्विकद्वसत देशों की कं पद्वनयां ऄनेक पुजे या पूरी िस्तुएं
ही द्विकासशील देशों में सस्ते में बनिा लेती हैं।
 गुणित्ता का द्वनयंत्रण करके संसार के सभी देशों में ऄपने ऐसे ईत्पाद बेचती हैं। ईदाहरण-सं. रा.
ऄमेररका की बोआं ग कं पनी ऄपने द्विमान के दरिाजे भारत में बनिाती है। सं. रा. ऄमेररका की ही
एक ऄन्य कं पनी मैद्वक्सको में ऄटैची और सूटके स बनिाकर द्वनयायत करती है।
(6) पुराने ईद्योगों के स्थान पर नए ईद्योगः
 द्विकद्वसत देशों के लौह-आस्पात एिं सूती िस्त्र बनाने के बड़े-बडेऺ ईद्योग बन्द हो रहे हैं। ईनके स्थान
पर नए आलेक्रॉद्वनक, जैि प्रौद्योद्वगकी से संबंद्वधत ईपकरण बनाए जाने लगे हैं।
(7) पररष्कृ त और ईच्चतम प्रौद्योद्वगकी के ईत्पादः
 द्विकद्वसत देशों में ऐसे ईत्पाद बनाने पर बल क्रदया जा रहा है, द्वजनके ईत्पादन में उजाय और कच्चा
माल कम मात्रा में लगता है।
 शोध और द्विकास अधाररत ईत्पाद जैसे आलेक्रॉद्वनक, जैि प्रौद्योद्वगकी, द्वचक्रकत्सा, ऄंतररक्ष यान,
कृ द्वत्रम ईपग्रह अक्रद के ऄत्यद्वधक मूल्य िाले ईपकरण बनाए जाते हैं।
(8) भारी मात्रा में उजाय का ईपयोगः
 अधुद्वनक ईद्योगों में उजाय की ऄत्यद्वधक खपत होती है। बड़ी-बड़ी मशीनों को क्रदन-रात िषय भर
चलाने के द्वलए ऄद्वधक मात्रा में उजाय की खपत होती है।
 30 करोड़ टन से ऄद्वधक प्रद्वतिषय आस्पात बनाने िाला देश चीन, ऄफ्रीकी और दद्वक्षण ऄमेररकी
देशों से तेल के द्वलए समझौते कर रहा है।
(9) संगठनात्मक संरचना तथा स्तरण (Organisational Structure and Stratification):
 अधुद्वनक द्वनमायण की ऄन्य द्विशेषताएं द्वनम्नद्वलद्वखत हैं:
(i) जरटल मशीनी प्रौद्योद्वगकी
(ii) कम श्रम और कम कीमत पर ऄद्वधक से ऄद्वधक संख्या या मात्रा में िस्तुओं के ईत्पादन के द्वलए
ऄत्यद्वधक द्विद्वशष्टीकरण और श्रम द्विभाजन
(iii) द्विशाल पूज
ं ी
(iv) द्विशाल संगठन
(v) द्वनष्पादन ऄद्वधकारी िगय (Execution Bureaucracy)
दस्तकारी/हस्तद्वशल्प ईद्योग और द्विद्वनमायण ईद्योग
1. हस्तद्वशल्प सामान्य तौर पर हाथों से की गइ द्वशल्पकारी या कारीगरी को कहा जाता है।
द्वनमायण मुख्य रूप से एक प्रक्रिया है, द्वजसमें स्थानीय या दूरस्थ बाजारों में बेचने के द्वलए कच्चे माल से
महंगी िस्तुएं बनाइ जाती हैं।
2. संकल्पनात्मक दृद्वष्ट से ईद्योग एक द्वनमायण की आकाइ है, द्वजसमें लेखा-बही में द्वहसाब और ररकॉडय रखे
जाते हैं, जोक्रक एक प्रबंध व्यिस्था के ऄंतगयत काम करती है।
3. ईद्योग ऄब एक व्यापक ऄथय िाला शब्द बन गया है। यह द्वनमायण के पयायय के रूप में प्रयोग क्रकया
जाता है। जब हम आस्पात ईद्योग या रसायन उ़द्योग जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं, तब हमारे मद्वस्तष्क
में कारखानों और प्रक्रियाओं की बात ईभरती है। लेक्रकन ऄब ऐसे क्रियाकलाप भी हैं, जो कारखानों में
नहीं चलते, क्रिर भी ईन्हें ईद्योग कहते हैं; जैस-े मनोरं जन ईद्योग, पययटन ईद्योग अक्रद। ऄतः स्पष्टता के
द्वलए द्वितीयक क्रियाकलापों के द्वलए ‘द्विद्वनमायण ईद्योग’ शब्द का प्रयोग क्रकया जाता है।

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1.1.8 ईद्योग क्षे त्र का महत्ि

क्रकसी देश की ऄथयव्यिस्था के तीव्र अर्तथक द्विकास में ईद्योगों की महत्िपूणय भूद्वमका होती है ,द्वजसे
द्वनम्नद्वलद्वखत ईदाहरण से समझा जा सकता है :
औद्योगीकरण ↑

द्वनिेश ↑

ईत्पादन ↑→द्वनयायत ↑→द्विदेशी मुद्रा भण्डार ↑→भुगतान संतुलन में सुधार

अधारभूत संरचना का द्विकास

रोजगार ↑

प्रद्वत व्यद्वि अय↑

जीिन स्तर में सुधार

गरीबी और बेरोजगारी का प्रद्वतशत ↓

ईपयुयि ईदाहरण से स्पष्ट है क्रक देश में औद्योगीकरण की प्रक्रिया तेज़ होने से एक ओर ईत्पादन में िृद्वर्द्
,अधारभूत संरचना का द्विकास,रोजगार में िृद्वर्द्,प्रद्वत व्यद्वि अय में िृद्वर्द् तथा जीिन-स्तर में सुधार
एिं गरीबी और बेरोजगारी के प्रद्वतशत में कमी अती है और साथ ही दूसरी ओर ईत्पादन बढ़ने से
द्वनयायत ,द्विदेशी मुद्रा भण्डार एिं भुगतान संतल
ु न में भी सुधार होता है I

1.1.9 ईद्योगों की ऄिद्वस्थद्वत (The Location of Industries)

संसार में ईद्योगों का द्वितरण स्पष्टतः एक-दूसरे से द्वभन्न है। आस द्वभन्नता का अधार प्रत्येक ईद्योग की
कच्चे माल, द्वनमायण-प्रक्रिया, द्वनर्तमत िस्तु और बाजार की अिश्यकताओं में द्वभन्नता का होना है। ऄतः
प्रत्येक ईद्योग की ऄिद्वस्थद्वत के कारक द्वभन्न होते हैं।
ईद्योग की ऄद्विस्थद्वत के कारक (Factors of Localisation of Industries)

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प्रत्येक ईद्योगपद्वत ऄपना ईद्योग िहीं स्थाद्वपत करना चाहता है, जहां कम से कम लागत में ऄद्वधक से
ऄद्वधक लाभ द्वमले। ईद्योगों की स्थापना के द्वलए प्रत्येक स्थान की ऄलग-ऄलग भौगोद्वलक-अर्तथक
द्विशेषताएं होती हैं।
ईद्योगों के स्थानीयकरण के कारकों को पारं पररक रूप से दो िगों में द्विभाद्वजत क्रकया जाता
है।औद्योद्वगक स्थान या जहां ईद्योग द्वस्थत होता है ईसके कु छ चर कारक(variables) होते हैं। कइ
सन्दभों में ये चर कारक अर्तथक से लेकर ऄिद्वस्थद्वत से ऄद्वधक प्राकृ द्वतक लाभ तक हो सकते हैं। सियप्रथम
ईद्योगों की स्थापना के द्वलए हम सामान्य बबदुओं पर द्विचार करें गे ईसके बाद द्विद्वशष्ट अर्तथक
गद्वतद्विद्वधयों और ईद्योगों के द्वलए व्यद्विगत कारकों को देखेंगे।
सुद्विधा द्वलए हम ऄिद्वस्थत कारकों को दो िगों में िगीकृ त कर सकते हैं:

भौगोद्वलक कारक गैर-भौगोद्वलक कारक

 कच्चा माल: प्राकृ द्वतक संसाधन की ईपलब्धता द्वजसे कच्चे माल  पूज
ँ ी द्वनिेश
के रूप में प्रयुि क्रकया जा सकता हैI  ऊण की ईपलब्धता

 प्रौद्योद्वगकी: मूल्य के साथ पररसंपद्वत्त को संसाधन के रूप में  बाजार


 द्वनिेश का माहौल
बदलनाI
 सरकारी नीद्वतयां / द्विद्वनयमन
 शद्वि: तकनीकी का ईपयोग करने के द्वलएI  दबाि समूहों का प्रभाि
 श्रम: क्षेत्र में मानि संसाधन जो प्रक्रियाओं को चलाने के द्वलए  शीघ्र शुरुअत (Early Start)
श्रम के रूप में कायय कर सकता है।
व्यद्विगत ऄद्वधमानता (personal
 पररिहन: सड़क / रे ल संपकय
 भंडारण और िेयरहाईबसग preference)
 द्विपणन व्यिहाययता
 जल
 भूद्वम और द्वमट्टी के लक्षण
 जलिायु।
 िषाय और जल संसाधन
प्राकृ द्वतक संसाधनों की सुभद्य
े ता।

(1) भौगोद्वलक कारक

1. कच्चा माल(Raw Materials):


 एक ईद्योग की द्वस्थद्वत को प्रभाद्वित करने िाले कारकों में सस्ते एिं कच्चे माल की द्वनयद्वमत अपूर्तत
और ईपलब्धता का सबसे महत्िपूणय स्थान है ।
 क्रकसी भी औद्योद्वगक ईत्पादन के द्वलए कच्चे माल की ईपलब्धता अिश्यक है। कच्चे माल के स्रोत के
द्वनकट ईद्योगों को स्थाद्वपत करने की प्रिृद्वत्त है। आसद्वलए,ईन क्षेत्रों में ईद्योगों का द्वनमायण क्रकया

जाता है जहां कच्चा माल भरपूर मात्रा में ईपलब्ध होता है। यह पद्विम बंगाल में जूट ईद्योग, ईत्तर
प्रदेश में चीनी ईद्योग एिं छत्तीसगढ़ और पद्विम बंगाल राज्यों में भारी ईद्योगों के स्थानीयकरण
का मुख्य कारण है।
 यक्रद कच्चा माल भारी और मूल्य में कम है,तो कच्चे माल के क्षेत्रों में ईद्योग स्थाद्वपत क्रकए जाते हैं।

लौह गलाने, ईंट बनाने, सीमेंट द्वनमायण आसके सबसे ऄच्छे ईदाहरण हैं।

 जमशेदपुर (झारखंड), राईरके ला (ईड़ीसा), द्वभलाइ (छत्तीसगढ़) और दुगायपुर (पद्विम बंगाल) में
लौह और आस्पात संयंत्र कच्चे माल के स्रोतों के पास स्थाद्वपत क्रकए गए हैं।

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 यद्यद्वप बेहतर पररिहन सुद्विधाओं से कच्चे माल का पररिहन करना असान हो गया है और
औद्योद्वगक ऄिद्वस्थद्वत पर आस कारक का प्रभाि घट गया है। यह ऄभी भी कु छ ईद्योगों की
ऄिद्वस्थद्वत को द्वनधायररत करने िाला महत्िपूणय कारक बना हुअ है।
 ऄपररष्कृ त और भारी भरकम कच्चे माल का ईपयोग करने िाले ईद्योगों की संख्या द्वनरं तर घट रही
है। अज ऄद्वधकतर ईद्योग ऄधयद्वनर्तमत िस्तुओं का कच्चे माल के रूप में प्रयोग करते हैं। ऄतः ऐसे
ईद्योग मूलभूत कच्चे माल के स्रोत से दूर स्थाद्वपत क्रकए जा सकते हैं।
कच्चे माल के द्वनकट ऄिद्वस्थद्वत िाले ईद्योगः कु छ ईद्योग अज भी ऐसे हैं, जो कच्चे माल के स्रोत के द्वनकट
ही लगाए जाते हैं। गन्ने से चीनी बनाने िाले कारखाने, गन्ना ईत्पादक क्षेत्रों के द्वनकट ही लगाए जाते हैं
,क्योंक्रक गन्ने के सूखने से चीनी की मात्रा कम हो जाती है तथा सामान्यतः 100 टन गन्ने से लगभग 10
टन चीनी बनती है। आस प्रकार कच्चे माल की तुलना में चीनी का भार और अकार कािी घट जाता है।
ऄतः धातु कमय ईद्योग कच्चे माल (लौह ऄयस्क और तांबा ऄयस्क) के द्वनकट लगाए जाते हैं।
कच्चा माल प्रधान ईद्योग
चीनी ईद्योग, िल-सब्जी द्वडब्बाबंदी ईद्योग, कोयला चाद्वलत ताप द्वबजली घर, तांबा प्रगलन ईद्योग,
लोहा-आस्पात ईद्योग, इट-भट्ठे ईद्योग, सीमेंट ईद्योग, लुग्दी-कागज ईद्योग, डेयरी ईद्योग (दूध से
मक्खन) अक्रद।
2. उजाय के स्रोत (Energy Sources):
मशीनों को चलाने के द्वलए पयायप्त मात्रा में उजाय की द्वनयद्वमत अपूर्तत अिश्यक है। प्रारं भ के ईद्योगों को
उजाय के स्रोतों (कोयला, जल द्विद्युत) के द्वनकट ही लगाया जाता था। आं ग्लैंड के द्वमडलैंड क्षेत्र में, जमयनी
के रूर में और यूिेन के डोनेट्ज बेद्वसन के कोयला क्षेत्रों के द्वनकट ही ईद्योग लगाए गए थे। लेक्रकन
अजकल स्थानीयकरण के कारक के रूप में आसका महत्ि द्वनरं तर घट रहा है। अज कम से कम ह्रास तथा
सक्षम रूप से द्वबजली की पारे षण प्रौद्योद्वगकी द्विकद्वसत हो गइ है।
अज भी उजाय के स्रोतों के द्वनकट स्थाद्वपत होने िाले ईद्योगः बॉक्साआट से एल्युमीद्वनयम बनाने िाले
ईद्योग द्वबजली ईत्पादन के न्द्रों के द्वनकट ही लगाए जाते हैं। भारत में रे नुकूट(ईत्तर प्रदेश) में
एल्यूद्वमद्वनयम बनाने का कारखाना ररहंद बांध की द्वबजली का ईपयोग करने के द्वलए लगाया गया है।
3. पररिहन (दूरी या अर्तथक दूरी)(Transport or Economic Distance):
प्राचीन काल में पररिहन की लागत ईद्योगों के स्थानीयकरण में महत्िपूणय कारक हुअ करती थी।
 ईद्योग, कु शल और सस्ती पररिहन प्रणाली पर द्वनभयर करते हैं, जो क्रक कच्चे माल के साथ-साथ
तैयार ईत्पादों के द्वलए बहुत अिश्यक होती हैं।
 रे लिे जंक्शनों को ईद्योगों के स्थानीयकरण के द्वलए सबसे ईपयुि स्थल माना जाता है। ये द्विद्वभन्न
क्रदशाओं से असान पररिहन की सुद्विधा ईपलब्ध कराते हैं। आसी तरह समुद्री बंदरगाह भी
औद्योद्वगक कें द्रों के रूप में द्विकद्वसत होते हैं, क्योंक्रक ईत्पादों के द्वनयायत और अयात के द्वलए जल
पररिहन की ईपलब्धता एक महत्िपूणय कारक है।
अज पररिहन में लागत को कम करने के द्वलए द्वनम्न पररितयन हुए हैं:
(a) पररिहन के निीन साधनों का द्विकास: बड़े-बड़े रक, द्विशालकाय जहाज, सामान ईतारने चढ़ाने के
द्वलए बड़ी-बड़ी िे न, सुरद्वक्षत सामान के द्वलए बडे-ऺ बड़े बक्से (Container), जहाजों, रे ल गाद्वड़यों पर
सीधे रकों का चढ़ाना, कारखाने या ईपभोिा के िार पर माल पहुंचाना, रकों, जहाजों, रे लों में कम
ईंधन में ऄद्वधक दूरी तय करना, ऄच्छी सड़क, रे लमागय।
(b) सक्षम(Efficient) पररिहन प्रणाली : पररिहन प्रणाली बहुत सक्षम हो गयी है।
(c) लागत ऄब कम हो गइ है। यू. के . में ईत्पादन की कु ल लागत में पररिहन का व्यय घटकर 2%या
3% रह गया है।

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(d) तीव्रगद्वत के पररिहन साधनों का द्विकास : रे लों, रकों और बसों की गद्वत तीव्र हो गइ है। द्वजससे
समय की बचत होती है।
(e) द्विश्वसनीयः जापान में पररिहन आतना सक्षम है क्रक रकों िारा पुजे सीधे ईत्पादन बेल्ट
(Production Line) के द्वनकट ईतारे जाते हैं। द्वजससे भंडारण की जरूरत नहीं होती है एिं देख-रे ख
की अिश्यकता नहीं होती है।
ईपरोि पररितयनों के कारण पररिहन का महत्ि स्थानीयकरण के कारक के रूप में घट गया है। यही
नहीं ऄद्वधकतर ईद्योगों का कच्चे माल, ईत्पाद या पुजे बहुत हल्के और छोटे होते हैं। ऄतः ईद्योग ऄन्य
सुद्विधाओं के अधार पर कहीं भी लगाया जा सकता है।
भारी कच्चा माल या भारिर्द्यक ईत्पाद िाले ईद्योगः भारी कच्चे माल िाले ईद्योग; जैस-े लोहा और
आस्पात, तांबा गलाना अक्रद अज कच्चे माल के स्रोत या अयात की सुद्विधा िाले बंदगाहों पर स्थाद्वपत
क्रकए जाते हैं।
भारिर्द्यक ईत्पाद; जैस-े शीतल पेय में द्वमलाए जाने िाले सांद्र द्वसरप (Concentrated Syrup) की
तुलना में पानी का भार ऄद्वधक होता है, ऄतः शीतल पेय की बोतल बंदी या द्वडब्बा बंदी के कारखाने
ईपभोिा क्षेत्रों में लगाए जाते हैं। आससे पररिहन व्यय घट जाता है।
4.जल अपूर्ततः
ईद्योगों में प्रसंस्करण, भाप बनाने या ठं डा करने के द्वलए जल की जरूरत होती है। ऄतः जल की मात्रा
और गुणित्ता दोनों ही ईद्योगों के स्थानीयकरण को प्रभाद्वित करते हैं। कु छ ईद्योगों; जैस-े लौह-आस्पात,
कागज, िस्त्र, तांबा और बाक्साआट गलाने िाले ईद्योगों को भारी मात्रा में जल की अिश्यकता होती
है। यही नहीं कु छ ईद्योगों को ईत्तम कोरट के मृद ु जल की अिश्यकता होती है।
आन सबके बािजूद कािी मात्रा में ईद्योगकर्तमयों को पीने और घरे लू कामों के द्वलए बहुत सारा जल
चाद्वहए। ऄतः जल अज भी स्थानीयकरण हेतु महत्िपूणय कारक है। ऄन्य कारकों पर द्विचार नहीं क्रकया
जाये तो भी भारत के जैसलमेर और बाड़मेर क्षेत्र में जल का ऄभाि ही औद्योगीकरण में बहुत बड़ी
बाधा है।
(v) श्रद्वमकों की ईपलब्धता तथा ईनका िेतन(Availability of labour and their Saliries):
ईद्येागों के द्वलए श्रद्वमक ऄद्वनिायय है। भले ही अज स्िचाद्वलत मशीनों, रोबोट और कम्प्यूटर का युग अ
गया है, लेक्रकन कु शल, प्रद्वशद्वक्षत और क्षमता-दक्ष कर्तमयों का ईद्योगों में महत्ि अज भी बने हुए हैं।
कु शल श्रद्वमक प्रधान ईद्योगः मुरादाबाद का बतयन ईद्योग, क्रिरोजाबाद का कांच ईद्योग, द्वस्िटजरलैंड
का घड़ी ईद्योग, सूरत और एम्स्टरडम (नीदरलैंड) का हीरा ईद्योग, स्िीडन का मशीन ईपकरण ईद्योग,
जापान का आलेक्रॉद्वनक तथा प्रकाद्वशक यंत्र (Optical) ईद्योग ईनके कु शल और दक्ष श्रद्वमकों के बल पर
ही रटके हैं।
द्विकाशील देश और श्रद्वमकों का िेतनः यूरोप, सं. रा. ऄमेररका, जापान, द. कोररया अक्रद देशों में
श्रद्वमकों तथा ऄन्य कर्तमयों को िेतन के रूप में भारी रकम देना पड़ता है। ऄतः आन देशों की कं पद्वनयां
द्विकासशील देशों में सस्ते श्रम के लालच में ईद्योग लगा रही है।
5.जलिायु
 जलिायु ईद्योगों के स्थानीयकरण में एक महत्िपूणय भूद्वमका द्वनभाती हैI शांत समशीतोष्ण
जलिायु ईद्योगों के द्विकास के द्वलए ऄद्वधक ईपयुि हैं, क्योंक्रक आस तरह की जलिायु श्रम शद्वि की
कायय कु शलता में िृद्वर्द् करती है।
 यही कारण है क्रक समशीतोष्ण ऄक्षांशों में ईष्णकरटबंधीय या रे द्वगस्तान या टुंड्रा क्षेत्रों की ऄपेक्षा
द्विद्वनमायण ईद्योग ऄद्वधक द्विकद्वसत हैं।
 कपास एिं िस्त्र द्वनमायण ईद्योगों के स्थानीयकरण में जलिायु महत्िपूणय भूद्वमका द्वनभाती है। शांत
और नम जलिायु सूत की कताइ और कपड़ा प्रक्रियाओं के बुनाइ में मदद करती है। मुं बइ में क्रिल्म
ईद्योग के द्विकास में ऄनुकूल जलिायु की महत्िपूणय भूद्वमका है।

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6. भूद्वम और द्वमट्टी के लक्षण
ईद्योग की स्थापना के द्वलए चयद्वनत स्थान समतल और पयायप्त पररिहन सुद्विधाओं से युि होना
चाद्वहए। आसी कारण भूद्वम और द्वमट्टी के लक्षण का महत्ि भी बढ़ जाता है I
गैर-भौगोद्वलक कारक
1. पूज
ं ी
क्रकसी भी ईद्योग की स्थापना में पूंजी एक मूलभूत अिश्यकता है। ईत्पादन ही नहीं ईसके द्वििय के
द्वलए भी पूज
ं ी की अिश्यकता होती है। ईद्योगों में द्वनत नए पररितयनों के द्वलए अधुद्वनकीकरण जरूरी
हो जाता है। नइ मशीनों, द्विज्ञापनों, द्विस्तार के द्वलए भूद्वम, कर्तमयों के िेतन अक्रद के द्वलए पूज
ं ी की
अिश्यकता द्वनरं तर बनी रहती है।
संचार की सुद्विधाओं तथा बैंकों की नइ कायय शैली से पूंजी ऄंतरायष्ट्रीय स्तर पर कािी गद्वतशील हो गइ
है। लेक्रकन, ऄद्वस्थत सरकार िाले देशों में जोद्वखम बहुत बढ़ जाता है तथा लाभ ऄद्वनद्वित रहता है। ऐसे
स्थानों पर कोइ भी संस्था पूज
ं ी नहीं लगाना चाहती। लेक्रकन देशों में बैंक्रकग प्रणाली के अधुद्वनकीकरण
से पूज
ं ी बहुत गद्वतशील हो गइ है। ऐसी द्वस्थद्वत में पूज
ं ी की भूद्वमका स्थानीयकरण में गौण हो गइ है।
2. बाजार
 ईद्योगों के स्थानीयकरण का द्वनधायरण करने में बाजार एक महत्िपूणय कारक है। माल का द्वनमायण
बाजार में बेचे जाने के द्वलए क्रकया जाता है । ईद्योग अमतौर पर शहरी कें द्रों के करीब स्थाद्वपत
होते हैं।
 कभी-कभी घनी अबादी द्विद्वभन्न औद्योद्वगक ईत्पादों के द्वििय के द्वलए ठोस बाजार द्वसर्द् नहीं
होती है। यक्रद लोग गरीब होते हैं, तो िय क्षमता भी खराब हो जाती है।

 कु छ एद्वशयाइ देशों में, जहां लोग गरीब हैं, ऐसे ईद्योग जो सस्ते और जरूरी सामानों के द्वनमायण में

लगे हैं जैसे मोटे कपड़े ईनके द्वलए यह बड़ा बाज़ार होता है I यह बताता है क्रक क्यों द्विकद्वसत देशों
की घनी अबादी िाले क्षेत्रों में द्विद्वनमायण ईद्योग खराब हैं।
3. प्रबंधन (Management): प्रबंधन एक ऄद्वत द्विद्वशष्ट प्रकार का श्रम है। ईद्योग की स्थापना के चुनाि
के द्वलए स्थान चुनते समय प्रबन्धन का द्विशेष ध्यान रखा जाता है। स्थान चुनते समय यह जानना
अिश्यक हो जाता है क्रक िहां ऄच्छे प्रबंधक अ सकें गे या नहीं।
कु छ ईद्योगों के क्रकसी द्विशेष स्थान पर के द्वन्द्रत होने से िहां के लोगों में पारं पररक कौशल और प्रबंधन
की योग्यता द्विकद्वसत हो जाती है। मछली के ईत्पाद, द्वसगरे ट, िस्त्र, रे शम, रे यान अक्रद ईद्योगों का

कु शल प्रबंधन िहीं के लोगों के िारा होता है, जहां ये ईद्योग परं परा से प्रद्वसर्द् हो गए हैं; जैस-े िाराणसी
के साड़ी ईद्योग का कु शल प्रबंधन िहां के स्थानीय लोग ही कर सकते हैं।
4. सरकारी नीद्वतयां और हस्क्षेप (Government Policies and Interventions)
अजकल लगभग प्रत्येक देश में ईद्योगों के स्थानीयकरण में सरकार की महत्त्िपूणय भूद्वमका होती है।
सरकार के हस्तक्षेप के मुख्य रूप से दो ईद्देश्य होते हैं:
(i) प्रादेद्वशक ऄसमानता दूर करनाः सभी कल्याणकारी सरकारें पूरे देश का समान रूप से द्विकास करना

चाहती हैं। ऄतः सरकार ईद्योगपद्वतयों को ऄनेक प्रकार की छू ट, द्विशेष रूप से करों में छू ट देकर द्वपछड़े
हुए क्षेत्रों में ईद्योगों की स्थापना करिाती है। आस प्रकार अर्तथक द्विकास की ऄसमानताओं को दूर करने
के प्रयास क्रकए जाते हैं।
(ii) सुरक्षा के कारणः युर्द् के समय शत्रुओं से सुरक्षा की दृद्वष्ट से सरकार सैन्य सामग्री बनाने िाले या
ईनसे संबंद्वधत ईद्योगों को सुरद्वक्षत स्थानों में लगाना चाहती है। भारत के ऄंतररक्ष से संबंद्वधत ईद्योग
दद्वक्षण भारत में ऄद्वधक हैं।

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कभी-कभी राजनीद्वतक ईद्देश्यों को पूरा करने के द्वलए भी ईद्योगों को क्रकन्हीं द्विशेष स्थानों पर लगाया
जाता है। ऐसे में स्थानीयकरण के सभी अर्तथक और प्राकृ द्वतक कारकों की ईपेक्षा कर दी जाती है। कभी-
कभी भीड़ कम करने की दृद्वष्ट से भी सरकार ईद्योगों के द्विके न्द्रीकरण को प्रोत्साद्वहत करती है।
5. पयायिरण (Environment)
1980 के बाद से प्रबंधकों और कर्तमयों के द्वलए स्िच्छ और स्िस्थ पयायिरण की मांग बढ़ती जा रही है।
आसीद्वलए ऄनेक कं पद्वनयों महानगरों से दूर शांत और सुरम््य पयायिरण के द्वलए ग्रामीण क्षेत्रों की ओर
रुख कर रही हैं। आन स्थानों पर यातायात की भीड़ और महँगी भूद्वम से मुद्वि द्वमल जाती है। आसके
ऄद्वतररि कु छ ईद्योगों को द्विशेष प्रकार का पयायिरण ही ऄनुकूल होता है।
कु छ ईद्योगों को द्विद्वशष्ट प्रकार के पयायिरण की अिश्यकता होती है। क्योंक्रक यह ईनके द्वलए ऄनुकूल
होता है। सं. रा. ऄ. का िायुयान द्विद्वनमायण ईद्योग दद्वक्षण-मध्यिती क्षेत्र में द्वस्थत है। यह ऄपेक्षाकृ त
गमय क्षेत्र है ऄतः िकय शॉप के अंतररक भागों को सुद्विधाजनक बनाए रखने के द्वलए आसे गमय करने की
अिश्यकता नहीं होती है।
6. औद्योद्वगक द्वनकटता (Industries Inertia)
सामान्यतः कोइ भी ईद्योग क्रकसी स्थान द्विशेष पर लाभ के कारण ही स्थाद्वपत क्रकया जाता है यह कच्चे
माल की ईपलब्धता हो सकती है। प्रायः यह भी देखा गया है क्रक यक्रद स्थान द्विशेष का प्रारं द्वभक लाभ
ऄब नहीं भी रहा है तो िहां िह ईद्योग द्वनरं तर बना रहता है। आस द्वस्थद्वत से आस बाधा के हटने को
औद्योद्वगक द्वनकटता कहते हैं। आसके द्वलए द्वनम्नद्वलद्वखत कारक ईत्तरदायी हो सकते हैं:
(i)ईस स्थान पर द्वनयद्वमत कु शल श्रम की ईपलब्धता ऄथिा पड़ोसी आकाआयों से पुजों की द्वनयद्वमत
अपूर्तत।
(ii)सामान्यतः मूलभूत पूज
ं ी को कारखाने के स्िरूप में स्थानांतररत करना लाभकारी नहीं होता है।
(iii)मरम्मत और रखरखाि की नइ सुद्विधाओं का पास में द्विकास।
(iv)ईसी क्षेत्र में दूसरे ईद्योग के साथ एक-दूसरे पर द्वनभयरता।
7. मानिीय कारक (Human Factor)
 द्वनजी क्षेत्र के ईद्योगों की स्थापना में ईद्यद्वमयों का द्वनणयय ही ऄंद्वतम होता है। ईद्योगों के
स्थानीयकरण की समकालीन प्रिृद्वत्तयों को देखकर ही ईद्यमी ऄपने ईद्योगों के द्वलए स्थान का
चुनाि करते हैं।
 ईद्योगों के स्थानीयकरण में, आनके ऄद्वतररि भी ऄनेक प्रकार हैं। एक स्थान पर ऄनेक ईद्योगों की
स्थापना से ईस प्रदेश में ऄन्य नए ईद्योगों के द्वलए अकषयण ईत्पन्न हो जाता है। आसे समूहन
(Agglomeration)का अकषयण कहते हैं। ये अकषयण या लाभ हैं: निीनतम जानकारी,
समकालीन प्रौद्योद्वगकी, चुस्त प्रशासन, एक जैसे ईद्योगों से संपकय तथा ईपभोिाओं से द्वनयद्वमत
सम्पकय अक्रद।
8. शीघ्र शुरुअत
 ऐसे क्षेत्र में नइ आकाआयां स्थाद्वपत करने की प्रिृद्वत्त होती है जहां यह ईद्योग पहले से ही बहुत
द्विकद्वसत होता है। ऐसा आसद्वलए है,क्योंक्रक ऐसे क्षेत्रों में पररिहन के द्विकद्वसत साधन, द्वित्तीय
संस्थान, बैंककग सुद्विधाएं, कु शल श्रम की ईपलब्धता और द्विपणन सहजता से ईपलब्ध होता है।
 होजरी ईद्योग लुद्वधयाना में कें क्रद्रत होने को शीघ्र शुरुअत की भूद्वमका का एक प्रमुख ईदाहरण
माना जा सकता हैI
9. व्यद्विगत ऄद्वधमानता (Personal Preference)
 व्यद्विगत ऄद्वभरूद्वच, एक ईद्यमी के पूिायग्रह और प्राथद्वमकतायें भी क्रकसी क्षेत्र में एक ईद्योग की
स्थापना में भूद्वमका द्वनभाती हैं I कइ बार यह सभी अर्तथक और िाद्वणद्वज्यक द्विचारों की भी
ऄनदेखी कर देते हैं।

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 लोकतांद्वत्रक व्यिस्था में,कभी-कभी राजनीद्वतक मामले भी कु छ क्षेत्रों में कु छ भारी ईद्योगों की
स्थापना की शुरुअत करते हैं।
 पंजाब में कपूरथला में रे लिे कोच िै क्री की स्थापना अर्तथक द्विचारों की बजाय राजनीद्वतक द्वहतों
के कारण से की गइ है। भरटडा में तेल ररिाआनरी का द्वनमायण राजनीद्वतक द्वनणयय का एक और
ईदाहरण है।

1.1.10 स्िच्छं द ईद्योग (Footloose Industry)

एक ऐसा ईद्योग जो क्रकसी स्थान द्विशेष या देश से सम्बर्द् नहीं होता है और बदलती अर्तथक द्वस्थद्वतयों
के ऄनुसार राष्ट्र की सीमाओं में कहीं भी स्थानांतररत क्रकया जा सकता है ईसे स्िच्छंद ईद्योग कहते है।
ऐसे ईद्योग प्रायः स्थानीयकरण के कारकों से प्रभाद्वित नहीं होते हैं। आन्हें सुद्विधाजनक रूप से कहीं भी
लगाया जा सकता है। ईच्च ईद्योगों के द्वलए नगरों के बाहर स्िच्छन्द पयायिरण में प्रौद्योद्वगकी तथा
द्विज्ञान पाकय बनाए गए हैं।
लोहा-आस्पात ईद्योग अज भी महत्िपूणय और अधारभूत ईद्योग हैं। अजकल ईच्च प्रौद्योद्वगकी ईद्योग
बहुत महत्िपूणय हो गए हैं। तत्काल ईत्पादन ईच्च प्रौद्योद्वगकी ईद्योगों की द्विशेषता है। सूक्ष्म आलेक्रॉद्वनक
ईपकरण, लेजर, द्वचक्रकत्सा ईपकरण आन्हीं ईद्योगों के ईत्पाद हैं। सूती िस्त्र ईद्योग पुराने के न्द्रों के स्थान
पर ऄल्पद्विकद्वसत देशों के नए के न्द्रों पर द्विकद्वसत हो रहे हैं।
स्िच्छंद ईद्योग की द्विशेषताएं(Characteristics of Footloose Industry)
(i) ये हल्के ईद्योग होते हैं।
(ii) ये प्रायः कच्चे माल के स्थान पर पुजों (Component)का ईपयोग करते हैं।

(iii) शद्वि के साधनों में प्रायः राष्ट्रीय द्वग्रड से प्राप्त द्वबजली का ईपयोग करते हैं।
(iv) ईत्पाद छोटे तथा असानी से पररिहन के योग्य होते हैं।
(v) कम लोग काम करते हैं।

(vi) स्िच्छ और प्रदूषण मुि होते हैं। ऄतः अिासीय बद्वस्तयों के द्वनकट भी स्थाद्वपत क्रकए जा सकते हैं।
(vii) ऄद्वभगम्यता को सिोच्च प्राथद्वमकता। ऄतः सड़कों के जाल के द्वनकट लगाए जाते हैं।
(viii) ये संसाधन और बाजारोन्मुख नहीं होते।
(ix) स्थानीयकरण के ऄनेक द्विकल्प होते हैं।

1.1.11 बड़े पै माने के पारं पररक औद्योद्वगक प्रदे श

(Traditional Large-scale Industries Regions)


ऐसे प्रदेशों का अधार भारी ईद्योग होते हैं। आनमें लोहा-आस्पात, ऄन्य धातु गलाने िाले ईद्योग भारी
आं जीद्वनयरी, रसायन और िस्त्र ईद्योगों की प्रधानता होती है। ये प्रायः कोयला क्षेत्रों के अस-पास िै ले
होते हैं। आन औद्योद्वगक प्रदेशों की द्वनम्नद्वलद्वखत द्विशेषताएं हैं:
(i) द्वनमायण ईद्योगों में सिायद्वधक लोग काम करते हैं।
(ii) मकान पास-पास सटे हुए बने होते हैं। प्रायः घरटया ि सुद्विधा द्विहीन होते हैं।
(iii) ऄनाकषयक पयायिरण-प्रायः प्रदूषणग्रस्त और कचरे के ढेर से युि होते हैं।

(iv) बेरोजगारी और प्रिास की समस्याओं से जूझते हैं।


(v) प्रायः कारखानों के बंद हो जाने से भूद्वम का भाग द्वतरस्कृ त पड़ा रहता है। पुराने बंद कारखाने
पयायिरण पर बदनुमा दाग की तरह क्रदखते हैं।

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1.2 ईच्च प्रौद्योद्वगकी ईद्योग (Hi-tech Industries)

अज ईच्च प्रौद्योद्वगकी का युग है। मनुष्य औद्योद्वगक युग और ईत्तर- औद्योद्वगक युग से रास्ता तय करते
हुए आस युग तक पहुंचा है। अज मनुष्य करोड़ों क्रक.मी. दूर ऄंतररक्ष में यान भेजता है तथा पृथ्िी पर से
ही ईपकरणों की मदद से ईनका संचालन करता है। ऄंतररक्ष में घूमते ऄपने ईपग्रहों से पृथ्िी के चप्पे-
चप्पे की खोज खबर लेता रहता है। आन ईपकरणों तथा आन जैसे ऄन्य ईपकरणों को ईच्च प्रौद्योद्वगकी के
िारा ही बनाया जाता है।
ईच्च प्रौद्योद्वगकी पररभाषा नहीं ऄद्वपतु एक संकल्पना है। आसमें गहन ऄनुसंधान, शोध तथा द्विकास के
प्रयत्नों िारा ऄद्वतद्विकद्वसत िैज्ञाद्वनक और आंजीद्वनयरी के ईपकरण बनाए जाते हैं। आन ईद्योगों की
श्रमशद्वि में गोल्ड कालर (Gold Collar) ऄध्यिसाद्वययों की संख्या ऄद्वधक होती है। आनमें शोध
िैज्ञाद्वनक, आं जीद्वनयर और प्रद्वशद्वक्षत तकनीद्वशयन शाद्वमल हैं। आन ऄत्यन्त कु शल द्विशेषज्ञों के साथ ही
कं धे से कं धा द्वमलाकर प्रशासक, द्वनरीक्षक, द्वििय द्विशेषज्ञ तथा ऄन्य ऐसे ही ऄनेक व्यद्वि आन ईद्योगों
में कायय करते हैं।

1.2.1 ईच्च प्रौद्योद्वगकी ईद्योगों के ईदाहरण

(Examples of High Technology Industries)


(i) आलेक्रॉद्वनक ईपकरणः आसमें कम्प्यूटर हाडयिय
े र ि सॉफ्टिेयर, दूरसंचार ईपकरण, औद्योद्वगक
द्वनयंत्रण व्यिस्था (System) परीक्षण और मापन ईपकरण, अधुद्वनक कायायलयी ईपकरण, ऄंतररक्ष
तथा सैन्य ईपकरण, ईपभोिा ईत्पादों के द्वलए आलेक्राद्वनक ईपकरण, मोटरिाहनों, िांबशग मशीनों,
ओिेन अक्रद स्िचालक ईपकरण।
(ii) सूक्ष्म-आलेक्रोद्वनक ईपकरण (Micro-electronics)
(iii) लेजर ईपकरण
(iv) जैि प्रौद्याद्वगकी ईपकरण
(v) द्वचक्रकत्सकीय ईपकरण-द्वडजीटल एक्स-रे मशीन, आको ईपकरण, शल्य द्वचक्रकत्सा ईपकरण।
(vi) व्यािसाद्वयक शोध और द्विकास (Applied research and Development-Robo)
ईच्च प्रौद्योद्वगकी ईद्योगों के प्रमुख देश
1. संयुि राज्य ऄमेररका
2. यू. के
3. जमयनी
4. फ्रांस
5. जापान
6. आटली
7. रूस
8. चीन
9. भारत

आनके ऄद्वतररि ईपभोिा की आलेक्रॉद्वनक िस्तुएं भी ईच्च प्रौद्याद्वगकी में सद्वम्मद्वलत हैं। आसमें रं गीन और
श्वेत-श्याम, टी. िी. सेट, रे द्वडयो, द्विद्वडयो कै सेट ररकॉडयर, ऑद्वडयो टेप ररकॉडयर, ररकॉडय प्लेयर, हाइ-
िाइ ईपकरण-जेबी (पॉके ट) आलेक्रॉद्वनक संगणक, खेल अक्रद शाद्वमल हैं।

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1.2.2 ऄल्पजीिी ईत्पाद (Products with Short Life)

ईच्च प्रौऺद्योद्वगकी िारा द्वनर्तमत ईत्पाद ऄल्पजीिी होते हैं। ऄनेक स्थानों पर द्वनरं तर शोध और द्विकास के
पररणामस्िरूप बाजार में द्वनत नए, पररष्कृ त और ऄद्वधक ईपयोगी ईत्पाद अ जाते हैं। नए ईत्पादों के

समाने पुराने ईत्पाद ऄनुपयोगी हो जाते हैं। कम्प्यूटर एक ऐसा ईपकरण है, द्वजसके नए-नए मॉडल

थोड़े-थोड़े समय बाद ही बाजार में अ जाते हैं। ऄतः प्रौद्योद्वगकी ईद्योगों में शोध और द्विकास (R & D

Research and Development)ऄद्वनिायय हैं। कं पद्वनयां ऄपने लाभ का कािी बड़ा भाग शोध पर
व्यय करती हैं।

1.2.3 ईच्च प्रौद्योद्वगकी ईद्योगों का द्वितरण

(Distribution of High Technology Industries)

आन ईद्योगों का संकेन्द्रण मुख्यतः द्विकद्वसत देशों में ही हुअ है। द्विकद्वसत देश ही शोध, ऄनुसंधान और
द्विकास पर बड़ी धनराद्वश व्यय कर सकते हैं। ईच्च प्रौद्योद्वगकी ईद्योगों के द्विकास की दृद्वष्ट से संयुि
राज्य ऄमेररका ऄग्रणी है। यहां 1960 के दशक में आन ईद्योगों का प्रारं भ हुअ। 1977 और 1995 के

मध्य आन ईद्योगों में 20 लाख लोगों को रोजगार द्वमला। संयि


ु राज्य ऄमेररका के कै द्वलिोर्तनया, न्यू

आं ग्लैड, न्यूजसी, टेक्सास, और द्वडलािेयर राज्यों में यह ईद्योग बहुत द्विकद्वसत हुअ है। सैन फ़्ांद्वसस्को के
द्वनकट द्वसद्वलकान घाटी आस ईद्योग का बहुत बड़ा के न्द्र है।
ईच्च प्रौद्योद्वगकी ईद्योगों के स्थानीयकरण के कारक
1. द्विश्वद्विद्यालयों और शोध संस्थानों से द्वनकटता

2. श्रद्वमक संघों के क्षेत्रों से दूरी

3. स्थानीय पूंजी

4. महानगरों से द्वनकटता

5. ईच्च कोरट के संचार और पररिहन साधन

6. स्िच्छ और ऄनुकूल पयायिरण

आनके ऄद्वतररि द्वसयाटल के द्वनकट द्वसद्वलकॉन िारे स्ट, ईत्तरी कै रोद्वलना का शोध द्वत्रकोण और यूटाह की

सॉफ्टिेयर घाटी, ईच्च प्रौद्याद्वगकी ईद्योगों के के न्द्र हैं। द्वमद्वनयोपोद्वलस और क्रिलाडेद्वल्िया में द्वचक्रकत्सा

ईपकरण, पूिी िर्तजद्वनया और टेक्सास के अद्वस्टन नगर में कम्प्यूटर और सेमी कं डक्टर, सैन एण्टोद्वनयो
(टेक्सास) में जैि प्रौद्योद्वगकी तथा न्यूजसी के द्वप्रसटन कौरीडोर में जैि प्रौद्योद्वगकी और दूरसंचार
ईपकरण बनाए जाते हैं।
द्विश्व के प्रमुख ईद्योग
 लौह आस्पात ईद्योग
 सूती िस्त्र ईद्योग
 ऑटोमोबाआल ईद्योग
 रासायद्वनक ईद्योग
 जहाज द्वनमायण ईद्योग
 तेल शोधन / ररिाआनरी ईद्योग
 कागज ईद्योग

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मानि के िो काययकलाप द्वजनसे अय प्राप्त होती है, ईन्हें अर्तथक क्रिया कहा जाता है। अर्तथक क्रियाओं
को मुख्यत: चार िगों में द्विभाद्वजत क्रकया जाता है - प्राथद्वमक, द्वितीयक, तृतीयक और चतुथयक क्रियाएँ।
ईद्योगों का दूसरा प्रचद्वलत िगीकरण, द्वनर्तमत ईत्पादकों की प्रकृ द्वत पर अधाररत है जैसे धातुकमीय

ईद्योग, यांद्वत्रक आंजीद्वनयरी ईद्योग, रासायद्वनक और सम्बर्द् ईद्योग, िस्त्र ईद्योग, खाद्य संसाधन
ईद्योग, आलेक्रॉद्वनक, संचार ईद्योग अक्रद। आन्हीं से संबंद्वधत द्विद्वभन्न ईद्योगों का िणयन नीचे क्रकया गया
है।
लौह आस्पात ईद्योग
लौह आस्पात ईद्योग एक अधारभूत ईद्योग है। आसे क्रकसी देश के ऄर्तथक द्विकास की धुरी माना जाता है।
आससे मशीन, औजार पररिहन, द्वनमायण, कृ द्वष ईपकरण अक्रद कइ ईद्योगों को कच्चे माल की अपूर्तत
होती है। िस्तुतः लौह-आस्पात का ईत्पादन क्रकसी भी देश के औद्योद्वगक द्विकास का सूचक है। लौह-
आस्पात ईद्योग सभी ईद्योगों का अधार है आसद्वलए आसे अधारभूत ईद्योग भी कहा जाता है। यह
अधारभूत ईद्योग आसद्वलए है क्योंक्रक यह ऄन्य ईद्यागों जैसे क्रक मशीन औजार जो अगे ईत्पादों के द्वलए
प्रयोग क्रकए जाते हैं, ईनको कच्चा माल प्रदान करता है। आसे भारी ईद्योग भी कहा जाता है, क्योंक्रक
आसमें बडीऺ मात्रा में भारी-भरकम कच्चा माल ईपयोग में लाया जाता है।
द्विश्व के ऄग्रणी ईत्पादक देश चीन, जापान, संयुि राज्य ऄमेररका, रूस, जमयनी, दद्वक्षणी कोररया,
ब्राजील, यूिेन, भारत, आटली, फ्रांस, यूनाआटेड ककगडम, कनाडा, बेद्वल्जयम, पोलैंड अक्रद हैं।
लोहा-आस्पात ईद्योग के स्थानीयकरण के कारक:
अधुद्वनक लौह-आस्पात संयंत्र द्विशाल अकार तथा समय क्रकतने प्रकार के होते हैं। समेक्रकत आस्पात
संयंत्रों में कोक- भरट्टयां, दहन-भरट्टयाँ, आस्पात भरट्टयाँ तथा रोबलग द्वमल एक ही स्थान पर द्वमलते हैं।
ऄतएि एक द्विशाल आस्पात संयत्र
ं लोहा-आस्पात ईद्योग हेतु द्वनम्नद्वलद्वखत तत्ि अिश्यक होते हैं:
 पयायप्त मात्रा में जल अपूर्तत
 कोककग कोयला
 पयायप्त मात्रा में पूज
ं ी तथा कु शल श्रम, प्रौद्योद्वगकी

 कच्चे माल कोयला, लौह ऄयस्क, चूना पत्थर, मैंगनीज़


 पररिहन के साधन
 बाजार
 तटीय प्रदेशों की समीपता
 सरकारी नीद्वत
लौह-आस्पात ईद्योगों का िैद्वश्वक द्वितरण-
यह ईद्योग मुख्यतः ईत्तर ऄमेररका, यूरोप, एद्वशया के द्विकद्वसत और कु छ द्विकासशील देशो में कें क्रद्रत हैं।
ऄमेररका में लौह आस्पात का ईत्पादन करने िाले प्रमुख क्षेत्र ईत्तर एप्लेद्वशयन प्रदेश, ऄटलांरटक एिं
िृहद झील क्षेत्र है।
आसके ऄद्वतररि लौह-आस्पात ईद्योगों के द्विश्व में ऄन्य कें द्र द्वनम्नद्वलद्वखत है:
द्वितरणः यह एक भारी ईद्योग है द्वजसमें ऄद्वधक पूज
ँ ी की अिश्यकता होती है। आसका ईत्तरी ऄमेररका,
यूरोप एिं एद्वशया के द्विकद्वसत देशों में के न्द्रीयकरण देखा जा सकता है।
 संयि
ु राज्य ऄमेररका में लौह-आस्पात का ईत्पादन करने िाले प्रमुख क्षेत्र है - ईत्तर एप्लेद्वशयन
प्रदेश (द्वपट्सबगय), महान झील क्षेत्र (द्वशकागो-गैरी, इरी, क्लीिलैंड, लोरे न, डेरॉआट, बिै लो एिं

ड्युलथ
ु ), ऄल्बामा तथा ऄटलांरटक तट (स्पैरोज पोआं ट एिं मोररसद्विले) हैं।
 कनाडा में हैद्वमल्टन, नोिा स्कोद्वशया,

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 यूरोप में ग्रेट द्वब्रटेन, जमयनी, बेद्वल्जयम, लक्जेम्बगय, नीदरलैंड एिं सोद्वियत रूस आसके मुख्य
ईत्पादक हैं। प्रमुख क्षेत्र आस प्रकार है: -
o ग्रेट द्वब्रटेन में बर्ममघम, शैिील्ड, िेल्स (न्यूपोटय, कार्तडि), न्यू कै सल।
o जमयनी में डू आसबगय, डॉटयमुंड, डु सेलडॉिय एिं ऐसेन

o फ़्ांस में नान्सी, द्वलली एिं सेंट एटीन,


सोद्वियत रूस:
द्विघटन के पूिय रूस द्विश्व का सबसे बड़ा लौह-आस्पात ईत्पादक देश था। यहाँ ऄिद्वस्थत मुख्य ईत्पादक
क्षेत्र है - यूराल क्षेत्र में मैद्वग्नटोगोस्कय , द्वनझनी ताद्वगल, कु जबास क्षेत्र में कामेन, नोिोद्वसद्वबस्कय तथा मध्य
क्षेत्र में मास्को, तुला, सेंट पीटसयबगय, लेद्वननग्राड। यूिेन में क्रििायराॅग, कचय, द्वनकोपोल एिं डोनेत्सक।
एद्वशया महािीप
 जापान में यािाटा, मौजी, ओसाका, नागासाकी, टोक्यो, योकोहामा
 चीन में शंघाइ, मंचूररया (अनशान)।

 भारत में जमशदेपुर, दुगायपुर, राईरके ला, द्वभलाइ, बोकारो, सलेम, द्विशाखापत्तनम एिं भद्रािती।
संयि
ु राज्य ऄमेररका का द्वपट्सबगय यंगस्टाईन लौह आस्पात प्रदेश
आस प्रदेश में द्वपट्सबगय में सियप्रथम आस्पात कारखाना स्थाद्वपत हुअ। गृह युर्द् के पूिय तथा पिात् में रे लों
के द्विस्तार के कारण आस्पात की मांग में भारी िृद्वर्द् हुइ। द्वपट्सबगय रे ल िारा पद्विमी पेनद्वसलिेद्वनया के
कोयला क्षेत्र तथा पूिय के औद्योद्वगक क्षेत्रों से जुड़ा था। सस्ते जल पररिहन की सुद्विधा प्राप्त थी।
सुपीररयर झील क्षेत्र की मीनोद्वमनी तथा मेसाबी श्रेद्वणयों के लौह ऄयस्क प्राप्त होने से आस क्षेत्र का
िास्तद्विक द्विकास हुअ। एप्लेद्वशयन के कोयला तथा बाजार की सुद्विधा होने आस प्रदेश को 1970 तक
देश का द्विशालतम आस्पात कें द्र बना क्रदया। यह प्रदेश देश का एक द्वतहाइ आस्पात ईत्पादन करता है
ककतु द्वितीय द्विश्वयुर्द् के बाद ईसका महत्ि कम हो गया है। दृष्टव्य है क्रक आस क्षेत्र को ‘जंग का कटोरा’
के नाम से जाना जाता है।

सूती-िस्त्र ईद्योग (Cotton Industry)


िस्त्र मानि की द्वनतांत अिश्यकता में से एक है।िस्त्र-द्वनमायण मानि के प्राचीनतम व्यिसाय में से एक
रहा है। मानि स्यता के प्रारं भ में भारत, चीन, द्वमस्र (मेसोपोटाद्वमया) में िस्तुओं का प्रचलन था ककतु
तब यह छोटे पैमाने तक ही द्वसद्वमत था।

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ितयमान में आस ईद्योग में सूती कपड़े का द्वनमायण हथकरघा, द्वबजली करघा एिं कारखानों में क्रकया जाता
है। हथकरघा क्षेत्रों में ऄद्वधक श्रद्वमकों की अिश्यकता होती है एिं यह ऄर्द्यकुशल श्रद्वमकों को रोजगार
प्रदान करता है। पूज
ँ ी की अिश्यकता भी आसमें कम होती है। आसके ऄंतगयत सूत की कताइ, बुनाइ अक्रद
का कायय क्रकया जाता है। द्वबजली करघों से कपड़ा बनाने में मशीनों का प्रयोग क्रकया जाता है, ऄतः आसमें
श्रद्वमकों की अिश्यकता कम पड़ती है एिं ईत्पादन भी ऄद्वधक होता है। कारखानों में कपड़ा बनाने के
द्वलए ऄद्वधक पूज
ँ ी की अिश्यकता होती है परं तु आसमें ऄच्छे प्रकार के कपडेऺ का बहुत ऄद्वधक मात्रा में
ईत्पादन क्रकया जाता है।
स्थानीयकरण कारक
सूती िस्त्र के द्वलए कच्चे माल के रूप में ऄच्छी क्रकस्म की कपास की अिश्यकता होती है। द्विश्व की 50
प्रद्वतशत से ऄद्वधक कपास का ईत्पादन भारत, चीन, संयुि राज्य ऄमेररका, पाक्रकस्तान, ईज्बेक्रकस्तान
एिं द्वमस्र में क्रकया जाता है। ग्रेट द्वब्रटेन, ईत्तरी पद्विमी यूरोप के देश एिं जापान भी अयाद्वतत धागे से
सूती कपड़े का ईत्पादन करते हैं। सूती िस्त्र ईद्योग का प्रमुख कच्चा माल कपास है। कपास या सूती धागा
द्विशुर्द् पदाथय है। ऄतएि कच्चे माल के द्वनकट का सूती िस्त्र ईद्योग की स्थापना का प्रमुख अधार नहीं
है। पररिहन का मूल्य समान ही होगा चाहे ईद्योग बजारों के द्वनकट स्थाद्वपत हो या कपास ईत्पादक
क्षेत्रों में। आस द्वस्थद्वत में ऄन्य कारक जैसे क्रक:
औद्योद्वगक शद्वि, जलिायु, सस्ता और कु शल श्रम, पूंजी, संगठन की योग्यता अक्रद ऄद्वधक महत्िपूणय
होते हैं। ऄतः कारखानों की स्थापना द्विद्वभन्न स्थानों पर हो सकती है। ऄनेक सूती िस्त्र के कारखाने,
द्वबना क्रकसी भिन की अर्तथक अधार के स्थाद्वपत हो गए हैं पररिहन के साधनों के द्विकास से ऄनेक
िस्त्र ईद्योग के कें द्र बेहतर द्वस्थद्वत िाले स्थानों पर स्थाद्वपत हो गए हैं। सूती िस्त्र ईद्योग आन्हीं कारणों से
द्विश्वभर में द्विकें क्रद्रत है। ितयमान में आस ईद्योग को कृ द्वत्रम रे शे से प्रद्वतस्पधाय का सामना करना पड़ रहा
है। द्वजसके कारण ऄनेक देशों में आसमें नकारात्मक प्रिृद्वत्त देखी जा रही है। िैज्ञाद्वनक प्रगद्वत एिं
तकनीकी सुधारों से ईद्योगों की संरचना में पररितयन होता है। यह ईद्योग ईन कम द्विकद्वसत देशों में
स्थानांतररत हो गया है, जहाँ श्रम की द्वनम्न लागत है।
द्विश्व में सूती िस्त्र ईद्योग द्वनम्नद्वलद्वखत क्षेत्रों में िै ले हुए है:
o एद्वशया
 चीन - शंघाइ (चीन का मैनचेस्टर), नानककग, कै ण्टेन।
 जापान - नागोया, टोक्रकयो-याकोहामा, कककी क्षेत्र (ओसाका, कोबे)। दृष्टव्य है क्रक ओसाका को
जापान का मैनचेस्टर कहा जाता है। जापान के बान्शु का सूती कपड़ा द्विश्व प्रद्वसर्द् है।
 भारत - गुजरात, महाराष्ट्र, तद्वमलनाडु अक्रद।
o CIS
 मास्को, आिानाओ (रूस का मैनचेस्टर), के द्वलद्वनन,
o यूरोप
 द्वब्रटेन - द्विश्व में सप्रयथम औधोद्वगक िांद्वत द्वब्रटेन में ही हुइ थी। यही कारण था की आस िांद्वत ने
सूती िस्त्र ईद्योग को भरपूर बढ़ािा क्रदया। लंकाशायर, ग्लासगो, मैनचेस्टर। मैनचेस्टर, द्वब्रटेन
के सूती िस्त्र ईद्योग का सिायद्वधक द्विकद्वसत एिं कें द्रीकृ त क्षेत्र है। आसका मुख्य कारण अद्रय
जलिायु, कु शल श्रद्वमक, पयायप्त कोयला एिं जलपूर्तत है।
 जमयनी - राइन नदी घाटी क्षेत्र (कोलोन), स्टु टगाडय, द्वलपबजग।
 फ्रांस - द्वलली, ररयरमाईं ट।
 आटली - द्वमलान, ट्डूररन।
o USA
 ईत्तर-पूिी क्षेत्र (रोड-अआलैंड, मेसाचुसेट्स, लॉरें स) तथा दद्वक्षणी क्षेत्र (कै रोद्वलना, ऄटलांटा)
o द्विश्व के सबसे ऄद्वधक िस्त्र द्वनयायतक देश है - 1. चीन, 2. यूरोपीय संघ, 3. भारत, 4. संयुि राज्य
ऄमेररका

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चीन:
चीन द्विश्व का 32 प्रद्वतशत से ऄद्वधक सूती धागा तथा लगभग 48% सूती िस्त्र का द्वनमायण करता है।
द्वनियस्त्र पर िस्त्र ईत्पादन का कायय याद की घाटी के ईत्तर में द्विस्तृत है। िकय शॉप स्तर पर िस्त्र द्वनमायण
तटिती क्षेत्रों से 240 क्रकलोमीटर के ऄंदर द्वस्थत गांि में होता है। 19िीं शताब्दी के मध्य में बड़े नगरों
में द्विदेद्वशयों ने चीन में पूज
ं ी, मशीन, तकनीकी तथा स्थानीय श्रद्वमकों की सहायता से िृहत कारखाना
स्तर पर िस्त्र ईत्पादन प्रारं भ क्रकया।
1949 इस्िी के पूिय चीन में सूती िस्त्र ईद्योग ऄद्वधकांश प्रश्नों तथा ईसके द्वनकटिती नगरों में शंघाइ के
स्थाद्वपत थे। ईपरोि पररदृश्य द्वितीय द्विश्वयुर्द्, गृह युर्द् तथा साम्यिादी शासन काल में द्वबल्कु ल
पररिर्ततत हो गया।
शंघाइ को चीन का मैनचेस्टर कहा जाता है। क्षेत्र में कच्चे माल की ईपलब्धता ऄथायत स्थानीय रूप से
ईपलब्ध कपास यहां पर सूती िस्त्र ईद्योग के द्विकास का प्रमुख कारण है। यांग्सी नदी के कारण यहाँ
जल की प्रचुर ईपलब्धता है। शीतोष्ण जलिायु प्रदेश में ईपद्वस्थत होने के कारण तथा समुद्री जलिायु
का समकारी प्रभाि भी क्रकस ईद्योग के िलने-िू लने का प्रमुख कारण है। बंदरगाह, रे ल से कनेक्टेड,
यांग्त्सी नदी के कारण ऄंतदेशीय जलमागय का द्विकास हुअ है। स्थानीय श्रम की बहुलता में ईपलब्ध है।

मुब
ं इ ओसाका, जापान

ईपनाम कॉटनपोद्वलस ऑि आं द्वडया मैनचेस्टर ऑि जापान

कच्चा माल कपास के द्वलए महाराष्ट्र की काली द्वमट्टी काली लािा मृदा = कपास की खेती के
ऄच्छी (लघु, मध्यम स्टेपल) द्वलए ऄच्छा है लेक्रकन मांग को पूरा करने
के द्वलए पयायप्त नहीं है
बंदरगाह स्थान = द्वमस्र, द्विदेशी िस्त्र
ओसाका = बंदरगाह स्थान, भारत, द्वमस्र
मशीनरी से लंबी-लंबी कपास अयात करना
असान है अक्रद से अयाद्वतत कपास से ऄद्वधक
ईत्पादन हुअ।

जलिायु समुद्र के द्वनकट जलिायु स्थान = अद्रय जलिायु = थ्रेड्स नहीं टू टते हैं

शद्वि/उजाय पद्विमी घाट में टाटा पनद्वबजली द्वग्रड से ओसाका के पास हाआडल पािर स्टेशन

पररिहन मुंबइ = रे ल, सड़क, िायुमागय, समुद्री मागो ओसाका = समुद्री बंदरगाह + महत्िपूणय
के माध्यम से ऄच्छी तरह से जुड़ा हुअ है। रे लिे जंक्शन।

जलापूर्तत मीठी नदी = डाआं ग, द्विरं जन के द्वलए नरम योडो नदी


पानी।

राजधानी ऄमेररकी नागररक युर्द् के दौरान मुब


ं इ के सरकारी और द्वनजी दोनों क्षेत्रों से ईपलब्ध
पूंजीपद्वतयों ने कपास का द्वनयायत करके है
ऄद्वधक लाभ कमाया। आस पैसे का आस्तेमाल
कपड़ा द्वमलों की स्थापना के द्वलए क्रकया
गया था।
अज, मुंबइ में बैंककग द्वित्त के द्वलए ऄच्छी
सुद्विधाएं हैं।

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श्रम सस्ता, प्रचुर, कु शल कु शल, लेक्रकन प्रचुर मात्रा में नहीं।
निीनतम मशीनों और स्िचालन
प्रौद्योद्वगकी का ईपयोग करके ईच्च
ईत्पादन।

बाजार मुंबइ और भारत = बड़ी अबादी = द्विशाल स्थानीय बाजार +ऑस्रेद्वलया, ऄमेररका
बाजार तक समुद्र से द्वनयायत + जापान भी
एमएिजी के द्वलए पेरो-ररिाआनरी ईप-
ईत्पादों का ईपयोग करता है। जैसे
संश्लेद्वषत रे शम।

मेनचेस्टर एिं लंकाशायर ईद्योग

जलिायु नम पछु िा पिन = नमी की ईपलब्धता = द्वजससे धागे टू टते नहीं

कच्चे माल ऄपने ईपद्वनिेशों से (भारत, द्वमस्र) से सस्ते कपास

पररिहन  द्वलिरपूल बंदरगाह


 बाद में मैनचेस्टर द्वशप नहर को मैनचेस्टर बंदरगाह में बदलने के द्वलए द्विकद्वसत
क्रकया गया था।

जलापूर्तत पेद्वनन पहाद्वड़यों से जल धाराएं = ब्लीबचग के द्वलए जल।

उजाय  औद्योद्वगक िांद्वत के प्रारं द्वभक चरण में, अकय राइट की कताइ मशीन चलाने के द्वलए
पेद्वनन पहाद्वड़यों से प्राप्त जल को उजाय के स्रोत के रूप में आस्तेमाल क्रकया गया था।
 बाद में, ईत्तरी आं ग्लैंड और िेल्स से कोयले का ईपयोग।

श्रम "िद्वस्टयन" नामक एक कपड़े का 1600 इ. में ईत्पादन का शुभारं भ आं ग्लैंड में क्रकया गया
था।
फ़द्वस्टयन द्वनमायता आस क्षेत्र में बस गए क्योंक्रक नमी कपास कताइ में मदद करता था।

बाजार यूरोप में मांग की िृद्वर्द् + लंकाशायर से ऄमेररकी बंदरगाहों को

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उनी िस्त्र ईद्योग
 आस ईद्योग का द्विकास मुख्यत: द्विश्व के मध्य ऄक्षांशीय देशों में हुअ है। आन्ही देशों में उन का
सबसे ऄद्वधक ईत्पादन भी क्रकया जाता है। द्विश्व के प्रमुख उनी िस्त्र द्वनमायता देश द्वनम्नद्वलद्वखत है:
 द्वब्रटेन - सबसे ऄद्वधक ईत्पादन याकय शायर क्षेत्र में क्रकया है। बेडिोटय, लीड्स ऄन्य प्रमुख क्षेत्र
है।
 CIS - मास्को, आिानोिा, गोरी, लेद्वननग्राड अक्रद क्षेत्र है।
 जापान - यहाँ पर यह ईद्योग मुख्यत: अयाद्वतत उन पर अधाररत है। ओसाका, कोबे,
टोक्रकयो, याकोहामा प्रमुख क्षेत्र है।
 USA - लारें स, क्रिलाडेद्वल्िया प्रमुख क्षेत्र है।
 भारत - जम्मू-कश्मीर, ऄमृतसर, लुद्वधयाना, मुम्बइ, कानपुर अक्रद।
ऑटोमोबाआल ईद्योग / मोटर िाहन ईद्योग-
मोटर िाहन ईद्योग यूरोप की देन है, जो दीघयकालीन प्रयोगों के पररणामस्िरूप द्विकद्वसत हुअ।1868
में ऑस्रेद्वलया के द्वसक्योररटी माक्सय ने गैसोलीन से चलने िाली गाड़ी का द्वनमायण क्रकया था। तत्पिात
जमयनी के नाथन ऑटो, कालय बेंज तथा गाटफ्रीडम डाआमलर तथा फ्रांस के एद्वमली लेिासर ने 1880 के
दशक में ऄनेक सुधार क्रकए। मोटर ईद्योग एक ऄसेंबली ईद्योग है। यह मूलतः लोहा आस्पात ईद्योग पर
द्वनभयर रहता है।
स्थानीयकरण कारक-
ऑटोमोबाआल ईद्योग:
 ऑटोमोबाआल ईद्योग को ऄन्य औद्योद्वगक स्रोतों से बड़ी मात्रा में कच्चे माल की अिश्यकता होती है
जैसे आस्पात, गैर-धातु, द्वखड़की-कांच, प्लाद्वस्टक, रबड़, लकड़ी, रं ग, कपड़ा, आलेक्रॉद्वनक के बल,
सीट कु शन अक्रद
 ऄसेंबली लाआन पर बड़े पैमाने पर ईत्पादन जारी रखने हेतु, अपको ईन स्पेयर पाट्सय, कच्चे माल
की द्वनरं तर अपूर्तत की अिश्यकता है।
 आसद्वलए, ऑटोमोबाआल ईद्योग के द्वलए सबसे ऄच्छा स्थान स्थाद्वपत औद्योद्वगक क्षेत्र होता है जहां
आस तरह के पुजों के द्वनमायण की परं परा है। (जैसे हमने पहले द्वमडलैंड्स में देखा, यूके = लेलैंड; रुर
जमयनी के पास मर्तसडीज / िोक्सिैगन, िोल्िो स्िीडन।)

महत्िपूणय क्षेत्र-
संयिु राज्य ऄमेररका का मोटर ईद्योग
संयुि राज्य ऄमेररका का मोटर ईद्योग ऄमेररकी गाड़ी ईद्योग का ही संशोद्वधत रूप था। मध्य पद्विम के
गाड़ी द्वनमायताओं ने नए क्रकस्म के िाहन बनाने का बीड़ा ईठाया। आस ईद्योग हेतु महान झील प्रदेश में
सभी सुद्विधाएं ईपलब्ध थी। यहां लकड़ी, भारी धातु, सस्ता जल पररिहन ईपलब्ध था। महान झीलों से
सस्ते जल पररिहन की सुद्विधा प्राप्त थी। आस प्रदेश में रे ल पररिहन पहले से द्विकद्वसत था। यहां सघन
अबादी थी। आन सब सुद्विधाओं ने आस प्रदेश में मोटर ईद्योग को प्रोत्साद्वहत क्रकया। डेरॉआट शीघ्र ही
मोटर ईद्योग का कें द्र बन गया।

डेरॉआट

पररिहन-
 डेरॉआट नदी के क्रकनारे पर, ह्यूरोन झील से जुड़ा हुअ है तथा ग्रेट लेक्स द्वजससे सस्ता एिं सुगम
पररिहन ईपलब्ध होता है
 डेरोआट नदी के पार बिडसर, सुरंग के माध्यम से कनाडा से जुड़ा हुअ है डेराआट कारों का बाजार
कनाडा में भी ईपलब्ध हो जाता हैं

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श्रम-
o 19 िीं शताब्दी के प्रारं भ में, अटा द्वमलों को उजाय स्रोत के रूप में नदी से चलने िाले पानी
का ईपयोग करके द्विकद्वसत क्रकया गया था।
o िलस्िरूप, क्षेत्र में छोटी-छोटी ररपेयररग की दुकानें खोली गइ।
o ईन्होंने द्वपट्सबगय क्षेत्र में लोहे-स्टील के स्मेल्टरों के द्वलए अिश्यक मशीन बनाना शुरू क्रकया।
o आस प्रकार, डेराआट में मशीनों की द्वनमायण की लंबी परं परा रही है - जो कु शल मजदूरों की
पीढ़ी + ऄद्वतररि स्पेयर आं डस्री ईपलब्धता के अगे बढ़ती गयी।
ईद्यद्वमयों िारा प्रयास-
द्विद्वलयम ड्यूरंट (जनरल मोटसय के जनक), शुरू में एक ही क्षेत्र में रे लिे गाड़ी का द्वनमायण करना प्रारम्भ
क्रकया।
o हेनरी िोडय, ने यहां ऄपनी िोडय ऑटोमोबाआल स्थाद्वपत की।
 कच्चे माल- द्वपट्सबगय से लोहे-स्टील की ईपलब्धता
o चूंक्रक डेराआट में मशीन-द्वनमायण की लंबी परं परा है, सीट कु शन, स्प्रे-पेंट, टायर, आलेक्रॉद्वनक

सर्ककट और िोडय, जीएम और क्रिसलर की ररद्वनटी के द्वलए द्विद्वभन्न कार सहायक ईपकरण के
द्वलए कच्चे माल ईपलब्ध कराने िाले पहले से स्थाद्वपत कइ मध्यिती ईद्योग हैं।
कनाडा में बिडसर बताओ टाटा मोटसय का प्रमुख ईद्योग कें द्र हैं।
 यूरोप में मोटर ईद्योग
o ग्रेट द्वब्रटेन- यह द्विश्व का तृतीय िृहत्तम मोटर द्वनमायता के देश है। किेंरी, ग्रेटर लंदन, बर्ममघम,

ऑक्सिोडय, कीि अक्रद कु छ प्रमुख मोटर द्वनमायण कें द्र हैं।किेंरी को द्वब्रटेन का डेराआट कहा
जाता है। ग्रेटर लंदन मोटर िाहनों का बड़ा द्वनयायतक भी है।
o फ्रांस- पेररस, जमयनी में िुल्फ्िगय, रूस में गोकी, आटली में त्युररन एिं द्वमलान यूरोप के प्रमुख

मोटर गाड़ी द्वनमायण कें द्र हैं। जमयनी की िॉक्सिैगन, द्वब्रटेन की रोल्स रॉयस, फ्रांस की रे नॉल्ट
तथा आटली की क्रिएट मोटर ईद्योग द्विश्व के प्रद्वतद्वष्ठत मोटर िाहन ईद्योग के नाम हैं।
o पूिय सोद्वियत संघ के ऄद्वधकांश मोटर द्वनमायण कें द्र यूराल के पद्विम में द्वस्थत है। मास्को,

गोकी, िे मेन चुंग, द्वमयास, एंजेल्स प्रमुख कें द्र हैं।


एद्वशया में ऑटोमोबाआल ईद्योग:
 भारत में मोटर ईद्योग जापान, कोररया, संयुि राज्य ऄमेररका तथा आटली के सहयोग से तेजी से

िृद्वर्द् कर रहा है। यात्री कार, लग्जरी कार अक्रद के मॉडल द्विकद्वसत हुए हैं। गुड़गांि में मारुती

सुजक
ु ी सबसे बड़ी कार द्वनमायता कं पनी है। मुब
ं इ, कोलकाता, चेन्नइ, जमशेदपुर ऄन्य प्रमुख कें द्र है।
(द्विस्तृत द्वििरण के द्वलए भारत के द्विद्वनमायण ईद्योग िाले ऄध्याय को देखें।)
 टोयोटा-नागोया क्षेत्र, जापान-

एद्वशया के 90% मोटर िाहन जापान में बनते हैं। जापान का मोटर ईद्योग लोहा आस्पात शद्वि
तथा सघन अबादी के क्षेत्रों में द्वस्थत है। संयंत्रों में बड़े पैमाने पर ऄसेंबली लाआन तकनीकी का
प्रयोग होता है। जापान द्विश्व में मोटरसाआक्रकल का सबसे बड़ा द्वनमायता तथा द्वनयायतक देश है।
मोटर ईद्योग के प्रमुख कें द्र टोक्यो, द्वहरोद्वशमा, कोरोमों, योकोहामा है।
द्वितीय द्विश्वयुर्द् के बाद से जापान में िामय ईपकरण द्वनमायण का भारी द्विकास हुअ। जापान का िामय
मशीनरी ईद्योग सात प्रमुख क्षेत्रों में द्विकद्वसत हुअ है:

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1. टोक्यो योकोहामा

2. कोबे- ओसाका

3. नागोया

4. द्वहरोद्वशमा

5. नागासाकी
 श्रम-
o कोरोमों में टोयोटा मोटर कं पनी ने ऄपना प्लांट स्थाद्वपत क्रकया। कोरमो जहाँ रे शम ईद्योग
समाप्त हो रहे थे, बेरोजगारी में िृद्वर्द् हुइ द्वजनसे नए ईद्योग हेतु सस्ता श्रम बल ईपलब्ध हुअ।
 तकनीकी-
o ररिसय आंजीद्वनयररग यूएस प्रौद्योद्वगकी िारा
 पररिहन-
o अस-पास के नागोया, मेरोपॉद्वलटन एररया जो सहायक कारपोरे ट सर्तिसेज के द्वलए अदशय था
तथा बंदरगाह से ऄमेररका और एद्वशया के ऄन्य देशों में कारों के द्वनयायत को बढ़ािा द्वमला।
 सरकारी नीद्वतयां-
o कोरोमो की स्थानीय सरकार ने कारखाने के द्वलए सस्ती जमीन प्रदान की।
रासायद्वनक ईद्योग (Chemical Industry)
रासायद्वनक ईद्योग एक कुं जी ईद्योग है द्वजसपर ऄनेक ईद्योग ऄपने ईत्पादों हेतु द्विद्वनमायण के द्वलए
द्वनभयर करते हैं। आस ईद्योग के ईत्पाद ऄन्य क्रकसी ईद्योग की ऄपेक्षा ऄत्यद्वधक द्विद्विधतापूणय हैं। आसके
ऄंतगयत िे ईद्योग अते हैं, जो औद्योद्वगक रसायनों का ईत्पादन करते हैं। आस ईद्योग को ऄथयव्यिस्था की

रीढ़ कहा जा सकता है। अधुद्वनक रासायद्वनक ईद्योग द्विज्ञान तथा प्रौद्योद्वगकी पर द्वनभयर है, आसकी
द्विद्वशष्ट अर्तथक एिं तकनीकी द्विशेषताएं होती हैं। अर्तथक द्विशेषताओं में तीव्र स्पधाय तीव्र ह्रास मूल्यों
की सापेक्ष द्वस्थरता तथा ईच्च पूज
ं ी द्वनिेश सद्वम्मद्वलत है। तकनीकी द्विशेषताओं में ऄनेक रासायद्वनक
पदाथों का ईत्पादन बहुत जरटल होता है। कइ प्रिम से सह-ईत्पाद प्राप्त होते हैं।
रसायनों का िगीकरण ऄनेक प्रकार से क्रकया जाता है- काबयद्वनक एिं ऄकाबयद्वनक, हल्के या भारी या

क्रिर आनके प्रकार, ईपयोग, कच्ची सामग्री के स्रोत तथा ईत्पादन के अधार पर।
ऄपररष्कृ त पेरोल से कइ प्रकार की िस्तुएँ तैयार की जाती हैं जो ऄनेक नए ईद्योगों के द्वलए कच्चा माल
ईपलब्ध कराती हैं, आन्हें सामूद्वहक रूप से पेरो-रसायन ईद्योग के नाम से जाना जाता है। ईद्योगों के आस

िगय को चार ईपिगों में द्विभाद्वजत क्रकया गया है: 1. पॉलीमर, 2. कृ द्वत्रम रे शे, 3. आलैस्टोमसय, 4. पृष्ठ

संक्रियक (Surfacant Intermediate)। आस ईद्योग को द्वनम्नद्वलद्वखत भागों में बांटा जा सकता है:

 काबयद्वनक - आसमें पेरो-रसायन जैसे कृ द्वत्रम िस्त्र, कृ द्वत्रम रबड़, एद्वथलीन, यूररया, प्लाद्वस्टक,
दिाइयाँ अक्रद शाद्वमल है।
 ऄकाबयद्वनक - आसमें सल्फ्यूररक ऄम्ल, नाआररक ऄम्ल, ऄमोद्वनया अक्रद को शाद्वमल क्रकया जाता है।

 कृ द्वष रसायन - ईियरक, कीटनाशक।

 द्विस्िोटक - नाआरोद्वग्लसरीन, ऄमोद्वनयम नाआरेट।

 व्युत्पन्न रसायन- साबुन, पेंट, चमयशोधक


 औषधी एिं दिा अक्रद
 पेरो रसायन - प्लाद्वस्टक, कृ द्वत्रम रबड़, गंधक

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स्थानीयकरण कारक-

रासायद्वनक ईद्योग की स्थापना में ऄिद्वस्थद्वत (location) तथा द्वस्थद्वत (site) प्रमुख द्विचारणीय तथ्य
है।
 ऄिद्वस्थद्वत कारक: ऄन्य ईद्योगों की भांद्वत रासायद्वनक ईद्योग की ऄिद्वस्थद्वत भी बाजार, कच्चे माल,

सस्ते पररिहन, शद्वि, प्रचुर जल तथा सरकारी नीद्वत पर द्वनभयर करती है।
 द्वस्थद्वतक कारक: रसायन ईद्योग के कारखाने की द्वस्थद्वत को द्वनधायररत करने िाले कारक सस्ती
तथा समतल भूद्वम, शुर्द् िायु, ऄपद्वशष्ट पदाथय को हटाने की व्यिस्था, दक्ष श्रद्वमक, श्रद्वमकों के रहने

की व्यिस्था, बद्वस्तयों से पयायप्त दूरी, ईद्वचत टैक्स आत्याक्रद हैं।

रासायद्वनक ईद्योग का िैद्वश्वक द्वितरण:

 USA - ईत्तर-पूिय भाग में - बाद्वल्टमोर, न्यूयांकय, बोस्टन तथा पद्विम भाग में - कै द्वलफ़ोर्तनया,
द्वशकागो अक्रद।
 रूस - मास्को, लेद्वननग्राड अक्रद।

 जापान - टोक्रकयो, ओसाका-कोबे, नागोया अक्रद।

 चीन - शंघाइ, नानककग अक्रद।


पेरो-रसायन : यह ईद्योग या तो कच्चे माल के क्षेत्र में द्वस्थत होता है या बाजार के द्वनकट।
 संयुि राज्य ऄमेररका: टेक्सास, ऄलबामा
 जापान: टोक्रकयो-याकोहामा
जहाज द्वनमायण ईद्योग:
जहाज द्वनमायण की दृद्वष्ट से जापान द्विश्व में प्रथम स्थान रखता है। स्िीडन एिं दद्वक्षण कोररया का स्थान
आसके बाद अता है। जापान में तटीय क्षेत्रों में आस्पात ईत्पादक कें द्रों की द्वस्थद्वत एिं प्राकृ द्वतक बंदरगाहों
की सुद्विधा के कारण आस ईद्योग का ऄत्यद्वधक द्विकास हुअ है।
प्रमुख ईत्पादक:
 जापान: द्विश्व में प्रथम स्थान रखता है। याकोहामा, टोक्रकयो, योकोसुका, नागासाकी।

 जमयनी: कील,ल्यूबक
े ।

 द्वब्रटेन - न्यूपोटय, िेस्टिे द्वलया।

 USA - बाद्वल्टमोर, स्परौज़ पॉआंट, कै मडन, फ्लोररडा।

 नीदरलैंड - एम्सटडयम, रॉटरडैम।

 डेनमाकय - कोपेनहेगन, नैकस्कोर।

 फ्रांस - सेंटनाज़ायर, नेरटज।

 भारत - द्विशाखापत्तनम, मुंबइ, कोलकाता, कोचीन।


तेल शोधन ईद्योग
खद्वनज तेल या पेरोद्वलयम का पररष्करण तेल शोधन कारखानों में होता है। पेरोद्वलयम एक बहु-
ईपयोगी पदाथय है। पेरोद्वलयम के पररष्करण प्रक्रिया में उजाय के ऄद्वतररि हजारों प्रकार के पदाथय बनाए
जाते हैं। द्वजनमें असिन क्रिया िारा द्वनर्तमत पेरोल, नेफ्था, के रोद्वसन,इधन के द्वलए तेल, मोम,

ऄलकतरा अक्रद प्रमुख हैं। 1918 में खद्वनज तेल से 25% तक पेरोल द्वनकाला जाता था ककतु प्राद्विद्वधक

क्षमता द्विकास होने से ऄब 50% से ऄद्वधक पेरोल प्राप्त होता है।

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स्थानीयकरण कारक
तेल शोधन कारखाना के स्थानीयकरण के प्रमुख कारक कच्चे तेल की प्राद्वप्त, बाजार या मांग, बड़ी पूंजी,
पररिहन के साधन, ईन्नत प्रौद्योद्वगकी तथा कु शल श्रद्वमकों की अपूर्तत है। तेल शोधन कारखाने
ऄद्वधकांशतः तेल ईत्पादक क्षेत्रों के द्वनकट ही स्थाद्वपत क्रकए जाते हैं। तेल शोधक कारखानों की
भौगोद्वलक द्वस्थद्वत प्रमुख तीन प्रकार की होती है: ईत्पादन क्षेत्र के द्वनकट, बाजार के द्वनकट,
ऄंतमयध्यिती द्वस्थद्वत। ऄंतमयध्यिती द्वस्थद्वत िाले कारखानें समुद्रतटीय होते हैं तथा मुख्यतः बाजारोन्मुख
होते हैं। समुद्री मागों या पाआपलाआनों िारा ईन्हें सस्ता कच्चा तेल प्राप्त होता है तथा बाजार की
द्वनकटता के कारण तैयार माल के पररिहन का खचय कम अता है। संयुि राज्य की खाड़ी तटीय तेल
शोधक कारखाने आसी प्रकार के हैं।
ईपरोि भौगोद्वलक अर्तथक कारकों के ऄद्वतररि राजनैद्वतक, प्रशासद्वनक तथा सुरक्षा संबंधी नीद्वतयां भी
कइ देशों के तेलशोधक कें द्रों के ऄिद्वस्थद्वत का द्वनधायरण करती है।क्या यह द्विदेशी कं पद्वनयां आन कारकों
को ऄद्वधक महत्ि देती हैं।
िैद्वश्वक द्वितरण :
 USA - संयुि राज्य ऄमेररका का द्विश्व में प्रथम स्थान है। द्वशकागो, न्यूयॉकय , लॉस एंद्वजल्स प्रमुख
बड़े कें द्र है।
 रूस - मास्को, गोकी, ब्रायांस्क, ओमस्क अक्रद प्रमुक कें द्र हैं।
 इरान - ऄबादान, पद्विमी एद्वशया का सबसे बड़ा कें द्र है।
 सउदी ऄरब - रास्तानुरा।
 िेनज
े ि
ु ल
े ा - अमुय।
 कोलंद्वबया - बैरंका।
 आजराआल - हैिा।
 लेबनान - द्वत्रपोली।
 आराक - क्रकरकु क, बगदाद, मोसुल।
 इरान - कमयनसाह।
कागज ईद्योग (Paper Industry)

द्विश्व का 90% कागज काष्ठ लुगदी से तैयार क्रकया जाता है। द्वशक्षा का प्रचार-प्रसार, व्यापार, बैंककग,
ईद्योग तथा सरकारी ि गैर-सरकारी संस्थानों या प्रद्वतष्ठानों में कागज का बहुधा प्रयोग क्रकया जाता है।
कागज एक ‘बायोद्वडग्रेडब
े ल’ पदाथय है एिं आसका ‘पुनचयिण’ क्रकया जा सकता है।
कागज ईद्योग के स्थानीयकरण में कच्चे माल की सुद्विधा सिायद्वधक महत्िपूणय है। ऄन्य कारकों में जल
द्विद्युत की अपूर्तत एिं बाजार की सुद्विधा महत्िपूणय है। यही कारण है क्रक द्विश्व के ऄद्वधकांश ऄखबारी
कागज एिं काष्ठ लुग्दी के कारखानें ईत्तरी गोलाधय में शंकुधारी िनों के दद्वक्षणी क्रकनारे पर द्वस्थत हैं। आस
ईद्योग की ऄिद्वस्थद्वत द्वनम्नद्वलद्वखत देशों में है -
 कनाडा
 USA
 जापान
 स्िीडन

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