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मत्स्य पालन का महत्व
मत्स्य पालन का महत्व
भारतीय इतिहास में दर्शन और भोजन दोनों दृष्टि से शुभ और श्रेष्ठ मानी जाने वाली मछली जलीय
पर्यावरण पर आश्रित है तथा जलीय पर्यावरण को संतुलित रखने में मछली की काफी महत्वपूर्ण
भूमिका होती है । यह कथन अपने में पर्याप्त बल रखता है जिस पानी में मछली नहीं हो तो निश्चित
ही उस पानी की जल जैविक स्थिति सामान्य नहीं है । वैज्ञानिकों द्वारा मछली को बायोइंडीकेटर
माना गया है । विभिन्न जलस्रोतों में चाहे तीव्र अथवा मन्द गति से प्रवाहित होने वाली नदियां हो,
चाहे प्राकृतिक झीलें, तालाब अथवा मानव-निर्मित बड़े या मध्यम आकार के जलाशय, सभी के
पर्यावरण का यदि सक्ष्
ू म अध्ययन किया जाय तो निष्कर्ष निकलता है कि पानी और मछली दोनों
एक दस
ू रे से काफी जुड़े हुए हैं। पर्यावरण को संतुलित रखने में मछली की विशेष उपयोगिता है ।
मत्स्य पालन हे तु कोई भी इच्छुक व्यक्ति जिसके पास अपना निजी तालाब हो अथवा निजी भमि
ू या
पट्टे का तालाब, उत्तर प्रदे श में किसी भी जिले में मत्स्य पालन की सवि
ु धा प्राप्त कर सकता है :-
मछलियों की वद्धि
ृ दर की जांच।
मत्स्य रोग की रोकथाम हे तु सीफेक्स का प्रयोग अथवा रोग ग्रस्त मछलियों को पोटे शियम
परमैगनेट या नमक के घोल में डालकर पुन: तालाब में छोड़ना।
पानी में प्राकृतिक भोजन की जांच।
परू क आहार दिया जाना।
ग्रास कार्प मछली के लिए जलीय वनस्पतियों (लेमरा, हाइड्रिला, नाजाज, सिरे टोजाइलम
आदि) का प्रयोग।
उर्वरकों का प्रयोग।
1. चतुर्थ त्रैमास (जनवरी, फरवरी एवं मार्च)
जिस प्रकार कृषि के लिए भूमि आवश्यक है उसी प्रकार मत्स्य पालन के लिए तालाब की
आवश्यकता होती है । ग्रामीण अंचलों में विभिन्न आकार प्रकार के तालाब व पोखरें पर्याप्त संख्या
में उपलब्ध होते हैं जो कि निजी, संस्थागत अथवा गांव सभाओं की सम्पत्ति होते हैं। इस प्रकार के
जल संसाधन या तो निष्प्रयोज्य पड़े रहते हैं अथवा उनका उपयोग मिट्टी निकालने, सिंघाड़े की
खेती करने, मवेशियों को पानी पिलाने, समीपवर्ती कृषि योग्य भूमि को सींचने आदि के लिए
किया जाता है ।
मत्स्य पालन हे तु 0.2 हे क्टे यर से 5.0 हे क्टे यर तक के ऐसे तालाबों का चयन किया जाना चाहिए
जिनमें वर्ष भर 8-9 माह पानी भरा रहे । तालाबों को सदाबहार रखने के लिए जल की आपूर्ति का
साधन होना चाहिए। तालाब में वर्ष भर एक से दो मीटर पानी अवश्य बना रहे । तालाब ऐसे क्षेत्रों में
चन
ु े जायें जो बाढ़ से प्रभावित न होते हों तथा तालाब तक आसानी से पहुंचा जा सके। बन्धों का
कटा फटा व ऊँचा होना, तल का असमान होना, पानी आने-जाने के रास्तों का न होना, दस ू रे क्षेत्रों
से अधिक पानी आने-जाने की सम्भावनाओं का बना रहना आदि कमियां स्वाभाविक रूप से
तालाब में पायी जाती हैं जिन्हें सुधार कर दरू किया जा सकता है । तालाब को उचित आकार-प्रकार
दे ने के लिए यदि कही पर टीले आदि हों तो उनकी मिट्टी निकाल का बन्धों पर डाल दे नी चाहिए।
कम गहराई वाले स्थान से मिट्टी निकालकर गहराई एक समान की जा सकती है । तालाब के बन्धें
बाढ़ स्तर से ऊंचे रखने चाहिए। पानी के आने व निकास के रास्ते में जाली की व्यवस्था आवश्यक
है ताकि पाली जाने वाली मछलियां बाहर न जा सकें और अवांछनीय मछलियां तालाब में न आ
सके। तालाब का सुधार कार्य माह अप्रैल व मई तक अवश्य करा लेना चाहिए जिससे मत्स्य पालन
करने हे तु समय मिल सके।p
नये तालाब के निर्माण हे तु उपयुक्त स्थल का चयन विशेष रूप से आवश्यक है । तालाब निर्माण के
लिए मिट्टी की जल धारण क्षमता व उर्वरकता को चयन का आधार माना जाना चाहिए। ऊसर व
बंजर भूमि पर तालाब नहीं बनाना चाहिए। जिस मिट्टी में अम्लीयता व क्षारीयता अधिक हो उस
पर भी तालाब निर्मित कराया जाना उचित नहीं होता है । इसके अतिरिक्त बलुई मिट्टी वाली भूमि
में भी तालाब का निर्माण उचित नहीं होता है क्योंकि बलुई मिट्टी वाले तालाबों में पानी नहीं रूक
पाता है । चिकनी मिट्टी वाली भमि
ू में तालाब का निर्माण सर्वथा उपयक्
ु त होता है । इस मिट्टी में
जलधारण क्षमता अधिक होती है । मिट्टी की पी-एच 6.5-8.0, आर्गेनिक कार्बन 1 प्रतिशत तथा
मिट्टी में रे त 40 प्रतिशत, सिल्ट 30 प्रतिशत व क्ले 30 प्रतिशत होना चाहिए। तालाब निर्माण के
पूर्व मद
ृ ा परीक्षण मत्स्य विभाग की प्रयोगशालाओं अथवा अन्य प्रयोगशालाओं से अवश्य करा
लेना चाहिए। तालाब के बंधे में दोनों ओर के ढलानों में आधार व ऊंचाई का अनुपात साधारणतया
2:1 या 1.5:1 होना उपयुक्त है । बंधे की ऊंचाई आरम्भ से ही वांछित ऊंचाई से अधिक रखनी
चाहिए ताकि मिट्टी पीटने, अपने भार तथा वर्षा के कारण कुछ वर्षों तक बैठती रहे । बंध का कटना
वनस्पतियों व घासों को लगाकर रोका जा सकता है । इसके लिए केले, पपीते आदि के पेड़ बंध के
बाहरी ढलान पर लगाये जा सकते हैं। नये तालाब का निर्माण एक महत्वपर्ण
ू कार्य है तथा इस
सम्बन्ध में मत्स्य विभाग के अधिकारियों का परामर्श लिया जाना चाहिए।
मत्स्य पालन प्रारम्भ करने से पूर्व यह अत्यधिक आवश्यक है कि मछली का बीज डालने के लिए
तालाब पूर्ण रूप से उपयुक्त हो।
तालाब में आवश्यकता से अधिक जलीय पौधों का होना मछली की अच्छी उपज के लिए
हानिकारक है । यह पौधे पानी का बहुत बड़ा भाग घेरे रहते हैं जिसमें मछली के घूमने-फिरने में
असवि
ु धा होती है । साथ ही यह सर्य
ू की किरणों को पानी के अन्दर पहुंचने में भी बाधा उत्पन्न
करते हैं। परिणामस्वरूप मछली का प्राकृतिक भोजन उत्पन्न होना रूक जाता है और प्राकृतिक
भोजन के अभाव में मछली की वद्धि
ृ पर विपरीत प्रभाव पड़ता है । इसके अतिरिक्त यह पौधे मिट्टी
में पाये जाने वाले रासायनिक पदार्थों का प्रचूषण करके अपनी बढ़ोत्तरी करते हैं और पानी की
पौष्टिकता कम हो जाती है । मछली पकड़ने के लिए यदि जाल चलाया जाय तब भी यह पौधे
रूकावट डालते हैं। सामान्यत: तालाबों में जलीय पौधे तीन प्रकार के होते हैं - एक पानी की सतह
वाले जैसे जलकुम्भी, लेमना आदि, दस
ू रे जड़ जमाने वाले जैसे कमल इत्यादि और तीसरे जल में
डूबे रहने वाले जैसे हाइड्रिला, नाजाज आदि। यदि तालाब में जलीय पौधों की मात्रा कम हो तो इन्हें
जाल चलाकर या श्रमिक लगाकर जड़ से उखाड़कर निकाला जा सकता है । अधिक जलीय
वनस्पति होने की दशा में रसायनों का प्रयोग जैसे 2-4 डी सोडियम लवण, टे फीसाइड, है क्सामार
तथा फरनेक्सान 8-10 कि०ग्रा० प्रति हे ० जलक्षेत्र में प्रयोग करने से जलकुम्भी, कमल आदि नष्ट
हो जाते हैं। रसायनों के प्रयोग के समय विशेष जानकारी मत्स्य विभाग के कार्यालयों से प्राप्त की
जानी चाहिए। कुछ जलमग्न पौधे ग्रास कार्प मछली का प्रिय भोजन होते हैं अत: इनकी रोकथाम
तालाब में ग्रासकार्प मछली पालकर की जा सकती है । उपयुक्त यही है कि अनावश्यक पौधों का
उन्मूलन मानव-शक्ति से ही सुनिश्चित किया जाय।
पुराने तालाबों में बहुत से अनावश्यक जन्तु जैसे कछुआ, में ढक, केकड़े और मछलियां जैसे
सिंधरी, पुठिया, चेलवा आदि एवं भक्षक मछलियां उदाहरणार्थ पढ़िन, टैंगन, सौल, गिरई, सिंघी,
मांगरु आदि पायी जाती हैं जो कि तालाब में उपलब्ध भोज्य पदार्थों को अपने भोजन के रूप में
ग्रहण करती हैं। मांसाहारी मछलियां कार्प मछलियों के बच्चों को खा जाती है जिससे मत्स्य
पालन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है । अत: इनकी सफाई नितान्त आवश्यक है । अवांछनीय
मछलियों का निष्कासन बार-बार जाल चलाकर या पानी निकाल कर अथवा महुआ की खली के
प्रयोग द्वारा किया जा सकता है । महुए की खली का प्रयोग एक हे क्टे यर क्षेत्रफल के एक मीटर
पानी की गहराई वाले तालाब में 25 कंु टल की दर से किया जाना चाहिए। इसके परिणाम स्वरूप 6-
8 घंटों में सारी मछलियां मर कर ऊपर आ जाती हैं जिन्हें जाल चलाकर एकत्र करके बाजार में बेचा
जा सकता है । महुए की खली का प्रयोग तालाब के लिए दोहरा प्रभाव डालता है । विष के अलावा
15-20 दिन बाद यह खाद का भी कार्य करती है जिससे मछली के प्राकृतिक भोजन का उत्पादन
होता है ।
पानी का हल्का क्षारीय होना म्त्स्य पालन के लिए लाभप्रद है । पानी अम्लीय अथवा अधिक
क्षारीय नहीं होना चाहिए। चूना जल की क्षारीयता बढ़ाता है अथवा जल की अम्लीयता व क्षारीयता
को संतुलित करता है । इसके अतिरिक्त चूना मछलियों को विभिन्न परोपजीवियों के प्रभाव से
मुक्त रखता है और तालाब का पानी उपयुक्त बनाता है । एक हे क्टे यर के तालाब में 250 कि०ग्रा०
चन
ू े का प्रयोग मत्स्य बीज संचय से एक माह पर्व
ू किया जाना चाहिए।
तालाब की तैयारी में गोबर की खाद की महत्वपूर्ण भूमिका है । इससे मछली का प्राकृतिक भोजन
उत्पन्न होता है । गोबर की खाद, मत्स्य बीज संचय से 15-20 दिन पर्व
ू सामान्तया 10-20 टन प्रति
हे ० प्रति वर्ष 10 समान मासिक किश्तों में प्रयोग की जानी चाहिए। यदि तालाब की तैयारी में
अवांछनीय मछलियों के निष्कासन के लिए महुआ की खली डाली गयी हो तो गोबर की खाद की
पहली किश्त डालने की आवश्यकता नहीं है ।
सामान्यत: रासायनिक खादों में यूरिया 200 किलोग्राम, सिंगिल सुपर फास्फेट 250 कि०ग्रा० व
म्यूरेट आफ पोटाश 40 कि०ग्रा० अर्थात कुल मिश्रण 490 कि०ग्रा० प्रति हे ० प्रति वर्ष 10 समान
मासिक किश्तों में प्रयोग किया जाना चाहिए। इस प्रकार 49 कि०ग्रा० प्रति हे ० प्रति माह
रासायनिक खादों के मिश्रण को गोबर की खाद के प्रयोग 15 दिन बाद तालाब में डाला जाना
चाहिए। यदि तालाब के पानी का रं ग गहरा हरा या गहरा नीला हो जाये तो उर्वरकों का प्रयोग तब
तक बन्द कर दे ना चाहिए जब तक पानी का रं ग उचित अवस्था में न आ जाये।
4. मत्स्य बीज की आपूर्ति :-
तालाब में ऐसी उत्तम मत्स्य प्रजातियों के शुद्ध बीज का संचय सुनिश्चित किया जाना चाहिए जो
कि एक ही जलीय वातावरण में रहकर एक दस ू रे को क्षति न पहुंचाते हुए तालाब की विभिन्न
सतहों पर उपलब्ध भोजन का उपभोग करें तथा तीव्रगति से बढ़ें । भारतीय मेजर कार्प मछलियों में
कतला, रोहू एवं नैन तथा विदे शी कार्प मछलियों में सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प एवं कामन कार्प का
मिश्रित पालन विशेष लाभकारी होता है । उत्तम मत्स्य प्रजातियों का शद्धु बीज, मत्स्य पालन की
आधारभत
ू आवश्यकता है । उत्तर प्रदे श मत्स्य विकास निगम की है चरियों तथा मत्स्य विभाग के
ू मत्स्य पालकों को आक्सीजन पैकिंग में तालाब तक
प्रक्षेत्रों पर उत्पादित बीज की आपर्ति
निर्धारित सरकारी दरों पर की जाती है । उत्तर प्रदे श को मत्स्य बीज उत्पादन के क्षेत्र में मांग के
अनुसार आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य मत्स्य बीज उत्पादन के निजीकरण पर विशेष बल दिया जा
रहा है तथा निजी क्षेत्र में 10 मिलियन क्षमता वाली एक मिनी मत्स्य बीज है चरी की स्थापना के
लिए रू० 8.00 लाख तक बैंक ऋण व इस पर 10 प्रतिशत शासकीय अनुदान की सुविधा अनुमन्य
है । मत्स्य पालक निजी क्षेत्रों में स्थापित छोटे आकार की है चरियों से भी शुद्ध बीज प्राप्त कर
सकते हैं।
तालाब में ऐसी मत्स्य प्रजातियों का पालन किया जाना चाहिए जो एक पर्यावरण में साथ-साथ रह
कर एक दस ू रे को क्षति न पहुंचाते हुए प्रत्येक सतह पर उपलब्ध भोजन का उपयोग करते हुए
तीव्रगति से बढ़ने वाली हों ताकि एक सीमित जलक्षेत्र से अधिक से अधिक मत्स्य उत्पादन
सुनिश्चित हो सके। भारतीय मेजर कार्प मछलियों में कतला, रोहू, नैन तथा विदे शी कार्प मछलियों
में सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प व कामन कार्प का मिश्रित पालन काफी लाभकारी होता है । तालाब में
मत्स्य बीज संचय से पूर्व यह विशेष ध्यान दे ने योग्य है कि तैयारी पूर्ण हो गयी है और जैविक
उत्पादन हो चुका है । मछली का प्राकृतिक भोजन जिसे प्लांक्टान कहते हैं पर्याप्त मात्रा में
उपलब्ध होना चाहिए। तालाब के 50 लीटर पानी में एक मि०ली० प्लांक्टान की उपलब्धता इस
बात का द्योतक है कि मत्स्य बीज संचय किया जा सकता है । एक हे ० जल क्षेत्र में 50 मि०मी०
आकार से कम का 10,000 मत्स्य बीज तथा 50 मि०मी० से अधिक आकार की 5000 अंगलि
ु काएं
संचित की जानी चाहिए। यदि छह प्रकार की दे शी व विदे शी कार्प मछलियों का मिश्रित पालन
किया जा रहा हो तो कतला 20 प्रतिशत सिल्वर कार्प 10 प्रतिशत, रोहू 30 प्रतिशत, ग्रास कार्प 10
प्रतिशत, नैन 15 प्रतिशत व कामन कार्प 15 प्रतिशत का अनुपात उपयुक्त होता है । यदि सिल्वर
कार्प व ग्रास कार्प मछलियों का पालन नहीं किया जा रहा है और 4 प्रकार की मछलियां पाली जा
रही हैं तो संचय अनुपात कतला 40 प्रतिशत, रोहू 30 प्रतिशत, नैन 15 प्रतिशत व कामन कार्प 15
प्रतिशत होना लाभकारी होता है । यदि केवल भारतीय मेजर कार्प मछलियों का ही पालन किया जा
रहा हो तो कतला 40 प्रतिशत, रोहू 30 प्रतिशत, नैन 30 प्रतिशत का अनुपात होना चाहिए। कामन
कार्प मछली का बीज मार्च, अप्रैल व मई में तथा अन्य कार्प मछलियों का बीज जल
ु ाई, अगस्त,
सितम्बर में प्राप्त किया जा सकता है ।
6. मद
ृ ा एवं जल का विस्तत
ृ विवरण
1. सैपरोलगनियोसिस
लक्षण :-शरीर पर रूई के गोल की भांति सफेदी लिए भूरे रं ग के गुच्छे उग जाते हैं। उपचार :- 3
प्रतिशत साधारण नमक घोल या कॉपर सल्फेट के 1:2000 सान्द्रता वाले घोल में 1:1000
पोटे शियम के घोल में 1-5 मिनट तक डुबाना छोटे तालाबों को एक ग्राम मैलाकाइट ग्रीन को 5-10
मी० पानी की दर प्रभावकारी है ।
2. बैंकियोमाइकोसिस
लक्षण :-गलफड़ों का सड़ना, दम घुटने के कारण रोगग्रस्त मछली ऊपरी सतह पर हवा पीने का
प्रयत्न करती है । बार-बार मुंह खोलती और बंद करती है । उपचार :- प्रदष
ू ण की रोकथाम, मीठे
पानी से तालाब में पानी के स्तर को बढ़ाकर या 50-100 कि०ग्रा०/हे ० चन
ू े का प्रयोग या 3-5
प्रतिशत नमक के घोल में स्नान या 0.5 मीटर गहराई वाले तालाबों में 8 कि०ग्रा०/हे ० की दर से
कॉपर सल्फेट का प्रयोग करना।
लक्षण :-आरम्भिक अवस्था में पंखों के किनारों पर सफेदी आना, बाद में पंखों तथा पंछ
ू का
सड़ना। उपचार :- पानी की स्वच्छता फोलिक एसिड को भोजन के साथ मिलाकर इमेक्विल दवा
10 मि०ली० प्रति 100 लीटर पानी में मिलाकर रोगग्रस्त मछली को 24 घंटे के लिए घोल में (2-3
बार)&nbsh3; एक्रिप्लेविन 1 प्रतिशत को एक हजार ली० पानी में 100 मि०ली० की दर से
मिलाकर मछली को घोल में 30 मिनट तक रखना चाहिए।
4. अल्सर (घाव)
लक्षण :-सिर, शरीर तथा पूंछ पर घावों का पाया जाना। उपचार :- 5 मि०ग्रा०/ली० की दर से
तालाब में पोटाश का प्रयोग, चूना 600 कि०ग्रा०/हे ०मी० (3 बार सात-सात दिनों के अन्तराल में ),
सीफेक्स 1 लीटर पानी में घोल बनाकर तालाब में डाले,
5. ड्राप्सी (जलोदर)
लक्षण :-आन्तरिक अंगो तथा उदर में पानी का जमाव उपचार :- मछलियों को स्वच्छ जल व
भोजन की उचित व्यवस्था, चन
ू ा 100 कि०ग्रा०/हे ० की दर से 15 दिन के उपरान्त (2-3 बार)
लक्षण :-नेत्रों में कॉरनिया का लाल होना प्रथम लक्षण, अन्त में आंखों का गिर जाना, गलफड़ों का
फीका रं ग इत्यादि उपचार :- पोटाश 2-3 पी०पी०एम०, टे रामाइसिन को भोजन 70-80 मि०ग्रा०
प्रतिकिलो मछली के भार के (10 दिनों तक), स्टे प्टोमाईसिन 25 मि०ग्रा० प्रति कि०ग्रा० वजन के
अनस
ु ार इन्जेक्शन का प्रयोग
8. इकथियोपथिरिऑसिस (खज
ु ली का सफेददाग)
लक्षण :-अधिक श्लेष्मा का स्त्राव, शरीर पर छोटे -छोटे अनेक सफेद दाने दिखाई दे ना उपचार :- 7-
10 दिनों तक हर दिन, 200 पी०पी०एम० फारगीलन के घोल का प्रयोग स्नान घंटे, 7 दिनों से
अधिक दिनों तक 2 प्रतिशत साधारण घोल का प्रयोग,
लक्षण :-श्वसन में कठिनाई, बेचैन होकर तालाब के किनारे शरीर को रगड़ना, त्वचा तथा गलफड़ों
पर अत्याधिक श्लेष स्त्राव, शरीर के ऊपर उपचार :- 2-3 प्रतिशत साधारण नमक के घोल में (5-
10 मिनट तक), 10 पी०पी०एम० कापर सल्फेट घोल का प्रयोग, 20-25 पी०पी०एम० फार्मोलिन
का प्रयोग
10. मिक्सोस्पोरोडिऑसिस
लक्षण :- त्वचा, मोनपक्ष, गलफड़ा और अपरकुलम पर सरसों के दाने उपचार :- 0.1 पी०पी०एम०
फार्मोलिन में , 50 पी०पी०एम० फार्मोलिन में 1-2 बराबर सफेद कोष्ट मिनट डुबोए, तालाब में 15-
25 पी०पी०एम० फार्मानिल हर दस
ू रे दिन, रोग समाप्त होने तक उपयोग करें , अधिक रोगी मछली
को मार दे ना चाहिए तथा मछली को दस
ू रे तालाब में स्थानान्तरित कर दे ना चाहिए।
11. कोसटिओसिस
लक्षण :-अत्याधिक श्लेषा, स्त्राव, श्वसन में कठिनाई और उत्तेजना उपचार :- 2-3 प्रतिशत
साधारण नमक 50 पी०पी०एम० फार्मोलिन के घोल में 5-10 मिनट तक या 1:500 ग्लेशियस
एसिटिक अम्ल के घोल में स्नान दे ना (10 मिनट तक)
लक्षण :-शरीर पर काले धब्बे उपचार :- परजीवी के जीवन चक्र को तोड़ना चाहिए। घोंघों या
पक्षियों से रोक
लक्षण :- कृमियों के जमाव के कारण उदर फूल जाता है । उपचार :- परजीवी के जीवन चक्र को
तोड़ना चाहिए इसके लिए जीवन चक्र से जड़
ु े जीवों घोंघे या पक्षियों का तालाब में प्रवेश वर्जित, 10
मिनट तक 1:500 फाइमलीन घोल में डुबोना, 1-3 प्रतिशत नमक के घोल का प्रयोग।
15. आरगल
ु ेसिस
लक्षण :- कमजोर विकृत रूप, शरीर पर लाल छोटे -छोटे ध्ब्बे इत्यादि उपचार :- 24 घण्टों तक
तालाब का पानी निष्कासित करने के पश्चात 0.1-0.2 ग्रा०/लीटर की दर से चन ू े का छिड़काव
गौमोक्सिन पखवाड़े में दो से तीन बार प्रयोग करना उत्तम है । 35 एम०एल० साइपरमेथिन दवा
100 लीटर पानी में घोलकर 1 हे ० की दर से तालाब में 5-5 दिन के अन्तर में तीन बार प्रयोग करे
लक्षण :-मछलियों में रक्तवाहिनता, कमजोरी तथा शरीर पर धब्बे उपचार :- हल्का रोग संक्रमण
होने से 1 पी०पी०एम० गैमेक्सीन का प्रयोग या तालाब में ब्रोमोस 50 को 0.12 पी०पी०एम० की दर
से उपयोग &nbsh3;
लक्षण :-प्रारम्भिक अवस्था में लाल दागमछली के शरीर पर पाये जाते हैं जो धीरे -धीरे गहरे होकर
सड़ने लगते हैं। मछलियों के पेट सिर तथा पछ ूं पर भी अल्सर पाए जाते हैं। अन्त में मछली की
मत्ृ यु हो जाती है । उपचार :-600 कि०ग्रा० चूना प्रति हे ० प्रभावकारी उपचार। सीफेक्स 1 लीटर प्रति
हे क्टे यर भी प्रभावकारी है ।
पूरक आहार
पूरक आहार
मछली की अधिक पैदावार के लिए यह आवश्यक है कि पूरक आहार दिया जाय। आहार ऐसा होना
चाहिए जो कि प्राकृतिक आहार की भांति पोषक तत्वों से परिपूर्ण हो। साधारणत: प्रोटीनयुक्त कम
खर्चीले परू क आहारों का उपयोग किया जाना चाहिए। मूंगफली, सरसों, नारियल या तिल की महीन
पिसी हुई खली और चावल का कना या गेहूं का चोकर बराबर मात्रा में मिलाकर मछलियों के कुल भार
का 1-2 प्रतिशत तक प्रतिदिन दिया जाना चाहिए। मछलियों के औसत वजन का अनम
ु ान 15-15
दिन बाद जाल चलवाकर कुछ मछलियों को तौलकर किया जा सकता है । यदि ग्रास कार्प मछली का
पालन किया जा रहा हो तो जलीय वनस्पति जैसे लेमना, हाइड्रिला, नाजाज, सिरे टोफाइलम आदि व
स्थलीय वनस्पति जैसे नैपियर, वरसीम व मक्का के पत्ते इत्यादि जितना भी वह खा सके, प्रतिदिन
दे ना चाहिए। पूरक आहार निश्चित समय व स्थान पर दिया जाय तथा जब पहले दिया गया आहार
मछलियों द्वारा खा लिया गया हो तब पुन: पूरक आहार दें । उपयोग के अनुसार मात्रा घटाई-बढ़ाई जा
सकती है । परू क आहार बांस द्वारा लटकाये गये थालों या ट्रे में रखकर दिया जा सकता है । यदि परू क
आहार के प्रयोग स्वरूप पानी की सतह पर काई की परत उत्पन्न हो जाय तो आहार का प्रयोग कुछ
समय के लिए रोक दे ना चाहिए क्योंकि तालाब के पानी में घलि
ु त आक्सीजन में कमी व मछलियों के
मरने की सम्भावना हो सकती है ।
सामान्य तौर पर पछ
ू ी जाने वाली प्रश्नावली
उत्तर
जनसंख्या वद्धि
ृ के अनुपात में खाद्यानों के उत्पादन में पर्याप्त वद्धि
ृ नहीं हो रही है । दध
ू , घी की की
कमी के कारण हमारे भोजन में मछली की विशेष उपयोगिता है । मीठे पानी की मछली में वसा बहुत
कम होती है और इसकी प्रोटीन शीघ्र पचने वाली होती है । आधुनिक शोधों ने यह सिद्ध किया है कि
अन्य प्रकार का मांस खाने वालों की अपेक्षा मछली खाने वालों को दिल की बीमारी कम होती है
क्योंकि यह खन
ू में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करती है । मछली में 14-25 प्रतिशत प्रोटीन के
अतिरिक्त कार्बोहाइड्रेड, खनिज, लवण, कैल्शियम, फासफोरस, लोहा आदि तत्व भी होते हैं।
उत्तर
मछली पालन हे तु जानकारी प्राप्त करने हे तु जनपद में स्थित सहायक निदे शक मत्स्य/मख्
ु य
कार्यकारी अधिकारी मत्स्य पालक विकास अभिकरण के कार्यालय से सम्पर्क किया जा सकता है ।
साथ ही मण्डल के मण्डलीय उप निदे शक मत्स्य कार्यालय से भी सम्पर्क कर जानकारी प्राप्त की जा
सकती है ।
उत्तर
मत्स्य पालन प्रारम्भ करने से पूर्व अप्रैल, मई एवं जून माह में तालाब मत्स्य पालन हे तु तैयार किया
जाता है ।
उत्तर
मछली पालन में मुख्य रूप से 6 प्रकार की मछलियां पाली जाती हैं यथा- भारतीय मेजर कार्प में रोहू,
कतला, मग
ृ ल (नैन) एवं विदे शी मेजर कार्प में सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प तथा कामन कार्प मुख्य है ।
उत्तर
मछली पालन हे तु बीज प्राप्त करने हे तु जनपद के मत्स्य पालक विकास अभिकरण से सम्पर्क किया
जा सकता है । जहाँ से मत्स्य बीज का पैसा जमा कराने पर अभिकरण द्वारा मत्स्य विकास निगम
की है चरी से मत्स्य बीज प्राप्त कर मत्स्य पालक के तालाब में डाला जाता है । इसके अतिरिक्त
मत्स्य पालक जनपदीय कार्यालय में मत्स्य बीज का पैसा जमा कराकर सीधे निगम की है चरी से
अपने साधन से मत्स्य बीज तालाब में डाल सकता है ।
उत्तर
नहीं, अपितु मछली पालन हे तु तालाब निर्माण, बंधों की मरम्मत, पूरक आहार, आदि मदों हे तु
विभाग द्वारा बैंक से ऋण हे तु प्रस्ताव तैयार कराकर प्रेषित किया जाता है ।
उत्तर
बैंक द्वारा स्वीकृत किये गये ऋण की धनराशि हे तु सामान्य जातियों को 20 प्रतिशत तथा
अनुसचि
ू त जाति/जनजाति के मत्स्य पालकों को 25 प्रतिशत विभाग द्वारा सरकारी अनुदान दिया
जाता है ।
उत्तर
मछलियों में मुख्यत: फफूंद, जीवाणुओं, प्रोटोजोआ परजीवियों, कृमियों, हिरूडिनिया आदि द्वारा
बीमारी उत्पन्न होती है जिसके निदान हे तु जनपदीय कार्यालय में सम्पर्क कर अधिकारियों/
कर्मचारियों से तकनीकी जानकारी प्राप्त कर उसके उपचार करना चाहिए।
उत्तर
मछली पालन हे तु मिट्टी एवं पानी की जांच होती है जिसके लिए मत्स्य पालक जनपद के मत्स्य
पालक विकास अभिकरण के कार्यालय में मिट्टी एवं पानी के नमन
ू े उपलब्ध कराकर मिट्टी, पानी की
नि:शल्
ु क जांच करा सकते हैं ताकि जांच के आधार पर अधिकारी/ कर्मचारी से तकनीकी सलाह प्राप्त
कर सकते हैं।
उत्तर
उत्तर
मत्स्य आहार का समय निर्धारण सुबह या शाम को करना चाहिए व एक निश्चित समय पर ही उन्हें
आहार दे ना चाहिए।
उत्तर
मत्स्य आहार दो तरह के होते हैं (1) फार्म्युलेटेड मत्स्य आहार (2) स्वयं का तैयार किया हुआ।
फार्म्युलेटेड मत्स्य आहार यू०पी० एग्रो एवं मत्स्य जीवी सहकारी संघ द्वारा प्राप्त किया जा सकता
है । फार्म्युलेटेड आहार उपलब्ध न होने पर चावल का कना और सरसों की खली का मिश्रण तैयार कर
मत्स्य आहार स्वयं तैयार किया जा सकता है ।
उत्तर
मत्स्य आहार को टोकरी में तालाब के चारों किनारे व बीच में पानी की सतह पर रखना चाहिए। यदि
आहार का उपभोग कम हो तो यह जांच करनी चाहिए कि मछलियां किसी बीमारी से पीड़ित तो नहीं
हैं।
उत्तर
कोई भी इच्छुक व्यक्ति जिसके पास निजी भूमि या तालाब अथवा पट्टे का तालाब हो मत्स्य पालन
कर सकता है । विभाग द्वारा सवि
ु धायें प्राप्त करने के लिए इच्छुक व्यक्ति मख्
ु य कार्यकारी
अधिकारी, मत्स्य पालक विकास अभिकरण से सम्पर्क कर सकते हैं।
प्रश्न 15. मत्स्य पालन करने के लिए विभाग द्वारा किन-किन व्यक्तियों को सहायता मिलती है ?
उत्तर
प्रश्न 16. मत्स्य पालन हे तु पट्टा आवंटन में किसे वरीयता दी जाती है ?
उत्तर
मत्स्य पालन हे तु पट्टा आवंटन में मछुआ समुदाय के लोगों को वरीयता दी जाती है ।
उत्तर
ग्राम सभा का पट्टा आवंटन हे तु ग्राम सभा द्वारा प्रस्ताव तैयार कर तहसीदार/ उप जिलाधिकारी को
प्रेषित किया जाता है जिनके द्वारा पट्टा निर्गमन की तैयारी की जाती है ।
उत्तर
पट्टाधारक जनपद स्तरीय मत्स्य कार्यालय में सम्पर्क कर सकते हैं जिसके द्वारा ऋण हे तु प्रस्ताव
बैंक को प्रेषित किया जाता है ।
प्रश्न 19. मत्स्य पालन के लिए क्या आर्थिक सहायता विभाग द्वारा दी जाती है ?
उत्तर
नये तालाब निर्माण एवं प्रथम बार के उत्पादन निवेश हे तु 20 प्रतिशत की दर से अधिकतम रू०
40,000/- एवं रू० 6,000/- प्रति हे क्टे यर क्रमश: तथा अनुसचि
ू त एवं जनजाति के व्यक्तियों के लिए
25 प्रतिशत की दर से अधिकतम रू० 50,000/- एवं 7,500/- प्रति हे क्टे यर क्रमश: का शासकीय
अनुदान अनुमन्य है ।
उत्तर
भारतीय मेजर कार्प के मत्स्य बीज हे तु माह जुलाई से सितम्बर तक का समय मत्स्य संचय हे तु
उपयुक्त होता है । कामन कार्प का मत्स्य बीज मार्च/अप्रैल में संचित किया जाता है ।
उत्तर
मछलियों को उनके शारीरिक वजन के 2-3 प्रतिशत अनुपात में मत्स्य आहार दे ना चाहिए।
प्रश्न 22. तालाब की सफाई कब और कैसे करनी चाहिए ?
उत्तर
तालाब की सफाई संचय के पूर्व अप्रैल या मई माह में करनी चाहिए। तालाब की सफाई हे तु ट्रै क्टर से
अच्छी तरह जुताई करके चूना या गोबर की खाद डालने के 15 दिन बाद पानी भरकर तथा उसके 15
दिन बाद मत्स्य संचय करना चाहिए।
उत्तर
तालाब से पानी की निकासी बरसात में गंदा पानी या सीवर का पानी आ जाने पर अथवा मछलियों के
रोग ग्रसित होने पर की जानी चाहिए।
उत्तर
यदि तालाब में मछली मर जाय तो उसे जला दे ना चाहिए अथवा जमीन में गाड़ दे ना चाहिए। ऐसी
मछली को बाजार में विक्रय हे तु कभी नहीं ले जाना चाहिए।
प्रश्न 25. एक हे क्टे यर तालाब में कितना मत्स्य बीज संचय किया जाना चाहिए ?
उत्तर
25-50 मि०मी० आकार के 10 हजार से 15 हजार मत्स्य बीज प्रति हे क्टे यर संचय किया जाना
चाहिए।
उत्तर
उत्तर
प्रदे श में थाई मांगरु का पालन प्रतिबन्धित है क्योंकि मांसाहारी होने के कारण तालाब में पाली गयी
मछलियों को नुकसान पहुंचाती है ।
प्रश्न 27. विभाग द्वारा मत्स्य पालन हे तु क्या प्रशिक्षण दिया जाता है ?
उत्तर
विभाग द्वारा मत्स्य पालन, मत्स्य बीज संचय, रखरखाव मत्स्य पालन में अपनायी जा रही
नवीनतम तकनीकों एवं विपणन आदि पर विस्तत
ृ जानकारी 10 दिवसीय प्रशिक्षण के दौरान दी
जाती है ।
प्रश्न 28. क्या प्रशिक्षण के दौरान किसी प्रकार की आर्थिक सहायता का प्राविधान है ?
उत्तर
मछली पालन हे तु प्रत्येक जनपद के मत्स्य पालक विकास अभिकरण द्वारा प्रशिक्षणार्थी को रू०
100/- प्रशिक्षण भत्ता प्रति दिन तथा एक मुश्त रू० 100/- भ्रमण भत्ता विभाग की ओर से दिया
जाता है ।
प्रश्न 29. प्रदे श में कौन-कौन से उपलब्ध जलक्षेत्र हैं और उनका क्षेत्रफल क्या है ?
उत्तर
उत्तर
प्रदे श में उपलब्ध जल संसाधन बहता हुआ पानी जैसे नदियां/नहरें 28500 कि०मी० एवं बंधा हुआ
पानी जैसे मानव निर्मित बहृ द एवं मध्यमाकार जलाशय 1.38 लाख हे ०, प्राकृतिक झीलें 1.33 लाख
हे ० एवं ग्रामीण अंचलों में स्थित तालाब 1.61 लाख हे ० हैं।
उत्तर
मत्स्य बीज संचय के समय आक्सीजन पैक से भरे बीज को तालाब में कुछ दे र के लिए छोड़ दे ना
चाहिए ताकि पैक का तापमान तालाब के जल के तापमान के अनरू
ु प हो जाय ताकि मत्स्य बीज को
तापमान में अंतर के कारण नक
ु सान न हो। संचय धप
ू में नहीं करना चाहिए।
उत्तर
मत्स्य पालकों को बिचौलियों से मुक्ति दिलाने हे तु प्रदे श के पांच जनपदों गोरखपुर, गाजियाबाद,
इलाहाबार, बरे ली तथा लखनऊ में मत्स्य विपणन इकाईयों की स्थापना की गयी है । थोक विक्रय हे तु
मण्डी परिषद द्वारा दक
ु ानों की व्यवस्था, फुटकर बिक्री हे तु नगर निगम के माध्यम से कियोस्क एवं
नागरिकों को मछली उपलब्ध कराने हे तु साइकिल एवं आइस बाक्स के माध्यम से बिक्री की
व्यवस्था है ।
प्रश्न 33. मत्स्य पालन के साथ और कौन-कौन से कार्य किये जा सकते हैं ?
उत्तर
समन्वित मत्स्य पालन योजनान्तर्गत बत्तख, पशु, सूकर आदि पालन किया जा सकता है जिसके
साथ ही बन्धों पर पपीता, केला, सागभाजी भी उगाये जा सकते हैं जिससे बन्धें मजबत
ू होते हैं और
अतिरिक्त आय भी होती है ।
प्रश्न 34. मत्स्य उत्पादन बढ़ाने के लिए किन अन्य उपकरणों का उपयोग किया जा सकता है ?
उत्तर
मत्स्य उत्पादकता को बढ़ाने हे तु ऐरे टर स्थापित किया जा सकता है । ऐरे टर स्थापित करने हे तु एक
हे ० जलक्षेत्र के लिए रू० 50,000/- प्रति यनि
ू ट एक हार्सपावर के दो ऐरे टर/एक पांच हार्सपावर का
डीजल पम्प की वित्तीय सहायता विभाग द्वारा प्रदान की जाती है तथा अधिकतम रू० 12,500/-
प्रति सेट हे तु शासकीय अनुदान अनुमन्य है ।
उत्तर
विभागीय श्रेणी 4 के तालाबों की नीलामी जिलाधिकारी की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा की
जाती है जिसमें विभाग के जनपदीय अधिकारी सदस्य होते हैं। श्रेणी-2 एवं 3 के जलाशयों की
नीलामी मण्डल स्तर पर संयुक्त विकास आयक्
ु त की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा की जाती
है ।
प्रश्न 36. मत्स्य पालन हे तु मत्स्य बीज किस अनुपात में संचित करना चाहिए ?
उत्तर
मत्स्य पालन हे तु मत्स्य बीज संचय दो प्रकार किया जाता है । यदि केवल भारतीय मेजर कार्प का
संचय किया जाना हो तो कतला 40 प्रतिशत, रोहू 30 प्रतिशत एवं नैन 30 प्रतिशत के अनुपात में तथा
यदि भारतीय मेजर कार्प के साथ विदे शी कार्प मछलियों का संचय किया जाना हो तो कतला 30
प्रतिशत, रोहू 30 प्रतिशत, नैन 20 प्रतिशत एवं विदे शी कार्प 20 प्रतिशत का अनप
ु ात रखा जाता है ।
प्रश्न 37. जिल तालाबों को सुखाया नहीं जा सकता उसकी तैयारी कैसे करें ?
उत्तर
मौजूदा तालाबों में मत्स्य पालन करने से पूर्व अवांछनीय वनस्पति एवं मछलियों की निकासी
आवश्यक है । वनस्पतियां हाथ से तथा मछलियां 25 कुन्तल प्रति हे क्टे यर प्रति मीटर पानी की
गहराई की दर से महुआ की खली का प्रयोग कर अथवा बार-बार जाल चलाकर निकाली जा सकती हैं।
उद्देश्य :-
अधिकाधिक प्राथमिक, मत्स्य सहकारी समितियों व जनपदीय संघों को सदस्यता कार्यक्रम के
अन्तर्गत आच्छादित करते हुए संघ की संगठनात्मक स्थिति सुदृढ़ किया जाना। संघ की सदस्य
प्राथमिक मत्स्य सहकारी समितियों/जनपदीय संघों की सामाजिक आर्थिक व व्यवसायिक स्थिति
सदृ
ु ढ़ किये जाने हे तु प्रोन्नतीय कार्यों के साथ-साथ संघ को अपने आप में स्वावलम्बी बनाये जाने
हे तु प्रयास तथा सहकारी के माध्यम से मत्स्य व्यवसाय कार्यक्रमों के संचालन में गतिशीलता लाकर
प्रदे श में मत्स्य सहकारिता की नींव सदृ
ु ढ़ किया जाना संघ की मल
ू भत
ू धारणा है ।
सहकारिता की मल
ू भावना के अन्तर्गत संघ की स्थिति सदृ
ु ढ़ किये जाने हे तु सदस्यता कार्यक्रम
का संचालन किया जा रहा है ।
(अ) मत्स्य विभाग से पंजीकृत / मान्यता प्राप्त प्राथमिक मत्स्य सहकारी समितियों व जनपद
स्तरीय मत्स्य संघों के लिए प्रादे शिक मत्स्य संघ की सदस्यता ग्रहण किया जाना ऐच्छिक है ।
(ब) प्रादे शिक मत्स्य संघ की सदस्यता हे तु प्रवेश शुल्क रू० 10/- है तथा अंशधन प्राथमिक
समितियों के लिए रू० 1000/- व जनपदीय संघ के लिए रू० 10000/- है ।
(स) सदस्यता ग्रहण किये जाने से सम्बन्धित समस्त निर्धारित प्रारूप संघ कार्यालय से नि:शुल्क
उपलब्ध कराया जाता है ।
प्रदे श में लघु एवं सीमान्त कृषकों हे तु मछुआ समुदाय के आर्थिक एवं सामूहिक विकास हे तु भारत
सरकार की शक्तिकरण योजना के अन्तर्गत उ०प्र० मत्स्य जीवी सहकारी संघ के माध्यम से
इसकी सदस्य प्राथमिक मत्स्य सहकारी समितियों व जनपद स्तरीय मत्स्य संघों को क्रियाशील
किये जाने हे तु वित्तीय सहायता उपलबध करायी जाती है ।
3. प्रचार-प्रसार
प्रदे श में मत्स्य सहकारिता को गति दे ने के उद्देश्य से गोष्ठियों, सम्मेलनों आदि का समय-समय
पर आयोजन किया जाता है । इसके अतिरिक्त सहकारिता सम्बन्धी साहित्य का संकलन व
वितरण के साथ ही पत्र-पत्रिकाओं आदि में विज्ञापन के माध्यम से मत्स्य सहकारिता कार्यक्रमों
का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाता है ।
4. प्रशिक्षण कार्यक्रम
(अ) सदस्य समितियों/जनपदीय संघों के सचिवों/प्रतिनिधियों के लिए :-
मत्स्य सहकारिता कार्यक्रमों के संचालन में मत्स्य विभाग के जनपद स्तरीय अधिकारियों की
भमि
ू का प्रभावी व सशक्त किये जाने के उद्देश्य से अल्पकालिक प्रबन्धकीय विकास कार्यक्रम के
आयोजन में भी सहयोग किया जाता है ।