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Hindi Notes on Agricultural Water Management-AGRO-5121 by Dr.G.S.

Tomar

प्रस्तावना
जल एक अमूल्य प्राकृ ततक संसाधन है जो सम्पूर्ण पारितस्िततक तंत्र के तलए महत्वपूर्ण है। जल जीवन, जीतवका,
खाध्य सुिक्षा औि तनिं ति तवकास का आधाि है। हमािे देश में वर्ाण औि बर्ण तपघलने से औसतन 4000 अबण घन मीरि
जल प्राप्त होता है, तजसमें से कार्ी पानी तबना ककसी उपयोग के व्यिण में बहकि नदी-नालों के द्वािा समुद्र में चला जाता
है। भाित में 85 प्रततशत पानी कृ तर् कायों में इस्तेमाल ककया जाता है, पिन्तु ससंचाई दक्षता बहुत कम है । बढती हुई
जनसँख्या तिा औद्योतगकिर् के कािर् जल की मांग बढती जा िही है। ऐसे में उपलब्ध जल ससाधनों के सिं क्षर्, कु शल
उपयोग कि अतधक क्षेत्रर्ल में ससंचाई उपलब्ध किाना तिा प्रतत इकाई जल से अतधक लाभ प्राप्त किना तनतान्त
आवश्यक है। इसी ताितम्य में भाित सिकाि ने ‘प्रतत बूंद अतधक र्सल’ के संकल्प के साि देश में प्रधानमंत्री ससंचाई
योजना प्रािम्भ की है। कृ तर् तशक्षा में जल प्रबंध सबसे महत्वपूर्ण तवर्य है। जल संसाधनों के कु शल प्रबंधन तिा र्सलों में
कब, ककतनी औि कै से ससंचाई की जाये आकद तवर्यों के बािे में ककसानों को तशतक्षत-प्रतशतक्षत किना जरुिी है औि इस
कायण में कृ तर् स्नातक तनर्ाणयक भूतमका अदा कि सकते है । इसतलए भाितीय कृ तर् अनुसंधान परिर्द, नई कदल्ली द्वािा
गरित पंचम अतधष्ठाताओं की सतमतत ने बी.एस.सी.(आनसण) कृ तर् एवं उद्यातनकी के पाठ्यक्रम में कृ तर् जल प्रबंध के तवर्य
को आवश्यक तवर्य िखा है।
कृ तर् स्नातक तशक्षा में प्रवेतशत अतधकांश छात्र-छात्राएं ग्रामीर् परिवेश औि कृ र्क परिवाि से आते है तजनकी
अतभव्यति का माध्यम स्िानीय बोली-सहंदी भार्ा होती है। परिवेश से दूि की भार्ा में छात्र जानकारियों, तथ्यों,
अवधािर्ाओं को के वल िर सकते है औि िरने से ज्ञान तनमाणर् संभव नहीं है औि न ही उनकी िचनात्मकता । वे साक्षि
हो सकते हैं, पिन्तु तशतक्षत नहीं। मातृभार्ा ककताबी ज्ञान को वास्ततवक जीवन से जोड़ने में भी मददगाि होती है। मेिा
स्पष्ट मानना है कक कृ तर् तशक्षा पिन-पािन मातृभार्ा में होने से कृ तर् स्नातक कृ तर् की आधुतनक तकनीकों को गाँव
ककसान तक पहुंचाने में सर्ल हो सकते है।मैंने गत कई वर्ो से स्नातक स्ति पि सस्य तवज्ञान के तवतभन्न तवर्य पढ़ाते हुए
यह अनुभव ककया है कक देश में सहंदी माध्यम में अध्ययन किने वाले छात्रों के पिन-पािन के तलए सहंदी भार्ा में अच्छे
सातहत्य का अभाव बना हुआ है। इसी आवश्यकता की पूती किने के तलए मैंने पंचम अतधष्ठाताओं की सतमतत द्वािा संस्तुत
नवीन पाठ्यक्रम के अनुसाि मैंने “कृ तर् जल प्रबंध” (Agricultural Water Management-AGRO-5121) तवर्य पि
सहंदी में नोट्स तैयाि कि तवद्यार्िणयों को तनिःशुल्क उपलब्ध किाने का वीर्ा उिाया है। इसमें भार्ा शैली सिल एवं सुबोध
िखते हुए यिाआवश्यक स्वतनर्मणत तचत्र एवं उदाहिर् के माध्यम से पिन सामग्री को रुतचकि बनाने का तवनम्र प्रयास
ककया गया है।
मुझे आशा है कक मातृभार्ा में प्रस्तुत नोट्स कृ तर् जल प्रबंध के सैद्ांततक तिा प्रायोतगक पक्ष को समझने में कृ तर्
स्नातकों के साि-साि कृ तर् प्रसाि अतधकारियों एवं ककसानों का मागणदशणन किने में कािगि तसद् होंगे।
डॉ.गजेन्द्र ससंह तोमि,
प्राध्यापक (सस्यतवज्ञान)
कृ तर् महातवद्यालय एवं अनुसंधान कें द्र, महासमुंद (छत्तीसगढ़)

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तवर्य सूची (CONTENTS)


L.No. व्याख्यान (Lecture topics) Page
0 Syllabus-Agricultural Water Management Course No.AGRO-5121 04
1 ससंचाई- परिभार्ा, महत्व-आवश्यकता एवं ससंचाई के तसद्ांत (Irrigation –Definition, Importance, 5-9
necessity & principles)
2 भाित एवं छत्तीसगढ़ के जल संसाधन एवं ससंचाई के साधन (Water Resources-India and 10-20
Chhattisgarh, sources of irrigation water in India and Chhattisgarh)
3 मृदा के भौततक गुर्ों का मृदा जल सम्बन्ध पि प्रभाव (Soil physical properties influencing soil 21-32
water relations)
4 मृदा जल धािर् तिा मृदा जल संचलन (Water retention and movement in soil)
33-43
5 मृदा जल के प्रकाि (Kinds of soil water) 44-47
6 मृदा नमीं तस्ििांक एवं मृदा जल उपलब्धता की परिकल्पना (Soil moisture constants and 48-53
hypothesis of soil moistur availability)
7 मृदा नमीं मापन की तवतधयाँ (Methods of soil moisture measurement) 54-60
8 मृदा-पौध-जल सम्बन्ध (Soil-plant and plant-water relationship) 61-66
9 वाष्प-वाष्पोत्सजणन (Evapotranspiration) एवं वाष्पन-वाष्पोत्सजणन को प्रभातवत किने वाले कािक 67-73
(factors affecting evapotranspiration)
10 र्सल जलमांग एवं ससंचाई आवश्यकता (Crop Water requirements and Irrigation requirement) 74-83
11 ड्यूरी, प्रभावी वर्ाण, ससंचाई जल की इकाइयां तिा संयुतममत जल उपयोग (Duty of water, effective 84-87
rainfall and conjunctive use of water)
12 ससंचाई तनधाणिर्-मृदा हांतन के आधाि पि (Scheduling of irrigation- soil moisture regime 88-92
approaches)
13 ससंचाई तनधाणिर्-पौध गुर् एवं जलवायुतवक तवतधयाँ (Scheduling of irrigation-plant indices and 93-100
climatological approaches)
14 ससंचाई तवतधयाँ-सतही एवं उपसतही ससंचाई (Methods of irrigation-surface and subsurface 101-110
methods of irrigation)
15 सूक्ष्म ससंचाईप्रर्ातलयाँ –र्ब्बािा एवं रपक ससंचाई (Micro- irrigation system -sprinkler and drip 111-119

irrigation)
16 जल उपयोग दक्षता एवं ससंचाई दक्षता (Water use efficiency of crops and Irrigation 120-128
efficiencies)
17 ससंचाई जल की गुर्वत्ता (Quality of irrigation water) 129-132
18 जल मग्नता एवं कृ तर् जल तनकास (Water logging and agricultural drainage) 133-137
19 सन्दभण सूची (References) 138

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Syllabus
Agro 5121 Agricultural Water Management 2(1+1)
Theory
Irrigation : Definition and objectives; Water resources, Irrigation projects (major, medium &
minor) in India and Chhattisgarh; Soil - plant - water relationships; Methods of soil moisture
estimation; Evapotranspiration and Crop water requirement; Duty of water; Conjunctive use of
water; Scheduling of irrigation; Methods of irrigation - Surface, Subsurface, Sprinkler and Drip
irrigation; Irrigation efficiency and Water use efficiency; Irrigation water quality criteria and its
management; Waterlogging; Agricultural drainage.
Practical
Measurement of bulk density, study of soil moisture measuring devices, determination of field
capacity and permanent wilting point, measurement of infiltration rate, irrigation water,
scheduling of irrigation by IW/CPE ratio method, calculations on soil moisture, irrigation water
needs, duty of water and irrigation efficiencies, layout of surface methods of irrigation,
demonstration of drip and sprinkler irrigation, visit to micro irrigation systems in farmers fields
,water management practices in different crops.

अप्सु अन्तिः अमृतम् अप्सु भेर्जम् अपाम्


उत प्रशस्तये, देवािः भवत वातजनिः

अिाणत जल में अमृत है, जल में और्तध है । हे

ऋतत्वज्जनो, ऐसे श्रेष्ठ जल की प्रशंसा अिाणत् स्तुतत


किने में शीघ्रता बितें ।

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Lecture-1
ससंचाई परिभार्ा, महत्त्व-कायण, आवश्यकता एवं उद्ेश्य
Definition, importance-functions, necessity and principlesof irrigation
__________________________________________________________

जल पंचतत्व का एक सबसे महत्वपूर्ण घरक है। पंचतत्व में पृथ्वी,आकाश,अतग्न, वायु औि जल ये पांच
घरक होते है। इनमें जल एक जीवनदायनी शति है। जल एक अमूल्य प्राकृ ततक संसाधन है जो सम्पूर्ण
पारितस्िततक तन्त्र के तलए ही महत्त्वपूर्ण है। सम्पूर्ण जगत का कोई भी तजव-जंतु,वनस्पतत जल के तबना जीतवत
नहीं िह सकता। अतिः जल के तबना जीवन का अतस्तत्व ही नहीं है। जल पौधों का एक आवश्यक अवयव है।
पौधों की प्रकृ तत के अनुसाि 60-90 प्रततशत भाग जल होता है। छोरे पौधों में जल की मात्रा अतधक तिा वृक्षों
में कम होती है। जल एक चक्र के रूप में पुनिः-पुनिः प्राप्त होता िहता है। यह सागिों औि महासागिों से वाष्पीकृ त
होकि मेघों में परिवर्तणत होता है औि वहां से वर्ाण के रूप में धिती पि तगिता है।जल के महत्त्व को इंतगत किने
वाले जल के प्रमुख कायण तनम्नानुसाि है:
पौधों में जल के कायण
1.जल पौधों के तलए एक अतनवायण अंग: पादप कोतशकाओं की उपापचयी सकक्रयता (metabolic activity) जल
की उपतस्ितत में ही संभव है । पौधों के तलए खाध्य तनमाणर् का कायण प्रकाश संश्लेर्र्(photosynthesis) के
माध्यम से होता है औि ऊजाण तनमाणर् श्वसन कक्रया (respiration) के माध्यम से होता है। ये दोनों कक्रया जल की
उपतस्ितत में ही संभव है।
2.प्रमुख घोलक (Main solvant): जल एक अच्छा तवलायक है औि पौधों को आवश्यक पोर्क तत्वों को
उपलब्ध किाने के तलए एक वाहक के रूप में कायण किता है। पौधों की कोतशकाओं में खतनज, गैस आकद पदािों
का स्िानान्तिर् जल में घुलकि घोल के रूप में ही संभव हो पाता है। भूतम से पोर्क तत्वों का अवशोर्र् एवं
पौधे के तवतभन्न भागों तक उनका तवतिर् जल के माध्यम से होता है।जल के अभाव में ये कक्रयाएं संभव नहीं है।
3.जल कोतशकाओं की स्र्ीतत (Cell Turgor) को बनाए िखने में सहायक: पौधों की पतत्तयों से जल सदैव
वाष्पोत्सर्जणत (Transpire) होकि तनकलता है, इससे पौधों की कोतशकाएं स्र्ीत (Turgid) बनी िहती है. जल
उनके ताप को तनयंतत्रत किता है। कोतशकाओं (cells) की दीवाि एवं प्रोरोप्लाज्म की पतण पि उतचत दबाव
बनाये िखने के तलए जल सहायक होता है। ऐसी तस्ितत में ही खाध्य पदािो का अवशोर्र्, तवतिर् तिा पौधों
में वृतद् संभव है। जल की कमीं से कोतशकाओं की स्र्ीतत कम हो जाने से पौधों के अन्दि सभी आंत रिक कक्रयाएं
अवरुद् हो जाती है।
4.पतत्तयों के िन्र (Stomata) कक्रया में सहायक: पतत्तयों में उपतस्ित िन्र (stomata) काबणन डाइऑक्साइड
ग्रहर् किने तिा जल का वाष्पोत्सजणन (transpiration) किने का कायण किते है। उतचत मात्रा में जल की
उपलब्धतता में ही िन्र सक्षमता से कायण कि पाते है। जल की कमीं से िंरो का खुलना-बंद होना कम हो जाता
है, तजससे काबणन डाइऑक्साइड ग्रहर् नहीं होता औि खाध्य तनमाणर् में बाधा पहुँचती है।

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5.कोतशका तनमाणर् एवं कोतशका तवभाजन: जल कोतशकाओं के तनमाणर् एवं तवभाजन (Cell formation and
Cell division) में सहायक है।
भूतम में जल के कायण
1.पोर्क तत्वों की उपलब्धतता: भूतम से पोर्क तत्व पौधों को तभी उपलब्ध हो सकते है जब वें घोल के रूप में
हो क्योंकक पौधे इन्हें तिल (liquid) के रूप में ही ग्रहर् कि सकते है। पौधों के तलए आवश्यक पोर्क तत्व जब
घुलनशील अवस्िा में पौधों की जड़ों के पास आते है, तभी उनका अवशोर्र् एवं परिवहन होता है।
2. िासायतनक कक्रयाओं का माध्यम:भूतम में अनेक िासायतनक कक्रयाओं (जैसे काबणतनक पदािण का तवच्छेदन
आकद) के र्लस्वरूप ही पौधों को पोर्क तत्व उपलब्ध हो पाते है। भूतम में अम्लीयता औि क्षािीयता (पी.एच.)
का तवकास जल के माध्यम से ही होता है।
3.जैतवक कक्रयाओं के तलए आवश्यक: भूतम में अनेक प्रकाि के लाभदायक जीव एवं सूक्ष्म जीवार्ुओं की
सकक्रयता जल पि तनभणि किती है। भूतम में नाइट्रोजन तस्ििीकिर्(N fixation) का कायण िाइजोतबयम जीवार्ु
के माध्यम से होता है। भूतम की उवणिता बढ़ाने में कें चुओं (Earthworms) का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इन
सभी लाभदायक जीवों की कक्रयाशीलता एवं सकक्रयता के तलए जल आवश्यक है।
4.अन्य कृ तर् कायों के तलए भी जल आवश्यक: भू-परिष्किर्, सनंदाई-गुड़ाई औि पौध सिंक्षर् कायों के अलावा
र्सल की तेज गमी औि पाले आकद से सुिक्षा के तलए जल की आवश्यकता पडती है।
पौधे की तवतभन्न दैतहक कक्रयाओं में मृदा जल प्रततबल (Soil moisture stress) का तवशेर् प्रभाव पड़ता
है । इस प्रकाि पौधे की उतचत वृतद् एवं तवकास के तलए जल की आवश्यकता की पूर्तण कृ तत्रम रूप से किनी
पड़ती है ।
ससंचाई की परिभार्ा (Definition of Irrigation)
पौधों की वृतद् के तलए आवश्यक जल की आपूर्तण हेतु भूतम में पानी लगाने को ससंचाई कहा जाता है।
दूसिे शब्दों में, भूतम में कृ तत्रम तवतध से जल देने की कक्रया को, तजससे कक भूतम में नमीं की उतचत मात्रा बिकाि
िहे औि पौधों की उतचत वृतद् हो, ससंचाई कहते है। र्सलों को कृ तत्रम रूप से उतचत मात्रा में जल देने की कक्रया
को ससंचाई कहते हैं।
मृदा में उतचत नमीं बनाये िखने के तलए पौधों की वृतद् के तलए र्सलों को कृ तत्रम रूप से यिोतचत जल देने की
कक्रया को ‘ससंचाई’ कहते है।
कृ तर् पैदावाि की वृतद् के तलये तमट्टी में कृ तत्रम ढंग से पानी देने की कक्रया को ससंचाई कहते है।
The artificial application of water to the soil to increase the agricultural production is called
irrigation.
जल प्रबंधन (Water Management)
जल प्रबंधन का आशय जल संसाधनों के ईष्टतम प्रयोग से है। जल-प्रबन्धन कृ तर् कायो हेतु पानी के
तनयोतजत-उपयोग किने के कला है। इसके अंतगणत ससंचाई (पौधों को प्राप्य जल की पूर्तण हेतु पानी देना) तिा
जल-तनकास (र्ालतू पानी को खेत में बाहि तनकलना) सतम्मतलत ककये जाते है।हम इस तथ्य से भली प्रकाि से
परितचत है कक भूतम,जल तिा पौधों में गहिा सम्बन्ध होता है। पौधों की वृतद् के तलए एक तनतित मात्रा में

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नमीं की आवश्यकता होती है। पौधों की वृतद् के तलए आवश्यक जल की आपूर्तण जब प्राकृ ततक संसाधनों द्वािा
नहीं हो पाती है, तो पौधों को जल की आपूर्तण कृ तत्रम रूप से किनी पड़ती है, तजसे हम ससंचाई कहते है। प्रबंधन
के तलए यह आवश्यक है कक र्सल के तलए सही समय पि, सही मात्रा में एवं साही तिीके से जल-प्रबन्ध ककया
जाय । तजस प्रकाि जल की कमीं से पौधों की उपज प्रभातवत होती है उसी प्रकाि जल की अतधकता में भी पौधों
की वृतद् रुक जाती है औि उत्पादन क्षमता कम हो जाती है, इसतलए उपयुि जल प्रबन्ध के तलए ससंचाई एवं
जल तनकास एक-दूसिे के पूिक है। ससंचाई प्रबन्ध के अंतगणत र्सलों की सामतयक एवं समुतचत जल-मांग की
आवश्यकता को पूिा ककया जाता है जबकक जल तनकास में आवश्यकता से अतधक पानी को क्षेत्र से बाहि
तनकलने के उपाय ककये जाते है ।
ससंचाई की आवश्यकता (Necessity of Irrigation)

भाित एक उष्र् कररवंधीय (Tropical) जलवायु वाला देश है, तजसमें तवतभन्न प्रकाि की स्िालकृ तत (
topography), जलवायु, मृदाएँ औि वनस्पततयाँ पाई जाती है। भाित का कु ल भौगोतलक क्षेत्रर्ल 3,28,048
तमतलयन हेक्रेयि है, तजसमें से 143 तमतलयन हेक्रेयि क्षेत्र पि खेती की जाती है, जबकक कृ तर्गत क्षेत्रर्ल का
35-40 प्रततशत भाग ही ससंतचत है तिा शेर् कृ तर् क्षेत्र मानसूनी वर्ाण पि आतश्रत है। हमािे देश में औसत
वार्र्णक वर्ाण 112 से.मी. है। देश के तवतभन्न स्िानों में वर्ाण में तवतभन्नता औि उसकी मात्रा में में भी अंति पाया
जाता है, इसतलए समस्त भूभाग पि र्सलें उगाने के तलए कृ तत्रम ससंचाई की आवश्यकता पड़ती है। भाित
तवशाल औि आबादी के तलहाज से चीन के बाद तवश्व का दूसिा सबसे बड़ा देश है। देश की किोड़ों की आबादी
का पेर भिने के तलये ज्यादा खाद्यान्न उपजाने की जरूित है तजसके तलये ससंचाई सुतवधाएँ आवश्यक हैं।
र्सलोत्पादन में ससंचाई तनम्न कािर्ों के तलए आवश्यक होती हैं।
1. वर्ाण का असमान तवतिर् : देश भि में होने वाली वर्ाण में कार्ी असमानता औि अतनतितता िहती है, कहीं
200 से.मी. से अतधक वर्ाण होती है, तो कहीं 50 से.मी. से भी कम वर्ाण होती है। ऐसी तस्ितत में कृ तर् के तलए
ससंचाई की व्यवस्िा किना आवश्यक हो जाता है। वर्ाण में कमीं होने के कािर् र्सलों से अतधकतम उत्पादन
लेने के तलए ससंचाई की आवश्यकता होती है। कभी-कभी अच्छी वर्ाण वाले क्षेत्रों में अवर्ाण या वर्ाण की
अतनयतमतता के कािर् भी र्सलोत्पादन में भािी कमीं हो जाती है।
2. वर्ाण की अतनयतमतता: हमािे देश में अतनयतमत औि असामतयक वर्ाण अिाणत समय पि वर्ाण नहीं होती है.
सौभामय से तनयतमत रूप से वर्ाण होती है तो र्सलों की उपज अच्छी आती है। देश के कई भागों में वर्ाण कभी
15-20 जून में हो जाती है, तो कभी जुलाई अंत तक भी वर्ाण नहीं होती है, तजससे खिीर् र्सलों की बुवाई
नहीं हो पाती है। ससंचाई की सुतवधा होने पि र्सलों की समय पि बुवाई की जा सकती है।
3.कम वर्ाण का होना: कभी-कभी मानसून की वर्ाण कार्ी कम होती है, तजससे सूख-े अकाल जैसी तस्ितत तनर्मणत
हो जाती है। ऐसे में ससंचाई सुतवधा होने पि र्सलों में जीवन िक्षक ससंचाई देकि उत्पादन प्राप्त ककया जा
सकता है।
4. मूलयवान या नकदी र्सलों की खेती : नकदी र्सलों की सर्ल खेती के तलए वर्ाण पि तनभणि नहीं िहा जा
सकता है, क्योंकक गन्ना, कपास, आलू, धान जैसी र्सलों से अतधक उपज औि आमदनी प्राप्त किने के तलए इन

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र्सलों की क्रांततक अवस्िाओं पि ससंचाई किना आवश्यक है, अन्यिा उपज औि गुर्वत्ता दोनों पि प्रततकू ल
प्रभाव पड़ता है ।
5.मृदा में जल धािर् क्षमता में कमीं: बलुई दोमर या हल्की मृदाओं में जल धािर् क्षमता कम होती है, तजससे
अतधकांश वर्ाण जल तमररी की सतह से बह जाता है अिवा अन्तिःस्त्रवर् (percolation) द्वािा भूतम के अन्दि
चला जाता है। ऐसी भूतमयों में ससंचाई की अतधक आवश्यकता होती है।
6. देश के शुष्क क्षेत्रों (Dry areas) में वर्ाण बहुत कम होती है औि इन क्षेत्रों में उपलब्ध नमीं भी सूयण की
प्रखि गमी से वातष्पत हो जाती है। इन क्षेत्रों में भूतमगत जल भी अपयाणप्त होता है। तलहाजा, इन क्षेत्रों में सर्ल
र्सलोत्पादन औि कृ तर् सम्बन्धी कायण किने के तलए नहिों के माध्यम से ससंचाई किना आवश्यक है ।
7.बहुर्सली कृ तर् या सघन कृ तर् औि समतन्वत कृ तर् प्रर्ाली से अतधक मुनार्ा अर्जणत किने के तलए ससंचाई
एक आवश्यक आदान है।
8.र्सलों की बुवाई के समय खेत में नमीं की कमीं होने पि पलेवा (Pre-irrigation) देने से बीजों का अंकुिर्
अच्छा होता है एवं प्रतत इकाई ईष्टतम पौध संख्या स्िातपत होती है।
9. मृदा लवर्ों को बहाना अिवा उनका तन्वीकिर् (dilution) किने के तलए ससंचाई की आवश्यकता होती है।
10. िबी र्सलों जैसे गेंहू, चना, सिसों औि अिहि को पाले से बचाने के तलए ससंचाई की आवश्यकता होती हैं।
11. मृदा ताप को तनयंत्रर् किने के तलये ससंचाई की आवश्यकता होती है।
ससंचाई के लाभ (Benefits of Irrigation)
 ससंचाई के द्वािा र्सल उत्पादन में वृतध्द होती है।
 ससंचाई वर्ाण की कमीं को पूिा किती है।
 ससंचाई वाले क्षेत्रों में सघन कृ तर् पद्ततयों को अपनाने से िोजगाि औि आमदनी के बेहति अवसि
उत्पन्न होते है, तजससे कृ र्कों की आर्िणक तस्ितत में सुधाि होता है।
 अवर्ाण की तस्ितत में सूखा औि अकाल की तस्ितत में भी सर्ल र्सलोत्पादन ककया जा सकता है।
 ससंचाई सुतवधा के कािर् नकदी र्सलों (cash crops) को सर्लता पूवणक उगाया जा सकता है।
 ससंतचत क्षेत्रों में भूतमगत जल स्ति में सुधाि होता है।
 कृ तर् आधारित व्यवसाय जैसे पशु पालन, मछली पालन आकद को बढ़ावा तमलता है।
 ससंचाई से समतन्वत कृ तर् प्रर्ाली को अपनाकि छोरे-मझोले ककसानों को अतधक लाभ होता है।
 देश की ग्रामीर् औि शहिी अिणव्यवस्िा में सुधाि होता है।
ससंचाई की हातनयां (Disadvantages of Irrigation)
 अत्यतधक ससंचाई से जल रिसने के कािर् तनचले स्िानों में जलभिाव की तस्ितत उत्पन्न होने से कीर-
िोगों का प्रकोप बढ़ जाता है, आवागमन अवरुद् हो जाता है।
 ससंचाई संसाधनों को जुराने में प्रािं तभक खचण अतधक आता है।
 भूतमगत जल स्ति ऊपि होने वाले क्षेत्रों में जल भिाव होने के कािर् र्सल को नुकसान होता है।

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 र्सलों की ससंचाई के तलए नलकू पों के माध्यम से पानी के अत्यतधक दोहन से भूतमगत जल नीचे तगिता
जाता है, तजससे भतवष्य में जल संकर की तस्ितत तनर्मणत हो सकती है।
 ससंचाई के द्वािा खिपतपाि समस्या उत्पन्न हो जाती है।
 ससंचाई जल के द्वािा िोग व कीर का प्रकोप हो सकता है।
ससंचाई के मूल तसद्ान्त (Basic principles of Irrigation)
ससंचाई के तनम्न तलतखत मुख्य तसद्ान्त हैं :
 पानी की एक तनतित मात्रा से अतधक से अतधक क्षेत्रर्ल पि ससंचाई की जानी चातहए ताकक ससंचाई
दक्षता अतधकतम हो ।
 अतधक पानी चाहने वाली र्सलों जैसे धान, गन्ना, के ला के अततरिि अन्य र्सलों में ससंचाई का पानी
इस प्रकाि से प्रयोग किना चातहए तजससे पानी खेत में ज्यादा समय तक न रुके अन्यिा मृदा तिा
र्सलों की उपज पि तवपिीत प्रभाव पड़ सकता है।
 र्सलों में क्षेत्र-क्षमता (field capacity) के आस-पास भूतम में नमी का स्ति बनाए िखना चातहए तिा
उपलब्ध मृदा जल (available soil moisture) का 50 % से अतधक होने की दशा में ससंचाई कि देने से
पौधों की बढ़वाि औि उपज पि कोई हातनकािक प्रभाव नहीं पड़ता है ।
 ससंचाई के पूवण खेत को समतल किके उतचत रूप में क्यािी, नाली, मेड़ इत्याकद मृदा के अनुरूप उतचत
मात्रा में बना लेनी चातहए तजससे कम से कम पानी से अतधक क्षेत्रर्ल पि ससंचाई की जा सके तिा
पानी सवणत्र समान रूप से पहुँच जायें।
 ससंचाई किते समय ऊपिी मृदा का बहाव न हो, पोर्क तत्व घुल कि नष्ट न हो, तिा अपसिर् द्वािा
उनका ह्रास न होने पाए ।
 ससंचाई द्वािा प्रदान ककया गया पानी पौधे के जड़ क्षेत्र या जल प्रबन्ध क्षेत्र में शोतर्त हो जाय तिा
ससंचाई के बाद नमीं संिक्षर् उपाय जैसे पलवाि या खिपतवाि तनयंत्रर् द्वािा नमीं ह्रास को कम किने
का प्रयास ककया जाना चातहए ।
 ससंचाई का पानी सदैव उतचत मात्रा में लगाना चातहए। अतधक मात्रा में ससंचाई का पानी लगाने से
मृदा की तनचली सतह से लवर् मृदा की ऊपिी सतह पि एकतत्रत होकि भूतम गुर्वत्ता औि र्सल की
उत्पादकता पि प्रततकू ल प्रभाव पड़ता है ।
 ससंचाई किते समय यिासंभव उवणिक, कीरनाशक तिा पौध वृतद् तनयंत्रक आकद का प्रयोग ससंचाई के
साि ही किना चातहए । ऐसा किने से इनके तछडकाव पि अततरिि व्यय नहीं होता है तिा कु ल लाभ
में इजार्ा होता है ।
 खेत की तैयािी, हातनकािक लवर्ों को तनकालने, िोपाई किने तिा पौधशाला तनमाणर् आकद तवतशष्ट
उद्ेश्यों हेतु उतचत मात्रा में पानी लगाना चातहए ।

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Lecture-2
भाित एवं छत्तीसगढ़ के जल संसाधन एवं ससंचाई के साधन
(Water Resources and Sources of irrigation in India and
Chhattisgarh)
__________________________________________________________

जल एक मूल्यवान प्राकृ ततक संसाधन है। जीवन, आजीतवका, खाध्य सुिक्षा तिा सतत तवकास के तलए जल
अत्यंत अतनवायण है। पृथ्वी का लगभग तीन-चौिाई धिातल जल से ढका हुआ है, इसका मतलब यहाँ जल की
कमीं नहीं है। जल संसाधन पानी के वह स्त्रोत है जो मानव के तलए उपयोगी हो या उपयोग की सम्भावना हो।
तवश्व के कु ल जल संसाधनों का 4 % तहस्सा औि तवश्व के भूक्षेत्र का 2.4% भूक्षेत्र भाित में तवद्यमान है जो

तवश्व जनसंख्या के लगभग 18% तहस्से को तिा तवश्व पशुधन के 15 % तहस्से को पानी उपलब्ध किाता है ।
पृथ्वी पि पानी के संसाधनों को सािर्ी में कदया गया है।
सािर्ी-1 : तवश्व के जल संसाधन (Water Resources of the World)
घरक पानी की मात्रा प्रततशत
समुद्र 1348 000,000 97.39
रुवीय बर्ण ,तहमनद औि आइसबगण 27,820,000 2.01
भूजल एवं मृदा आद्रणता 8062,000 0.58
झीले एव नकदयां 225,000 0.02
वायुमंडलीय जल 13,000 0.001
कु ल योग 1384,120,000 100.00
भाित के जल संसाधन (Water Resources of India)
भाित में जल संसाधनों का स्रोत मुख्य रूप से वर्ाण जल ही है। इसके अलावा पवणतों पि जमा
तहम गर्मणयों में तपघलकि नकदयों में प्रवातहत होता है। देश में औसतन 1190 तममी. वार्र्णक वर्ाण प्राप्त होती है।
भाित के जल संसाधनों को फ्लो चारण के माध्यम से तचत्र-1 में दशाणया गया है। देश के समूचे भौगोतलक क्षेत्र
(328.7 तमतलयन हेक्रेयि) से प्राप्त वर्ाण क गहिाई की इकाई में बदलने पि उि वर्ाण 400 तमतलयन हेक्रेयि
मीरि आती है। इस वर्ाण जल में से 215 तम.हे.मी. जल मृदा में अन्तिः स्त्रवर् कक्रया द्वािा सोख तलया जाता है,
70 तम.हे.मी. जल भू एवं जल सतह से तुिंत वाष्पीकृ त (evaporate) होकि पुनिः वायुमंडल में चला जाता है।
मृदा में अन्तस्त्रतवत जल (215 तम.हे.मी.) में से 165 तम.हे.मी. जल मृदा द्वािा धारित कि तलया जाता है तिा
शेर् 50 तम.हे.मी. भूतमगत जल के रूप में नीचे समातहत हो जाता है। इस भूतमगत जल में से मात्र 35 तम.हे.मी.
जल ही ससंचाई एवं अन्य कायों हेतु पम्प द्वािा तनकाला जा सकता है। कु ल जल स्त्रोत का बांकी तहस्सा (115
तम.हे.मी.) सतह पि नदी-नालों के रूप में बहता है, जो की मुख्यतिः वर्ाण (105 तम.हे.मी.) औि बर्ण के तपघलने

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(10 तम.हे.मी.) का परिर्ाम है। इस सतही जल (तम.हे.मी.) में से मात्र 70 तम.हे.मी. जल ही मानव उपयोग में
लाया जा सकता है। इस प्रकाि समस्त जल स्त्रोतों को तमलाकि देश में उपयोग लायक जल भंडाि (utilizable
water reserve) 35+70 = 105 तम.हे.मी. बैिता है, तजसमें से 75 तम.हे.मी. जल ससंचाई कायण के तलए उपयोग
में लाया जा सकता है। में वर्ाण जल की कु छ मात्रा जल रिसाव द्वािा भूतम सोख लेती है तिा कु छ मात्रा तालाब
औि झीलों में एकत्र हो जाता है,
पिन्तु बड़ा भाग नदीं-नालों में
बहकि समुंद्र में तमल जाता है। समुद्र
में बहकि व्यिण चले जाने वाला जल
(115 तमतलयन हेक्रेयि मीरि

जल), जो सम्पूर्ण प्राप्त जल का

37.5% है, उसको तनयंतत्रत किके

हमें इसका उपयोग सूखा-ग्रस्त क्षेत्रों


औि देश के अन्य क्षेत्रों के सभी
मौसमों में जल उपलब्ध किाने के
तलए ककया जाना चातहए। इसके
तलए नकदयों को जोड़ने औि
समुतचत भंडािर् औि तवतिर् के
उपाय ककए जाने आवश्यक हैं।
भाित के जल संसाधनों को तनम्न दो भागों में बाँरा जा सकता है:

(A) सतही जल (Surface Water)


सतही जल संसाधन का स्त्रोत एक मात्र वर्ाण (rainfall) है, वर्ाण का अतधकांश भाग नकदयों में प्रवातहत

हो जाता है । भाित में सतही जल 1869 अिब घन मीरि प्रततवर्ण आंकलन ककया गया है। सतही जल के मुख्य

साधन नकदयाँ, झीलें, तालाब आकद हैं। भौगोतलक दृतष्ट से अनेक बाधाओं एवं तवर्म तवतिर् के कािर् इसमें से

के वल 690 अिब घन ककलोमीरि (32 प्रततशत) सतही जल का ही उपयोग हो पाता है। वास्तव में भाित की
जल संपदा का अतधकतम भाग उन क्षेत्रों में है जहां वर्ाण 125 से.मी. से अतधक होती है। पिन्तु ससंचाई के तलए
जल की सबसे अतधक आवश्यकता सामान्य से कम वर्ाण वाले क्षेत्रों में होती है। सतही जल का मुख्य

स्रोत नदी जल ही है।

(B) भूतमगत जल संसाधन (Sub-surface Water Resources)

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सभी प्रकाि का वह जल जो पृथ्वी की ऊपिी सतह (भूपपणरी) के नीचे तस्ित होता है, भूतमगत जल या
भौम जल कहलाता है। वतणमान में, 70 प्रततशत से अतधक आबादी अपनी घिे लू आवश्यकताओं के तलए भू-जल
का प्रयोग किती है तिा आधे से अतधक कृ तर् क्षेत्र में ससंचाई इसी स्त्रोत से होती है। वर्ाण का जल जो भूतम द्वािा
सोख तलया जाता है, उसका लगभग 40% भाग चट्टानों औि तमरट्टयों से रिसता है औि जमीन के नीचे जमा
होता है। चट्टाने तजनमें भूजल को संग्रतहत ककया जाता है, उसे जलभृत या जलभिा (Aquifer) कहा जाता है।

इस पानी को कु ओं, ट्यूब-वैल अिवा हैंडपम्पों द्वािा आवश्यकतानुसाि तनकाला जाता है।
भाित में ससंचाई के साधन (Sources of Irrigation in India)
वर्ाण (rainfall) सभी प्रकाि के जल का मुख्य साधन है। वर्ण 2015-16 के आंकड़ो के अनुसाि भाित में
शुद् बोए गए क्षेत्र के 51 % भाग पि ससंचाई की सुतवधा तवकतसत हुई है अिाणत शुद् बोए गए क्षेत्र का शेर् 49
% क्षेत्रर्ल मानसूनी वर्ाण पि तनभणि है। देश में सवाणतधक ससंतचत क्षेत्रर्ल वाले िाज्य उत्ति प्रदेश,
िाजस्िान,पंजाब औि आन्र प्रदेश है। कु ल क्षेत्रर्ल की दृतष्ट से सवाणतधक ससंतचत िाज्य (97%) पंजाब है।
उपलब्धतता के आधाि पि पानी के स्त्रोतों को दो वगों में तवभातजत ककया गया है-धिातलीय जल के स्त्रोत एवं
भूतमगत जल स्त्रोत
A.धिातलीय जल के स्त्रोत (Surface water)
धिातलीय जल स्त्रोत में मुख्यतिः नहिें एवं तालाब आते है। देश में नहिों से ससंचाई किने वाले तीन
प्रमुख िाज्य उत्तिप्रदेश, आंर प्रदेश व िाजस्िान है। जबकक तालाबों से ससंचाई किने वाले तीन शीर्ण िाज्य आंर
प्रदेश, ततमलनाडु व कनाणरक है।
1.नहिों (Canal) द्वािा ससंचाई
भाित में सतही ससंचाई के साधनों में नहि एक प्रमुख साधन है । तवश्व में सबसे लम्बी नहिें भाित में है।
कु ल ससंतचत भूतम के लगभग 23.90 प्रततशत तहस्से में नहिों से ससंचाई होती है। नहिों से वतणमान में 1.69
किोड़ हेक्रेयि भूतम पि ससंचाई की जाती है। हमािे देश की नहिों का सवाणतधक तवकास उत्ति के तवशाल मैदानी
भागों तिा तरवती डेल्रा के क्षेत्रों में ककया गया है, क्योंकक इनका तनमाणर् समतल भूतम एवं जल की तनिन्ति
आपूर्तण पि तनभणि किता है। उत्ति प्रदेश, िाजस्िान, आंर प्रदेश एवं पंजाब शीर्ण चाि नहि ससंतचत िाज्य है।
नहिें मुख्यतिः दो प्रकाि की होती है:
(अ) मुख्य नहि (Main canal) : इनमें जल की आपूर्तण सीधे स्त्रोत से या नदी से होती है. देश में मुख्य नहि
की क्षमता 280 से 425 घन मीरि प्रतत सेकेण्ड होती है। ससंचाई का कायण मुख्य नहि से नहीं होता है ।
(ब) शाखा नहि (Branch canal) : मुख्य नहि से तवतभन्न ससंचाई क्षेत्रों के तलए शाखायें तनकाली जाती है।
इनका प्रश्राव (discharge) 4 से 85 घन मीरि प्रतत सेकेण्ड होता है। इन शाखाओं से भी छोरी-छोरी शाखायें
तनकाली जाती है, तजनमें बने आउरलेर से ससंचाई की जाती है। इनका प्रश्राव 0.75 से 5.5 घन मीरि प्रतत
सेकेण्ड होता है।

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नहिों द्वािा ससंचाई के लाभ


 वर्ण में एक ही खेत में दो या तीन र्सलें ली जा सकती है, अतिः क्षेत्र की र्सल सघनता में वृतद्
होती है।
 अन्य साधनों की अपेक्षा नहिों से ससंचाई किना सस्ता पड़ता है ।
 नहिों से कार्ी मात्रा में पानी तनकलने के कािर् कम समय में अतधक क्षेत्र में ससंचाई की जा
सकती है।
 नहिों के पानी के साि उवणिा तमट्टी व् पोर्क तत्व खेत में पहुंचे है, अतिः खेत की उवणिा शति
बढती है।
नहिों द्वािा ससंचाई से हातनयाँ
 ससंतचत क्षेत्र में खिपतवाि प्रकोप बढ़ता है औि जल तनकास की समस्या पैदा हो जाती है।
 नहिों द्वािा कभी-कभी समय पि पानी उपलब्ध नहीं हो पाता है।
 सस्ता औि सवण सुलभ होने के कािर् ककसान आवश्यकता से अतधक ससंचाई किते है, तजससे
जल भिाव की समस्या उत्पन्न होने से र्सलों पि प्रततकू ल प्रभाव पड़ता है।
 आवश्यकता से अतधक ससंचाई से तनचली भूतमयों के धिातल पि लवर् जमा होने से भूतम
लवर्ीय हो जाती है।
2.तालाब (Tanks)
देश में प्राकृ ततक तिा कृ तत्रम दोनों प्रकाि के तालाबों (जलाशयों) का उपयोग ससंचाई के तलए ककया
जाता है। देश के कु ल ससंतचत क्षेत्र के 2.69 प्रततशत भाग की ससंचाई तालाबों द्वािा होती है। ततमलनाडु एवं
आंर प्रदेश शीर्ण दो तालाब ससंतचत िाज्य है।
जलाशय के जरिए ससंचाई की कु छ सीमाएँ भी हैं। कृ तर् की जमीन का एक बड़ा तहस्सा जलाशय में
चला जाता है। जलाशय उिले औि बड़े क्षेत्र में र्ै ले होने के कािर् इनमें पानी के वाष्पीकिर् की प्रकक्रया तेज
होती है। इनसे बािहों महीने पानी की आपूर्तण सुतनतित नहीं की जा सकती। जलाशय से पानी तनकालना औि
उसे खेत तक पहुँचाना एक श्रमसाध्य औि खचीला काम है। इस वजह से ककसान जलाशय को ससंचाई के साधन
के तौि पि अपनाने से कतिाते हैं।
B.भूतमगत जल स्त्रोत (Ground water)
वर्ाण का वह भाग जो भूतम द्वािा सोख तलया जाता है, भूतमगत जल कहलाता है। भूतमगत जल स्त्रोत से
ससंचाई हेतु कु ओं, नलकू पों, हैण्ड पम्पों का इस्तेमाल ककया जाता है।
1.कु एं (Wells)
भाित में कु ओं का तनमाणर् सवाणतधक उन्हीं क्षेत्रों में हुआ है, जहाँ तचकनी बलुई तमट्टी तमलती है, क्योंकक
इससे पानी रिसकि धिातल के अन्दि चला जाता है तिा भूतमगत जल के रूप में भण्डारित हो जाता है। कु यें
पिम्पिागत ससंचाई के प्रमुख साधन िे लेककन कु ओं से ससंचाई किने पि समय, श्रम औि पूँजी अतधक लगने के

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कािर् अब इनका तवस्ताि नहीं हो िहा है। अभी देश में लगभग 19 % ससंचाई कु ओं से पानी उिाकि की जा
िही है।
कु ओं द्वािा ससंचाई से लाभ
 यह ससंचाई का सस्ता व् आसान साधन है।
 तनयंतत्रत ससंचाई की जाती है, तजससे जल का उपयोग तमततवव्ययता से ककया जाता है।
 तनजी साधन होने से र्सल की बुवाई औि ससंचाई समय पि हो जाती है।
कु ओं द्वािा ससंचाई से हातनयाँ
 कु एं बनाने में प्राितम्भक धनिातश अतधक लगती है।
 वर्ाण कम होने पि भूतमगत स्त्रोत कम होने से कु ए सूख जाते है।
2.नलकू प (Tubewells)
भाित में नलकू पों द्वािा सवाणतधक क्षेत्रर्ल (45.70%) में ससंचाई की जा िही है। देश में उत्ति
प्रदेश,पंजाब, गुजिात, िाजस्िान, महािाष्ट्र,मध्य प्रदेश, हरियार्ा आकद िाज्यों में ससंचाई नलकू पों द्वािा की जा
िही है।
नलकू प ससंचाई के लाभ
 नलकू पों की ससंचाई क्षमता अतधक होती है। अतिः अतधक क्षेत्र में ससंचाई की जा सकती है।
 पानी पयाणप्त मात्रा में औि तेजी से तनकलता है।
 अन्य भूतमगत स्त्रोतों की अपेक्षा ससंचाई सस्ती होती है औि तनयंतत्रत ससंचाई संभव है।
 तनजी साधन होने से र्सल की बुवाई औि ससंचाई समय पि हो जाती है।
 बहुर्सली खेती एवं समतन्वत कृ तर् पद्तत्तयां आसानी से अपनाई जा सकती है।
नलकू प ससंचाई से हातनयाँ
 प्राितम्भक लागत खचण अतधक आता है।
 पानी तनकालने के तलए तबजली या इंतजन शति की आवश्यकता होती है।
 अवर्ाण की तस्ितत में भूजल स्ति नीचे जाने की सम्भावना िहती है।
सािर्ी-2 : भाित मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में तवतभन्न स्त्रोतों से ससंतचत क्षेत्र (हजाि हेक्रेयि),वर्ण-2013-14
ससंचाई स्त्रोत भाित मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़
नहिें 16278 (23.90) 1625 (17.18) 874 (59.78)
तालाब 1842 (2.69) 264 (2.79) 50 (3.41)
ट्यूबवेल 31126 (45.70) 3109 (32.88) 439 (30.02)
कु यें 11312 (16.61) 3108 (32.87) 19 (1.299)
अन्य साधन 7542 (11.02) 1347 (14.24) 80 (5.47)
कु ल योग 68100 9455 1462
नोर: कोष्ठ में कदए गए अंक प्रततशत संख्या है।

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सािर्ी-3: भाित, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में तवतभन्न र्सलों के अंतगणत ससंतचत क्षेत्रर्ल(000,हे.)-2013-14
प्रमुख र्सलें भाित छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश
धान 26524 1407 557

मक्का 2449 11 21
गेंहू 29369 79 5638
कु ल दलहन 4687 134 2054
कु ल ततलहन 8219 13 428
गन्ना 5267 23 102
सब्जी-र्ल 6368 75 330
भाित की प्रमुख बहुउद्ेशीय नदीघारी परियोजनाएँ
(Multi-purpose River Valley Project)
नकदयों की घाररयों पि बड़े-बड़े बाँध बनाकि ससंचाई,बाढ़ तनयन्त्रर्, जल एवं मृदा संिक्षर्,जल तवद्युत,

जल परिवहन,पयणरन का तवकास,मत्स्यपालन,कृ तर् एवं औद्योतगक तवकास आकद की सुतवधाएं प्राप्त की जाती है,

इसतलए इन्हें बहु-उद्ेशीय नदी घारी परियोजनाएँ (Multi-purpose River valley Project) कहा जाता है।
बहुउद्ेशीय परियोजना के लाभ
 बॉंधों में एकतत्रत जल का प्रयोग ससंचाई के तलये ककया जाता है।
 बाढ़ एवं सूखा (flood and drought) तनयन्त्रर् होता है एवं भूतम अपिदन (soil erosion) िोकने में
सहायक है।
 ये जल तवद्युत ऊजाण प्रातप्त का प्रमुख साधन है।
 जल उपलब्धता के कािर् जल की कमी वाले क्षेत्रों में र्सलें उगायी जा सकती हैं।
 घिे लू व औद्योतगक कायों में उपयोगी होता है।
 इनकी सहायता से मत्स्य पालन का तवकास ककया जाता है।
 ग्रामीर् एवं नगिीय क्षेत्रों में शुद् पेयजल की व्यवस्िा सुतनतित होती है।
 मनोिं जन,यांतत्रक नौकायन व मृदा संिक्षर् में सहायक हैं।
भाित के योजना योग ने ससंचाई परियोजनाओं को तीन भागों में बांरा है:
1.वृहद ससंचाई परियोजना: इस वगण में 10000 हेक्रेयि से अतधक क्षेत्र को ससंतचत किने वाली परियोजनाओं
को शातमल ककया जाता है. उदाहिर् के तलए बड़े बाँध एवं उनसे तनकाली गई बड़ी नहिें .
2.मध्यम ससंचाई परियोजना: इस वगण में 2000 हेक्रेयि से अतधक औि 10000 हेक्रेयि से कम क्षेत्र में ससंचाई
किने वाली परियोजनाओं को शातमल ककया जाता है, जैसे छोरी नहिे .

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3.लघु ससंचाई परियोजना: इस वगण में 2000 हेक्रेयि या इससे कम क्षेत्र में ससंचाई किने वाली योजना शातमल
की जाती है, जैसे नलकू प, कु आँ,तालाब, तिप औि सस्प्रंकलि ससंचाई. देश में सवाणतधक ससंतचत क्स्शेत्र्फफ्ल लघु
ससंचाई परियोजना के अंतगणत आता है.
भाित की प्रमुख बहुउद्ेशीय नदीघारी परियोजनाएँ ।

1. दामोदि घारी परियोजना: यह स्वतन्त्र भाित की पहली बहुउद्ेशीय नदीघारी परियोजना है। यह
परियोजना दामोदि नदी पि बनाई गई है। दामोदि नदी छोरानागपुि की पहातड़यों से तनकलकि पतिम बंगाल
में हुगली नदी से तमल जाती है। इस परियोजना से तबहाि औि पतिम बंगाल को लाभ होता है।

2. भाखड़ा-नांगल परियोजना: यह तवश्व का सबसे ऊँचा गुरुत्वीय बाँध है । यह परियोजना पंजाब में सतलुज
नदी पि तस्ित भाित की सबसे बड़ी बहुउद्ेशीय नदी घारी परियोजना है । इस परियोजना से पंजाब,
तहमाचल प्रदेश, हरियार्ा, कदल्ली औि िाजस्िान लाभातन्वत है। भाखड़ा-नांगल बाँध तहमाचल प्रदेश के
तबलासपुि तजले में सतलुज नदी पि बनाया गया है। यह बाँध 261 मीरि ऊंचे ररहिी बाँध के बाद भाित का
दूसिा सबसे ऊँचा (256 मीरि) बाँध है। इस बाँध के पीछे बनी झील का नाम गोतवन्द सागि है।
3. हीिाकुं ड बाँध परियोजना: यह बाँध उड़ीसा िाज्य में संबलपुि तजले से 15 ककमी दूि महानदी पि बनाया

गया है । यह संसाि का सबसे लम्बा बाँध (4.8 Km ) है। इससे ओतडशा िाज्य में ससंचाई होती है।

4.कोसी परियोजना: यह परियोजना तबहाि िाज्य में नेपाल के सहयोग से कोसी नदी पि बनी है।

तवनाशकािी बाढ़ों के किर् कोसी को उत्तिी तबहाि का शोक भी कहते है। लाभातन्वत िाज्य-तबहाि ।

5. चम्बल घारी परियोजना: इसके अंतगणत यमुना की सहायक चम्बल नदी पि 3 बाँध - गाँधी सागि, िार्ा
प्रताप सागि औि कोरा बनाये गए हैं। इस परियोजना के अंतगणत मध्यप्रदेश में गाँधी सागि बाँध तिा िाजस्िान
में िार्ा प्रताप सागि बाँध, जवाहि सागि बाँध तिा कोरा बैिाज बनाए गए है । मध्यप्रदेश औि िाजस्िान में
इस परियोजना से ससंचाई की जाती है।
6. तुग
ं भद्रा परियोजना : इस परियोजना को आंर प्रदेश तिा कनाणरक िाज्यों के सहयोग से कृ ष्र्ा की सहायक

तुंगभद्रा नदी पि कनाणरक के होसपेर नामक स्िान पि बनाया गया है । इस बाँध से तनकलने वाली नहिों से

आन्र प्रदेश एवं कनाणरक में ससंचाई की जाती है।

7. नागाजुन
ण सागि परियोजना : यह तेलंगाना िाज्य में कृ ष्र्ा नदी पि तस्ित है। बौद्तभक्षु नागाजुन
ण के नाम

पि इसका नाम नागाजुणन सागि िखा गया है ।

8. नमणदा घारी परियोजना: इस परियोजना के तहत अनेकों बाँध बनाये गए है तजनमें नमणदा सागि बाँध व्

गुजिात का सिदाि सिोवि बाँध प्रमुख है। इसके अन्तगणत बिगी परियोजना, ओंकािे श्वि परियोजना,

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तवा परियोजना भी आती है । नमणदा नदी पि बनाएं गए इन बांधों से मध्य प्रदेश, िाजस्िान, गुजिात

महािाष्ट्र िाज्यों को लाभ पहुँचता है।

9. इं कदिा गाँधी नहि परियोजना: यह िाजस्िान की महत्वपूर्ण परियोजना है। यह तवश्व की सबसे लम्बी नहि

परियोजना (468 कक.मी.)है, तजससे उत्ति प्रदेश तिा िाजस्िान में ससंचाई की जाती है । इस परियोजना में

िावी औि व्यास नकदयों का जल सतलज नदी में लाया जाता है ।

10. रिहन्द परियोजना: यह एक ग्रेतवरी बाँध है जो उत्ति प्रदेश में सोनभद्र तजले में तपपिी नामक स्िान पि

रिहन्द नदी पि बनाया गया है। इस बांध के बनने से एक कृ तत्रम झील का तनमाणर् हुआ तजससे गोतवन्द वल्लभ

पंत सागि औि िे र्ु सागि भी कहा जाता है । यह भाित की सबसे बड़ी कृ तत्रम झील है।

11. ररहिी बाँध: यह बाँध उत्तिाखंड िाज्य के ररहिी तजले में गंगा की दो महत्वपूर्ण

सहायक नकदयों भागीििी औि भीलांगना के संगम पि बना है. यह तवश्व का सबसे ऊँचा ( 261 मीरि) चट्टान
आपूरित बाँध है।
– दुतनया में चौिा सबसे बड़ा जल ग्रहर् क्षेत्र ब्रम्हपुत्र नदी का है लेककन भाित में सबसे बड़ा जल ग्रहर् क्षेत्र
गंगा नदी का है। क्योंकक ब्रम्हपुत्र नदी के वल पूवोत्ति िाज्यों में बहती है औि इस का अतधकांश भाग चीन में है।
– दतक्षर् भाित की नकदयों में सबसे बड़ा जल ग्रहर् क्षेत्र गोदाविी नदी का है।

छत्तीसगढ़ में ससंचाई के साधन


छत्तीसगढ़ में औसत 140 से.मी. वर्ाण होती है। प्रदेश की लगभग 68 प्रततशत से अतधक कृ तर् वर्ाण पि
आधारित है अिाणत प्रदेश में शुद् ससंतचत क्षेत्र 32 प्रततशत है । िाज्य में कु ल 20.88 लाख हेक्रेयि तिा तनिा
15.02 लाख हेक्रेयि क्षेत्र में तवतभन्न स्त्रोतों से ससंचाई की सुतवधा उपलब्ध है। छत्तीसगढ़ के मैदानी क्षेत्रों में
औसतन 43%, उत्तिी पहाड़ी क्षेत्र में 11 % तिा पिािी क्षेत्र में तसर्ण 5 % क्षेत्र ससंतचत है. ससंचाई सुतवधाओं
की दृतष्ट से प्रदेश को पांच भागों में बांरा जा सकता है।
1. अतधक ससंतचत क्षेत्र:इसमें प्रदेश के 6 तजलों में 40 % से अतधक ससंतचत क्षेत्र है । इसमें जांजगीि -चांपा

,िायपुि , धमतिी तिा दुगण,बालोद औि बलोदाबाजाि तजले आते है।

2.मध्यम ससंतचत क्षेत्र: इसके अंतगणत 6 तजले यिा बेमेतिा,महासमुंद, तबलासपुि,गरियाबंद, कबीिधाम एवं

मुंगेली आते है जहां 33-37 % क्षेत्र ससंतचत है।

3.तनम्न ससंतचत क्षेत्र: इसके अंतगणत 4 तजले आते है,िाजनांदगांव , िायगढ़ , कांकेि तिा सूिजपुि

4.अतत तनम्न ससंतचत क्षेत्र: बांकी सभी तजले सिगुजा,बलिामपुि,कोरिया, कोिबा (6-9 % ससंतचत क्षेत्र) तिा

जशपुि एवं नािायर्पुि में 4% से भी कम क्षेत्र में ससंचाई सुतवधा है।

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छत्तीसगढ़ में ससंचाई के स्त्रोत


छत्तीसगढ़ िाज्य में नहि एवं कु एं ससंचाई के प्रमुख साधन है। प्रदेश में तवतभन्न स्त्रोतों से ससंचाई क्षेत्रर्ल के
आंकड़े सािर्ी-2 में कदए गए है।
नहि : छत्तीसगढ़ मैं शुद् ससंतचत क्षेत्र का लगभग 59.78 % क्षेत्र नहिों द्वािा ससंतचत ककया जा िहा है।िाज्य के
मैदानी भाग के लगभग सभी तजलों में ससंचाई का प्रमुख साधन नहिे हैं। नहि से सवाणतधक ससंचाई तबलासपुि
तजले में होती है। तबलासपुि के अततरिि धमतिी, िायपुि व दुगण में भी नहिों द्वािा ससंचाई होती है।

कुं आ एवं नलकू प : छत्तीसगढ़ मैं 1.299 % क्षेत्र की ससंचाई कुं ओ तिा 30.02 % क्षेत्र पि नलकू पों (ट्यूबेल
द्वािा ससंचाई की जाती है। नलकू पों से सवाणतधक क्षेत्रर्ल में ससंचाई िायगढ़ तजले में होती है।
तालाब : छत्तीसगढ़ में सुद् ससंतचत क्षेत्र में लगभग 3.41 % क्षेत्र पि तालाबों से ससंचाई की जाती है। जशपुि
तजले में तालाबों से सवाणतधक क्षेत्र में ससंचाई होती है।
छत्तीसगढ़ में नदी अपवाह तंत्र
जल संसाधनों का प्रदेश में कृ तर् के तवकास एवं ऊजाण की उपलब्धता में प्रमुख योगदान है। प्रदेश की
नकदयां एवं उनकी सहायक नकदयां तमलकि एक जाल का तनमाणर् किती है तजसे नदी अपवाह तंत्र के नाम से
जाना जाता है। जल प्रवाह की दृतष्ट से प्रदेश के जल अपवाह तंत्र को चाि भागों में तवभातजत ककया गया है:
1.महानदी प्रवाह तंत्र: यह छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा अपवाह तंत्र है जो िाज्य के कु ल अपवाह तंत्र का लगभग
56.15 % जल संग्रहर् क्षेत्र में आता है तजसका तवस्ताि प्रदेश के लगभग 77.43 हजाि वगण ककमी. में है।
महानदी का उद्गम स्िल िाज्य के धमतिी तजले के तसहावा पवणत के र्ितसया नामक स्िान है। इस नदी की कु ल
लम्बाई 858 ककमी.(छत्तीसगढ़ में 286 ककमी.) है। यह नदी करक (उड़ीसा) के तनकर बंगाल की खाड़ी में
तवसर्जणत हो जाती है। महानदी की सहायक नकदयों में तशवनाि, हसदेव,के लो, तसतलयािी, सोंढू ि,पैिी, जोंक
आकद प्रमुख है। छत्तीसगढ़ की रुद्री बैिाज परियोजना, गंगिे ल बाँध (ितवशंकि जलाशय) एवं दुधवा जलाशय
धमतिी तजले में महानदी पि तस्ित है।
2.गोदाविी अपवाह तंत्र: यह छत्तीसगढ़ का दूसिा सबसे बड़ा अपवाह तंत्र है जो प्रदेश के कु ल अपवाह तंत्र के
28.64% जल को ग्रहर् किता है तिा 36.49 वगण ककमी. में तवस्तृत है। इस प्रवाह तंत्र की प्रमुख नकदयों में
इन्द्रावती तिा इसकी सहायक नकदयां शबिी, शंतखनी-डंककनी, नािं गी, कोरिी आकद है। इन्द्रावती गोदाविी की
सहायक नदीं है। गोदाविी नदी एवं महानदी अपवाह तंत्र को ‘तेलीनघारी’ पृिक किती है।
3.सोन-गंगा नदी अपवाह तंत्र: छत्तीसगढ़ के उत्ति भाग का ढाल उत्ति की ओि होने के कािर्, उत्ति छत्तीसगढ़
की नकदयां ऊपि की ओि प्रवातहत होती है औि प्रदेश के उत्तिी भाग में सोन नदी अपवाह तंत्र पाया जाता है जो
गंगा नदी की प्रमुख सहायक नदी है। प्रदेश का यह तीसिा बड़ा अपवाह तंत्र है जो 13.63 % जल धािर् किता
है तिा 18.78 ककमी. क्षेत्र में तवस्तृत है। इस अपवाह तंत्र में बनास नदी, गोपद नदी,नेयुि नदी,रिहन्द नदी एवं
कन्हाि नदी सम्मतलत है। रिहन्द नदी सिगुजा की जीवन िे खा कहलाती है. कन्हाि नदी छत्तीसगढ़ एवं
झािखण्ड की सीमा बनाती है।

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4.नमणदा नदी प्रवाह तंत्र: यह िाज्य का सबसे छोरा अपवाह तंत्र है जो की कु ल अपवाह तंत्र का 0.55 प्रततशत
है। बंजि एवं ताड़ा इस तंत्र की प्रमुख सहायक नकदयां है जो कवधाण तजले से तनकलती है। पतिम की ओि बहने
वाली बंजि सबसे लम्बी नदी है।
छत्तीसगढ़ की ससंचाई परियोजनाएं
छत्तीसगढ़ आर्िणक सवेक्षर् (2018-19) के अनुसाि 08 वृहद ससंचाई परियोजनायें, 37 मध्यम तिा

2468 लघु ससंचाई योजनायें संचातलत है । िाज्य का सवाणतधक ससंतचत तजला जांजगीि-चांपा व िायपुि है
जबकक न्यूनतम ससंतचत तजले नािायर्पुि एवं दंतेवाड़ा है। ससंचाई की न्यूनतम सुतवधा के स्ति पि दंतेवाड़ा
तजला आता है।
1.तमनीमाता परियोजना (हसदेव बांगो बांध): यह िाज्य की प्रिम बहुउद्ेशीय परियोजना है जो हसदो-बांगो
नदी (कोिबा के माचाडोली स्िान) पि स्िातपत है। यह िाज्य का सबसे ऊँचा (87 मीरि) बाँध है. इसके
अंतगणत िाज्य की प्रिम औि सबसे बड़ी जलतवद्युत परियोजना (120 मेगावार ) संचातलत है। इस बाँध से

तनकली नहिों से कोिबा, जांजगीि-चांपा एवं िायगढ़ तजलों में 4,20,580 हेक्रेयि क्षेत्र में ससंचाई होती है।

2.महानदी परियोजना (ितवशंकि सागि परियोजना): यह प्रदेश की सबसे पुिानी ससंचाई परियोजना है,
तजसकी ससंचाई क्षमता 2.64 लाख हेक्रेयि है. इसके अंतगणत तनम्न जलाशयों का तनमाणर् ककया गया है।
(i)रुद्री तपकउप तवयि(रुद्री बैिाज): धमतिी तजले के रुद्री नामक गांव में महानदी पि वर्ण 1915 में तपकउप

तवयि का तनमाणर् ककया गया िा. यह िाज्य का प्रिम बाँध है।इस पि 0.22 मेगावार का जल तवद्युत् संयंत्र
स्िातपत ककया गया िा। इससे तनकली नहिों से धमतिी-िायपुि एवं बलौदाबाजाि तजलों में ससंचाई की जाती
है। साि ही िायपुि नगि तनगम को भी जल आपूर्तण की जाती है।
(ii) गंगिे ल बाँध : यह धमतिी तजले में महानदी पि वर्ण 1978 में तनर्मणत सबसे लम्बा बाँध (1380 मीरि) है ।

तभलाई स्रील प्लांर में जलापूर्तण इसी बाँध से होती है।इस बाँध पि 10 मेगावार जल तवद्युत् उत्पादन की इकाई
संचातलत है।
(iii) मुरुमतसल्ली या माडु मतसल्ली जलाशय : इस बाँध का तनमाणर् वर्ण 1923 में तसलयािी नदी पि धमतिी
तजले में ककया गया िा. यह प्रदेश का पहला सायर्न बाँध है।
(iv)दुधवा जलाशय: इस बाँध का तनमाणर् वर्ण 1962-63 में महानदी पि कांकेि तजले के दुधवा नामक गांव में
ककया गया ।
3.महानदी कॉम्प्लेक्स: इसकी स्िापना वर्ण 1980-81 में तवश्व बैंक की सहायता से हुई िी. इसके अंतगणत पूवण में
तनर्मणत तिा नई परियोजनाओं को भी शातमल ककया गया है । इनमे से प्रमुख है।

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(i)सोंढु ि जलाशय: धमतिी तजले में महानदी की सहायक सोंढु ि नदी पि इस जलाशय का तनमाणर् ककया गया।

यह परियोजना 1989 में पूर्ण हुई।

(ii)तसकासाि परियोजना: गरियाबंद तजले की तसकासाि गांव के तनकर महानदी की सहायक पैिी नदी पि यह

परियोजना तनर्मणत है। इस परियोजना के अंतगणत 7 मेगावार जल तवद्युत् संयंत्र स्िातपत ककया गया है।

4.भैंसाझाि परियोजना : यह परियोजना अिपा नदी पि ग्राम भैसाझाि(कोरा के समीप) तजला तबलासपुि में
तस्ित है। इससे लगभग 25000 हेक्रेयि क्षेत्र में ससंचाई होती है।
5.के लो (कदलीप ससंह जूदव
े परियोजना): यह परियोजना ग्राम द्नौत (िायगढ़) में के लो नदी पि तस्ित है। इस
परियोजना से िायगढ़ एवं जांजगीि-चांपा तजले में लगभग 23000 हेक्रेयि में ससंचाई होती है।
6.मतनयािी (िाजीव गाँधी परियोजना): यह जलाशय तशवनाि की सहायक मतनयािी नदी पि मुंगेली तजले के
ग्राम खुतड़या के तनकर तस्ित है।इस परियोजना से 11,515 हेक्रेयि में ससंचाई होती है।
7.खूरं ाघार (संजय गाँधीपरियोजना) : यह परियोजना अिपा नदी की सहायक खािं ग नदी पि, तबलासपुि
तजले के खूंराघार ग्राम के तनकर स्िातपत है। इससे 8300 हेक्रेयि में ससंचाई होती है।
8.तांदल
ु ा परियोजना: यह तांदल
ु ा नदी (बालोद) पि तनर्मणत छत्तीसगढ़ की प्रिम (1913) परियोजना है।इससे
तभलाई स्रील प्लांर को जलापूर्तण की जाती है।
9.जोंक व्यपवतणन योजना:महानदी की सहायक जोंक नदी पि महासमुंद तजले के अजुन
ण ी नामक गांव पे तनर्मणत
(1975-79) परियोजना है।
10.कोडाि (वीिनािायर् ससंह परियोजना) :महानदी की सहायक नदी कोडाि पि महासमुंद तजले के कौंवाझि
ग्राम के तनकर वृहद् ससंचाई परियोजना का तनमाणर् ककया गया है।

जलं तह प्रातर्निः प्रार्ािः

जलं शस्यस्य जीवनम्।

न जलेन तवना लोके

शस्यबीजं प्रजायते।।

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Lecture-3
मृदा के भौततक गुर्ों का मृदा-जल सम्बन्ध पि प्रभाव
(Physical Properties of Soil Influencing Soil-Water Relations)
__________________________________________________________
मृदा को मानव सभ्यताओं का पालक (Cradle of Human Civilization) कहा जाता है। प्रकृ तत प्रदत्त
उपहािों में तमट्टी, जल,वायु औि पेड़-पौधे मानव के जीवन के तलए अत्यंत आवश्यक है। तमट्टी की 15 से 20
से.मी. की ऊपिी पित ही प्रधान पोर्र् कररबन्ध होती है, हो र्सलों, मनुष्यों तिा पशु संपदा के तलए भोजन
उपलब्ध किाती है।तमट्टी एक गत्यात्मक प्राकृ ततक सतमश्रर् है। इसमें खतनज, जल,वायु औि जल पाए जाते है
तजन पि पेड़-पौधों का जीवन तनभणि किता है।
मृदा-जल सम्बन्ध पि मृदा के भौततक गुर्ों का प्रभाव
(Physical properties of soil affecting soil-water relation)
मृदा-पौध-जल सम्बन्ध (soil-plant-water relationship) का तात्पयण मृदा एवं पौधे की भौततक
अवस्िा का मृदा जल के परिभ्रमर्, जल
धारिता तिा पौधे द्वािा उपयोग से है।
मृदा-पौध-जल सम्बन्ध का अध्ययन उस
क्षेत्र की ससंचाई व्यवस्िा को अतधक
प्रभावी, उपयोगी तिा उत्पादक बनाने के
तलए ककया जाता है। मृदा पौधे के तलए वह
सभी सुतवधाएं प्रदान किती है तजससे पौधे
अतधकातधक जल का अवशोर्र् कि सकें ।
पानी में बहुत से पोर्क तत्व घुलनशील
अवस्िा में पाए जाते है जो पौधों की वृतद्
एवं तवकास में सकक्रय भूतमका अदा किते है। पौधों की वृतद् एवं तवकास के समय वर्ाण की अतनयतमतता तिा
वर्ाण जल की कम उपलब्धतता के कािर् पौधों को ससंचाई के माध्यम से पानी की पूर्तण की जाती है।
भौततक दृतष्ट से मृदा एक बहुप्रावस्िा (Polyphase) है तजसमे िोस, द्रव तिा गैसीय प्रावास्िाएं
सम्मतलत है। मृदा का आयतनात्मक संघिन तचत्र-2 के माध्यम से प्रदर्शणत ककया गया है। पौधों को पोर्क तत्व
प्रदान किने में के वल िोस एव द्रव महत्वपूर्ण है। तमट्टी के आयतन का लगभग 50 % भाग िोस पदािो से तघिा
होता है तिा शेर् भाग िन्र होते है तजसमें जल एवं वायु उपतस्ित होती है। खतनज मृदा में साधािर्तिः 45
प्रततशत खतनज(Mineral matter), 25 प्रततशत जल (Water), 25 प्रततशत वायु (Air) तिा 5 प्रततशत के
लगभग जैव पदािण (Organic matter) होता है।मृदा के प्रकाि के अनुसाि इनकी मात्रा कम या अतधक भी हो
सकती है। मृदा गिन मृदा की महत्वपूर्ण तवतशतष्टता है, क्योंकक यह मृदा की जलधािर् एवं अतधशोर्र् क्षमता,
जुताई एवं वातन (Aeration) आकद के साि-साि मृदा की उवणिकता को भी प्रभातवत किता है।मृदा गिन में

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परिवतणन नहीं होता. बलुई मृदा हमेशा बलुई तिा मृततकायी (Clayey) मृदा सदैव मृततकायी ही िहेगी, क्योंकक
कर्ों का आकाि सिलता से परिवर्तणत नहीं हो सकता। मृदा में जल धािर् (water retention), नमीं का संचलन
(movement), पौधो के तलए आवश्यक जल का अवशोर्र् (absorption) एवं आपूर्तण (supply) मृदा के तनम्न
भौततक कािकों पि तनभणि किती है।
1.मृदा की गहिाई (Depth of Soil)
मृदा की अंततम सीमा जहां तक पौधे की जड़ें जाती हैं उसे मृदा की गहिाई कहते है। यह कु छ से.मी. से
कु छ मीरि गहिी हो सकती है। मृदा की गहिाई परिवतणनशील होती है। मृदा परिच्छेकदका (soil profile) का
यह सबसे ऊपिी संस्ति
(A-horizon) है, तजसे
पृष्ठ मृदा (surface soil)
कहते है। पृष्ठ मृदा के
नीचे बी संस्ति होता है,
तजसे अवमृदा (sub-soil)
कहते है।इसमें काबणतनक
पदािण की मात्रा कम पाई
जाती है। तवतभन्न प्रकाि
की मृदाओं में पृष्ठ मृदा
की गहिाई 2 से.मी. से
लेकि 90 से.मी. तक
पायी जाती है (तचत्र-3)।
मृदा की इसी गहिाई तक र्सलों की जड़े पहुँच कि जल एवं पोर्क तत्व ग्रहर् किती है औि इसी मृदा में भू -
परिष्किर् कक्रयाएं की जाती है। पिन्तु ज्यादाति र्सलों की जड़े मृदा में 15 से 30 से.मी. की गहिाई पि पाई
जाती है, इसतलए भू-परिष्किर् (tillage), ससंचाई तिा खाद एवं उवणिकों का प्रयोग इसी गहिाई तक ककया
जाता है।इसे हल स्ति (plough pan) अिवा प्रभावी जड़ गहिाई (effective rooting depth) भी कहा जाता
है। जड़ तंत्र के तवकास, जल धािर् क्षमता, पोर्क तत्वों की उपलब्धता औि कृ तर् कायो जैसे खेतों की जुताई,
समतलीकिर् आकद की सुगमता तमट्टी की गहिाई (soil depth) पि तनभणि किती है। ससंचाई के उद्ेश्य से तमट्टी
की गहिाई को तनम्न वगों (सािर्ी-4) में बांरा गया है:
सािर्ी-4 : मृदा गहिाई (soil depth) का वगीकिर्
मृदा की गहिाई,से.मी. (Soil depth,cm) वगण (Classes)

7.5 से कम बहुत उिली (Very shallow)


7.5-22.5 उिली (Shallow)
22.5-45.0 मध्यम गहिी (Moderately deep)

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45.0-90.0 गहिी (Deep)


90 से अतधक बहुत गहिी (Very deep)
उिली तमरट्टयों (shallow soil) की जलधािर् क्षमता कम होने के साि-साि, पोर्र् क्षेत्र कम होने के
कािर् इनमें बाि बाि ससंचाई की आवश्यकता पड़ती है।इस प्रकाि की तमरट्टयाँ भूतम समतलीकिर् एवं खेतों को
उतचत आकाि देने के तलए उपयुि नहीं होती है। गहिी तमरट्टयों में जल धािर् क्षमता औि पोर्र् क्षेत्र बेहति
होने के कािर् इनमें जड़ों की वृतद् एवं पौध तवकास अच्छा होता है।
2.मृदा वगणकर् (Soil separates)
यांतत्रक तवश्लेष्र् से मृदा कर्ों के तवतभन्न आकाि समूहों की प्रततशत मात्रा ज्ञात होती है. कर्ों के
तवतभन्न वगों को मृदा वगण कर् कहते है।कर्ों की माप के अनुसाि बालू,तसल्र तिा मृततका मृदा के तीन पृिक
कर् वगण (Soil separates) है, यही मृदा गिनात्मक इकाइयां है। अन्तिाष्ट्रीय मृदा तवज्ञान प्रर्ाली के अनुसाि
मृदा कर्ों को पांच समूहों (सािर्ी-5) में िखा गया है।
सािर्ी-5 : मृदा कर्ों के समूह (Classes of soil separates)
क्रमांक मृदा वगण कर् कर्ों का व्यास (तममी.)
1 मोरी बालू (coarse sand) 2.0-0.2
2 महीन बालू (fine sand) 0.2-0.02
3 तसल्र (silt) 0.02-0.002
4 मृततका (clay) 0.002 से कम
कर्ों के व्यास के अनुसाि मृदा पृिक कर्ों को तीन वगों में बांरा गया है। इनकी प्रमुख तवतशष्टताएँ तनम्नानुसाि
है।
(अ)बालू (Sand)
 बालू का आकाि स्िूल तिा स्पशण में दिदिी होती है।इसमें मुख्य खतनज तसतलका (SiO2)होता है।
 बालू के कर् जगह अतधक घेिते है. िं रावकाश का आकाि बड़ा होने से मृदा जलधािर् क्षमता बहुत
कम होती है ।
 मृदा में बालू की मात्रा लगभग 40 प्रततशत होने पि इसकी जल धािर् क्षमता (water holding
capacity) एवं वातन (aeration) ईष्टतम होता है।
 मृदा में बालू की मात्रा 40 % से अतधक होने पि वाष्पीकिर्, जल तनकास एवं अन्तिः स्त्रवर्
(percolation) तेजी से होता है तिा जल धािर् क्षमता बहुत कम होती है।
 मोरे कर् व् दीधण िं रावकाश होने से जल का अन्तिःस्त्रवर् तीर ग गतत से होता है।
 बालू की उपतस्ितत में मृदा चूर्ण (friable) हो जाता है। कृ तर् कायण सिलतापूवणक ककया जा सकता है।
 मोरे कर्ों का अनुपात अतधक होने से इन्हें हल्की गिन वाली (coarse taxural) मृदाएँ कहते है।
पोर्क तत्वों की हांतन के कािर् इनकी उत्पादकता कम होती है।
 तसल्र तिा मृततका वाली मृदा में बालू तमला देने से मृदा में पयाणप्त िन्र हो जाते है औि उनका वायु
संचाि पौधों की वृतद् के तलए उतचत हो जाता है।

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(ब) गाद (Silt)


 गाद (तसल्र) की भौततक प्रकृ तत बालू व मृततका के बीच की होती है, जो स्पशण में आरे या रेल्कम पाउडि
जैसे होते है। मृततका की अपेक्षा कृ तर् कायण किना सिल है ।
 मृदा में गाद 30-40 % होने पि जलधािर् क्षमता, ससंजन, सुघट्यता, अतधशोर्र् आकद गुर् बढ़
जाते है ।
 मृदा में गाद की मात्रा 40 % से अतधक होने पि जल तनकास की समस्या आती है।
 इसमें के तशय िन्र बालू से अतधक औि मृततका से कम होते है, र्लतिः इनमें जल एवं वायु संचाि बालू
से कम एवं मृततका से अतधक होता है।
 तसल्र में काबणतनक पदािों के सयोंग से अत्यन्त उपजाऊ मृदा का तनमाणर् होता है ।
(स) मृततका (Clay)
 मृततका के कर् बहुत सूक्ष्म एवं कोलाइडी होते है अिाणत कोलाइड के समान ही इनका पृष्ठ क्षेत्रर्ल,
जलधािर् क्षमता,ससंजन, सुघट्यता, उत्र्ू लन (swelling) एवं संकुचन(shrinkage) अतधक होता है।
 मृततका जलयोतजत होकि र्ू ल जाती है औि सूखने पि तसकु ड़ जाती है औि दिािे पड़ जाती है।
 इनका िंरावकाश के तशकामय होता है, तजससे वाष्पन अतधक होता है।
 ससंतचत र्सलों के तलए मृदा में मृततका कर्ों की मात्रा 50 % से कम होना चातहए।
 इससे अतधक मृततका होने पि मृदा की जल धािर् क्षमता बहुत अतधक हो जाती है तजससे जल तनकास
कम औि वायु का आवागमन अवरुद् हो जाता है।
 इन मृदाओं में कृ तर् कायण सिलतापूवणक नहीं हो पाता है, पिन्तु ये अतधक उपजाऊ एवं उवणि होती है।
3.मृदा तवन्यास (Soil Texture)
मृदा तवन्यास का अिण मृदा कर्ों के आकाि से है अिाणत इसके द्वािा मृदा कर्ों की महीनता (Fineness)
अिवा मोरापन (Coarseness) का बोध होता है। इस प्रकाि ‘तवतभन्न मृदा वगण के कर्ों के आपेतक्षक अनुपात को
मृदा तवन्यास अिवा मृदा कर्ाकाि या गिन कहते है। सामान्यतया मृदा गिन हल्का (light) एवं भािी
(heavy) भी कहलाता है। इसका तात्पयण यह है की मृदा में कृ तर् कायण अिवा उसकी खुदाई ककतनी सिलता
अिवा करिनाई से हो सकती है। सामान्यतौि पि मृदा के तीन वगण होते है:
 बलुई मृदाएँ (sandy soil): इनमें कम से कम 80 % बालू तिा 20 % में तसल्र एवं क्ले होती है।
 बालू की मात्रा एवं प्रकाि के अनुसाि मोरी, मध्यम महीन एवं अतत महीन बलुई मृदा होती है।
 तचकनी मृदा (clay soil): इनमें 35% से अतधक मृततका तिा शेर् बालू औि तसल्र पाया जाता है। इन्हें
क्ले, बलुई क्ले एवं तसल्री क्ले आकद प्रकािों में तवभातजत ककया जाता है।
 दोमर मृदा (loamy soil): इनमे 45% से कम बालू, 30-50 % तसल्र औि 20% क्ले पायी जाती है।
इन्हें बलुई दोमर, बलुई क्ले दोमर, क्ले दोमर, तसल्री दोमर तसल्री क्ले दोमर आकद उप समूहों में
बांरा गया है ।
 हल्की मृदा र्सलोत्पादन के बहुत अनुकूल नहीं होती है क्योंकक इस प्रकाि के मृदा तवन्यास में जल
धािर्, तचपतचपापन, सुघट्यता, ससंजन आकद गुर्ों का आभाव होता है।

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 मृदा कर्ाकाि उत्तम होने पि उसमे िं रों की संख्या अतधक होती है, तजससे मृदा में नमीं भी अतधक
मात्रा में तवद्यमान िहती है तिा वायु संचाि भी उतचत मात्रा में होता िहता है।
 बड़े आकाि के िन्र अिवा कम िन्र वाली मृदा कृ तर् के तलए अच्छी नहीं मानी जाती है।
 मृदा तवन्यास की दृतष्ट से दोमर (loam) एवं मररयाि दोमर (clay loam) अच्छी मानी जाती है,
क्योंकक इस प्रकाि की मृदा में नमीं औि पोर्क तत्वों का संचयन अतधक होता है।
 िे तीली मृदाओं में जल धािर् क्षमता कम होती है तिा इनमें जल तनकास एवं वातन तेजी से होता है।
अतिः इनमें बाि-बाि एवं कम गहिाई पि ससंचाई किने की आवश्यकता पडती है।
 बािीक तवन्यास (clayey) की मृदाओं में जल धािर् क्षमता तो अतधक होती है पिन्तु जल एवं हवा के
तलए पािगम्यता धीमी होने के कािर् इनमें जल तनकासी की समस्या िहती है, तजससे जलभिाव
(waterlogging) की तस्ितत उत्पन्न हो जाती है।
 ससंतचत क्षेत्रों के तलए दोमर मृदाएँ (loam) सभी र्सलों के तलए आदशण िहती है।
सािर्ी-6 : छत्तीसगढ़ में पाई जाने वाली मृदाओं के भौततक गुर्
भौततक लक्षर् भारा मरासी डोिसा कन्हाि
मृदा गिन (texture) कं किीली मररयाि दोमर मररयाि भािी मररयाि
मोरी िे त (%) 36.4 12.3 11.8 6.5
महीन िेत (%) 24.5 21.3 17.2 14.5
तसल्र (%) 15.4 26.3 13.8 14.0
मृततका (%) 21.3 37.7 53.7 57.1
भूतम की गहिाई अत्यंत उिली मध्यम गहिी गहिी
संगततता(Consistancy) तचपतचपी नहीं आंतशक अत्यन्त तचपतचपी अत्यन्त तचपतचपी
तचपतचपी एवं प्लैतस्रक
जल तनकास अतधक सामान्य अच्छा न्यून न्यून
4.मृदा सिं चना (Soil Structure)
सिं चना का मूल अतभप्राय मृदा कर्ों के तवन्यास (Arrangement of soil particles) से है। मृदा
सिं चना मृदा-वायु जल के पािस्परिक सम्बन्धों (soil-water relation) को तनयंतत्रत किती है औि इस प्रकाि
संिंरता को भी प्रभातवत किती है।
 मृदा में जल औि वायु की पािगम्यता (permeability) औि जड़ों का भूतम में प्रवेश (root penetration)
एवं तवस्ताि, मृदा सिंचना पि तनभणि किता है।
 प्रकृ तत में मृदा कर् समूह में ही पाए जाते है, तजन्हें हम मृदा समुच्चय (Aggregate) या पेड्स कहते है
तिा इसके समूतहत होने की प्रकक्रया को समुच्चयन (aggregation) कहते है। कृ तत्रम रूप से बने मृदा
पुंज को ढेला (clod) कहते है।

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 मृदा परिच्छेकदका में समुच्चयों व पेड्स को


उनकी आकृ तत एवं प्रततरूप के आधाि पि
मृदा सिं चना चाि प्रकाि की यिा प्लेरी
सिं चना, तप्रज्मीय सिं चना,ब्लॉकी
सिं चना व गोलाकाि (spherical)
सिं चना होती है।
 अच्छी र्सल लेने के तलए मृदा में जल
तिा वायु का उतचत अनुपात होना
चातहए, जो की मृदा सिं चना पि
आधारित िहता है अिाणत मृदा सिं चना
ही मृदा में वायु औि जल का अनुपात
तनधाणरित व तनयंतत्रत किती है।
 मृदा सिं चना पि ही मृदा सिन्रता, जल
संचालकता, जल धािर् तिा गैसों का तवसिर् आकद गुर् आधरित है औि पिस्पि सम्बंतधत है। मृदा
सिं चना अनुकूल न होने पि, प्रचुि मात्रा में खाध्य पदािण होते हुए भी र्सल उत्पादन अच्छा नहीं हो
सकता है।
 प्लेरी सिं चना साधाितिः स्वतन्त्र जल तनकास में बाधक होती है। क्रम्बी तिा दानेदाि सिं चनाएं
(crumby and granular) कु शल ससंचाई एवं पौध वृतद् के तलए सवोत्तम मानी जाती है।
5.मृदा का घनत्व (Density of soil)
मृदा का घनत्व भूतम के द्रव्यमान
(soil mass) औि उसके आयतन (volume)
का अनुपात है । मृदा के प्रतत इकाई आयतन
में िोस के अततरिि िंराव्काश भी उपतस्ित
होते है तजसमें या तो जल अिवा वायु भिी
होती है।तचत्र-5 में मृदा के आयतन-द्रव्यमान
में सम्बन्ध (volume-mass relation) को
दशाणया गया है. मृदा घनत्व को दो रूपों
स्िूलता घनत्व औि कर् घनत्व में ज्ञात किते
है।
(a)स्िूलता घनत्व(Bulk density): यह मृदा
के कु ल द्रव्यमान (total soil mass) औि
उसके आयतन (िोस औि रिि स्िान) का अनुपात है ।इसे तमट्टी की शुष्क (dry) औि भींगी दोनों ही अवस्िा में
ज्ञात ककया जाता है, तजसे क्रमशिः शुष्क स्िूल घनत्व (dry bulk density) औि भींगा स्िूल घनत्व (wet bulk

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density) कहा जाता है । ककसी तमररी का स्िूलता घनत्व एक घन से.मी. सूखी तमट्टी तिा समान आयतन
वाले पानी की संहतत का अनुपात होता है।इसे gram/cm3 के रूप में व्यि ककया जाता है. मृदा का सूखा
स्िूलता घनत्व (dry bulk density) तनम्न सूत्र से ज्ञात ककया जा सकता है:
उतष्मत शुष्क मृदा का भाि (Ms) Ms
मृदा का स्िूलता घनत्व(BD) =.........................................................=--------------- g/cc
मृदा का आयतन (िोस+िं रावकाश) (Vt) Vs +Vw +Va
Mt Ms+ Ma+ Mw
गीली मृदा का स्िूलता घनत्व(BD) =----------=------------------
Vt Vs +Va +Vw
उदाहिर्: यकद मृदा नमूने का ताजा भाि (fresh weight) 2505 ग्राम, जल का भाि 740 ग्राम है. सेम्पसलंग
ट्यूब के कोि की लम्बाई (height of core) 10 से.मी. तिा ट्यूब के कोि का व्यास (diameter of core) 12
से.मी. है, तो सूखा स्िूलता घनत्व (dry bulk density) इस प्रकाि से ज्ञात की जाती है.
सेम्पसलंग ट्यूब के कोि का आयतन (volume of the core) V= r2 h=  x (6)2 x 1130.4 cm3
Ms 2505-740
मृदा का सूखा स्िूलता घनत्व =-------=----------------------=1.561 g/cm3
Vt 1130.4
आयत्नात्मक गीलापन (Volume Wetness): कु ल मृदा के आयतन में पानी का आयतन
Vw (पानी का आयतन)
=--------------------------------
Vt (मृदा का आयतन)
प्रततशत के आधाि पि
Vw (पानी का आयतन)
=--------------------------------x 100
Vt (मृदा का आयतन)
सािर्ी-7 : तवतभन्न मृदाओं का स्िूलता घनत्व व सिन्रता
मृदा वगण (Soil class) स्िूलता घनत्व िं राव्काश भाि (ककग्रा./मीरि3)
(Bulk density) (Pore spaces,%) (Weight)
बलुई मृदा (Sandy) 1.6 40 1603
बलुई दोमर (Sandy loam) 1.5 44 1500
दोमर (Loam) 1.4 47 1400
तसल्र दोमर (Silt loam) 1.3 50 1302
मृततका दोमर (Clay loam) 1.2 54 1201
मृततका (Clayey) 1.1 58 1100

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 अतधकांश मृदाओं का स्िूल घनत्व 1.02 से 1.8 ग्राम प्रतत घन से.मी. होता है। मृदा का स्िूलता घनत्व
सदैव उसके कर् घनत्व (Particle density) से कम होता है।
 काबणतनक पदािण का स्िूलता घनत्व 0.5 ग्राम प्रतत घन से.मी. होता है।
 तजन तमरट्टयों में काबणतनक पदािण की मात्रा कम होती है उनका स्िूलता घनत्व अतधक हो जाता है,
क्योंकक काबणतनक पदािण की कमीं से सिन्रता भी कम हो जाती है।
 अतधक सिंर मृदा का स्िूलता घनत्व कम तिा संहत मृदाओं (compact soil) का स्िूलता घनत्व
अतधक होता है।
 महीन सिं चना वाली मृदाओं के कर्ों का समुच्चयन होने से िं रों की संख्या बढ़ जाती है ।
 ससंचाई की गहिाई एवं मृदा सिन्रता ज्ञात किने के तलए स्िूलता घनत्व का ज्ञान जरूिी होता है।
 तमट्टी में हवा, पानी का आवागमन औि जड़ तंत्र का तवकास मृदा के स्िूल घनत्व पि तनभणि किता है।
 जड़ों की वृतद् 1.5 से 1.6 ग्राम प्रतत घन से.मी. स्िूलता घनत्व पि कम हो जाती है।
 स्िूलता घनत्व की सहायता से मृदा का भाि ज्ञात ककया जाता है.प्रतत घन मीरि बलुई मृदा (sandy
soil) का भाि 1500-1600 कक.ग्रा. पिन्तु मृततका एवं मृततका दोमर (clay loam) का भाि 1100-
1200 कक.ग्रा.होता है।
(b) कर् घनत्व(Particle density): संहतत (mass) के मृदा िोस के प्रतत इकाई आयतन को कर् घनत्व या
वास्ततवक घनत्व कहते है। इसे ग्राम प्रतत घन से.मी. में व्यि किते है।
मृदा िोस का भाि (Ms)
मृदा का कर् घनत्व =...............................................
मृदा िोस का आयतन (Vs)
 मृदाओं के कर् घनत्व का परिसि 2.6 से 2.75 ग्राम प्रतत घन से.मी. के मध्य होता है।
 कर् घनत्व मृदा सिंचना (stracture) तिा मृदा कर्ाकाि (texture) से प्रभातवत नहीं होता है।
 मृदा में काबणतनक पदािण की उपतस्ितत एवं उसकी मात्रा का प्रभाव कर् घनत्व पि पड़ता है।
 मृदा सिन्रता ज्ञात किने के तलए कर् घनत्व का ज्ञान होना आवश्यक है।
6. भूतम सिं रता (Soil Porosity)
मृदा के िोस कर्ों के मध्य उपतस्ित रिि स्िान जो या तो वायु से अिवा जल से भिा होता है, उसे
िं राव्काश (Pore space) कहते है। मृदा सिन्रता (Soil porosity) रिि स्िानों (pore spaces or voids)
के कु ल आयतन औि उन रिि स्िानों वाली तमट्टी के कु ल आयतन का अनुपात है। इस रिि स्िान प्रततशत (%
pore space) भी कहते है। इसे तनम्न सूत्र द्वािा ज्ञात ककया जाता है।
आभासी घनत्व(bulk density)
िं रावकाश का प्रततशत =100-{------------------------------------ }x 100
कर् घनत्व (particle density)

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Va +Vw
={-------------}x100
Vt
मृततका (clay) कर्ों का अमाप सूक्ष्म होने से इनमें कु ल िं रावकाश (pore space) अतधक होता है औि बालू
(sand) में दीधण व् सतत िन्र होने से कु ल िंरावकाश कम होते है। इसतलए िेतीली दोमर मृदाओं (sandy and
sandy loam soils) में सिन्रता (pososity) आमतौि पि 30 से 50 % तक तिा मररयाि मृदाओं (calyey
soils) में यह 40 से 60 प्रततशत पायी जाती है इस प्रकाि से सिन्रता रिि स्िानों के सापेतक्षक आयतन
(relative volume) को इंतगत किती है। अवमृदा (sub soil) के संघतनत (compact) होने के कािर् इसमें
िं धािाव्काश 25 से 30 प्रततशत होते है औि इनकी मात्रा कम होने के कािर् जड़ों के प्रवेश पि प्रततकू ल प्रभाव
पड़ता है।
िं रावकाश (Pore space) के प्रकाि :मृदा
में िं रावकाश दो प्रकाि के होते है:
(i)सूक्ष्म िं रावकाश (Micro pores): इस प्रकाि
के िंरावकाश को के तशय िन्र (Capillary
pores) भी कहते है. इनमें नमीं का संचाि
के तशकाकर्णर् द्वािा तल-तनाव (Surface
tension) के कािर् होता है।
(ii)बृहत िन्र (Macro pores): इन्हें अके शीय
िन्र (Non-capillary) भी कहते है। इसमें नमीं
का संचाि गुरुत्वाकर्णर् के कािर् आसानी से
होता है।
 आदशण वातन (aeration), पािगम्यता (permeability) तिा जल धािर् क्षमता(water holding
capacity) के तलए मृदा में बृहत तिा सूक्ष्मिं रों की लगभग समान मात्रा होना चातहए।
 मृदा में के तशय िं रों से के तशकाकर्णर् के कािर् पानी मृदा में िहिा िहता है औि आसानी से नहीं बह
पाता । इन्हीं िं रो के कािर् मृदा में जल धािर् क्षमता का गुर् होता है।
 अके शीय िं रों में पानी नहीं रुकता है, बतल्क सािा पानी नीचे चला जाता है, इसतलए इन िंरों में जल
संतचत िखने की क्षमता नहीं होती है। ये िंर प्रायिः हवा से भिे िहते है।
 बलुई मृदाओं में अके शीय िन्र (Macro pores) अतधक होते है, जबकक क्ले युि मृदा में के तशय िं रों
(Micro pores) की बहुतायत होती है।
 मृदा कर्ों का आकाि या व्यास बढ़ने से कु ल सिन्रता भी बढ़ जाती है। आकाि के बढ़ने पि अके शीय
िन्र अत्यतधक बढ़ जाते है तिा के तशय िन्र कम हो जाते है।
 तजन मृदाओं में कर्ों का आकाि छोरा होता है औि िं रों का बाहुल्य होता है, उस मृदा में जल जल्दी
समा जाता है औि अतधक समय तक रुका िहता है।

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 शुष्क मृदाओं (dry soil) में िं रावकाश हवा से, नम मृदा में वायु एवं जल से, पिन्तु जल संतृप्त मृदा
(saturated soil) में ये जल से भिे िहते है औि इसतलए वायु के तलए स्िान नहीं िहता है।
सािर्ी-8 : मृदा कर्ों का आकि तिा िं रावकाश में सम्बन्ध
क्र.सं. मृदा कर्ों का आकाि कु ल सिन्रता अके शीय सिन्रता के शीय सिन्रता
(size of soil particles, mm) (Porosity,%) (Macro pores %) (Micro pores,%)
1 0.5 से कम 47.5 2.7 44.8

2 0.5 से 1.0 50.0 24.5 25.5

3 1.0 से 2.0 54.7 29.6 25.1

4 2.0 से 3.0 59.6 35.1 24.5

5 3.0 से 5.0 62.6 38.7 23.9

7.रििता अनुपात (Void ratio)


रििता अनुपात रिि स्िानों (pore spaces or voids) के कु ल आयतन औि िोस भाग के आयतन का
अनुपात है.इसे तनम्न सूत्र से व्यि किते है।
Vv
c=---------
V
तजसमें, c=रििता अनुपात, Vv=रिि स्िानों का कु ल आयतन एवं
Vs =के वल िोस भागों का आयतन
मृदा का रििता अनुपात रिि स्िानों के सापेतक्षक अनुपात को सिन्रता (porosity) से अतधक बेहति ढंग से
सूतचत किता है।
8.भूतम का भींगापन (Soil Wetness)
भूतम का भींगापन मृदा में जल के सापेतक्षक मात्रा (relative content) का सूचक है। इसे तनम्न तीन
प्रकाि से ज्ञात ककया जाता है।
(i) द्रव्यमान भींगापन (Mass wetness): इसे भािात्मक जल परिमार् (gravimetric water content) भी
कहते है। यह जल के द्रव्यमान (water मास) औि मृदा के द्रव्यमान (soil mass) का अनुपात है. इसे तनम्न सूत्र
से व्यि किते है:
जल का द्रव्यमान (Mw)
द्रव्यमान भींगापन=--------------------------
मृदा का द्रव्यमान (Ms)

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इसे आमतौि पि मृदा जल की मात्रा कहते है, तजसमें 100 से गुर्ा कि प्रततशत में व्यि ककया जा सकता है।
खतनज मृदाओं में द्रव्यमान भींगापन (mass wetness) 25 से 60 प्रततशत तक होता है, जो मृदा के
संतृप्तीकिर् (saturation) की मात्रा औि स्िूल घनत्व (BD) पि तनभणि किता है।
(ii)आयतन भींगापन (Volume Wetness): इसे मृदा की आयतनात्मक जल की मात्रा (volumetric water
content of soil) भी कहते है. यह जल के आयतन (Vw) औि मृदा के कु ल आयतन (Vt) का अनुपात है, तजसे
तनम्न सूत्र से व्यि किते है।
जल का आयतन (Vw)
आयतन भींगापन=-----------------------------
मृदा का कु ल आयतन (Vt)
द्रव्यमान भींगापन (Mass wetness) की अपेक्षा आयतन भींगापन (volume wetness) अतधक उपयोगी
माना जाता है, क्योंकक इसके द्वािा मृदा की नमीं में होने वाली घर बढ़ की गर्ना अपेक्षाकृ त अतधक आसान
होती है।मृदा के संतृप्तीकिर् (saturation) के अनुसाि आयतनात्मक भींगापन िे तीली मृदाओं में आमतौि पि
40-50 % तिा मररयाि मृदाओं (clayey soil) में यह 60 % तक पाया जाता है।
(iii)संतप्त
ृ अनुपात (Saturation Ratio): इसे संतृतप्त की मात्रा (degree of saturation) भी कहा जाता है।
यह रिि स्िानों के कु ल आयतन में उपतस्ित जल के आयतन का सूचक है, तजसे तनम्न सूत्र से व्यि किते है:
रिि स्िानों में उपतस्ित जल का आयतन (Vw)
संतृतप्त अनुपात (Sr) प्रततशत =---------------------------------------------- x 100
रिि स्िानों का कु ल आयतन (Vv)

9.मृदा गाढ़ता (Soil Consistency)


मृदा पदािों का तवखण्डन (rupture) या तवरूपर् (deformation) किने वाली भौततक शतियों के
तवपिीत उत्पन्न होने वाला प्रततिोध (resistance) मृदा गाढ़ता कहलाता है।
 मृदा गाढ़ता आद्रणता की तवतभन्न दशाओं में मृदा पदािों के संसंजन (cohesion) तिा आसंजन
(adhesion) के भौततक बलों की ककस्म एवं मात्रा को प्रदर्शणत किती है ।
 मृदा गाढ़ता के अन्तगणत मृदा के अनेक गुर् जैसे सम्पीडन (compression), अवरूपर् (deformation),
भुिभुिापन (friability), सुघट्यता (plasticity) तिा तचपतचपापन (stickness) सतम्मतलत होते है।
 संसंजन(cohesion) का संबंध समान अतभलक्षर्ों वाले पदािो, जैसे जल के अर्ुओं (water
molecules) के बीच जो पिस्पि आकर्णर् पाया जाता है, उसे संसंजन कहते है। यह मृदा कर्ों का
संगिनात्मक बल है।
 मृदा कर्ों में आकर्णर् (attraction) के बढ़ने से आपसी सखंचाव की कक्रया से संयुिता या संसंजन बढ़ता
है।
 भािी मृदा में संसंजन का गुर् अतधक होता है तजससे उनमें लचीलापन एवं तचपतचपाहर का गुर्
तवकतसत होता है।

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 असमान पदािों के आकर्णर् को आसंजन (adhesion) कहते है, तजसमें पदािण न्यून अिवा अतधक
दृर्तापूवणक अपने समीपवती पृष्ठों से संयुि िहते है। उदाहिर् के तलए जल के अर्ु औि मृदा कर्ों में
आकर्णर्, तजसके कािर् मृदा तचपकती है अिवा ढेला बनता है।
 आसंजन की मात्रा नमीं के बढ़ने के साि-साि बढती है, पिन्तु एक सीमा के बाद नमीं बढ़ाने पि
आसंजन आगे नहीं बढ़ता है।
 मृदा में गाढ़ापन जैव तिा अजैव कोलाइडों के गिन तिा मात्रा, उनकी संिचना तिा मृदा के आद्रणता-
अंश पि तनभणि किता है।
 मृदा आद्रणता के घरने पि मृदाओं की तचपतचपाहर व् सुघट्यता (plasticity) समाप्त हो जाती है औि
वह चूर्णयुि, मुलायम, कर्ि सख्त तिा अंततिः सूखने पि ससि (coherent) हो जाती है।
 आद्रणता-अंश के बदलने के साि-साि, मृदा आयतन में होने वाला प्रसाि (swelling) तिा संकुचन शुष्क
तमट्टी (dry soil) में अपेक्षाकृ त अतधक स्पष्ट कदखाई देता है।
 महीन तचकनी (clay) तमट्टी वाली तिा अतधक जैव पदािण (organic matter) युि मृदाओं के सूखने पि
होने वाले संकुचन (shrinkage) से बड़ी-बड़ी दिािें (cracks) हो जाती है।
 गीली मृदाओं की गाढ़ता क्षेत्र धारिता (field capacity) से कु छ अतधक जल की मात्रा पि तनधाणरित
की जाती है. गीली अवस्िा में मृदा तचपतचपापन एवं सुघट्यता (plasticity) प्रदर्शणत किती है.
 सुघट्यता (plasticity) गीली मृदा का वह गुर् है तजसके कािर् बल लगाने पि मृदा ऐतच्छक रूप में
मोड़ी जा सकती है औि दाब हराने पि उसी अवस्िा में बनी िहती है।
8.पािगम्यता (Permeability)
वह सुगमता तजससे गैसे, द्रव या पौधों की जड़े मृदा द्रव्यमान या मृदा स्ति में प्रवेश किती है या उससे
गुजिती है, पािगम्यता कहलाती है। व्यवहाि में ककसी द्रव के मृदा में पािगमन को ही पािगम्यता कहते है। मृदा
की पािगम्यता मुख्यतिः मृदा कर्ाकाि,मृदा गिन व मृदा िं रावकाश पि तनभणि किती है।
 मृदा में अधोसतह (subsoil) में किोि पित या हल के तालू द्वािा अधोमृदा में किोि पित (hard
layer) बन जाती है औि इस प्रकाि द्रवों का पािगमन अवरुद् हो जाता है।
 अच्छी ररल्ि (मृदा की भौततक दशा) वाली मृदाओं की पािगम्यता जल पािगमन व पौधों की जड़ों
की वृतद् में सहायक होती है।
 पािगम्यता के अभाव में वायु संचाि (aeration) भी घर जाता है तजसका पादप वृतद् पि प्रततकू ल
प्रभाव पड़ता है। असंतृप्त मृदाओं में संतृप्त मृदाओं की अपेक्षा पािगम्यता अतधक होती है।

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Lecture-4
मृदा जल धािर् तिा मृदा जल संचिर्
(Moisture Retention and Movement in soil)
_________________________________________________________
मृदा जल धािर् (Retention of Soil Moisture)

मृदा जल धािर् के अंतगणत मृदा में जल की तस्ितत की यातन्त्रकी का अध्ययन ककया जाता है। मृदा में
जल धािर् मृदा कर्ों तिा उनके
समुच्चयन (aggregation) के
परिर्ामस्वरूप तनर्मणत कोतशकाओं
के अंतगणत होता है। मृदा द्वािा जल
लतगष्र्ुता (tenasity) या कर्णर्
(pull) की एक तनतित मात्रा से
धारित (retained) िहता है। पौधों
को मृदा से जल ग्रहर् किने के तलए
इस कर्णर् के तवरुद् कायण किना
पड़ता है। पौधे मृदा से तभी जल
शोतर्त (absorb) कि सकते है
जबकक उनकी जड़ों का चूर्र् बल
(suction force) जल के तलये मृदा
के चूर्र् बल से अतधक होता है।
मृदा द्वािा जल तजस तनाव के साि धारित होता है, वह जल की उपतस्ित मात्रा पि तनभणि होता है। जल की
मात्रा कम होने पि तनाव (tension) अतधक होता है। मृदा द्वािा जल धािर् में दो प्रकाि के बल कायण किते है।
प्रिम बल, जल अर्ुओं के प्रतत िोस सतहों (soil surface) का आकर्णर् होता है, तजसे आसंजन बल (force of
adhesion) कहते है।मृदा में जल धारिता की अवधािर्ा को तचत्र-7 के माध्यम से समझाया गया है।

दो तभन्न पदािों के अर्ुओं के मध्य लगने वाले बल को आसंजक बल (Adhesive force) कहते है। िोस सतहों
(मृदा कर्ों) का पानी के अर्ुओं के तलए आकर्णर्, आसंजन कहलाता है। इस बल के द्वािा जल का अतधशोर्र्
(absorption) होता है औि वह तवद्युत स्िैततक बल (electrostatic force) द्वािा मृदा कर्ों पि पतली पित
(thin film) के रूप में आकर्र्णत िहता है। यह बल एक तवद्युतीय क्षेत्र का कायण किता है, जो मृदा कर्ों के
आंतरिक एवं वाह्य सतहों पि होता है। चूंकक, आसंजन के वल िोस एवं तिल सतहों (solid liquid interface)
पि ही कायण किता है, अतिः इससे बनने वाले जल की पित बहुत पतली होती है। जाइलम ऊतक की कोतशकाओं
औि जल अर्ुओं के मध्य आसंजन (Adhesion) का आकर्णर् होता है। यह आसंजन जल स्तम्भ को सहािा प्रदान

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किता है। वाष्पोत्सजणन के कािर् उत्पन्न तनाव जल स्तम्भ को ऊपि खींचता है। अतधशोर्र् के पिात एक अन्य
प्रकाि का बल कायण किता है, तजसके द्वािा िोस सतह पि अतधशोतर्त जल के अर्ु अन्य जल अर्ुओं को अपनी
ओि आकर्र्णत किते है, इसे ससंजन बल (force of cohesion) कहते है।

दो समान कर्ों या सतहों का आपस में तचपकने की प्रवृतत्त अिवा एक ही पदािण के अर्ुओं के मध्य लगने वाला
बल संसंजन (cohesion) कहलाता है। तिल के इसी गुर् के कािर् इसके अर्ु एक दूसिे को आकर्र्णत किते है।
पानी के अर्ुओं के मध्य उपतस्ित आकर्णर् भी ससंजन कहलाता है। ससंजन बल के कािर् आसंजन बल से पैदा
हुए जल अर्ुओं की पतली पित मोरी औि बड़ी हो जाती है (तचत्र..) । इसी संसंजन बल के कािर् जल स्तम्भ
वायुमंडलीय दाब पि भी खतण्डत नहीं होता औि इसकी तनिन्तिता बनी िहती है। संसंजन बल के कािर् जल
1500 मीरि ऊंचाई तल चढ़ सकता है। पृष्ठतनाव का कािर् ससंजक बलों का होना है। ससंजन औि आसंजन
बलों के सयुंि प्रभाव से जल मृदा के िंरों (सूक्ष्म तिा दीधण) में िहता है। ससंजन बल द्वािा जल की पित जैसे
जैसे मोरी होती है, उसी के अनुसाि तनाव बल (tension force) तजसके द्वािा जल पित िोस के चािों ओि
स्िातपत िहती है, तशतिल होती जाती है औि परिर्ामस्वरूप गुरुत्व बल (gravitational force) के अतधक हो
जाने पि पितों का यह जल नीचे को ओि रिसने लगता है। यह स्वतन्त्र जल है तजस पि ककसी प्रकाि का बल
कायण नहीं किता है।

तडक्सन तिा जॉली (1894) ने ससंजन का तसद्ांत प्रस्तुत ककया जो मुख्यरूप से दो तबन्दुओं पि आधारित है-(i)
जल के अर्ुओं के ससंजन (cohesion) एवं आसंजन (adhesion) गुर्ों के कािर् जाइलम में जल अखण्ड-स्तंभ
(continuous column) बन जाता है तिा (ii) वाष्पोत्सजणन अपकर्ण (pull) अिवा तनाव (tension) इस जल
स्तंभ (water column) को प्रभातवत किता है। जल आसंजन औि संसंजन बलों के कािर् ही मृदा में के तशय
िं रावकोर् (capillary pores) जल से भिे िहते है। जब पानी की पित पयाणप्त मोरी हो जाती है, तब कु छ जल
गुरुत्वाकर्णर् के कािर् नीचे की ओि बड़े-िं रावकाशों के माध्यम से गतत किने लगता है। इसतलए, जब मृदा
लगभग संतृप्त हो तब उसमें से पानी की कु छ मात्रा लेने के तलए आसानी होगी अिाणत कम बल की आवश्यकता
होगी, पिन्तु मृदा में जैस-े जैसे पानी की मात्रा कम होती है। मृदा से इकाई जल अलग किने के तलए अतधक बल
की आवश्यकता पड़ती है। इन बलों को बाि या एरमोतस्र्यि के रूप में मापते है।

मृदा नमीं तनाव (Soil Moisture Tension)


वह शति तजस पि कक जल गुरुत्त्वाकर्णर् के तवरुद् भूतम में धारित िहता है, मृदा आद्रणता तनाव
कहलाता है। इसे प्रायिः वायुमंडलीय इकाई अिवा पािे की ऊंचाई (तम.मी.) में व्यि किते हैं। मृदा के कर् अपने
अन्दि मृदा नमीं का अवशोर्र् नहीं कि सकते है, बतल्क मृदा जल, मृदा कर्ों के चािों ओि एक पतली तझल्ली
(film) के रूप में तचपका (adsorbed) िहता है। मृदा जल सदैव मृदा कोलाइडो एवं िं राकाश (pore
spaces)के बीच तस्ित िहता है।मृदा में पानी का िहिाव, तनाव शति के कािर् होता है।मृदा की जल धािर्
क्षमता,कोलाइडो एवं मृदा समुच्चयन (soil aggregation) पि तनभणि किती है।भूतम में जल की अतधकता होने
पि तनाव शति कम एवं जल की कमीं होने पि तनाव शति बढ़ जाती है। मृदा कर्ों की सतह पि पानी के

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तखचाव एवं जल कर्ों के आपसी तखचाव को मृदा नमीं तनाव (soil moisture tension) कहा जाता है। इसी
मृदा नमीं तनाव शति के कािर् मृदा कर्ों के बीच जल िहिता है।मृदा कर्ाकाि में वृतद् के साि-साि मृदा
कर्ों पि मृदा नमीं तनाव शति घरने लगती है। इसके र्लस्वरूप पानी गुरुत्वाकर्णर् बल से प्रभातवत होकि,
भूतम की तनचली सतहों की ओि गततमानहो जाता है। यही तथ्य मृदा जल धािर् के सन्दभण में, ऊजाण धािर्ा
(Energy concept) को देता है। मृदा कर्ों के बीच िोकने के तलए आवश्यक बल को चूर्र् (Suction
force) कहते है।सामान्यतौि पि संतृप्त अवस्िा में, मृदा जल हातन में वृतद् के अनुसाि मृदा में पानी िोकने के
तलए चूर्र् बल की मात्रा में वृतद् होती है।
मृदा नमीं तनाव प्रतत इकाई क्षेत्र में बल की उस मात्रा को प्रदर्शणत किता है, जो उस क्षेत्र में मृदा जल को हराने
में व्यय होती है।इस बल की माप वायुमंडल (Atmosphere) में व्यि किते है। एक एरमोतस्र्यि चूर्र् बल का
तात्पयण 1036 से.मी. ऊंचे जल स्तम्भ (water column) के द्वािा प्रतत वगण से.मी. पि पड़ने वाले दाब
(pressure) से होता है। इसे पी एर् में भी व्यि ककया जाता है। ककसी र्सल तवशेर् से अतधकतम उपज प्राप्त
किने के तलए एक तनतित मृदा नमीं तनाव पि र्सल की ससंचाई किना आवश्यक होता है। तवतभन्न र्सलों में
ससंचाई किने के तलए ईष्टतम मृदा तनाव तबन्दु अग्र सािर्ी-9 में प्रस्तुत ककया गया है।
सािर्ी-9 : तवतभन्न र्सलों में अतधकतम उपज प्राप्त किने के तलए ससंचाई हेतु ईष्टतम मृदा नमीं तनाव
प्रमुख र्सलें ससंचाई के पूवण ईष्टतम प्रमुख र्सलें ससंचाई के पूवण ईष्टतम
मृदा नमीं तनाव (बाि) मृदा नमीं तनाव (बाि)
धान (Upland) 0.15 आलू 0.30
गेंहू (देशी) 1.00 प्याज 0.65
गेंहू (बौना) बढ़वाि अवस्िा 0.50 र्ू ल गोभी 0.60
गेंहू, पकने के समय 0.60 मरि 0.30
मक्का, वृतद् के समय 0.65 सेम 0.75
मक्का, पकने के समय 0.80 गाजि 0.50
बिसीम 0.25 मूली 0.20
कपास, वृतद् के समय 1.50 नीबू 0.40
कपास,र्ू ल आने पि 4.00 संतिा 0.20
गन्ना 0.25 के ला 0.30
पृष्ठ तनाव (Surface Tension)
जल का एक तवशेर् गुर् जो मृदा में इसके व्यवहाि को प्रभातवत किता है, वह पृष्ठ तनाव है. जल के
मध्य के अर्ुओं में अपेक्षाकृ त उच्च आकर्णर् होने के कािर् अन्य द्रवों की तुलना में जल पि पृष्ठ तनाव अतधक
होता है । तल तनाव के कािर् ही पानी की तगिती हुयी बूँद गोले का आकि धािर् किती है। तल तनाव को बल
प्रतत इकाई लम्बाई से व्यि ककया जाता है। इसका मात्रक N/m होता है। शुद् जल का पृष्ठ तनाव 75 x 10-5
N/cm होता है।

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पी-एर् (pF)
पी-एर् उस संख्या का लघुगुर्क है जो इकाई जल स्तम्भ की ऊंचाई को से .मी. में व्यि किता है,
तजसके भाि का दबाव उस चूर्र् बल के समतुल्य होता है तजससे मृदा द्वािा धारित जल मृदा से अलग ककया जा
सकता है। जल स्तम्भ की ऊंचाई को लघुगर्क में व्यि ककया जाता है। जल स्तम्भ की से.मी. में ऊंचाई के
लघुगर्क को पी-एर् कहते है। इसमें p का प्रयोग स्के ल तिा F का प्रयोग चूर्र् या बल अिाणत शुद् जल एवं
मृदा जल की स्वतन्त्र ऊजाणओं में अन्ति के प्रतीक के रूप में व्यि ककया जाता है।जब मृदा कर्ों पि जल इतने
बल के साि धारित होता है कक उसका दाब एक से.मी. ऊंचाई के जल स्तम्भ के भाि के बिाबि हो तो पी-एर्
शून्य होता है, क्योंकक log का मान शून्य के बिाबि होता है।वाताविर् का दाब लगभग 1000 सेमी. जल
स्तम्भ के दाब के बिाबि होता है।इस समय इसका पी-एर् 3 होता है क्योंकक log 1000=3 होता है। चूंकक पी-
एर् एक लघुगुर्क माप है, इसतलए इसके अंक में एक की वृतद् अिवा कमीं होने पि मृदा द्वािा धारित जल का
बल भी दस गुना बढ़ अिवा घर जाता है।
मृदा जल का संचलन (Water Movement in Soil)
मृदा का तनमाणर् सूक्ष्म कर्ों द्वािा हुआ है। मृदा कर्ों की संिचना (structure) एवं कर्ाकाि (texture)
के अनुसाि उनके मध्य िं रावकाश (pore spece) पाए जाते है जो जल अिवा वायु से भिे होते है। ससंचाई
अिवा वर्ाण के द्वािा जो जल मृदा के ऊपिी पृष्ठ पि पड़ता है, वह जल मृदा के ऊपि एवं अन्दि तस्िि नहीं होता
बतल्क उसमे अनेक प्रकाि की गततयाँ पायी जाती है। मृदा जल की उपोतगता उसके संचलन (movement)
अिवा गतत पि आधारित है।पौधे उसी जल का उपयोग किते है जो उसकी जड़ तंत्र (root system) के सम्पकण
में होता है। मृदा जल संचलन के द्वािा ही पौधों के जड़ तंत्र के सम्पकण में पहुँचता है। मृदा में पानी के तवतिर् के
तीन चिर् है: नीचे की ओि रिसाव (infiltration), पुनिः तवतिर् (redistribution) औि वापसी (withdrawl) ।
वर्ाण या ससंचाई से प्राप्त पानी जो मृदा द्वािा शीघ्र सोख तलया जाता है, वह मृदा की तवतधन्न पितों में पुनिः
तवतरित हो जाता है। पानी हमेशा उच्च तवभव (high potential) से तनम्न तवभव (low potential) की तिर्
बहता है । मृदा के तवतभन्न भागों में तवभव के अनुसाि पानी ऊपि, नीचे तिा अगल-बगल र्ै लता है। गमी के
कािर् पानी वाष्प (vapour) रूप में संचलन किता है। मृदा में जल का संचलन या तवचिर् द्रव (liquid) एवं
वाष्प (vapour) दोनों रूपों में होता है। द्रव अवस्िा में मृदा जल की गतत तनम्न रूपों में होती है:
1.अपवाह जल संचलन (Runoff water movement)
वर्ाण अिवा ससंचाई के उपिान्त भूतम में पानी सोखने की गतत प्रािम्भ में कार्ी तेज होती है पिन्तु
जैस-े जैसे मृदा जल से संतृप्त होती जाती है, पानी सोखने की दि में कमी आती िहती है। ऐसी तस्ितत में भूतम में
पानी सोखने की गतत से अतधक पानी पहुंचने पि अततरिि जल अपवाह द्वािा बह कि तनचले स्िानों अिाणत
नदीं-नालों में चला जाता है। यह अततरिि जल मृदा की ऊपिी सतह से ढाल(slope) के अनुसाि बहकि नष्ट हो
जाता है। आवश्यकता से अतधक इस जल का प्रयोग पौधे नहीं कि पाते है औि यह मृदा की क्षेत्र क्षमता(field
capacity) से अतधक जल होता है।इसके संचलन को अपवाह गतत (runoff water movement) कहते है।

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2.गुरुत्वीय जल संचलन(Gravitational water movement)


मृदा में गुरुत्वीय जल संचलन गुरुत्वाकर्णर् बल के कािर् होता है। वर्ाण अिवा ससंचाई से मृदा में प्रवेश
किने वाले जल द्वािा जब समस्त िं रावकाश पूर्णतया संतृप्त (saturate) हो जाते है तो इस अवस्िा में
गुरुत्वाकर्णर् बल जल पित के तनाव बल से अतधक हो जाता है औि जल नीचे की ओि बहने लगता है। जल के
इस प्रकाि नीचे बहने के प्रक्रम को अन्तिः स्त्रवर् (percolation) कहते है। मृदा जल की गुरुत्वीय गतत मृदा
कर्ाकाि पि तनभणि किती है। बड़े कर्ाकाि वाली मृदाओं (coarse textured soil) में िं रावकाश बड़े होने के
कािर् रिसाव तीर ग गतत से होता है। ऐसी मृदाएं शीघ्र शुष्क (dry) हो जाती है। सूक्ष्म कर्ों वाली मृदाओं में
िं रावकाश सूक्ष्म होने से जल संचलन नीचे की ओि मन्द गतत से होता है। मृदा में गुरुत्वाकर्णर् बल द्वािा जल
संचलन संतृप्त प्रवाह की अवस्िा में होता है।यह प्रवाह मृदा में अतधक मात्रा में जल उपतस्ित िहने एवं जल
मागण में अभेध्य पित (hard layer) ना आने तक तनिन्ति होता िहता है। आंतरिक जल तनकास (internal
drainage) के तलए गुरुत्वाकर्णर्ीय गतत अत्यंत आवश्यक है।
3.के तशका जल का संचलन (Capillary water movement)
जब ककसी सूक्ष्म तछद्रों वाली स्वच्छ, शुष्क काँच की के तशका नली (capillary tube) को जल से भिे
ककसी पात्र में उध्वाणधि (vertical) खड़ा ककया जाता है तो देखा जाता है कक जल नली के ऊपि चढ़ने लगता है
(तचत्र-8) । इस घरना को
के तशकत्व (capillary action)
कहते है। के तशका नली में जल के
सतह की ऊंचाई पात्र के जल की
ऊपिी सतह से अतधक होती है।
इसका प्रमुख कािर् काँच का जल
के प्रतत आकर्णर् औि जल का जल
के प्रतत आकर्णर् अिाणत आसंजन
(adhesion) औि
संसंजन(cohesion) के कािर्
होता है। यकद तवतभन्न मोराई की
अनेक के तशकाएँ जल में िखी जाती
है तो देखा जाता है कक पतली
के तशका (तचत्र में के तशका सी देतखये) में जल स्ति अतधक तिा मोरी के तशका में जल स्ति अपेक्षाकृ त कम ऊपि
उिता है। के तशका नली में जल स्तम्भ (water column) की ऊंचाई को तनम्न सूत्र द्वािा प्रदर्शणत ककया जा
सकता है:
2T
h=-------
rdg

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जहां, h=के तशका नली में जल स्तम्भ की ऊंचाई, T=पृष्ठ तनाव (डाइन/सेमी.),
r=नली की तत्रज्या, d=द्रव का घनत्व, g=गुरुत्व बल (डाइन/सेमी.)
ककसी सूक्ष्म तछद्र वाली नतलका के इकाई जल भाि के तलए आसंजन सतह (adhesion surface) अतधक होती
है। यही कािर् है कक सूक्ष्म तछद्र वाली नली में दीधण तछद्र वाली नली की अपेक्षा जल स्ति की ऊंचाई अतधक हो
जाती है। मृदा के अन्दि तवतभन्न कर् इस प्रकाि से व्यवतस्ित होते है कक उनके बीच के अवकाश से बने सूक्ष्म
िन्र जल स्तम्भ का रूप धािर् कि लेते है। इसमें मृदा जल का संचलन ऊपि नीचे एवं पाश्वण (lateral) में चािों
तिर् होता िहता है। यही कािर् है कक पौधों के तलए जल की उपलब्धता के तशका जल संचलन से होती है.
मृदाओं में जल संचलन के प्रकाि (Types of water movement)
मृदा जल धािर् (soil water retention) की भांतत, मृदा में जल संचलन (movement भी ऊजाण
अवधािर् (energy concept) पि आधारित है। इसके आधाि पि कहा जा सकता है, कक मृदा में जल संचलन
मृदा की तवभव प्रवर्ता (soil water potential) के अनुसाि होता है अिाणत
h
V= -K -----
I
तजसमें, V=जल संचलन की दि (rate of water movement), h = दो तवभवों (potential) h1 औि h2 के
बीच अंति, I=उपयुणि दोनों तवभवों के बीच जल बहाव की दूिी, औि K= समानुपातीयता गुर्ांक
(proportionality coefficient) तजसे द्रवीय संचालाकता (Hydraulic conductivity) या पािगम्यता
(permeability) भी कहते है.
सूत्र में ऋर्ात्मक तचन्ह (-) इसतलए प्रयोग ककया गया है कक जल का संचलन ह्रासमान तवभव (decreasing
potential) अिाणत उच्चति से तनम्नति तवभव की ओि होता है.
मृदा जल संचिर् तीन प्रकाि से होता है।
1.संतप्त
ृ भूतम में जल का संचलन (Movement of water in saturated soil)
मृदा में संतृप्त प्रवाह तल के तनाव मुि होने पि होता है। मृदा के सभी या अतधकाँश िं रावकाश
(pore spaces) जल से भिे होते है, संतृप्त संचलन होता है। यह भािी वर्ाण या ससंचाई के बाद होता है, जब
जल तनावमुि होता है। जब मृदा के सािे िन्र जल से परिपूर्ण होते है तो मृदा तनाव नगण्य होता है तिा
गुरुत्व एवं द्रवस्िैततक तवभवों की प्रवर्ता के कािर् तवभव उत्पन्न होता है। संतृप्त प्रवाह भौम जल को तनम्न
प्रकाि व्यि किता है-
PR4
Q=--------
8LZ 
तजसमें, Q=प्रवाह का आयतन (सीसी प्रतत सेकंड),P=दाब अंति (pressure difference)
डाइन्स/cm2, R=ट्यूब की तत्रज्या (radius) से.मी., L=ट्यूब की लम्बाई, से.मी. व Z = द्रव की तवस्कतसता
(viscosity), डाइन्स/cm2

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इसे शब्दों में इस प्रकाि से व्यि किते है ‘एक संकुतचत ट्यूब के द्वािा एक द्रव के प्रवाह की दि, ट्यूब की
चौिी घात (R4) तिा दाब के समानुपाती तिा द्रव की तवस्कातसता औि ट्यूब की लम्बाई के व्युत्क्रमानुपाती
(inversely proportional) होता है’। ट्यूब के व्यास को आधा किने पि प्रवाह की दि अपनी मूल दि की
1/16 गुना कम हो जाती है। Poiseuille समीकिर् इस परिकल्पना पि आधारित है, कक तिल (fluid) ट्यूब की
दीवािों के संपकण में तस्िि (at rest) होता है तिा तवक्षुब्ध प्रवाह (turbulent flow) नहीं होता। अन्य दशाओं
के समान होने पि संतृप्त प्रवाह िंरों का आकि कम होने पि कम हो जाता है। तवतभन्न कर्ाकाि की मृदाओं में
संतृप्त प्रवाह की दि तनम्न घरते क्रम में होती है:
बालू(sand) >दोमर (loam)>मृततका (clay)
द्रवीय संचालाकता (Hydraulic
conductivity): एक कद गई द्रवीय
प्रवर्ता (hydraulic gradient) के
अनुसाि भूतमगत जल के बहाव की
दि जलकु ण्ड (aquifer) की द्रवीय
संचालकता या पािगम्यता
(permeability) पि तनभणि किती
है. इसे K अक्षि द्वाि प्रदर्शणत ककया
जाता है। इसका सबसे पहला
अध्ययन फ्ांसीसी इंजीतनयि हेनिी
डासी (1856) ने ककया. डासी के
तनयम के अनुसाि ‘एक सिन्र माध्यम द्वािा एक द्रव के प्रवाह का वेग, प्रवाह किने वाले बल (force causing
the flow) तिा माध्यम की द्रवीय चालकता (hydraulic conductivity) के समानुपाती होता है’। इसे डासी
तनयम (Darcy’s Law) कहते है, तजसे कई प्रकाि से व्यि कि सकते है। समीकिर् जल को संचातलत किने
वाले बल के रूप में दाब ग्रेतडएंर पि आधारित हो सकता है-
cK AP
Q=----------------
L
तजसमें, Q = प्रवाह बेग (flow velocity), c = तवस्ताि ितहत समानुपाती तस्ििांक (dimension less
proportionality constant), K=द्रवीय संचालकता, A=सिं र माध्यम का अनुप्रस्ि परिच्छेद( cross
sectional area of porus medium), P=दाब ग्रेतडएंर (pressure gradient), L=सिन्र माध्यम की लम्बाई
यह समीकिर् जल को संचातलत किने वाले बल के रूप में हाइिातलक हैड ग्रेतडएंर पि आधारित है-
V=Ki
यहाँ, V=प्रवाह दि, K= द्रवीय संचालकता,i= हाइिातलक हैड ग्रेतडएंर है.
द्रवीय प्रवर्ता (hydraulic gradient) सिन्र माध्यम की प्रकृ तत एवं द्रव की तवस्कतसता पि तनभणि होती है।
जल के तवर्य में यह ताप पि भी तनभणि किती है।

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इन दोनों समीकिर्ों से यह तवकदत होता है कक जल के तलए चालकता िंराकाशों की कु ल मात्रा पि तनभणि नहीं
होती है, जैसे क्ले की सिन्रता अतधक होती है, लेककन इसकी चालकता कम होती है। संतृप्त प्रवाह, गुरुत्वाकर्णर्
बल तिा के तशका बल (capillary force) द्वािा प्रेरित होता है। यह प्रवाह मृदा में जल की पयाणप्त मात्रा के
उपतस्ित िहने तक तिा ककसी िोधी (barrier) द्वािा प्रततिोध उत्पन्न किने तक तनिन्ति होता िहता है। संतृप्त
प्रवाह (अन्तिः स्त्रवर्) जल तनकास के अध्ययन में महत्वपूर्ण है।
2.असंतप्त
ृ संचलन (Unsaturated water movement): जब मृदा के िं धाकाश आद्रणता की अवस्िा में भी
आंतशक रूप से भिे होते है, इस दशा में मृदा जल तनावमुि होता है। असंतृप्त दशा में जल का संचलन तनम्न सूत्र
द्वािा व्यि ककया जा सकता है।
Δ(ψm + ψg)

V= -K------------------

ΔL
तजसमें, V=संचलन की दि (rate of movement)
-K=तमट्टी की द्रवीय संचालकता या पािगम्यता
=मैरट्रक तवभव
=गुरुत्वाकर्णर् तवभव
3.जल वाष्प संचलन (Water vapour movement): मुख्यरूप से जल संचलन तिल रूप से होता है, पिन्तु
ताप प्रवर्ताओं के कािर् वाष्प तिा तिल अवस्िाओं में होता है:
(अ)तवतभन्न तापमान व सान्द्रता के कािर् वाष्प दाब या आंतशक दाब के र्लस्वरूप जल वाष्प का
तवसिर्(diffusion) द्वािा संचलन होता है, एवं
(ब)कु ल दाब में अन्ति के कािर् प्रर्ाली की अन्य गैसों के साि जल वाष्प द्रव्यमान में प्रवातहत होता है, इसे
द्रव्यमान प्रवाह (mass flow) कहते है।
सािर्ी-10: मृदा में जल संचलन का तुलनात्मक तवविर्
तवविर् संतप्त
ृ प्रवाह असंतप्त
ृ प्रवाह वाष्पीय तवचिर्
प्रमुख बल गुरुत्वाकर्णर् मैरट्रक वाष्पीय दबाव
पानी के प्रवाह की कदशा नीचे की ओि अगल-बगल सभी कदशाओं में
पानी का रूप द्रव(liquid) द्रव (liquid) वाष्प (vapour)
िन्ररििता सभी िन्र (pores) पानी सूक्ष्म िन्र पानी से भिे सभी िन्र रिि
से भिे हुए हुए
प्रवाह की दि तेज (1 से.मी. से 100 धीमी (0.01 से.मी. से कोई प्रवाह नहीं
से.मी. प्रतत कदन) 0.00001 से.मी.प्रतत
कदन
जल तवचिर् का आयतन बहुत अतधक (375,000 कम (100,000 ककग्रा./हे.) नगण्य (15 ककग्रा./हे.)

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(मृदा की 15 ककग्रा./हे.)
से.मी.गहिाई तक)
मृदा जल की हांतन (Losses or movement of soil water) : द्रव रूप में मृदा जल की हांतन मुख्यतिः
अपधावन (runoff), जल अंतिःसिर् (infiltration), अन्तिःस्त्रवर् (percolation), सतह से रिसाव या तनस्यन्दन
(seepage) के माध्यम (तचत्र-10) से होता है।
अंतिःसिर् (Infiltration)
अंतिःसिर् अिवा अंतिःस्पंदन का अतभप्राय द्रव का एक माध्यम से दूसिे माध्यम में प्रवेश किना होता
है। मृदा की ऊपिी पतली तह में होकि जल के नीचे की ओि जाने की गतत की कक्रया अंतिःसिर् (Infiltration)
कहलाती है। दूसिे शब्दों में मृदा के
अन्दि पानी के प्रवेश को अंतिःसिर्
कहते है। अन्तिः स्यंदन दि
(Infiltration rate) अिवा क्षमता
का अतभप्राय जल की उस गतत से है
तजससे वह मृदा में प्रवेश किता है
अिाणत मृदा के अन्दि पानी के प्रवेश
किने की दि अंतिःसिर् दि
कहलाती है। अन्तिःसिर् दि को
तम.मी. या से.मी. प्रतत घंरा के रूप
में व्यि ककया जाता है। एक संहत
मृदा (compact soil) अिवा वर्ाण
होने पि आसानी से तबखिने वाली
मृदाओं में िन्र बंद हो जाने से अन्तिः
सिर् दि कम हो जाती है। नंगी मृदा
(bare soil) सतह की अपेक्षा वनस्पततयों से ढकी मृदा सतह से अन्तिः स्यंदन की दि अतधक होती है। अन्तिः
सिर् मृदा का एक गततक एवं परिवतणनशील गुर् है जो मृदा सिं चना (soil structure) एवं मृदा नमीं
(moisture) की मात्रा पि तनभणि किता है। मृदा में अतधक काबणतनक पदािण भी इसकी दि को बढ़ाने में सहायक
होते है। क्ले मृदा में सूखने पि बनी दिािे (cracks) भी प्राितम्भक अवस्िा में अन्तिः स्यंदन दि को बढाती है
ककन्तु मृदा के पुनिः र्ू लने पि अन्तिः सिर् की दि कम हो जाती है।आमतौि पि नम औि सूखी मृदाओं की अपेक्षा
गीली मृदाओं (wet soils) में तुलनात्मक रूप से जल स्त्रवर् की दि कम हो जाती है। अन्तिः सिर् दिों को तनम्न
प्रकाि से वगीकृ त ककया जाता है:
(a)अतत मंद (Very slow): अन्तिः सिर् की दि 0.254 से.मी. प्रतत घंरा से कम होती है. इस समूह की मृदाओं
में मृततका कर्ों की अतधकता होने से अन्तिः स्पंदन बहुत कम होता है।

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(b)मन्द (Slow): अन्तिः सिर् की दि 0.254 से 1.27 से.मी. प्रतत घंरा होती है । इस वगण में तचकनी (काली) व
उिली मृदाएँ आती है। इनमें काबणतनक पदािण की मात्रा कम होती है।
(c) मध्यम (Moderate): इसमें अन्तिः सिर् की दि 1.27-2.54 से.मी. प्रतत घंरा होती है ।बलुई दोमर एवं
तसल्र दोमर मृदाएं इस वगण में आती है।
(d)त्वरित (Rapid):इसमें अन्तिः सिर् 2.54 से.मी. प्रतत घंरा से अतधक होती है। इस वगण में बालू या गहिी
तसल्र दोमर मृदाएं आती है।
सतही ससंचाई (surface irrigation) के अंतगणत पानी संतृप्त धिातल (saturated level) से मृदा में
प्रवेश किता है।र्ब्बािा ससंचाई में जल भूतम तल के ऊपि से प्रवेश किता है।
मृदा के अंतिःसिर् मंडल(Zones of Infiltration)
मृदा में ससंचाई अिवा वर्ाण जल भिने के उपिान्त अन्तिःसिर् के दौिान मृदा में जल तवतिर् को कई
मण्डलों (zones) में तवभि ककया जाता है।
(i)संतृप्त मण्डल (Saturated zone): मृदा की ऊपिी तल पि हलस्ति से कु छ नीचे तक की मृदा को संतृप्त

मण्डल (Saturated zone) कहते हैं। इस मंडल में िं रावकाश पानी से भि जाते है। यह मृदा सतह से कु छ
तम.मी. की गहिाई तक िहता है।
(ii)(Transition zone) : संतृप्त मण्डल के नीचे का क्षेत्र संचिर् मण्डल कहलाता है। इस मंडल में मृदा की
गहिाई के साि पानी की मात्रा कम होती जाती है। यह कु छ से.मी. गहिा होता है।
(iii)संचिर् मण्डल (Transmission zone): के नीचे का क्षेत्र संचिर् मण्डल कहलाता है। इस मंडल में गहिाई
के साि जल की मात्रा में िोडा परिवतणन होता है। इस असंतृप्त क्षेत्र समान रूप से गहिाई में अतधक नम होता
है। इस मंडल में हाईिातलक ग्रेतडएंर गुरुत्वाकर्णर् दवाब से प्रभातवत िहता है।
(iv) गीला-मण्डल (Wetting zone): संचिर् मण्डल के नीचे की मृदा में जल के नीचे गीला मंडल का क्षेत्र
होता है। मृदा की गहिाई के साि इस मंडल में संचिर् मंडल की नमीं की मात्रा कम होकि प्राितम्भक नमीं स्ति
पि पहुँच जाती है।
(v)गीलातल (Wetting front): यह गीली औि सूखी मृदा के मध्य सीमा क्षेत्र है ।इसमें हाईिातलक ग्रेतडएंर
मेरट्रक्स तवभव से संचातलत होता है। इसे तनम्न तचत्र से प्रदर्शणत ककया गया है।
ससंचाई समाप्त होने के पिात मृदा तल से स्वतंत्र जल समाप्त हो जाता है तिा संतृप्त औि संचिर्
मण्डल में तस्ित अततरिि पानी या तों नीचे चला जाता है अिवा मृदा की कु छ सेन्रीमीरि ऊपिी तल का जल
वाष्पीकृ त हो जाता है। यह कक्रया समस्त गीली मृदा में तब तक होती िहती है जब तक जल धािर् क्षमता की
तस्ितत न आ जाय। मृदा जल की इस प्रकाि का संचिर् के तशका-सम्बन्ध तिा मृदा की जल शोर्र् शति पि
आधारित िहता है।

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अन्तिः स्त्रवर् (Percolation)


मृदा कालम से होकि पानी का क्रमशिः भूजल (ground water) की तिर् उध्वाणधि संचलन अन्तिःस्त्रवर्
कहलाता है। मृदा की ससंचाई किते समय जल संतृप्त स्िल से असंतुप्त स्िल की ओि अग्रसि होता है। इस समय
पानी नीचे तिा बगल में (sideward-downward) दोनों तिर् अग्रसि होता हे। पानी के नीचे प्रवेश
(downward) किने को अन्तिः स्त्रवर् (percolation) है। कृ तर् प्रबंधन में अन्तिः स्त्रवर् का ज्ञान होना दो कािर्ों
से बहुत जरुिी है। पहला अन्तिः स्त्रतवत जल भूजल का पुनिः पूिक (recharge) किने के तलए एक मात्र मुख्य
स्त्रोत है। दूसिा अन्तिः स्त्रतवत जल पोर्क तत्वों को मृदा में नीचे की ओि पौधों की जड़ों की पहुँच से दूि ले
जाता है। अन्तिः स्त्रवर् वर्ाण एवं वाष्पीकिर् पि तनभणि किता है।िे तीली मृदाओं में अन्तिः स्त्रवर् अतधक तिा
भािी (clay) मृदाओं में कम होता है।भूतम पि उगने वाली र्सलें एवं वनस्पततयाँ अन्तिः स्त्रवर् को कम किती
है।
अपसिर् (Seepage)
मृदा में स्वतन्त्र जल (Free water) के शनै:शनै: बगल की ओि (Sideward) बढ़ने की कक्रया को
अपसिर्(seepage) कहते है। यह िे तीली मृदा की तुलना में तचकनी मृदा (clay soil) में कम होता है। पानी के
मृदा में दोनों तिर् (नीचे औि बगल में) संचलन किने के कािर् ससंचाई के समय जल का बहाव असमान होता
है। नम भूतमयों (wet land) में शुष्क भूतमयों (dryland) की अपेक्षा पानी का बहाव एक समान होता है।
पािगम्यता (Permeability)
वह सुगमता तजससे द्रव, गैसे या पौधों की जड़े मृदा द्रव्यमान या मृदा स्ति में प्रवेश किती है या उससे
गुजिती है, पािगम्यता (Permeability) कहलाती है अिाणत मृदा का वह गुर् जो मृदा के अन्दि जल व वायु के
संचिर् तिा जड़ तंत्र (root system) के तवकास में सुगमता पैदा किता है, उसे पािगम्यता के नाम से जाना
जाता है। हल के तालू द्वािा अधोमृदा में किोि पित बन जाती है, तजससे जल औि हवा का पािगमन अवरुद् हो
जाता है । लगाताि जुताई से पािगम्यता घरती है। असंतृप्त मृदाओं में संतृप्त मृदाओं की अपेक्षा पािगम्यता
अतधक होती है। गहिी जड़ वाली र्सलों जैसे दलहनी र्सलें, घासें, वृक्ष आकद से पािगम्यता में वृतद् होती है।
मृदाओं के तलए पािगम्यता (Permeability) की दिों को तनम्नानुसाि वगीकृ त ककया जाता है:
(a) अतत मंद (Very slow): पािगम्यता की दि 0.508 से.मी. प्रतत घंरा से कम होती है ।
(b) मन्द (Slow): पािगम्यता की दि 0.508 से 1.6002 से.मी. प्रतत घंरा होती है ।
(c) मध्यम (Moderate): इसमें पािगम्यता की दि 1.6002 से 5.08 से.मी. प्रतत घंरा होती है
(d) त्वरित (Rapid):इसमें पािगम्यता दि 5.08 से 16.002 से.मी. प्रतत घंरा से अतधक होती है।
(e) अतधक त्वरित(Very rapid): पािगम्यता दि 16.002 से.मी. प्रतत घंरा से अतधक ।

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Lecture-5
मृदा जल के प्रकाि (Kinds of soil Water)
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भूतम में उच्चति तवभव (higher potential) पि अतधक जल तिा तनम्न तवभव (lower potential) पि
कम जल धारित (retained) होता है। मृदा में जल उपलब्धतता तिा भूतम एवं पौधों में परिभ्रमर् के आधाि पि
मृदा जल को कई प्रकाि से वगीकृ त ककया जाता है। मृदा जल वगीकिर् को ही मृदा जल के रूप (forms of
soil water) कहते है। मृदा जल का भौततक एवं जैतवक वगीकिर् अग्र-प्रस्तुत है:
(क)मृदा जल का भौततक वगीकिर् (Physical Classification of Soil Water)
मृदा जल का भौततक वगीकिर् नमीं गुर्ांक (Moisture coefficient) के आधाि पि तनम्नानुसाि
(तचत्र-11) ककया जाता है।

1.गुरूत्वाकर्णर् जल (Gravitational water)


वह जल जो 1/3 वायुमंडलीय तनाव से भी कम तनाव बल द्वािा धारित होता है एवं गुरुत्वीय बल के
तखचाव के कािर् नीचे की ओि गतत किता है, उसे गुरुत्वीय जल या स्वतन्त्र जल (Free water) कहते है। मृदा
में यह क्षेत्र क्षमता के ऊपि का जल होता है। यह जल तनकास के माध्यम से बाहि तनकल जाता है, अतिः पौधों
के तलए यह जल उपलब्ध नहीं होता है। मृदा में गुरुत्वीय जल की मात्रा बढ़ने से िं रावकाश जल से परिपूर्ण हो
जाते है औि वायु के आभाव में जड़े सड़ने लगती है। इस प्रकाि के जल के साि पोर्क तत्वों के घुल कि नष्ट होने
तिा भूतम में लाभदायक जीवार्ुओं की संख्या कम होने की सम्भावना िहती है। इस जल का तनकास बहुत
आवश्यक होता है। जल तनकास के अभाव में यह जल पौध पोर्क तत्वों को तवलय कि लेता है, तजससे र्सल को
उनकी उपलब्धता समाप्त हो जाती है। बड़े कर्ाकाि वाली मृदाओं (बलुई, बलुई दोमर) में इस जल का संचिर्
अच्छा होने से आंतरिक जल तनकास अच्छा होता है, जबकक भािी तचकनी मृदाओं में जल तनकास अच्छा नहीं
होता है। इस जल स्ति के नीचे अवतस्ित जल भूतमगत जल (Ground water) कहलाता है।

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उदाहिर्: काबणतनक खाद युि तमट्टी से भिा एक गमला लेते है। इसमें जल तनकलने के तलए एक छेद (hole) कि
देते है। अब गमले को ऊपि तक जल से भि कदया जाता है। िोड़ी देि बाद गमले का पूिा जल छेद से बाहि
तनकल जाता है। ऐसा क्यों होता है ? क्योंकक तमट्टी में िंराव्काश (pore spaces) होते है उसमे पानी भिने के
बाद अततरिि जल को िोकने की शति मृदा में नहीं होती हा, अतिः अततरिि जल पृथ्वी के गुरुत्वाकर्णर् बल के
कािर् नीचे बह जाता है।अतिः पौधों के तलए अप्राप्य होता है। इसतलए इसे गुरुत्वीय जल कहते है।
2. के तशका जल (Capillary water)
यह जल क्षेत्र धारिता एवं एवं आर्द्रताणग्राही जल (Hygroscopic water) या आद्रणता गुर्ांक के बीच
धारित होता है। जल मृदा कर्ों के चािो तिर् के तशका िंरो (Capillary pores) में आसंजन (Adhesion) औि
पृष्ठ तनाव (Surface tension) के बलों द्वािा भूतम में तझल्ली के रूप में रुका हुआ पानी के तशका जल कहलाता
है। के तशय जल ही एक मात्र तिल जल है, जो लवर्ों के साि मृदा-तवलय के रूप में तवद्यमान िहता है। के तशका
जल पौधों के तलए अत्यन्त उपयोगी जल होता है। मृदा में यह जल द्रव रूप में तवद्यमान होता है। यह जल
10000 से 31 वायुमण्डलीय दाब पि धारित होता है । महीन संगिन वाली मृदा में के तशय जल धािर् क्षमता
अतधक होती है, जबकक मोरे संगिन वाली मृदाओं में कम होती है। यह इसतलए क्योंकक महीन संगिन वाली
मृदाओं में सूक्ष्म िं राकाशों की संख्या एवं कु ल स्िान ज्यादा होता है, अतिः इनकी जल धािर् क्षमता (water
holding capacity) अतधक होती है। भािी मृदाओं को सघन (compact) किने पि, सूक्ष्म-िं धाकाश के स्िान
कम हो जाते है। अतिः िंराकाश में जल धािर् क्षमता भी कम हो जाती है। पिन्तु बलुई तमरट्टयों को सघन किने
या दबाने पि बड़े िंराकाशों की जगह कम हो जाती है तजससे इन भूतमयों की जल धािर् क्षमता बढ़ जाती
है।बािीक कर्ों वाली भूतमयों में भािी कर्ों की भूतमयों की अपेक्षा जल की उपलब्धता अतधक होती है। पौधे
अपने मूल िोमों (root hairs) की सहायता से इस जल को सोखते िहते है। यह जल गततशील होता है औि
उसकी यह गतत नम भूतमयों की अपेक्षाकृ त सूखी भूतम की ओि अतधक होती है। यह जल भूतम के नीचे की तहों
से ऊपि की ओि इस प्रकाि चढ़ता है जैसे कक कदए की बत्ती में तेल । लेककन के तशका जल की यह गतत कु छ दूिी
तक सीतमत िहती है।
3.आद्रणताग्राही जल (Hygroscopic Water)
आद्रणताग्राही जल में वह जल सम्मतलत है, जो आद्रणताग्राही गुर्ांक पि उपतस्ित होता है एवं यह जल
31 वायुमंडलीय तनाव या इससे भी अतधक तनाव पि भूतम में तवद्यमान होता है। यह जल मृदा कर्ों के ऊपिी
सतह पि अत्यतधक दाब एवं दृर्ता से संयुि होता है। इस जल को आसंजन जल (Water of adhesion) भी
कहते है क्योंकक यह जल िोस-तिल अन्तिःपृष्ठों (solid liquid interfaces) पि धारित होता है। यह वह जल है
तजसे सूखी तमट्टी वायुमंडल में उपतस्ित जल वाष्प को सोख लेती है। यह जल अत्यन्त पतली तझल्ली के रूप में
तमररी तिा जैतवक पदािण के कर्ों के चािों तिर् से घेिे िहता है। यह जल तमररी के कर्ों को इस प्रकाि जकड़े
िहता है कक न तो वह ऊपि-तनचे उि सकता है, न भाप बनकि उड़ सकता है औि न ही पौधों के काम आ सकता
है। व्यावहारिक रूप में यह जल पौधों को उपलब्ध नहीं होता है, क्योंकक यह मृदा में एक पतली पित के रूप

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जकड़ा िहता है । यह जल ज्यादाति मृदा कोलाइडस के द्वािा धारित होता है। ऐसी जल धारित मृदा को यकद
100-1100 सेतल्सयस के तापमान पि 8-10 घंरो के तलए गमण किें , तब यह जल मृदा से अलग हो पाता है।
उदाहिर्: एक सूती कपड़ा लेकि उसे पानी में डु बाए। कपड़े को तनकालकि अच्छी प्रकाि तनचोड़ लें औि धुप में
सूखने के तलए र्ै लाए। िोड़ी देि (आधे घंरे) बाद कपड़े को उिाकि देखने पि पता चलता है की कपड़ा पूिी तिह
सूखा नहीं है कर्ि भी कपड़े को पुनिः तनचोड़ने पि उसमें से जल नहीं तनकलता है। ऐसा क्यों ? क्योंकक कपड़े में
उपतस्ित जल कपड़े के धागों के बीच तचपका (जकड़ा) िहता है। इस प्रकाि से तमट्टी में भी कु छ जल अवश्य
िहता है लेककन वह मृदा कर्ों के मध्य इतनी मजबूती से एक पतली पित (thin film) के रूप में तचपका िहता
है कक पौधों को प्राप्त नहीं होता। इसी जल को आर्द्रताणग्राही जल (Hygroscopic Water) कहते है। इसका
अतधकाँश भाग वाष्पन द्वािा बेकाि चला जाता है।
4.सयुि
ं जल (Combined water)
इस जल को िासायतनकीय सयुंि जल या के लासीय जल भी कहते है जो अत्यन्त दृडता के साि मृदा के
खतनज पदािों की सिं चना के साि संयुि होता है। मृदा को लाल गमण किने पि इस जल को खतनज पदािों से
अलग ककया जा सकता है। यह जल खतनजों की सिं चना के साि जकड़ा होने के कािर् पौधों को उपलब्ध नहीं
हो पाता औि र्सलोत्पादन की दृतष्ट से महत्वहीन है।
सािर्ी-11 : मृदा जल एवं मृदा जल तस्ििांक में सम्बन्ध तिा उनके तनाव
क्र.स. मृदा जल तस्ििांक पौधों को प्राप्य तनाव के परिसि(वायुमंडल) समतुल्य PF
तजस पि जल धािर् होता है परिसि
1 आद्रणताग्राही जल प्रायिः अनुपलब्ध 10000-31 तक 7-4.5

2 आद्रणताग्राही गुर्ांक अप्राप्य 31 4.5

3 मुिझान तबन्दु करिनता से उपलब्ध 15 4.2

4 के तशका जल उपलब्ध 31-0.33 2.5-4.5

5 नमीं तुल्यांक अत्यन्त सुगमता से 1-0.5 3.0-2.7


उपलब्ध
6 क्षेत्र क्षमता सवाणतधक उपलब्ध 0.33 atm 2.54

7 गुरूत्वाकर्णर् जल अपेक्षातधक तिा 0.33-0 2.54-0


अनुपलब्ध
8 अतधतम जल धािर् अपेक्षातधक तिा पौधों शून्य शून्य
क्षमता के तलए हातनकािक

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मृदा जल का जैतवक वगीकिर् (Biological Classification of Soil Water)


पेड़-पौधों के शीघ्र तवकास के तलए भूतम में तवद्यमान सभी प्रकाि के जल उन्हें उपलब्ध नहीं होते है।
पौधों की उपयोतगता के आधाि पि मृदा जल को को तनम्न प्रकाि से वगीकृ त किते हैं।
1.अप्राप्य जल (Unavailable water)
यह वह जल है, जो भूतम में स्िाई मुिझान तबन्दु (PWP) पि धारित होता है। इसमें आद्रणताग्राही जल
सम्मतलत है, जो पौधों के द्वािा मुिझाने से बचने के तलए अत्यंत मंद गतत से अलग ककया जाता है। मृदा में यह
जल म्लातन गुर्ांक से कम मात्रा में (आद्रणता गुर्ांक/0.68 या नमी समतुल्यांक/1.8 ) उपलब्ध होता है, तजसे
सामान्य रूप से पौधे ग्रहर् नहीं कि पाते हैं। इसी तलए इस प्रकाि पाए जाने वाले जल को अप्राप्य जल के नाम
से पुकािते है। इस प्रकाि का मृदा जल मृदा के मध्य 15 से 31 एरमास्र्ीयि तनाव द्वािा रूका िहता है।यह जल
जैतवक कोलायड्स पि उग िहे जीवार्ुओं एवं कवकों के तलए उपयोगी हो सकता है।
2.प्राप्य जल (Available water)
के तशय जल (capillary water) का वह भाग जो क्षेत्र क्षमता (1/3 वायुमंडलीय तनाव) एवं मुिझान
गुर्ांक 15 वायुमंडलीय तनाव) के बीच का होता है, उसे प्राप्य जल कहते है । यह जल पौधों के तलए उपयेागी
होता है। जलधािर् क्षमता (0.03 एरमास्र्ीयि) पि इस जल को ग्रहर् किने के तलए 5 पौण्ड प्रतत वगण इंच का

बल लगाना पड़ता है जबकक अम्लांक (Wilting point) (15 एरमास्र्ीयि) पि 225 पौण्ड के बल द्वािा पौधे
मृदा जल का शोर्र् कि पाते हैं। सामान्य रूप से पौधा इतना बल लगाने में सक्षम नहीं होता औि सूखने लगता
है।
मृदा में उपतस्ित सम्पूर्ण पानी की मात्रा को होलाडण (holard) कहते है। इसमें से पानी की वह मात्रा
जो पौधों को प्राप्य होती है, उसे क्रेसाडण (chresard) अिवा प्राप्य जल (available water) कहते है। इसमें
लगभग 75% के तशका जल की मात्रा होती है। शेर् तमट्टी जल (अिाणत 25 % के तशका जल, आर्द्रताणग्राही जल,
िासायतनक-बद् जल एवं वाष्पीकृ त जल) जो पौधों को प्राप्य नहीं होता, उसे इकाडण (echard) अिवा अप्राप्य
जल (non-available water) कहते है।
3.व्यिण जल (Superfluous water)
वह जल जो 1/3 या उससे कम वायुमंडलीय तनाव पि तवद्यमान हो यह अततरिि जल है. स्वतंत्र या
गुरूत्वाकर्णर् जल को व्यिण जल के नाम से पुकािते हैं, क्योंकक यह जल पौधों के तलए उपयोगी नहीं िहता
है।वास्तव में यह जल अतधकता से भूतम में तवद्यमान हो तो यह ऐसी तस्ितत तनर्मणत कि देता है , जो पौधों की
बढ़वाि के प्रततकू ल होती है। मृदा में वातन की समस्या उत्पन्न हो जाती है, तजससे पौधों की जड़ों के तलए श्वसन
हेतु ऑतक्सजन की प्रातप्त नहीं हो पाती। अच्छा वातन न होने के कािर् भूतम में तवतभन्न जैव-िासायतनक कक्रयाएं
जैसे नाइरट्रकिर्, नाइट्रोजन तस्ििीकिर्, अपघरन आकद पि प्रततकू ल प्रभाव पड़ता है। यह अततरिि जल घुले
हुए पोर्क-तत्वों को नष्ट किने के तलए तजम्मेदाि होता है।

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Lecture-6
मृदा नमीं तस्ििांक एवं मृदा जल उपलब्धतता परिकल्पना
(Soil Water Constant and Theories of Moisture Availability)
________________________________________________________
भूतम-जल को पौधों की उपलब्धता का अध्ययन किने के तलए मृदा-जल-पौध सम्बन्ध की जानकािी
आवश्यक है। तवतभन्न प्रकाि की मृदाओं में सभी प्रकाि के जल ह्रास (water loss) के पिात कु छ जल नष्ट न
होकि मृदा द्वािा धारित कि तलया जाता है। इस प्रकाि नष्ट होने से बच गए जल पि ही कृ तर् कायण तनभणि किते
है। इसतलए यह जानना अत्यन्त आवश्यक होता है कक तवतभन्न प्रकाि की मृदाओं द्वािा ककतनी मात्रा में जल
धारित ककया जाता है। तवतभन्न तस्ििांक के माध्यम से ही ससंचाई एवं जल तनकास का बेहति प्रबंधन ककया जा
सकता है। तवतभन्न प्रकाि की मृदाओं द्वािा धारित जल की मात्रा को ज्ञात किने के तलए प्रयोग ककये जाने वाले
तस्ििांक मृदा जल तस्ििांक (Soil water constant) कहलाते है। पौधों एवं मृदा-नमीं के सम्बन्ध में कु छ
आवश्यक तस्ििांक (तचत्र-12) तनम्नानुसाि है ।
1.संतृप्तता (Saturation)
मृदा के सभी िन्र जब जल से भिे होते
है तिा मृदा जल पि कोई तनाव नहीं होता है
तो उसे संतृप्त मृदा कहते है। इस प्रकाि की
अवस्िा स्िूल गिनीय बालू में आ सकती है,
पिन्तु सूक्ष्म गिनीय मृदा में नहीं पाई जाती है,
क्योंकक वायु के कु छ अंश तो शेर् िह ही जाते है।
मृदा का संतृप्त तबन्दु लाने के तलए उसे मध्य स्ति
मुि जल के सम्पकण में लाना पड़ता है तिा ऐसी
अवस्िा में मृदा को साम्य पि पहुँचने तक िखा
जाता है। साम्य अवस्िा पि मृदा में तवद्यमान
जल को संतृप्तता या संतृप्त आद्रणता कहते है।
2.क्षेत्र-क्षमता (Field capacity)
ससंचाई या वर्ाण के लगभग 36 से 48 घंरे बाद जो पानी की मात्रा पृथ्वी के गुरुत्व बल के तबरुद् मृदा
द्वािा िोक ली जाती है, उसे क्षेत्र क्षमता अिवा मृदा जल धारिता (Water holding capacity) कहते है। दूसिे
शब्दों में क्षेत्र क्षमता जल की वह मात्रा तजसे जल तनकास की उतचत व्यवस्िा होते हुए मृदा गुरुत्वाकर्णर् बल
(Gravitational force) के तवरुद् कायण किके नीचे जाने से िोक लेती है। इस समय मृदा में नमीं का प्रततशत
100 होता है, जबकक स्िायी म्लातन तबन्दु (Wilting point) पि यह प्रततशत जीिो होता है। तवश्लेर्र् के रूप में
क्षेत्र क्षमता शुष्क आधाि पि पानी की प्रततशत मात्रा है, जो अनुकूल जल तनिाि की दशाओं में मृदा के ककसी
स्ति पि गुरुत्वीय बल के तवरुद् धािर् ककया जाता है। भािी तवन्यास वाली मृदाओं में उच्च क्षेत्र क्षमता होती है।

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बलुवि भूतमयों में मररयाि भूतमयों की अपेक्षा क्षेत्र-क्षमता की तस्ितत शीघ्र आ जाती है। क्षेत्र क्षमता पि
मृदा का आद्रणता तनाव 1/3 या 0.33 वायुमंडतलय दाब होता है औि बड़े िंरों एवं के तशका में उपतस्ित वह जल
जो गुरुत्व (gravity) के कािर् नीचे की ओि परिच्यतवत (percolate) हो जाता है उसका तनाव बल 1/3 या
0.33 वायुमंडलीय दाब से कम होता है । क्षेत्र क्षमता को साधािर्तया से.मी. प्रतत मीरि में दशाणते है अिाणत 1
मीरि मृदा में ककतने से.मी. जल रुक सकता है।
3. मृदा की अतधकतम जल-धािर्-क्षमता(Maximum water holding capacity)
ससंचाई अिवा वर्ाण के पिात जब मृदा के िं रावकाश (pore spaces) जल से भि जाते है तो अततरिि
जल का धीिे -धीिे जल-तनकास प्रािम्भ हो जाता है औि एक ऐसी अवस्िा आती है। जबकक जल तनकास
तबलकु ल रुक जाता है। ऐसी अवस्िा में जल संतृप्त मृदा के अन्तगणत तजतना जल रुका अिवा धारित िह जाता
है, मृदा की अतधकतम जल धािर् क्षमता कहलाता है। ऐसी तस्ितत में मृदा जल तवभव प्रायिः शून्य हो जाता है
क्योंकक सम्पूर्ण िं रावकाश जल से भिे होते है औि मृदा जल से पूर्णतिः संतुप्त (Saturate) िहती है । इस तस्ितत में
मृदा में जल का अतधक समय तक रूकना र्सलों के तलए हातनकािक होता है। तचकनी मृदाओं की अपेक्षा बलुई
एवं बलुई दोमर तमरट्टयों की अतधकतम जल धािर् क्षमता बहुत कम होती है क्योंकक इनमें तचकनी मृदाओं की
अपेक्षा सम्पूर्ण िं रावकाश कम होते है। मृदा की अतधकतम जल-धािर्-क्षमता का तनधाणिर् कु ल िं रावकाश की
उपतस्ितत के आधाि पि ककया जाता है।
4. म्लातन तबन्दु (Wilting point)
वाष्पीकिर् (Evaporation) औि वाष्पोत्सजणन (Transpiration) द्वािा मृदा नमीं में कमीं होने से मृदा-
जल प्रततबल (Soil moisture stress) बढ़ता जाता है औि एक ऐसी तस्ितत आती है जब पौधे भूतम से नमीं
ग्रहर् किने में सक्षम नहीं हो पाते है। परिर्ामस्वरूप वाष्पोत्सजणन कक्रया द्वािा जल तनिन्ति नष्ट होता िहता है
औि पौधे मृदा से कम नमीं शोतर्त (absorb) कि पाते है, तजससे वे मुिझाने लगते है। पौधे का एक तिर् झुक
जाना मुिझाना कहलाता है। सूखे वाताविर् में पानी की कमीं के कािर् पौधे मुिझा (तसकु ड़) जाते है। मुिझाने
की कक्रया पौधों में दो प्रकाि से पूर्ण होती है-अस्िाई मुिझाना औि स्िाई मुिझाना:
(a)अस्िाई मुिझाना (Temporary wilting)
पौधे कदन के समय गमण वताविर् के कािर् अतधक वाष्पीकिर् से मुिझा जाते है तिा िात में कम
वाष्पीकिर् होने से पौधे अपनी स्वाभातवक अवस्िा में आ जाते है।इसे अस्िाई मुिझाना या अस्िाई म्लातन
तबन्दु (Temporary wilting point) की संज्ञा दी जाती है। अस्िाई मुिझाने को कायकी शुष्कता
(physiological dryness) भी कह सकते है, क्योंकक कायकी शुष्कता के कािर् पौधों में ज्यादा मात्रा में पानी
डालने पि भी पौधे की पतत्तयां अपनी स्वाभातवक अवस्िा में नहीं आती, ये कातयकी में बदलाव से अपने आप
ही सामान्य अवस्िा में आ जाती है।
(b) स्िाई मुिझाना (Permanent wilting)
कदन के समय बहुत अतधक गमण वाताविर् होने से पौधों में अतधक वाष्पीकिर् के कािर् तमट्टी में पानी
की कमीं हो जाती है, तजससे पौधे िात में भी अपनी स्वाभातवक अवस्िा में नहीं आ पाते है, इस अवस्िा को

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स्िाई मुिझान या स्िाई म्लातन तबन्दु (Permanent wilting point) कहते है। स्िाई मुिझाने को भौततक
शुष्कता (Physical dryness) भी कहते है, क्योंकक स्िाई मुिझाने की कक्रया भूतम में जल स्ति बढ़ने पि ही दूि
होती है। इस तबन्दु पि मृदा नमीं का तनाव 15 वायुमंडलीय दबाव पि आता है। तमट्टी में बचे शेर् जल की वह
मात्रा, जो पौधों में स्िाई मुिझाने के समय शेर् िह जाती है, उसे म्लातन गुर्ांक (Wilting coefficient) कहते
है। मुिझान गुर्ांक को स्िाई म्लातन प्रततशत भी कहते है। जल की यह शेर् मात्रा मृदा की बनावर (Texture) के
आधाि पि 1 से 15 % तक िह जाती है। म्लातन गुर्ांक को तनम्न सूत्र से ज्ञात किते है:
म्लातन-गुर्ांक=आद्रणताग्राही
गुर्ांक/ 0.68
(c) अंततम मुिझान तबन्दु (Ultimate
wilting point)
स्िायी म्लातन तबन्दु के ऊपि जब
औि अतधक तमट्टी सूख जाती है तो पानी
बहुत सख्ती के साि मृदा कर्ों से तचपक
जाता है। नमीं की मात्रा -60 बाि पि
पौधों को उपलब्ध नहीं होती। तजस नमीं
की मात्रा पि पौधे मि जाते है, उसे अंततम
म्लातन तबन्दु (ultimate wilting point)
कहते है। ऐसी दशा में पानी वाष्प के रूप
में िहता है।
5.मृदा नमीं समतुल्यांक (Moisture equivalent)
यह पानी की प्रततशत मात्रा, जो एक संतृप्त मृदा नमूना द्वािा गुरुत्वीय बल से 1000 गुना अतधक
अपके तन्द्रय बल लगाने पि भी मृदा द्वािा धारित िहता है। प्राितम्भक रूप से संतृप्त मृदा को एक तनतित समय
तक सामान्यतौि पि आधे घंरे के तलए अपके तन्द्रय बल लगाते है। मध्यम तवन्यास वाली मृदाओं में, क्षेत्र क्षमता,
नमीं सम तुल्यांक के मान लगभग बिाबि-बिाबि होते है, पिन्तु बलुई भूतमयों में, क्षेत्र क्षमता, नमीं समतुल्यांक
से अतधक होता है। उच्च मृततका धारित मृदाओं में क्षेत्र क्षमता नमीं समतुल्यांक से सामान्यतिः कम होती है।
6.आद्रणताग्राही गुर्ांक (Hygroscopic coefficient)
आद्रणताग्राही गुर्ांक का तात्पयण मृदा जल के उस प्रततशत अंश से है, तजस पि पौधों में जल की कमीं के
कािर् स्िायी मुिझाहर (Permanent wilting) आ जाती है औि वह तब तक समाप्त नहीं होती, जब तक पौधों
को औि अतधक पानी ससंचाई द्वािा नहीं कदया जाये । दूसिे शब्दों में ‘शुष्क मृदा स्वभावतिः वायुमण्डल की
आद्रणता के साि सामंजस्य स्िातपत किके जो जल ग्रहर् किती है, उसे आद्रणताग्राही गुर्ांक (hygroscopic
coefficient) के नाम से जाना जाता है। इसे भट्टी शुष्क भाि(Oven dry weight) के आधाि पि प्रततशत में
व्यि किते हैं। मृदा का भट्टी शुष्क भाि जानने के तलए मृदा को 1050 सेतल्सयस तापक्रम पि 12 घण्रे या तब

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तक िखना चातहए जब तक तस्िि भाि प्राप्त न हो जाय। खतनज मृदाओं में आद्रणता गुर्ांक लगभग 31 वायुमंडल
होता है। जब जल की पित एकदम पतली होती है, तब इसका मान 10,000 वायुमंडल तक बढ़ता है। यह मृदा
जल का एक मापन है, जो अतत उच्च तनाव पि धारित होता है। आद्रणता ग्राही गुर्ांक पि जो बल कायण किते है,
वे मुख्यतिः मृदा कोलायड्स (clay) के द्वािा पानी के अर्ुओं को आकर्र्णत किने के कािर् होता है।
7.उपलब्ध-मृदा आद्रणता (Available soil moisture)
मृदा जल का वह परिसि जो प्रक्षेत्र क्षमता (Field capacity) अिाणत 0.33 बाि औि म्लातन तबन्दु
(Wilting point) अिाणत 15 बाि के मध्य होता है, उसे उपलब्ध जल या प्राप्य जल (available soil
moisture) कहते है। प्राप्य जल, म्लातन तबन्दु पि सबसे कम औि प्रक्षेत्र क्षमता पि सवाणतधक होता है। जब
उपलब्ध जल पूर्णरूप से समाप्त हो जाता है, तब म्लातन तबन्दु प्रािम्भ हो जाता है । इस प्रकाि तनाव बल में
वृतद् होने के साि-साि जल की पौधों को उपलब्धता कम होने लगती है। इसका प्रमुख कािर् यह है कक अतधक
तनाव बल पि पौधे को जल ग्रहर् किने हेतु अतधक बल लगाना पड़ता है। र्सल की वृतद् के तलए मृदा जल का
यह परिसि (प्रक्षेत्र क्षमता औि म्लातन तबन्दु के मध्य) सबसे अतधक महत्वपूर्ण होता है। बलुई अिवा हल्की
भूतमयों में मररयाि अिवा भािी भूतमयों की अपेक्षा मृदा नमीं कम पाई जाती है। उपलब्ध मृदा जल का 50 %
उपयोग होने पि ससंचाई किना चातहए।
सािर्ी-12 : तवतभन्न मृदा तवन्यास वाली भूतमयों की जल धािर् क्षमता
मृदा तवन्यास संतृप्त क्षमता क्षेत्र क्षमता स्िायी मुिझान उपलब्ध मृदा जल अन्तिः स्त्रवन दि
(Soil Texture) (Saturation (Field तबन्दु (PWP) (Available Soil (Infiltration)
capacity)% capacity) % Moisture- ASM) तम.मी./घंरा
प्रततशत तम.मी./तमनर
मृततका (Clayey) 60 40 20 20 200 3
Clay loam 50 30 15 15 150 3-7
Silt loam 45 22 12 10 100 7-12
बलुई दोमर 42 14 6 8 80 12-20
(Sandy loam)
Loamy sand 40 10 4 6 60 20-30
बलुई (Sandy) 38 6 2 4 40 30

8.तचपतचपा तबन्दु (Sticky point)


तचपतचपा तबन्दु को असलांग तबन्दु भी कहते है। महीन तपसी मृदा के नमूने में जल डालकि धीिे -धीिे
तमलाने पि एक ऐसा तपण्ड प्राप्त होता है जो अन्य ककसी पदािण से नहीं तचपकता है। इस तपण्ड को चाकू या
अन्य ककसी यन्त्र से कारने पि मृदा के कर् चाकू से नहीं तचपकते है। ऐसी अवस्िा में मृदा के अंतगणत तजतने
प्रततशत जल धारित होता है, मृदा का तचपतचपा अिवा असलांग तबन्दु (sticky point) कहलाता है । इस तबन्दु
पि मृदा के अंतगणत जो जल पाया जाता है, वह मृदा कतलल के अन्दि अिवा उसकी सतह पि अवशोतर्त िहता
है.िं रावकाशों का भी जल इसके अंतगणत सतम्मतलत होता है। भाि की दृतष्ट से मृदा में इस जल की मात्रा लगभग

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16% तक पायी जाती है। इस जल का तनाव दाब 0.25 वायुमंडलीय दाब होता है। तचपतचपा तबन्दु से ज्ञात
होता है की मृदा कतलल अवशोतर्त जल से पूर्णतया संतप्त
ृ हो गए है।
मृदा जल उपलब्धतता परिकल्पना (Hypothesis of Soil Moisture Availability)
मृदा में क्षेत्र क्षमता (FC) तिा स्िायी मुिझान तबन्दु (PWP) के मध्य जल को उपलब्ध जल
(available moisture) कहते है। अतधकांश तमरट्टयों में नमीं का स्ति क्षेत्र जल धारिता पि िखने पि पौध वृतद्
एवं तवकास समुतचत होता है। मृदा में जल
की कमीं से पौधों के तलए जल की सुलभता
(Moisture availability) कम हो जाती है।
उपलब्ध मृदा जल परिसि पि पौध वृतद् के
तलए समान रूप से जल उपलब्ध िहता है
अिवा नहीं, यह ज्ञात नहीं है। मृदा में
प्राप्य जल के ह्यस औि पौधों की वृतद् के
सम्बंध में वैज्ञातनकों में मतैक्य नही है।
तवमेयि औि हैतन्िक्सन (1950) के
मतानुसाि पौधों को जल की सुलभता मृदा
की क्षेत्र जल धारिता (Field capacity) से
लेकि स्िाई म्लातन तबन्दु (Permanent
wilting point) तक समान रूप से होती है ।
इस अवधािर्ा के अनुसाि म्लातन तबन्दू से
मृदा में कम नमी उपलब्ध िहने पि पौधें की वृतद् रूक जाती है। दूसिी तिर् रिचडणस औि वाड्ले (1952) के
मतानुसाि “जब मृदा की जल धारिता की तस्ितत जल की कमीं के कािर् धीिे -धीिे स्िायी म्लातन तबन्दु की ओि
परिवर्तणत हो जाती है तो पौधों के तलए जल की सुलभता घरती जाती है” । इसके र्लस्वरूप स्िायी म्लातन
नामक अवस्िा (PWP) के पहले ही प्राप्य जल की कमीं के कािर् पादप वृतद् कम हो जाती है या तबलकु ल रुक
जाती है। इन परिकल्पनाओं को तचत्र में दशाणया गया है। अतधकांश वैज्ञातनक दूसिी अवधािर् से सहमतत व्यि
किते है। एक अन्य धािर्ा यह भी है कक, मृदा नमीं उपलब्धतता परिसि पि एक क्रांततक नमीं स्ति आता है,
उसके ऊपि स्िायी मुिझान तबन्दु आने पि मृदा जल उपलब्धता घर जाती है मृदा में क्षेत्र क्षमता (FC) तिा
स्िायी मुिझान तबन्दु (PWP) के मध्य जल को उपलब्ध जल (available moisture) कहते है। इस क्रांततक नमीं
स्ति के नीचे पौधों की वृतद् कम होने लगती है, इसे क्रांततक नमी तनाव (critical moisture tension-CMT)
कहते है। इस स्ति पि ससंचाई देने पि बहुत सी र्सलों में उपज में में तगिावर नहीं आती है। उपिोि
अवधािर्ाओं में मुख्य कमीं यह है कक इनमें नमीं की उपलब्धता को ही पौधों की वृतद् का आधाि मान तलया
गया है, जलवायु पि तवचाि नहीं ककया गया है। पौधे मृदा में पयाणप्त नमीं िहने पि भी वाष्पीकिर् की अतधकता
में सूख जाते है। अतिः ऐसा प्रतीत होता है कक मृदा नमीं तिा पौधों की वृतद् मौसम, मृदा नमीं औि पौधों पि
आधारित होती है, अके ले मृदा की नमीं पि नहीं।

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Lecture-7
मृदा नमीं मापन की तवतधयाँ
(Methods of Soil Moisture Measurement)
_______________________________________________________________________
पौधों के वृतद् एवं तवकास के तलए मृदा में नमीं का होना अत्यंत आवश्यक है। ससंचाई देने के समय
ककतनी मात्रा में पानी का प्रयोग र्सल के तलए ककया जाय जो मृदा नमीं के मापन द्वािा ही ज्ञात होता है। मृदा
जल मापन के तवतधयों को दो वगों में बांरा गया । A. प्रत्यक्ष मापन तवतधयाँ: B. अप्रत्यक्ष मापन तवतधयाँ

A. प्रत्यक्ष मापन तवतधयाँ (Direct measurement)


प्रत्यक्ष नमी मापने की की तवतधयों में चाि तवतधयाँ सम्मतलत है: भािात्मक (gravimetric) तवतध,
आयतन (volumetric) तवतध, तस्प्रर से जलाकि मृदा नमीं ज्ञात किना आकद तजनका तवविर् अग्र प्रस्तुत है।
1.भािात्मक तवतध (Gravimetric method)
यह मृदा जलांश की प्रत्यक्ष मापन तवतध है।इस तवतध में मृदा पिीक्षर् ट्यूब (Auger) की सहायता से
तवतभन्न गहिाई से मृदा के नमूने एकतत्रत ककये जाते है। पिन्तु र्सलों में ससंचाई के पानी के मापन के तलए पौधों
की जड़ों अिाणत (0-30 से.मी.) तक की गहिाई से ही मृदा के नमूने (soil sample) एकतत्रत किना चातहए।
अगि की सहायता से मृदा के नमूनों को एल्यूतमतनयम की छोरी-छोरी तडतब्बयों (moisture box) में लगभग
50-100 ग्राम तमट्टी भि लेते है। बहुत अतधक संख्या में मृदा नमूने एकतत्रत किने की दशा में इन तडतब्बयों को
भीगे कपड़े अिवा बोिे से ढँक देते है तजससे अतधक तापमान पि इनमें से नमीं का ह्रास न हो सके । इसके पिात
इन तडतब्बयों का भौततक तुला (Physical balance) अिवा इलेक्ट्रोतनक तुला से भाि(W1) ज्ञात कि लेते है।
इसके उपिान्त इन तडतब्बयों को खोलकि 1050 सेतल्सयस तापमान पि 24 घंरे तक ओवन में सुखाते है औि
पुनिः इन तडतब्बयों का शुष्क भाि ज्ञात कि लेते है तिा साि ही साि खाली तडतब्बयों का भी भाि (W2) ज्ञात
किके कु ल तडतब्बयों के भाि से अलग कि देते है। इस प्रकाि से एकतत्रत ककये गए नमूनों से मृदा में नमीं की
मात्रा तनम्न सूत्र की सहायता से ज्ञात किते है:
नम मृदा का भाि (W1)-शुष्क मृदा का भाि(W2)
भाि के रूप में मृदा नमीं की मात्रा (Ww)= -------------------------------------------------- x 100
शुष्क मृदा का भाि (W2)
इस तवतध में नमूने एकत्र किते समय अतधक समय औि श्रम लगता है पिन्तु यह तवतध बहुत ही सिल
होती है। इस तवतध से मृदा नमीं ज्ञात किने में कोई तवशेर् तकनीक की आवश्यकता नहीं होती है औि न ही
ककसी तवशेर् प्रकाि के उपकिर् की आवश्यकता होती है।
उदाहिर्: एक खेत की मृदा के नम नमूने का भाि 80 ग्राम है तिा उसे 1050 सेतल्सयस तापमान पि सुखाने के
उपिान्त शुष्क मृदा का भाि 75 ग्राम िह जाता है तो मृदा में जल अंश की मात्रा ज्ञात किना है।

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नम मृदा का भाि =80 ग्राम


शुष्क मृदा का भाि =75 ग्राम
सूत्र के अनुसाि
80-75
मृदा में नमीं की मात्रा=............................x 100 =6.66 प्रततशत
75
2.आयतन तवतध (Volumetric method)
भािात्मक तवतध से मृदा नमीं की ज्ञात मात्रा पौधों को उपलब्ध होने वाले जल की मात्रा का संकेत तब
तक नहीं दे सकती, जब तक कक मृदा की जल धािर् क्षमता या क्षेत्र क्षमता (water holding capacity or field
capacity) औि म्लातन तबन्दु (permanent wilting point) ज्ञात न हो। इसतलए मृदा में आयतन की दृतष्ट से
नमीं प्रततशत (volumetric water content) ज्ञात किना अतधक सािणक होता है। इस तवतध में मृदा नमूने एकत्र
किने के तलए ज्ञात आयतन वाले (Vs) बमाण (ऑगि) या कोि सेम्पलि (Core sampler) का प्रयोग ककया जाता
है। इसके उपिान्त इन नमूनों का नम भाि(W1) ज्ञात कि लेते है। तत्पिात इन नमूनों को 1050 सेतल्सयस
तापमान पि 24 घंरे तक सुखाकि शुष्क भाि (W2) ज्ञात कि लेते है। आयतन के आधाि पि मृदा में नमीं का
मापन तनम्न सूत्र की सहायता से किते है।
नम मृदा का भाि (W1)-शुष्क मृदा का भाि(W2)
आयतन के रूप में मृदा नमीं की मात्रा (Wv) =------------------------------------------------------ x 100
नमूने की मृदा का आयतन (Vs)
इसे सीधे भािात्मक तवतध से तनकाले गए जल की मात्रा से भी ज्ञात ककया जा सकता है। इसके तलए सूत्र है:
आयतन के रूप में नमीं की मात्रा (Wv) = भाि के रूप में मृदा नमीं की मात्रा (Ww) x स्िूल घनत्व (BD)
उदाहिर्: एक कोि सेम्पलि तजसका व्यास 8 से.मी. तिा ऊंचाई 10 से.मी. िी की सहायता से मृदा प्रततदशण
(soil sample) तलया गया. यकद मृदा का ताजा एवं शुष्क भाि क्रमशिः 700 ग्राम एवं 580 ग्राम आया तो मृदा
आयतन के सापेक्ष मृदा नमीं प्रततशत ज्ञात कीतजये.
मृदा प्रततदशण में जल का भाि = 700-580 = 120 ग्राम
सेम्पलि का आयतन = r2h, जहां r=8/2 =4 सेमी. एवं h=10 सेमी.
22
Vs =-------------x 4x 4 x 10=502.85 घन सेमी.
7
120
मृदा आयतन के सापेक्ष नमीं प्रततशत =-------------x100=23.86 %
502.85
3. तस्प्रर से जलाकि मृदा नमीं ज्ञात किना (Spirit burning method)

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वायुकस(1937) तिा हुके िी एवं दास्ताने (1966) ने तमट्टी के नमूने सुखाने के तलए तस्प्रर का इस्तेमाल
ककया। इस तवतध में तमट्टी को तस्प्रर में डु बोकि आग लगाई जाती है तजससे नमीं उड़ जाती है। इस कक्रया को उस
समय तक बाि-बाि किते है, जब तक तमट्टी का भाि तस्िि न हो जाय।
B. अप्रत्यक्ष तवतधयाँ (Indirect methods)
अप्रत्यक्ष तवतध में भूतम जल की मात्रा सीधे न ज्ञात किके , भूतम जल की तवतशष्टताओं के माध्यम से ज्ञात
की जाती है।इन तवतशष्टताओं को एक तनतित संशोधन (calibration) द्वािा जल की मात्रा से सम्बंतधत कि
तलया जाता है। इन तवतशष्टताओं को अग्र वर्र्णत तवतधयों से ज्ञात ककया जाता है:
1.न्यूट्रॉन प्रकीर्णन तवतध (Neutron Scattering)
मृदा के अंदि पाये जाने वाले यौतगकों में जल सबसे ज्यादा हाइिोजन युि यौतगक है। इसी आधाि पि
न्यूट्रॉन प्रोब द्वािा मृदा के ज्ञात आयतन में हाइिोजन की मात्रा को मापकि मृदा जल आयतन का प्रततशत रूप
में परिकलन ककया जाता है। न्यूट्रॉन प्रोब यूतनर
(तचत्र-15) तजसमें तेज एवं उच्च ऊजाण युि न्यूट्रॉन
होते हैं, को मृदा में पहले से स्िातपत पाइप में नीचे
पहुँचाया जाता है। प्रोब यूतनर एक के बल द्वािा भूतम
सतह पि िखे एक तनयंत्रर् यूतनर से जुड़ा होता है।
प्रोब को जड़ क्षेत्र की गहिाई तक जहाँ-जहाँ
प्रेक्षर्/िीसडंग लेना होता है पहुँचाया जाता है। स्रोत
से तेज गतत से उत्सर्जणत न्यूट्रॉन स्िातपत पाइप से
होकि तमट्टी के चािों तिर् मृदा जल के हाइिोजन
अर्ु से रकिाकि अपनी ऊजाण में कमी किते हैं।
हाइिोजन अर्ु से रकिाने के परिर्ामस्वरूप कम
उजाण से युि धीमी गतत के न्यूट्रॉन समूह वापस पहुँच
कि तनयन्त्रर् यूतनर द्वािा मापे जाते हैं। न्यूट्रॉन की ऊजाण , मृदा समूह के आकाि एवं घनत्व मृदा के प्रकाि मृदा
जल की मात्रा तिा स्िातपत रयूब के पदािण पि तनभणि किता है। तवतशष्ट समयान्तिाल में मापे गये धीमी गतत के
न्यूट्रॉनों की संख्या कु ल आयततनक मृदा जल के साि िे खीय संबंध में होती है। न्यूट्रॉनों की संख्या एवं आयततनक
मृदा जल मात्रा के संबंध का अंशांकन दूसिे पदािण की बनी ट्यूब का प्रयोग किने पि आवश्यक होता है।
न्यूट्रॉन प्रोब द्वािा मृदा जल मात्रा की जाँच अलग-अलग स्िानों एवं गहिाइयों पि तेज गतत से
दोहिायी जा सकती है। अंशांककत न्यूट्रॉन प्रोब द्वािा कु ल मृदा जल मात्रा की माप अत्यंत सही तवतध है। इस
तवतध का हातनकािक पक्ष यह है कक इसमें उपयोग होने वाले िे तडयोएतक्रव पदािण के कािर् एक अनुज्ञातपत व
अनुभवी प्रचालक (expert) की आवश्यकता होती है। इसके अततरिि यह उपकिर् महँगा भी होता है तिा
इसके सघन अंशाकन की आवश्यकता होती है। साि ही यह उपकिर् सतह से आि इंच की गहिाई तक का माप
सही नहीं कि पाता क्योंकक ऊपिी सतह से न्यूट्रॉन तनकल जाते हैं। न्यूट्रान मीरि का गलत तिीके से उपयोग

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किने पि यह हातनकािक भी हो सकता है। इस यंत्र को पूर्णरूप से वायुिोधी ककया हुआ प्रयोग किना चातहए।
इस तवतध से मृदा में नमीं की मात्रा ज्ञात किने के तलए पूर्ण सावधानी िखना अतत आवश्यक है।
2.तद्व-तवद्युत तस्ििांक तवतध
तद्व-तवद्युत तस्ििांक तवतध द्वािा कु चालक मृदा में प्रेतर्त उच्च तीर गता की तवद्युत चुम्बकीय तिं गों की
प्रेर्र् क्षमता को मापा जाता है। प्रेक्षर् क्षमता के आधाि पि मृदा नमी की मात्रा का आकलन ककया जाता है।
इस तवतध के उपयोग का आधाि यह है कक 30 MHz औि 1 GHz के बीच सूखी मृदा का तद्व-तवद्युत तस्ििांक 2

से 5 के बीच तिा पानी का 80 होता है।


राइम डोमेन रिफ्लेक्ट्रोमीरि (री.डी.आि.) सबसे साधािर् एवं उपयोगी यंत्र है तजससे मृदा जल
माध्यम का तद्व-तवद्युत तस्ििांक माप कि मृदा जल के आयततनक मात्रा का अनुमान लगाया जाता है। रीडीआि
में एक इलेक्ट्रॉतनक मीरि होता है। जो दो समानान्ति छड़ों से एक ताि द्वािा जु ड़ा होता है। समानांति छड़ें
तमट्टी में माप लेने के तलये गहिाई तक धँसायी जाती है। यह उपकिर् बहुत उच्च तीर गता की अनुप्रस्ि तवद्युत
चुम्बकीय तिं गों को के वल एवं प्रोब द्वािा मृदा में पहुँचाता है। तवद्युत चुम्बकीय तंिगों का तसग्नल प्रोब की एक
छड़ से दूसिी छड़ तक होते हुए वापस मीरि में पहुँचता है जो भेजे गये पल्स तसग्नल तिा वापस पिावर्तणत
तसग्नल के पल्स के समय को मापता है। छड़ों एवं के बल की लम्बाई के आधाि पि संचिर् वेग का परिकलन
ककया जाता है। संचिर् वेग तजतना तीर ग होगा, तद्व-तवद्युत तस्ििांक उतना ही कम होगा औि उसी अनुसाि मृदा
नमी कम होगी।
री.डी.आि. उपकिर् सापेक्ष रूप में मृदा जल की सही मात्रा (±1 से 20%) दशाणता है तिा सीधे
आयततनक मृदा नमी की माप को दशाणता है औि आँकड़ों को लगाताि संग्रह कि सकता है। इसमें अंशांकन की
आवश्यकता नहीं होती तिा मृदा में नमक की उपतस्ितत इस यंत्र को प्रभातवत नहीं किती है। री.डी.आि. यूतनर
महँगा होता है तिा प्रोब की छड़ों का मृदा से सम्पकण िीक न होने की दशा में िीसडंग प्रभातवत होती है। छड़े
किोि तिा चट्टानी तमट्टी में क्षततग्रस्त हो जाती है।
3.पृष्ठतनावमापी (Tensiometer)
पृष्ठ तनावमापी का तवकास/आतवष्काि रिचड्सण एवं गाडणनि (1936) में ककया. रेतन्सयोमीरि पानी से
भिा एक प्लातस्रक रयूब होता है (तचत्र-16) तजसमें नीचे के तसिे एक सिं र करोिी (Ceramic cup) जो जल
से भिी होती है तिा ऊपि तसिे पि एक तनवातण मापी (वैक्यूम गेज) या मैनोमीरि लगा होता है। इस उपकिर्
को तमट्टी में वांतछत गहिाई पि पोिस कप से तमट्टी का अच्छा संपकण बनाते हुए गाढ़ कदया जाता है।
रेतन्सयोमीरि में पानी पोिस कप के माध्यम से मृदा जल के साि संतुतलत अवस्िा में आ जाता है। जब तमट्टी
सूखती है तो पोिस कप से पानी तमट्टी में संचरित होता है औि र्लस्वरूप रयूब में वैक्यूम एवं तनाव उत्पन्न
होता है। वहीं जब तमट्टी गीली हो जाती है, तो तमट्टी से पानी पोिस कप से रयूब में चला जाता है जो तनाव एवं
वैक्यूम को कम कि देता है। इसी तनाव को वैक्यूम गेज एक सूचकांक के रूप में मापता है। तमट्टी के नमूने
एकतत्रत कि तवतभन्न तनावों पि मृदा नमी बनाये िखने का वक्र तवकतसत ककया जाता है। तजसकी मदद से मृदा

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जल की मात्रा का परिकलन होता है। ज्यादाति रेतन्सयोमीरि में 0-100 सेन्रीबाि स्के ल होता है जहाँ 0
सेरीबाि िीसडंग पूर्ण रूप से संतृप्त अवस्िा को दशाणती है। पूिी मृदा प्रोर्ाइल की मृदा नमी की बेहति जानकािी
के तलये पौधों के जड़ क्षेत्र में पोिस कप
स्िातपत ककया जाता है, क्योंकक पौधों की
70% जड़ मृदा के जड़ क्षेत्र के 50% ऊपिी
सतह पि होती है। प्रत्येक तबन्दु पि कम से
कम दो रेतन्सयोमीरि जड़ क्षेत्र के 1/3 एवं

2/3 भाग गहिाई पि लगाया जाना चातहए।


ऊपिी सतह पि लगाया गया रेतन्सयोमीरि
हमें ससंचाई कब प्रािम्भ किनी है, की बेहति
जानकािी देता है। वहीं गहिे रेतन्सयोमीरि
ककतनी ससंचाई किनी है, की जानकािी देता
है। गहिे रेतन्सयोमीरि की िीसडंग ऊपिी
सतह से ज्यादा होने पि हमें ससंचाई ज्यादा
किनी चातहए। अगि गहिे रेतन्सयोमीरि की
िीसडंग अवस्िा की है तो इस अवस्िा में पोर्क तत्वों एवं जल के तनक्षालन की सम्भावना बढ़ जाती है।
रेतन्सयोमीरि 0.8 बाि चूर्र् के उपिान्त कायण नहीं किता है। यह दिािों बाली अत्यतधक लवर्ीय भूतमयों के
तलए अतधक उपयुि नहीं होता है।
4.तजप्सम ब्लॉक (Gypsum block)
मृदा नमीं तवभव मापन हेतु तजप्सम ब्लॉक (तचत्र-17) का तवकास बॉयकस एवं तमक (1940) ने ककया
है, इसतलए इसे बॉयोकास नमीं मीरि भी कहते है। यह यंत्र मृदा नमीं की मात्रा तिा तवद्युत प्रततिोध के
पािस्परिक सम्बन्धों पि कायण किता है। तवद्युत् प्रततिोधक ब्लॉक तजप्सम, नाइलोंन, र्ाइबि मलास, प्लास्रि
ऑफ़ पेरिस का बना होता है अतधक मृदा नमीं की दशा में प्लास्रि ऑफ़ पेरिस से बने ब्लॉक ज्यादा अच्छे होते
है। प्लास्रि ऑफ़ पेरिस से बने ब्लॉक 1 से 15 एरमातस्र्यि तक अच्छा कायण किते है। र्ाइबि, कांच तिा
प्लास्रि ऑफ़ पेरिस के तमतश्रत ब्लॉक शुष्क तिा नम मृदा के तलए उपयुि होते है। इन तवद्युत इलेक्ट्रोड का
आकाि 3.75 से.मी.लम्बा तिा 1.25 से.मी.चौड़ा होता है। दोनों इलेक्ट्रोड के मध्य की दूिी 2 से.मी. िखी
जाती है। सामान्यतिः तजप्सम ब्लॉक का आकाि 5.5 से.मी. लम्बा, 3.75 से.मी.चौड़ा तिा 2 से.मी. मोरा होता
है। छोरे आकाि के तजप्सम ब्लॉक मृदा नमीं की माप सहीं नहीं देते है। दो इलेक्ट्रोड को ब्लॉक के अंदि स्िातपत
ककया जाता है औि दो तािों के जरिये इन इलेक्ट्रोडो को जोड़कि तािों को सतह तक पहुँचाया जाता है। यह
ब्लॉक आयताकाि होते है। जब मृदा के अन्दि इनको स्िातपत ककया जाता है तो तजप्सम ब्लॉक में उपतस्ित नमीं
की मात्रा मृदा नमीं की मात्रा के समतुल्य होती है, प्रततिोध मीरि द्वािा प्रततिोध ज्ञात कि तलया जाता है। मृदा

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में नमीं की कम मात्रा होने पि तवधुत प्रततिोध में वृतद् हो जाती है। इस प्रकाि से बनाये गए तजप्सम ब्लॉक को
पौधों की जड़ों के पास मृदा में तवतभन्न गहिाइयों पि इस प्रकाि से गाड़ कदया जाता है कक ब्लॉक में लगे ताि
मृदा सतह से ऊपि ही िहे। कु छ समय तक मृदा में गड़े िहने के उपिान्त तजप्सम ब्लॉक तिा मृदा की नमीं का
स्ति एक समान हो जाता है। इस प्रकाि मृदा में नमीं की कमीं अिवा वृतद् के अनुसाि ब्लॉक में भी नमीं की
मात्रा घरती या बढती िहती है। इस प्रकाि मृदा में नमीं की मात्रा में वृतद् के अनुरूप तवद्युत संवाहकता बढती है
तिा तवद्युत् प्रततिोध कम हो जाता है।
इस प्रकाि तवद्युत् प्रततिोध तिा मृदा
नमीं के बीच सह सम्बन्ध की माप किके
मृदा में नमीं की मात्रा ज्ञात हो जाती है।
तवद्युत प्रततिोध की माप मृदा जल
तनाव को दशाणती है। उपकिर् तनमाणता
आमतौि पि मीरि िीसडंग को मृदा जल
तनाव में परिवर्तणत किने का अंशांकन
उपलब्ध किाते हैं।
ब्लॉक के अन्दि तवद्युत् प्रवाह
मृदा नमीं की मात्रा पि तनभणि किता है।
िन्डे स्िानों औि क्षािीय भूतमयों के
तलए यह तवतध कािगि नहीं है। यह
तवतध बाि-बाि शीघ्रता से दोहिायी जा
सकती है औि अपेक्षाकृ त सस्ती है।
तवश्वसनीय आकलन के तलये यह
आवश्यक है। कक ब्लॉक मृदा में अच्छी
तिह स्िातपत ककया गया हो तजसने तमट्टी से अच्छी तिह प्राकृ ततक सम्पकण बना तलया हो। तजप्सम ब्लॉक
क्षािीय भूतम में ज्यादाति नष्ट हो जाते हैं, तजन्हें बदलने की जरूित होती है। तमट्टी में घुलनशील लवर् तमट्टी की
चालकता एवं प्रततिोधों को प्रभातवत किते हैं तजसके कािर् मीरि िीसडंग प्रभातवत होती है। तजप्सम ब्लॉक
बािीक बनावर वाली तमट्टी के तलये बेहति होता है, क्योंकक सामान्यतया बािीक संिचना वाली तमट्टी 100
सेन्रीबाि तक संवेदनशील नहीं होती है। िेतीली तमट्टी में उपलब्ध मृदा जलस्ति ब्लॉक की मापन सीमा के बाहि
होता है।
5.दाब तझतल्लका उपकिर् (Pressure Membrane Apparatus)
दाब तझतल्लका उपकिर् (तचत्र-18) में एक दाब कक्ष होता है, तजसमें सिन्र प्लेर (Ceramic plate)
पि मृदा नमूनों (soil sample) को संतृप्त (saturate) कि िख कदया जाता है। तसिे तमक प्लेरें ऐसी होती है
तजनके द्वािा मृदा तवलय (जल) का तो गमन होता है, पिन्तु मृदा कर्ों तिा वायु का गमन नहीं हो सकता। अब

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नमूनों औि तझल्ली के ऊपि वायु दाब प्रयोग ककया जाता है, तजसके र्लस्वरूप तमट्टी के नमूने का जलीय
तवलयन तझल्ली के बािीक छेदों से होकि एक तनकास मागण(outlet) में प्रवातहत होता है। जब तझल्ली के ऊपि
औि नीचे का वायु दाब तमट्टी के नमूने के मैरट्रक चूर्र् (suction) के बिाबि हो जाता है, तो जल प्रवाह रुक
जाता है। इसके पिात वायुदाब को खोल कदया जाता है। संसोधन वक्रों की सहायता से दाब तझल्ली के मापनों
(observatios) की तुलना किके , अप्रत्यक्ष रूप से भूतम जल का मैरट्रक तवभव ज्ञात कि तलया जाता है। इसके
पिात मृदा नमूने को उपकिर् से तनकालकि भट्टी (oven) में सुखाकि भाि या आयतन के आधाि पि नमूने में
उपतस्ित जल का अंश भी ज्ञात कि तलया जाता है।

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Lecture-8
मृदा-पौध-जल सम्बन्ध
(Soil-Plant-Water Relationship)
__________________________________________________________
कु शल ससंचाई व्यवस्िा के तलए मृदा-जल-पौध सम्बन्ध का अध्ययन किना आवश्यक है।मृदा-जल-पौध
सम्बन्ध के अंतगणत मृदा की भौततक दशा का मृदा में जल का संचलन, जल धारिता एवं पौधों द्वािा जल का
अवशोर्र् पि प्रभाव की तववेचना की जाती है।
मृदा-पौध-वायुमड
ं ल तनिन्तिता (Soil Plant Atmospheric Continuum)
मृदा-पौध-वायुमंडल सातत्वक (soil-plant-atmosphere-continuum-SPAC) के अनुसाि पौधों को
जल की उपलब्धता मृदा, जल औि जलवायु पि तनभणि किती है। भूतम-पौध-वायुमंडल प्रर्ाली में जल का
संचलन एक तवद्युत धािा (electric current) के संचलन के सदृश्य (analogous) है जो तवतभन्न प्रततिोधों
(resistances) औि धारिताओं से गुजिती है। भूतम में पौधों के शिीि से होते हुए वहां से वायुमंडल में जल का
तनष्क्रमर् (escapement) एक तनिंति या सतत प्रर्ाली (continuous system) तनर्मणत किता है।
भूतम औि उसके आस-पास के वायुमंडल के
बीच में तवभवान्ति (potential
difference) तिा पौधों की जड़ो औि
पतत्तयों के बीच के तवभवान्ति के कािर्
होता है। जल संचलन के इस पि को चाि
भागों में बांरा जा सकता है-(i) जड़ों के पृष्ठ
पि द्रव जल की आपूर्तण, (ii) जड़ों में जल का
प्रवेश, (iii) पौधों के तवतभन्न भागों में जल
का परिवहन (transport) औि (iv)
वाष्पोत्सजणन (transpiration) द्वािा जल का
वाष्प (vapour) के रूप में तनष्क्रमर्
(escapement).
भूतम पौधा वायुमंडल प्रर्ाली में में जल का
संचलन (water movement) भी प्रत्येक
तबन्दु पि तवभव प्रवर्ता (potential
gradient) के समानुपाती (proportional) तिा बहाव के प्रततिोध के प्रततलोमानुपती (inversely
proportional) होता है। भूतम-पौधा-वायुमंडल प्रर्ाली के अंतगणत पाए जाने वाले जल तवभव (water
potential- Ψw) की सीमाएं आमतौि पि, भूतम में 0.3 बाि तक, पतत्तयों में -1.0 बाि तक तिा वायुमंडल में

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-100 बाि तक होती है. अतिः भूतम-पौध-वायुमंडल प्रर्ाली के कु ल जल तवभव का अंति ही वह चल शति
(driving force) है, तजसकी बदौलत भूतम-जल, पौधों के शिीि से होता हुआ वायुमंडल में गततमान होता है।
मृदा-पौध-जल सम्बन्ध (Soil-Plant-Water Relations)
तमट्टी-जल-पौधों का पिस्पि घतनष्ठ सम्बन्ध है। पौधों की समस्त कक्रयायें प्रत्यक्ष या पिोक्ष रूप से जल
द्वािा संचातलत होती है। पौधों के ऊतकों एवं कोतशकाओं में लगभग 80-90 प्रततशत तक जल की मात्रा पाई
जाती है, तजससे सकक्रय उपापचय (Metabolism) की कक्रया संपन्न होती है। पौधे की जड़ िोमों के माध्यम से
जल अवशोतर्त होकि पतत्तयों तक पंहुचाया जाता है। पतत्तयों से जल की सवाणतधक मात्रा उत्स्वेदन की कक्रया
द्वािा नष्ट हो जाती है, शेर् बचे हुए जल का प्रयोग खाध्य पदािों के तनमाणर् में होता है। सामान्यतिः पौधे द्वािा
कु ल अवशोतर्त जल का 5 प्रततशत भाग ही पौधे की भौततक कक्रयाओं को संपन्न किने में खचण होता है। पौधे में
जल की कमीं से वृतद् रुक जाती है तजसके परिर्ामस्वरूप पौधे सूख जाते है। पौध-जल सम्बन्ध के अंतगणत मुख्य
रूप से तीन कक्रयाएं जैसे जल अवशोर्र् (Absorption), जल संचलन (Translocation) तिा उत्स्वेदन
(Transpiration) है। इन तीनों कक्रयाओं पि पौधे की वृतद् एवं तवकास तनभणि िहता है। पौधों में इन तीनों
कक्रयाओं को तनयतमत कि देने से सवाणतधक जल उपयोग दक्षता (water use efficiency) तिा उत्पादन प्राप्त
होता है। पौधे को जीवन काल में तवतभन्न मात्रा में जल की आवश्यकता होती है। बीज अंकुिर् एवं प्राितम्भक
वृतद् के समय जल की अतधक मात्रा लगती है जो पौधो की वृतद् के साि-साि घरती जाती है जो र्सल पकने
की अवस्िा में सबसे कम हो जाती है।
पौध-जड़ तंत्र की तवशेर्ताएं (Rooting Characteristics of Plant)
पौधे का वह तहस्सा जो भूतम के अंदि तछपा हुआ होता है, जड़ या मूल (root) कहलाता है। जड़े तमट्टी के
कर्ों को पिस्पि बांधे िखती है औि पौधे को भूतम पि तस्िि िखती है। ये पौधे के पोर्र् के तलए जरुिी खतनज-
लवर्ों (nutrients) को भूतम से अवशोतर्त (absorb) किके तनों के माध्यम से ऊपिी भाग तक पहुंचाती है।
जड़ें दो प्रकाि की होती है-मूसलाधाि जड़ (tap root) जैसे आम, अमरुद, नीबू, मूली, गाजि आकद औि िे शेदाि
जड़े (fibrous root) जैसे गेंहू, धान, मक्का, घास आकद । पौधों के जड़ क्षेत्र में पयाणप्त मात्रा में नमीं पहुंचाना
ससंचाई का प्रमुख उद्ेश्य होना चातहए क्योंकक पौधे अपनी जड़ों के आस-पास उपलब्ध नमीं को ही ग्रहर् कि
सकते है। तवतभन्न प्रकाि की र्सलों औि वनस्पततयों की जड़ प्रर्ाली (rooting system) यिा जड़ों की
गहिाई, र्ै लाव आकद तभन्न-तभन्न होता है। तवतभन्न प्रकाि के पौधों का जड़ तंत्र अलग-अलग प्रकाि का होता है
तिा जड़े भूतम में अलग-अलग गहिाई तक चली जाती हैं। व्यावहारिक रूप में मृदा जल का जड़ों की तिर्
संचिर् न होकि जडेे़ ही नम क्षेत्र की ओि वृतद् किते हुए अग्रसि होकि नमीं ग्रहर् किती है। ज्यादाति
एकवर्ीय र्सलों की जड़े उिली गहिाई वाली होती है जबकक बहुवर्ीय पेड़ों की जड़ें भूतम में कार्ी गहिाई
तक र्ै लकि पोर्र् प्राप्त किने में सक्षम होती है। अनाज वगीय र्सलों की जड़े उिली होती है जबकक दलहनी
र्सलों की जड़े गहिाई एवं मजबूत जड़ तंत्र वाली होती है। मृदा के ऊपिी भाग में ककसी अविोध पित (hard
layer) की उपतस्ितत अिवा ऊंचे जल स्ति के कािर् जड़ों का नीचे की ओि र्ै लाव रूक जाता है ऐसी तस्ितत में
जड़े बगल में बढ़ने लगती हैं। उपयुि मृदा जल एवं खतनज पदािों की कमी होने पि भी जड़ों का तवकास रूक

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जाता है। इन समस्त अवस्िाओं में जड़ों द्वािा जल अवशोर्र् की दि अलग-अलग होती है। सामान्यतया मृदा में
15 से 30 से.मी. की गहिाई में र्ै लकि बढ़ने वाली जड़ें जल शोर्र् के तलए उपयुि मानी जाती है ।
मृदा की तवतभन्न अवस्िाओं में पौधों की जड़ों का तवकास: जड़ों द्वािा मृदा जल के अवशोर्र् के साि मृदा जल
तनाव बढ़ता िहता है तजसके परिर्ाम स्वरूप कर्ों के चािों तिर् जल का संचलन अतधक तनाव की ओि ;कम
तनाव वाले क्षेत्र से होता िहता है। जड़ों द्वािा मृदा जल के अवशोर्र् के कािर् पौधों के जड़-क्षेत्र में आई नमी
की कमी की के तशका चढ़ाव द्वािा पूर्तण होती िहती है। मृदा नमी के अभाव में जड़ों का तवकास रूक जाता है औि
यकद इस अवस्िा में जल पूर्तण न की जाय तो पौधे सुख जाते हैं।
जड़ों के तवकास को प्रभातवत किने वाले तमट्टी के गुर्
तभन्न-तभन्न प्रकाि के पौधों में तिा एक ही पौधे की तवतभन्न प्रजाततयों में जड़तंत्र में कार्ी तवतवधता
पाई जाती है। इसी प्रकाि मृदा की तवतभन्न परितस्िततयां भी पौधों के जड़ तंत्र की गहिाई एवं र्ै लाव को
प्रभातवत किती है। जड़ तंत्र के तवकास को प्रभातवत किने वाली तमरट्टयों के गुर् तनम्नानुसाि है:
(i)सख्त पित (Hard pan): वर्ों तक
लगाताि समान गहिाई पि जुताई किने से
खूँड तली की तमट्टी (plough subsoil) कड़ी
हो जाती है तिा एक सख्त पित (hard pan)
बन जाती है, (तचत्र-20) तजसके कािर् भूतम
में संतचत नमीं शीघ्र समाप्त हो जाने के अलावा
पौधों की जड़े कड़ी पित के ऊपि अतवकतसत
रूप में र्ै ली िहती है। इससे नमीं के अभाव के
समय पौधे सूख जाते है। भूतम के अधोसतह में
सख्त पित (hard layer) तनर्मणत हो जाने से
जड़े भूतम की गहिाई तक नहीं घुस पाती है
तजससे मृदा की गहिाई में तवद्यमान नमीं औि
पोर्क तत्वों को ग्रहर् नहीं कि पाती है तजसके र्लस्वरूप उनकी वृतद् एवं तवकास अवरुद् हो जाता है। मृदा
सघनता (compactness) के कािर् मृदा कम पािगम्य (permeable) हो जाती है। मृदा का आभासी घनत्व बढ़ने
से वे अतधक संहत (compact) हो जाती है, तजससे उसमें िं धिाकाश (pore spaces) की संख्या बहुत कम हो
जाती है तजससे मृदा में जल एवं वायु का आवागमन िीक से नहीं होने की वजह से जड़ तंत्र की गहिाई औि
प्रसाि के साि-साि पौध वृतद् भी अवरुद् हो जाती है। यकद मृदा वायु में ऑक्सीजन की मात्रा 15 % से कम
होती है तो उस तस्ितत में पादप वृतद् पूर्णरूप से रुक जाती है।
(ii)मृदा नमीं: तजन मृदाओं में मृदा नमीं का स्ति म्लातन तबन्दु पि पहुँच जाता है, उनमें पौधों की जड़ों की वृतद्
एवं र्ै लाव अवरुद् हो जाता है। सूखी तमट्टी की सतह के नीचे जड़ें प्रवेश नहीं कि पाती है, परिर्ामस्वरूप पौधे
सूख जाते है।

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(iii) जल स्ति: ऊंचे जल स्ति (high water table) वाली भूतमयों में जल भिाव (waterlogging) की तस्ितत
उत्पन्न होने तिा जल तनकास के अभाव में वायु की कमीं के कािर् जड़ों का तवकास अवरुद् हो जाता है।
(iii)तवर्ैले पदािण: अवमृदा में हातनकािक औि तवर्ैले तत्वों (toxic elements) की उपतस्ितत के कािर् जड़ तंत्र
का तवकास रुक जाता है।
प्रभावी मूल क्षेत्र (Effective Root Zone)
मृदा की उस गहिाई पि जहां से र्सलें जल का शोर्र् (absorption) किती है तिा तजसके कािर् मृदा
में उपलब्ध जल की कमीं को ससंचाई द्वािा पूिा ककया जाता है, प्रभावी जड़ क्षेत्र या सकक्रय जड़ क्षेत्र (effective
root zone) कहलाता है । यह सकक्रय मूल क्षेत्र भूतम की ककस्म औि अन्य कािर्ों से तनर्मणत होता है। तवतभन्न
र्सलो का सकक्रय मूल क्षेत्र सािर्ी-13 में दशाणया गया है।
सािर्ी-13 : तवतभन्न र्सलों का सकक्रय मूल-क्षेत्र (Effective Root Zone of Different Crops)
जड़ों की प्रकृ तत या तवकास भूतम से जड़ों की गहिाई र्सलें
उिली जड़े 0 से 60 से.मी. धान, आलू, र्ू ल गोभी, पत्ता गोभी,प्याज,
(Shallow roots) लहसुन,पत्तेदाि सतब्जयां, अनानास आकद
मध्यम गहिी जड़े 60 से 90 से.मी. गेंहू,मूंगर्ली,मरि,तमचण, सेम,
(Medium deep roots) िाजमा,तम्बाखू,गाजि, तिबूज, आकद
गहिी जड़ें 90 से 120 से.मी. ज्वाि,बाजिा, सोयाबीन,मक्का,कपास,रमारि,
(Deep roots) बैगन,चुकंदि,के ला,पपीता आकद
अतधक गहिी जड़ें 120-180 से.मी. गन्ना, कु सुम,रिजका,कॉफ़ी,चाय,नीबू, संतिा,आम,
(Very deep roots) अनाि,अमरुद आकद

वार्र्णक पौधों की जड़े मृदा के आद्रण क्षेत्र में शीघ्रता से प्रवेश किती है। मृदा में जल का जड़ों की ओि
संचिर् की गतत अत्यंत मंद होती है। अतिः जड़े ही नम भूतम की ओि बढ़ती िहती हैं। इस प्रकाि जड़े अपनी
वृतध्द तिा शाखाएं तवकतसत किके नम मृदा से संपकण बनाती हैं। जल का सवाणतधक शोर्र् जड़ के अग्रभाग से
हांता है। पुिानी जड़ों की पािगम्यता (permeability) घरने के कािर् इनकी जल शोर्र् क्षमता कम हो जाती
है। बहुवार्र्णक पौधों के जड़तंत्र के अतधक तवकतसत होने के कािर् पुिानी जड़ों की पािगम्यता कम होने के
बावजूद इनसे जल का शोर्र् अतधक होता है क्योंकक अतधक मात्रा में जड़े दूि -दूि तक र्ै ली िहती हैं जो अतधक
क्षेत्र से जल शोर्र् किती हैं। तजन र्सलों की जड़े अतधक गहिाई तक जाती है वें अपनी पानी की आवश्यकता
की पूती मृदा की तनचली पित से भी कि लेती है जबकक तजन र्सलों की जड़ों की गहिाई कम अिवा उिली
िहती है उनको पानी की आवश्यकता की पूती के तलए बाि-बाि ससंचाई किनी पड़ती है।
मृदा नमीं तनष्कर्णर् का तिीका (Moisture extraction pattern)
मृदा की तवतभन्न स्तिों से पौधों की जड़ों द्वािा अवशोतर्त ककये गए कु ल जल की मात्रा को नमीं
तनष्कर्णर् (moisture extraction) कहते है। सामान्यतिः पौधों में जल शोतर्त किने वाली जड़ों का सवाणतधक

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घनत्व मृदा के ऊपिी भाग में अिव पौधे के आधाि के पास ही होता है। इसके पिात नीचे स्ति वाली जड़ों
द्वािा पानी का शोर्र् क्रमशिः कम होता जाता है। मृदा के ऊपिी भाग में वायु संचाि, तापक्रम आकद के अनुकूल

होने से इस भाग में जड़ों का तवकास एवं तवस्ताि अतधक के कािर् जल शोर्र् अतधक तीर ग गतत से होता है।
चूंकक मृदा की ऊपिी सतह से जल का वाष्पीकिर् (evaporation) औि पौधों द्वािा जल शोर्र् दोनों ही कक्रयायें
तीर ग गतत से होती है. अतिः मृदा के ऊपिी भाग से कु छ इंच गहिाई तक जल का तीर ग ह्यस अिाणत जल की कमीं
शीघ्रता से हो जाती है। इस क्षेत्र में मृदा नमीं के घरने के कािर् मृदा नमी-तनाव (soil moisture tension)
भी बढ़ जाता है। इस अवस्िा में पौधे भूतम में नीचे वाले भाग से नमी ग्रहर् किते हैं। प्रायिः ऐसा देखा गया है कक
सामान्य गिन वाली गहिी ससंतचत भूतमयों में सभी र्सलों की जल अवशेर्र् पद्तत समान होती है। ककसी मृदा
में पौध के जड़ क्षेत्र के सबसे ऊपिी भाग द्वािा सबसे तनचले भाग की अपेक्षा तीर ग गतत से जल शोर्र् होता है।
तचत्र-21 से यह तनष्कर्ण तनकलता है कक अतधकाश जड़ों (90 %) का र्ै लाव मृदा की ऊपिी सतह पि होता है
औि सामान्य गहिी मृदाओं में मृदा नमीं का 40 प्रततशत जड़ की ऊपिी सतह अिाणत चौिाई भाग से, 30
प्रततशत दूसिे चौिाई भाग से, 20 प्रततशत तीसिे चौिाई भाग से तिा शेर् 10 प्रततशत अंततम चौिाई भाग से

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तनष्कर्णर् (moisture extraction) होता है। अतधकाँश र्सलों की जड़े भूतम में 120 से.मी. की गहिाई तक
प्रवेश किती है पिन्तु ऊपिी 60-90 से.मी. की गहिाई पि उनकी सकक्रयता औि र्ै लाव अतधक होता है। अतिः
भूतम में नमीं की मात्रा अलग-अलग स्ति से भी ज्ञात की जानी चातहए।
असमान्य दशाओं में पौधे आवश्यक नमीं की मात्रा का सबसे कम जल उपलब्ध वाले स्ति से जल शोतर्त किते
है। चूंकक इन मृदाओं की ऊपिी पारण में जल धािर् क्षमता कम होने पि ऊपिी सतह पि उपलब्ध जल का शीघ्रता
से ह्रास हो जाता है। ऐसी अवस्िा में पौधे मृदा की तनचली सतहों से जल का शोर्र् किके अपनी वृतद् को
बनाये िखते है। सामान्य भूतमयों की अपेक्षा इन भूतमयों में पौधे जल का शोर्र् मृदा की तनचली पित से किने
के कािर् जल शोर्र् की गतत कार्ी कम होती है। इसतलए इन मृदाओं में पौधों की वृतद् दि कम होती है। इसी
तिह से मृदा की तनचले स्ति में जल धािर् क्षमता कम होने से पौधों द्वािा जल का शोर्र् कम हो जाने के
कािर् पौधों की वृतद् पि प्रततकू ल प्रभाव पड़ता है।
मृदा नमीं वैशते र्क वक्र (Soil Moisture Characteristics Curve)

पानी की ऊजाण की तस्ितत तिा पानी की मात्रा मृदा नमीं के वैशेतर्क वक्र से सम्बंतधत है।जैसे ही जल
ऊजाण का स्ति घरने लगता है (जब अतधक ऋर्ात्मक मूल्य की ओि जाता है) पानी की मात्रा कम होती जाती
है। दूसिे शब्दों में नमीं घरने पि मृदा से जल तनकालने के तलए अतधक ऊजाण लगानी पड़ती है। बाहि से चूर्र्
(suction) के तलए लगाये गए बल औि
पानी की मात्रा को एक वक्र या ग्रार् द्वािा
व्यि ककया जाता है तजसे मृदा नमीं
वैशेतर्क वक्र (soil moisture
characteristic curve) के नाम से जाना
जाता है। बलुई मृदा (sandy soil) का वक्र
अंग्रेजी के L अक्षि के आकाि का होता है।
संतृप्त मृततका तमट्टी (clay soil) में जब
चूर्र् बढाया जाता है तब धीिे -धीिे पानी
आने लगता है ककन्तु अतधक चूर्र् बढ़ाने
पि के वल िोड़ा पानी तनकलता है।

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Lecture-9
वाष्पन-वाष्पोत्सजणन एवं वाष्पन-वाष्पोत्सजणन को प्रभातवत किने वाले
कािक (Evapotranspiration-ET and factors affecting ET)

पौधो की उतचत वृतद् तिा उनके शिीि की तवतभन्न दैतहक कक्रयाओं (physiological activities) के
सम्पादन हेतु जल की आवश्यकता होती है, तजसकी पूर्तण पौधे मृदा से किते हैं।मृदा, जल, वर्ाण अिवा ससंचाई से

प्राप्त होता है। मृदा जल का कु छ भाग पौधे अपने शिीि के तनमार्ण में व्यय किते है तिा शेर् वाष्पीकिर्,
वाष्पोत्सजणन आकद अनेक प्रकाि से नष्ट होता िहता है। मृदा जल का कु छ भाग अपवाह (runoff) तिा अन्तिः
स्यन्दन (percolation) द्वािा भी नष्ट हो जाता है। र्सलोत्पादन के तलए आवश्यक जल को तनम्न प्रकाि से वर्र्णत
किते हैं।
वाष्पन–वाष्पोत्सजणन (Evapo-Transpiration-ET)
एक क्षेत्र तवशेर् से एक तनतित अवतध में भूतम के वाष्पीकिर् (Evaporation) तिा उस पि उग िही
र्सल के वाष्पोत्सजणन (Transpiration) द्वािा
वायुमंडल में पहुँचने वाली जल की मात्रा को
वाष्पीकिर्-वाष्पोत्सजणन कहते है । वाष्पन तिा
वाष्पीकिर् या उत्स्वेदन के द्वािा उड़ायें गए
जल के योग को वाष्पो-उत्स्वेदन कहा जाता है।
इस प्रकाि से वाष्पीकिर् औि वाष्पोत्सजणन के
माध्यम से पानी के नुकसान की सयुंि प्रकक्रया
को वाष्पन-वाष्पोत्सजणन (तचत्र-23) कहते है।
संक्षेप में इसे ET द्वािा व्यि ककया जाता है।
एक अनुमान के अनुसाि अवशोतर्त जल
का तसर्ण 2% भाग पौधे प्रयोग में लेते है। बाकी
98% भाग पौधे के पतत्तयों व् तना से वाष्प के
रूप में वायुमंडल में उड़ जाता है। जल पौधों में
अस्िायी होता है। जल की पयाणप्त मात्रा वाष्प के
रूप में पत्ती की तनम्न सतह पि उपतस्ित िंरों (Stornatas) के माध्यम से तनष्कातसत हो जाती है। पत्ती में
वाष्पोत्सजणन द्वािा हुई जल हातन की क्षततपूर्तण जड़ से परिवहन द्वािा हुई नई आपूर्तण द्वािा होती िहती है।
वास्तव में पत्ती की कोतशकाओं से जल के वातष्पत होने से कर्णर् (Transpirational pull) उत्पन्न होता है, जो
जल को दारु (Xylem) से खींचता है। इस प्रकाि वाष्पोत्सजणन की कक्रया जड़ से पततयों तक जल के ऊपि की
ओि पहुँचने में सहायक है। अनुकूलतम अवस्िाओं में पत्ती द्वािा उसके भाि के समान जल के वाष्पोत्सजणन में एक

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घंरे से भी कम समय लगता है। एक वृक्ष अपने जीवन काल में औसतन अपने भाि का 100 गुना जल वातष्पत

किता है। पादप द्वािा अवशोतर्त (absorb) जल का 1 से 2% भाग ही प्रकाश संश्लेर्र् (photosynthesis) एवं
अन्य उपापचयी कक्रयाओं (metabolic activities) में उपयोग होता है। वाष्पोत्सजणन में जल का वाष्प (vapour)
बनकि उड़ने के अलावा ऑक्सीजन एवं काबणन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान पतत्तयों में उपतस्ित छोरे तछद्रों
तजन्हें िं र (Stornata) के द्वािा होता है। सामान्यतिः ये िंर कदन में खुले िहते हैं औि िात में बन्द हो जाते हैं। िंर
का बंद होना औि खुलना िक्षक कोतशकाओं के स्र्ीतत (Turgor) में बदलाव से होता है।
वाष्पीकिर् (Evaporation) : यह एक प्रकक्रया है तजसमे जल द्रव रूप से वाष्प में बदल जाता है. जलचक्र
(water cycle) वाताविर् में इसी कक्रया के द्वािा चलता है तजसमे ऊजाण सूयण से तमलती है। 200 सेंरीग्रेड पि एक
ग्राम पानी को वाष्प में परिवर्तणत किने हेतु 590 कै लोिी ऊजाण की आवश्यकता होती है। इस कक्रया से जलाशयों
व् समुद्रों का पानी वाष्प में परिवर्तणत होकि बादल का तनमाणर् किते है।
वाष्पोत्सजणन (Transpiration): इस प्रकक्रया में पौधों के वानस्पततक भाग से पानी वातष्पत होकि वाताविर्
में चला जाता है अिाणत पौधे के वायवीय भागों द्वािा जल के वाष्प (water vapour) के रूप में हातन को
वाष्पोत्सजणन या उत्स्वेदन कहते है। इसके कािर् पौधे का ताप तनयंतत्रत िहता है। पौधे अपनी जड़ों द्वािा मृदा से
जल का तनिं ति अवशोर्र् किते िहते है। यह जल िासिोहर् (Ascent of sap) द्वािा पौधे के तवतभन्न भागों में
पहुँचता है। पौधे द्वािा अवशोतर्त (absorbed) जल की कु ल मात्रा उसकी अपनी आवश्यकता से बहुत अतधक
होती है। इस जल की कु छ ही मात्रा पौधे की वृतद् तिा तवकास (plant growth and development) में काम
आती है तिा आवश्यकता से अतधक जल की मात्रा पौधे के वायवीय भागों (स्तंभ, पतत्तयों, कतलयों एवं पुष्पों)
से वाष्प के रूप में बाहि तनकल जाती है जो संपूर्ण अवशोतर्त जल का लगभग 95% होती है। इस कक्रया को
वाष्पोत्सजणन कहते है। वाष्पोत्सजणन के कािर् होने वाली जल की हातन तवतभन्न पौधों में तभन्न-तभन्न होती है।
जल संतृप्त अवस्िा में उगने वाला ताड़ (Palm) का वृक्ष एक कदन में 10-20 लीरि जल हातन कि सकता है।
मक्के का एक पौधा प्रतत कदन 3-4 लीरि जल हातन कि सकता है।सामान्यतिः C4 पौधों की अपेक्षा C3 पौधों में
जल हातन अतधक होती है।
सािर्ी-14: वाष्पोत्सजणन औि वाष्पीकिर् में मुख्य अंति
क्रमांक वाष्पोत्सजणन (Transpiration) वाष्पीकिर् (Evaporation)
1 यह एक जैतवक (vital) कक्रया है। यह एक भौततक कक्रया है।
2 यह कक्रया मुख्यतिः िं रों (stomata) द्वािा होती है। यह ककसी भी सतह से हो सकती है।
3 इसमें पानी वाष्प (vapour) के रूप में पौधों के इसमें पानी वाष्प के रूप में पानी की ककसी
वायवीय भागों से तनकलता है। भी स्वतन्त्र सतह से तनकलता है।
4 पानी की प्रतत इकाई क्षेत्रर्ल (area per unit) हातन पानी की प्रतत इकाई क्षेत्रर्ल हनी कम होती
अतधक होती है। है।
5 यह एक तनयतमत(regulated) कक्रया है। यह एक अतनयतमत कक्रया है।

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वाष्पोत्सजणन अनुपात (Transpiration ratio)


एक इकाई शुष्क पदािण तनमाणर् हेतु पौधों द्वािा तजतना पानी जल वाष्पोत्सजणन कक्रया में प्रयुि होता है,
उसे वाष्पोत्सजणन अनुपात कहते है। दूसिे शब्दों में वाष्पोत्सजणन अनुपात पौधे के इकाई शुष्क भाि (unit dry
weight) औि उसके द्वािा वाष्पोत्सजणन जल के भाि का अनुपात है।
पौधों द्वािा वाष्पोत्सजणन कक्रया में प्रयुि जल
वाष्पोत्सजणन अनुपात=------------------------------------------------
उत्पन्न शुष्क पदािण की मात्रा
पहले पौधों की जल-मांग को वाष्पोत्सजणन अनुपात से मापा जाता िा लेककन पौधों को इसके अलावा वाष्पीकिर्
(Evaporation) द्वािा नष्ट होने वाले जल की भी आवश्यकता होती है अन्यिा इसके अभाव में वाष्पोत्सजणन
प्रभातवत होने लगता है। यह माना गया है कक पौधों की जल मांग में वाष्पीकिर् औि वाष्पोत्सजणन दोनों का ही
योगदान होता है। भाित में गेंहू,जौ,जई व मरि का वाष्पोत्सजणन अनुपात क्रमशिः 544, 468, 469 व 337 है।
वाष्पोत्सजणन अनुपात को जलवायु सम्बन्धी कािकों (तापमान, आद्रणता, वायु का वेग,प्रकाश,वर्ाण) के अलावा
सस्य तवतधयाँ भी प्रभातवत किती है। मृदा में खाद एवं उवणिकों की कमीं होने पि वाष्पोत्सजणन अनुपात
(transpiration ratio) में वृतद् हो जाती है।
वाष्पन-वाष्पोत्सजणन को प्रभातवत किने वाले कािक
(Factors influencing Evapotranspiration)
वाष्पीकिर् औि वाष्पोत्सजणन के माध्यम से पानी के नुकसान की सयुंि प्रकक्रया को वाष्पन-
वाष्पोत्सजणन (ET) कहते है ।
वाष्पोत्सजणन पौधे के माध्यम
से होने वाले पानी के
आवागमन औि इसके हवाई
भागों से वाताविर् में होने
वाले वाष्पीकिर् की प्रकक्रया
है। वाष्पोत्सजणन द्वािा पौधों
द्वािा अवशोतर्त जल का 98
% भाग जलवाष्प के रूप में
उड़ जाता है, तजससे कभी-
कभी मृदा में जल की कमीं
होने से पौधों की वृतद् एवं
तवकास पि प्रततकू ल प्रभाव पड़ता है पिन्तु पौधों में िसािोहर् (Ascent of sap) की कक्रया वाष्पोत्सजणन
अपकर्णर् पि ही तनभणि किती है, तजसके माध्यम से पौधे जल औि पोर्क तत्वों का अवशोर्र् किते है। इसतलए
वाष्पोत्सजणन एक आवश्यक बुिाई है। वाष्प-वाष्पोत्सजणन को प्रभातवत किने वाले चाि प्रमुख कािकों यिा

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जलवायुतवक, भूतम, पौध गुर् एवं सस्य प्रबंधन सम्बंतधत कािकों में तवभातजत ककया गया है, तजनका तवविर्
अग्र-प्रस्तुत है:
A.जलवायु सम्बन्धी कािक (Climatic factors)
वाष्प-वाष्पोत्सजणन को प्रभातवत किने वाले वाताविर्ीय कािकों में ताप, प्रकाश, आद्रणता, वायु आकद मुख्य है
1.तापमान (Temperature): ताप ऊष्मा की तीर गता का माप होता है।अतधकांश पौधों की वृतद् के तलए
उपयुि ताप परिसि 10 औि 400 सेतल्सयस के मध्य होता है, इससे कम या अतधक ताप होने पि पादप वृतद्
शीघ्रता से कम हो जाती है। ताप प्रत्यक्ष रूप से प्रकाश संश्लेर्र्, श्वसन, वाष्पीकिर्, वाष्पन, जल अवशोर्र्
आकद कक्रयाओं को तनयंतत्रत किता है। कम ताप पि वाष्पो-वाष्पीकिर् की दि भी कम हो जाती है औि तापमान
में वृतद् होने से ET की दि भी बढ़ जाती है। अतधक वाष्प-वाष्पोत्सजणन होने से मृदा जल का ह्रास भी तीर ग गतत
से होने लगता है, तजससे पौधों को जल का अभाव हो जाता है औि जल की पूर्तण न होने पि अंततिः पौधे
मुिझाने लगते है। ताप बढ़ने से पौधों द्वािा जल का अवशोर्र् अतधक होता है। गर्मणयों के कदनों में नम मृदा
सतह से वाष्पन औि पौधों में वाष्पोत्सजणन अतधक होता है, इसतलए ग्रीष्मकालीन र्सलों में ससंचाई अतधक
तिा बाि-बाि किनी पडती है।
2.प्रकाश(Light): वाष्पोत्सजणन की दि पि प्रकाश का पिोक्ष रूप से कोई सीधा प्रभाव नहीं पड़ता है, पिंतु
अपिोक्ष रूप से यह दि को दो तिीकों से प्रभातवत किता है। प्रिम िंरों (stomata) के खुलने की प्रकक्रया को
तनयंतत्रत किके औि दूसिा तापमान को प्रभातवत किके । प्रकाश की तीर गता बढ़ने से वाष्प-वाष्पोत्सजणन की दि
बढती है क्योंकक प्रकाश की उपतस्ितत में िन्र खुलते है व अप्रत्यक्ष रूप में ताप वृतद् से वाष्पोत्सजणन दि बढ़
जाती है।सूयण की तेज गमी से वाष्पन औि वाष्पोत्सजणन दोनों ही अतधक होते है।
3.आपेतक्षक आद्रणता (Relative Humidity): वायु में नमीं की मात्रा सापेक्ष आद्रणता कहलाती है। जब वायु जल
वाष्पन से संतृप्त होती है, तो वाष्पन-वाष्पोत्सजणन (ET) ह्रास कम हो जाता है। शुष्क औि अद्ण शुष्क प्रदेशों में
शुष्क औि गमण हवाएं चलने से ET द्वािा जल का ह्रास बहुत अतधक होता है। तापमान घरने से वायुमंडल की
आपेतक्षक आद्रणता बढ़ जाती है तजसके परिर्ामस्वरूप वाष्पो-वाष्पोत्सजणन की दि कम हो जाती है।
4.वायुमड
ं लीय वाष्प दाब (Atmospheric pressure): यकद वायुमंडलीय वाष्प दाब कम होता है तो जल का
वाष्पन अतधक औि वाष्प दाब अतधक होने पि वाष्पन कम होता है, इसतलए शुष्क प्रदेशों में आद्रण प्रदेशों की
अपेक्षा वाष्पन-वाष्पोत्सजणन ह्रास अतधक होता है।
5.वायु(Wind): वायु के तीर ग प्रवाह से भूतम एवं पतत्तयों के आस-पास की नमीं तवस्िातपत हो जाती है तिा
शुष्क जलवायु के संपकण में आने से तीर ग वायु में ET की गतत बढ़ जाती है, तजससे मृदा एवं र्सलों से जल का
ह्रास अतधक होता है।जब कोई हवा नहीं चलती है, तो पतत्तयों औि भूतम की सतह के चािों ओि की हवा ज्यादा
से ज्यादा नम हो जाती है। इस प्रकाि वाष्पन-वाष्पोत्सजणन की दि कम हो जाती है।
B.भूतम सम्बन्धी कािक (Edaphic factors)
1.मृदा नमीं का प्रदाय (soil moisture supply): वाष्प-वाष्पोत्सजणन की दि मृदा में उपतस्ित प्राप्य जल की
मात्रा पि तनभणि किती है।यकद मृदा में नमीं कम होती है, तो वाष्पन-वाष्पोत्सजणन द्वािा जल का ह्रास कम हो
जाता है। मृदा के सूखने पि इसकी सतह से वाष्पन की गतत कम होती है, पिन्तु जब मृदा में नमीं एक तनतित

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मात्रा से अतधक होती है तो वाष्पन की दि तस्िि हो जाती है। मृदा में प्राप्य जल की कमीं की तस्ितत में
ऐतब्सतसक अम्ल (ABA) का उत्पादन होता है, तजसके प्रभाव से पादप की पतत्तयां, र्ल व् र्ू ल समय से पहले
तगिने लगते है। अतधक नम मृदाओं में जल का ह्रास वाष्पन-वाष्पोत्सजणन से अतधक होता है।
2.कर्ों का आकाि एवं समुच्चय की व्यवस्िा (Particle size and aggregation): मृदा कर्ों का आकाि
महीन होने पि वाष्पन अतधक होता है। सघन मृदा (compact soil) में वाष्पन कम तिा ढीली मृदा में अतधक
होता है। उपजाऊ मृदा में वाष्पोत्सजणन अनुपात कम होता है।
3.मृदा िं ग औि अनाविर् की कदशा (Soil colour and direction of expose): काली तमट्टी अतधक तवककिर्
को अवशोतर्त किती है तजससे वाष्पीकिर् अतधक होता है।दतक्षर्ी ढलानों (southern slopes) पि वाष्पन
अतधक होता है औि यह ढलान के अतधक होने पि अतधक होता है क्योंकक इस कदशा से सूयण प्रकाश से अतधक
ताप प्राप्त होता है।
4.मृदा का आविर्: यकद मृदा पि पौधे सघन (dense) उगाये जाते है तो वाष्पन कम औि तविलता (thin) से
उगाये जाने पि अतधक होता है, क्योंकक सूयण का प्रकाश सघन उगाये गये पौधों के कािर् मृदा सतह पि कम
आता है।
C.पौधों सम्बन्धी कािक (Plant factors)
1. पर्ण िं धों का खुलना व बंद होना (Stomatal closure and opening): प्रकाश पतत्तयों के िं रों के खुलने
तिा बंद होने की कक्रया को प्रभातवत किता है, तजससे प्रत्यक्ष रूप से अतधशोर्र् (absorption) औि
वाष्पोत्सजणन प्रभातवत होता है। पौधों के पर्ण िं रों के खुलने से वाष्पोत्सजणन बढ़ जाता है औि बंद होने से कम
हो जाता है।
2. पत्ती क्षेत्रर्ल (Leaf area or canopy cover): जल की कमीं होने से पौधों की पतत्तयों का क्षेत्रर्ल (leaf
area) कम हो जाता है, पर्णिन्र (stomata) बंद हो जाते है, तजससे प्रकाश संश्लेर्र् औि जल का वाष्पोत्सजणन
कम हो जाता है।
3.पत्ती की सिं चना(Leaf structure): पत्ती की सिंचना वाष्पोत्सजणन की दि को प्रभातवत किती है. शुष्क
जलवायु में उगने वाले पौधों की पतत्तयों की बाह्य उपचमण (cuticle), मोम (wax) या िोमों (hairs) से ढंकी
िहती है तिा िन्र संकुतचत (sunken stomata) होते है। ये लक्ष्र् वाष्पोत्सजणन की दि को कम किते है। पत्ती
के प्रतत इकाई क्षेत्र में िंरों की संख्या (frequency) से वाष्पोत्सजणन दि प्रभातवत होती है। पानी की कमीं होने
पि मक्का, ज्वाि की पतत्तयां तसकु ड़ (leaf rolling) जाती है, तजससे उत्स्वेदन से जल की हाँतन कम होती है।
सोयाबीन की पतत्तयां ऊपि की तिर् मुड़ जाती है है तजससे वाष्पोत्सजणन कम होता है।
4.पत्ती का अतभन्यास (Leaf orientation): यकद पतत्तयों का अतभन्यास आपततत तवककिर् (incident
radiation) के समकोर् पि तस्ित हो तो उन पि सूयण की ककिर्ों का सवाणतधक प्रभाव पड़ता है तिा
वाष्पोत्सजणन की दि अतधक होती है, पिन्तु यकद पतत्तयों का अतभन्यास आपततत तवककिर् के समान्ति हो तो
वाष्पोत्सजणन की दि कम होती है।

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5.जड़ों की गहिाई एवं तवस्ताि (Rooting depth and proliferation): गहिी जड़ वाली र्सलें मृदा की
गहिाई से मृदा नमीं अवशोतर्त किने की क्षमता िखती है, इसतलए इनमें वाष्पोत्सजणन भी अतधक होता है। मूल
प्रिोह अनुपात (Root-shoot ratio) में वृतद् से पौधों में वाष्पोत्सजणन की दि में भी वृतद् होती है।
D.सस्य प्रबंधकीय कािक (Agronomic factors)
1. र्सल अवतध (Length of growing season): लम्बी अवतध या देि से पकने वाली की र्सलें औि ककस्मों
को अपना जीवन पूर्ण किने के तलए अतधक मृदा नमीं की आवश्यकता पड़ती है, इसतलए इन र्सलों की वाष्पो-
वाष्पोत्सजणन दि अतधक होती है।
2.ससंचाई तवतध:तवतभन्न ससंचाई तवतधयों में अलग अलग पानी की मात्रा उपयोग होती है, इसतलए ET की दि
भी तभन्न होती है। सतही ससंचाई तवतधयों में पानी की मात्रा अतधक लगती है। इनमे ET के माध्यम से जल का
ह्रास भी अतधक होता है। बूद
ँ -बूँद ससंचाई में ET कम होता है।
3.पौध संख्या: पौध घनत्व अतधक होने से वाष्पोत्सजणन की कक्रया तेजी से होती है। मृदा सतह ढंकी होने से
वाष्पन कम होगा पिन्तु कु ल वाष्पन-वाष्पोत्सजणन की दि अतधक होगी। पौध संख्या तविली होने पि भूतम सतह
से वाष्पन की दि अतधक होगी ।
4.खाद एवं उवणिक: खाद एवं उवणिक उपयोग का वाष्पन-वाष्पोत्सजणन की दि पि अतधक प्रभाव नहीं पड़ता है।
कम उवणिक प्रयोग से पौधों की बढ़वाि कम होने से वाष्प-वाष्पोत्सजणन दि में कमीं आ सकती है। ससंतचत
अवस्िा में पयाणप्त उवणिक देने से पौधों की बढ़वाि औि उपज बेहति प्राप्त होती है।
6.वायु अविोधक: गमण औि शुष्क स्िानों पि वायु अविोधक वृक्षों के िोपर् (Wind break) से वायु की गतत
धीमी होती है, तजससे वाष्प-वाष्पोत्सजणन की दि में 5 से 30 प्रततशत की कमी आ सकती है पिन्तु वायु
अविोधक वृक्षों से वाष्पोत्सजणन अतधक होने के कािर् कु ल वाष्प-वाष्पोत्सजणन की दि में बढ़ोत्तिी हो सकती है।
7. मृदा लवर्ता: लवर्ीय भूतमयों (saline soil) में पौधे द्वािा नमीं का अवशोर्र् कम हो जाता है, तजससे
पौधों की पतत्तयां मुिझाने लगती है, पतत्तयों का आकाि छोरा होने लगता है औि पौध वृतद् अवरुद् हो जाती है,
परिर्ामस्वरूप वाष्प-वाष्पोत्सजणन की दि कम हो जाती है।
उपभोतगक-उपयोग (Consumptive use of crops)
वाष्पन वाष्पोसजणन (Evapotranspiration) को उपभोतगक उपयोग जल के नाम से भी जाना जाता
है। पिन्तु वाष्पोत्सणजन के अततरिि कु छ जल पौधों के कोतशका तवस्ताि तिा चयापचयी (Metabolic) कक्रयाओं
में प्रयुि होता है। इन तीनों प्रकाि के पानी (वाष्पोत्सजणन+के तशका तवस्ताि + चयापचयी कक्रयाओं हेतु प्रयुि
जल) की सतम्मतलत मात्रा को उपभोतगक उपयोग जल कहते है। इसे छोरे से क्षेत्र, प्रक्षेत्र, घारी या ककसी भी
परियोजना के तलए प्रयुि ककया जा सकता है। इसे हेक्रेयि मीरि या सेन्रीमीरि प्रतत हेक्रेयि के रूप में व्यि
किते हैं।
(a) दैतनक उपभोतगक उपयोग (Daily consumptive use): र्सल को एक कदन या 24 घंरें में वाष्प-
वाष्पीकिर् एवं चयापचय कक्रयाओं के तलए तजतने जल की आवश्यकता होती है, उसे दैतनक उपभोतगक-
उपभोग कहते है. इसे तममी. या से.मी. प्रतत कदन में व्यि ककया जाता है।

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(b) जल का मौसमी उपभोतगक-उपयोग (Seasonal consumptive use): ककसी र्सल के पूिे वृतद् काल में
वाष्पन-वाष्पीकिर् एवं चयापचय कक्रयाओं के तलए तजतने जल की आवश्यकता होती है, उसे मौसमी उपभोमय
प्रयोग कहते है। इसे तम.मी. या से.मी. प्रतत मौसम में व्यि ककया जाता है। पूिे मौसम में र्सल के तलए ससंचाई
जल की आवश्यकता औि ससंतचत क्षेत्र की गर्ना के तलए मौसमी उपभोतगक-उपभोग की जरूित पड़ती है। (c)
जल का चिम अवतध उपभोमय उपयोग (Peak period consumptive use): उपभोमय-उपभोग के चिम काल
में वाष्प-वाष्पोत्सजणन औि चयापचयी कक्रयाओं के तलए प्रतत कदन तजतने जल की आवश्यकता होती है, उसे जल
का चिम अवतध उपभोमय-उपभोग कहते है।
कक्रयाशील-वाष्पीकिर् (Potential Evaporation): ककसी जल िातश के तल सी पानी की वाष्पीकृ त मात्रा को
कक्रयाशील वाष्पीकिर् कहते है। ऐसी कल्पना की जाती है कक ऐसे स्िानों पि कक्रयाशील ऊजाण का प्रभाव नहीं
पड़ता है। मुख्यतया यह जलवायु के वाष्पीकिर् सम्बन्धी गुर्ों के कािर् होता है।
अन्तर्नणतहत वाष्पोत्स्वेदन (Potential Evapo-transpiration-PET): ककसी तनतित समय में समान रूप से
घनी वनस्पततयों से आच्छाकदत, उतचत नमीं की भूतम से पानी की वह मात्रा जो वाष्पीकिर् तिा उत्स्वेदन से
नष्ट होती है,उसे अन्तर्नणतहत वाष्पोत्स्वेदन कहते है। इसे संतक्षप्त में PET कहा जाता है।

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Lecture-10
र्सल जल मांग एवं ससंचाई आवश्यकता
(Crop water requirement and irrigation requirement)
________________________________________________________
र्सल के जीवनकाल (बुवाई से लेकि कराई तक) ककतने पानी की आवश्यकता होगी, ससंचाई व्यवस्िा
का महत्वपूर्ण पहलू है। ककसी भी र्सल की जल की आवश्यकता (water requirement) से तात्पयण है, कक एक
तनतित स्िान पि र्सल की सामान्य वृतद् के तलए प्रक्षेत्र तस्ितत पि जल की आवश्यकता अिाणत जल की
आवश्यकता या जल मांग में उन सभी प्रकाि के जल-व्यय की गर्ना की जाती है, जैसे वाष्पन-वाष्पोत्सजणन में
व्यय, ससंचाई में होने वाला व्यय तिा तवशेर् कक्रयाओं में व्यय होने वाला जल ।
जल मांग की परिभार्ा (Definition of Water Requirement)
ककसी र्सल को एक तनतित अवतध में उगाने के तलए आवश्यक पानी की मात्रा को जल आवश्यकता
कहते है अिाणत जल की वह मात्रा, जो पौधों की इकाई शुष्क पदािण (कक.ग्रा./हेक्रेयि) पैदा किने के तलए
आवश्यक होती है, जल मांग कहलाती है । इसमें उपभोग के तलए प्रयुि जल (consumptive use) के अलावा
वह जल भी जोड़ा जाता है तजसका ससंचाई किने में ह्रास हो जाता है या जो भूतम की तैयािी अिवा लवर्ों की
मात्रा दूि किने में प्रयुि होता है । इसे समीकिर् के रूप में तनम्न तिीके से व्यि ककया जा सकता है।
जल मांग(WR) = वाष्पन-वाष्पोत्सजणन + ससंचाई व्यय + तवशेर् कायों में व्यय
जल की आवश्यकता को अतधक सिल रूप में समझने के तलए जल की आवश्यकता को यकद मांग एवं पूती के
सन्दभण में इस प्रकाि से आंकतलत ककया जा सकता है।
1. मांग के आधाि पि जल मांग व 2. पूर्तण के आधाि पि जल मांग
1.मांग के आधाि पि जल मांग(WR based on demand)
जल मांग (WR)=वाष्पोत्सजणन (Transpiration) +वाष्पीकिर् (Evaporation) + पादप चयापचय में प्रयुि
जल (Water used in metabolic activities) + तवतशष्ट कक्रयाओं में प्रयुि जल (Water needed in special
operation) + जल प्रयोग के समय हातनयाँ(Application losses)
या
WR=उपभुि-उपभोमय जल (Consumptive use of water) + तवतशष्ट कक्रयाओं में प्रयुि जल (water needed
in special operation)+ जल प्रयोग के समय हातनयाँ(Application losses)
2.पूर्तण के आधाि पि जल मांग
WR = ससंचाई आवश्यकता (Irrigation requirement) + प्रभावकािी वर्ाण (Effective rainfall) + भूतमगत
जल (Ground water) या
ससंचाई आवश्यकता (IR) = जल मांग (WR) – (ER+ S)
ER=प्रभावकािी वर्ाण (Effective rainfaal ) अिाणत ऐसी वर्ाण तजसके जल का उपयोग ककया जा सकता है।

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S = भूतम में उपतस्ित जल (Soil profile water)


अिाणत ससंचाई की आवश्यकता वह जल की मात्रा है, जो कक कु ल जल की आवश्यकता से प्रभावशाली वर्ाण का
जल औि भूतम में उपतस्ित जल को घरा देने से प्राप्त होती है. अतिः ककसी भी र्सल की ससंचाई के तलए जल की
मात्रा तनतित किने में उस र्सल के तलए कु ल जल की आवश्यकता (WR) में से अन्य साधनों से प्राप्त होने वाले
जल को घरा देना चातहए।
ससंचन आवश्यकता (Irrigation Requirement)
वर्ाण तिा मृदा जल परल (water table) से प्राप्त जल को घराकि ककसी र्सल को सर्लतापूवणक
उगाने के तलए आवश्यक पानी की मात्रा को ससंचन आवश्यकता कहते है । ससंचाई आवश्यकता का तात्पयण पौधे
की कु ल जल मांग के उस तहस्से से है तजतना प्रभावकािी वर्ाण एवं भूतमगत जल के योगदान के बाद शेर् िह
जाती है एवं उसे ससंचाई द्वािा पूिा किना होता है ।
ससंचन आवश्यकता (IR) =र्सल की जल मांग (WR)-प्रभावकािी वर्ाण(Effective rainfall)-भूतमगत जल का
योगदान(Ground water contribution)
IR=WR –ER-GWC
वास्तव में पौधों के तलए शुद् ससंचाई की आवश्यकता ही होती है, ककन्तु ससंचाई किने में ससंचाई नातलयों तिा
अन्य कािर्ों से जल की हातन हो जाती है औि पौधे तक उतना पानी नहीं पहुँच पाता तजतना की पम्प से कदया
जा िहा हो। इसतलए ससंचाई क्षमता (irrigation efficiency) भी ज्ञात होनी चातहए। अतिः पम्प से ससंचाई
किते समय उस पम्प से उतना पानी कदया जाना चातहए जो ससंचाई क्षमता को ज्ञातकि तनतित ककया गया हो
। उदाहिर् के तलए, यकद शुद् ससंचाई आवश्यकता 15 से.मी. है औि ससंचाई क्षमता 75% है तो कु ल जल की
आवश्यकता 15/75 x 100 =20 से.मी.होगी।
ससंचाई आवश्यकता को दो प्रकाि से व्यि ककया जा सकता है-
(i)शुद् ससंचाई आवश्यकता (Net Irrigation Requirement)

ससंचाई जल की वह मात्रा जो पौध जड़ क्षेत्र (root zone) में क्षेत्र धारिता (field capacity) तक मृदा
जल स्ति लाने के तलए आवश्यक है तिा र्सल की वाष्पन-वाष्पोत्सजणन (evapo-transpiration) आवश्यकता
की पूर्तण कि सकें , शुद् ससंचाई आवश्यकता कहलाती है। यह ससंचाई पूवण जड़ क्षेत्र में मौजूद नमीं तिा क्षेत्र
धारिता के बीच उपलब्ध नमीं का अंति प्रदर्शणत किती है।

N Mfci - Mbi
d= ∑--------------- x Ai x Di
i=i 100
Where,
d = Net irrigation water to be applied (cm)
Mfci = FC in ith layer (%)
Mbi = Moisture content before irrigation in ith layer (%)

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Ai = Bulk density (g/cc)


Di = depth (cm)
n = number of soil layer

(ii) कु ल ससंचाई आवश्यकता (Gross Irrigation Requirement-GRI)

ससंचाई के तलए आवश्यक सम्पूर्ण जल की मात्रा को कु ल ससंचाई आवश्यकता (gross irrigation


requirement) कहते है। इसमें शुद् ससंचाई आवश्यकता के साि-साि ससंचाई के दौिान जल की हातनयाँ भी
सम्मतलत होती है। प्रक्षेत्र, पूिे ससंतचत क्षेत्र (commond area) या ससंचाई परियोजनाओं के तलए कु ल ससंचाई
आवश्यकता का आंकलन ककया जा सकता है। कु ल ससंचाई आवश्यकता को तनम्न सूत्र की सहायता से ज्ञात ककया
जा सकता है।

शुद् ससंचाई आवश्यकता(NRI)


कु ल ससंचाई आवश्यकता(GRI) =------------------------------------------------------ x 100
प्रर्ाली की क्षेत्र क्षमता(Field efficiency of system)

ससंचाई आवृतत्त (Irrigation Frequency)

तबना वर्ाण वाली अवतधयों में, दो ससंचाइयों के बीच के अन्तिाल (interval) अिवा कदनों की संख्या को
ससंचाई की आवृतत्त या बािम्बािता कहते है। यह र्सल की उपभोमय प्रयोग दि (consumptive use rate) औि
जड़ क्षेत्र (root zone) में उपलब्ध नमीं पि तनभणि है। इस प्रकाि से ससंचाई की आवृतत्त र्सल की प्रकृ तत, भूतम
औि जलवायु की दशाओं पि तनभणि है। साधािर्तौि पि ससंचाई तब किनी चातहए जब पौधों के जड़ क्षेत्र से
लगभग 50-60 % नमीं समाप्त हो चुकी हो। साि ही, पौधों में जड़ों के तवकास, कल्ले र्ू रने (tillering), र्ू ल
आने औि दाने पड़ते समय ससंचाई तवशेर्तौि पि आवश्यक होती है। एक अतभकतल्पत ससंचाई आवृतत्त
(designed irrigation frequency) का आंकलन तनम्न प्रकाि से ककया जा सकता है:

जल धािर् क्षमता-उपलब्ध नमीं


अतभकतल्पत ससंचाई आवृतत्त=----------------------------------------------------
र्सल की चिम अवतध में नमीं प्रयोग की दि
(peak period moisture use rate)
ससंचाई अवतध (Irrigation Period)

एक ससंचाई में लगने वाले समय या कदनों की संख्या को ससंचाई काल या ससंचाई अवतध कहते है। इसे
आधाि काल (base period) भी कहते है। इसे तनम्न प्रकाि से व्यि ककया जा सकता है:

भूतम में ससंचाई से पूवण औि नमीं ह्रास की तनम्नतम सीमा


के बीच तस्ित नमीं की मात्रा (FC-PWP)
ससंचाई अवतध =-----------------------------------------------------------------

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र्सल की चिम अवतध में नमीं प्रयोग की दि


(Peak period consumptive use of the crop)

र्सलों की जल मांग को प्रभातवत किने वाले कािक


(Factors affecting water requirement)
र्सलों की जल मांग बहुत से कािकों पि तनभणि किती है, इसतलए र्सल की कोई तनतित जल मांग
तनधाणरित नहीं की जा सकती है अिाणत अल मांग घरती बढती िहती है। खिीर् एवं जायद र्सलों की जल मांग
िबी र्सलों की तुलना में अतधक होती है। र्सलों की जल मांग को अग्र वर्र्णत जलवायुतवक, भूतम एवं पौधों के
गुर् सम्बन्धी कािक प्रभातवत किते है।
A.जलवायुतवक कािक B.भूतम (Edaphic factors) C.पौधों के गुर् व सस्य कक्रयाएं
तापमान, वायु की मृदा नमीं, मृदा ताप,मृदा पौधों की ककस्म, जड़ों का
गतत,आद्रणता, प्रकाश प्रदीप्त काबणतनक पदािण, मृदा सिं चना, तवकास,पतत्तयों का तवकास, पौध वृतद्
काल एवं सौि तवककिर् मृदा कर् तवन्यास, लवर्ों की अवस्िाएं, पादप िोग व् कीर प्रकोप,
मात्रा, अम्लीयता एवं मृदा िंग ससंचाई की तवतधयाँ व् संख्या, खाद-
उवणिक की मात्रा, सनंदाई-गुड़ाई
A.जलवायुतवय कािक (Climatic factors)
1.तापमान (Temperature): तापमान का पौधों की जल मांग पि अतधक प्रभाव पड़ता है. वायुमंडल का
तापक्रम बढ़ने से पौधों में भूतम से वाष्पन औि पौधों से वाष्पोत्सजणन की कक्रया बढ़ जाने से जल-मांग बढ़ जाती
है तिा इसके तवपिीत तापमान कम होने पि वाष्पन औि वाष्पोत्सजणन घर जाने से जल मांग भी कम हो जाती
है।पौधों द्वािा सवाणतधक जल शोर्र् 10-400 सेतल्सयस मृदा तापमान पि होता है। इस मृदा तापमान से कम या
अतधक होने पि जल शोर्र् दि कम हो जाती है तजससे पौधों की वृतद् एवं तवकास पि प्रततकू ल प्रभाव पड़ता
है। कम तापमान पि पौधों की जड़ों की वृतद् कम होना, जल की श्यानता (viscosity) में वृतद्, जड़ों द्वािा जल
के संचलन (movement) में प्रततिोध उत्पन्न होना तिा जड़ की कोतशकाओं में चयापचय कक्रयाओं में कनी होने
के कािर् जल का शोर्र् कम हो जाती है तजसके र्लस्वरूप जल मांग भी कम हो जाती है।
2.वायु गतत (Wind velocity): शुष्क व तेज वायु गतत वाष्पन-वाष्पोत्सजणन कक्रया को बढ़ाती है, तजससे भूतम
की नमीं कम होने से पौधों की जल-मांग बढ़ जाती है। वायु की गतत कम होने पि जल मांग कम हो जाती है।
3.आद्रणता (Humidity) : वायुमंडल में आद्रणता कम होने पि वाष्पोत्सजणन की गतत बढ़ने से जल-मांग भी बढ़
जाती है। इसके तवपिीत वायु में आद्रणता कम होने पि जल-मांग भी कम हो जाती है।
4.सौि तवकिर् (Solar radiation): सौि तवकिर् अिाणत धूप अतधक होने पि पौधों की जल-मांग बढ़ जाती
है। सूयण की ककिर्ें तजतनी अतधक तेज होंगी पौधों में प्रकाश संश्लेर्र् तिा वाष्पोत्सजणन दोनों ही कक्रयाएं अतधक
होने से पौधों की जल मांग अतधक होगी। इसी वजह से खिीर् औि जायद र्सलों में िबी में उगाई जाने वाली
र्सलों की अपेक्षा अतधक जल मांग होती है, क्योंकक ग्रीष्म औि वर्ाण ऋतु में तेज धूप पड़ती है। जबकक शीत
ऋतु में हल्की धूप पड़ने से र्सलों की जल-मांग कम हो जाती है।

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B.भूतम सम्बन्धी कािक (Edaphic factors)


1. मृदा नमीं (Soil moisture): तमट्टी में नमीं की उपलब्धतता अतधक होने पि वाष्पन एवं वाष्पीकिर् भी
अतधक होता है, तजससे पौधे अतधक मात्रा में भूतम से नमीं का अवशोर्र् किते है, परिर्ामस्वरूप उनकी जल
मांग बढ़ जाती है।
2. भूतम का प्रकाि (Type of Soil): बलुई तमरट्टयों (sandy soil) में मृदा के कर् मोरे होने की वजह से पानी
अतधक समय तक नहीं िहि पाता है। इसके अलावा बलुई भूतमयों में जल का अन्तिः स्यंदन (infiltration) तिा
अन्तिः स्त्रवर् (percolation) तीर ग गतत से होती है। इसतलए हल्की तमरट्टयों में र्सलों को अतधक पानी की
आवश्यकता पड़ती है।भािी तमरट्टयों में नमीं अतधक समय तक सिं तक्षत िहती है अिाणत इनकी जलधािर् क्षमता
अतधक होने के कािर् इनमे उगाई गई र्सलों की जल-मांग कम होती है।
3.भूतम की उवणिता (Soil fertility) : पयाणप्त मात्रा में जीवांश पदािण (Organic matter) वाली उपजाऊ
तमरट्टयों की जल धािर् क्षमता अच्छी होती है, तजससे इसमें उगाई जाने वाली र्सलों की जल मांग कम होती
है। कम उपजाऊ हल्की भूतमयों में जीवांश पदािण की मात्रा कम होने के कािर् इनमें र्सलों की जल मांग
अतधक होती है।
4.भूतम की क्षािीयता(Soil salinity) : अतधक लवर् युि (saline soil) भूतमयों में लवर् तनक्षालन
(leaching) के तलए अतधक पानी की आवश्यकता होती है। ऐसी भूतमयों में लवर्ों के रिसाव में कार्ी मात्रा में
जल खचण हो जाता है।अतिः इन तमरट्टयों में उगाई जाने वाली र्सलों की जल-मांग अतधक होती है।
5.मृदा का िं ग (Soil colour): काली तमरट्टयां वाताविर् से अतधक ताप सोखती है तजससे वाष्पीकिर् की दि
बढ़ जाती है। अतिः काली भािी तमरट्टयों में उगाई जाने वाली र्सलों को अतधक पानी की आवश्यकता होती है।
C. सस्य कक्रया एवं पौध सम्बन्धी कािक (Agronomic and plant factors)
1.र्सलों के प्रकाि व ककस्म (Types of crop and varieties): तवतभन्न र्सलों की बुवाई की तवतध, उगने की
अवतध, ककस्म आकद कािकों की वजह से उनकी जल-मांग तभन्न-तभन्न होती है। धान, गन्ना, के ला आकद में
प्राकृ ततक रूप से अतधक पानी की आवश्यकता होती है, जबकक जौ,चना,मसूि,कु सुम,सिसों आकद र्सलों को
पानी की कम आवश्यकता पड़ती है। इस प्रकाि से यह भी कह सकते है कक C4 र्सलों की अपेक्षा C3 र्सलों की
जलमांग कम होती है।
3.पौधों की संख्या (Plant population): प्रतत इकाई क्षेत्र में अतधक पौध संख्या होने पि जल-मांग बढ़ जाती
है। पौध संख्या बीज दि एवं बुवाई की दूिी पि तनभणि किती है।
4.र्सल की अवतध (Crop duration) : शीघ्र पकने वाली र्सलों एवं ककस्मों की जल मांग कम होती है,
जबकक लम्बी अवतध वाली र्सलों व् ककस्मों को अतधक जल की आवश्यकता पड़ती है।
5.तनिाई-गुड़ाई (Interculture): खेत में तनिाई-गुड़ाई किने से भूतम की ऊपिी सतह पि तमररी की सतह
(crust) बन जाती है. इसे मृदा पलवाि (mulch) कहते है। यह मल्च भूतम की सतह से वाष्पीकिर् को िोकने में
सहायक होती है, तजससे जल मांग कम हो जाती है।

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6.ससंचाई की तवतधयाँ (Methods of Irrigation) : र्सलों की जल मांग पि ससंचाई की तवतधयों का तवशेर्


प्रभाव पड़ता है। जल अप्लावन तवतध (Flooding) से ससंचाई किने से पानी अतधक लगता है, जबकक बौछाि
एवं बूँद-बूँद (drip) ससंचाई से पानी की मांग कम हो जाती है।
7.पौधों की पतत्तयों का आकाि (Leaf size) : अतधक हिी भिी तिा बड़े आकि वाली पतत्तयों की र्सलें जैसे
के ला, अिबी,तभन्डी आकद में वाष्पोत्सजणन कक्रया द्वाि जल की हातन अतधक होती है तजससे in र्सलों की ज्ल्मांग
अतधक होती है। इसके तवपिीत छोरे आकाि वाली र्सलें जैसे चना, मसूि,धतनयाँ आकद र्सलों की ज्ल्मांग कम
होती है।
8.जड़ों का तवकास (Root development): तजन र्सलों की जड़ों का तवस्ताि कम होता, उनकी जल मांग
अतधक होती है। गहिी जड़ वाली र्सलें अतधक मात्रा में जल अवशोतर्त किती है। उिली जड़ वाली र्सलें कम
पानी अवशोतर्त किती है, अतिः उनकी जल मांग कम होती है।
सािर्ी-15 : तवतभन्न र्सलों की जल-मांग एव ससंचाइयों की संख्या
क्र.सं. र्सल जल-मांग (से.मी.) ससंचाई की संख्या
1 धान 143-167 5-6
2 गेंहू (बौना,समय से बुवाई) 42-45 5-6
3 जौ 16-23 2-3
4 मक्का 62-78 4-5
5 ज्वाि 55-57 2-3
6 चना 16-20 1-2
7 मरि 25-30 1-2
8 मसूि 20-25 1-2
9 िाई-सिसों 30-32 2-3
10 तोरिया 20-25 1-2
11 कु सुम 30-32 2-3
12 अलसी 30-35 1-2
13 गन्ना 150-160 4-6
14 आलू 62-78 4-5

र्सलों की जलमांग ज्ञात किने की तवतधयाँ


(Methods of Estimation of Water Requirement)
1.वाष्पोत्सजणन अनुपात तवतध (Transpirational ratio Method)

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ककसी र्सल के इकाई शुष्क भाि पैदा किने के तलए तजतनी इकाई पानी वाष्पोत्सर्जणत ककया जाता है,
वह उस र्सल का वाष्पोत्सजणन अनुपात कहलाता है.
जलमांग= वाष्पोत्सजणन अनुपात x उपज ककग्रा.
इस र्सल से आंकतलत जलमांग वास्ततवक जलमांग से कार्ी कम आती है, क्योंकक इसमें के वल वाष्प-
वाष्पोत्सजणन को ही सम्मतलत ककया जाता है ।तवतशष्ट प्रकक्रयाओं के तलए सम्मतलत जल एवं प्रयोग के दौिान
होने वाली जल की हातनयां सतम्मतलत नहीं की गई है ।इसतलए जलमांग ज्ञात किने की यह तवतध अब प्रचलन
में नहीं है।
2.गहिाई अंतिाल उपज तवतध (Depth interval yield method):इस तवतध द्वािा जलमांग ज्ञात किने के
तलए तवतभन्न ससंचाई गहिाई एवं अंतिाल को उपचाि के रूप में लेते हुए प्रक्षेत्र प्रयोग (experiment) ककये
जाते है। तवतभन्न उपचािों के उपज के आंकड़ों को दजण ककया जाता है तिा अतधकतम उपज प्राप्त किने के तलए
तजतनी मात्रा ससंचाई जल (सेमी.) की देनी पड़ती है, वह र्सल तवशेर् की परितस्ितत तवशेर् में जलमांग होती
है । इस तवतध की प्रमुख सीमाएं यह है कक इसमें भूतमगत जल के योगदान एवं प्रभावी वर्ाण को ध्यान में नहीं
िखा जाता है। इसतलए आंकतलत जलमांग की मात्रा वास्ततवक जल मांग से कार्ी कम आती है।
3.र्सल उपयोग में प्रयुि जल तवतध (Consumptive use of water method): इस तवतध में र्सलों की
जलमांग ज्ञात किने के तलए ककसी भी मृदा में र्सल बुवाई से लेकि कराई तक के समय को तवतभन्न अंतिालों में
बांर लेते है तिा प्रत्येक अन्तिाल के तलए कु ल जल उपयोग की मात्रा ज्ञात कि ली जाती है औि इनका योग
किने पि उस र्सल के तलए उपभुि-उपभोमय जल (consumptive use of water) की मात्रा ज्ञात हो जाती
है। इसे सामान्यतौि पि र्सल की जलमांग भी कहा जाता है। उपभुि-उपभोमय जल ज्ञात किने के तलए तनम्न
सूत्र का उपयोग ककया जाता है।
Mxi-Mzi

u=n-----------------x Bdi x Di

100
तजसमें, u= उपभुि उपभोमय जल
Mxi=i मृदा सतह में प्रिम मृदा प्रततदशण(sample) के समय मृदा नमीं का प्रततशत
Mzi=i सतह में तद्वतीय मृदा प्रततदशण(sample) के समय मृदा नमीं का प्रततशत
Bdi=i मृदा सतह का स्िूल घनत्व (BD) ग्राम/घन सेमी.
Di=मृदा में i सतह की गहिाई सेमी. में
n=पादप जड़ प्रर्ाली में संस्तिों की संख्या
उि सूत्र का प्रयोग किते हुए मृदा की प्रत्येक सतह के तलए अलग-अलग शोतर्त जल की मात्रा ज्ञात किते है
औि उसका योग (total) किने पि एक अंतिाल का उपभुि उपभोमय जल की मात्रा तनकल जाती है।इसके बाद
सभी अन्तिालों के CU का योग कि देने पि पूिे र्सल काल का CU ज्ञात हो जाता है।

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उदाहिर्: गेंहू की र्सल द्वािा प्रिम ससंचाई से लेकि तद्वतीय ससंचाई के िीक पूवण वाले ससंचाई अन्तिाल के तलए
तनम्न आंकड़ों की सहायता से उपभुि-उपभोमय (CU) की गर्ना कीतजये.
मृदा संस्ति प्रिम ससंचाई के तुिंत दूसिी ससंचाई के िीक स्िूल घनत्व, ग्राम/घन
बाद नमीं प्रततशत (Mxi) पहले नमीं प्रततशत सेमी.(Bdi)
(Mzi)
0-25 25 14 1.40
25-50 23 12 1.43
60-75 20 09 1.42

(i)मृदा के 0-25 सेमी. संस्ति से उि समयांतिाल में तलए गए जल की मात्रा


Mxi-Mzi 25-14
u=n-----------------x Bdi x Di-----------------x 1.40 x 25 =3.85से.मी.
100 100
(ii)मृदा के 0-25 सेमी. संस्ति से उि समयांतिाल में तलए गए जल की मात्रा
Mxi-Mzi 23-12
u=n -----------------x Bdi x Di-----------------x 1.43 x 25=3.93 से.मी.
100 100
(iii)मृदा के 0-25 सेमी. संस्ति से उि समयांतिाल में तलए गए जल की मात्रा
Mxi-Mzi 22-11
u=n-----------------x Bdi x Di-----------------x 1.40 x 25 =3.85 से.मी.
100 100

उि समयांतिाल में कु ल तलया गया जल =3.85 + 3.93 + 3.85 =11.63 से.मी.


इस प्रकाि से र्सल के पूिे जीवन काल में CU ज्ञात किने के तलए सभी समयांतिाल के CU को जोड़ तलया
जाता है.
4.जल संतल
ु न तवतध (Water balance method): पौधों की जल मांग ज्ञात किने की इस तवतध में र्सल क्षेत्र
में कदए गए जल (incoming water) एवं बाहि तनकले जल (outgoing water) का अंति ज्ञात किते है। यह
अन्ति वास्तव में उस र्सल क्षेत्र में कदए गए अवतध में जल का व्सतपपकिर् + वाष्पोत्सजणन के रूप में जल का
ह्रास (loss) है।
P+IW +GWC=E+T+D +R
या P+IW +GWC-E+T+D +R=0

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या ET = P+IW +GWC-R-D
P+IW +GWC=कु ल कदया गया पानी
E+T+D +R= प्रक्षेत्र से कु ल जल का ह्रास (loss)
यहां पि P=वर्ाण (Precipitation) द्वािा प्राप्त जल
GWC=भूतमगत जल का योगदान (ground water contribution)
R=अपवाह के रूप में नष्ट जल (loss of water through runoff)
D=अन्तिः स्त्रवर् द्वािा नष्ट जल (deep percolation)
E=पानी का वाष्पीकिर् (evaporation)
T=वाष्पोत्सजणन (transpiration)
उदाहिर्: यकद गेंहू की र्सल अवतध में 6 से.मी. की गहिाई वाली 4 ससंचाइयाँ कद गई. र्सल अवतध में कु ल
20 से.मी. वर्ाण हुई तिा र्सल बुवाई के समय जड़ क्षेत्र में 7 से.मी. जल की उपलब्धता िी तो र्सल की वाष्प-
वाष्पोत्सजणन मात्रा ज्ञात कीतजये। कु ल प्राप्त जल में से 10 से.मी. जल अपवाह तिा 8 से.मी. जल अन्तिः स्त्रवर्
के माध्यम से नष्ट हो गया िा।
हल: प्रश्नानुसाि IW=6 से.मी.x 4 ससंचाई =24 से.मी.
जल संतुलन समीकिर् के अनुसाि =P+IW+GWC-E-T-D-R=0
ET = P+IW +GWC-R-D
=20 +24+7-10-8 =33 से.मी.
5.प्रक्षेत्र प्रयोग तवतध (Field experiment method): र्सलों की जल मांग ज्ञात किने की इस तवतध में र्सल
के उतचत सस्य प्रबंधन किते हुए र्सल की क्रांततक अवस्िाओं में ससंचाई की जाती है तजससे र्सल की जल
आवश्यकता की पूती कि अतधकतम उत्पादन प्राप्त ककया जा सके । खेत में प्रयोग ककये गए जल, प्रभावी वर्ाण
(effective rainfall) तिा भूतमगत जल का योगदान (ground water contribution) का अच्छी तिह से
आंकलन ककया गया है। सम्पूर्ण र्सल काल में तजतना जल उपयोग ककया गया, वह र्सल की जल मांग होती है,
तजसे तनम्न सूत्र से ज्ञात कि लेते है।
n Mh-Me
WR=IR +ER +  {---------------------} x BDi x Di
i=1 100
तजसमें, WR=जल मांग, सेमी.
IR=ससंचाई जल की मात्रा, सेमी.
ER=प्रभावी वर्ाण,सेमी.
Mb= बुवाई के समय मृदा नमीं का प्रततशत
Me=र्सल कराई के समय मृदा नमीं का प्रततशत
BDi=मृदा के i संस्ति का स्िूल घनत्व
Di=मृदा के i संस्ति की गहिाई

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n=जड़ क्षेत्र में संस्तिों की संख्या


इस प्रकाि से तवतभन्न र्सलों की जल मांग ज्ञात की जाती है. पौधों की जल मांग ज्ञात किने की सबसे परिशुद्
तवतध है लेककन इसमें पूिी र्सल अवतध तक प्रेक्षर् (observation) लेना पड़ते है, तजसमे समय औि श्रम
अतधक लगता है।
उदाहिर्: ज्वाि के खेत में बुवाई के समय मृदा के जड़ क्षेत्र में 16 प्रततशत नमीं िी तिा कराई के दौिान 8
प्रततशत नमीं शेर् िह गई िी। सम्पूर्ण र्सल अवतध में 6 से.मी. गहिाई की 3 ससंचाइयाँ की गई। वर्ाण से प्राप्त
जल 38 सेमी. में से 18 सेमी. जल ही उपयोगी िा अिाणत 20 से.मी. वर्ाण जल नष्ट हो गया िा.मृदा का स्िूल
घनत्व 1.42 ग्राम/सेमी. तिा जड़ क्षेत्र की गहिाई 75 सेमी. िी. र्सल की जल मांग ज्ञात कीतजये।
हल : IW=6 से.मी. x 3 ससंचाई=18 सेमी.
n Mh-Me 16-8
WR=IR +ER +  {---------------------} x BDi x Di = -----------------x1.42 x 75
i=1 100 100
8
=18+18 +---------x 1.42 x 75=46.86 से.मी.
100
नोर: यकद र्सल जड़ क्षेत्र के तवतभन्न संस्तिों में अलग नमीं का प्रततशत तिा स्िूल घनत्व ज्ञात है तो प्रत्येक जड़
क्षेत्र के संस्ति के तलए अलग-अलग गर्ना किके उसको जोड़ तलया जाता है तिा जो मान प्राप्त होता है, वह
भूतम जल का योगदान कहलाता है। इसे IW एवं ER में जोड़ देने से जल मांग प्राप्त हो जाती है।

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Lecture-11
ड्यूरी, प्रभावी वर्ाण, ससंचाई माप इकाइयां एवं संयतु ममत जल उपयोग
(Duty of Water, Effective rainfall, units of Irrigation Measurement
and Conjunctive use of water)

ड्यूरी (Duty)
इकाई पानी की ससंचन क्षमता को ड्यूरी कहते है । एक क्यूमेक पानी र्सल के पूिे आधाि काल में तजतने
हेक्रेयि भूतम को सींचता है वह पानी की ड्यूरी कहलाती है। इसे D अक्षि से प्रदर्शणत किते है ।
उदाहिर्: माना कक 1 क्यूमक
े पानी एक र्सल के पूिे आधािकाल में 400 हेक्रेयि भूतम ससंतचत किता है, तो
पानी की ड्यूरी 400 हेक्रेयि प्रतत क्यूमेक होगी।
8.64 x आधाि काल
ड्यूरी =---------------------------
डेल्रा
डेल्रा (Dalta)
ककसी र्सल को तनतित अंतिाल पि कदये गए सभी जल की कु ल गहिाई को डेल्रा कहते है । यह से.मी.
या मीरि में मापी जाती है। डेल्रा को ∆ से प्रदर्शणत किते है।
उदाहिर्: माना कक एक र्सल के आधाि काल में 15 से.मी. की गहिाई में चाि बाि पानी कदया गया, तो
पानी की कु ल गहिाई
∆ =15 x 4 =60 से.मी. अिवा 0.6 मीरि
आधाि काल(Base Period )
बीज बोने के समय प्रिम ससंचाई तिा र्सल कारने के पूवण, अंततम ससंचाई तक की अवतध र्सल का
आधाि काल (Base period) कहलाता है। यह कदनों में आंकी जाती है। आधाि काल र्सल काल से िोड़ा कम
होता है, पिन्तु सिलता के तलए दोनों को बिाबि मान तलया जाता है। इसे B से प्रदर्शणत किते है।
र्सलकाल : खेत में र्सल बोने से लेकि कारने तक का पूिा काल र्सलकाल कहलाता है। इसको कदनों में व्यि
किते है।
ड्यूरी, डेल्रा औि बेस पीरियड में सम्बन्ध
यकद D हेक्रेयि के एक खेत में ∆ मीरि गहिा पानी भिा जाये तो पानी का कु ल आयतन

V=D x ∆ हेक्रि मीरि......(i)


V=D x ∆ x 104 m3 ( चूंकक 1 हेक्रि=104 m3)

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इसी क्षेत्र के तलए 1 क्यूमेक पानी र्सल के पूिे आधाि काल B के तलए छोड़ा जाये, तो पानी का आयतन
V = 1 x 24 x 60 x 60 xB m3.......(ii)
D=पानी की ड्यूरी हेक्रेयि/क्यूसेक
∆=पानी की सकल गहिाई मीरि में
B=आधाि काल कदनों में
पानी का आयतन दोनों तस्िततयों में समान होगा.
(i)=(ii)
D x ∆ x 104 =1 x 24 x 60 x 60 x B

B×8.64 864 x B

∆= ------------------मीरि अिवा -----------से.मी.


D D
8.64 x B
D=----------------------हेक्रि/क्यूमेक

∆= Delta in cm, B=Base period or crop period of the crop
D=Duty of water in hectare/cumec
ससंचाई जल माप की इकाई (Units for measuring irrigation water)
ससंचाई जल मापने के इकाइयों को दो श्रेतर्यों में आयतनात्मक औि औि बहाव दि में बांरा गया है:
A.आयतनात्मक इकाइयां (Volume units)
(i) लीरि (Liter): यह एक घन डेसीमीरि (one cubic desimeter) या 1 x 10-3 घन मीरि (cubic meter) के
बिाबि होता है।
(ii) घनमीरि (Cubic Meter): यह 1 मीरि लम्बे, 1 मीरि चौड़े औि 1 मीरि गहिे या ऊंचे घन (cube) का
आयतन है, जो 1 x 103 लीरि के बिाबि है।
(iii) हेक्रेयि से.मी.(Hectare cm): पानी की वह मात्रा जो एक हेक्रेयि खेत में एक से.मी. तक खड़ी हो,
हेक्रेयि से.मी. या हेक्रो से.मी. कहलाती है। यह 100 घन मीरि या 100,000 लीरि के बिाबि होता है।
(iv) हेक्रेयि मीरि (Hectare Meter): यह एक हेक्रेयि क्षेत्रर्ल पि एक मीरि गहिाई तक तस्ित जल का
आयतन है, जो 10,000 घनमीरि या 10 तमतलयन लीरि के बिाबि होता है।
B.बहाव दि इकाइयां (Flow rate or discharge rate units)
(i) लीरि प्रतत सेकंड (Liter per Second): यह ककसी नाली (channel), नहि या कु लाबा (weir) आकद के
ककसी तबन्दु पि अिवा पाइप या पम्प से प्रतत सेकंड तनिंति बह िहे जल का आयतन है।
(ii) घन मीरि प्रतत सेकंड (Cubic Meter per Second): यह ककसी जलस्त्रोत की एक मीरि चौड़ाई औि एक
मीरि गहिाई में, एक मीरि प्रतत सेकंड के बेग से बह िहे जल का आयतन है ।

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प्रभावी वर्ाण (Effective Rainfall)


कु ल वर्ाण का वह भाग जो पौधों के तलए प्रयुि जल का भाग हो अिाणत् तजसे र्सल अपने उपयोग में
ला सकें । भूतम की जल संचय क्षमता (water holding capacity of soil) तिा र्सलों की जड़ों की गहिाई
(rooting depth) वे मुख्य कािक हैं जो प्रभावी वर्ाण की मात्रा को प्रभातवत किते हैं। दूसिे शब्दों में कु ल वर्ाण का
वह अंश जो र्सलोत्पादन के तलए उपयोगी हो कायणकािी या प्रभावी वर्ाण (Effective rainfall) कहलाती है।
वर्ाण का वह जल, जो खेत से बाहि बह जाता है (runoff) अिवा जो पौधों के जड़ क्षेत्र से नीचे गहिाई में चला
जाता है, अकायणकािी वर्ाण (ineffective rainfall) कहलाता है।अतधक तीर गता से बड़ी-बड़ी बूंदों द्वािा कम समय
में अतधक मात्रा में वर्ाण होने पि मृदा द्वािा वर्ाण के जल का शोर्र् कम हो पाता है तजससे अपवाह (runoff)
द्वाि कार्ी अतधक मात्रा में जल बहकि अन्यन्त्र स्िानों पि चला जाता है। वर्ाण का समान तवतिर् वर्ाण की
प्र्भाकारिता को बढाता है, साि ही साि मंद-मंद गतत से छोरी-छोरी बूंदों द्वािा वर्ाण होने पि मृदा द्वािा वर्ाण
का समूर्ण जल सोख तलया जाता है तजसके परिर्ामस्वरूप सम्पूर्ण वर्ाण प्रभावी हो जाती है। नवम्बि से माचण
तक होने वाली शीतकालीन वर्ाण अतधक प्रभावकािी होती है।
प्रभावी वर्ाण ज्ञात किने की तवतध
प्रभावकािी वर्ाण का तनधाणिर् किने की अनेक तवतधयाँ प्रचतलत है। इसके तलए मृदा नमीं परिवतणन
तवतध अतधक सिल एवं कािगि है। इस तवतध द्वािा वर्ाण अिवा ससंचाई के पूवण एवं बाद में मृदा से नमूना लेकि
भािात्मक तवतध द्वािा मृदा नमीं की मात्रा ज्ञात की जाती है। इस प्रकाि वर्ाण प्रािम्भ होने के पूि नमीं की मात्रा
एवं वर्ाण के बाद तलए गए नमूने में मृदा में नमीं की मात्रा की वृतद् एवं वाष्प-वाष्पोत्सजणन द्वािा नमीं की हातन
के अंति को प्रभावी वर्ाण माना जाता है। भािी वर्ाण के पिात वर्ाण बंद होने एवं नमूना लेने के समय के बीच
वाष्पीकिर् की तस्िततज दि की कल्पना कि ली जाती है। इस तवतध द्वािा प्रभावी वर्ाण की गर्ना तनम्न प्रकाि
से की जाती है।
ER=(M2-M1)+KcET
यहाँ ER=प्रभावी वर्ण, M1=वर्ाण के पूवण मृदा में नमीं, M2=वर्ाण के पिात मृदा में नमीं की मात्रा, Kc=र्सल
गुर्ांक,ET=वाष्प-वाष्पोत्सजणन(तममी.)
संयतु ममत जल उपयोग (Conjunctive Use of Water)
संयुतममत जल उपयोग का तात्पयण यह है कक सतह जल औि भूजल का बािी-बािी से अिवा तमलाकि
र्सलों की ससंचाई के तलए उपयोग किना है। संयुतममत जल उपयोग पद्तत का मुख्य लक्ष्य भूजल (ground
water) औि सतह जल (surface water) की दक्षता को बढ़ाना है। सामान्यतौि पि इस पद्तत का उपयोग दो
उद्ेश्यों के तलए ककया जाता है:
1.ससंचाई के पानी की आपूर्तण में सतत वृतद् लाने के तलए
2.भूजल की गुर्वत्ता में सुधाि लाने के तलए
इस पद्तत के अनुसाि सतही जल (जैसे नदी औि नहि)औि भूजल को तवतभन्न अनुपात में तमलाकि
ससंचाई किते है। इससे कम गुर्वत्ता वाले भू-जल (खािे पानी) की दक्षता बढाई जा सकती है। इस तवतध का
उपयोग पंजाब एवं हरियार्ा में ककया जा िहा है, क्योंकक वहां के पानी की गुर्वत्ता खिाब होती जा िही है।

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संयुममी जल उपयोग के अंतगणत सतही जल तिा भौमजल स्त्रोतों का इस तिह से समन्वयन एवं प्रचालन ककया
जाता है कक जल का सिं क्षर् किते हुए जल की आवश्यकता को पूिा ककया जा सके ।
भाित में सतही जल की ससंचाई कु शलता 35 से 40 प्रततशत के मध्य है, जबकक भूजल की ससंचाई
कु शलता 65 प्रततशत के लगभग है। ससंचाई के अनुकूलतम प्रयोग हेतु सतही जल औि भूजल का समतन्वत
प्रबंधन आवश्यक है। एक आंकलन के अनुसाि भाित में भूजल स्ति 1-2 मीरि प्रतत वर्ण की दि से घरता जा िहा
है। भूजल दोहन को कम किने के तलए सतही जल का संग्रह औि उसका पुनरुपयोग किना जरुिी है, ताकक जल
संसाधनों का बेहति प्रबंधन हो सके । संयुतममत उपयोग में खिाब गुर्वत्ता वाले भूजल का उपयोग सतह जल के
साि किके भूजल की ससंचाई दक्षता को बढ़ाया जा सकता है। इसके उपयोग से सतही जल के नुकसान को 50
प्रततशत तक कम कि र्सल उत्पादन को बढ़ा सकते है।
संयतु ममत जल उपयोग के लाभ
1.कृ तर् में जल के प्रयोग को बढाया जा सकता है। सभी कृ तर् क्षेत्रों में ससंचाई जल का समान तवतिर् सुतनतित
ककया जा सकता है।
2. ससंचाई के तलए तनिंति भूजल स्ति का अंधाधुंध दोहन हो िहा है। सतही औि भूजल के सयुंि प्रयोग से
भूजल स्ति को बढ़ाया जा सकता है।
3.पानी की सुतनतित उपलब्धता से र्सलों की जल आवश्यकता (water requirement) की पूती की जा सकती
है औि समय पि ससंचाई दी जा सकती है।
4.खािे पानी (saline water) की समस्या वाले क्षेत्रों में र्सल उत्पादन बढाया जा सकता है।
5.भूतम की लवर्ीयता (salinisation)एवं जल भिाव (water-logging) की समस्याओं को िोका या तनयंतत्रत
ककया जा सकता है। नहिी क्षेत्र (Canal Commond area) में जल तनकास की उतचत व्यवस्िा के बगैि तनिंति
अतधक मात्रा ससंचाई किने से जल स्ति ऊपि आता जा िहा है ,तजसके र्लस्वरूप जल भिाव औि लवर्ीयता
की समस्या उत्पन्न होने से र्सलोत्पादन पि प्रततकू ल प्रभाव पड़ िहा है।

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Lecture-12
ससंचाई तनधाणिर् की तवतधयाँ
(Scheduling of irrigation-soil moisture regime approaches)
________________________________________________________

र्सलों में कब औि ककतना पानी देना है, यह तय किने का व्यवतस्ित तकनीक को ससंचाई तनधाणिर्
अिवा सूचीकिर् (irrigation scheduling) कहते है। र्सल की प्रतत इकाई पैदावाि के साि-साि जल उपयोग
दक्षता बढ़ाना ससंचाई तनधाणिर् का प्रमुख उद्ेश्य है। ससंचाई जल का कु छ भाग तमट्टी में से पौधो द्वािा
अवशोतर्त (absorb) कि तलया जाता है औि कु छ भाग वाष्पीकिर्, अपवाह (runoff) एवं भू-रिसाव द्वािा नष्ट
हो जाता है। इस तिह के जल के नुकसान की मात्रा ससंचाई प्रर्ाली के अतभकल्प तिा ससंचाई प्रबंधन पि तनभणि
किती है। उतचत जल ससंचाई समय तनधाणिर् से जल प्रवाह में कमीं लाकि ससंचाई क्षमता में ज्यादा से ज्यादा
बढ़ोत्तिी तिा जल आवश्यकता एवं ऊजाण उपयोग में कमीं लाइ जा सकती है।
ससंचाई के समय का तनधाणिर् (Critaria of irrigation schedulling)
मृदा में पानी की मात्रा तिा पौध वृतद् का आपस में समानुपाती पिस्पि सम्बन्ध होता है। मृदा में नमीं
की कमीं से पौधों की वृतद् में कमीं प्रािम्भ होने पि ससंचाई किना उतचत िहता है। ससंचाई के समय का
तनधाणिर् अिवा अनुमान तनम्न आधाि पि ककया जा सकता है:
1.पौधों की बाहिी दशा देखकि (Plant apperance): तवतभन्न र्सलों की बाह्य दशा जैसे पतत्तयों का मुिझाना,
तसकु ड़ना अिवा पतत्तयों का िं ग बदलना आकद को देखकि ससंचाई का समय तनधाणरित ककया जा सकता है।
2.मृदा के गुर् (Soil characteristics): मृदा के भौततक गुर्ों को देखकि ससंचाई का समय तनधाणरित ककया जा
सकता है। उदाहिर् के तलए गहिी काली तमट्टी में नमीं की कमीं होने पि दिािे उत्पन्न होने लगती है।
3.मृदा नमीं की माप(Measurement of soil moisture): ससंचाई के समय का सही तनधाणिर् किने के तलए
तवतभन्न तवतधयों जैसे पृष्ठमापी (रेंतशयोमीरि) आकद की सहायता से मृदा नमीं स्ति का पता लगाया जा सकता
है। क्षेत्र धारिता पि पौधों को 100 प्रततशत मृदा जल उपलब्ध िहता है, जबकक मुिझान तबन्दु पि उपलब्ध मृदा
जल की मात्रा शून्य हो जाती है। अतिः इन दोनों तस्िततयों के मध्य ससंचाई कि देना चातहए। अतधकांश र्सलों
की ससंचाई मृदा में 50 % उपलब्ध जल िहने पि कि देना चातहए।
4. र्सल की क्रांततक अवस्िाओं के आधाि पि ससंचाई (Critical growth stages): र्सलों के जीवन काल में
कु छ ऐसी अवस्िाएं होती है तजनमें पौधे अतधक मात्रा में भूतम से जल अवशोतर्त किते है। इन अवस्िाओं के
समय में मृदा में नमीं की कमीं होने पि उपज में भािी तगिावर होती है। अतिः इन क्रांततक अवस्िाओं पि ससंचाई
किना आवश्यक है।
ससंचाई तनधाणिर् के र्ायदे (Advantages of Irrigation Scheduling)
1. ससंचाई तनधाणिर् से ककसान चकक्रय आधाि पि तवतभन्न र्सलों में ससंचाई कि उपलब्ध पानी में
अतधकतम उत्पादन ले सकते है।

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2. पानी के नुकसान को कम किने औि जल जमाव की समस्याओं को किने में सहायता तमलती


है।
3. सही समय पि ससंचाई किने से ककसान खेती की लागत कम कि अतधकतम आमदनी अर्जणत
कि सकते है।
4. आवश्यकता से अतधक ससंचाई को कम किके ऊजाण औि श्रम की बचत की जा सकती है।
5. बचाए गए पानी का उपयोग अततरिि क्षेत्र की ससंचाई के तलए ककया जा सकता है।
6. कृ तर् के तलए उपयोगी अदानो जैसे उवणिक, कीरनाशक, शाकनाशी आकद की उपयोग दक्षता
बढती है।
7. र्सल की पैदावाि औि उत्पाद की गुर्वत्ता बढती है तजससे शुद् कृ तर् आमदनी में इजार्ा
होता है।
ससंचाई तनधाणिर् (Scheduling of irrigation)
ससंचाई का तनधाणिर् अिवा सूचीकिर् किते समय भूतम की दशा, मृदा सिं चना, र्सल की ककस्म,
र्सल की अवतध, जलवायुतवक तस्ितत तिा अन्य सस्य कक्रयाओं आकद को ध्यान में िखकि की जानी चातहए।
ससंचाई तनधाणिर् के तलए अग्र-तलतखत तवतधयाँ प्रयोग में लायी जाती है। प्रतत इकाई जल से अतधकतम उत्पादन
प्राप्त किने के उद्ेश्य से ससंचाई तनधाणिर् किते समय तनम्न तलतखत बातों पि ध्यान देना आवश्यक होता है।
1. ससंचाई कब की जाए ? (When to irrigate?)
2. ससंचाई जल ककतनी मात्रा में प्रयोग ककया जाए? (How much to irrigate?)
3. ससंचाई ककस प्रकाि के पानी से की जाये ?(What quality of water to be used for irrigation ?)
4. ससंचाई कै से की जाए ? (How to irrigate ?)
ककसी स्िान तवशेर् औि र्सल के तलए ससंचाई का तनधाणिर् किते समय भूतम एवं भूतम की दशा,
र्सल एवं र्सल की ककस्म, र्सल का वृतद् काल, वायुमड
ं लीय तस्ितत तिा अन्य कृ तर् कक्रयाएं आकद को ध्यान
में िखा जाना आवश्यक है। मोरे तौि पि हम कह सकते है कक भूतम में उपलब्ध नमीं की मात्रा में इतनी कमीं हो
जाये, कक पौधों की बढ़वाि एवं तवकास प्रभातवत होकि उपज में कमीं आने की सम्भावना प्रतीत हो तो ससंचाई
कि देनी चातहए। सामान्य रूप से मृदा नमीं का पौधों की वृतद् के साि-साि वाष्पन (evaporation) एवं
वाष्पोत्सजणन (transpiration) के साि अरूर सम्बन्ध होता है। सामान्य रूप से ससंचाई तनधाणिर् के तलए तनम्न
वैज्ञातनक तवतधयाँ प्रयोग में लायी जाती है।
ससंचाई तनधाणिर् की तवतधयाँ (Methods of Irrigation Scheduling)
A.Soil water regime Climatological Approaches C.Plant Indices
 Feel & Appearance  Cumulative Pan  Visual symptomas
method Evaporation  Soil-cum-Sand culture
 Depletion of Available  IW/CPE ratio (Mini-plot Technique)
soil moisture  Relative water content

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 Soil moisture Tension  Canopy Temperature


 Indicator Plant
 Critical growth stages
A. मृदा नमीं हांतन के आधाि पि ससंचाई तनधाणिर् (Soil Water Regime)
1.मृदा की दशा एवं बाह्य गुर्ों के आधाि पि (Feel and appearance method)
मृदा के भौततक गुर्ों को देखकि भी ससंचाई के समय का अनुमान लगाया जा सकता है। उदाहिन के तलए
तचकनी तमट्टी में नमीं की कमीं आने पि दिािे पड़ना प्रािम्भ हो जाता है। मृदा की संसंजकता (Cohesiveness)
तिा सुघट्यता (Plasticity) दोनों ही मृदा में नमीं की उपलब्धता को दशाणते है तजनका मृदा में उपतस्ित प्राप्य
जल से सीधा सम्बन्ध स्िातपत ककया जा सकता है। मृदा में नमीं की तवतभन्न मात्रा उपतस्ित होने पि अलग
अलग प्रकाि की मृदाओं में अलग-अलग लक्षर् होते है, तजन्हें देखकि अिवा हाि से छू कि ससंचाई की
आवश्यकता का अनुमान लगाया जा सकता है। तवतभन्न प्रकाि की मृदाओं में नमीं की तवतभन्न मात्रा का अनुमान
लगाने के तलए मृदा परिक्षर् ट्यूब (वमाण) की सहायता से र्सल जड़ क्षेत्र (root zone) से नमूना (soil
sample) एकतत्रत ककया जाता है । तदोपिांत इस मृदा को हाि से छू कि-दबाकि देखना चातहए तिा इससे
बनने वाले गोले के आधाि पि उि मृदा में नमीं की तस्ितत का अनुभव सािर्ी-16 में बताये अनुसाि ककया जा
सकता है।
सािर्ी-16: अनुभव के आधाि पि मृदा की बनावर का मृदा नमीं की दशा पि प्रभाव
मृदा में प्राप्य हल्की या भािी कर्ों की बलुई मृदा दोमर मृदा मररयाि मृदा
जल (%) मृदा
0 या म्लातन सूखी कं र्दाि मृदा तमट्टी सूखी एवं सूखी मृदा छोरे- सख्त तिा ढेलेदाि
तबन्दु से कम उं गतलयों के बीच ढीली होती है तिा छोरे रुकड़ों में बंधी होती है तिा सतह
नमीं कर्सलती हैं उं गुतलयों के बीच से िहती है जो पि दिािें कदखाई
कर्सलती है । आसानी से रूरकि देती हैं ।
चूर्ण हो जाती है ।
50 % या सूखी तमट्टी दबाने पि सूखी तमट्टी इसकी मृदा को दबाने पि दबाने पि गोली
इससे कम नमीं इसकी गोली नहीं बनती गोली नहीं बन गोली रूकी िहती है बनकि रूकी िह
है । पाती । जाती है ।
50-75 % जैसा 50 या कम नमी दबाने पि गोली सी कु छ सुघट्य होती है गोली बन जाती है
नमीं पि होता है । बन जाती है पि ओि दबाने पि औि दबाने पि अन्य
दाब हराने पि रूर गोली बनी िहती है आकाि भी ले लेती
जाती है । है ।
75% से जल- तचपकती है अंगुतलयों से कमजोि सी गोली गोली बन जाती है, उं गुतलयों से दबाने
धािर् क्षमता दबाने पि गोली बनती बनती है पि जल्दी सुघट्य होती है ओि पि र्ीते जैसी बन

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तक है पन्तु जल्दी रूर जाती रूर जाती है । तचकनी लगती है । जाती है । तचकनी
है । सी लगती है ।
100 % नमीं दबाने पि गोली सी बन पूवणवत, भािी कर्ों बलुअि भूतम की ही बलुअि भूतम की ही
जल धािर् जाती है । गीलापन हाि की मृदा की भांतत तिह तिह
क्षमता पि पि लगा िह जाता है ।

जल धािर् दबाने पि पानी ऊपि आ दबाने पि पानी दबाने पि पानी दबाने से तमट्टी
क्षमता से जाता है । छू रता है । रपकता है । लोष्ठवत हो जाती है
अतधक औि स्वतंत्र जल
कदखाई पड़ता है ।
2.मृदा नमीं ह्रास के आधाि पि (Soil moisture depletion approach)
र्सलों द्वािा नमीं का अवशोर्र्, वाष्पीकिर् तिा रिसाव की कक्रया के द्वािा मृदा जड़ क्षेत्र में तवशेर्
स्ति तक पानी की कमीं हो जाती है। इस प्रकाि मृदा में पानी की आई कमीं की पूर्तण किने के तलए ससंचाई की
जाती है। मृदा में कम हुई पानी की मात्रा को ज्ञात किके ससंचाई जल के प्रयोग के सम्बन्ध में जानकािी प्राप्त की
जाती है। जब पौधे उपलब्ध मृदा नमी का सही ढंग से समुतचत मात्रा में सक्षम नहीं होते है अिाणत एक तनतित
स्ति तक मृदा में नमीं घरने की अवस्िा में ससंचाई कि देनी चातहए। लगभग सभी र्सलों में मृदा में नमीं की
यह अवस्िा 25 से 75 प्रततशत के मध्य पाई जाती है। तवतभन्न र्सलों के तलए उपलब्ध मृदा नमीं क्षय प्रततशत
मृदा आद्रणता सािर्ी-17 में दी गई है.
सािर्ी-17 : उपलब्ध मृदा नमीं क्षय तिा ससंचाई हेतु मृदा में नमीं प्रततबल (Moisture Tension)
र्सल का नाम उपलब्ध मृदा नमीं क्षय प्रततशत मृदा आद्रणता (बाि)
धान 75 1.00
ज्वाि 60 1.00
मक्का 50 0.50
सोयाबीन 50 0.50
गेंहू 60 0.60
दलहनी र्सलें 25 0.25
ततलहनी र्सलें 40 0.35
गन्ना 65 0.75
बिसीम 75 0.25

3.मृदा नमीं तनाव (Soil moisture tension) : मृदा में नमीं तनाव के आधाि पि भी ससंचाई का तनधाणिर्
ककया जा सकता है। इसके तलए रेंतसयोमीरि को पौधों की जड़ों के पास एक तनतित गहिाई पि गाड़ कदया

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जाता है। जब नमीं का तनाव एक तनतित सीमा तक (0.5 या 0.75 बाि) पहुँच जाता है तब ससंचाई की जाती
है। इसका प्रयोग हल्की मृदा में ककया जाता है पिन्तु इससे यह ज्ञात नहीं हो पाता है कक प्रत्येक ससंचाई में
ककतना पानी कदया जाय। तवतभन्न र्सलों का नमीं तनाव स्ति एवं अतधकतम जड़ गहिाई क्षेत्र सािर्ी-18 में
कदया गया है.
सािर्ी-18: ससंचाई तनधाणिर् के तलए कु छ र्सलों के तलए क्रांततक मृदा नमीं तनाव
स.क्र. र्सलें क्रांततक नमीं तनाव स्ति अतधकतम जड़ गहिाई
(सेंरीबाि) क्षेत्र (सेमी.)
गेंहू 40-50 30

मक्का 25-50 30

ज्वाि 50-65 60

सोयबीन 50-60 30

कपास 40-50 30

आलू 25-50 30

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Lecture-13
ससंचाई तनधाणिर्-पौध गुर् एवं जलवायुतवक तवतधयाँ
(Scheduling of irrigation-plant indices and Climatological
Approaches)
___________________________________________________

मृदा नमीं मूल्यांकन के अलावा पौधों के गुर्ों का मूल्यांकन कि तिा जलवायुतवक आधाि पि भी ससंचाई के
समय का तनधाणिर् ककया जा सकता है।
B.पौध गुर्ों (Plant Indices) के आधाि पि ससंचाई तनधाणिर्
र्सल में ससंचाई तनधाणिर् व्यवहारिक रूप से पौधों के गुर्ों के आधाि पि तनम्न तवतधयों द्वािा ककया जा
सकता है।
1.पौधों के वाह्य गुर्ों को देखकि (Plant Appearance)
पौधे जब जल की कमीं का अनुभव किते है, उनकी पतत्तयां मुिझाने लगती है पिन्तु अतधकांश पौधों में
ये लक्ष्र् तभी प्रदर्शणत होते है जब पौधों को जल की कमीं से भािी क्षतत पहुँच चुकती है। सेम व मूंगर्ली जैसी
र्सलों में देखा गया है कक जल की कमीं होने पि पतत्तयों का िं ग नीला हिा हो जाता है। जल की कमीं होने पि
कु छ र्सलों में पतत्तयां ऊपि की ओि मुड़ जाती है औि कु छ में कुं तचत हो जाती है। भूतम में पयाणप्त नमीं िहने पि
भी कभी-कभी लगाताि कड़ी धूप होने के कािर् मुख्यतिः मध्यान्ह (noon) के समय पौधों की पतत्तयां मुिझा
जाती है औि शाम के समय पुनिः सामान्य तस्ितत में आ जाती है। इस तिह पतत्तयों के कु छ समय तक मुिझाए
िहने के लक्षर् को अस्िायी म्लातन (Temporary wilting) कहते है। कड़ी धूप होने से पौधों में वाष्पोत्सजणन दि
में कार्ी वृतद् हो जाती है औि पौधे जड़ों द्वािा उस दि से मृदा जल का अवशोर्र् (Absorption) नहीं कि पाते
है। इसीतलयें पौधों में म्लातन की लक्षर् प्रदर्शणत होते है । शाम के समय पौधों में वाष्पोत्सजणन की कक्रया मंद पड़
जाती है तिा पौधों में जल की क्षततपूर्तण हो जाती है, तजससे पौधों में मुिझाने के लक्षर् समाप्त हो जाते है।
प्रातिःकाल पौधों के मुिझाने के लक्षर् प्रदर्शणत हो, तो यह अतनवायण रूप से इस बात का सूचक है कक पौधों में
जल की अत्यंत कमीं है। ऐसी अवस्िा में ससंचाई किना आवश्यक है।
गन्ने की र्सल में ससंचाई का समय तनधाणिर् किने के तलए सूिजमुखी को सूचक पौधों (Indicator
plant) के रूप में प्रयोग ककया जा सकता है। सूिजमुखी के पौधे जल की कमीं की अवस्िा में गन्ने की र्सल की
अपेक्षा शीघ्र मुिझा जाते है। गन्ने की र्सल के साि-साि उगाये गए सूिजमुखी के पौधों की पतत्तयों के पहले
मुिझाने पि गन्ने में ससंचाई किना उपयुि पाया गया है।
2.र्सल की क्रांततक अवस्िाओं (Critical stages) पि ससंचाई
यद्यतप पौधों की बढ़वाि की प्रत्येक अवस्िा में पयाणप्त मात्रा में जल की आवश्यकता होती है, कर्ि भी,
पौधों के जीवन चक्र (Life cycle) में कु छ ऐसी अवस्िाएं (stages) होती है, जब कक जल की कमीं के कािर्

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उन्हें सवाणतधक क्षतत पहुँचती है। इन अवस्िाओं को ससंचाई की दृतष्ट से क्रांततक अवस्िाएं (Critical stages)
कहते है। तजन क्षेत्रों में ससंचाई की सीतमत सुतवधाएं उपलब्ध है, वहां जल के सवोत्तम उपयोग के तलए र्सलों
की क्रांततक अवस्िाओं पि ही ससंचाई किना लाभदायक होता है।
अतधकांश र्सलों में अंकुिर् तिा र्ू ल आने के समय ससंचाई के तलए क्रांततक अवस्िा माना गया है.गेंहूँ में
तशखि या ताजमूल जड़ों के तवकास (Crown root initiation) के समय तिा दाने की दुतधया अवस्िा (Milk
stage) ससंचाई की दृतष्ट से क्रांततक अवस्िाएं है। गेंहू में तशखि जड़ो के तवकास की प्राितम्भक अवस्िा में यकद
ससंचाई न की गई तो जड़ों के तवकास के साि-साि दौतजयों (Tillers) का तवकास भी अवरुद् हो जाता है। इसी
प्रकाि तवतभन्न र्सलों में ससंचाई के तलए क्रांततक अवस्िाओं को पहंचाना गया है, तजनका तवविर् सािर्ी-19
में प्रस्तुत है।
सािर्ी-19 : तवतभन्न र्सलों में ससंचाई की क्रांततक अवस्िाएं (critical stages of different crops)
र्सल का नाम क्रांततक अवस्िाएं (critical stages) क्रांततक अवस्िा ससंचाई में
पि र्सल की पानी की
उम्र (कदन) मात्रा
(से.मी.)
धान (Paddy) पौध िोपर् के बाद (Seedling establishment 07-10 05
stage)
कल्ले तनकलते समय (Tillering) 25-30
बाली बनते समय (Panicle initiation stage) 50-70
र्ू ल आने पि (Flowering stage) 75-85
दुमधावस्िा (Milking) के तुिंत बाद 90-100
गेंहू-ँ बौना ताजमूल अवस्िा (CRI) 20-25 7-8
(Dwarf कल्ले र्ू रना (Tillering) 40-45
wheat) गाँि बनना (Jointing) 55-60
पुष्प अवस्िा (Flowering) 80-85
दुमधावस्िा (Milking) 100-115
जौ (Barley) कल्ले र्ू रना 30-35 7-8
गाँि बनना 60-65
दुमधावस्िा 90-95
मक्का (Maize) अंकुिर् के तुिन्त बाद 2-3 5-6
घुरने तक की ऊंचाई होने पि (Knee high stage) 35-40
निमंजिी अवस्िा (Tasseling stage) 55-60
मादा र्ू ल तनकलते समय (Silking stage) 60-65
पिागर् के समय (Pollination) 65-70

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ज्वाि पौध वृतद् अवस्िा (Seedling) 30-35 6-7


(Sorghum) र्ू लने के पहले (Flowering) 45-50
दाना बनते समय (Grain formation) 55-60
चना (Gram) र्ू ल आने से पूवण (Flowering) 50-60 7-8
र्ली में दाना भिते समय (Grain filling) 80-90
मरि (Peas) र्ू ल आने से पूवण (Pri-flowering) 45-50 7-8
र्ली भिते समय (Pod filling) 80-90
मसूि (Lentil) र्ू ल आने के पूवण (Flowering) 60-70 6-7
र्ली भिते समय (Pod filling) 80-90

िाई-सिसों र्ू ल आने के समय (Flowering) 30-35 6-7


(Mustard) र्ली आने पि (Pod formation) 55-60
दाना भिते समय (Grain filling) 80-100
कु सुम 5-6 पत्ती अवस्िा (5-6 leaf) 30-35 6-7
(Safflower) पुष्पावस्िा (Flowering) 80-90

दाना भिते समय (Grain filling) 110-115

अलसी र्ू ल आते समय (Flowering) 50-60 5-6


(Linseed) दाना भिते समय (Grain filling) 80-100

गन्ना पौध संस्िापन अवस्िा (Establishment) प्रिम ससंचाई 4 8-10


(Sugarcane) कल्ले र्ू रते समय (Tillering) सप्ताह बाद, बाद
अतधकतम बढ़वाि के समय (Grand growth) में 15-20 कदन
के अंतिाल पि
आलू (Potato) भूस्तिी बनना (Stolan) 8-12 कदन के 4-5
कन्द बनना (Tuber formation) अंतिाल पि
कन्द के बढ़ते समय (Tuber development)
3.बालू तमतश्रत छोरी क्यािीतकनीक (Soil cum Sand Mini Plot Technique)
इस तवतध में खेत की तैयािी किने के पिात दो या तीन स्िानों पि (खेत के क्षेत्रर्ल के अनुसाि) खेत के
बीचों बीच (1 मीरि लम्बा, चौड़ा तिा गहिा अिाणत 1 घन मीरि आयतन) गड्ढा खोदकि उसमें खुदी हुई
तमररी के आयतन के बिाबि अिाणत 50 % बालू (sand) भि दी जाती है। इस प्रकाि गड्ढे वाले स्िान पि भी
अन्य खेत के समान ही र्सल की बुवाई कि दी जाती है। इन गड्ढों में लगी र्सल या पौधों में जब सूखने
(wilting) के प्रिम लक्षर् कदखाई देने लगें तब सम्पूर्ण खेत में ससंचाई कि देना चातहए। गड्ढों की तमट्टी में बालू
तमली होने के कािर् इनकी जल धािर् क्षमता घर जाती है, इसतलए इनमें लगाई गई र्सल या पौधे सामान्य

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र्सल से पहले ही सूखने लगती है, जबकक सामान्य खेत में र्सल सूखने के लक्षर् नहीं कदखाई देते है। गड्ढे में
लगी र्सल भूतम में जल की कमीं पहले व्यि कि देते है।
5.पौध घनत्व (Plant population)
र्सल क्षेत्र के चुतनन्दा स्िान (1 x 1 मीरि क्षेत्र) पि ईष्टतम पौध संख्या से 1.5 से दोगुना अतधक पौध
संख्या उगाकि ससंचाई का तनधाणिर् ककया जा सकता है। प्रतत इकाई अतधक पौध संख्या होने पि पौधों के सूखने
के लक्षर् मुख्य र्सल से पहले प्रगर होने लगते है। पौधे मुिझाने के लक्षर् प्रगर होते ही ससंचाई कि देना
चातहए।
6.आच्छादन तापमान(Canopy temperature)
पिाबैगनी िमाणमीरि (Infrared Thermometer) से आच्छादन तापक्रम मापकि ससंचाई का तनधाणिर्
ककया जा सकता है। इस िमाणमीरि की सहायता से आच्छादन तापक्रम (Tc) तिा हवा का तापक्रम (Ta) मापा
जाता है। यह उपकिर् Tc औि Ta का मान दशाणता है औि Tc-Ta का मान ससंचाई तनधाणिर् का संकेत देता है।
जब वाष्पोत्सजणन सामान्य होता है जो की आच्छादन की िण्डक के कािर् होता है, तो आच्छादन का तापक्रम
हवा के तापक्रम से कम होता है। इसमें Tc-Ta का ऋर्ात्मक मान यह दशाणता है की नमीं पयाणप्त है। यकद Tc-
Ta का मान शून्य या धनात्मक होता है तो वह ससंचाई की आवश्यकता का संकेत है। स्ट्रेस तडग्री कदवस
(stress-degree days-SDD) भी ससंचाई तनधाणिर् के तलए उपयोगी होता है, क्योंकक यह वृतद् तडग्री कदवस
(growth degree days) के समान होता है।
SDD=  (Tc-Ta)
आच्छादन का तापक्रम दोपहि में मापा जाता है, जब हवा का तापक्रम अतधकतम होता है। जब SDD की
संचयी संख्या 10 से बढ़कि 15 हो जाये (दो ससंचाइयों के बीच) तब उपज कम हो जाती है।
C. ससंचाई तनधाणिर् की जलवायुतवक तवतधयाँ (Climatological Approaches)
वाष्प-वाष्पीकिर् (ET) मुख्यतिः मौसम पि आधारित होता है। मौसम सम्बन्धी आंकड़ों के आधाि
वाष्प-वाष्पीकिर् का आंकलन ककया जाता है औि जब वाष्प-वाष्पीकिर् या इसका कोई अंश एक तवशेर् स्ति
पि पहुँच जाता है तब ससंचाई का सूचीकिर् (scheduling) ककया जाता है। जलवायु के आधाि पि ससंचाई
तनधाणिर् तनम्न तवतधयों से ककया जा सकता है:
1.लाइसीमीरि
लाइसीमीरि की सहायता से तनयंतत्रत तस्िततयों में मृदा स्तम्भ से वाष्पो-वाष्पीकिर् (ET), वर्ाण तिा
पौधों द्वािा जल अवशोर्र् (water uptake) का मापन ककया जाता है। लाइसीमीरि एक प्रकाि के बड़े-बड़े
बतणन (pan) होते है (तचत्र-25), तजनमें र्सल उगाई जाती है औि जल की प्रातप्त औि खचण मापा जाता है। इसे
खेत में गाढ़ा जाता है, तजससे मृदा से हो िहे जल के अन्तिः स्त्रवर् (parcoletion) औि प्रत्यक्ष रूप से ET को
मापा जाता है। लाइसीमीरि स्िातपत किने के तलए चाि आवश्यकताये होती है।

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(i)भूतम की गहिाई में अतधक बड़े लाइसीमीरि लगाना चातहए ताकक र्सल के जड़ तवकास में अविोध उत्पन्न न
हो तिा सीमा प्रभाव (border effect) में भी कमीं हो सकें । छोरी र्सल की तलए न्यूनतम 1 घनमीरि के
लाइसीमीरि होना चातहए।
(ii)लाइसीमीरि के अन्दि एवं बाहि की भौततक दशाओं में अनुकूलता होना चातहए।
(iii) यकद लाइसीमीरि के अन्दि की र्सल अपेक्षाकृ त छोरी, लम्बी घनी या तबिल है अिवा इसे र्सल तवहीन
क्षेत्र में लगाया गया है, तब इसका मान पूिे खेत के तलए सहीं नहीं माना जा सकता है।
(iv)प्रत्येक लाइसीमीरि का एक तनतित
क्षेत्र होता है तजसके चािों ओि उसी र्सल,
नमीं मात्रा तिा अन्य दशाओं को बनाया
िखा जाता है ताकक clothesline प्रभाव
कम हो।
लाइसीमीरि दो प्रकाि के होते है: तौलन
(Weighing) तिा गैि-तोलन (Non –
Weighing Type)
(i)तौलन लाइसीमीरि (Weighing
Type): ये लाइसीमीरि वाष्पो-वाष्पीकिर्
(ET) का अतधक शुद् मान बताते है।
इसकी सहायता से कम अवतध का ET, ET
का diurnal pattern औि वाष्पोत्सजणन
तिा मृदा नमीं तनाव (soil moisture
tension) के बीच का सम्बन्ध भी ज्ञात ककया जा सकता है।यह लाइसीमीरि जल संतुलन (water balance)
यातन कदया गया पानी, मृदा द्वािा ग्रहर् ककया गया पानी तिा वाष्पन, वाष्पोत्सजणन व अन्तिः स्त्रवर्
(percolation) द्वािा हुई जल हातन को भी मापता है। इसतलए इस प्रकाि के लाइसीमीरि को प्रत्यक्ष रूप से
वाष्पो-वाष्पीकिर् मापने के तलए प्रयुि ककया जाता है।
(ii)गैि-तोलन लाइसीमीरि (Non-Weighing Type): इसे जलतनकास (drainage) लाइसीमीरि भी कहते
है। यह ET=(वर्ाण+ससंचाई जल)- तनछालन (leaching) के तसद्ांत पि कायण किता है। इस लाइसीमीरि का
प्रयोग के वल PET दि मापने में ककया जाता है। वर्ाण नहीं होने पि प्रत्येक चौिे या पांचवे कदन ससंतचत किना
होता है।
2. वाष्पनमापी (Evaporimeter)
यह एक सिल व सस्ता उपकिर् है, तजसका उपयोग र्सलों में ससंचाई के समय के तनधाणिर् के तलए
ककया जाता है। इस पद्तत को अपनाने के तलए प्रत्येक र्सल में जल की मांग का अध्ययन किना पड़ता है।
र्सलों के तलए ईष्टतम मृदा-आद्रणता प्रवृतत ज्ञात कि लेने के पिात र्सल की वृतद् की तवतभन्न अवस्िाओं में
र्सल द्वािा उपभुि जल (consumptive use of water) तिा उस अवतध में हुए वाष्पन के मध्य पािस्परिक

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संबंध ज्ञात किना पड़ेगा। उपभुि जल के अंतगणत वाष्पीकिर्-वाष्पोत्सजणन (ET) के अततरिि पौधों की
उपापचयी सकक्रयता (metabolic activities) में प्रयुि जल भी सम्मतलत होता है।चूंकक उपापचयी सकक्रयता
में व्यय जल की मात्रा अपेक्षाकृ त बहुत ही कम होती है तिा इसका सहीं अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता है.
इसतलए व्यवहारिक उपयोग में उपभुि जल तिा वाष्पीकिर्-वाष्पोत्सजणन के मान बिाबि ही माने जाते है।
भाित में प्रायिः दो प्रकाि के वाष्पमापी (Evaporimeter) प्रयोग ककये जाते है: (i) USWB Class A Pan
Evaporimeter तिा (ii) Sunken Screen Evaporimeter
(i)सयुि
ं िाज्य खुली सतह वाष्पमापी (USWB Class A Pan Evaporimeter)
यह सबसे अतधक प्रचतलत वाष्पमापी है। इसे US Pan भी कहते है। यह लोहे की 22 गेज चादि का
120 से.मी. व्यास तिा 25 से.मी.
गहिाई का एक वतणननुमा गोलाकाि पात्र
(Pan) होता है। इसे हवादाि लकड़ी के
बनाये गये फ्े म के ऊपि िखा जाता है
तजससे इसके नीचे हवा का सुचारू रूप
से आवागमन होता िहे। इस यंत्र के
स्िातपत ककये जाने वाले स्िान पि सौि
ककिर्ों तिा हवा के आवागमन में ककसी
भी प्रकाि का व्यवधान नहीं होना
चातहए। इस यंत्र की ऊपिी सतह को
जाली (screen mesh) से ढँक देते है
तजससे इसके अन्दि भिे हुए जल को
तचतड़यों तिा अन्य पशुओं से सुितक्षत
िखा जा सके । इस बतणन में जल भि कदया
जाता है। प्रततकदन एक तनतित समय पि
इसमें कम हुई पानी की मात्रा को नोर
किते िहते है। प्रततकदन इस बतणन (pan) से कम हुई पानी की मात्रा का तात्पयण यह होता है की उि ततति को
वाष्पीकिर् द्वािा उतने पानी का ह्रास हुआ है। इस यंत्र में वातष्पत हुए पानी की मात्रा स्वतन्त्र रूप से खेत में
हुए वाष्पीकिर् की मात्रा से सदैव कम िहती है। इसतलए इस वाष्पीकृ त जल की मात्रा का 0.7 से गुर्ा किने
पि शुद् वाष्पीकिर् की गर्ना हो जाती है। तवस्तृत जल क्षेत्र से वाष्पन = पेन की िीसडंग x पेन coefficient
पेन coefficient= लगभग 0.7
ET= पेन वाष्पन x र्सल गुर्ांक (crop factor)
(ii)संकन स्क्रीन इवापोिीमीरि: वाष्पो-वाष्पोत्सजणन (ET) मापने के यंत्र को औि अतधक सिल बनाने के तलए
भाितीय कृ तर् अनुसन्धान संस्िान (IARI) के दास्ताने औि शमाण (1968) ने यह इवापोिीमीरि तवकतसत
ककया। इन्होंने USWB Class A Pan Evaporimeter के वाष्पीकिर् एवं वाष्प-वाष्पोत्सजणन (E0/ET) के

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अनुपात 1.20 से 1.50 की तुलना में संकन स्क्रीन वाष्पमापी की सहायता से E0/ET का अनुपात 0.95 से
1.05 तक ही प्राप्त ककया, तजसे अतधक उपयुि माना जाता है. इन्होने छोरे वाष्प्मापी (1 ककग्रा. क्षमता) की
अनुसंशा की है ।
संकन स्क्रीन इवापोमीरि से CU ज्ञात किने का सूत्र है:
ET=Pan Evaporation x Crop factor
(iii)आई डब्ल्यू सी.पी.ई (IW:CPE) अनुपात
पौधों द्वािा वाष्पीकिर् मुख्य रूप से उस क्षेत्र के जलवायु की परितस्ितत पि तनभणि किता है। ज्ञात है
कक पौधे से जल वाष्पीकिर् की अवधािर् ही पौधों में ससंचाई तनधाणिर् का मूल आधाि बना। इस तवतध में
ससंचाई जल की ज्ञात मात्रा खेत में प्रवातहत की जाती है जब संचयी पैन वाष्पीकिर् की मात्रा 4 से 6 से.मी. हो
जाती है। IW/CPE (IW-ससंचाई की गहिाई तिा CPE िाला क्षेत्र से वाष्पीकिर् द्वािा कु ल ह्रास ककये जल
की गहिाई). यह अनुपात तवतभन्न र्सलों के साि-साि तवतभन्न जलवायुतवक क्षेत्रों के तलए भी अलग-अलग
होता है। यह अनुपात 0.5 से 1.0 तक िहता है जो उगाई गई र्सल के प्रकाि तिा क्षेत्र की वाताविर्ीय
परितस्िततयों पि तनभणि किता है। प्रत्येक ससंचाई में जल की मात्रा 4-6 से.मी. तक िहती है. प्रायिः ससंचाई समय
तनधाणिर् 5 से.मी. गहिी ससंचाई को आधाि मान कि ककया जाता है। सामान्यता गेंहू की र्सल से अच्छी उपज
प्राप्त किने के तलए 0.85 अनुपात पि ससंचाई किनी चातहए. इसका आशय यह है की जब संचयी पैन
वाष्पीकिर् 5.88 से.मी. पहुंचे तो 5 से.मी. ससंचाई जल र्सल को उपलब्ध किाना चातहए।
Depth of water to be irrigated
IW/CPE =----------------------------------------------------------------
Cumulative pan evaporation for a particular period

उदाहिर् के तलए 10 कदन तक पैन वाष्पीकिर् की मात्रा 10 तममी.प्रतत कदन है जो कक 100 तममी. संतचत पैन
वाष्पीकिर् (CPE) के बिाबि है औि ससंचाई की गहिाई 50 तममी. है. तो IW/CPE होगा
50 mm (depth)
IW/CPE = ------------------ = 0.5
100 mm (CPE)
इसी प्रकाि अनेक अनुपातों का प्रयोग कि ससंचाई तनधाणरित की जा सकती है.
उदाहिर्: 0.5,0.6 व 0.75 अनुपात पि 5 से.मी. ससंचाई पानी पि संतचत वाष्पीकिर् की गर्ना कीतजये.
IW/CPE=0.5
5 (depth)

0.5 अनुपात पि CPE = ------------------ = 10 cm


0.5 (CPE)
अिाणत 5 से.मी. ससंचाई तब दी जाती है जब संतचत पैन वाष्पीकिर् =10 से.मी.
5 (depth)

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0.6 अनुपात पि CPE = ------------------ = 8.33 cm


0.6 (CPE)
5 (depth)

0.75 अनुपात पि CPE = ------------------ = 6.66 cm


0.75 (CPE)

वाष्पीकिर् का वाष्प-वाष्पोत्सजणन से सीधा सम्बन्ध होता है, अतिः इस तवतध से र्सल की आवश्यकता
के अनुसाि ससंचाई का तनधाणिर् ककया जा सकता है पिन्तु पैन वाष्पीकिर् एवं ससंचाई जल मापने की सुतवधा
नहीं होने पि ककसान इस तवतध का उपयोग नहीं कि सकते है। प्रमुख र्सलों में ससंचाई तनधाणिर् हेतु
(IW/CPE) सािर्ी-20 में कदए गए है.
सािर्ी-20 : तवतभन्न र्सलों में ससंचाई की गहिाई तिा वाष्पोत्सजणन अनुपात (IW/CPE)
र्सल IW/CPE र्सलें IW/CPE
गेंहू 0.8-1.50 (0.9) धान 1.0-1.4(1.2)
सिसों 0.6-1.55 (0.7) मक्का 0.75-1.2 (0.9)
चना 0.4-0.8 (0.6) ज्वाि 0.8-1.25 (0.8)
मसूि 0.4-0.8 (0.6) बाजिा 0.4-0.9 (0.6)
मरि 0.6-0.8 (0.6) सोयाबीन 0.4-0.8 (0.6)
अलसी 0.5-0.8 (0.6) ततल 0.5-0.9 (0.6)
सूयणमुखी 0.8-1.05 (0.9) मूंगर्ली 0.4-0.9 (0.6)
आलू 1.0-2.0 (1.20) अिहि 0.3-0.9 (0.6)
गन्ना 0.6-0.9 (0.8) कपास 0.7-0.9 (0.75
नोर: कोष्ठक में दशाणई गई मात्रा औसतमान है.

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Lecture-14
ससंचाई की तवतधयाँ-सतही एवं अधो-सतही ससंचाई
(Methods of Irrigation-Surface and Sub-surface methods)
__________________________________________________________

जल स्त्रोत से पानी तनकालकि खेतों तक पहुँचाने की कक्रया ससंचाई प्रर्ाली(Systems of irrigation)


कहलाती है। कृ तत्रम ससंचाई के तलए नदी, नालों तिा नहिों से पानी तनकाल कि खेतों की ससंचाई की जाती है।
कृ तत्रम ससंचाई हेतु प्रमुख तीन प्रर्ातलयाँ उपयोग में लायी जाती है:
(i)प्रवाह ससंचाई (Flow irrigation): इस ससंचाई प्रर्ाली में पानी को ऊपि उिाना नहीं पड़ता बतल्क
गुरुत्वाकर्णर् से बहता हुआ खेतों तक पहुँच जाता है। प्रवाह ससंचाई के तलए नहि की तली को अनुलम्ब ढाल दी
जाती है।
(ii)उद्वहन ससंचाई (Lift irrigation): जब जल का स्त्रोत खेतों के तल से नीचे होता है तो इस तस्ितत में पानी
हस्त चातलत या यांतत्रक तवतध सी पानी को ऊपि उिाकि खेतों की ससंचाई की जाती है।
(iii) तछडकाव ससंचाई (sprinkler irrigation): इस प्रकाि की ससंचाई को कृ तत्रम वर्ाण भी कहते है तजससे
पानी र्सल पि बूद
ं ों के रूप में तगिाया जाता है। इसमें ससंचाई खेतों में पाइप तबछाकि की जाती है औि पाइप
में नोज़ल लगा होने के कािर् पानी प्रेशि दाब से र्ु वािे के रूप में तनकलता है, तजससे र्सल की ससंचाई की
जाती है।
ससंचाई तवतधयाँ (Methods of irrigation)
ककसी क्षेत्र तिा र्सल तवशेर् में पानी देने के ढंग को ससंचाई की तवतध कहते है। ससंचाई के तलए सबसे
उपयुि तवतध वह मानी जाती है तजसमें जल का समान तवतिर् होने के साि ही कम से कम पानी से अतधक
क्षेत्र सींचा जा सके ।
ससंचाई तवतधयों का चयन (Selection of methods of irrigation)
ससंचाई की तवतध का मृदा की गुर्वत्ता औि र्सल उपज से घतनष्ट सम्बन्ध होता है । उतचत तवतध से
र्सल की ससंचाई नहीं किने पि र्सल की बढ़वाि औि उपज पि प्रततकू ल प्रभाव पड़ने के साि-साि भूतम के
भौततक एवं िासायतनक गुर्ों पि भी कु प्रभाव पड़ने की सम्भावना िहती है । ऐसा मुख्य रूप से जल के असमान
तवतिर् के कािर् होता है । अतिः भूतम की ढाल, र्सल के प्रकाि, बुवाई की तवतध, पानी की मात्रा एवं
उपलब्धता आकद के आधाि पि ससंचाई तवतध का चयन किना चातहए । ससंचाई की तवतधयों का चयन किते
समय तनम्नतलतखत बातों पि ध्यान देना आवश्यक होता है ।
 भू-आकृ तत (topography) तवशेर् कि ढाल के अंश (degree) को ध्यान में िखकि ससंचाई तवतध का
चयन किना चातहए.समतल भूतमयों में बाढ़कृ त तवतध या बेतसन तवतध से ससंचाई की जा सकती है।
लम्बे एक समान ढालों पि कूं ड (furrow) तवतध या बिहे-क्यािी (border strip) तवतध से ससंचाई किना
उतचत होता है।

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 र्सल की ककस्म, जड़ों की गहिाई तिा र्सल की जल-मांग के अनुसाि ससंचाई की तवतध का चुनाव
किना चातहए।
 मृदा की जल प्रवेश दि (infiltration rate) के तहसाब से ससंचाई तवतध का चुनाव किना चातहए।
 ससंचाई का स्त्रोत एवं जल के प्रवाह के अनुसाि ससंचाई तवतध का चयन किना चातहए । ससंचाई का
स्त्रोत छोरा होने पि बौछािी तवतध तिा स्त्रोत बढ़ा होने पि बाढ़कृ त तवतध प्रयोग में लाई जा सकती है.
 भूतम की ऊपिी सतह से हातनकािक लवर् ससंचाई द्वािा तनचली सतह में चले जाये तजससे पौधों पि
हातनकािक प्रभाव को कम ककया जा सके ।
 ससंचाई की चुनी गई तवतध से भू-परिष्किर् संबंधी कक्रयाओं में कोई अविोध न हो तिा खिपतवािों का
उतचत तनयंत्रर् हो जाये ।
 ससंचाई प्रर्ाली के अतभन्यास अिाणत मेंड़ें व नातलयां में कृ तर् योमय भूतम का कम से कम उपयोग हो ।
 ससंचाई में प्रयुि जल का कम से कम ह्मस हो तिा जल आसानी से सम्पूर्ण जड़-क्षेत्र तक पहु च
ं जाये ।
 ससंचाई तवतध ऐसी हो, तजसमें अत्यतधक वर्ाण या जल की उपतस्ितत में जल तनकास सम्भव हो सकें ।
ससंचाई की तवतधयों का वगीकिर् (Classification of Methods of Irrigation)
ससंचाई तवतधयों को
चाि प्रमुख वगों यिा सतही
या पृष्ठीय ससंचाई, अधो-
पृष्ठीय ससंचाई, र्ब्बािा
ससंचाई तिा रपक ससंचाई
में वगीकृ त ककया गया है.

A.सतही या पृष्ठीय
ससंचाई तवतध
(Surface Irrigation
method)
भाित में अतधकति
कृ तर् योमय क्षेत्रों में सतही या पृष्ठीय तवतध से ससंचाई होती है। इसमें प्रमुख रूप है नहिों से नातलयों द्वािा खेत में
पानी का तवतिर् ककया जाना तिा एक ककनािे से खेत में पानी र्ै लाया जाना है। भूतम की ऊपिी सतह पि
पानी देने को सतही ससंचाई कहते हैं। इस प्रर्ाली में खेत के उपयुि रूप से तैयाि न होने पि पानी का बहुत
नुकसान होता है। ऊंची-नीची तिा अतधक ढालू भूतमयों में यह तवतध नहीं अपनाई जा सकती है, क्योंकक इससे
मृदा अपिदन (soil erosion) का भय िहता है तिा समान रूप से ससंचाई नहीं की जा सकती है। भाित में
सतही ससंचाई की अनेकों तवतधयां प्रचतलत है, तजनमें से प्रमुख तवतधयों का तवविर् यहाँ प्रस्तुत हैं:
(I)असीतमत बाढ़कृ त या जल प्लावन तवतध (Free flooding)

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इस तवतध को तोड़ आप्लावन (wild flooding) के नाम से जाना जाता है। इस तवतध का प्रयोग किने
के तलए ससंचाई जल सस्ता हो, भूतम समतल हो तिा पानी का स्त्रोत बड़ा होना चातहए। इस तवतध में पानी
मुख्य ससंचाई नाली में छोड़ कदया
जाता है। यह तवतध मुख्यतिः धान पैदा
ककये जाने वाले तिा नहि से ससंचाई
ककये जाने वाले क्षेत्रों में अतधक
प्रचतलत है। इसमें खेत में बगैि मेड़
बनाये पानी भि कदया जाता है।
अतनयंतत्रत बाढ़कृ त तवतध से हातनयाँ
इस तवतध से खेत में पानी का
समान तवतिर् नहीं हो पाता है, कहीं
अतधक तो कहीं कम पानी लग पाता
है। इसमें जल उपयोग दक्षता बहुत
कम होती है। इस तवतध से ससंचाई
किने से मृदा अपिदन का भय िहता है। इसमें पानी का स्त्रोत बड़ा एवं खेत का समतल होना आवश्यक है।
पानी का असमान तवतिर् होने के कािर् 80% से अतधक पानी बिबाद होने की सम्भावना िहती है।
(II)तनयतन्त्रत बाढ़कृ त तवतध (Controlled Flooding)
इस तवतध में ससंचाई का जल मेंड़ो (bunds) आकद से तनयतन्त्रत कि कदया जाता है। इसे तनयंतत्रत
आप्लावन तवतध भी कहते है। इसमें जल स्िायी आपूर्तण नातलयों द्वािा प्रवातहत ककया जाता है। खेत में बनी
अस्िायी नातलयों से जल को तवतरित ककया जाता है। इस तवतध का प्रयोग उन स्िानों में ककया जाता है, जहां
खेत का आकि अतनयतमत होता है। अतनयतन्त्रत बाढ़कृ तत तवतध के अन्तगणत अनेक तवतधयां आती है, तजनमें से
प्रमुख तवतधयों का तवविर् अग्र-प्रस्तुत है:
1.सीमान्त पट्टी तवतध (Border Strip Method)

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ससंचाई की इस तवतध को बिहा, नकवाि औि क्यािी तवतध के नाम से भी जाना जाता है। इस तवतध (तचत्र-
29) में पूिे क्षेत्र या खेत को मेड़ो द्वािा कई परट्टयों में तवभातजत कि कदया जाता है। इन परट्टयों में ससंचाई की
कदशा में िोड़ा ढाल देते है ताकक पानी समान गहिाई में एक समान रूप से पूिे खेत में फ़ै ल सकें । हल्की तमरट्टयों
के तलए यह तवतध अतधक उपयुि नहीं होती है। इसमें तमट्टी की बनावर (Texture), जल धािा का प्रवाह, भूतम
के ढाल औि र्सल के आधाि
पि क्यारियों (परट्टयों) की
चौड़ाई 3 से 15 मीरि िखी जा
सकती है। परट्टयों की लम्बाई
िे तीली दोमर तमरट्टयों में 60 से
120 मीरि तिा तचकनी भािी
(clay loam) तमरट्टयों में 150
से 300 मीरि तक िखी जा
सकती है। इस तवतध को
सर्लता पूवणक अपनाने के तलए
यह आवश्यक है कक भूतम को
उपयुि क्रतमक ढाल (graded
slope) कदया जाए। अतिः खेत
की क्यारियों की लम्बाई ढाल की ओि िखी जाती है। हल्की िेतीली तमरट्टयों में ढाल 0.25 से 0.65 % तिा
भािी तमरट्टयों में 0.05 से 0.02 प्रततशत िखना चातहए। इस तवतध में ससंचाई की मुख्य नाली से परट्टयों के
ऊपिी तसिे से परट्टयों में पानी खोला जाता है। एक बाि में एक क्यािी में ससंचाई जल छोड़ा जाता है। परट्टयों
में खोला गया पानी तनचले तसिे (70% भाग) तक पहुँचने के पूवण ही बंद कि पानी का मुंह दूसिी क्यािी की ओि
मोड़ देना चातहए।पहली क्यािी का शेर् भाग बहाव के क्रम में स्वतिः भि जाता है। परट्टयों के ऊपिी तसिे से उस
दूिी को अविोधक तबन्दु (cut-off-point) कहते है, जहां पहुँचने पि मुख्य नाली से परट्टयों में खुला पानी बंद
कि कदया जाता है। यह दूिी पट्टी की लंबाई के प्रततशत के रूप में व्यि की जाती है। उदाहिर् के तलए, यकद
200 मीरि लम्बी पट्टी में बहता पानी पट्टी के ऊपिी तसिे से 150 मीरि दूि पहुँचने पि बंद ककया जाय तो
अविोधक तबन्दु 75 प्रततशत होगा। अतधक ढाल व् अतधक प्रवाह होने पि अविोधक तबन्दु का प्रततशत कम
िखा जाता है। यह तवतध पास-पास बोई गई र्सलों तिा सभी प्रकाि की मृदा सिं चनाओं के तलए उपयुि होती
है, पिन्तु अतधक या कम अन्तिःसिर् (infiltration) वाली भूतमयों के तलए यह तवतध अतधक उपयुि नहीं है.
सीमान्त या बिहा परट्टयाँ दो प्रकाि की होती है:
(a) सीधी बिहा पट्टी (Straight border): खेत में सामान्य ढाल के समान्ति जब बिहा परट्टयाँ बनायी जाती
है, तो उसे बिहा पट्टी कहते है। खेत को समतल सीधी बिहा पट्टीयां आसानी से बनाई जा सकती है।

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(b) समोच्च बिहा पट्टी (Contour border): जब खेत या क्षेत्र में ढलान अतधक होता है तिा खेत ऊबड़-खाबड़
हो, तजसे समतल किना करिन हो, तब बिहा परट्टयाँ समोच्च िे खा के समानांति बनाई जाती है. इसका िे खांकन
सीधी बिहा पट्टी की भाँती ककया जाता है।
सीमान्त पट्टी तवतध के लाभ (Advantages of Border Method)
 इस तवतध में मेड़ व नातलयां कम बनानी पड़ती है, अतिः ससंचाई किने पि श्रम पि लागत कम आती है।
 इस तवतध में मेंड़-नाली बनाने में भूतम का दुरूपयोग नहीं होता है।
 इस तवतध से एक आदमी अतधक क्षेत्रर्ल में ससंचाई कि सकता है।
 इस तवतध से सम्पूर्ण खेत में एक समान मात्रा में तिा गहिाई में पानी कदया जा सकता है तजससे जल
उपयोग दक्षता अतधक होती है।
 पानी तनकलने की सुतवधा होने पि इस तवतध में जल तनकास आसानी से होता है।
सीमान्त पट्टी तवतध की सीमाएं (Limitations)
 इस तवतध में भूतम समतलीकिर् की कक्रया अन्य तवतधयों की अपेक्षा अतधक किना पड़ती है।
 ससंचाई किने के तलए बड़ी ससंचाई नातलयों की आवश्यकता होती है।
2. िोक द्रोर्ी ससंचाई तवतध (Check Basin method)
ससंचाई की िोक द्रौर्ी तवतध (तचत्र-30) सबसे अतधक प्रयोग की जाने वाली तवतध है। इसे क्यािी
ससंचाई भी कहते है। यह तवतध अपेक्षाकृ त पास-पास लगाये जाने वाली र्सलों यिा गेंहू, जौ,चना, बाजिा,
सिसों, मूंगर्ली, मूंग, कपास आकद की ससंचाई के तलए उपयुि है। इस तवतध में पूिे खेत को छोरी-छोरी
वगाणकाि क्यारियों में तवभि कि
उनकी क्रतमक ससंचाई की जाती है,
ताकक खेत का सम्पूर्ण भाग समान
रूप से ससंतचत हो जाये औि कहीं
जल जमाव नहीं हो । प्रत्येक
क्यािी को हल्की मेंड़ो से घेि कदया
जाता है। ये मेंड़ें देशी हल या
रिज़ि से बनाकि कु दाल से
व्यवतस्ित कि लेते है। सामान्यतिः
एक नाली से आने वाली जल-धािा
से अगल-बगल की दो क्यारियों
की ससंचाई हो जाती है। क्यारियों
का आकाि जल के बहाव औि
तमररी की बनावर पि तनभणि
किता है। पानी के छोरे स्त्रोतों से
ससंचाई किने के तलए क्यारियों का आकाि छोरा िखा जाता है। तमट्टी में बालू का अंश ज्यादा होने पि

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क्यारियां अपेक्षाकृ त छोरी औि मररयाि भूतम में बड़ी होना चातहए। चिसे या िहर से गेंहू की ससंचाई किने के
तलए क्यारियों का आकाि 5 x 3 मीरि या इससे कम िखा जाता है। नलकू प या नाहि से ससंचाई की तस्ितत में
क्यारियों का आकाि 25 x 20 मीरि या इससे अतधक भी िखा जाता है। भूतम का ढलान 1.0 प्रततशत से
अतधक नहीं होना चातहए। भािी तमरट्टयों जहां अन्तिःसिर् (infiltration) की कक्रया धीमी हो, यह तवतध
उपयुि िहती है। समतल क्षेत्रों के तलए यह तवतध अतधक उपयुि होती है। ढलानयुि खेतों में समोच्च
(contour) क्यारियों को समोच्च िे खा के समान्ति बनाकि आड़ी मेंड़ो के द्वािा जोड़ कदया जाता है।
िोक द्रोर्ी तवतध के लाभ (Advantages of Check-Basin)
 क्यािी तवतध से ससंचाई देने से ससंचाई-दक्षता अतधक होती है औि समान रूप से ससंचाई होती है।
 यह तवतध अनाज व चािे वाली र्सलों के अततरिि सतब्जयों औि बाग़-बगीचों में ससंचाई के तलए
उपयुि है।
 इस तवतध से ससंचाई किने से जल उपयोग दक्षता बढ़ जाती है।
 इस तवतध का प्रयोग िे तीली पािगम्य मृदाओं में भी ककया जा सकता है।
िोक द्रोर्ी तवतध की सीमायें (Limitations of Check-Basin)
 इस तवतध में भूतम में क्यारियां औि नातलयाँ बनाने में श्रम पि लागत अतधक आती है।
 भूतम का बहुत बड़ा तहस्सा मेंडे व नातलयां बनाने में व्यिण हो जाता है।
 पूिे खेत में पानी की गहािी एक समान नहीं िहती तिा पानी का तवतिर् असमान होता है।
3.िाला तवतध (Basin Method of Irrigation)
यह तवतध बाग़-बगीचों की ससंचाई के तलए सवोत्तम है। इस तवतध में चौिस भूतमयों में क्यारियां
वगाणकाि रूप में बनाई जाती है तिा ढालदाि भूतम में समोच्च के समान्ति मेंड़ें तिा आड़ी मेंड़ों (cross
ridges) द्वािा क्यारियां बनाई जाती है।
सामान्यतौि पि एक िाले या क्यािी में
एक पेड़ होता है, पिन्तु पास-पास लगाये
जाने वाले पेड़ एक से अतधक भी हो
सकते है। मेंड़ की ऊंचाई 30-35 से.मी.
तिा तली की चौड़ाई 0.6 से 1 मीरि
तक िखना चातहए. इन क्यारियों में कदए
जाने वाले पानी की गहिाई 10-15
से.मी. िखी जाती है। कतािों के मध्य
बनाई गई नातलयों से प्रत्येक िाले तक
ससंचाई जल पहुँचाया जाता है। यह
तवतध भािी गिन की भूतम, तालाबों की

तलहरी में तस्ितत भूतम में, बागों के पौधों को पानी देने के तलए प्रयोग की जाती है । यह तवतध समतल व

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अतधक संिन्र भूतमयों, सीधी बढ़ने वाली र्सलों जैसे के ला, अमरूद, आम आकद वृक्षों के तलए उपयोगी िहती
है।
िाला तवतध से तमलती-जुलती ससंचाई की एक अन्य तवतध भी प्रचलन में है, तजसे अंगूिी (Ring) तवतध
कहते है। इसका प्रयोग दूि-दूि लगाये गए र्ल या अन्य वृक्षों की ससंचाई के तलए ककया जाता है। इसमें प्रत्येक
पेड़ के चािों तिर् गोलाकाि क्यारियां बनाई जाती है। इन क्यारियों का आकाि पौधों की उम्र के तहसाब से
िखा जाता है। ससंचाई के घेिों को ससंचाई नातलयों से जोड़ कदया जाता है। इस तवतध में जल उपयोग दक्षता
अतधक आती है।
िाला तवतध के लाभ
इस तवतध में पूिे खेत में ससंचाई देने की आवश्यकता नहीं होती है, तजससे जल की बचत होती है।
इस तवतध में जल उपयोग दक्षता बढ़ जाती है।
िाला तवतध के लाभ
1. क्यारियां औि नातलयाँ बनाने में समय औि श्रतमक अतधक लगते है।
2. सुतनतित ससंचाई क्षेत्रों के तलए ही उपयोगी है।
4.कूं ड ससंचाई तवतध (Furrow Method)
यह एक अत्यंत उत्तम, कािगि एवं सहजता से अपनाई जाने वाली ससंचाई तवतध है। इस तवतध (तचत्र-
32) में दूि-दूि लगाई जाने र्सलों के दो पंतियों के बीच में कूं ड बनाकि ससंचाई की जाती है। कूं ड (furrow) में
जल प्रवाह की कक्रया खुली नाली के प्रवाह की तिह घरते हुए वेग की तिह होती है। अन्य तवतधयों की तुलना में
इस तवतध में पानी बगल में रिसकि
र्सल की जड़ों में पहुँचता है, तजससे
जल का बेहति उपयोग होता है। यह
तवतध उन सभी र्सलों के तलए
उपयोगी है, जो कतािों में बोई जाती
है औि तजनमें बुवाई के समय अिवा
बाद में मेंड़ (ridges) बनानी पड़ती
है। कूं ड ससंचाई तवतध 0.3 प्रततशत से
अतधक ढाल वाली भूतम के तलए
उपयुि नहीं है, क्योंकक अतधक ढाल
पि इस तवतध को अपनाने में मृदा
अपिदन (soil erosion) का भय
िहता है। इस तवतध में कूं ड से कूं ड की
दूिी र्सल की ककस्म, भूतम का प्रकाि
तिा भूतम की अंतिःस्यंदन की दि पि

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तनभणि किती है। बलुई भूतम में मररयाि (clay) की अपेक्षा कूं ड की दूिी कम िखी जाती है, क्योंकक बलुई भूतम में
पानी तीर ग गतत से रिसकि नीचे चला जाता है तजससे पूिी मेड़ पानी नहीं सोख पाती है। यह तवतध
मक्का,गन्ना.कपास, आलू, शकिकं द औि अन्य दूि-दूि बोई जाने वाली सतब्जयों के तलए उपयोगी है। इसे मुख्य
दो उप-तवतधयों में बांरा गया है।
(i)गहिी कूं ड या नाली तवतध (Deep furrow Method)
इस तवतध में कूं ड की लम्बाई भूतम के प्रकाि, ढाल व जल प्रवाह पि तनभणि किती है। सामान्यतौि पि
बलुई दोमर भूतम के तलए कूं ड की लम्बाई 200 मीरि तक औि मररयाि भूतम के तलए 800 मीरि तक िखी
जाती है। र्सल के प्रत्येक पंति के तलए एक कूं ड बनाया जाता है। कु छ सब्जी वाली र्सलों के तलए दो पंतियों
के मध्य एक कूं ड बनाया जा सकता है। ससंचाई की मुख्य नाली से पानी प्रत्येक कूं ड में खोला जाता है. मुख्य
नाली से कूं ड में पानी ले जाने के तलए साइर्न नली (siphon tube) का भी प्रयोग ककया जा सकता है। ऐसी
तस्ितत में प्रत्येक कूं ड में पानी ले जाने के तलए ससंचाई की मुख्य नाली को बाि-बाि कारने की आवश्यकता नहीं
पड़ती है। आज कल मुख्य नाली के स्िान पि ससंचाई के तलए प्लातस्रक के पाइप का प्रयोग ककया जाने लगा है।
यह तवतध गन्ना औि आलू र्सल की ससंचाई के तलए उपयोगी है। इन र्सलों को लगाने या तनदाई-गुड़ाई किते
समय पंतियों के बीच मेंड़ (Ridge) एवं नाली (Furrow) बन जाते है, तजसमें नातलयों का उपयोग ससंचाई के
तलए ककया जाता है। अतधक ढालू भूतमयों के तलए यह तवतध उपयुि नहीं होती है।
पानी की बचत के तलए आजकल एक कूं ड छोड़कि(alternate furrow) ससंचाई की जा िही है, तजसमें पानी
के क्षैततज बहाव के कािर् प्रत्येक कूं ड की ससंचाई हो जाती है, तजससे 25-35 % जल की बचत हो जाती है।
कूं ड ससंचाई तवतध में जल की बचत होती है। पोर्क तत्वों तनछालन (Leaching) नहीं होता औि ससंचाई के
बाद ऊपिी पित पि कड़ी पित (Hard crust) नहीं बनती है, तजसे अन्य तवतधयों से ससंचाई किने के बाद
तनकाई-गुड़ाई कि तोडना पड़ता है।
(ii) समोच्च कूं ड तवतध (Contour Furrow irrigation)
इस प्रकाि की ससंचाई प्रवाह की कदशा ढाल के लम्बवत होती है। इसमें कूं ड समोच्च िे खा के समान्ति
बनाये जाते है। इस तवतध का प्रयोग 5 % से कम ढाल वाली भूतमयों में सर्लता पूवणक ककया जाता है। अतधक
ढाल वाली बागों में जहां जुताई भूतम की जुताई नहीं होती है, वहां 20 प्रततशत तक के ढाल में भी समोच्च कूं ड
ससंचाई तवतध अपनाई जा सकती है। ससंचाई की मुख्य नाली से पानी प्रत्येक कूं ड में खोला जाता है। मुख्य नाली
के तलए क्षेत्र की भू-आकृ तत समान होना चातहए। भािी काली तमरट्टयों में जहां दिािे पड़ती है, यह तवतध उपयुि
नहीं िहती है। ढलवां भूतम (slopy lands) पि उगाई जाने वाली घासों के तलए यह तवतध उपयुि िहती है।
कूं ड तवतध के लाभ (Advantages of Furrow Irrigation)
 ससंचाई किने में कम श्रम की आवश्यकता होती है।
 िोक द्रोर्ी ससंचाई की अपेक्षा नातलयों में कम क्षेत्रर्ल तघिता है।
 कूं डों को ढाल के लम्बवत बनाकि ढालू भूतमयों में भी ससंचाई की जा सकती है।
 ससंचाई पानी का नुकसान कम होता है, अतिः ससंचाई दक्षता अतधक प्राप्त होती है।
कूं ड तवतध की सीमाएं (Limitations of Furrow Irrigation)

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 यह तवतध लवर्ीय एवं क्षािीय भूतम के तलए उपयुि नहीं है, क्योंकक इस तवतध से ससंचाई किने पि
कूं डों के ऊपिी तहस्से में लवर् का जमाव हो जाता है।
 मेंड़ व नाली बनाने में श्रम पि भािी लागत आती है।
 अतधक ढलान वाली भूतमयों की ससंचाई किने के तलए उपयुि नहीं है।
सतही ससंचाई की नवीन तवतधयाँ
1. पट्टीदाि तवतध(Strip method): ससंचाई की यह नवीनतम तवकतसत ककस्म है जो पानी की अत्यंत कमी
वाले इलाकों के तलए बनाई गई है। इस तवतध में दो प्रकाि की कम औि अतधक जल मांग वाली र्सले जैसे गेहूँ
के साि जौ, सिसों या चने को एकांति परट्टयों में लगाया जाता है तिा गेहूँ की परट्टयों में ही ससंचाई की जाती
है। इस प्रकाि नमीं कु छ तो गेहूँ की पट्टी की ओि चली जाती है। तिा दूसिे वगण के पौधे की जड़ें नमीं की खोज में
नम स्िल की ओि बढ़ती िहती है, तजसमें दोनों र्सलों को लाभ होता िहता है।
2. सजण ससंचाई (Surge irrigation): इस तवतध में गुरुत्व-जल बहाव के तसद्ांत पि भू-सतह पि जल रुक-
रूककि कदया जाता है। इसके तलए एक तनतित समय के अंतिाल पि चालू-बंद (on and off) प्रर्ाली लगायी
जाती है। इससे अन्तिःस्त्रवर् (infiltration) एक समान होता है तिा deep percolation भी कम होता है
अिाणत ससंचाई दक्षता बढती है।
B.अधो-सतह ससंचाई (Sub-surface irrigation)
इस तवतध में पानी भूतम की सतह के नीचे सीधे पौधों के जड़ क्षेत्र में पहुँचाया जाता है। इसमें तमट्टी की
संिचना तिा जड़ तंत्र की गहिाई के आधाि पि कु छ गहिाई तक कृ तत्रम जल तल (water table) बनाया जाता
है. इस तवतध में पौधों को पानी कै तपलिी कक्रया से पहुँचता है। इस तवतध में भूतम की सतह के नीचे राइलदाि
नाली अिवा मोल िेन के माध्यम से जाता है। नाली की गहिाई 30 से.मी. से एक मीरि तिा राइल 15-30
की दूिी पि िखी जाती है। इस तवतध के तलए अनुकूल परितस्िततयां जैसे उच्च जल स्ति, पौधों के जड़ क्षेत्र में
पािगम्य मृदा का होना, भूतम का समतल होना, समुतचत ढाल व् ससंचाई वाला जल उत्तम गुर्वत्ता वाला होना
चातहए। इन सब बातों को ध्यान में िखा जाये औि मृदा की सतह पि पानी न भिे तो यह तवतध आर्िणक रूप से
उपयुि औि उपज में वृतद् किने में सहायक हो सकती है। भाित में इस तवतध का प्रयोग कश्मीि औि के िल के
कु छ भागों में होता है।
अधो-सतह ससंचाई के लाभ
 वाष्पीकिर् द्वािा जल हातन न होने के कािर् जल की मात्रा कम लगती है।
 ससंचाई जल शीघ्र ही पौध जड़ क्षेत्र में उपलब्ध हो जाता है।
 र्सल उगाने के तलए अतधक भूतम उपलब्ध िहती है, क्योंकक सतह पि मेंड़-नाली बनाने की जरूित
नहीं होती है।
अधो-सतह ससंचाई हातनयाँ
 इस तवतध से ससंचाई हेतु भूतमगत पाइप/राइल तबछाने में अतधक खचण आता है।
 जल रिसाव के कािर् मृदा में क्षािीयता बढ़ने की आशंका िहती है।

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मरका ससंचाई तवतध (Pitcher irrigation Method)


अधो-सतही पद्तत के अंतगणत आने वाली घड़ा यातन मरका ससंचाई (pitcher irrigation) बहुत पुिानी
पद्तत (तचत्र-33) है। इस तकनीक से पानी की कमीं वाले क्षेत्रों में ससंचाई हेतु 10-20 लीरि क्षमता वाले तमट्टी
के घड़ों का प्रयोग ककया जाता है । खेत में घड़ों की तस्ितत एवं संख्या तनधाणरित कि ली जाती है। लतावाली
र्सलों के तलए घड़ों की दूिी अतधक औि सीधी खड़ी बढ़ने वाली र्सलों के तलए यह दूिी कम िखी जाती है।
सबसे पहले भूतम में 60 से.मी. गहिा एवं 90
से.मी. व्यास अिवा मरके के आकाि के अनुसाि
गड्डा खोदा जाता है। मरके की तली (पेंदी) में
छोरा सा छेद कि उसमें सूती कपड़े की बत्ती
(wick) डाल देना चातहए, ताकक पानी धीिे -
धीिे रिसकि पौधों को उपलब्ध होता िहें। इस
गड्डे में तमट्टी का मरका/घड़ा (pitcher) िखकि
उसे तमट्टी में इस प्रकाि से दबाते है की
आवश्यकतानुसाि पानी भिने के तलए घड़े का
मुंह खुला िहे। इस घड़े में आवश्यकतानुसाि
पानी भिते िहते है। भूतम में मरके के चािों तिर्
बािीक तमट्टी तबछा देना चातहए। भािी काली
मृदाओं में बालू (िे त) तबछाना आवश्यक है।
पानी भिने के बाद घड़े का मुंह (lid) अच्छी
प्रकाि से कपड़े से बंद कि देना चातहए, ताकक
वाष्पोत्सजणन (evaporation) से जल का नुकसान न हो । घड़े में पानी भिने के बाद इसके चािों ओि एक
समान दूिी पि पौध िोपर् या बीज की बुवाई कि दें। घड़े की पेंदी में लगी बत्ती से पानी धीमी गतत से रिसता
है तजसके कािर् मृदा में नमीं आ जाती है, तजसका उपयोग पौधों की जड़ों द्वािा कि तलया जाता है।इस तवतध में
जल की कार्ी बचत होती है। यह तवतध िे तीली तमरट्टयों, िोड़े क्षेत्र तिा दूि-दूि बोई जाने वाली सतब्जयों जैसे
लौकी, तोिई,तिबूज, खिबूजा, ककड़ी आकद के तलए बेहद उपयोगी है । वर्ाण आतश्रत क्षेत्रों में वृक्षािोपर् के
तलए मरका ससंचाई बहुत उपयोगी िहती है । एक हेक्रेयि जमीन में ससंचाई के तलए लगभग 2500 घड़ों की
आवश्यकता होती है । सीतमत मात्रा में जल की उपलब्धता वाले क्षेत्रों के छोरे ककसानों के तलए यह तवतध बहुत
उपयोगी तसद् हो िही है। यह एक साधािर् तकनीक है तजसकी आर्िणक व्यवहायणता घड़ों के उपयोग किने की
अवतध पि तनभणि किती है।
मरका ससंचाई पद्तत के लाभ
 इस पद्तत से पौध जड़ क्षेत्र तक सीधे पानी उपलब्ध होता है, तजसे नमीं बिकिाि िहती है।
 इस तवतध से वाष्पीकिर् से जल की हातन नहीं होती है, अतिः 70% जल की बचत होती है।
 सीमान्त औि छोरे ककसानों के तलए यह पद्तत लाभकािी है।

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 सतब्जयों औि र्ल वृक्षों के तलए मरका ससंचाई र्ायदेमंद है।


 ढलान वाले क्षेत्रों में इस पद्तत से आसानी से ससंचाई की जा सकती है।
 सूखाग्रस्त अिवा पानी की कमीं वाले क्षेत्रों में ससंचाई के तलए यह अत्यंत उपयोगी है।

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Lecture-15
सूक्ष्म ससंचाई प्रर्ातलयां-र्ब्बािा एवं रपक ससंचाई प्रर्ाली
(Micro irrigation systems – Sprinkler irrigation and Drip irrigation)
_______________________________________________________
हमािे देश में अतधकांशतिः खेतों में ससंचाई के तलये कच्ची नातलयों द्वािा पानी लाया जाता है, तजससे

तकिीबन 30-40 र्ीसदी पानी रिसाव औि वाष्पोत्सजणन की वज़ह से बेकाि चला जाता है। सूक्ष्म ससंचाई

प्रर्ाली एक उन्नत पद्तत है, तजसके प्रयोग से ससंचाई के दौिान पानी की कार्ी बचत की जा सकती है। सूक्ष्म
ससंचाई प्रर्ाली दूि-दूि उगाई जाने वाली र्सलों एवं बागवानी र्सलों में उवणिक व पानी देने की एक सवोत्तम
तवतध है। सूक्ष्म ससंचाई प्रर्ाली (Micro-irrigation) में कम पानी से अतधक क्षेत्र की ससंचाई की जाती है। इस
प्रर्ाली में पानी को पाइपलाइन के माध्यम से स्रोत से खेत तक पूवण-तनधाणरित मात्रा में पहुँचाया जाता है। इससे
पानी की बबाणदी को तो िोका ही जाता है, साि ही यह जल उपयोग दक्षता बढ़ाने में भी सहायक है। सूक्ष्म

ससंचाई प्रर्ाली अपनाकि 30-40 र्ीसदी पानी की बचत होती है। इस प्रर्ाली से ससंचाई किने पि र्सलों की

गुर्वत्ता औि उत्पादकता में भी सुधाि होता है। भाित सिकाि भी ‘प्रतत बूँद अतधक र्सल (more crop per

drop)’ के उद्ेश्य से प्रधान मंत्री ससंचाई तमशन के अंतगणत सूक्ष्म ससंचाई पद्ततयों को बढ़ावा दे िही है। सूक्ष्म
ससंचाई प्रर्ाली में प्रमुखतिः दो तवतधयाँ- र्व्वािा ससंचाई व रपक ससंचाई अतधक प्रचतलत हैं।
1.र्व्वािा तवतध (Sprinkler Method)
र्ब्बािा ससंचाई को बौछािी तवतध तिा ओवि हेड ससंचाई भी कहते है। इस तवतध के द्वािा हवा में
र्ब्बािे के रूप में पानी का तछडकाव ककया जाता है, जो मृदा की सतह या र्सल पि कृ तत्रम वर्ाण (artificial
rain) के रूप में तगिता है। इस तवतध (तचत्र-34) में पौधों की दो पंतियों के बीच में प्लातस्रक के पाइप भूतम के
ऊपि तबछा कदए जाते है। सहायक पाइप एक दूसिे के समान्ति िखते हुए आवश्यकतानुसाि दूिी पि नोजल
लगा कदए जाते है। नोजल घूमने वाले या तस्िि हो सकते है। इन पाइप लाइनों का सम्बन्ध मुख्य पाइप लाइन से
व मुख्य पाइप लाइन का सम्बन्ध जल स्त्रोत से कि देते है। जल को तवद्युत या डीजल पम्प की सहायता से दबाब
के द्वािा पाइप लाइन में भेजा जाता है। सहायक पाइप में लगे सस्प्रंकलि हेड (नोजल) से पानी र्ु हाि के रूप में
तनकलता है। सस्प्रंकलि तिा शाखा लाइनों की आपसी दूिी लगभग 12 मीरि िखी जाती है। इस तवतध में जल
का दबाव 2.5 ककग्रा. प्रतत वगण से.मी. होता है तिा इस प्रर्ाली में जल का तडस्चाजण 1000 लीरि प्रतत घंरे प्रतत
नोजल होता है। पांच नोजल वाले सेर से एक घंरे में लगभग 4000 से 5000 लीरि जल तछड़का जा सकता है।
इस तवतध से एक हेक्रेयि क्षेत्र की ससंचाई लगभग 8-10 घंरे में की जा सकती है। इससे तछडकाव धीिे -धीिे
ककया जाता है तजससे कहीं पि भी पानी जमा न होने पाये। यह एक बहुप्रचतलत औि लोकतप्रय तवतध है तजसके

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द्वािा पानी की लगभग 30-70 प्रततशत तक बचत की जा सकती है। र्व्वािा ससंचाई सूखाग्रस्त, बलुई मृदा,
ऊँची-नीची ज़मीन तिा पानी की कमी वाले क्षेत्रों के तलये बेहद उपयोगी है। इस तवतध से गेंहू, सिसों, कपास,
मूंगर्ली के अलावा तवतभन्न प्रकाि की सब्जी र्सलों में ससंचाई कि अतधकतम उत्पादन औि आर्िणक लाभ प्राप्त
ककया जा सकता है. इसके अलावा घास के मैदानों औि पाकों में भी र्व्वािा तवतध द्वािा ससंचाई की जा सकती
है।
र्ब्बािा ससंचाई तवतध के तलए अनुकूल दशायें (Conditions Favouring Sprinkler Irrigation)
1.सतही तवतध में ससंचाई जल के उत्तम तवतिर् के तलए सिं र मृदा (porus soil) होना आवश्यक होता है.
र्ब्बािा ससंचाई सभी प्रकाि की भूतमयों के तलए उपयुि है।
2. ऊंची-नीची भूतमयाँ, जहां समतलीकिर् करिन हो, वहां र्ब्बािा तवतध से ससंचाई की जा सकती है।
3.अतधक ढालू औि भूतम कराव संभातवत भूतमयों के तलए र्ब्बािा ससंचाई उपयोगी है।
4.जहां ससंचाई नातलयाँ औि मेंड़ें बनाने के तलए श्रतमकों की उपलब्धतता न हो, र्ब्बािा तवतध से ससंचाई
र्ायदेमंद होती है।
र्ब्बािा ससंचाई प्रर्ाली के प्रकाि
र्ब्बािा या तछडकाव ससंचाई प्रर्ाली मुख्यतिः तीन प्रकाि की होती है:
1.स्िायी प्रर्ाली (Permanent):
स्िायी प्रर्ाली के अंतगणत ससंचाई
पाइप भूतम में स्िायी रूप से इस प्रकाि
से गाड़े या स्रैंड पि िखे जाते है, ताकक
भू-परिष्किर् कक्रयाओं के संपादन में
कोई बाधा उत्पन्न न हो। इस पद्तत का
प्रयोग बाग़-बगीचों में ज्यादा होता है।
इस प्रर्ाली में स्िापना व्यय अतधक
आता है। इसमें स्िायी पाइप गाड़ने के
समय वायु वेग की कदशा का ध्यान
िखना होता है, अन्यिा उलरे वायु वेग
के कािर् पानी के समान तवतिर् में
समस्या हो सकती है।
2.अद्ण-स्िायी (Semi-permanent): इस प्रर्ाली में मुख्य पाइप लाइन तो भूतम में गाड़ कद जाती है, पिन्तु
सहायक पाइप (Laterals) ससंचाई के समय जोड़ कदए जाते है।इस पद्तत से कम मेहनत में अतधक क्षेत्र में
ससंचाई कि अतधकतम उत्पादन तलया जा सकता है। आलू, सब्जी औि अन्य नकदी र्सलों में इस प्रर्ाली से
ससंचाई कि अतधकतम लाभ प्राप्त ककया जा सकता है।

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3.सुबाह्य (Portable System): इस प्रर्ाली में मुख्य पाइप लाइन औि सहायक पाइप लाइन दोनों एक स्िान
से दुसिे स्िान स्िानांतरित की जा सकती है। इसमें स्िापना खचण कम आता है पिन्तु श्रम तिा िखिखाव अतधक
आता है।
र्ब्बािा पद्तत के अंग (Component of Sprinkler System)
र्ब्बािा या बौछािी ससंचाई पद्तत में मुख्य रूप से पसम्पंग सेर, मुख्य पाइप, सहायक पाइप, पाश्वण पाइप तिा
नोजल होते है, तजनका तवविर् प्रस्तुत है:
(a)पसम्पंग सेर (Pumping set): पसम्पंग सेर जल का अद्वहन कि ताकत के साि पाइप लाइन में भेजने का कायण
किता है। इस प्रर्ाली से ससंचाई के तलए सेंट्रीफ्यूगल (centrifugal) अिवा रबाणइन पम्प प्रयोग ककये जाते है.
कम गहिाई (6 मीरि) से पानी उिाने के तलए सेंट्रीफ्यूगल पम्प तिा अतधक गहिाई (6 मीरि से अतधक) से
पानी उिाने के तलए रबाणइन पम्प का प्रयोग ककया जा सकता है। इन पम्प को चलाने के तलए तबजली की मोरि
अिवा डीजल पम्प का प्रयोग ककया जा सकता है। यह पम्प भूतम से पानी खींच कि पाइप की सहायता से
नोजल में उच्च दबाव में पहुंचाता है, जहां से पानी बौछाि के रूप में तनकल कि र्सल पि ससंचाई किता है।
(b)मुख्य पाइप लाइन (Main Pipe Line): यह लाइन पसम्पंग सेर से जल तवतरित किती है। यह लाइन
स्िायी या परिवतणनशील हो सकती है।
(c)सहायक पाइप लाइन (Lateral Pipeline): ये अस्िाई होती है। इनका उपयोग तवशेर् स्िलों तक जल
पहुंचाने के तलए ककया जाता है, जैसे उद्यान, पौधशाला आकद।
(d)संयोजक (Cuplers): इनका उपयोग मुख्य पाइप लाइन तिा सहायक पाइप लाइनों औि नोजल को जोड़ने
में होता है। इन्हें ससंचाई के समय खोला अिवा जोड़ा जा सकता है।
(e)तछडकाव यंत्र (Sprinkler Head): यह बौछािी ससंचाई का एक महत्वपूर्ण भाग होता है। यह भाग नोजल
होता है जो घूर्णनी अिाणत घूमने वाले (rotatory) तिा अघूर्णनी अिाणत स्िायी (non-rotatory) दोनों प्रकाि के
होते है। सस्प्रंकलि में एक से तीन मुखदाि नोजल (nozzle) लगे होते है। इससे जल ताकत के साि र्ु हािे के रूप
में तनकलकि दूि तक र्ै लता है ।
िे न-गन ससंचाई (Rain-gun irrigation)
िे न-गन, र्ब्बािा ससंचाई तकनीक का ही एक प्रततरुप है तजसमें 20 से 60 मीरि की दूिी तक प्राकृ ततक
बिसात की तिह ससंचाई होती है। इसमें कम पानी से अतधक क्षेत्रर्ल को सींचा जा सकता है। सभी र्सलों के
तलए यह माइक्रो सस्प्रंकलि सेर बहुत उपयोगी है, इससे ढाई मीरि के व्यास में बिसात जैसी बूंदों से ससंचाई

होती है। तवतभन्न र्सलों की ससंचाई हेतु 20, 40 औि 60 मीरि प्रसाि क्षमता वाले िे नगन उपलब्ध है। इसे एक

स्रैंड के सहािे 45 से 180 तडग्री के कोर् पि खेत की ससंचाई वाले भाग में खड़ा कि कदया जाता है। इसका
दूसिा तसिा पंपसेर की पानी आपूर्तण किने वाली पाइप से जुड़ा होता है। िे नगन में पानी का दबाव बढ़ते ही
इसके ऊपिी भाग में लगे र्ौव्वािे से सौ र्ीर या अतधक की परितध में चािों ओि वर्ाण की बूंदों की तिह र्सल
की ससंचाई होती है। ससंचाई के अन्य साधनों की अपेक्षा इसके माध्यम से आधे से भी कम समय एवं कम पानी से

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खेत की ससंचाई संभव है। इस प्रर्ाली में समय कम लगने से डीजल औि तबजली की भी बचत होती है। तीन इंच
के एक सबमणतसबल पंप से तीन िेनगन एक साि चलाई जा सकती है।
र्व्वािा ससंचाई के लाभ (Advantages of Sprinkler irrigation)
 इस तवतध में कम समय, श्रम तिा जल में अतधक क्षेत्र की ससंचाई की जा सकती है तिा इसके प्रयोग से
30 से 50 प्रततशत जल की बचत होती है
 सतही ससंचाई तवतधयों की तुलना में जल प्रबंधन आसानी से ककया जा सकता है। इससे मृदा पि जल का
समान तवतिर् होता है।
 जल की कम आवश्यकता होती है औि खेत में जल समान रूप से तवतरित होता है।
 यह तवतध सभी प्रकाि की मृदाओं औि समस्याग्रस्त भूतमयों जैसे लवर्ीय, िेतीली, करावग्रस्त एवं
ऊंची-नीची भूतमयों के तलए उपयुि है।
 र्सल उत्पादन के तलये अतधक क्षेत्र उपलब्ध होता है क्योंकक इस तवतध में नातलयाँ बनाने की
आवश्यकता नहीं पड़ती है ।
 जल का उपयोग तमतव्ययता से होता है। इस तवतध से 80-82 प्रततशत ससंचाई दक्षता प्राप्त होती है,
जबकक सतही तवतधयों से 30-50 % तमल पाती है ।
 सतही तवतधयों की अपेक्षा र्ब्बािा तवतध से ससंचाई किने पि उपज में 40-50 % की बढ़त होती है ।
 ज़मीन को समतल किने तिा खेत में नातलयाँ व मेंड़ बनाने की आवश्यकता नहीं होती है।
 ऊँची-नीची औि ढलान वाले स्िानों में भी इससे आसानी से ससंचाई की जा सकती है।
 र्सल के तलए आवश्यक पोर्क तत्व घुलनशील उवणिकों के रूप में प्रदान किने के अलावा कीर-िोगों से
सुिक्षा हेतु कीर-नाशक एवं र्र्ूं दनाशक दवाइयों का तछड़काव बेहति ढंग से ककया जा सकता है।
 ससंचाई की यह तवतध भािी मृदाओं को छोड़कि सभी प्रकाि की मृदाओं तवशेर्कि बलुई भूतम के तलए
अतधक उपयोगी है।
 र्सलों की अतधक गमी-धूप से सुिक्षा के साि-साि शीत ऋतु में पाला आकद से सुिक्षा होती है।
 इस तवतध से ससंचाई किने से भूतम क्षिर् (soil erosion) की समस्या नहीं िहती है।
र्ब्बािा ससंचाई की सीमायें (Limitations of Sprinkler irrigation)
 र्ब्बािा ससंचाई प्रर्ाली की स्िापना में प्राितम्भक व्यय अतधक आता है औि प्रर्ाली की मिम्मत पि
तनिं ति व्यय किना पड़ता है।
 इस तवतध से ससंचाई किने के तलए स्वच्छ जल की आवश्यकता होती है।
 तीर ग वायु वेग की तस्ितत में जल का असमान तवतिर् होता है।
2.रपक ससंचाई तवतध (Drip or Trickle Irrigation)
कृ तर् के तलए जल एक महत्वपूर्ण औि आवश्यक तनवेश है। खेतों औि बाग़-बगीचों में सतही तवतध से
ससंचाई किने से पानी का लगभग 60 प्रततशत तहस्सा ककसी-न-ककसी रूप में बिबाद हो जात है है। तनिंति कम
हो िही वर्ाण की मात्रा औि तगिते भू-जल स्ति को देखते हुए कृ तर् में पानी की बबाणदी िोकना आवश्यक है।
इसके तलए सीतमत जल में भिपूि उत्पादन लेने के तलए बूँद-बूँद ससंचाई (Drip irrigation) एक कािगि

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तकनीक तसद् हो िही है। इसिाइल के इंजीतनयि तसम्चा ब्लास (Simcha Blass) ने 1959 में तिप ससंचाई का
तवकास ककया है। इसे रट्रकल ससंचाई पद्तत भी कहते है। इस ससंचाई पद्तत (तचत्र-35) के अंतगणत, परिवहन
नतलकाओं द्वािा नोजल औि तिपि की सहायता से जल को पौधे के जड़ क्षेत्र (Root zone) में भूतम की सतह या
उसके नीचे बूँद-बूँद कि कदया जाता है, इसतलए इसे तिप-ससंचाई कहा जाता है। ससंचाई की यह तवतध
लवर्ीय, िे तीली मृदाओं, र्ल, र्ू ल, सतब्जयों के अलावा नकदी र्सलों की ससंचाई के तलए अत्यन्त उपयोगी
औि लाभदायक तसद् हो िही है। यह तवतध जल की कमीं वाले क्षेत्रों के तलए विदान है । इस तवतध से ससंचाई
किने पि ससंचाई दक्षता (irrigation efficiency) के साि लगभग 90 प्रततशत औि 40-80 र्ीसदी पानी की

बचत होती है। साि ही र्सल उत्पादन में वृतद्, खिपतवािों में कमी औि र्सल उत्पाद की गुर्वत्ता में भी
सुधाि होता है। इस तवतध में ससंचाई के साि उवणिकों एवं अन्य पौध सिं क्षर् दवाइयों का इस्तेमाल भी ककया जा
सकता है।
रपक ससंचाई प्रर्ाली के
प्रकाि
लैरिल के आधाि पि रपक
ससंचाई प्रर्ाली को दो भागों
में वगीकृ त ककया गया है:
1.उप-सतही रपक ससंचाई:
इस तवतध में लैरिल पाइपों
को पौधों की जड़ क्षेत्र में
जमीन की सतह के नीचे
तबछाते है।
2.सतही रपक ससंचाई
प्रर्ाली: इसमें लैरिल पाइपों
को भूतम पि तबछाते है औि
तिपिों को लैरिल पाइप से
जोड़ कदया जाता है।
रपक ससंचाई प्रर्ाली
रपक ससंचाई प्रर्ाली र्सलों में पानी के मुख्य स्त्रोत से पौधों की जड़ों तक कु छ तवतभन्न प्रकाि, आकाि
एवं क्षमता वाले प्लातस्रक के पाइपों की सहायता से पूिे खेत या बगीचे में जाल सा तबछाकि कु छ अन्य
उपकिर् जैसे तिपि, इतमरि, स्क्रीन कफ़ल्रि, बालू छन्नक (कफ़ल्रि), गेर वाल्व, वेंचुिी आकद लगाकि बूँद-बूँद
पानी उपलब्ध किाए जाने की पद्तत को ही रपक (Drip irrigation) प्रर्ाली के नाम से जाना जाता है।इसमें
जल कम मात्रा में, कम दि से तिा लम्बी अवतध तक कदया जाता है।
रपक ससंचाई के घरक (Components of Drip System)

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1.मुख्य नली (Main Pipe Line): मुख्य पाइप लाइन जो पी.वी.सी. से बना होता है। जमीन से सामान्यतिः60
से.मी. की गहिाई में िहता है। इसका कायण पानी के मुख्य स्त्रोत से प्रक्षेत्र तक लाने का होता है। इस नली का
व्यास 25 से 75 तममी. का हो सकता है।
2.उप-मुख्य नली (Sub Pipe Line) : इसमें तवतभन्न नातलयों का क्षेत्र के अनुसाि तवतिर् ककया जाता है.यह
पी.वी.सी. या एच.डी.पी.ई.से बना होता है, मुख्य पाइप लाइन की तिह ही 60 सेमी. की गहिाई में िहता है।
उपमुख्य पाइप का मुख्य कायण मुख्य पाइप से पानी लेकि लैरिल पाइप को पानी पहुंचाना होता है।
3.पाश्वण (Laterals): इससे उत्सजणक जुड़े हुए िहते है, उप-मुख्य पाइप से पतले काले प्लातस्रक के पाइप पौधों
की कतािों के साि-साि डाले जाते है तजन्हें लैरिल पाइप कहा जाता है।इनका आकाि 8-20 तममी.
(सामान्यतया 15 तममी) होता है। कम घनत्व पोलीतिन पाइप का उपयोग लैरिल के रूप में ककया जाता है।
लैरिल के अंततम तसिे को स्रापि द्वािा बंद कि कदया जाता है।
4.उत्सजणक (Drippers/Emmitters): ये पौधे के जड़ क्षेत्र (root zone) में पानी देने के साधन होते है। यह
पॉली-प्रोपीलीन प्लातस्रक से बने होते है तजसको लैरिल पाइप से जोड़ कदया जाता है। इसके माध्यम से पौधे
की जड़ में सीधे पानी पहुँच जाता है । ससंचाई हेतु तवतभन्न प्रकाि के तिपसण का प्रयोग ककया जाता है।
5. छतन्नयाँ (Filters): छन्नक, तिप ससंचाई प्रर्ाली का एक अतत आवश्यक घरक है। कफ़ल्रि का मुख्य कायण जल
स्त्रोत से आने वाले पानी को मेन पाइप लाइन में भेजने से पूवण साफ़ किना होता है।छन्ने के रूप में ग्रेवल कफ़ल्रि
या स्क्रीन कफ़ल्रि का उपयोग ककया जाता है।
6.बाई पास यूतनर: यकद जलस्त्रोत से आवश्यकता से अतधक जल प्राप्त हो िहा है तो बाई पास इकाई के माध्यम
से अवशेर् जल का अन्यन्त्र प्रयोग ककया जा सकता है।
7.फ्लश वाल्व: इसका मुख्य कायण मुख्य औि उप-मुख्य पाइपों में जल के साि आकि जमीं गंदगी को साफ़ किना
होता है।
8.उवणिक (तमश्रर्) इकाई (Fertilizer unit): इस इकाई के द्वािा जल के साि-साि उवणिकों को भी सीधे पौधे
की जड़ के पास तक पहुँचाया जाता है।
9.संग्रहर् रैंक: जल को हल्के दबाव के साि तवतिर् किने के तलए उतचत आकाि की रंकी की आवश्यकता होती
है। सामान्यतया ससंतचत ककये जाने वाले क्षेत्र से रंकी 2 से 3 मीरि ऊंची होनी चातहए।
9.पम्प औि मोरि ऊजाण सतहत : जल स्त्रोत से जल उिाने के तलए तबजली अिवा डीजल से चलने वाले मोरि
औि पम्प का प्रयोग ककया जाता है। पम्प का आकाि ससंतचत ककये जाने वाले क्षेत्र पि तनभणि किता है।एक
हेक्रेयि क्षेत्रर्ल के तलए 1.5 से 2 हॉसण पॉवि का पम्प उतचत िहता है।
तिप यूतनर का िखिखाव
1.कर्ल्रिों की िबड़, बाल्व औि तवतभन्न कर्टरंमस की जांच तनयतमत रूप से किते िहना चातहए. यकद उनमें
ककसी भी प्रकाि का रिसाव हो तो उसकों तुिंत िीक किें ।
2.उपमुख्य पाइप में दबाव 1 ककग्रा.प्रतत वगण से.मी. होना चातहए।

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रपक तवतध के लाभ (Advantages of Drip irrigation)


 इस पद्तत से ससंचाई किने में 40-60 प्रततशत जल की बचत होती है तिा 90-95 प्रततशत ससंचाई
दक्षता प्राप्त होती है, क्योंकक इसमें जल वाह (runoff), रिसना तिा वाष्पीकिर् आकद कािर्ों से जल
का अपव्यय नहीं होता है ।
 इस तवतध द्वािा उत्पाद गुर्वत्ता के साि-साि र्सल की उपज में 30-50 प्रततशत की वृतद् होती है।
 यह तवतध जल की कमीं वाले क्षेत्रों, ऊबड़-खाबड़, िे तीले क्षेत्रों के तलए र्सलों की ससंचाई किने के तलए
बहुत उपयोगी है ।
 इस प्रर्ाली से ससंचाई किने पि 50-60 प्रततशत तक समय औि श्रम की बचत होती है। तसन्न्चाई हेतु
खेत में क्यािी या मेंड़ बनाने की आवश्यकता नहीं होती है।
 रपक तवतध से ससंचाई के साि-साि उवणिक, कीरनाशी दवाओं, िोगनाशक दवाओं तिा पादप वृतद्
तनयामकों का प्रयोग आसानी से ककया जा सकता है ।
 र्सलों के तलए आवश्यक पोर्क तत्वों को घोलकि सीधे जड़ क्षेत्र में पहुंचा कदया जाता है तजससे
उवणिक उपयोग क्षमता बढ़ जाती है ।
 इस पद्तत में के वल पौधों की जड़ों के आस-पास की भूतम को ही नम िखा जाता है, तजससे खिपतवाि
प्रकोप नहीं होता है, अतिः खिपतवाि तनयंत्रर् का खचाण बचता है ।
 इस तवतध से ससंचाई किने से पौधों का मूल क्षेत्र (root zone) ही गीला िहता है। अतिः दो पंतियों के
मध्य मृदा शुष्क तिा िोस िहने से सस्य कायण आसानी से सम्पाकदत ककये जा सकते है ।
 जल्दी-जल्दी ससंचाई किने के कािर् जड़ क्षेत्र में अतधक नमीं िहती है तजससे लवर्ों की सांद्रता
अपेक्षाकृ त कम िहती है।
 यह सभी प्रकाि की मृदाओं के तलये उपयोगी है, क्योंकक पानी को मृदा के प्रकाि के अनुसाि तनयोतजत
ककया जा सकता है।
 भू-क्षिर् की संभावना नहीं होती है तिा मृदा में नमीं की कमीं भी नहीं िहती है, तजसका पौधों की
वृतद् औि तवकास पि अनुकूल प्रभाव पड़ता है।
रपक ससंचाई की सीमायें (Limitations of Drip irrigation)
 प्राितम्भक स्िापना व्यय (establishment cost) अतधक आता है तिा प्रर्ाली के िखिखाव व
मिम्मत (repairing and maintenance) पि तनिंति व्यय किना पड़ता है।
 इस तवतध से ससंचाई किने के तलए स्वच्छ जल की आवश्यकता होती है।
 यह तवतध ऊंची-नीची (unduleting) तिा अतधक ढलान वाली भूतमयों के तलए उपयुि नहीं है।
 तिप प्रर्ाली की देख िे ख में तवशेर् कु शलता की आवश्यकता होती है अतिः इसके सुचारू संचालन
हेतु तकनीकी ज्ञान आवश्यक है।

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सािर्ी-21: रपक ससंचाई एवं सतही ससंचाई प्रर्ाली में अंति


कािक रपक ससंचाई सतही तवतध से ससंचाई
जल की बचत 70 प्रततशत तक जल की बचत ससंचाई का ससंचाई के जल का बड़ा तहस्सा
जल सतह पि बहकि औि जमीन में मूलक्षेत्र वाष्र्न, रिसाव औि जमीन में ज्यादा गहिाई
से नीचे नहीं जाता है। तक जाकि नष्ट होता है।

जल के उपयोग 80 से 90 प्रततशत तक 30-50 प्रततशत, क्योंकक अतधकाँश ससंचाई


की दक्षता
जल र्सल तक पहुँचने में औि खेत में तवतिर्
में बबाणद हो जाता है।

श्रम की बचत तिप तंत्र को लगभग प्रततकदन शुरू औि बन्द इसमें प्रतत ससंचाई तिप से ज्यादा श्रम की
किने के तलये श्रम की बहुत कम आवश्यकता जरूित होती है।
होती है।

खिपतवाि की तमट्टी का कम तहस्सा नम होता है, इसतलये खिपतवाि अतधक होते हैं।
समस्या खेत में खिपतवाि भी कम होते हैं।

खिाब मृदाओं सभी प्रकाि की मृदाओं के तलये उपयुि है । खिाब मृदाओं में सतही तवतध से
में उपयुिता ससंचाई किना सम्भव नहीं है।

उवणिक उपयोग तनक्षालन औि अपवाह न होने के कािर् पोर्क तत्व तनक्षालन औि बहाव में नष्ट हो
की दक्षता पोर्क तत्व नष्ट नहीं होते हैं, इसतलये उवणिक जाते हैं, इसतलये उनके उपयोग की दक्षता
उपयोग दक्षता बढ़ जाती है। तनम्न होती है।

भूक्षिर् तमट्टी की सतह का आंतशक तहस्सा (जड़ जल की धािा ज्यादा बड़ी होती है, इसतलये
क्षेत्र) ही गीला होता है, इससे भूक्षिर् नहीं भूक्षिर् की अतधक सम्भावना होती है।
होता है।

पैदावाि में पौधों की वृतद् अतधक होती है, तजससे उपज जल तवतिर् असमान एवं ससंचाइयों में
बढ़ोत्तिी अतधक अन्तिाल से मृदा में उत्पन्न जल तनाव
में 50-60 प्रततशत तक बढ़त हो जाती है।
के कािर् पैदावाि में कमी होती है।

र्सल में कीर- पौधों के आस-पास वायुमण्डल में नमी कम र्सल में कीर-िोग प्रकोप की सम्भावना
िोग प्रकोप की िहती है, इसतलये र्सल में कीर-िोग प्रकोप अतधक होती है।
समस्या की सम्भावना कम िहती है।

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उवणिीकिर् (Fertigation)
उवणिीकिर् अिाणत र्र्रणगेशन दो शब्दों र्र्रणलाइज़ि अिाणत् उवणिक औि इर्िण गेशन अिाणत् ससंचाई से
तमलकि बना है। रपक ससंचाई प्रर्ाली के द्वािा जल के साि-साि जल में घुलनशील अिवा द्रव उवणिकों
(liquid fertilizer) को पौधों तक पहुँचाना र्र्रणगेशन कहलाता है। इसमें पोर्क तत्वों को जल उत्सजणक (तिपि)
के िीक नीचे वाले भाग में प्रयोग ककया जाता है, जहां पि जड़ों की कक्रयातवतध के तन्द्रत िहती है । र्र्रणगेशन
ससंचाई एवं उवणिक देने की सवोत्तम तिा अत्याधुतनक तवतध है। उवणिकों को तिप ससंचाई प्रर्ाली में तवतभन्न
आवृततयों में (प्रततकदन, दो कदन में एक बाि या सप्ताह में एक बाि) कदया जा सकता है। यह आवृतत प्रर्ाली की
रूपिे खा, मृदा की ककस्म, र्सल की पोर्क तत्वों की आवश्यकता आकद कािकों पि तनभणि किती है।

उवणिीकिर् को र्सल एवं मृदा की आवश्यकताओं के अनुरूप उवणिक व जल का समुतचत स्ति बनाए
िखने के तलए आदशण तकनीक के रूप में जाना जाता है। इसमें उवणिकों को कम मात्रा में जल्दी-जल्दी औि कम
अन्तिाल पि पूवणतनयोतजत ससंचाई के साि दे सकते हैं, इससे पौधों को आवश्यकतानुसाि पोर्क तत्व तमल जाते
हैं औि मूल्यवान उवणिकों का तनच्छालन द्वािा अपव्यय भी नहीं होता है। सामान्यतिः उवणिीकिर् में तिल
घुलनशील उवणिकों का ही प्रयोग ककया जाता है पिन्तु कु छ दानेदाि औि शुष्क उवणिकों को भी इस तकनीक के
माध्यम कदया जा सकता है। र्र्रणगेशन के द्वािा शुष्क उवणिकों को देने से पूवण उनका जल में घोल बनाया जाता
है। उवणिकों के जल में घोलने की दि उनकी तवलेयता औि जल के तापमान पि तनभणि किती है। उवणिकों के घोल
को र्र्रणगेशन से पहले छान लेना चातहए। र्सलों के तलए आवश्यक पोर्क तत्वों में नाइट्रोजन, र्ॉस्र्ोिस,
पोराश तिा सूक्ष्म तत्वों के बहुत से स्त्रोत उपलब्ध है तजन्हें तिप ससंचाई प्रर्ाली के साि प्रयोग ककया जा सकता
है।
उवणिीकिर् से लाभ (Benefits of Fertigation)
 र्र्रणगेशन तकनीक जल एवं पोर्क तत्वों के तनयतमत प्रवाह को सुतनतित किता है तजससे पौधों की
वृतद् दि तिा गुर्वत्ता में वृतद् होती है।
 पोर्क तत्वों को र्सल की मांग के अनुसाि उतचत दि एवं सहीं समय पि दे सकते हैं।
 उवणिक-उपयोग की ककसी अन्य तवतध की तुलना में र्र्रणगश
े न सिल एवं अतधक सुतवधाजनक है तजससे
समय औि श्रम की बचत होती है।
 उवणिक-उपयोग की दक्षता बढ़ती है औि उवणिक की कम मात्रा में आवश्यकता होती है।
 इसमें जल औि उवणिक पौधों के मध्य न पहुंचकि सीधे उनकी जड़ों तक पहँचते हैं इसतलए पौधों के
मध्य खिपतवाि कम संख्या में उगते हैं।
 र्र्रणगेशन से भूतमगत जल का प्रदूर्र् नहीं होता है।
 र्सलों के पूिे वृतद् काल में उत्पादन को तबना कम ककए, उवणिक धीिे -धीिे कदए जा सकते हैं।

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Lecture-16
जल उपयोग दक्षता एवं ससंचाई दक्षता
(Water Use Efficiency and Irrigation efficiencies)

जल एक महत्पूर्ण, दुलणभ एवं बहुमूल्य िातष्ट्रय सम्पदा है। यह मानव जीवन की मूलभूत आवश्यकता है।
हमें कम पानी से अतधक उत्पादन लेने के तलए जल उपयोग क्षमता औि जल उत्पादकता को बढ़ाना होगा.
बदलते जलवायु परिवेश में आज न के वल उपलब्ध जल संसाधनों का तववेकपूर्ण उपयोग कि कृ तर् क्षेत्र में जल
की बबाणदी िोकना जरुिी है अतपतु सीतमत जल उपयोग में अतधकतम उत्पादन देने वाली तकनीकों को अपनाने
की आवश्यकता है । भाित में कु ल तनष्कातसत जल का 80 प्रततशत से अतधक भाग कृ तर् क्षेत्र में ससंचाई के तलए
प्रयोग होता है, मगि ससंचाई की गलत प्रर्ाली या तवतध से ससंचाई किने में जल की बहुत बबाणदी की जा िही है
तजसके कािर् हमािे देश में जल उत्पादकता या जल उपयोग दक्षता बहुत कम है। सही समय, सही मात्रा औि
सही तवतध से ससंचाई सुतनतित किने से उपलब्ध जल से अतधक क्षेत्र में ससंचाई कि उत्पादन को बढाया जा
सकता है, तजससे जल उपयोग दक्षता में भी आशातीत बढ़ोत्तिी की जा सकती है।
जल उपयोग दक्षता (Water Use Efficiency)
जल उपयोग दक्षता र्सल उत्पादन बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण घरक है। अतधक जल उपयोग दक्षता के
तलए उपयुि र्सल औि उन्नत प्रजाततयों के साि-साि ससंचाई के उपयुि तिीकों का उपयोग भी बेहद जरुिी
है। जल उपयोग दक्षता ककसी र्सल पद्तत द्वािा उपलब्ध जल को बायोमास या अनाज में बदलने की क्षमता
की माप है। साधािर् रूप में इसे जल की उस मात्रा के रूप में भी समझा जा सकता है, तजसका उपयोग र्सलों
द्वािा वास्ततवक रूप से ककया जाता है। मृदा से वाष्पीकृ त हुआ या अन्य माध्यमों से नष्ट हुआ जल इसमें शातमल
नहीं होता । जल उपयोग दक्षता का मुख्य उअद्ेश्य उपलब्ध जल का उतचत उपयोग किके अतधकतम उपज प्राप्त
किना है। जल उपयोग क्षमता कक.ग्रा. प्रतत हेक्रेयि तम.मी. या क्वं रल प्रतत हेक्रेयि से.मी. में मापी जाती है।
जल उपयोग दक्षता को दो प्रकाि से परिभातर्त ककया जा सकता है।
1.र्सल (पौधों) में चयापचय कक्रया के द्वािा जल उपयोग तिा जल हातन के अनुपात को जल उपयोग दक्षता
कहते है।
2. जल उपयोग दक्षता में वाष्पोत्सजणन दि का उपयोग किके जैव भाि में वृतद् के अनुपात को जल उपयोग
दक्षता कहते है।
जल उपयोग दक्षता (Water Use Efficiency) को तनम्न सूत्र से भी व्यि ककया जाता है:
Y
WUE = --------
ET
WUE = जल उपयोग दक्षता
Y = र्सल की आर्िणक उपज (Marketable yield of crop,Kg/ha.)
ET = वाष्प-वाष्पोत्सजणन या जल मांग

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जल उपयोग दक्षता को दो प्रकाि से व्यि ककया जा सकता है:


(a) र्सल जल उपयोग दक्षता (Crop Water Use Efficiency): यह र्सल उपज की मात्रा तिा वाष्प-
वाष्पोत्सजणन द्वािा उड़ाई गई जल की मात्रा का अनुपात होती है।
Y
CWUE = -------
ET
where,
CWUE = र्सल जल उपयोग दक्षता
Y = र्सल उपज
ET = वाष्प-वाष्पोत्सजणन

जल उपभोमय प्रयोग क्षमता (consumptive water use efficiency) र्सल की उपज औि र्सल वृतद् के
तलए प्रयुि जल + मृदा सतह से वाष्पन + र्सल से वाष्पोत्सर्जणत जल की मात्रा अिवा उपभोमय-उपभोग जल
का अनुपात है. इसे सूत्र से इस प्रकाि से व्यि किते है।
Y
CWUE = ---------------------
G+E+T
where,
(G + E + T) = उपभोमय-उपभोग (CU) अिाणत ET= CU, चूंकक, र्सल वृतद् के तलए पानी का उपयोग
न्यूनतम है। अतिः
Y
CWUE = ------
CU
र्सल उपयोग दक्षता को kg/ha/mm or kg/ha/cm में व्यि किते है।

(b) क्षेत्र जल उपयोग दक्षता (Field Water Use Efficiency): यह र्सल उपज की मात्रा तिा क्षेत्र में उपयोग
ककये गए कु ल जल की मात्रा का अनुपात है।
Y
FWUE = -----
WR
where,
FWUE = क्षेत्र जल उपयोग दक्षता

WR = जल मांग

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दूसिे शब्दों में क्षेत्र जल उपयोग दक्षता, र्सल उपज तिा प्रक्षेत्र में उपयोग ककये गए कु ल जल की मात्रा तजसमें
र्सल वृतद् के तलए जल+ वाष्पन, वाष्पोत्सजणन औि अन्य हातन (percolation) आकद सम्मतलत है, का
अनुपात है।
Y
FWUE = ----------------------------
G + E + T + D G + E + T + D = WR
क्षेत्र जल उपयोग दक्षता को kg/ha/mm (or) kg/ha/cm में व्यि ककया जाता है।

जल उपयोग क्षमता को प्रभातवत किने वाले कािक (Factors affecting WUE)


1.जलवायुतवक 2.भूतम सम्बन्धी कािक 3. सस्य कािक 4.पौध कािक
(Climatic factors) (Edaphic factors) (Agronomic factors) (Plant factors)
(a)तापमान (a) मृदा सिं चना (a)र्सल का प्रकाि एवं (a) जड़ों की गहिाई
(b)प्रकाश (b) मृदा कर्ाकाि ककस्म (b) पतत्तयों की संिचना
(c) वायु की गतत (c) मृदा की गहिाई (b)खाद एवं उवणिक की मात्रा (c) पौधों ककी कै नोपी
(d) आपेतक्षक आद्रणता (d) मृदा में काबणतनक (c) जल प्रबंधन
(e)अन्य जलवायुतवक पदािण की मात्रा (d)खिपतवाि प्रबंधन
कािक (e) मृदा लवर्ीयता (e)पौध सिं क्षर्
1.जलवायु सम्बंतधत कािक (Climatic factors)
(a)तापमान (Temperature): ऐसे स्िानों पि जहां वायु का तापमान अतधक होता है, वहां पि उगने वाले
पौधे अपने शिीि का तापमान तनयंतत्रत किने के तलए अतधक मात्रा में वाष्पोत्सजणन किते है। इसके अलावा
खुली मृदा सतह से जल का वाष्पन भी अतधक होता है। इसके तलए प्रतत इकाई शुष्क भाि उत्पादन के तलए पौधे
अतधक मात्रा में जल का अवशोर्र् किते है तजसके र्लस्वरूप जल उपयोग क्षमता में कमीं आती है।
(b) वायु वेग (Wind speed): वायु वेग का वाष्पीकिर् एवं वाष्पोत्सजणन से सीधा सम्बन्ध है। वाष्पोत्सजणन
की दि वायु की गतत के समानुपाती होती है। वायु वेग तेज होने से मृदा सतह से वाष्पीकिर् तिा पौधों से
वाष्पोत्सजणन के रूप में जल का नुकसान अतधक होता है, तजससे जल उपयोग क्षमता में तगिावर आती है। मंद
गतत से बहती हुई वायु वाष्पोत्सजणन के तलए सबसे अतधक प्रभावी होती है अिाणत धीमी वायु में जल उपयोग
दक्षता अतधकतम होती है।
(c) आपेतक्षक आद्रणता (Relative humidity): आपेतक्षक आद्रणता प्रत्यक्ष एवं पिोक्ष दोनों ही रूपों में जल
उपयोग क्षमता को प्रभातवत किती है। वायुमंडल में अतधक आपेतक्षक आद्रणता होने से वाष्प दबाव अतधक होता
है, तजससे वाष्पन एवं वाष्पीकिर् से उत्सर्जणत वाष्प आसानी से मुि नहीं हो पाती है। अतिः वाष्पन एवं
वाष्पीकिर् की दि कम होने से जल उपयोग क्षमता अतधक प्राप्त होती है। दूसिी तिर् वाताविर् में नमीं होने
की वजह से कीर-िोगों का प्रकोप बढ़ जाता है, तजससे र्सल उत्पादन कम प्राप्त होता है। अतिः जल उपयोग

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दक्षता कम प्राप्त होती है। यकद वायुमंडल में 100 % आद्रणता उपतस्ित है, तो िंरों (stomata) के खुले होने पि
भी वाष्पोत्सजणन नहीं होगा।
(d) अन्य जलवायुतवक कािक: पाला एवं ओला पड़ने से र्सल को बहुत क्षतत होती है, तजसके कािर् जल
उपयोग दक्षता घर जाती है। तापमान अतधक पड़ने या सूखा पड़ने पि भी उत्पादन में कमीं आ जाती है।
उत्पादन कम होने से जल उपयोग दक्षता कम प्राप्त होती है।
2.भूतम सम्बंतधत कािक (Edaphic factors)
(a) मृदा सिं चना(Soil structure): मोरे कर्ों वाली मृदा से पानी का अन्तिःस्त्रवर् एवं वाष्पीकिर् अतधक
होने की वजह से जल उपयोग क्षमता कम प्राप्त होती है।जबकक अच्छी सिंचना वाली दानेदाि तमरट्टयों से पानी
का अंतिः स्त्रवर् धीमी गतत से होता है, तजससे इन मृदाओं में अपेक्षाकृ त ससंचाई कम किना पड़ता है। अतिः जल
उपयोग क्षमता अतधक प्राप्त होती है।
(b) मृदा कर्ाकाि (Soil texture): मोरे कर्ाकाि वाली मृदाओं (बालू आकद) में वायु िन्र अतधक बड़े होने से
मृदा में जल की मात्रा कम ररक पाती है। पानी की कार्ी मात्रा अंतिः सिर् (infiltration) एवं अन्तिःस्त्रवर्
(percolation) द्वािा जड़ क्षेत्र के नीचे चली जाती है, तजससे पौधों में नमीं का अभाव हो जाता है। इसतलए
हल्की मृदाओं में कम तिा भािी मृदाओं की जल उपयोग दक्षता अतधक होती है।
(c) मृदा की गहिाई (Soil depth): गहिी मृदाएँ तजनमें ऊपि के मृदा संस्तिों में कं कड़, पत्िि आकद की
अविोधक पित नहीं होती है, अतधक जल धािर् किती है। ऐसी मृदाओं में पौधों की जड़े गहिाई से जल
अवशोर्र् कि लेती है। अतिः पौधे ससंचाई जल का अतधकतम उपयोग कि लेते है, तजससे जल उपयोग दक्षता
बढ़ जाती है।
(e) मृदा में काबणतनक पदािण की मात्रा (organic matter content): अतधक काबणतनक पदािण वाली मृदाओं की
जल धािर् क्षमता ज्यादा होने की वजह से अन्तिः सिर् एवं अन्तिः स्त्रवर् द्वािा जल की हांनी कम होती है तिा
ससंचाई जल की अतधकाँश मात्रा पौधों द्वािा उपयोग कि ली जाती है।अतिः इन मृदाओं की जल उपयोग दक्षता
बेहति होती है।
(f) मृदा लवर्ीयता (Soil salinity): मृदा में घुलनशील लवर्ों की अतधक मात्रा होने से मृदा घोल का
पिासिर् दाब बढ़ जाता है, तजससे पौधे जल का अवशोर्र् धीिे -धीिे कि पाते है। मृदा से लवर्ों के तनछालन
(leaching) प्रकक्रया में अतधक जल उपयोग किना पड़ता है। कम उपज एवं अतधक जल खचण होने की वजह से
जल उपयोग दक्षता घर जाती है।
3.सस्य कािक (Agronomic factors)
सस्य तवज्ञान की तवतभन्न कक्रयायें जैसे बुवाई का समय, भूतम की उवणिता, उतचत ककस्म, बीज दि,
बुवाई की तवतध, खाद एवं उवणिक उपयोग, ससंचाई का तिीका, अन्ति सस्यन, नमीं को सिं तक्षत किने की तवतध,
आकद जल उपयोग दक्षता को प्रभातवत किती है।
(a)र्सल एवं प्रजातत (Crop and varieties): तवतभन्न प्रकाि की र्सलों एवं उनकी ककस्मों की जल मांग
अलग-अलग होने के कािर् उनकी जल उपयोग दक्षता भी तभन्न होती है। खाद्यान्न र्सलों की अपेक्षा दलहन
एवं ततलहन र्सलों की जल उपयोग दक्षता कम होती है। देशी गेंहू की अपेक्षा बौने गेंहूँ की जल उपयोग दक्षता

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अतधक होती है । पौधों औि उनकी ककस्मों के आनुवंतशक गुर् तभन्न होने के कािर् उनकी जल मांग एवं जल
उपयोग दक्षता अलग-अलग होती है। तवतभन्न र्सलों की जल उपयोग दक्षता सािर्ी-22 में दशाणई गई है।
सािर्ी-22 : तवतभन्न र्सलों की जल उपयोग दक्षता (Water use efficiency of different crops)
जल मांग (Water Requirement, उपज (Grain Yield जल उपयोग दक्षता
र्सलें (Crop)
mm) kg/ha) (WUE kg/ha/mm)
धान (Rice) 2000 6000 3.0
ज्वाि(Sorghum) 500 4500 9.0
बाजिा (Bajara) 500 4000 8.0
िागी (Finger Millet) 310 4137 13.4
मक्का (Maize) 625 5000 8.0
मूंगर्ली(Groundnut) 506 4680 9.2
गेंहू(Wheat) 280 3534 12.6
(b) जुताई (Tillage): खेत की तैयािी के तबना जीिो ररलेज मशीन की सहायता से सीधे बुवाई किने से ससंचाई
की आवश्यकता कम पड़ती है। इस तवतध में जड़ों की वृतद् एवं जल उपयोग दक्षता में बढ़ोत्तिी होती है।
(c) पलवाि (Mulch): खेत में पलवाि का प्रयोग किने से पानी की बचत होती है। पलवाि से भूतम से होने वाले
वाष्पन को 30-60 प्रततशत तक िोका जा सकता है। इससे जल उपयोग दक्षता बढती है। वाष्प-वाष्पोत्सजणन दि
में वृतद् होने पि जल उपयोग दक्षता कम हो जाती है।
(d) र्सल लगाने की तवतध (Methods of sowing): मृदा की ऊपिी सतह से होने वाला वाष्पोत्सजणन अप्रत्यक्ष
रूप से जल उपयोग दक्षता को प्रभातवत किता है। मृदा में उपतस्ित जल वाष्पन द्वािा वायुमंडल में चला जाता
है, तजससे मृदा शुष्क हो जाती है। इस कमीं का प्रभाव पौधों की जल उपयोग दक्षता पि पड़ता है। तछरका तवतध
से बुवाई किने पि पौध घनत्व अतनयतमत होने का कािर् उपज कम आती है, तजससे जल उपयोग दक्षता भी
कम हो जाती है। सतह पि बुवाई तिा ससंचाई की अपेक्षा मेड़ तवतध से बुवाई कि ससंचाई में प्रयु ि होने वाले
जल की मात्रा को कम किके अच्छी पैदवाि ली जा सकती है।
(e) पौध घनत्व (Plant density): पौधों की संख्या का र्सलोत्पादन पि प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है. अतधक पौध
घनत्व होने से उत्पादन के घरकों के अतधक प्रयोग से पौधों में पिस्पि प्रततस्पधाण बढ़ जाती है तजससे उत्पादन में
कमीं हो जाती है। र्लस्वरूप जल उपयोग दक्षता भी घर जाती है।
(f) खाद एवं उवणिक (Manure and Fertilizer): पौधों की अच्छी वृतद् एवं अतधक उपज के तलए संतुतलत
मात्रा में पोर्क तत्वों (खाद एवं उवणिक) की आवाश्यकता होती है।पौधों को इन तत्वों का समुतचत उपयोग
किने के तलए जल की आवश्यकता होती है। अतिः यकद खाद एवं उवणिक संतुतलत मात्रा में कदया जाए तो जल
उपयोग दक्षता में वृतद् होती है। उवणिक को खेत में डालने के उपिान्त ससंचाई की जाए तो र्सल के तलए
उसकी उपयोग दक्षता बढ़ जाती है। जैतवक खाद के प्रयोग से मृदा में जल धािर् क्षमता औि उपज में वृतद् होती
है, तजससे जल उपयोग क्षमता में बढ़त होती है। कम उपजाऊ भूतमयों की जल उपयोग दक्षता कम होती है।

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(g) ससंचाई प्रबंध (Irrigation): र्सल को आवश्यकता से कम या अतधक मात्रा में ससंचाई किने से उपज पि
प्रततकू ल प्रभाव पड़ता है तजसके कािर् जल उपयोग दक्षता कम हो जाती है। र्सल की क्रांततक अवस्िाओं पि
उतचत तवतध तिा उतचत मात्रा में प्रयोग से जल उपयोग दक्षता बधाई जा सकती है। रपक ससंचाई तवतध में जल
का उपयोग बहुत कम ककया जाता है तजससे सतही वाष्पन एवं भूतम रिसाव से जल की हातन कम से कम होती
है. इस तवतध द्वािा पानी देने से पौधे की जल उपयोग दक्षता को 90 प्रततशत तक बढाया जा सकता है।
(h) सनंदाई-गुड़ाई (Interculture): खिपतवाि र्सल के साि मृदा नमीं, पोर्क तत्व, प्रकाश, स्िान आकद के
तलए प्रततस्पधाण किते है, तजससे र्सल बढ़वाि औि उपज घर जाती है। खिपतवािों के प्रकोप से भूतम से नमीं
औि पोर्क तत्वों का तेजी से अवशोर्र् कि लेते है तजससे र्सल वृतद् एवं तवकास अवरुद् हो जाता है .
उत्पादन में कार्ी कमीं आ जाती है, तजससे जल उपयोग दक्षता भी घर जाती है। जल उपयोग दक्षता बढ़ाने के
तलए र्सल बुवाई से लेकि 40 कदन तक खेत खिपतवाि मुि िहना चातहए. इसके तलए 1-2 बाि खेत में
तनदाई-गुड़ाई किना चातहए तिा आवश्यक होने पि िासायतनक तवतध से खिपतवाि तनयंत्रर् भी किना
चातहए।
4.पौध सम्बन्धी कािक
(i) जड़ की गहिाई एवं र्ै लाव:जड़ पौधे का एक महत्वपूर्ण भाग है। ऐसी र्सलें या प्रजाततयाँ तजनकी जड़े भूतम
में गहिाई तक पहुँच कि जल अवशोतर्त किती है, जल उपयोग दक्षता को बढ़ावा देती है। इसके अततरिि
सहायक तिा गौर् जड़ों की संख्या भी पौधों की जल उपयोग दक्षता को बढ़ावा देने में सहायक होती है।
अससंतचत या सीतमत जल उपलब्धता वाले क्षेत्रों में गहिी जड़ वाली र्सलों की जल उपयोग दक्षता अतधक
होती है।
(ii) पतत्तयों की संिचना:पौधों की पतत्तयों पि उपतस्ित िं रो की कायण पद्तत, संख्या तिा व्यवहाि पौधे को
शुष्क वाताविर् में अनुकूतलत किने में अहम् भूतमका तनभाते है। यह िन्र पौधे में प्रकाश संश्लेर्र् तिा
वाष्पोत्सजणन दोनों ही प्रकक्रयाओं को तनयंतत्रत किके उपलब्ध जल का सही उपयोग किते है।
(iv) कै नोपी कवि: पौधों की वृतद् की प्राितम्भक अवस्िा में कै नोपी का तीर ग तवकास एक सकािात्मक लक्ष्र् है।
पौधों का कै नोपी कवि तमट्टी को ढँक कि वाष्पीकिर् को घराता है तजससे मृदा में नमीं अतधक कदनों तक
सुितक्षत िहती है। कै नोपी कवि से जल उपयोग दक्षता में 25 % तक वृतद् हो सकती है।
ससंचाई दक्षता (Irrigation Efficiency)
जल सिंक्षर् की दृतष्ट से ससंचन कु शलता उच्च स्ति पि िखना महत्वपूर्ण है। ससंचाई जल के स्त्रोत से
ससंचाई के तलए तजतना जल तनकाला जाता है, वह पूिा का पूिा उपयोग में नहीं आ पाता है। ससंचाई जल तभन्न-
तभन्न अंशों में परिवहन औि तवतिर् प्रर्ाली में, ससंचाई नातलयों, खेत में असमान तवतिर् के रूप में जड़ क्षेत्र से
बाहि रिसाव, अन्तिःस्त्रवर् के रूप में तिा वाष्प-वाष्पोत्सजणन के रूप में नष्ट हो जाता है। इन सब हातनयों को
बेहति जल प्रबंधन से कम तो ककया जा सकता है पिन्तु शून्य नहीं ककया जा सकता है। जल स्त्रोत से लेकि खेत
तक होने वाली जल हातन को िोकना आवश्यक है। तवतभन्न क्षमताओं जैसे वहां, भण्डािर्, तवतिर् औि प्रभावी
वर्ाण आकद में सुधाि होने से उत्पादकता उपयोग में भी वृतद् होती है। अतिः एक आदशण ससंचाई वह होती है
तजसके द्वािा ससंतचत क्षेत्र की मृदा में जड़ क्षेत्र में समान रूप से पयाणप्त जल कदया जाता है।

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ससंचाई हेतु पूरित जल की मात्रा तिा पौधे हेतु संतचत नमीं अिवा वास्ततवक रूप से ससंचाई हेतु प्रयुि
जल की मात्रा के अनुपात को ससंचाई दक्षता कहा जाता है। दूसिे शब्दों में ससंचाई जल स्त्रोत से जल का जो
आउरपुर प्राप्त होता है अिाणत जो ससंचाई के तलए इनपुर बनता है-वह सािा का सािा क्षेत्र में पहुंचकि आउरपुर
नहीं बन पाता । अतिः कु ल इनपुर का ककतना प्रततशत भाग आउरपुर बनता है, इसे ही ससंचाई की दक्षता
(irrigation efficiency) कहते है। ससंचाई दक्षता या कु शलता से हमें ज्ञात होता है कक तवतभन्न प्रकाि की ससंचाई
प्रतवतधयों द्वािा उपलब्ध जल संसाधनों का ककतनी कु शलता पूवणक उपयोग ककया गया है। ससंचाई दक्षता को
तनम्न सूत्र से ज्ञात ककया जाता है:
ससंतचत क्षेत्र में मृदा द्वािा जड़ क्षेत्र में भंडारित जल की मात्रा
ससंचाई दक्षता=----------------------------------------------------------------------- x 100
ससंतचत क्षेत्र में स्त्रोत से सप्लाई ककये गये जल की मात्रा
ससंचाई दक्षता में कई प्रकाि की दक्षताएं शातमल है, जैसे
1. जल संवहन दक्षता (Water Conveyance Efficiency): जल के स्त्रोत से जल खेत की ओि जाता है तो बीच
में जल की हातन होती है। जल स्त्रोत से छोड़े गए पानी का तजतना प्रततशत तहस्सा खेत तक पहुँचता है, वह उस
जल तवतिर् प्रर्ाली की जल संवहन या जल परिवहन दक्षता कहलाती है।
Wf
Ec = ------- x 100
WF
जहां,

Ec = जल संवहन दक्षता %

Wf= खेत तक पहुंचे जल की मात्रा

WF = जल स्त्रोत से नहि/नाली में छोड़े गए जल की मात्रा

जल संवहन दक्षता सामान्यता कम होती है क्योंकक लगभग 21% जल का नुकसान तमट्टी की नातलयों
(watercourses) से हो जाता है।
2. जल प्रयोग दक्षता (Water Application Efficiency): सतही ससंचाई तवतधयों में जल का बड़ा तहस्सा
पािच्यवन (percolation) व अपसिर् (seepage) के रूप में रिसकि नष्ट हो जाता है। खेत में छोड़े गए पानी की
तजतनी मात्रा पौधे के जड़ क्षेत्र में संग्रतहत होती है, उसे जल प्रयोग दक्षता कहते है। इसे तनम्न सूत्र से ज्ञात
ककया जा सकता है:
Ws
Ea = -------- x 100
Wf
जहां,

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Ea = जल प्रयोग दक्षता %

Ws = र्सल के जड़ क्षेत्र में सिं तक्षत जल की मात्रा (water stored in the root zone)

Wf =खेत में छोड़े गए जल की मात्रा (water delivered in the field)


सामान्यतिः प्रतत ससंचाई जल की मात्रा बढ़ने से ससंचाई प्रयोग दक्षता घरती जाती है। ससंचाई जल के अकु शल
प्रयोग के कािर् प्रक्षेत्र पि 28 से 50 % जल की क्षतत होती है।

3.जल संग्रह दक्षता (Water Storage Efficiency): यकद ससंचाई में िोड़ी-िोड़ी मात्रा में जल कदया जाए तो
पौधे अतधक मात्रा में जल का उपयोग किते है। ससंचाई से पूवण जड़ क्षेत्र को संतृप्त किने के तलए तजतने पानी की
आवश्यकता िी, उसका ककतना प्रततशत तहस्सा वास्तव में ससंचाई के उपिान्त संतृप्त हो गया है, यह जल संग्रह
या जल भण्डािर् दक्षता कहलाता है। इस दक्षता से ज्ञात होता है कक र्सल के तलए आवश्यक जल ककतनी
पूर्णता के साि र्सल जड़ क्षेत्र में संग्रह हुआ । इसे तनम्न सूत्र से व्यि कि सकते है।
Ws
Es = ---------- x 100
Wn
where,
Es = जल संग्रह दक्षता %

Ws = ससंचाई उपिान्त जड़ क्षेत्र में संग्रतहत जल की मात्रा

Wn =ससंचाई से पहले जड़ क्षेत्र को संतृप्त के तलए आवश्यक जल की मात्रा

4. जल तवतिर् दक्षता (Water Distribution Efficiency): र्सल के जड़ क्षेत्र तक जल का समुतचत तवतिर्


होना जरुिी िहता है, क्योंकक तजतना समान तवतिर् होगा, उतना ही अतधक उत्पादन प्राप्त होगा। असमान जल
तवतिर् से खेत में कहीं-कहीं सूखा िहेगा तो कहीं जलभिाव की तस्ितत उत्पन्न होने से र्सल पि प्रततकू ल प्रभाव
पड़ता है।
(1-d)
Ed = -------------x 100
D
where,
Ed = जल तवतिर् दक्षता %

d = खेत के तवतभन्न तवन्दुओं पि तलए गए पानी की गहिाई का मानक तवचलन


D = ससंचाई की औसत गहिाई
5.परियोजना दक्षता (Project efficiency): यह र्सलोत्पादन में ससंचाई जल के स्त्रोत के प्रभावी प्रयोग का
सूचक है। यह ससंचाई जल का वह प्रततशत भाग है जो भूतम में पौधों के जड़ क्षेत्र में भण्डारित होता है औि

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उपभोमय प्रयोग (consumptive use) या वाष्प-वाष्पोत्सजणन में प्रयुि होता है । इसे नहि या जलापूर्तण के
मुख्य स्त्रोत तबन्दु पि मापते है ।
सािर्ी-23 : तवतभन्न ससंचाई तवतधयों के अन्तगणत ससंचाई क्षमता
ससंचाई क्षमता ससंचाई तवतधयाँ (Methods of irrigation)
(Irrigation efficiency) पिम्पिागत सतही ससंचाई सस्प्रंकलि रपक ससंचाई
(Conventional irrigation)
स्त्रोत से पौधे तक जल पहुँच क्षमता 40-50 (नहि द्वािा ससंचाई) 100 100
(Conveyance efficiency)
60-70 (कु आँ द्वािा ससंचाई)
पौधे में जल देने की क्षमता 60-70 70-80 90
(Application efficiency)
औसत क्षमता 30-35 50-60 80-90

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Lecture-17
ससंचाई जल की गुर्वत्ता
(Quality of irrigation water)

कृ तर् तवकास में ससंचाई का महत्वपूर्ण योगदान है। बीज के अंकुिर् से लेकि र्सल पकने तक सभी
िासायतनक कक्रयाएं जल की उपतस्ितत में ही संपन्न होती है। देश में अतधकांश कृ तर् क्षेत्र वर्ाण पि आधारित है।
वर्ाण तनभणि क्षेत्रों में मानसून की अतनतितता औि अतनयतमतता के कािर् र्सल उत्पादन प्रभातवत होता है।
मानसून की वर्ाण असमय औि अपयाणप्त होने के कािर् कृ तर् का तवकास ससंचाई पि तनभणि किता है। र्सलों की
ससंचाई में उपयोग में लाये जा िहे जल की गुर्वत्ता का उपयुि होना आवश्यक है। ससंचाई जल की गुर्वत्ता
सामान्यतिः उसमें उपतस्ित गाद (silt) एवं लवर्ों (salts) आकद तत्वों पि तनभणि किती है। प्रायिः सभी प्रकाि के
ससंचाई जल में घुलनशील पदािों की कु छ न कु छ मात्रा अवश्य िहती है । जल में घुले पदािों की सन्द्रता ससंचाई
जल के गुर् को तनधाणरित किती है । ससंचाई जल को लवर्ों से मुि होना चातहए। यकद ससंचाई जल में 0.1
प्रततशत से अतधक लवर् मौजूद हो तो यह पौधों के तलए हातनप्रद होता है, साि ही भूतम को भी खिाब कि
सकता है ।
ससंचाई जल की गुर्वत्ता (Quality of irrigation water)
ससंचाई जल की गुर्वत्ता जांचने के तलए तनम्न तबन्दुओं को ध्यान में िख कि तनधाणरित की जाती है ।
1.ससंचाई जल में घुलनशील लवर्ों की सान्द्रता ककतनी है।
2.ससंचाई जल में सोतडयम की सान्द्रता एवं कै तल्शयम व् मैग्नेतशयम के घोल की तुलना में सोतडयम का अनुपात
3. ससंचाई जल में सल्र्े र, नाइट्रेर, क्लोिाइड व् क्लोिीन जैसे तत्वों की बोिान के साि सान्द्रता
4.जल में काबोनेर की सान्द्रता
उपिोि अतभलक्षर्ों के आधाि पि ससंचाई जल को तनम्न तिह तवभातजत ककया जा सकता है:
1.लवर्ता वगण (Salinity class)
ससंचाई जल में हमेशा कु छ घुतलत पदािों की मात्रा होती है, तजन्हें लवर् कहा जाता है। जल में
उपतस्ित लवर् पौधों की वृतद् को न के वल प्रत्यक्ष रूप में बतल्क मृदा की सिं चना, मृदा बनावर,पािगम्यता
आकद को भी प्रभातवत किती है। जल में घुलनशील लवर्ों की कु ल मात्र व् उसकी सान्द्रता से ससंचाई जल के
गुर्ों को तनधाणरित ककया जा सकता है । ससंचाई जल में उपतस्ित तवलेय लवर्ों की सान्द्रता को तवद्युत
चालकता (electrical conductivity-EC) तापक्रम(200 सेतल्सयस) पि तमलीम्होस प्रतत से.मी. के रूप में मापा
जाता है। एक तमतलम्होज प्रतत सेमी. तवद्युत् चालकता का तात्पयण यह है कक जल में 640 पीपीएम तवलेय लवर्
उपतस्ित है जो 0.64 ग्राम प्रतत लीरि के तुल्य होते है। तवद्युत चालकता के आधाि पि खािे पानी को तनम्न
चाि भागों में वगीकृ त ककया गया है.

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(a) सी1 -कम खािा पानी (Low saline water): इसे तनम्न लवर्ीय जल कहते है तजसकी तवद्युत चालकता 0-
250 माइक्रो म्हो./से.मी. होती है। ससंचाई के तलए अतधकाँश तमरट्टयों व् र्सलों में इस पानी का प्रयोग तबना
ककसी तवशेर् हातन के ककया जा सकता है।
(b) सी2-मध्यम खािा पानी(Medium saline water) : यह मध्यम लवर्ीय जल है तजसकी तवद्युत् चालकता
250-750 माइक्रो म्हो./से.मी. होती है।इस पानी का प्रयोग हल्की भूतम तिा लवर् सतहष्र्ु र्सलों में किना
चातहए।
(c) सी3-अतधक खािा पानी(High saline water) : यह मध्यम से उच्च लवर्ीय जल है तजसकी तवद्युत् चालकता
750-2250 माइक्रो म्हो./से.मी. होती है।इस पानी का प्रयोग उस स्िान पि नहीं किना चातहए जहां जल
तनकास का प्रबंध अच्छा न हो । जहां पि जल तनकास की उतचत व्यवस्िा हो तो ऐसे पानी का प्रयोग तब तक न
किें , जब तक भूतम के क्षािीय किने की व्यवस्िा न कि ली जाय। के वल लवर् सतहष्र्ु र्सलें ही उगाई जाएँ।
(d) सी4-बहुत अतधक खािा पानी (Very high saline water): यह उच्च लवर्ीय जल है तजसके तवद्यत
चालकता 2250-5000 माइक्रो म्हो./से.मी. होती है। साधािर्तिः यह पानी ससंचाई योमय नहीं होता है। लेककन
उतचत जल तनकास की दशाओं में कु छ सीमा तक इस जल का प्रयोग ककया जा सकता है।
2.सोतडयम वगण (Sodium adsorption ratio)
जल में सोतडयम अतधक मात्रा में हो जाने पि क्षाि संकर (alkali hazard) अतधक होता है, पिन्तु जब
जल में कै तल्सयम तिा मैग्नेतशयम आयनों की प्रधानता होती है, तब क्षाि की समस्या कम हो जाती है.सयुंि
िाज्य अमेरिका की लवर्ता प्रयोगशाला में रिचड्सण (1954) ने सोतडयम अवशोर्र् अनुपात (SAR) के आधाि
पि ससंचाई के जल को 4 वगों वगीकृ त ककया है।
(a)एस1-न्यून सोतडयम युि पानी (Low sodium water): इस जल का सोतडयम अवशोर्र् अनुपात 0-10
तक होता है। इस पानी को सभी प्रकाि की भूतम व् र्सलों में प्रयोग ककया जा सकता है, लेककन िोड़ी मात्रा में
तवतनक्षेप सोतडयम बढ़ने की संभावना िहती है।
(b) एस2-मध्यम सोतडयम अनुपात (Medium sodium water): इसका सोतडयम अवशोर्र् अनुपात 10-18
तक होता है। इस प्रकाि के पानी से महीन कर्ों वाली भूतम को हातन पहुँचती है। ऐसे पानी को िेतीली या
जीवांशयुि (पयाणप्त िन्रता) भूतमयों में प्रयोग ककया जा सकता है।
(c) एस3-अतधक सोतडयम युि पानी (High sodium water): इस जल का सोतडयम अवशोर्र् अनुपात 18-
20 होता है.इस प्रकाि के जल का प्रयोग किने से अतधकाँश तमरट्टयों में तवतनमेय सोतडयम पैदा हो जाता है,
तजसके र्लस्वरूप भूतम क्षािीय हो जाती है।इस जल को अच्छी जल तनकास वाली भूतमयों में प्रयोग ककया जा
सकता है।
(d) एस4-अत्यतधक सोतडयम युि पानी (Very high sodium water): इस जल का सोतडयम अवशोर्र्
अनुपात 26 से अतधक होता है.यह जल ससंचाई के तलए उपयुि नहीं होता है।के वल कम िे ह वाली भूतम पि
जहां तमट्टी में चूने या तजप्सम का प्रयोग कि इस पानी का प्रयोग ककया जा सकता है।
3.काबोनेर तिा बाइकाबोनेर की संन्द्रता

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ककसी ककसी भूतमयों में ससंचाई जल से नम स्िानों पि कदखाई पड़ने वाले काले धब्बे बाइकाबोनेर की
उपतस्ितत का संकेत देते हैं । अच्छी गुर्वत्ता वाले जल में बाइकाबोनेर की मात्रा कै तल्शयम व मैग्नेतशयम से
अतधक नहीं होनी चातहए। काबोनेर की मात्रा अतधक होने से सोतडयम काबोनेर का तनमाणर् होता है। अवतशष्ट
सोतडयम काबोनेर के आधाि पि जल को तनम्न प्रकाि से वगीकृ त ककया गया है:
वगण-I: सुितक्षत जल (Safe water): इस जल में अवतशष्ट सोतडयम काबोनेर का मान 1.25 तम.इ.प्रतत लीरि
होता है।
वगण-II : सीमान्त जल (Marginal water): इस जल में अवतशष्ट सोतडयम काबोनेर का मान 1.25 से 2.5
तम.इ.प्रतत लीरि होता है।
वगण-III-असुितक्षत जल (Unsafe water): इस जल में अवतशष्ट सोतडयम काबोनेर का मान 2.25 तम.इ.प्रतत
लीरि से अतधक होती है।
4.बोिान की संन्द्रता
बोिान पौधों के तलए एक आवश्यक पोर्क तत्व है ककन्तु इसकी सांन्द्रता सामान्य से अतधक होने पि
पौधे एवं मृदा दोनों के तलए तवर्ाि (toxic) हो जाती हैं । सामान्य रूप से 3 पी पी एम (10 लाख भाग में 3
भाग) बोिान की उपतस्ितत पि के वल सतहष्र्ु (tolerant) र्सलें उगाई जा सकती हैं ।
बोिोन सतहष्र्ु (Tolerant) र्सलें: गाजि,चुकंदि,बंदगोभी,सेम, प्याज, खजूि आकद र्सलें जल में बोिोन की
मात्रा 2-4 पीपीएम सहन कि सकती है।
बोिोन के प्रतत मध्यम सतहष्र्ु र्सलें (Semi tolerant crops): ज्वाि,मक्का,गेंहू, जौ, सूिजमुखी,कपास,
रमारि,आलू,मूली आकद र्सलें जल में बोिोन की मात्रा 1-2 पीपीएम सहन कि सकती है।
बोिोन के प्रतत संवद
े नशील र्सलें (Sensitive crops): नीबू, अंगूि, सेब,नाशपाती, अखिोर आकद र्सलें जल
में बोिोन की मात्रा 0.3 पीपीएम को सहन कि सकती है, पिन्तु 1.0 पीपीएम इनके तलए घातक हो सकता है।
सािर्ी-24:ससंचाई हेतु जल की गुर्वत्ता की श्रेतर्यां
ससंचाई गुर्वत्ता के कािक जल गुर्वत्ता की श्रेतर्यां
श्रेष्ठ जल तनम्न गुर्वत्ता वाला अत्यतधक तनम्न गुर्वत्ता
तवद्युत् चालकता (डेसी/मी.) <2.0 4.0-8.0 >8.0
आि.एस.सी. (मी.ई./ली.)* <5.0 5.0-7.0 >7.0
एस.ए.आि.(पीपीएम)* 10-18 18-26 >26
बोिोन (पीपीएम) 2.0-2.5 2.5-3.0 >3.0
कै तल्शयम/मैग्नेतशयम 1.5-2.0 1.0-1.6 <1.0
*आि.एस.सी.-अवतशष्ट सोतडयम काबोनेर (Residual sodium carbonet) तिा एस.ए.आि.-सोतडयम
अतधशोर्र् अनुपात(Sodium adsorption ratio)
ससंचाई जल गुर्ों का र्सलोत्पादन पि प्रभाव

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लवर्ीय जल का पौधों की वृतद् पि प्रभाव जल के संघरन, र्सल की ककस्म एवं वृतद् की अवस्िा,
बुवाई तवतध, ससंचाई की तवतध, मृदा की ककस्म, जलवायु तिा सस्य कक्रयाओं पि तनभणि किता है।
 लवर्ीय जल का प्रयोग किने से मृदा घोल के पिासिर् तवभव बढ़ने से बीज के अन्दि जल का प्रवेश
रुक जाता है, तजससे बीजों का अंकुिर् देि से होता है अिवा घर जाता है।
 ससंचाई जल की तवद्युत् चालकता तिा सोतडयम अतधशोर्र् अनुपात अतधक होने से पौधों द्वािा पोर्क
तत्वों का अवशोर्र् कम हो जाता है।
 भािी भूतमयों में लवर्ीय जल से ससंचाई किने से र्सलों की जड़ों का तवकास अवरुद् हो जाता है।
ससंचाई जल में सुधाि के उपाय
लवर्ीय जल का उपयोग मोरी कर्ाकाि सिंचना वाली भूतमयों में तबना ककसी भय के ककया जा सकता
है, जबकक महीन संिचना वाली भूतमयों में इस प्रकाि के जल का प्रयोग सावधानी से किना चातहए। लवर्ीय
जल के गुर्ों को बदलना मुतश्कल है पिन्तु इनका उपचाि किके इनमें उपतस्ित हातनकािक लवर्ों को कम
किके ससंचाई हेतु प्रयोग में लाया जा सकता है। इसके तलए तनम्न उपायों को अपनाया जा सकता है ।
1. तनम्न गुर्वत्ता वाले जल के साि अच्छे पानी को तमलाकि ससंचाई किने से दूतर्त जल के प्रभाव को कम
ककया जा सकता है ।
2.जल में काबोनेर,सोतडयम तिा बोिोन की अतधकता होने पि र्सल में बुवाई के पूवण खेत में तजप्सम 8.5
क्वं रल प्रतत हेक्रेयि) तबखेि देना चातहए । तजप्सम को गोबि की खाद या प्रेसमड के साि प्रयोग किना
लाभकािी होता है।
3.जीवांश तिा काबणतनक खादों के प्रयोग किने से मृदा में उपतस्ित लवर्ों का प्रभाव कम ककया जा सकता है ।
4.भािी भूतमयों में जल की पािगम्यता कम किने के तलए ग्रीष्मकाल में गहिी जुताई किना चातहए। गहिी
जुताई से मृदा की जल धािर् क्षमता बढ़ जाती है तिा मृदा की अधोसतह में उपतस्ित कड़ी पित रूरने से जल
तनकास के साि लवर्ों का तनछालन हो जाता है।
5.लवर् सतहष्र्ु र्सलों को तनम्नानुसाि उगाना चातहए।
उत्तम सतहष्र्ुता वाली र्सलें: जौ,लुसनण,तािामीिा,गन्ना आकद।
साधािर् सतहष्र्ुता वाली र्सलें:गेंहू,ज्वाि,सिसों,चुकंदि आकद ।
न्यून सतहष्र्ुता वाली र्सलें: चना, मरि, तोरिया,अलसी,िागी,कपास, जूर, नैतपयि घास आकद ।
6.लवर्ीय जल का प्रयोग किने वाले क्षेत्रों में र्सलों की बुवाई मेड़ों पि किके कूं ड तवतध (furrow method)
द्वािा ससंचाई किना चातहए, ताकक जल में उपतस्ित लवर्ों से जड़ों को कम से कम नुकसान हो । र्ब्बािा
(sprinkler) औि रपकदाि (drip) तवतध से ससंचाई किने से मृदा में हातनकािक लवर्ों का संचयन कम होने के
साि-साि पानी की बचत होती है एवं उपज अतधक तमलती है।

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Lecture-18
जलमग्नता एवं कृ तर् जल तनकास
(Water logging and Agricultural Drainage)
_________________________________________________________

पौध वृतद् एवं मृदा गुर्ों को संतुतलत िखने में जल की एक महत्वपूर्ण भूतमका होती है ककन्तु यही मृदा
जल यकद आवश्यकता से अतधक या कम हो जाए तो मृदा गुर्ों के साि-साि पौध वृतद् को भी प्रततकू ल रूप से
प्रभातवत किता है। तजस प्रकाि जल की कमी के कािर् र्सलों की वृतद् रूक जाती है, उसी प्रकाि र्सल की
आवश्यकता से अतधक जल भूतल (land surface) या सतह के नीचे जमा हो जाने से भी र्सलों की वृतद् रूक
जाती है औि वे सूखने लगती है।
जलमग्नता (Water logging)
ऐसी मृदा तजसमें वर्ण में लंबे समयावतध तक जल भिाव की दशा हो औि उसमें लगाताि वायु संचाि
में कमी बनी िहे तो उसे मृदा जलमग्नता (Water logging) कहते हैं। मृदा की इस दशा के कािर् भौततक
िासायतनक एवं जैव गुर्ों में अभूतपूवण परिवतणन हो जाता है। र्लस्वरूप ऐसी मृदा में र्सलोत्पादन लगभग
असंभव हो जाता है। दुतनया का लगभग एक ततहाई ससंतचत क्षेत्र में जलाक्रांत या जलभिाव की जररल समस्या
है। तनचले क्षेत्रों में वर्ाण जल भिर्, नहिों से रिसाव, नहि के पानी से सतही ससंचाई, प्राकृ ततक जल तनकासी की
कमीं से जल भिाव की तस्ितत उत्पन्न होती है। भौम जल स्ति (ground water table) ऊपि िहने से भी
जलभिाव की तस्ितत उत्पन्न हो जाती है। दास्ताने (1971) के मतानुसाि ससंचाई के उद्ेश्य से वह भूतमयाँ उत्तम
होती है तजनमें भौम जल स्ति 3 मीरि से अतधक होता है। इस प्रकाि 2 मीरि से अतधक भौम जल स्ति वाली
भूतमयाँ उत्तम, 1 से 2 मीरि तक की जल स्ति वाली भूतमयाँ मध्यम तिा 1 मीरि से कम जल स्ति वाली
भूतमयाँ ससंचाई के तलए अनुपयुि होता है। अतिः इस प्रकाि की भूतमयों का जल स्ति नीचा िखने का प्रयत्न
किना आवश्यक है।
मृदा जलमग्नता के कािक (Causes of Waterlogging)
 अतधक वर्ाण के कािर् पानी का उतचत तनकास नहीं होने से सतह पि वर्ण जल एकतत्रत हो जाता है,
तजससे जलमग्नता की तस्ितत उत्पन्न हो जाती है ।
 समान्य रूप में बाढ़ का पानी खेतों में जमा होकि जल मग्नता की तस्ितत पैदा कि देता है ।
 भूतम की तनचली तहों में किोि पित होने से पानी रिसकि नीचे नहीं जा पाता औि ऊपिी परल पि
रूक जाता है।
 नहि के आसपास या ककनािों की भूतमयों में लगाताि जल रिसाव के कािर् जलमग्नता की समस्या बनी
िहती हैं।
 भूतम का जलस्ति (water table) ऊँचा होने के कािर् भूतम जलाकांत (waterlogged) हो जाती है।

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 आवश्यकता से अतधक औि अतनयंतत्रत ससंचाई मृदा सतह पि जल जमाव को प्रोत्सातहत किता है, जो
जल मग्नता का कािर् बनता है।
मृदा जलमग्नता का कृ तर् पि प्रभाव (Water logging effects on agriculture)

भूतम में आवश्यकता से अतधक नमीं अिवा पृष्ठीय तल जल जमाव के कािर् मृदा के िं रो (pores) में वायु
के स्िान पि पानी भि जाता है परिर्ामतिः भूतम किा वायु संचाि रूक जाता है तिा भूतम के भीति आक्सीजन
की कमी हो जाती है। इसका पौधो की वृतद् औि तवकास पि हांतन कािक प्रभाव पड़ता है। जलमग्नता से पौधों
की वृतद् पि तनम्न प्रभाव पड़ते हैं।
1. बीजो का जमाव नही हो पाता है क्योंकक बीजों के जमाव के तलए प्रचुि मात्रा से ऑक्सीजन की
आवश्यकता होती है। चूँकक इस प्रकाि की भूतम में आक्सीजन के स्िानपि पानी भिा होता है अतिः
बीजों में अन्तिः कोर्ीय श्वसन (inter cellular respiration) होने लगता है तजससे बीज सड़ने लगते हैं।
2. जड़े उिली, कम शाखायुि औि िू री हो जाती है। इन क्षेत्रों की भूतमयों में ऑक्सीजन की कमी के
कािर् जड़ों की श्वसन कक्रया प्रभातवत होती है। जड़ों के समीप काबणन डाई ऑक्साइड की सान्द्रता
बढ़ने से जड़ तन्त्र कमजोि पड़ जाता है, तजससे जड़ों की वृतद् रूक जाती है। जड़ों की वृतद् रूक जाने के
कािर् जड़े उिली िह जाती है । पोर्क तत्वों का अवशोर्र् कम हो जाता है।
3. मृदा जल मग्नता के कािर् तमट्टी के िं रों में उपतस्ित हवा बाहि तनकल जाती है औि सम्पूर्ण िन्र जल
तृप्त हो जाते हैं औि साि ही वायुमंडल से हवा का आवागमन अवरुद् हो जाता है.इस परिस्ितत में मृदा
के अंदि वायु संचाि में भािी कमी आ जाती है। मृदा जल मग्नता में वायुसंचाि की कमी के कािर् धान
के अलावा कोई भी र्सल जीतवत नही िह पाती है. धान जैसी र्सलें अपने ऑक्सीजन की पूर्तण हवा से
तनों के माध्यम से किते हैं. जल मग्नता का पौधों पि प्रततकू ल प्रभाव होने के कािर् प्रमुख लक्षर् तुिंत
परिलतक्षत होते हैं, जैसे पत्तों का कु म्हलाना, ककनािे से पत्तों का नीचे की ओि मुड़ना तिा झड़ जाना,

तनों के वृतद् दि में कमी, पत्तों के झड़ने की तयािी , पत्तों का पीला होना, तद्वतीयक जड़ों का तनमाणर्,
जड़ों की वृतद् में कमी, मुलिोम तिा छोरी जड़ों की मृत्यु तिा पैदावाि में भािी कमी आकद ।

4. पानी के लगाताि गततहीन दशा में िहने के कािर् मृदा गिन पूर्णतया नष्ट हो जाता है औि र्लस्वरूप
तमट्टी का घनत्व बढ़ जाता है तजससे तमट्टी सख्त/िोस हो जाती है।
5. मृदा जल मग्नता मृदा ताप को कम किने में सहायक होती है। नम तमट्टी की गुप्त ऊष्मा शुष्क तमट्टी की
तुलना में ज्यादा होती है जो जीवार्ुओं की कक्रयाशीलता औि पोर्क तत्वों की उपलब्धता को प्रभातवत
किती है।
6. अतधक कावणतनक पदािण वाली भूतमयों में पानी की अतधकता के कािर् जीवांश पदािण के तवघरन तिा
जड़ों के श्वसन कक्रया में तनकली कावणन डाई आक्साइड का अतधक साद्रर् तिा पानी के साि इसके

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तमलने से उत्पन्न काबणतनक अम्ल मृदा की अम्लीयता बढाने का भी कािक बनती है। ऐसी भूतमयों में
अम्लीयता के प्रतत सम्वेदशील र्सले नही पैदा की जा सकती हैं।
7. अम्लीयता के कािर् आयिन तिा एल्मूतनयम अतधक मात्रा में मृदा में उपतस्ितत होकि र्सलों के तलए
तवर्ाि (toxic) हो जाते हैं। उपलब्ध पोर्क तत्वों जैसे नाइट्रोजन, र्ास्र्ोिस, पोराश, गंधक तिा
सजंक इत्याकद की कमी हो जाती है। इसके तवपिीत लोहा एंव मैगनीज की अतधकता के कािर् इनकी
तवर्ािा के लक्षर् कदखाई पड़ने लगते हैं।
कृ तर् जल तनकास (Agricultural Drainage)
र्सल का उत्पादन या उपज बढ़ाने के उद्ेश्य से भूतम की सतह अिवा अधो सतह से र्ालतू पानी को
कृ तत्रम रूप से बाहि तनकालना जल तनकास कहलाता है। दूसिे शब्दों में र्सलों की उतचत वृतद् एवं तवकास के
तलए मृदा सतह से अततरिि जल को बाहि तनकालने की तवतध को जल तनकास (drainage) कहते है। भूतम की
सतह पि र्ालतू जल का मतलब है, भूतम की जल सोखने की क्षमता (infiltration capacity of soil) से अतधक
जल की मौजूदगी जो पृष्ठ जमाव (surface water logging) के रूप में होती है. पौधों के जड़ क्षेत्र में र्ालतू जल
से तात्पयण है, भूतम की जल धािर् या क्षेत्र क्षमता (soil water holding or field capacity) से कृ तर् की दृतष्ट से
जलतनकास तीन प्रकाि का होता है:
A.मृदा जल तनकास: मृदा जल तनकास का तात्पयण यह है कक भौम जलस्ति ककतना नीचा ककया जाये तजससे
बुवाई एवं अन्य सस्य कक्रयाएं सुचारू रूप से समय पि संपन्न की जा सकें ।
B.र्सल जल तनकास: प्रत्येक र्सल की जल सहने की क्षमता भीं-तभन्न स्ति पि तभन्न-तभन्न होती है, इसतलए
यह जानना अत्यन्त आवश्यक है कक उि जल स्ति पि कौन से र्सल उगाई जाये। जल स्ति की तवतभन्न
परितस्िततयों के अनुसाि र्सलों का चुनाव ककया जाना आवश्यक है।
C.लवर्ता तनकास: मृदा से लवर्ों का तनकास किके लवर्ीय तिा क्षािीय भूतमयां सुधािी जा सकती है। इसके
साि-साि ससंचाई के जल में भी पयाणप्त मात्रा में लवर् उपतस्ित िहते है। यकद जल स्ति ऊँचा है तो लवर्ों का
तनक्षालन नहीं होता है तजससे लवर् मृदा की ऊपिी सतह पि आकि एकतत्रत होते िहते है।
जल तनकास के लाभ (Benefits of Drainage)
 जल तनकास के द्वािा मृदा सतह से अततरिि जल का तनकास होने के कािर् मृदा में उपतस्ित जल
उपलब्ध अवस्िा में िहता है जो पौधों की वृतद् एवं तवकास को प्रोत्सातहत किता है ।
 उतचत जल तनकास से मृदा संिचना एवं वायु संचाि में सुधाि होता है ।
 जल तनकास के द्वािा जल तवतभन्न प्रकाि नातलयों द्वािा योजनाबद् तिीके से तनकाला जाता है तजसके
कािर् भूतम कराव बहुंत कम होता है।
 जल तनकास द्वािा अनेक प्रकाि के हातनकािक लवर् बहकि बाहि तनकल जाते हैं तजसके कािर् भूतम
की अम्लीयता व क्षािीयता कम हो जाती है।
 जल तनकास के द्वािा भूतम की भौततक, िासायतनक व जैतवक तस्ितत में सुधाि होता है। भूतम की दशा
में सुधाि होने के कािर् उसकी उपज में भी वृतध्द हो जाती हैं।

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 जल तनकास के कािर् अततरिि या र्ालतू जल एकतत्रत न होने के कािर् र्सल पि कीर-िोगों का


संक्रमर् कम होता है।
 उतचत जल तनकास के कािर् भूतम में आक्सीजन की उपतस्ितत के कािर् नाइट्रीकिर् कक्रया अतधक बढ़
जाती है जबकक जल तनकास के अभाव में तवनाइट्रीकिर् कक्रया में वृतध्द हो जाती है।
 जल तनकास से मृदा में पोर्क तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है ।
 जल तनकास के कािर् तमट्टी को उपयुि तापक्रम तमलता है, तजसके कािर् उनमें अनेक कक्रयाऐं शीघ्रता
से होने लगती है जैस-े बीजों का अंकुिर्।
 जल तनकास के कािर् भूपरिष्किर् कक्रयाएं आसानी से की जा सकती है ।
 जल तनकास के र्लस्वरूप मृदा आयतन में वृतद् के कािर् जड़ें अपना भोजन तेजी से ग्रहर् किती है।
जल तनकास की आवश्यकता (Necessity of drainage)
साधािर्तया तनम्न प्रकाि की मृदाओं में जल तनकास की आवश्यकता पड़ती है:
 भािी तचकनी मृदाएँ (clayeye soil)जहां पि पानी का तनकास सम्भव न हो ।
 तनचले क्षेत्र (low land) जो पहाड़ों से तघिे हों ।
 कम ढालदाि (slopy)मृदाएँ तजनमें किोि सतह तवद्यमान हों ।
 नकदयों एवं नहिों के आस-पास की मृदाएँ ।
 झीलों वाली दलदली मृदाएँ ।
 अतधक वर्ाण वाले क्षेत्रों की मृदाएँ ।
 ऊंचे जल-स्ति (high water table) वाली मृदाएँ ।
 ऐसी मृदाएँ तजनमें उपतस्ित हातनकािक लवर् ऊपिी सतह पि आ जाते है ।
नल तनकास की प्रर्ातलयाँ (Systems of Drainage)
जल तनकास के द्वािा मृदा सतह से के वल स्वतन्त्र या गुरुत्वाकर्णर् जल (free or gravitational water)
ही तनकाला जा सकता है, के तशका जल (capillary water) नहीं । मृदा सतह से अततरिि जल तनकासी मृदा
की ऊपिी एवं आन्तरिक सतहों से होती है। भूतम से र्ालतू जल तनकासी की मुख्य दो प्रर्ातलयाँ है- (A)पृष्ठीय
जल तनकास एवं (B) अवपृष्ठ जल तनकास
(A)पृष्ठीय जल तनकास (Surface drainage)
इस तवतध में जलतनकास भूतम की ऊपिी सतह पि तनर्मणत खुली नातलयों द्वािा ककया जाता है । यह एक
आसान तवतध है । इसमें स्िायी नातलयाँ (िें डम नातलयाँ, समानान्ति नातलयाँ, क्यािी तवतध आकद) बनाकि
पानी को तनकाला जाता है । इन स्िायी नातलयों के अततरिि कु छ अस्िाई एवं करआउर नातलयां भी पृष्ठीय
जल तनकास का कायण किती है ।
(B) अवपृष्ठ जलतनकास (Sub-surface drainage)
भूतम के अन्दि के पानी को बाहि तनकालने की कक्रया को अवपृष्ठ या भूतमगत जलतनकास कहते हैं। इन
नातलयों की गहिाई एक मीरि तक िखीं जा सकती है। यकद पानी का स्ति अतधक ऊँचा न हो तो यह गहिाई दो
मीरि तक बढाई जा सकती है। इन नातलयों की दूिी 10 से 60 मीरि तक मृदा पािगम्यता (permeability) के

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आधाि पि िखी जा सकती है। भूतमगत जल तनकास नातलयाँ अच्छी िहती है, पिन्तु भाित में खुली नातलयाँ ही
जल तनकास के तलए प्रयोग में लाई जाती है। भूतमगत तजल तनकास की तनम्न उपतवतधयाँ हैं:
(i)राइल िेन्स: इसमें पकी हुई तमट्टी या सीमेंर की ढली हुई 30 से.मी. लम्बी औि 10-15 से.मी. व्यास वाली
अद्ण बेलनाकाि खपिै ल (राइल) का इस्तेमाल ककया जाता है ।
(ii)पाइप िेन्स: इस तवतध में 10 सेमी. व्यास वाले तछद्र युि लोहे या प्लातस्रक के पाइपों (perforated
pipes) को भूतम के अन्दि सहायक नातलयों के रूप में प्रयोग ककया जाता है।
(iii) स्रोन िेन्स : इस तवतध में नातलयों का तनमाणर् ईंरों व पत्ििों की सहायता से ककया जाता हैं।
(iv)मोल िेन्स :इसमें तवशेर् प्रकाि के मोल हल के द्वािा भूतम की सतह से नीचे एक तनतित गहिाई पि, सतह
की तमट्टी को तबना खोले एक नाली बना दी जाती है, तजसे मोल नाली कहते है ।
भूतमगत जल तनकास के कािर् र्सलों की जड़ों के पास अतधक मात्रा में वायुसंचाि होने से र्सलों की वृतद्
अच्छी होती है।
खपिै ल जल तनकास प्रर्ाली का अतभकल्पन (Design of Tile Drainage)
क्षेत्र के भीति राइल नातलयों का तवन्यास या तवतिर् (layout or distribution) तनम्न प्रर्ातलयों द्वािा
ककया जाता है:
(i) प्राकृ ततक प्रर्ाली (Natural system): इस प्रर्ाली में बनी नातलयां ढाल की कदशा के साि-साि होती है
तजनका पानी तालाबों, नहिों अिवा नालों में तमल जाता है।
(ii) हैटिं गबोन प्रर्ाली (Harring bone system): इस प्रर्ाली में मुख्य नाली का तनमाणर् खेतों के बीचों बीच
ककया जाता हैं तिा सहायक नातलयाँ दोनों तिर् बनाई जाती हैं।
(iii) तगिीतडिोन प्रर्ाली(Giridiron system): इस प्रर्ाली में जल तनकास की मुख्य नाली तनचले एक तसिे पि
तिा सहायक नातलयाँ ऊपिी सतह की ओि बनाई जाती हैं।

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