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Class Notes on Agro-5212 :Lecture-1 : Written By Dr.G.S.

Tomar,Professor
(Agronomy),CARS,Mahasamund (CG) for B.Sc. Ag.(Hons.) IInd Year

Lecture-1
खरपतवार-पररचय, खरपतवारों से हाांनिकारक एवां लाभदायक प्रभाव,
(Weeds- introduction, harmful and beneficial effects of weeds)

प्रकृ नत िे मािव जानत को पौधे और विस्पनतयों का अमूल्य खजािा ददया है नजिके वगैर हम पृथ्वी

पर जीनवत िहीं रह सकते है परन्तु यह भी सत्य है की सभी पौधों को अबाध गनत से उगिे और बढ़िे िहीं

ददया जा सकता। नवश्व में तीि लाख से अनधक पौधों की प्रजानतयााँ पाई जाती है, नजिमे से के वल 3000
जानतयाां आर्थिक रूप से फायदेमांद पाई गई है। जब आर्थिक महत्त्व की प्रजानतयााँ अथाित फसलें खेतों में उगाई
जाती है, तो उिके साथ बहुत से अवाांनित पौधे भी स्वतः उग जाते है जो फसल उत्पादि और उत्पाद की
गुणवत्ता को भारी िनत पहुांचाते है । इन्ही अवाांिनिय पौधों (unwanted plants) को हम खरपतवार यानि
दुष्ट पौधे कहते है। खरपतवार अवाांछिीय पौधे होते है परन्तु सभी अवाांनछत पौधे खरपतवार िहीं हो सकते ।
यदद कोई पौधा प्राकृ नतक रूप से उगकर मािव के दैनिक दिया कलाप को प्रभानवत िहीं करता, उससे कोई
हानि िहीं होती तो वह खरपतवार िहीं होगा । उदाहरण स्वरूप दूबघास (Cynodon dactylon) नवश्व की
खेती वाली भूनमयों का प्रमूख खरपतवार है, परन्तु इसे जब लॉि, चारागाह, भूनम कटाव रोकिे, घासदार जल
निकास मागि (grassed water ways) एवां भूनम सांरिण (soil conservation) से सम्बनधत नवनभन्न उद्धेश्यों
के नलए उगाया जाता है तो वहॉं दूबघास खरपतवार िहीं है । कभी कभी दकसाि अज्ञािता या अपेिा वश एक
फसल के साथ दूसरी फसल के नमले बीजों की बुआई कर देता है, जो अिावश्यक होती है । ऐसी नस्थनत में एक
शुद्ध फसल में दूसरी फसल के पौधे अिचाहे उग जाते है, नजन्हे खरपतवार की श्रेणी में रखा जाएगा जैसे गेहुां की
शुद्ध फसल में जौ का पौधा ।
दकसी प्राकृ तवास (habitat) में चार दकस्म के पौधे (फसलें, जांगली पौधे, रोग तथा खरपतवार) पाए
जाते हैं । फसलें आर्थिक उद्देश्य से उत्पादि प्राप्त करिे के नलए उगाई जाती है । जांगली पौधे स्वतांत्र रूप से
प्रकृ नत में उगते हैं परन्तु उिसे मिुष्य तथा मिुष्य के दैनिक दियाकलाप में कोई िनत िहीं होती है । रोग दकसी
फसल में दूसरी फसल के अिावश्यक और अनिनछछत पौधे होते तथा खरपतवार वे पौधे होते हैं जो उस स्थाि
पर उगते है जहाां उसकी आवश्यकता िहीं हो । ये अनिनछछत अलाभकर, प्रायः फै लिे वाले, प्रनतस्पधाि करिे

वाले हानिकारक और यहॉ तक दक नवषैले पौधे होते हैं । ये कृ नष कायो में बाधा उत्पन्न करते हैं, श्रम एवां
उत्पादि व्यय को बढाते है तथा फसल की उपज को घटाते है । इस प्रकार खरपतवार भूनम एवां जल सांसाधिों
के उपयोग में हस्तिेप करते है । खरपतवार शब्द का प्रयोग सविप्रथम जेथ्रो तुल (1731) िे अपिी दकताब हॉसि
होइांग हसबेंडरी में दकया. खरपतवारों को अिेक प्रकार से पररभानषत दकया गया है, जो इस प्रकार है.

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 ब्रैंकले (1920) के अिुसार-खरपतवार एक ऐसा पौधा है जो इतिी अनधक मात्रा में उगता है दक अनधक
महत्वपूणि पोषक गुणों वाले दूसरे पौधों की बढ़वार को रोक देता है.
 रॉनबन्स,(1952) के अिुसार-खरपतवार पौधों की ऐसी जानतयााँ है, जो अवाांनित रूप में उगती है या
जो उपयोगी िहीं है ।ये प्रायः प्रचुरता से उगिे वाली तथा दीधि स्थायी है और कृ नष कायों में बाधा
डालकर श्रम की लागत बढाती है तथा उपज को कम करती है ।
 वील के अिुसार-खरपतवार वह पौधा है जो उनचत स्थाि पर ि उगता हो ।
 दकसी भी फसल में स्वतः उगिे वाले पौधे खरपतवार कहे जाते है ।
 खरपतवार वह पौधा है नजसकी िमता अछछाई की अपेिा िुकसाि करिे की कहीं अनधक हो (पीटर)
उपरोक्त पररभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है दक खरपतवार अवाांनधत पौधे है, जो नबिा बोये ही
खेतों अथवा अन्य स्थािों पर उगकर तेजी से बढ़ते तथा फू लते-फलते है और फसलों की उपज को कम करते है
तथा मिुष्य के कायो को प्रभानवत करते है ।
खरपतवारों से हानियााँ
(Harmful effect of weeds or Losses Caused by weeds)
यह निर्विवाद सत्य है दक खरपतवारों की उपनस्थनत फसल की उपज को कम करिे में सहायक है.
दकसाि जो अपिी पूणि िमता व साधि फसल की अनधकतम उपज प्राप्त करिे के नलए लगाता है. ये अिैनछछक
पौधे इस उद्देश्य को पूरा िहीं होिे देते. खरपतवार फसल के पोषक तत्व, िमीं,प्रकाश, स्थाि आदद के नलए
प्रनतस्पधाि करके फसल की वृनद्ध,उपज एवां गुणों में कमीं कर देते है. कीट-रोगों से होिे वाली फसल उपज में
कमीं की भाांनत की अपेिा खरपतवारों से हुई हानि स्पष्ट रूप से ददखाई िहीं देती परन्तु इिसे सवािनधक उपज
में कमीं आ जाती है । आमतौर पर नवनभन्न फसलों की पैदावार में खरपतवारों द्वारा 10 से 85 प्रनतशत तक की
कमीं आांकी गयी है. खरपतवार फसलों के नलए भूनम में निनहत पोषक तत्व एवां िमीं का एक बड़ा नहस्सा
शोनषत कर लेते है तथा साथ ही साथ फसल को आवश्यक प्रकाश एवां स्थाि से भी वांनचत रखते है.फलस्वरूप
पौधे की नवकास गनत धीमी पड़ जाती है एवां उत्पादि स्तर नगर जाता है. नवनभन्न व्यानधयों द्वारा कृ नष में
प्रनतवषि होिे वाले िुकसाि का ब्यौरा सारणी- में ददया गया है.
सारणी: भारत में नवनभन्न व्यानधयों द्वारा कृ नष में वार्षिक हानि का नववरण
व्यानधयााँ प्रनतवषि हानि
करोड़ रूपये प्रनतशत
खरपतवार 51,800 37
कीट 40,600 29
रोग 30,500 22
अन्य व्यानध 16,800 12
योग 1,40,000 100
कृ नषत और गैर कृ नषत भूनमयों में खरपतवारों से होिे वाली हानियों का नववरण अग्र प्रस्तुत है ।

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(A) कृ नषकृ त भूनमयों (Agricultural lands) में खरपतवारों से हानियॉं


1.फसलों की उपज में कमीं: खरपतवार की उपनस्थनत फसल की पैदावार को प्रत्यि व परोि रूप से प्रभानवत
करती है । फसलों के साथ उगकर खरपतवार पोषक तत्व, िमीं स्थाि तथा प्रकाश के नलए सांघषि
(competition) करते है । स्वभाव से कठोर होिे के कारण खरपतवारों में इि पदाथो के अवशोषण की अनधक
शनक्त होती है । कभी कभी खरपतवार खेत से फसल की अपेिा अनधक मात्रा में पोषक तत्व ग्रहण करते है ।
परजीवी खरपतवार फसल से पोषक तत्व ग्रहण कर उन्हें कमजोर या समाप्त कर देते है । इससे उपज में नगरावट
आ जाती है। यह हानि शून्य से शत प्रनतशत तक हो सकती है । उपज में हाांनि खरपतवारों के प्रकार,सघिता
और उगिे के समय पर निभिर करती है. नछटकवाां नवनध से बोई गई फसलों की उपज में सवािनधक िुकसाि होता
है।खरपतवारों की फसलों के साथ नवपरीत पररनस्थनतयों जैसे सूखे की नस्थनत में स्पधाि तीव्र हो जाती है.
नवपरीत पररनस्थनतयों में खरपतवारों की बढ़वार फसलों की तुलिा में तेजी से होती है. बढ़वार के कारण
खरपतवार भूनम से पोषक तत्वों, िमीं एवां प्रकाश का शीघ्र उपयोग करते है. फलस्वरूप, ये सांसाधि फसलों को
उपलब्ध िहीं हो पाते है नजससे उिकी बढ़वार तथा प्रनत इकाई उपज में कमीं हो जाती है. स्पधाि की नस्थनत के
आधार पर फसलों की उपज में 0-100 प्रनतशत तक की कमीं आ सकती है. भारतवषि में खरपतवारों से कृ नष
उत्पादि में प्रनत वषि 51,800 करोड़ रूपयें से अनधक की हाांनि का आकलि दकया गया है ।
2.कृ नष उत्पादि लागत में वृनद्ध: खरपतवारों को समाप्त करिे के नलए खेत की बार-बार जुताई करिी पड़ती है
नजससे जुताई का व्यय लगभग दुगुिा हो जाता है । नजस मौसम में खेत में कोई फसल बोई ि गई हो तो उस
दशा में खरपतवारों को निकालिे के नलए जुताई करिे से उत्पादि लागत में और बढ़ोत्तरी हो जाती है . इसके
अनतररक्त निराइ, गुड़ाई, फसल की कटाई, गहाई तथा दािों की सफाई में भी अनतररक्त व्यय लगता है नजससे
उत्पादि व्यय बहुत अनधक बढ़ जाता है ।
2.फसलों की जलमाांग में वृनद्ध: फसलों की ही भाांनत खरपतवार अपिी वृनद्ध, वाष्पी- वाष्पोत्सजिि हेतु जल का
उपयोग करके जल माांग (water requirement) में वृनद्ध करते है नजससे अनधक नसचाई करिी पड़ती है। भूनम में
मृदाजल की व्यवस्था यदद अनतररक्त ससांचाई से ि की जाये तो िमीं की कमीं से फसलें खरपतवारों से पहले ही
सूख जाती है ।
3.कृ नष सांसाधिों के प्रभाव को सीनमत करिा: खेतों में खरपतवारों की उपनस्थनत फसल में प्रयोग दकए गए
उविरकों, कीटिाशकों एवां ससांचाई सांसाधिों के प्रभाव को सीनमत करते है तथा इिकी उपनस्थनत फसल की
कटाई में समस्या का कारण बिती है.
4.कृ नष उत्पाद मूल्य में कमीं: खरपतवार के वल प्रनत इकाई फसल उपज को ही कम िहीं करते बनल्क कृ नष
उत्पादों के गुणों पर भी प्रनतकू ल प्रभाव डालते है । उदाहरण के टूर पर पररजीवी खरपतवार स्राइगा ल्यूरटया
गन्ने के जूस के गुणों को कम करते है. सरसों के बीज के साथ सत्यािाशी (Argemone maxicana) के बीज
नमलिे से तेल के गुण, स्वाद,रां ग तथा गांध में खराबी आ जाती है तथा तेल को जहरीला भी बिा देती है. कु छ
खरपतवार ऐसे भी होते है जो पशुओं के चारे की गुणवत्ता को खराब कर पशुओं द्वारा खाये जािे पर दूध में
दुगिन्ध पैदा हो जाती है. उदाहरण के नलए जांगली प्याजी, जांगली लहसुि, हुलहुल आदद चारे की फसलों के साथ
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पशुओं को नखलािे से दूध में दुगिन्ध आ जाती है. नचर-नचटा व गोखुरू के बीजों के उलझिे से भेड़ों के ऊि के
गुणों पर प्रनतकू ल प्रभाव पड़ता ।
6. फसलों के कीट व रोगों को आश्रय: खरपतवार कीटों,सूत्रकृ नमयों एवां रोगों के जीवाणुओं के वैकनल्पक
परपोनषयों (alternate host) का कायि भी करते है. जब खेत में फसल बोई जाती है तो ये कारक फसलों को
िुकसाि पहुांचाते है. मुख्य फसल की कटाई के उपरान्त फसलों के कीट, रोग व्यानधयों के नवषाणु तथा पराश्रयी
पौधे (host) खरपतवारों पर शरण पाते है और पुिः फसलों पर चले जाते है । प्रमुख शरणदाता खरपतवारों को
साररणी में ददया गया है.
सारणी-कु छ प्रमुख कीट और रोगों को शरण देिे वाले खरपतवार
फसल पेस्ट शरणदाता (खरपतवार)
धाि तिा छेदक इकिोक्लोआ, पैनिकम
अरहर ग्राम के टरनपलर अमरें थस, धतूरा
मक्का डाउिी नमल्यू काांस (सैन्िम स्पािटेनियम)
बाजरा अरगट सेन्िस नसनलयाररस
गेंहू ब्लैक रस्ट एग्रोपाइराि ररपेन्स
कद्दू कु ल मेलि माहू नहरिखुरी,नचकवीड
7.भूनम के मूल्य में कमी: बहुवार्षिक तथा समस्याग्रस्त खरपतवारों जैसे काांस (Saccharum
spontaneum),मोथा (Cyperus rotundus), बिचरी (Sorghum halepense),झड़बेरी (Zizyphus
rotundifolia), मदार (Calotrips spp.), लेंटािा आदद के प्रकोप के कारण भूनम कृ नष कायि के अयोग्य या कम
उपयोगी रह जाती है नजससे भूनम के मूल्य में नगरावट आ जाती है. इि खरपतवारों को िष्ट करिे में मशीिरी
और श्रम पर अनधक व्यय करिा पड़ता है ।
8.फसलों की प्रजानतयों की अिुवाांनवक शुद्धता में नगरावट: वातावरण में फसलों तथा खरपतवारों में पर
परागण होिे के कारण फसल के बीजों की आिुवांनशक शुद्धता नगर जाती हे ।
9.मिुष्यों एवां पशुओं के स्वास्थ्य पर प्रनतकू ल प्रभाव: कु छ खरपतवार मिुष्यों में एकनक्जमा, एलजी तथा
खुजली पैदा करते है । यह नस्थनत खरपतवारों से आछछाददत खेतों में काम करिे वाले श्रनमकों के साथ उत्पन्न
होती है। इस प्रकार के खरपतवारों को अग्र सारणी में ददया गया है.
सारणी-खरपतवार जनित स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें
स्वास्थ्य समस्या कारक खरपतवार
त्वचा की एलजी (डमेटाईरटस) पार्थिनियम (गाजर घास),एम्ब्रोनसया
खुजली और सूजि युररका प्रजानत
‘हे’ फीवर और अस्थमा एम्ब्रोनसया तथा फ्ाांसेररया के परागकण
मछछरों द्वारा फै लिे वाले मलेररया,मनस्तष्क ज्वर और पािी के खरपतवार जैसे नपनस्टया लेंनसयोलेट
फ़ाइलेररया रोग ,साल्वीनिया ऑरीक्यूलाटा

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बहुत से खरपतवारों में जहरीले एल्के लोयड, साइिोजेनिक,ग्लूकोसाइड, ऑक्जेलेट एवां िाइरेट आदद तत्व पाये
जाते है जो दक पशुओं द्वारा खािे पर उिके स्वास्थ्य पर प्रनतकू ल प्रभाव डालते है. जैसे बिचरी की प्रारनम्भक
अवस्था में प्रूनसक अम्ल की अनधकता होती है, जो पशुओं के नलए घातक होता है.
10.पयािवरण पर प्रभाव: कु छ खरपतवारों से नवषाक्त पदाथि निकलते है जो वातावरण को प्रदूनषत कर देते है ।
इसके कारण अिेक फसलों का अांकुरण और वृनद्ध प्रभानवत होती है, जैसे गाजर घास ।
(B) अकृ नषत भूनमयों के खरपतवारों से हानियॉं
1.खरपतवारों के कारण सड़कों के दकिारे , रे लवे लाइि के आसपास, उद्याि हवाई अड्डों, पयिटक स्थलों, खेल के
मैदािों इत्यादद की सुन्दरता समाप्त हो जाती है ।
2. वार्षिक खरपतवारों के सूखिे से उिके सूखे पौधों व पनत्तयों में आग लगिे की सम्भाविा रहती है ।
कारखािों, पावर हाउस और रे लवे लाइि के आसपास ऐसी दुघिटिाएां प्रायः होती रहती है ।
3.सड़कों के दकिारे खरपतवारों की अनधक बढ़वार के कारण अगल-बगल की वस्तुएां ददखलाई िहीं पड़ती है ।
इस प्रकार सड़काां के मोड़पर नवशेष कर अन्धे मोड़ो पर प्रायः दुघिटिाएां हो जाया करती है ।
4.खरपतवार के पौधे प्रायः ऐसे स्थािों पर भी उगते पाए जाते है जहॉं कोई दूसरा पौधा िहीं उगता है । ये
पौधे नवनभन्न प्रकार के होते है नजसके कारण इिमें नवनवध प्रकार के कीड़े मकोड़े, चूह,े खरगोस आदद कु तरिे
वाले जीव तथा नचनड़या निवास करती है । इिकी उपनस्थनत वातावरण को खराब करिे में सहायता करती है ।
(C) जलीय िेत्रों के खरपतवारों (Aquatic weeds) से हानियॉं
1. ससांचाई की िानलयों, िहरों, तथा अन्य जल प्रवाह िेत्रों में फै लकर बढ़िे वाले खरपतवार जलप्रवाह को
अवरूद्ध कर देते है. जैसे िहरों में उगिे वाली जलकु म्भी (Water hyacinth) आदद ।
2.जल निकास की िानलयों में खरपतवारों की उपनस्थनत के कारण जल निकास में बाधा पड़ती है । इससे
फसलों को अनधक िुकसाि होता है ।
3.पािी के िलों, भूनमगत ससांचाई की पाइप इत्यादद से खरपतवार की पनत्तयों तथा काई आदद की वृनद्ध से जल
प्रवाह में बाधा उत्पन्न हो जाती है ।
4.खरपतवारों से आछछाददत जल में प्रकाश और ताप के प्रवेश में बाधा पड़ती है नजसका जलीय जन्तुओं
नवशेषकर मछनलयों पर हानिकारक पभाव पड़ता है । ऐसी नस्थनत में जल में मछनलयो के भोजि से सम्बनन्धत
पदाथि (फाइटोप्लैंकटि) की वृनद्ध कम होती है । खरपतवारों की जड़े श्वसि दिया में काबिि डाई आक्साइड
छोड़ती है जो पािी में घुलकर मछनलयों की श्वसि दिया को प्रभानवत करती है । खरपतवारों के अवशेष पािी
में सड़ गल कर भूनम की अम्लीयता बढ़ाते है नजसका मछनलयों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है. खरपतवारों के
कारण मछनलयों के प्रजिि और जाल से पकड़िे में भी असुनवधा होती है ।
5.जलीय खरपतवारों के प्रकोप से जलमग्न भूनमयों के धाि, ससांघाड़ा, कमल, कलमी साग आदद की खेती पर
बुरा प्रभाव पड़ता है ।
6,जलाश्यों का सौन्दयि नविष्ट हो जाता है ।
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7.खरपतवारों के कारण पािी में मछछर तथा अन्य हाांनिकारक कीट-रोग पिपते है जो मिुष्य और पशुओं में
अिेक रोग फै लाते है ।
8.खरपतवार के बीज के फै लािे में जल का प्रमुख स्थाि है । इस प्रकार ऐसे जलाशयों के पािी से ससांचाई करिे
पर खरपतवारों के बीज ससांचाई जल के साथ खेतों में पहुाँचते रहते है।
9.जलाशयों में तैरिे वाले खरपतवारों के कारण िाव, स्टीमर आदद के चलिे में रूकावट आती है ।

खरपतवारों से लाभ (Beneficial effect of Weeds)


पृथ्वी पर उगिे वाला कोई भी पौधा पूणितः निष्प्रयोजि िहीं है । प्रत्येक पौधा दकसी ि दकसी प्रकार
पृथ्वी पर अपिे अनस्तत्व को साथिक नबिाए हुए है । इि पौधो की साथिकता की सीमा एक प्राकृ तवास से दूसरे
प्राकृ तवास में नभन्न होती है । इसी प्रकार अलग अलग प्रकार के पौधों की अलग-अलग उपयोनगता होती है
खरपतवार के पौधे उनचत प्रबन्ध करिे पर नवशेष उपयोगी नसद्ध हो सकते है । खरपतवारों के कु छ लाभदायक
प्रभाव निम्न नलनखत है ।
1. खरपतवार के पौधे जीवि चि समाप्त होिे के उपरान्त सड़गल कर भूनम में जीवाशां पदाथि की वृनद्ध करते है ।
कु छ खरपतवार जैसे इकाइिोक्लोवा कोलोिम (साांवा), मेनडकागो डेण्टीकु लेटा (जांगली ररजका), कै नसया तोरा
(चकवढ़) तथा नसरररस्पेसीज (ब्राजीनलयि लूसिि) को हरी खाद के रूप में प्रयोग दकया जा सकता है । बहुत से
खरपतवारों जैसे नपनस्टया आदद के पौधों से कम्पोस्ट खाद तैयार की जाती है ।
2. दलहिी खरपतवारों में वायुमण्डलीय िायरोजि का योनगकीकरण करिे की िमता के कारण इिसे भूनम की
उविरता में वृनद्ध होती है । नद्वदलीय खरपतवार सेंजी (मेनललोटस अल्बा) वायुमांडल से 120 दकग्रा. प्रनत हेक्टेयर
तक ित्रजि एकनत्रत करता है.
3. फै लकर बढ़िे वाले खरपतवार नवशेषकर बहुवार्षिक घासें तथा कु छ दलहिी खरपतवार के पौधे मृदाकटाव
की रोक थाम में सहायता करते है । इि पौधों के भूनम पर फै लकर बढ़िे से स्वभाव के कारण एक ओर जहॉेेेां
मृदा तल बूांदों के आघात से सुरनित रहता है, वहीं दूसरी ओर जल प्रहार को अवरूद्ध करके अनधक मात्रा में
वषाि जल को शोनषत (absorb) कर जल प्रहार को मांद कर देते है, नजससे कटाव (erosion) कम होता है ।
वायु से होिे वाले कटाव को रोकिे में नवनभन्न खरपतवार के पौधे नवशेष उपयोगी होते है ।
4. खरपतवारों का मृदा निमािण में पयािप्त योगदाि होता है । खरपतवार की जड़े भूनम में गहराई तक प्रवेश

करके उसे भुरभुरी बिािे का कायि करती है। इि पौधों की जड़े चटािों के बीच में प्रवेश करके , इिके मध्य अपिे

अवशेष छोड़ती है, जो चट्टािों के अपिय हेतु उपयुक्त वातावरण उत्पन्न करता है ।

5. खरपतवार के पौधे अिेक प्रकार से आर्थिक दृनष्ट से लाभ दायक होते है । नवनभन्न प्रकार के खरपतवार के पौधे

का उपयोग, रस्सी, छप्पर, चटाई, छड़ी तथा कु सी बिािे, कागज की लुगदी बिािे, खािा पकािे की जलाविी
लकड़ी आदद के काम आती है ।

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6. बहुत से खरपतवारों से देशी पद्धनत से रोग निवारण दकया जाता है तथा आयुवेद में इिसे बहुमूल्य
औषनधयों का निमािण दकया जाता है. गुमा (Leucus aspera) खरपतवार से दवाइयाां बिाई जाती है जो साांप
काटिे पर प्रयोग की जाती है. मकोई (Solanum nigram) से पीनलया रोग की दवा (live-52) बिाई जाती
है. गोखुरू के बीज से दकडिी की पथरी के इलाज की दवा बिाई जाती है. कु छ खरपतवारों से कीड़े मकोड़े को
मारिे की दवा तथा पौधें की वृनद्ध के हारमोि बिाए जाते है ।
7. खरपतवारों का सूचक पौधे (indicator plant) के रूप में नवशेष महत्व है । मृदा कटाव के कारण जब कोई
घास स्थली पूणितः नविष्ट हो जािे पर वहॉं उगिे वाली विस्पनत्तयों के आधार पर मृदा की उविरता का आांकलि
दकया जाता है और इसी आधार पर घास स्थली के पुििजिि की बिाई गई योजिा नवशेष प्रभावी हेती है.
अिेक स्थािों की भूनम और वातावरण की अवस्था का आांकलि वहाां उगिे वाली विस्पनत्त के आधार पर करिे
में सहायता नमलती है । खरपतवारों से रोग व्यानधयों के प्रकोप, पोषक तत्व की कमीं, जल की नस्थनत का भी
अिुमाि लगािे में सहायता नमलती हैं ।
8. फसलों की िई प्रजानतयों को नवकनसत करिे के नलए खरपतवारों के कु छ पौधों को अिुवाांनशक पदाथि के रूप
में प्रयोग दकया जाता है । इस प्रकार फसलों में वाांनछत दकस्म के शस्य-वैज्ञानिक तथा दैनहकी गुणों को नवकनसत
करिे में सहायता नमलती है.
9. ऊसर भूनम के सुधार हेतु कु छ खरपतवारों का प्रायोग नवशेष लाभदायक होता है. इस कायि में सत्यािाशी
(आजीमोि मेनक्सकािा), सेंजी (मेलीलोटस इनन्डका) इत्यादद खरपतवार मुख्य रूप से प्रयुक्त होते है ।
10. खरपतवारों का प्रयोग बाांधों/तालाबों की सुरिा हेतु नवशेष उपयोगी पाया गया है । नवनभन्न प्रकार के
बाांधों व तालाबों की मेड़ों पर खरपतवार के पौधों के लगाकर पािी से कटकर बहिे से सुरिा प्रदाि की जाती
है।
11. खरपतवार नवशोषकर पािी में उगिे वाले खरपतवार पािी में घुली भारी धातुओं का उपयोग करके जल
को शुद्ध करिे में लाभदायक पाए गए हैं । इस कायि हेतु इछेनिया िनसप्स (जलकु म्भी) नवशेष उपयोगी है ।
12. कु छ खरपतवारों की पनत्तयों, पौधें एवां फू लों को सजावट के नलए उपयोग करते है. इसके अनतररक्त इिके
पौधो कों गमलों में उगाया जाता है ।
13. खरपतवारो का जैनवक सन्तुलि बिािे में नवशेष महत्व हैं। जैव िेत्र का खरपतवारों के प्रमुख अांग होिे के

कारण ये जीव जन्तुओं को आश्रय, भोजि आदद प्रदाि करिे के साथ ही खरपतवार वायुमण्डल में काबििडाई
आक्साईड और आक्सीजि की मात्रा को सांतुनलत रखिे का महत्वपूणि कायि करते है ।
14. कु छ खरपतवार जैसे दूब घास पशुओं के नलए हरे चारे के रूप में इस्तेमाल की जाती है । इसके अलावा
मोथा,नहरिखुरी, बथुआ,जांगली गोभी,जई, गेंहू का मामा जैसे अिेकों खरपतवारों को पशु चाव से खाते है.
15. बहुत से खरपतवार शाक-भाजी के रूप में प्रयोग दकये जाते है, जैसे िुनिया (पोचुिलाका ओलेरेनसया),
चौलाई,बथुआ,नचकौड़ा, कलमी साग आदद ।

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