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12/30/2019 वैक क फसल के प म सुग त घास | Hindi Water Portal

वैक क फसल के प म सुग त घास


Author दीपक कुमार वमा, रजनीश कुमार एवं रमेश कुमार Source Submitted by UrbanWater on Tue, 09/19/2017 - 16:37
िव ान गित, िसत र 2017

लखनऊ थत सीएसआईआर के अ णी सं थान के ीय औषधीय एवं सगंध पौधा सं थान (सीमैप) ारा अनेकों ऐसी फसलों के
साथ-साथ नींबू घास अथवा (लेमन ास) और रोशाघास (पामारोजा) तथा िसटोनेला (जावा घास) की उ त खेती हे तु कृिष
ौ ोिगकी व अिधक उपज दे ने वाली िक ों का िवकास िकया गया है । इस कार िवकिसत उ त ौ ोिगकी को िकसानों और
उ िमयों म लोकि य बनाने के िलये समय-समय पर िश ण और दशन काय म चलाए जाते रहे ह। इन सुग त घासों की
खेती व सं रण म लगभग 35-40 हजार कृषक अथवा उ मी प रवार सीधे तौर पर जुड़े ह तथा ितवष लगभग 50 लाख मानव
िदवसों के बराबर अित र रोजगार सृिजत हो रहे ह।

कृित ने हम सुग त पौधों का अनमोल खजाना दान िकया है िजनकी िविधवत खेती और तेल के आसवन से आज हमारे दे श म
हजारों िकसान लाभा त हो रहे ह। इन सुग त पौधों से िनकाले गए सुवािसत तेल िविभ कार की सुग यों के बनाने के
अित र एरोमािथरै पी म ब तायत से योग िकये जाते ह। लखनऊ थत सीएसआईआर के अ णी सं थान के ीय औषधीय एवं
सग पौधा सं थान (सीमैप) ारा अनेकों ऐसी फसलों के साथ-साथ नींबू घास अथवा (लेमन ास) और रोशाघास (पामारोजा) तथा
िसटोनेला (जावा घास) की उ त खेती हे तु कृिष ौ ोिगकी व अिधक उपज दे ने वाली िक ों का िवकास िकया गया है ।

इस कार िवकिसत उ त ौ ोिगकी को िकसानों और उ िमयों म लोकि य बनाने के िलये समय-समय पर िश ण और दशन
काय म चलाए जाते रहे ह। इन सुग त घासों की खेती व सं रण म लगभग 35-40 हजार कृषक अथवा उ मी प रवार सीधे तौर
पर जुड़े ह तथा ितवष लगभग 50 लाख मानव िदवसों के बराबर अित र रोजगार सृिजत हो रहे ह। सुग त उ ोग से जुड़े लोगों
के अनुसार इन सुग त घासों के तेल की बाजार म ितवष 15 से 20 ितशत की वृ हो रही है । ुत लेख म इन तीनों फसलों की
खेती व आय- य का संि िववरण िदया जा रहा है ।

नींबू घास (लेमन ास)

िस ोपोगॉन की िविभ जाितयों - िस ोपोगॉन े योसस और िस ोपोगॉन िसटे टस की पि यों से तेल ा िकया जाता है । इन
जाितयों को मशः ई और वे इ यन लेमन ास के नाम से जाना जाता है । एक तीसरी कार की जाित, िस ोपोगॉन
पडु लस (ज ू नींबू घास) से भी तेल ा िकया जाता है । इसके तेल म ती नींबू जैसी सुग पाई जाती है । इसके तेल का मु घटक
िसटल (80-90 ितशत) है । िसटल को ए ा-आयोनोन म प रवितत िकया जाता है । बीटा आयोनोन ग के प म योग होता
है और इससे िवटािमन-ए सं ेिषत िकया जाता है । ए ा आयोनोन से ग एवं अ कई सग रसायन सं ेिषत िकये जाते ह।

िसटल का योग इ , सौ य साम ी व साबुन बनाने म भी िकया जाता है । इसके अित र यह तेल पार रक औषिधयों म भी योग
होता है । भारत म इसकी खेती केरल, तिमलनाडु , कनाटक, म दे श, आसाम, पि म बंगाल, उ र दे श एवं महारा म की जाती
है । वतमान म अनुमािनत 15,000 हे े यर े फल म लेमन ास की खेती ारा लगभग 15000 टन तेल ितवष उ ािदत िकया जाता
है । िव म अ उ ादक दे श ाटे माला, मेडागा र, ाजील, चीन, इं डोनेिशया, थाइलड और है ती ह। नींबू घास के िलये उ तथा
समशीतो जलवायु उ म होती है । गम और आ जलवायु इसके िलये आदश माने जाते ह।

कम वषा वाले े ों एवं ढालू जमीनों म यह अिसंिचत फसल के प म भी उगाई जा सकती है । मृदा पीएच 9.0 तक म इसकी खेती की
जा सकती है । नींबू घास की खेती िविभ कार की मृदा म स व है पर ु उिचत जल िनकास ब न आव क है । नींबू घास के
िलये बलुई, दोमट मृदा सबसे उपयु है । नींबू घास के िलये साधारण भूिम की तैयारी पया रहती है । दो-तीन जुताइयों के बाद पाटा
लगाकर खेत तैयार हो जाता है । रोपाई के समय खेत खरपतवार रिहत होना चािहए। जड़दार कलमों ( ) को लगभग 60X30 या
60X45 सेमी की दू री पर िम ी म अ ी तरह दबाकर रोपना चािहए। सामा तः मैदानी एवं सम-शीतो भागों म नींबू घास की
रोपाई, वषा ऋतु (जुलाई, अग ) म की जाती है । िसंचाई की सुिवधा वाले े ों म फरवरी एवं माच म भी रोपाई की जा सकती है ।
फरवरी-माच म लगाई गई फसल की पैदावार थम वष 30 ितशत ादा होती है ।

के ीय औषधीय एवं सग पौधा सं थान ारा नींबू घास की उ तशील िक कृ ा, सुवणा एवं हाल ही म िसम-िशखर नामक एक

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अ जाित का िवकास िकया गया है िजससे लगभग 1.2% तेल ा िकया जा सकता है । इस जाित की पौध साम ी का ब गुणन
िकया जा रहा है । उवरक की मा ा मृदा के उपजाऊपन पर िनभर करती है । िसंिचत अव था म सामा मृदा म 150 िक ा नाइटोजन,
60 िक ा फा ोरस तथा 60 िक ा पोटाश की आव कता ितवष ित हे े यर होती है । फा ोरस एवं पोटाश की पूरी मा ा तथा
नाइटोजन की एक ितहाई मा ा रोपाई के समय दी जाती है तथा शेष नाइटोजन, ेक कटाई के बाद बराबर-बराबर मा ा म योग
करते ह। अिसंिचत अव था म 50 िक ा न जन, 30 िक ा फा ोरस एवं 20 िक ा पोटाश का योग वषा ऋतु म िकया जाना चािहए।

फसल थािपत हो जाने के प ात नींबू घास को अिधक पानी की आव कता नहीं होती है । िसंचाई का साधन होने पर वषा ऋतु को
छोड़कर पूरे वष म 5-6 िसंचाई करने से अिधक पैदावार िमलती है । सीिमत मा ा म पानी की उपल ता होने पर ेक कटाई के बाद
फसल की िसंचाई कर दी जाये तो अ ी पैदावार ली जा सकती है । फसल थािपत होने की पहली अव था (45 िदन) म हाथ से िनराई
करने की आव कता होती है । ार क अव था म हाथ से िनराई करने के थान पर िकसी फसल से ा अवशेष की पलवर
(म च) भी िबछाई जा सकती है । उससे खर-पतवार िनयं ण तो होता ही है । साथ-साथ मृदा की जल-धारण मता एवं फसल की
उवरक उपयोग मता म भी वृ होती है ।

रोपाई के 140-150 िदनों के प ात थम कटाई की जाती है । मृदा उवरता तथा वृ के अनुसार बाद की कटाइयाँ 90-100 िदन के
अ राल पर की जाती है । इसे भूिम की सतह से काटना चािहए। नींबू घास के शाक का वा -आसवन या जल आसवन कर तेल ा
करते ह। इसकी शाक को काटकर अ मुरझाई थित म आसिवत करते ह। नींबू घास के स ूण आसवन म लगभग तीन घंटे लगते
ह।

नींबू घास की कृ ा जाित से 5 वष की फसल के आधार पर िसंिचत अव था म 200-250 िक ा तेल ितवष/हे े यर ा हो जाता
है । अिसंिचत अव था म 100-125 िक ा तेल ितवष/हे े यर ा होता है । इस कार िसंिचत अव था म कुल आय लगभग पये
1,80,000/- ( पए 900/- ित िकलो तेल के औसत बाजार भाव के आधार पर) िविभ कृिष काय व आसवन पर य लगभग पये
45,000/- होता है व शु आय लगभग पए 1,35,000 ितवष/हे े यर ा होती है ।

पामारोजा (रोशा घास)

पामारोजा (रोशा घास) का सगंध तेल, ाकृितक सगंध रसायन िजरे िनयाल और िजरे िनल एसीटे ट का एक अ ा ोत है । इसकी
जाित िस ोपोगॉन मािटनी म वा शील तेल पाया जाता है । पामारोजा का तेल, मोितया िक को पामारोजा के ऊपरी भाग म फूल
आने के बाद आसिवत कर तेल ा िकया जाता है । िजरे िनयाल तथा िजरे िनयाल एसीटे ट सगंध रसायनों को तेल से अलग करने के
प ात सौ य साधनों और ाद गंध उ ोगों म योग म लाया जाता है । पामारोजा के तेल तथा इसके अवयवों की अ ररा ीय तथा
रा ीय बाजार म काफी माँ ग है ।

पामारोजा का तेल ह ा पीला होता है िजसम िजरे िनयाल 75 से 85 ितशत तथा िजरे िनल एसीटे ट 4 से 5 ितशत तक होता है । भारत
म इसकी खेती म दे श, महारा , गुजरात, राज थान, आ दे श एवं उ र दे श म लगभग 8000 हे े यर िसंिचत एवं अिसंिचत
दशाओं म दोनों तरह से की जाती है एवं लगभग 600 टन तेल का उ ादन िकया जाता है ।

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सीएसआईआर-के ीय औषधीय एवं सगंध पौधा सं थान, लखनऊ ने उपरो बातों को ान म रखते ए इसकी अिधक उपज दे ने
वाली जाितयाँ तथा उ त खेती के िलये श ि याएँ िवकिसत की ह जो िकसानों म लोकि य हो रही है । ऐसे े म जहाँ वष भर
सुिवत रत वषा, 30 से 400C के म तापमान तथा वायुम लीय आ ता 80 ितशत से अिधक हो, आदश माने जाते ह। जाड़े के िदनों
म जब तापमान 200C या इससे कम हो जाता है तो इसकी बढ़वार क जाती है । बलुई दोमट भूिम िजसम जल-िनकास की समुिचत
व था हो, पामारोजा की खेती के िलये उपयु है । साधारण लवणयु भूिम म (9 पीएच तक), ऊँची-नीची, बलुई तथा भारी जमीनों
म भी इसकी खेती सफलतापूवक की जा सकती है । खेत म थोड़े समय के िलये (3-4 िदन) पानी भराव हो जाने से पौधे की बढ़वार पर
ितकूल भाव पड़ता है ।

बुवाई से पूव खेती को दो से तीन जुताइयाँ पया होती ह। ेक जुताई के बाद पाटा अव लगा दे ना चािहए रोपाई/बोवाई से पूव
खेत खरपतवार रिहत होना चािहए। सीमैप ारा िवकिसत पी.आर.सी.-1, तृ ा, तृ ा, एवं वै वी, पामारोजा की अिधक उपज दे ने
वाली जाितयाँ ह। यह सभी जाितयाँ दे श के िविभ भागों म िकसानों ारा तेल उ ादन हे तु उगाई जा रही ह। पामारोजा को नसरी
म पौधे तैयार कर पौध रोपण अथवा बीजों को सीधे खेत म बुवाई कर उगाया जा सकता है । नसरी तैयार कर खेत म पौध की रोपाई
करना लाभकारी रहता है ।

एक हे े यर े फल म पौध ारा रोपाई के िलये 4-5 िक ा बीजों को 5-6 गुना िम ी म िमलाकर छोटी-छोटी ा रयों जो भूिम व
सतह से 10-15 सेमी ऊँची हों, म बो दे ते ह। ह ी गुड़ाई करके बीज को िम ी म िमला दे ते ह। त ात ा रयों की हजारे से िसंचाई
कर दे ते ह। हजारे से िसंचाई 3-4 िदन तक करते रहते ह। इसके बाद साधारण िविध ारा िसंचाई करते ह। रोपाई के िलये 30-35 िदन
पुरानी पौध, उखाड़कर 60X30 अथवा 45X30 सेमी की दू री पर लगाकर िसंचाई कर दे ते ह। िछड़काव िविध से खेती करने के िलये
10-12 िक ा बीज, 15-20 गुना बालू या सूखी िम ी म िमलाकर 60 अथवा 45 सेमी की दू री पर बनी कतारों म बोते ह। कूड़ों की गहराई
2-3 सेमी होनी चािहए अ था बीजों के अंकुरण पर ितकूल भाव पड़ता है । ब वष य फसल होने के कारण, िनयिमत प से
उवरक दे ना आव क होता है , लेिकन खाद एवं उवरकों की मा ा भूिम की उवरा श पर िनभर करती है ।

सामा तः वषा ऋतु म पामारोजा को अलग से पानी दे ने की आव कता नहीं होती, लेिकन उ र भारत के मैदानों म शरद ऋतु
(नव र से फरवरी) म कम-से-कम दो िसंचाई एवं ी ऋतु म तीन िसंचाइयों की आव कता होती है । पामारोजा को अिसंिचत
दशाओं म भी उगाया जा सकता है , लेिकन िसंिचत फसल की तुलना म उपज लगभग 40-60 ितशत तक कम हो जाती है । िसंचाई के
साथ-साथ पामारोजा म जल िनकास की भी उिचत ब होना चािहए। पामारोजा म ार क 40-50 िदन तक 1-2 िनराई एवं शरद
ऋतु म ेक वष िनराई की आव कता पड़ती है । ेक कटाई के बाद एक गुड़ाई करना फसल के िलये लाभकारी रहता है ।

िसंिचत े ों म वष म मशः िसत र-अ ू बर, फरवरी-माच एवं मई-जून म तीन कटाई ली जा सकती ह एवं अिसंिचत े ों म दो
कटाई ली जा सकती है । जब पु म का रं ग ह े बादामी रं ग का हो जाये उस समय फसल को 25 सेमी जमीन के ऊपर से हँ िसए
ारा काट िलया जाता है उसके बाद इक ा कर आसवन ारा तेल िनकाल िलया जाता है पामारोजा की 5 वष की फसल के आधार पर
िसंिचत अव था म 125-150 िक ा तेल ितवष/हे े यर ा होता है । अिसंिचत अव था म 75-80 िक ा तेल ितवष/हे े यर ा
होता है । इस कार िसंिचत अव था म कुल आय लगभग पए 1,87,000/- ( पए 1500/- ित िकलो तेल के औसत बाजार भाव के
आधार पर) और िविभ कृिष काय व आसवन पर य लगभग पए 40,000/- होता है । िसंिचत अव था म शु आय लगभग पए
1,47,000 ितवष/हे े यर ा होती है ।

िसटोनेला (जावा घास)

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जावा घास या िसटोनेला सुग त तेल वाली ब वष य घास है िजसे वै ािनक भाषा म िस ोपोगॉन िव े रयेनस के नाम से जाना जाता
है । इसकी पि यों से तेल आसिवत िकया जाता है । िजसके मु रासायिनक घटक िसटे नेलोल, िसटोनेलॉल और िजरे िनयॉल इ ािद
ह। इसके तेल का उपयोग सौ य साधनों, साबुन, सुग उ ोग व म र भगाने वाले उ ादों म ब तायत से िकया जाता है । भारत म
िसटोनेला का उ ादन उ री पूव रा ों के अित र महारा म िकसानों और उ िमयों ारा िकया जाता है । उ ादक दे शों म
ीलंका, चीन, इं डोनेिशया, भूटान इ ािद मुख दे श ह। एक अनुमान के अनुसार भारत म िसटोनेला की खेती लगभग 2000 हे े यर
म की जाती है । िजसके ारा लगभग 200 टन तेल उ ािदत िकया जाता है ।

िसटोनेला की खेती के िलये उ र पूव े एवं तराई े की समुिचत जल िनकास वाली भुरभुरी व अ ी उवरा श यु भूिम
उपयु रहती है । भूिम का पीएच 5-7 के बीच सव म रहता है । िसटोनेला के िलये भूिम को अ ी तरह 2 से 3 जुताइयाँ करके पाटा
लगा दे ते ह इसके उपरा आव कतानुसार छोटी-छोटी ा रयाँ बना ली जाती ह।

फसल को स ुिलत मा ा म सभी कार के सू पोषक त ों की आव कता पड़ती है इसिलये 15 से 20 टन ित हे े यर गोबर की


खाद एवं एक महीने पूव भूिम म अ ी तरह जुताई के साथ िमला दे नी चािहए। के ीय औषधीय एवं सगंध पौधा सं थान ारा जावा
घास की उ तशील िक िसम-जावा, बायो-13, मंजूषा, मंदािकनी, जलप वी िवकिसत की गई ह। जड़दार कलमों अथवा को
लगभग 50X40 या 60X30 सटीमीटर की दू री पर िम ी म अ ी तरह दबाकर रोपना चािहए। सामा तः इसकी रोपाई फरवरी/माच
अथवा जुलाई-अग महीने की जाती है ।

20 से 25 टन सड़ी ई गोबर की खाद या 10 से 15 टन वम क ो अ म जुताई के समय खेत म िमला दे नी चािहए। 150:60:60


िक ा मशः न जन, फा ोरस, पोटाश (त के प म) ित हे े यर ितवष दे ना चािहए। न जन की मा ा को 4 बार म बराबर
मा ा म दे नी चािहए तथा फा ोरस एवं पोटाश लगाने के पूव अ म जुताई के समय खेत म िमला दे ते ह। पहली िसंचाई पौधरोपण
के तुर बाद तथा बाद की िसंचाइयाँ आव कतानुसार करनी चािहए। अिधक एवं कम पानी का फसल पर ितकूल भाव पड़ता है
यिद पया वषा हो रही हो तब िसंचाई न कर।

फसल थािपत होने के पहली अव था फसल रोपने के लगभग 20 से 25 िदन बाद पहली िनराई तथा दू सरी िनराई 40 से 45 िदन बाद
करना चािहए। इस कार से लगभग 1 वष म 4 से 5 िनराइयों की आव कता होती है । पहली कटाई रोपण 4-5 माह बाद और इसके
बाद तीन माह के अ राल पर वष म 3-4 कटाइयाँ करते रहना चािहए। जमीन से 15-20 सटीमीटर की ऊँचाई पर कटाई करनी
चािहए। जावाघास के शाक का वा आसवन या जल आसवन कर तेल ा करते ह। इसकी शाक को काटकर अ मुरझाई
अव था म आसिवत करते ह।

जावा घास का स ूण आसवन करने म लगभग 3 से 4 घंटे लगते ह। जावा घास की बायो-13 जाित से पाँ च वष की फसल के आधार
पर तेल की उपज 200-250 िक ा ित हे े यर ितवष ा हो जाती है । िविभ कृिष काय व आसवन पर य लगभग पए
40,000 से 45,000 ित हे े यर ितवष होता है तथा कुल आय पए 1,60,000/- से 2,00,000/- ितवष तथा शु लाभ औसत पए
1,20,000 से 1,60,000 ितवष ा होती है ।

औषधीय एवं सगंध फसलों की खेती पर िव ृत जानकारी एवं िश ण इ ािद के िलये स क कर।

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िनदे शक, सीएसआईआर-के ीय औषधीय एवं सगंध पौधा सं थान,


पो. आ. सीमैप, लखनऊ-226015
फोन नं. - 0522-2718598/599
ई-मेल : director@cimap.res.in)

लेखक प रचय

ी दीपक कुमार वमा, ी रजनीश कुमार एवं ी रमेश कुमार ीवा व, सीएसआईआर-के ीय औषधीय एवं सगंध पौधा सं थान,
लखनऊ-226 015

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