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आज के करे क्रम की दस

ू री श्रंखला में हम बात करें गे बांस की | बांस का नाम तो


सबने सन
ु ा है , लेकिन बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि बांस को खाया भी जाता
है । आप जो लंबे-लंबे बांस दे खते हैं, उन बांस के औषधीय गुण अनगिनत हैं, जिनसे
कई लोग अनजान हैं। शायद आप सोच रहे होंगे , इतने सख्त बांस का इस्तेमाल
स्वस्थ रहने के लिए कैसे किया जा सकता है । असल में बांस का सख्त भाग नहीं ,
बल्कि इसकी कोंपलों का उपयोग खाने के लिए किया जाता है । सदियों से औषधि के
रूप में इसे इस्तेमाल किया जाता रहा है ।

दे श की बड़ी आबादी अब भी खेती पर ही निर्भर है . खेती की मदद से करोड़ों किसानों


का घर चलता है . हालांकि, इसके बावजद
ू भी माना जाता है कि खेती फायदे का
सौदा... नहीं है . खेती में फायदे के लिए सरकारें कई तरह की योजनाएं लेकर आती हैं.
इसी तरह केंद्र सरकार बांस की खेती (Bamboo Farming India) के लिए भी एक एक
आधिकारिक वेबसाइट https://nbm.nic.in/ भी है , जिसपर किसानों को इससे जड़
ु ी हर
जानकारी मिलती है . 

बांस का इस्तेमाल कई तरह से किया जाता है . मुख्य रूप से इसका इस्तेमाल निर्माण
कार्यों जैसे- फर्श, छत की डिजाइनिंग और मचान आदि में होता है . इससे फर्नीचर . भी
बनते हैं. साथ ही, कपड़ा, कागज, लुगदी, सजावटी सामान आदि में भी बांस का
इस्तेमाल होता है . साथ ही, जब से केंद्र सरकार ने बांस की खेती को लेकर नियमों
नियमों को बदला है , तब से इसके उद्योग में काफी उछाल दर्ज किया गया है . बांस से
टोकरी, डंडा भी बनाया जाता है . हाल के दिनों में बांस से बनने वाली बोतलों का भी
चलन काफी तेजी से बढ़ा है . अभी दे श में तकरीबन 136 बांस की प्रजातियां हैं और हर
साल 13 मिलियन टन से अधिक बांस का उत्पादन होता है .

बांस उद्योग को बढ़ावा दे ने पर सरकार की लगातार प्रयास कर रही है । घरे ल ू बांस


उद्योग जैसे- फर्नीचर, हस्तशिल्प और अगरबत्ती बनाने में बड़े पैमाने पर मदद
मिलेगी और निर्माण सामग्री के रूप में बांस के उपयोग को बढ़ावा मिलेग ... सरकार
की ओर से राष्ट्रीय बांस मिशन की शरु
ु आत की गई है , जिसके तहत बांस की खेती
को प्रमोट किया जाता है . इस मिशन के तहत सरकार बांस की खेती करने वालों को
प्रति पौधे पर आर्थिक मदद दे ती है . सरकार किसानों को 120 रुपये प्रति पौधे के
हिसाब से बांस की खेती पर मदद मह
ु ै या करवाती है . एक्सपर्ट्स की मानें तो एक
हे क्टे यर में बांस के 2000 तक पौधे लगाए जा सकते हैं. हालांकि, इसका काफी ध्यान
रखना चाहिए कि अगर आप बांस लगा रहे हैं तो एक पौधे से दस
ू रे पौधे के बीच दरू ी
कम-से-कम दो से ढाई मीटर होनी चाहिए. इतना ही नहीं, आप बीच में कोई और
फसल लगा सकते हैं, जिन्हें कम धूप की जरूरत हो. एक बार बांस लगाने के बाद
आपको 30 सालों तक फिर से बांस उगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. ऐसे में अगर ठीक
ढं ग से बांस की खेती की जाए तो किसानों की बंपर कमाई हो सकती है .

पिछले साल सरकार ने सिंगल यूज प्लास्टिक (single use plastic) पर रोक लगाई
थी. सरकार के इस कदम से बांस उद्योग (bamboo industry) में उछाल आ गया है .
आज बाजार में बांस से बनी क्रॉकरी खब
ू बिक रही है . बांक की बोतल (Bamboo
Water Bottle), बांस के कप-प्लेट, चम्मच, कांटा, थाली, स्ट्रॉ जैसे उत्पादों की मांग
लगातार बढ़ रही है .

एक ऐसे संस्था जो छत्तीसगढ़ में कृषि और पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करती है |
की कैसे बांस को टे क्निकली कन्वर्ट करके इसका इस्तेमाल किया जा सकता है इसके
बारें में बात की हमने मनन पटे ल से जो की bhavya shristi udhyog में marketing
head है | …….

किसान जो बंजर भूमि या जलवायु परिवर्तन से परे शान होकर किसी तरह की खेती
करने में असमर्थ है , वह बाँस की खेती कर अच्छी कमाई कर सकते है | बाँस एक
ऐसा पौधा जिसे किसी भी तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है | केंद्र सरकार द्वारा
चलाई जा रहीं राष्ट्रीय बांस मिशन में किसानो को बाँस की खेती करने पर सब्सिडी
भी प्रदान की जा रहीं है |
बाँस की खेती के लिए किसी खास तरह की मिट्टी की जरूरत नहीं होती है , इसे किसी
भी सख
ू ी मिट्टी में ऊगा सकते है | किन्तु रे तीली दोमट मिट्टी में बाँस के पौधे अधिक
तेजी से विकसित होते है | इसकी खेती में भूमि 4.5 से 6 P.H. मान वाली होनी चाहिए
|

बाँस के पौधे उष्ण शीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छे से विकास करते है
| ऐसा कहा जाता है , कि इस जलवायु में बाँस के पौधे प्रति दिन 3 इंच तक बढ़ जाते
है | इसके पौधों पर जलवायु परिवर्तन का कोई खास असर दे खने को नहीं मिलता है |
अधिक ठण्ड तथा दल-दल में भी पौधे ठीक से वद्धि
ृ कर लेते है |

बाँस की खेती के लिए किसी खास तरह की मिट्टी की जरूरत नहीं होती है , इसे किसी
भी सूखी मिट्टी में ऊगा सकते है | किन्तु रे तीली दोमट मिट्टी में बाँस के पौधे अधिक
तेजी से विकसित होते है | इसकी खेती में भूमि 4.5 से 6 P.H. मान वाली होनी चाहिए
|

बाँस के पौधे उष्ण शीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छे से विकास करते है
| ऐसा कहा जाता है , कि इस जलवायु में बाँस के पौधे प्रति दिन 3 इंच तक बढ़ जाते
है | इसके पौधों पर जलवायु परिवर्तन का कोई खास असर दे खने को नहीं मिलता है |
अधिक ठण्ड तथा दल-दल में भी पौधे ठीक से वद्धि
ृ कर लेते है |

बाँस के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है | इसके पौधों को केवल
आरम्भ में ही नमी की आवश्यकता होती है | कम वर्षा वाले क्षेत्र या शष्ु क क्षेत्रों में
मल्चिंग मिट्टी पानी को वाष्पीकृत होने से रोकती है | मिट्टी में नमी बनाये रखने के
लिए सूखे कार्बनिक पदार्थो या सख
ू े पत्तो को गीला कर घांस की तरह पौधे के चारो
और फैला दिया जाता है | जिससे अंकुरों को जन्म लेने में आसानी होती है |

एक बांस की कीमत लगभग 100 रु होती है , इसके अलावा आप इसकी


पत्तियों को भी बेच सकते है | इस दौरान किसान भाई खाली पड़ी भूमि
में अन्य फसलों का उत्पादन कर बाँस की फसल के तैयार होने तक
अच्छी खासी कमाई कर सकते है | किसान भाइयो को बाँस की एक बार
की फसल से भी अच्छा लाभ प्राप्त हो जाता है |

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