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अंगूर की उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक
अंगूर की उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक
फल-फ्रूट पोषक तत्ों में प्रमु ख माने जाते हैं । वततमान पररपेक्ष में अंगूर की मां ग अधिक बढ़ने से कई
तरह की धकस्ों की उन्नत खे ती की जा रही है।
बीज वाली एवं बीज रधहत धकसानों की मु ख्य धवशे षताएं धनम्नधलखखत हैं
पकने में अगेती अधिक पै दावार नम व शु ष्क, धसंधित क्षे त्ों के धलए उपयुक्त, गुच्छे दधमत याने , लं बे
,आकषत क व अंगूरों से लदे हुए। मई के आखखर में पकती हैं । अंगूर गहरे बैं गनी रं ग के, रस 75%
पूर्त घुलनशील तत् (धमठास) 18% व खट्टापन 0.07%। यह अधिक दे र तक नहीं रखी जा सकती
हैं ।
डीलाइट
अगेती धकस्, गुच्छे दधमत याने, गठे हुए, बेलनाकार व आकषत क। अंगूर हरे , छोटे -छोटे व गोल। जून के
दू सरे सप्ताह में पकती है । रस 68% कुल घुलनशील तत् (धमठास) 20% व खटापन 0.68%। अंगूर
खू ब लगते हैं ।
परलै ट
अगेती पकने वाली धकस्, गुच्छे दधमत याने , बेलनाकार खूब गठे हुए, व िमकदार। अंगूर सफेद से हरे ,
जू न के शु रू में पकती है । रस 75%, कुल घुलनशील तत् (धमठास) 18 से 19% व व खटापन 0.82%।
अंगूर खू ब लगते हैं ।
थॉम्पसन
मध्य मौसमी धकस्, गुच्छे बडे , खू ब गुंथे हुए, अंगूर सुनहरे , बराबर, रस 69%, कुल घुलनशील तत्
(धमठास) 22% व खट्टापन 0.63% यह धकस् अपेक्षाकृत कम फल दे ने वाली है ।
बीज की धकस्ें
अली मस्केट
अगेती धकस्, ठीले व असमान आकार के गुच्छे अंगूर बडे -बडे , गोल , लाधलमा धलए हुए पीले , एक फल
में 3 से 5 बीज। 73% रस और 18% कुल घुलनशील तत् (धमठास) व 0.60 प्रधतशत खटाई की
मात्ा। जू न के पहले सप्ताह में पकती है । उपज दधमत यान
गोल्ड
न अगेती व पछे ती धकस्, गुच्छे ढीले व दधमत याधन। अंगूर मोटे , कुछ िपटे , सुनहरे व एक से आठ बीज
एक दाने में होते हैं । रस की मात्ा 70%, कुल घुलनशील तत् (धमठास) 19% व खटाई की मात्ा
0.45% होती है । जू न के दू सरे सप्ताह के दौरान पकती हैं । उपज दधमत यानी
बैकुआ आबाद
अगेती धकस्। गुच्छे बडे बेलनाकार तथा हरे रं ग के, धछलका पतला, एक पल में दो से िार बीज, रस
66% प्रधतशत, 19-20 प्रधतशत कुल घुलनशील तत् (धमठास) व 0.72 प्रधतशत खटाई की मात्ा होती हैं ।
जू न के प्रथम सप्ताह में पकती हैं । उपज दधमत यानी
काधडत नल
पछे ती धकस्, गुच्छे ढीले व दरधमयानी, अंगूर बडे और गोल जामुनी, ऊपर से कुछ दबे हुए। रस 65%
कुल घुलनशील तत् धमठास 20% व खटाई की मात्ा 0.54% होती है । जू न के तीसरे सप्ताह में पकती
हैं । इस धकस् की उपज मध्यम है ।
खाद
अच्छी पैदावार व गुर्ों से भरपूर फसल के धलए खाद डालना अधत आवश्यक है। अनु मान है धक
लगभग 90 धकलो अंगूर दे ने वाली एक बेल भू धम से 157.4 ग्राम नत्जन, 41.2 ग्राम फॉस्फोरस, 217.3
ग्राम पोटाश का धनष्कासन करती है ।
नई बेल लगाने से पहले गड्ों में गोबर की खाद के अधतररक्त 250 ग्राम धकसान खाद और 250 ग्राम
पोटे धशयम सल्फेट एक बार अप्रैल में और दू सरी बार जू न में पौिे के धहसाब से दे नी िाधहए।
1. गोबर की खाद जनवरी में दें । बेलों की छं टाई के तुरंत बाद में सुपरफास्ट की पूरी मात्ा और
धकसान खाद एवं पोटाश की बिी मात्ा अप्रैल के आखखरी सप्ताह में फल लगने के बाद दे नी
िाधहए।
2. पोटे धशयम सल्फेट का प्रयोग जहां तक हो सके म्यू रेट ऑफ़ पोटाश से करें ।
3. खाद को मु ख्य तने से 2 धफट दू र 15-२० से.मी. गहरा डाले। धजं क सल्फेट (0.3%) व
बोररक एधसड (0.2%) का धछडकाव फूल आने पर करने से फल अधिक लगते हैं तथा
गुर्वत्ता बढ़ती हैं । 1% पोटे धशयम सल्फेट का धछडकाव दानों के बनाने के बाद करने से
धमठास जाती हैं ।
नोट:-
अंगूर की बेल में कटाई छटाई एवं खाद दे ने के बाद पहली धसंिाई करें अथात त पहली धसंिाई फरवरी
के प्रथम पखवाडे में तथा दो धसंिाइयााँ माित में करें और िौथी धसंिाई फल लगने के बाद अथात त
अप्रैल महीना में 10 से 15 धदन के अंतराल पर धसंिाई करें । फल तोडने के बाद अंगूर की बैलों की
धसंिाई करें । जुलाई से अक्टू बर तक सूखा पडे तो धसंिाई अवश्य करें ताधक अंगूर की बेलें स्वस्थ
खस्थधतयों में प्रसुप्तावस्था में प्रवेश करें ।
काली अलकाथे न (पॉधलथीन) शीट के प्रयोग से खरपतवार में नमी संरक्षर् तथा मृ दा उवतरता शखक्त
बने रहने में सहायता धमलती है । खाद एवं धसंिाई दे ने के बाद मु ख्य तने से काली अलकाथे न
(पॉधलथीन) शीट को धबछा दें ।
बेल िढाने व अंगूर की बैलों की कां ट-छां ट जनवरी में धनम्नधलखखत ढं ग से करें ।
धवरलम
परलै ट धकस् को धवरल करना जरूरी है , ताधक बाकी बिी शाखाओं का सही धवकास हो। 10X10 फुट
की दू री पर लगाई गई बेलों पर 100 से अधिक गुच्छे ना रखें। यह काम अंगूर लगने के तुरंत बाद
करें ।
बीज रधहत अंगूर की धकस्ों में दानों की भरमार धकए धबना अधिक उपज दे ने के धलए पूरी तरह फूल
आजाने की हालत में 20 पी.पी.एम., जी. ए. व फल बनने पर 40 पी.पी.एम. का प्रयोग करें ।
इससे फल का आकार बढ़ता है । इससे गुच्छों में फलों के धगरने की आशं का कम हो जाती है ।
नोट:- यह धसफाररश केवल बीज रधहत अंगूर वाली धकस्ों के धलए हैं ।
रं गदार अंगूरों में रं ग के समान धवकास के धलए इधथफॉन 500 पी.पी.एम. का प्रयोग रं ग पलटने के
समय करें । इससे फल 7 से 10 धदन पहले पककर तैयार हो जाते हैं ।
ब्यूटी सीडलै स के गुच्छे को नीिे से धवरला करने तथा टहनी पर एक गुच्छे के रहने से अंगूर के दाने
बहुत छोटे नहीं रहते तथा अंगूरों के गुर्ों में भी सुिार होता है ।
यह समस्या पर परलै ट, धडलाइट व ब्यूटी सीडले स धकस्ों में ज्यादा पाई जाती है । इस समस्या से दानों
का आकार बहुत छोटा रह जाता है एवं दाने सख्त एवं हरे बने रहते हैं । यह दाने कभी भी अपना
पूरा आकार नहीं ले पाते व पूरी तरह से पररपक्व भी नहीं हो पाते है ।
इस प्रकार के दाने गुच्छे के कुछ धहस्ों में वह कई बार पूरे गुच्छे में पाए जाते हैं । इस प्रकार के
दानों के होने से बडा अंगूर का गुच्छा बडा अनाकषतक लगता है । धजससे इस प्रकार के गुच्छों का
बाजार में उधित मू ल्य नहीं धमल पाता है । दानों को छोटा रहने का मु ख्य कारर् है सही प्रकार से
कटाई छटाई का ना होना। ज्यादा फसल ले ना व पोषक तत्ों की कमी।
1. कटाई छटाई धसफाररश धकए गए आिार पर करनी िाधहए। जै से परलै ट व ब्यूटी सीडले स
धकस् को 2-3 आं ख छोडकर काटना िाधहए व डीलाइट धकस् को 3-4 आाँ ख छोडकर काटना
िाधहए। पंडाल या बावर फैलाव प्रर्ाली पर लगभग 40 से 50 फल वाली लक्कड प्रधत बेल
रखनी िाधहए।
2. ज्यादा फसल को फल बनने के समय गुच्छों और दानों के धवलीनीकरर् द्वारा कम करना
िाधहए।
3. सही तरह से खादों का प्रयोग:- खाद की मात्ा, पौिे की आयु व उसके फैलाव पर धनभत र
करती है ।
यह समस्या ब्यूटी सीडले स, पूसा सीडले स व गोल्ड धकस्ों में अधिक पाई जाती हैं । इन क्षर्ों में अित
खखली कली, फूल व फलों का झडना आमतौर पर पाया जाता है ।
फलों का झडना फल पकने के समय शु रू में होता है । इस समस्या का मु ख्य कारर् है - काबतन और
नाइटर ोजन का सही अनु पात ना होना। पौिे की वृखि के तत्ों में कमी और खु राक, जलवायु व बाग में
की जाने वाली धियाएं इत्याधद।
1. फूल खखलने से 10 धदन पहले तने से 0.5 सेमी िौडाई का छल्ला उतारे ।
2. ज्यादा फसलें न लें।
3. नत्जन वाले खादों का प्रयोग कम करें ।
4. फूल खखलने के समय धसंिाई न करें ।
यह समस्या ज्यादातर थोम्पसन सीडले स, गोल्ड व पूसा सीडले स धकस्ों में अधिक पाई गई हैं । इन
धकस्ों में अितखखली कधलयां या खखले हुए फूल या तो सुख जाते हैं या धगर जाते हैं । कई बार तो
फूल वह पूरा गुच्छा ही सूख जाता है । इस समस्या के मु ख्य कारर् काबतन व नत्जन का सही अनु पात
ना होना, परागकर् का कम जमना, बीमारी व कीडों का प्रकोप तथा धकस्ों का िुनाव इत्याधद हैं ।
यह रोग उतरी भारत की ओजस्वी धकस्ों में पाया जाता है । जै से थॉम्पसन, सीडले स, पूसा सीडले स व
अनाबेशाही। इस समस्या के प्रमु ख कारर् नत्जन वाली खादों का ज्यादा प्रयोग। ज्यादा व बार-बार
धसंिाई, ज्यादा फसल ले ना, व पौिे से पौिे की दू री कम होना है । इस समस्या पर काबू पाने के धलए
नत्जन वाली खादों का कम प्रयोग करें । सदी के समय धसंिाई ना करें और पौिे से पौिे की सही
दू री रखे । व सही सही समय पर धसंिाई करनी िाधहए।
यह समस्या एन्थ्रेक्नोज बीमारी के कारर् होती हैं । यह बीमारी पहले पत्तों और बाद में शाखाओं तथा
फलों पर आ जाती है । इस बीमारी से शाखाएं पररपक्व नहीं हो पाती हैं । व शीषत से सुखना शु रु कर
दे ती हैं , धजसके कारर् या तो शाखाएं पूरी तरह से सूख जाती हैं या शाखाएं मर जाती है । इस बीमारी
का उत्पादन पर बहुत बुरा प्रभाव पडता है । इस बीमारी के अन्य कारर् कुपोषर्, ओजखस्वता, गहरी
पधत्तयां , पौिे से पौिे की दू री कम होना व सही धसंिाई का न ही होना है ।
एन्थ्रेक्नोज बीमारी की रोकथाम के धलए फफूंदी नाशक दवाओं का सही इस्ते माल करें । इसके धलए
बेधवस्टीन दवाई का 0.2% घोल का धछडकाव कटाई-छं टाई के बाद व 15 धदन के अंतराल पर करें ।
प्रस्तु धत:-
http://innovativefarmers.in/