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MOTIVATIONAL STORIES

एक नौजवान आदमी एक किसान की बेटी से शादी की इच्छा लेकर किसान के पास गया. किसानने उसकी ओर
दे खा और कहा, ” यव
ु क, खेत में जाओ. मैं एक एक करके तीन बैल छोड़ने वाला हूँ.अगर तम ु तीनों बैलों में से किसी
भी एक की पँछ
ू पकड़ लो तो मैं अपनी बेटी की शादी तमु से कर दं ग
ू ा.”नौजवान खेत में बैल की पँछ
ू पकड़ने की मद्र ु ा
लेकरखडा हो गया.

किसान ने खेत में स्थित घरका दरवाजा खोला और एक बहुत ही बड़ा और खतरनाक बैल उसमे से निकला.
नौजवान ने ऐसा बैल पहले कभी नहीं दे खा था. उससे डर कर नौजवान ने निर्णय लिया कि वह अगले बैल का
इंतज़ारकरे गा और वह एक तरफ हो गया जिससे बैल उसकेपास से होकर निकल गया.दरवाजा फिर खल ु ा. 

आश्चर्यजनक रूप से इस बारपहले से भी बड़ा और भयंकर बैल निकला. नौजवान नेसोचा कि इससे तो पहला वाला
बैल ठीक था. फिर उसने एक ओर होकर बैलको निकल जाने दिया.दरवाजा तीसरी बार खल ु ा. नौजवानके चहरे
परमस् ु कान आ गई. इस बार एक छोटा औरमरियल बैलनिकला. जैसे ही बैल नौजवान के पास आने लगा,नौजवान
ने उसकी पँछू पकड़ने के लिएमद्र
ु ा बना ली ताकि उसकी पँछ
ू सही समय पर पकड़ ले. पर उस बैल की पँछ
ू थी ही
नहीं.

 
सीख……ज़िन्दगी अवसरों से भरी हुई है . कुछ सरल हैं औरकुछ कठिन. पर अगर एक बार अवसरगवां दिया तो
फिर वह अवसर दब
ु ारा नहीं मिलेगा. अतः हमेशा प्रथम अवसर को हासिल करनेका प्रयास करना चाहिए

2.एक प्रोफ़ेसर क्लास ले रहे थे. क्लास के सभी छात्र बड़ी ही रूचि से उनके लेक्चर को सन ु रहे थे. उनके पछ
ू े गये
सवालों के जवाब दे रहे थे. लेकिन उन छात्रों के बीच कक्षा में एक छात्र ऐसा भी था, जो चपु चाप और गम
ु म
स ु बैठा
हुआ था.

प्रोफ़ेसर ने पहले ही दिन उस छात्र को नोटिस कर लिया, लेकिन कुछ नहीं बोले. लेकिन जब ४-५ दिन तक ऐसा ही
चला, तो उन्होंने उस छात्र को क्लास के बाद अपने केबिन में बल ु वाया और पछ ू ा, “तम
ु हर समय उदास रहते हो.
क्लास में अकेले और चप ु चाप बैठे रहते हो. लेक्चर पर भी ध्यान नहीं दे त.े क्या बात है ? कुछ परे शानी है क्या?”

“सर, वो…..” छात्र कुछ हिचकिचाते हुए बोला, “….मेरे अतीत में कुछ ऐसा हुआ है , जिसकी वजह से मैं परे शान
रहता हूँ. समझ नहीं आता क्या करूं?”

प्रोफ़ेसर भले व्यक्ति थे. उन्होंने उस छात्र को शाम को अपने घर पर बल


ु वाया.

शाम को जब छात्र प्रोफ़ेसर के घर पहुँचा, तो प्रोफ़ेसर ने उसे अंदर बल


ु ाकर बैठाया. फिर स्वयं किचन में चले गये
और शिकंजी बनाने लगे. उन्होंने जानबझ ू कर शिकंजी में ज्यादा नमक डाल दिया.

फिर किचन से बाहर आकर शिकंजी का गिलास छात्र को दे कर कहा, “ये लो, शिकंजी पियो.”

छात्र ने गिलास हाथ में लेकर जैसे ही एक घट ंू लिया, अधिक नमक के स्वाद के कारण उसका मँह
ु अजीब सा बन
गया. यह दे ख प्रोफ़ेसर ने पछ
ू ा, “क्या हुआ? शिकंजी पसंद नहीं आई?”

“नहीं सर, ऐसी बात नहीं है . बस शिकंजी में नमक थोड़ा ज्यादा है .” छात्र बोला.

“अरे , अब तो ये बेकार हो गया. लाओ गिलास मझु े दो. मैं इसे फेंक दे ता हूँ.” प्रोफ़ेसर ने छात्र से गिलास लेने के लिए
अपना हाथ बढ़ाया. लेकिन छात्र ने मना करते हुए कहा, “नहीं सर, बस नमक ही तो ज्यादा है . थोड़ी चीनी और
मिलायेंगे, तो स्वाद ठीक हो जायेगा.”
यह बात सन ु प्रोफ़ेसर गंभीर हो गए और बोले, “सही कहा तम ु ने. अब इसे समझ भी जाओ. ये शिकंजी तम् ु हारी
जिंदगी है . इसमें घलु ा अधिक नमक तम् ु हारे अतीत के बरु े अनभु व है . जैसे नमक को शिकंजी से बाहर नहीं निकाल
सकते, वैसे ही उन बरु े अनभ ु वों को भी जीवन से अलग नहीं कर सकते. वे बरु े अनभ ु व भी जीवन का हिस्सा ही हैं.
लेकिन जिस तरह हम चीनी घोलकर शिकंजी का स्वाद बदल सकते हैं. वैसे ही बरु े अनभ ु वों को भल
ू ने के लिए
जीवन में मिठास तो घोलनी पड़ेगी ना. इसलिए मैं चाहता हूँ कि तम ु अब अपने जीवन में मिठास घोलो.”

प्रोफ़ेसर की बात छात्र समझ गया और उसने निश्चय किया कि अब वह बीती बातों से परे शान नहीं होगा.

सीख – जीवन में अक्सर हम अतीत की बरु ी यादों और अनभ ु वों को याद कर द:ु खी होते रहते हैं. इस तरह हम अपने
वर्तमान पर ध्यान नहीं दे पाते और कहीं न कहीं अपना भविष्य बिगाड़ लेते हैं. जो हो चक ु ा, उसे सध ु ारा नहीं जा
सकता. लेकिन कम से कम उसे भल ु ाया तो जा सकता है और उन्हें भल ु ाने के लिए नई मीठी यादें हमें आज बनानी
होगी. जीवन में मीठे और ख़श ु नम
ु ा लम्हों को लाइये, तभी तो जीवन में मिठास आयेगी.  
3.एक समय की बात है . एक राज्य में एक प्रतापी राजा राज करता था. एक दिन उसके दरबार में एक विदे शी
आगंतक ु आया और उसने राजा को एक सद ंु र पत्थर उपहार स्वरूप प्रदान किया.राजा वह पत्थर दे ख बहुत प्रसन्न
हुआ. उसने उस पत्थर से भगवान विष्णु की प्रतिमा का निर्माण कर उसे राज्य के मंदिर में स्थापित करने का
निर्णय लिया और प्रतिमा निर्माण का कार्य राज्य के महामंत्री को सौंप दिया.

महामंत्री गाँव के सर्वश्रेष्ठ मर्ति


ू कार के पास गया और उसे वह पत्थर दे ते हुए बोला, “महाराज मंदिर में भगवान
विष्णु की प्रतिमा स्थापित करना चाहते हैं. सात दिवस के भीतर इस पत्थर से भगवान विष्णु की प्रतिमा तैयार कर
राजमहल पहुँचा दे ना. इसके लिए तम् ु हें 50 स्वर्ण मद्र
ु ायें दी जायेंगी.”

50 स्वर्ण मद्र
ु ाओं की बात सन ु कर मर्ति
ू कार ख़श
ु हो गया और महामंत्री के जाने के उपरांत प्रतिमा का निर्माण कार्य
प्रारं भ करने के उद्दे श्य से अपने औज़ार निकाल लिए. अपने औज़ारों में से उसने एक हथौड़ा लिया और पत्थर
तोड़ने के लिए उस पर हथौड़े से वार करने लगा. किंतु पत्थर जस का तस रहा. मर्ति ू कार ने हथौड़े के कई वार पत्थर
पर किये. किंतु पत्थर नहीं टूटा.

ू कार ने अंतिम बार प्रयास करने के उद्दे श्य से हथौड़ा उठाया, किंतु यह
पचास बार प्रयास करने के उपरांत मर्ति
सोचकर हथौड़े पर प्रहार करने के पर्व
ू ही उसने हाथ खींच लिया कि जब पचास बार वार करने से पत्थर नहीं टूटा, तो
अब क्या टूटे गा.

वह पत्थर लेकर वापस महामंत्री के पास गया और उसे यह कह वापस कर आया कि इस पत्थर को तोड़ना
नामम
ु किन है . इसलिए इससे भगवान विष्णु की प्रतिमा नहीं बन सकती.

महामंत्री को राजा का आदे श हर स्थिति में पर्ण


ू करना था. इसलिए उसने भगवान विष्णु की प्रतिमा निर्मित करने
का कार्य गाँव के एक साधारण से मर्ति
ू कार को सौंप दिया. पत्थर लेकर मर्ति
ू कार ने महामंत्री के सामने ही उस पर
हथौड़े से प्रहार किया और वह पत्थर एक बार में ही टूट गया.

पत्थर टूटने के बाद मर्ति


ू कार प्रतिमा बनाने में जट
ु गया. इधर महामंत्री सोचने लगा कि काश, पहले मर्ति
ू कार ने
एक अंतिम प्रयास और किया होता, तो सफ़ल हो गया होता और 50 स्वर्ण मद्र ु ाओं का हक़दार बनता.

सीख – मित्रों, हम भी अपने जीवन में ऐसी परिस्थितियों से दो-चार होते रहते हैं. कई बार किसी कार्य को करने के
पर्व
ू या किसी समस्या के सामने आने पर उसका निराकरण करने के पर्व ू ही हमारा आत्मविश्वास डगमगा जाता है
और हम प्रयास किये बिना ही हार मान लेते हैं. कई बार हम एक-दो प्रयास में असफलता मिलने पर आगे प्रयास
करना छोड़ दे ते हैं. जबकि हो सकता है कि कुछ प्रयास और करने पर कार्य पर्ण ू हो जाता या समस्या का समाधान
हो जाता. यदि जीवन में सफलता प्राप्त करनी है , तो बार-बार असफ़ल होने पर भी तब तक प्रयास करना नहीं
छोड़ना चाहिये, जब तक सफ़लता नहीं मिल जाती. क्या पता, जिस प्रयास को करने के पर्व ू हम हाथ खींच ले, वही
हमारा अंतिम प्रयास हो और उसमें हमें कामयाबी प्राप्त हो जाये.
4.परु ानी लोक कथा के अनस ु ार परु ाने समय में एक गरुड़ अपने दो बच्चों को अपनी पीठ पर बैठाकर एक सरु क्षित
स्थान पर पहुंचा दिया। दोनों बच्चों ने वहां दिनभर दाना चग
ु ते रहे । शाम को गरुड़ ने फिर बच्चों को अपनी पीठ पर
बैठाकर अपने घर पहुंचा दिया। रोज यही क्रम चलने लगा। बच्चों ने सोचा कि जब पिताजी पीठ पर बैठाकर ले जाते
हैं तो हमें उड़ाने की क्या जरूरत है ।

गरुड़ ने समझ लिया कि उसके दोनों बच्चे आलसी हो गए हैं और मेहनत नहीं करना चाहते हैं। इसीलिए उड़ना नहीं
सीख रहे हैं। एक दिन सब ु ह-सबु ह गरुड़ ने बच्चों को अपनी पीठ पर बैठाकर ऊंची उड़ान भरी। ऊंचाई पर पहुंचकर
गरुड़ ने पीठ पर बैठे दोनों बच्चों को गिरा दिया। अब दोनों बच्चों ने अपने-अपने पंख फड़फड़ाना शरू
ु कर दिए। उस
दिन उन्हें समझ आ गया कि उड़ना सीखना बहुत जरूरी है । किसी तरह दोनों बच्चों ने अपने प्राण बचा लिए।

शाम को घर पहुंचकर दोनों बच्चों ने अपनी माता मादा गरुड़ से कहा कि मां आज हमने पंख न फड़फड़ाए होते तो
पिताजी ने मरवा ही दिया था। मादा गरुड़ ने अपने बच्चों से कहा कि जो लोग अपने आप नहीं सीखते हैं, आलस्य
नहीं छोड़ते हैं, उन्हें सिखाने का यही नियम है । हमारी पहचान ऊंची उड़ान से होती है , यही हमारी योग्यता है । इसे
बढ़ाने के लिए लगातार अभ्यास करते रहने की जरूरत है । बच्चों को अपनी मां की बातें समझ आ गईं, इसके बाद
उन्होंने भी आलस्य छोड़कर उड़ना सीखा और लगातार अभ्यास से वे भी काफी ऊंचाई तक उड़ने लगे।

Moral Of The Story : अगर हम सफल होना चाहते हैं तो हमें आलस्य छोड़कर अपनी योग्यता को बढ़ाते रहना
चाहिए। किसी भी काम में परफेक्ट होने के लिए लगातार अभ्यास करते रहना चाहिए। इस कहानी में गरुड़ के बच्चे
आलसी थे, इस कारण उड़ना नहीं सीख रहे थे। गरुड़ की योग्यता यही है कि वे काफी ऊंचाई तक उड़ सकते हैं।
इसके लिए गरुड़ के बच्चों ने आलस्य छोड़कर उड़ना सीख लिया।
5.एक बार एक नौजवान लड़के ने सक ु रात से पछ
ू ा कि सफलता का रहस्य क्या है ?

सकु रात ने उस लड़के से कहा कि तमु कल मझ ु े नदी के किनारे मिलो.वो मिले. फिर सक
ु रात ने नौजवान से उनके
साथ नदी की तरफ बढ़ने को कहा.और जब आगे बढ़ते-बढ़ते पानी गले तक पहुँच गया, तभी अचानक सक ु रात ने
उस लड़के का सर पकड़ के पानी में डुबो दिया. लड़का बाहर निकलने के लिए संघर्ष करने लगा , लेकिन सक ु रात
ताकतवर थे और उसे तब तक डुबोये रखे जब तक की वो नीला नहीं पड़ने लगा. फिर सक ु रात ने उसका सर पानी से
बाहर निकाल दिया और बाहर निकलते ही जो चीज उस लड़के ने सबसे पहले की वो थी हाँफते-हाँफते तेजी से सांस
लेना.

सक
ु रात ने पछ
ू ा ,” जब तम
ु वहाँ थे तो तम
ु सबसे ज्यादा क्या चाहते थे?”

लड़के ने उत्तर दिया,”सांस लेना”

सक
ु रात ने कहा,” यही सफलता का रहस्य है . जब तम ु सफलता को उतनी ही बरु ी तरह से चाहोगे जितना की तम

सांस लेना चाहते थे तो वो तम्
ु हे मिल जाएगी” इसके आलावा और कोई रहस्य नहीं है .

सो आज से अभी से अपने (Future)  को (Build) करना शरु


ु कर दो अपने (Future)  की ईंट अच्छे से लगा दे अपने
(Hard) (Work) के साथ अपने (Focus) के साथ  (Education) के साथ अपने (Future)  को पें ट करते हैं।

6.एक कप चाय, मौसम के अनरू ु प गर्म या ठं डा कमरा, आरामदे ह बिस्तर और कानों में धीमा संगीत। क्या इससे
बेहतर जिन्दगी हो सकती है । यकीनन आप का उत्तर होगा, “नहीं”।

अब एक मिनट ठहरिये और सोचिये… अगर हे मशा ऐसा ही रहे तो क्या इससे बद्तर जिंदगी हो सकती है । यकीनन
इस बार भी आप का उत्तर होगा, “नहीं” । थोड़ी दे र के लिए तो यह सब अच्छा लगता है । पर अगर ऐसे ही रहना पड़े
तो यह बहुत दर्दनाक है । क्यों है ना ? हाँ, क्योंकि इस जिंदगी में कोई विकास नहीं है , कोई संभावना नहीं है , कोई
ऐडवें चर नहीं है ।
याद है जब हम लोग बचपन में अपने मम्मी – पापा की अँगल ु ी पकड़ कर मेला दे खने जाते थे तो रोलर कोस्टर में
चढने में बहुत मजा आता था। कभी ऊपर, बहुत ऊपर तो कभी नीचे बहुत नीचे। वो मजा जमीन पर एकसमान
चलने में कहाँ। पर बड़े होते ही हम अपने को कटघरे में बंद करना शरू
ु कर दे ते हैं-

हमसे ये नहीं हो सकता, हमसे वो नहीं हो सकता। फिर मोनोटोनस जिन्दगी से ऊब कर खामखाँ में ईश्वर को दोष
दे ते रहते हैं। उसने पड़ोसी को सब कुछ दिया है पर हमारे भाग्य में … ?

आपने ये कहावत सन ु ी होगी, “ऊपर वाला जब भी दे ता है छप्पर फाड़ कर दे ता है । ” लेकिन जरा सोचिये कि अगर
आप का छप्पर ही छोटा हो तो बेचारे ईश्वर भी क्या कर पायेंगे। यहाँ छप्पर से मेरा तात्पर्य झोपड़ी या महल की
छत से नहीं है बल्कि सोच से है । कहने का तात्पर्य यह है कि अगर आप छोटा सोचते हैं या किसी भी बदलाव से
इंकार करते हैं तो आप जीवन में तरक्की नहीं कर पायेंगे।

कहा भी गया है कि “change is the only constant.. केवल परिवर्तन ही अपरिवर्तनशील है “।

फिर भी कई लोग बातें तो बड़ी -बड़ी करें गें पर अपने जीवन में परिवर्तन जरा सा भी स्वीकार नहीं करें गे। ऐसे लोग
नयी परिस्तिथियों को स्वीकार न कर पाने की वजह से आने वाले हर मौके को गँवा दे ते हैं। फिर निराशा और
अवसाद से घिर जाते हैं। कभी सोचा है , क्यों होता हैं ऐसा ? इसके पीछे बस एक ही कारण है उनका कम्फर्ट जोन।
क्या है ये कम्फर्ट जोन?

किसी भी इंसान का बदलाव को अस्वीकार करने का सीधा सा अर्थ है कि वो बने –बनाये ढर्रे में चलना चाहता है
जिसे हम सामान्यत : कम्फर्ट जोन कहते हैं। हम इसमें जीने की इतनी आदत डाल लेते हैं कि उसके इतर कुछ
सोचते ही नहीं। ये कम्फर्ट जोन, सीमित सोच का एक छोटा सा दायरा है जिसे हमने अपने चारों और खींचा हुआ है ।
इतने संकरे दायरे से हमारा यह लगाव, हमारे संकल्पों में डर की मिलावट कर दे ता है । हम इस दायरे से बाहर कुछ
भी स्वीकार करने से डरते हैं।

वास्तव में दे खा जाए तो कम्फर्ट जोन एक ख़ास मानसिक अवस्था है ।हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इसमें
इतनी बरु ी तरह से जकड़े हुए होते हैं कि जब हम इसके अंदर रहते हैं तो हमें किसी एक्साइटमें ट का गहरा अनभु व
नहीं होता ….न उत्साह, न जोश, न ् जन ू न
ू , न ही प्रेम,न ही लगाव,न ही डर, न घबराहट,न दःु ख, न सख
ु । सब कुछ
यंत्रवत।

सबु ह उठे ब्रश किया,नाश्ता किया ऑफिस गए,रुटीनल काम किया, घर आये खाना खाते हुए टी.वी दे खा और सो
गए। या यंू कहे जिंदगी एक ढर्रे में कटती है । इसलिए स्ट्रे स लेवल बहुत कम रहता है । क्योंकि जब भी हम कुछ नया
सोचते हैं करना चाहते हैं या किसी उपरोक्त भावों में से किसी भाव को गहराई से फील करते हैं तो हमारा स्ट्रे स
लेवल बढ़ जाता है ।
कैसे बनती है ये कम्फर्ट जोन?

एक नन्हा सा बच्चा हमेशा कुछ नया करना चाहता है , हर काम अलग –अलग तरीके से करना चाहता है । तरु ं त,
माता –पिता टोकते हैं नहीं ऐसे नहीं करते। स्कूल जाता हैं टीचर टोकती हैं नहीं ऐसे नहीं करते। बड़े भाई-बहन
बताते है उसकी क्या बात सही है क्या गलत है , यह सिलसिला परू ी जिंदगी चलता रहता है । बच्चा वही करने लगता
है जो दस
ू रे कहते हैं क्योंकि उसके अन्दर से डर जाता है कि अगर वो, वो सब नहीं करे गा जो कहा जा रहा है तो
समाज में सबसे अलग –थलग, अटपटा सा लगेगा, लोग उसका नकारात्मक मल् ू याङ्कन करें गे। उसे समा द्वारा
अस्वीकार किये जाने का भय बैठ जाता है ।

कभी –कभी पेरेंट्स और टीचर्स अपनी बात मनवाने के लिए बच्चे को मार कर, सजा दे कर उस पर दवाब डालते हैं।
धीरे –धीरे बच्चा सोसाइटी के बनाये हुए कानन
ू पर चलने लगता है । कुछ हद तक यह सही भी है कि इस तरह वो
एक समाज द्वारा स्वीकृत नागरिक बन जाता है । पर वही बच्चा बड़ा होकर समाज द्वारा अस्वीकृत होने के भय से
कुछ भी नया करने से डरता है ।
पापा ने कहा है डॉक्टर बनना है …. सो बनना है । भले ही मन आर्टिस्ट बनने का कर रहा हो। शादी मम्मी की पसंद
से करनी है ।भले ही अपने द्वारा पसंद की गयी लड़की/ लड़के को सारी उम्र के लिए भल ू ना पड़े।

बड़ी बेरहमी से दबा दी जाती है भावनाएं कुछ नया या अपनी इच्छा से कुछ करने की क्योंकि लोग क्या कहें गे का
भय मन पर हावी रहता है ।

क्यों तोडें कम्फर्ट जोन?

क्योंकि तभी आप अपने असली मल् ू य का पता लगा सकते हैं… क्योंकि तभी आप अपने अन्दर छिपी आपार
सम्भावनाओं को पहचान सकते हैं। जरा सोचिये अगर एक नदी अपने आराम के लिए सिर्फ सीधी रे खा में चलती तो
क्या वो कभी सागर तक पहुँच पाती? नहीं, इसीलिए वो जहाँ काट पाए पत्थर को काट दे ती है ,जहाँ पत्थर नहीं कट
सका वहाँ धारा की दिशा बदल दे ती है , कहीं जरूरत समझी तो थोड़ा सा उलटी दिशा में बह कर अनक ु ू ल स्थान दे ख
कर वापस सही दिशा ले लेती है । नदी हमें सीखाती है अपने कम्फर्ट जोन को तोड़कर हर परिस्तिथि में हर तरीके से
आगे बढ़ना… अपने लक्ष्य तक पहुंचना।
कम्फर्ट जोन तोड़ने के फायदे
आप के काम की क्षमता बढ़ जाती है ।
जीवन में जब कुछ अचानक से नया घट जाता है तो आप उस के साथ आप आसानी से अनक ु ू लन बिठा लेते हैं।
अगर आप भविष्य में कुछ नया करना चाहते हैं तो आसानी से कर सकते हैं।
आप अपनी रचनात्मकता को आसानी से बढ़ा सकते है ।
सबसे ख़ास बात, आप जिंदगी काटते नहीं जीते हैं।

क्यों मश्कि
ु ल है कम्फर्ट ज़ोन तोडना : एक महत्वपर्ण
ू प्रयोग

कम्फर्ट जोन को लेकर एक बड़ा ही प्रसिद्द प्रयोग हुआ। उसमें पाया गया कि जब हम कम्फर्ट जोन में रहते हुए
काम करते हैं तो हमारे तनाव का लेवल सामान्य रहता है । इसे मिनिमम एंग्जायटी लेवल भी कह सकते हैं। इसमें
हम आराम से जीते हैं। अगर हम इससे बाहर निकलने के लिए स्ट्रे स का लेवल थोड़ा बढ़ा ले तो हमारी परफोर्मेंस में
सधु ार आता है । यह स्थान हमारे कम्फर्ट जोन के जस्ट बाहर होता है जिसे मैक्सिमम एंग्जायटी लेवल कहते हैं।
यानी इतने स्ट्रे स को हमारा शरीर आसानी से बर्दाश्त कर सकता है । इसमें हमारी बेस्ट परफोरमें स रहती है । इसके
बाद अगर स्ट्रे स लेवल बढती है तो परफोर्मेंस कम होती जाती है । एक लेवल के बाद एंग्जायटी बढ़ने पर परफोर्मेंस
जीरो हो जाती है ।यहां समझने की बात ये है कि हर मनष्ु य स्वभावतः जीरो स्ट्रे स लेवल में रहना चाहता है ।

अगर आप स्ट्रे स लेवल थोड़ा बढ़ाएंगे तो परफोर्मेंस सध ु रे गी व ् परिणाम सकारात्मक आयेंगे। लेकिन अगर आप
अचानक से स्ट्रे स लेवल ज्यादा बढ़ा दें गे तो परिणाम नकारात्मक आयेंगे। ज्यादातर लोगों के साथ यह होता है कि
वो बहुत ऊँचे लक्ष्य बना कर एक साथ अपनी सारी ताकत झोक दे ते हैं पर इतना स्ट्रे स झेल नहीं पते हैं। फिर वो
काम आधा ही छोड़ कर वापस कम्फर्ट जोन में आ जाते हैं। इसीलिए कम्फर्ट जोन तोड़ना बहुत मश्कि ु ल होता है ।

कैसे तोड़े कम्फर्ट जोन?

ऊपर के प्रयोग से स्पष्ट है कि अगर आपने जिंदगी को एक ख़ास तरीके से जीने की बहुत गंभीर आदत बना ली है
तो इसका सीधा सादा अर्थ हुआ कि आप अपनी कम्फर्ट जोन में कैद हो गए हैं।अगर भाग्य ने करवट बदली और
अचानक से आप को जिंदगी में कुछ नया कुछ बेहतर करने का अवसर मिला तो आप कर नहीं पायेंगे। आप का
एंग्जायटी लेवल इतना बढ़ जाएगा कि आप स्ट्रे स बर्दाश्त नहीं कर पायेंगे और वापस अपने कम्फर्ट जोन में आ
जायेंगे।

ऐसे उदाहरण आपने दे खे होंगे कि कई बार दस


ू रे शहर में नौकरी मिलने पर घर में परू ी तरह आराम से रहे बच्चे
नौकरी छोड़ कर वापस आ जाते हैं, या मायके में नाजो पाली गयी लड़कियाँ ससरु ाल में काम का प्रेशर बर्दाश्त नहीं
कर पाती हैं। जीवन से अनक
ु ू लन करने के लिए जरूरी
है आप अपनी कम्फर्ट जोन को एक्सटें ड करते रहें । कुछ तरीके हैं जिससे आप आसानी से अपनी कम्फर्ट जोन से
बाहर आ सकते हैं। आइये दे खते हैं इन्हें :

बढाएं छोटे –छोटे कदम:

जरूरत है बड़े काम को छोटे –छोटे टुकड़ों में बाँट कर धीरे –धीरे स्ट्रे स लेवल बढ़ाते हुए आगे बढ़ा जाए। इससे आप
की कम्फर्ट जोन एक्सटें ड होती रहे गी। जैसे कि अगर आप को लोगो से बात करने में झिझक होती है तो पहली बार
सिर्फ मिलने पर सिर्फ स्माइल के साथ हे लो कहे ,अगली बार एक, दो लाइन की बात करे । कम्फर्ट जोन से बाहर
आने के लिए जरूरी है आप अपने डर पहचाने और उन्हें दरू करने की दिशा में रोज़ एक –एक स्टे प बढ़ते जाए।

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