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सम्यक शिक्षा

प्रवचन-क्रम

1. जीवन की दििा ..................................................................................................................2

2. अकं प शचत्तता .................................................................................................................. 12

3. सच्चा शिक्षक .................................................................................................................... 25

4. सभ्यता : हमारी शिक्षा का फल.......................................................................................... 37

5. शिक्षा और शवज्ञान ............................................................................................................ 50

6. यह अधूरी शिक्षा? ............................................................................................................ 67

7. सम्यक शिक्षा ................................................................................................................... 77

8. प्रेम--अनुिासन--क्रांशत ...................................................................................................... 90

9. शिक्षााः महत्वाकांक्षा और युवा पीढ़ी का शवद्रोह .................................................................... 99

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सम्यक शिक्षा
पहला प्रवचन

जीवन की दििा

एक छोटी सी घटना से मैं अपनी चचाा िुरू करना चाहंगा।


कोई पच्चीस सौ वर्ा पहले एक छोटे से गांव में एक सुिास नाम का व्यशि था, बहुत गरीब, उसकी एक
छोटी सी तलई थी, उसमें कमल का एक फू ल बेमौसम शिल गया था। उसे बहुत िुिी हुई। उसने पांच रूपये
शनकाल कर उस सुिास को िे ने चाहे, सुिास हैरान हुआ, पांच रूपये कोई िे गा इस फू ल के , लेदकन इसके पहले
दक वह रूपये लेता, पीछे से नगर का जो सबसे बड़ा धनपशत था, उसका रथ आकर रुका। उसने कहा सुिास
ठहर जा, बेच मत िे ना। पांच रूपये िे गा वह सेनापशत, तो मैं पांच सौ रूपये िूंगा। सुिास तो बहुत हैरान हो
गया, यह बात तो सपने जैसी हो गई दक एक फू ल के कोई पांच सौ रूपये िे गा। सुिास बढ़ा उस धनपशत की ओर
अपने फू ल को लेकर, लेदकन तभी पीछे धूल उड़ाता राजा का स्वर्ा रथ भी आ गया। और उसने कहा, सुिास
ठहर जा, धनपशत जो िे ता होगा, उससे िस गुना मैं तुझे िूंगा। सुिास की समझ के बाहर थी यह बात, इतनी
धनराशि कोई एक फू ल के शलए िे गा! राजा के स्वर्ा रथ की तरफ वह बढ़ा, रुपये लेने को नहीं, बशकक राजा से
यह पूछने को दक इस एक फू ल के इतने िाम िे ने की क्या जरूरत आ पड़ी है? और सारा नगर ही क्या फू ल को
िरीिने को उत्सुक हो आया है? राजा ने कहा िायि तुझे पता नहीं, नगर में बुद्ध का आगमन हुआ है, हम उनके
स्वागत को जाते हैं। और धन्य होगा वह व्यशि, जो इस फू ल को उनके चरर्ों में चढ़ाएगा। फू ल मुझे िे िे और
धन थोड़ी ही िे र में तेरे घर पहुंच जाएगा।
सूिास ने कहााः क्षमा करें , यह फू ल अब मैं बेचूंगा नहीं। मैं भी उसी तरफ चलता हं, शजस तरफ आप सब
जाते हैं। राजा हैरान हो आया। ककपना न थी दक गरीब व्यशि भी, इतने बड़े मोह को छोड़ सके गा। सुिास ने
फू ल बेचने से इनकार कर दिया। राजा का रथ तो पहले ही बुद्ध के पास पहुंच गया, सुिास बाि में पैिल पहुंचा।
बुद्ध के चरर्ों पर उसने उस फू ल को रिा, बुद्ध को िबर हो गई दक राजा ने कहा था, हजारों स्वर्ामुद्राओं को
ठु करा कर एक िीन-हीन चमार ने आज मुझे चदकत कर दिया है। बुद्ध ने कहा सुिास को, पागल है तू, पीशड़यों
तक के शलए तेरी जीवन की चचंता, आजीशवक की चचंता समाप्त हो जाती। फू ल बेच क्यों न दिया? सुिास ने
कहा, जो आनंि उस धन से मुझे शमलता, आपके चरर्ों में फू ल को रि कर उससे बहुत अनंत गुना आनंि मुझे
शमल गया है। बुद्ध ने अपने शभक्षुओं को कहा, शभक्षुओं ये िीन-हीन मनुष्य नहीं है, ये बहुत सुसंस्कृ त और
सुशिशक्षत व्यशि है। सुसंस्कृ त और सुशिशक्षत कहा उस सुिास को, जो न पढ़ा था, न शलिा था, िीन-हीन था।
जूते सीकर ही जीवन शजसने यापन दकया था। दकसी शवद्यालय में कोई प्रवेि नहीं पाया था, दकसी गुरु के पास
बैठ कर कोई शिक्षा न पाई थी। लेदकन बुद्ध ने कहा, सुशिशक्षत है, सुसंस्कृ त है, ये िीन-हीन चमार। और शभक्षुओं
इससे शिक्षा लो, उनके एक शभक्षु ने पूछा, दकन अथों में इसे सुशिशक्षत कहते हैं? बुद्ध ने कहा इसमें ऊंचे मूकयों
को िे िने की क्षमता है। हाइयर वैकयूज शजन्हें हम कहें, जीवन के ऊं चे मूकयों को िे िने की इसमें क्षमता है।
शिक्षा का और कोई अथा ही नहीं है। जीवन में उच्चतर मूकयों का ििान हो सके , तो ही मनुष्य शिशक्षत है। पैसे का
ििान तो सुिास को भी हो सकता था, लेदकन नहीं पैसे की जगह प्रेम को उसने वरन दकया। धन तो उसे भी
दििाई पड़ सकता था, एक फू ल के शलए उसे जो धन शमलने को था, वह बहुत था। लेदकन नहीं उसने धन को

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ठु कराया। और धमा को वरन दक या। उसने साहस दकया क्षुद्र को छोड़ िे ने का, और शवराट के प्रशत समपार् का।
शिशक्षत मनुष्य का और कोई अथा नहीं होता।
शिशक्षत शचत्त का अथा है, जो क्षुद्र को शवराट के शलए छोड़ सके । और अशिशक्षत का अथा है, जो क्षुद्र को
पकड़े रहे और शवराट को छोड़ िे । लेदकन इन अथों में क्या हम आज की शिक्षा को शिक्षा कह सकें गे? िायि
नहीं, कोई कारर् नहीं है इस अथा में शिक्षा को शिक्षा कहने का। क्योंदक सारे जगत में जो मूकय शिक्षा से हमें
उपलब्ध हो रहे हैं, जो मूल्य हमें प्रेम को छोड़ने को कहते हैं, पकड़ने को नहीं; वे हमें धमा को छोड़ने को कहते
हैं, धन को पकड़ लेने को; वे जीवन में जो कु छ स्थूल और पार्थाव है, जो अत्यंत िुभ है, उसके ही इिा , उसकी
हत्या के शलए हमें तैयार करते हैं। जो जीवन का शवराट है, जीवन में शचन्मय है, जीवन में जो भी श्रेष्ठ है, वो क्षुद्र
सी वेिी के सामने... दकया जाता हो, तो नहीं दकया जा सकता; शजसे हम शिक्षा समझ बैठे हैं, वह शिक्षा है।
होगी आजीशवका को उत्पन्न कर लेने की शवशध, शलचवंग उससे आ जाती होगी, लाइव, आजीशवका शमल जाती
होगी, लेदकन जीवन, जीवन उससे शछन जाता है।
इमसान अपने गांव के एक युवक के स्नातक हो जाने पर शवश्वशवद्यालय से ग्रेजुएट होकर लौटने पर उसके
स्वागत में कहा था, मैं इस युवक का स्वागत करता हं। इसशलए नहीं दक यह हमारे नगर का पहला व्यशि है, जो
शवश्वशवद्यालय की श्रेष्ठतम शिग्री लेकर लौटा है, बशकक इसशलए दक ये शवश्वशवद्यालय से लौट आया है, और अपने
को बचा कर लौट आया है। शवश्वशवद्यालय इसे शबगाड़ने में समथा नहीं हो सका। इसशलए स्वागत करता हं इस
युवक का। हैरानी की बात इमसान ने यह कही, लेदकन बहुत सच है, आशजशवका की शिक्षा में हम सब जीवन को
गवां आते हैं, िो आते हैं। जरूरी है आशजशवका, रोटी शमलनी अत्यंत आवश्यक है, वस्त्र शमलने अत्यंत आवश्यक
हैं, जरूरी है बहुत, लेदकन जीवन को िोने के मूकय पर जरूरी नहीं। और आजीशवका इसलीए हम िोजते हैं
तादक जीवन शमल सके । हम एक वृक्ष की जड़ों को पानी िे ते हैं, जड़ों के शलए नहीं बशकक इसशलए दक दकसी दिन
फू ल आ सकें , लेदकन वे फू ल आने बंि ही हो जायें, और हम जड़ों को ही पानी िे ते रहें, िे ते रहें, िे ते रहें तो कोई
हमें पागल कहेगा। जड़ों को पानी िे ना बहुत जरूरी है, लेदकन जड़ों के शलए ही नहीं, दकन्हीं फू लों की आिा में,
अपेक्षा में; दकसी दिन फू ल प्रकट होंगे, और हवाएं उनकी सुगंध से भर जाएंगी, और उनकी सुगंध का संिेि िूर-
िूर तक आकाि में व्याप्त होगा। उस आिा में उस प्रतीक्षा में जड़ों को हम पानी िे ते हैं। जड़ें न तो सुंिर हैं, न...
हैं, जमीन में कहीं शछपी रहती हैं, उन कु रुप जड़ों को हम सींचते रहते हैं, इस आिा में दक दकसी दिन सुंिर फू लों
का जन्म होगा, लेदकन अगर फू ल जन्मने बंि ही हो जाएं, और कोई उन जड़ों को ही इतना पानी िे ता रहे दक
सारा जीवन गवां िे , दफर हम क्या कहेंगे?
आशजशवका मनुष्य की जड़ हैं। रुट्स हैं वहां। उसके शबना जीवन िड़ा नहीं हो सकता। लेदकन आजीशवका
अपने आप में अथाहीन है, जीवन के फू ल न हो तो हम जड़ों को लेकर क्या करें गे? सारे जगत में आज जो शिक्षा
है, वह जड़ों को तो बहुत मजबूत कर िे ती है, लेदकन फू ल उससे पैिा होते दििाई नहीं पड़ते। एक बहुत अजीब
और बेचैन कर िे ने वाली बात पैिा हुई है। इसे हम अपने ियाल में कै से लें? यह शिक्षा नहीं है, शिक्षा कें अंतगात
कु छ और शनराकांक्ष, कु छ और असीशमत स्वीकृ त होना चाशहए। नहीं है क्यों यह शिक्षा? इससे श्रेष्ठतर मूकयों का
हमारे जीवन में कोई अशवभााव नहीं होता।
मैंने सुना है, दकसी बहुत पुराने गुरुकु ल से तीन युवक अपनी शिक्षा पूरी करके वापस लौटते थे। गुरु ने
बार-बार उन्हें कहा था दक तुम्हारी एक परीक्षा िेर् रह गई है, लेदकन अंशतम दिन आ गया, िीक्षांत समारोह
भी हो गया, गुरु ने आिीवााि भी िे दिया, आज सांझ वो शविा हो जायेंगे। बार-बार उनके मन में यह ख्याल

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उठता था, गुरु ने बहुत बार कहा था, अंशतम परीक्षा िेर् रह गई है, क्या वह परीक्षा कभी नहीं होगी? और
आज तो शविा का दिन भी आ गया, और आज तो उन्हें उपाशधयों भी िे िी गई और गुरु ने आिीवााि भी िे
दिया। और जीवन की पात्रता के शलए जो गुरु को कहना था, वह भी कह दिया। वे गुरु के चरर् भी छू आए थे।
उन्होंने अपना बोरी-शबस्तर भी बांध शलया था, अब तो वे जाने को ही थे। अंशतम परीक्षा िेर् रह गई थी, क्या
वह िेर् ही रह जाएगी? और संध्या वे शविा भी हो गए। वे अपने घर की तरफ लौट पड़े, सूरज ढलता था और
घना अंधेरा धीरे -धीरे उतरने लगा, उनकी पगिंिी पर, जकि ही उन्हें जंगल को पार कर जाना था, तादक वे
नगर में पहुंच जाएं। िीघ्रता से वे भागे चले जाते थे दक राह में एक झाड़ी के दकनारे जहां पगिंिी बहुत संकरी
हो आई थी, िे िा बहुत से कांटे पड़े हैं। एक युवक जो आगे था, छलांग लगा कर शनकल गया था पार; िूसरा
युवक जो उसके पीछे था, पगिंिी से नीचे उतर कर राह को छोड़, कांटों से बच आगे हो गया। लेदकन तीसरा
जो युवक था, उसने अपने ग्रंथों को नीचे रि, अपने वस्त्रों को नीचे रि, अपनी चटाई को नीचे रि उन कांटों को
बीनना िुरु दकया, िो युवकों ने कहा, पागल हो, जकिी करो। रात उतरी आती है, नगर िूर है, जंगल भयानक,
एक क्षर् भी छोड़ना उशचत नहीं है, जकिी चलो। यह क्या पागलपन करते हो? उस युवक ने कहााः इसीशलए दक
रात उतरी आती है, घना अंधेरा थोड़ी िे र में घेर लेगा, हम अंशतम पशथक हैं, शजन्हें ये कांटें दििाई पड़ रहे हैं,
हमारे बाि अब ये कांटें दकसी को दििाई नहीं पड़ेंगे। न कांटों को हटा िे ना अत्यंत जरूरी है। ककपना भी न थी
उन्हें, दक उस झाड़ी में उनका गुरु, पहले से आकर शछप कर बैठ गया होगा। वह गुरु बाहर आ गया, और उसने
कहा दक अंशतम परीक्षा तुम्हारी ले ली गई, तुम जो िो आगे शनकल गए हो, शबना कांटों को बीने वापस लौट
आओ, तुम असफल हो गए। तुम एक वर्ा और रुक जाओ, अभी। तुमने जीवन में प्रेम का पाठ अभी नहीं सीिा
है। जीवन में कु छ उच्चतम मूकय हैं, वे तुम्हारी िृशि में अभी दििाई नहीं पड़े। यदि राह पर पड़े कांटें भी तुम
उठाने में असमथा हो, तो मैं तुम्हें अभी जीवन में नहीं जाने िूंगा, क्योंदक तुम्हें िायि पता नहीं है दक जो आिमी
िूसरे की राह से कांटें उठाने में असमथा शसद्ध होता है वह अपने जीवन की राह पर शनरं तर कांटों ही कांटों को
पाएगा। तुम्हें िायि यह पता नहीं है, दक जो आिमी िूसरे की राह से कांटें उठाने में असमथा है, वह आज नहीं
कल िूसरे की राह पर कांटे शबछाने में समथा हो जाएगा। तुम्हें िायि पता नहीं है दक शजसे कांटों की पीड़ा का,
कांटों के िुि का दकसी िूसरे के शलए कोई बोध नहीं है, उस आिमी के भीतर अभी मनुष्य का जन्म नहीं हुआ है।
तुम वापस लौट आओ। तुम अंशतम परीक्षा में असफल हो गए हो।
हमारी शिक्षाएं अंशतम परीक्षा में सफल हो सकें , हम सफल हो सकें और अगर न हो सकें गे, तो दकस मुंह
से कहें दक शजसे हम शिक्षा कह कर जीवन का बहुत बड़ा शहस्सा व्यय कर रहे हैं, वह शिक्षा है। इस सत्य को
शबना स्वीकार दकए, िायि शिक्षा में कोई क्रांशत नहीं पैिा हो सके गी। इस तथ्य को स्पिताः िे िे शबना, िायि
हम कोई आमूल पररवतान पैिा नहीं कर सकें गे। पढ़े-शलिे लोग पैिा होंगे, लेदकन शिशक्षत नहीं। और पढ़ा शलिा
आिमी अगर शिशक्षत न हो, तो गैर पढ़े-शलिे आिमी से ज्यािा ितरनाक हो जाता है। क्योंदक उसके पास तका
होते हैं, लेदकन उसके पास हृिय नहीं होता। उसके पास बौशद्धक क्षमता होती है, लेदकन उसके पास प्रेम करने
वाली पात्रता नहीं होती। और प्रेम से पृथक होकर जो तका हैं, वे जीवनघातक शसद्ध होते हैं। वे अंधे आिमी के
हाथ में िी गई तलवार बन जाते हैं। वे छोटे बच्चे के हाथ में िेलने के शलए दिए गए बम जैसा शसद्ध होगा। उसका
शवस्फोट होगा और जीवन को नुकसान होगा। इसके पहले दक कोई जीवन तका शनष्ठ बने, उसे प्रेम में प्रशतष्ठा शमल
जानी चाशहए। क्योंदक प्रेम ही बार-बार तका को रोके गा, जहां तका जीवन के शवरोध में जाता है और शवर्ाि
होता है। अके ला तका हो मनुष्य के पास, तो उसके पास घोड़ा तो होता है, बहुत तेज; लेदकन लगाम उसके पास

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नहीं होती। और ये घोड़ा दकसी और को हाशन िे गा यह तो ठीक ही है, लेदकन उसके सवार को जीवन का भी
कोई आश्वासन नहीं है। ये उसको कहां ले पटके गा, इसे भी कहना करठन है। इधर हजारों वर्ों से पढ़ा-शलिा
आिमी शिशक्षत नहीं है, इसका बहुत िुष्पररर्ाम मनुष्य को भोगना पड़ रहा है।
ट्रूमैन अमेररका का प्रेशसिेंट था, शहरोशिमा और नागासाकी पर उसकी आज्ञा से ही अर्ुबम शगरे । िूसरे
दिन सुबह पत्रकारों ने उसके िरवाजे पर िस्तक िी, भीड़ थी पत्रकारों की और वे एक बड़ा अजीब प्रश्न पूछने
उसके पास गए। उन पत्रकारों ने ट्रूमैन से बाहर आकर यह पूछा दक क्या आप रात िांशत से सो सके ? बहुत
उशचत था यह पूछना। शजस आिमी की आज्ञा से एक लाि लोग जलकर राि हो गए हों, छोटे बच्चे, बूढ़े,
शनिोर्; उस आिमी से यह पूछना बहुत जरूरी था दक क्या तुम रात आराम से सो सके हो? िांशत से? ट्रूमैन ने
कहा बहुत िांशत से, इधर बहुत दिनों से इतने आराम से नहीं सो सका था। एक चचंता मन पर बनी थी, वह
चचंता समाप्त हो गई। मैं रात बहुत आराम से सोया, बहुत िांशत से।
क्या कोई सुशिशक्षत आिमी ऐसा कह सके गा? नाम तो ट्रूमैन है, सच्चा आिमी, लेदकन भीतर कोई झूठा
आिमी बैठा होना चाशहए। नाम सच्चे हैं, भीतर आिमी बहुत झूठा है। एक लाि लोगों पर शहरोशिमा में क्या
बीती, इसका कोई अनुभव, कोई प्रतीशत, कोई प्रेम, कोई लहर इस आिमी के मन को न छु ई, यह रात भर बेचैन
भी नहीं हुआ? इसके सपनों में शहरोशिमा में उठे धुएं की कोई काशलि न आई? इसकी शनद्रा में वहां रोते बच्चों
की कोई झलक न पहुंची? अगर ऐसा आिमी शिशक्षत है, तो क्या यह उशचत न होगा दक हम वापस लौट जाएं
अशिक्षा के दिनों में। क्या यह उशचत न होगा दक सारे शिक्षालय बंि हों? अगर यही आिमी शिशक्षत है, तो ये
चुनाव बहुत महंगा है। यह शिक्षा बहुत महंगी है। या तो वापस लौट जाएं हम, और या शिक्षा को और वृहत्तर
करें , जीवन के मूकयों से संबंशधत करें । वह के वल रोटी कमाने का जररया न हो, बशकक जीवन को अनुभव करने
का मागा भी बने। जीवन को जीने की शवशध भी उसमें हो। हम मनुष्य को के वल कु छ िब्ि और पाठ पढ़ा कर
शनपट न जाएं। बशकक उसके हृिय को उसके संवेगों को, उसके इमेजन्स को भी प्रशिशक्षत करें । उसके भीतर जो
शछपी हुई संभावनाएं हैं, उसके व्यशित्व के जो अनंत-अनंत द्वार है, उन सबको भी िोलें, उसका मशस्तष्क ही
भारी न हो जाए, िायि जापानी गुशड़या आपने िे िी हो। एक गुशड़या होती है, जापान की िारुमा नाम होता है,
िारुमा िॉल! उस गुशड़या को हम धक्का िे िें , चोट पहुंचा िें , वह शगर जाती है, दफर अपनी जगह बैठ जाती है। न
के वल बैठ जाती है, बशकक बैठते वि, लौटते वि संगीत से भी आस-पास की हवा को भर िे ती है। जापान के
लोग कहते हैं, िुशनया में िो तरह के आिमी होते हैं, शजनका शसर बहुत भारी होता है, वे शगर जायें तो वापस
अपनी जगह पर लौट नहीं सकते। वे िो तरह की गुशड़या बनाते हैं, एक को शगरा िें , तो लौट नहीं सके गी, उसका
शसर बहुत भारी होती है, वजनी होता है, वह लौट नहीं सकती, शसर के बल पड़ी रह जाती है। िूसरी गुशड़या वे
बनाते हैं, शजसका शसर अनुपात में होता है, वजनी नहीं होता, शगर जाए, वापस लौटकर अपनी जगह बैठ जाती
है।
मनुष्य भी िो तरह के होते हैं। शजनका शसर बहुत भारी हो जाता है, और शजनके जीवन का सारा
प्रशिक्षर् के वल मशस्तष्क का प्रशिक्षर् होता है, उनके व्यशित्व में एक कु रुपता, एक बेिौलपन आ जाता है।
उनका व्यशित्व शसर से तो भारी हो जाता है, लेदकन हृिय की तरफ शबककु ल िाली। और तब उनके शगरने का
ितरा प्रशतक्षर् बना रहता है। और वे जीवन में जो उपाय भी िोजते हैं, वे इतने अधूरे और अपंग होंगे, शजनकी
वे ककपना भी नहीं कर सकते।

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मैंने सुना है, एक बहुत बड़ा गशर्तज्ञ था। उस गशर्तज्ञ ने संभवताः यूनान में सबसे पहले गशर्त की
दकताबें संग्रहीत की। उस समय तक शजतना गशर्त िुशनया में था, सबका उसने अध्ययन दकया, वह एक दिन
सुबह अपनी पत्नी और बच्चों को लेकर शपकशनक पर गया हुआ था। छोटी सी निी की धारा बीच में पड़ती थी।
उसकी पत्नी ने कहा, पांच-छह उसके बच्चे थे, छोटे-बड़े, उसकी पत्नी ने कहा, बच्चों को सम्हाल कर निी के पार
शनकाल िो, उस गशर्तज्ञ ने कहा ठहरो, मैं निी की औसत गहराई नापे लेता हं,। एवरे ज गहराई नाप लेता हं।
और बच्चों की एवरे ज ऊ ंंचाई भी नापे लेता हं, अगर बच्चे औसत लंबे शसद्ध हुए, दफर सम्हाल कर शनकालने की
कोई जरूरत नहीं, उसने जकिी से छोटा सा नाला था, नाप शलया। िो-चार जगह पानी की गहराई को, बच्चों की
ऊंचाई को रे त पर बैठ कर शहसाब कर शलया, और उसने कहा दक बेदफकर रहो, बच्चों को आने िो, कोई िू बेगा
नहीं। औसत बच्चों की ऊंचाई, निी की औसत गहराई के ज्यािा है। गशर्तज्ञ आगे चल पड़ा, बीच में उसके बच्चे
थे, पीछे उसकी पत्नी थी, कहीं निी उथली थी, कहीं बहुत गहरी थी। िो छोटे बच्चे िु बदकयां िाने लगे, उसकी
पत्नी ने शचकलाया दक िो बच्चे बहे जाते हैं, और िू बते हैं। तो पता है आपको गशर्तज्ञ ने क्या दकया? गशर्तज्ञ
भागा निी के िूसरे दकनारे की तरफ, जहां रे त पर उसने शहसाब दकया था, यह िे िने के शलए दक कहीं शहसाब में
कोई भूल तो नहीं हो गई, नहीं तो बच्चे िू बेंगे कै से? बच्चा िू बता था, उसे बचाने नहीं िौड़ा, उसके शलए ज्यािा
अहम सवाल यह था दक गशर्त कहीं गलत तो नहीं। कहीं कोई भूल-चूक शवशध में तो नहीं हो गई। अन्यथा बच्चे
िू बेंगे कै से? इस आिमी के पास मशस्तष्क तो है, लेदकन हृिय शबककु ल भी नहीं। हृिय होता, तो बच्चे को बचाना
पहली समस्या थी। गशर्त को ठीक कर लेना पहली समस्या नहीं थी। लेदकन शजनका भी मशस्तष्क प्रशिशक्षत
होगा, के वल मशस्तष्क और हृिय अनएजुकेरटि रह जाएगा, अशिशक्षत रह जाएगा, उन सबके साथ यही भूल
होगी। वे जीवन से तो वंशचत हो जाएंगे, गशर्त में बहुत कु िल। उनकी गशर्त की कु िलता, बड़ी ितरनाक
शसद्ध होगी। उनकी गशर्त की कु िलता मनुष्यों को नहीं िे ि पाएगी, अंकों को िे िेगी।
शमलट्री में आिमी नहीं होते, अंक होते हैं। एक नंबर का आिमी, नंबर िो का शसपाही, नंबर तीन का
शसपाही, और जब िस शसपाही आज िाम को नहीं लौट पाते, तो ऐसी सूचना नहीं की जाती दक िस आिमी मर
गए, िस अंक शगर गए, िस दफगर िो गई। नंबर िस का आिमी िो गया, तो वे कहते हैं, नंबर िस शगर गया।
एक आिमी का मरना और नंबर िस के शगर जाने, इन िोनों बातों में बहुत फका है। नंबर िस अंक गशर्त का
एक अंक है। और एक आिमी, एक जीवंत चेतना, शजसके अपने सपने होंगे, शजसकी अपनी आिाएं होंगी,
शजसका अपना प्रेम होगा, शजसने िुशनया में न मालूम क्या-क्या करने की अभीप्साएं बांधी होंगी, वह ज्वलंत
चेतना और गशर्त का एक अंक नंबर िस, इन िोनों में बहुत फका है। नंबर िस शगर जाता है, तो हमारे भीतर
कोई भी पीड़ा नहीं उठती। हमारे हृिय की वीर्ा पर कहीं दकसी तार को कोई चोट नहीं पहुंचती। नंबर िस
शगर जाता है, बात ित्म हो जाती है। शमशलटरी में जीवन की जगह गशर्त को मूकय दिया। िायि शमशलटरी ये
मूकय िे तो ठीक भी है, क्योंदक वहां जीवन का शहसाब नहीं, मृत्यु का शहसाब रिना है। लेदकन अगर पूरे जीवन
में ही गशर्त बहुत महत्वपूर्ा हो जाए, और अशनवाया हो जाए, तो बड़ी करठनाई है। और हमारी शिक्षा यही कर
रही है। हमारी सारी शिक्षा यही कर रही है। अपंग मनुष्य पैिा कर रही है, असंतुशलत। शजसकी चजंिगी में कोई
बैलेंस नहीं, कोई संतुलन नहीं, शजसका एक अंग शवकशसत था, बहुत बड़ा हो गया, और सारे अंग बहुत छोटे रह
गए हैं। आिमी पैिा नहीं हो रहा, एक काटू ान पैिा हो रहा है। शजसके सारे अंग बहुत छोटे हैं, और एक अंग बहुत
बड़ा हो गया, वह अंग दकतना ही बड़ा हो जाए, और दकतना ही प्रीशतकर हो, तब भी पूरे मनुष्य के व्यशित्व में
उसका असंतुलन जीवन को नुकसान पहुंचा रहा है, जीवन के कें द्र पर जो शनशहत है उसकी िीक्षा, जीवन के कें द्र

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में जो शछपा है उसका प्रपोजल, जीवन के कें द्र में जो क्षमता है, उसको जगाने का वस्तुताः शिक्षा का लक्ष्य होना
चाशहए।
क्राइस्ट एकझील के पास से एक बार शनकले। सुबह थी, और झील पर मछु ओं ने जाल फें के थे, मछशलयां
पकड़ने को। एक युवा मछु आ भी झील पर जाल फें के िड़ा था, क्राइस्ट ने उसके कं धे पर हाथ रिा और कहा,
मेरे शमत्र! कब तक मछशलयां ही पकड़ते रहोगे? जीवन में और बड़ी चीजें भी पकड़ने को हैं या नहीं? िायि उस
मछु ए ने यह कभी सोचा भी नहीं था। जीवन मछशलयां पकड़ना ही है। लौटकर उसने क्राइस्ट को िे िा, इस
आिमी की आंिों में कु छ जािू सा है। इस आिमी के व्यशित्व में कु छ बात थी, जो मछु ए को छू गयी। उसने
कहा, क्या कोई ऐसा सागर भी है, जहां हम जाल फें के और मछशलयों से बड़ी चीजें उपलब्ध हो जायें। क्या कोई
ऐसा जाल भी है, जो जीवन की कु छ और बड़ी चीजों को पकड़ ले। ऊ ब तो मैं भी गया हं, मछशलयों को
पकड़ते-पकड़ते। लेदकन न तो मुझे दकसी ऐसे सागर का पता है, जहां मछशलयों के अशतररि कु छ और पकड़ा जा
सके । और न मैं ऐसे जाल को जानता हं, शजसमें मछशलयों से बड़ा कु छ उलझाया जा सके । क्राइस्ट ने कहााः फें क
िे अपना जाल और आ मेरे पीछे। तुझे मैं बड़े सागरों के दकनारे ले चलूं। और ऐसे जाल बुनूं शजसमें मछशलयां तो
क्या, परमात्मा पकड़ा जा सकता है। मछु आ शहम्मत का आिमी रहा होगी, उसने जाल फें क दिया और क्राइस्ट
के पीछे हो शलया। वे गांव के बाहर भी नहीं शनकल पाए थे, दक एक आिमी ने िौड़ कर आकर िबर िी उस
मछु ए युवक को दक तेरा शपता जो बहुत दिन से बीमार था, अभी-अभी उसने प्रार् छोड़ दिए। वापस लौट चल
कहां जा रहा है? तुझे िोजता हुआ मैं झील पर गया था, वहां पता चला दक तू दकसी आिमी के साथ दकसी
अज्ञात यात्रा पर शनकल गया है, वापस लौट। शपता तेरे मर गए हैं। उस मछु ए ने क्राइस्ट से कहााः क्षमा करें , मैं
िो-चार दिन में शपता क ंा अंशतम संस्कार करके , वापस लौट आऊं गा, मुझे आज्ञा िें दक मैं जाऊं।
पता है क्राइस्ट ने क्या कहा? क्राइस्ट ने कहााः लेट बी िेि, हेयर बी िेि, यू फॉलो मी। गांव में जो मुिे हैं,
वे मुिे को िफना िें गे, तू मेरे पीछे आ। गांव में काफी मुिे हैं, इस मुिे को िफनाने के शलए। इसशलए तेरी कोई
िास जरूरत नहीं है। बड़ी हैरानी की बात। उस युवक ने चलते राह में क्राइस्ट से पूछा दक क्या गांव में जो
चजंिा हैं, उन लोगों को भी आप मुिाा कहते हैं? क्राइस्ट ने कहााः शनशित ही, शजसने अपने जीवन के कें द्र को नहीं
जाना, वह के वल प्रतीत होता है दक जी रहा है, वह जीशवत नहीं है। के वल आभास है उसका दक मैं जी रहा हं,
जीवन का अभी उससे कोई पररचय नहीं है। शसफा ढोंग है दक मैं जी रहा हं। हम जन्मते हैं, और मरते हैं, इस
बीच के काल को हम जीवन का काल समझ लेते हैं। बस इतना ही जीवन काफी है, िो छोरों के बीच में, जन्म
और मृत्यु के बीच में जो समय बीता, वही जीवन है? अगर वही जीवन है, तब तो बड़े आिया की बात है, सच
तो यह है दक जन्म और मृत्यु के बीच में जो समय बीतता है, उसका जीवन से कोई भी संबंध नहीं। जन्म और
मृत्यु के बीच का समय, के वल रोज-रोज मरते जाने की प्रदक्रया का समय है, जीवन का नहीं। एक ग्रेजुअल िेथ
है, जो जन्म से िुरु होती है, मृत्यु पर पूरी हो जाती है। हम रोज-रोज धीरे -धीरे मरते जाते हैं, इसी को हम
जीवन समझ लेते हैं। एक घड़ी भर नया शबता िें गे, एक घड़ी भर और मर जायेंगे। मरना कोई आकशस्मक बात
तो नहीं है दक दकसी भी एक दिन आप मर जाएंगे, मैं मर जाऊंगा, मर जाना एक लंबी प्रोसेस है, एक लंबी
प्रदक्रया है। रोज-रोज हम मरते हैं, इसशलए एक दिन हम मर जाते हैं। रोज हमारे भीतर कु छ मरता जाता है,
मरता जाता है। एक दिन यह मरना पूरा हो जाता है। और हम कहते हैं मृत्यु आ गई। शजसे हम जीवन कहते हैं,
वह के वल एक मरने की प्रदक्रया से ज्यािा नहीं है। और सच है यह बात अगर यह जीवन होता, तो मृत्यु कै से आ
सकती थी? जीवन की भी और मृत्यु हो सकती है! जीवन और मृत्यु तो बड़ी शवरोधी बातें हैं, इनका क्या संबंध?

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जीवन की भी मृत्यु हो सकती है? मरने की प्रदक्रया का अंत मृत्यु में हो सकता है, लेदकन जीवन की प्रदक्रया का
अंत मृत्यु में कै से होगा? जीवन के रास्ते पर हम चलेंगे तो अंत में परम जीवन उपलब्ध होना चाशहए। मृत्यु के
रास्ते पर हम चलेंगे, तो अंत में मृत्यु आएगी। जो अंत में आता है, उसी से तो पहचाना जाता है।
एक बीज हम बोते हैं और कड़ुवे फल लगते हैं, तो क्या हम नहीं समझ पाएंगे दक जो कड़वे फल लगे वे
बीज में ही शछपे थे? जो फल की तरह प्रकट हुआ, वह बीज में मौजूि रहा होगा। अन्यथा फल में प्रकट कै से
होता? मौत का फल लगता है, शजसे हम जीवन कहते हैं उसमें। तो क्या यह थोड़ी सी समझ न होगी, शजसे
हमने जन्म कहा, उस जन्म के बीज में ही मौत शछपी रही होगी। धीरे -धीरे प्रकट हुई। मैनीफ्रेस्टेिन हुआ। लेदकन
मौजूि तो रही होगी, जन्म में ही अगर मौत मौजूि न हो, तो अंत में प्रकट कै से हो जाएगी? आ कै से जाएगी?
मौत कहीं आसमान से नहीं आती है। वृक्ष में लगे फल भी कहीं आसमान से नहीं आते हैं। एक कॉजनमेंट है, एक
वैज्ञाशनक संबंध है भीतर काया कारर् का। बीज में शछपा रहता है, वृक्ष। वृक्ष में शछपे रहते हैं, फल। जन्म में
शछपी रहती है, मृत्यु। जन्म मृत्यु का अप्रकट रूप है। ये तो जीवन नहीं है, और हम इसी के संबंध में इसी को
बचाने की व्यस्तता में आजीशवका की िोज करते हैं, और हमारी सारी शिक्षा आजीशवका की ट्रेचनंग से ज्यािा
नहीं है। आजीशवका की शिक्षा में हम बचाते हैं, उस जीवन की रक्षा करते हैं जो जीवन ही नहीं है। तो
स्वाभाशवक है दक जमीन मुिों की एक बस्ती बनती चली जाए। स्वाभाशवक है, लोग चलते-दफरते मालूम होते
हों, लेदकन जीवन की कोई पुलक, कोई आनंि , कोई संगीत उनके भीतर दििाई न पड़े। स्वाभाशवक है दक लोग
चलते-दफरते हों, उठते हों, बोलते हों, लेदकन भीतर जीवन का कोई नृत्य उनके पास न हो। उिास, मरे हुए,
प्रतीक्षा करते हों अंशतम दिन की दक कब छु टकारा हो जाए। और रोते हों महल पर, और मंदिरों में प्राथाना करते
हों दक हे परमात्मा! आवागमन से छु ट्टी दिलाओ। तपियाा करते हों, उपवास करते हों दक आवागमन से मुशि
शमले, जीवन को शजन्होंने नहीं जाना, स्वाभाशवक है दक वे जीवन से ही छू ट जाने की कामना करते हों। सारी
िुशनया में धमों ने एक सोसाइिल रुि अपना शलया है। सारी िुशनया के धमों ने एक आत्महत्या का रुि अपना
शलया है। और वह सभी को अपील भी करती है बात, क्योंदक सभी लोग सोचते हैं मर जाना ही उशचत है,
बजाय जीने से। क्योंदक जीने का तो कोई पता ही नहीं है।
रवींद्रनाथ ने मरने के िो दिन पहले एक गीत शलिा था, और गीत में कहा था, हे शपता! हे परमात्मा! तुझे
धन्यवाि िे ता हं दक तूने मुझे अपार कृ पा िी, जीवन को जानने का मौका दिया, और प्राथाना करता हं, बार-बार
मुझे जीवन में भेज िे ना, तेरा जीवन बहुत सुंिर था, बहुत अमृत; तेरे जीवन में बहुत आनंि था, तेरे जीवन में
बहुत सुवास थी, और अगर मैं उसे न जान सका हं, तो भूल मेरी थी, तेरे जीवन का कोई कसूर न था। अगर उस
जीवन से मैं पररशचत न हो सका हं, तो अंधा मैं था, तेरे सूरज का कोई कसूर नहीं। अगर उस संगीत को मैं नहीं
सुन पाया हं जो तेरा जीवन था, तो बहरा मैं था, तेरे संगीत की कोई भूल नहीं। जीवन को जो जानने की िोज
में गहरा होगा, वह एक ग्रेटीट्यूि, एक धन्यता अनुभव करे गा। जीवन से चूक जाने के पागलपन की बात नहीं है,
बशकक जीवन में और गहरे उतर जाने की, जीवन को पूरे प्रार्ों से उपलब्ध कर लेने की अभीप्सा का उसमें जन्म
होगा। वह एक प्यास से भर जाएगा दक जीवन की समग्रता को कै से उपलब्ध हो जाए?
मेरी िृशि में सम्यक शिक्षा, शजसे राइट एजुकेिन कहें, वह जीवन की दििा में किमों को उठाने के शलए
प्रेरर्ा िे गी, प्यास से भरे गी। वह भरे गी इस प्यास से दक हम जन्म और मृत्यु के बीच के काल को ही जीवन न
समझ लें, जीवन इतने ऊ पर नहीं और थोड़े गहरे में है। और जहां जीवन है, वहां मृत्यु का कोई भी पता नहीं।

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एक फकीर था, हुनजाई। उससे दकसी ने जाकर पूछा दक मुझे मृत्यु के संबंध में और जीवन के संबंध में
कु छ बताओ। उस फकीर ने कहााः अगर जीवन के संबंध में समझना हो तो आना मेरे पास, और अगर मौत के
संबंध में समझना है, तो दकसी और के पास जाना। जहां मैं हं वहां मृत्यु का कोई अशस्तत्व ही नहीं है। मृत्यु के
संबंध में समझना हो, तो दकसी और से समझ लेना, मृत्यु से मेरा कोई पररचय नहीं है। और जीवन को समझना
हो तो आ जाना मेरे पास। ऐसे जीवन को हम जानते हैं? अगर हम ठीक से िोजेंगे तो पायेंगे दक मृत्यु से हमारा
थोड़ा-बहुत पररचय है, जीवन से हमारा कोई भी पररचय नहीं। रोज दकसी को मरते हम िे िते हैं, रोज कोई
शमट जाता है, कोई शवलीन हो जाता है। मृत्यु को तो हम पहचानते हैं, लेदकन जीवन को न हम उसे बाहर
पहचानते हैं, न भीतर। शजस दिन हम जीवन को पहचान लेंगे, उस दिन मृत्यु है ही नहीं। इसशलए इसको एक
कसौटी, एक मापिं ि समझ लेना। जब तक मृत्यु दििाई पड़ती हो जमीन पर कहीं भी, तब तक ठीक से जान
लेना दक अभी जीवन का मुझे पता नहीं। शजस दिन जीवन दििाई पड़ेगा, उस दिन मृत्यु... मृत्यु शबककु ल भी
नहीं है।
एक बार जाकर अंधेरे से भगवान से यह प्राथाना की थी दक तुम्हारा सूरज मुझे बहुत परे िान दकए रहता
है। सुबह से शनकल कर मेरे पीछे पड़ जाता है और सांझ थका िालता है मुझे भगा-भगा कर। मैंने उसका कु छ
शबगाड़ा नहीं, क्यों मेरे पीछे पड़ा है? और रात में शवश्राम भी नहीं कर पाता दिन भर की थकान के बाि मैं,
सुबह दफर मौजूि हो जाता है। स्वभावताः शिकायत उशचत थी, और भगवान ने सूरज को बुलाया होगा। और
सूरज से कहा तुम क्यों अंधेरे के पीछे पड़े हो? क्यों नाहक उसे परे िान दकए हो? सूरज ने कहा, कै सा अंधेरा?
मेरा उससे कोई पररचय ही नहीं है। अब तक मैंने अंधेरे को िे िा भी नहीं है। मेरी कोई मुलाकात भी नहीं हुई।
ित्रुता का सवाल नहीं है। आप कृ पा करें और अंधेरे को मेरे सामने बुला िें , मैं उससे माफी मांग लूंगा और आगे
के शलए सचेत हो जाऊंगा दक इसका शपछा नहीं करना है। इस बात को हुए बहुत वर्ा बीत गए हैं, हजारों-
करोड़ों, भगवान अभी तक कोशिि करे अंधेरे को सूरज के सामने नहीं ला सके हैं। और आगे भी नहीं ला सकें गे,
यह मामला फाइल में ही रिा रह जाएगा। ये कभी हल होने वाला नहीं है। सूरज के सामने अंधेरे को कै से लाया
जा सकता है? जीवन के सामने मौत को कै से लाया जा सकता है? इस बात को अगर हम समझेंगे तो एक बहुत
सीक्रेट सामने आ जाएगा, सूरज के सामने अंधेरे को क्यों नहीं लाया जा सकता? जीवन के सामने मौत को क्यों
नहीं िड़ा दकया जा सकता? अगर अंधेरा होता, तो सूरज के सामने भी लाया जा सकता था। अगर उसका कोई
पाशजरटव एशक्झस्टेंस होता। अगर अंधेरे की कोई सत्ता होती, उसका कोई अशस्तत्व होता, तो सूरज के सामने
हम उसे क्यों नहीं ला सकते थे? बराबर ला सकते थे। लेदकन अंधेरे की कोई सत्ता ही नहीं। अंधेरा है ही नहीं।
अंधेरा के वल एब्सेंस है प्रकाि की। अंधेरा कोई प्रेजेंस नहीं है, दकसी चीज की मौजूिगी नहीं है अंधेरा। अंधेरा
के वल गैर मौजूिगी है। इसशलए आप चाहें दक इस कमरे में अंधेरा भरा है, तो हम टोकरी में भर कर बाहर फें क
िें , तो नहीं फें क सकते। और आप चाहें दक फलां आिमी हमारा िुश्मन है, चलो उसके घर में अंधेरा लाकर िाल
िें , तो नहीं िाल सकते। अंधेरे को आप न ला सकते हैं, न ले जा सकते हैं। अंधेरा होता तो जरूर हम लाने ले
जाने का कोई उपाय िोज लेते, लेदकन वह है ही नहीं। प्रकाि की गैर-मौजूिगी का नाम अंधेरा है। इसशलए
अगर अंधेरा भरा है, तो अंधेरे के साथ हम कु छ भी नहीं कर सकते, लेदकन अगर हम दिया जला लें, तो अंधेरा
नहीं है। दिया बुझा िें , अंधेरा है। दिया जला लें, अंधेरा नहीं है। तो अंधेरा क्या है? अंधेरा के वल दिए की गैर
मौजूिगी। दिए की एब्सेंस।

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जीवन के सामने मृत्यु को भी नहीं लाया जा सकता। अगर मृत्यु कु छ होती तो जीवन के सामने लाई जा
सकती, मृत्यु भी जीवन की अनुपशस्थशत का नाम है, शजसे जीवन का अनुभव नहीं होगा, उसे मृत्यु दििाई पड़ती
रहती है। शजसके पास रोिनी नहीं होती, उसके आस-पास अंधेरा होता है। और िो में से एक ही चीज एक जगह
रह सकती है, िोनों चीजें एक जगह नहीं रह सकती। जो जीवन को जान लेगा, उसके शलए दफर कोई मृत्यु नहीं
है। और जो मृत्यु को ही जानता रहता है, उसके पास जीवन की ज्योशत नहीं है।
शिक्षा को, जीवन रूपी ज्योशत को जगाना, उसे प्रज्वशलत करना, उसके अनुभव में ले जाने का मागा होना
चाशहए। शजस दिन शिक्षा जीवन को जगाने वाली, जीवन को उठाने वाली, जीवन को मुि करने वाली, प्रदक्रया
होगी; शजस दिन शिक्षा का मंदिर जीवन का मंदिर भी होगा, उस दिन हम शिशक्षत मनुष्य को पैिा कर सकें गे,
उसके पहले नहीं। और शजस दिन हमने वैसे मनुष्य को पैिा करना िुरु कर दिया, उस दिन सारी जमीन पर एक
क्रांशत हो जाएगी। जमीन पर दफर युद्ध का कोई स्थान नहीं रह जाएगा। चहंसा की कोई जगह नहीं रह जाएगी।
घृर्ा और द्वेर् के शलए कोई ररिता नहीं रह जाएगी, जहां वो भर जायें। मरे हुए लोग, िूसरों को मारने को
शनरं तर उत्सुक होते हैं। इससे पैिा होते हैं युद्ध, जीशवत लोग िूसरे को शजलाने के शलए आतुर होंगे और जीवन
एक अिभुत स्वगा बन सकता है।
वह भटक रहा है, िोज रहा है मागा, जब नहीं मागा शमला, तो उसने स्वगा में, आकाि में बना शलए अपने
स्वगा। आकांक्षा तो ये थी दक जमीन पर स्वगा बन जाए, जब हम नहीं हम बना सके जमीन पर स्वगा, तो हमने
एक कं सोलेिन िोज शलया, आकाि में बना शलए अपने स्वगा। ये आिमी जमीन पर असफल हो गया, इसशलए
सपने में स्वगा िे िने लगा। हम सबको पता है, शजस बात को हम शजिं गी में नहीं पा पाते, उसे हम सपने में
उपलब्ध कर लेते हैं। शजस बड़े महल को हम शजिं गी में नहीं बना पाते, रात सपने में उसे बना लेते हैं। शजसे हम
प्रेम करते हैं, उसे जीवन में नहीं उपलब्ध कर पाते, रात सपने में हम उसे उपलब्ध कर लेते हैं। दिन भर भूिे
मरते हैं, रात बड़े भोजन, रात भोजन में तृप्त हो जाते हैं। जो वास्तशवकता में नहीं शमलता, उसका हम सपना
पैिा कर लेते हैं। स्वगा मनुष्य ने बनाना चाहा था जमीन पर, आज भी हमारे मन में आकांक्षा है, लेदकन असफल
हो गए, इसशलए हमने उसे आकि में बािलों के पार बनाया। शजस दिन भी हम जीवन में िीक्षा िे ने वाली शिक्षा
के शवकास को, उसके यंत्र को, उसकी गशत को सुव्यवशस्थत कर लेंगे, उसी दिन आकाि में स्वगा बनाने की कोई
जरूरत नहीं रह जाती। जमीन पर और इसी जमीन पर एक अिभुत जीवन की ऊजाा प्रकट हो सकती है। इसको
शिक्षा इसीशलए नहीं कह पाता हं, दक शिशक्षत मनुष्य ने तो जमीन को एक नका बना दिया है, स्वगा नहीं। लेदकन
हम मागा िोज सकते हैं, हम राह िोज सकते हैं, मनुष्य के पास सारे उपकरर् मौजूि हैं, पर आज हमारी हालत
वैसी ही है, जैसे एक मंदिर में...
मैंने सुना है, एक बहुत पुरानी वीर्ा रिी हुई थी। उस वीर्ा को बजाने वाला उस मंदिर में कोई भी
नहीं था। कभी कोई बच्चे मंदिर में आ जाते थे, बड़ों के साथ, तो कोई बच्चा उसके तारों को छेड़ िे ता था, और
शवकृ त झनकार उस मंदिर में गूंज जाती और पुरोशहत िांट िे ता था, छु ओ मत वीर्ा को िोरगुल मत करो, कभी
कोई कीड़ा चढ़ जाता था वीर्ा पर और आवाज गूंज जाती थी, कभी कोई दकताब शगर जाती थी वीर्ा पर और
आवाज गूंज जाती थी। बस इतना ही उस वीर्ा का उपयोग था। दफर एक दिन एक आिमी उस मंदिर में पूजा
चलती थी, उस मंदिर के पुजारी पूजा में थे और एक आिमी चुपचाप उस मंदिर में प्रशवि हुआ, उस वीर्ा के
पास गया और उसने उसके तारों को छु आ। पूजा बंि हो गई, मंत्र गान चुप हो गए, मोह मुग्ध हो गए, दकतने
घंटों तक वह आिमी उस वीर्ा को बजाता रहा, वह मंदिर एक स्वगा हो गया। उसके पुरोशहत ने उस आिमी के

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पैर छु ए और कहााः अब तक तो हम यही सोचते थे दक यह वीर्ा एक उपद्रव का कारर् है, ये यहां रिी है,
पुरातन से रिी है, इसे हम अलग भी नहीं कर सकते, पीदढ़यों से यहां है... तक िे िीं, पर इसे रिा रहने दिया।
लेदकन जब कोई इसे छेड़ िे ता है, मंदिर में, पूरी ध्वचनंया गूंज जाती हैं, िांशत िंशित हो जाती है। कई बार हमने
यह फै सला भी लेना चाहा, इस वीर्ा को हटा िें यहां से, लेदकन कु छ लोग इसके शवरोध में थे और वीर्ा बनी
रही। और हमें पता भी न था दक कभी कोई आएगा, और इस वीर्ा से संगीत भी पैिा हो सकता है। इस वीर्ा
से वो स्वर भी शनकल सकते हैं, जो जीवन को आनंदित कर िें ।
मनुष्य के मंदिर में भी उसके हृिय की वीर्ा वर्ों-वर्ों से ऐसी ही रिी है, उसे बजाने की चपलता, उसे
बजाने की कला, िायि हमें पता नहीं। शिक्षा उस कला का मागा हो सकती है। और शजस दिन शिक्षा मनुष्य के
हृिय की वीर्ा को बजाना शसिा सके गी, उस दिन जीवन एक नये अथा को, एक नई अशभधारर्ा को ले लेगा।
उस दिन की प्रतीक्षा करनी काफी नहीं है, उस दिन के शलए श्रम भी करना होगा। कौन करे गा यह श्रम? जो
लोग बूढ़े हो गए हैं, िायि वे नहीं कर सकें गे, तुम्हारे शिक्षक, तुम्हारे अशभभावक, िायि वे भी नहीं कर सकें गे?
तुम्हीं को, नई पीदढ़यों को, नये युवकों को, नई युवशतयों को िोजना होगा जीवन का मागा और एक क्रांशत लानी
होगी।
मैंने ये थोड़ी सी बातें कहीं, ये बातें अधूरी हैं, मैं इतना ही कह पाया दक जीवन की वीर्ा को बजाने का
अब तक शिक्षा ने कोई मागा नहीं िोजा है, लेदकन अगर यह बात भी आपके ियाल में आ सकी होगी, तो िायि
चचंतन पैिा हो। संध्या मैं जो बात करूंगा, आज इसी संबंध में करनी थी, करने का मेरा ियाल है दक जीवन की
वीर्ा को बजाने का क्या शवज्ञान है। तो मैं शवद्यार्थायों से शनवेिन करूंगा सांझ की बात को सुबह की बात से वे
जोड़ लेंगे, िायि उनके मन में कोई ियाल पैिा हो सके , जो मागा बन जाए।

मेरी बातों को इतनी िांशत और प्रेम से सुना, उससे बहुत-बहुत अनुग्रहीत हं। और अंत में सबके भीतर बैठे
परमात्मा को प्रर्ाम करता हं। मेरे प्रर्ाम स्वीकार करें ।

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सम्यक शिक्षा
िूसरा प्रवचन

अकं प शचत्तता

मैं एक छोटी सी कहानी से आज की अपनी चचाा िुरू करना चाहंगा।


कोई पच्चीस सौ वर्ा पहले की बात है, एक राजधानी में एक बहुत ही गरीब चमार की झोपड़ी के पास
शबना मौसम के कमल का फू ल शिल आया था। कमल के फू ल के वे दिन न थे। असमय में उस फू ल को शिला िे ि
कर उस चमार ने सोचा मेरे भाग्य हैं, जाऊं बाजार में, बहुत ज्यािा पैसे इस फू ल के मुझे शमल सकें गे। वह फू ल
को लेकर सुबह ही नगर के बड़े बाजार की तरफ चल पड़ा। रास्ते में उसे हैरानी हुई, नगर के सारे धनपशत, सारे
बड़े लोग, नगर के बाहर अपने-अपने रथों में जा रहे थे। नगर का सबसे बड़ा धनपशत अपने रथ को रोक कर
रुका, और उसने कहा दक इस फू ल के दकतने पैसे तुम चाहोगे? जो भी तुम कहोगे मैं िाम िे िूंगा। ये फू ल मुझे िे
िो। यह बात चलती ही थी, दक पीछे से राजा का रथ भी आकर रुक गया। और उसने कहा फू ल बचेना मत।
धनपशत शजतना िे गा, उससे सौ गुना ज्यािा िे ने का मैं तुझे शवश्वास दिलाता हं। वह गरीब आिमी बहुत हैरान
हो गया। उसकी ककपना के बाहर थी यह बात, एक फू ल के शलए इतना पैसा शमल सके गा! उसने राजा को पूछा
क्या कारर् है, इस फू ल को िरीिने के शलए इतने पैसे िे ने का। राजा एक हजार स्वर्ा-मुद्राएं उसे भेंट करना
चाहता था, उस फू ल के शलए।
उस गरीब आिमी ने पूछा दक इस फू ल के इतने िाम िे ने का क्या कारर् है? उस राजा ने कहा, गांव में
बुद्ध का आगमन हुआ है, मैं उनके ही ििान को जाता हं, ये सारे लोग उनके ही स्वागत को जा रहे हैं। ये फू ल मैं
अपने हाथ से उन्हें भेंट करना चाहंगा। और असमय के कमल के फू ल को िे ि कर वे शनशित प्रसन्न होंगे। उसने
हजार स्वर्ा-मुद्राएं उसकी तरफ बढ़ाईं, उस चमार ने कहा दक नहीं। िायि राजा ने सोचा दक हजार में िे ने को
वह राजी नहीं। उसने कहा तू शजतना मांगेगा, मुंह मांगा तुझे पैसे हम िें गे। लेदकन उस चमार ने कहा, नहीं। जब
ऐसी बात है तो मैं भी जाता हं, मैं ही इस फू ल को बुद्ध को समर्पात कर िूंगा। राजा हैरान हो गया। एक गरीब
की इतनी सामथ्या िे ि कर। इतना साहस िे ि कर। उस गरीब आिमी के फू ल को वह न िरीि सका। उसने बहुत
प्रलोभन दिए, वह गरीब आिमी उस फू ल को लेकर बुद्ध के चरर्ों में रि आया। उसके पहले ही राजा का रथ
पहुंच गया था। ओर राजा ने यह बात कही थी दक आज मैं एक गरीब आिमी से हार कर आया हं। मैंने सब कु छ
उसे िे ना चाहा, लेदकन नहीं वह कु छ भी लेने को राजी हुआ, और यह फू ल जो आपके चरर्ों में िुि ही उसने
चढ़ा िे ना चाहा है। जब वह चमार आया, उसने फू ल बुद्ध के चरर्ों में रिा तो बुद्ध ने उससे पूछा, तू कै सा
पागल है? राजा जब मुंह मांगी कीमत िे ने को तैयार था, तो एक गरीब आिमी होकर तूने यह काहे को व्यथा का
उपक्रम दकया? फू ल मुझे क्यों चढ़ाया। उस गरीब आिमी की आंिें िुिी के आंसुओं से भरी थीं। उसने कहा, जब
और भी बड़ा मूकय मुझे फू ल का शमल सकता था, आपके चरर्ों में चढ़ाने का मूकय, तो मैं उसे पैसों में बेचने को
राजी नहीं हुआ।
बुद्ध ने शभक्षुओं से कहााः एक शिशक्षत मनुष्य को िे िो। एक शभक्षु ने पूछा, क्यों इसे शिशक्षत कह रहे हैं? तो
बुद्ध ने कहााः शजसे उच्चतर मूकयों का बोध है, वही शिशक्षत है। जीवन में हायर वैकयूज का, उच्चतर मूकयों का
शजसे बोध है, वही शिशक्षत है। यह िररद्र आिमी, बहुत शिशक्षत व्यशि है। यह पैसों को छोड़ सका, प्रेम के शलए।

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यह धन को छोड़ सका, सम्मान के शलए। इसने बहुत बड़े साहस का काम दकया है, जो के वल शिशक्षत व्यशि ही
कर सकता है।
इस छोटी सी कहानी से इसशलए मैं अपनी बात िुरु करना चाहता हं, तादक मैं तुम्हें कह सकूं दक शिक्षा
क्या है? शिक्षा है जीवन में उच्चतर मूकयों का बोध। जीवन में बहुत तरह के मूकय हैं, बहुत ग्रेिेिंस हैं, बहुत
वैकयूज हैं, बहुत मूकय हैं; जो शनम्नतम मूकयों से जीवन में तृप्त हो जाता है, वह अशिशक्षत है। उसे कोई संस्कार
नहीं शमला, उसे कोई संस्कृ शत नहीं शमली। उसकी आंिें ऊपर नहीं उठ सकीं, वह जमीन पर ही रह गया, वह
आकाि के तारों की तरफ आंिें नहीं उठा पाया। जीवन में बहुत सीदढ़यां हैं, नीचे सीदढ़यां हैं और िूर आकाि
तक, या कहें दक परमात्मा तक सीदढ़यां हैं। कौन दकस सीढ़ी पर रुक जाता है, वह उसी अथों में उतना ही
शिशक्षत या अशिशक्षत है। िायि धन सबसे छोटी सीढ़ी है। और धमा सबसे बड़ी सीढ़ी है। लेदकन हम में से अशधक
लोग धन पर रुक जाते हैं। तो मैं न कह सकूं गा दक वे लोग शिशक्षत हैं, जो धन पर रुक जाते हों। हमारे जीवन में
िरीर िायि सबसे छोटा मूकय है, आत्मा सबसे बड़ा मूकय। लेदकन हम में से अशधक लोग िरीर पर ही रुक जाते
हैं। उनको मैं न कह सकूं गा दक वे शिशक्षत हैं। इसशलए न कह सकूं गा दक वे हीरों को िोकर कं कड़-पत्थरों को
जीवन में बीनने की भूल कर रहे हैं। कै से हम कह सकें गे दक वे ज्ञान को उपलब्ध हुए हैं, समझ, अंिरस्टैंचिंग
उनमें पैिा हुई है? कै से हम कह सकें गे दक उनके जीवन में अंतिृाशि आई है? तादक वे आनंि को िोज सकें , जीवन
है आनंि की िोज। और आनंि उतना ही गहरा होता चला जाता है, शजतने उच्चतर मूकयों पर हम उसे स्वीकार
करते हैं। शजतने शनम्नतम होते हैं मूकय नीचे धरती के उतना ही जीवन आनंि से ररि और िाली रह जाता है।
दकसे हम शिशक्षत कहें, मेरी िृशि में ठीक से शिशक्षत व्यशि ही धार्माक व्यशि है। क्योंदक धमा का और कोई अथा
और कोई प्रयोजन नहीं है। धमा भी एक शिक्षा है जीवन में शनरं तर जो श्रेष्ठतर है उसके िोज की। जीवन में
शनरं तर जो गहरे से गहरा है उसके अनुसंधान की। जीवन वहीं समाप्त नहीं हो जाता है, जहां हमारी आंिें उसे
िे िती हैं, जीवन उससे बहुत ज्यािा गहरा है। जीवन वहीं समाप्त नहीं हो जाता, जहां हमारे हाथ उसका स्पिा
करते हैं; बहुत गहरा है जीवन उससे। लेदकन शजसे हम आज शिक्षा कहते हैं, जगत में, वह तो हमें जीवन के
उच्चतर मूकयों की तरफ ले जाती हुई नहीं मालूम होती। वह तो हमें जीवन के और शनम्नतम मूकयों की तरफ ले
जाती हुई प्रतीत होती है। और ऐसा िुभााग्य मालूम होता है दक वे दिन जब दक मनुष्यता अशिशक्षत और असभ्य
थी, आज के दिन िायि उससे ज्यािा गहरे और उच्चतर मूकयों के दिन थे। यह हैरानी की बात है। शिक्षा बढ़ती है
जगत में, तो मूकय हमारे ऊंचे से ऊंचे होते चले जाने चाशहए, लेदकन शिक्षा बढ़ रही है एक तरफ हर आिमी
आज नहीं कल शिशक्षत हो जाएगा, जमीन पर िायि कोई भी अशिशक्षत नहीं होगा! लेदकन हमारे जीवन के
मूकय तो और नीचे से नीचे होते चले जाते हैं। कोई भूल होगी इस शिक्षा में, कोई बुशनयािी भूल होगी। िायि
इसीशलए हम मनुष्य को व्यवशस्थत नहीं कर पा रहे हैं। इधर शपछले पचास वर्ों में िो बड़े महायुद्ध हुए, क्या
शिशक्षत संसार को, क्या शिशक्षत संस्कार को, शिशक्षत मनुष्य को िमा से नहीं भर जाना चाशहए? आिमी की
हत्या के इतने शवराट आयोजन, कौन कर रहा है? आिमी के शवनाि की इतनी व्यवस्था दकसके शचत्त से पैिा हो
रही है?
शजस रात शहरोशिमा पर एटम बम शगराया गया, शजस आिमी ने एटम बम शगराया, वह एक शिशक्षत
व्यशि था। उसके पास दकसी शवश्वशवद्यालय की उच्चतम शिग्री थी, वह एटम शगरा कर िूसरे दिन सुबह उससे
पूछा गया दक तुम्हें ियाल नहीं आया, दक तुम्हारा एटम शगराना एक लाि लोगों की हत्या बनेगी? उस आिमी
ने कहााः ियाल का कोई सवाल नहीं है, मुझे आज्ञा िी गई, और मैंने काम दकया। इस आिमी को हम आिमी

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कहेंगे, उशचत होता दक यह आिमी आज्ञा को इनकार कर िे ता और अपने प्रार्ों को िो िे ता, ज्यािा से ज्यािा
आज्ञा के इनकार करने पर। लेदकन िायि इसके जीवन में कोई और वृहत्तर मूकय का कोई ियाल नहीं है, उससे
दकसी ने पूछा रात तुम ठीक से सोए? उस आिमी ने कहााः ठीक से सोया। बहुत गहरी नींि आई। एक लाि लोग
धू-धू करके आग में जलते थे, और जो आिमी बम शगराया था वह िांशत से रात भर सोया। इसको हम मनुष्य
कह सकें गे?
मेरे एक शमत्र हैं, बचपन की अपनी एक घटना मुझे बताते थे। उनकी मां सीदढ़यों पर से शगर पड़ी थीं,
बेहोि हो गई थीं, शसर से िून बह रहा था। तो उनके शपता ने उन्हें िौड़ाया दक पड़ोस में जो िाक्टर है, उसे
बुला ला। उस िाक्टर के पास गए, उस िाक्टर के पास जब वे पहुंचे, तो उसने अपने हाथ में चाय की प्याली ली
ही थी, पीने को। उन्होंने कहा मेरी मां बेहोि पड़ी है। पड़ोस में ही, िो-चार घर के बाि। उसके शसर से िून बह
रहा है, वह बहुत जोर से शगर पड़ी है। आप चलें। उस िाक्टर ने कहााः पहले मैं चाय पी लूं, अन्यथा चाय ठं िी
हो जाएगी, दफर मैं आता हं। वह बच्चा वापस लौट कर गया, उसने अपने शपता को कहा दक वह िाक्टर चाय
पीता है। वह चाय पूरी पी ले तो आए। तो उसके शपता ने कहा दक वह िाक्टर दफर आिमी नहीं है। अगर उसकी
मां शगर पड़ी होती सीदढ़यों से, और उसके शसर से िून बहता होता, और मरने के करीब होती; तो क्या वह यह
कहता दक मैं पहले चाय पी लूं और दफर आता हं? नहीं वह आिमी िाक्टर भला होगा, लेदकन आिमी नहीं है।
आिमीयत के कु छ मूकय हैं। आिमीयत की कु छ गहराइयां हैं। आिमी हो जाना, आिमी की िक्ल को पा लेने से
ही पूरा नहीं हो जाता।
शहरोशिमा पर जो आिमी एटम शगराए, वह कहे दक मैं रात िांशत से सोया। इसको हम इसके भीतर कोई
हृिय है या पत्थर? और ये शिशक्षत आिमी है। और शवश्वशवद्यालयों ने इसे उपाशधयां िी हैं। कु छ भूल होगी उन
उपाशधयों में कोई कमी होगी।
एक बहुत पुरानी घटना मुझे स्मरर् आती है। कोई िो हजार वर्ा पहले की बात है। एक गुरुकु ल से तीन
शवद्याथी अपनी समग्र शिक्षा पूरी करके वापस लौटते थे, घरों को। गुरु शनरं तर उनसे कहता रहा था दक तुम्हारी
सब परीक्षा पूरी हो गई, लेदकन एक परीक्षा बाकी रह गई है। लेदकन अंशतम दिन भी आ गया, शविा का। िीक्षा
का सब अंशतम समारं भ भी हो गया, िीक्षांत भी हो गया, उन्हें उनके प्रमार् पत्र भी िे दिए गए, और वे तीनों
हैरान थे और चदकत थे दक एक परीक्षा गुरु कहता था, वह अब तक पूरी नहीं हुई, क्या वह शबना पूरे हुए ही
हमें चला जाना होगा? और सांझ भी आ गई और वे गुरु के पैर छू कर चल भी दिए अपने मागा पर। सूरज िू ब
रहा था, उन्हें जकिी ही जंगल को पार करके अपने गांव पहुंच जाना था। िू बते सूरज में, पगिंिी को पार करते
वि, एक घनी झाड़ी के पास िे िा उन्होंने रास्ते पर बहुत कांटे पड़े हैं। एक युवक छलांग लगा कर शनकल गया,
िूसरा कांटों से िूर हट कर पगिंिी से नीचे उतर कर पार हो गया। लेदकन तीसरा बैठ गया अपने सामान को
रि कर, उसने कांटे बीने, झाड़ी में िाले। वे िो कहे गए उससे दक पागल रात हुई आती है, अंधेरा हुआ जाता है,
जकिी चलो, उस युवक ने कहा, अंधेरा उतर रहा है, रात होने को है इसीशलए कांटे अलग कर िे ने जरूरी हैं, हमें
तो वे दििाई पड़ते हैं, लेदकन हमारे पीछे जो आता होगा उसे वे दििाई न पड़ सकें गे। और हैरान हो गए वे ये
दक झाड़ी के भीतर से शनकल आया उनका गुरु। शजसने वे कांटे िाले थे, जो शछपा था। उसने कहा ये तुम्हारी
अंशतम परीक्षा थी, िो असफल हो गए। तुम वापस लौट आओ। शजसने कांटे बीने हैं, वह जा सकता है, लेदकन
तुम िो अभी एक वर्ा और रुक जाओ। तुम्हारी शिक्षा पूरी हो गई, लेदकन तुममें आिशमयत पैिा नहीं हो सकी।
तुम अभी आिमी नहीं बन सके हो।

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शिक्षा के वल कु छ ज्ञान को इकट्ठा और अर्जात कर लेना ही नहीं है, शिक्षा है भीतर जो सोया मनुष्य है
उसे जगा पाना। भीतर जो हमारा जीवन है, उसे प्रबुद्ध कर पाना। और यह कौन करे गा, और कै से यह होगा?
यह जो भीतर शछपा है मनुष्य, इतनी घृर्ा और इतने क्रोध से भरा है, इतने वैमनस्य से, इतनी ित्रुता से, और
इसे हम ऐसा ही शवश्वशवद्यालय से शनकल जाने िे ते हैं, जैसा यह आया था, बशकक अक्सर तो और भी बुरा होकर
शनकलता है।
इमसान ने एक युवक के स्वागत समारोह में कहा था, वह उस गांव का पहला स्नातक था, पहला ग्रेजुएट
था। इमसान ने उसके स्वागत में कहा था दक मैं स्वागत करता हं युवक का। यह बहुत अिभुत है, यह
शवश्वशवद्यालय से शबना शबगड़े हुए घर वापस आ गया है। अगर यह स्वागत की बात हो, तो िेर् सारे
शवद्यार्थायों के शलए हम क्या कहेंगे? मुझे भी यही दििाई पड़ता है, क्योंदक जीवन के बहुत गहरे में हमारी
शिक्षा का कोई संपका नहीं है। पच्चीस वर्ा युवक िो िे ता हो, शिक्षालयों में और पच्चीस वर्ा के बाि घर लौट
आता हो, और उसके जीवन से घृर्ा शवलीन न होती हो, क्रोध अंत न होता हो, वैमनस्य समाप्त न होता हो,
ईष्याा अंत न पाती हो, तो ये पच्चीस वर्ों में वह क्या लेकर घर आ गया है? आजीशवका कमाने के उपाय। एक
प्रमार्पत्र जो उसे नौकरी िे सके गा। शजससे शलचवंग शमल सके गी, आजीशवका शमल सके गी, लेदकन लाइफ और
शलचवंग में फका है। जीवन और आजीशवका में भेि है। रोटी कमा लेना जीने का काफी आधार नहीं है। अके ला
मकान बना लेना या नौकरी कर लेना भी जीवन को पा लेना नहीं है। जीवन कु छ ज्यािा है।
क्राइस्ट ने कहा था बहुत पहले, मैन कै न नॉट शलव बाइ ब्रेि अलोन, आिमी नहीं रह सकता के वल रोटी
के आधार पर। लेदकन गलत रहे होंगे क्राइस्ट, झूठ कही होगी यह बात, सुधार लेनी चाशहए लौट कर अपनी
बाइशबल। सारी िुशनया शसफा रोटी पर जी रही है। लेदकन क्या सच में क्राइस्ट गलत थे? क्या सुधार लेनी
चाशहए अपनी बात उन्हें, या दक हमारा जीवन गलत है, हमें अपना जीवन सुधार लेना चाशहए। अके ली रोटी
पर जो जी रहा है, उसे दकन िब्िों में, दकन अथों में हम मनुष्य कहें। दफर पिु में और पक्षी में, और पौधों में और
हममे भेि क्या है? कु छ भेि है? कु छ भेि होना चाशहए? वह भेि िायि यही हो सकता है, दक िरीर के पार्थाव
मूकय, वे जो सेंसेट वैकयूज हैं, वे ही नहीं कु छ जीवन में और गहरे मूकय भी हैं, और उन गहरे मूकयों को जो
उपलब्ध होता है, वही के वल आनंि को उपलब्ध होता है। यह अस्वाभाशवक नहीं है, और न आियाजनक दक
सारी िुशनया में एक अथाहीनता, एक मीचनंगलेसनेस मालूम पड़ती है। हर आिमी यह कहता हुआ मालूम पड़ता
है दक जीवन में कोई अथा नहीं दििाई पड़ता। जीवन में अथा दििाई कै से पड़ेगा? अथा पैिा करना होता है। अथा
आसमान से नहीं बरसता, वर्ाा की तरह, और न निी के दकनारे पड़े हुए पत्थरों की तरह कहीं से उठाकर लाया
जा सकता है। और न अथा िुकानों पर बाजारों में शबकता है दक िरीिा जा सके । अथा जो जीवन में सतत साधना
से उत्पन्न करना पड़ता है। आिमी िुि को पैिा करने की सतत प्रदक्रया है। जो लोग मां-बाप के द्वारा पैिा होने
पर ही रुक जाते हैं, वे ठीक से पैिा ही नहीं हो पाते। पूरी चजंिगी एक बथा है, पूरी चजंिगी एक जन्म है, रोज-
रोज आिमी, रोज-रोज जन्मता है। रोज-रोज उसे अपने भीतर नई-नई दििाओं को नई-नई िायमेंिंस को जन्म
िे ना होता है, और शजस दिन उसके भीतर सब शिल जाता है, जैसे कोई कली फू ल बन जाए, ऐसा जब उसके
जीवन के भीतर शछपा हुआ सब फू ल की तरह शिल जाता है, तब और के वल तभी उसे आनंि उपलब्ध होता है।
आनंि है व्यशित्व की पूर्ाता की शिलावट। फ्लावररं ग, पूरी तरह शचत्त जब शिल जाता है, तो आनंि फशलत
होता है। आनंि मंदिरों में पूजा करने से नहीं शमलेगा और न आनंि धन के अंबार लगा लेने से। और न आनंि
शमलेगा यि की सीदढ़यों चढ़ते चले जाने से। आनंि तो के वल तभी शमलता है, जब दकसी व्यशित्व की कली फू ल

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बन जाती है। और जब उसकी सुगंध हवाएं उड़ा कर ले जाती हैं, िूर अनंत तक। तभी उसके भीतर आनंि फशलत
होता है, और तभी अथा, तभी मीचनंग, तभी समझ में आता है दक कोई प्रयोजन है, मेरे जीवन का। हमें तो दकसी
को भी जीवन का कोई प्रयोजन समझ में नहीं आता। शजए जाते हैं अथाहीन, उठे जाते हैं रोज, चले जाते हैं, काम
दकए जाते हैं, सांझ सो जाते हैं। और ऐसे ही उठते, चलते एक दिन अंशतम क्षर् आ जाता है और हम शविा हो
जाते हैं। रोज हम िे िते हैं दकसी को शविा होते, और रोज हम जानते हैं दक जो आिमी शविा हो गया, इसने
जीवन में कु छ भी नहीं पाया।
शसकं िर मरा शजस दिन, उस राजधानी में शजस दिन शसकं िर की अरथी शनकली लोग हैरान हो गए, तुम
भी वहां मौजूि होते, तो हैरान हो जाते। कु छ अजीब सी बात हो गई थी, शसकं िर के िोनों हाथ अरथी के बाहर
लटके हुए थे। ऐसा तो कभी न हुआ था, हाथ तो अरथी के भीतर होते हैं। ये हाथ बाहर क्यों थे? दकसी भूल चूक
से हो गया था ऐसा? लेदकन शसकं िर की अरथी और भूल-चूक हो सकती थी? वह कोई गांव का शभिारी था?
घंटों सजाई गई थी उसकी अरथी, िे ि के सभी सम्माशनत जन, सभी सम्माशनत नागररक उसके आगे-पीछे चल
रहे थे; क्या दकसी को दििाई न िे गया होगा यह तथ्य की िोनों हाथ बाहर लटके हुए हैं? हर आिमी पूछने
लगा, ये हाथ बाहर क्यों हैं? धीरे -धीरे पता चलना िुरु हुआ, शसकं िर ने मरने के पहले कहा था मेरे हाथ अथी
के बाहर लटके रहने िे ना, तादक हर आिमी िे ि ले, मैं भी िाली हाथ जा रहा हं। मेरे हाथ भी भरे हुए नहीं हैं।
मैं चजंिगी में बहुत िौड़ा हं; बहुत शवजय की यात्रा की है, बहुत धन, बहुत िशि, बहुत पि, बहुत कु छ प्रशतष्ठा
इकट्ठी कर ली है, जमीन पर िायि कोई मेरे जैसा पहले नहीं था, इतना बड़ा साम्राज्य, इतना बड़ा सम्राट हं,
लेदकन नहीं, हर आिमी िे ि ले, मैं भी भीतर िाली था और िाली हाथ जा रहा हं। मेरी िौड़ शनष्फल हो गई
है।
हम सब भी छोटे-मोटे शसकं िर हैं, नहीं होंगे उतने बड़े। छोटी-मोटी हमारी भी शवजय की यात्रा है, हम
भी कु छ जीतेंगे, हम भी कु छ बनाएंगे। लेदकन क्या ियाल में आता है दक हाथ आपके भरे हुए हो सकें गे। यादक
आपको भी िाली हाथ ही शविा हो जाना पड़ेगा। और जो िाली हाथ शविा होता है ठीक से जान लें, उसकी
पूरी चजंिगी भी िालीपन की एक कथा होगी। क्योंदक जीवन का अंत पूरी चजंिगी की संपशत्त है, पूरे जीवन का
कनक्लूजन है। मौत िबर िे ती है, यह आिमी कै से जीआ? मौत िबर िे ती है यह आिमी कै से जीआ, कै से रहा?
इसने कु छ पाया, इसने कु छ उपलब्ध दकया? और इसशलए तो हम हर आिमी को मौत से िरा हुआ िे िते हैं।
क्योंदक मौत सारे िालीपन को उघाड़ कर सामने कर िे गी। और इसशलए तो हम हर आिमी को मौत के वि
पीड़ा और परे िानी से भरा िे िते हैं, क्योंदक वह पाता है जीवन चूक गया, हाथ से अवसर चला गया। और मैं
िाली का िाली हं, मेरी िौड़ व्यथा हो गई। नहीं लेदकन जमीन पर कु छ लोग ऐसे भी मरे हैं, शजनके हाथ िाली
नहीं थे। शजनकी मृत्यु भी एक आनंि थी; क्योंदक उन्होंने जीवन के अवसर से िूब फसल काटी थी। उन्होंने
जीवन के अवसर से बहुत ऐसी संपिा इकट्ठी कर ली थी, शजसे मौत भी नहीं छीन सकती है, उन्होंने कु छ भीतर
उपलब्ध कर शलया था, वे भीतर दकसी चीज से भर गए थे, दकसी आनंि से, दकसी अथा से। दकसी अशभप्राय से,
दकसी सौंिया से। दकसी संगीत से उनका पररचय हो गया था। इसशलए मौत भी उन्हें एक नई यात्रा थी, पुरानी
यात्रा का अंत नहीं। इसशलए मौत भी उन्हें जीवन भर की संपिा का इकट्ठा अनुभव थी, मौत भी उनके शलए
आनंि थी।
चवांगत्सु एक फकीर था चीन में। उसकी स्त्री मर गई थी। बहुत ख्याशतलब्ध था, िुि चीन का बाििाह
संवेिना प्रकट करने, िोपहर में उसके घर गया, उसके झोपड़े पर। सम्राट ने रास्ते में सोचा होगा, क्या-क्या

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कहंगा जाकर? क्या-क्या कहंगा, दकसी के घर कोई मर जाए और आप जाएं, तो आप भी सोचते हुए जाते हैं,
क्या-क्या कहेंगे। सम्राट भी सोचता हुआ गया था, लेदकन वहां बड़ी मुशश्कल हो गई। वहां िे ि कर हैरान हो
गया, चवांगत्सु एक िंजड़ी को बजा कर गीत गा रहा है। सुबह पत्नी मरी थी। सम्राट हैरान हो गया, कु छ कहने
का कारर् भी न रहा, संवेिना प्रकट करने की कोई वजह भी न रही, सम्राट को िुि भी हुआ। सम्राट ने कहााः
मेरे शमत्र, िुि न मनाते इतना ही काफी था, लेदकन िंजड़ी बजाओ और गीत गाओ, यह थोड़ा ज्यािा हो गया।
पत्नी सुबह ही मरी है, क्या भूल गए? चवांगत्सु ने आंिें ऊपर उठाईं, उसकी आंिें आनंि के आसुंओं से भरी थीं,
िुि के आसुंओं से नहीं। उसके होंठों पर गीत था, और हाथ में िंजड़ी थी। उसने कहा, जो शविा हो गया है, वह
िाली हाथ नहीं गया है। जो शविा हुआ है, वह आनंि से और हंसता हुआ शविा हुआ है। वह कु छ लेकर और
पाकर शविा हुआ है। वह कु छ पूरा होकर शविा हुआ है। उसका जाना एक िुि नहीं, एक आनंि का अवसर है,
इसशलए गीत गा रहा हं। ये जो आंि में आंसू हैं, ये िुिी के आंसू हैं। िुिी होता दक शजसे मैंने जीवन भर प्रेम
दकया वह अधूरा और िाली हाथ चला जाता, तो मैं िुिी होता। जीवन उसकी एक भरावट थी, एक पूर्ाता थी,
जीवन का फू ल उसका शिल गया था, इसशलए िुि हं।
दकतने लोग यह कह सके होंगे कभी, दकतने लोग अपनी मृत्यु पर यह अनुभव कर सके होंगे? लेदकन थोड़े
से लोगों ने जमीन पर यह अनुभव दकया है। वे वे ही लोग हैं, शजन्होंने जीवन में भी आनंि का, जीवन में भी
सौंिया का अनुभव दकया हो। लेदकन हम सारे लोग शजसे शिक्षा समझते हैं, उससे तो यह कु छ भी पैिा नहीं
होता। यह शिक्षा बहुत अधूरी है। िायि अधूरी कहना गलत हो, यह शिक्षा बहुत बेबुशनयाि है, यह शिक्षा बहुत
आधारहीन है। हम एक ऐसा मकान बनाते हैं, शजसकी कोई बुशनयाि नहीं िालते, शजसकी कोई नींव नहीं
बनाते, मकान बन कर िड़ा हो जाता है। और हवा के झोंके उसे वैसे ही शगराते रहते हैं, जैसे कोई ताि का घर
बनाए, या कोई रे त का घर बनाए। ये जीवन का भवन हमारा कोई बहुत ठोस बुशनयाि पर िड़ा नहीं होता।
धमा ही जीवन को ठोस बुशनयाि िे ता है। लेदकन धमा िब्ि से भूल में मत पड़ जाना, धमा से मेरा मतलब
दक्रशियशनटी, चहंिू, इसाई, जैन या बौद्ध नहीं है, ये कोई भी धमा नहीं हैं। धमा तो एक ही हो सकता है, बहुत
नहीं हो सकते। गशर्त बहुत हो सकते हैं? दफशजक्स बहुत हो सकती हैं? चहंिू की दफशजक्स अलग, मुसलमान की
दफशजक्स अलग, जानते हैं हम नहीं हो सकती। प्रकृ शत के शनयम तो युशनवसाल हैं, एक जैसे हैं, चहंिू और
मुसलमान में वे फका नहीं करते। तो जब प्रकृ शत के शनयम भी एक जैसे हैं, तो क्या परमात्मा के शनयम शभन्न-शभन्न
हो सकें गे। जब पिाथा भी एक ही सावालौदकक शनयमों के अंतगात चलता है और गशतमान होता है, तो क्या प्रार्
अलग-अलग शनयमों के अंतगात गशतमान होते होंगे। नहीं शवज्ञान भी एक है, और धमा भी। लेदकन धमा के नाम
पर बहुत सी िुकानें िड़ी हो गईं है। और वे सब अलग-अलग हैं, और उन िुकानों ने आिमी का बहुत िोर्र्
दकया है। और इन िुकानों के कारर् ही शिक्षा आज तक धमा से वंशचत है। क्योंदक जब भी धमा का सवाल उठता
है, तो चहंिू सोचता है, चहंिू धमा शिक्षा से जोड़ दिया जाए, गीता पढ़ाई जाए, वेि पढ़ाए जाएं, मुसलमान
सोचता है कु रान जोड़ िी जाए, ईसाई सोचता है बाइशबल जोड़ िी जाए, कु छ और जोड़ दिया जाए। जब भी
धमा को शिक्षा से जोड़ने का सवाल उठता है, तब ये तथाकशथत धमों के लोग, सोचते हैं हमारी दकताबें, हमारी
परं पराएं, हमारी ट्रेिीिंस, हमारी श्रद्धाएं, हमारे शवश्वास, हमारी शबशलफ जोड़ जी जाएं। और ये सारी शबशलफ,
ये सारे शवश्वास इतने अंधे हैं दक शिक्षा िास्त्री सोचता है, इनको तो न जोड़ना ही बेहतर। इनसे मनुष्य के जीवन
में काई शवकास नहीं हुआ, कोई गशत नहीं हुई। बशकक सच यह है दक धमों के अंधशवश्वास ने मनुष्य की सारी
वैज्ञाशनक प्रगशत को रोज-रोज बाधा पहुंचाई है, रोज-रोज अड़ंगे िड़े दकए हैं। गैशलशलयो से लेकर आइं स्टीन तक

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रोज, शनरं तर धमा के नाम पर धमा पुरेशहतों ने मनुष्य की वैज्ञाशनक प्रगशत को सब तरफ से रोकने की कोशिि की
है। जो प्रगशत हुई है, वह धमों के बावजूि हुई है।
इसशलए एक भय है दक धमा के नाम पर चहंिू-मुसलमान, ईसाई कही ंं इनका भाव न हो, तो मैं पहले ही
शनवेिन कर िूं दक धमा से मेरा अथा दकसी संप्रिाय से नहीं दकसी सेक्स से नहीं, धमा से मेरा अथा दकसी धमाग्रंथ से
भी नहीं। धमा से मेरा अथा है, जीवन के भीतर उच्चतर मूकयों के जन्म की प्रदक्रया से। कै से मुनष्य के भीतर उच्चतर
मूकयों का जन्म हो सकता है? कै से मनुष्य अपने भीतर शछपी हुई चेतना से, आत्मा से पररशचत हो सकता है।
कै से मनुष्य अपने बाहर जो शवराट जीवन शवस्तीर्ा है, उसका साशनध्य अनुभव कर सकता है। कै से वह एक दिन
इस सत्य का उिघाटन कर सकता है दक जगत के वल शमट्टी और पिाथा से नहीं बना, बशकक उसमें परमात्मा भी
व्याप्त है। इसकी िोज, इसकी मान्यता नहीं, इसका शवश्वास नहीं, इसको चुपचाप मान लेना नहीं, बशकक इसकी
िोज, इसका अनुंसधान। लेदकन तथाकशथत धमा तो हमसे कहते हैं शवश्वास करो, उनकी इस शवश्वास करने की
शिक्षा के कारर् ही शिक्षक, शिक्षाथी और शिक्षा का जगत धमा से आज तक संबंशधत नहीं हो सका है। क्योंदक
शिक्षा के सारे आधार शवचार पर िड़े हैं। और धमा के सारे आधार शवश्वास पर िड़े हैं, ये िोनों बातें शवरोधी हैं।
धमा अंधे शवश्वास पर िड़ा हुआ है। और सारी शिक्षा की आधुशनक चचंतना शवचार पर िड़ी हुई है। जब तक धमों
को हम शवश्वास समझेंगे, तब तक शिक्षा से उसका कोई मेल नहीं हो सकता। वे िोनों िो शवरोधी चीजें रहेंगी।
और इसीशलए आज तक मेल नहीं हो सका। लेदकन मेरी िृशि में धमा भी अंधश्रद्धा नहीं है, धमा भी जागरुक
शवचार है। और अगर धमा जागरुक शवचार है, तो धमा िुि एक शवज्ञान है। बशकक सुप्रीम साइं स है। क्योंदक िेर्
सारे शवज्ञान बाहर जो है, उसकी िोज करते हैं, धमा उसकी िोज करता है, जो भीतर है।
राशबया एक फकीर औरत थी। एक संध्या लोगों ने िे िा वह अपने घर के बाहर कु छ िोजती। बूढ़ी थी
औरत सूरज ढलता था, रात पड़ती थी। िो-चार लोग आ गए, और उन्होंने कहा, क्या िोजती हो? हम साथ िे
िें ? उस राशबया ने कहााः मेरी सुई िो गई है, मैं कपड़े सीती थी और मेरी सुई िो गई। उसे िोजती हं, सुई है
बड़ी छोटी चीज, रास्ता बहुत बड़ा था, सूरज िू बता था, अंधेरा उतरता था; वे िोजने लगे। लेदकन तभी एक
व्यशि को ियाल आया, इतना छोटी चीज है ठीक से बताओ कहां शगरी है? तो िायि हम िोज भी सकें , इतने
बड़े रास्ते पर। उस राशबया ने कहााः यह मत पूछो! सुई तो मेरे मकान के भीतर शगरी है। मैं कपड़ा सीती थी,
वहां सुई शगर गई, लेदकन वहां रोिनी नहीं है और मैं इतनी गरीब हं दक मेरे घर में कोई दिया नहीं है। तो मैं
बाहर की ढलान में िोजने लगी, वहां थोड़ी सूरज की अभी रोिनी आती थी। दफर वह भी ढल गई तो मैं और
बाहर आ गई, सड़क पर िोजने लगी, यहां थोड़ा प्रकाि था। वे लोग बोले तुम पागल हो क्या? सुई भीतर िोई
है और उसे बाहर िोजोगी, तो वह शमलेगी? राशबया ने कहााः मैं तो हर आिमी को जो चीज भीतर गुमी है, उसे
बाहर िोजते िे िती हं। हर आिमी को।
हर आिमी बाहर िोज रहा है, उसे जो भीतर मौजूि है। लेदकन वही भूल हो रही है, जो राशबया ने उस
घटना में िड़ी कर िी थी। हमारी आंिों की रोिनी बाहर शगरती है, हाथ बाहर फै लते हैं, कान बाहर सुनते हैं,
हमारी सारी इं दद्रयां बाहर की तरफ िुलती हैं, इनकी रोिनी बाहर पड़ती है, इसशलए हम बाहर िोजते हैं,
आनंि को बाहर िोजते हैं, प्रेम को बाहर िोजते हैं, बाहर िोजते हैं, सब कु छ जीवन का, जब दक सच्चाई यह है
दक घर के भीतर कोई दिया नहीं है, अंधेरा है जरूर। लेदकन वहां भीतर वह सब शछपा है, शजसकी हम बाहर
िोज करें गे और कभी न पा सकें गे।

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आज तक शजसने भी कभी पाया है, उन्होंने उसे भीतर पाया है। लेदकन तब भीतर है अंधेरा, तो धमा है
रास्ता भीतर रोिनी ले जाने का, भीतर दिया जलाने का। भीतर आंि ले जाने का और िोजने का। धमा
अंधश्रद्धा नहीं, अंध शवश्वास नहीं, धर् म एक वैज्ञाशनक प्रदक्रया है। जीवन के गहनतम सत्यों की तरफ अग्रसर
होने की, उस प्रदक्रया के संबंध में अंत में थोड़ी सी बात कहंगा। और अगर वह प्रदक्रया हमारे ियाल में आ सके ,
तो कोई वजह नहीं है दक शिक्षा एक-एक बच्चे को िुरुआत से ही आशत्मक जीवन में िीशक्षत करने में क्यों असमथा
रह जाए, वह समथा हो सकती है। उस प्रदक्रया के संबंध में थोड़ी सी बात कहंगा। िो सूत्र हैं मनुष्य के भीतर जो
सत्य है, या जगत में जो सत्य है, जो गहरी से गहरी सच्चाई है, उसे जानने की।
पहला सूत्र हैाः अकं प शचत्तता। पहला सूत्र है अनवेवररं ग माइं ि। हमारा सारा शचत्त शनरं तर कं शपत है।
शनरं तर कं पा हुआ है, जैसे सागर की लहरें । एक शमत्र मेरा शचत्र लेने आए थे, वो कै मरा साथ लाए थे, मैंने उनसे
कहा एक िता पर शचत्र लेने िूंगा, शचत्र तो लो लेदकन, कै मरे को शबककु ल शहलाते रहना, तो ही शचत्र लेने िूंगा।
कोई रास्ता न िे ि कर वे राजी हो गए। और कै मरा शहलाते हुए शचत्र लेना पड़ा। दफर वह शचत्र आ गया। उस
शचत्र में पहचानना भी मुशश्कल है दक वह क्या है? मॉिना पेंरटंग हो गई वह शचत्र। मॉिना पेंरटंग भी अचानक
पैिा नहीं हो गई है, वेवररं ग माइं ि की वजह से पैिा हो गई है। शचत्त शजतना कं शपत है, जीवन को भी उतना ही
कं शपत िे िता है। शचत्त है ििान का द्वार। तो मैंने उनसे कहा, इस शचत्र को अपने घर लगा लो, बड़ा करके और
अगर कभी कोई आिमी पहचानने वाला शमल जाए दक शचत्र दकसका है, तो मुझसे शमला िे ना क्योंदक वह
आिमी बड़ा अिभुत है। पांच साल बीत गए, मगर वह आिमी अब तक नहीं शमला, और मैंने उनसे कहा वह
शमलेगा भी नहीं, तुम टांगे रहो शचत्र को। लेदकन हम जीवन को ऐसे ही कं शपत शचत्त से िे िने की कोशिि कर
रहे हैं। और अगर जीवन की तस्वीर ठीक न बन पाती हो, और हम सत्य को अनुभव न कर पाते हों, तो कौन है
कसूरवार? कौन है शजम्मेवार? और दफर हम पूछते हों, और कहते हों दक कोई नहीं है ईश्वर, कोई नहीं है
आत्मा, कु छ नहीं है िांशत, कोई नहीं है आनंि ; जरूर हम कहेंगे। अगर उस शचत्र को िे ि कर हम कहें दक कोई
नहीं है मनुष्य शजसकी फोटो उतारी जा सके , िे िो यह शचत्र आता है, तो गलती तो नहीं कहेगा। लेदकन मैं
मौजूि था और मेरी वह तस्वीर है। लेदकन उस तस्वीर को िे ि कर कोई सोच नहीं सकता दक मैं हं। उस तस्वीर
में मुझे नहीं िोजा जा सकता।
इस जगत में हम परमात्मा को नहीं िोज पाते। तो हम िोर् िे ते हैं दक परमात्मा नहीं है। जीवन में आंनि
नहीं िोज पाते, तो कहते हैं दक जीवन व्यथा है। एप्सिा है, इसमें कोई आनंि है ही नहीं। दफजूल की िोज है,
जीवन में िांशत नहीं शमलती, तो हम कहते हैं जीवन में कोई िांशत है ही नहीं, तो शमलेगी कै से? लेदकन मैं
आपसे शनवेिन करना चाहता हं जीवन में बहुत आनंि है, बहुत िांशत है, लेदकन उसका शचत्र उतारने के शलए
चाशहए, अनवेवररं ग माइं ि। चाशहए शनष्कं प शचत्त। चाशहए ठहरा हुआ शचत्त। चाशहए अकं प शचत्त शजसमें कं पन न
हों और लहरें न हों। हमारा तो शचत्त रोज-रोज कं पा चला जाता है।
एक छोटी सी घटना कहं, उससे िायि अकं प शचत्त का अथा ियाल में आ सके । और दफर मैं िूसरा सूत्र
बताऊं दक अकं प शचत्त कै से हो सकता है? और उस सारी प्रदक्रया को मैं धमा कहता हं।
एक बहुत बड़ा धनुधार हुआ। एक बहुत बड़ा बार् चलाने वाला, तीर चलाने वाला, तीरं िाज हुआ। सारे
िे ि में उसकी ख्याशत थी। और िुि सम्राट ने उससे कहा था, तुम अप्रशतम हो, तुम अके ले हो, तुम बेजोड़ हो, तुम
घोर्र्ा क्यों नहीं कर िे ते, कोई प्रशतस्पधी हो, तो सामने आ जाए, तादक मैं राज्य से तुम्हें सम्मान िे सकूं दक
तुमसे ऊंचा और कोई भी धनुधार नहीं है। वह राजमहल से सोचता हुआ घर लौटता था दक महल के बूढ़े

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चपरासी ने उससे कहा दक मेरे भाई इसके पहले दक इस भूल में पड़ जाओ दक तुम सबसे बड़े धनुधार हो, मेरा
एक शनवेिन है। मैं पहले जंगल में लकड़ी काट कर लाने वाला लकड़हारा था। मैंने जंगल में एक आिमी को िे िा
है, शजसका कोई मुकाबला ही नहीं है। तुम उसके सामने अभी नासमझ हो। अभी तुम उसके सामने अ ब स भी
नहीं जानते हो, पहले उसके पास जाकर कु छ सीि लो, नहीं तो करठनाई में पड़ जाओगे।
तो वह धुनधार हैरान हुआ दक उससे भी ज्यािा कोई जानता होगा, क्योंदक बहुत वह जानता था इस
कला में शजतना जाना जा सकता था, सब उसने सीिा था। उसकी कु िलता बहुत थी, वह गया लेदकन। जंगल में
जाकर उसने उस आिमी को िोज शलया और उसे पता चल गई यह बात दक यह सच्चाई है दक वह उसके सामने
अ ब स भी नहीं जानता है। उसके चरर्ों में तीन वर्ों तक बैठ कर उसकी सारी कला सीिीं, जब वह सब सीि
गया, तो उसे ियाल आया दक अब यह आिमी अगर मर जाए, गुरु था उसका लेदकन मर जाए, तो मैं अशद्वशतय
घोर्र्ा कर सकता हं दक मैं अके ला हं। लेदकन इस गुरु के मरने की कब तक मैं प्रतीक्षा करूंगा। तो क्यों न मैं इसे
मरने में सहयोग िूं। यह सोच कर वह एक वृक्ष के नीचे शछप गया, एक संध्या। गुरु जंगल से लकशड़यां काट कर
लौटता था, शनहत्था था, उसके पास कोई धनुर् बार् न था। उसने तीर मारा, उसका तीर तो अचूक था। मर
जाना शनशित था। लेदकन घटनाएं अक्सर उलटी िक्ल ले लेती हैं, उसके गुरु ने तीर को आता िे िा, तो उसने
एक छोटी सी लकड़ी का टु कड़ा फें का, तीर को चोट लगी और तीर वापस लौट गया और उस आिमी की छाती
में चबंध गया। गुरु िौड़ा, जाकर तीर शनकाला इलाज दकया, कहा मेरा मन न था तुझे मारने का। लेदकन यह
अंशतम, एक और िेर् रह गई थी यह बात जो मैंने तुझे नहीं बताई वह भी तुझे शसिा िूं; यह मैंने इसशलए बचा
रिी थी दक आज नहीं कल, तेरे मन में यह ियाल आना बहुत शनशित है दक मैं ित्म कर िूं। इस आिमी को जो
मेरा प्रशतयोगी हो सकता है। लेदकन तू पागल है, एक तो गुरु शिष्य का कभी प्रशतयोगी हुआ है? िूसरा मैं इस
जंगल में शछपा हं, कभी गांव भी नहीं गया दकसी को कहने, तू व्यथा ही नासमझी की बातें दकया। लेदकन तू
शनचिंत हो जाए इसशलए मैं अपना धनुर्-बार् तोड़े िे ता हं। और उसने अपना धनुर्बार् तोड़ दिया।
वह युवक िुि हुआ और लौटने लगा, लेदकन उस बूढ़े गुरु ने कहााः लेदकन ठहर! मैं कु छ भी नहीं हं, मेरा
गुरु ऊपर पहाड़ पर रहता है। अभी इतनी जकिी यह मत सोच लेना दक तू सब जान गया। उसके सामने मैं कु छ
भी नहीं हं, उसके चरर्ों की धूल भी नहीं। तो पहले एक िफा उसके ििान कर ले। पहाड़ के करीब से ऊंट
शनकलता है, तभी उसे पता चलता है दक ऊंचाई उसकी दकतनी है। तो उसने उससे कहा दक तू शसफा एक ऊंट है,
वह एक पहाड़ है। उसके करीब से शनकल जा। तो िायि तुझे यह ियाल ही शमट जाए। जरूरी था जाना, वहां
वह गया। बामुशश्कल िोज पाया उस बूढ़े आिमी को, शजसकी बात कही गई थी। वह कोई सौ की उम्र पार कर
चुका होगा। उसकी कमर झुक कर कमान हो गई थी। एकिम बूढ़ा आिमी था। और एक बड़ी चट्टान पर, पहाड़
पर िड़ा हुआ था। उसके पास वह गया। और उसने कहा, क्या आप ही वह आिमी हैं, शजसको मैं िोजने आया
हं, जो सबसे बड़ा व्यशि है, जानकारी में इस धनुर्वाद्या की। लेदकन आपका धनुर् कहां? आपके बार् कहां? तो
वह बूढ़ा आिमी हंसा और उसने कहााः जब कोई कला पूरी हो जाती है तो उपकरर् छू ट जाते हैं। जब संगीत
पूरा हो जाता है तो वीर्ा तोड़ िी जाती है, उसकी कोई जरूरत नहीं रह जाती। और जब कोई काव्य में पूरा
गहरा उतर जाता है तो िब्ि छू ट जाते हैं, मौन आ जाता है।
बीस साल हो गए, धनुर् तोड़ दिया। उसकी अब कोई जरूरत न थी। धनुर् बार् तू शलए है, यह तो बच्चों
का काम है, यह तो सीिने के वि की जरूरत है। जब तक धनुर् तेरे हाथ में है, समझना धनुर्वाद्या पूरी तुझे
अभी आई नहीं। बहुत मुशश्कल की बात हो गई। लेदकन उस युवक ने कहा, आपके चरर्ों में बैठ कर मैं सीिना

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चाहता हं। यह तो मेरी कभी ककपना में भी न था दक उपकरर् छू ट जाएंगे, शजस दिन कला पूरी होगी, लेदकन
अब क्या बचा है आपके पास? जब उपकरर् ही नहीं हैं, तो क्या है आपके पास िेर्? तो वह बूढ़ा उस चट्टान
पर आगे की तरफ सरका, शजसके नीचे हजारों दफट गहरा िड्ड था। शजसमें कोई शगर जाता तो आवाज भी
सुनाई न पड़ती। शजसमें कोई शचकलाता, तो कोई सुनने को न था, इतना शनजान था। वह बूढ़ा उस दकनारे की
तरफ चला, चट्टान पर, चट्टान िूर िड्ड के ऊपर बढ़ी हुई थी। वह बूढ़ा गया दकनारे पर, जहां उसके पंजे िाई में
झांकने लगे। और वहां कमर झुकाए वह सौ साल पार दकया बूढ़ा िड़ा हो गया। और उस युवक से कहााः आ, तू
भी यहां शनकट आ जा। वहां कौन इतने शनकट जा सकता था, नीचे मौत थी। जरा सा चूक जाना और मृत्यु में
पहुंच जाना हो जाता। वह युवक बोला मेरे हाथ-पैर कं पते हैं, मैं वहां नहीं आ सकूं गा। तो उस बूढ़े ने कहा, हाथ-
पैर कं पते हैं, यादक मन कं पता है। उस युवक ने कहााः मन कं पता है िायि इसशलए हाथ पैर कं पते हैं। तो उसने
कहा दफर तू कै सा धनुर्वाि है। तू कै सा तीर चलाने वाला है? शजसका शचत्त कं पता है, उसका शनिाना कभी ठीक
लग सकता है? चाहे दकतना भी ठीक लगे, लेदकन हमेिा अप्रॉशक्समेट ही होगा। कभी ठीक नहीं हो सकता।
करीब-करीब ठीक होगा, कभी ठीक नहीं हो सकता। और करीब-करीब ठीक, ठीक नहीं होता है। आप कह सकते
हैं दक यह बात करीब-करीब सत्य है। नहीं, सत्य, सत्य होता है, करीब-करीब सत्य में झूठ मौजूि होता है। नहीं
तो करीब-करीब नहीं हो सकता। आप कह सकते हैं मैं तुम्हें करीब-करीब प्रेम करता हं? करीब-करीब प्रेम का
क्या मतलब होता है? प्रेम हो सकता है, करीब-करीब प्रेम नहीं हो ंे सकता। तो करीब-करीब शनिाना भी नहीं
हो सकता। शनिाना होता है, या नहीं होता।
उस बूढ़े ने कहा आ जा पास। वह युवक वहीं बैठ गया, उसने कहा क्षमा करें , मैं उतने पास नहीं आ
सकूं गा। और मैं हैरान हं दक आप वहां िड़े हैं। उस बूढ़े ने कहा, जब शचत्त शथर हो जाता है, तो सब शथर होकर
िड़ा हुआ जा सकता है। जा पहले शचत्त की अकं पना, पहले शचत्त की नॉन-वेवररं ग सीि कर आ, दफर शनिाना
लगाना सीि सके गा। वह आिमी चल पड़ा बहुत दिन हो गए, िोजते-िोजते अभी तब उसे कोई बताने वाला
नहीं शमला दक शचत्त अकं प कै से हो सकता है? वह जगह-जगह गांव-गांव में पूछता है दक शचत्त अकं प होने की
क्या तरकीब है? मैं आपको तरकीब बताए िे ता हं, अगर वह भटकता हुआ कहीं आपको शमल जाए, तो आप उसे
बता िे ना। क्योंदक यह तो मैं जानता हं दक इसे आप अपने काम में न लाओगे, इसशलए मैंने कहा, दकसी को बता
िे ना। कोई अपने काम में नहीं लाता, इसशलए मैंने कहा दक शमल जाए कभी कोई पूछता हुआ, तो उसको बता
िे ना दक यह तरकीब है।

शचत्त अकं प होता है, एक बहुत सरल तरकीब से। शचत्र अकं प होता है शवश्राम से। शचत्र अकं प होता है
ररलैक्जेिन से। रे स्ट से। शचत्त कं शपत क्यों है? शचत्त कं शपत है तनाव से। टेंिन से। अगर हम एक वीर्ा के तार
को िींचे, टेंस हो जाएगा, चिंच जाएगा तन जाएगा और अगर छोड़ िें , तो तार झन-झनाता हुआ कपंता रहेगा,
बड़ी िे र तक कं पता रहेगा। वह कं पन कहां से आया? वह कं पन क्या है? वह कं पन है एक तनाव को शवसर्जात
करना। तनाव भर गया िींचने से तार में, अब तार अपनी जगह वापस लौटना चाहता है। एकिम से नहीं लौट
सकता, तनाव की ताकत भर गई है, ताकत को शवसजान करना पड़ेगा। वो ताकत को शविरअवे करना पड़ेगा, तो
वह तार शहल-शहल कर उस ताकत को बाहर फें क िे गा। जब सारी ताकत बाहर फफं क जाएगी, जो आपने हाथ से
िींच कर पैिा कर िी थी, तार अपनी जगह वापस पहुंच जाएगा। कं पन है अपनी जगह पहुंचने की कोशिि।
शचत्त अपनी जगह पहुंचना चाहता है। लेदकन हम उसे चौबीस घंटे िींच-िींच कर परे िान दकए िे रहे हैं। तान

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कर परे िान दकए िे रहे हैं। वह एक कं पन पूरा नहीं हो पाता दक अंगुशलयां दफर तार को िींच िे ती हैं। जीवन
भर हम मन को िींचे चले जाते हैं। ताने चले जाते हैं। और ये तनाव और ये टेंिन चौबीस घंटे मन को कं पाए
रिता है। कं पाए रिता है। इस कं शपत मन के कारर् जीवन के सत्य के कोई ििान नहीं हो पाते। क्या करें ?
थोड़ी िे र को मन को शबककु ल ररलैक्स छोड़ िें । कु छ भी न करें । थोड़ी िे र को कु छ भी न करें । चौबीस घंटे में
घड़ी-आधा घड़ी दकसी अंधेरे कोने में, ऐसे पड़ जायें जैसे दक आप नहीं हैं। और मन के साथ कु छ भी न करें ।
राम-राम भी न जपें क्योंदक वह भी एक तनाव है, माला भी न फें रें , क्योंदक वह भी एक काम है, मन दफर
चिंचेगा। कु छ भी न करें लेदकन आप कहेंगे हम कु छ भी न करें , तो भी क्या है, मन तो कु छ करे गा। मन तो
सोचेगा, शवचार करे गा। जरूर। मन सोचेगा, शवचार करे गा, क्योंदक जीवन भर के चिंचाव, उसे कं पा रहे हैं। हम
एक गाड़ी के चाक को, एक साइदकल के चाक को चला िें , दफर हम हाथ ही अलग िींच लें तो भी चाक उसी
वि थोड़े ही रुक जाएगा। चाक को मोमेंटम शमल गया, गशत शमल गई, चाक थोड़ी िे र चलेगा, चल कर उस
गशत को बाहर फें के गा। दफर धीरे -धीरे , धीरे रुके गा। और इस बीच अगर आपने दफर चाक को चला दिया, तो
रुकने का कोई सवाल नहीं है। साइदकल चलती इसी शनयम पर है। आप पैिल लगाते हैं, चाक गशतमान हो
जाता है, जब तक उसकी गशत ित्म हो, पैंशिल उसे िुबारा गशत िे िे ता है, साइदकल चलती चली जाती है।
शचत्त भी वैसी ही एक साइदकल बन गई है, हम उसे रोज तनाव दिए चले जाते हैं, उसको हम कभी छोड़ते नहीं
दक कोई तनाव शवसर्जात हो जाए। तो मैं शनवेिन करूंगा प्रदक्रया है सरल लेदकन करने वाला शमलना है करठन।
प्रदक्रया बहुत सरल है। आधा घड़ी को दकसी कोने में, एकांत में चुप-चाप पड़े रह जायें, मन काम करे गा, उसके
कं पन भरे हुए हैं वे चलेंगे, उनको चल लेने िें , िे िते रहें। जैसे कोई रास्ते पर चलते हुए लोगों को िे िे। कोई निी
के दकनारे बहती निी की धार को िे िे। कोई आकाि में उड़ते हुए पशक्षयों की कतार को िे िे, ऐसे ही शवचारों
की चलती कतार को, कं पन को चुपचाप बैठे िे िते रहें। कु छ भी न करें उसके साथ। कु छ भी न करें , न रोकने की
कोशिि, न हटाने की कोशिि क्योंदक सब कोशिि दफर तनाव पैिा कर िे ती है, कोई इफटा तनाव पैिा कर िे गा।
कोई एफटा न करें । आपने िे िा दक अगर रात में नींि न आती हो और आप कोशिि करें नींि लाने की दफर नींि
नहीं आ सकती, क्योंदक हर कोशिि नींि की िुश्मन है। अगर कोई कोशिि न करें तो नींि तो अपने आप आ
जाएगी, नींि आप ला नहीं सकते, वह अपने आप आती है। आपके लाने की कोशिि में िूर हो जाएगी। शवश्राम
भी आप ला नहीं सकते, वह अपने आप आता है, आप कु छ भी न करें तो वह आएगा।
बुद्ध एक गांव के पास ठहरे , प्यास लगी थी उन्हें जंगल में, अपने एक शभक्षु को भेजा दक पानी ले आ। वह
गया, शजस नाले से पानी लाना था, उसमें से बैलगाशड़यां शनकल गईं थी, वहां कचरा और शमट्टी ऊपर उठ आयी
थी। वह िाली हाथ वापस लौट आया और उसने कहााः बहुत मुशश्कल है, वह पानी तो एकिम गंिा हो गया।
अब मैं क्या करूं, कै से उस पानी को ठीक करूं? और मैं ठीक करने अंिर घुसा था तो मेरे पैरों ने और कीचड़ उठा
िी। बुद्ध ने कहााः पागल! दकनारे बैठ जाना था, और चुपचाप बैठे रहना था। अपने आप धूल के कर् नीचे बैठ
जाते। उठे हुए पत्ते बह जाते, वह जो जल एकिम गंिा हो गया है, शनमाल हो जाता, जाओ दकनारे बैठ जाओ
और कु छ करना मत। तूने कु छ भी दकया तो पानी दफर गंिा हो जाएगा। वह युवक गया और दकनारे बैठ गया,
एक झाड़ से शछप कर बैठा रहा, बैठा रहा गंिा पानी बहता गया, उठी हुई कीचड़ नीचे बैठती गई। सूिे पत्ते
बहते चले गए, थोड़ी िे र में िे िते-िे िते वह हैरान हो गया, वह पानी जो शबककु ल गंिा था, एकिम शनमाल हो
आया था। वह पानी भर कर नाचता हुआ वापस लौटा और बुद्ध के चरर्ों में शगर पड़ा, उसने कहा पानी तो

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ठीक मन के संबंध में भी एक बात समझ में आ गई। यह जो सरा उपद्रव मन का है, कहीं दकनारे हम बैठ जाएं
तो ठीक हो जाए।
मन के दकनारे बैठ जाने का नाम शवश्राम है। चलने िें मन को और दकनारे बैठ जाएं। तनाव अपने आप
शवसर्जात हो जाएंगे और एक घड़ी आएगी दक थोड़े दिनों में प्रेम से प्रतीक्षा करने पर जब दक मन एकिम
शनष्तरं ग हो जाएगा, नहीं आज हो जाएगा, नहीं कल, जकिी नहीं हो सकती। क्योंदक जीवन भर के तनाव हैं,
और जो जानते हैं वह यह भी जानते हैं दक जीवन भर के नहीं, बहुत जीवन तनाव हैं। उनका भारी बोझ है,
भारी चिंचाव है, लेदकन अगर हम िांशत से प्रतीक्षा करें और दकनारे बैठ सकें मन के , तट पर बैठ सकें और िे ि
सकें चुपचाप। रोज अगर एक घड़ी मन के साथ के वल चुपचाप बैठे रहने में बीत जाए, तो दकसी दिन आपको
अनुभव होना िुरु हो जाएगा दक तरं गें कम होनी िुरु हो गई हैं। मन की लहरें बैठने लगी हैं। कू ड़ा-करकट बहने
लगा है, एक शनमालता, एक इनोसेंस, एक पशवत्रता, एक िांशत एक शनष्तरं गता पैिा हो रही है, और एक दिन,
वह घड़ी आ जाती है, जो प्रतीक्षा करता है दक जब मन शबककु ल ही िांत और मौन हो जाता है। उसी दिन धमा
का अनुभव होता है, उसी दिन सत्य की प्रतीशत होती है। उसी दिन स्वयं के भीतर जो शछपा है, उसका बोध
होता है। और उसी दिन जीवन कु छ और हो जाता है। और दफर और, दफर आजीशवका नहीं रह जाती जीवन,
जीवन हो जाता है। दफर हम चलते-दफरते मुिे नहीं रह जाते, हमारे भीतर कोई जीवंत धारा जन्म ले लेती है
और प्रकट हो जाती है। दफर, दफर ही अनंत से संबंध है, दफर ही परमात्मा से संबंध है। नहीं दकसी मंदिर में उसे
िोजा जा सकता, लेदकन शजसका मन मंदिर बन जाता है, मौन होकर; वह वहां मौजूि हो जाता है। नहीं उसे
पत्थर की िीवालों और मूर्तायों में िोजा जा सकता, लेदकन शजसके प्रार् िांत हो जाते हैं वहीं चेतना की
शचन्मय मूर्ता उपलब्ध हो जाती है। वह वहां है, वह सबके भीतर है। जो उसे िोजना चाहेंगे, जो उसके शलए
प्यासे होंगे, शजनकी आतुरता होगी आनंि को और अथा को िोज लेने की, वह उनके साथ िड़ा है, शसफा आंि
फे र कर िे िने की बात है।
एक छोटी सी कहानी और मैं अपनी चचाा को पूरा करूंगा।
शनष्तरं गता धमा की बुशनयािी आधारशिला है। और शनष्तरं गता का उपलब्ध करने का सूत्र, सीक्रेट है--
शवश्राम। शनष्तरं गता, धन शवश्राम बराबर धमा का अनुभव। और शिक्षा से यह बात शजस दिन भी संयुि होगी
उस दिन हम नये आिमी को पैिा कर लेंगे।
एक छोटी सी कहानी अपनी बात मैं पूरी कर िूंगा।
एक गांव के बाहर एक मरघट पर आधी रात को भटकता हुआ एक फकीर पहुंच गया। शचता जल रही
थी, सिा रात थी, उसने सोचा शचता के पास थोड़ी गमी शमल जाएगी। लेदकन शचता के पास पहुंच कर उसने
िे िा दक एक औरत िड़ी है, आंिों से आंसू बह रहे हैं, हाथ जोड़े िड़ी है। और आकाि की तरफ िे ि कर कह
रही है, अगर मेरे प्यारे को वापस नहीं लौटाते हो, तो मुझे भी इस शचता में समा जाने की आज्ञा िे िो। और यह
कह कर वह िौड़ पड़ी है शचता की तरफ। फकीर तो कु छ भी समझ भी नहीं पाया और िौड़ कर उसके कं धे को
पकड़ा है और रोका है दक क्या करती हो? सांझ उसका पशत चल बसा था। गांव के लोग उसे शचता पर चढ़ा कर
वापस लौट गए हैं, आधी रात उसकी शवधवा पत्नी वह युवती मरघट पर मरने उसके साथ आ गई। फकीर ने उसे
रोका, रुकना नहीं चाहती है, कू िना चाहती है। फकीर ने उसे ताकत से रोका और कहााः पागल हो? उस युवती
ने एक बड़ी अिभुत बात उस फकीर के सामने रि िी। उसने कहााः आप एक वचन िे ते हो तो मैं बच जाऊं?
क्या मेरा प्रेमी वापस लौट सकता है, नहीं तो मेरे रहने का कोई प्रयोजन नहीं, अथा नहीं। वहीं था मेरा आनंि।

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और फकीर भी ब.हुत अिभुत रहा होगा, मुशश्कल से वैसा फकीर शमलता है। फकीर ने घर लौट चलो, तीस दिन
बाि तेरा प्ररेमी वापस लौट आएगा। शवश्वास करने जैसी बात न थी, लेदकन उस फकीर ने इतने आश्वासन से
कहा था, उसकी आंिों में ऐसी िृढता थी। वह स्त्री वापस लौट आई, उसने कहा कोई हजा नहीं, तीस दिन बाि
भी मैं मर सकती हं। तीस दिन प्रतीक्षा करना कोई लंबा समय न था। गांव भर में यह िबर फै ल गई, गांव भर
में चचाा हो गई, उस स्त्री ने अपनी चूशड़यां भी नहीं फोड़ीं, उस फकीर ने कहा चूशड़यां फोड़ने की जरूरत नहीं है,
लौट आएगा तेरा प्रेमी। तू शवधवा नहीं हुई है। और रोज संध्या वह फकीर उसके घर आने लगा। कु छ उससे
कहता होगा, दकसी को पता नहीं क्या उसने उससे कहा? लेदकन तीस दिन एक-एक करके बीत गए। गांव के
लोग हैरान जरूर थे, वह युवती धीरे -धीरे -धीरे िुि के बाहर होती चली गई। जैसे उसके चेहरे से सारी उिासी
शमट गई, मृत्यु की छाया शवलीन गई। जैसे वह दफर ताजी और हरी हो आई, दफर जीवन की कोपलें उसमें
शनकल आईं। वह दफर वापस वैसी हो गई, जैसी थी, मृत्यु का यह आघात जैसे जा चुका था।
तीस दिन पूरे हो गए, इकत्तीसवें दिन की सुबह आ गई, सारा गांव पांच बजे से उसके द्वार पर इकट्ठा हो
गया। लोग िरवाजा ठोकने लगे, िरवाजा िोलो। लौट आया है क्या वह व्यशि जो मर गया था? असंभव है यह
बात। लेदकन आज परीक्षा होनी थी। आज लौटने का क्षर् था। वे बाहर शचकला रहे हैं, भीतर कोई गीत गा रहा
है, और नाच रहा है, पता नहीं क्या वह लौट आया है? उसकी पत्नी नाचती है। बामुशश्कल िरवाजे को िोल कर
वे भीतर गए, नाचती थी वह स्त्री, पूछा उससे रोक कर, लौट आया तेरा प्रेमी? उसने कहााः हां, लौट नहीं आया,
मैंने जान शलया वह कहीं गया ही नहीं। वह मेरे भीतर मौजूि है। इधर इन तीस दिनों में मैं जैसे-जैसे िांत होती
गई, जैसे-जैसे मौन होती गई, जैसे-जैसे शचत्त शनष्तरं ग हुआ, मैंने पाया दक प्रीतम तो भीतर मौजूि है, मैं उसे
कहां बाहर िोज रही हं। वह मेरे भीतर मौजूि है। और जो चल बसा है, वह मेरा प्यारा नहीं था, के वल िपार्
था, शजसमें मेरा भीतर शछपा प्यारा दििाई पड़ता था। के वल िपार् टू ट गया है। प्यारा मेरे भीतर मौजूि है।
शजसको तुम शचता पर चढ़ा आए हो, वह एक िपार् था। शजसमें मैंने अपने प्रेमी को िे िा था, शजसकी आंिों में
मैंने झांका था और अपने को पाया था। लेदकन मैं भूल करती थी, मैं समझती थी वहीं मेरा प्रेमी है। प्रेमी मेरे
भीतर है।
जगत एक िपार् है, प्रेमी भीतर है। लेदकन जो िांत होता है, जो मौन होता है, वह उसे िोज लेता है।
उसी प्रेमी को पा लेने का रास्ता धमा है, और ऐसी शिक्षा अधूरी है, ितरनाक है, जो भीतर के उस प्रेमी से
जोड़ने के मागा पर न ले जाती हो।
मैंने ये थोड़ी सी बातें आपसे कहीं हैं। पता नहीं मेरी यह बात तुम्हारे ियाल में भी आएगी या नहीं, पता
नहीं दकसी दिन तुम उस राह पर चलोगे या नहीं, जो परमात्मा से शमला िे ती है, और प्रेम के सागर तक ले
जाती है। लेदकन मैंने अपनी बात कह िी, हो सकता है, कोई बीज तुम्हारे मन में पड़ा रह जाए और दकसी दिन
वर्ाा आए जीवन की और उस जीवन में अंकुर आ जाएं। और दकसी दिन जीवन का सूरज उगे और उस अंकुर में
गशत हो जाए, शवकास हो जाए, और तुम उसे पा लो शजसे पाने के शलए मनुष्य पैिा होता है।

मेरी बातों को इतने प्रेम और िांशत से सुना, उससे मैं बहुत-बहुत अनुगृहीत हं। और अंत में सबके भीतर
बैठे परमात्मा को प्रर्ाम करता हं। मेरे प्रर्ाम स्वीकार करें ।

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सम्यक शिक्षा
तीसरा प्रवचन

सच्चा शिक्षक

मेरे शप्रय आत्मन्!


मनुष्य के जीवन में सबसे ज्यािा आियाजनक, सबसे ज्यािा शवरोधाभासी, सबसे ज्यािा उलझी बात
शिक्षा के संबंध में ही है। यदि मनुष्य को शिशक्षत न दकया जाए। तो मनुष्य पैिा ही नहीं होता। और यदि मनुष्य
शसफा शिशक्षत होकर रह जाए, तो भी मनुष्य पैिा नहीं हो पाता है। ऐसा ही कु छ है दक जैसे कोई आिमी
सीदढ़यां न चढ़े तो भी ऊपर के भवन में नहीं पहुंचता है। और शसफा सीदढ़यां ही चढ़ कर रुक जाए, तो भी ऊपर
के भवन में नहीं पहुंच पाता है, सीदढ़यां चढ़नी भी पड़ती हैं और सीदढ़यां छोड़नी भी पड़ती हैं, तो आिमी ऊपर
के भवन में पहुंच पाता है। शिशक्षत होना भी जरूरी है और शिक्षा को छोड़ भी िे ना जरूरी है। तो ही मनुष्य
ठीक अथों में शवकशसत हो पाता है। और यही उलझन है। या तो िुशनया में अशिशक्षत लोग हैं, या िुशनया में
शिशक्षत लोग हैं, वह तीसरा आिमी नहीं है िुशनया में जो शिशक्षत हो और अशिशक्षत जैसा हो। और उस तीसरे
आिमी की जरूरत है। इसे थोड़ा समझ लेना जरूरी है, क्योंदक मेरी िृशि में सारे जगत के सामने शविेर्कर
शिक्षकों के सामने, उन सारे लोगों के सामने जो शिक्षा के संबंध में सोच-शवचार करते हैं, यही एकमात्र समस्या
है।
आपने सुना होगा, कोई तीस-चालीस वर्ा पहले, बंगाल के जंगल में िो छोटे बच्चे, भेशड़ए उठा कर ले गए
और उन भेशड़यों ने उन बच्चों को पाला। आिमी के बच्चे, लेदकन जब शिकारी उनको पकड़ कर लाए तो वो
करीब-करीब भेशड़ए हो चुके थे। वे न आिमी की भार्ा बोल सकते थे, न आिमी की तरह िो पैर से चल सकते
थे, वो चार पैर से िौड़ते थे, भेशड़यों की तरह आवाज करते थे, भेशड़यों की तरह िूंिार थे, भेशड़यों की तरह कच्चे
जानवर को चबा जाते थे। अभी शपछले कोई पांच वर्ा पहले उत्तर प्रिे ि में भी एक जंगल से तेरह-चौिह वर्ा का
युवक पकड़ा गया, वह भी भेशड़यों की मांि से ही पकड़ा गया था। छह महीने तो उसे िो पैर से िड़ा होना
शसिाने में लग गए। वह िो पैर से िड़ा नहीं हो सकता था। आप यह मत सोचना दक आप िो पैर से िड़े होते हैं,
ये आपका स्वभाव है। यह शिक्षा है। अगर यह न शसिाया जाए तो आप िो पैर से िड़े नहीं होंगे। आप चार
हाथ-पैर से ही चलते रहेंगे। आप यह भी मत सोचना दक आप जो आिमी की तरह बोलते हैं, यह आपका
स्वभाव है। यह शिक्षा है। अगर यह न शसिाया जाए, तो आप आिमी की तरह कभी नहीं बोलेंगे। शिक्षा वही
नहीं है, जो स्कू ल में हमें शमल रही है। अगर हम आिमी की जांच-पड़ताल करें तो हमें पता चलेगा दक आिमी
जैसा है, उसमें नब्बे प्रशतित से ज्यािा शिक्षा है। और आिमी को अगर शबककु ल शबना शिक्षा के छोड़ दिया जाए,
सारी शिक्षा के शबना छोड़ दिया जाए, तो आिमी एक पिु होगा; पिुओं और आिमी में एक ही फका है, दक
आिमी ने शिक्षा का एक नया आयाम अपने साथ जोड़ शलया है, और कोई पिु शिक्षा का आयाम अपने साथ
नहीं जोड़ सका है। आिमी और पिु में जो फका है, वह बुशनयािी रूप से शिक्षा से पैिा हुआ है।
तो वह जो युवक तेरह-चौिह साल का पकड़ा गया था। उसे छह महीने तो सीधा िड़ा करने में लग गए।
उसकी रीढ़ ने सीधा होने से इनकार कर दिया। चौिह वर्ा तक वह चार हाथ-पैर से ही चला था। एक वर्ा उसे
अपना नाम बोलने में लग गए, उसका नाम राम रिा था। एक वर्ा लगा उसे सीिने में दक वह राम बोल सके ।
बस वह इतनी ही भार्ा सीि पाया। और शसिाने की कोशिि में उसकी जान शनकल गई, वह मर गया साल

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भर में। क्योंदक उसे जो शिक्षकों ने समझाने और शसिाने की सारी कोशिि की, वह इसमें इतना घबरा गया,
इतना परे िान हो गया दक उसकी मौत हो गई। अब तक िुशनया में कई मुककों में भेशड़यों के द्वारा पाले गए बच्चे
पकड़े गए हैं। लेदकन उनको शसिाना बहुत मुशश्कल रहा है। मुशश्कल इसशलए रहा दक वे कु छ सीि चुके, उन्होंने
भेशड़यों की शिक्षा ले ली। एक अथा में वे भी अशिशक्षत नहीं हैं, उन्हें भी शिक्षा शमल गई। वे भेशड़यों की शिक्षा ले
शलए। हमें हैरानी होगी दक भेशड़यों की शिक्षा लेकर भी कब क्या कोई आिमी भेशड़या हो सकता है? आप चहंिुओं
की शिक्षा लेकर चहंिू हो जाते हैं, मुसलमान की शिक्षा लेकर मुसलमान हो जाते हैं, जैन की शिक्षा लेकर जैन हो
जाते हैं, आपको कभी ियाल नहीं आता दक ना आप जैन पैिा होते हैं, न चहंिू पैिा होते हैं, न मुसलमान पैिा
होते हैं, पैिा आप एक कोरी स्लेट की तरह पैिा होते हैं। और जो आप पर शलि दिया जाता है, चजंिगी भर आप
अपने को वही समझते रहते हैं।
चहंिू होना, मुसलमान होना, ईसाई होना शिक्षा है। अगर आिमी को न शसिाया जाए तो िुशनया में कोई
आिमी चहंिू नहीं होगा, कोई मुसलमान नहीं होगा, कोई ईसाई नहीं होगा। अगर हम आिमी को अशिशक्षत
छोड़ िें , तो वही हो जाएगा, जो पररशस्थशतयां उसे शसिा िें गी। जो कु छ शसिा िें गी। आिमी को अशिशक्षत तो
नहीं छोड़ा जा सकता है, हालांदक शिक्षा से जो िुष्पररर्ाम हुए हैं, उससे कई शवचारिील लोग घबरा गए हैं
और वो चाहते हैं दक आिमी को अशिशक्षत छोड़ िो, तो भी कोई हजा नहीं।
िी. एच. लारें स ने कु छ वर्ों पहले एक विव्य में कहा दक मैं एक प्राथाना करता हं, सारी िुशनया से दक
सौ वर्ों के शलए सारी शिक्षा बंि कर िी जाएं, अन्यथा आिमी शबककु ल नि हो जाएगा। िी.एच. लारें स की बात
में बल है। उसके कहने में कोई साथाकता है, क्योंदक शिक्षा ने आिमी को जैसा बना दिया है, उसके पररर्ाम में
आिमी के जीवन की सारी िांशत, सारा आनंि, सारा स्वभाव, जो भी स्पांटेशनयस है, जो भी नैसर्गाक है, वह
सब िो गया है। आिमी एक झूठा आिमी बन कर िड़ा हो गया है, जो वह है ही नहीं। और शिक्षा ने आिमी को
एक ऐसा ितरनाक अहंकार िे दिया दक उस अहंकार के कारर् जीवन को जीना भी करठन है, उस अहंकार के
कारर् जीवन एक सतत संघर्ा और युद्ध बन गया और एक चहंसा बन गई। और शिक्षा ने आिमी को यह भाव िे
दिया दक मैं जानता हं, और शजस आिमी को यह ख्याल पैिा हो जाता है दक मैं जानता हं उसकी जीवन की
श्रेर््ठतम िुशियों के सारे द्वार बंि हो जाते हैं, शजस आिमी को यह ियाल पैिा हो जाता है दक मैं जानता हं,
उसके जानने के सारे मागा अवरुद्ध हो जाते हैं। शजस आिमी को यह ियाल पैिा हो जाता है दक मैं जानता हं
उस आिमी की सत्य की, ज्ञान की, िोज की, यात्रा समाप्त हो जाती है। आिमी को शजतना शिशक्षत दकया गया
है, उतना ही आिमी अज्ञानी होता चला गया है, यह भी बहुत हैरानी की बात है। अगर बुद्ध और महावीर को
हम अपने स्कू ल में लाकर परीक्षा िें , परीक्षा लें उनकी तो बुद्ध और महावीर परीक्षा में उत्तीर्ा नहीं हो सकते।
हम उनकी बजाय ज्यािा ज्ञानी साशबत हो जायेंगे। लेदकन दफर भी हम जानते हैं दक दकन्हीं अथों में बुद्ध और
महावीर ज्यािा ज्ञानी हैं, और हमारी उस ज्ञान की तरफ कोई भी गशत नहीं।
बुद्ध और महावीर के पास कु छ ज्ञान है। जो हम शिशक्षत लोगों के पास नहीं है। लेदकन एक भ्रम हमारे
पास भी है दक हम जानते हैं। और इस जानने के भ्रम ने दकतनी मुसीबत िड़ी कर िी है। इसे िे ि कर िी.
एच.लारें स जैसा अगर कोई आिमी कहे, अगर सौ वर्ों तक सारी शिक्षा बंि कर िो, सारी युशनवर्साटीज, सारे
स्कू ल सब बंि कर िो। सौ वर्ा के शलए कु छ भी मत शसिाओ आिमी को, सौ वर्ा तक आिमी के मन को िाली
छोड़ िो, तादक आिमी दफर स्वभाव के अनुकूल और करीब आ सके । वह अपने स्वभाव से ही उलटा चला गया
है। लेदकन िी.एच.लारें स की बात दकतनी ही साथाक हो, मानी नहीं जा सकती। क्योंदक मान लेने का पररर्ाम

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और भी ितरनाक होगा। आिमी को अशिशक्षत छोड़ िे ने से आिमी बेहतर नहीं हो जाएगा। आिमी को
अशिशक्षत छोड़ िे ने से आिमी, आिमी ही नहीं रह जाएगा। और इसशलए इस उलझन को, इस पहेली को समझ
लेना जरूरी है, आिमी को अशिशक्षत भी नहीं छोड़ा जा सकता, और आिमी को मात्र शिशक्षत करके भी नहीं
छोड़ा जा सकता।
पुराने जमाने का आिमी अशिशक्षत था, आदिवासी आज भी अशिशक्षत है। हम िया करके उसको शिशक्षत
करने के सारे उपाय कर रहे है, ंं शबना इस बात को सोचे दक हम जो शिशक्षत हैं, हमने क्या उपलब्ध कर शलया
है?
बट्रेंि रसल ने कहीं शलिा है दक मैं पहली बार आदिवाशसयों के बीच गया, उनके गीत, उनके नाच, उनके
आनंि को िे िकर मुझे ऐसा लगा दक इसके मुकाबले सारी शिक्षा छोड़ी जा सकती है। उनके नाचते हुए, उनके
आनंि से भरे हुए व्यशित्व को िे ि कर उनके सरल पौधों और पिुओं जैसी उनकी सहजता, फू लों की तरह उनके
व्यशित्व और उनकी आंिों को िे ि कर उसे लगा दक यह सारी शिक्षा छोड़ने में हजा कु छ भी नहीं। अगर हम
ऐसे हो सकें ।
जो लोग सोचते हैं, उनको यह लगता है दक आिमी ने शिशक्षत होकर कु छ िो दिया है। िूसरी तरफ से
सोचें तो भी ऐसा लगेगा दक आिमी को अगर अशश्क्षत छोड़ िें , तो भी बहुत ितरा है। दफर उपाय क्या है? मेरी
िृशि में उपाय तीसरा है। और वह उपाय यह है दक आिमी को इस भांशत शिशक्षत दकया जाना चाशहए दक
शिशक्षत होकर भी शनरं तर वह इस बोध से भरा रहे दक मुझे अभी और शिशक्षत होना है, मैं शिशक्षत हो नहीं गया
हं। पूरी तरह से शिशक्षत होकर भी मैं अशिशक्षत हं, अभी शिक्षा िेर् है, यह भाव अगर कायम रिा जा सके , तो
अशिशक्षत आिमी का जो सुि है, वह बचाया जा सकता है। और शिशक्षत आिमी के जो लाभ हैं, वे भी उठाए जा
सकते हैं। इसका मतलब यह हुआ दक शिशक्षत आिमी को शिशक्षत होने का अहंकार पैिा नहीं हो जाना चाशहए,
इसका मतलब यह हुआ दक शिशक्षत आिमी शजतना जाने, उतना ही उसे पता चलना चाशहए दक मैं बहुत कम
जानता हं, ना के बराबर जानता हं। उसकी मनाः शस्थशत वैसी ही होनी चाशहए, जैसा मरते समय न्यूटन ने कहा,
लोग कहते हैं दक मैं बहुत जानता हं, और मरते समय न्यूटन कहने लगा दक मेरी अपनी शस्थशत यह है दक शजतना
मैं जानता गया हं, उतना ही मैं िरने लगा हं दक अंजाना तो बहुत ज्यािा िेर् है। एक समुद्र के दकनारे जहां
अनंतवा रे त के कर् हों, वहां जैसे मैं अपने हाथ में रे त के थोड़े से बालूकर् शलए हुए िड़ा हं, यह मेरा ज्ञान है,
जो मेरी मुट्ठी में बंि है, और यह मेरा अज्ञान है, जो अनंत फै ला हुआ है, सागर के तट पर। इस छोटे से ज्ञान को
कहां मैं शचकलाऊं दक मैं जानता हं? न्यूटन ने कहा दक जो मैंने जाना है उससे मुझे शसफा इतना ही पता चला है
दक जानने को अनंत िेर् है, जो मैंने जाना है वह नाकु छ है, जो मैं नहीं जानता हं वह बहुत कु छ है, शजतना मेरी
समझ बढ़ी है, उतना ही मुझे अपनी नासमझी का ििान और प्रत्यक्ष हुआ है। अगर ज्ञान ऐसा हो दक अज्ञान का
साक्षात्कार करा सके , तो तो ठीक है, अन्यथा ज्ञान ितरनाक शनशित ही बन जाता है। क्या ऐसी शिक्षा हो
सकती है दक हम शिशक्षत भी करें , साथ भी व्यशि को अशिशक्षत होने की संभावना को भी िुला रिें। क्या यह
हो सकता है दक व्यशि जाने भी साथ ही यह भी जाने दक वह कु छ भी नहीं जानता है। अगर ए िोनों बातें संभव
हों, जानना एक तल पर संभव हो, न जानना िूसरे तरफ पर द्वार िोले रहे, वह िायमेंिन, वह आयाम िुला
रहे, तो व्यशि सम्यक अथों में शिशक्षत होता है, अन्यथा नहीं होता।
यह आज तक संभव नहीं हो पाया। यह आज भी संभव नहीं हो पा रहा है। इसशलए सारी शिक्षा व्यथा
होती चली जा रही है, जैसा मैंने कहा, सीदढ़यों पर हम चढ़ा िे ते हैं, दफर सीदढ़यों से उतरता ही नहीं वह

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आिमी, सीदढ़यों पर चढ़ जाता है दफर कहता है शजन सीदढ़यों पर मैं चढ़ा हं, उनसे उतरने के शलए तो नहीं चढ़ा
था। अगर उतरना ही था, तो मैं चढ़ता क्यों? और वह आिमी यह भूल जाता है दक सीदढ़यों से अगर नहीं
उतरे गा, तो सीदढ़यों पर चढ़ना व्यथा हो गया। सीदढ़यों पर चढ़ना जरूरी है, ऊ पर पहुंचने के शलए, और ऊ पर
पहुंचने के शलए सीदढ़यों को छोड़ िे ना भी जरूरी है।
मैंने सुना है, िो फकीर एक गांव से यात्रा करते थे। उनमें एक फकीर का यह शवश्वास था दक पैसा पास में
रिना व्यथा है। पैसे के पास में होने से कोई भी फायिा नहीं होता। िूसरे फकीर का शवश्वास था दक शबना पैसे के
तो एक क्षर् नहीं चला जा सकता है, पैसे का होना तो बहुत जरूरी है। राह में चलते एक तीसरा फकीर उन्हें
शमला, उसने िोनों का शववाि सुना और वह हंसने लगा। उन िोनों ने पूछा दक आप हंसते क्यों हो? उसने कहा,
समय आएगा तो मैं बताऊंगा। वे तीनों साथ हो शलए। सांझ एक निी के दकनारे पहुंचे, जो फकीर मानता था दक
पास पैसा रिना दफजूल है, उसके पास तो एक पैसा भी नहीं था। निी उन्हें पार करनी थी, लेदकन नाव वाला
पैसे मांगता था। उसके पास पैसे नहीं थे, जो फकीर मानता था दक पैसे पास में थोड़े होने बहुत जरूरी हैं, उसने
कहा अब िे िो, अब निी पार नहीं हो सकते और रात इस जंगल में शबतानी पड़ेगी और जीवन का ितरा है।
और अब मैं तुम्हें बताता हं दक पास में पैसे होना दकतने जरूरी है? पहला फकीर हारता हुआ मालूम पड़ा, िूसरे
फकीर ने पैसे शनकाले, नाव वाले को पैसे दिए, वे तीनों फकीर निी को पार कर गए।
निी पार करके पैसे वाले फकीर ने कहा, दक िे िा तुमने, तब दफर वह तीसरा फकीर हंसने लगा, उन
लोगों ने पूछा आप हंसते क्यों हैं? और उस फकीर ने कहा दक मैं इसशलए हंसता हं, दक पैसे का होना भी जरूरी
है, और छोड़ िे ना भी जरूरी है। पैसे थे, पैसों से तुम निी पार नहीं हुए हो, पैसे न होते, तो भी तुम निी पर
नहीं हो सकते थे। पैसे थे, तो भी तुम निी पार नहीं होते, अगर तुम कहते दक पैसे छोड़ने को हम राजी नहीं हैं।
तुम नाव वाले को पैसे िे ने को राजी हुए, पैसे थे और पैसे छोड़े जा सके , इसशलए तुम निी पार हो गए हो। मैं
तब इसशलए हंसा था दक तुम िोनों गलत हो। पैसे का न होना, साधन िो िे ना है, पैसे का होना और पैसे को
पकड़ लेना साधन को पकड़ लेना है। ठीक वैसी ही हालत शिक्षा के संबंध में भी है। मैं उन िोनों तरह के लोगों के
पक्ष में नहीं हं। जो लोग आिमी को पागल की तरह शिशक्षत करते चले जाना चाहते हैं, शबना इस बात की
दफकर दकए दक शिक्षा की सीढ़ी पर चढ़ाकर तुम आिमी को शिक्षा की सीढ़ी से उतार सकोगे या नहीं? अगर
नहीं उतार सके , तुम आिमी को पागल कर िोगे। िुशनया के अशधक शिक्षा िास्त्री आिमी को बस शिशक्षत करते
चले जाना चाहते हैं। इसकी कोई दफकर नहीं है दक शजस साधन पर हम चढ़ते हैं, एक दिन उसे छोड़ िे ना पड़ता
है। जीवन में सारे साधन छोड़ िे ने पड़ते हैं। शिक्षा साध्य नहीं है, वह कोई एंि नहीं है, वह शसफा मीन्स है, और
सब मीन्स छोड़ने की क्षमता होनी चाशहए। और शजस मीन्स को छोड़ने की क्षमता आिमी िो िे ता है, वह
परे िानी में पड़ जाता है, क्योंदक मीन्स छोड़ने के शलए ही है, तादक एंि पाया जा सके । एक आिमी पैसे कमाता
है और कं जूस की तरह पकड़ कर बैठ जाता है, दफर उनको छोड़ता नहीं, वह आिमी पागल हो गया। क्योंदक पैसे
का उपयोग पैसे को छोड़ने में था। पैसे को इकट्ठा इसशलए दकया जाता है तादक छोड़ा जा सके । यह बात बड़ी
उकटी मालूम पड़ती है। लेदकन पैसे को इकट्ठा करने का यही अथा है दक उसे छोड़ा जा सके ।
अमीर होने का एक ही मजा है दक गरीब होने की क्षमता कायम रहती है। छोड़ा जा सके । और अगर
छोड़ा न जा सके , तो पैसा व्यथा हो गया। क्योंदक पैसे की उपयोशगता उसके छोड़ने से फशलत होती थी। जीवन के
सारे साधन छोड़े जा सकें , तो ही साथाक हैं, अगर पकड़ कर बैठ जाएं तो साथाक नहीं हैं। शिक्षा भी साधन है,
लेदकन िुशनया में धन को पकड़ने वाले को तो हम कहेंगे दक यह कं जूस है, लेदकन शिक्षा से शमले ज्ञान और प्रमार्

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पत्रों को पकड़ने वालों को कोई कं जूस नहीं कहता। वे भी कं जूस हैं, दकसी भी तरह के साधन को पकड़ लेना
कं जूसी है। कं जूसी मूलताः है। वह इस बात का सुबूत है, दक साधन का जो उपयोग था, वही व्यथा हो गया। वह
छोड़ने के शलए था, तो उसका मजा था, उसको पकड़ कर बैठ गए। िुशनया में जो लोग शिक्षा को बढ़ाया जाने
की पागल िौड़ में हैं, वो कहते हैं दक आिमी को बस शिशक्षत करते रहो, शबना इस बात की दफकर दकए दक
आिमी को दकसशलए शिशक्षत दकया जाता है?
अब वे सोचते हैं रूस में, सारी िुशनया में सोचना पड़ेगा क्योंदक इतना ज्ञान का भंिार इकट्ठा हो गया है,
दक िस पंद्रह साल बच्चों को पढ़ाने से उसे ट्रांस्फर नहीं दकया जा सकता। अब वो जमाने गए, दक बच्चों को हम
चार क्लास पढ़ा िे ते थे, और पुरानी पीढ़ी का सारा ज्ञान हस्तांतररत हो जाता था। अब पच्चीस और तीस साल
तक आप युशनवर्साटी में बच्चों को पढ़ाते रहें, वो पीएच िी होकर शनकलें, तब भी पुराने जमाने में प्राइमरी का
बच्चा, अपनी पुरानी पीढ़ी की सारी ज्ञान की शस्थशत उपलब्ध कर लेता था, आज की पीएचिी को पार दकया
हुआ लड़का भी पुरानी पीढ़ी के सारे ज्ञान को उपलब्ध नहीं कर लेता। आज का पीएचिी पुराने प्राइमरी ज्ञान के
मुकाबले भी िड़ा नहीं हो सकता है। इस तुलना में दक पुरानी पीढ़ी के पास इतना कम ज्ञान था िे ने को दक
प्राइमरी की शिक्षा में वह बात पूरी हो जाती थी। अब बड़े ितरे की बात है अगर पच्चीस या तीस साल में एक
युवक पीएच िी होकर शनकले और उसके पास क ि ग है अभी, उसकी पुरानी पीढ़ी ने शजतना ज्ञान अर्जात
दकया है, वह उसको संक्रशमत नहीं हो पाया है। तब तो बड़ा ितरा है। प्रशत सप्ताह कोई सात हजार नये ग्रंथ
प्रकाशित हो जाते हैं, प्रशत दिन एक हजार नये ग्रंथ सारी िुशनया में प्रकाशित हो रहे हैं। इन सात हजार नये
ग्रंथों को हम नई पीढ़ी को कै से िे पायेंगे? यह ज्ञान इतनी तीव्रता से बढ़ रहा है, इतनी दििाओं में बढ़ रहा है
दक करीब-करीब ऐसी हालत हो गई है दक आज िुशनया में कोई भी एक आिमी नहीं है, जो यह कह सके दक मैं
सारे जीवन के अलग-अलग ज्ञानों के संबंध में थोड़ी बहुत भी जानकारी रिता हं। शजतना ज्ञान बढ़ता है, उतना
ही एक िािा और प्रिािा, इस्पेिलाइजेिन, एक छोटी सी चीज के बाबत जानकारी बढ़ती है, िेर् सारी
चीजों के बाबत अंधकार हो जाता है।
मैंने एक मजाक सुना है। पचास वर्ा बाि इक्कीसवीं सिी में, एक आिमी एक िाक्टर की िुकान पर जाता
है और उससे कहता है दक मेरी आंि िराब है, आप आंि के िाक्टर हैं, मैंने बाहर पट्टी िे िी है, कृ पा कर मेरी
आंि की जांच कर लें, वह िाक्टर पूछता है, पहले यह बताएं आपकी बाईं आंि िराब है, या िाईं आंि, मैं
शसफा िाईं आंि का िाक्टर हं। बांई आंि का िाक्टर थोड़ी आगे जाकर, चौराहे पर रहता है।
इस बात की संभावना है। एक जमाना था, एक आिमी िाक्टर होता था, आंि का या कान का नहीं होता
था। िाक्टर होना काफी था, इतना कम ज्ञान था। एक आिमी िाक्टर होता था, वह आंि भी िे िता था, कान
भी िे िता था, पैर भी िे िता था, पेट भी िे िता था। दफर इतना ज्ञान बढ़ता चला गया दक आज तो आंि के
संबंध में इतना ज्ञान है दक एक आंि का िाक्टर भी पूरा आंि के संबंध में जो भी उपलब्ध हुआ है, उसको समझ
नहीं सकता। न अध्ययन कर सकता है, न िोज कर सकता है। इस बात की बहुत संभावना है दक हमें आंि के
भी शवभाजन करने पड़ें और आंि के भी स्पेश्लाइजेिन के अलग-अलग क्षेत्र िोज लेने पड़े। यह ितरा रोज बढ़ता
चला जाता है।
एक जमाना था दक दफलोसफी अके ला िास्त्र थी। दफर दफलॉसफी के टु कड़े होने िुरु हुए। दफर साइं शसज
बनीं, अब एक-एक सांइस के छोटे टु कड़े होने िुरु हुए। अब छोटे टु कड़ों के भी छोटे टु कड़े होने िुरु हुए। और
धीरे -धीरे यह मालूम होता है दक चीजें इतनी शविाल हैं और इतनी रहस्यपूर्ा हैं दक हम टु कड़े करते चले जायेंगे,

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और धीरे -धीरे हर आिमी कु छ जानेगा, लेदकन कोई भी आिमी पूरे को नहीं जानेगा। और जीवन पूरा अस्त-
व्यस्त हो जाएगा। और जीवन अस्त-व्यस्त होता चला जा रहा है। सारी िुशनया के वैज्ञाशनक और शिक्षािास्त्री
इस संबंध में चचंशतत हैं दक सारे ज्ञान का समुच्चय कै से हो? एक आिमी आंि के संबंध में जानता है, एक आिमी
नाक के संबंध में जानता है, एक आिमी कान के संबंध में जानता है, और तीनों आिमी िूसरे के संबंध में कु छ भी
नहीं जानते। और आिमी कु छ ऐसा है दक उसमें नाक भी है, कान भी है, आंि भी है, वो तीनों इकट्ठे हैं। और उन
तीनों के ज्ञान का समुच्चय कै से हो दक हम पूरे आिमी के बाबत कु छ जान सकें । असंभव होता जा रहा है। अब
इस बात की दफकर करनी जरूरी होगी दक बच्चों को यह सारा ज्ञान दकस प्रकार दिया जाए? तो रूस में वो
साचते हैं दक अब बच्चों के पैिा होने के बाि, पाचं साल भी िराब नहीं दकए जा सकते। उनको पांच साल में भी
कु छ न कु छ शिक्षा िी जानी चाशहए। और अब वे यह कहते हैं दक बच्चों की नींि का समय भी व्यथा नहीं िोया
जा सकता। उनको स्लीप टीचचंग की भी व्यवस्था होनी चाशहए, नहीं तो हम यह ज्ञान िे नहीं सकते। तो अब वे
इस बात की दफक्र में लगे हुए हैं, रात जब बच्चा सोया हो तो टेप-ररकािार से रात भर फोन लगा रहे, और टेप-
ररकािार रात भर उसको शिक्षा िे ता रहे। वह नींि में भी रहे, और उसके मन में शवचार और ज्ञान िाला जाता
रहे। अब वे यह भी कह रहे हैं दक इतने से काम नहीं चलेगा दक तीस और पच्चीस में कोई युवक शविा हो जाए,
युशनवर्साटी से। इतने से काम नहीं चलेगा। ज्ञान इतनी तेजी से बढ़ रहा है दक हर चार-पांच साल में बिल जाता
है। पांच साल पहले के आिमी को हम अज्ञानी कह सकते हैं। आज पशिम में बड़ी दकताबें शलिना बहुत मुशश्कल
हो गया है, अगर कोई आिमी कोई बड़ी दकताब शलिना चाहता है, तो नहीं शलि सकता, क्योंदक बड़ी दकताब
शलिने में वर्ा-िो वर्ा लग जाते हैं, िो वर्ा में दकताब आउट आफॅ िेट हो जाएगी। इसशलए छोटी दकताबें शलिने
पर पशिम में जोर बढ़ गया है, एकिम बड़ी दकताब नहीं शलिी जा सकती। क्योंदक आप जब तक दकताब
शलिेंगे तब तक जो अपने इकट्ठी की, मेहनत की वह तब तक आउट ऑफ िेट हो जाएगी इं फामेिन, तब तक नये
ख्याल आ जाएंगे, नई िोजें हो जाएंगी। तो छोटी-छोटी दकताबें प्रकाशित हो रही है, ंं छोटे पीररयाशिककस
प्रकाशित हो रहे हैं तादक जो ज्ञान है, वह अभी ताजा लोगों तक पहुंच जाए, नहीं तो वह पहुंच नहीं सके गा।
और इस ज्ञान का इतना तीव्रता से भार बढ़ता जा रहा है, दक इन बच्चों को कै से इसे दिया जा सके , इस बात की
संभावना मालूम पड़ती है दक हम बहुत उपाय िोजेंगे, इसको ट्रांसफर करने के । एक अंशतम उपाय शजसके बाबत
चचाा चलती है, वह यह है दक जो शिशक्षत बहुत शिशक्षत लोग मरते हैं, अगर उनकी माइं ि की पूरी मैमोरी को,
नये बच्चों को दिया जा सके , तो ही ज्ञान ट्रांसफर हो सकता है, नहीं तो नहीं हो सकता।
जैसे आइं स्टीन मरे , तो मरते वि आइं स्टीन की िोपड़ी के सारे मांस-मज्जा के शहस्से को उस सारे शहस्से
को जहां स्मृशत संगृहीत होती है, उस पूरे शहस्से को शनकाल कर अगर नये बच्चे में ट्रांसप्लांट दकया जा सके , तो
आइं स्टीन ने जो जाना था वह ट्रांसप्लांट हो सकता है। इसकी संभावना है, वह ट्रांसप्लांट हो सकता है। इस बात
की पूरी संभवना है दक स्मृशत का पूरा का पूरा रील, जैसा दक टेप-ररकािार में पूरी रील है, वैसी स्मृशत की पूरी
की पूरी रील नये बच्चों को िी जा सकती है। लेदकन वे नये बच्चे जन्म से ही बहुत मुशश्कल में पड़ जाएंगे। इस
बात की ककपना करनी बहुत मुशश्कल है दक छोटे से बच्चे को आइं स्टीन की िोपड़ी शमल जाए तो वह दकतनी
मुशश्कल में पड़ जाएगा?
मैंने एक लड़की िे िी है, उस लड़की को मेरे पास लाए थे। उसे अपने तीन जन्मों की स्मृशतयां याि हैं। उस
लड़की की उम्र मुशश्कल से जब वे मेरे पास लाए थे, तो कोई बारह वर्ा थी। लेदकन उस लड़की को िे ि कर,
उसकी आंिों को िे ि कर आपको लगेगा दक उसकी उम्र नब्बे वर्ा है। वह इतनी परे िान जैसे नब्बे वर्ा की बूढ़ी

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हो सकती है। उसको तीन जन्मों की स्मृशतया ंं हैं। आिमी बूढ़ा होता है, स्मृशत से। आिमी िरीर से बूढ़ा नहीं
होता, िरीर का बुढ़ापा बहुत गौर् हैं, असली बुढ़ापा आता है स्मृशत से। नब्बे वर्ा की याििाश्त, उसके प्रार्ों को
मथे िाल रही है। इसी जीवन की चचंता नहीं है उसे, शपछले जीवन की भी चचंता है। उसने तीनों जन्मों के अपने
शपछले पररवार के लोगों से संबंध स्थाशपत कर शलए, वे सारे पररवार उसने िोज शलए, अब उसकी बड़ी
मुशश्कल हो गई। वह शपछले जन्म में दकसी की पत्नी थी, उस आिमी से उसका मोह अभी चजंिा है। शपछले जन्म
में उसके बेटे थे, बेरटयां थीं, उनसे उसका मोह चजंिा है। उसके िामाि हैं, उनसे उसका मोह चजंिा है। शपछले
जन्म के मोह चजंिा हैं, नये जन्म के नये मोह पैिा हो गए और तीसरे जन्म के भी मोह की हलकी झलक उसके
भीतर मौजूि है। उन सारी चचंताएं उसके प्रार्ों को घेरती हैं। वह अभी से उिास और परे िान हो गई। वह अभी
से घबरा गई है। मैंने उसके मां-बाप को कहा दक तुम इसकी स्मृशत को भुलाने की कोशिि करो, अन्यथा यह
लड़की पागल हो जाएगी। यह लड़की है ही नहीं, वह िेल नहीं सकती, क्योंदक हमें ऊपर से दििाई पड़ता है,
वह बारह साल की है, भीतर से तो वह नब्बे साल की है। उसे िेल-शिलौनों में कोई रुशच नहीं है। उसे स्कू ल में
पढ़ने जाने में, बड़ी बेचैनी और परे िानी होती है, वह यह मान ही नहीं सकती दक वह छोटी है।
अगर दकसी भी दिन हमने बूढ़े गुजरने वाले लोगों की प्रशतभा और स्मृशत को बच्चों में ट्रांसप्लांट दकया, तो
बच्चे बहुत मुसीबत में पड़ जाएंगे। लेदकन बच्चों की मुसीबत से हमें कोई मतलब ही नहीं है। बच्चों की मुसीबत से
हमें क्या करना है? हमें तो बच्चों को शिशक्षत करते चले जाना है। लेदकन दकसशलए? शिक्षा दकसशलए, हम बच्चों
को दकसशलए घोटते चले जाएं और उनके दिमाग में कु छ भी भरते चले जाएं? छोटा सा बच्चा स्कू ल जाता है,
दकसी को िया नहीं आती। इतनी दकताबें लािे हुए है, शजतना उसका िुि का वजन नहीं है। वह िाबे चला जा
रहा है। इससे मतलब क्या है हमें? सवाल है शिशक्षत करना है। जैसे दक शिशक्षत करना, अपने आपमें कोई लक्ष्य
हो। क्या पररर्ाम होगा इसको शिशक्षत करने का? अगर इसको हम शसर् फ शिशक्षत करने में समथा हो गए और
हमने सारी इं फामेिन इसके दिमाग में भर िी, तो हम शसफा इसको, बेचैन, अिांत और परे िान कर िें गे और
कु छ भी नहीं। जो कपड़े पहनाते हैं हम लोगों को, उन कपड़ों को उतारने की संभावना होनी चाशहए, अन्यथा
आिमी कभी भी शनशितं नहीं हो सकता। अगर आपको लोहे के कपड़े पहना दिए जायें, शजनको आप कभी न
उतार सकें , तो आपकी मौत हो गई। सोएंगे शबस्तर पर और कपड़े छाती से सटे रहेंगे, चलेंगे रास्ते पर और कपड़े
छाती से सटे रहेंगे, उनको आप कभी नहीं बिल सकते। कपड़े इसीशलए आरामिायक हैं दक आप उनको उतार
कर रि सकते हैं और सो जाते हैं, मेरी अपनी िृशि में वही शिक्षा सम्यक है, शजसे आिमी कपड़ों की तरह
उतारकर कभी भी रि िे , और अशिशक्षत हो जाए। और चौबीस घंटे में अगर घंट-े िो घंटे को वह अपने सारे ज्ञान
के बोझ को एक तरफ न रि सके , तो उस आिमी की हम जान ले लेंगे। वह आिमी चजंिा नहीं रह सके गा,
शवशक्षप्त हो जाएगा। और सारी मनुष्यता धीरे -धीरे शवशक्षप्त हो रही है। सारी मनुष्यता धीरे -धीरे पागल होती
जा रही है।
मैं क्या कहना चाहता हं, मैं यह कहना चाहता हं, बच्चों को इस भांशत शिशक्षत करें दक शिक्षा उनका लक्ष्य
न बन जाए, जीवन का लक्ष्य न मालूम पड़ने लगे। आज तो ऐसा ही मालूम पड़ता है दक शिक्षा जीवन का लक्ष्य
है। दकसी बच्चे से पूछो, तुम क्या? वह कहता है मैं पढ़ना चाहता हं। दकसशलए पढ़ना चाहते हो? मां-बाप पढ़ाने
में लगे हैं, शिक्षक पढ़ाने में लगे हैं। बच्चे पढ़ने में लगे है, ंं लेदकन ये सब इतना बड़ा कारोबार दकसशलए चल
रहा है? बहुत जान लेना अपने आप में साथाक नहीं है। जानना तभी साथाक है, जब वह जीने में सहयोगी बनता
हो, बाधा न बन जाता हो। जानने का और कोई अथा नहीं है, वह जीने में सहयोगी बनना चाशहए। शिक्षा जीने

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में सहयोगी बन रही है या जीने में बाधा िाल रही है? लेदकन हम िे िते ही नहीं चारों तरफ। िे िेंगे तो यह स्पि
सूत्र ियाल में आ सकते हैं। पहला सूत्राः बच्चे को इस भांशत शिशक्षत दकया जाना चाशहए दक वह हर हालत में
शिशक्षत होकर भी शिक्षा के वस्त्रों को उतार कर रिने में समथा हो, दकसी भी क्षर्। और दकसी भी क्षर् नई चीज
को समझने के शलए शिक्षा की सारी की सारी धारा को एक तरफ कर सके , हटा सके । नये बच्चे की तरह िड़ा हो
सके । वह जो लर्निंग है, उसको हटा सके कभी भी और अनलर्निंग में िड़ा हो सके ।
रमन महर्र्ा के पास एक जमान शवचारक आया और उसने पूछा दक मैं कु छ सीिना चाहता हं, परमात्मा
के संबंध में। रमन महर्र्ा ने कहा, दफर बाि में आना, पहले तुमने जो सीिा हो संसार के शवर्य में, उसको
अनसीिा कर आओ। वह अनलना कर आओ। क्योंदक अगर तुम लर्निंग को लेकर आते हो, तो दफर परमात्मा को
नहीं सीि सकते। क्योंदक शजसके दिमाग में यह ख्याल है दक मैं जानता हं, उसका दिमाग सख्त हो जाता है।
फ्लैशक्सबल नहीं रह जाता। शजसके दिमाग में यह ख्याल है दक मैंने जान शलया, मैंने पा शलया, मैंने सीि शलया,
मैं युशनवर्साटी हो आया, मेरे पास पिशवयां हैं, पि हैं, उपाशधयां हैं। उस आिमी का मन सब तरफ से द्वार बंि
कर लेता है, वह क्लोज्ि हो जाता है। अब वह कु छ भी नहीं सीि सकता। और जो हम शसिाते हैं, वह कचरा है,
और जो हमें सीिना है, वह अमृत है। वह सीिने से वंशचत रह जाते हैं। अगर शवश्वशवद्यालय दकसी दिन अपनी
सीदढ़यों से शविा करते हुए शवद्यार्थायों को यह कह सकें दक तुम यह मत भूल जाना दक तुमन जो सीिा है, वह
कु छ भी नहीं है, लेदकन यह आशिरी घड़ी में नहीं कहा जा सकता, यह पहले दिन से ही शसिाना जरूरी है।
शसिाओ भी, और इतना भी मत सीि लेने िो, वह पकड़ जाए, जड़ हो जाए। शसिाओ भी, लेदकन इस भांशत
मत शसिाओ दक वह संस्काररत हो जाए, कं िीिचनंग बन जाए, शसिाओ भी लेदकन सीिने को पार करने की
क्षमता भी िो। उसे ट्रांसेंट कर सके , वह उसे पार कर सके । वह सब सीि ले और भूल सके , दफर अनसीिा िड़ा
हो जाए, तादक चजंिगी और नई चीजें शसिाने को आए, तो उसके द्वार िुले हों, उसका माइं ि एक आपचनंग हो,
एक िुलापन हो। वह क्लोज्ि न हो जाए। शिशक्षत आिमी से ज्यािा क्लोज्ि आिमी िोजना बहुत मुशश्कल है।
शिशक्षत आिमी को कु छ बात समझाना ही मुशश्कल है। वह इतना समझा हुआ है दक बहुत मुशश्कल हो जाता है।
जमान में एक संगीतज्ञ था, वेजनर। वेजनर बहुत अजीब आिमी था, उसने अपने िरवाजे पर एक तख्ती
लगा रिी थी दक जो लोग संगीत पहले से सीिे हुए हों, वह कृ पा करके इस भवन के भीतर न आएं। लोग बहुत
हैरान होते, उसके पास िूर-िूर से लोग सीिने आते। एक िूर से संगीतज्ञ सीिने आया था, वेजनर के पास। उसने
जाकर कहा, आपने यह क्या तख्ती लगा रिी है दक जो लोग संगीत पहले से सीिे हुए हैं, भीतर न आएं। वेजनर
ने कहााः जो सीिे हुए हैं, उन्हें शसिाया नहीं जा सकता। आना दफजूल है। और अगर कोई आता है, तो जो सीिा
हुआ है, उससे मैं िोहरी फीस लेता हं, जो कु छ भी नहीं सीिा हुआ है, उससे मैं आधी फीस लेता हं। जो सीिा
हुआ है, उससे िुगनी फीस लेता हं। क्यों? वह संगीतज्ञ पूछने लगा, क्यों? वेजनर ने कहा दक पहले मुझे
भुलाना पड़ता है, जो सीिा हुआ है आिमी। भुलाने में मेहनत करनी पड़ती है, उसकी फीस अलग, जब वह भूल
जाता है, दफर कोरी दकताब हो जाता है, दफर कु छ नई बात शलिी जा सकती है। क्या यह हो सकता है दक बच्चे
की दकताब सीिने के बाि भी कोरी बनी रहे? अगर यह नहीं हो सकता तो शिक्षा असफल हो जाएगी। मुझे
लगता है दक यह हो सकता है। यह शबककु ल हो सकता है दक हम शसिायें भी और बच्चा सीिे भी, और दफर भी
कोरा रह जायए। जाने भी लेदकन जानने का अहंकार मजबूत न हो। सीिे भी, लेदकन सीि गया, पहुंच गया,
ऐसी भ्रांशत पैिा न हो। यात्रा जारी रहे, और उसे ध्यान रहे बहुत कु छ सीिने को िेर् है, बहुत कु छ सीिने को
िेर् है। ऐसा कु छ सीिने को िेर् है, शजसे शवद्यालय में कभी शसिाया नहीं जा सकता। शजसे कोई शिक्षक कभी

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शसिा नहीं सकता। शजसे कोई मां-बाप कभी शसिा नहीं सकते। ऐसा कु छ िेर् है, जो िुला हुआ मन चजंिगी की
चारों तरफ की हवाओं से पकड़ता है, और सीिता है। ऐसा कु छ िेर् है, जो चांि -तारे और सूरज शसिाते हैं।
ऐसा कु छ िेर् है, जो अिृश्य उतरता है। लेदकन वह उतरता है उस मन में, शजसके द्वार िुले हैं। शजसके द्वार बंि
हैं उस मन में वह नहीं उतरता है।
शिक्षा होनी चाशहए, लेदकन पत्थर की तरह नहीं। पानी की तरह। पत्थर पर लकीरें हम िींचते हैं वे
मजबूत हो जाती हैं, पानी पर भी लकीरें िींचते हैं, िींचते भी नहीं दक शवलीन हो जाती हैं, शमट जाती हैं।
शिक्षा ऐसी होनी चाशहए, पत्थर की तरह मजबूती से पकड़ न ले आिमी को, पानी की तरह लकीर िींचे और
िो जाए। आिमी जान ले और दफर भी जानने का भ्रम और अहंकार पीछे न छू ट जाए। शजस दिन हम
शवश्वशवद्यालय से शवनम्र लोगों को शनकाल सकें गे, उस दिन शिक्षा साथाक हो सकती है। वह तो पुराने ऋशर्यों ने
कहा था कभी दक शवद्या वही है, जो शवनम्रता शसिाए, लेदकन ऐसी शवद्या िुशनया में कहीं नहीं, जो शवनम्रता
शसिाती हो। अगर शवद्या शवनम्रता न शसिाए तो शवद्या ही नहीं है अशवद्या हो गई। और हमारी सारी शवद्या,
शवनम्रता छीनती है, शसिाती नहीं है। शसिाती है अहंकार। शसिाती है मजबूत ईगो।
तो मैं तो शनरं तर यह कहता हं दक हमारे शवद्यालय अशवद्यालय हैं, अभी शवद्यालय उन्हें बनना है, अभी वे
बन नहीं सके हैं। जहां अहंकार मजबूत होता हो, वह शवद्यालय नहीं है। जहां अहंकार क्षीर् होता हो, टू ट जाता
हो, वह शवद्यालय है। लेदकन कै से यह हो सकता है? इसे होने के शलए शबककु ल नये तरह का शिक्षक चाशहए।
क्योंदक शिक्षक अभी कहता है दक मैं जानता हं। और मैं तुम्हें शसिाता हं। वह जो शिक्षक का यह भाव है दक मैं
जानता हं, और शसिाने वाला हं; यही भाव बच्चों के मोम जैसे मन पर मजबूती से पकड़ता जाता है। कल वे भी
इन्हीं बातों को जान लेंगे, और अपने से छोटों से कहेंगे दक हम जानते हैं, हम तुम्हें शसिाते हैं। नहीं शिक्षक को
भी कहना चाशहए, मैं भी िोज रहा हं तुम्हारे साथ, तुमसे िो किम आगे हं, लेदकन इसका यह मतलब नहीं दक
मैं जानता हं।
हम रास्ते पर चल रहे हैं, कोई चार किम पीछे है, कोई चार किम आगे है। जो चार किम आगे है उसे
चार किम आगे की चीजें दििाई पड़ती हैं, लेदकन अज्ञान उसका भी उतना ही घना है, जो चार किम पीछे है,
क्योंदक चजंिगी बहुत रहस्यपूर्ा है। शिक्षक को यह भ्रम छोड़ िे ना चाशहए दक मैं जानता हं। इतना ही पयााप्त है
दक मैं तुमसे िो किम आगे हं, और वो िो किम आगे होना भी कोई अहंकार नहीं है। वह के वल जन्म का संयोग
है दक मैं तुमसे िो दिन पहले पैिा हो गया हं। इससे ज्यािा और कोई संयोग नहीं है। शिक्षक का अहंकार नहीं
टू टता है, तो हम शवद्याथी के अहंकार को कभी नहीं तोड़ सकें गे। और शिक्षक में भारी अहंकार है। िुशनया भर के
शिक्षक में भारी अहंकार है दक वह जानता है। क्या जानते हैं हम? कु छ भी नहीं जानते हैं। कु छ भी हमें पता
नहीं है। चजंिगी के असली रहस्यों का हमें क ि ग भी मालूम नहीं है। नहीं लेदकन कु छ हमने सीि शलया है और
शजन्होंने हमें शसिाया था, उन्होंने भी िावे से कहा था दक वे जानते हैं। हालांदक हमें अब तक पता चल गया
होगा दक वह जानना दकसी बड़े मूकय का नहीं है। शसफा रोटी-रोजी शमल जाती है। और शजस ज्ञान से शसफा रोटी-
रोजी शमलती हो, उस ज्ञान का मूकय उतना ही हो सकता है, शजतना रोटी-रोजी का मूकय होता है। ज्ञान से
शमलना चाशहए जीवन, ज्ञान से शमलना चाशहए अमृत, ज्ञान से शमलना चाशहए परमात्मा। वह तो नहीं शमलता।
लेदकन वह भ्रम नहीं छू टता। अपने से छोटे बच्चों के सामने दफर यह अकड़ आ जाती है दक मैं जानता हं। वे बच्चे
बेचारे शवरोध भी क्या कर सकते हैं। वे मान लेते हैं दक आप जानते होंगे, आप जब कहते हैं तो जानते ही होंगे।
नहीं, शिक्षक को शवनम्र होना पड़ेगा और शनवेिन करना पड़ेगा, मैं भी िोज रहा हं। तुम से िो किम आगे हं उम्र

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में, तुमसे थोड़े दिन ज्यािा िोज की है, लेदकन मैं भी पहुंच नहीं गया हं। यह पहुंच जाने का भ्रम टू ट जाना
चाशहए शिक्षक के मन से, तो बच्चे में भी शवनम्रता की संभावना पैिा होगी। अन्यथा बच्चा भी शवनम्र नहीं हो
सकता। शिक्षक भी सीि रहा है। शिक्षक शसिा ही नहीं रहा है, और मजा तो यह है दक शजतना जब कोई हमें
शसिाता है तब हम नहीं सीि पाते, शजतना हम तब सीि पाते हैं, जब हमें दकसी को शसिाना पड़ता है। शिक्षक
भी सीि रहा है। वह शसफा बड़ी उम्र का शवद्याथी है, शवद्यालय में। उसकी एक और तरह की शिक्षा िुरु हुई है।
लेदकन शिक्षक कोई भी नहीं है। सब शिक्षाथी हैं, और सब सीि रहे हैं।
अगर यह संभावना पैिा हो सके , और शिक्षक के अहंकार को हम शविा कर सकें , तो बच्चों में उसकी
प्रशतछशव पैिा होनी बंि हो जाएगी, और तब बच्चे भी सीिेंगे, लेदकन सीि नहीं जाएंगे; शजतना जानेंगे, उतना
अंजाना द्वार िुलता चला जाएगा। शजतना प्रवेि करें गे, उतना ही पता चलेगा दक पहुंचना बहुत मुशश्कल है।
सागर में कू ि जाना आसान है, लेदकन दफर िूसरा दकनारा पा लेना मुशश्कल है। ज्ञान के सागर में भी कू िना
आसान है, िूसरा दकनारा नहीं शमलता। और शजनको ियाल है दक हम िूसरे दकनारे पर पहुंच गए हैं, वे ध्यान
रिें दक जहां तक सौ में शनन्यानबे संभावना यह है दक वे कू िे ही नहीं हैं। और पहले ही दकनारे पर िड़े हुए हैं।
कू िने वाला आिमी तो यह कहेगा दक मुशश्कल है पहुंचना, अनंत है सागर, नहीं पहुंचता हं, कू ि तो गया हं;
पहुंचता नहीं हं। िू ब तो गया हं, भीग तो गया हं, पहुंचता नहीं हं। लेदकन जो आिमी कहता है, पहुंच गया हं,
सौ में शनन्यानबे मौके यह हैं दक उस दकनारे से भी नहीं कू िा है। वह पहले दकनारे पर ही िड़ा है, और सोच रहा
है दक िूसरे दकनारे पर पहुंच गए हैं।
सारे शिक्षा के जगत में, एक अिभुत अहंकार शिक्षक को पकड़े हुए है। उस अहंकार की प्रशतध्वशनयां बच्चों
के प्रार्ों में गूंजनी िुरु हो जाती है, ंं दफर हम शचकलाते हैं दक बच्चे आज्ञा नहीं मानते, अहंकार ने कभी दकसी
की आज्ञा मानी है? अहंकार को मजा आता है, आज्ञा तोड़ने में। अहंकार को आज्ञा मानने में मजा नहीं आता।
और अहंकार को मजा आता है, आज्ञा मनवाने में। शिक्षक का अहंकार है दक आज्ञा मनवाए, और शवद्याथी का
अहंकार है दक आज्ञा को तोड़े। और जो शिक्षालय शसफा अहंकार को जन्म िे ते हों, वहां कभी भी अनुिासन नहीं
हो सकता है। अहंकार से ज्यािा शिस्टर्बिंग, अहंकार से ज्यािा अनुिासन को तोड़ने वाला, कोई तत्व नहीं है।
लेदकन शिक्षक यह मानने को और िे िने को राजी नहीं है दक उनके अहंकार का ही प्रशतचबंब बच्चों के व्यशित्व में
बनना िुरु होता है। और दफर शजतनी वो कोशिि करते हैं िबाने की, उतना ही िबना मुशश्कल होता चला
जाता है। हां पुराने जमाने के बच्चे िब जाते थे, क्योंदक वे अशिशक्षत घरों से आते थे। उनका अहंकार मजबूत नहीं
होता था। अब बच्चे शिशक्षत घरों से आ रहे हैं, उनके मां-बाप के पास भी शिक्षक जैसा ही शिशक्षत होने का
अहंकार है। अब इन बच्चों को िबाया नहीं जा सकता। अब ये शजतनी शिक्षा बढ़ती चली जाएगी, उतनी ही
अनुिासनहीनता अशनवायारूपेर् बढ़ेगी। क्योंदक यह शिक्षा अहंकार को जन्माती है। अहंकार अनुिासनहीनता
का स्वरूप है। अहंकार कभी भी अनुिासन मानने को राजी नहीं है। अहंकार का मतलब ही यह है दक दकसी को
मत मानना। और जब यह भाव मजबूत होता है, तो शिक्षक परे िान होता है। लेदकन परे िान होकर यदि वह
सोचेगा, तो उसे पता चल जाएगा, उसका अहंकार ही बच्चों में प्रशतफशलत होता है।
शिक्षक के अहंकार को शवसर्जात हो जाना चाशहए। शिक्षक के अहंकार के शवसर्जात होते ही, अगर शिक्षक
शवनम्र हो, इतना शवनम्र हो दक कह सके दक मैं भी सीि रहा हं तुम्हारे साथ। िावा नहीं करता हं तुम्हें शसिाने
का, सुझाव िे ता हं। उपिे ि नहीं करता हं, जबरिस्ती तुम्हें समझा नहीं िे ना चाहता हं। मैं जो कहता हं वह सत्य
ही नहीं है। मैं शसफा तुम्हारी प्यास जगाना चाहता हं।

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सुकरात कहता था, और सुकरात को मैं कहंगा दक वह सुप्रीम टीचर है। वह शजसको हम कहें सुप्रीम
मास्टर। शजसको हम कहें सच्चा शिक्षक। सुकरात कहता था दक मैं क्या कर सकता हं, मैं एक िाई की तरह हं,
शमिवाइफ की तरह, मैं तुम्हारे जन्म में सहयोगी हो सकता हं, मैं तुम्हें जन्म नहीं िे सकता। मैं शसफा सहयोगी हो
सकता हं, जैसे एक िाई, एक शमिवाइफ एक बच्चे के जन्म में सहयोगी हो जाती है। वह ठीक कहता था, इतना
ही शवनम्र होना पड़ेगा शिक्षक को, वह बच्चे के जन्म में सहयोगी हो सकता है। जो भी मूकयवान है वह बच्चे के
भीतर से आएगा, शिक्षक नहीं िे सकता उसको। लेदकन वह सहयोगी हो सकता है। और वह शजतना अचछा
सहयोगी होना चाहे, उतना ही शवनम्र होना जरूरी है, शजतना अहंकार होगा, उतना ही वह सहयोगी नहीं हो
सकता। क्योंदक अहंकार कहता है दक िूसरे को अपनी छाया में ढालो। िूसरे को अपने जैसा बनाओ। आज तक
िुशनया के सारे शिक्षक बच्चों को अपनी िक्ल में ढालने की कोशिि करते रहे हैं, और इसशलए िुशनया रोज बबााि
से बबााि होती चली गई है। दकसी बच्चे को, दकसी की िक्ल में ढालने की जरूरत नहीं है, बच्चा अपना ईमेज,
अपनी िक्ल लेकर पैिा हुआ है, हम सहयोगी हो सकें दक वह अपनी िक्ल पा सके , हमारा काम पूरा हो गया।
दफर हमें चुपचाप हट जाना चाशहए, जैसे िाई हटा जाती है। बच्चे का जन्म हो गया, और िाई शविा हो गई।
उसको दफर कोई और बीच में िड़े होने की जरूरत नहीं होती। शिक्षक हमेिा हटता हुआ होना चाशहए। वह
सहयोगी हो सके और हट जाए। जब शिक्षक हटेगा, तो कल शिक्षा भी हट सकती है। और जब शवनम्रता होगी,
सीिने की शवनम्रता होगी, सीिने का द्वार िुला होगा, तो हम एक ऐसा मनुष्य पैिा कर सकते हैं, जो शिशक्षत
भी हो, और जो अशिशक्षत भी हो। जो जानता भी हो, और यह भी जानता हो दक बहुत कु छ है, जो मैं नहीं
जानता हं। इस बात का बोध दक मैं नहीं जानता हं, अगर ज्ञान की पाठिालाएं िे सकें , तो हम मनुष्य को जीवन
के परम सत्यों तक पहुंचाने में समथा हो सकते हैं। और वह शवद्यालय जो मंदिर का भी द्वार नहीं बन जाता,
बहुत ितरनाक है।
शवद्यालय मंदिर का द्वार भी बन ही जाना चाशहए। लेदकन शवद्यालय हमारा मंदिर का द्वार नहीं बन पा
रहा। वह नहीं बनेगा। क्योंदक मंदिर के द्वार पर शलिा है, वे ही प्रशवि हो सकते हैं, जो नहीं हैं। मंदिर के द्वार
पर शलिा है, वे ही प्रशवि हो सकते हैं, जो नहीं हैं। शजनको होने का ियाल है, मंदिर के द्वार में उनका काई भी
प्रवेि नहीं है। और हमारी शिक्षा हर एक को समबिी, कु छ होने का ियाल से भर िे ती है। मंदिर के द्वार बंि हो
जाते हैं। नहीं बहुत शिशक्षत करने का सवाल नहीं है, इस भांशत शिशक्षत करने का सवाल है दक आिमी शिशक्षत
ही होकर न रह जाए। बहुत सूचनाएं भर िे ने का कोई प्रयोजन नहीं है, बहुत ज्ञान लािने का बहुत प्रयोजन नहीं
है, थोड़ा सा ज्ञान जो नाव बन जाए, और जीवन के अंनि सागर में ले जाने लगे। पहाड़ न बन जाए, और आज
वह पहाड़ बन गया है।
बुद्ध की एक छोटी सी घटना और अपनी बात मैं पूरी करूंगा।
बुद्ध एक दिन कहते थे अपने शभक्षुओं को दक मैंने आठ लोगों को निी पार करते िे िा, एक नाव में उन्होंने
निी पार की। दफर निी पार करके वे सोचने लगे दक शजस नाव ने हमें इस पार तक पहुंचाया, उसे छोड़ना तो
बड़ी अकृ तज्ञता होगी, शजस नाव ने हमें निी पार करवाई, उसे हम छोड़ िें यह तो बड़ी अधार्माकता होगी,
अनैशतकता होगी, तो वे सोचने लगे, हम क्या करें ? तो उनमें से एक समझिार ने सुझाव दिया और समझिार
हमेिा ितरनाक सुझाव िे ते हैं, उसने सुझाव दिया दक इस नाव ने हमें निी पार करवाई, अब इस नाव को शसर
पर हम ले चलें। क्योंदक शजस नाव ने हमें निी पर करवाई, कृ तज्ञतावि क्या हम उसे अपने शसर पर न ले चलें।
लोगों ने कहााः यह तो शबककु ल ठीक है, हम उस पर सवार हुए, अब उसको हम पर सवार होने िें । यह शबककु ल

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गशर्त ठीक था, उन्होंने आठों आिशमयों ने नाव शसर पर रि ली, और बाजार में चले। गांव में हर आिमी पूछने
लगे, शमत्रो! यह क्या हो गया? नाव पर आिमी िे िे थे, आिशमयों पर नाव नहीं िे िी थी! क्या हो गया तुम्हें? वे
कहने लगे, अकृ तज्ञ हो तुम। आज तक दकसी आिमी ने नाव के प्रशत कृ तज्ञता, ग्रेटीट्यूि न दििाया, हम नाव पर
सवार हुए थे, अब हम नाव को अपने पर सवार रिेंगे, यही कृ तज्ञता की सूचना है।
बुद्ध कहने लगे, ऐसे आठ आिमी िायि िोजने मुशश्कल हों, लेदकन चजंिगी में हर जगह ऐसे ही आिमी
शमलेंगे, साधनों को शसर पर ढोते हुए। शजन साधनों से पार होना चाशहए और छोड़ िे ना चाशहए, उन साधनों
को कृ तज्ञतावि शसर पर शलए हुए आिमी चलता है। शिक्षा एक साधन है, जरूरी है दक एक उम्र में उस नाव से
गुजरा जाए, लेदकन यह भी जरूरी है दक नाव दफर छू ट जाए, और नाव को पीछे लेकर न चला जाए। लेदकन
गांव-गांव में, घर-घर पर आिम शलिे हुए है, अपना नाम छोटे में और बहुत बड़े अक्षरों में एम ए, एलएल बी,
पीएच िी नाव ढो रहा है, बेचारा। शसर पर नाव रिे हुए है। कृ तज्ञतावि। शजतनी बड़ी नाव शजसके शसर पर है,
वह उतना बड़ा आिमी है, छोटी नाव है आपके शसर पर, आप कु छ भी नहीं हैं। नाव बड़ी चाशहए। उपाशधयों
की, पिशवयों की भारी नाव पीछे शलए हुए आिमी... लेदकन नाम के पीछे शलि लो कोई हजाा नहीं है, क्योंदक
तख्ती पर कु छ बोझ नहीं पड़ता। लेदकन मन के भीतर शलिा हुआ है, वह एम ए, पीएच िी और एलएल बी की
शिशग्रयां तशख्तयों पर शलिी हों तो कोई हजाा नहीं है, मन में पत्थर की तरह शलिी हुई हैं, आिमी उनको भूल
ही नहीं पाता। सोते-जागते वह याि है। वह पकड़े हुए है। वे आगे की िोज को बंि कर िे ते हैं। क्या ऐसी शिक्षा
हो सकती है दक आिमी शिशक्षत भी हो, और शिक्षा के बोझ से भी न भरे । मैं इसी प्रश्न के साथ अपनी बात छोड़
िे रहा हं। शिक्षक सोचें अगर हम ऐसी शिक्षा पैिा कर सकते हैं जो शिक्षा हो, लेदकन शिक्षा का भार न बने। एक
ऐसी नाव जो निी पार करवा िे ती हो, और हम उसे भूल जाते हों और आगे बढ़ जाते हों। तो िायि हम एक
अचछी िुशनया बनाने में समथा हो सकते हैं।

मेरी बातों को इतने प्रेम और िांशत से सुना, उससे अनुगृहीत हं। और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा
को प्रर्ाम करता हं। मेरे प्रर्ाम स्वीकार करें ।

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सम्यक शिक्षा
चौथा प्रवचन

सभ्यता : हमारी शिक्षा का फल

मेरे शप्रय आत्मन्!


भशवष्य की एक कथा से बात िुरू करना चाहता हं।
अभी शलिी नहीं गई वह कथा, लेदकन आिमी जैसा चल रहा है, उसे िे िते हुए लगता है, जकि ही शलिी
जाएगी। भशवष्य के दकसी पुरार् में शलिी जाएगी। कथा है दक तीसरा महायुद्ध हो चुका, अभी हुआ तो िूसरा
ही है। लेदकन आिमी को िे ि कर ऐसा नहीं लगता दक तीसरा नहीं होगा। प्रथम के बाि अनेक लोग सोचते थे,
िूसरा महायुद्ध नहीं होगा, िूसरा हुआ। िूसरे के बाि अनेक लोग सेचते हैं, तीसरा नहीं होगा; लेदकन आिमी
जैसा है उसे िे ि कर लगता है दक तीसरा हुए शबना नहीं रह सकता। तीसरा महायुद्ध हो चुका है, सारी मनुष्य-
जाशत नि हो गई है। वे सारे भवन जो संस्कृ शत ने िड़े दकए थे और वे सारे सपने जो सभ्यता ने शनर्मात दकए थे,
धूल-धूसररत हो गए हैं। सारी पृथ्वी पर शसवाय धुएं के और आग के कु छ भी नहीं है। चारों तरफ मृत्यु है,
सुनसान है। एक छोटे से वृक्ष पर एक बंिर बैठा हुआ है, उिास, चचंशतत। सुबह की धूप शनकल रही है, चारों
तरफ धुआं है, चारों तरफ आग है, सब जल गया है। वह अपनी बंिररया के पास बैठ कर कहता है, बहुत िुि से
िैल बी शबगेन ऑल ओवर अगेन। क्या हमें िुशनया दफर से िुरु करनी पड़ेगी।
िार्वान होता और अगर यह बात सुन लेता, तो बहुत िुि होता। लेदकन िार्वान और उसके साथ मनुष्य
की सारी सभ्यता कभी की समाप्त हो गई है, उस तीसरे महायुद्ध में। और बंिरों को सोचना पड़ रहा है, क्या हम
दफर से िुरु करें ? िैल बी शबगेन ऑल ओवर अगेन?
यदि मनुष्य नहीं बिलता है, तो दकसी न दकसी दिन बंिरों को यह सोचना पड़ेगा। अचछा है दक बंिरों को
सोचने की बजाय हम स्वयं सोचें दक हमने जो सभ्यता शनर्मात की है, कहीं वह ऐसी तो नहीं है दक हम दफर से
सब िुरु करें ? और सभ्यता का प्रार् है शिक्षा, और संस्कृ शत का आधार है शिक्षा। कहीं ऐसा तो नहीं है दक शिक्षा
दफर से आमूल शनर्मात हो? क्या यह जरूरत नहीं दििाई पड़ती है? शजस भांशत हम मनुष्य को शिशक्षत करते
रहे हैं आज तक, उससे दकस तरह का मनुष्य पैिा हुआ है? आशिर कसौटी क्या है हमारी शिक्षा की, हमारी
संस्कृ शत की? वही मनुष्य जो हमने पैिा दकया है। इस मनुष्य को िे ि ंेकर ऐसा लगता है दक जो शिक्षा हम िे ते
रहे हैं, िे रहे हैं, वही शिक्षा योग्य है दक आगे भी हम िे ते रहें? जो भी हमें चारों तरफ दििाई पड़ रहा है, सड़ा-
गला समाज, चहंसा और ईष्याा से भरी हुई मनुष्य-जाशत। क्रोध, तनाव और अिांशत से भरे हुए मनुष्य के प्रार्। ये
चारों तरफ जो धुआं ही धुआं और अंधेरा ही अंधेरा है, और जीवन करीब-करीब मृत्यु से बितर हो गया है,
इसको िे ि कर यह िक, यह संिेह, यह शजज्ञासा नहीं जगती है मन में दक जो शिक्षा हम आज तक िे ते रहे हैं,
और िे रहे हैं वो बुशनयािी रूप से गलत तो नहीं है। क्योंदक मनुष्य ही कसौटी है उस शिक्षा की जो हमने उसे िी
है। जो समाज हम शनर्मात करते हैं, जो जीवन का फै लाव हमने दकया है, अगर वह िुिपूर्ा है, अंधकारपूर्ा है
और अगर वह नका जैसा बन गया है।
पुरार्ों में कहा है दक िे वता पृथ्वी पर पैिा होने को तरसते हैं, अब नहीं तरसते होंगे। अब िे वता प्राथाना
करते होंगे, सुबह-िाम दक हे भगवान! पृथ्वी पर मत भेज िे ना। मैंने तो यहां तक सुना है दक एक आिमी मर
गया था, उसकी पत्नी बहुत उत्सुक थी दक अपने मरे हुए पशत की आत्मा से कोई बातचीत कर ले। एक

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प्रेतात्मशवि के पास वह गई और उसने कहा दक क्या यह हो सकता है दक मैं अपने पशत की आत्मा से मैं बात कर
सकूं ? उस प्रेतात्मशवि ने उसके पशत की आत्मा को अंधकार में दकसी मनुष्य के ऊपर बुलाया। उस पत्नी ने अपने
मरे हुए पशत से पूछा दक तुम जहां भी हो, सुि में तो हो। मैं बहुत चचंशतत हं। उसके पशत ने कहा सुि में, मैं बहुत
सुि में हं एकिम आनंि में हं। शनशित ही पत्नी ने समझा दक पशत स्वगा में है, उसने कहा और स्वगा के संबंध में
कु छ बताओ? उसके पशत ने कहा स्वगा? मैं नरक में हं िे वी। तो उसकी पत्नी ने कहााः नरक में हो और कहते हो
बहुत सुि में हं। तो उसके पशत ने कहा, पृथ्वी को िे िने के बाि नरक ही िे िने को शमला है, वह बहुत ही सुिि
मालूम हो रहा है।
यह जो हमने जीवन, यह जो हमने पृथ्वी बसा रिी है, क्या है हमारी संस्कृ शत और सभ्यता के पास?
कौन सी सुगंध, कौन सा संगीत? ऐसे कौन से फू ल हैं जो मनुष्य के जीवन में शिलते हैं, शजन्हें हम कह सकें दक
हमारी शिक्षा ने उन्हें सींचा, उन बीजों को, उन फू लों को? ऐसी कौन सी सुगंध है, जो हमारे जीवन से उठती है
दक हम कहें दक हमारे शवश्वशवद्यालयों ने, हमारे शिक्षालयों ने, ये फू ल जन्माएं हैं। जीवन को िे ि कर ऐसा
लगता है दक शिक्षा शनशित ही गलत होनी चाशहए, अन्यथा जीवन ऐसा कै से हो सकता है? आिमी जो है, वह
शिक्षा के कारर् है। और आिमी जो भी होगा, वह शिक्षा के कारर् ही होगा। आिमी जो नहीं है, वह दकसी
शिक्षा के अभाव के कारर् है।
िायि जरूर तुमने सुना होगा दक आज से कोई तीस वर्ा पहले बंगाल के जंगलों में िो लड़के पकड़ शलए
गए थे, भेशड़ए उठा कर ले गए थे उन बच्चों को, और भेशड़यों ने उन बच्चों को अपनी मांि में पाला था। उनकी
उम्र िस और बारह वर्ा के करीब थी। जब शिकारी उन बच्चों को कलकत्ता लाए, बारह वर्ा का बच्चा भी िो पैर
से िड़ा नहीं हो सकता था। क्योंदक भेशड़यों ने शिक्षा िी थी, उसे, वह चार हाथ-पैर से चलता था। छह महीने
तक मुशश्कल से प्रशिक्षर्, माशलि, िवा सबका प्रयोग करके बामुशश्कल उन बच्चों को िड़ा दकया जा सका। छह
महीने में। और दफर भी जैसे ही आंि चूके दक वे चारों हाथ-पैर से चलने लगें। एक िब्ि नहीं बोल सकते थे,
बारह वर्ा के बच्चे। भेशड़यों की आवाज कर सकते थे, क्योंदक उसकी ही उन्हें शिक्षा शमली थी। कच्चा मांस िा
सकते थे, आिमी को नोच सकते थे, आिमी को कच्चा िा सकते थे; वही उन्होंने सीिा था। भेशड़यों की तरह तेज
िौड़ सकते थे, उनके नािून, उनके हाथ के पंजे आिशमयों जैसे नहीं रह गए थे। उनको बहुत कोशिि की साल
भर तक आिमी बनाने की उस कोशिि में वे िोनों मर गए। चजंिा रहना संभव नहीं हुआ। दफर अभी िो वर्ा
पहले उत्तर प्रिे ि में भी एक बच्चा पकड़ शलया गया, वह चौिह साल का था। अिबारों में तुमने नाम सुना होगा,
राम, उसको नाम िे दिया। चौिह साल के बच्चे के साथ ही वही हुआ दक वह िेढ़ साल के भीतर मर गया, उसको
शिक्षा िे ने की कोशिि की थी।
चौिह साल तक जो भेशड़यों के शिक्षालयों में पढ़ा हो, उसे दफर आिमी बनाना बहुत मुशश्कल हो जाता
है। और उस चौिह साल के बच्चे में, एक िब्ि नहीं बोल सकता था, िेढ़ साल मेहनत करने पर अपना नाम सीि
पाया, इतना बोल िे ता था, राम। बस इससे ज्यािा कु छ भी नहीं बोल सकता था।
यह मत सोचना दक तुम जो हो, मैं जो हं, हम जो हैं, ये हम शिक्षा के शबना हो सकते थे। और यह भी
ध्यान रिना दक जो हम हैं, इस शिक्षा की वजह से हैं। शजतनी घृर्ा हम में है, शजतनी चहंसा हम में है, शजतना
द्वेर्, शजतनी प्रशतस्पधाा हम में है, जीवन को गलत ढंग से जीने का जैसा रवैया हम में है, वह हमारी शिक्षा पर
शनभार है। जो भी हम हैं, अचछे और बुरे, िुभ और अिुभ, प्रकािपूर्ा और अंधकारपूर्ा उसका शजम्मा हमारी
शिक्षा में शछपा है। हम क्या ठीक हैं? अगर हम ठीक हैं, तो गलत आिमी कै सा होगा? हमारा समाज ठीक है, तो

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गलत समाज कै सा हो सकता है? हमसे गलत और क्या हो सकता है? इसे अगर सोचते हैं, तो पूरी शिक्षा पर
पुनर्वाचार करना जरूरी हो जाता है।
तीन हजार साल के इशतहास में मनुष्य-जाशत ने पंद्रह हजार युद्ध लड़े। तीन हजार वर्ा में पंद्रह हजार
युद्ध, थोड़े मालूम पड़ते हैं। प्रशत वर्ा पांच युद्ध। अगर तीन हजार वर्ा में हम एक-एक दिन की शगनती करें , जब
युद्ध चलता रहा पृथ्वी पर कहीं न कहीं, और उन दिनों की शगनती करें , जब युद्ध न चला हो, तो तेइस सौ वर्ा
युद्ध चला है, सात सौ वर्ा नहीं चला। इकट्ठा नहीं सात सौ वर्ा, कभी एक दिन, कभी िो दिन युद्ध होता रहा।
नहीं तो युद्ध कहीं न कहीं चल रहा है। पृथ्वी पर ऐसा एक भी दिन नहीं है, जब युद्ध न चल रहा हो। चल ही
रहा है। और शजन दिनों युद्ध नहीं चलता, तो यह मत सोचना दक युद्ध नहीं चलता, कोकि वार भी है, वह ठं िा
युद्ध चलता है। और यह मत सोचना दक जब युद्ध बंि रहता है, तो िांशत रहती है, नहीं, जब युद्ध बंि रहता है
तब यह शसफा इसशलए बंि रहता है दक पुराना युद्ध तोड़ गया होता है, ताकत, नये युद्ध को करने की ताकत
जुटानी पड़ती है। बीच में वि की जरूरत पड़ती है। मनुष्य के इशतहास में िांशत का कोई काल नहीं िे िा है अब
तक।
िो तरह के कालिंि हैं इशतहास में, युद्ध का काल और युद्ध की तैयारी का काल। पहला महायुद्ध हुआ
उन्नीस सौ चौिह में दफर िूसरा महायुद्ध हुआ उन्नीस सौ उं तालीस में बीच में जो थोड़े से वर्ा शनकले, यह मत
सोचना दक वो िांशत के वर्ा थे, उन दिनों हम युद्ध की तैयारी कर रहे थे। वह युद्ध की तैयारी का वि था। क्या
आिमी लड़ने को ही पैिा हुआ है, और लड़ना चजंिगी हो सकती है? और क्या लड़ने के माध्यम से जीवन में
आनंि संभव है? क्या आिमी चहंसा करने को ही पैिा हुआ है? क्या हम एक िूसरे की गिा न िबाने के शलए ही हैं।
अगर पृथ्वी को कोई मंगल पर बैठ कर िे िता होगा दकसी उपग्रह से अगर पृथ्वी को िे िता होगा, तो एक बात
शबककु ल ही शनशित है दक वे समझते होंगे, पृथ्वी एक मैि हाउस है, एक पागलिाना है। उनको तो कु छ भी पता
नहीं होगा दक कौन चहंिुस्तान है, कौन पादकस्तान है? क्योंदक बीच में कोई रे िाएं पृथ्वी पर चिंची हुई नहीं हैं,
सब रे िाएं आिमी की बेवकू फी से पैिा हुई हैं। पृथ्वी के नक्िे पर कोई रे िा नहीं है। सब रे िाएं आिमी की
स्टू शपशिटी के सुबूत हैं। कहां है कोई रे िा? कल करांची उन्नीस सौ सैतालीस के पहले तक करांची में जो आिमी
पैिा होता था, वह हमारा भाई था। हम कराची में पैिा हुए आिमी के शलए मरते हैं। उन्नीस सौ सैतालीस के
बाि करांची में जो पैिा हुआ है, वह हमारा िुश्मन है। और अब हम उसको मारने के शलए मरें गे। और वह हमको
मारने के शलए मरे गा।
मंगल के उपग्रह पर बैठ कर अगर कोई िे िता होगा, तो उसकी समझ के बाहर होगा दक यह आिशमयत
है कै सी? कभी भी उिड़ पड़ती है, और बस िुरु कर िे ती है लड़ना। उतने िूर से उनको कु छ भी पता नहीं होगा,
दक हमारी राजधाशनयों में िे ि के सब पागल इकट्ठे हो गए हैं। उन्हें कु छ पता नहीं होगा। उन्हें कु छ भी पता नहीं
होगा दक शजस आिमी का भी दिमाग िराब हो जाता है, वह राजनीशतज्ञ हो जाता है। उनको क्या बेचारों को
पता होगा, उनको हमारे राजनीशतज्ञों की कोई िबर नहीं है। ये सारी की सारी पृथ्वी को अगर थोड़े िूर िड़े
होकर अगर तटस्थ भाव से िे िें तो बड़ी हैरानी होगी, क्या? दकस पागल की तरह हम युद्ध की तैयारी में लगे
हैं? इस समय पृथ्वी पर पचास हजार उिजन बम तैयार हैं। और िायि तुम्हें पता नहीं होगा, पचास हजार
उिजन बम जरूरत से ज्यािा हैं। इनकी कोई जरूरत ही नहीं है। अगर पूरे आिशमयों को ित्म करना हो, तो ये
सात गुना ज्यािा हैं। एक-एक आिमी को सात-सात बार मारने की हमने व्यवस्था कर ली है। हालांदक एक
आिमी एक ही बार में मर जाता है, अब तक ऐसा सुना नहीं दक दकसी आिमी को िुबारा मारना पड़ा हो।

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लेदकन राजनैशतक बड़े कै ककु लेरटंग हैं, सब शहसाब लगाकर रिते हैं दक कोई भूल-चूक से बच जाए, ऐसी गलती
नहीं करनी है। एक-एक आिमी को सात-सात बार मारने का आयोजन है। और वह आयोजन भी इतना चहंसक
दक वह हमारी ककपना के बाहर है। हम ककपना भी न कर सके हैं। शहरोशिमा और नागासाकी में जो एटम बम
शगरा था, उसकी कहानी ठीक-ठीक पढ़ लेना, मत पढ़ना रामायर्, मत पढ़ना गीता, लेदकन शहरोशिमा-
नागासाकी ठीक से समझ लेना। क्योंदक चजंिगी कल उसी तरह होने वाली है। जो नागासाकी और शहरोशिमा में
हुआ है।
एक मेरे शमत्र ने जापान से मुझे एक तस्वीर भेजी, एक छोटे से बच्चे की तस्वीर है, बच्ची की। एक नौ साल
की लड़की शहरोशिमा में, रात में िाना िाकर अपनी सीदढ़यों से चढ़ रही है, ऊपर जा रही है, बगल में बस्ता
लटकाया हुआ है, दकताबें हैं, स्लेट है, वह होमवका करने अपने ऊपर के कमरे में जा रही है। तभी शहरोशिमा में
एटम बम शगरा। बीच सीढ़ी पर ही वह लड़की राि होकर िीवाल से शचपक गई है। अपने मय बस्ते, अपनी मय
दकताबों के । तस्वीर मुझे दकसी ने भेजी है। उस बच्ची ने कभी सोचा होगा दक ये सीदढ़यां भी पूरी नहीं हो
पाएंगी? होमवका करना तो बहुत िूर है। क्या पता होगा उस शनरीह बच्ची को दक बस ित्म हो जाना है आधी
सीदढ़यों पर? पूरा गांव ित्म हो जाना है। एक लाि बीस हजार लोग एकिम से ठं िे हो जाने हैं। तुम पढ़ रहे हो,
स्कू लों में, कालेजेज में, तुम्हारे मां-बाप, तुम्हारे शिक्षक आिाएं बांधे हुए हैं, तुम भी बड़े सपने िे िते होंगे
चजंिगी के लेदकन तुम्हें पता नहीं दक दिकली और कराची में, मास्को और पेचचंग में जो लोग बैठे हैं, वो इं तजाम
कर रहे हैं दक होमवका पूरा न हो पाए। दकसी भी क्षर् शवस्फोट हो सकता है। जो शमसाइल आज मास्को और
अमरीका के पास हैं, आज शजन हाइड्रोजन बमों और एटम बमों को उन्होंने अंबार लगा शलया है, वे िुि भी
घबड़ा गए हैं दक एक आिमी का दिमाग िराब हो जाए, शसफा एक आिमी का, और पूरे तीन अरब आिशमयों
को ित्म कर सकता है। तो आज मास्को और न्यूयाका में और वाचिंगटन में, जो सबसे बड़ी दफकर करनी पड़
रही है, वह यह दक एटम बमों की चाबी दकस तरह रिी जाए। मान लो तुम्हारे हाथ में चाबी है, और पत्नी से
झगड़ा हो गया, तुमने सोचा भाड़ में जाने िो इस िुशनया को, तुमने एक शमसाइल का उपयोग कर दिया। क्या
दकया जाए? और आिमी में ऐसे मौके आते हैं। पत्नी से झगड़ा होना तो िूर है, कलम तक ठीक से न चलती हो,
तो िुशनया ित्म कर िे ने का दिल होने लगता है। साइदकल पंचर हो जाए, तो गुस्सा आ जाता है, सारी िुशनया
पर।
ऐसे कमजोर आिमी के हाथ में इतनी बड़ी ताकत होनी बड़ी ितरनाक है। तो एक-एक शमसाइल को
चलाने की तीन-तीन चाशबयां हैं और तीन-तीन लोगों के पास हैं, जब तक वे तीनों न शमलें दकसी शमसाइल का
प्रयोग नहीं दकया जा सकता। लेदकन तीन पागल भी इकट्ठे हो सकते हैं। इसमें क्या करठनाई है? बशकक अक्सर
ऐसा होता है दक तीन बुशद्धमान आिशमयों को इकट्ठा करना मुशश्कल होता है, तीन पागलों को इकट्ठा करना
शबककु ल आसान होता है। तीन बुशद्धमान आिमी इकट्ठे करने बहुत मुशश्कल बात है। लेदकन तीन मूिा अक्सर
इकट्ठे शमल जाएंगे। सच तो यह है दक मूढ़ों के शसवाय कोई संगरठत होता ही नहीं है। बुशद्धमान आिशमयों के कोई
संगठन नहीं है, क्योंदक बुशद्धमान आिमी अके ला जीता है। बुशद्धमान आिमी अपने को पयााप्त मानता है, जीने के
शलए, दकसी िूसरे का सहारा नहीं मांगता। शजनकी अपनी बुशद्ध नहीं है, वह ऑगानाइजेिंस िड़े करते हैं। दफर
चाहे ऑगानाइजेिन राजनीशत के हों, चाहे धमा के हों। ऑगानाइजेिंस मात्र नासमझ, नािान, बुशद्धहीन लोगों की
ईजाि है। और जब तक िुशनया में बुशद्धहीन लोग हैं, तब तक संगठन रहेंगे, और हर संगठन ितरनाक है। क्योंदक
हर संगठन दकसी िूसरे के शिलाफ होता है। चहंिू इसशलए इकट्ठे होते हैं दक मुसलमान के शिलाफ हैं, मुसलमान

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इसशलए इकट्ठा होता है दक चहंिुओं के शिलाफ है। िुशनया में कोई संगठन मनुष्यता के शलए नहीं है। सब संगठन
मनुष्य की हत्या के शलए हैं। भारत इकट्ठा होता है, पादकस्तान के शिलाफ, पादकस्तान इकट्ठा होता है भारत के
शिलाफ; चीन इकट्ठा होता है दकसी और के शिलाफ। हम सब इकट्ठे होते हैं घृर्ा के शलए, चहंसा के शलए, शमटाने
के शलए। यह इतनी चहंसा का प्रािुभााव अगर है जगत में, और अब वो चरम सीमा पर पहुंच रहा है और वहां
पहुंच रहा है, जहां सब समाप्त हो सकता है। तो दफर इस पूरी शिक्षा को सोच लेना पड़ेगा दक यह शिक्षा जुरूर
मनुष्य के भीतर िानव को मुि करती है। मानव को मुि नहीं करती। यह मनुष्य को दकसी ऐसी दििा में ले
जाती है, जहां अंधकार की िशियां तो मुि हो जाती हैं, प्रकाि की सारी िशियां क्षीर् हो जाती हैं। यह शिक्षा
मनुष्य को िैतान की तरफ अनुप्रेररत करती है, भगवान की तरफ अनुप्रेररत नहीं करती है। यह हमें ठीक से
समझ लेना जरूरी है। और यह जरूरत आज से ज्यािा महत्वपूर्ा कभी भी नहीं थी, क्योंदक आज से पहले मनुष्य
के हाथ में इतने ितरनाक िस्त्र नहीं थे। अब हमारे पास जो िस्त्र हैं, वे टोटल शिस्पेक्िन के हैं। वे पूर्ा शवध्वंस
के हैं। अब तक जो युि्ध हुए थे, वे अद्धा युद्ध थे, िंि युद्ध थे, अब जो युद्ध होगा वह टोटल वार है, वह पूर्ा युद्ध
है। पूर्ा युद्ध का मतलब होता है शजसमें कोई नहीं जीतेगा। पहली बात। पूर्ायुद्ध का मतलब होता है, लड़ने वाले
िोनों मरें गे, शसफा फका इतना होगा दक हारा हुआ वह समझा जाएगा, जो िो क्षर् पहले मरे गा, जीता हुआ वह
समझा जाएगा जो िो क्षर् बाि मरे गा। बस इतना ही सुि रहेगा आशिर में दक हम जरा िे र से मरे । िे र से रूस
मरे दक अमरीका, इतना ही फका पड़ेगा। लेदकन पूर्ायुद्ध का मतलब यह है दक िोनों बाशजयां एक साथ ित्म हो
जाएंगी। क्योंदक िोनों के पास समान िस्त्र हैं, समान चहंसक... । पूर्ायुद्ध का मतलब यह है दक हमने जो िस्त्र
शवकशसत दकए हैं, उनके समक्ष जीवन की क्षमता बहुत कम पड़ गई है, मृत्यु की क्षमता पूर्ा हो गई हैं। आिमी
का जीवन बहुत ही शमरे कल है, चमत्कार है।
िायि आपने कभी भी न सोचा होगा दक आिमी के जीवन की क्षमता दकतनी संकीर्ा है। इसशलए तो
इतने बड़े शवस्तारपूर्ा शवश्व में जहां अनंत शवस्तार है, ऐसा लगता है दक िायि अके ली पृथ्वी पर ही जीवन
प्रकट हो सका है। दकतना शवस्तार है जगत का! यह हमारी पृथ्वी तो बहुत छोटी सी है, इससे साठ हजार गुना
बड़ा सूरज है। और सूरज िुशनया में सबसे छोटा सूरज है। उससे करोड़ों गुना बड़े सूरज हैं, शजनको हम रात में
तारे कहते हैं। कोई भी तारा नहीं है, वे सब बड़े सूरज हैं। जो सूरज से करोड़ों गुना बड़े हैं। लेदकन फासला इतना
ज्यािा है दक इतने छोटे दििाई पड़ते हैं। अंतहीन फासला है। जमीन से सूरज की िूरी िस करोड़ मील है। लेदकन
सूरज बहुत करीब है हमारे , बहुत ही करीब है, िस करोड़ मील कोई िूरी ही नहीं है। प्रकाि की दकरर् चलती
है, एक सेकेंि में एक लाि शछयासी हजार मील, सूरज की दकरर् को पहुंचने में कोई आठ-साढ़े आठ शमनट
जमीन तक लगते हैं। सूरज बहुत करीब है। सूरज बहुत करीब है। सबसे शनकट का जो तारा है उसकी दकरर्
पहुंचने में चार वर्ा लगते हैं। उसी रफ्तार से चलती है दकरर्-एक लाि शछयासी हजार मील प्रशत सेकेंि। वह
सबसे शनकट का जो तारा है उसे चार वर्ा लगते हैं। जो थोड़े िूर के तारे हैं, उनसे सात वर्ा लगते हैं। जो और िूर
के तारे हैं हजार-िो हजार, लाि-िस लाि, करोड़-िस करोड़, अरब-िस अरब, ऐसे तारे हैं शजनसे चली हुई
दकरर् अब तक पृथ्वी पर नहीं पहुंची और चली थी तब जब पृथ्वी बनी थी। पृथ्वी को बने चार अरब वर्ा हो
चुके हैं। और ऐसे भी तारे होंगे, शजनकी दकरर् िायि पृथ्वी पर कभी नहीं पहुंचेगी। इतने अंतहीन िूरी पर
उनका शवस्तार होगा। अब तक िो अरब तारों के संबंध में बोध हो चुका है। इतने बड़े शवस्तीर्ा जगत में ऐसा
लगता है, दक शसफा पृथ्वी पर ही जीवन प्रकट हुआ है। जीवन के प्रकट होने की सीमा इतनी संकीर्ा है, दक सारे
इतने शवस्तीर्ा जगत में, जीवन के पैिा होने का अवसर कहीं भी उपलब्ध नहीं हो सका है। और हम भी जानते

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हैं। इधर शछयानवे शिग्री से नीचे हमारी गमी शगर जाए दक आिमी ित्म। उधर एक सौ िस शिग्री के ऊपर गमी
बढ़ जाए दक आिमी ित्म। इधर चौिह शिग्री के बीच में आिमी के जीवन का फै लाव है। इतनी सी संकीर्ा
जीवन की क्षमता है हमारी इस जीवन के सामने मृत्यु की हमने अनंत क्षमता को मुि कर दिया है। अनंत क्षमता
को। एक उिजन बम के शवस्फोट से जो गमी पैिा होगी, वह गमी उतनी ही होगी शजतनी सूरज पर है, िस
करोड़ शिग्री। िस करोड़ शिग्री गमी में दकसी तरह का जीवन बच सकता है? उस तरह का जीवन बच सकता है
शजनकी एक सौ िस शिग्री के ऊ पर गमी चली जाए और वो ित्म हो जाते हैं।
एक सौ िस शिग्री पर शजनका जीवन नि हो जाता हो उन्होंने इं तजाम कर शलया है, िस करोड़ शिग्री
गमी पैिा करने का। सौ शिग्री गमी पर पानी भाप बनता है, अगर तुम्हें उठा कर उस उबलते हुए पानी में िाल
दिया जाए, तो गमी का सुि आएगा। लेदकन वह बहुत थोड़ा सुि है, अगर असली सुि लेना हो तो वह काफी
नहीं है। पंद्रह सौ शिग्री पर लोहा शपघल कर पानी बन जाता है, उसमें िालना चाशहए दकसी को। लेदकन उसमें
भी पूरा मजा नहीं आएगा। पच्चीस सौ शिग्री गमी पर लोहा भाप बन कर उड़ने लगता है, उसमें िालना चाशहए
दकसी को, लेदकन आिमी का दिल इससे भी नहीं भरता। उसने िस करोड़ शिग्री गमी पैिा करने के उिजन बम
तैयार दकए हैं। उनमें हम िालेंगे आिशमयत को, तब मजा आएगा पूरा। एक उिजन बम के शवस्फोट से जो गमी
का क्षेत्र होगा, वह होगा चालीस हजार वगा मील। चालीस हजार वगा मील में एक उिजन बम िस करोड़ शिग्री
की भट्टी बना िे गा। उस जलती हुई भट्टी में आिमी उतरने की तैयारी कर रहा है, इस आिमी के मन को स्वस्थ
कहा जा सकता है? और अगर यह स्वस्थ है तो शवशक्षप्त दकसको कहते हैं? पागल दकसको कहते हैं?
यह क्या है? यह कै से संभव हुआ? मेरी िृशि में हमारी शिक्षा का पूरा यंत्र शवकृ त और शवशक्षप्त है।
इसशलए कु छ सूत्र शिक्षा के इसके अंत के बाबत कहना चाहता हं दक ये क्यों शवशक्षप्त है? पहली बात, पूरी की
पूरी शिक्षा ईष्याा शसिाती है। पूरी शिक्षा जेलेसी शसिाती है। पूरी शिक्षा चहंसात्मक है, वायलेंट है। पूरी शिक्षा
चहंसा की िीक्षा िे ती है। क्यों? क्योंदक पूरी शिक्षा अहंकार को पोर्र् िे ने के आधार पर िड़ी है। एक-एक बच्चे के
अहंकार को हम फु सलाते हैं और कु छ भी नहीं करते। पहली ही कक्षा में बच्चे भरती हुए, और बाप चाहते हैं दक
मेरा लड़का प्रथम आ जाए, शिक्षक भी चाहता है दक प्रथम आना। लेदकन कोई नहीं पूछता दक प्रथम आने की
िौड़ शसिानी अहंकार की िौड़ शसिानी है। जो आिमी िूसरों से प्रथम होने की कोशिि करता है, वह कर क्या
रहा है? वह यह कहता है दक मैं कु छ हं, समबिी। मैं कोई साधारर् आिमी नहीं हं। मैं प्रथम हं। और यह जो
प्रथम होने की िौड़ में शजस आिमी का शचत्त पड़ जाता है, वह अशनवाया रूप से चहंसक हो जाता है। दफर ऐसे ही
व्यशि शमलकर समूह बनाते हैं, दफर समूह भी प्रथम होने की िौड़ में लग जाते हैं, दफर ऐसे ही व्यशि शमल कर
राष्ट्र बनाते हैं, दफर राष्ट्र प्रथम होने की िौड़ में लग जाते हैं। सारी िुशनया में युद्ध का कारर् क्या है? दक हर राष्ट्र
प्रथम होने की िौड़ में है। कोई राष्ट्र दकसी से पीछे नहीं िड़ा रहना चाहता। क्या िुश्मनी है अमरीका और रूस
के बीच। क्या िुश्मनी है चहंिू और मुसलमान के बीच? क्या िुश्मनी है, पादकस्तान और चहंिुस्तान के बीच? क्या
िुश्मनी है, कम्युशनस्टों और कांग्रेशसयों के बीच? एक िुश्मनी है दक कौन प्रथम। ह इ.ज टू बी िा फस्टा? कौन
होगा पहले? कौन शसिाता है यह पहले होने की िौड़? हमारी पूरी शििा का तंत्र शसिाता है। पूरी शिक्षा का
तंत्र कहता है िूसरों से पहले होने वाला आिमी धन्य है। हि हो गई, बीमारी शसिाते हो और कहते हो धन्यता
है। इसी पत्थर के ऊ पर टकरा कर आिमी की नाव टू ट गई है।
जीसस क्राइस्ट एक अिभुत बात कहते हैं, लेदकन जीसस क्राइस्ट की कौन सुनेगा? हम सूली पर लटका
िे ते हैं, ऐसे नामसमझ आिशमयों को। ऐसे जीसस क्राइस्ट वगैराह को हम सुनते नहीं। अगर ज्यािा जोर से

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बोलने लगते हैं, गिा न काट िे ते हैं, दक ऐसे आिमी अचछे नहीं, इनको अलग करो। कु छ मामला ऐसा है जैसे अंधों
की बस्ती में कोई आंि वाला आिमी आ जाए, तो अंधे शमल कर उसकी आंि का आपरे िन कर िें , दक यह
आिमी गड़बड़ है। आंि कहीं होती है? इस आिमी को कु छ गड़बड़ चीज पैिा हो गई है, अलग करो, इसका
दिमाग िराब है। ऐसी चीजें इसको दििाई पड़ती हैं, जो हमें नहीं दििाई पड़तीं। हो कै से सकती हैं, जब हम
सबको दििाई नहीं पड़तीं। जीसस का ऑपरे िन कर िालते हैं, ित्म करो इस आिमी को। सुकरात को जहर
शपला िे ते हैं, गांधी को गोली मार िे ते हैं। ये आिमी ठीक नहीं है, ये गड़बड़ बातें कहते हैं, हम जो कहते हैं, हम
जो मानते हैं, उससे उकटी बातें बताते हैं।
जीसस कहता हैं, धन्य हैं वे लोग जो अंशतम िड़े होने में समथा हैं। अिभुत बात है। धन्य हैं वे लोग जो
अंशतम िड़े होने में समथा हैं। मेरी िृशि में भी मनुष्य के जीवन में श्रेष्ठतम का जन्म उस क्षर् होता है, जब वह
अंशतम िड़े होने की सामथ्या जुटा लेता है। लेदकन सारी शिक्षा कहती है, प्रथम िड़े हो, प्रथम िड़े होओ। सारी
मनुष्यता नि हो जाती है। वह प्रथम होने का जो पागल, फीवरे स्ट िौड़ िुरू होती है, शवशक्षप्त िौड़ िुरु होती है,
वह इतने चक्कर में िाल िे ती है, आिमी को दक कभी चैन नहीं। चपरासी से लेकर राष्ट्रपशत तक बेचैन हैं।
चपरासी को और बड़ा चपरासी होना है, राष्ट्रपशत को और बड़े राष्ट्र का राष्ट्रपशत होना है, और सब भाग रहे हैं।
चपरासी की बुशद्ध में और राष्ट्रपशत की बुशद्ध में रत्ती भर भेि नहीं। वह जो बुशद्ध है, वही प्रथम होने की है।
पहली कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे में और सत्तर साल के बूढ़े आिमी में कोई भेि नहीं, वह जो बुशद्ध है वही प्रथम
होने वाली है। बस आगे िड़ा होना है, सारी िुशनया से आगे िड़े हो जाएं, लेदकन दकसशलए? आगे िड़े होने से
शमलता क्या है? आगे िड़े होने से भीतर की सारी िांशत िो जाती है, क्योंदक आगे िड़े होने के शलए संघर्ा,
आगे िड़े होने के शलए चहंसा, आगे िड़े होने के शलए िूसरों के शसर को सीढ़ी बनाना पड़ता है। और आगे िड़े
होने के शलए जो भी बीच में बाधा पड़ती है, उनको ित्रु बनाना पड़ता है। इसशलए पूरी मनुष्य-जाशत एक िूसरे
की ित्रु हो गई। तुम कभी मत सोचना यह, कक्षा में तुम पढ़ते हो, लेदकन कहते हो हम सहपाठी हैं, सह ित्रु हैं।
कोई सहपाठी नहीं है। क्योंदक सब एक-िूसरे से प्रशतयोशगता कर रहे हो, साथी कै से हो सकते हो? शमत्र कै से हो
सकते हो? तीस बच्चे पढ रहे हैं एक कक्षा में, तीसों एक-िूसरे की जान के पीछे हैं दक हम आगे शनकल जाएं।
बाकी उनतीस पीछे छू ट जाएं तो उस कक्षा में तीस िुश्मन हैं, जो प्रथम होने की कोशिि में लगे हैं, िोस्ती ऊ
परी है, झूठी है, बुशनयाि में िुश्मनी चल रही है।
क्या हम एक ऐसी शिक्षा शवकशसत नहीं कर सकते, जो व्यशि को प्रथम होने की िौड़ में न लगाती हो।
अगर ऐसी शिक्षा शवकशसत नहीं होती तो आिमी ित्म। बंिरों को दफर से सोचना पड़ेगा, िैल बी स्टाटा अगेन?
मुझे लगता है दक ऐसी शिक्षा का तंत्र हो सकता है, जो प्रथम की िौड़ न शसिाए। क्या जरूरत है उस िौड़ की।
क्या हम प्रत्येक व्यशि को अपने शवर्य में रस लेना नहीं शसिा सकते हैं? क्या हम एक ही गशत िे ने का एक ही
सूत्र जानते हैं दक िूसरे के अहंकार से प्रशतयोशगता करो। एक आिमी इसशलए भी संगीत सीि सकता है दक उसे
संगीत सीिना आनंिपूर्ा है। और एक आिमी इसशलए भी संगीत सीि सकता है दक उसकी बरिाश्त के बाहर है
दक िूसरा आिमी संगीत सीि ले। एक आिमी इसशलए भी संगीत सीिने में पागल की तरह लग सकता है दक
उसे िूसरे संगीतज्ञ को पीछे छोड़ िे ना है। और एक आिमी इसशलए भी संगीत सीि सकता है दक संगीत में गहरे
से गहरे उतर जाना, अपूवा आनंि की यात्रा पर। एक आिमी िूसरे से जब प्रशतयोशगता करता है, तो उसे संगीत
से कोई भी प्रयोजन नहीं है।

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संगीत के वल बहाना है, शजस बहाने वह अपने अहंकार की िौड़ को आगे बढ़ा रहा है। सच तो यह है दक
जो संगीत को प्रेम करता है, वह िूसरे संगीतज्ञ की दफकर ही नहीं कर सकता। उसके शलए वह और संगीत के
अशतररि िुशनया में कोई भी नहीं है। हां, शनशित ही जो संगीत को प्रेम करता है, वह भी एक तरह की
प्रशतयोशगता करे गा, लेदकन िूसरे संगीतज्ञ से नहीं, अपने ही कल के संगीतज्ञ से। वह जो कल था मैं, उससे मैं
आगे शनकल जाऊं। मैं जो कल था, उससे आगे शनकल जाऊं। क्योंदक कल जो मैंने आनंि जाना, उससे गहराई में
और आनंि होगा। मैं रोज अपने को पार करूं, िूसरे को नहीं। िूसरे को पार करना हीनता है, अपने को पार
करना शवकास है। मैं रोज अपने को पार कर जाऊं, ट्रांसेंट कर जाऊं, कल सुबह सूरज ने जहां मुझे पाया था,
िू बता हुआ सूरज भी मुझे वहां न छोड़े। कल िू बते सूरज ने मुझे जहां पाया था, आज सुबह का सूरज मुझे वहां न
पाए। अन्यथा वह सूरज कहेगा बेकार जीए इतनी िे र, क्या दकया तुमने? िो दिया इतना क्षर्, जीवन बहुत
छोटा है। मैं रोज बढ़ता रहं, दकसी िूसरे से नहीं, बढ़ने में कोई कं पेररजन जब आ जाता है तो चहंसा िुरु हो जाती
है। बढ़ने में कं पेररजन नहीं, बढ़ने में तुलना नहीं, कभी भूल कर कं पेररजन मत करना दकसी िूसरे से। सिा अपने
से।
मृत्यु के क्षर् तक बढ़ते जाना लेदकन अपने से, रोज आगे, िूसरे पर ध्यान मत िे ना। िूसरे की चचंता भी
क्या है, दक िूसरा कहां जाता है? िूसरे से प्रयोजन क्या है? िूसरे के प्रयोजन में जो संलग्न हो जाता है, वह अपने
को भूल जाता है। और मैं आपसे कहता हं, हमारी शिक्षा प्रत्येक व्यशि को उसकी आत्मा भुला िे ती है, क्योंदक
वह िूसरे पर उसको कनसनट्रेट करवाती है। वे कहते हैं िूसरे क्या कर रहे हैं? बाप कहता है, िे िते नहीं, पड़ोसी
का लड़का कहां शनकला जा रहा है। यह बाप ितरनाक है। पड़ोसी के लड़के पर ध्यान दिलवा रहे हो तुम अपने
लड़के का ध्यान उसके भीतर ले जाओ, उसकी अपनी आत्मा पर। उससे कहो तेरी आत्मा कहां जा रही है, इसकी
दफकर कर। तू कहां जा रहा है, इसकी दफकर कर। िूसरे से तुलना शसिाई, दक आिमी शवकृ त हुआ। तुलना
शवकृ शत का सूत्र आधार है। और हमारी पूरी शिक्षा कं पेररजन शसिाती है। वह ग्रेिेिन करती है। यह आिमी िस
नंबर पर, वह आिमी बारहवें नंबर पर, यह आिमी पचास नंबर पर, ग्रेिेिन करती है। इस ग्रेिेिन के िो
िुष्पररर्ाम होते हैं, जो आिमी प्रथम आ जाता है, वह शबगड़ जाता है, इसशलए उसके अहंकार को पोर्र्
शमलता है दक मैं कु छ हं।
िे िो न, जरा शमशनस्टरों को रास्तों पर चलते िे िो, राष्ट्रपशतयों को रथों में िे िो। सेनापशतयों को घोड़ों
पर सवार िे िो। िे िों उनकी आिों में है क्या? दकस बात से वे आनंदित हैं? आनंि जैसी कोई भी चीज उनके
पास नहीं है। शसफा एक है आनंि, िूसरों को हमने नीचा दििा दिया है। िूसरे धूल पर चल रहे हैं, वे रथों पर
सवार हैं। इसके शसवाय कोई आनंि नहीं हैं। और बड़े मजे की बात है दक िूसरा धूल में चल रहा है, इससे
आपको कै से आनंि आ सकता है? यह बड़े मजे की बात है दक िूसरा शगर गया है, इससे आपको कै से आनंि आ
सकता है? यह आनंि रुग्र् है।
एक गांव में मैं जाता था, एक शमत्र के घर ठहरा। उन शमत्र ने एक बहुत बड़ा भवन बनाया। उस गांव में
सबसे बड़ा भवन था। वही भवन था। बाकी सब झोपड़े थे। तीन दिन उनके घर रहा, कोई भी बात चले, घूम-
दफर कर बात उनके भवन पर ही आ जाती थी। बस वो थोड़ी-बहुत िे र में ऐसा लगता था दक वे चौबीस घंटे
भवन का ही चचंतन करते हैं। कु छ भी बात चले, कोई भी बात, ऐसी कोई बात नहीं थी जो अशनवाया रूप से
भवन पर न लाते हों, ऐसा कोई रास्ता नहीं था जो रोम न पहुंच जाता हो। सब घूम कर वहीं पहुंच जाता था।
भगवान से बात करो, और भवन पर ित्म होती थी। स्वाभाशवक बड़े िुि थे, बड़े आनंदित थे। िो साल बाि

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उनके घर में दफर मेहमान हुआ। जाते से मैंने सोचा दक दफर वही भवन िुरु होगा। रात थी, मैं बहुत िे र तक
प्रतीक्षा दकया, भवन नहीं आया, मैंने कहा रास्ते गड़बड़ हो गए। कोई िायवजान हो गया, क्या हुआ? रास्ते
मकान पर नहीं पहुंच रहे। दफर जब सोने लगा तो मैंने कहा, क्या बात है इस बार आप भवन की बात नहीं
करते। वे बड़े उिास होकर कहााः क्या िाक बात करूं, आपको िायि पता नहीं, सुबह पता चलेगा। मैंने कहा
क्या मामला है? उन्होंने कहा पड़ोस में एक मकान बन गया है, जो इससे भी ऊंचा है। पर मैंने कहााः पड़ोस का
मकान बने या न बने तुम्हारा मकान तो ठीक वैसा ही है। तो उन्होंने कहााः कहां ठीक वैसा ही है, माना दक मेरा
मकान तो वैसा ही है, लेदकन सब बात बिल गई। जब तक उस मकान से ऊंचा न कर िूं, तब तक चैन नहीं
शमलेगा। तो मैंने कहााः अब मैं तुमसे कहं दक वह जो िुिी तुम्हारी थी, जब मैं िो साल पहले आया था, वह भी
तुम्हारे मकान से संबंशधत न थी, वह भी बगल में िड़े झोपड़ों से संबंशधत थी। वो झोपड़े नीचे थे, उनसे तुम िुि
हो रहे थे, हालांदक तुम कह नहीं रहे थे दक झोपड़ों को िे ि कर मैं िुि हो रहा हं।
लेदकन यह आिमी कै सा है? स्वास्थ्य का आनंि अपने स्वास्थ्य से होता है दक फला आिमी को टी.बी. हो
गई इसमें होता है? और अगर दकसी को इस तरह के स्वास्थ का आनंि आने लगे, दक गांव भर में पता लगे
दकसको कैं सर हो गया है, दकसको टी.बी. हो गई, कौन मर गया है? और प्रसन्न हो दक आज फलां मर गया, हम
चजंिा हैं। अगर िूसरे के मरने से िुि की चजंिगी का पता चले, तो समझ लेना दक तुम बहुत पहले मर चुके हो।
अगर िूसरे की बीमारी से तुम्हें अपने स्वास्थ में रस आए, तो समझ लेना दक तुम्हारे पास स्वास्थ्य नहीं है।
क्योंदक शजसके पास स्वस्थ्य होता है, उसे अपने स्वास्थ्य से आनंि आता है। िूसरे की बीमारी से उसका कोई भी
संबंध नहीं है। शजस आिमी के पास अपना स्वास्थ्य होता है, उसे िूसरे की बीमारी से आनंि तो कभी हो ही नहीं
सकता। िूसरे की बीमारी से िुिी जरूर हो सकता है। शजस आिमी के पास अपना जीवन है, वह िूसरे के मरने
से कभी िुि नहीं होता। लेदकन िूसरे के जीवन के िो जाने से िुिी जरूर हो सकता है। आज हालत शबककु ल
उलटी है, िीर्ाासन करती हुई। िूसरे के िुि से शमलता है, सुि। िूसरे की मौत से लगती है, अपनी चजंिगी। िूसरे
के हार जाने में आती है, अपनी शवजय। िूसरे के शगर जाने में लगता है, अपना उठना। यह सारी की सारी
िीर्ाासन करती हुई सभ्यता हमारी शिक्षा का फल है। और वह शिक्षा हमें शसिाती है, प्रथम होना। वह बीमारी
का पहला बीज है। एक ऐसी शिक्षा चाशहए जो व्यशि को िूसरे की स्पधाा में नहीं, स्वयं की स्पधाा में िींच कर
लाती हो। एक बात।
और िूसरी बात यह पूरी की पूरी शिक्षा का तंत्र अत्यंत बोररं ग, बोिाम पैिा करने वाला है। इस तंत्र में न
कोई रस है, न कोई िुिी है, न कोई नृत्य है, न कोई संगीत है। यह पूरा तंत्र बोिाम की एक लंबी कथा है। पांच
साल के छोटे बच्चों को... बड़े अचछे लोग थे पहले, वे कम से कम सात साल में बोिाम में िीशक्षत करवाते थे। अब
पांच ही साल में, रूस में वो दफक्र कर रहे हैं दक नहीं इतनी िे र हो गई बहुत, तीन साल में। और कु छ रूस के
शिक्षा िास्त्री कहते हैं दक दिन भर उनको शिक्षा िे ते हो, रात िाली चली जाती है, तो रात में भी टेप लगा कर
कान में शपलो के पास बच्चे को सुलाओ, स्लीप टीचचंग होनी चाशहए। वह रात भर सोया भी रहे और उसकी
िोपड़ी में रात भर टेप बोलता रहे। और वो सफल हुए जा रहे हैं, इसशलए टीचचंग के मैथड्स रूस में काम
करना िुरु कर दिए हैं। वे कहते हैं दक इतनी िे र क्यों िराब करनी, पांच-छह घंटे स्कू ल में पढ़ाया और बाकी
समय िराब होता है, बच्चा जब सोता है, तब भी उसका पीछा करो। बाप पीछा कर रहा है, मां पीछा कर रही
है, पड़ोसी पीछा कर रहे हैं, गुरु पीछा कर रहे हैं, वाइस चांसलर पीछा कर रहा है; छोटे-छोटे बच्चों के पीछे
इतने िुश्मन पड़े हुए हैं, शजनका कोई शहसाब नहीं। और सब क्या कर रहे हैं? उसके जीवन में जरा सा भी रस

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नहीं पैिा होने िे रहे हैं, जरा सा भी आनंि, शथरक, पुलक नहीं पैिा होने िे रहे हैं। जाकर िे िो आिीवासी के
बच्चे को और िे िो अपने बच्चे को, आिीवासी का बच्चा भूिा होगा, िुबला होगा, कमजोर होगा, िरीर पर
शचथड़े नहीं होंगे, लेदकन िे िो, उसकी आंि िे िो, उसकी गशत िे िो, उसकी पुलक, उसमें वही रस मालूम होता
है, जो एक शहरर् के बच्चे में होता है। उसमें वही तीव्रता मालूम होती है, जो एक िेर के बच्चे में होती है। उसकी
चजंिगी में वही लोच मालूम होती है, जो वृक्षों की िािाओं में होती है, उसकी आंिों में वही झलक होती है, जो
फू लों में होती है। हमारे बच्चे को िे िो। पैिा हुआ दक बूढ़ा हो गया। बच्चे पैिा होने बंि हो चुके हैं, अब बूढ़े ही पैिा
होते हैं। और हम सब उनके पीछे पड़े हैं दक कहीं कोई बच्चा पैिा हो जाए, तो बड़ी तकलीफ होती है, उसको हम
कहते हैं प्रॉब्लम चाइकि। क्योंदक बूढ़ों की जमात में, बूढ़ों की िुशनया में अगर कोई बच्चा पैिा हो जाए तो बड़ी
गड़बड़, बड़ा शिस्टर्बिंग मालूम पड़ता है। हम गीता पड़ रहे हैं और वह गाना गा रहा है, यह शबककु ल ठीक बात
नहीं है। लेदकन दकसने तुमसे कहा, गीता पढ़ने से तुम हकिार हो, वह गाना गाने का नहीं। और दकसने कहा दक
इस िुशनया में गीता पढ़ना ज्यािा कीमती है, और गाना गाना कम कीमती है, दकसने कहा? बूढ़ों की वैकयूज हैं,
उन बच्चों की वैकयूज का कोई मूकय नहीं है। चार बूढ़े बैठ कर बातें कर रहे हैं, दफजूल ही बात करते हैं। बच्चों से
कहते हैं, चुप रहो, गड़बड़ नहीं करो यहां, बहुत ऊंची बात कर रहे हैं, सुबह अिबार पढ़ा है, वही बकवास
दिमाग में भर गई है, वही कर रहे हैं, कु छ और नहीं कर रहे हैं।
प्रेम जरूरी है, शजसके शबना गशर्त ितरनाक शसद्ध हो गया है। क्योंदक आिमी शजसके भीतर प्रेम नहीं है,
उसके दिमाग में गशर्त बहुत ितरनाक हो जाता है। क्योंदक अके ला गशर्त चहंसक हो जाएगा। अके ले गशर्त की
जो सोचने की तरकीब है, वह बहुत वायलेंट है।
शमशलटरी में जाओ, वहां आिशमयों का नाम नहीं होता, नंबर होता है, ग्यारह नंबर का आिमी, गशर्त
का उपयोग कर रहे हैं वो। अब ग्यारह नंबर का जो आिमी है, अगर उसका नाम कु छ हो, राम हो, कृ ष्र् हो,
मोहम्मि हो, कु छ हो, तो उस आिमी की मां होगी, जो घर रास्ता िे ि रही है, अपने बेटे का युद्ध से लौट आने
के शलए; उसकी पत्नी होगी, जो रात-रात भर नहीं सोती होगी, तड़पती होगी दक पता नहीं उसका पशत वापस
लौटेगा दक नहीं लौटेगा? उसके बेटे होंगे, उसकी बशच्चयां होंगी, जो रोज सुबह स्कू ल उिास जाते होंगे, दक
उनका बाप युद्ध के मैिान पर गया हुआ है, लौटने का कोई पता नहीं है। उसके शमत्र होंगे, शप्रयजन होंगे। लेदकन
उसका नाम रि दिया गया ग्यारह नंबर। अब ग्यारह नंबर की कोई मां होती है दक ग्यारह नंबर की कोई पत्नी
होती है? बता सकते हो, ग्यारह नंबर की पत्नी का दकतना नंबर होता है? वह आिमी मर जाएगा, तो शमशलटरी
के गजट में छपेगा दक ग्यारह नंबर शगर गया। ग्यारह नंबर मर गया। जब तुम पढ़ोगे अिबार में दक ग्यारह नंबर
मर गया, तो कहीं चोट लगती है हृिय में? कोई चोट नहीं लगती है। ग्यारह नंबर मर गया, मर गया होगा,
नंबरों का क्या है। गशर्त सब्स्टीट्यूट बना रहे हो, वह प्रेम का, यंत्र को जगह िे रहे हो, आिशमयत की। न प्रेम
शसिाया जा रहा है, न ध्यान शसिाया जा रहा है, न क्रोध पर संयम शसिाया जा रहा है, न भीतर के जगत की
भी भूगोल है, भीतर के जगत का भी बड़ा शवस्तार है, उसमें कोई गशत नहीं िी जा रही। और शसिाया क्या जा
रहा है? शसिाया जा रहा है रटम्बकटू कहां है? सहारा रे शगस्तान कहां हैं? भाड़ में जाने िो सहारा को, आिमी
सहारा हुआ जा रहा है। सब रे शगस्तान हुआ जा रहा है। क्या दफजूल की बातें शसिा रहे हो? नहीं मैं कहता हं
भूगोल व्यथा है, भूगोल शसिाओ थोड़ा-बहुत, भूगोल जानना जरूरी है, लोग बहुत भूगोल जाने यह भी जरूरी
है, कु छ को भूगोल भी आनंि हो सकता है, वो पूरी चजंिगी भूगोल जानें, यह भी जरूरी है। लेदकन आिमी की
शजिं गी में जो बहुत आधारभूत है, उसकी कोई दफकर नहीं। शजससे चजंिगी बनती है, उसकी कोई दफकर नहीं।

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चौबीस साल का लड़का शनकलता है, िुशनया में आता है, वापस उसके पास कु छ भी नहीं है, मूकयवान कु छ भी
नहीं है। कोई वैकयू नहीं है। हां, उसके पास सर्टादफके ट्स हैं, कागज के । शजसमें दकसी वाइस चांसलर ने िस्तित
करके िे दिया है दक ये आिमी कै रे क्टर का है। और वाइस चांसलर के िुि के कै रे क्टर का िुि का कोई रठकाना
नहीं है। ये कै रे क्टर लेकर तुम िुशनया में लेकर िड़े होओगे, चररत्रहीन लोगों के प्रमार् पत्र लेकर िुशनया में
घूमना, फें क िे ना, जला िे ना, मत ले जाना चररत्र का सर्टादफके ट दकसी से। क्योंदक शजनसे हम चररत्र का
सर्टादफके ट मांगे, उनके पास चररत्र नहीं है। और चररत्र उनके पास हो तो वाइस चांसलर होना बहुत मुशश्कल
है, यह भी ध्यान रिना। क्योंदक चररत्रहीन िुशनया में शसफा चररत्रहीन सीदढ़यां पार कर सकते हैं। चररत्रवान के
शलए कोई रास्ता नहीं है।
ये सर्टादफके ट्स हैं, या मैं बी.ए. पास हं, या एम.ए. पास हं, ये लेकर तुम शजिं गी में जाओगे, ठीक है एक
िफ्तर में नौकरी शमलेगी। एक फै क्ट्री में काम करोगे, एक िुकान चला लोगे, एक स्कू ल में मास्टर हो जाओगे।
लेदकन ये आजीशवकाएं हैं, जीवन नहीं है। ये शलचवंग नहीं है, शसफा शलचवंग के उपाय हैं। ये रोटी-रोजी कमाने का
माध्यम हैं, इसका चजंिगी से कोई बहुत गहरा संबंध नहीं है। तो सारी शिक्षा शसफा रोटी-रोजी कमाने के योग्य
बनाती है? और इस शिक्षा को हम शिक्षा कह िे ते हैं। रोटी-रोजी अशिशक्षत को भी शमल जाती है। रोटी-रोजी
जानवरों को भी शमल जाती है, पिु-पशक्षयों को, पौधों को भी शमल जाती है। रोटी-रोजी ही कमाने योग्य अगर
मनुष्य बन जाता है, तो ये कोई बड़ी गुर्वत्ता न हुई, यह कोई मनुष्यता की बहुत ऊंचाई न हुई। यह कु छ
उपलशब्ध न हुई और हमारी सारी शिक्षा इसके आगे कहीं भी नहीं ले जाती। तो इसको कै से इस शिक्षा को
सम्यक कहा जा सकता है? जीवन में जो भी श्रेष्ठतम है, वह शसकु ड़ जाता है, फै लता नहीं है, शिशक्षत आिमी का।
एक अशिशक्षत आिमी ज्यािा प्रेमपूर्ा शमल सकता है, एक शिशक्षत आिमी का प्रेम और शसकु ड़ जाता है। क्योंदक
वह कु छ तरकीबें सीि लेता है और उन तरकीबों को चलाने के शलए जरूरी है दक प्रेम कम हो। नहीं तो उन
तरकीबों को चलाना बहुत मुशश्कल हो जाएगा। वह कु छ तरकीबें सीि कर लौटा है, रुपये कमाने की, लोगों का
गला घोटने की, लोगों की जेब में हाथ िालने की, वह सब तरकीबें सीि कर लौटा है। उन तरकीबों को चलाना
और प्रेमपूर्ा होना, िोनों साथ-साथ नहीं चल सकता। तो प्रेम को शसकोड़ना पड़ता है। वह तरकीबें सीि कर
लौटा है दक असत्य जीतता है। हालांदक दकताबों में भी यही शलिा हुआ है दक सत्य जीतता है। अब तक सत्य
जीतता हुआ दििाई नहीं पड़ता। अब तक तो ऐसा लगता है दक सत्य रोज-रोज हारता है। फांसी पर लटकता है,
सूली पर चढ़ता है, भूिा मरता है, सजाएं काटता है, अपमान झेलता है; सत्य अभी तक नहीं जीत पाया। शसफा
दकताबों में शलिा है दक सत्य जीतता है। असत्य जीतता है, यह बच्चा युशनवर्साटी से सीि कर लौटता है। असत्य
जीतता है।
चजंिगी का वहां जो अनुभव है, युशनवर्साटी का, शवश्वशवद्यालय का, वहां से सीि कर लौटता है दक
असत्यमेव जयते। और अगर असत्यमेव जयते, यह सूत्र समझ में आ जाए तो इसका उपयोग कभी मत करना,
कहना हमेिा "सत्य मेव जयते" वह भी एक असत्य है। कहना वही तो ही जीत सकोगे। अगर असत्य की िुकान
िोलो तो बड़े-बड़े अक्षर ऊपर शलिना, सत्य यहां शबकता है, तो असत्य शबके गा। नहीं तो असत्य भी नहीं शबक
सकता। िे िा होगा न, जहां-जहां अिुद्ध घी शबकता है, वहां-वहां शलिा है, िुद्ध घी शबकता है। अगर िुद्ध ही
शबकता हो, तो िुद्ध घी शलिने की जरूरत है? दकसी से अशभनेता प्रेम करता है, तो कहता है शबककु ल िुद्ध प्रेम
कर रहा हं। िुद्ध प्रेम भी होता है? प्रेम होता है या नहीं होता, िुद्ध प्रेम भी कहीं सुना है। लेदकन शजस िुशनया में
सब अिुद्ध हो गया हो, वहां िुद्ध का लेबल हर चीज पर लगाना जरूरी है। तो यहां पूरी शिक्षा की िुशनया में

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असत्य को जीतते िे िकर, बेईमानी को जीतते िे िकर, अिुभ को जीतते िे िकर, चालाकी को जीतते िे ि कर,
पािंि को जीतते िे ि कर एक बच्चा लौटता है। हम कहते हैं ये शिशक्षत होकर लौट आया। इस बच्चे की िुशनया
जो बनेगी वह िुशनया कै से िांशत की, प्रेम की, अचहंसा की, सत्य की, परमात्मा की िुशनया होगी? यह समाज
कै से परमात्मा का मंदिर बनेगा? तो मैं कहता हं दक यह शिक्षा िूसरी जगह गलत है। और वह िूसरी जगह गलत
यह है दक जीवन शसिाती ही नहीं। और जीवन के शसिाने का जो सबसे रहस्यपूर्ा और सबसे महत्वपूर्ा, और
आधारभूत अंग है, वह है जीवन का रस शसिाना, जीवन का आनंि शसिाना, जीवन की उत्फु कलता शसिानी।
कोई दफकर नहीं दक एक सर्टादफके ट कम रह जाए, कोई दफकर नहीं दक एक शिग्री नाम के पीछे कम लगाने को
शमले, लेदकन अगर मुस्कु राते हुए ओंठ हों, हंसता हुआ हृिय हो, आनंि से नाचते हुए पैर हों तो तुम चजंिगी को
जीत लोगे, पा लोगे, जान लोगे। और िुशनया में शजतना रसपूर्ा व्यशि होगा, उतने ही युद्ध कम हो जाएंगे
क्योंदक तुम्हें पता होना चाशहए, वॉसा ऑर बांि आउट ऑफ बोिाम। युद्ध हमेिा बोिाम से पैिा होते हैं।
तुम्हें पता होगा दक अभी चहंिुस्तान और पादकस्तान की लड़ाई चलती थी, तब तुमने लोगों के चेहरे िे िे?
तब तुमने लोगों को िे िा दक जो सात-आठ बजे, नौ बजे उठते थे, वो पांच बजे उठ कर पूछने लगते हैं, अिबार
कहां है? रे शियो िोलने लगते, चमक िे िी, लोगों की चाल में गशत िे िी, ऐसा उत्साह मालूम पड़ता था। दकतने
लोग िुि से मालूम पड़ते थे, दक कु छ हो रहा है। चजंिगी बेकार नहीं है, ऐसे सुबह उठे , सांझ सोए ऐसा नहीं,
कु छ हो रहा है, कु छ घटना घट रही है। चजंिगी में कु छ हैपचनंग मालूम हो रही है, दक कु छ हो रहा है। चजंिगी
एक ररपीटेरटव बोिाम नहीं है, एक उिास चक्कर नहीं है, दक वही सुबह उठ आए, वही सांझ सो गए; कु छ हो
रहा है, कु छ नया। युद्ध के वि में, िो महायुद्धों में पशिम के मनोवैज्ञाशनक चदकत रह गए, पहले महायुद्ध में,
चार-पांच साल जब युद्ध चला, तो एक अिभुत घटना अनुभव में आई। वह अिभुत घटना यह थी दक उन पांच
सालों में यूरोप में हत्याएं कम हुईं, आत्महत्याएं कम हुईं, िकै शतयां कम पड़ीं, चोरी कम हुईं। मनोवैज्ञाशनक
चदकत रह गए दक युद्ध से इन चीजों के शगराव का क्या संबंध हो सकता है? यह कभी सोचा भी नहीं गया था।
यह मसला उलझ गया, यह पहेली बन गई, दक इन पांच सालों में ये सारे पाप नीचे क्यों शगर गए?
दफर िूसरा महायुद्ध हुआ और हैरानी हो गई। िूसरा महायुद्ध और बड़ा था, पहले महायुद्ध में साढ़े तीन
करोड़ लोग मरे थे, िूसरे में साढ़े सात करोड़ लोग मरे । िूसरे महायुद्ध में हत्याएं, आत्महत्याएं, चारी, िकै शतयां,
अपराध, मुकिमें और भी नीचे शगर गए। तब एक तथ्य ियाल में आया दक ऐसा मालूम पड़ता है, दक लोग इतने
उिास, इतने ऊबे हुए होते हैं, दक कु छ करने का जी चाहता है और आिमी कु छ गलत कर लेता है। और जब तब
युद्ध चलता है तो लोग इतने प्रफु शकलत होते हैं, इतने आनंदित होते हैं दक कु छ गलत करने का जी नहीं चाहता।
और यह भी समझ में आया दक जब होलसेल गलती हो रही हो, तो दफर प्राइवेट करने की जरूरत क्या है? जब
सामूशहक रूप से पागल हो गए हों लोग, तो अलग-अलग प्राइवेट होने की क्या जरूरत है, पागल। यह भी जान
कर हैरान होओगे, िोनों महायुद्धों में उन क्षर्ों में लोग कम पागल हुए, शजतने आमतौर से होते हैं। इसका
मतलब यह है दक युद्ध लाता है हमारे चारों तरफ दकसी तरह की ताजगी, कोई नई बात। और पुरानी ऊबी हुई
शजिं गी मस्त हो जाती है। अगर िुशनया से युद्ध शमटाने हैं तो आिमी को इतना मस्त बनाओ दक उसकी चजंिगी
मस्त हो, तादक वह ऊबे न, तादक वह ऊ बे न तो गलत चीजों में न जाए, अब सारे शिक्षक समझाते हैं, गुरु
समझाते हैं, साधु-संन्यासी समझाते हैं दक लोग क्यों शिटेशक्टव दफकम क्यों िे िते हैं, नहीं िे िनी चाशहए। िे िेंगे
लोग क्योंदक चजंिगी में कोई रस नहीं है, वहां थोड़ी पुलक, शथर पैिा हो जाती है।

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एक आिमी, एक हत्यारा लगा हुआ है, कार िौड़ा रहा है, एक सौ बीस मील की रफ्तार से दकसी के
पीछे। तुम्हारा हृिय भी जोर से धड़कने लगता है, तुम भी उस गाड़ी में सवार हो गए हो अंजाने। मोड़ आ रहे हैं
तेज और झटके से गाड़ी मुड़ रही दक जरा में पहाड़ के नीचे शगरे गी और घाटी में उतर जाएगी। शिल पैिा हो
गई, तुम भी उठ आए हो, िे िा रीढ़ ऊंची उठ जाएगी कु सी पर। हॉल में िे िना दक सब आिमी सजग हो गए हैं
कोई आिमी रटका हुआ नहीं बैठा है। तुम्हारी रीढ़ क्यों सीधी हो रही है? कोई गाड़ी में तेजी से जा रहा है।
आइिेंरटदफके िन हो रहा है, तुमने अपने को इकट्ठा कर शलया, तुम पाटा के शहस्से हो गए हो। गोली चल रही है।
तुमने िे िा रास्ते पर कोई झगड़ा चल रहा हो, और तुम परीक्षा ही िे ने जा रहे हो, तो भी तबीयत होती
है, िड़ी करो साइदकल, पहले िे ि लो झगड़ा। परीक्षा-वरीक्षा गौर् है। भीड़ लगाए हैं लोग। िड़े हैं, उसमें तुम
शिशक्षत आिमी िे िोगे, अशिशक्षत आिमी िे िोगे। एम पी, एम एल ए वहीं िड़े िे िोगे। क्या रस आ रहा है? िो
आिमी एक-िूसरे के कपड़े फाड़ रहे हैं, या गिा न को िबा रहे हैं, तुम्हें क्या रस आ रहा है? चजंिगी इतनी ऊ बी
हुई है दक कु छ नया हो रहा है, िे ि रहे हैं।
अमरीका में अभी उन्होंने एक नया िेल ईजाि दकया है, जो िायि अब तक के िावों में सबसे ितरनाक
है। एक नया िेल, सड़कों पर कारों को िौड़ाते हैं, िो कारों को िौड़ाते हैं िोनों तरफ से। एक लकीर रास्ते में
िालते हैं, शजस पर िोनों तरफ से आती हुई कार का एक-एक पशहया होता है। इस तरफ से आने वाली का कार
का बायां पशहया, उस तरफ से आने वाली कार का िायां पशहया। एक लकीर पर। िोनों गाशड़यों िौड़ रही हैं,
सवा सौ मील की रफ्तार पर, कौन पहले नीचे गाड़ी उतार लेता है, वह हार जाएगा, इस पर िाव लगा है लाि
िॉलर का। िोनों गाशड़यां आ रही हैं, एक सौ पच्चीस मील की रफ्तार है, िोनों के चक्के एक ही लकीर पर हैं। एक
सेकेंि में ितरा है, और जान ित्म हो जाएगी। गाशड़यां आग लग जाएंगी। कौन उतारता है पहले गाड़ी को नीचे
वह हार गया। लािों लोग िे ि रहे हैं। श्वासे रुक गई हैं, हृिय ठहरा हुआ है। क्या पागलपन है, क्या कर रहे हो
ये, दकसशलए?
स्पेन में जाओ तो वहां आिशमयों को बैलों से लड़ा रहे हैं। लािों लोग िे ि रहे हैं। एक आिमी की छाती में
सांि के सींग घुस रहे हैं, और लािों आिमी सांस रोककर िे ि रहे हैं। क्या हो गया है इस आिमी को? यह क्या
कर रहे हो? यह आिमी का सारा जीवन रसहीन है। इस रसहीन जीवन में हमें रस के गलत रास्ते पैिा करने
पड़ते हैं। रसपूर्ा बनाओ जीवन को, तो िूसरा सूत्र कहना चाहता हं दक हमारी शिक्षा रसपूर्ा हो। नाचती हो,
गाती हो, प्रफु शकलत हो, स्वतंत्रता हो, सहजता हो, स्वचछंिता हो, चजंिगी एक बंधन न हो; पच्चीस वर्ा में जब
एक युवक युशनवर्साटी से लौटे तो नाचता हुआ, एक जानिार आिमी हो। तो उसकी चजंिगी में बोरिम नहीं
होगी, ऊ ब नहीं होगी, उिासी नहीं होगी, वह एक अचछी िुशनया बनाएगा, जो िुशनया भी नाचती हुई, हंसती
हुई, िुि िुशनया होगी। उसे प्रेम िो, उसे संगीत िो, उसके हृिय को करुर्ा िो, िया िो; और हम िे रहे हैं चहंसा,
हम िे रहे हैं प्रशतस्पधाा, हम िे रहे हैं काशम्पटीिन, हम िे रहे हैं कं पेरीजन, हम जला रहे हैं उसके भीतर ईष्याा
की आग, पैिा कर रहे हैं अहंकार; और कह रहे हैं दक हम शिक्षा िे रहे हैं। नहीं यह शिक्षा असफल हो चुकी। एक
नई शिक्षा चाशहए एक नये मनुष्य को पैिा करने के शलए।
ये िो छोटे से सूत्र मैंने कहे, और बहुत सूत्र होंगे, वे मैं दफर कभी आऊं तो बात करूं। इन िोनों सूत्रों को
इतनी िांशत और प्रेम से सुना, उससे बहुत-बहुत अनुगृहीत हं। और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रर्ाम
करता हं। मेरे प्रर्ाम स्वीकार करे ।

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सम्यक शिक्षा
पांचवां प्रवचन

शिक्षा और शवज्ञान

(प्रश्न का ध्वशन-मुद्रर् स्पि नहीं। )

पहला प्रश्न जो है... दक बाबत। संभव है यह बात। क्योंदक मन की क्षमता है दक समय और िूरी को पार
करके अनुभव दकए जा सकें । लेदकन मन की ही क्षमता है, आत्मा से इसका कोई संबंध नहीं। तो तीन बातें समझ
लें एक तो िरीर की क्षमताएं वे शवकशसत की जाएं, तो एक आिमी राममूर्ता बन जाए। चेतना और आनंि की
बात भी आपसे शभन्न नहीं हैं। शसफा फे फड़ों में जो शछपी हुई िशि है, वे उसको अगर पूरी तरह चेंज दकया जाए,
तो राममूर्ता अपनी छाती पर हाथी को िड़ा कर लें। छाती आपके पास भी वही है। लेदकन छाती की दकतनी
संभावना है, उसका अभ्यास आपके पास नहीं है। ठीक ऐसे ही मन की क्षमताएं हैं, मन की क्षमताओं का भी
अभ्यास दकया जाए, तो आप बहुत से चमत्कारी पररर्ाम उपलब्ध कर लेते हैं। ये सब क्षमताएं आपके मन की
भी हैं। लेदकन उनके भी अभ्यास की जरूरत है।
तो अब तक जो वैज्ञाशनक िशि जो है, दक िूरी, या स्थान या समय मन के शलए बाधा नहीं है। और अभी
रूस में और अमरीका में, रोमाशनया में, युगोस्लाशवया में सारे मुककों में वैज्ञाशनक साथ चलते हैं। और वैज्ञाशनक
िोध के शलए बड़े से बड़ा कारर् यही रहा है, दक जैसे ही वो अंतररक्ष में यात्री को भेजेंगे, तो शसफा यंत्रों पर
शनभार नहीं रहा जा सकता, क्योंदक यंत्र दकसी भी क्षर् िराब हो सकते हैं। अगर रे शियेटर िराब हो जाता है,
अंतररक्ष याशत्रयों की कोई भी िबर कभी भी नहीं शमलेगी। वे जीशवत हैं, मर गए, कहां गए, क्या हुआ? अनंत
में िो जाएंगे। तो एक अकटरनेट कम्युशनके िन की जरूरत है दक दकसी भी क्षर् अगर रे शियो यंत्र काम न करे , तो
हमारे पास कु छ और व्यवस्था होनी चाशहए जो कम से कम इतनी िबर िे सके दक रे शियो यंत्र िराब हो गए हैं।
इतनी िबर िे सकें दक कहां है यात्री; क्या घरटत हो रहा है? इसशलए रूस और अमेररका िोनों के वैज्ञाशनक मन
की टैलीपैशथक क्षमता पर बहुत िोज में लगे हैं। पहली िफा उनकी उत्सुकता मन की टैलीपैथी के बाबत बढ़ी है,
क्योंदक अब वही एक अकटरनेट इं तजाम हो सकता है। क्योंदक िूसरा कोई भी इं तजाम यंत्र का ही होगा। और
वह सभी रे शियो यंत्र पर शनभार होगा। अगर रे शियो यंत्र िराब हो जाता है, तो िबर, संचार की दफर कोई
व्यवस्था नहीं है। तो क्या हम मन से िबर भेज सकते हैं, शबना दकसी यंत्र के इस शचतां में वे लीन हैं। और जो
पररर्ाम आए हैं वे बहुत... हैं, िबरें भेजी जा सकती हैं। और बड़े आिया की यह बात है दक रे शियो यंत्र से
ज्यािा सुशनशित िबरें भेजी जा सकती हैं। और रे शियो यंत्र की बजाय ज्यािा शनभार रहा जा सकता है। लेदकन
सब व्यशियों के अध्ययन करने की बात है। सब व्यशियों को अध्ययन करने की बात है। अक्सर तो ऐसा होता है
दक कु छ लोग संयोशगक रूप से शवकशसत हो जाते हैं। िीशमक्सन है, यह संयोशगक शवकास है। अचानक दकसी
क्षर् में कोई जागरूक हो जाता है, उसके पास यह क्षमता है। लेदकन उस पर शनभार नहीं रहा जा सकता। क्योंदक
शवज्ञान तो शनभार तब हो सकता है, जब यह प्रशिशक्षत हो सके । तो रूस ने इस प्रशिक्षर् के काम दकए हैं। और
ऐसे लोगों को प्रशिशक्षत दकया, शजनको जीवन में कभी ख्याल ही नहीं था दक उनके पास ऐसी क्षमता हो सकती
है। और अब िूरसंचार भेजा जा सकता है। अगर रे शियो यंत्र अगर नब्बे प्रशतित पररर्ाम िे ता है, जो शपचानवे
प्रशतित पररर्ाम टैलीपैथी िे िे ती है। तो िीशमक्सन जो भी कर रही है, वह शबककु ल संभव है। उसमें कोई

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अड़चन नहीं है। और इस तरह के इस समय पृथ्वी पर कम से कम पचास लोग हैं। तो बहुत तरह की मन की
संभावनाओं से भरे हुए हैं।
जैसे अमेररका में ही और व्यशि हैं। एक व्यशि है जो न के वल मन से सांसाररक संबंशधत हो जाता है,
बशकक आंिों में शचत्र भी उपलब्ध कर लेता है। और उसकी आंिों के फोटोग्राफ भी शलए गए हैं। अगर वह
अमेररका में बैठ कर ताजमहल के बाबत चचंतन करता है, तो ताजमहल का शचत्र उसकी आंि में आ जाता है।
और वह शचत्र आंि में ही नहीं आ जाता, वह उसको अनुभव होता है, उसका फोटोग्रादफक शचत्र भी शलया जा
सकता है। यह भी मन की िूसरी क्षमता है। अगर मन रे शियो की तरह काम कर सकता है, तो टी.बी. की तरह
भी काम कर सकता है। लेदकन मेरा कोई संबंध ने तो के वल िरीर की िशियों से हैं और न मन की और मैं
मानता हं दक वे िोनो ही बौशद्धक हैं और उनका कोई आध्याशत्मक मूकय नहीं है। चमत्कार घरटत हो सकते हैं,
लेदकन ये चमत्कार इसीशलए मालूम पड़ते हैं दक उनके भीतरी शनयमों का हमें कोई पता नहीं है। अन्यथा इस
जगत में कोई भी चमत्कार नहीं है। और वह चमत्कार हो सकता है। चमत्कार का एक ही अथा है दक उसके
भीतर काम करने वाले शनयम अभी तक ज्ञान के क्षेत्र में प्रकट नहीं हो सके हैं। चमत्कार का अथा है हमारा
अज्ञान। और चमत्कार का कोई भी अथा नहीं है। शजस दिन भी शनयम व्यवशस्थत ज्ञात हो जाते हैं, उसी दिन
चमत्कार लीन हो जाते हैं। और मैं मानता हं दक रूस और अमेररका िोनों ही और शविेर्कर रूस, क्योंदक रूस
की तो कोई धारर्ा ही नहीं है दक भीतर कोई चमत्कारी संभावना है। सभी कु छ शनयमगत और प्राकृ शतक है। तो
बहुत िीघ्र इन सारी चीजों के शनयम ज्ञात हो जाएंगे और मेरी समझ यह है दक इस सिी के पूरे होते-होते जैसे
हम और चीजों के भी प्रशिक्षर् िे ते हैं, ठीक हम टैलीपैथी के शलए प्रशिक्षर् िे सकें गे। िे ना ही पड़ेगा। क्योंदक
अंतररक्ष की यात्रा के बाि साधारर् आिमी के पास जो मन है, उससे काम नहीं चलेगा। जब हम अनंत के
शवस्तार में प्रवेि कर रहे हैं तो हमारे पास अनंत में प्रवेि करने योग्य सक्षम मन भी चाशहए। शसफा यंत्रों से काम
नहीं होगा। तो मेरे शलए यह और भी मूकयवान है दक चांि पर आिमी जा रहा है, मंगल पर जाएगा। चांि और
मंगल का मेरे शलए मूकय नहीं है, मेरे शलए मूकय है दक चांि और मंगल पर जाने के शलए उसे चेतना के भी नये
आयामों में प्रवेि करना पड़ेगा। जैसे ही हम तकनीकी िृशि से एक चीज में आगे बढ़ते हैं, वैसे ही हमें चेतना में
भी उतना ही आगे बढ़ना पड़ता है। अन्यथा तकनीक में हम ज्यािा आगे नहीं जा सकते। जैसे एटम बम है, मैं
मानता हं दक यह बहुत ही सुिि िोज है, क्योंदक एटम बम के बाि आिमी को अब पुराने ढंग की बेवकू दफयां
छोड़नी पड़ेंगी, या बचेगा नहीं। एटम बम के साथ ही आपको एक जाग्रत चेतना शवकशसत करनी पड़ेगी, राष्ट्रीय
चेतना अब काम नहीं कर सकती है, क्योंदक राष्ट्रीय चेतना शभन्न साधनों से काम करती थी, वे साधन िो कौड़ी
के हो गए। अब जो साधन आपके हाथ में हैं उनके शलए पूरी पृथ्वी उपयोगी है। अब आप छोटे मन से काम नहीं
कर सकते। या आिमी को शमटना पड़ेगा। और आिमी शमटने को कभी राजी नहीं है। इसशलए बिलने को सिा
राजी हो जाता है। लेदकन मुझे प्रयोजन नहीं है। मेरी उत्सुकता भी नहीं है। मुझे कोई अथा नहीं है दक चांि पर
क्या हो रहा है, कहां क्या हो रहा है? एक ही प्रयोजन और एक ही उत्सुकता है दक अंतरतम में क्या हो रहा है?

प्रश्नाः आपका चचंतन जनता तक क्यों नहीं पहुंचता, आप शसफा पैसे वालें के शलए चचंता और चचंतन करते
हैं?

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इसमें थोड़ी िूर तक सच्चाई है। एक तो मैं मानता हं दक चचंतन जनता तक पहुंच सकता है, शजतना गहन
चचंतन होगा उतने थोड़े लोगों तक पहुंचेगा। शजतना साधारर् चचंतन होगा, उतने ज्यािा लोगों तक पहुंचेगा।
क्योंदक पहुंचने में चचंतन ही मूकयवान नहीं होता, वही अथा वहीं नहीं होता, शजस तक पहुंचना है, वह भी
अथावान है। तो अगर चचंतन में बहुत गहराइयां हों तो आम जनता तक उसे नहीं पहुंचाया जा सकता। आम
जनता का मतलब ही यही है, दक जो बहुत सतह पर जी रही है, और शजसे गहराई तक के सवाल नहीं पहुंचाए
जा सकते। लेदकन मैं मानता भी नहीं हं दक पहुंचाने जरूरी हैं। क्योंदक इस जगत को जो, शजसे समझ लें आप
चचंतन करते हैं तो आपके मशस्तष्क में होता है, पैरों तक नहीं पहुंचता, पहुंचाने की जरूरत भी नहीं है। अगर
मशस्तष्क सदक्रय हो जाता है, तो पैर उसका अनुगमन करते हैं। शजसको हम आम जनता कहते हैं, वह कभी भी
दकसी चीज में अग्रर्ी नहीं होती, हो भी नहीं सकती। समाज के पास भी एक मशस्तष्क है, वही अग्रर्ी होता है।
िेर् समाज पीछे चलता है। शजन क्रांशतयों को हम जनता की क्रांशत कहते हैं, वे भी व्यशियों से अनुप्राशर्त होती
हैं। तो माक्सा का चचंतन, जनता का चचंतन नहीं है। माक्सा को बैठ कर शब्ररटि म्यूशजयम की लाइब्रेरी में चौबीस
घंटें मेहनत में लगा हुआ है। और माक्सा जनता तक पहुंचा भी नहीं सका अपने जीवन में कु छ भी। पहुंचा भी
नहीं सकता। लेदकन इं टेशलजेंस... एक समझिार वगा को उसने पकड़ शलया, वहां तक बात पहुंच गई, वह
मशस्तष्क है। एक िफा वह अनुप्राशर्त होता है और चल पड़ता है, तो जनता पीछे चलती है। मेरे शलए जनता का
बहुत मूकय नहीं है। मूकय ही नहीं मेरे मन में। मेरे शलए मूकय ही समाज के भीतर जो, बुशद्ध है उसका मूल्य है।
अगर उसको अनुप्राशर्त दकया जा सकता है, तो जनता पीछे चल पड़ती है। जनता को सीधे अनुगमन करने का
कोई भी उपाय नहीं है, एक बात।
िूसरी बात यह भी थोड़ी िूर तक सत्य है दक धशनक वगा मेरे शनकट इकट्ठा होगा। इसे भी थोड़ा समझ
लेना चाशहए। जीवन जो हैं संयुि है। धन एकांगी घटना नहीं है। जहां धन है वहां शिक्षा भी ज्यािा होगी। जहां
धन है, वहां समझ भी ज्यािा होगी; तुलनात्मक जहां धन है वहां समझ भी ज्यािा होगी, शिक्षा भी ज्यािा
होगी, जहां धन है वहां सुशवधा भी ज्यािा होगी; जहां धन है वहां समझने के शलए आकांक्षा भी ज्यािा होगी।
उसका कारर् है क्योंदक समझ को मैं लग्जरी मानता हं। समझ गरीब आिमी का काम नहीं है। ही कै न नॉट बी
अफटेि। समझ समग्र जीवन की सबसे अशधक शवलासपूर्ा अवस्था है। तो समझ का जो फू ल है, वह शवलास में
शिलता है। बुद्ध हों या महावीर, ये सब शवलास के फू ल हैं। अगर एथेंस में प्लेटो और साक्रेटीज, और अरस्तू पैिा
हुए तो वे सब लक्जुररयस एथेन, शवलास के शििर हैं। अगर भारत ने भी िुशनया को िीर्ा चंतन दिया, तो वह
उसी समय दिया, जब भारत िररद्र नहीं था। और उसके स्वर्ा शििर पर उसकी ऊं चाई थी। आज तक िुशनया
में कोई िररद्र समाज कोई गहरा चचंतन नहीं िे सका। िे नहीं सकता। समृशद्ध जो है, समृशद्ध का मतलब इतना है
दक अब िरीर की आम जरूरतों से छु टकारा हुआ। अब आपकी चेतना दकन्हीं शभन्न आयामों में प्रवेि करने के
शलए छू टती है। शवलास का मतलब ही इतना है दक अब आप कला में, संगीत में, साशहत्य में, धमा में, ध्यान में
रस ले सकते हैं।
गरीब आिमी का मतलब क्या है? गरीब आिमी का मतलब इतना है दक अभी उसकी िरीर की भी
जरूरतों को पूरा करने की सुशवधा उसके पास नहीं है। शजसके पास सुशवधा िरीर की जरूरतों को पूरा करने की
नहीं है, उसके पास मन की जरूरतें पैिा भी नहीं होती। और शजसके पास मन की जरूरतें पूरी करने की सुशवधा
नहीं, उसके पास आत्मा की जरूरतें पैिा नहीं होती। ये जरूरतें सीशमत हैं। सबसे पहले जो जरूरी है, वह िरीर
है, जो िरीर को सुशवधा जुटा पाता है, वह मन के आयाम में अतृप्त होने लगता है। जब मन की भी सुशवधा जुट

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जाती है, तो आिमी आत्मा के आयाम में अतृप्त होता है। िरीर की सुशवधा नहीं जुटती है तो आत्मा की बातचीत
असंभव है। या झूठी है। या बहाना है। और उसमें बहुत गहराई नहीं हो सकती। तो मेरे मन में, गरीब का मतलब
ही यह है दक जो गहन चचंतन में प्रवेि नहीं कर सकता। यही तुलनात्मक कह रहा हं। अपार व्यशि हो सकते हैं,
उनका मैं शहसाब नहीं रिता। शवलास के साथ ही आिमी को सुशवधा शमलती है दक अब वह कु छ और भी कर
सकता है। शचत्र पेंट करे , वीर्ा बजाय, ध्यान करे । इसका यह मतलब नहीं है दक मैं यह कह रहा हं दक ये चीजें
दफजूल हैं, अगर एक पौधा हम लगाते हैं तो पहले तो पौधें में जड़ें होती हैं; फू ल तो आशिर में आता है। और फू ल
तब ही आता है जब पौधों के पास सुपरशथनीयस एनजी हो। नहीं तो फू ल नहीं आएगा। अगर पौधा अपने जीवन
को ही बचाने में लगा हुआ है, तो फू ल नहीं आएगा। फू ल तो आएगा तभी जब जीवन के बचाव के बाि िशि
बचती है। तो धमा मेरे शलए फू ल है।
तो मेरी तो मान्यता ही यही है दक धार्माक समाज हो ही तब सकता है जब वह समृद्ध हो। गरीब समाज
धार्माक नहीं हो सकता। और गरीब समाज के शलए मेरी स्वीकृ शत है दक माक्सा ठीक कहता है, दक धमा अफीम
का निा है। गरीब समाज के शलए धमा अफीम का निा है, यह माक्सा ठीक कहता है, मेरे शहसाब से तो दकसी
और कारर् से। यह ठीक ऐसा ही निा है, जैसा भूिा आिमी वीर्ा बजाने में अपने को भुला रहा हो। भुला तो
नहीं सकता, शमटा तो नहीं सकता; थोड़ी-बहुत िे र के शलए गमगीन हो सकता है। न्यून हो सकता है। भूि
शमटेगी नहीं, और बढ़ेगी।
एक मजे की बात है दक जब भी कोई समाज गरीब होता है, तब भी वह धमा में उत्सुक होता है, लेदकन
उसकी उत्सुकता समझने जाएं, और मैं अनुभव से कहता हं, गरीब आिमी मेरे पास आता है, वह कहता है मन में
बड़ी अिांशत है। लेदकन वह गलत िब्िों का प्रयोग कर रहा है। जब मैं उससे पूछता हं क्या अिांशत है? तब वह
कहता है, लड़की की िािी नहीं हो रही है। कोई कहता है दक लड़के को नौकरी नहीं शमली। वह कहता है पत्नी
बीमार है। इनका मन से कोई संबंध नहीं है। ये सब िरीर के तल की अिांशतयां हैं। इनको वह मन की अिांशत
कह रहा है। एक अमीर आिमी मेरे पास आता है, वह कहता है मन में बड़ी अिांशत है, उसकी अिांशत शबककु ल
और है। लड़की की िािी हो गई है, लड़का नौकरी पर है, सब कमाई है, सब ठीक... सब ठीक है। वहां वह गरीब
आिमी का सब गलत है, वहां सब ठीक है। और दफर उसको अनुभव हो रहा है दक कु छ भी ठीक नहीं। तो यह तो
कोई िूसरे तल की अिांशत है। यह मानशसक है। इसशलए यह बड़े मजे की बात है दक गरीब आिमी और गरीब
समाज में मानशसक बीमाररयां नहीं होती, हो नहीं सकती। अमीर समाज में मानशसक बीमाररयां िुरु होती हैं।
गरीब समाज की बीमाररयां िारीररक होती हैं, अमीर समाज की बीमाररयां मानशसक होती हैं। और जब
अमीरी आशिरी ििा में पहुंचती है, तब आशत्मक बीमाररयां िुरु होती हैं, और इलाज तो तभी दकया जा सकता
है, जब बीमारी हो। और मेरी तकलीफ यह है दक आपका मन बीमार नहीं है, मैं आपको नौकरी नहीं दिला
सकता। मैं आपकी लड़की की िािी नहीं करवा सकता, इससे मेरा कोई लेना-िे ना नहीं है। मैं आपके मन को
िांत होने का उपाय जरूर बता सकता हं, लेदकन मन अभी आपका अिांत नहीं है। और जब आप कहते हैं दक
मेरा मन अिांत है, तब आप गलत िब्िों का प्रयोग कर रहे हैं, अभी आपको पता ही नहीं दक मन की अिांशत
क्या है? मन की अिांशत िुरु ही तब होती है, जब िरीर की सारी अिांशत समाप्त हो जाए। नहीं तो मन की
अिांशत िुरु नहीं होती।
तो मेरी तकलीफ यह है दक गरीब आिमी मेरे पास आता है तो मैं अनुभव करता हं दक उसके शलए मैं कु छ
भी नहीं कर सकता। कर नहीं सकने का कारर् है दक वह जो वह कह रहा है, वह उसकी अिांशत नहीं, जो मैं

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कर सकता हं, उससे उसका कोई तालमेल नहीं है। मैं एक अमीर समाज के पक्ष में हं। मैं गरीब समाज के
शबककु ल ही शवरोध में हं। अगर मैं कहता हं, मैं गरीब समाज के शवरोध में हं तो मेरा शवरोध समाजवािी का
शवरोध नहीं है। समाजवािी का शवरोध यह है दक हम अमीर को शवसर्जात कर िें । गरीब को बांट िें । मैं मानता
हं यह समाज को और बड़ी गरीबी ला िे गा। मैं अमीर समाज के पक्ष मे ंंहं, ठीक पूंजीवािी अथा में। मैं चाहता हं
गरीब, गरीब न रह जाए, अमीर हो। और इसशलए चाहता हं तादक एक दिन वह भी मानशसक अिांशत का मजा
ले सके । क्योंदक जो मानशसक अिांशत का मजा लेगा, वही मानशसक िांशत का मजा ले सकता है। और इसशलए
चाहता हं दक एक दिन वह भी आशत्मक रूप से पीशड़त हो सके । क्योंदक जो आशत्मक रूप से पीशड़त होगा, वही
आत्म-साक्षात्कार की तरफ जाएगा। पीड़ा िारीररक है। तो मेरी तकलीफ क्या है? मेरी तकलीफ यह है दक
पीड़ा िारीररक है। और उस िारीररक पीड़ा को िरीर के तल पर शमटाया जाना चाशहए। उसको मन के तल पर
शमटाने का कोई मतलब नहीं होता। उस आिमी को टेक्नालॉजी की जरूरत, धन की जरूरत है, मकान की
जरूरत है। और मेरा मानना यह है दक अब तक वह गरीब इसशलए बना हुआ है दक इस जरूरत को वह ठीक से
नहीं समझ रहा है। वह इसको आध्याशत्मक और मानशसक बातों में समय िराब कर रहा है। गरीब आिमी को
धमा की बात करना शबककु ल अफीम िे ना है। उससे टेक्नालॉजी की बात करनी चाशहए। उसको बताया जाना
चाशहए दक वह धन कै से ज्यािा पैिा करे ? अब रह गया सवाल यह दक क्या मैं गरीब आिमी को बताऊं दक वह
धन कै से ज्यािा पैिा करे ? यह सवाल है। क्योंदक मन कै से उसका िांत हो, यह अभी उसका सवाल नहीं है,
इसशलए जवाब का कोई प्रश्न नहीं उठता। क्या मैं उसको बताऊं दक वह धन कै से ज्यािा पैिा करे ? क्या मैं
उसको बताऊं दक वह कै से समृद्ध हो? क्या मैं उसको बताऊं दक वह कै से िुकान चलाए? इसमें भी मेरी करठनाई
है। क्योंदक मेरा अनुभव यह है दक आिमी जैसा है, आिमी जैसा है, उसको ज्यािा धन िे िो, इसको बड़ा मकान
िे िो तो बड़े मजे की घटना घटती है दक इसके पुराने िुि तो शमट जाते हैं, दफर इसके नये िुि िुरु हो जाते हैं।
िुि नहीं शमटते, शसफा नये तल पर िुि िुरु हो जाते हैं। अगर मनुष्य-जाशत का हम पूरा इशतहास िे िें, तो
हम सिा इस आिा में रहेंगे दक यह चीज हल हो जाए, तो सब हल हो जाएगा। दफर वह हल हो जाती है और
कु छ हल नहीं होता। हजारों बार ऐसे मौके आए, जब हमें लगा दक यह हल हो जाए, तो सब हल हो जाएगा।
लेदकन जब भारत गुलाम था, तो सारे मुकक के समझिार आिशमयों को लगता था दक भारत स्वतंत्र हो जाए, तो
सब हल हो जाए। जैसे सब हल स्वतंत्रता में ही रिा हुआ था। दफर हम स्वतंत्र हो गए, कु छ हल नहीं हुआ। वह
हम बात भी भूल गए, जो हम सोचते थे सब हल हो जाएगा। नये सवाल िड़े हो गए।
अमरीका पहली िफा ठीक से समृद्ध हो गया है। तो अमरीका के तीन सौ वर्ा के या ढाई सौ वर्ा के शजतने
शवचारिील लोग थे, सबकी चेिा का फल दक अमरीका समृद्ध हो गया। पर उन सबने जो सोचा था दक समृशद्ध
से शमलेगा, ऐसा कु छ भी नहीं शमला। और उनमें से एक ने भी नहीं सोचा था, जो शमला। जो शमला है, उनमें से
एक ने नहीं सोचा था दक यह होगा। न फग्युासन ने साचा, न चलंकन ने साचा, न इमसान ने साचा दक शहस्ट्री पैिा
होंगी। तीन सौ वर्ा के अमरीका के चचंतकों ने सोचा दक सबको सावाजशनक शिक्षा होनी चाशहए, सब शिशक्षत हो
जाएंगे तो सब ठीक हो जाएगा। और सब शिशक्षत हो गए, तब पता चला दक ठीक कु छ भी नहीं हुआ, बशकक एक
शिशक्षत आिमी नये उपद्रव पैिा करता है, जो अशिशक्षत ने कभी भी पैिा नहीं दकए। आज इं ग्लैंि में, फ्रांस में,
स्वीिन में चहंिू-मुसलमान का झगड़ा नहीं है। ईसाई-मुसलमान का झगड़ा नहीं है, प्रोटेस्टेंट-कै थोशलक का झगड़ा
नहीं है। वे सब पुराने पड़ गए। शवचारक लोग सोचते थे दक शजन-शजन धमों में झगड़े नहीं रहेंगे, उस दिन बड़ी
िांशत हो जाएगी। लेदकन बड़े बेहिे और नये झगड़े िड़े हो गए।

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अभी मेरे पास िो सन्यासी आए इं ग्लैि से। तो इं ग्लैंि में िो ग्रुप हैं। एक लंबे बाल वाले युवकों का ग्रुप और
शसर घुटे बाल वाले युवकों का ग्रुप। और झगड़े की कु ल जमा दफलासफी इतनी है दक तुम्हारा शसर घुटा नहीं है।
ये जो शसर घुटे वाले युवक हैं, ये लंबे बाल वालों को मारें गे, बाल काटेंगे, चोट करें गे, उनके सामान शमटा िें गे,
हत्याएं हो जाएंगी। ये लड़कों का जो संन्यासी आश्रम था उन्होंने इसको लूट शलया। बड़ी हैरानी हुई, जो मुकिमें
चलते हैं। अिालतों में जो उनके विव्य हैं, वे िे िने लायक हैं। क्योंदक वे यह कहते हैं दक हमें चहंसा में आनंि
आता है। प्रयोजन नहीं है। वे कहते हैं दक कामवासना हमारे शलए बोिाम हो गई, क्यांदक सब सुशवधाएं हो गई,
स्त्री उपलब्ध है। अब शसफा एक चहंसा रही, शजसमें हमें थोड़ी सी... हम दकसी की छाती में जब छु रा भोंकते हैं,
तो क्षर् भर को हमें लगता है दक आनंदित हो गए हैं। इनके बापिािों ने पांच सौ साल में कभी नहीं सोचा था
दक शजस दिन हम इनको सारी सुशवधा जुटा िें गे, और शजस दिन धन होगा, और शजस दिन यह शिक्षा होगी।
उस दिन ये लड़के चहंसा में ऐसा रस लेंगे। हम सबको ियाल है दक आिमी चहंसा इसशलए करता है दक उसके
पास िाने को नहीं है। गलती है आपकी। हमारा ियाल है दक आिमी इसशलए लड़ता है, क्योंदक उसके पास
सुंिर स्त्री नहीं है, गलती है आपकी। आपको अभी उस समाज का पता नहीं, जहां शजसमें सब सुंिर स्त्री उपलब्ध
है, और धन उपलब्ध है, और सब सुशवधा उपलब्ध है। तब आिमी चहंसा बेकारर् कर सकता है, इसका हमें
ख्याल भी नहीं है। तो जैसा मैं िे िता हं, मेरा मानना ऐसा है दक जैसा समाज है, समाज सिा िुिी रहेगा। एक
मेरी धारर्ा है। जैसा समाज है, सिा िुिी रहेगा, िुि के तल बिलेंगे। िुि के आयाम बिलेंगे, िुि के ढंग
बिलेंगे, समाज सिा िुिी रहेगा। समाज कभी भी सुिी नहीं हो सकता। व्यशि सुिी हो सकता है। और व्यशि
के सुि का मतलब उसको आत्म रूपांतरर् करना पड़ेगा, तो वह सुिी होगा है। अगर िुि के कारर् बाहर है,
जैसा दक िो सौ वर्ा का चचंतन है सारी िुशनया का दक िुि के कारर् बाहर हैं। तो िुि के कारर् जहां शमट गए
हैं, वहां सुि आ जाना चाशहए था, वहां सुि नहीं आ सका।
मेरी अपनी िृशि है दक िुि के कारर् बाहर नहीं हैं और यह धमा की सिा की िृशि है। लेदकन अब मैं
मानता हं दक इसके शलए वैज्ञाशनक प्रमार् उपलब्ध हैं, अब तक नहीं थे। बुद्ध ने भी कहा है दक सुि बाहर के
कारर्ों पर शनभार नहीं है। लेदकन बुद्ध इसके शलए प्रमार् नहीं िे सकते थे। लेदकन अब प्रमार् उपलब्ध हैं।
क्योंदक शजन समाजों में बाहर के सब कारर् शमटा दिए गए हैं, वहां िुि घना हो गया है, कम नहीं हुआ। तो मेरे
शलए मूकयवान व्यशि है, समाज नहीं। यही मैं राजनैशतक और धार्माक व्यशि की िृशि का अंतर मानता हं। मेरे
शलए तुम मूकयवान हो, समाज नहीं, क्योंदक तुम भीतर जा सकते हो, समाज भीतर नहीं जा सकता। और अगर
मैं कहता हं, समाज की गरीबी शमटे, तब मैं तुम्हारे भीतर जाने की यात्रा िुरु करूंगा, तो तुम भी शमट जाओगे,
मैं भी शमट जाऊं गा। और समाज तो चलता रहेगा।
तो समाज के नाम पर पोस्टपोंचिंग करने के शलए मैं राजी नहीं हं। तो मेरा मानना जो भी इस शस्थशत में
आयें, जो अंतयाात्रा पर जा सकें वे जाएं। जो नहीं हैं इस शस्थशत में वे अपनी बाहरी तरफ यात्रा पर लगे रहें,
आज नहीं कल जब उनको सुशवधा शमल जाएगी, तब उनको भी अंतयाात्रा पर जाना पड़ेगा। उनमें जो बुशद्धमान
हैं, वो आज भी अंतयाात्रा पर जा सकते हैं। क्योंदक बुशद्ध का मतलब ही इतना है दक वह भशवष्य को भी िे ि पा
सकें । लेदकन गरीब आिमी भी अगर बुशद्धमान है तो अंतयाात्रा पर जा सकता है। अमीर आिमी बुशद्धहीन है, तो
भी अंतयाात्रा पर जा सकता है। क्योंदक उसकी शसचयुएिन उसको भटका िे ती है, गरीब आिमी की शसचुएिन
उसको भटका नहीं िे ती। उसका चचंतन ही भटका िे सकता है। और मेरी उत्सुकता इसमें शबककु ल नहीं है,
सामाशजक रूपांतरर् िुिों को शमटा िे गा, यह शमथ्या पुरानी ककपना है, यह बात समाप्त हो गई है। यह कभी

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नहीं होने वाला। क्योंदक हमने सब करके िे ि शलया, दकयी को लगता था दक शिक्षा नहीं है, इसशलए सब है, तो
शिक्षा हो गई, और िुि बढ़ गए। शिशक्षत समाज ज्यािा िुिी है, अशिशक्षत समाज की बजाय। और अशिशक्षत
समाज अगर िुिी है तो शसफा इसीशलए दक शिशक्षत सुि उठा रहे होंगे। बड़ा मजे का मामला है। बड़ा मजे का
मामला है।
मेरी उत्सुकता नहीं है दक सबको सुि आयें, मेरी उत्सुकता है दक शिशक्षत हों या अशिशक्षत हों, भीतर
जाने की प्रदक्रया उनके ियाल में आए। मैं यह जानता हं दक शिशक्षत को जकिी आ सकती है, इसशलए शिशक्षत हो
जाएं तो अचछा है। लेदकन यह मेरी धारर्ा नहीं दक शिशक्षत होने से उनका िुि शमटने वाला है। न, उससे नहीं
शमटने वाला है। इसशलए मैं सीधा उत्सुक नहीं हं। मैं सीधा उत्सुक नहीं हं। मैं सीधा उत्सुक नहीं हं। क्योंदक मेरी
अपनी समझ यही है दक चाहे जीवन के मूकयों का सवाल हो, चाहे कोई और सवाल हो। एक छोटा सा वगा
नेतृत्व करता है। मैं लोकतांशत्रक नहीं हं। िेमोक्रेरटक मेरी िृशि नहीं है। और मैं मानता हं दक िेमोक्रेसी सौ साल
से ज्यािा िुशनया में नहीं चल सकती। और तभी तक चल सकती है, जब तक पूरी नहीं आ गई। शजस दिन पूरी
आ जाएगी, उस दिन उसकी मूढ़ता आनी दििाई पड़ जाएगी।
करठनाई यह है दक जब तक कोई चीज पूरी न आए, तब तक उसकी मूढ़ता हमें दििाई भी नहीं पड़
सकती। वह पूरी आए तो शजस चीज से हम, जो मौजूि होती है, उससे हम लड़ते हैं, क्योंदक उसकी बुराई
दििाई पड़ती है। जो मौजूि नहीं है, उसके शलए हम लड़ते हैं, क्योंदक उसकी भलाई दििाई पड़ती है। जब वह
पूरी तरह आ जाए, जैसे आज सावाभौम शिक्षा अमरीका में मूिातापूर्ा हो गई है। और बुशद्धमान लड़के
युशनवर्साटी छोड़ कर भाग रहे हैं। शजनका भी आई क्यू थोड़ा ज्यािा है, वे ड्रॉप आउट हो जाते हैं, और शजनका
आई क्यू छोटा है, युशनवर्साटी में पढ़ रहे हैं। शजनके पास बुशद्ध कम है, वो लगे हैं पढ़ने में। शजनके पास बुशद्ध है,
वह युशनवर्साटी के बाहर आ रहे हैं, क्योंदक वह कह रहे हैं दक तुम्हारी युशनवर्साटी से कु छ भी नहीं शमला।
तुम्हारी शिक्षा से कु छ नहीं शमला, वह एक धोिा था। लेदकन यह धोिा तब तक चल सकता था, जब तक शिक्षा
पूरी नहीं हुई, अब वह पूरी हो गई है। अब मुसीबत पता चली तो वह धोिा साशबत हुई, उससे कु छ शमलने
वाला नहीं है। अगर आज लड़के को उसका बाप कह रहा है दक तुम शवश्वशवद्यालय में पढ़ो तो वह लड़का पूछ
रहा है, तुम पढ़े थे, तुम्हें क्या शमला? तुम्हें कु छ शमला हो तो हमें कहो। अब बाप यह नहीं कह सकता दक नौकरी
शमली। क्योंदक नौकरी तो आज अमरीका में गैर पढ़े-शलिे को भी शमलती है। यह गरीब बाप कह सकता है दक
नौकरी शमलेगी, कपड़ा शमलेगा, मकान शमलेगा। आज अमेररका में बाप यह भी नहीं कह सकता दक कपड़ा
शमलेगा, दक मकान शमलेगा, दक नौकरी शमलेगी। यह तो शबना इसके भी शमल सकता है। यह कोई सवाल न
रहा। और लड़का यह कह सकता है दक तुमको कपड़ा शमल गया, मकान शमल गया, कार शमल गई, सब शमल
गया लेदकन चजंिगी कहां है तुम्हारे पास? तुम कु म्हला गए इस सबको पाने में, सड़ गए। न तुमने कभी प्रेम
दकया, न तुमने कभी गीत गया, न तुम नाचे। तो कपड़े तो शमल जायेंगे, ठीक इतने अचछे नहीं शमलेंगे, लेदकन
हम नाचना चाहते हैं। गाना चाहते हैं। प्रेम करना चाहते हैं।
आज अमरीकन लड़का अपने बाप से कह रहा है दक तुम्हारी सारी शिक्षा ने शसवाय युद्धों के और क्या
पैिा दकया है? हम लड़ना नहीं चाहते, हमें प्रेम करना है। आज अमरीका में शहप्पी बोिा लगाए हुए हैं, बी लव
नॉट वॉर। और उसका कहना ठीक है, वह कहता है दक जब तक कोई समाज प्रेम करने में समथा नहीं होगा, तब
तक वह लड़ेगा ही। वह बच नहीं सकता। इसशलए सभी युद्धिोर प्रेम के शिलाफ बोलते होते हैं। अगर सैक्स
सप्रेस दकया जाए, तो ही तुमको लड़वाया जा सकता है, नहीं तो लड़वाया नहीं जा सकता। इसशलए हमेिा

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होता है दक जब भी कोई समाज बहुत पड़ जाता है सेक्स के मामले में, तो दफर जीत नहीं पाता। हार जाता है।
आज अगर अमरीका शवयतनाम में नहीं जीत सकता, तो इसका कारर् है दक शजस सैशनक से वह लड़ रहा है, वह
भूिा है, वह आतुर है, कामवासना से अतृप्त है। और अमरीकन लड़का न भूिा है, न आतुर है, न काम वासना से
अतृप्त है, लड़ने का उसे कोई कारर् नहीं है। तुम हमें जबरिस्ती लड़ा रहे हों, हमारा कोई कारर् नहीं है। कोई
वजह नहीं समझ में आती इसको दक लड़ना दकस शलए है? यह मजे की बात है दक जब भी कोई श्रेष्ठ सभ्यता
दकसी शनकृ ि सभ्यता से लड़ेगी तो शनकृ ि जीत जाएगी और श्रेष्ठ हारे गी। यह भारत का िो हजार साल का
अनुभव है। हम उन सभ्यताओं से हारे , शजनके पास कु छ भी नहीं था। लेदकन भूि थी, वासना थी, काम अतृप्त
था। तो मुगलों ने, तुकों ने हर्ों ने हमें रौंि िाला। हमारे पास लड़ने का कोई कारर् नहीं था। जब भी आपके
पास सब होता है, तब आप चाहते हैं झंझट न हो। अगर सुि नहीं हो तो तब आप चाहते हैं, झंझट हो जाए।
क्योंदक झंझट से िायि कु छ शनकल भी आए, और सिा शनकलता है। सिा शनकलता है। क्योंदक िोने को कु छ
होता नहीं। झंझट से कु छ न कु छ शमलेगा ही, और शमलेगा ही, नहीं शमलेगा तो कु छ िोने वाला नहीं हैं। तो यह
जो तकलीफ है। अब अमरीका शिशक्षत हुआ तब पता चला दक यह शिक्षा तो अब िू ब जाएगी, यह चल नहीं
सकती। अमरीका धनी हुआ तो पता चला दक धन शबककु ल बेकार है। अमेररका टेक्नालॉशजकली आज सिि हो
गया, तो आज अमरीका को लग रहा है दक हमें मिीन से छु टकारा चाशहए। मिीन जान शलए ले रही है। क्योंदक
मिीन धीरे -धीरे आिमी पर कब्जा दकए जा रही है, हमको दििाई नहीं पड़ता, पता भी नहीं चलता, क्योंदक
हम आिी हो जाते हैं। जब आप चौरस्ते से गुजरते हैं और लाइट आपको रास्ता न िे , तो आप चुपचाप िड़े रहते
हैं, आपको ियाल भी नहीं दक मिीन आपको आज्ञा कर रही है। मिीन आज्ञा कर रही है और आप रुके हुए िड़े
हैं। और कहीं ियाल नहीं आ रहा है दक मिीन की गुलामी है। अमरीका को पता चला क्योंदक यह लाइट का ही
मामला नहीं है, चौबीस घंटे सब तरफ से मिीन गुलाम दकए हुए है।
अभी लड़कों ने बढ़ती हुई युशनवर्साटी में िड़े होकर एक कीमती रॉकस रॉयल गाड़ी जलाई, चसंगल
सीटर। वे मिीन से छु टकारा चाहते हैं। कोई चीज जब पूरे पैमाने पर आती है, तब पता चलता है। न्यूयाका में
उन्नीस सौ में बग्गी से, घोड़ा गाड़ी की रफ्तार साढ़े ग्यारह मील थी, और अब कार की रफ्तार साढ़े सात मील है
प्रशत घंटा। और यह अगर पांच साल चला तो, कार की रफ्तार आिमी की पैिल रफ्तार से कम हो जाएगी।
लेदकन यह तब तक आपको पता नहीं चल सकता जब तक कारें पूरी तरह से उपलब्ध न हो जाएं। हमारी
तकलीफ यह है दक कोई भी चीज जब तक पूरी न हो जाए... लोकतंत्र मरे गा, सौ साल से ज्यािा चजंिा नहीं
रह सकता। गरीब मुककों में चजंिा रहेगा, अमीर मुककों में ित्म होगा। ित्म होगा, उसका कारर् है क्योंदक अब
साफ समझ में आना िुरु हुआ दक शजतना तुम नीचे के आिमी से सलाह लेते हो, उतनी नीची सलाहें शमलती हैं।
शमलेगी ही, उसका कोई और उपाय नहीं है। और जब नीचे का आिमी चुनाव करने लगता है, तो ठीक है,
शजनको उसका प्रारं शभक... है उनको चुनता है। इसशलए लोकतंत्र न्यूनतम राजनीशतज्ञ को ऊपर पहुंचाने में
समथा होते जाते हैं। जो शजतना न्यूनतम है, उतना जकिी ऊ पर पहुंच सकता है।
अब मेरी िृशि यह है दक सवाल यह नहीं है दक गरीब को कै से प्रशिशक्षत दकया जाए श्रेष्ठ मूकयों के शलए?
मेरे शलए सवाल यह है दक जो श्रेष्ठ है, उसको कै से प्रशिशक्षत दकया जाए दक वह भीड़ से जगत को बचाए। मेरी
जो प्रॉब्लम है, वह शबककु ल और है। शजसको आप िेमोक्रेसी कहते हैं, वह िेमोक्रेसी नहीं है। वह लोकतंत्र नहीं है,
भीड़तंत्र है। और भीड़ मजबूत होती चली जा रही है, सब तरफ से गिा न कटती जा रही है। और मजे की बात
यह है दक इस गिा न कटने में भीड़ अपना भी नुकसान करे गी। मगर उसको पता भी नहीं चल सकता। उसको

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पता भी नहीं चल सकता। उसको पता भी नहीं चल सकता है। आज भीड़ कहती है दक तुम्हारे पास धन ज्यािा
नहीं होना चाशहए, कल भीड़ कहेगी दक कु छ लोगों के पास बुशद्ध ज्यािा क्यों? क्योंदक धन से क्या शिलाफत है?
धन से यह शिलाफत है, दक शजसके पास धन है, वह मालदकयत करता है। या दफर पढ़ने वाला, शजसके पास
बुशद्ध है, वह मालदकयत करे गा। मालदकयत से करठनाई है। आज नहीं कल भीड़ कहेगी दक आिमी में बुशद्ध
ज्यािा क्यों होनी चाशहए? बुशद्ध का शवतरर् कर िो। अगर कोई बच्चा सौ आई क्यू से ज्यािा है, तो उसको तुम
नीचे लाओगे, क्योंदक वह तल पर होना चाशहए, दकसी के पास ज्यािा बुशद्ध होगी तो वह ितरनाक है।
ितरनाक इसशलए है दक वह अनंतताओं तक पहुंच जाएगा, वहां उसका मैलीपुलेट करे गा। आशिर बचोगे कै से?
रूस ने यह इं तजाम कर शलया है दक अमीर और गरीब को हम नहीं बचने िें गे, शमटा िें गे। लेदकन क्या
फका पड़ता है, आज अमरीका में एक गरीब आिमी शजतनी ऊंचाई पर पहुंच सकता है, न भी पहुंचे तो गरीब रह
कर भी शजतना अमीर होता है, रूस का आिमी उतना अमीर नहीं है। रूस का जो नोबल प्राइज शवनर है,
उसको भी एक प्राइवेट कार शमल जाए तो वह समझता है दक स्वगा शमल गया। रूस का जो, शजसको हम कहें
अमीर वगा, वह अमरीका के गरीब वगा से पीछे है। मगर एक शलहाज से तृप्त है। क्योंदक ईष्याा के शलए मौका नहीं
है दक उनमें कोई अमीर नहीं हैं। गरीब की तृशप्त इसमें नही है दक वह गरीब न रह जाए, उसकी तृशप्त इसमें है दक
कोई अमीर न बन जाए। मगर मजा यह है दक अगर अमीर नहीं रह जाता, तो गरीब की सारी की सारी गशत
बंि हो जाती है, वह अपने हाथ पर कु कहाड़ी मार रहा है। क्योंदक गशत वह आगे का वगा कर रहा है। वह
कु कहाड़ी मार िे ता है।
िूसरा मजे का मामला यह है दक वह जो बुशद्धमान है, वह तो दकसी ने दकसी बात से... जाता है। आिमी
कल गरीब को लगेगा दक बुशद्ध ज्यािा नहीं होनी चाशहए, आिमी कल गरीब को लगेगा दक एक आिमी के पास
सुंिर औरत, िूसरे आिमी के पास कु रूप औरत क्यों होनी चाशहए? ये सवाल अगर लोकतंत्र की पूरी अंतरात्मा
में हम प्रवेि करें , तो वह इस बात का है दक जो एक के पास है वह सबके पास होना चाशहए। इसका एक ही
मतलब हो सकता है दक पररवार न रह जाए, वेश्यालय हों। इसशलए जो प्राथशमक समाजवािी थे, माक्सा से
पहले उनका तो ियाल था दक आज नहीं कल हमें स्त्री सोशियोलाइज करना पड़े... लाइज करना पड़े, क्योंदक
वह बड़ा भारी झगड़ा है। अगर हम आिमी के भीतर घुसें तो िो ही झगड़े हैं, इसको वैज्ञाशनक कहते हैं,
पैररटोररयल और सेक्सुअल। उसकी मालदकयत होनी चाशहए कु छ चीजों पर और उसकी कामवृशत्त होनी
चाशहए। पेट और काम आिमी के िो बुशनयािी उपद्रव हैं। पेट पर तुम समानता लाते हो, तो कल काम पर
समानता लाने िोगे। और ये सारी समानता, इतने जाल पैिा कर िें , और इतने उपद्रव पैिा कर िें , तब तुम पता
चले दक असमानता कै से है? उसके पहले पता नहीं चल सकता।
तो मेरी करठनाई, मेरे शलए सवाल नहीं है दक लोकतंत्र कै से जीते? समाजवाि कै से जीते? मेरे शलए
सवाल यह है दक मनुष्य की चेतना भीड़ से कै से मुि रहे, क्योंदक वही मुि चेतना इस भीड़ को भी सत्य रास्ते
पर ले जा सकती है। तो मेरा काम तो बुशनयािी रूप से पि की शगनती है। इसशलए जो मुझे समझते हैं, वे भला
गलत अथा भी लेते हों, लेदकन मेरा काम ही शगने हुए थोड़े से लोगों के शलए है। मेरी उत्सुकता भी नहीं है। मेरी
उत्सुकता भी नहीं है आम में। और यह मेरी वृशत्त नहीं है। और इसके प्रशत मैं शबककु ल साफ हं। मेरा अपना,
अपना कोर् ऐसा है, एक स्कू ल की क्लास में तीस बच्चे हैं। लोकतंत्र की िृशि यह है दक क्लास में जो आशिरी
बच्चा है, उसे सब भांशत सब ज्ञान िे ना है, ज्यािा से ज्यािा। ठीक भी लगता है। जो सिबुशद्ध कम है, उसपर
ज्यािा ध्यान दिया जाए तो वह बुशद्धमान हो जाएगा। लेदकन उसका िूसरा पररर्ाम होने वाला है दक जो

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क्लास में प्रथम है, वह उपेशक्षत रह जाएगा। और मेरा मानना है दक अंशतम पर दकतना ही ध्यान दिया जाए,
वह प्रथम नहीं हो सकता। और इस प्रथम पर ध्यान दिया जाए तो यह प्रथम से भी आगे जा सकता है। अगर मेरे
हाथ में शिक्षा हो, तो मैं प्रथम पर ध्यान िे ने पर जोर िूंगा, मैं सावाजशनक शिक्षा के पक्ष में नहीं हं, जो शिशक्षत
दकए जा सकते हैं, उनको ही शिशक्षत दकया जाना चाशहए। जो शिशक्षत दकए जा सकते हैं, उनको ही शिशक्षत
दकया जाना चाशहए। अगर इस मुकक में पचास हजार व्यशि शिशक्षत दकए जा सकते हैं, उनको पूर्ा रूप से
शिशक्षत दकया जाना चाशहए। वो इस मुकक को सोने सा चमका िें गे। हम पूरे पचास करोड़ को शिशक्षत करने में
लगे हैं। एक मीशियाकर समाज पैिा होगा, उससे कु छ होने वाला नहीं है। और वह जो शिशक्षत नहीं हो सकते हैं,
वे जबरिस्ती शिशक्षत दकए जाते हैं, तो वो सब तरह के उपद्रव पैिा कर रहे हैं और करें गे। आिमी युशनवर्साटी में
छु रा लेकर िड़ा हो रहा है, और नकल कर रहा है, ये वे लोग हैं जो शिशक्षत नहीं दकए जा सकते हैं, लेदकन इनके
भीतर भी आत्म-महत्वाकांक्षा जगाई दक वह प्रथम आता है, तुमको भी प्रथम आना है। तुम्हें भी गोकि मेिल
लाना है, तो वो इस तरह से गोकि मेिल ले सकते हैं। और तो कोई उपाय नहीं है। नकल से ले सकते हैं, चोरी से
ले सकते हैं। और सारी की सारी व्यवस्था को तोड़े जा रहे हैं। और वह जो प्रथम आ सकता था, वह यह सब नहीं
कर सकता, वह शपछड़ा जा रहा है। वह शपछड़ा जा रहा है, उसकी समझ के बाहर हुई जा रही है, सारी बात।
मेरा मानना है दक प्रशतभा शिशक्षत होनी चाशहए, सावाजशनक शिक्षा शबककु ल बेईमानी है। और जो व्यशि
बौशद्धक रूप से प्रशतभािाली नहीं है, हो सकता है िारीररक रूप से प्रशतभािाली हो, तो उसकी िारीररक
शिक्षा होनी चाशहए। शिशक्षत सब दकए जाने चाशहए, लेदकन दकसी लोकतांशत्रक िृशि से नहीं, व्यशि की
क्षमताओं की िृशि से। मैं व्यशिवािी हं, समाज मेरे शलए शबककु ल मूकयवान नहीं है। अगर तुम्हारे पास िरीर
अचछा है, जो राममूर्ता हो सकते थे, तो मैं कहता हं दफकर छोड़ो बुशद्ध की, क्योंदक बुशद्ध अगर अचछी नहीं है,
तो तुम आइं स्टीन कभी नहीं होने वाले, और राममूर्ता होने से भी बच जाओगे, और आइं स्टीन नहीं मीशियाकर
रह जाओगे। मीशियाकर आिमी बड़े ितरनाक हैं, क्योंदक महत्वाकांक्षा उनकी भारी होती है, और क्षमता
उनकी होती नहीं, वो सब तरह के उपद्रव पैिा करते हैं, और आशिरी उपद्रव उनका यह है दक अगर हम नहीं
पहुंच सकते प्रथम, तो पहले से हम एक बात पक्की कर लें दक कोई भी प्रथम न पहुंचे। इतना पक्का हो जाता है।
तो वे समाज को पीछे दकए हैं।
तो एक अथा में मैं व्यशिवािी हं और िूसरे अथा में मैं अशभजात्य का पक्षपाती हं। हर व्यशि का अशभजात्य
है, उसका कु छ िास है, जो दक शिशक्षत होना चाशहए। और ये ही हो उसमें, सब चचंता छोड़ िे नी चाशहए, हम
उसके िाने-पीने-रहने का इं तजाम कर िें , यह पयााप्त है, वे िांशत से जी लें पयााप्त है। तो अशभजात्यवािी भी मैं
हं। यानी मेरा मानना है दक हम कोई भी उपाय करके आइं स्टीन पैिा नहीं कर सकें गे, चाहे दकतना भी
समाजवाि हो, चाहे दकतना भी लोकतंत्र हो, आइं स्टीन ही आइं स्टीन हो सके गा, और अगर हमने शजि की, और
इसकी संभावना है, क्योंदक रूस में वो दफकर कर रहे हैं इस बात की दक बुशद्ध माप करीब कै से लाया जा सके ।
तो बड़े मजे की बात है दक नीचे वाले का बुशद्धमाप ऊ पर नहीं लाया जा सकता, लेदकन ऊ पर वाले का नीचे
लाया जा सकता है। यह बड़ा मजा है, बड़ा मजा है, जो है उसे छीना जा सकता है, लेदकन जो नहीं है, उसे पैिा
नहीं दकया जा सकता। अगर एक बच्चा ईशियट पैिा होता है, तो हम उसे जीशनयस नहीं बना सकते, लेदकन
जीशनयस को हम इशियट बना सकते हैं। क्योंदक यह जो जीशनयस है, यह इतना िेशलके ट मामला है दक छोटा सा
इं जेक्िन भी इसको नि कर िे ता है। एक इं जेक्िन मार िें हम आइं स्टीन की िोपड़ी पर, तो दकतनी ही बड़ी

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िोपड़ी हो उसका क्या करोगे? और इं जेक्िन मारने वाले को कोई आइं स्टीन से बड़ी िोपड़ी नहीं चाशहए,
मारने के शलए। िोपड़ी होनी चाशहए, तो कोई भी मार सकता है, इसमें कोई... ।
तो मेरा जो अपना िृशिकोर् है, वह एक ऐसे जगत का है जो अशभजात्य का जगत हो। वह गरीब के भी
शहत में है, और गरीब मेरे शलए मकटी-िाइमेशन्ियल सत्य है। कई तरह की गरीशबयां हैं। धन की गरीबी है, बुशद्ध
की गरीबी है, भाव की गरीबी है, नीशत की गरीबी है, हजार तरह की गरीशबयां हैं। और तुम एक गरीबी
शमटाओ तो िूसरी गरीबी मांग करना िुरु कर िे ती है। अब हमारी तकलीफ सिा यह है दक जो मौजूि होता है,
हम उसके पार उठ कर कभी नहीं िे ि पाते। भशवष्य मैररटोथेरेपी का है, भशवष्य में तो जो गुर्वान है, उसके
हाथ में सत्ता जानी चाशहए। मैररट के हाथ में जानी चाशहए। गरीबी कोई गुर् नहीं है। और मैं नहीं मानता हं,
दक गरीब जो भी बातें करता है, वह उसके भी पक्ष में हैं, ये भी बड़ी तकलीफ है, वो उसके भी पक्ष में नहीं है।

(प्रश्न का ध्वशन-मुद्रर् स्पि नहीं। )

नहीं, शबककु ल नहीं, जरा भी नहीं, क्योंदक मेरा मानना यह है दक राजनीशत भी बीमारी है। और हमें
मनुष्य को एक िृशिकोर् िे ना चशहए, जो कम से कम राजनैशतक हो। तो हम इस बीमारी से छु टकारा पा सकते
हैं। राजनीशत रहेगी, सिा रहेगी, आवश्यक है। लेदकन राजनीशत मनुष्य के िीर्ा पर कें द्रीय नहीं हो जानी
चाशहए, कें द्रीय होगा तो बीमारी है। और अभी कें द्रीय है। अभी ऐसा है दक बाकी सब गौर् हैं। सब कोने में हैं।
मंदिर की जो वेिी है, वह राजनैशतक है। तो मेरी िृशि यह है दक हम शजतना ज्यािा गैर-राजनैशतक व्यशित्व
पैिा कर सकें , उतना अचछा है। और गैर राजनैशतक व्यशित्व शजतने ित्म हो सकें समाज में, उतना ही
राजनीशतज्ञों की मूढ़ताओं से लड़ना आसान होगा।
इस मुकक ने एक प्रयोग दकया था, और उस प्रयोग के मैं पक्ष में हं, इस मुकक में साधुओं को, संत को,
सन्यासी को प्रथम कोरट पर रिा था, राजनेता को, राजा को िूसरी कोरट पर रिा था; और अगर एक सम्राट
भी होता और एक फकीर होता, तो फकीर के चरर्ों में सम्राट को शसर रिना पड़ता। ब्राह्मर् को नंबर एक रिा
था, और ब्राह्मर्ों का उन दिनों में अथा था, उन दिनों का बुशद्धमान वगा। इं टेशलजेंस ग्रुप। क्षशत्रय को नंबर िो रिा
था। िशि दकतनी ही बड़ी हो, नंबर िो होनी चाशहए बुशद्ध के सामने। तो, मेरे शहसाब में तो ब्राह्मर् लौटना
चाशहए। मेरे शहसाब में तो ब्राह्मर् लौटना चाशहए। समाजवाि, लोकतंत्र सब िूद्र को प्रथम रिने की चेिा है,
क्षशत्रय को ही नहीं। अंशतम को।
तो मैं इस प्रश्न में मनु से बहुत राजी हं। वह आिमी बहुत बुशद्धमान था। और गांधी और शवनोबा बचकाने
हैं उनके सामने। क्योंदक सवाल ब्राह्मर् का नहीं, सवाल यह है दक हम दकस तथ्य को ऊ पर रिते हैं। और एक
बड़े मजे की घटना इस मुकक में घटी, और वह घटना यह थी दक जब हमने ब्राह्मर् को ऊपर रिा, तो ब्राह्मर् ने
न धन की दफकर की, न पि की दफकर की, क्योंदक शजसके पास बुशद्ध है, और एक बार बुशद्ध को प्रथम स्थान
उपलब्ध होता हो, तो उसे न धन की दफकर है न पि की। बुशद्ध इतना बड़ा पि है अपने आप में दक दफर उसे
कु छ भी नहीं चाशहए। तो ब्राह्मर् भूिा भी रहा, भीि भी मांगी, लेदकन उसने राजनीशत को और, धन की और
पि की कोई चचंता नहीं की। और पि इस मुकक में बुशद्ध की अंशतम... है, बहुत अंशतम... । शजस दििा में भी इस
मुकक ने अपनी बुशद्ध को लगाया, वह आत्यंशतक हो गई, उस दििा में दफर कोई मुकक आगे नहीं जा सका। और
आज भी मजे की बात यह है दक िुशनया का सारा शवकास ब्राह्मर्ों के द्वारा हो रहा है, आज भी। मेरे शलए

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आइं स्टीन एक ब्राह्मर् है और माक्सा भी। और फ्रायि एक ब्राह्मर् है। बड़े मजे की बात है दक िुशनया का सारा
शवकास ब्राह्मर्ों के हाथ से होता है। सिा हुआ है, और उनके ही हाथ से हो सकता है, क्योंदक वे ही नया शवचार
जगत को िे ते हैं, नई दििा और नई िृशि िे ते हैं। लेदकन ताकत आज उनके हाथ में नहीं है। और ये बड़े मजे की
बात है, एटम बम की वजह से पशिम को ियाल आया--और आइं स्टीन को, हेमर को, लीशनयस पािे न को, इन
सबको ियाल उठा दक हमने तो एटम बम बनाया है, लेदकन चलाने का हक तो राजनीशतज्ञ के हाथ में चला
जाएगा। न जॉनसन के पास बुशद्ध है, न चलंकन के पास बुशद्ध है, और न इं दिरा के पास बुशद्ध है, और न शवक्ट्रो के
पास बुशद्ध है। लेदकन बुशद्ध के शििर पर जो भी ताकत उपलब्ध होगी, वह इनके हाथ में चली जाएगी। एक
ियाल पशिम में पैिा हुआ। लीशनयस पावले ने िस हजार वैज्ञाशनकों को, जो सारी िुशनया के , और उन्होंने
कोशिि की दक एक हम एक इं टरनेिनल ताकत बनाना िुरु करें , और वह तय करें तभी हम कोई ताकत का
उिघोर्र् करें , अन्यथा वह ताकत उिघोशर्त न की जाए। यह ब्राह्मर् की सत्ता में लौटने की चेिा है। इसका
मतलब क्या है, इसका मतलब है दक हम िोजेंगे, और कल तुम हमारी भी नहीं सुनते। लीशनयस पावेल िड़ा है,
वाचिंगटन में भूिा व्हाइट हाउस के सामने और कह रहा है, एटम बम का प्रयोग नहीं होना चाशहए, िो
पुशलसवाले पकड़ कर बंि कर िें गे। शजन लोगों ने एटम बम बनाया, उनकी कोई ताकत नहीं है, बनाने के बाि।
और अब तक इतनी मीरटंग िोज कर गई है, सारी िुशनया में दक अगर सब राजनीशतज्ञ के हाथ में आ गईं, तो
आिमी का कोई भशवष्य नहीं। एटम बम तो कु छ भी नहीं है, और भी नई िोजें और ितरनाक हैं। अब तो अपके
मशस्तष्क में पैिा होते से ही, एक इलेक्ट्रोि िाला जा सकता है, आपको पता ही नहीं चलेगा, वह तो सब बचपन
में हो जाएगा। और एक छोटे से ऑपरे िन से एक छोटी सी इलेक्ट्रोि आपके मशस्तष्क में िाल िी जाएगी। दफर
आपको आज्ञा िी जा सकती है, दिकली से, आप कहीं भी िुशनया में हों। और जो आज्ञा उसके शवपरीत आपको
शमलती है। और आपको लगेगा दक यह आज्ञा मेरे भीतर से आ रही है। अब ये सारी की सारी िोज ब्राह्मर्ों की
है, लेदकन ताकत तो कै शबनेट के हाथ में चली जाने वाली है।
तो मेरी िृशि यह है दक राजनीशत को कमजोर करना है। ज्ञान को, ब्राह्मर् को, धमा को प्रशतशष्ठत करना है।
तो मैं दकसी को राजनीशत को घेरने और भेजने में उत्सुक नहीं हं। मैं तो राजनीशत में भी कोई बुशद्धमान आिमी
दििाई पड़े, तो उसे िींचने को हं। और हमें इस तरह के स्तंभ समाज में िड़े करने पड़ेंगे दक जो अपनी प्रशतष्ठा
है, राजनीशतक दफशजक्स को कम करें । नहीं तो दफशजक्स की कमी हो सकती है। और अभी हालत यह है दक
साधु को भी प्रशतशष्ठत होना है, तो शमशनस्टर की िुिामि करनी है, और अगर एक साशहत्यकार को भी प्रशतशष्ठत
होना है, और उसे पिमभूर्र् होना है, तो उसका कोई उपाय नहीं है। एक कशव एक संगीतज्ञ, वह भी दिकली की
तरफ नजर रिे हुए है दक कब उसको प्रशतष्ठा राष्ट्रपशत से शमलेगी? और कोई नहीं पूछता दक राष्ट्रपशत के पास
क्या है? न संगीत है, न साशहत्य है, न बुशद्ध है, न शवज्ञान है कु छ भी नहीं है। लेदकन राष्ट्रपशत की... । ितरं ज के
िेल का शहसाब है, बस उतना ही है, और उससे सब प्रशतशष्ठत होंगे। राजनीशतज्ञ की प्रशतष्ठा और मशहमा कम
करनी है, और उसका एक ही उपाय है, कम करने का दक राजनीशत के मुकाबले नये आयाम िड़े हों। और
राजनीशत से पृथक प्रशतष्ठा के स्रोत बनें। तो मैं ऐसे संन्यासी जरूर िड़े करना चाहता हं, ऐसे आश्रम भी जरूर
बनाना चाहता हं, जो गररमाओं के नये स्रोत उपलब्ध करायें। एक संगीतज्ञ संगीत की वजह से प्रशतशष्ठत हो,
एक साशहशत्यक साशहत्य की वजह से प्रशतशष्ठत हो। और राजनीशत को सम्मान िे ना बंि दकया जाए। आज नहीं
कल एक हालत आनी चाशहए जब राजनीशतज्ञ भी तभी सम्माशनत हो सके , जब ये िूसरी प्रशतभाएं उसे सम्मान

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िें , अन्यथा सम्मशनत न हो सके । मगर ये सारा का सारा आत्मव्यैशि िृशिकोर् है। इसका लोकतंत्र, समाजवाि से
सीधा शवरोध है। तो मेरी उत्सुकता यही है, उत्सुकता मेरी है पर िूसरी दििाओं में।

(प्रश्न का ध्वशन-मुद्रर् स्पि नहीं। )

एक तो भगवान िुि-ििा िूर करें , ये गरीब आिमी की आकांक्षा है, यह भगवान का लक्षर् नहीं है।
क्योंदक भगवान तो सिा से है, और िुि-ििा िूर हुआ नहीं। अगर भगवान है, तो सिा से है। िुि-ििा तो िूर हुआ
नहीं। गरीब आिमी की आकांक्षा जरूरत है दक वह िूर करे । गरीब आिमी को भगवान भी तभी महत्वपूर्ा है,
जब वह उसकी बीमारी िूर करे , ििा िूर करे । गरीब आिमी को गरीबी िूर करवानी है। भगवान तो गौर् है,
उसका कोई प्रयोजन नहीं है। और मेरा मानना है दक भ्रांत आकांक्षा उसके गरीब बने रहने का कारर् है। गरीबी
भगवान से िूर होने वाली नहीं है, नहीं तो कभी की िूर हो गई होती। गरीबी भगवान के रहते बड़े मजे से चल
रही है। राम के रहते चलती है, कृ ष्र् के रहते चलती है, जीसस के , बुद्ध के रहते चलती है। साफ मामला है दक
गरीबी के िूर करने का मामला कु छ और है, भगवान नहीं है। तो पहली तो बात यह मै कहना चाहता हं दक
भगवान से गरीबी िूर नहीं होगी। और शजन मुककों में िूर हुई है, उन्होंने भगवान को शजस मात्रा में छोड़ा है,
उस मात्रा में िूर हुई है। भगवान को शजतने जोर से पकड़े हुए मुकक हैं, उतनी मुशश्कल है गरीबी िूर होनी।
क्योंदक आकांक्षाएं गलत हैं। अब ये मामला ऐसा है दक मैं सोच रहा हं दक सूरज के शनकलने से मेरा टी.बी. ठीक
होगा। अगर उसका कोई संबंध ही नहीं है, तो मैं मरूंगा और टी.बी. िूर करने के जो उपाय हो सकते हैं, वह भी
नहीं िोजूंगा। गरीब आिमी को ठीक से जान लेना चाशहए दक गरीबी का कारर् न तो भगवान है, इसशलए िूर
करने का कारर् भी नहीं हो सकता। िूर करने का कारर् वही हो सकता है, जो उसको बनाने का भी कारर् हो।
अगर भगवान ने गरीबी बनाई हो, तो भगवान गरीबी िूर करे । गरीबी आिमी की व्यवस्था है। उसके उपकरर्
और उसकी टेक्नालॉजी अथातंत्र की बाई-प्रॉिक्ट हैं। उसको अपना तंत्र बिलना पड़ेगा गरीबी बिलने के शलए।
वह आिमी की शजम्मेवारी है। उसका भगवान से लेना-िे ना कु छ भी नहीं है। सामाशजक घटना है गरीबी,
धार्माक घटना नहीं है। क्योंदक हर चीज को धार्माक घटना बना िे ने से उपद्रव िुरू होता है, दफर हम इलाज भी
नहीं िोज पाते। यह मेरा मानना है दक रूस भगवान को शबककु ल ही इनकार कर दिया, तो भी गरीबी िूर कर
सकता है। भगवान से कोई लेना-िे ना नहीं है, गरीबी के होने न होने का। बशकक एक मात्रा में भगवान से यह
भरोसा दक वह गरीबी िूर कर िे गा, गरीबी को बनाए रिने का साधन हो गया है। तो मैं मानता हं दक गरीब
को जानना चाशहए दक गरीबी के आर्थाक कारर् हैं, धार्माक कारर् नहीं है। आर्थाक कारर् बिलेंगे, तो गरीबी
बिल जाएगी।
िूसरी बात मुझे कोई भगवान कहे, या मुझे कोई िैतान कहे, ये कहने वालों के संबंध में िबर िे ता है, मेरे
संबंध में कु छ भी नहीं। लोग हैं जो मुझे िैतान कहते हैं, उन्हें मैं िैतान दििाई पड़ता हं। दकसी को मैं भगवान
दििाई पड़ता हं। उसे दििाई पड़ता हं। मेरे में... यानी दक मैं िैतान को, जो मुझे िैतान कहता है, मैं उसे
समझाने जाऊं दक मुझे िैतान मत कहो। और मेरे समझाने से वह मानेगा, जो मुझे िैतान मानता है, वह मेरे
समझाने से मानेगा दक मुझे िैतान न कहे? बशकक यह समझाना उसे और भी मुझे िैतान कहने का कारर् बन
जाएगा। मेरी उत्सुिा क्या है? ठीक मजे की बात यह िूसरी तरफ भी ऐसे ही है, जो मुझे भगवान कहता है, यह
उसका िृशिकोर् है, उसे दििाई पड़ता है। वैसे ही दकसी को िैतान दििाई पड़ता है। अगर मैं उसे समझाने जाऊं

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दक मैं भगवान नहीं हं, तो यह उसे और भी भगवान कहने का कारर् बनता है। यह बहुत मजे की बात है, दक
यदि आप मेरे पैर को छु एं, और मैं कहं नहीं, नहीं मत छु ओ, शबककु ल मत छु एं, तो और पैर छू ने का कारर् बन
जायेंगा। बशकक कई बार तो मैंने अनुभव ऐसा दकया दक आप पैर छू रहे हों, और मैं आपका शसर हाथ से लगा िूं,
या मैं भी शसर छू िूं, तो क्या आप िुबारा आते हैं। आिमी के मन का काम करने का ढंग बड़ा कं टेशिशक्टव है। तो
मैंने अनुभव दकया दक िोनों उपाय हैं, अगर मुझे कोई भगवान कहता है, तो मैं स्वीकार कर लूं दक मैं भगवान
हं, जो दक मैं नहीं कर सकता। नहीं कर सकता इसशलए दक मैं नहीं, सब कु छ भगवान है। इसशलए शविेर् रूप से
दकसी को भगवान कहने का कोई भी हक नहीं है। भगवान होना मेरे शलए सभी जीवन का साधार अशस्तत्व है।
साधारर् क्वाशलटी है, सभी लोग भगवान हैं। भगवान और अशस्तत्व मेरे शलए पयाायवाची हैं। तो कोई मुझे
भगवान कहे, तो हां तो मैं नहीं भर सकता दक मैं भगवान हं, शसफा इसशलए हां नहीं भर सकता, क्योंदक इसमें
कोई अथा ही नहीं है। क्योंदक तुम भी भगवान हो। इससे मैं इनकार भी नहीं कर सकता। क्योंदक वह सभी कु छ
भगवान है, तो मैं अपने शलए इनकार करूं तो भी शवशििता अपने शलए िोज रहा हं। मेरे शलए भगवान होना
ऐसा है, जैसे आप जीशवत हैं। अगर मुझे कोई जीशवत कहेगा तो क्या इनकार करूं और क्या हां भरूं? मेरे शलए
आप भी जीशवत हैं।
जो करठनाई उठती है, वह प्रश्न करने वाले के मन से आती है। उसका ख्याल ऐसा है दक भगवान राम होते
हैं, कृ ष्र् होते हैं, बुद्ध होते हैं। कोई भगवान होता है, बादक तो भगवान नहीं है। असल में भगवान होना सहज
अशस्तत्व का गुर् है। तो राम अगर भगवान होता है, तो शसफा इसीशलए दक आप भी भगवान हो सकते हैं, नहीं
तो राम भी भगवान नहीं हो सकते। आपके भीतर जो शछपा है, आप उसे िोज ले सकें तो आपको पता चलता
है। तो मैं दकसको इनकार भरने जाऊं, और दकसको हां भरने जाऊं? हां भरने में भी अहंकार है, और इनकार
करने में भी अहंकार है। अगर मैं हां भरूं दक हां मैं भगवान हं, तो मेहर बाबा भी हां भरते हैं दक मैं भगवान हं,
तो मैं मानता हं इसमें अहंकार है। क्योंदक मैं स्वीकार कर रहा हं दक मैं भगवान हं, इसका मतलब यह हुआ दक
मैं शवशिि हं और मैं हं। अगर मेहर बाबा से आप जाकर कहें दक आप ही भगवान नहीं, सामने का जो चमोली
का पान वाला है, वह भी भगवान है। तो वे नाराज हो जाएंगे। चमोली की तो बात छोड़ िें , अगर और भी कोई
आिमी कहीं कह रहा है दक मैं भी अवतार हं, तो वह नहीं मानने को राजी होंगे, वे कहेंगे दक इस युग के वही
अवतार हैं, और एक युग में एक ही अवतार होता है। अगर आप यह कहें दक राम और कृ ष्र् और बुद्ध ये भी सब
अवतार थे, तो भी उनको करठनाई होती है, वे कहते हैं दक सब आंशिक अवतार थे, मैं पूर्ा अवतार हं। चहंिू
कहते हैं दक कृ ष्र् पूर्ा अवतार थे, तो मेहर बाबा कहते हैं, दफर समानता हो जाती है। तो मेहर बाबा कहते हैं
दक पहले मैं अवतार रूप में आया, इस बार मैं स्वयं भगवान रूप में आया हं। इसको मैं साधु का अहंकार कहता
हं। शवधायक रूप से यह आिमी पागल हो गया है।
कृ ष्र्मूर्ता शनगेरटव हैं शबककु ल, मगर वह भी अहंकार है। वे कहते हैं दक मैं भगवान नहीं हं, मैं गुरु नहीं हं,
मैं कोई भी नहीं हं, लेदकन चालीस साल से यही कहे चले जा रहे हैं, इसको भी कहने की कोई जरूरत नहीं है।
कभी कहने से कोई गुरु नहीं, और मैं शचकलाता हं चालीस साल तक दक मैं चोर नहीं हं, मैं बेईमान... इसकी भी
कोई जरूरत नहीं है, नहीं हं तो नहीं हं। लेदकन यह शनगेरटव अहंकार है। ये भी शविेर्ता की बात है दक मैं नही
हं, मैं गुरु भी नहीं हं, मैं अवतार भी नहीं हं, मैं कोई भी नहीं हं। मेरी तकलीफ है, ये िो उपाय की चीजें हैं।
यानी िो उपायों के भी मेकेशनज्म हैं। अगर मैं कहं मैं भगवान हं, शवधायक अहंकार का प्रयोग करूं, तो कु छ लोग
हैं जो समपार् कर सकते हैं, वे तत्काल मुझे मान लेंगे। जो शवनम्र हैं। जो अहंकारी हैं वे मेरे शिलाफ मेरे िुश्मन

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हो जाएंगे। अगर मैं कहं दक मैं कोई नहीं हं, तो जो अहंकारी हैं, वे मुझे मान लेंगे, इसशलए कृ ष्र्मूर्ता के पास
अहंकाररयों के शसवाय कोई इकट्ठा नहीं हो सका। क्योंदक अहंकारी उसी के पास जा सकता है, जो कहता है, मैं
गुरु भी नहीं, मेरे पैर भी मत छू ना, मुझे नमस्कार भी मत करना, मैं भगवान भी नहीं हं। जो इतना भी कहता है
दक तुम मेरे पास आते हो, लेदकन मैं तुम्हें शसिाता भी नहीं हं, और वो तीस साल से सीि भी रहे हैं उससे, और
इतनी भी शवनम्रता नहीं दक यह कहें दक हमने तुमसे कु छ सीिा, तो वे लोग इकट्ठे होंगे।
मेहर बाबा के पास वे लोग इकट्ठे होंगे, जो समपार् कर सकते हैं, शजनको कोई सहारा चाशहए। जो इतने
भयभीत हैं अपने भीतर, इतना भी अहंकार नहीं दक अपने पैर पर िड़े हो सकें , वे चाहते हैं दक दकसी के कं धे पर
सब छोड़ िें , वे वहां इकट्ठे हो जाएंगे। मेरी तकलीफ है, ये िो शवककप हैं। और मैं िोनों गलत मानता हं। तो एक
ही उपाय है दक मैं चुप रहं, इस संबंध में कु छ न कहं।

(प्रश्न का ध्वशन-मुद्रर् स्पि नहीं। )

िशिपात संभव है। िशिपात संभव है। और काम-ऊजाा के द्वारा भी िशिपात संभव है। संभोग के द्वारा
भी िशिपात संभव है। िंकर की पूरी की पूरी िशियां, यह संभोग के द्वारा ही िशिपात संभव है। बशकक... का
मानना ही यह है दक संभोग के अशतररि और कोई िशिपात हो ही नहीं सकता। तो जहां तक िशि की बात है,
िशि की बात है, संभोग से िशिपात संभव है। क्योंदक संभोग का मतलब ही यह है दक िो िशियों का शमलन।
अगर इसमें श्रेष्ठतर िशि कोई भी हो तो शनकृ र््ट िशि की तरफ प्रवाशहत हो जाएगी। यह बायो-इलेशक्ट्रकल
मामला है। इसमें कोई बहुत बड़ा धमा का मामला भी नहीं है, यह सब सीधा और वैज्ञाशनक शवद्युत का मामला
है। यह संभव है। इसमें कोई अड़चन नहीं है। लेदकन यह घटना शबककु ल झूठी है। और तंत्र पर मेरी बड़ी श्रद्धा है।
भारी श्रद्धा है। और मेरा तो मानना है दक तंत्र अके ला शवज्ञान है, जो भारत ने दिया है जगत को। और आज नहीं
कल अगर भारत की प्रशतष्ठा होगी, तो तंत्र के कारर् होगी। लेदकन भारत में जो नीशतवािी ट्रेिीिन का जो
जकड़ है, उसकी वजह से तंत्र को बुरी तरह िबाया गया है। ककपना नहीं कर सकोगे दक अके ले राजा भोज ने
एक लाि तांशत्रकों की हत्या की। अके ले एक आिमी ने। उसने तय कर शलया दक भारत में एक तांशत्रक को नहीं
बचने िे गा। तांशत्रकों के लािों ग्रंथ जलाए। यह हालत कर िी दक कोई आिमी अपने को तांशत्रक है, यह कह नही
ंंसकता था, िुलेआम। क्योंदक तांशत्रक का मतलब हो गया दक गलत। लेदकन शपछले िो सौ वर्ों में यूरोप में जो
िोज-बीन हुई है... और फ्रायि के बाि, और शवलहम रै क तक जो िोज-बीन हुई है, उस सबने तंत्र को नया
मागा िे दिया है। और तंत्र की िोज वैज्ञाशनक है। क्योंदक मनुष्य के भीतर जो गहरी से गहरी ऊजाा है, वह सेक्स
एनजी है। अगर हम मनुष्य की िशियों की िोज करने चलें, तो जैसे दफशजशसस्ट पिाथा को तोड़ कर इलेशक्ट्रक
पर पहुंचा है, वैसा ही तांशत्रक मनुष्य को तोड़ कर सेक्स एनजी पर पहुंचा है। मनुष्य का सारी-सारी बनावट
सेक्स की है। आप पैिा हुए हैं सेक्स से, आपके मां और बाप के िो शवद्युत कर्, सेक्स कर्, आपके शनमाार् का
सारा िेल, दफर उन्हीं िो सेक्स कर्ों के शवस्तार से आपके सारे िरीर का शवस्तार हुआ है। आपके पूरे िरीर की
बनावट सेक्स कर्ों की है। जैसे एक शवद्युत कर्ों से बना है, ऐसे ही जीवन काम कर्ों से बना है। और आपकी
पूरी की पूरी ऊजाा, ठीक समझा जाए तो सेक्स एनजी है। तंत्र का कहना यह है दक सैक्स एनजी अगर नीचे की
तरफ बहती हो, तो काम वासना है, यही ऊ जाा अगर ऊपर की तरफ बहने लगे, तो कुं िशलनी है। कुं िशलनी का
कु ल मतलब इतना है दक काम ऊजाा ऊपर की ओर प्रवाशहत हो रही हो, आयाम बिल गया है।

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तो तंत्र ने भारी प्रयोग दकए हैं दक संभोग के क्षर् में भी साधक अपनी काम-ऊजाा को ऊपर प्रवाशहत
करता है। और काम-ऊजाा अगर ऊपर प्रवाशहत हो रही हो, तो हमें यह सब दििाई पड़ता है दक संभोग हो रहा
है। संभ्कलग नहीं हो रहा है। ये िजुराहो और पुरी और कोर्ाका के सारे मंदिर अश्लील नहीं हैं, तांशत्रक हैं। लेदकन
हमने यह शहम्मत ही िो िी दक हम भी इसी िुशनया से हैं, तांशत्रक हैं, हम िुि ही इतने कमजोर और िरपोक हो
गए दक तंत्र की बात करनी ही नहीं है। तो मैं तंत्र पर मेरी प्रगाढ़ उत्सुकता है। विव्य नहीं िे ता हं मैं अभी तंत्र
पर तो उसका कु ल कारर् इतना है दक जैसे-जैसे लोग तैयार हो जाएं, वैसे ही विव्य दिए जायें। अन्यथा
अकारर् उपद्रव हो जाएंगे। अकारर् उपद्रव हो जाएंगे। और तंत्र पर मेरी श्रद्धा है, और मेरे पास जो साधक होते
हैं, उनको मैं तंत्र की दििा में भी प्रवाशहत करता हं। उनको तंत्र के प्रयोग भी िे ता हं दक वे अपने जीवन में कर
सकें । उनकी काम ऊजाा ऊपर की तरफ प्रवाशहत हो, इसके शलए भी उनको साधना मैं िे ता हं। साधनाओं के
संबंध में, बहुत कु छ गौर् रिना पड़ेगा... रिना पड़ेगा। एक आम चचाा नहीं हो सकती। आम चचाा न होने के
कारर् चचाा में कोई गड़बड़ है, ऐसा नहीं है, आम चचाा न होने का कारर् यह लोकमानस है। वह जो भीड़ है
चारों तरफ, उसने जो सुन समझ रिा है, उससे वह चीजों को समझती है।
अमरीका जैसे शवचार स्वतंत्र वाले मुकक में... रूजवेकट अमरीकन मनोवैज्ञाशनक था--जमान था, अमरीका
गया था। उसको तीन साल पागलिाने में काटने पड़े। क्योंदक जो बातें उसने कहीं, उनको गलत भी शसद्ध नहीं
दकया जा सकता, और सही माना नहीं जा सकता, क्योंदक पूरी दक्रशियशनटी शिलाफ है। तो उसको जबरिस्ती
पागल करार दिया गया। बीसवीं सिी के गहनतम अपराधों में से एक। और उस आिमी ने इतनी गहरी िोज की
थी दक अगर वह प्रकट हो सकती पूरी की पूरी तो मनुष्य-जाशत का परम ककयार् हो जाता। उसको तीन साल
पागलिाने में रिा, पागलिाना, पागलिाने में ही वह मरा। और उसके शमत्रों का, उसके शिष्यों का, बड़े से बड़े
मनोवैज्ञाशनकों का ख्याल है दक जबरिस्ती की गई है।
उसने एक तंत्र का यंत्र बनाया था, जो भारत में बहुत दिन तक था, और उसने पहली िफा अमरीका में
बनाया। उसने एक छोटा सा संिूक बनाया, व्यशि को उस संिूक में बंि कर िे ता था, संिूक की जो िीवालें थी,
वह बहुत संवेिनिील तत्वों की बनाई हुई थीं। और उस व्यशि को काम ऊजाा से ऊपर ले जाने के प्रयोग
करवाता था। जब ऊजाा ऊपर जाती है तो वह पूरा का पूरा बॉक्स जो है, वह चाजा हो जाता है, चाजा हो जाता
है... दििाई पड़ती है। और उस पर उसने हजारों प्रयोग दकए, अगर इलेशक्ट्रफाइि हो जाता, तो दकसी भी काम
वासना से भरे व्यशि को उसके भीतर शलटा िो, तो आधा घंटे में उसकी कामवासना क्षीर् हो जाती। दकसी काम
वासना से पागल हो गए व्यशि को उसके भीतर शलटा िो, तो घंटे भर में उसका पागलपन िांत हो जाता।
लेदकन यह उसने बॉक्स बनाना िुरु दकया, उस पर और कोई उपाय नहीं शमला मुकिमा चलाने का, तो साशजि
के शलए उस पर मुकिमा चलाया गया दक उसने शबना लाइसेंस शलए यह बॉक्स बनाया है, इसका पेटेंट नहीं
करवाया। ये सब उपद्रव हैं। इसका पेटेंट होना चाशहए, इसका रशजस्ट्रेिन होना चाशहए। और यह इसको बेच
रहा है, तो यह तो कमोशिटी बरिाश्त नहीं हो रही दक उसका तंत्र अमरीका का पूरा का पूरा... जेिन और ये
सब होना था और नहीं है। और इसने कोई सात बेचे। इस पर मुकिमा चलाओ। तो उसको चजंिगी भर इसी
मुकिमेबाजी में उसको परे िान दकया। ये सारी तकलीफें हैं। लोकमानस की तकलीफें हैं, लोकमानस की समस्या
बड़ी है। तो कु छ चीजें अशनवाया रूप से गुप्त रिनी पड़ेंगी। तो मेरे पास बहुत से प्रयोग चल रहे हैं, जो गुप्त हैं।
इन गुप्त प्रयोगों से नामालूम दकतने साधु-संन्याशसयों को तकलीफ है। होगी भी। शबककु ल स्वाभाशवक है।
नामालूम दकतने राजनीशतज्ञों को तकलीफ है, स्वभाशवक है। नामालूम दकतनी-दकतनी तरह के ठे के िारों को

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तकलीफ है, वह भी स्वाभाशवक है। तो मेरे संबंध में वे बहुत सी बातें ईजाि करें , ईजाि करें कल मुकिमा िायर
कर मुझे बंिी बनायें, वह सब हो सकता है, तो उसमें कोई बहुत अड़चन का मामला नहीं है। कोई अड़चन का
मामला नहीं है। और हमारे मुकक में तो दकसी भी व्यशि को अप्रशिशक्षत करना है, तो सरलतम बात यह है दक
उसके चररत्र पर कोई बात कहीं कह िी जाए, दफर कोई िोज-बीन का कोई सवाल नहीं है, कोई प्रयोजन नहीं
है, बात समाप्त हो गई। और क्या नहीं हो सकता?
अभी मुझे िबर आई, मैं तो यहां हं और िेढ़ साल से अमृतसर नहीं गया हं। अमृतसर में उन्होंने पोस्टर
लगा दिए हैं दक मैं शगरफ्तार कर दिया गया हं, क्योंदक मेरे पास, गांजा, अफीम, चरस, इस सब का भारी... ।
तो सारी िीवारों पर पोस्टर लगा दिए हैं। अब जो आिमी पढ़ रहा है, वह पता लगाने भी कहां जाएगा, दक हुआ
दक नहीं हुआ। अब आिमी में बहुत समानता है, दक हुआ होगा, नहीं तो पोस्टर कै से लगे? अब यह पोस्टर
लगाने वाला कौन है, इसको कौन िोजने जाए, इसको कौन पकड़े, इससे क्या प्रयोजन, इससे क्या हल है?
चुपचाप मुझे सुन लेना पड़ेगा। अब यह सब बड़े मजे का मामला है। अब परसो ईश्वर बाबू की पत्नी ने आकर
कहा, उससे उसकी पड़ोसन ने कहा, तुम्हे पता है दक िस-बारह मशहलाओं ने उनको बहुत बुरी तरह मारा भी है।
और बुरी तरह पीटा और पुशलस आई तब उनको बचाया गया। क्योंदक उन मशहलाओं के साथ छेड़िानी कर रहे
थे। अब मामला यह है दक उन सबके शलए क्या दकया जाए? कु छ नहीं दकया जा सकता। और मेरे साथ ये सब
अफवाहें चल सकती हैं, क्योंदक मैं जो प्रयोग कर रहा हं, जो बातें कर रहा हं, उनसे उनका तालमेल बैठ जाता
है। जैसे मैं संभोग से समाशध की ओर विव्य दिया, तो अगर मैं ब्रह्मचया के पक्ष में बोल रहा हं और मेरे अनैशतक
संबंध नहीं हैं दकसी से, तो मेरे संबंध में आप कु छ बोल नहीं सकते, क्योंदक मेरे विव्य, मेरे... क्योंदक मैं बोल तो
ब्रह्मचया के संबंध में रहा होगा, मेरा चोरी से दकसी से अनैशतक संबंध भी है, तो आप पता नहीं लगा सकते हैं।
लेदकन मेरे साथ तकलीफ यह है दक मेरा दकसी से संबंध भी नहीं है, तो भी मैं ब्रह्मचया के पक्ष में नहीं बोल रहा
हं। मेरी तकलीफ बहुत ऊं ची है, मैं बोल तो संभोग के पक्ष में रहा हं, तो मानना शबककु ल पक्का ही है दक इस
आिमी के संभोग के संबंध होंगे, यह संभोग के पक्ष में बोल रहा है। तो कोई अगर आपसे कहे, तो भरोसे के योग्य
बात मालूम पड़ती है। जो आिमी संभोग के पक्ष में बोलता है, उससे ब्रह्मचया की तो आिा नहीं की जा सकती।
ब्रह्मचारी से आप संभोग की आिा कर सकते हैं, संभोग के पक्ष में बोलने वाले से ब्रह्मचया की कै से आिा करें गे?
ये सब स्वाभाशवक है। यह स्वाभाशवक है, यह शबककु ल स्वाभाशवक है। यह सब स्वाभाशवक है।

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सम्यक शिक्षा
छठवां प्रवचन

यह अधूर ी शिक्षा?

मेरे शप्रय आत्मन्!


मनुष्य-जाशत के ऊपर जो बड़े से बड़े िुभााग्य आए हैं उनमें सबसे बड़े िुभााग्य वे हैं शजन्हें हम सौभाग्य
समझते रहे हैं। सौभाग्य समझने के कारर् उन िुभााग्यों से बचना भी संभव नहीं हुआ। उन्हें बिलना भी संभव
नहीं हुआ। उनसे मुि होने का भी कोई उपाय नहीं दकया गया, बशकक सौभाग्य मानने के कारर्, वरिान मानने
के कारर् हम अपने अशभिापों की जड़ों में भी पानी सींचते रहे हैं। और तब पररर्ाम में यह मनुष्य पैिा हुआ है
जो हमारे सामने है। और यह समाज शनर्मात हुआ है जो हमारे चारों तरफ फै ला हुआ है। उन बड़े िुभााग्यों में
शिक्षा के नाम से जो चलता रहा है उसे भी मैं बड़े से बड़ा िुभााग्य मानता हं।
सुन कर शनशित ही आपको हैरानी होगी, क्योंदक शिक्षा तो वरिान है, शिशक्षत हो जाना तो धन्यभागी
हो जाना है। लेदकन क्या आपको पता है शिक्षा ने मनुष्य के जीवन को संतुलन और स्वास्थ्य नहीं दिया है बशकक
मनुष्य जीवन के सारे संतुलन को, सारे बैलेंस को छीन शलया है। और यह होना शनशित था। क्योंदक जो हम अब
तक शिक्षा से समझते रहे हैं उसमें कु छ बुशनयािी भूलें हैं।
पहली बुशनयािी भूल यह है दक हमने आिमी को के वल बुशद्ध, के वल इं टलेक्ट समझ शलया है। इससे
ज्यािा झूठी और गलत बात नहीं हो सकती। आिमी अके ले बुशद्ध नहीं है और शिक्षा मात्र बुशद्ध की है। िेर् पूरा
मनुष्य अधूरा और अछू ता छू ट जाता है। िेर् पूरा मनुष्य अशवकशसत छू ट जाता है। के वल बुशद्ध शवकशसत होती
है। यह वैसा ही है जैसे एक आिमी का सारा िरीर तो सूि जाए शसफा शसर बड़ा हो जाए, एक आिमी का सारा
िरीर तो क्षीर् हो जाए शसफा िोपड़ी बड़ी होती चली जाए। दफर वह आिमी एक कु रूपता होगा, एक
अग्लीनेस होगा। और वह आिमी चलने में असमथा हो जाएगा। उसका बड़ा शसर उसके पूरे िरीर के संतुलन में
नहीं होगा तो उसका जीना करठन हो जाएगा।
शिक्षा के नाम पर यही हुआ है। हमने सोच शलया दक मनुष्य है के वल बुशद्ध, के वल इं टलेक्ट। और तब हम
शपछले तीन हजार वर्ों से मनुष्य की बुशद्ध को ही शवकशसत करने के सब उपाय करते रहे हैं। बुशद्ध शवकशसत हो
गई लेदकन िेर् सारा मनुष्य बहुत पीछे छू ट गया। िेर् मनुष्य तीन हजार वर्ा पीछे छू ट गया, और बुशद्ध तीन
हजार वर्ा आगे चली गई। इन िोनों के बीज जो तनाव और िाई पैिा हो गई है वही हमारे प्रार् शलए ले रही
है। इससे एक उलटे ढंग की पंगुता पैिा हुई है, इनवटेि दक्रप्लिनेस पैिा हुई है। एक आिमी के पास सब होता है
लेदकन आंिें नहीं होतीं, तो हम उस आिमी को कहते हैं दक इसका एक अंग पंगु है, शवकशसत नहीं हुआ है। एक
आिमी के पास सब होता है लेदकन उसके पास िो पैर नहीं होते, उसे हम पंगु कहते हैं। इससे उलटे तरह की
पंगुता भी हो सकती है शजसका हमें ियाल भी नहीं है। एक आिमी के पास कु छ न हो, के वल िो पैर हों, तो वह
आिमी इनवटेि दक्रशपकि है। वह उलटे ढंग से पंगु हो गया है।
शिक्षा ने मनुष्य को स्वस्थ नहीं दकया, पंगु दकया है। के वल बुशद्ध का शवकास और िेर् अंग अशवकशसत रह
गए हैं। बुशद्ध बड़ी होती चली गई और जीवन के सब स्रोतों से उसके संबंध, नाते शवशचछन्न हो गए। हम शसिाते
क्या हैं? हम शिक्षा के नाम पर िे ते क्या हैं? जीवन की कोई शिक्षा िे ते हैं हम? कोई जीवन की कला शसिाते
हैं? जरा भी नहीं। हम कु छ िब्ि शसिाते हैं, कु छ गशर्त शसिाते हैं, कु छ भार्ा शसिाते हैं, कु छ कै मेस्ट्री-

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दफशजक्स शसिाते हैं, कु छ भूगोल-इशतहास शसिाते हैं और इस सब शसिाने में हम शसिाते क्या हैं? हम िब्ि
शसिाते हैं। िब्ि जीवन नहीं है जीवन को जीने में िब्ि की उपािे यता है। लेदकन िब्ि मात्र की शिक्षा जीवन की
शिक्षा नहीं है। तब यह होता है दक िब्ि तो बहुत हो जाते हैं। शिशक्षत व्यशि के पास िब्िों के अशतररि कोई
संपशत्त नहीं होती। वह उतना ही मूढ़ होता है शजतना अशिशक्षत व्यशि। एक फका होता है, शसफा उसे यह भी भ्रम
पैिा हो जाता है दक मैं मूढ़ नहीं हं। जीवन के और सारे अंगों के संबंध में वह उतना ही अज्ञानी होता है शजतना
कोई और जंगल का शनवासी। जीवन की कला के संबंध में उसकी कोई समझ नहीं होती। जीवन को जीने के
रास्तों का उसे कोई पता नहीं होता। जीवन से उसका कोई पररचय ही नहीं होता। पुस्तकालयों से और दकताबों
से जीवन का क्या नाता है? क्लास रूम से जो पररशचत है वह जीवन से पररशचत है, ऐसा समझ लेने की भूल में
पड़ जाने की कोई जरूरत नहीं है। और शवश्वशवद्यालय में जो स्वर्ा पिक ले शलया, जीवन उसे शमट्टी के पिक भी
नहीं िे गा इसे ियाल रिना जरूरी है।
िब्िों की शिक्षा मात्र िब्िों का संग्रह, मात्र िब्िों की संपशत्त मशस्तष्क पर एक बोझ तो बन जाती है,
लेदकन मशस्तष्क को न तो मुि करती है, न जीवंत बनाती है, न शवचारपूर्ा बनाती है, न जीवन को िे िने की
मौशलकता िे ती है, न जीने की कला िे ती है, न जीने का उपाय शसिाती है। इसको हम अब तक शिक्षा कहते रहे
हैं। इस शिक्षा का यह फल है जो आिमी आज हमारे सामने िड़ा हो गया है--बीमार, शवशक्षप्त, रुग्र्।
क्या आपको पता है शजतनी शिक्षा बढ़ती जाती है उतना आिमी शवकृ त होता चला जाता है? अशिशक्षत
आिमी के पास एक तरह का संतुलन और स्वास्थ्य था जो शिशक्षत आिमी के पास नहीं है। जंगलों के वाशसयों के
पास एक तरह का सौंिया था, एक तरह का संगीत था, एक आनंि था; जीवन में एक अथा और प्रयोजन था जो
शिशक्षत आिमी के पास नहीं है। यह बड़ी हैरानी की बात है। शिशक्षत होकर क्या हम आनंि को िोने के मूकय
पर शिशक्षत हो रहे हैं? हमारी आनंि को अनुभव करने की क्षमता और पात्रता कम हो रही है? क्या हम जीवन
के साथ अपनी जड़ों का संबंध तोड़ रहे हैं?
अगर हम िे िें, शिशक्षत आिमी को शनष्पक् र् आंिों से िे िना करठन है, क्योंदक हम भी शिशक्षत आिमी
हैं। इसशलए बहुत करठन है यह बात दक हम शिशक्षत आिमी के रोग को िे ि सकें । जहां एक ही रोग होता है वहां
पहचानना बहुत करठन हो जाता है। हम सभी शिशक्षत हैं, न के वल हम शिशक्षत हैं बशकक हम शिक्षक भी हैं। हम
उसी शिक्षा को फै लाने और िे ने वाले लोग भी हैं। हमें यह िे िना बहुत करठन हो जाएगा, यह सोचना बहुत
करठन हो जाएगा दक जो हम फै ला रहे हैं वह मनुष्य को स्वस्थ नहीं बना रहा है। लेदकन शजनके पास भी आंिें हैं
और शजन्होंने शिक्षा में शिशक्षत होकर अपनी पूरी बुशद्धमत्ता नहीं िो िी है वे लोग कु छ बातें िे िने में समथा हो
सकते हैं।
अमरीका सवााशधक शिशक्षत मुकक है, लेदकन सवााशधक पागलों की संख्या भी अमरीका में है। इन िोनों के
बीच कोई संयोग है, संबंध है या के वल एक्सीिेंट है? जो मुकक शजतने शिशक्षत होते जा रहे हैं उन मुककों का
मानशसक तनाव, टेंिन उतना ही बढ़ता चला जा रहा है। ये आंकड़े हमारे ियाल में हैं या नहीं? जो मुकक शजतने
शिशक्षत हो रहे हैं उतने ही आत्मघात की संख्या वहां बढ़ती चली जा रही है। अमरीका में ही प्रशतदिन पंद्रह
लाि से लेकर तीस लाि लोग मानशसक शवकारों के शलए शचदकत्सा की तलाि करते हैं। और ये सरकारी आंकड़े
हैं, और हम भलीभांशत जानते हैं सरकारी आंकड़े कभी भी ठीक नहीं होते। पंद्रह लाि से तीस लाि लोग अगर
रोज मानशसक शचदकत्सा को िोज रहे हों, तो हमें जानना चाशहए कोई व्यशिगत भूल नहीं हो रही है, कोई
सामूशहक बीमारी मनुष्य के भीतर प्रशवि हो रही है। न्यूयाका में तीस प्रशतित लोग शबना िवा शलए रात को

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नहीं सो सकते हैं। और वहां के वैज्ञाशनकों की िोज-बीन और िोध का यह नतीजा है दक आने वाले पचास वर्ों
में न्यूयाका में एक भी आिमी शबना िवा शलए नहीं सो सके गा।
यह शवकशसत होते मनुष्य के लक्षर् हैं। और न्यूयाका से हमारा क्या वास्ता है, लेदकन बंबई भी बहुत दिन
पीछे नहीं रहेगी। हम भी शवकास करने में, िौड़ करने में साथ िड़े हो गए हैं। चहंिुस्तान भी पीछे नहीं रहेगा। जो
चहंिुस्तान हर चीज में जगतगुरु रहा है वह पागलपन में भी जगतगुरु होकर ही रहेगा। हम बच नहीं सकते। हम
िौड़ रहे हैं। हमारे नेता पूरी कोशिि कर रहे हैं दक हम दकसी से पीछे न रह जाएं। पशिम पर जो एक काली
छाया मानशसक तनाव और अिांशत की पैिा हुई है वह कै से पैिा हो गई है?
शजन लोगों ने शपछले तीन सौ वर्ों में पशिम को शिशक्षत करने की कोशिि की है उन भले लोगों का भली
इचछाओं के साथ ही इसके पीछे हाथ है। िायि उन्हें पूरे जीवन का पता नहीं था। िायि अके ली बुशद्ध शवकशसत
हो जाएगी तो मनुष्य सुिी हो जाएगा यह ियाल था। जरूर बुशद्धमत्ता शवकशसत होनी चाशहए, बुशद्ध शवकशसत
होनी चाशहए। लेदकन जीवन के सारे अंगों के अनुपात में, बैलेंस में स्वास्थ्य के साथ, हृिय के साथ, प्रार्ों के
साथ उसका शवकास होना चाशहए। वह अके ली शवकशसत हो जाएगी तो ितरा होना शनशित है।
बुशद्ध के पास कोई हृिय नहीं होता है और बुशद्ध शजस जीवन को बनाएगी और शजस जगत को बनाएगी
वह भी हृियहीन होगा। बुशद्ध के पास गशर्त होता है, प्रेम नहीं। बुशद्ध के पास शहसाब और आंकड़े होते हैं,
भावना नहीं। बुशद्ध संख्याओं में सोचती है और तका में सोचती है। जीवन तका और संख्याओं और गशर्त के पार
चला जाता है। जीवन बहुत रहस्यपूर्ा है। कोई गशर्त जीवन को समझा नहीं पाता। कोई संख्या, कोई आंकड़े
जीवन को हल नहीं कर पाते। जीवन बहुत शमस्टरीररयस है। लेदकन बुशद्ध शमस्टरी को मानती ही नहीं, रहस्य
को मानती ही नहीं। बुशद्ध मानती है दक सब चीजें िो और िो चार जैसी सीधी और साफ हैं। बुशद्ध की यह जो
नॉन-शमस्टरीररयस, यह जो रहस्य-िून्य और हृिय-हीन पहुंच है जीवन के प्रशत, उसने ही जीवन को यांशत्रकता
प्रिान कर िी है।
मनुष्य रोज-रोज मिीन की भांशत होता चला जा रहा है। लेदकन जब कोई आिमी मिीन हो जाता है तो
हम कहते हैं बहुत एदफशिएंट है, हम कहते हैं बहुत कु िल है। मिीन आिमी से हमेिा ज्यािा कु िल होती है,
और आिमी की कु िलता पर ही अगर हमारा जोर रहा तो एक न एक दिन आिमी मिीन के जैसा कु िल हो
जाएगा। लेदकन अपनी आत्मा को िोकर। आिमी भूल-चूक करता है, मिीन भूल-चूक नहीं करती। हम ऐसे
आिमी की कोशिि कर रहे हैं शजससे भूल-चूक न हो सके , जो एकिम कु िल हो, जो एकिम गशर्त की लकीरों
पर चलता हो। गशर्त की लकीरों पर चलना, रे ल जैसे पटररयों पर िौड़ती है उस भांशत है। लेदकन जीवन की
सररताएं पटररयों पर नहीं िौड़ती, अनजान, अपररशचत मागों पर िौड़ती हैं। जीवन की सररता की एक
स्वतंत्रता है जो बुशद्ध के बंधे हुए ढांचों में समाशवि नहीं होती। लेदकन आज तक हमने यह दकया है।
तो पहली बात मैं आपसे यह कहना चाहता हं दक अके ली बुशद्ध की शिक्षा बुशद्धमत्ता नहीं है, यह शव.जिम
नहीं है। जीवन के और पहलू भी हैं, और बुशद्ध से भी ज्यािा महत्वपूर्ा हैं। क्योंदक आिमी बुशद्ध से नहीं जीता,
आिमी के जीने के स्रोत बुशद्ध से कहीं ज्यािा गहरे हैं। न तो बुशद्ध से हम प्रेम करते हैं, न बुशद्ध से हम क्रोध करते
हैं, न बुशद्ध से हम घृर्ा करते हैं, न बुशद्ध से हम सौंिया को परिते हैं, न बुशद्ध से हम गीत और काव्य को पढ़ते हैं,
और न ही बुशद्ध से जीवन की कोई भी गहरी अनुभूशत उपलब्ध होती है। अके ले बुशद्ध की शिक्षा जीवन को सब
तरह की अनुभूशतयों से क्षीर् और वंशचत कर िे तो आिया नहीं। लेदकन हम बुशद्ध की ही शिक्षा िे ते रहे हैं। इस
शिक्षा ने एक अत्यंत असंतुशलत, अनबैलेंस्ि मनुष्य को पैिा कर दिया है।

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यह जो असंतुशलत मनुष्य है यह कु छ भी कर रहा है, इससे कु छ भी हो रहा है, यह कोई भी उपद्रव कर
रहा है। यह उपद्रव शबककु ल ही सुशनशित है दक होंगे, क्योंदक जब आिमी भीतर से असंतुशलत हो जाए तो
उसकी बाहर की चयाा भी असंतुशलत हो जाती है। उसके जीवन में दफर कोई गशत, कोई सुशनशित लक्ष्य, कोई
संगीत, कोई लयबुद्धता, कोई ररिम नहीं रह जाती। यह तो हमारे िुभााग्यों में पहला िुभााग्य हुआ दक शिक्षा को
हमने के वल बुशद्ध की शिक्षा समझ रिा है, समग्र जीवन की नहीं, टोटल, पूरे जीवन की नहीं। पूरे जीवन की
शिक्षा और ही अथा लेगी।
मेरी िृशि में बुशद्ध पर अशत भार मनुष्य के भीतर कु छ चीजों को शवकशसत होने से ही रोक िे ता है। पांच
वर्ा के बच्चों को हम स्कू ल भेज िे ते हैं, उनकी बुशद्ध पर इतना भार पड़ता है--उनके िरीर, उनके हृिय, उनकी
भावनाओं की जीवन में रस और आनंि लेने की सब क्षमताएं क्षीर् हो जाती हैं। सारे जीवन का रस बुशद्ध ले
लेती है और बाकी सारा जीवन सूि जाता है। ये बच्चे बड़े होते हैं हृियहीन, भावना-िून्य, प्रेम से ररि, मिीनों
की भांशत। उनका एक ही मूकय होता है दक वे दकतने बड़े पिों पर पहुंच जाएं, दकतनी तनख्वाहें ले आएं, दकतनी
कु िलता से काम करें । बस इतना ही मूकय है।
आिमी इसशलए पैिा होता है? आिमी के वल इसशलए पैिा होता है दक वह ज्यािा तनख्वाह कमाए और
बड़ी कु र्सायों पर बैठ जाए? या आिमी दकसी और आनंि की संपिा को िोजने जीवन में आता है? लेदकन उस
संपिा को िोजने के शलए कु छ और चीजें शवकशसत होनी चाशहए। मेरी िृशि में, आज तो यह बात आपसे कहंगा
तो बहुत अजीब लगेगी, जब तक सारी मनुष्य-जाशत आज नहीं कल इस शनर्ाय पर पहुंचेगी दक िस या बारह
वर्ा तक या चौिह वर्ा तक बच्चे की बुशद्ध पर कोई भार नहीं होना चाशहए। चौिह वर्ा के बाि ही बच्चे की बुशद्ध
पर भार होना चाशहए। चौिह वर्ा तक उसके िरीर और उसकी भावनाओं के शवकास पर सारा श्रम होना
चाशहए। चौिह वर्ा बच्चे के जीवन में बहुत संक्रमर्कालीन हैं। जैसे ही सेक्स मैचयोररटी उपलब्ध होती है, जैसे
ही बच्चा यौन की िृशि से पररपक्व होता है, उसके बाि ही उसकी बुशद्ध का सम्यक शवकास करना आसान और
उशचत है। उसके पहले उसके जीवन के और बहुमूकय शहस्से हैं वे शवकशसत होने चाशहए। उसका स्वास्थ्य
शवकशसत होना चाशहए, उसकी भावनाएं शवकशसत होनी चाशहए, उसके प्रेम करने की क्षमता शवकशसत होनी
चाशहए। क्योंदक बचपन में शजन बच्चों के प्रेम करने की क्षमता शवकशसत नहीं हुई है वे बूढ़े भी हो जाएं तो उनके
भीतर प्रेम का शवकास नहीं हो सके गा।
बचपन सबसे सुिि और अिभुत मौका है दक बच्चे के जीवन में प्रेम शवकशसत हो जाए, लेदकन उस समय
को हम गशर्त शसिाने में, भूगोल शसिाने में और इशतहास की बेवकू दफयां शसिाने में नि करते हैं और समाप्त
करते हैं। क्या प्रयोजन है? बच्चा अगर नहीं जानेगा बहुत भूगोल तो कु छ हजा नहीं होता है। और बच्चे ने अगर
अकबर और नेपोशलयन और शसकं िर जैसे पागल लोगों के नाम नहीं सीिे तो कोई फका नहीं पड़ता है। दकन
लोगों ने दकतने लोगों की हत्याएं की हैं अगर इसकी कोई योजना बच्चे ने नहीं सीिी तो कोई अंतर नहीं पड़ता
है। और दकस सन में कौन बाििाह पैिा हुआ और मरा, इन नासमशझयों को सीिाने का न कोई अथा है, न कोई
सार है। लेदकन इन सबके शसिाने में बच्चे के प्रेम के जो क्षर् थे शवकशसत होने के , वे नि हो जाते हैं।
क्या आपको पता है, बचपन के बाि आपका सारा प्रेम झूठा और थोथा और धोिे से भरा हो जाता है?
शजनको आपने बचपन में चाहा है उस चाह में और शजनको आप बड़े में चाहते हैं, बुशनयािी फका है। बचपन की
वह जो पशवत्रता है प्रेम की, अगर एक बार िो गई, अगर वह इनोसेंस एक बार िो गई, तो जीवन में उसे
िुबारा पाना अत्यंत िूभर, अत्यंत असंभव हो जाता है। बचपन की सारी पात्रता प्रेम के शवकास में लगनी

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चाशहए, बुशद्ध के शवकास में नहीं। क्योंदक प्रेम के आधार पर, बुशनयाि पर जो जीवन का भवन िड़ा होता है
वही के वल आनंि को उपलब्ध हो सकता है। बुशद्ध से आनंि का कोई भी नाता और संबंध नहीं है। बुशद्ध को हम
बुशनयाि में रि िे ते हैं दफर जो भवन िड़ा होता है वह मंदिर नहीं होता है, वह एक फै क्टरी बन जाती है।
आिमी को चजंिगी फै क्टरी बनानी हो, तो बुशद्ध पर भवन िड़ा होना चाशहए। और आिमी की चजंिगी
एक मंदिर बनाना हो, तो प्रेम पर बुशनयाि रिी जानी चाशहए। बचपन के सारे क्षर् हृिय के शवकास में दिए
जाने चाशहए, सारा श्रम हृिय के शवकास के शलए होना चाशहए। और हृिय के शवकास के शलए कु छ और अवसर
िोजने पड़ते हैं। वे अवसर नहीं जो हम स्कू ल में और शवद्यालय में िोजते हैं। हृिय के शवकास के शलए जरूरी है
दक बच्चा िुले आकाि के नीचे हो, बजाय बंि मकानों में। क्योंदक बंि मकान हृिय को भी बंि और कुं रठत करते
हैं। िुले आकाि के नीचे हो, िरख्तों के पास हो, चांि -तारों की छाया में हो, नदियों और समुद्रों के दकनारे हो,
िुली शमट्टी और पृथ्वी के संसगा में हो। शजतने शवराट के शनकट होगा बच्चा उतने ही प्रेम का उसके भीतर जन्म
होगा, और सौंिया का बोध, और रस शवकशसत होगा। बंि िीवालों में काले तख्तों के सामने बैठे हुए छोटे-छोटे
बच्चों पर जो अपराध हो रहा है, जो पाप हो रहा है, उसकी गर्ना आज नहीं कल मनुष्य-जाशत कभी न कभी
करे गी, तो हम सब िोर्ी करार शसद्ध होंगे। बच्चों को होि आते ही हम बंि कमरों और िीवालों में बंि कर िे ते हैं
शिक्षा के नाम पर। कारागृह में बंि कर िे ते हैं और क्या शसिाते हैं उन्हें हम? और कौन से जीवन का मूकय
शसिाते हैं? दफर बचपन के अिभुत क्षर् जब दक जीवन से संपका हो सकता था, वे िो गए।
रवींद्रनाथ ने शलिा है, दक मुझे बंि दकया जाता था स्कू लों में। बाहर वृक्षों पर शचशड़यां गीत गाती थीं
और मुझे काले तख्ते को ही िे िते रहना पड़ता था। शचशड़यों के गीत बहुत अिभुत थे, लेदकन मुझे शिक्षक की ही
बेसुरी आवाज और भूगोल पढ़नी पड़ती थी। और अगर मेरे कान और अगर मेरे प्रार् पशक्षयों के शनकट पहुंच
जाते तो सजा झेलनी पड़ती थी। दफर रवींद्रनाथ ने िांशतशनके तन में पहली िफा जब शवद्यालय िोला तो कौन
उनको अपने बच्चे िे ता शबगाड़ने के शलए? रवींद्रनाथ िुि भी कोई उपाशध नहीं पा सके , दकसी शवश्वशवद्यालय से।
सौभाग्य था उनका, नहीं तो िुशनया एक महाकशव से वंशचत रह जाती। भाग्यिाली थे वे। उनके मां-बाप
असफल हो गए और रवींद्रनाथ को स्कू ल से उठा शलया। अगर मां बाप सफल हो जाते तो िुशनया को एक बहुत
बड़ा नुकसान सहना पड़ता। और इस िुशनया ने इतने दकतने नुकसान सहे होंगे मनुष्य के इशतहास में उनका कोई
आंकलन नहीं हो सकता, क्योंदक उनका कोई पता नहीं हो सकता दक दकतने रवींद्रनाथ िो गए होंगे स्कू लों में।
रवींद्रनाथ ने जब पहला स्कू ल िोला, कौन भेजता अपने बच्चों को शबगाड़ने के शलए? मैं कोई स्कू ल िोलूं
तो आप अपने बच्चे को भेजेंगे? नहीं भेजेंगे। बच्चों को शबगाड़ने के शलए कौन भेजता है? लेदकन दफर भी
रवींद्रनाथ के शमत्रों के कु छ ऐसे बच्चे थे शजनको और शबगाड़ना संभव ही नहीं था, उनको रवींद्रनाथ के स्कू ल भेज
दिया गया। वे आशिरी सीमा पर थे, उनसे कोई आिा और शबगड़ने की नहीं थी। रामानंि चटजी ने, मािान
ररव्यू के संपािक ने भी अपने लड़के को भेजा हुआ था। उससे वे बाज आ गए थे। शजन लड़कों में भी थोड़ी
प्रशतभा होती है मां-बाप उनसे जरूर परे िान हो जाते हैं। प्रशतभाहीन, मेधा-ररि जड़बुशद्ध बच्चे मां-बाप को बड़े
प्रीशतकर लगते हैं। क्योंदक उनसे जहां कहो बैठ जाओ वे वहीं बैठ जाते हैं और कहो उठ जाओ तो उठ जाते हैं।
उनके पास अपनी न कोई आत्मा होती है, न अपने कोई प्रार् होते हैं।
रामानंि ने अपने लड़के को भी भेजा था। तीन महीने बाि रामानंि िे िने गए दक हालत क्या है, स्कू ल
कै सा चलता है? कोई आिा तो न थी स्कू ल चलने की, लेदकन जो िे िा उससे और बड़ी हैरानी हुई। एक बड़े वृक्ष
के नीचे रवींद्रनाथ बैठे हैं, िस-पंद्रह बच्चे उनके आस-पास बैठे हैं। पढ़ाई चलती है। पास जाकर रामानंि ने िे िा

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दक िस-पंद्रह नीचे बैठे हैं, िस-पंद्रह वृक्ष के ऊपर भी चढ़े हैं। यह कै सी कक्षा है? रवींद्रनाथ से उन्होंने कहााः मुझे
िक था पहले ही, यह क्या हो रहा है? यह कोई कक्षा है? िे ि कर मुझे िुि होता है। लड़के वृक्ष पर चढ़े हुए हैं?
रवींद्रनाथ ने कहााः िुि मुझे भी होता है। फल पक गए हैं। जो लड़के नीचे बैठे हैं उन पर मैं हैरान हं। िुि
मुझे भी होता है, िुिी मैं भी हं। मैं बूढ़ा हो गया अन्यथा मैं भी वृक्ष के ऊपर होता। फल पक गए हैं। फलों की
सुगंध हवाएं ले आई हैं। वृक्ष पुकार रहा है। और अगर बच्चे नहीं चढ़ेंगे तो कौन चढ़ेगा? वृक्षों ने शनमंत्रर् िे दिया
है। ये बच्चे अभी से बूढ़े हो गए जो नीचे बैठे हैं। इन्हें शनमंत्रर् ही नहीं शमल रहा है। इनकी नासापुटों में िबर
नहीं हो रही है दक पक गए हैं फल। वृक्ष बुलाता है दक आओ। िुिी होंगे वे जो असमथा हैं ऊपर चढ़ने में, जो बूढ़े
हो गए। लेदकन ये तो अभी बूढ़े नहीं हुए। मैं यही सोचता था बैठा-बैठा। ये बच्चे अभी से बूढ़े हो गए हैं क्या? इन्हें
वृक्ष की चुनौती नहीं शमली? इन्हें कोई िबर नहीं शमली?
हम बच्चों को बचपन में ही बूढ़ा कर िे ते हैं, और दफर अगर जीवन से युवापन, ताजगी, फ्रेिनेस नि हो
जाती हो तो कौन शजम्मेवार है? मेरे िे िे, बहुत अनाचार हो रहा है, बहुत अत्याचार हो रहा है, बहुत गलत हो
रहा है। बचपन के क्षर् इतने अिभुत हैं दक जीवन में वे वापस नहीं लौटेंगे। शहसाब-दकताब की बातें बाि में भी
हो सकती हैं। पूरा जीवन पड़ा है। लेदकन जीवन के कु छ मूकयवान तत्व बचपन में ही दिए जा सकते हैं जो दफर
कभी नहीं दिए जा सकते।
प्रकृ शत का साशन्नध्य शजन बच्चों को नहीं शमलता उन बच्चों को परमात्मा का साशन्नध्य भी नहीं शमल
सके गा, यह जान लेना चाशहए। क्योंदक प्रकृ शत द्वार है परमात्मा का। शजन्होंने आकाि के तले, सूरज के शनकट,
समुद्र की रे त पर, वृक्षों के पास वह जो वहां मौजूि है, जो प्रेजेंस वहां है परमात्मा की, उसे अनुभव नहीं कर
शलया बचपन में, वे बुढ़ापे तक मंदिरों में पूजा करें गे, पत्थरों की मूर्तायों के सामने शसर झुकाएंगे, गीता, कु रान
और बाइशबल कं ठस्थ कर लेंगे, लेदकन परमात्मा से उनका कोई संबंध नहीं हो सकता। जो द्वार था वे उसको ही
िो गए हैं। जो रास्ता था वे उससे ही भटक गए हैं।
सम्यक शिक्षा, राइट एजुकेिन के शलए पहली बात जान लेनी जरूरी है और वह यह दक हम बच्चों को
प्रकृ शत का साशन्नध्य उपलब्ध करा सकें । उन्हें हम मनुष्य शनर्मात मकानों के पास नहीं, लेदकन जीवन की ऊजाा से
जो शनर्मात हुआ है उसके शनकट ला सकें , उसी से वे परमात्मा के शनकट पहुंच सकें गे, उसी से वे प्रेम के शनकट
पहुंच सकें गे, उसी से वे प्राथाना के सूत्र समझ सकें गे। और तब उनका जो जीवन िड़ा होगा... पीछे आना चाशहए
गशर्त, प्रेम पहले, क्योंदक शजस आिमी ने प्रेम सीि शलया है दफर गशर्त उसे धोिा नहीं िे सके गा।
संत अगस्तीन से दकसी ने पूछााः हम क्या करें , हम क्या करें दक हमसे बुरा न हो? अगस्तीन ने कहााः यह
मत पूछो, मैं तो एक ही बात जानता हं, अगर तुम प्रेम जानते हो तो तुम जो भी करोगे वह बुरा नहीं हो सके गा।
यह मत पूछो दक हम क्या करें , यह सवाल नहीं है। अगर भीतर प्रेम नहीं है तो तुम जो भी करोगे वह बुरा
होगा। और अगर भीतर प्रेम है तो तुम जो भी करोगे वह बुरा नहीं हो सकता है। लेदकन प्रेम की हमने कौन सी
शिक्षा िी है, कौन सी िीक्षा िी है, हमने प्रेम के कौन से प्रमार्-पत्र बांटे हैं, हमने प्रेम की कौन सी उपाशधयां िी
हैं? और अगर तीन हजार वर्ों में आिमी शबककु ल प्रेम-िून्य हो गया हो, हत्यारा हो गया हो, चहंसक हो गया हो
तो कौन है शजम्मेवार? हमारी शिक्षा के अशतररि और दकसी पर यह िोर् नहीं दिया जा सकता, लेदकन इससे
शिक्षक बुरा न मानें, क्योंदक शिक्षा को यह िोर् िे ने का मतलब है, मैं शिक्षा को बहुत आिर िे रहा हं। मैं यह
कह रहा हं दक शिक्षा जीवन का कें द्र है इसशलए कें द्रीय िोर् भी झेलने की तैयारी शिक्षक के पास होनी चाशहए
क्योंदक कें द्रीय सम्मान भी कल उसी को शमल सकता है।

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कल अगर जीवन पररवर्तात होगा तो सम्माशनत भी शिक्षा ही होगी, और अगर आज जीवन िूशर्त और
शवर्ाि हो गया है तो उसके कें द्रीय िोर् को, शजम्मेवारी को, ररस्पांशसशबशलटी को लेने को भी शिक्षािास्त्री को
तत्पर होना ही चाशहए। यह शिक्षा के कें द्रीय होने का, शिक्षा के कें द्र में होने की सूचना है। यह बहुत
सम्मानपूवाक है यह बात जो मैं कह रहा हं दक शिक्षा कें द्रीय है, न तो राजनीशतज्ञ शजम्मेवार है और न धमागुरु
उतना शजतना शिक्षक शजम्मेवार है। लेदकन आने वाली िुशनया भी शिक्षक को ही सम्मान िे गी अगर वह जीवन
को बिलने के कोई आधार रि सकता है। अगर आप नहीं बिल सकें गे बच्चे कल बिलना िुरू कर िें गे।
एक शमत्र मेरे हालैंि से और बैशकजयम से होकर लौटे हैं। उन्होंने मुझे कहा वहां हाई स्कू ल के लड़के और
लड़दकयों ने आगे पढ़ने से इनकार करना िुरू कर दिया है। उनके बड़े संगठन हैं और वे यह कहते हैं दक आगे
पढ़ने से क्या होगा? मां-बाप से भी वे यह पूछते हैं दक आप तो बहुत पढ़े-शलिे हैं, आपके जीवन में क्या हो गया
है? तो हमें व्यथा उसी मिीन से क्यों गुजारते हैं शजससे गुजर कर आपने कु छ भी नहीं पाया है? और मां-बाप के
पास उत्तर नहीं है इस बात का। अगर आपके बच्चे भी आपसे पूछेंगे दक शिशक्षत होकर आपने क्या पा शलया?
क्या उत्तर है आपके पास? शतजोरी बता िें गे अपनी? अपने बड़े मकान बता िें गे? दिकली में पाई गई अपनी
कु र्सायां बता िें गे? क्या बताएंगे बच्चों को?
है कु छ आपके पास जो शिशक्षत होकर आपने पा शलया है? क्या बल से आप कह सकते हैं दक मेरा
आत्मबल बड़ा है। क्या बल से आप कह सकते हैं दक मेरा आनंि शवकशसत हुआ है? क्या बल से आप कह सकते हैं
दक जीवन के प्रशत मेरा मेरा ग्रेरटट्यूि, अनुग्रह-भाव शवकशसत हुआ है? क्या आप कह सकते हैं दक मैं धन्यभागी
हुआ हं? नहीं कह सकते हैं तो बच्चे आज नहीं कल आपसे पूछेंगे और अगर उत्तर नहीं है आपके पास तो मैं
आपको कहे िे ता हं बच्चे आज नहीं कल, आपकी शिक्षा की फै शक्ट्रयों में जाने से इनकार करें गे उन्होंने बहुत
शिशक्षत मुककों में इनकार करना िुरू कर दिया है। ठीक भी है उनका इनकार। लेदकन इसके पहले दक वे इनकार
करें , क्या हम सारे जीवन के सोचने का ढंग बिल नहीं सकते?
सेक्स मैचयोररटी तक जब तक बच्चा यौन की िृशि से पररपक्व नहीं हो जाता लड़का या लड़की, तब तक
उसके जीवन की कें द्रीय शिक्षा प्रेम और हृिय की होनी चाशहए। क्योंदक सारा जीवन उससे शनकलेगा, दफर वह
पत्नी बनेगी या पशत बनेगा, वह बाप बनेगा या मां बनेगी, उसके जीवन के सारे रागात्मक संबंध उसके प्रेम और
हृिय के संबंध होंगे; गशर्त के नहीं, भूगोल के नहीं, इशतहास के नहीं। इशतहास पढ़ने से कोई मां ज्यािा बेहतर
मां नहीं बन सकती और न भूगोल पढ़ने से कोई बाप ज्यािा बेहतर बाप बन सकता है। कु छ और चाशहए जो
एक बेहतर मां को, बेहतर बाप को पैिा करे । कु छ और चाशहए जो एक पत्नी को और पशत को पैिा करे ।
आज न तो िुशनया में मां है, न बाप; न पत्नी और न पशत। इनके नाम पर सूिो ररलेिनशिप्स हैं, इनके
नाम पर झूठे संबंध हैं। शजसको आप पत्नी कहते हैं उसको कभी आपने प्रेम दकया है? यह तो हो भी सकता है दक
शजसको आप पत्नी नहीं कहते हैं उसको आपने कभी प्रेम दकया हो, लेदकन शजसको आप पत्नी कहते हैं उसे कभी
नहीं। शजसको पत्नी पशत कहती है उसको कभी चाहा है? उसे कभी आिर दिया है? उसे कभी प्रेम दकया है?
प्रार्ों ने कभी उसके शलए प्राथाना की है? कभी उसके जीवन को समृद्ध और संगीतपूर्ा बनाने के शलए कोई किम
उठाए हैं? शबककु ल नहीं, बशकक उसके जीवन में शजतने कांटे बो सकें पशत्नयां उतने कांटे बोती हैं, शजतनी बाधाएं
िड़ी कर सकें उतनी बाधाएं िड़ी करती हैं, और पशत भी यही करते हैं, मां-बाप भी यही करते हैं। कहते हैं हम
दक अपने बच्चे को प्रेम करते हैं। हमने प्रेम जाना ही नहीं, हम बच्चे को प्रेम कै से करें गे? अगर हम बच्चों को प्रेम
करते होते, तो िुशनया में इतने युद्ध नहीं हो सकते थे। कौन मां-बाप हैं जो अपने बच्चों को युद्ध में भेजते? अगर

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हम अपने बच्चों को प्रेम करते होते तो िुशनया इतनी कु रूप नहीं हो सकती थी। अगर हम अपने बच्चों को प्रेम
करते होते, तो मैं तो यह कहता हं दक आप बच्चे पैिा भी नहीं कर सकते थे। क्योंदक इस कु रूप और गंिी िुशनया
में कौन प्रेम करने वाले मां-बाप अपने बच्चों को पैिा करने को तैयार होते? वे हाथ जोड़ लेंगे दक इस िुशनया में
हम बच्चे को कै से लाएं? दकस मुंह से लाएं? कल बच्चे बड़े होंगे तो हम बेिमा मालूम होंगे उनके सामने दक इस
िुशनया में हमने तुमको पैिा दकया। इस कु रूप, बििक्ल, अनीशत से भरी, अंधकारपूर्ा िुशनया में हम तुम्हें कै से
भेजें?
मां-बाप बच्चे पैिा करने से इनकार कर िे ते अगर उनके हृिय में प्रेम होता। नहीं, लेदकन वे बच्चे पैिा दकए
चले जाते हैं। उन्हें बच्चों से कोई प्रयोजन नहीं है। वे बच्चों को बड़ा दकए चले जाते हैं। वे बच्चों को तोप-बंिूक का
भोजन बनाए चले जाते हैं। नई-नई तरकीबों और नये-नये नामों पर बच्चों की हत्या करवाए चले जाते हैं--
चहंिुस्तान के नाम पर, पादकस्तान के नाम पर, चीन के नाम पर, कम्युशनज्म के नाम पर, िेमोक्रेसी के नाम पर।
दकसी भी बड़े नारे के नाम पर मां-बाप अपने बच्चों की हत्या करवाने को हमेिा तैयार हैं। नाम बहुत बड़े हैं,
नारे बहुत बड़े हैं, बच्चे बहुत छोटे हैं।
अगर िुशनया में प्रेम होता मां-बाप के मन में बच्चों के प्रशत एक िूसरी िुशनया पैिा होती शजसमें युद्ध नहीं
हो सकते थे। क्योंदक हर बच्चा दकसी मां का बच्चा है और हर बच्चा दकसी बाप का बेटा है। कौन अपने बच्चों को
युद्ध में भेजने को राजी होता? हम कह िे ते शमट जाए पादकस्तान, शमट जाए चहंिुस्तान, लेदकन बच्चे युद्ध में नहीं
जा सकते। बचे चीन, बचे रूस न बचे, अमरीका रहे न रहे, लेदकन कोई मां अपने बेटे को युद्ध पर भेजने के शलए
तैयार नहीं है। िुशनया से युद्ध भी ित्म होते, राजनीशत भी, राजनीशतज्ञ भी, राष्ट्र भी। लेदकन कोई अपने बेटों
को प्रेम नहीं करता है। प्रेम हम जानते ही नहीं हैं। प्रेम से हमारा पररचय ही नहीं है। प्रेम से हमारी मुलाकात ही
नहीं हो पाई है। प्रेम से मुलाकात के क्षर् तो हमने न मालूम क्या-क्या दफजूल की बातें सीिने में नि कर दिए
हैं। तो मेरी िृशि में शिक्षा की बुशनयाि होनी चाशहए प्रेम, बुशद्ध नहीं। बुशद्ध के वल उपकरर् है। अगर भीतर प्रेम
होगा तो बुशद्ध एक मीन्स बन जाती है, एक उपकरर् बन जाती है प्रेम को फै लाने और शवकशसत करने का, और
भीतर अगर प्रेम नहीं होगा तो बुशद्ध एक उपकरर् बन जाती है अप्रेम को फै लाने का।
ट्रूमैन ने शहरोशिमा पर एटम बम शगराने की आज्ञा िी। िूसरे दिन सुबह, मैंने सुना है, पत्रकारों ने ट्रूमैन
को घेर शलया और पूछााः रात आप िांशत से सो सके ? ट्रूमैन ने कहााः बहुत िांशत से। जैसे ही मुझे िबर शमली दक
शहरोशिमा, नागासाकी राि हो गए और जापान समपार् कर िे गा, वैसे ही मैं पहली िफा िांशत से सो सका।
उन पत्रकारों में से दकसी ने भी यह नहीं पूछा दक एक लाि बीस हजार आिमी नि हो गए और तुम िांशत से
सो सके ? तुम आिमी हो या कु छ और? लेदकन उस आिमी का नाम हैाः ट्रूमैन, असली आिमी।
हमारी शिक्षा ऐसे ही ट्रूमैन पैिा कर रही है। शजनके भीतर कोई मनुष्यता, शजनके भीतर प्रार्ों की कोई
ऊजाा, कोई करुर्ा नहीं है। शजनके पास प्रेम का कोई झरना नहीं है। शजनके पास प्रेम का झरना नहीं है वे
शहसाब लगाने वाले कं प्यूटसा हो सकते हैं, वे मिीनें हो सकते हैं शहसाब लगाने वाली, लेदकन आिमी नहीं।
आिमी की पहली पहचान उसके भीतर प्रेम है, शजतना बड़ा प्रेम उतना बड़ा आिमी। शजतना बड़ा प्रेम उतनी
उस आिमी की परमात्मा से सशन्नशध। इसशलए एक बात ही बुशनयािी रूप से कहना चाहता हं दक शिक्षा के
प्राथशमक चरर् प्रेम के चरर् होने चाशहए। और प्रेम के चरर् उठाने के शलए बंि िीवालें नहीं, िुला आकाि,
पक्षी और वृक्ष, तारे और चांि चाशहए।

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प्राथशमक शिक्षा गशर्त की नहीं काव्य की। प्राथशमक शिक्षा भूगोल की नहीं सौंिया की। प्राथशमक शिक्षा
शवज्ञान की नहीं, कला की। प्राथशमक शिक्षा तनाव की नहीं, शवश्राम की और िांशत की। अगर हम चौिह वर्ा
तक की शिक्षा को इस भांशत व्यवशस्थत कर सकें तो बाि में इन बच्चों को शबगाड़ना करठन है। इनको दफर दकसी
भी स्कू ल और दकसी भी युशनवर्साटी में भेजा जा सकता है। दफर इन्हें कु छ भी शसिाया जा सकता है। उससे दफर
कोई ितरा नहीं होगा। इनके प्रेमपूर्ा हाथ में अगर तलवार िे िी जाएगी तो उस तलवार से कोई नुकसान नहीं
होगा। एटम िे दिया जाएगा तो कोई नुकसान नहीं होगा। दफर बड़ी से बड़ी िशि प्रेम के हाथों में सृजनात्मक,
दक्रएरटव हो जाती है। शवज्ञान ने िशि िोज िी है आिमी के शलए बड़ी से बड़ी, लेदकन शिक्षक प्रेमपूर्ा हृिय
नहीं िे पाया। बड़ी िशि ितरनाक है उन हाथों में शजनके पास प्रेम न हो।
नादिरिाह चहंिुस्तान की तरफ आता था। एक ज्योशतर्ी से उसने पूछा दक मैं सुनता हं दक ज्यािा सोना,
ज्यािा नींि लेना बहुत बुरा है और मुझे तो बहुत नींि आती है। क्या सच में बुरी बात है ज्यािा िे र सोए रहना?
उस ज्योशतर्ी ने कहााः नहीं, आप जैसे लोग अगर चौबीस घंटे सोए रहें तो बहुत अचछा है। बुरे लोग अगर
शबककु ल सो जाए तो बहुत अचछा है। भले लोगों का जागना अचछा होता है, बुरे लोगों का सोना।
सुनते हैं नादिरिाह ने उस आिमी की गिा न कटवा िी, लेदकन उसने बात बड़ी सच्ची कही थी। सच्ची बात
कहने वालों की गिा न काटे जाने का पुराना ररवाज रहा है। उसने बात ठीक कही थी। बुरे आिमी का सोना
अचछा है, अचछे आिमी का जागना। ऐसे ही मैं कहता हं प्रेमपूर्ा व्यशि का िशििाली होना अचछा है, प्रेम िून्य
व्यशि का नपुंसक होना अचछा है, िशिहीन होना अचछा है, इं पोटेंट होना अचछा है। प्रेमपूर्ा व्यशि के हाथ में
िशि हो तो जीवन शवकशसत होता है। और प्रेम-िून्य व्यशि के हाथ में िशि हो तो जीवन एक कशब्रस्तान
बनेगा और कु छ भी नहीं बन सकता है। हम यही करते रहे हैं।
इस दििा में चचंतन करना जरूरी है। शिक्षकों से मैं यही प्राथाना और शनवेिन करने आया हं दक वे सोचें,
वे इस संबंध में सोचें दक हृिय का शवकास कै से हो। और अगर जरूरी हो, मुझे तो लगता है दक अगर सौ वर्ा के
शलए सारी िुशनया के सारे शवश्वशवद्यालय और सारे शवद्यापीठ बंि कर दिए जाएं और आिमी के मन को शबककु ल
ही अशिशक्षत छोड़ दिया जाए तो भी नुकसान नहीं होगा, शजतना नुकसान सौ वर्ों में जो शिक्षा चल रही है
उसको िे ने से होने वाला है। आिमी हजारों वर्ा तक अशिशक्षत था। उन अशिशक्षत लोगों ने भी आनंि जाना,
गीत जाने, प्रेम जाना। उन्होंने भी एक िुशनया बनाई थी। उनके जीवन में भी िुिी थी और मुस्कु राहटें थीं, हमसे
ज्यािा, हमसे बहुत ज्यािा। हमने सब िो दिया है। आिमी के शनसगा को वापस लौटा लेना जरूरी है।
मैं यह नहीं कहता हं दक शिक्षा ित्म कर िी जाए। मैं यह कह रहा हं दक शिक्षा की बुशनयाि बिल िी
जाए। और यही शिक्षा चलती हो कोई शवककप न हो, यही शिक्षा एकमात्र ऑकटरनेरटव हो तो मैं कहता हं यह
सारी शिक्षा बंि हो जाए और आिमी वापस जंगल में लौट जाए तो भी हम कु छ िोएंगे नहीं। लेदकन मुझे लगता
है शवककप है, ऑकटरनेरटव और भी हैं, इस शिक्षा को पररपूर्ा दकया जा सकता है। और एक चीज इसमें जुड़
जाए, इसके आधार प्रेम के , भाव के , हृिय के , करुर्ा और िया के हो जाएं। मनुष्य के हृिय को हम पहले
शवकशसत कर लें पीछे उसकी बुशद्ध को। हृिय नेतृत्व करे , बुशद्ध अनुगामी हो तो यह शिक्षा भी सम्यक हो सकती
है।
मैं शनराि नहीं हं। शनराि होता तो दफर आपसे यह बात नहीं कहता। शिक्षकों से यह बात इसी आिा में
कहता हं दक वे सोचेंगे। उनके हाथ में बड़ी िशि है। आज नहीं कल िुशनया उन्हें शजम्मेवार ठहराएगी अगर
गलत हो गया कु छ। उसके पहले चचंतन कर लेना उशचत है। दफर कभी िुबारा आपके बीच आता हं तो मैं इस

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संबंध में आपसे बात कर सकूं गा दक प्रेम की शिक्षा कै से हो। आज तो इस तरफ आपका ध्यान भर िींचा जा सके
तो मैं समझूंगा मेरी बात पूरी हुई। इतना ध्यान भर िींचा जा सके दक बुशद्ध के आधार पर रिे गए शिक्षा के
भवन से फै क्टरी बन सकती है मंदिर नहीं। जीवन का मंदिर बनाना हो तो आधार प्रेम पर रिने होंगे और
बचपन के चौिह वर्ा तक का समय प्रेम के शवकास के शलए अिभुत मौका है। उस वि अगर हम चूक जाते हैं तो
हम हमेिा के शलए चूक जाते हैं। दफर कोई उपाय नहीं रह जाता दक हम उसमें बिलाहट ला सकें । और बचपन
में बिलाहट लाने के शलए कु छ भी करना जरूरी नहीं था। प्रेम के झरने बहने को उत्सुक थे। हमने जान बूझ कर
उन्हें रोक दिया, बहने नहीं दिया। हम के वल मौका बन जाएं उनके प्रेम के झरनों को बहने के शलए तो शबककु ल
नये तरह के मनुष्य को पैिा करने में हम समथा हो सकते हैं।
और एक नये मनुष्य की अत्यंत जरूरत है। न तो इतनी जरूरत है इस बात की दक हम और नये एटम बम
और हाइड्रोजन बम बनाएं। न इस बात की जरूरत है दक हम चांि -तारों पर पहुंचने के शलए स्पुतशनक और यान
बनाएं। न इस बात की जरूरत है दक हम समुद्रों की गहरइयां नाप लें। न इस बात की जरूरत है दक हम बहुत
बड़ी-बड़ी फै क्टररयां, बहुत बड़े-बड़े पुल, बहुत बड़े-बड़े रास्ते बनाएं। ये सब पड़े रह जाएंगे। आिमी अगर गलत
हो गया तो ये सब व्यथा हो जाएंगे। इस वि तो एक ही इमरजेंसी है और वह यह है दक हम ठीक आिमी कै से
बनाएं। आिमी गलत है, ठीक आिमी कै से शनर्मात हो इस दििा में हम सोचें।
मैंने ये थोड़ी सी बातें आपसे कहीं।

मेरी बातों को इतने प्रेम और इतनी िांशत से सुना, उससे बहुत-बहुत अनुगृहीत हं। और अंत में सबके
भीतर बैठे , लेदकन अपररशचत, परमात्मा को प्रर्ाम करता हं। मेरे प्रर्ाम स्वीकार करें ।

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सम्यक शिक्षा
सातवां प्रवचन

सम्यक शिक्षा

मेरे शप्रय आत्मन्!


एक छोटी सी कहानी से मैं अपनी बात िुरू करना चाहंगा।
बहुत पुराने दिनों की कहानी है। एक सम्राट के महल के सामने बहुत भीड़ लगी हुई थी। सुबह से ही भीड़
लगनी िुरू हुई थी और सांझ होने को आ गई थी, भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। सारी राजधानी महल के सामने
इकट्ठी हो गई थी। कोई ऐसी बात घट गई थी दक जो भी आिमी आकर िड़ा हो गया था वह वापस नहीं लौटा
था। िूर-िूर गांव तक िबर पहुंच गई थी दिन भर में। सम्राट के महल के सामने कोई बड़ी अजीब घटना घट
गई। शजसने भी सुनी वह भागा चला आया। बात हो भी ऐसी ही गई थी। सुबह ही सुबह एक शभिारी ने भीि
मांगी थी। सम्राट के सामने शभक्षापात्र फै लाया था। सम्राट ने कहा था अपने चाकरों को दक जाओ अन्न से
शभक्षापात्र को भर िो। उस शभिारी ने कहााः मेरी एक िता है, मैं एक िता पर ही शभक्षा लेना स्वीकार करता हं।
और वह िता यह है दक मेरे शभक्षापात्र को पूरा भरना पड़ेगा। अधूरा शभक्षापात्र भरा लेकर मैं नहीं जाऊंगा। क्या
आप वायिा करते हैं दक मेरे शभक्षापात्र को पूरा भर सकें गे? सम्राट हंसने लगा शभिारी की नासमझी पर। सम्राट
के पास क्या कमी थी जो उस छोटे से पात्र को पूरा न भर सके गा? उसने अपने वजीर को कहा दक अब अन्न से
नहीं स्वर्ा-मुद्राओं से इसके पात्र को भर िो। इस शभिारी को िायि पता नहीं दक मेरे पास धन के अकू त िजाने
हैं।
लेदकन वह शभिारी दफर बोला दक मेरी िता सुन लें, मैं पूरा पात्र भरे गा तो ही लौटू ंगा, नहीं तो वापस
नहीं लौटू ंगा। सम्राट ने वजीर को कहा दक अब स्वर्ा-मुद्राओं से नहीं, हीरे -जवाहरातों से इसके पात्र को भर िो।
और जब तक हीरे वापस नीचे न शगरने लगें, तब तक पात्र भरते ही जाना। तादक इस शभिारी को पता चल
जाए, इसने दकसके द्वार पर भीि मांगी है? वजीर गए और उन्होंने हीरे -जवाहरात लाकर उसके पात्र में िाले।
िालते ही राजा को अपनी भूल पता चल गई। पात्र में हीरे शगरे और कहीं िो गए। पात्र िाली का िाली हो
गया। तब सुबह से सांझ तक यह िौड़ चलती रही, वजीर िौड़ते रहे, और वे िजाने जो कभी िाली नहीं होते
थे, सांझ तक िाली होने लगे। और वह पात्र जो बहुत छोटा दििाई पड़ता था, भरने का कोई नाम ही न लेता
था। िाली का िाली था।
सांझ होते-होते राजा घबड़ाया, बड़े सम्राटों से वह नहीं हारा था, लेदकन एक शभिारी से हारना पड़ेगा,
इसकी ककपना भी न की थी। उिास, सूरज के िू बने के साथ ही वह शभिारी के चरर्ों पर शगर पड़ा और कहा,
मुझे क्षमा कर िें , मुझसे भूल हो गई। मैं इस पुराने शनयम को भूल ही गया दक शभिारी की भूि इतनी बड़ी है
दक सम्राटों के िजाने भी उसे नहीं भर सकते। मुझे क्षमा कर िो। मैंने अपने अहंकार में जो वािा दकया था,
वापस ले लेता हं। मैं हारा और पराशजत हो गया हं। लेदकन जाने के पहले एक बात मुझे बताते जाओ, इस
शभक्षापात्र में कौन सा जािू है? दकन मंत्रों से इसे शसद्ध दकया है? कौन सा रहस्य है इस शभक्षापात्र का जो भरता
नहीं है? उस शभिारी ने कहााः कोई रहस्य नहीं है, न कोई जािू है, न दकन्हीं मंत्रों से इसे शसद्ध दकया है। बड़ी
छोटी सी बात है, मैंने इस शभक्षापात्र को आिमी के हृिय से बनाया है। न आिमी का हृिय कभी भरता है, और
न यह पात्र कभी भर सकता है।

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पता नहीं यह बात कहां तक सच है और कहां तक झूठ है? यह भी पता नहीं दक आिमी के हृिय से कोई
पात्र बनाया जा सकता है? लेदकन पीछे जो कहानी के शछपा हुआ रहस्य है, वह जरूर शबककु ल सत्य है। आिमी
का हृिय कभी भी नहीं भरता है। जीवन भर की िौड़ के बाि भी हृिय िाली रह जाता है। जीवन की संध्या आ
जाती है। और वह जो प्रार्ों का राजा है, मन के शभिारी के चरर्ों पर शगर पड़ता है, और कहने लगता है, क्षमा
कर िो मैं तुम्हें नहीं भर पाया। मैंने जीवन भर कोशिि की, मैंने बहुत िजाने जीते, मैंने बहुत संपिा जुटाई
लेदकन तुम िाली के िाली हो।
शसकं िर शजस दिन मरा था और शजस राजधानी में उसकी अरथी शनकली थी, लोग चदकत रह गए थे िे ि
कर दक अरथी के बाहर उसके िोनों हाथ लटके हुए थे। लोग पूछने लगे दक शसकं िर की अरथी के साथ कोई भूल
हो गई है? हाथ भीतर होने थे, हाथ बाहर क्यों हैं? तो पता चला, मरने के पहले शसकं िर ने कहा था, मेरे हाथ
अरथी के बाहर लटके रहने िे ना, तादक लोग िे ि लें दक मैं भी िाली हाथ शविा हो रहा हं। मेरे हाथ भी भरे हुए
नहीं हैं। आज तक कोई आिमी मन को भरकर शविा नहीं हो सका है।
इस कहानी से मैं क्यों अपनी बात िुरू करना चाहता हं? इसशलए अपनी बात िुरू करना चाहता हं दक
मैं उसी शिक्षा को सम्यक शिक्षा, राइट एजुकेिन कहता हं जो मनुष्य के मन को भरने की इस व्यथा िौड़ के प्रशत
जगा िे । मैं उसी शिक्षा को सम्यक कहता हं जो महत्वाकांक्षा के इस पात्र से मनुष्य को मुि कर िे । मैं उसी
शिक्षा को ठीक शिक्षा कहता हं जो मनुष्य के मन की इस बुशनयािी भूल से छु टकारा दिलाने में सहायक हो
जाए। लेदकन ऐसी शिक्षा पृथ्वी पर कहीं भी नहीं है। उलटे शजसे हम शिक्षा कहते हैं, वह मनुष्य की एंबीिन को,
उसकी महत्वाकांक्षा को बढ़ाने का काम करती है। उसकी महत्वाकांक्षा की आग में घी िालती है। उसकी आग
को प्रज्ज्वशलत करती है। उसके भीतर जोर से त्वरा पैिा करती है। जोर से गशत पैिा करती है तादक वह व्यशि
िौड़े और अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करने में लग जाए। मन की वासनाओं को पूरा करने के शलए व्यशि को
सक्षम बनाने की कोशिि करती है शिक्षा, मन की महत्वाकांक्षा से मुि होने के शलए नहीं। और इसके
स्वाभाशवक पररर्ाम फशलत होने िुरू हुए हैं। वे पररर्ाम यह हैं दक अगर सारे लोग महत्वाकांक्षी हो जाएंगे तो
जीवन एक द्वंद्व और संघर्ा के अशतररि कु छ भी नहीं हो सकता है। अगर सारे लोग अपनी महत्वाकांक्षा के पीछे
पागल हो जाएंगे, तो जीवन एक बड़े युद्ध के अशतररि और कु छ भी नहीं हो सकता है। पुराने जमाने के लोग
अचछे नहीं थे, आज के जमाने के लोग बुरे नहीं हो गए हैं। यह भ्रांशत है शबककु ल दक पहले जमाने के लोग अचछे
थे और आज के लोग बुरे हो गए हैं। यह भी भ्रांशत है दक पहले जमाने के युवक अचछे थे और आज के युवक पशतत
हो गए हैं और चररत्रहीन हो गए हैं। झूठी हैं ये बातें, इनमें कोई भी तथ्य नहीं है। लेदकन एक फका जरूर पड़ा है,
पुराने जमाने का जवान शिशक्षत नहीं था, उसकी महत्वाकांक्षा बहुत कम थी। आज की िुशनया का युवक शिशक्षत
है, उसकी महत्वाकांक्षा की अशग्न में घी िाला गया है, वह पागल होकर प्रज्ज्वशलत हो उठी है। और शजतनी जोर
से शिक्षा बढ़ती जाएगी उतने ही जोर से यह शवशक्षप्तता और पागलपन भी बढ़ता जाएगा। शिक्षा के साथ ही
साथ मनुष्य का पागलपन भी शवकशसत हो रहा है।
अतीत के युग अशिशक्षत थे। बेपढ़े-शलिे लोग थे। उनकी महत्वाकांक्षा धीमे-धीमे जलती थी। आज के युग
की शिक्षा ने आिमी को उसकी महत्वाकांक्षा को बहुत प्रज्जवशलत कर दिया है। पहले कभी कोई एकाध आिमी
पागल हो जाता था और शसकं िर बनने की कोशिि करता था। अब सब आिमी पागल हैं, और सभी शसकं िर
होना चाहते हैं। और हम उन्हें शसकं िर और पागल बनाने की कोशिि को ही शिक्षा का नाम िे ते हैं।

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मैंने पुरानी से पुरानी दकताबें िे िी हैं और मैं िे ि कर हैरान हो गया। चीन में संभवताः िुशनया की सबसे
पुरानी दकताब है, जो कोई साढ़े छह हजार वर्ा पुरानी है। और उस दकताब की भूशमका में शलिा हुआ है दक
आजकल के लोग शबककु ल शबगड़ गए हैं, पहले के लोग बहुत अचछे थे। मैं बहुत हैरान हुआ। वह भूशमका इतनी
मॉिना मालूम पड़ती है, ऐसा मालूम पड़ती है दक आजकल के दकसी लेिक ने दकताब शलिी हो। साढ़े छह हजार
वर्ा पहले कोई शलिता है दक आजकल के लोग शबगड़ गए, पहले के लोग अचछे थे। ये पहले के लोग कब थे?
आज तक जमीन पर एक भी दकताब ऐसी नहीं है, शजसमें यह शलिा हो, आजकल के लोग अचछे हैं। एक भी
दकताब ऐसी नहीं है शजसमें यह शलिा होाः आजकल के लोग अचछे हैं। हर दकताब कहती है, पहले के लोग अचछे
थे। यह पहले की बात शबककु ल शमथ्य है। शबककु ल असत्य है।
अगर पहले के लोग अचछे थे, तो ढाई हजार वर्ा पहले बुद्ध ने दकन लोगों को शसिाया दक चोरी मत
करो, झूठ मत बोलो, चहंसा मत करो? दकन लोगों को शसिाईं ये बातें? अगर पहले के लोग अचछे थे, तो
महाभारत कौन करता था? और सीता को कौन चुरा ले जाता था? और अगर पहले के लोग अचछे थे, तो
िुशनया में ये जो टीचसा हुए जीसस क्राइस्ट, कृ ष्र् और बुद्ध और कनफ्यूशियस, इन्होंने दकन लोगों के सामने
अपनी बातें समझाईं। ये दकनके शलए रोते रहे, इनके हृिय में दकन के शलए वेिना थी? ये दकनसे कहते रहे दक
तुम अचछे हो जाओ? या तो ये सारे लोग पागल थे, लोग अचछे ही थे और ये व्यथा उपिे ि दिए जाते थे? अगर
यहां सभी लोग सच बोलने वाले हों और मैं आकर समझाने लगूं दक आपको सच बोलना चाशहए, तो लोग हंसेंगे
दक आप दकसको समझा रहे हैं? यहां सभी लोग सच बोलते ही हैं।
िुशनया भर के शिक्षकों की शिक्षाएं ये कहती हैं दक लोग कभी भी अचछे नहीं थे। जो फका पड़ा है वह इस
बात में नहीं पड़ा है दक लोग बुरे हो गए हैं। फका यह पड़ा है दक बुरे लोग शिशक्षत हो गए हैं। बुरे लोग शिशक्षत
हो गए हैं। और शिक्षा ने बुरे लोगों को अपनी बुराई को बचाने के शलए कवच का रूप ले शलया है। शिक्षा उनकी
बुराई को बचाने का माध्यम हो गई है। शिक्षा उनकी बुराई को बढ़ाने का माध्यम हो गई है। शिक्षा उनकी बुराई
की जड़ों में पानी िालने का कारर् बन गई है। लोग बुरे नहीं हो गए, लेदकन बुरे लोग ज्यािा सबल और ज्यािा
िशिवान हो गए हैं। और उनके हाथ में शिक्षा ने बड़े अस्त्र-िस्त्र िे दिए हैं। एक बुरा आिमी हो और उसके पास
तलवार न हो, और एक बुरा आिमी हो और उसके हाथ में एटम बम आ जाए। तो शजसके हाथ में एटम बम है,
वह बहुत बड़ी बुराई कर सके गा। और िायि हम सोचेंगे शजनके पास एटम बम नहीं था, वे बड़े अचछे लोग थे।
उनके हाथ में जो था, पत्थर थे तो उन्होंने पत्थर फें के थे। और एटम बम उनके हाथ में आ गया तो वे एटम बम
फें क रहे हैं। फें कने वाले वही के वही हैं, के वल फें कने वाली चीज की ताकत बढ़ गई है। आिमी शिशक्षत हुआ है,
और शिक्षा गलत है। आिमी बुरा हमेिा से था। बुराई के ऊपर और शिक्षा ने हजार गुनी ताकत िे िी है। कहते हैं
न, करे ला नीम पर चढ़ जाए तो और कड़वा हो जाता है। बुरा आिमी शिक्षा की नीम पर चढ़ गया। करे ला तो
पहले से ही था। और शिक्षा की नीम ने और कड़वा कर दिया।
यह शिक्षा जो हम आिमी को आज तक दिए हैं, और यह भी मत सोचना दक आज की शिक्षा ही गलत है,
आज तक की सारी शिक्षा गलत रही है। यह भी मत सोचना की आज की ही शिक्षा गलत है, और यह पशिम के
लोगों ने आकर शिक्षा गलत कर िी, भूल कर मत सोचना। शिक्षा हमेिा गलत रही है। और यह भी मत सोचना
दक शवद्याथी ही गलत हो गए हैं, शवद्याथी और गुरु हमेिा से सभी गलत रहे हैं। द्रोर्ाचाया का नाम हम
भलीभांशत जानते हैं। अपने एक अमीर शिष्य के पक्ष में एक गरीब िूद्र का अंगूठा काट लाए थे। वे गुरु थे।
एकलव्य से इसशलए अंगूठा मांग शलया था दक अंगूठा िे िे तू, क्योंदक एकलव्य था िूद्र और गरीब और िररद्र,

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और अजुान था, धनपशत, सम्राट, राजकु मार। अगर एकलव्य धनुर्वाद्या में बड़ा हो जाए, तो अजुान को कोई
पूछेगा नहीं िुशनया में। तो उस गरीब िूद्र लड़के से अंगूठा कटवा शलया। तादक अमीर शिष्य आगे बढ़ जाए।
पहले से ही गुरु गरीब शिष्यों के अंगूठे काटते रहे हैं। कोई आज की बात नहीं है। लेदकन एक फका पड़ गया, एक
फका पड़ गया। पुराना एकलव्य सीधा-साधा था, उसने अंगूठा िे दिया था। नये एकलव्य अंगूठा िे ने से इनकार
कर रहे हैं। वे कहते हैं, हम अंगूठा नहीं िें गे। और वे कहते हैं, ज्यािा कोशिि की तो हम तुम्हारे अंगूठे काट लेंगे।
यह फका पड़ गया है। इसके अशतररि और कोई फका नहीं पड़ा है।
यह जो शस्थशत है, यह जो आिमी की आज की ििा है, यह जो चचंता प्रकट होती है, सब तरफ दक
शवद्याथी आग लगा रहे हैं, पत्थर फें क रहे हैं, मकान तोड़ रहे हैं यह कोई सामान्य घटना नहीं है। और यह घटना
आज के शवद्यार्थायों भर से संबंशधत नहीं है। यह पांच हजार वर्ों का युवकों का रोर् है जो इकट्ठा होकर
क्लाइमेक्स पर पहुंच गया है। यह पांच हजार वर्ा की गलत शिक्षा का अंशतम फल है। यह पांच हजार वर्ों के
िोर्र्, यह पांच हजार वर्ों के िशमत युवक के मन की पीड़.ंा और वेिना है। और आज उसने वह जगह ले ली
है दक अब उस वेिना को कोई ठीक मागा नहीं शमल रहा है तो वह गलत मागों से प्रकट हो रही है। असल बात
यह है दक युवक न तो मकान तोड़ना चाहते हैं, कौन पागल होगा जो मकान तोड़ेगा? क्योंदक मकान अंतताः
दकसके टू टते हैं? बूढ़ों के नहीं टू टते, हमेिा युवकों के ही टू टते हैं। क्योंदक बूढ़े कल शविा हो जाएंगे। मकान युवकों
के हाथ में पड़ने हैं। लेदकन मकान तोड़ने से कौन मकान तोड़ना चाहता है? कौन कांच तोड़ना चाहता है? कौन
बसें जलाना चाहता है? कोई नहीं जलाना चाहता। िायि मन के भीतर दकन्हीं और चीजों को जलाने की तीव्र
भावना पैिा हो गई है, और समझ में नहीं आ रहा हम दकस चीज को जलाएं तो हम दकसी भी चीज को जला
रहे हैं। सारे अतीत को जलाने का ियाल आज की मनुष्य आत्मा के भीतर पैिा हो रहा है। और समझ में नहीं आ
रहा दक हम क्या जलाएं? हम क्या करें ? हम क्या तोड़ िें ? कोई चीज तोड़ने जैसी हो गई है। कोई चीज शमटाने
जैसी हो गई है। कोई चीज शबककु ल जलाने जैसी हो गई है। हर युग को कु छ चीजें जला िे नी पड़ती हैं तादक वह
अतीत से मुि हो जाए और आगे बढ़ जाए। तादक वह परं पराओं से मुि हो जाए और जीवन गशतमान हो सके ।
निी जब समुद्र की और िौड़ती है, तो न मालूम दकतने पत्थर तोड़ने पड़ते हैं। दकतने मागा की बाधाएं हटानी
पड़ती हैं? दकतने िरख्तों को शगरा िे ना पड़ता है? तब कहीं रास्ता बनता है और निी समुद्र तक पहुंचती है।
हजारों-हजारों साल से मनुष्य की चेतना को रोकने वाली बहुत सी चीजें पत्थरों की िीवाल की तरह
िड़ी हैं। आज तक आिमी ने शवचार नहीं दकया उन्हें तोड़ िालने का। लेदकन ऐसे, जैसे मनुष्य की चेतना में
समझ, बोध, शवचार का जन्म हो रहा है, वैसे-वैसे एक तीव्र वेिना, एक तीव्र आंिोलन सारे जगत में प्रकट हो
रहा है। युवक नासमझ है, वह कु छ भी तोड़ने को लग गया है। लेदकन मुझे बड़ी िुिी मालूम होती है और मेरे
हृिय में बड़ा स्वागत है। कम से कम उसने तोड़ना तो िुरू दकया है। आज गलत चीजें तोड़ता है, कल हम ठीक
चीजें तोड़ने के शलए उसे राजी कर लेंगे। अभागे तो वे युवक थे शजन्होंने कभी कु छ तोड़ा ही नहीं। तोड़ने की
सामथ्या एक बार पैिा हो जाए, तो तोड़ने की िशि को दििा िी जा सकती है। एक बार शवध्वंस की िशि आ
जाए, तो उस िशि को सृजनात्मक बनाया जा सकता है, उसे दक्रएरटव बनाया जा सकता है। क्योंदक स्मरर्
रहे, जो लोग तोड़ ही नहीं सकते वे बना भी नहीं सकते हैं। और ियाल रहे, सृजन का पहला सूत्र शवध्वंस है,
बनाने के पहले तोड़ िे ना पड़ता है।
एक गांव था और उस गांव में एक बहुत पुराना चचा था। वह चचा इतना पुराना हो गया था, जैसे दक
सभी चचा पुराने हो गए हैं, सभी मंदिर पुराने हो गए हैं। वह बहुत पुराना हो गया था। उसकी िीवालें इतनी

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जरा-जीर्ा हो गई थीं दक उस चचा के भीतर भी जाना ितरनाक था, वह दकसी भी क्षर् शगर सकता था। आकाि
में बािल आ जाते थे और आवाज होती थी, तो चचा कं पता था। हवाएं चलती थीं, तो चचा कं पता था। हमेिा िर
लगता था दक चचा कब शगर जाएगा? चचा में जाना तो िूर, पड़ोस के लोगों ने भी पड़ोस में रहना छोड़ दिया
था। चचा दकसी भी दिन शगर जाएगा और प्रार् ले लेगा। लेदकन चचा के संरक्षक गांव भर में प्रचार करते थे दक
आप लोग चचा क्यों नहीं चलते हैं? क्या अधार्माक हो गए हैं आप? क्या ईश्वर को नहीं मानते हैं? लेदकन कोई
भी इस बात को नहीं पूछता था दक कहीं ऐसा तो नहीं है दक चचा बहुत पुराना हो गया है और उसके नीचे के वल
वे ही जा सकते हैं शजनकी कब्र में जाने की तैयारी है, जो शबककु ल बूढ़े हो गए हैं, शजनको अब मरने से कोई िर
नहीं है। जवान उस चचा में नहीं जा सकते जो इतना शगरने के करीब है।
आशिर संरक्षक घबड़ा गए। और उन्होंने एक कमेटी बुलाई और उन्होंने सोचा दक अब अगर कोई आता
ही नहीं इस पुराने चचा में, तो उशचत होगा दक हम नया चचा बना लें। तो उन्होंने चार प्रस्ताव पास दकए उस
कमेटी ने। वह जरा गौर से सुन लेना। क्योंदक उनका बड़ा अथा है। उन्होंने चार ररजोकयूिंस शलए। पहला संककप
और पहला प्रस्ताव उन्होंने यह दकया, सवा सम्मशत से उन्होंने यह तय दकया दक पुराने चचा को शगरा िे ना
चाशहए। और सबने कहा दक शबककु ल ठीक है, सब स्वीकृ शत से इसको राजी हो गए। िूसरा प्रस्ताव उन्होंने यह
दकया दक हमें इसकी जगह एक नया चचा बनाना चाशहए। लेदकन ठीक उसी जगह जहां पुराना चचा िड़ा है,
और ठीक वैसा ही, जैसा पुराना चचा है। इस पर भी सभी लोग राजी हो गए। तीसरा उन्होंने प्रस्ताव यह दकया
दक हमें पुराना चचा में जो-जो समान लगा है उसी सामान से नया चचा बनाना है, िरवाजे भी वही, ईंटें भी
वही, पुराने चचा के सारे सामान से ही नया चचा बनाना है। इस पर भी सभी लोग राजी हो गए। और चौथा
प्रस्ताव उन्होंने यह पास दकया दक जब तक नया चचा न बन जाए, तब तक पुराना शगराना नहीं है। वह चचा
अभी भी िड़ा हुआ है। वह हमेिा िड़ा रहेगा। वह कभी नहीं शगर सकता। क्योंदक वे प्रस्ताव पास करने वाले
बड़े होशियार थे।
आिमी की चजंिगी पर भी पुराने चचािं का बहुत भार है, पुरानी परं पराओं का पुराने मंदिरों का, पुराने
िास्त्रों का, पुराने लोगों का। अतीत जकड़े हुए है, मनुष्य के भशवष्य को। पीछे की तरफ हमारी टांगें कसी हुई हैं
दकन्हीं जंजीरों से, और आगे की तरफ हम मुि नहीं हो पाते। तो प्रार् तड़फड़ा उठते हैं दक तोड़ िें सब, और जब
कोई उत्सुक हो जाता है तोड़ने को तो यह भूल जाता है दक हम क्या तोड़ रहे हैं? युवक तोड़ रहे हैं, यह तो िुिी
की और स्वागत की बात है। लेदकन गलत चीजें तोड़ रहे हैं, यह िुि की बात है। कु छ और जरूरी चीजें हैं जो
तोड़नी चाशहए। लेदकन मैं तुमसे कहं, तुम्हारे मुकक के नेता और तुम्हारे मुकक के अगुवा यही चाहते हैं दक तुम
गलत चीजें तोड़ते रहो, तादक तुम्हें कहीं ठीक चीजें तोड़ने का ियाल न आ जाए। वे यही चाहते हैं। यद्यशप वे
तुम्हें समझाएंगे दक चीजें मत तोड़ो, बस में आग मत लगाओ, मकान मत जलाओ, वे तुम्हें समझाएंगे दक तुम
यह बहुत बुरा कर रहे हो, लेदकन हृिय के बहुत गहरे कोने में वे यही चाहते हैं दक तुम्हारा मन व्यथा की चीजें
तोड़ने में लगा रहे, तादक साथाक चीजों को तोड़ने की तरफ तुम्हारा ियाल न चला जाए। इसशलए जब तुम
गलत चीजें तोड़ रहे हो तो यह मत सोचना दक तुम कोई ऐसा काम कर रहे हो, शजससे चजंिगी बनेगी। तुम
गलत लोगों के हाथ में िेल रहे हो, इसका तुम्हें पता नहीं है। वे लोग जो मुकक के माइं ि को शिस्ट्रेक्ट करना
चाहते हैं, जो मुकक के माइं ि को, मुकक के मशस्तष्क को गलत चीजों में उलझा िे ना चाहते हैं, वे तुम्हारे नेता हैं।
और इस बात में जो तुम्हें फका दििाई पड़ेगा, बहुत गहरे तल में, बहुत गहरी चालाकी है इस बात के पीछे
हमेिा, हमेिा अगर लोगों को गलत चीजों में उलझा दिया जाए, तो ठीक चीजें तोड़ने से उन्हें रोका जा सकता

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है। उनकी ताकत व्यथा की चीजों को नि करने में समाप्त हो जाती है। और न के वल ताकत समाप्त हो जाती है
बशकक व्यथा चीजें तोड़ कर वे िुि पिात्ताप से, ररपेंटेंस से भर जाते हैं। और तब उनकी तोड़ने की शहम्मत क्षीर्
हो जाती है। उनका अंताःकरर् कहने लगता है गलत चीजें, यह गलत हो रहा है सब। उनके पास भी यह
आत्मबल नहीं होता दक वे यह कह सकें दक हमने इस बस में आग लगाई है, तो कु छ ठीक दकया है। उनके पास
यह आत्मबल नहीं हो सकता है। तो उनका आत्मबल क्षीर् होता है, गलत चीजें टू टने से कु छ शबगड़ता नहीं, और
उनका आत्मबल नि होता है। और उनकी तोड़ने की क्षमता नि होती है। और उनके तोड़ने की िशि व्यथा की
चीजों में उलझ कर समाप्त हो जाती है। और उनसे ज्यािा से ज्यािा ितरा तभी तक होता है जब तक वे
शवश्वशवद्यालय में पढ़ रहे हैं। उसके बाि उनसे कोई ितरा नहीं होता क्योंदक उनकी पशत्नयां और उनके बच्चे,
उनके सारे ितरों के शलए िॉक-एब्जावासा का काम करने लगते हैं। दफर उनसे कोई ितरा नहीं। एक बार उनकी
िािी हो जाए दफर उनसे कोई ितरा नहीं।
और मैं आपसे यह भी कह िे ता हं, जैसा मैंने आपसे कहा दक युवक शिशक्षत हो गया है, इसशलए ितरा
बढ़ा है। िूसरी बात, िािी की उम्र बड़ी हो गई है, इससे ितरा बढ़ा है। क्योंदक िािी बहुत पुराने दिनों से
आिमी के भीतर शवद्रोह की क्षमता को तोड़ने का काम करती रही। वह जो ररबेशलयस शस्प्रट है, उसको नि
करने का काम करती रही। पुराने लोग इस मामले में बड़े होशियार थे। िस-बारह साल के लड़के और लड़दकयों
को शववाशहत कर िे ते थे, और उसके बाि उनसे शवद्रोह की कोई संभावना नहीं रह जाती थी। वे उसी वि से बूढ़े
होने िुरू हो जाते थे, असल में वे जवान हो नहीं पाते थे।
सारी िुशनया में शिक्षा के साथ िूसरा तत्वाः शववाह की उम्र लंबी हो गई है। चौबीस वर्ा और बीस वर्ा
तक युवक और युवशतयां अशववाशहत हैं। ये दिन शवद्रोह के , क्षमता के शवकशसत होने के क्षर् हैं। उनके ऊपर कोई
बंधन नहीं है। ये क्षर् हैं जब वे शवद्रोह में सोच सकते हैं, जब उनकी आत्मा दकन्हीं चीजों को गलत कह सकती
है।
अमरीका के मनोवैज्ञाशनकों ने सलाह िी है दक अमरीका में दफर छोटी उम्र में िािी िुरू कर िे नी चाशहए,
अगर युवकों को बचाना है दक चीजों को ता.ंेि न िें , तो उनकी िािी जकिी हो जानी चाशहए। क्योंदक तब
उनकी सारी ताकत नून, तेल, लकड़ी को जुटाने में समाप्त हो जाती है। दफर उनसे कु छ भी नहीं हो सकता।
जवानी में वे नून, तेल, लकड़ी जुटाते हैं, बुढ़ापे में स्वगा, परलोक वगैरह की व्यवस्था के शलए भजन-कीतान करते
हैं। दफर उनसे कोई शवद्रोह नहीं हो सकता। शवद्रोह के क्षर् हैं उनके पच्चीस वर्ा से पहले के क्षर्। िुशनया में जो
इतनी चीजें टू ट रही हैं, उसके पीछे यह कारर् है। और लेदकन मेरे मन में इससे िुि नहीं है दक चीजें टू ट रहीं हैं,
मैं तो मानता हं ये बड़े िुभ लक्षर् हैं, ये बड़े िुभ समाचार हैं। िुि इस बात का है दक गलत चीजें टू ट रही हैं।
बहुत और जरूरी चीजें हैं शजन्हें तोड़ िे ना चाशहए। और उन जरूरी चीजों में से पहली चीज है और वह यह है
दक हमें उस िुशनया को जो महत्वाकांक्षा के आधार पर िड़ी है, बिल िे ना चाशहए। एंबीिन के आधार पर िड़ी
हुई िुशनया को तोड़ िे ना चाशहए। और एक नॉन-एंबीशियस, एक गैर-महत्वाकांक्षी समाज का शनमाार् करना
चाशहए। यह क्यों? यह इसशलए दक महत्वाकांक्षा के आधार पर िड़ा हुआ जगत चहंसा और िुि और पीड़ा का
ही जगत हो सकता है। उसमें न तो प्रेम हो सकता है, न आनंि हो सकता है, न िांशत हो सकती है।
महत्वाकांक्षा का अथा क्या होता है?
महत्वाकांक्षा का अथा होता है िूसरे से आगे शनकल जाने की होड़। बचपन से हमें यही शसिाया जाता है,
पहली कक्षा से यही शसिाया जाता है दक िूसरों से आगे शनकल जाओ। प्रथम आ जाओ, प्रथम आना ही एकमात्र

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वैकयू, एकमात्र मूकय है। जो युवक प्रथम आ जाएगा, जो बच्चा पहला आ जाएगा, वह पुरस्कृ त होगा, सम्माशनत
होगा। जो पीछे छू ट जाएंगे, वे अपमाशनत हो जाएंगे। यह िुशनया इतनी उिास कभी न होती, लेदकन हमें पता
ही नहीं है दक हम कै सी साइकोलॉशजकल फाउं िेिंस रि रहे हैं मनुष्य के शलए।
एक स्कू ल में अगर हजार बच्चे पढ़ते हैं, तो दकतने बच्चे प्रथम आएंगे? िस बच्चे प्रथम आएंगे। और नौ सौ
नब्बे बच्चे पीछे रह जाएंगे। िुशनया कौन बनाता है? प्रथम आने वाले लोग िुशनया बनाते हैं? या हारे हुए, पीछे
रह जाने वाले लोग िुशनया बनाते हैं? िुशनया दकनसे बनती है? िुशनया के संगठक कौन हैं? िुशनया के संगठक हैं,
पराशजत लोग; हारे हुए लोग; िुिी लोग जो प्रथम नहीं आ सके , वे लोग। और जब पहली ही कक्षा से दकसी बच्चे
को शनरं तर-शनरं तर पीछे रहना पड़ता है, उसके जीवन में आत्मग्लाशन, इनफीररयररटी, हीनता, िीनता सब पैिा
हो जाती है। ये िीन-हीन लोग िुशनया के संगठक हैं, इनकी बड़ी संख्या होगी। ये िुशनया को बनाएंगे शजनको
जीवन ने कोई सम्मान नहीं दिया, कोई आिर नहीं दिया। आप कहेंगे दक कौन इन्हें रोकता था? ये भी प्रथम आ
सकते थे। ठीक कहते हैं आप, कोई इन्हें नहीं रोकता था। ये भी प्रथम आ सकते थे। लेदकन तीस लड़कों में कोई
भी प्रथम आए, एक ही लड़का प्रथम आएगा, उनतीस हमेिा पीछे रह जाएंगे। उन्तीस िुिी होंगे। एक प्रसन्न
होगा। कोई भी एक प्रसन्न हो यह सवाल नहीं है दक कौन एक प्रसन्न होता है? लेदकन उनतीस िुिी होंगे।
उनतीस के िुि पर एक व्यशि का सुि शनभार होगा। और ये उन्तीस बच्चे िुि लेकर जीवन में प्रशवि होंगे। हारे
हुए लोग, पराशजत लोग। एंबीिन ने सारी िुशनया को िीन-हीन बना दिया है।
एक ऐसा समाज और एक ऐसी शिक्षा और एक ऐसी संस्कृ शत चाशहए, जहां प्रथम आने के पागलपन से
आिमी का छु टकारा हो गया हो। नहीं तो िुशनया में युद्ध नहीं रुक सकते। क्रोध नहीं रुक सकता। फ्रस्ट्रेिन नहीं
रुक सकता। और जब कोई आिमी बहुत क्रोध, और िुि, और शवर्ाि से भर जाता है, तो सारी िुशनया से बिला
लेता है। सारी िुशनया से बिला लेता है, इस बात का दक मुझे िुि दिया है, इस िुशनया ने। मुझे कोई सम्मान
नहीं दिया, मुझे कोई पुरस्कार नहीं दिए, मुझे कोई आिर नहीं दिया, मुझे कोई पिशवयां नहीं िीं। वह सारी
िुशनया के प्रशत क्रुद्ध हो उठता है। क्रोध से भर जाता है। यह क्रोध शनकल रहा है सब तरफ से बह-बह कर।
मेरी िृशि में क्या ऐसा नहीं हो सकता है दक हम एक ऐसी शिक्षा शवकशसत करें जो व्यशि को प्रशतस्पधाा
में नहीं आत्म-पररष्कार में ले जाती हो। ये िोनों बातों में भेि है। इस सूत्र को ठीक से समझ लेना जरूरी है। एक
शस्थशत तो यह है दक मैं िूसरे लोगों से आगे शनकलने की कोशिि करूं और िूसरी शस्थशत यह है दक मैं रोज अपने
आप से आगे शनकलने की कोशिि करूं। मैं जहां कल था आज उससे आगे बढ़ जाऊं। मेरी तुलना मेरे अतीत से
हो, दकसी पड़ोसी से नहीं। मैं रोज िुि को पार करूं, िुि को अशतक्रमर् करूं। कल सूरज ने मुझे जहां छोड़ा था
िू बते वि आज का उगता सूरज मुझे वहीं न पाए, मैं आगे बढ़ जाऊं। कल रात सूरज शविा हुआ था, िेतों में जो
पौधे लगे थे, आज सुबह उनको वहीं नहीं पाएगा, वे आगे बढ़ गए हैं। लेदकन दकससे आगे बढ़ गए हैं, दकसी िूसरे
से? अपने से आगे बढ़ गए हैं। दकसी िूसरे से कोई प्रयोजन नहीं है। प्रकृ शत में। सारी प्रकृ शत दकसी िूसरे से
प्रशतस्पधाा में नहीं है, शसवाय मनुष्य को छोड़ कर।
एक गुलाब का फू ल शिल रहा है एक बशगया में, उसे कोई प्रशतस्पधाा नहीं है दक चमेली का फू ल कै सा
शिला है और कमल का फू ल कै सा शिला है? गुलाब का फू ल शिल रहा है अपनी िुिी में। उसकी फ्लॉवररं ग
उसकी अपनी आंतररक है। आिमी भर के फू ल गड़बड़ हो गए हैं। वह हमेिा िूसरे की तरफ िे ि रहे हैं दक िूसरे
के शिलने से मैं दकतना आगे शनकलता हं या दकतना पीछे रह जाता हं? अपनी िुि की सेकफ फ्लॉवररं ग का कोई
ियाल ही नहीं है।

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इससे एक पागलपन पैिा हो रहा है। वह पागलपन ऐसा है दक अगर मैं दकसी बशगया में चला जाऊं और
गुलाब को कहं दक तू पागल गुलाब ही होकर नि हो जाएगा, कमल नहीं होना है? कमल का फू ल बड़ा िानिार
होता है, कमल हो जा! पहली तो बात यह है दक गुलाब मेरी बात ही नहीं सुनेगा, वह हवाओं में िोलता रहेगा,
मेरी बात उसे सुनाई नहीं पड़ेगी, क्योंदक फू ल आिशमयों जैसे नासमझ नहीं होते दक दकसी ने भी बुलाया और
सुनने को आ गए। फू ल इतने नासमझ होते ही नहीं दक सुनने को राजी हो जाएं। फू ल सुनेगा नहीं। लेदकन हो भी
सकता है आिशमयों के साथ रहते-रहते बीमाररयां फू लों को भी लग सकती हैं। बीमाररयां संक्रामक होती हैं।
बीमाररयां छू त की होती हैं। हो सकता है आिमी की बशगया में लगे-लगे फू लों में भी गड़बड़ आ गई हो, वे भी
उपिे ि सुनने लगे हों। तो मेरी बात अगर वह फू ल मान लेगा तो दफर क्या होगा? उस गुलाब के फू ल को अगर
मेरी बात पकड़ गई, यह फीवर पकड़ गया दक मुझे कमल का फू ल हो जाना है या कमल के फू ल से आगे शनकल
जाना है, पागल हो जाएगा वह गुलाब का पौधा, दफर उसमें फू ल पैिा नहीं होंगे। क्योंदक गुलाब में गुलाब ही
पैिा हो सकते हैं, कमल पैिा नहीं हो सकता। यह उसकी इनहेरेंट पॉशसशबशलटी है। यह उसकी आंतररक व्यवस्था
है, वह नहीं कु छ और हो सकता। फू ल गुलाब ही हो सकता है। चमेली चमेली ही हो सकती है। चंपा चंपा हो
सकती है। घास का फू ल घास का फू ल हो सकता है। कमल का फू ल कमल का फू ल हो सकता है। लेदकन अगर
यह पागलपन चढ़ जाए दक चंपा चमेली होने की कोशिि करे , गुलाब कमल होने की, दफर उस बशगया में फू ल
पैिा होने बंि हो जाएंगे। गुलाब कमल तो हो ही नहीं सकता, लेदकन कमल होने की कोशिि में गुलाब भी नहीं
हो सके गा। आिमी की बशगया में फू ल इसीशलए पैिा होने बंि हो गए हैं। कांटे ही कांटे पैिा होते हैं, फू ल पैिा
होते ही नहीं। क्योंदक कोई आिमी स्वयं होने की कोशिि में नहीं है। हर आिमी कोई और होने की कोशिि में है,
दकसी और को पार करने की चेिा में लगा हुआ है। हर आिमी, िुि होने का ख्याल ये शिक्षा नहीं िे ती। हमारी
शिक्षा कहती है, िे िो वह आिमी आगे शनकल गया। तुमको भी वैसा हो जाना, िे िो वह आिमी दिकली पहुंच
गया, तुमको भी दिकली पहुंच जाना है। िे िो वह आिमी पहुंचा जा रहा है आगे, तुम कहां पीछे रहे जाते हो?
िौड़ो। सब तरफ से महत्वाकांक्षा पैिा की जाती है, पोशलरटकली, ररलीशजयसली। राजनैशतक रूप से
महत्वाकांक्षा पैिा करते हैं दक िे िो राधाकृ ष्र्न स्कू ल के शिक्षक थे, वे राष्ट्रपशत हो गए। अब सारे शिक्षकों में
आग पैिा करो दक तुम भी िौड़ो और राष्ट्रपशत हो जाओ। तुम भी पागल हो जाओ, दक िे िो राधाकृ ष्र्न शिक्षक
था, राष्ट्रपशत हो गया। सब शिक्षक शिक्षक-दिवस मनाओ दक बड़े सम्मान की बात हुई दक एक शिक्षक राष्ट्रपशत
हो गया।

मैं भी एक शिक्षक दिवस पर... भूल से मुझे बोलने के शलए बुला शलया था। भूल से कोई बुला लेता है,
बोलने के शलए, तो मैंने उन शिक्षकों को कहा दक शमत्रो, अभी शिक्षक-दिवस मनाने का वि नहीं आया। एक
शिक्षक राष्ट्रपशत हो जाए इसमें शिक्षकों का कौन सा सम्मान है? शजस दिन कोई राष्ट्रपशत कहे दक मैं स्कू ल में
आकर शिक्षक होना चाहता हं, उस दिन सम्मान समझना। उस दिन शिक्षक-दिवस मनाना। उस दिन कहना दक
हम धन्य हुए, एक राष्ट्रपशत ने कहा है दक हम शिक्षक होने को तैयार हैं। लेदकन एक शिक्षक राष्ट्रपशत होना चाहे
इसमें शिक्षक का क्या सम्मान है? इसमें राजनीशतज्ञ का सम्मान है, पि का सम्मान है, दिकली का सम्मान है,
राज्य का सम्मान है। इसमें शिक्षक का कौन सा सम्मान है?
तो हम कहते हैं, िे िो, वह यह हुआ जा रहा है, तुम भी िौड़ो। राजनैशतक रूप से हम आिमी को फीवर से
भरते हैं, ज्वर से भरते हैं, िौड़ो, आगे िौड़ो; िूसरे को पीछे छोड़ो और आगे बढ़ जाओ। ऐसे ही हम धार्माक रूप

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से, नैशतक रूप से लोगों को शसिलाते हैं, गांधी बन जाओ, बुद्ध बन जाओ, महावीर बन जाओ। झूठी बातें हैं,
पाय.जन, जहर फै ला रहे हैं आिशमयों के दिमाग में। कोई आिमी कभी गांधी बन सकता है? कोई आिमी कभी
बुद्ध बन सकता है? और बन सके तो भी बनने की जरूरत कहां है? एक आिमी काफी है अपने जैसा। िूसरे
आिमी को वैसा होने की कोई जरूरत नहीं है।
परमात्मा नासमझ नहीं है, नहीं तो एक ही जैसे आिमी पैिा कर िे ता। एक गांव में अगर एक ही जैसे
बीस हजार गांधी हों तो, उस गांव की मुसीबत समझ सकते हैं। उस गांव में इतनी बोिाम पैिा हो जाएगी,
इतनी घबड़ाहट पैिा हो जाएगी दक लोग आत्महत्या कर लेंगे, जीना मुशश्कल हो जाएगा। एक गांधी बहुत प्यारे
हैं। एक बुद्ध बहुत अिभुत, एक राम बहुत िानिार, एक कृ ष्र् बेमुकाबला, कोई मुकाबला नहीं है उनका। बड़े
िूबी के लोग हैं। लेदकन अगर एक ही जैसे, एक गांव में एक ही जैसे राम ही राम धनुर्बार् शलए हुए िड़े हैं, तो
हो गई करठनाई। रामलीला कर रहे हों तब तो ठीक है, लेदकन अगर असली मामला हो तो बहुत गड़बड़ है।
कोई आिमी िुबारा िोहराए जाने की जरूरत नहीं है। ररपीटीिन की कोई जरूरत नहीं है। हर आिमी
िुि होने को पैिा होता है, कोई और होने को पैिा नहीं होता। लेदकन अब तक हम, शिक्षक को, शिक्षा को इस
बात के शलए राजी नहीं कर पाए दक हम बच्चों से कह सकें दक तुम कु छ और होने की कोशिि मत करना, तुम
िुि हो जाना। जीवन में जो सवााशधक महत्वपूर्ा बात है, वह है टू बी वन सेकफ। स्वयं होने की क्षमता को
उपलब्ध हो जाना। और जो आिमी िूसरे जैसे होने की कोशिि करे गा, उस आिमी का पागल हो जाना
सुशनशित है। क्योंदक िूसरा वह हो नहीं सकता। इसशलए िुशनया में शजतनी यह शिक्षा बढ़ती है, आििा बढ़ते हैं,
उतना ही पागलपन बढ़ता है। इसमें दकसी और का कसूर नहीं, शिक्षा बुशनयािी रूप से गलत है। शजतना आिमी
शिशक्षत होता है उतना िूसरे होने की िौड़ में लग जाता है दक मैं कोई और हो जाऊं, कोई बन जाऊं, मैं कु छ और
हो जाऊं। िुि से, स्वयं से, उसकी कोई तृशप्त नहीं होती, वह कोई और होना चाहता है। जब भी कोई आिमी
कोई और होना चाहता है तब उस आिमी में आत्मचयुत, वह आिमी अपने होने से चयुत हो जाता है, वह मागा से
भटक जाता है। वह कु छ और होने की िौड़ में जो हो सकता था नहीं हो पाता है और तब, तब जीवन में िुि
और पीड़ा पैिा होती है।
अगर कोई पूछे दक पागलपन की क्या पररभार्ा है? मेिनेस का क्या मतलब है? तो मेरी िृशि में पागल
होने की एक ही पररभार्ा है, जो आिमी स्वयं से शभन्न हो जाता है, वह आिमी पागल है। और जो आिमी स्वयं
हो जाता है, वह आिमी स्वस्थ है। टू बी वन सेकफ इ.ज टू बी हेकिी। बस और कोई स्वास्थ्य का मतलब नहीं
होता। चहंिी का जो िब्ि है "स्वास्थ्य" वह तो िब्ि भी बड़ा अिभुत है। स्वास्थ्य का मतलब होता हैाः स्वयं में
शस्थत। जो स्वयं में िड़ा हो गया वह स्वस्थ है। स्वस्थ का मतलब हैाः जो स्वयं में िड़ा हो गया। और वह
अस्वस्थ है जो स्वयं से भटक गया। यहां-वहां चला गया। हम सारे लोग स्वयं से भटकाए जा रहे हैं। हम स्वयं में
शस्थत होने के शलए िीशक्षत नहीं दकए जा रहे। इससे एक शवशक्षप्तता पैिा हो रही है, एक पागलपन पैिा हो रहा
है।
नेहरू जब तक चजंिा थे चहंिुस्तान में िस-पच्चीस लोग थे शजनको यह ियाल पैिा हो गया था दक हम
नेहरू हैं। मेरे ही छोटे से गांव में एक आिमी थे उनको यह वहम पैिा हो गया था दक वे जवाहरलाल नेहरू हैं।
बंबई तो बहुत बड़ी जगह है, यहां तो कई को हो गया होगा। नेहरू एक पागलों की जेल को िे िने गए थे, एक
पागल वहां स्वस्थ हो गया था। ऐसा मुशश्कल से होता है, स्वस्थ तो अक्सर पागल होते हैं, लेदकन पागल कभी
स्वस्थ नहीं होता। लेदकन ऐसी िुघाटना वहां घट गई थी, एक्सीिेंट हो गया था। एक पागल वहां ठीक हो गया

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था। और नेहरू उसको िे िने गए थे, पागलिाने को। तो पागलिाने के अशधकाररयों ने सोचा दक नेहरू के हाथ
से ही उसको पागलिाने से छु टकारा और मुशि दिलवाई जाए। नेहरू भी बहुत िुि थे, उन्होंने कहा, ये आिमी
ठीक हो गया। उससे शमलवाया। उससे पूछा नेहरू ने दक तुम ठीक हो गए हो? उसने कहा मैं शबककु ल ठीक हो
गया हं। तीन साल पहले मैं शबककु ल पागल था। आप कौन हैं महािय? तो नेहरू ने कहााः मुझे नहीं जानते? मैं
जवाहरलाल नेहरू हं। वह आिमी िूब हंसने लगा और उसने कहााः तीन साल आप भी यहां रह जाएं तो ठीक
हो जाएंगे। तीन साल पहले मुझे भी यही ियाल पैिा हो गया था दक मैं जवाहरलाल नेहरू हं। तीन साल में मैं
शबककु ल ठीक हो गया हं।
यह जो, जब भी दकसी आिमी को यह ियाल पैिा हो जाता है दक मैं कोई और हं, तो समझ लेना दक
पागल हो गया है। और जब भी कोई आिमी इस कोशिि में लग जाता है दक मैं कोई और हो जाऊं तो समझ
लेना पागलपन की यात्रा िुरू हो गई है। इस शिक्षा ने मैनकाइं ि को मैिकाइं ि में बिल दिया है। आिशमयत एक
बड़ा पागलिाना हो गई है। सारी जमीन पर पागलों का बड़ा समूह पैिा होता जा रहा है। दफर अगर ये पागल
आग लगा िें , मकान तोड़ िें , तो नाराज मत होइए। इनको हमने पागल बनाया है। हमने इन्हें इनकी
आत्मशस्थशत से चयुत दकया है। ये जो हो सकते थे वह होने के शलए हमने उन्हें तैयार नहीं दकया और जो नहीं हो
सकते हैं उसकी तरफ हमने इनको िौड़ाया है। आिमी का मशस्तष्क इतने सूक्ष्म तंतुओं से बना है। आिमी का मन
इतना िेशलके ट है दक उसमें जरा भी गड़बड़ करें तो सब नुकसान हो जाता है। जरा भी गड़बड़ करें तो सब
नुकसान हो जाता है।
आिमी का मन बहुत िेशलके ट है। आिमी की इस छोटी सी िोपड़ी में करोड़ों रे िे हैं। अगर एक आिमी के
िोपड़ी के रे िों को शनकाल कर हम कतार में फै ला िें , तो पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा लेगा। एक आिमी की
िोपड़ी में इतने रे िे हैं। इतने बारीक सेल, इतने बारीक स्नायु, उनसे यह छोटा सा मशस्तष्क करोड़ों स्नायुओं से
शमल कर बना है। इसमें जरा सी गड़बड़, और सारी मिीन बहुत िेशलके ट है, सब गड़बड़ हो जाता है। आिया है
यह दक अब तक सारे मनुष्य पागल क्यों नहीं हो गए हैं, आिया यह नहीं है दक कु छ लोग पागल हो जाते हैं।
आिमी के साथ जो दकया जा रहा है, आिमी के साथ जो अनाचार हो रहा है, आिमी के साथ जो व्यशभचार हो
रहा है, जो बलात्कार हो रहा है, आिमी के मन के साथ जो दकया जा रहा है, उससे अगर सारे लोग पागल हो
जाएं तो कोई आिया की बात नहीं है, क्योंदक आिमी को आत्मशवज्ञान में िीशक्षत नहीं दकया जा रहा है। और
पराए शवर्य होने की िौड़ में, िूसरे को पार करने के पागलपन में दििा और धक्के दिए जा रहे हैं। इन सारे धक्कों
से यह उपद्रव पैिा हो गया है।
युवकों को शिक्षा िे ने से कु छ भी नहीं होगा, शिक्षा को आमूल ही बिल िे ना जरूरी है। एक पूरा
क्रांशतकारी किम उठाना जरूरी है दक हम मनुष्य की महत्वाकांक्षा को नहीं बशकक मनुष्य के भीतर जो शछपी हुई
संभावनाएं हैं, उनके पररष्कार को ध्यान में रिें, मनुष्य कहां पहुंचे ये सवाल नहीं है, मनुष्य जो है वह कै से प्रकट
हो जाए? यह सवाल है। मनुष्य दकस मंशजल को छू ले यह सवाल नहीं है, मनुष्य के भीतर जो पोटेंशियली
शछपा हुआ है, जैसे बीज के भीतर पौधा शछपा हुआ होता है। बीज को हम बो िे ते हैं बगीचे में, माली बीज में से
पौधे को िींच-िींच कर शनकालता नहीं है, और अगर कोई माली िींच-िींच कर पौधे को शनकाल लेगा तो
समझ लेना दक पौधे की क्या हालत होने वाली है? पौधा शनकलता है। माली तो शसफा ऑपरचयुशनटी जुटा िे ता
है। पानी िाल िे ता है, बीज िाल िे ता है। िाि िाल िे ता है। बागुड़ लगा िे ता है और दफर चुपचाप प्रतीक्षा
करता है दक पौधा शनकले। पौधे को शनकालता नहीं है। लेदकन हम आिमी में से पौधे शनकालते हैं, उनको हम...

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उनको हम शवद्यालय कहते हैं। शवश्वशवद्यालय कहते हैं। उसमें से आिमी के बीज में से हम जबरिस्ती पौधे िींच
रहे हैं। बाप की मजी से िींचा जा रहा है, कोई पौधा मां की मजी से िींचा जा रहा है। कोई गुरु की मजी से
िींचा जा रहा है। इसको इं जीशनयर बनाओ, इसको कशव बनाओ, इसको िाक्टर बनाओ। कोई यह पूछ ही नहीं
रहा, इसके भीतर पोटेंशियशलटी क्या है? यह क्या होने को पैिा हुआ है? मां कहती है दक इसको इं जीशनयर
बनाना है।
मैं एक घर में ठहरा हुआ था। एक लड़के ने कहा दक मुझे बचाइए, मैं पागल हो जाऊंगा। क्या मामला है?
उसने कहााः मेरी मां कहती है, इं जीशनयर बनो, मेरे बाप कहते हैं, िाक्टर बनो, और िोनों इस तरह िींच रहे हैं
मुझे दक न मैं इं जीशनयर बन पाऊंगा, न मैं िाक्टर बन पाऊंगा। और मैं क्या बन जाऊंगा उसका शजम्मा दकसी
पर भी नहीं होगा, क्योंदक वे िोनों मुझे बनाना चाहते।
बच्चे िींचे जा रहे हैं। जबरिस्ती िींचे जा रहे हैं, बच्चों में ग्रोथ नहीं होती। बच्चों में जबरिस्ती तनाव िे कर
हम उनमें से कु छ पैिा करने की कोशिि कर रहे हैं। इसके पहले दक उनके भीतर कु छ पैिा हो हम जबरिस्ती
िींच-तान कर उन्हें तैयार कर िे ते हैं। दफर अगर वे शवरूप हो जाते हैं, कु रूप हो जाते हैं, उनका जीवन एक
अगलीनेस बन जाता है, उनका जीवन सौंिया िो िे ता है और आनंि िो िे ता है, तो दफर हम पीशड़त और
परे िान होते हैं, और पूछते हैं कलयुग आ गया क्या? लोग िराब हो गए क्या? दफर हम अपनी पुरानी दकताबों
में िोजते हैं, शजनमें शलिा हुआ है दक हां, ऐसा वि आएगा जब लोग िराब हो जाएंगे। तब हम शनचिंत हो
जाते हैं दक ठीक है भशवष्यवार्ी ठीक हो गई। ऋशर्-महात्मा शबककु ल ठीक ही कहते थे दक जमाना िराब आ
जाएगा। यह िराब जमाना आ गया है। यह िराब जमाना लाया गया है। यह आया नहीं है। और इसे हम रोज
ला रहे हैं।
असल में आसमान से कु छ भी नहीं टपकता है, हम जो लाते हैं, वह आता है। यह हमने शस्थशत लाई है।
और इस सारी शस्थशत के पीछे मनुष्य के मन की स्पांटेशनयस ग्रोथ, सहज शवकास का कोई ध्यान नहीं है। िींचने
का ियाल है, िींचो और आिमी को कु छ बनाओ। इसको तोड़ िालें। बसें मत जलाएं। लेदकन इनकार कर िें उस
शिक्षा से जो आिमी के साथ जबरिस्ती कर रही है। और कह िें यह दक चाहे हम अशिशक्षत रह जाएंगे वे बेहतर,
लेदकन हम जबरिस्ती आत्मा को िींचे जाने को बरिाश्त नहीं करते हैं। अशिशक्षत होने से कु छ भी नहीं शबगड़ता
है। हजारों साल तक आिमी अशिशक्षत रहा, क्या शबगड़ गया? वैसे कई शलहाज से फायिा था। अशिशक्षत आिमी
ने न एटम िोजा, न हाइड्रोजन बम िोजा। अशिशक्षत आिमी हमसे ज्यािा सौंिया में जीया। हमसे ज्यािा िांशत
में जीया। हमसे ज्यािा आनंि में जीया। अशिशक्षत आिमी हमसे ज्यािा स्वस्थ जीया। तो शिशक्षत होने से क्या हो
जाने वाला है? लेदकन अगर ठीक से शिक्षा शमले तो बहुत कु छ हो सकता है। अगर तीन चुनाव हैं आिमी के
सामने-गलत शिक्षा, ठीक शिक्षा और अशिक्षा मैं कहता हं अगर गलत शिक्षा और अशिक्षा में से चुनना हो तो
अशिक्षा चुननी चाशहए। अशिशक्षत रह जाना बुरा नहीं है, लेदकन अगर ठीक शिक्षा हो सके तो जरूर बड़ा
सौभाग्य, और शिक्षा ठीक हो सकती है।
पहली बात एंबीिन के कें द्र से शिक्षा को हटा िे ना चाशहए, महत्वाकांक्षा के और प्रशतस्पधाा के कें द्र से।
उसकी जगह आत्म-पररष्कार और आत्म-उन्नशत और स्वयं के सहज शवकास पर बल िे ना चाशहए। और इसकी
दफकर छोड़ िे नी चाशहए दक हर आिमी इं जीशनयर बने, हर आिमी िाक्टर बने। हो सकता है कोई आिमी
अचछा चमार बनने को पैिा हुआ हो। तो अचछा चमार अगर िाक्टर बन गया तो बड़े ितरे हैं। वह आिमी के
साथ ऑपरे िन तो करे गा लेदकन वैसा ही जैसा जूते के साथ करता है। और अगर एक... हो सकता था वह एक

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अचछा बढ़ई बनता। जरूरत है बढ़ई की भी, चमार की भी। लेदकन हमने जैसी गलत समाज व्यवस्था बनाई है
उसमें हम िाक्टर को बहुत ऊंचा पि िे ते हैं, बढ़ई को कोई पि नहीं िे ते। तो बढ़ई को भी पागलपन िुरू होता है
दक िाक्टर बनो। लेदकन बढ़ई की अपनी जरूरत है। उसकी जरूरत दकसी िाक्टर से कम नहीं है। और चमार की
अपनी जरूरत है, उसकी जरूरत दकसी प्राइम शमशनस्टर से कम नहीं है। और शिक्षक की अपनी जरूरत है और
दकसी राष्ट्रपशत से कम नहीं है। चजंिगी बहुत लोगों का सशम्मशलत, सशम्मशलत शचत्र है। चजंिगी सशम्मशलत संगीत
है।
चलंकन जब प्रेशसिेंट हुआ अमरीका का। यह तो आपको पता होगा उसका बाप एक चमार था। जूते सीता
था। चलंकन प्रेशसिेंट हो गया, तो कई लोगों को बहुत अिरा मन में दक एक चमार का लड़का प्रेशसिेंट हो गया।
पहले दिन जब संसि में बोलने चलंकन िड़ा हुआ, तो एक आिमी ने िड़े होकर यह याि दिला िे नी जरूरी
समझी दक इस बेटे को दक कहीं यह भूल न जाए दक चमार के बेटे हो। एक आिमी ने िड़े होकर कहा दक
महािय, चलंकन, यह मत भूल जाना दक आप एक चमार के लड़के हो। ताशलयां बज गई होंगी संसि में, लोग
बड़े िुि हुए होंगे दक ठीक वि पर याि दिला दिया।
चलंकन ने िड़े होकर कहााः मेरे शपता की याि दिला कर तुमने बहुत अचछा दकया, मैं बड़ी िुिी से भर
गया। क्यों मैं यह कहता हं दक मेरे शपता की याि दिला कर तुमने बहुत अचछा दकया? क्योंदक मैं यह भी तुम्हें
कह िे ना चाहता हं दक मेरे शपता शजतने अचछे चमार थे उतना अचछा राष्ट्रपशत मैं नहीं हो सकूं गा। और शजन
सज्जन ने यह कहा था, चलंकन ने उनसे कहा दक महािय, जहां तक मुझे याि आता है आपके शपता भी मेरे शपता
से ही जूते बनवाते थे। और जहां तक मुझे ियाल है आपके शपता ने कभी भी शिकायत नहीं की। लेदकन आपको
कै से याि आ गई बात, मेरे शपता के जूतों से कोई शिकायत है आपको? मेरे शपता के चमार होने से कोई
शिकायत है आपको? यह याि दिलाने का आपको ियाल कै से आ गया? मैं धन्यभागी हं दक मेरा शपता एक
अिभुत चमार था। वह बड़ा कु िल कारीगर था।
यह एक िृशि जो है जीवन को िे नी जरूरी है। महत्वाकांक्षा की िृशि ने पि पैिा कर दिए हैं। जीवन में पि
पैिा कर दिए हैं--कौन ऊंचा, कौन नीचा। यह महत्वाकांक्षा की शिक्षा का पररर्ाम है। बाई-प्रॉिक्ट है दक फलां
आिमी चूंदक ज्यािा शिक्षा लेता है, इसशलए ज्यािा ऊंचा। कम शिक्षा लेता है, इसशलए कम ऊंचा। जो
अनशस्ककि है वह शबककु ल दकसी स्थान पर ही नहीं है। लेदकन जीवन बहुत चीजों का जोड़ है। जीवन बहुत
चीजों का संगीत है। एक ऐसी िुशनया बनानी है जहां सब जरूरी हैं, सब महत्वपूर्र् हैं, सब गौरवाशन्वत हैं। इस
िुशनया को शमटा िे ना है जहां थोड़े से लोगों के गौरव के शलए सारे लोगों का गौरव छीन शलया जाता है। यह
वैसी िुशनया है जैसे कोई गांव हो और कु छ गांव के लोग यह तय कर लें दक िस-पांच आिशमयों की आंिें बचा
लो, बाकी सबकी आंिें फोड़ िो, क्योंदक बाकी अंधे लोगों के बीच में आंि वाला होना बड़ा आनंिपूर्ा होगा।
सब अंधे होंगे हमारे पास आंिें होंगी तो बड़ा अचछा होगा। उस गांव में अगर कु छ लोग ऐसा कर लें िस लोग
शमल कर, और िस लोग शमल कर कु छ भी कर सकते हैं। क्योंदक िस लोग जहां शमल जाते हैं वहीं राजनीशत िुरू
हो जाती है। िस लोग शमल कर कु छ भी कर सकते हैं, िस गुंिे शमल कर कु छ भी कर सकते हैं। और बड़ी... आज
तक िुशनया का िुभााग्य रहा, अचछे आिमी कभी शमलते नहीं, बुरे आिमी बहुत जकिी शमल जाते हैं। िस आिमी
शमल कर यह तय कर लें दक बंबई में सारे लोगों की आंिें फोड़ िो तादक कु छ लोगों को आंि वाला होने का बड़ा
आनंि उपलब्ध हो। जरूर उनको आनंि ज्यािा उपलब्ध होगा। क्योंदक अंधों की बस्ती में आंिों वाला होना बड़ा
आनंिपूर्ा, बड़े अहंकार की तृशप्त करता है।

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कु छ लोगों ने यही दकया हुआ है दक कु छ लोगों को पि िे िो और सारे लोगों के पि, जीवन की सारी
व्यवस्था छीन लो, तादक पि पर होना बहुत आनंिपूर्ा हो जाए। इन िुिों ने, इन चहंसक लोगों ने एक पृथ्वी बना
िी है जो नरक हो गई है। अगर तोड़ना है तो इस सबको तोड़ िे ना जरूरी है। और एक समाज, एक जीवन, एक
संस्कृ शत शनर्मात करनी है, जहां हर आिमी को गौरवाशन्वत होने का मौका हो। जहां हर आिमी को स्वयं होने
का मौका और अवसर हो। जहां हर आिमी जो भी होना चाहे, सम्माशनत और गौरव से हो सके । जहां गुलाब के
फू ल भी आिृत हों और घास के फू ल भी आिृत हों। क्योंदक घास और गुलाब के फू ल में परमात्मा को कोई
फासला, कोई भेि नहीं।
इसी अंशतम बात को कह कर मैं अपनी चचाा पूरी करूंगा।
जब आकाि में सूरज शनकलता है, तो सूरज गुलाब के फू ल से यह नहीं कहता है दक मैं तुझे ज्यािा रोिनी
िूंगा, घास के फू ल से यह नहीं कहता दक घास के फू ल हट बीच से, िूद्र तू कहां यहां आ गया, तुझे रोिनी नहीं
िी जा सकती। घास के फू ल को भी सूरज उतनी ही रोिनी िे ता है शजतनी गुलाब के फू ल को। जब आकाि में
बािल शघरते हैं तो गुलाब के फू ल पर ही पानी नहीं शगरता घास के फू ल पर भी पानी शगरता है। और घास के
फू ल पर शगरा हुआ पानी िुि अनुभव नहीं करता दक कहां मेरा िुभााग्य घास के फू ल पर शगर रहा हं। और घास
का फू ल जब शिलता है, छोटा सा फू ल, और जब हवाओं में घास का फू ल नाचता है, तो उसकी िुिी दकसी
गुलाब के फू ल से कम नहीं होती।
असल में सवाल घास के फू ल और गुलाब के फू ल का नहीं है, सवाल पूरी तरह शिल जाने का है। चाहे
गुलाब का फू ल पूरी तरह शिल जाए, चाहे घास का फू ल पूरी तरह शिल जाए। जो पूरी तरह शिल जाता है वह
आनंि को उपलब्ध हो जाता है, वह परमात्मा को उपलब्ध हो जाता है।
मनुष्य पूरी तरह शिल सके , एक ऐसी शिक्षा, और सब मनुष्य शिल सकें , दकन्हीं की कीमत पर कु छ लोग
न शिल सकें , इस तरफ ध्यान िे ना जरूरी है। शिक्षकों से, शिक्षार्थायों से यही मैं प्राथाना करता हं दक मैंने जो
थोड़ी सी बातें कहीं उन पर सोचेंगे। जरूरी नहीं है दक मेरी बातें मान ली जाएं। पुराने गुरुओं की यह ढंग थी
और आित थी दक हम जो कहते हैं वह मान ही लो। मैं कोई गुरु नहीं हं, गुरु होने की बीमारी मुझे जरा भी नहीं
है। तो मैं यह नहीं कह सकता हं दक मैंने जो कहा उसे मान लो, मैं तो इतना कहता हं मैंने जो कहा उसे सोचना।
और मैं अगर तुम्हें सोचने को भी राजी कर सका तो काम पूरा हो जाता है। क्योंदक जो सोचना िुरू कर िे ता है
वह एक न एक दिन सत्य के शनकट जरूर पहुंच जाता है।

मेरी बातों को इतने प्रेम और िांशत से सुना, उससे बहुत-बहुत आनंदित, अनुगृहीत हं। और सबके भीतर
बैठे परमात्मा को प्रर्ाम करता हं। मेरे प्रर्ाम स्वीकार करें ।

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सम्यक शिक्षा
आठवां प्रवचन

प्रेम --अनुिासन--क्रांशत

जीवन की कला सीिनी चाशहए दक ठीक से जी सको। तब तो जीवन का एक-एक पल साथाक है। दकतना
आनंि शमलता है, दकतनी िांशत शमलती है, इस पर साथाकता शनभार होती है। जैसे आमतौर से हम जीते हैं उसमें
तो जीवन शबककु ल शनरथाक हो जाता है, वह साथाक नहीं हो पाता। वह जो मैं रोज कह रहा हं वह इसी िृशि से
तो कह रहा हं दक जीवन कै से ज्यािा से ज्यािा साथाक हो सके , कै से ज्यािा साथाक हो सके । अभी तो तुम्हारे
बच्चों के जो प्रश्न हैं वे पूछो, ये तो बड़े-बड़े प्रश्न चलते हैं रोज। तुम्हारी कोई अपनी बात हो तो पूछो।

प्रश्नाः कोई मजहब में, अभी तक जो पैगंबर आए हैं, वे ही सब अपने-अपने मजहब की बातें करते हैं,
लेदकन वे यह भी कहते हैं दक इनसान एक है, इनसान ही सच्चा धमा है। तो वे लोग क्यों नहीं शसिाते दक यही
सच्चा धमा है? लेदकन अपने-अपने मजहब को ही क्यों आगे बढ़ाते हैं?

कोई सच्चा धार्माक आिमी आिमी को लड़वाने के शलए तैयारी नहीं करवाता है--कोई पैगंबर या कोई
ऐसा व्यशि। लेदकन पीछे जो लोग इकट्ठे होते हैं, धंधा करने वाले लोग जो इकट्ठे हैं--पंशित हैं, पुरोशहत हैं,
पुजारी हैं--वे यह सारा का सारा िड़ा करते हैं। तो धमा को नि कर दिया पंशितों ने, पुजाररयों ने। लेदकन ठीक-
ठीक कोई व्यशि जो सत्य को जानता है, वह कोई आिशमयत को लड़वाता नहीं, वह कभी नहीं लड़वाता
आिशमयत को। अनुयायी पीछे िड़े होकर सारा उपद्रव िड़ा करते हैं।
इसशलए मेरी एक कोशिि है, वह यह है दक दकसी को दकसी का अनुयायी नहीं होना चाशहए। तो िुशनया
में उपद्रव बचेगा, नहीं तो नहीं बचेगा। अनुयायी होना ही नहीं चाशहए दकसी को दकसी का। समझे न?
फॉलोवसा जो हैं, वे झंिे िड़े करते हैं, संगठन बनाते हैं। उनके कारर् उपद्रव होता है।
इसशलए अब िुशनया में जो शिक्षक पैिा हों, उनको यह कोशिि करनी चाशहए दक कोई दकसी का शिष्य
न बने, कोई दकसी का अनुयायी न बने। तब िुशनया से चहंिू, मुसलमान, ईसाई, पारसी, जैन शमट सकें गे, नहीं तो
नहीं शमट सकें गे। यह कोई राम ने, कृ ष्र् ने, मोहम्मि ने, क्राइस्ट ने िड़े नहीं कर दिए, ये सब मामले पीछे से जो
आिमी आते हैं वे िड़ा कर िे ते हैं। समझे न?
जकिी करो, कोई तुम्हारी बात हो तो पूछो। हां, तुम जकिी अपनी बात कर लो।

प्रश्नाः गीता में यह शलिा हुआ है कृ ष्र् ने दक व्यशि का कताव्य है कमा करने का, फल मेरे हाथ में है। आपने
आज प्रेम की बात बताई... गीता में िूसरे अध्याय में गीता में यह शलिा हुआ है दक अजुान कमा करो, िुिों को नि
करो। यह मेरी समझ में नहीं आता है दक आप प्रेम की बातें करते हैं और कृ ष्र् िुि को नि करने की बातें करते
हैं। यह मेरा प्रश्न है दक आप गीता के बारे में मुझे समझाएं?

पहली बात तो यह दक कृ ष्र् क्या कहते हैं, वह मुझसे पूछने से क्या फायिा? कृ ष्र् कहीं शमल जाएं तो
उनसे पूछना चाशहए। नहीं, है दक नहीं? अब गीता पर मैं क्यों कु छ कहं? मेरी बात भी तुमने सुन ली, गीता भी

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तुमने पढ़ ली, तुम्हें जो ठीक लगे वह समझ लेना चाशहए। पुरानी दकताबों को बार-बार िींच कर चजंिगी में
लाने की कोई जरूरत ही नहीं है। और उनकी वजह से दफजूल व्याख्या में पड़ते हैं हम, दफजूल परे िाशनयों में
पड़ते हैं। दफर हम जो व्याख्या करें गे कृ ष्र् ने क्या कहा, वह भी हमारी व्याख्या होगी। एक हजार टीकाएं हैं
कृ ष्र् की दकताब पर। शतलक कु छ कहते हैं, अरचवंि कु छ कहते हैं, गांधी कु छ कहते हैं, शवनोबा कु छ कहते हैं,
िंकर कु छ कहते हैं, रामानुज कु छ कहते हैं दक कृ ष्र् का अथा क्या है। तो एक हजार अथा करने वाले लोग मौजूि
हैं। मुझसे पूछोगे, एक अथा मैं करूंगा, वह एक हजार एकवां अथा होगा। उससे कु छ हल नहीं होता।
मैं सीधी बात करना पसंि करता हं। कृ ष्र् को बेचारों को बीच में घसीटने की क्या जरूरत है? सीधी
मुझसे बात करो न। कृ ष्र् को क्यों बीच में लाते हो? तुम्हें जो गलत लगता हो कहो दक गलत है। मुझसे पूछो दक
यह क्यों गलत लगता है या यह क्यों सही है? हमारी यह गलत आित हो गई है दक हम बीच में कहीं राम को
लाएं, कहीं कृ ष्र् को लाएं, कहीं मोहम्मि को लाएं और दफर बात िुरू करें । बात तो हम िो को करनी है, उन
बेचारों को बीच में घसीट कर... उनकी बेकार फजीहत हो जाती है। कृ ष्र् को छोड़ो, शमल जाएं कहीं तो उनसे
पूछ लेना। जब तक मैं हं तो मेरी बात मुझसे पूछ लो। नहीं तो कल मैं मर जाऊंगा तो मेरे बाबत िूसरों से पूछोगे
जाकर दक वे ऐसा कहते थे, उसका क्या मतलब था? समझे मेरी बात?

प्रश्नाः जब मेरे सामने कोई नटिट आ जाए, और मेरे सामने... कोई मेरे को थप्पड़ लगा िे , तो मैं िूसरा
गाल कर िूं उसके सामने?

तुम्हारा क्या मन होता है?

प्रश्नाः प्रेम, आपने शसिाया है दक मैं भी प्रेम करूं।

तो दफर तो यह प्रश्न ही नहीं उठता।

प्रश्नाः लेदकन वह मेरी चजंिगी अगर ितरे में होती है तो मैं क्या करूं?

चजंिगी तो ितरे में है ही। है न!

प्रश्नाः मैं समझ गया। लेदकन क्या करना चाशहए, आिमी सामने आ जाए, मैं शसर झुका िूं?

तुम प्रेम की अगर बात समझ गए हो... समझे न? ... तो प्रेम के शलए कभी सवाल ही नहीं उठता दक क्या
करना है। मेरी बात समझे न? ... अगर तुम प्रेम की पूरी कला सीिते हो, तो तुम्हें यह सवाल ही नहीं उठता दक
क्या करना है। वह प्रेम कु छ करे गा। और प्रेम जो भी करे गा वह अचछा होगा। जैसे यह हमको दििाई पड़ता है
दक उस आिमी ने मेरे ऊपर चांटा मार दिया, यह हमको दििाई ही इसशलए पड़ता है दक हमारे भीतर प्रेम नहीं
है। नहीं तो हमें कु छ और दििाई पड़ता।

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बुद्ध का एक शिष्य था। वह पूर्ा नाम था उस शभक्षु का। जब वह सारी शिक्षा पूरी हो गई तो बुद्ध ने उससे
कहा दक अब तू जा और मेरे संिेि को लोगों तक पहुंचा। पर तू कहां जाएगा? तो एक सूिा, एक जगह थी
शबहार में, उसने कहा मैं वहां जाऊंगा। वहां तक कोई शभक्षु अब तक गया नहीं।
बुद्ध ने कहााः वहां मत जा, वहां के लोग बहुत बुरे हैं। हो सकता है वे तुझे गाशलयां िें , अपमान करें । तो
उसने कहा दक मेरे मन को यही होगा दक लोग दकतने अचछे हैं दक शसफा गाशलयां िे ते हैं, अपमान करते हैं मारते
नहीं। मार भी सकते थे।
बुद्ध ने कहााः यह भी हो सकता है दक कोई तुझे मारे , तो तुझे क्या होगा?
तो उसने कहााः आपके पास रह कर मैंने प्रेम की जो साधना की है, मेरे मन को यही होगा दक लोग दकतने
अचछे हैं, शसफा मारते हैं, मार ही नहीं िालते, मार भी तो िाल सकते थे।
बुद्ध ने कहााः और यह भी हो सकता है दक कोई तुझे मार ही िाले, तो मरते वि तुझे क्या होगा?
तो उसने कहााः आपके पास जो मैंने जाना और जीया है, मुझे यही होगा दक लोग दकतने अचछे हैं दक मुझे
मार िाला, कहीं मैं चजंिा रहता और चजंिगी में कोई भूल-चूक होती, तो उससे बच गया। प्रेम की जब िृशि होती
है तो तुम्हें यह नहीं दििाई पड़ता दक इसने मुझे मारा। तुम्हें कु छ और ही दििाई पड़ता है। हमें वही दििाई
पड़ता है जो हमारी िृशि होती है। हमारी िृशि तो ित्रुता की है इसशलए ये प्रश्न िड़े होते हैं। समझे न? जब
तुम्हारी िृशि प्रेम की होगी तो ये प्रश्न िड़े होते ही नहीं। तुम्हारा प्रेम अपने आप रास्ता िोज लेगा दक मैं क्या
करूं?
जैसे मैंने कहा दक बुद्ध के ऊपर उस आिमी ने थूका, तो बुद्ध ने चािर से पोंछ शलया और उससे पूछा दक
और कु छ कहना है? तुमको यह नहीं दििाई पड़ता दक यह कु छ कह रहा है। तुमको यह दििाई पड़ता है दक मेरे
ऊपर थूक दिया। तुम तो पागल हो जाते हो। प्रेम की िृशि पैिा करो दफर रास्ता अपने आप शमल जाता है, दकसी
से पूछने नहीं जाना पड़ता। अभी हमारी िृशि क्रोध की है, तो क्रोध कहता है दक चांटा मारा, िुगना चांटा मारो।
प्रेम की जब िृशि होगी... उसको पैिा करना पड़ेगा, शसफा समझ लेने से नहीं होगी। साधना करनी पड़ेगी। जब
प्रेम की िृशि होगी तो िायि तुम्हें जो क्राइस्ट ने कहा है िायि वही दििाई पड़ जाए। यही दििाई पड़ जाए दक
इसने एक चांटा मारा, िूसरा गाल और इसके सामने कर िें । लेदकन यह अभी दििाई नहीं पड़ सकता। अभी तो
यह बात बड़ी एब्सिा है। बड़ी बेबूझ मालूम पड़ती है। लेदकन दििाई पड़ सकता है।
क्राइस्ट को शजन लोगों ने सूली िी, तख्ते पर लटका दिया फांसी के । आशिरी वि उन्होंने कहा दक हे
परमात्मा! इन सबको माफ कर िे ना, क्योंदक ये नहीं जानते दक ये क्या कर रहे हैं? ये नासमझी में कर रहे हैं।
कहीं ऐसा न हो दक मेरी फांसी की सजा इनको शमले। ये सब नासमझ हैं, ये कु छ जानते नहीं हैं। समझे न? पर
ये तो प्रेम की जब िृशि पैिा होगी तब। उसके पहले नहीं। तो इसशलए यह मत पूछो दक क्या करें गे? पहले यही
दफकर करो दक प्रेम की िृशि कै से पैिा हो जाए? दफर प्रेम अपना रास्ता िुि शनकाल लेगा।
जैसे हम दकसी आिमी को... कोई हमसे आकर पूछे दक अंधेरे कमरे में मैं जाऊं, तो मैं कै से जाऊं? तो मैं
उससे कहंगा दक तू िीया लेकर जा। और दफर आगे मत पूछ। िीये की रोिनी तुझे बता िे गी दक तू कहां से जा
और कहां से न जा। प्रेम का िीया जब जल जाएगा, तुम्हें दििाई पड़ जाएगा दक हम क्या करें , और क्या न करें ।
इसशलए एक्िन पर मैं दफकर ही नहीं करता दक तुम क्या करो? इसका तय भी नहीं करता। इतना ही तय
करता हं दक तुम्हारे भीतर प्रेम पैिा हो जाए, तो वह तय कर लेगा दक क्या करना है, क्या नहीं करना है। उसकी
दफकर करो।

92
प्रश्नाः शिशसशप्लन, अनुिासन का सही अथा क्या है?

अनुिासन, शिशसशप्लन का क्या अथा है? यह पूछते हैं। जैसा अभी िुशनया में दििाई पड़ता है, वह तो अथा
यह है दक बाहर से थोपे गए शनयम। शिक्षक थोपता है, मां-बाप थोपते हैं, स्कू ल थोपता है, समाज थोपता है।
ऐसा करो, ऐसा मत करो। ऐसे उठो, ऐसे बैठो। इसको वे शिशसशप्लन कहते हैं। मैं इसको शिशसशप्लन नहीं कहता।
मैं तो अनुिासन कहता हं दक तुम्हारे भीतर शववेक को जगाया जाए और तुम्हारा शववेक तुमसे जो कहे वह तुम
करो। एक ही शिशसशप्लन है दक मनुष्य का शववेक जगा हुआ हो। बस और कोई शिशसशप्लन नहीं है। और वह जो
इनर शिशसशप्लन है, वह जो भीतर से आने वाला अनुिासन है, वह तो कीमत का है। बाहर से थोपा गया
अनुिासन बहुत ितरनाक है। वह आिमी की आत्मा को ही नि कर िे ता है।
तो एक... प्रत्येक व्यशि की समझ बढ़ती चली जाए। जैसे हम यहां बैठे हैं, हम सब चुप बैठे हैं। यह चुप
बैठना िो कारर् से हो सकता है। या तो एक शिशसशप्लन है यहां, आज्ञा है दक यहां कोई बोल नहीं सकता, सबको
चुप बैठना पड़ेगा, तो चुप बैठे हैं। वह झूठी शिशसशप्लन हो गई। नुकसान पहुंंंचाने वाली हो गई। लेदकन तुम्हें
सुनना है, तुम मेरी बात सुनने को उत्सुक हो, इसशलए चुप बैठे हो, यह इनर शिशसशप्लन है। यह तुम्हारे शववेक
की बात हुई दक तुम्हें चुप बैठना है, क्योंदक तुम्हें सुनना है। यह शिशसशप्लन तो एक फ्रीिम है। जो भीतर से आता
है अनुिासन वह तो स्वतंत्रता है। जो बाहर से आता है वह परतंत्रता है। वह सब गुलामी है। और गुलामी के मैं
शबककु ल शवरोध में हं।
मैं ऐसी िुशनया पसंि करूंगा शजसमें कोई शिशसशप्लन न हो। शववेक हो। लेदकन हम अभी बच्चों को कभी
शववेक तो शसिाते नहीं, बस शिशसशप्लन शसिाते हैं। यह शसिाते हैं यह करो, वह करो। यह नहीं शसिाते दक
तुम्हें िुि दििाई पड़े दक क्या करना उशचत है। तो मेरी िृशि उस बाबत यही है दक प्रत्येक बच्चे की समझ, शववेक
बढ़ना चाशहए। बढ़ाना चाशहए हमें तादक वह इस योग्य हो जाए दक वह क्या करे और क्या न करे ।
अभी जो शिशसशप्लन है, वह तो शमशलटरी शिशसशप्लन है। वह कोई... वह कोई अचछी शिशसशप्लन नहीं है।
आिमी को जबरिस्ती करवाने का काम है। और जबरिस्ती के भारी नुकसान हैं। पहला नुकसान तो यह है दक
जो आिमी जबरिस्ती दकसी काम को करने को राजी होता है, वह आिमी कमजोर हो जाता है, उसका बल नि
हो जाता है, उसकी स्वतंत्रता नि हो जाती है। िूसरा पररर्ाम यह होता है दक जब भी उसको मौका शमलेगा,
तब वह ठीक उलटा करे गा, जो जबरिस्ती में उसको करना पड़ा है। अगर वह यहां िांत बैठा रहा है शसफा
जबरिस्ती की वजह से तो िीवाल के उस तरफ हटते से ही अिांत हो जाएगा। शपता के सामने शसगेरट नहीं पी
है उसने, तो शपता के पीछे िीवाल के उस तरफ हट कर शसगेरट पीना िुरू कर िे गा। क्योंदक वह तो जबरिस्ती
थी न, वह कोई शववेक नहीं था उसका। कमजोर करे गा, आिमी को चोर बनाएगी शिशसशप्लन। और जब वह
ताकत में आएगा कभी... । आज बच्चा है, कल जवान हो जाएगा, आज बाप जवान है कल बाप बूढ़ा हो जाएगा।
हालत उलटी हो जाएगी। अभी बच्चा कमजोर है, बाप ताकतवर है। कल बच्चा जवान होकर ताकतवर होगा,
बाप बूढ़ा होकर कमजोर हो जाएगा। शजस दिन वह बाप कमजोर हो जाएगा, उस दिन वह बिला लेगा उसका।
इसशलए हर बूढ़े बाप को जवान लड़के सताते हैं। इसका कोई और मतलब नहीं। इसका मतलब है दक छोटे बच्चों
को जवान बाप ने सताया है, और कोई मतलब नहीं। वह उसका ररएक्िन है, उसका बिला शलया जा रहा है।

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अब ताकत की हालत बिल गई है। अब कमजोर ताकतवर हो गया, ताकतवर कमजोर हो गया। अब बिला
शलया जा रहा है उसका।
सारी िुशनया में मां-बाप बच्चों से परे िान हैं, उसका कु ल कारर् इतना है दक मां-बाप बच्चों को परे िान
कर रहे हैं। उसका सर्का ल पूरा िड़ा हो जाता है, दफर परे िानी होती है। दफर बाि में वे रोते हैं दक हमारे बच्चे
हमारा साथ नहीं िे रहे हैं। हमें धोिा िे रहे हैं। हमें िगा िे रहे हैं। हमें परे िान कर रहे हैं। लेदकन कोई नहीं
पूछता दक जब बच्चे छोटे थे, तो तब तुमने इनके साथ क्या दकया? तुमने इनमें शववेक जगाया या जबरिस्ती
कोई चीज थोप िे ने की कोशिि की। जबरिस्ती के शिलाफ ररबेशलयन, शवद्रोह पैिा होता ही है। तो सारी
िुशनया में जो अव्यवस्था है, वह इसशलए है दक शववेक नहीं है, बस शिशसशप्लन, शिशसशप्लन की बात चलती है।
ये आज हमारे तो पूरे मुकक में हो गया है, कालेज के लड़के हैं, हाई स्कू ल के लड़के हैं, वह सब तोड़-फोड़ रहे हैं।
ये जबरिस्ती थोपी गई बातों के शिलाफ शवद्रोह है और कु छ भी नहीं है।

(प्रश्न का ध्वशन-मुद्रर् स्पि नहीं। )

कोई गलती नहीं है, कोई गलती नहीं है। गलती क्या है, कहीं कोई गलती नहीं है।

प्रश्नाः शजतने भी क्रांशतकारी आए वे सब पुरानी जो प्रर्ाशलयां हैं वह सब हमेिा तोड़ने की ही बातें करते
रहे। लेदकन उन्होंने िुि भी नई प्रर्ाशलकाएं स्थाशपत कर िीं। जैसे आप बता रहे हैं दक एक मुि जगत जानते हैं
आप। लेदकन आपकी बातें मानने के शलए और आपकी बातें मानने के शलए लोग तैयार हैं और कहते हैं दक हम
रजनीिजी के फॉलोवर हैं। और... अब इनसान को एक आित सी बन गई है दक इज्म से ही चलता है। चाहे
राज-काज हो या धार्माक बातें हों। तो वह चीजें तोड़ने के शलए क्या करना चाशहए?

बहुत सी बातें करनी चाशहए। पहली बात तो यह करनी चाशहए दक अगर िुशनया में शजतने क्रांशतकारी
तुम्हें दििाई पड़ते हैं, उतने क्रांशतकारी हुए नहीं। पुरानी परं परा को तोड़ िे ने से कोई क्रांशत नहीं होती। परं परा
मात्र को तोड़ िे ने से क्रांशत होती है। अगर मैं यह कहं दक पुरानी परं पराएं तो गलत हैं, राम के भि मत बनो,
कृ ष्र् के भि मत बनो, लेदकन मेरे अनुयायी बन जाओ, तो मैं क्रांशतकारी नहीं हं। मैं के वल काशम्पटीटर हं। मैं
कृ ष्र् का काशम्पटीटर हं, राम का काशम्पटीटर हं, फलां का काशम्पटीटर हं। उनके अनुयाशययों को िींच कर
अपना अनुयायी बनाना चाहता हं। मैं कोई क्रांशतकारी नहीं हं दफर। क्रांशतकारी तो मैं तब हं जब मैं यह कहता
हं दक मेरे अनुयायी भी मत बनो। दकसी के अनुयायी मत बनो। दकसी परं परा को मत पकड़ो, दकसी चीज को
जड़ता से मत पकड़ो। लेदकन इसका मतलब क्या है? इसका मतलब यह है दक तुम्हारा शववेक, तुम्हारा अपना
शववेक जाग्रत हो। और तुम्हारा शववेक तुम्हें जो भी ठीक कहे करने को। अगर तुम्हारा शववेक कहे दक कृ ष्र् ने जो
कहा है वह ठीक है, करने जैसा है। इस कारर् नहीं दक कृ ष्र् ने कहा है, इस कारर् नहीं दक तीन हजार साल से
पूजा जाता है, बशकक इस कारर् दक तुम्हारा शववेक कहता है दक ठीक है, तो तुम करो। तुम्हारा शववेक कहे दक मैं
जो कहता हं, तो उसे करो। लेदकन अंशतम गवाही तुम्हारा शववेक हो। अंशतम गवाही यह न हो दक कृ ष्र् भगवान
के अवतार हैं, इसशलए उनकी बात माननी चाशहए। अंशतम बात यह न हो दक एक बात पांच हजार साल से
मानी जाती है, इसशलए ठीक होगी ही, उसे मानना चाशहए। अंशतम बात न यह हो दक फलां बात को मानने से

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स्वगा शमलेगा, इस लोभ में माननी चाशहए। फलां बात को मानने से नरक जाना पड़ेगा, इस भय में माननी
चाशहए। अंशतम कसौटी तुम्हारा शववेक हो, तुम्हारा शिसदक्रशमनेिन हो दक यह बात मुझे ठीक लगती है,
तका युि लगती है, मेरे शववेक को अपील करती है, इसशलए मानता हं। तो तुम अपने शववेक के अनुयायी हुए। न
तो मेरे अनुयायी हुए, न तुम राम के , न कृ ष्र् के ।
प्रत्येक मनुष्य को उसकी बुशद्ध का अनुयायी बनाना है, तो परं परा टू टेगी और क्रांशत होगी। लेदकन अब
तक तुम जैसा कहते हो, अक्सर वैसा हुआ है दक अगर मैं शवरोध कर रहा हं परं परा का, तो धीरे -धीरे मैं एक नई
परं परा िड़ी कर लेता हं। इतनी शहम्मत क्रांशतकाररयों में भी नहीं होती दक जब उनकी अपनी परं परा बनने लगे
तब वह तोड़ने की शहम्मत दििलाएं। िूसरे की परं परा तोड़ना शबककु ल आसान है। अपनी तोड़ने का सवाल है।
समझे न? तो उसके शलए ध्यान में रिना चाशहए दक ठीक क्रांशत हमेिा शववेक का अनुयायी बनवाती है,
व्यशियों का नहीं। मेरा कोई अनुयायी नहीं है। कोई कहता हो अपने को तो वह मेरे शिलाफ बातें कह रहा है।
मेरा कोई अनुयायी नहीं है, मैं दकसी का गुरु नहीं हं। न दकसी एक आिमी को कभी मैंने कहा दक मैं तुम्हारा गुरु
हं, न कभी एक आिमी को मैंने कहा दक तुम मेरे अनुयायी हो। लेदकन दफर भी अगर कोई कहता हो, तो वह मेरे
शिलाफ बात बोल रहा है। वह मेरे पक्ष की बातें नहीं बोल रहा है। मेरी तो सारी चेिा यही है दक तुम अपने
शववेक के , अपनी बुशद्ध के , अपने चचंतन के , अपने मनन के , अपने ध्यान के अनुयायी बनो। तुम दकसी और के
पीछे मत जाओ। हमेिा अपने भीतर, और अपने पीछे जाओ।
सच्ची क्रांशत तो तभी होगी जब हम व्यशियों से मुि कर लेंगे और शववेक से जोड़ िें गे। अभी कोई राम से
जुड़ा है, कोई कृ ष्र् से जुड़ा है, कोई मोहम्मि से, कोई बुद्ध से, कोई महावीर से, कोई मुझसे जुड़ सकता है।
लेदकन ये सब एक सी बातें हैं। जब तक तुम अपने से बाहर दकसी से जुड़े हो, तब तक तुम गलती में हो। तुम्हारा
अपना शववेक संयुि होना चाशहए। न कोई दकसी का गुरु है, न कोई दकसी का अनुयायी है। न कोई आििा है, न
दकसी के पीछे जाने की जरूरत है। प्रत्येक व्यशि की अपनी कीमत और मूकय है। और उस जैसा वह अके ला है
िुशनया में। अनूठा है। उस व्यशि के अनूठे शववेक की इज्जत बढ़नी चाशहए। तो तो कु छ हो, नहीं तो नहीं हो
सकता।

प्रश्नाः अभी तक जो साइं स ने िोध की है, तो उसका हम लाभ उठाते हैं न।

हां, हां, शबककु ल उठाएं।

प्रश्नाः शबककु ल नये शसरे से कु छ स्टाटा करते नहीं... ?

शबककु ल नहीं।

प्रश्नाः इसी तरह ऋशर्-मुशनयों ने जो िोध... ?

ऋशर्-मुशन साइं रटस्ट नहीं हैं, पहली बात। और साइं स और ररलीजन में बुशनयािी फका है, िूसरी बात।

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प्रश्न : शस्प्रचुअल सांइस नहीं है?

शबककु ल नहीं। शस्प्रचुअल साइं स जैसी कोई चीज होती ही नहीं। साइं स हमेिा मैटीररयल होगी। यानी
मेरा मतलब यह है, मेरा मतलब यह है दक धमा और शवज्ञान में यही बुशनयािी शवरोध है दक शवज्ञान की परं परा
होती है, धमा की परं परा नहीं होती। अगर न्यूटन पैिा न हो, तो आइं स्टीन पैिा नहीं हो सकता। लेदकन बुद्ध न
पैिा हों, तो भी मैं पैिा हो सकता हं। यानी मेरा कहना यह है अगर िुशनया के सब िास्त्र नि हो जाएं, तो भी
आिमी, धार्माक आिमी इसी वि पैिा हो सकता है। अग्रवालजी धार्माक हो सकते हैं। लेदकन िुशनया के अगर
शवज्ञान के िास्त्र नि हो जाएं, तो हवाई जहाज नहीं बनाया जा सकता।
धार्माकता ऐसी चीज है दक प्रत्येक व्यशि शबना दकसी सहारे के उपलब्ध कर सकता है। और शवज्ञान शबना
सहारे के उपलब्ध नहीं होता। इसशलए शवज्ञान कलेशक्टव एफटा है और ररलीजन इं शिशवजुअल एफटा है। जैसे दक
िुशनया के सब प्रेमी, शजतने हुए हैं िुशनया में, वे न भी हुए होते तो भी मैं प्रेम करता। प्रेम के शलए परं परा की
जरूरत नहीं दक लैला हो, मजनू हो, फररहाि हो, िीरी हो, तब मैं प्रेम कर सकता हं। कोई न हुए हों तो भी मैं
प्रेम कर सकता हं। प्रेम शबककु ल वैयशिक, एक-एक व्यशि की क्षमता है। लेदकन अगर बैलगाड़ी का चाक बनाने
वाला न हुआ हो, तो हवाई जहाज नहीं बन सकता। क्योंदक वह उसीिृंिला का शहस्सा है। तो शवज्ञान
सामाशजक उपक्रम है। और धमा वैयशिक अनुभव है। और इन िोनों में इतना बुशनयािी फका है, इसशलए धमा एक
स्वतंत्रता है, शवज्ञान एक स्वतंत्रता नहीं। उसमें आप पीछे से बंधे हैं। हमेिा बंधे हुए हैं। धमा एक स्वतंत्रता है,
उसमें कोई दकसी से बंधा हुआ नहीं है।

प्रश्नाः अनुभवों का लाभ शलया जाए?

आप अनुभव का लाभ ले ही नहीं सकते शसवाय अनुभव को दकए शबना। मेरा मतलब यह है दक प्रेम दकए
शबना प्रेम के अनुभव का कोई लाभ आप ले ही नहीं सकते। और प्रेम आपने दकया तो दकसी के अनुभव से लाभ
लेने की जरूरत ही नहीं, आपका अपना अनुभव हो गया। मेरा कहना यह है की कु छ चीजें ऐसी हैं जीवन की
जो... अनुभव से ही अनुभव होता है, और कोई रस्ता नहीं है।

प्रश्नाः... प्रेम के बारे में जो है, शजज्ञासा तो जागती ही है?

शजज्ञासा प्रेम के कारर् नहीं जागती, दक दकसी ने प्रेम दकया इस कारर् जागती है।

प्रश्नाः प्रेम के बारे में सुनने से?

शबककु ल नहीं जागती, बशकक मर सकती है शजज्ञासा सुनने से। प्रेम तो आपके प्रार्ों की प्यास है। सुनने-
वुनने से नहीं जागती। आपको जंगल में बैठा दिया जाए और प्रेम का आपने िब्ि भी न सुना हो, तो भी प्रेम
जगेगा। एक िब्ि न सुना हो, एक कहानी न पढ़ी हो, एक गीत न पढ़ा हो, तो भी प्रेम जगेगा। वह तो वैसे ही है
जैसे आपको प्यास लगेगी। कोई प्यास इसशलए थोड़ी लगती है दक हमने दकताबों में पढ़ शलया दक प्यास लगती

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है। गमी पड़ती है, तब प्यास लगती है। वह तो गमी पड़ी और प्यास लगेगी। वह प्यास आपके प्रार्ों का धमा है।
आपने सुना हो दक नहीं सुना हो दक प्यास लगती है। प्यास लगेगी जब गमी पड़ेगी। ठीक प्रेम भी वैसा है। ठीक
परमात्मा भी वैसा है। लेदकन शवज्ञान वैसा नहीं है। शवज्ञान वैसा नहीं है। वह तो ट्रेिीिनलिृंिला से चलता है।
इधर तक काम हो चुका है, इतना आप अध्ययन कर लीशजए। तो दफर आप थोड़ा सा काम आगे कर सकते हैं।
नहीं तो आगे नहीं कर सकते। इन िोनों में बड़ा बुशनयािी फका है, तो मैं कहता हं दक शवज्ञान की तो परं परा
होती है, िास्त्र होता है, गुरु होते हैं, शिष्य होते हैं, धमा में न िास्त्र है, न गुरु है, न परं परा है, न कोई शिष्य है।
इसशलए धमा परम मुशि है। क्योंदक ये सब चीजें बांधने वाली हैं, और धमा में तो कु छ कोई बांधने वाला नहीं है।

प्रश्नाः इला का प्रश्न है दक ये सब बातें साधकों के शलए हो रही हैं?

तो भई गैर-साधक पूछते नहीं तो हम करें क्या? बोलो? तो पूछते क्यों नहीं?

प्रश्नाः आप कहते हैं, आप तो बात करते हैं साधक के शलए, लेदकन हम क्या करें ?

तू साधक नहीं है। पागल, शवद्याथी से बड़ा कोई साधक होता है। शवद्याथी ही सबसे बड़ा साधक है। वही
तो िुरूआत है चजंिगी की साधना की। अगर उसी वि साधना िुरू हो जाए तो तेरी चजंिगी कु छ और ही बन
जाएगी। अभी ये लोग तो जो बूढ़े हो गए हैं, ये वापस शवद्याथी हो रहे हैं। समझी न? इनको तो बड़ी करठनाई
होगी। इनको बहुत करठनाई है, तुझे तो करठनाई नहीं होगी। नहीं समझी तू। वह तो चजंिगी की साधना तो
सबके शलए है, जो भी चजंिा हैं। चाहे वे बच्चे हों, चाहे बूढ़े हों। बच्चों के शलए ज्यािा है, क्योंदक चजंिगी उनके
सामने पड़ी है अभी। और बूढ़ों के शलए तो चजंिगी पीछे शनकल गई। अब थोड़ा सा समय बचा है, अब वे बड़े
बेचैन हैं, घबड़ाहट में हैं। तेरे सामने तो पूरा समय पड़ा हुआ है। और अगर अभी से तुझे साधना के सूत्र स्पि हो
जाएं, तो तेरी चजंिगी वहां पहुंच जाएगी जहां पहुंचनी चाशहए।

प्रश्नाः मेरा फॉकट न हो, तो भी कोई हमारा इनसकट करे , तो हम कै सा बतााव करें ?

बहुत अचछा बतााव करना चाशहए। समझे न? पहली तो बात यह दक जब भी कोई तुम्हारी भूल बताए,
तो इस बात को बहुत जकिी मत मान लेना दक हमारी भूल नहीं है। क्योंदक हमारे अहंकार की यह वृशत्त होती है
दक अपनी भूल को मानने को राजी न हों। जब भी कोई भूल बताए, तो पहले तो यह सोचना है दक जरूर सौ में
शनन्यानबे मौके होंगे दक मेरी भूल है। तो पहले मैं सोच लूं दक मेरी भूल है दक नहीं? पहले तो हमारा मन यह
होता है दक हमारी भूल है ही नहीं। सभी का मन यह होता है। िुशनया में मुशश्कल से वह आिमी शमलेगा जो
कहेगा मेरी भूल थी। िो आिमी लड़ेंगे, िोनों कहेंगे, िूसरे की भूल थी। समझे न? तो पहले तो हमारे मन की
सहज वृशत्त यह है, वह कहेगा दक हमारी भूल नहीं है यह। इस पर थोड़ा समझ करना दक भूल हो सकती है।
पहले इसकी िोज करना दक क्या भूल हो सकती है? बहुत शनष्पक्ष मन से, तो सौ में शनन्यानबे मौकों में तुमको
भूल शमल जाएगी। अगर एक मौके में तुम्हें भूल न शमले, तुम्हें लगे दक भूल नहीं है मेरी, समझे न? और कोई
अपमानजनक व्यवहार कर रहा है, तो भी उस क्षर् में, जब वह अपमानजनक व्यवहार कर रहा हो, अगर तुम

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भी वैसा व्यवहार करते हो, तो इससे कु छ कोई हल नहीं होगा, इससे कोई चीज सुलझेगी नहीं। उस वि िांशत
से सुन लेना। उससे कहना दक मैं आधे घंटे बािे जब आप िांत हो जाएंगे, आपको शनवेिन करूंगा, अभी नहीं।
क्योंदक अभी तो आप क्रोध में हैं, अभी शनवेिन करने का कोई मतलब नहीं। आप अभी जो आपको कहना है कह
लें, गुस्सा शनकाल लें। मैं आधे घंटे बाि आता हं और शनवेिन करूंगा। इतनी बात कहने से ही वह आिमी िांत
होगा। आधे घंटे बाि जाकर अपनी बात कहना दक ऐसा-ऐसा मुझे लगता है। मुझे तो नहीं लगता दक यह मेरी
भूल है। दफर भी मैं समझने को राजी हं। अगर मेरी भूल हो तो समझा िें , मैं माफी मांग लूं। अगर मेरी भूल न
हो, तो भी स्पि हो जाए तादक मैं चचंता से मुि हो जाऊं।
जब भी कोई क्रोध में हो, अपमान कर रहा हो, गाली िे रहा हो, तब तो उससे कु छ भी कहने का कोई
मतलब नहीं है। वह तो पागल से तुम जूझ रहे हो। वह तो पागलपन की हालत में है। उस वि तुम्हें एकिम िांत
होना चाशहए, तुम शजतने िांत होओगे उतना ही उसको तुम आत्मग्लाशन से भर िोगे। उसको लगेगा दक मुझसे
भूल हो गई।

प्रश्नाः आपने कहा दक प्रेम हो, बाि में शववाह का बंधन जरूरी है?

बंधन नहीं।

प्रश्न : यानी की हो जाता है?

सहज है न। शववाह का मतलब कु ल इतना ही है, प्रेम के बाि, दक िो व्यशियों को समाज ने स्वीकृ शत िे
िी दक उनके प्रेम को समाज ने भी स्वीकार कर शलया। और कोई मतलब नहीं है।

प्रश्नाः और यदि... शववाह के बाि जो प्रेम है उसको, वह ठीक है?

आमतौर से होना मुशश्कल है, सौ में शनन्यानबे मौके नहीं होने के हैं।

प्रश्नाः राम और सीता का एग्जांपल िे सकते हैं?

अब राम और सीता का क्या हुआ, तुम्हें कु छ पता नहीं है। कौन जानता है दक राम का प्रेम पहले नहीं हो
गया सीता को बगीचे में िे ि कर, मैंने सुना, पहले ही हो गया। वह प्रेम का ही मामला था राम-सीता का।
शववाह बाि में ही हुआ है। वह प्रेम का ही झगड़ा था। वह ट्राएंगल जो था न, प्रेम का ही झगड़ा था। वह रावर्
को भी प्रेम पकड़ा हुआ था। तो ट्राएंगल जैसा दफकम में बनता है, वही पुरानी कहानी है। वही राम, रावर्,
सीता। िो प्रेमी और एक प्रेशमका।

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सम्यक शिक्षा
नौवां प्रवचन

शिक्षााः महत्वाकांक्षा और युवा पीढ़ी का शवद्रोह

मनुष्य की आज तक की सारी शिक्षा महत्वाकांक्षा की शिक्षा रही है। वह मनुष्य को ऐसी िौड़ में गशत
िे ती है जो कभी भी पूरी नहीं होती। और जीवन भर की िौड़ के बाि भी हृिय िाली का िाली रह जाता है।
मनुष्य के मन का पात्र जीवन भर की कोशिि के बाि भी अंत अपने को िाली पाता है। इसीशलए मैं ऐसी शिक्षा
को सम्यक नहीं कहता।
मैं उसी शिक्षा को सम्यक शिक्षा (त्तपहीज मकनबंजपवि) कहता हं, तो मनुष्य की मन को भरने की इस
व्यथा की िौड़ को समाप्त कर िे । मैं उसी शिक्षा को सम्यक कहता हं जो महत्वाकांक्षा के इस ज्वर से मनुष्य को
मुि कर िे । मैं उसी शिक्षा को ठीक शिक्षा कहता हं जो मनुष्य कोई बुशनयािी भूल से छु टकारा दिलाने में
सहायक हो जाए। लेदकन ऐसी शिक्षा पृथ्वी पर कहीं भी नहीं। उलटे शजसे शिक्षा कहते हैं वह मनुष्य की
महत्वाकांक्षा (ंाःउइपजपवि) को बढ़ाने का काम करती है। उसकी महत्वाकांक्षा की आग में घी िालती है,
उसकी आग को प्रज्वशलत करती है, उसके भीतर जोर से त्वरा पैिा करती है, जोर से गशत पैिा करती है दक वह
व्यशि िौड़े और अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने में लग जाए। मन की वासनाओं को पूरा करने के शलए व्यशि
को सक्षम बनाने की कोशिि करती है शिक्षा, मन को महत्वाकांक्षा से मुि होने के शलए नहीं। और इसके
स्वाभाशवक पररर्ाम फशलत होने िुरू हुए हैं। सारे लोग अगर महत्वाकांक्षी हो जाएंगे तो जीवन एक द्वंद्व और
संघर्ा के अशतररि कु छ भी नहीं हो सकता है। अगर सारे लोग अपनी महत्वाकांक्षा के पीछे पागल हो जाएंगे तो
जीवन एक बड़े युद्ध के अशतररि और कु छ भी नहीं हो सकता है।
पुराने जमाने के लोग अचछे नहीं थे। आज के जमाने के लोग बुरे नहीं हो गए हैं। यह भांशत है शबककु ल दक
पहले के जमाने के लोग अचछे थे और आज के लोग बुरे हो गए हैं। यह भी भ्रांशत है दक पहले जमाने के युवक
अचछे थे और आज के युवक पशतत हो गए हैं और चररत्रहीन हो गए हैं। झूठी हैं ये बातें, इनमें कोई भी तथ्य नहीं
है। लेदकन एक फका जरूर पड़ा है। पुराने जमाने का जवान शिशक्षत नहीं था, उसकी महत्वाकांक्षा बहुत कम थी।
आज की िुशनया का युवक शिशक्षत है। उसकी महत्वाकांक्षा की अशग्न में घी िाला गया है। वह पागल होकर
प्रज्वशलत हो उठी है और शजतनी जोर से शिक्षा बढ़ती जाएगी उतनी ही जोर से यह शवशक्षप्तता और पागलपन
भी बढ़ता जाएगा। शिक्षा के साथ-साथ मनुष्य का पागलपन भी शवकशसत हो रहा है।
अतीत के लोग अशिशक्षत थे, बेपढ़े शलिे लोग थे। उनकी महत्वाकांक्षा धीमे धीमे जलती है। आज के युग
की शिक्षा ने आिमी को, उसकी महत्वाकांक्षा को बहुत प्रज्वशलत कर दिया है। पहले कभी कोई एकाध आिमी
पागल हो जाता था और शसकं िर बनने की कोशिि करता था। अब सब आिमी पागल हैं और सभी शसकं िर
होना चाहते हैं। और हम शसकं िर और पागल बनाने की इस कोशिि को शिक्षा का नाम िे ते हैं।
मैंने पुरानी से पुरानी दकताबें िे िी हैं और मैं िे ि कर हैरान हो गया। चीन में संभवताः िुशनया की सबसे
पुरानी दकताब है जो साढ़े छह हजार वर्ा पुरानी है और उस दकताब की भूशमका में शलिा हुआ है दक आजकल
के लोग शबककु ल शबगड़ गए हैं, पहले के लोग बहुत अचछे थे। मैं बहुत हैरान हुआ। वह भूशमका इतनी आधुशनक
मालूम पड़ती है दक लगता है आजकल के दकसी लेिक ने दकताब शलिी हो। साढ़े छह हजार वर्ा पहले कोई
शलिता है दक आजकल के लोग शबगड़ गए हैं, पहले के लोग अचछे थे! यह पहले के लोग कब थे?

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आज तक जमीन पर एक भी दकताब ऐसी नहीं है शजसमें शलिा हो दक आजकल के लोग अचछे हैं। हर
दकताब कहती है दक पहले लोग अचछे थे। यह पहले की बात शबककु ल ककपना, शबककु ल असत्य है। अगर पहले के
लोग अचछे थे तो ढाई हजार वर्ा पहले बुद्ध ने दकन लोगों को शसिाया दक चोरी मत करो, झूठ मत बोला, चहंसा
मत करो? दकन लोगों को शसिाई है यह बात? अगर पहले के लोग अचछे थे तो महाभारत कौन कराता था और
सीता कौन चुरा ले जाता था? और अगर पहले के लोग अचछे थे तो िुशनया में यह जो उपिे िक हुए जीसस
क्राइस्ट, कृ ष्र्, बुद्ध और कनफ्यूशसयस, इन्होंने दकन लोगों के सामने अपनी बातें समझाई? ये दकनके शलए रोते
थे? इनके हृिय में दकनके शलए वेिना थी? ये दकनसे कहते रहे दक तुम अचछे हो जाओ? तो दफर ये सारे लोग
पागल थे दक लोग अचछे थे और ये व्यथा ही उपिे ि दिए जाते थे। अगर यहां सभी लोग सच बोलने वाले हों और
मैं आकर समझाने लगूं दक आपको सच बोलना चाशहए तो लोग हंसेंगे दक आप दकसको समझा रहे हैं! यहां तो
सभी लोग सच बोलते ही हैं।
िुशनया भर के शिक्षकों की शिक्षाएं यह कहती हैं दक लोग कभी भी अचछे नहीं थे। जो फका पड़ा है वह इस
बात में नहीं पड़ा दक लोग बुरे हो गए हैं। फका बड़ा है दक बुरे लोग शिशक्षत हो गए हैं और शिक्षा ने बुरे लोगों को
अपनी बुराई से बचाने के शलए कवच का रूप ले शलया है। शिक्षा उनकी बुराई को बचाने का माध्यम हो गई है।
शिक्षा उनकी बुराई को बढ़ाने का माध्यम हो गई है। शिक्षा उनकी बुराई की जड़ों को पानी िालने का कारर्
बन गई है। लोग बुरे नहीं हो गए लेदकन बुरे लोग ज्यािा सबल और ज्यािा िशिमान हो गए हैं और उनके हाथ
में शिक्षा ने बड़ा अस्त्र िस्त्र िे दिए हैं।
एक बुरा आिमी हो और उसके पास तलवार न हो और एक बुरा आिमी हो उसके हाथ में एटम बम आ
जाए तो शजसके हाथ में एटम बम है वह बहुत बड़ी बुराई कर सके गा और िायि तब हम सोचेंगे शजनके पास
एटम बम नहीं था वे बड़े कोई अचछे लोग थे। उनके हाथ में पत्थर थे तो उन्होंने पत्थर फें के थे और एटम बम
उनके हाथ में आ गया तो वे एटम बम फें क रहे हैं। फें कने वाले वही के वहीं हैं। के वल फफं कने वाली चीज की
ताकत बढ़ गई है।
आिमी शिशक्षत हुआ है और शिक्षा गलत है। आिमी बुरा हमेिा से था। शिक्षा ने बुराई को हजार गुनी
ताकत िे िी है। कहते हैं न, करे ला नीम पर चढ़ जाए तो और कड़वा हो जाता है। बुरे आिमी शिक्षा की नीम पर
चढ़ गए। करे ला तो पहले से ही कड़वा था और शिक्षा की नीम ने और कड़वा कर दिया है। और यह भी मत
सोचना दक आज की शिक्षा ही गलत है, आज तक की सारी गलत रही है। यह भी मत सोचना दक पशिम के
लोगों ने आकर शिक्षा गलत कर िी है। यह भूल से मत सोचना। शिक्षा हमेिा से गलत रही है। और यह भी मत
सोचना दक शवद्याथी गलत हो गए हैं। सब शवद्याथी और सब गुरु हमेिा से गलत रहे हैं।
द्वोर्ाचाया का नाम हम भलीभांशत जानते हैं। अपने एक अमीर शिष्य के पक्ष में गरीब िूद्र का अंगूठा काट
लाए थे। वे गुरु थे! एकलव्य से इसशलए अंगूठा शलया था दक अंगूठा िे िे तू, क्योंदक एकलव्य था िूद्र , गरीब और
िररद्र। और अजुान था धनपशत, सम्राट, राजकु मार। अगर एकलव्य धनुर्वाद्या में बड़ा हो जाए तो अजुान को कोई
पूछेगा ही नहीं िुशनया में। तो उस गरीब िूद्र लड़के से अंगूठा कटवा शलया तादक अमीर शिष्य आगे बढ़े जाए।
पहले से ही गुरु गरीब शिष्यों के अंगूठे काटते रहे हैं यह कोई आज की बात नहीं है। लेदकन एक फका पड़ गया है।
पुराना एकलव्य सीधा सािा था। उसने अंगूठा िे दिया था। नए एकलव्य अंगूठा िे ने से इं कार कर रहे है। वे कहते
हैं, इस अंगूठा नहीं िें गे और वे कहते हैं दक यदि ज्यािा कोशिि की तो हम तुम्हारे अंगूठे काट लेंगे। यह फका पड़
गया है। इसके अशतररि और कोई फका नहीं पड़ा है।

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यह जो शस्थशत है, यह जो आिमी की आज ििा है उससे चचंता होती है। हर तरफ शवद्याथी आग लगा रहे
हैं, पत्थर फें क रहे हैं मकान तोड़ रहे हैं, यह कोई सामान्य घटना नहीं है। और यह घटना आज के शवद्यार्थायों
भर से संबंशधत नहीं है। यह पांच हजार वर्ा का युवकों का रोर् है जो इकट्ठा हो कर चरम सीमा पर पहुंच गया
है। यह पांच हजार वर्ा की गलत शिक्षा का अंशतम फल है। यह पांच वर्ों के िोर्र्-यह पांच हजार वर्ों के
िशमत युवक के मन की पीड़ा और वेिना है और आज उसने वह जगह ले ली है दक अब उस वेिना को कोई ठीक
मागा नहीं शमल रहा है तो वह गलत मागों से प्रकट हो रही है।
असल बात यह है दक युवक मकान तोड़ना नहीं चाहता है। कौन पागल होगा जो मकान तोड़ेगा? क्योंदक
मकान अंतताः दकसके टू टते हैं? बूढ़ों के नहीं टू टते हैं, हमेिा युवकों के ही टू टते हैं। क्योंदक बूढ़े कल शबिा हो
जाएंगे और मकान युवकों के हाथ में पड़ेंगे। दफर कौन महान तोड़ना चाहता है? कौन कांच तोड़ना चाहता है?
कौन बसें जलाना चाहता है? कोई नहीं जलाना चाहता। िायि मन के भीतर दकन्हीं और चीजों को जलाने की
तीव्र भावना पैिा हो गई है और समझ में नहीं आ रहा है दक हम दकस चीज को जलाए तो हम दकसी भी चीज
को जला रहे हैं। सारे अतीत को जलाने का ियाल आज मनुष्य के भीतर पैिा हो रहा है और समझ में नहीं आ
रहा है दक हम क्या जलाए, हम क्या करें , हम क्या तोड़ िें ? कोई चीज तोड़ने जैसी हो गई है। कोई चीज शमटाने
जैसी हो गई है। कोई चीज शबककु ल जलाने जैसी हो गई है। हर युग में कु छ चीजें जला िे नी पड़ती है तादक हम
अतीत से मुि हो जाए और आगे बढ़ जाए, तादक परं पराओं से मुि हो जाए और जीवन गशतमान हो सके । निी
जब समुद्र की और िौड़ती है तो न मालूम दकतने पत्थर तोड़ने पड़ते हैं, दकतनी मागा की बाधाएं, हटानी पड़ती
हैं, दकतने िरख्त शगरा िे ने पड़ते हैं, तब कहीं रास्ता बनता है और निी समुद्र तक पहुंचती है।
हजारों हजारों साल से मनुष्य की चेतना को रोकने वाली बहुत सी चीजें पत्थरों की िीवाल की तरह
िड़ी हैं। आज तक आिमी ने शवचार नहीं दकया उन्हें तोड़ िालने का। लेदकन जैसे जैसे मनुष्य की चेतना में
समझ, बोध और शवचार का जन्म हो रहा है वैसे ही एक तीव्र वेिना, एक तीव्र आंिोलन सारे जगत में प्रकट हो
रहा है। युवक नासमझ है दक वह कु छ भी तोड़ने में लग गया है। लेदकन दफर भी मुझे बड़ी िुिी होती है और
मेरे हृिय में बड़ा स्वागत है दक कम से कम उसने तोड़ना तो िुरू दकया। आज गलत चीजें तोड़ता है कल ठीक
चीजें तोड़ने के शलए हम उसे राजी कर लेंगे। अभागे तो वे युवक थे शजन्होंने कभी कु छ तोड़ा ही नहीं। तोड़ने की
सामथ्या एक बार पैिा हो जाए तो तोड़ने की िशि को दििा िी जा सकती है। एक बार शवध्वंस की िशि आ
जाए तो उस िशि को सृजनात्मक बनाया जा सकता है। क्योंदक स्मरर् रहे जो लोग तोड़ ही नहीं सकते वे बना
भी कै से सकते हैं। और ियाल रहे सृजन का पहला सूत्र शवध्वंस है। बनाने के पहले तोड़ िे ना पड़ता है।
एक गांव था। और उस गांव में एक बहुत पुराना चचा था। वह चचा इतना पुराना हो गया था। जैसे दक
सभी चचा पुराने हो गए हैं, सभी मंदिर पुराने हो गए हैं। वह बहुत पुराना हो गया था। उसकी िीवालें इतनी
जीर्ा हो गई थीं दक उस चचा के भीतर भी जाना ितरनाक था। वह दकसी भी क्षर् शगर सकता था। आकाि में
बािल आ जाते और आवाज होती तो चचा कांपता था। हवाएं चलती थीं तो चचा कांपता था। हमेिा िर रहता
दक चचा कभी भी शगर सकता है। चचा में जाना तो िूर, पड़ोस के लोगों ने भी पड़ोस में रहना छोड़ दिया था। िर
था दक चचा दकसी भी दिन शगर जाएगा और प्रार् ले लेगा। चचा संरक्षक गांव भर में पूछते दक आप लोग चचा
क्यों नहीं चलते हैं? क्या अधार्माक हो गए हैं? क्या ईश्वर का नहीं मानते हैं? लेदकन कोई भी अधार्माक हो गए
हैं? क्या ईश्वर को नहीं मानते हैं? लेदकन कोई भी इस बात को नहीं पूछता था दक कहीं ऐसा तो नहीं है चचा
बहुत पुराना हो गया है और उसके नीचे के वल वे ही जा सकते हैं शजनकी कब्र में जाने की तैयारी है, शबककु ल

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बूढ़ा हो गए हैं, शजनको अब मरने से कोई िर नहीं है। जवान उस चचा में नहीं जा सकते जो इतना शगने के
करीब है। आशिर संरक्षक घबरा गए और उन्होंने एक कमेटी बुलायी और सोचा दक अब अगर कोई आता ही
नहीं इस पुराने चचा में तो उशचत होगा दक हम नया चचा बना लें। उन्होंने चार प्रस्ताव पास दकए उस कमेटी में
उन पर जरा गौर कर लेना क्योंदक उनका बड़ा अथा है।
उन्होंने चार प्रस्ताव दकए। पहला संककप और पहला प्रस्ताव उन्होंने यह दकया दक पुराने चचा को शगरा
िे ना चाशहए। सबने कहा दक यह शबककु ल ठीक है। सब एक मत से राजी हो गए। िूसरा प्रस्ताव उन्होंने यह दकया
दक हमें इसकी जगह एक नया चचा बनाना चाशहए लेदकन ठीक उसी जगह जहां पुराना चचा िड़ा है और ठीक
वैसा ही जैसा पुराना चचा है। इस पर भी सभी लोग राजी हो गए। तीसरा प्रस्ताव उन्होंने यह दकया दक हमें
पुराने चचा में जो जो सामान लगा है उसी सामान से नया चचा बनाना है। िरवाजे भी वहीं, ईंटें भी वही। पुराने
चचा के सारे सामान से यह नया चचा बनाना है। इस पर भी सब लोग राजी हो गए। और चौथा प्रस्ताव उन्होंने
यह पास दकया दक जब तक नया चचा न बन जाए तब तक पुराना चचा शगराना नहीं है।
वह चचा अभी भी िड़ा हुआ है। वह हमेिा िड़ा रहेगा। वह कभी नहीं शगर सकता क्योंदक वे प्रस्ताव
पास करने वाले बड़े होशियार थे।
आिमी की चजंिगी पर भी पुराने चचों का बहुत भार है। पुरानी परं पराओं का, पुराने मंदिरों का, पुराने
िास्त्रों का, पुराने लोगों का। अतीत जकड़े हुए है मनुष्य के भशवष्य को। पीछे की तरफ हमारी टांग कसी हुई है
दकन्हीं जंजीरों से और आगे की तरफ हम मुि हो पाते तो प्रार् तड़फड़ा उठते हैं दक तोड़ िो सब। और सब कोई
उत्सुक हो जाता है तोड़ने को तो वह यह भूल जाता है दक हम क्या तोड़ रहे हैं।
युवक तोड़ रहे हैं यह तो िुिी की और स्वागत की बात है, लेदकन गलत चीजें तोड़ रहे हैं यह िुि की
बात है। कु छ और जरूरी चीजें हैं जो तोड़नी चाशहए। मुकक के नेता और मुकक के अगुवा यही चाहते हैं दक युवक
गलत चीजें तोड़ते रहें तादक उन्हें कहीं ठीक चीजें तोड़ने की ियाल न जाए। वे भी यही चाहते हैं, यद्यशप वे
समझाते हैं दक चीजें मत तोड़ो, बस में आग मत लगाओ, मकान मत जलाओ। वे समझाते हैं दक यह बहुत बुरा
हो रहा है लेदकन हृिय के बहुत गहरे कोने में वे यही चाहते हैं दक युवकों का मन व्यथा की चीजें तोड़ने तक
उनका ियाल न चला जाए। इसशलए जब कोई गलत चीजें तोड़ रहा है तो वह न सोचे दक उससे चजंिगी बनेगी।
यह लोगों के हाथ में िेल रहा है उसका उसे पता ही नहीं है।
नेता हमेिा मुकक की चेतना को, िे ि के मन को गलत चीजों में उलझा िे ना चाहते हैं। और इस बात के
पीछे बहुत गहरी चालाकी है। चालाकी यह है दक अगर लोगों को गलत चीजों में उलझा दिया जाए तो ठीक
चीजें तोड़ने से उन्हें रोका जा सकता है। उनकी ताकत व्यथा की चीजों को नि करने मग समाप्त हो जाती है। और
न के वल ताकत समाप्त हो जाती है बशकक व्यथा चीजें तोड़कर वे िुि पचात्ताप से भर जाते हैं और तब उनकी
तोड़ने की शहम्मत क्षीर् हो जाती है। उनका अंताःकरर् कहने लगता है, यह सब गलत हो रहा है। उनके पास भी
यह आत्मबल नहीं होता है दक वे यह कह सकें दक हमने इस बस में आग लगाई है तो कु छ ठीक दकया है। उनके
पास यह आत्मबल नहीं हो सकता है। गलत चीजें टू टने से कु छ शबगड़ता नहीं, उकटे तोड़ने वाले का आत्मबल नि
होता है और उसकी तोड़ने की क्षमता नि होती है। उसकी तोड़ने की िशि व्यथा की चीजों में उलझकर समाप्त
हो जाती है।
उनसे ज्यािा से ज्यािा ितरा तभी तक होता है जब तक वे शवश्वशवद्यालय में पढ़ रहे हैं। उसके बाि उनसे
कोई ितरा नहीं होता, क्योंदक उनकी पशत्नयां, उनके बच्चे उनके सारे ितरे के शलए िाक एब्जावार का काम

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करने लगेंगे। दफर उनसे कोई ितरा नहीं है। एक बार उनकी िािी हो जाए तो उनसे कोई ितरा नहीं है। और
मैं आपसे यह भी कह िे ता हं, जैसा मैंने आपसे कहा दक युवक शिशक्षत हो गया है इसशलए ितरा बढ़ा है, िूसरी
बात, िािी की उम्र बड़ी हो गई है, इससे भी ितरा बढ़ा है। क्योंदक िादियां बहुत पुराने दिनों से आिमी के
भीतर शवद्रोह की क्षमता को तोड़ने का काम करती रही हैं, जो शवद्रोही चेतना है उसको नि करने का काम
करती रही हैं। पुराने लोग इस मामले में बड़े होशियार थे। िस बारह साल के लड़दकयों और लड़कों को
शववाशहत कर िे ते थे। उसके बाि उनसे शवद्रोह की कोई संभावना नहीं रह जाती थी, वे उसी वि से बूढ़े होने
िुरू हो जाते थे। असल में वे जवान हो ही नहीं पाते थे।
सारी िुशनया में शिक्षा के साथ िूसरा तत्व यह है दक शववाह की उम्र लंबी हुई है। चौबीस वर्ा और बीस
वर्ा के युवक और युवशतयां अशववाशहत हैं। ये दिन शवद्रोह की क्षमता के शवकशसत होने के क्षर् हैं। उनके ऊपर
कोई बंध नहीं। ये क्षर् हैं, जब शवद्रोह को सोच सकते हैं, जब उनकी आत्मा दकन्हीं चीजों को गलत कह सकती
है।
अमरीका के मनोवैज्ञाशनकों ने सलाह िी है दक अमरीका में दफर छोटी उम्र में िािी िुरू कर िे नी
चाशहए। अगर चीजों को बचाना है दक युवक उन्हें तोड़ न िें , तो उनकी िािी जकिी हो जानी चाशहए। क्योंदक
तब उनकी सारी ताकत नमक, तेल, लकड़ी जुटाने में समाप्त हो जाती है। दफर उनसे कु छ भी नहीं हो सकता।
जवानी में नमक तेल लकड़ी जुटाते हैं, बुढ़ापे में स्वगा, पर लोग वगैरह की व्यवस्था के शलए भजन कीतान करते
हैं। दफर उनसे कोई शवद्रोह नहीं हो सकता। शवद्रोह के क्षर् हैं उनके पच्चीस वर्ा से पहले के क्षर्।
िुशनया में जो इतनी चीजें टू ट रही हैं उसके पीछे ये कारर् हैं। लेदकन मेरे मन में इससे िुि नहीं है दक
चीजें टू ट रही हैं। मैं मानता हं दक बड़े िुभ लक्षर् हैं, ये बड़े िुभ समाचार हैं। िुि इस बात का है दक गलत चीजें
टू ट रही हैं। बहुत जरूरी चीजें हैं शजन्हें तोड़ िे ना चाशहए। और उन जरूरी चीजों में से पहली चीज यह है दक
हमें उस िुशनया को जो महत्वाकांक्षा के आधार पर िड़ी है, बिल िे ना चाशहए। महत्वाकांक्षा के आधार पर
िड़ी हुई िुशनया को तोड़ िे ना चाशहए और एक गैर महत्वाकांक्षा (छवि(ंंउइपजपवने) समाज का शनमाार्
करना चाशहए। यह क्यों? यह इसशलए दक महत्वाकांक्षा के आधार पर िड़ा हुआ जगत चहंसा, िुि और पीड़ा
का ही जगत हो सकता है। उसमें न तो प्रेम हो सकता है, न आनंि हो सकता है, न िांशत हो सकती है।
महत्वाकांक्षा का अथा क्या होता है? महत्वाकांक्षा का अथा होता है िूसरों से आगे शनकल जाने की िौड़।
बचपन से हमें यही शसिाया जाता है, पहली कक्षा से यही शसिाया जाता है दक िूसरे से आगे शनकल जाओ,
प्रथम आ जाओ। प्रथम आना ही एकमात्र मूकय है। जो युवक प्रथम आ जाएगा, जो बच्चा पहले आ जाएगा वह
पुरस्कृ त होगा, सम्माशनत होगा। जो पीछे छू ट जाएंगे वे अपमाशनत हो जाएंगे। यह िुशनया इतनी उिास कभी
नहीं होती, लेदकन हमें पता नहीं है दक हम कै सी मनौशवज्ञाशनक महत्वाकांक्षा रि रहे हैं मनुष्य के शलए। एक
स्कू ल में अगर हजार बच्चे पढ़ते हैं तो आशिर दकतने बच्चे प्रथम आएंगे? िस बच्चे प्रथम आएंगे और नौ सा नब्बे
पीछे रह जाएंगे।
िुशनया कौन बनाता है? प्रथम होने वाले िुशनया बनाते हैं या हारे हुए, पीछे रह जाने वाले लोग िुशनया
बनाते हैं? िुशनया दकनसे बनती है? िुशनया के संगठन कौन हैं िुशनया के संगठन हैं पराशजत लोग। हारे हुए
लोग, िुिी लोग जो प्रथम नहीं आ सके वे लोग। और जब पहली ही कक्षा से बच्चे को शनरं तर पीछे रहना पड़ता
है तो उसके जीवन में आत्मग्लाशन, हीनता, िीनता सब पैिा हो जाता है। ये िीनहीन लोग िुशनया के संगठन हैं।

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उनकी बड़ी संख्या होगी, ये िुशनया को बनाएंगे, शजनको जीवन के कोई सम्मान नहीं दिया, कोई आिर नहीं
दिया।
आप कहेंगे दक कौन इन्हें रोकता था, ये भी प्रथम आ सकते थे। ठीक कहते हैं आप। कोई नहीं रोकता है। ये
भी प्रथम आ सकते थे। लेदकन तीस लड़कों में कोई भी प्रथम आए, एक ही लड़का प्रथम आएगा। उनतीस हमेिा
पीछे रह जाएंगे। उनतीस िुिी होंगे। एक प्रसन्न होगा। कोई भी एक प्रसन्न हो, यह सवाल नहीं है दक कौन एक
प्रसन्न होता है। लेदकन उनतीस िुिी होंगे। उनतीस के िुि पर एक व्यशि का सुि शनभार होगा और उनतीस बच्चे
िुि लेकर जीवन में प्रशवि होंगे। हारे हुए लोग, पराशजत लोग। महत्वाकांक्षा ने सारी िुशनया को िीनहीन बना
दिया है। एक ऐसा समाज और एक ऐसी शिक्षा और एक ऐसी संस्कृ शत चाशहए जहां प्रथम आने के पागलपन से
आिमी का छु टकारा हो गया हो, नहीं तो िुशनया में युद्ध नहीं रुक सकते हैं, क्रोध नहीं रुक सकता। जब कोई
आिमी बहुत क्रोध, िुि और शवर्ाि से भर जाता है तो वह सारी िुशनया से बिल लेता है-इस बात का दक मुझे
िुि दिया है उस िुशनया ने, मुझे कोई सम्मान नहीं दिया, मुझे कोई पुरस्कार नहीं दिए, मुझे कोई आिर नहीं
दिया, मुझे कोई पिशवयां नहीं िीं। वह सारी िुशनया के प्रशत क्रुद्ध हो उठता है, क्रोध से भर जाता है। यह क्रोध
शनकल रहा है सब तरफ से बह बहकर।
क्या ऐसा नहीं हो सकता है दक हम एक ऐसी शिक्षा शवकशसत करें जो व्यशि को प्रशतस्पधाा में नहीं, आत्म
पररष्कार में ले जाती हो। इन िोनों बातों में भेि है। इस सूत्रों को ठीक से समझ लेना जरूरी है। एक शस्थशत तो
यह है दक मैं िूसरे लोगों से आगे शनकलने की कोशिि करूं और िूसरी शस्थशत यह है दक मैं रोज अपने आपसे
आगे शनकलने की कोशिि करूं। मैं जहां कल था, आज उससे आगे बढ़ जाऊं। मेरी तुलना मेरे अतीत से हो, दकसी
पड़ोसी से नहीं। मैं रोज िुि को पार करूं, िुि को अशतक्रमर् करूं। कल सूरज ने मुझ जहां छोड़ा था िू बते वि,
आज का उगता सूरज मुझे वही न पाए। मैं आगे बढ़ जाऊं। कल रात सूरज शविा हुआ था तब िेतों में जो पौधे
लगे थे आज सुबह आप उनको वहीं पाएंगे। वे आगे बढ़ गए हैं, लेदकन दकस से आगे बढ़ गए हैं? दकसी िूसरे से?
नहीं, अपने से आगे बढ़ गए हैं। दकसी िूसरे से कोई प्रयोजन नहीं है प्रकृ शत में। सारी प्रकृ शत दकसी िूसरे से
प्रशतस्पधाा में नहीं है शसवाय मनुष्य को छोड़कर।
एक गुलाब का फू ल शिल रहा है एक बशगया में। उसे कोई प्रशतस्पधाा नहीं है दक चमेली का फू ल कै से
शिलता है और कमल का फू ल कै से शिला है। गुलाब का फू ल शिल रहा है अपनी िुिी में। उसका पुशष्पत होना
उसकी अपनी आंतररक बात है। आिमी भरके फू ल गड़बड़ हो गए हैं। वह हमेिा िूसरों की तरफ िे ि रहे हैं दक
िूसरे के शिलने से मैं दकतना आगे शनकलता हं और वह दकतने पीछे रह जाता है। अपनी िुि की सेकफ
फलावररं ग का कोई ियाल ही नहीं है। इससे एक पागलपन पैिा होता है। वह पागलपन ऐसा है दक अगर मैं
दकसी बशगया में चला जाऊं और गुलाब से कहं दक पागल क्या तू गुलाब ही होकर नि हो जाएगा? कमल नहीं
होना है? कमल का फू ल बहुत िानिार होता है, कमल हो जा तो पहली बात यह है दक गुलाब मेरी बात ही
नहीं सुनेगा। वह हवाओं में िोलता रहेगा, मेरी बात उसे सुनाई नहीं पड़ेगी, क्योंदक फू ल आिशमयों जैसे
नासमझ नहीं होते दक दकसी ने भी बुलाया और सुनने को आ गए। फू ल इतने नासमझ नहीं होते दक सुनने को
राजी हो जाए। अव्वल तो फू ल सुनेंगे नहीं, लेदकन हो भी सकता है, आिमी के साथ रहते रहते उसकी
बीमाररयां फू लों को भी लग सकती हैं। बीमाररयां संक्रामक होती हैं। बीमाररयां छू त की होती हैं। हो सकता है
आिमी की बशगया में लगे लगे फू लों में गड़बड़ी आ गई हो और वह भी उपिे ि सुनने लगे हों तो मेरी बात अगर
वह फू ल मान लेंगे तो दफर क्या होगा?

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उस गुलाब के फू ल को अगर मेरी बात पकड़ गई, यह ज्वर पकड़ गया दक मुझे कमल का फू ल हो जाना है
या कमल के फू ल से आगे शनकल जाना है पागल हो जाएगा वह गुलाब का पौधा। दफर उसमें फू ल पैिा नहीं
होंगे। क्योंदक गुलाब से गुलाब ही पैिा होते हैं, कमल पैिा नहीं हो सकता। यह उसकी आंतररक शवविता है, वह
कु छ और नहीं हो सकता। गुलाब का फू ल गुलाब ही हो सकता है। चमेली चमेली ही हो सकती है, चंपा चंपा ही
हो सकती है, घास का फू ल घास का फू ल ही हो सकता है, कमल का फू ल कमल का फू ल ही हो सकता है। लेदकन
अगर यह पागलपन चढ़ जाए दक चंपा चमेली होने की कोशिि करे , गुलाब कमल होने की, तो दफर उस बशगया
में फू ल पैिा होने बंि हो, जाएंगे। गुलाब कमल तो हो ही नहीं सकता है, लेदकन कमल होने की कोशिि में
गुलाब भी नहीं हो सकता।
आिमी की बशगया में फू ल इसीशलए पैिा होने बंि हो गए हैं। कांटे ही कांटे पैिा होते हैं; वहां फू ल पैिा
होते ही हनीं। क्योंदक कोई आिमी स्वयं होने की कोशिि में नहीं है। हर आिमी कोई और होने की कोशिि में है;
दकसी और को पार करने की चेिा में लगा हुआ है। शिक्षा हर आिमी को िुि होने का ियाल नहीं िे ती। हमारी
शिक्षा कहती है, िे िो वह आिमी आगे शनकल गया है, तुमको भी वैसे हो जान है। िे िो वह आिमी दिकली पहुंच
गया है, तुमको भी दिकली पहुंच जाना है। िे िो वह आिमी पहुंच जा रहा है आगे, तुम कहां पीछे रहे जाते हो।
िौड़ों। इस तरह सब तरफ से महत्वाकांक्षा पैिा की जाती है। राजनैशतक रूप से महत्वाकांक्षा पैिा करते हैं दक
िे िो राधाकृ ष्र्न स्कू ल में शिक्षक थे वे रािपशत हो जाओ। तुम भी पागल हो जाओ और शिक्षक दिवस मनाओ
दक बड़ी सम्मान को बात हो गई दक एक शिक्षक रािपशत हो गया।
मुझे भी एक शिक्षक दिवस पर भूल से बोलने के शलए बुला शलया गया। भूल से कोई बुला लेता है बोलने
के शलए। मैंने उन शिक्षकों को कहा दक राष्ट्रपशत हो जाए इसमें शिक्षकों का कौन सा सम्मान है? शजस दिन कोई
राष्ट्रपशत कहे दक मैं स्कू ल में आकर शिक्षक होना चाहता हं उस दिन शिक्षक दिवस मनाना। उस दिन कहना दक
हम धन्य हुए दक एक राष्ट्रपशत ने कहा है दक हम शिक्षक होने को तैयार हो। लेदकन एक शिक्षक राष्ट्रपशत होना
चाहे इसमें शिक्षक का क्या सम्मान है? इसमें राजनीशतज्ञ का सम्मान है, पि का सम्मान है, दिकली का सम्मान
है, राज्य का सम्मान है। इसमें शिक्षक का कौन सा सम्मान है?
लेदकन हम कहते हैं िे िो यह हुआ जा रहा है तुम भी िौड़ो। राजनैशतक रूप से हम आिमी को ज्वर से
भरते हैं। िौड़ो, आगे िौड़ो। िूसरे को पीछे छोड़ो और आगे बढ़ जाओ। ऐसे ही यह हम धार्माक रूप से, नैशतक
रूप से लोगों को शसिलाते हैं दक गांधी बन जाओ, बुद्ध बन जाओ, महावीर बन जाओ। ये झूठी बातें हैं। जहर
फै ला रहे हैं आिमी के दिमाग में। कोई आिमी कभी गांधी बन सकता है? कोई आिमी कभी बुद्ध बन सकता है?
और बन सके तो भी बनने की जरूरत कहा है? एक आिमी काफी है अपने जैसा। िूसरे आिमी को वैसे होने की
जरूरत नहीं है। एक गांव में अगर एक ही जैसे बीस हजार गांधी पैिा हो जाए तो उस गांव की मुसीबत समझ
सकते हैं। उस गांव में इतनी ऊब पैिा हो जाएगी, इतनी घबड़ाहट पैिा हो जाएगी दक लोग आत्महत्या कर लेंगे।
जीना मुशश्कल हो जाएगा। एक गांधी बहुत प्यारे हैं। एक बुद्ध बहुत अिभुत हैं। एक राम बहुत िानिार हैं। एक
कृ ष्र् बमुकाबला हैं, कोई मुकाबला नहीं है उनका। बड़े िूबी के लोग हैं, लेदकन अगर एक ही गांव में एक ही
जैसे राम ही राम धनुर्बार् शलए हुए िड़े हों तो हो गई करठनाई। रामलीला करनी हो तक ठीक है लेदकन
अगर असली मामला हो तो बहुत गड़बड़ है।
कोई आिमी िोबारा िोहराए जाने की जरूरत नहीं है। पुनरावृशत्त (त्तमचमजपजपवि) की कोई जरूरत
नहीं है। हर आिमी िुि होने को पैिा होता है, कोई और होने को पैिा हनीं होता। लेदकन अब तक हम शिक्षक

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को इस बात के शलए राजी नहीं कर पाए दक वे बच्चों से कह सकें दक तुम कु छ और होने की कोशिि मत करना,
तुम िुि हो जाना।
जीवन में जो सवााशधक महत्वपूर्ा बात है वह है स्वयं होने की क्षमता को उपलब्ध हो जाना। और जो
आिमी िूसरे जैसे होने की कोशिि करे गा उस आिमी का पागल होना सुशनशित है। क्योंदक िूसरे जैसा वह हो
नहीं सकता। इसशलए िुशनया में शजतनी यह शिक्षा बढ़ती है, आििा बढ़ते हैं उतना ही पागलपन बढ़ता है। इसमें
दकसी और का कसूर नहीं। शिक्षा बुशनयािी रूप से गलत है। शजतना आिमी शिशक्षत होता है उतना िूसरे होने
की िौड़ में लग जाता है दक मैं कोई और हो जाऊं, कोई बन जाऊं, मैं कु छ और हो जाऊं। िुि से, स्वयं से उसकी
कोई तृशप्त नहीं होती। वह कोई और होना चाहता है। जब भी कोई आिमी कोई और होना चाहता है तब आिमी
अपने होने से चयुत हो जाता है। वह मागा से भटक जाता है, वह कु छ और होने की िौड़ में जो हो सकता था वह
भी हनीं हो पाता है और तब जीवन में िुि और पीड़ा पैिा होती है।
अगर कोई पूछें दक पागलपन की क्या पररभार्ा है, शवशक्षप्त होने का क्या मतलब है तो मेरी िृशि में
पागल होने की एक पररभार्ा है जो आिमी स्वयं से शभन्न हो जाता है वह आिमी पागल है। और जो आिमी
स्वयं हो जाता है वह आिमी स्वस्थ है। स्वयं हो जाना स्वस्थ होना है। बस और कोई स्वास्थ्य का मतलब नहीं
होता है। चहंिी का िब्ि है स्वास्थ्य, वह तो िब्ि ही बहुत अिभुत है। स्वास्थ्य का मतलब है स्वयं में शस्थत, जो
स्वयं में िड़ा हो गया वह स्वस्थ है। और वह अस्वस्थ है जो स्वयं से भटक गया है, यहां-वहां चला गया है। हम
सारे लोग स्वयं से भटकाए जा रहे हैं। हम स्वयं में शस्थत होने के शलए िीशक्षत नहीं दकए जा रहे हैं। इससे एक
शवशक्षप्तता पैिा हो रही है, पागलपन पैिा हो रहा है।
नेहरू जब तक चजंिा थे, चहंिुस्तान में िस पच्चीस लोग थे शजनको यह ियाल पैिा हो गया था दक हम
नेहरू हैं। मेरे छोटे से गांव में एक आिमी था। उसको यह वहम पैिा हो गया था दक वे जवाहरलाल नेहरू हैं।
नेहरू एक पागलों की जुल िे िने गए थे। एक पागल वहां स्वस्थ हो गया था, ऐसा मुशश्कल से ही होता है।
स्वस्थ तो अक्सर पागल होते हैं मगर पागल कम ही स्वस्थ होते िे िे जाते हैं। लेदकन ऐसी िुघाटना वहां घट गई
थी, एक्सीिेंट हो गया था। एक पागल ठीक हो गया था और नेहरू उसको िे िने गए थे, पागलिाने में।
पागलिाने के अशधकाररयों ने सोचा दक नेहरू के हाथ से ही उसको पागलिाने से छु टकारा और मुशि दिलवाई
जाए। नेहरू भी बहुत िुि थे दक एक आिमी ठीक हो गया है। उससे शमलकर नेहरू ने पूछा दक क्या तुम ठीक हो
गए हो? तो उसने कहा, मैं शबककु ल ठीक हो गया हं। तीन साल पहले मैं शबककु ल पागल था। लेदकन आप कौन हैं
महािय? नेहरू ने कहा, मुझे नहीं जानते? मैं जवाहरलाल नेहरू हं। वह आिमी यह सुन कर िूब हंसने लगा।
उसने कहााः तीन साल आप भी यहां रह जाए तो ठीक हो जाएंगे। तीन साल आप भी यहां रह जाए तो ठीक हो
जाएंगे। तीन साल पहले मुझे भी यही ियाल पैिा हो गया था दक मैं जवाहरलाल नेहरू हं। तीन साल में मैं
शबककु ल ठीक हो गया हं। तीन साल आप भी यहां रह जाएं।
जब भी दकसी आिमी को ियाल पैिा हो जाता है दक मैं कोई और हं तो समझ लेना दक वह पागल हो
गया है। और जब भी कोई आिमी इस कोशिि में लग जाता है दक मैं कोई और हो जाऊं तो समझ लेना दक
पागलपन की यात्रा िुरू हो गई है। इस शिक्षा ने मैनकाइं ि को मैिकाइं ि में बिल दिया है। आिशमयत एक बड़ा
पागलिाना हो गई है। सारी जमीन पर पागलों का बड़ा समूह पैिा हो गया है दफर अगर ये पागल आग लगा
िें , मकान तोड़ िें तो नाराज मत होइए। इनको हमने पागल बनाया है। हमने इन्हें इनकी आत्मशस्थशत से चयुत

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दकया है। यह जो हो सकते थे वह होने के शलए हमने इन्हें तैयार नहीं दकया और जो नहीं हो सकते थे उसकी
तरफ हमने इनको िौड़ाया है।
आिमी का मशस्तष्क इतने सूक्ष्म तंतुओं से बना है, आिमी का मन इतना नाजुक है दक उसमें जरा भी
गड़बड़ करें तो सब नुकसान हो जाता है। आिमी का मन बहुत कोमल है। आिमी की छोटी सी िोपड़ी में करोड़ों
रे िे हैं। अगर आिमी की िोपड़ी के रे िों को शनकालकर हम कतार में फै ला िें तो पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा लेंगे।
एक आिमी की िोपड़ी में इतने रे िे हैं। इतने बारीक सेल, इतने बारीक स्नायु और यह छोटा सा मशस्तष्क उन्हीं
करोड़ों स्नायुओं से शमल कर बना है। सारी मिीन बहुत िेशलके ट है और इसमें जरा भी गड़बड़ी हो जाती है।
आिया है यह दक अब तक सारे मनुष्य पागल क्यों नहीं हो गए। आिया यह नहीं है दक कु छ लोग पागल
हो जाए। आिमी के साथ जो दकया जा रहा है, आिमी के साथ जो अनाचार हो रहा है, आिमी के साथ जो
व्यशभचार हो रहा है, जो बलात्कार हो रहा है, आिमी के मन के साथ जो दकया जा रहा है उससे सारे लोग
पागल हो जाए तो कोई आिया की बात नहीं है। क्योंदक आिमी को आत्म शवज्ञान में िीशक्षत नहीं दकया जा रहा
है और पराए जैसे होने की िौड़ में, िूसरे को पार करने के पागलपन की दििा में धक्के दिए जा रहे हैं। इन सारे
धक्कों से यह उपद्रव पैिा हो गया है।
युवकों को शिक्षा िे ने से कु छ भी नहीं होगा। शिक्षा को आमूल ही बिल िे ना जरूरी है। एक पूरी तरह
क्रांशतकारी किम उठाना जरूरी है दक हम मनुष्य की महत्वाकांक्षा को ही हनीं बशकक मनुष्य के भीतर जो शछपी
हुई संभावनाएं हैं उनके पररष्कार को ध्यान में रिें। मनुष्य कहां पहुंचे यह सवाल नहीं है। मनुष्य जो है वह कै से
प्रकट हो जाए यह सवाल है। मनुष्य दकसी मंशजल को छू ले यह सवाल नहीं है। मनुष्य के भीतर कु छ संभावना
रूप में (ढवजमिजपंससल) शछपा हुआ है, जैसे बीज के भीतर पौधा शछपा हुआ होता है। बीज को हम बो िे ते हैं
बगीचे में। माली बीज में से पौधे को िींच िींच कर शनकालता नहीं है और अगर कोई माली िींच िींच कर
पौधे को शनकाल लेगा तो समझ लेना दक उस पौधे की क्या हालत होने वाली है। पौधा शनकलता है। माली तो
शसफा अवसर जुटा िे ता है। पानी िाल िे ता है। बीज िाल िे ता है, िाि िाल िे ता है, बागुड़ लगा िे ता है और
दफर चुपचाप प्रतीक्षा करता है दक पौधा शनकले। पौधा वह कभी शनकालता नहीं है। लेदकन हम आिमी में से
पौधे शनकाल रहे हैं। उनको हम शवश्वशवद्यालय कहते हैं, शवद्यालय कहते हैं, शजनमें आिमी के बीच में से हम
जबिा स्ती पौधा िींच रहे हैं। कोई पौधा बाप की मजी से िींचा जा रहा है। कोई पौधा मां की मजी से िींचा जा
रहा है, कोई गुरु की मजी से िींचा जा रहा है। इनको इं जीशनयर बनाओ, इनको कशव बनाओ, इनको िाक्टर
बनाओ। कोई यह कु छ ही नहीं है दक इसके भीतर शछपा क्या है? यह क्या होने को पैिा हुआ है?
मैं एक घर में ठहरा हुआ था। एक लड़के ने कहााः मुझसे बचाइए। मैं पागल हो जाऊंगा। मैंने कहा, क्या
मामला है। उसने कहााः मेरी मां कहती है इं जीशनयर बनो। मेरे बाप कहते हैं िाक्टर बनो। और िोनों इस तरह
िींच रहे हैं मुझे, दक न मैं इं जीशनयर बन पाऊंगा, न मैं िाक्टर बन पाऊंगा और मैं जो बन जाऊंगा उसका
शजम्मा दकसी पर भी नहीं होगा। क्योंदक वे िोनों मुझे िो बनाना चाहते हैं। बच्चे िींचे जा रहे हैं, जबरिस्ती
िींचे जा रहे हैं। बच्चों में कोई वृशद्ध, कोई शवकास नहीं होता। बच्चे को जबरिस्ती तनाव िे कर हम उनमें से कु छ
पैिा करने की कोशिि कर रहे हैं। इसके पहले दक उनके भीतर कु छ पैिा हो, हम जबरिस्ती िींच तानकर उन्हें
तैयार करते हैं। दफर अगर वे कु रूप हो जाते हैं, उनका जीवन एक कु रूपता बन जाता है, उनका जीवन सौंिया
िो िे ता है और आनंि िो िे ता है तो हम पीशड़त और परे िान होते हैं और पूछते हैं कशलयुग आ गया है क्या?
लोग िराब हो गए हैं क्या? दफर हम अपने पुरानी दकताबों में िोजते हैं शजनमें शलिा हुआ है दक हां, ऐसा वि

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आएगा जब लोग िराब हो जाएंगे। तब हम शनशित हो जाते हैं। तो ठीक है, भशवष्य वार्ी ठीक हो गई है।
ऋशर् महात्मा शबककु ल ठीक ही कहते थे दक जमाना िराब हो जाएगा। यह िराब का जमाना आ गया है। नहीं,
यह ियाल जमाना लाया गया है, यह आया नहीं है। और इसे हम रोज ला रहे हैं। असल में आसमान से कु छ भी
नहीं टपकता है, हम जो लाते हैं वह आता है। हम यह शस्थशत लाए हैं और इस सारी शस्थशत के पीछे मनुष्य के
सहज शवकास का कोई ध्यान नहीं है। िींचने का ध्यान है। चिंचो और आिमी को कु छ बनाओ। इसको तोड़
िालो।
हम इनकार कर िें उस दििा से जो आिमी के साथ जबरिस्ती कर रही है और कर िें दक चाहे हम
अशिशक्षत रह जाएंगे वह बेहतर है, लेदकन हम जबरिस्ती आत्मा के िींचे जाने को बरिाश्त नहीं करें गे।
अशिशक्षत होने से कु छ भी नहीं शबगड़ता है। हजारों साल तक आिमी अशिशक्षत रहा, क्या शबगड़ गया? वैसे कई
शलहाज से फायिा था। अशिशक्षत आिमी हमसे ज्यािा सौंिया में जीया हमसे ज्यािा िांशत में जीया, हमसे
ज्यािा आनंि में जीया। अशिशक्षत आिमी हमसे ज्यािा स्वस्थ जीया तो शिशक्षत होने से क्या हो जाने वाला है?
लेदकन अगर ठीक से शिक्षा शमले तो बहुत कु छ कु छ हो सकता है। अगर तीन चुनाव हों आिमी के सामने-गलत
शिक्षा, ठीक शिक्षा और अशिक्षा-तो मैं कहता हं अगर गलत शिक्षा और अशिक्षा में से चुनना हो तो अशिक्षा
चुननी चाशहए। अशिशक्षत रह जाना बुरा नहीं है लेदकन अगर ठीक शिक्षा हो सके तो जरूर बड़ा सौभाग्य है।
और शिक्षा ठीक हो सकती है।
पहली बात शिक्षा को महत्वाकांक्षा और प्रशतस्पधाा के कें द्र से हटा िे ना चाशहए। उसकी जगह
आत्मपररष्कार और आत्म उन्नशत और स्वयं के सहज शवकास पर बल िे ना चाशहए और इसकी दफकर छोड़ िे नी
चाशहए दक हर आिमी इं जीशनयर बने, हर आिमी िाक्टर बने। हो सकता है कोई आिमी अचछा चमार बनने को
पैिा हुआ हो। और अगर अचछा चमार िाक्टर बन गया तो बड़े ितरे हैं। वह आिमी के साथ आपरे िन तो
करे गा लेदकन वैसे जैसे जूते के साथ करता है। और हो सकता था वह अचछा बढ़ई बनता। जरूरत है बढ़ई की
भी, चमार की भी। लेदकन हमने जैसी गलत समाज व्यवस्था बनाई है उसमें हम िाक्टर को बहुत ऊंचा पि िे ते
हैं। बढ़ई को कोई पि नहीं िे ते। तो बढ़ई को भी पागलपन िुरू होता है दक िाक्टर बनो। लेदकन बढ़ई की अपनी
जरूरत है। उसकी जरूरत दकसी िाक्टर से कम नहीं है। और चमार की अपनी जरूरत है। उसकी जरूरत दकसी
प्राइम शमशनस्टर से कम नहीं है। और शिक्षक की अपनी जरूरत है और वह दकसी रािपशत से कम नहीं है।
चजंिगी बहुत लोगों का एक सशम्मशलत शचत्र है। चजंिगी सम्यक संगीत है।
चलंकन जब प्रेशसिेंट हुआ अमरीका का, यह तो आपको पता हो गा दक उसका बाप एक चमार था। जूते
सीता था। चलंकन प्रेशसिेंट हो गया तो कई लोगों को बहुत अिरा दक चमार का लड़का प्रेशसिेंट हो गया। पहले
दिन जब सीनेट में चलंकन बोलने िड़ा हुआ तो एक आिमी ने िड़े होकर यह याि दिला िे ना जरूरी समझा दक
इस बात को कोई भूल न जाए दक वे चमार के बेटे हैं। एक आिमी ने िड़े होकर कहा दक महािय चलंकन, यह
मत भूल जाना दक आप एक चमार के लड़के हैं। ताशलयां बज गई होंगी संसि में, लोग बहुत िुि हुए हों दक
ठीक वि पर याि दिला दिया। चलंकन ने िड़े होकर कहा, मेरे शपता की याि दिला कर तुमने बहुत अचछा
दकया। मैं बड़ी िुिी से भर गया हं क्योंदक मैं यह भी तुम्हें कह िे ना चाहता हं दक मेरे शपता शजतने अचछे चमार
थे उतना अचछा रािपशत मैं नहीं हो सकूं गा। और शजन सज्जन ने यह कहा था, चलंकन ने उनसे कहा दक महािय,
जहां तक मुझे याि आता है आपके शपता भी मेरे शपता से ही जूते बनवाते थे और जहां तक मेरा ियाल है,
आपके शपता ने कभी भी शिकायत नहीं की है, लेदकन आपको कै से याि आ गई बात। मेरे शपता के जूतों से कोई

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शिकायत है आपको? मेरे शपता के चमार होने से कोई शिकायत है आपको? यह याि दिलाने का ियाल कै से आ
गया? मैं धन्यभागी हं दक मेरे शपता एक अिभुत चमार थे। वे कु िल कारीगर थे।
यह िृशि जो है जीवन को िे नी जरूरी है। महत्वाकांक्षा की िृशि ने पि पैिा कर दिए। जीवन में पि पैिा
कर दिए हैं दक कौन ऊंचा और कौन नीचा। यह महत्वाकांक्षा की शिक्षा का पररर्ाम (ईल-चतवकनबज) है, दक
फलां आिमी चूंदक ज्यािा शिक्षा लेता है इसशलए ज्यािा ऊंचा है, कम शिक्षा लेता है इसशलए कम ऊंचा है। जो
अनशस्ककि है वह शबककु ल दकसी स्थान पर ही नहीं है। जीवन बहुत चीजों का जोड़ है। जीवन बहुत चीजों का
संगीत है। एक ऐसी िुशनया बनानी है जहां सब जरूरी है, सब महत्वपूर्ा है, सब गौरवाशन्वत है इस िुशनया को
शमटा िे ना है, जहां थोड़े से लोगों के गौरव के शलए सारे लोगों का गौरव छीन शलया जाता है।
यह वैसी िुशनया है जैसे कोई गांव हो और उस गांव में लोग यह तय कर लें दक िस पांच आिशमयों की
आंिें बचा लो। बाकी सबकी आंिें फोड़ िो। क्योंदक बाकी कं धे लोगों के बीच में आंि वाला होना बड़ा
आनंिपूर्ा होगा। सब अंधे होंगे। हमारे पास आंिें होंगी तो बड़ा अचछा होगा। और िस लोग शमलकर कु छ भी
कर सकते हैं। क्योंदक िस लोग जहां शमल जाते हैं वहीं राजनीशत िुरू हो जाती है। िस गुंिे शमलकर कु छ भी कर
सकते हैं और यही आज तक िुशनया का िुभााग्य रहा है। अचछे आिमी शमलकर यह तक कर लें दक नगर के सारे
लोगों की आंिें फोड़ िो तादक कु छ लोगों को आंि वाले होने का बड़ा आनंि उपलब्ध हो। जरूर तुमको आनंि
ज्यािा उपलब्ध होगा। क्योंदक अंधों की बस्ती में आंि वाला होना बड़ा आनंि पूर्ा, बड़े अहंकार की तृशप्त करता
है। कु छ लोगों ने यही दकया हुआ है दक कु छ लोगों को पि िे िो। सारे लोगों के पि की सारी व्यवस्थाएं छीन लो
तादक पि का होना बहुत आनंिपूर्ा हो जाता। इन िुिों ने, इन चहंसक लोगों ने एक पृथ्वी बना िी है जो नका हो
गई है। अगर तोड़ना है तो इस सबको तोड़ िे ना जरूरी है। और एक समाज, एक जीवन, एक संस्कृ शत शनर्मात
करनी है जहां हर आिमी को गौरवशन्वत होने का मौका हो। जहां हर आिमी को स्वयं होने का मौका और
अवसर हो। जहां पर आिमी जो भी होना चाहे सम्माशनत और गौरव से हो सके । जहां गुलाब के फू ल भी आिृत
हों और घास के फू ल भी सम्माशनत हों। क्योंदक घास और गुलाब के फू ल में परमात्मा का कोई फासला, कोई
भेि नहीं है।
जब आकाि में सूरज शनकलता है तो सूरज गुलाब के फू ल िे ि कर यह नहीं कहता है दक मैं मुझे ज्यािा
रोिनी िूंगा। घास के फू ल से यह नहीं कहता दक घास के फू ल, हट, बीच में िूद्र तू कहां यहां आ गया, तुझे
रोिनी नहीं िी जा सकती। उस घास के फू ल को भी सूरज उतनी ही रोिनी िे ता है शजतनी गुलाब के फू ल को।
जब आकाि में बािल शघरते हैं तो गुलाब के फू ल पर ही पानी नहीं शगरता है, घास के फू ल पर भी पानी शगरता
है। और घास के फू ल पर शगरा हुआ पानी िुि अनुभव नहीं करता है दक कहां मेरा िुभााग्य दक घास के फू ल पर
शगर रहा हं। और घास का फू ल जब शिलता है, छोटा सा फू ल जब हवाओं में नाचता है तो उसकी िुिी दकसी
गुलाब के फू ल से कम नहीं होती। असल में सवाल घास के फू ल का और गुलाब के फू ल का नहीं है। सवाल पूरी
तरह शिल जाने का है। चाहे गुलाब का फू ल पूरी तरह शिल जाए, चाहे घास का फू ल पूरी तरह शिल जाए। जो
पूरी तरह शिल जाता है वह आनंि को उपलब्ध हो जाता है, वह परमात्मा को उपलब्ध हो जाता है।

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