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वप ना श वरो ं

म धमसेवको ं के लए
आचार-सं िहता
आचाय गोय ाजी का ध सेवा के मह पर सं देश

आचाय स नारायण गोय ा


ध सेवा करते समय
आप यह सीखते हो िक धम का दैनंिदन जीवन म कै से योग िकया जाय। आ खरकार जीवन म जो
ज देा रया है उससे भागना धम नही ं ह।ै श वर के समय या िकसी वप ना क क छोटी दु नया म साधको ं
से ध ानुसार वहार कर प र तयो ं को ध ानुसार नपटाकर आप अपने को तयैार करते हो तािक बाहरी
दु नया म भी व भ प र तयो ं म ध ानुसार काम कर सको। इसके बावजदू िक अनचाही घटनाएं घटती ही
रहती ह, आप अपने म के सं तलु न को बनाये रखने के लये अ ास करते ही रहते हो और इसके
ति या प मै ी और क णा क भावना वक सत करते हो। यही श ा है जससे आप वीणता हा सल
करते हो। आप ठीक वैसे ही साधक हो जसैे श वर म बठैे साधक।

वन तापूवक सेवा करते ए सखते ही रहो। यह सोचते रहो िक म यहां श ण ा कर रहा ं, इस बात का
श ण िक बदले म बना िकसी व ु क आशा िकये मुझे नरंतर सेवा का अ ास करना ह।ै म सेवा कर रहा ं
तािक दसरे
ू लोग धम से लाभा त हो सक। मुझे एक आदश तु कर उनक सहायता करनी चािहए और ऐसा
कर अपनी भी सहायता करनी चािहए।

आप सभी ध सेवक ध सेवा भाव म पु हो।ं दसरो


ू ं के लए स ाव मै ी और क णा के भाव वक सत करना
सीखो। आप सभी ध म ग त करो और स ी शां त, स ी मै ी और स े सुख का अनुभव करो।

आचाय स नारायण गोय ा


कृ पया न जानकारी ध सेवा के लए आने से पहले ज र पढ़े।
आपको धम-सेवा का पूरा लाभ मल ऐसी हम शुभकामना करते ह।

नः ाथ सेवा
नः ाथ सेवा ध पथ पर चलने के लए और आगे बढ़ने के लए मह पूण अगं ह,ै एक
अ नवायता ह।ै वप ना (Vipassana) का अ ास धीरे-धीरे अपने मनो वकारो ं को
ु ंक
दरू करता है और अतंतः आतं रक शां त एवं सुख अनुभव होने लगता ह।ै यह दःखो
वमु मा आं शक ही हो परंतु िफर भी इससे धम क अ तु व ध और इसको सखाने
वाले के त कृ त ता का भाव तो जागता ही ह।ै प रणाम प ऐसी ध -कामना जागती
है िक औरो ं को भी इस मं गलमय ध -पथ पर चलने म म िकस कार सहायक बनं ू। इस
उदा अ भलाषा से े रत होकर जब यं को श वर सं योजन के काय-कलापो ं म भाग
लेने के लए सम पत करता ह,ै तो उसे “ध सेवक” कहा जाता है और श वर सं योजन
का हर काय “ध सेवा”। बना िकसी अपे ा के ध -सेवा देते देत,े हम अपनी कृ त ता-
ापन का एक अवसर मलता है जब श वरो ं म साधक ध (Dhamma) के सं पक म
आते ह। वा व म दसरो ू ं क नः ाथ सेवा से हम अपनी सेवा भी करते ह ोिकं इससे
हमारी दस पार मताओ ं का वकास होता है और अपना अहंभाव पघलता ह।ै
धमसेवा कौन कर सकता है?
जस िकसी साधक ने पू गु जी या उनके िकसी सहायक आचाय के साथ सफलतापूवक
तीन दस-िदवसीय श वर पूण िकये हो ं (यह नयम िकसी वशेष त म कु छ श थल भी
िकया जा सकता ह।ै), वह धमसेवा दे सकता ह।ै ऐसे ने अपने अं तम श वर के
प ात िकसी अ व ध को न अपनाया हो।

अनश
ु ासन सं िहता
धमसेवको ं को साधको ं हतेु बनी अनुशासन सं िहता का यथासं भव पालन करना चािहए।
क तपय व श प र तयो ं म यिद िकं चत छू ट आव क हो तो दी जा सकती ह।ै
पं चशील
पं चशील का पालन अनुशासन सं िहता क आधारशीला ह।ै
1. ाणी-िहसा ं से वरत रहना,
2. चोरी से वरत रहना,
3. भचार से वरत रहना - अथात ी पु ष का पूण पाथ तथा शारी रक
सं पक से बचना,
4. म ा भाषण से वरत रहना (झठ, ं कटु वचन से वरत रहना), 5. सभी
ू चुगली, नदा,
कार के नशे-पते से वरत रहना।
ं ो ं शील का पालन वप ना क म या अ ायी श वर ान पर रहने वाले
ये पाच यो ं
के लए अ नवाय ह और इनका कडाई से पालन करना चािहए। धमासेवको ं से यह आशा
क जाती है िक वे सामा जीवन म भी पं चशील का पालन करने का पूरा पूरा य करते
हो।
नदशो ं क अनपुालना
ध सेवको ं को आचाय, सहायक आचाय एवं क के व ापक के नदशो ं का यथावत
पालन करना चािहए। बड़ो ं के सुझाव एवं मागदशन को ीकार करना चािहए। ज देार
लोगो ं के नदशो ं के वप रत अथवा बना उनक अनुम त लए कामकाज क प त म
बदलाव एवं नये काय क शु वात करने से ां त फै लती ह,ै शां त न होती ह,ै अनाव क
तणाव उ होता है और समय, श एवं सं साधनो ं का दु पयोग होता ह।ै ऐसे मनमाने
ढंग से िकया काम सहकार एवं सौम सता के धा मक वातावरण के खलाफ ह।ै अपने
गत मतो ं को एक ओर रखकर ध सेवक को क श वर क ध सेवा को सव प र
मानते ए एक अनुशा सत सै नक के समान सम पत भाव से नदशो ं के अनुसार काम करना
चािहए। खुले मन से एवं वन ता के साथ सम ाओ ं पर चचा करनी चािहए। अ े सुझावो ं
का बड़ो ारा ागत ही होता ह।ै
साधको ं से सं बं ध
श वर और साधना क साधको ं को साधना सीखाने एवं उसम पु होने का अवसर दान
करने के लए होते ह। इस लए साधक सबसे मह पूण है जो सबसे मह पूण काम
कर रहे ह। ध सेवको ं का काम हर कार से उनक सहायता करना मा ह।ै इस लए
साधको ं को नवास, ानागृह, भोजन आिद सु वधाओ ं के उपयोग म ाधा देना चािहए।
अ ं त अ नवाय न हो तो सेवको ं को साधको ं के भोजन के बाद ही भोजन लेना चािहए एवं
उ साधको ं के साथ भोजनालय म नही ं बठैना चािहए। उ साधक नही ं है तभी ानागार
आिद का उपयोग करना चािहए, साधको ं के प ात शयन करना चािहए तािक कोई सम ा
हो तो वे मदत कर सक। अ सभी सु वधाओ ं का उपयोग भी साधको ं के प ात ही करना
चािहए।
साधको ं के त वहार
के वल पु ष ध सेवक पु षो ं से एवं मिहला ध से वका मिहलाओ ं से सं पक कर। उ
खयाल रखना चािहए िक ा साधक अनुशासन एवं नयमावली का पालन कर रहे ह या
नही।ं आव क हो तो उनसे बात कर। सौहादपूण एवं वन रह। सकारा क श ो ं से
साधको ं को किठनाईयो ं म से नकलने क रेणा द। अगर आप ऐसा न कर सकते हो तो
अ िकसी ध सेवक को सं पक करने के लए कहना चािहए। अनुशासनिहनता िदखाई दे
तो ठीकसे जाचं ल, सतही तौर पर ही उसे वा वकता न समझ बठै। जब भी अपे त हो,
सहायता हतेु वन भाव से त र रह। अ ा हो अगर साधक का नाम पूछ ल। कम से कम
बातचीत कर। ववाद म ब ु ल न उलझ। व धसं बं धी ो ं के लए सहायक आचाय के
पास सं पक करने को े रत कर। साधको ं के साथ जो भी सं पक हो उसक जानकारी
सहायक आचाय को अव द। साधको ं क न ज मामलो ं पर अ ध सेवको ं से चचा न
कर।
ध सेवको ं क साधना
ध सेवक रंचमा भी समय का अप य नही ं कर। सतकता के साथ सेवा म जटुे रह। साथ
ही वे साधना का अ ास अव करते रह। ेक ध सेवक िदन म कम-से-कम तीन
घं टे साधना करे, यिद सं भव हो तो सामूिहक साधना करे। इसम दो बठैके ानक म हो।ं
तीसरी, यिद ान हो तो शू ागार म हो। उ रा ९ बजे मै ी स म स लत होना
अ नवाय ह।ै श वर काल म वप ना ही करनी चािहए लेिकन आव कता होने पर
आनापान कर सकते ह। सामूिहक साधना के स म वे चाहे तो आसन बदल सकते
ह।धमसेवक आ - नरी ण करते रह। वे हर त म समता रहने का य कर तथा
अपने च क चेतना को जाच ं । थकान या अ िकसी कारण से अगर वे ऐसा नही ं कर पा
रहे ह तो उ साधना एवं व ाम करना चािहए, चाहे िकतना ही कायभार उनपर हो। “मेरे
बगैर काम होगा ही नही”ं ऐसी भावना न रख। अपने भीतर शां त एवं सौम सता है तो ही
हम ठीक से धमसेवा कर पायगे। दीघकाल सेवा देने वाले धमसेवको ं को समय-समय पर,
अपना काम बाजू रखकर, दस िदवसीय श वर करने चािहए एवं धमसेवा दे रहे है इस लए
कोई वशेष सु वधा क अपे ा नही ं करनी चािहए।
सहायक आचाय से वचार वमश
ध सेवक सहायक आचाय से अपनी सम ा सं बं धी वचार- वमश करते रह। वातालाप
का उ चत समय रा कालीन मै ी-स ह।ै गत वातालाप के लए भी समय नधा रत
िकया जा सकता ह।ै सहायक आचाय क अनुप त म कोई सम ा हो तो ध सेवक
बं धक से सं पक करे।

नर-नारी पाथ तथा वभ ी


क पर ानानुकूल प व वातावरण को बनाये रखने तथा साधको ं के सामने एक आदश
उदाहरण तु करने के लए सभी ध सेवक मिहला या पु ष शारी रक सं पक से वरत
रह। यह नयम क पर सदैव ढ़तापूवक पालन कर।

शारी रक सं पक
ं पृथक रहने का यह नयम हमेशा के लए ह,ै श वर के दौरान एवं क पर
ी एवं पुरोषोको
श वरो ं के बीच। कई व श प र तयो ं म ध सेवको ं को सं पक करना भी पड़े तो कम से
कम बात करे एवं इस मेलजोल का अवसर न समझ।े प त-प सेवा दे रहे ह तब उनको भी
इस नयम का पालन करना चािहए।
स क वाणी
ध सेवको ं को साधको ं क तरह ही यथासं भव आयमौन का पालन करना चािहए। उ
ान प रसर म मौन रहना चािहए एवं के वल आव क बात करनी चािहए। कोई साधक
आसपास न हो या क पर कोई श वर न चल रहा हो तो भी मौन का वातावरण बनाए
रख।जब बोले तब ध सेवको ं को स क वाणी का उपयोग करना चािहए - वे झठू नही ं
बोल या स को घटा-बढ़ाकर नही ं बोल। वे कठोर या कड़वे श उपयोग न कर। ध -
पथ का प थक सौ एवं मृदु भाषी होता ह।ै वे नदा ं व चुगली करने से बच। अपने
नकारा क भावो ं के कारण िकसी अ क आलोचना न कर। कोई सम ा हो तो सं बं धत
के सामने कट क जायँ या सहायक आचाय को बताया जाय। वे थ क गपशप,
अनगल चचा न कर। न गीत गुनगुनाएं , न सीटी बजाएं ।वे थ क गपशप, अनगल चचा
न कर। न गीत गुनगुनाएं , न सीटी बजाएं ।
गत प रधान
अ लोगो ं क म ध सेवक साधना व ध एवं क का त न ध करते ह। इस कारण
ध सेवको ं को सदैव , सं ातं प रधान का उपयोग करना चािहए और इस कार के
प रधान से वरत रहना चािहए जससे अगं दशन हो अथवा वशेष आकषण उ हो।
अलं कारो ं का नूतम योग हो। मिहलाए सलवार कु त के साथ दपु ा धारण कर। लं ुगी
पहनने वाले पु ष ान रख िक यह आगे से पूरी तरह सली ई है तथा वे लं बा कु ता या
कमीज पहन।

धू पान
ध को ीकारने वाले हर से अपे ा क जाती है िक वह शराब, गाजं ा, चरस
आिद नशे –पते का सेवन नही ं करेगा। तं बाकू का िकसी भी प म सेवन क के प रसर म
न ष ह।ै धमसेवक धू पान करने के लए क के बाहर न जायँ ।
भोजन
क पर आरो दायी, शु शाकाहारी भोजन िदया जाता ह।ै भोजन सं बं धी िकसी व श
िफलोसोफ का अनुयय नही ं होता ह।ै साधको ं क तरह ध सेवक भी जो कु छ िदया गया है
उसे न मणभाव से हण कर।ऐसे पदाथ जन म शराब, अडंे, मासं इ ािद का योग
हो, क पर नही ं लाएं । सामा तया बाहर के खा -पदाथ क पर न लाए।ध सेवक
पं चशील रखते ह। अतः चाहे तो शाम का भोजन कर सकते ह। उपवास करना मना ह।ै

पढ़ना
सेवक चाहे तो अखवार व प काएं पढ़ सकते ह, लेिकन वे ऐसा साधना ल से दरू
नधा रत े या सेवको ं के नवास ान पर ही कर। मनोरंजन के लए उप ास आिद
पढ़ना सवथा मना ह।ै यिद कोई समाचारो ं के अ त र कु छ और पढ़ना चाह तो क के
पु कालय म उपल पु क पढ़। अ पु क पढ़ने से पूव क के आचाय को िदखा द।
बा सं पक
साधको ं क तरह ध सेवको ं के लए यह आव क नही ं िक वे बा जगत से कटे रह। परंतु
जहातंक हो सके अ नवाय त को छोड़कर बा सं पक (फोन से भी) दरू रह। सेवा देते
ए क छोड़कर बाहर जाना आव क हो तो सहायक आचाय क अनुम त लेकर ही
जायं । ध सेवको ं के गत अ त थ व ापक क पूव अनुम त ा करके ही
मलने आ सकते ह।

क क ता
क को साफसुथरा रखना धमसेवको ं का कत ह।ै ानक , चै , नवास- ान,
भोजनालय, शौचालय, ानागार तथा प रसर के रख। सेवको ं को नय मत काय के
अलावा अ काम करने के लए भी त र रहना चािहए।
क पर ध सं प का उपयोग
हर साधक चोरी से वरत रहने का शील लेता ह।ै ध सेवक को भी क क सं प का अपने
गतहीत हतेु अपयोजन नही ं करना चािहए। बं धक क पूवानुम त के बना वे िकसी
कार का सामान अपने नवास- ान या नजी उपयोग हतेु न ले जायं ।

क पर दीघका लक सेवा
क के आचाय से परामश करके उनक अनुम त लेकर गं भीर साधक ध के ायो गक एवं
सै ां तक प म पु होने के लए क पर दीघका लक सेवा दे सकते ह। इस अव ध म
आचाय एवं व ापन से परामश करके वे कु छ श वरो ं म बठै एवं अ म सेवा द।
दान
साधको ं क अनुशासन सं िहतामे िकया गया है िक श वरो ं म तथा क म द
श ण, भोजन, नवास व अ सु वधाएं साधको ं के लए पूणतया नःशु ह। यह
ध सेवको ं पर भी लागू ह।ैशु ध का श ण सदैव नःशु िदया जाता ह।ै भोजन,
नवास व अ सु वधाएं पुराने कृ त साधको ं ारा उदार च से िदये गये दान से सुलभ हो
पाती ह। ध सेवको ं को इसे सदैव रण रखना चािहए और उनको दान के अप य को
बचाते ए उ म सेवा देनी चािहए जससे िक दानदाताओ ं को उनके ारा िदये गये दान का
अ धका धक लाभ ा हो। उसी कार ध सेवक भी दसरो ू ं के िहताथ दान देकर अपनी
दान पारमी वक सत कर सकते ह। आ खर श वर एवं क कृ ताथ साधको ं के दान से ही
चलते ह।कोई ध सेवक यं अपने लए िकसी कार क रा श या अ व ु न द।
ेक दान औरो ं के िहत के लए ही हो। ध सेवा भोजन, नवास आिद के भुगतान के
लए कदा प न हो। ब सेवा यं अपने िहत म हो, ो ं िक उससे धम का अमू
श ण मलता ह।ै
सं ेप म...
धमसेवको ं को आचाय एवं बं धन के आदेशो ं का पालन करते ए सेवा करनी चािहए। उ
साधको ं क हर कार से सहायता करनी चािहए एवं उनको िकसी भी कार का वधान न
हो इसका ान रखना चािहए। उनका वहार उन लोगो ं को रेणा दे जो ध म सं देह या
शं का रखते ह तथा जहां वे ध क ओर े रत ह वहां अ धक ा का ादभाव ु हो। उ
हर समय खयाल रखना चािहए िक उनक सेवा का हतेु औरो ं क सहायता करने के साथ-
साथ यं को ध म त त करना ह।ैयिद यह नयम आप को दःसा ु लग तो आप
तरुंत आचाय या बं धक से ीकरण ा कर ल।आपक सेवा आपको ध -पथ पर,
नवाण क ओर, दःखो ु ं से वमु एवं स े सुख क िदशा म अ सर होने म सहयोगी स
हो।

सबका मं गल हो!

आचाय स नारायण गोय ा

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