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12 Hindicore22 23 sp02
12 Hindicore22 23 sp02
Maximum Marks: 80
General Instructions:
यह आदर्श प्रश्न पत्र सीबीएसई द्वारा सत्र 2022-23 के लिए जारी नवीनतम दिशानिर्देशों (40% दक्षता + 20% वस्तुपरक + 40% विषयपरक)
पर आधारित है। जैसे ही सीबीएसई आधिकारिक ब्लूप्रिंट जारी करेगा हम इस पेपर को अपडेट कर देंगे।
इस प्रश्न-पत्र में दो खण्ड हैं - खंड 'अ' और 'ब'।
खंड 'अ' में 45 वस्तुपरक प्रश्न पूछे गए हैं जिनमें से के वल 40 प्रश्नों के ही उत्तर देने हैं।
खंड 'ब' में वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं तथा प्रश्नों में आंतरिक विकल्प भी दिए गए हैं।
कै सी विडंबना है कि उन्नीसवीं शताब्दी में जब अंग्रेजी 'ओरिएंटलिस्ट' कादम्बरी, कथा-सरित्सागर, पंचतन्त्र जैसी भारतीय कथाओं के पीछे
पागल थे, स्वयं भारतीय लेखक 'अंग्रेजी ढंग का नावेल' लिखने के लिए व्याकु ल थे। ये हैं उपनिवेशवाद के दो चेहरे!
निस्सन्देह कु छ लोग अपनी भाषा में 'अंग्रेजी ढंग का नावेल' लिखने में कु छ-कु छ कामयाब भी हो गए। उदाहरण के लिए लाला श्रीनिवास दास
का 'परीक्षागुरु' (1882), जिसे आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने 'हिन्दी में अंग्रेजी ढंग का पहला उपन्यास' माना। लेकिन पूरा-पूरा 'अंग्रेजी ढंग का
नावेल' सबसे न बन पड़ा। खासतौर से उनसे जो सर्जनशील रचनाकार थे; जैसे हिन्दी से ही उदाहरण लें तो ठाकु र जगमोहन सिंह, जिनकी
कथाकृ ति 'श्यामास्वप्न' किसी भी तरह 'अंग्रेजी ढंग का नावेल' नहीं है। ऐसे सर्जनशील रचनाकारों के सिरमौर हैं बंकिमचन्द्र, जिन्हें प्रथम
भारतीय उपन्यासकार होने का गौरव प्राप्त है।
छब्बीस वर्ष की कच्ची उम्र में बंकिमचन्द्र ने 'दुर्गेशनन्दिनी' (1865) नाम का अपना पहला बंगला उपन्यास प्रकाशित किया और एक साल के
बाद 'कपालकुं डला' (1866) ; फिर तीन साल के अंतराल के बाद 'मृणालिनी' (1869)। इनमें से एक भी 'अंग्रेजी ढंग का नावेल' नहीं है।
जगमोहन सिंह के 'श्यामास्वप्न' के समान ही ये तीनों उपन्यास किसी 'अंग्रेजी ढंग के नावेल' की अपेक्षा संस्कृ त की 'कादम्बरी' की याद दिलाते
हैं। यह भी एक विडंबना ही है। एक लेखक कथा की पुरानी परम्परा से मुक्त होकर एकदम आधुनिक ढंग की नई कथाकृ ति रचना चाहता है
और परम्परा है कि उसके सर्जनात्मक अवचेतन का संचालन कर रही है। कं बल बाबाजी को कै से छोड़े! इस तरह बंकिमचन्द्र की रचना प्रक्रिया
से गुजरकर जो चीज निकली उसके लिए सही नाम एक ही है - रोमांस!
उपन्यास का अर्थ जिनके लिए 'अंग्रेजी ढंग का नावेल' है - फिर उसकी परिभाषा जो भी हो, वे इसे बंकिमचन्द्र की विफलता मानेंगे लेकिन मेरी
दृष्टि से लेखक की इस विफलता में ही भारतीय उपन्यास की सार्थकता निहित है। भारतीय उपन्यास के मूलाधार उन्नीसवीं शताब्दी के ये
'रोमांस' ही हैं, न कि तथाकथित अंग्रेजी ढंग के उपन्यास! उन्नीसवीं शताब्दी के भारतीय मानस का सही प्रतिनिधित्व 'कपालकुं डला' करती है,
'परीक्षागुरु' नहीं। 'परीखागुरु' का महत्व अधिक से अधिक ऐतिहासिक है और वह भी सिर्फ हिन्दी के लिए! जब कि 'कपालकुं डला' अपने
जमाने की अत्याधिक लोकप्रिय कृ ति होने के साथ ही स्थायी कीर्ति की हकदार है। तथाकथित 'अंग्रेजी ढंग के नावेल' का तिरस्कार करके ही
बंकिमचन्द्र के रोमांसधर्मी उपन्यासों ने भारतीय राष्ट्र के भारतीय उपन्यास की अपनी पहचान बनाने में पहल की।
अंग्रेजी ढंग के 'नावेल' का तिरस्कार वस्तुत: उपनिवेशवाद का तिरस्कार है। भारत से पहले अंग्रेजी ढंग के 'नावेल' को उत्तरी अमेरिका
अस्वीकार ढंग के 'नावेल' का अनुकरण नहीं किया। 'स्कार्लेट लेटर' और 'मोबी डिक' ऐसे रोमांस' हैं जिन्हें 'राष्ट्रीय रूपक' के रूप में आज भी
ग्रहण किया जाता है। अंग्रेजी साम्राज्यवाद से अपने आपको मुक्त कर अमेरिकी प्रतिभा ने आख्यान ने रूपबन्ध में भी स्वतन्त्रता प्राप्त की। इस
प्रकार उत्तरी अमेरिका में राष्ट्र और उपन्यास का जन्म साथ-साथ हुआ। तब तक के अंग्रेजी 'नावेल' के रूपबन्ध में एक स्वतन्त्र राष्ट्र की उद्दाम
आकांक्षाओं का अँटना संभव न था। नए राष्ट्र के एक नितांत नए उन्मुक्त रुपबन्ध का सृजन किया।
i. कपालकुं डला किसके प्रतिनिधि के रूप में है?
a. बांग्ला उपन्यास
b. भारतीय मानस
c. रोमांटिक उपन्यास
d. अंग्रेजी नॉवेल
OR
सोचिए
बताइए
आपको अपाहिज होकर कै सा लगता है कै सा
यानी कै सा लगता है
सोचिए
बताइए
थोड़ी कोशिश करिए
(यह अवसर खो देंगे?)
जाति-प्रथा पेशे का दोषपूर्ण पूर्व निर्धारण ही नहीं करती, बल्कि मनुष्य को जीवनभर के लिए एक पेशे से बाँध भी देती है। भले ही पेशा
अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने के कारण वह भूखा मर जाए। आधुनिक युग में यह स्थिति प्रायः आती है, क्योंकि उद्योग-धंधों की प्रक्रिया व
तकनीक में निरंतर विकास और कभी-कभी अकस्मात् परिवर्तन हो जाता है, जिसके कारण मनुष्य को अपना पेशा बदलने की आवश्यकता
पड़ सकती है और यदि प्रतिकू ल परिस्थितियों में भी मनुष्य को अपना पेशा बदलने की स्वतंत्रता न हो, तो इसके लिए भूखा मरने के अतिरिक्त
क्या चारा रह जाता है? हिंदू धर्म की जाति-प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती है, जो उसका पैतृक पेशा न हो,
भले ही वह उसमें पारंगत हो। इस प्रकार पेशा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति-प्रथा भारत में बेरोज़गारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण
बनी हुई है।
i. गद्यांश के अनुसार जाति-प्रथा में लेखक ने क्या दोष देखा है?
a. जीवनभर मनुष्य को एक पेशे में बाँध देती है
b. जाति-प्रथा जन्म से ही पेशा तय कर देती है
c. पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने पर मनुष्य को भूखा मरना पड़ता है
d. सभी विकल्प सही हैं
ii. मनुष्य को अपना पेशा बदलने की आवश्यकता किस कारण पड़ती है?
a. निम्न वर्ग को घृणा की दृष्टि से देखे जाने के कारण
b. प्रतिकू ल परिस्थितियों के कारण
c. स्वयं को उच्च वर्ग में सम्मिलित करने के कारण
d. उद्योग-धंधों की प्रक्रिया व तकनीक में निरंतर विकास के कारण
iii. पेशा बदलने की स्वतंत्रता के अभाव का क्या परिणाम होता है?
a. मनुष्य की निरंतर प्रगति होती है
b. मनुष्य को भूखा मरना पड़ता है
c. मनुष्य सदैव निम्न ही रहता है
d. मनुष्य सदैव दूसरों को कोसता रहता है
iv. जाति-प्रथा बेरोज़गारी का एक प्रमुख और प्रत्यक्ष कारण कै से है?
a. विषम परिस्थितियों को महत्त्व देने के कारण
b. हिंदू धर्म के कारण
c. पैतृक व्यवसाय में पारंगत होने के कारण
d. पेशा परिवर्तन की अनुमति न देने के कारण
v. अनेक लोगों को अपनी इच्छा अनुसार पेशा चुनने की स्वतंत्रता किस कारण नहीं मिल पाती है?
a. तकनीकी
b. निरक्षरता
c. जाति-प्रथा
d. बेरोजगारी
6. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
i. यशोधर बाबू जुड़े हुए हैं-
Solution
Explanation: दुर्गेशनंदिनी
iv. (d) परीक्षागुरु
Explanation: परीक्षागुरु
v. (a) उपन्यास
Explanation: उपन्यास
vi. (b) रोमांस
Explanation: रोमांस
vii. (c) आख्यान
Explanation: आख्यान
viii. (a) मोबी डिक
Explanation: मृणालिनी
x. (a) उपनिवेशवाद का तिरस्कार
OR
i. (a) विराट
Explanation: विराट
ii. (d) किसानों को
Explanation: किसानों को
Explanation: मुद्रण कला का प्रयोग पहली बार चीन में शुरू हुआ, जब 650 ई में भगवान बुद्ध की मूर्ति छापी गई। इतना ही नहीं, चीन
की सहस्र् बुद्ध गुफाओं से हीरक सूत्र नामक मिली पुस्तक को ही संसार की पहली मुद्रित पुस्तक माना जाता है।
ii. (d) डैड लाइन
Explanation: प्रिंट यानी मुद्रित माध्यम जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में से सबसे पुराना है। आधुनिक युग का प्रारंभ छपाई के
आविष्कार से हुआ।
iv. (a) साक्षात्कार से
Explanation: साक्षात्कार से
v. (c) मास्टर ऑफ़ वन
Explanation: जाति-प्रथा
6. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
i. (c) पुरानी परंपराओं से
Explanation: किशनदा ने
iii. (b) मार्के टिंग मैनेजर
Explanation: गिरीश यशोधर बाबू की पत्नी का चचेरा भाई था। वह किसी बड़ी कं पनी में मार्के टिंग मैनेजर है।
Explanation: पाठ में लेखक को आगे की पढ़ाई कराने के लिए गाँव के मुखिया दत्ता जी राव देसाई लेखक के पिता को समझाते हैं।
vi. (d) दत्ता राव
Explanation: पाठ के अनुसार लेखक के पिता गाँव के मुखिया दत्ता जी राव देसाई से डरते थे। उनके आगे लेखक के पिता का कोई
वश नहीं चलता था।
vii. (d) एक घंटा
Explanation: एक घंटा
viii. (a) चौंधियाती धूप के कारण
Explanation: चौंधियाती धूप के कारण सिंधु सभ्यता की तस्वीरें उतारते समय दृश्यों के रंग उड़े हुए प्रतीत होते हैं।
ix. (c) कु लधरा
Explanation: मुअनजो-दड़ो के घरों में टहलते हुए लेखक को कु लधरा की याद आई।
x. (c) 50 हजार से अधिक
Explanation: मुअनजो-दड़ो की खुदाई में निकली पंजीकृ त चीज़ों की संख्या 50 हजार से अधिक थी।
खंड - ब (वर्णनात्मक प्रश्न)
7. निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर लेख लिखिये:
i. आधुनिक फै शन
एक फ्रांसीसी विचारक का कहना है-आदमी स्वतंत्र पैदा होता है, लेकिन पैदा होते ही तरह-तरह की जंज़ीरों में जकड़ जाता है। वह
परंपराओं, रीति-रिवाजों, शिष्टाचारों, औपचारिकताओं का गुलाम हो जाता है। इसी क्रम में वह फ़ै शन से भी प्रभावित होता है। समय के
साथ समाज की व्यवस्था में बदलाव आते रहते हैं। इन्हीं बदलावों के तहत रहन-सहन में भी परिवर्तन होता है। किसी भी समाज में फ़ै शन
वहाँ की जलवायु परिवेश तथा विकास की अवस्था पर निर्भर करता है। सभ्यता के विकास के साथ-साथ वहाँ के निवासियों के जीवन-स्तर
में परिवर्तन आता जाता है।
20वीं सदी के अंतिम दौर से फ़ै शन ने उन्माद का रूप ले लिया। फ़ै शन को ही आधुनिकता का पर्याय मान लिया गया है। इस फ़ै शन की
अधिकांश बातें आम जीवन से दूर होती हैं। फ़ै शन से संबंधित अनेक कार्यक्रमों का रसास्वादन अधिकांश लोग नहीं ले सकते, परंतु
आधुनिकता और फ़ै शन की परंपरा का निर्वाह करते हैं। फ़ै शन का सर्वाधिक असर कपड़ों पर होता है। समाज का हर वर्ग इससे प्रभावित
होता है।और आज के दौर में हमारी नई पीढ़ी ने फ़ै शन का पर्याय ही बदल दिया है, अथवा अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि आज समाज
में फ़ै शन के नाम पर अंधविश्वास फै ला हुआ है।
आधुनिकता और फै शन वर्तमान समाज में अब स्वीकार्य तथ्य हैं। फै शन के अनुसार अपने में परिवर्तन करना भी स्वाभाविक प्रवृन्ति है,
लेकिन इसके अनुकरण से पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि इससे व्यक्तित्व में वृद्धि होती है या नहीं। सिर्फ फ़ै शन के प्रति दीवाना
होना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं।
ii. मेरे सपनों का भारत
भारत देश मुझे अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय है। मुझे अपने भारतीय होने पर गर्व का अनुभव होता है। मेरा देश संसार के सभी देशों से
निराला है और संसार के सब देशों से प्यारा है। मैं भारत को विश्व के शक्तिशाली देश के रूप में देखना चाहता हूँ। मैं ऐसे भारत का सपना
देखता हूँ, जो भ्रष्टाचार, शोषण और हिंसा से मुक्त हो। मेरे सपनों का भारत ‘सुशिक्षित भारत' है। उसमें अनपढ़ता, निरक्षरता और
बेरोज़गारी का कोई स्थान नहीं है। मैं चाहता हूँ कि हमारे देश के नियोजक ऐसी शिक्षा व्यवस्था लागू करें, जिसके बाद व्यवसाय या
नौकरियाँ सुरक्षित हों। कोई भी व्यक्ति अशिक्षित न हो और कोई भी शिक्षित बेरोज़गार न हो। मैं चाहता हूँ कि भारत सांप्रदायिक दंगों-
झगड़ों से दूर रहे। सब में आपसी भाईचारा और प्रेम का संबंध हो। राष्ट्रीय एकता का संचार हो। जो सम्मान भारत का प्राचीन काल में था
वही सम्मान, मैं पुनः उसे प्राप्त कराना चाहता हूँ।
मैं फिर से रामराज्य की कल्पना करता हूँ, जिसमें सभी लोगों को जीने के समान अवसर प्राप्त हो सकें । भारत एक बार फिर ‘सोने की
चिड़िया' बन जाए। मेरे सपनों का भारत वह होगा, जो राजनीतिक, आध्यात्मिक, सांस्कृ तिक, आर्थिक और वैज्ञानिक आदि विभिन्न दृष्टियों
से उन्नति के पथ पर अग्रसर होगा। भावी भारत के सपनों की पूर्णता के लिए आवश्यक है कि हमारे देश का प्रत्येक नागरिक देश की
प्रत्येक कु रीति को समूल नष्ट करने का दृढ़ संकल्प करें क्योंकि देश में बदलाव लाना देश के नागरिकों पर हीं निर्भर करता है। मैं अपने
सपनों के भारत को पूरी तरह से समृद्ध देखना चाहता हूँ।
iii. प्रात:काल की सैर
जैसे-जैसे शहरों का आकार बड़ा हो रहा है, पानी की उनकी जरूरत भी बढ़ती जा रही है। शहरों के स्थानीय प्रशासनों को पानी की
लगातार बढ़ती माँग से तालमेल बिठने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। दिल्ली, भोपाल, चंडीगढ़, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई और
बेंगलुरु में से के वल बेंगलुरु में ही हालात कु छ बेहतर है। इसकी सीधी सी वजह है वर्षा जल संरक्षण के मामले में देश की यह आईटी
राजधानी दूसरे शहरों के लिए मिसाल है। वहीं दूसरे शहरों में खास तौर से दिल्ली में बैठे जिम्मेदार लोग बाहरी लोगों के दबाव को
बदइंतजामी की वजह बताते हुए ठीकरा उनके सर फोड़ते हैं।
ii. क्रिके ट का बादशाह : सचिन
खेलों की दुनिया में कु छ ऐसी उपलब्धियाँ होती है, जिन तक पहुँचना आसान नहीं होता। अंतर्राष्ट्रीय एकदिवसीय क्रिके ट में कोई बल्लेबाज
अब तक 200 रन नहीं बना पाया था, लेकिन भारत के सचिन तेंदुलकर ने दक्षिण अफ्रीका की मज़बूत टीम के खिलाफ यह कारनामा कर
दिखाया।
इन्हीं पंक्तियों के साथ अमेरिका की प्रतिष्ठित पत्रिका 'टाइम' ने मास्टर ब्लास्टर सचिन की वर्ष 2010 में 24 फरवरी को दक्षिण अफ्रीका के
खिलाफ ग्वालियर वनडे में खेली गई नाबाद 200 रनों की विश्व रिकॉर्ड पारी को वर्ष 2010 के , दस सबसे यादगार क्षणों में शामिल किया
था।
'टाइम' द्वारा कही गई बात बिलकु ल सच है। सचिन क्रिके ट जगत में एक ऐसी जीती जागती मिसाल बन चुके हैं, जिसका कोई मुकाबला
नहीं।यहीं कारण है ,कि उन्हें 'क्रिके ट का भगवान' कहा जाता है।
दाएँ हाथ के बल्लेबाज सचिन ने अपने अंतर्राष्ट्रीय करियर की शुरुआत 15 नवंबर, 1989 को की थी, जबकि एक दिवसीय क्रिके ट करियर
की शुरुआत 18 दिसंबर, 1989 को पाकिस्तान के विरुद्ध। उसके बाद इस महान खिलाड़ी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और रिकॉर्ड पर
रिकॉर्ड बनाता चला गया।
टेस्ट क्रिके ट में 51 शतक एवं 68 अर्द्ध-शतकों के साथ 15,921 रन बनाने वाले वे दुनिया के प्रथम बल्लेबाज हैं। अंतर्राष्ट्रीय एक दिवसीय
मैचों में उन्होंने 49 शतकों एवं 95 अर्द्ध-शतकों के साथ 18,000 से अधिक रन बनाए हैं और ऐसा करने वाले वे दुनिया के पहले एवं
एकमात्र बल्लेबाज हैं। वास्तव में, रिकॉर्ड एवं सचिन एक-दूसरे के पर्याय बन गए हैं। 'रन मशीन' 'लिटिल मास्टर', ‘मास्टर ब्लास्टर' आदि जैसे
उपनाम सचिन के कद के आगे बौने नज़र आते हैं। इतना ही नहीं, खेल के क्षेत्र में भारत रत्न का सम्मान पाने वाले वे पहले खिलाड़ी हैं।
'भारत रत्न' से सम्मानित सचिन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। ‘क्रिके ट के बादशाह' सचिन निश्चय ही भारत के गौरव हैं।
iii. बाघ का घर जिमकार्बेट
जंगली जीवों की विभिन्न प्रजातियों को सरंक्षण देने तथा उनकी संख्या को बढ़ाने के उद्देश्य से हिमालय की तराई से लगे उत्तराखंड के
पौड़ी और नैनीताल जिले में भारतीय महाद्वीप के पहले राष्ट्रीय अभयारण्य की स्थापना प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक जिम कार्बेट के नाम पर की
गई। जिम कार्बेट नॅशनल पार्क नैनीताल से 115 किलोमीटर और दिल्ली से 290 किलोमीटर दूर है। यह अभयारण्य पाँच सौ इक्कीस
किलोमीटर क्षेत्र में फै ला है। नवम्बर से जून के बीच यहाँ घूमने-फिरने का सर्वोत्तम समय है। यह अभयारण्य चार सौ से ग्यारह सौ मीटर की
ऊँ चाई पर है।
ढिकाला इस पार्क का प्रमुख मैदानी स्थल है और कांडा सबसे ऊँ चा स्थान है। जंगल, जानवर, पहाड़ और हरी-भरी वादियों के वरदान के
कारण जिमकार्बेट पार्क की गिनती दुनिया के अनूठे पार्कों में होती हैI
यहाँ रायल बंगाल टाइगर और एशियाई हाथी पसंदीदा घर है। यह एशिया का सबसे पहला संरक्षित जंगल है। राम गंगा नदी इसकी जीवन-
धारा है। यहाँ 110 तरह के पेड़-पौधे, 50 तरह के स्तनधारी जीव, 25 प्रजातियों के सरीसृप और 600 तरह के रंग-विरंगे पक्षी हैं। हिमालयन
विवाह के इस संदर्भ में स्त्री के अधिकारों को कु चलने की परंपरा हमारे देश में सदियों से चली आ रही है। आज भी हमारे समाज में स्त्रियों
के विवाह का निर्णय उसके परिवार वालों द्वारा लिया जाता है। उसे बेजान वस्तु की तरह अनजान हाथों में सौंप दिया जाता है यदि कोई
लड़की विरोध करने का साहस करती भी है तो उसके स्वर को दबा दिया जाता है या उसे दुश्चरित्र घोषित कर दिया जाता है।
ii. आज के समय पानी के गहरे संकट से निपटने के लिए युवा वर्ग सामूहिक आंदोलन कर सकता है। वह शहर व गाँवों में पानी की
फिजूलखर्ची को रोकने के लिए प्रचार आंदोलन कर सकता है। गाँवों में तालाब खुदवा सकता है जिससे वर्षा का जल संरक्षित किया जा
सके । युवा वृक्षारोपण अभियान चला सकता है ताकि वर्षा अधिक हो तथा पानी भी संरक्षित रह सके । वह घर-घर में पानी के सही उपयोग
की जानकारी दे सकता है।
iii. राजा की मृत्यु के पश्चात् जब उनके पुत्र ने लुट्टन पहलवान को राज दरबार से निकाल दिया, तो गाँव वालों ने उनके लिए एक झोंपड़ी डाल
दी। लुट्टन पहलवान ने कु श्ती सिखाने के लिए गाँव के नौज़वान बच्चों के लिए एक स्कू ल खोल दिया। बच्चे उससे दाँव सीखते, पर गाँव की
परिस्थिति खराब होने के कारण धीरे-धीरे वे भी मज़ूरी आदि में लग गए। इस तरह, कु श्ती सीखने के लिए अब उसके पास के वल उसके
अपने दोनों पुत्र ही रह गए। वे भी दिनभर मज़दूरी करते और जो कु छ मिलता, उसी से अपना रहने-खाने आदि का प्रबंध करते। इस प्रकार
पहलवान का स्कू ल अंत में खाली हो गया और वहाँ कोई भी शिष्य नहीं रह गया।