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ह िं दी भाषा का क्रमिक

विकास
ह िं दी भाषा का क्रमिक विकास
 ह न्दी भाषा का इमि ास लगभग एक जार िषष पुराना िाना गया ै ।
सिंस्कृ ि भारि की सबसे प्राचीन भाषा ै जजसे आयष भाषा या दे ि भाषा
भी क ा जािा ै ।
 ह न्दी इसी आयष भाषा सिंस्कृ ि की उत्तरामिकाररणी िानी जािी ै ।
‘ह न्दी’ िस्िुि: फारसी भाषा का शब्द ै ,जजसका अर्ष ै – ह न्दी का
या ह िं द से सम्बजन्िि (शब्द ह िं दी न ीिं शब्द ह िं द फारसी का ै ) ह न्दी
शब्द की मनष्पवत्त मसन्िु -मसिंि से ु ई ै क्योंहक ईरानी भाषा िें ‘स’
को ‘ ’ बोला जािा ै । इस प्रकार ह न्दी शब्द िास्िि िें
मसन्िु शब्द का प्रमिरूप ै । कालािंिर िें ह िं द शब्द सम्पूणष भारि का
पयाषय बनकर उभरा । इसी ‘ह िं द’ से ह न्दी शब्द बना।
 ह न्दी भारोपीय पररिार की आिुमनक काल की प्रिुख भाषाओिं िें से
एक ै । भारिीय आयष भाषाओिं का विकास क्रि इस प्रकार ै :-
सिंस्कृ ि >> पामल >> प्राकृ ि >> अपभ्रिंश >> ह न्दी ि अन्य
आिुमनक भारिीय आयष भाषाएँ !
 ह िं दी का जन्ि सिंस्कृ ि की ी कोख से ु आ ै । जजसके साढे िीन
जार से अमिक िषों के इमि ास को मनम्नमलजखि िीन भागों िें
विभाजजि करके ह िं दी की उत्पवत्त का विकास क्रि मनिाषररि हकया जा
सकिा ै :-
 1. प्राचीन भारिीय आयषभाषा - काल (1500 ई0 पू0 - 500 ई0 पू0)
 2. िध्यकालीन भारिीय आयषभाषा - काल (500 ई0पू0 - 1000 ई0)
 3. आिुमनक भारिीय आयषभाषा - काल (1000 ई0 से अब िक)
 प्राचीन भारिीय आयषभाषा - काल : 1500 - 500 ई0 पू0 : िैहदक एििं लौहकक
सिंस्कृ ि
 इस काल िें िेदों, ब्राह्मणग्रिंर्ों, उपमनषदों के अलािा िाल्िीहक, व्यास, अश्वघोष, भाष,
कामलदास िर्ा िाघ आहद की सिंस्कृ ि रचनओिं का सृजन ु आ।
 एक जार िषों के इस कालखण्ड को सिंस्कृ ि भाषा के स्िरूप व्याकरजणक मनयिों िें
अिंिर के आिार पर मनम्नमलजखि दो भागों िें विभाजजि हकया जािा ै
 1. िैहदक सिंस्कृ ि : (1500 ई0 पू0 – 1000 ई0 पू0)
 िूल रूप से िेदों की रचना जजस भाषा िें ु ई उसे िैहदक सिंस्कृ ि क ा जािा ै ।
प्राचीनिि रूप सिंसार की (अब िक ज्ञाि) प्रर्ि कृ मि ऋग्िेद िें प्राप्त हो ोिा ै ।
ब्राह्मण ग्रिंर् और उपमनषदों की रचना भी िैहदक सिंस्कृ ि िें ु ई, ालािंहक इनकी भाषा
िें पयाषप्त हो अिंिर पाया जािा ै । सिंसार का सबसे प्राचीन ग्रन्र् ऋग्िेद ै । ऋग्िेद से
प ले भी सम्भि ै कोई भाषा विद्यिान र ी ो परन्िु आज िक उसका कोई
मलजखि रूप न ीिं प्राप्त हो ो पाया। इससे य अनुिान ोिा ै हक सम्भििः आयों की
सबसे प्राचीन भाषा ऋग्िेद की ी भाषा, िैहदक सिंस्कृ ि ी र्ी।
 2. लौहकक सिंस्कृ ि : (1000 ई0 पू0 – 500 ई0 पू0)
 दशषन ग्रिंर्ों अमिररक्त सिंस्कृ ि का उपयोग साह त्य िें भी ु आ। इसे लौहकक
सिंस्कृ ि क िे ैं । िाल्िीहक, व्यास, अशिघोष, भाष, कामलदास, िाघ आहद की
रचनाएिं इसी िें ै ।
 िेदों के अध्ययन से स्पष्ट रूप से दे खा जा सकिा ै हक कालान्िर िें िैहदक
सिंस्कृ ि के स्िरूप िें भी बदलाि आिा चला गया।
 कात्यायन ने सिंस्कृ ि भाषा के वबगड़िे स्िरूप का सिंस्कार हकया और इसे
व्याकरणबद्ध हकया। पाजणमन के मनयिीकरण के बाद की सिंस्कृ ि, िैहदक सिंस्कृ ि
से काफी मभन्न ै जजसे लौहकक या क्लामसकल सिंस्कृ ि क ा गया।
 रािायण, ि ाभारि, नाटक, व्याकरण आहद ग्रिंर् लौहकक सिंस्कृ ि िें ी मलखे गए
ैं ।
 ह न्दी सिंस्कृ ि ी ै।
 सिंस्कृ ि काल के अिंमिि पड़ाि िक आिे- आिे िानक अर्िा पररमनविि भाषा िो
एक ी र ी, हकन्िु क्षेत्रीय स्िर पर िीन क्षेत्रीय बोमलयाँ यर्ा–
(i)पजििोत्तरीय (ii)िध्यदे शीय और (iii)पूिी विकमसि ो गईं।
 िध्यकालीन भारिीय आयषभाषा - काल : 500 ई0पू0 - 1000 ई0 : पामल,
प्राकृ ि एििं अपभ्रिंश
 िूलिः इस काल िें लोक भाषा का विकास ु आ। इस सिय भाषा का जो रूप
सािने आया उसे ‘प्राकृ ि’ क ा गया।
 िैहदक और लौहकक सिं काल िें बोलचाल की जो भाषा दबी पड़ी ु ई र्ी, उसने
अनुकूल सिय पाकर मसर उठाया और जजसका प्राकृ मिक विकास ‘प्राकृ ि’ के रूप
िें ु आ। िैयाकरणों ने प्राकृ ि भाषाओिं की प्रकृ मि सिंस्कृ ि को िानकर उससे
प्राकृ ि शब्द की व्युत्पवत्त की ै । "प्रकृ मि: सिंस्कृ ििं, ित्रभििं िि आगििं िा
प्राकृ िि ्"।
िध्यकाल िें य ी प्राकृ ि मनम्नमलजखि िीन अिस्र्ाओिं िें विकमसि ु ईः-
 1. पामल : (500 ई0 पू0 - 1 ईसिी)
सिंस्कृ ि कालीन बोलचाल की भाषा विकमसि ोिे- ोिे या क ें
हक सरल ोिे- ोिे 500 ई0 पू0 के बाद काफी बदल गई, जजसे
पामल नाि हदया गया। पुरानी प्राकृ ि और भारि की प्रर्ि दे श
भाषा क ा जािा ै । ‘िगि’ प्रािंि िें उत्पन्न ोने के कारण
श्रीलिंका के लोग इसे ‘िागिी’ भी क िे ैं । की ‘पामल भाषा’ िें
बोलचाल की भाषा का मशष्ट और िानक रूप प्राप्त हो ोिा ै । आिे-
आिे क्षेत्रीय बोमलयों की सिंख्या िीन से बढकर चार ो गई। (i)
पजििोत्तरीय
(ii) िध्यदे शीय (iii) पूिी और (iv) दजक्षणी ।
 2. प्राकृ ि : (1 ई0 - 500 ई0 ) िक आिे-आिे य
बोलचाल की भाषा और पररिमिषि ु ई िर्ा इसको प्राकृ ि की
सिंज्ञा दी गई।
सािान्य ििानुसार जो भाषा असिंस्कृ ि र्ी और बोलचाल की
आि भाषा र्ी िर्ा स ज ी बोली सिझी जािी र्ी,
स्िभाििः प्राकृ ि क लायी। क्षेत्रीय बोमलयों की सिंख्या कई
र्ी, जजनिें शौरसेनी, पैशाची, ब्राचड़, ि ाराष्ट्री, िागिी और
अिषिागिी आहद प्रिुख ैं ।
 भाषा विज्ञामनयों ने प्राकृ िों के पाँच प्रिुख भेद स्िीकार हकए
ैं -
 1. शौरसेनी
(सूरसेन- िर्ुरा के आस-पास िध्य दे श की भाषा जजस पर सिंस्कृ ि का प्रभाि)
2. पैशाची (मसन्ि)
3. ि ाराष्ट्री (विदभष ि ाराष्ट्र)
4. िागिी (िगि)
5. अद्धष िागिी (कोशल प्रदे श की भाषा, जैन साह त्य िें प्रयुक्त)
3. अपभ्रिंश : (500 ई0 से 1000 ई0 )
 भाषािैज क दृवष्ट से अपभ्रिंश भारिीय आयषभाषा के िध्यकाल की अिंमिि अिस्र्ा
ै जो प्राकृ ि और आिुमनक भाषाओिं के बीच की जस्र्मि ै ।
 कुछ हदनों बाद प्राकृ ि िें भी पररििषन ो गया और मलजखि प्राकृ ि का विकास
रुक गया, परिं िु कमर्ि प्राकृ ि विकमसि अर्ाषि पररिमिषि ोिी गई। मलजखि
प्राकृ ि के आचायों ने इसी विकासपूणष भाषा का उल्लेख अपभ्रिंश नाि से हकया ै ।
इन आचायों के अनुसार 'अपभ्रिंश' शब्द का अर्ष वबगड़ी ु ई भाषा र्ा।
 अपभ्रिंश के मनम्नमलजखि साि भेद स्िीकार हकए ैं , जजनसे आिुमनक भारिीय भाषाओिं/उप
भाषाओिं का जन्ि ु आ -
1. शौरसेनी :
पजििी ह न्दी, राजस्र्ानी और गुजरािी
2. पैशाची : लिं दा , पिंजाबी
3. ब्राचड़ : मसन्िी
4. खस : प ाड़ी
5. ि ाराष्ट्री : िराठी
6. िागिी :
वब ारी, बािंग्ला, उहड़या ि असमिया
7. अिष िागिी :
पूिी ह न्दी
अिः क ा जा सकिा ै हक ह न्दी भाषा का विकास अपभ्रिंश के
शौरसेनी, िागिी और
अिषिागिी रूपों से ु आ ै ।
 आिुमनक भारिीय आयषभाषा - काल : 1000 ई0 से अब िक : ह िं दी एििं अन्य आिुमनक
आयषभाषाएँ
 1100 ई0 िक आिे-आिे िध्य आयषभाषा काल सिाप्त हो ो गया और आिुमनक भारिीय भाषाओिं का
युग आरम्भ ु आ।
 अपभ्रिंश के विमभन्न क्षेत्रीय स्िरूपों से आिुमनक भारिीय भाषाओिं/ उप-भाषाओिं
यर्ा पजििी ह न्दी, राजस्र्ानी, गुजरािी, लिं दा, पिंजाबी, मसन्िी, प ाड़ी, िराठी
वब ारी, बािंग्ला, उहड़या, असमिया और पूिी ह न्दी आहद का जन्ि ु आ ै । आगे
चलकर पजििी ह न्दी, राजस्र्ानी, वब ारी, पूिी ह न्दी और प ाड़ी पाँच उप-
भाषाओिं िर्ा इनसे विकमसि कई क्षेवत्रय बोमलयों जैसे ब्रजभाषा, खड़ी बोली,
जयपुरी, भोजपुरी, अििी ि गढिाली आहद को सिग्र रूप से ह िं दी क ा जािा ै ।
 कालािंिर अमिक विकमसि ोकर अपने िानक और पररमनविि रूप िें ििषिान
और ब ु प्रचमलि िानक ह िं दी भाषा के रूप िें सािने आई ।
 िध्यकालीन ह न्दी
 िध्ययुगीन ह िं दी िें भवक्त आन्दोलन िें ह न्दी खूब फली फूली। पूरे दे श के भक्त
कवियों ने अपनी िाणी को जन-जन िक प ुिं चाने के मलये ह न्दी का स ारा
मलया।
 आिुमनक काल
 स्ििन्त्रिा सिंग्राि के सिय ह न्दी
भारि के स्ििन्त्रिा सिंग्राि िें ह न्दी और
ह न्दी पत्रकाररिा की ि िी भूमिका र ी।
ि ात्िा गािंिी सह ि अनेक राष्ट्रीय नेिा ह न्दी ो राष्ट्रभाषा के रूप िें
दे खने लगे र्े।
स्िििंत्रिा के बाद की ह न्दी
भारि के स्ििन्त्र ोने पर ह न्दी को भारि की राजभाषा घोवषि
हकया गया।
 इिं टरनेट युग िें ह न्दी
 ह िं दी भाषा की जजिनी िािंग ै , इिं टरनेट पर उिनी उपलब्ििा न ीिं ै ।
लेहकन जजस रफ़्िार से भारि िें इिं टरनेट का विकास ु आ ै उसी
िर से ह िं दी भी इिं टरनेट पे छा र ी ै ।
 सिाचारपत्र से लेकर ह िं दी ब्लॉग िक अपनी उपजस्र्मि दजष करा र ा
ै । सािुिाद िो गूगल को भी जािा ै जजसने ह िं दी िें खोज करने की
जग उपलब्ि कराई। इिना ी न ीिं विहकपीहडया ने भी ह िं दी की
ि त्ता को सिझिे ु ए कई सारी सािग्री का सॉफ्टिेयर अनुिाद ह िं दी
िें प्रदान करना सुरु कर हदया जजससे ह िं दी भाषी को हकसी भी विषय
की जानकरी सुलभ ु ई।आजकल ह िं दी भी इिं टरनेट की एक अ ि ्
लोकवप्रय भाषा बन कर उभरी ै । िेरा िानना ै जब लोग अपने
विचार और लेखन ह िं दी भाषा िें इिं टरनेट पर ज्यादा करें गे िो ि
हदन दरू न ीिं की सारी सािग्री ह िं दी िें भी इिं टरनेट पर मिलने
लगेगी।
 * य विषय सािग्री इिं टरनेट ि ह िं दी इमि ास की पुस्िकों से ली
गयी ै िें इसके पूणष सत्य ोने का दािा न ी करिा ूँ ।
िन्यिाद

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