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14 अग त 1947 से पूव ह द म 'राजभाषा' श द का योग ायः नह मलता। सबसे पहले सन् 1949 ई. म भारत के महान्
नेता ी राजगोपालचारी ने सं वधान सभा म नेशनल ल वेज के समाना तर टे ट ल वेज श द का योग इस उ े य से कया क
रा भाषा और राजभाषा म अंतर रहे और दोन के व प क अलगाने वाली वभेदक रेखा को समझा जा सके। बाद म
सं वधान का ा प तैयार करते समय, टे ट ल वेज के थान पर ऑ फ शयल ल वेज श द का योग अ धक उपयु समझा
गया और ऑ फ शयल ल वेज का ह द अनुवाद “राजभाषा” अ धक उपयु समझा गया । इस प र े य म राजभाषा श द
का ता पय है-के अथवा रा य सरकार ारा ा धकृत भाषा।
सन् 1937 ई. म जब भारत म पहली बार आम चुनाव के आधार पर सरकार ग ठत ई, तब 'एक अ खल भारतीय भाषा क
आव यकता पर बल दे ते ए, भारत के अ णी नेता पं डत जवाहरलाल नेह ने कहा था,- "हर ांत क सरकारी भाषा रा य म
कामकाज के लए उस ांत क भाषा होनी चा हए। पर तु हर जगह, अ खल भारतीय भाषा होने के नाते ह तानी को
सरकारी तौर पर माना जाना चा हए। अ खल भारतीय भाषा कोई हो सकती ह तो वह सफ ह द या ह तानी। कुछ भी
कह ली जए यही हो सकती ह।"
• सरी ओर, राजभाषा का योग ायः राजक य शास नक तथा सरकारी अ सरकारी कमचा रय अ धका रय ारा होता
है। व वध कार के राजक य कायकलाप क मा यम भाषा राजभाषा कहलाती है
• रा भाषा का श द-भंडार दे श क व वध बो लय , उपभाषा आ द म समृ होता है। उसम लोक योग के अनुसार नयी
श दावली जुड़ती चली जाती ह। जब क, राजभाषा का श द-भंडार एक सु न त साँचे म ढ़ला और योजन वशेष के लए
नधा रत यु य तक ही सी मत होता है।
• रा भाषा का योग अनौपचा रक प से, उ मु और व छं द शैली म होता है। राजभाषा औपचा रकता क मयादा-
सीमा म बँधी रहती ह। उसम मानव सुलभ, सहजता, उ मु या व छं द क पना के लए वशेष थान नह । नधा रत और
मानव प से मा य भाषा योग क नयमावली का अनुसरण राजभाषा म आव यक है।
• राजभाषा क कृ त इससे कुछ भ है। वह वैधा नक आवरण धारण कए रहती ह। उसम अ धकतर शासक य कानूनी
और संवैधा नक नयम- वधान, व ध- नषेध एवं उनसे संबं धत ववेचन- व ष
े ण कया जाता है
• सं प
े म, कहा जा सकता है क रा भाषा तो एक वशाल उ ान है, जब क राजभाषा उसी वशाल उ ान से चुने ए कुछ
वशेष कार के फूल का गुलद ता है। दोन का अपना-अपना मह व और वै श असं द ध है
राजभाषा के प म ह द : संवैधा नक थ त
भारतीय सं वधान के भाग 5, 6 और 17 म राजभाषा संबध ं ी उपबंध है। भाग 17 का शीषक राजभाषा है। इस भाग म चार
अ याय ह, जो मशः संघ क भाषा, ादे शक भाषाएँ, उ चतम यायालय एवं उ च यायालय आ द क भाषा तथा वशेष
नदश से संबं धत ह। ये चार अ याय अनु छे द 343 से 351 के अंतगत 9 अनु छे द म समा हत ह। इसके अ त र अनु छे द
120 म संसद एवं वधानमडंल क भाषा के संबध ं म ववरण दया गया है।
इसके उपरांत सं वधान म जहाँ-जहाँ भी राजभाषा श द का उ लेख संघ क राजभाषा या रा य क राजभाषा के संदभ म
आ है, वहाँ उसके अनेक योजन म एक योजन शासक य योजन बताया गया है। इसका अ भ ाय यह है क सं वधान
म राजभाषा श द का योग एक सी मत अथ म शासक य योजन के लए आ है। क तु, अनु छे द 351 म ह द के सार
और वकास संबध ं म अनेक नदश समा व ह। उन नदश से यह बात प झलकती है क सं वधान नमाता के मन म
एक ऐसी सावदे शक (रा ीय- अंतररा ीय) ह द के वकास क संक पना न हत थी, जो रा के अ धसं यक समुदाय के
पार प रक संषक संचार और शै णक सा ह यक-सां कृ तक योजन के अ त र अ य ( शासक य एवं वैधा नक)
योजन को भी स करने म स म हो। इससे प है क अनु छे द 351 म यु श द ' ह द भाषा' का अ भ ाय केवल
राजभाषा ह द भाषा के वकास का ल य भारत क सं कृ त के सभी त व क अ भ का मा यम बन सकने वाली भाषा
जैसी मता ा त कर लेना बताया गया है। इससे प है क सं वधान म राजभाषा श द के योग के अंतगत रा भाषा ह द ,
संपक भाषा ह द और भारत क साम सक सं कृ त क अ भ ज ं ना कर सकने वाली भाषा ह द का अ भ ाय व मान है।
यहाँ यह भी उ लेखनीय है क सं वधान सभा म भारतीय सं वधान के अंतगत ह द को राजभाषा घो षत करने वाला ताव
पेश करने वाले द ण भारतीय नेता और व ान ी गोपाल वामी आयंगर थे। सं वधान सभा म ह द , ह तानी और
दे वनागरी तथा अंतररा ीय अंक को लेकर कई दन तक जो ल बी बहस चली, उसका समापन ी गोपाल वामी आयंगर तथा
गुजरात के ी मा णकलाल मुंशी ारा तुत कए गए फामूले के प म आ।
'मुंशी-आयंगर फामूला' के नाम से स इस ताव के मसौदे म कहा गया,-"हमारी मूल नी त यह होनी चा हए क संघ के
कामकाज के लए ह द दे श क सामा य भाषा हो और दे वनागरी सामा य ल प हो। मूल नी त का यह भी मु ा है क सभी
संघीय योजन के लए वे अंक काम म लाए जाए। ज ह भारतीय अंक का अंतररा ीय प कहा गया है।"
26 जनवरी 1950 ई. को वतं भारत का नया सं वधान लागू होने पर डॉ. राजे साद ने कहा, “आज पहली बार हम अपने
सं वधान म एक भाषा वीकार रहे ह जो भारत के संघ के शासन क भाषा होगी और जसे समय के अनुसार अपने-आपको
ढालना और वक सत करना होगा। हमने अपने दे श का राजनी तक एक करण स प कया है। राजभाषा ह द दे श क
एकता को क मीर से क याकुमारी तक अ धक सु ढ़ बना सकेगी। अं जे ी क जगह भारतीय भाषा को था पत करने से हम
न य ही और भी एक- सरे के नकट आएँग।े "
राजभाषा संबध
ं ी अनु छे द, नयम, अ ध नयम आ द : भारतीय सं वधान म राजभाषा संबध
ं ी मुख ावधान एवं उपबंध को
चार वग म बाँटकर समझा जा सकता है.
1.
3. संघ क राजभाषा।
(1) संसद म यु होने वाली भाषा : भाग5 अनु छे द-120 म (1) कहा गया है-भाग17 म कसी बात के होते ए भी, क तु
अनु छे द-348 के अधीन संसद म काय ह द म या अं ज े ी म कया जाएगा। आगे कहा गया है- “य द कोई ह द म या
अं ेजी म वचार कट करने म असमथ है, तो लोकसभा का अ य या रा यसभा का सभाप त उसे अपनी मातृभाषा म
बोलने क अनुम त दे सकता है।"
अनु छे द-120 (2) म यह उपबंध है,- "जब तक संसद व ध ारा कोई और उपबंध न करे, तब तक सं वधान के आरंभ से पं ह
वष क अव ध समा त होने के प ात् या अं ज े ी वाला अंश नह रहेगा।" (अथात् 16 जनवरी 1965 ई. से संसद का काय
केवल ह द म होगा।)
(2) वधान-मंडल म यु होने वाली भाषा : भाग-6, अनु छे द-120 (1) म कहा गया है-"भाग-17 म कसी बात के होते ए
भी, क तु अनु छे द-348 के उपबंध के अधीन रहते ए रा य के वधान मंडल म काय रा य को राजभाषा या भाषा म या
ह द म या अं ेजी म कया जाएगा।"
आगे कहा गया है क वधानसभा का अ य या वधान प रषद् का सभाप त, ऐसे कसी सद य को अपनी मातृभाषा म बोलने
क अनुम त दे सकता है जो उपयु भाषा म से कसी म भी वचार कट नह कर सकता। अनु छे द-120 (2) म कहा गया
है,- "जब तक वधान-मंडल व ध ारा कोई और उपबंध न करे, तक तक इस सं वधान के आरंभ से पं ह वष क अव ध
समा त हो जाने के बाद या अं ज
े ी म वह वाला अंश नह रहेगा। (अथात् 26 जनवरी 1965 ई. से वधान-मंडल का काय
रा य क राजभाषा, भाषा या ह द म ही होगा।)"
(3) संघ क राजभाषा : भाग 17, अनु छे द-343 (1) म कहा गया है-"संघ क राजभाषा ह द और ल प दे वनागरी ल प।"
अनु छे द-343 (2)-खंड (1) म कसी बात के होते ए भी, इस सं वधान के आरंभ से पं ह वष क अव ध तक संघ के उन
शासक य योजन के लए अं ज े ी भाषा का योग कया जाता रहेगा, जनके लए उसका योग कया जा रहा था।
इस संबंध म आगे कहा गया है क रा प त उ उव ध (26 जनवरी, 1950 से 25 जनवरी 1965 तक) के दौरान अपने
आदे श से संघ के शासक य योजन के लए कसी के लए, अं ेजी भाषा के अ त र ह द भाषा का और भारतीय अंक के
अंतररा ीय प के अ त र दे वनागरी प का योग ा धकृत कर सकगे।
अनु छे द-343 (3) म कहा गया है,- "इस अनु छे द म कसी बात के होते ए भी संसद उ पं ह वष क अव ध के प ात्
व ध ारा (क) अं ज े ी भाषा का या (ख) अंक के दे वनागरी प का ऐसा योजन के लए योग का उपबंध कर सकेगी, जो
ऐसी व ध म बताए जाएँ।'
राजभाषा के लए आयोग और संसद क स म त : अनु छे द-344 (1) म कहा गया है- “रा प त इस सं वधान के ार भ से
पाँच वष क समा त पर (अथात् 26 जनवरी 1955 ई. का) और त प ात् ार भ से दस वष क समा त पर आदे श ारा,
एक आयोग का गठन करगे। इस आयोग म एक अ य तथा आठव अनुसच ू ी म बतायी गई व भ भाषा का त न ध व
करने वाले ऐसे अ य त न ध ह गे, ज ह रा प त ारा नयु कया जाएगा। रा प त के इस आदे श म आयोग ारा
अपनायी जाने वाली या भी न द क जाएगी।"
रा य क राजभाषा या राजभाषाएँ : सं वधान के अनु छे द-345 म कहा गया है- " कसी रा य का वधान मंडल अनु छे द-
346 और अनु छे द-347 के उपबंध के अधीन रहते ए, व ध ारा उस रा य म योग होने वाली भाषा म से कसी एक
या अ धक भाषा को या ह द को, उस रा य के सभी या क ह शासक य योजन के लए योग क जाने वाली भाषा
या भाषा के प म अंगीकार कर सकेगा।"
इसी अनु छे द-345 म यह भी कहा गया है- “पर तु जब तक रा य का वधान-मंडल व ध ारा कोई अ य उपबंध न करे, तब
तक रा य के भीतर उन शासक य योजन के लए अं ज े ी भाषा का योग कया जाता रहेगा, जनके लए वह इस सं वधान
से ठ क पहले योग कया जा रहा था।" _
एक रा य और सरे के बीच अथवा रा य और संघ के बीच संसार के लए राजभाषा : सं वधान के अनु छे द-346 म कहा गया
है- “संघ के शासक य योजन के लए योग कए जाने हेतु जो भाषा उस समय ा धकृत होगी, वही एक रा य और सरे
रा य के बीच और कसी रा य तथा संघ के बीच प ा द क राजभाषा होगी।"
आगे कहा गया है- “पर तु, दो या अ धक रा य यह करार करते ह, क उन रा य के बीच प ा द क राजभाषा ह द भाषा
होगी, तो ऐसे प ा द के लए उस भाषा का योग कया जा सकेगा।"
कसी रा य के जनसमुदाय के कसी भाग ारा बोली जाने वाली भाषा के संबध ं म वशेष उपबंध : सं वधान के अनु छे द347
म कहा गया है, "य द कसी रा य के जनसमुदाय का कोई भाग अपने ारा बोली जाने वाली भाषा के संबंध म वशेष उपबंध
क माँग करता है और रा प त को तस ली हो जाती है क वह माँग संगत है तो रा प त यह नदश कर सकते ह क ऐसी
भाषा को भी रा य म सव या उसके कसी भाग म एक आयोजन के लए जसे वे व न द कर, शासक य मा यता द जाए।"
(4) उ चतम यायालय, उ च यायालय आ द क भाषा : उ चतम यायालय, उ च यायालय तथा अ ध नयम वधेयक
आ द म योग क जाने वाली भाषा के संबध
ं म अनु छे द-348 उ लेखनीय है।
ह द भाषा के वकास के लए वशेष नदश : सं वधान के अनु छे द-351 म कहा गया है- "संघ का यह कत होगा क वह
ह द भाषा का सार बढ़ाए, उसका वकास करे, ता क वह भारत क सामा जक सं कृ त के सभी त व क अ भ का
मा यम बन सके और उसक कृ त म ह त प े कए बना ह तानी के और आठव अनुसच ू ी म बताई गई भारत क अ य
भाषा का यु प, शैली और पद को आ मसात् करते ए और जहाँ आव यक या वांछनीय हो वहाँ उसके श द-भंडार
के लए मु यतः सं कृत से और गौणतः अ य भाषा से श द हण करते ए उसक समृ सु न त कर।"
सन् 1955 ई. म रा प त ारा एक अ य आदे श जारी कया गया, जसम संघ के न न ल खत सरकारी योजन के लए
अं ज
े ी भाषा के अ त र ह द के योग को ा धकृत कया गया
'जनता के साथ प - वहार, शास नक रपोट, सरकारी प काएँ एवं संसद म पेश क जाने वाली रपोट, सरकारी संक प
और वधायी अ ध नयम, ह द को राजभाषा के प म मा यता दे ने वाली रा य सरकार से प - वहार, सं धयाँ और उनके
करार, अ य दे श क सरकार , उनके त तथा अंतररा ीय संगठन के साथ प - वहार, राजन यक एवं क सलीय
पदा धका रय एवं अंतररा ीय संगठन म भारतीय त न धय के नाम जारी कए जाने वाले औपचा रक द तावेज।'
राजभाषा अ ध नयम 1963 : 1963 म राजभाषा अ ध नयम 1963 को संसद ारा राजभाषा अ ध नयम पा रत कया गया।
इसम कुल नौ धाराएँ ह, जनका सं त ववरण आगे दया जा रहा है.
धारा-1 के पहले खंड म अ ध नयम के नाम और आरंभ का नदश है। इसके सरे खंड म, इसके लागू होने क त थ 26
जनवरी 1965 न द क गई है
धारा-3क उपधारा (2) म यह ावधान है क (क) के य सरकार के व भ मं ालय , कायालय , वभाग , क पनी-
कायालय , नगम , सं थान आ द के बीच तब तक ह द या अं ज
े ी योग म लाई जाती रहेगी, जब तक संब मं ालय,
कायालय वभाग आ द म संब कमचारी ह द का कायसाधक ान ा त नह कर लेते। थ त के अनुसार, अं ज े ी के साथ,
ह द के साथ अं ज
े ी का अनुवाद आव यक होगा।
उपधारा (3) के अंतगत यह ावधान है क के य सरकार के मं ालय , कायालय , वभाग , संब सं थान , नयम आ द से
संब सभी संक प आदे श , नयम अ धसूचना , शास नक या अ य तवेदन तथा ेस- व तय , सं वदा , करार ,
अनु तय आ द के लए ह द और अं ज े ी योग म लाई जाएगी।
उपधारा-4 म कहा गया है क अं ेजी या ह द दोन म वीण न हो पाने वाले कमचा रय के हत पर आँच लाने वाले नयम
सरकार नह बना सकेगी। अथात्, केवल ह द या केवल अं ज
े ी के द कमचा रय को इ छानुसार सु वधानुसार भाषा म
कामकाज करने क छू ट होगी।
धारा-4 म एक ऐसी राजभाषा स म त बनने का ावधान है, जो धारा-3 के लागू होने क त थ (26-1-1965) के दस वष
प ात्, रा प त क पूव वीकृ त से ग ठत क जाएगी। इसका गठन संसद के दोन सदन ारा कया जाएगा। इसम तीन
सद य ह गे। बीस लोकसभा के और दस रा यसभा के। इन सद य का चयन आनुपा तक त न ध व के अनुसार एक
सं मणीय मत ारा होगा।
ऐसी रपोट पर रा य सरकार से कोई अ भमत ा त न होने पर, रा प त उस रपोट क सफा रश के अनुसार आदे श जारी
कर सकगे, पर तु वे आदे श धारा-3 के उपबंधो से असंगत नह ह गे।
धारा-6 म रा य के वधान-मंडल के नयम , अ ध नयम आ द के ह द अनुवाद का वही व ा धकृत मानने क बात कही गई
है, जसे रा यपाल ारा ा धकृत कया जाएगा।
धारा-8 म क य सरकार को यह अ धकार दया गया है क इस (राजभाषा) अ ध नयम (1963) के योजन को काया वत
करने के लए नयम बना सकेगी, ज ह शासक य राजप (गजट) म अनुसू चत कया जाएगा। ऐसे नयम संसद के येक
सदन के स के सम यथाशी कुल मलाकर तीन दन के लए उसके सामने रखे जाएंग।े सदन ारा स ब नयम म कोई
उपाँतरण कए जाने पर, वह उसी प म लागू होगा। पर तु ऐसा उपाँतरण उस नयम के अधीन पहले क गई कसी बात क
वैधता पर तकूल भाव डालने वाला नह होगा।
राजभाषा नयम 1976 : सन् 1963 ई. राजभाषा अ ध नयम क धारा-3 क उपधारा (4) तथा धारा-8 के अधीन ा त
श य का उपयोग करते ए, भारत सरकार ने सन् 1976 ई. म राजभाषा नयम लागू कया। फर 9 अ टू बर1987 को सन्
1976 ई.राजभाषा नयम म कुछ संशोधन कए गए.....
मुख नयम और स बं धत ावधान इस कार ह :
1.
3. इसके अनुसार,
'ग' े के रा य के आपसी अथवा संघ े या अ य रा य के साथ प - वहार म अं ेजी का योग होगा। यह ावधान भी
कया गया क यह प - वहार अं ज
े ी या ह द म हो सकता है। ले कन, ह द म प - वहार उसी अनुपात म होगा, जसे
क य सरकार स ब कायालय म ह द का कायसाधक ान रखने वाले कमचा रय क सं या तथा ह द म प ा द भेजने
क सु वधा के आधार पर तय करेगी।
6. राजभाषा अ ध नयम 1963 (यथा संशो धत 1967) क धारा-3 क उपधारा (3) बताए गए सभी द तावेज के लए ह द
और अं जे ी दोन का योग कया जाएगा। द तावेज पर ह ता र करने वाले य क यह ज मेदारी होगी क वे यह
सु न त कर ल क द तावेज ह द और अं ज े ी दोन म है।
9. उनके कमचा रय को ह द म वीण माना जाएगा, ज ह ने (क) मै क या उसके समक या उससे उ चतर कोई परी ा
ह द के मा यम से उ ीण कर ली हो, (ख) ातक या उसके समक या उससे उ चतर परी ा म ह द को एक वैक पक
वषय के प म लया हो, (ग) जो यह घोषणा करे क उ ह ने ह द म वीणता (कायसाधक ान या यो यता) ा त कर ली
है।
10. ह द का कायसाधक ान (क) मै क या उसके समक या उससे उ चतर परी ा ह द वषय के साथ उ ीण करना।
योजना के अंतगत ा परी ा या सरकार ारा कसी वशेष वग के लए न द परी ा पास कर लेना।
(ख) कमचारी ारा यह घोषणा करना क उसने ह द म कायसाधक ान ा त कर लया है, इसक पु क य सरकार ारा
व न द अ धकारी करेगा।
12. के य कायालय के शास नक मुख क यह ज मेदारी होगी क वह उपयु उपबंधो का नयमानुसार पालन सुन त
करे।
राजभाषा संक प 1968: संसद के दोन सदन ने दस बर 1967 ई. म राजभाषा संक प पा रत कया। यह संक प 18
जनवरी 1968 ई. के राजप (गजट) म राजप त (अ धसू चत) कया गया, इसी लए इसे राजभाषा संक प 1968 कहा
जाता है। इसम सं वधान के अनु छे द343 के अनुसार ह द के राजभाषा होने तथा अनु छे द 351 के अनुसार ह द भाषा के
वकास और सार का हवाला दे ते ए यह संक प कया गया क:-
राजभाषा सक प 1991:-
11 जनवरी 1991 को संसद ारा उपयु राजभाषा संक प 1968 को पुनः पा रतर कया गया.
(उ लेखनीय है क संक प नयम अ थ नयम या कानूनी आदे श नह । यह एक कार क सफा रश है अथवा अनुरोध व आ ह
है क ऐसा कया जाना चा हए। इसक कानूनी (वैधा नक) अ नवायता या बा यता नह है। इसी लए 1968 के संक प के ठ क
इ क स वष बाद तक भी संघ लोक-सेवा आयोग क परी ा म भारतीय भाषा को वैक पक सु वधा न मल पाने के
कारण सन् 1991 ई. म संसद ने वही संक प पुनः दोहराया)
भाषा का वकास- सार और पोषण योग ही उवर भू म पर और वहार के सचन से होता है। आज सबसे बड़ी सम या
योग और वहार के तर पर उपे ा और उदासीनता क है। भाषा फामूला कागज म तो है, वहार म नह । भा षक
( ह द और अं ज
े ी दोन के योग क ) थ त औपचा रक प से तो है, अथात् अ धकांश सरकारी द तावेज, फाम, प - प
आ द दोन भाषा म ह, पर तु ावहा रक प से उनम कमचारी एवं सं ात नाग रक अं ज े ी ही लखते और योग म लाते
ह।
तवष 14 सत बर को ह द दवस धूमधाम से सभी कायालय म मनाया तो जाता है, उसम संक प भी ह द म लये जाते
ह। क तु, त संबध
ं ी सारी प रयोजना, कायवाही, लखी-पढ़ ायः अं ज े ी म ही होती ह। अ धकांश सरकारी प - वहार
अं ज
े ी म चल रहा है, य क ह द या अं ज े ी के योग को छू ट है। फर दोन थ तय म या तो मूल प ह द म होना
चा हए या मूल अं जे ी प के साथ ह द म अनुवाद होना चा हए। क तु ायः होता यह है क ह द ांसलेशन फैल ह द
अनुवाद संल न है, लखा होने पर भी ह द अनुवाद दया नह जाता, य क यह सोच लया जाता है क काम तो अं ेजी से
चल ही जाएगा। इस वृ से कमचा रय म ह द योग क इ छा या आव यकता क अनुभू त उभरने ही नह पाती।
पहले यह सम या बताई जाती थी क ह द म सभी राजक य काय-कलाप संप करने के लए उपयु और पया त
पा रभा षक श दावली नह है। व धक और तकनीक मामल म ह द योग म क ठनाई होती है इ या द। क तु, अब व भ
सरकारी और गैरसरकारी सं थान ारा अनेक ऐसे श दकोश, पयायवाची कोश तथा अ य मानक सा ह य का शत हो चुका
है, क कसी भी तर पर कसी भी े म ह द भाषा म सुगमतापूवक काम-काज हो सकता है। क तु कमी है इन सु वधा
को उपयोग म लाने क इ छाश क । आज जब टं कण, मु ण और कं यूटर तक के े म ह द और दे वनागरी म हर कार
का काय संभव हो गया है तो शासक य योजन और कायालय म ह द योग संभव य नह हो सकता?
इनम सबसे बड़ी सम या संघ लोक सेवा आयोग ारा व भ शास नक परी ा म ह द तथा अ य भारतीय भाषा को
उपयु मा यम न बनाने क है। सन् 1968 और 1991 के संसद य राजभाषा संक प के बावजूद, इस और से संब
अ धकारीगण उदासीन ह। दस बर 1968 म संसद य राजभाषा स म त ने अपनी रपोट म प कहा था- "जहाँ अं ज े ी का
एक पृथक प अ नवाय है वहाँ उनके वक प म ह द भाषा का प भी रखा जाए। फर भी अनेक शास नक
परी ा म ह द का वक प नह दया जा रहा। स ांत को वहार म काया वत न करने क यह वृ सबसे मुख
सम या है।"
इसी का यह प रणाम है क सरकारी नौकरी पाने, जीवन तर तथाक थत प से ऊँचा बनाने तथा रा ीय-अंतररा ीय
तयो गता म टक पाने के वचार से दे श क युवा पीढ़ का मोह अं ज
े ी के त बढ़ता जा रहा है। क य सेवा के संदभ
म तो यह हो ही रहा है, ादे शक तर पर भी ांतीय सरकार और लोक सेवा आयोग जैसे सं थान ारा ांतीय भाषा क
अपे ा अं ज
े ी को मह व दया जा रहा है।
यह सभी थ तयाँ पया त आशाजनक ह, यथा प अपने दे श के शासक य तं म राजभाषा संबंधी व भ ावधान को
वहार म लाने के लए मुख प से न न ल खत सुझाव दए जा सकते ह-
2. कई जगह असाधारण थ त म ह द क बजाय अं ज े ी के योग क छू ट है। उसे भी तुरंत हटा दया जाना चा हए। (कोई
भी अपनी सु वधा के अनुसार कसी भी थ त को असाधारण स कर सकता है।)
3. भाषा क शु का वशेष आ ह न करते ए ह द भाषा के योग का आ ह कया जाए। ह द को ज टल, अ वाभा वक,
अ ावहा रक बनाए जाने के दोष से बचकर उसके सहज सुगम व प को वहार म लाया जाए। ल प दे वनागरी होने से
कसी भी कार के काम चलाऊँ श द का योग उपयु होगा। सं ेषण संचार क सरलता मु य उ े य होना चा हए।
चा हए। (इस संबंध म भारत सरकार के पूव सलाहकार और त कालीन राजभाषा स चव ी राम स नायक का 17 माच
1976 ई. को जारी कया गया प रप वशेष यान दे ने यो य है, जसका शीषक है- 'सरकारी काम-काज म सरल ह द का
योग')
4. ऊपरी औपचा रकता, जैसे- प शीष, लफाफे, नामप आ द पर ह द अं कत होने क अ धक परवाह न करके, उसके
भीतर क वा त वक साम ी को (वतनी या ाकरण क सामा य भूल क परवाह कए बना) दे वनागरी ह द म दे ने पर
वशेष यान दया जाए।
(क) अ धक से अ धक डाक ह द म नकाल। (ख) कायालय का सभी काय ह द म कर। (ग) प के पते ह द (दे वनागरी)
म लख। (घ) सव ह द (दे वनागरी) म ह ता र कर। (ड) आपसी बातचीत और जन संपक म ह द बोल। (च) मूल प के
अ त र ट प णयाँ आ द भी ह द (दे वनागरी) म लख। (छ) सभी भारतीय भाषा का आदर करते ए उनके साथ ह द
योग को रा ीय अ मता का तीक मान।
7. वशेष प से संब कायालय, वभाग, मं ालय, त ान का अ धकारी वग नौकरशाही परंपरा यागकर लोकतं ीय
परंपरा के अनुसरण क मान सकता बनाए।
8. अं ज
े ी के थान पर ह द (दे वनागरी) और ांतीय भाषा म अ धका धक शासक य काम-काज करने और तदनुकूल
वातावरण बनाने वाल का सावज नक अ भन दन कया जाए।
रा भाषा ह द का अथ है 'सं कृत न ांजल हद '। वदे शी श द क अनाव यक ललक दे श, भाषा, स यता, सं कृ त एवं
दे शवा सय के लए रगामी प रणाम छोड़ती है। मैकाले का कथन भूलना नह चा हए क अं ज े ी पढ़ाकर हम ऐसे
बनाएँगे जो प-रंग से भारतीय दखगे, क तु मन से अं ेज के दास ह गे। यह बात फारसी और अरबी पढ़ा कर भी उ प क
जा सकती ह। जस श द क ज म-कु डली वदे श म हो, वह अपना सगा नह हो सकता।
राजनेता दे श क भाषा के नाम पर जनता के मत ा त कर कुस ह थया लगे तथा लेखक प कार इ या द बु जीवी लोग
अधकचरी भाषा म कुछ भी टू टा-फूटा लखकर सरकार से पुर कार, पद, स मान आ द पाने म सफल हो जाएंग।े कोई सामने
खड़ा नह होगा, अंध म काना भी सरदार होगा। तो ह द वाल को इन षडयं का रय से सावधान रहने क इस समय वशेष
आव यकता है!