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पंचकोशों की शुदधि चाहते हैं तो जपे यह मंतर बन जायेंगे रिददी सिदधियों के सवामी
पंचकोशों की शुदधि चाहते हैं तो जपे यह मंतर बन जायेंगे रिददी सिदधियों के सवामी
patrika.com/dharma-karma/panchkosh-ke-jagran-ka-mantra-2822630
19 मई 2018
Submitted by:
Shyam Kishor
पंचकोशों की शुद्धि चाहते हैं तो जपे यह मंत्र, होंगे रिद्दी, सिद्धियों के स्वामी
योग की धारणा के अनुसार मानव का अस्तित्व पाँच भागों में बंटा है जिन्हें पंचकोश कहते हैं । परमात्म चेतना
ईश्वर के प्रतिनिधि हमारे ऋषियों ने जीवात्मा के कायकलेवर को अपनी दिव्य दृष्टि से पाँच भागों में विभक्त
माना है, और ये हैं- अन्नमय कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय कोश, आनंदमय कोश, आदि
पंचकोश अथाह शक्तियों के भंडार हैं । जब मनुष्य इनकों जगाने के लिए प्रयास करता है तो इनके भीतर
की सोई हुई शक्तियां जागने पर जीवसत्ता का “रसोवैसः” वाला कारण शरीर प्रधान आनन्दमय कोश वाला
स्वरूप सामने आता है । इसके हटते ही पंचकोश जागरण की पंचकोशी जागरण साधना संपन्न हो जाती है
तथा व्यक्ति ब्रह्म से, परमसत्ता से आत्म साक्षात्कार कर लेता है।
दैवी भागवत में तो पंचकोशी साधना के बारे में लिखा हैं कि-
पंचप्राणाधिदेवी या पंचप्राण स्वरूपिणी ॥
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प्राणाधिक प्रियतमा सर्वाभ्यः सुन्दरीपरा ॥
अर्थात् - “पंच प्राण इसी पंचकोश सम्पदा के पाँच स्वरूप हैं, प्राणों की अधिष्ठात्री देवी वही हैं, वे सर्वांग-
सुन्दरी हैं, पराशक्ति हैं, श्री भगवान को प्राणों से भी प्यारी हैं ।” ऐसी साधना कितनी महात्म्य भरी होगी,
उसकी कल्पना की जा सकती है । पंचकोशी साधना का विधान पूर्णतः विज्ञान सम्मत भी है ।
- गायत्री मंत्र ? का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक स्तर पर रिसर्च करने वाले गायत्री मंत्र के ऋषि आचार्य
श्रीराम शर्मा ने उच्चस्तरीय साधना के लिए के वल वेदमाता गायत्री को ही अलंकारिक रूप में पाँच मुखों
वाली महाशक्ति ऋतंभरा बताते हुए लिखा है-
अर्थात वेद शास्त्र में बताई गई सभी दुर्लभ से दुर्लभ सिद्धियों का अधिकारी- गायत्री माता की शरण में जाने
से मनुष्य स्वतः ही हो जाता हैं, तथा इस माध्यम से सूक्ष्म शरीर के पाँच कोशों की प्रसुप्त क्षमता को
जगाकर, इस महाविद्या का समुचित लाभ उठा सकता है । छान्दोग्योपनिषद् का मनीषी इन पाँच कोशों को
स्वर्गलोक के पाँच द्वारपाल बताता है, जिन्हें प्रसन्न (सिद्ध) कर लेने पर ब्रह्मपुरुष ईश्वर तक पहुँचना
संभव हो जाता है ।
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ऋग्वेद में इन पंचकोशों को पाँच ऋषियों की संज्ञा देते हुए कहा गया है कि मनुष्य जीवन्त अवस्था में ही सारे
जीवन उद्यान को पवित्र-सुरम्य बना सकते हैं । अग्निऋषिः पवमानः पाँचजन्यः पुरोहितः।
ऋषियों के निर्धारणानुसार पंचकोश साधना में साधक को जप, तप, ध्यान , प्राणायाम, बंध, मुद्रा आदि का
प्रयोग करना पड़ता है । इसके राजयोग, हठयोग, लययोग, प्राणयोग, ऋतुयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग,
कर्मयोग, तत्वयोग आदि 84 योगों के आधार पर अनेकानेक व्यायाम क् रम बताये गये हैं साधक उन्हें अपनी
परम्परा, पवित्रता एवं पात्रता के अनुसार अपनाकर रिद्धि, सिद्धियों के उचित लाभ का अधिकारी बन
सकता हैं ।
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