Professional Documents
Culture Documents
रस
रस
ऩररभाषा :–
जजस यचना को ऩढ़कय, सुनकय, नाटक आदद को दे खकय, ऩाठक, श्रोता
मा दर्शक जजस आनॊद की प्राजतत कयता ,है उसे यस कहते हैं |
रस के अॊग या भाव :-
1. स्र्ायी भाव
2. ववभाव
3. अनुभाव
4. सॊचारी भाव
1. स्र्ायी भाव :-
ऐसे बाव जो रृदम भें सॊस्त्काय रूऩ भें जस्त्थत होते हैं , जो चचयकार
तक यहने वारे अथाशत जस्त्थय औय प्रफर होते हैं तथा अवसय ऩाते ही जाग्रत
हो जाते हैं , उन्हें स्र्ायी भाव कहते हैं।
1
रस के प्रकार/भेि :-
क्रम रस के प्रकार स्र्ायी भाव टिप्ऩणी
1 श्रग
ॊ र ाय यस यतत स्त्रीऩुरुष का प्रेभ-
अनुयाग/
11 बजतत यस ईश्वय के प्रतत प्रेभ
दे व ववषमक- यतत
2
2. ववभाव :-
ववबाव का र्ाजददक अथश है – „कारण‟
→ अथाशत ् स्त्थामी बावों को जागत
र कयने वारे कायण„ववबाव‟ कहराते है ।
ववभाव के भेि-
(क) आऱॊबन ववभाव → जजस व्मजतत मा वस्त्तु के कायण भन भें कोई स्त्थामी बाव
जाग्रत हो जाए तो वह व्मजतत मा वस्त्तु उस बाव का आरॊफन ववबाव कहराए।
जैसे – रास्र्े में चऱर्े समय अचानक बडा-सा साॉऩददखाई दे ने से भय नाभक स्त्थामी बाव
जगाने से ‘साॉऩ’ आऱॊबन ववभाव होगा।
1. आश्रम
2. आरम्फन
3
(ख) उद्िीऩन ववभाव → आरम्फन की वे कक्रमाए जजनके कायण आश्रम के भन भें
यस का जन्भ होता है, उद्दीऩन कक्रमाएॉ होती है ।
→ इसभें प्रकरतत की कक्रमाए बी आती है ।
जैसे – ठॊ डी हवा का चरना, चाॉदनी यात का होना, करष्ण का घुटनों के फर चरना
3. अनभ
ु ाव :-
अनब
ु ाव का र्ाजददक अथश है अनब
ु व कयना।
– भन भें आने वारे स्त्थामी बाव के कायण भनष्ु म भें कुछ र्ायीरयक चेष्टाएॉ उत्ऩन्न होती हैं
वे अनुबाव कहराते हैं।
जैसे – साॉऩ को दे खकय फचाव के भरए जोय-जोय से चचल्राना।
इस प्रकाय से हभ दे खते है कक उसकी फाह्म चेष्टाओॊ से अन्म व्मजततमों को मह प्रकट हो
जाता है कक उसके भन भें „भय‟ का बाव जागा है ।
अनुभाव के भेि :-
1. कातमक अनब
ु ाव
2. वाचचक अनुबाव
3. साजत्वक अनुबाव
4. आहामश अनुबाव
1. कानयक अनुभाव →
आश्रम द्वाया इच्छाऩूवक
श की जाने वारी र्ायीरयक कक्रमाओॊ को काचथक अनुबव
कहते हैं। जैसे – उछरना, कूदना, इर्ाया कयना आदद।
2. वाचचक अनुभाव →
वाचचक अनुबाव के अन्तगशत वाणी के द्वाया की गमी कक्रमाएॉ आती हैं।
4
3. साब्ववक अनुभाव →
जजन र्ायीरयक ववकायों ऩय आश्रम का कोई वर् नहीॊ होता
, फजल्क वे स्त्थामी
बाव के उत्ऩन्न होने ऩय स्त्वमॊ हीउत्ऩन्न हो जाते हैं वे साजत्वक अनब
ु ाव कहराते
हैं।
1. स्र्म्भ
2. स्वेि
3. रोमाॊच
4. वेऩर्ु
5. स्वर भॊग
6. वैवर्णयथ
7. अश्रू
8. प्रऱय या मूर्ाथ
4. आहायथ अनुभाव →
आहामश का र्ाजददक अथश है- „करत्ररभ वेर्बूषा‟
→ ककसी की वेर्-बष
ू ा को दे खकय भन भें जो बाव जागते हैं। उसे आहामश
अनब
ु ाव कहते हैं।
5
4. सॊचारी भाव/व्यभभचारी भाव :-
आश्रम के भन भें उत्ऩन्न होने वारेअजस्त्थय भनोववकायों कोसॊचारी भाव या
व्यभभचारी भाव कहर्े हैं।
→ सॊचारी भाव की मुख्य रूऩ से सॊख्या 33 है-
6
शॊ ग
ृ ार रस :-
स्त्री-ऩरु
ु ष के ऩायस्त्ऩरयक प्रेभ के वणशन से भन भें उत्ऩन्न होने वारे
आनॊद को र्ॊग
र ाय यस कहते हैं।
→ आचामश बोज ने र्ॊग
र ाय यस को यसयाज मानी यसों का याजा बी कहा है ।
→ र्ॊग
र ाय यस का स्त्थामी बाव „यतत‟ है ।
शृॊगार रस के भेि -
(1) सॊमोग यस
(2) ववमोग यस
सॊयोग रस :-
उदाहयण →
“फतयस रारच रार की, भुयरी धयी रुकाम।
सौंह कयै बौंहतन हॉ स,ै दै न कहै नदह जाम।।‟‟
7
सॊयोग शॊग
ृ ार रस केउिाहरण-
1. याभ के रूऩ तनहायतत जानकी कॊकन के नग की ऩयछाहीॊ । 9. बागन काहे को जाओ सपया घर बैठे ही बाग़ लगाय ददखाऊुँ।
एडी अनार िी मोरर रही , बसहयाुँ दोउ चम्पे की डार नवाऊुँ।
माती सफै सुचध बूभर गई, कय टे कक यही ऩर टायत नाहीॊ ।
छासिन मैं रि के सनबुवा अरु घूुँघट खोसल कै दाख चखाऊुँ।
ढाुँगन के रि के चिके रसि फू लसन की रिखासन लुटाऊुँ॥
2. कहत नटत यीझत खखझत , भभरत खखरत रजजमात
बये बौन भें कयत है , नैननु ही सौ फात 10. ऩूनभ के चन्द्रभा की बाॊतत भुख ऩय चभक ,
ज्मोतसना बी गोया यॊ ग दे ख के रजाई है ।
3. 'भें तनज आभरन्द भें खड़ी थी सखी एक यात, सावन के भेघों के सभान कारी केर् याभर् ,
रयभखझभ फॊद
ू ें ऩढ़ती थी घटा छाई थी , आॊखों भें अऩाय भसन्धु सभ गहयाई है ।
गभक यही थी केतकी की गॊध ,
चायों औय खझल्री झनकाय , 11. रगती हो यात भें प्रबात की ककयन सी
वही भेये भन बाई थी। ' ककयन से कोभर कऩास की छुवन सी
-------------------------------------------------------------- छुवन सी रगती हो ककसी रोकगीत की
चौक दे खा ! भैंने चऩ ु कोने भें खड़े थे वप्रम , रोकगीत जजस भें फसी हो गन्ध प्रीत की
भाई भुख रज्जा उसी छाती भें छुऩाई थी।
12. कुसुभ , करी, वजल्रमाॉ सजी कनक प्रततभा सी इसकी
4. दूलह श्री रघुनाथ बने दुलही सिय िुुंदर मुंददर माहीं। कामा।
गावसि गीि िबै समसल िुुंदर बेद जुवा जुरर सवप्र पढ़ाहीं॥
प्राण फनी हय जन-जीवन का आज वह पैरा अऩनी
राम को रूप सनहारसि जानकी , कुं कन के नग की परछाहीं।
भामा।।
यािें िबै िुसध भूसल गई कर टेदक रही पल टारि नाहीं॥
ऊषा की रारी इसके यस-भग्न अधयों ऩय चभक यही।
दहभ-भसतत उज्जवर कुसभ
ु सी कामा आज दभक यही।।
5. िरसन िनूजा िट िमाल िरुवर बहु छाये
झुके कू ल िों जल परिन सहि मनहुुँ िुहाये।
13. एक जॊगर है तेयी आॊखों भें .
जजस भें भैं खो जाता हूॊ..
6. थके नमन यघुऩतत छवव दे खे। तु ककसी ये र सी गुजयती है .
ऩरकजन्ह हु ऩरयहरय तनभेखे।।
भैं ककसी ऩुर सा थयथयाता हूॊ...
अचधक सनेह दे ह बई बोयी।
सयद सभसदह जनु चचतव चकोयी।। 14.है कनक सा यॊ ग उसका , सुखश पूरों से अधय,
7. िोई हुिी सपय की छसियाुँ लसग बाल प्रवीन महा मुद मानै। दे ख रॉ ू सयू त वप्रमे की , बर
ू जाऊॉ भैं डगय ।
के ि खुले छहरैं बहरें फहरैं , छसब देखि मन अमाने। नैन भें तस्त्वीय उसकी , है सभाई हय घड़ी ,
वा रि में रिखान पगी रसि रै न जगी असखयाुँ अनुमानै। प्रीत का रे दीऩ जैसे ,काभभनी सम्भुख खड़ी।
चुंद पै बबब औ बबब पै कै रव कै रव पै मुकिान प्रमानै॥
15. मे ये र्भी जुल्फें , मे र्यफती आॉखें
8. खुंजन मील िरोजन को मृग को मद गुंजन दीरघ नैना। इन्हें दे ख कय जी यहे हैं सबी
कुुं जन िें सनकस्यौ मुिकाि िु पान भरयौ मुख अमृि बैना। मे ये र्भी जुल्फें , मे र्यफती आॉखें
जाई रहै मन प्रान सबलोचन कानन मैं रुसच मानि चैना।
इन्हें दे ख कय जी यहे हैं सबी
रिखासन करयौ घर मो सहय मैं सनसिबािर एक पलौ सनकिै ना॥
8
ववयोग रस :-
जहाॉ ऩय नामक-नातमका का ऩयस्त्ऩय प्रफर प्रेभ हो रेककन भभरन न हो अथाशत ्
नामक – नातमका के ववमोग का वणशन हो वहाॉ ववमोग यस होता है ।
→ ववमोग का स्त्थामी बाव बी „यतत‟ होता है ।
उदाहयण →
‘‘भानस भॊददय भें सती , ऩतत की प्रततभा थाभ ,
चरती सी उस ववयह भें फनी आयती आऩ ,
आॊखों भें वप्रम भभरती थी ,
बूरे थे सफ बोग हुआ ववषभ से बी अचधक उसका ववषभ व मोग।’’
स्त्थामी बाव = यतत
आश्रम = उभभशरा
आरॊफन = प्रवास यत रक्ष्भण
उद्दीऩन = आॊखों भें वप्रमतभ की भूततश
अनब
ु ाव = बोगों का ऩरयत्माग
स्त्वाभी का ध्मान
सॊचायी = स्त्भतर त ,जड़ता ,धैमश ,आदद ।
ववयोग श्रग
ॊ ृ ार रस का उिाहरण-
1. कुछ ऐसे ही ददन थे वो जफ हभ भभरे थे वही तो है भौसभ भगय रुत नहीॊ वो
चभन भें नहीॊ पूर ददर भें खखरे थे भेये साथ फयसात बी यो ऩड़ी है
रगी आज सावन की कपय वो झड़ी है
1. उधो, भन न बए दस फीस। 6. इन काहू सेमो नहीॊ ऩाम सेमती नाभ।
एक हुतो सो गमौ स्त्माभ सॊग , को अवयाधै ईस॥ आजु बार फतन चहत तव
ु कुच भसव सेमो फाभ॥
2. इन्द्री भसचथर बईं सफहीॊ भाधौ त्रफनु जथा दे ह त्रफनु सीस। 7. फेभर चरी त्रफटऩन भभरी चऩरा घन तन भाॉदह।
स्त्वासा अटककयही आसा रचग , जीवदहॊ कोदट फयीस॥ कोऊ नदह तछतत गगन भैं ततमा यही तजज नाॉदह॥
3. तभ
ु तौ सखा स्त्माभसुन्दय के , सकर जोग के ईस। 8. दयद कक भायी वन-वन डोरू वैध भभरा नादह कोई
सूयदास, यभसकन की फततमाॊ ऩुयवौ भन जगदीस॥ भीया के प्रबु ऩीय भभटै , जफ वैध सॊवभरमा होई
4. ऩतु न ववमोग भसॊगाय हूॉ दीन्हौं है सभझ
ु ाइ। 9. भेये तो चगयधय गोऩार दस
ू यो न कोई
ताही को इन चारय त्रफचध फयनत हैं कत्रफयाइ॥ जाके भसय भोय भुकुट भेया ऩतत सोई
5. इक ऩूरुफ अनुयाग अरु दज
ू ो भान ववसेखख। 10. फसों भेये नैनन भें नन्दरार
तीजो है ऩयवास अरु चौथो करुना रेखख॥ भोय भुकुट भकयाकरत कॊु डर , अरुण ततरक ददमे बार
11. सनसिददन बरिि नयन हमारे
, 12. अये फता दो भुझे कहाॉ प्रवासी है भेया
िदा रहसि पावि ऋिु हम पै जब िे स्याम सिधारे ॥ इसी फावरे से भभरने को डार यही है हूॉ भैँ पेया
9
हास्य रस:-
वाणी, वेर्बूषा, ववकरत आकाय इत्मादद के कायण भन भें हास्त्म का बाव उत्ऩन्न होता ,है
उसे हास्य रस कहते हैं।
→ इसका स्त्थामी बाव „हास‟ होता है ।
उिाहरण-
ववॊध्म के वासी उदासी तऩोव्रतधायी भहा त्रफनु नारय दख
ु ाये
गौतभ तीम तयी तर
ु सी सो कथा सुतन बे भुतनवॊद
र सुखाये ।
ह्वै हैं भसरा सफ चॊद्रभख
ु ी, ऩयसे ऩद भॊजर
ु कॊज ततहाये
कीन्हीॊ बरी यघन
ु ामक जू जो करऩा करय कानन को ऩगु धाये ।।
स्त्थामी बाव = ‘हास’
आश्रम = ऩाठक
आरॊफन = ‘याभचन्द्रजी’
हास्य रस का उिाहरण -
1. फायह भास रौं ऩथ्म ककमो, षट भास रौं रॊघन को ककमो कैठो
ताऩै कहूॉ फहू दे त खवाम, तो कै करय द्वायत सोच भें ऩैठो
भाधौ बनै तनत भैर छुड़ावत, खार खॉचै इभभ जात है ऐॊठो
भूछ भुड़ाम कै, भूड़ घोटाम कै, पस्त्द खोराम, तर
ु ा चदढ़ फैठो।।
10
करुण रस:-
ककसी वप्रम व्मजतत के चचय ववयह, फॊधु ववनास मा ककसी वप्रम व्मजतत की भत्र मु आदद से जो र्ोक उत्ऩन्न
होता है , उसे करुण यस कहते हैं ।
→ इसका स्त्थामी बाव „शोक' है।
उिाहरण-
भेये रृदम के हषश हा!अभबभन्मु अफ तू है कहाॊ ,
दृग खोरकय फेटा ततनक तो दे ख हभ सफ को महाॊ
भाभा खड़े हैं ऩास तेये तू महीॊ ऩय है ऩड़ा ।।
करुण रस का उिाहरण -
1. यही खयकती हाम र्ूर-सी , ऩीड़ा उय भें दर्यथ के। 4. याभ याभ कदह याभ कदह , याभ याभ कदह याभ।
ग्रातन, रास, वेदना - ववभजडडत , र्ाऩ कथा वे कह न सके।।
तनु ऩरयहरय यघुवय-ववयह , याउ गएउ सुयधाभ
2. भखण खोमे बुजॊग-सी जननी ,
पन-सा ऩटक यही थी र्ीर् ,
5. हाम याभ कैसे झेरें हभ अऩनी रज्जा अऩना र्ोक
अन्धी आज फनाकय भुझको ,
गमा हभाये ही हाथों से अऩना याष्र वऩता ऩयरोक
तमा न्माम ककमा तभ
ु ने जगदीर् ?
6. द्ु ख ही जीवन की कथा यही
तमा कहूॉ , आज जो नहीॊ कहीॊ।
3. अबी तो भुकुट फॊधा था भाथ ,
हुए कर ही हल्दी के हाथ ,
7. ऩेट ऩीठ दोनों भभरकय हैं एक,
खरु े बी न थे राज के फोर,
चर यहा रकुदटमा टे क,
खखरे थे चम्
ु फन र्न्
ू म कऩोर।
हाम रुक गमा महीॊ सॊसाय , भुट्ठी बय दाने को-- बूख भभटाने को
त्रफना भसॊदयू अनर अॊगाय भॉह
ु पटी ऩुयानी झोरी का पैराता--
वातहत रततका वट दो टूक करेजे के कयता ऩछताता ऩथ ऩय
सुकुभाय ऩड़ी है तछन्नाधाय।
आता ।
11
वीर रस :-
र्रु के उत्कषश को भभटाने, दीनो की दद
ु श र्ा दे ख उनका उद्धाय कयने , धभश का उद्धाय कयने आदद भें
जो उत्साह कभश - ऺेर भें प्रवि
र कयता है, वह वीय यस कहराता है ।
→ वीय यस का स्त्थामी बाव „उत्साह‟ है ।
उिाहरण-
‘‘क्रुद्ध दर्ानन फीस बुजातन सो रै कवऩ यीछ अनी सय फट्टत।
रच्छन तच्छन यतत ककए दृग रच्छ ववऩच्छन के भसय कट्टत॥
भाय ऩछारु ऩुकाये दह
ु ू ॉ दर, रुडड झऩट्दट दऩट्दट रऩट्टत।
रुडड रयै बट भत्थतन रुट्टत जोचगतन खतऩय ठट्टतन ठट्टत॥’’
स्त्थामी बाव = उत्साह
आरॊफन = यीछ तथा वानय
उद्दीऩन = वानयों की ववभबन्न रीराएॉ
अनब
ु ाव = ‘नेरों का रार होना, र्रओ
ु ॊ के भसय को काटना’
सॊचायी = ‘उग्रता, अभषश’ आदद।
1. चढ़ चेतक ऩय तरवाय उठा कयता था बूतर ऩानी को भत झुको अनम ऩय ,बरे व्मोभ पट जाए ।
याणा प्रताऩ सय काट-काट कयता था सपर जवानी को दो फाय नहीॊ मभयाज कॊठ धयता है ,
2. भानव सभाज भें अरुण ऩड़ा जर जॊतु फीच हो वरुण ऩड़ा भयता है जो, एक ही फाय भयता है ।
इस तयह बबकता याजा था , भन सऩों भें गरुण ऩड़ा तभ
ु स्त्वमॊ भयण के भख
ु ऩय चयण धयो ये !
3. क्रुद्ध दर्ानन फीस बज
ु ातन सो रै कवऩ रयद्द अनी सय फट्ठत जीना हो तो भयने से नहीॊ डयो ये !
रच्छन तच्छन यतत ककमे , दृग रच्छ ववऩच्छन के भसय कट्टत 9. साजज चतयु ॊ ग सैन अॊग भें उभॊग धारय
4. भाता ऐसा फेटा जातनमे सयजा भसवाजी जॊग जीतन चरत हैं।
कै र्ूया कै बतत कहाम बूषन बनत नाद त्रफहद नगायन के
5. हभ भानव को भत
ु त कयें गे , मही ववधान हभाया है नदी नाद भद गैफयन के यरत हैं।।
बायत वषश हभाया है ,मह दहॊदस्त्
ु तान हभाया है
10. भैं सत्म कहता हूॉ सखे सकु ु भाय भत जानो भझ ु े,
6. साभने दटकते नहीॊ वनयाज , ऩवशत डोरते हैं,
मभयाज से बी मुद्ध भें प्रस्त्तत
ु सदा भानो भुझे ,
कौतता है कुडडरी भाये सभम का व्मार
है औय कक तो फात तमा गवश भैं कयता नहीॊ ,
भेयी फाॉह भें भारुत, गरुण, गजयाज का फर है
भाभा तथा तनज तात से बी मुद्ध भें डयता नहीॊ।
7. वह खन
ू कहो ककस भतरफ का
जजसभें उफार का नाभ नहीॊ ।
11. फुॊदेरों हयफोरो के भुह हभने सुनी कहानी थी
वह खन
ू कहो ककस भतरफ का खफ
ू रड़ी भयदानी वह तो झाॉसी वारी यानी थी ।
आ सके दे र् के काभ नहीॊ ।
8. छोड़ों भत अऩनी आन , सीस कट जाए ,
12
रौद्र रस :-
क्रोध नाभक स्त्थामी बाव जफ अनुचचत कामों, र्रु अथवा ववयोधी की अनुचचत चेष्टाओॊ के कायण उत्ऩन्न
होता है , तफ वहाॉ यौद्र यस होता है इसका स्र्ायी भाव ‘क्रोध‟ है ।
उिाहरण-
‘‘श्रीकृष्ण के सुन वचन अजन
ुथ ऺोभ से जऱने ऱगे ।
सब शोक अऩना भूऱकर र्ऱ युगऱ मऱने ऱगे ।
सॊसार िे खें अब हमारे शत्रु रण में मर्
ृ ऩडे ।
करर्े हुए यह घोषणा वह हो गए उठ खडे ।।’’
आरॊफन अभबभन्मु के वध ऩय कऩटी, दयु ाचायी, अन्माम को योका हषश प्रकट कयना है
उद्दीऩन श्री करष्ण के वचन
अनब
ु ाव अजन
ुश के वातम ऺोफ से जरना, आॊखें रार होना, हाथों को भरना
सॊचायी बाव उग्रता, आवेद ,चऩरता ,आदद ।
1. उस कार भाये क्रोध के तनु काॉऩने उनका रगा। दयू कयो ततन त्रफना ववचाये , सदा यहो वप्रम सुखी सुखाये ।।
भानो हवा के वेग से सोता हुआ सागय जगा
9. "गौतभ' यौद्र रूऩ न बाए , फद नेकी अनुरूऩदह छाए
2. अततयस फोरे वचन कठोय धयभ कयभ भॊर्ा गुन गाए याग ववयाग सभझ जफ आए।।
13
भयानक रस :-
जफ बम जैसी स्त्थामी बाव, ववबाव अनुबाव से सॊमोग कयते हैं, तो भयानक रस होता है । जैसे –
र्ेय, चीता, अजगय, फभरष्ठ, तनजशन मा बमानक दृजष्ट से इत्मादद से बम का सॊचाय होता है । इसका
स्त्थामी भाव ‘भय‟ है ।
उिाहरण-
एक और अजगरही ऱाखी एक और मग
ृ राही
ववकि बिोही बीच ही ऩरयो मूरर्ा खाई ।।
भयानक रस का उिाहरण -
1. उधय गयजती भसॊधु रहरयमाॉ 5. हम–रूडड चगये ¸गज–भुडड चगये¸
कुदटर कार के जारों सी। कट–कट अवनी ऩय र्ुडड चगये ।
चरी आ यहीॊ पेन उगरती रड़ते – रड़ते अरय झुडड चगये¸
पन पैरामे व्मारों सी। बू ऩय हम ववकर त्रफतड
ु ड चगये ।।
6. चचॊग्घाड़ बगा बम से हाथी¸
2. आज फचऩन का कोभर गात रेकय अॊकुर् वऩरवान चगया।
जया का ऩीरा ऩात ! झटका रग गमा¸ पटी झारय¸
चाय ददन सख
ु द चाॉदनी यात हौदा चगय गमा¸ तनर्ान चगया।।
औय कपय अन्धकाय , अऻात !
7. कोई नत – भुख फेजान चगया¸
कयवट कोई उिान चगया।
3. अखखर मौवन के यॊ ग उबाय, हड्डडमों के दहराते
कॊकार यण – फीच अभभत बीषणता से¸
कचो के चचकने कारे, व्मार, केंचर
ु ी, काॉस, भसफाय रड़ते – रड़ते फरवान चगया।।
8. ऺण बीषण हरचर भचा–भचा
4. हाहाकाय हुआ क्रन्दन भम, कदठन वज्र होते थे चयू ,
याणा – कय की तरवाय फढ़ी।
हुमे ददगन्त फधीय, बीषण यव होता था, फाय-फाय, क्रूय
था र्ोय यतत ऩीने को मह
यण – चडडी जीब ऩसाय फढ़ी।।
14
वीभवस रस :-
जहाॉ तघनौने ऩदाथश को दे खकय ग्रातन उत्ऩन्न हो, वहाॉ वीबत्स यस होता है;
जैसे – मुद्ध के ऩश्चात चायों ओय र्व त्रफखये हों, अॊग आदद कटकय चगये हों, चगद्ध औय कौए र्व को नोच
यहे हों। इसका स्र्ायी भाव ‘जुगुप्सा’ है ।
उिाहरण-
‘‘सुबट-सयीय नीय-चायी बायी-बायी तहाॉ,
सयू तन उछाहु , कूय कादय डयत हैं ।
पेकरय -पेकरय पेरु पारय-पारय ऩेट खात,
काक - कॊक फारक कोराहरु कयत हैं।’’
स्त्थामी बाव = उत्साह
आश्रम = कवव का रृदम
आरॊफन = इसभें वीयों के ऺत-ववऺत र्व
उद्दीऩन = र्व की दयु ावस्त्था, तघसटना ,ऩेट पटना
अनुबाव = उछाह , कूय कादय का डयना, फेकयना औय काक तथा कॊक के फारकों का कोराहर
कयना
सॊचायी = पेकय - पेकय कय ऩेट पाड़ना औय जीव-जन्तओ
ु ॊ भें र्व को हचथमाने की भायाभायी
,
उनका करह - कोराहर आदद।
15
अद्भर्
ु रस :-
जहाॉ ऩय चककत कय दे ने के दृश्म मा प्रसॊग के चचरण से यस उत्ऩन्न होता है, वहाॉ अद्भर्
ु रस होता है ।
इसका स्र्ायी भाव ‘आश्चयथ’ है ।
1. दे खी मर्ोदा भर्र्ु के भख
ु भें सकर ववश्व की भामा।
ऺण बय को वह फनी अचेतन दहत न सकी कोभर 4. चचत अभर कत बयभत यहत कहाॉ नहीॊ फास।
2. अखखर बुवन चय- अचय सफ 5. दे खयावा भातदह तनज अदबुत रूऩ अखडड ,
हरय भुख भें रखख भात।ु योभ योभ प्रतत रगे कोदट-कोदट ब्रह्भाडड।
16
शाॊर् रस :-
जहाॉ सॊसाय के प्रतत उदासीनता के बाव का वणशन ककमा गमा हो, वहाॉ र्ाॊत यस होता है ।
इसका स्र्ायी भाव ‘ननवेि’ है ।
शाॊर् रस का उिाहरण -
भन ऩछतदहह अवसय फीते। हाम! भभरेगा भभट्टी भें वह वणश सुवणश खया
दर
ु ब
श दे दह ऩाई हरय ऩद। सुख जावेगा भेया उऩवन जो है आज हया
बजु कयभ असदहते।। रम्फा भायग दरू य घय ववकट ऩॊथ फहुभाय
चऱर्ी चाकी िे खकर टिया कबीरा रोय , कहौ सॊतो तमुॉ ऩाइए दरु ब
श हरय दीदाय
िय
ु ै ऩािन के बीच में साबुर् बचा न कोय।
भन ये तन कागद का ऩुतरा
जफ भै था तफ हरय नादहॊ अफ हरय है भै नादहॊ रागै फॉद
ू ववनभस जाम तछन भें गयफ कयै तमों इतना।
सफ अॉचधमाया भभट गमा जफ दीऩक दे ख्मा भादहॊ
'तऩस्त्वी! तमों इतने हो तराॊत ,
दे खी भैंने आज जया वेदना का मह कैसा वेग ?
हो जावेगी तमा ऐसी भेयी ही मर्ोधया आह! तभ
ु ककतने अचधक हतार्
फताओ मह कैसा उद्वेग ?
17
बया था भन भें नव उत्साह सीख रॉ ू रभरत करा का ऻान
इधय यह गॊधवों के दे र् , वऩता की हूॉ तमायी सॊतान।
वावसल्य रस :-
अऩने से छोटे के प्रतत स्त्नेह बाव का चचरण होने ऩय वावसल्य रस होता है । इसका स्र्ायी भाव ‘स्नेह’ है ।
उिाहरण-
चरत दे खख जसभ
ु तत सख
ु ऩावै।
ठुभकक-ठुभकक ऩग धयतन यें गत, जननी दे खख ददखावै।
दे हरय रौं चभर जात, फहुरय कपरय-कपरय इतदहॊ कौ आवै।
चगरय-चगरय ऩयत,फनत नदहॊ राॉघत सुय -भतु न सोच कयावै।
स्त्थामी बाव = वत्सरता
आश्रम = मर्ोदा भैमा का रृदम
आरॊफन = श्रीकरष्ण
उद्दीऩन = घुटनों के फर चरना , अऩनी ऩयछाॊई ऩकडने की चेष्टा कयना ,ककरकायी भाय
कय हॉसना
अनुबाव = खर्
ु होना , दस
ू यों को दे खाना, फाय-फाय नन्द फाफा को फुरा राना
सॊचायी = ठुभकना , ककरकायी , चऩरता आदद।
वावसल्य रस का उिाहरण-
18
भब्तर् रस :-
जहाॉ ईश्वय के प्रतत प्रेभ बाव का वणशन ककमा गमा हो, वहाॉ भब्तर् रस है ।
उिाहरण-
19
प्रश्न प्रारूऩ -
1: वीबत्स यस का स्त्थामी बाव तमा है ? भानो हवा के जोय से, सोता हुआ सागय जगा।
2: ‘बाव जजसके हदम भें यहते है’ उसे कहते है ? इन ऩॊजततमों भें कौन सा यस है ?
3: ककस यस को यसयाज कहाजाता है ? 12: सॊचायी बावो की सॊख्मा ककतनी हैं ?
.4: भन ये तन कागद का ऩुतरा ।
13: वप्रम ऩतत वह भेया प्राण तमाया कहाॉ है,
रागै फॉद
ू त्रफनभस जाम तछन भें,
दख
ु जरतनचध डूफी का सहाया कहाॉ है
गयफ कये तमा इतना ।।
इन ऩॊजततमों भें कौन सा यस है ?
इन ऩॊजततमों भें कौन-सा यस है ?
भन की उततत वेदना, भन ही भन भें फहती
5:करुण यस का स्त्थामी बाव तमा है ? 14:
थी।
6: र्ान्त यस का स्त्थामी बाव है ?
चऩ
ु यहकय अॊतभशन भें कुछ कुछ भौन व्मथा
7: जुगुतसा का स्त्थामी बाव है ?
कहती थी।।
8: वीय यस का स्त्थामी बाव है ?
इन ऩॊजततमों भें कौन सा यस है ?
9: ववस्त्भम स्त्थामी बाव ककस यस से सॊम्फॊध यखता है
? 15: भेये तो चगरयधय गोऩार दस
ु यो न कोई।
10:सॊचायी बावो की सॊख्मा ककतनी हैं ? जाके भसय भोय भक
ु ु ट भेयो ऩतत सोई।।
11:उस कार भाये क्रोध के, तन काॊऩने उसका रगा । इस ऩॊजततमो कौन-सा यस है ?
20