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हनुमान मन्दिर में चढ़ा दें तो उसका कार्य सिद्ध हो जाता है ।

मंत्र

।। ॐ हुं हुं हसौं हस्फ्रौं हुं हुं हनुमते नमः ।।

सावधानियाँ-

'मार्च' 2016

बैठ जाए तथा सामने चौकी पर तेल का दीपक जलाकर

हनुमान शक्ति युक्त 'शत्रह


ु न्ता यंत्र' स्थापित करें , तत्पश्चात ्

मूंगा माला से निम्न मंत्र की 11 माला मंत्र जप करें ।

मंत्र

॥ ॐ हुं हुं हनुमते शत्रद


ु ारिण्यै हुं हुं फट् ॥

(Om Hoom Hoom Hanumamate

Shatrudarinyei Hoom Hoom Phat)

'26'

सामग्री न्यौछावर ₹360

हिम्मत, साहस प्राप्ति हे तु

परिस्थितियों में अविचलित भाव से खड़े रहने की

हिम्मत और साहस केवल गुरु कृपा और साधना के माध्यम

से ही सम्भव है । जीवन में कई बार ऐसी घटनाएं भी घटती

हैं, जिनसे व्यक्ति विचलित हो जाता है । तथा उस समय

विशेष में उचित और अनुचित निर्णय लेने का सामर्थ्य प्राप्त

नही कर पाता है । राम नवमी अथवा किसी भी मंगलवार को

प्रातः 5 से 8 के मध्य अपने पूजा स्थान में भयमुक्ति स्वरूप

नवार्ण यंत्र को स्थापित कर संक्षिप्त पूजन करें निम्न मंत्र की व्यक्ति को दै वीय शक्तियों का उपयोग करना चाहिए।
जीवन
जीवन है तो बाधाएं आती रहती हैं। ऐसी स्थिति में

माला 6 दिन तक हनुमान शक्ति माला से जाप करें ।

मंत्र

सर्व बाधा निवारण हे तु

में प्रत्येक बाधा पर विजय श्री की प्राप्ति करना ही श्रेष्ठ

साधक का लक्षण होता है । रामनवमी या किसी भी शनिवार

को दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर काले आसन पर बैठें।

सामने किसी पात्र में बाधा निवारण यंत्र को स्थापित करके

स्नान, तिलक, धूप, दीप एवं पुष्प से पूजन करें । इसके बाद

'शत्रु माला' से निम्न मंत्र की 9 माला जप करें ।

मंत्र

॥ ॐ हुं हनुमते बाधा निवारणाय हुं फट् ॥

Om Hoom Hanumate Badha Nivarnayei

Hoom Phat

सामग्री न्यौछावर ₹350

दीर्घायु जीवन प्राप्ति हे तु

आप अपनी बीमारी का इलाज करवा कर थक चुके

हैं। फिर भी आपका रोग किसी को समझ नहीं आ रहा है तो

आप 'महामत्ृ युजय
ं यंत्र' को किसी वस्त्र में बांध कर बायें

हाथ की मुट्ठी में बंद कर उत्तर दिशा की ओर मुंह कर निम्न

मंत्र की 4 माला 5 दिन तक आरोग्यता माला से जप करें ।

मंत्र

साक्षात ् उसके साथ रहते है , हर विपत्ति एवं कठिनाई म


उसकी परू ी सहायता करते हैं, जीवन में ऐसा साधक किसी

के सामने झुकना एवं गिड़गिड़ाना नहीं जानता सदा बुलन्द

संकल्पों के साथ ही जीना उसका कल्याणमयी जीवन

शही दिला साधना का

॥ ॐ ह्रौं जूं सः क्रीं रोगनाशाय क्रीं फट् ॥

(Om Hroum Joom Sah Kreem Rognashaay

Kreem Phat)

सामग्री न्यौछावर ₹360

सौन्दर्य में वद्धि


ृ हे तु

जानकी गौरी का स्वरूप ही यौवनमय, कान्तिमय

तथा प्रणय से ओत-प्रोत है । प्रेम जीवन का आधारभूत सत्य

है । वह जीवन अधूरा होता है । जहां जीवन में प्रेम वर्षा नहीं

होती। दर्गा
ु अष्टमी अथवा किसी भी सोमवार को पूर्व की

ओर मुख करके बैठ जाएं। गुरू और गणपति पूजन कर। एक

ताम्रपात्र में चावल ढे री पर 'अप्सरा सौन्दर्य यंत्र' को

स्थापित कर संक्षिप्त पूजन करें । इसके पश्चात ् निम्न मंत्र का

7 दिन तक 6 माला 'अप्सरा माला' जप करें ।

मंत्र

॥ ॐ ह्रीं श्रीं गौर्ये सौन्दर्य प्राप्यर्थे दे हि दे हि फट् ॥

(Om Hreem Shreem Gaury Soundariy

Prapyarthe Dehi Dehi Phat)

सामग्री न्यौछावर ₹390

www.pmyv.org
॥ ॐ क्रीं क्लीं बाधा शमनाय हुं फट् ॥

(Om Kreem Kleem Badha

Shamnaay Hoom Phat)

सामग्री न्यौछावर ₹380

पौरूषता शक्ति प्राप्ति हे तु

जीवन में निरन्तर आनन्द रस बरसता रहे । कामदे व

शक्ति से ही गह
ृ स्थ जीवन में सज
ृ न का कार्य होता है , काम

के माध्यम से व्यक्ति सांसारिक जीवन का विकास सही

स्वरूप में कर पाता है । साधक 17 अप्रैल या किसी भी

शुक्रवार से सम्पन्न करे , सामने बाजोट पर पीला वस्त्र

प्राचीन मंत्र-यंत्र विज्ञान

॥ अथ प्रसन्न वरदा श्री लक्ष्मीस्तोत्रम ् ॥

मातर्महालक्ष्मि संसारार्णवतारिणि ॥१॥

जय पद्मपलाशाक्षि जय त्वं श्रीपतिप्रिये । जय

महालक्ष्मि नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वरि । हरिप्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे ॥२॥

वसुवष्टि
ृ ं सदा कुरु ॥ ३ ॥

पद्मालये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं च सर्वदे । सर्वभूतहितार्थाय

जगन्मातर्नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे । दयावति नमस्तुभ्यं विश्वेश्वरि नमोस्तु ते ॥४॥

नमः क्षीरार्णवसुते नमस्त्रैलोक्यधारिणि । वसुदृष्टे नमस्तुभ्यं रक्ष मां शरणागतम ् ॥५॥

रक्ष त्वं दे व दे वेशि दे वदे वस्य वल्लभे । दरिद्रात्राहि मां लक्ष्मि कृपां कुरु ममोपरि ॥६॥

नमस्त्रैलोक्यजननि नमस्त्रैलोक्यपावनि । ब्रह्मादयो नमन्ते त्वां जगदानन्ददायिनि ॥७॥

विष्णुप्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं जगद्धिते । आतिहन्त्रि नमस्तुभ्यं समद्धि


ृ ं कुरु मे सदा ॥ ८ ॥

अब्जवासे नमस्तुभ्यं चपलायै नमो नमः । चञ्चलायै नमस्तुभ्यं ललितायै नमो नमः ॥९॥
नमः प्रद्युम्नजननिमातस्तुभ्यं नमो नमः । परिपालय भो मातर्मातुभ्यं शरणागतम ् ॥१०॥

शरण्ये त्वां प्रपन्नोऽस्मि कमले कमलालये । त्राहि-त्राहि महालक्ष्मि परित्राण परायणे ॥ ११ ॥

पाण्डित्यं शोभते नैव न शोभन्ति गुणा नरे । शीलत्वं नैव शोभेत महालक्ष्मि त्वया विना ॥ १२ ॥

तावद्विराजते रूपं तावच्छील विराजते । तावद्गुणा नराणाञ्च यावल्लक्ष्मी प्रसीदति ॥१३॥

लक्ष्मित्वयालंकृतमानवा ये पापैर्विमुक्ता नप
ृ लोकमान्याः ।

गुणैर्विहीना गुणिनो भवन्ति दःु शीलिनः शीलवतां वरिष्ठाः ॥१४॥

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