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त्राटक

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त्राटक

योगी आनन्द जी

त्राटक एक ऐसा विज्ञान है, वजसका


आवदकाल से लेकर आजतक युद्ध के क्षेत्र
में, अध्यात्म के क्षेत्र में और साांसाररक
व्यिहार में कुशलता के साथ प्रयोग हुआ है।

त्राटक 1
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© लेखक
योगी अनन्द जी

anandkyogi@gmail.com
http://www.kundalinimeditation.in/
http://www.youtube.com/c/YogiAnandJiSahajDhyanYog
https://www.fb.com/sahajdhyanyog/

त्राटक 2
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योगी आनन्द जी

त्राटक 3
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विषय सूची
क्र.सां नाम पृष्ठ
1. प्रस्तावना 6
2. ननवेदन 7
भाग-1
3. त्राटक का महत्त्व 10
4. वततमान में त्राटक के प्रयोग 17
5 त्राटक का प्रभाव 27
भाग-2
6. त्राटक का ऄभ्यास 36
7. नबन्दु पर त्राटक 37
8 देवता के नित्र पर त्राटक 42
9. ॎ के नित्र पर त्राटक 44
10. लौ पर त्राटक 45
11. दपतण पर त्राटक 48
12. पेड़ पर त्राटक 50
13. िन्रमा और तारों पर त्राटक 51
14. सयू त पर त्राटक 54
भाग-3
15. त्राटक का ऄच्छा ऄभ्यासी कै से बने 60
16. मागतदर्तक का होना ऄनत अवश्यक 69
17 त्राटक र्न‍त का प्रयोग कै से करें 71
भाग-4
18. त्राटक द्रारा िक्रों को खोलना 79
19. त्राटक द्रारा नसनि प्राप्त होना 81
20 त्राटक द्रारा भतू -प्रेत बाधाओ ं को दरू करना 84
21. त्राटक द्रारा नवनभन्न प्रकार के रोग दरू करना 86
22. त्राटक द्रारा ध्यान में र्ीघ्र सफलता 88

त्राटक 4
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23. त्राटक के द्रारा साधकों का मागतदर्तन 90


24. त्राटक द्रारा कुण्डनलनी जाग्रत करना 92
25. त्राटक के ऄभ्यास द्रारा अँखों का तेजस्वी होना 95
26. त्राटक द्रारा स्मरण र्न‍त का बढ़ना और मनस्तष्क का नवकास 97
27. ऄभ्यास के बाद अँखों पर ठण्डे पानी के छींटे 99
28. भीड़ पर त्राटक का प्रयोग 101
29. त्राटक का ऄभ्यास करते समय मन्त्र जाप नहीं करना िानहए 102
30. ब्रह्मिारी द्रारा त्राटक का प्रयोग 104
31. त्राटक के ऄभ्यास से नदव्य दृनि को खोलना 105
32. त्राटक के ऄभ्यास से रक्तिाप सन्तनु लत होना 106
33. त्राटक द्रारा वायु नवकार (वात) को कम करना 107
34. त्राटक र्न‍त का प्रयोग पर्-ु पनियों पर 107
35. गभातवस्था में त्राटक का ऄभ्यास न करें 109
36. त्राटक के ऄभ्यास का कामवासना पर प्रभाव 110
37. सम्मोनहत हुअ व्यनक्त ऄपना बिाव कै से करे 111
38. रानत्र के समय ऄभ्यास न करें 113
39. स्तम्भन नक्रया का नसि होना 114
40. त्राटक के द्रारा स्थल ू पदाथों को प्रकट करना 115
41. त्राटक द्रारा नकारात्मक सोि को बदलना 116
42. त्राटक द्रारा कायत करने के नलये योगबल का होना अवश्यक 118
43. छायापरुु ष पर त्राटक का ऄभ्यास करना 119
भाग-5
44. पवू कत ाल में त्राटक का प्रयोग 121
45. त्राटक द्रारा भगवान र्क ं र का कामदेव को भस्म करना 121
46 बानल द्रारा त्राटक का बार-बार प्रयोग करना 122
47. त्राटक द्रारा मिु कुन्द का कालयवन को जलाकर भस्म करना 123
48. गान्धारी ने त्राटक के द्रारा ऄपने पत्रु का र्रीर वज्र जैसा बना नदया 124
49 व्यास जी द्रारा त्राटक का प्रयोग 125
50. लेख के ऄतं में 127

त्राटक 5
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प्रस्तािना
आस पस्ु तक में मैंने त्राटक के नवषय में गहराइ व नवस्तार से बताने का प्रयास नकया है। त्राटक के प्रयोग के
नवषय में मैंने कइ वषों तक कठोर ऄभ्यास करते हुए जो र्ोध नकया है, ईन बहुत सी बातों की स्पि रूप से जानकारी
दी गयी है। आस नवद्या का कोइ दरुु पयोग न कर सके , ईस जगह पर मेरी लेखनी ठहर गयी है। त्राटक की गप्तु नवनधयाँ गरुु -
नर्ष्य परम्परा के ऄन्तगतत योग्य नर्ष्य को ही बतायी जाती हैं, आस मयातदा का ध्यान रखा गया है। त्राटक नवषय पर
नलखने का मेरा ईद्देश्य यही है नक ऄधरू े व भ्रनमत साधकों को आस नवषय में बारीकी व ऄच्छे ढंग से समझ में अ जाएँ।
आसके नलए कै से ऄभ्यास करें , ऄभ्यास में साधक कै से ऄपने अपको पररप‍व बनाएँ, तथा त्राटक का प्रयोग नकस
प्रकार से करें , आसे मैंने ऄपने ऄभ्यास और ऄनभु नू तयों के ऄनसु ार समझाया है। सत्य तो यह है नक मैं त्राटक के बल पर
ही सम्पणू त अध्यानत्मक कायत ऄपनी आच्छानसु ार दरू बैठ कर ही करता ह।ँ हम िाहते हैं नक आस दल ु तभ और गप्तु नवद्या
का अप भी ऄभ्यास करें और पणू त रूप से ननपणु व पारंगत होकर दसू रों का भी कल्याण करें ।
बड़े गवत की बात है नक आस नवद्या की खोज और नवकास पूवक त ाल में हमारे ही देर् के ऊनषयों, मनु नयों और
योनगयों ने की थी। बहुत समय बीतने के बाद आस नवद्या का महत्त्व सम्पणू त नवश्व ने जाना और ईसे ऄपना कर दसू रों को
लाभ भी प्रदान कर रहे हैं। मगर अजकल बहुत से ऄभ्यासी नबना मागतदर्तक के ही ऄभ्यास करना र्रुु कर देते हैं तथा
थोड़ा सा ऄभ्यास करके नसनियाँ प्राप्त करने की आच्छा व र्रीर में नस्थत समस्त िक्र कै से खल ु ें, के प्रयास में लगे रहते
हैं मगर ऄन्त में ऄसफल होने पर दःु ख की ऄनभु नू त करते हैं। आन सबका ननवारण आस लेख में ऄच्छे ढगं से नकया गया
है। त्राटक द्रारा नवनभन्न प्रकार के कायत करना, र्न‍तपात करना, दसू रों का मागतदर्तन करना, ऐसे कायत करने की योग्यता
नकतनी होनी िानहए, यह स्पि रूप से आस पस्ु तक में बताया गया है।
त्राटक एक ऐसा नवज्ञान है नजसका पवू क त ाल में ऊनष, मनु न व मनष्ु य ही नहीं बनल्क देवता अनद भी प्रयोग
नकया करते थे। आसका प्रयोग कहीं पर अर्ीवातद के रूप में, कहीं पर यि ु के समय में, कहीं पर संहार के रूप में नकया
गया है। आस नवज्ञान में नजसने नजतनी पारंगता प्राप्त कर ली, ईसने समय ऄनसु ार वैसा ही प्रयोग नकया। ऄभ्यासी का
अध्यानत्मक जीवन कै से ईन्ननत ईन्मख ु हो, यह भी आस पस्ु तक में बताया गया है। अप भी त्राटक का ऄभ्यास करके
ऄपने को श्रेष्ठ बनाएँ, यही मेरा सभी को अर्ीवातद है।
-योगी आनन्द जी

त्राटक 6
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वनिेदन
नप्रय पाठकों! त्राटक पर पस्ु तक नलखने से पहले मैंने तीन पस्ु तकें और नलखी है, नजनको पाठकों ने बहुत ही
पसन्द नकया है। मेरी पहली पस्ु तक ‘सहज ध्यान योग’, दसू री ‘योग कै से करें’ और तीसरी ‘तत्त्िज्ञान’ है। ‘सहज
ध्यान योग’ और ‘योग कै से करें ’, ये दोनों पस्ु तकें सन् 1999 में नलखी थी। तीसरी पस्ु तक ‘तत्त्वज्ञान’ सन् 2010 में
नलखी थी। आन पस्ु तकों को नलखने की प्रेरणा मझु े अनद गरुु र्क ं रािायत जी ने दी थी। पहले मैंने र्क
ं रािायत जी से
प्राथतना करते हुए कहा– ‚प्रभ,ु हमारे ऄन्दर आतनी योग्यता नहीं है नक मैं योग पर लेख नलख सकँू , योग पर लेख नलखने
के नलये योग में पररपणू त होना अवश्यक है।‛ र्क ं रािायत जी बोले– ‚अप, ऄपने अपको ऄयोग्य ‍यों समझते हो, तमु
लेख नलखना र्रुु कर दों, तम्ु हारे ऄन्दर नलखने की िमता स्वमेव अ जायेगी, भनवष्य में योग के नवषय में पररपणू त हो
जाओगे, मेरा अर्ीवातद तम्ु हारे साथ है।‛ मैंने योग पर लेख नलखना र्रुु कर नदया। लेख सन् 1994 में नलखना र्रुु कर
नदया था। लगभग 4-5 वषों में मैंने दोनों लेख ‘सहज ध्यान योग’ और ‘योग कै से करें ’ नलखकर पणू त कर नलये। दोनों
लेख नलखने के बाद मझु े मालमू हुअ नक ऄभी योग पर लेख परू ा नहीं नलख पाया ह।ँ योग पर परू ा लेख नलखने के
नलये ऄभी एक और लेख नलखना अवश्यक है। ईस लेख को नलखने के नलए मझु े आन्तजार करना होगा, ‍योंनक
तीसरा लेख तत्त्वज्ञान पर नलखना िाहता था। ईस समय तत्त्वज्ञान पर नलखने की मेरी योग्यता नहीं थी, ‍योंनक तब मझु े
तत्त्वज्ञान प्राप्त नहीं हुअ था। मझु े मालमू था नक आस योग्यता को प्राप्त करने के नलए कइ वषत लग जाएगं ।े कोइ भी
ऄभ्यासी आस तरह प्रतीिा नहीं कर सकता है और यह भी नहीं कह सकता है नक तत्त्वज्ञान प्राप्त करने में नकतने वषत
लग जाएगं ,े ‍योंनक तत्त्वज्ञान प्राप्त होना ऄभ्यासी की वर् की बात नहीं होती है। तत्त्वज्ञान हर एक ऄभ्यासी को प्राप्त
नहीं होता है, ‍योंनक तत्त्वज्ञान नकसी भी ऄभ्यासी को ऄनन्तम जन्म में प्राप्त होता है। मगर मझु े मालमू था नक तत्त्वज्ञान
मझु े आसी जन्म में प्राप्त होगा। आसनलए तत्त्वज्ञान प्राप्त होने का आन्तजार करने लगा। ऄब मैं कठोर ऄभ्यास में लग गया,
‍योंनक मझु े पता था नक जब तक मैं ऄत्यन्त कठोर ऄभ्यास नहीं करूँगा, तब तक तत्त्वज्ञान प्राप्त नहीं होगा। संयम व
कठोर ऄभ्यास के कारण कुछ समय बाद तत्त्वज्ञान प्राप्त होने लगा ऄथातत् हमारे नित्त में ऊतम्भरा का प्राकट्य होना
र्रुु हो गया। आसके (प्रज्ञा) प्रकार् में हमारे नित्त पर नस्थत ऄज्ञानता नष्ट होने लगी। लगभग 10 वषत के कठोर ऄभ्यास
के बाद मझु े ऐसा लगा नक ऄब मैं तत्त्वज्ञान पर लेख नलख सकता ह।ँ तब मैंने सन् 2010 में तत्त्वज्ञान पर लेख नलखना
र्रुु कर नदया। एक वषत में यह लेख परू ा हो गया। लेख परू ा नलखने के बाद मझु े ऐसा लगा नक हमने योग पर सि ं ेप में
लेख परू ा नलख नलया है, ऄब मझु े लेख नलखने की अवश्यकता महससू नहीं हो रही है। आसीनलए मैंने ननश्चय कर नलया
नक ऄब मझु े और नलखने की अवश्यकता नहीं है, ‍योंनक सहज ध्यान योग के नवषय में र्रुु अत से लेकर ऄन्त तक
सब कुछ नलखने का प्रयास नकया है; मैंने सभी को बता नदया नक ऄब मैं भनवष्य में और लेख नहीं नलखँगू ा।
मैंने ऄपने अपको लेखन कायत से मक्त ु समझ नलया, ‍योंनक तत्त्वज्ञान पर ऄपनी ऄनभु नू त के ऄनसु ार लेख
नलख िकु ा ह,ँ ऄब नलखने के नलये कुछ नया नहीं रह गया है, ऐसा मैंने समझ नलया तथा मेरी आच्छा भी नकसी नवषय
पर नलखने के नलये नहीं रह गयी। प्रकृ नत के कहने पर मैं पाँि साधक बना देने के नलये ईच्ि नर्िा प्राप्त कुछ

त्राटक 7
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नवयवु कों का मागतदर्तन करने लगा। मैंने पहले ही ननश्चय कर नलया था नक मैं अश्रम नहीं िलाउँगा और न ही ज्यादा
साधकों का मागतदर्तन करूँगा। मात्र कुछ साधकों को कठोरता के साथ संयम व ऄभ्यास करवाता हुअ ईनका
मागतदर्तन करने लगा। सन् 2015 में कुछ साधकों ने मझु से ननवेदन नकया– ‚गरुु जी, ‍यों न कुछ नवनडयो बना कर के य-ू
ट्यबू पर ऄपलोड कर नदए जायें, आससे समाज में बहुत से साधकों का कुछ न कुछ कल्याण ऄवश्य होगा।‛ मैंने
र्रुु अत में ईन साधकों की बात पर कोइ खास गौर नहीं नकया, नफर कुछ नदनों बाद साधकों ने मझु से एक नदन कहा–
‚गरुु जी, अप कृ पया एक नवनडयो देख लीनजए, आस नवनडयो में एक संत जी कुण्डनलनी के नवषय में ‍या कह रहे हैं।‛
साधकों के कहने पर मैं नवनडयो देखने के नलये तैयार हो गया। वह नवनडयो कुण्डनलनी पर था। एक संत जी कुण्डनलनी
के नवषय में कुछ गलत ढंग से बोल रहे थे। ईनके र्ब्द सनु कर मैं अश्चयतिनकत हो गया नक ये सन्त परुु ष अनदर्न‍त
कुण्डनलनी के नवषय में ऐसे र्ब्द बोल रहे है, आससे समाज के नलये गलत संदर् े जायेगा ऄथातत् कुण्डनलनी र्न‍त के
नवषय में समाज के ऄननभज्ञ लोगों की गलत धारणा बनेगी। मझु े ऐसा लगा नक कम से कम सन्त परुु षों को कुण्डनलनी
के नवषय में समाज को गलत संदर् े नहीं देना िानहए।
कुछ नदनों तक सोिने के बाद मैंने साधकों से कहा– ‚ऄगर तमु लोगों की आच्छा है नक आस नवषय में संसारी
परुु षों को कुण्डनलनी के नवषय में सही रूप से बताने का प्रयास नकया जाना िानहए, तो मैं आसके नलए तैयार ह‛ँ । हाँ, मैं
यह बता दँू नक नजन साधकों का मैं मागतदर्तन कर रहा ह,ँ ईन सभी की कुण्डनलनी जाग्रत होकर उध्वत हो रही है तथा
कुछ साधक ईच्िावस्था को प्राप्त हैं। आसी कारण ईन साधकों ने मझु से ननवेदन नकया था नक मैं कुण्डनलनी के नवषय में
नवनडयो के माध्यम से सत्य बताउँ। मेरी ओर से हाँ होने पर साधकों ने नवनडयो बनाने की व्यवस्था कर दी, नफर कुछ
नवनडयो आस नवषय पर बनाये गये। मैंने साधकों को समझाया– ऄभ्यासी को ऄभ्यास के समय त्राटक का बहुत बड़ा
महत्त्व होता है, आसनलए साधक को त्राटक का ऄभ्यास करना िानहए। त्राटक का ऄभ्यास नसफत साधक के नलये ही
नहीं, बनल्क संसार के समस्त मानव जानत के नलये लाभदायक होता है। कुण्डनलनी के कुछ नवनडयो बनाने के बाद
ननणतय नलया गया नक कुछ नवनडयो त्राटक के नवषय में भी बनाये जाएँ। र्रुु अत में कुण्डनलनी र्न‍त पर ही नवनडयो
बनाने थे, मगर योग के ऄभ्यास में त्राटक की ईपयोनगता के कारण कुछ नवनडयो त्राटक पर भी बनाये गये। साधकों ने
ईन नवनडयो को यू-ट्यबू पर ऄपलोड भी कर नदये। मैंने यह सोिकर नवनडयो बनाये थे नक समाज में सत्य बताने की
कोनर्र् करूँगा। मेंरे द्रारा बताये गये सत्य र्ब्दों का प्रभाव समाज में नजज्ञासुओ ं पर नकतना पड़ेगा, यह भनवष्य
बताएगा।
कुछ नदनों बाद मझु े बताया गया– ‚गरुु जी, अपके सभी नवनडयो को लोग बहुत पसन्द कर रहे हैं‛। महत्त्वपणू त
बात यह है नक कुण्डनलनी र्न‍त के नवनडयो य-ू ट्यबू पर पहले ऄपलोड नकये गये थे, मगर त्राटक के नवनडयो ज्यादा
देखे जा रहे हैं। त्राटक के नवषय में ऄनधकानधक लोग जानना िाहते हैं, तानक ईन्हें सांसाररक और अध्यानत्मक दोनों
प्रकार के लाभ प्राप्त हो सकें । लोगों की ईत्सकु ता देखकर मैंने य-ू ट्यबू और फे सबक ु पर सभी प्रश्नकतातओ ं को ईत्तर देने
का ननणतय नलया। मैं ईनित समय पर नजज्ञासओ ु ं के प्रश्नों के ईत्तर देने लगा। आससे लोगों को ऄपनी समस्यायें सल ु झाने

त्राटक 8
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का लाभ नमलता है, ऐसा मझु े प्रश्नकतातओ ं ने बताया। भारत ही नहीं, नवदेर्ी नजज्ञासओु ं के प्रश्नों के ईत्तर देकर ईनकी
आस नवषय से सम्बनन्धत समस्याओ ं को सल ु झाता रहता ह।ँ बहुत से देर्ों के साधकों द्रारा मझु से प्रश्न नकये गये होंगे, मैंने
सभी को ईनित समय पर ईत्तर भी नदये हैं। कुछ समय तक ऐसा करता रहगँ ा, नफर मझु े आससे ननवृत्त होना होगा। ‍योंनक
मैं एक योगी ह,ँ सब कुछ छोड़ नदया है, मझु े ऄपनी भी साधना करनी होती है। ऐसा लगता है, मैं ऄनधक व्यस्त रहने
लगा ह,ँ मेरी साधना में ऄवरोध अने लगा है, हमारे जैसे योनगयों को आतनी व्यस्तता ईनित भी नहीं है।
त्राटक पर बने हुए नवनडयो साधकों को बहुत पसन्द अने के कारण हमने ननश्चय नकया नक हम लोगों को आस
नवषय पर और भी बारीकी से समझाने का प्रयास करें गे। आसके नलए त्राटक पर हमने और नवनडयो बनाये। आन नवनडयो में
ईन बातों को बताने का प्रयास नकया गया, नजसे त्राटककतात जानने के नलए ईत्सक ु रहते है। लोगों को नवनडयो बहुत
पसन्द अये, हमारे पास बहुत से लोगों के संदर्
े अये और ईन्होंने पछ ू ा– ऄगर अपने त्राटक पर पस्ु तक नलखी है, तो
मझु े बताए, यह पस्ु तक कहाँ से नमलेगी, हम खरीदना िाहते है। मैंने त्राटक पर ऄलग से कोइ पस्ु तक नहीं नलखी थी।
मैंने ऄपनी पहली पस्ु तक ‘सहज ध्यान योग’ में त्राटक के नवषय में 7-8 पेज ही नलखे हैं, आतने कम लेख में आस नवषय
में नवस्तार से नहीं नलखा जा सकता है। बहुत से लोगों ने मझु से कहा– अपने त्राटक के नवषय में नवनडयो में बहुत
ऄच्छा व नवस्तार से समझाया है। आससे साधकों व समाज के लोगों को ननश्चय ही बहुत लाभ नमल रहा है। अप समय
ननकालकर त्राटक के नवषय में लेख नलखने की ऄवश्य कृ पा कीनजये। हम सभी साधकों की ऐसी बड़ी आच्छा है।
नप्रय पाठकों! मैं पहले नलख िुका ह,ँ लेखन कायत तो कुछ वषों पवू त ही समाप्त कर नदया था तथा ननणतय नकया
था– ऄब नकसी नवषय पर लेख नहीं नलखँगू ा। बहुत से साधकों व नजज्ञासओ ु ं के कहने पर ऄब समय ननकाल कर
संिेप में नलखने का प्रयास करूँगा। हाँ, मैं यह बता दँू नक सन् 1991 से लेकर सन् 1997-1998 तक मैंने त्राटक का
बहुत ऄभ्यास नकया है, ऄभ्यास के साथ-साथ मैं त्राटक का प्रयोग भी करता रहता था। आससे मझु े त्राटक के नवषय में
बारीकी से समझने का ऄवसर नमलता था, आसनलए मझु े त्राटक के प्रयोग के नवषय में ऄच्छी तरह से समझने का
ऄवसर नमला। ऄब मैं साधकों को मागतदर्तन करते समय त्राटक का प्रयोग करके र्न‍तपात करता रहता ह।ँ आस पस्ु तक
में त्राटक की बारीनकयों को समझाने का प्रयास करूँगा, तानक साधकगण त्राटक के नवषय में भली-भाँनत पररनित हो
सकें ।

त्राटक 9
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भाग - 1
त्राटक का महत्त्ि
त्राटक एक ऐसा नवज्ञान है, नजसकी खोज और नवकास हमारे ऊनषयों, मनु नयों व तपनस्वयों द्रारा की गयी है।
आस देर् की पनवत्र भनू म पर सदैव से ही योगी परुु ष जन्म लेते रहे है, आसनलए यह देर् योनगयों का देर् कहा गया है।
आन्हीं योनगयों ने ऄभ्यास तथा प्रत्यि प्रमाण के द्रारा स्थल ू पदाथों से लेकर कारण जगत की अनखरी सीमा तक
सक्ष्ू मता से ज्ञान प्राप्त नकया है, ऐसे जीवन्मक्त
ु योगी तत्त्वज्ञानी होते हैं। ऐसे योगी ही ऄभ्यास के द्रारा नवज्ञानमय कोष
का पणू त नवकास कर ऄथातत् नवज्ञानमय कोष की र्रुु से लेकर ऄनन्तम सीमा तक नवकास करके ज्ञान में नस्थत हो सके
हैं, तथा आस सत्य को ईन्होंने ऄपने जीवन में ईतारा है। आस सत्य को जानने के नलए आनके मागत व तरीके अपस में
नभन्न-नभन्न हो सकते हैं, लेनकन ऄन्त में एक ही ऄवस्था पर सभी पहुिँ ते हैं।
त्राटक र्ब्द ‘नत्र’ के साथ ‘टकी बाँधने’ की सनन्ध से बना है। वस्ततु ः र्ि
ु र्ब्द ‘त्र्याटक’ है ऄथातत् जब
साधक नकसी वस्तु पर ऄपनी दृनि और मन को बाँधता है, तो वह नक्रया त्र्याटक कहलाती है, त्र्याटक र्ब्द अगे िल
कर त्राटक हो गया है। दसू रे र्ब्दों में त्राटक का ऄथत है– नकसी पदाथत या वस्तु को नबना पलक झपकाए टकटकी
लगाये देखते रहना। प्रत्येक प्राणी का सामान्य स्वभाव होता है नक जब तक वह जाग्रत ऄवस्था में रहेगा, तब तक वह
ऄवश्य ही पलकें झपकाता रहेगा। कोइ भी प्राणी लगातार नबना पलक झपकाए नकसी पदाथत या दृश्य को नहीं देख
सकता है, तानक अँखों की बाहरी परत पर वायु के झोंकों या वायु का प्रभाव न पड़े। पलक झपकाने से अँखों की
बाहरी परत नम बनी रहती है, आससे अँखों की सरु िा रहती है तथा वायु में नवद्यमान सक्ष्ू म धल ू कणों से बिाव भी
होता है।
अँखों की पलकें बार-बार ऄपने अप झपकती रहती हैं। पलकें झपकाने का कायत र्रीर में नस्थत प्राण ऄपने
अप करता रहता है। भौनतक र्रीर में व्यवस्थापवू क त नक्रया होने की नजम्मेदारी प्राण की ही होती है। सम्पणू त ब्रह्माण्ड में
व भौनतक र्रीर में व्याप्त एक ही प्राण तत्त्व होता है। यह प्राण तत्त्व स्थल ू रूप व सक्ष्ू म रूप से सवतत्र व्याप्त रहता है।
सत्य तो यह है नक सम्पणू त ऄपरा प्रकृ नत स्वयं ऄपने अपको अकार् तत्त्व में ऄनधनष्ठत होकर ऄपनी रिना वायु तत्त्व
द्रारा करती है। यह प्रकृ नत ऄपने अपको तीन ऄवस्थाओ ं में रिती है– पहली कारण ऄवस्था में, दसू री सक्ष्ू म ऄवस्था
में, तथा तीसरी स्थल ू स्वरूप (ऄवस्था में); ऄथातत् प्रकृ नत कारण रूप से कारण जगत के रूप में, सक्ष्ू म रूप से सक्ष्ू म
जगत के रूप में, और स्थल ू रूप से स्थलू जगत के रूप में नवद्यमान रहती है। नजस प्रकार प्रकृ नत तीन ऄवस्थाओ ं में
रहती है, ईसी प्रकार सम्पणू त प्रानणयों के र्रीर भी तीन ऄवस्थाओ ं में रहते हैं– 1. कारण ऄवस्था में कारण र्रीर, 2.
सक्ष्ू म ऄवस्था में सक्ष्ू म र्रीर, 3. स्थल
ू ऄवस्था में स्थल
ू र्रीर। प्रत्येक प्रानणयों के स्थल
ू र्रीर के ऄन्दर सक्ष्ू म र्रीर
व्याप्त रहता है और सक्ष्ू म र्रीर के ऄन्दर कारण र्रीर व्याप्त रहता है। स्थल ू र्रीर से सक्ष्ू म र्रीर का घनत्व बहुत ही

त्राटक 10
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कम होता है, आसनलए स्थल ू र्रीर के ऄन्दर सक्ष्ू म र्रीर व्याप्त हो जाता है। आसी प्रकार सक्ष्ू म र्रीर से कारण र्रीर का
घनत्व बहुत ही कम होता है, आसनलए सक्ष्ू म र्रीर के ऄन्दर कारण र्रीर व्याप्त हो जाता है। स्थल ू र्रीर का सम्बन्ध
स्थलू जगत से होता है, सक्ष्ू म र्रीर का सम्बन्ध सक्ष्ू म जगत से रहता है और कारण र्रीर का सम्बन्ध कारण जगत से
रहता है। ऄथातत् प्रत्येक प्राणी का स्थल ू , सक्ष्ू म और कारण रूप से सम्बन्ध स्थलू जगत, सक्ष्ू म जगत और कारण जगत
से सदैव बना रहता है। स्थल ू नेत्रों से सक्ष्ू म व कारण जगत नहीं नदखाइ देते है, ‍योंनक आनका घनत्व बहुत ही कम होता
है।
मनष्ु य का अन्तररक नवकास न होने के कारण वह ऄपने अपको नसफत स्थल ू र्रीर ही माने रहता है। आसी
प्रकार प्राण भी तीनों ऄवस्थाओ ं में घनत्व के ऄनसु ार व्यवस्थापवू क त नक्रया करता रहता है। आसी प्राण तत्त्व में जब
नकसी प्रकार से ईसकी व्यवस्था में ऄसन्तल ु न अ जाता है, तब र्रीर के ऄन्दर नवनभन्न प्रकार के रोग व ऄवरोध अ
जाते हैं। प्राणों का सन्तुलन बना रहे, आसके नलये प्रत्यि प्रमाण से यक्त
ु योनगयों ने नभन्न-नभन्न प्रकार के कायत करने के
कारण प्राणों के नभन्न-नभन्न नाम नदये है। आससे प्राणों के नवषय में समझने में असानी रहती है। एक ही प्राण मख्ु य रूप
से पाँि प्रकार से भौनतक र्रीर में कायत करता है, आसनलए कायत के ऄनसु ार प्राणों के पाँि नाम होते है। ये नाम आस
प्रकार से हैं: 1. प्राण 2. ऄपान, 3. व्यान, 4. समान 5. ईदान। आन पाँिों प्राणों के एक-एक ईपप्राण होता है, आसनलए
पाँि ईपप्राण हो गये। आन ईपप्राणों के नाम आस प्रकार हैं: 1. नाग, 2. कूमत, 3. कृ कल, 4. देवदत्त, 5. धनन्जय। महत्त्वपणू त
बात यह है नक आसमें जो कूमत नाम का ईपप्राण है, वही प्रानणयों के र्रीर में नवद्यमान हुअ पलकें झपकाने का कायत
करता है।
कूमत नाम का प्राण ही हम सभी मनष्ु यों की पलकें झपकाने का कायत करने के कारण, जन्म से लेकर मृत्यु
पयतन्त पलकें झपकती रहती हैं। यह कायत प्राणों के द्रारा होता है, आसनलए ननरन्तर प्रनक्रया स्वमेव होती रहती है।
ऄभ्यासी को ऄभ्यास के द्रारा धीरे -धीरे ही आसी प्राण के स्वभाव को रोकना है, तथा कुछ समय तक आस प्राण पर
ऄनधकार प्राप्त करना है। प्राण पर ऄनधकार प्राप्त करने के नलये प्राणों को र्ि ु व व्यापक बनाना अवश्यक है।
प्राणायाम के द्रारा प्राणों को र्ि
ु व व्यापक बनाया जा सकता है। हमारे र्ास्त्रों में प्राणों को र्ि
ु करने के नलये नवनभन्न
प्रकार के प्राणायाम करने के तरीके से बताए गये हैं। अजकल हमारे समाज में बहुत सी ऐसी संस्थायें है, जो प्राणायाम
करना नसखाती हैं ऄथवा बाजार में बहुत से लेखकों की नलखी हुइ पस्ु तकें नमल जाएँगी। हम यही राय देंगे नक अप
नकसी ऄनभु वी परुु ष के प्रत्यि मागतदर्तन में प्राणायाम करने का ऄभ्यास करें , नजसने प्राणायाम पर ऄभ्यास के द्रारा
पारंगता प्राप्त कर रखी हो, तो ऄनत ईत्तम है। अप सोि रहे होंगे नक त्राटक का प्राणायाम से ‍या सम्बन्ध है। मैं स्पि
ईत्तर दे रहा ह–ँ ऄभ्यासी को ऄभ्यास के द्रारा पलक झपकाना रोकना है। पलक झपकाने का कायत प्राण के द्रारा होता
है। अँखों के द्रारा तेजस् रूप में वृनत्तयाँ बाहर की ओर सदैव ननकलती रहती हैं, और ये वृनत्तयाँ िारों ओर फै लकर दृश्य
का स्वरूप धारण करती रहती हैं, नफर ईसी दृश्य का प्रनतनबम्ब मनस्तष्क पर बनता है। आन्हीं वृनत्तयों के प्रवाह को रोकने
का प्रयास त्राटक के ऄभ्यास द्रारा नकया जाता है। आस सारी प्रनक्रया में बहुत बड़ा कायत प्राणों का ही होता है। यनद

त्राटक 11
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ऄभ्यासी ईनित रीनत के द्रारा प्राणों को रोककर ऄपने ऄनसु ार िलाने का ऄभ्यास करे तथा कुछ समय तक कुम्भक
के द्रारा प्राणों पर ऄनधकार प्राप्त कर ले, तब ऐसे ऄभ्यासी को त्राटक पर र्ीघ्र व दरू गामी पररणाम ऄच्छे रूप में प्राप्त
हो सकते हैं।
ऄज्ञानता के कारण संसार में नलप्त हुअ मनष्ु य ऄपनी आच्छाओ ं की पनू तत के नलए रात-नदन कठोर पररश्रम में
लगा रहता है। ऐसा मनष्ु य िाहे नजतने भौनतक पदाथों व वस्तओ ु ं को प्राप्त कर ले, नफर भी आच्छाएँ समाप्त नहीं होती
हैं। एक वस्तु को प्राप्त कर लेने के बाद, ईसी समय दसू री वस्तु को प्राप्त करने की आच्छा नफर प्रकट हो जाती है। आन्हीं
आच्छाओ ं को पनू तत करने में वह ऄपना सम्पणू त जीवन व्यतीत कर देता है। ऄन्त में वृिावस्था में तृष्णा से यक्त
ु हुअ
माननसक ‍लेर् की ऄनभु नू त करता रहता है, ‍योंनक ईसका भौनतक र्रीर पहले के समान पररश्रम करने योग्य नहीं रह
जाता है। ऄब नसफत आच्छाएं िलती रहती हैं, आन आच्छाओ ं की पनू तत नहीं कर सकता है। हाँ, ऐसी ऄवस्था में ऄपने घर
के सदस्यों पर ऄपनी राय थोपता रहता है तथा जब घर के सदस्य ईसकी बात नहीं मानते है, ईसके ऄनसु ार कायत नहीं
करते हैं, तब वह घर वालों पर नाराज होता है तथा दःु खी होता रहता है। वृिावस्था में ज्यादातर लोगों का जीवन ऐसे
ही व्यतीत होता रहता है। जब तक भौनतक र्रीर कायत कर सकता था, तब तक यंत्र की तरह कायत करता रहा, ऄब
वृिावस्था में र्ारीररक ऄसमथतता के कारण कुछ भी नहीं कर सकता है। नसफत तृष्णा से युक्त आच्छाओ ं के कारण दःु खी
बना रहता है।
आच्छाओ ं का दास हुअ मनष्ु य को सारे जीवन में ‍या नमला? ऄगर आन सब बातों को र्ांत होकर गौर करें तो
सम्पणू त जीवन व्यथत में ही व्यतीत हो गया ऄथातत् भोजन और प्रजनन का कायत तो पर्ु भी करते हैं, नफर मनष्ु य और पर्ु
में ऄन्तर ‍या रहा? जबनक मनुष्य एक ऐसा प्राणी है, ईसके पास एक ऐसा खजाना है, जो ऄन्य प्रानणयों को प्राप्त नहीं
हो सकता है। आसीनलए कहा जाता है नक सम्पणू त सृनि में मनष्ु य ही एक ऐसा प्राणी है, वह ऄपने नववेक को नवकनसत
कर सकता है तथा ऄपने स्वरूप को प्राप्त कर सकता है ऄथातत् परम र्ानन्त को प्राप्त कर सकता है। आच्छाओ ं का दास
हुअ मनष्ु य िाहे तो त्राटक के ऄभ्यास के द्रारा आन ऄसीनमत आच्छाओ ं को ऄपने ऄनसु ार ऄनधकार में ले सकता है
ऄथातत् ऄपने मन के ऄन्दर नस्थरता ला सकता है। िंिल हुए मन को त्राटक के द्रारा नस्थर करके ऄतं मख तु ी बनाया जा
सकता है। नस्थर व ऄंतमतख ु ी हुअ मन वाला मनष्ु य ही ऄपने अप में सन्तुि रह सकता है या सन्तोष को प्राप्त कर
सकता है। अपने अप में सन्तिु हुअ मनष्ु य कभी भी ऄनावश्यक रूप से आच्छाओ ं की पनू तत का प्रयास करने की
कोनर्र् नहीं करता है। मन ही मनष्ु य का र्त्रु है और यही मन मनष्ु य का नमत्र भी है। त्राटक के ऄभ्यास के द्रारा यह मन
जो ऄभी तक भ्रम रूपी संसार में भटकता रहता था, वही मन ऄब र्ांत होकर ऄभ्यासी को सन्तिु करता हुअ र्ानन्त
प्रदान करता है। दःु ख की ऄनभु नू त कराने का कारण मनष्ु य का मन ही है। जब त्राटक के ऄभ्यास के द्रारा मन की
िंिलता को समाप्त कर नदया जाता है, तब यही मन सख ु की ऄनभु नू त कराता है। मन एक ही है, नसफत मन की ऄवस्था
बदल जाने के कारण ईसके द्रारा ऄन्दर की ऄनभु नू त भी बदल जाती है। मनष्ु य िाहे ऄपना जीवन ऄपनी आच्छानसु ार
श्रेष्ठता में बदल सकता है। मगर आसके नलए नसफत प्रयास ही नहीं बनल्क सयं नमत होकर कठोर ऄभ्यास करना ऄनत

त्राटक 12
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अवश्यक है, तभी ऐसा हो पाना संभव हो पायेगा, नहीं तो ऄज्ञानता के कारण भ्रनमत हुअ मन आस नश्वर संसार के
पदाथों की प्रानप्त के नलए आनन्रयों को दौड़ाता रहेगा, आस मन और आनन्रयों का व्यापार आस संसार में ऄनन्तकाल तक
िलता रहेगा।
त्राटक के ऄभ्यास में पणू त रूप से योगदान मन को ननयनन्त्रत करने का ही ईपाय है। मन के ननयन्त्रण के नबना
संसार में कोइ भी मनष्ु य ऄपना अन्तररक नवकास नहीं कर सकता है। मनष्ु य का अन्तररक नवकास होना अवश्यक है,
तभी ईसका मानव जीवन प्राप्त होना सफल होता है। मनष्ु य के नलये मन को ननयनन्त्रत करने के ऄन्य प्रकार के भी कुछ
ईपाय हैं, मगर त्राटक एक ऐसा ऄभ्यास है, आससे मन र्ीघ्र ही ननयनन्त्रत होने लगता है। र्रुु अत में बहुत ज्यादा संयम
की अवश्यकता नहीं है, आसनलए सभी मनष्ु य त्राटक का ऄभ्यास कर सकते है। आस पिनत की खोज और नवकास का
श्रेय हमारे पवू क
त ाल के योनगयों, ऊनषयों, मनु नयों अनद को जाता है। मगर अजकल त्राटक के ऄभ्यास की पिनत
सम्पणू त नवश्व के लोग ऄपना रहे हैं। आसके ऄभ्यास का तरीका कुछ लोगों ने ऄवश्य बदल नदया है, मगर मल ू रूप से
अनद काल में जो ऄभ्यानसयों ने बताया है, वही है। ऄभ्यास के तरीके में नभन्नता के बाद भी लक्ष्य तो एक ही है–
‘दृनि को नकसी पदाथत पर नस्थर करना ऄथवा बाँधना’।
त्राटक के द्रारा मन को ननयनन्त्रत करने पर ऄभ्यासानसु ार ऄभ्यासी के ऄन्दर सकं ल्प र्न‍त बहुत ज्यादा बढ़
जाती है। मन में व्यापकता अने के कारण नविारों की संकीणतता धीरे -धीरे समाप्त होने लगती है। हम सभी जानते हैं नक
ऄगर मन के स्तर में थोड़ा सुधार हो जाये और ईसमें व्यापकता अने लगे, तब ननश्चय ही ऄभ्यासी के ऄन्दर अनन्द
की ऄनभु नू त होने लगती है। मगर ईसके नलए ऄभ्यासी को ननयम-सयं म से और ऄनर् ु ासन में स्वयं को रखना होगा,
तभी ऐसा संभव होगा। मन में व्यापकता अने पर ईसके ऄन्दर ऄसाधारण रूप से गणु ों की प्रानप्त तथा नवलिणता अने
लगती है। आससे स्थल ू जगत तथा सक्ष्ू म जगत के नवषय में जानकारी भी होने लगती है ऄथवा आससे सम्बनन्धत पदाथों
का ज्ञान भी होने लगता है। संकल्प र्न‍त भी बहुत ही ज्यादा बढ़ जाती है तथा सक्ष्ू म जगत से सम्बनन्धत योग्यतानसु ार
र्न‍तयों से भी सम्पकत हो जाता है। संकल्प र्न‍त बहुत ज्यादा बढ़ जाने के कारण वह स्थल ू व सक्ष्ू म रूप से बहुत सारे
कायत भी कर सकता है। वह समाज में परोपकार भी कर सकता है। ये परोपकार स्थल ू व सक्ष्ू म दोनों प्रकार के हो सकते
हैं, ऄथातत् सभी तरह से समाज का कल्याण कर सकता है।
ब्रह्माण्ड में जो र्न‍तयाँ नवद्यमान है, वहीं र्न‍तयाँ मनष्ु य के र्रीर में भी व्याप्त रहती हैं। आन र्न‍तयों के
नवद्यमान होने के स्थान नननश्चत होते हैं। ‍योंनक नजस प्रकार से ब्रह्माण्ड रूपी नपण्ड बड़ा नपण्ड है, मनष्ु य रूपी नपण्ड
छोटा नपण्ड है। जो बड़े नपण्ड में नस्थत है, वही छोटे नपण्ड में नवद्यमान है। सक्ष्ू म रूप से मनष्ु य रूपी नपण्ड का तारतम्य,
ब्रह्माण्ड रूपी नपण्ड से सदैव बना रहता है। जैसे-जैसे त्राटक के ऄभ्यास के द्रारा मन को नस्थर करके ऄतं मख तु ी बनाया
जाता है, आससे ईसका अन्तररक नवकास होना र्रुु हो जाता है तथा ईसी प्रकार ईसके नलए ब्रह्माण्ड (सक्ष्ू म जगत व
कारण जगत) का नवकास होना र्रुु होने लगता है। ‍योंनक मनष्ु य के स्थल ू र्रीर का सम्बन्ध स्थल ू जगत से रहता है,
सक्ष्ू म र्रीर का सम्बन्ध सक्ष्ू म जगत से होता है। आसनलए जैसे-जैसे ऄभ्यास के द्रारा अन्तररक नवकास करता है ऄथातत्

त्राटक 13
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सक्ष्ू म र्रीर का नवकास करता है, वैसे-वैसे ईसके नलए सक्ष्ू म जगत का नवकास होने लगता है। आसीनलए ऄभ्यासी को
सक्ष्ू म जगत से सम्बनन्धत ज्ञान होने लगता है। ऐसी ऄवस्था में सक्ष्ू म जगत में नवद्यमान सक्ष्ू म र्रीरधारी जीवात्माओ ं से
सम्पकत भी होने लगता है। पहले आन नदव्य जीवात्माओ ं के दर्तन होते है, नफर ईनसे भी सम्पकत स्थानपत होने लगता है।
ऐसी नदव्यात्मायें प्रसन्न होकर कभी-कभी ऄभ्यासी पर कृ पा भी करने लगती हैं।
त्राटक के ऄभ्यास के द्रारा नसफत मन की िंिलता ही समाप्त होती नहीं है, बनल्क ऄपने नवषय में ज्ञान भी होने
लगता है, ऄथातत् ऄपने वततमान जन्म का तथा पवू त जन्मों के नवषय में ज्ञान होने लगता है। ऐसे ऄभ्यासी को दसू रे के
नवषय में भी जानकारी होने लगती है, ईसके पवू त जन्मों के नवषय में जान सकता है तथा अवश्यकता पड़ने पर कृ नत्रम
ननरा में ले जाकर दसू रों को ईसका नपछला जन्म ऄथवा नपछले जन्मों के मख्ु य रूप से दृश्य भी नदखाये जा सकते हैं।
आस प्रकार की जानकाररयाँ व दृश्य ईसके नित्त पर नस्थत वततमान व पवू क त ाल के जन्मों में नकये गये कमों के संस्कारों के
कारण नदखाइ पड़ते है। नित्त पर नस्थत संस्कारों द्रारा स्पि नदखाइ देता है नक मैं ऄमकु जन्म में आस प्रकार के कमत करता
था, मेरा पररवार ऐसा था, ईस जन्म की प्रमख ु घटनायें नदखाइ देती हैं। सक्ष्ू म व बारीकी से नकसी घटना को देखने या
नदखाने के नलये ऄभ्यासी का प्राण र्नु ि, मन र्नु ि, कठोर संयमी व त्राटक में पारंगत होना िानहए। ‍योंनक योग्यता के
ऄनसु ार ही कायों को कर पाने का सामर्थयत होता है।
स्थलू र्रीर तो हड्नडयों के उपर निपका हुअ माँस, व नानडयों का जाल, कुछ ऄवयवों अनद के द्रारा बना
हुअ है। आसके ऄन्दर व्याप्त सक्ष्ू म र्रीर में नवनभन्न प्रकार की नदव्यर्न‍तयाँ नवद्यमान रहती है। ये गप्तु नदव्यर्न‍तयाँ
सक्ष्ू म र्रीर में नस्थत सक्ष्ू म के न्रों पर नवद्यमान रहती है। आन के न्रों को िक्र कहते है। आन िक्रों पर नवराजमान
नदव्यर्न‍तयों को प्राप्त करने के नलए ऄथवा िक्रों को नक्रयार्ील करने के नलये त्राटक का ऄभ्यास सहायक होता है।
त्राटक में पारंगत व्यनक्त दसू रों की िक्रों को खोलने में सहायता कर सकता है ऄथवा िक्रों को खोल सकता है।
मल ू ाधार िक्र, स्वानधष्ठान िक्र, नानभ िक्र, व रृदय िक्र असानी से खल ु जाते है, मगर उपर के ऄन्य िक्र खोलने के
नलये योग का ऄभ्यास करना अवश्यक है तथा ऄत्यन्त ईच्ि योग्यता होना भी अवश्यक है, तभी यह कायत पूणत
करना सम्भव हो पायेगा। उपर के िक्र त्राटक द्रारा खोलने के नलए त्राटक के ऄभ्यास में पारंगत तथा नननवतकल्प
समानध में पारंगत होना अवश्यक है। आस योग्यता के प्राप्त होने के बाद भी यह नहीं कहा जा सकता है नक ऐसा व्यनक्त
कण्ठिक्र व अज्ञािक्र त्राटक के द्रारा खोल ही देगा। हाँ मैं आतना ऄवश्य कह सकता हँ नक आस भ-ू भाग में ऐसे योगी
ऄभी नवद्यमान है, ऄगर साधक सपु ात्र है तो त्राटक के द्रारा आन िक्रों को खोल देंगे ऄथातत् नक्रयार्ील कर देंग।े ऐसे
योनगयों को ढूंढ पाना ऄत्यन्त दष्ु कर कायत है, ‍योंनक ऐसे योगी ऄपने को नछपाये रखते है। आसनलए पाठकों! उपर के
िक्रों को खल ु वाने की आच्छा मत कीनजये।
त्राटक में पारंगत होने के नलए ऄभ्यासी को योग का ऄभ्यास करना भी ऄनत अवश्यक है। आसके नलये ईसे
यम, ननयम, असन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समानध का ऄभ्यास करना िानहए। आससे र्रीर, प्राण, मन,
ऄहकं ार व नित्त र्ि ु होने लगता है। र्ि
ु ता के अधार पर त्राटक के ऄभ्यास में ननपणु ता व व्यापकता अयेगी तथा

त्राटक 14
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ऄभ्यासानसु ार मनस्तष्क का नवकास होगा। यह नवकास ऐसा होगा जो नकसी नवद्यालय या नवश्वनवद्यालय में नर्िा
प्राप्त करने से नहीं हो सकता है, िाहे ‍यों न वह र्ोध का छात्र रह िक ु ा हो। हमारे कहने का ऄथत यह है नक सांसाररक
ज्ञान के द्रारा आस प्रकार का मनस्तष्क नवकास नहीं हो सकता है। हम कह सकते हैं नक त्राटक ऄभ्यास द्रारा वो सामर्थयत
प्राप्त हो सकता है जो ऄन्य भौनतक कायों द्रारा प्राप्त नहीं हो सकता है। ‍योंनक जाग्रत ऄवस्था में सोिने-समझने,
देखने-सनु ने, अनद नवनभन्न नक्रयाएँ मनस्तष्क में नस्थत नवनभन्न के न्रों के नक्रयानन्वत होने पर होती है। आसी प्रकार के
कायत करने की योग्यता आन के न्रों में होती है। परन्तु सक्ष्ू म र्रीर पर नस्थत िक्रों की योग्यता ऄत्यन्त ईच्िकोनट की
होती है। आन िक्रों के नक्रयार्ील होने पर ऄभ्यासी के ऄन्दर नवलिणता अने लगती है। ऐसा त्राटक के ऄभ्यास से
होना संभव है।
त्राटक के ऄभ्यास में पारंगत हुअ ऄभ्यासी की बनहतमख ु ी हुइ आनन्रयाँ, मन, बनु ि अनद ऄतं मतख
ु ी होने लगते
हैं। आससे संसार की प्रनत असक्त हुए ऄभ्यासी की राग-द्रेष, तृष्णा अनद कमजोर पड़ने लगते हैं तथा ऄहक ं ार भी
सक ं ीणतता को छोड़कर व्यापक होने लगता है, आससे ईससे नित पर नस्थत कमातर्यों पर प्रभाव पड़ने लगता है तथा
मनलनता नष्ट होने लगती है। ऐसा ऄभ्यासी सख ु -दःु ख, इष्यात, द्रेष व आनन्रयों पर ऄनधकार करके र्ान्त होने लगता है।
बहुत से ऄभ्यासी नसफत त्राटक का ऄभ्यास करके ही मन को र्ान्त करने की कोनर्र् करते हैं, मगर वे आस कायत में
सफल नहीं हो पाते हैं। आसका कारण है स्वयं ईनकी प्राण वाय,ु ‍योंनक मन और प्राण का अपस में ऄटूट ररश्ता है।
त्राटक के द्रारा मन नस्थर करने पर प्राण की भी गनत कम होने लगती है, यनद प्राण को भी प्राणायाम के द्रारा,
ऄनर् ु ानसत कर नदया जाये, तब मन भी एकाग्र होने लगता है, आससे त्राटक के ऄभ्यास में र्ीघ्र सफलता नमलने लगती
है।
त्राटक के ऄभ्यास में र्ीघ्र सफलता प्राप्त होने पर, त्राटक का प्रयोग ऄभ्यासी दसू रों पर भी कर सकता है। वह
दसू रों को लाभ पहुिँ ा सकता है, तथा दसू रों को हानन भी पहुिँ ा सकता है। अजकल समाज में त्राटक के द्रारा दसू रों
का कल्याण करते हुए बहुत से लोग देखे जाते हैं। मगर हमारे समाज में कुछ नवकृ त बनु ि वाले ऄभ्यासी हैं, वे त्राटक
का दरुु पयोग भी करते हैं, ऐसे दष्ु ट स्वभाव वाले ऄभ्यासी से समाज के लोगों को बिना िानहए। आसी कारण ऄज्ञानी व
भोले-भाले लोग कभी-कभी ठगे भी जाते हैं। नकसी भी ऄभ्यासी को त्राटक र्न‍त का गलत प्रयोग नहीं करना िानहए,
नहीं तो ईसे भनवष्य में ऄपने कमों का फल दण्ड के रूप में भोगना ही होगा।
गरुु पद पर बैठे बहुत से परुु ष त्राटक के द्रारा ऄपने नर्ष्यों का मागतदर्तन भी करते हैं, ऄथातत् त्राटक के द्रारा
नर्ष्यों पर र्न‍तपात भी करते हैं। बहुत से सन्त परुु ष जो प्रविन करते है, प्रविन सनु ने अये लोगों को अकनषतत करने
के नलए त्राटक का प्रयोग करते हैं। त्राटक एक ऐसा ऄभ्यास है नजससे साधक पहले ऄभ्यास करके ऄपना नवकास
करता है, नफर आसी के द्रारा दसू रों का मागतदर्तन करता है। ऐसे मागतदर्तक ननश्चय ही सक्ष्ू म रूप से ऄत्यन्त र्न‍तर्ाली
होते हैं, ‍योंनक तभी ऐसे कायत ईनके द्रारा संभव हो सकते हैं। अनदकाल में बहुत से महापुरुषों द्रारा त्राटक का प्रयोग
नकया गया है, ऐसा र्ास्त्रों में वणतन नमलता है। ऄभ्यासी ऄगर त्राटक के ऄभ्यास में पारंगत है, तो वह त्राटक के द्रारा

त्राटक 15
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ऄनधक से ऄनधक र्न‍त को बाहर ननकाल सकता है, ऄथातत् संकल्प करके त्राटक के द्रारा कनठन से कनठन ऄभीि
कायत कर सकता है। पवू क त ाल में तथा वततमान में ऐसे कायत नकये जाते हैं। गरुु पद पर बैठे बहुत से गरुु यह कायत ननयनमत
रूप से करते रहते हैं। आससे नर्ष्य ऄपनी साधना अगे बढ़ाने में लाभानन्वत होते हैं।

त्राटक 16
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िततमान में त्राटक के प्रयोग
वततमान समय में त्राटक का प्रयोग कइ प्रकार के कायों को करने के नलए नकया जाता है। नवश्व में ऄनेक देर्ों
में प्रयोगकतात नभन्न-नभन्न प्रकार की समस्यायें त्राटक र्न‍त के प्रयोग द्रारा सलु झा रहे हैं। कुछ प्रयोगकतात दसू रे के
कल्याण के नलये व्यस्त रहते हैं, मगर कुछ ऐसे भी प्रयोगकतात हैं, जो ऄपना स्वाथत नसि करने में लगे रहते हैं। आसका
एक महत्त्वपणू त कारण यह भी है, त्राटक र्न‍त का प्रयोग करने के नलए ऄभ्यासी को मात्र थोड़े से संयनमत व
ऄनर् ु ानसत होकर ऄभ्यास करने पर छोटे-छोटे कायत करने का सामर्थयत अने लगता है। आसके प्रयोग के पररणाम र्ीघ्र
नमलने लगते हैं। अजकल देखा गया है नक रोगी थोड़ी सी र्ारीररक परे र्ानी अने पर तरु न्त ऐलोपैनथक दवा ले लेता
है, आससे अराम तरु न्त नमल जाता है, मगर ऐलोपैनथक दवाओ ं के ऄनेक दष्ु प्रभाव भी होते हैं। सि तो यह है नक हम
थोड़ी सी भौनतक परे र्ानी अने पर (बख ु ार अनद) तरु न्त ददत ननवारक गोनलयों का प्रयोग कर लेते हैं। लेनकन ऄगर
नकसी योगी परुु ष से पछ ू ा जाये नक ‍या अप आस प्रकार की दवा असानी से ग्रहण कर लोगे, तो र्ायद वह यही ईत्तर
देगा नक मैं थोड़ा सा ददत सहन कर लँगू ा, मगर ऐसी दवाइयाँ र्ीघ्र ग्रहण नहीं करूँगा। ‍योंनक योगी परुु ष का स्थल ू र्रीर
व सक्ष्ू म र्रीर र्ि
ु होने के कारण ईसे ऄनभु नू त होने लगती है नक ऄभी-ऄभी जो ऄँग्रेजी दवा ग्रहण की है, ईसका
प्रभाव मनस्तष्क के ऄमक ु िेत्र पर पड़ रहा है, मनस्तष्क की आन सक्ष्ू म कोनर्काओ ं पर पड़ रहा है। ये सक्ष्ू म कोनर्काएं
योगी परुु ष ने प्राणायाम व समानध के द्रारा र्ि ु व नक्रयार्ील की हैं, ‍योंनक पहले यही सक्ष्ू म कोनर्काएँ ऄर्ि ु व
सषु प्तु पड़ी हुइ थी। जो मनष्ु य सामान्य जीवन जी रहे है, ऄथातत् योगाभ्यास अनद नहीं करते है, ईन्हें ऐलोपैनथक दवाइयों
का प्रभाव सक्ष्ू म रूप से मनस्तष्क में समझ में नहीं अता है। बनल्क वह तो ऐलोपैनथक दवा की तारीफ करे गा और
कहेगा नक ऄमक ु दवाइ या गोनलयाँ बहुत ही ऄच्छी है, खाने के 15-20 नमनट बाद ही मझु े ददत से अराम नमल गया है।
एक तरफ रोग में अराम नमलता है, तो दसू री तरफ रोग में प्रयोग की गयी दवाइ से दसू रा ऄगं प्रभानवत होने लगता है।
सि तो यह है नक नकसी को भी आस प्रकार की दवाआयों का प्रयोग नबल्कुल कम से कम करना िानहए।
ऄपने यहाँ योग पिनत में कइ ऐसे तरीके हैं, ऄगर ईनका प्रयोग नकया जाये तो ईससे छोटे -छोटे ही नहीं बड़े-
बड़े रोग दरू हो जाते हैं। योग का ऄभ्यास करने वाले साधक को वैसे भी र्ीघ्रता से रोग नहीं लगता है। रोगों को दरू
करने के नलये त्राटक भी एक जबरदस्त तरीका है, ऄथातत् त्राटक के द्रारा नकसी दसू रे का भी रोग दरू नकया जा सकता
है। आस पिनत से रोग दरू करने में रुपए भी खित नहीं होते हैं और न ही नकसी प्रकार का दष्ु प्रभाव होता है। अजकल
त्राटक द्रारा कइ देर्ों में रोगों का ईपिार नकया जा रहा है। कुछ रोग डा‍टर र्ीघ्र ठीक नहीं कर पाते हैं, ईसे त्राटककतात
मात्र कुछ समय में ठीक कर देता है। आस पिनत में नसफत लाभ ही लाभ है, नकसी प्रकार का घाटा या हानन नहीं है। त्राटक
के द्रारा रोग दरू करने की पिनत हमारे यहाँ अनदकाल से िली अ रही है। वततमान काल में हमारा देर् ही नहीं, बनल्क
नवश्व के ढेरों देर् आसे ऄपना रहे हैं।
आन्टरनेट पर नवनभन्न वेबसाआटों पर अपको त्राटक के नवषय पर ढेरों नवनडयो नमल जाएँग।े य-ू ट्यबू पर तो
त्राटक पर बनाये गये नवनभन्न प्रकार ढेरों नवनडयो ईपलब्ध हैं। आन नवनडयो में ऄभ्यास करने का तरीका व ईसकी

त्राटक 17
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ईपयोनगता समझायी गयी है। हमारे भी कुछ नवनडयो त्राटक के नमल जाएँगे। आसके ऄनतररक्त बाजार में त्राटक पर नलखी
ढेरों पस्ु तकें ईपलब्ध हैं, ऐसा मझु े बताया गया है ‍योंनक मैंने कभी भी नकसी की नलखी पस्ु तक नहीं पढ़ी है।
अजकल गरुु पद पर बैठे बहुत से परुु ष नर्ष्यों का मागतदर्तन कर रहे हैं। ईनमें से कुछ गरुु लोग मागतदर्तन करते
समय त्राटक र्न‍त का प्रयोग ऄपने नर्ष्यों पर करते हैं। कुछ ऐसे भी गरुु पद पर बैठे हुए हैं, वह त्राटक र्न‍त का
प्रयोग नहीं करते हैं तथा त्राटक के नवषय पर बोलते भी नहीं हैं। र्ायद ऐसे गरुु जी ने स्वयं त्राटक का ऄभ्यास भी नहीं
नकया होगा ऄथवा ईन्होंने त्राटक की ईपयोनगता नहीं समझी होगी। मैं यही समझता हँ नक गरुु पद पर बैठे परुु षों को
त्राटक का ऄभ्यास स्वयं करना िानहए तथा आस ऄभ्यास में पारंगत भी होना िानहए। आससे ईन्हें बहुत बड़ा लाभ भी
नमलेगा। नजन गरुु ओ ं के पास नर्ष्यों की नगनती बहुत ज्यादा है, वह प्रत्येक नर्ष्य पर एक-एक करके र्न‍तपात नहीं
कर सकते हैं, ‍योंनक नर्ष्यों की संख्या बहुत ऄनधक होने पर हर एक नर्ष्य पर र्न‍तपात करना ऄसम्भव सा है। गरुु
के पास आतना समय नहीं होता है नक वह सभी पर एक-एक करके र्न‍तपात करे । ऐसी पररनस्थनतयों में सबसे ऄच्छा
ईपाय है नक वह ऄपने नर्ष्यों पर त्राटक द्रारा र्न‍तपात ऄवश्य करे । िाहे नर्ष्यों की सख्ं या दस हजार हो ऄथवा एक
लाख ही ‍यों न हों, तो भी त्राटक के द्रारा र्न‍तपात नकया जाना संभव है। नर्ष्यों पर र्न‍तपात करना ऄनत
अवश्यक आसनलए होता है, ‍योंनक र्न‍तपात के द्रारा साधक का अध्यानत्मक मागत र्ीघ्र ही अगे के नलए प्रर्स्त हो
जाता है तथा योग मागत में अये ऄवरोध भी दरू होने लगते हैं। जब गरुु द्रारा र्न‍तपात साधक पर ऄके ले में होता है,
तब ईसका प्रभाव साधक पर ऄनधक पड़ता है। मगर आस प्रकार से गरुु द्रारा र्न‍तपात ऄनधक साधकों पर नहीं नकया
जा सकता है, ‍योंनक आस तरीके से नकए गए र्न‍तपात से गरुु को योगबल बहुत ज्यादा मात्रा में खित करना पड़ता है
ऄथवा होता है, तथा गरुु को र्न‍तपात करने के कारण कमजोरी व थकान भी अती है। मगर सामनू हक रूप से जब
त्राटक द्रारा र्न‍तपात नकया जाता है, तब योगबल बहुत ज्यादा मात्रा में खित नहीं करना पड़ता है।
त्राटक के द्रारा जब सामनू हक रूप से र्न‍तपात नकया जाता है, तब साधकों पर र्न‍तपात का प्रभाव कम
पड़ता है। आससे साधकों का अध्यानत्मक मागत प्रर्स्त होने में ज्यादा समय लगता है तथा अध्यानत्मक ऄवरोध भी
सरलता से दरू नहीं होते हैं। आससे साधक र्ीघ्रता से अगे न बढ़ पाने के कारण, ईसे ज्यादा से ज्यादा ऄभ्यास में समय
देना पड़ता है, तब कहीं जाकर अगे की ऄवस्था प्राप्त होती है। हमने बहुत से गरुु ओ ं को देखा है– वह ऄपने नर्ष्यों
पर र्न‍तपात ही नहीं करते हैं, नसफत प्रविन सनु ाते रहते हैं। मैं ऐसे गरुु पद पर बैठे परुु षों से कहना िाहगँ ा नक अपने
जो कमाया है, वह ऄपने योग्य नर्ष्यों को ऄवश्य थोड़ा सा ऄवश्य दें, नहीं तो नर्ष्य बनाने का ऄथत ही ‍या हुअ,
ऄथातत् गरुु पद पर बैठना तभी साथतक है जब अप ऄपने नर्ष्यों को कठोर संयम, प्राणायाम अनद को ऄपनाने के नलये
प्रेररत करते रहें तथा र्न‍तपात करते रहें। नर्ष्य का ऄनधकार है नक वो ऄपने गरुु देव के बताए मागत पर िलता रहे और
कुछ न कुछ कृ पा रूपी प्रसाद लेता रहे। गरुु देव का भी कततव्य है, ऄपने नर्ष्यों को कुछ न कुछ अध्यानत्मक प्रसाद देते
रहें। तभी गरुु -नर्ष्य का सम्बन्ध भली प्रकार से बना रहता है। ऄगर बहुत ऄनधक नर्ष्य बना नलये है, तब र्न‍तपात

त्राटक 18
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करने का ऄच्छा तरीका यही है नक वह त्राटक के द्रारा सभी नर्ष्यों पर जबरदस्त र्न‍तपात कुछ समय बाद करते रहें।
‍योंनक मैं भी कइ वषों से गरुु पद पर ह,ँ आसनलए ऐसे र्ब्द नलखने का साहस कर रहा ह।ँ
मागतदर्तन करने के नलए मैं भारत के नवनभन्न र्हरों में जाता रहता ह।ँ मझु े बहुत से साधक नमलते हैं, ये साधक
ज्यादातार दसू रे गरुु ओ ं के नर्ष्य होते हैं। बहुत से साधकों ने मझु से मागतदर्तन की प्राथतना की। मेंरे पछू ने पर ईन्होंने
बताया– मैं ऄमक ु सन्त का नर्ष्य ह,ँ मैं ऄपने गरुु देव से अमने-सामने बात नहीं कर सकता ह,ँ ‍योंनक ईनके बहुत से
नर्ष्य है, और मझु से बात करने के नलए ईनके पास समय ही नहीं है। ये सत्य है नक नकसी भी गरुु के ऄनधक नर्ष्य हो
जाने पर वह ऄपने हर एक नर्ष्य से बात नहीं कर सकते हैं। मगर यह भी सत्य है नक जब कोइ साधक या ऄभ्यासी
ऄपने गरुु देव को प्रत्यि ऄपनी अध्यानत्मक परे र्ानी या ऄवरोध के नवषय में नहीं बताएगा, तब तक ईसकी
अध्यानत्मक समस्या कै से हल होगी? आसनलए ऐसे नर्ष्यों का अध्यानत्मक मागत बहुत देर में धीरे -धीरे अगे बढ़ पाता
है। कुछ साधक तो ऄपने गरुु देव को त्याग कर दसू रा गरुु बना लेते है, कुछ साधक अध्यानत्मक मागत छोड़कर र्ान्त
बैठ जाते है, तथा ऄभ्यास करना ही छोड़ देते है, ‍योंनक ईन्हें सही मागतदर्तन नहीं नमल पाया। हमने देखा है नक हमारे
देर् में गरुु ओ ं की कोइ कमी नहीं है, गरुु ओ ं की भरमार है। नफर भी कुछ गरुु ओ ं को लाखों नर्ष्य बनाने पड़ रहे हैं। कोइ
भी गरुु लाखों नर्ष्यों को कै से मागतदर्तन कर पायेगा? कै से हर एक नर्ष्य के नलए समय ननकाल पायेगा? आस समस्या से
मैं पररनित ह।ँ मैं यही कहगँ ा नक नर्ष्य ईतने ही बनाने िानहए, नजतनों का मागतदर्तन कर सकें । नसफत सख्ं या बढ़ाना ही
श्रेष्ठता नहीं है, बनल्क श्रेष्ठ नर्ष्य बनाना गरुु की श्रेष्ठता है। आसनलए साधकों की नजम्मेदारी बनती है नक वे ऐसे गरुु का
ियन करें , जो अपके अध्यानत्मक समस्याओ ं का भी हल कर सकें ।
ऄब मैं यहाँ पर एक-दो संतों का वणतन करना िाहगँ ा, नजन्होंने ऄपने जीवन में त्राटक का बहुत ही प्रयोग
नकया है। पहले एक प्रनसि वक्ता के नवषय में नजन्होंने स्वयं त्राटक का काफी ऄभ्यास नकया था, वह ऄपने अश्रम में
एकान्त में त्राटक का ऄभ्यास नकया करते थे। ऄगर मैं कहँ नक ईन्हें त्राटक का बहुत ऄच्छा ऄभ्यास था, तो गलत नहीं
होगा। वह ऄपने नर्ष्यों पर त्राटक द्रारा र्न‍तपात नकया करते थे। आसी कारण साधक व कोइ भी मनष्ु य ईनकी ओर
अकनषतत हो जाता था। वैसे वे एक बहुत ऄच्छे प्रविनकतात भी थे, ईनकी अवाज में जादू सा था, ऄपने नर्ष्यों को
समझाने का ईनका ऄन्दाज बहुत ऄच्छा था। आसी तरह वह एक कुर्ल त्राटक के प्रयोगकतात भी थे। जब वह ऄमेररका
में गये, तब त्राटक के कारण ईनकी अवाज का जादू भी िला, धीरे -धीरे कुछ समय में ढेरों ऄमेररकावासी ईनके नर्ष्य
भी बन गये। ईनके नर्ष्यों में ऄमेररका के ईद्योगपनत व धनाढ्य लोग भी थे। एक ऐसा समय अया नक सम्पणू त ऄमेररका
में ईनका अध्यानत्मक डंका बजने लगा। ईनके त्राटक का प्रभाव आतना बढ़ गया नक ढेरों ऄमेररकी जनता ईनके पीछे -
पीछे रहती थी तथा ईनके बताए मागत पर िलती थी। मैं यहाँ पर यह नलख दँू नक मैंने ईनका जबरदस्त त्राटक का
ऄभ्यास और त्राटक के प्रयोग के कारण ईनका यहाँ पर ईल्लेख नकया है। मझु े ईनसे लेना-देना कुछ नहीं है, नसफत
ईनकी योग्यता का गणु गान नकया है। ईन्होंने दपतण और पेण्डुलम पर त्राटक का बहुत ऄभ्यास नकया था।

त्राटक 19
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ऄब मैं ऄपने देर् के एक महान सन्त के नवषय में ईल्लेख करना िाहगँ ा। ईन्होंने भी ऄपने त्राटक र्न‍त का
प्रयोग करके ऄमेररकी जनता को जबरदस्त अकनषतत नकया था। ईस सन्त का नाम है– स्वामी नववेकानन्द। स्वामी
नववेकानन्द को सम्पणू त भारतवासी ऄच्छी तरह से जानते हैं। बात ईन नदनों की है, जब ऄमेररकी लोग भारत देर् को
ऄच्छी तरह से नहीं देखते थे। ईस समय भारत को गरीब देर् कहते थे। जब स्वामी नववेकानन्द जी सन् 1893 में एक
सम्मेलन में ऄमेररका गये थे, ईन्हें ईस सम्मेलन में बोलने के नलए मात्र कुछ नमनट नदये गये थे। स्वामी नववेकान्द जी ने
मिं पर िढकर समस्त भीड़ पर िारों तरफ दृनि दौड़ाइ, नफर बोलना र्रुु कर नदया और ऄमेररकावासी मत्रं मग्ु ध से
होकर ईनका भाषण सनु ते रहे। यह था ईनके त्राटक र्न‍त का प्रयोग करने के तरीके का सफल पररणाम।
ऄमेररकावासी स्वामी नववेकानन्द जी के ज्ञान और भाषण का लोहा मान गये। नफर वहीं पर ढेर सारे लोग ईनके
ऄनयु ायी भी हो गये थे।
अजकल अपने जादगू रों को देखा होगा, वे मिं पर जादू नदखाया करते हैं। आस जादू को नदखाने में कुछ तो
हाथ की सफाइ होती है, नजसे दर्तक समझ नहीं पाते हैं। कुछ जादू ऐसी होती है नजसमें पणू त रूप से त्राटक का ही प्रयोग
नकया जाता है। त्राटक के द्रारा दर्तकों पर सम्मोहन नकया जाता है, सम्मोनहत हुए दर्तकों को वही नदखाइ देता है, जैसा
जादगू र ऄपनी आच्छार्न‍त के द्रारा दर्तकों को संदर् े देता है। ईदाहरण– जादगू र ऄगर हाथ में रस्सी पकड़े हुए है, मगर
दर्तकों को नदखाइ देता है नक वह सपत पकड़े हुए है, अनद। जादगू र त्राटक का प्रयोग नकये नबना कुछ भी जादगू री नहीं
नदखा पायेगा ऄथातत् सम्मोहन के द्रारा दर्तकों को वही नदखाइ देता है, जो होता ही नहीं है। ध्यान रहे हाथ की सफाइ के
द्रारा भी दर्तकों को अश्चयत में डाले रहते हैं। यनद अप आस जादू की वास्तनवकता समझ लेंगे, तब अप यही कहेंगे नक
ये जादगू र लोग दर्तकों को भ्रम में डाले रहते हैं।
त्राटक के द्रारा अजकल सम्मोहन नक्रया बहुत की जाती है। नकसी को सम्मोनहत करने के नलये त्राटक में
ऄच्छी तरह से पारंगत होना िानहए। सि तो यह है नक मैं एक योगी ह,ँ और त्राटक का ऄभ्यास मैंने अध्यानत्मक
कायों के नलए नकया है, सम्मोहन करने के नलए नहीं सीखा है। नफर भी आस नवनध को जानने के नलए सन् 1993 में
थोड़ा सा प्रयास नकया था। आस प्रयास में सफल भी हुअ था। आसनलए आस नवनध को थोड़ा सा जानता ह।ँ सम्मोहन में
पकड़ बनाने के नलये ऄभ्यास करने के नलए समय देना पड़ेगा, वह समय मेंरे पास नहीं था। वैसे सम्मोहन के द्रारा
समाज का कल्याण भी नकया जा सकता है। अजकल कइ देर्ों में कइ संस्थाऐ ं ऐसा कायत कर रही हैं।
ऄब ऄपने नवषय में थोड़ा नलखना िाहता ह,ँ ‍योंनक मैंने भी नकसी समय बहुत ज्यादा त्राटक का ऄभ्यास
नकया है। मझु े त्राटक का ऄभ्यास करने की प्रेरणा कहाँ से और कै से नमली, यह नलख रहा ह।ँ मैंने ऄपनी गरुु माता द्रारा
योग के ऄभ्यास का मागतदर्तन नलया। वहाँ पर (नमरज महाराष्र) ईस समय त्राटक का ऄभ्यास नहीं कराया जाता था
और न ही त्राटक के नवषय में बताया जाता था। मेरी गरुु माता ‘सहज ध्यान योग’ के ऄन्तगतत योग का ऄभ्यास
करवाती थी तथा प्रत्यि और ऄप्रत्यि रूप से मागतदर्तन करती थी। पत्र द्रारा भी साधकों के प्रश्नों के ईत्तर नदया करती
थी तथा मागतदर्तन भी करती थी। यहाँ पर आस प्रकार की जानकारी नलखने का मेरा ईद्देश्य यह है नक ईस समय श्री माता

त्राटक 20
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जी (मेरी गरुु माता) त्राटक का ऄभ्यास नहीं करवाती थी। मझु े याद अ रहा है– बात र्ायद सन् 1991 के अनखरी नदनों
की है। ईस समय मैं ऄपनी श्री गरुु माता के अश्रम में नमरज (महाराष्र) में रहता था। एक बार अश्रम में कुछ नवर्ेष
कायतक्रम हो रहा था, ईस समय बहुत से साधक भाइ-बनहन अश्रम में अये हुए थे। सायक ं ाल का समय था, सभी भाइ-
बनहन ध्यान कि में ध्यान कर रहे थे, ईस समय मैं भी ध्यान कर रहा था। कुछ समय बाद ध्यान कि में कुछ हलिल
सी होने लगी, आसी कारण मेरा ध्यान टूट गया। मैंने देखा नक एक सानधका को नवर्ेष प्रकार नक्रया हो रही थी। श्री
माताजी ऄपने स्थान से ईठकर, हम सभी साधकों के बीि होती हुइ ईस सानधका के पास पहुिँ ीं और माताजी ने ईस
सानधका पर र्न‍तपात करके हो रही नक्रयाओ ं को रोक नदया ऄथातत् नक्रयाओ ं को बन्द कर नदया, नफर वापस अकर
असन पर बैठ गयी।
मैंने देखा– जब श्रीमाता जी ईस सानधका के पास जा रही थी, तब वह ध्यान पर बैठे साधकों से बिा-बिाकर
िल रही थी, ध्यान पर बैठे साधकों के कारण ईन्हें सतकत तापवू क त अगे जाना पड़ रहा है। ईसी समय हमारे ऄन्दर
नविार अया नक ‍या ऐसा नहीं हो सकता है नक गरुु माता ऄपने ही असन पर बैठीं रहें, ईन्हें र्न‍तपात करने के नलये
िलकर न जाना पड़े, श्रीमाता जी दरू से ही र्न‍तपात कर दें। ध्यान समाप्त होने के बाद ध्यान हाल से बाहर अ गया
और आसी नवषय पर सोिने लगा। कुछ नदनों बाद मझु े स्वयं जानकारी नमल गयी नक ऐसा करना त्राटक के ऄभ्यास के
द्रारा करना सम्भव हो सकता है। यह जानकारी मझु े समानध ऄवस्था में प्राप्त हुइ थी। तब मेरा कण्ठिक्र खल ु गया था,
ईस समय सनवकल्प समानध का ऄभ्यास कर रहा था। तब मैं त्राटक के नवषय में नहीं जानता था, मैंने आस नवषय में
माताजी से पछ ू ा– ‚श्री माताजी, अप मझु े आस त्राटक के नवषय में बताने की कृ पा करें , तथा ऄभ्यास के नवषय में थोड़ा
सा बतायें, मैं आसका ऄभ्यास करना िाहता ह‛ँ । श्री माताजी ने कुछ िणों तक सोिने के बाद कहा– ‚अनन्द कुमार,
अपकी साधना नकतनी ऄच्छी िल रही है, अप एक ही मागत पकड़े रनहये, आसी का ऄभ्यास कीनजये। त्राटक ऄच्छी
िीज है, मगर मैं साधकों को आस नवषय पर नहीं बताती ह।ँ ‍योंनक वैसे भी साधक ध्यान के नलए समय नहीं ननकाल
पाते हैं, ऄगर त्राटक का ऄभ्यास करना बताया तो ध्यान के नलये ईन्हें समय नहीं नमलेगा‛।
कुछ नदनों तक त्राटक के ऄभ्यास के नवषय में नविार करना छोड़ नदया, ‍योंनक ईस समय मैं ऄत्यन्त कठोर
साधना कर रहा था। कठोर साधना के कारण ऄन्नग्रहण नहीं कर रहा था। कुछ समय बाद ध्यानावस्था में नफर त्राटक
की याद अने लगी। मझु े ऄब ऄिम्भा सा लगा, ‍योंनक मैं त्राटक का ऄभ्यास करने के नवषय में भल ू सा गया था,
मगर समानध ऄवस्था में याद अने के कारण सामान्य ऄवस्था में भी त्राटक की याद अती रहती थी। नफर मैं त्राटक के
नवषय में ही निन्तन करने लगा, मझु े आसका ऄभ्यास करना िानहए या नहीं करना िानहए। बहुत सोिने के बाद हमने
ननणतय नलया नक मझु े त्राटक का ऄभ्यास ऄवश्य करना िानहए। ऄभ्यास करने का ननणतय आसनलए नलया ‍योंनक मझु े
मालमू था नक भनवष्य में मझु े कुछ अध्यानत्मक कायत करने हैं, ऐसा मझु े प्रकृ नत ने कइ बार बताया है। मैं ईस समय तो
यह नहीं समझ पाया नक नकस प्रकार के अध्यानत्मक कायत करने हैं, मगर आतना ऄवश्य नवश्वास हो गया था नक भनवष्य
में कुछ कायत करने हैं। ऄब मैंने सोि नलया नक ऄगर भनवष्य में कुछ करना है, तो पहले अध्यानत्मक रूप से

त्राटक 21
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र्न‍तर्ाली बनना अवश्यक है। नफर कायों को संपन्न करने में नकसी प्रकार की रुकावट या कनठनाइ नहीं अयेगी।
त्राटक के ऄभ्यास से मन को एकाग्र करने में सहायता नमलती है तथा संकल्प र्न‍त भी ऄत्यन्त प्रभावर्ाली हो जाती
है।
मैंने ननश्चय नकया नक त्राटक का ऄभ्यास थोड़ा-थोड़ा ऄवश्य करूँगा। सबसे पहली यह समस्या थी नक त्राटक
का ऄभ्यास कै से नकया जाता है और आसका मागतदर्तन कौन करे गा? आतना ऄवश्य मालमू है नक मेरी गरुु माता त्राटक के
ऄभ्यास का मागतदर्तन नहीं करें गी ‍योंनक आसका ऄभ्यास ईन्होंने स्वयं नहीं नकया है तथा आस नवषय में वह बताती भी
नहीं हैं। कुछ नदन हमारे आस प्रकार सोि-नविार में ननकल गये नक त्राटक के नवषय में नकससे पछ ू ू ँ गा, कौन आस नवषय में
बताएगा। मैंने ननश्चय नकया नक आस कायत में मैं समानध का सहारा लँगू ा तथा मझु े यह भी मालमू था नक मैं कइ जन्मों से
योगी बनता िला अ रहा हँ ऄथातत् योग का ऄभ्यास करता िला अ रहा ह।ँ ऄगर पवू त जन्मों में मैंने त्राटक का
ऄभ्यास नकया होगा, तो ऄवश्य ही त्राटक का ऄभ्यास आस जन्म में भी करूँगा, ‍योंनक ईस ऄभ्यास के संस्कार हमारे
नित्त में ऄवश्य बने होंगे। जब वह सस्ं कार नित्त में प्रकट होंगे, तब कहीं न कहीं मागतदर्तन ऄवश्य नमलेगा। ऐसा नित्त
का ननयम है। जब कोइ वततमान जन्म में महत्त्वपूणत कायत अरम्भ कर देता है, तब ईनित समय मैं ईसके नित्त के ननिली
सतह पर नवद्यमान सजातीय संस्कार (प्रारब्ध संस्कार) प्रकट होकर भोगने के नलए उपरी सतह पर अ जाते हैं। ऄथातत्
मैंने त्राटक का ऄभ्यास ऄगर नपछले जन्मों में नकया होगा, तो वह सस्ं कार नित्त के उपरी सतह पर अकर हमारे
ऄभ्यास में सहयोगी बन जाएंग।े आससे मझु े त्राटक के ऄभ्यास में र्ीघ्र सफलता नमलनी र्रुु हो जायेगी। ऄगर मैंने
त्राटक का ऄभ्यास नहीं नकया होगा, तब मझु े त्राटक के ऄभ्यास में सफलता प्राप्त करने में ज्यादा समय लग जायेगा।
प्रकृ नत का ननयम है नक जब कोइ मनष्ु य लम्बे समय तक नकसी एक ही कायत को करने में लगा रहता है, तब
ईसके नित्त पर नस्थत सजातीय संस्कार उपरी सतह पर अकर ईस मनष्ु य के कायत में सहायता प्रदान करते हैं। ऐसे
ऄवसर पर ऄगर ईसके नित्त पर सजातीय सस्ं कार नहीं हैं, तब नवजातीय सस्ं कार प्रकट होकर ईसके कायों में ऄवरोध
डालने लगते हैं। आसीनलए देखा गया है नक बहुत से साधक एक जगह बैठकर कइ महीने और सालों तक योग का
ऄभ्यास करते हैं। ईनमें से कुछ साधकों को बहुत ही र्ीघ्र साधना में सफलता प्राप्त होने लगती है, ईनका मागत थोड़े से
ही ऄभ्यास से अगे की ओर प्रर्स्त हो जाता है। ऐसे साधक ननश्चय ही पवू क त ाल में (पवू त जन्मों में) साधना कर िक
ु े हैं।
ईनके नपछले जन्मों के सस्ं कार वततमान ऄभ्यास में सहयोग प्रदान करते हैं। कुछ साधक ऐसे भी होते हैं, जो सभी
साधकों के साथ रहकर समान ननयमों का पालन करते हुए ऄभ्यास करते हैं, मगर ईन्हें र्ीघ्र सफलता नहीं नमलती है
ऄथवा पररश्रम के ऄनसु ार कम सफलता नमलती है। आसका स्पि कारण है नक ईन साधकों के नित्त में साधना से
सम्बनन्धत सस्ं कार नहीं हैं, ऄथातत् सजातीय सस्ं कार नहीं हैं, बनल्क नवजातीय सस्ं कार नित्त में होने के कारण सफलता
र्ीघ्र नहीं नमल पा रही है, ऄथवा ईनके मागत में नकसी न नकसी प्रकार के ऄवरोध ईपनस्थत होने लगते हैं। आसनलए कहा
जाता है नक मनष्ु य को सदैव ऄच्छे कायत करने िानहए, भले ही आस प्रकार के कमों का फल ऄभी न नमलें, मगर कभी-
न-कभी आन कमों का फल ऄवश्य नमलेगा। मनष्ु यों की अदत होती है नक ईन्हें तरु न्त ऄच्छे कमों का फल प्राप्त करने

त्राटक 22
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की आच्छा रहती है। ऄगर ऄच्छे कमों का फल प्राप्त नहीं हुअ, तो ऄच्छे कायत करना बन्द कर देते हैं। नफर वह दसू रे
ढंग के कायत करने लगते हैं, नजसमें र्ीघ्र ही धन का लाभ हो। ईसके नलए िाहे काननू के नवरूि ऄथवा प्रकृ नत के
ननयमों के नवरूि ही ‍यों न कायत करना पड़े। ऐसा करने पर कभी न कभी तो कमों को भोगना ही पड़ेगा। जब भोगना
पड़ता है, तब दःु खी होते हैं और कहते है नक हमने कभी ऐसा कमत नहीं नकया, जो ऐसे कष्ट भोगने पड़ रहे हैं।
मैं समानध ऄवस्था में त्राटक के ऄभ्यास के नवषय में ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करने लगा, मझु े त्राटक के
नवषय में जानकारी हानसल होने लगी। ‍योंनक सनवकल्प समानध ऄवस्था में ऄभ्यासी ऄगर ऄपने अपसे पछ ू े गा, तब
योग्यता ऄनुसार समानध ऄवस्था में ईसका ईत्तर नमलना नननश्चत है। समानध ऄवस्था में प्राप्त ज्ञान के ऄनसु ार मैंने
त्राटक का ऄभ्यास करना र्रुु कर नदया। समानध ऄवस्था में ईन्हीं साधकों को ईनके प्रश्नों के ईत्तर नमलेंग,े जो पवू त
जन्मों में योग का ऄभ्यास कर िक ु े हैं तथा ईच्िकोनट के साधक रह िक ु े हैं। ऄगर पवू त जन्मों में योग का ऄभ्यास नहीं
नकया है, तब ऐसे साधकों को समानध ऄवस्था में मागतदर्तन नहीं हो पायेगा।
त्राटक के ऄभ्यास में मागतदर्तन करने के नलये मेरा कोइ प्रत्यि गरुु नहीं था और न ही मैंने कभी नकसी से
त्राटक के ऄभ्यास के नवषय में पछ ू ा। मैं समानध ऄवस्था में थोड़ी सी जानकारी ले लेता था ऄथवा नमल जाती थी,
ईसी के ऄनसु ार त्राटक का ऄभ्यास करता रहता था। हाँ, मैंने ऄपने गरुु देव श्री माताजी को त्राटक के ऄभ्यास के नवषय
में बता नदया था। मैं थोड़ा सा ओर स्पि कर द–ँू आस समय मैं ऄपनी साधना बहुत ही ईग्रता के साथ कर रहा था। एक
नदन में 18 घण्टे साधना करता था। यह 18 घण्टे का ध्यान नदन में िार बार में होता था। दो घण्टे प्राणायाम व व्यायाम
करता था, आसी में थोड़ा सा त्राटक व मत्रं जाप भी करता था। रानत्र 1.30 बजे से 3.30 बजे तक सोता था। खाना नहीं
बनाता था, सबु ह एक कप (100 नम.ली.) दधू व दो के ले लेता था, आतना ही सायंकाल के समय लेता था। दसू रों के
हाथ का बना खाना स्वीकार नहीं करता था, यहाँ तक नक दसू रे के हाथ का नदया पानी भी नहीं पीता था। मेरी
कुण्डनलनी बहुत ही ईग्र थी तथा मेरी नदव्य दृनि भी बहुत ही तीव्र गनत से कायत करती थी। आतनी ईग्र साधना करते हुए
मैं त्राटक का ऄभ्यास करता था। ऄब अप समझ सकते हैं नक मेरा ध्यान तन्मात्राओ ं के ऄन्तगतत िल रहा था तथा
नदव्य दृनि भी ऄनत सक्ष्ू मता से नदखा देती थी, कुण्डनलनी र्न‍त भी ऄत्यन्त ईग्र थी।
मैंने त्राटक के ऄभ्यास के नलये िाटत का प्रयोग नहीं नकया था, बनल्क कमरे के ऄन्दर दीवार पर एक छोटा सा
ननर्ान लगा नलया था, ईसी पर त्राटक का ऄभ्यास नकया करता था। त्राटक करने का मेरा कोइ नननश्चत समय नहीं था,
जब भी थोड़ा बहुत समय नमलता था, तभी त्राटक का ऄभ्यास नकया करता था। आस प्रकार त्राटक करने से मझु े तीन
प्रकार का लाभ होता था। पहला– मेरा त्राटक का ऄभ्यास हो रहा था। दसू रा– मेरा अज्ञािक्र र्ीघ्रता से खल ु गया, मैं
ऐसा ही मानता ह।ँ तीसरा– मेरी नदव्य दृनि बहुत पैनी हो गयी थी। आसका एक कारण और था नक मेरी कुण्डनलनी भी
ईग्र थी, ईग्र कुण्डनलनी वाले की नदव्य दृनि पैनी होती है। त्राटक के ऄभ्यास के कारण मेरा अज्ञािक्र ज्यादा
नक्रयार्ील हो गया था। नदव्य दृनि के द्रारा आच्छानसु ार कुछ भी देखने का सामर्थयत अ िुका था। आस नवषय में हमारे
गरुु देव श्री माताजी को मालूम था। श्री माता जी की अज्ञानसु ार मैंने कुछ भौनतक कायत भी नकये थे, आन कायों का

त्राटक 23
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ईल्लेख मैं आस स्थान पर नहीं करूँगा, ‍योंनक मेरी और माताजी की अपस में कुछ गप्तु बातें थी। आसकी जानकारी कुछ
साधकों को हो गयी थी। श्री माताजी ने कुछ गप्तु कायत लेने के नलए मझु े नकसी साधक द्रारा सबु ह 5:30 पर बल
ु वाया
था, ईस साधक को यह सब जानकारी हो गयी थी। मैंने कभी भी नहीं नकसी को कुछ बताया नक मेरे और श्रीमाता जी
के बीि ‍या बात होती है? कुछ वषों बाद नकसी ने मझु से फोन पर पछू ा– ‚अनन्द कुमार, तमु से श्रीमाता जी 1992-
93 में ‍या कायत नलया करती थी?‛
कभी-कभी मैं दीपक की लौ पर ऄभ्यास नकया करता था, मगर समय कम होने के कारण दीपक पर त्राटक का
ऄभ्यास कम ही नकया करता था। ‍योंनक समानध का ऄनधक ऄभ्यास होने के कारण हमारे अँखों के पलकों पर जख्म
भी हो गये थे। त्राटक के ऄभ्यास का प्रभाव हम पर र्ीघ्रता से पड़ रहा था, त्राटक के द्रारा मैं नकसी भी मनष्ु य के नवषय
में र्ीघ्रता से जान जाता था। मझु े ऄ‍टूबर 1992 का समय याद अ रहा है, जलगाँव (महाराष्र) के साधकों के कहने
पर मझु े श्री माताजी नमरज से पनू ा होते हुए (ठहरते हुए) जलगाँव ले अयीं थी। ईस समय में जलगाँव में एक सानधका
के घर ठहरा हुअ था। श्री माताजी ऄपने बेटे के पास ठहरी थी। मैं सानधका के घर से तैयार होकर सबु ह 6 बजे
ननकलता था, नफर वापस रानत्र को 11-12 बजे अता था। नदन भर जलगाँव र्हर में साधक भाइ-बनहनों से नमलता
रहता था, ये सभी मझु े ऄपने यहाँ बल ु ाया करते थे। बलु ाने का एक कारण यह भी था– वे सभी साधक भाइ-बहन मझु से
सासं ाररक बातें भी पछ ू ा करते थे, मैं ईनका तरु न्त जवाब दे नदया करता था, आसनलए वे सभी साधक मझु े बहुत पसन्द
करते थे, ‍योंनक साधकों के नमत्र भी मझु से पछ ू ा करते थे, नजन्हें मैं नहीं जानता था। ईनको भी ईत्तर नदया करता था।
आतनी तीव्र गनत से सटीक ईत्तर देने का एक कारण यही भी था -हमारे त्राटक का ऄभ्यास व नदव्य दृनि। मैं
ईत्तर देते समय कभी-कभी नदव्य दृनि का भी प्रयोग करता था। प्रश्नकतात का एक िण मस्तक देखता था तथा कभी-
कभी ईसके रृदय पर भी दृनि डालता था, ईसी समय प्रश्नकतात के प्रश्न का ईत्तर नमल जाता था। ईस जानकारी को मैं
प्रश्नकतात को बता देता था। नकसी के नवषय में गप्तु से गप्तु जानकारी कर लेना हमारे नलये साधारण बात थी। मैं कुछ नदन
आसी कायत में व्यस्त रहा, ईसी समय हमारे गरुु देव श्री माताजी को नकसी ने ये सारी बातें बता दी नक अनन्द कुमार
अजकल आस कायत में लगा रहता है। नकसी साधक ने मझु े बताया नक अपको श्री माताजी ने बल ु ाया है। मैं कुछ समय
बाद श्री माता जी के पास पहुिँ गया। ‍योंनक मेरी और माताजी के ठहरने की दरू ी मात्र 5-7 नक.मी. रही होगी। श्री माता
जी के पछ ू ने पर मैंने सारी बातें ऄपनी बता दी। श्री माता जी ने मझु से कहा– ‚तमु ननश्चय ही ऄच्छे साधक हो, तम्ु हारी
साधना बहुत ही ईग्र होने के कारण कुछ भी बता पाने में समथत हो, मगर एक बात याद रखना– काम पड़ने पर सब लोग
दधू से नहलाते हैं, घी के दीपक से अरती ईतारते हैं, बाद में दधू में पड़ी म‍खी की तरह ननकाल कर फें क देते हैं‛। ये
र्ब्द मझु े अज भी याद हैं। नफर मैं कुछ नदनों बाद ऄपने घर कानपरु (ई.प्र.) अ गया, एक माह रहकर नदल्ली होते हुए
नमरज (महाराष्र) अ गया।
मैं ऄब घर से अकर नफर से कठोर साधना व त्राटक का ऄभ्यास करने लगा। ऄब मैं कुछ साधकों को गप्तु
रूप से मागतदर्तन वहीं अश्रम में करने लगा। आस नवषय में मैंने श्री माताजी को नहीं बताया नक मैं साधकों का मागतदर्तन

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कर रहा ह।ँ मागतदर्तन आसनलए कर रहा था आससे मझु े कुछ प्रयोग करने के ऄवसर नमलेंगे। मैं साधकों पर त्राटक र्न‍त
का भी प्रयोग नकया करता था, ये सारे प्रयोग हमारे सफल होते थे। कुछ नदनों बाद श्री माता जी को यह बात मालूम हो
गयी नक अश्रम में अनन्द कुमार साधकों का मागतदर्तन करता है। यह बात श्री माताजी को ऄच्छी नहीं लगी। मगर
सीधे मझु से कुछ नहीं कहा। मैं साधकों का मागतदर्तन करते हुए बार-बार प्रयोग कर रहा था, खदु साधक मझु से प्राथतना
करते थे, तब मैं ऐसा करता था। मैंने साधकों की कुण्डनलनी भी ईठाइ थी ऄथातत् जाग्रत करके उध्वत की थी। मेरे और
श्री माताजी के नविार अपस में मेल नहीं करने लगे। मैं लगातार साधकों को अध्यानत्मक लाभ पहुिँ ाने के नलये
प्रयोग करता रहा, आन प्रयोगों में कुछ प्रयोग त्राटक द्रारा नकये जाते थे। मैं स्वयं त्राटक का ऄभ्यास नकया करता था तथा
त्राटक का प्रयोग दसू रे साधकों पर करता था। आससे धीरे -धीरे त्राटक के नवषय में ढेरों जानकाररयां नमलीं, मैं ऐसा ही
िाहता था, आसनलए त्राटक का प्रयोग करता रहता था। नफर ऄप्रैल 1993 में मैं नमरज अश्रम छोड़कर ऄपने गाँव अ
गया।
ऄपने पैतकृ गाँव कानपरु (ई.प्र.) अकर मैं समानध का ऄभ्यास करता रहता था, ‍योंनक मेरी कुण्डनलनी पणू त
यात्रा कर पहले ही नस्थर हो िक ु ी थी। यहाँ अकर मैं सूयत त्राटक का ऄभ्यास नकया करता था। सबु ह एक से डेढ़ घण्टे
सयू त पर त्राटक का ऄभ्यास नकया करता था, नफर र्ाम को मैं ऄपने गाँव के बाहर िला जाता था, तब अधा से एक
घण्टा सयू त त्राटक नकया करता था। रानत्र को खलु े असमान के नीिे सोया करता था, ईस समय रानत्र के 12 बजे के
लगभग थोड़ी देर के नलए मैं तारों पर त्राटक का ऄभ्यास नकया करता था। जो तारा अकार् में सबसे तेज िमकता था
ईसी पर मैं त्राटक का ऄभ्यास नकया करता था। कभी-कभी मैं िन्रमा पर भी ऄभ्यास नकया करता था, नफर सो जाता
था। कभी-कभी समय नमलने पर गाँव के बाहर वृि पर त्राटक नकया करता था। आसी प्रकार मैं योग का ऄभ्यास
(समानध का ऄभ्यास) व त्राटक का ऄभ्यास सदैव नकया करता था। घर में मझु े नकसी प्रकार का काम नहीं करना पड़ता
था, आसनलए मैं परू ी तरह से मैं ऄपना समय ऄभ्यास में ही व्यतीत करता था।
ऄगस्त 1993 में मझु े र्ाकम्भरी में र्क ं रािायत अश्रम में (सहारनपरु , ई.प्र.) में बल
ु ाया गया, मैं वहाँ िला
गया। यह र्क ं रािायत अश्रम र्ाकम्भरी में सहारनपरु नजले (ई.प्र.) में है। आस अश्रम में एक नवद्यालय है, आस नवद्यालय
में संस्कृ त भाषा में पढ़ाइ होती है। यह सम्पणू ातनन्द नवश्वनवद्यालय वाराणसी (ई.प्र.) की एक र्ाखा है। यहाँ 12वीं किा
तक पढ़ाइ हुअ करती है। वेदों अनद का भी ऄध्ययन कराया जाता है, गरुु कुल जैसी व्यवस्था यहाँ पर है। आस अश्रम
के ऄध्यि ने मझु े बल ु ाया था। यहीं पर मैं ऄपना ऄभ्यास नकया करता था। यहाँ पर ईगता हुअ सयू त नहीं नदखाइ देता
था ‍योंनक अश्रम पहाड़ों के बीि में बना था। सयू त त्राटक और वृि (पेड़) का ऄभ्यास ज्यादा से ज्यादा नकया करता
था तथा योग का भी ऄभ्यास नकया करता था। कुछ समय नवद्यानथतयों को भी योग का ऄभ्यास कराया करता था तथा
गनणत भी पढ़ा नदया करता था। मैं अश्रम से नकसी प्रकार का र्ल्ु क नहीं नलया करता था। अश्रम की ओर से मझु े
रहने-खाने अनद की व्यवस्था थी।

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एक वषत बाद मैं अश्रम छोड़कर ऄपने पैतक ृ गाँव कानपु र अ गया। अश्रम के ऄध्यि स्वामी जी की बहुत
आच्छा थी नक मैं ऄभी और अश्रम में रह,ँ मगर मैं िला अया। ऄपने अकर गाँव के बाहर कुनटया बनाकर रहने लगा।
यहाँ पर मैंने 1995 से लेकर सन् 1998 तक त्राटक का ऄत्यतं कठोर ऄभ्यास नकया। ऄब त्राटक का मेरा ऄभ्यास
ऄत्यनधक हो गया था। मझु े लगा नक ऄब मझु े त्राटक का ऄभ्यास बन्द कर देना िानहए। ‍योंनक हमारे अँखों से एक
नवर्ेष नक्रया होने लगी थी, ईस नक्रया को हम बन्द नहीं कर सकते थे। आस नक्रया के होने के कारण मझु े समाज में
व्यवहार करने में बड़ी परे र्ानी अने लगी थी। मैंने त्राटक का ऄभ्यास करना बन्द कर नदया था, ऄब मैं नसफत समानध
का ऄभ्यास नकया करता था।
योग में मेरी ईच्िावस्था हो गयी थी तथा त्राटक का ऄभ्यास भी मेरा बहुत ही ज्यादा हो गया था। ऄब मैं
त्राटक के द्रारा ढेरों प्रयोग नकया करता था। तथा प्रयोग के नवषय में नभन्न-नभन्न प्रकार की जानकारी नलया करता था।
ऐसे प्रयोगों के नवषय में नकसी को नहीं बताता था, संसारी परुु ष आस नवषय में कुछ भी नहीं जान पाते थे। कभी-कभी मैं
कुछ लोगों को ईन्हीं के जीवन के नवषय से सम्बनन्धत कुछ बता नदया करता था तथा ऄप्रत्यि रूप से लाभ भी पहुिँ ा
देता था तानक नकसी को हमारे बारे में जानकारी न हो। कभी-कभी ऐसे भी कुछ ऄवसर अये नक हम पर कुछ लोगों को
र्क हो गया नक ऄमक ु कायत मेंरे कारण सम्पन्न हो गया है। ऐसी ऄवस्था में मैं वह जगह छोड़ देता था। मैं नहीं िाहता
था नक समाज के लोग मझु े जानें नक मैंने यह कायत नकया है ऄथवा कर सकता ह।ँ पाठकों! हमेर्ा याद रखना–कभी
ऐसा परोपकार न करो नक लोग तम्ु हें जानें, तम्ु हारी स्तनु त करें , तम्ु हें सम्मान की दृनि से देख।ें अपको परोपकार करना है
तो ऐसे परोपकार करो नक अपके द्रारा कायत भी हो जाये और वह जान भी न पाये नक हमारे साथ नकसने ऄच्छा
व्यवहार नकया है, ऄथातत् गप्तु रहकर परोपकार करना िानहए। ऄच्छा साधक बनने के नलये यही श्रेष्ठ कमत है, श्रेष्ठ ईपाय
है अनद। बहुत लोग ऐसे भी होते हैं, जो ऄपने परोपकार का नढढं ोरा पीटते रहते हैं।
मैं पहले नलख िक ु ा हँ नक जब मैं नमरज अश्रम में था, तब श्री माता जी को साधक के पास जाकर र्न‍तपात
करने के तरीके से हमारे ऄन्दर त्राटक का ऄभ्यास करने की आच्छा प्रकट हुइ। कुछ नदनों बाद त्राटक का ऄभ्यास नबना
गरुु के ही र्रुु कर नदया था। सन् 1992 से लेकर सन् 1998 तक त्राटक का कठोर ऄभ्यास नकया। एक बात ध्यान
रखने योग्य है नक मैंने योग का ऄभ्यास करते हुए योग में ईच्ितम ऄवस्था प्राप्त की है, यह अप मेरी पस्ु तकों में पढ़
सकते हैं तथा त्राटक का भी ऄभ्यास नकया है। जो परुु ष योगी होते हुए त्राटक का ऄभ्यास करता है, ईसका ऄभ्यास
ननश्चय ही श्रेष्ठ होता है। आस त्राटक के ऄभ्यास के कारण ही मैं जब ऄपने साधकों का मागतदर्तन करता ह,ँ तब मझु े स्पर्त
करके र्न‍तपात करने की कोइ अवश्यकता नहीं पड़ती है। सम्पणू त कायत त्राटक के द्रारा ही करता ह।ँ त्राटक द्रारा
मागतदर्तन करने के नलए त्राटक में पारंगत होना ऄनत अवश्यक है। त्राटक का प्रयोग मैं सासं ाररक कायों के नलए नहीं
करता ह,ँ नसफत साधकों को मागतदर्तन करने के नलये त्राटक र्न‍त का प्रयोग करता ह।ँ

त्राटक 26
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त्राटक का प्रभाि
त्राटक का ऄथत होता है– जब साधक नकसी वस्तु पर ऄपनी दृनि और मन को बाँधता है, तो वह नक्रया
त्र्याटक कहलाती है, त्र्याटक र्ब्द ही अगे िलकर त्राटक कहा जाता है। दसू रे र्ब्दों में– ‘नकसी पदाथत को नबना
पलक झपकाए टकटकी लगाकर देखते रहना’। जब मनष्ु य सामान्य ऄवस्था में संसार में व्यवहार करता है, तब ईसकी
दृनि नकसी भी पदाथत पर मात्र कुछ िण ही लगातार पड़ती है, नफर ईसकी दृनि के सामने दसू रा पदाथत अ जाता है
ऄथातत् दसू रा दृश्य देखने लगता है तथा पदाथत को देखते समय ईसकी पलकें रुक कर झपकती रहती है, आसे द्राटक
कहते हैं। जब मनष्ु य जाग्रत ऄवस्था में व्यवहार की दर्ा में नकसी पदाथत को नबना पलक झपकाए लगातार देखता
रहता है, ईसे एकटक कहते है। ऐसा तभी होता है तब ऄिानक कोइ अश्चयत कर देने वाला दृश्य या पदाथत नदखाइ दे
जाये ऄथवा ऄन्तःकरण को बहुत ही ऄच्छा लगने वाला पदाथत या दृश्य नदखाइ दे जायें, जो ईसने सोिा ही न हो
ऄथातत् कौतहल कर देने वाला हो, तब आस ऄवस्था में ज्यादातार मनष्ु य एकटक देखता रहता है। ऐसी ऄवस्था में
एकटक देखने का प्रयास नहीं नकया जाता है, बनल्क स्वमेव एकटक देखता रहता है। तभी कहा जाता है– मैं ऄमक ु
वस्तु को एकटक देखता रहा, मेरी पलकें भी नहीं झपकीं थी। जब मनष्ु य नकसी वस्तु या पदाथत को नबना नकसी भाव के
प्रयत्नपवू क
त ननरन्तर दीघतकाल तक देखता रहता है, तब आस नक्रया को त्राटक कहते हैं। अँखों द्रारा तेजस् रूप में
ननकलीं हुइ वृनत्तयाँ को एक जगह के नन्रत करने के नलये यह ऄभ्यास नकया जाता है।
योग मागत में त्राटक का महत्त्व बहुत ऄनधक है। योग के ऄभ्यास में मन को सयं नमत करके ऄतं मख
तु ी करना
ऄनत अवश्यक है। जब तक मन एक जगह ठहर कर ऄतं मतख ु ी नहीं होगा, तब तक धारणा, ध्यान और समानध का
ऄभ्यास नहीं नकया जा सकता है। मन एक जगह ठहरता ही नहीं है ‍योंनक रजोगणु प्रधान होने के कारण ईसके ऄन्दर
ििं लता रहती है, ििं ल होने के कारण मन सदैव एक पदाथत से दसू रे पदाथत की ओर भागता रहता है। ईसे ऄगर अप
एक जगह पर ठहराना िाहें, तो वह नहीं ठहरे गा। अप मन को एक जगह ठहरा दें या रोक दें, नफर ईससे कहो– तमु आसी
स्थान पर कुछ िणों तक ठहरे रहो– भागना नहीं। अपको पता ही नहीं िलेगा नक मन कब भाग गया। कुछ समय बाद
अपको पता िलेगा नक मन को तो मैंने ऄमक ु जगह पर ठहरने के नलए कहा था, मगर पता नहीं, कब वह बाजार की
ओर, कायातलय की ओर, नमत्रों की ओर, ररश्तेदारों की ओर भाग गया। आसी भागते हुए मन को एक जगह ठहराने के
नलए त्राटक का ऄभ्यास नकया जाता है।
ऄब थोड़ा मन के नवषय में जान लें, मन ऐसा ‍यों करता है? यह भी जानना जरूरी है, ‍योंनक मन आधर-ईधर
भागेगा, तब अपकी दृनि एक जगह नहीं ठहरे गी, अप ऄपने लक्ष्य को भल ू जाएगं े। मन कहीं पर िला जाता है, तब
अप स्वयं ऄपने अपको ही भल ू जाते हैं। यह भी याद नहीं रख पाते हैं नक अप ‍या देख रहे थे, जबनक स्थल ू वस्तु
वहीं नवद्यमान रहती है। आसी प्रकार अँखें बन्द करके जब मन को ध्येय वस्तु पर ठहराएँग,े तब वह कुछ िणों बाद
आधर-ईधर भाग जायेगा, ‍योंनक ईसे भागने की अदत पड़ी हुइ है। जहाँ-जहाँ नजस-नजस नवषय पर भागेगा, ईसी नवषय
की अपको याद नदलायेगा, अप यह भी भल ू जाएँगे नक मैं ध्यान करने के नलए असन पर बैठा हुअ ह।ँ कुछ समय

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बाद याद अयेगा, अप ध्यान करने के नलए बैठे हुए हैं। अप नफर मन को ध्येय वस्तु पर लगाएगं े, पर मन नफर आधर-
ईधर भागेगा, ‍योंनक ईसकी अदत पड़ी हुइ है।
मन ‍यों आधर-ईधर भागता है, एक जगह ‍यों नहीं ठहरता है? हम आसको आस प्रकार समझते हैं– मनष्ु य जब
नकसी भी प्रकार का कमत करता है, तब ईन कमों के संस्कार नित्त पर बनते हैं, ऄथवा कमातर्य नित्त पर एकत्र होते
रहते हैं। नित्त पर दो प्रकार के संस्कार नवद्यमान रहते हैं: एक– प्रारब्ध कमातर्य, दो– संनित कमातर्य। जो कमातर्य
नित्त की उपरी सतह पर प्रधान रूप में रहते हैं, ईन्हें प्रारब्ध कमातर्य कहते हैं। आन कमातर्यों को वततमान जन्म में
भोगना ऄननवायत होता है। जो कमातर्य नित्त की ननिली सतह पर सषु प्तु रूप में नवद्यमान रहते हैं, ईन्हें संनित कमातर्य
कहते हैं। आन्हें वततमान जन्म में नहीं भोगना पड़ता है, बनल्क ऄगले जन्मों में भोगना पड़ता है। नित्त का स्वभाव है–
‘स्पन्दन करना’ ऄथवा नित्त में स्पन्दन होता रहता है। स्पन्दन होने से कमातर्य बाहर की ओर ननकलते रहते हैं, ऄथातत्
वृनत्तयाँ (कमातर्य) बनहमतखु ी होकर अँखों के द्रारा तेजस् रूप में बाहर ननकलती हैं। तेजस् रूप से ननकली हुइ वृनत्तयाँ
दृश्य या पदाथों का स्वरूप धारण कर लेती हैं, ईन्हीं पदाथों के स्वरूप का प्रनतनबम्ब हमारे मनस्तष्क पर पड़ता है, आससे
पदाथों के नवषय का ज्ञान होता है।
जब से नित्त ऄनस्तत्व में अया, तब से नित्त में स्पन्दन हो रहा है, और बराबर होता रहेगा। ईसका कारण यह
है नक नित्त वायु तत्त्व की प्रधानता से बना हुअ है, वायु तत्त्व का स्वभाव है स्पन्दन करना या कम्पन करना। आसीनलए
नित्त में ननरन्तर स्पन्दन होता रहता है। स्पन्दन या कम्पन होने से नित्त की भनू म पर नवद्यमान कमातर्यों (वृनत्तयाँ) पर भी
कम्पन का प्रभाव पड़ता है। आसी कारण वृनत्तयाँ नित्त की भनू म से बनहमख तु ी होकर बाहर की ओर ननकलने लगती हैं।
वृनत्तयों के बनहमतखु ी होकर बाहर अने में वायु तत्त्व की कम्पन की र्न‍त लगी रहती है। जैसे कमान से तीर ननकलने पर
तीर पर कमान की र्न‍त लगी रहती है और तीर अगे की ओर गनत करता रहता है, आसी प्रकार वृनत्तयाँ बाहर की ओर
ननकलती हैं। ऐसा समझो नक वृनत्तयों पर कम्पन होने की र्न‍त लगती रहती है। आन्हीं वृनत्तयों में ऄहक ं ार, बनु ि और
मन कायत करता है। ईदाहरण– जो वृनत्त ये कहे– मैं ऐसा कर दगँू ा या कर सकता हँ वह ऄहक ं ार रूपी वृनत्त है। जो वृनत्त
यह कहे– मझु े ऐसा करना िानहए ऄथवा नहीं करना िानहए, ऄथातत् ननणतय करने का कायत करे , ईसे बनु ि कहते हैं। जो
वृनत्त आच्छा िलाने का कायत करे ऄथातत् सांसाररक पदाथों को भोगने की आच्छा करे , ईसे मन कहते हैं। वृनत्तयाँ अँखों
के द्रारा तेजस् रूप में बाहर ननकलती हैं, पदाथों के स्वरूप को धारण करती है, ज्ञानेनरयाँ पदाथों का ज्ञान कराती हैं, तब
मन कमेनन्रयों को आनच्छत पदाथत प्राप्त करने का ननदेर् देता है, नफर कमेनन्रयाँ पदाथों को प्राप्त करने का प्रयास करती
हैं।
ऄब र्ायद पाठकों को थोड़ा सा समझ में अ जायेगा नक मन एक जगह नस्थर ‍यों नहीं रहता है, ‍योंनक यह
नक्रया तो नित्त से अरम्भ हो रही है तथा सदैव होती रहेगी। सामान्य रूप से कभी बन्द नहीं होती है, जब तक नक
समानध के माध्यम से नित्त की वृनत्तयों को ननरूि न कर नदया जाये। ऐसा नसफत तत्त्वज्ञानी परुु ष द्रारा ही होता है, नजसके
नित्त पर ऊतम्भरा प्रज्ञा का प्राकट्य हो िक
ु ा होता है। आस योग्यता वाले योगी भल
ू ोक पर न के बराबर ही होते हैं। मन

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को र्न‍त प्राणों के द्रारा नमलती है, मन और प्राण का अपस में गहरा सामन्जस्य है, दोनों एक दसू रे के परू क है। यनद
प्राणों की गनत को रोक नदया जाये, तब मन ऄपने अप ठहरने लगता है। आसी प्रकार ऄगर मन को एक जगह ठहरा
(रोक) नदया जाये, तब प्राणों की गनत ऄपने अप ठहरने लगती है। जब त्राटक के ऄभ्यास से मन को रोकते हैं, तब
प्राणों की गनत भी ऄपने अप रुकने लगती है। नजस ऄभ्यासी का त्राटक का ऄभ्यास नबन्दु पर एक घण्टे का होता है,
ईस ऄभ्यासी के प्राणों की गनत पर भी प्रभाव पड़ने लगता है।
बनहमखतु ी हुअ मन बहुत िंिल होता है, आसीनलए वह नकसी एक पदाथत पर ठहरता नहीं है, वह सदैव
सांसाररक भोग की वस्तुओ ं की ओर भागता ही रहता है। ईन पदाथों को भोगने के नलये सदैव प्रयासरत रहता है। ऐसे
मन में सत्वगणु नाम मात्र का या लेर्मात्र का रहता है, रजोगणु की मात्रा प्रधानता से रहती है, तमोगणु भी ज्यादा मात्रा
में नमनश्रत रहता है। आसीनलए तामनसक भोग पदाथों की ओर ज्यादा भागता है। ऐसे मन को एक जगह ठहरना,
अध्यानत्मक कायों में ईन्मख ु होना अनद पसन्द नहीं होता है। आसीनलए आसे संकुनित सीमाओ ं वाला मन, िरु मन,
लघमु न, बनहमतख ु ी मन अनद नामों से भी जाना जाता है। आसी बनहमतख ु ी मन का दास हुअ मनष्ु य सम्पणू त जीवन
आच्छाओ ं की पनू तत में लगा रहता है और सारा जीवन व्यतीत कर देता है।
त्राटक के ऄभ्यास के द्रारा जब मन को एक जगह ठहराने का ऄभ्यास करते है, तब धीरे -धीरे कठोर ऄभ्यास
के द्रारा मन ठहरने लगता है, तथा ऄभ्यास के द्रारा मन की रजोगणु व तमोगणु की मात्रा घटने लगती है। रजोगणु की
मात्रा कम होने से ईसकी िंिलता कम होने लगती है तथा तमोगणु की मात्रा कम होने से सत्वगणु का प्रभाव बढ़ने
लगता है। अलस्य व नकारात्मक सोि में पररवततन अने लगता है। ऄभ्यासी की सोि बदलने लगती है। मन के ऄन्दर
र्ि
ु ता व व्यापकता अने लगती है। आससे मन सर्क्त बनता है, मन के सर्क्त व बलवान होने से ऄभ्यासी के ऄन्दर
ननभीकता या ननडरता वाली सोि अने लगती है।
जब तक मनष्ु य त्राटक का ऄभ्यास नहीं करता है, तब तक ईसका मन कमजोर स्वभाव वाला रहता है, ईसकी
संकल्प र्न‍त में नकसी प्रकार का बल नहीं रहता है। ऐसा मनष्ु य संकल्प र्न‍त द्रारा नकसी भी प्रकार का कायत नहीं
कर सकता है। त्राटक का ऄभ्यास करने वाले मनष्ु य की सक ं ल्प र्न‍त ऄभ्यासानसु ार र्न‍तर्ाली हो जाती है। ऐसी
ऄवस्था में साधक संकल्प के द्रारा ढेरों कायत कर सकता है, त्राटक र्न‍त द्रारा अध्यानत्मक, सक्ष्ू म रूप से, स्थल
ू रूप
से ढेरों कायत कर सकता है। ऄभ्यासी के ऄन्दर ऐसी नवलिणता अ जाती है नक ईसके द्रारा नकये गये कायों को
देखकर ससं ारी मनष्ु य अश्चयतिनकत हो जाते है। आसनलए त्राटक के द्रारा अजकल ढेरों प्रकार के कायत नकये जाते हैं।
आस प्रकार के कायों को करने के नलये नकसी प्रकार का धन का खित नहीं होता है।
ऄब प्रश्न ईठता है नक त्राटक के ऄभ्यास से ऐसे कायों को करने की सामर्थयत कै से अ जाती है? सामान्य
ऄवस्था में मन जब तेजस् रूप में बाहर ननकलता है, ईस समय मन िारों ओर फै ला रहता है, ऄथातत् तेजस् रूप में
नकरणें सांसाररक पदाथों पर फै ली रहती हैं। आन नकरणों का स्वरूप फै ले रहने के कारण मन ऄत्यन्त कमजोर ऄवस्था में

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रहता है, ‍योंनक ऄज्ञानता के कारण सांसाररक पदाथों में असक्त रहता है, आसी असनक्त के कारण मन राग-द्रेष, मोह
अनद से यक्त ु रहता है। यह ईसकी कमजोरी रहती है। जब त्राटक के ऄभ्यास के द्रारा मन की तेजस् रूपी नकरणों को
एक स्थान पर के नन्रत करने का प्रयास करते हैं, तब फै ली हुइ नकरणें एक जगह पर एकत्र हो जाती हैं। ये एकत्र नकरणें
जब एक ही जगह पर देर तक ठहरने लगती हैं, तब मन र्ि ु , व्यापक व सर्क्त होने लगता है। ऄभ्यास के द्रारा मन
आतना र्न‍तर्ाली हो जाता है नक ऄभ्यासी द्रारा नकये गये संकल्प से ही कायत होने लगते हैं। जैसे– सयू त की नबखरी हुइ
नकरणें लेंस के द्रारा एक जगह पर डाली जाती हैं, तब ईस जगह पर अग लग जाती है, मगर नबखरी हुइ नकरणों से
अग नहीं लग पाती है, ‍योंनक नबखरी हुइ ऄलग-ऄलग नकरणों में आतनी सामर्थयत नहीं होती है नक वह अग लगा
सकें । आसी प्रकार मन को समझना िानहए। फै ला हुअ मन जब एक जगह एकत्र होता है, तब वह र्न‍तर्ाली हो जाता
है। ईसी प्रकार पतली लकड़ी को अप असानी से तोड़ सकते हैं, ऄगर आन्हीं पतली लकनड़यों को एक साथ बाँधकर
गट्ठर बना लें, नफर गट्ठर में बँधी हुइ लकनड़यों को यनद एक बार में तोड़ना िाहें, तो अप नहीं तोड़ सकते हैं ‍योंनक
संगनठत लकनड़याँ मजबूत हो जाती हैं।
तेजस् रूपी मन को जब नकसी एक ही वस्तु पर बाँधते या नटकाते हैं, तब पहले तो मात्र कुछ िण ही नबना
पलक झपकाए देख पाते हैं। परन्तु जब धीरे -धीरे ऄभ्यास के द्रारा मन एक जगह नटकने लगता है, ऄथातत् वृनत्तयाँ जब
एक ही जगह के नन्रत होने लगती हैं, तब ईसकी िि ं लता धीरे -धीरे र्ातं होने लगती है। ईन वृनत्तयों में रजोगणु की
मात्रा कम होने लगती है। आनके साथ ही प्राणों की गनत भी ठहरने लगती है। प्राणों की गनत कम होने से प्राणों में र्िु ता
अने लगती है, ऄथातत् प्राण भी र्ि ु होने लगता है। प्राण र्ि
ु होने से वृनत्तयों का रजोगण व तमोगणु भी कम होने
लगता है। वृनत्तयाँ (मन) र्ि
ु होने के कारण व्यापक होने लगती हैं, आसका कारण है सत्वगणु की मात्रा का बढ़ना।
सत्वगणु वृनत्तयों को ऐसी ऄवस्था में व्यापक व प्रकानर्त बनाता है, ‍योंनक सत्वगणु का प्रभाव ‘प्रकार्क व हल्का
होना’ है। आससे आसका ऄभ्यासी के नित्त पर भी प्रभाव पड़ने लगता है। नित्त की मनलनता नष्ट होने लगती है तथा
प्राणों की गनत कम होने के कारण नित्त पर हो रहे स्पन्दन (कम्पन) पर भी प्रभाव पड़ता है। त्राटक के ऄभ्यास से
ऄभ्यासी के ऄन्दर धीरे -धीरे बहुत बड़ा पररवततन अने लगता है।
प्रकृ नत पाँि तत्त्वों द्रारा बनी है। आन पाँिों तत्त्वों पर तीन गणु ों का प्रभाव पड़ता है। आन पाँि तत्त्वों व तीन गणु ों
द्रारा प्रकृ नत ऄपनी रिना करती है तथा व्यवस्थापवू क त नक्रया हो रही है। ये पाँि तत्त्व है, 1. अकार् तत्त्व,
2. वायु तत्त्व, 3. ऄनग्न तत्त्व, 4. जल तत्त्व, 5 पृर्थवी तत्त्व। तीन गणु है– 1. सत्वगणु , 2. रजोगणु 3.तमोगणु । तीनों गणु
कभी ऄके ले नहीं रहते हैं, प्रत्येक पदाथत में तीनों गणु न्यनू ानधक मात्रा में सदैव नवद्यमान रहते हैं। प्रकृ नत के सक्ष्ू म से
सक्ष्ू म पदाथत में या परमाणु में पाँिों तत्त्व व तीनों गणु न्यनू ानधक मात्रा में नवद्यमान रहते हैं तथा गणु ों के कारण ही सम्पणू त
ऄपरा प्रकृ नत में नक्रया होती रहती है।
मनष्ु य जब नकसी भी प्रकार से प्रकृ नत का भोग करता है ऄथातत् व्यवहार करता है, तब पाँिों तत्त्व व तीनों गणु
स्थल
ू व सक्ष्ू म रूप से नवद्यमान रहते हैं। ऄब गौर करने की बात यह है– मनष्ु य जब कतातपन के साथ नलप्त होकर कमत

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करता है, तब ईसके संस्कार नित्त पर बन जाते हैं। ये संस्कार नित्त में नवद्यमान हो जाते हैं। ये संस्कार ईनित समय पर
वृत्ताकार छल्लों की तरह नित्त की उपरी सतह पर अ जाते हैं, तब आन्हें वृनत्तयाँ कहते हैं। आन वृनत्तयों में सक्ष्ू म रूप से
पाँिों तत्त्व व तीनों गणु न्यनू ानधक मात्रा में नवद्यमान रहते हैं। ऐसा नहीं होता है नक नकसी वृनत्त में एक या दो तत्त्व न हो
ऄथवा कोइ गणु मौजदू न हो, ‍योंनक प्रकृ नत की संरिना पाँि तत्त्व व तीन गणु ों से हुइ है। हाँ, ऐसा ऄवश्य होता है नक
मनष्ु य की सोि के ऄनसु ार कायत करते समय नकसी भी गणु की मात्रा कम या ऄनधक होगी। ईसी के ऄनसु ार संस्कार
बनते हैं, तब ईन सस्ं कारों में भी गणु ों की मात्रा न्यनू ानधक होती है। ईदाहरण– नकसी ने परोपकार, सेवा या अध्यानत्मक
कायत नकया, तब ईसके कमातर्यों में सत्वगणु की मात्रा ज्यादा होगी, तमोगणु की मात्रा कम होगी। ऄगर नकसी ने नहसं ा
वाले, दष्ु टता वाले, ऄपरानधक कमत नकये, तब ईसके कमातर्यों में तमोगणु की मात्रा ऄनधक होगी, तथा सत्वगणु की
मात्रा लेर् मात्र रह जाती है।
रजोगणु तो सभी प्रकार की वृनत्तयों में नवद्यमान रहता है, ‍योंनक सभी कमत रजोगणु की सहायता से ही नकए
जाते हैं। हालानं क कभी-कभी ऄत्यन्त तमोगणु ी कायत करने से रजोगणु की मात्रा कम रह जाती है, जैसे भारी मात्रा में
नर्ीले पदाथों का सेवन करना अनद। ऐसी ऄवस्था में नित्त पर तमोगणु अच्छानदत हो जाता है, ईसके फलस्वरूप
ईस पर अलस्य का प्रभाव ऄनधक रहता है। सत्वगणु तो पणू त रूप से दबा रहता है, और रजोगणु भी दबा रहता है। ऐसे
मनष्ु य की प्रवृनत्त सदैव ऄधमत की ओर बनी रहती है। आसी प्रकार जब ऄत्यन्त सानत्वक कायत नकये जाएँ, तब भी
रजोगणु की मात्रा कम हो जाती है। जैसे– समानध का ऄनधक ऄभ्यास करने वाले ऄभ्यासी के नित्त पर सत्वगणु का
प्रभाव अच्छानदत रहता है। आसके फलस्वरूप ऄभ्यासी का नित्त सदैव ऄतं मतख ु ी बना रहता है तथा िेतन तत्त्व या इश्वर
की ओर ईन्मख ु रहता है। ऐसी ऄवस्था में भी रजोगणु दबा रहता है। जबनक दोनों प्रकार के मनष्ु यों में भारी ऄन्तर होता
है। एक– ससं ार से नवरक्त होकर ऄतं मख तु ी हुअ नित्त इश्वर ईन्मख ु रहता है। दसू रा– ससं ार में नलप्त हुअ मनष्ु य,
बनहमख तु ी नित्त वाला, सांसाररक पदाथों में नलप्तता की ओर ईन्मखु रहता है।
ऄब अप सोि रहे होंगे नक यहाँ पर मैं कमातर्यों और वृनत्तयों के नवषय में ‍यों नलखने लगा? हाँ यह सत्य है
नक जब तक हम वृनत्तयों के नवषय में सही रूप से जान नहीं पाएगं ,े तब तक त्राटक का ऄभ्यास करते समय आस नवषय
में बारीकी से नहीं समझ पाएंग।े मैंने ऄभी प्रकृ नत के नवषय में नलखा है नक छोटे से छोटे परमाणु के ऄन्दर भी पाँिों
तत्त्व व तीनों गणु ईपनस्थत रहते हैं। आसी प्रकार प्रत्येक वृनत्त के ऄन्दर भी पाँिों तत्त्व व तीनों गणु ईपनस्थत रहते हैं।
सामान्य ऄवस्था में आन वृनत्तयों को नहीं देखा जा सकता है। वृनत्तयों को समानध की ऄत्यन्त ईच्िावस्था में ही देख
पाना संभव होता है। आसीनलए योग के सभी ऄभ्यासी भी आन वृनत्तयों के वास्तनवक स्वरूप को देख पाने में समथत नहीं
होते हैं।
त्राटक का ऄभ्यास करते-करते जब सफलता नमलने लगती है, तब धीरे -धीरे सत्वगणु की मात्रा बढ़ने लगती
है, रजोगणु व तमोगणु कमजोर पड़ने लगता है। सत्वगणु प्रकार्क होता है। आस ऄवस्था में ऄभ्यासानसु ार वृनत्त स्वच्छ
या ननमतल होने लगती है। आस स्वच्छता या ननमतलता के कारण वृनत्त में नवद्यमान पृर्थवी तत्त्व भी ननमतल होने लगता है,

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‍योंनक पृर्थवी तत्त्व ही सबसे ज्यादा घनत्व वाला होता है। पृर्थवी तत्त्व जब र्ि
ु होने लगता है, तब साधकों को आस
तत्त्व का रंग ऄभ्यास के समय नदखाइ देने लगता है। ऄभ्यास के समय साधक को नदखाइ देता है– ईसकी अँखों से
पीले रंग की िमकीली नकरणें ननकल रही हैं, वे सभी नकरणें ईस वस्तु के ऄन्दर समा रही हैं, नजस वस्तु पर त्राटक का
ऄभ्यास कर रहा होता है। ऄथवा ऐसा नदखाइ देता है नक ईस वस्तु के अस-पास पीले रंग का गोला सा (छल्ला सा)
बन रहा है, ये पीले रंग की नकरणें या गोला पृर्थवी तत्त्व को दर्ात रहा होता है। मैं पहले कइ बार नलख िक ु ा ह–ँ मन
तेजस् रूप में अँखों के द्रारा बाहर की ओर ननकलता है। ऄभ्यास के कारण वृनत्तयों का पृर्थवी तत्त्व का रंग नदखाइ देने
लगता है। ऄगर गौर करें – जो पीले रंग की नकरणें ऄभ्यास के समय नदखाइ दे रही हैं, वह पहले नहीं नदखाइ दे रही थी।
आसका ऄथत हुअ– ऄभ्यासी की दृनि में पैनापन अने लगता है, ऄथातत् अँखों को पहले की ऄपेिा ज्यादा सक्ष्ू म देख
लेने की सामर्थयत अने लगी है तथा वृनत्त में र्ि
ु ता व व्यापकता बढ़ने लगती है, िि ं लता धीरे -धीरे कम होने लगी है।
पाँिों तत्त्वों के ऄपने ऄलग-ऄलग रंग होते हैं। पृर्थवी तत्त्व का रंग पीला होता है, जल तत्त्व का हरा होता है,
ऄनग्न तत्त्व का रंग लाल होता है, वायु तत्त्व का रंग धम्रू (या सफे द) होता है, अकार् तत्त्व का रंग िमकीला नीला
होता है। आन्हीं रंगों के द्रारा तत्त्वों के नवषय में जाना जाता है। त्राटक के ऄभ्यास के समय सबसे पहले पृर्थवी तत्त्व का रंग
नदखाइ देता है, नफर क्रमर्ः ऄभ्यास बढ़ने पर हरा रंग, लाल रंग,धम्रू रंग, नीला रंग नदखाइ देता है। नकसी-नकसी
ऄभ्यासी को हरा व धूम्र रंग ऄभ्यास के समय नहीं नदखाइ देता है। ऄभ्यासी को रंग नदखाइ देने के तरीके में थोड़ा सा
ऄन्तर भी हो सकता है। जैसे– नकसी ऄभ्यासी को जब अँखों से पीले रंग की नकरणें ननकलती हुइ नदखाइ देती है, तब
ऐसा लगता है– अँखों से नकरणें ननकलकर सामने नबन्दु पर समा रही है। नबन्दु के असपास गोल-गोल छल्ले ननकलते
नदखाइ देते है, नबन्दु के अस-पास पीले रंग का धब्बा सा बनता नदखाइ देता है, अनद।
जब प्रकृ नत (ऄपरा प्रकृ नत) ऄनस्तत्व में अयी ऄथवा संरिना हुइ तब सबसे पहले अकार् तत्त्व का प्राकट्य
हुअ, अकार् तत्त्व से वायु तत्त्व का प्राकट्य हुअ या ईत्पन्न हुअ, वायु तत्त्व से ऄनग्न तत्त्व का प्राकट्य हुअ, ऄनग्न
तत्त्व से जल तत्त्व का प्राकट्य हुअ, जल से पृर्थवी तत्त्व का प्राकट्य हुअ, पृर्थवी तत्त्व से नकसी तत्त्व का प्राकट्य नहीं
हुअ, यह अनखरी ठोस तत्त्व है। यहाँ पर मैंने प्राकट्य र्ब्द का प्रयोग नकया है, प्राकट्य का ऄथत बनहमख तु ी होकर
प्रकट होने से है। जो तत्त्व नजससे प्रकट हुअ, ईस प्रकट हुए तत्त्व का घनत्व ईस तत्त्व से ज्यादा होता है नजससे वह
प्रकट होता है, तथा सीमाएँ कम होती हैं ‍योंनक ईससे ईत्पन्न होने के कारण तथा घनत्व ज्यादा होने के कारण कम
सीमाओ ं वाला ऄथातत् कम व्यापकता वाला होता है।
अकार् तत्त्व से वायु तत्त्व ईत्पन्न हुअ है, आसनलए अकार् तत्त्व की सीमाएँ, वायु तत्त्व की ऄपेिा ज्यादा
होती है ऄथातत् वायु तत्त्व की ऄपेिा अकार् तत्त्व ऄनधक व्यापक है। वायु तत्त्व, अकार् तत्त्व के ऄन्दर नवद्यमान
रहता है तथा अकार् तत्त्व की ऄपेिा वायु तत्त्व का घनत्व ज्यादा होता है, आसीनलए अकार् तत्त्व की ऄपेिा वायु
तत्त्व ऄनधक ठोस होता है। आसी प्रकार वायु तत्त्व से ऄनग्न तत्त्व ईत्पन्न हुअ है, ऄनग्न तत्त्व का घनत्व वायु तत्त्व से
ज्यादा होता है,घनत्व ज्यादा होने के कारण वायु तत्त्व की ऄपेिा ऄनग्न तत्त्व ठोस होता है तथा वायु तत्त्व के ऄन्दर

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नस्थत रहता है, आसीनलए ऄनग्न तत्त्व की ऄपेिा वायु तत्त्व ऄनधक व्यापक है। ऄनग्न तत्त्व से जल तत्त्व ईत्पन्न हुअ है,
ऄनग्न तत्त्व की ऄपेिा जल तत्त्व ऄनधक घनत्व वाला है, आसनलए जल तत्त्व ऄनग्न तत्त्व की ऄपेिा ऄनधक ठोस है,
ऄनग्न तत्त्व जल तत्त्व की ऄपेिा ऄनधक व्यापक है, ऄतः जल तत्त्व ऄनग्न के ऄन्दर नस्थत रहता है। जल तत्त्व से
पृर्थवी तत्त्व ईत्पन्न हुअ है, जल तत्त्व की ऄपेिा पृर्थवी तत्त्व बहुत ही ज्यादा ठोस है, ‍योंनक पृर्थवी तत्त्व का घनत्व
जल तत्त्व से बहुत ज्यादा होता है, जल तत्त्व की व्यापकता पृर्थवी तत्त्व से ऄनधक होती है, आसीनलए पृर्थवी तत्त्व जल
तत्त्व के ऄन्दर नस्थत रहता है।
अकार् तत्त्व के ऄन्दर वायतु त्त्व, वायतु त्त्व के ऄन्दर ऄनग्न तत्त्व, ऄनग्न तत्त्व के ऄन्दर जलतत्त्व, जलतत्त्व के
ऄन्दर पृर्थवीतत्त्व क्रमर्ः नवद्यमान रहते हैं। जो तत्त्व नजससे प्रकट होता है ईससे ऄनधक घनत्व वाला होता है। आसनलए
अकार् तत्त्व का घनत्व सबसे कम होता है और पृर्थवी तत्त्व का घनत्व सबसे ज्यादा होता है ऄथातत् तत्त्वों के प्रकट
होते समय ठोसता के अधार पर क्रमर्ः जड़ता बढ़ती जाती है तथा सीमाएँ भी छोटी होती जाती हैं। पृर्थवी तत्त्व से जल
तत्त्व ऄनधक सक्ष्ू म है व व्यापक है। जल तत्त्व से ऄनग्न तत्त्व ऄनधक सक्ष्ू म व व्यापक है, ऄनग्न तत्त्व से वायु तत्ि
ऄनधक सक्ष्ू म व व्यापक है, वायु तत्त्व से अकार् तत्त्व ऄनधक सक्ष्ू म व व्यापक है। आसी कारण प्रकृ नत अकार् तत्त्व में
ऄनधनष्ठत होकर वायु तत्त्व द्रारा ऄपनी रिना करती है ‍योंनक अकार् तत्त्व ररक्त है।
प्रकृ नत ऄपनी रिना तीन ऄवस्थाओ ं वाली करती है ऄथातत् तीन ऄवस्थाओ ं में नवद्यमान रहती है। ये तीनों
ऄवस्थाऐ ं हैं– 1. कारण ऄवस्था 2. सक्ष्ू म ऄवस्था, 3. स्थल ू ऄवस्था। कारण ऄवस्था से कारण जगत का ननमातण
हुअ है, सक्ष्ू म ऄवस्था से सक्ष्ू म जगत का ननमातण हुअ है और स्थल ू ऄवस्था से स्थल ू जगत का ननमातण हुअ है।
आसनलए स्थल ू जगत के ऄन्दर सक्ष्ू म जगत व्याप्त रहता है, यह सक्ष्ू म जगत स्थल ू जगत की ऄपेिा ऄनधक सक्ष्ू म व
व्यापक है। सक्ष्ू म जगत के ऄन्दर कारण जगत व्याप्त रहता है, यह कारण जगत सक्ष्ू म जगत की ऄपेिा ऄनधक सक्ष्ू म व
व्यापक होता है। दसू री तरह से समझ लें– कारण जगत के ऄन्दर सक्ष्ू म जगत नवद्यमान रहता है और सक्ष्ू म जगत के
ऄन्दर स्थल ू जगत नवद्यमान रहता है। कारण जगत की ऄपेिा सक्ष्ू म जगत का घनत्व ज्यादा होता है तथा सीमाऐ ं कम
होती हैं, कारण जगत से सक्ष्ू म जगत में तमोगणु ज्यादा बनहमख तु हो रहा है, ऄथवा ज्यादा तमोगणु नवद्यमान रहता है।
आसी तरह सक्ष्ू म जगत की ऄपेिा स्थल ू जगत का घनत्व ज्यादा होता है तथा सीमाऐ ं कम होती हैं तथा तमोगणु ज्यादा
नवद्यमान रहता है। आसीनलए स्थल ू जगत आन स्थल
ू नेत्रों से स्पि नदखाइ देता है, मगर स्थल
ू नेत्रों से सक्ष्ू म जगत हम नहीं
देख सकते हैं, ‍योंनक ईसका घनत्व बहुत ही कम होता है। स्थल ू जगत में सारा व्यापार तमोगणु का ही हो रहा है,
सत्वगणु तो लेर् मात्र ही होता है।
आसी प्रकार मनष्ु य का र्रीर समझना िानहए। स्थल ू र्रीर के ऄन्दर सक्ष्ू म र्रीर व्याप्त रहता है, सक्ष्ू म र्रीर के
ऄन्दर कारण र्रीर व्याप्त रहता है। स्थल ू र्रीर से सक्ष्ू म र्रीर का घनत्व कम होता है तथा व्यापकता ऄनधक होती है,
सक्ष्ू म र्रीर से कारण र्रीर का घनत्व कम होता है तथा व्यापकता ऄनधक होती है। मनष्ु य ऄज्ञानतावर् ऄपने अपको
नसफत स्थल ू र्रीर ही समझता रहता है तथा स्थल ू जगत में ही व्यवहार करता रहता है, स्थल ू जगत में तमोगणु की

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ऄनधकता में व्यवहार होता है। मैं पहले नलख िक ु ा हँ नक प्रकृ नत रूपी ब्रह्माण्ड बड़ा नपण्ड है, मनष्ु य रूपी नपण्ड छोटा
नपण्ड है। जो प्रकृ नत रूपी ब्रह्माण्ड में नवद्यमान है, वही मनष्ु य रूपी नपण्ड में नवद्यमान रहता है। आसीनलए कहा जाता है–
जो र्न‍तयाँ ब्रह्माण्ड में नवद्यमान रहती हैं, वही र्न‍तयाँ मनष्ु य के र्रीर में नवद्यमान रहती हैं। मनष्ु य के र्रीर में
नननश्चत जगहों पर र्न‍त के न्र हैं, वहीं पर ये र्न‍तयाँ नवद्यमान रहती हैं। यनद आन र्न‍त के न्रों को जाग्रत कर नलये
जाये या नक्रयार्ील कर नलये जाये, तब ईस र्न‍त के न्र पर नवद्यमान र्न‍तयों से ऄभ्यासी का सम्पकत हो जाता है।
सामान्य मनष्ु य के र्रीर में ये र्न‍त के न्र सषु प्तु ावस्था में रहते हैं, जब तक अध्यानत्मक प्रनक्रया द्रारा जाग्रत न नकये
जायें, तब तक सदैव सषु प्तु ावस्था में ही बने रहते हैं।
मनष्ु य के स्थल
ू र्रीर का सम्बन्ध स्थल
ू जगत से रहता है, सक्ष्ू म र्रीर का सम्बन्ध सक्ष्ू म जगत से रहता है
तथा कारण र्रीर का सम्बन्ध कारण जगत से रहता है। ऄगर ऄभ्यासी स्थल ू र्रीर द्रारा ऄतं मतख
ु ी होकर सक्ष्ू म र्रीर
का नवकास करता है, तब ईसके नलए सक्ष्ू म जगत का नवकास होने लगता है, ‍योंनक सक्ष्ू म र्रीर और सक्ष्ू म जगत का
घनत्व एक जैसा ही होता है तथा सक्ष्ू म र्रीर और सक्ष्ू म जगत अपस में एक दसू रे में समाये रहते हैं। आसी प्रकार
ऄभ्यासी द्रारा कारण र्रीर का नवकास करने पर कारण जगत का नवकास होने लगता है। स्थल ू से लेकर प्रकृ नत पयतन्त
आसी प्रकार नवकास होता रहता है।
नजस प्रकार प्रकृ नत स्थलू से लेकर कारण तक तीन ऄवस्थाओ ं में रहती है, आसी प्रकार प्रत्येक छोटे से छोटा
परमाणु भी तीन ऄवस्थाओ ं वाला होता है। वह परमाणु भले ही स्थल ू रूप वाला नदखे, मगर ईसके ऄन्दर सक्ष्ू म और
कारण ऄवस्था वाला परमाणु नवद्यमान रहता है। आसी प्रकार ससं ार की समस्त वस्तओ ु ं के प्रनत समझ लेना िानहए।
आसी प्रकार वृनत्तयों के नवषय में भी समझ लेना िानहए। ‍योंनक प्रत्येक पदाथत पाँि तत्त्व व तीन गणु ों से यक्त
ु होता है,
तथा तीनों ऄवस्थाओ ं से यक्त ु होता है। आसीनलए कहा गया है– अकार् भी तीन प्रकार का होता है। एक– भतू ाकार्,
दो– नित्ताकार्, तीन– निदाकार्।
मझु से बहुत से ऄभ्यानसयों ने कहा– ‚मझु े अकार् तत्त्व का नीला रंग त्राटक के ऄभ्यास के समय नदखाइ
देता रहा है। मैंने अकार् तत्त्व का सािात्कार कर नलया है, ऄब ‍या करूँ?‛ यह नीला रंग भतू ाकार् का नदखाइ दे
रहा है। ऄभी तो ऄभ्यास की र्रुु अत हुइ है, अगे बढ़ने के नलए ऄभ्यास करना होगा। प्रत्येक मनष्ु य के नित में
संस्कारों का ऄम्बार लगा होता है, ईसमें तो ऄभ्यास का ऄसर ही नहीं हुअ है ऄथातत् नित्त तो ऄभी परू ी तरह से
मनलन बना हुअ है। नित्त को र्ि ु करना भी ऄनत अवश्यक है, यह र्ि ु ता यम, ननयम, प्राणायाम से अयेगी तथा
समानध का भी ऄभ्यास करना होगा। तभी त्राटक के ऄभ्यास के द्रारा ईच्ि लक्ष्य को प्राप्त नकया जा सके गा।
मैंने नलखा है नक ऄभ्यासी जब नकसी वस्तु पर त्राटक का ऄभ्यास करता है, तब ईसे सबसे पहले पीले रंग की
नकरणें नदखाइ देती हैं। कुछ नदनों तक पीले रंग की नकरणें नदखाइ देती हैं, नफर ऄभ्यास बढ़ने पर कभी-कभी हरे रंग की
नकरणें नदखाइ देंगी। ज्यादातर ऄभ्यानसयों को हरे रंग की नकरणें कम ही नदखाइ देती है। लाल रंग की नकरणें पीले रंग

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के बाद नदखाइ देने लगती हैं, ऐसा ऄ‍सर ऄभ्यानसयों को होता है। ऄभ्यानसयों को जल तत्त्व का रंग व वायु तत्त्व का
रंग कम नदखाइ देता है। वायु तत्त्व का रंग धम्रू जैसा होता है, नकसी-नकसी को हल्का सफे द या मटमैला जैसा नदखने
लगता है। ऄन्त में अकार् तत्त्व का हल्का िमकीला नीला रंग नदखाइ देने लगता है। ऄभ्यासी आतने ही ऄभ्यास को
पणू त समझने लगते हैं, जबनक ऄभी आसके अगे बहुत कुछ सािात् करना र्ेष है।

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भाग - 2
त्राटक का अभ्यास
त्राटक एक नवज्ञान है। नवश्व के ज्यादातर देर् आस पिनत को ऄपना रहे हैं। आसकी खोज और ऄनधक से
ऄनधक ज्ञान हमारे पवू क त ाल के योनगयों की ही देन है ‍योंनक त्राटक का पवू क त ाल में ऄनधकानधक प्रयोग नकया जाता
था। आससे स्पि होता है नक त्राटक का ऄभ्यास भी ऄनधक से ऄनधक नकया जाता था। अध्यानत्मक िेत्र में आसका
प्रयोग मागतदर्तन के रूप में नकया जाता था। ऄध्यात्म के ऄनतररक्त यि ु िेत्र में भी त्राटक का प्रयोग नकया जाता था।
त्राटक में पारंगत व्यनक्त यि
ु िेत्र में ऄपने र्त्रु को परास्त करने के नलये आसका प्रयोग करता था, ऐसा स्तम्भन नक्रया
द्रारा होता था। नवनभन्न प्रकार के रोगों का ईपिार भी त्राटक के द्रारा नकया जाता था।
सबसे बड़ी बात यह है नक त्राटक का ऄभ्यास नकसी भी धमत नवर्ेष से नहीं जोड़ा जा सकता है। आसके
ऄभ्यास के द्रारा मानव जानत का नवकास व लाभ होना नननश्चत है। आसीनलए नवश्व के नवनभन्न धमों के लोग आसे ऄपना
रहे हैं। त्राटक के ऄभ्यास से मनस्तष्क का नवकास होना, मन की िि ं लता छोड़कर ऄतं मख तु ी होना, अँखों का स्वस्थ
होना अनद सम्भव है। आसके ऄभ्यास से मनष्ु य नवलिण र्न‍तयों से यक्त ु हो जाता है। आस प्रकार की नवलिणता ऄन्य
प्रकार के सांसाररक कायों से प्राप्त नहीं हो सकती है, ऄथातत् मनष्ु य त्राटक के ऄभ्यास से ऄपना जीवन नवकनसत कर
सकता है तथा दसू रों का परोपकार भी कर सकता है। अजकल बहुत सी संस्थायें मानव कल्याण में लगी रहती हैं तथा
जब निनकत्सक द्रारा कुछ ईपिार कर पाना र्ीघ्र सम्भव नहीं होता है, तब त्राटक द्रारा अश्चयतजनक पररणाम देखने को
नमलते हैं।
अजकल समस्त नवश्व में त्राटक का ऄभ्यास नवनभन्न प्रकार से नकया जाता है। ईनमें से कुछ प्रकार के तरीकों
को मैं यहाँ समझाने का प्रयास करूँगा। त्राटक का ऄभ्यास भी क्रमबि तरीके से होता है। हमने देखा है नक बहुत से
ऄभ्यासी ऄभ्यास करते समय क्रमबि तरीका नहीं ऄपनाते हैं। ऐसे ज्यादातर वे ऄभ्यासी होते है, नजनका कोइ
मागतदर्तक नहीं होता है, वे ऄपने मनमाने तरीके से ऄभ्यास करते रहते हैं। जो मनष्ु य मनमाने तरीके से ऄभ्यास करता
है, वह ऄपना लक्ष्य प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाता है, ऄथवा ईसके ऄभ्यास के पररणाम ऄच्छे नहीं होते हैं।
आसनलए त्राटक का ऄभ्यास नकसी ऄनभु वी मागतदर्तक के मागतदर्तन में करना िानहए ‍योंनक मागतदर्तक आस मागत का
पररप‍व ज्ञाता होता है। ईसे मालमू होता है नक नकस प्रकार से ऄभ्यास करना िानहए, ऐसे गरुु का नर्ष्य ऄवश्य ही
ऄपने ऄभ्यास में सफल होता है। मैंने ऐसे बहुत से ऄभ्यासी ऐसे भी देखे हैं जो बहुत ऄभ्यास करने के बाद भी सफल
नहीं होते हैं। सि तो यह है नक यह मागत आतना कनठन है नक नबना गरुु के अगे की ओर बढ़ा ही नहीं जा सकता है।

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त्राटक का ऄभ्यास नसफत एक ही प्रकार से नहीं नकया जाता है, बनल्क नवनभन्न प्रकार से क्रमर्ः नकया जाता
है। तभी ऄभ्यासी आस मागत में कठोर ऄभ्यास व यम-ननयम का पालन करते हुए अगे बढ़ता है और वही साधक सफल
हो पाता है, वरना कुछ समय तक ऄभ्यास करके ऄनेक साधक भटक जाते हैं, ऄथवा छोड़ देते हैं। त्राटक का ऄभ्यास
ननम्न प्रकार से क्रमर्ः नकया जाना िानहए - 1. नबन्दु पर, 2. देवता के नित्र पर, 3. ॎ के नित्र पर, 4. लौ पर,
5. दपतण पर, 6. पेड़ पर, 7. िन्रमा और तारों पर, 8. सयू त पर। कुछ ऄभ्यासी आससे भी ज्यादा प्रकार से त्राटक का
ऄभ्यास करते हैं। कुछ ऄभ्यासी मात्र दो-तीन प्रकार से ऄभ्यास करते हैं। सबसे महत्वपणू त बात यह है नक ऄभ्यासी का
लक्ष्य ‍या है। लक्ष्य के ऄनसु ार मागतदर्तक द्रारा बताये गये तरीके से ऄभ्यास करना िानहए। ऄगर ऄभ्यासी को गरुु पद
पर बैठना है, तो ऄवश्य ही समय ननकाल कर सभी प्रकार के ऄभ्यास करने िानहए।

1. वबन्दु पर त्राटक
नकसी भी ऄभ्यासी को सबसे पहले नबन्दु पर त्राटक का ही ऄभ्यास करना िानहए। बहुत से ऄभ्यासी नबन्दु
पर त्राटक का ऄभ्यास न करके लौ पर त्राटक का ऄभ्यास करना र्रुु कर देते हैं। कुछ ऄभ्यासी कभी लौ पर, कभी
नबन्दु पर त्राटक का ऄभ्यास करते हैं। आस प्रकार से ऄभ्यास नहीं करना िानहए। ऄभ्यास सदैव क्रमबि तरीके से करना
िानहए। हर प्रकार के ऄभ्यास के सक्ष्ू म रूप से कुछ न कुछ कारण होते हैं। त्राटक का ऄभ्यास अप सबु ह, दोपहर,
सायंकाल व रानत्र के समय कर सकते हैं। ऄभ्यासी को आतना ऄवश्य ध्यान रखना िानहए नक भोजन के तरु न्त बाद
त्राटक का ऄभ्यास नहीं करना िानहए। भोजन करने के लगभग एक घण्टा बाद ही त्राटक का ऄभ्यास करना िानहए,
ऄभ्यासी िाहे तो भोजन करने से पहले ऄभ्यास कर सकता है।
त्राटक का ऄभ्यास करने से पहले ऄभ्यासी को यह जानकारी होनी िानहए नक ईसकी अँखों में नकसी प्रकार
का रोग तो नहीं है। ऄगर अँखों में नकसी प्रकार का रोग हो, तब ऐसी ऄवस्था में ईसे ऄभ्यास नहीं करना िानहए।
सबसे पहले ईसे निनकत्सक के द्रारा ईपिार करवाना िानहए, नफर रोग पणू त रूप से ठीक होने पर ही ऄभ्यास करना र्रुु
करना िानहए। ऄगर ऄभ्यासी की अँखों में नकसी प्रकार का रोग है, नफर भी वह ऄभ्यास करता है, तब ईसका रोग
और भी फै ल सकता है तथा अँखें खराब होने का भी डर रहता है। ननरोगी अँखों के द्रारा ही त्राटक का ऄभ्यास करना
िानहए।
ऄभ्यास करने से पहले एक असन बना लेना िानहए। असन उजात का कुिालक होना िानहए। असन कुर्
का भी बना हो सकता है। कम्बल का भी असन बना सकते है। कम्बल की पतली तह लगाकर, ईसके उपर स्वच्छ
सफे द रंग का कपड़ा नबछा होना िानहए। पतले स्पन्ज के सीट का भी असन बनाया जा सकता है। ईसके उपर सफे द

त्राटक 37
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रंग का कपड़ा नबछा होना िानहए। हमेर्ा यह ध्यान देना िानहए नक असन ज्यादा नरम नहीं होना िानहए और न ही
आतना कठोर होना िानहए नक वह असन पैरों में िभु ।े
ऄब अप बाजार से सफे द रंग का िाटत खरीद लें, नजसमें बच्िे (नवद्याथी) नित्र बनाते हैं। नीले रंग का स्कै ि
(पेन), पारदर्ी टेप व कैं िी ले ले। नजस कमरे में ऄभ्यास नकया जाना है, वहाँ पर नकसी प्रकार का र्ोर अनद नहीं
सनु ाइ देना िानहए। कमरा साफ सथु रा होना िानहए। सीलन नबल्कुल नहीं होनी िानहए। कमरे में ऄगर प्राकृ नतक रूप से
प्रकार् अ रहा है, तो ऄच्छी बात है, नहीं तो कमरे के ऄन्दर ईनित प्रकार् की व्यवस्था करनी होगी। एक सफे द रंग
का मल ु ायम सा रूमाल से बड़े अकार का कपड़ा ऄपने पास रख लेना िानहए। यनद कपड़ा मलमल का हो तो और भी
ऄच्छा है; खरु दरा कपड़ा नहीं होना िानहए, यह अँसओ ु ं को पोंछने के काम अयेगा।
नजस कमरे में ऄभ्यास करना हो, ईसकी दीवार पर फर्त से 1-2 नफट उपर िाटत को टेप से निपका दें, ऄथवा
िाटत को दीवार पर आतनी उँिाइ पर निपकाऐ ं नक िाटत का मध्य वाला भाग, असन पर बैठने पर अपके अँखों के
सीध में रहे। ऄब िाटत के मध्य में नीले रंग के स्के ि (पेन) से 2 नमली.मी. के अकार के बराबर नबन्दु बना दें। नबन्दु
साफ व गोल हो। ऄब अप फर्त पर ऄपना असन नबछा लें। िाटत से असन की दरू ी एक या सवा मीटर होनी िानहए।
ऄब अपकी अँखों और नबन्दु की दरू ी एक या सवा मीटर होगी। नबन्दु और अपकी अँखें समानान्तर नदर्ा में होनी
िानहए। तानक नबन्दु को देखने के नलये ऄभ्यासी को ऄपनी दृनि न उपर की ओर करनी पड़े और न ही दृनि नीिे की
ओर करनी पड़े। त्राटक का ऄभ्यास करते समय दृनि नबल्कुल सीधी होनी िानहए। कमरे में प्रकार् न ज्यादा होना
िानहए, और न ही बहुत कम होना िानहए, और न ही बाहर से नकसी प्रकार का हवा का झोंका अना िानहए। ऄभ्यास
के समय खल ु ी हुइ अँखों की बाहरी परत पर वायु के झोंके नबल्कुल नहीं लगने िानहए।
ऄभ्यास करने के नलए असन नबछा कर सहजासन मरु ा में बैठ जाआये। आस बात का ध्यान रहे नक ऄभ्यासी
की रीढ़ सीधी होनी िानहए। ऄभ्यास करने से पहले ईस मल ु ायम कपड़े को तह लगाकर मोटा कर लेना िानहए तथा
ऄपने पास रख लें, ‍योंनक अँसू पोंछने के काम अयेगा। ऄब अप िाटत पर बने नीले नबन्दु को देनखये। ये याद रखना
है नक पलक नहीं झपकनी िानहए, नबना पलक झपकाए टकटकी लगाकर नबन्दु को देखते रहना है। कुछ समय तक
नबना पलक झपकाए देखने के बाद अँखों में जलन होने लगेगी। आस जलन को हठपवू क त सहना ही होगा, जब तक
अप सह सकते हैं। ऄब हो सकता है नक अपकी अँखों से अँसू भी बहने लगे, अँखों में हल्की सी खजु ली भी लग
सकती है। जब तक अप अँखें खोल सकते है, खोले रनहये, ऄनधक जलन होने पर अँखों को बन्द कर लीनजये।
अँखों को बन्द रनखये और अपके पास जो तह लगा हुअ मल ु ायम कपड़ा है,ईस कपड़े से अँखों के अँसू
धीरे से पोंछ लीनजये, अँखों पर दबाव नहीं दीनजए और न ही हाथों की ईँगनलयों के द्रारा अँखों को खजु ायें; यनद
अपने नबन्दु को दो नमनट तक लगातार देखा है, तब अपको दो नमनट तक अँखें बन्द नकये बैठे रहना िानहए। कुछ
िणों बाद अपकी अँखों की जलन धीरे -धीरे र्ान्त होने लगेगी। जलन र्ान्त होने पर, अप नफर अँखों को खोलकर

त्राटक 38
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िाटत पर बने नबन्दु पर नबना पलक झपकाए देखना र्रुु कर दें। ऄभ्यास करते समय हो सकता है नक अपकी पलक
झपक जाये, यनद ऐसा बीि में हो भी जाये तो भी ऄभ्यास में लगा रहना िानहए। जब अपकी अँखों में जलन नफर से
होने लगे, तब अँखों को बन्द कर लेना िानहए। नफर पहले की भाँनत कपड़े से अँखों के अँसू पोंछ लेना िानहए। आसी
प्रकार धीरे -धीरे ऄभ्यास करते रहना िानहए।
र्रुु अत में नबन्दु पर त्राटक का ऄभ्यास नदन में दो बार ऄवश्य करना िानहए। यनद अपके पास समय है, तो
ज्यादा से ज्यादा ऄभ्यास करना िानहए। त्राटक का ऄभ्यास करते समय मन में नकसी प्रकर का नविार नहीं लाना
िानहए और न ही मत्रं ों का जाप करना िानहए। ऐसा करने से मन में िंिलता बनी रहेगी। जब अप नबन्दु पर त्राटक का
ऄभ्यास कर रहे हों, ईस समय अपका लक्ष्य होना िानहए नक िाटत पर बना नबन्दु और ईसे टकटकी लगाकर देखना है,
बस। अपके नलए नबन्दु के ऄनतररक्त नकसी की ईपनस्थनत नहीं है। र्रुु अत में अप 10-15 नमनट जरूर ऄभ्यास करें ,
नफर धीरे -धीरे ऄभ्यास का समय और थोड़ा बढ़ा ले, तो ऄच्छा रहेगा।
जब कुछ नदनों तक लगातार नदन में दो तीन बार ऄभ्यास करते रहेंग,े तब अपका त्राटक का समय भी बढ़
जायेगा, नफर अँखों में जलन होना धीरे -धीरे कम होने लगेगी। कुछ नदनों बाद ऐसा लगेगा नक िाटत पर बने नबन्दु के
िारों ओर पीले रंग का छल्ला सा बन रहा है ऄथवा नबन्दु पर पीले रंग का धब्बा सा बन रहा है। कभी-कभी अपको
लगेगा नक मेरी अँखों की ओर से पीले रंग की नकरणें ननकल कर नबन्दु की ओर जा रही हैं ऄथवा नबन्दु में समा रही हैं।
धीरे -धीरे नबन्दु के असपास पीले रंग का गोलाकार धब्बा बना हुअ देर तक नदखाइ देगा, ऄथवा कभी-कभी लप्तु भी
हो जायेगा। र्रुु अत में तो पीले रंग का धब्बा बनता व लप्तु होता रहता है। मगर कुछ नदनों तक ऄभ्यास करने के बाद
पीले रंग का धब्बा नस्थर होने लगता है। नस्थर होने का कारण यह है– ऄभ्यास के द्रारा जब मन थोड़ा सा नस्थर होने
लगता है, तब पीले रंग का धब्बा नस्थर हुअ नदखाइ देता है। जब मन में नस्थरता समाप्त होकर हल्की सी िंिलता अ
जाती है, तब पीला धब्बा ऄदृश्य हो जाता है या नहलता हुअ नदखाइ देता है, ऄथवा कभी-कभी ऄपनी जगह पर
घमू ता सा नदखाइ देता है। ये सारी नक्रयाएँ मन की नस्थरता व िंिलता पर अधाररत होती हैं। आसीनलए नकसी-नकसी
ऄभ्यासी को ऄभ्यास के समय नबन्दु गोल-गोल नािता सा नदखाइ देता है। सि तो यही है नबन्दु िाटत पर बना हुअ है
तथा नस्थर है। मन के ऄन्दर नस्थरता न होने के कारण ऄभ्यासी को ऐसा नदखाइ देता है ऄथवा कभी-कभी नबन्दु के
ऄन्दर से दसू रा नबन्दु ननकलता हुअ नदखाइ देता है, एक बार में दो नबन्दु नदखाइ देने लगते है। यह ऄभ्यासी की दृनि
दोष के कारण होता है।
यह पीले रंग की नकरणें, पीले रंग का धब्बा या ररंग जैसा गोलाकार ‍यों नदखाइ देता है? मैं पहले नलख िक ु ा
ह–ँ यह मन (वृनत्तयाँ) तेजस् रूप में बाहर की ओर अँखों द्रारा ननकलता है ऄथातत् वृनत्तयाँ ही तेजस् रूप में बाहर
ननकलती है। ये वृनत्तयाँ नित्त पर नस्थत संस्कारों का ही रूप होती हैं, ये संस्कार नित्त की भनू म पर वृत्ताकार रूप में
नवद्यमान रहते हैं। नित्त पर स्पन्दन होने के कारण ये गोलाकार वृनत्तयाँ बाहर ननकलने लगती हैं। जब ये वृनत्तयाँ नित्त की
भनू म पर नवद्यमान रहती हैं, तब आनका स्वरूप वायु तत्त्व से सम्बनन्धत रहता है, लेनकन बनहमख तु ी होते समय आनमें

त्राटक 39
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तमोगणु का प्रभाव बढ़ जाता है तथा आनका घनत्व भी बढ़ जाता है, तब ये वृनत्तयाँ ऄनग्न तत्त्व के रूप में (तेजस्)
पररवनततत हो जाती हैं। नफर अँखों के द्रारा बाहर ननकलने लगती हैं। वृनत्तयों के वास्तनवक स्वरूप को समानध की
ईच्िावस्था में देखा जा सकता है। आसनलए त्राटक का ऄभ्यास करते समय ये मन (वृनत्तयाँ) गोलाकार छल्लों जैसे
अकार में नदखाइ देती है तथा गोलाकार धब्बे के रूप में भी नदखाइ देती हैं। कभी-कभी ऄभ्यासी को ये वृनत्तयाँ अँखों
से नकरणों के रूप में ननकलती नदखाइ देती हैं। मगर यही नकरणें िाटत पर बने नबन्दु पर गोलाकार रूप में नदखाइ देती हैं।
वृनत्तयाँ पाँि तत्त्वों से बनी होने के कारण, आन तत्त्वों के पाँिों रंग नदखाइ देते हैं, ऄथातत् ऄभ्यास के द्रारा वृनत्त का
सािात्कार होने लगता है।
ऄभ्यासी की र्रीर र्नु ि, प्राण र्नु ि और मन र्नु ि के ऄनसु ार ही त्राटक में सफलता और ऄसफलता
नवद्यमान रहती है। सत्वगणु ी स्वभाव वाले ऄभ्यासी को त्राटक के ऄभ्यास में जल्दी सफलता प्राप्त होती है, तमोगणु ी
स्वभाव वाले ऄभ्यासी को सफलता देर से नमलेगी। आसनलए ऄभ्यासी को ऄपनी र्ि ु ता का भी ध्यान रखना िानहए।
र्ि ु रहने के नलये सानत्वक भोजन करना िानहए, तथा प्राणायाम का ऄभ्यास बहुत करना िानहए। कभी-कभी त्राटक
के ऄभ्यास में ऄसफलता का कारण असपास का र्ोर भी होता है, कानों में र्ोर सनु ाइ पड़ने से मन एकाग्र नहीं होता
है। आसनलए त्राटक का ऄभ्यास ऐसी जगह करना िानहए, जहाँ पर बच्िों, वाहनों, रे नडयो व ऄन्य प्रकार की ध्वनन
सनु ाइ न दे। त्राटक के ऄभ्यास के नलए कोइ समय नननश्चत नहीं होता है, आसनलए यनद अपके यहाँ र्ोर अ रहा है, तब
त्राटक का ऄभ्यास सयू ोदय से पहले व रानत्र के 9-10 बजे के बाद नकया जा सकता है। ‍योंनक सबु ह र्ोर नहीं होता है
व रानत्र को ऄ‍सर र्ोर कम होता है।
जब त्राटक का ऄभ्यास 15-20 नमनट का हो जाता है ऄथातत् ऄभ्यासी जब 15-20 नमनट तक नबना पलक
झपकाये लगातार देखता रहे, तब ईसके मन में थोड़ी सी नस्थरता अने लगती है। ईस समय ऄभ्यासी को पीले रंग की
नकरणें व धब्बे की जगह, हरे रंग की नकरणें ऄथवा धब्बा नदखाइ देने लगता है। हमने ऄपने आस अध्यानत्मक काल में
देखा है नक हरे रंग का धब्बा या नकरणें बहुत की कम साधकों को नदखाइ देता है। आसका ऄथत है– त्राटक के ऄभ्यास के
कारण र्ि ु हुइ वृनत्तयों का जल तत्त्व का रंग नदखाइ दे रहा है। ऄगर नकसी ऄभ्यासी को हरे रंग की नकरणें न नदखाइ दें
तो आसका ऄथत यह नहीं है, ईसके ऄभ्यास में नकसी प्रकार की त्रनु ट हो गयी है, आसनलए ऄभ्यासी ऐसी ऄवस्था में
निनन्तत न हो।
एक अवश्यक बात मैं बता द–ँू कभी-कभी नकसी ऄभ्यासी को र्ीघ्र पीले रंग की नकरणें नहीं नदखाइ देती हैं।
जब ईसका ऄभ्यास 15-20 नमनट का हो जाये, वह ऄपने अँखें बन्द करके असन पर बैठ जायें, नफर ईसी नबन्दु पर
देखने का प्रयास करें , नजस नबन्दु पर ऄभ्यास कर रहा है। कुछ िणों बाद वह नबन्दु ऄधं कार में नदखाइ देने लगेगा। ईस
समय वह नबन्दु ऄपनी जगह पर नस्थर नहीं होगा, बनल्क नहलता हुअ नदखाइ देगा। कभी बायीं ओर, कभी दायीं ओर,
कभी उपर की ओर, कभी नीिे की ओर गनत करता हुअ नदखाइ देगा। यह नबन्दु जो गनत करता हुअ नदखाइ दे रहा है,

त्राटक 40
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आसका ऄथत है नक मन ऄभी नस्थर नहीं हो रहा है। जब कुछ सप्ताहों या महीनों तक ऄभ्यास रहेगा, तब िाटत में बने नबन्दु
के असपास नीले रंग का धब्बा बनता नजर अने लगेगा।
त्राटक का अधे घण्टे का ऄभ्यास होने पर पीले या हरे रंग के धब्बे की जगह हल्के लाल रंग की नकरणें
ननकलती हुइ ंनदखायी देने लगेगीं तथा लाल रंग का धब्बा भी नदखाइ देने लगेगा। यह लाल रंग की नकरणें हर ऄभ्यासी
को एक नननश्चत समय पर ऄवश्य नदखाइ देंगी। आस रंग की नकरणों का ऄथत है– ईसे ऄनग्नतत्त्व का रंग नदखाइ दे रहा है।
ये लाल रंग की नकरणें व रंग देखने में ऄभ्यासी को बहुत ही ऄच्छी लगती हैं, ये रंग हमारे र्रीर के तत्त्वों को भी
दर्ातता है। कभी-कभी साधक को नदखाइ देता है नक िाटत पर बना नीला नबन्दु है, आस नबन्दु के िारों तरफ पीले रंग का
गोल-गोल िौड़ा सा छल्ला बना है, आस पीले रंग के छल्ले के अस-पास हरे रंग का गोल-गोल छल्ला (ररंग) सा बना
नदखाइ देता है, नफर हरे रंग के गोल-गोल छल्ले के िारों ओर िौड़ा सा लाल रंग का छल्ला सा नदखाइ देता है। नफर
ऄभ्यास बढ़ने पर आस लाल रंग के छल्ले के िारों ओर मटमैला सा (नकसी नकसी को सफे द रंग का) छल्ला बना हुअ
नदखाइ देने लगता है। एक समय ऐसा भी अता है, जब नबन्दु के बाहर िारों ओर क्रमर्ः आन सभी रंगों के छल्ले बने
हुए एक साथ नदखाइ देते हैं। ऐसा दृश्य नवरले ऄभ्यासी को ही नदखाइ देता है। आस प्रकार का ऄभ्यासी ननश्चय ही
भनवष्य में श्रेष्ठ बनता है। वह साधारण साधक से भी ऄनधक श्रेष्ठता के नलये रहता है।
ऄभ्यास जैसे-जैसे बढ़ता जायेगा, वैसे-वैसे ऄभ्यासी के ऄन्दर ऄन्तमख तु ता भी अने लगेगी व ईसकी सोि में
बदलाव अने लगता है। त्राटक का ऄभ्यास करते-करते ऄनग्न तत्त्व की लाल रंग की नकरणें व नबन्दु के अस-पास
लाल रंग का धब्बा नजर अने लगता है। ऄभ्यास के और बढ़ने पर लाल रंग की जगह सफे द (मटमैला) धम्रू जैसा रंग
नदखाइ देने लगता है, यह वायु तत्त्व का रंग होता है। आस प्रकार की नकरणें व धब्बे सभी ऄभ्यानसयों को नहीं नदखाइ
देता है, जैसे जल तत्त्व का रंग भी सभी ऄभ्यानसयों को नहीं नदखाइ देता है। वैसे हरे रंग की ऄपेिा सफे द (धम्रू ) रंग
ऄनधक ऄभ्यानसयों को नदखाइ देता है।
जब ऄभ्यास कुछ महीने का हो जाता है तब ईसे अँखों से नीले रंग की नकरणें ननकलती हुइ नदखाइ देती हैं।
ये नकरणें बहुत ही िमकीली होती हैं, नीली नकरणें अँखों से ननकलकर नबन्दु की ओर जाती हुइ नदखाइ देती हैं। आन
नकरणों के द्रारा नबन्दु के अस-पास नीले रंग का िमकदार धब्बा बनने लगता है। र्रुु अत में नीले रंग की नकरणें कुछ
िणों के नलए नदखाइ देती हैं, नफर ऄदृश्य हो जाती हैं, ऄदृश्य होने के बाद नफर पहले वाले रंग नदखाइ देने लगते हैं।
मगर साधक के बराबर ऄभ्यास से आस रंग की नकरणें ज्यादा मात्रा में ननकलने लगती हैं तथा िमकीले नीले रंग का
धब्बा भी देर तक ठहरा हुअ नदखाइ देता है। जब ईसका ऄभ्यास ज्यादा हो जाता है तब ऄभ्यासी ऄगर दीवार पर भी
नबन्दु बनाकर दरू से ऄभ्यास करे तब भी कुछ समय बाद पहले की तरह नीला धब्बा नदखाइ देने लगेगा तथा अँखों से
ननकलती हुइ नीले रंग की नकरणें नदखाइ देती हैं।

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कुछ ऄज्ञानी ऄभ्यासी आतना ही ऄभ्यास करके ऄपने अपको श्रेष्ठ ऄभ्यासी समझने की भल ू कर बैठते हैं।
ईनकी सोि होती है– हमने तो त्राटक का ऄभ्यास कर नलया है मझु े नीले रंग की नकरणें ऄपनी अँखों से ननकलती हुइ
नदखाइ देती हैं। मैं कभी भी आन नकरणों को ननकाल सकता ह,ँ आन्हीं कारणों के द्रारा ऄमक ु कायत कर सकता हँ ‍योंनक
मझु े बताया गया है– आन्हीं नीली नकरणों के द्रारा सारे कायत नकये जाते हैं। मगर जब ऐसे ऄभ्यासी त्राटक के द्रारा नकसी
कायत को करने का प्रयास करते हैं, तब ईनके हाथों में ऄसफलता ही हाथ लगती है। तब दःु खी व ननरार् हो जाते हैं नक
मझु से ऄमकु कायत ‍यों नहीं हुअ?
जब ऄभ्यासी नसफत आतने ही ऄभ्यास से कुछ कायत करने का प्रयास करें ग,े तब ऄसफलता का नमलना नननश्चत
है। आसका कारण है– त्राटक के नवषय में पणू त ज्ञान का न होना। हमने पहले बताया है नक प्रकृ नत तीन ऄवस्थाओ ं में
रहती है; ये ऄवस्थाएं हैं– पहली कारण ऄवस्था, दसू री सक्ष्ू म ऄवस्था, और तीसरी स्थल ू ऄवस्था। आसी प्रकार मनष्ु य
का र्रीर भी तीन प्रकार की ऄवस्थाओ ं वाला होता है– कारण र्रीर, सक्ष्ू म र्रीर और स्थल ू र्रीर। ऄभ्यासी ने ऄगर
स्थल ू ऄवस्था में थोड़ा सा ऄभ्यास कर नवकास कर भी नलया है, तो ‍या ईसने महारथ हानसल कर ली है? ऄभ्यास के
द्रारा ऄभी सक्ष्ू म नवकास करना है। सक्ष्ू म नवकास सक्ष्ू म र्रीर से सम्बनन्धत होता है। जब सक्ष्ू म र्रीर का नवकास होगा,
तब ईसके नलए सक्ष्ू म जगत का भी नवकास होगा, ‍योंनक सक्ष्ू म र्रीर का सम्बन्ध सक्ष्ू म जगत से होता है। जब तक
सक्ष्ू म र्रीर का ऄथातत् सक्ष्ू म जगत का नवकास नहीं होगा, तब तक सक्ष्ू म पदाथों को प्रभानवत नहीं नकया जा सकता है।
नीला रंग अकार् तत्त्व का रंग होता है। ऄभ्यासी को ऄन्त में नीले रंग की तेजस्वी नकरणें नदखाइ देती हैं, जब
बहुत समय तक आसी ऄवस्था में ऄभ्यास नकया जाये, तब ऄभ्यासी माननसक रूप से र्न‍तर्ाली होने लगता है।
अकार् तत्त्व सवतत्र व्याप्त रहता है तथा ऄन्य तत्त्वों की ऄपेिा आसका घनत्व कम होता है, आसीनलए ये तेजस्वी नीली
नकरणें, ऄन्य प्रकार की नकरणों की ऄपेिा ऄनधक र्न‍तर्ाली व व्यापक होती हैं। ये नकरणें ही प्रत्येक स्थान के
ऄन्दर प्रवेर् करने की सामर्थयत रखती हैं। आसीनलए त्राटक द्रारा नकसी भी प्रकार का नकये जाने वाला कायत आन्हीं नकरणों
के द्रारा सम्पन्न होता है। ऄभी ठहरो! भले ही ये नकरणें अकार् तत्त्व से सम्बनन्धत हैं, मगर ऄभी ऄभ्यासी के ऄन्दर,
आन नकरणों द्रारा कायत करने की िमता प्राप्त नहीं हो सकती है। ऄभी बहुत ऄनधक ऄभ्यास करने की अवश्यकता है।
सक्ष्ू म र्रीर के नवकास होने पर ही ऄभ्यासी के ऄन्दर ऄभ्यासानसु ार कायत करने की िमता प्राप्त होती है।

2. देिता के वचत्र पर त्राटक


जो ऄभ्यासी भनक्त मागत वाले साधक हैं, ऄगर वो िाहें तो ऄपने आि ऄथवा ऄपने मनपसन्द देवता पर त्राटक
का ऄभ्यास कर सकते हैं। ऐसे ऄभ्यानसयों को िाटत पर नबन्दु बनाकर ऄभ्यास करने की अवश्यकता नहीं है। ऄगर
र्रुु अत में िाटत पर नबन्दु बनाकर ऄभ्यास करें , तब सरलता सी रहती है। सफे द रंग के िाटत के मध्य में नीले रंग का

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एक नबन्दु होता है। िाटत पणू त रूप से स्वच्छ रहता है तथा ऄन्य नकसी प्रकार की नडजाआन नहीं होती है। त्राटक करते
समय मनस्तष्क पर ऄन्य नकसी प्रकार के दृश्य या रंग का प्रभाव नहीं पड़ता है। जब अप नकसी देवता के नित्र पर
ऄभ्यास करें ग,े तब ईस देवता के नित्र पर नस्थत नवनभन्न प्रकार के रंगों का प्रभाव पड़ता है। र्रुु अत में थोड़ा ऄजीब
सा लगता है, नफर अदत सी पड़ जाती है। बहुत से ऄभ्यासी ऄपने आि के नित्र पर त्राटक का ऄभ्यास करते हैं, ईन्हें
ऐसा करना ऄच्छा भी लगता है। मगर कुछ ऄभ्यासी ऄपने आि के नित्र पर ऄभ्यास करना ऄसहज महससू करते हैं।
ऄगर मैं ऄपनी बात कह,ँ तो मैंने ऄपने आि के नित्र पर त्राटक का काफी ऄभ्यास नकया है। मैं नबन्दु पर भी ऄभ्यास
नकया करता था, हमारे नलए दोनों पर ऄभ्यास करना अवश्यक था। मगर मैंने देखा है नक कुछ ऄभ्यानसयों को
नर्कायत रहती है– मझु े देवता के नित्र पर देवता का परू ा िेहरा नदखाइ देता है, ईस िेहरे पर नवनभन्न रंग नवद्यमान रहते
हैं तथा कुछ ऄन्य नडजाआन भी बना होता है, आससे मन िंिल सा रहता है, आसे एकाग्र करने में िंिलता सी महससू
होती है।
जो ऄभ्यासी देवता के नित्र पर त्राटक का ऄभ्यास करना िाहते हैं, ऐसे साधक ऄभ्यास ऄवश्य करें । ऄपने
मन पसन्द देवता का फोटो, नजस मरु ा वाला पसन्द हो, ईसे बाजार से खरीद लें और ईस फोटो को त्राटक करने के
स्थान पर दीवार पर टेप से निपका लें। निपकाने का तरीका िाटत के समान होना िानहए, िाहें तो फोटो को फ्रेम करा
सकते हैं। फोटो पर देवता के मस्तक पर भृकुनट के मध्य िेत्र पर एक छोटा सा नबन्दु बना लें, नफर ईसी नबन्दु पर त्राटक
का ऄभ्यास करें , ऄभ्यास वैसे ही करना िानहए, जैसा नबन्दु त्राटक पर नलखा हुअ है। ऄगर ऄभ्यासी िाहें तो आि के
फोटो पर नबन्दु का ननर्ान न लगाऐ,ं ऐसी ही ऄवस्था में भृकुनट पर ही त्राटक का ऄभ्यास करें । जब अँखों में जलन के
कारण अँखें बन्द करनी पड़े, तब अँखें बन्द कर लें। कुछ समय तक अँखें बन्द रखें, खोलने का प्रयास न करें । नफर
मलु ायम कपड़े से जो अपने पहले ही तह लगाकार मोटा कर नलया था, ईसे हाथ में लेकर अँखों के अँसू धीरे -धीरे
पोछें । ईस समय अँखों में जलन हो रही होती है, जलन को होने दें, हाथों की ईंगनलयों से अँखों पर नकसी प्रकार
दबाव न दें और न ही अँखों में खजु ली करें । ऐसी ऄवस्था में साधक को थोड़ी बेिैनी या परेर्ानी ऄवश्य होती है। आस
परे र्ानी को ऄभ्यासी को सहन करना िानहए। जब ऄभ्यासी अँखें बन्द नकये बैठा हो, ईस समय ईसे फोटो के देवता
का नित्र देखने का प्रयास करें , र्रुु अत में बन्द अँखों में नित्र नहीं बनेगा, कुछ नदनों तक आसी प्रकार का ऄभ्यास
करने पर देवता का नित्र बनने लगेगा। अँखों की जलन र्ान्त होने पर नफर त्राटक का ऄभ्यास करना र्रुु कर देना
िानहए।
जो साधक योग का ऄभ्यास (धारणा, ध्यान अनद) कर रहे हैं, ईन्हें ऄपने आि के स्वरूप का काल्पननक नित्र
अज्ञािक्र (भृकुनट पर) पर बनाना होता है तथा मन को भी के नन्रत करना पड़ता है। आस प्रकार के त्राटक के ऄभ्यास से
साधक का मन ध्यान करते समय भृकुनट पर के नन्रत होने लगता है। आससे ध्यान का ऄभ्यास करने में सफलता रहती है
तथा ऄभ्यास में सफलता भी नमलती है। देवता के फोटो पर तब तक ऄभ्यास करते रहना िानहए, जब तक ईसे नीले
रंग की नकरणें अँखों के द्रारा ननकलती हुइ न नदखाइ देने लगें, तथा नीले रंग के प्रकार् से फोटो का वह भाग थोड़ा सा

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ढक न जाये, जहाँ पर (नजस स्थान पर) त्राटक का ऄभ्यास कर रहा हो। जब त्राटक का ऄभ्यास फोटो पर एक घण्टे का
हो जाये, तब ईसे छोड़कर अगे का ऄभ्यास करना र्रुु कर देना िानहए।

3. ॐ के वचत्र पर त्राटक
वततमान समय में ‘ॎ’ के नित्र पर त्राटक का ऄभ्यास बहुत से मनष्ु य करते हैं। बाजार में ‘ॎ’ नलखे हुए
नवनभन्न प्रकार के नित्र नमलते हैं। ऄभ्यासी ऄपनी पसन्द का ‘ॎ’ का नित्र बाजार से खरीदकर लाते हैं और ईसी पर
ऄपना ऄभ्यास करते हैं। अजकल बाजार में नवर्ेष प्रकार का ‘ॎ’का नित्र बहुत ही नमलता है। नित्र के मध्य में छोटा
सा ‘ॎ’ नलखा रहता है, ‘ॎ’ के िारों और गोलाकार रे खाएं बनी होती हैं; ये रे खाएं आस प्रकार से बनी रहती हैं नक
नलखा हुअ ‘ॎ’ ऐसा लगता है, मानो बहुत ही दरू है। ऄगर गोलाकार रे खाओ ं पर टकटकी लगाकर देखेंगे, तब ऐसा
लगेगा, मानो ये रे खाएं हलिल सी कर रही है। ऐसा दृश्य हमारे मनस्तष्क में बनता है, मानो आस गोलाकार लाआनों में
कुछ गनत सी हो रही है। सि तो यह है नक आन रे खाओ ं में नकसी प्रकार की कोइ गनत नहीं हो रही होती है, ये हलिल
हमारे मनस्तष्क में हो रही होती है। हमारे अँखों द्रारा ननकली तेजस् रूपी वृनत्तयों में कम्पन हो रहा होता है, मगर ऐसा
लगता है नक आन गोलाकार लकीरों में हलिल हो रही होती है।
जो ऄभ्यासी नबन्दु त्राटक या फोटो पर त्राटक का ऄभ्यास नहीं करना िाहते हैं, ईन्हें ॎ के नित्र पर त्राटक
का ऄभ्यास करना िानहए। बहुत से ऄभ्यासी ‘ॎ’ के नित्र पर ही त्राटक का ऄभ्यास करना पसन्द करते हैं, ईनके
नलए ऄच्छा है, वह ॎ के नित्र पर त्राटक का ऄभ्यास करें । ॎ के नित्र पर ऄभ्यास नबन्दु त्राटक के समान ही करना
िानहए, आन दोनों के ऄभ्यास का तरीका एक ही समान है। मगर ‘ॎ’ पर त्राटक करते समय नबन्दु त्राटक से थोड़ी सी
नभन्न प्रकार की ऄनभु नू त होती है। ईसका कारण ‘ॎ’ के िारों ओर बनी गोलाकार रे खाएं होती हैं, ऄभ्यास करते
समय आन लाआनों का प्रभाव मनस्तष्क पर नभन्न प्रकार से पड़ता है। ये रे खाएं गोलाकार नदर्ा में नवर्ेष प्रकार से घमू ती
हुइ नदखाइ देती हैं और मनस्तष्क में नवर्ेष प्रकार की हलिल सी महसूस होती है। मगर जब मन की िंिलता धीरे -धीरे
र्ान्त हो जायेगी (त्राटक के ऄभ्यास के समय), तब मनस्तष्क पर नकसी प्रकार की हलिल की ऄनभू नू त नहीं होगी
और ‘ॎ’ के बाहर बनी गोलाकार लाआने भी ऄपनी जगह पर नस्थर नदखाइ देंगी। जब ऐसा हो, तब समझ लेना िानहए
नक ऄभ्यासी का मन नस्थर होने लगा है। आस ‘ॎ’ पर त्राटक करते समय ईन्हीं पाँिों तत्त्वों के रंग क्रमर्ः नदखाइ देंग।े
यह साधक के ऄभ्यास पर ननभतर करता है नक आन पाँिों तत्त्वों के रंग नकतने नदनों बाद नदखाइ देगा तथा नकतना
ऄभ्यास करने के बाद तत्त्वों के रंग बदलेंग।े जब महीनों का ऄभ्यास हो जायेगा, तब वही नीले रंग की नकरणें नदखाइ
देंगी। आसी ऄवस्था में ऄभ्यास करते रहना है। ऄनधक ऄभ्यास होने पर ध्यानावस्था ऄथवा स्वप्नावस्था में ‘ॎ’ का
दर्तन हो सकता है।

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ऄभ्यासी को त्राटक के ऄभ्यास की र्रुु अत करते समय ईसे ननणतय करना है - सबसे पहले नकस वस्तु पर
ऄभ्यास करना है। आसके नलए र्रुु अती ऄवस्था में तीन नवकल्प हैं– 1. नबन्दु पर त्राटक का ऄभ्यास, 2. देवता के
नित्र पर त्राटक का ऄभ्यास, 3. ‘ॎ’ के नित्र पर त्राटक का ऄभ्यास अनद। आन तीन प्रकार के नित्रों में से नकसी एक
पर त्राटक का ऄभ्यास करना िानहए। यह जरूरी नहीं है नक तीनों पर त्राटक का ऄभ्यास नकया जाये ‍योंनक तीनों पर
त्राटक का ऄभ्यास करने के पररणाम एक जैसे ही होते हैं। वैसे मैं ऄपनी बात करूँ तो मैं यही कहगँ ा– मैंने तीनों पर
त्राटक का ऄभ्यास नकया है। र्रुु अती ऄवस्था में आन तीनों में से नकसी एक पर मन को बाँधने का ऄभ्यास करना
िानहए। ऄभ्यासी ‘ॎ’ नलखे वाले (नबना गोलाकार लाइनों वाला नित्र) नित्र पर भी ऄभ्यास कर सकता है।
महत्त्वपणू त बात यह है नक त्राटक का ऄभ्यास नकस ईद्देश्य से नकया जा रहा है, ऄगर नसफत मन की िि ं लता
को र्ांत करने के नलये ऄभ्यास कर रहा है, तब तो ईसे ईसी प्रकार ऄभ्यास करते रहना िानहए। ऄगर ऄभ्यासी
साधक है, योग का भी ऄभ्यास कर रहा है ऄथवा ईसे त्राटक द्रारा भनवष्य में कुछ कायत करने का ईद्देश्य है, तब ईसे
अगे बढ़ने का प्रयास करना िानहए, ऄथातत् त्राटक के ऄगले पायदान की ओर बढ़ना िानहए। ऐसे ऄभ्यानसयों को मैं
राय दगँू ा नक ईसने भले ही अकार् तत्त्व के रंग का सािात्कार कर नलया है, ईसका मन र्ान्त होकर ऄंतमतख ु ी होने
लगा है, परंतु यह समझने की भल ू मत करना नक अप ऄच्छे ऄभ्यासी बन गये हैं। सि तो यह है नक अपने ऄभी
त्राटक के ऄभ्यास की र्रुु अत मात्र की है, यह मागत बहुत अगे तक जाता है। यह एक ऐसा नवज्ञान है नक जब अप
आसमें प्रवेर् करें गे, नफर आसकी गहराइ में जाने के नलये व आसको बारीकी से समझने के नलये तथा आस नवद्या में पारंगत
होने के नलये कठोर ऄभ्यास द्रारा कइ सालों तक ऄपने अपको गहराइ में ईतारना होगा और ऄन्त में वततमान अयु
अपकी कम पड़ जायेगी, मगर तब भी त्राटक का ऄभ्यास र्ेष रह जायेगा।

4. लौ पर त्राटक
जब साधक का नबन्दु पर एक घण्टे का ऄभ्यास हो जाये, ईसे एक घण्टे के ऄभ्यास में नकसी प्रकार का
ऄवरोध (जलन-अँसू अनद) नहीं अ रहा है तब ईसे दीपक की लौ पर ऄभ्यास करना र्रुु कर देना िानहए। मैं
ऄभ्यानसयों को एक अवश्यक बात बताना िाहता ह–ँ बहुत से साधक र्रुु अत में ही लौ पर त्राटक का ऄभ्यास
करना र्रुु कर देते है, ईन्हें ऐसा नहीं करना िानहए। पहले नबन्दु पर त्राटक का ऄभ्यास करें , जब नबन्दु त्राटक पर
ऄभ्यास नबना नकसी रुकावट के एक घण्टे तक होने लगे तब लौ त्राटक के नवषय में सोिना िानहए। ऄगर ऄभ्यासी के
पास समय नहीं है, तब ऐसी ऄवस्था में नबन्दु त्राटक का ऄभ्यास 30-40 नमनट का ऄवश्य होना िानहए। आसका
कारण यह भी है नबन्दु त्राटक के ऄभ्यास में पररप‍व हुए साधक की अँखों की बाह्य परत को वायु के प्रभाव को सहन
करने का ऄभ्यास हो जाता है। लौ त्राटक का ऄभ्यास करते समय ऄभ्यासी की अँखें भले ही एक सवा मीटर की दरू ी

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पर हो, तभी लौ की उष्मा का प्रभाव ईसकी अँखों पर ऄवश्य पड़ता है आसनलए पहले नबन्दु त्राटक का ऄभ्यास होना
अवश्यक है।
जब साधक को लौ त्राटक पर ऄभ्यास करना हो, तब पहले यह नननश्चत कर ले ईसे मोमबत्ती पर ऄभ्यास
करना है ऄथवा घी के दीपक पर। लौ पर ऄभ्यास करते समय यह ध्यान रहे– आस प्रकार की लौ पर ऄभ्यास करना
िानहए, नजससे धअ ु ँ न ननकल रहा हो ‍योंनक काबतन ऄभ्यासी के श्वाँस के द्रारा फे फड़ों में पहुिँ ेगा तथा अँखों की
बाह्य परत पर भी प्रभाव पड़ेगा। आसनलए हो सके तो घी के दीपक पर ही लौ त्राटक का ऄभ्यास करना िानहए, आसमें
काबतन मोनोऑ‍साआड गैस नहीं ननकलती है।
लौ त्राटक पर ऄभ्यास सदैव बंद कमरे के ऄन्दर करें , ऄभ्यास करते समय हवा के झोंकों का प्रभाव नहीं
पड़ना िानहए। ऄगर हवा का थोड़ा सा भी झोंका दीपक की लौ पर पड़ेगा, तब झोंके के प्रभाव से दीपक की लौ नहलने
लगेगी, नफर ऄभ्यास नहीं हो सके गा। ऄभ्यास करने से पहले देख ले, कमरे की नखड़की अनद तो नहीं खल ु ी है ऄगर
खलु ी हो तो ईसे बंद कर दो। आस बात का भी ध्यान रखना िानहए, ऄभ्यास के समय ऄभ्यासी को र्ि ु ऑ‍सीजन
भरपरू मात्रा में नमलनी िानहए। दीपक की लौ की उँिाइ अँखों के समानान्तर होनी िानहए, जैसे नबन्दु पर ऄभ्यास
करते समय थी। दीपक को नकसी उँिे स्थान पर रख ले, नजससे दीपक की उँिाइ और अँखों की उँिाइ बराबर हो।
दीपक से ऄभ्यासी की दरू ी एक मीटर होनी िानहए। कमरे में हल्का धीमा प्रकार् होना िानहए। मल
ु ायम सफे द कपड़ा
तह लगाकर ऄपने पास रख ले, जैसे रूमाल को तह लगाकर ऄपने पास रख लेते है, यह कपड़ा ऄपने बगल में रख ले।
कमरे के ऄन्दर नकसी प्रकार का र्ोर नहीं अना िानहए।
साधक को ऄब लौ पर ऄभ्यास करना र्रुु कर देना िानहए। लौ पर ऄभ्यास करते समय एक महत्त्वपणू त बात
यह है नक साधक को लौ की नोक पर ऄथातत् उपरी नसरे पर दृनि नटकानी िानहए। ईसे सम्पणू त लौ का स्वरूप नहीं
देखना है बहुत से मागतदर्तक सम्पणू त लौ का स्वरूप देखने के नलये कहते हैं मगर मैं ऐसा नहीं करता ह।ँ लौ के उपरी
नहस्से (नोक) पर दृनि नस्थर करने का प्रयास करना िानहए। कुछ समय बाद साधक को ऄनभु नू त होने लगेगी नक ईसके
अँखों में हल्की-हल्की गमी लग रही है। नबन्दु पर त्राटक करते समय ईसे एक घण्टे लगातार खोले रहने की अदत पड़ी
थी। मगर ऄब लौ पर त्राटक करते समय 10 नमनट बाद ही हल्की सी जलन की ऄनभु नू त होने लगती है। सम्भवत: 10-
15 नमनट बाद जलन होने के कारण अँखें बंद करने की अवश्यकता अ जाती है। ऄब ईसे अँखें बंद कर लेनी
िानहए, और र्ातं होकर बैठे रहें, अँखें खोलने का तरु न्त प्रयास न करें , ऄगर अँसू अ गये हो तो तह लगे हुए कपड़े
से अँखों के उपर कपड़ा रख कर धीरे से अँसू पोंछ लें। अँखों के उपर नकसी प्रकार का दबाव न दें। जब तक अँखों
में जलन होती रहे, तब तक अँखें बंद रखनी िानहए। जलन र्ांत होने पर नफर दबु ारा अँखें खोलकर त्राटक का
ऄभ्यास करना र्रुु कर दें। आस प्रकार लौ त्राटक के र्रुु अत में 20-25 नमनट का ऄभ्यास करना बहुत है ‍योंनक पहले
नबन्दु त्राटक का ऄभ्यास नकया जा िक ु ा है, आसनलए र्ीघ्र ही देर तक लौ त्राटक का ऄभ्यास होना र्रुु हो जायेगा।

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जब साधक का लौ त्राटक का ऄभ्यास 20-25 नमनट का हो जायेगा, तब ईसे लौ के ऄन्दर वाले भाग में धम्रू
जैसा रंग नदखाइ देने लगेगा। यह धम्रू जैसा रंग लौ के रंग के समान नमलता जल ु ता सा होता है। यह वायतु त्त्व का रंग
होता है। मैंने पहले नलखा है नक वायु तत्त्व का रंग सफे द होता है; वास्तव में मटमैला सा होने के कारण साधक ईसे
सफे द जैसा रंग कहते है। जबनक वायतु त्त्व का रंग धम्रू जैसे ही कहा जाता है। ऄगर ऄभ्यास करते समय दीपक की लौ
को गौरपवू क
त नहीं देखा तो यह धम्रू रंग नहीं नदखाइ देगा और कुछ समय तक ऄभ्यास करने पर ऄभ्यासानसु ार लौ के
उपरी भाग पर हल्के नीले रंग का गोलाकार वलय सा बना हुअ नदखाइ देने लगेगा। लौ त्राटक में नबन्दु त्राटक के
समान तेज नीले रंग का धब्बा िमकीला नहीं नदखाइ देता है। बनल्क हल्का सा छोटा वलय बना हुअ नदखाइ देता है।
लौ त्राटक के ऄभ्यास में साधक की अँखें तेजस्वी नदखाइ देने लगती है ऄगर ऄभ्यास ऄनधक नकया जाए
तो दसू रों को भी समझ में अने लगता है नक ऄमक ु साधक की अँखें पहले से तेजस्वी हो गयी हैं। अँखों का तेजस्वी
होना ऄनत अवश्यक है। ऄब साधक को सोिना है ईसे लौ त्राटक का ऄभ्यास नकतना करना है। वैसे सामान्य रूप से
त्राटक का ऄभ्यास 30-40 नमनट बहुत है। कुछ ऄभ्यासी लौ त्राटक का ऄभ्यास बहुत ऄनधक करते हैं। ईनका लक्ष्य
भनवष्य में कुछ नवर्ेष प्रकार के कायों को करना होता है।
लौ त्राटक पर ऄभ्यास करने के नलये कमरे में धीमा प्रकार् होना िानहए, ऐसा मैंने पहले नलखा है। ऄभ्यास
करते समय कमरे में बहुत ज्यादा तेज प्रकार् नहीं होना िानहए। जब साधक का ऄभ्यास लौ त्राटक का 30-40 नमनट
का हो जाता है, तब ईसे ऄधं कार में त्राटक का ऄभ्यास करना िानहए। आसके नलये कमरे की बत्ती बंद कर दें, नफर
कमरे में परू ी तरह से ऄधं कार होने पर ही लौ पर त्राटक का ऄभ्यास करने का प्रयास करना िानहए। आस प्रकार के
ऄभ्यास से लौ के प्रकार् का प्रभाव पहले की ऄपेिा ज्यादा पड़ता है। हो सकता है ऄभ्यास के समय लौ का प्रकार्
अँखों में िभु ने सा लगे। आतना ऄवश्य है नक यनद पहले लौ पर ऄभ्यास 40 नमनट (मध्य प्रकार् में) का नकया होगा
तब वततमान में ऄभ्यास करते समय 20 नमनट बाद ही लौ का प्रकार् िभु ने सा लगेगा। आस प्रकार के ऄभ्यास से अँखें
पहले की ऄपेिा ज्यादा तेजस्वी होने लगती हैं।
बहुत से मागतदर्तक साधक को सलाह देते है नक ऄगर त्राटक का ऄभ्यास करते समय अँखों में जलन होने
लगे, तब ऄभ्यास करने के बाद अँखों में ठण्डे पानी के छींटे मारने िानहए, तथा महँु के ऄन्दर ठण्डे पानी को कुछ
समय तक भरे रहें, नफर महँु से बाहर ननकाल दें, दबु ारा महँु में ठण्डा पानी भर के महँु बंद कर लें। ऐसा कुछ िणों तक
करते रहें, नफर अँखों की जलन र्ातं हो जायेगी। ऄगर अँखों में जलन ज्यादा हो रही है, तब ऄभ्यासी लेटकर अँखों
पर ठण्डी पट्टी िढ़ाये, ऐसा तब तक करे जब तक अँखों की जलन र्ांत न हो जाये। आस नवषय पर मैं यह कहना
िाहगँ ा– अँखों की जलन र्ांत करने के नलये ये तरीके सही हैं, ऐसा कर लेना िानहए। ये तरीका साधारण साधकों के
नलये ही है। नकन्तु जो साधक कठोर साधना करके त्राटक के द्रारा मागतदर्तन करना िाहते हैं तथा योग का भी ऄभ्यास
कर रहे हैं, त्राटक का प्रयोग सम्मोहन के नलये या ऄन्य प्रकार के कायों के नलये करना है, तब अँखों को तेजस्वी बनाने
के नलए आस जलन को सहन करने की अदत डालनी ही होगी। जब तक अप जलन को सहन करने की अदत नहीं

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डालेंगे, तब तक अप महान नहीं बन पाएगं े ऄथातत् त्राटक में पारंगत नहीं हो पाएगं े और त्राटक के द्रारा जनटल व बड़े-
बड़े कायत नहीं कर पाएगं ।े

5. दपतण पर त्राटक
दपतण पर त्राटक का ऄभ्यास साधक के नलए बहुत ही अवश्यक होता है, आसके ऄभ्यास से साधक के नित्त
पर नवर्ेष प्रकार का प्रभाव पड़ता है, ‍योंनक आसमें ऄपने िेहरे पर ही ऄभ्यास नकया जाता है। दपतण पर ऄभ्यास बन्द
कमरे में नकया जाता है। एक बड़ा सा दपतण लें, ईसे दीवार पर लटका दें; दपतण दीवार पर आतनी उँिाइ पर लटकायें नक
जब अप असन पर बैठें, तब ईसका िेहरा दपतण के मध्य भाग में नदखायी देना िानहए। सबसे पहले अप ऐसे दपतण
को दीवार पर लटकायें नजसका फ्रेम ऐसा नहीं होना िानहए नक अँखों पर ईसके नडजाआन व रंग का गलत प्रभाव पड़े।
ऄगर फ्रेम की नडज़ाआन ज्यादा न‍कार्ीदार व रंगीन होगी, तो त्राटक करते समय आसका प्रभाव मनस्तष्क पर पड़ेगा।
ऄथातत् सादे फ्रेम वाला दपतण होना िानहए। ऄब अपको कमरे में जल रही लाइट पर ध्यान देना है, ऄथातत् कमरे के
ऄन्दर ऐसा प्रकार् होना िानहए नक प्रकार् सीधे दपतण पर न पड़ रहा हो। प्रकार् बहुत ज्यादा तेज नहीं होना िानहए,
ईनित मात्रा में होना िानहए, नजससे साधक का िेहरा दपतण पर स्पि नदखाइ दे। दपतण के ऄभ्यास में साधक िाहे तो
कुसी पर बैठ कर ऄभ्यास कर सकता है, मगर रीढ़ सीधी होनी िानहए। साधक को कभी भी खड़े होकर दपतण पर त्राटक
का ऄभ्यास नहीं करना िानहए, ‍योंनक ऄभ्यास के समय मन एकाग्र होने पर नगर जाने का भय रहता है। असन पर
बैठकर त्राटक का ऄभ्यास करना श्रेष्ठकर है।
साधक ऄभ्यास करने के नलए असन पर रीढ़ सीधा करके बैठ जाये , नफर ऄपने िेहरे को दपतण पर देख।े
स्के ि पेन से भृकुनट के मध्य में थोड़ा सा उपर ऄपने मस्तक पर छोटा सा गोलाकार ननर्ान बना लें। आस ननर्ान का
अकार ऐसा होना िानहए, जब नबन्दु त्राटक का ऄभ्यास करते समय िाटत पर बनाया था। साधक को नीले रंग का
नबन्दु ऄपने मस्तक पर बनाना िानहए, यनद साधक का रंग बहुत काला हो, तब नीले रंग की जगह सफे द रंग का नबन्दु
बना ले, आससे ऄभ्यास करने में असानी होगी। ऄब साधक को ऄपने प्रनतनबम्ब के िेहरे पर भृकुनट के उपर बने नबन्दु
पर ऄपनी दृनि के नन्रत करे । नबन्दु त्राटक के समान टकटकी लगाकर नबन्दु पर देख।ें मन में नकसी प्रकार का नविार न
लायें। कुछ समय बाद ऐसा लगेगा-भृकुनट के असपास ऄन्दर की ओर िेत्र में कुछ गदु गदु ी सी हो रही है, ऄभ्यास के
ऄनसु ार ये गदु गदु ी बढ़ती भी जायेगी ऄथवा बन्द भी हो सकती है। आसके ऄभ्यास में लौ त्राटक के समान अँखों में
जलन नहीं होती है, कुछ समय बाद अँखों को खोले रहने के कारण अँखों में बोनझल या भारीपन हो सकता है। तब
साधक को ऄपनी अँखें बन्द करके र्ान्त बैठ जाना िानहए। ऄगर अँसू अ गये हों तो पहले की भाँनत मल ु ायम कपड़े
से अँखों के अँसू पोछ लेने िानहए। तरु न्त अँखों न खोलें। जब कुछ समय बाद अँखों का भारीपन र्ान्त हो जाए,
तब नफर अँखें खोलकर ऄभ्यास करना र्रुु कर देना िानहए।

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ऄभ्यास करते हुए जब कुछ नदन बीत जाएगं े, तब साधक को लगेगा, भृकुनट के ऄन्दर नानड़यों में कुछ
हलिल सी हो रही है। ऄभ्यास बढ़ने पर दपतण में अपका िेहरा कुरूप सा नदखाइ देने लगेगा। ऐसा लगेगा नक
ऄभ्यासी का िेहरा काला सा होने लगा है, अँखें गड्ढे में िली गइ हैं ऄथवा अँखों के स्थान पर अँखें ही नहीं रह
गयी है। िेहरा भनू तया (भतू ों के समान) नदखाइ देने लगेगा। ऐसी ऄवस्था में ऄभ्यासी को डरना नहीं िानहए। नजनका
मन कमजोर होता है ईन्हें डर या भय सा लगने लगता है। ऄभ्यानसयों! दपतण में नदखाइ देने वाला िेहरा अपके िेहरे
का प्रनतनबम्ब है। ऄभ्यास के ऄनसु ार िेहरे की बाह्य त्विा भी नदखाइ देना बन्द हो जायेगी। तब ऐसा लगेगा- िेहरे में
नसफत हड्नडयों का ही ढाँिा है और कुछ भी नहीं है। ऄभ्यानसयों! सत्य तो यही है नक अपको ऄपने िेहरे की
वास्तनवकता नदखाइ दे रही है। नफर ईसको ईसी िेहरे में कुछ डरावनी अकृ नतयाँ सी नदखाइ देती हैं। अपके सामने ऐसे
िेहरे भी अ सकते हैं जो अपने कभी नहीं देखे होंगे। साधक को धैयत से काम लेना िानहए, ऄपनी वास्तनवकता को
देखें तथा तटस्थ होकर देखते रहना िानहए। आसी प्रकार से रोजाना ऄभ्यास करते रहना िनहये।
साधकों! गौर करो, त्राटक के ऄभ्यास के समय ईसका िेहरा कै सा नदखाइ दे रहा था ऄथातत् कुरूप, डरावना,
भनू तया अनद। हम अपको समझाने का प्रयास कर रहे है– ऐसा िेहरा ‍यों नदखाइ दे रहा था। दपतण का प्रयोग करके
जब ऄपने ही िेहरे पर त्राटक का ऄभ्यास करने लगे, तब मन के नस्थर होने पर दृनि में पैनापन भी अने लगता है। जो
मझु े सामान्य ऄवस्था में आन स्थल ू अँखों से नहीं नदखाइ देता है ‍योंनक स्थल ू अँखों से स्थल ू पदाथत ही नदखाइ देते हैं
ऄथातत् ये अँखें सक्ष्ू म पदाथों को नहीं देख सकती है। त्राटक के ऄभ्यास से मन नस्थर होकर ऄतं मख तु ी होने लगता है,
ईस समय बाह्य आनन्रयाँ भी ऄंतमख तु ी होने लगती हैं। वास्तव में ऄभी ये दृश्य पणू त रूप से सक्ष्ू म जगत के नहीं कह सकते
हैं, बनल्क ये सक्ष्ू म और स्थल
ू के बीि की ऄवस्था होती है। ऄभ्यास बढ़ने पर सक्ष्ू म पदाथों को देखने का सामर्थयत
ईसके ऄन्दर अने लगता है।
दपतण त्राटक के ऄभ्यानसयों! अप सभी ने समझ नलया होगा नक सामान्य ऄवस्था में जो ये िेहरा सन्ु दर
नदखाइ देता है, वही िेहरा त्राटक के समय कै सा कुरूप सा नदखता था! सोिो, बाहर सन्ु दरता, ऄन्दर कुरूपता, ऄथातत्
मैं नसफत िेहरे की बात कर रहा ह।ँ बाहर नदखने वाली सन्ु दरता के ऄन्दर कुरूपता भरी है। ऐसा ही समस्त भौनतक
पदाथों के नवषय में सोिना िानहए। मैं ईन यवु कों से कहना िाहगँ ा जो सदैव सन्ु दरता का निन्तन करते रहते हैं, ऄथवा
ईसे प्राप्त करने के नलये मन के ऄन्दर गदं े नविार लाते रहते हैं नक ऐसे नवयवु कों को दपतण त्राटक का ऄभ्यास ऄवश्य
करना िानहए। पहले दपतण के द्रारा खदु ऄपनी सन्ु दरता देखें नक वह नकतना सन्ु दर नदखता है, वास्तनवकता सामने अ
जायेगी। आसी प्रकार निन्तन करने वाली ईस सन्ु दरता के नवषय में समझना िानहए। सि तो यही है नक ये सन्ु दर नदखने
वाली वस्तु पृर्थवी तत्त्व, जल तत्त्व और तमोगणु की ऄनधकता का ही नमश्रण है। आसे मन व स्थल ू नेत्र समझ नहीं पा रहे
हैं। ऄपना अन्तररक नवकास करो, सब समझ में अ जायेगा। नजसके नविार सन्ु दर है, व कमत ऄच्छे हैं, वो सन्ु दर
कहलाने योग्य है, न नक माँस नपण्ड और हड्नडयों का ढाँिा सन्ु दर है। हमारे कहने का नसफत आतना मतलब है- बरु े
नविारों को त्यागों और ऄच्छे नविारों को ऄपने ऄन्तःकरण में लाओ।

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दपतण त्राटक का ऄभ्यास जब धीरे -धीरे और बढ़ता है, तब यह भनू तया नदखाइ देने वाला िेहरा धीरे -धीरे
कभी-कभी कुछ िणों के नलए ऄदृश्य सा हो जाता है। िेहरे के स्थान पर नसफत कानलमा (काला-काला) सी नदखने
लगती है। कुछ नदनों बाद यह कानलमा भी धीरे -धीरे ऄदृश्य हो जाती है। ऄब हो सकता है नक ऄभ्यासी को कुछ और
भी नदखाइ दे सकता है, वह स्वयं ऄभ्यासी के ऄन्तःकरण में नवद्यमान संस्कार हैं। र्रीर र्नु ि, प्राण र्नु ि और मन
र्नु ि ऄनधक हो जाने पर तथा ऄनधक ऄभ्यास हो जाने पर स्वयं ऄभ्यासी के ऄन्तःकरण में नस्थत ईसी के संस्कार
नदखाइ देने लगते हैं। ऐसी ऄवस्था में ईसे ऄपने नपछले जन्मों के सस्ं कार भी योग्यतानसु ार नदखाइ दे सकते हैं। दपतण
त्राटक में नबन्दु त्राटक के समान पाँिों तत्त्वों के रंग नहीं नदखाइ देते हैं, बनल्क स्वयं ईसकी वास्तनवकता नदखाइ देने
लगती है।
दपतण त्राटक के ऄभ्यास से मनस्तष्क पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है, आससे नवकनसत होने की प्रनक्रया बहुत ही
र्ीघ्र र्रुु हो जाती है। स्मृनत भी तीव्र होने लगती है। ऐसा ऄभ्यासी ऄगर योग का ऄभ्यास कर रहा है, तब ईसे
अज्ञािक्र खल ु ने में सहायता नमलती है तथा नजन साधकों का कण्ठिक्र खल ु ा है, ईन्हें दपतण त्राटक का ऄभ्यास बहुत
ही लाभप्रद होता है। आसके ऄभ्यास से नदव्य दृनि की नक्रयार्ीलता बढ़ने लगती है। भौनतक र्रीर हल्का-हल्का सा
लगता है। पहले की ऄपेिा मन र्ान्त सा होने लगता है, मन की िंिलता कम होने लगती है।

6. पेड़ पर त्राटक
दपतण त्राटक के ऄभ्यास के बाद साधक को पेड़ पर त्राटक का ऄभ्यास करना िानहए। ऄभी तक नजतने प्रकार
से त्राटक का ऄभ्यास नकया है, वह सभी नजदीक वाले वस्तओ ु ं पर त्राटक का ऄभ्यास था। साधक के नलये अवश्यक
है नक वह दरू की वस्तओ ु ं पर भी त्राटक का ऄभ्यास करे । आस प्रकार के ऄभ्यास से साधक के ऄन्दर दरू नस्थत प्राणी
पर त्राटक का प्रभाव डालने की सामर्थयत अने लगती है। पेड़ पर त्राटक का ऄभ्यास करने के नलए ईसे गाँव से बाहर
ऄथवा र्हर से बाहर जाना पड़ेगा, तभी ऄभ्यास हो पायेगा। र्हर की उँिी-उँिी आमारतों के कारण पेड़ पर त्राटक का
ऄभ्यास करना ऄसम्भव सा है, पर ऄगर र्हर के ऄन्दर पेड़ पर त्राटक का ऄभ्यास करने के नलए ईनित जगह नमलती
है, तो ऄभ्यास कर सकता है।
ऄभ्यासी गाँव से बाहर दरू एकान्त में ननकल जायें, जहाँ पर नकसी प्रकार की भीड़-भाड़, र्ोरगल
ु अनद न हो।
साधक को ऐसे पेड़ का ऄभ्यास के नलए ियन करना िानहए, जो ईससे लगभग एक नक.मी. की दरू ी पर हो, तथा पेड़
का उपरी नसरा नोकदार सा हो, ‍योंनक पेड़ के उपरी नोकदार भाग पर ही त्राटक करना है। ईसे यह भी देखना है नक
जब वह त्राटक का ऄभ्यास करे , तब ईसके अँखों पर सीधे सयू त का प्रकार् न पड़ रहा हो, नहीं तो ऄभ्यास नहीं कर
पायेगा।

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साधक ऄपना असन नबछाकर बैठ जाये, नफर ईस पेड़ के उपरी भाग पर ऄपनी दृनि के नन्रत करे , नजस स्थान
पर (नोक पर) ईसे ऄभ्यास करना है। ऄभ्यास करते समय ईसे पेड़ के ऄन्य नकसी भाग पर दृनि नहीं दौड़ानी है ऄथातत्
पेड़ के नोक वाले भाग के ऄनतररक्त ऄन्य डानलयों की ओर नहीं देखना है, नसफत पेड़ के उपरी भाग को देखना है। कुछ
समय तक पेड़ पर आस प्रकार से दृनि के नन्रत करने में ऄजीब सा लगेगा, मगर नफर अदत सी पड़ जायेगी। कुछ नदनों
तक ऄभ्यास करने के बाद ईसे पेड़ के उपरी भाग, नजस स्थान पर त्राटक का ऄभ्यास कर रहा है, ईसके पीछे अकार्
में पीले रंग का बहुत बड़ा धब्बा नदखाइ देने लगेगा। जब ऄभ्यास नकया जाता है, तब पेड़ के उपरी भाग के पीछे
अकार् नदखाइ देता है, मैं अकार् के ईसी स्थान की बात कर रहा ह।ँ र्रुु अत में हल्के पीले रंग का धब्बा बड़ा सा
नदखाइ देता है, यह धब्बा गोलाकार मात्र कुछ िणों के नलये नदखाइ देगा, नफर ऄदृश्य हो जायेगा। कुछ नदनों तक यही
नक्रया होती रहेगी। नफर यह पीले रंग का धब्बा ऄभ्यासी को लगातार नदखाइ देगा। ऄभ्यास के ऄनसु ार भनवष्य में
आसका रंग बदलकर िमकीला हल्का नीला हो जायेगा, नफर पीले रंग के धब्बे की जगह नीले रंग का गोलाकार धब्बा
नदखाइ देने लगेगा। साधक को काफी समय तक आसी प्रकार पेड़ पर त्राटक का ऄभ्यास करते रहना िानहए।
पेड़ पर त्राटक का ऄभ्यास सबु ह और र्ाम के समय ही करना िानहए ‍योंनक सबु ह के बाद अकार् में सयू त
का प्रकार् तेज हो जाता है, तेज प्रकार् में ऄभ्यास करने में परे र्ानी होती है। जब बहुत नदनों के ऄभ्यास से नीले रंग
का गोलाकार धब्बा बनने लगे, नफर लगातार वह धब्बा नदखाइ देता है। ईस समय ऄभ्यासी के ऄन्दर एक गणु अ
जाता है। ऄगर साधक पेड़ पर त्राटक नकये नबना भी अकार् की ओर कुछ िणों तक टकटकी लगाकर देखें तो
ऄवश्य ईसे अकार् में नीले रंग का धब्बा कुछ िणों के नलये नदखाइ देगा, नफर लप्तु हो जायेगा। आसी तरह अकार् में
जहाँ भी दृनि डालेगा, ईधर ही कुछ िणों के नलए नीले रंग का गोलाकार धब्बा नदखाइ देगा।
ऄभ्यासी को अँखों के द्रारा मन तेजस् रूप में नीले रंग की नकरणों के रूप में नदखाइ देता है। ऄगर गौर करें ,
तो त्राटक के ऄभ्यास से पहले ईसका मन आस प्रकार तेज रूप में नहीं नदखाइ देता था, मगर ऄब ऄभ्यास के द्रारा ईसे
स्वयं ये सब नदखाइ दे रहा होता है। पहले मन बहुत ही कमजोर था, मगर ऄब मन आन नीलों नकरणों के रूप में ऄत्यन्त
सर्क्त हुअ नदखाइ दे रहा है। ये सब संयम और ऄभ्यास के कारण सम्भव हुअ है। साधक को नसफत अकार् में ही
नहीं, बनल्क कभी-कभी कहीं भी ऄथातत् दीवारों पर ऄथवा नवनभन्न वस्तओ ु ं पर नीले रंग का बड़ा सा नबन्दु या धब्बा
नदखाइ देगा। ऐसा तभी होगा, जब अपका मन नकसी पदाथत पर या स्थान पर कुछ समय के नलए के नन्रत हो जायेगा।

7. चन्रमा और तारों पर त्राटक


त्राटक का ऄभ्यास करने के नलए पहले बन्द कमरे में करने को बताया, नफर पेड़ पर त्राटक करने के नलए गाँव
या र्हर से बाहर ऄभ्यास करने को बताया। मगर ऄबकी बार त्राटक का ऄभ्यास रानत्र के समय खल ु े असमान के

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नीिे घर की छत पर बैठकर या लेटकर नकया जा सकता है ‍योंनक तारे तो रानत्र के समय ही ननकलेंगे, जब अकार् में
िन्रमा नहीं होगा, ऄधं ेरी रानत्र होना अवश्यक है। साधक को सबसे पहले ऐसा स्थान िनु ना िानहए, जहाँ से खल ु ा
असमान स्पि नदखाइ दे। ऐसा स्थान घर की छत, अँगन या घर के बाहर जहाँ पर खल ु ी हुइ जगह हो। र्हर में ऐसा
स्थान िनु ने के नलए थोड़ी परेर्ानी अ सकती है। गाँव में ऐसे स्थान के नलए नकसी प्रकार की परे र्ानी नहीं होती है,
वहाँ पर ऐसा खल ु ा हुअ स्थान नमल जायेगा।
ऄभ्यास करने के नलए देर रानत्र का समय ऄच्छा होता है, ईस समय ज्यादातार सभी लोग सो जाते है तथा
सन्नाटा भी फै ला रहता है। साधक घर की छत के उपर िटाइ या दरी नबछाकर अराम से लेट जाये , नफर अकार् की
ओर देख,े ईस समय अकार् में ढेर सारे ऄनन्त तारे नदखाइ दे रहे होते हैं। कुछ तारे कम िमकीले तथा कुछ तारे तेज
िमकीले नदखाइ देते हैं ऄथातत् कुछ तारे मध्यम प्रकार् वाले, कुछ तेज प्रकार् वाले होते हैं। साधक लेटे हुए ही उपर
की ओर महँु करके देख,े जो तारा ऄनधक िमकीला नदखाइ दे, ईसी पर दृनि को के नन्रत करके त्राटक का ऄभ्यास करे ।
नजस िमकीले तारे पर ऄभ्यास नकया जा रहा है, नसफत ईसी तारे को देखे। ईस तारे के पास ढेरों तारे कम प्रकार् वाले
नटमनटमा रहे होंगे, आन तारों की ओर ध्यान न दें। तारे पर त्राटक का ऄभ्यास करते समय अँखों में जलन या अँसू नहीं
अते हैं, ‍योंनक वातावरण ठण्डा और र्ान्त होता है। तारे पर बहुत समय तक ऄभ्यास करने की अवश्यकता नहीं है।
20-30 नमनट का ऄभ्यास करना बहुत है, ‍योंनक वह पहले से ही कइ प्रकार के ऄभ्यास कर िक ु ा है।
साधक मात्र कुछ नदनों बाद देखगे ा नक तारे पर दृनि के नन्रत करते ही ईस तारे का प्रकार् कम हो गया है, ऐसा
लगने लगता है तथा धँधु ला सा नदखाइ देने लगता है। आसका कारण है– साधक के अँखों से ननकली तेजस्वी नकरणों
के सामने तारे का प्रकार् कमजोर पड़ जाता है। ऐसी ऄवस्था में साधक ऄगर ईसी समय कम प्रकानर्त तारे की ओर
ऄपनी दृनि करे गा, तब वह तारा लप्तु हो जायेगा, ऄथातत् नदखाइ नहीं देगा। ईस स्थान पर छोटा सा नीले रंग का
िमकीला गोलाकार धब्बा नदखाइ देने लगेगा। आसी नीले गोलाकार िमकीले धब्बे के कारण तारा नदखाइ नहीं दे रहा
है। अँखों से ननकली तेजस्वी नकरणों के सामने, तारे का प्रकार् कमजोर पड़ जाता है; तारे की प्रकार् नकरणें, ऄभ्यासी
के अँखों से ननकली प्रकार् नकरणों को भेद नहीं पाती हैं। ऄब ऄभ्यासी नकसी ऄन्य तारे पर दृनि के नन्रत करे , ऄगर
तारा कम प्रकानर्त होगा, तो नदखाइ नहीं देगा, ईस स्थान पर नीले रंग का िमकीला सा छोटा गोलाकार धब्बा नदखाइ
देगा। आसी प्रकार धीरे -धीरे ऄभ्यास जब और बढ़ेगा, तब ईसकी नजस तारे की ओर दृनि जायेगी ऄथवा दृनि नस्थर
करे गा, वहीं पहले की भाँनत नीले रंग का धब्बा नजर अयेगा। अकार् में सबसे तेज प्रकानर्त तारे पर भी दृनि नस्थर
करने पर वह तारा लप्तु हो जायेगा, ईस स्थान पर नीले रंग का गोलाकार प्रकार् नदखाइ देगा।
साधक िाहे, तो रानत्र के समय खल ु ी जगह पर कुसी पर बैठकर भी ऄभ्यास कर सकता है। नजस प्रकार
ऄभ्यास लेटकर नकया जाता है,ईसी प्रकार का ऄभ्यास कुसी पर बैठकर नकया जाना है। आस प्रकार का ऄभ्यास करते
समय ऄन्तर के वल आतना होगा नक ईसे नसर के उपर अकार् में तारे सरलता से नदखाइ नहीं देंग।े उपर की ओर तारे

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देखने के नलए ईसे ऄपना महँु उपर की ओर करना पड़ेगा। ऐसी ऄवस्था में ठीक प्रकार से ऄभ्यास नहीं कर सके गा।
ऄच्छा ऄभ्यास तो लेटकर ही नकया जा सकता है।
साधकों को िन्रमा पर भी ऄभ्यास करना िानहए। तारों पर त्राटक का ऄभ्यास करने के नलये ऄन्धेरी रात का
होना अवश्यक है। िन्रमा पर ऄभ्यास तभी नकया जा सकता है, जब असमान में अधे से ज्यादा िन्रमा का स्वरूप
नदखाइ दे रहा हो, वैसे ऄच्छा ऄभ्यास तभी नकया जा सकता है, जब ईसका पणू त स्वरूप नदखाइ दे रहा हो, आसनलए
साधक को िन्रमा पर ऄभ्यास करने का समय कम ही नमलता है। जब िन्रमा पर ऄभ्यास करने का समय न हो, तब
ईसे तारों पर ऄभ्यास करना िानहए।
िन्रमा पर ऄभ्यास साधक ऄपनी सनु वधानसु ार कुसी पर बैठकर ऄथवा लेटकर भी कर सकता है। िन्रमा
की नकरणें र्ीतल होती हैं, आसनलए अँखों में जलन नहीं होती है। ऄभ्यास करते समय िन्रमा के ऄन्दर बना हल्का सा
मटमैला धब्बा नहलता या कम्पन सा करता नदखाइ देगा, नफर ऄभ्यास बढ़ने पर कम्पन सा होना बन्द हो जायेगा। यह
जो कम्पन सा होता नदखाइ देता है, वह वास्तव में हमारे मनस्तष्क में हो रहे कम्पन के कारण ऐसा नदखाइ देता है।
ऄभ्यास के द्रारा जब मन नस्थर हो जाता है, तब मनस्तष्क में भी कम्पन सा बन्द हो जाता है। कुछ समय बाद िन्रमा के
गोलाकार स्वरूप के उपर नीले रंग का धब्बा सा नदखाइ देने लगता है। ऐसा लगता है, मानो िन्रमा प्रकार् से रनहत हो
गया है, वह हल्का धँधु ला सा नदखाइ देने लगता है। ऄभ्यास के बढ़ जाने पर िन्रमा का स्वरूप नीले रंग के धब्बे से
ढक जाता है। आसी प्रकार से साधक को ऄभ्यास करना िानहए, ऐसा ऄभ्यास भनवष्य में र्न‍तपात करते समय काम
अता है।
मझु े याद अ रहा है– यह बात र्ायद सन् 1978-1980 के बीि की होगी। मैंने नदल्ली दरू दर्तन पर एक
कायतक्रम देखा था। ईस समय हर बधु वार को सायक ं ाल एक स्वामी जी दरू दर्तन पर दर्तकों के प्रश्नों के ईत्तर नदया करते
थे। नकसी दर्तक ने स्वामी जी से (दरू दर्तन स्टूनडयो में) फोन करके पछ ू ा– ‚स्वामी जी जब अप बोलते हैं, तब अप
बार-बार पलकें ‍यों झपकाते हैं?‛ स्वामी जी ने ईत्तर नदया– ‚जहाँ से मैं बोल रहा ह,ँ ईस कमरे में (स्टूनडयों में) सामने
उपर की ओर ढेर सारी लाआटें लगी हुइ हैं तथा कै मरा भी लगा हुअ है, आन लाआटों का प्रकार् मेरी अँखों पर पड़ रहा
है। तेज प्रकार् के कारण मझु े बार-बार ऄपनी पलकें झपकानी पड़ रही हैं। वैसे मैं िाहँ तो लगातार 6 घण्टे तक नबना
पलक झपकाए देख सकता ह,ँ ‍योंनक मैंने आसका ऄभ्यास नकया है।‛ नकसी दर्तक ने फोन करके पछ ू ा– ‚आस प्रकार के
ऄभ्यास से ‍या लाभ होता है?‛ स्वामी जी ने ईत्तर नदया– ‚आससे कइ प्रकार के अध्यानत्मक लाभ होते हैं। मैं नदन में
भी अँखें खोलकर तारे देख सकता ह,ँ जब सयू त ननकला हो।‛ मझु े अज भी याद अ रहा है, स्वामी जी ने यही कहा
था– ‚मैं नदन में भी अँखें खोलकर तारे देख सकता ह‛ँ । मैं ईस समय सोिने लगा– ‍या ऐसा भी होता है। ईस समय
मझु े आस नवषय में ज्ञान नहीं था। मगर जब मैं स्वयं सन् 1991 में त्राटक का ऄभ्यास करने लगा, तब भी मझु े यह बात
याद थी। आसके बाद जब मझु े भी कुछ वषों बाद आस ऄभ्यास में श्रेष्ठता प्राप्त हुइ, तब मैं सोिने लगा– स्वामी जी ने
दरू दर्तन में जो बताया था, ईनके ऄनसु ार नदन में तारे कै से नदखाइ दे सकते हैं, ‍योंनक जब त्राटक के ऄनधक ऄभ्यास

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द्रारा श्रेष्ठता प्राप्त होती है, ईस समय ईसके अँखों के द्रारा ऄत्यन्त तेजस्वी नीले रंग की िमकीली नकरणें ननकलती हैं।
वह भौनतक पदाथों के स्वरूप को ही ढक देती हैं, ईस स्थान पर नीले रंग का िमकीला धब्बा नदखाइ देता है। मैंने भी
त्राटक का ऄभ्यास नकया है। मझु े भी सन् 1997 में सयू त त्राटक का कुछ घण्टों तक करने का ऄभ्यास था। जनवरी-
फरवरी में त्राटक करते समय सूयत का प्रभाव नहीं पड़ता था। सूयत का स्वरूप िन्रमा के समान नदखाइ देता था, तथा मइ
जनू में सबु ह कुछ घण्टे, र्ाम को लगभग डेढ़ घण्टे ऄभ्यास करता था। तब भी मझु े नदन में तारे नदखाइ नहीं दे सकते
थे। बनल्क नदखाइ देने वाली वस्तु की जगह तेजस्वी नीले रंग का धब्बा नदखाइ देता था। ऄब वह स्वामी जी नहीं हैं,
ईनकी मृत्यु हो िक ु ी है। मैं स्वामी जी से आस नवषय में ऄवश्य पछू ता नक अपके द्रारा बताया गया कै से संभव हो
सकता है?
पाठकों! मैं भी नकसी समय बहुत ही ज्यादा त्राटक का ऄभ्यास नकया करता था, सयू त त्राटक तो मैंने कइ वषों
तक नकया है। ईसके ऄभ्यास के ऄनसु ार मझु े यह जानकारी है नक हम नदन में तारे त्राटक के ऄभ्यास के द्रारा नहीं देख
सकते हैं ‍योंनक ऄनधक ऄभ्यास करने पर भौनतक पदाथत नदखाइ देना ही बदं हो जाते हैं नफर ये तारे सयू त के तेज प्रकार्
में कै से नदखाइ दे सकते हैं?

8. सूयत पर त्राटक
सयू त पर त्राटक का ऄभ्यास सबसे ऄतं में नकया जाता है। पहले क्रमर्ः ईन वस्तओ ु ं पर त्राटक करना िानहए
नजनका ईल्लेख मैंने नकया हुअ है। नवनभन्न वस्तओ ु ं पर त्राटक का बहुत ऄभ्यास करने के कारण अँखों को लगातार
खल ु ी रहने की अदत पड़ जाती है तथा अँखों को तेज प्रकार् सहन करने की अदत पड़ जाती है। आससे सयू त पर
त्राटक करते समय, अँखों में सयू त का प्रकार् सहन करने की अदत पड़ने लगती है तथा अँखों को नकसी प्रकार का
नक ु सान नहीं पहुिँ ता है। साधक को र्रुु अत में सयू त पर त्राटक का ऄभ्यास नहीं करना िानहए ‍योंनक सयू त के प्रकार्
को खल ु ी अँखों से सहन नहीं नकया जा सकता है। ऄगर साधक को थोड़ी सी भी ऄसावधानी हो गयी, तो सयू त के
प्रकार् से अँखों पर दष्ु प्रभाव पड़ सकता है। मैं यही राय दगँू ा नक नकसी ऄनुभवी मागतदर्तक के मागतदर्तन में ही सयू त पर
त्राटक का ऄभ्यास करें तानक साधक को ऄभ्यास करते समय नकसी प्रकार की परे र्ानी न ईठानी पड़े।
र्रुु अत में ईगते हुए सयू त पर त्राटक का ऄभ्यास करने के नलये सयू ोदय का समय ईनित है। सायंकाल को भी
सयू त पर त्राटक (सयू त डूबने से थोड़ा पहले) करने का ईनित समय होता है। ‍योंनक सबु ह के समय ईगते हुए सयू त से तेज
प्रकार् नहीं ननकलता हैं। आससे ऄभ्यास करने में असानी होती है। आसी प्रकार सायक ं ाल के समय सयू त डूबने से थोड़ा
पहले सयू त का प्रकार् धीमा पड़ जाता है धीमे प्रकार् में ही ऄभ्यास करना िानहए। हमेर्ा याद रखें– सयू त के तेज
प्रकार् में र्रुु अत के समय कभी भी ऄभ्यास नहीं करना िानहए, नहीं तो अँखें खराब होने का भय रहता है। सयू त पर

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त्राटक का ऄभ्यास ईन साधकों को ऄवश्य करना िानहए, जो भनवष्य में त्राटक के द्रारा दसू रों का परोपकार करना
िाहते हैं। सयू त त्राटक का ऄभ्यासी अँखों के द्रारा र्न‍तपात करने में ऄनधक र्न‍तर्ाली हो जाता है।
नजस साधक का नबन्द,ु लौ, दपतण व पेड़ पर त्राटक का ऄभ्यास एक घण्टे का हो गया है, ऐसे साधक सयू त पर
त्राटक के ऄनधकारी हो जाते हैं। सयू त पर ऄभ्यास करने से पहले, साधक को ऐसा स्थान ऄभ्यास के नलए िनु ना
िानहए, जहाँ पर ईसके परू े र्रीर पर सयू त का प्रकार् न पड़ रहा हो। ‍योंनक सयू त की धपू में बैठकर लगातार त्राटक के
ऄभ्यास में स्थल
ू र्रीर को परे र्ानी अ सकती है। जब सयू त उपर िढ़ रहा हो और प्रकार् तेज हो जाए, तब साधक
कमरे की नखड़की से ऄन्दर अये प्रकार् के माध्यम से त्राटक का ऄभ्यास करे तो ऄच्छा है। ऄभ्यास करते समय ऐसी
जगह पर बैठे, ईसका र्रीर छाँव में हो मगर सयू त स्पि नदखाइ दे रहा हो, ऐसी ऄवस्था में साधक लेट कर ऄथवा
बैठकर ऄभ्यास कर सकता है।
जैसे ही सयू त का ईगना र्रुु हो जाये, ईसी समय ऄभ्यासी को ऄपनी दृनि सयू त पर नटका देनी िानहए और
ऄभ्यास करना र्रुु कर देना िानहए। ईगता हुअ सयू त बहुत ऄच्छा लगता है। ईसका स्वरूप बड़ा भी होता है, ईसके
सम्पणू त स्वरूप को देखना है। ऄगर हो सके तो सयू त पर त्राटक ईस जगह पर कीनजए, जहाँ से सयू त को देखते समय बड़े-
बड़े पेड़ न नदखाइ दे रहे हों, ऄथातत् ऄभ्यासी और सयू त के बीि में पेड़ या कोइ ऄन्य ऄवरोध न अ रहा हो। सयू त जब
ईग रहा हो तब ऐसा लगे, जैसे भनू म के (पृर्थवी के ) ऄन्दर से सयू त अकार् में उपर की ओर ननकलता हुअ िला अ
रहा है। ऄगर ऐसा स्थान न नमल पा रहा हो, तो नकसी भी स्थान से सयू त पर त्राटक का ऄभ्यास कर सकते हैं जहाँ से
ईगता हुअ सयू त नदखाइ दे रहा हो।
सयू त पर त्राटक करते समय पहले की भाँनत मल ु ायम कपड़े की तह लगाकर ऄवश्य ऄपने पास रख ले। जब
साधक ईगते हुए सयू त पर त्राटक करे गा, ईस समय ईसे नकसी प्रकार से कोइ परे र्ानी नहीं होगी ‍योंनक पहले भी त्राटक
का ऄभ्यास कर िक ु ा है। जब सयू त पर त्राटक के ऄभ्यास की र्रुु अत करे , तब 15-20 नमनट का ही ऄभ्यास करें ।
सयू ातस्त के समय सयू त नछपने से 10 नमनट पहले ऄभ्यास करें । आससे ऄभ्यासी को नकसी प्रकार से अँखों पर प्रकार् का
गलत प्रभाव नहीं पड़ेगा। नफर ऄभ्यास को धीरे -धीरे बढ़ाता रहे। हाँ, एक बात का ध्यान रहे– जब अँखों में सयू त के
प्रकार् के कारण परे र्ानी होने लगे ऄथवा प्रकार् सहन न होने लगे, तब ऄभ्यास करना बंद कर दे, जबरदस्ती त्राटक
न करे । जबरदस्ती त्राटक करने से सयू त के प्रकार् का प्रभाव अँखों पर गलत पड़ सकता है। सयू त पर त्राटक सदैव
सम्भल कर करना िानहए तथा धीरे -धीरे ही अगे बढ़ना िानहए।
जब र्रुु अत में सयू त पर त्राटक का ऄभ्यास नकया जाता है, थोड़े से ऄभ्यास के बाद ईगते हुए सयू त के ऄन्दर
ऐसा लगता है मानो सयू त के ऄन्दर कुछ नहल सा रहा है ऄथवा कम्पन हो रहा है। जब सयू त थोड़ा सा उपर की ओर
अकार् में िढ़ता है तब ईसका लाल रंग धीरे -धीरे बदलता है। ईस समय ऐसा लगता है जैसे गोलाकार स्वरूप के
ऄन्दर अग की लपट ईठ रही है तथा गोलाकार बाह्य नकनारे पर नवर्ेष प्रकार का दृश्य नदखाइ देता है। थोड़ा सा और

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उपर ईठने पर सयू त का अकार छोटा हो जाता है तथा लाल रंग का नदखाइ देता बंद हो जाता है। ईस समय सयू त ऄनधक
तेज िमकने लगता है। तब साधक को सयू त के ऄन्दर ईसका प्रकार् लहराता सा नदखाइ देने लगता है। यह जो सयू त के
ऄन्दर व बाहरी नकनारों पर कम्पन सा लहराना नदखाइ दे रहा है, वह वास्तव में सयू त में न होकर हमारे मन के ऄन्दर
कम्पन हो रहा है। यह नक्रया साधक को नबन्दु अनद पर त्राटक के ऄभ्यास के समय नहीं नदखाइ दे रही थी ‍योंनक ऄनत
सक्ष्ू म स्वरूप से हो रही होती है। हाँ, मैं थोड़ा और बारीकी से बता दँू नक नबन्दु पर त्राटक के समय भी कुछ साधकों को
नबन्दु नािता सा नदखाइ देता है ऄथवा नबन्दु के अस-पास का रंगीन धब्बा नकसी नकसी को नहलता हुअ सा नदखाइ
देता है।
साधक को सयू त पर त्राटक का ऄभ्यास धीरे -धीरे ही सयं नमत होकर अगे बढ़ाना िानहए। सयू त पर त्राटक
साधक के नलए नजतना ईपयोगी है, ईसी प्रकार आसका ऄभ्यास ईतना ही खतरनाक भी हो सकता है, ऄगर ऄभ्यासी ने
सदैव सतकत तापवू क त ऄभ्यास नहीं नकया। यह भी ध्यान रखना िानहए नक सयू त का प्रकार् सबु ह के समय धीरे -धीरे अगे
की ओर बढ़ता ही रहता है। ऄभ्यासी की अँखें सयू त के प्रकार् को एक नननश्चत मात्रा में ही सहन कर सकती है। ऄगर
वह हठपवू क त ईग्र सयू त के तेज प्रकानर्त प्रकार् को देखता ही रहा, तब ईसकी अँखों में परे र्ानी अ सकती है, अँखों
की रोर्नी पर प्रभाव पड़ सकता है। साधक की अँखों की दृनि पर गलत प्रभाव न पड़े, ईसके नलये सतकत रहना पड़ेगा।
हमने कुछ ऄभ्यासी ऐसे भी देखे है वे हठपवू क त त्राटक का ऄभ्यास करते ही रहते है। त्राटक हठयोग का प्रमख
ु ऄगं है
ऐसा समझो, मगर ऐसा हठ न करो नक अँखें ही खराब हो जाये। आसनलए कहा जाता है नक त्राटक का ऄभ्यास सदैव
गरुु के मागतदर्तन में ही करना िानहए। वह ऄभ्यास के समय बारीनकयों को समझायेगा।
कुछ महीने तक सयू त पर त्राटक करते रहने पर ऄपने अप ऄभ्यास बढ़ता रहता है। जब साधक का ऄभ्यास
सबु ह एक घण्टे का हो जाये और सायंकाल का ऄभ्यास अधा घण्टे का हो जाए, तब साधक की अँखें बहुत तेजस्वी
होने लगती हैं। ईस समय ईसके अँखों से नीले रंग की बहुत ही तेजस्वी नकरणें ननकलती हैं। पहले साधक को ऄभ्यास
करते समय ही नीले रंग की नकरणें नदखाइ देती थी, मगर ऄब सयू त पर त्राटक के कारण सामान्य ऄवस्था में भी (नबना
ऄभ्यास के समय) ऄ‍सर नीले रंग की नकरणें नदखाइ देती रहती हैं। वह नजधर को ऄपनी दृनि करता है ईधर ही अँखों
के द्रारा नीले रंग की तेजस्वी नकरणें ननकलती हुइ नदखाइ देती हैं। साधक ऄगर दीवार पर दृनि डालेगा तब नीले रंग का
धब्बा दीवार पर नदखाइ देगा। साधक ऄगर पस्ु तक या समािार पत्र पढ़ेगा तब वहाँ भी पेज पर छोटा नीला ऄथवा
पीला रंग का धब्बा नदखाइ देगा। ऄगर सयू त पर त्राटक का ऄभ्यास ऄभी कम है तब ऄनत नजदीक (पस्ु तक पढ़ते
समय) ईसे नीले रंग का धब्बा नहीं नदखाइ देगा।
जब ऄभ्यासी को सयू त पर त्राटक का ऄभ्यास करते समय कुछ साल बीत जाएगं े, तब वह सनदतयों का सयू त
बहुत ही असानी से दोपहर के समय देख सकता है। ईस समय ईसे ऐसा लगेगा, मानो यह सयू त नहीं है िन्रमा जैसा है।
ईसकी अँखें सयू त के प्रकार् को बड़े अराम से सहन कर लेंगी। मगर ऄप्रैल माह से सयू त तेज िमकने लगता है, ईस
समय ऄभ्यासी को हठपूवक त दोपहर का सयू त नहीं देखना िानहए। गनमतयों के समय सयू ोदय से लेकर 9:00-9:30 बजे

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तक साधक ऄभ्यास कर सकता है। आतना सयू त पर त्राटक का ऄभ्यास करना बहुत होता है। आस ऄवस्था को प्राप्त करने
में बहुत समय लग जाता है।
जब साधक सयू त पर त्राटक का ऄभ्यास बहुत ऄनधक कर लेता है तब ईसे संसार में व्यवहार करते समय थोड़ा
ऄवरोध होने लगता है। ईस समय वह नजस ओर को देखता है ऄथवा ईसकी दृनि नजस स्थान पर या वस्तु पर पड़ती है,
वहाँ पर ऄत्यंत तेजस्वी नीले रंग का गोलाकार धब्बा नदखाइ देने लगता है। सि तो यह है नक धब्बे के स्थान वाली
स्थल ू वस्तु ईसे नदखाइ नहीं देती है, ‍योंनक वही नीले रंग की नकरणें व नीले रंग का तेजस्वी धब्बा नदखाइ देता है। ईसे
पस्ु तक पढ़ने में परे र्ानी होने लगती है ‍योंनक नजस र्ब्द पर ईसकी दृनि पड़ती है वही नीला धब्बा नवद्यमान हुअ
नदखाइ देता है, र्ब्द नदखाइ नहीं देता है। आस प्रकार पढ़ने में परे र्ानी का सामना करना पड़ता है। यह मेरी स्वयं की
ऄनभु नू त है, मझु े समािार पत्र व पस्ु तक पढ़ने में बड़ी परे र्ानी होने लगी थी।
ऄब मैं ऄभ्यास के अधार पर मैं ऄपनी परे र्ाननयाँ बताता हँ ‍योंनक मैंने सयू त पर त्राटक का ऄभ्यास बहुत
नकया है तब मझु े ये परे र्ाननयाँ अयी थी। जब साधक दरू से नकसी मनष्ु य को देखगे ा, तब साधक की दृनि ईसके िेहरे
पर पड़ेगी, ‍योंनक िेहरे के द्रारा ही नकसी भी मनष्ु य की पहिान होती है, तब ईस मनष्ु य का िेहरा नहीं नदखाइ देगा,
िेहरे के स्थान पर ऄत्यतं तेजस्वी नीला गोलाकार प्रकार् नदखाइ देता है। ईस समय ईस मनष्ु य की पहिान करना
मनु श्कल होता है। जब साधक ईस िेहरे से ऄपनी दृनि हटाकर एक ओर करे गा तब ईसका िेहरा समझ में अयेगा नक
ऄमक ु व्यनक्त है। ऐसे साधक का व्यवहार संसार में ऐसा ही हो जाता है। ऄगर साधक की दृनि अकार् पर, पेड़ पर,
नकसी उँिी नबनल्डंग पर पड़ती है तब यही गोलाकार तेज नीला प्रकार् नदखाइ देता है। ऄब यह कहा जा सकता है नक
आस प्रकार के ऄभ्यास से ‍या लाभ नक ईसे व्यवहार करते समय परे र्ानी ऄनभु नू त करनी पड़े। ऄभ्यास के समय स्थल ू
रूप से आस प्रकार की परे र्ानी साधक को तो ईठानी ही पड़ती है। मगर अध्यानत्मक रूप से यह ऄवस्था ईसके नलये
बहुत ही ऄच्छी है। आस ऄवस्था में साधक ऄत्यतं र्न‍तर्ाली हो जाता है। अँखों के द्रारा तेजस् रूप में ननकली
ऄत्यंत तेजस्वी नकरणें ही समस्त अध्यानत्मक कायत करने में सामर्थयत रखती हैं। ये नकरणें आतनी र्न‍तर्ाली होती हैं नक
यनद आन्हें दसू रे के मनस्तष्क में प्रवेर् करा दी जाये, तब वह मनष्ु य वही कायत करे गा, जैसा संदर्
े साधक भेजगे ा।
र्न‍तपात करने के नलये यही तेजस्वी नकरणें बहुत ही ईपयुक्त होती हैं। आन्ही नकरणों के द्रारा कइ प्रकार के दसू रों के
ईपिार भी नकये जा सकते हैं।
कइ वषों तक ऄभ्यास करने के बाद त्राटक में मेरी ऄवस्था बहुत ऄच्छी हो गयी थी। तभी मैं ऄनभु नू त के
अधार पर ऐसा लेख नलखने में समथत हुअ ह।ँ त्राटक के नवषय में जो नलखा है ईसे ऄभ्यास के द्रारा प्राप्त नकया है,
तथा साधकों पर भी त्राटक के ऄभ्यास के समय र्न‍तपात नकया था। आस ऄभ्यास के कारण मझु े समाज में व्यवहार
करते समय काफी परे र्ानी ईठानी पड़ती थी। अँखों से ननकलने वाली नीले रंग की ऄत्यंत तेजस्वी नकरणें सदैव
नदखाइ देती थी। एक बार मैं कमरे की नखड़की से सयू त पर त्राटक कर रहा था, कुछ समय बाद नखड़की से सयू त नदखाइ
देना बंद हो गया था ‍योंनक वह असमान में उपर की ओर िला गया था। जब मैंने ऄभ्यास करना बंद कर नदया, मैंने

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िेहरे को नखड़की से दसू री ओर को महँु घमु ा नलया, ईस समय कमरे के ऄन्दर सवतत्र तेज नीला प्रकार् फै ला हुअ
देखा। नीले प्रकार् के ऄन्दर नीले रंग के छोटे छोटे प्रकार् कण आधर ईधर गनत कर रहे थे। मैंने उपर की ओर जब महँु
नकया तब मझु े बड़ा अश्चयत हुअ उपर की ओर कमरे की छत नहीं नदखाइ दी, उपर की ओर वही तेज प्रकार् नीले रंग
की नवद्यमान थी। मैं िण भर के नलए हड़बड़ा सा गया, तभी मेरे महंु से अवाज ननकल पड़ी, ‚कमरे की छत कहाँ िली
गइ, मझु े नदखाइ ‍यों नहीं दे रही है‛। मैं थोड़ी देर तक र्ांत बैठा रहा। कुछ समय बाद कमरे के ऄन्दर ईपनस्थत नीला
प्रकार् धीरे -धीरे ऄदृश्य हो गया। मझु े कमरे की छत नदखाइ देने लगी। ऄब मैं आस ऄवस्था के नवषय में सोिने लगा नक
अज त्राटक का ऄभ्यास करने के बाद ऐसा ‍यों नदखाइ नदया, मैं आसका ऄथत तरु न्त समझ गया। ऄब मैं सोिने लगा
नक ऐसा ऄभ्यास भनवष्य में और करना िानहए ऄथवा नहीं करना िानहए। मगर मेरा ऄभ्यास पहले की तरह िलता
रहा। नफर मैंने नविार नकया– मैं योगी ह,ँ मझु े समानध का ऄभ्यास ज्यादा से ज्यादा करना िानहए। मैंने त्राटक का
ऄभ्यास का समय कम कर नदया, मगर थोड़ा-थोड़ा ऄभ्यास करता रहा। ऄभ्यास कम करने के बाद भी अँखों से
ननकलने वाली नीले रंग की नकरणें बराबर नदखाइ देती रहती थी।
ऄभ्यास करते समय मझु े एक और ऄनभु व ऄ‍सर अया करता था। जब त्राटक का ऄभ्यास िरम सीमा पर
था, ईस समय जब मैं अकार् की ओर नदन में देखता था, तब अकार् में तेज प्रकार् का गोला नीले रंग का नदखाइ
देता था। आस गोलाकार प्रकार् के मध्य में सइु के नोक के बराबर अकार का प्रकार् मात्र िनणक देर के नलये नदखाइ
देता था। यह प्रकार् तभी नदखाइ देता था जब मैं अकार् की ओर देखता था। मगर ऄन्य वस्तओ ु ं की ओर देखने पर
यह प्रकार् नहीं नदखाइ देता था, तब नसफत गोलाकार तेज नीला प्रकार् ही नदखाइ देता था। यह सइु की नोक के बराबर
ऄत्यन्त तेजस्वी प्रकार् नीले गोलाकार धब्बे के मध्य में िनणक देर के नलए नदखाइ देता था, नफर लप्तु हो जाता था।
आस सइु के नोक के बराबर प्रकार् का रंग बहुत ही हल्का सफे द ऄथवा रंगहीन सा होता था, यह ऄत्यन्त छोटा सा
नबन्दु बहुत ही िमकीला व अकषतक होता था।
मैं पहले नलख िक ु ा ह-ँ नबन्दु अनद पर त्राटक करते समय क्रमर्ः पीला, हरा, लाल, धम्रू व नीला प्रकार्
नदखाइ देता है। यह रंग पाँिों तत्त्वों के होते हैं। नीला रंग अकार् तत्त्व का होता है, तथा कारण र्रीर और कारण जगत
का भी नीला रंग होता है। ये रंग स्वयं ऄभ्यासी की वृनत्तयों और र्रीर से सम्बनन्धत होते हैं। जो कुछ भी आस प्रकार का
नदखता है वह स्वयं से ही सम्बनन्धत होता है। साधकों! आस ऄवस्था को प्राप्त करने में मझु े कुछ साल लग गये थे। ऄब
हम त्राटक द्रारा र्न‍तपात करने में समथत हैं। आस ऄवस्था को प्राप्त नकये हुए ऄभ्यासी को त्राटक र्न‍त का प्रयोग
करना िानहए। जो साधक थोड़ा सा त्राटक का ऄभ्यास करके त्राटक र्न‍त का प्रयोग करते हैं, वे ज्यादातर ऄसफल
ही हो जाते हैं। आस ऄसफलता का कारण त्राटक के ऄभ्यास में पररप‍व न होना ही है। पररप‍व ऄवस्था प्राप्त साधक
को र्न‍तपात का प्रयोग करना िानहए।
मैं सहज ध्यान योग का साधक ह।ँ मझु े योग के माध्यम से नकसी पदाथत की खोज करनी थी, आसीनलए आतना
ज्यादा त्राटक का ऄभ्यास नकया था। त्राटक की आस ऄवस्था को प्राप्त होने पर साधक दसू रे के नवषय में जानकारी कर

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सकता है। आसके नलये प्राणों का र्िु होना भी ऄनत अवश्यक है। बहुत से साधक नसफत त्राटक का ही ऄभ्यास करते हैं
आतने से ही ईच्िावस्था को प्राप्त करना िाहते हैं। त्राटक के ऄभ्यासी को आसमें पारंगत होने के नलये ऄिांग योग का
भी ऄभ्यास करना िानहए।

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भाग - 3
त्राटक का अच्छा अभ्यासी कै से बनें
वततमान समय में बहुत से लोग त्राटक का ऄभ्यास कर रहे हैं। त्राटक के बहुत से ऄभ्यानसयों ने मझु से नवनभन्न
माध्यम से सम्पकत भी नकया। ईन्होंने ऄपने नवषय में बताया- मैं त्राटक का ऄभ्यास आस प्रकार से कर रहा ह,ँ बहुत समय
हो गया मगर सफलता नहीं नमली। बहुत से ऄभ्यासी गलत तरीके से ही ऄभ्यास करने में लगे हुए थे। कुछ ऄभ्यासी
ऐसे भी नमले नजनकी सोि बहुत ही गलत थी। वह त्राटक के ऄभ्यास के द्रारा ऄननु ित लाभ प्राप्त करना िाहते थे।
मझु े ऄपने जीवन में नभन्न-नभन्न सोि वाले त्राटक के ऄभ्यासी नमले। सबसे पहले मैं त्राटक के ऄभ्यानसयों से कहना
िाहगँ ा नक त्राटक एक ऐसा नवज्ञान है नजसके ऄभ्यास से मानव जीवन ईन्ननत की ओर ऄग्रसर होता है तथा अंतररक
नवकास भी होता है। भौनतक ईन्ननत और अध्यानत्मक ईन्ननत दोनों में आसके ऄभ्यास का प्रभाव पड़ता है। आसके
ऄभ्यास से ऄभ्यासी के ऄन्दर नवलिण सामर्थयत अ जाता है, नजसका प्रयोग सदैव मानव कल्याण के नलए करना
िानहए।
मैंने बहुत से ऄभ्यानसयों को देखा है जो गलत ढंग से त्राटक का ऄभ्यास करते हैं। ऐसे ऄभ्यानसयों से मैं
कहना िाहगँ ा नक वे ऄपना ऄभ्यास नकसी ऄनुभवी गरुु के मागतदर्तन में करें , तभी ऄच्छा है। ज्यादातर ऄभ्यासी नबन्दु
त्राटक पर ऄभ्यास करते समय ही ऄपने अपको पारंगत समझ लेते हैं, ‍योंनक कुछ समय बाद ही ईन्हें पाँिों तत्त्वों के
रंग नदखाइ देने लगते हैं। ईनकी सोि होती है– ऄब तो मझु े तत्त्वों के पाँिों रंग नदखाइ देने लगे हैं, नीली रंग की नकरणें
मेरी अँखों से ननकलती हुइ नदखाइ देने लगी हैं, ऄब मेरा ऄभ्यास पणू त हो गया है। मगर जब वह त्राटक का प्रयोग
नकसी रोग को ठीक करने में करते हैं, तब ईनके द्रारा मरीज पर नकसी प्रकार का ऄसर नहीं पड़ता है। कुछ ऄभ्यासी
सोिने लगते है, मझु े ऄभी तक नसनियाँ ‍यों नहीं नमलीं हैं अनद। नफर स्वयं ऄभ्यासी दःु खी होने लगता है नक मैं
ऄसफल ‍यों हो गया ह?ँ ऐसे दःु खी ऄभ्यासी मझु े बहुत से नमल िक ु े हैं, नजन्हें मैंने ईन्हें त्राटक के नवषय में समझाया।
ऄभ्यानसयों! नसफत नबन्दु और दपतण पर त्राटक के थोड़े से ऄभ्यास कर लेने मात्र से कुछ नहीं हो जाता है, भले
ही अपने ऄभ्यास से मन को थोड़ा सा संयनमत कर नलया है। पहले ऄपने र्रीर के नवषय में समझ लें, अपके र्रीर
की संरिना कै सी है? जब तक अपके ऄभ्यास का प्रभाव स्थल ू र्रीर से लेकर नित्त पयतन्त नहीं पड़ेगा, तब तक
अपको त्राटक के ऄभ्यास में ऄनभु वी कै से कहा जा सकता है? ऄभ्यासी के नित्त में ऄनन्त जन्मों के कमातर्य
नवद्यमान रहते हैं। आन कमातर्यों के कारण ही नित्त में मनलनता बनी रहती है, तथा तमोगणु का प्रभाव नित्त पर ऄनधक
रहता है। ऄज्ञानता के कारण नित्त में नवद्यमान राग-द्रेष व स्वाथत के कारण लोभ-मोह अनद बना रहता है। यही ऄवगणु
ऄभ्यासी को कमजोर बनाये रखते हैं। नित्त का स्वच्छ व र्ि ु होना ऄनत अवश्यक है। नित्त में स्वच्छता ही नित्त को
व्यापक बनाती है, आसनलए नित्त में नस्थत तमोगणु का प्रभाव कम होना िानहए, तथा सत्वगणु का प्रभाव (मात्रा)

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ज्यादा होना िानहए। नसफत त्राटक के ऄभ्यास से ही नित्त में स्वच्छता नहीं लायी जा सकती है। नित्त की स्वच्छता के
नलये योग का ऄभ्यास करना ऄनत अवश्यक है।
योग के ऄभ्यास द्रारा स्थल ू से लेकर नित्त पयतन्त स्वच्छता ऄभ्यासानसु ार बढ़ती रहती है, मनलनता धीरे -धीरे
कम होती रहती है। हम पहले नलख िक ु े हैं नक हमारे स्थल
ू र्रीर के ऄन्दर सक्ष्ू म र्रीर तथा सक्ष्ू म र्रीर के ऄन्दर
कारण र्रीर नवद्यमान रहता है। स्थल ू र्रीर का घनत्व बहुत ही ऄनधक होने के कारण वह ठोसता को प्राप्त है ‍योंनक
वह स्थल ू पंिभतू ों से बना है। आसनलए यह सीनमत है और आसका सम्बन्ध स्थल ू जगत से रहता है। आसके ऄन्दर व्याप्त
सक्ष्ू म र्रीर का घनत्व स्थल ू र्रीर की ऄपेिा बहुत ही कम होता है; यह सक्ष्ू म पिं भतू ों द्रारा बना होता है, आसनलए
आसकी व्यापकता बहुत ही ज्यादा होती है। यह सक्ष्ू म र्रीर स्थल ू अँखों से नहीं देखा जा सकता है ‍योंनक स्थल ू
अँखों से नसफत स्थल ू जगत ही नदखाइ देता है। ईसे देखने के नलए नदव्य दृनि का खल ु ा होना अवश्यक है, नदव्य दृनि के
द्रारा सक्ष्ू म पदाथत व सक्ष्ू म जगत को देखा जा सकता है। सक्ष्ू म र्रीर का सम्बन्ध सक्ष्ू म जगत से रहता है। सक्ष्ू म जगत में
नवनभन्न प्रकार के प्राणी रहते हैं। सक्ष्ू म र्रीर के ऄन्दर कारण र्रीर व्याप्त रहता है। कारण र्रीर का घनत्व सक्ष्ू म र्रीर
की ऄपेिा बहुत ही कम होता है। आसनलए कारण र्रीर ऄत्यन्त सक्ष्ू म व व्यापक होता है। वह सम्पणू त प्रकृ नत (ऄपरा) में
व्याप्त रहता है। कारण र्रीर का सम्बन्ध कारण जगत से रहता है। नित्त का ननमातण भी कारण जगत से सम्बनन्धत होता
है, आसनलए नित्त सवतत्र व्याप्त रहता है। नित्त की भनू म पर सम्पणू त सस्ं कार नवद्यमान रहते हैं।
प्रकृ नत सदैव तीन ऄवस्थाओ ं में रहती है– पहली कारण ऄवस्था, दसू री सक्ष्ू म ऄवस्था, और तीसरी स्थल ू
ऄवस्था। नजन पदाथों से प्रकृ नत का ननमातण हुअ है, ईन्हीं पदाथों से मनष्ु य के र्रीर का ननमातण हुअ है। आसनलए
ब्रह्माण्ड रूपी प्रकृ नत और मनष्ु य के र्रीर में कोइ ऄतं र नहीं है। जो मनष्ु य के र्रीर में हलिल होती है, ईसका प्रभाव
ब्रह्माण्ड रूपी नपण्ड पर पड़ता है। आसी प्रकार ब्रह्माण्ड के हलिल का प्रभाव मनष्ु य के र्रीर पर भी पड़ता है। दोनों एक-
दसू रे में समाये हुए हैं।
त्राटक के ऄभ्यानसयों को उपर नलखी पंनक्तयों को ऄच्छी तरह से समझ लेना िानहए, तभी त्राटक की गहराइ
के नवषय में बारीकी से (सक्ष्ू मता) समझ पाएगं े। जो ऄभ्यासी नसफत ऄपना ऄभ्यास स्थल ू ऄवस्था से सम्बनन्धत करते
रहते हैं ऄथातत् स्थलू जगत तक ही सीनमत हैं, वे दसू रों को कै से प्रभानवत कर सकते हैं, ‍योंनक ईन्होंने ऄपना नवकास
स्थल
ू ऄवस्था में ही नकया है। ऄज्ञानता से वह ऄपने अपको ऐसा समझ लेते हैं नक वह बहुत बड़े ऄभ्यासी हो गये हैं।
ऐसा ऄभ्यासी दसू रों को प्रभानवत नहीं कर सकता है, ऄगर थोड़ा-बहुत दसू रों को प्रभानवत भी कर नदया तो भल ू वर्
ऄपने को ननपणु न समझ लें। ऄभ्यासी को ऄपना सक्ष्ू म नवकास करना अवश्यक है, तभी वह कुछ कर पाने में समथत
होगा।
अतं ररक नवकास का ऄथत है- स्थल ू से लेकर नित्त पयतन्त नवकास करना, ऄथातत् साधक को ऄपनी स्थल ू
ऄवस्था, सक्ष्ू म ऄवस्था और कारण ऄवस्था का नवकास करना होता है। नित्त में नस्थत मनलनता ही अतं ररक नवकास

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में ऄवरोध है। ऄब प्रश्न ये है नक ये मनलनता अती कहाँ से है, जाती कहाँ है और ये ‍या है? आसका ईत्तर है– नित्त
जैसे-जैसे बनहमख तु होता जाता है, तमोगणु की मात्रा वैसे-वैसे बढ़ती जाती है। जैसे-जैसे तमोगणु की मात्रा बढ़ती जाती
है, वैसे-वैसे सत्वगणु की मात्रा धीरे -धीरे कम होती रहती है। ऄन्त में स्थलू जगत में समस्त व्यवहार तमोगणु की
प्रधानता में ही हो रहा है। यही तमोगणु मनलनता है। सत्वगणु स्वच्छता का प्रतीक है, ‍योंनक वह हल्का व प्रकार्क है।
जो वस्तु प्रकार्क होती है, ईसमें सत्वगणु की मात्रा ज्यादा होती है। जो वस्तु प्रकार् का ऄवरोधक हो, ईसे ऄर्ि ु
कहते है। तमोगणु प्रकार् का ऄवरोधक होता है। आसीनलए तमोगणु भारीपन, अलस्य व ऄधं कार का प्रतीक माना
जाता है।
ऄभ्यासी को ऄन्दर की तमोगणु की मात्रा कम करना है, आससे नित्त पर नस्थत तमोगणु की मात्रा घटने लगेगी।
तमोगणु की मात्रा कम करने का सरल ईपाय यह है नक नजस तरह से नित्त क्रमर्ः बनहमतख ु ी होता गया है, ऄन्त में
स्थल
ू पंि भौनतक पदाथत से बना स्थल ू र्रीर में प्रत्यि हो रहा है, स्थल
ू आनन्रयों द्रारा जो व्यापार स्थल
ू जगत में
बनहमख तु ता को लेकर हो रहा है, नित्त क्रमर्ः बनहमतख
ु होकर ऄन्त में आनन्रयों द्रारा व्यवहार करने लगा है; बनहमख तु ी हुए
नित्त को क्रमर्ः ऄभ्यास के द्रारा ऄतं मतख ु ी कर दें, तब नित्त पर नस्थत मनलनता ऄपने अप धीरे -धीरे कम होती
जायेगी। नजस प्रकार अरोह क्रम से नित्त प्रकट हो रहा है ईसी प्रकार ऄवरोह कम में नित्त को ऄतं मख तु ी कर दें।
ऄब मैं नित्त का अरोह क्रम बता रहा ह–ँ नित्त तीन गणु ों व पाँि तत्त्वों द्रारा बना हुअ है। नित्त को हम िेत्र
भी कह सकते हैं, नित्त ऄपरा प्रकृ नत के ऄन्दर नवद्यमान रहता है, आसकी सीमाऐ ं ऄपरा प्रकृ नत में फै ली हुइ होती हैं।
फकत नसफत आतना है नक प्रकृ नत सभी जीवों की भोग की वस्तु है आसनलए सभी जीवों का सम्बन्ध प्रकृ नत से बना रहता है।
मगर नित्त से एक जीव का ही सम्बन्ध रहता है। जीव नित्त पर हुइ हलिल के ऄनसु ार ही सख ु और दःु ख की ऄनभु नू त
करता है। सभी जीवों के नित्त ऄलग-ऄलग होते हैं। सभी जीवों के कमातर्य नभन्न-नभन्न प्रकार के होने के कारण,
ऄनन्त नित्त प्रकृ नत में नवद्यमान होते हुए भी अपस में ईनका ऄनस्तत्व ऄलग-ऄलग रहता है। जबनक सभी नित्तों का
स्वरूप मल ू रूप से एक जैसा ही है ‍योंनक नित्त ऄपरा प्रकृ नत से बने होते हैं। नित्त में जो तीन गणु नवद्यमान रहते हैं, वे
नवषम पररणाम वाले होते हैं ऄथातत् तीनों गणु सदैव नवषमावस्था में रहते हैं, आसीनलए आनमें सदैव पररणाम होता है। जब
नित्त का ननमातण होता है, तब सत्वगणु प्रधान रूप से रहता है, रजोगणु व तमोगणु गौण रूप से रहते हैं। पररणाम को
प्राप्त हुए गणु ों में रजोगणु के कारण नक्रया होती रहती है, नक्रया होने के कारण तमोगणु की बनहमख तु ता होते ही नित्त पर
ऄहक ं ार प्रकट हो जाता है। ऄहक ं ार में गणु ों की नवषमावस्था के कारण ऄहक ं ार दो रूपों में नवभक्त हो जाता है:
1- ग्राह्य रूप में, 2-ग्रहण रूप में। ग्राह्य रूप में पाँि तन्मात्रायें ईत्पन्न होती हैं, ये तन्मात्राएं - र्ब्द, स्पर्त, रूप, रस और
गन्ध है। आन तन्मात्राओ ं से क्रमर्ः अकार्, वाय,ु ऄनग्न, जल और पृर्थवी तत्त्व प्रकट हुए हैं। ये पाँिों पि ं भतू कहे गये
है, आन सक्ष्ू म पंिभतू ों से सक्ष्ू म जगत का ननमातण हुअ है। सक्ष्ू म पंिभतू ों में जब पररणाम हुअ तब तमोगणु के बनहमतख ु
होने पर क्रमर्ः पाँिों स्थल ू भतू ों का प्राकट्य हुअ हैं। आन्हीं पाँिों स्थल ू पिं भतू ों से स्थल ू जगत का ननमातण हुअ तथा
स्थल ू र्रीर का ननमातण हुअ है। ग्रहण रूप में ऄहक ं ार के बनहमख तु होने पर मन का प्राकट्य हुअ है। मन में गणु ों का

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पररणाम होने पर सक्ष्ू म आनन्रयों का प्राकट्य हुअ हैं, सक्ष्ू म आनन्रयाँ सक्ष्ू म र्रीर में नवद्यमान रहती है। सक्ष्ू म आनन्रयों से
स्थल
ू आनन्रयों का प्राकट्य हो रहा है। ये स्थलू आनन्रयाँ स्थल ू र्रीर में नवद्यमान रहती हैं। आन्हीं स्थलू आनन्रयों द्रारा स्थल ू
जगत का भोग नकया जाता है तथा आन्हीं स्थल ू आनन्रयों का व्यापार सम्पणू त जगत में हो रहा है। आन्हीं आनन्रयों का दास
हुअ मनष्ु य जीवन भर आच्छाएं पणू त करने में लगा रहता है। नफर भी आच्छाऐ ं कभी भी पणू त नहीं होती हैं मगर मनष्ु य का
जीवन समाप्त हो जाता है।
ऄब हमारे र्ब्दों पर थोड़ा ध्यान दें– नित्त में पररणाम होने पर क्रमर्ः बनहमतख ु ी होता हुअ ऄन्त में स्थल ू
र्रीर और स्थल ू जगत के रूप में प्राप्त हो गया है। ऄहक ं ार दो भागों में ऄलग-ऄलग हो गया– एक ओर ग्राह्य रूप में,
दसू री ओर ग्रहण रूप में। ग्राह्य रूप में सक्ष्ू म पि
ं भतू नफर स्थल ू पि ं भतू ऄथातत् स्थलू पदाथत व स्थल ू जगत ऄहक ं ार ही
ग्राह्य रूप में है। आसी प्रकार स्थल
ू आनन्रयाँ भी ऄहक ं ार का ही ग्रहण रूप हैं। आनन्रयाँ स्थल
ू पदाथों का भोग कर रही हैं,
दसू रे र्ब्दों में ऄहकं ार ही ऄहक ं ार को खा रहा है। ऄहक ं ार ऄपने अप में बरत रहा है ऄथातत् व्यवहार कर रहा है।
भगवान श्री कृ ष्ण जी गीता में ऄजनतु से कहते हैं– ‚गणु ही गणु ों में बरत रहे हैं, िेतन तत्त्व तो दृिा मात्र है‛। यहाँ पर मैं
कहना िाहगँ ा– संसार में व्यवहार अनद के समस्त कायत अपस में गणु ों का ही है या ऄहक ं ार का ही है। ‍योंनक गणु ों
के कारण ही संसार में समस्त कायत हो रहे हैं। ऄब यह समझ में अ गया होगा नक प्रकृ नत ही ऄपने अप में व्यवहार कर
रही है। जीव दरू से बैठा हुअ असनक्त के कारण सख ु -दखु की ऄनभु नू त कर रहा है। िेतन तत्त्व अत्मा दृिा मात्र है।
नित्त में हो रही हलिल (व्यवहार) में असक्त हो रहा जीव नित्त को (संसार के भोग पदाथों को) ऄपना समझ रहा है।
हम पहले बता िक ु े हैं नक तमोगणु की प्रधानता से ही स्थल ू जगत (ससं ार) में व्यवहार हो रहा है। ऄभ्यासी
को आसी तमोगणु की मात्रा क्रमर्ः कम करनी है या घटानी है। यनद तमोगणु की मात्रा कम कर दी जाए तो ऄभ्यासी को
सफलता प्राप्त होने लगेगी, ‍योंनक तमोगणु ही ऄवरोधक है। जब तक आनन्रयाँ बनहमख तु ी होकर भोग पदाथों में नलप्त
रहेंगी, तब तक ऄभ्यासी को सफलता प्राप्त नहीं होगी, आसनलए आनन्रयों को ऄतं मख तु ी बनाना ऄनत अवश्यक है, तभी
सांसाररक भोग पदाथों में असनक्त व नलप्तता कम हो पायेगी। मनष्ु य संसार में नित्त के अरोहक्रम में जीवन जी रहा है।
ऄभ्यास के द्रारा आनन्रयों को क्रमर्ः ऄतं मख तु ी करते जाना है ऄथातत् ईन्हें ऄपने मल ू स्रोत में क्रमर्ः नवलीन करते जाना
है, आसे ऄवरोह क्रम कहते हैं। स्थल ू आनन्रयाँ सक्ष्ू म आनन्रयों में, सक्ष्ू म आनन्रयाँ मन में, मन को ऄहक ं ार में, ऄहक
ं ार को
नित्त में नवलीन करना है। जब ऄभ्यासी आस क्रम से नित्त में नवलीन कर देगा, तब ईसके ऄन्दर सत्वगणु की प्रधानता
अ जायेगी, नित्त स्वच्छ ननमतल हो जायेगा, तमोगणु की प्रधानता समाप्त होकर नाम मात्र का रह जायेगा। ऄब नित्त
सत्वगणु की प्रधानता के कारण प्रकानर्त हो जायेगा, आससे ऄभ्यासी को सफलता प्राप्त होने लगेगी।
सत्वगणु प्रधान नित्त वाला साधक त्राटक के ऄभ्यास के द्रारा संसार के कायों को करने में समथत है। सत्वगणु
की प्रधानता वाले साधक के संकल्पानसु ार प्रकृ नत ईस कायत को होने में सहयोग देती है ऄथवा साधक के
संकल्पानसु ार कायत होने लगते हैं ‍योंनक ईसके संकल्प को ऄवरोध करने वाला तमोगणु ईसके नित्त में नाम मात्र का
ही है। नजन साधकों को नित्त में तमोगणु की ऄनधकता रहती है, ईनके द्रारा नकये गये संकल्प पणू त नहीं होते हैं ऄथवा

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सक ं ल्प में ऄवरोध अ जाता है। अजकल कुछ साधक थोड़ा सा त्राटक का ऄभ्यास करके सोिने लगते हैं नक मझु े
त्राटक के द्रारा ऄमक
ु कायत करना है ऄथवा कायत करने का प्रयास करते हैं, मगर जब ईनके संकल्प के ऄनसु ार कायत
नहीं होता है, तब वह दःु खी होते हैं और सोिने लगते हैं नक हमारे द्रारा कायत ‍यों नहीं हुअ, हम ऄसफल ‍यों हो रहे
हैं अनद।
त्राटक का ऄभ्यासी जब ऄपने कायत में ऄसफल होता है, तब वह ऄसफलता का स्वयं नजम्मेदार होता है;
आसका कारण है– ऄभ्यास में पररप‍वता का न होना। ईसे नित्त के नवषय में ज्ञान नहीं होता है। वह सोि लेता है नक मैंने
आतना ऄभ्यास कर नलया है, ऄमक ु कायत हो जाना िानहए। नित्त पर नस्थत कमातर्यों का बहुत महत्त्व होता है।
ऄभ्यासी को भली प्रकार से नित्त के नवषय में समझ लेना िानहए, नफर ऄपने ऄभ्यास के नवषय में बारीकी से जान
लेना िानहए तथा गरुु के द्रारा बताए हुए के ऄनसु ार ऄभ्यास करते रहना िानहए। कोइ भी साधक त्राटक के ऄभ्यास में
तरु न्त पांरगत नहीं हो सकता है। जब आसका प्रयोग नकया जाता है, तभी तरु न्त सफलता नमल जायेगी, ऐसा नननश्चत नहीं
है। र्रुु अत में ज्यादातर ऄसफलता नमलती ही है; मगर ऄभ्यासी जब धैयतपवू क त आसमें लगा रहता है ऄथातत् आसी कायत
को करने का प्रयास करता है, तब धीरे -धीरे सफलता नमलने लगती है। ऐसे कायों में संकल्प र्न‍त का महत्त्व है।
संकल्प नकतना र्न‍तर्ाली होगा, यह प्रयोगकतात की र्ि ु ता व ऄभ्यास पर ननभतर करता है।
ऄभ्यासी जब ऄतं मख तु ी होकर ऄपना अतं ररक नवकास करता है, तब ईसका प्रभाव ईसके सक्ष्ू म र्रीर पर
पड़ता है। सक्ष्ू म र्रीर में नवद्यमान सक्ष्ू म कोनर्काएं जो बन्द पड़ी हुइ हैं, वे जाग्रत होकर नक्रयार्ील होने लगती है।
सक्ष्ू म कोनर्काओ ं में भरा हुअ तमोगणु धीरे -धीरे कम होकर नष्ट होने लगता है। आससे सक्ष्ू म र्रीर धीरे -धीरे र्ि
ु होने
लगता है। आसी र्ि ु ता के ऄनसु ार व्यापकता बढ़ती है तथा सक्ष्ू म जगत का नवकास होता है, ‍योंनक सक्ष्ू म र्रीर का
सम्बन्ध सक्ष्ू म जगत से होता है। आसका प्रभाव ऄभ्यासी के मनस्तष्क पर भी पड़ता है, मनस्तष्क का नवकास होने लगता
है। आस प्रकार के ऄभ्यास से नजतना मनस्तष्क का नवकास हो सकता है ईतना नकसी ऄन्य तरीके से नहीं हो सकता है।
आस प्रकार के नवकास के नलए ऄभ्यासी को नसफत त्राटक के ऄभ्यास पर ही ननभतर नहीं रहना िानहए, बनल्क ईसे
प्राणायाम और ध्यान का भी धीरे -धीरे ऄभ्यास करना िानहए। योग का ऄभ्यास साधक का अतं ररक नवकास करे गा,
प्राणायाम के द्रारा प्राण र्नु ि व मन र्नु ि होगी, आससे सक्ष्ू म र्रीर र्ि
ु होगा तथा मन की िंिलता भी कम होगी।
त्राटक का ऄभ्यासी जब आस प्रकार का ऄभ्यास करे गा, तब ननश्चय ही वह ऄभ्यास के द्रारा र्न‍त सम्पन्न होगा। नकसी
भी कायत में सफल होने के नलए सक्ष्ू म रूप से र्न‍तर्ाली होना अवश्यक है। ऐसा तभी होगा जब संयनमत होकर योग
के ननयमों का पालन करता हुअ, दृढ़तापवू क त कठोरता से ऄभ्यास करता रहे। साधक को ब्रह्मियत का पालन करना
अवश्यक होता है ‍योंनक ब्रह्मिारी साधक का सक ं ल्प बहुत ही ज्यादा र्न‍तर्ाली होता है।
योग के ऄभ्यास के द्रारा जब साधक ऄपनी स्थल ू आनन्रयों को, स्थल ू पदाथों से असनक्त को हटाकर,
ऄतं मतख
ु ी करे गा, तब मन की िंिलता कम होकर एकाग्रता अनी र्रुु हो जायेगी। योग का ऄभ्यास करने के नलये आस
मागत का ऄनभु वी गरुु होना ऄनत अवश्यक है। नबना गरुु के योग का ऄभ्यास नहीं नकया जा सकता है। योग का

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ऄभ्यास करने के नलये यम, ननयम का पालन करना अवश्यक है। यम, ननयम का पालन नकये नबना समानध तक
पहुिँ ना बहुत ही मनु श्कल कायत है। योग के नवषय को सरलता से समझाने के नलये ईसे अठ भागों में नवभक्त नकया
गया है ऄथवा योग के अठ ऄगं कहे गये हैं, ईनको समझ लेना जरूरी है। ये ऄगं हैं:- 1. यम, 2. ननयम, 3. असन, 4.
प्राणायाम, 5. प्रत्याहार, 6. धारणा, 7. ध्यान, 8. समानध। यम, ननयम का पालन करने से नित्त में पनवत्रता अती है।
यम: र्रीर, विन और मन के संयम करने को यम कहते है। यम पाँि प्रकार के होते हैं ऄथवा आसके पाँि
भाग होते हैं– 1. सत्य, 2. ऄनं हसा, 3. ऄस्तेय, 4. ब्रह्मियत, 5. ऄपररग्रह। ऄतं ःकरण, बनु ि, मन से कपट रनहत ननश्चय
करने को सत्य कहते है। र्रीर, मन व र्ब्दों से नकसी को कष्ट न पहुिँ ाने को ऄनहसं ा कहते हैं। नकसी दसू रे की वस्तु
को जबरदस्ती न ले लेने को ऄस्तेय कहते हैं। र्रीर, मन, आनन्रय द्रारा काम नवकार से रनहत होने को ब्रह्मियत कहते हैं।
नकसी प्रकार की वस्तु को अवश्यकता से ऄनधक संग्रह न करने को ऄपररग्रह कहते हैं।
वनयम: ननयम पाँि प्रकार के होते हैं। 1. र्ौि, 2. सन्तोष, 3. तप, 4. स्वाध्याय, 5. इश्वर प्रानणधान। र्ौि के
ऄन्तगतत र्रीर और मन को पनवत्र रखना होता है। सख ु -दःु ख, लाभ-हानन व ऄनक ु ू लता-प्रनतकूलता में सदैव संतिु रहने
को संतोष कहते हैं। आनन्रय और मन द्रारा संयम रखते हुए व्रत अनद का पालन करने को तप कहते हैं। अध्यानत्मक
पस्ु तकों को पढ़ने को स्वाध्याय कहते हैं। र्रीर, मन और वाणी से इश्वर के प्रनत ईन्मखु रहने को इश्वर-प्रानणधान कहते
हैं।
आसन: र्रीर को ननरोगी व बनलष्ठ बनाने के नलये आसको ननयंनत्रत रखना ऄनत अवश्यक है। र्रीर को
असन के द्रारा ननयंनत्रत रखा जाता है। असन कइ प्रकार के होते हैं। ऄपनी सनु वधा ऄनसु ार ही असनों का ऄभ्यास
करना िानहए।
प्राणायाम: श्वास-प्रश्वास की गनत को ननयंनत्रत करने को प्राणायाम कहते हैं। प्राणायाम नवनभन्न प्रकार से नकये
जाते हैं। मख्ु य रूप से आसके तीन ऄगं होते हैं– 1. परू क, 2. कुम्भक, 3. रे िक। प्राणायाम से साधक का प्राण र्ि ु होता
है, आसका सक्ष्ू म र्रीर पर भी ऄसर पड़ता है।
प्रत्याहार: आनन्रयों को नवषयों से हटाकर ऄपने ऄन्दर के नन्रत करना तथा भोग्य पदाथों का प्रत्यि ईपनस्थत
रहने पर भी आनन्रयों पर प्रभाव न पड़ना ही प्रत्याहार कहा जाता है। आस योग्यता को प्राप्त करने के नलये आच्छार्न‍त
और आनन्रयों का संयम होना अवश्यक है।
धारणा: मन को नकसी वस्तु पर नस्थर कर देना ऄथवा वृनत्त के द्रारा ईसे धारण करने को धारणा कहते हैं।
ध्यान: जब ध्येय वस्तु पर प्रवाह के रूप में मन लग जाये, आसमें ध्येय का ननरन्तर मनन नकया जाता है।

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समावध: ध्येय वस्तु के ननरन्तर मनन से ईसके नवषय का स्पि ज्ञान होता है, तब समानध कही जाती है।
समानध दो प्रकार की होती हैं। 1. सबीज समानध, 2. ननबीज समानध।
सबीज समावध– आसमें संसार का बीज नवद्यमान रहता है। आसके भी दो प्रकार होते हैं, एक-सनवकल्प समानध, दो
नननवतकल्प समानध। सनवकल्प समानध में दृिा, दृनि, दृश्य की नत्रपटु ी बनती है। जब र्ब्द (नाम) और ज्ञान का प्रवाह
ऄथत (रूप) में नवलीन हो जाए, तब नननवतकल्प समानध कही जाती है।
वनबीज समावध– आसमें संसार का बीज नहीं रहता है, आसे ननरूिावस्था भी कहते हैं। यह ऄवस्था साधक को अनखरी
जन्म में प्राप्त होती है, ऐसे ऄभ्यासी जीवन्मक्त
ु ऄवस्था वाले होते हैं।
त्राटक का ऄभ्यास करने वाला साधक कहेगा– मझु े तो त्राटक का ऄभ्यास करना है, आस योग के ऄभ्यास से
त्राटक का ‍या सम्बन्ध है। आसका ईत्तर मैं स्पि रूप से दे रहा हँ ‍योंनक मैं योगी ह,ँ मेरा जीवन तो योग का ऄभ्यास
करते हुए बीता है। योग के ऄभ्यास के द्रारा अन्तररक नवकास होता है तथा स्थल ू से लेकर नित्त पयतन्त र्ि ु ता को
प्राप्त होता है। नसफत त्राटक के ऄभ्यास से ही स्थल
ू से लेकर नित्त पयतन्त र्ि ु ता प्राप्त नहीं की जा सकती है। आसके
नलये योग का ऄभ्यास करना अवश्यक है। नित्त तक र्ि ु ता प्राप्त वाली ऄवस्था नसफत एक ही जन्म में प्राप्त नहीं हो
सकती है, ऄनेकों जन्मों तक कठोर साधना करनी पड़ती है। आसी प्रकार ऄभ्यासी को समझ लेना िानहए नक ईसके
नित्त की ऄवस्था के ऄनसु ार ही त्राटक में योग्यता प्राप्त होती है। जब ससं ारी मनष्ु य त्राटक का ऄभ्यास करता है
नजसने कभी योग का ऄभ्यास ही नहीं नकया है, तो ईसे नकतनी योग्यता प्राप्त हो पायेगी, ये कहा नहीं जा सकता है।
त्राटक का ऄभ्यास जब साधक करे गा, तब ईसे ऄपनी योग की योग्यतानसु ार त्राटक में योग्यता प्राप्त होती है। ऄथवा
ये कहा जा सकता है नक त्राटक योग का ही एक ऄगं है, जो ईसमें ईच्िावस्था प्राप्त करने में सहायता करता है।
नजन साधकों का ध्यान के द्रारा मन एकाग्र होने लगा है, प्राणवायु उध्वतगमन करने लगी है तथा कुण्डनलनी भी
जाग्रत होकर उध्वत होने लगी है, ऐसे साधकों द्रारा ऄभ्यास करने पर ननश्चय ही वे त्राटक के िेत्र में बलवान होने लगते
हैं। अजकल बहुत से ऄभ्यासी त्राटक का ऄभ्यास करते रहते हैं, ईन्हें ऄपने अपसे से नर्कायत रहती है– ‚मैं बहुत
समय से ऄभ्यास कर रहा ह,ँ मगर त्राटक द्रारा कोइ भी कायत सफल नहीं होता है‛। ऐसा मझु े कइ ऄभ्यानसयों ने बताया
है। ऐसे ऄभ्यानसयों से मैं कहना िाहगँ ा– अपने थोड़ा सा त्राटक ‍या कर नलया, सोिने लगे नक आसी के द्रारा कायत
करके नाम कमाने लगगँू ा। ऄभ्यानसयों! सबसे पहले ऄपने वततमान जीवन का व्यवहार देखो नक अप कै सा जीवन जी
रहे हैं? ऄगर नसफत भौनतक पदाथों को प्राप्त करने में ही सम्पणू त समय लगा रहे हो, तब अपका त्राटक प्रभावर्ाली नहीं
होगा। जब जीवन नसफत स्थल ू जगत में व्यवहार करने में ही व्यतीत कर रहे हो, और यह सोिें नक मैं सक्ष्ू म पदाथों को
तथा सक्ष्ू म जगत को प्रभानवत कर द,ँू तब ऐसा नहीं होगा। सक्ष्ू म वस्तओ ु ं को प्रभानवत करने के नलये ऄध्यात्म का
सहारा लेना अवश्यक है। नजन साधकों का जीवन अध्यानत्मक नवकास में ही व्यतीत होता है और स्थल ू जगत में
व्यवहार नसफत जीवनयापन के नलये ही है, ऐसे ऄभ्यासी सामर्थयतवान होते हैं।

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नजन साधकों का कण्ठिक्र खल ु ा हुअ है, कुण्डनलनी भी उध्वत होकर कण्ठिक्र से उपर की ओर जाती है,
यनद ऐसा साधक त्राटक का ऄभ्यास करे तो भनवष्य में लोगों की सक्ष्ू म रूप से कुछ सीनमत सहायता कर सकता है।
ऐसी ऄवस्था में नदव्य दृनि भी ईनित मात्रा में कायत करने में सहयोग करने लगती है। जब साधक का ब्रह्मरंध्र खल
ु जाता
है, तब त्राटक का ऄभ्यास करने पर ईसके ऄन्दर नवनभन्न प्रकार के कायत करने की व जानने की र्न‍त अने लगती है।
नजसकी कुण्डनलनी पणू त यात्रा कर नस्थर हो िक ु ी हो, ऐसी ऄवस्था वाला ईच्ि श्रेणी का साधक त्राटक के द्रारा
अध्यानत्मक मागतदर्तन कर सकता है। ऄथातत् गरुु पद पर बैठकर स्पर्त द्रारा र्न‍तपात करने की अवश्यकता नहीं
पड़ती है, दरू से ही अँखों के द्रारा र्न‍तपात कर देगा। आसी प्रकार योनगयों की ऄवस्थाओ ं के ऄनसु ार त्राटक के
ऄभ्यास द्रारा त्राटक में ऄवस्था प्राप्त होती है। जीवन्मक्त
ु योगी द्रारा सारे अध्यानत्मक और भौनतक कायत अँखों द्रारा
र्न‍तपात से ही हो जाते हैं। संसारी मनष्ु य ईसे समझ नहीं पाता है, ऐसे योगी की त्राटक र्न‍त की कोइ बराबरी भी
नहीं कर सकता है। हे त्राटक के ऄभ्यानसयों! ऄगर त्राटक में सफल होना िाहते हो, तो त्राटक के ऄभ्यास के साथ-
साथ योग का भी ऄभ्यास करो, योग की ऄवस्थानसु ार अपको त्राटक में ऄभ्यास के द्रारा ऄवस्था प्राप्त होगी।
वततमान समय में बहुत से त्राटक के ऄभ्यासी समाज का कल्याण कर रहे हैं जैसे दसू रे के रोग का ईपिार
करना अनद। बहुत से ऄभ्यासी त्राटक का प्रयोग सम्मोहन के नलये नकया करते हैं। आस प्रकार के कायों को देखकर यह
नहीं समझ लेना िानहए नक ये लोग साधक या योगी हैं। नजन ऄभ्यानसयों का ऄध्यात्म से कुछ लेना देना नहीं है और
कठोर त्राटक का ऄभ्यास करते हैं, बहुत समय तक ऄभ्यास कर लेने पर ईनके ऄन्दर ढेर सारी योग्यताऐ ं अने लगती
हैं, आसी कारण ऐसे कायत करने में समथत होते हैं। मगर जो कायत साधक ऄथवा योगी कर सकता है, वह कायत आस प्रकार
के ऄभ्यासी नहीं कर सकते हैं। बहुत से त्राटक के ऄभ्यानसयों की आच्छा होती है नक मेरे भी िक्र खल ु जाएँ तथा मैं
दसू रों के िक्र खोल सकँू , नसनियाँ अनद मझु े ‍यों नहीं नमल रही हैं, कब नमलेगी। आस प्रकार की योग्यताएं नसफत त्राटक
के ऄभ्यास से प्राप्त नहीं होती हैं ‍योंनक सक्ष्ू म नवकास होने पर ही ये िीजें प्राप्त होती हैं। सक्ष्ू म नवकास के नलये
ऄभ्यासी को योग का भी ऄभ्यास करना िानहए।
त्राटक का ऄच्छा ऄभ्यासी बनने के नलए साधक को सदैव परोपकार की भावना रखनी िानहए। राग-द्रेष,
असनक्त अनद से सदैव दरू रहना िानहए। ये ऄवगणु ऄभ्यासी को सदैव कमजोर बनाते हैं। ईसका व्यवहार ऄपने-
पराये की भावना से रनहत होकर ननष्कपट होना िानहए। त्राटक का प्रयोग सदैव परोपकार के नलये होना िानहए। कभी
भी त्राटक र्न‍त का प्रयोग दसू रों को कष्ट देने के नलये या दसू रों को ठगने के नलये नहीं करना िानहए। जो मनष्ु य ऐसा
करता है, ईसे ननश्चय ही ऐसी दष्ु टता का फल भोगना पड़ता है। मैं भी नकसी समय ऐसे दष्ु ट स्वभाव वाले व्यनक्त से ठगा
गया ह।ँ ईस समय आस नवषय में नबल्कुल ऄननभज्ञ था।
हमारे साथ एक घटना घटी थी। यह बात सन् 1985 की है, ईस समय मैं नदल्ली र्हर में नौकरी करता था।
एक सम्मोहनकतात ने मझु से कुछ रुपए ठग नलये थे। एक नदन मैं और मेरा नमत्र पैदल ही बातें करते हुए िले जा रहे थे।
कुछ दरू िलने के बाद सनु सान जगह पर एक व्यनक्त रर‍र्े वाले को नलए खड़ा था। जब मैं ईसके पास से गजु रा तब

त्राटक 67
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वह व्यनक्त मेंरे से बोला अपके पास 10 रुपए के खल्ु ले हैं तो देना, मझु े रर‍र्ेवाले को देना है। मैं ईस व्यनक्त से बोला–
‚मेंरे पास 10 रुपए के खल्ु ले नहीं हैं‛। वह व्यनक्त बोला– ‚ऄरे देखो, होंगे तम्ु हारे जेब में‛। मेरा नमत्र भी मझु से बोला–
‚ऄरे देख ले, जेब में र्ायद खल्ु ले रुपए हों‛। मैंने जेब में हाथ डाला और सारे रुपए ननकाल नलये और ईसे नदखाया,
नफर मैं बोला– ‚यह 50 रुपए का नोट, यह 20 रुपए का नोट, यह 2 रुपए का नोट है। हमारे पास 72 रुपए हैं।‛ नफर मैं
अगे को िलने को हुअ, तभी वह व्यनक्त बोला– ‚ऄरे भाइ, रुपए सम्भाल के रखो, 50 रुपए का नोट नीिे पड़ा हुअ
है‛। ईस व्यनक्त के र्ब्द सनु कर मैं िौंक पड़ा ‍योंनक मैं ऄपने रुपए हाथ में पकड़े था। भनू म पर 50 रुपए का नोट
देखकर मैं िौंका, ‍योंनक सारे रुपए मेंरे हाथ में थे। तब तक ईस व्यनक्त ने 50 रुपए का नोट भनू म से ईठाकर मझु े दे
नदया, मैंने ऄपने हाथों में ले नलया। मैं 50 रुपए का नोट हाथ में नलया ही था, तभी वह मनष्ु य नफर बोला– ‚ऄरे भाइ
रुपए ढंग से तो रखो, 20 रुपए का नोट नीिे नगर गया है‛। ऄब मैं ईसकी बात सनु कर हड़बड़ा सा गया। मेरा नमत्र मझु से
बोला– ‚रुपए कै से रखता है, नीिे नगरा देता है‛। तब तक ईस व्यनक्त ने नीिे भनू म पर पड़ा 20 रुपए का नोट ईठाकर
मझु े नफर दे नदया, मैंने 20 रुपए का नोट ईस व्यनक्त से लेकर ऄपनी जेब में रख नलया और नमत्र के साथ अगे िल
नदया।
मैं अगे की ओर िला ही था, तभी मेरा नसर िकराने सा लगा, मैंने नसर में झटका मारा, आतने में नसर िकराना
बन्द हो गया। मैं नमत्र से बातें करता हुअ अगे की ओर िला जा रहा था, लगभग 5 नमनट बाद मझु े रुपए की
अवश्यकता पड़ी, मैंने रुपए ननकालने के नलये ऄपनी जेब में हाथ डाला, मगर जेब में रुपए ही नहीं थे। ऄब मैं िौंका,
रुपए कहाँ िले गए! हमारे जेब में नसफत 2 रुपए का नोट था। 50 रुपए और 20 रुपए का नोट गायब हो गया था। मझु े
ईसी व्यनक्त की याद अ गयी ‍योंनक मैं रुपए को मजबतू पकड़े था, नफर भी 50 रुपए और 20 रुपए के नोट नीिे कै से
नगर गये तथा ईसी समय मेरा नसर ‍यों िकराया था। मैंने नमत्र से कहा– ‚मेरे 70 रुपए ईसी व्यनक्त ने कपटपणू त तरीके से
लटू नलये हैं‛। मैं वापस ऄपने कमरे पर अ गया। मैंने नफर ऄपनी गरुु माता को पत्र नलखा।
मैंने श्री गरुु माता को पत्र में सारा हाल नवस्तार से नलखा। पत्र में यह भी नलखा– ‚माता जी, मैंने कभी भी ऄपने
जीवन में आस प्रकार नकसी को नहीं ठगा है, नफर भी हमारे साथ ऐसी घटना ‍यों घटी है‛? 20-25 नदनों बाद श्री माता
जी द्रारा भेजा हुअ पत्र मझु े प्राप्त हुअ। ईसमें नलखा था– ‚अप जैसे साधक को ईस व्यनक्त ने ठग नलया, आसका फल
ईसे भोगना होगा, भनवष्य के नलए सतकत रहो‛।
पाठकों हमारे साथ यह घटी घटना नबल्कुल सत्य है। ईस व्यनक्त ने मझु े सम्मोनहत करके मझु से 70 रुपये ठग
नलए थे। त्राटक के द्रारा ही सम्मोहन नवद्या का नवकास होता है। मैंने ऄपने जीवन में त्राटक का बहुत ही ऄभ्यास नकया
है। आसका प्रयोग सदैव ऄध्यात्म में दसू रे के परोपकार के नलए करता ह।ँ मैंने कभी भी सम्मोहन नवद्या को ज्यादा समय
नहीं नदया, नसफत सम्मोहन के नवषय में जानने के नलए त्राटक का प्रयोग नकया है। त्राटक के द्रारा सम्मोहन सीख कर
लोग व्यापार भी करते हैं, ऄपना स्वाथत नसि करते हैं। जब मनष्ु य नकसी नवद्या का दरुु पयोग करता है, तब समझ लेना
िानहए नक ईसका पतन नननश्चत है।

त्राटक 68
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त्राटक का ऄभ्यास करते समय साधकों को भोजन पर और प्राणायाम पर नवर्ेष ध्यान देना िानहए। साधकों
को सदैव सानत्वक भोजन करना िानहए, लाल नमित, तले हुए पदाथत, मसालों का प्रयोग नहीं करना िानहए। ऄर्ि ु
भोजन का प्रभाव ऄभ्यासी पर पड़ता है, तथा नजसने भोजन बनाया होता है ईसके भी सस्ं कार भोजन पर पड़ते हैं। जो
व्यनक्त भोजन करता है, बनाने वाले के संस्कार ईसके ऄन्दर िले जाते हैं। ऄगर भोजन र्ि ु है तो प्राण भी र्ि ु होगा,
प्राण के र्ि ु होने पर मन भी र्ि ु होता है, ‍योंनक मन को र्न‍त प्राणों से ही नमलती है। प्राणों को ननयंनत्रत करके
ऄपने ऄनसु ार िलाने से मन पर ऄनधकार होने लगता है तथा नित्त पर प्रभाव पड़ता है। पलक झपकाने का कायत भी
प्राण ही करता है। प्राणायाम द्रारा प्राणों को र्ि
ु कर नदये जाने पर तथा त्राटक का ऄभ्यास करने पर पलक देर तक
खल ु ी रहने का स्वभाव बन जाता है। पलक झपकाने वाले प्राण का नाम ‘कूमत’ है। सभी प्राणों के ऄपने ऄलग-ऄलग
कायत होते हैं।

मागतदशतक का होना अवत आिश्यक


पवू त काल में नवद्याथी गरुु कुल जाया करते थे, वहीं पर नवद्याथी को नर्िा और दीिा दी जाती थी। नर्िा का
ऄथत है– पस्ु तकीय ज्ञान कराया जाता था ऄथातत् र्ास्त्रों का ऄध्ययन करवाया जाता था, नफर दीिा दी जाती थी। दीिा
के ऄन्तगतत योगाभ्यास अता है, वहीं पर गरुु कुल के नवद्याथी को योग का ऄभ्यास कराया जाता था। वैसे दीिा का
ऄथत होता है ‘दीनित करना’ ऄथातत् गरुु द्रारा नर्ष्य पर र्न‍त पात करके ऄपने योगबल (र्न‍त) को नर्ष्य के सक्ष्ू म
र्रीर में प्रवानहत करना। योग के सभी प्रकार के ऄभ्यास गरुु द्रारा बताये ऄनसु ार करना तथा ईनके द्रारा बताये हुए मागत
पर िलना होता है। अजकल ऐसा नहीं है, ‍योंनक अजकल ऄयोग्य व्यनक्त भी गरुु पद पर बैठ जाता है, जबनक ऐसे
गरुु ओ ं में योग्यता ही नहीं होती है, नफर भी ढेरों नर्ष्य बना लेते है। वततमान समय में योग्य गरुु नमलना ऄत्यन्त कनठन
है। मैं व्यनक्तगत तौर पर कुछ गरुु ओ ं को जानता ह,ँ नजस नवषय पर ईनका ऄभ्यास नबल्कुल नहीं है, ईस पर खबू बोलते
हैं, कभी-कभी ईस नवषय पर ऄसत्य बातें कह देते हैं।
साधकों! त्राटक का ऄभ्यास करने से पहले नकसी ऄच्छे गरुु को अवश्य ढूंढ लीनजए, नफर ईसी के मागतदर्तन
में ऄभ्यास की र्रुु अत करें । ऐसा न सोिें– ‚त्राटक का ऄभ्यास करने के नलए गरुु की ‍या अवश्यकता है, नबन्दु या
लौ पर ही तो त्राटक करना है, मैं नबना गरुु के ही आसका ऄभ्यास कर लँगू ा‛। अप गरुु के नबना ऄवश्य त्राटक कर लेंग,े
बहुत से ऄभ्यासी गरुु के नबना ही त्राटक का ऄभ्यास कर रहे हैं, मगर ऐसे ऄभ्यासी नकतने सफल होते हैं, हम सभी को
मालमू है। आस प्रकार के बहुत से साधक मझु से सम्पकत कर िुके हैं। ऄनुभवी गरुु साधक को त्राटक के नवषय में बारीकी
से समझायेगा। त्राटक का ऄभ्यास तो थोड़ा बहुत साधक कर लेगा, मगर आसके प्रयोग करने के तरीके को ऄनुभवी
परुु ष ही बताएगा। साधक त्राटक का प्रयोग स्वयं ऄपनी बनु ि से नहीं कर पायेगा तथा नकसी पर प्रयोग करते समय गरुु
का प्रत्यि होना ऄनत अवश्यक है। त्राटक का प्रयोग करते समय त्रनु ट व ऄवरोधों को गरुु बारीकी से समझता है।

त्राटक 69
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जरुरत पड़ने पर त्रुनटयों को गरुु दरू भी कर देते हैं। ईदाहरण के नलए जब साधक नकसी के रोग का ननवारण कर रहा है,
ऐसे कायत जब र्रुु अत में सीखे जाते हैं तब गरुु का प्रत्यि होना ऄनत अवश्यक है ‍योंनक नकसी रोगी का रोग दरू
करते समय पहले ही प्रयोगकतात को ऄपने उपर कवि बनाना होता है। ऄगर ऐसा नहीं नकया जाता है तब जरा सी
ऄसावधानी होने पर रोगी के रोग का कुछ ऄंर् प्रयोगकतात पर भी अ सकता है। आससे प्रयोगकतात ईस रोग से प्रभानवत
हो सकता है। आसी प्रकार नवनभन्न प्रकार के कायों में सतकत ता से रहना पड़ता है।
साधक ऄगर योग का ऄभ्यास करता है और ईसकी साधना ऄच्छी है ऄथातत् साधक ईच्िावस्था को प्राप्त
कर िक ु ा है, वह गरुु पद पर जाना िाहता है ऄथवा गरुु पद के नलए योग्य है, तब ईसे त्राटक के माध्यम से ही मागतदर्तन
करने का ऄभ्यास करना िानहए। सफल साधक बनने के नलए त्राटक का बहुत ज्यादा ऄभ्यास होना िानहए। ऄभ्यास
नजतना ज्यादा होगा, सफलता भी ईतनी ही ज्यादा नमलेगी। र्न‍तपात तीन प्रकार से नकया जाता हैः– स्पर्त द्रारा,
अँखों द्रारा (त्राटक के द्रारा) और संकल्प द्रारा। स्पर्त के द्रारा र्न‍तपात ज्यादातर गरुु करते हैं, आस प्रकार र्न‍तपात
करने से गरुु द्रारा बाहर ननकाला गया योगबल नर्ष्य के ऄन्दर पणू त रूप से समा जाता है। अँखों के द्रारा र्न‍तपात
करने पर कुछ मात्रा में योगबल आधर-ईधर ऄतं ररि में नबखर जाता है। संकल्प द्रारा र्न‍तपात करने का तरीका नभन्न-
नभन्न प्रकार का होता है। संकल्प द्रारा र्न‍तपात तभी प्रभानवत करता है जब र्न‍तपात कतात का मन ऄत्यन्त दृढ़
ननश्चय वाला होता है तथा साधक को कठोर सयं म करना भी अवश्यक है। र्न‍तपात कतात को ब्रह्मियत का पालन
ऄवश्य करना िानहए। जो ब्रह्मियत का पालन नहीं करता है वह र्न‍तपात के समय ऄनधक योगबल बाहर ही नहीं
ननकाल पायेगा, आससे ऄसफलता प्राप्त होने का भय रहता है।
नप्रय साधकों! मैं एक बात की और जानकारी दे द।ँू वततमान समय में मझु े कुछ ऐसे मनष्ु य नमले, नजन्होंने मझु े
बताया– हमारे सातों िक्र खल ु े हुए हैं, मझु े ऄमक
ु देवी या देवता की नसनि है अनद। ये लोग आतनी योग्यता बता रहे थे,
नफर भी मझु से मागतदर्तन लेना िाहते थे। मैंने ईन्हें र्ानं तपवू क
त समझाया, ‚अपके ऄभी कोइ िक्र नहीं खल ु ा है, अप
पणू रू
त प से भ्रम में है, ऄच्छे गरुु के मागतदर्तन में ऄभ्यास करो‛। हमारे र्ब्द सनु कर ईन्हें दःु ख हुअ, ईनके िेहरे ऐसे
लग रहे थे मानो मैंने ईन्हें कोइ ऄपर्ब्द कह नदया हो। हमारे र्ब्दों का ईन पर नकतना ऄसर पड़ा, यह तो मैं नहीं
जानता ह;ँ पर आतना ऄसर ऄवश्य हुअ नक कुछ लोगों ने मझु से सम्पकत तोड़ नलया। नजन लोगों की मैं बात कर रहा ह,ँ
ईनमें से कुछ गरुु पद पर हैं, दसू रों का मागतदर्तन कर रहे हैं। ऐसी ऄवस्था में जब स्वयं गरुु ही अध्यानत्मक जीवन में
भ्रनमत है, दसू रों का ‍या मागतदर्तन करें ग।े
कुछ ऄभ्यासी नबना गरुु के ही ध्यान का ऄभ्यास करना र्रुु कर देते हैं। ऐसे ऄभ्यासी टेलीनवजन से, य-ू ट्यबू
से नवनडयो देखकर, बाजार की पस्ु तकों को पढ़कर व सनु कर ऄभ्यास करने लगते हैं और ऄपने को ईच्िकोनट का
योगी भी मानने लगते हैं। ध्यान करते समय कुछ नदनों बाद सक्ष्ू म नानड़यों में प्राणों की हलिल होने लगती है, ईसे ही
िक्रों का जागना समझ लेते हैं। जैसे भृकुनट पर ध्यान करते समय कुछ महीनों बाद भृकुनट पर व ईसके असपास
नानड़यों में हलिल होने लगती है, ऐसा प्राण के कारण होता है। ऄभ्यासी सामझ लेता है मेरा अज्ञािक्र खल ु गया है।

त्राटक 70
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आसी प्रकार नसर के उपरी भाग में गदु गदु ी होने लगती है, आसे भी यह समझ लेते हैं ईनका सहस्त्रारिक्र खल
ु गया। ऐसी
योग्यता वाले व्यनक्त जब दसू रों का मागतदर्तन करें गे तो साधकों का ‍या होगा? ऄगर ऄनभु वी गरुु की देखरे ख में
ऄभ्यास नकया होता तो भ्रम वाली नस्थनत नहीं होती।
हमेर्ा याद रखना नक सहस्त्रार िक्र अनखरी जन्म में नवकनसत होकर खल ु ता है, आसके खल
ु ने पर ऄभ्यासी
को जीवन्मक्तु ऄवस्था प्राप्त होती है तथा तत्त्वज्ञान से यक्त
ु होता है। बहुत से गरुु ओ ं का कहना होता है नक ईनकी
कुण्डनलनी उध्वत होकर ब्रह्मरन्ध्र तक जा रही है, जबनक ईनकी कुण्डनलनी जाग्रत ही नहीं हुइ है। कुछ गरुु तो
कुण्डनलनी जागरण के रुपए भी लेते है। मैं दो र्ब्दों में बता द,ँू सक्ष्ू म र्रीर के नवकास होने पर ईनित ऄवस्था में
कुण्डनलनी जागरण का ऄवसर अता है। आसके नलए साधकों को कइ वषों तक कठोर साधना करनी पड़ती है।
अतं ररक नवकास स्वयं के ऄभ्यास से होता है, नकसी की कृ पा पर नहीं होता है। कभी-कभी देखा गया है नक कुछ
व्यनक्त ऐसा भी कहते हैं नक मैं ईस देवता का ऄवतार ह,ँ मझु े ऄमक ु देवता नसि है अनद। मैं ‍या-‍या नलखँू ऐसे
भ्रनमत व्यनक्तयों के नलए नक वे धोखे में है, वे ऄपने-अप में जो समझ रहे हैं, वो नहीं हैं। आस सब का कारण है, आन्होंने
योग्य गरुु की देखरे ख में साधना नहीं की है।
त्राटक के ऄभ्यानसयों अप लोग भी आसी प्रकार के भ्रम में न पड़ जाएँ, आसके नलए जरूरी है ऄनभु वी गरुु की
खोज करो। वैसे अजकल ऄनभु वी गरुु कम नमलेंग।े जो ऄच्छे गरुु होते हैं, वे ऄ‍सर िमक-दमक नहीं नदखाते हैं
बनल्क साधारण तरह से ही रहते हैं, आसनलए समाज धोखा खा जाता है। ऄच्छे गरुु ऄपने अपको नछपाये रखते हैं, वह
समाज में खल ु कर सामने नहीं अते हैं। जरुरत पड़ने पर इश्वरीय कायत करते रहते हैं, नफर गप्तु रूप से जीवन व्यतीत करने
लगते हैं। ऄभ्यानसयों! ऄगर तुम्हें योग्य गरुु नमल गया तो वह तम्ु हें तरार् कर हीरा बना देगा, वरना काँि के टुकड़े जैसे
बने रहोगे। गरुु कृ पा से गप्तु नवनधयाँ नर्ष्य को नसखाइ जाती हैं। बहुत सी जानकाररयां गरुु -नर्ष्य परम्परा द्रारा ही अगे
की ओर बढ़ती है। सि तो यह है नक नसफत योग्य गरुु ओ ं की ही कमी नहीं है, बनल्क योग्य नर्ष्यों की भी कमी है। यही
वास्तनवकता है।

त्राटक शव‍त का प्रयोग कै से करें


कुछ गप्तु बातें ऐसी होती हैं जो गरुु नसफत ऄपने नर्ष्य को ही गप्तु रूप से बताता है, ऄथातत् गरुु -नर्ष्य परम्परा
के ऄन्तगतत योग के गप्तु भेद ऄपने नप्रय व सयु ोग्य नर्ष्य को ही बताता है। ये सावतजननक रूप से आसनलए नहीं बतायी
जाती हैं तानक ऐसी गप्तु नवद्याओ ं के प्रयोग की जानकारी दष्ु ट स्वभाव वाले व्यनक्त के पास न िली जायें। ऐसे लोग आस
नवद्या का प्रयोग गलत कायों के नलये कर सकते हैं, नजससे समाज का नक ु सान होगा। अजकल समाज में सभी प्रकार
के लोग मौजदू हैं। कुछ दष्ु ट बनु ि वाले परुु ष आसी तलार् में रहते हैं नक ऐसी गप्तु नवद्याओ ं की जानकारी कर समाज से

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लाभ प्राप्त नकया जाए। वततमान में ऐसे बहुत से परुु ष नमल जाएँगे जो ऄपनी दक
ु ान सजाये बैठे हैं। दख
ु ी भोली-भाली
जनता ऐसे लोगों के ि‍कर में फंस जाती है और ठगी जाती है।
यहाँ पर कुछ साधारण से प्रयोगों के नवषय में बताएँग।े आन्हें पढ़कर साधक ऄभ्यास कर सकता है, ऄभ्यास हो
जाने पर आसका प्रयोग भी नकया जा सकता है। एक बार मैं नफर बता द–ँू त्राटक के प्रयोग के नवषय में जानने के नलये
ऄपने गरुु से प्रत्यि सीनखये। जब त्राटक का ऄभ्यास करते हुए साधक को काफी समय बीत जाए और ऐसा लगने लगे
नक ऄब वह त्राटक का प्रयोग कर सकता है, यह भावना या नविार ईसके ऄन्तःकरण में अने लगे, तभी साधक त्राटक
की र्न‍त को प्रयोग करने के नवषय में सोिे। यनद साधक के मन में बेिैनी ऄथवा ईतावलापन हो, त्राटक के प्रयोग
करने के नलए, तब ऐसा न करें । त्राटक र्न‍त का प्रयोग सक्ष्ू म रूप से नकया जाता है, आसनलए साधक की आच्छार्न‍त
ननश्चय ही बलवान होनी िानहए। कमजोर आच्छार्न‍त वाले साधक का प्रयोग सफल नहीं होता है। बलवान संकल्प ईन
साधकों का होता है जो त्राटक का ऄभ्यास करते समय योग का भी ऄभ्यास करते हैं, तथा कठोरता के साथ प्राणायाम
भी करते हैं। ऐसे साधकों को सानत्वक भोजन करना िानहए, गरुु द्रारा बताये मत्रं ों का जाप भी करना िानहए, ब्रह्मियत
का पालन कठोरता से करना िानहए। आन सभी प्रकार के ऄभ्यास करने से नित्त की र्नु ि होती है, साधक का नित्त
नजतना र्ि ु होगा, ईतनी ही आच्छार्न‍त ईसकी बलवान होगी।
त्राटक के प्रयोगकतात का प्रत्येक प्रकार के त्राटक के तरीकों पर कम से कम एक घण्टे का ऄवश्य होना
िानहए, ऄथातत् नबन्दु पर त्राटक से लेकर सयू त पर त्राटक का ऄभ्यास कम से कम एक घण्टे का ऄवश्य होना िानहए।
आससे कम समय में नकया हुअ ऄभ्यास साधक को ईसके कायत में ऄसफलता प्राप्त करा सकता है। आन सभी प्रकार के
ऄभ्यासों में सयू त पर त्राटक का ऄभ्यास महत्त्वपणू त होता है, आसनलए सयू त पर त्राटक का ऄभ्यास ज्यादा से ज्यादा करना
िानहए।
यहाँ पर मैं एक छोटा सा प्रयोग करना बता रहा ह–ँ नकसी को बख ु ार िढ़ा हुअ हो, ईसका बख ु ार कम करना
है ऄथवा पणू त रूप से ईतारना है, तब आस प्रकार से नक्रया करें । मरीज को भनू म पर या तख्त पर िटाइ ऄथवा कम्बल पर
नलटा दें। मरीज िटाइ पर र्वासन मरु ा में लेटा होना िानहए, मरीज की अँखें बन्द होनी िानहए। पहले प्रयोगकतात
मरीज को गौरपवू क त देखे, नफर गरुु द्रारा बताये मत्रं से ऄपने उपर कवि धारण करे , नजससे प्रयोगकतात के ऄन्दर मरीज
का रोग प्रवेर् न कर सके । नफर एक बार मरीज के िेहरे पर दृनि के नन्रत करके दीघत ओकं ार करे । आसके बाद मरीज के
मस्तक पर दृनि के नन्रत करे , और अँखों के द्रारा ननकली हुइ नीले रंग की तेजस्वी नकरणें ईसके मनस्तष्क के ऄन्दर
प्रवेर् करा दे और संदर् े भेज–े तम्ु हारा बख
ु ार धीरे -धीरे कम हो रहा है ऄथवा बोल कर मरीज से कहे– तम्ु हारा बख ु ार
धीरे -धीरे कम हो रहा है, ऄभी कुछ िणों में ये बख ु ार ईतर जायेगा। नफर त्राटक करते हुये नसर से पैरों की ओर दृनि को
धीरे -धीरे ले जायें, पैरों के पंजों के पास पहुिँ कर, पैरों से दो तीन फीट दरू दृनि ले जाकर नसर को झटक दीनजये। आस
प्रकार से नसर झटकने का ऄथत है– त्राटक द्रारा कुछ मात्रा में ननकला हुअ बुखार दरू फें क नदया गया है। एक बार में
नक्रया करने पर बख ु ार कम नहीं होगा, र्रुु अत में प्रयोगकतात को यह नक्रया कइ बार करनी पड़ेगी, ऄगर नफर भी आस

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नक्रया से बुखार कम नहीं हुअ तो कुछ भी ऄन्यथा न सोिे। र्रुु अत में जब प्रयोगकतात बख ु ार ननकालता है तो
ऄसफल भी हो सकता है, सफलता धीरे -धीरे ही नमलती है। बख ु ार ईतारने से पहले प्रयोगकतात प्राणायाम भी कर ले तो
ऄच्छा है, आस प्रकार के प्राणायाम में अतं ररक कुम्भक का महत्त्व बहुत ज्यादा है। ऄगर बार-बार के प्रयास से ऄगर
बखु ार नहीं ईतर रहा है, तो ऄभी प्रयोगकतात के ऄभ्यास में कुछ कमी है।
हम पहले नलख िक ु े हैं नक त्राटक के साधक को योग का ऄभ्यास भी करना िानहए तभी त्राटक में पारंगता
प्राप्त हो पायेगी, ‍योंनक योग के ऄभ्यास से समानध द्रारा नित्त की वृनत्तयों को र्ीघ्र नष्ट नकया जा सकता है तथा नित्त
में ननमतलता भी र्ीघ्र अती है। जो ऄभ्यासी नसफत त्राटक का ऄभ्यास करके महारत हानसल करना िाहता है, वह
ऄभ्यासी भ्रम से यक्तु होता है, ईसे योग का ऄभ्यास तो करना ही होगा ‍योंनक त्राटक योग का महत्त्वपणू त ऄगं है, आसके
द्रारा मन की िंिलता रोककर मन को एकाग्र करते हैं, आसकी एकाग्रता में ही जबरदस्त र्न‍त है। आसनलए मौन व्रत का
भी ऄभ्यासी पालन करता है।
नजन ऄभ्यानसयों ने योग का ऄभ्यास करके ऄपना कण्ठिक्र खोल नलया है, ऐसे ऄभ्यानसयों की आच्छा
र्न‍त बहुत ही र्न‍तर्ाली हो जाती है। ऐसा ऄभ्यासी जब त्राटक र्न‍त का प्रयोग करता है, तब वह ऄसफल नहीं
होता है। कण्ठिक्र से अगे और ब्रह्मरंध्र खल
ु ने से पहले ऄवस्था वाले साधक त्राटक के प्रयोग में सफल होने लगता है,
ईसके द्रारा नकये गये कायत अश्चयतजनक लगने लगते हैं ‍योंनक ऐसा साधक समानध के ऄभ्यास के द्रारा सक्ष्ू म र्न‍तयों
का स्वामी होने लगता है तथा सक्ष्ू म जगत की सक्ष्ू म र्न‍तयाँ नजन्हें नसनियाँ कहते हैं ईसके सामने ईपनस्थत होकर
नाना प्रकार का प्रलोभन देती हैं। ऄगर आस ऄवस्था वाला ऄभ्यासी िाहे तो दसू रे नये साधक के ननिले िक्र खोल
सकता है। ऐसा तभी संभव होगा जब नजसके िक्र खोले जाने हैं, वह सानत्वक स्वभाव वाला तथा त्राटक व प्राणायाम
का ऄभ्यास करने वाला होना िानहए ऄथातत् सयु ोग्य पात्र होना िानहए। ऄगर प्रयोगकतात नर्ीले पदाथत का सेवन करने
वाले, दष्ु ट स्वभाव वाले व ऄधमी पर प्रयोग करे गा तब वह ऄसफल हो जायेगा ‍योंनक ऐसे व्यनक्त का र्रीर बहुत ही
ऄर्िु ता वाला होता है। त्राटक द्रारा नकया गया र्न‍तपात ईसके ऄन्दर प्रभावी नहीं होता है।
नजन साधकों का ब्रह्मरंध्र खल
ु ा हुअ है ऄथवा कुण्डनलनी पणू त यात्रा कर नस्थर हो िक
ु ी है, ऐसे ऄभ्यासी द्रारा
त्राटक का प्रयोग पणू त रूप से सफल होता है तथा ईसकी नगनती ईच्ि श्रेणी के मागतदर्तकों में होने लगती है। आस
ऄवस्था को प्राप्त हुअ ऄभ्यासी नकसी भी साधक के मल ू ाधार िक्र को, स्वानधष्ठान िक्र, नानभ िक्र व रृदय िक्र को
सरलता से खोल सकता है। परंतु ऐसा ऄभ्यासी कण्ठिक्र नहीं खोल सकता है, ‍योंनक कण्ठिक्र की सरं िना बहुत ही
जनटल होती है। ईसमें सम्मोहन के द्रारा ढेरों कायत करने का सामर्थयत होता है, लेनकन आतनी ईच्ि ऄवस्था वाला
ऄभ्यासी ऄकसर सम्मोहन के ि‍कर में नहीं पड़ता है, वह त्राटक र्न‍त का प्रयोग अध्यानत्मक कायों के नलये करता
है।

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अजकल बहुत से नये-नये साधक थोड़ा सा ऄभ्यास करके ही ऄपने अपको पारंगत समझने की भल ू कर
बैठते हैं। बहुत से ऄभ्यासी मझु से पछ ू ते हैं– ‚मझु े त्राटक कब नसि हो जायेगा तथा मझु े नसनियाँ कब प्राप्त हो
जाएँगी‛?। मैं सि ं ेप में बता द–ँू त्राटक एक ऐसा नवज्ञान है जो ऄनन्त है। जब तक नित्त में वृनत्तयाँ रहेंगी, तब तक
त्राटक का ऄभ्यास करना पड़ेगा। ऄभ्यानसयों को नसनियाँ तब नमलती है, जब ईसका सक्ष्ू म नवकासक्रम िल रहा होता
है, नफर भी पवू त जन्म के कमातनसु ार सभी को नसनियाँ प्राप्त नहीं हो पाती है। त्राटककतात िाहे नजतना बड़ा ऄभ्यासी हो,
त्राटक का प्रयोग करके नकसी साधक को नसनियाँ प्राप्त नहीं करा सकता है। ऄभ्यासी को कठोर साधना करते हुए
त्राटक का ऄभ्यास करना होगा, आसके बाद भी ऄभ्यासी के कमत के ऄनसु ार ही नननश्चत होगा नक नसनियाँ प्राप्त होंगी
ऄथवा नहीं होंगी। मैं सहज ध्यान योग मागत का योगी ह,ँ आसीनलए सानत्वक साधना के नवषय में ही जानता ह,ँ तंत्रमागत
के नवषय में नहीं जानता ह।ँ
नजन ऄभ्यानसयों ने सानत्वक साधना का ऄभ्यास नहीं नकया है ऄथातत् नजनका मागत सानत्वक नहीं है, ऐसे
ऄभ्यानसयों के कुण्डनलनी जागरण के नवषय में मझु े ज्ञान नहीं है। मैं आतना ऄवश्य जानता हँ नक कुण्डनलनी जाग्रत करने
के नलये नित्त में र्ि
ु ता होनी िानहए। त्राटक के बहुत से ऄभ्यासी नजनका ऄध्यात्म से कुछ लेना-देना नहीं है, वे भी
त्राटक का प्रयोग करके लोगों को ऄिम्भे में डाल सकते हैं। ये बहुत समय तक नवर्ेष प्रकार का ऄभ्यास करते रहते हैं,
तब ऐसे कायत हो पाने सम्भव हो पाते हैं। जादगू र त्राटक द्रारा दर्तकों को सम्मोनहत करके ऄपनी बात मनवा लेते हैं,
त्राटक के ऄभ्यास के द्रारा कुछ नननश्चत वस्तओ ु ं को एक स्थान से ईठाकर दसू रे स्थान पर रख देते हैं, छोटी-छोटी कठोर
वस्तओु ं को त्राटक द्रारा बीि से मोड़ देते हैं।
मैं योगी हँ आसनलए सम्पणू त लेख त्राटक पर ऄध्यात्म से सम्बोनधत ही नलख रहा ह।ँ मैंने भी योगाभ्यास के
साथ-साथ त्राटक का ऄभ्यास कइ वषों तक नकया है तथा त्राटक का प्रयोग मागतदर्तन के नलये करता ह।ँ मैंने सम्मोहन
के नवषय में आसनलए नहीं नलखा, ‍योंनक वह मेरा मागत नहीं है। सम्मोहन का प्रयोग ऄगर ऄच्छे कायों के नलये नकया
जाये, तो ननश्चय ही यह बहुत ऄच्छी नवद्या है। मगर वततमान समय में ऐसे भी दष्ु ट मनष्ु यों की कमी नहीं है जो सम्मोहन
का प्रयोग ऄमानवीय कायों के नलये करते हैं, आसनलए सम्मोहन के नवषय में नहीं नलख रहा ह।ँ वैसे मैं सम्मोहन का
कुर्ल प्रयोगकतात नहीं ह,ँ नफर भी आसे जानने के नलये सन् 1993 और 1996 में कुछ प्रयोग नकये थे, ईन सभी प्रयोगों
में मैं सफल रहा था। नफर आसका प्रयोग कभी भी नहीं नकया, ऐसा समझो आस नवद्या को पणू त रूप से त्याग नदया।
नकसी को सम्मोनहत करने के नलये ऄभ्यासी की अँखों में आतना तेज होना िानहए नक सामने वाला दृनि न
नमला सके , दृनि नमलाते ही वह ऄपनी अँखें बन्द कर ले ऄथवा एक ओर को कर ले। ऄगर ऐसा नहीं होता है तो
ऄभी सम्मोनहत करने की योग्यता नहीं अइ है, ऄभी और त्राटक का ऄभ्यास करें । जब सामने वाला अपकी अँखों
को देख न सके ऄथातत् अपसे दृनि नमला न सके , तभी सम्मोहन करने का ऄभ्यास करना र्रुु करना िानहए। प्रयोग
करने का सामान्य तरीका यह है नक अप त्राटक का प्रयोग नकसी ऐसे व्यनक्त पर कीनजये, जो रास्ते में अपसे अगे की
ओर िला जा रहा हों, अप ईसके पीछे -पीछे िल रहे हों। सामने वाले व्यनक्त के नसर के नपछले भाग में ऄथातत् लघु

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मनस्तष्क पर त्राटक कीनजये। अपकी अँखों से ननकली हुइ तेजस्वी नकरणें नीले रंग की ईसके नसर के नपछले भाग के
ऄन्दर तक भेदती हुइ िली जायेंगी। ईसी समय अप ईस व्यनक्त को ऄपने मन के ऄन्दर से (सक्ष्ू म रूप से) संदेर् दें–
‚अप ठहर जाआये, अप ठहर जाआये, मैं कहता हँ अप को ठहरना ही होगा‛। आसी प्रकार बार-बार संदर् े दीनजये। अप
देखगें े नक वह नहीं ठहर रहा है, िला जा रहा है। अप नबल्कुल हतार् न हो, नफर कुछ समय बाद ईस व्यनक्त को आसी
प्रकार का सदं र्
े दीनजये। कुछ नदनों तक नभन्न-नभन्न मनष्ु यों पर आसी प्रकार प्रयोग करते रहें। साथ-साथ अप भी ऄपना
कठोर ऄभ्यास करते रहें। कुछ नदनों तक बार-बार प्रयोग करने से अप देखगें े नक सामने वाला मनष्ु य ठहर जायेगा। नफर
अप आसी प्रकार सदं र् े दीनजये– अप पीछे मड़ु कर देनखये, यही संदर् े बार-बार दीनजये, आस प्रकार बराबर ऄभ्यास
करने पर कुछ नदनों बाद अप देखगें े नक सामने वाला व्यनक्त पीछे मड़ु कर देखने लगेगा। आसी प्रकार बहुत समय तक
ऄभ्यास करना पड़ता है। एक समय ऐसा भी अयेगा, जब अपसे अगे िलने वाला व्यनक्त, अपके द्रारा संदर् े देने के
ऄनसु ार ही करने लगेगा। ईस व्यनक्त को नबल्कुल मालमू नहीं पड़ेगा, मैं ‍यों ठहर गया या मैं ‍यों पीछे मड़ु कर देख रहा
ह?ँ
यह नक्रया आस प्रकार से होती है– ऄभ्यासी का मन त्राटक के ऄभ्यास से ऄत्यंत सर्क्त हो जाता है। वह नजस
व्यनक्त पर प्रयोग कर रहा होता है, वह साधारण संसारी व्यनक्त है, ईसने ऄपना मन सर्क्त बनाने का प्रयास ही नहीं
नकया है, आसनलए ईसका मन कमजोर होता है। ऄभ्यासी के नेत्रों से ननकली तेजस्वी नीली नकरणें ऄत्यतं सर्क्त होती
हैं। ये नकरणें मन का ही तेजस् रूप है। जब ऄभ्यासी का तेजस् रूप में मन ईस व्यनक्त के लघु मनस्तष्क में प्रवेर् करे गा,
तब ईस व्यनक्त के कमजोर मन को ऄपने ऄनधकार में ले लेता है। यह बात ईस व्यनक्त को मालमू नहीं हो पाता है ईसके
साथ ‍या हो रहा है? ईस समय ऄभ्यासी ऄपने मन के ऄन्दर संकल्प करता है ठहर जाओ, ऄथवा पीछे की ओर
देखो। तब ईस व्यनक्त का मन स्वतत्रं ननणतय नहीं ले पाता है, बनल्क ऄभ्यासी का मन ही ईसके र्रीर पर ननयत्रं ण करने
लगता है। आस नवषय में ईस व्यनक्त को कुछ पता नहीं रहता है।
आसी प्रकार नभन्न-नभन्न प्रयोग नकये जा सकते है। ऄगर कोइ व्यनक्त सो रहा है, तब ईसे संदर्े देकर ईठाकर
नबठा सकते है। वह बैठा हुअ व्यनक्त अँखें बन्द करके सोता रहेगा, ईसे ऄपना होर् नहीं होगा ऄथवा ईठकर बैठने पर
वह जाग भी सकता है। यनद साधक योग का ऄभ्यास कर रहा है, ईसका ब्रह्मरंध्र खल ु ा हुअ है, ऐसा ऄभ्यासी दसू रे के
र्रीर का ददत िण भर में ठीक कर सके गा, िाहे ईसका नसर ददत हो, पेट व हाथों पैरों में ददत हो। ईसके नलये ऐसे कायत
करना कनठन नहीं है, लेनकन नजसे आस नवषय में ज्ञान नहीं है, ईसके नलये ये अश्चयतजनक कायत है।
आस प्रकार के कायत मैंने बहुत नकये हैं, मगर नकसी को भी आन कायों के नवषय में बताया नहीं है। एक बार आसी
प्रकार का कायत करते समय दसू रे व्यनक्त को र्क हो गया। यह बात फरवरी 1993 की है। ईस समय मैं नमरज महाराष्र
में मैं ऄपनी गरुु माता के अश्रम में रहता था। मझु े नकसी के साथ, बाजार जाना पड़ा था, अश्रम के नलये कुछ सामान
खरीदना था। जो हमारे साथ बाजार अये थे, बाजार में पैदल िल-िल कर ईनके पैर की एड़ी में व पंजे में ददत होने
लगा, पैर के ददत के कारण वह िल नहीं पा रहे थे। मैंने पछ ू ा– ‚भाइ साहब कहाँ पर ददत हो रहा है‛?। मेंरे द्रारा आस प्रकार

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पछू े जाने पर, वह थोड़े से नाराज हुए और बोले– ‚नकतनी बार बताउँ, यहाँ पर ददत हो रहा है‛। वह हमारे महँु को देखने
लगे, नफर हाथ की ईंगली के द्रारा आर्ारे से बताया। ईन्होंने मेरी ओर जैसे ही देखा, मैंने ऄपना कायत कर नदया। कुछ
िणों बाद ईन्होंने कहा– ‚मेरा ददत कहाँ िला गया, ऄब तो ददत हो ही नहीं रहा है‛। मैं मस्ु कुराया, मगर बोला कुछ नहीं।
वह खड़े हो गये और बोले– ‚अनन्द कुमार, बताओ मेरा ददत कहाँ िला गया, मझु े मालूम है तमु ने मेरा ददत ठीक कर
नदया है‛। मैं कुछ नहीं बोला, ईन्होंने अश्रम अकर कइ लोगों को यह बात बताइ, मगर मैंने ईनकी बात पर ध्यान नहीं
नदया ‍योंनक मैं नहीं िाहता था नक मेरे आस कायत को कोइ जाने। परोपकार कभी बता के नहीं करना िानहए और न ही
बता के नकया जाता है। परोपकार वही है दसू रा जान भी न पाये नक यह कायत नकसने नकया है।
त्राटक के ऄभ्यास में पररप‍व होने पर सम्मोनहत करने का ऄभ्यास नकया जाता है। आस ऄभ्यास में कुछ
साधक र्ीघ्र सफल होने लगते हैं, कुछ साधक र्ीघ्र सफल नहीं हो पाते हैं। आसका कारण स्वयं आन साधकों का
ऄभ्यास है, संसार में व्यवहार करने का तरीका व अतं ररक नवकास ही है। सम्मोहन का प्रयोग मनष्ु यों को ईसके नपछले
जन्मों की याद नदलाने के नलये तथा ईस जन्म की मख्ु य घटनाओ ं को नदखा देने के नलये नकया जाता है। नजसे नपछले
जन्मों की घटनायें नदखाइ जानी हैं, ईसे कृ नत्रम ननरा में सल
ु ा नदया जाता है नफर ईसे नपछले जन्मों की याद नदलाइ जाती
है ऄथातत् ईस जन्म के दृश्य नदखाये जाते हैं। वह व्यनक्त नजसे कृ नत्रम ननरा में सल
ु ाया गया है, ईसकी ऄवस्था ऄधतननरा
जैसी होती है। ऄब प्रश्न ईठता है नक ईसे ऄपने नपछले जन्म की याद कै से अने लगती है ऄथवा ईस जन्म के दृश्य कै से
नदखाइ देने लगते हैं? आन सभी का ईत्तर है नक ईसके नित्त में नस्थत पवू त जन्मों के संस्कार ही ईसे याद नदलाते हैं ‍योंनक
मनष्ु य जो कमत करता है, ईन कमों के संस्कार ईसके नित्त पर नवद्यमान होते रहते हैं। ईन्हीं संस्कारों के सािात्कार होने
पर ईस व्यनक्त को याद अने लगती है।
कृ नत्रम ननरा में सल
ु ाने के नलये कइ प्रकार के तरीके ऄपनाये जाते हैं। वततमान समय में नक्रस्टल की बॉल के
द्रारा भी सम्मोनहत नकया जाता है। नजस व्यनक्त को सम्मोनहत नकया जाना है, ईसे नलटा नदया जाता है, नफर ईसके
अँखों के सामने थोड़ी दरू ी पर ईस नक्रस्टल की बॉल को पेण्डुलम की तरह धीरे -धीरे नहलाते है, सम्मोहनकतात संदर् े
देने से पहले, नजस व्यनक्त पर सम्मोहन नकया जाना है, ईसे वह नक्रस्टल की बॉल देखने के नलये कहता है। नफर
सम्मोहनकतात कहता है– ‚तम्ु हें नींद अ रही है, तम्ु हें नींद अ रही है, ऄब तमु सोने वाले हो‛। आसी प्रकार कुछ समय
तक वह सदं ेर् देता रहता है। कुछ समय बाद ईस व्यनक्त की अँखें बोनझल होती हुइ नदखाइ देंगीं, ऐसा लगेगा यह सोने
वाला है, नफर वह सो जायेगा। कृ नत्रम ननरा में सोने के बाद प्रयोगकतात ईसे बार-बार संदर् े देता रहता है, नफर ईसे नित्त
पर नस्थत सस्ं कारों के ऄनसु ार नपछले जन्म की याद अने लगती है। यहाँ पर महत्त्वपणू त बात यह है नक जो ईस व्यनक्त
के द्रारा जो बताया गया है, ‍या वह सब कुछ सत्य ही है। यह पणू त रूप से कह पाना बड़ा मनु श्कल है। यह मेरी व्यनक्तगत
राय है ‍योंनक प्रत्येक मनष्ु य के नित्त पर कमातनसु ार नभन्न-नभन्न प्रकार के कमातर्य होते हैं। नजन व्यनक्तयों के नित्त
तमोगणु से अच्छानदत है ऄथातत् रात-नदन नर्ीले का सेवन करने वाले हैं, ऐसे मनष्ु यों पर कृ नत्रम ननरा के नलये नकया

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गया सम्मोहन नकतना सफल होगा, यह कह पाना मनु श्कल है ‍योंनक वे स्वयं नर्े की हालत में बने रहते हैं। आसनलए
सम्मोहन हर नकसी पर नहीं नकया जा सकता है, ईसके नलये योग्य पात्र होना अवश्यक है।
सम्मोनहत नकया हुअ व्यनक्त ऄपने नपछले जन्मों की मख्ु य घटनाओ ं को याद करके बताने लगता है। सम्मोहन
की दृनि से देखा जाए तो ईसके द्रारा बताया हुअ सत्य ही कहा जायेगा, मैं भी यही कहगँ ा– हाँ सत्य होगा। मगर एक
कटु सत्य है– सम्पणू त बातें सत्य नहीं होती हैं ‍योंनक वह ऄपना नपछला जन्म बताते-बताते ऐसी ऄवस्था में भी अ
जाता है, जहाँ मन का व्यापार िलने लगता है, ईस समय वह व्यनक्त मन के ऄनसु ार भी कहने लगेगा। ऐसी ऄवस्था में
वह जानबझू कर झठू नहीं बोलता है। मगर मन के कारण पवू तकाल की माननसक सोि भी सामने अ जाती है, ईस समय
नपछले जन्म की घटना पणू त सत्य नहीं होती है।
नजस व्यनक्त का नित्त सानत्वकता से ज्यादा यक्त
ु होता है, ईस व्यनक्त की बातें ज्यादातर सत्य ही होंगी। नजस
व्यनक्त का नित्त तमोगणु प्रधान होता है, तथा वततमान जन्म में ऄधमत से यक्त
ु कमत कर रहा है, ऐसे व्यनक्त के द्रारा कुछ
भी सम्मोहन ऄवस्था में बताया गया पणू त सत्य नहीं होगा। कुछ व्यनक्तयों का स्वभाव होता है नक वे मन ही मन
काल्पननक योजनाएँ बनाते रहते हैं ऄथवा काल्पननक सोि में खोये रहते हैं, वो भी सत्य बता पाने में ऄसफल होते हैं
‍योंनक तमोगणु ी वृनत्त का स्वभाव होता है नक वह ऄधं कार से ऄच्छानदत रहती है। ऐसी वृनत्त द्रारा नदखाया गया दृश्य
पणू रू
त प से स्पि नहीं होता है, बनल्क ऄधं कार से यक्त
ु होता है। मैं यह भी नलख दँू नक मैं सम्मोनहत हुए व्यनक्त के द्रारा
आस प्रकार की जानकारी का नवरोधी नहीं ह,ँ नसफत सत्य बताने की कोनर्र् कर रहा ह।ँ मैं योगी भी ह,ँ मागतदर्तन करते
समय कभी-कभी मझु े भी साधक का नपछला जन्म देखना पड़ता है, लेनकन मैं ये सारे कायत ऄपनी नदव्य दृनि के द्रारा
करता ह।ँ
मैंने नकसी को सम्मोहन करते हुए देखा है– सम्मोहनकतात ने जब 14-15 साल की लड़की पर सम्मोहन का
प्रयोग नकया, नफर ईसे नपछले जन्म में ले जाया गया, ईसने नपछली जन्म की घटनायें बतानी र्रुु कर दी। मैं ईस लड़की
के िेहरे को गौरपवू क त देख रहा था, ईस लड़की की पलकें धीरे -धीरे नहल रही थी तथा जब वह ऄपना नपछला जन्म
बता रही थी, तब ईस जन्म की घटनाओ ं के कारण ईसके अँखों से अँसू भी ननकल रहे थे। मेरी यह सोि है नक ये
दोनों नक्रयाएँ नहीं होनी िानहए थी। भारत में एक बहुत ही प्रनसि व्यनक्त पर जब सम्मोहन नकया गया, तब ईसने ऄपने
नपछले जन्म में नवषय में बताया नक वह नपछले जन्म में बहुत बड़ा योगी था, सदैव समानध का ऄभ्यास नकया करता
था, बफीले पहाड़ों पर ही वह ऄपना जीवन व्यतीत करता था, ईसने सारा जीवन योगाभ्यास में व्यतीत नकया ऄथातत्
नपछले जन्म में वह ईच्िकोनट का योगी था। मगर वततमान जन्म में ईसका योग से कुछ लेना-देना नहीं है। ईसके ऄन्दर
योनगयों वाले लिण भी नहीं हैं। ऄब अप कह सकते हैं नपछले जन्म का वततमान में कै से लिण अ सकता है? मैं भी
योगी ह,ँ मैंने भी बहुत वषों तक ऄभ्यास करते हुए नित्त और कमातर्यों के नवषय में जाना है नक कमों का ‍या ननयम
है। वैसे कमों का रहस्य गढ़ू होता है, मगर मागतदर्तन करते-करते बहुत जानकारी नमल िक ु ी है। मझु े आतना ऄवश्य
मालमू है नक समानध का ऄभ्यास करने वाले के कमातर्यों में ऄन्य सांसाररक कमत करने वालों के कमातर्यों से ज्ञान का

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प्रकार् ऄनधक होता है। आसनलए समानध के संस्कार ऄनधक र्न‍तर्ाली होते हैं। जब मनष्ु य कमत करता है, तब ईन
कमों द्रारा बने कमातर्य कुछ तो नित्त पर नस्थत संनित कमों में नमल जाते हैं और कुछ कमातर्य प्रारब्ध कमों में नमल
जाते हैं। मनष्ु य जब ऄगला जन्म लेता है तब वततमान जन्म के कुछ कमातर्य ऄवश्य ही ऄगले जन्म में भोगे जाते हैं।
आसनलए मेरा कहना है नक नजस व्यनक्त ने सम्पणू त जीवन योग का ऄभ्यास करने में नबता नदया हो वह भी ऄत्यंत कठोर
ऄभ्यास करते हुए नबताया हो, ईस मनष्ु य के नित्त पर नपछले जन्म के संस्कारों का ऄसर ऄवश्य पड़ना िानहए। मगर
ऐसा नहीं हुअ, ऐसी ऄवस्था में सम्मोनहत हुए व्यनक्त द्रारा बतायी गयी बात की सत्यता पर मैं ‍या कह।ँ
त्राटककतात का यनद अध्यानत्मक ऄभ्यास नहीं है, सारा जीवन सांसाररकता में व्यतीत कर रहा है, तब ऐसे
ऄभ्यासी के द्रारा नकसी दसू रे व्यनक्त की कुण्डनलनी उध्वत नहीं की जा सकती है। कुण्डनलनी जाग्रत करने के नलये
अध्यानत्मक र्न‍त का होना ऄनत अवश्यक है।

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भाग - 4
1. त्राटक द्वारा चक्रों को खोलना
मझु से बहुत से साधकों ने पछू ा है– ‚त्राटक द्रारा िक्रों को कै से खोला जाता है, ईसकी नवनध ‍या है? मैं दसू रों
के िक्र खोलना िाहता ह।ँ ‛ नप्रय साधकों! सबसे पहले अपको िक्रों के नवषय में समझ लेना िानहए, नफर अपकी
नजज्ञासा र्ान्त हो जायेगी। मनष्ु य के र्रीर में मख्ु य रूप से सात िक्र होते हैं। आन िक्रों के नाम आस प्रकार हैं–
1. मल ू ाधार िक्र, 2. स्वानधष्ठान िक्र, 3. नानभ िक्र, 4. रृदय िक्र, 5. कण्ठिक्र, 6. अज्ञािक्र, 7. सहस्त्रार िक्र। आन
िक्रों को कमल, पद्म व र्न‍त के न्र भी कहते हैं। आन िक्रों के स्थान पर समानध ऄवस्था में साधकों को कमल का
फूल नदखाइ देता है। आन िक्रों में नवर्ेष प्रकार की सक्ष्ू म र्न‍तयाँ नवद्यमान रहती हैं। आन िक्रों की संरिना अपस में
नभन्न-नभन्न तरह की होती है। ये िक्र अपस में घनत्व स्तर पर नभन्न-नभन्न प्रकार के होते हैं, ऄथातत् सक्ष्ू मता का ऄन्तर
होता है। आन िक्रों के देवता ऄलग-ऄलग होते हैं। ये िक्र सषु म्ु ना नाड़ी से सम्बनन्धत होते हैं, ऄथातत् आन िक्रों से
सषु म्ु ना नाड़ी स्पर्त करती हुइ नवद्यमान रहती है। सषु म्ु ना नाड़ी का प्रभाव आन िक्रों पर पड़ता है, आसी प्रकार आन िक्रों
का भी सषु म्ु ना नाड़ी पर प्रभाव पड़ता है।
मूलाधार चक्र– यह िक्र रीढ़ के ननिले भाग में गदु ा द्रार से थोड़ा उपर होता है। रीढ़ का सबसे ननिला भाग
नक
ु ीला सा होता है। आस नक
ु ीले भाग से थोड़ा उपर िौड़े स्थान पर िक्र होता है। आस िक्र पर िार पख ं नु ड़याँ वाला
कमल का फूल होता है। आस िक्र के देवता श्री गणेर् जी है।
स्िावधष्ठान चक्र– यह िक्र मल ू ाधार िक्र से थोड़ा उपर जननेनन्रय के पीछे होता है। आस िक्र में 6 पंखनु ड़यों
वाला कमल नवद्यमान है। आस िक्र के देवता भगवान ब्रह्मा जी है।
नावभ चक्र– यह िक्र नानभ के पीछे रीढ़ में होता है। आसमें 10 पंखनु ड़यों वाला कमल होता है। आस िक्र के
देवता भगवान नवष्णु जी है।
हृदय चक्र– यह िक्र रृदय के पीछे रीढ़ में नवद्यमान रहता है। आसमें 12 पंखनु डयों वाला कमल होता है। आस
िक्र के देवता भगवान रूर जी है।
कण्ठचक्र– यह िक्र कण्ठ में नस्थत रहता है। आसमें 16 पख
ं नु ड़यों वाला कमल होता है। आस िक्र का देवता
जीव होता है ऄथातत् यह जीव का स्थान होता है।
आज्ञाचक्र– यह िक्र भृकुनट से सटा हुअ उपर की ओर होता है। आस िक्र में दो पख
ं नु ड़यों वाला कमल
होता है। आस िक्र के देवता भगवान नर्व हैं।

त्राटक 79
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सहस्त्रारचक्र– यह िक्र नसर के उपरी भाग में नस्थत होता है ऄथातत् ब्रह्मरंध्र द्रार से उपर की ओर हेाता है।
आसमें एक हजार पंखनु डयों वाला कमल होता है। आस िक्र के देवता ननगणतु ब्रह्म है।
मल
ू ाधार िक्र से उपर के िक्रों का घनत्व क्रमर्ः कम होता जाता है। िक्र का घनत्व कम होने के कारण
क्रमर्ः व्यापकता बढ़ती जाती है। आसनलए मल ू ाधार िक्र का घनत्व ऄन्य िक्रों की ऄपेिा ऄनधक होता है। सबसे
उपर नवद्यमान सहस्त्रारिक्र का घनत्व सबसे कम होता है। यह िक्र मनष्ु य के ऄनं तम जन्म में नवकनसत होता है। यह
िक्र ज्ञान का अयतन है। ये िक्र सक्ष्ू म र्रीर में नवद्यमान रहते है। सक्ष्ू म र्रीर स्थलू र्रीर में नवद्यमान रहता है। आसनलए
िक्रों की खल ु ने की ऄनभु नू त स्थल
ू र्रीर में होती है। ऐसा लगता है मानो ये िक्र स्थल ू र्रीर में ही नवद्यमान हैं जबनक
ये िक्र सक्ष्ू म र्रीर में नवद्यमान हैं। िक्र साधक को कमल के फूल के रूप में भी नदखाइ देते हैं। आन कमल की हर
पंखडु ी पर सक्ष्ू म र्न‍तयाँ नवद्यमान रहती हैं। ऄभ्यास के द्रारा जब ये िक्र खल ु जाते हैं, तब ये सक्ष्ू म र्न‍तयाँ कायत
करती है।
साधकों! ऄगर अप त्राटक के द्रारा आन िक्रों को खोलना िाहते हो, तो जब अपके त्राटक की योग्यता ईस
िक्र से ऄनधक हो जाये नजस िक्र को खोलना िाहते हो, तब ईस िक्र को खोलने का प्रयास कीनजये वरना नहीं
खोल पाएगं ।े ऄगर अपकी योग्यता ईस िक्र से ऄनधक हो गयी है तब भी एक समस्या अयेगी, िक्र खोलने का
तरीका भी अना िानहए। िक्र खोलने का तरीका ऄपने गरुु से सीखना पड़ेगा। एक बात और िक्रों के नवषय में जान
लीनजये। ये िक्र सामान्य मनष्ु यों में सषु प्तु ावस्था में होते हैं तथा तमोगणु से अच्छानदत भी रहते है। िक्रों को खल ु ने के
नलये ईनका क्रम नवकास होना अवश्यक है। जैसे गल ु ाब की कली का जब तक नवकास नहीं होगा, तब तक फूल नहीं
बन सकती है। बन्द कली के ऄन्दर भी पंखनु डयों का नवकास होता है, नफर ईनित समय में वह कली नवकनसत होकर
फूल बन पाती है। ऄगर कली का नवकास ही नहीं हुअ है, तब वह नवकनसत नहीं हो पायेगी। आसी प्रकार िक्रों के
नवषय में समझ लेना िानहए। िक्रों का नवकास क्रम योगाभ्यास के द्रारा और भनक्त अनद से भी होता है। जब तक
ऄभ्यास के द्रारा िक्रों का नवकास न नकया गया हो, तब तक वह कै से खल ु सकता है? त्राटक के द्रारा ऄगर िक्रों को
खोलना है, तो ईसके नलये ईस व्यनक्त को ध्यान अनद का सहारा लेना पड़ेगा। नजस त्राटक के ऄभ्यासी ने योगाभ्यास
नहीं नकया है, वह िक्रों को खोलने के नवषय में न सोिे ऄथवा त्राटक में नवर्ेष महारत हानसल नकया हुअ व्यनक्त ही
िक्रों को खोल सकता है। आस प्रकार से नसफत िार िक्र ही खल ु पायेंग।े ये िक्र हैं– मल
ू ाधार िक्र, स्वानधष्ठान िक्र,
नानभ िक्र, और रृदय िक्र। आसके उपर के िक्र नहीं खल ु सकते हैं। हमने कुछ साधकों को देखा है नजनके िक्र नहीं
खलु े होते हैं, नफर भी वह यही समझते है नक ईनके िक्र खल ु े हुए हैं।
योगाभ्यास करने वाले नजस साधक का कण्ठिक्र खल ु ा हुअ है, यनद ईसकी कुण्डनलनी भी ईग्र है और
त्राटक का ऄभ्यास ऄच्छा है, तो वह नये साधक पर धीरे -धीरे र्न‍तपात करके िारों िक्रों को कुछ समय बाद या कुछ
नदनों में खोल सकता है। आस कायत में ढेर सारा योगबल खित हो जायेगा तथा खोले गये िक्रों पर नस्थत तमोगणु ईसे ही
सहन करना होगा। ऐसे कायत करते समय गरुु को ही साधक के कमों को व ईसकी ऄर्ि ु ता को सहन करना पड़ता है।

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त्राटक के ऄभ्यानसयों! मेरी आन पंनक्तयों का ऄथत र्ायद अपको समझ में अ गया होगा नक त्राटक का प्रयोग
नकस ऄवस्था को प्राप्त होने पर करना िानहए। नजस मनष्ु य ने त्राटक का नसफत थोड़ा सा ऄभ्यास कर नलया है, ईसे
ऄभ्यास का स्वयं को लाभ नमलेगा, मगर ईस ऄभ्यास के द्रारा नकसी दसू रे को लाभ नहीं दे पायेगा। नजस ऄभ्यासी ने
अध्यानत्मक ईन्ननत नहीं की है नसफत त्राटक में श्रेष्ठता प्राप्त की तथा भौनतक कायों को करने का ऄभ्यास नकया है, ऐसे
मनष्ु य भौनतक कायत या िमत्कार करने में सफल हो जाएगं ।े जब मनष्ु य का जीवन नमला है, तो नसफत सांसररक श्रेष्ठता
ही प्रानप्त का ईद्देश्य नहीं होना िानहए, ‍योंनक भौनतक श्रेष्ठता तभी तक काम अयेगी जब तक वह जीनवत है। बाद की
यात्रा बहुत ही लम्बी है, ईसमें कमों की गठरी का बोझा भी अपके साथ रहेगा। नजसने त्राटक के ऄभ्यास के साथ-
साथ अध्यानत्मक ईन्ननत भी की है, वह ऄभ्यासी समाज का कल्याण कर सकता है। ईसके ऄन्दर अध्यानत्मक कायत
करने की िमता होती है। मृत्यु के पश्चात भी ऐसे कमों से उध्वत लोक की प्रानप्त होती है। ऐसा व्यनक्त सांसाररक व
अध्यानत्मक िेत्रों में परोपकार करने की िमता रखता है। आस प्रकार के व्यनक्त को सांसाररक िमत्कार नहीं नदखाना
िानहए। ईसे ऄपनी त्राटक र्न‍त का प्रयोग मानव कल्याण में लगाना िानहए।
नजन साधकों ने योग का ऄभ्यास करके ब्रह्मरंध्र खोल नलया है और नजनकी कुण्डनलनी पणू त यात्रा करके नस्थर
हो िक
ु ी है, ऐसे साधक त्राटक द्रारा बहुत से कायत कर सकते हैं। योग्यतानसु ार कनठन से कनठन कायत त्राटक द्रारा नकये
जा सकते हैं। ऐसे कायों के नवषय में नकसी को मालूम भी नहीं होता है ‍योंनक साधक नसफत अँखों से देखता है और
मन में कायत करने का संकल्प करता है। जीवन्मक्तु योगी सबसे ज्यादा ऄद्भुत कायत त्राटक द्रारा कर सकता है ‍योंनक
ईसकी नित्त की र्िु ता िरम सीमा पर होती है।

2. त्राटक द्वारा वसवद्ध प्राप्त होना


बहुत से ऄभ्यासी त्राटक का ऄभ्यास यही सोिकर करते हैं नक ईन्हें त्राटक के द्रारा नसनि प्राप्त करनी है। ऐसे
ऄभ्यासी कहीं से सनु लेते हैं ऄथवा पढ़ लेते हैं नक त्राटक के द्रारा नसनि प्राप्त होती है। नफर ‍या है, त्राटक का
ऄभ्यास करने लग जाते हैं। कुछ समय बाद सोिने लगते हैं नक नसनि प्राप्त ‍यों नहीं हुइ है, कब प्राप्त होगी, अनद।
जो व्यनक्त पस्ु तक पढ़कर या सनु कर नसनियों के ि‍कर में त्राटक का ऄभ्यास करने लगते हैं, ईन्हें कभी न कभी तो
दःु खी होना ही पड़ेगा। आसनलए आसके ऄभ्यास के पहले नकसी ऄनभु वी से मागतदर्तन ले लें, तो ऄच्छा है, तानक बाद में
पछताना न पड़े। मझु े तामनसक नसनियों के नवषय में तो मालूम नहीं है, आसनलए मैं आस नवषय पर नहीं नलख रहा ह।ँ
पहले अप नसनियों के नवषय में समझ लें। मैं पहले नलख िक ु ा हँ नक मनष्ु य के स्थल
ू र्रीर के ऄन्दर दो और
र्रीर नवद्यमान रहते हैं। आन दोनों र्रीर के नाम हैं 1. सक्ष्ू म र्रीर, 2. कारण र्रीर। स्थल ू र्रीर के ऄन्दर सक्ष्ू म र्रीर
व्याप्त रहता है, आसका सम्बन्ध सक्ष्ू म जगत से रहता है, ‍योंनक दोनों की संरिना (सक्ष्ू म र्रीर और सक्ष्ू म जगत) सक्ष्ू म
पंिभतू तत्त्वों से हुइ है आसनलए दोनों का घनत्व एक जैसा ही है। जैसे-जैसे ऄभ्यास के द्रारा ऄभ्यासी ऄतं मख तु ी होकर

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ऄपना अतं ररक नवकास करता है, ईसी के ऄनसु ार ईसका सक्ष्ू म जगत से तादात्म्य भी होता जाता है। सक्ष्ू म नवकास के
ऄनसु ार ही िक्रों का भी नवकास होता है। िक्रों के नवकास होने से जब नवकास लगभग पूणत सा हो जाता है तब िक्र
खलु जाता है। ईस िक्र पर नस्थत र्न‍तयाँ भी नक्रयार्ील होने लगती हैं। सबसे पहले मल ू ाधार िक्र खलु ता है ‍योंनक
आस िक्र का सक्ष्ू म र्रीर के ऄनसु ार घनत्व ऄन्य िक्रों से ज्यादा होता है। दसू रे र्ब्दों में जैसे ही ऄभ्यास के द्रारा सक्ष्ू म
र्रीर नवकनसत होना र्रुु होने लगता है, तभी मल ू ाधार िक्र पर प्रभाव पड़ना र्रुु होने लगता है। जब तक सक्ष्ू म र्रीर
नवकनसत होना र्रुु नहीं होता है तब तक िक्र बन्द रहते हैं, िक्रों पर कोइ ऄसर नहीं पड़ता है।
जब तक साधक का ऄभ्यास स्थल ू र्रीर के ऄंतगतत िलता है, तब तक ईसका ऄभ्यास स्थल ू पदाथों से
सम्बनन्धत स्थलू जगत से रहता है। ईस समय तक सक्ष्ू म नवकास का कोइ मतलब नहीं रहता है। ऄभ्यासी को आस
नवषय में थोड़ी पहिान बता द,ँू वह सक्ष्ू म र्रीर की ओर ऄंतमख तु ी कब होता है। ऄभ्यास के समय जब बाह्य आनन्रयाँ
ऄपने अप ऄतं मतख ु ी होने लगें, नफर धीरे -धीरे ऄतं मतख
ु ी हो जाएँ, मन की िंिलता ठहर जाये और थोड़ी देर तक ठहरी
रहे। त्राटक का ऄभ्यास करते-करते जब वह ऄपने र्रीर को व स्थल ू पदाथों को भल
ू जाए, ईस समय नसफत ईसी वस्तु
पर दृनि नस्थर हो, नजस पर त्राटक कर रहा हो। ऐसा ऄभ्यास बहुत समय तक करे । ऐसा ऄभ्यास करते समय सदैव धैयत
से काम लेना होता है और दृढ़तापवू क त ऄभ्यास करना होता है। मन के ऄन्दर से स्वाथत और द्रेष की भावना को ननकाल
दें ‍योंनक ऐसा करने से नित्त पर प्रभाव पड़ता है।
त्राटक का ऄभ्यास करने के साथ-साथ साधक नभन्न-नभन्न प्रकार की भी साधना करते हैं। नसनियों की प्रानप्त
के ईद्देश्य से साधना सानत्वक मागत वाले नहीं करते हैं, ‍योंनक ईनका लक्ष्य िेतन तत्त्व में नस्थत होना ऄथवा इश्वर की
प्रानप्त अनद होता है। मैं नसनियों के नवषय में स्पि कर द–ँू समझाने की दृनि से योग मागत में िार ऄवस्थाऐ ं होती हैं।
पहली ऄवस्था प्राप्त करने वाले साधकों के सामने नसनियाँ घास नहीं डालतीं हैं ‍योंनक ईनकी योग्यता ही आतनी नहीं
होती हैं नक नसनियाँ ईनकी ओर अकनषतत हो, यह योग्यता सक्ष्ू मता और र्ि ु ता के अधार पर होती है। दसू री ऄवस्था
प्राप्त साधकों के सामने ये नसनियाँ प्रकट होकर सामने अ जाती हैं। तीसरी ऄवस्था प्राप्त साधक नसनियों के ि‍कर
में नहीं फँ सता है। िौथी ऄवस्था प्राप्त साधक आन नसनि अनद से परे होता है, ईसका लक्ष्य िेतन तत्त्व या इश्वर प्रानप्त
होता है। नसनियाँ योग मागत में ऄवरोध का कायत करती है।
ऄब मैं कुछ और स्पि ऄवस्थाओ ं के बारे में नलखना िाहता हँ नजससे साधकों को आन ऄवस्थाओ ं के नवषय
में स्पि व बारीकी से समझ में अ जाये।
पहली अिस्था– साधक का जब कण्ठिक्र नहीं खल ु ता है भले ही ईसकी कुण्डनलनी कण्ठिक्र तक अ रही हो, िाहे
वह ऄपना ऄभ्यास कठोरता से कर रहा हो।
दूसरी अिस्था– कण्ठिक्र खल ु ने के बाद व ब्रह्मरन्ध्र खल
ु ने से पहले तक। यह ऄवस्था सक्ष्ू म पंिभतू से लेकर
तन्मात्राओ ं तक होती है।

त्राटक 82
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तीसरी अिस्था– ब्रह्मरंध्र खलु ने के बाद से, कुण्डनलनी की पणू त यात्रा होकर रृदय में नस्थर होने तक। यह ऄवस्था
ऄहक ं ार के ऄतं गतत अती है।
चौथी अिस्था– कुण्डनलनी नस्थर होने के बाद से ऄतं तक की ऄवस्था। यह ऄवस्था नित्त के ऄतं गतत अती है। आस
ऄवस्था में नित्त पर नस्थत कमातर्य ऄभ्यास के द्रारा नष्ट होने लगते हैं तथा ऄनं तम जन्म में नित्त पर नस्थत कमातर्य
नष्ट हो जाते हैं।

मझु े भी नसनियाँ नमली थी, मैंने आन नसनियों से कायत भी नलया था। आस नवषय में ऄपनी तीनों पस्ु तकों में
‘सहज ध्यान योग’, ‘योग कै से करें ’ व ‘तत्त्वज्ञान’ में नलखा हुअ है। ऄच्छा साधक आन नसनियों के ि‍कर में नहीं
पड़ता है ‍योंनक ईसे मालूम होता है ये नसनियाँ ऄन्त में दःु खदायी होती हैं। तब साधक को पछताना पड़ता है। ऄब
ऄभ्यासी को समझ लेना िानहए, ये नसनियाँ ईसे कब प्राप्त होंगी। हाँ, मैं यह भी बता दँू नक कुछ ऄभ्यासी ननम्नकोनट
की तमोगणु ी नसनियाँ भी प्राप्त करते हैं। ऐसी नसनियाँ कुछ नवर्ेष प्रकार की साधना करने से र्ीघ्र ही नमल जाती हैं।
साधक को आन छोटी-छोटी तच्ु छ नसनियों के ि‍कर में नहीं पड़ना िानहए।

साधकों! एक सत्य बात और बात दँू तानक अपको जानकारी हो जाए और अप सतकत भी हो जाएँ। जो
योग्यता मैंने नसनियाँ प्राप्त करने के नलये नलखी है, ईस योग्यता को प्राप्त करने के बाद भी सभी को नसनियाँ प्राप्त
नहीं होती हैं। ऄब प्रश्न ईठता है– जब ईस योग्यता को साधक प्राप्त कर िक ु ा है, तब ‍यों नहीं नसनियाँ प्राप्त होती हैं?
आसका कारण यह है नक ईसके नित्त पर नस्थत कमातर्य ऄभ्यासी को नसनियाँ प्राप्त कराने में सहयोग नहीं करते हैं।
नसनियाँ प्राप्त कराने में पवू कत ाल के सस्ं कार सहयोग करते हैं ऄथातत् पवू क
त ाल के सस्ं कार नसनियों से सम्बनन्धत होते
हैं। नजनके नित्त में नसनियों के नलये सजातीय संस्कार होते हैं, ईन्हें नसनियाँ नमल जाती हैं; नजनके नित्त में नसनि प्राप्त
के सजातीय संस्कार नहीं हैं, ईन्हें नसनि नहीं नमलती है। जबनक वततमान समय में दोनों प्रकार के साधक एक जैसी ही
योग्यता प्राप्त नकये रहते हैं। मगर तामनसक छोटी-छोटी नसनियों के नलये ऐसा ननयम नहीं है। ऐसी नसनि प्राप्त करने के
नलये संयनमत होकर थोड़ा सा पररश्रम करने पर नसनियाँ प्राप्त हो जाती हैं।
सानत्वक नसनि प्राप्त करने के नलये त्राटक का ऄभ्यास व योग का ऄभ्यास कइ वषों तक करना पड़ेगा, मगर
छोटी-छोटी तामनसक नसनि ज्यादातर ऄभ्यासी प्राप्त कर सकते हैं। दोनों प्रकार की नसनि प्राप्त करने के नलये गरुु का
होना अवश्यक है। साधकों! मैं एक राय दगँू ा– नसनियों के ि‍कर में न पड़ें। ये देखने में लभु ावनी लगती हैं, मगर ऄंत
में आनका पररणाम दखु दायक ही होता है। ध्यान में ऄच्छी ऄवस्था प्राप्त करने के नलये ही त्राटक का ऄभ्यास करते रहें।

त्राटक 83
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3. त्राटक द्वारा भूत-प्रेत बाधाओ ां को दूर करना
अजकल का नवज्ञान आस बात को नहीं मानता है नक भतू -प्रेत भी होते हैं। आसका एक ही कारण है नक नवज्ञान
का आतना नवकास नहीं हुअ है नक वह भतू -प्रेत के नवषय में जान सके । मैंने ऄपने जीवन में स्वयं कुछ जगहों पर देखा है
जो भतू -प्रेत से प्रभानवत रहती हैं। मेरे ही नहीं संसारी मनष्ु यों के सामने कइ प्रकार की घटनायें घनटत हुइ हैं, नजन्होंने आस
प्रकार की घटनाओ ं से प्रभानवत होकर ऄनेक प्रकार के कष्ट भोगे हैं। मैं तो योगी ह,ँ मझु े न जाने नकतने साल हो गये
आन नवषयों पर र्ोध करते हुए। मैंने ऄपनी पस्ु तकों में व नवनडयों में भी बताया हुअ है। सक्ष्ू म जगत में नवनभन्न प्रकार
की जीवात्माएँ रहती हैं। कुछ ऄत्यतं ननम्न श्रेणी की जीवात्माएँ ऄपनी आच्छापनू तत के नलए मनष्ु य के र्रीर में प्रवेर् कर
जाती हैं तथा कुछ दष्ु ट स्वभाव वाली जीवात्माएँ मनष्ु यों को ऄकारण ही परे र्ान करती रहती हैं तथा कष्ट देती रहती
हैं। ऐसी जीवात्माएँ ज्यादातर भावक ु स्वभाव वाले व मन्दबनु ि वाले मनष्ु यों का िनु ाव करती हैं। जो मनष्ु य तेजतरातर व
पैनी बनु ि वाले होते हैं, ईन्हें प्रभानवत नहीं कर पाती हैं। कभी-कभी सामान्य सी जीवात्माएँ भख ू और प्यास के कारण
मनष्ु यों के सम्पकत में अती हैं, ऐसी जीवात्माएँ नसफत ऄपनी भख ू -प्यास की पनू तत करने के नलए ऐसा करती हैं। नजन
मनष्ु यों को ये जीवात्माएँ परे र्ान करती हैं, ईन्हें मालमू नहीं पड़ता है नक ईनके साथ ऐसा बाहरी जीवात्मा के कारण हो
रहा है।
त्राटक का ऄभ्यासी ऐसी जीवात्माओ ं को बाहर ननकालने के नलये पहले ऄच्छी तरह से नवनध को जान ले,
तब बाहर ननकालने का प्रयास करे । आस नवनध का परू ा ज्ञान न होने पर ऐसा न करे , नहीं तो खतरा ईठाना पड़ सकता है।
आसके नलए सबसे पहले ऄभ्यासी त्राटक के ऄभ्यास में ईच्ि श्रेणी की ऄवस्था प्राप्त कर ले तथा ढेर सारे योगबल से
यक्त
ु होना िानहए। ऄभ्यासी के ऄन्दर आतनी योग्यता होनी िानहए नक वह ऐसी जीवात्माओ ं के नवषय में जान सके ,
तथा सक्ष्ू म सदं र्
े देकर बात कर सके । यनद वह भोजन और पानी की आच्छा व्यक्त करती हैं, तब ईन्हें समय देकर नक
ऄमक ु नदन भोजन करा देंगे, नफर ईन्हें ईसी नदन ईनकी आच्छानसु ार भोजन करा देना िानहए। साधक को सदैव प्रेम से ही
ऐसी जीवात्माओ ं के साथ व्यवहार करना िानहए। नफर ऐसी जीवात्माओ ं से संकल्प करा ले नक भोजन करने के पश्चात्
नफर कभी भी आसे परे र्ान नहीं करे गी।
कुछ दष्ु ट स्वभाव की जीवात्माएँ ऐसी भी होती हैं, जो प्यार की भाषा नहीं समझती हैं। तब ईनके साथ र्न‍त
का प्रयोग करना िानहए। ध्यान रहे ऐसे कायों में खतरा होता है। आस प्रकार कायत करते समय ऄपने उपर मत्रं ों के द्रारा
कवि को धारण कर ले, कवि को धारण करने के बाद ही ऐसा कायत करें । पहले ईस जीवात्मा के साथ सरलता से
व्यवहार करना िानहए। जब वह सरलता की बात न समझे, तब कठोरता के साथ व्यवहार करना िानहए। दृढ़तापवू क त
संकल्प करके ईस पर त्राटक र्न‍त का प्रयोग करना िानहए। अँखों द्रारा ननकली नीले रंग की िमकीली तेजस्वी
नकरणों से जोरदार प्रहार करें तथा आन तेजस्वी नकरणों द्रारा योगबल का भी प्रयोग करें । ईस जीवात्मा के पास नजतनी
र्न‍त हो, ईससे कइ गनु ा ज्यादा र्न‍त का प्रयोग करना िानहए, तभी ऐसा कायत सम्पन्न होगा। ऄगर साधक
र्न‍तर्ाली है तब ईस जीवात्मा को भागने न दे, बनल्क ईस जीवात्मा को तेजस्वी नकरणों द्रारा बांधने का प्रयास करे ,

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और ईसके र्रीर पर प्रहार करे , ऐसा प्रहार तब तक करता रहे जब तक वह यह न कह दे, ऄब मैं आस व्यनक्त को परे र्ान
नहीं करूँगी और ईससे माफी भी मँगवाये, आसके बाद ही ईसे छोड़ना िानहए।
कुछ जीवात्माएँ ऐसी भी होती हैं ईनके साथ ऐसा व्यवहार नहीं नकया जा सकता है और न ही ऐसी जीवात्माएँ
नकसी के र्रीर में प्रवेर् करती है। ऐसी जीवात्माएँ ऄत्यंत र्न‍तर्ाली तामनसक र्न‍तयाँ होती हैं। ये तामनसक
र्न‍तयाँ प्रत्यि रूप से भारी ईत्पाद मिाती हैं, मगर वह स्वयं नदखाइ नहीं देती हैं। नवनभन्न प्रकार की स्थल ू वस्तऐु ं
प्रकट कर सकती हैं ऄथवा प्रकट कर देती हैं। डरावनी व किों से यक्त ु प्रत्यि घटनायें घटाने लगती हैं। ऐसी तामनसक
र्न‍तयों पर त्राटक का कोइ प्रभाव नहीं पड़ता है। आनसे मक्तु होने का कायत छोटे-मोटे साधक नहीं कर सकते हैं और
ऐसी घटनाओ ं में छोटे साधकों को हस्तिेप नहीं करना िानहए, नहीं तो लेने के देने पड़ जाएगं ।े ऐसी समस्याओ ं को हल
करने के नलये ईच्ि श्रेणी का योगी ऄथवा ईच्ि कोनट का तांनत्रक होना िानहए। कभी-कभी आस प्रकार की घटनाओ ं में
ईच्ि कोनट के तांनत्रक भी नवफल होने लगते हैं, ऄथातत् ऐसी र्न‍तयाँ ऄनधकार में नहीं अती हैं। यनद ईच्ि श्रेणी का
योगी है नफर वह ऐसी र्न‍तयों को भगा देगा। मगर ऐसा योगी अजकल कहाँ नमलेगा। अजकल तो ऐसे लोग योगी
बने घमू रहे हैं, ऐसे योनगयों को समाज जानती है, मैं ‍या नलख।ँू जो वास्तव में योगी हैं वह गप्तु रूप से रहते हैं ऄपने
अपको बताते नहीं हैं। मैं आस प्रकार की घटनाओ ं से गजु र िकु ा ह।ँ
मेरी पस्ु तक में एक ऐसी घटना नलखी है। ऄन्य बहुत सी घटनायें नहीं नलखी हैं ‍योंनक ईनित नहीं समझा नक
आन्हें नलखा जाये। ऐसी तामनसक र्न‍तयों से लड़ने के नलये भारी मात्रा में योगबल का स्वामी होना िानहए। ये हर एक
योगी के वर् की बात नहीं है। नजनकी कुण्डनलनी ईग्र स्वभाव की है और ऄब पणू त यात्रा करके नस्थर हो िक ु ी है, ऄब
भी ऄत्यंत कठोर ऄभ्यास कर रहे हैं, ऐसे योगी द्रारा त्राटक के माध्यम से ढेर सारा योगबल बाहर ननकालकर प्रहार
नकया जा सकता है। ऐसे झगड़े खतरों से यक्त ु होते हैं। ऄगर योगी कम योगबल वाला है, तब ऐसा कायत न करें तभी
ऄच्छा है, नहीं तो मसु ीबत अ जायेगी।
साधकों! मैंने बारीकी से यह नहीं बताया है नक त्राटक द्रारा कै से भतू -प्रेत बाधायें दरू करें , नसफत मख्ु य रूप से
समझा नदया है। आसका कारण यह है नक ऐसी नवनधयाँ प्रत्यि रूप से गरुु से ही सीखनी िानहए, पस्ु तकें पढ़कर आस
प्रकार के कायत नहीं करने िानहए ‍योंनक ऐसे कायों में सदैव सतकत रहना पड़ता है तथा जरा सी भल ू हो गयी तो
परे र्ानी अ सकती है। ऐसी नवनधयाँ पस्ु तकों में स्पि नहीं नलखी जानी िानहए ‍योंनक यह ऄभ्यास का नवषय है।
कभी-कभी ऐसा भी होता हैं व्यनक्त को नकसी प्रकार की बाधा नहीं होती है। मनस्तष्क में नवकार ईत्पन्न हो
जाता है। नफर वह व्यनक्त ईल्टी सीधी हरकते करने लगता है। लोग ऐसा समझने लगते हैं आसे कोइ भतू -प्रेत का ि‍कर
है और ऄज्ञानतावर् ईसके पररवार वाले झाड़-फँू क वालों के पास ले जाते हैं। अजकल ढोंगी झाड़-फँू क वाले बहुत
धन्धा कर रहे हैं, बेवकूफ बनाते रहते हैं और पैसे ठगते रहते हैं। ऐसी ऄवस्था में निनकत्सक के पास ले जाना िानहए।
कभी-कभी ऐसा भी होता हैं, ऄगर नकसी को माननसक पीड़ा है तब त्राटक के द्रारा भी ठीक हो जायेगी ‍योंनक त्राटक

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द्रारा ननकली र्िु सानत्वक तेजस्वी नीली नकरणें पीनड़त व्यनक्त के मनस्तष्क में प्रवेर् करके ईस परे र्ानी को ठीक कर
देती हैं ऄथवा आसी नक्रया से छोटी-छोटी जीवात्माओ ं से मनु क्त नमल जाती हैं। आसका कारण है– नीली तेजस्वी नकरणों
से पीनड़त करने वाली दष्ु ट जीवात्मा को परे र्ानी होने लगती है, ईसी समय त्राटककतात सक ं ल्पानसु ार ऄपनी तेजस्वी
नकरणों द्रारा जीवात्मा को बलपवू क
त बाहर ननकाल देता है।
नजस नवनध से त्राटक द्रारा भतू -प्रेत को बाहर ननकालते है, पीनड़त व्यनक्त ठीक हो जाता है, ईसी नवनध का
थोड़ा सा बदलाव द्रारा नकसी दसू रे को हानन भी पहुिँ ाइ जा सकती है। आसीनलए गप्तु नवद्या को स्पि नहीं करना िानहए।
गरुु ईनित समय पर ऄपने नर्ष्य को ऐसी नवनधयाँ बता देता है।

4. त्राटक द्वारा विवभन्न प्रकार के रोग दूर करना


बहुत समय से कइ देर् त्राटक द्रारा नवनभन्न प्रकार के रोगों का ईपिार करते अये हैं ‍योंनक त्राटक के द्रारा
ईपिार करने में नकसी प्रकार का खित नहीं अता है। आस पिनत द्रारा मफ्ु त में ईपिार होता है। अजकल की महँगाइ में
बहुत से गरीब लोग रुपए के ऄभाव में परू ा ईपिार नहीं करवा पाते हैं। आसनलए आस पिनत द्रारा नजतना ज्यादा ईपिार
नकया जाए, ईतना ही ज्यादा ऄच्छा है।
मनष्ु य दो प्रकार से बीमार होता है:– पहला स्थल ू रूप से और दसू रा सक्ष्ू म रूप से। स्थल ू रूप से मनष्ु य को ढेरों
प्रकार की बीमाररयाँ अती रहती है। कुछ का ईपिार र्ल्य निनकत्सा द्रारा ही संभव होता है, नफर भी र्ल्य निनकत्सा
में त्राटक का बहुत बड़ा सहयोग हो सकता है। र्ल्य निनकत्सा (ऑपरे र्न) में होने वाले ददत की ऄनभु नू त कम कराइ
जा सकती है ऄथवा न के बराबर ददत हो सकता है। जैसे नकसी व्यनक्त को िोट लग गयी है, ईस िोट का ददत बहुत ही
कम नकया जा सकता है ऄथवा समाप्त नकया जा सकता है। मगर िोट के कारण र्रीर (मांस व हड्डी में) टूट फटी हुइ
है ईसे र्ल्य निनकत्सा द्रारा ही ठीक नकया जा सकता है। त्राटक के पारंगत ऄभ्यासी के द्रारा स्थल ू र्रीर पर हुए घाव
पर र्न‍तपात करने पर, घाव भरने के नलये एलोपेनथक दवा में सहयोग करके जल्दी ठीक करने में सहयोग प्रदान
करे गा। ऐसा आस प्रकार से होता है, ‍योंनक स्थल ू र्रीर के ऄन्दर सक्ष्ू म र्रीर व्याप्त रहता है। त्राटक की तेजस्वी नीली
नकरणों के द्रारा पीनड़त व्यनक्त के सक्ष्ू म र्रीर पर नजस जगह घाव है ईस जगह को ठीक नकया जाता है। यनद सक्ष्ू म र्रीर
का घाव वाला िेत्र ठीक हो जाए तो स्थल ू र्रीर पर नस्थत घाव बहुत जल्द ठीक होने लगेगा। ‍योंनक सक्ष्ू म र्रीर
सक्ष्ू म पंिभतू ों द्रारा बना हुअ है। त्राटक का प्रभाव ईस पर बहुत र्ीघ्रता से होता है।
सक्ष्ू म रूप से मनष्ु य के र्रीर में ढेरों बीमाररयाँ लगती हैं। ज्यादातर मनष्ु य की बीमाररयाँ सक्ष्ू म र्रीर में
नवद्यमान रहती हैं मगर देखने में लगता है आसकी बीमारी स्थल ू र्रीर में नस्थत है। जैसे बुखार अना और बहुत सी भी
बीमाररयाँ। जब मनष्ु य को बख ु ार अता है तब निनकत्सक ईसका बख ु ार नापता है और बताता है– बख ु ार 101 नडग्री

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या 102 नडग्री है। निनकत्सक एलोपेनथक दवायें देता है, ईससे बख ु ार तो ठीक हो जाता है, मगर एलोपेनथक दवा का
प्रभाव स्थल
ू व सक्ष्ू म र्रीर पर गलत रूप से पड़ता है। दवा खाने से बखु ार ठीक हो गया, मरीज भी खर् ु हो गया। मगर
ईसे यह मालमू नहीं होता नक ईसने जो दवा खायी है वह सक्ष्ू म र्रीर पर बहुत बरु ा ऄसर डालती है। जो बीमारी मझु े
स्थलू रूप से नदखाइ नहीं देती है वह बीमारी सक्ष्ू म र्रीर को ऄनधक प्रभानवत करती है। दसू रे र्ब्दों में सक्ष्ू म रूप से
बीमार व्यनक्त ऐसा प्रतीत होता है नक वह स्थलू रूप से बीमार है। ऐसी ऄवस्था में यनद सक्ष्ू म र्रीर को ठीक कर नदया
जाए, तब स्थल ू रूप से ऄपने अप ठीक हो जायेगा।
जब सक्ष्ू म र्रीर ज्यादा बीमार हो जाता है ईस समय निनकत्सक की दवा भी र्ीघ्र रोग पर प्रभानवत नहीं
करती है। कभी-कभी ऐसा भी देखा गया है नक निनकत्सक सही दवा दे रहा है मगर मरीज ठीक नहीं हो पा रहा है। ऐसी
ऄवस्था में कभी-कभी झाड़ फँू क वाले ठीक कर देते हैं जबनक झाड़ फँू क वाला पढ़ा नलखा भी नहीं होता है और
ईसका जीवन जीने को तरीका भी नवनित्र सा होता है। त्राटक के द्रारा ऐसी बीमारी नबल्कुल ठीक हो जाती है।
हमने पहले नलखा हुअ है बुखार कै से ठीक नकया जाता है। आसे ठीक करने के नलये कइ तरीके ऄपनाये जाते
है। आसनलए देखा गया है नक एक ही रोग को ठीक करने के नलए त्राटककतात कइ तरीके ऄपनाता है। बुखार को ठीक
करने के नलये ज्ञान िक्र पर र्न‍तपात करके भी ईतारा जा सकता है। अज्ञािक्र पर भी र्न‍तपात करके ऐसा नकया
जा सकता है। आस प्रकार के हमने पहले बहुत से कायत नकये हैं। कुछ कायत तो ऐसे थे जो निनकत्सक भी ठीक नहीं कर
पाये थे, हमारे द्रारा र्न‍तपात करते ही सबकुछ ठीक हो गया।
मनष्ु य के र्रीर में ददत हो रहा हो, तब त्राटक द्रारा र्न‍तपात करके ठीक नकया जा सकता है। आस प्रकार का
प्रयोग हमने भीड़ के बीि में एक ररश्तेदार पर नकया था। यह घटना सन् 2000 की है, मैं एक ररश्तेदार के पास गया
हुअ था। तभी मझु े बताया गया– ऄमक ु स्त्री भयक
ं र ददत से परे र्ान है, वह ददत के कारण 2 नक.मी. दरू निनकत्सक के
पास नहीं जा सकती है। बहुत से लोगों के कहने पर मैं ईसके पास गया, वहाँ पर बहुत भीड़ लगी हुइ थी। वह स्त्री
िारपाइ पर लेटी हुइ बहुत जोर-जोर से िीख रही थी। मैंने ईसके नवषय में जानकारी की तो बताया गया नक आसके सीने
में ददत है। पहले मैं सोिता रहा मझु े ‍या करना िानहए, मगर ईसका ददत देखकर मैं कायत करने के नलये तैयार हो गया।
मैंने ईस स्त्री से पेट के बल लेटने के नलये कहा, ईसके पररवार वालो ने ईसे पेट के बल नलटा नदया। नफर मैंने ईसे गौर से
देखा। नफर मैंने बताया नकईसे निनकत्सक के पास ले जाआये आसके कोइ बड़ी बीमारी है। निनकत्सक के पास जाने में 10
नमनट लगेगें। मैं 20 नमनट के नलये आसका ददत ठीक नकये देता ह।ँ वह स्त्री पेट के बल लेटी हुइ थी, पीठ वाला नहस्सा
खल ु ा हुअ था। मैंने ईसके पीठ पर (सीने वाले िेत्र पर) त्राटक द्रारा जबरदस्त र्न‍तपात नकया। ईसका ददत र्न‍तपात
करते ही ईसी िण रुक गया, वह ईठकर बैठ गयी, ऐसा लग रहा था जैसे ईसे कभी ददत हुअ ही नहीं है। मैंने ईसके
पररवार वालों से कहा अप आसे निनकत्सक के पास ले जाआये, कुछ समय बाद नफर ददत होना र्रुु हो जायेगा, मैंने कुछ
समय के नलए ददत रोक नदया है। वहाँ पर भीड़ में ईपनस्थत एक-दो लोगों ने हमने पछ ू ा– ‚ऄरे भैया! अपको कौन सा
देवता नसि है, अपने तो आन्हें तरु न्त ठीक कर नदया। हम सब तो बहुत प्रयास करते रहे मगर ददत ठीक नहीं हुअ। लगता

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है आन्हें बहुत बड़ा भतू लगा था, आसी कारण हम भतू को नहीं भगा पाये‛। मैं बोला– ‚आन्हें बहुत बड़ी बीमारी है, भतू
नहीं है। मझु े कोइ देवता नसि नहीं है, मैं योगी ह,ँ र्न‍तपात करके आनके ददत को ठीक कर नदया‛। ईसके दसू रे नदन मैं
ईस गाँव से िला गया, नहीं तो वहाँ के लोग मझु े परे र्ान करते। ईस गाँव के लोग यही समझ रहे थे मझु े कोइ देवता
नसि है।
नकसी व्यनक्त को नबच्छू ने डंक मार नदया था। मैंने त्राटक के द्रारा नबच्छू के नवष के ददत को नबल्कुल कम कर
नदया था। वह व्यनक्त अश्चयत में पड़ गया नक मेंरे द्रारा देखने मात्र से ददत कम हो गया। ईसे ‍या मालमू मैंने ‍या नकया है।
यह मेरा एक प्रयोग था। दो अश्चयतजनक प्रयोग मैंने नकये हैं, आस प्रकार के कायत नवज्ञान भी नहीं कर सकता है। एक
प्रयोग मैंने सन् 1987 में नकया था। एक छोटे बच्िे को ननरोगी बना नदया था, अज तक ईस बच्िे को नकसी प्रकार का
रोग नहीं लगा है। दसू रा प्रयोग मैंने सन् 2000 में नकया था, ईस समय वह बच्िा एक साल से भी कम ईम्र का था। वह
भी अज तक वह कभी नहीं बीमार हुअ है। आसे नवस्तार से मैं नहीं नलख रहा ह।ँ सि तो यह है नक ऐसे कायत कठोर
ऄभ्यास के द्रारा ही सभं व हो पाये हैं। आस प्रकार की परे र्ाननयों को ठीक करने के नलये कठोर ऄभ्यास और योगबल
का भण्डार होना अवश्यक है, नफर सारे कायत सम्पन्न हो जाएगं ।े नजसका ऄभ्यास कम है और योगबल भी नहीं है,
ऐसा ऄभ्यासी सदैव ऄसफल होता रहता है।
त्राटक के द्रारा बड़े-बड़े कायत सम्पन्न नकये जा सकते हैं, नजस नवषय में साधरण मनष्ु य कभी सोि भी नहीं
सकता है। अजकल मनष्ु य के पास आस नवद्या को सीखने के नलये समय ही नहीं है। आसके द्रारा दसू रे का परोपकार
नकया जा सकता है। मैं यह ऄवश्य कहना िाहगँ ा नक ऐसे कायों को करने पर कभी भी बदले में रुपए नहीं लेना िानहए।
ऐसे कायों को करने से परोपकारी व्यनक्त का सामर्थयत और बढ़ जाता है। परोपकार करने के नलये सदैव तैयार रहना
िानहए।

5. त्राटक द्वारा ध्यान में शीघ्र सफलता


त्राटक योग का एक ऄगं है आसनलए ऄभ्यासी को ऄवश्य ही त्राटक का ऄभ्यास करना िानहए। त्राटक द्रारा
मन की िि ं लता कम होने लगती है। योग के ऄभ्यास में मन का बहुत बड़ा महत्त्व होता है ‍योंनक आनन्रयों द्रारा ही
मनष्ु य संसार में समस्त कायत करते हैं। आनन्रयाँ सदैव सांसाररक पदाथों को भोगने के नलये प्रयत्नर्ील रहती हैं। आनन्रयों
के वर्ीभतू हुअ मनष्ु य सदैव आनन्रयों को तृप्त करने के प्रयास में लगा रहता है। ऄगर नकसी मनष्ु य को ऄपने जीवन को
श्रेष्ठ बनाना है, तो आनन्रयों पर ऄनधकार करने के नलये, ईनकी बनहमख तु ता को कम कर दे ऄथवा पणू त रूप से रोक दे। आन
आनन्रयों का स्वामी मन होता है, ऄगर मन पर ऄनधकार कर नलया जाए, तब आनन्रयों पर ऄनधकार ऄपने अप हो

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जाएगा। मन स्वयं िंिल रहता है। जब तक मन की िंिलता रूके गी नहीं, तब तक आनन्रयाँ भी पणू त रूप से ऄतं मख
तु ी
नहीं होगी।
नये साधकों को सबसे ज्यादा नर्कायत यही रहती है नक ईनका ध्यान नहीं लगता है, मन सदैव बार-बार
भागता रहता है, एक िण भी एकाग्र नहीं होता है। जब तक मन एकाग्र नहीं होगा, तब तक ध्यान नहीं लगेगा। मन की
िंिलता को रोकने के नलये दो प्रकार के ईपाय हैं। एक– प्राणायाम के द्रारा, दो– त्राटक के द्रारा। त्राटक के ऄभ्यास से
मन की धीरे -धीरे िंिलता र्ान्त होने लगती है तथा मन में बहुत बड़ा बदलाव अने लगता है। त्राटक के ऄभ्यास से
मन के ऄन्दर र्ि ु ता अने लगती है, र्ि ु ता के साथ साथ व्यापकता भी अने लगती है। मन की र्ि ु ता के कारण
आनन्रयों में र्ि
ु ता अने लगती है। मन का बार-बार स्थल ू पदाथों की ओर भागना रुकने लगता है और आनन्रयाँ ऄतं मतखु ी
होने लगती हैं। नजस साधक की आनन्रयाँ ऄतं मतख ु ी होने लगती हैं ईसका मन ऄवश्य ठहरने लगता है। ये ध्यान का
ऄभ्यास करने वाले साधक के नलये बहुत ही ऄच्छा है। त्राटक द्रारा मन एकाग्र करने पर ध्यान में सफलता के
ऄनतररक्त भी मनष्ु य के ऄन्दर धैयतता, र्ानन्त और सतं ोष अनद गणु अने लगते हैं। त्राटक का ऄभ्यास नसफत ध्यान
लगाने के नलये ही नहीं, बनल्क थोड़ा सा त्राटक सदैव करते रहना िानहए। ध्यान के बाद समानध के समय भी मन की
एकाग्रता ज्यादा होना अवश्यक है। मन नजतना ज्यादा देर तक एकाग्र होगा समानध का समय भी ईतना ही ज्यादा
बढ़ेगा। लगातार त्राटक के ऄभ्यास से मन के ऄन्दर (वृनत्तयों) में व्यापकता अने के कारण सक्ष्ू म र्रीर ऄनधक व्यापक
व र्ि ु होने लगेगा, तथा अतं ररक नवकास भी ज्यादा होगा। नजतना अंतररक नवकास ज्यादा होगा, ईसी के ऄनसु ार
सक्ष्ू म र्रीर में नवद्यमान िक्रों के ऄन्दर र्िु ता अयेगी, आससे िक्र र्ीघ्र खल
ु ने में सहायता नमलेगी।
हमने देखा है ज्यादातर ऄभ्यासी त्राटक का एक नननश्चत ऄवस्था तक ऄभ्यास करते हैं, नफर त्राटक का
ऄभ्यास करना बंद कर देते हैं। ईनकी सोि होती है– मझु े मेरा लक्ष्य प्राप्त हो गया है, ऄब ऄभ्यास की अवश्यकता
नहीं है। मगर यह ‍यों भल ू जाते हैं नक ऄभ्यासी का भौनतक र्रीर सदैव ऄर्ि ु ता ग्रहण करता रहता है। जैसे– भोजन
करना, समाज में नमलना जल ु ना तथा दसू रों के साथ राग-द्रेष, तृष्णा अनद से यक्त
ु व्यवहार करना, आन सभी के द्रारा
ऄर्ि ु ता व जड़ तत्त्व र्रीर के ऄन्दर प्रवेर् करता रहता है। आसके साथ वलय के द्रारा भी ऄर्ि ु ता अती रहती है। आस
ऄर्ि ु ता का प्रभाव मन पर भी पड़ता है। मन भी ऄर्ि ु होने लगता है। आस ऄर्ि ु ता को स्वच्छ करने के नलये त्राटक
का ऄभ्यास करते रहना िानहए तथा प्राणायाम भी करते रहना िानहए। ऐसा ऄभ्यासी भनवष्य में सफलता प्राप्त करता
है।

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6. त्राटक के द्वारा साधकों का मागतदशतन
साधकों! ऄगर भनवष्य में मागतदर्तक बनना है या बनना िाहते हो, तो ऄभी से संयनमत होकर कठोर ऄभ्यास
करना र्रुु कर दो ‍योंनक साधकों को मागतदर्तन करने के नलये नवर्ेष प्रकार की योग्यता िानहए, तभी मागतदर्तक बन
सकता है। आतना ऄवश्य स्पि है सभी साधक मागतदर्तक या गरुु नहीं बन सकते हैं ‍योंनक मागतदर्तक बनने के नलये
साधक को ईस िेत्र में ऄभ्यास के द्रारा ननपणु ता होनी िानहए। आस प्रकार की योग्यता बहुत से साधकों के पास होती है,
मगर ऄभ्यास के नवषय में बारीकी से जानकारी भी होनी िानहए। मागतदर्तक को त्राटक की बारीनकयों को समझने के
नलये ईससे सम्बनन्धत नवनभन्न प्रकार से प्रयोग कर लेने िानहए, ऄथातत् जब वह स्वयं ऄभ्यास कर रहा हो, ईस समय
ऄपने से कननष्ठ साधकों का मागतदर्तन का प्रयत्न करते रहना िानहए। आस प्रकार के ऄभ्यास से मागतदर्तन में पांरगता
अने लगती है। जब ईसे ऐसा लगने लगे नक ऄब ईसने आस नवषय में बारीनकयों को समझ नलया है, तभी गरुु पद पर
बैठने के नलए सोिना िानहए। ऄगर गरुु पद पर बैठकर मागतदर्तन करने के नलये सीखना िाहा, तब ऄसफल मागतदर्तक
कहे जाओगे। र्ब्दों से मागतदर्तन करना सरल है मगर ऄभ्यास का मागतदर्तन करना कनठन है। यनद कोइ मागतदर्तक या
गरुु यह सोिे नक मैं तो योग में व त्राटक में पणू त रूप से पारंगत ह,ँ तो ऐसा समझना ऄज्ञानता ही है ‍योंनक कोइ भी
ऄपने अप को योग में पणू त न कहे। मागतदर्तन करते समय ईसे भी कुछ न कुछ सीखने को नमलता रहता है।
त्राटक का ऄभ्यास कुछ नदनों या कुछ महीनों का नहीं होता है, बनल्क त्राटक में ऄच्छी पकड़ बनाये रखने के
नलये ननरन्तर ऄभ्यास करते रहना िानहए। यनद नकसी साधक ने त्राटक का ऄभ्यास यह सोि कर बन्द कर नदया है नक
ईसने बहुत ऄभ्यास कर नलया है ऄब ईसे ऄभ्यास करने की जरुरत नहीं है, तो त्राटक का ऄभ्यास बन्द करने के बाद
वह 2-3 साल बाद ऄपने अपको बारीकी से देखे, तब ईसे मालमू होगा, पहले की ऄपेिा ईसका ऄभ्यास कम हुअ
है। त्राटक के ऄभ्यास में पारंगता के बाद भी कुछ न कुछ ऄभ्यास करते रहना िानहए। आसी प्रकार योग का ऄभ्यास कइ
वषों तक करने के बाद कुछ साधक ही मागतदर्तन करने के योग्य होते हैं। साधकों का मागतदर्तन करने के नलये योग्यता
कम से कम ब्रह्मरंध्र खोलकर कुण्डनलनी पणू त यात्रा कर रृदय में नस्थर हो गयी हो, तभी मागतदर्तन की आच्छा करें ‍योंनक
आतनी योग्यता के बाद ही मागतदर्तन करने की योग्यता अती है। ऐसे गरुु ओ ं को पहले भलीभांनत मागतदर्तन की नवनधयाँ
समझ लेनी िानहए, तभी साधकों का मागतदर्तन करें । यनद मागतदर्तन करने के तरीके मालमू नहीं है तो ईसका त्राटक का
ऄभ्यास ‍या करे गा। त्राटक द्रारा र्न‍तपात करते समय मालमू होना िानहए, ईसे नकस जगह पर नकतना र्न‍तपात
करना है।
त्राटक का ऄभ्यासी योग करने वाले साधक का मागतदर्तन नहीं कर सकता है वह नसफत स्थूल पदाथों या स्थल

जगत में ही नक्रयाकलाप कर सकता है। त्राटक के साधक को योग का ऄभ्यास भी करना िानहए। योग का ऄभ्यास 2-
4 सालों का नहीं होता है; यह जीवनपयतन्त करना पड़ता है, तब नबरले साधक को ही सफलता प्राप्त होती है। कुछ
साधक मात्र कुछ समय तक साधना करके ही छोड़ देते हैं। कुछ साधक कुछ वषों तक साधना करने के बाद सोिते हैं
नक मैंने आतने सालों तक योगाभ्यास नकया, मझु े आससे ‍या नमला है। मगर जो साधक आस मागत में लगा रहता है, िाहे

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योग मागत में परे र्ाननयाँ या रुकावटें अएँ, वह ऄभ्यासानसु ार व पवू त जन्म के कमातनसु ार ईन्ननत करके ईच्िावस्था प्राप्त
कर लेता है। मगर ऐसे साधकों में से भी गरुु पद पर सभी साधक नहीं बैठ सकते हैं। वे पवू त जन्म से योगी होते हैं,
आसनलए पवू त सस्ं कारों के कारण ईनके ऄन्दर ऐसी योग्यता अ जाती है। मैं यह सब आसनलए नलख रहा हँ तानक अप
सभी ऄच्छी तरह से समझ लें नक सभी ऄभ्यासी गरुु पद के योग्य नहीं हो पाते हैं। मगर अजकल ऄयोग्य गरुु बहुत ही
नमलेंगे, आसी कारण ईनके नर्ष्य भी ऄयोग्य ही होते हैं। सीधा सा नसिान्त है, ऄयोग्य गरुु जब मागतदर्तन ही नहीं कर
पायेगा, तब वह ऄपने नर्ष्यों को ‍या नसखायेगा? आसी प्रकार श्रेष्ठ गरुु का नर्ष्य िाहे नजतना कमजोर हो, वह कुछ न
कुछ योग्यता ऄवश्य प्राप्त कर लेगा ‍योंनक ईसके गरुु का मागतदर्तन का तरीका ही ऐसा होता है।
हमने ये जानकारी आसनलए दी नक जो गरुु ऄयोग्य होगा, ईसके द्रारा नकया गया त्राटक द्रारा र्न‍तपात का
प्रभाव नहीं पड़ेगा। नफर गरुु यह दोष देगा नक त्राटक द्रारा र्न‍तपात करके मागतदर्तन नहीं नकया जा सकता है। ऐसे
ऄयोग्य गरुु त्राटक र्न‍त की मनहमा नहीं समझ पाते हैं। वततमान समय में कुछ ऐसे लोग भी नमल जाएँगे, वह दरू से
देखकर ही छोटी-छोटी वस्तऐु ं एक स्थान से ईठाकर दसू रे स्थान पर रख देंग।े कठोर धातु की वस्तएु ं मोड़ देंग।े पवू क
त ाल
में अँखों द्रारा ननकली तेजस्वी नकरणों से अग भी लगा देते थे। वततमान समय में मैं त्राटक के द्रारा ही मागतदर्तन करता
ह।ँ
पहले ऄपने गरुु से त्राटक की बारीनकयाँ सीखे तथा योग में ईच्िावस्था को प्राप्त करे । ऄब त्राटक र्न‍त का
नये साधकों पर बार-बार प्रयोग करें , र्न‍तपात द्रारा ईन्हें ध्यान की गहराइ में जाने का प्रयास कराएँ। अँखों द्रारा
ननकली तेजस्वी नकरणों से अज्ञािक्र पर र्न‍तपात करें । र्न‍तपात का प्रभाव नर्ष्य पर तरु न्त नहीं होगा, धीरे -धीरे ही
ईस पर प्रभाव पड़ेगा। गरुु साधक पर ऄगले नदन त्राटक द्रारा नफर र्न‍तपात करे । ऐसा कुछ नदनों तक लगातार करते
रहने पर साधक का ध्यान थोड़ा-थोड़ा लगने लगता है। एक बात का ध्यान रखना िानहए, साधक सपु ात्र होना िानहए,
जो योग के ननयमों का पालन करते हुए ऄभ्यास कर रहा हो। ऄगर कुपात्र पर र्न‍तपात कर नदया तो र्न‍तपात का
प्रभाव नहीं पड़ेगा।
त्राटक द्रारा मागतदर्तन करने वाले का, त्राटक का कठोर ऄभ्यास होना िानहए तथा योगबल का भण्डार होना
िानहए। योगबल का भण्डार समानध द्रारा तथा मत्रं ों द्रारा प्राप्त होता है। ऄगर योगबल पयातप्त मात्रा में नहीं है, तब
ज्यादातर ऄसफलता ही हाथ लगेगी तथा जनटल कायत नहीं हो सकें गे।
नजसने नसफत त्राटक का ऄभ्यास नकया है, योग का ऄभ्यास नहीं नकया है, वह समाज के सामने सम्मोहन
करके िमत्कार तो नदखा सकता है, मगर नकसी साधक की कुण्डनलनी उध्वत नहीं कर सकता है और न ही िक्रों को
खोल सकता है। नजसने योगाभ्यास नकया है और योगाभ्यास के बल पर गरुु पद पर बैठा है, ऐसा ऄभ्यासी त्राटक के
द्रारा समस्त अध्यानत्मक कायत कर सकता है। ईसे स्पर्त करके र्न‍तपात करने की कोइ अवश्यकता नहीं है। ऐसा गरुु
एक जगह पर बैठा हुअ साधक पर दरू से ही र्न‍तपात कर देगा, ईसे ऄपने नर्ष्य के पास जाने की कोइ अवश्यकता

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नहीं है। त्राटक द्रारा र्न‍तपात करने पर कुछ मात्रा में योगबल दरू ी के ऄनसु ार आधर-ईधर नबखर जाता है। जबनक स्पर्त
द्रारा र्न‍तपात से नर्ष्य के ऄन्दर सम्पणू त योगबल प्रवेर् कर जाता है। अँखों द्रारा र्न‍तपात वही करता है, जो गरुु
ऄभ्यास द्रारा र्न‍तर्ाली होता है। यह कायत प्रत्येक गरुु के वर् ही बात नहीं है।
ऐसे र्न‍तर्ाली गरुु त्राटक द्रारा दरू से ही बैठे अँखों द्रारा मागतदर्तन करते रहते हैं, नकसी को मालमू भी नहीं
पड़ता है, नकसके उपर र्न‍तपात नकया गया है। ध्यानावस्था में ऄगर दरू से बैठे साधक को गलत नक्रयाएँ हो रही हैं,
तब गरुु त्राटक द्रारा र्न‍तपात करके आन नक्रयाओ ं को बन्द कर देगा। ऐसा गरुु अँखों से र्न‍तपात करके साधक की
कुण्डनलनी जाग्रत करके उध्वत कर देगा तथा ईनित समय पर मल ू ाधार िक्र, स्वानधष्ठान िक्र, नानभ िक्र और रृदय
िक्र खोल देगा। ऄगर नर्ष्य के ऄभ्यास में ऄवरोध भी अ गया है, ईसे भी दरू कर देगा। आसीनलए कहा जाता है नक
सदैव योग्य गरुु का ही नर्ष्य बनना िानहए। नजनके हजारों-लाखों नर्ष्य हैं तथा नर्ष्यों से रुपए लेते हैं, ईनका नर्ष्य
भलू कर भी नहीं बनना िानहए। ऐसे गरुु ओ ं के नर्ष्य साधना में ईन्ननत नहीं कर पाते हैं। बहुत से नर्ष्य भ्रनमत रहते हैं
नक ईनके िक्र खल ु गये हैं। ध्यान के कारण जरा सी भी नक्रया हुइ तो वह समझ लेते हैं नक ईनका िक्र खल ु ा हुअ है,
और ईनकी कुण्डनलनी जाग्रत है। ऐसे कइ साधक मझु से नमले, नफर मैंने ईन्हें समझाया, तब ईन्हें वास्तनवकता समझ में
अ गयी।

7. त्राटक द्वारा कुण्डवलनी जाग्रत करना


नजन साधकों ने नसफत ऄपने जीवन में त्राटक का ही ऄभ्यास नकया है, योगाभ्यास करके अध्यानत्मक ईन्ननत
नहीं की है, ऐसे साधक कुण्डनलनी जाग्रत करके उध्वत करने में समथत नहीं हैं। आस प्रकार के साधक सम्मोहन का प्रयोग
करके भ्रम से यक्त
ु ढेरों प्रकार के िमत्कार नदखा सकते हैं। नजन्होंने नसफत त्राटक का ऄभ्यास कइ वषों तक नकया हो,
ऄध्यात्म से कुछ लेना-देना न रहा हो, तो भी त्राटक के द्रारा ढेरों कायत कर सकता है, जैसे नवनभन्न प्रकार के रोग अनद
ठीक करना। अध्यानत्मक नवकास न होने पर सक्ष्ू म र्न‍तयाँ या नदव्य र्न‍तयों से सम्बनन्धत कायत नहीं हो सकते हैं।
नजन ऄभ्यानसयों ने योग का ऄभ्यास करके ऄपना अन्तररक नवकास कर नलया है, ऐसे साधक कुण्डनलनी
जागरण का कायत कर सकते हैं। पहले अप कुण्डनलनी के नवषय में समझ लीनजये। सि ं ेप में बताने का प्रयास कर रहा
ह–ँ कुण्डनलनी का मल ू स्वरूप ऄव्यक्त रूप से परा-प्रकृ नत में नवद्यमान रहती है। मगर ऄपरा प्रकृ नत में मनष्ु य के र्रीर में
सहस्त्रारिक्र में आसका ननवास स्थान माना गया है। यह जीवों की संनगनी के रूप में सदैव जीव के साथ रहती है, यह
र्न‍त स्वरूपा है। जीव को जब अनद काल में पहली बार जन्मग्रहण करना पड़ा, तब ईसका पतन होने लगा। नित्त ने
बनहमख तु ी होकर अरोहक्रम में होते हुए स्थल
ू र्रीर धारण कर नलया, नजससे वह स्थल ू पदाथों का भोग कर सके ।

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कुण्डनलनी का ननवास स्थान सहस्त्रार िक्र माना गया है, मगर नित्त के बनहमख तु ी होने पर कुण्डनलनी
अज्ञािक्र और रृदय िक्र होते हुए मल ू ाधार िक्र में नवराजमान हो गयी। मल ू ाधार िक्र में नत्रकोण के मध्य में नर्वनलंग
पर नलपटी हुइ साढ़े तीन ि‍कर लपेट कर सो गयी। साधकों को ध्यानावस्था में नर्वनलगं पर नलपटी हुइ तीन ि‍कर
ही नदखाइ देते हैं, अधा ि‍कर नहीं नदखाइ देता है ‍योंनक कुण्डनलनी ऄपने पँछ ू को ऄपने महँु के ऄन्दर दबाये रखती
है। ये िक्र और कुण्डनलनी दोनों ही सक्ष्ू म र्रीर में नवद्यमान रहते हैं। सक्ष्ू म र्रीर स्थल
ू र्रीर के ऄन्दर व्याप्त रहता है,
आसनलए आसकी ऄनभु नू त स्थल ू र्रीर में होती है। ये कुण्डनलनी र्न‍त सक्ष्ू म व नदव्य है। आसको जाग्रत करने के नलए
ऄभ्यासी को ऄपना सक्ष्ू म र्रीर का नवकास करना अवश्यक है। जब तक सक्ष्ू म र्रीर का नवकास नहीं होगा, तब तक
दसू रे साधक की कुण्डनलनी कै से जाग्रत कर सकते हैं? ऄगर कोइ त्राटक का ऄभ्यासी और सम्मोहनकतात अध्यात्म
र्न‍त का स्वामी नहीं है, तो कुण्डनलनी जागरण ईसके वर् की बात नहीं है।
अजकल बहुत से व्यनक्त ऐसे भी आस समाज में देखने को नमल जाते हैं, नजनका कहना है नक मैं आतने रुपए में
कुण्डनलनी जाग्रत कर देता ह।ँ पाठकों, जो व्यनक्त ऐसा कहे या ऐसा करे , रुपए लेकर कुण्डनलनी जाग्रत करता हो, तो
अप ईससे सतकत हो जाआये। मैंने नलखा हुअ है– कुण्डनलनी र्न‍तस्वरूपा और नदव्यता को नलये हुए है। बड़े ही
अश्चयत की बात है नक ऐसे लोग मात्र कागज के टुकड़ों के बदले नदव्य र्न‍त प्रदान कर देते हैं या जाग्रत कर देते हैं, यह
ऄज्ञानता के नसवाय और कुछ नहीं है, व्यापार की वस्तु नहीं है। व्यापार स्थल
ू पदाथों का होता है, न नक नदव्य र्न‍त
का हो सकता है।
मझु े याद अ रहा है– र्ायद सन् 1988 के अस-पास की बात होगी, नदल्ली र्हर में बहुत प्रिार हो रहा था,
सड़कों पर कपड़ों के बैनर लगे थे, नजनमें नलखा था ‚500 रुपए में कुण्डनलनी जागरण करवाओ और अत्म
सािात्कार करो‛। जो ऐसा कायत करता था, मैं ईसका नाम नहीं नलखना िाहता ह।ँ अजकल भी बहुत से लोग
कुण्डनलनी जागरण रुपयों के बदले कर देते हैं। हमारे पास भी कुछ लोग अये और पछ ू ा– ‚अप कुण्डनलनी जागरण
का नकतना रुपया लेते हैं‛। मैंने ईन्हें समझाया और कहा– ‚मैं आस कायत के नलये रुपए नहीं लेता ह,ँ यह इश्वरीय कायत
है‛। आसी प्रकार मेंरे पास एक संदर्
े अया– ‚अप कुण्डनलनी जागरण के नवषय में कुछ नहीं कहते है, हमने नकसी के
पास जाकर पता लगाया है, वह 20,000/- (बीस हजार रुपए) से 25,000/- रुपए (पच्िीस हजार रुपए) लेते हैं, नफर
कुण्डनलनी जागरण करते हैं। हमारे पास आतने रुपए नहीं हैं, मैं आतने रुपए दे भी नहीं पाउँगा।‛
नप्रय पाठकों! मैंने ऄपनी पस्ु तकों में व नवनडयो में कुण्डनलनी के नवषय में समझाया है, अप आस नवषय में
जानकारी पढ़ लीनजये व सनु लीनजये, नफर अप कुण्डनलनी के बारे में समझ जाएगं ।े जो ऐसा कायत करते हैं, ‍या ये
नहीं समझते हैं नक नबना ऄभ्यास नकये आस प्रकार से कुण्डनलनी कै से जाग्रत हो जायेगी? वह तो सक्ष्ू म र्रीर में नवद्यमान
रहती है। सक्ष्ू म र्रीर का नवकास एक नननश्चत ऄवस्था तक होना अवश्यक है, तब कुण्डनलनी जागरण का समय अता
है। ईस समय गरुु र्न‍पात करके , कुण्डनलनी जाग्रत करके उध्वत कर देता है।

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अजकल हमने बहुत से साधक ऐसे देखे हैं, नजनका कहना है नक हमारे सभी िक्र खल ु े हुए हैं। नफर भी वह
मझु से ऄध्यात्म में सहायता मांग रहे हैं नक मझु े मागदर्तन दीनजए। एक नहीं कइ लोग ऐसे नमले नजनका कहना है नक
मेरा सहस्त्रार िक्र खल
ु ा हुअ है। आसी प्रकार बहुत से साधक ऐसे नमले, नजनका कहना है नक ईनकी कुण्डनलनी जाग्रत
है, जबनक ऐसा नहीं है। मैंने ईनकी जानकारी की तो पाया नक वे भ्रम में हैं। आन मागतदर्तकों या गरुु ओ ं ने लोगों को
कुण्डनलनी के नवषय में भ्रनमत कर रखा है। ज्यादातर मागतदर्तकों की खदु की कुण्डनलनी जाग्रत नहीं होती है, मगर
कुण्डनलनी पर बहुत कुछ बोलते रहते हैं।
ऄब कुण्डनलनी जागरण की बात करते हैं– दसू रे की कुण्डनलनी को वही लोग जाग्रत कर सकते हैं, नजनकी
कुण्डनलनी जाग्रत है। नजनकी कुण्डनलनी जाग्रत नहीं है, वह दसू रों की कुण्डनलनी जाग्रत नहीं कर सकते हैं। नजस
साधक का कण्ठिक्र खल ु ा हुअ है और ईसकी साधना कण्ठिक्र और ब्रह्मरंध्र के बीि िल रही है तथा ईसकी
कुण्डनलनी ईग्र है, ऐसा साधक दसू रे की कुण्डनलनी जाग्रत कर सकता है। कुण्डनलनी जाग्रत करने की कम से कम
आतनी योग्यता होनी िानहए, तब कुण्डनलनी जाग्रत कर सकता है। कुण्डनलनी का जागरण नकसी साधक या योगी से ही
करवाएँ, नकसी सम्मोहनकतात से जाग्रत न करवाएँ, वह न तो जाग्रत कर सकता है और न ही आसका मागतदर्तन कर
सकता है।
नजस साधक की कुण्डनलनी जाग्रत की जानी है, ईसके नवषय में भली प्रकार से समझ लें, ‍या आसकी
कुण्डनलनी जाग्रत करने के योग्य है, ऄथातत् यह योग के ननयमों का पालन करते हुए नदन में तीन-िार घण्टे साधना
करता है। ‍या गरुु पद पर बैठा हुअ व्यनक्त कुण्डनलनी जागरण की नवनध जानता है, ईसने त्राटक का ऄभ्यास करते हुए
श्रेष्ठता प्राप्त की है, ‍या त्राटक के द्रारा अध्यानत्मक कायत नकये हैं अनद। गरुु ऄपने सामने नर्ष्य को नबठाये और
ध्यान करने को कहे। जब नर्ष्य का ध्यान गहरा लग जाये, तब गरुु नदव्य दृनि के द्रारा देखे नक ‍या प्राण सषु म्ु ना नाड़ी
के ननिले भाग में मँहु के पास ध‍के मार रहा है ऄथवा प्रवेर् करने की कोनर्र् कर रहा है। नत्रकोण के मध्य में
नर्वनलंग पर नलपटी हुइ कुण्डनलनी र्न‍त, जो अँखें बन्द करके सोइ हुइ है, ईस पर प्राण के ध‍के लग रहे हैं ऄथवा
नहीं लग रहे हैं। गरुु को ननणतय करना है, ‍या कुण्डनलनी जाग्रत करने का समय अ गया है। ऄब गरुु त्राटक द्रारा नर्ष्य
के मल ू ाधार िक्र पर ईनित मात्रा में र्न‍तपात करे । नफर वह थोड़ी देर बाद कुण्डनलनी को देख,ें ‍या कुण्डनलनी पर
ईसके द्रारा नकये गये र्न‍तपात का प्रभाव पड़ा है, ऄगर प्रभाव नहीं हुअ है तो कोइ बात नहीं है। दबु ारा नफर
र्न‍तपात करें , ऄबकी बार देर तक त्राटक के द्रारा ईस िेत्र को देखते रहें तथा संकल्प द्रारा कुण्डनलनी जाग्रत करने
का प्रयास करते रहें। कुछ समय तक ऐसा करने पर कुण्डनलनी जाग्रत होने लगेगी। कुण्डनलनी जाग्रत होते समय पहले
ऄपनी अँखें खोल देती है, नफर महँु में भरी पँछ ू ईगल देती है। साधक की साधना के ऄनसु ार कुण्डनलनी उध्वत होने का
प्रयास करती है। नजस समय साधक की कुण्डनलनी उध्वत हो रही होती है, तब कुछ नदनों तक गरुु को र्न‍तपात करके
नर्ष्य की सहायता करते रहना िानहए। आससे साधक की कुण्डनलनी बार-बार उध्वत होने लगेगी।

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कुण्डनलनी जाग्रत होते समय कुछ साधकों को उध्वत होने की प्रनक्रया नदखाइ देती है, कुछ साधकों को नहीं
नदखाइ देती है। नजन साधकों को नहीं नदखाइ देती है, ऐसी ऄवस्था में ईसे गरुु को बताना िानहए नक ईसकी कुण्डनलनी
की ऄवस्था ‍या है। कुण्डनलनी उध्वत होते समय ननश्चय ही ऄनभु नू त होती है नक मल ू ाधार गमत हो रहा है। मल
ू ाधार से
गमत-गमत रे खा सी उपर की ओर जाती हुइ ऄनुभनू त होती है। कभी-कभी ऐसा लगता है नक पीठ में िीनटयाँ सी काटती
हुइ उपर की ओर जा रही हैं। कुण्डनलनी के कइ प्रकार के ऄनभु व अते है। कुण्डनलनी के नवषय में ऄनधक जानकारी
मेरी पस्ु तक ‘सहज ध्यान योग’ में अप पढ़ सकते हैं।

8. त्राटक के अभ्यास द्वारा आँखों का तेजस्िी होना


साधकों! त्राटक का ऄभ्यास मन की िि ं लता को रोकने के नलये नकया जाता है। मन की तेजस् रूप में फै ली
हुइ नकरणें एक वस्तु या स्थान पर के नन्रत करते हैं। आससे मन ऄत्यन्त र्न‍तर्ाली होता है तथा ऄभ्यासी की देखने की
िमता पैनी हो जाती है। यह स्पि है नक सयू त की फै ली हुइ नकरणों को ऄगर लेंस द्रारा एक जगह डाली जायें, तो वह
नकरणें ईस स्थान पर अग लगाने या जला देने की सामर्थयत रखती है। मगर जब ये नकरणें नबखरी हुइ रहती हैं तब ऐसा
नहीं कर सकती है। आसी प्रकार अँखों द्रारा ननकली हुइ तेजस् रूप में नकरणों को समझना िानहए। अजकल ज्यादातर
देखा गया है नक ज्यादातर लोग िश्मे का प्रयोग नकया करते हैं। वृि परुु ष ज्यादातर िश्मे का प्रयोग नकया करते हैं, यह
तो समझ में अता है, ईसका र्रीर वृि हो जाने के कारण ईसके ऄगं ों के कायत करने की िमता भी कमजोर पड़ने
लगती है, आसनलए अँखों की देखने की िमता कमजोर होने लगती है। मगर नवयुवक ही नहीं, बच्िे भी िश्मे लगाये
हुए नमल जाएँग।े नकतने दःु ख की बात है नक बच्िों के भी देखने की िमता आतनी छोटी ईम्र में कमजोर हो गयी है।
ऄगर पहले के बजु गु त व्यनक्तयों को याद करें तो याद होगा, वह ऄनन्तम समय तक िश्मा नहीं लगाते थे, नबना िश्मा
लगाये ही पढ़ा करते थे।
जो व्यनक्त त्राटक का ऄभ्यास करता है, ईसकी अँखें त्राटक का ऄभ्यास न करने वाले व्यनक्त से तेजस्वी होने
लगती हैं। अँखों को तेजस्वी बनाने के नलये नबन्दु त्राटक ही काफी है। नकसी भी व्यनक्त को त्राटक के ऄभ्यास से
नकसी प्रकार से नक ु सान नहीं होता है, बनल्क लाभ ही होता है। आसनलए त्राटक का ऄभ्यास 15-20 नमनट तक नबन्दु
पर ऄवश्य करना िानहए। ‍योंनक अजकल कायातलय अनद में काम करने में पणू त रूप से अँखों पर दबाव बना रहता
है। कम्प्यटू र तो हर घर में व कायातलय में हो गये हैं, सारा काम आन्हीं पर करना पड़ता है। आनकी स्क्रीन के ब्राआटनेस और
कंरास्ट का अँखों पर बरु ा प्रभाव पड़ता है। ऐसे व्यनक्तयों को त्राटक का थोड़ा ऄभ्यास ऄवश्य करना िानहए। आससे
ईनकी अँखों पर नकसी प्रकार का प्रनतकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।

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त्राटक के ऄभ्यासी की अँखें तेजस्वी ही नहीं ननरोगी भी होती हैं। बिपन से ही 10-15 नमनट का ऄभ्यास
करने वाले (नबन्दु त्राटक) ऄभ्यासी को वृिावस्था तक िश्मा लगाने की अवश्यकता नहीं पड़ेगी। ऄभ्यास के कारण
दृनि में नकसी प्रकार की कमजोरी नहीं अती है। ऄगर अँखें तेजस्वी बनानी हैं, तब कुछ समय तक लौ त्राटक का
ऄभ्यास ऄवश्य करना िानहए, लौ त्राटक से अँखें तेजस्वी होने लगती हैं। ऐसा करने के नलए पहले नबन्दु त्राटक पर
20-25 नमनट का ऄभ्यास करें , आतना ऄभ्यास जब असानी से हो जायेगा, तब ईसे लगभग 10 नमनट तक दीपक की
लौ पर त्राटक का ऄभ्यास करने का प्रयास करना िानहए। ऐसा करने पर ऄभ्यासी की अँखें ननश्चय ही पहले की
ऄपेिा तेजस्वी होने लगेगीं। कुछ महीने तक ऄभ्यास करने के बाद साधक दपतण पर स्वयं ऄपनी अँखें गौर पवू क त
देख,ें तब ईसे स्पि रूप से समझ में अने लगेगा, ईसकी अँखें तेजस्वी होने लगी हैं तथा पलकों के नकनारे ज्यादा
खल ु ने लगे हैं।
नजन व्यनक्तयों को िश्मा लगाने की अवश्यकता पड़ती है या लगाये रखते हैं, ईनके नलए त्राटक का ऄभ्यास
बहुत ही ईपयोगी है। नजन व्यनक्तयों को ऄभी िश्मा लगाने की अवश्यकता नहीं पड़ी है, ईन्हें भी नबन्दु त्राटक का
ऄभ्यास 20-25 नमनट तक करना िानहए। आससे बहुत बड़ा लाभ यही नमलेगा नक ईन्हें भनवष्य में िश्मा लगाने की
अवश्यकता नहीं पड़ेगी। वृिावस्था तक ईनकी अँखें नबल्कुल सही बनी रहेंगी। महत्त्वपूणत बात यह है नक ऄभ्यासी
ऄपने जीवन में नकस प्रकार के कायत कर रहा है? ऄगर कायत करते समय अँखों पर दबाव ज्यादा नहीं पड़ता है, तब
र्ायद भनवष्य में िश्मे की अवश्यकता नहीं पड़ेगी। ऄगर ऐसा ऄभ्यासी कायातलय अनद में कायत करता है, लैपटॉप,
कम्प्यटू र अनद का प्रयोग करता है, तब अँखों पर ऄनधक दबाव के कारण बहुत समय बाद दृनि पर ऄसर पड़ सकता
है। ऐसा ईसके कायत करने के उपर है नक वह नकतने समय तक कम्प्यटू र का प्रयोग करता है।
नजन व्यनक्तयों के िश्मे का नम्बर 1.0 तक है, ऐसे व्यनक्तयों को त्राटक का ऄभ्यास ऄवश्य करना िानहए।
नबन्दु त्राटक का ऄभ्यास धीरे -धीरे एक घण्टे तक ले जाना िानहए। प्रनतनदन लगातार ऄभ्यास करते रहना िानहए। जब
त्राटक करते समय नीले रंग का धब्बा नदखाइ देने लगेगा, तब ईसकी दृनि पर भी प्रभाव पड़ने लगेगा। कुछ महीनों तक
ऄभ्यास करने पर धीरे -धीरे ईसकी दृनि सही ऄवस्था में अ जायेगी। एक बात का ध्यान रखना है– जब ईसकी दृनि
सही हो जाये, तब भी ईसे त्राटक का ऄभ्यास बराबर करते रहना है, ऄभ्यास छोड़ना नहीं िानहए, 20-25 नमनट
ऄभ्यास करने के नलये प्रनतनदन समय ननकाल लेना िानहए।
नजनके िश्मे का नम्बर 1.0 से लेकर 2.0 तक है, ईनके नवषय में ननश्चयपवू क त कहा नहीं जा सकता है नक
त्राटक का ऄभ्यास करने पर िश्मा ईतर ही जायेगा। हो सकता है कुछ लोगों का िश्मा ईतर जाये, कुछ लोगों का
िश्मा नहीं ईतरे गा। आसका कारण यह है नक जो लोग लैपटॉप, कम्प्यटू र का ऄनधक प्रयोग करते हैं, ईनका िश्मा
ईतरना मनु श्कल सा है, ऄन्य लोगों का िश्मा ज्यादातर ईतर सकता है। त्राटक का ऄभ्यास लगातार आसनलए करना
जरूरी है, तानक भनवष्य में िश्मे का नम्बर र्ीघ्र ज्यादा नहीं बढ़ेगा। ऄथातत् जो व्यनक्त िश्मा लगाता है, ईसे भी त्राटक
का ऄभ्यास बराबर करते रहना िानहए।

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आसी प्रकार नजनका िश्मा ऊणात्मक वाला लगता है, ईन्हें भी आसी प्रकार से समझना िानहए। नकसी ने मझु े
य-ू ट्यब पर संदर्े देकर बताया था– ‚हमारे िश्मे का नम्बर 4.0-4.5 था, हमने कइ महीनों तक सयू त त्राटक का
ऄभ्यास नकया, मेरा िश्मा ईतर गया। मैंने नबन्दु व लौ त्राटक पर ऄभ्यास नहीं नकया था, सीधे सयू त त्राटक नकया था‛।
मैं आस प्रकार का तरीका नकसी को नहीं बताता हँ नक सीधे सयू त पर त्राटक करना िानहए। मैं सदैव नबन्दु पर त्राटक की
ही र्रुु अत करने को कहता ह,ँ नफर ऄन्त में सयू त पर त्राटक करने के नलये कहता ह।ँ नजनके िश्मे का नम्बर ज्यादा है,
ऄपने मागतदर्तक के सामने ही सयू त पर त्राटक का ऄभ्यास करें तो ऄच्छा है। िश्मे का नम्बर िाहे नजतना हो, नबन्दु पर
त्राटक सदैव लाभ देता है, आसका प्रभाव धीरे -धीरे ही ऄभ्यासी पर पड़ता है।

9. त्राटक द्वारा स्मरण शव‍त का बढ़ना और मवस्तष्क का विकास


त्राटक का सबसे पहले मन की िंिलता पर प्रभाव पड़ता है। जब नकसी वस्तु पर मन को ठहराने का प्रयास
करते हैं, तब ईसकी िंिलता पर सबसे पहले प्रभाव पड़ता है, ‍योंनक मन को सदैव से भागने की अदत पड़ी हुइ है।
आस िि ं लता को र्न‍त प्राण देते हैं। नित्त पर नस्थत ऄनत सक्ष्ू म रूप से वृनत्तयाँ, नित्त में स्पन्दन होने के कारण बाहर की
ओर ननकलती रहती हैं। नित्त सृनि ईन्मख ु हुअ बनहतमख ु ी रहता है। बनहमतख ु ी हुअ नित्त संसार में नलप्त रहता है। नित्त
से वृनत्तयाँ जब बाहर की ओर अती हैं, ईस समय वायु तत्त्व के स्पन्दन के द्रारा वृनत्त में ध‍का लगते ही बनहमख तु ी हुइ
वृनत्त अँखों के द्रारा तेजस् रूप में बाहर की ओर ननकलती है और बाहर ननकल कर िारों और फै ल जाती है। मगर
स्थलू पदाथों में नलप्तता के कारण मन एक पदाथत से दसू रे पदाथत की ओर भागता रहता है। यही नक्रया ऄनन्त काल से
होती िली अ रही है। मन जो एक पदाथत से दसू रे पदाथत की ओर भागता है, आस कायत में रजोगणु सहायता करता है।
रजोगणु का स्वभाव िंिलता व नक्रया करना है। ऄथातत् मन को प्राण तत्त्व व रजोगणु िंिल बनाये हुए है। बनहमतख ु ी
हुअ मन सक ं ु नित व मात्र थोड़ी सी सीमाओ ं में बँधा रहता है ऄथातत् भोग पदाथों के नवषय में ही सोिता रहता है।
जब मन को नकसी वस्तु पर नटकाने या बाँधने का प्रयास करते हैं तब मन ईस वस्तु को तो देखता ही है, मगर
साधक ऄन्दर से कुछ न कुछ सोिने लगता है। ये जो सोिता है वह मन ही तो है। जब धीरे -धीरे ऄभ्यास बढ़ता है, तब
मन को धीरे -धीरे ठहरने की अदत पड़ने लगती है। ईस समय रजोगणु का प्रभाव कमजोर पड़ने लगता है, मन के ठहरने
से प्राण की गनत भी ठहरने लगती है। प्राण की गनत कम होते ही मन और सक्ष्ू म व र्ि ु होने लगता है ‍योंनक ऄनत
सक्ष्ू म रूप से मन की बनहमख तु ता कम होने लगती है। ऐसी ऄवस्था में सत्वगणु का प्रभाव भी बढ़ने लगता है, रजोगणु व
तमोगणु का प्रभाव घटने लगता है तथा र्ि ु ता अने पर व्यापकता अने लगती है। नफर ऄभ्यास के ऄनसु ार वृनत्त में
र्ि
ु ता अने पर तत्त्वों के रंग क्रमर्ः नदखाइ देने लगते हैं।

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ऄभ्यासानसु ार त्राटक में जब सफलता नमलने लगती है, तब ऄभ्यास के समय सक्ष्ू म आनन्रयाँ बनहमख तु ता
छोड़कर ऄतं मख तु ी होने का प्रयास करने लगती हैं। मन भी कुछ िणों के नलए ऄतं मख तु ी होने का प्रयास करने लगता है,
ईस समय साधक का मनस्तष्क ऄनधक सनक्रय होने लगता है। मनस्तष्क की सषु प्तु पड़ी कोनर्काएं नक्रयार्ील होने का
प्रयास करने लगती हैं, ‍योंनक स्थल ू र्रीर और सक्ष्ू म र्रीर के बीि की कड़ी मनस्तष्क ही है। यनद बनहमख तु ी हुइ स्थलू
आनन्रयाँ सक्ष्ू म आनन्रयों में ऄतं मतख
ु ी होने का प्रयास करें गी, तब मन भी ऄंतमतख
ु ी होने का प्रयास करे गा। नफर मनस्तष्क
ननश्चय ही पहले की ऄपेिा ऄनधक नक्रयार्ील होने लगेगा ‍योंनक वह स्थल ू है और सक्ष्ू म रूप से कायत भी करता है।
साधक जैसे-जैसे ऄभ्यास ज्यादा करता है, वैसे-वैसे बन्द पड़ी मनस्तष्क की कोनर्काएँ जाग्रत व नक्रयार्ील होने
लगती हैं। सामान्य परुु षों की ऄपेिा त्राटक में पारंगत व्यनक्त का मनस्तष्क ऄनधक नवकनसत होता है।
त्राटक का ऄभ्यास मन को एकाग्र करने के साथ-साथ स्मरण र्न‍त को भी बढ़ाता है, स्मरण र्न‍त को
बढ़ाने के नलये त्राटक का ऄभ्यास एक बहुत ही ऄच्छा तरीका है। आसका ऄभ्यास नवद्यानथतयों को व कायातलय में काम
करने वालों को बहुत ही लाभदायक होता है। जो व्यनक्त मनस्तष्क सम्बन्धी कायत करता है, कुछ महीनों बाद ईस कायत
के कुछ ऄर् ं भलू जाता है ऄथवा कुछ बातें भलू जाता है, यह प्रनक्रया स्वाभानवक है। भल
ू जाने का कारण यह है–
जब नकसी व्यनक्त को नकसी पदाथत के नवषय में जानकारी होती है, जैसे नवद्याथी पढ़ाइ करता है, कायातलय अनद का
काम करता है तथा ऄन्य सभी प्रकार के सासं ाररक ज्ञान अनद, ईसके मनस्तष्क की कोनर्काओ ं में वह जानकारी भर
जाती है। नफर वह व्यनक्त जब याद करता है नक ऄमकु नदन ‍या कायत नकया था, ईस समय मनस्तष्क की वही कोनर्का,
नजसमें आसका ज्ञान भरा हुअ है, वह नक्रयार्ील हो जाती है। तब ईस व्यनक्त को याद अ जाता है, ईस नदन ऄमक ु
कायत नकया था। आसी प्रकार जब नवद्याथी पढ़ाइ करता है, तब वह पढ़ा हुअ सब कुछ कोनर्काओ ं में भर जाता है। जब
नवद्याथी याद करता है नक ईस समय ‍या पढ़ा था, तब सब कुछ याद अ जाता है। मनस्तष्क की वही सक्ष्ू म कोनर्काएँ
नक्रयार्ील हो जाती हैं।
कभी-कभी ऐसा भी होता है नक बहुत परु ानी बातें भल ू जाते हैं, िाहे नजतना याद करो, याद नहीं अता है।
आसी प्रकार नवद्याथी जब याद करता है, ईसने पहले ‍या पढ़ा था, ईसे याद नहीं अता है। मनष्ु य जानत का स्वभाव होता
है, वह बहुत सी बातें भलू जाता है, ऄथवा जो बातें परु ानी होती जाती हैं, वह भलू ता जाता है, नफर याद नहीं अती हैं।
ईस समय मनस्तष्क की वह सक्ष्ू म कोनर्का नजसमें ये सारी बातें या ज्ञान भरा होता है, वह कोनर्का बन्द हो जाती है,
ईस कोनर्का के न खल ु ने से ऄथवा नक्रयार्ील न होने से, वह बात नफर याद नहीं अती है। ऄगर भनवष्य में वह
कोनर्का नक्रयार्ील होकर खल ु गयी, तब ईसमें भरा हुअ सारा ज्ञान याद अ जाता है। कइ बार ऐसा भी होता है,
ऄभी-ऄभी पढ़ा था, वह भी भल ू गया याद ही नहीं अ रहा है। ऐसी ऄवस्थाओ ं में मनस्तष्क की सक्ष्ू म कोनर्काओ ं का
न खल ु ना ही है।
बहुत से मनष्ु यों की याददाश्त बहुत ही तीव्र होती है, ईन्हें बहुत ही पहले की बातें याद रहती हैं ऄथवा प्रयास
करने पर बातें याद अ जाती है। मगर बहुत से मनष्ु य ऐसे भी होते हैं, ईनकी याददाश्त बहुत ही कमजोर होती है, वो

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ऄ‍सर भल ू जाते हैं, नफर ईन्हें याद भी नहीं अती हैं। आन सबका कारण ईनके मनस्तष्क की सक्ष्ू म कोनर्काएँ ही हैं।
नकसी के मनस्तष्क की कोनर्काएँ नक्रयार्ील बनी रहती हैं, नकसी की नक्रयार्ील नहीं रह पाती हैं ऄथवा हो पाती है।
आसी के ऄनसु ार नकसी की स्मरण र्न‍त तेज होती है और नकसी की स्मरण र्न‍त कमजोर होती है।
जो व्यनक्त त्राटक का ऄभ्यास करता है, ईसकी स्मरण र्न‍त तीव्र रहती है। आसका कारण आस प्रकार से है–
जब मनस्तष्क की नकसी कोनर्का में ज्ञान भर जाता है, नफर वह नकसी कारण से बन्द हो गयी या बहुत नदनों तक ईस
कोनर्का को नक्रयार्ील होने का ऄवसर नहीं नमला तो बन्द हो जाती है। नफर त्राटक के ऄभ्यास से ऐसी कोनर्काएँ
खल ु ने लगती हैं तथा नयी कोनर्काएँ भी नक्रयार्ील होने लगती हैं नजनसे ऄभी तक कायत ही नहीं नलया गया है।
त्राटक का ऄभ्यास मनस्तष्क की कोनर्काओ ं को नक्रयार्ील नकये रहता है। ऐसी ऄवस्था में ईसकी स्मरण र्न‍त बनी
रहती है तथा ऄन्य सषु प्तु पड़ी कोनर्काओ ं को भी जाग्रत करने का प्रयास होता रहता है। ऐसी ऄवस्था में अन्तररक
नवकास होने लगता है। नजतना ऄभ्यास के द्रारा अन्तररक नवकास होगा, ईतना ही मनस्तष्क भी नवकनसत होगा।
आसनलए नवकनसत हुए मनस्तष्क में स्मरण र्न‍त भी तीव्र रहती है, ‍योंनक त्राटक का ऄभ्यास मनस्तष्क की सक्ष्ू म
कोनर्काओ ं को बन्द नहीं होने देता है। यह ऄभ्यास नवद्यानथतयों के नलये बहुत ही ऄच्छा है। र्ोधकतात छात्रों को तो
आसका ऄभ्यास ऄवश्य ही करना िानहए, ‍योंनक यह ऄभ्यास मनस्तष्क की सक्ष्ू म कोनर्काओ ं को खोल देता है, आससे
ईसका पढ़ऺा हुअ सारा ज्ञान ताजा बना रहता है।

10. अभ्यास के बाद आँखों पर ठण्डे पानी के छींटे


साधक जब त्राटक का ऄभ्यास करने की र्रुु अत करता है, तब मात्र एक-डेढ़ नमनट बाद ईसकी अँखों में
धीरे -धीरे जलन होने लगती है। आसके कुछ िणों बाद अँखों में अँसू अने लगते हैं। मैं पहले बता िक ु ा ह,ँ जब आस
प्रकार अँखों में अँसू अये, तब मल ु ायम कपड़े से जो पहले से तह लगाकर रखा है, ईससे अँखों से बहते हुए अँसू
धीरे -धीरे पोंछ ले। ईस समय अँखें बन्द ही रहनी िानहए। ऄगर अँखों में ऄब भी जलन हो रही है, तब कुछ देर तक
अँखों को बन्द नकये रहें। आससे अँखों की जलन कम हो जायेगी। कुछ िणों बाद त्राटक का ऄभ्यास करने के नलए
नफर अँखों को खोल ले और त्राटक का ऄभ्यास करने लगे। आसी प्रकार ऄभ्यास करते रहना िानहए। जब नफर अँखों
में जलन होने लगे, तब नफर अँखों को बन्द कर ले और कुछ समय तक बन्द नकये रहे। जब अँखों में जलन कम हो
जाये, तब नफर पहले जैसा ऄभ्यास करने लगें। ऄभ्यास के समय यही क्रमर्ः करते रहें, आसी प्रकार ऄभ्यास का समय
बढ़ता जाता है। नबन्दु पर त्राटक करते समय अँखों में जलन थोड़ी कम होती है। लौ त्राटक पर ऄभ्यास करते समय
अँखों पर जलन थोड़ी ज्यादा होती है। सयू त पर ऄभ्यास करते समय अँखों में जलन सबसे ज्यादा होती है, ‍योंनक सयू त
की नकरणें सीधे अँखों पर पड़ऺती हैं तथा िेहरे पर भी सयू त की नकरणें पड़ती हैं, आसनलए अँखों के साथ िेहरा भी गमत
हो जाता है।

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जब साधक त्राटक का ऄभ्यास करना बन्द कर देता है, तब भी ईसकी अँखों में जलन हो रही होती है तथा
अँखें भी लाल सी होने लगती हैं। आस समय अँखों में जलन के कारण थोड़ी पीड़ा सी हो रही होती है। हमने कुछ
मागतदर्तकों को देखा है, नजनका कहना है नक त्राटक का ऄभ्यास करने के बाद अँखों की जलन को र्ान्त करने के
नलये अँखों में ठण्डे पानी के छींटे मारने िानहए। अँखों को धोने के बाद या छींटे मारने के बाद, महँु का भरा हुअ
पानी ईगल दें, आससे अँखों की जलन र्ान्त हो जायेगी। ऐसा ही त्राटक के ऄभ्यासी ऄ‍सर नकया करते हैं।
मैंने स्वयं भी त्राटक का ऄभ्यास बहुत नकया है। सबसे ज्यादा सयू त पर त्राटक नकया है, सयू त पर त्राटक कइ वषों
तक नकया है। आसनलए ऄभ्यास के समय नभन्न-नभन्न प्रकार की ऄनभु नू तयाँ हुइ हैं। मैंने कइ साधकों को त्राटक का
ऄभ्यास करवाया है तथा त्राटक के महत्त्व के नवषय में समझाया है। ईन साधकों को त्राटक का ऄभ्यास करवाने के
बाद अँखों पर ठण्डे पानी के छींटे मारने से मना कर नदया था। आसनलए हमारे द्रारा नसखाये साधक कभी भी ठण्डे पानी
के छींटे नहीं मारते है और न ही ठण्डे पानी से महँु धोते हैं। ऐसा मैं आसनलए करवाता हँ तानक ईन सभी ऄभ्यानसयों को
जलन सहने की अदत बने। लौ त्राटक से अँखों में जलन तब ज्यादा होती है, जब ईसका ऄभ्यास ऄधं कार में नकया
जाता है। नफर ईसे सयू त पर त्राटक का ऄभ्यास करते समय ज्यादा परे र्ानी नहीं होती है, ‍योंनक साधक को अँखों की
जलन सहने की अदत सी बन जाती है। साधक जब सयू त त्राटक का ऄभ्यास ज्यादा करे गा, तब ईसकी अँखों में ही
नहीं बनल्क नसर में भी गमी बढ़ने लगती है। ऄगर साधक को त्राटक में महारत प्राप्त करनी है, तब ईसे सयू त त्राटक पर
ऄभ्यास बढ़ाना ही होगा। ईस समय ईसे नसर में गमी सहन करनी ही होगी। आस प्रकार का ऄभ्यास सदैव मागतदर्तक की
देख-रे ख में करना िानहए, नहीं तो अँखें खराब होने का भय बना रहता है। सयू त त्राटक का ऄभ्यास बहुत
सावधानीपवू क त करना िानहए, नहीं तो नक ु सान हो सकता है। ऐसी ऄवस्था में साधक के नसर में गमी बढ़ जाने के
कारण नवर्ेष प्रकार की ऄवस्था में बैठा रहता है, अँखें खल ु ी की खल ु ी बनी रहती हैं, ऄथातत् अँखों में नस्थरता बनी
रहती है।
त्राटक के ऄभ्यास के बाद जलन के कारण ठण्डे पानी के छींटे नहीं मारने िानहए– ऐसा ईन्हें करना िानहए,
नजन्हें ऄच्छा ऄभ्यासी बनना है। ऄनधक ऄभ्यास करने वाले साधकों को कभी-कभी ऐसा लगता है, मानो अँखों की
बाहरी परत पर जख्म से हो गये हैं, मगर जख्म नहीं होते हैं। ऐसी ऄवस्था में खल
ु ी अँखों में ठण्डे पानी के छींटे न मारें ।
ऄगर अँखों में ज्यादा जलन हो रही है, तब आस जलन को र्ान्त करने के नलये छोटे साइज का साफ-सथु रा कपड़ा ले
लें, ऄथवा रूमाल भी ले सकते हैं। आस कपड़े को पानी में गीला कर ले, नफर ईसे ननिोड़ ले और िौड़ी पट्टी सी बना
लें। नफर ऄभ्यासी लेट जाये और अँखें बन्द कर ले, ईस गीली पट्टी को अँखों के उपर रख लें, और र्ान्त बना रहे।
कुछ समय बाद ऄभ्यासी के अँखों की जलन धीरे -धीरे कम होने लगेगी। आसी प्रकार रोजाना अँखों पर गीली पट्टी रख
नलया करें ।
साधकों! त्राटक के ऄभ्यास में पारंगत होने के नलये अँखों पर पानी के छींटे न मारे और न ही ठण्डे पानी से
महँु धोये। आस प्रकार कठोर ऄभ्यास करने वाला साधक भनवष्य में त्राटक द्रारा ज्यादा मात्रा में र्न‍तपात कर सकता है।

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ऄगर नकसी ऄभ्यासी का लक्ष्य नसफत नबन्दु त्राटक ही है ऄथवा ऄपनी दृनि दोष ठीक करने के नलये त्राटक कर रहा है,
तब वह ऄभ्यास करने के बाद ठण्डे पानी के छींटे मार सकता है, ‍योंनक ईसका लक्ष्य दरू गामी नहीं है। मगर गरुु पद की
आच्छा रखने वाले साधकों को अँखों की जलन सहन करनी िानहए। आस प्रकार का ऄभ्यास गरुु देव की देख-रे ख में ही
करना िानहए।

11. भीड़ पर त्राटक का प्रयोग


त्राटक के ऄभ्यासी जब पेड़, तारे और सयू त अनद पर ऄभ्यास करते-करते पररप‍व हो जाते है, तब ईनके
ऄन्दर दरू तक त्राटक के द्रारा ऄपने प्रभाव में लेने की सामर्थयत अने लगती है। दरू के लोगों को ऄपने प्रभाव में लेने के
नलये दरू की वस्तओ ु ं पर ऄभ्यास नकया जाता है, आस प्रकार के ऄभ्यास के साथ-साथ दरू नस्थत व्यनक्त के उपर त्राटक
का ईपयोग करते रहना िानहए ‍योंनक आस प्रकार के ऄभ्यास में सफलता थोड़ी देर में नमलती है। त्राटक र्न‍त को
प्रयोग करने का तरीका र्रुु अत में वही है, नजसे मैं पहले नलख िक ु ा ह।ँ दरू जाते हुए व्यनक्त पर पीछे से ईसके नसर के
नपछले वाले भाग पर अँखों से ननकली हुइ तेजस्वी नीली नकरणों के द्रारा ऄपनी आच्छा र्न‍त को प्रवेर् करायें ऄथातत्
नसर के नपछले भाग में ईन तेजस्वी नीली नकरणों को प्रवेर् करा दें, तब ऄपना संदर् े ईसके मनस्तष्क को भेजें। र्रुु अत
में अपके संदर् े का प्रभाव नबल्कुल नहीं पड़ेगा, अप बार-बार आसी संदेर् को भेजते रहें। ऐसे कुछ नदनों तक करने के
बाद ईस व्यनक्त पर प्रभाव पड़ने लगेगा। आसी प्रकार दरू सामने से अपकी ओर अते हुए व्यनक्त पर प्रयोग करें , ऐसा
करते रहने पर धीरे -धीरे अपका प्रयोग सफल होने लगेगा। तब अप देखगें े नक जैसा अपने संदर् े नदया था, वह व्यनक्त
वैसा ही कर रहा है। आस जगह पर एक जरूरी बात बताना िाहगँ ा– हो सकता है, आस प्रकार के प्रयोग का सभी व्यनक्तयों
पर एक जैसा प्रभाव न पड़े ऄथातत् कुछ व्यनक्तयों पर अपके प्रयोग का ऄसर होगा, कुछ व्यनक्तयों पर अपके प्रयोग
का ऄसर नहीं होगा। आसका कारण है– सभी व्यनक्तयों के नित्त पर र्ि ु ता और ऄर्ि ु ता की कमातनसु ार नभन्नता होती
है। आस प्रकार के प्रयोग कइ महीनों तक करना होगा, तभी सफलता नमल पाना संभव होगा। साधक को ईसके प्रयोग
ऄसफल हो जाने पर हतार् नहीं होना िानहए, बनल्क लगे रहना िानहए।
आस प्रकार के प्रयोग में सफलता और ऄसफलता स्वयं की योग्यता के उपर होता है– प्रयोगकतात की
अध्यानत्मक ईन्ननत नकतनी हुइ है, ईसके नित्त की र्ि ु ता का स्तर ‍या है, संसार में ईसका व्यवहार कै सा है, वह
ऄपना भौनतक जीवन कै से व्यतीत कर रहा है, ‍या साधक ब्रह्मियत का पालन करता है। यनद ईपरोक्त बातें ऄनक ु ू ल हैं,
तब ईसका संकल्प बहुत ही र्न‍तर्ाली होगा। उपर जो नवनध मैंने नलखी है, वह सम्मोहन के नलए ज्यादा ईपयोगी है।
मगर श्रेष्ठ योगी परुु षों के नलये ऐसा करने की अवश्यकता नहीं पड़ेगी नक वह ऄपना प्रयोग आस प्रकार का करें । योगी
परुु षों का मागत अध्यानत्मक होता है। इश्वर की ओर ईन्मख ु हुअ योगी सदैव मानव कल्याण में लगा रहता है।
ईच्िावस्था को प्राप्त योगी प्रविन करते समय ईपनस्थत भीड़ पर िारों ओर दृनि दौड़ाते ही ऄथातत् देखते ही भीड़ को

त्राटक 101
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अकनषतत कर लेता है, िाहे ईसने त्राटक का ऄभ्यास बहुत ज्यादा न नकया हो। ईसकी सफलता का राज़ है– ईसके
द्रारा नकया गया योगाभ्यास। ईसके नित्त में नसफत प्राणी जानत के नलये कल्याण करने की सोि होती है।
आसनलए मैंने कइ बार नलखा है, नजस साधक को योग में ईच्िावस्था प्राप्त है, ईसके द्रारा नकया गया त्राटक
ननश्चय ही र्न‍तर्ाली होता है। आसका कारण यह है– ईसके नित्त पर नस्थत वृनत्तयाँ ऄत्यन्त र्ि ु , सानत्वक और
ऄत्यन्त व्यापक होती हैं। जब योगी द्रारा ऐसी वृनत्तयाँ बाहर ननकलती हैं, तब सारे कायत ईसी की आच्छानसु ार संपन्न
होने लगते हैं।
मैं ऐसे कुछ योनगयों को जानता ह,ँ जब वह प्रविन करते थे, ईनके अँखों के द्रारा ननकली तेजस् रूपी वृनत्तयाँ
वहाँ ईपनस्थत सम्पणू त व्यनक्तयों को प्रभानवत करती थी। लोग ईनका प्रविन सनु ते ही रह जाते थे। कुछ योगी ऄपना
प्रविन सनु ाते समय अँखों की दृनि के द्रारा र्न‍तपात करते थे। आससे साधकों को लाभ भी होता था और ईनका
प्रविन नर्ष्यगण बड़े ध्यान से सनु ते थे तथा अननन्दत होते थे। सन् 1893 में स्वामी नववेकानन्द जी ऄमेररका गये थे,
वहाँ पर प्रविन करते समय ईन्होंने त्राटक द्रारा सम्पणू त भीड़ पर र्न‍तपात नकया था, त्राटक द्रारा प्रभानवत हुइ सम्पूणत
भीड़ ईनके प्रविन को मत्रं मग्ु ध सी होकर सनु ती रही। कुछ लोग तो ईनके प्रविन को सनु कर आतने प्रभानवत हुयेक नक
वह स्वामी जी के ऄनयु ायी ही बन गये। बाइबल में नलखा है– यीर्ु जहाँ भी जाते थे, भीड़ ईनके पीछे -पीछे िल देती
थी। कुछ सन्त ऐसे भी हो गये है नजन्होंने त्राटक का ऄभ्यास नहीं नकया, मगर ईनकी अँखों द्रारा ननकली नकरणों से
संसारी व्यनक्त बहुत प्रभानवत हो जाते थे, वह ऄपनी सधु -बधु खो जाते थे, नफर ईनके ऄनयु ायी बन जाते थे।
साधकों हमेर्ा याद रखना– भीड़ पर या जहाँ ज्यादा जन समदु ाय हो, वहाँ पर त्राटक र्न‍त का प्रयोग तभी
नकया जाता है, जब स्वयं ईसे अँखों के द्रारा नीले रंग की नकरणें ननकलती हुइ नदखाइ दें, और दरू जाकर ईन नीली
नकरणों का धब्बा बना नदखाइ दे, तभी भीड़ पर प्रभाव पड़ता है। ऄभ्यानसयों को नबन्दु त्राटक करते समय कुछ ही नदनों
बाद नीले रंग की तेजस्वी नकरणें अँखों से ननकलती हुइ नदखाइ देती हैं। आन नीली नकरणों से नकसी पर कोइ प्रभाव नहीं
पड़ेगा। साधक का सयू त त्राटक पर कइ महीनों या सालों का ऄभ्यास होना िानहए, आससे वह नीले रंग की नकरणें धीरे -
धीरे ऄभ्यास द्रारा सक्ष्ू म होती जाती हैं। जैसे-जैसे सक्ष्ू म होती जायेगीं, वैसे-वैसे नकरणों में िमकीलापन बढ़ता जायेगा।
वही सक्ष्ू म नकरणें ही र्न‍तर्ाली होती हैं। स्थलू ता और सक्ष्ू मता का ऄन्तर होता है– नजतना घनत्व कम होता जायेगा,
वह ईतना ही सक्ष्ू म और व्यापक होता जायेगा। ईसी सक्ष्ू मता और व्यापकता के ऄनसु ार र्न‍त बढ़ती जायेगी।

12. त्राटक का अभ्यास करते समय मन्त्र जाप नहीं करना चावहए
त्राटक के नवषय में पहले नलख िक
ु े हैं– आसका ऄथत होता है मन को नकसी वस्तु पर नटकाना ऄथवा मन को
बाँधना। मन का स्वभाव होता है, वह एक जगह पर ठहरता नहीं है, आधर-ईधर भागता रहता है, आसी भागते हुए मन को

त्राटक 102
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एक जगह पर ठहराने के नलये त्राटक का ऄभ्यास करते हैं। जब त्राटक का ऄभ्यास नकया जा रहा हो, ईस समय मन के
ऄन्दर ऄभ्यासी को नकसी प्रकार के नविार नहीं अने देना िानहए, और न ही ईस समय नकसी प्रकार का निन्तन करें ।
यनद ऄभ्यासी ऐसा करे गा, तो त्राटक का ऄभ्यास कै से होगा ‍योंनक त्राटक के ऄभ्यास के समय मन की िि
ं लता को
रोकने के नलये प्रयास नकया जाता है। ऄगर ईस समय ऄभ्यासी कुछ सोिेगा, ऄथवा नविार अयेग,ें तब आन दोनों में
नवरोधाभास हो जाएगा, ‍योंनक नविार अने से मन और िंिल होगा, नफर वह ठहरे गा कै से?
कुछ लोगों ने मझु से पछ
ू ा– ‍या त्राटक का ऄभ्यास करते समय हम मत्रं जाप कर सकते हैं? ईत्तर– मत्रं जाप
नहीं कर सकते हैं। मत्रं जाप करते समय स्पि रूप से मन की िंिलता बढेऺगी, आसनलए ऐसा नहीं करना िानहए। कुछ
लोगों का कहना है– जब मैं त्राटक करता ह,ँ तब नविार बहुत अते हैं। ईत्तर में यह कहगँ ा– र्ायद वह त्राटक का
ऄभ्यास सही ढंग से नहीं कर रहे हैं, आसनलए ईन्हें गरुु का मागतदर्तन लेना िानहए। नजस समय त्राटक का ऄभ्यास नकया
जा रहा हो, ईस समय साधक ऄगर नबन्दु पर त्राटक कर रहा है, तो ईसे नसफत नबन्दु को ही देखना िानहए, आधर-ईधर
नकसी वस्तु की ओर नहीं देखना िानहए और न ही मन के ऄन्दर कुछ और सोिना िानहए। त्राटक करते समय ईसकी
दृनि नसफत नबन्दु पर ही हो। ईस समय वह है और नबन्दु है, तीसरा और कोइ नहीं है। यही सोिकर टकटकी लगाये रखे
और दृढ़तापवू क त नटका रहे।
कुछ ऄभ्यानसयों ने मझु े बताया– जब नबन्दु पर त्राटक का ऄभ्यास करते हैं, तब ईन्हें नबन्दु के अस-पास कुछ
नित्र से बनते नदखाइ देते हैं। साधकों, जब त्राटक का ऄभ्यास करते हैं, तब ईन्हें नबन्दु के अस-पास नकसी प्रकार का
नित्र नहीं नदखाइ देना िानहए। नफर भी यनद नित्र नदखाइ दे रहे हैं, तब वह स्वयं ऄपने अपकी जाँि करें , कहीं न कहीं
साधक को ऄपने ऄन्दर त्रनु ट ऄवश्य नमलेगी। ऐसी ऄवस्था में स्वयं की जाँि करते समय पायेगा नक ईसके ऄन्दर
नकसी न नकसी प्रकार के नविार अ रहे होंगे, वही नविार नित्र या नकसी के स्वरूप के रूप में नदखाइ दे रहे हैं। जब
ऄभ्यासी धीरे -धीरे सयं मपवू कत सही ढगं से ऄभ्यास करता रहेगा, तब कुछ समय बाद आस प्रकार के नित्र या अकृ नतयाँ
नदखाइ देनी बन्द हो जाएँगी।
साधकों, हमेर्ा याद रखना– त्राटक का ऄभ्यास करते समय नकसी प्रकार नविार न लायें, ऄथातत् ऄन्य नवषय
का सक्ष्ू म रूप से भी निन्तन न करें और न ही कोइ मत्रं ोच्िारण करें । जब त्राटक का ऄभ्यास नकसी भी वस्तु पर (िाहे
नबन्दु हो, लौ हो अनद) नकया जा रहा है, ईस समय ईस वस्तु पर कोइ अकृ नत नहीं बननी िानहए। यह साधक के ही
नविार होते हैं। जब साधक दपतण पर त्राटक करता है, ईस समय कुछ अकृ नतयाँ नदखाइ दे सकती हैं। पहले तो ईसे ईसी
के िेहरे की कुरूपता नदखाइ देगी, नफर ऄन्य प्रकार के कुछ नित्र व अकृ नतयाँ नदखाइ देंगी। कुछ नदनों तक ऄभ्यास
करने के बाद अकृ नतयाँ नदखाइ देनी बन्द हो जाती हैं। कभी-कभी साधक को जब वह ऄभ्यास नहीं कर रहा होता है,
तब अँखें बन्द करने पर मनस्तष्क के ऄन्दर नवनभन्न प्रकार के नवनित्र से रंग नदखाइ दे जाते है। ये रंग पाँिों तत्त्वों के रंग
होते हैं।

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13. ब्रह्मचारी द्वारा त्राटक का प्रयोग
त्राटक का ऄभ्यास कोइ भी कर सकता है, ‍योंनक ईससे सभी को लाभ होता है। बहुत से कायत ऐसे होते हैं,
नजन्हें दसू रे धमत वाले स्वीकार नहीं करते हैं। ईनका कहना होता है– यह कायत ऄमकु धमत वालों के नलए है, हम आसे
स्वीकार नहीं कर सकते हैं। त्राटक नकसी धमत नवर्ेष से सम्बन्ध रखने वाला नहीं है। आसका ऄभ्यास नकसी भी धमत
वाले कर सकते हैं। आसे ऄभ्यास करने वाला िाहे ऄध्यात्म पर िलने वाला हो, िाहे ऄध्यात्म से रनहत हो, िाहे पढ़ा-
नलखा हो, िाहे ऄनपढ़ हो, िाहे बच्िा हो 10-12 वषत का, िाहे 70 वषत का वृि पुरुष हो, त्राटक सभी के नलये
लाभदायक है। त्राटक का ऄभ्यास सम्पणू त मानव जानत के नलये ईपयोगी है। आसके ऄभ्यास से स्थल ू व सक्ष्ू म दोनों
प्रकार के लाभ प्राप्त नकये जाते हैं। वततमान समय में बहुत से लोग आसका ऄभ्यास करके लाभ प्राप्त कर रहे हैं।
त्राटक के ऄभ्यास के साथ-साथ साधक की योग में जो ऄवस्था होती है, ईसी के ऄनसु ार र्न‍तपात का
प्रभाव दसू रे पर पड़ता है। एक साधक दसू रे साधक से ऄपनी तलु ना करता है नक मैंने भी ईस साधक के बराबर ऄभ्यास
नकया है, नफर ईसके ऄन्दर र्न‍तपात करने की श्रेष्ठता ‍यों है। नित्त वृनत्त की र्ि
ु ता और व्यापकता के ऄनसु ार ही
साधक के मन की ऄवस्था होती है। साधक के मन के स्तर के ऄनसु ार ही त्राटक के ऄभ्यास द्रारा र्न‍तपात का प्रभाव
दसू रे पर पड़ता है, यही महत्त्वपूणत बात होती है।
मनष्ु य के जीवन में ब्रह्मियत का महत्त्व बहुत होता है। ऄनधकतर लोग ब्रह्मियत की ओर ध्यान नहीं देते हैं,
‍योंनक ब्रह्मियत का महत्त्व समझते ही नहीं है। सि तो यह है– ब्रह्मियत ही जीवन है। बिपन से ही बच्िे गलत संगत में
पड़कर ब्रह्मियत का पालन नहीं करते हैं। ब्रह्मियत का पालन करना ऄनत अवश्यक है, ‍योंनक ब्रह्मियत का पालन करने
वाले की स्मृनत ऄत्यन्त तीव्र होती है। बनु ि भी पैनी होती है, वह ज्यादातार ननरोगी रहता है। ऐसे साधकों का मन दृढ़
ननश्चयी होता है। ईसके ऄन्दर ननडरता सक्ष्ू म रूप से नवद्यमान रहती है। कामवासना के नविार परे र्ान नहीं करते हैं,
आसनलए आस नवषय पर ईसकी सोि सदैव ऄच्छी रहती है तथा सक्ष्ू म रूप से र्न‍तर्ाली रहता है। जो लोग ब्रह्मियत का
पालन नहीं करते हैं, ईनकी सबसे पहले स्मृनत कमजोर पड़ जाती है, मन में िि ं लता बढ़ जाती है तथा कुनण्ठत नविार
अने लगते हैं, र्रीर दबु ला पतला रोनगयों की तरह होने लगता है, बढ़ु ापा समय से पहले अ जाता हैं।
ब्रह्मियत का प्रभाव त्राटक के ऄभ्यास पर भी पड़ता है। ऐसा ऄभ्यासी भनवष्य में अध्यानत्मक र्न‍त से
ऄनधक यक्तु होते हैं। आसी कारण ऐसे साधक के द्रारा नकया गया र्न‍तपात ऄत्यन्त सर्क्त होता है। ब्रह्मियत का पालन
करने वाला ऄभ्यासी जब र्न‍तपात करता है, तब ईसके संकल्प के ऄनसु ार नजस पर र्न‍तपात हुअ है, ईसके ऄन्दर
वह र्न‍त कायत करने में सफल होती है। गरुु पद पर बैठने वाले व्यनक्त को ब्रह्मियत का पालन करना िानहए, तानक
ऄपने नर्ष्यों पर ऄनधक से ऄनधक र्न‍तपात कर सके । पवू तकाल में ब्रह्मियत का पालन ऊनष, मनु न, तपस्वी और योगी
अनद नकया करते थे, आसीनलए वह र्न‍तर्ाली हुअ करते थे तथा सभी प्रकार के कायों में सफल होते थे। ब्रह्मियत का
पालन करने के कारण वह नदव्यास्त्रों का प्रयोग करने में ननपणु हुअ करते थे। आसी प्रकार ब्रह्मिारी योगी ऄपने नर्ष्यों

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पर नवर्ेष रूप से र्न‍तपात करके ईनके अध्यानत्मक मागत को और सरल कर देते थे। गृहस्थ धमत में रहकर यथासंभव
ब्रह्मियत का पालन करना िानहए। आसीनलए बहुत से योगी गृहस्थ में रहकर भी श्रेष्ठता प्राप्त कर िक
ु े हैं। मगर गृहस्थी में
अबि साधक या योगी की ऄपेिा ब्रह्मिारी योगी ऄनधक र्न‍तर्ाली होता है। हे ऄभ्यानसयों! त्राटक का ऄभ्यास
करते समय ब्रह्मियत का पालन ऄवश्य करना िानहए। आससे भनवष्य में र्न‍तपात करने में ननपणु होंगे, तथा नर्ष्यों की
साधना में अये ऄवरोधों को सरलता से सलु झा देंगे ऄथवा हटा देंग।े

14. त्राटक के अभ्यास से वदव्य दृवि को खोलना


त्राटक का ऄभ्यास नदव्य दृनि खोलने में सहायक होता है। पहले नदव्य दृनि के नवषय में थोड़ा समझ लेना
िानहए। आस स्थल ू र्रीर के ऄन्दर सक्ष्ू म र्रीर व्याप्त रहता है और सक्ष्ू म र्रीर के ऄन्दर कारण र्रीर व्याप्त रहता है।
नजस प्रकार स्थल ू र्रीर में दो अँखें होती हैं ईसी प्रकार सक्ष्ू म र्रीर में भी दो अँखें होती हैं, जो सक्ष्ू म पदाथों को देख
लेने में सामर्थयतवान होती हैं। सक्ष्ू म र्रीर में भृकुनट के उपर खड़े अकार में एक अँख होती है। आसी अँख को नदव्य
दृनि या तीसरा नेत्र कहते हैं। यह तीसरा नेत्र बन्द रहता है। यह तीसरा नेत्र (नदव्य दृनि) प्रत्येक मनष्ु य के ऄन्दर सक्ष्ू म
र्रीर में नवद्यमान रहता है। आसको नदव्य दृनि आसनलए कहते है ‍योंनक आस नेत्र के ऄन्दर ऄत्यन्त सक्ष्ू म व नदव्य पदाथों
को देख लेने की अश्चयतजनक िमता होती है। यनद कोइ मनष्ु य आस नेत्र को खोलकर आससे कायत लेने का प्रयास करे , तो
ईसके ऄन्दर योग्यतानसु ार देखने की िमता अती है। जब साधक आस नेत्र से कायत लेता है तब ईसकी योग्यतानसु ार
सक्ष्ू म पदाथत नदखाइ देने लगते हैं। योग के ऄभ्यास के ऄनसु ार नदव्य दृनि से भतू और भनवष्य भी देख सकते हैं।
यह नदव्य दृनि सक्ष्ू म र्रीर में मस्तक पर होती है। आसके नवकास के नलए ऄभ्यासी को ऄतं मख
तु ी होकर सक्ष्ू म
र्रीर में मस्तक के िेत्र को नवकनसत करना होगा। योग के ऄभ्यास द्रारा जब साधक के िार िक्र खल ु जाते हैं, नफर
कण्ठिक्र पर साधना िलती है। कुछ सालों तक साधना करने के बाद साधक को ध्यानावस्था में खडेऺ अकार में एक
अँख नदखाइ देती है, कभी-कभी यह अड़े अकार में भी नदखाइ देती है। यही नदव्य दृनि होती है। ईस समय नदव्य दृनि
(तीसरी अँख) नकसी प्रकार का कायत नहीं कर सकती है। नदव्य दृनि तभी कायत करती है, जब साधक का कण्ठिक्र
खलु जाता है। जब साधक की साधना कण्ठिक्र पर िल रही हो, ईस समय वह ऄगर त्राटक का ऄभ्यास करता है तब
नदव्य दृनि खल ु ने में र्ीघ्र सहायता नमलती है। कइ वषों के कठोर ऄभ्यास के बाद जब कण्ठिक्र खल ु ता है तब भी
नदव्य दृनि में कायत करने की िमता साधक की साधना के ऄनसु ार होती है। ऐसी ऄवस्था में त्राटक का ऄभ्यास
ननयनमत करते रहना िानहए, आससे नदव्य दृनि ऄनधक नक्रयार्ील होगी।
सभी प्रकार के त्राटक का ऄभ्यास नदव्य दृनि की कायत िमता बढ़ाने के नलए ईपयक्त ु है, मगर आसे ऄनधक
नक्रयार्ील करने के नलए तथा ऄनधक कायत िमता बढ़ाने के नलए दपतण त्राटक सवतश्रेष्ठ है। आस कायत के नलए दपतण पर

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ऄनधक से ऄनधक त्राटक का ऄभ्यास करना िानहए। दपतण पर त्राटक करते समय र्रुु अत में थोड़ा डर सा लगता है,
‍योंनक स्वयं ऄभ्यासी का िेहरा कुरूप सा नदखाइ देता है। कुछ नदनों तक ऄभ्यास करने के बाद ऄभ्यास के समय
दपतण पर कुछ अकृ नतयाँ बनती और नबगड़ती हुइ नजर अ सकती हैं अनद। ऄगर कोइ साधक यह सोिे– मैं दपतण पर
त्राटक का बहुत ऄभ्यास करूँगा, मेरी नदव्य दृनि खलु कर कायत करने लगे, तब ऐसा नहीं होगा ‍योंनक नदव्य दृनि को
खोलने के नलए और ईससे कायत लेने के नलये योग मागत को ऄपनाना होगा, नफर कठोर ऄभ्यास कर कुछ वषों में
कण्ठिक्र खोलना होगा। त्राटक का ऄभ्यास आस कायत में बहुत सहायक होता है। नदव्य दृनि पैनी करने के नलए सयू त पर
त्राटक का ऄभ्यास बहुत सहायक होता है। गरुु पद पर बैठे व्यनक्तयों के नलए आस प्रकार का ऄभ्यास बहुत ही
लाभदायक होता है। वह दरू से बैठा ऄपने नर्ष्यों का मागतदर्तन करता रहेगा।

15. त्राटक के अभ्यास से रक्तचाप सन्तवु लत होना


कुछ साधकों ने मझु से पछ ू ा– ‚त्राटक करने से ब्लड प्रेर्र पर ‍या ऄसर पड़ता है?‛ मैं आस नवषय पर साधकों
को बताना िाहगँ ा– त्राटक का ऄभ्यास करने पर ब्लड प्रेर्र पर नकसी प्रकार का नवपरीत ऄसर नहीं पड़ता है। ऄगर
नकसी का ब्लड प्रेर्र कम या ज्यादा है, तब त्राटक का ऄभ्यास ब्लड प्रेर्र को सन्तनु लत बनायेगा। प्राणों की
ऄननयनमतता से र्रीर के ऄन्दर ऄवयवों में सन्तनु लत कायत प्रणाली में गड़बड़ी अने लगती है, यह गड़बड़ी नकसी भी
प्रकार की हो सकती है। ऄगर गौर करें , जब ऄभ्यासी त्राटक का ऄभ्यास करना र्रुु कर देता है, तब जैसे-जैसे धीरे -
धीरे मन नबन्दु पर के नन्रत होने लगता है, ईसी के ऄनसु ार प्राणों की गनत भी कम होने लगती है। प्राणों की गनत का
प्रभाव ऄभ्यासी के नित्त पर पड़ता है, नित्त पर नस्थत मनलनता कम होने लगती है, र्ि ु ता बढ़ने लगती है, आससे
सत्वगणु की ऄनधकता होने लगती है। त्राटक के ऄभ्यास का प्रभाव सीधा मनस्तष्क पर पड़ता है। मनस्तष्क की कायत
करने की िमता बढ़ती है तथा र्रीर को पहले की ऄपेिा ज्यादा ऄच्छे ढगं से ननयनन्त्रत करता है।
कोइ व्यनक्त प्राणों को ननयनन्त्रत करके सही ढंग से िलाये ऄथवा ऄपनी आच्छानसु ार िलायें, ईस समय
ईसका र्रीर पहले की ऄपेिा ज्यादा कांनतमान नदखाइ देने लगेगा और ननरोगी भी रहेगा। त्राटक का ऄभ्यास ईच्ि
रक्तिाप पर ऄच्छा प्रभाव डालता है। ऄभ्यास से स्थल ू आनन्रयों की बनहमख
तु ता समाप्त होने लगती है, मन भी र्ान्त
होकर नस्थर रहने लगता है, ईस समय हाइ ब्लड प्रेर्र धीरे -धीरे कम होकर सामान्य रहने लगता है। ऄनधक प्राणायाम
करने वाले का, ऄनधक समानध लगाने वाले का तथा ऄनधक त्राटक का ऄभ्यास करने वाले का ऄगर पल्स रे ट जाँिी
जाए, तो ऄन्य व्यनक्तयों की ऄपेिा कम होगा तथा र्रीर ननरोगी भी होगा। ऐसे ऄभ्यानसयों के र्रीर को कम
ऑ‍सीजन की जरुरत पड़ती है। ईसके र्रीर की कायतप्रणाली ऄन्य के र्रीर की ऄपेिा ऄच्छी होती है। ब्लड प्रेर्र से
परे र्ान व्यनक्तयों से यही कहगँ ा, अप ऄवश्य त्राटक का ऄभ्यास करें । ऐसे व्यनक्त को दीपक और सयू त त्राटक नहीं
करना िानहए, नबन्दु त्राटक करना िानहए। गरुु का मागतदर्तन ऄवश्य ले लें, नबना गरुु के मागतदर्तन में ऄभ्यास न करें ।

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16. त्राटक द्वारा िायु विकार (िात) को कम करना
त्राटक का ऄभ्यास जब श्रेष्ठता पर हो, ईसने सयू त त्राटक का ऄभ्यास बहुत ज्यादा नकया हो, ऐसा ऄभ्यासी
जब वात (वायु) पीनड़त व्यनक्त पर त्राटक द्रारा र्न‍तपात करेगा, तब ईसके वात वाले स्थान पर ददत की ऄनभु नू त कम
होती हुइ महससू होगी। वात का प्रभाव मनष्ु य के र्रीर पर सबसे ज्यादा पैरों और हाथों में होता है। ज्यादातर लोग पैरों
में वात से पीनड़त रहते हैं। वात हड्नडयों में जोड़ वाले स्थान पर होता है, वात ऄनधक हो जाने पर ईन जोड़ों वाले स्थान
पर सजू न भी अ जाती है। वात ज्यादातर 45-50 वषत की ईम्र के बाद ही होता है, आसे वायु नवकार भी कहते हैं।
त्राटक का प्रयोग वात पर तब ज्यादा सही होता है, जब वात की र्रुु अत हुइ हो। ऄगर जोड़ वाले स्थान पर
सजू न अ गयी है, तब त्राटक का ऄसर प्रत्यि रूप से कम प्रभावी रहेगा। प्रयोगकतात का सयू त पर त्राटक का बहुत
ऄनधक ऄभ्यास होना िानहए। आससे ईसके अँखों द्रारा ननकली नकरणें ऄत्यनधक र्न‍तर्ाली होती है। ऄभ्यासी वात
पर र्न‍तपात करते समय ईस स्थान पर (नजस जगह पर वात का प्रभाव हो) टकटकी लगाकर देखता रहे और ऄपने
मन में संकल्प करें , वात को ठीक करने के नलये। ऐसी नक्रया नदन में दो िार-बार करें । कुछ नदनों बाद पीनड़त व्यनक्त को
ऄनभु नू त होगी, ईसका ददत धीरे -धीरे कम होने लगता है। आसी प्रकार से र्न‍तपात रोजाना तब तक करता रहे, जब तक
ठीक न हो जाये। आस समय पीनड़त व्यनक्त को ठण्डे स्वभाव वाले पदाथों का सेवन नहीं करना िानहए। मैंने ऐसा प्रयोग
करके देखा था, ईसमें बहुत बड़ा लाभ नमला था, नफर मैंने ज्यादा प्रयोग नहीं नकये।

17. त्राटक शव‍त का प्रयोग पश-ु पवक्षयों पर


त्राटक का प्रयोग मनष्ु य नवनभन्न कायों के नलये करते हैं। ये सभी प्रयोग ज्यादातर मनष्ु य जानत से सम्बनन्धत
होते हैं। प्रयोगकतात आस नवद्या में ननपणु है तो वह आसका प्रयोग पर्-ु पनियों पर कर सकता है, आससे पर्-ु पिी प्रभानवत
भी होते हैं। आन पर नकया गया र्न‍तपात र्ीघ्र समझ में नहीं अता है। ऐसे प्रयोगों के नलये एक बात अवश्यक है– ईसे
पर्ु पनियों के प्रनत प्रेम होना िानहए। ये प्राणी भी प्रेम की भाषा समझते हैं। मनष्ु य के ऄन्तःकरण में नजतना ज्यादा प्रेम
होगा, त्राटक का प्रयोग ईतना ही ज्यादा सफल होगा। मनष्ु य के ऄन्दर से ननकली हुइ वृनत्त तेजस् रूप में बाहर अती है,
आससे ईनका सक्ष्ू म र्रीर प्रभानवत होता है तथा ये प्राणी सक्ष्ू म भाव को समझ लेते हैं।
त्राटक का प्रभाव र्ाकाहारी व र्ान्त स्वभाव के पर्-ु पनियों पर ज्यादा पड़ता है, ऐसे प्रानणयों पर त्राटक का
प्रयोग नकया जा सकता है। प्रयोग की र्रुु अत पालतू पर्ओ ु ं पर करना िानहए। लगातार कइ नदनों तक एक ही पर्ु पर
त्राटक का प्रयोग करना िानहए। कुछ नदनों या महीनों में प्रभाव समझ में अने लगेगा, र्रुु अत में प्रयोग का प्रभाव
बहुत देर में समझ में अता है। जब आस प्रकार के प्रयोग करते-करते बहुत समय हो जाता है, तब नकसी भी नये पर्ु पर
र्ीघ्र प्रभाव समझ में अने लगता है। आसी प्रकार पररप‍वता बढ़ती जाती है। पनियों पर जब प्रयोग करें ग,े तब ईसका

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प्रयोग समझ में नहीं अयेगा, ‍योंनक पिी एक जगह पर ज्यादा देर तक ठहरते नहीं है। कुछ पिी सीनमत िेत्र में ही
रहते हैं, यही पिी ऄ‍सर सामने अते रहते हैं, आन्हीं पनियों पर प्रयोग करना िानहए। धीरे -धीरे प्रयोग करते-करते
पनियों पर समझ में अने लगता है। कबतू र और मोर जैसे पिी नननश्चत जगहों पर रहते हैं तथा मनष्ु य के नजदीक भी
अ जाते है, आन पर प्रयोग करके सीखा जा सकता है।
नहसं क पर्ओु ं पर त्राटक का नकतना प्रभाव पड़ता है, आस पर मैंने प्रयोग नहीं नकये हैं ‍योंनक हमारे पास आस
प्रकार के प्रयोग के नलये समय भी नहीं था तथा ऐसा प्रयोग मैं कहाँ करता, यह सोि भी नहीं पाया था। आसी प्रकार
पनियों के नलये है। कौवा, िील अनद पनियों पर र्ायद प्रभाव बहुत देर में होगा, आन पर प्रयोग मैंने नहीं नकया है। मैं
वही नलख रहा हँ जो मैंने प्रयोग नकया है। मैंने कछुए पर प्रयोग नकया है, कुछ पनियों पर प्रयोग नकया है। हमारे कुनटया
के अस-पास नवषखोपरा बहुत रहते हैं, ईन पर मैंने प्रयोग नकया है।
जब मैं ऄपनी गरुु माता के अश्रम में रहता था, ईस समय मेरी कछुए से दोस्ती हो गयी थी। अश्रम र्हर से 6-
7 नक.मी. दरू बना है, अस-पास खेत हैं, खेतों में कुछ घर बने हुए हैं। वहाँ पर बहुत िौड़ा बड़ा सा कुअँ बना हुअ है,
ईसी कुएँ से अस-पास के खेतों में नसंिाइ होती है। ईस कुएँ में बड़ा सा एक कछुअ रहता था, मैंने ईसी कछुए पर
त्राटक का प्रयोग नकया था। वह कछुअ हमारे पास अ जाता था, ऄगर ईसके पास ऄन्य कोइ व्यनक्त अ जाये, तो वह
पानी के ऄन्दर डुबकी लगा जाता था। नफर हम ईसे खाना भी डालने लगे थे। सभी को मैंने ऄपनी और कछुए की
दोस्ती नदखाइ दी, हमारे साधक बंधु देखकर अश्चयत िनकत होते थे।
मैंने ऄपने गाँव से थोड़ी दरू पर जगं ल में सन् 1995 में कुनटया बना ली थी। वहाँ पर जगं ल होने के कारण ईस
समय दो प्रकार के प्राणी बहुत रहते थे। एक नवनभन्न प्रकार के सपत, दो नवषखोपरा। नवषखोपरा नछपकली की प्रजानत
का बड़े र्रीर वाला प्राणी होता है। ऐलीगेटर से छोटा होता है। यह प्राणी जहरीला होता है, आसकी लार में जहर (नवष)
होता है, आसका नाम नवषखोपरा आसनलए पड़ा, नजसके नसर में नवष भरा हुअ हो। कुनटया के पास जगं ल में बहुत बड़ा
नवषखोपरा रहता था। मझु े ईससे डर नहीं लगता था, जबनक वह जहरीला प्राणी होता है। गाँव के लोग ईसे देखकर भाग
जाते थे। कुछ महीने बाद ईसकी अदत पड़ गयी थी, वह हमारे सामने अकर बैठ जाता था। कुछ समय बाद मझु े
जानकारी नमली यह मादा है, ‍योंनक ईसके पाँि-छः बच्िे हो गये थे। ईन बच्िों की ऐसी अदत पड़ गयी थी नक वे
कुनटया के ऄन्दर घसु अते थे। यह मझु े ऄच्छा नहीं लगता था। मैं सोिता था नक धोखे से भी आनके उपर पैर पड़ गया
तो ये काट लेंग।े कुछ वषों में आनकी सख्ं या बढ़ने लगी, एक समय मैं कुनटया के ऄन्दर खाना बना रहा था, वहीं बड़ा
वाला नवषखोपरा अकर दरवाजे पर अकर बैठ गया और मझु े देखता रहा। ऄब मैं दरवाजे से बाहर नहीं ननकल सकता
था, कुछ समय बाद मैंने ईसे भगा नदया। ऄब ईसकी हमारे नजदीक रहने की अदत पड़ गयी थी, ऄगर तख्त पर लेटा
हुअ हँ ऄथवा सो रहा ह,ँ तो वह तख्त के नीिे अकर बैठा रहता था। ऄब मझु े ईससे डर लगने लगा, मैं ईसकी
नजदीकी स्वीकार नहीं कर पा रहा था, ऐसा कइ महीनों तक िलता रहा। मैं आससे छुटकारा पाने की सोिने लगा। नफर
मैं आसे पकड़वाने वालों को बल ु वाया और आसे पकड़वा नदया और ईस व्यनक्त से कहा– आसे बहुत दरू जाकर छोड़ देना।

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पाठकों! यह सत्य घटना है, मेरा ईसके साथ रहना कइ वषों का रहा। यह नवषखोपरा जब नजदीक अता था, तब मैं आस
पर त्राटक नकया करता था।
पनियों पर त्राटक का प्रयोग खबू करता था, कुछ नदनों बाद समझ में अने लगता था, ये पिी हमारे नजदीक
अ जाया करते थे। मेंरे आस नक्रया के कारण एक मोर और एक नेवले की मृत्यु हो गयी थी। ये दोनों ननड़र होकर अस-
पास आधर-ईधर घमू ते रहते थे। मगर तभी एक कुत्ते ने अकर मोर को पकड़ नलया, मैंने खबू छुटाने का प्रयास नकया, मैं
ईसे छुटा नहीं पाया, तब तक मोर मर गया था। आसी प्रकार नेवले को कुत्ते ने पकड़ कर मार नदया, नेवला हमारे पास
खाना खाने के नलये अया था, पीछे से कुत्ता अ गया, ईसने पकड़ नलया, जब तक ईसे छुटा पाया तब तक वह बरु ी
तरह से घायल हो िक ु ा था, कुछ समय बाद नेवला मर गया। मझु े बड़ा दःु ख हुअ, नफर मैंने यह कायत करना बन्द कर
नदया। मैंने ननश्चय नकया, ऄब मैं आन सभी से आतना प्रेम नहीं करूँगा, और न ही आन पर त्राटक का प्रयोग करूँगा। मैंने
प्रयोग करके जाना, मनष्ु य के ऄनतररक्त ऄन्य प्राणी भी प्यार की भाषा समझते हैं।

18. गभातिस्था में त्राटक का अभ्यास न करें


त्राटक का ऄभ्यास जब साधक र्रुु अत में सीख रहा होता है, तब साधक र्रुु अत में ऄपने ऄन्दर नकसी
प्रकार की ऄनभु नू त महससू नहीं कर पाता है, ‍योंनक ऄभी-ऄभी ऄभ्यास की र्रुु अत की है। ऄभ्यास करते-करते
जब काफी समय हो जाता है, तब महससू कर सकता है। ऄभ्यास के बाद देखते समय ईनकी पलकें पहले की ऄपेिा
देर में झपकती हैं तथा व्यवहार करते समय भी ईसकी दृनि में नस्थरता अने लगती है, िंिलता कम होने लगती है तथा
त्राटक का ऄभ्यास करते समय ऄगर वह ईस समय ऄपनी श्वासं ों पर गौर करे , तब ईसे ऄनभू नू त होगी नक ईसकी श्वासं ों
की गनत धीमी सी हो गयी है। हाँ, यह सि भी है– साधक के श्वांसों की गनत कम हो जाती है।
ऄभ्यासी ऄगर स्त्री है, ईस समय गभतवती है और ईसका त्राटक का ऄभ्यास िल रहा है, ईस समय ऄनभु वी
व्यनक्त के मागतदर्तन में ऄभ्यास करे । सनु ा है कुछ मागतदर्तक ऐसी ऄवस्था में ऄभ्यास करने से मना नहीं करते हैं, बनल्क
ईनका कहना होता है– ऄभ्यास के समय गभतस्थ नर्र्ु पर नकसी प्रकार का गलत प्रभाव नहीं पड़ता है। मैं आस ऄवस्था
वाली सानधकाओ ं से ऄपनी व्यनक्तगत राय व्यक्त करना िाहगँ ा– यनद गभतस्थ नर्र्ु छः माह का हो गया है, तब
ऄभ्यास करना कम देना िानहए और सतकत रहने की अवश्यकता है। ऐसा ये 6वें और 7वें माह तक करें । अठवें माह
से माता को त्राटक को छोड़ देना िानहए ऄथवा निनकत्सक की राय लेती रहे। कुछ मागतदर्तक कहते हैं– ‚त्राटक के
ऄभ्यास के समय नर्र्ु पर नकसी प्रकार का नवपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है‛। ध्यान रहे– त्राटक का ऄभ्यास जब ज्यादा
नकया जाता है, तब प्राणों की गनत ननश्चय ही कम हो जाती है। ऐसी ऄवस्था में अठवें और नौवें माह में नर्र्ु को
ऑ‍सीजन की मात्रा कम नमल सकती है, आससे नर्र्ु पर प्रनतकूल प्रभाव पड़ सकता है। नफर भी मैं यही कहगँ ा– ऐसी

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ऄवस्था में नवर्ेषज्ञता प्राप्त निनकत्सक से बराबर परामर्त लेते रहे, ‍योंनक आन नदनों में नर्र्ु के र्रीर के ऄन्दर तीव्र
नवकासक्रम िल रहा होता है।

19. त्राटक के अभ्यास का कामिासना पर प्रभाि


नजसका मन सदैव िंिल रहता है, ईसे त्राटक का ऄभ्यास प्रनतनदन करना िानहए। त्राटक के ऄभ्यास का
प्रभाव मन व आनन्रयों पर भी पड़ता है। ऄभ्यास के द्रारा आनन्रयों की बनहमतख ु ता कम हो जाती है तथा ऄभ्यास के
ऄनसु ार आनन्रयाँ ऄतं मख तु ी होने लगती हैं। मनष्ु य का जन्म जल तत्त्व की प्रधानता से हुअ है, आसनलए ईनके र्रीर में
लगभग 75 प्रनतर्त जलतत्त्व नवद्यमान रहता है। जल तत्त्व से ईत्पन्न आनन्रयाँ जीभ और जननेनन्रय हैं। जीभ ज्ञानेनन्रय
है, जननेनन्रय कमेनन्रय है। मनष्ु य के र्रीर में जल तत्त्व प्रधानता से रहता है, आसनलए आससे ईत्पन्न आनन्रय सदैव ऄनधक
सनक्रय रहती है। ज्यादातर मनष्ु य आन्हीं दोनों आनन्रयों के वर्ीभतू रहते हैं। आसीनलए आन्हीं दोनों आनन्रयों का प्रभाव मनष्ु य
के जीवन में बना रहता है। ऄगर गौर करें तो समझ में अयेगा, मनष्ु य स्वानदि भोजन करना िाहता है, रूखा-सख ू ा
भोजन करना ईसे ऄच्छा नहीं लगता है। ऄच्छा भोजन ईसे प्राप्त हो, आसके नलये जीवन भर पररश्रम करता रहता है।
जननेनन्रय के नवषय में ‍या नलखँ,ू सभी प्राणी आसके ऄधीन रहते है। सभी जीवों के नित्त में िार प्रकार के संस्कार
प्रबल रहते हैं– 1. मैथनु 2. भय 3. अहार 4. ननरा। आन िारों प्रकार के संस्कारों में मैथनु का संस्कार नवर्ेष प्रबल
रहता है। जब आस प्रकार का संस्कार नित्त से बाहर ननकल कर भोगने के नलये अता है तब ऄन्य तीनों प्रकार के
संस्कार गौण रूप में हो जाते है। जब मैथनु का संस्कार प्रधान रूप से रहता है, ईस समय व्यनक्त को नकसी प्रकार का
भय नहीं लगता है, बनु ि पर ऄज्ञानता का पदात पड़ जाता है, तभी संकुनित नविार वाले मनष्ु य ऄधमत की ओर ईन्मख ु
हो जाते हैं। कुछ मनष्ु य तो ऐसी ऄवस्था में पर्ओ ु ं से भी नगरा हुअ कमत कर जाते हैं, नफर बाद में ईन्हें पछताना पड़ता
है।
त्राटक का कठोर ऄभ्यास करने पर साधक के आस प्रकार के कमों पर भी प्रभाव पड़ता है। मन के ऄतं मतख ु ी
होने के कारण आनन्रय संयम भी सहजता से होने लगता है। आससे मन के ऄन्दर वासना से सम्बनन्धत नविार अने कम
हो जाते है। मैं एक बात स्पि कर द–ँू कामवासना से सम्बनन्धत संस्कार प्रत्येक प्रानणयों के नित्त में गहराइ से पड़े रहते
हैं, आसनलए आस प्रकार के संस्कार नष्ट नहीं नकये जा सकते है। योग का ऄभ्यास करने वाले व्यनक्त के ऄनन्तम जन्म में
आस प्रकार के सस्ं कार नष्ट हो जाते हैं, जब नित्त में ऊतम्भरा प्रज्ञा का प्राकट्य होता है। मगर मनष्ु य को योग का
ऄभ्यास व त्राटक का ऄभ्यास करके आस प्रकार के संस्कारों के प्रभाव को कम करने का प्रयास करना िानहए। त्राटक
के ऄभ्यास से मन र्ान्त और ऄत्यन्त सर्क्त हो जाता है। सर्क्त मन वाले व्यनक्त ही आनन्रय संयम कर सकते है।
नजनका मन ििं ल व कमजोर हो, वह आनन्रय सयं म नहीं कर सकता है।

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त्राटक के ऄभ्यास में पारंगत हुअ व्यनक्त दसू रे पर र्न‍तपात करके ईसके वासना संबंधी नविारों को थोड़ा सा
ननयंनत्रत कर सकता है। प्रयोगकतात ने ऄगर योग का ऄभ्यास नकया है, ऄभ्यास के द्रारा ईच्िावस्था प्राप्त की है, तब
वह त्राटक द्रारा र्न‍तपात करके दसू रे के कामवासना सम्बन्धी सस्ं कार कुछ समय के नलये रोक सकता है। आसके नलये
मागतदर्तन के नवषय में बारीकी से जानकारी होना अवश्यक है तथा ईसकी कुण्डनलनी पणू त यात्रा करके रृदय में नस्थर
हो िक ु ी हो, तभी ऐसे कायों में सफलता नमलेगी, वरना ऐसे कायों को करना साधारण बात नहीं है। आतनी योग्यता के
बाद भी जरूरी नहीं है नक वह साधक ऄपने कायत में सफल हो जायेगा। कारण यह है– ईसकी योग्यता पर सफलता-
ऄसफलता का ननणतय होगा। ऐसी बातें पढ़ने में अश्चयतजनक व ऄसम्भव सी भले ही लगती हों, मगर ये बातें सभी
सत्य हैं।
नजस मनष्ु य की कमजोरी कामवासना हो, ईसे ऄवश्य ही त्राटक का ऄभ्यास करना िानहए। त्राटक का
ऄभ्यास ननयनमत करे । प्राणायाम का भी कठोरता से ऄभ्यास करे और सदैव सानत्वक भोजन करे । सबसे महत्त्वपणू त
ऄभ्यास एक और करना िानहए, वह ऄभ्यास है ‘ईड्नडयान बन्ध’। ईड्नडयान बधं का ऄभ्यास लगातार करना
िानहए। कुछ महीनों में ऄभ्यासी को समझ में अने लगेगा, ईसके कामवासना सम्बन्धी नविार अने बन्द होने लगे हैं।
मैंने ऄपनी पस्ु तक ‘सहज ध्यान योग’ में कुण्डनलनी वाले पाठ में नवस्तार से नलखा है– नित्त पर नस्थत
संस्कारों को जबरदस्त र्न‍तपात करके दबाये जा सकते है, कुछ नये संस्कारों को उपरी सतह पर लाया जा सकता है।
यह कायत प्रत्येक योगी के वर् की बात नहीं है। ठीक आसी प्रकार कुछ समय के नलये कामवासना के संस्कार दबाये जा
सकते हैं। आस कायत में ढेर सारा योगबल खित होता है।

20. सम्मोवहत हुआ व्यवक्त अपना बचाि कै से करे


त्राटक के द्रारा सम्मोहन नकया जाता है। यह अवश्यक नहीं है नक सम्मोहनकतात ऄध्यात्म में रूनि लेता होगा।
बहुत से सम्मोहनकतातओ ं का ऄध्यात्म से कुछ लेना-देना नहीं होता है, सम्मोहनकतात जादगू री नदखाते समय भी ऄपनी
बात मनवाने के नलये सम्मोहन का प्रयोग नकया करते हैं। सम्मोहन नवद्या का प्रयोग ऄच्छे कायों के नलये भी नकया
जाता है, जैसे– नकसी के र्रीर में कही भी ददत हो रहा है, सम्मोहन हो जाने पर ददत की ऄनभु नू त होनी बन्द हो जाती है
अनद। मैंने कुछ दष्ु ट स्वभाव के लोग भी देखे हैं, जो सम्मोहन नवद्या का गलत लाभ नलया करते है, सम्मोहन का
प्रयोग करके लोगों को भी ठग भी लेते हैं। आसके द्रारा ऄन्य प्रकार के भी ऄधमत से यक्त
ु कायत करते हैं।
सम्मोहन करने वाला व्यनक्त सर्क्त मन वाला होता है। नजस पर सम्मोहन नकया जाना है, वह कमजोर मन
वाला होता है। सि तो यह है नक सम्मोनहत हुअ व्यनक्त समझ ही नहीं पाता है नक ईस पर सम्मोहन हुअ है, ‍योंनक
ईसके मनस्तष्क पर दसू रे व्यनक्त का ऄनधकार (सम्मोहनकतात का) हो जाता है। दसू रे के ऄधीन हुअ व्यनक्त वही कायत

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करता है, जो सम्मोहनकतात िाहता है, ‍योंनक ईसे ऄपना होर् ही नहीं रहता है। मगर कुछ ऄवसरों पर ऐसा भी होता है
नक नजस पर सम्मोहन नकया गया है ईससे साधारण कायत तो नलये जा सकते हैं, लेनकन ऄगर ईसके स्वभाव के नवरूि
कोइ बड़ा कायत करने का सदं र्े नदया गया, तब सम्मोहन ऄपने अप टूट भी सकता है। जैसे– नकसी से छोटा सा
साधारण कायत करने के नलये कहा गया, तब वह कायत कर देगा; ऄगर ईससे कहो नक ऄमक ु व्यनक्त की हत्या कर दो,
तब ईसका सम्मोहन टूट जायेगा, ‍योंनक ईसका मनस्तष्क ऐसे कायत को करने के नलये तैयार नहीं हो पाता है। ईसके
मनस्तष्क में झटका लगेगा, नफर सम्मोहन टूट जायेगा। सम्मोहनकतात ने नकस स्तर पर सम्मोहन नकया है, ईसका भी
महत्त्व होता है।
सम्मोहन ज्यादातर कमजोर मन वाले, मन्द बनु ि वाले, तथा भावक ु व्यनक्तयों पर र्ीघ्र प्रभावी होता है। जो
व्यनक्त तेज-तरातर होता है, क्रूर स्वभाव वाला होता है, तब ईस पर सम्मोहन का प्रयोग र्ीघ्र नहीं होता है। ऄगर कोइ
व्यनक्त ऄपने उपर सम्मोहन करने को कहेगा, तब ईस पर सम्मोहन र्ीघ्र हो जायेगा, ‍योंनक ईसका ऄन्तःकरण पहले
से ही सम्मोहन के नलये स्वीकार कर रहा है। ऄगर कोइ व्यनक्त पहले से ही कहे– मैं तम्ु हारे द्रारा नकया गया सम्मोहन
स्वीकार नहीं करता हँ तथा नवरोधी हो जाये, नफर ईस पर र्ीघ्र सम्मोहन नहीं हो पायेगा। मगर जो ईच्ि श्रेणी के
सम्मोहनकतात हैं, ईनका नवरोध कर पाना कनठन है। त्राटक के पारंगत व्यनक्त जो ऄध्यात्म में भी ईच्िावस्था प्राप्त नकये
हैं, ईनका नवरोध नहीं नकया जा सकता है।
नजस व्यनक्त पर सम्मोहन नकया गया है, यनद ईसे समझ में अ जाये नक ईस पर सम्मोहन नकया गया है, तब
वह र्ान्त होकर एक जगह बैठ जाये, ऄपनी अँखें बन्द कर ले, मन को नसर के उपरी भाग में नस्थर कर ले, नफर मन
के ऄन्दर कहे– ‚मैं नकसी के भी द्रारा नकया गया सम्मोहन स्वीकार नहीं करता ह‛ँ । नफर नसर को जोर से झटक दे, आसी
प्रकार कइ बार नक्रया करे । र्ान्त होकर ध्यान मरु ा में बैठकर मन को सहस्त्रार िक्र में के नन्रत करे , नफर ‘ॎ’ का
ईच्िारण दीघत रूप में लयबि तरीके से करें । ‘ॎ’ का ईच्िारण ध्वनन ननकालकर करें । कुछ समय बाद अप मन में
कहें– ‚मैं पणू त रूप से स्वतन्त्र ह,ँ मेरे मनस्तष्क पर नकसी का ऄनधकार नहीं हो सकता है‛। ऐसा बार-बार करने से ऄपने
अप हल्कापन महससू होने लगेगा।
कुछ सम्मोहनकतात अँखों में अँखें नमलाकर बात करते हैं ऄथवा वह ऄपनी अँखें देखने को कहते हैं। ऐसे
समय में अप नकसी से अँखें न नमलाये, बनल्क अँखों को एक ओर कर लें, ‍योंनक सम्मोहन करने का एक तरीका
यह भी होता है नजसमें अँखों में अँखें नमलाकर ऄथातत् सम्मोहनकतात दसू रे की खल
ु ी हुइ अँखों में टकटकी लगाकर
देखता है और सम्मोनहत करता है। आस प्रकार से नकया गया सम्मोहन ज्यादा प्रभावी होता है। नजस पर सम्मोहन नकया
गया है, वह समझ नहीं पाता है। आस पिनत से नकसी पर ज्यादा हावी हुअ जा सकता है। सभी व्यनक्तयों पर समान रूप
से सम्मोहन नहीं होता है। नकसी पर सम्मोहन कम होगा, नकसी पर सम्मोहन ज्यादा होगा ‍योंनक सभी के मनस्तष्क का
नवकास एक जैसा न होकर नभन्न-नभन्न ऄवस्था वाला होता है।

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त्राटक का ऄभ्यास करने वाला ऄगर ऄधमत में नलप्त है, झठू बोलने वाला है, दसू रों की ननन्दा करने वाला है,
बेइमान और िररत्रहीन है, अनद दगु णतु ों से यक्त
ु व्यनक्त खबू ऄभ्यास करने के बावजदू भी दसू रों को कम प्रभानवत कर
पायेगा। कभी-कभी ऐसा व्यनक्त दसू रों पर सम्मोहन करने में ऄसफल भी हो जायेगा। आसनलए ऄभ्यासी को सत्यननष्ठ
होना िानहए, परोपकारी और िररत्रवान होना िानहए। सम्मोहन का प्रयोग सदैव परोपकार के नलये करना िानहए। जो
व्यनक्त सम्मोहन करके दसू रों को ठगते हैं ऄथवा गलत फायदा लेते हैं, ईन्हें भनवष्य में एक न एक नदन ऄन्त में ऄपने
कमों का फल भोगना ही पड़ता है।

21. रावत्र के समय अभ्यास न करें


त्राटक के ऄभ्यास के नलये कोइ समय नननश्चत नहीं है, नकसी भी समय ऄभ्यास नकया जा सकता है। मगर
ऄभ्यास के नलये सबु ह का ऄभ्यास सबसे ऄच्छा होता है। ईस समय वातावरण र्ान्त होता है, नकसी प्रकार का ध्वनन
प्रदषू ण नहीं होता है तथा काबतन काबतन डाआऑ‍साआड की मात्रा कम होती है और ऑ‍सीजन की मात्रा ज्यादा होती
है। ऐसी ऄवस्था में हमारे स्थल
ू व सक्ष्ू म र्रीर पर ऄच्छा प्रभाव पड़ता है, फे फड़ों को ऑ‍सीजन ज्यादा मात्रा में प्राप्त
होती है। यह समय ऄन्य अध्यानत्मक कायों के नलये ऄच्छा होता है। नजस समय साधक ऄभ्यास कर रहा होता है,
ईस समय ईसकी धीमी व गहरी श्वांस-प्रश्वांस की प्रनक्रया हो रही होती है। ऐसी ऄवस्था में ऑ‍सीजन की मात्रा ज्यादा
होना बहुत ही अवश्यक है।
मैं नजन साधकों का मागतदर्तन करता ह,ँ ईन्हें रानत्र के 11 बजे के बाद त्राटक का ऄभ्यास करने के नलये सख्त
मना कर देता ह।ँ त्राटक का ऄभ्यास व योग का ऄभ्यास रानत्र के 11 बजे के बाद नहीं करना िानहए। नफर सबु ह िार
बजे के बाद ऄभ्यास कर सकता है ऄथातत् रानत्र के 11 बजे से सबु ह के 4 बजे तक ऄभ्यास नहीं करना िानहए। आस
समय तामनसक र्न‍तयों का प्रभाव बढ़ जाता है तथा तामनसक र्न‍तयाँ भ्रमण भी करती रहती हैं। कभी-कभी
तामनसक र्न‍तयाँ सानत्वक साधना करने वाले साधकों को परे र्ान भी कर सकती हैं ऄथवा नभन्न-नभन्न प्रकार के
ऄवरोध भी डाल सकती हैं। आसनलए साधकों को ऄधतरानत्र के समय ऄभ्यास नहीं करना िानहए, तानक सरु नित रहें। जो
साधक योग का ऄभ्यास करते हैं, ईन्हें तो ज्यादा सावधानी बरतनी िानहए। नजन साधकों की ऄवस्था ईच्ि है, ईन्हें
आस समय के नलये कोइ मनाही नहीं है, नफर भी सतकत होकर ऄभ्यास करें , ‍योंनक कुछ तामनसक र्न‍तयाँ ऄत्यन्त
दष्ु ट स्वभाव की होती हैं वह नकसी भी तरह का व्यवहार ऄभ्यासी के साथ कर सकती हैं। नजस साधक के पास ऐसी
तामनसक र्न‍तयों से लड़ने का सामर्थयत हो, वे साधक नकसी भी समय ऄपना ऄभ्यास कर सकते हैं। ये बातें मैंने नये
साधकों के नलये नलखी हैं। नजन साधकों का ब्रह्मरंध्र खल ु ा हुअ है ऄथवा कुण्डनलनी पणू त यात्रा कर नस्थर हो गयी है
तथा योगबल का भण्डार है, ऐसे साधक ननडरता के साथ समानध का ऄभ्यास तथा त्राटक का ऄभ्यास कर सकते हैं।

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कुछ योगी परुु ष रानत्र के समय ही कठोर ऄभ्यास नकया करते हैं ‍योंनक रानत्र के समय र्ांत वातावरण होता
है। ऐसे योनगयों का तामनसक र्न‍तयाँ कुछ नहीं नबगाड़ पाती हैं। ये योगी सानत्वक ही होते हैं। मैंने भी कइ वषों तक
आसी प्रकार का ऄभ्यास नकया है। रानत्र के 9-10 बजे से सबु ह 6:30 बजे तक समानध का ऄभ्यास करता था। कुछ
तामनसक साधना करने वाले साधक रानत्र के समय ही साधना करते हैं, आससे आन्हें लाभ होता है ‍योंनक वह स्वयं
तामनसक र्न‍तयों के ईपासक होते हैं। जब ऄन्धेरी रानत्र होती है, तब ऐसे तामनसक ईपासक साधना करते हैं। साधकों!
ऄधतरानत्र के समय त्राटक का ऄभ्यास नहीं करना िानहए। मझु े ऄपने साधनाकाल में आस प्रकार की बहुत ही ऄनभु नू तयाँ
हुइ हैं।

22. स्तम्भन वक्रया का वसद्ध होना


अप सोि रहे होंगे, स्तम्भन नक्रया ‍या होती है। स्तम्भन का ऄथत होता है– स्तम्भ के समान नस्थर कर देना,
नकसी भी नक्रया को रोक देना। आस प्रकार की नसनि पवू कत ाल में योगी और तपस्वी लोग नसि करते थे। जरुरत पड़ने पर
आस नसनि का प्रयोग भी करते थे। आस नसनि के प्रयोग का वणतन र्ास्त्रों में पढ़ने को नमल जायेगा। यि
ु के समय भी आस
नसनि का प्रयोग नकया जाता है। नजस परुु ष को आस नसनि का ऄभ्यास होता था, वह ऄपने नवरोधी को जरुरत पड़ने पर
स्तनम्भत कर देता था, आससे ईसकी नवजय होनी नननश्चत हो जाती थी।
अजकल बहुत से सम्मोहनकतात खोज करने पर नमल जाएगं ,े जो ऄपनी आच्छा र्न‍त द्रारा दसू रे के मन पर
ऄनधकार कर सकते हैं ऄथवा नकये रहते हैं। आससे ऄगली ऄवस्था स्तम्भन नक्रया करने के नलये प्रयोग की जाती है
ऐसा समझो। मगर सम्मोहन करने वाले और स्तम्भन नक्रया करने वाले के नित्त में भारी ऄतं र होता है। सम्मोहन नक्रया
थोड़ा सा ऄभ्यास करने के बाद र्रुु हो जाती है। ऐसा व्यनक्त िाहे योग का ऄभ्यास न करे तब भी दसू रों को सम्मोनहत
कर लेगा, िाहे ईसका नित्त ऄर्ि ु हो, कमत से ऄधमी हो नफर भी सम्मोनहत करने में रुकावट नहीं अयेगी ‍योंनक
स्थलू संयम से व त्राटक के कठोर ऄभ्यास से ऐसा संभव हो जाता है। मगर स्तनम्भत करने के नलये नित्त का र्ि ु होना
व व्यापक होना ऄनत अवश्यक है। यह ऄवस्था योग के ऄभ्यास के द्रारा ही प्राप्त हो सकती है। बहुत परुु षों ने
पवू कत ाल में तपस्या द्रारा प्राप्त की थी।
त्राटक के द्रारा दसू रे की र्ारीररक नक्रया को रोक देते थे। ऄगर सामने वाला व्यनक्त डण्डे का प्रहार करने वाला
है, तब ईसके भौनतक र्रीर की नक्रया को रोक नदया जाता था। स्थल ू र्रीर की नक्रया को रोकने के नलये सक्ष्ू म र्रीर
को रोकना पड़ता है। त्राटक द्रारा ननकली तेजस्वी नकरणें सक्ष्ू म र्रीर के नक्रयाओ ं को रोक कर नस्थर कर देती हैं। सक्ष्ू म
र्रीर या सक्ष्ू म पदाथों की नक्रया को रोकने पर स्थल ू र्रीर व स्थल ू पदाथत की नक्रया ऄपने अप रुक जाती है, ‍योंनक
स्थलू पदाथत जो गनतवान नदखाइ देता है ईसके ऄन्दर व्याप्त सक्ष्ू म पदाथत वास्तव में गनतवान होता है। सक्ष्ू म में होने

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वाली हलिल ही स्थल ू में व्यक्त होती है। आसी प्रकार आस नसनि के नवषय में समझना िानहए। ऄगर सामने वाला व्यनक्त
उपर को हाथ ईठाये हुए प्रहार करने वाला है, तभी ईस पर स्तम्भन कर नदया गया तो ईसका उपर हाथ ईठा रहेगा,
नफर वह नहल भी नहीं सकता है, वह नकसी मनू तत के समान नस्थर हुअ नदखेगा। बहते हुए पानी पर स्तम्भन करने पर
पानी ऄपनी जगह पर ठहर जायेगा। आसी प्रकार प्रकृ नत के सभी प्रकार के भौनतक कायों के नवषय में समझना िानहए।
पवू क
त ाल में यह नसनि मात्र कुछ परुु षों के पास ही थी। प्रत्येक व्यनक्त आस नसनि को प्राप्त नहीं कर पाता था।
अपने पढ़ा होगा– पवू क त ाल में देवताओ ं के राजा आन्र को स्तनम्भत कर नदया गया था, ‍योंनक ईसे बहुत
ऄहक ं ार हो गया था नक मैं देवताओ ं का राजा ह,ँ मेंरे समान कोइ र्न‍तर्ाली नहीं है, तब एक नदव्य परुु ष ने आन्र को
स्तनम्भत कर नदया था। महाभारत काल में दयु ोधन जल स्तम्भन नक्रया का प्रयोग नकया था, ‍योंनक ईसे आस नवषय का
वरदान प्राप्त था। भगवान यीर्ु ने भी तफ
ू ान को संकल्प के द्रारा रोक नदया था, जब ईसके नर्ष्य भयभीत हो गये थे,
ऄथातत् तफू ान को स्तनम्भत करके र्ांत कर नदया था।
मैंने त्राटक का बहुत ऄभ्यास नकया है, मगर मझु े स्तम्भन करने का ऄभ्यास नहीं है। मझु े आसकी नवनध मालमू
है, आसनलए आस नवषय पर थोड़ा सा नलख नदया, ‍योंनक यह नक्रया त्राटक के द्रारा होती है। कुछ परुु षों ने संकल्प के
द्रारा यह नक्रया की है।

23. त्राटक के द्वारा स्थूल पदाथों को प्रकट करना


वततमान समय में कुछ योगी परुु ष अध्यानत्मक कायत अँखों के द्रारा ऄथातत् त्राटक के द्रारा ही करते हैं। ऐसे
योगी जो गरुु पद पर बैठे हुए हैं, ईनमें से कुछ ही ऄपने साधकों पर त्राटक के द्रारा र्न‍तपात करते हैं। अँखों के द्रारा
र्न‍तपात करने के नलये त्राटक का ऄभ्यास बहुत ही ज्यादा होना िानहए तथा योगबल भी बहुत ज्यादा मात्रा में होना
िानहए। स्पर्त के द्रारा र्न‍तपात की ऄपेिा त्राटक द्रारा र्न‍तपात में ऄनधक योगबल प्रयोग नकया जाता है। त्राटक
द्रारा र्न‍तपात करके साधक की ध्यानवस्था में होने वाली गलत नक्रयाओ ं को रोका जा सकता है। िक्रों को
नक्रयार्ील करना, कुण्डनलनी को जाग्रत करना, साधक के मागत में अये ऄवरोधों को हटाया जा सकता है। साधक के
ऄभ्यास में ऄगली ऄवस्था प्राप्त करने में सहायता की जा सकती है। सबसे बड़ी बात यह है नक मागतदर्तन करते समय
गरुु को ऄपने स्थान पर ईठकर साधक के पास र्न‍तपात के नलये जाना पड़ता है, मगर त्राटक के द्रारा दरू से ही
ऄलग-ऄलग साधकों पर र्न‍तपात कर नदया जाता है।
नजस प्रकार साधक के सक्ष्ू म र्रीर पर र्न‍तपात करके प्रभानवत नकया जाता है, आसी प्रकार त्राटक के द्रारा
स्थल
ू पंिभतू ों से बने पदाथों को प्रकट नकया जा सकता है, ऄथातत् स्थल ू वस्तऐु ं प्रकट की जा सकती है। ऐसे कायत
नसनियों के द्रारा भी बहुत से लोग करते हैं, ईसमें त्राटक का प्रयोग नहीं नकया जाता है। जब त्राटक के द्रारा स्थल

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पदाथों को प्रकट नकया जाता है, ईसमें संकल्प र्न‍त भी कायत करती है। मैंने ऐसे परुु षों को देखा है जो स्थल ू पदाथों
को प्रकट कर देते थे नफर आस स्थल ू का प्रयोग नकया जा सकता था। प्रकट की हुइ वस्तु भ्रम से यक्त ु नहीं होती थी।
ससं ार की ईत्पनत्त सक
ं ल्प के द्रारा हुइ है, आसनलए त्राटक के द्रारा सासं ाररक वस्तएु ं प्रकट हो जाती है। पवू क
त ाल में ऊनष
मनु न तपस्वी त्राटक के द्रारा ही ढेरों कायत करते थे। त्राटक में बहुत ऄनधक सामर्थयत होता है।
मैंने उपर नलखा है नक प्रकट की हुइ वस्तु भ्रम से यक्त
ु नहीं होती है। सत्य तो यह है नक सम्पणू त ऄपरा प्रकृ नत
ही भ्रम से यक्त ु है ‍योंनक वह पररणामी है। हर िण पररणाम होने के कारण ईसका स्वरूप बदला रहता है, स्वरूप
बदलने के कारण ऄपरा प्रकृ नत भ्रम से यक्त ु कही जाती है। मेरा यहाँ पर कहने का ऄथत यह है नक प्रकट की हुइ वस्तु
जादगू रों की तरह पणू त रूप से भ्रम वाली नहीं होती है। ईदाहरण– ऄगर ईस व्यनक्त ने सेव अनद फल को प्रकट कर नदया
है, तब अप आन फलों को खा भी सकते हैं। आसी प्रकार ऄन्य कइ प्रकार की वस्तयु ें प्रकट की जा सकती हैं। ऄभ्यास के
द्रारा पाँिों तत्त्वों पर जब संयमन हो जाता है, तब आन स्थल
ू वस्तओ ु ं को ऄपनी आच्छानसु ार प्रकट करने का सामर्थयत अ
जाता है।
पवू क त ाल में योगी, ऊनष, मनु न और तपस्वी आच्छानसु ार नकसी भी वस्तु का ननमातण करने का सामर्थयत रखते थे,
ऐसा र्ास्त्रों में पढ़ने को नमल जायेगा। नवश्वकमात तो ऐसे कायों के नवषय में जाने जाते हैं। सौभरर ऊनष ने मान्धाता की
50 कन्याओ ं से र्ादी करने के बाद आनको रहने के नलये राजा मान्धाता से ज्यादा सन्ु दर महल का ननमातण जगं ल में कर
नदया था। नफर बहुत समय तक स्वयं ऄपने द्रारा बनाये महलों में रहे, ऄन्त में ऄपनी पनत्नयों को ईनके नपता मान्धाता
के पास भेज नदया, नफर दबु ारा तपस्या करने के नलये जगं ल में िले गये।
बहुत से लोग छोटी-छोटी नसनियाँ (तामनसक) नसि कर लेते हैं, ईन नसनियों द्रारा भी कुछ वस्तऐु ं प्रकट की
जा सकती हैं। ये र्ब्द पढ़ने में िाहे अश्चयतजनक लगें, मगर सत्य हैं, मैंने ऐसे कायत ऄपने सामने होते देखा है। ऐसे लोग
स्वयं ऄपने बल पर वस्तओ ु ं को प्रकट नहीं करते हैं, बनल्क नजस तामनसक र्न‍त को नसि नकया है ईसके द्रारा ऐसे
कायत होते हैं। मगर जब नसनि छोड़कर िली जाती हैं, तब ऐसे व्यनक्त नकसी लायक नहीं रहते हैं। नफर ऄपने कमातनसु ार
भोग करते हैं। मगर योगी परुु ष की स्वयं ऄपनी योग्यता होती है।

24. त्राटक द्वारा नकारात्मक सोच को बदलना


त्राटक एक ऐसी नवद्या है नजसके द्रारा ढेरों प्रकार के कायत नकये जा सकते हैं। त्राटक का प्रयोग कै से नकया जाए
नजससे कायत में सफलता नमले, यह जानकारी भी होना ऄनत अवश्यक है। सबसे पहले अपके पास योगबल का होना
ऄनत अवश्यक है ‍योंनक सारे कायत योगबल के द्रारा ही सम्पन्न होते हैं। त्राटक का ऄभ्यास बहुत ऄनधक होना
अवश्यक है। नकसी भी कायत को सम्पन्न करने के नलये ईसको करने को तरीका मालमू होना अवश्यक है। ऄगर आन

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तीनों बातों में कोइ एक बात की कमी हो गयी ऄथवा कमी अ रही है तो कायत पणू त होने में ऄसफलता नमल सकती है।
कभी-कभी कुछ ऐसे कायत होते हैं, नजनमें योगबल का होना बहुत ज्यादा महत्त्व नहीं रखता है, जैसे सम्मोहन अनद।
मैं नजस बात को कहना िाहता हँ ईसके नलये योगबल का होना अवश्यक है। ऄगर साधक नकसी की
नकारात्मक सोि को हटाना िाहता है, तब आस कायत में योगबल लगाया गया तो कायत में सफलता तो नमलेगी और वह
सामान्य भी रहेगा। ऄगर नसफत सम्मोहन के द्रारा नकसी की सोि को हटाया गया, तो जब तक सम्मोहन का प्रभाव
रहेगा तब तक सब कुछ सही रहेगा, सम्मोहन का प्रभाव हटते ही वह व्यनक्त नफर ऄपनी परु ानी सोि में अ सकता है।
यनद ईसकी सोि में येागबल लगा नदया गया है तब ईसकी सोि में योगबल के कारण र्ि ु ता अने लगेगी, मनलनता
नष्ट होने लगेगी। ऐसा सम्मोनहत हुए व्यनक्त के साथ नहीं होता है ‍योंनक ईसकी सोि में मनलनता (तमोगणु ) तो बनी
ही रहती हैं।
जब मनष्ु य हतार् व दख ु ी होकर अत्महत्या के नलये प्रेररत होता है, आसी प्रकार इष्या और क्रोध में अकर
दसू रे की हत्या करने के नवषय में सोिता है ऄथवा ऄन्य प्रकार का बदला लेने के नलये सोिता है, तब ऐसी ऄवस्था में
त्राटक के द्रारा ईसके मनस्तष्क में अये हुए नविारों को रोका जा सकता है या बदला जा सकता है। ये बदलाव एक बार
के प्रयोग से नहीं हो पायेगा। त्राटक का कइ बार प्रयोग करना होगा। ‍योंनक आस प्रकार के सस्ं कार गहराइ तक होते हैं
तथा र्न‍तर्ाली भी होते हैं। ये संस्कार बाहर की ओर ननकलने के नलये वेग भी लगा रहे होते हैं, बस नक्रयानन्वत होने
के नलये ईनित समय िानहए। ऐसे संस्कारों को हटाने के नलये ऄथवा दबाने के नलये र्न‍तपात करने की अवश्यकता
भी पड़ेगी। ऐसी सोि को बदलने के नलये मनस्तष्क पर तो त्राटक के द्रारा प्रभाव डाला ही जाता है तथा नित्त पर भी
र्न‍तपात के द्रारा प्रभाव डालना िानहए। नित्त पर भी त्राटक द्रारा प्रभाव डालने पर बदलाव अ जायेगा, मगर ये कायत
सतकत तापवू क त करना िानहए। नित्त को प्रभानवत करने के नलये रृदय पर नस्थत ऄनाहत िक्र पर त्राटक करें और
र्न‍तपात करें ।
मनस्तष्क व नित्त में त्राटक का प्रयोग करते समय संकल्प में व नक्रया में नभन्नता होती है। ईदाहरण के नलये
यनद कोइ मनष्ु य नकसी से बदला लेना िाहता है और आसके नलये वह बड़ी जल्दी कर रहा है, तब त्राटककतात को ईसके
अज्ञािक्र पर संदर् े भेजना िानहए– ‚तमु ईससे बदला नहीं लोगे, तमु एक ऄच्छे व्यनक्त हो, तमु ईसे िमा कर दो‛।
ऐसा संदर् े दृढ़तापवू क त देना िानहए ‍योंनक जाग्रत ऄवस्था में मन अज्ञािक्र पर नस्थत रहता है। ऄन्त में संदर् े दो–
‚तमु र्ान्त हो जाओ, तमु र्ान्त हो जाओ‛। नफर थोड़ा सा र्न‍तपात कर दे। र्न‍तपात करने से त्राटककतात का
संकल्प ऄत्यन्त र्न‍तर्ाली हो जाता है तथा ईसके मनस्तष्क को प्रभानवत करता है। ऐसी नक्रया तीन-िार बार ऄवश्य
करें । सम्मोहन के द्रारा ईसका प्रभाव बहुत ज्यादा नदनों तक ठहरता नहीं है, सम्मोहन टूटने पर वह नविार अ सकते हैं।
नित्त पर त्राटक का प्रयोग करते समय आस प्रकार के संस्कार दबाने पड़ते हैं जो बदला लेने वाले हैं। आस प्रकार के कायत
हर एक त्राटककतात के वर् की बात नहीं है, नसफत ईच्िकोनट का योगी ही कर सकता है। आसनलए आस नवनध को स्पि
नहीं नलख रहा ह।ँ मगर यह नवनध 100 प्रनतर्त पणू त रूप से सफल है।

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ऄगर कोइ मनष्ु य ऐसे नविारों से परे र्ान है और नहीं िाहता है नक ऐसे नविार ईसके ऄन्दर अएँ, तब
त्राटककतात ईस समय असानी से प्रयोग कर सकता है तथा सफलता भी र्ीघ्र ही नमलेगी, ‍योंनक वह व्यनक्त स्वयं
िाह रहा है। यनद कोइ व्यनक्त नवरोधी बनकर सामने ही अ जाये, तब ईसकी अँखों में त्राटक द्रारा र्न‍तपात करना
िानहए। आसी प्रकार सभी प्रकार के नकारात्मक नविार वालों पर तथा सामानजक दृनि से गलत कायत करने वालों पर
त्राटक का प्रयोग नकया जा सकता है। एक बात ध्यान देने योग्य है– यनद ईस व्यनक्त की प्रकृ नत ही ऐसी है नक वह ऄधमत
के कायों को करता है ऄथवा आसी प्रकार का जीवन जीता है, तब ऐसे व्यनक्त पर त्राटक का प्रभाव कम पड़ेगा। ऐसा
व्यनक्त कुछ समय तक ऄधमत के कायों को बंद कर देगा, मगर कुछ नदनों बाद नफर वही कायत करने लगेगा। ‍योंनक ऐसे
मनष्ु यों का नित्त ऄत्यन्त मनलन होता है तथा ईसका जीवन ऄधमत के कायों को करता हुअ ही बीतता है। बदला ईसे
जा सकता है जो मनष्ु य ऄच्छे कायत भी कभी-कभी करता है।

25. त्राटक द्वारा कायत करने के वलये योगबल का होना आिश्यक


अजकल ज्यादातर ऄभ्यासी नबन्द,ु लौ और सयू त पर त्राटक का थोड़ा सा ऄभ्यास कर लेते हैं, और सोिने
लगते हैं नक ऄब हमने तो त्राटक का ऄभ्यास कर नलया है ‍योंनक नबन्दु पर त्राटक के समय पीला रंग, हरा रंग, लाल
रंग, सफे द रंग और नीले रंग का नबन्दु के अस-पास धब्बा बनने लगा है या गोल-गोल छल्ले बनने लगते है तथा
अँखों से ननकलती हुइ नवनभन्न रंगों की नकरणें भी नदखाइ दे रही हैं, ऄब मझु े ज्यादा ऄभ्यास करने की अवश्यकता
नहीं है। ऄब त्राटक द्रारा सारे कायत कर सकता ह।ँ ऐसे ऄभ्यानसयों ने मझु से सम्पकत करके पछ
ू ा– ‚मझु े त्राटक नसनि
कब नमलेगी, हमारे सातों िक्र नक्रयार्ील कब होंगे‛।
ऐसे ऄभ्यानसयों को पहले नकसी कुर्ल गरुु से त्राटक के नवषय में सभी प्रकार की बारीनकयाँ समझ लेनी
िानहए। ऄपरा प्रकृ नत तीन ऄवस्थाओ ं में रहती है– स्थल ू , सक्ष्ू म और कारण ऄवस्था। आसी प्रकार भतू ाकार्,
नित्ताकार् और निदाकार्, तीन प्रकार के अकार् कहे गये हैं। ऄगर ऄभ्यासी ने स्थल ू ऄवस्था वाला अकार् से
सम्बनन्धत त्राटक का ऄभ्यास कर नलया है तो आतने में ही बैिेन हो गया नक नसनियाँ कब नमलेंगी, ऄभी ‍यों नहीं
नमली हैं, सातों िक्र नक्रयार्ील कब होंगे अनद!
ऄभ्यासी पहले ऄच्छी तरह से समझ ले– नसफत आतना ही ऄभ्यास करने से कुछ नहीं नमलता है। बस आतना
समझ ले नक त्राटक का ऄभ्यास करना र्रुु कर नदया है, आससे ज्यादा कुछ भी नहीं है ‍योंनक िक्र सक्ष्ू म र्रीर में
नवद्यमान होते हैं नजनका सम्बन्ध सक्ष्ू म जगत से रहता है। नसनियों का सम्बन्ध भी सक्ष्ू म जगत से होता है ऄथवा सक्ष्ू म
जगत में रहती हैं। आसनलए साधक को आन सब िीजों को प्राप्त के नलये ऄपना सक्ष्ू म र्रीर नवकनसत करना होगा, तब
सक्ष्ू म जगत से तादात्म्य होगा। सक्ष्ू म र्रीर को नवकनसत करने के नलये ऄभ्यासी को योग का (समानध) ऄभ्यास करना

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होगा, आसके बाद सक्ष्ू म नवकास होगा। आस प्रकार का ऄभ्यास दो-िार सालों में पणू त नहीं होता है। नजन ऄभ्यानसयों ने
नसफत र्रुु अती ऄवस्था का ऄभ्यास नकया है, ईससे भी ईन्हें नवनभन्न प्रकार के लाभ ऄवश्य नमलेंगे, जैसे– अँखों का
ननरोगी होना, दृनि सही बनी रहना, यनद नकसी को िश्मा लगाना पड़ता है तब िश्मे का लेंस र्ीघ्र ज्यादा नहीं होगा,
मन में एकाग्रता होगी, अनद।
जो साधक त्राटक के द्रारा अध्यानत्मक कायत करना िाहते हैं, ईनके नलए अवश्यक है नक ईनके पास
योगबल भी हो। नबना योगबल के अध्यानत्मक कायत नहीं नकये जा सकते हैं। अध्यानत्मक कायत करते समय त्राटक के
साथ-साथ र्न‍तपात भी नकया जाता है, आससे कायत पणू त होने में सफलता नमलती है। ऄगर त्राटककतात के पास योगबल
नहीं है तब कुछ नवर्ेष प्रकार के कायों में सफलता नहीं नमलेगी। त्राटक द्रारा जब र्न‍तपात करते हैं, तब ईसके र्रीर
में वह र्न‍त प्रवेर् करके सक्ष्ू म कोनर्काओ ं में नक्रया करना र्रुु कर देती है, आससे वह कोनर्का र्ि ु होकर
नक्रयार्ील हो जाती है। आसका प्रभाव सक्ष्ू म र्रीर पर पड़ता है, स्थल
ू र्रीर तो यंत्र मात्र है।
योगबल प्राप्त करने के नलये साधक को समानध का ऄभ्यास करना िानहए। समानध ऄवस्था प्राप्त करने के
नलये साधक को कइ वषों तक समानध का कठोर ऄभ्यास करना पड़ता है, तब ईसे समानध ऄवस्था प्राप्त होती है।
सभी साधकों को समानध ऄवस्था नहीं प्राप्त हो पाती है। र्रुु अत में समानध मात्र कुछ िणों की ही लगती है, धीरे -धीरे
ऄभ्यास के ऄनसु ार समानध ऄवस्था बढ़ती रहती है। पहले सनवकल्प समानध लगती है, सनवकल्प समानध पररप‍व
होने पर नननवतकल्प समानध लगने लगती है। आसी प्रकार धीरे-धीरे थोड़ा थोड़ा योगबल भी बढ़ता रहता है, सनवकल्प
समानध की ऄपेिा नननवतकल्प समानध में योगबल ज्यादा मात्रा में बढ़ता है। जब कुण्डनलनी पणू त यात्रा करके नस्थर हो
जाती है, तब योगबल ऄनधक मात्रा में बढ़ना र्रुु हो जाता है तथा नित्त पर नस्थत कमत भी नष्ट होने र्रुु हो जाते हैं।
मत्रं जाप के द्रारा भी योगबल बढ़ता है। कुछ मत्रं ऐसे होते हैं नजन्हें ऄगर सही ढगं से बोला जाए, तो बड़ी तेजी
से योगबल बढ़ने लगता है। समानध की ऄपेिा मत्रं ों द्रारा ज्यादा योगबल प्रकट होता है। यनद साधक को योगबल
ज्यादा मात्रा में प्राप्त करना है, तब ईसे समानध के ऄनतररक्त मत्रं ों का भी जाप करना िानहए। योगबल तभी तीव्र गनत से
बढ़ता है जब मत्रं के ईच्िारण का तरीका सही होगा। मत्रं बोलने के तरीके को साधक को ऄपने गरुु से सीखना होगा।
सभी प्रकार के मत्रं योगबल प्रकट नहीं करते हैं। साधक को सत्यननष्ठ और गरुु ननष्ठ ऄवश्य होना िानहए।

26. छायापुरुष पर त्राटक का अभ्यास करना


कुछ लोगों ने मझु से छाया परुु ष के नवषय में पछ
ू ा– ‚छाया परुु ष ‍या होता है, आस पर त्राटक का ऄभ्यास नकस
प्रकार से नकया जाता है‛? वैसे नकसी भी ऄभ्यासी को छायापरुु ष (सक्ष्ू म र्रीर) पर ऄभ्यास करना बड़ा जनटल होता है
‍योंनक ऄपना सक्ष्ू म र्रीर आस स्थल ू र्रीर में समाया हुअ होता है। दसू रों र्ब्दो में मृत्यु के समय जो सक्ष्ू म र्रीर

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ननकलता है, ईसे ही छायापरुु ष कहते हैं। आस सक्ष्ू म र्रीर के नवषय में मैंने ऄपनी पस्ु तकों में व नवनडयो में भी बताया
हुअ है। यह ध्यानवस्था में तथा स्वप्नावस्था में भी कभी-कभी नदखाइ देता है। ऄभ्यास द्रारा जब सक्ष्ू म र्रीर के नवषय
में ज्ञान होता है, तब सक्ष्ू म जगत के नवषय में बहुत ही जानकारी नमलती है। सक्ष्ू म जगत में नवनभन्न प्रकार की
जीवात्माएँ नवद्यमान रहती हैं, कुछ ऄभ्यासी आन्हें भी नसि नकया करते हैं। मैंने ऄपने साधकों को छायापरुु ष पर कभी
ऄभ्यास नहीं करवाया।

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भाग - 5
पूितकाल में त्राटक का प्रयोग
अनदकाल से लेकर अज तक त्राटक का प्रयोग होता िला अ रहा है। ऐसा र्ास्त्रों में तथा वततमान में कइ
लेखकों द्रारा नलखी पस्ु तकों में नमल जायेगा। भारतवषत सृनि काल से लेकर अज तक योनगयों का देर् रहा है। योगी
परुु ष ऄपनी साधनाकाल में समय-समय पर त्राटक का भी ऄभ्यास नकया करते थे। त्राटक का ऄभ्यास करने वाले
योगी ननश्चय ही ऄत्यतं र्न‍तर्ाली हुअ करते थे। त्राटक द्रारा अध्यानत्मक कायत तो करते ही थे, जरुरत पड़ने पर
सांसाररक कायत नकया करते थे। ऐसा तभी नकया गया है जब त्राटक के प्रयोग करने की ऄत्यंत अवश्यकता अ जाती
थी। हम यहाँ पर कुछ पवू क त ाल के ईदाहरण नलख रहे हैं जब आसका प्रयोग नकया गया।

1. त्राटक द्वारा भगिान शक


ां र का कामदेि को भस्म करना
र्ास्त्रों में वणतन नमलता है नक अनदकाल में तारकासरु नाम का ऄसरु ऄत्यंत र्न‍तर्ाली होने के कारण
ईत्पात मिा रहा था। ऄधमत में प्रवत्त हुअ ऄसरु देवताओ ं को नवनभन्न प्रकार के कष्ट देने में लगा हुअ था। वह नकसी
के द्रारा मारा नहीं जा सकता था, ईसे नसफत भगवान र्क ं र व अनदर्न‍त के ऄंर् से ऄवतररत पावतती का पत्रु ही मार
सकता था। भगवान र्क ं र ऄपनी संनगनी सती के नवयोग में समानध ऄवस्था में िले गये और ऄपने स्वरूप में नस्थत हो
गये। पावतती के साथ नववाह करने के नलये भगवान र्क ं र का समानध ऄवस्था से जाग्रत ऄवस्था में अना अवश्यक
था, तभी नववाह हो सकता था। आन दोनों के द्रारा ईत्पन्न पत्रु से ही तारकासरु मारा जाना नननश्चत था। दख ु ी हुए देवताओ ं
ने भगवान र्क ं र को समानध ऄवस्था से जाग्रत ऄवस्था में लाने का कायत कामदेव को सौंप नदया। कामदेव व ईनकी
पत्नी रनत दोनों भगवान र्क ं र को समानध ऄवस्था से जाग्रत करने का प्रयास करने लगे। कइ प्रकार से प्रयास करने के
बाद कामदेव व रनत ईनकी समानध भगं न कर सके । ऄतं में कामदेव ने ऄपने नवर्ेष धनषु से तीर का सधं ान नकया। वह
तीर नवर्ेष प्रकार की र्न‍त से यक्त ु था। तीर भगवान र्क ं र के रृदय िेत्र में लगा, तीर के प्रहार से भगवान र्क ं र की
समानध भगं हो गयी। यनद नकसी को बलपवू क त गहरी समानध में बैठे हुए अघात पहुिँ ा कर जाग्रत कर नदया जाए तो
स्पि है ईसे क्रोध अ जायेगा। भगवान र्क ं र की समानध भगं होते ही ईन्हें क्रोध अ गया, पलभर में वह सबकुछ समझ
गये। भगवान र्क ं र क्रोध में अकर ऄपना तीसरा नेत्र खोल नदया। तीसरे नेत्र से ननकली योगानग्न के द्रारा कामदेव का
र्रीर जलकर भस्म हो गया ऄथातत् कुछ ही पलों में कामदेव जलकर राख का ढेर बन गये।

त्राटक 121
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आस संदभत में सबसे बड़ी बात यह है– भगवान र्क ं र िाहते तो ऄपने नत्रर्लू से भी कामदेव का नार् कर
सकते थे ऄथवा र्ब्दों द्रारा भी कामदेव का नार् कर सकते थे, मगर ईन्होंने तीसरा नेत्र खोलकर त्राटक द्रारा ही
कामदेव का नार् नकया। ईन्होंने ऄपनी आच्छा र्न‍त को तीसरे नेत्र से ही तेजस् रूप में प्रकट करके कामदेव को भस्म
कर नदया। आससे नसि होता है– त्राटक के द्रारा के नन्रत हुइ तेजस् रूप में आच्छा र्न‍त ऄत्यंत र्न‍तर्ाली हो जाती है।
ऄगर आसका प्रयोग नकसी कायत के नलये करें , तो ननश्चय ही ऄन्य तरीकों की ऄपेिा आससे र्ीघ्र कायत सम्पन्न होता है।
त्राटक की र्न‍त का सामर्थयत साधक के सयं म व र्ि ु ता पर भी ननभतर करती है।

2. बावल द्वारा त्राटक का बार-बार प्रयोग करना


त्रेता यगु में नकनष्कन्धा के राजा बानल ने ऄपने जीवन में ढेरों बार त्राटक का प्रयोग नकया। राजा बानल नकम्प
परुु ष था, नकम्प परुु ष वैसे भी र्न‍तर्ाली होते हैं; आस प्रकार की जानत पवू तकाल में पायी जाती थी, नफर यह जानत
नवलप्तु हो गयी। राजा बानल ऄत्यन्त तपस्वी व सयू त देवता के ईपासक थे, ईन्होंने ऄत्यंत कठोर संयम करते हुए सयू त
त्राटक का ऄभ्यास नकया था। ईन्होंने त्राटक में पारंगता प्राप्त की थी तथा त्राटक नवज्ञान में ननपणु होने के कारण त्राटक
का प्रयोग करने में महारत प्राप्त थी। राजा बानल स्वयं भी बलवान थे तथा यि ु कला में ननपणु ता प्राप्त कर रखी थी।
यि ु के समय ऄपने प्रनतद्रन्दी पर वह त्राटक का प्रयोग नकया करते थे, त्राटक द्रारा ननकाली गयी र्न‍त से ऄपने
प्रनतद्रन्दी के मनस्तष्क पर प्रहार करते थे। आस प्रकार के प्रहार के सामने ईपनस्थत प्रनतद्रन्दी के मनस्तष्क पर व मन पर
ऄनधकार कर लेते थे। आसका प्रभाव सक्ष्ू म र्रीर पर पड़ता है। यनद नकसी मनष्ु य के मन पर सक्ष्ू म रूप से ऄनधकार कर
नलया जाये, तब वह मनष्ु य ननश्चय ही माननसक रूप से कमजोर हो जाता है, ऄथवा त्राटककतात जैसा िाहेगा वैसा ही
नवरोधी को करना होगा, भले ही वह ऄसीनमत बल वाला ‍यों न हो। स्थल ू र्रीर तो यंत्र मात्र ही है, आसके ऄन्दर व्याप्त
सक्ष्ू म र्रीर ही तो कायत करता है। नकसी के मन और मनस्तष्क पर ऄनधकार करके जैसा संदर् े भेजा जायेगा, वह वैसा
ही कायत करे गा ‍योंनक वह ऄब स्वतंत्र नहीं रहता है, ईसके मन और मनस्तष्क पर दसू रे का ऄनधकार हो िक ु ा है।
त्राटक नवद्या में पारंगत राजा बानल से कोइ यि
ु करने को तैयार नहीं होता था। जो ईसके साथ यि ु करता था
ईसकी हार होनी नननश्चत थी। राजा बानल के जीवन में एक बहुत ऄच्छा ईदाहरण पढ़ने को नमलता है– लंका का राजा
रावण ने ऄत्यंत कठोर तपस्या द्रारा ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर वरदान से यक्तु हो गया था तथा रावण ढेरों असरु ी
नवद्याओ ं से यक्त
ु होने के कारण ऄहक ं ारी व ऄधमी हो गया था। वह ऊनषयों, मनु नयों, तपनस्वयों को ऄकारण ही कष्ट
नदया करता था तथा ईनकी तपस्या में ऄवरोध डाला करता था। एक बार सायंकाल के समय रावण का सामना राजा
बानल से हो गया, ईस समय राजा बानल सयू ोपासना में व्यस्त था। ऄहक ं ारी रावण ईसी समय बानल को यि ु करने के
नलये ललकारने लगा, राजा बानल के बार- बार समझाने का प्रभाव रावण पर नहीं हुअ, वह बराबर यि ु करने के नलये
ललकारता रहा। रावण ने सोिा– बानल डर के कारण यि ु नहीं करना िाहता है, बार-बार यि ु की ललकार सनु कर

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राजा बानल यिु के नलये तैयार हो गया। बानल के नवषय में रावण को ज्ञात नहीं था, बानल जैसे ही रावण के सामने यि

करने के नलये अया, ईसके त्राटक के द्रारा रावण पर प्रहार नकया और रावण से यि ु करने लगा। माननसक रूप से
कमजोर हुअ रावण बानल के सामने नटक नहीं सका; बानल ने ईसे परानजत कर ऄपने बाजओ ु ं में दबा नलया। जब बहुत
समय तक रावण बानल की बाजओ ु ं से मक्त
ु नहीं हो सका, तब रावण को बानल से प्राथतना करनी पड़ी, नफर बानल ने
रावण को मक्त
ु कर नदया।
राजा बानल के जीवन से हमें एक और नर्िा लेनी िानहए। ईसने ऄपने छोटे भाइ को ईसका नहस्सा नहीं नदया
था और ईसने ईसकी पत्नी भी छीन ली थी। ईसके भाइ सग्रु ीव ने ऄपने जीवन के बहुत वषत जगं लों में नछपकर नबताये
थे; ऄतं में सग्रु ीव ने श्रीराम जी से नमत्रता कर ली। बानल के कमों की सजा देने के नलये श्रीराम जी ने नछपकर बानल का
वध कर नदया था। वैसे यि ु का ननयम होता है नक र्त्रु को नछपकर नहीं मारते हैं, मगर बानल की त्राटक र्न‍त व ईसे
नमले वरदान के कारण ऄथातत् वरदान की मयातदा रखने के नलये श्री राम जी ने ऐसा नकया था। जब नकसी भी प्रकार की
प्राप्त हुइ र्न‍त का दरुु पयोग नकया जाता है, तब ऐसे ऄधमत में प्रवत्त हुए मनष्ु य को ईसका कभी न कभी फल ऄवश्य
भेागना पड़ता है। आसनलए नकसी भी साधक को आस प्रकार की र्न‍त का गलत प्रयोग नहीं करना िानहए।

3. त्राटक द्वारा मुचकुन्द का कालयिन को जलाकर भस्म करना


पवू क
त ाल में आ‍वािु वर्ं ी राजा मान्धाता के पत्रु का नाम मिु कुन्द था। राजा मिु कुन्द ऄपने जमाने के प्रतापी
राजा थे। ईसी समय देवासरु संग्राम र्रुु हो गया। देवताओ ं के राजा आन्र के कहने पर प्रतापी राजा मिु कुन्द ने धमत की
रिा के नलये देवताओ ं के साथ नमलकर ऄसरु ों से लगातार यि ु बहुत समय तक नकया। ऄन्त में देवताओ ं की जीत हुइ।
बहुत समय तक यि ु िलने के कारण राजा मिु कुन्द सो नहीं पाये थे। राजा आन्र को बताकर वह एकान्त में एक गफ ु ा के
ऄन्दर सोने के नलये िले गये। गफ ु ा के ऄन्दर सोने के नलये आसनलए िले गये तानक ईनकी ननरा में नकसी प्रकार का
व्यवधान या रुकावट ना अये। नफर द्रापर यगु के ऄतं में भगवान श्रीकृ ष्ण जी का जरासन्ध के नमत्र कालयवन से यि ु
हुअ। यि ु में भगवान श्रीकृ ष्ण जी ने कालयवन को नहीं मारा, बनल्क ईसी के सामने श्रीकृ ष्ण यि ु भनू म छोड़कर भागने
लगे, ‍योंनक वे कुछ और भी लीला करना िाहते थे। भागते हुए श्रीकृ ष्ण का पीछा कालयवन करता रहा। श्री कृ ष्ण जी
बड़ी ितरु ाइ से कालयवन को ऄपने पीछे दौड़ाते हुए ईसी गफ ु ा में प्रवेर् कर गये, नजसमें बहुत समय से राजा मिु कुन्द
सोये हुये थे। श्री कृ ष्ण जी ने ऄपना पीताम्बर सोये हुए मिु कुन्द के उपर डाल नदया और स्वयं गफ ु ा के ऄन्दर एक ओर
नछप गये। कालयवन भी पीछा करता हुअ गफ ु ा के ऄन्दर प्रवेर् कर गया। कालयवन ने जब गफ ु ा के ऄन्दर पीताम्बर
ओढ़े हुए मिु कुन्द को देखा, तो वह यही समझा नक कृ ष्ण ही पीताम्बर ओढ़ कर सोने का नाटक कर रहे हैं। कालयवन
ऄभरता देते हुए श्रीकृ ष्ण जी के धोखे में मिु कुन्द को जगाने लगा। जगाते समय कालयवन ने सोये हुए राजा के साथ
ऄभरता भी की। दीघतकाल से सोये हुए मिु कुन्द जाग गये, मगर ऄभी ईनकी नींद परू ी नहीं हुइ थी, ईन्हें कालयवन ने

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जबरदस्ती जगा नदया था। कालयवन द्रारा आस प्रकार से जगाये जाने के कारण ईन्हें क्रोध अ गया। राजा मिु कुन्द ने
कालयवन को देखा और सोिने लगे– आसने मझु े ननरा से ऄकारण ही जगा नदया। नफर राजा मिु कुन्द ने त्राटक र्न‍त
का प्रयोग करके ऄपने नेत्रों से योगानग्न द्रारा ईसे कुछ ही िणों में जलाकर भस्म कर नदया।
र्ास्त्रों में वनणतत ऐसी घटनाओ ं से जानकारी नमलती है नक पवू क
त ाल में राजा के पत्रु भी बिपन में जाकर र्ास्त्रों
के ऄध्ययन के साथ साथ योग का भी ऄभ्यास नकया करते थे। ईसी समय योगाभ्यास में त्राटक का भी ऄभ्यास नकया
जाता था। यनद त्राटक का ऄभ्यास नहीं नकया जाता होता, तो त्राटक के द्रारा कै से जला कर भस्म कर सकते थे?

4. गान्धारी ने त्राटक के द्वारा अपने पुत्र का शरीर िज्र जैसा बना वदया
महाभारत की बात है, जब महाभारत यि ु हो रहा था। कौरव एक-एक करके मारे जा रहे थे। यि ु के ऄनं तम
समय में जब कौरवों में नसफत दयु ोधन ही रह गया था। तब ऄपनी माता गान्धारी से ‚यि ु में नवजय प्राप्त हो‛ आसका
अर्ीवातद लेने के नलये ऄपने घर में गया। ईसने माता गान्धारी से प्राथतना की– ‚माता! मझु े यि ु में नवजय प्राप्त हो,
ऐसा अर्ीवातद दें‛। ईसकी माता गन्धारी ने अर्ीवातद देने से तो आक ं ार कर नदया, मगर पत्रु मोह में अकर गान्धारी ने
कहा– ‚मैं तम्ु हें अर्ीवातद तो नहीं दगँू ी, हाँ तम्ु हें ऐसा सरु िा कवि दे सकती हँ नजससे तम्ु हारा र्रीर वज्र के समान हो
जायेगा‛। आसके नलये दयु ोधन तैयार हो गया। गान्धारी बोली– ‚पहले तमु गगं ा स्नान करके ननवतस्त्र ऄवस्था में अओ,
नफर मैं तम्ु हें कवि प्रदान करूँगी‛। दयु ोधन गगं ा में स्नान करने के नलये िल नदया। स्नान करके वापस अते समय रास्ते
में भगवान श्रीकृ ष्ण जी नमल गये, श्रीकृ ष्ण जी तो सबकुछ जानते थे। श्रीकृ ष्ण जी को देखते ही दयु ोधन नग्नावस्था के
कारण नझझक गया। श्रीकृ ष्ण जी ने पछ ू ा– ‚आस समय ऐसी ऄवस्था में कहाँ जा रहे हो‛? दयु ोधन बोला– ‚माता के
पास जा रहा ह‛ँ । श्री कृ ष्ण जी बोले– ‚माता के पास नग्नावस्था में जा रहे हो! ऄब तमु बच्िे नहीं हो, यवु ावस्था वाले
हो, ‍या ईनित है ऐसी ऄवस्था में जाना?‛ आतना कह कर श्रीकृ ष्ण जी िले गये। दयु ोधन ने सोिा– सि है, ऐसी
ऄवस्था में नहीं जाना िानहए। दयु ोधन ने कुछ सोिकर र्रीर के मध्य भाग में एक छोटा सा वस्त्र पहन नलया, और
माता के पास पहुिँ गया। दयु ोधन ऄपनी माता गान्धारी से बोला– ‚माता! अपकी अज्ञानसु ार गगं ा स्नान करके अ
गया ह‛ँ । गान्धारी ने कहा– ‚मेरे सामने खड़े हो जाओ‛। दयु ोधन सामने खड़ा हो गया। गान्धारी सदैव ऄपनी अँखों पर
पट्टी िढ़ाये रखती थी। वह नर्व भनक्तनी, पनतव्रता व कठोर संयम करने वाली थी, आसनलए वह योगबल से यक्त ु थी,
मगर पत्रु मोह में सबकुछ ऐसा कर रही थी। कइ वषों से अँखों पर बँधी पट्टी को ईसने दयु ोधन के सामने खोल नदया,
नफर गान्धारी ने त्राटक करते हुए सारा योगबल अँखों द्रारा ननकाल कर दयु ोधन का र्रीर वज्र के समान बना नदया।
मगर नजस स्थान पर दयु ोधन ने वस्त्र पहन रखा था, वही स्थान कमजोर रह गया ऄथातत् वज्र के समान नहीं बना। ऄथातत्
श्रीकृ ष्ण जी की नीनत काम कर गयी।

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आस घटना में महत्त्वपणू त बात यह है नक नजस गान्धारी ने कठोर संयम के द्रारा व भनक्त के द्रारा योगबल एकत्र
नकया था ऄथवा प्राप्त नकया था, ईसी ने पत्रु मोह में अकर ऄधमी पत्रु पर प्रयोग कर नदया। नफर भी गान्धारी की
आच्छा पणू त न हो सकी ‍योंनक दयु ोधन का र्रीर पणू त रूप से वज्र के समान नहीं हो पाया था। प्रयोगकतात को सदैव धमत-
ऄधमत का ननणतय करके ही आस प्रकार की र्न‍त का प्रयोग करना िानहए, नहीं तो र्न‍त का दरुु पयोग ही कहा जाएगा।

5. व्यास जी द्वारा त्राटक का प्रयोग


द्रापर यगु के ऄतं में राजा र्ान्तनु ने दो र्ानदयाँ की थी। एक देवी गगं ा से की थी, दसू री मत्स्यगन्धा से की थी।
देवी गगं ा से देवव्रत ईत्पन्न (भीष्म नपतामह) हुए, आन्होंने र्ादी न करने की प्रनतज्ञा की थी। मत्स्यगन्धा से दो पत्रु ईत्पन्न
हुए– पहले नवनित्रवीयत, दसू रे नित्रागदं । परंतु दोनों की ऄसमय मृत्यु हो गयी; तब तक आन दोनों के पत्रु नहीं हुए थे।
नवनित्रवीयत की पनत्नयों का नाम ऄनम्बका और ऄम्बानलका था। राजगद्दी पर बैठने के नलये कोइ राजकुमार नहीं था,
आन दोनों राननयों से पत्रु प्रानप्त के नलये राजमाता द्रारा वेदव्यास जी को बल
ु ाया गया।
वेदव्यास जी को सारी बात बताइ गयी। व्यास जी आस कायत के नलये तैयार हो गये। व्यास जी ने सबसे पहले
ऄनम्बका पर त्राटक र्न‍त का प्रयोग नकया, वह व्यास जी के तेज को सह नहीं सकी, आसनलए ईसने भय के कारण
अँखें बदं कर ली। यह बात व्यास जी ने मत्स्यगन्धा (राजमाता) को बताया– ‚माता! मैं ऄभी-ऄभी तपस्या करके
अया ह,ँ आसनलए ऄनम्बका हमारे तेज को सह नहीं सकी। ईसने ऄपनी अँखें बंद कर ली थी, आसनलए ईसका पत्रु
ऄधं ा होगा‛। ऄधं ा पत्रु राजा कै से बन सकता है, आसनलए राजमाता ने दसू री बार में ऄम्बानलका को व्यास जी के पास
भेजा, तथा ईसे समझा नदया गया नक वह ऄनम्बका की तरह न करे , भयभीत होने की अवश्यकता नहीं है।
ऄम्बानलका व्यास जी के पास गयी, जब ईसने व्यास जी को और ईनके तेज को देखा, तो ईसने अँखें तो बंद
नहीं की, मगर ईसके र्रीर का रंग पीला पड़ गया। राजमाता के समझाने के बाद भी ईसके र्रीर का रंग पीला हो गया।
व्यास जी ने राजमाता को बताया– ‚ऄम्बानलका का भय के कारण रंग पीला पड़ गया था, आसनलए आससे होने वाला
पत्रु रोगग्रस्त रहेगा‛। राजमाता सोि में पड़ गयी, ऄब ‍या नकया जाए। तब ईन्होने ने ननणतय नकया– ऄबकी बार दासी
को भेज नदया जाए, आसके नलये दासी को भलीभाँनत समझा नदया गया। जब दासी व्यास जी के पास पहुिँ ी, वह नकसी
भी प्रकार से भयभीत नहीं हुइ। ईसने व्यास जी के तेज को सह नलया, वह नविनलत नहीं हुइ। व्यास जी ने राजमाता को
बताया– ‚दासी भयभीत नहीं हुइ, ईसने हमारे तेज को सह नलया है, आसनलए ईसके द्रारा ईत्पन्न हुअ पत्रु ज्ञानवान व
यर्स्वी होगा, धमत परायण व इश्वर भक्त होगा‛।
द्रापर यगु के ऄतं में यह नवर्ेषता को नलए महत्त्वपूणत घटना थी। आस सम्पणू त घटना में व्यास जी ने त्राटक
र्न‍त का प्रयोग नकया था। त्राटक के द्रारा पाँि तत्त्वों के ऄनतसक्ष्ू म नमश्रण से ईस वस्तु को प्रकट कर नदया, नजसके

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द्रारा गभातर्य में भ्रणू का नवकास हो सके , यहाँ पर पाँिों तत्त्वों को प्रकट नकया गया है। आस घटना से एक और नर्िा
नमलती है– दोनों राननयों (ऄनम्बका और ऄम्बानलका) से वेदव्यास जी का तेज को सहन नहीं हो पाया था, आसनलए
एक ने अँखें बदं कर ली, दसू री भय के कारण पीली पड़ गयी थी। आसीनलए एक ऄधं ा पत्रु और दसू रा रोगयक्त ु
(पीनलया रोग) पत्रु ईत्पन्न हुअ। पत्रु ईत्पन्न के समय जैसे माता के नविार होते हैं, वैसा ही पत्रु ईत्पन्न होता है।
आसीनलए र्ास्त्रों में नलखा नमलता है नक पत्रु प्रानप्त के समय माता को मत्रं ों का जाप करना िानहए तथा कुछ और भी
नवनधयाँ बताइ गयी हैं।
योगी जब लगातार बहुत समय तक साधना करता रहता है, ईसके बाद ईसका र्रीर तेज से ओत-प्रोत हो
जाता है। ईसके ऄन्दर र्न‍तपात करने की िमता पहले की ऄपेिा बहुत ही ज्यादा बढ़ जाती है। यही बात ईस कायत
के समय थी। वेदव्यास जी को कइ वषों की साधना करने के बाद तरु न्त यहाँ अना पड़ा था। हमारे कहने का ऄथत यह
है– नजसके पास योगबल ऄनधक होगा, ईसके पास र्न‍तपात करने की िमता भी ऄनधक होगी। नसफत त्राटक का
प्रयोग करने मात्र से ही सबकुछ नहीं हो जाता है, बनल्क योगबल का भी महत्त्व होता है। आसनलए त्राटक द्रारा जब कोइ
कायत नकया जाता है, तब यह भी देख लेना िानहए नक साधक के पास योगबल नकतना है। योगबल से यक्त ु होने पर ही
कायत सम्पन्न हो पाता है।
हमने यहाँ पर पाँि ईदाहरण पवू क
त ाल के नलखकर यह बताना िाहा है नक त्राटक का ऄभ्यास व ईसका प्रयोग
पवू कत ाल में भी नकया जाता था। ऄथातत् त्राटक एक ऐसा नवज्ञान है नजसका नवकास व प्रयोग पवू क
त ाल में भी नकया
जाता था और वततमान काल में भी नकया जाता है। बहुत से लोग आसका प्रयोग अजकल मागतदर्तन के नलये भी करते
हैं।

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लेख के अांत में

नप्रय पाठकों!
आस पस्ु तक में लेख मेरे ऄभ्यास के ऄनसु ार ही नलखे गए हैं ऄथातत् जो मैंने ऄभ्यास के द्रारा जाना है वही
नलखा है। मैंने कइ वषों तक त्राटक का कठोर ऄभ्यास नकया है, तब ये सभी जानकाररयाँ मझु े प्राप्त हुइ हैं। मैंने त्राटक
के द्रारा बहुत से प्रयोग नकए हैं, ईन प्रयोगों के कुछ ऄर् ं मैंने आस पस्ु तक में नलखने का प्रयास नकया है। बहुत सी ऐसी
जानकाररयाँ हैं नजन्हें पस्ु तक में नलख कर नहीं बताया जा सकता है, ‍योंनक ईन जानकाररयों को प्रकट करने से ऄज्ञानी
मनष्ु यों द्रारा ऄननु ित लाभ भी ईठाया जा सकता हैं। आस नवद्या का दरुु पयोग न हो, आसनलए मैंने ईनका वणतन नहीं नकया
हैं। ऐसी गप्तु नवद्याएँ गरुु -नर्ष्य परम्परा के ऄन्तगतत ही बताइ जाती हैं तथा गरुु स्वयं ऄपने सामने नर्ष्य को ऄभ्यास
कराता है।
वततमान में त्राटक का ऄभ्यास सभी मनष्ु यों को करना िानहए, ‍योंनक आससे स्थल ू व सक्ष्ू म दोनों प्रकार का
लाभ ऄभ्यासी ले सकता हैं। आस नवषय में मैं आस पस्ु तक में नलख िक ु ा ह।ँ एक बार मैं नफर बता द–ँू गरुु पद पर बैठे
परुु षों को अवश्य ही त्राटक का ऄभ्यास ज्यादा से ज्यादा करना िानहए, आससे मागतदर्तन करने में बहुत सहायता
नमलती है। मैंने भी स्वयं ऐसा ही नकया है, मैं सदैव दरू बैठा हुअ ऄपने नर्ष्यों पर त्राटक के द्रारा ही र्न‍तपात करता
ह।ँ त्राटक के ऄभ्यास से नवद्यानथतयों, यवु कों और वृि परुु षों को समान रूप से लाभ ही लाभ प्राप्त होता हैं। यह एक
ऐसा नवज्ञान है– आससे मनस्तष्क का नवकास, मन की नस्थरता और आनन्रय संयम अनद र्ीघ्रता से नकया जा सकता हैं,
यह गणु श्रेठ परुु ष बनने के नलए ऄनत अवश्यक है। लेख के ऄतं में एक अवश्यक बात बताना िाहगँ ा– त्राटक का
ऄच्छा ऄभ्यासी बनने के नलए आस नवद्या में पारंगत गरुु का होना ऄनत अवश्यक है, वही ऄभ्यास के समय सक्ष्ू म
जानकाररयाँ बता कर और मागतदर्तन करके नर्ष्य को ननपणु बनाने की सामर्थयत रखता है।

-योगी आनन्द जी

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त्राटक 128
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मन की चांचलता के कारण इवन्रयों के आधीन हुआ


व्यवक्त, अज्ञानता िश धमत-अधमत की परिाह वकए वबना,
साांसाररक िस्तुओ ां को प्राप्त करने में लगा रहता है। मगर
त्राटक के अभ्यास के द्वारा मन को वस्थर कर देने पर,
इवन्रयों को अपने आधीन वकए हुआ व्यवक्त व्यिहार की
दशा में सदा वििेक से वनणतय लेता हुआ सदैि सांतुि
रहता है।
वस्थर मन िाला अभ्यासी अपने आपको अन्तमतुखी
करके आांतररक विकास करता हुआ के िल्य उन्मुख हो
सकता है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में त्राटक का अभ्यास
सहायक होता हैं।
-योगी आनन्द जी

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