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सूर्य
वैदिक ज्योदिष में सूर्य का महत्व
वैदिक ज्योदिष में सूर्य ग्रह जन्म कुं डली में दििा का प्रदिदिदित्व करिा है ।
जबदक दकसी मदहला की कुं डली में र्ह उसके िदि के जीवि के बारे में बिािा
है । सेवा क्षेत्र में सूर्य उच्च व प्रशासदिक िि िथा समाज में माि-सम्माि को
िशाय िा है ।
र्ह लीडर (िेिृत्व करिे वाला) का भी प्रदिदिदित्व करिा है । र्दि सूर्य की
महािशा चल रही हो िो रदववार के दिि जािकोुं को अच्छे फल दमलिे हैं । सूर्य
दसुंह रादश का स्वामी है और मेष रादश में र्ह उच्च होिा है , जबदक िला इसकी
िीच रादश है ।
शारीररक रूिरे खा: दजस व्यक्ति की जन्म कुं डली में सूर्य लग्न में हो िो उसका
चेहरा बडा और गोल होिा है । उसकी आँ खोुं का रुं ग शहि के रुं ग जैसा होिा है ।
व्यक्ति के शरीर में सूर्य उसके हृिर् को िशाय िा है । इसदलए काल िरुष कुं डली
में दसुंह रादश हृिर् को िशाय िी है । सूर्य िरुषोुं की िार्ीुं आँ ख और क्तिर्ोुं की
बार्ीुं आँ ख को िशाय िा है ।
रोग: र्दि जन्म कुं डली में सूर्य दकसी ग्रह से िीदडि हो िो र्ह हृिर् और आँ ख
से सुंबुंदिि रोगोुं को जन्म िे िा है । र्दि सूर्य शदि ग्रह से िीदडि हो िो र्ह दिम्न
रि िाब जैसी बीमारी को िैिा करिा है । जबदक गरु से िीदडि होिे िर जािक
को उच्च ब्लड प्रेशर की दशकार्ि होिी है । र्ह चेहरे में महाुं से, िेज़ बखार,
टाइफाइड, दमगी, दित्त की दशकार्ि आदि बीमाररर्ोुं का कारक होिा है ।
सूर्य की दवशेषिाएँ
र्दि जन्मित्री में सूर्य शभ स्थाि िर अवक्तस्थि हो िो जािक को इसके शभ
िररणाम िररणाम दमलिे हैं । सूर्य की र्ह क्तस्थदि जािकोुं के दलए सकारात्मक
होिी है । इसके प्रभाव से लोगोुं को मिवाुं दिि फल प्राप्त होिे हैं और जािक
स्वर्ुं के अच्छे कार्ों से प्रेररि होिे हैं । जािक का स्वर्ुं िर िूरा दिर्ुंत्रण होिा है ।
बली सूर्य: ज्योदिष में सूर्य ग्रह अििी दमत्र रादशर्ोुं में उच्च होिा है दजसके प्रभाव
से जािकोुं को अच्छे फल प्राप्त होिे हैं । इस िौराि व्यक्ति के दबगडे कार्य बििे
हैं । बली सूर्य के कारण जािक के मि में सकारात्मक दवचार िैिा होिे हैं और
जीवि के प्रदि वह आशावािी होिा है । सूर्य के प्रभाव से व्यक्ति अििे जीवि में
प्रगदि करिा है और समाज में उसका माि-सम्माि प्राप्त होिा है । र्ह व्यक्ति
के अुंिर अच्छे गणोुं को दवकदसि करिा है ।
बली सूर्य के प्रभाव: लक्ष्य प्राक्तप्त, साहस, प्रदिभा, िेिृत्व क्षमिा, सम्माि, ऊजाय ,
आत्म-दवश्वास, आशा, खशी, आिुंि, िर्ाल, शाही उिक्तस्थदि, वफािारी,
कलीििा, साुं साररक मामलोुं में सफलिा, सत्य, जीवि शक्ति आदि को प्रिाि
करिा है ।
िीदडि सूर्य के प्रभाव: अहुं कारी, उिास, दवश्वासहीि, ईर्ष्ाय ल, क्रोिी,
महत्वाकाुं क्षी, आत्म केंदिि, क्रोिी आदि बिािा है ।
सूर्य से सुंबुंदिि कार्य/व्यवसार्: सामान्य िौर िर सूर्य जीवि में स्थार्ी िि का
कारक होिा है । र्ह हमारी जन्मित्री में सरकारी िौकरी को िशाय िा है । र्दि
दजस िौकरी में सरक्षा भाव सदिदिि होिा है , वहाँ िर सूर्य का आदिित्य भी
सदिदिि होिा है । कार्यक्षेत्र में सूर्य स्विुंत्र व्यवसार् को िशाय िा है । हालाँ दक
दकसी व्यक्ति का कररर्र कैसा होगा, र्ह सूर्य की िू सरे ग्रहोुं से र्दि र्ा सुंबुंि से
ज्ञाि होिा है । र्हाँ कि ऐसे कार्य व व्यवसादर्क क्षेत्र हैं जो सूर्य से सुंबुंदिि हैं -
प्रशासदिक अदिकारी, राजा, अथवा िािाशाह।
उत्पाि: चावल, बािाम, दमचय, दविे शी मिा, मोिी, केसररर्ा, जडी आदि।
बाजार: सरकारी िे ििारी, स्वणय, ररज़वय बैंक, शेर्र बाज़ार आदि।
पेड़ पौधे: काुं टेिार िेड, घास, िारुं गी के िेड, औषिीर् जडी बूदटर्ोुं आदि।
स्थान: वि, िहाड, दकले, सरकारी भवि इत्यादि।
जानवर और पक्षी: शेर, घोडा, सूअर, िादगि, हुं स आदि।
जड़: बेल मूल।
रत्नः मादणक्य।
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सूर्य के मुंत्र
ज्योदिष में सूर्य ग्रह की शाुं दि और इसके अशभ प्रभावोुं से बचिे के दलए
ज्योदिष में कई उिार् बिार्े गए हैं । दजिमें सूर्य के वैदिक, िाुं दत्रक और बीज
मुंत्र प्रमख हैं ।
चुंि
वैदिक ज्योदिष में चुंि ग्रह का महत्व
चुंिमा िौ ग्रहोुं के क्रम में सूर्य के बाि िू सरा ग्रह है ।
वैदिक ज्योदिष में र्ह मि, मािा, मािदसक क्तस्थदि,
मिोबल, िव्य वस्तओुं, र्ात्रा, सख-शाुं दि, िि-सुंिदत्त,
रि, बार्ीुं आँ ख, िािी आदि का कारक होिा है ।
चुंिमा रादशर्ोुं में ककय और िक्षत्रोुं में रोदहणी, हस्त
और श्रवण िक्षत्र का स्वामी होिा है । इसका आकार
ग्रहोुं में सबसे िोटा है िरुं ि इसकी गदि सबसे िेज़
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मुंगल
ज्योदिष में मुंगल ग्रह का महत्व
वैदिक ज्योदिष में मुंगल ग्रह ऊजाय , भाई, भूदम, शक्ति,
साहस, िराक्रम, शौर्य का कारक होिा है । मुंगल ग्रह
को मेष और वृदिक रादश का स्वादमत्व प्राप्त है ।
र्ह मकर रादश में उच्च होिा है , जबदक ककय इसकी
िीच रादश है । वहीुं िक्षत्रोुं में
र्ह मृगदशरा, दचत्रा और िदिष्ठा िक्षत्र का स्वामी होिा
है । गरुण िराण के अिसार मिर्ष् के शरीर में िेत्र मुंगल ग्रह का स्थाि है । र्दि
दकसी जािक का मुंगल अच्छा हो िो वह स्वभाव से दिडर और साहसी होगा
िथा र्द् में वह दवजर् प्राप्त करे गा। लेदकि र्दि दकसी जािक की जन्म कुं डली
में मुंगल अशभ क्तस्थदि में बैिा हो िो जािक को दवदवि क्षेत्रोुं में कदििाइर्ोुं का
सामिा करिा िडिा है । मुंगल ग्रह लाल रुं ग का प्रदिदिदित्व करिा है ।
मुंगल ग्रह के कारण कुं डली में बििा है माुं गदलक िोष
माुं गदलक िोष मिर्ष् जीवि के िाुं ित्य जीवि को प्रभादवि करिा है । मुंगल िोष
व्यक्ति के दववाह में िे री अथवा अन्य प्रकार की रुकावटोुं का कारण होिा है ।
ज्योदिष शाि के अिसार र्दि दकसी जािक की जन्म कुं डली में मुंगल ग्रह
प्रथम, चिथय, सप्तम, अष्टम और द्वािश भाव में बैिा हो िो र्ह क्तस्थदि कुं डली में
माुं गदलक िोष का दिमाय ण करिी है । इसके प्रभावोुं को कम करिे के दलए
जािक को मुंगल िोष के उिार् करिे चादहए।
होिा है । ऐसे जािकोुं की सेिा, िदलस, इुं जीदिर्ररुं ग क्षेत्र में रुदच होिी है । मुंगल
का लग्न भाव होिा मुंगल िोष भी बिािा है ।
बली मुंगल के प्रभाव - मुंगल की प्रबलिा से व्यक्ति दिडरिा से अििे दिणयर्
लेिा है । वह ऊजाय वाि रहिा है । इससे जािक उत्पािक क्षमिा में वृक्तद् होिी है ।
दविरीि िररक्तस्थदिर्ोुं में भी जािक चिौदिर्ोुं को सहषय स्वीकार करिा है और
उन्हें माि भी िे िा है । बली मुंगल का प्रभाव केवल व्यक्ति के ही ऊिर िहीुं
िडिा है , बक्ति इसका प्रभाव व्यक्ति के िाररवाररक जीवि िर िडिा दिखाई
िे िा है । बली मुंगल के कारण व्यक्ति के भाई-बहि अििे कार्यक्षेत्र में उन्नदि
करिे हैं ।
िीदडि मुंगल के प्रभाव - र्दि मुंगल ग्रह कुं डली में कमज़ोर अथवा िीदडि हो िो
र्ह जािक के दलए समस्या िैिा करिा है । इसके प्रभाव से व्यक्ति को दकसी
िघयटिा का सामिा करिा िडिा है । िीदडि मुंगल के कारण जािक के
िाररवाररक जीवि में भी समस्याएुं आिी हैं । जािक को शत्रओुं से िराजर्,
ज़मीि सुंबुंिी दववाि, क़ज़य आदि समस्याओुं का सामिा करिा िडिा है ।
रोग - कुं डली में मुंगल िीदडि हो िो व्यक्ति को दवषजदिि, रि सुंबुंिी रोग,
कष्ठ, खजली, रिचाि, अल्सर, ट्यूमर, कैंसर, फोडे -फुं सी, ज्वार आदि रोग
होिे की सुंभाविा रहिी है ।
कार्यक्षेत्र - सेिा, िदलस, प्रॉिटी डीदलुंग, इलेक्ट्रॉदिक सुंबुंिी, इलेक्तक्ट्रक
इुं जीदिर्ररुं ग, स्पोटटय स आदि।
उत्पाि - मसूर िाल, रे ल वि, ज़मीि, अचल सुंित्ती, दविट र्ि उत्पाि, िाुं बें की
वस्तएँ आदि।
स्थान - आमी कैंि, िदलस स्टे शि, फार्र दबग्रेड स्टे शि, र्द् क्षेत्र आदि।
पशु व पक्षी - मेमिा, बुंिर, भेड, शेर, भेदडर्ा, सूअर, कत्ता, चमगािड एवुं
सभी लाल िक्षी आदि।
जड़ - अिुंि मूल।
रत्न - मूुंगा।
बुध
ज्योदिष में बि ग्रह का महत्व
ज्योदिष में बि ग्रह को एक शभाशभ ग्रह मािा गर्ा है
अथाय ि ग्रहोुं की सुंगदि के अिरूि ही र्ह फल िे िा
है । र्दि बि ग्रह शभ ग्रहोुं (गरु, शक्र और बली
चुंिमा) के साथ होिा है िो र्ह शभ फल िे िा है और
क्रूर ग्रहोुं (मुंगल, केि, शदि राहु, सूर्य) की सुंगदि में
अशभ फल िे िा है । बि ग्रह दमथि और कन्या रादश
का स्वामी है । कन्या इसकी उच्च रादश भी है
जबदक मीि इसकी िीच रादश मािी जािी है । 27 िक्षत्रोुं में बि
को अश्लेषा, ज्येष्ठा और रे विी िक्षत्र का स्वादमत्व प्राप्त है । दहन्िू ज्योदिष में बि
ग्रह को बक्तद्, िकय, सुंवाि, गदणि, चिरिा और दमत्र का कारक मािा जािा है ।
सूर्य और शक्र, बि के दमत्र हैं जबदक चुंिमा और मुंगल इसके शत्र ग्रह हैं । बि
का वणय हरा है और सप्ताह में बिवार का दिि बि को समदियि है ।
िाक से सुंबुंदिि रोग, चमय रोग, अत्यदिक िसीिा आिा, िुंदत्रका िुंत्र में िरे शािी
आदि का सामिा करिा िडिा है ।
कार्यक्षेत्र - वैदिक ज्योदिष में बि ग्रह का सुंबुंि वादणज्य, लेखि, एुं कररुं ग,
वकील, ित्रकाररिा, कथा वाचक, प्रविा आदि से है ।
उत्पाि - ज्योदिष में बि ग्रह के द्वारा अखरोट, िालक, िौिे, घी, िेल, हरी िालें,
हरे रुं ग के वि आदि वस्तएँ िशाय र्ी जािी हैं ।
स्थान - कॉलेज, दवद्यालर्, दवश्वदवद्यालर्, सभी प्रकार के वादणक्तज्यक स्थाि,
खेल का मैिाि आदि।
पशु पक्षी - कत्ता, बकरी, िोिा, लोमडी, सरीसृि आदि।
जड़ - दविारा मूल।
रत्न - िन्ना।
रुद्राक्ष - चार मखी रुिाक्ष।
र्ंत्र - बि र्ुंत्र।
रं ग - हरा
बुध से संबंदधि मंत्र
बि का वैदिक मुंत्र
ॐ उि् बुध्यस्वािे प्रदि जागृदह त्वदमष्टापूिे सं सृजेथामर्ं च।
अन्द्रस्मन्त्सधस्थे अध्र्ुत्तरन्द्रस्मन् दवश्वेिेवा र्जमानश्च सीिि।।
बि का िाुं दत्रक मुंत्र
ॐ बुं बुधार् नमः
बि का बीज मुंत्र
ॐ ब्रां ब्री ं ब्रौं सः बुधार् नमः
बृहस्पदि
क्षेत्रोुं में लाभ प्राप्त होगा। जािक दशक्षा के क्षेत्र में अव्वल रहे गा। उसके जीवि में
िि की वृक्तद् होगी। व्यक्ति का िूजा िाि में मि लगेगा। दजस व्यक्ति का गरु
बलवाि होिा है वह ज्ञािी और ईमाििार होिा है । वह सिै व सत्य के मागय िर
चलिा है । बली गरु के कारण व्यक्ति को सुंिाि सख की प्राक्तप्त होिी है ।
िीदडि गरु के प्रभाव - बली चुंिमा के कारण व्यक्ति को गरु से शभ फल प्राप्त
होिे हैं । लेदकि इसके दविरीि िीदडि बृहस्पदि जािकोुं के दलए अच्छा िहीुं
मािा जािा है । इसके कारण जािक को दवदभन्न क्षेत्रोुं में चिौदिर्ोुं का सामिा
करिा िडिा है । र्दि कोई व्यक्ति दशक्षा क्षेत्र से जडा है िो उसे इस क्षेत्र में
िरे शादिर्ाँ आएुं गी। िीदडि गरु के कारण व्यक्ति की वृक्तद् थम जािी है और
उसके मूल्ोुं का ह्लास होिा है । िीदडि गरु व्यक्ति को शारीररक कष्ट भी िे िा
है । व्यक्ति को िौकरी िथा दववाह आदि में िरे शािी का सामिा करिा िडिा है ।
इस क्तस्थदि में व्यक्ति को गरु के ज्योदिषीर् उिार् करिे चादहए।
रोग - ज्योदिष में बृहस्पदि ग्रह से व्यक्ति को िेट से सबुंदिि रोग, अिच, िेट
ििय , एदसदडटी, कमज़ोर िाचि िुंत्र, कैंसर जैसी बीमारी होिे का खिरा रहिा
है ।
कार्यक्षेत्र - ज्योदिष में बृहस्पदि ग्रह अध्यािि, सुंिािि कार्य, ििवाडी, हलवाई,
इत्र का कार्य, दफल्म दिमाय ण, िीली वस्तओुं का व्यािार, आभूषण दवक्रेिा आदि
कार्ों से सुंबुंि रखिा है ।
उत्पाि - स्टे शिरी से सुंबुंदिि वस्तएँ , खाद्य उत्पाि, मक्खि, घी, दमष्ठाि, सुंिरा,
केला, हल्दी, िीले रुं ग के िष्प, चिा, िाल आदि वस्तओुं को बृहस्पदि ग्रह से
िशाय र्ा जािा है ।
स्थान - स्टे शिरी की िकाि, अिालि, िादमयक िूजा स्थल, दवद्यालर्, कॉलेज,
दविािसभा आदि।
जानवर िथा पक्षी - ज्योदिष में बृहस्पदि ग्रह घोडा, बैल, हाथी, बाज, िालिू
जािवर, मोर, व्हे ल मिली, डॉक्तिि आदि िश-िदक्षर्ोुं िथा जािवरोुं को
िशाय िा है ।
जड़ - केले की जड।
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रत्न - िखराज।
रुद्राक्ष - िाँ च मखी रुिाक्ष।
र्ंत्र - गरु र्ुंत्र।
रं ग - िीला
शक्र
पीदड़ि शुक् - िीदडि शक्र के कारण व्यक्ति के वैवादहक जीवि में िरे शादिर्ाँ
आिी हैं । ििी-िदत्न के बीच मिभेि होिे हैं । व्यक्ति के जीवि में िररििा आिी
है और वह भौदिक सखोुं के अभाव में जीिा है । र्दि जन्म कुं डली में शक्र
कमज़ोर होिा है िो जािक को कई प्रकार की शारीररक, मािदसक, आदथयक एवुं
सामादजक कष्टोुं का सामिा करिा िडिा है । िीदडि शक्र के प्रभाव से बचिे के
दलए जािकोुं को शक्र ग्रह के उिार् करिे चादहए।
रोग - कमज़ोर शक्र के कारण जािक की कामक शक्ति कमज़ोर होिी है ।
इसके प्रभाव से व्यक्तिर्ोुं को दकडिी से सुंबुंदिि बीमारी होिे का खिरा रहिा
है । व्यक्ति को आँ खोुं से सबुंदिि वहीुं िी जािकोुं के दलए शक्र गभयिाि का
कारण बििा है ।
कार्यक्षेत्र - ज्योदिष में शक्र ग्रह कोररर्ोग्राफी, सुंगीिकार, िेंटर, फैशि,
दडज़ाइदिुंग, इवेंट मैिेजमेंट, किडा सुंबुंिी व्यवसार्, होटल, रे स्टर ोरें ट, टू र एुं ड
टर े वल, दथएटर, सादहत्यकार, दफल्म इुं डस्टर ी आदि कार्यक्षेत्र को िशाय िा है ।
उत्पाि - ज्योदिष में शक्र ग्रह सौन्दर्य उत्पाि, दविट र्ि उत्पाि, फैन्सी प्रोडक्ट्ट स,
इत्र, कन्फेक्शिरी, फूल, चीिी, कार, दशि, हवाई जहाज़, िेटरोल आदि वस्तओुं
को िशाय िा है ।
स्थान - शर्ि कक्ष, दसिेमा, बगीचा, बैंकेट हॉल, ऑटोमोबाइल इुं डस्टर ी,
बुंिरगाह, हवाई हड्डा, खािािें, िे ह व्यािार क्षेत्र आदि
जानवर व पक्षी - बकरी, बैल, बत्तक, दचदडर्ा, िेंिआ आदि।
जड़ी - अरुं ड मूल।
रत्न - हीरा।
रुद्राक्ष - िः मखी रुिाक्ष।
रं ग - गलाबी।
र्ंत्र - शक्र र्ुंत्र।
शदन
ज्योदिष में शदि ग्रह का महत्व
वैदिक ज्योदिष में शदि ग्रह का बडा महत्व है । दहन्िू
ज्योदिष में शदि ग्रह को आर्, िख, रोग, िीडा,
दवज्ञाि, िकिीकी, लोहा, खदिज िेल, कमयचारी,
सेवक, जेल आदि का कारक मािा जािा है ।
र्ह मकर और कुं भ रादश का स्वामी होिा
है । िला रादश शदि की उच्च रादश है
जबदक मेष इसकी िीच रादश मािी जािी है । शदि का
गोचर एक रादश में ढाई वषय िक रहिा है । ज्योदिषीर्
भाषा में इसे शदि ढै य्या कहिे हैं । िौ ग्रहोुं में शदि की गदि सबसे मुंि है । शदि
की िशा साढे साि वषय की होिी है दजसे शदि की साढे सािी कहा जािा है ।
समाज में शदि ग्रह को लेकर िकारात्मक िारणा बिी हुई है । लोग इसके िाम
से भर्भीि होिे लगिे हैं । िरुं ि वास्तव में ऐसा िहीुं है । ज्योदिष में शदि ग्रह को
भले एक क्रूर ग्रह मािा जािा है िरुं ि र्ह िीदडि होिे िर ही जािकोुं को
िकारात्मक फल िे िा है । र्दि दकसी व्यक्ति का शदि उच्च हो िो वह उसे रुं क
से राज बिा सकिा है । शदि िीिोुं लोकोुं का न्यार्ािीश है । अिः र्ह व्यक्तिर्ोुं
को उिके कमय के आिार िर फल प्रिाि करिा है ।
शदि िर्ष्, अिरािा और उत्तराभाििि िक्षत्र का स्वामी होिा है ।
रोग - ज्योदिष में शदि ग्रह को कैंसर, िैरालाइदसस, जक़ाम, अस्थमा, चमय रोग,
िैक्चर आदि बीमाररर्ोुं का दजम्मेिार मािा जाि है ।
कार्यक्षेत्र - ऑटो मोबाईल दबजिेस, िाि से सुंबुंदिि व्यािार, इुं जीदिर्ररुं ग,
अदिक िररश्रम करिे वाले कार्य आदि कार्यक्षेत्रोुं को ज्योदिष में शदि ग्रह के
द्वारा िशाय र्ा गर्ा है ।
उत्पाि - मशीि, चमडा, लकडी, आलू , काली िाल, सरसोुं का िेल, काली
वस्तएँ , लोहा, कैदमकल प्रॉडक्ट्ट स, ज्वलिशील ििाथय, कोर्ला, प्राचीि वस्तएँ
आदि का सुंबुंि ज्योदिष में शदि ग्रह से है ।
स्थान - फैक्ट्ी, कोर्ला की खाि, िहाड, जुंगल, गफाएँ , खण्डहर, चचय, मुंदिर,
कुं आ, मदलि बस्ती और मदलि जगह का सुंबुंि शदि ग्रह से है ।
जानवर िथा पशु-पक्षी - ज्योदिष में शदि ग्रह दबल्ली, गिा, खरगोश, भेदडर्ा,
भालू, मगरमच्छ, साँ ि, दवषैले जीव, भैंस, ऊँट जैसे जािवरोुं का प्रदिदिदित्व
करिा है । र्ह समिी मिली, चमगािड और उल्लू जैसे िदक्षर्ोुं का भी
प्रदिदिदित्व करिा है ।
जड़ी - ििूरे की जड का सुंबुंि शदि ग्रह से है ।
रत्न - िीलम रत्न शदि ग्रह की शाुं दि के दलए िारण दकर्ा जािा है ।
रुद्राक्ष - साि मखी रुिाक्ष शदि ग्रह के दलए िारण दकर्ा जािा है ।
र्ंत्र - शदि र्ुंत्र।
मंत्र
शदि का वैदिक मुंत्र
ॐ शं नो िे वीरदभष्टर् आपो भवन्तु पीिर्े।
शं र्ोरदभ स्त्रवन्तु न:।।
राहु
ज्योदिष में राहु ग्रह का महत्व
ज्योदिष में राहु ग्रह को एक िािी ग्रह मािा जािा
है । वैदिक ज्योदिष में राहु ग्रह को किोर वाणी,
जआ, र्ात्राएँ , चोरी, िष्ट कमय, त्वचा के रोग,
िादमयक र्ात्राएँ आदि का कारक कहिे हैं । दजस
व्यक्ति की जन्म िदत्रका में राहु अशभ स्थाि िर
बैिा हो, अथवा िीदडि हो िो र्ह जािक को इसके
िकारात्मक िररणाम प्राप्त होिे हैं । ज्योदिष में राहु
ग्रह को दकसी भी रादश का स्वादमत्व प्राप्त िहीुं है ।
लेदकि दमथि रादश में र्ह उच्च होिा है और िि रादश में र्ह िीच भाव में होिा
है ।
27 िक्षत्रोुं में राहु आिा, स्वादि और शिदभषा िक्षत्रोुं का स्वामी है । ज्योदिष में
राहु ग्रह को एक िार्ा ग्रह कहा जािा है । िरअसल, सूर्य और िृथ्वी के बीच
जब चुंिमा आिा है और चुंिमा का मख सूर्य की िरफ होिा है िो िृथ्वी िर
िडिे वाली चुंिमा की िार्ा राहु ग्रह का प्रदिदिदित्व करिी है ।
राहु काल- दहन्िू िुंचाुं ग के अिसार, राहु ग्रह के प्रभाव से दिि में एक अशभ
समर्ावदि होिी है दजसमें शभ कार्ों को करिा वदजयि मािा गर्ा है । इस अवदि
को राहु काल कहिे हैं । र्ह अवदि लगभग डे ढ घण्टे की होिी है िथा स्थाि एवुं
दिदथ के अिसार इसमें अुंिर िे खिे को दमलिा है ।
ज्योदिष के अनुसार, राहु ग्ह का मनुष्य जीवन पर प्रभाव
शारीररक रचना एवं स्वभाव - वैदिक ज्योदिष के अिसार दजस व्यक्ति की
जन्म कुं डली में क्तस्थि लग्न भाव में राहु होिा है वह व्यक्ति सुंिर और आकृषक
व्यक्तित्व वाला होिा है । व्यक्ति साहदसक कार्ों से िीिे िहीुं हटिा है । लग्न का
राहु व्यक्ति को समाज में प्रभावशाली बिािा है । हालाँ दक इसके प्रभाव बहुि हि
िक लग्न में क्तस्थि रादश िर दिभयर करिा है । हालाँ दक ज्योदिष के अिसार ऐसा
मािा जािा है दक लग्न का राहु व्यक्ति के वैवादहक जीवि के दलए अिकूल िहीुं
होिा है ।
बली राहु - ज्योदिष में राहु ग्रह को लेकर ऐसा कहा जािा है दक र्दि राहु दकसी
व्यक्ति की जन्म कुं डली में शभ हो िो वह उसकी दकस्मि चमका सकिा है ।
कुं डली में मजबूि राहु व्यक्ति को प्रखर बक्तद् का बिािा है । इसके प्रभाव से
व्यक्ति अििे िमय का िालि करिा है और समाज में उसे माि-सम्माि और र्श
प्राप्त होिी है ।
पीदड़ि राहु - कुं डली र्दि राहु िीदडि हो िो जािक को इसके िकारात्मक
िररणाम प्राप्त होिे हैं । र्ह जािक के अुंिर बरी आििोुं को िैिा करिा है ।
िीदडि राहु के प्रभाव से जािक िल, किट और िोखा करिा है । व्यक्ति माुं स,
शराब िथा अन्य मािक ििाथों का सेवि करिा है । िीदडि राहु व्यक्ति को
अिमी बिािा है । इसके प्रभाव में आकर जािक िू सरोुं को िरे शाि करिा है ।
र्दि ऐसा हो िो जािकोुं को राहु से सुंबुंदिि उिार् करिे चादहए। ज्योदिष में राहु
ग्रह की शाुं दि के उिार् बिाए गए हैं ।
रोग - िीदडि राहु के कारण व्यक्ति को शारीररक समस्याएँ भी होिी हैं । र्ह
व्यक्ति के स्वास्थ्य िर िकारात्मक प्रभाव डालिा है । इसके कारण दहचकी,
िागलिि, आँ िोुं की समस्या, अल्सर, गैक्तस्टरक आदि समस्याएुं होिी हैं ।
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मंत्र -
राहु का वैदिक मुंत्र
ॐ कर्ा नदश्चत्र आ भुविू िी सिावृध: सखा। कर्ा शदचष्ठर्ा वृिा।।
राहु का िाुं दत्रक मुंत्र
ॐ रां राहवे नमः
राहु का बीज मुंत्र
ॐ भ्ां भ्ी ं भ्ौं सः राहवे नमः
केिु
ज्योदिष में केिु ग्ह का महत्व
ज्योदिष में केि ग्रह को एक अशभ ग्रह मािा जािा
है । हालाँ दक ऐसा िहीुं है दक केि के द्वारा व्यक्ति को
हमेशा ही बरे फल प्राप्त होुं। केि ग्रह के द्वारा व्यक्ति
को शभ फल भी प्राप्त होिे हैं । र्ह आध्यात्म, वैराग्य,
मोक्ष, िाुं दत्रक आदि का कारक होिा है । ज्योदिष में
राहु को दकसी भी रादश का स्वादमत्व प्राप्त िहीुं है ।
लेदकि िि केि की उच्च रादश है , जबदक दमथि में र्ह िीच भाव में होिा है ।
वहीुं 27 रुिाक्षोुं में केि अदश्विी, मघा और मूल िक्षत्र का स्वामी होिा है । र्ह
एक िार्ा ग्रह है । वैदिक शािो के अिसार केि ग्रह स्वरभाि राक्षस का िड
है । जबदक इसके दसर के भाग को राहु कहिे हैं ।
भारिीर् ज्योदिष के अिसार केि ग्रह व्यक्ति के जीवि क्षेत्र िथा समस्त सृदष्ट को
प्रभादवि करिा है । राहु और केि िोिोुं जन्म कण्डली में काल सिय िोष का
दिमाय ण करिे हैं । वहीुं आकाश मुंडल में केि का प्रभाव वार्व्य कोण में मािा
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कार्यक्षेत्र - समाज सेवा, िमय आध्याक्तत्मक क्षेत्र से जडे सभी कार्ों को ज्योदिष में
केि ग्रह के द्वारा िशाय र्ा जािा है ।
उत्पाि - काले रुं ग िष्प, काला कुंबल, काले दिल, लहसदिर्ा ित्थर आदि
उत्पाि केि से सुंबुंदिि हैं ।
स्थान - सेवाश्रम, आध्याक्तत्मक एवुं िादमयक स्थाि केि से से सुंबुंदिि होिे हैं ।
पशु-पक्षी िथा जानवर - ज़हरीले जीव एवुं काले अथवा भूरे रुं ग के िश िदक्षर्ोुं
को राहु के द्वारा िशाय र्ा जािा है ।
जड़ी - अश्वगुंिा की जड।
रत्न - लहसदिर्ा।
रुद्राक्ष - िौ मखी रुिाक्ष।केि र्ुंत्र
र्ंत्र - केि र्ुंत्र।
रं ग - भूरा।
मंत्र
केि का वैदिक मुंत्र
ॐ केिुं कृण्वन्नकेिवे पेशो मर्ाय अपेशसे।
सुमुषन्द्रिरजार्था:।।
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