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रे फ न : ददनांक : 24.02.2021
प्रवत,
आदरणीय धमाानरु ागी श्रावकश्रेष्ठ
ववषय- वजनशासन का गौरवरूप आचाया श्री कै लाससागरसूरर ज्ञानमंददर की लघु योजना के संबध
ं में.
सबहुमान प्रणाम सह जय वजनेन्द्र।
आप सकु शल होंगे. देव-गुरु की अपार करुणा एवं आप सभी के स्नेह से यहााँ भी सब कु शल है. यहााँ ववरावजत परम पूज्य
राष्ट्रसन्द्त आचाया श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज अपने वशष्य-प्रवशष्य पररवार के साथ सुखशाता पूवाक हैं तथा आपके पूरे पररवार को
धमालाभ कहा है । आपश्री का श्रीसंघ वजनशासन की सेवा एवं श्रुतज्ञान के प्रचार-प्रसार में अववस्मरणीय योगदान दे रहा है, वजसकी हम
खूब-खूब अनुमोदना करते हैं ।
परम पूज्य राष्ट्रसन्द्त आचाया श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज द्वारा भारत एवं नेपाल के लगभग 1,50,000 दकलोमीटर की
पदयात्रा के क्रम में संग्रवहत अपनी प्राचीन हस्तवलवखत ज्ञान धरोहर के संरक्षण एवं प्रचार-प्रसार हेतु एक नई योजना प्रारम्भ की जा
रही है । इसमें भारत भर के श्री संघों की सहभावगता अपेवक्षत है । प्रत्येक श्रीसंघ इस योजना में ज्ञानरव्य या साधारण रव्य में से
1,11,111/- (रुपये एक लाख ग्यारह हजार एक सौ ग्यारह मात्र) का लाभ ले सकता है ।
वजनवाणी के प्रचार-प्रसार में समर्पात आचाया श्री कै लाससागरसूरर ज्ञानमंददर प्राचीन हस्तप्रतों एवं मुदरत जैन पुस्तकों का
आज सबसे बडा संग्रहण-संरक्षण का के न्द्र बना हुआ है । यहााँ की सवाग्राही सूचीकरण प्रणाली भी ववश्व में सबसे अलग है, जो ववद्वानों के
वलए साक्षात् वरदान वसद्ध हो रही है ।
देश-ववदेश के जैन–जैनत
े र सभी ववद्वानों को बडी उदारता से संस्था द्वारा संशोधन व वांचन सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है.
ववश्वभर के ववद्वान दुलाभ से दुलभ
ा पुस्तकों की प्रावि यहााँ से बडे पैमाने पर आसानी से कर रहे हैं ।
वतामान में 50 से अवधक समर्पात व सक्षम कायाकताा, वजनमें वववभन्न प्राचीन भारतीय भाषा एवं प्राच्यववद्या के ववशेषज्ञ पंवडत
भी हैं, ज्ञान क्षेत्र के अनेक महत्त्वपूणा कायों को सफलतापूवाक संचावलत कर रहे हैं । श्रुतववरासत रूप 3,00,000 से भी अवधक हस्तप्रतों
के सूचीकरण का काया चल रहा है, 75 से भी अवधक भागों में प्रकावशत होनेवाली इस ग्रंथसूची के अभी तक 30 भाग प्रकावशत हो चुके
हैं और भाग 31-32 का प्रकाशन भी शीघ्र ही प्रस्ताववत है ।
वजनशासन की आधारवशला को मजबूती प्रदान करने वाले इन सभी कायों के वलए खचा भी बहुत बडे पैमाने पर हो रहा है ।
वजनशासन के वलए बहुत ही जरूरी इन सभी मूलभूत कायों को साथाक अंजाम देने के वलए बृहद् पैमाने पर आपके उदार सहयोग की
आवश्यकता है । आपसे वनवेदन है दक वजनवाणी के संरक्षण एवं प्रचार-प्रसार हेतु आरं भ की गई इस नूतन योजना में आप अपने श्री संघ
की ओर से कम से कम 1,11,111/- (रुपये एक लाख ग्यारह हजार एक सौ ग्यारह मात्र) की वनधााररत रावश या उससे अवधक का भी
सहयोग प्रदान कर सकते हैं । आपके श्री संघ द्वारा प्रदत्त रावश का सदुपयोग अपने ज्ञानववरासत के संरक्षण एवं इस क्षेत्र में कायारत
ज्ञानयोवगयों की ज्ञानसाधना व ववद्वानों के काया में सहयोग के वलए दकया जाएगा ।
आशा है, आप अपने श्री संघ की ओर से रावश प्रदान करने की स्वीकृ वत देंग।े पुनः धन्द्यवाद ।