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साल की पहली बारिश

A Timeless Poetry Collections

By Shashank Tiwari ‘Manav’


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Poetry Collections List

1. जहाँ से वो गज
ु रती थी—------------------------------------------------------- 4

2. तम
ु मनाओगी, मान जाऊँगा मैं —------------------------------------------------ 5

3. अब लफ़्ज़ बायाँ का काम खत्म—--------------------------------------------- 6

4. तझ
ु जैसा नहीं कोई यहाँ हैं—------------------------------------------------- 7

5. प्याली चाय और ओंझल सी शाम—--------------------------------------------- 8

6. बँद
ू —------------------------------------------------------------------------------- 9

7. चलों सच बोलते है —-------------------------------------------------------------- 10

8. आज सन
ु ाऊँ एक कहानी—--------------------------------------------------------- 11

9. मानसन
ू की तरह —---------------------------------------------------------------- 12

10. तम
ु और हम—----------------------------------------------------------------------- 13
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Shashank Tiwari ‘Manav’ has completed his engineering (B.Tech) in Electronics &
Communication. works on quantum Informatics universe ( IBM quantum Lab) .Specialize
in Sci-fi Infotainment Scripts Writing. He is founder of digital content production Library
Caffe. In Addition done the screenplay of Pie are Square, Secret of Sagar Mekhla, Lock -
unlock 2020 ect. He has 8yrs + innovative digital marketing & Market Research experience
from small startups to the world’s biggest brands in healthcare like Ortho Clinical
Diagnostics (Ex Johnson & Johnson's), and Recorder and Medicare ,Koo Mobile Apps,
Zepto mobile Apps. Enjoy his first ever poetry collections this rainy season . I love you all .
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1. जहाँ से वो गज
ु रती थी
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बिजलियां कौन्ध कर , न जाने कहाँ - कहाँ उतरती थी ,


वो गलियां अभी खंडहर नहीं हुई ,जहाँ से वो गज
ु रती थी .

वो महज़ ख्वाहिश नहीं , दिवानगी थी ,


वो इबादत थी , जो खद ु ा से मांगनी थी ,
वो आसमाँ से मझ
ु पर , नरू बनकर बिखरती थी ,
उसका होना तो महज़ ,एक साजिश कुदरती थी .

सर्दियों की मेरे आंगन वाली धप ू जैसी थी,


वो सकु ू न के पलों वाली,सन
ु हरे रुप जैसी थी,
वो मोहब्बत थी , इश्क के रं गों से संवरती थी ,
पयाल क्या झनकती ! जब वो सीढ़ियाँ उतरती थी ,

ये खंडहर ही बता रहें ,कि ईमारत कितनी बल ु द


ं थी ,
मलु ाकतें तो बहुत , बातें ही कुछ जमा चंद थी ,
बरसों बाद मिली उसकी सहे ली बोली - कहाँ थे ज़नाब ?
उसे तम्
ु हारी हर एक लाइन पसंद थी।

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2. तम
ु मनाओगी, मान जाऊँगा मैं
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तमु मनाओगी, मान जाऊँगा मैं,


तमु बलु ाओगी, दौड़ आऊंगा मैं,
हसरतें तझ ु को फिर लिखने की हैं,
तम
ु सन ु ोगी अगर, गंगु न
ु ाऊँगा मैं |¦

तम
ु कहोगी, जहां बसाऊंगा मैं,
चाँद को फलक पे साजाऊंगा मैं,
तम
ु रहोगी कहीं सितारों में अगर,
मिलने तझु से उधर रोज आऊंगा मैं ||

ऊँची दरखतों के पत्त्ते, टूट गिर जायेगे,


अफतों का आलम जब गज़ब ढायेगा,
तमु पक ु ारोगी उल्फत में ए जाने ज़हा,
तेरे हर कदम पे, रस्ते बानाऊंगा मैं ||

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3.अब लफ़्ज़ बायाँ का काम खत्म


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अब लफ़्ज़ बायाँ का काम खत्म,


अब लफ़्ज़ बयाँ का काम नहीं
अब लफ़्ज़ बयाँ क्या खाक् करें
अब लफ़्ज़ रहे दे साथ नहीं ||

अब नज़र के नजारे खत्म हुए,


अब झक ु ी नज़र फिर ऊठी नहीं,
नज़र से नजारे यूँ बरस पड़े ,
न बचा, जिसे नज़र वो लगी नहीं |

अब दिल धड़कना बंद हुआ,


अब सांसो का रहा काम नहीं,
अब मैं भी आगे छोड़ चला,
तम
ु कर लो ज़रा आराम सही ,

इच्छाओं की इच्छा खत्म हुई,


अब चाह की चाहत रही नहीं,
अब मंज़िल यहाँ पे खत्म हुई,
जो दिखी झलक एक बार सही,

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4. तझ
ु जैसा नहीं कोई यहाँ है
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तझ ु जैसा नहीं कोई यहाँ हैं,


आँखियो में तेरी बसा जहाँ है ,
रं ग - बिरं गा जो ये जहाँ हैं,
तझ
ु से शरूु और तझ ु से ब्याँ हैं,

बादल में छाई घनघोर छटा हैं,


आँखों में कजरा, बदरी घटा हैं,
धीरे धीरे हवा चली हैं,
मेहकी मेहकी फिज़ा खिली हैं,

फिर तेज हवा, बारिस के झोकें,


तझ
ु को रीझाये, तझ ु को रोकें,
ये मौसम, मानसन ू ले आया,
संग में भीगा, फिर तझ ु े मनाया,

तमु भी मानी ,और जग माना,


मेरी गजलें और मेरा गाना,
ये कुदरत से था मेरा नाता,
कुछ थी हकीकत, कुछ था फसाना

कुदरत की ये, खब ू सरू त बला हैं,


मझ
ु 'मानव' से, अब कौन भला है ?
तेरे होने से, जग होगा परू ा,
तझु बिन 'मानव' , रहे गा अधरू ा |¦

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5. प्याली चाय और ओंझल सी शाम


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आधा दिंन और आधी रात ,


आधे तम ु और अधरू ी बात ,
प्याली चाय और ओंझल सी शाम ,
तम्
ु हारा ज़िक्र और तम्
ु हारा नाम ||

गरजते बादल, बरसती सब ु ह,


हल्के हाथों से तझ
ु को छुआ,
सहमी तम ु फिर सहमी घटा,
भल
ू ँ ू न तझ
ु को, सो हर पल रटा ||

बातों - बातों में ज़िक्र परु ाना हुआ,


कैसी हो? पछ ू े , जमाना हुआ,
पल भी इंतजार में , एक लम्हा हुआ,
फिर से तम्ु हारा जो आना हुआ

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6. बँद

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साल की पहली बारिश और सब कुछ पहले जैसा !


वही मेहक , वही खम
ु ारी और मिले तम
ु बिल्कुल वैसा !

चलो चले फिर भीगे खेले , पहले करते थे हम जैसा !


बादलो की बद
ू ो को पकड़े , और करे जैसे को तैसा !

वही कहानी वही हाकीकत , चलो आज फिर दोहराये !


मस
ु क्किले सारी हम कर दे , कागज की क्स्ती के जैसा !

बारिस की इतराई बद
ंू ो को , आज ज़मी पे गिरते दे खा !
याद आ गया घर का आंगान , छात ् से गिरती बद
ंू ो जैसा !

बद
ंू ो को चेहरे से छूना , और नज़र से नज़र मिलाना !
य़ाद तम्ु हे हैं कि भल
ू गये हो , होता था ये खेल कैसा !

और लिखू क्या इसके आगे , मौसम फिर ये बदल जयेगा !


आज मिले मज़ा आ गया , जिया हैं तम
ु को पहले जैसा !

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7. चलों सच बोलते है
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मन में छीपी बातों को,


फिर मोहब्बत से तोलते है
एक बार फिर आँखों में आँखें डाल,
सच बोलते है ||

पानी में नहीं, शहद जब ु ां पें खल


ु ेआम घोलते है ,
अपनें लबों से तम्
ु हारें लबों को,
सलाम बोलते है ||

सनु ो ! एक अनसनु ा राज़,


जो हर बार खोलते है ,
पाने की जिसे ज़िद करतें रब से ,
उसे ही हम य़ार बोलते है ||

इस बार सिक्कों से नहीं,


तझ
ु को मह ु ब्बत से मोलते है ,
तेरी अंगड़ाईयों को अपनी,
बेचनि
ै यों से तोलते है ||

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8. आज सन
ु ाऊँ एक कहानी
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आज सन ु ाऊँ एक कहानी, मिलते - जलु ते नाम की,


अंगड़ाई वह सब ु ह के जैसी, झलकी है वो शाम की,

उसके आने भर से, फागन ु का महीना मेहके,


उसके हस्ते होठों से, गांवो की बगिया चहके,
बरसातों में यूँ खिलती वो, अमराई हो आम की...

बड़े - बड़े तफ
ु ानों का, नजरों से रस्ता रोके,
उसके आगे पड़ते फीके, तेज़ हावाओं के झोकें,
उछल - कूद जब चलती, उड़ती जल् ु फें मांग की...

चलती वो हवा के जैसे, कौन उसे आकर रोकें,


उससे बतियाने को , हर कोई खोजे मौके,
मैं भी उसको दे खूँ - सोच,ु करूँ बात कैसे काम की ||

ज़िसकी सारी हरकत को, रातों को मैं लिखता ,


ज़िसकी एक झलक पाने को, चाँद गगन में आ तकता,
मेरी और चाँद की बनी नहीं , ये घटना थी उस रात की

दिल्ली एक लड़की, जनकपरु ी जो है रहती,


करती सीधी बात नहीं, उल्टी दरिया सी बहती,
नाम सिया है उस लड़की का, करें प्रतिक्षा राम की......

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9. मानसन
ू की तरह
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जब गर्मी में छाई लपट जन


ू की तरह ,
मैं तकता रहा राह तेरा ,मानसनू की तरह ||

गागर में सागर लिए फिरती है तू कहीं ,


आसमाँ में रहा खोज ,पर दिखती है तू नहीं ,
सावन से पछ ू ता हूँ ,पपीहे -मोर की तरह ,
तू फिर बरस जा ,बारिश के शोर की तरह ,

पश्चिम से आती हवा में ,आज शोर वही है ,


लौट करके आया यारा,आज दौर वही है ,
टूट कर बरसती तू ,यहां सकु ू न की तरह ,
नाचती फिरती तू ,पहले हनीमन ू की तरह ,

मौसम ने ली है करवट ढलते ,जन ू की तरह ,


तू भीगा रही है मझ
ु े , पहले मानसनू की तरह ||

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10. तम
ु और हम
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चला था चला है झोका हवा का ,


फैली घटा थी, पेहली सब ु ह सा,
बिखरी थी खस ु बू सांसों में मानो,
तू मझु में घल
ु ी हो , ऐहस्सास जैसा ||

मौंका अज़ब था, गजब थी पहे ली,


न माना न जाना, दिखी जब हथेली ,
हाथो में है किस्के किस्मत होती ?
होती तम ु तोह कुछ बात होती.||

फिर तमु मिली थी, मझ ु को पहर में ,


न तेरे शहर में न मेरे शहर में ,
पलको पे हर पल को एक पल ज़िया हो,
तू मझ
ु में बीती हो , ज़िंदगानी जैसे ||

तू न ठहरी वहा थी, न ठहरी येहा पे,


चलती चली क्यक ु ी गहरी थी राहें ,
मिलना तझ ु े था, मिलना मझु ी में ,
बहता हुआ अब ठहरा येहा पे||

आओ मिले हम ऐसी जगह पे,


झीनी सी बारिस, बादल यू गरजे,
तम
ु भी यू भीगो, हम भी यू भीगें ,
न तो भवर हो, जब मिले वो किनारा

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