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नाम -----------------------------------------------अनु क्रमाांक ------------------कक्षा

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विषय -----------------प्रपत्र सांख्या -------------------------------------विनाांक --------


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अपवित गद्ाांश
दे श प्रेम है क्या ? प्रेम ही तो है । इस प्रेम का आलं बन क्या है ? सारा दे श अर्ाा त मनु ष्य ,पशु ,पक्षी,नदी,नाले
,वन, पवात सहहत सारी भू हम । यह प्रेम हकस प्रकार का है ? यह सहचयागत प्रेम है । हिनके बीच हम रहते हैं ,
हिनहे बराबर आँ खों से दे खते हैं ,हिनकी बातें बराबर सुनते रहते हैं ,हिं का हमारा हर घड़ी का सार् रहता है ।
सारां श यह है की हिनके साहिध्य का हमे अभ्यास पड़ िाता है , उनके प्रहत लोभ या राग हो सकता है । दे शप्रेम
यहद वास्तव मे यह अंत:करण का कोई भाव है तो यही हो सकता है । यहद यह नहीं है तो वह कोरी बकवास
या हकसी और भाव के संकेत के हलए गढ़ा हुआ शब्द है ।

यहद हकसी को अपने दे श से सचमु च प्रेम है तो उसे अपने दे श के मनुष्य ,पशु ,पक्षी ,लता ,गुल्म पेड़ ,
पत्ते ,वन ,पवात ,नदी हनर्ार आहद सबसे प्रेम होगा ,वह सबको चाह भरी दृहि से दे खेगा ,वह सबकी सुध करके
हवदे श मे आँ सू बहायगा । िो यह भी नहीं िानते हक क्दोयल हकस हचहड़या का नाम है , िो यह भी नहीं सुनते
हक चातक कहाँ हचल्लाता है , िो यह भी आँ ख भर नहीं दे खते हक आम प्रणय सौरभ पूणा मं िररयों से कैसे लदे
हुए हैं , िो यह भी नहीं र्ाँ कते हक हकसानों के र्ोंपड़ों के भीतर क्या हो रहा है ,वे यहद दस बने ठने हमत्ों के
बीच प्रत्येक भारतवासी की औसत आमदनी का पता बताकर दे शप्रेम का दावा करे तो उनसे पूछना चाहहए हक भाइयों
! हबना रूपपररचय का यह प्रेम कैसा ?हिनके दु ख –सुख के कभी तुम सार्ी नहीं हुए ,उन्हे तुम सुखी दे खना चाहते
हो ,यह कैसे समर्ें । उनसे कोसों दू र बैठे बैठे ,पड़े पड़े या खड़े खड़े तुम हवलायती बोली मे “अर्ाशास्त्र की
दु हाई हदया करो ,पर प्रेम का नाम उनके सार् न घसीटो ।“ प्रेम हहसाब हकताब नहीं है । हहसाब-हकताब करने वाले
भाड़े पर भी हमल सकते हैं ,पर प्रेम करने वाले नहीं ।

हहसाब –हकताब से दे श की दशा का ज्ञान मात् हो सकता है । हहतहचंतन और हहतसाधन की प्रवृहत्त कोरे ज्ञान
से हभि है । वह मन के वेग या भाव पर अवलं हबत है , उसका संबंध लोभ या प्रेम से है , हिसके हबना अन्य पक्ष
मे आवश्यक त्याग का उत्साह हो नहीं सकता । हिसे ब्रि की भू हम से प्रेम होगा वह इस प्रकार कहे गा –

नै नन सो रसखान जबै ब्रज के बन ,बाग,तड़ाग,वनहारोां ।

कोविक िे कलधोत के धाम करील के कांु जन ऊपर िारोां ।।

रसखान तो हकसी की लकुटी अरु कामररया पर तीनों पुरों का रािहसहासन तक त्यागने को तैयार र्े ,पर दे शप्रेम
की दु हाई दे ने वालों मे से हकतने अपने हकसी र्के मां दे भाई के पुराने फटे कपड़ों पर रीर् कर या कम से कम
खीि कर हबना मन मैला हकए कमरे का फशा भी मैला होने दें गे ? मोटे आदहमयों !तुम िरा सा दु बले हो िाते –
अपने अंदेशे से ही सही – तो न िाने हकतनी ठठररयों पर मां स चढ़ िाता !

प्रश्न –

क- इस गदयां श का शीर्ा क दीहिये ।

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ख –प्रेम हहसाब-हकताब नहीं है – में क्या व्यं ग्य है ?


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ग – ‘सहचयागत प्रेम’ का क्या आशय है ?

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घ –दे श प्रेम के हलए पहली आवश्यकता क्या है ?

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ड.- ‘हवलायती बोली’ के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है ?

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च –ले खक की निरों मे रसखान दे शप्रेमी क्यों हैं ?

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छ –“साहिध्य” शब्द का अर्ा स्पि कीहिये ।

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ि- नकारात्मक वाक्य बनाइये – 1 यह प्रेम हकस प्रकार का है ?

2 हहसाब –हकताब से दे श की दशा का ज्ञान मात् हो सकता है


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र् –गदयां श से दो तत्सम शब्द हलखखए ।

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