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Vilakshan Sant Vilakshan Vichar
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पु%तक या लेखम अपना नाम *काशत करने म वे संकोच करते ह-, .य/0क सय क1 आवाज़ को नाम-3प
आदम आब5 नह6ं करना चाहते । मानव क1 मांग - प8रचय
"सय अनत है , पु तक आदम सीमत नहं हो सकता । सय अपना परचय दे ने म वयं वतं है ।" ये श9द ह-
उन सत के िजनक1 अमत
ृ वाणी इस प%
ु तक म संगह
ृ 6त हुई है । इसी अटल सय को लAय म रखकर आBह करने
पर भी %वामीजी ने अपना शार6र-सDबधी नाम तथा च इस प%
ु तक के साथ दे ने क1 अनम
ु त नह6ं द6 । जो सय
%वामीजी क1 वाणी के 3प म *कट हुआ है , वह तो %वयं *काशमय है और केवल अपना प8रचय दे ने म ह6 नह6ं,
बिFक '5ालु पाठक/ के Hदय/ को भी आलो0कत करने म %वयं समथI है । ...."जटल से जटल दाश$%नक तव&
तथा आ(यािमक रह य& क* अभ,यि-त इतने सीधे-सादे %न0व$वाद ढं ग से अय दे खी नहं गई ।"
सत-समागम भाग-१ - प8रचय
इनका >ादभु ा$व एक 0वलKण 0वभू%त के Lप म हुआ, ऐसा उनके सम-साम%यक सभी महान सत एवं
महापुNष मानते हO । *चVडTान, अकाYय-युि.त, सरल वZवास एवं अनय-भि.त - ये सभी प उनम
अपनी-अपनी पराकाOठा पर थे । ऐसा अदभुत कॉिDबनेशन कह6ं दे खने म नह6ं आता, जैसा परमपू]य
%वामीजी महाराजम वQयमान था । 0फर भी उपयु.त दLयताओं को अपनी वशेषता मानने क1 भूल
उह/ने कभी नह6ं क1 । सतवाणी भाग - २ (केसेट - 1A)
सय के साथ 0कसी Lयि.त वशेष का नाम जोड़ना उनके स5ांत से उचत नह6ं है । इसी कारण उनके
aवारा रचत पु%तक/ म उनका नाम नह6ं दया जाता । चशुिQध - भूमका
सत अमर ह- । उनक1 वाणी अमर ह- । इस वाणी के आदर म सयका, जीवनका, सतका आदर है ।
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