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हे मेरे नाथ !

वल ण सत - वल ण वचार

साहय म अपने नाम तथा च न दे ने के लए आधु नक युग के


महान "ातदश$ सत %वामी 'ी शरणानद जी महाराज के वचार -

पु%तक या लेखम अपना नाम *काशत करने म वे संकोच करते ह-, .य/0क सय क1 आवाज़ को नाम-3प
आदम आब5 नह6ं करना चाहते । मानव क1 मांग - प8रचय

"सय अनत है , पु तक आदम सीमत नहं हो सकता । सय अपना परचय दे ने म वयं वतं है ।" ये श9द ह-
उन सत के िजनक1 अमत
ृ वाणी इस प%
ु तक म संगह
ृ 6त हुई है । इसी अटल सय को लAय म रखकर आBह करने
पर भी %वामीजी ने अपना शार6र-सDबधी नाम तथा च इस प%
ु तक के साथ दे ने क1 अनम
ु त नह6ं द6 । जो सय
%वामीजी क1 वाणी के 3प म *कट हुआ है , वह तो %वयं *काशमय है और केवल अपना प8रचय दे ने म ह6 नह6ं,
बिFक '5ालु पाठक/ के Hदय/ को भी आलो0कत करने म %वयं समथI है । ...."जटल से जटल दाश$%नक तव&
तथा आ(यािमक रह य& क* अभ,यि-त इतने सीधे-सादे %न0व$वाद ढं ग से अय दे खी नहं गई ।"
सत-समागम भाग-१ - प8रचय

उ-त सत के स6ातानस


ु ार ह उनका नाम नहं दया जा रहा है ; -य&7क उनका यह 0वचार है 7क नाम के आधार
पर जो बात चलती है ,वह कालातर म खम हो जाती है और नाम के साथ राग-:वेष का होना वाभा0वक है ।
इसलए साव$भौम सय के >काशन के साथ नाम न दया जाए तो अ?छा है । इसके अ%तर-त 0वचार तो अनत
क* 0वभ%ू त है , 7कसी ,यि-त क* %नजी 0वशेषता नहं । अतः 0वचार& का >काशन तो अनत क* अहै तक
ु * कृपा से
होता है । उसके साथ 7कसी ,यि-त 0वशेष का नाम जोड़ दे ना >माद है । जीवन-दशIन - आमख

मानव-मा के प8राण के लए सवIमाय वचार-*णाल6 का सज


ृ न 'ी महाराज जी क1 अतLयIथा से
हुआ था - उसको उह/ने अपने Lयि.तगत नाम से *काशत करना पसद नह6ं 0कया । िजह अहम ् को
अभमान-श ू य रखना अभीOट होता है ,वे आमPया त से बचकर रहते ह- ।
इसम दस
ू र6 एक और महवपूणI बात यह है 0क 'ी महाराज जी के वचारानुसार दे श, काल, मत,
मजहब, सD*दाय एवं वगI- नरपे जो जीवन का सय है , उसे Lयि.त के माQयमसे *कट करना उसका
मूFय घटाना है और सबसे बड़ी बात यह है 0क िजह/ने परम-*ेमा%पद क1 सता से भन अपना
अि%तव ह6 नह6ं रखा, वे अपने नाम के माQयम से कोई बात कैसे कह सकते थे !
उनक1 अहम ्-शूय वाणी म Tान तथा *ेम क1 अज% धारा सहज ह6 *वाहत होती रहती थी, िजसे
सुनकर बड़े-बड़े शा%T कहते थे और आज भी कह रहे ह- 0क "वषE तक Fंथ&के अ(ययन से दश$न के जो
गूढ़ रह य समझ म नहं आए थे, वे सब इन बे-पढ़े सतक* वाणीसे पJट हो गए ।"
सतवाणी भाग-२ - प8रचय (केसेट - 1A)

इनका >ादभु ा$व एक 0वलKण 0वभू%त के Lप म हुआ, ऐसा उनके सम-साम%यक सभी महान सत एवं
महापुNष मानते हO । *चVडTान, अकाYय-युि.त, सरल वZवास एवं अनय-भि.त - ये सभी प उनम
अपनी-अपनी पराकाOठा पर थे । ऐसा अदभुत कॉिDबनेशन कह6ं दे खने म नह6ं आता, जैसा परमपू]य
%वामीजी महाराजम वQयमान था । 0फर भी उपयु.त दLयताओं को अपनी वशेषता मानने क1 भूल
उह/ने कभी नह6ं क1 । सतवाणी भाग - २ (केसेट - 1A)

सय के साथ 0कसी Lयि.त वशेष का नाम जोड़ना उनके स5ांत से उचत नह6ं है । इसी कारण उनके
aवारा रचत पु%तक/ म उनका नाम नह6ं दया जाता । चशुिQध - भूमका

%वामीजीक1 कई पु%तक/ के साथ लखा जाता है -


 "मानव-जीवन क1 सम%याओं पर एक सत के मौलक, सूAम एवं अनुभव स5 वचार "
 "एक cdम नOठ सत के उपदे श"
 "मानव के लAय एवं उसक1 *ािeत के साधन/ पर एक सत aवारा अनूठा *काश"
 " एक महामाका *साद "

सत अमर ह- । उनक1 वाणी अमर ह- । इस वाणी के आदर म सयका, जीवनका, सतका आदर है ।

(दे श, काल, प8रि%थ त प8रवतIन तथा Lयवहा8रक कारण/ के अनस


ु ार आज प%
ु तक/म %वामीजी का नाम लखा जा रहा है तथा पfका म च दया जाता है )

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