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सकारात्मक पुष्टि स्पंदन भाग - 3
सकारात्मक पुष्टि स्पंदन भाग - 3
"जय कृ ष ्ण"
1
िजस तरफ उठाके पाऊं मेरे
मेरे नयन
मेरे
मेरे
हर मेरे
मेरे नयन
मेरे
2
रं ग भाषा
रं ग
हर रं ग ऐसा गहरा
हर रं ग का खेल दुलारा
रं ग रं ग से जुडे
हर रं ग से गुले
रं ग रं ग से पाये खुशी
रं ग रं ग से लूटे
रं ग रं ग डू बे ऐसे
रं ग रं ग से ऐसे
रं ग जीवन रं ग तन मन
रं ग रं ग लगन
रं ग रं ग रं ग रं ग अमृतम ्
रं ग रं ग रं ग रं ग
3
रं ग से साँवरे
रं ग से
तेरे रं ग रं ग गई
4
नाम से पुकारे हे !
जो रचाये जो
जो जगाये जो भाव
पल पल पल पल जताये
मेरे मन तु है
तु मेरे !
5
खेलत आज मेरे संग
एक हो गये तन मन रं ग
कभी न उमंग
भी कटे बेरंग
जगे सदा न
चाहे कभी
न रहे से चैन हम
सदा हर कदम
6
ताल से ताल
खेलत संग नव
से तीर चलाये
खेलत संग नव
चटक फर फर लहराये
खेलत संग नव
अंग अंग
खेलत संग नव
7
सुधबुध खोयी होयी
ने रं ग
रं ग भयी
खेलत संग नव
8
मन के पंख से दौडू तोरे आश
9
" " कुछ होता है ।
तन के से पुकार उठती है ,
मन के से गुंज उठती है ,
अंग के हर साधन है ।
हे !
10
यह साँस
यह उमंग
यह
यह पुकार
यह गहरा इंतजार
यह गहरा
है तन मन
11
हर पल नव नूतन होय
ऐसी पल से तन मन
जो का भंवर रचाय
12
दे खा तो भी जागती है
तो भी हर पल है
है ?
याद रखना है !
साँवरे हो कर पाऊंगा।
मेरे से
मेरे से
मेरे समानता से
मेरे से
13
शृग
ं ार करत मुख हो गये तेरे
14
खेलत रमत हमसे
हमसे
पता पर पता
खेल खेल कर
15
जागत रै न के संग
बरसाने
टु कुर जगाये
तरस बढाये
रस से रसना हु ई
रं ग रं गाये
16
जीवन के हर से जाना है
जीवन हर से पहचाना है
जीवन के हर से नवाजा है
तुझे से कैसे
17
आती है तो रं ग है
18
एक बार राधाजी ने से कहा
से झुला खींचा
का
19
अदभुत है मेरे
है यह जय घोष मेरे
"जय " से है
वाह! मेरे !
वाह! यमुना!
वाह! मेरे !
20
नाम धडकन धडके
नाम बसे
नाम पर रमे
नाम बजे
नाम से चले
नाम से तडपे
नाम से मटके
नाम अटके
कैसे जीते है ?
कैसे रहते है ?
21
पता सांस साथ लाया हू ँ
पर जबसे
तबसे
न रहा तुम हो गई
तु तु न रहा तु हो गया
22
तु है तो हो गया
तु साँवरा है तो हो गई
तु है तो हो गई
तु है तो हो गई
23
धडकन खुद धडकन
समझना है
24
जागत नैन तो जागत
नैन से नैन उन से
नैन नैनन है
25
जागे नैन तो जागे
उिजयारा
26
" " के कन कन है
"गोपाल" काल के पल पल है
"माधव" उमंग है
" " के हर है
"मनोहर" मन को हरने हर है
"मोहन" मन हर है
"नटवर" हर कला है
"राधे" हर है
27
तेरे छूते
दे ख कर
तेरे सुन कर
याद आ कर
होता है कुछ
जो मन दौडे
जो तन पुकारे
जो धडकन गाये
तु साँवरे
तु मेरा इजहार
तु मेरा
28
तु है जब तक यह जगत
भी इंतजार हर
साँवरा रं ग से है यह
मेरा से
29
के का एक साथी रहा
जब भी आता था
"सोचा था करके से
पर
हम हर पल लाते
30
आज मेरे नैन सो गये
कैसे कैसे
31
यमुना के तीर
यमुना के नीर
खेले रणबीर
रणधीर
जंजीर
डोर
वीर
धरती गंभीर
है धरोहर
जहां मन का मोर
जहां भोर
है यमुना तोर
से नाचे जोर
32
हाल कर रखा है हर पल का
पर पुकारे धडकन
है या
बसी है अंतर
गाये गाये
गाये
भी हो कैसी भी हो
है अपने घडी
33
दे खे जात कलप- ,
-अनल
नैनन-
- सांस- ,
चैन याद- ,
- - ,
दे खे जात कलप- ,
-अनल
यह अनल या ने यह वायु रस
हम पर अगन अगन बरसाते है , तडपाते है ।
34
एक झांखी भी मेरे कोई को कुछ दे सकता है ।
मुझे अपने का कोई तेज उजागर कर सकता है । मेरे
अंधकारमय काल कोई रोशनी का संकेत मुझे कुछ याद
सकता है ।
से हम है एक झांखी हमारे
कोई एक आश बंधा सकता है ।
35
मांगू जगत
से सेवा बरसाऊ
यमुना रं ग तरं ग से
रज से शरण
से चरण पखाळु
36
खेलत हमारे आंगन
से करत आंगन
है हमारे आंगन
37
ऐसे से मेरा मुखडा मलका
छूपा कर का तोडा
कलंक से काजल
पर
38
कंगना खनके तो समझना आ रहा है
39
हर के
हर भाव जागे के
हर बढे
हर ता तरसे
हर जुडे से
हर चरण छूये से
हर आनंद से
हर हो से
हर धारा एक हो से
हर हो से
40
पतंग
41
सूरज का पहला
42
मन ठहरने का जीद करे
तन का धरे
पर कहे !
आज यहाँ है , कल
पर आज तो यहाँ से है
पाया पीया
से न कभी है
कैसी भी खेले
का साथ है
43
जो जगायी रे राधा ने
सजायी रे नाथ ने
बसायी रे यमुना ने
44
धून आज इस तरह गूंज थी जैसे
अनंत बूँद,
पंक पंकज,
अंधकार सूरज,
घनघोर घटा ,
पाषाण झरना।
हर सांस राधा!
हर सोच राधा!
हर नयन राधा!
हर राधा!
हर तडप राधा!
45
हर पुकार राधा!
हर इंतजार राधा!
हर राधा!
हर डग राधा!
हर राधा!
हर रज राधा!
हर पर राधा!
हर फूल राधा!
हर फल राधा!
हर राधा!
हर धारा राधा!
हर लहर राधा!
हर महक राधा!
और हो गये थे बंसीधर!
46
बार ऐसा हु आ राधा है । कैसी अनहोनी? कैसी
?
कोई तो राधा!
ओहहह! के तडपे।
एक साथ राधा!
तो राधा है कहाँ?
कहाँ है राधा?
47
राधा! राधा! राधा!
कहाँ है तु मूरत
से
से महक
से बूँद बरसे
से रं ग उडे
से शीतलता छायी
से मृदत
ु ा छायी
से सरगम बाजी
से गीत गूज
ं े
48
से रज
छा गई एक आकृ त
तडप थी सृजन
हो गई
नयन जैसे
हो गई राधा
नयन
मुख मलके
होठ तडफडे
मन पुकारे
धडके
जागे
उभरे
49
राधा राधा होय
अखंड समाय
50
दे खी
जाने
पहचाने
हर पल दे खा
हर जाना
हर रचना पहचाना
पल से छुपाया
से साँस बसाया
रचना से रं ग डू बोया
51
के ऐसे रहना है हर मधुर हो जाय
के खत ऐसे है हर हो जाय
52
बसे है ऐसे इन
अब
भाग न जाये
डर न जाये
कैसी है यह उलझन
को कैसे बताऊँ
कैसे सुलझाऊ
ठान था न खोलने का
53
नैन खुलवा अटखल से
ने कर गोकुल नैना
54
तो सारा आसमान से छा गया
तो
आजा आजा रे
55
पास हू ँ भी
वह दूर है मुझसे
नैनन उभरते है भी
बन कर सामने है
बसे है भी
धडकन बन कर तडपते है
56
मेरे साँवरे धडकन के साथ कैसे बार बार
मेरे साँवरे
खुद लूटाऊ
खुद तडपाऊ
से तु तन चुराये
से तु मन लुभाये
57
घुमाये रात जगाये
जीवन भर भटकता
तेरा ढू ँ ढ पाऊ
58
ओहह! मेरे ! मेरे !
सुनते हो आहट
कैसे हो जो रह कर
59
जुबां से तडपती कहता रहता हू ँ
से बरसाता रहता हू ँ
से धायल रहता हू ँ
है मेरे का एहसास
जागना मेरा है
और
60
मन से जागे मन जगाये
मन मन जाय
मन से जीवन
भव भव सुझाता जाय
मन बसे एक
61
सपना दे ख रहा था सपना का
बंध से
उनके चरण था
वह धडकन थी
उठायी
उनके था
के बंधन बंधे थे
सां खोये थे
62
नैन के तुज संग
कैसे है के अंतरं ग
63
ओहहह!
बूँदे बरस है
बढ है रस
नजर ढू ँ ढ है
मन बहक रहा है के
तन तडप रहा है के
64
राधा को कहे
को लगे राधा
को राधा कहे
कैसा यह मेल है
राधा आधा
राधे से भये
से न भये
कहते है
से राधा आधा
65
सा सा था तन मेरा
तडप रहा था
माँ थी नजर
वह अपलक अपने
िजससे
माँ को पटाने
66
लपक के ठानी ये
बुझाई
कहते मुझे
67
रं ग रं ग रं ग छाये रं ग छूये
रं ग रं गे रं ग रं गाये रं ग रं ग से रं ग रमे
रं ग रं ग से रं ग
रं ग से रं ग भीगे
भीगे भीगे रं ग से तन मन रं ग
रं ग से रं ग
रं ग से जागे
संकेत संकेत रं ग से
रं ग हम तुम रं ग
रं ग एक रं ग हो जाये
68
नयन मुद
ं ते
पुकार होठ
साँस बुझते
ऐसे याद हे !
तेरे
को एक पल का चैन
69
ने उडते उडते आकाश को पूछा
हम उडते है तेरे
तो एहसास करते हो
आकाश ने कहा
ऐसा है ये
ने कहा
70
!
नाम !
गीत सुनहरा!
वह है सबका दुलारा
वह है हर एक का बावरा
का
जागता है नयन
सुनाता है कानो
है तन
धडकता है
लहराता है
खेलता है
71
करता है तन मन धन
मेरा !
मेरा !
है मेरा !
72
!
लब से ऐसे सरकता है
तो
अदा हो
ओहह! अटल रा
जो हर हो।
73
आते दूर चले गये
कैसी है यह
तडप तडप कर
आजाओ एक बार
! न हर बार
74
ऐसे घडे हमारे घट घट रे
तन बसे साँवरा
न तडपावो ओ मेरे !
साँस साँस अब रे
75
कोई करता है याद याद
कोई इंतजार है
कोई जागता है
है
76
खेलन ऐसी
जो खुद के रं ग को भूले
रं ग से तन मन रं गे
जीवन रं ग से भर दे
उमंग रं ग
भर उडाये रं ग
77
तुझे सुबह जगाऊ
तुझे कराऊ
खुद है जल बरसैया
तुझे शृग
ं ार
खुद है सलौना
खुद है धनौना
तुझे सेवा
खुद है सेवक
78
तुझे
खुद है कृ त
तुझे खेल
तुझे रं ग लगाऊ
खुद है रं ग रं गैया
तुझे
तुझे लूटाऊ
खुद है लूटैया
खुद है चुरैया
तुझे
खुद है
79
सलौना
गवैया
साँवरे
80
ढू ँ ढते रहे नयन आज याद को
जो रहते थे नयन
जो रहती थी एक ताल
आजाओ अब यह नयनन ्
जो करे बात
81
छुपता है चाँद से
छुपता है मन से
छुपता है से
छुपने को हम समझे
ओ साँवरे !
न चाँद उगे!
न मुखडा जागे!
न तन नाचे!
न मन दौडे!
न !
कैसी है यह जीवन ?
कहाँ तक छुपे?
82
छुवत कोई बंधन से
कैसा है यह बंधन
कैसा है यह
से ओर
कैसी है यह
जो पल पल जी कर
न कभी भी
न याद कभी भी
भी वह बुलाये
भी पहू ँचाये
कोई तो है
जो हर एक को जाग जगाये
है ऐसी न हो पुरानी
83
मन से तन से जानो
जो होये वह ऐसे
84
सूर से सूर
सूर से तरं ग
सूर से
सूर से
सूर से मधुर
सूर से संगीत
सूर से मीत
सूर से
हो मेरे
85
पधारे नाथजी अपने आँगन
खुद को से करके
से खेलने से जुडने
को रं ग से रं गने
शरण रज कराये
पुकाराये
घर घर सेवा मनोरथ
हो जाये
से धाये
हमारे हो जाये
86
सा
सा
सा
सा आँगन
सा मधुबन
सा
सा शृग
ं ार
सा
पधारे
नजर
उडाये रं ग
है या अमृत
87
अंग अंग मधुर मधुर रं गाय
हाथ पकडे
पीये से मेरा
88
तेरे धडकती धडकन के तरं ग से
सूर से तन मन
मन बावरा हो कर अटक
है तेरा मेरा एक का
से से भटकु
पर सच कहू ँ
तो
तु करता है
89
केवल अपनो हू ँ
मुझे पा करके
तु है
हो कर
साथ हो कर
है अमृत आनंद रस
है रस
क नाचुँ गोपी बन कर
ओ मेरा !
90
हर रं ग से एक रं ग है - "साँवरा"
91
फागुन आयो रे
ओय ओय फागुन आयो रे
मन मन करे जोर
जागे दोर
फागुन आयो रे
ओय ओय फागुन आयो रे
छम छम पायल बाजे
फागुन आयो रे
ओय ओय फागुन आयो रे
मागे चोर
फागुन आयो रे
ओय ओय फागुन आयो रे
92
भर दौडे
ढूँ ढे एक खेलने रं ग
हु रररर! हु रररर!
छुपा छुपी
हु रररर! हु रररर!
उडाये बौछार
हो गये रं ग
93
ओहह! आज रं ग बरसा
लाया गुलाल
भर भर के बहार
खेलने का
छूपके से आया हम ओर
मांगे दान का
ललचाये अपनी ओर
94
पकड हाथ खींच के
लपक तन मन ऐसे
बरसा नयन से
रं ग उडाये
रं ग रं ग जाय
पर लाल रं ग उडाये
रं ग उडाये
पर नीला रं ग उडाये
रं ग उडाये
95
पर पीला रं ग उडाये
रं ग उडाये
पर सांवरा रं ग उडाये
बरसाये भर भर मोल
र रं ग उडाये
96
!
तोरे रं गावत
तोरे रं गावत
तोरे रं गावत
तोरे रं गावत
97
! बुझा जा हमा
! रं गा जा आश
! तोरे
98
नजर रं ग ऐसे भरे
जाऊँ
जाऊँ
एक रं ग एक रं ग का
हो जाऊँ
जाऊँ
एक रं ग एक रं ग का
तडप जल जाऊँ
जाऊँ
एक रं ग बादल एक रं ग का
भीगी हो जाऊँ
99
नजर रं ग ऐसे भरे
जाऊँ
एक रं ग अमृत एक रं ग अधर का
पी हो जाऊँ
जाऊँ
एक रं ग एक रं ग इशारा का
जाऊँ
जाऊँ
100
भर सखी ओ ने
खेले रं ग रं ग
खेले रं ग रं ग
खेले रं ग रं ग
उडाये को सताये
खेले रं ग रं ग
भर ने
खेले रं ग रं ग
101
है भंवर उडे
फूररररे
है पोपट उडे
फूररररे
है उडे
फूररररे
रस से
102
खेलन आयी
खेलन रे
गुलाल
खेलन रे
नंदगांव का छोरा ढू ँ ढे
का शोर करे
नजर न आये
खेलन रे
रं ग रं ग से उडाये
घर घर से गोप बाल
पकड न आये
खेलन हो रे
103
रं ग रं गाये
खेलन रे
गोप गोपी
पुकारे रं गने
खेलन रे
104
वृंदावन बीच नटखट छे डे
हसे हर झुके
हर अदा से पकडाये
डू बी वो डू बा वृंदावन
105
मन के तरं ग से रं गु
तन के उमंग से रं गु
रं गु मेरे आनंद से
काजल नयन से रं ग रं गु
साँस मधुर से
साँस मधुर से
रं गु मेरे आनंद से
है या संग से
है या संग से
106
रं गु मेरे आनंद से
मन के तरं ग से रं गु
तन के उमंग से रं गु
रं गु मेरे आनंद से
107
नयन
तन
मनवा
आंतर
साँस
धडकन
जहां
108
" "
ऐसी तो थी?
ऐसी तो थी?
ऐसी तो थी?
ऐसी तो थी?
ऐसी तो थी?
ऐसी तो थी?
ऐसी तो थी?
ऐसी तो थी?
ऐसी तो थी?
ऐसी तो थी?
ऐसी तो थी?
ऐसी तो थी?
हर को
109
हर को
हर को
हर साँस को
हर मन को
हर तन को
हर धन को
हर को
हर को
हर धडकन को
हर को
हर सूर को
हर भाव को
हर को
हर रज को
110
हर बूँद को
हर लहर को
हर को
हर को
हर महक को
हर रं ग को
हर तरं ग को
हर को
हर को
हर को
हर को चे
हर को
हर आनंद को
हर को
111
हर कला को
है हर
जो पल हं साये पल
तो भी सदा साथ
112
का आँचल औढे
अपलक धरके
अगन रे त का तन शृग
ं ारे
माला पहने
साँस आश
आजा आजा
113
ढू ँ ढा
पर खोजा
रज रज तरासा
के मन मन छाना
पर तु नजर न आया
हर हर के मन छूपा हू ँ
रज रज के तन छूपा हू ँ
के आवाज छपा हू ँ
गूँज छूपा हू ँ।
हर - गोपाल बन कर
हर - बन कर
हर रज - बन कर
114
हर मन - बन कर
आजाओ! आजाओ!
हम लूटाये रं ग का
115
से संवरती है िजंदगी
से है िजंदगी
से है िजंदगी
से जागती है िजंदगी
हम ऐसे है करते है
पर सदा के तरसते है
तो बरसाना है
"राधा "
मन अचल जाता है
तन संभल जाता है
सरल जाता है
116
खेल खेलता है जीवन
खेल खेल
हे जगत के बंदे!
117
ऐसे खेल खेले जो जीवन करे
छोड उडा
118
भयी जब
कैसी है यह जीवन
जो साँस जलायी रे
मन तडपाया तन लुटाया
पल पल आह बरसायी रे
कैसा है तु
लपटायी रे
तडपता मन आश करे रं ग का
119
लुटाया तन इंतजार करे साँवरा रं ग का
तेरे रं गाऊ के हर रं ग रं ग का
एक रं ग मेरे का परम रं ग का
120
रं ग फुहार से
कर एकरार से
न बुझे बाती
न छूटे सोच मन से मन लन
121
भाग - 3
सेवा धारा
Vibrant Pushti
53, सुभाष
संगम चार
गुजरात - India
Email: vibrantpushti@gmail.com
122
123
Vibrant Pushti
124