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Vibrant Pushti

"जय कृ ष ्ण"

1
िजस तरफ उठाके पाऊं मेरे

मेरे नयन

मेरे

उठाऊं झुकाऊं नजर जहां जहां फहराऊं

बहाऊं इंतजार या कहां कहां खो जाऊं

मेरे

िजस तरफ उठाके पाऊं मेरे

अपलक पलक न खोलुं तरं गो से रचाऊं

जगाऊं तन मन से तहां तहां पहू ँचुं

हर मेरे

िजस तरफ उठाके पाऊं मेरे

मेरे नयन

मेरे

2
रं ग भाषा

रं ग

हर रं ग ऐसा गहरा

हर रं ग का खेल दुलारा

रं ग रं ग से जुडे

हर रं ग से गुले

रं ग रं ग से पाये खुशी

रं ग रं ग से लूटे

रं ग रं ग डू बे ऐसे

रं ग रं ग से ऐसे

रं ग जीवन रं ग तन मन

रं ग रं ग लगन

रं ग रं ग रं ग रं ग अमृतम ्

रं ग रं ग रं ग रं ग

3
रं ग से साँवरे

रं ग से

रं गाये जगत कैसे छोडू ग


ं ी

तेरे रं ग रं ग गई

4
नाम से पुकारे हे !

जो रचाये जो

जो जगाये जो भाव

करनी वैसी ऐसा पास आये

पल पल पल पल जताये

हम कैसे शरण आये

कैसा है यह नाता हमारा

जो हर नाम से तु दौडा आये

मेरे मन तु है

मुझसे पल पल छूपा छूपी खेलाये

तु मेरे !

, यमुना, दरश कराये

5
खेलत आज मेरे संग

छूपत छूपत लपक लपक अंग

ओझल हो गये तरं ग

एक हो गये तन मन रं ग

कभी न उमंग

भी कटे बेरंग

रं ग बंधी संग जुडी

जगे सदा न

चाहे कभी

नयन ढू ँ ढे फलक अपलक

मुखडा पुकारे मन अगन अगन

सां सरगम गाये

न रहे से चैन हम

सदा हर कदम

6
ताल से ताल

खेलत संग नव

से तीर चलाये

मोहक अदा से तन मन ललचाये

बार बार मुखडा सोहाय

खेलत संग नव

चटक फर फर लहराये

रे शम जामा घुमर घुमर घुमराये

छन छन पायल झंकार जगाय

खेलत संग नव

अंग अंग

मधुर मधुर बँसी तान बाजे

रमझट गीत संगीत भराय

खेलत संग नव

7
सुधबुध खोयी होयी

ने रं ग

रं ग भयी

खेलत संग नव

8
मन के पंख से दौडू तोरे आश

दूर दूर भटके कैसे पहु ँचे पास

सुध न कोई बुध न कोई कौन बताये वास

पल पल जागे पल पल भागे संसार थांस

तु गोपाल तु रखवाल कब बुझाये

छोड न ना मुख मोड तु मेरा

9
" " कुछ होता है ।

" " पढते कुछ होता है ।

" " सुनते कुछ होता है ।

" " से कुछ होता है ।

" " सोचते कुछ होता है ।

होता है ऐसा िजससे तन मन और जो भी हू ँ


जागता है ?

तन के से पुकार उठती है ,

मन के से गुंज उठती है ,

खुद जागता है जो कोई है ।

अंग के हर साधन है ।

अनोखा रस उदभव होता है ,

िजससे साकार को करता है ,

बार बार सलामत रहने और रखने के तडपता रहता है ।

हे !
10
यह साँस

यह उमंग

यह

यह पुकार

यह गहरा इंतजार

यह गहरा

है तन मन

करता है कोई जगत

करता है कोई याद अगन संसार

करता है कोई धरती

करता है कोई अमी खारे सागर

करता है कोई दु:खी

करता है कोई साथ मानव

ओहह! मेरे ! वाह मेरे ! मेरे !

11
हर पल नव नूतन होय

कभी वह याद आये

कभी याद आये

कभी सूरत याद आये

कभी उनके बोल याद आये

कभी उनका याद आये

कभी उनका याद आये

ऐसी पल से तन मन

जो का भंवर रचाय

जब पाये हमारे गुन गुन करता जाय

ऐसी गूंजन करे जो रोम रोम हरखाय

हर बार वह हारे हमको हरता जाय

12
दे खा तो भी जागती है

छूया तो भी हर सांस से पाते है

तो भी हर पल है

है ?

संसार मायाजाल धकेला है

जगत के बंधन जोडा है

याद रखना है !

साँवरे हो कर पाऊंगा।

मेरे से

मेरे से

मेरे समानता से

मेरे से

13
शृग
ं ार करत मुख हो गये तेरे

नयनन माला हो गयी तेरे गले पहनाने

पंकज हो गये तेरे चरण छूने

आचल हो गये अंग अंग लगाने

धडकन आरत हो गई अखंड बरसाने

तन मन धन हो गये जीवन शरण करने

14
खेलत रमत हमसे

हर बार हारत खेवन जीत

हारत हमसे तो कुछ करत हमसे

हार कर भी बार बार खेलत

हमसे

खेलत रमत हमसे

जीत जीत कर थक गये

न छूडे साथ हमारा

हाथ पकड खेल

खेलत खेल हमसे

पता पर पता

खेल न छोडे हमसे

आनंद आये खेल से

खेल खेल कर

खेलत रमत हमसे

15
जागत रै न के संग

बरसाने

नटखट नयन अपलक

टु कुर जगाये

चतुर चकोर मनवा पुकारे

तरस बढाये

अंग अंग मधुर रस

रस से रसना हु ई

रं ग रं गाये

एक बहु त खेल रचाये

16
जीवन के हर से जाना है

जीवन हर से पहचाना है

जीवन के हर से नवाजा है

जीवन के हर सांस से बांधा है

बता अब तुज समाऊ कैसे

बता अब तुजे जगाऊ कैसे

साँवरे ! कैसी है यह लगन के

तुझे से सजाऊ कैसे

तुझे धडकन से नचाऊ कैसे

तुझे मेरे से कैसे

तुझे से कैसे

तुझे मेरे से कैसे

तुझे मेरे से नहलाऊ कैसे

तुझे मेरे से पीलाऊ कैसे

17
आती है तो रं ग है

आती है तो अंग लहराती है

हाथ रखती हो तो धारा बरसाती है

दूर जाती हो तो याद तरसती है

18
एक बार राधाजी ने से कहा

! मेरे झुला बंधवाओ,

झूला झुलन का मन होवे साँवरा

कुछ खेलन का मन होवे बावरा

तो दौड के वनराई पहू ं चा और पलक


झबक के अपनी के

अपनी से झुला बांधा

मन उमंग से दोर गूंथी

महक से झुला सजाया

अंतरं ग से बैठक लगायी

धडकन से पुकार लगायी

कमल से झुला झुलाया

से झुला खींचा

का

19
अदभुत है मेरे

सूरज उगता है तो हर "जय " कहता है ।

धरती से उठती हर रज "जय " करता है ।

सागर हर बूँद हो कर "जय " करता है ।

के हर "जय " करता है ।

उगता है तो हर "जय " करता है ।

आकाश के सारे तारे "जय " करता है

रं ग महक से "जय " कहता है ।

वायु मंद मंद से "जय " कहता है ।

है यह जय घोष मेरे

जो पल पल "जय " जगाता है

"जय " से है

"जय " से एकाकार करता है ।

वाह! मेरे !

वाह! यमुना!

वाह! मेरे !

20
नाम धडकन धडके

नाम बसे

नाम पर रमे

नाम बजे

नाम से चले

नाम से तडपे

नाम इंतजार भटके

नाम से मटके

नाम अटके

कैसे जीते है ?

कैसे रहते है ?

कुछ समझो मेरे !

21
पता सांस साथ लाया हू ँ

पर जबसे

तेरे सांस पहचान पाया हू ँ

तबसे

तुम वह तो मेरा सुमन जाने और


धारा

हर सांस से पीता हू ँ जगत जीने कला

हर सांस से जीता हू ँ संसार सागर पार करने अदा

तुम इतने डू ब गये !

छूट गये सारे बंधन जीवन के

तूट गये सारे तन मन के

न रहा तुम हो गई

तु तु न रहा तु हो गया
22
तु है तो हो गया

तु साँवरा है तो हो गई

तु है तो हो गई

तु राधा है तो तेरा चरण दास हो गया

तु है तो हो गई

23
धडकन खुद धडकन

तडपत सांस अपने को

तन दौडत मन भागत इंतजार तोडने

पुकारत अधर फडफडत

समझना है

पलक झबकते अचल

सामने पाया मलकते

24
जागत नैन तो जागत

नैन जगावत जीवन जगावत

जागत नैन तो जागत

नैन से जागत जगत जानत

जगत जानत खुद रचावत

खुद से खुद जगत रचावत

जागत नैन तो जागत

नैन को भाये नैन बसाये

नैन बसाये खुद को सजाये

खुद का शृंगार कर नैन नचाये

जागत नैन तो जागत

नैन से नैन उन से

खुद नाचे को नचाये

नाचत जीवन संवारे

जागत नैन तो जागत

नैन नैनन है
25
जागे नैन तो जागे

उिजयारा

जागत नैन तो जागत

26
" " के कन कन है

" " के अणु अणु है

" " आंतर तरं ग के रं ग रं ग है

"गोपाल" काल के पल पल है

"माधव" उमंग है

" " के हर है

"मनोहर" मन को हरने हर है

"मोहन" मन हर है

" " जगत के हर आधार पर है

"मुकंु द" जीवन हर है

"नटवर" हर कला है

"राधे" हर है

27
तेरे छूते

दे ख कर

तेरे सुन कर

याद आ कर

होता है कुछ

जो मन दौडे

जो तन पुकारे

जो धडकन गाये

तु साँवरे

तु मेरा गीत बावरे

तु मेरा इजहार

तु मेरा

अंग अंग तेरे सूर

संग संग सदा तु मधुर

28
तु है जब तक यह जगत

भी इंतजार हर

साँवरा रं ग से है यह

मेरा से

29
के का एक साथी रहा

जब भी आता था

ऐसे गीत आते थे

जो कभी डगर "साधना" होती थी

कभी अंतरं ग तरं ग जगाती थी।

तुम मुझसे दूर चले जाना न हो

तुमसे दूर जाऊँगी।

"सोचा था करके से

तुमको बांध लूंगी से

बांध सदा ऐसे से

तुम दूर जाओ या जाओ

पर

हम हर पल लाते

30
आज मेरे नैन सो गये

पलक झूकावु तो मलक मलक

पलक उठाऊँ तो अदा खेले

कैसे कैसे नैन को छूये

आज मेरे नैन सो गये

सुनाऊँ मधुर अधर छलके

पलना गाऊ तो मेरे अंग अंग छलके

कैसे कैसे

आज मेरे नैन सो गये

31
यमुना के तीर

यमुना के नीर

खेले रणबीर

रणधीर

जंजीर

डोर

वीर

धरती गंभीर

है धरोहर

जहां खेलत नंद

जहां रचत डोर

जहां लूटत का चोर

जहां मन का मोर

जहां छूटत घोर

जहां भोर

है यमुना तोर

से नाचे जोर

32
हाल कर रखा है हर पल का

तु न आये तेरा न आये

पर पुकारे धडकन

है या

बसी है अंतर

गाये गाये

गाये

भी हो कैसी भी हो

है अपने घडी

33
दे खे जात कलप- ,

-अनल

दरसन अंग अंग तडप- ,

नैनन-

- सांस- ,

चैन याद- ,

- - ,

सागर- संग भयी

दे खे जात कलप- ,

-अनल

हे ! तुझे दे खे हमारे भरे अपनी


संयोग जाते है ,

यह अनल या ने यह वायु रस
हम पर अगन अगन बरसाते है , तडपाते है ।

34
एक झांखी भी मेरे कोई को कुछ दे सकता है ।
मुझे अपने का कोई तेज उजागर कर सकता है । मेरे
अंधकारमय काल कोई रोशनी का संकेत मुझे कुछ याद
सकता है ।

से हम है एक झांखी हमारे
कोई एक आश बंधा सकता है ।

35
मांगू जगत

से सेवा बरसाऊ

यमुना रं ग तरं ग से

रज से शरण

से चरण पखाळु

कुल का जीवन जीने जगाऊ

36
खेलत हमारे आंगन

भोजन आरोगत हमारे आंगन

खुद रचत आंगन

चोरत लूटावत परमानंद हमारे आंगन

से करत आंगन

है हमारे आंगन

वंदन करे " " सदा

को जुडते रहे सदा।

37
ऐसे से मेरा मुखडा मलका

नयन झांख कर मेरा नयन झुका

होठ मचल कर अंग अंग तडपा

छूपा कर का तोडा

करते है र कमल नयन काले रं ग से

जोडते है धडकन साँवरे मुखडे भरे से

कपट से कलंक भये

कलंक से काजल

पर

मेरे काले साँवरे से

साँवरा मेरा घट घट होय

38
कंगना खनके तो समझना आ रहा है

थनके तो समझना मचलती है

पायल बाजे तो समझना को दौडना है

पायल झून झूने तो समझना आतुर है

झुमका लचके तो समझना पुकारता है

झुमका डोले तो समझाना बुला रहा है

39
हर के

हर भाव जागे के

हर बढे

हर ता तरसे

हर जुडे से

हर चरण छूये से

हर आनंद से

हर हो से

हर धारा एक हो से

हर हो से

40
पतंग

पीला पीला आंचल

पीला पीला पघडी

पीला पीला पीतांबर

पीला पीला चरणामृत

पीला पीला जगाये

पीला पीला पुकारे के गीत

पीला पीला रं ग करे परम पद संकेत

पीला पीला अंतरं ग रं गाये

जो समजे पीलापन को पल पल जीता जाय

41
सूरज का पहला

माँ का पहला अमृत पीला

का पहला चरण पीला

परम का पीला जो घट घट जुडे

42
मन ठहरने का जीद करे

तन का धरे

पर कहे !

चलना है और चलते रहना है

आज यहाँ है , कल

पर आज तो यहाँ से है

पाया पीया

से न कभी है

कैसी भी खेले

का साथ है

के नाथ वचन है मेरा यह जीवन।

जबतक मेरा साँस है जगाये धन।।

शरण रखना सेवा बसना सदा नयन।

याचु भगवंत साथ धरना सदा तन मन।।

43
जो जगायी रे राधा ने

मेरा तन मन का सुध चुराया रे राधा ने

राधा ने राधा माधव ने

सजायी रे नाथ ने

मेरा जीवन कराया रे नाथ ने

नाथ ने गोकुल नाथ ने

अंतरं ग जतायी रे गोकुल गोपाल ने

गोकुल गोपाल ने यमुना ने

बसायी रे यमुना ने

यमुना ने यमुना बाँके ने

यमुना बाँके ने यमुना

44
धून आज इस तरह गूंज थी जैसे

अनंत बूँद,

पंक पंकज,

अंधकार सूरज,

घनघोर घटा ,

पाषाण झरना।

इंतजार राधा थी और न कोई


उनका संकेत था।

एक धून बह थी - राधा! राधा! राधा!


राधा न तो हाल होता है ?

हर सांस राधा!

हर सोच राधा!

हर नयन राधा!

हर राधा!

हर तडप राधा!

45
हर पुकार राधा!

हर इंतजार राधा!

हर राधा!

हर डग राधा!

हर राधा!

हर रज राधा!

हर पर राधा!

हर फूल राधा!

हर फल राधा!

हर राधा!

हर धारा राधा!

हर लहर राधा!

हर महक राधा!

और हो गये थे बंसीधर!

46
बार ऐसा हु आ राधा है । कैसी अनहोनी? कैसी
?

कभी हो सकता राधा

आज ढू ँ ढ रहे है अपनी को।

कोई तो राधा!

कोई बूँद टपक तो राधा!

कोई पंखी चहक तो राधा!

कोई झरना तो राधा!

कोई चहल पहल आवाज तो राधा!

ओहहह! के तडपे।

से सूर राधा! राधा! राधा!

ओहहह! उं ची गगन आवाज - राधा!

एक साथ राधा!

तो राधा है कहाँ?

कहाँ है राधा?
47
राधा! राधा! राधा!

राधा आंतर नयन से

छूवत राधा आंतर धडकन से

आवत राधा आंतर मन से

कहाँ है तु मेरे साँस अमृत

कहाँ है तु मूरत

से

से महक

से बूँद बरसे

से रं ग उडे

से शीतलता छायी

से मृदत
ु ा छायी

से सरगम बाजी

से गीत गूज
ं े

48
से रज

छा गई एक आकृ त

तडप थी सृजन

छूते बंसी धून सरगम

हो गई

नयन जैसे

हो गई राधा

नयन

मुख मलके

होठ तडफडे

मन पुकारे

धडके

जागे

उभरे

49
राधा राधा होय

अखंड समाय

50
दे खी

जाने

पहचाने

हर पल दे खा

हर जाना

हर रचना पहचाना

दे खते साँवरा मेरा

जानते साँवरा मेरा

पहचानते साँवरा मेरा

पल से छुपाया

से साँस बसाया

रचना से रं ग डू बोया

51
के ऐसे रहना है हर मधुर हो जाय

के खेल ऐसे खेलना है हर हो जाय

के ऐसे खुलना है हर लूटा जाय

के खेत ऐसे उगना है हर खुदा हो जाय

के खत ऐसे है हर हो जाय

52
बसे है ऐसे इन

पलक खोल पाऊ

अब

पलक खुले तो डर मोहे लागे

भाग न जाये

पलक बंद तो डर मोहे लागे

डर न जाये

कैसी है यह उलझन

को कैसे बताऊँ

मेरे को भी मुझसे उलझन

कैसे सुलझाऊ

ठान था न खोलने का

पर कैसे नटखटता रचायी

सूरज को उगा गगन

53
नैन खुलवा अटखल से

पर न भागा वह नैन से मेरे

आनंद आनंद छाया तन मन

ने कर गोकुल नैना

54
तो सारा आसमान से छा गया

बादल टकराये तो सारा आसमान से छा गया

धरती झुमने लगी पंखी गाने लगे

फूल महकने लगे

तो

याद तडपने लगी

नयन ढू ँ ढने लगे

होठ थरराने लगे

धडकन गाने लगी

आजा आजा रे

55
पास हू ँ भी

वह दूर है मुझसे

नैनन उभरते है भी

बन कर सामने है

बसे है भी

धडकन बन कर तडपते है

56
मेरे साँवरे धडकन के साथ कैसे बार बार

मेरे साँवरे

खुद लूटाऊ

खुद तडपाऊ

कैसी कैसी पल कैसे कैसे मेरे साँवरे

मेरे साँवरे धडकन के साथ कैसे बार बार

सांसो के तार सुनाऊँ

नैनन धार शरण जगाऊ

कैसी कैसी से कैसे कैसे मेरे साँवरे

मेरे साँवरे धडकन के साथ कैसे बार बार

से तु तन चुराये

से तु मन लुभाये

जताके कैसे कैसे ललचाये मेरे साँवरे

मेरे साँवरे धडकन के साथ कैसे बार बार

57
घुमाये रात जगाये

जीवन भर भटकता

कैसे नखरे के कैसे कैसे रचाये मेरे साँवरे

मेरे साँवरे धडकन के साथ कैसे बार बार

तेरा ढू ँ ढ पाऊ

आनंद कैसे सजाऊँ

आजा एक बार मेरे साँवरे

मेरे साँवरे धडकन के साथ कैसे बार बार

मेरे साँवरे ! मेरे साँवरे ! मेरे साँवरे ! मेरे साँवरे !

58
ओहह! मेरे ! मेरे !

सुनते हो आहट

आ जाते हो सामने का रस पीने

कैसे हो जो रह कर

आग तडपाते रहते हो।

59
जुबां से तडपती कहता रहता हू ँ

से बरसाता रहता हू ँ

से अंगारे बयां करता रहता हू ँ

से धायल रहता हू ँ

है मेरे का एहसास

जो मुझे जलाये और न जगाये

जागना मेरा है

और

जगाना मेरा एकरार है ।

60
मन से जागे मन जगाये

मन मन जाय

मन से जीवन

भव भव सुझाता जाय

मन बसे एक

मधुर मधुर परोय

61
सपना दे ख रहा था सपना का

बंध से

उनके चरण था

वह धडकन थी

उठायी

उनके था

के बंधन बंधे थे

न होश मुझे था बेहोश वह थी

सां खोये थे

62
नैन के तुज संग

मन के तरं ग तुज संग झुमे

सांस के तुज संग जीये

धडकन के सूर तुज संग गाये

अधर के पं तुज संग जुडे

तन के रं ग तुज संग रं गाये

के तार तुज संग बाजे

कुछ न रहा अब मेरे संग

कैसे है के अंतरं ग

63
ओहहह!

बूँदे बरस है

बढ है रस

नजर ढू ँ ढ है

होठ फडफड रहे है पुकार के

धडकन धडक है छुवन

मन बहक रहा है के

तन तडप रहा है के

64
राधा को कहे

को लगे राधा

को राधा कहे

राधा को लगे आधा

कैसा यह मेल है

राधा आधा

राधे से भये

से न भये

कहते है

से राधा आधा

65
सा सा था तन मेरा

िजसको छूने नाचती थी हर बाला

तडप रहा था

वो तडप रहे थे गले लगाने

माँ थी नजर

छू न ले कोई अपने दुलारे

टु कुर टु कुर तडपने दे खुं

वह अपलक अपने

करे नटखट खेल

िजससे

माँ को पटाने

माँ ने बुलाई नींदया रानी

पलक झबाके नींद ठगाई

दौडी माँ झटपट रसोई पकाने

66
लपक के ठानी ये

बुझाई

ऐसी है यह नटखट अदाई

कहते मुझे

67
रं ग रं ग रं ग छाये रं ग छूये

रं ग उडे रं ग उडाये रं ग बरसे रं ग बसे

रं ग रं गे रं ग रं गाये रं ग रं ग से रं ग रमे

रं ग रं ग से रं ग

रं ग से रं ग भीगे

भीगे भीगे रं ग से तन मन रं ग

रं ग से रं ग

रं ग से जागे

जागे जागे रं ग से पुकारे

पुकारे पुकारे रं ग के संकेत करे

संकेत संकेत रं ग से

रं ग हम तुम रं ग

रं ग एक रं ग हो जाये

गौर रं ग तेरा सांवरा रं ग मेरा गुल कर हम हो भये

68
नयन मुद
ं ते

पुकार होठ

साँस बुझते

ऐसे याद हे !

तेरे

को एक पल का चैन

69
ने उडते उडते आकाश को पूछा

हम उडते है तेरे

हम खेलते है तेरे आँगन

हम लहराते है तेरे आँचल

तो एहसास करते हो

आकाश ने कहा

उडते छू कर मुझे महसूस होती है

खेलते आँगन तुमसे खेल कर उठती है

लहराते आँचल रख कर जाग उठता है

ऐसा है ये

जो धरती बार बार छूती है

जो सागर बार बार घुघवाता है नाम

जो हर जन बार बार गाता है गीत सुनहरा

ने कहा

70
!

नाम !

गीत सुनहरा!

आकाश ने कहा - हाँ!

वह है सबका दुलारा

वह है हर एक का बावरा

का

जागता है नयन

सुनाता है कानो

है तन

धडकता है

बसता है रोम रोम

लहराता है

खेलता है

71
करता है तन मन धन

मेरा !

मेरा !

है मेरा !

72
!

लब से ऐसे सरकता है

इतने तो तुम मुझे चादर हो

तो

धडकन हर साँस पर तुम मुझे अपने साथ जुडते रहते हो

अदा हो

जो हर सदा जागते रहते हो

ओहह! अटल रा

जो हर हो।

73
आते दूर चले गये

दूर दूर से पुकारते चले गये

कैसी है यह

तडप तडप कर

याद याद से तन मन पुकारे

आजाओ एक बार

न जाना बार बार

! न हर बार

74
ऐसे घडे हमारे घट घट रे

तन बसे साँवरा

ऐसे रचे हमारे रे

तेरे गुण गान गाऊँ

रोम रोम मूरत रची रे

न तडपावो ओ मेरे !

साँस साँस अब रे

75
कोई करता है याद याद

कोई पुकारता है साद साद

कोई इंतजार है

कोई है बाद बाद

कोई तडपता है बूँद बूँद

कोई गाता है नाद नाद

कोई रहता है चंद चंद

कोई भटकता है वृंद वृंद

कोई जागता है

कोई रोता है कृं द कृं द

है

जो जताये धार धार

साँवरे ! कैसा है रे ? करे ?

76
खेलन ऐसी

जो खुद के रं ग को भूले

रं ग से तन मन रं गे

जीवन रं ग से भर दे

यमुना तरं ग संग

उमंग रं ग

कंगन खनकाये पायल नचाये

अंग अंग के संग

भर उडाये रं ग

नाचे संग पीये रं ग

77
तुझे सुबह जगाऊ

खुद है जगत जगवैया

तुझे कराऊ

खुद है जल बरसैया

तुझे शृग
ं ार

खुद है सलौना

तुझे गीत सुनाऊ

खुद है सरगम सराहना

तुझे भोग धराऊ

खुद है धनौना

तुझे नाच नचाऊ

खुद है नाच नचैया

तुझे सेवा

खुद है सेवक

78
तुझे

खुद है कृ त

तुझे खेल

खुद है खेल खेलैया

तुझे रं ग लगाऊ

खुद है रं ग रं गैया

तुझे

खुद है सबका रखवैया

तुझे लूटाऊ

खुद है लूटैया

तुझसे नजर चुराऊ

खुद है चुरैया

तुझे

खुद है

79
सलौना

गवैया

साँवरे

80
ढू ँ ढते रहे नयन आज याद को

जो रहते थे नयन

तडपते रहे आज ऐसी धडकन

जो रहती थी एक ताल

होठ पुकारते थे मन मचलता था

करते थे इंतजार जो जाग रहा था

कौन हे वह जो बार बार

से कुछ उभरती है याद

आजाओ अब यह नयनन ्

जो करे बात

एक है मेरा जो वह भी मेरे साथ तडपे बार बार

81
छुपता है चाँद से

छुपता है मुखडा घने से

छुपता है तन रं गीन पहनावे से

छुपता है मन से

छुपता है से

छुपने को हम समझे

मेरे सामने एक मूरत से

कबसे बैठे सूरत

ओ साँवरे !

न चाँद उगे!

न मुखडा जागे!

न तन नाचे!

न मन दौडे!

न !

कैसी है यह जीवन ?

तु छुपे छुपे कहाँ कहाँ?

कहाँ तक छुपे?

82
छुवत कोई बंधन से

कैसा है यह बंधन

कैसा है यह

से ओर

कैसी है यह

जो पल पल जी कर

न कभी भी

न याद कभी भी

भी वह बुलाये

भी पहू ँचाये

कोई तो है

जो हर एक को जाग जगाये

है ऐसी न हो पुरानी

पल पल नयी नयी जागे

83
मन से तन से जानो

योग से पाओ से अनुभवो

कुछ न कुछ तो होता जाये

जो होये वह ऐसे

बार बार आनंद से

84
सूर से सूर

सूर से तरं ग

सूर से

सूर से

सूर से मधुर

सूर से संगीत

सूर से मीत

सूर से

हो मेरे

85
पधारे नाथजी अपने आँगन

खुद को से करके

से खेलने से जुडने

को रं ग से रं गने

यमुना बूँद बरसाये

शरण रज कराये

पुकाराये

घर घर सेवा मनोरथ

छुये एक एक जीव अनोखे

हो जाये

रचे सखी हो जाये

सखी सखा जगाये

से धाये

हमारे हो जाये

86
सा

सा

सा

सा आँगन

सा मधुबन

सा

सा शृग
ं ार

सा

पधारे

नजर

नटखट चोर नंद कुमार

कनक कटोरा रं ग भरा

उडाये रं ग

है या अमृत

87
अंग अंग मधुर मधुर रं गाय

नखराळी झुम नाचुं

खेलुं संग संग भरथार

हाथ पकडे

पीये से मेरा

88
तेरे धडकती धडकन के तरं ग से

कुछ होता है धडकन

पडती है गूँज तेरे नाम

सूर से तन मन

मन बावरा हो कर अटक

तन मयूर बन कर नाच मटक

है तेरा मेरा एक का

तेरे अंतरं ग असर को कहे

मेरे उमंग गूँज को कहे

तु रज रज से बूँद बूँद से तरसे

से से भटकु

पर सच कहू ँ

तो

तु करता है

89
केवल अपनो हू ँ

मुझे पा करके

तुझे पाया तुझे लूट कर

तु है

खुद हू ँ यह संसार माया।

पास कोई सुहानी

संभालना जीवन नैया

हो कर

साथ हो कर

है अमृत आनंद रस

है रस

अमृत लूटाना संसार पर

क नाचुँ गोपी बन कर

ओ मेरा !

90
हर रं ग से एक रं ग है - "साँवरा"

हर गूँज से एक पुकार उठती है - " "

हर काल से एक है - " शा"

हर याद से एक बूँद बरसता है - " "

हर घडी बार बार पूछती है - कब हम एक ?

91
फागुन आयो रे

ओय ओय फागुन आयो रे

अंग अंग करे शोर

मन मन करे जोर

जागे दोर

फागुन आयो रे

ओय ओय फागुन आयो रे

धनक धनक ढोल गाजे

छम छम पायल बाजे

भागे रोम रोम ओर

फागुन आयो रे

ओय ओय फागुन आयो रे

थरकट थरकट पैर नाचे

उलट पुलट कलाये राचे

मागे चोर

फागुन आयो रे

ओय ओय फागुन आयो रे

92
भर दौडे

ढूँ ढे एक खेलने रं ग

हु रररर! हु रररर!

हाथ न आये हटक मटक भागे

कभी पीछे कभी आगे

छुपा छुपी

पकड आये बाला

हु रररर! हु रररर!

ता थैया ता थैया नाचे छूम छूम पैजनीया बाजे

नयन नखराला कदम कुद कुदाये

उडाये बौछार

पकड आये बाला

नटखट अदा ने खेल ऐसा छे डा

लचक मचक आयी बाला

पकड हाथ रं गा नार

छा गया अंग अंग

हो गये रं ग

93
ओहह! आज रं ग बरसा

लाया गुलाल

भर भर के बहार

दौडे रं गने अपार

साथ है गोकुल के बाल

खेलने का

हम भी खडे करके शृग


ं ार

नजर आये धार

ऐसे लपके ऐसे झबके

आये न पकड हमार

छूपके से आया हम ओर

रं ग उडाया करके शोर

मांगे दान का

ललचाये अपनी ओर

94
पकड हाथ खींच के

लपक तन मन ऐसे

बरसा नयन से

हो गये हम उनके वरण से

रं ग उडाये

रं ग रं ग जाय

पर लाल रं ग उडाये

मेरे का लाल लाल

उडाये उमंग लोल लोल

रं ग उडाये

पर नीला रं ग उडाये

मेरे का उपरणा नीला नील

लहराये तरं ग होल डोल

रं ग उडाये

95
पर पीला रं ग उडाये

मेरे का पीतांबर पीला पल

फरकाये आनंद खोल खोल

रं ग उडाये

पर सांवरा रं ग उडाये

मेरे का अंगना चौल गोल

बरसाये भर भर मोल

र रं ग उडाये

96
!

तोरे रं गावत

नयन भटके रं ग रं ग बरसाने

मुखडा तरसे रं ग रं ग लगाने

अदा घडी घडी जागे

तोरे रं गावत

यमुना तट झुरे बोर झुरे

कदम वट झुरे झुरे

तु तो सारा गोकुल करे वाट

तोरे रं गावत

गोप गोपी तडप तडप करे

गौ गोपाल भटक भटक आहे भरे

करे भरो नाद

तोरे रं गावत

97
! बुझा जा हमा

! रं गा जा आश

! तोरे

आजा आजा रं गा जा!

98
नजर रं ग ऐसे भरे

जाऊँ

ऐसे लूटे मुझे ऐसे रं गे मुझे

जाऊँ

एक रं ग एक रं ग का

हो जाऊँ

नजर रं ग ऐसे भरे

जाऊँ

एक रं ग एक रं ग का

तडप जल जाऊँ

नजर रं ग ऐसे भरे

जाऊँ

एक रं ग बादल एक रं ग का

भीगी हो जाऊँ

99
नजर रं ग ऐसे भरे

जाऊँ

एक रं ग अमृत एक रं ग अधर का

पी हो जाऊँ

नजर रं ग ऐसे भरे

जाऊँ

एक रं ग एक रं ग इशारा का

दौडी दौडी जाऊँ

नजर ऐसे रं ग भरे

जाऊँ

ऐसे लूटे मुझे ऐसे रं गे मुझे

जाऊँ

100
भर सखी ओ ने

खेले रं ग रं ग

मुखडा हरखाये तन नाच नचाये

उडाके रं ग सखा के संग

खेले रं ग रं ग

बंसी बजाये बुलाये

फरफर मारे रं ग अंग

खेले रं ग रं ग

उडाये को सताये

दौड दौड सखी पकड न आये

खेले रं ग रं ग

भर ने

खेले रं ग रं ग

101
है भंवर उडे

फूररररे

है पोपट उडे

फूररररे

है उडे

फूररररे

ऐसा मेरे रं ग उडे नील गगन

ऐसा मेरे मनका तरं ग उडे फूल चमन

भंवर गूँज गूँज गाये

मनका भंवर फूल फूल

गाये संदेश साँवरे से

पपीहा कूहुँ कूहुँ गाये

मनका पपीहा दौडा दौडा जाये

पुकारे संदेश राधे से

धडकन मधुर मधुर छूये

साँस अधर अधर पीये

रस से

102
खेलन आयी

खेलन रे

गुलाल

खेलन रे

नंदगांव का छोरा ढू ँ ढे

का शोर करे

नजर न आये

खेलन रे

रं ग रं ग से उडाये

घर घर से गोप बाल

पकड न आये

खेलन हो रे

गुसपुस गुसपुस इशारा करे

यमुना कंु ज से पकडे

103
रं ग रं गाये

खेलन रे

गोप गोपी

रं गाये मनवा रं गाये

पुकारे रं गने

खेलन रे

104
वृंदावन बीच नटखट छे डे

हसे हर झुके

भाग के पकड न आये उनसे

हर अदा से पकडाये

छूपत छूपत सामने आया खेल रं गाने

मुखडा छूपाके थम गये रं ग भीगोने

ऐसे खेला रं ग ने खो गई नयन

डू बी वो डू बा वृंदावन

105
मन के तरं ग से रं गु

तन के उमंग से रं गु

रं गु मेरे आनंद से

काजल नयन से रं ग रं गु

लाल अधर से गुलाबी रं ग रं गु

साँस मधुर से

साँस मधुर से

महक महक भर दुं

रं गु मेरे आनंद से

अंतर भाव से तन को भीगो दुं

पुकार से जीवन लूटा दुं

है या संग से

है या संग से

अमृत रस घोल दुं

106
रं गु मेरे आनंद से

मन के तरं ग से रं गु

तन के उमंग से रं गु

रं गु मेरे आनंद से

107
नयन

तन

मनवा

आंतर

साँस

धडकन

जहां

108
" "

ऐसी तो थी?

ऐसी तो थी?

ऐसी तो थी?

ऐसी तो थी?

ऐसी तो थी?

ऐसी तो थी?

ऐसी तो थी?

ऐसी तो थी?

ऐसी तो थी?

ऐसी तो थी?

ऐसी तो थी?

ऐसी तो थी?

हर को

109
हर को

हर को

हर साँस को

हर मन को

हर तन को

हर धन को

हर को

हर को

हर धडकन को

हर को

हर सूर को

हर भाव को

हर को

हर रज को

110
हर बूँद को

हर लहर को

हर को

हर को

हर महक को

हर रं ग को

हर तरं ग को

हर को

हर को

हर को

हर को चे

हर को

हर आनंद को

हर को

111
हर कला को

है हर

जो पल हं साये पल

तो भी सदा साथ

112
का आँचल औढे

इंतजार का काजल आंजे

अपलक धरके

अगन रे त का तन शृग
ं ारे

माला पहने

साँस आश

खडी हू ँ आरती उतारने

आजा आजा

113
ढू ँ ढा

पर खोजा

रज रज तरासा

के मन मन छाना

पर तु नजर न आया

कहां है हे ! कहाँ तु छूप गया?

हर हर के मन छूपा हू ँ

रज रज के तन छूपा हू ँ

के आवाज छपा हू ँ

गूँज छूपा हू ँ।

मुझे ढू ँ ढना हो तो अंदर ढू ँ ढो तो

हर - गोपाल बन कर

हर - बन कर

हर रज - बन कर

114
हर मन - बन कर

आजाओ! आजाओ!

आजाओ! मेरे जन! आजाओ!

हम खेल जीवन आनंद का

हम लूटाये रं ग का

हम पीये मधुर रस आनंद का

115
से संवरती है िजंदगी

से है िजंदगी

से है िजंदगी

से जागती है िजंदगी

हम ऐसे है करते है

पर सदा के तरसते है

तो बरसाना है

भीख मांगती है िजंदगी

खुद को ऐसे बुलंद करदो करे तो ऐसा करे हर र का


पुकारे है ।

जैसे आज केवल और केवल हम

"राधा "

नयन सजल जाता है

मन अचल जाता है

तन संभल जाता है

सरल जाता है

116
खेल खेलता है जीवन

हर कोई खेल खेलता है हर पल

खेल खेल बटोरा

खेल खेल जागी

खेल खेल संबध


ं बंधे

खेल खेल रचाये

खेल खेल

खेल खेल हर धन पसारा

हाथ आये हाथ लौटे

जो कुछ कर पाये खेल से

खेल समझ न आयी

हे जगत के बंदे!

जीवन तो ऐसी धारा है

जो पल पल केवल अमृत धरे

117
ऐसे खेल खेले जो जीवन करे

छोड उडा

न खेल कोई खेलौयाँ

अगर कोई खेल खेलेगा

जगत भीसता - भटकता - लटकता - लूटकता - डू बता रहे गा।

118
भयी जब

अंग अंग जागी रे

कैसी है यह जीवन

जो साँस जलायी रे

मन तडपाया तन लुटाया

रोम रोम आग लगायी रे

ठु करायी चैन घवाया

पल पल आह बरसायी रे

कैसा है तु

लपटायी रे

न रहा न जाय न ठहरा न जाय

लूट या जीवन हर शृग


ं ार रे

अपलक नयन ढू ँ ढे एक नजर रं ग का

तडपता मन आश करे रं ग का

119
लुटाया तन इंतजार करे साँवरा रं ग का

तेरे रं गाऊ के हर रं ग रं ग का

बस! अब आजा रं ग भरके

ऐसा रं ग दे ऐसा संग दे न कोई अंग लगे

एक रं ग मेरे का परम रं ग का

120
रं ग फुहार से

कर एकरार से

न बुझे बाती

न छूटे सोच मन से मन लन

121
भाग - 3

सेवा धारा

: Vibrant Pushti - Vadodara

Vibrant Pushti

53, सुभाष

संगम चार

हरणी रोड - वडोदरा - 390006

गुजरात - India

Email: vibrantpushti@gmail.com

Mobile: +91 9327297507

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Vibrant Pushti
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