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दर् गाथा

(उप यास)
सािह य सागर पा डे य

रे डग्रैब बु स
इलाहाबाद
द्रगाथा (उप यास)
सािह य सागर पा डे य
प्रकाशक:
रे डग्रैब बु स
942, मु ठ्ठीगं ज, इलाहाबाद-3 उ र प्रदे श, भारत
वे बसाइट- www.redgrabbooks.com
ईमे ल- contact@redgrabbooks.com
आई एस बी एन : 978-93-87390-24-9
आवरण : श्री क यूटस, इलाहाबाद
टाइप से िटं ग : श्री क यूटस, इलाहाबाद
मु दर् क : भागव प्रेस, इलाहाबाद
सं करण: प्रथम, जनवरी 2018
समपण
उन महानायक को समिपत,
िजनकी शौयगाथाओं से प्रेिरत होकर,
यह पु तक िलखी जा सकी।
अनु क् रम

पूव पीिठका
1. शु आत द्र की
2. अिधपित
3. प्रार ध की ओर
4. राजनगर का यु
5. एक नए ल य का िनधारण
6. िवगत वषों की घटनाएँ
7. एक नये जीवन की ओर
8. पु
9. अि तम यु
10. आिखर ये सब य ?
पूव पीिठका
वो एक ऐसा दृ य था, िजसको दे खने का सपना हर एक यो ा का होता है । यु भूिम, हाथ
म तलवार,और सामने िवप ी सै िनक। उस यु े तर् म भीषण रण हो रहा था। हजार
सै िनक के त-िव त िकये हुए शव रणभूिम म पड़े थे । उनके प्राणहीन पड़े शरीर, उस
यु की वीभ सता को दशा रहे थे । वहाँ की भूिम मृ तक के र त से रँ ग गयी थी। कई
सै िनक घायल हुए पड़े थे , और दद से िवचिलत उनकी चीख यु भूिम म गूँज रही थी। उन
घायल सै िनक के अितिर त हािथय और घोड़ की िचं घाड़ एवं िहनिहनाहट ने उस यु
े तर् म अपनी उपि थित दज कराई हुई थी। कहीं तलवार आपस म टकरा रही थीं, तो
कहीं भाले के प्रहार का प्रितरोध, ढाल के साथ िकया जा रहा था। कहीं धनु ष से िनकला
बाण, िवप ी सै िनक के शरीर को चीर रहा था, तो कहीं िबना श त्र के, केवल बाहुबल से
ही िवरोधी को चु नौती दी जा रही थी। कहीं कोई सै िनक अपने िवप ी सै िनक को यु म
उलझाये हुए था, तो कहीं कुछ सै िनक अपने घायल सािथय को यु भूिम से दरू सु रि त
थान पर पहुँचा रहे थे । वे प्रय न कर रहे थे की िकसी भी प्रकार से अपने साथी सै िनक
के प्राण बचा ल। अने क सै िनक तो हाथी के पै र तले आकर ही अपने प्राण गँ वा चु के थे ।
इन दृ य को दे खकर सै िनक की भावनाय िहलोर मार रही थीं। वे सभी सै िनक पूरी दृढ़ता
से यु कर रहे थे । उनका सीधा िवचार था, िक उ ह अपने दु मन पर कोई दया नहीं करनी
है । सामने खड़ा हुआ िवप ी सै िनक चाहे िजतनी भी दया की भीख माँ गे, उ ह उसके
प्राण नहीं बचाने ह। ये यु हो रहा था सम्राट कण वज और अिधपित द्र के म य।
द्र की से ना भले ही सं याबल म कम थी, िक तु उसकी से ना का प्र ये क सै िनक अपने
प की िवजय हे तु वयं को समिपत करने की भावना रखता था। वे सै िनक लड़ रहे थे ,
अपने प की जीत के िलये , वे सै िनक लड़ रहे थे , अपने धम की र ा के िलये । वे सै िनक
लड़ रहे थे , य िक यही उनका कम था, वो यो ा थे ; वो सब के सब वीर यो ा थे ।
यु म ित्रय समाज के पथ प्रदशक एवं वीरभूिम के महाराज, सम्राट कण वज की
से ना िवजय की ओर अग्रसर िदख रही थी। अभी तक के यु म सम्राट कण वज की
से ना अपने िवपि य पर भारी पड़ रही थी; और होती भी य न? भारत दे श के सबसे
बड़े प्रांत वीरभूिम के महाराज, ित्रय समाज के प्रमु ख सम्राट, कण वज की से ना थी
वो, िजसम कुल 8 लाख सै िनक थे , 6 लाख पै दल सै िनक, 1 लाख घु ड़सवार, दस ह़जार
हाथी और न बे ह़जार धनु ष-बाण धारी सै िनक। यही नहीं, उस िवशाल से ना का ने तृ व
करने के िलये उनके पास था, महाबली किन क जै सा वीर से नापित, िजसकी वीरता से
स पूण भारतवष पिरिचत था।
कुछ वष पूव तक सम्राट कण वज, ित्रय समाज के अग्रणी हुआ करते थे , और उनके
प्रित स पूण भारतवष के ित्रय राजाओं की िन ठा हुआ करती थी, िक तु अब
पिरि थितयाँ बहुत पिरवितत हो चु की थीं। भारतवष की सभी ित्रय से ना का सहयोग
उनके पास नहीं था। अब उनके पास केवल उ हीं की से ना का बल था। पर वो 8 लाख
सै िनक की सं यु त सं या िकसी भी िवरोधी के िलये पया त थी। उस िवशाल से ना को
दे खकर िकसी भी दु मन की से ना का मनोबल टू ट जाता। भारत दे श के उन वीर ित्रय
की सं यु त से ना से यु करने का िनणय अव य कोई मं द बु द्िध राजा ही ले सकता था। 8
लाख सै िनक के सं यु त द ते को दे खकर एकबारगी दे वता भी यु करने से कतराय।
सम्राट कण वज, से ना के म य म बनाये गये ऊँचे अवलोकन थल से पूरे यु पर ऩजर
गड़ाये हुए थे । उ ह अपनी ‘िनि चत’ ही होने वाली िवजय का आभास हो चु का था।
उनके मु ख की प्रस नता, उनके दय की प्रपु âि लत भावनाओं को प्रदिशत कर रही
थीं। सम्राट आिखर प्रस न होते भी य न? अं तत: वो उस कपटी ब्रा ण को धूल
चटाने वाले थे । वो कपटी, िजसने उनके अखं ड साम्रा य को चु नौती दी थी। सम्राट
कण वज के ठीक बगल म वीरभूिम के प्रधानमं तर् ी अ य त भी िवराजमान थे ।
‘‘अ य त! ऐसा लगता है िक अब िवजय हमसे अिधक दरू नहीं है ।’’ सम्राट कण वज ने
प्रस नता के साथ अपने प्रधानमं तर् ी से प्र न िकया।
‘‘िनि चत ही महाराज! आपके कुशल ने तृ व एवं से नापित किन क की सटीक रणनीित ने
यु को हमारे प म कर िदया है ।’’ प्रधानमं तर् ी अ य त ने अपने सम्राट को यथोिचत
स मान से उ र िदया।
‘‘ या अब हम उस खूँखार ह यारे को यु भूिम म भे ज दे ना चािहये ? तु हारा इस िवषय म
या िवचार है अ य त?’’ महाराज कण वज ने अ य त से एक बार िफर प्र न िकया।
सम्राट कण वज कोई भी िनणय ले ने से पूव अपने प्रधानमं तर् ी से सलाह ले ते थे , और
वो अ य त की सलाह का स मान भी करते थे ... ले िकन तभी तक, जब तक िक वो सलाह
उ ह ठीक लगे ।
‘‘महाराज! मे रा सु झाव है िक अब हम उस ह यारे का प्रयोग करने की आव यकता ही
नहीं पड़े गी; हमारे से नापित किन क ही शत् ओं का स पूण नाश करने के िलये पया त
ह।’’ अ य त ने उ र िदया।
सम्राट कण वज कुछ ण के िलये मौन हो गये । उ ह ने द्र के िवषय म एक बार िफर
िवचार िकया। अचानक उनकी आँ ख के आगे , उस ब्रा ण ारा िकये गये सारे कृ य
नाचने लगे । वो ब्रा ण, जो उनकी दृि ट म इस सं सार का सबसे नीच और अधमी मनु य
था, उसके िवषय म सोचते ही क् रोध से उनकी मु ट्िठयाँ िभं च गयीं। सम्राट कण वज का
मु ख क् रोध से लाल हो गया।
‘‘उस नीच और मं दबु द्िध ब्रा ण को उसके िकये गये तु छ कमों की स़जा दे कर ही मे रा
दय शा त होगा अ य त; म उस नीच घमं डी को भयानक मृ यु दे ना चाहता हँ ,ू इसिलये
तु म इसी ण उस ह यारे को यु भूिम म भे जने का प्रबं ध करो।’’ सम्राट कण वज ने
अपने दाँत को भींचते हुए कहा। वो उस पल की कामना करने लगे , जब वो ह यारा उस
धूत ब्रा ण के शरीर को प्राण रिहत कर दे गा। द्र के प्राण िवहीन शरीर को दे खने की
क पना मात्र करने से ही सम्राट कण वज को अ यिधक सु ख की अनु भिू त हुई।
‘‘िक तु महाराज! से नापित किन क ने उस ह यारे को यु भूिम म न प्रयु त करने का
िनवे दन िकया है ।’’ अ य त ने अधीर भाव से उ र िदया।
‘‘ये हमारा आदे श है अ य त, और अब म तु हारे मु ख से अ य कोई भी श द नहीं सु नना
चाहता।’’ सम्राट कण वज ने क् रोिधत होकर कहा। वो अपने आसन से उठकर खड़े हो
गये । अ य त का ये सु झाव उ ह िबलकुल भी पसं द नहीं आया था। कम से कम उनकी
भाव-भं िगमाय तो यही कह रही थीं।
प्रधानमं तर् ी अ य त के िलये अब तक करने का कोई कारण नहीं था, य िक सम्राट ने
उस ह यारे को रणभूिम म भे जने का आदे श दे िदया था। वै से तो अ य त इस िनणय से
सहमत नहीं थे , िक तु सम्राट के िनणय को मानना ही उनकी िनयित थी, अत: सम्राट के
आदे शानु सार वो खूँखार ह यारा रणभूिम म भे ज िदया गया था। उस ह यारे की ऊँचाई
सामा यत: 3 पु ष की ऊँचाई के बराबर थी। उसका िसर, उसके धड़ की तु लना म
अ यिधक बड़ा था। वो एक दै याकार मानव पी पशु था, िजसके बारे म ये िव यात था
िक वो इ सान का खून पीता था। उसके िवकृत चे हरे को दे खकर कोई भी वाभािवक प
से डर जाता। उसके नाक की जगह पर एक सींग उगी थी। उसके शरीर के भ े दाग एवं
जले अं ग, उसे और भी भयानक बना रहे थे । उस ह यारे दै य को दे खना िनि चत ही
भयानक था।
यु भूिम म उस दै य के प्रवे श करते ही िवप ी से ना का मनोबल टू टने लगा। जो से ना
अब तक पूरे मनोयोग से उस धम यु को लड़ रही थी, वही से ना उस दै य को दे खकर
भययु त हो गयी। द्र की से ना के सै िनक यु भूिम से भागने लगे । उसके सै िनक का
हौसला टू टने लगा था, और टू टता भी य न? िजस प्रकार वो ह यारा उनके सािथय
को मार रहा था, वो दृ य दे खकर कोई भी वाभािवक ही डर जाता। ऐसा नहीं था िक
सभी सै िनक डर कर भाग रहे थे ; कुछ वीर सै िनक ने उस दै य का प्रितकार करने की
चे टा भी की, िक तु वो उस दै य के स मु ख ठहर न सके और मृ यु को प्रा त हुए
रणभूिम म अब केवल भयभीत कर दे ने वाली चीख गूँज रही थीं, और ये चीख द्र के
सै िनक की थीं। उस दृ य को दे खकर और उन चीख़ को सु नकर, महाराज कण वज को
अद्भुत प्रस नता हो रही थी। एक बार िफर उनके मु ख पर प्रस नता छा गयी थी।
अपने अवलोकन थल से सम्राट कण वज हर एक दृ य पर अपनी आँ ख से गड़ाये हुए
थे , और उस क् रता के खे ल का आनं द ले रहे थे , जो उनके ह यारे ने रणभूिम म मचाया
था। वो स पूण यु भूिम के हर एक भाग पर िवप ी सै िनक की हो रही मृ यु को दे ख
ले ना चाहते थे ।
पर अचानक तभी महाराज कण वज की आँ ख यु भूिम के पूव िदशा की ओर घूमीं, जहाँ
उ ह ने एक छोटे से तूफान के आने की हलचल महसूस की।
यु भूिम म अचानक से एक नया पिरवतन िदखाई पड़ने लगा था। ऐसा लग रहा था िक
मानो अचानक से ही हवाओं ने अपना वे ग बढ़ा िलया हो। अचानक से ही धरती काँपने
लगी हो। यु भूिम म चार ओर से धूल का एक गु बारा बन गया था। यु थल म खड़े
प्र ये क सै िनक की ऩजर उसी ओर गड़ी हुई थीं। उस ह यारे ने भी अपनी आँ ख उस धूल
भरे तूफान की ओर गड़ाई हुई थीं। सम्राट कण वज, अधीरता से अपने आसन से खड़े हो
गये , और उस धूल के गु बार को दे खने लगे । से नापित किन क की आँ ख भी उस तूफान को
घूर रही थीं, िक तु िकसी को भी कुछ प ट नहीं िदख रहा था। केवल उस धूल भरे तूफान
से भयानक आवा़ज ही आ रही थीं। सै िनक के शव िगर रहे थे । ऐसा लग रहा था िक कोई
भीषण र तपात िकया जा रहा हो। अं तत: जब कुछ समय प चात वो तूफान शा त हुआ,
तब उस धूल के गु बार को चीरती हुई घोड़े पर सवार एक यि त की आकृित ऩजर आयी,
िजसे सभी ने पहचान िलया था; वो था ‘ द्र।'
उस धूल के गु बार के छँ टने के प चात सम्राट कण वज ने दे खा िक उनके हजार सै िनक
के त-िव त अव था म उस थान पर पड़े हुए थे । उनके शरीर म कोई भी हलचल नहीं
रही थी। उन सै िनक म कोई घायल भी नहीं था, य िक वे सब के सब प्राण िवहीन थे ।
‘‘हे प्रभु ! उस दु ट कपटी ने िकसी को भी जीिवत नहीं छोड़ा।’’ सम्राट कण वज ने
आह भरते हुए कहा।
द्र के उस भयानक र तपात ने उसके सै िनक म एक नया उ साह भर िदया था। वो अब
यु के मै दान से भाग नहीं रहे थे , अिपतु दुगनी उ साह से लड़ने लगे थे । जहाँ एक ओर
द्र की से ना उ सािहत हो गयी थी, वहीं दस ू री ओर उसके भीषण र तपात ने शत् की
से ना को हतो सािहत कर िदया था। जो ि थित कुछ समय पूव द्र के से ना के म य थी,
वही अब सम्राट कण वज के सै िनक की हो गयी थी, और इस ि थित से िनपटने के िलये
से नापित किन क वयं द्र से यु करने के िलये उसकी ओर बढ़ा, िक तु तभी अचानक
उ ह ने उस ह यारे दै य को दे खा।
‘‘हे िशव! या सम्राट ने उस दै य को भे जने का आदे श दे िदया?’’ से नापित किन क
बु दबु दाया। किन क अभी तक यु भूिम के दि ण छोर की ओर था, अत: उसे उस ह यारे
के यु भूिम म आने की बात पता नहीं थी। से नापित किन क ने दे खा िक वो ह यारा द्र
के सामने खड़ा था, और नीित के अनु सार अभी वो द्र से यु नहीं कर सकते थे ।
द्र ने उस दै य को अपने सै िनक का िवनाश करते हुए दे खा था। उस ह यारे का द्र
की से ना का भरी र तपात करने के कारण ही तो द्र इस भाँ ित क् रोिधत हो गया, िक वो
यु भूिम म तूफान ले आया। वो तूफान तो भले शा त हो गया था, िक तु द्र का क् रोध
अभी भी अशा त था, और अब वो ह यारा, दै य, द्र के सामने था।
द्र ने उस िवकृत चे हरे एवं अ यिधक भयानक आकृित वाले दै य को दे खा, िक तु उसे
कोई भय नहीं हुआ, वरन् उसका क् रोध और भी बढ़ गया। द्र ने अपने घोड़े को एड़
लगाई और अपने र त-रं िजत फरसे को कस कर अपने हथे िलय म पकड़ िलया, और
उसके प चात िसं ह की भाँ ित गजना की
‘‘जय परशु राम! ''
वो ह यारा, द्र के अपनी ओर आने की प्रती ा कर रहा था। वो द्र को उसके घोड़े से
िगराना चाहता था, पर य ही द्र उस ह यारे के िनकट पहुँचा, द्र ने वयं ही अपने
घोड़े से छलाँ ग लगा दी, और सीधा उस ह यारे के ऊपर लपका। वो ह यारा ऐसी ि थित
के िलये तै यार नहीं था, इसिलये वो लड़खड़ाकर िगर गया। उस ह यारे की इतनी सी ही
असावधानी ने द्र को मौका दे िदया, और द्र ने एक ही झटके म उस ह यारे दै य के
िसर को उसके शरीर से अलग कर िदया। द्र के फरसे के एक ही वार ने उस दै य के
प्राण हर िलये । उस वार की भीषणता इतनी थी, की उस ह यारे का सर उसके धड़ से
अिधक दरू ी पर जाकर िगरा। यु भूिम म उपि थत सभी आवाक् रह गये । अद्भुत शि त
का प्रदशन िकया गया था द्र के ारा। असीम बाहुबल था उस ब्रा ण मे ।
इस दृ य को दे खकर तो सम्राट कण वज अपने आसन पर िगर पड़े । उनकी बूढ़ी आँ ख
म ऐसे दृ य को दे खने की शि त नहीं थी। सम्राट ने अपनी आँ ख ब द कर ली। उ ह ने
अचानक से ही यु की पिरि थितय म ऐसे पिरवतन की आशा भी नहीं की थी। सम्राट
कण वज का सबसे बड़ा हिथयार, उनकी सबसे बड़ी आशा, वो ह यारा ही था, और उसे भी
द्र ने केवल एक ही वार म धराशायी कर िदया था।
‘‘महाराज! वो ह यारा मारा गया।’’ अ य त ने दुखी वर म सम्राट से कहा।
महाराज कण वज ने कोई उ र नहीं िदया। वो उसी भाँ ित मौन बै ठे रहे ।
‘‘महाराज, अब या आदे श है ?’’ अ य त ने थोड़ा ऊँचे वर म प्र न िकया।
सम्राट कण वज ने िफर कोई उ र नहीं िदया। वो बस एकटक आसमान की ओर दे खने
लगे । वो बूढ़ा सम्राट टू ट गया था। अपनी उ मीद को इस तरह से टू टते दे खकर, उनकी
बूढ़ी आँ ख नम हो गई थीं।
* * *
द्र के भीषण र त -पात ने यु की पिरि थित ही बदल दी थी। शत् ओं के 8 लाख
सै िनक की तु लना म उसके 5 लाख सै िनक ही थे , िक तु द्र को दे खकर उनम लड़ने का
जोश और आ मिव वास भर गया था। द्र के श द ने उनके भीतर ये िव वास भर िदया
था, िक ये यु वही जीतगे । उन सै िनक के कान म अिधपित द्र के श द एक बार िफर
गूँजे,
‘‘हम कोई भी यु सं याबल से नहीं जीतते ; अिपतु हम जीतते ह अपने मजबूत इराद
और दृढ़ इ छाशि त से । ''
उस ह यारे दै य के मरने के प चात तो द्र की से ना, एक बार िफर उ साह और
आ मिव वास से लबरे ज थी, और एक बार िफर उसके सै िनक ने भयानक यु शु कर
िदया।
पर तभी अचानक...
1. शु आत दर् की
बात तब की है , जब भारतवष कई छोटे -छोटे रा य म बँ टा था। पूरब- पि चम, उ र-
दि ण, चार िदशाओं म कई छोटे -छोटे रा य बँ टे हुए थे । उनम से कई रा य म
ित्रय राजा ही शासन करते थे ; केवल दि ण के कुछ रा य अपवाद थे । भारत के सभी
रा य म सबसे िवशाल रा य था वीरभूिम; और वीरभूिम म ही रहते थे एक ब्रा ण,
िजनका नाम था भद्र। अ य ब्रा ण की तरह भद्र भी पूजा-पाठ करके अपना जीवन
यापन करते थे । शा त्र के प्रकांड ाता थे भद्र। भद्र के पिरवार म उनके अितिर त
केवल उनकी प नी ि मणी ही थी। भद्र के िलये उनका कम ही उनकी पूजा थी।
माँ गिलक उ सव म पूजा-पाठ करके भद्र अपनी जीिवका चला रहे थे ।
भद्र, अनीितय के िव प्रितकार करने हे तु सदै व त पर रहते थे । वो न तो वयं
अनीित करते थे , और न ही िकसी अ य को करने दे ते थे । जब रा य म एक समान कर
अदा करने का आदे श हुआ, तब भद्र ने उस आदे श का मु खर होकर िवरोध िकया। रा य
के अिधकािरय ने उ ह समझाया, िक तु भद्र िफर भी अिडग रहे । वो लोग को समझाते
िक आिखर,
जब एक िकसान और साहक ू ार की आमदनी एक समान नहीं है , तो िफर वो एक समान कर
य अदा करे ?''
वो रा य म घूम-घूमकर लोग को समझाने लगे । उ ह ने रा य के सभी िनवािसय को
ऐसी कर- यव था का बिह कार करने को कहा। धीरे -धीरे कई लोग भद्र के साथ आ गये ।
जब अिधकािरय ने दे खा िक बात हाथ से िनकल गयी, तो उ ह ने भद्र की िशकायत
राजा से कर दी। अिधकािरय ने भद्र के िव कई अस य आरोप लगाये ।
वीरभूिम का राजा अनाचारी और अ यायी था। उस मूख राजा ने भद्र के िव लगे
आरोप की स यता को प्रमािणत िकये िबना ही उ ह राजद्रोही घोिषत कर िदया और
अपने रा य से िनवािसत कर िदया। राजा ने भद्र को अपना प रखने का अवसर भी
नहीं िदया। भद्र असहाय थे । वो अब कोई प्रितकार नहीं कर सकते थे । ऐसा नहीं था िक
वीरभूिम, रा य से िनवािसत होने वाले , वो पहले यि त थे । उनसे पूव भी कई लोग को
राजा ने रा य से िनवािसत िकया था, इसीिलये भद्र ने भी िबना कुछ कहे दं ड का पालन
करने का िनणय िलया। बे चारे भद्र अपनी गभवती प नी ि मणी के साथ रा य के
मु य नगर को छोड़कर रा य की सीमा पार ि थत जं गल के पूवी छोर म झोपड़ी बनाकर
रहने लगे । वो जं गल उनके जै से िनवािसत के िलये उपयु त था। उस जं गल म कई अ य
िनवािसत भी थे । उ होने जं गल के उ री छोर पर एक ब ती बना ली थी, और वहीं रहने
लगे थे । उ री छोर पर रहना उनके िलये उपयु त था। एक तो वहाँ उ ह आसानी से
भोजन िमल जाता था, और साथ ही पूवी छोर सु र ा की दृि ट से भी उपयु त था, य िक
वहाँ जानवर का खतरा कम था।
भद्र के मन म कुछ और चल रहा था। उ ह ने िन चय िकया था िक वो अब अपना शे ष
जीवन एकांत म यतीत करगे , इसिलए भद्र ने जं गल के पूवी छोर पर रहने का िनणय
िकया था। बड़ी ही किठनाई से भद्र वहाँ अपना जीवन यापन करने लगे । भद्र वहाँ
अकेले नहीं थे । वहाँ पर उनकी भट एक अ य िनवािसत से हुई।
‘‘आप कौन ह मा यवर?’’ उस यि त ने भद्र से प्र न िकया।
‘‘मे रा नाम भद्र है ; जाित से ब्रा ण, आप कौन ह?’’ भद्र ने उ र िदया। भद्र ने उस
यि त को यान से दे खा। उसका यि त व भद्र को प्रभािवत कर रहा था।
‘‘िवप्र दे व! मे रा तो कोई नाम नहीं है , पर आप मु झे िमत्र कह सकते ह’’ उस यि त ने
हँ सते हुए उ र िदया।
उस यि त से बात करने पर भद्र को ात हुआ िक वो एक ित्रय था। उसे भी रा य से
अकारण ही िनवािसत कर िदया गया था। उस यि त ने भद्र को बताया िक वो वहाँ
अपनी प नी के साथ रहता था। उसकी प नी को ‘कोढ़’ का रोग हो गया था, और यही
कारण था की उसे रा य से िनवािसत कर िदया गया।
‘‘मने इसीिलए जं गल के इस छोर पर अपनी झोपड़ी बनाई। म नहीं चाहता था िक अ य
लोग भी मे री प नी के रोग के कारण िवचिलत ह ।’’ उस ित्रय ने कहना जारी रखा,
‘‘यहाँ एकांत है ,यहाँ कोई नहीं है , िजसे उसके रोग से परे शानी हो। अब म वयं उसके
िलये औषिधय का िनमाण करता हँ ,ू और आशा करता हँ ू की उसे शीघ्र ही वा य लाभ
हो। ’’ अपनी प नी के िवषय म कहते हुवे , उसकी आँ ख म पानी आ गया।
‘‘अव य ही िमत्र! ई वर शीघ्र ही ऐसा करगे ’’ भद्र ने िव वास से कहा।
भद्र ने भी उस ित्रय को अपने िवषय म जानकारी दी। वो दोन एक दस ू रे के िवषय म
जान चु के थे । भद्र ने उस ित्रय की प नी के रोग िनवारण के िलये कुछ औषिध दी,
िजसे भद्र ने उस जं गल के जड़ी-बूिटय से िनिमत िकया था। भद्र की प नी ि मणी भी
उस ित्रय की प नी की से वा करने लगी। ि मणी उस ित्रय और उसकी प नी के
हे तु भोजन भी बना िदया करती थी। उस ित्रय और भद्र के म य िमत्रता का एक
प्रगाढ़ िर ता थािपत हो चु का था।
‘‘आिखर ऐसा कैसे हो सकता है , िक आपका कोई नाम ही न हो? म ऐसे िकसी भी यि त
को नहीं जानता, िजसका कोई नाम न हो; िनि चत ही आप एक दुलभ यि त ह।’’ भद्र
ने आ चय प्रकट िकया।
‘‘भरोसा रिखए िमत्र। म दुलभ ही हँ ।ू ’’ उस ित्रय ने अपनी िचर-पिरिचत हँ सी के साथ
उ र िदया।
वो ित्रय हर िदन अपने हिथयार से अ यास करता था। हिथयार चलाने म वो प्रवीण
था। श त्र के सं ग उसकी द ता दे खकर भद्र को अ यिधक हष होता था।
‘‘िमत्र! आप के हिथयार चलाने की कला तो अ यिधक उ म है ; िजस भाँ ित आप
अ यास करते ह, उसे दे खना ही सु खद होता है ; एक ित्रय के गु ण आपम िव मान ह।’’
भद्र ने उस ित्रय की प्रशं सा करते हुए कहा।
‘‘अिभन दन िमत्र! मु झे हष हुआ ये जानकर िक आपको मे रा श त्र अ यास भा गया,
िक तु म आपसे असहमत हँ ।ू ’’ उस ित्रय ने कहा।
‘‘असहमत? पर तु य िमत्र?’’ भद्र ने अधीर होकर प्र न िकया।
‘‘केवल ित्रय होने के कारण ही म श त्र कला म प्रवीण हँ ,ू ऐसा नहीं है ; कोई भी इस
िवधा म प्रवीण हो सकता है । उसके कौशल म उसके धम से कोई स ब ध नहीं। कोई
शूदर् भी हिथयार चलने म प्रवीण हो सकता है , तो कोई ब्रा ण भी; म तो कहता हँ ू िक
आप भी िमत्र!’’ उस ित्रय ने उ र िदया।
भद्र, िजस वण- यव था को जानते थे , उसके अनु सार कमों का चयन धम पर आधािरत
होता था। इसीिलये भद्र को लगता था िक केवल ित्रय ही हिथयार चला सकते ह और
ब्रा ण िसफ पूजा-पाठ तक ही सीिमत रहते ह। उस ित्रय की बात से भद्र
प्रभािवत हुए। ले िकन जो उस ित्रय ने उनके िवषय म कहा था, उस बात से भद्र
थोड़ा घबरा गये थे ,
‘‘नहीं िमत्र! म तो एक िनरीह ब्रा ण हँ ,ू िजसने आज तक कभी हिथयार को हाथ तक
नहीं लगाया, उसे चलाने के िवषय म तो म सोच भी नहीं सकता।’’ भद्र ने कहा।
‘‘म तो कहता हँ ू िक आप भी हिथयार चलाना सीख ल।’’ उस ित्रय ने भद्र से कहा।
‘‘भला म हिथयार चलाना सीखकर या क ँ गा? मु झे कौन सा यु लड़ना है ?’’ भद्र ने
प्र न करते हुए कहा।
‘‘िमत्र। आव यक नहीं की हिथयार को केवल यु के हे तु ही प्रयु त िकया जाये ; इसे
आप अपनी आ म-र ा म भी उपयोग कर सकते ह... हो सकता है कभी आपको इसकी
आव यकता ही पड़ जाये ’’ उस ित्रय ने भद्र को समझाया।
भद्र कुछ समय के िलये िवचार म पड़ गये । उस ित्रय की बात अस य नहीं थी। कौन
जाने कब आ म-र ा हे तु हिथयार की आव यकता पड़ जाये ।
‘‘ या मु झे हिथयार चलाना सीखना चािहये ?’’ भद्र ने िवचार िकया।
भद्र ने इस िवषय म ि मणी से बात की। ि मणी ने भी उस ित्रय की बात का
समथन िकया। बहुत िवचार करने के उपरांत अं तत: भद्र ने हिथयार का प्रिश ण ले ने
का िनणय िकया।
भद्र का श त्र प्रिश ण शु हो गया था, और वो पूरे मनोयोग से हर िवधा को
आ मसात कर रहा था। वो िनरीह ब्रा ण तो हिथयार के साथ धीरे -धीरे कुशल होता
जा रहा था। वो ित्रय, भद्र को हर हिथयार िवधा म पारं गत करना चाह रहा था।
समय अपनी गित से चलता रहा, और आिखरकार एक रात को ि मणी को प्रसव-पीड़ा
आरं भ हो गयी। भद्र समझ नहीं पा रहा था िक वो िकसकी सहायता ले । उस िनजन
जं गल म उस व त कोई अ य था भी नहीं। वो एक सद रात थी साथ ही मूसलधार बािरश
भी हो रही थी। आकाश म िबजली चमक रही थी, बादल की गजना से सारा वातावरण
गूँज रहा था।
‘‘हे ई वर! ऐसे प्रितकू ल मौसम म म िकससे सहायता लूँ?’’ भद्र ने िवचार िकया।
अचानक भद्र को उस ित्रय का िवचार आया। भद्र, शीघ्रता से उस ित्रय की
झोपड़ी की और भागे । वहाँ उ ह ने दे खा की वो ित्रय अपनी प नी के सम बै ठा हुआ
था। उसने अपनी प नी के िसर को अपनी गोद म रखा था, और अपनी प नी को औषिध
दे रहा था। भद्र ने दे खा िक उसकी प नी की आँ ख ब द थीं। उसका चे हरा मु रझाया हुआ
था, ऐसा लग रहा था जै से िक उसम प्राण ही न हो। उस ित्रय की आँ ख म आँ स ू थे ।
‘‘ या हुआ िमत्र?’’ भद्र ने िवि मत होकर पूछा। उनके मि त क म िकसी अमं गल के
घिटत होने का पूवाभास हुआ।
‘‘ऐसा लगता है िक जै से अब इसके पास अिधक समय नहीं है ।’’ उस ित्रय ने िबना
िकसी भाव के उ र िदया। वो उसी भाँ ित धरती पर बै ठा रहा।
‘‘ऐसा न कहो िमत्र, ई वर अव य ही सब मं गल करे गा’’ भद्र ने दृढ़ता से कहा। उसने
ई वर का यान िकया।
‘‘िनि चत ही सब मं गल होगा, मु झे लगता है आपको इस समय कहीं और होना चािहये ’’
उस ित्रय ने भद्र के मु ख की और दे खकर कहा।
भद्र, िबना कोई उ र िदये शीघ्रता से अपनी झोपड़ी की और भागा। वो ि मणी के
पास पहुँचा। उसने दे खा ि मणी अब भी दद से चीख रही थी। ि मणी के क् रं दन की
विन से भद्र िवचिलत हो उठा था।
वो वयं ि मणी के पास बै ठ गया। वो दद से छटपटाती ि मणी को हौसला दे रहा था।
ि मणी की पीड़ा और छटपटाहट दोन ही बढ़ती जा रही थी। भद्र लगातार ई वर से
प्राथना कर रहा था, और साथ ही ि मणी के माथे को गोदी म रख कर सहला भी रहा
था। ि मणी, पीड़ा से कराह रही थी और भद्र असहाय था। ि मणी की असहनीय
पीड़ा को दे खकर भद्र की आँ ख भी नम हो गइं । ि मणी की उन पीड़ा भरी चीख़ से ही
भद्र िसहर गया।
और िफर ि मणी थकने लगी। उसकी आँ ख ब द होने लगीं, और ये िनि चत ही िशशु
और माता दोन के िलये प्रितकू ल ि थित थी। भद्र लगातार ि मणी को आँ ख खोले
रहने के िलये प्रेिरत कर रहे थे । ई वर की कृपा एवं ि मणी की जीवटता से अं तत:
प्रसव हो गया। ि मणी ने िशशु के क् रं दन की विन सु नी, और उसके प चात ि मणी
के िलये आँ ख खु ली रखना दभ ू र हो गया था। उसकी आँ ख ब द हो गयी थीं।
ि मणी अब अचे त हो चु की थीं। एक िशशु को जनते समय, जो अगाध पिरश्रम उस
जननी ने िकया था, उसके कारण वो थक कर चूर हो गयी थी। एक बार जब उनकी आँ ख
ब द हुइं , उ ह पता ही नहीं चला िक वो कब तक सोती रहीं। ि मणी को जब होश
आया, तो वो रात का तीसरा पहर था। ि मणी ने जब अपनी आँ ख खोलीं तो उसने दे खा
िक भद्र अपने हाथ म न ह िशशु को िलये हुए है और त लीनता से हँ स रहे है । भद्र के
मु ख की प्रस नता दे खकर ि मणी को एक अद्भुत सु ख का अनु भव हुआ।
‘‘िप्रये ! हमारा पु त्र।’’ भद्र ने न ह िशशु को ि मणी की ओर करते हुए कहा।
ि मणी ने जब पहली बार अपने पु त्र को दे खा, तो उनके दय म अनं त खु िशयाँ एक
साथ ही दौड़ गयी। वो इतना अिधक प्रस न हो उठी िक खु शी के कारण उनके मु ख से
श द ही नहीं िनकले । उनका दय असीम प्रस नता से भर गया। उ ह अपने पु त्र के
मु खड़े को दे खकर अ यं त सु ख की अनु भिू त हुई। उनकी आँ ख से आँ स ू िगरने लगे , और
इसम कोई सं शय नहीं था िक ये खु शी के आँ स ू थे । उ ह ने िशशु को दे खा तो उसे दे खकर
ये िबलकुल भी नहीं लग रहा था िक वो अभी ही ज मा था। िनि चत ही वो एक व थ
बालक था। ि मणी, अपने पु त्र के मु ख को िनहार रही थी।
‘‘इसका मु ख पूणत: तु हारी छाया है ि मणी!’’ भद्र ने प्रस नता से कहा।
‘‘ वामी, म आपसे असहमत हँ ;ू इसका मु ख तो िबलकुल आपका प्रितिबं ब है ।’’ ि मणी
ने अपने पित से कहा। वो खु शी से पिरपूण असहमित थी, िजसम दोन प प्रफुि लत थे ,
और एक-दस ू रे से असहमत भी।
‘‘पर मु झे तो लगा ये तु हारी तरह िदखता है , दे खो इसकी नाक िबलकुल तु हारे जै सी है
और आँ ख भी; पर हाँ , इसका माथा कुछ-कुछ मे री भाँ ित है ।’’ भद्र ने हँ सते हुए कहा।
‘‘ये हम दोन की ही तरह है वामी।’’ ि मणी बोली।
भद्र मु कुराने लगा। ि मणी ने स य ही कहा था। वो न हा बालक उन दोन की ही
तरह था। भद्र ने एक बार िफर अपने पु त्र के मोहक मु ख पर अपनी दृि ट गड़ा दी। वो
अपने पु त्र के मु ख को अपनी आँ ख म बसा ले ना चाहते थे , िक तु िजतना अिधक वो
उसके मु ख को दे खते जा रहे थे , उतना ही अिधक उसे दे खने को भद्र की लालसा बढ़ती
ही जा रही थी। वो चाहकर भी अपने पु त्र के मु ख से अपनी दृि ट नहीं हटा पा रहे थे ।
‘‘आज तु मने मु झे स पूण कर िदया िप्रये । मु झे मे रे जीवन की सबसे सु खद और अनमोल
खु शी दी है तु मने ।’’ भद्र ने अपनी प नी के मु ख को चूमते हुए कहा।
ि मणी कुछ न बोली, बस प्र यु र म ह का सा मु कुरा दी। अपने पित के मु ख से
ऐसी प्रशं सनीय बात सु नकर उसकी खु शी और भी यादा हो गयी। अब भद्र भी
ि मणी के पास आकर बै ठ गया था। वो दोन अपने उस न ह िशशु को िनहार रहे थे ।
कुछ ण के िलये झोपड़ी म खामोशी छा गयी। कोई आवा़ज नहीं हुई।
‘‘इसका नाम या सोचा है आपने ?’’ ि मणी ने झोपड़ी की खामोशी को तोड़ते हुए
कहा।
‘‘अब हमारा पु त्र हम दोन की तरह है , जै सा िक तु मने कहा। तो िफर इसका नाम भी हम
दोन की तरह होना चािहये ।’’ भद्र ने हँ सते हुए उ र िदया।
‘‘िनि चत ही।’’ ि मणी बोली। अब वो अधीर हो रही थी अपने पु त्र का नाम जानने
को।
‘‘इसिलये म सोचता हँ ू िक तु हारे नाम के पहले अ र यािन की ‘ ’ और मे रे नाम का
अि तम अ र यािन की ‘द्र।’ इन दोन अ र का िमश्रण ही इसका नाम स पूण
करे गा, जै से िक हम दोन ने इसे िकया।’’ भद्र की आँ ख म चमक थी।
‘ द्र!’ ि मणी ने कहा। प्रथम बार उसने अपने पु त्र का नाम उ चािरत िकया।
‘ द्र!’ भद्र ने कहा।
‘ द्र!’ सद हवाओं ने कहा।
‘ द्र!’ आकाश म गरजती िबजली ने कहा।
‘ द्र!’ घनघोर बरसते बादल ने कहा।
‘ द्र!’ च पे -च पे ने कहा।
* * *
ि मणी के सोने के प चात् भद्र अपनी झोपड़ी से िनकले , और उस ित्रय की झोपड़ी
की और चल िदये । भद्र की दय-गित अ यिधक वे ग से चल रही थी। भद्र को िकसी
अमं गल के घिटत होने का पूवाभास हो रहा था, और झोपड़ी म प्रवे श करते ही भद्र
िसहर गये । उ ह ने दे खा िक वो ित्रय रो रहा था। उस ित्रय की प नी अब भी धरती
पर ले टी हुई थी, िक तु उसके शरीर म कोई भी हलचल नहीं थी। भद्र को अपने पूवाभास
के स य होने का अनु भव हो चु का था, िफर भी वयं को सँ भालते हुए उ ह ने प्र न
िकया,
‘‘िमत्र! या हुआ?''
‘‘म इसे बचा नहीं सका िमत्र। ये अि तम समय तक अपनी मृ यु से लड़ती रही। वो
मु झसे कह रही थी, िक म उसे बचा लूं िक तु म कुछ भी नहीं कर सका।’’ उस ित्रय ने
िवलाप करते हुए उ र िदया।
‘‘हे ई वर! ये या अनथ हो गया?’’ भद्र के मु ख से िनकला।
उस ित्रय को िवलाप करता दे ख, भद्र वयं भी अि थर हो गये थे । बहुत प्रयास करने
के बाद भी उनकी आँ ख से आँ स ू बहने लगे । भद्र के सामने ही उसके िमत्र की प नी की
लाश पड़ी थी। भद्र के िलये ये एक किठन समय था, ले िकन िफर भी भद्र ने अपनी
भावनाओं को िनयं ित्रत िकया।
‘‘िमत्र! जीवन और मृ यु उस ई वर के हाथ म है ; तु मने अपनी ओर से हर स भव
प्रयास िकया, िक तु ई वर का िनयम हम नहीं पिरवितत कर सकते ।’’ भद्र ने उस
ित्रय को िदलासा िदया।
वो ित्रय ख़ामोशी से बै ठा रहा। वो अब भी रो रहा था।
भद्र समझ नहीं पा रहे थे िक वो या कर? अपने अभी ज मे पु त्र के पास जाते़ अथवा
अपने िमत्र के पास रहते ? ले िकन िफर उ ह ने अपने िमत्र के सम रहने का िनणय
िकया। वो पूरी रात वहीँ बै ठे रहे , उस ित्रय के पास।
अगली सु बह उस ित्रय की प नी का दाह-सं कार िविधवत् िकया गया। भद्र ने पहले
तो ये बात ि मणी से छुपाना चाहा, िक तु वो असफल रहे । और जब ि मणी को ये
बात पता चली तो वो भी अ यं त ही दुखी हो गयीं। उस जं गल के पूवी छोर पर रहने वाले
वो सभी दुखी थे । जब सभी कम-का ड िविधवत् पूरा हुआ, तो वो ित्रय, भद्र के सम
आया और बोला,
‘‘िमत्र! तु मने मे रे िलये बहुत कुछ िकया है , उसके िलये तु हारा आभार; अब म अपने
जीवन म कुछ और करना चाहता हँ ,ू ''
‘‘जो भी कहना है प ट कह िमत्र!’’ भद्र ने कहा।
‘‘म अब यहाँ नहीं रहना चाहता; मने िन चय िकया है िक अब म अ य िनवािसत के
साथ जं गल के उ री छोर पर ही रहँ ग ू ा।’’ उस ित्रय ने जवाब िदया।
‘‘ये पूणत: आपका िनणय होगा िक आप यहाँ रह या कहीं अ य, िक तु िफर भी म आपसे
िनवे दन करता हँ ू िक एक बार िफर इस िवषय म िवचार कर।’’ भद्र ने िवनीत भाव म
कहा। उनकी आँ ख म पानी आ गये थे । अपने िमत्र के अचानक से जाने की बात सु नकर
वो भावु क हो गये थे ।
‘‘िमत्र! मने इस िवषय म िवचार कर िलया है , और मे रा िनणय अि तम है ; पर आप
िनराश न ह , म आपसे िमलने के िलये हर िदन आता रहँ ग ू ा... अं तत: अभी आपका श त्र
प्रिश ण भी तो शे ष है ।’’ उस ित्रय ने भद्र से कहा।
‘‘िक तु िमत्र, आप करना या चाहते ह?’’ भद्र ने प्र न िकया।
‘‘आपको शीघ्र ही ात हो जाये गा िमत्र।’’ उस ित्रय ने कहा।
* * *
भद्र, अपने पु त्र के ज म से बहुत खु श था। वो अपने पु त्र को उन सारी िवधाओं म
पारं गत करना चाहता था, जो उसने सीखी थी। उसने सोच िलया था, िक वो द्र को
शा त्र भी पढ़ाये गा, और साथ ही उसे श त्र चलाना भी िसखाये गा। भद्र के उस
ित्रय िमत्र ने उसे श त्र-िव ा का पूण ान िदया था, और भद्र ने एक प्रवीण
िव ाथी की तरह उस ान को आ मसात कर िलया था, और अब वो अपने पु त्र द्र को
भी वही ान दे ना चाहता था।
समय बीतने म दे र न लगी। वो छोटा सा बालक द्र, जो उन ठं ढ़ी हवाओं के बीच उस
सद रात म बड़ी ही किठनाइय से ज मा था, वो अब 7 वष का हो चु का था। द्र, अब
शा त्र म पूणत: प्रवीण हो चु का था। उसने छोटी सी उम्र म ही शा त्र को
आ मसात कर िलया था। िनि चत ही वो प्रखर बु द्िध का बालक था। यही नहीं, उस
न ही सी उम्र म ही वो अपने िपता के साथ शा त्राथ भी करता था। भद्र को अपने
पु त्र की प्रखर ान और बु द्िध पर गव था। अपने िपता की भाँ ित ही द्र भी शा त्र
िव ा म प्रवीण हो चु का था।
इन सात वषों म भद्र भी श त्र प्रिश ण पूरा कर चु के थे । । भद्र के उस ित्रय
िमत्र ने उसे श त्र-िव ा का पूण ान िदया था, और भद्र ने एक प्रवीण िव ाथी की
तरह उस ान को आ मसात कर िलया था। अब वो एक कुशल हिथयार सं चालक हो चु के
थे ।
भद्र अब ये समझ चु के थे िक शा त्र के साथ ही जीवन म श त्र िव ा का भी मह व
होता है , और इसीिलये उ ह ने अब िनणय कर िलया था िक अब वो द्र को श त्र की
िश ा दगे ।
‘‘बाबा! या एक ब्रा ण का श त्र चलाना उिचत है ?’’ द्र ने अपने िपता से प्र न
िकया।
‘‘िनि चत ही मे रे ब चे ! ब्रा ण हमारा धम है , और हम सदै व अपने धम का पालन
करना चािहये , िक तु श त्र चलाने से हमारे धम की कोई हािन नहीं।’’ भद्र ने उ र
िदया।
‘‘पर तु बाबा! ब्रा ण का काय तो केवल पूजा करना है ; श त्र चलाना तो ित्रय का
काम है , िफर हम श त्र चलाना सीखकर या करगे ?’’ द्र ने अपना प्र न पूछा।
‘‘अपनी आ म-र ा।’’ उस ित्रय ने उ र िदया, जो भद्र का िमत्र था। उसने अपना
नाम आज तक नहीं बताया था।
अपने िमत्र का उ र सु नकर भद्र ह के से मु कुराया। न हे द्र ने उस ित्रय को
प्रणाम िकया। वो उस ित्रय को पहचानता था, और उ ह ‘काका’ बु लाता था। अपने
माता-िपता के अितिर त मात्र ‘काका’ ही ऐसे थे , िज ह द्र जानता था। वो उनसे
प्रभािवत था। िजस तरह वो श त्र से अ यास करते थे । उनकी तलवार चलाने की
कला, धनु ष-बाण और िवशे ष प से उनका वो भारी सा दोमु हा हिथयार, िजसे वो ‘फरसा’
कहते थे , वो तो द्र को अ यिधक िप्रय था। द्र ने कई बार अपने काका से उस फरसे
को ले ने की िजद की थी, िक तु कभी वो उस भारी से फरसे को उठा नहीं पाता था। द्र,
काका की भाँ ित अपने शरीर को भी सु गिठत और गठीला बनाना चाहता था। द्र, काका
के वृ की भाँ ित मोटी बाँ ह को दे खकर आ चय म पड़ जाता था।
‘‘िमत्र आप! बहुत िदन प चात िदखाई िदये ।’’ भद्र ने उस ित्रय को गले से लगाते
हुए कहा।
‘‘बस, आज द्र से भट करने की इ छा थी, तो चला आया।’’ उस ित्रय ने भद्र को
प्रणाम करते हुए कहा।
‘‘ये भी आपको बहुत याद करता था।’’ भद्र ने उ र म कहा।
अब उस ित्रय ने आगे बढ़कर द्र को अपने गोद म उठा िलया, और अपने पोटली म
रखे हुए बे र के फल द्र को िदये । द्र अपने िप्रय फल को दे खकर खु श हो गया। उसने
काका से वो फल िलये और आनं िदत होकर उनको खाने लगा। उस न हे ब चे के मु ख की
मु कान दे खकर उस ित्रय को असीम हष की अनु भिू त हुई। भद्र और वो ित्रय, दोन
ही द्र को आनं द के साथ बे र खाते दे ख रहे थे । उन दोन की दृि ट द्र के मु ख पर ही
गड़ी थी।
‘‘काका, या कभी मु झे भी आ म-र ा करनी पड़े गी?’’ अचानक से ही द्र ने प्र न
िकया।
‘‘आ म-र ा की ज़ रत सब को पड़ती है पु त्र, िक तु श त्र का सवािधक उिचत
उपयोग तब होता है , जब हम उनसे दस ू र की र ा कर। तु ह आ म-र ा करने की
ज़ रत शायद न पड़े , िक तु दस ू र की र ा करने का अवसर कभी मत जाने दे ना।’’ उस
ित्रय ने द्र के प्र न का उ र िदया।
‘‘िनि चत ही! श त्र का उपयोग हमे शा इस बात को सु िनि चत करने के िलये ही करना
िक उसके ारा अ याय का नाश कर सको, एवं याय थािपत कर सको।’’ उस ित्रय ने
एक बार िफर कहा।
‘‘म सदै व इस बात का यान रखूँगा काका।’’ द्र ने मासूिमयत से उ र िदया।
‘‘तु म एक श्रे ठ यो ा बनोगे पु त्र।’’ भद्र ने उ र िदया।
‘‘िनि चत ही।’’ उस ित्रय ने कहा।
‘‘काका! तो या अब आप मु झे वो औषिध दगे , िजससे िक आप की तरह मे रा भी शरीर
गठीला एवं सु दृढ़ हो जाये ?’’ द्र ने प्र न िकया।
भद्र और वह ित्रय हँ सने लगे । बालक की सहजता ने उन दोन के मु ख पर प्रस नता
ला दी। उनको हँ सते दे खकर द्र भी हँ सने लगा।
* * *
ि मणी अपने पु त्र को दे खकर प्रस नता से भर जाती। उस न हे बालक म ही उसके
प्राण बसते थे । द्र के हँ सते चे हरे को दे खना उसके िलये अ यिधक सु खद ण होता
था। ि मणी, द्र को सं कारवान बनाना चाहती थी। वो द्र को अ छे यवहार से
होने वाले लाभ के िवषय म बताती थी। अगर भद्र, अपने पु त्र को शा त्र और श त्र
म द बनाना चाहते थे , तो ि मणी उसे आचार- यवहार कुशल एवं परोपकारी बनाना
चाहती थी। जब भी द्र उनके पास होता था, तो वो उसे कहािनयाँ सु नाती और
कहािनय के मा यम से ही द्र को अ छे आचरण म रहने की सीख दे ती थीं। न हे द्र
को माँ की कहािनयाँ बहुत लु भाती थीं। वो अिधकािधक समय अपनी माँ के साथ यतीत
करता था।
‘‘माँ ! या ये जं गल ही आपका भी ज म- थान है ? आपके माता-िपता कहाँ रहते ह? यहाँ
हम लोग अकेले य रहते ह?’’ न हा द्र, अपनी सारी शं काओं को माँ से पूछ बै ठा।
‘‘अरे आराम से पु त्र; इतने प्र न एक साथ पूछोगे तो उ र दे ने म किठनाई होगी।’’
ि मणी ने हँ सते हुए अपने पु त्र को उ र िदया।
‘‘नहीं, मे रा ज म- थान तो वीरभूिम म ि थत कला गाँ व है , और यहाँ हम इसिलये रहते
ह, य िक वीरभूिम के सम्राट कण वज ने हम रा य से िनवािसत कर िदया है ।’’
ि मणी ने कहना जारी रखा।
‘‘िनवािसत! िक तु य माँ ?’’ द्र ने अचरज भाव से पूछा।
‘‘ य िक तु हारे िपता ने उनके अ याय और अधम के िव प्रितकार िकया, और
इसिलये वीरभूिम के सम्राट ने हम रा य से िनवािसत कर िदया।’’ ि मणी ने दुख के
साथ उ र िदया।
‘‘िक तु माँ ! अ याय के िव आवा़ज उठाने वाले को रा य से य िनवािसत कर िदया?
ये तो अधम है ।’’ न हा द्र, आ चयचिकत था।
‘‘पु त्र, ये राजा का िनणय था, और हम उनके हर िनणय का पालन करना पड़ता है ।’’
ि मणी ने उ र िदया।
‘‘पर तु माँ , ये तो अ याय है ; वो सम्राट िनि चत ही अधमी है ; म उस धूत राजा को
सबक िसखाऊँगा।’’ न ह द्र ने गु से के साथ अपने िपता की तलवार को उठाने की
चे टा करते हुए कहा।
‘‘राजा ने सही िकया या गलत, इसका िनधारण हम नहीं कर सकते द्र.. हम उनके हर
आदे श का पालन करना चािहये ।’’ ि मणी ने अपने पु त्र को समझाते हुए कहा।
‘‘चाहे वो अधम ही हो?’’ द्र ने क् रोिधत होकर कहा। उसने अपने िपता की तलवार
उठाने की िनरथक कोिशश को समा त कर िदया।
‘‘पु त्र! तु ह हमे शा अपने क् रोध पर िनयं तर् ण रखना चािहये । कभी-कभी तु म
अिनयं ित्रत हो जाते हो।’’ ि मणी ने द्र को समझाया।
‘‘ मा चाहता हँ ू माँ !’’ द्र ने अपनी माँ से याचना की।
‘‘इसकी कोई आव यकता नहीं द्र, अब जाओ बाहर से अपने िपताजी को बु ला लाओ,
भोजन तै यार है ।’’ ि मणी ने कहा।
द्र बाहर चला गया। ि मणी सोचने लगी। द्र के आिखरी प्र न का उसके पास कोई
उ र नहीं था। भले ही ि मणी ने वो बात पिरवितत कर दी थी, िक तु उसे इस बात का
आभास था, िक द्र के प्र न के सम वो िन र थी। आिखरकार जो भी द्र ने कहा
था, वो गलत भी तो नहीं था।
* * *
एक िदन द्र अपने काका के साथ जं गल से लकिड़याँ काटने गया था। पहले तो भद्र
उसे जाने ही नहीं दे रहे थे , िक तु जब द्र ने अ यिधक िजद की, तो उसे उस ‘ ित्रय’
के साथ जाने की आ ा िमल गयी। द्र के, काका के साथ बीच जं गल म आने का कारण
लकड़ी तोड़ना नहीं था, अिपतु वो तो जं गली जानवर दे खना चाहता था। द्र जानता था
िक जं गल म कई खूँखार पशु रहते ह, िक तु अभी तक उसे एक भी जानवर को दे खने का
मौका नहीं िमला था। उसने भालु व के बारे म सु ना था। वो भालू दे खना चाहता था।
‘‘काका! या भालू बहुत खूँखार होता है ?’’ द्र ने पूछा।
‘‘हम इ सान की अपे ा कम ही होता है ।’’ उस ित्रय ने मु कुराते हुए उ र िदया।
‘‘पर तु काका, माँ कहती ह िक भालू से कोई नहीं जीत सकता; इं सान तो िबलकुल भी
नहीं।’’ द्र ने आ चय से कहा।
‘‘ द्र, भालू की बात हटाओ, और हम जो करने आये ह उस काय पर यान दो; म पास के
पे ड़ से लकड़ी काटता हँ ,ू और तु म यहीं आस-पास नीचे पड़ी हुई लकिड़य को इकट् ठा
करो... और हाँ , यहीं रहना, कहीं और न जाना।’’ उस ित्रय ने द्र को िनदश दे ते हुए
कहा।
‘‘जी काका!’’ द्र ने उ र िदया।
वो ित्रय, पास के एक पे ड़ पर चढ़कर लकिड़याँ काटने लगा, और द्र, नीचे पड़ी
लकिड़य को इकट् ठा करने लगा। द्र, त लीनता से अपने काय म लगा हुआ था।
उसकी लकिड़य का गट् ठर धीरे -धीरे बड़ा होता जा रहा था। द्र, अपने गट् ठर म
अिधकािधक लकिड़याँ इकट् ठा कर ले ना चाहता था। धीरे -धीरे वो आगे की ओर बढ़ता
जा रहा था। िजतना अिधक वो आगे की ओर बढ़ता जा रहा था उसे अपने लकड़ी के
गठ् ठर म रखने के िलये बहुत सी लकिड़याँ िदख रही थीं। अिधक लकिड़याँ इकट् ठी
करने की चाह म वो कब अपने काका से दरू आ गया, उसे इस बात का आभास ही नहीं
हुआ।
द्र ने ठीक सामने एक मोटी टहनी दे खी। वो उस टहनी को उठाने के िलये नीचे झुका,
और िफर जब टहनी उठाकर वो भूिम पर सीधा खड़ा हुवा तो उसकी आँ ख ने जो दृ य
दे खा, उसे दे खकर उसकी आँ ख खु ली की खु ली रह गइं । एक िवशाल काला रोयदार
जानवर, उसके ठीक सामने खड़ा था। उस जानवर के पूरे शरीर पर बाल ही बाल थे । वो
कोई काले रं ग का पहाड़ ऩजर आ रहा था। उस जानवर को दे खकर द्र सहम गया। वो
जानवर बस उससे कोई बीस कदम की दरू ी पर था। द्र ने अबसे पहले इस तरह की कोई
आकृित नहीं दे खी थी। वो जानवर धीरे -धीरे उसके पास आ रहा था। द्र के हाथ म एक
टहनी थी। उसने उस टहनी को कसकर पकड़ िलया, और अपनी जगह पर ही खड़ा रहा।
अब वो जानवर द्र के िबलकुल सामने खड़ा था। द्र, अपने हाथ म टहनी को मजबूती
से पकड़े हुए खड़ा था, और िफर उस िवशाल जानवर ने अपने िशकार पर हमला करने के
िलये अपना मुँ ह खोल िदया। जै से ही उस जानवर ने द्र पर हमला करने की कोिशश
की, द्र ने उस टहनी से उस जानवर पर वार कर िदया। वो टहनी तो उस जानवर को
कोई भी नु कसान नहीं पहुँचा पायी, पर हाँ ये , अव य था िक अब द्र के हाथ खाली थे ।
साथ ही द्र के उस आक् रमण ने उस जानवर को और भी यादा क् रोिधत कर िदया। उस
जानवर ने क् रोिधत होकर एक दहाड़ लगाई, और उसके प चात द्र के ऊपर अपने
हाथ से एक भायनक वार कर िदया। द्र, उस जानवर के वार से कुछ दरू जाकर िगरा।
द्र के दद की चीख पूरे जं गल म गूँज गयी। आज पहली बार द्र को इतना दद हो रहा
था। आज पहली बार उसे डर का आभास हुआ था। अभी तक द्र डर से अं जान था, पर
उस व त उसे अपने मृ यु का डर था। वो जानवर अपने िशकार को घायल करने के
प चात अब उसे खाने के िलये आगे बढ़ा। द्र की आँ ख से आँ स ू बह रहे थे । वो चीखना
चाहता था, िक तु उसके मु ख से आवा़ज ही नहीं आ रही थी। द्र की मृ यु तय थी। उस
जानवर ने अपने मुँ ह को खोला और अपने िशकार को खाने के िलये तै यार हुआ। द्र ने
डर के कारण अपनी आँ ख ब द कर ली।
पर अचानक तभी द्र ने सु ना िक जै से कोई हवा का झ का बहुत ते़ जी से अपने साथ
कोई ची़ज ले कर आया हो। उसने एक सरसराहट सु नी, और जब उसने अपनी आँ ख खोली
तो वह त ध रह गया। उसने दे खा की उस जानवर का मुँ ह खु ला का खु ला ही रह गया।
एक बाण सीधा आकर उस जानवर के मुँ ह म घु स चु का था। उस जानवर के मुँ ह म एक
अवरोध की तरह वो बाण न उस जानवर को मुँ ह ब द करने दे रहा था, और न ही खोलने ।
उस जानवर की आवा़ज भी नहीं िनकाल रही थी। घायल द्र की आँ ख चार ओर घूम
गयीं, वो उस बाण चलाने वाले को दे खना चाहता था। उसे कोई ऩजर ही नहीं आया। वो
जानवर अब भी उसके सामने था, पर तु अब उसकी पीठ द्र के सामने थी। वो जानवर
मु ड़ चु का था। शायद द्र को बचाने वाला, और उस जानवर को बाण मारने वाला उसी
ओर था।
इससे पहले िक द्र कुछ और समझ पाता एक भयानक वार हुआ उस िवशाल काले
रोयदार जानवर पर। वो श त्र जो उस जानवर के ऊपर चला था, उसे द्र पहचानता
था। वो एक फरसा था, और उस भीषण वार के फल व प, उस िवशाल जानवर के शरीर
से उसका िसर कटकर नीचे िगरा और उस जानवर के शरीर के भूिम पर िगरने के प चात
जो चे हरा द्र की आँ ख को िदखाई पड़ा उसे भी पहचानता था द्र; वो थे उसके काका।
उस जानवर को फरसे के एक ही वार से प्राण-िवहीन करने के उपरांत, वो ित्रय भागकर
द्र के पास आया। द्र को भूिम पर इस तरह पड़ा और घायल दे खकर, उस ित्रय को
दुख हुआ। उस न हे बालक को हो रही पीड़ा को महसूस कर वो ित्रय िवचिलत हुआ।
द्र को ढूँढ़ता हुआ ही वो उस थान पर आया था, और िफर जब उसने उस भालू की
दहाड़ सु नी तो उसे अं देशा हो गया था िक अव य ही द्र के प्राण सं कट म ह। वो पूरे
वे ग से भागता हुआ वहाँ आया था।
‘‘हे महादे व! इसके पे ट से तो र त िनकल रहा है ।’’ ित्रय ने कहा। उसने द्र के पे ट के
घाव को दे खा।
द्र कुछ कहना चाहता था, िक तु उसके मु ख से आवा़ज ही नहीं िनकली। वो भयभीत
था। अभी जो कुछ भी उसके सामने घिटत हुआ, उससे वो सदमे म था। वो िनरं तर अपने
काका की और दे ख रहा था। और जब िनरं तर प्रयास के बाद भी उस न हे बालक के मु ख
से आवा़ज न िनकली तो वो िफर से अचे त हो गया। उसकी आँ ख ब द हो गइं । द्र को
अचे त दे खकर उस ित्रय ने अपना फरसा भूिम पर रखा, और शीघ्र ही भागकर बगल
की ही झािड़य से कोई प ा तोड़कर आया। उस प े को द्र के घाव पर लपे टकर उसने
अपने अं गव त्र के एक िकनारे को फाड़ा, और उसे द्र के पे ट पर बाँ ध िदया। उस
ित्रय को जं गली औषिधय की अ छी जानकारी थी।
शीघ्रता से उसने एक दसू रे पौधे की प ी को तोड़ा, और द्र के मु ख पर रख िदया।
उसके प चात वो याकुल भाव से द्र के सर को अपने गोद म रखकर सहलाने लगा।
उस ित्रय की औषिधयाँ काम कर गयीं, और द्र के पे ट से बहता र त ब द हो गया।
द्र को अब दद भी नहीं हो रहा था। उसकी चे तना भी आ गयी थी।
‘‘काका! या वो भालू था?’’ द्र ने धीमी आवा़ज म पूछा।
‘‘हाँ पु त्र।’’ उस ित्रय ने उ र िदया।
‘‘वो सच म बहुत भयानक था; म भयभीत हो गया था काका। म अपनी र ा नहीं कर
पाया, मु झे मा कर।’’ द्र िफर धीमे वर म बोला।
‘‘तु म िनि चत ही वीर हो पु त्र; तु ह मा माँ गने की कोई आव यकता नहीं, तु मने
बहादुरी से मु क़ाबला िकया पु त्र।’’ उस ित्रय ने अपनी आँ ख के िकनारे आ गये
आँ सुओ ं को प छते हुए द्र को उ र िदया।
द्र अब िफर अचे त हो गया था।
* * *
उस ित्रय ने द्र को अपने क धे पर उठाया, और उसके घर की ओर चल िदया। अब
वो िनि चं त था, य िक द्र अब सु रि त था।
‘‘आपका ध यवाद महादे व! आपने इस बालक की र ा की।’’ वो ित्रय धीरे से
बु दबु दाया।
भद्र और ि मणी, झोपड़ी के बाहर ही बै ठे थे , और आपस म बात कर रहे थे । शायद
भद्र ने कोई िवनोद िकया था, िजस पर दोन हँ स रहे थे , और िफर हँ सती हुई ि मणी की
दृि ट उस ित्रय पर पड़ी। वो द्र को क धे पर उठाये हुए था।
‘‘हे ई वर! या हुआ मे रे पु त्र को?’’ ि मणी अधीर होकर बोली। उस ित्रय ने द्र
को अपनी गोद से उतारकर ि मणी की गोद म थमा िदया। ि मणी, अपने हाथ से
द्र के िसर को सहलाने लगी।
‘‘इसे या हुआ िमत्र?’’ भद्र ने भी याकुलता से पूछा।
उस ित्रय ने सारा वृ ा त सु ना िदया। सब कुछ जानकर ि मणी ने उस ित्रय को
कातर दृि ट से दे खा, और भद्र भी भावु क हो गये ।
‘‘आपका बहुत ही उपकार हुआ हम पर िमत्र; आपने हमारे पु त्र के जीवन की र ा की,
आपका बहुत ही ध यवाद।’’ अपनी गीली आँ ख को छुपाते हुए भद्र ने कहा।
‘‘आपको ध यवाद कहने की कोई आव यकता नहीं िमत्र; द्र तो मे रे पु त्र जै सा है , म
सदै व इसकी र ा क ँ गा।’’ उस ित्रय ने उ र िदया।
‘‘िफर भी आपने आजीवन हमको अपना ऋणी बना िलया है भ्राता! आपने इसके जीवन
की नहीं, अिपतु हमारे जीवन की र ा की है ।’’ ि मणी ने उस ित्रय से कहा।
उस ित्रय ने ि मणी की बात का कोई भी उ र नहीं िदया, वो बस चु प-चाप खड़ा
रहा। एक माँ के ने ह से तक करने की शि त उसम नहीं थी।
‘‘पर म भालू को मा ँ गा।’’ नींद म ही द्र बड़बड़ाया।
‘‘एक िदन अव य द्र।’’ उस ित्रय ने मन ही मन सोचा।
2. अिधपित
जं गल की सबसे खास बात ये होती है िक इसके अपने कई रा़ज होते ह। बाहर से ये
िजतना खूबसूरत और मनमोहक होता है , अ दर इसम न जाने िकतने खतरे पी रा़ज
मौजूद होते ह। आज सु बह से धूप नहीं िनकली थी, और ठं ढ भी थोड़ी अिधक थी। इस
ठं ढ के मौसम म वीरभूिम से िनवािसत उन लोग के िलये लकड़ी सबसे मह व की व तु
थी। वे सभी वन की उ री छोर पर रहते थे । वे मु यत: रा य के सामा य लोग होते थे ,
िज ह रा य से िनवािसत कर िदया जाता था, और ये जं गल ही उनके िलये उपयु त थान
होता था, अपना शे ष जीवन शाि त से यतीत करने के िलये ।
वो िदन का तीसरा पहर था, और अब जाकर सूरज िनकला था। जं गल के जानवर भी
अपनी गु फाओं और टीले से बाहर िनकल आये थे । उस ठं ढ म सूरज की िकरण का शरीर
पर पड़ना एक सु खद एहसास था, िफर चाहे वो इं सान ह या जानवर।
उसी िनवािसत ब ती की एक छोटी ब ची, उस जं गल म लकिड़याँ इकट् ठी कर रही थी।
उसकी माँ ने उसे िनदश िदया था िक अिधक से अिधक लकिड़याँ ले कर आये । वो छोटी
ब ची यादा लकिड़य की लालच म जं गल के काफी भीतर तक आ गयी थी। उसने ढे र
सारी लकिड़याँ इकट् ठी की, और उनका गट् ठर अपने िसर पर लादकर िकसी तरह धीरे -
धीरे आगे बढ़ रही थी। वो कोई धु न गु नगु ना रही थी। वो छोटी लड़की वयं म ही मगन
होकर अपने घर की और जा रही थी, पर तभी अचानक ही वो िगर पड़ी।
उसे पीछे से िकसी ने ज़ोर का ध का िदया था। उस छोटी ब ची ने जब उठने की कोिशश
करते हुए उस आकृित पर ऩजर डाली, जो उसके ठीक सामने खड़ी थी, तो वो भययु त
होकर िफर िगर गयी। वो भालू था। वो िबलकुल वै सा ही था, जै सा िक उसके िपता ने
भालु ओं के िवषय म उसे बताया था। भय के कारण उस लड़की के हलक सूख गये थे । उस
छोटी ब ची की आँ ख से आँ स ू बह रहे थे ।
वो भालू िकसी भी ण उस पर आक् रमण कर सकता था। मृ यु उस न ही ब ची के
स मु ख मु ख फैलाये खड़ी थी, और उस मृ यु का सामना करने की िह मत उस न ही
ब ची म नहीं थी। उसने भयभीत होकर अपनी आँ ख ब द करनी चाही।
...पर तभी उस छोटी ब ची के आ चय का िठकाना नहीं रहा, जब उसने दे खा िक एक तीर
सीधा आकर उस भालू की आँ ख म लगा। वो भालू, पीड़ा के कारण बहुत ते़ जी से चीखा।
उस भालू की चीख इतनी ज़ोर की थी िक, पूरा जं गल उसकी चीख से गूँज गया। उ री
िकनारे पर रहने वाले िनवािसत ब ती के लोग ने भी उसकी चीख सु नी। वो सब भयभीत
हो गये ।
‘‘शायद िकसी जानवर को कोई िशकार िमल गया।’' उनम से िकसी ने कहा।
‘‘िनि चत ही हमारे ब ती के ही िकसी यि त की मृ यु हुई है ।’’ दस ू रे ने कहा।
वो सब वहीं खड़े हो, अपनी िनयित और ई वर को कोसते रहे । िकसी म भी िह मत न हुई
उस जं गल म जाने की।
तीर लगने के प चात् वो भालू कुछ दे र के िलये असावधान हो गया, और इतना व त ही
पया त था उस यि त के िलये , िजसने वो तीर चलाया था। तीर चलाने वाले उस यि त
ने उस छोटी लड़की को सहारा दे कर िकनारे िकया और वयं अपना श त्र ले कर उस
भालू के सामने खड़ा हो गया।
वो भालू भयानक दद से चीख रहा था। उसकी आँ ख से र त की धारा बह रही थी। उस
यि त ने अपने फरसे से उस भालू पर वार करने की कोिशश की, िक तु इस बार वो भालू
सावधान था। उसने अपनी दस ू री आँ ख से उस यि त को वार करते हुए दे ख िलया था।
भालू एक ओर हट गया, और वो यि त असं तुिलत होकर उससे आगे िनकल गया। िक तु
वो यि त शीघ्र ही सँ भल गया।
अपने पहले प्रयास म असफल होने के प चात वो यि त एक बार िफर तै यार हो गया।
इस बार फरसे को कसकर हाथ म पकड़ा और ज़ोर से चीखा,
‘‘हर-हर महादे व!’’
और इस बार के उस यि त के वार ने भालू को सँ भलने का मौका ही नहीं िदया। उस भालू
के धड़ से उसका िसर अलग हो चु का था। वो भालू मर चु का था। उस यि त ने भालू के
शरीर पर एक लात मारी उसके शरीर म कोई हलचल नहीं हुई। अब उस यि त ने छोटी
ब ची के लकड़ी का गट् ठर उठाया और उसके साथ-साथ चलने लगा।
उस छोटी ब ची ने चै न की साँस ली। उसने अब उस यि त को यान से दे खा। उस
यि त का शरीर बहुत ही िवशाल िदख रहा था। उसके दोन बाजू िकसी वृ की भाँ ित
मोटे थे । उसने एक धोती पहनी हुई थी, और कमर के ऊपर एक अं गव त्र डाला हुआ था।
उसने अपने माथे पर ितलक लगाया हुआ था। उसके बाल बड़े -बड़े थे । उसने अपने उन
बाल का जूड़ा बनाया हुआ था। उसने धनु ष को अपने क धे से लटकाया था और एक
बाँ ह म तरकश लटकाये हुए था, िजसमे तीर रखे हुए था। एक हाथ म उसने फरसा पकड़ा
हुवा था जो अभी उस भालू के खून से र त-रं िजत था। उसके फरसे से र त की बूँद धरा
पर िगर रही थीं।
‘‘आप कौन ह,' उस छोटी ब ची ने उस यि त से प्र न िकया।
उस यि त ने कोई उ र नहीं िदया, बस चु पचाप चलता रहा।
‘‘ या आप बोल नहीं सकते ?' उस छोटी ब ची ने िफर प्र न िकया।
उस यि त ने एक तीखी दृि ट उस छोटी ब ची पर डाली। पर उस यि त के बे खी से
वो ब ची डरी नहीं, अिपतु िफर से बोली,
‘‘आप बहुत ही वीर ह; भले ही आप गूंगे ह, िक तु आप अ यिधक बलशाली ह... आपने
एक ही वार म उस भालू की गदन काट दी, आप िनि चत ही हमारे अिधपित के समान
वीर ह,'।
वो यि त अब भी चु प था। उसने एक बार िफर उस छोटी ब ची पर एक दृि ट डाली।
इस बार वो ब ची डर गयी और उसके प चात पूरे रा ते म वो मौन ही रही। अब वो वन
के उ री छोर की ओर पहुँच चु के थे । वहाँ कई लोग इकट् ठा थे । वो सब डरे हुए थे , जब
उ ह ने िकसी जानवर की चीख सु नी थी। वो सब िकसी अिन ट को ले कर घबराये हुए थे ।
उ ह ने सामने से दो लोग की आकृित दे खी। वो अब भी चु प थे ।
वो यि त उस ब ची के साथ उन लोग के िनकट पहुँच चु का था। इतना िनकट िक वो
सब उन दोन आकृितय के मु ख दे ख सक।
‘‘अिधपित द्र! आपने इस ब ची की जान बचाई।’’ वहाँ खड़े एक बु जु ग ने कहा।
‘‘उस ब ची के प्राण अिधपित ने बचा िलये ।’’’ पूरी भीड़ बोल उठी।
और िफर ‘अिधपित द्र की जय!’ के नारे उस पूरे े तर् म गूँजने लगे । द्र कुछ नहीं
बोला। वो हमे शा की भाँ ित चु प था। वो छोटी ब ची मारे आ चय के द्र को दे ख रही
थी, िजसके बारे म उसने केवल सु ना था। आज उसने पहली बार अपने अिधपित को दे खा
था, और िफर उ ह ने तो उसकी जान बचाई थी। पर वो अपने अिधपित को पहचान भी ना
सकी। उसने उ ह गूँगा कहा।
‘‘मु झे मा कर अिधपित।’’ उस छोटी लड़की ने हाथ जोड़कर द्र से प्राथना की।
द्र ने उस लड़की को एक बार िफर दे खा, पर इस बार आँ ख म क् रोध नहीं था, और िफर
उसने लकड़ी का गट् ठर उस छोटी ब ची को िदया और भीड़ का अिभवादन वीकार करने
के प चात अपने झोपड़ी की ओर चल िदया।
रा ते भर वो लोग की आवा़ज सु न रहा था। हर ओर उसकी ही बात हो रही थीं। पूरी
ब ती म केवल उसकी ही वीरता के चच हो रहे थे । पर द्र उन सबसे बे खबर अपने
झोपड़ी की ओर जा रहा था।
ये वही न हा द्र था, जो उस सद तूफानी रात बड़ी ही किठनाइय से ज मा था। आज
16 वष उपरांत वो न हा द्र, उस समूह का अिधपित द्र हो चु का था।
* * *
साँझ हो चु की थी। प ी अपने घ सले की ओर वापस हो रहे थे । अं धकार धीरे -धीरे
प्रकाश के ऊपर हावी हो रहा था, और प्रकाश भी म म गित से अं धकार को धरा पर
छा जाने का मौका दे रहा था, य िक उसे पता था िक आिखर म राित्र के प चात एक
बार िफर वो प्रकाश ही होगा जो जगमगा रहा होगा। लोग भी अपने घर की ओर वापस
लौट रहे थे । कोई हँ स रहा था तो कोई उदास था। कोई थका हुआ था तो कोई भाव-हीन
था। पर सभी िकसी ना िकसी के साथ थे । कोई अकेला नहीं िदख रहा था।
द्र अपनी झोपड़ी म िबछी हुई दरी पर ले टा था। बगल म ही उसका फरसा रखा हुआ
था। उस व त उसकी झोपड़ी म बस वही फरसा ही उसका साथी था। द्र अकेला था।
द्र आज हुई घटना के िवषय म सोच रहा था। उसे उस छोटी ब ची के डर म अपनी ही
छाया िदखाई पड़ी थी। द्र ने उस छोटी ब ची का दद महसूस िकया था, य िक कई
वषों पूव वो वयं भी उस ‘डर’ से डरा था। उस भालू को मारते व त द्र ने अपना सारा
गु सा अपने वार म लगा िदया था।
‘‘शायद म और ज़ोर लगा सकता था।’’ द्र ने िवचार िकया।
उसे अपने काका की याद आ गयी, और उनका िवचार मि त क म आते ही द्र के याद
की पोटली एक बार िफर खु ल गयी।
उसे आज भी याद था, वो िदन जब वो पहली बार काका के साथ अपनी झोपड़ी छोड़कर
उ री िह से म बसे िनवािसत की ब ती म आया। वो कोई छोटी ब ती नहीं थी।
वीरभूिम और उस जं गल के बगल के अ य रा य से िनवािसत बहुत से यि त वहाँ थे ।
वहाँ की जनसं या तो िकसी छोटे रा य के समान थी। पहली बार द्र ने एक साथ इतने
लोग को दे खा था। पहली बार उसने अपने माँ -िपता और काका के अितिर त िकसी और
को भी जाना था। उस जगह पर काका का अ यिधक स मान था। काका ने द्र के िलये
अपने साथ अपने ही झोपड़ी म रहने का प्रबं ध कर िदया था। द्र को वो जगह अ छी
लगी। वहाँ हमे शा शाि त नहीं रहती थी। लोग की चहल-पहल हमे शा बनी रहती थी।
लोग एक दस ू रे के सु ख-दुख के साथी थे । द्र को ये सब अ छा लगता था।
वह ित्रय, िजसे द्र काका कहता था, उसके यान म केवल यही बात थी की उसे द्र
को श त्र-िव ा म प्रवीण करना है । द्र का अ यास शु हो गया। द्र बहुत ही
शीघ्रता से हर अ यास को आ मसात कर रहा था। काका, द्र को जो भी िसखाते उसे
द्र पूरी लगन से सीख रहा था।
वो ित्रय द्र को पूरे मनोयोग से श त्र का प्रिश ण दे रहा था, और उसकी आशा
से भी परे जा कर न ह द्र शीघ्रता से सभी श त्र म पारं गित हािसल कर ली थी।
अगर बात धनु ष-बाण की हो तो कोई भी िनशाना उसके बाण से बच नहीं सकता था।
उसका बाण हमे शा ल य को भे द ही दे ता था, और तलवारबाजी म तो अब द्र अपने
गु यानी िक काका पर भी भारी पड़ने लगा था।
‘‘पु त्र तु म बहुत ही शीघ्रता से सारे श त्र सीख रहे हो। अगर तु म इसी तरह सीखते
रहे , तो शीघ्र ही तु म अपने ल य को प्रा त कर लोगे ।’’ काका ने द्र से कहा।
द्र ह के से मु कुराया और अपने काका को दं डवत िकया।
‘‘पु त्र! तु ह सबसे यादा कौन सा हिथयार िप्रय है ?’’ काका ने प्र न िकया।
‘फरसा।’ द्र ने उ सािहत होकर उ र िदया। फरसा... ये सदै व ही द्र को अपनी ओर
आकिषत करता था। काका के हाथ म फरसा दे खकर द्र रोमां िचत हो जाता था। उसे
अ य श त्र जै से िक धनु ष, तलवार, भाला भी पसं द थे , िक तु सबसे यादा अगर कोई
श त्र द्र को िप्रय था तो वो फरसा ही था। फरसे की अद्भुत बनावट द्र को सदै व
आकिषत करती थी, और िफर फरसा तो द्र के काका को भी िप्रय था, तो द्र को भी
फरसा ही चािहये था।
‘‘काका! फरसा तो आपको भी िप्रय है , इसीिलये मु झे भी।’’ द्र की आँ ख म चमक थी।
पहले तो उसके काका मु कुराये और िफरबोले ,
‘‘पु त्र! बहुत ही कम लोग को फरसा, एक श त्र के तौर पर पसं द आता है ; मु झे खु शी
है िक फरसे के प्रित तु हारे बचपन का उ साह आज भी बना हुआ है , कल से म तु ह
फरसा चलाने का प्रिश ण दँ ग ू ा। ''
अगली सु बह से द्र को फरसा चलाने का प्रिश ण िदया जाने लगा। और फरसे के
साथ भी द्र ने अपनी प्रवीणता प्रमािणत कर दी। फरसे की सबसे खास बात होती है ,
िक वो भारी होता है , और इसीिलये अिधकतर लोग फरसा पसं द नहीं करते , य िक
उसको चलाने से उनकी गित कम हो जाती है और वार भी अप्रभावी ही रहता है । पर तु
इतने भारी फरसे के साथ भी द्र की गित पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था। वो फरसे को
इस प्रकार आसानी से दाय-बाय घु माता था, मानो वो िकसी छोटे ब चे की लकड़ी की
तलवार हो। फरसे के साथ द्र के वार बहुत ही घातक होते थे ।
जै से-जै से द्र बड़ा हो रहा था, उसका शरीर और भी यादा बिल ठ एवं मांसल होता जा
रहा था। द्र अपने शरीर के बदलाव को महसूस कर रहा था। कभी-कभी द्र को अपने
भु जाओं और चौड़े सीने को दे खकर गव भी होता था। उसने सदै व ही ऐसे बिल ट शरीर की
कामना की थी, य िक वो नहीं चाहता था िक अपने प्रितशोध को पूरा करने म शारीिरक
प से असमथ हो। अगर प्रित ा किठन थी तो उसको पूरी करने के िलये तै यारी भी बड़ी
किठन ही होनी चािहये । यही सोचता था द्र।
द्र अब श त्र प्रिश ण पूरा कर चु का था। इतने िदन से उस िनवािसत ब ती म
रहते -रहते द्र, उ ही लोग की तरह हो गया था। द्र ने कुछ िमत्र भी बनाये थे ,
िजनके साथ वो अ सर खे लता था। द्र के िमत्र का नाम था, िव लव, कौ तभ और
िवनायक। द्र को अपने इन िमत्र के साथ खे लना अथवा समय यतीत करना अ छा
लगता था। और वो तीन भी द्र के हर सु ख-दुख के भागीदार हो गये थे ।
काका ने न िसफ द्र को श त्र का प्रिश ण िदया था, वरन वो उसे यु -भूिम म
योजना बनाने की कला भी िसखा रहे थे । काका ने द्र को कभी कोई कमी नहीं होने दी
थी। उ होने हमे शा इस बात का खयाल रखा था की द्र को कभी अपने माँ और िपता की
कमी महसूस ना हो। द्र, काका के साथ प्रस न था।
समय अपनी गित से चलता रहा, और अब द्र जीवन के बीस वसं त पूरा कर चु का था।
द्र ने अपने काका से श त्र चलाने की िश ा पायी थी। वो शा त्र म िनपु ण हो चु का
था। द्र के वो तीन िमत्र भी िनपु ण यो ा बन चु के थे । द्र ने अपने िमत्र को श त्र
चलाना िसखाया था। उसके काका को इस बात का पता नहीं था। वयं द्र को भी इस
बात से अचरज हुआ, िक कैसे उसके िसखाये हुए, उसके िमत्र इतने श्रे ठ तरीके से यु
करते थे । द्र के तीन िमत्र म िव लव, तलवार के साथ श्रे ठ था, तो कौ तु भ, धनु ष-
बाण चलाने म मािहर था। और िवनायक अपने शारीिरक बल के अितिर त भाला चलाने
म प्रवीण था। द्र के िमत्र सच म वीर थे । द्र के जीवन म सब कुछ बहुत शाि त से
घिटत हो रहा था।
पर द्र का मन कभी भी शा त नहीं रहा था। इतने वषों म ऐसा एक भी िदन नहीं बीता
था, जब द्र को वो सपना न आता हो। एक ऐसा सपना, िजसने द्र को अशा त कर
िदया था। वो सपने म दे खता, िक अचानक िकसी यि त का िसर उसके धड़ से कटकर
भूिम पर िगरता है , और उसके र त से द्र भीग जाता है । द्र चीख पड़ता है । उसका
पूरा शरीर पसीने से भीग जाता था। उसकी साँस भारी हो जाती थीं। उसके मु ख से आवा़ज
ही नहीं िनकलती थी। उस सपने की वजह से द्र का मन अशा त था।
कुछ दे र के उपरांत वो शा त हो जाता था, िक तु उसके मन को शाि त नहीं िमलती थी।
द्र के दय म हर समय एक टीस रहती थी।
* * *
उस िदन द्र भोजन करने जा रहा था। द्र का िमत्र िव लव उसके िलये उसका
मनपसं द यं जन मीठी भात ले कर आया था, जो िव लव की माँ ने अपने हाथ से बनाया
था। द्र को मीठी भात बहुत पसं द था। िव लव ने मीठी भात द्र के िलये पात्र म
परोसा। द्र ने खाने के िलये अपना हाथ आगे ही बढ़ाया था
अचानक तभी द्र ने लोग के भागने की आवा़ज सु नी। द्र को िकसी अिन ट का
आभास हुआ, उसने भोजन छोड़ िदया। वो दौड़कर अपने धनु ष के पास पहुँचा और उसे
क धे पर टाँ ग िलया और एक हाथ म अपना फरसा ले कर बाहर की ओर भागा। िव लव
भी द्र के पीछे भागा।
द्र ने दे खा, सभी लोग भागते हुए ब ती के अ दर जा रहे थे । उन सब के चे हरे को
दे खकर आसानी से पता चल रहा था की वो सब डरे हुए थे । द्र ने भागते हुए एक पु ष
से पूछा,
‘‘ या हुआ? आप इस प्रकार भयभीत होकर य भाग रहे ह?''
‘‘दे वराज के सै िनक आये ह, वो हमारे यहाँ की ि त्रय को जबद ती अपने साथ ले जा रहे
ह और जो भी िवरोध कर रहा है , उसे मार रहे ह, अब ई वर ही उनकी र ा करे ।’’ वो
पु ष, कहकर भागा।
दे वराज, राजनगर रा य का राजा था। राजनगर, एक छोटा सा रा य था, जहाँ प्रजा
सु ख-चै न से रह रही थी। दे वराज वयं तो एक कुशल यि त था, िक तु उनके रा य के
सै िनक अधमी थे । वे यिभचार हे तु िकसी भी तर पर िगर सकते थे , और उनके रा य के
बगल म ि थत िनवािसत की ब ती उनके िलये एक आसान िठकाना था। वो सै िनक जब
भी उस ब ती म आते थे , वहाँ की ि त्रय को जबरन उठा ले जाते थे , और अगर कोई
उनका िवरोध करता, तो वो उसकी ह या कर दे ते थे ।
दे वराज को अपने सै िनक के इस कृ य की जानकारी थी, िक तु वे चु प थे । वो अपने
सै िनक के िव कोई भी स त कदम नहीं उठाते थे । दे वराज की िन ठा भी सम्राट
कण वज म थी, और शायद यही कारण था िक वो इस अ याय के िव मौन थे ।
द्र ने अपने फरसे को एक बार िफर कस कर पकड़ा, और ते़ जी से दौड़ा। िव लव भी द्र
के पीछे भाग रहा था। द्र को जब राजनगर के सै िनक के ारा इस भाँ ित के नीच कम
करने की बात पता चली, तो द्र अ यिधक क् रोिधत हो गया।
द्र जब वहाँ पहुँचा तो उसने दे खा की लगभग बीस सै िनक घोड़े पर सवार थे । उनम से
कुछ सै िनक ने अपने साथ िनवािसत ब ती की ि त्रय को जबरन घोड़े पर िबठाया हुआ
था। वो ि त्रयाँ रो रही थीं। वे उन सै िनक से दया की भीख माँ ग रही थीं, िक तु वो
सै िनक थोड़ा भी िपघल नहीं रहे थे ।
कई लाश भी नीचे पड़ी थीं, जबिक कुछ घायल पु ष नीचे पड़े दद से कराह रहे थे । ये वो
लोग थे िज होने उन सै िनक का िवरोध िकया था। उन घायल की कराह और उन लाचार
ि त्रय का िगड़िगड़ाना सु नकर द्र का क् रोध भड़का।
‘‘म तु म सभी को चे तावनी दे ता हँ ,ू अगर अपना भला चाहते हो तो इन सभी ि त्रय को
छोड़ दो, म वचन दे ता हँ ,ू तु म सबको आसान मृ यु दँ ग ू ा!’’ द्र ने ते़ ज वर म कहा।
सभी सै िनक और ि त्रय की ऩजर उसकी ओर हो गयी। वहाँ उपि थत सभी लोग
चिकत थे द्र की चे तावनी से ।
‘‘ या तू पगला गया है ? तु झे पता है हम कौन ह? हम राजा दे वराज के सै िनक ह; और
तु झे या लगता है , हम ते री इन खोखली धमिकय से डर जायगे ? अब अगर तू अपने
प्राण बचाना चाहता है तो यहाँ से भाग जा।’’ उन सै िनक म से एक बोला।
‘‘जै सी तु हारी इ छा; वो तो अभी पता चले गा की कौन िकसके प्राण ले ता है ।’’ द्र
बोला।
उनम से एक सै िनक अपने हाथ म तलवार ले कर द्र की ओर दौड़ा। द्र ने अपने फरसे
को कसकर पकड़ िलया, और अपनी जगह पर ही खड़ा रहा, और जै से ही वो सै िनक द्र
के पास पहुँचा, द्र ने िबना उसे एक भी मौका िदये , फरसे का एक भरपूर वार उसके ऊपर
िकया। वो सै िनक वहीं ढे र हो गया। जब अ य सै िनक ने ये दृ य दे खा तो वो डर गये ।
उ ह इस बात का आभास भी नहीं था की इस जं गल म भी कोई ऐसा होगा जो उनका
प्रितकार कर सकता है ।
द्र ने अब अपना फरसा पीछे रखा, और हाथ म धनु ष बाण ले िलया। इससे पूव िक
दे वराज के सै िनक कुछ समझ पाते , द्र ने एक के प चात एक पाँच बाण छोड़े । उसका
िनशाना प का था, और घोड़े पर बै ठे पाँच सै िनक नीचे िगर गये । उन पाँच सै िनक के शरीर
प्राण िवहीन हो चु के थे ।
अब शे ष बचे हुए सारे सै िनक एक साथ द्र की और झपटे । द्र ने एक बार िफर फरसे
को उठाया और यु हे तु स ज हो गया। अचानक ही द्र की ओर आते सै िनक बीच म ही
िगरने लगे । शायद िकसी ने पीछे से उन पर वार िकया था। द्र, यग्रता से उन लोग
को ढूँढ़ रहा था, िज ह ने उन सै िनक पर आक् रमण िकया था। द्र को और भी अिधक
आ चय हुआ, जब उसने दे खा की उसकी सहायता करने के िलये , िज ह ने उन सै िनक को
मारा था, वो थे िव लव, कौ तु भ और िवनायक।
अब द्र के िमत्र की ओर आधे सै िनक मु ड़ गये , और बाकी आधे द्र की ओर झपटे ।
उनको आते दे खकर द्र ने अपने दस ू रे हाथ म एक बाण ले िलया। द्र ने अपनी चाल
सोच ली थी, अब बस वो उन सै िनक का प्रती ा कर रहा था।
अब द्र के सामने पाँच सै िनक थे , जो अपनी तलवार ले कर उसके ऊपर आक् रमण करने
को एकदम तै यार थे । वो पाँच एक गोल घे रे म द्र को घे रे हुए थे , और अब वो द्र िक
िकसी भी असावधानी की प्रती ा कर रहे थे । द्र ने जब खु द को इस तरह िघरा दे खा,
तो उसने सावधानी से सबसे पहले सामने की ओर खड़े सै िनक के दायीं ओर से फरसे का
एक ते़ ज वार िकया। वो सै िनक उस वार से बचने के िलये नीचे झुक गया, पर उस सै िनक के
बगल म जो सै िनक खड़ा था, वो फरसे के उस वार से नहीं बच पाया। फरसा सीधे गले पर
लगा, और उस दुभा यशाली सै िनक की मृ यु हो गयी और िफर पलक झपकते ही घूमकर
ू रे हाथ म िलया वो बाण उस सै िनक के सीने म गड़ा िदया, जो उसके वार
द्र ने अपने दस
से बचने के िलये नीचे झुक गया था। बहुत ही उ कृ ट और अद य साहस िदखाया था
द्र ने ।
अब द्र के सामने केवल 3 सै िनक थे । उनके चे हरे पसीने से तर-बतर थे । डर के मारे उनके
हाथ-पाँ व काँप रहे थे , िफर भी उन तीन ने अपनी तलवार हाथ म कसकर पकड़ी हुई थी।
वो द्र की और टकटकी लगाये थे ।
और उसके बाद एक िचर-पिरिचत श द गूँजा वातावरण म,
‘‘जय परशु राम!''
और िफर एक ही वार म तीन िसर नीचे पड़े थे । अद्भुत था वो वार, और अद्भुत था उस
वार को करने वाला वो द्र। फरसे के एक वार ने उन तीन सै िनक को इस मृ यु लोक से
मु ि त दे दी थी। द्र उन अधमी सै िनक के र त से भीगा हुआ था। उसने अपने िमत्र
की ओर दृि ट घु माई, िज ह ने बाकी बचे सै िनक का काम तमाम कर िदया था।
वहाँ मौजूद सभी त्री-पु ष, िज ह ने ने भी द्र के इस अद्भुत वीरता के कौशल को
दे खा था, वो उसकी वीरता से प्रभािवत हो चु का था। उसने उन सबके प्राण की र ा की
थी। वो सब द्र के सामने हाथ जोड़कर खड़े थे ।
‘‘तु मने हमारे प्राण की र ा की है , इसके िलये तु हारा हािदक ध यवाद द्र।’’ उनम से
एक त्री ने कहा। उसकी आँ ख म आँ स ू थे । वो जानती थी िक द्र ने उसके जीवन की
र ा की थी, अ यथा वो नरभ ी सै िनक उसके साथ अनथ ही कर दे ते।
द्र मौन रहा। वो अपनी दृि ट भूिम की ओर िकये हुए था। उसके प चात वहाँ सभी
लोग द्र की वीरता का उद्घोष करने लगे । द्र के तीन िमत्र भी उसके पास आ गये
थे ।
तभी उ ही पु ष म से एक बोला,
‘‘ऐसे बलशाली और साहसी पु ष को तो हमारा पथ-प्रदशक होना चािहये , इसे तो
हमारा अिधपित होना चािहये । ''
‘‘िन चय ही ऐसे वीर पु ष के हमारे अिधपित होने से हम िकसी से भी डरने की
आव यकता नहीं रहे गी।’’ एक त्री बोली, िजसे वो सै िनक अपने साथ ले जाना चाहते
थे ।
‘‘हमारे ब ती के िहत म द्र हमारा अिधपित होगा।’’ उस ब ती के सबसे वृ यि त ने
कहा। अब वहाँ ब ती के अ य िनवासी भी आ गये थे । द्र के वीरता एवं साहस से
पिरपूण काय का समाचार सभी ब ती वाल को ात हो चु का था, और सब अब उस वीर
पु ष को दे खना चाहते थे , िजसने वो गौरवपूण काय िकया था।
‘‘अिधपित द्र!’' उसी भीड़ म से िकसी ने कहा।
सभी ने उसकी बात को दोहराया। द्र के िमत्र ने भी दोहराया। द्र अब भी मौन ही
खड़ा हुआ था। वो अब भी िकसी को ढूँढ़ रहा था... और तभी उसकी दृि ट भीड़ म सबसे
पीछे खड़े उस यि त के ऊपर पड़ी, िजसकी एक जोड़ी आँ ख उसे घूर रही थीं, िजसकी
आँ ख म खु शी के आँ स ू थे ; िजसकी आँ ख म द्र के िलये ढे र सारा यार था, और िजसकी
आँ ख को पहचानता था द्र; वो थे उसके काका।
पर स य तो ये भी था िक इस भाँ ित राजा दे वराज के सै िनक की ह या कर दे ना उन
िनवािसत के िहत म नहीं था। भले ही वो सै िनक अधम कर रहे थे , िक तु थे तो वो राजा
के ही सै िनक; और अगर दे वराज को इस बात की खबर हो जाती, तो उन िनवािसत को
मु ि कल हो जाती। इसिलए सभी ने ब ती के िहत म ये िनणय िलया िक उन सै िनक की
लाश को जं गल के बीच म फक िदया जाये गा, जहाँ कोई जानवर उनकी लाश को खा
ले गा, और िफर उसके प चात उन सै िनक की मौत से ब ती वाल का कोई सं बंध नहीं
रहे गा।
अगले िदन द्र को िविधवत अिधपित घोिषत िकया गया। उसके स मान म पूरे ब ती म
भोज का आयोजन िकया गया। पूरी ब ती को सजाया गया। ब ती म नृ य एवं अ य
िविभ न उ सव का आयोजन िकया गया। उन िनवािसत लोग को उनका ने तृ व करने
वाला िमल गया था। अब द्र की पहचान िसफ ‘ द्र’ ही नहीं, वरन ‘अिधपित द्र’ हो
गयी थी। वो उस िनवािसत ब ती के समूह का िविधवत अिधपित घोिषत हो चु का था।
* * *
उस रात जब द्र अपने काका के साथ बै ठा था, तो उसने दे खा िक काका की आँ ख म
आँ स ू थे ।
‘‘ या हुआ काका?’’ द्र ने पूछा।
‘‘कुछ नहीं पु त्र! आज तु म यहाँ के अिधपित हो गए हो, तु म इन ब ती वाल के
ने तृ वकता हो गये हो; आज मे री िश ा फलीभूत हो गयी।’’ उस ित्रय ने कहा।
‘‘काका! म आज जो कुछ भी हँ ,ू वो िसफ आपके कारण से हँ ;ू आपने ही मु झे इस यो य
बनाया िक म इन लोग का ने तृ व कर सकूँ ।’’ द्र ने उ र िदया, और जाकर उस
ित्रय के गले से लग गया। द्र को सीने से लगाकर उस ित्रय को अ यिधक हष
हुआ।
‘‘ द्र! अब समय आ गया है िक तु म अपने जीवन को मे रे िबना ही िजयो, और अपने
प्रार ध को पाने के िलये माग वयं बनाओ।’’ उस ित्रय ने दु:ख से कहा।
‘‘पर य काका?’’ द्र चीख पड़ा। काका के िबना रहने की क पना करके ही वो काँप
गया था। द्र, काका के िबना नहीं रह सकता था।
‘‘पु त्र! तु हारे जीवन म मे रा पात्र बस यहीं तक था; मने पूरा प्रय न िकया िक तु ह
श त्र का सवा म प्रिश ण दँ ,ू और ये तु हारी प्रितभा थी की तु मने इतनी ज दी
और इतनी द ता से प्रिश ण पूरा िकया। अब तु म यहाँ के अिधपित हो गये हो, अब ये
तु ह िवचार करना है िक तु ह या करना है ? तु हारा प्रार ध या है ?’’ ित्रय ने कहा।
‘‘काका! मे रा तो बस एक ही प्रार ध है , और वो है िक मु झे िकसी भी कीमत पर अपनी
प्रित ा पूरी करनी है ।’’ द्र ने अधीरता से उ र िदया।
उस ित्रय ने जब द्र के मु ख से ये सु ना, तो उसे द्र की प्रित ा भी मरण हो गयी।
वो दु कर प्रित ा, िजसको पूण करने की मता केवल दे वताओं म थी। वो किठन
प्रित ा, जो द्र ने आवे श म आकर िलया था। िबना उसका पिरणाम सोचे समझे ।
‘‘पु त्र! तु ह इस बात का आभास ही नहीं िक ये प्रित ा तु हारे जीवन म िकतने भूचाल
ला दे गी?’’ उस ित्रय ने भावु क होकर कहा।
‘‘काका! मु झे इस बात से कोई फक नहीं पड़ता िक मे रे जीवन का या होगा? मे रा ल य
प ट है ; म अपनी प्रित ा पूण करने के िलये कुछ भी कर सकता हँ ।ू ’’ द्र ने उ र
िदया।
‘‘िकसी अपने के प्राण भी दे सकते हो?’’ उस ित्रय ने प्र न िकया।
‘‘आपके अितिर त मे रा और है ही कौन?’’ द्र ने कहा।
‘‘तो मे रा प्राण दे सकते हो?’’ उस ित्रय ने कहा।
द्र चु प था। काका के प्र न का उ र दे ने की िह मत उसम नहीं थी।
‘‘पु त्र तु म एक महान यो ा बनोगे ... तु हारा यु करने का कौशल और बल अद्भुत है ,
म प्रभु िशव से प्राथना क ँ गा िक तु म अपना प्रार ध ज दी ही पा लो।’’ उस ित्रय
ने कहा।
द्र ने आगे बढ़कर अपने काका के चरण- पश िकये । द्र की आँ ख म आँ स ू थे , पर वो
उ ह िगरने नहीं दे रहा था, य िक, ‘एक यो ा की आँ ख म आँ स ू नहीं होने चािहये ।’
यही सीख उसके काका ने उसे दी थी।
‘‘पु त्र! िचं ता न करो, जब भी तु ह मे री आव यकता होगी, तु म मु झे अपने िनकट ही
पाओगे ; और मे रा आशीवाद हमे शा तु हारे साथ रहे गा। बस यान रखना, तु म एक
खु शहाल जीवन जीने के अिधकारी हो।’’ उस ित्रय ने द्र को आशीवाद िदया और
झोपड़ी से चल िदया।
द्र एकटक अपने काका को जाते हुए दे ख रहा था। वो तब तक उ ह दे खता रहा, जब
तक िक द्र को उनकी आकृित िदखाई दे रही थी। अब द्र की आँ ख म आँ स ू थे ।
द्र, जब पलटकर झोपड़ी के अ दर आया तो उसने दे खा िक काका का फरसा सामने की
खाट पर रखा था। द्र ने जब उस फरसे को दे खा तो वो और यग्रता से रोने लगा। ये
वही फरसा था, िजसको अपने बचपन म वो अनिगनत बार काका से माँ ग चु का था, और
हर बार काका उसे यही आ वासन दे ते िक,
‘‘पु त्र! िजस िदन म तु ह ये फरसा दँ ग ू ा, उस िदन म तु मसे तु हारी कोई अनमोल व तु ले
लूँगा, या तु ह ये सौदा मं जरू है ?''
द्र चु प हो जाता था, य िक वो काका के श द का मतलब नहीं समझ पाता था।
पर आज द्र समझ गया था िक काका ने ऐसा य कहा था? य िक आज जब वो
अपना फरसा उसे दे गये थे , तो वे द्र के जीवन की सबसे यारी और अनमोल व तु
ले कर चले गये थे ... वो द्र से उसके काका को ले गये थे । वो द्र से उसकी हँ सी और
खु शी ले गये थे । द्र थोड़ा और रोया।
द्र के जीवन से आज एक बार िफर िकसी ‘अपने ’ का साथ छट ू ा था। एक काका ही
उसका पिरवार थे । पर आज वो िफर अकेला हो गया था, एक बार िफर अनाथ हो गया था
द्र।
आज वो जी भरकर रोया था।
द्र की आँ ख म िफर वही दृ य घूम गया, जो उसके सपन म आता था। एक कटा हुआ
िसर भूिम पर िगरता है और उसके र त से द्र भीग जाता है ; पर द्र उस यि त को
बचाने के िलये कुछ नहीं करता है । वो डर जाता है । वो वार करने वाले को दे खता है । वो
उसको पहचानता है , पर द्र उस यि त के प्राण नहीं बचा पाता।
उस दृ य को दे खने के प चात द्र याकुल हो गया था। वो वहीं भूिम पर िगर पड़ा।
उसका पूरा शरीर पसीने से तरबतर हो गया था। उसे अपनी माँ की याद आ रही थी।
वो महान यो ा जो अनिगनत सै िनक को अकेले एक झटके म ही मार सकता था, उसकी
हालत इस व त िकसी छोटे ब चे की भाँ ित थी।
3. प्रार ध की ओर
अचानक ही झोपड़ी के बाहर से िकसी की आवा़ज आई, और उस आवा़ज को सु नकर द्र
अपने भूतकाल की दुिनया से िनकलकर वतमान म आ गया। उस आवा़ज ने द्र को
िवचार की दुिनया से बाहर िनकल िदया। द्र ने खु द को पसीने से लथपथ पाया। वो
उठा, और जाकर िकवाड़ खोल कर आया। सामने िव लव खड़ा था, और उसने अपने हाथ
म भोजन के पात्र िलये थे । द्र शीघ्रता से मु ड़कर वापस आ गया था, िक तु उसके
चे हरे को दे खकर िव लव ने सहज अं दा़जा लगा िलया िक द्र कुछ परे शान है । उसके
हाव-भाव सामा य नहीं थे ।
‘‘अिधपित! या आप ठीक ह?’’ िव लव ने प्र न िकया।
‘हाँ ।’ िकसी तरह से द्र ने उ र िदया।
‘‘पर आप को दे खकर ऐसा नहीं लग रहा िक आप ठीक ह अिधपित! अगर आपको कोई
असु िवधा हो तो कृपया मु झसे कह।’’ िव लव अधीरता से बोला।
द्र ने कोई उ र नहीं िदया। वो बाहर गया, और उसने अपने मु ख को पानी के छीट से
िभगो िलया। ऐसा करके द्र को बहुत ही राहत महसूस हुई उसने कुछ और छीट अपने
मु ख पर मारे और अ दर झोपड़ी म आ गया। अब द्र को भूख लग रही थी।
‘‘िव लव! अगर तु हारे प्र न ख म हो गये ह तो म भोजन कर लूँ?’’ द्र ने कहा।
‘‘अव य अिधप.....।’’ िव लव अपनी बात भी पूरी न कर सका।
‘‘िसफ द्र; तु हारे िलये िसफ द्र, समझे ।’’ द्र ने िव लव से कहा।
िव लव कुछ नहीं बोला, बस मु कुराने लगा। वो जानता था िक द्र उसके और उस
जं गल के अ य दस ह़जार िनवािसय के अिधपित थे , इसिलये द्र का स मान करना
उसका कम था। उसने द्र के िलये भोजन परोसा और द्र के सामने बै ठ गया। वो अपने
िमत्र को भोजन करते दे खकर प्रस नता का अनु भव कर रहा था। द्र के सभी िमत्र
म, िव लव, द्र के सबसे अिधक िनकट था। जबसे द्र के काका उस थान से गये थे ,
द्र के भोजन आिद का प्रबं ध िव लव ही करता था।
‘‘आज पूरे ब ती म आपकी वीरता के चच हो रहे थे । िजस प्रकार आपने उस छोटी ब ची
के प्राण की र ा की, वो सच म एक अद्भुत काय था द्र।’’ िव लव ने हिषत होकर
कहा। वो प्र ये क श द म अपनी भावनाएँ घोलना चाहता था। िव लव को अपने
अिधपित पर गव था।
‘‘तु हारे श द के िलये आभार िव लव! उस ब ची को बचाकर मु झे ऐसा लगा जै से मने
खु द की र ा की हो; उस भालू को मारकर ऐसा लगा.....।’’ द्र बोलते -बोलते अचानक
क गया। शायद उसे इस बात का आभास हो गया था की एक बार िफर से अपने पु राने
ज म को कुरे दने लगा है ।
‘‘ द्र! म आपसे कुछ और कहना चाहता था।’’ िव लव ने कहा।
‘‘हाँ , कहो न।’’ द्र बोला।
‘‘हमारे सै िनक का प्रिश ण पूरा हो चु का है । जै सा िक आपने मु झे, कौ तु क और
िवनायक को आदे श िदया था, िक हम अपने बीच से ही नौजवान को प्रिश ण द। हमने
लगभग छह ह़जार सै िनक तै यार कर िलये ।’’ िव लव ने गव से कहा।
वो ित्रय, यानी िक द्र के काका, जब पूवी छोर को छोड़कर जं गल के उ री छोर की
और आये थे , तो उ ह ने िनणय िकया था िक वो उन ब ती वाल को ही सै य प्रिश ण
दगे और उ ह यु के िलये तै यार करगे । उनके जाने के बाद द्र ने अपने िमत्र की
सहायता से उनका प्रिश ण जारी रखा। वो ब ती के नौजवान को ही प्रिश ण दे ते
थे ।
‘‘ये तो बहुत ही अ छी बात है िव लव; तु म तीन ही इस काय के िलये बधाई के पात्र
हो।’’ द्र ने हष से कहा।
अपने अिधपित के मु ख से ऐसी बात सु नकर िव लव को अपार हष हुआ।
‘‘ये तो मे रा कत य था; पर हम सभी चाहते ह िक कल आप हमारे सभी सै िनक का
प्रिश ण वयं दे ख।’’ िव लव ने उ र िदया।
‘‘ या ये बहुत आव यक है िव लव?’’ द्र ने प्र न िकया।
‘‘हम सब ऐसा चाहते थे , इससे हम सबको बहुत प्रस नता होगी और सै िनक का
उ साहवधन भी होगा।’’ िव लव ने िवनीत वर म कहा।
द्र ने कुछ नहीं कहा, बस मौन हो गया। वो ऐसे बै ठ गया, जै से िकसी गहरे िवचार म
लीन हो। िव लव ने जब द्र को ऐसे खामोश िवचार करते दे खा तो उसने उस व त द्र
को एकांत म ही रहने के िलये छोड़ िदया। िव लव ने भोजन का पात्र उठाया और द्र से
िवदा ली।
िव लव अपने घर जा रहा था। उसे द्र के इस प्रकार मौन हो जाने के वभाव का पता
था। वो जानता था िक अव य ही द्र िकसी गहरी बात का िवचार कर रहे ह। िव लव को
इस बात का भी पता था िक कल वो सै िनक का प्रिश ण दे खने भी अव य आने वाले ह,
य िक द्र ऐसा ही है । वो अपने िदल की बात िकसी से भी नहीं कहता। वो या सोचता
है ? वो या चाहता है ? ये कोई भी नहीं जान सकता पर, िव लव, वो तो द्र को सबसे
बे हतर तरीके से जानता है , वो तो द्र की हर भावनाओं को समझता है , और इसीिलये
वो द्र का सबसे प्रगाढ़ िमत्र था।
िव लव झोपड़ी से जा चु का था। द्र अब भी उसी तरह अपने झोपड़ी म बै ठा था...
अकेले । वो खामोश था। उसकी आँ ख ब द थीं। वो शायद कुछ िवचार ही कर रहा था।
उसकी साँस बहुत शीघ्रता से चल रही थीं।
अचानक ही द्र की आँ ख खु लीं। उसने दे खा िकवाड़ खु ला था और उसके कारण ठं ढी हवा
अ दर आ रही थी। उसे ठ ढ लगी। द्र ने िकवाड़ ब द िकया और आकर अपने िब तर
म ले ट गया। िब तर के नाम पर उसके पास दरी थी, और ठं ढ से बचने के िलये वो एक
ऱजाई ओढ़ता था। वो उसके काका की ऱजाई थी, िजसम वो उनके साथ ही सोता था, पर
आज ऐसा नहीं था। आज वो अकेला था।
‘‘काश! िक आप मे रे साथ होते काका।’’ द्र ने मन ही मन सोचा।
* * *
उस ब ती के बीच म ि थत एक बड़े से मै दान म लगभग छह ह़जार यु वा सै िनक हाथ म
हिथयार िलये खड़े थे । उन सै िनक के ठीक सामने ही िव लव, कौ तु भ और िवनायक भी
खड़े थे , जो उन सै िनक को प्रिश ण दे रहे थे । उ ह ने सै िनक को अलग-अलग समूह म
बाँट िदया था, और सभी समूह को अलग-अलग समय पर प्रिश ण दे रहे थे । िनि चत
ही वो तीन अपने हर एक सै िनक को िसखाने के िलये अ यिधक मे हनत कर रहे ह। वो
तीन अपने अिधपित द्र के िलये एक यश वी से ना के िनमाण की प्रिक् रया म पूरी
त मयता से लगे थे , और आज उ होने 6 ह़जार सै िनक तै यार कर िदये थे ।
कुछ ब चे सै िनक के इस प्रिश ण को बहुत ही आतु रता से दे ख रहे ह। ब ती के कुछ
बु जु ग भी मै दान के िकनारे बै ठकर उन सै िनक के प्रिश ण को दे ख रहे ह।
िवनायक और कौ तु भ ने िव लव से द्र के बारे म पूछा। िव लव ने उ ह िपछली रात म
उसके और द्र के बीच हुई सारी बात बता दी। िवनायक और कौ तु भ मायूस हो गये ।
उ ह लगा था िक द्र सहष ही िनमं तर् ण वीकार ले गा, ले िकन जब उ ह ये पता चला िक
द्र ने आने की बात सु नकर मौन धारण कर िलया, तो उ ह लगा िक वो नहीं आये गा।
पर िव लव को पूरा भरोसा था िक द्र आये गा।
वो सारे िनवािसत ब ती के यु वा, िजनका सै य प्रिश ण आज पूरा हो रहा था, और
िजनको ये आशा थी िक वे अपने अिधपित के साथ िमलकर अपने साथ हुए अ याय का
बदला लगे , उन सभी सै िनक के चे हरे गव से चमक रहे थे । अिधपित के स मु ख अपनी
वीरता प्रदिशत करने का मौका िमलना उन सभी सै िनक के िलये गव की बात थी।
कौ तु भ ने सोचा िक य न अब सभी सै िनक को द्र के न आने की खबर दे दी जाये ।
वो सामने बनी एक ऊँची वे िदका पर चढ़ गया, िजसे िवशे ष प से िकसी मह वपूण
सूचना को बताने के िलये ही प्रयोग िकया जाता था। सभी सै िनक की दृि ट उस पर ही
गड़ गइ। सभी, िव लव को उ सु कता से दे ख रहे थे ।
‘‘आप सभी सै िनक का प्रिश ण आज पूण हो रहा है । आप सब के किठन मे हनत और
सं घष के फल व प आज ये शु भ िदन आया है िक िक तु मु झे आपको ये सूिचत करने म
बहुत ही खे द हो रहा है िक...।’’ कौ तु भ अपनी बात भी पूरी नहीं कर पाया िक उसने दे खा
सभी सै िनक की आँ ख उसकी बाइं ओर ि थत प्रवे श ार की ओर घूम गयी थीं, और िफर
‘‘अिधपित की जय हो!’’ के वर से पूरा मै दान गूँज गया।
वो आ गया था। उनका अिधपित आ गया था। द्र आ गया था। कौ तु भ उस वे िदका से
नीचे उतरा और द्र के पास पहुँच गया, जहाँ िव लव और िवनायक पहले ही द्र के
पास पहुँच गये थे ।
‘‘हम लगा था िक आप नहीं आ रहे ह अिधपित!’’ िवनायक ने द्र से कहा।
‘‘ या मु झे नहीं आना चािहए था?’’ द्र ने हँ सते हुए कहा। आज द्र शा त िदख रहा
था। उसके केश हमे शा की भाँ ित चोटी की तरह बँ धे हुए थे , माथे पर च दन लगा हुआ
था। उसने हाथ म अपना िप्रय श त्र फरसा िलया था। भले ही द्र का मु ख शा त
लग रहा था, िक तु उसकी आँ ख सदै व की भाँ ित र त-रं िजत थीं। वो आँ ख, जो िकसी को
भी भयभीत कर द।
‘‘मे रा वो मतलब नहीं था अिधपित।’’ िवनायक ने सकपकाते हुए कहा।
द्र ह के से मु कुरा िदया। िवनायक को इस भाँ ित च का दे खकर वो खु द को िनयं ित्रत
नहीं कर पाया। िव लव और कौ तु भ ने भी द्र का साथ िदया, य िक उ ह भी द्र की
िठठोली का अं दा़जा हो गया था। सबको इस भाँ ित हँ सता दे खकर िवनायक भी समझ
गया िक उसके साथ द्र िठठोली कर रहा था। वो लजा गया।
‘‘अिधपित! सै िनक आपको सु नने के िलये आतु र ह; कृपया इ ह अपना मागदशन द।’’
िव लव ने द्र का यान आकृ ट कराया।
‘‘अव य! िक तु उससे पहले थोड़ा इनका प्रदशन तो दे ख िलया जाये ।’’ द्र ने उ र
िदया।
‘‘जी अिधपित।’’ िवनायक ने कहा और वे िदका पर चढ़ गया। सभी सै िनक की आँ ख अब
भी द्र के ऊपर गड़ी थीं। फरसा धारण िकये हुए उनका अिधपित, कोई सामा य मनु य
नहीं था। वो जो एक वार म भालू का िसर काट दे , वो जो एक वार म तीन-तीन सै िनक का
िसर भूिम पर िगरा दे , वो जो बीस सै िनक को अकेले ही मार डाले , वो कोई साधारण
मनु य नहीं अिपतु कोई दे वता होगा, ऐसा ब ती के सभी लोग मानते थे , और वो सै िनक
भी ब ती के वासी ही थे , इसिलये उनकी सोच भी कोई िभ न नहीं थी। वो सभी अपने
अिधपित पी दे वता को कातर दृि ट से दे ख रहे थे । द्र को दे खने भर से ही वो सब
उ साह से लबरे ज थे । तभी उस आवा़ज ने सभी सै िनक का यान अपनी ओर आकृ ट
िकया।
‘‘आप सभी को बताते हुए मु झे अपार हष हो रहा है िक हमारे बीच अिधपित द्र आ
चु के ह और वो अब आप सबका अ यास दे खना चाहते ह, आशा है आप सब तै यार ह!’’
िवनायक ने वे िदका पर से ही कहा।
सभी सै िनक िवनायक की उद्घोषणा सु नते ही अपने -अपने अ यास थान पर पहुँच गये ।
द्र अपने तीन अ य िमत्र के साथ अ यास कर रहे सै िनक के हर समूह के पास जाकर
दे ख रहा था। सै िनक के अद्भुत कौशल से द्र बहुत ही प्रस न था। उसने धनु ष बाण
चलाते हुए एक सै िनक को दे खा। उसके सटीक िनशाने से द्र हतप्रभ था। उस सै िनक का
प्र ये क िनशाना एकदम सटीक लग रहा था।
‘‘सै िनक का प्रदशन तो बहुत ही शानदार एवं उ साहजनक है , िनि चत प से ये पूण
प्रिशि त हो चु के ह, और तु म तीन भी बधाई के पात्र हो िक तु मने इ ह इतना अद्भुत
प्रिश ण िदया।’’ द्र ने कहा।
िव लव, कौ तु भ और िवनायक तीन के चहरे प्रस न थे । अिधपित के मु ख से अपने िलये
तारीफ सु नकर वो तीन खु श हो गये थे ।
‘‘अिधप...।’’ कौ तु भ अपनी बात भी पूरी नहीं कर पाया।
‘‘तु म तीन के िलये म िसफ द्र हँ ;ू मने तु म लोग से िकतनी बार कहा है , जब भी हम
लोग आपस म बात कर तो इतना िश टाचार िदखने की कोई आव यकता नहीं।’’ द्र ने
बनावटी गु से से कहा।
‘‘जी द्र!’’ कौ तु भ बोल पड़ा।
तभी अचानक द्र चलते -चलते क गया। उसकी ऩजर एक सै िनक पर पड़ी, जो अपनी
तलवार के साथ अकेले यु कर रहा था। उसके तलवार के प्रहार और घु माव को दे खकर
द्र काफी प्रभािवत हुआ, पर सबसे यादा िजस बात ने द्र को उस सै िनक से
प्रभािवत िकया, वो थी उसकी गित। तलवार से वार करते समय और र ा मक प से
प्रयोग करते समय भी उस सै िनक की गित असामा य थी। द्र, एकटक उस सै िनक को
िनहार रहा था। उसके साथ उसके िमत्र भी उस सै िनक को ही दे ख रहे थे ।
‘‘म उस सै िनक से िमलना चाहता हँ ।ू ’’ द्र ने कहा।
कौ तु भ उसी पल उस सै िनक की ओर पहुँचा और उसे द्र के पास ले आया। उस सै िनक
ने द्र को प्रणाम िकया और सामने खड़ा हो गया।
द्र उस सै िनक को अपने पास दे खकर एक बार िफर उसे यान से दे खने लगा। वो सै िनक
कद म तो यादा ऊँचा नहीं था, िक तु उसका शरीर काफी ट-पु ट लग रहा था।
‘‘तु हारा या नाम है ?’’ द्र ने उस सै िनक से प्र न िकया।
‘प्रताप।’ उस सै िनक ने अपनी आँ ख नीचे िकये हुए ही उ र िदया।
‘‘तु म एक अद्भुत तलवारबा़ज हो प्रताप; तु हारी गित तु हारी सबसे बड़ी िवशे षता है ,
तु म एक यो य सै िनक हो प्रताप।’’ द्र ने हिषत होकर कहा।
‘‘ध यवाद, अिधपित! आपके मु ख से ऐसे श द सु नकर मे रा जीवन ध य हो गया।’’
प्रताप ने ँ धे गले से उ र िदया। उसकी आँ ख से आँ स ू िगर रहे थे । िनि चत ही वो
खु शी के आँ स ू थे । जब द्र ने उसे रोता हुआ दे खा, तो आगे बढ़कर उसने प्रताप को गले
से लगा िलया। प्रताप, द्र के आिलं गन से पहले तो थोड़ा सकुचाया, िक तु उसके
प चात वो अपने अिधपित से िलपट गया। सभी सै िनक ने ये दृ य दे खा, और अपने
अिधपित को इस प्रकार एक सै िनक को आिलं गन करते हुए दे खकर उन सै िनक की दृि ट
म अिधपित के प्रित स मान और भी बढ़ गया। उन सबने घनघोर श द म गजना की
‘‘अिधपित द्र की जय हो! ''
द्र अब उस ऊँची वे िदका पर चढ़ गया। िव लव, िवनायक और कौ तु भ भी द्र के
पीछे खड़े थे । सभी सै िनक अब पं ि तय म खड़े हो चु के थे , और अिधपित द्र की बात
सु नने की अधीरता से प्रती ा कर रहे थे ।
‘‘आप सभी सै िनक को आपका प्रिश ण पूण करने की हािदक बधाई। िनि चत प से
अब आप सब अ त्र को चलाने म प्रवीण हो चु के ह। मु झे आप सबका अ यास दे खकर
हािदक प्रस नता हुई।’’ द्र ने ते़ ज आवा़ज म सै िनक का उ साहवधन िकया।
‘‘आप सब के साथ ही म ध यवाद दे ना चाहँ ग ू ा िव लव, िवनायक और कौ तु भ को भी,
िज ह ने आप सबको इतने कम समय म इतना द और प्रवीण बनाने हे तु पिरश्रम
िकया।’’ द्र ने िफर से कहा।
एक बार िफर से अिधपित की जयकार हुई।
‘‘पर आप सब सै िनक य बनना चाहते ह? आप सै िनक बनकर या करगे ?’’ द्र ने
अनायास ही प्र न िकया।
पूरे मै दान म शाि त छा गयी। सब मौन हो गये । द्र के िमत्र भी मौन थे ; उ ह भी नहीं
सूझ रहा था िक कैसे प्रितिक् रया द।
द्र ने एक बार िफर अपना प्र न दोहराया, और एक सरसरी दृि ट सामने खड़े सै िनक
की पं ि त पर डाली। एक सै िनक अपना हाथ्◌ा उठाये खड़ा था।
‘‘तो या तु म उ र दोगे सै िनक?’’ द्र ने पूछा।
सबकी दृि ट हाथ उठाये हुए उस सै िनक की ओर मु ड़ गयी। वो प्रताप था। वो धीरे -धीरे
कदम से आगे आया और िफर द्र के सामने खड़ा होकर बोला,
‘‘हम सब सै िनक बनना चाहते ह, िजससे हम सब अपना बदला ले सक। हम सब सै िनक
बनकर आपके ने तृ व म उन सभी अ यायी लोग से अपने अ याय का प्रितशोध लगे । ''
‘‘इसम तु हारे और हम सबके प्राण भी जा सकते ह।’’ द्र ने कहा।
‘‘जी अिधपित! हो सकता है िक इस काय म हमारे प्राण भी चले जाय, िक तु अपने सभी
लोग की र ा एवं प्रितशोध के िलये हम ये बिलदान दे ने को तै यार ह। ''
प्रताप की आवा़ज म िव वास था। उसने अपनी बात िनभीक होकर कही थी। हर कोई
उसकी बात सु नकर गिवत था। प्रताप ने दृढ़ता से द्र के सम अपनी बात कह दी थी।
द्र भी प्रताप के श द सु नकर मु कुरा रहा था।
‘‘ या आप सबका भी प्रताप की बात को समथन है ?’’ द्र ने पूछा।
‘‘समथन है ! समथन है !’’ सारे सै िनक बोल पड़े । उन सै िनक के जोश भरे उ र ने उस पूरे
े तर् म अपनी गूँज दज कराई।
‘‘तो िफर म आप सब को बताने म हष की अनु भिू त कर रहा हँ ू िक अब हम अपना प्रथम
यु लड़ने को तै यार ह, और हमारा प्रितशोध होगा राजनगर के राजा दे वराज से ।’’ द्र
ने कहा।
कौ तु भ और िवनायक द्र की बात सु नकर आ चय म पड़ गये थे , िक तु िव लव
सामा य खड़ा था, य िक कल रात म द्र को िवचार करते हुए दे खकर उसे अं देशा हो
गया था द्र कुछ बड़ा करने जा रहा था। िव लव, द्र को सबसे बे हतर समझता था।
‘‘अिधपित की जय हो!’’ सै िनक बोले ।
‘‘आप सब यु के िलये तै यार रह, हम शीघ्र ही कू च करगे ।’’ द्र ने कहा और वे िदका से
उतरने लगा। उसके पीछे -पीछे िव लव, िवनायक और कौ तु भ भी वे िदका से उतरे । सारे
सै िनक अिधपित की जय-जयकार कर रहे थे ।
िक तु द्र, िबना कुछ सु ने शीघ्रता से जा रहा था।
* * *
वो जं गल के बीच से बहने वाली नदी का िकनारा था। ये नदी इन िनवािसत ब ती वाल
के जीवन की आधारिशला थी। उन सब लोग की, जं गल के तमाम पशु -पि य की;
सबकी यास बु झती थी वो नदी।
द्र को उस नदी के िकनारे की शाि त बहुत भाती थी। द्र, अिधकां शत: नदी के िकनारे
पर आकर घं टो बै ठा रहता था। उस जगह पर द्र को शाि त का अनु भव होता था।
आज भी द्र, नदी के िकनारे बै ठा था। उस व त वहाँ कोई नहीं था। वै से भी वो िदन का
आिखरी पहर था। लोग अपने -अपने घर म पहुँच चु के थे । उस ठं ढ म कौन उस नदी के
िकनारे जाता?
द्र के िलये दे वराज से यु के िलये िनणय ले ना कोई आसान नहीं था। िपछली पूरी रात
उसने इस िवषय म काफी गं भीरता से िवचार िकया था, और िफर आज सै िनक के अ यास
को दे खकर द्र को अपना िनणय ले ने म आसानी हुई। द्र को सै िनक पर भरोसा हो
गया था। उसने िवचार िकया िक वो सब अब तै यार थे ।
द्र अपने िवचार म लीन था। अचानक उसने िकसी के कदम की आहट सु नी। द्र ने
पीछे मु ड़कर दे खा वो िव लव था। िव लव ने ठं ढ से बचने के िलये दुशाला ओढ़ रखी थी।
उसको अ यिधक ठं ढ महसूस हो रही थी। उसे इस बात की है रानी हुई, की कैसे द्र
केवल अं गव त्र पहने इतनी ठं ढी जगह पर बै ठा था, और उसे ठं ढ का आभास ही नहीं हो
रहा था?
‘‘ द्र! या आपको ठं ढ नहीं लग रही? मु झे तो अ यिधक ठ ड लग रही है ।’’ िव लव ने
द्र से पूछा। वो अपने दोन हथे िलय को आपस म रगड़ रहा था।
‘‘िव लव! इतनी भी ठं ढ नहीं है , िजतना की तु म दशा रहे हो।’’ द्र ने उ र िदया।
‘‘म तो आपको बु लाने आया था द्र, चिलये घर चल।’’ िव लव ने अपने हाथ को एक
बार िफरआपस म रगड़ते हुए कहा।
‘‘िव लव, कुछ दे र बै ठो यहाँ , और महसूस करो यहाँ की शाि त को। दे खो तो, दय को
िकतना आनं द िमलता है ।’’ द्र ने िव लव का हाथ खींचकर उसे अपने बगल बै ठा िलया।
िव लव, द्र के बगल ही बै ठ गया।
कुछ दे र तक दोन शा त ही रहे । द्र अपने िवचार म ही मगन था, और िव लव कुछ
ठं ढ की वजह से परे शान था, और कुछ आज द्र ारा िलये गये िनणय की वजह से ।
द्र, त लीन हो पानी म दृि ट गड़ाये हुए था। उन दोन के म य की शाि त को भं ग की
िव लव ने ।
‘‘ या आपने यु का िनणय कल रात म ही ले िलया था?’’ िव लव ने द्र से प्र न
िकया।
द्र ने एक दृि ट िव लव पर डाली, और िफर मु कुराने लगा। िव लव है रानी से द्र को
दे ख रहा था। िफर द्र बोला,
‘‘म काफी दे र से तु हारे इस प्र न की प्रती ा कर रहा था िव लव। ''
िव लव कुछ नहीं बोला, वो अब भी द्र को दे ख रहा था। वो अब भी द्र से अपने
प्र न के उ र की प्रती ा कर रहा था।
‘‘ये स य है िक म यु के िवषय म कल रात को सोच रहा था िक तु .....।’’ द्र कहते -
कहते क गया।
‘‘िक तु या द्र?’’ िव लव ने इस बार ज़ोर दे कर प्र न िकया।
‘‘िक तु मने िनणय आज सु बह सै िनक के यु प्रदशन को दे खने के प चात िकया था।
उन सै िनक की वीरता और प्रितब ता दे खकर मु झे अपना िनणय ले ने म सरलता हुई।’’
द्र ने उ र िदया।
‘‘ द्र! या हम यु के िलये तै यार ह?’’ िव लव के प्र न म इस बार सं शय भी
सि मिलत था। उसके भाव भी सशं िकत थे । वो काँप रहा था, और इसकी वजह शायद उसे
लग रही ठं ढ थी, य िक िकसी भी सामा य मनु य के िलये वो अ यिधक प्रितकू ल
ि थित थी।
द्र शा त ही रहा। उसने कोई उ र नहीं िदया। एक बार िफर उन दोन के म य शाि त
छा गयी थी। िव लव ने द्र को यान से दे खा, वो कुछ िवचार कर रहा था। िफर िव लव
ने िवचार िकया िक अब उ ह उस जगह से जाना चािहये ।
‘‘ द्र! अब हम घर चलना चािहये ।'' िव लव बोला।
‘‘िव लव! अब हम िनि चत ही यु के िलये तै यार ह; सै िनक का प्रिश ण एकदम
उ म हुआ है , िनि चत ही हम यु जीतगे ।’’ द्र ने कहा।
‘‘पर हम सं या बल म दे वराज के सै िनक से काफी कम ह द्र, और वै से भी हमारे
सै िनक को यु का कोई अनु भव भी नहीं है ; या हम थोड़ा और प्रती ा नहीं कर
सकते ?’’ िव लव ने द्र के सम एक बार िफर प्र न िकया।
‘‘िव लव, हम कोई भी यु सं याबल से नहीं जीतते , अिपतु जीतते ह मजबूत इराद
और दृढ़ इ छाशि त से ।’’ द्र बोला।
‘‘और रही बात िक हमारे सै िनक को कोई अनु भव नहीं है , तो म तु ह बताना चाहँ ग
ू ा
िमत्र िक सै िनक को यु म िवजय प्रा त करने हे तु अनु भव नहीं, वीरता की
आव यकता होती है , और अगर बात प्रती ा की है , तो हमने बहुत समय तक प्रती ा
कर ली िव लव; अब यही उिचत समय है हम अपना कदम बढ़ाने के िलये ।’’ द्र ने
अपनी बात पूरी की।
‘‘पर म तो ये कह रहा...।’’ िव लव अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया।
‘‘अब हम चलना चािहये िव लव, वरना तु हारे प्र न का उ र दे ते-दे ते पूरी रात यहीं
यतीत हो जाये गी।’’ द्र ने कहा।
िव लव चु प हो गया। वो दोन चल िदये घर की ओर। द्र िवचार रहा था िक अब उसके
िलये परी ा की घड़ी आ गयी है । सभी ब ती वाल को उस पर भरोसा था; और होता भी
य न? आिखरकार वो उनका अिधपित है , उन सबका ने तृ वकता... सारे सै िनक सोचते ह
िक वो उनको उनका प्रितशोध िदलाये गा। वो अपनी जान दे ने के िलये भी तै यार ह।
‘‘ या प्रितशोध की आग म इतनी ताकत होती है िक कोई अपने प्राण भी योछावर
कर दे ?’’ द्र ने मन ही मन िवचार िकया।
िव लव के मन म अलग ही िवचार की आँ धी चल रही थी। उसकी सोच द्र से काफी
यादा िभ न थी।
‘‘ या सच म हमारे सै िनक तै यार ह? या ये यु का सही समय है ? या हम थोड़ा और
प्रती ा नहीं कर सकते थे ?’’ िव लव के िदमाग म ये सवाल उमड़ रहे थे ।
िव लव को लगता था िक द्र, यु के िलये थोड़ा शीघ्रता कर रहा है । वो भले ही द्र
को सबसे बे हतर तरीके से समझता था, पर द्र का ये िनणय उसकी समझ से भी परे था।
द्र को पता था िक अब सब कुछ पहले जै सा ही नहीं रहने वाला है । अगर वो यु
जीते गा, तो उसके ब ती के लोग का जीवन सु रि त एवं शाि त से बीते गा; और अगर
वो यु हारता है , तो उसके ब ती वािसय का जीवन रहे गा ही नहीं। इस िवचार ने द्र
को िहला िदया।
‘‘अभी मु झे बहुत सा काय करना है ।’’ द्र मन ही मन बड़बड़ाया।
4. राजनगर का यु
जै सा िक द्र िनणय ले चु का था, इसिलये यु की तै यारी उन िनवािसत की ब ती म
ज़ोर से चल रही थी। भले ही वो ब ती िकसी राजा का रा य नहीं थी, िक तु सभी ब ती
वाले अपनी ओर से भरसक कोिशश कर रहे थे िक वो यु के िलये अपनी ओर से जो मदद
कर सकते ह वो अव य कर। ब ती के िनवासी अपने अिधपित के िलये अपना सब कुछ
दे ने को तै यार थे ।
द्र ने महसूस िकया था िक यु के िलये जो व तु उन सब के िलये सबसे मह वपूण थी,
वो थी खा सामग्री, य िक सै िनक खाली पे ट तो यु कर नहीं सकते । वो यु के
मै दान म अपनी वीरता तभी प्रदिशत कर पायगे , जब उनका पे ट भरा हुआ हो। द्र ने
पूरे ब ती म अपना सं देश पहुँचाया, की िजस भी यि त से िजतना हो सकेगा उतना
अनाज वो यु के िलये से ना को दान करे ; और जब दान म िमले अ न को द्र के स मु ख
लाया गया तो वो आ चयचिकत रह गया, य िक जो अ न का ढे र उसके सामने लगा
था, वो सै िनक के िलये पया त ही नहीं, अिपतु उससे भी कहीं यादा था। ब ती के हर
एक िनवासी ने अपना यादा से यादा अ न दान कर िदया था।
द्र ने राहत की साँस ली, य िक खा सामग्री की दुिवधा दरू हो गयी थी। अगली
बात जो सबसे मह वपूण थी, वो थी वै की आव यकता। अगर से ना के साथ अ छा
वै हो, तो घायल सै िनक का उपचार हो सकता है , कई सै िनक के प्राण बचाये जा
सकते ह। उनकी ब ती के सबसे अ छे और अनु भवी वै श्रीमान गगाचाय जी को से ना
के साथ चलने का अनु रोध िकया गया। उनकी अनु पि थित म ब ती वाल के उपचार की
िज़ मे दारी उनके पु त्र अनु ज पर स पी गयी।
द्र अब खु श था, य िक धीरे -धीरे ही सही, पर सभी आव यक काय समय पर होते जा
रहे थे । िव लव, िवनायक और कौ तु भ भी िदन-रात यु की तै यािरय म लगे थे । िक तु
द्र उन सब से भी यादा सजग था; वो िकसी भी प्रकार की चूक नहीं चाहता था,
इसीिलये वो यि तगत प से हर एक बात का यान रख रहा था; चाहे वो घोड़ का
इं तजाम हो या िफर अिधक से अिधक सं या म हिथयार की यव था करनी हो। सारे
काय की िनगरानी वो वयं कर रहा था। सारी तै यािरयाँ पूरी हो चु की थीं। बस अब से ना
का कू च करना ही बाकी था।
* * *
और आिखरकार वो घड़ी आ गयी। पूरी से ना यु के िलये कू च करने को तै यार थी। ब ती
के सारे िनवासी उ ह जीत का आशीवाद दे ने आए थे । सभी लोग ब ती के बाहरी छोर पर
खड़े थे , और प्रती ा कर रहे थे अपने प्रदशक की, अपने ने तृ वकता की, अपने
अिधपित की, अपने नायक की; द्र की।
और िफर उस उद्घोष ने वातावरण म अपनी उपि थित दज करायी।
‘‘अिधपित द्र की जय!''
द्र वहाँ पहुँच चु का था। उसके साथ िव लव और कौ तु भ भी थे । िवनायक पहले ही
सै िनक के पास पहुँच गया था। द्र के वहाँ पहुँचते ही उसके स मान म लगने वाले
जयकारे की विन अ य सभी विनय को गौण करने लगी। द्र के सै िनक उ साह से भरे
थे , इसिलये वे बार-बार अपने अिधपित के नाम का उद्घोष कर रहे थे । द्र के सै िनक के
वो जयकारे तभी ब द हुए, जब द्र ने अपना दायाँ हाथ उठाकर शा त रहने का आदे श
िदया।
द्र, सबसे पहले ब ती वाल के पास पहुँचा। सभी द्र की ओर कातर दृि ट से दे ख रहे
थे ।
‘‘हम सब अपने दे श से िनवािसत लोग ह, हमारी कोई पहचान नहीं है ; और इसी वजह से
हम सब उस दे वराज के अ याचार को सहने के िलये मजबूर ह; िक तु मे रा वचन है आप
सब ब ती के िनवािसय से , म आपको आपकी पहचान दँ ग ू ा, म उस अ याचारी दे वराज
और उसके जै से अ य सभी से अपका प्रितशोध लूँगा... ई वर सा ी है , म ये िनि चत ही
क ँ गा।’’ द्र ने उ ह सं बोिधत करते हुए कहा।
द्र की बात सु नकर एक बार िफर उसके जयकारे गूँज गये , और इस बार उन जयकार को
उ चिरत करने वाली विन पहले की अपे ा दोगु नी ते़ ज थी। द्र के श द ने ब ती
वाल के मन को भी झकझोर िदया था।
‘‘आप सब यहाँ शाि त से रिहये , हम शीघ्र ही आपके िलये शु भ सं देश ले कर आएँ गे।’’
द्र ने िफर कहा।
सभी ब ती वाल ने उसे आशीष िदया। उन सब ने द्र के से ना के िलये ई वर से
प्राथना की, और िफर द्र ने अपने घोड़े को एड़ लगाई। पूरी से ना ने उसका अनु सरण
िकया। द्र अपने सै िनक का ने तृ व वयं कर रहा था। उसके साथ उसके िमत्र और
लगभग पचास और घु ड़सवार थे । उसके बाद पै दल चलने वाले सै िनक थे । बीच म खा -
रसद को ढोने वाली टु कड़ी थी, और उनके पीछे था वै गगाचाय का समूह। उसके बाद
िफर पै दल सै िनक; और सबसे आिखर म थे लगभग पाँच सौ घु ड़सवार। इसी बनावट के
साथ द्र की से ना राजनगर की ओर कू च कर रही थी।
द्र का सफर यादा लं बा नहीं था। राजनगर उनसे केवल दस कोस की दरू ी पर ही था।
द्र ने िवनायक से कहा िक वो से ना को कह दे िक उ ह शीघ्रता से चलने की कोई
आव यकता नहीं है , हम आराम से चलगे । िवनायक, द्र के इस आदे श का मतलब नहीं
समझ पाया था। आिखर आराम से चलने का या मतलब है ? पर वो कुछ नहीं बोला।
उसने प्रताप को बु लाकर पूरी से ना को अिधपित का आदे श बताने को कहा।
सै िनक भोर म ही चले थे , और वे पूरा िदन चलते रहे । आिखरकार राित्र के प्रथम प्रहार
म वो अपने गं त य पर पहुँच चु के थे । सभी सै िनक िदन भर के थके हुए थे । द्र के
आदे शानु सार सभी सै िनक ने भोजन के उपरांत आराम करने का िनणय िलया।
द्र अपने िशिवर म बै ठा था। वहाँ िव लव, कौ तु भ, िवनायक और प्रताप भी बै ठे थे । वे
सभी, द्र क उ सु कता से दे ख रहे थे । वो प्रती ा कर रहे थे , िक कब द्र यु के िलये
अपनी योजना बतायगे । द्र, उन सबसे बे खबर अपनी ही सोच म डूबा था। उसकी आँ ख
ब द थीं। उसको दे खकर उसके यान म लीन होने का पता चल रहा था।
‘‘अिधपित! अगर आप थक गये ह तो अभी आराम कर लीिजये , हम यु की योजना
सु बह बना लगे ।’’ िवनायक ने कहा।
द्र ने उसकी आवा़ज सु नकर आँ ख खोल दी। उसने सबको दे खा, और िफर कहा,
‘‘हम चक् राकार यूह से यु करगे । ''
वहाँ उपि थत सभी लोग की आँ ख खु ली की खु ली रह गइं । चक् राकार यूह से यु करना
अ यिधक किठन एवं जोिखम भरा होता था। चक् राकार यूह की किठनाई के बारे म वयं
द्र ने ही उन सबको बताया था। उन सबको लगा िक शायद उ होने कुछ गलत सु न
िलया है ।
‘‘अिधपित! ये आप या कह रहे ह? चक् राकार यूह तो अ यिधक जोिखम भरा होता है ,
और इसमे थोड़े से चूक से सारी से ना का िवनाश हो सकता है ।’’ कौ तु भ ने िव मय के
भाव से द्र को कहा।
‘‘यही तो म कहना चाहता हँ ;ू य िक चक् राकार यूह अ यं त ही किठन एवं जोिखम भरा
होता है , इसीिलये कोई भी इस यूह का प्रयोग करता नहीं; इस कारण दे वराज सपने भी
नहीं सोचे गा िक हम चक् राकार यूह से यु से करगे ... और इस प्रकार हम उसको
आ चय म डाल दगे ।’’ द्र ने कहा।
‘‘पर तु अगर हमने दे वराज की से ना पर इस भाँ ित यु कर िदया तो इसके कारण हमारी
सारी से ना उनकी से ना के ारा चार ओर िघर जाएगी, और ये हमारे िहत म िबलकुल भी
नहीं होगा।’’ िवनायक ने कहा।
‘‘पर तु ह ये िकसने कहा िक हमारी पूरी से ना चक् राकार यूह से िवप ी से ना के खे मे म
घु से गी?’’ द्र ने प्र न िकया।
‘‘आप कहना या चाहते ह अिधपित?’’ प्रताप ने हाथ जोड़कर प्र न िकया। वो कुछ
भी बोलना नहीं चाहता था, िक तु द्र की इस िव मयकारी और रोमांचक योजना ने उसे
प्र न करने हे तु िववश कर िदया।
िव लव ने प्रताप को इस भाँ ित प्र न पूछते दे खा तो वो मु कुरा िदया। वो प्रताप के
अित उ सािहत होने का कारण समझ सकता था; य िक वयं वो भी उ सु क था द्र की
योजना जानने को। िसफ िव लव ही नहीं, वहाँ उपि थत सभी लोग द्र के मु ख की ओर
अधीरता से दे ख रहे थे । वो प्रती ा कर रहे थे उसके मु ख से आगे की योजना सु नने के
िलये ।
‘‘म ये कहना चाहता हँ ू प्रताप, िक हमारी आधी से ना ही चक् राकार यूह से यु करे गी,
और बाकी बची से ना दोन ओर से शत् ओं पर आक् रमण करे गी।’’ द्र ने मु कुराते हुए
कहा।
‘‘इससे शत् ओं क सँ भलने का मौका ही नहीं िमले गा, य िक अ दर हमारी चक् राकार
यूह से यु कर रही से ना उनका खा मा करे गी, और बाहर से हमारे अ य सै िनक... ये तो
उन पर दोतरफा वार होगा।’’ िव लव बोल पड़ा।
िव लव की बात सु नकर द्र ने सहमित म िसर िहलाया।
‘‘ये तो अद्भुत योजना है अिधपित।’’ कौ तु भ ने कहा।
सभी लोग द्र की इस योजना से अ यिधक प्रभािवत हुए। उनको आशा भी नहीं थी
िक द्र ने चक् राकार यूह को इतने अद्भुत तरीके से पिरवितत कर िदया था। िन चय ही
ऐसी यु की कला तो दु मन ने अपने जीवन म कभी नहीं सोची होगी। अपने अिधपित
की उस योजना से वे सारे लोग सहमत थे ।
‘‘कौ तु भ! तु म और िवनायक मे रे साथ चक् राकार यूह म रहोगे , और िवपि य की से ना
के भीतर घु सने का प्रय न करोगे ।’’ द्र ने आदे श िदया।
‘‘जी अिधपित।’’ कौ तु भ और िवनायक दोन ने एक साथ उ र िदया।
‘‘और िव लव! तु म बायीं ओर से से ना की टु कड़ी का ने तृ व करोगे ; तु ह बाहर की ओर से
उन पर आक् रमण करना है ।’’ द्र ने कहा।
‘‘िनि चत ही अिधपित।’’ िव लव ने जवाब िदया।
‘‘प्रताप! दायीं ओर से से ना की टु कड़ी का ने तृ व तु म करोगे ।’’ द्र ने िफर से कहा।
‘‘जी अिधपित।’’ प्रताप ने यथोिचत स मान िदखाते हुए प्र यु र िदया।
‘‘और सबसे मह वपूण बात ये है िक तु म दोन तब आक् रमण करोगे जब हम शत् ओं के
से ना के भीतर घु स जायगे ।’’ द्र ने िव लव और प्रताप क िनदश िदया।
‘‘अब रात काफी हो गयी है , और आप सब भी थक गये ह गे ; जाइये और आराम कीिजये ,
कल हमारे िलये एक बड़ा िदन है ।’’ द्र ने उन सबको आदे श िदया।
सभी लोग अपने िशिवर म चले गये थे । द्र अपने िशिवर म अकेला था। अचानक से
उसे वो समय याद आया, जब उसने चक् राकार यूह के िवषय म प्रथम बार अपने काका
से जाना था।
‘‘पु त्र! ये अगर िकसी भी यु म सबसे कारक यूह का प्रयोग करना हो तभी चक् राकार
यूह का प्रयोग िकया जाता है ; यु की कला म सबसे मह वपूण यूह, िक तु हर कोई
इस यूह का प्रयोग करने से डरता है ।’’ काका ने कहा था।
‘‘काका! अगर ये यूह इतनी कारक िस होती है , तो िफर य कोई भी इस यूह का
प्रयोग नहीं करता?’’ द्र ने काका से पूछा।
‘‘ य िक पु त्र, ये यूह बहुत ही किठन एवं जोिखम भरी होती है ; अगर ज़रा सी चूक हो
जाये तो स पूण से ना का नाश हो जाता है ।’’ काका ने द्र क समझाया था।
‘‘पर अगर तु म इस चक् राकार यूह को ढं ग से समझ जाओ और वयं से उस यूह को
थोड़ा पिरवितत कर दो, तो अव य ही ये यूह तु ह यु म िवजय िदलाएगी।’’ काका ने
कहना जारी रखा।
द्र की आँ ख खु ल गयीं वो अपनी याद की दुिनया से बाहर आ चु का था।
‘‘काका! म अव य ही चक् राकार यूह से यु जीतूँगा; मने यूह क पिरवितत कर िदया...
आप दे िखये गा, ये योजना अव य फलीभूत होगी।’’ द्र ने कहा।
द्र उठा और फरसे को अपने पास ले आया। उसने उस फरसे को कस कर पकड़ िलया,
और अपने काका को याद िकया। कल का िदन उसके िलये बहुत ही मह वपूण था। कल
वो अपना प्रथम यु लड़ने जा रहा था। उसे काका की कमी बहुत ही यादा खल रही
थी। उसकी आँ ख से आँ स ू की एक बूँद नीचे िगर पड़ी।
* * *
राजनगर। भारतवष के म य म ि थत एक रा य। राजनगर, चार ओर से अ य कई बड़े
रा य से िघरा हुआ था। इस रा य म चार मु य निदयाँ होकर गु जरती थीं। अ य कई
मह वपूण सर-सिरताओं के उद्गम और िमलन की कथाओं से फू टती ह़जार धाराएँ
राजनगर के िनवािसय के जीवन को आ लािवत ही नहीं करतीं, वरन् पिरतृ त भी करती
थीं।
राजनगर के मु य नगर की बात कर तो वहाँ लोग का जीवन सादा था। उनके नगर म
सड़क आिद का िनमाण अ छे ढं ग से नहीं िकया गया था। प्रजा के मूलभूत अिधकार
का भी हनन िकया जाता था; और ये सब हो रहा था, उस रा य के अयो य शासक दे वराज
के शासन काल म।
प्रजा राजा से सं तु ट नहीं थी, अिपतु वो रा य के यु वा प्रधानमं तर् ी किन ठ से यादा
लगाव रखती थी। किन ठ ने अपने बल-बूते उस रा य म याय और धम थािपत कर
रखा था। वो प्रजा के सु ख-दुःख के भागीदार थे ।
* * *
दे वराज का दरबार लगा हुआ है । रा य की सीमा पर ि थत गु तचर से जो समाचार
प्रा त हुआ है वो कोई बहुत शु भ नहीं है । गु तचर ने खबर दी है िक लगभग छह ह़जार
सै िनक के साथ िनवािसत ब ती के लोग यु करने के िलये रा य की सीमा पर पहुँच चु के
ह। वै से भी राजनगर कोई बहुत बड़ा रा य तो था नहीं, इसिलये यु जै सी िकसी भी
ि थित से राजा क िचं ता हो जाती थी।
महराज दे वराज अपने िसं हासन पर िवराजमान थे । उनके प्रधानमं तर् ी किन ठ और
से नापित कृपाल भी अपने आसन पर बै ठे थे । रा य के अ य मह वपूण लोग भी बै ठक म
शािमल थे । राजा दे वराज कुछ िचं ितत ऩजर आ रहे थे ।
‘‘प्रधानमं तर् ी किन ठ! आपका इस यु के िवषय म या िवचार है ?’’ दे वराज ने प्र न
िकया।
‘‘महाराज! वै से तो यु कभी भी आिखरी िवक प नहीं होता, इसिलये मे रा मानना है िक
हम समझौते के िलये बात करनी चािहये ।’’ किन ठ ने शालीनता से उ र िदया।
‘‘समझौता? या आपने कहा िक हम उन िनवािसत लोग से समझौता कर
प्रधानमं तर् ी?’’ से नापित कृपाल ने मुँ ह िसकोड़ते हुए प्रधानमं तर् ी किन ठ से प्र न
िकया।
‘‘जी हाँ से नापित, मने समझौते का सु झाव िदया।’’ प्रधानमं तर् ी किन ठ ने उ र िदया।
उनके भाव म भी बे खी थी।
‘‘महाराज! इस िवषय म तो मे रा यही मानना है िक उन िनवािसत के मु क़ाबले हमारे पास
सै िनक की सं या भी अिधक है ; हम उन नीच िनवािसत को मसल कर रख दगे ,''से नापित
कृपाल ने राजा की ओर दे खकर कहा।
‘‘पर तु समझौते म या बु राई है से नापित?’’ महाराज दे वराज ने इस बार से नापित
कृपाल से प्र न िकया।
‘‘महाराज! या ये आप जै से राजा वीर ित्रय राजा दे वराज को शोभा दे गा िक आप
दु मन से समझौते की भीख माँ ग,और वो भी उन नीच िनवािसत से , जो से ना ले कर
आपसे यु करने के िलये आपके रा य म घु स चु के ह; आपके स मान का या होगा?’’
से नापित कृपाल ने महाराज दे वराज को आगाह करते हुए कहा।
‘‘और वै से भी महाराज, आप सम्राट कण वज के िप्रय ह; आप ही सोिचये , िक अ य
ित्रय राजा या सोचगे आपके िवषय म, जब उ ह पता चले गा िक हम उन दो कौड़ी के
िनवािसत से डर गये । महाराज, आप तो उन सबसे दृि ट भी नहीं िमला पायगे ।’’
से नापित कृपाल ने अपनी बात पूरी की।
महाराज दे वराज अब से नापित की बात से प्रभािवत लग रहे थे । अ य ित्रय राजाओं
के म य हँ सी का पात्र बन जाना उ ह िबलकुल भी मं जरू नहीं था। उनकी आँ ख म
यकायक क् रोध िदख रहा था।
‘‘म उन िनवािसत से यु का आदे श दे ता हँ ।ू ’’ महाराज दे वराज अपने आसन से ही
चीखे । अ य दरबािरय ने उनकी जयकार की।
‘‘िक तु महाराज, इस व त हमारे पास केवल दस ह़जार से नाओं का ही बल है ; शे ष सै िनक
सम्राट कण वज की से वा म लगे ह।’’ प्रधानमं तर् ी किन ठ ने अपनी बात सभा के म य
रखी। उ ह आशा थी िक उनके इस िवचार का स मान होगा।
‘‘िवपि य के छह ह़जार सै िनक के सामने हमारे दस ह़जार सै िनक या कुछ भी नहीं ह
प्रधानमं तर् ी जी? या आप हमारे वीर सै िनक की वीरता पर सं देह कर रहे ह?’’ से नापित
कृपाल ने एक बार िफर प्रधानमं तर् ी किन ठ को नीचा िदखाने की कोिशश की।
‘‘नहीं, म से ना की वीरता पर सं देह नहीं कर रहा हँ ,ू अिपतु अपने पूरे सै िनक की
उपल धता न होने की जानकारी सभा के सम रख रहा हँ ू से नापित जी! कृपया आप वयं
िनणय ले ना ब द कीिजये ।’’ प्रधानमं तर् ी किन ठ ने कहा।
‘‘हम अपने दस ह़जार सै िनक के साथ ही उन नीच िनवािसत का अं त कर दगे ।’’
से नापित कृपाल पूरे जोश म चीखा। पूरे सभा ने उसका समथन िकया। प्रधानमं तर् ी
किन ठ समझ चु के थे िक अब उनके मत का कोई मह व नहीं है , और राजा यु के िलये
तै यार ह।
‘‘से नापित! आप यु की तै यारी शु कीिजये ; कल सु बह हम वयं से ना के साथ कू च
करगे , और उन िनवािसत से कोई बात नहीं होगी, उनसे केवल यु होगा यु ।’’ महाराज
दे वराज चीख पड़े । से नापित एवं अ य राजदरबािरय ने राजा की जयकार की।
से नापित कृपाल को यु का आदे श िमल चु का था। उसने शीघ्र ही पूरे सै िनक तक इस
समाचार को पहुँचाया, िक यु के िलये तै यार रह। राजनगर के सै िनक अपनी तै यारी
आरं भ कर चु के थे । यु के इस िनणय से अगर कोई दुखी था, तो वो था, राजनगर का यु वा
प्रधानमं तर् ी किन ठ। किन ठ को राजनगर के सै िनक ारा िनवािसत बि तय म करने
वाले अ याचार की जानकारी थी, और उसने कई बार महाराज दे वराज से इस िवषय की
िशकायत की थी िक तु हर बार महाराज ने उसकी बात अनसु नी कर दी थी। वो जानता
था िक यु िकसी के भी िहत म नहीं है , य िक इस यु की वजह से कई लोग को अपने
प्राण गँ वाने पड़गे । वो जानता था िक महाराज अपनी झठ ू ी शान के खाितर इस यु के
िलये जा रहे ह। किन ठ महाराज दे वराज के इस फैसले से दुखी था।
से नापित कृपाल के िलये एक शानदार मौका था अपनी वीरता िदखाने का, और महाराज
दे वराज का उ रािधकारी बनने का। महाराज दे वराज की कोई सं तान नहीं थी। कृपाल को
पता था िक ग ी के िलये उसकी लड़ाई है प्रधानमं तर् ी किन ठ के साथ; और बस
इसीिलये वो हर व त किन ठ को महाराज के सामने नीचा िदखने का प्रयास करता रहता
था... और अब अगर कृपाल ने इस यु म राजनगर को िवजय िदला दी, तो िनि चत ही
वो िसं हासन का उ रािधकारी हो जाये गा।
कृपाल को लगता था िक ये बहुत ही आसान यु होने वाला है । एक तो वो िनवािसत,
उससे सं याबल म कम ह, और दस ू रा कौन सा यो ा है उनके पास, जो उसके सामने िटक
सके? कृपाल अपनी िवजय के प्रित सु िनि चत था।
* * *
द्र की से ना पूरी तरह से तै यार थी, और अब यग्रता से अपने अिधपित के आदे श की
प्रती ा कर रही थी। िव लव के पास द्र को बताने के िलये कोई समाचार था।
‘‘ या हुआ िव लव? इतने यग्र य िदख रहे हो?’’ द्र ने प्र न िकया।
‘‘दे वराज की से ना आ रही है , मने अपनी आँ ख से धूल उड़ती हुई दे खी है अिधपित!’’
िव लव ने िकसी तरह खु द पर काबू पाते हुए जवाब िदया।
‘‘तो इसम इतना यग्र होने की या आव यकता है ?’’ द्र ने कहा।
िव लव है रान रह गया। उसे लगा था िक शायद इस बात से द्र भी अधीर होगा, और
तै यािरयाँ थोड़ी और यादा ह गी, पर द्र तो शा त था। वो अपने िशिवर म गया और
िफर कुछ ण के उपरांत बाहर आया।
द्र का ये प नया था। द्र ने आज अपने केश खोल िदये थे । उसके बाय क धे पर
लटका तरकश तीर से भरा हुआ था। उसके हाथ म था उसका िप्रय श त्र ‘फरसा', जो
उसके काका की िनशानी थी। द्र के गले म द्रा की माला लटक रही थी। उसके मु ख
पर एक अद्भुत ते ज िदख रहा था। द्र सु सि जत था अपना प्रितशोध ले ने के िलये ;
अपने ब ती वाल का प्रितशोध ले ने के िलये ।
द्र अपने घोड़े पर चढ़ गया और से ना के ठीक सामने आकर खड़ा हो गया। सभी सै िनक
उसे उ सु कता से दे ख रहे थे । उन सै िनक की आँ ख अपने अिधपित पर िटकी हुई थीं...
और िफर द्र दहाड़ा,
‘‘हर-हर महादे व! ''
‘‘हर-हर महादे व!’’ उसके सै िनक ने प्र यु र िदया, दोगु ने जोश के साथ। ऐसा लगा
मानो वो सीधे महादे व को कैलाश पर आवा़ज लगा रहे ह । उन सबकी सं यु त विनय
की गूँज दे वराज की से ना ने भी सु नी। शायद उनकी गूँज वयं महादे व ने भी सु नी हो।
इतना वे ग था उनके आवा़ज मे ।
‘‘म जानता हँ ू िक यहाँ खड़ा प्र ये क सै िनक इस पल की प्रती ा िपछले कई वषों से
बड़ी ही यग्रता से कर रहा था; आप म से हर कोई प्रती ा कर रहा था अपना प्रथम
यु लड़ने को। हर सै िनक प्रती ा कर रहा था अपना प्रितशोध ले ने के िलये । हर
सै िनक प्रती ा कर रहा था हर उस अ याय का िहसाब चु कता करने के िलये ,जो उस दु ट
दे वराज के सै िनक हमारे ब ती के लोग के साथ करते ह।’’ द्र ने कहा।
‘हाँ ।’ सभी ने उसका समथन िकया।
‘‘तो िफर वो समय आ गया है िक हम अपना प्रितशोध उस अ यायी राजा का र त बहा
कर ल; हम कसम है हमारे उन सभी अपने लोग के र त की, िज ह ने अपने प्राण इन
जै से राजाओं के अ याय के कारण गँ वाय। हम उन सबका प्रितशोध लगे , चाहे उसके
िलये हम अपने प्राण ही य न दे ने पड़।’’ द्र ने िफर से कहा।
‘‘हम प्रित ा करते ह! हम प्रित ा करते ह।’’ सै िनक ने दोहराया।
‘‘हो सकता है िक हम भा य म कल का िदन दे खना न नसीब हो और आज का िदन ही
हमारा अि तम हो तो िफर य न हम अपने आज के इस आिखरी िदन को इस भाँ ित जी
ल िक सिदय तक हमारा ‘आज’ चचा म रहे ... हम नया इितहास गढ़ दगे ; हम अपने
प्रितशोध की पूित के िलये उन आतताइय पर िबजली बनकर टू टगे । हम दे वराज की
मृ यु से ही शा त ह गे ।’’ द्र ने कहना जारी बनकर रखा।
उसकी बात सु नकर से ना का जोश िहलोर मारने लगा, और िफर द्र ने अपने घोड़े पर
एड़ लगाई और िवप ी से ना की ओर चल िदया। कौ तु भ और िवनायक उसके पीछे ही
थे , और आधी से ना भी उनके साथ थी। सबकुछ योजना के अनु सार ही चल रहा था।
द्र की भावनाएँ इस व त िहलोर मार रही थीं। वो पूरे वे ग से घोड़ा दौड़ाये हुए जा रहा
था। अ य सभी के मु क़ाबले द्र इस पल की प्रती ा सबसे अिधक कर रहा था;
आिखरकार वो ित्रय राजा दे वराज से यु करने के िलये जा रहा था।
द्र ने अपना घोडा रोका। उसके घोड़े से लगभग सौ कदम पर शत् की से ना तै यार
थी। द्र ने एक तीखी दृि ट पूरी से ना पर डाली। उसने दे वराज को दे खा, जो से ना के
पीछे हाथी पर बै ठा हुआ था। उसने बीच म खड़े से नापित कृपाल को भी दे खा, जो उसको
ही घूर रहा था। उन दोन की दृि ट आपस म िमली, और िफर द्र ने उद्घोषणा की,
‘‘हर-हर महादे व; ''
और शत् के दल की ओर बढ़ चला। िवनायक और कौ तु भ अब द्र के पीछे नहीं,
अिपतु उसके साथ चल रहे थे । पूरी से ना चक् राकार यूह से यु करने के िलये यूह म आ
गयी थी।
और िफर दोन प के सै िनक आपस म िभड़ गये । द्र के हाथ का फरसा दु मन के
िलये सबसे बड़ी मु सीबत बन गया था। जो कोई भी द्र को रोकने के िलये उसके सामने
आता, वो काल का ग्रास बन जा रहा था। द्र ने राजनगर की से ना म खलबली मचा दी
थी, और रही सही कसर पूरी कर दी कौ तु भ और िवनायक ने । द्र, कौ तु भ और
िवनायक ने िवप ी से ना म सध लगा दी थी, और अपनी से ना को अ दर घु सने के िलये
रा ता बना िदया था। द्र की से ना अपने यूह का िनमाण कर चु की थी।
सहसा द्र की से ना की बनावट दे खकर राजनगर का से नापित कृपाल चीख उठा,
‘‘हे ई वर! चक् राकार िविध। ''
िक तु कृपाल के कुछ करने से पहले ही द्र की पहली योजना सफल हो गयी थी। उसकी
से ना, राजनगर की से ना के म य घु सने लगी थी, और अब राजनगर के सै िनक र ा मक
मु दर् ा म आ गये थे ।
* * *
िदन का प्रथम पहर बीत चु का था, और यु भूिम म द्र की से ना राजनगर की से ना पर
भारी पड़ रही थी। द्र की से ना, राजनगर की से ना के म य म पहुँच चु की थी, और
राजनगर के सै िनक का नाश कर रही थी। द्र अपनी योजना के प्रथम चरण की
सफलता से प्रस न था, और अब बारी थी योजना के दस ू रे चरण के प्रार भ करने की।
द्र ने िव लव और प्रताप को सावधान करने के िलये शं ख बजाया। राजनगर का
से नापित कृपाल, यु के इस समय शं ख बजाने का ता पय समझ नहीं पाया था। उसे
सं देह हुआ की ये द्र की कोई नयी चाल है । िक तु इससे पूव िक वो सारी ि थित
समझता, उसने दे खा िक घु ड़सवार की दो टु कड़ी क् रमशः दाय और बाय ओर से उसकी
से ना पर आक् रमण करने हे तु आ रही थी।
िव लव और प्रताप, द्र का इशारा प्रा त कर यु भूिम म पहुँच चु के थे । बायीं ओर से
टु कड़ी का ने तृ व िव लव कर रहा था, और दायीं ओर था प्रताप। उन दोन के यु भूिम
म पहुँचते ही राजनगर के सै िनक का उ साह और भी यादा ीण होने लगा था। एक तो
वै से भी पहले से द्र ने उन सब पर िकसी अं जाने यूह रचना से आक् रमण िकया था, और
अब इन दो टु किड़य के आने से वो दोन ओर से िघर चु के थे । अब वो अ दर द्र के
सािथय ारा मारे जा रहे थे , और बाहर से उन पर काल बनकर टू ट रहे थे िव लव और
प्रताप।
राजनगर के राजा दे वराज ने जब अपनी से ना की ऐसी ि थित दे खी तो उनका दय ही
टू ट गया। उनको शत् ओं के इतने यादा घातक होने की आशा नहीं थी। अपनी से ना के
सै िनक को रणभूिम म मरता दे ख, वो क् रोिधत हो गये और वयं यु करने के िलये
िवपि य के स मु ख आ गये ।
द्र, अपनी से ना की वीरता से हिषत हो रहा था। उसके सै िनक ने अद्भुत प्रदशन
िकया था। और िफर द्र की योजना भी कारगार िस हो रही थी। भले ही उसके
टु किड़य म अिधक सै िनक नहीं थे , िक तु अचानक से शत् के ऊपर आक् रमण कर दे ने से
वो द्र के साथ वाले सै िनक को उिचत समय दे रहे थे , िक वो सै िनक का नाश कर।
द्र, जीत के प्रित आ व त होने लगा था।
पर अचानक से सबकी दृि ट उस शोर की ओर घूम गयी, जहाँ िकसी के आने की हलचल
थी, और जब सबने दे खा था तो च क गये । वो राजनगर के सै िनक थे , िजनका ने तृ व कर
रहा था रा य का यु वा प्रधानमं तर् ी किन ठ। ऐसे सं वेदनशील मौके पर सै िनक के साथ
यु भूिम म प्रधानमं तर् ी किन ठ के आने से दे वराज एवं उसके सै िनक सभी अ यिधक
प्रस न हुए। किन ठ के ारा जो से ना बल राजनगर की से ना के साथ जु ड़ा था, उसने
िवप की से ना के िलये पिरि थितयाँ प्रितकू ल कर दी थीं।
किन ठ, अपनी से ना के साथ प्रताप की टु कड़ी से यु करने लगा, और इस कारण अ य
से ना को सु लभता हुई द्र के उन सै िनक से यु करने म, जो अ दर की ओर थे ।
किन ठ के आने से यु की पिरि थित पूरी तरह बदल गयी। उसने द्र की योजना न ट
कर दी। उसके सै िनक ने प्रताप की आधी से यादा टु कड़ी ख म कर दी थी। उस यु वा
प्रधानमं तर् ी ने अपने शौय से उस यु का न शा ही बदल िदया था। से नापित कृपाल भी
अब जोश म आ गया था, और वो बायीं ओर से से ना पर आक् रमण कर रही िव लव की
टु कड़ी को नाश करने म लग गया। अगर किन ठ ने अपनी वीरता से सबका यान
आकिषत िकया था, तो कृपाल ने भी दु मन का कम नाश नहीं िकया था। अभी कुछ दे र
पहले हार को अपनी ओर आता दे खकर िनराश होने वाले राजा दे वराज भी अब हिषत हो
चु के थे , और अब वो भी यु म अपना कौशल िदखा रहे थे ।
द्र के िलये ये पिरि थित भयावह थी। अचानक से किन ठ के प्रवे श ने द्र की सारी
योजनाओं को न ट कर िदया था, और िसफ यही नहीं, अब तो उसके सै िनक भी अ यिधक
सं या म मृ यु को प्रा त हो रहे थे । िनि चत ही उसके सै िनक म िनराशा की लहर दौड़
रही थी।
द्र अब परे शान हो उठा था। तभी उसने कुछ ऐसा दे खा, िजससे उसकी परे शािनयाँ और
अिधक बढ़ गयीं। दे वराज के सै िनक से यु करते हुए कौ तु भ गं भीर प से घायल हो
गया था। उसकी ि थित अ यं त ही ना़जुक थी। द्र की आँ ख के सामने ही कौ तु भ के
ऊपर उस सै िनक ने तलवार से घातक वार िकये थे । द्र ने कौ तु भ को घोड़े पर से िगरते
दे खा, तो वो कौ तु भ की ओर लपका, और कौ तु भ तक पहुँचने से पूव ही उसने उस सै िनक
के प्राण, अपने फरसे के एक वार से हर िलये । अब वो कौ तु भ के पास था।
द्र अपने घोड़े से नीचे उतरा और कौ तु भ के करीब गया। उसने दे खा िक कौ तु भ का
शरीर र त से लथपथ था, िक तु उसकी साँस चल रही थी।
‘‘िवनायक! इसे शीघ्र ही वै गगाचाय के पास ले जाओ, िबलकुल भी िवलं ब ना करो,
इसी ण जाओ।’’ द्र ने िवनायक से कहा। कौ तु भ के र त से सने शरीर को दे खकर
द्र का क् रोध भड़क गया। उसकी आँ ख म वाला िदख रही थी।
िवनायक ने तु र त ही द्र की आ ा का पालन िकया। िवनायक, कौ तु भ को ले कर
िशिवर की ओर भागा। िव लव ने भी कौ तु भ को घायल होते दे खा था। अपने िमत्र के
ऊपर ऐसे घातक प्रहार करने वाले की मृ यु ही अब द्र के क् रोध को शा त कर सकती
थी।
एक बार िफर द्र अपने घोड़े पर बै ठा, और शु हुआ उसका प्रलय। यु भूिम म िसफ
चीख सु नाई दे रही थीं। द्र ने अब इस यु का िनणय करने का ठान िलया था। द्र का
ल य था दे वराज की मृ यु ; और वो अपने ल य की ओर बड़ी िनदयता से जा रहा था,
सारे अवरोध को हटाता हुआ। उनको न ट करता हुआ।
इधर िव लव ने भी अपनी तलवार से भयानक मार-काट मचायी हुई थी, और अब वो
राजनगर के से नापित कृपाल के सामने था। िव लव, जो िक क् रोध की अि न म झुलस
रहा था, अपने स मु ख कृपाल को दे खकर और भी यादा भड़क गया, और िफर वो दोन
यो ा अपने घोड़ से उतरकर अपनी-अपनी तलवार थामे , आमने -सामने आ गये । दोन
ही यो ा वीर थे , और लड़ाई बराबरी की चल रही थी। िव लव के हर वार को से नापित
कृपाल रोक रहा था। से नापित कृपाल के हर वार का िव लव जवाब दे रहा था। उन दोन
के तलवार की टकराहट से यु भूिम गूँज रही थी। उन दोन के म य बहुत समय तक यु
चलता रहा िक तु िव लव ने आिखकार से नापित कृपाल के सर को धड़ से अलग करके,
उस लड़ाई का अं त िकया और िनणय अपने प म िकया। से नापित कृपाल की मृ यु के
उपरांत से ना म भय बै ठ गया। सै िनक यु भूिम से भागने का प्रय न करने लगे पर उनका
प्रयास सफल नहीं हुआ। द्र के सै िनक ने उ ह सफल नहीं होने िदया।
द्र का फरसा खून से सना हुआ था। उसके फरसे के धार पर र त की लाली छा गयी
थी। अपनी आँ ख म क् रोध की अि न ले कर वो अं तत: दे वराज के सामने पहुँच चु का था।
दे वराज अपने हाथी पर बै ठा था। उसने यु भूिम म एक बार अपनी दृि ट दौड़ाई। दे वराज
ने दे खा िक उसकी से ना के अ यिधक सै िनक मृ त हो चु के थे । दे वराज की सु र ा हे तु
उसकी ढाल बनकर खड़े हुए सै िनक भी द्र के फरसे का िशकार हो चु के थे । दे वराज
भयभीत था। उसके मु ख पर हीनता का भाव था। से नापित की मृ यु के उपरांत उसे अपनी
िनि चत हार का अनु भव हो चु का था, और इसिलये अब दे वराज अपने प्राण बचाना
चाहता था।
िक तु द्र ने िन चय कर िलया था िक उसे दे वराज के प्राण ले ने ही ह; और अपने इस
िन चय को पूण करने हे तु द्र, अपने घोड़े से उतरकर दे वराज के हाथी के स मु ख पहुँच
गया। द्र को सामने खड़ा दे खकर उस हाथी ने द्र के ऊपर सूँ ड़ से वार िकया। द्र,
नीचे की ओर झुका, और हाथी के उस वार से बच गया। हाथी क् रोध से चीखा, और एक
बार िफर द्र के ऊपर प्रितघात करने हे तु तै यार हुआ। िक तु इस बार द्र सावधान था,
और हाथी के अगली बार सूँ ड के वार करने से पूव ही द्र ने उस हाथी की सूँ ड कस कर
पकड़ ली। हाथी और उस पर िवराजमान दे वराज, दोन हतप्रभ थे और िफर द्र ने हाथी
के सूँ ड़ पर से ही छलाँ ग लगा दी। अब द्र सीधे दे वराज के स मु ख पहुँच गया था, और
द्र का फरसा उसके दाय हाथ म कस कर िभं चा हुआ था। इससे पूव िक दे वराज कोई
प्रितिक् रया कर पाता, द्र का फरसा अपना काय कर चु का था। दे वराज का िसर उसके
धड़ से खं िडत होकर भूिम पर पड़ा था। द्र ने यु को समा त कर िदया था।
शं ख बजा िदया गया, और अब औपचािरक प से राजनगर के सै िनक यु हार चु के थे ।
प्रधानमं तर् ी किन ठ को ब दी बना िलया गया था। अपने राजा की मृ यु के उपरांत
प्रधानमं तर् ी किन ठ के पास भी यु जारी रखने का कोई कारण नहीं था।
द्र की से ना यु म िवजयी हुई थी। अिधपित द्र ने असाधारण वीरता का प्रदशन
िकया था। उसकी बची से ना म हष की लहर दौड़ गयी थी। िक तु द्र हिषत नहीं था।
कौ तु भ के िवषय म उसकी िचं ता बनी हुई थी।
‘‘अब या आदे श है अिधपित?’’ प्रताप ने द्र से प्र न िकया।
‘‘हम कल प्रात: मु य नगर म चलगे , अभी िशिवर की ओर प्र थान करो; सभी को साथ
ले लो। जो घायल ह उ ह भी साथ ले कर चलो, और उनकी िचिक सा आिद का प्रबं ध
नगर म पहुँचते ही करो। सभी मृ तक की अ ये ि ट की यव था भी करो।’’ द्र एक
साँस म बोल गया। उसके मु ख पर कोई भाव नहीं थे ।
‘‘जी अिधपित!’’ प्रताप बोला और चल िदया।
यु भूिम म अब शाि त थी। चार ओर मृ तक के शरीर पड़े थे । द्र के भी कई सै िनक
मारे गये थे । राजनगर की तो लगभग से ना ही समा त हो गयी थी। वो भूिम, कई प्राण
के नाश की सा ी बनी थी।
िव लव, द्र के पास आया।
‘‘िवजय की हािदक बधाई अिधपित द्र!’’ िव लव ने उ लास से कहा।
द्र ने कोई प्रितिक् रया नहीं दी। वो भावशू य हो, रणभूिम म पड़े शव को दे ख रहा
था।
‘‘कौ तु भ की ि थित अब कैसी है ?’’ द्र ने प्र न िकया।
‘‘गगाचाय जी उसके वा य पर हर घड़ी ऩजर रखे हुए ह, िक तु अभी उसका वा य
अिनि चत है ; पर आप परे शान न ह , वो शीघ्र ही व थ हो जाये गा।’’ िव लव ने कहा।
द्र ने िव लव की बात सु नी, पर कोई प्रितिक् रया नहीं य त की। िव लव ने इस बात
को अनु भव िकया िक द्र कुछ िचं ितत प्रतीत हो रहा था।
‘‘अिधपित द्र! या आप िकसी बात को ले कर िचं ितत ह?’’ िव लव ने द्र से प्र न
िकया।
‘नहीं।’ द्र ने उ र िदया।
कुछ समय के िलये दोन के म य शाि त छा गयी। द्र और िव लव दोन मौन थे ।
‘‘िव लव, या तु म मे रे हर फैसले म मे रे साथ हो?’’ द्र ने अचानक ही प्र न िकया।
द्र के इस प्र न को सु नकर पहले तो िव लव है रान हुआ, िक तु शीघ्र ही उसने अपना
उ र द्र के स मु ख प्रकट िकया।
‘‘अिधपित द्र! म और हमारी स पूण से ना आपके हर िनणय म आपके साथ ह; आप
िव वास कीिजये हम अपनी अि तम साँस तक आपके हर िनणय म आपके साथ ह।’’
िव लव ने दृढ़ता और िव वास से पिरपूण हो उ र िदया।
द्र ने जब िव लव का ये उ र सु ना तो उसे अ यिधक प्रस नता हुई। िन चय ही आज
की िवजय द्र के िलये अ यिधक मह वपूण थी। इस िवजय से उसका भिव य िनधािरत
होने जा रहा था।
5. एक नए ल य का िनधारण
वो ब्रा ण जै सा िदखने वाला यि त कई सै िनक से िघरा था। सभी सै िनक उस ब्रा ण
को चार ओर से घे रकर अपनी तलवार उसकी ओर िकये हुए थे । उस ब्रा ण के ठीक
सामने एक यि त मु कुट पहने खड़ा था, और अपनी वे शभूषा से वो कोई राजा प्रतीत
होता था। अचानक से उस मु कुट पहने हुए यि त ने उस िनह थे ब्रा ण के ऊपर
तलवार का भरपूर वार िकया, िजसके कारण उस ब्रा ण का िसर कटकर नीचे िगर गया
और ठीक उसके बगल म खड़ा हुआ न हा द्र उस ब्रा ण के र त से भीग गया।
अचानक ही द्र ने आँ ख खोल दी। एक बार िफर इस व न ने द्र को िवचिलत कर
िदया था। वो पसीने से भीग गया था। उसकी साँस बहुत ही तीव्रता से चल रही थी। उसे
अपने िसर म असहनीय पीड़ा का आभास हुआ। द्र कुछ कहना चाहता था, िक तु उसके
गले से आवा़ज ही नहीं िनकली। द्र को ऐसा महसूस हुआ की जै से ठीक ऐसी ही ि थित
से वो पहले भी गु़ जर चु का हो। द्र वयं को सामा य करने के प्रयास म लगा था, पर
इस व त महाप्रतापी अिधपित द्र की ि थित बहुत ही दयनीय थी।
द्र कुछ समय उसी भाँ ित ले टा रहा और िफर उसे थोड़ा राहत महसूस हुई। उसके िसर
की पीड़ा भी ख म हो चु की थी। उसने अपने पसीने को अपने अं गव त्र से प छा। ये वही
अ सर आने वाले सपने थे , िजसकी वजह से द्र की ि थित इतनी अिधक बे बस हो
जाती थी। द्र के सपने म उस ब्रा ण का कटा हुआ िसर उसे झकझोर दे ता था। उस
ब्रा ण के र त का द्र के शरीर पर िगरना, उसको अ यिधक िवचिलत कर दे ता था। ये
दृ य द्र को असं यिमत कर दे ता था।
द्र को अब अपनी ि थित बहुत ही सु लभ लग रही थी। वो उठकर उस क की िखड़की
के पास गया। वहाँ से उसने क से बाहर की ओर दे खा। सामने उसे राजनगर के महल का
िशव मि दर िदखा। वै से तो द्र, प्रभु िशव का असीम भ त था, िक तु उसकी श्र ा
मन ही मन थी। द्र, मि दर म नहीं जाता था, िक तु आज पहली बार िकसी मि दर को
दे खकर उसे इतना अिधक सु कून और आनं द िमला था। द्र के दोन हाथ वे छा से ही
प्रभु िशव के मि दर के स मान म जु ड़ गये । प्रभु िशव के उस िद य मि दर ने द्र के
भीतर एक नयी ऊजा का सं चार कर िदया था। द्र के मन म प्रभु िशव के मि दर म जाने
की इ छा उ प न हुई, िक तु िफर उसने उिचत समय आने का िवचार िकया और एक बार
िफर प्रभु िशव को यान कर अपने दोन हाथ जोड़ िदये ।
‘‘हर-हर महादे व! ''
* * *
द्र की पूरी से ना राजनगर म पहुँच चु की थी। सभी घायल का उपचार िकया जा रहा
था। राजनगर के वै भी अब गगाचाय जी का सहयोग कर रहे थे । द्र के आदे श
अनु सार प्रताप और कुछ सै िनक उन िनवािसत ब ती के वािसय को राजनगर लाने के
िलये जा चु के थे । राजनगर की प्रजा है रान थी। वो समझ नहीं पा रहे थे िक राजा की
मृ यु की खु शी मनाय अथवा दु:ख। इसम कोई दुिवधा नहीं थी, िक वो राजा को पसं द
नहीं करते थे और उसके अ याय से दुखी थे ; िक तु स य तो ये भी था की उनके रा य की
यु म हार हुयी है ।
द्र, कौ तु भ के िनकट बै ठा था। ठीक उसके पीछे िव लव और िवनायक खड़े थे ।
गगाचाय जी भी कौ तु भ के िनकट ही थे । वे कौ तु भ के ज म पर कोई ले प लगा रहे थे ,
और कौ तु भ के मु ख को दे खकर सहज ही अं दा़जा लगाया जा सकता था िक उस ले प से
उसको जलन हो रही थी।
‘‘कौ तु भ जी! ये ले प अव य ही आपकी जलन बढ़ाये गा, िक तु इस बात के िलये
िनि चत रह, िक ये शीघ्र ही आपके ज म को भर दे गा।’’ गगाचाय जी ने हँ सते हुए
कहा। उ होने कौ तु भ के मु ख को दे ख िलया था, और ये बात समझ गये थे िक कौ तु भ
को ले प से जलन हो रही है ।
‘‘म समझता हँ ू वै जी, िक तु ये जलन बहुत ही तीव्र है ।’’ कौ तु भ ने उ र िदया।
कौ तु भ का वा य राजनगर पहुँचकर आ चयजनक प से अ यिधक ठीक हो गया
था। अब ये राजनगर के वै का कमाल था, अथवा उनके ारा प्रयु त की जाने वाली
औषिध का, कुछ कह नहीं सकते ।
िक तु िजस कौ तु भ की ि थित अ यिधक असं वेदनशील थी, और िजसके बारे म
गगाचायजी इतने अिधक िचं ितत थे , उस कौ तु भ का वा य इस भाँ ित शीघ्रता से
ठीक हो जाना िनि चत ही आ चय का िवषय था। बस कौ तु भ के ज म अभी भी नहीं
भरे थे , िक तु औषिधय और ले प से उनके शीघ्र ही भर जाने का अनु मान था।
‘‘वै जी! म तो कहता हँ ू इसे और भी अिधक जलन वाला ले प लगाइये , वही इसके िलये
उपयु त होगा।’’ िवनायक ने िठठोली की। िव लव और िवनायक हँ सने लगे । वै जी भी
मु कुरा िदये और कौ तु भ भी मु कुराया, िक तु द्र वै से ही बै ठा था। उसने कोई
प्रितिक् रया नहीं य त की, जै से िक उसने कुछ सु ना ही न हो।
‘‘तु म दोन मे रे िमत्र हो या शत् ? ऐसे समय म भी िठठोली... अरे ये मे रे जीवन का
सवाल है ।’’ कौ तु भ ने िगड़िगड़ाते हुए कहा।
‘‘िमत्र ह, इसीिलये ऐसा कह रहे ह... अगर शत् होते तो वयं ही कर दे ते।’’ िव लव ने
कहा। इस बार सभी हँ से। बस अगर कोई खामोश था तो वो था द्र। ऐसा लग रहा था
िक मानो वो वहाँ होकर भी नहीं था।
‘‘अिधपित या आप ठीक ह?''गगाचायजी ने द्र से पूछा। उ ह ने द्र को इस भाँ ित
सभी से िवमु ख दे खा तो उ ह द्र की िचं ता हुई।
गगाचायजी का प्र न सु नकर ऐसा लगा मानो द्र िकसी दस ू री दुिनया से बाहर आ
गया हो। पहले तो वो थोड़ा सकपकाया और िफर बोला,
‘‘जी वै जी! म ठीक हँ ,ू आप बस इसका खयाल रिखये ।’’ द्र ने कौ तु भ की ओर
इं िगत करके कहा।
‘‘अिधपित जी! ये तो बहुत ही शीघ्रता से व थ हो रहे ह; और अगर ई वर ने चाहा तो
बस चार-पाँच िदन म ये पूण प से व थ हो जाएँ गे।’’ गगाचायजी ने उ र िदया।
‘‘ज दी व थ हो जाओ कौ तु भ! हम तु हारी बहुत आव यकता है ।’’ द्र ने कौ तु भ
के िसर पर ह के से अपना हाथ रखा।
कौ तु भ मु कुराने लगा। अपने िमत्र और अिधपित के मु ख से इतने अपन व के श द ने
कौ तु भ को भाव-िवभोर कर िदया।
‘‘म हमे शा आपके साथ हँ ू ...... अिधपित।’’ कौ तु भ ने भरे हुए गले से कहा।
‘‘म जानता हँ ू कौ तु भ।’’ द्र ने कहा और वहाँ से जाने लगा।
सभी अपने अिधपित को वहाँ से जाते हुए दे ख रहे थे । उन सबको उस पर गव था। उ ह
अपने अिधपित पर गव था।
‘‘ या आपको भी अिधपित कुछ परे शान से लगे िव लव जी?’’ गगाचाय जी ने प्र न
िकया।
िव लव ने वै जी के इस प्र न का उ र, प्र न करके िदया।
‘‘ या वो ह वै जी?’’ िव लव ने कहा।
गगाचाय जी मु कुरा िदये , य िक वो जानते थे , िक द्र को सबसे बे हतर अगर कोई
समझता है तो वो है िव लव। िक तु अगर उसे ऐसा नहीं लगता, तो ये आ चय का िवषय
था।
‘‘मु झे लगता है इस यु और कौ तु भ के वा य की वजह से थोड़ा िचं ितत ह, और
शीघ्र ही वो ठीक हो जायगे ।’’ िवनायक ने उ र िदया।
‘‘िनि चत ही; ये उनका प्रथम यु था, और इतने सै िनक की मृ यु से अव य ही वो
थोड़ा असहज हो गये ह... वो शीघ्र ही सब कुछ भु ला कर ठीक हो जायगे ।’’ कौ तु भ ने
ले टे-ले टे ही कहा।
‘‘उ ह बस थोड़ा समय की आव यकता है ।’’ िव लव ने जवाब िदया।
* * *
द्र का दय अब शा त था। वो िदन का तीसरा पहर था। द्र, राजनगर के महल से
बाहर िनकला और उस िशव मि दर की ओर चल िदया। उसने उसी पल िनधािरत कर
िलया था िक वो िशव मि दर म जाये गा, जब उसने पहली बार वो मि दर दे खा था। उस
मि दर ने उसे अपनी ओर आकिषत कर िलया था।
द्र, ज दी-ज दी उस मि दर की सीिढ़याँ चढ़ता जा रहा था। उसका मन िशव के दशन
के िलये अधीर हुआ जा रहा था। वो प्रभु के दशन से प्रकट होने वाले सु ख की कामना
करके ही हष से भर गया था और िफर जब द्र उस मि दर म पहुँचा तो दं ग रह गया।
द्र के सामने थी प्रभु िशव की एक भीमकाय मूित। उस मूित को दे खकर द्र की आँ ख
प्रभु की मोहक छिव पर ही िटकी रह गइं । उस मूित को दे खकर द्र को ऐसा आभास हो
रहा था मानो अभी वो बोल पड़े गी। द्र, प्रभु िशव की मूित के सम नत म तक हो
गया। प्रभु िशव की वो मूित दे खकर द्र की आँ ख से आँ स ू बह रहे थे । वो खु द भी
समझ नहीं पाया था िक वो रो य रहा था?
प्रभु िशव के मि दर म पहुँचकर द्र को वो समय याद आ गया, जब उसने पहली बार
प्रभु िशव के िवषय म जाना था। काका ने द्र को प्रभु िशव के िवषय म बताया था।
द्र को प्रभु िशव की कथाय बहुत भाती थीं। द्र को जब काका ने ये बताया िक प्रभु
िशव अपने गले म सपों की माला पहने रहते ह, तो न हा द्र भयभीत हो गया।
‘‘काका! या वो सप प्रभु िशव को डसता नहीं है ?’’ न ह द्र ने भयभीत होकर प्र न
िकया। इस बात का उ र जानना उसके िलये अ यं त ही आव यक था। भला जो स पूण
सृ ि ट के ई वर ह, अगर उ ह ही सप काट ले तो?
‘‘पु त्र! वो प्रभु िशव ह, जगत के वामी; भला वो साँप प्रभु को या डस पाये गा?
िजनके गले म इस सृ ि ट का सबसे जहरीला िवष है , और इसीिलये प्रभु िशव का गला
नीला पड़ गया। पु त्र इसी नीले कंठ के कारण उनको नीलकंठ के नाम से भी लोग जानने
लगे ।’’ काका ने प्रभु िशव का बखान करते हुए द्र के प्र न का उ र िदया।
न ह द्र को जब प्रभु िशव के िवष पी ले ने की कथा पता चली, तो वो प्रभु िशव से
अ यिधक प्रभािवत हुआ। द्र को प्रभु िशव के यि त व ने अपनी ओर आकिषत
िकया।
और िफर काका ने द्र को एक अद्भुत जानकारी दी। उ ह ने द्र को बताया, प्रभु
िशव को सं हार अथात मृ यु का दे वता भी कहा जाता है । द्र, ये बात सु नकर आ चय म
पड़ गया।
‘‘पर काका! िजस ने इस सृ ि ट का सबसे जहरीला िवष खु द पी िलया, ता की इस सं सार
का भला हो, उसे सं हार का दे वता य कहते ह?’’ द्र ने अपनी शं का काका के सम
प्रकट की। प्रभु द्र के िवषय म वो सब कुछ जान ले ना चाहता था।
‘‘पु त्र! ऐसे ही ह दे व के दे व महादे व। वो सं सार को सभी क ट से बचाते ह, िक तु दु ट
का सं हार भी करते ह। प्रभु िशव लय एवं प्रलय दोन को अपने अधीन िकये हुए ह। वो
सृ ि ट की को सु चा ढं ग से चलाने के िलये दु ट का सं हार करते ह।’’ काका ने द्र को
उ र िदया। न ह द्र के दय म प्रभु िशव के प्रित श्र ा का भाव अ यिधक हो
गया। द्र, प्रभु िशव को अपना इ ट मान चु का था।
और िफर काका ने द्र को बताया था प्रभु िशव का एक और नाम और वो नाम था द्र।
‘‘ या सच म प्रभु िशव का नाम द्र है काका?’’ न हा द्र है रत से अपने काका से
पूछता है । उसे पहली बार म यकीन नहीं हुआ।
‘‘हाँ पु त्र! प्रभु िशव का एक नाम द्र भी है ,''काका ने हँ सते हुए द्र को उ र िदया।
ये सु नकर न हा द्र हिषत हो गया। प्रभु िशव का नाम और उसका नाम एक ही था, ये
बात जानकर उसे हािदक प्रस नता हुई, और िफर पूछ बै ठा द्र एक अनचाहा प्र न
अपने काका से ,
‘‘काका! या म भी प्रभु िशव की भाँ ित बन सकता हँ ?ू ’’ द्र ने पूछा।
न ह द्र के इस प्र न को सु नकर उसके काका कुछ ण मौन ही रहे । वो दुिवधा म पड़
गये िक इस प्र न का या उ र द?
िक तु िफर कुछ ण प चात वो बोले ,
‘‘िनि चत ही बन सकते हो पु त्र! िक तु प्रभु िशव बनने का मू य बहुत ही किठन है ;
प्रभु िशव की भाँ ित याग करने की िह मत िकसी म नहीं होती। सारे सं सार को जहरीले
िवष से बचाने के िलये वयं उसका पान कर ले ते ह, और िफर भी मृ यु के दे वता कहलाये
जाते ह, ऐसे ह प्रभु िशव; िक तु पु त्र, अगर तु म भी ऐसा कर पाओगे तो िनि चत ही
तु म प्रभु िशव के माग पर होगे ।’’ काका ने नम आँ ख से द्र को समझाते हुए कहा।
न हा द्र प्रस न हो गया। वो िनि चत प से प्रभु िशव के मागों पर चले गा। वो प्रभु
िशव की भाँ ित बने गा। न ह द्र ने सोच िलया था।
द्र को ये सब याद आया, तो वो एक बार िफर भाव-िव ल हो गया।
‘‘िनि चत ही प्रभु िशव की भाँ ित याग करने की िह मत अ य िकसी म नहीं है काका।’’
द्र ने बु दबु दाते हुए कहा।
प्रभु िशव के उस मि दर म द्र को ऐसी अनु भिू त हुई, जै से सं सार की सबसे अनमोल
खु शी उसके पास हो। उस मि दर म पहुँचकर द्र को ऐसा लगा िक जै से उसके ऊपर कोई
बोझ ही न रह गया हो। द्र, िशव मि दर के प्रताप से अ यं त ही सु कून महसूस कर
रहा था।
अब द्र उठ गया, और उसने पूरे मि दर को दे खा। उस मि दर म वो अकेला था। कहीं
भी िकसी और यि त के होने के कोई िच ह नहीं िदख रहे थे । अब द्र ने राहत की साँस
ली, िक तु अभी भी उसकी िशव मूित दे खने की इ छा तृ त नहीं हुई थी। द्र, उस मूित
को अपने आँ ख म बसा ले ना चाहता था।
द्र उस मूित के सामने एक खं भे के सहारे बै ठ गया। उसने अपनी पीठ पर मि दर के खं भे
का टे क लगाया हुआ था। वो अपने प्रभु की त वीर िनहार रहा था। वो उस पल के आनं द
को अपने भीतर तक महसूस कर रहा था।
अचानक ही द्र की आँ ख के आगे एक चे हरा आ गया। द्र की आँ ख खु ल गयीं। उसने
एक बार िफर प्रभु की मूित पर यान लगाया, िक तु एक बार िफर वही चे हरा उसकी
आँ ख म घूम गया।
आज िकतने वषों प चात उसे वो चे हरा िदखा था। उस चे हरे को दे खकर द्र को वो सारी
बात भी याद आ गयी थीं, िज ह वो याद नहीं करना चाहता था य िक वो याद द्र के
जीवन का भयानक स य थीं। वो याद द्र को पीड़ा पहुँचाती थीं।
द्र की आँ ख ब द और ऐसा लग रहा था मान वो िकसी बड़ी गहरी सोच म था।
और िफर जब दो घड़ी बाद अचानक से द्र की आँ ख खु लीं तो उसने खु द को आँ सुओ ं से
तर पाया। अपनी उस सोच की दुिनया म बाहर आकर उसे और भी यादा पीड़ा हो रही
थी। उसकी आँ ख से आँ सुओ ं की बड़ी-बड़ी बूँद िगर रही थीं। वो िकसी ब चे की भाँ ित रो
रहा था। आज िकतने िदन बाद उसने अपना वो ज म कुरे द िलया था, जो उसकी याद के
कोने म वै से ही पड़े थे ।
‘‘प्रभु ! ये कैसी पीड़ा दे दी आपने मु झे? इस पीड़ा के िलये तो म आपके पास नहीं आया
था।’’ द्र, आँ ख म आँ स ू भरे बदहवास हाल म ही प्रभु िशव की मूित से बोल पड़ा।
उसके भीतर छुपा हुआ सारा दुख उसने अपने आँ स ू के प म प्रभु िशव को अिपत कर
िदया था। उसे तो इस बात का आभास ही नहीं था िक प्रभु द्र ने उसके हर पीड़ा को हर
िलया था।
द्र कुछ समय तक यूँ ही रोता रहा और प्रभु की मूित से प्र न करता रहा। वो प्रभु
िशव की मूित से उ र की अिभलाषा रखे हुए था और िफर उसे पता ही नहीं चला की वो
कब अचे त हो गया।
* * *
द्र की आँ ख जब खु ली थी तो उसने दे खा िक वो महल के क म था। उसके िब तर पर
ही वै गगाचाय जी बै ठे थे और उसके ठीक सामने खड़ा था िव लव।
‘‘वै जी! अिधपित को होश आ गया।’’ सहसा िव लव, द्र को दे खकर चीखा।
गगाचाय जी ने द्र को दे खा और अ यिधक प्रस नता के साथ पूछा,
‘‘अिधपित द्र! अब आप कैसा महसूस कर रहे ह?''
‘‘म बहुत ही उ म महसूस कर रहा हँ ू वै जी।’’ द्र ने उ र िदया। द्र का वा य
पूण प से उ म था। उसकी आँ ख म भी एक नयी चमक िदख रही थी। उसकी वो पु रानी
क् रोध से भरी आँ ख आ चयजनक प से एक नये उमं ग से भरी िदख रहीं थी। िव लव ने
द्र के बदलाव को महसूस िकया था।
‘‘ये तो बहुत ही उ म बात है ; आप औषिधयाँ समय से खाते रिहये गा, म आप से कल
िमलता हँ ।ू ’’ गगाचाय जी ने द्र से आ ा ली।
‘‘ या कोई आपात ि थित है वै जी?’’ द्र ने प्र न िकया।
‘‘नहीं-नहीं अिधपित! बस कुछ घायल सै िनक का वा य परी ण करना था।’’
गगाचाय जी ने पूरे िश टता के साथ कहा।
‘‘िफर तो आप शीघ्र ही जाय वै जी।’’ द्र ने कहा।
गगाचाय जी ने द्र और िव लव दोन से िवदा ली, और क से बाहर चले गये । अब उस
क म केवल वही दोन िमत्र थे ।
‘‘िव लव! म मि दर से यहाँ कैसे आया? या हुआ था मु झे? वै जी कौन सी औषिध
खाने की बात कह रहे थे ?’’ द्र ने प्र न की झड़ी लगा दी।
‘‘तिनक आराम से अिधपित द्र।’’ िव लव ने मु कुराते हुए कहा।
द्र अब भी अधीर था, िक तु वो िव लव के श द को सु नने के िलये आतु र हो रहा था।
‘‘जब मने आपको अिधक समय तक उस मि दर से बाहर आते नहीं दे खा, तो मु झे आपकी
िचं ता हुई, और जब म उस मि दर म पहुँचा तो मने दे खा िक आप अचे त अव था म वहाँ
पड़े थे । म कुछ समझ नहीं पाया इसिलये केवल वै जी को आपके अचे त होने की बात
बताई थी। और वो औषिधयाँ वै जी ने इसी खाितर आपको खाने को दी ह।’’ िव लव ने
पूरी बात द्र को बता दी।
द्र को उस मि दर म हुई सारी बात याद आ गयी। पर इस व त वो अपने आप को
सँ भालने की ि थित म था।
‘‘तो या तु म मु झ पर ऩजर रखे हुए थे िव लव?’’ द्र ने प्र न िकया। उसके चे हरे पर
बनावटी गु सा था।
‘‘अिधपित! मने इस बात को महसूस िकया था की आपका वा य थोड़ा अिनि चत है ।
और िफर जबसे आप यहाँ आये ह आप कुछ परे शान से िदख रहे थे , इसीिलये िक आप मे रे
िमत्र और अिधपित दोन है । ये मे रा फ़ज था की म आपका यान रखूँ। तो अिधपित म
आप के ऊपर ऩजर नहीं रखे हुआ था, अिपतु आपका यान रखे हुए था।’’ िव लव ने बहुत
ही िव वास से कहा।
द्र ने जब ये जाना तो उसे िव लव के ऊपर गव हुआ। अपने िमत्र का अपने िलये ऐसा
भाव जानकर द्र के मन म िव लव की मह वता आज और भी अिधक हो गयी थी।
‘ध यवाद िमत्र!’ द्र ने कहा।
‘‘अब अगर िमत्र कहते ह तो ध यवाद कहने की कोई आव यकता ही नहीं है
अिधपित।’’ िव लव ने कहा। द्र ने उसके चे हरे की हँ सी दे ख ली थी।
‘ द्र!’ द्र ने बनावटी गु से से कहा।
‘‘जी, अिधपित द्र!’’ िव लव ने िफर मु कुराते हुए उ र िदया।
‘‘तु हारे िलये केवल म द्र हँ ू िव लव, कम से कम जब हम अकेले ह तो ये िश टता न
प्रदिशत िकया करो।’’ द्र ने िव लव को नसीहत दी।
‘‘जी अिधपित द्र। म कोिशश क ँ गा।’’ िव लव ने उ र िदया।
िव लव के इस जवाब से द्र हँ स पड़ा। उसके लाख समझाने के बाद भी िव लव उसके
नाम से पहले अिधपित ज र लगा रहा था। िव लव ने आज वषों बाद द्र को इस भाँ ित
खु लकर हँ सते हुए दे खा था। द्र का ये पिरवितत प उसके िलये अचरज भरा तो था ही,
साथ ही साथ ये पिरवतन िव लव के िलये एक सु खद एहसास भी था। िव लव को ये
जानकर असीम हष हुआ िक उसके अिधपित अब पूरी त लीनता से हँ स रहे थे ।
‘‘अब मु झे आ ा दे । मु झे कुछ आव यक काय याद आ गया अिधपित।’’ िव लव ने द्र
से आ ा माँ गी।
अब उस क म द्र अकेला था। उसके खयाल म अब प्रभु िशव की मूित िफर से आ
गयी। प्रभु की वो सु दर छिव, जो द्र ने कल दे खी थी, एक बार िफर उसके दय म
असीम हष की अनु भिू त दे रही थी। वो एक बार िफर परम आनं द को महसूस कर रहा था।
द्र का रोम-रोम हिषत था।
और िफर अचानक ही द्र के चे हरे की मु कान गायब हो गयी। उसे एक बार िफर वो
ज म याद आ गया, िजसकी वजह से वो कल टू ट गया था। एक बार िफर द्र की आँ ख
म वही पु राना क् रोध झलका। उसकी मु ट्िठयाँ िभं च गयीं और वो क् रोध की वजह से
लाल हो गया। और िफर द्र बोला,
‘‘काका, आप सही कह रहे थे , अगर मे री प्रित ा यायसं गत नहीं है तो म उसे पिरवितत
कर लूँ; म अव य अपनी प्रित ा सं शोिधत क ँ गा, िक तु ये तय है िक म अपनी
प्रित ा पूरी भी िनि चत ही क ँ गा। अब मे रे जीवन का बस एक ही ल य होगा और
वो होगा अपनी प्रित ा पूण करना। चाहे उसके िलये मु झे कोई भी कीमत चु कानी पड़े । ''
ये तो तय था िक द्र ने कोई ल य िनधारण कर िलया था और िनि चत ही उसके इस
ल य का असर कई लोग पर पड़ने वाला था। अब द्र का क् रोध थोड़ा शा त हुआ।
वो िब तर पर से उठा और एक बार िफर िखड़की से उस िद य िशव मि दर को दे खा,
िजसने द्र को एक नये ल य को िनधािरत करने की शि त दी थी। द्र ने प्रभु िशव के
मि दर के सम अपने हाथ जोड़े और िफर बोला,
‘‘हर-हर महादे व!''
* * *
िनवािसत ब ती के सभी िनवासी राजनगर म आ चु के थे । उन सबके रहने का प्रबं ध
राजनगर म कर िदया गया था। प्रताप और वो सब िनवािसत ब ती वाले अपने अिधपित
के दशन करना चाहते थे , िक तु अिधपित ने उन सभी को आदे श िदया था िक वो कल
उनसे िमलगे और साथ ही साथ वो कल कोई मह वपूण घोषणा भी करगे ।
पूरे रा य म लोग तरह-तरह की बात कर रहे थे । राजनगर के लोग अब थोड़ा डर भी रहे
थे ।
‘‘आिखर वो िनवािसत अिधपित या घोषणा करने वाला है ?''
ये प्र न राजनगर के सभी नागिरक को परे शान िकये हुए था।
िव लव, िवनायक और प्रताप आपस म बात कर रहे थे । उनके म य भी चचा का िवषय
अिधपित की घोषणा थी।
‘‘मु झे लगता है , अब अिधपित िविधवत् रा य पर शासन करना चाहते ह, और इसीिलये
रा यािभषे क करने वाले ह।’’ िवनायक ने अपना िदमाग दौड़ाते हुए कहा।
‘‘नहीं, मु झे िबलकुल ऐसा नहीं लगता।’’ िव लव ने कहा।
‘ य ?’ िवनायक ने प्र न िकया।
‘‘ य िक जहाँ तक म अिधपित द्र को जानता हँ ,ू वो कभी राजा नहीं बनना चाहगे ,
उनका ल य कुछ और ही लगता है ।’’ िव लव ने गं भीरता से कहा।
‘‘िनि चत ही, म भी आपसे सहमत हँ ।ू ’’ प्रताप ने यथावत् िश टता प्रदिशत करते हुए
कहा।
‘‘िक तु अभी तक अिधपित ने उस प्रधानमं तर् ी किन ठ को कोई दं ड नहीं िदया, ये बात
मु झे थोड़ा अजीब लग रही है ।’’ िवनायक ने कहा।
‘‘ या? अब तक अिधपित ने ब दी को कोई स़जा नहीं दी; मु झे तो लगा था, अब तक
उ ह ने उसे मृ यु दं ड दे िदया होगा।’’ प्रताप ने आ चय प्रकट करते हुए कहा। उसके
मु ख के भाव दे खकर प ट होता था िक ये बात जानकर उसे झटका सा लगा है ।
‘‘िनि चत ही अिधपित द्र िकसी बड़े िनणय की ओर बढ़ रहे ह। और हम सब उनके हर
िनणय म उनके साथ ह।’’ िव लव ने कहा।
* * *
द्र, राजनगर के महल के बाहर खड़ा था। उसके ठीक पीछे थे िव लव, िवनायक, प्रताप
और वै गगाचाय। द्र के ठीक सामने खड़े थे िनवािसत ब ती के सभी िनवासी और
राजनगर की सारी प्रजा। सभी अधीरता से द्र को दे ख रहे थे , और उनके श द की
प्रती ा कर रहे थे । वो द्र की मह वपूण घोषणा की प्रती ा म थे ।
द्र के दायीं ओर बे िड़य म जकड़ा खड़ा हुआ था राजनगर का प्रधानमं तर् ी किन ठ।
द्र के सै िनक उसे घे रे हुए खड़े थे । उसे द्र के आदे श पर आज यहाँ लाया गया था।
किन ठ को वहाँ उपि थत दे खकर भी लोग की िज ासा बढ़ गयी थी।
‘‘आिखर करना या चाहता है ये जं गली?''
द्र की दृि ट जब बे िड़य से जकड़े किन ठ पर पड़ी, तो उसने तु र त ही आदे श िदया,
‘‘प्रधानमं तर् ी किन ठ को त काल बे िड़य से मु त करो, और सस मान यहाँ मे रे पास ले
आओ। ''
द्र के इस आदे श का तु र त ही पालन हुआ। िक तु सभी लोग चिकत थे इस आदे श से ।
वयं प्रधानमं तर् ी किन ठ भी द्र के इस यवहार से है रान था। उसे कुछ समझ ही नहीं
आ रहा था िक आिखर द्र चाहता या है ?
‘‘आप सभी लोग से म ये कहना चाहता हँ ू िक आपको डरने की आव यकता नहीं है ; म
यहाँ पर रा य करने नहीं आया हँ ,ू और न ही मने राजा बनने की खाितर आपके उस दु ट
राजा दे वराज से यु िकया। मने वो यु िकया था िसफ और िसफ हम िनवािसत ब ती के
िनवािसय का प्रितशोध ले ने के िलये । आप सोिचए कैसा लगे गा आपको, अगर कोई भी
आपके बहन अथवा बे टी पर बु री दृि ट डाले ? आप खु द बताइये ।’’ द्र बोला।
उसकी बात सु नकर िनवािसत ब ती वाल की भृ कुिटयाँ तन गयी। उन सब ने उस अ याय
को महसूस िकया था। राजनगर की प्रजा भी खामोश हो गयी थी। प्रधानमं तर् ी किन ठ
की आँ खेँ भी ल जावश भूिम की ओर झुक गई थीं, य िक उनको राजनगर के सै िनक के
इस कुकृ य की जानकारी थी।
‘‘हमने िसफ अपना प्रितशोध िलया और म वादा करता हँ ू आपसे िक अब हम आपको
कोई अ य नु कसान नहीं पहुँचायगे , और रही बात रा य चलाने की, तो आपका राजा,
आपका अपना होगा। किन ठ! आज से आप राजनगर के राजा ह गे ।’’ द्र ने एक बार
िफर कहा।
सभी लोग हतप्रभ रह गये । कुछ समय पहले जो यि त यु ब दी था, उसे द्र ने
यकायक राजा बना िदया। किन ठ की आँ ख से आँ स ू बह रहे थे । वो अपनी िनयित पर
िव वास नहीं कर पा रहा था। उसने दौड़कर द्र के पाँ व छ ू िलये । वो उस यि त के
प्रित अपनी श्र ा प्रकट करना चाह रहा था, िजसने उसका जीवन ण भर म बदल
िदया था।
द्र ने किन ठ को अपने सीने से लगा िलया। उसने सभी के सामने किन ठ के आँ स ू
प छ। और िफर द्र एक बार िफर बोला,
‘‘किन ठ जी! म आपसे िसफ एक आग्रह करता हँ ू िक आप अपने इस बड़े से नगर म
हमारे िनवािसत लोग को भी रहने का अिधकार द; उ ह भी जीवन म आनं द और शाि त
का अनु भव हो... कृपया आप मे री ये िवनती वीकार कर। ''
किन ठ ने अपने आँ स ू प छते हुए कहा,''
‘‘अिधपित द्र के हर एक श द का अ रशः पालन होगा। ''
वहाँ उपि थत सभी लोग ने अिधपित द्र और राजनगर के नये राजा किन ठ की जय-
जयकार की। राजनगर की प्रजा के दय म अब उस ‘जं गली’ अिधपित की एक नयी
छिव बन गयी थी। द्र के इस फैसले ने उसकी अहिमयत बढ़ा दी थी, राजनगर की
प्रजा की दृि ट म। राजनगर के िनवािसय के मन म अब द्र के प्रित स मान और
िन ठा की भावना ने ज म ले िलया था।
िनवािसत ब ती वाल की आँ ख म आँ स ू थे । आज एक बार िफर उनके अिधपित ने इस
बात का प्रमाण िदया था िक उनसे यादा बलशाली और वीर अ य कोई नहीं है । उन
सबके िलये उनके अिधपित ने इतना कुछ िकया था, और िफर उस िसं हासन को भी उ ह ने
ग्रहण नहीं िकया। सच म अिधपित का दय अ यं त िवशाल था।
‘‘ या तु ह समझ म आया िक अभी यहाँ या हुआ?’’ िवनायक ने िव लव से प्र न
िकया। िवनायक के मु ख के भाव दे खकर ऐसा प्रतीत हो रहा था की जै से वो अभी-अभी
नींद से जागा हो। वो स न हो गया था।
‘‘अिधपित द्र ऐसे ही ह। उ ह रा य की आकां ा कभी भी नहीं थी। उनके िलये
सवप्रथम हम सब का िहत मायने रखता है , और उ ह ने ये बात आज िदखा दी।’’ वै
गगाचाय जी ने उ र िदया। उनके मु ख पर प्रस नता का भाव था।
‘‘िन चय ही अिधपित एक महान यि त ह। आज उनके प्रित स मान और िन ठा और
भी अिधक हो गयी। ऐसे अिधपित की खाितर र त का हर एक कतरा यौछावर है ।’’
प्रताप ने कहा। उसके मु ख पर िव वास के भाव थे ।
‘‘अिधपित द्र को समझना अ यं त ही मु ि कल है ।’’ िव लव ने मु कुराते हुए कहा।
उसकी दृि ट द्र के मु ख पर िटकी थी।
‘‘और उस मु ि कल को सबसे बे हतर आप ही समझते ह िव लव जी!’’ वै गगाचाय ने
मु कुराते हुए कहा।
सभी िखलिखला कर हँ स पड़े ।
द्र के मु ख पर भले ही सं तोष का भाव था, िक तु उसके दय म घोर अशाि त मची हुई
थी। उसके भीतर बहुत कुछ घट रहा था, िजसे वो सबसे छुपाये हुए था। िक तु शायद
कोई था िजसने द्र के अ तमन की अशाि त को महसूस कर िलया था, और िजसकी
दृि ट अब भी द्र के मु ख पर िटकी थी। जो द्र के हर भाव को पढ़ने की कोिशश कर
रहा था, और वो था द्र का िमत्र-िव लव।
* * *
वो राित्र का प्रथम प्रहर था। चार ओर स नाटा था। द्र उस िद य िशव मि दर म
बै ठा था। उसकी दृि ट अब भी प्रभु के मु ख को िनहार रही थी। िशव के उस व प से
द्र का असीम अनु राग हो गया था। उस मि दर म आकर द्र को असीम शाि त का
अनु भव हो रहा था। वो अब भी अपने भीतर की अशाि त से पीिड़त था।
सहसा िकसी की आहट सु नकर द्र का यान भं ग हुआ। उसने जब मु ड़कर दे खा तो वो
िव लव था। जो प्रभु िशव की मूित को प्रणाम करने के प चात द्र के समीप आकर
बै ठ गया। द्र ने जब िव लव को दे खा, तो उसे हष हुआ। वो िव लव से कुछ बात करना
चाहता था, िक तु इससे पहले िक द्र कुछ कहता, िव लव बोल पड़ा।
‘‘अिधपित द्र! म आपका िमत्र भी हँ ,ू और एक िमत्र होने के नाते म आपसे कुछ
प्र न पूछना चाहता हँ ,ू या अनु मित है ?’’ िव लव ने प्र न िकया।
‘‘अव य िमत्र!’’ द्र ने कहा।
‘‘आपको दे खकर मु झे ऐसा लग रहा है िक जै से इस समय आप िकसी बहुत बड़े िनणय िक
वजह से परे शान ह। पता नहीं य मु झे ऐसा लग रहा है िक आप मन ही मन अशा त ह।
कृपा करके मु झे बताय अिधपित, िक आपको िकस बात की िचं ता है ?’’ िव लव ने िवनीत
वर म प्र न िकया।
द्र, िव लव के प्र न सु नकर पहले तो अचरज से भर गया।
‘‘आिखर कैसे इसे मे रे अ तमन की बात पता चल गयी।’’ द्र ने सोचा। पर द्र को हष
भी हुआ िक िव लव को ले कर।
‘‘िव लव! सच म मु झे मु झसे बे हतर समझता है ।’’ द्र ने िफर सोचा।
‘‘िव लव! तु म ठीक सोच रहे हो, िपछले कई िदन से मे रा मन अशा त है ; म तु मसे इस
िवषय म बात करना चाहता था, िक तु उपयु त समय ही नहीं िमल रहा था।’’ द्र ने
कहा।
‘‘आप मु झसे अभी कह सकते ह अिधपित द्र।’’ िव लव ने कहा।
‘‘िव लव! म िसफ राजनगर से यु जीतकर ही शा त नहीं बै ठना चाहता। म हर उस
अ यायी राजा का शीश अपने हाथ से काटना चाहता हँ ू जो िकसी पर अ याचार करता
हो।’’ द्र ने अपने आप को सं यिमत रखते हुए उ र िदया।
‘‘म समझा नहीं अिधपित द्र।’’ िव लव ने कहा।
‘‘िव लव! हम सबकी अपनी मातृ भिू म है वीरभूिम, और हम एवं हमारे अ य ब ती वाल
को िनवािसत होना पड़ा नीच और अधमी कण वज के कारण; तो हमारा प्रितशोध सही
मायनो म तभी पूण होगा, जब हम वीरभूिम के राजा कण वज के प्राण ले ते ह।’’ द्र ने
अपना क् रोध दबाने का प्रय न िकया।
‘‘िक तु अिधपित! कण वज से यकायक यु करना अस भव है ; मने तो सु ना है िक उसके
पास लगभग 8 लाख सै िनक की से ना है और िफर सभी ित्रय राजा और उनकी से ना
भी कण वज के साथ ह। हम वीरभूिम के िखलाफ िकस प्रकार यु कर पायगे ?’’ िव लव
ने अपनी िचं ता द्र के सम प्रकट की।
‘‘इसीिलए िव लव, पहले हम उन छोटे -छोटे ित्रय राजाओं से यु करगे और जब हम
उनको परािजत कर लगे , तो उसके उपरांत हम कण वज के िव यु करगे ।’’ द्र ने
अपनी बात कही। द्र को आशा थी की िव लव उसकी बात अव य समझे गा।
‘‘पर अिधपित द्र, अगर हम उन ित्रय राजाओं से एक-एक करके भी यु करगे , तो
या ऐसा नहीं हो सकता िक वो सभी ित्रय राजा एक साथ िमलकर हमसे यु कर।’’
िव लव ने कहा। वो द्र के सम हर पिरि थित को प्र तु त कर रहा था। वो द्र की
उस योजना से पूण प से आ व त हो जाना चाहता था।
‘‘भले ही वो ित्रय, राजा कण वज के प्रित आ था रखते ह , िक तु आपस म वो एक
दस ू रे से प्रबल ई या करते ह। वो एक दसू रे की हार से प्रस न ह गे , इसिलए इस िवषय
पर िनि चं त रहो।’’ द्र ने जवाब िदया।
‘‘तो िफर शु आत कैसे होगी अिधपित?’’ िव लव ने एक बार िफर प्र न िकया।
‘‘िव लव! शु आत हम सबसे छोटे रा य से करगे , और िफर एक-एक करके बड़े रा य
से यु करगे ।’’ द्र ने कहा।
‘‘आपकी योजना उ म है अिधपित! प्रभु िशव की कृपा से आप अव य ही सफलता
प्रा त करगे , और अपना... नहीं, हम सबका प्रितशोध पूरा करगे ।’’ िव लव ने द्र के
िवचार से सहमित जताई।
‘‘ या तु म मे रे साथ हो िव लव?’’ द्र ने प्र न िकया। उसके श द म एक
अिनि चतता का भय या त था।
‘‘म हमे शा आपके साथ हँ ू अिधपित द्र! िसफ म ही नहीं, हम सब आपके साथ ह
अिधपित।’’ िव लव ने उ र िदया। उसके श द म दृढ़ता थी।
द्र ने आगे बढ़कर िव लव को गले से लगा िलया। द्र की आँ ख म आँ स ू थे , िक तु
उसने िव लव की ऩजर से अपने आँ स ू छुपा िलये थे । िव लव भी द्र के इस ने ह से
भावु क हो गया था। िव लव के िलये ये स मान िक बात थी की अिधपित द्र, उसके
ऊपर इतना भरोसा करते ह। वे दोन िमत्र आपस म गले लगे रहे , और िफर...
‘‘ध यवाद अिधपित!’’ िव लव ने अपने आँ स ू प छते हुए कहा।
‘िकसिलये ?’ द्र ने आ चय होते हुए पूछा।
‘‘मु झे इतना स मान दे ने के िलये ।’’ िव लव ने कहा।
द्र ने कुछ नहीं कहा। दोन िमत्र अब प्रभु िशव की मूित दे खने लगे । एक बार िफर
उस मि दर म आकर द्र के मन की अशाि त छ-ू मं तर हो गयी थी। द्र प्रभु िशव से
अपने इस नये ल य की प्राि त हे तु आशीवाद माँ ग रहा था।
‘‘हर-हर महादे व!’’ द्र ने कहा।
‘‘हर-हर महादे व!’’ िव लव ने दोहराया।
* * *
अगले िदन राजनगर के नए राजा, किन ठ का रा यािभषे क हुआ। द्र ने किन ठ को
मु कुट पहनाया, य िक किन ठ ने उससे याचना की थी िक वही उसको मु कुट पहनाये ।
द्र उसकी याचना को टाल नहीं सका। किन ठ बहुत प्रस न हुआ।
रा यािभषे क के बाद अ य सां कृितक कायक् रम एवं उ सव का आयोजन िकया गया।
सभी प्रजा को उपहार बाँटा गया। राजा बनने के बाद किन ठ ने जो पहली घोषणा की वो
ये थी की,
‘‘आज से राजनगर म कोई िनवािसत नहीं होगा। अिधपित द्र के सभी ब ती वाले
आिधकािरक प से राजनगर के िनवासी ह गे और उ ह भी अ य सभी अिधकार प्रा त
ह गे , जो राजनगर की प्रजा को िमले हुए ह। ''
द्र समे त हर कोई किन ठ के इस यवहार से अ यं त हिषत हुआ। किन ठ के इस
यवहार से उसका स मान राजनगर की प्रजा म और भी यादा बढ़ गया। पूरे राजनगर
म उ सव का माहौल था। नये राजा को पाकर राजनगर म हर कोई हिषत था।
रा यािभषे क होने के बाद द्र, िव लव, िवनायक, प्रताप एक क म आगे की योजना
बनाने के िलये बै ठे थे । कौ तु भ, िजसका वा य अब पूण प से ठीक हो चु का था, वो भी
द्र के साथ क म उपि थत था।
उन सभी को द्र की योजना के िवषय म िव लव से सारी जानकारी िमल चु की थी, और
अब वो अपनी योजना को फलीभूत करने हे तु िचं तन कर रहे थे ।
‘‘कण वज को िजन बीस अ य ित्रय राजाओं का समथन िमला है उनम दे वराज भी
एक था। अब हम कण वज के सहयोगी अ य ित्रय राजाओं से यु करना है ।’’
िवनायक ने कहा, िजसने सभी रा य के बारे म जानकारी जु टाई थी।
‘‘हमारा अगला ल य कौन सा रा य होगा?’’ कौ तु भ ने प्र न िकया।
‘िवराटनगर।’ िवनायक ने उ र िदया।
‘‘जै सा िक हम पता चला है , उन सभी रा य म केवल दे वगढ़ और वीरभूिम रा य के पास
पाँच लाख से अिधक सै िनक ह; अ य सभी रा य के पास 1 लाख से कम सै िनक ह, और
उनम से सबसे छोटा और कम सै िनक वाला रा य है िवराटनगर।’’ द्र ने उ र िदया।
‘‘अिधपित! हम यु के िलये कब कू च करना होगा?’’ प्रताप ने प्र न िकया।
‘‘हम शीघ्र ही कू च करगे प्रताप।’’ द्र ने उ र िदया।
‘‘अिधपित! शीघ्र ही कू च कीिजये , अब इन हाथ म भी खु जली हो रही है ; कई िदन हो
गये यु लड़े ।’’ कौ तु भ ने कहा।
‘‘कौ तु भ! लगता है तु म िपछले यु को बहुत ज दी ही भूल गये ।’’ िवनायक ने कहा।
‘‘और उन ज म को भी।’’ अब तक शा त खड़े रहे िव लव ने कहा। सभी हँ स पड़े ।
द्र भी हँ स पड़ा। अब उसे अपने िमत्र की ये िठठोली पसं द आने लगी थी।
‘‘ या हम राजनगर के सै िनक भी लगे अिधपित?’’ िव लव ने प्र न िकया।
‘‘ या हम आव यकता है ?’’ द्र ने हँ सते हुए कहा।
‘नहीं।’ सभी ने एक वर म कहा।
‘‘तो िफर तै यार रहो िमत्र ! अब हम शीघ्र ही इस धरा से अ याय को समा त करगे ।’’
द्र ने कहा।
द्र ने उन सबसे िवदा ली और अपने क म आ गया। द्र ने अब नये ल य का
िनधारण कर िलया था। या सच म ये नया ल य था?
‘‘तो पु त्र! या तु हारा िसफ अपने प्रित ा को पूरी करने के िलये , इस धरा से पूरे
ित्रय वं श को समा त कर दे ना या अ याय नहीं होगा? या तु हारा ित्रय वं श के
कई िनदोष लोग को मारना अधम नहीं होगा? ऐसा करके या तु म भी खु द को उसी
अधमी राजा के समान दोषी नहीं पाओगे ?’’ उस ित्रय ने द्र से प्र न िकया।
‘‘पर काका! प्रभु परशु राम ने भी तो िकया था.....’’ द्र िकसी तरह बोला।
‘‘वो ई वर थे द्र! और ई वर से वयं की तु लना अ ानता होगी पु त्र; िफर िफर ये
बताओ िक या इस धरा से स पूण ित्रय को समा त करने के उपरांत भी प्रभु
परशु राम को शाि त िमली?’’ उस ित्रय ने पूछा।
द्र अब चु प हो गया था। उसके पास अब काका के प्र न का उ र दे ने का कोई तक
नहीं था। उसे काका की बात समझ म आ गयी थी। पर आिखर उसने प्रित ा ली हुई थी,
उसका वो या करता?
‘‘काका! म आपकी बात से सहमत हँ ,ू िक तु मे री प्रित ा का या होगा? या म उसे
अधूरी ही छोड़ दँ ?ू या म अपना प्रितशोध पूरा न क ँ ?’’ द्र ने काका से प्र न
िकया। द्र अब याकुल हो गया था।
‘‘पु त्र! तु ह पूरा अिधकार है अपनी प्रित ा पूरी करने का, िक तु प्रित ा पूण करना
और अपना प्रितशोध ले ना दो अलग काय ह; तु ह इस बात को समझना चािहये िक
अगर तु हारी प्रित ा से अ याय या अधम हो रहा हो तो तु ह अपनी प्रित ा
सं शोिधत कर ले नी चािहये ।’’ उस ित्रय ने उ र िदया।
द्र ने आँ ख खोल दीं। काका की कही हुई बात उसके कान म गूँज रही थीं।
िवगत वषों की घटनाएँ
पाँच वष उपरांत
िपछले पाँच वष द्र के जीवन के िलये बहुत ही किठन रहे । िसफ द्र ही नहीं, वरन
उसके सभी सहयोिगय के िलये िपछले पाँच वष सं घष भरे रहे । अपने प्रितशोध को पूरा
करने के िलये और कण वज तक पहुँचने के िलये द्र ने उ नीस यु लड़े । अनिगनत
लोग मारे गये , अनिगनत सै िनक घायल भी हुए, पर प्रभु िशव के आशीवाद से और द्र
एवं उसके सहयोिगय के पराक् रम के कारण हर यु का पिरणाम द्र के अनु कूल आया।
द्र ने उन सभी यु म हर ित्रय राजा को अपने हाथ से मारा, पर उसने िकसी भी
रा य पर शासन नहीं िकया। उसने हर रा य म यो य यि त को रा य का अिधकार
िदया।
द्र ने अपने जीवन के ल य को पूरा करने की खाितर एक पल भी आराम नहीं िकया।
उसने हर अ याय करने वाले एवं अ याय का साथ दे ने वाले शासक का प्रितरोध िकया।
िव लव, हर यु म द्र की परछाइं बनके खड़ा रहा। अगर उन यु म द्र ने अपना
सव व झ क िदया था, तो िव लव भी पीछे नहीं था। उसने हर यु म भीषण सं घष िकया।
कई बार घायल हुआ और कुछ एक बार तो मृ यु उसके िनकट से भी गयी; िक तु िव लव
ने हार नहीं मानी, वो द्र के ल य को पूरा करने के िलये उसके साथ डटा रहा।
कौ तु भ और िवनायक ने भी िपछले पाँच वषों म अपनी वीरता के कई जौहर िदखाये थे ।
उ ह ने भी द्र के इस सं घष म उसका पूण सहयोग िदया था। ये अलग की बात है िक
कौ तु भ लगभग हर यु म घायल हुआ, और वै जी ने हर बार उसे पूव की भाँ ित व थ
कर िदया। कौ तु भ के घायल होने की वजह से िवनायक और िव लव अिधकां श मौक पर
उसका उपहास बनाते थे ।
प्रताप, अब द्र की से ना का से नापित हो चु का था। उसके ने तृ व म द्र की से ना के
पाँच लाख सै िनक थे । ये सभी सै िनक उन रा य के थे , िज ह द्र ने यु म परािजत
िकया था, और ये सै िनक वे छा से द्र के साथ शािमल हुए थे ।
वै गगाचाय जी ने हर एक यु म अपनी त परता एवं ान से कई प्राण की र ा की
थी एवं कई घायल का उपचार िकया था। द्र की हर सफलता का वो एक मह वपूण
त भ थे ।
द्र की ये सफलता बहुत आसान नहीं रही थी। हर बार सं घष हुआ था, िक तु द्र की
अचूक योजना एवं उसके सै िनक की वीरता ने हर मु ि कल को पार पा िलया था।
6. िवराटनगर का यु
िवराटनगर, भारत दे श के उ र म बसा एक छोटा सा रा य था। उस रा य की िवशे षता
ये थी िक उस रा य से भारतवष की सबसे मह वपूण और पिवत्र नदी होकर गु जरती
थी। वो नदी वहाँ के िनवािसय के िलये पूजनीय थी। वहाँ के लोग उस नदी को माता
कहते थे , उस नदी को ई वर का प मानते थे , िवराटनगर के िनवासी। और ये उस पिवत्र
एवं पूजनीय नदी का ही प्रताप था िक िवराटनगर की धरती सोना उगलती थी। वहाँ के
खे त म फसल हमे शा लहराती रहती थीं। कृषक, कम मे हनत म ही अिधक अनाज
उ प न कर ले ते थे । ई वर का आशीवाद था, वहाँ के खे त मे । कभी भी सूखा नहीं पड़ा था
उस रा य मे ।
रा य के मु य नगर म भी लोग प्रस न थे । वहाँ के िनवािसय को मूलभूत से वाय
सु लभता से उपल ध थीं। नगर म सड़क का एक सु दृढ़ जाल िबछा हुआ था। लोग के
बीच खु शी का माहौल था। लोग, रा य के शासन और शासक से सं तु ट थे ।
िवराटनगर का यु द्र के िलये बहुत यादा मु ि कल नहीं था। एक तो उस रा य का
राजा पं त, एक अयो य शासक था, और दस ू रा वो डरपोक भी था। जब द्र की से ना यु
के िलये िवराटनगर की सीमा पर पहुँची, तो पहले तो उसने सं िध की पे शकश की, उसने
द्र को बहुमू य मु दर् ा एवं अ य व तु दे ने की बात कही; िक तु जब द्र ने उसके सं िध
प्र ताव को ठु करा िदया तो वो लड़ने को तै यार हो गया।
उसके सै िनक भी द्र के सै िनक की अपे ा सं या म कम ही थे , और इस कारण शीघ्र ही
द्र की से ना ने उसकी से ना का नाश कर िदया। उसके सै िनक, द्र की से ना के सम
प्रितरोध ही नहीं कर पाये ।
जब िवराटनगर के राजा पं त ने अपनी हार को अपने सम दे खा, तो वो यु भूिम से
भागने लगा, िक तु द्र ने उसे भागने का अवसर ही नहीं िदया। द्र ने पं त की जीवन
लीला समा त करके उस यु का समापन िकया।
िवराटनगर रा य से यु जीतने के उपरांत द्र ने पं त के ये ठ पु त्र को िसं हासन पर
िबठाया एवं यायिप्रय रहने का आदे श िदया।
िवराटनगर का यु द्र की सोच से भी अिधक आसान सािबत हुआ।
िवराटनगर के बाद भी अ य यु द्र की से ना के िलये अिधक परे शान करने वाले नहीं
रहे । चाहे वो त राज का यु हो या वृ हद के िव यु हो, भगहर का यु हो या
िद यनगर का। द्र की से ना अपना िवजय पताका फहराती जा रही थी।
द्र, िवजय के रथ पर सवार होकर आगे बढ़ता जा रहा था। वो हर एक यु के बाद
अपनी िवजय से अपने ल य को अपने और भी अिधक पास दे ख रहा था। द्र ने जब
अपने इस ल य का िनधारण िकया था, तो उसे अपने सम आने वाले चु नौती और खतरे
का आभास था। पर अभी तक के यु द्र के हौसले को पर लगा रहे थे ।
उसके वीर सै िनक के अद य साहस ने द्र को अपरािजत बना िदया था। सभी ित्रय
राजा अब उसके नाम और वीरता से पिरिचत थे , िक तु आपस की जलन ने उन सबको एक
होने से रोक रखा था।
ित्रय वं श के पथ-प्रदशक एवं वीरभूिम के सम्राट कण वज ने भी द्र नाम के खतरे
को महसूस िकया था। िक तु वो उस जं गल की से ना को अिधक अहिमयत नहीं दे ना
चाहते थे , इसिलये उ ह ने अपना सं देश कौशल, भानगढ़, िसं घराज और जयनगर के
राजाओं को भे ज िदया था। सम्राट कण वज ने अपने सं देश म प ट आदे श िदया था िक
अगर द्र ने उनम से िकसी भी रा य पर आक् रमण िकया तो सभी रा य िमल कर उसके
िव यु लड़गे ।
सम्राट कण वज को द्र की मताओं का आभास हो चु का था, और इसीिलये वो उस
जं गल के अिधपित के सम किठनाई लाना चाहते थे ।
और अब द्र के सम ये किठनाई आ चु की थी, य िक अब उसका कािफला पहुँच चु का
था कौशल रा य की सीमा पर।
कौशल का यु
कौशल, भारत वष के पूव म ि थत एक रा य था और वो िघरा हुआ था तीन अ य रा य
से , िजनके नाम थे िसं घराज, भानगढ़ और जयनगर। कौशल रा य म बड़े -बड़े पहाड़ थे ।
कई निदय का उद्गम थल भी कौशल म ही ि थत था। कौशल रा य की िवशे षता ये
थी, िक वो भारतवष के अ य रा य की अपे ा सवािधक ठं ढा रा य था। कौशल रा य
की जलवायु अ य रा य से बहुत िभ न थी।
उस रा य के मु य नगर म भी लोग के म य शाि त थी। लोग शासन से सं तु ट थे । उ ह
एक बे हतर शासन िमल रहा था। उनकी मूलभूत आव यकताएँ भी रा य के प्रशासन
ारा पूरी की जा रही थीं। वो एक अलग िवषय था िक रा य के सभी लोग को उन
सु िवधाओं को पाने का हक नहीं था।
रा य म जो धनी वग के लोग थे , जो मु यत: साहक ू ार, राजमहल के कमचारी और सै िनक
होते थे ; सबसे यादा सु िवधाओं का लाभ उ हीं को िमल रहा था, और जो गरीब और
मजदरू लोग थे , उ ह कोई सु िवधा नहीं िमल रही थी। पर अब जब प्रजा के धनी वग को
सभी सु िवधाय िमल रही थी, तो वो राजा के शासन का बखान करते थे , और यही कारण
था िक वहाँ के लोग का असं तोष बाहर नहीं आ पा रहा था।
कौशल के यु से पूव द्र 10 ित्रय राजाओं से यु जीत चु का था। उसका नाम पूरे
दे श म फैल चु का था। हर कोई उसके बढ़ते कदम के िवषय म जान चु का था। अ य
ित्रय राजाओं को अब अपने ऊपर मँ डराते खतरे का एहसास हो चु का था, और
इसीिलये जब द्र का कािफला कौशल रा य की सीमा पर पहुँचा तो वो आ चयचिकत
रह गया।
द्र के िव कौशल रा य की से ना का साथ दे ने के िलये तीन अ य रा य िसं घराज,
भानगढ़ और जयनगर की से ना भी आ गयी थी। उनकी सं यु त से ना की सं या 1 लाख से
थोड़ा ऊपर थी। हालाँ िक द्र की से ना भी अब सं या मक प से काफी सु दृढ़ हो चु की
थी, िफर भी अभी उसके सै िनक की सं या 80 ह़जार से थोड़ा ऊपर ही थी।
िसं घराज, भानगढ़ और जयनगर की बात कर, तो उन रा य की भौगोिलक और
सामािजक ि थित भी कौशल रा य से अिधक िभ न नहीं थी। िक तु हर रा य म प्रजा
का िवद्रोही ख दबा हुआ ही था।
यु से पूव की रात द्र के िशिवर म उसके सभी सहयोगी थे , और सभी कौशल,
िसं घराज, भानगढ़ और जयनगर की सं यु त से ना की सं या को ले कर िचं ितत थे । सबके
मत के अनु सार ये यु जीतना बहुत ही मु ि कल है ।
और तब पहली बार द्र ने उन सबके सम बताया था, एक ऐसे अनोखे यूह के बारे म,
िजसके िवषय म न कभी िकसी ने कुछ सु ना था, और न ही कुछ जाना था, य िक उस
यूह की रचना वयं द्र ने की थी।
और जब द्र ने सबके सम अपनी उस यूह रचना के िवषय म बताया तो सब है रान रह
गये । वहाँ उपि थत सभी लोग ने अपने जीवन म कभी ऐसी किठन िक तु िकसी भी
त् िट से रिहत यूह रचना के िवषय म नहीं सु ना था। वो सब द्र की यूह रचना को
सु नकर स न रह गये थे ।
और उसी समय िव लव ने कहा था,
‘‘अब जब इस अनोखी यूह रचना की उ पि वयं अिधपित ने की है , तो हम सब आज
से इस यूह का नामकरण अपने अिधपित के नाम से करगे । ''
‘‘अिधपित एक बार आप वयं ‘ यूह’ का पूण नाम उ चिरत कर!’’ प्रताप ने अिधपित
द्र से िनवे दन िकया था।
‘ द्र- यूह।’ द्र ने कहा।
‘ द्र- यूह!’ सभी ने उसे उ चािरत िकया।
यु के िदन पहले द्र ने सभी को आदे श िदया था िक द्र यूह की रचना उसी दशा म
होगी, जब हम चक् राकार यूह म असफल हो जाएँ गे। द्र, सवप्रथम चक् राकार यूह
से ही िवरोिधय को परािजत करना चाहता था। द्र की से ना उन ित्रय रा य की
सं यु त से ना के म य घु सने का प्रय न करने लगी, िक तु असफल ही रही, और इसी
कोिशश म भानगढ़ के राजा साम त के वार से िव लव घायल हो गया था। प्रभु िशव की
कृपा से िव लव यादा घायल नहीं हुआ था, िक तु िव लव के मु य मोच से हटते ही
िवप ी सै िनक ने द्र की से ना का भीषण नाश करना प्रार भ कर िदया था।
द्र ने जब अपने सै िनक का इस भाँ ित नाश होते दे खा, तो उसने शीघ्र ही शं ख बजाकर
अपनी से ना को इशारा िकया। द्र का इशारा पाते ही से ना एक िविचत्र प से बँ टने
लगी और िवप ी दल के भीतर घु सने लगी। िवप ी से ना है रान थी। उ ह ने कभी इस
भाँ ित िकसी से ना को यूह िनमाण करते नहीं दे खा था।
द्र की से ना सबसे पहले एक सीधी पं ि त म खड़ी हो गयी थी। उसके बाद उसकी से ना
के दो धड़े दाय और बाय िदशा म एक िविचत्र सं रचना म खड़ी हुई और उस सीधी पं ि त
से जु ड़ गइं । द्र की से ना के इस भाँ ित से सं रचना बनाने का प्रभाव ये पड़ा िक िवप ी
ित्रय राजाओं की सं यु त से ना दो धड़ म बँ ट गयी, और ये उस से ना के िलये एक
प्रितकू ल ि थित थी। उनका बल अब बँ ट गया था।
जै सी िक सं रचना द्र की से ना ने बनाई थी, अगर उसको यान से दे खा जाता, तो वो
एक ित्रशूल जै सी िदख रही थी; एक िवशाल ित्रशूल की भाँ ित।
और यही था सबसे अद्भुत और अनदे खा यूह, जो िक त् िटहीन था। िजसने िवप ी
से ना का बल तोड़ िदया था... ये था -‘ द्र यूह।'
इस द्र यूह की सबसे मह वपूण बात ये थी की इसके मु हाने पर खड़े थे , द्र की से ना
के सभी वीर यो ा; और उस बीच वाली पं ि त के मु हाने पर ने तृ व कर रहा था वयं द्र।
वयं द्र ने भी उस यु को अपनी मौजूदगी से रँ ग िदया था। न जाने िकतने िवरोधी
सै िनक द्र के उस फरसे का िशकार हुए थे । द्र के भयानक और घातक वार ने ित्रय
राजाओं की सं यु त से ना के सै िनक को मु ि कल म डाल िदया था।
और िफर द्र के सम खड़ा हुआ भानगढ़ का राजा साम त। उसने द्र से सीधे यु
करने हे तु अपने दोन हाथ म तलवार ली हुई थी। उसने अपने घोड़े को भी याग िदया
था। उसने द्र को आमने -सामने के यु की चु नौती दी थी।
साम त की चु नौती सु नकर द्र भी अपने घोड़े से कू द गया। वो एक जबरद त यु होने
वाला था, जहाँ एक ओर साम त था, िजसके दोन हाथ म तलवार थी, वहीं दस ू री ओर
था द्र, िजसने अपने हाथ म िलया हुआ था खून से सना हुआ फरसा। िनि चत ही
साम त बहादुर था, जो उसने द्र के भीषण सं हार को दे खकर भी उसको आमने -सामने के
यु के िलये चु नौती दी थी।
दोन यो ा एक दस ू रे की ओर झपटे और अपने अ त्र से प्रहार िकया। साम त के दायीं
हाथ के तलवार के प्रहार को द्र ने अपने फरसे से रोका, और उसी ण साम त के बाय
हाथ की तलवार से हुए वार से बचने के िलये वो झुका। द्र को इस बात का अनु भव हो
गया था िक साम त दोन हाथ से वार करने म प्रवीण था। उसके वार से बचने के िलये
द्र को अिधक सावधानी की आव यकता थी।
साम त और द्र के म य काफी दे र तक यु चल रहा था, और िफर अचानक ही साम त
के एक वार ने द्र के दाय क धे को चीर िदया। साम त के बाएँ हाथ की तलवार के वार से
वयं को बचाने के िलये द्र ने अपना फरसा आगे कर िदया था, िक तु साम त की दाय
हाथ की तलवार के वार ने अपना काय कर िदया था। द्र की चीख िनकल गयी। द्र के
दाय क धे से र त की बूँद भूिम पर िगरने लगी। उसके क धे से मांस िदखाई दे रहा था।
िनि चत ही साम त ने एक शि तशाली वार िकया था, अ यथा द्र के मु ख से दद की
चीख िनकालना आसान काय नहीं था। अपने प्रित ं ी को दद से चीखते दे खकर साम त
प्रस न हुआ।
िक तु द्र शीघ्र ही अपने दद से सँ भला और िफर उसका क् रोध भड़क गया। उसकी
आँ ख एक बार िफर क् रोध की वजह से लाल हो गइं । आज पहली बार िकसी प्रित ं ी ने
उसके र त को िनकाल िदया था। साम त के इस वार ने द्र को क् रोध की अि न म
जला िदया था।
इस बार द्र के फरसे के वार रोकने के िलये जब साम त ने अपनी तलवार आगे की, तो
उसकी तलवार भूिम पर िगर पड़ी। साम त, द्र के उस वार को सँ भाल ही नहीं पाया, या
यूं कह िक साम त तो इस बात का एहसास ही नहीं था, िक कोई इतना बलशाली वार भी
कर सकता है । और द्र का अगला वार सीधे साम त की गदन पर हुआ, और एक
जोरदार चीख के साथ साम त का िसर धड़ से अलग हुआ। आिखरकार द्र ने साम त को
वग पहुँचा िदया।
और उसके बाद िफर द्र ने शीघ्र ही उस यु को समा त करने की ठान ली थी। अ य
राजाओं को मारने म उसने यादा समय नहीं िलया।
द्र ने एक बार िफर अद्भुत वीरता एवं कौशल का प्रदशन िकया था। उसके द्र- यूह
ने तो यु म िवरोधी से ना का नाश ही कर िदया था। िवरोधी सै िनक तो उस यूह को
समझने म ही लगे रहे , और द्र के सै िनक ने यु को समा त कर िदया।
यु के प चात द्र और िव लव दोन , वै गगाचाय के पास एक साथ ले जाये गये थे ,
उपचार के िलये । पहली बार अिधपित द्र भी यु म घायल हुए थे , िक तु उनकी से ना ने
एक साथ चार रा य की से ना को हरा िदया था। चार रा य के सं यु त सै िनक भी द्र का
रा ता नहीं रोक पाये थे । वो सभी द्र को उसके ल य की प्राि त से नहीं रोक पाये थे ।
कौशल के यु ने द्र को अचानक से पूरे दे श का सबसे बड़ा यो ा बना िदया था। अब
उसके ने तृ व म सबसे अिधक रा य हो चु के थे । द्र हिषत था। अब उसका ल य उसकी
पहुँच से अिधक दरू नहीं था।
अब तक द्र, उ नीस ित्रय राजाओं को मार चु का था। उसने उन उ नीस अ यायी
शासक को उस अ यायी कण वज का साथ दे ने की स़जा दी थी, िजसने द्र और उसके
ब ती वाल को िनवािसत िकया था। वो शीघ्र ही कण वज से अपना प्रितशोध ले ने
वाला था।
कौशल के यु के बाद द्र की से ना का आ मिव वास भी चरम पर पहुँच चु का था। ऐसे
यु को जीतने के बाद वो हािदक प्रस न थे । इसम कोई शक नहीं था िक इस यु म
द्र के कई सै िनक मरे थे , और ये एक किठन यु था; िक तु आिखर म जो ची़ज मायने
रखती है वो होता है पिरणाम, और पिरणाम द्र की से ना के प म था।
कौशल के यु म ही पहली बार प्रताप को आिधकािरक तौर पर द्र की से ना का
से नापित िनयु त िकया गया था, और प्रताप ने अपना काय पूरी त मयता से िनभाया।
द्र का से नापित अपने प्रथम यु म ही िवजयी हुआ था।
कौशल के यु के बाद द्र पूरे दे श म एक िसतारे की भाँ ित चमकने लगा था। और अब
वो िनि चत ही पूरे दे श का सबसे प्रभावशाली यि त बन चु का था, िबना िकसी रा य
पर शासन िकये हुए।
द्र ने िपछले कुछ वषों म जो प्रिसद्िध और स मान पाया था, वो केवल इसिलये ही
नहीं था िक उसने इतने यु को जीता था, बि क इस बात के िलये भी था िक जीतने के
बाद भी उसने िकसी रा य के िसं हासन को हाथ नहीं लगाया था। उसे कभी भी िसं हासन
की लालसा नहीं थी। वो िसफ यु कर रहा था, प्रितशोध के िलये ।
द्र अपने प्र ये क यु के साथ ही अपने प्रित ा को भी पूरी करने की ओर बढ़ रहा
था। द्र के िलये उसकी प्रित ा ही उसका जीवन थी।
दे वगढ़ म द्र
द्र, दे वगढ़ का यु भी जीत चु का था। दे वगढ़ के राजा जयं त को मार कर उसने
कण वज के सभी सहयोगी ित्रय राजाओं को समा त कर िदया था। अब द्र के
सामने उसके जीवन का एकमात्र ल य पूरा करने का रा ता था।
दे वगढ़ ि थत था म य भारत से थोड़ा उ र की ओर। वो भारतवष के सबसे िवशाल
रा य म से एक था... रा य के भौगोिलक दृि ट से और से ना की सं याबल की दृि ट से
भी। दे वगढ़ रा य म उ र से बहने वाली कई निदयाँ होकर िनकलती थीं, इसिलये खे ती
के िलये वहाँ की भूिम अ यिधक उपजाऊ और उ म थी।
रा य म शासन भी शानदार था। प्रजा, राजा से प्रस न थी। प्रजा को रा य के शासन
ारा कई सहिू लयत िमली हुई थीं। उस रा य म कोई भी यि त भूखा नहीं सोता था,
ऐसी लोग म धारणा थी, य िक वहाँ के लोग पर ई वर की कृपा थी।
दे वगढ़ का यु भी द्र ारा लड़े गये किठन यु म से एक था। दे वगढ़ के राजा जयं त
ने तो द्र की से ना का मनोबल ही तोड़ िदया था। जयं त ने अकेले ही कौ तु भ िवनायक
और प्रताप को घायल कर िदया था। उसने द्र की से ना म भगदड़ मचा दी थी। जयं त
ने अपने वीरता से द्र की से ना को हतो सािहत कर िदया था।
और तो और, जयं त ने द्र के घोड़े को भी एक ही वार म मार डाला था, और द्र को
भूिम पर िगरा िदया था। जयं त ने यु भूिम म अपनी एक अिमट छाप छोड़ दी थी, पर
िव लव ने जब उस पर तीर की वषा शु कर दी, तो जयं त र ा मक हो गया। यु म
पहली बार जयं त पर कोई भारी पड़ गया था।
द्र उसके बाद जब खड़ा हुआ तो वो सीधे जयं त की से ना की और दौड़ा। द्र को इस
भाँ ित भागता दे ख िव लव भी द्र के साथ पै दल ही भागा। अपने अिधपित को दे खकर
द्र की से ना भी िवप ी खे मे की ओर दौड़ी।
और िफर यु म मार-काट मचाने की बारी द्र के फरसे की थी, िजसकी खून की यास
लगातार बढ़ती ही जा रही थी। एक बार िफर वो फरसा र त एवं मांस के लोथड़ से सना
हुआ िदख रहा था।
िव लव की तलवार ने भी दे वगढ़ के सै िनक की लाश िबछा दी थी। द्र के साथ यु
करते व त िव लव एक अ यं त अद्भुत ही भाव से भर जाता था। उसने िकसी भी िवप ी
सै िनक पर दया नहीं िदखायी।
द्र की से ना भी द्र के साथ थी, और इस कारण से द्र को मौका िमल गया जयं त के
आगे खड़े सै िनक को मार कर उसके पास पहुँचने का। द्र, जब जयं त के सामने पहुँचा
तो जयं त के बाण ने उसका वागत िकया। वो बाण द्र के पे ट म लगा। द्र को पीड़ा
का अनु भव हुआ। उसके र त उसको हुई पीड़ा को य त कर रहे थे । द्र ने शीघ्र ही
अपने हाथ म लपे टा अं गव त्र अपने घाव पर बाँ ध िलया, इससे द्र का र त बहना
ब द हो गया और पीड़ा भी थोड़ा कम हुई। एक बार िफर द्र तै यार था।
अपने िवप ी राजा को घाव दे कर जयं त को एक छोटी सी िवजय िमल चु की थी। उसे
अ यिधक प्रस नता हुई, जब द्र पीड़ा को महसूस कर रहा था। जयं त, द्र को घायल
करने के बाद द्र के ऊपर और आक् रामकता से वार करना चाहता था, िक तु िव लव ने
उसको अपने साथ यु के िलये उलझा िलया। वो द्र के ऊपर वार ही नहीं कर पाया।
अब द्र एक बार िफर जयं त के स मु ख था। दोन ने एक दस ू रे को दे खा, और िफर अपना
वार के िलये द्र सीधा जयं त के घोड़े की ओर उछला। जयं त असावधान था। उसे इस
बात का अं दा़जा भी नहीं था िक द्र इतना ऊँचा उछल सकता है । और यही असावधानी
जयं त को भारी पड़ गयी। जब द्र उछलकर भूिम पर िगरा, तो वो अकेला नहीं था,
उसके साथ ही िगरा जयं त का िसर और उसका िन प्राण शरीर भी। एक बार िफर द्र ने
िवजय पायी थी। एक बार िफर उसके प्रित ं ी राजा का िसर उसके ारा ही काटा गया
था।
िव लव ने शं ख बजाकर औपचािरक प से द्र की से ना के िवजय की घोषणा की। उस
शं ख की विन पूरे वातावरण म गूँज गयी। वो द्र के िवजय की घोषणा थी। वो याय के
िवजय की घोषणा थी। वो उन िनवािसत लोग के प्रितशोध के िवजय की घोषणा थी।
िवप ी सै िनक ने हिथयार डाल िदये थे । और िफर आिखर वो करते ही या? जब उनका
ने तृ व करने वाला राजा ही न रहा हो तो िफर यु करने का लाभ ही या था।
द्र की जीत हुई।
* * *
प्रात:काल का समय था। द्र अब भी दे वगढ़ के महल म अपने िब तर पर ले टा हुआ
था। वो आज कुछ अिधक ही थकान महसूस कर रहा था। वो अपने हर एक अं ग को
आराम दे ना चाहता था। और िफर आज िकतने िदन बाद तो द्र को ऐसी नींद आई थी।
वो अपने सपन की दुिनया म गोते लगा रहा था। अपने ल य को प्रा त करने वाला ही
था द्र, िक अचानक उसकी आँ ख खु ल गयीं।
उसने कुछ आवा़ज सु नी थीं, और इसी वजह से उसकी नींद टू ट गयी। द्र अपने िब तर
से उठा, और उस आवा़ज की िदशा म आगे बढ़ा। वो आवा़ज महल के पीछे बनी
यायामशाला से आ रही थी।
अब वो आवा़ज द्र को एकदम साफ सु नायी दे रही थी। ऐसा लगता था िक जै से कोई
तलवार से अ यास कर रहा हो। द्र उसे आवा़ज से महसूस कर रहा था।
‘‘इतनी सु बह-सु बह कौन इस महल म अ यास कर रहा होगा?’’ द्र ने मन ही मन
िवचार िकया।
अब द्र, अ यास करने वाले को दे खने हे तु आतु र था। वो शीघ्रता से यायामशाला
पहुँच गया था। वहाँ उसने दे खा िक दो तलवारबा़ज िज ह ने अपने पूरे मु ख को िकसी
व त्र से ढका हुआ था, वो आपस म तलवार का अ यास कर रहे थे । पहले तो द्र उन
तलवारबा़ज को डाँटना चाहता था, िक उनकी वजह से उसकी नींद टू टी और उसका
सपना पूरा नहीं हुआ।
पर अब जब द्र ने उन तलवारबाज को अ यास करते दे खा तो वो है रान रह गया,
य िक उनम से एक तलवारबा़ज िजस भाँ ित तलवार चला रहा था, वो अद्भुत था। उस
तलवारबा़ज की गित, उसके वार, उसका तरीका, सब कुछ पूण प से त् िट रिहत था।
द्र उस तलवारबा़ज के कौशल से अ यिधक प्रभािवत हुआ। वो वहाँ खड़ा होकर
एकटक उस यु -अ यास का आनं द ले रहा था।
सही मायन म द्र ने उस तलवारबा़ज की भाँ ित िकसी अ य को प्रदशन करते नहीं
दे खा था। वो उस तलवारबा़ज के कौशल से अ यिधक है रान था।
‘‘अद्भुत कला का प्रदशन कर रहा है ये तलवारबा़ज।’’ द्र ने अपने मन म ही कहा।
सहसा द्र ने दे खा िक वो तलवारबा़ज थोड़ा असावधान हुआ और उसके प्रित ं ी ने
दायीं ओर से वार करने का प्रय न िकया।
‘‘अपने दायीं ओर दे खो तलवारबा़ज!’’ द्र चीख पड़ा। द्र खु द ही समझ नहीं पाया िक
उसे चीखने की या आव यकता थी? िक तु उस तलवारबा़ज के कौशल से वो इतना
यादा प्रभािवत हुआ था िक उसके ओर बढ़ते खतरे को दे खकर वो अनायस ही चीख
पड़ा, उस तलवारबा़ज को सचे त करने के िलये ।
द्र की आवा़ज सु नकर दोन तलवारबा़ज अपने थान पर ही खड़े हो गये । दोन की
दृि ट द्र पर ही गड़ी थी, और द्र की आँ ख उस तलवारबा़ज के ऊपर। दोन
तलवारबा़ज, द्र के करीब आ गये ।
अब द्र ने उस तलवारबा़ज की आँ ख को करीब से दे खा। उन आँ ख को दे खकर द्र को
कुछ अजीब सा एहसास हुआ। उन आँ ख म उसे कुछ पानी िदखाई पड़ा। शायद वो आँ स ू
था। द्र उन आँ ख म ही झाँकता रहा। िबना बालक झपकाये , िबना िहले -डुले । पहली
बार द्र िकसी की आँ ख को इतनी दे र तक इस भाँ ित घूर रहा था। वयं द्र भी अपने
इस यवहार से अचं िभत था।
और िफर उस तलवारबा़ज ने अपनी तलवार द्र के गले पर रख दी, और प्र न िकया,
‘‘कौन हो तु म? और इस तरह चोर की भाँ ित यहाँ या कर रहे हो?''
द्र कुछ नहीं बोला। वो अब भी उस तलवारबा़ज की आँ ख को ही दे ख रहा था। उन
आँ ख ने द्र को स मोिहत कर िलया था, और वो स मोहन टू ट ही नहीं रहा था।
‘‘ या बहरे हो? सु नाई नहीं पड़ा, राजकुमारी ने या प्र न िकया है ?’’ वो दसू रा
तलवारबा़ज बोला। उस दस ू रे तलवारबा़ज की आवा़ज सु नकर द्र उन आँ ख के स मोहन
से छटू ा। द्र ने महसूस िकया वो िकसी त्री की आवाज थी। य िप वो इससे भी
यादा इस बात से है रान था िक वो तलवारबा़ज, िजसने उसके गदन पर तलवार रखी हुई
थी िक वो राजकुमारी थी। अथात् िक वो भी एक औरत थी।
‘‘जी म द्र हँ ,ू मु झे पता नहीं था िक आप... द्र अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया।
‘‘वो िनवािसत जं गली?’’ राजकुमारी ने अपनी तलवार द्र के गदन के और पास लाते
हुए कहा।
‘‘राजकुमारी चिलये आप यहाँ से , ऐसे यि त के सम खड़े होने से भी पाप लगता है ।’’
उस दस ू री तलवारबा़ज त्री ने कहा। उसकी बात को सु नकर द्र को बहुत ही बु रा
लगा; उसे अपने िवषय म ऐसे श द सु नने की आदत नहीं थी।
राजकुमारी जाते -जाते भी अपने तलवार से द्र की गदन पर ह का सा एक वार कर
गयी। द्र की गदन से र त की धारा बह िनकली, िक तु द्र की आँ ख अब भी
राजकुमारी की ओर ही गड़ी हुई थी।
द्र को अपने गदन पर हुए वार का अनु भव तब हुआ, जब उसके र त ने उसका यान
राजकुमारी की दृि ट से हटाया। द्र को ह की सी पीड़ा का अनु भव हुआ। िक तु द्र
अब भी चिकत था, राजकुमारी के तलवार के कौशल को दे खकर और अ यिधक लगाव
महसूस कर रहा था राजकुमारी की उन आँ ख से । िनि चत प से उस जं गल के ब्रा ण
यो ा को पहली बार िकसी आँ ख के प्रित इतना लगाव उ प न हुआ था। द्र अपने
साथ भो रहे इस अनु भव को समझ ही नहीं पा रहा था।
उसने अपने गले के ज म से िनकलते र त को प छा और यायामशाला से बाहर िनकल
आया।
द्र, वै गगाचाय जी के साथ अपने क म था। िव लव भी वहीं पर था। वै जी, द्र
के गदन पर हुए घाव पर औषिध लगा रहे थे । वो बहुत ही आ चयचिकत थे िक अिधपित
द्र को इस भाँ ित चोट कैसे लगी? िक तु वो अिधपित से पूछ भी नहीं सकते थे ।
िव लव भी द्र के इस घाव से है रान था। और िफर द्र उसका अिधपित होने के साथ
ही उसका िमत्र भी था। इसिलये िव लव को कोई सं कोच नहीं था द्र से इस घाव के
िवषय म प्र न पूछने का।
‘‘अिधपित द्र! आपको ये चोट कैसे लगी?’’ िव लव ने द्र से प्र न िकया। वै
गगाचाय जी भी द्र की ओर उ सु कता से दे खने लगा।
द्र को इस बात का आभास था िक िव लव इस िवषय म प्र न करे गा, िक तु इतना
शीघ्र करे गा, इस बात की आशा नहीं थी। द्र सोच म पड़ गया, आिखर वो या उ र
दे ? और िफर वो अस य भी तो नहीं बोल सकता था।
‘‘अरे वो... तलवार अ यास की वजह से ये घाव हुआ है ।’’ द्र ने उ र िदया।
द्र के इस उ र से िव लव और वै गगाचाय जी दोन है रान थे । अिधपित के इस उ र
से वो दोन असं तु ट थे ।
‘‘भला, महल म अिधपित ने कौन सा अ यास िकया होगा?’’ िव लव ने मन ही मन
िवचार िकया। इससे पहले िक िव लव अगला प्र न पूछता, अिधपित द्र ने प्र न कर
िदया।
‘‘वै जी! आप ये बताइये की कौ तु भ, िवनायक और प्रताप का वा य अब कैसा
है ?’’ द्र ने प्र न िकया।
‘‘अिधपित! िवनायक जी और कौ तु भ जी तो पूरी तरह से व थ ह, िक तु से नापित
प्रताप के कुछ ज म अभी भी भरे नहीं ह, इसिलये उनका वा य थोड़ा िचं ताजनक
है ।’’ वै गगाचाय जी ने गं भीरता से उ र िदया।
‘‘ये तो दु:ख की बात है ।’’ द्र ने धीमे वर म कहा।
‘‘आप िचं ता न कर अिधपित द्र! वै जी की औषिधय के प्रभाव से शीघ्र ही
से नापित प्रताप पूण प से व थ ह गे ।’’ िव लव ने िव वास के साथ कहा।
‘‘िनि चत ही; मु झे वै जी पर पूण भरोसा है ।’’ द्र ने कहा।
‘‘आप दोन का मे रे प्रित इस असीम िव वास हे तु ध यवाद... अ छा अिधपित जी, मु झे
अब आ ा दीिजये ।’’ वै गगाचाय जी ने द्र से आ ा ली, और क से बाहर आ गये ।
अब क म िसफ दो लोग ही थे , एक अिधपित और दस ू रा उनका सबसे भरोसे मंद
सहयोगी; एक द्र, दस ू रा िव लव... दोन परम िमत्र।
‘‘अिधपित द्र! अब हमारे िलये या आदे श है ?’’ िव लव ने द्र से प्र न िकया।
‘‘िव लव! अभी प्रताप ज मी है ; कौ तु भ और िवनायक भी अभी-अभी व थ हुए ह;
से ना भी िपछले कई िदन से यु करते -करते थक गयी है ; अब हम भी थोड़ा आराम
करना चािहये ।’’ द्र ने उ र िदया।
‘‘िनि चत ही आपकी बात पूणत: सही है अिधपित, िक तु हम यहाँ कब तक िवश्राम
करगे ? अब हम अपने ल य से िसफ एक कदम की दरू ी पर ह।’’ िव लव ने भाव म बहते
हुए प्र न िकया।
‘‘िव लव, म समझता हँ ;ू िक तु यु तभी जीता जा सकता है , जब से ना पूरी तरह तै यार
हो, जब से नापित पूण प से व थ हो।’’ द्र ने उ र िदया।
‘‘म आपका आशय समझ गया अिधपित।’’ िव लव ने कहा।
द्र हँ सा। िव लव भी अब क से बाहर जा चु का था। उस बड़े से क म अब केवल
द्र ही था, और अब द्र की आँ ख के आगे दे वगढ़ की राजकुमारी की आँ ख ही घूम रही
थीं। वही आँ ख, िज ह ने द्र के ऊपर स मोहन कर िदया था। द्र उ ही आँ ख म एक
बार िफर डूबता जा रहा था। वो आँ ख, जो द्र को उसके िकसी िप्रय की याद िदलाती
थीं। वो आँ ख, िजनम छुपे दद को महसूस कर ले ता था द्र।
अचानक से द्र ने खु द को उन आँ ख के स मोहन से बाहर िकया। द्र का िसर भारी हो
रहा था। वो उठकर क की िखड़िकय की ओर बढ़ा, और इस बार िखड़की के बाहर के
दृ य ने द्र को स मोिहत कर िलया।
वो एक मि दर था। वो िनि चत ही िशव मि दर था। द्र के हाथ एक बार िफर वयं ही
जु ड़ गये । द्र के दय म असीम हष हो रहा था। िशव मि दर को दे खकर द्र
प्रस नता से भर गया।
‘‘हर-हर महादे व!’’ द्र बोला।
वो िदन का तीसरा पहर था। इस व त महल का हर यि त अपने काम म लगा हुआ था,
और यही व त चु ना था द्र ने उस िशव मि दर म जाने का। द्र को भरोसा था िक ऐसे
व त म उस मि दर म कोई नहीं होगा, और वो आराम से प्रभु के दशन कर पाये गा। द्र
अपने और प्रभु िशव के म य और िकसी की उपि थित नहीं चाहता था। महल से
िनकलने के उपरांत द्र, शीघ्रता से िशव-मि दर की सीिढ़याँ चढ़ता हुआ जा रहा था।
प्रभु िशव के दशन के िलये द्र का दय अधीर हुआ जा रहा था।
और िफर जब द्र ने मि दर म जाकर प्रभु िशव की मूित दे खी, तो है रत म पड़ गया।
प्रभु िशव की ये मूित उस मूित से यादा बड़ी और भ य थी, जो द्र ने राजनगर म
दे खी थी। प्रभु िशव की ये मूित द्र के िलये इस सं सार की सबसे खूबसूरत व तु थी।
प्रभु िशव की मूित के साथ उसम प्रभु िशव का ित्रशूल, प्रभु का वाहन नं दी, प्रभु
िशव की अधां िगनी माता पावती, और प्रभु के पु त्र भगवान गणे श भी थे । प्रभु िशव के
स पूण पिरवार को एक साथ दे खकर द्र का दय पु लिकत हो गया। उसने बारी-बारी से
सभी मूितय को पश िकया। उसके मन म भि त के भाव िहलोर मार रहे थे ।
द्र, प्रभु की मूित के सम बै ठ गया। वो अपना पूरा यान प्रभु की मूती पर केि द्रत
िकये हुए था। उस व त द्र के मन म केवल प्रभु िशव की मोहक छिव का ही िवचार
चल रहा था। द्र, प्रभु िशव को अपने आँ ख से जी भरकर दे ख ले ना चाहता था। वो
प्रभु के मोहक प को दयतल म बसा ले ना चाहता था। वो प्रभु िशव को दे ख रहा
था।
और िफर अचानक, जब द्र ने प्रभु िशव की आँ ख दे खी, तो वो च क गया। प्रभु िशव
की आँ ख म भी द्र को उसी तलवारबा़ज की आँ ख िदखायी दीं, जो िक दे वगढ़ की
राजकुमारी थी। वही आँ ख एक बार िफर द्र के स मु ख थीं, िज ह ने उसे स मोिहत कर
िलया था। द्र ने एक बार िफर उन आँ ख म आँ स ू की बूँद दे खी। द्र कुछ समझ नहीं
पा रहा था। उस व त वो उन आँ ख को सं सार की सबसे सु दर छिव म दे ख रहा था...
प्रभु द्र की मूित म।
द्र की दृि ट प्रभु िशव की आँ ख म डूबी जा रही थी। द्र उन आँ ख के अनु राग से
बाहर ही नहीं िनकल पा रहा था। उन आँ ख के आकषण से द्र िनकल ही नहीं पा रहा
था।
आिखर या कारण था िक द्र उन आँ ख से इतना अिधक आकिषत हो गया था? आिखर
या वजह थी िक उसे उन आँ ख का दद िदखता था? ऐसा य लगता था िक जै से द्र ने
वै सी आँ ख पहले भी कहीं दे खी थी।
आह! द्र को एक दद का एहसास हुआ; वो आँ ख िबलकुल वै सी ही थीं, जै सी द्र की
माँ की थीं। द्र को उसकी माँ की छिव याद आई, जै सी िक उसने बचपन म दे खी थी।
राजकुमारी की आँ ख द्र को उसकी माँ की याद िदलाती थीं।
अब द्र समझ गया था िक य वो उन आँ ख से इतना अिधक लगाव महसूस कर रहा
था। वो समझ गया था िक कैसे वो उन आँ ख से स मोिहत हो गया था?
माँ की याद ने द्र को थोड़ी दे र रोने पर िववश कर िदया। द्र का दय दुखी था। माँ
की याद आते ही वो असं यिमत हो जाता था। उसकी दृि ट अभी भी प्रभु की आँ ख म
लीन थी।
पर िफर िकसी तरह द्र अपनी दृि ट प्रभु की आँ ख से हटाकर प्रभु के वाहन नं दी की
ओर ले गया। अब द्र एक बार िफर सामा य महसूस कर रहा था। वो एक बार िफर सभी
मूितय को िनहार रहा था, और उनसे खु द को अनु गृिहत कर रहा था।
और िफर द्र की दृि ट पड़ी प्रभु िशव के ित्रशूल पर। द्र को प्रभु का वो ित्रशूल
बहुत अिधक पसं द आया। उस ित्रशूल की बनावट दे खकर द्र को प्रभु िशव के उस
श त्र से अनु राग उ प न हो गया। द्र सोचने लगा िक अगर उसने प्रभु िशव के इस
‘ित्रशूल’ को पहले ही दे खा होता, तो िनि चत ही यही उसका िप्रय श त्र होता।
‘‘काश! िक मने ित्रशूल को ही अपना िप्रय श त्र चु ना होता।’’ द्र ने मन ही मन
िवचार िकया। द्र, प्रभु िशव के उस ित्रशूल को छन ू ा चाहता था। द्र, आगे बढ़कर
प्रभु के ित्रशूल को पश करने ही वाला था, िक सहसा उसके कान म एक आवाज गूँजी,
‘‘पु त्र! िजस िदन म तु ह ये फरसा दँ ग ू ा, उस िदन म तु मसे तु हारी कोई अनमोल व तु ले
लूँगा; या तु ह ये सौदा मं जरू है ?''
द्र के कान म य ही काका की आवा़ज गूँजी, वो झट से पीछे घूम गया। इसम कोई
शक नहीं था िक उसे प्रभु िशव का ित्रशूल बहुत ही अिधक पसं द आया था, पर काका
का खयाल आते ही उसे अपने िप्रय फरसे से अिधक शि तशाली और कोई श त्र नहीं
लगा।
‘‘िनि चत ही ये ित्रशूल, शि तशाली और अचूक श त्र है , िक तु मे रे काका ारा मु झे
िदया गया फरसा ही मे रे िलये सवा म है ।’’ द्र ने कहा।
उसने प्रभु द्र के सम हाथ जोड़े , और अपनी श्र ा प्रदिशत करते हुए एक बार िफर
सभी मूितय के चरण पश िकये । द्र ने बात का यान रखा। उसने अपनी दृि ट प्रभु
की आँ ख की ओर नहीं घु मायी, य िक द्र को सं देह था िक कहीं िफर वो उ हीं आँ ख
के मोहपाश म न बाँ ध जाये ।
जाते -जाते द्र ने एक ललचायी दृि ट से प्रभु िशव के ित्रशूल को दे खा, िक तु काका
का यान उसके मि त क म था। उसने खु द को सं यिमत िकया। वो शीघ्र ही सीिढ़य से
नीचे उतरने लगा। द्र, अब मि दर की सीिढ़य से नीचे उतर चु का था, और वापस महल
म जाने को तै यार था।
और िफर द्र ने दे खा िक एक पालकी और कुछ सै िनक मि दर की ओर आ रहे थे । उनको
दे खकर ऐसा लग रहा था िक महल का कोई िवशे ष यि त उस मि दर म आ रहा हो।
द्र वहाँ खड़ा रहा। वो मि दर म आने वाले उस िवशे ष यि त को दे खना चाहता था।
वो पालकी और सै िनक अब मि दर के पास आ चु के थे । सबसे पहले उस पालकी म से एक
अधे ड़ उम्र की औरत उतरी। उनके पहनावे और उम्र को दे खकर द्र ने अनु मान
लगाया िक वो अव य दे वगढ़ की महरानी ह गी।
और िफर उस पालकी से उतरीं दे वगढ़ की राजकुमारी। द्र ने राजकुमारी की ओर एक
दृि ट डाली। वो उन क णा भरी आँ ख को दे खना चाहता था। उन आँ ख म िछपे दद से
द्र लगाव महसूस कर रहा था। वो उन आँ ख को एक बार िफर दे खना चाहता था, जो
िबलकुल उसकी माँ की आँ ख की भाँ ित थीं। उसने राजकुमारी के मु ख के अ य िह स की
ओर दे खा ही नहीं, वो बस उन आँ ख को दे ख रहा था, िज ह ने उसे स मोिहत कर िलया
था। द्र को यकीन हो गया था िक ये दे वगढ़ की राजकुमारी ही ह
और िफर राजकुमारी ने द्र को दे खा। वो अचानक से द्र को वहाँ दे खकर च क गयीं।
उ ह ने महसूस िकया िक द्र उनके चे हरे को लगातार घूर रहा था। कुछ ण के िलये तो
राजकुमारी भी बु त की तरह खड़ी रहीं। राजकुमारी को समझ नहीं आया िक भला वो
जं गली उ ह इस भाँ ित य घूर रहा था?
‘‘राजकुमारी! ज दी चल, अ यथा पूजा का समय िनकल जाये गा।’’ राजकुमारी की दासी
ने उनसे अनु रोध िकया। द्र ने उस दासी की आवा़ज को पहचान िलया था; ये वही दस ू री
तलवारबा़ज की आवा़ज थी, जो प्रात: राजकुमारी से तलवार का यु कर रही थी।
दासी की आवा़ज सु नकर राजकुमारी ने अपनी दृि ट द्र की तरफ से हटाई, और
शीघ्रता से सीिढ़याँ चढ़ने लगी। वे मि दर म प्रिव ट हो गइं । द्र अब भी खड़ा
राजकुमारी पूिणमा को दे ख रहा था। वो अपने साथ घिटत हो रहे इस भाव को ले कर
है रान तो था, पर साथ ही साथ ये भाव द्र को आनं िदत भी कर रहा था। द्र,
राजकुमारी की आँ ख के स मोहन से बाहर ही नहीं िनकल पा रहा था।
और िफर द्र ने राजकुमारी के साथ आये एक सै िनक को अपने पास बु लाया। वो सै िनक
द्र के पास आया; और जब उसने दे खा िक वो ‘ द्र’ है , तो वो च क गया।
‘‘अिधपित द्र! आप? मा कर मने आपको पहचाना नहीं।’’ उस सै िनक ने दोन हाथ
जोड़कर द्र से याचना की।
‘‘कोई बात नहीं, तु हारा नाम या है सै िनक?’’ द्र ने उस सै िनक से पूछा।
‘जलज।’ उस सै िनक ने उसी मु दर् ा म रहते हुए द्र को उ र िदया।
‘‘अ छा जलज! तो तु म मु झे ये बताओ िक इस व त इस मि दर म कौन आया है ?’’ द्र
ने उ सु कता से उस सै िनक से पूछा।
‘‘जी, िदवं गत सम्राट जयं त की धमप नी और दे वगढ़ की महारानी तारा एवं उनकी
पु त्री राजकुमारी पूिणमा जी पूजा के हे तु मि दर म आयी ह।’’ सै िनक जलज ने यथोिचत
आदर के साथ द्र को उ र िदया।
‘‘ या वे िन य ही मि दर आती ह?’’ द्र ने पूछा। द्र के िलये ऐसे प्र न पूछना बहुत
ही किठन और है रत भरी बात थी, पर िफर भी उसने उस सै िनक से वो प्र न पूछा।
‘‘जी अिधपित!’’ उस सै िनक ने कहा।
अब द्र, महल की ओर बढ़ रहा था। वो िकसी िवचार म मगन प्रतीत हो रहा था।
िकसी िवषय को ले कर वो सोच रहा था।
महल पहुँचकर द्र ने िव लव को अपने क म बु लाया। िव लव शीघ्र ही द्र के क
म उसके स मु ख खड़ा था। वो द्र के आदे श की प्रती ा कर रहा था।
‘‘िव लव! सभी लोग को सूिचत कर दो, हम कल एक मह वपूण िनणय की घोषणा
करगे ।’’ द्र ने िव वास से कहा।
‘‘जी अिधपित द्र।’’ िव लव ने कहा।
िक तु िव लव वहाँ से गया नहीं, वो वहीं खड़ा रहा। उसके चे हरे के भाव दे खकर ऐसा लग
रहा था मानो वो िकसी उधे ड़बु न म लगा हो। वो िकसी बात को ले कर पसोपे श म िदख
रहा था, और द्र ने िव लव के चे हरे के भाव दे ख िलये थे ।
‘‘ या हुआ िव लव? या कोई दुिवधा है ?’’ द्र ने प्र न िकया।
‘‘अगर आ ा द अिधपित द्र, तो एक प्र न पूछँ ?’’ िव ू लव ने पूछा।
‘‘िन:सं कोच होकर पूछो िमत्र।’’ द्र ने आ मीयता से कहा।
‘‘ या कल की घोषणा नये राजा से सं बि धत है ?’’ िव लव ने प्र न िकया।
‘‘हाँ िव लव, ये दे वगढ़ के नये राजा से सं बि धत है ।’’ द्र ने उ र िदया।
द्र के उ र से िव लव के मन को शाि त हुई। उसके चे हरे के भाव भी सामा य हो गये ।
वो क से बाहर चला गया।
द्र िकसी बड़े िनणय की ओर पहुँच चु का था। उसके मन म भी अपने उस िनणय के
प्रित अब भी थोड़ी दुिवधा थी, य िक हो सकता है उसके िनणय से सभी लोग प्रस न
न ह । द्र ये नहीं चाहता था कोई भी उसके िनणय से अप्रस न हो, पर वो ये भी नहीं
चाहता था िक वो िकसी के साथ अ याय करे ।
द्र अपने िब तर से उठा और िखसकी के पास पहुँच गया। उसे आशा थी की इस समय
उसकी अगर कोई सहायता कर सकता है तो वो ह प्रभु िशव।
द्र ने िखड़की से बाहर की ओर दे खा, और िफर उसे िदखाई पड़ा प्रभु िशव का मि दर।
प्रभु िशव का यान अपने दय म द्र ने िकया। और िफर आँ ख ब द करके प्रभु िशव
की मोहक छिव को दे खने का प्रय न करने लगा। उसे कुछ िदखाई नहीं िदया। उसको
केवल अँ धेरा ही िदखा। िफर द्र ने अपनी आँ ख खोली और िशव मि दर को दे खने
लगा।
‘‘हर-हर महादे व!’’ द्र ने उ चािरत िकया और आँ ख ब द की। इस बार प्रभु िशव की
छिव उसे िदखी। अब द्र के मन को शाि त हुई। प्रभु िशव की मोहक छिव म द्र इस
भाँ ित मगन हो गया था िक वो अपनी परे शानी और अशाि त को भूल गया था।
ऐसी ही थी प्रभु िशव की कृपा उस पर।
और िफर द्र को याद आया िक आज उसे एक मह वपूण घोषणा भी करनी है ।
‘‘आज का िदन िनि चत ही दे वगढ़ के भिव य के िलये एक मह वपूण िदन है , और म
उ मीद करता हँ ू िक मे रे इस िनणय से दे वगढ़ का भला हो।’’ द्र ने िव वसनीय वर म
कहा। वो अपने िनणय के प्रित आ व त हो चु का था।
द्र अब शा त था। उसे दे वगढ़ के िहत के िलये एक मह वपूण िनणय ले ना था। द्र ने
अपना िनणय ले िलया था, और अब वो प्रती ा कर रहा था उस समय की, जब वो अपने
फैसले को सबके सम सु नाये गा। उसे आशा थी िक सभी लोग उसके इस िनणय से
सं तु ट ह गे और उसके िनणय का स मान करगे ।
‘‘हर-हर महादे व!''
द्र महल के बाहर के प्रां गण म खड़ा था। उसके ठीक सामने खड़े थे दे वगढ़ रा य के
लोग। द्र के पीछे खड़े हुए थे िव लव, िवनायक, कौ तु भ और वै गगाचाय। द्र के
दायीं ओर खड़ी थीं दे वगढ़ की महरानी तारा और उनकी पु त्री पूिणमा। उनके पीछे उनकी
दािसयाँ खड़ी थीं।
द्र के बायीं ओर खड़े थे दे वगढ़ के राजकुमार जयवधन और प्रभास। उनके साथ ही
खड़े थे दे वगढ़ के अ य सै िनक, जो सभी यु म ब दी बनाये गये थे ।
द्र अब उन सब के सामने खड़ा था। उसने दे वगढ़ के राजकुमार की ओर एक दृि ट
डाली। वो दोन राजकुमार अभी एकदम यु वा प्रतीत होते थे । अभी चे हरे पर मूँ छ-दाढ़ी
भी नहीं उगी थी, पर अपनी मातृ भिू म की र ा के िलये वे दोन यु के मै दान म बहादुरी
से लड़े । अब द्र ने बोलना प्रार भ िकया।
‘‘िव लव! सवप्रथम दे वगढ़ के दोन यु वराज को एवं अ य सै िनक को भी बं धन-मु त
करने का प्रबं ध करो।’’ द्र ने आदे श िदया।
सभी लोग द्र के श द सु नकर है रान हुए। उ ह द्र से यु वराज के प्रित ऐसे सौ य
यवहार की अपे ा नहीं थी। िक तु प्रजा की सोच अब द्र के प्रित बदल गयी।
राजकुमारी पूिणमा को भी द्र ने है रत म डाल िदया था। उस जं गली से पूिणमा ने ऐसे
यवहार की उ मीद नहीं की थी। भाइय को बं धन-मु त होते दे खकर पूिणमा को अपार
हष हुआ। महारानी तारा भी प्रस न हुई।
िव लव ने त काल आ ा का पालन िकया। दे वगढ़ के दोन सु कुमार बे िड़य से मु त कर
िदये गये और उनके साथ-साथ अ य सै िनक भी।
‘‘दे िखये , म जानता हँ ू िक मने आपके रा य को यु की अि न म झ का, और इसी कारण
आपके राजा की मृ यु हुई, िक तु म आप सबको ये बताना चाहँ ग ू ा िक मने ये यु दे वगढ़
के रा य का सु ख भोगने के िलये नहीं िकया था। मे रा ये यु था; अ याय के िव , और
दुभा यवश आपके महाराज इस याय के यु म अ याय के प म खड़े थे और इसी
कारण से उनकी मृ यु हुई, मु झे उनकी मृ यु का दु:ख है ।’’ द्र ने कहा।
सभी लोग द्र को खामोशी से सु न रहे थे । द्र की बात उनके ऊपर असर कर रही थीं।
उ ह द्र के श द पर भरोसा हो रहा था। और उन सबम सबसे अिधक यग्रता से अगर
कोई द्र को सु न रहा था तो वो थीं राजकुमारी पूिणमा। आज सु बह तक द्र के िवषय
म उनकी सोच बहुत ही िभ न थी, िक तु इस सभा म जै से-जै से वो द्र को सु नती जा
रही थीं, उनकी सोच उस जं गली के िवषय म बदल रही थी।
‘‘मने िपछले पाँच वषों म बीस यु लड़े ह, िक तु पहली बार िकसी यु को जीतने के बाद
मु झे खु शी नहीं हुई। पहली बार मु झे िकसी रा य को जीतने को ले कर एक कड़वी-स चाई
का अनु भव हुआ है । म आप सबको बताना चाहँ ग ू ा िक आज से ये राज-िसं हासन महारानी
तारा का होता है , और वो आप सबकी नयी रानी ह गी। रा य का सारा दािय व आज से
महारानी तारा के िज मे ।’’ द्र ने अपनी घोषणा पूरी की और वहाँ से चल िदया।
और उसके ये बात बोलते ही सारी प्रजा ‘‘रानी तारा की जय!’’ और ‘‘अिधपित द्र की
जय!’’ के उद्घोष से गूँज गयी। दे वगढ़ की प्रजा के दय म द्र की जगह बन गयी थी,
और उनके उद्घोष इस बात की पु ि ट भी कर रहे थे ।
महारानी तारा को द्र के इस िनणय की िबलकुल भी आशा नहीं थी। पर उनके दय म
एक हष की अनु भिू त थी, की आिखरकार अपने पित ारा सींचे गये इस वृ पी रा य का
वो एक बार िफर सं चालन कर पाएँ गी और अपने पित के अधूरे सपन को पूरा कर
पायगी।
राजकुमारी पूिणमा की आँ ख म आँ स ू थे । वो अपने माँ से िलपटकर रो रही थीं। िनि चत
ही द्र के इस िनणय से एक बार िफर राजपिरवार प्रस न था। दे वगढ़ के सभी लोग
प्रस न थे । राजकुमारी पूिणमा का ऩजिरया भी द्र के िवषय म अब बदल चु का था।
िनि चत ही ये दे वगढ़ के िलये एक ऐितहािसक िदन था।
द्र वहाँ से जा रहा था, िबना िकसी की सु ने। उसने अपना साहिसक िनणय एक झटके म
सबको सु ना िदया था।
िव लव ने द्र को जाते दे खा तो वो भी उसके पीछे चल िदया।
द्र और िव लव ही थे उस व त द्र के क म, जब उनकी बात प्रारं भ हुई।
‘‘अिधपित द्र! या ये िनणय भावनाओं म बहकर तो नहीं िलया गया है ?’’ िव लव ने
अपना प्र न िकया।
‘‘िबलकुल नहीं िव लव! इस िवषय म म िपछले कई िदन से िवचार कर रहा था; और
िव वास करो ये एक सोचा-समझा और दे वगढ़ के िहत म िलया गया िनणय है ।’’ द्र ने
उ र िदया।
‘‘िक तु मु झे लगता था िक आपको दे वगढ़ म नये राजा की घोषणा उस व त तक नहीं
करनी चािहये थी, जब तक िक हम वीरभूिम का यु ना लड़ ले ते।’’ िव लव ने अपना मत
प्रकट करते हुए कहा।
द्र, िव लव के िवचार को सु नकर थोड़ा सा िवचिलत हुआ। इससे पूव कभी भी िव लव
ने द्र के िकसी भी िनणय से असहमित नहीं जताई थी। वो द्र के हर िनणय म उसके
साथ था, िक तु आज ि थित िभ न थी।
‘‘िफर तो िव लव तु ह अपना िवचार मु झे कल ही बताना चािहये था।’’ द्र ने अनमने
ढं ग से उ र िदया।
िव लव चु प था। उसने द्र की इस बात का कोई भी उ र नहीं िदया।
‘‘तु ह िकस बात का सं देह है िव लव?’’ द्र ने एक बार िफर प्र न िकया। वो िव लव
की शं काओं को दरू करना चाहता था।
‘‘अिधपित! पता नहीं य मु झे ऐसा लगता है िक दे वगढ़ के दोन राजकुमार हमसे
अिधक कण वज के प्रित िन ठा रखते ह, और यु के समय वो हमारे िव जाकर
वीरभूिम की से ना के सहायक ह गे ।’’ िव लव ने अपनी शं का द्र के सम प्रकट की।
‘‘नहीं िव लव, ऐसा कदािप नहीं होगा; और इसीिलये रा य की बागडोर मने यु वराज को
न स पकर महारानी तारा को स पी है ।’’ द्र ने िव लव की शं का का समाधान करते हुए
कहा।
‘‘और हाँ , अब और अिधक उस िवषय म न सोचो।’’ द्र ने अपनी बात पूरी की।
अब द्र के क म कौ तु भ, िवनायक और वै गगाचाय जी भी आ चु के थे । उन सबके
चे हरे पर खु शी के भाव थे ।
‘‘अिधपित द्र! आपके इस िनणय से पूरी प्रजा अ यिधक प्रस न है ।’’ िवनायक ने
चहकते हुए कहा।
‘‘अिधपित! आपके इस िनणय से हम भी अ यिधक खु श हुए; आपके एक और यायपूण
िनणय के सा ी बने हम सभी।’’ वै गगाचाय जी ने भी अपना मत रखा।
द्र ने सहमित म अपना िसर िहलाया और िव लव की ओर दे खा। िव लव अब भी
चु पचाप खड़ा था। भले ही द्र ने उसके प्र न का उ र दे िदया हो, िक तु िव लव का
सं देह अब भी बना हुआ था। वो चाहकर भी दे वगढ़ के यु वराज के प्रित िव वास नहीं
कर पा रहा था।
‘‘वै जी! प्रताप का वा य अब कैसा है ?’’ द्र ने प्र न िकया।
‘‘मु झे लगता है अभी हम से नापित प्रताप के पूण प से व थ होने के िलये कुछ और
समय की प्रती ा करनी होगी।’’ वै जी ने उ र िदया।
‘‘अिधपित! वै से भी इस महल म आराम करते -करते जी ऊब गया है , अगर आपका
आदे श हो तो हम सब कल िनकट के वन म िशकार कर आय?’’ िव लव ने प्र न िकया।
‘‘िबलकुल अिधपित... कई िदन हो गये िकसी पशु का िशकार िकये हुए।’’ कौ तु भ ने
अपने हाथ को मलते हुए कहा।
‘‘िन चय ही; म भी तु म लोग के साथ चलूँगा।’’ द्र ने कहा।
द्र की बात सु नकर सभी बहुत खु श हुए। वो सब अपने अिधपित के साथ िशकार खे लने
को ले कर उ सु क थे । और अब प्रती ा कल की थी... द्र को भी, और उसके िमत्र को
भी।
द्र, िव लव, िवनायक और कौ तु भ, दे वगढ़ के दि णी छोर पर ि थत जं गल म थे । वे
चार अपने साथ िकसी भी सै िनक को नहीं लाये थे । उस महल म िपछले कई िदन से
आराम करके उनके शरीर को जं ग लग गया था, और आज के िशकार को ले कर वो चार
उ सािहत थे ।
और िफर जं गल म रहने वाले उन चार को महल की सु ख-सु िवधा म कहाँ चै न आता? इस
जं गल म आकर उ ह खु शी की अनु भिू त हुई। उस जं गल की हवा, वहाँ के पे ड़-पौध और
पशु -पि य की आवा़ज सु नकर उ ह अपने घर की अनु भिू त हुई।
‘‘चाहे जो भी हो, पर जो आनं द जं गल के इस माहौल म आता है वो अ य कहीं नहीं िमल
सकता।’’ कौ तु भ ने कहा।
‘‘एकदम ठीक कहा कौ तु भ! यहाँ आकर ऐसा लग रहा है जै से की अपने घर म आ गये
ह ।’’ िवनायक ने भी उसका समथन िकया।
द्र और िव लव के िवचार भी उ हीं दोन की भाँ ित थे ।
‘‘अ छा, तो हम सब अलग िदशाओं म जाते ह, और िफर दे खते ह िक िकसे बड़ा िशकार
िमलता है ?’’ द्र ने कहा।
‘‘िबलकुल ठीक कहा आपने अिधपित! आप पूव की ओर जाइये , कौ तु भ पि चम की ओर
जाये गा, िवनायक उ र िदशा की ओर, और म दि ण की ओर जाऊँगा।’’ िव लव ने
कहा।
वो चार , िशकार के िलये अलग-अलग िदशाओं की ओर बँ ट गये ।
द्र ने अपने घोड़े को एक पे ड़ से बाँ ध िदया, और पै दल ही आगे बढ़ने लगा। उसने अपने
फरसे को पीछे लटका िलया, और धनु ष बाण ले कर सधे हुए चाल से आगे बढ़ने लगा।
उस व त जं गल म वन वाली छोटी सी िक् रया से भी द्र चौक ना हो जाता था। अपने
िशकार के िलये द्र बे सब्री से आगे बढ़ रहा था।
द्र अब जं गल के काफी भीतर तक आ चु का था। सहसा द्र ने एक खरगोश दे खा। द्र
ने अपने ल य को साधा और बाण छोड़ िदया। बाण सीधा अपने िनशाने पर लगा था।
वो खरगोश उस वार से मृ त हो चु का था। द्र ने अपना िशकार कर िलया था। और अब
वो अपने िशकार को उठाने के िलये आगे की ओर बढ़ा।
िक तु तभी द्र ने िकसी के चीखने की आवा़ज सु नी। पहले तो द्र को लगा िक वो
शायद उसका भ्रम है , िक तु एक बार िफर उसने आवा़ज सु नी। और इस बार एकदम साफ
थी वो पु कार। कोई त्री चीख रही थी।
द्र शीघ्र ही उस आवा़ज के िदशा की ओर दौड़ा। उसे अिधक दरू नहीं जाना पड़ा।
िक तु जब उसने सामने का दृ य दे खा तो वो च क गया, उसे अपनी दृि ट पर एकबारगी
भरोसा ही नहीं हुआ।
उसके सामने दे वगढ़ की राजकुमारी थी, जो िनह थे ही खड़ी थीं, और उनके ठीक सामने
खड़ा था, सं सार का सबसे खूँखार पशु -शे र। राजकुमारी पूिणमा की तलवार नीचे पड़ी थी,
और उनके शरीर पर उस शे र के पं जे के िनशान िदख रहे थे । उनके शरीर से र त बह रहा
था। राजकुमारी पूिणमा की आँ ख से आँ स ू बह रहे थे , वो लगातार सहायता के िलये चीख
रही थीं।
द्र ने राजकुमारी पूिणमा की आँ ख से बहते हुए आँ स ू दे खे। उन आँ ख से बहते हुए
आँ सुओ ं को दे खकर द्र को असीम पीड़ा का अनु भव हुआ। वो क् रोध की अि न से जल
उठा।
वो शे र अब अपने सामने पड़े हुए िशकार को खाने के िलये अिधक िवलं ब नहीं करना
चाहता था। उस शे र ने राजकुमारी पूिणमा के ऊपर छलाँ ग लगाई, ले िकन वो उन तक
पहुँचा नहीं।
य िक द्र ने उससे पूव ही अपने तीर से उस पर वार कर िदया था। उस तीर ने उस शे र
को अिधक नु कसान तो नहीं पहुँचाया, िक तु उसकी छलाँ ग को पूरा नहीं होने िदया। वो
शे र हवा म से ही नीचे िगर पड़ा। वो शे र अपनी असफलता और अचानक से हुए इस वार
से बौखला गया।
उस शे र ने एक भयानक दहाड़ लगाई, और द्र को एक तीखी दृि ट से दे खा।
पूिणमा ने भी अब द्र को दे ख िलया था। वो उसे वहाँ दे खकर है रान तो थी, और साथ ही
साथ प्रस न भी। द्र ने उसके प्राण बचाने के िलये उस शे र के ऊपर वार िकया था।
द्र समझ गया था िक अब वो शे र उसके ऊपर वार करने वाला है । उसने अपना धनु ष
नीचे रखा और अपना फरसा मजबूती से अपने हाथ म पकड़ िलया। वो अब तै यार था,
शे र के हमले के िलये ।
वो शे र अब द्र की ओर दौड़ा, और द्र के समीप पहुँचकर उसने एक बार िफर छलाँ ग
लगाई। द्र दायीं ओर उछल गया और खु द को शे र के पास से हटा िलया। वो शे र एक
बार िफर असफल होकर भूिम पर िगर पड़ा, िक तु शीघ्र ही वो खड़ा हुआ और अ यिधक
क् रोध के साथ द्र की ओर झपटा।
द्र ने शे र के ऊपर अपने फरसे का भरपूर वार िकया, िक तु उससे पूव शे र का पं जा द्र
के पे ट पर लग चु का था। उस वार के बाद घायल दोन हुए, द्र भी और वो शे र भी।
द्र को दद हुआ। एक चीख िनकल गयी उसकी। दद तो उस शे र को भी हुआ था। द्र
के वार ने उसके अगले पै र को बु री तरह घायल कर िदया था, और अपने दद की पीड़ा को
उसने अपने दहाड़ के ारा य त िकया। िक तु स य तो ये भी था िक घायल शे र अिधक
खतरनाक होता है ... और द्र के उस वार से घायल होने के बाद वो शे र भी अब अिधक
खतरनाक हो चु का था।
द्र ने अपने फरसे को कस कर पकड़ा, और एक दृि ट राजकुमारी पूिणमा की ओर डाली,
जो अब भी दद से छटपटा रहीं थी और धीरे -धीरे भूिम पर ही सरक रही थीं।
वो शे र एक बार िफर द्र पर झपटा, और इस बार वो द्र के दाय हाथ की ओर ही झपट
पड़ा। द्र ने य ही अपने हाथ म िलये हुए फरसे को वार के िलये लहराया, य ही वो
फरसा उसके हाथ से छट ू गया। ये बात शे र भी समझ चु का था िक अगर उसे अपने
दु मन को हराना था, तो उसके हाथ से वो फरसा िगराना मह वपूण था, और उसने इसी
खाितर द्र के हाथ पर एक भरपूर वार िकया था। अब द्र उस शे र के सामने िनह था ही
खड़ा था।
और अब वह शे र द्र के ऊपर झपटा। द्र ने उस शे र के दोन अगले पं ज को पकड़
िलया, िक तु उस शे र के अ यिधक भार के कारण, वो खु द को सँ भाल नहीं सका और शे र
के साथ ही भूिम पर िगर पड़ा। िगरते समय द्र के हाथ से शे र का पं जा छट ू गया और
उसके नाखून ने द्र के सीने पर घाव कर िदया।
एक बार िफर द्र दद से चीख पड़ा। शे र के उस ह के और असं यिमत वार ने भी द्र के
सीने म गहरा घाव कर िदया था। द्र के िलये अब पिरि थितयाँ बहुत ही मु ि कल हो
गइं थीं। वो िकसी तरह साँस ले ने की कोिशश कर रहा था।
और अब वो शे र एक बार िफर खड़ा हो चु का था। वो शे र समझ चु का था िक उसने अपने
प्रित ं ी को बु री तरह ज मी कर िदया है , और अब ज रत है िसफ उसकी साँस को
ब द करने की। वो एक बार िफर द्र पर झपटने को तै यार था। द्र उसके सामने घायल
अव था म और िबना िकसी हिथयार के पड़ा था।
शे र ने द्र के ऊपर वार िकया ही था िक उसकी दहाड़ िनकल गयी। वो दद की वजह से
दहाड़ पड़ा। उसके पे ट पर एक घातक वार हुआ था। उस वार की वजह से उस शे र के पे ट
से र त की धारा बह िनकली।
वो वार िकया था राजकुमारी पूिणमा ने । इतने दे र म वो अपने तलवार तक पहुँच चु की थीं,
और िफर जब उ होने द्र को घायल दे खा तो उस तलवार को शे र के पे ट म भ क िदया,
इससे पहले की वो द्र पर वार कर पाता।
शे र अब क् रोध से बौखला गया था। उसके सामने एक घायल िशकार पड़ा था, और अब
पीछे से एक अ य ने वार कर िदया। अब वो एक बार िफर राजकुमारी पूिणमा की ओर
झपटा। पूिणमा के उस घातक वार ने उसकी गित को कम कर िदया था।
द्र ने पूिणमा को दे खा, िजसने अब भी िकसी भाँ ित अपनी आँ ख खोली हुई थी। उसने
द्र के प्राण की र ा के िलये उस शे र को तलवार से घायल कर िदया था। द्र ने
पूिणमा की आँ ख को दे खा; वो अब भी आँ सुओं से भरी हुई थीं। सहसा द्र के िदमाग म
एक वर गूँजा। एक जानी-पहचानी आवाज,
‘‘आ म-र ा की ज़ रत सब को पड़ती है पु त्र, िक तु श त्र का सवािधक उिचत
उपयोग तब होता है , जब हम उनसे दस ू र की र ा कर; तु ह आ म-र ा करने की ज़ रत
शायद न पड़े , िक तु दस ू र की र ा करने का अवसर कभी मत जाने दे ना। ''
ये आवा़ज सु नते ही द्र को अपने भीतर एक नई ऊजा का अनु भव हुआ। द्र अपने
थान से उठा, और कुछ दरू पर पड़े अपने फरसे को उठाया, और इससे पूव िक वो शे र
राजकुमारी पूिणमा पर वार कर पाता, उसका रा ता रोक िलया।
इस बार द्र के वार म अ यं त ही शि त और वे ग था। द्र के इस वार ने उस शे र को
दहाड़ने तक का भी व त नहीं िदया था। द्र ने इस बार शे र की गदन पर वार िकया था।
उस शे र की मोटी गदन द्र के शि तशाली वार से आधी कटकर लटक गयी थी। द्र
का फरसा उस शे र के गले म धँ स गया था। द्र ने उस शे र को मार िदया था, िक तु भूिम
पर िगरते -िगरते उस शे र के पं ज ने एक बार िफर द्र के घाव को बढ़ा िदया था, और
अब द्र के िलये खु द को सँ भालना मु ि कल हो रहा था। वो खु द को ि थर खड़ा रखने म
भी किठनाई महसूस कर रहा था। और िफर द्र भूिम पर िगर गया।
अब द्र की आँ ख ब द होने लगी थीं। उसकी साँस शीघ्रता से चल रही थीं। द्र के
िलये अब सबकुछ अदृ य होने लगा था। उसकी आँ ख के आगे अँ धेरा छाने लगा था।
और िफर द्र अचे त हो गया। द्र के घाव से अभी भी र त बह रहा था।
द्र के बगल म ही भूिम पर पड़ी पूिणमा ने द्र को अचे त होते दे खा तो वो अ यिधक
परे शान हो गयी। द्र के शरीर से बहते र त को पूिणमा दे ख सकती थी। पूिणमा अपने
शरीर का सारा बल लगाकर खु द को उठाने का प्रय न करने लगी, िक तु घायल तो वो भी
थी, और अब उसके शरीर ने भी उसका साथ दे ना छोड़ िदया था। पूिणमा की आँ ख भी
अब ब द होने लगी थीं। उसकी अव था भी द्र की भाँ ित होने लगी थी।
िक तु अचे त होने से पूव पूिणमा ने कुछ लोग की आवा़ज सु नी। वो ठीक से उन आवा़ज
को नहीं सु न पा रही थी, िक तु पूिणमा को इस बात का आभास था िक वहाँ पर कुछ लोग
आ चु के थे ।
‘‘हमारी सहायता कर।’’ पूिणमा धीरे से बोली, और िफर अचे त हो गयी।
द्र अपने क म िब तर पर अचे त पड़ा था। वै गगाचाय जी और उनके सहयोगी
लगातार द्र के घाव को धो रहे थे , और िफर उ ह ने उस पर कोई ले प लगाया। वै
गगाचाय जी द्र को अचे त अव था से बाहर िनकालने के िलये लगातार प्रय नशील
थे । उस क म उस व त कई औषिधयाँ और ले प लगातार बनाये जा रहे थे ।
िव लव, िवनायक और कौ तु भ चु पचाप खड़े थे । से नापित प्रताप ने जब अिधपित द्र
के घायल होने की खबर सु नी, तो वो भी वहाँ आ गया। वै से वयं प्रताप का वा य
अभी तक पूणत: सं तोषजनक नहीं था, िक तु अिधपित को दे खने की तीव्र इ छा के आगे
उसे अपने वा य की कोई िचं ता नहीं थी।
िपछले चार घड़ी से वै गगाचाय जी द्र की िचिक सा म लगे थे । अब द्र के घाव से
बहने वाला र त तो ब द हो चु का था, िक तु अभी तक द्र चे तन अव था म नहीं आया
था, और ये बात वहाँ उपि थत सभी लोग को परे शान कर रही थी।
‘‘वै जी! अब अिधपित की ि थित कैसी है ?’’ िव लव ने यग्रता से वै गगाचाय जी
से प्र न िकया।
‘‘दे िखये िव लव जी! अभी अिधपित की ि थित अ यिधक सं वेदनशील है ; उनके घाव से
बहने वाले र त को तो म ले प से ब द कर चु का हँ ,ू िक तु अिधपित को चे तन अव था म
लाने के िलये अभी कुछ और समय लगे गा।’’ वै गगाचाय जी ने भी ँ धे गले से कहा।
भले ही वै जी अ य लोग की भाँ ित रो नहीं रहे थे , िक तु द्र को इस हाल म दे खकर
उनका दय भी अ यं त दुख से भरा था।
‘‘िकतना समय वै जी?’’ िव लव ने पूछा। उसकी आँ ख म आँ स ू भरे हुए थे ।
‘‘चार-पाँच िदन भी लग सकते ह।’’ वै जी ने उ र िदया।
उनका उ र सु नकर िव लव के आँ स ू आँ ख से बहने लगे । अब वो रो रहा था। अिधपित
द्र की ऐसी ि थित ने उसे तोड़कर रख िदया था। िवनायक और कौ तु भ ने िव लव को
सहारा िदया।
‘‘िव लव जी, वयं पर सं यम रिखये ; ई वर ने चाहा तो अिधपित शीघ्र ही व थ हो
जाएँ गे।’’ वै जी ने अपने श द को ज़ोर दे कर कहा, और वहाँ से चले गये । वो सबको
अपनी आँ ख से बहते आँ स ू नहीं िदखाना चाहते थे ।
िव लव, द्र के पास बै ठ गया। वो द्र के िसर को सहला रहा था और आँ ख से आँ स ू
िगराता जा रहा था। िवनायक, कौ तु भ और प्रताप भी उसके िनकट खड़े हुए थे । वे सब
ई वर से अिधपित के शीघ्र व थ होने की प्राथना कर रहे थे ।
राजकुमारी पूिणमा की िचिक सा रा य-वै कर रहे थे । उनके क म दािसयाँ शीघ्रता से
ले प और औषिधयाँ बनाने म रा य-वै की सहायता कर रही थीं। उस व त राजकुमारी
पूिणमा के क म महारानी तारा और उनके दोन पु त्र जयवधन और प्रभास भी
उपि थत थे । महारानी की आँ ख म आँ स ू थे , और दोन राजकुमार भी अपनी बहन के
वा य को ले कर िचं ितत थे ।
राजकुमारी पूिणमा अिधक घायल नहीं थीं, इसिलये औषिधय के प्रभाव से वो शीघ्र
चे तन अव था म आ गइं । अपनी पु त्री को चे तन अव था म दे खकर महारानी तारा हिषत
हो गइं । वो शीघ्र ही अपने पु त्री के िनकट गयीं और उसके मु ख को चूमने लगी।
राजकुमारी के दोन भाई भी प्रस न थे ।
‘‘ये सब कैसे हुआ पु त्री?’’ महारानी तारा ने राजकुमारी पूिणमा से प्र न िकया।
‘‘उसने हमारे प्राण बचाये ह माँ !'' राजकुमारी पूिणमा के मु ख से धीमे वर म आवा़ज
िनकली।
‘िकसने ?’ महारानी ने अधीरता से प्र न िकया।
‘‘अिधपित द्र ने ।’’ राजकुमारी पूिणमा ने अपने माँ के प्र न का उ र िदया।
‘‘ या कह रही हो तु म? अिधपित द्र ने तु हारे प्राण बचाये ह?’’ महारानी तारा को
पूिणमा की ये बात सु नकर झटका सा लगा। अपनी माँ के मु ख से ये सु नकर दोन
राजकुमार भी हतप्रभ थे ।
‘‘हाँ , और वो वयं गं भीर प से घायल हो गये थे ; वो घायल.....।’’ कहते -कहते ही
अचानक राजकुमारी अपने िब तर से उठ गयी। रा य-वै ने उ ह आराम करने की सलाह
दी, िक तु पूिणमा ने उनकी बात को अनसु ना कर िदया। वो धीरे -धीरे अपने क से बाहर
की ओर जाने लगीं।
‘‘पूिणमा! िजद ना करो पु त्री, ऐसी हालत म कहाँ जा रही हो?’’ महारानी तारा ने एक
बार िफर पूिणमा से प्र न िकया।
‘‘अिधपित द्र को दे खने ।'' राजकुमारी पूिणमा ने उ र िदया और क से बाहर िनकल
आयीं। महारानी तारा भी पूिणमा के पीछे -पीछे आ रहीं थी। वो जानती थीं की पूिणमा को
समझाना यथ है , और वो अब िकसी की नहीं सु नने वाली है ।
और एक स चाई ये भी थी िक जबसे महारानी तारा को पता चला था की अिधपित द्र
ने तारा के प्राण की र ा की थी, वो वयं भी द्र को दे खना चाहती थीं। वो मन ही मन
द्र के प्रित कृत थीं।
पूिणमा जब द्र के क म पहुँची तो उसने दे खा की द्र अब भी अचे त अव था म था।
पूिणमा ने द्र के मु ख को दे खा। ऐसा लग रहा था िक जै से अभी उठ जाएगा। पूिणमा
को द्र की हालत दे खकर दुख हुआ। वो जानती थी की द्र के इस हालत की िज मे दार
वही थी। पूिणमा की आँ ख म आँ स ू थे । वो रो रही थी, उस यि त के िलये , िजसने उसके
प्राण को बचाने के िलये अपने जीवन को दाँ व पर लगा िदया था।
पूिणमा के दय म अब द्र के िलये स मान की भावना जग गयी थी। िव लव और सभी
लोग ने महारानी तारा और राजकुमारी को दे खा तो उनके स मान म खड़े हो गये ।
महारानी तारा ने पहले पूिणमा को सहारा िदया, और िफर अिधपित द्र के सम गयीं।
द्र के शरीर के ज म को दे खकर महारानी तारा को अ यं त दुख हुआ।
‘‘अब कैसी ि थित है अिधपित द्र की?’’ महारानी तारा ने प्र न िकया।
‘‘जी, घाव से र त बहना अब ब द हो गया है , िक तु वै जी ने कहा है की अिधपित को
चे तन अव था म आने म कम से कम चार-पाँच िदन लग सकते ह।’’ िवनायक ने स मान
प्रदिशत करते हुए महारानी को उ र िदया।
‘‘ई वर इनकी र ा कर! आप अपने वै से किहये िक वे रा य-वै की सहायता ल, मु झे
पूण िव वास है इससे अिधपित द्र शीघ्र ही व थ हो जायगे ।’’ महारानी तारा ने
कहा।
‘‘जी अव य।’’ िवनायक ने उ र िदया।
अब पूिणमा, द्र के समीप थीं। वो द्र के घाव को िनरं तर दे ख रही थीं। वो लािन से
भरी हुई थीं। उसे इस बात का दुख हुआ, िक वो द्र के प्रित िकतनी गलत थी।
‘‘ये सब मे री वजह से हुआ है ।’’ पूिणमा बोली। सभी उसे दे खने लगे ।
‘‘आिखर हुआ या था राजकुमारी जी? आप वहाँ जं गल म गयी य थी? अिधपित द्र
वहाँ कैसे पहुँचे?’’ कौ तु भ ने प्र न की झड़ी पूिणमा के स मु ख लगा दी।
पूिणमा ने पूरी घटना सबके सम सु ना दी। द्र के िमत्र को जब अपने िमत्र के
वीरता भरे कृ य की जानकारी हुई तो उसके िलये स मान और भी अिधक बढ़ गया। अपने
अिधपित की वीरता पर उ ह गव हुआ।
महारानी तारा को भी द्र से सहानु भिू त हुई। भले ही उसने उनके पित की ह या की थी,
िक तु िपछले दो िदन म उसने उनके पिरवार की झोली म खु िशयाँ भर दी थी। पहले उसने
रा य की बागडोर उनके हाथ म स प दी थी, और अब महारानी के प्राण से िप्रय
पु त्री के जीवन की र ा के िलये अपने प्राण को जोिखम म डाल िदया था। महारानी को
सच म द्र से हमददी हुई, उनके मन म भी द्र के िलये स मान प्रकट हुआ।
पूिणमा अब भी द्र को दे ख रही थी। द्र के मु ख से अब पूिणमा को अनु राग होने लगा
था। अब द्र के प्रित पूिणमा की सारी धारणाएँ बदल चु की थीं। िजतना अिधक वो द्र
को दे खती जा रही थी, उतना ही अिधक द्र के िवषय म उसके िवचार पिरवितत हो रहे
थे । द्र ने उसके प्राण बचाये थे , और पूिणमा को इस बात का आभास था।
अब द्र उसकी ऩजर म वो अस य जं गली नहीं था, िजसने उसके िपता की ह या की
थी, अिपतु वो वीर था, िजसने अपने प्राण को सं कट म डालकर उसके जीवन की र ा
थी। अब तो पूिणमा के दय म द्र के िलये एक मधु र िवचार पनप चु का था, और िजस
भाँ ित वो द्र को िनहार रही थी, कोई भी उसके दय म द्र के प्रित मधु र िवचार को
महसूस कर सकता था।
िव लव ने पूिणमा को दे खा। िजस भाँ ित वो द्र को दे ख रही थी, िव लव को इस बात का
आभास हो गया था िक पूिणमा की द्र के प्रित सहानु भिू त पूणत: स य थी।
वै गगाचाय, और रा य-वै के साथ ने अपना कमाल िदखा िदया था। दो िदन की
अथक मे हनत और प्रती ा के उपरांत द्र, चे तन अव था आ गया था। उसने अपनी
आँ ख खोली और सबसे पहले पै र की ओर बै ठे िव लव को दे खा। उसके आँ ख के आँ स ू
द्र ने दे ख िलये थे ।
उसके बाद द्र ने वहाँ उपि थत अ य सभी को दे खा। सभी के चे हरे पर खु शी के भाव थे ।
द्र के िमत्र, वै जी,और महारानी तारा। द्र ने जब सबको एक साथ दे खा तो उसे
प्रस नता का अनु भव हुआ।
द्र, चे तन अव था म आने के उपरांत सबसे बात करना चाहता था, िक तु वै जी ने
स त िनदश िदये थे िक अभी अिधपित का वा य पूणत: सं तोषजनक नहीं है , इसिलये
उनको अिधक से अिधक आराम करने की ज रत थी।
इसिलये अब वै जी ने सु झाव िदया िक द्र को कुछ दे र आराम करने द। अत: सभी
लोग उस क से बाहर चले गये , और उस क म अब केवल थे द्र और िव लव।
‘‘िव लव! म यहाँ कैसे ? म तो उस जं गल म अचे त हो गया था, मु झे यहाँ कौन लाया?’’
द्र ने अधीर भाव से प्र न िकया। उसके िदमाग म इस समय सै कड़ प्र न घूम रहे थे ,
और वो उन सबका उ र चाहता था।
‘‘अिधपित! धै य रख, म आपको बताता हँ ।ू ’’ िव लव ने द्र को शा त करते हुए कहा।
द्र अब भी यग्रता से िव लव के मु ख को दे ख रहा था।
‘‘अिधपित! जब हम सब िशकार करने के उपरांत उसी जगह पर वापस पहुँचे, जहाँ से हम
अलग हुए थे , तो हमने आपको वहाँ नहीं दे खा। ये हमारे िलये आ चयजनक था; इसिलये
हम पूव िदशा की ओर आपको ढूँढ़ने के िलये चल पड़े । शीघ्र ही हमने आपके घोड़े को
एक वृ से बँ धे दे खा और िफर हमने िकसी की चीख और शे र की दहाड़ सु नी। हम िकसी
अिन ट को सोचकर भयभीत हो गये । हम उस आवा़ज की िदशा म शीघ्रता से भागे ,
िक तु जब तक हम वहाँ पहुँचते , आपने उस शे र को मार िदया था और वयं अचे त हो गये
थे । हमने वहाँ राजकुमारी को भी दे खा, जो शे र के हमले से अचे त थीं, और िफर हम
शीघ्रता से आप दोन को महल म ले आये ।’’ िव लव ने सारा घटनाक् रम द्र के सम
रख िदया।
‘‘राजकुमारी कैसी ह?’’ द्र ने अनायास ही प्र न िकया। जब िव लव ने राजकुमारी का
उ ले ख िकया, तो द्र को उनके वा य की िचं ता हुई।
‘‘वो पूणत: व थ ह अिधपित।’’ िव लव ने उ र िदया।
द्र को ये जानकर खु शी हुई, िक राजकुमारी सु रि त थीं।
अचानक द्र को याद आई अपनी सबसे िप्रय ‘व तु ’ की।
‘‘िव लव! मे रा फरसा कहाँ है ।’’ द्र ने िव लव से प्र न िकया। इस बार द्र के मु ख पर
अिनि चतता के भाव थे ।
‘‘ये रहा अिधपित।’’ िव लव ने मु सकुराते हुए उ र िदया। उसे इस बात का आभास था,
िक अपने फरसे को दे खकर द्र को िकतना हष का अनु भव हुआ था।
‘‘मु झे लगा था िक मने इसे खो िदया; ध यवाद तु हारा, िक तु म इसे अपने साथ लाये ।''
द्र ने िव लव को ध यवाद दे ते हुए कहा, और उस फरसे को अपने हाथ म ले िलया,
िजससे द्र ने उस शे र को मृ त कर िदया था। द्र को अपना फरसा दे खकर असीम हष
हुआ। वो फरसा द्र को अ यिधक िप्रय था।
‘‘जी हाँ , पर इसको उस शे र के गले से िनकालने के िलये कौ तु भ को कड़ी मे हनत करनी
पड़ी अिधपित; उसे आपके फरसे को उस शे र के गले से िनकालने म पूरे दो पहर लगे , और
तब जाकर कहीं वो इस फरसे को शे र की गदन से िनकाल पाया, इसिलये आपके ध यवाद
का अिधकारी वो है ।’’ िव लव ने हँ सते हुए कहा।
‘‘मे रे ध यवाद के अिधकारी तु म सभी हो िव लव, जो मे री से वा म िदन रात त पर हो।’’
द्र ने एक बार िफर कहा।
‘‘अिधपित, आप िपछले दो िदन से अचे त थे और िपछले दो िदन से आपकी से वा म
िसफ हम ही नहीं थे कोई और भी डटा हुआ था।’’ िव लव ने द्र से कहा।
‘कौन?’ द्र ने आ चय के भाव से पूछा।
‘‘राजकुमारी पूिणमा... वो भी हमारे साथ िपछले दो िदन से आपके वा य पर दृि ट
गड़ाये हुए थीं।’’ िव लव ने द्र को उ र िदया।
द्र को इस बात से आ चय हुआ।
‘‘ या? राजकुमारी पूिणमा! पर य ?' द्र ने है रानी से प्र न िकया।
‘‘वो आपके प्रित अपनी कृत ता प्रदिशत करना चाहती थीं।’’ िव लव ने उ र िदया।
‘‘वो एक बहादुर त्री ह िव लव; जब शे र पहली बार मे रे ऊपर आक् रमण करने वाला था,
और म िनह था भूिम पर पड़ा अपने मृ यु की प्रती ा कर रहा था, तब उ ह ने उस शे र
के ऊपर तलवार से एक भरपूर वार िकया था, जबिक वो वयं घायल थीं।’’ द्र ने पूिणमा
का बखान िव लव के सम िकया।
‘‘िनि चत ही वो ह अिधपित।’’ िव लव ने उ र िदया।
‘‘िव लव, तु हारा मे रे िलये इस िवशे ष लगाव और अपन व के िलये ध यवाद।’’ द्र ने
एक बार िफर िव लव से कहा।
‘‘अिधपित द्र, आपके िलये म जो कुछ भी करता हँ ू वो मे रा कत य है , मे रे पूरे जीवन
म िसफ आप ही एक अपने ह; आपकी से वा और सु र ा के िलये ही मे रा ये जीवन है ,
कृपया ध यवाद कहकर मु झे पराया न घोिषत कर।’’ िव लव ने हाथ जोड़कर बहुत ही
क ण भाव से द्र से कहा।
द्र ने कुछ नहीं कहा, बस एक ह की सी हँ सी उसके मु ख पर िखल गयी और उसी ने
द्र के दय के िवचार िव लव के सम प्रेिषत कर िदया। ऐसी ही थी उन दोन के म य
की िमत्रता... एक-दस ू रे के इशार से भली-भाँ ित पिरिचत थे दोन िमत्र।
िव लव ने आभास िकया िक द्र को नींद लग रही थी, िक तु वो उससे बात करने के
कारण से सो नहीं रहे थे ।
‘‘अिधपित! अब आप आराम कीिजये , य िक वै जी की औषिधय से अब आपको नींद
ले ने की आव यकता है ।’’ िव लव ने द्र से कहा और उस क से बाहर िनकल गया। वो
चाहता था िक द्र भरपूर आराम कर ल, अ यथा उनके वा य पर प्रितकू ल असर
पड़े गा।
िव लव ने सै िनक को द्र के क के बाहर चौक ना रहने का आदे श िदया, और वहाँ से
चला गया। द्र पर औषिधय का असर हो रहा था।
पर अब भी द्र उस घटना के बारे म सोच रहा था, जब उसके ऊपर एक भालू ने
आक् रमण िकया था, और काका ने उसके प्राण बचाये थे ; और िफर एक बार उसके प्राण
िकसी ने बचाये थे । द्र उसके प्रित कृत था।
अपने ख़याल म िवचरण करते -करते द्र को आभास ही नहीं हुआ िक कब वो सो गया।
7. एक नये जीवन की ओर
सु बह जब द्र की आँ ख खु लां â तो उसने महसूस िकया िक एक जोड़ी आँ ख उसको घूर
रही थीं। और द्र पहचानता था उन आँ ख को, य िक उन आँ ख से उसका गहरा लगाव
था, वो आँ ख जो द्र को उसके माँ की याद िदलाती थीं। वो पूिणमा की आँ ख थीं।
पूिणमा द्र के क म प्रात: ही आ गयी थी, और वो द्र के जागने की प्रती ा कर
रही थी। वो द्र को ध यवाद दे ना चाहती थी।
‘‘राजकुमारी पूिणमा! आप इस समय यहाँ ?’’ द्र ने आ चय के भाव से प्र न िकया।
उसने पूिणमा की आँ ख की ओर एक तीव्र दृि ट डाली और शीघ्र ही हटा ली। उन
आँ ख को दे खने मात्र से ही उसे खु शी िमली।
‘‘जी अिधपित द्र! म आपको ध यवाद कहने आई थी।’’ पूिणमा ने उ र िदया। पूिणमा
की दृि ट द्र के मु ख की ओर ही िटकी थीं।
‘‘ध यवाद िकसिलये राजकुमारी जी?’’ द्र ने एक बार िफर प्र न िकया।
‘‘आपने मे रे प्राण की र ा की, और उसके िलये आपने अपने प्राण को खतरे म डाल
िदया, म जीवन भर आपकी आभारी रहँ ग ू ी।’’ पूिणमा ने कहा।
‘‘इसके िलये आभार जताने की आव यकता नहीं है राजकुमारी।’’ द्र ने कहा।
पूिणमा कुछ नहीं बोली, वो चु प ही रही, पर उसकी आँ ख अब द्र को ही दे ख रही थीं।
आज पहली बार उसने द्र के शरीर को स पूण प से दे खा। उसने यान िदया की द्र
के केश आज खु ले हुए थे । उसके केश िकसी त्री की भाँ ित बड़े थे । उसने अपने गले म
द्रा की माला पहनी हुई थी, िजसको दे खकर इस बात का आभास होता था िक वो
प्रभु िशव का भ त था। द्र का गे हुआँ रं ग भी पूिणमा को भा रहा था। द्र के मु ख का
ते ज पूिणमा को आकिषत कर रहा था। उसके सु गिठत एवं मांसल शरीर ने भी पूिणमा को
आकिषत िकया। पूिणमा को द्र का प अब अ यिधक भा रहा था। पूिणमा को आभास
नहीं था, िक तु कहीं ना कहीं उसके दय म द्र के प्रित प्रेम के अं कुर फू ट गये थे ।
द्र के प्रित उसका लगाव, उसके प्रेम को पिरभािषत कर रहा था। द्र को दे खकर ही
पूिणमा के दय को अपार हष होता था।
द्र ने जब पूिणमा को इस भाँ ित खु द को घूरते दे खा, तो पहले तो वो कुछ ण के िलये
वो झप गया। पूिणमा का इस भाँ ित उसे दे खना, उसे अ यं त ही असु िवधाजनक प्रतीत
हुआ, और िफर वो बोला,
‘‘राजकुमारी पूिणमा! मु झे लगता है अब आप को चलना चािहये ।’’ द्र ने कहा। उसने
अपनी दृि ट दस ू री ओर की थी। वो पूिणमा को दे खना नहीं चाहता था, य िक उसे ये
अजीब लगा।
पूिणमा ने जब द्र की ऐसी बे खी दे खी, तो उसे आभास हो गया िक शायद द्र को
उसका इस भाँ ित उसे दे खना असु िवधाजनक लगा था।
‘‘जी म जाती हँ ,ू एक बार िफर आपका ध यवाद।’’ पूिणमा ने कहा और शीघ्रता से उस
क से चली आई।
द्र की असु िवधाजनक ि थित के िवषय के बारे म सोचकर एक बात तो पूिणमा को खु द
के यवहार के िवषय म ल जा आई, िक तु द्र की बे खी से उसे कोई दु:ख नहीं हुआ।
उसके ऊपर अब द्र के प्रेम का रं ग चढ़ चु का था। पूिणमा अपने साथ घिटत हो रहे उस
अनु भव का आनं द ले रही थी।
द्र, पूिणमा के इस भाँ ित यवहार से अचरज म था। उसे पूिणमा का अपने प्रित इस
भाँ ित आकिषत होना अखर रहा था। द्र ने आज तक कभी िकसी त्री को खु द के प्रित
इतना आकिषत नहीं दे खा था। वै से भी िकसी त्री से सं बंध के िवषय म द्र ने कभी
सोचा ही नहीं था। पूिणमा के िवषय म द्र के दय म कोई भाव नहीं थे ... अब तक तो
नहीं थे ।
द्र ने एक बार िफर पूिणमा के िवषय म सोचा। उसने उस दृ य को याद िकया, जब वो
उसको घूर रही थी। पूिणमा की आँ ख म द्र ने अपने िलये ‘िवशे ष भाव’ को महसूस
िकया था।
‘‘आिखर राजकुमारी जी ऐसा अजीब यवहार य कर रही थीं?' द्र ने िवचार िकया।
‘‘िनि चत ही राजकुमारी जी मे रे प्रित कृत महसूस कर रही ह, और इसीिलये इस
भाँ ित यवहार कर रही ह। इसमे अिधक सोचने वाली कोई बात नहीं है ।’’ द्र ने खु द ही
उ र सोच िलया या यूँ कह की उसने खु द को समझाने की कोिशश की।
द्र, अपना यान पूिणमा की ओर से हटाना चाहता था। उसने एक गहरी साँस ली। वो
अब िकसी और िवषय म सोचने लगा। एक बार िफर अपने िवचार म मगन हो गया
अिधपित द्र। आँ ख ब द िकये हुए एक गं भीर मु दर् ा म था वो इस समय।
एक स ताह से अिधक बीत चु के थे , और वै जी के गहन पिरश्रम के फल व प अब
द्र का वा य िबलकुल ठीक हो चु का था। उसके ज म भी अब पूरी तरह से भर चु के
थे , और अब वो चहलकदमी भी करने लगा था।
िपछले कुछ िदन से द्र के जीवन म एक नया पिरवतन शु हो गया था। अब उसका
िदन शु होता था राजकुमारी पूिणमा के साथ, और िदन का अिधक समय उ हीं के साथ
ही गु जरता था। राजकुमारी पूिणमा अब द्र की िदनचया का अिभ न िह सा बन गयी
थीं।
राजकुमारी पूिणमा को अब इस बात का एहसास हो गया था िक वो द्र से प्रेम करती
ह। पहले तो उ ह ने इस बात पर भरोसा ही नहीं िकया, िक तु शीघ्र ही उ ह भरोसा
करना पड़ा, य िक अब वो भी जब तक द्र को न दे ख ले तीं, उ ह सु कून नहीं िमलता
था। हर समय उनकी सोच म द्र ही रहता था।
और अब राजकुमारी पूिणमा अपने इस प्रेम को द्र के सम िदखाने म भी नहीं
िहचकती थीं। पूिणमा द्र को अपने प्रेम का एहसास कराना चाहती थीं।
द्र, िजसे पहले तो पूिणमा का ये यवहार और अपन व असु िवधाजनक लगता था,
शीघ्र ही वो उस यवहार का आदी हो गया था। पूिणमा ने द्र को पिरवितत कर िदया
था। वो द्र, जो िकसी भी त्री के सम खु द को कभी प्र तु त नहीं करता था, वो अब
एक त्री के साथ इस भाँ ित सु िवधाजनक महसूस कर रहा था।
कहीं न कहीं राजकुमारी पूिणमा के प्रेम की आग द्र के दय म भी प्र विलत हो
गयी थी। बे शक ये सौ दय अथवा प से मोिहत होकर िकया गया प्रेम नहीं था; द्र
को कोई अपने प से मोिहत कर ही नहीं सकता था। द्र के दय म जो प्रेम उ प न
हुआ था,वो था पूिणमा के साथ एक भरोसे के िर ते की वजह से । द्र अब पूिणमा के
सम अपनी िकसी भी बात को कह सकता था। उसे पूिणमा पर पूण भरोसा हो गया था,
और वही भरोसे की डोर प्रेम म पिरवितत हो गयी थी।
द्र का िदन अब पूिणमा से बात करके ही यतीत हो रहा था। द्र को पूिणमा ने अपने
जीवन के िवषय म सबकुछ बता िदया था। द्र को पूिणमा के जीवन के िवषय म जानकर
आनं द हुआ। पूिणमा ने द्र को ये भी बताया िक पहले वो उसके िवषय म िकतने गलत
िवचार रखती थी; िक तु अब उसके िवचार बदल चु के ह। अब द्र के प्रित उसके िवचार
शु प म पिरवितत हो गये थे । वो द्र को अपने जीवन से पिरिचत कराना चाहती थी।
द्र, पूिणमा के पिरहास पर खु लकर हँ सता था। उसके साथ द्र का एक अलग ही
यि त व िनखरकर आ रहा था। द्र, जब पूिणमा के साथ होता था तो वो िसफ ‘ द्र’
होता था, अिधपित द्र नहीं। उसके यि त व का यही पहलू अ य लोग के सम नहीं
आ पाता था, इसीिलये वो पूिणमा के साथ यादा खु श और प्रस न िदखता था।
द्र और पूिणमा का बीच का ये लगाव राजमहल म दो लोग महसूस कर रहे थे , एक था
िव लव, और दस ू री थीं महारानी तारा। वो दोन ही द्र-पूिणमा के ऊपर दृि ट गड़ाये हुए
थे , िक तु उन दोन के भाव भी एक दस ू रे से िभ न थे ।
महारानी तारा ये जान चु की थीं की पूिणमा द्र से प्रेम करती ह और वो इस बात से
िचं ितत भी थीं िक तु उ ह इस बात का भी पता था िक पूिणमा िकसी की भी बात नहीं
सु नने वाली है , य िक एक बार जब वो कोई बात ठान ले ती है तो िफर वो उस िवषय म
िकसी की भी बात नहीं सु नती। पर वो ये नहीं चाहती थी िक उनकी पु त्री िकसी ब्रा ण
के सं ग िववाह करे । अगर ऐसा होता है तो पूरे समाज म उनकी नाक कट जाती। िकसी
ित्रय महारानी की पु त्री, िकसी ब्रा ण अिधपित से िववाह करती तो ये अनथ ही
था।
िव लव इस बात से प्रस न था िक द्र और पूिणमा एक दस ू रे के साथ प्रस नता से
समय यतीत कर रहे ह। िव लव हमे शा से यही चाहता था िक द्र अपने जीवन म सारे
सु ख प्रा त करे । उसका यही मत था िक द्र को अिधकार था अपने जीवन म खु िशयाँ
भरने का। िव लव, ई वर से प्राथना करता था िक द्र और पूिणमा एक हो जाय, तभी
शायद द्र के दय को शाि त िमले ।
एक िदन द्र और पूिणमा क म अकेले थे । सु बह का व त था। द्र अपने िब तर पर
ही बै ठा था, और पूिणमा ठीक उसके सामने बै ठी हुई थी। उन दोन के म य बात हो ही
रही थी, िक अचानक द्र ने कहा,
‘‘आपने मे रे गदन पर वार य िकया था?''
द्र के इस प्र न को सु नकर पहले तो पूिणमा हँ सी और िफर बोली,
‘‘ या वो बहुत ही गहरा घाव था? मने तो बड़ी ही सहजता से तलवार आपके गले पर
चलायी थी द्र।’’ वो अब भी हँ स रही थी।
‘‘आपके ारा िदये गये घाव ने तो मु झे दद िदया ही नहीं था राजकुमारी पूिणमा जी; पर
िकसी अं जान का इस भाँ ित ज म दे दे ना मु झे है रान िकये हुए था... िक तु ये मे रे प्र न
का उ र नहीं है राजकुमारी पूिणमा!’’ द्र ने भी मु कुराते हुए कहा।
‘‘ द्र! आप वयं मे री उस व त की मनोदशा को समझने का प्रय न कीिजये ; उस व त
मे रे िलये आप मे रे िपता के ह यारे थे , और आपने मे रे भाइय को ब दी बनाया हुआ था,
हमारे रा य पर यु थोप िदया था; आप वयं ही सोिचए िक या मे री प्रितिक् रया
आपके साथ गलत थी?’’ पूिणमा ने दुख के साथ उ र िदया।
द्र ने जब पूिणमा की बात सु नी तो, उसे उसकी उस व त की मनोि थित का अं दा़जा
हुआ। द्र को अब पूिणमा का वो यवहार अनु िचत नहीं लगा।
‘‘अब आपके िलये मे रे बारे म कैसे िवचार ह?’’ द्र ने पूिणमा से एक बार िफर प्र न
िकया।
‘‘अब तो आपके िलये दय म अगाध श्र ा का भाव है , आिखर आपने हमारे प्राण
बचाये ह।’’ पूिणमा ने मु कुराते हुए उ र िदया।
‘‘िफर तो ये भी कह सकते ह अब आपके प्राण पर हमारा अिधकार है ।’’ द्र ने भी
हँ सते हुए कहा।
‘‘िनि चत ही।’’ पूिणमा ने हँ सते हुए कहा।
दोन की हँ सी उस क म सु नाई दी।
एक िदन द्र और पूिणमा उस िशव मि दर म थे । वे दोन ही प्रभु िशव के अन य भ त
थे । द्र जबसे व थ हुआ था, तभी से वो प्रभु िशव के मि दर जाना चाहता था, पर
िकसी कारणवश वो जा नहीं पाता था। आज उनके उस िशव मि दर म आने का कारण था
पूिणमा। पूिणमा ने द्र से कहा था िक वो उससे िकसी मह वपूण िवषय पर बात करना
चाहती थी, और उसके िलये िशव मि दर सबसे उपयु त थान था। इसीिलये उस िदन
द्र पूिणमा के साथ प्रभु िशव के सम बै ठा हुआ था।
पूिणमा ने ये िनि चत कर िलया था िक अब वो द्र के सम अपने प्रेम के िवषय म
कहे गी। वो अब द्र से और अिधक दरू नहीं रहना चाहती थी। उसने िपछले कई िदन से
इस िनणय पर िवचार िकया था, और अं तत: इस िनणय पर पहुँची थी।
द्र और पूिणमा दोन बहुत दे र से उस मि दर म शाि त से बै ठे हुए थे । वो दोन चु प थे ,
और प्रभु िशव की मूित की ओर दृि ट गड़ाये हुए थे ।
और िफर उस शाि त को भं ग करते हुए पूिणमा ने अपनी बात कही,
‘‘ द्र! म आपसे प्रेम करती हँ ।ू ''
पूिणमा के मु ख से सीधे -सीधे ऐसे श द सु नकर द्र स न रह गया। वो समझ नहीं पा रहा
था िक िकस भाँ ित पूिणमा की बात पर अपनी प्रितिक् रया दे ।
‘‘राजकुमारी पूिणमा, ये आप या कह रही ह?’’ द्र ने यग्रता से प्र न िकया। उसका
दय ज़ोर से धड़क रहा था; वो ऐसी िकसी भी पिरि थित के िलये तै यार नहीं था।
‘‘ द्र, म आपसे प्रेम करती हँ ,ू और आपसे िववाह करना चाहती हँ ,ू कृपया आप अपने
दय की बात बतायेँ ।’’ पूिणमा ने कहा। उसके श द म एक तड़प थी। वो द्र के श द
को सु नने के िलये आतु र थी। उसकी आँ ख म आँ स ू भी थे ।
द्र समझ ही नहीं पा रहा था िक आिखर हो या रहा है ? वो पूिणमा के प्र न का सीधा
उ र दे ने से बचना चाहता था, इसिलये उसने अपनी बात घु माई।
‘‘राजकुमारी पूिणमा! आप जानती ह िक इस िर ते को कोई भी वीकार नहीं करे गा। एक
ित्रय राजकुमारी का एक ब्रा ण के साथ िववाह अस भव है राजकुमारी।’’ द्र ने
पूिणमा का यान स य की ओर आकृ ट कराते हुए कहा।
‘‘ द्र! आपको प्रभु िशव की सौगं ध है , आप िसफ इस बात का उ र द, िक या आप
मु झसे प्रेम करते ह या नहीं?’’ पूिणमा ने अपने आँ सुओ ं को अपनी आँ ख म रोकते हुए
कहा। वो अपनी पूरे शि त से खु द को मजबूत प्रमािणत करने की कोिशश कर रही थी।
द्र के िलये ये एक किठन पिरि थित थी। पूिणमा ने उसे प्रभु िशव की सौगं ध दे दी थी,
इसिलये अस य बोलने का तो कोई प्र न ही नहीं था। कुछ दे र िवचार करने के बाद द्र
ने अपने दय की बात प ट की।
‘‘हाँ पूिणमा, म भी आपसे प्रेम करता हँ ।ू ’’ उसके श द म िव वास था। उसने अपने
दय की बात पूिणमा से कह दी थी। जब पूिणमा त्री होकर भी अपने दय की बात
कहने म नहीं डर रही थी, तो िफर द्र के सम तो डरने का कोई िवक प ही नहीं था।
द्र की आँ ख म अब चमक थी। उसके मु ख पर एक ते़ ज था। उसने प्रथम बार अपने
जीवन म अपने िलये कोई िनणय िलया था।
द्र के मु ख से ये सु नते ही पूिणमा, द्र के सीने से िलपट गयी। अब वो रो रही थी।
उसने अपने जीवन की सबसे बड़ी खु शी पा ली थी। द्र ने उसके सम अपने प्रेम को
वीकार िलया था।
जब पूिणमा, द्र के सीने से लगी हुई थी और रो रही थी, उस व त द्र, पूिणमा को
ढाँढ़स बं धाना चाहता था, िक तु उसे सं कोच हो रहा था। वो अपने हाथ को पूिणमा के
शरीर पर रखने से कतरा रहा था। ले िकन जब पूिणमा उसी भाँ ित उसके सीने से िलपटकर
रोती रही, तो िफर द्र ने अपने हाथ को पूिणमा के िसर पर रखा और उसे हौसला िदया।
अब वे दोन अपने जीवन म एक नयी शु आत के िलये तै यार थे ।
‘‘ द्र! आज आपने मे रे प्रेम को अपनाकर मु झे अनु गृहीत िकया है ; मु झे अब जीवन से
और िकसी अ य व तु की अिभलाषा नहीं है ।’’ पूिणमा ने द्र के सीने से िलपटे हुए ही
कहा।
‘‘पूिणमा, अभी तो आपको जीवन से बहुत कुछ ले ना है ।’’ द्र ने हँ सते हुए पूिणमा का
कसकर आिलं गन िकया।
द्र ने अब िनणय ले िलया था िक वो पूिणमा से िववाह करे गा। अपने जीवन म पहली
बार उसे िकसी त्री के प्रित प्रेम का एहसास हुआ था, और वो अपने इस प्रेम को
िसफ इसिलये नहीं याग दे गा, य िक इसे समाज वीकार नहीं करे गा। द्र ऐसे समाज
को याग दे गा, जो उसके प्रेम पर उँ गली उठाये गा। अब द्र के दय म पूिणमा के िलये
भाव अपने चरम पर पहुँच चु के थे । प्रभु िशव के उस मि दर म द्र के नये जीवन की
शु आत हुयी थी।
पूिणमा, अपनी माँ महारानी तारा के क म थी। सारी दािसय को क से बाहर जाने का
आदे श दे िदया गया था। पूिणमा, अपनी माँ से कोई मह वपूण बात करना चाहती थीं।
उस समय क म केवल माँ -बे टी ही उपि थत थीं।
‘‘कहो पु त्री, ऐसी कौन सी मह वपूण बात तु मको मु झसे करनी है , िजसके िलये तु मने
सारी दािसय को क से बाहर कर िदया।’’ महारानी तारा ने पूिणमा से प्र न िकया।
महारानी तारा डरी हुई थीं, वो ई वर से प्राथना कर रही थीं िक पूिणमा, द्र के िवषय म
कुछ ना कहे , पर शायद उनकी प्राथना म खोट थी।
‘‘माँ , म अिधपित द्र से िववाह करना चाहती हँ ।ू ’’ पूिणमा ने दृढ़ता से उ र िदया।
महारानी तारा के पै र तले से तो मान भूिम ही िखसक गयी हो। पूिणमा की बात सु नकर
वो कुछ समझ ही नहीं पा रही थीं कैसे बोल और या बोल? िजस अिन ट को ले कर वो
डरी हुई थीं आिखर म वही हुआ।
‘‘पूिणमा! या तु म अपने होश म नहीं हो? ये कैसी बात कर रही हो? तु म जानती हो िक
तु हारा और द्र का िववाह नहीं हो सकता; िकसी भी कीमत पर नहीं।’’ महारानी तारा
चीख़ीं। वो उस पल की क पना करके ही काँप गयीं, जब एक ब्रा ण उनका दामाद
बनता।
‘‘माँ , म आपसे आदे श नहीं ले ने आई हँ ;ू म आपको केवल अपना िनणय बताने आई हँ ,ू
और अिधपित द्र भी िववाह के िलये तै यार ह।’’ पूिणमा ने एक बार िफर अपने माँ के
क् रोध को दरिकनार करते हुए कहा।
महारानी तारा जानती थीं, पूिणमा को डराना या समझाना दोन यथ था, य िक वो
अपने बात की प की थी और एक बार िनणय ले ने के बाद िकसी भी कीमत पर उससे पीछे
नहीं हटने वाली थी।
अब महारानी तारा पर माँ तारा हावी हो गयी थी। वो अब अपनी बे टी को एक माँ के तौर
पर समझाने का प्रय न करने लगी।
‘‘पु त्री! म तु हारे भले के िलये कह रही हँ ,ू ये समाज तु हारे िर ते को स मान नहीं दे गा;
आिखर य तु म अपने जीवन म दुख का पहाड़ खड़ा करना चाहती हो।’’ महारानी तारा
ने पूिणमा को समझाते हुए कहा। उनकी आँ ख म अब आँ स ू थे । अपने पु त्री के भिव य
को ले कर वो दुखी थीं।
पूिणमा ने जब अपनी माँ की आँ ख म आँ स ू दे खा, तो वो भी द्रिवत हो गइं । वो अपने माँ
के हाथ को अपने हाथ म ले कर बोलीं,
‘‘माँ , समाज या सोचता है , उसे मु झे फक नहीं पड़ता। आप या सोचती ह वो
मह वपूण है । माँ अिधपित द्र ने मे रे प्राण बचाये थे । उ ह ने राज िसं हासन आपको
स पकर हमारे पिरवार की प्रित ठा बचाई थी। माँ वो एक अ छे यि त है और मे रा
यकीन मािनये म उनके साथ बहुत खु श रहँ ग ू ी।’’ पूिणमा ने कहा और अब उनकी आँ ख भी
आँ स ू से भीगी हुई थीं।
महारानी तारा ने जब अपनी पु त्री के मु ख से ऐसी बात सु नी तो उ ह अब उसकी बात
पर भरोसा आ गया। आिखरकार पूिणमा उनकी सबसे बड़ी सं तान थी, उसके प्रित उनका
यार भी सबसे अिधक ही था, और अगर वो िकसी ब्रा ण से िववाह करना ही चाहती
थी तो इसम हज ही या था? ये उसका जीवन है , और अपना जीवनसाथी चु नने के उसे
पूरा हक था। और िफर पूिणमा की बात भी तो ठीक थी िक द्र ने उनके पिरवार की हर
बार सहायता ही की थी। िनि चत ही वो पूिणमा के िलये एक सु यो य वर था। महारानी
तारा ने मन ही मन सोचा।
‘‘ठीक है पु त्री, अगर तु म इस िनणय से प्रस न हो, तो िफर म तु हारे इस िनणय के
साथ हँ ।ू ’’ महारानी तारा ने पूिणमा को अपने गले से लगाते हुए कहा।
पूिणमा ने झुककर माँ के पाँ व छुए और महारानी तारा ने उसे खु ले िदल से ढे र सारा
आशीवाद िदया।
आिखरकार महारानी तारा पर पूिणमा के माँ की िवजय हुई। पूिणमा अब अ यिधक
प्रस न थी। माँ के आशीवाद से अपने नये जीवन की शु आत करना उसके िलये बहुत
सु खद एहसास था।
महारानी तारा जानती थीं िक पूिणमा के इस िनणय से सभी लोग प्रस न नहीं ह गे ।
लोग उसके िवषय म बहुत कुछ कहगे । एक ित्रय होकर भी ब्रा ण से िववाह करने
पर समाज उसे स मान की दृि ट से नहीं दे खेगा।
िक तु स य तो ये भी था िक महारानी तारा अपनी पु त्री को प्रस न दे खना चाहती थीं,
और अगर उसकी खु शी उस ब्रा ण द्र म थी, तो महारानी तारा को उससे कोई आपि
नहीं थी।
‘‘उसे अपने जीवन म खु श रहने का अिधकार है ।’’ महारानी तारा ने सोचा।
अब वो द्र और पूिणमा के िववाह के िलये खु शी-खु शी तै यार थीं, और दे वगढ़ भी अपनी
इकलौती राजकुमारी के िववाह के िलये शीघ्रता से प्रती ा कर रहा था।
द्र के िलये अपने िववाह की बात सभी से कहना बहुत ही किठन काय था, िक तु उसे
सबको इस िवषय म बताना तो था ही, इसिलये उसने सबको अपने क म बु लाया।
अिधपित द्र समझ रहे थे िक उनके िलये ये बात सबको बताना िकतना किठन होने
वाला है , और इसीिलये उ ह ने पूिणमा को भी उपि थत रहने को कहा था, पर पता नहीं
य , अभी तक वो नहीं आई थीं, और द्र बे चैन हो रहा था।
िव लव, िवनायक, कौ तु भ, से नापित प्रताप और वै गगाचाय जी द्र के क म बै ठे
थे । वे सब जानना चाहते थे िक आिखर अिधपित ने उ ह अचानक ही इस भाँ ित य
बु लाया है ? वो सब अधीरता से द्र को दे ख रहे थे , और आशा कर रहे थे िक शीघ्र ही
अिधपित अपनी मह वपूण बात उनके स मु ख रखगे ।
‘‘प्रताप! अब तु हारा वा य कैसा है ?’’ द्र ने प्र न िकया। द्र िकसी भाँ ित अपनी
बात शु करना चाहता था।
‘‘एकदम ठीक है अिधपित।’’ प्रताप ने सस मान उ र िदया।
‘‘वै से मने आप सबको यहाँ इसिलये बु लाया है िक म आप सबको बता सकूँ की म..... आप
सबको..... ये बता सकूँ .....।’’ द्र अपनी बात को कह नहीं पा रहा था।
वहाँ उपि थत सभी यि त अिधपित द्र के इस यवहार से चिकत थे , य िक आज से
पूव उ ह ने कभी अिधपित द्र को इस भाँ ित सं कोच करते नहीं दे खा था। अिधपित
द्र, अपने श द को बोलने म लड़खड़ा रहे थे । िन चय ही अिधपित ने अपने यवहार
से सबको है रानी म डाल िदया था।
‘‘अिधपित! या कोई सम या है ?’’ िवनायक ने अिधपित को इस भाँ ित असु िवधा म
दे खकर प्र न िकया।
‘‘अरे नहीं िवनायक, कोई सम या नहीं है ।’’ द्र ने कहा।
‘‘िफर आप ऐसी असु िवधाजनक ि थित म य लग रहे ह अिधपित?’’ िवनायक ने
अिधपित द्र से कहा।
‘‘वो तो म इसिलये हँ ,ू य िक म आप सबको सूिचत करना चाहता हँ ू की म....... म
िववाह करने वाला हँ ।ू ’’ द्र ने आँ ख ब द करके कहा। उसके मु ख पर ल जा इस व त
दे खी जा सकती थी। उसको अपनी ये बात कहने के िलये बड़ी मे हनत करनी पड़ी।
द्र के मु ख से ये सु नने के बाद िव लव के अितिर त अ य सभी लोग अवाक थे । उन
सबको ये सूझ नहीं रहा था िक अिधपित द्र के इन श द का वो या मतलब िनकाल?
िक तु अिधपित द्र ने कहा था, िक वे िववाह करने वाले ह।
‘‘अिधपित, आप िववाह करने वाले ह?’’ कौ तु भ ने हतप्रभ होकर पूछा। वो अपने कान
पर यकीन नहीं कर पा रहा था, और इसीिलये वो एक बार िफर उन श द की पु ि ट कर
ले ना चाह रहा था।
‘हाँ ।’ द्र ने एक बार िफर लजाते हुए कहा।
मतलब तय था, िक अिधपित द्र िववाह करने वाले ह।
‘िकससे ?’ है रान होकर प्र न पूछने की बारी िवनायक की थी।
‘‘राजकुमारी पूिणमा।’’ द्र ने उ र िदया। द्र ने य ही इस बात की पु ि ट की, य
ही उस क म राजकुमारी पूिणमा का आगमन हुआ। वहाँ उपि थत सभी लोग चिकत थे ।
वो सभी बस अपनी आँ ख फैलाये अपने अिधपित और राजकुमारी को दे ख रहे थे ।
‘‘ द्र! माँ िववाह के िलये मान गयी ह।’’ पूिणमा ने द्र को वो खु शखबरी सु नाई। द्र
भी हिषत हुआ। वहाँ खड़े सभी लोग अब सब कुछ समझ चु के थे , अथात ये स य था िक
अिधपित िववाह करने जा रहे ह और बस, िफर या था?
अब उस क म हष का माहौल था। अिधपित द्र और राजकुमारी पूिणमा की शादी,
उन सभी के िलये एक सु खद समाचार था। पहले तो उ ह इस बात का यकीन ही नहीं हुआ
था िक अिधपित द्र वयं अपने मु ख से अपनी िववाह के िवषय म कह रहे ह, ले िकन
िफर जब राजकुमारी पूिणमा ने भी उस क म आकर इस समाचार की पु ि ट की, उसके
बाद तो िवनायक और कौ तु भ खु शी के मारे नृ य करने लगे , और िफर िव लव ने भी
उनका साथ िदया। वे तीन अपनी प्रस नता को रोक नहीं पा रहे थे ।
वै जी और से नापित प्रताप भी प्रस न थे । उनके िलये भी ये आनं द का ण था।
द्र और पूिणमा उन तीन को नृ य करते दे ख रहे थे । द्र को पता था िक उसके िमत्र
के िलये ये िकतने हष का िवषय था।
द्र, अब एक नये जीवन की ओर कदम बढ़ा चु का था।
महारानी तारा ने पूरे रा य म द्र और पूिणमा के िववाह की घोषणा की। महारानी तारा
के दोन पु त्र, पूिणमा के िववाह के िव थे । उ ह ने अपनी बहन का िववाह, उस
ब्रा ण से करने का स त िवरोध िकया, िक तु रानी तारा के आदे श के िव वो नहीं जा
सकते थे , और उनको िख न मन से भी इस िववाह को होते हुए दे खना था। वो कुछ नहीं
कर सकते थे । पूरे रा य म भी इस िववाह को ले कर िमला जु ला असर था। कुछ लोग
जहाँ इस िनणय से प्रस न थे , तो कुछ लोग को राजकुमारी का एक ब्रा ण के साथ
िववाह करना अखर रहा था।
‘‘ या अब राज पिरवार के ऐसे िदन आ गये िक उ ह अपनी बे िटय का िववाह एक
ब्रा ण से करना पड़े ?’’ एक नागिरक ने कहा।
‘‘राजकुमारी और महारानी ने सारे ित्रय समाज की नाक काट ली; हम दे वगढ़ के लोग
अ य रा य के लोग को मुँ ह िदखाने के लायक नहीं रह गये ।’’ दस ू रे ने कहा।
‘‘िक तु इसम बु राई ही या है ? अिधपित द्र भले ही ब्रा ण है , िक तु उ ह ने
राजपिरवार के िलये बहुत कुछ िकया है ; और तो और, उ ह ने राजकुमारी के प्राण भी
बचाये ह।’’ तीसरे ने कहा।
‘‘ये उनका जीवन है , और उनको अिधकार है िक वो िकससे िववाह कर।’’ एक अ य ने
कहा।
िक तु चाहे अनचाहे सभी को उस फैसले का स मान करना था।
पर चूंिक अब िववाह की ितिथ राज पु रोिहत ने िनयत कर दी थी, तो इसीिलये अब पूरे
रा य म िववाह की तै यािरयाँ ज़ोर-शोर से चल रही थां r। रा य के हर घर को रं गा-पोता
जा रहा था, सभी घर को सजाया भी जा रहा था, सभी रा त को साफ िकया जा रहा
था। चार ओर इत्र का िछड़काव िकया जा रहा था। एक बड़े उ सव की तै यारी चल रही
थी, और सारा रा य उस उ सव की खु मारी म डूबा था। रा य म चार ओर िदवाली के
योहार की भाँ ित सजावट कर दी गयी थी। महारानी तारा वयं पूरी यव था पर अपनी
दृि ट रखे हुए थीं, और हर यव था को सवश्रे ठ ढं ग से करवा रही थीं।
द्र ने महारानी तारा से आग्रह िकया था िक वो िववाह महल म नहीं, अिपतु िशव
मि दर म करना चाहता है । पूिणमा भी द्र के िनणय से सहमत थी। महारानी तारा को
भी इस िनणय से खु शी हुई। प्रभु िशव के उस िदिव मि दर को भी चमका िदया गया था।
िववाह म आने वाले सभी मे हमान एवं रा य के लोग को बै ठने के िलये उिचत यव था
करायी गयी थी।
िव लव भी िवनायक और कौ तु भ के साथ द्र के िववाह की तै यािरय म लगा था।
िववाह के िलये अिधपित के व त्र की यव था हो, या िफर उनके क को एक नये ढं ग
से सजाने का काय हो, वे तीन सभी काय गु प-चु प ढं ग से िकये जा रहे थे ।
िव लव ने से नापित प्रताप को राजनगर भे जा था, तािक वो वहाँ से िनवािसत ब ती के
लोग को खास तौर पर आमं ित्रत करे , एवं अपने साथ ले कर आये । द्र ारा जीते गये
सभी रा य के राजाओं को इस िववाह हे तु आमं तर् ण भे जा गया था। राजनगर,
िवराटनगर, कौशल, भानगढ़, जयनगर समे त अ य सभी रा य म िनमं तर् ण भे जा जा
चु का था, और अब दे वगढ़ खु द को सभी राजाओं के वागत हे तु तै यार कर रहा था।
िववाह की सारी तै यािरयाँ लगभग ख म हो गयी थीं, और अब मे हमान भी आना शु हो
गये थे । बस, अब प्रती ा थी उस शु भ िदन की, िजस िदन दे वगढ़ के रा य को उसका
दामाद िमलने वाला था। सारे रा य म िववाह के एक िदन पहले से ही मं गल गीत गाये
जा रहे थे । सभी रा य के लोग के मन म उस िववाह के िलये कौतूहल था।
द्र के जीवन म एक बड़ा पिरवतन होने वाला था। द्र ने िववाह के िवषय म कभी नहीं
सोचा था, िक तु राजकुमारी पूिणमा के प्रेम ने द्र को इस िवषय म सोचने के िलये
िववश ही कर िदया था। द्र और पूिणमा भी यग्रता से प्रती ारत थे , अपने िववाह के
शु भ िदन के िलये ।
उन दोन का जीवन अब पूरी तरह पिरवितत होने जा रहा था।
और िफर वो शु भ िदन आ ही गया जब अिधपित द्र ने प्रभु िशव के सम राजकुमारी
पूिणमा को अपनी धमप नी के प म वीकार िलया। द्र और पूिणमा का िववाह सभी
रीित-िरवाज से स प न हुआ। इ यावन पं िडत ने उस िववाह की िविध को पूण कराया।
महारानी तारा ने अपनी पु त्री के िववाह म िकसी भाँ ित की कमी नहीं होने दी थी। सभी
मे हमान की उ म आवभगत की गयी। पूरे रा य के लोग को धन एवं अ न का दान
नव-दं पित के ारा िकया गया।
चार ओर हष का माहौल था। प्रभु िशव की कृपा से सारे रीित िरवाज सकुशल स प न
हो गये । द्र और पूिणमा का िववाह हो चु का था। उन दोन की जोड़ी एक दस ू रे के साथ
सवश्रे ठ िदख रही थी। आज द्र ने अपने जीवन म पहली बार रे शम के व त्र और
सोने के गहने पहने थे । वो जं गल का ब्रा ण उन व त्र म िकसी सम्राट की भाँ ित
दे दी यमान हो रहा था। उसके शरीर पर वे व त्र अ यिधक सु हा रहे थे ।
द्र के िमत्र अपने अिधपित से सबसे अिधक प्रभािवत िदख रहे थे ।
‘‘अिधपित का प आज िकतना सु दर लग रहा है ।’’ कौ तु भ ने हिषत होते हुए कहा।
‘‘िनि चत ही, उ ह िन य ही ऐसे व त्र पहनने चािहये ।’’ िवनायक ने कहा।
अगर द्र आज सु दर िदख रहा था, तो पूिणमा भी उससे कम नहीं थी। राजकुमारी
पूिणमा अपने िववाह के जोड़े म अ यिधक सु दर िदख रही थी। सभी की दृि ट को उनका
मोहक प अपनी ओर आकिषत कर रहा था। वयं द्र भी उनकी सु दरता के प्रित
अपने िवचार छुपा नहीं पाये ,
‘‘राजकुमारी! आज आप बे हद आकिषत लग रही ह।’’ द्र ने धीरे से पूिणमा के कान म
कहा।
‘‘ध यवाद, िक तु आपसे अिधक नहीं।’’ पूिणमा ने भी उसी भाँ ित प्र यु र िदया।
वे दोन हँ स पड़े । उनकी हँ सी को वहाँ उपि थत सभी लोग ने दे खा।
हर िकसी ने उस िववाह की यव थाओं की खु ले िदल से तारीफ की। जो कोई भी उस
िववाह का सा ी बना था, वो उन दोन की जोड़ी से प्रभािवत था। महारानी तारा ने
अपने रा य के खजाने को प्रजा के िलए खोल िदया था। स पूण प्रजा के म य धन
िवतिरत िकया गया।
िववाह म आये द्र के िनवािसत ब ती के िनवािसय को अ यिधक मात्र म धन और
उपहार भट िकये गये । महारानी तारा ने उन सभी को यि तगत तौर पर उस िववाह म
सि मिलत होने के िलये ध यवाद िदया। समारोह म आये सभी राजाओं को भी उपहार
और यथोिचत स मान के साथ िवदा िकया गया।
द्र और पूिणमा का िववाह स प न हो गया।
8. पु
समय िकसी के िलये कता नहीं है , ये हमे शा अपनी गित से चलता रहता है । द्र का
िववाह हुए दो साल हो चु के थे । वो पूिणमा के साथ अपनी वै वािहक जीवन का आनं द ले
रहा था। अपने पूरे जीवन म पहली बार द्र को पिरवार की खु शी का आभास हुआ था।
ये दो साल द्र के जीवन के ठहराव के थे । उसके िमत्र भी उसकी खु िशय म उसके साथ
थे । वो सब समझते थे िक उनका ल य कुछ और था, िक तु वो अपने अिधपित की
खु िशय म खलल नहीं डालना चाहते थे ।
और अपने आपको य त रखने के िलये िव लव, िवनायक और कौ तु भ, से नापित प्रताप
के साथ अिधक से अिधक समय से ना के साथ यु ा यास िकया करते थे । वे सै िनक को
नये -नये यु के यूह िसखा रहे थे । उ ह ने वयं को सै िनक के म य ही समािहत कर
िलया था। दे वगढ़ के सै िनक भी अब उनसे प्रिश ण िलया करते थे । द्र के िमत्र उ ह
भी प्रिशि त िकया करते थे ।
द्र और पूिणमा की खु शी तब दोगु नी हो गयी, जब उ ह इस बात का पता चला िक
पूिणमा गभवती हो गयी है । वे दोन यग्रता से अपने प्रथम िशशु के ज म की
प्रती ा कर रहे थे ।
‘‘पूिणमा! तु ह या लगता है ? हमे पु त्र होगा या पु त्री?’’ द्र ने पूिणमा से प्र न
िकया।
‘‘मु झे लगता है िक पु त्र होगा।’’ पूिणमा ने उ र िदया। उसके श द म िव वास था।
‘‘पर तु म इतने िव वास से कैसे कह सकती हो?’’ द्र ने अनमने भाव से प्र न िकया।
‘‘ य िक मे री माँ मु झसे कहती ह िक त्री को इस बात का एहसास वयं ही हो जाता है
िक उसके गभ म पु त्र पल रहा है या पु त्री; और जहाँ तक मे रे एहसास का प्र न है , मु झे
लगता है िक पु त्र ही होगा।’’ पूिणमा ने चहकते हुए कहा। उस व त उसके श द से
उसके मन के भाव कोई भी जान ले ता। उसकी खु शी और प्रस नता, श द के मा यम से
भी बाहर आ रहीं थी।
‘‘अ छा, अगर ऐसी बात है तो तु हारा एहसास इस बार गलत सािबत होगा।’’ द्र ने
कहा।
‘‘पर य ?’’ पूिणमा ने अचरज से पूछा।
‘‘ य िक मु झे पूरा भरोसा है िक हमारा पहला ब चा पु त्री ही होगी।’’ द्र ने कहा।
उसकी आँ ख म चमक थी।
‘‘ या आपको पु त्री की अिभलाषा है ?’’ पूिणमा ने यग्रता से पूछा।
‘‘िनि चत ही; म एक पु त्री की कामना करता हँ ,ू जो तु हारी प्रित प हो, पर स य तो ये
भी है िक पु त्र होने की अनु भिू त भी मे री खु िशय को चकाच ध कर दे गा।’’ द्र ने
प्रस नता से कहा।
द्र की बात सु नकर पूिणमा रोने लगी। द्र ने जब पूिणमा को रोते दे खा तो उसे है रत
हुयी। वो पूिणमा के समीप आया और उसके आँ स ू प छते हुए बोला,
‘‘ या हुआ पूिणमा? या तु ह मे री िकसी बात से ठे स पहुँची?''
‘‘नहीं द्र! आपकी बात से मु झे ठे स नहीं पहुँची, वरन प्रस नता हुई है । आपके िवचार
पर मु झे गव है ।’’ पूिणमा ने उ र िदया।
‘‘िफर ये आँ स ू य ?’’ द्र ने प्र न िकया।
‘‘म जब पै दा हुई थी, तो मे रे िपता िबलकुल भी प्रस न नहीं हुए थे , य िक उ ह पु त्र
की अिभलाषा थी। उ ह ने हमे शा मु झमे और मे रे भाइय म भे द िकया। इस सं सार के
अिधकतर पु ष को पहले िशशु के प म पु त्र की ही कामना होती है ; िक तु आप सबसे
अलग ह, आप सच म अलग ह द्र।’’ पूिणमा ने उ र िदया।
उसके श द से द्र प्रस न हुआ। द्र के िलये पूिणमा के इन श द का बहुत ही
मह व था।
और अब प्रती ा थी उस पल की, जब द्र का िशशु इस धारा पर ज म ले गा।
और इसके िलये सारे इं तजाम चौकस थे । पूिणमा की से वा के िलये दािसय का पूरा दल
था। रा य की प्रधान मिहला वै इं दुवती, हर पहर िकसी भी आपात ि थित से िनपटने
के िलये त पर थीं।
हर कोई प्रती ा कर रहा था अिधपित द्र और पूिणमा के प्रथम िशशु के आगमन
की।
और िफर वो मं गल िदन ही आ गया। आज पूिणमा को प्रसव-पीड़ा प्रार भ हो गयी थी।
रा य की मिहला वै एवं पूिणमा की दािसयाँ उसके प्रसव हे तु उसके क म उपि थत
थीं। द्र, उसके िमत्र और महारानी तारा, उस क के बाहर बे चैनी से प्रती ारत थे ।
तभी उस क से एक दासी बाहर आई। द्र शीघ्रता से उसकी ओर दौड़ा, िक तु उस
दासी के मु ख की िचं ता ने इस बात की पु ि ट कर दी थी िक उसके पास द्र को बताने के
िलये कोई मं गल समाचार नहीं है ।
‘‘पूिणमा की ि थित अब कैसी है ?’’ द्र ने यग्रता से प्र न िकया। उसके मु ख पर
परे शानी का भाव था। वो डरा हुआ था। अपने जीवन म पहली बार द्र डरा हुआ था।
‘‘उनकी ि थित अ यिधक नाजु क है , और प्रसव पूव ही वो अचे त हो गइं ह; वै इं दुवती
जी प्रयास कर रही ह।’’ उस दासी ने अपनी नजर झुका कर कहा।
‘‘हे ई वर! ऐसा अनथ न कीिजये ।’’ उस दासी की बात सु नकर महारानी तारा रोते हुए
बोलीं। द्र ने आगे बढ़कर उ ह सहारा िदया और बोला,
‘‘महारानी जी, आप ई वर पर भरोसा रिखये , वो अव य ही सब मं गल करे गा। ''
महारानी तारा को उसके श द से राहत हुई, और िफर द्र सबकी दृि ट से दरू एक कोने
म गया, जहाँ उसने अपनी आँ ख से िगरते हुए आँ स ू को झटके से प छ िदया। वो िकसी
के सम खु द को रोता हुआ नहीं िदखाना चाहता था।
और िफर द्र ने यान िकया प्रभु िशव का। द्र अपनी आँ ख ब द करके प्रभु िशव की
मनोरम छिव दे खने का प्रय न कर रहा था। वो लगातार अपने इ ट से पूिणमा और
अपने िशशु की र ा के िलये प्राथना कर रहा था। वो िकसी भी अिन ट को ले कर डरा
था। वो लगातार अपनी आँ ख ब द िकये हुए प्रभु िशव से प्राथना कर रहा था।
द्र के सभी िमत्र, और वै गगाचाय भी अधीरता से प्रती ा कर रहे थे । अिधपित के
िशशु की कुशलता के िलये वो भी मन ही मन ई वर से प्राथना कर रहे थे ।
समय बड़ी बे चैनी से कट रहा था... िक तु प्रभु िशव की कृपा से मं गल समाचार का सं केत
आ गया था। वे सभी अपनी प्राथनाओं म लीन थे , और िफर िशशु के रोने की आवा़ज
उनके कान म आई। सभी शीघ्रता से प्रसव क की ओर गये और दरवाजा खु लने की
प्रती ा करने लगे । और िफर वै इं दुवती, द्र के उस न ह िशशु को अपने हाथ म
ले कर प्रस नता की मु दर् ा म बाहर आयीं।
‘‘अिधपित द्र! बधाई हो, पु त्र हुआ है , और ई वर की कृपा से पूणत: व थ है , और
आज तक मने ऐसे व थ िशशु का प्रसव कभी नहीं िकया है ,''वै इं दुवती ने प्रस नता
के भाव से कहा। उनके मु ख पर गव का भाव था।
‘‘पूिणमा कैसी है ?’’ महारानी तारा ने याकुलता से प्र न िकया।
‘‘महारानी जी, राजकुमारी पूिणमा पूणत: व थ ह।’’ इं दुवती ने एक बार िफर उ र
िदया।
द्र ने आँ ख म आँ स ू भरे और काँपते हाथ से उस न ह िशशु को अपने हाथ म िलया।
वो अपने पु त्र के मोहक प को दे खकर अ यिधक भावु क हो गया। सच म वो िशशु
काफी व थ प्रतीत होता था। द्र की दृि ट पु त्र के मु ख पर ही गड़ी हुई थी। वो बहुत
दे र तक अपने पु त्र को उसी भाँ ित दे खता रहा और िफर उसे अ य लोग का भी यान
आया। द्र, अपने पु त्र को महारानी तारा की गोद म दे कर बोला,
‘‘महारानी, आपका पौत्र। ''
महारानी तारा भी खु शी के मारे रो रही थीं। वो अपने पौत्र के मु खड़े को जी भर के िनहार
ले ना चाहती थीं। िव लव, िवनायक और कौ तु भ भी द्र के पु त्र को दे खने के िलये
याकुल हुए जा रहे थे । और जब उ होने उसे दे खा तो वे अ यिधक हिषत हुए।
‘‘अिधपित की ही भाँ ित मोहक छिव है भतीजे की।’’ िव लव ने हिषत होते हुए कहा।
‘‘हाँ , और उ हीं की भाँ ित ते ज है इसके मु ख पर।’’ िवनायक ने उ र िदया।
‘‘हमारे छोटे अिधपित।’’ कौ तु भ बोला।
वे सभी हिषत थे । द्र के पु त्र को दे खकर उनके दय को अद्भुत हष की अनु भिू त हुई
थी। वे सभी उस न ह बालक को दे खकर प्रस न हुए जब सभी ने द्र के पु त्र को दे ख
िलया, तब महारानी तारा न ह िशशु को द्र के हाथ म दे कर बोलीं,
‘‘अब आप पूिणमा के पास जाइये ; आपको उसके साथ कुछ समय अकेले म यतीत करने
की आव यकता है । ''
द्र, क के भीतर चला गया।
‘‘और आप सभी मे रे साथ चिलये ! हम अब अपने नाती के ज मो सव के िलये एक भ य
उ सव का आयोजन करना है ।’’ महारानी ने अ य सभी से कहा। सभी लोग महारानी तारा
के साथ चल िदये
द्र अब अपने पु त्र को गोद म ले कर क म पहुँच चु का था। उसको दे खते ही सारी
दािसयाँ , वहाँ से बाहर चली गइं । अब उस क म द्र, पूिणमा, और उनका न हा पु त्र
ही था।
द्र ने दे खा, पूिणमा की दृि ट उसे ही िनहार रही थी। वो हँ सता हुआ पूिणमा के पास
गया, और िफर वो पूिणमा के मु ख को चूमते हुए बोला,
‘‘आज आपने मे रे जीवन म अनमोल खु शी डाल दी है पूिणमा! आपने मु झे मे रे जीवन की
सबसे बड़ी खु शी दी है । आपने मे रा जीवन पूण कर िदया है । ''
पूिणमा भी भावु क हो गइं । द्र के मु ख से इतनी प्रशं सा सु नने के बाद वो कुछ बोल ही
नहीं पा रही थीं।
‘‘वै से मे रा पु त्र िबलकुल मे री तरह िदखता है ।’’ अपने पु त्र का मु ख पूिणमा को िदखाते
हुए द्र ने कहा।
‘‘िन चय ही, ये पूणत: आपकी छिव है द्र।’’ पूिणमा ने हँ सते हुए कहा।
‘‘िक तु मु झे लगता है िक शायद इसकी नाक तु हारी भाँ ित है ।’’ द्र ने िफर हँ सते हुए
कहा। पूिणमा कुछ नहीं बोली, बस हँ सती ही रही।
िफर उसने द्र से पूछा,
‘‘इसका नाम या होगा?''
द्र, कुछ समय के िलये चु प रहा। उसे वो पल याद आ गया, जब उसने अपनी माँ से
पूछा था िक उसका नाम द्र कैसे पड़ा, तो उ ह ने उसे बताया था िक उसके िपता ने
अपने नाम के अि तम अ र, और उसके माँ के नाम के प्रथम अ र से उसका नाम रखा
था। न हा द्र ये जानकर रोमां िचत हो गया था, और अपनी माँ से कहा था,
‘‘म भी अपने पु त्र का नाम इस भाँ ित रखूँगा।’’ उसकी माँ ये सु नकर हँ सने लगी थी।
‘‘ या हुआ द्र?’’ पूिणमा के इस प्र न ने उसे याद से वापस लाकर खड़ा कर िदया।
‘‘कुछ नहीं, बस इसका नाम सोच रहा था।’’ द्र ने अपने आँ स ू प छते हुए कहा।
‘‘अ छा, तो या सोचा आपने ?’’ पूिणमा ने बे चैन होकर प्र न िकया।
‘‘पूिणमा, इस िशशु का ज म हम दोन के िमलन से हुआ है और इसीिलये इसका नाम भी
हम दोन के नाम से िमलकर होगा।’’ द्र ने कहा।
‘‘अरे वाह! िफर या नाम होगा आप शीघ्रता से बताइये ; मु झसे अब अिधक प्रती ा
नहीं होती।’’ पूिणमा ने कहा, और अपने पु त्र का मु ख चूम िलया।
‘‘तु हारे नाम के प्रथम अ र और मे रे नाम के अि तम अ र से होगा इसका नाम।’’
द्र ने हिषत होकर कहा।
‘पु ?’ पूिणमा ने हिषत होकर कहा।
‘‘मे रा पु त्र पु ।’’ द्र ने हिषत होकर कहा।
‘‘हमारा पु त्र।’’ पूिणमा ने कहा।
द्र आज बहुत ही खु श था। पु त्र के ज म ने द्र को स पूण कर िदया था। उस न हे से
िशशु के मु ख को दे खकर, द्र के जीवन म खु िशय के रं ग भर गये थे । पूिणमा से िववाह
के बाद को सु खी तो था, िक तु पु त्र के ज म के बाद वो खु श भी हो गया था।
पूिणमा भी अपने पु त्र के मु ख को दे खकर अपनी आँ ख की यास बु झा रही थी। िजतना
अिधक वो अपने पु त्र को दे खती जा रही थी, उतना ही अिधक उसको दे खने की लालसा
उसके भीतर बढ़ती जा रही थी। पूिणमा ने द्र के मु ख को दे खा। उसके हँ सते हुए मु ख ने
पूिणमा को और अिधक प्रस नता का अनु भव कराया।
उनके जीवन म पु का आगमन हो चु का था।
दे वगढ़ रा य म एक बार िफर खु िशय ने द तक दी थी। महारानी तारा अपने नाती के
ज म के बाद से ही एक भ य उ सव की तै यािरय म जु ट गइं थीं। उ ह ने राजकुमारी
पूिणमा का प्रसव कराने वाली वै इं दुवती और अ य दािसय के िलये उपहार की झड़ी
लगा दी थी। एक बार िफर पूरे रा य को उ सव के िलये तै यार रहने को कह िदया गया
था, और इस बार सारी यव थाय भी भ य थीं।
महारानी तारा, अपने नाती का नाम अपने कुलगु से रखवाना चाहती थीं, िक तु उ ह ये
जानकार थोड़ी िनराशा हुई, िक द्र ने उसका नाम पहले ही रख िदया; िक तु इसके िलये
भी उ ह ने रा ता िनकाल िलया था, उ होने कुलगु से कहा िक नामकरण सं कार म वो
उस ब चे का नाम ‘‘पु ’’ अपने मु ख से ही बोल द, और सभी के स मु ख उस नाम से उस
बालक को अलं कृत कर। दे वगढ़ की प्रजा के िलये भी राजकुमारी के पु त्र होने की खबर
खु िशय की सौगात लायी थी। महारानी तारा ने स पूण रा य के िनवािसय को आदे श
िदया था िक उनके पौत्र पु के बरहवीं सं कार तक सभी के भोजन का प्रबं ध राज महल
म ही िकया जाये गा; अथात् बारह िदन तक रा य के सभी घर म चू हा न जलाने का
आदे श था।
पु के बरहवीं सं कार तक िन य ही राजभवन म कई सां कृितक कायक् रम एवं नृ य-गीत
का आयोजन िकया गया। प्रजा को भी उन कायक् रम म सहभािगता करने की अनु मित
थी।
िव लव, द्र के पु त्र के ज म से अ यिधक प्रस न था। वो अब द्र के जीवन म
अिधक दखलं दाजी नहीं करता था, य िक वो द्र की खु िशय म बाधा नहीं बनना
चाहता था। िक तु द्र के हँ सते मु ख को दे खकर ही उसे सं तोष हो जाता था।
और िफर पु के बरहवीं सं कार की रात को नृ य के दौरान िव लव, िवनायक और
कौ तु भ ने इस भाँ ित नृ य िकया िक सभी लोग दं ग रह गये ; और िफर खु शी और
भावनाओं के बीच द्र भी उनके सं ग नृ य म शािमल हो गया। उन जं गल के िनवािसय
ने उस रात अपने नृ य से स पूण दे वगढ़ के दशक का िदल जीत िलया था।
अगर दे वगढ़ म चार ओर खु शी और हष का माहौल था, तो उसी दे वगढ़ के महल म दो
लोग ऐसे भी थे , िज ह इस खु शी से अ यिधक िनराशा हुई। उ ह द्र और पूिणमा के
पु त्र से ई या हुई, और वे दो लोग थे जयवधन और प्रभास।
वे दोन पहले तो अपने बहन के ारा अपने िपता के ह यारे और एक ब्रा ण से िववाह
करने के फैसले से नाराज थे , और िफर अब उस द्र के पु त्र होने की खु शी म होने वाले
उ सव से भी वो यिथत हो गये । उनके मन म द्र और पूिणमा के प्रित अ यिधक
मात्रा म घृ णा और नाराजगी थी।
पु अब एक माह का हो चु का था। द्र की आँ ख का तारा था उसका पु त्र। द्र हर पल
अपने पु त्र के मु ख से उसके पहले श द को सु नने की इ छा रखता था।
‘‘पूिणमा! पु , पहला श द या बोले गा?’’ द्र ने पूिणमा से पूछा।
‘‘हर बालक पहला श द माँ ही बोलता है द्र, इसिलये इसम तो कोई सं देह ही नहीं िक
पहली बार ये मु झे ही पु कारे गा।’’ पूिणमा ने द्र को िचढ़ाते हुए कहा।
‘‘नहीं, ये मे रा पु त्र है , और इसिलये ये प्रथम बार अपने िपता को पु कारे गा।’’ द्र ने
कहा।
‘‘िफर तो ये मे रे और आपके बीच की शत है द्र।’’ पूिणमा ने हँ सते हुए कहा।
‘‘मु झे ये शत मं जरू है पूिणमा।’’ द्र ने भी जवाब िदया हँ सकर।
‘‘अ छा, अगर म जीत गयी तो आप मु झे या दगे ?’’ पूिणमा ने चहकते हुए पूछा।
‘‘तो म तु हारी कोई भी बात मान लूँगा; िक तु अगर म जीतूँगा तो तु ह भी मे री वो बात
माननी पड़े गी।’’ द्र ने कहा।
‘‘िबलकुल सही।’’ पूिणमा ने कहा।
उन दोन की खु शी म उनके पु त्र ने और भी यादा रौनक ला दी थी। पु ने द्र और
पूिणमा के जीवन को बदल िदया था। अब पूिणमा और द्र के बीच होने वाली बात का
कद्र पु ही होता था। सारी बात पु से ही शु होती थीं, और पु पर ही ख म।
द्र और पूिणमा दोन अपने पु त्र के साथ अपने जीवन के प्र ये क ण का आनं द ले
रहे थे । उनकी दुिनया, उनकी खु िशयाँ , सब कुछ अब पु के इद-िगद ही घूमती थीं।
और तो और, द्र अभी से ही पु के आगे के जीवन की योजना बनाने लगा था।
‘‘पूिणमा! तु ह या लगता है , हम पु का िववाह कब तक करगे ?’’ द्र, पूिणमा से पूछ
बै ठा। वो पु को अपने गोद म िलये हुए था।
पूिणमा पहले तो द्र के इस प्र न को सु नकर हँ सने लगी और िफर बोली,
‘‘ द्र, आप पु के िववाह के िलए कुछ यादा ही अधीर हो रहे ह, अभी तो ये एक माह
का भी नहीं हुआ है , थोड़ा धीरज रख। ''
‘‘नहीं पूिणमा, तु म समझ नहीं रही हो; हम अपने पु त्र के उ म जीवन के िलये सभी
योजनाय अभी से बना ले नी चािहये ।’’ द्र ने उ र िदया।
‘‘अ छा, अगर ऐसी बात है तो िफर आप ही बताइये िक पु का िववाह आप कब
करगे ?’’ पूिणमा ने हँ सते हुए कहा। उसे द्र की ये अधीरता अ छी लग रही थी। पु के
प्रित द्र का लगाव, पूिणमा को आनं िदत कर रहा था।
‘‘म या सोचता हँ ू िक हम इसका िववाह इसके इ कीस वष पूण करते ही कर दगे , य िक
िववाह हे तु यादा िवलं ब उिचत नहीं है ।’’ द्र ने अपना िवचार रखा।
‘हँ ।ू ’ पूिणमा ने कहा।
‘‘और हम इसके िलये तु मसे भी अिधक सु दर ढूँढ़गे ।’’ द्र ने प्रस नता से कहा।
‘‘िनि चत ही।’’ पूिणमा बोली।
‘‘पर मु झे लगता है िक शायद ये हमारे िलये बहुत ही मु ि कल काय होगा।’’ द्र ने
कहा। उसके मु ख पर अधीरता थी।
‘‘पर य ?’’ पूिणमा ने आ चय से पूछा।
‘‘ य िक तु मसे अिधक सु दर त्री इस सं सार म कोई और है ही नहीं।’’ द्र ने मु कुराते
हुए कहा।
पूिणमा, द्र के इस उ र को सु नकर शम से लाल हो गयी। अपने पित के मु ख से
सु दरता की तारीफ सु नकर भला कौन सी त्री का दय हिषत न हो जाता? और िफर
पूिणमा अलग थोड़े ही न थी।
पूिणमा, द्र के सीने से लग गयी। द्र ने भी एक हाथ से पु को पकड़ा, और दस ू रे हाथ
से पूिणमा को अपने घे रे म ले िलया। द्र और पूिणमा दोन , अपने जीवन के इस प्रेम
और उ लास के रं ग म डूबे हुए थे ।
पु ने उनके जीवन को स पूण कर िदया था, और अब द्र ने खु द को केवल पूिणमा और
पु तक ही समे त िलया था, अ य दुिनया से उसे कोई मतलब ही नहीं था। हाँ , अगर द्र
की दुिनया म पूिणमा और पु के अितिर त और िकसी का वागत था, तो वो थे उसके
तीन िमत्र, प्रताप और वै जी... िक तु उनकी भी उपि थित बहुत ही अ प समय के
िलये होती थी; अतएव वो अपने जीवन के हर पल अपनी प नी और पु त्र के सं ग यतीत
करने की इ छा रखता था।
उस िदन द्र बहुत समय के प चात अपने िमत्र के सं ग था, और उनके साथ बात करके
उसे अ यिधक आनं द िमल रहा था। रात हो गयी थी। पूिणमा भी द्र के साथ ही थी। वो
सभी िव लव के क म थे । वहाँ पर िवनायक, कौ तु भ प्रताप और वै गगाचाय जी भी
उपि थत थे । वो सब द्र के उस जं गल के जीवन के िवषय म बात कर रहे थे , और
गगाचाय जी सभी को द्र के िवषय म कई बात बता रहे थे । पु , द्र के क म पूिणमा
की दािसय के दे ख-रे ख म सो रहा था। अब चूंिक यहाँ पर वो लोग हँ सते हुए ते ज आवा़ज
म बात कर रहे थे , इसिलये पूिणमा ने उसे सु ला िदया था, और दािसय को उसका यान
रखने की िहदायत दी थी। वो सभी लोग आपस म बात ही कर रहे थे िक अचानक उ ह ने
बाहर कोई शोर सु ना। सभी ते जी से क से बाहर की ओर भागे ।
सभी ने सु ना िक आवा़ज महल के भीतर से आ रही थीं।
‘‘सभी अपने हिथयार ले लो, िनि चत ही कुछ अिन ट हुआ है ।’’ द्र ने आदे श िदया।
शीघ्र ही सभी के हाथ म हिथयार थे । द्र ने भी हाथ म तलवार ली हुई थी। सब महल
की ओर दौड़े ।
‘‘हे ई वर! आवाज तो आपके क की ओर से आ रही ह।’’ िव लव ने कुछ घबराकर
कहा।
‘पु !’ पूिणमा चीख पड़ी।
पूिणमा के मु ख से पु का नाम सु नते ही द्र शीघ्रता से भागा। अ य सभी उसके गित
की बराबरी नहीं कर सके। द्र, महल के मु य ार से दौड़ता हुआ और दायीं ओर के
गिलयारे को पार करता हुआ सीिढ़य तक पहुँचा, और िफर उसके बाद शीघ्रता से एक
साथ कई सीिढ़याँ कू दता हुआ क की ओर भागा।
द्र, अपने मन म प्रभु िशव से पु की र ा के िलये प्राथना कर रहा था। वो एक ण
के िलये भी अपनी प्राथना से िवमु ख नहीं हुआ।
द्र, अब अपने क के ार पर था, िक तु सामने के दृ य को दे खकर द्र जड़ हो गया।
वो उसी भाँ ित क के ार पर भावशू य मु दर् ा म खड़ा रहा। तलवार, द्र के हाथ से
छट ू कर भूिम पर िगर गयी।
अ य सभी लोग द्र के बाद म उसके क तक पहुँचे। उ ह ये दे खकर है रानी हुई, िक
द्र अपने क के ार पर ही खड़ा था। वो उसी भाँ ित जड़वत खड़ा रहा। उसकी दृि ट
अपने क की ओर ही िटकी हुई थी। अ य सभी सब भी शीघ्रता से द्र के समीप पहुँचे,
और सामने के दृ य को दे खकर सहम गये । उनकी आँ ख को सहसा कुछ िदखना ही ब द
हो गया। वो दृ य ही ऐसा था,
सामने पूिणमा की सारी िनजी दािसय के मृ त शरीर भूिम पर पड़े थे , और उनके शरीर से
िनकले र त से वो क लाल रं ग से भर गया था। उन सभी दािसय म से िकसी की भी
साँस नहीं चल रही थीं। और िफर उन सबकी दृि ट उस ओर गयी, जहाँ द्र की दृि ट
ठहरी हुई थी,
सामने द्र के पलं ग पर ही दो टु कड़ म िकया हुआ रखा था पु का शव। उस न ह िशशु
के र त से पलँ ग की चादर सनी हुई थीं।
पूिणमा ने जै से ही पु के शव को दे खा, वो ज़ोर से अपने पु त्र का नाम ले कर चीखी और
िफर वो अचे त हो गयी। वै गगाचाय जी ने आगे बढ़कर उसे सहारा िदया। द्र तो जै से
अपने थान पर ही जड़ हो गया। वो भावशू य हो अपने पु त्र के शव को दे ख रहा था।
िव लव एवं अ य सभी की आँ ख म आँ स ू थे । उनके हलक ही सूख गये थे । उन सभी के
गले से श द ही नहीं िनकल रहे थे । वो समझ ही नहीं पा रहे थे िक जो दृ य उनके सामने
था, उसके बाद वो कैसी प्रितिक् रया य त कर? िक तु उन सभी की आँ ख से आँ स ू बह
रहे थे ।
द्र को शायद अब उन पिरि थितय का आभास हुआ था। अब वो उस जड़ अव था की
ि थित से बाहर आ गया था। वो धीरे -धीरे अपने पलं ग की ओर गया, और उसी र त-
रं िजत िब तर पर दो टु कड़ म िकये हुए अपने पु त्र के शव को उठाकर अपनी गोद म रख
िलया, और एक बार िफर अपने पु त्र के शव को एकटक दे खने लगा। अभी तक द्र ने
कोई प्रितिक् रया नहीं की थी, िक तु अब द्र की आँ ख से आँ स ू िगर रहे थे । उसकी
आँ ख से िगरते हुए उन आँ सुव से उसका मु ख भीग गया था। द्र ने िजस भाँ ित िवलाप
करना शु िकया, उसने वहाँ उपि थत सभी जन के दय को झकझोर िदया।
अब द्र ज़ोर-ज़ोर से रो रहा था, और अपने पु त्र के शव को अपने दय से लगाये हुआ
था। द्र के दय म हो रही पीड़ा ने उसे और भी अ यिधक कचोटा।
वै जी और कौ तु भ, पूिणमा को ले कर शीघ्रता से वै जी के क की ओर भागे ।
पूिणमा की साँस ते जी से ब द होती जा रही थीं। उसकी ि थित अ यिधक सं वेदनशील
होती जा रही थी, इसिलये उसका यथाशीघ्र उपचार अ यं त ही आव यक था।
िव लव और िवनायक उस क के ार पर ही दीवार से िटक कर बै ठे थे । ऐसा लग रहा था
िक उनके शरीर म भी प्राण ही नहीं ह। वे दोन कोई भी हरकत नहीं कर रहे थे । उनकी
दृि ट अिधपित द्र के मु ख की ओर थी, और आँ ख से िनरं तर आँ स ू बह रहे थे । प्रताप
भी उन सबके पास खड़ा था, और वो उन दोन को सां वना दे ने का प्रयास कर रहा था,
िक तु उसकी दोन मु ट्िठयाँ क् रोध से िभं ची हुई थीं, और वो प्राथना कर रहा था िक
काश वो लोग िमल जाय, िज ह ने ये अधम िकया है , तो वो वयं उन सबके प्राण ले
ले गा।
द्र ने अब अपने पु त्र के शव को एक बार िफर दे खा। उसके पे ट को बीच से चीर िदया
गया था। उसके चे हरे पर भी वार िकया गया था, िजसकी वजह से उसकी आँ ख बाहर
िनकल आयी थीं, एवं दो-तीन अ य घाव भी थे उसके शरीर म। अपने पु त्र के मु ख की
ओर दे खते हुए हताशा से रोते , अनगल प्रलाप करते द्र ने अपने पु त्र पु को अपने
सीने से एक बार िफर सटा िलया था, उसका दय आ लािवत था, उसकी आ मा िबखर
गयी थी।
‘पु .......!'
वो एक ऐसा िवलाप था, जो सभी को शताि दय तक झकझोरने वाला था।
अचानक ही बाहर एक बार िफर शोर सु नाई िदया। िव लव, िवनायक और प्रताप,
शीघ्रता से उस शोर की ओर भागे । वो शोर उनके सै िनक के िनवास की ओर से आ रहा
था। और जब वो तीन वहाँ पहुँचे तो उ ह ने दे खा िक उनके सै िनक ने कुछ लोग को
पकड़ा हुआ था, और वे सब भूिम पर ब दी बने हुए बै ठे थे ।
िव लव, िवनायक एवं से नापित प्रताप को दे खकर उसके सै िनक ने उ ह अिभवादन िकया
और बोले ,
‘‘से नापित जी! ये दु ट हमारे क म आग लगाने के इरादे से आए थे , िक तु हमने इनकी
हलचल महसूस कर ली, और इ ह पकड़ िलया। ''
‘‘ये िनि चत ही वही लोग ह गे , िज ह ने महल के भीतर वो नृ शंस नर-सं हार िकया है ।’’
िवनायक ने दाँत भींचकर क् रोिधत होते हुए कहा।
िवनायक की बात सु नते ही िव लव की आँ ख के आगे पु का तिव त शव आ गया
और वो क् रोध की वाला से जलने लगा। और िफर अगले ही ण ब दी बनाये गये उन
आक् रमणकािरय म से एक आक् रमणकारी भी त-िव त अव था म हो गया, य िक
क् रोिधत िव लव ने अपनी तलवार उसके शरीर पर दो बार चला दी थी।
िवनायक ने आगे बढ़कर िव लव को शा त िकया।
‘‘िव लव! ये मत भूलो िक अभी हम इनसे इस बात की जानकारी भी ले नी है िक इ ह यहाँ
भे जा िकसने ?’’ िवनायक ने समझाते हुए कहा।
‘‘तो िफर इन पािपय का मु ख शीघ्रता से खु लवाओ, इससे पूव िक म खु द को सं यिमत
भी न कर पाऊँ।’’ िव लव, दुख एवं क् रोध िमिश्रत आवा़ज म बोला। उसकी आँ ख म
भले ही इस व त अं गारे िदख रहे थे , िक तु उ हीं आँ ख से िगरती हुई आँ स ू की बूँद उन
अं गार को शीतलता प्रदान िकये हुए थीं।
प्रताप ने अपने सै िनक को स त िनदश िदया, िक इन आक् रमणकािरय के िवषय म
िकसी को कुछ पता नहीं चलना चािहये ; और साथ ही ये भी कहा िक वो क् रता की हद
तक जाकर भी इनका मुँ ह खु लवाय।
‘‘इ ह िकसने भे जा? इस रा य म िकसने इनकी सहायता की? सब कुछ पता लगाय।’’
प्रताप, चीखते हुए बोला। उसकी से ना उन आक् रमणकािरय को लात-मु क से पीटते
हुए अपने िनवास की ओर ले गयी। उनके जाने के प चात िव लव, िवनायक और प्रताप
एक बार िफर अिधपित द्र के क की ओर चल पड़े ।
‘‘अिधपित द्र, जब पु के मृ यु के शोक से बाहर आयगे , तो उनके क् रोध को िनयं ित्रत
करना अस भव हो जाये गा।’’ िवनायक बोला। वो अब भी रो रहा था।
‘‘म उनके िवलाप करते मु ख को दे खकर ही सहम गया हँ ;ू उनके मु ख को दे खने की िह मत
अब नहीं होती।’’ िव लव ने रोते हुए कहा।
‘‘खु द को सं यिमत रख।’’ प्रताप ने एक बार िफर िव लव को सां वना दी। ''अब आप
लोग को ही अिधपित द्र को सँ भालना है ; कम से कम उस व त तक, जब तक हम उन
आक् रमणकािरय से सब कुछ उगलवा नहीं ले ते। ''
िव लव और िवनायक, भाव शू य हो, सीिढ़य पर चढ़ने लगे ।
दो िदन बीत गये थे पु की मृ यु हुए, और द्र उसी भाँ ित अपने पु त्र के मृ त शरीर को
अपने सीने से लगाकर बै ठा था। अब उसकी आँ ख से आँ स ू नहीं िगर रहे थे , शायद वो भी
उन ने तर् से बहते -बहते थक चु के थे । द्र को सं सार की कोई परवाह ही नहीं थी। अपने
पु त्र की मृ यु से वो टू ट चु का था... द्र को तो पूिणमा का भी यान नहीं था।
िपछले दो िदन से वै गगाचाय जी, िव लव, एवं रा य-वै , पूिणमा को चे तन अव था
म लाने हे तु प्रयासरत थे । पहले उसकी ि थित ते जी से िबगड़ रही थी, ले िकन अब
पूिणमा का वा य शीघ्रता से ठीक हो रहा था, और िकसी भी ण वो चे तन अव था म
आ सकती थी। सभी अधीरता से उसके ठीक होने की प्रती ा कर रहे थे , य िक एक
पूिणमा ही थीं जो उस ि थित म द्र के स मु ख जा सकती थीं... य िक पूरे सं सार म
अ य िकसी म इतनी िह मत न थी िक वो द्र के स मु ख जा पाता।
महारानी तारा भी अपने पौत्र की मृ यु से अ यिधक दुखी थीं, और पु त्री के वा य ने
उ ह तोड़ िदया था। वो अि तम बार अपने पौत्र को दे खना चाहती थीं, िक तु द्र का
सामना करने की शि त उनम नहीं थी। वो िपछले दो िदन से वै गगाचाय के क म
अपनी अचे त पु त्री के साथ थीं। हालाँ िक उ ह ने अपने सै िनक को आदे श दे िदया था िक
पूरे रा य म स त पहरा लगा द, सभी घर की तलाशी ल, और उन दु ट
आक् रमणकािरय को ढूँढ़ने का प्रय न कर, िज ह ने उनकी पु त्री की खु िशय म आग
लगा दी थी।
िव लव, िवनायक और प्रताप भी िपछले दो िदन से द्र के क के बाहर ही उपि थत
थे , िक तु द्र के सम जाने की िह मत उन लोग म भी नहीं थी। वो शीघ्र ही
अिधपित द्र के सामा य होने की आस लगाये हुए थे ।
चार ओर मातम पसरा हुआ था। स पूण दे वगढ़ रो रहा था। िजस बालक के ज म पर पूरे
दे वगढ़ ने भ य उ सव मनाया था, वही दे वगढ़ उस बालक की मृ यु से शोक से िघर गया
था। रा य के सभी लोग इस अनहोनी से यिथत थे ।
पूिणमा का वा य अब ठीक होने लगा था, और आिखरकार वो चे तन अव था म आ
गयी। आँ ख खोलते ही उसने खु द को िब तर पर पाया, और िफर उसकी दृि ट िवनायक
और वै जी पर पड़ी। कुछ समय तक पूिणमा, ि थित को समझने म लगी रही, और िफर
उसके मि त क म क धा उसके अचे त होने से पूव का वो दय-िवदारक दृ य
‘‘पु ....!’’ वो ज़ोर से चीखी और ते जी से अपने क की ओर भागी। अ य सभी भी
पूिणमा के पीछे -पीछे चले ।
पूिणमा की आँ ख से आँ स ू की धाराय बह रही थी। वो हाँफती हुई सीिढ़य को चढ़ती जा
रही थी। उसका िसर अब भी दद कर रहा था, िक तु उसे उस बात की परवाह नहीं थी।
अब वो अपने क के ार पर पहुँची। वहाँ उसने कौ तु भ एवं अ य लोग को दे खा, िक तु
वो वहाँ की नहीं। वो सीधे अपने क म गयी और वहाँ जो उसने दे खा, वो अक पनीय
था।
द्र पु के त-िव त शव को अपने सीने से लगाये भावशू य हो उसी िब तर पर बै ठा
था, िजस पर पु के र त सूखकर भी अपनी िनशानी छोड़ गये थे । द्र ने पूिणमा को
दे खा, और पूिणमा ने द्र को।
हे ई वर! उस दय को चीर दे ने वाले पल की क पना भी कोई नहीं कर सकता था, जब
एक माता-िपता अपने एक माह के पु त्र के शव को ले कर प्रलाप कर रहे ह । पूिणमा ने
द्र से अपने पु त्र को अपनी गोद म िलया। पु के मु ख को वो जी भर के दे ख ले ना
चाहती थी। उसका प्रलाप आज द्र को वा तिवक दुिनया म ले आया था।
‘‘पूिणमा! हम म से कोई भी शत नहीं जीता, हम दोन ही हार गये , पु के मु ख से हम एक
भी श द नहीं सु न सके।’’ द्र ने पूिणमा से रोते हुए कहा। एक बार िफर उसकी आँ ख से
आँ स ू बहने लगे थे । द्र की बात सु नकर पूिणमा को और भी अिधक पीड़ा हुई। उसे उस
समय की याद आई, जब उन दोन ने शत लगाई थी। पूिणमा अब फफककर रो रही थी।
द्र, अब पूिणमा को अपने सीने से लगाये हुए था और रोता जा रहा था, िक तु अब उसे
पता था िक उसे या करना है ?
वो उस िब तर से उठा, और अकेले अपने पु त्र को अपने सीने से लगाये हुए चलने लगा।
उसके साथ ही भयानक िवलाप करती हुई पूिणमा भी चल रही थी, और उसके पीछे थे
िव लव, िवनायक, कौ तु भ, प्रताप, महारानी तारा और वै जी। सभी िबना कुछ बोले ,
और आँ ख म आँ स ू भरे द्र के पीछे चले जा रहे थे ।
द्र, महल के ठीक सामने और मु य दरवाजे के आगे जो भूिम थी, उसे फावड़े से खोद
रहा था। पु का शव पूिणमा के हाथ म था। द्र का सहयोग करने की िह मत भी िकसी
म नहीं हुई। द्र अब तक एक भी श द नहीं बोला था। वो िनरं तर क् रोध से भूिम पर वार
कर रहा था, मानो वो सारी भूिम को ही चीर डालना चाहता हो। वो फावड़े को इतने ज़ोर
से भूिम पर मार रहा था िक भूिम भी उससे उर गयी थी, और वयं ही धँ सती जा रही थी।
शीघ्र ही द्र ने गड्ढा खोद िदया था।
द्र ने अपने पु त्र के शव को दफन करने के िलये वो गड्ढा खोदा था, और िफर उसने
अपने पु त्र के शव को पूिणमा के सहयोग से उस गड्ढे म रखा, और उन दोन ने अपने
पु त्र को उस गड्ढे म थािपत कर िदया। द्र ने वयं ही ये सब िकया था। द्र अपने
पु त्र के शव को दफन करने के बाद उस गड्ढे को िमट् टी से पाट रहा था और रोता जा
रहा था। बीस यु जीत चु का, हजार -लाख सै िनक को अकेले ही मारने वाला वो
अिधपित द्र, रो रहा था। पु त्र की मृ यु से टू ट गया था वो वीर अिधपित।
द्र ने जब पु के शव को पूरी तरह से भूिम म पाट िदया, िफर वो पूिणमा की ओर घूमा
और बोला,
‘‘पु हमे शा हमारी याद म रहे गा, हम जब भी इस थान को दे खगे , हम उसकी
उपि थित का एहसास होगा। ''
पूिणमा एक बार िफर उसके सीने से लगी हुई रो रही थी। द्र ने एक दृि ट वहाँ उपि थत
सभी लोग पर डाली, और पूिणमा के साथ वापस अपने क की ओर चल िदया।
पु की मृ यु को दस िदन से अिधक हो चु का था। द्र और पूिणमा के िलये ये दस िदन
अ यिधक दुख और क ट भरे थे । वे दोन गहरे सदमे म थे । वे िकसी से भी न िमल रहे थे
और न बोल रहे थे ।
िव लव एवं अ य का भी बु रा हाल था, िक तु िकसी न िकसी को तो िह मत िदखनी ही
थी। द्र के िमत्र म,‘‘पु ’’ सबसे अिधक करीब था िव लव के; और उसकी मृ यु के बाद
िव लव ही था, िजसने कुछ ऐसा िकया िक पु की याद सबके दय म सदा के िलये अमर
हो गइं ।
जहाँ पर द्र ने पु के शव को दफन िकया था, िव लव ने वहाँ पर तु लसी का एक वृ
लगा िदया था। द्र और पूिणमा ने जब ये दे खा तो उनके दय को अ यिधक सं तोष
हुआ। उ ह ने िव लव को इसके िलये ध यवाद भी कहा।
द्र की से ना ने िजन आक् रमणकािरय को पकड़ा था, उनसे कुछ भी साफ नहीं उगलवा
पाये थे , िक तु जब िवनायक और कौ तु भ ने अपने ढं ग से उनसे जानकारी जु टाना शु
िकया तो वे सब टू ट गये ।
और िफर उ ह ने सब कुछ बता िदया।
अब वे सारे आक् रमणकारी उनके िकसी भी काम के नहीं थे , और इसीिलए उन सब की
ह या, िवनायक, कौ तु भ और प्रताप ने अपने हाथ से की।
‘‘अिधपित को इस सारे िवषय म अवगत करा िदया जाये ?’’ प्रताप ने प्र न िकया।
‘‘नहीं, अभी उिचत समय नहीं है ; अभी अिधपित अ यिधक शोक म ह; हमे थोड़ा धीरज
से काम ले ना चािहये , िक तु सारी से ना को पूणत: तै यार रहने का आदे श दीिजये ; सभी
व तु ओं को यवि थत कर लीिजये , य िक अब हम अपने अि तम यु से अिधक दरू
नहीं ह।’’ िवनायक ने कहा।
और िफर वो प्रती ा करने लगे उिचत समय की, जब वो अिधपित को सारी बात बताय।
िव लव को सब कुछ बता िदया गया था।
9. अि तम यु
कहते ह िक समय, इं सान को बड़े से बड़े दद को भु लाने म सहायता करता है , और द्र
एवं पूिणमा के साथ भी वही था। पु की मृ यु को एक माह से अिधक समय हो गया था,
और अब द्र का यवहार एक बार िफर से पूव की तरह हो गया था। वो अिधक बोलता
नहीं था, सदै व शा त रहता था। िक तु अब वो सदमे की ि थित से बाहर था।
पूिणमा ने भी पु की याद से पीछा छुड़ाने के िलये खु द को अ यिधक य त कर िलया
था, और अब वो अिधक समय शा त्र के साथ अ यास करने म यतीत करती थी।
िव लव के सं ग तलवार का अ यास करने के उपरांत वो तलवार के साथ अ यिधक प्रवीण
हो गयी थी, साथ ही िव लव, पूिणमा के िलये भाई समान िप्रय था। पूिणमा, िव लव के
सं ग अिधक समय यतीत करती थी, और इससे वो द्र से दरू रहती थी। द्र भी अपने
एकांत म खु द को समे टे रखने का प्रयास करता था।
अब, जबिक द्र सदमे से उबर गया था, तो िव लव और उसके सािथय ने ये सु िनि चत
िकया िक उससे बात करने का उपयु त समय अब हो गया है ।
आज द्र अपने क म ही था। पूिणमा उस समय वहाँ पर नहीं थी, वो शायद अपनी माँ
के पास थी। िव लव, िवनायक, कौ तु भ और प्रताप, द्र के क म आये । उन सभी के
मु ख पर दुख के भाव थे , िक तु उ ह ने तय कर िलया था िक आज उ ह अिधपित से बात
अव य करनी है ।
द्र ने जब उन सबको दे खा तो उन सभी का वागत िकया और िफर बोला,
‘‘ या बात है ? आप सबके मु ख इस भाँ ित लटके य ह?''
‘‘अिधपित, हम सब आपसे कुछ मह वपूण बात करना चाहते थे ।’’ िव लव ने शालीनता
के साथ कहा।
‘‘कहो िव लव!’’ द्र ने कहा। वो अपने िब तर पर बै ठा था। बगल म ही उसका फरसा
रखा हुआ था, िजस पर शायद आज वो धार लगा रहा था।
‘‘अिधपित, दरअसल हम आपको ये बात कई िदन से बताना चाहते थे , िक तु िपछले
कुछ िदन से आप अ यिधक दुख और सदमे म थे , इसिलए हमने आपसे ये बात छुपाई।’’
िव लव ने पूव म ही अपनी सफाई पे श की।
‘‘िव लव, साफ-साफ कहो!’’ द्र ने यग्र होते हुए कहा।
‘‘अिधपित! उस िदन िजन लोग ने महल म आक् रमण िकया था, उ ह हमारे सै िनक ने
पकड़ िलया था।’’ िव लव ने कहा।
‘ या!’ द्र, आ चयचिकत होते हुए बोला। उसकी आँ ख म एक बार िफर क् रोध िदखाई
पड़ने लगा। वो इस व त क् रोध से काँप रहा था।
‘‘शीघ्रता से बताओ वो नीच कहाँ ह, म वयं उनकी ह या क ँ गा।’’ द्र ने एक बार
िफर कहा। वो अपने थान से उठ खड़ा हुआ, और बगल म पड़े अपने फरसे को हाथ म
ले िलया। द्र, अ यिधक क् हो गया था।
‘‘अिधपित! कृपया आप शा त रह... उन नीच को उनके िकये की स़जा िमल चु की है ;
वयं िवनायक, कौ तु भ और प्रताप ने अपने हाथ से उनकी ह या की है , िक तु वे उस
अ याय की कठपु तली मात्र थे , उनको इस कृ य हे तु भे जने वाला कोई और था।’’
िव लव ने द्र से कहा। उसके श द म शाि त थी।
द्र का क् रोध पहले तो ये बात जानकर शा त हुआ िक उन दु ट आक् रमणकािरय को
मृ यु दं ड िदया जा चु का है । उसने अपने िमत्र की ओर दे खा जो अपने मु ख, भूिम की ओर
िकये हुए खड़े थे । उसे उन पर गव हुआ; िक तु िव लव के अि तम श द सु नकर द्र िफर
िठठका,
‘‘िकसने भे जा था?’’ द्र ने पूछा।
‘कण वज।’ िव लव ने उ र िदया।
‘ या?’ द्र को मानो कुछ समझ ही नहीं आया। वो अपने िब तर पर बै ठ गया। उसम
खड़ा होने की भी शि त नहीं थी। कण वज का नाम अचानक सु नकर उसके मि त क म
बहुत कुछ घूमने लगा था।
‘‘िक तु अिधपित! कण वज इस खे ल म अकेला नहीं था, उसकी सहायता की थी यु वराज
जयवधन और प्रभास ने ।’’ िवनायक ने कहा।
‘‘ या तु म सच कह रहे हो?’’ द्र ने एक बार िफर है रान होकर कहा। उसके िलये ये सब
बहुत मु ि कल होता जा रहा था।
‘‘जी अिधपित! उ ही दोन ने उन आक् रमणकािरय को इस महल के अ दर प्रिव ट
कराया था, और यही नहीं, उ ह ने हमारी से ना के िवषय म स पूण जानकारी कण वज को
उपल ध कराई है ... वे दोन उस नीच के जासूस थे ।’’ कौ तु भ ने कहा।
द्र को ये जानकार अ यिधक है रत हुई। अपने जीवन की खु िशय म वो अपने दु मन के
िवषय म भूल ही गया था। वो अपने ल य से भटक गया था। वो असावधान हो गया था,
और उसकी इसी असावधानी ने उसको इतना गहरा घाव दे िदया था। एक बार िफर पु
का शव उसकी आँ ख म तै र गया।
‘‘अिधपित! एक मह वपूण बात ये है िक उस हमले की रात से ही दोन यु वराज दे वगढ़
से गायब ह, मु झे पूरा यकीन है िक वो वीरभूिम म छुपे हुए ह।’’ प्रताप ने कहा।
द्र अब अपनी आँ ख ब द करके बै ठ गया, जै से वो पूव म बै ठता था। वो िकसी गहरी
सोच म डूबा हुआ था। वहाँ उपि थत सभी उसको दे ख रहे थे । वो सब द्र की इस भाँ ित
की ि थित से पिरिचत थे । वे जानते थे , िक अिधपित द्र शीघ्र ही कोई घोषणा करने
वाले ह।
और िफर द्र चीखा,
‘‘अब समय आ गया है , इस धरा से उस अि तम अ यायी और अधमी ित्रय राजा के
अं त का। प्रताप! यथाशीघ्र से ना को यु के िलये तै यार करो, अब वीरभूिम का यु
लड़ने का समय हो गया है । ''
‘‘अिधपित, मने से ना को पूव से ही तै यार रहने का िनदश िदया था, हमारी से ना यु के
िलये तै यार है , बस आपके आदे श की प्रती ा है ।’’ प्रताप बोला।
‘‘तो िफर हम कल ही प्र थान करगे ।’’ द्र ने कहा।
सभी लोग वहाँ से चल िदये , य िक उ ह अब बहुत सारे काय करने थे । द्र की से ना
कल यु के िलये कू च करने वाली थी।
आज द्र ने यु का िनणय ले िलया था। द्र इस बात को समझता था िक वीरभूिम के
िव यु करना िकतना किठन होने वाला है । उनकी से ना के सम द्र के पास सं या
बल बहुत कम है , िक तु िजस ण उसे इस बात का पता चला िक पु की ह या के पीछे
कण वज की चाल थी, द्र अ यिधक आवे ग म आ गया। द्र ने भावनाओं म बहकर
इस यु का िनणय नहीं िलया था, अिपतु उसने सोच-समझकर इस यु के िलये आदे श
िदया था। द्र तै यार था इस धरा से अि तम ित्रय राजा का सवनाश करने के िलये ।
राित्र म पूिणमा और द्र बै ठे हुए थे । द्र का िसर पूिणमा की गोद म था, और पूिणमा
उसके िसर को सहला रही थी। उनके बीच खामोशी छायी हुई थी। वे दोन अपने िवचार
म त लीन थे , और िफर सहसा द्र बोला,
‘‘पूिणमा! या तु म जानती हो िक हमारे पु त्र की ह या के पीछे िकसका हाथ था? वो
नीच था वीरभूिम का राजा कण वज। ''
‘ या?' पूिणमा अवाक रह गयी। ये उसके िलये एक गहरा झटका था। अचानक से पु का
िजक् र होने से उसके दय के घाव एक बार िफर हरे हो गये , िक तु उसकी ह या कण वज
ने करायी, ये बात सु नकर पूिणमा है रत म थी।
‘‘और यही नहीं, उस नीच की सहायता की तु हारे दोन भाइय ने , जो उस मनहस ू रात के
बाद से ही इस रा य से गायब ह।’’ द्र ने िफर से कहा। वो अपनी भावनाओं को
सं यिमत िकये हुए था।
‘‘िक तु द्र! आपको ये सब कैसे पता चला, और आप इतने यकीन के साथ कैसे कह
सकते ह?’’ पूिणमा ने प्र न िकया। अपने भाइय के िव इतने सं गीन इल़ज ् ाम पर
यकीन करने से पहले वो पूरी तरह िनि चं त होना चाहती थी। उसने सोचा िक कहीं द्र
को गलतफहमी न हुई हो?
द्र ने पूिणमा को वो सारी बात बता दीं,जो सु बह िव लव ने उसे बतायी थीं। अब
पूिणमा के पास सं देह का कोई कारण ही नहीं था। वो अब अ यिधक क् रोिधत थी, िक तु
पु का मरण उसे भावु क िकये हुए था।
‘‘ द्र! म भी इस यु म िह सा लूँगी।’’ पूिणमा ने कहा। उसके श द म दृढ़-िन चय
था।
‘‘नहीं पूिणमा, तु ह यु म जाने की आव यकता नहीं है ; मने अभी-अभी अपने पु त्र को
खोया है , और अब यिद तु ह कुछ हो गया तो म वयं को कभी भी मा नहीं कर
पाऊँगा।’’ द्र ने उ र िदया। उसके श द म दद छलक रहा था।
‘‘ द्र, म जानती हँ ू िक आप के िलये ये बहुत मु ि कल है , िक तु या म अपने पु त्र के
िलये इतना भी नहीं कर सकती?’’ पूिणमा ने कहा। उसके आँ ख के आँ स,ू द्र को उसकी
बात मानने के िलये मजबूर कर रहे थे , और िफर द्र, उन आँ ख मे बहते आँ स ू दे खकर
भला कैसे द्रिवत न हो उठता, िजनसे वो अ यिधक आकिषत था... जो उसे उसकी माँ की
याद िदलाती थीं।
‘‘िक तु पूिणमा...।’’ द्र ने भारी मन से कहा।
‘‘भला आपके रहते मु झे कुछ हो सकता है द्र?’’ पूिणमा ने कहा। पूिणमा के इन श द
के बाद द्र को उसकी बात माननी ही थी।
द्र जानता था िक सबकुछ बहुत किठन होने जा रहा है , और वो उसके िलये खु द को
मानिसक प से तै यार भी कर रहा था।
द्र ारा जीते गये सभी रा य की से ना को िव लव ारा पूव ही सूिचत कर िदया गया
था, और उन सभी रा य की लगभग ढाई लाख सै िनक की सं यु त से ना द्र के बे ड़े म
शािमल हो गयी थी। द्र के पास वयं के पचास ह़जार सै िनक का बल हो चु का था, और
दे वगढ़ के दो लाख सै िनक का बल िमलाकर द्र के पास कुल िमलाकर पाँच लाख
सै िनक का बल था; िक तु ये सं या बल भी िवप की से ना से काफी कम था, और इस
बात का पता द्र एवं उसके सभी यो ाओं को था।
द्र की से ना अब तै यार थी कू च करने के िलये । महारानी तारा भी से ना के कू च करने से
पूव उनसे िमलने आई थीं। सभी वहाँ प्रती ा कर रहे थे अिधपित द्र की। िवनायक
और कौ तु भ, से नापित प्रताप के साथ से ना के कू च की यव था करने म लगे थे ।
िव लव, महारानी तारा के पास खड़ा था। वो उनसे से ना के सं दभ म कुछ बात कर रहा
था।
और िफर वहाँ पहुँचा द्र, अपने उसी पु राने िचर-पिरिचत अं दा़ज म। कमर से नीचे िसफ
एक धोती, और कमर से ऊपर एक अं गव त्र। माथे पर च दन और खु ला हुआ केश। बाय
क धे पर तरकश लटकाये हुए, और दािहने क धे पर धनु ष; और हाथ म स ती से पकड़े
हुए था अपना िप्रय श त्र, फरसा, िजसकी चमकती धार इस बात का प्रमाण थी िक
अभी उसम शीघ्र ही धार लगायी गयी है । द्र के गले म लटकती वो द्रा की माला
दरू से ही चमक रही थी।
आज द्र ने कई वषों बाद अपने राजसी व त्र का याग िकया था, और िफर उसी प
म आ गया था, िजसम उसने अपने सफर की शु आत की थी। ये जो िपछले दो-तीन वषों
से द्र बना हुआ था, वो तो वो कभी था ही नहीं। रे शम के व त्र, राजसी ठाठ, ये उस
जं गल के अिधपित को आराम भले ही दे रहे थे िक तु शाि त नहीं। उसको शाि त िमली
थी आज एक बार िफर अपने पु राने प म आकर।
सभी की दृि ट उसे ही घूर रही थीं, िक तु शीघ्र ही सभी की दृि ट द्र के ठीक पीछे आने
वाली छिव पर अटक गयी।
वो पूिणमा थी, जो िकसी यो ा की भाँ ित व त्र पहने और श त्र ले कर द्र के साथ ही
आ रही थी। उसने भी धनु ष िलया हुआ था, िजसे द्र की भाँ ित ही क धे पर टाँ गा था,
और हाथ म ली हुयी थी तलवार। अपने उस पारं पिरक वे श-भूषा से ठीक उलट होकर भी
पूिणमा, सभी के आकषण का कद्र थी।
‘पूिणमा...!’ महारानी तारा के मु ख से िनकला।
‘अद्भुत।’ िव लव ने कहा।
द्र और पूिणमा अब उस थान पर पहुँच चु के थे , जहाँ सब बे सब्री से उनकी प्रती ा
कर रहे थे । उ ह ने महारानी तारा का अिभवादन िकया। महारानी तारा, उनका अिभवादन
वीकार करने के उपरांत पूिणमा से बोलीं,
‘‘ या तु म भी यु लड़ने जा रही हो पूिणमा? मु झे लगा, तु म मु झसे अनु मित लोगी! ''
‘‘िनि चत ही म यु लड़ने जा रही हँ ू माँ , और मने इसके िलये अपने पित से अनु मित ले
ली है , इसिलये मु झे नहीं लगता िक मु झे िकसी अ य से अनु मित ले ने की आव यकता
है ।’’ पूिणमा ने कठोर श द म कहा। अपने भाइय के कृ य जानने के उपरांत, वो अपनी
माँ से भी क् रोिधत थी।
महारानी तारा को अपनी पु त्री के इस बे खी से बात करने से दुख की अनु भिू त हुई, िक तु
शीघ्र ही खु द को सं यिमत करते हुए वो बोली,
‘‘पर आिखर तु म यु करने जा य रही हो? अगर तु ह कुछ हो गया तो मे रा या होगा
पु त्री? अब एक तु म ही तो मे रे जीवन का आधार हो। ''
‘‘माँ ! पु मे रा पु त्र था; िजस भाँ ित आप मु झसे प्रेम करती ह, ठीक उसी भाँ ित म भी
अपने पु त्र से प्रेम करती थी... और अगर उसकी मृ यु का प्रितशोध न ले पायी तो म
खु द को कभी भी माफ नहीं कर पाउँ गी।’’ पूिणमा के श द म इस बार त खी थोड़ा कम
थी।
‘‘अगर तु मने िनि चत कर िलया है पु त्री, िक तु म यु म जाओगी, तो िफर ठीक है ।’’
महारानी तारा की आँ ख म आँ स ू थे ।
पूिणमा का इरादा अपनी माँ को दुखी करना िबलकुल भी नहीं था, और िफर माँ की आँ ख
म आँ स ू दे खकर पूिणमा का क् रोध भी छ ू मं तर हो गया। दोन माँ पु त्री एक दस ू रे के गले
लगकर अपने भाव प्रदिशत कर रही थीं। द्र ने भी जाने से पूव महारानी तारा के
चरण पश िकये , और उनसे आशीवाद िलया।
द्र ने िव लव से सारी तै यािरय के िवषय म प्र न िकया, और पूरी तरह िनि चं त होने
के बाद द्र अपने घोड़े पर चढ़ा और से ना को कू च करने का आदे श िदया।
द्र की वो जो पाँच लाख से ना कू च कर रही थी। उसे एक साथ दे खकर ऐसा लग रहा था
िक जै से स पूण दे वगढ़ यु के िलये जा रहा हो। उस से ना म लगभग पचास ह़जार
घु ड़सवार सै िनक थे , जो दो भाग म बँ टे हुए थे । आधे घु ड़सवार, सै िनक दल का आगे से
ने तृ व कर रहे थे , जबिक आधे , से ना को पीछे से सु र ा प्रदान कर रहे थे । द्र, पूिणमा
और कौ तु भ आगे की घु ड़सवार टु कड़ी के ठीक पीछे अपने घोड़ पर चल रहे थे । उनके
पीछे पूरी से ना चल रही थी। से नापित प्रताप और िवनायक, पीछे के घु ड़सवार सै िनक
का ने तृ व कर रहे थे । िव लव, स पूण से ना का ने तृ व करता हुआ सबसे आगे चल रहा
था। वो इस बात को सु िनि चत िकये हुए था िक से ना अपना रा ता न भूल जाये ।
पाँच लाख सै िनक के साथ िकसी यु के िलये प्र थान करना एक मु ि कल काय है । उस
िवशाल से ना को दे वगढ़ पहुँचने म एक स ताह का समय लगा।
वीरभूिम रा य भारतवष का सबसे िवशाल रा य था, जो ि थत था भारत के पि चमी
छोर पर। वो रा य, जहाँ से कई निदयाँ बह कर समु दर् म जाकर िमलती थीं। इस रा य
म एक बड़ा िह सा रे िग तान था; पर वो रा य सबसे अिधक िवशाल था, े तर् फल की
दृि ट से भी, और जनसं या की दृि ट से भी।
उस रा य की प्रजा अपने राजा से िबलकुल भी खु श नहीं थी। उस रा य म िनयम अथवा
कानून नाम की कोई चीज ही नहीं थी, चार ओर राजा की दमनकारी नीितयाँ ही लागू
थीं। प्रजा को प्रितरोध दज कराने की भी अनु मित नहीं थी; और अगर कोई उस िनरं कुश
शासन के राजा के िव आवाज उठाने की कोिशश करता, तो या तो उसकी आवा़ज दबा
दी जाती थी, या िफर उसको रा य से िन कािसत कर िदया जाता था।
उस रा य के लोग ई वर से िदन-रात प्राथना कर रहे थे िक शीघ्र ही कोई आये और
उ ह कुशासन के राज से मु ि त िदलाये । प्रजा का बु रा हाल था। पूरे रा य म त्रािह-
त्रािह मची हुई थी।
अगर उस रा य म इतनी अराजकता फैली हुई थी, तो िफर रा य सु चा ढं ग से चल िकस
प्रकार पा रहा था?
रा य, सु चा ढं ग से चल रहा था प्रधानमं तर् ी अ य त, एवं से नापित किन क के कारण।
पूरे रा य म बस यही दो लोग थे , िज ह लोग के दद और तकलीफ की िचं ता थी। ये दोन
अपनी ओर से कोिशश करते थे िक लोग की तकलीफ़ िजतना अिधक दरू कर सक
उसका प्रयास िकया जाये । पर कई बार इनको चाहे - अनचाहे राजा के िनणय का स मान
करते हुए अ याय का प ले ना पड़ता था।
उस रा य म अ याय िसफ कण वज ही नहीं मचाये हुए था, कण वज का पु त्र मलयकेतु
भी अपने िपता के ही पदिच ह पर चल रहा था। पूरा िदन मिदरा पीकर धु त रहता था,
िकसी भी त्री के साथ अमयािदत आचरण करने म उसे थोड़ा सा भी सं कोच नहीं होता
था; और अगर कोई उसके सम प्रितरोध करता, तो िफर उसको राजा के क् रोध का
सामना करना पड़ता था। मलयकेतु , नीचता म अपने िपता से भी दो हाथ आगे था।
वीरभूिम के राजमहल म आपातकालीन सभा बु लाई गयी थी। रा य के सभी पदािधकारी
उस सभा म बु लाये गये थे । वीरभूिम के सम्राट कण वज अपने िसं हासन पर बै ठे हुए थे ।
उनके बाइं ओर बै ठे हुए थे उनके पु त्र एवं रा य के यु वराज मलयकेतु । महाराज कण वज
के दायीं ओर बै ठे थे प्रधानमं तर् ी अ य त, जो िक एक बु जु ग यि त थे ।
उसके बाद आसीन थे से नापित किन क... दे वगढ़ से भागकर वीरभूिम म छुपे हुए दोन
यु वराज, जयवधन एवं प्रभास, और अ य सभी रा य के पदािधकारी।
‘‘ या सूचना आई है अ य त?’’ कण वज ने प्रधानमं तर् ी से प्र न िकया।
‘‘महाराज! हमारे गु तचर ने हम सूचना दी है िक अिधपित द्र के ने तृ व म लगभग
पाँच लाख सै िनक का समूह कल तक हमारे रा य की सीमा म पहुँच जाये गा।’’
प्रधानमं तर् ी अ य त ने पूरे स मान के साथ कहा।
‘‘अ य त! मे रे सम उस कपटी और दु ट जं गली ब्रा ण को इस भाँ ित स मान से न
सं बोिधत करो।’’ कण वज ने नाराजगी के साथ कहा।
‘‘िक तु महाराज, वो िवप ी से ना के नायक ह और धम के अनु सार हम उनका नाम
सस मान ही ले ना चािहये ।’’ प्रधानम त्री अ य त ने धम का हवाला दे ते हुए अपना
प रखा।
‘‘अब तु म मु झे धम िसखाओगे अ य त?’’ कण वज ने एक बार िफर गु से से कहा।
अ य त समझ गया था िक अब उसका और अिधक अपना प रखने का कोई लाभ नहीं
था इसिलये वो अपने थान पर बै ठ गया।
‘‘किन क! हमारी से ना की या ि थित है ?’’ सम्राट कण वज ने अपने से नापित से प्र न
िकया।
‘‘महाराज! हमारे आठ लाख सै िनक, िवरोधी से ना को स पूण प से तहस-नहस करने के
िलये पूरी तरह से तै यार ह, और बस आपके आदे श की प्रती ा कर रहे ह; आप बस
आदे श कर।’’ से नापित किन क ने अपने सै िनक की प्रशं सा करते हुए गव से कहा।
पूरी सभा से नापित किन क के उ र से प्रस न हुई एवं सबने किन क की प्रशं सा की,
िक तु दे वगढ़ के यु वराज जयवधन ने अपना मत रखा,
‘‘महाराज! िनि चत ही आपकी से ना, सं या म उस नीच की से ना से अिधक है , और
आपकी से ना िकसी भी अ य से ना को धूल चटा सकती है ; िक तु महाराज, हम इस बात
का यान रखना चािहये , िक शत् ओं के पास दे वगढ़ के दो लाख वीर सै िनक का बल भी
है , जो िनि चत ही वीरता म आपके सै िनक के समक ही ह। ''
जयवधन की बात सु नकर सम्राट कण वज के पु त्र मलयकेतु ने यं य करते हुए कहा,
‘‘यु वराज जयवधन! कृपया दे वगढ़ की से ना की तु लना हमारी से ना से न कर; हम पता है
िक दे वगढ़ के सै िनक िकतने वीर ह? ये वही सै िनक ह, जो अपने से आधे सं याबल के
सै िनक की सं या से यु हार चु के ह। ''
‘‘यु वराज मलयकेतु ! कृपया इस भाँ ित दे वगढ़ की से ना के शौय का अपमान न कर।’’
दे वगढ़ के यु वराज प्रभास ने अपना तीखा िवरोध जािहर िकया।
‘‘मु झे नहीं लगता की आपको अब दे वगढ़ के सै िनक के मान-स मान की अिधक िचं ता
करनी चािहये ; और िफर ये बात मरण रिखए िक आप दे वगढ़ से भागकर हमारे रा य म
अपने जीवन की र ा के िलए छुपे ह, अत: आपकी िन ठा वीरभूिम के सै िनक के साथ
होनी चािहये प्रभास।’’ मलयकेतु ने क् रोधपूवक कहा।
‘‘महाराज कण वज! आपसे िनवे दन है िक कृपया यु वराज मलयकेतु को शा त रहने का
आदे श द; इस भाँ ित वो हम अपमािनत कर रहे ह, और आप मौन बै ठे ह, ये उिचत नहीं।’’
जयवधन ने िवनती करते हुए सम्राट कण वज से कहा।
सम्राट कण वज, जो अभी तक मलयकेतु और दे वगढ़ के यु वराज के म य हो रहे िववाद
को शाि त से सु न रहे थे , उ ह ने मलयकेतु को चु प होने का इशारा िकया और िफर बोले ,
‘‘जयवधन! आपके इस भाँ ित क् होने से स य तो नहीं पिरवितत हो सकता; भला
मलय ने अनु िचत या कहा? जहाँ एक ित्रय राजकुमारी, एक जं गली ब्रा ण से
िववाह कर ले , उस रा य के सै िनक म िकतना दम है इसका अनु मान हम है ।’’ सम्राट
कण वज ने पूरी सभा के म य जयवधन का उपहास उड़ाते हुए कहा।
जयवधन, सम्राट कण वज को प्र यु र दे ना चाहता था, िक तु कण वज ने उसे आदे श
िदया,
‘‘अपने थान पर मौन होकर बै ठ जाय यु वराज, अ यथा इस सभा को सु चा ढं ग से
चलाने के िलये मु झे आपको यहाँ से बाहर भगाना पड़े गा। ''
जयवधन कुछ बोल नहीं सका। कण वज के इन श द ने उन यु वराज को अ यिधक
लि जत िकया। आज सभा म िजस भाँ ित उन यु वराज को अपमािनत िकया गया, वो
िन चय ही उनके दय को खला था। जयवधन अपने थान पर वापस से बै ठ गया।
‘‘किन क! उस ह यारे दै य की ि थित अब कैसी है ?’’ सम्राट कण वज ने एक बार िफर
से नापित से प्र न िकया।
‘ह यारे दै य’ से यहाँ कण वज बात कर रहे ह एक िवकृत जानवर पी मानव की, जो
उनके रा य म ज मा था। वो िवकृत मानव, कण वज के िलये एक मह वपूण हिथयार
था। यु भूिम म उस ह यारे के प्रवे श करते ही शत् प म भगदड़ मच जाती थी।
उसको दे खकर िवप ी सै िनक भागने लगते थे ।
‘‘महाराज! मु झे नहीं लगता िक हम उस दै य की आव यकता इस यु म पड़े गी,
इसिलये मे रे मत के अनु सार हम उस दै य का उपयोग न ही कर तो बे हतर।’’ से नापित
किन क ने अपने िवचार सबके सम रखे ।
‘‘म आपके िवचार से असहमत हँ ू से नापित।’’ मलयकेतु ने अपने थान पर बै ठे-बै ठे ही
कहा।
‘‘तु म इस िवषय पर या सोचते हो अ य त?’’ सम्राट कण वज ने प्रधानमं तर् ी से
पूछा, जो बहुत दे र से चु प बै ठे थे ।
‘‘महाराज! इस िवषय पर म भी से नापित किन क के िवचार से सहमत हँ ।ू ’’ प्रधानमं तर् ी
अ य त ने अपना उ र िदया।
‘‘अगर आप दोन ऐसा चाहते ह तो ठीक है ।’’ सम्राट कण वज ने कहा।
‘‘िक तु िपताजी, म सोचता हँ ू िक हम उस ‘‘ह यारे ’’ को यु भूिम म ले कर चलना चािहये ,
और अगर हम उसके उपयोग की आव यकता पड़ी, तो हम करगे ।’’ मलयकेतु ने सम्राट
कण वज से कहा।
‘‘मु झे ये िवचार ठीक लगा।’’ सम्राट कण वज ने कहा।
मलयकेतु प्रस न हो गया। प्रधानमं तर् ी और से नापित की कोई बात अगर उसके िपता
नहीं मानते , तो इससे उसे बहुत प्रस नता होती थी। मलयकेतु को उन दोन से नफरत
थी।
‘‘तो िफर ठीक है से नापित किन क, आप से ना को आदे श दीिजये , हम कल यु हे तु
प्र थान करगे , और अ य त आप, अ य य थाओं का प्रबं ध कीिजये ; हम उस नीच
ब्रा ण को एक किठन मौत दगे । उसने हमारे कई ित्रय राजाओं की ह या की है , हम
उन सबका प्रितशोध लगे ।’’ सम्राट कण वज क् रोिधत होकर बोले ।
वहाँ उपि थत सभी लोग ने सम्राट की जय-जयकर की। वो सब यु के िलये तै यार थे ।
उन सब के मु ख पर हष का भाव था।
िक तु वहाँ सभा म दो मु ख ऐसे भी थे , जो लटके हुए थे । िजन दो लोग के हुए अपमान ने
उ ह इस बात का एहसास िदला िदया था िक उ ह ने िकतना बड़ा अनथ कर िदया था। वो
दो लोग थे , दे वगढ़ रा य के भागे हुए यु वा यु वराज-जयवधन और प्रभास।
* * *
आज सभा म िजस भाँ ित मलयकेतु और कण वज ने उन यु वराज के ऊपर िट पिणयाँ की
थी, उससे उ ह अ यिधक दुख हुआ था। इस भाँ ित के अपमान की उ ह कभी भी आशं का
नहीं थी। आिखर उन दोन ने जो कुछ भी िकया था, वो अपने मान के िलये ही तो िकया
था; िक तु जब इस भाँ ित उनके मान का मदन, कण वज और मलयकेतु के ारा भरी सभा
म िकया गया, तो दोन यु वराज के आ मस मान को चोट लगी।
सभा समा त होने के बाद दे वगढ़ के दोन यु वराज आपस म वाता कर रहे थे । उन दोन के
मु ख उतरे हुए थे ।
‘‘भै या! या आपको लगता है हमारा िनणय सही था?’’ प्रभास ने बड़े ही दुख के साथ
अपने बड़े भाई जयवधन से कहा।
‘‘िकस िवषय म प्रभास?’’ जयवधन, सहसा च कते हुए बोला।
‘‘सम्राट कण वज का साथ दे ने का िनणय, अपने रा य के िव बगावत का िनणय;
अपनी बहन के साथ इतना भीषण अपराध करने का िनणय।’’ प्रभास सहसा फट पड़ा।
उसने अपने भाई के सम प्र न के अं बार लगा िदये ।
‘‘मु झे नहीं पता प्रभास, िक तु हमने जो कुछ भी िकया था, वो अपने धम की र ा के
िलये िकया था, अपने कुल की मयादा के िलये िकया था, अपने स मान के िलये िकया
था।’’ जयवधन ने उ र िदया, िक तु उसके श द म िव वास नहीं था, उसके मु ख पर एक
अिनि चतता का भाव था।
‘‘िक तु भै या! या हम वो मान िमला? इतने अपमान के बाद भी या हम मौन होकर
सम्राट कण वज के आदे श का पालन कर?’’ प्रभास ने प्र न िकया।
जयवधन चु प रहा। वो कुछ िवचार करने लगा, और िफर कुछ समय बाद उसकी आँ ख म
आँ स ू थे । उसे अपने अपराध का आभास हुआ था, और उसके वो आँ स,ू उसकी लािन के
थे । दे वगढ़ का यु वराज पछतावा कर रहा था।
‘‘प्रभास! हमने अनथ िकया है ; अपनी झठ ू ी शान के च कर म हमने अपनी ही बहन के
पु त्र की ह या म सहयोग िकया है , हम इस सं सार के सबसे बड़े नीच ह।’’ जयवधन रोते -
रोते बोला।
‘‘िक तु भै या, हमने उन आक् रमणकािरय को द्र की ह या हे तु महल म प्रिव ट कराया
था; उस मासूम िशशु की ह या का हमारा इरादा िबलकुल भी नहीं था।’’ प्रभास ने अपने
भाई को अपराध बोध की भावना से बाहर िनकालने का प्रय न िकया।
‘‘प्रभास! हमने जो िकया, उसको हम अपने िकसी भी तक से सही नहीं प्रमािणत कर
सकते ; हमने जो िकया वो अधम था... अपने क् रोध और ई या म हम इतने िगर गये , िक
हमे अपने कमों की अपिवत्रता का यान ही नहीं रहा।’’ जयवधन ने उ र िदया। उसकी
आँ ख से आँ स ू अब भी बह रहे थे ।
अब वो दोन भाई अपने िकये हुए अधम का पछतावा कर रहे थे । उनको अपनी गलती
का एहसास हो चु का था।
‘‘भै या, अब हम या करगे ?’’ प्रभास ने अपने आँ स ू प छते हुए कहा।
‘‘प्रभास! हम यु भूिम म जाने तक की प्रती ा करगे , और िफर उसके बाद हम या
करना है ये हम िनधािरत करगे ।’’ अपने आँ स ू प छते हुए जयवधन बोला।
‘‘ या आप इस बार अपने फैसले के प्रित आ व त ह भै या?’’ प्रभास ने अपने भाई से
पूछा।
‘‘प्रभास! मृ यु तो हमारी होनी ही है , हमने अपना जीवन तो बबाद ही कर िलया, कम से
कम हम अपनी मृ यु को तो साथक कर जाय।’’ जयवधन ने िव वास के साथ अपने भाई
को उ र िदया।
‘‘ या पूिणमा और द्र हम कभी मा कर पाएँ गे?’’ प्रभास ने सं देहा मक ढं ग से
जयवधन से प्र न िकया।
‘‘िबलकुल भी नहीं... कोई भी माँ -बाप अपने इकलौते पु त्र के ह यार को मा नहीं कर
सकता भाई; इसिलये हम उनसे मा की आशा नहीं रखनी चािहये , हम बस यान रखना
है िक कल यु भूिम म हम अपना ित्रय धम िनभायगे , और शत् प का नाश कर
दगे ।’’ जयवधन ने उ र िदया।
वे दोन भाई अपना िनणय ले चु के थे , और अब प्रती ा थी यु भूिम म दोन से नाओं के
टकराव की। ये यु भारतवष का भिव य तय करने वाला था।
द्र की से ना अपनी मं िजल पर पहुँच चु की थी। उ ह ने अपना पड़ाव वीरभूिम की सीमा
पर डाल िदया था। वो पाँच लाख सै िनक की िवशाल से ना थी, िक तु उन सभी सै िनक का
अनु शासन अद्भुत था। िजस भाँ ित इतने लं बे और थकान भरी यात्रा से वो आये थे , वो
उनके अनु शासन की बानगी थी, और अब वो एक दस ू रे की सहायता करने म लगे थे । कोई
भोजन बनाने म लगा हुआ था, तो कोई िशिवर लगाने म लगा था। सभी सै िनक एक दस ू रे
के प्रित पर पर बं धु व भावना को प्रदिशत कर रहे थे ।
द्र, अपने सभी िमत्र , पूिणमा और से नापित प्रताप के साथ अपने िशिवर म बै ठा था।
यु से पूव की रात, द्र की से ना के िलये हमे शा से मह वपूण रही थी। यु से पूव की
रात को ही द्र, यु की योजना सबके समक रखता था।
‘‘अिधपित! हमारी से ना सकुशल पहुँच चु की है , और पड़ाव डाल चु की है ,' िवनायक ने
द्र को सूचना दी।
द्र ने िवनायक को दे खकर अपना िसर ह के से िहलाया। अब सभी एक बार िफर मौन
थे ।
‘‘से नापित प्रताप! हमारे पास िकतने सै िनक ह?' सहसा द्र ने प्रताप से प्र न िकया।
‘‘अिधपित! कुल िमलाकर हमारे पास पाँच लाख सै िनक का बल है ,' से नापित प्रताप ने
उ र िदया।
‘‘िव लव! शत् व के पास लगभग िकतने सै िनक होने का अनु मान है ?' द्र ने इस बार
िव लव से पूछा।
‘‘अिधपित! लगभग आठ लाख सै िनक की सं या है ।’’ िव लव ने कहा।
द्र ने िव लव का उ र सु ना, और िफर िफर मौन अव था म बै ठ गया। एक बार िफर
द्र िकसी िवचार म डूबा हुआ था। उसके मु ख पर िचं ता की लकीर िदखायी दे रही थी।
वहाँ उपि थत सभी द्र के श द की प्रती ा कर रहे थे ।
‘‘ये यु िनि चत ही हमारे िलये बहुत किठन और मु ि कल होने वाला है ; हमारी से ना,
शत् ओं की से ना से तु लना मक प से बहुत कम है , हमारे और और उनके बीच का अं तर
बहुत अिधक है ।’’ द्र ने कहा। आज पहली बार यु से पूव द्र इतना परे शान िदख
रहा था। उसके िवचार भी पहली बार इतने हतो सािहत करने वाले थे ।
‘‘पर तु इस बात का आभास तो हमे पूव म भी था द्र, िक हम िवप के सं याबल से
बहुत कम ह; इसिलये िसफ इस बात से तो हम िनराश नहीं हो सकते ।’’ पूिणमा ने कहा।
उसके श द म िव वास था।
द्र ने एक दृि ट पूिणमा की ओर डाली, और िफर बोला,
‘‘िनि चत ही पूिणमा, तु हारी बात ठीक है , हम इस बात का आभास पूव म ही था, िक
हम िवप की से ना के सं याबल से बहुत कम ह; िक तु वो कमी तीन लाख सै िनक की
होगी, इसका आभास नहीं था,'।
द्र की ये बात पूणत: उपयु त थी। िकसी को भी इतने अिधक अं तर की आशा नहीं थी।
अब सभी के मु ख उतर गये थे ।
‘‘िक तु हम िनराश होने की आव यकता िबलकुल भी नहीं है ; हमने पूव म भी अपने से
कहीं अिधक सं या बल के सै िनक को धूल चटाई है , और इस बार भी हम वही करगे ,'
द्र ने कहा।
उसके श द ने सभी के मन म भरोसा जगाया। अब द्र के श द म िव वास था।
‘‘हम शत् की से ना के िवषय म सोच, इससे यादा उपयु त ये है िक हम अपने पाँच
लाख सै िनक की बात कर; मे रा िव वास कीिजये िक इतने सै िनक िकसी भी यु म िवजय
िदला सकते ह।’’ द्र ने कहा। अब सभी के दय म यु के िलये िव वास का भाव जाग
गया था। द्र के श द का यही जाद ू होता था।
‘‘अिधपित! इस बार हमारी योजना या होगी?' िवनायक ने अपनी चु पी तोड़ते हुए
कहा।
‘‘ या हम चक् राकार यूह का उपयोग करगे , अथवा द्र- यूह का?' कौ तु भ ने प्र न
िकया।
‘‘इस बार हम दोन ही िविध का प्रयोग करगे ; हमारी आधी से ना चक् राकार िविध से
शत् की से ना के भीतर होगी, और आधी से ना द्र- यूह की रचना करके शत् सै िनक
का नाश करे गी।’’ द्र ने उ र िदया।
‘‘िक तु अिधपित! ये अ यिधक जोिखम भरा िनणय हो सकता है ; इस िनणय की वजह से
हमारी से ना दो भाग म िबखरकर शत् से ना के बीच म होगी।’’ िव लव ने अपने िवचार
को सबके स मु ख रखा। वो इस योजना से होने वाली सं भािवत ित के िवषय म सबका
यान आकृ ट करना चाहता था।
‘‘िव लव! जब किठन यु जीतना हो तो हम जोिखम भरे कुछ किठन फैसले ले ने पड़ते ह;
म समझता हँ ू िक तु हारी ये िचं ता वाभािवक है , पर अगर हम प्रार भ से ही शत् प
पर हावी होना है , तो हम उनको अपने फैसल से चिकत करना होगा।’’ द्र ने िव लव
को समझाते हुए कहा।
‘‘िक तु अिधपित! या आपको ऐसा नहीं लगता िक दे वगढ़ के दोन राजकुमार ने हमारी
से ना के इस यूह के िवषय मे , शत् ओं को नहीं बताया होगा?’’ िवनायक ने प्र न
िकया।
‘‘िनि चत ही बताया होगा िवनायक; और शत् प भी इसी बात का अं दा़जा लगा रहा
होगा िक हम अब अपने इन यूह का प्रयोग नहीं करगे , य िक जयवधन और प्रभास
ने इसके सं दभ म उ ह बता िदया होगा; पर स चाई तो ये है िक हम इन यूह का प्रयोग
करगे ।’’ द्र ने कहा। उसने अपनी योजना को सबके सम प्र तु त कर िदया था।
‘‘और शत् से ना, जो ये बात मान के बै ठी होगी िक हम कोई नया यूह प्रयोग करगे , वो
हमारे इस प्रयोग से चिकत हो जाये गी; और जब तक वो हमारी योजना को समझगे , तब
तक हम उनको अ यिधक ित पहुँचा चु के ह गे ।’’ से नापित प्रताप ने अपने थान से
उछलकर खड़े होते हुए कहा। प्रताप को द्र की योजना समझ म आ चु की थी।
‘‘उ म योजना द्र!’’ पूिणमा ने भी द्र की बड़ाई की।
‘‘हमारी योजना भले ही जोिखम भरी है , िक तु अगर हम सावधानी से इसका प्रयोग
यु भूिम पर कर सके तो िनि चत ही िवजय हमारी होगी।
िव लव और िवनायक, अब भी द्र को है रत भरी दृि ट से दे ख रहे थे । वे द्र की उस
योजना को सु नकर पूरी तरह से िहले हुए थे ।
‘‘इतना अिधक परे शान न हो िव लव! कल रणभूिम म हमारी योजना अव य ही सफल
िस होगी।’’ द्र ने कहा।
‘‘अव य ही अिधपित! आिखर ये आपकी योजना है , सफल कैसे न होगी?’’ िव लव ने भी
उ र िदया।
रात बहुत हो गयी थी, इसिलये द्र ने सबको जाकर आराम करने का आदे श िदया। कल
का िदन उन सबके िलये मह वपूण होने वाला था।
वो ब्रा ण जै सा िदखने वाला यि त कई सै िनक से िघरा था। सभी उसके चार ओर
अपनी तलवार िकए हुए थे । उसके सामने एक यि त मु कुट पहने खड़ा था, और िफर उस
मु कुट पहने हुए यि त ने उस िनह थे ब्रा ण के ऊपर तलवार का भरपूर वार िकया, और
उसका िसर कटकर नीचे िगर गया, और ठीक उसके बगल खड़ा द्र, उस ब्रा ण के र त
से भीग गया।
अचानक ही द्र ने आँ ख खोल दी। वो पसीने से भीग गया था। उसकी साँस बहुत ही
तीव्रता से चल रही थी। उसे अपने िसर म असहनीय पीड़ा का आभास हुआ। द्र कुछ
कहना चाहता था, िक तु उसके गले से आवा़ज ही नहीं िनकली। द्र को ऐसा महसूस
हुआ, मानो ठीक ऐसी ि थित से वो पहले भी गु़ जर चु का हो। पर इस व त महाप्रतापी
अिधपित द्र की ि थित बहुत ही दयनीय थी।
ये वही सपने थे , जो अ सर द्र की नींद म आते थे । वे सपने द्र के मन को अशा त
कर जाते थे । पूिणमा, द्र के ठीक बगल म ही सोयी थी, और अब उसने द्र की हलचल
महसूस की। उसने शीघ्रता से अपनी आँ ख खोली और द्र को ऐसी बदहवास हाल म
दे खकर सहम गयी।
िक तु िफर शीघ्र ही वो द्र को सामा य करने की कोिशश करने लगी। उसने द्र को
अपने दय से लगा िलया। पूिणमा के हाथ लगातार द्र की पीठ पर थाप दे रहे थे ।
द्र को अब आराम हुआ। पूिणमा की आ मीयता ने उसे सामा य अव था म ला िदया
था।
‘‘ द्र! या हुआ?’’ पूिणमा ने उससे पूछा।
िक तु द्र ने कोई उ र नहीं िदया। वो बस ऐसे ही पूिणमा की गोद म िसर रखकर ले टा
रहा। द्र को उसी ि थित म राहत महसूस हो रही थी।
‘‘ या कोई बु रा व न दे खा?’’ एक बार िफर पूिणमा ने प्र न िकया। उसकी आँ ख से िगरे
आँ स,ू द्र ने अपने गाल पर महसूस िकये थे , िक तु वो अब भी वै से ही ले टा रहा।
‘‘ या हुआ? कुछ तो कहो।’’ पूिणमा ने इस बार ज़ोर दे कर द्र से प्र न िकया। पूिणमा
के श द ने द्र को बोलने के िलये मजबूर कर िदया।
‘‘म तु ह प्रेम करता हँ ू पूिणमा!’’ द्र ने ने धीमे वर म कहा। पूिणमा ने उसकी बात
सु नी तो वो अ यिधक हिषत हुई, और िफर नीचे झुककर उसने द्र के माथे को, अपने
यार को प्रदिशत करते हुए चूम िलया। द्र और पूिणमा दोन उस ण बस एक दस ू रे
म डूबे हुए थे , अ य सं सार से उ ह कोई मतलब नहीं था।
द्र के दय को पूिणमा की उपि थित हर ण उ माद से भर रही थी। ये पहला यु था,
जब यु से पूव द्र के साथ पूिणमा थी। द्र, पूिणमा के साथ होने से अ यिधक सु कून
महसूस कर रहा था।
वो सपना द्र को कई िदन बाद आया था, िक तु उसने उसके ज म को ताजा कर िदया
था। द्र को अशा त कर गया था वो व न।
दोन प की से ना यु भूिम तै यार खड़ी थी, और प्रती ा कर रही थीं अपने से नानायक
के आदे श का। उस व त उस थल पर असं य िसर िदख रहे थे । दस लाख से यादा
सै िनक उपि थत थे उस यु थल म।
द्र की से ना प्रती ा कर रही थी अपने अिधपित के आदे श का। उसकी से ना के सारे
यो ा भी उसको यग्रता से दे ख रहे थे । द्र अपने घोड़े पर बै ठा हुआ था। हमे शा की
भाँ ित एक धोती पहने हुए था। आज उसने अं गव त्र अपने हाथ म लपे टा हुआ था।
उसके कमर से ऊपर के िह से म कोई व त्र नहीं था। उसके चौड़े सीने एवं मांसल शरीर,
सबका यान अपनी ओर आकृ ट कर रहे थे । उसके मोटे -मोटे बाजू, उसके सु गिठत शरीर
के साथ और भी अिधक सु हा रहे थे । द्र के केश खु ले थे । उसके वो घने और काले केश
हवा के साथ ही लहरा रहे थे । द्र के गले का द्रा दरू से ही चमक रहा था। उसका
फारसा अपनी धार से चमक रहा था, और इन सब के बीच द्र के मु ख का ते ज
दे दी यमान हो रहा था। द्र, हर िकसी को आकिषत िकये हुए था।
‘‘सै िनक ! आप सब िनि चत ही वीर ह, जो इतने भयानक यु को लड़ने के िलये बहादुरी
से त पर खड़े हुए ह। यकीन मािनये ये यु हम सभी का आिखरी यु भी हो सकता है ,
य िक िवरोधी दल की से ना हमारे से ना से सं याबल म कहीं यादा है ।’’ द्र ने कहा।
सभी की दृि ट उसी की ओर थी। िक तु सभी अवाक् थे । अिधपित द्र के इन श द ने
थोड़ी सी बे चैनी उनकी ही से ना म मचायी थी।
‘‘िक तु मे रा यकीन मािनये , िक जब तक हम सब एक साथ ह, कोई भी हम छ ू भी नहीं
सकता, हम िवरोिधय का सवनाश कर दगे । िसफ आव यकता इस बात की है िक हम
बहादुरी और िनडरता से यु लड़।’’ द्र ने जोश के साथ कहा।
स पूण से ना ने उसके श द को दोहराया। एक बार िफर अिधपित द्र के श द ने से ना
के मनोबल को ऊँचा उठा िदया था।
‘‘आप सब एक बात की गाँठ बाँ ध लीिजये की, हम कोई भी यु सं याबल से नहीं जीतते
अिपतु हम जीतते ह अपने मजबूत इराद और दृढ़ इ छाशि त से ।'' शत् की सं या
भले ही हमसे अिधक हो, पर तु वो हमसे अिधक शि तशाली नहीं है , हम यु जीतने जा
रहे ह। या आप सब मे रे साथ ह?’’ द्र ने एक बार िफर जोशीले अं दा़ज म कहा।
‘‘हम आपके साथ ह अिधपित।’’ स पूण से ना ने उ र िदया।
और िफर द्र ने अपने अं दा़ज म ही से ना को आक् रमण का आदे श िदया।
‘‘हर-हर महादे व!’’ द्र चीखा।
‘‘हर-हर महादे व!’’ स पूण से ना ने कहा और उसी ण शत् ओं की ओर दौड़े । द्र की
से ना ने िजस भाँ ित प्रभु िशव के नाम का जाप िकया था, ऐसा लग रहा था िक जै से
स पूण सं सार म वो विन गूँजी हो। पाँच लाख से अिधक यि त एक ही समय म जब उन
श द को जोश के साथ उ चािरत िकये तो ऐसा लगा िक जै से मानो वयं प्रभु िशव को
ही आने को िनमं ित्रत कर रहे ह ।
दोन ही से ना आपस म गु ं थी हुई थी, िक तु द्र की से ना अभी तक अपने यूह की
रचना कर ही नहीं पायी थी, य िक िवप ी सै िनक ने उ ह अपने से ना के भीतर घु सने का
कोई मौका ही नहीं िदया था। जहाँ चक् राकार यूह का ने तृ व वयं द्र कर रहा था, और
उसके साथ िवनायक और कौ तु भ वहीं द्र- यूह के िनमाण का ने तृ व कर रहा था
िव लव और उसके साथ थे पूिणमा एवं से नापित प्रताप।
पर तु अभी तक न तो द्र को और न ही िव लव को, िकसी को भी सफलता नहीं िमली
थी। िव लव के स मु ख कड़ाई से उसके माग को अव िकये हुए था मलयकेतु । उसी के
क् रमशः दायीं और बायीं और खड़े थे जयवधन और प्रभास। पूिणमा ने एक तीखी दृि ट
अपने दोन भाइय पर डाली, और िफर यूह रचना हे तु िवरोधी सै िनक से यु करने
लगी।
द्र के सम था, से नापित किन क; और वो बहादुरी के साथ द्र को रोके हुए था, िक तु
आिखर द्र ने अपना पाठ ढूँढ़ ही िलया। िवनायक से नापित किन क के साथ यु करने
लगा। वे दोन महारथी धनु ष बाण के साथ एक दस ू रे पर आक् रमण कर रहे थे , िक तु
मु क़ाबला बराबरी का ही था। दोन ही एक दस ू रे के वार की काट रखे हुए थे । पर स य तो
भी ये था िक इस भाँ ित िवनायक ने किन क को अपने साथ यु म उलझा िलया था, और
वो अ य पिरि थितय पर िनयं तर् ण नहीं कर पाया।
और तभी द्र, िवप ी से ना के म य की ओर अपने सै िनक के साथ घु सा। उसने जब एक
बार िवरोधी सै िनक पर घातक वार करने शु िकये तो िफर वो का ही नहीं। उसके वार ने
द्र की से ना के अ य सै िनक की राह आसान कर दी थी। वे आसानी से उसके पीछे -पीछे
अपनी यूह रचना का िनमाण करने म सफल हुए। द्र के फरसे का सामना करने म
िवरोधी सै िनक असफल िस हो रहे थे । द्र के ने तृ व म आिखरकार उसकी से ना
चक् राकार यूह बनाने म सफल हुई।
और जब से नापित किन क ने द्र की से ना को इस यूह की सं रचना म म दे खा तो वो
चीखा,
‘‘चक् राकार - यूह!''
िक तु उसके चीखने से कुछ नहीं होने वाला था, य िक अब द्र, िवनायक और कौ तु भ
उसकी से ना के भीतर थे , और बड़े शीघ्रता से से ना का नाश कर रहे थे । वीरभूिम की से ना
म भयानक आतं क या त हो गया था। सै िनक यहाँ -वहाँ लाश के प म िगर रहे थे ।
वीरभूिम के सै िनक म भय या त हो गया था।
और दरू एक ऊँचे अवलोकन थल से पूरे यु पर दृि ट गड़ाये हुए सम्राट कण वज ने
जब ये दृ य दे खा तो अ यं त ही क् रोिधत हो गये । द्र िजस भयानक तरीके से उनके
से ना का र तपात कर रहा था, वो सम्राट कण वज के िलये असहनीय था।
‘‘वो नीच ब्रा ण मे रे सै िनक का वध कर रहा है , और वो कायर कुछ भी नहीं कर पा रहे
ह; अ य त! उस दै य को अब रण-भूिम म भे ज दो।’’ सम्राट कण वज, क् रोिधत होकर
प्रधानमं तर् ी अ य त से बोले ।
‘‘महाराज! आप इतना शीघ्र ही उ े िजत न ह । से नापित ने उस दै य को न प्रयु त
करने का िनवे दन िकया है । अत: हम अभी थोड़ा सं यम रखना चािहये । और िफर आप
दे िखए िक िकस भाँ ित यु वराज मलयकेतु िवप ी से ना से यु कर रहे ह, और उ ह रोके
हुए ह।’’ प्रधानमं तर् ी अ य त ने महाराज को समझाते हुए कहा।
सम्राट कण वज ने दरू उस ओर दृि ट दौड़ाइ। िनि चत ही मलयकेतु अद्भुत वीरता का
प्रदशन कर रहा था। वो अपनी से ना का ने तृ व कर रहा था, और िवप ी सै िनक को अब
तक रोके हुए था। सम्राट कण वज को अपने पु त्र के अद्भुत प्रदशन पर गव की
अनु भिू त हुई।
‘‘आिखर वो एक वीर िपता का पु त्र है अ य त! उसने अपनी वीरता आज प्रमािणत
की।’’ सम्राट कण वज, गव एवं हष के िमिश्रत भाव से बोले ।
िनि चत ही िव लव के ने तृ व वाले समूह के सामने किठनाई थी। वो अब तक अपने माग
के अवरोध को हटा नहीं पाये थे । पूिणमा और से नापित प्रताप भी पूर मनोयोग से यु
कर रहे थे , िक तु सफल नहीं हो सके थे , और उनकी से ना के सै िनक भी अ यिधक मात्रा
म मारे जा चु के थे ।
िव लव को इस बात का आभास हो रहा था िक अगर इसी भाँ ित वो अपने सै िनक को
खोते रहे , तो िफर शीघ्र ही उनकी मु ि कल बढ़ जायगी।
‘‘से नापित प्रताप! हम शीघ्र ही कुछ करना होगा, अ यथा िजस भाँ ित हमारी से ना का
नाश हो रहा है , हम शीघ्र ही शत् प से हार जायगे ।’’ िव लव ने अपने मन के डर को
प्रताप के सम प्र तु त िकया।
‘‘आप सही कह रहे ह, िक तु जब तक हम शत् प की से ना म भीतर घु सने का मौका
नहीं िमले गा हम असहाय ह।’’ से नापित प्रताप ने दुखी वर म कहा।
प्रताप की बात सही थी। द्र की से ना तब तक असहाय थी, जब तक िक वो उस
ित्रशूल के आकार वाले यूह म न आ जाते और उस यूह म आने के िलये उ ह शत् की
से ना के भीतर जाने की आव यकता थी। द्र की से ना अब शीघ्रता से कम होने लगी
थी।
िक तु तभी, जो कुछ भी िव लव ने दे खा, उसे समझने म उसे कुछ ण लग गये ।
जयवधन और प्रभास ने शत् से ना के सै िनक को मारना शु कर िदया था। उ ह ने
द्र की से ना के िलये पूरा रा ता बना िदया था, िक वो अब अपनी यूह रचना के साथ
आगे बढ़। उ होने भीतर से ही कई िवप ी सै िनक की ह या कर दी थी।
कुछ दे र तो िव लव को समझने म लग गया, िक तु शीघ्र ही उसने से ना को आदे श
िदया, ‘ द्र- यूह!’
और िफर अगले ही ण से ना, एक ित्रशूल के आकार म शत् से ना के भीतर घु सने लगी
थी। से नापित प्रताप भी आ चयचिकत था। जयवधन और प्रभास ने उनकी से ना के
िहत के िलये बहुत ही मह वपूण काय िकया था, और इस बात का आभास उसे था।
िक तु उन सब म सबसे अिधक आ चय से भरी हुई थी पूिणमा। उसे समझ नहीं आ रहा
था िक वो या समझे ? िजन भाइय ने उसके पु त्र की ह या करने म कण वज के ह यार
की सहायता की थी, वही आज उसकी से ना की सहायता के िलये कण वज के सै िनक की
ह या कर रहे थे । पर तु जयवधन और प्रभास के कारण द्र की से ना लाभ की ि थित म
थी। वो अब अपने यूह का िनमाण कर चु के थे और शत् से ना पर टू ट पड़े थे ।
मलयकेतु ने जब जयवधन और प्रभास के इस भाँ ित अपने सै िनक का नाश करते और
शत् से ना की सहायता करते दे खा, तो वो क् रोध से आग-बबूला हो उठा और िफर वो
उनकी ओर झपटा। मलयकेतु ने सवप्रथम जयवधन के ऊपर तलवार से वार िकया। वो
असावधान था, और इसी कारण वो मलयकेतु के वार से बच नहीं सका। जयवधन मर
चु का था।
प्रभास ने मलयकेतु को दे ख िलया था और वो शीघ्रता से अपने प्राण बचाने के िलये
िव लव की से ना की ओर भागा, िक तु उससे पूव ही मलयकेतु के बाण ने उसके शरीर को
घायल कर िदया था। वो िफर भी िकसी भाँ ित िव लव की से ना के करीब पहुँच गया था।
िव लव, पूिणमा एवं प्रताप ने भी मलयकेतु को जयवधन की ह या करते हुए दे खा था।
वो अ यिधक क् रोिधत हो गये थे । उस ण उ ह केवल ये याद था िक जयवधन ने उनकी
सहायता करते हुए अपने प्राण गँ वाये थे । और जब पूिणमा ने प्रभास को घायल
अव था म दे खा तो वो अपने घोड़े से कू द पड़ी और प्रभास के पास पहुँची। उसने प्रभास
का िसर अपनी गोद म रखा था और रो रही थी।
और िफर वो रोते हुए प्रभास से बोली,
‘‘ य िकया तु मने ऐसा?''
प्रभास उसके प्र न को सु नकर रोने लगा। वो यु वा बालक, िजसकी अभी मूँ छ भी नहीं
उगी थी और जो यु भूिम म घायल अव था म पड़ा था। वो अपनी बहन के ने तर् का
सामना करके रो रहा था।
‘‘आप हम मा तो नहीं कर सकती, िक तु हमारा िव वास कीिजये , हम ये कभी नहीं
चाहते थे िक पु का कोई अिहत हो; हमने उन ह यार की सहायता की थी आपके पित
द्र की ह या के िलये , य िक हम अं धे हो गये थे अपने स मान और प्रित ठा की आँ च
म। हम लगा था िक आपके एक ब्रा ण से िववाह करने के उपरांत सारे ित्रय समाज
के सामने हमारी बे इ जती हुई है , उसका प्रितशोध हम द्र की ह या करके ही ले सकते
ह।’’ प्रभास रोते हुए ही बोला। उसके मु ख से श द बड़ी मु ि कल से िनकल रहे थे ।
पूिणमा भी रो रही थी।
‘‘िक तु हमने आज जो कुछ भी िकया वो अपनी शाि त के िलये िकया; भै या ने कहा था
िक आप हम कभी मा नहीं करगी, िक तु अगर हम आपके िलये अपने प्राण याग पाये
तो शायद हम अपने अपराध बोध से थोड़ा मु ि त पा सक।’’ प्रभास ने रोते हुए ही कहा।
िव लव भी वहाँ आ चु का था। उसने शीघ्र ही अपने सै िनक को बु लाया और आदे श
िदया,
‘‘यु वराज को शीघ्र ही वै जी के पास ले कर जाओ। ''
‘‘एक बात और पु की ह या करने वाले उन ह यार को दे वगढ़ भे जने वाला वो मलयकेतु
ही था।’’ प्रभास ने भरपूर प्रयास करके कहा और िफर अचे त हो गया। उसके शरीर से
अ यिधक मात्रा म र त बह चु का था। शीघ्र ही सै िनक प्रभास को ले कर वै जी के
क की ओर भागे ।
पूिणमा, जो अभी तक अपने भाई की मृ यु से रो रही थी, अचानक ही उसकी आँ ख म
क् रोध जाग गया था। अपने पु त्र की ह या के िलये उन आक् रमणकािरय को भे जने वाले
मलयकेतु को वो अब जीिवत नहीं दे खना चाहती थी। वो मलयकेतु से यु हे तु जाना
चाहती थी
िक तु तभी शं ख बज गया।
इस भाँ ित आज के िदन का यु अब समा त हो चु का था। सूरज ढल गया था, और अब
यु करना अस भव था। से ना अब अपने िशिवर की ओर लौटने लगी थी।
आज का यु ही िन चय ही द्र की से ना के िलये बहुत ही किठन था। द्र के कई
सै िनक आज यु भूिम म वीरगित को प्रा त हुए थे । कई घायल भी हुए थे । वै गगाचाय
अपने सहायक वै के साथ सभी घायल के उपचार म य त थे ।
दे वगढ़ के यु वराज प्रभास अब भी अचे त थे । पूिणमा के आदे शानु सार उनकी उिचत
िचिक सा की जा रही थी। आज यु भूिम से द्र की से ना के िलये समाचार शु भ नहीं था।
द्र और पूिणमा िशिवर म थे । पूिणमा ने द्र को बताया था िक िकस भाँ ित अपने मृ यु
से पूव जयवधन और प्रभास ने उन लोग की सहायता की थी, और साथ ही ये भी िक वो
दोन इस बात से अं जान थे िक उस रात उस क म पु था। पूिणमा ने बातया की वो
अपने िकये पर अ यिधक लि जत थे । उन दोन ने अपने िकये का पछतावा प्रकट िकया
था।
द्र को अब जयवधन और प्रभास के िलये दुख हुआ। द्र ने पूिणमा के सम अपना
दुख प्रकट िकया।
पर तभी उनके क के बाहर से िव लव की आवा़ज आई,
‘‘अिधपित द्र! या भीतर आने की अनु मित है ?''
द्र ने वो आवा़ज पहचान ली। वो िव लव था।
‘‘िनि चत ही िव लव, शीघ्र आओ।’’ द्र ने कहा। पर तु मन ही मन द्र ने सोचा िक,''
इतनी रात को िव लव के आने का कारण या हो सकता है ?''
‘‘अिधपित म िसफ आपसे ये कहना चाहता हँ ू िक कल म एक बार िफर द्र- यूह का
ने तृ व करना चाहता हँ ,ू और मलयकेतु का सामना करना चाहता हँ ।ू ’’ िव लव ने द्र से
िवनीत वर म कहा।
‘‘पर तु य िव लव?’’ द्र ने है रत से प्र न िकया।
‘‘ य िक म उस दु ट मलयकेतु को अपने हाथ से मारना चाहता हँ ू अिधपित।’’ िव लव
ने अपने क् रोध को छुपाते हुए कहा।
द्र और पूिणमा दोन िव लव को है रान होकर दे ख रहे थे । वो समझ नहीं पा रहे थे िक
िव लव मलयकेतु के िव यु करने हे तु इतना यग्र य है ?
‘‘अिधपित! उस दु ट के कारण ही पु की मृ यु हुई है और कल जब यु वराज ने ये बात
बताई थी, तभी मने प्रित ा ली थी की मलयकेतु को मार कर ही म इस धरा से जाऊँगा।
अिधपित द्र! मे रे मन की शाि त के िलये कृपया मु झे मे री प्रित ा पूण करने का एक
अवसर दीिजये ।’’ िव लव ने एक बार िफर द्र से आग्रह िकया।
द्र आगे बढ़ा और िव लव को अपने गले से लगा िलया। अपने पु त्र के िलये िव लव के
प्रेम ने द्र को भावु क कर िदया था। पूिणमा की आँ ख को िकसी से भी अपने आँ स ू
छुपाने की आव यकता नहीं थी। उसकी आँ ख म आँ स ू थे ।
‘‘िनि चत ही तु म अपनी प्रित ा पूरी करोगे िव लव; कल हम सब अपनी प्रित ा पूरी
करगे ।’’ द्र ने कहा।
िव लव अब प्रस न था, य िक द्र ने उसके िनवे दन को वीकार कर िलया था, और वो
अब यग्रता से प्रती ा कर रहा था कल के िदन के यु का,जब वो उस दु ट मलयकेतु
का िसर अपने हाथ से काटे गा, तभी उसके कले जे को ठं ढक िमले गी। िव लव, पु के
ह या का प्रितशोध ले ना चाहता था।
यु के आज का िदन िव लव के नाम था। आज उसको रोकना सभी के िलये अस भव था।
िव लव ने यु भूिम म भीषण र तपात मचा िदया था। उसके मि त क म बस उसकी
प्रित ा ही नाच रही थी।
द्र भी आज िव वं स मचाये हुए था, और आज द्र की से ना िवपि य पर भारी पड़
रही थी। िव लव और द्र के भयानक र तपात और अ य यो ाओं के सहयोग से वे यु
भूिम म िवप पर हावी हुए थे ।
और िफर शीघ्र ही िव लव मलयकेतु के स मु ख था। दोन के म य यु होने लगा। दोन
यो ा अपने श त्र से एक दस ू रे पर वार कर रहे थे । पर तु िव लव अिधक घातक प्रहार
कर रहा था। उसके ने तर् म पु का मु ख तै र रहा था। उस न ह िशशु की ह या का
प्रितशोध ले ना ही िव लव का ल य था।
िव लव और मलयकेतु के म य हो रहे यु म दोन यो ा अपनी ओर से भरसक प्रय न
कर रहे थे एक-दस ू रे को पछाड़ने का। और िफर तभी मलयकेतु ने अपनी तलवार को दायीं
ओर से वे ग से घु माया, और िव लव की भु जाओं पर एक ती ण वार िकया। मलयकेतु के
उस वार ने िव लव की भु जा से र त िनकाल िदया था। िव लव के मु ख से एक चीख
िनकली। िव लव की जरा सी असावधानी ने मलयकेतु को उस वार का समय दे िदया था।
मलयकेतु ने जब िव लव के मु ख से चीख सु नी तो उसे हष हुआ।
िव लव ने अपने ज म पर एक दृि ट डाली, और िफर शीघ्र ही वो मलयकेतु का सामना
करने के िलये तै यार था। िव लव अब अिधक सावधान था। मलयकेतु अपनी ओर से पूरे
वे ग के साथ अपनी तलवार से प्रहार कर रहा था, िक तु िव लव उसके हर वार को दृढ़ता
से रोक ले रहा था। उन दोन के म य यु इसी भाँ ित चल रहा था, और िफर िव लव ने
अचानक से ही मलयकेतु की दायीं भु जा काटकर भूिम पर िगरा दी और िफर उसके बाद
िव लव ने मलयकेतु के प्राण हर िलये थे । िव लव, मलयकेतु के प्राण-िवहीन शरीर पर
लगातार वार करता रहा। िव लव की तलवार ने मलयकेतु के शरीर को ज म से भर िदया
था। िव लव ने मलयकेतु को अ यिधक भयानक मृ यु दी थी। स पूण यु भूिम म स नाटा
छा गया था। िव लव, मलयकेतु के मृ त शरीर पर तब तक वार करता रहा, जब तक की
उसके मन को शाि त न हुई। महाराज कण वज ने जब ये दे खा तो वो रोने लगे । अपने
इकलौते पु त्र की ह या ने उ ह तोड़ िदया था। कण वज ने अपने पु त्र की ह या होने का
दृ य अपनी आँ ख से दे खा था।
द्र और उसकी से ना प्रस न थी। िव लव ने न िसफ अपनी प्रित ा पूरी कर ली थी,
अिपतु उसने िवप ी खे मे के एक मह वपूण त भ को ढहा िदया था। अब िव लव और
भी घातक प से यु भूिम म िवप ी सै िनक से यु करने लगा था। अपनी प्रित ा पूण
करने के बाद िव लव और भी अिधक िवप ी सै िनक का नाश करने लगा।
से नापित किन क ने िव लव को जब इस भाँ ित से यु करते दे खा तो वयं वो िव लव से
यु करने को त पर हुए।
वो एक ऐसा दृ य था, िजसको दे खने का सपना हर एक यो ा का होता है । यु े तर् म
भीषण रण हो रहा था। हजार सै िनक के त-िव त शव रणभूिम म पड़े थे । धरती का
रं ग उन शव के र त के कारण लाल रं ग म पिरवितत हो चु का था। घायल के कराहने की
आवाज उस पूरे े तर् म गूँज रही थीं। उन घायल के अितिर त हािथय और घोड़ की
आवा़ज ने उस यु े तर् म अपनी उपि थित दज कराई हुई थी। अने क सै िनक तो हाथी
के पै र तले आकर ही अपने प्राण गँ वा चु के थे । उनके शव को पहचानना भी मु ि कल हो
गया था।
इन सबके बावजूद वो वीर सै िनक पूरी दृढ़ता से लड़ रहे थे । ऐसी ची कार के बीच म वो
ऐसे लड़ रहे थे , मानो कुछ हो ही नहीं रहा। वो केवल एक ची़ज सोच रहे थे , और वो था
िक अपने दु मन पर कोई दया नहीं करनी है । वो लड़ रहे थे अपने प की जीत के िलए।
वो लड़ रहे थे अपने धम की र ा के िलए; वो लड़ रहे थे य िक यही उनका कम था। वो
यो ा थे । वो सब के सब वीर यो ा थे ।
इस यु म ित्रय समाज के पथ प्रदशक एवं वीरभूिम के महाराज सम्राट कण वज की
से ना िवजय की ओर अग्रसर िदख रही थी। अभी तक के यु म सम्राट की से ना अपने
िवपि य पर भारी थी, और होती भी य न? भारत दे श के सबसे बड़े प्रांत वीरभूिम के
महाराज कण वज की से ना थी, िजसम कुल 8 लाख सै िनक थे ; और तो और, उनके पास
किन क जै सा वीर से नापित भी था, िजसकी वीरता की िमसाल उसके प्रित ं ी भी दे ते
थे । पहले सम्राट कण वज ित्रय समाज के अग्रणी हुआ करते थे , और उनके प्रित
पूरे भारतवष के कई और ित्रय राजाओं की िन ठा हुआ करती थी, िक तु अब
पिरि थितयाँ बहुत पिरवितत हो चु की थीं, अब उनके पास केवल उ हीं की से ना का बल
था। पर वो 8 लाख सै िनक की सं यु त सं या िकसी भी िवरोधी के िलये पया त थी। उस
िवशाल से ना को दे खकर िकसी भी से ना का मनोबल टू ट जाता। भारत दे श के उन वीर
ित्रय की सं यु त से ना से यु करने का िनणय अव य कोई मं दबु द्िध राजा ही ले
सकता था। 8 लाख सै िनक के सं यु त द ते को दे खकर एकबारगी दे वता भी यु करने से
कतरायेँ , िक तु िवप ी दल की से ना म ऐसी कोई बे चैनी नहीं थी।
सम्राट कण वज, से ना के म य म बनाये गये ऊँचे अवलोकन थल से पूरे यु पर ऩजर
गड़ाये हुए थे । उ ह अपनी अव यं भावी जीत का आभास हो चु का था। उनके मु ख की
प्रस नता, उनके दय की खु िशय को प्रदिशत कर रही थीं। आिखर म वो उस कपटी
ब्रा ण को धूल चटाने वाले थे । ठीक उनके बगल म वीरभूिम के प्रधानमं तर् ी अ य त
िवराजमान थे ।
‘‘अ य त जी! ऐसा लगता है िक अब िवजय अिधक दरू नहीं है ।’’ सम्राट कण वज ने
मु कुराते हुए अपने प्रधानमं तर् ी से पूछा।
‘‘िनि चत ही महाराज! आपके कुशल ने तृ व एवं से नापित किन क की सटीक रणनीित ने
यु को हमारे प म कर िदया है ।’’ प्रधानमं तर् ी अ य त ने अपने सम्राट को यथोिचत
स मान से उ र िदया।
‘‘ या अब हम उस खूँखार ह यारे को यु भूिम म भे ज दे ना चािहये ? आपका इस िवषय म
या िवचार है अ य त?’’ महाराज कण वज ने अपने प्रधानमं तर् ी से पूछा। सम्राट को
अ य त के ऊपर पूण िव वास था, और वो अ य त के िनणय का स मान करते थे , जब
तक िक वो िनणय उ ह पसं द आये ।
‘‘महाराज! मे रा सु झाव है िक अब हम उस ह यारे को प्रयोग करने की ज़ रत ही नहीं
पड़े गी। हमारे से नापित किन क ही शत् व का स पूण नाश करने के िलये पया त ह।’’
अ य त ने उ र िदया।
सम्राट कण वज कुछ ण के िलये शा त हो गये । उनकी आँ ख के आगे उस ब्रा ण
ारा िकये गये सारे कृ य नाचने लगे । वो ब्रा ण, जो उनकी ऩजर म इस सं सार का
सबसे नीच और अधमी मनु य था। क् रोध से उनकी मु ट्िठयाँ िभं च गयीं।
‘‘उस नीच और मं दबु द्िध ब्रा ण को उसके िकये गये नीच कमों की स़जा दे कर ही मे रा
दय शा त होगा अ य त, इसिलये आप तु र त उस ह यारे को यु भूिम म भे िजए।’’
सम्राट कण वज ने अपने दाँत को भींचते हुए कहा। वो उस पल की कामना करने लगे ,
जब वो ह यारा उस धूत ब्रा ण के शरीर को प्राण रिहत कर दे गा। मात्र सोचने भर से
ही उनके दय को शाि त का अनु भव हुआ।
‘‘िक तु महाराज। से नापित किन क ने उस ह यारे को यु म ना प्रयु त करने का िनवे दन
िकया है ।’’ अ य त ने बहुत ही अधीर भाव से उ र िदया।
‘‘ये हमारा आदे श है प्रधानमं तर् ी अ य त।’’ सम्राट कण वज उठकर खड़े हो गये ।
प्रधानमं तर् ी अ य त के िलये अब तक करने का कोई कारण नहीं था, य िक सम्राट ने
उस ह यारे को रणभूिम म भे जने का आदे श दे िदया था। अ य त इस िनणय से खु श नहीं
थे , िक तु सम्राट के िनणय को मानना ही हर वीरभूिम के नागिरक का कत य था, और
अ य त तो वीरभूिम के प्रधानमं तर् ी थे ।
वो खूँखार ह यारा रणभूिम म भे ज िदया गया था। उस ह यारे की ऊँचाई सामा यत: 3
पु ष के ऊँचाई के बराबर थी। वो दै याकार मानव पी पशु , जो इ सान का खून पीता
था। उसके िवकृत चे हरे को दे खकर कोई भी वाभािवक प से डर जाता। उसके नाक की
जगह पर एक सींग उगी थी, िजसकी वजह से वो अ यिधक भ ा एवं डरावना प्रतीत
होता था। उसके शरीर के भ े दाग एवं सड़े अं ग, उसे और भी भयानक बना रहे थे । उस
ह यारे दै य को दे खना िनि चत ही भयानक था।
यु भूिम म उस दै य के प्रवे श करते ही िवप ी से ना का मनोबल टू टने लगा। जो से ना
अब तक पूरे मनोयोग से उस धम यु को लड़ रही थी, वही से ना उस दै य को दे खकर
असहज हो गयी, सै िनक भागने लगे । सै िनक का हौसला टू टने लगा था, िजस प्रकार वो
ह यारा उनके सािथय को मार रहा था। पूरे रणभूिम म अब केवल भयभीत कर दे ने वाली
िच कार गूँज रही थीं। और उस दृ य को दे खकर और उन िच कार को सु नकर महाराज
कण वज बहुत ही प्रस न हो रहे थे । अपने अवलोकन थल से वो हर एक पल को अपनी
आँ ख से दे ख रहे थे , और उस क् रता के खे ल का आनं द ले रहे थे , जो उनके ह यारे ने
रणभूिम म मचाया था।
पर अचानक तभी महाराज कण वज की आँ ख अपने ह यारे से थोड़ा आगे की ओर घूमीं,
जहाँ उ ह ने एक छोटे से तूफान के आने की हलचल महसूस की।
यु भूिम म अचानक एक नया पिरवतन िदखाई पड़ने लगा था। ऐसा लग रहा था मानो
अचानक ही हवाओं ने अपना वे ग बढ़ा िलया हो, अचानक ही धरती काँपने लगी हो।
चार तरफ धूल का एक गु बार बन गया हो। यु थल के प्र ये क सै िनक की ऩजर उसी
ओर गड़ी थीं। उस ह यारे ने भी अपनी आँ ख उस धूल भरे तूफान की ओर गड़ाई थी।
सम्राट कण वज, अधीरता से अपने आसन से खड़े हो गये और उस तूफान को दे खने
लगे । से नापित किन क की आँ ख भी उस तूफान को घूर रही थीं। उस धूल भरे तूफान से
भयानक आवा़ज आ रही थीं। सै िनक के शव िगर रहे थे । ऐसा लग रहा था िक कोई
भीषण र तपात िकया जा रहा हो। जब कुछ समय प चात वो तूफान शा त हुआ, और
जब उस धूल के गु बार से घोड़े पर सवार एक यि त की आकृित ऩजर आयी तो सबने उसे
पहचान िलया... वो था ‘ द्र।'
वो तूफान जब छँ टा और सब कुछ साफ िदखाई पड़ा तो सम्राट कण वज ने दे खा िक
उनके हजार सै िनक के शव पड़े हुए थे । कोई भी िज़ं दा नहीं था। उन सै िनक म कोई
घायल भी नहीं था; वे सब के सब प्राण िवहीन थे ।
‘‘हे प्रभु ! उस नीच ने िकसी को भी िजं दा नहीं छोड़ा।’’ सम्राट कण वज के मु ख से बस
यही श द िनकला।
द्र के इस भयानक र तपात ने उसके सै िनक म एक नया उ साह भर िदया था। वो अब
यु के मै दान से भाग नहीं रहे थे , अिपतु दुगनी उ साह से लड़ने लगे थे । जहाँ एक ओर
द्र की से ना उ सािहत हो गयी थी वहीं दस ू री ओर उसके भीषण र तपात ने शत् की
से ना को हतो सािहत कर िदया था। से नापित किन क वयं द्र से यु करने के िलये
आगे बढ़ा िक तु तभी उ ह ने उस ह यारे दै य को दे खा।
‘‘हे िशव! या सम्राट ने उस दै य को भे जने का आदे श दे िदया।’’ से नापित किन क
बु दबु दाया। से नापित किन क ने दे खा िक वो ह यारा द्र के सामने खड़ा था, और नीित
के अनु सार अभी वो द्र से यु नहीं कर सकते थे । वो िफर दस ू री ओर मु ड़ गये और
भीषण यु शु कर िदया।
द्र ने उस दै य को अपने सै िनक का र त पीते एवं उ ह अ यिधक मात्र म प्राण
िवहीन करते हुए दे खा था, और यही कारण था िक वो इस कदर क् रोिधत हो गया था। वो
भीषण र तपात करने की वजह द्र का क् रोध था। और अब वो ह यारा दै य द्र के
सामने था।
द्र ने उस िवकृत चे हरे एवं अ यिधक भयानक आकृित वाले दै य को दे खा, िक तु उसे
कोई भय नहीं हुआ वरन उसका क् रोध और भी बढ़ गया। द्र को अपने सै िनक की मौत
का दृ य एक बार िफर िदख गया। द्र ने अपने घोड़े को एड़ लगाई और अपने र त-
रं िजत फरसे को कस कर अपने हाथ म पकड़ िलया, और उसके बाद िसं हो की भाँ ित
गजना की
‘‘जय परशु राम!''
वो ह यारा द्र के अपनी तरफ आने का प्रती ा करने लगा। वो द्र को उसके घोड़े से
िगराना चाहता था। पर य ही द्र उस ह यारे के िनकट पहुँचा उसने अपने घोड़े से
छलाँ ग लगा दी। वो ह यारा ऐसी ि थित के िलये तै यार नहीं था, इसिलये वो थोड़ा सा
लड़खड़ा गया। उस ह यारे की इतनी ही असावधानी ने द्र को मौका दे िदया, और िफर
द्र ने एक ही झटके म उस ह यारे दै य के सर को उसके शरीर से अलग कर िदया। द्र
के फरसे के एक ही वार ने उस दै य के प्राण हर िलये । यु भूिम म सभी अवाक रह गये ।
अद्भुत शि त का प्रदशन िकया गया था द्र के ारा।
इस दृ य को दे खकर सम्राट कण वज अपने आसन पर िगर पड़े । उनकी बूढ़ी आँ ख ने
ऐसे दृ य की क पना नहीं की थी। उ ह अचानक ही यु की पिरि थितय म ऐसे
पिरवतन की आशा नहीं थी। उनका सबसे बड़ा हिथयार, वो ह यारा दै य था। द्र ने उसे
केवल एक ही वार म धराशायी कर िदया था।
‘‘महाराज! वो ह यारा मारा गया।’’ अ य त ने दुखी वर म सम्राट से कहा।
महाराज कण वज ने कोई उ र नहीं िदया केवल धीरे से अपने सर को िहलाया।
‘‘महाराज, अब या आदे श है ?’’ अ य त ने पूछा।
सम्राट कण वज ने कोई प्रितिक् रया नहीं की, बस एकटक आसमान की ओर दे खने लगे ।
द्र के भीषण र तपात ने यु की पिरि थित ही बदल दी थी। 8 लाख सै िनक के
मु काबले उसके पाँच लाख सै िनक थे , िक तु द्र को दे खकर उनम लड़ने का जोश और
आ मिव वास भर गया था। द्र के श द ने उनम ये िव वास ला िदया था िक वो यु
जीत सकते ह। उन सबके कान म अिधपित द्र के श द एक बार िफर गूँजे,
‘‘हम कोई भी यु सं याबल से नहीं जीतते , अिपतु हम जीतते ह अपने मजबूत इराद
और दृढ़ इ छाशि त से । ''
उस ह यारे दै य के मरने के बाद तो द्र की से ना, एक बार िफर उ साह से लबरे ज थी।
और उसके सै िनक ने अब भयानक यु शु कर िदया।
पर तभी अचानक.......
कुछ ऐसा घिटत हुआ जो अ यिधक दुख दे ने वाला था। द्र की आँ ख के सामने ही
किन क ने िव लव का िसर काट िदया था। द्र अपने थान पर ही जड़ हो गया था। द्र
की आँ ख से आँ स ू बह रहे थे , और वो िव लव के भूिम पर पड़े िसर को दे ख रहा था।
िव लव का अ य शरीर भी बगल म ही पड़ा तड़प रहा था। द्र ने जब उसके तड़पते
शरीर को दे ख तो वो किन क की ओर क् रोिधत हो लपका, िक तु उससे पूव ही किन क का
पूरा शरीर बाण से भर गया। द्र ने दे खा िक िवनायक ने किन क के ऊपर बाण की वषा
कर दी थी। किन क का शरीर भी प्राण-िवहीन हो गया था।
द्र अब िव लव के मृ त शरीर की ओर बढ़ा। िव लव के चारां â ओर द्र के सै िनक घे रा
बनाये हुए थे । म य म द्र, पूिणमा, िवनायक और कौ तु भ खड़े हुए थे । सभी की आँ ख
म आँ स ू थे । सब मौन थे ।
द्र के िलये ये सदमे की ि थित थी। आज िफर द्र के दय म अ यिधक पीड़ा हुई।
अपने जीवन म आज िफर उसने िकसी अपने िप्रय को खोया था।
‘‘ये सब मे री वजह से हुआ है , मने अपनी प्रित ा को पूण करने के िलये अपने िमत्र के
प्राण ले िलये , मे री प्रित ा ने िव लव की जान ली।’’ द्र चीखा। इस समय द्र को
अथाह पीड़ा का अनु भव हो रहा था। िव लव का प्राणिवहीन शरीर द्र के दय म
अ यिधक दुख दे रहा था।
िव लव, जो िक द्र के सबसे अिधक िनकट था, जो द्र के हर भाव को समझता था;
िजसका ये य केवल द्र की आ ा का पालन करना एवं द्र की सु र ा करना था। आज
द्र का वो िमत्र, िव लव उस यु भूिम म मृ त पड़ा था।
द्र के जहन म िव लव के साथ यतीत हुए ण तै रने लगे । िव लव का िन य उसके
िलये भोजन लाना हो, या उसके घायल होने पर िदन-रात उसकी से वा करना हो। िव लव
का द्र की भावनाओं को समझना हो अथवा जब कभी भी द्र दुखी होता था तो उसके
िलये एक सहारा बनना हो, िव लव सदै व द्र के साथ रहता था। िव लव ने द्र के
जीवन के खालीपन को भरा था।
वही िव लव इस समय मृ त पड़ा था। द्र ने एक क ण िवलाप िकया यु भूिम म ही।
सभी उपि थत जन की दृि ट द्र पर ही िटकी हुई थी। िनि चत ही द्र अब अ यिधक
खतरनाक होने वाला था िवपि य के िलये ।
पर शीघ्र ही द्र की आँ ख के आँ स ू उसके क् रोध की वजह से सूख गये । अब द्र के
मु ख पर भयानक क् रोध के भाव थे । द्र की आँ ख र त की भाँ ित लाल थीं। उसकी आँ ख
म दे खने की िह मत िकसी की भी न हुई।
‘‘अब म ये यु ही समा त कर दँ ग ू ा!’’ द्र चीखा और िफर वो अब कण वज की ओर
दौड़ा। वै से भी अब यु भूिम म वीरभूिम की से ना अपनी पराजय वीकार कर चु की थी।
अपने से नापित की मृ यु के बाद से ना यु भूिम से प्राण बचाकर भाग रही थी।
द्र अपने घोड़े पर सवार था और भयानक ढं ग से र तपात करता हुआ कण वज की ओर
बढ़ रहा था। द्र का ऐसा भयानक प इससे पूव कभी भी िकसी ने नहीं दे खा था। द्र
का फरसा अनिगनत लाश यु भूिम म िबछा चु का था। द्र के क् रोध की वो पराका ठा
थी। द्र का इस भाँ ित का क् प आज तक कभी नहीं आया था। अब द्र के सम
आने म वीरभूिम के सै िनक डर रहे थे और िफर द्र के सम खड़ा था असहाय कण वज।
ये वो ण था, िजसके िलये द्र का सफर शु हुआ था। इसी ण के िलये द्र को
अपने कई िप्रय लोग को खोना पड़ा। इसी ण के िलये द्र अपने पूरे जीवन प्रती ा
करता रहा, और आिखरकार वो घड़ी आ गयी थी।
द्र ने आगे बढ़ कर कण वज के ऊपर अपने पै र से प्रहार िकया। वो नीचे की ओर िगर
गया। कण वज जानता था िक अब मृ यु उसके िनकट थी।
‘‘कम से कम मु झे ये तो बता दो िक तु म आिखर मु झे मार य रहे हो? मने तु हारा या
िबगाड़ा है ? अगर तु ह रा य चािहये तो ले लो, िक तु मे रे प्राण ब श दो।’’ कण वज ने
द्र से याचना की।
‘‘यही तु हारी स़जा है नीच! िक तु म िबना ये जाने मरो की म हँ ू कौन? िजससे िक मरने के
बाद भी तु हारी आ मा को शाि त न िमले , तु हारी आ मा तड़पे ।’’ द्र ने क् रोिधत
होकर कहा, और िफर अगले ही ण द्र के फरसे ने अपनी प्रित ा पूरी की। कण वज
के िसर को काटकर द्र का फरसा उसके हाथ से िगर गया। द्र भी अब भूिम पर िगर
गया था।
10. आिखर ये सब य ?
वीरभूिम का अि तम यु द्र जीत चु का था। द्र ने कण वज की ह या कर अपना
प्रितशोध पूरा कर िलया था। द्र ने वीरभूिम का राज-िसं हासन िवनायक को स प िदया
था। कौ तु भ और प्रताप भी वीरभूिम म ही रहने लगे थे । जहाँ अब प्रताप, भारतवष के
सबसे बड़े रा य का से नापित था, तो वहीं कौ तु भ था प्रधानमं तर् ी। वै गगाचाय जी
भी अब वीरभूिम रा य के राज-वै थे । द्र ने अ य सभी िनवािसत ब ती वाल को भी
वीरभूिम म बसा िदया था, जो राजनगर म रहते थे । द्र ने उन सभी को उनके मातृ भिू म
म एक बार िफर थान िदला िदया था। द्र वयं पूिणमा के साथ दे वगढ़ आ गया था।
पूिणमा के भाई प्रभास को दे वगढ़ के रा य का अिधकार िमल गया था। महारानी तारा
एवं पूिणमा ने द्र से रा य चलाने का अनु रोध िकया था, िक तु द्र ने उनके अनु रोध
को अ वीकार िदया था। उसके बाद द्र ने वयं प्रभास को दे वगढ़ का राजा बनाने का
सु झाव महारानी तारा को िदया था।
सभी लोग प्रस न थे , िक तु द्र के दय म अ यिधक शोक था। िव लव की मृ यु के
उपरांत द्र के िलये सब कुछ बदल गया था। िव लव की मृ यु ने द्र के जीवन म एक
ऐसा िर त थान छोड़ िदया था, िजसकी जगह कोई अ य नहीं ले सकता था। द्र के
िलये िव लव की मृ यु एक सदमे की तरह थी।
द्र ने अपना ल य प्रा त कर िलया था, िक तु उसको र ी भर खु शी नहीं थी। द्र ने
अि तम ित्रय सम्राट कण वज को मार िदया था, िक तु उसको प्रस नता न हुई।
द्र के िलये अपने ल य की सफलता कोई मायने ही नहीं रह गयी थी, य िक उसे
अपने इस ल य की प्राि त का मू य बहुत अिधक चु काना पड़ा था। काका का द्र को
छोड़कर चले जाना, अपने इकलौते पु त्र पु को खोना, और िफर अपने जीवन के सबसे
मह वपूण िमत्र िव लव की मृ यु ने द्र को अ यिधक दुख िदया था।
पूिणमा को द्र की ि थित का आभास था। उसने कई बार प्रयास िकया था िक वो द्र
का यान िव लव की ओर से हटाये , िक तु वो हर बार असफल हुई। पूिणमा िफर भी सदै व
द्र के साथ ही रहती और उसके दय के िवषाद को कम करने का प्रय न करती।
एक रात द्र और पूिणमा अपने क म थे । द्र िब तर पर ले टा हुआ था और पूिणमा
उसके िसरहाने बै ठी हुई थी। द्र ने अपनी आँ ख ब द की हुई थी। वो अपने सोच म डूबा
हुआ था। पूिणमा, जो िक द्र के िसरहाने बै ठकर उसके बाल को सहला रही थी,
अचानक ही द्र से पूछ पड़ी,
‘‘ द्र! आपसे एक बात पूछँ ? '' ू
‘हँ ।ू ’ द्र ने आँ ख ब द करके ही जवाब िदया।
‘‘आिखर ये सब आपने य िकया द्र? इतनी किठन प्रित ा िकसके िलये ? आिखर य
आपने स पूण भारतवष से इ कीस ित्रय राजाओं का वध िकया?’’ पूिणमा ने द्र से
कई प्र न कर डाले ।
द्र कुछ नहीं बोला।
‘‘म जानती हँ ू द्र, िक अव य ही कोई बहुत ही बड़ा कारण है आपके इस भाँ ित के
प्रित ा को धारण करने के िलये ; आिखर वो कौन सा कारण है द्र?’’ पूिणमा ने एक बार
िफर प्र न िकया।
द्र एक बार िफर मौन ही रहा। वो पूिणमा के प्र न को सु नकर भी उनका उ र नहीं दे
रहा था। पूिणमा को जब इस बात का आभास हो गया िक द्र उसके प्र न के उ र
नहीं दे ना चाहता, तो वो भी मौन हो गयी।
रात के दस ू रे पहर का समय था। द्र की आँ ख म अब तक नींद नहीं थी। पूिणमा के
प्र न ने द्र के दय म एक बे चैनी मचा दी थी। उस व त भले ही द्र ने पूिणमा के
प्र न का उ र नहीं िदया था, िक तु पूिणमा के प्र न द्र के दय पर भार के समान
थे ।
द्र ने अपने बगल म सो रही पूिणमा के मु ख पर एक दृि ट डाली। द्र को पूिणमा का
वो मु ख उस सं सार की सबसे खूबसूरत एवं आकषक छिव लगी। सोती हुई पूिणमा के मु ख
पर त लीनता एवं शाि त के भाव दे खकर द्र को सु खद अनु भव हुआ।
द्र अपने िब तर से उठा और महल से बाहर िनकलकर सीधा िशव मि दर की ओर चल
िदया। रात के उस समय द्र के प्रभु िशव के मि दर म जाने का कारण उसकी मानिसक
अशाि त थी। द्र शीघ्रता से सीिढ़याँ चढ़ते हुए मि दर म पहुँचा। प्रभु िशव की मूित
के सम दं डवत करने के बाद वो प्रभु िशव की मूित के सम ही बै ठ गया। द्र, प्रभु
िशव की मूित को दे ख रहा था और पूिणमा के प्र न के िवषय म सोच रहा था।
‘‘आिखर इस प्रित ा को धारण करने का कारण या था?''
वो वषा ऋतु के समा त हो जाने के बाद के िदन थे । मौसम धीरे -धीरे ठं ढा होने लगा था।
अब धूप शरीर को झुलसाती नहीं थी, और न ही शरीर पसीने से तरबतर रहता था।
वीरभूिम की सीमा पर ि थत उस वन म एक अद्भुत रमणीय माहौल था। पशु -प ी भी
अब बाहर जं गल म िवचरण करने लगे ।
वो एक शा त दोपहर थी। भद्र अपनी झोपड़ी म आराम कर रहे थे । उनका वा य कुछ
अनु िचत था। सु बह से ही उ ह ने कुछ नहीं खाया था। ि मणी ने उ ह कुछ औषिध दी
थी। द्र, झोपड़ी से कुछ दरू ि थत एक पे ड़ पर चढ़ा था और वहीं फल तोड़ कर खा रहा
था। वो न हा बालक अपने साथ हुए उस भालू वाले हादसे को पूरी तरह भूल चु का था,
और अब वो पहले की ही भाँ ित खु द को उसी जं गल म उलझाये हुए था।
ि मणी अपने झोपड़ी के बाहर एक खाट पर बै ठी थी। आज की दोपहर म एक शाि त
थी। वो एक अलसाई गु लाबी ठं ढ की दोपहर थी। वो खाट पर बै ठे-बै ठे थक गयी थी। वो
बाहर उसी खाट पर ले ट गयी। अब उसे मौसम का प्रभाव कह, या उसके रात-िदन
अपन के िलये करने वाले श्रम का प्रभाव, ि मणी को नींद आ गयी, और िफर वो
बाहर वहीं उसी खाट पर ही सो गयी।
ये मौसम िशकार के िलये भी पूरी तरह उपयु त था, और इसीिलये वीरभूिम का नौजवान
राजा कण वज, अपने सै िनक के साथ िशकार करने आया था। कण वज ने राजा बनने के
िलये अपने िपता की ह या वयं के हाथ से ही की थी। वो एक अधमी और अ यायी
राजा था। वो हमे शा भोग-िवलास, वासना, मिदरा एवं अ य दु यसन से िघरा रहता था।
उसके रा य म प्रजा िबलकुल भी प्रस न नहीं थी। वो रा य के लोग के िव
िशकायत िमलने पर उ ह रा य से िनवािसत कर दे ता था; वो उ ह अपना प भी नहीं
रखने दे ता था। भद्र को भी उसने िबना दे खे ही स़जा दी थी। वो अपने िव उठने वाली
हर आवा़ज को दबा दे ता था। कण वज की नीितयाँ दमनकारी थीं।
कण वज, िशकार करने के िलये अपने साथ 1000 सै िनक को ले कर आया था। वो वयं से
िशकार भी नहीं कर पाता था। उसका कोई भी तीर िनशाने पर नहीं लगता था। अपने
जीवन म उसने कभी एक खरगोश का भी िशकार नहीं िकया था, िक तु प्रचािरत तो उसने
ये िकया था िक वो शे र का भी िशकार कर चु का है । सै िनक के ारा मारे गये जानवर को
रा य म ये कहकर प्रचािरत करवाता था िक इस जानवर का िशकार राजा कण वज ने
िकया है ... अपनी वीरता की झठ ू ी शान बघारता था। वो एक अयो य राजा था।
कण वज ने अपने सै िनक को 100-100 के दल म बनाकर पूरे जं गल म भे ज िदया था, और
वयं अपने 100 सै िनक के साथ चल रहा था। उसे अभी तक कोई भी जानवर नहीं िदखा
था। अचानक कण वज की दृि ट झोपड़ी के बाहर खाट पर सोयी हुई ि मणी पर पड़ी।
उस व त ि मणी के व त्र अ यवि थत हो गये थे , इस कारण उसके शरीर का काफी
िह सा िदखाई दे रहा था। िनद्रा म होने के कारण ि मणी को अपने व त्र अ यवि थत
हो जाने की भनक ही नहीं थी। कण वज के मन म बै ठी वासना की लहर िहलोर मारने
लगीं। वो एक पल के िलये भी ि मणी के शरीर से अपनी दृि ट हटा ही नहीं पाया।
धीरे -धीरे उसकी वासना ने उसके सोचने और समझने की शि त को ीण कर िदया। वो
अपने घोड़े से उतरा, और सै िनक को वहीं खड़े होने का आदे श दे कर, वयं ि मणी की
ओर चल िदया। जब वो ि मणी के पास पहुँचा तो अचं िभत रह गया। अभी तक
कण वज ने ि मणी के शरीर के अं ग दे खे थे , और मदहोश हो गया था, ले िकन जब वो
ि मणी के पास पहुँचा और उसने ि मणी का मु ख दे खा तो दं ग रह गया। ि मणी के
मु ख की सु दरता ने कण वज को अधीर कर िदया। वो उस व त केवल ि मणी को
अपनी भोग-वासना को तु ट करने वाली व तु की तरह दे ख रहा था।
कण वज, ये बात भूल चु का था िक वो एक राजा है । वो भले ही वासना और भोग-िवलासी
था, िक तु अभी तक के उसके ये सारे अिन ट काय उसके महल के भीतर तक ही सीिमत
थे ; इस प्रकार िकसी िववािहत त्री के िवषय म ऐसी भ ी सोच और कुछ अिन ट करने
की िह मत करना, ये वो पहली बार कर रहा था।
कण वज ने ि मणी का मु ख दे खा। वो सब कुछ भूलकर उस मु ख को चूमना चाहता था।
वो उस सु ख की क पना कर रहा था, िजसकी अनु भिू त उसे उस मु ख को चूमने के बाद
िमलती। उसने अपनी आँ ख ब द की और अपने होठ को धीरे -धीरे ि मणी के मु ख के
पास ले आया। वो बस अपनी उस अिन ट वासना की इ छा को पूरा ही करने वाला था
िक अचानक उसके अरमान पर पानी िफर गया।
अचानक ही ि मणी को ऐसा लगा, जै से कोई यि त उसके पास खड़ा है । वो तु र त ही
जाग गयी, और जब उसने अपनी आँ ख खोली तो उसने दे खा िक कण वज अपनी आँ ख
ब द िकये हुए उसके मु ख के करीब बै ठा था। एक पल को वो सहम गयी, पर िफर अगले ही
पल वो एक झटके म खाट से उठ गयी। ि मणी के िलये ये एक असु िवधाजनक ि थित
थी।
ि मणी के झटके के साथ खाट से उठने की वजह से उसका क धा कण वज के मु ख पर
लगा। उसे पीड़ा का अनु भव हुआ, िक तु उसने अपने हलक से एक श द भी नहीं
िनकाला। ि मणी जब उठ खड़ी हुई और सामने कण वज को दे खा, तो वो क् रोिधत हो
गयी। उसकी आँ ख क् रोध से लाल हो गई थीं। वो उस नीच पु ष के इराद को भाँप चु की
थी, पर ऐसे व त म भी उसने अपने श द को सँ भाला।
‘‘आप कौन ह, और यहाँ या कर रहे ह?’’ ि मणी अपने क् रोध को िनयं ित्रत करते हुए
बोली। उसने भले ही अपने क् रोध को रोका था, िक तु उसकी आवा़ज का वे ग उसके क् रोध
को य त कर रहा था।
‘‘म वीरभूिम का सम्राट कण वज हँ ,ू और म तु हारे प से मोिहत हो गया हँ ू और तु मसे
िववाह करना चाहता हँ ।ू ’’ कण वज ने जवाब िदया। य िप ि मणी के क् रोध से वो
थोड़ा िवचिलत तो हुआ था, िक तु उसकी वासना ने उसकी बु द्िध से उसका िनयं तर् ण
छीन िलया था। वो बस उस त्री के साथ भोग करना चाहता था।
‘‘आपको ल जा नहीं आती, एक िववािहत त्री के िवषय म ऐसी बात कहते हुए? आप
चाहे जो भी ह , कृपया आप शीघ्र ही यहाँ से प्र थान कर।’’ ि मणी चीखते हुए
बोली। इस बार उसके श द म उसका क् रोध समािहत था। ि मणी की आवा़ज सु नकर
द्र भी च क गया, जो वृ पर बै ठा फल खा रहा था। उसने अपनी ऩजर झोपड़ी की ओर
घु माई।
‘‘हम यहाँ से जाएँ गे तो, पर तु ह अपने भी साथ ले कर।’’ कण वज ने िनल जता से
कहा।
‘‘अब आप अपनी हद पार कर रहे ह! िध कार है आप जै से नीच पु ष पर, जो ि त्रय
का स मान करना भी नहीं जानते । एक िववािहता के प्रित ऐसी धारणा रखने से पूव
आपको अपने ऊपर शम आनी चािहये ।’’ ि मणी चीख पड़ी।
कण वज, ि मणी के ारा िकये गये अपमान से ितलिमला गया था। उसे अपने पौ ष पर
घमं ड था। वो ि मणी की ओर लपका। ि मणी भले ही क् रोिधत थी, िक तु वो जानती
थी िक एक पु ष के बल का सामना करना उसके िलये मु ि कल होगा। वो झोपड़ी की ओर
भागी, िक तु लड़खड़ाकर िगर गयी। उसकी आँ ख से आँ स ू बहने लगे । उसने कण वज को
अपने समीप आते दे खा। वो अपनी बे बसी पर और ज़ोर से रोने लगी। और जब कण वज
उसके शरीर को छन ू े के िलये नीचे झुका, तभी उसकी छाती पर िकसी के पै र का एक तीव्र
प्रहार हुवा। कण वज उस अचानक हुए प्रहार के िलये तै यार नहीं था, अत: वो उस
प्रहार की वजह से नीचे भूिम पर िगर गया।
जब कण वज ने खु द को सँ भालते हुए सामने की ओर दृि ट उठाई तो उसने अपने सामने
खड़े हुए पु ष को दे खा। वो भद्र था। उसका वा य ठीक नहीं था, इसिलये वो झोपड़ी
म सो रहा था, िक तु ि मणी की आवा़ज सु नकर भद्र की आँ ख खु ल गयीं। भद्र बाहर
आ गये थे , और अपनी प नी को भूिम पर िगरा हुआ दे खा और उसकी आँ ख से बहते हुए
आँ स ू दे खकर उ ह उस अिन ट का आभास हो गया था, जो उस यिभचारी राजा ने उनकी
प नी के साथ करने की कोिशश की थी।
कण वज ने अपने सामने खड़े पु ष को यान से दे खा। अपने पहनावे से वो कोई ब्रा ण
लग रहा था, िक तु उसके हाथ म तलवार थी। उसका शरीर, कण वज के शरीर की
अपे ा काफी यादा मजबूत और सु दृढ़ िदख रहा था। उस ब्रा ण के चे हरे पर ते़ ज था।
ऐसा ते़ ज आज तक कण वज ने िकसी भी पु ष म नहीं दे खा था। उसकी आँ ख क् रोध से
जल रही थीं।
‘ या ये मु झ पर आक् रमण करे गा?’ कण वज ने सोचा।
भद्र ने सामने खड़े कण वज को दे खा। भद्र ने उसे पहचान िलया था। उसके बाद भद्र ने
एक ऩजर अपनी प नी ि मणी की ओर डाली, जो ज़मीन पर अचे त पड़ी थी। भद्र,
क् रोध से भड़क गया, और िफर अपनी तलवार को हवा म लहराते हुए कण वज की ओर
झपटा। भद्र ने दायीं ओर से एक ती ण वार िकया, पर कण वज ने िकसी तरह अपनी
तलवार से उस वार को रोक िलया; अिपतु उस वार को रोकने के िलये जब उसने अपनी
तलवार आगे की, तो भद्र के तलवार से टकराने के बाद उसके हाथ काँप गये ।
भद्र ने िफर वार िकया। इस बार बाइं ओर से िकया गया प्रहार था। एक बार िफर
कण वज ने बचने के िलये अपनी तलवार आगे कर दी, िक तु इस बार भद्र के वार का वे ग
सहने की िह मत कण वज के उस प्रयास म नहीं थी। कण वज की तलवार उसके हाथ
से िगर गयी। भद्र ने जब शत् को श त्र िवहीन दे खा तो क गया। वो कुछ सोचने
लगा। ले िकन एक बार िफर ि मणी का चे हरा उसके सामने आ गया। ि मणी की आँ ख
से बहते हुए आँ स ू सूख गये थे , पर भद्र की दृि ट ने उ ह दे ख िलया था। भद्र क् रोध के
कारण चीखा और अपनी तलवार को पूरे वे ग से कण वज के शरीर म घु साने हे तु दौड़ा।
अपनी अव यं भावी मृ यु को दे खकर कण वज डर के मारे जड़ हो गया।
पर भद्र का वो भयानक वार कण वज तक पहुँचा ही नहीं, य िक उससे पहले ही
कण वज के सै िनक ने उस वार को अपने ऊपर ले िलया। भद्र ने इतनी ज़ोर से वार िकया
था िक उसकी तलवार उस सै िनक के पे ट म बहुत भीतर तक धँ स चु की थी। भद्र ने अपनी
तलवार िनकालने की कोिशश की, पर एक बार म अपनी तलवार िनकालने म असफल
रहा।
अचानक ही भद्र के ऊपर पीछे से िकसी ने हमला िकया। वो वार उसके िसर पर िकया
गया था, तलवार की मूठ से । भद्र नीचे िगर गया। वो कण वज के सै िनक से िघर गया
था। कण वज अब िनि चं त था, य िक उसके सै िनक उसकी र ा हे तु वहाँ आ चु के थे ।
इधर ये सब दृ य दे खकर न हा द्र भयभीत हो गया था, िक तु वो शीघ्रता से उस वृ
से उतरकर अपनी माँ और िपता के पास जाना चाहता था था। वो उनकी सहायता करना
चाहता था, और इसी शीघ्रता म उसका पै र शाखा से िफसल गया। वो काफी अिधक
ऊँचाई से िगरा, और इतनी ऊँचाई से िगरने के बाद भी द्र उठकर चलना चाहता था,
िक तु उसके पै र उठ ही नहीं रहे थे । उसके पै र म असहनीय दद हो रहा था। उसके पै र की
हड्डी टू ट चु की थी। वो रो रहा था। उसने एक बार िफर कोिशश करनी चाही, पर तु उसके
पै र िहले ही नहीं; पर हाँ , उसकी इस कोिशश की वजह से उसका दद और यादा बढ़
गया। जब वो अपने पै र पर उठने म असफल रहा तो उसने अपने हाथ के बल रगकर
आगे बढ़ने की कोिशश की। वो अपने दद को दरिकनार करके आगे रग रहा था। हाथ के
बल सरककर आगे बढ़ रहा था। और जब िकसी तरह द्र उन झािड़य को पार करके
बाहर आया तो उसने दे खा,
भद्र बीच म खड़े थे , और कण वज के सै िनक उनकी ओर तलवार िकये हुए थे । भद्र उन
सै िनक से िघरे हुए थे । कुछ सै िनक ने भद्र को पकड़ा हुआ था तािक वो कोई
प्रितिक् रया ना कर पाय और उनके बगल ही ि मणी िगरी हुई पड़ी थीं। कण वज
अपनी तलवार िलये हुए भद्र के ठीक सामने खड़ा था।
‘‘मु झे इस बात से कोई फक नहीं पड़ता िक ये त्री िववािहत है अथवा अिववािहत; म
तु म दोन के प्राण नहीं लूँगा, अगर िसफ एक बार ये त्री वे छा से मे रे साथ भोग करे
तो।’’ कण वज ने मु कुराते हुए कहा। उसकी कुिटल हँ सी ने भद्र के क् रोध को और भी
भड़का िदया।
भद्र अपने आपको उन सै िनक से छुड़ाकर कण वज के ऊपर प्रहार करना चाहते थे ,
िक तु उनका प्रयास असफल रहा, और अपनी इस असफलता और क् रोध म भद्र ने
कण वज के ऊपर थूक िदया, और िफर अगले ही पल कण वज ने अपनी तलवार पूरे वे ग
से भद्र की गदन पर चला दी। भद्र का सर उनके शरीर से नीचे िगर गया। खून का एक
ते़ ज फ वारा सीधे , पास म िगरी हुयी ि मणी के ऊपर िगरा। इतने वे ग से िगरे खून ने
ि मणी को चे तन अव था म ला िदया, पर जब उसने सामने अपने पित का कटा िसर
दे खा, तो वो त ध रह गयी। ि मणी कुछ समझ ही नहीं पा रही थी।
द्र ने जब ये दृ य दे खा, तो उसके मु ख से आवा़ज ही नहीं िनकली। वो चीखना चाहता
था, पर तु उसकी तो जै से आवा़ज ही खो गयी थी। द्र डर गया था। एक बार िफर डर की
वजह से उसकी आवा़ज ब द हो गयी। अपने िपता की मृ यु को दे खकर वो डर गया। अभी
तक वो रगते हुए आगे बढ़ रहा था, िक तु अब वो लु ढ़ककर उन झािड़य म छुप गया।
अपने िपता का गला कटते दे खकर उसमे वहाँ जाने की िह मत न रही। वो अपने प्राण
बचाना चाहता था। वो न हा बालक डर गया।
ि मणी ने जब अपने पित भद्र का कटा हुआ सर दे खा, जो जमीन पर पड़ा था, तब वो
बदहवास हो गइं । उसके बाद उ ह ने भद्र के शरीर की ओर दे खा, जो असीम पीड़ा की
वजह से छटपटा रहा था। अपने पित के शरीर के खून से वो पूरी तरह भीग गई थीं, पर
उ ह ने ये िन चय कर िलया था िक वो अपनी इ जत बचाकर ही रहगी। उनके पित ने
िसफ उनकी मयादा की र ा हे तु अपने प्राण िदये थे , और अब उ ह ने भी सोच िलया था
िक उ ह या करना है ?
ि मणी, दौड़कर झोपड़ी की ओर गइं । कण वज ने जब उ ह झोपड़ी की ओर भागते
दे खा, तो वो भी झोपड़ी की ओर भागा। जब कण वज झोपड़ी के दरवाजे पर पहुँचा तो
उसने दे खा िक ि मणी अपने हाथ म तलवार िलये हुए थी। कण वज ने भी अपनी
तलवार कस कर पकड़ ली। वो तै यार था।
‘‘तु ह मे रे इस शरीर का भोग करना था, तु मने मे रे पित की ह या भी मे रे इसी शरीर के
कारण की, िक तु मरण रखना, यही शरीर तु हारी मृ यु का कारण होगा।’’ ि मणी ने
दृढ़ता से कहा और तलवार अपने पे ट म घु सा दी। वो दद से छटपटा रही थीं िक तु
ि मणी की नहीं, वो तलवार अपने पे ट म घु साती चली गयीं, जब तक िक वो घु सा
सकती थीं... और िफर उसका शरीर शा त हो गया। वो औंधे मुँ ह ही िगर गयी, तलवार की
वजह से उसके शरीर को टे क िमल गया। वो ज़मीन पर नहीं िगरी, और उसके शरीर से
िनकलने वाले र त की धारा सीधे बाहर की ओर जा रही थी। झोपड़ी के मु हाने पर खड़े
कण वज की पादुका, ि मणी के खून से सन गयी थी।
‘‘मूख त्री! इतनी छोटी सी बात के िलये अपने प्राण याग िदये । काश! िक इसके
साथ कुछ समय यतीत कर पाता, तो आनं द ही आ जाता।’’ कण वज ने हँ सते हुए कहा।
वो बाहर आया और अपने सै िनक के साथ उस जगह से प्र थान कर गया। ि मणी के
खून से सनी उसकी पादुका, भूिम पर िनशान बनाती हुई आगे बढ़ रही थी। भद्र का कटा
िसर वै से ही भूिम पर पड़ा था। ि मणी की लाश वै से ही औंधे मुँ ह तलवार से िटकी थी,
और द्र झािड़य म अचे त पड़ा था।
रात हो गयी थी। वो ह की ठं ढ की रात थी। रात का स नाटा तो था ही, साथ म जं गल से
आती झींगुर की आवा़ज उस रात को और भयानक बना रही थी। बीच-बीच म कु े भी रो
रहे थे । शायद उ ह भी एहसास था िक आज िकतना बड़ा अिन ट हुआ है । िसयार की
आवाज म भी आज क णा थी। पर ये सारी आवा़ज उस रात को उतनी भी भयानक नहीं
कर सकती थीं, िजतनी िक वो द्र के िलये थी।
द्र को अभी कुछ दे र पहले होश आया था। िकसी तरह रगते हुए अपने िपता के शरीर
के पास पहुँचा, और वहीं से उसे झोपड़ी म माँ के शरीर से बहता र त भी िदखाई िदया।
वो न हा बालक, िजसके माँ और िपता दोन की लाश उसकी आँ ख के सामने पड़ी ह ,
िजसके पै र की हड्डी भी टू टी हो, जो बे चारा अपने पै र से चलकर अपनी माँ की लाश को
भी सीधा न कर सके। ऐसे ब चे की वे दना को महसूस करना भी किठन है ।
रात के स नाटे म जानवर की आती आवा़ज उस न हे ब चे को डरा रही थीं। द्र डरा
हुआ था। उस रात म उसे सहारा दे ने के िलये कोई नहीं था। ई वर उस ब चे के साथ
इतना िनदय हो जाएँ गे, ऐसा उसने कभी नहीं सोचा था।
द्र रो रहा था। माँ और िपता की अनु पि थित म ये रात उसे अ यिधक डरा रही थी। वो
जानता था िक अब अगर इस जं गल म उसे कुछ हो जाये , तो उसकी र ा करने के िलये न
तो उसके िपता ही जीिवत थे और ना ही उसको सहारा दे ने के िलये उसकी माँ । द्र का
सब कुछ लु ट चु का था। द्र को अपनी माँ चािहये थी। वो ज़ोर-ज़ोर से अपनी माँ को
पु कार रहा था। वो चाहता था िक उसकी माँ उसे इस व त सँ भाले , पर उसकी माँ की तरफ
से कोई प्र यु र नहीं आ रहा था; और भला उस लाश से कैसा प्र यु र आता।
उस व त द्र ने िजस पीड़ा और दद की अनु भिू त की, उसे श द म नहीं ढाला जा
सकता। जब द्र को कोई उ र नहीं िमला, तो वो िफर रोने लगा। आज का िदन उसके
जीवन का सबसे दुखद िदन था। उसके पै र की हड्िडयाँ टू टी थीं। वो अब उस असहनीय
दद को भी नहीं झे ल पा रहा था। वो थक गया था। द्र को इस बात का आभास ही नहीं
हुआ िक कब वो उसी थान पर अचे त हो गया।
द्र की आँ ख जब खु लीं तो उसने अपना िसर िकसी की गोद म पाया। एक जोड़ी आँ ख
उसके मु ख को िनहार रही थीं। वे आँ ख जो थकी हुई सी लग रही थीं। वो आँ ख जो शायद
बहुत दे र से ऐसे ही उसकी ओर टकटकी लगाये हुए थीं। वो आँ ख जो एकदम र त की
तरह लाल थीं... और द्र पहचानता था उन आँ ख को। वो उसके काका थे । वो ित्रय।
सु बह हो चु की थी। पशु -पि य की आवा़ज उस वन म गु ं जायमान हो रही थीं। आज ठं ढ
भी थोड़ा यादा थी। द्र ने अपने पै र म एक बार िफर दद महसूस िकया, पर वो शा त
रहा। िफर उसने दे खा िक उसकी माँ और िपता के प्राण-िवहीन शरीर, खाट पर रखे हुए थे ,
पूरे स मान के साथ। वो उठकर वहाँ जाना चाहता था, िक तु वो बे बस था। उसने िफर
रगने की कोिशश की। उस ित्रय ने जब द्र को इस हालत म दे खा तो उसने अपने
गोद म उठा कर द्र को उसके माँ और िपता के पास ले आया। द्र अब अपनी माँ के
िसर को अपने हाथ म ले कर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। उसका रोना सु नकर उस ित्रय के
आँ ख म भी आँ स ू आ गये । वह ित्रय, जो हमे शा भावहीन रहता था, द्र का रोना
सु नकर वो भी िपघल गया। उस न हे बालक के क् रं दन ने उस पाषाण दय वाले ित्रय
को भी िपघला िदया।
वो ित्रय, द्र के पास आया, और उसने द्र को अपने सीने से लगा िलया।
‘‘रोते नहीं मे रे ब चे !’’ उस ित्रय ने द्र को सहारा िदया।
द्र और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। उस ित्रय के सीने से लगकर द्र को आराम िमला।
काका की आ मीयता ने द्र के दय को शाि त दी थी।
वो ित्रय अपने िमत्र, भद्र के शव के पास खड़ा था, और भावहीन होकर उसकी लाश
को एकटक दे खता रहा। उस ित्रय की आँ ख से आँ स ू अभी भी बह रहे थे ।
उसके बाद वो द्र की तरफ मु ड़ा। उसने द्र के पै र को दे खा, जो बहुत ही बु री तरह
सूजा हुआ था। उसने उसके पै र को अपने हाथ म िलया। द्र दद से छटपटा गया।
‘‘ या ये अ यिधक क ट दे रहा है पु त्र?’’ उस ित्रय ने द्र से पूछा।
‘‘मे रे आं तिरक क ट के आगे तो ये दद कुछ भी नहीं है काका!’’ द्र ने जवाब िदया।
उस ित्रय ने द्र के पै र पर कोई ले प लगाया। अब द्र को दद से थोड़ी राहत थी।
‘‘पु त्र! अब हम तु हारे माता-िपता का अि तम सं कार करना होगा।’’ उस ित्रय ने
कहा।
द्र कुछ नहीं बोला, वो बस अपने माँ और िपता के मु ख को एकटक दे खता रहा, मानो
अपनी आँ ख म वो उनकी छिव को बसा ले ना चाहता हो, य िक अब बस यही याद
उसके साथ रहने वाली थीं।
उसके बाद द्र के माता-िपता का िविधवत् अि तम सं कार हुआ। द्र ने उस ित्रय
की सहायता से अपने माँ और िपता को मु खाि न दी। सारी िविधयाँ द्र ने उस ित्रय
की सहायता से पूरी की।
रात हो चु की थी। द्र अपनी झोपड़ी म बै ठा हुआ था। आज भी रात के उस स नाटे म
झींगुर की आवा़ज और िसयार के क् रं दन की आवा़ज गूँज रही थीं, िक तु आज द्र को
कोई भय नहीं था, य िक उसके काका साथ थे । वे दोन चु पचाप बै ठे हुए थे ।
‘‘ द्र! अब तु म यहाँ नहीं रहोगे , तु म मे रे साथ चलो, वन के उ र की ओर, जहाँ हमारे
जै से और भी लोग ह। पु त्र, तु हारे िपता की इ छा थी िक तु म शा त्र और श त्र दोन
म प्रवीण हो, इसिलये म तु ह श त्र चलाने का प्रिश ण दँ ग ू ा।’’ उस ित्रय ने
खामोशी को तोड़ते हुए कहा।
द्र ने कोई जवाब नहीं िदया, वो बस भूिम की ओर दे ख रहा था।
‘‘पु त्र, जो हो गया उसके बारे म सोचने से कोई लाभ नहीं, अब तु म िसफ ये सोचो िक जो
आगे होने वाला है उसम तु म कैसे अपने कमों से भागीदार बनते हो?’’ उस ित्रय ने
कहना जारी रखा।
‘‘म कुछ नहीं कर सका; मे रे िपता का िसर मे रे सामने ही उस दु ट ने काट िदया और म डर
कर िछप गया; मे री माँ को उस दु ट ने मार िदया, पर म िछपा रहा, लानत है मे रे जीवन
पर।’’ द्र, खु द को कोसते हुए बोला।
‘‘ या तु मने उ ह दे खा था? वो कौन थे ?’’ उस ित्रय ने अधीरता से द्र से प्र न
िकया। और िफर द्र ने उस ित्रय को सारी घटना के िवषय म बता िदया। द्र ने जो
कुछ भी दे खा और सु ना था, वो सब उसने अपने काका के सम कह िदया।
‘‘काका! म एक डरपोक बालक हँ ,ू िजसके सम उसके माँ और िपता की ह या कर दी
गयी, और वो भयभीत होकर िछप गया; मने अपने जीवन को बचाने के िलये अपने िपता
की सहायता नहीं की।’’ द्र रोते -रोते बोला।
‘‘नहीं पु त्र! ऐसा मत सोचो, इसम तु हारी कोई गलती नहीं है , शायद ई वर भी यही
चाहता है िक तु म जीिवत रहकर अपने माँ और िपता के सपन को पूरा करो।’’ उस
ित्रय ने द्र को समझाया।
‘‘पर अपने िपता का गला कटते दे खकर म छुप गया, मे री वजह से उनकी मृ यु हुई।’’
द्र चीखा।
‘‘पु त्र, मान लो अगर तु म वहाँ चले भी जाते तो या होता? राजा के सै िनक तु हारी भी
ह या कर दे ते; िक तु अब तु म सु रि त हो, और अब ये तु म िनधािरत करो िक अपने माँ
और िपता के िलये तु म या कर सकते हो?’’ उस ित्रय ने द्र से कहा।
‘‘म उस राजा के पूरे वं श का नाश कर दँ ग ू ा; म ये प्रित ा ले ता हँ ू िक म पूरी धरती को
ित्रय िवहीन कर दँ ग ू ा।’’ द्र, अपना पूरा ज़ोर लगाकर चीखा। उसकी आँ ख क् रोध से
लाल थीं। आज पहली बार उस ित्रय को द्र के चे हरे पर िकसी यो ा की भाँ ित चमक
िदखी।
‘‘पर या तु म ये सोचते हो िक िसफ प्रित ा कर ले ने भर से ही तु म ये कर सकते हो?
या ये इतना सरल है ?' उस ित्रय ने आ चय भाव से प्र न िकया।
‘‘प्रभु परशु राम ने भी िकया था काका, और आप दे ख ले ना म भी क ँ गा।’’ द्र ने दृढ़ता
से उ र िदया।
‘‘वो ई वर थे ; पु त्र, तु म वयं की तु लना ई वर से नहीं कर सकते ।’’ उस ित्रय ने द्र
को समझाया।
‘‘म ई वर से वयं की तु लना नहीं कर रहा काका, िक तु मु झे ये पता है िक कल जो भी
हुआ, वो अ याय की सीमा को पार कर चु का था, इसिलये अपने माता-िपता के
प्रितशोध हे तु और अपने मन की शाि त हे तु म अपनी प्रित ा पूरी क ँ गा काका, आप
मे री सहायता कर।’’ द्र ने पूरे िव वास से कहा। उसके चे हरे पर ते़ ज था।
‘‘मु झे ये नहीं पता िक तु हारी ये प्रित ा सही है या गलत; मु झे ये भी नहीं पता, िक
या तु म कभी अपनी ये दु कर प्रित ा पूरी कर पाओगे या नहीं? पता नहीं तु हारी ये
प्रित ा तु ह कहाँ ले कर जाये ? िक तु मु झे ये पता है िक तु म अपने िपता की इ छा
ज़ र पूरी करोगे , तु म एक महान यो ा बनोगे , तु म इितहास बनाओगे पु त्र!’’ उस
ित्रय ने गव से कहा।
‘‘पर म अपनी प्रित ा पूरी क ँ गा काका; इस पृ वी को ित्रय िवहीन कर दँ ग ू ा।’’
द्र, िव वास से बोला।
द्र की दृढ़ प्रित ा को रात की ठं ढी हवाओं ने सु ना।
शोर मचाते झींगुर ने सु ना।
रोते िसयार ने सु ना।
भ कते वान ने सु ना।
वन के वृ ने सु ना।
रात के स नाटे ने सु ना।
जं गल के उन सभी प्रािणय ने सु ना, िज ह ने उस िदन होने वाले अनथ को दे खा था, जो
उस अधम के सा ी थे ... उस बालक के प्रितशोध की प्रित ा सबने सु नी।
द्र का मन अब शा त था। उस दु कर प्रित ा की घोषणा के बाद उसे अपने दद और
दु:ख, दोन से आराम िमल रहा था।
‘‘म आपका प्रितशोध लूँगा बाबा!
‘‘म आपका प्रितशोध लूँगा माँ !
द्र ने खु द को िव वास िदलाया।
उस ित्रय ने द्र को दे खा और कहा,
‘‘ई वर जो करता है , अ छे के िलये ही करता है ।'’ और िफर वहीं भूिम पर ले ट गया। वो
अपनी थकान दरू करना चाहता था, य िक कल से वो एक ऐसी प्रित ा को पूण करने म
उस बालक की सहायता करने जा रहा था, जो इितहास को बदलने वाली थी।
द्र की आँ ख म नींद नहीं थी, उसकी आँ ख म जु नून था, उसकी आँ ख म केवल उसी
का चे हरा तै र रहा था, िजसने उसकी दुिनया उजाड़ दी थी, िजसने द्र का सब कुछ छीन
िलया था; िजसने उसको अनाथ कर िदया था... कण वज।
‘‘म उसका वं श ख म कर दँ ग ू ा!’’ द्र बड़बड़ाया।
द्र ने शीघ्रता से अपनी आँ ख खोली, और अपने सोच की दुिनया से बाहर आ गया।
यही थी द्र के जीवन की स चाई, िजसकी वजह से द्र को वो प्रित ा ले नी पड़ी थी।
ये दा ण घटना ही थी, जो द्र के जीवन का स य थी। ये वही स य था, जो द्र ने
प्रभु िशव के मि दर म दे खा था... ये वही स य था, िजसकी वजह से द्र ने अपने जीवन
का प्र ये क पल अपने ये य को पूण करने म लगा िदया था।
द्र ने प्रभु िशव की मूित को प्रणाम िकया और शीघ्रता से मि दर से बाहर आ गया।
वो शीघ्रता से उस थान से वापस जा रहा था।
द्र अब खु ली हवा के नीचे साँस ले रहा था। वो महल के ठीक सामने उस तु लसी के पौधे
के सम खड़ा था, िजसे िव लव ने लगाया था, और िजसके नीचे पु का शव दफन था।
द्र के मि त क म इस व त वो सारे ण घूम रहे थे , जब उसने अपने जीवन म अपने
िप्रयजन को खोया था। उसके माँ -िपता की मृ यु , पु की मृ यु , और िव लव की मृ यु के
दृ य घूम रहे थे । द्र के िलये अब पिरि थित प्रितकू ल थी। अपने िप्रय लोग को खोने
का दद द्र को असहनीय पीड़ा दे रहा था। वो उसी थान पर बै ठ गया और कुछ सोचने
लगा। द्र की आँ ख म आँ स ू थे । िफर द्र को याद आया वो वातालाप, जो उसके और
उसके काका के म य हुआ था।
‘‘काका! म आपकी इस बात से सहमत हँ ू िक ई वर बनना अस भव है , िक तु म तो ई वर
नहीं बनना चाहता, म तो िसफ प्रभु परशु राम की भाँ ित अपना प्रितशोध पूण करना
चाहता हँ ।ू ’’ द्र ने काका से कहा।
‘‘पु त्र! कोई भी प्रितशोध सहज नहीं होता; मरण रखना िक हो सकता है तु ह अपनी
प्रित ा की पूित हे तु जो मू य चु काना पड़े , वो तु म सहन भी न कर पाओ,' काका ने उ र
िदया।
द्र के कान म यही श द गूँज रहे थे ।
‘‘आप स य कहते थे काका, ई वर की बराबरी करने के च कर म मने अपना सब-कुछ खो
िदया।’’ द्र रोते हुए बोला।
सु बह ही द्र अपने घोड़े पर सवार होकर उस थान की ओर जा रहा था, जहाँ उसका
बचपन बीता था। वो वीरभूिम की सीमा पर ि थत जं गल के पूव िदशा की ओर जा रहा
था, जहाँ वो अपने माँ -िपता के साथ रहता था। द्र ने अपनी यात्रा के िवषय म िकसी
को कुछ नहीं बताया था। उसने पूिणमा से भी भट नहीं की थी, य िक उसे आभास था िक
पूिणमा उसे अकेले जाने नहीं दे गी और वयं भी उसके साथ चलने की िजद करे गी। द्र
ने पूिणमा के िलये सं देश छोड़ िदया था िक वो शीघ्र ही लौट कर आये गा।
द्र, शीघ्रता से उस थान की ओर बढ़ा जा रहा था। द्र का घोड़ा पूरे वे ग से उसे
उसकी मं िजल की ओर िलये जा रहा था।
द्र अपने दय म उस ण की क पना करके आनं द का अनु भव कर रहा था, िजस ण
वो उस थान पर पहुँचेगा। वो थान, जहाँ द्र की अनमोल याद बसी हुई थीं। वो थान,
जहाँ द्र के अपने माँ और िपता के साथ िबताए गये असं य खु िशय के पल बीते थे ।
और जब द्र उस थान पर पहुँचा तो वो आ चयचिकत था। उस थान पर आज भी
झोपड़ी थी। वहाँ िकसी की भी उपि थित के िच ह नहीं थे । उस थान से द्र का
भावना मक लगाव था। द्र को अपने बचपन म िबताये गये पल याद आ गये । वो थोड़ा
सा भावु क हो गया।
द्र धीरे -धीरे उस झोपड़ी की ओर बढ़ रहा था, िक तु जब वो झोपड़ी के दरवाजे के पास
पहुँचा तो है रानी के मारे उसकी आँ ख फटी की फटी रह गयीं।
उस झोपड़ी म एक वृ यि त ले टा हुआ था। उस वृ की आँ ख झोपड़ी के दरवाजे की
ओर लगी हुई थीं। द्र पहचानता था उन आँ ख को।
‘काका!’ द्र ने चीख कर कहा और उस झोपड़ी के भीतर आ गया। वो वृ यि त भी
अब द्र को पहचान चु का था।
‘‘काका! आिखर आप य मु झको छोड़कर यहाँ चले आये थे ?’’ द्र ने प्र न िकया।
उस ित्रय ने कोई उ र नहीं िदया। वो बस द्र के मु ख को दे ख रहा था। वो द्र की
छिव से अपनी आँ ख को तर कर ले ना चाह रहे थे ।
‘‘ द्र! तु मने अपनी प्रित ा पूरी की?' उस ित्रय ने प्र न िकया।
‘‘हाँ काका, िक तु अपने प्रितशोध को पूण करने म मने अपना सब कुछ खो िदया। मु झे
लगता था िक अपनी प्रित ा पूरी करने के बाद मे रे दय को राहत िमले गी और मे रा मन
शा त होगा, िक तु ऐसा नहीं हुआ; मे रा दय अब और अभी अिधक अशा त हो गया;
मे रे मन म अब और भी अिधक दु:ख का भाव हो गया।’’ द्र ने उ र िदया।
द्र की बात सु नकर उस ित्रय ने कोई प्रितिक् रया नहीं दी। वो कुछ ण वै से ही मौन
रहा।
‘‘ द्र! म तु ह एक बहुत मह वपूण रह य बताना चाहता हँ ।ू ’’ उस ित्रय ने अचानक
िचं ितत होकर कहा।
‘‘कौन सी बात काका?’’ द्र ने है रानी से प्र न िकया।
‘‘ द्र, तु म ब्रा ण नहीं, वरन एक ित्रय हो।’’ उस ित्रय ने कहा।
‘ या....?’

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