वशीकरण, सम्मोहन व आकर्षण हेतु “उर्वशी-यन्त्र” साधना
इस यन्त्र को चमेली की लकड़ी की कलम से, भोजपत्र पर कुं कु म या
कस्तुरी की स्याही से निर्माण करे।इस यन्त्र की साधना पूर्णिमा की रात्री से करें। रात्री में स्नानादि से पवित्र होकर एकान्त कमरे में आम की लकड़ी के पट्टे पर सफे द वस्त्र बिछावें, स्वयं भी सफे द वस्त्र धारण करें, सफे द आसन पर ही यन्त्र निर्माण व पूजन करने हेतु बैठें । पट्टे पर यन्त्र रखकर धूप-दीपादि से पूजन करें। सफे द पुष्प चढ़ाये। फिर पाँच माला “ॐ सं सौन्दर्योत्तमायै नमः।” नित्य पाँच रात्रि करें। पांचवे दिन रात्री में एक माला देशी घी व सफे द चन्दन के चूरे से हवन करें। हवन में आम की लकड़ी व चमेली की लकड़ी का प्रयोग करें। 2. ॐ वश्य मुखी राज मुखी स्वाहा।। इस मंत्र को 21 माला जाप करके सिद्ध कर ले कोई विधान नहीं है बस किसी भी अमावश्या या पूर्णिमा को सिद्ध करके माला खत्म होने के बाद 3 फूं क पानी पे मारकर पि ले जिससे ये सिद्ध हो जायेगा।। इसके बाद 21 बार पानी पे फूं क मार कर मुँह धोने से जग मोहन होता है जय सिया राम उपरोक्त मंत्र को प्रातः पूजा में भी 11 बार पढ़ कर यदि अपने मुखमंडल पर दोनों हाथ फे र लिया जाए तो सभा में सम्मान भी प्राप्त होता है । 3. अति तीक्ष्ण परी साधना :- ॥ साधना विधि ॥ इस साधना को आपको श्मशान में करना है । यह मात्र 1 दिन की साधना है । आपको पूर्णिमा पर इस साधना को करना होगा , क्योंकि इस दिन यह पवित्र योनिआँ अति शक्तिशाली हो जाती हैं और अपने पूर्ण प्रभाव के साथ सिद्ध होती हैं । आपको करना क्या है कि स्नान करके श्मशान में रात के पूरे 10 बजे प्रवेश करना है । उत्तर दिशा की ओर मुख कर इस साधना को करना होता है । सबसे पहले आसन जाप पढ़ना है और फिर शरीर कीलन मंत्र पढ़कर अपने चारों ओर लोहे की छु री से एक गोल चक्र बनाना है । इसके पश्चात लोहबान की अगरबत्ती जलाकर गुरु एवं गणपति जी का मानस पूजन करना है और उनसे साधना हेतु आज्ञा माँगनी है । अब आपको मंत्र जप प्रारम्भ करना होगा , जिसमें आप रूद्राक्ष की माला का प्रयोग करेंगे जोकि प्राण-प्रतिष्ठित होगी । इस साधना में आसन एवं वस्त्र श्वेत होंगे । आपको लगातार मंत्र जप करते जाना है जब तक कि परी हाज़िर ना हो जाए । जैसे - जैसे आप मंत्र जप करते जाएँगे वैसे - वैसे सारा श्मशान जागृत होता चला जाएगा । कभी आपके सामने अति क्रू र इतर योनिआँ आएगीं और आपके उपर झपटेगीं , तो कभी जंगली जानवर और अन्य जीव आपकी साधना खंडित करने की कोशिश करेंगे । आपको बस किसी भी हालत में उस सुरक्षा चक्र से बाहर नहीं आना है नहीं तो वो इतर योनिआँ आपको नुकसान पहुँचा सकतीं हैं और आप पागल भी हो सकते हैं। अगर आप अपनी साधना से विचलित ना हुए तो कु छ देर के बाद सारा श्मशान शांत हो जाएगा और आपको आसमान से नीचे की ओर आती हुई एक परी नज़र आएगी जो बहुत ही सुंदर होगी । जब वो आपके पास आए तो पहले से लाकर रखे हुए गुलाब के पुष्पों की वर्षा उसके उपर कर दें और उससे वचन माँगे कि " आप मुझे वचन दें कि मैं जब भी इस मंत्र का एक बार उच्चारण करूं गा आपको आना होगा और जो मैं कहूँगा वो करना होगा तथा आपको आजीवन मेरे साथ मेरी प्रेमिका के रूप में रहना पड़ेगा "। इस तरह वो परी आपके वश में हो जाएगी और आप उससे कु छ भी करवा सकते हैं । ॥ मन्त्र ॥ बा हिसार हनसद हिसार जिन्न देवी परी ज़ेर वह एक खाई दूसरी अगन पसारी गर्व दीगर जां मिलाई के असवार धनात ॥ ॥ नोट ॥ साधकों !!! वो परी आपकी हर बात मानेगी पर आपको एक बात का ख्याल रखना है कि उस परी के साथ सम्भोग बिल्कु ल नहीं करना है नहीं तो वो आपको छोड़कर चली जाएगी और फिर कभी सिद्ध नहीं होगी । वो आपको इस दुष्कर्म के बदले श्राप भी दे सकती है । इसलिए वो साधक ही इस साधना को करें जो खुद पर नियंत्रण रख सकें । 4. इतर योनी साधना - विधान – मूलतः ये साधना मिश्रडामर तंत्र से सम्बंधित है. अमावस्या की मध्य रात्रि का प्रयोग इसमें होता है, अर्थात रात्रि के ११.३० से ३ बजे के मध्य इस साधना को किया जाना उचित होगा. वस्त्र व आसन का रंग काला होगा. दिशा दक्षिण होगी. वीरासन का प्रयोग कही ज्यादा सफलतादायक है. नैवेद्य में काले तिलों को भूनकर शहद में मिला कर लड्डू जैसा बना लें,साथ ही उडद के पकौड़े या बड़े की भी व्यवस्था रखें और एक पत्तल के दोनें या मिटटी के दोने में रख दें.. दीपक सरसों के तेल का होगा. बाजोट पर काला ही वस्त्र बिछे गा, और उस पर मिटटी का पात्र स्थापित करना है जिसमें यन्त्र का निर्माण होगा. रात्रि में स्नान कर साधना कक्ष में आसन पर बैठ जाएँ. गुरु पूजन,गणपति पूजन,और भैरव पूजन संपन्न कर लें. रक्षा विधान हेतु सदगुरुदेव के कवच का ११ पाठ अनिवार्य रूप से कर लें. अब उपरोक्त यन्त्र का निर्माण अनामिका ऊँ गली या लोहे की कील से उस मिटटी के पात्र में कर दें और उसके चारों और जल का एक घेरा मूल मंत्र का उच्चारण करते हुए कर बना दें,अर्थात छिड़क दें. और उस यन्त्र के मध्य में मिटटी या लोहे का तेल भरा दीपक स्थापित कर प्रज्वलित कर दें.और भोग का पात्र जो दोना इत्यादि हो सकता है या मिटटी का पात्र हो सकता है.उस प्लेट के सामने रख दें.अब काले हकीक या रुद्राक्ष माला से ५ माला मंत्र जप निम्न मंत्र की संपन्न करें.मंत्र जप में लगभग ३ घंटे लग सकते हैं. मंत्र जप के मध्य कमरे में सरसराहट हो सकती है,उबकाई भरा वातावरण हो जाता है,एक उदासी सी चा सकती है.कई बार तीव्र पेट दर्द या सर दर्द हो जाता है और तीव्र दीर्घ या लघु शंका का अहसास होता है.दरवाजे या खिडकी पर तीव्र पत्रों के गिरने का स्वर सुनाई दे सकता है,इनटू विचलित ना हों.किन्तु साधना में बैठने के बाद जप पूर्ण करके ही उठें . क्यूंकि एक बार उठ जाने पर ये साधना सदैव सदैव के लिए खंडित मानी जाती है और भविष्य में भी ये मंत्र दुबारा सिद्ध नहीं होगा. जप के मध्य में ही धुएं की आकृ ति आपके आस पास दिखने लगती है.जो जप पूर्ण होते ही साक्षात् हो जाती है, और तब उसे वो भोग का पात्र देकर उससे वचन लें लें की वो आपके श्रेष्ट कार्यों में आपका सहयोग ३ सालों तक करेगा,और तब वो अपना कडा या वस्त्र का टु कड़ा आपको देकर अदृश्य हो जाता है,और जब भी भाविओश्य में आपको उसे बुलाना हो तो आप मूल मंत्र का उच्चारण ७ बार उस वस्त्र या कड़े को स्पर्श कर एकांत में करें,वो आपका कार्य पूर्ण कर देगा. ध्यान रखिये अहितकर कार्यों में इसका प्रयोग आप पर विपत्ति ला देगा.जप के बाद पुनः गुरुपूजन,इत्यादि संपन्न कर उठ जाएँ और दुसरे दिन अपने वस्त्र व आसन छोड़कर,वो दीपक,पात्र और बाजोट के वस्त्र को विसर्जित कर दें. कमरे को पुनः स्वच्छ जल से धो दें और निखिल कवच का उच्चारण करते हुए गंगाजल छिड़क कर गूगल धुप दिखा दें. मंत्र:- इरिया रे चिरिया,काला प्रेत रे चिरिया.पितर की शक्ति,काली को गण,कारज करे सरल,धुंआ सो बनकर आ,हवा के संग संग आ,साधन को साकार कर,दिखा अपना रूप,शत्रु डरें कापें थर थर,कारज मोरो कर रे काली को गण,जो कारज ना करें शत्रु ना कांपे तो दुहाई माता कालका की.काली की आन. 5. सांप के विष से बचाव हेतु : चौत्र मास की मेष संक्राति के दिन मसूर की दाल एवं नीम की पत्तियां खाएं। सर्प काट भी लेगा तो विष नहीं चढ़ेगा। इसके अतिरिक्त प्रतिदिन प्रातः काल नीम की पत्तियां चबाकर पानी पीएं और घूमने जाएं, शरीर में विष रोधी क्षमता बढ़ेगी।