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‭नन्ही जान के दो हाथ‬

‭ हानी- इस्मत चुग़ताई‬



‭नाट्यरूपान्तर- राजेश तिवारी‬

‭पत्र:‬

‭ री—‬‭मेहतरानी‬
गो
‭रामावतार—‬‭गोरी का पति‬
‭बूढ़ी मेहतरानी —‬‭गोरी की सास‬
‭रतिराम —‬‭रामावतार का भाई‬
‭अब्बा मिया —‬‭पेशे से जज, घर के मालिक‬
‭अम्मा बेगम—‬‭जज की पत्नी‬
‭नुजहत —‬‭घर की बड़ी बेटी‬
‭सलमा —‬‭घर की छोटी बेटी‬
‭भाईजान—‬‭घर का बेटा‬
‭दीन मुहम्मद —‬‭घर का नौकर‬
‭शागिर्द पेशा‬
‭गांव के लोग‬
‭भीड़‬

‭1‬
‭दृश्य १ :-‬
‭[मंच प्रकाशित होते ही मधुर शहनाई की धुन बज रही है , मंच के एक तरफ से गोरी और रामावतार‬
‭प्रवेश करते हैं। आगे-आगे रामावतार पीछे -पीछे गोरी एक लम्बे डंडे वाले झाड़ू पालकी के मानिंद‬
‭अपने-अपने कं धे पर संभाले हुए मंच पर एं टर करते दिखाई देते हैं। राम अवतार दू ल्हे के जोड़े में होते‬
‭हुए भी मिलिट्री के यूनिफार्म भी पहने हुए है। गोरी एकदम दुल्हन के लिबास में है। जैसे ही उप स्टेज‬
‭के मध्यभाग में दोनों पहुंचते हैं कु छ लोग विंग्स से अचानक अवतरित होते हैं। ये गांव वाले (गोरी के ‬
‭ससुराल) हैं जिस में से समाज के लगभग सभी जातियों, धर्मों, के नुमाइंदे हैं। स्त्री-पुरुष, बूढ़े -जवान‬
‭सभी हैं ]‬
‭भीड़‬‭- रुको रे ... कहाँ मुंह उठाये चले जा रहे हो?‬
‭युवक १‬‭- बे देखता नहीं की गांव की चौहद्दी आ गयी है। क्यों बे रामअवतरवा! तुझे तो पता है‬
‭न गांव के रीति-रिवाज़?‬
‭युवक २‬‭- करनैल जी! बताया नहीं आपनी बहू को सारा गांव भस्म हो जायेगा अगर वो पवित्तर‬
‭नहीं निकलेगी तो ...‬
‭चौधरी‬‭-‬‭(दहाड़ते हुए)‬‭... सुन री ... घूंघटा वाली! अगर तू अपने मायके में किसी मरद के संग‬
‭बियाह से पहिले मुंह काला किया होगा तो गाँव की सरहद पर पाँव रखते ही सारा गाँव भस्म हो‬
‭जाएगा ...‬
‭चौधराइन‬‭- और नाही तो उलटे पाँव लौट जाने में तेरी–मेरी भलाई है।‬
‭[रामावतार एक निगाह गोरी पर डालता है ]‬
‭गोरी-‬‭जी रिवाज़ तो मेरे गाँव का भी है एक...‬
‭चौधराइन‬‭- अच्छा !!! हम भी तो सुनें ...‬
‭गोरी‬‭- मुझे डोली से उतारने के लिए गाँव की वही कुं वारी लड़की आगे बढे़ जो पवित्तर हो ...‬
‭नहीं तो मुझे छू ते ही आपके गाँव में आग लग जाएगी ...‬
‭चौधरी‬‭- ज़बान संभाल के रे ... हमारी सभी लड़किया नेक पारसा हैं। ... कोई भी ये रस्म‬
‭निभा सकती है। ... बढ़ो रे कोई ... बहुतकाम है निपटाने को ... चलते हैं यहाँ से‬
‭[पर कोई नहीं लड़की आगे नहीं बढ़ती है ]‬
‭चौधराइन‬‭- क्या हुआ रे सावित्री ... सांप सूंघ गया के ... बोल रे अपनी छोरी को ... बहू‬
‭उतरायी का रस्म पूरी करे ... सारा दिन यहीं धुप में खड़े रहेंगे क्या ?‬

‭2‬
‭[परन्तु कोई लड़की टस से मस नहीं होती। सभी पुरुष औरतें एक दू सरे से आँख बचाते हुए इधर-उधर‬
‭निकलने की कोशिश करते हैं ]‬
‭गोरी‬‭- चलिए अब मैं खुद ही आ जाती हूँ... मैं पवित्तर ना भी हूँ तो अब आप लोगों के गाँव में‬
‭आग नहीं लगेगी... काहे से की आपकी कोई लड़की पवत्तर नहीं है ... तो मैं आऊं ?‬
‭[सबकी नज़र नीची है ]‬
‭चौधरी‬‭- ठहर अभी ... नियम ये है की तू यहाँ से गाँव तक झाड़ू मारते-मारते ही जाएग।‬
‭समझी ...‬
‭गोरी-‬‭वो तो मेरा काम है ...‬
‭[ गोरी और रामावतार दोनों मंच के अध्भाग तक आते हैं। गोरी और रामावतार दोनों मिलिट्री बिस्तर‬
‭बंद पर बैठ जाते हैं। इश्क़-मुहब्बत करने ही वाले होते हैं की रामावतार की पुकार आ जाती है उसे‬
‭लाम पर जाना होगा ]‬
‭रामावतार‬‭- अभी मेरी शादी रचाये साल भर भी नहीं बीता था, मेरी पुकार आ गयी ... हलाकि‬
‭मैं लाम पर तोप-बन्दू क छोड़ने नहीं जा रहा हूँ। फिर भी सिपाहियों का मैला उठाते-उठाते मुझ‬
‭में भी कु छ सिपाहियाना आन-बान और अकड़ पैदा हो गयी है। मैं कोई कर्नल नहीं हूँ लेकिन‬
‭भूरी वर्दी डाटकर मैं किसी सिपाही से कम भी नहीं लगता हूँ।‬
‭[रामावतार अपने बैग-बिस्तर बंद उठता है और गोरी को मंच पर छोड़कर बायीं विंग में समां जाता है।‬
‭गोरी दुखी है ... रामावतार के पीछे -पीछे लपकती है ]‬

‭------------------अन्धकार------------------‬

‭3‬
‭दृश्य २ :-‬
‭[बूढी मेहतरानी (गोरी की सास) हाथ में एक चिठ्ठी लिए मंच पर आती है। काफी उत्साहित नज़र आ‬
‭रही है। लगभग सभी कोनों में फु दकती-फिरती है। दरअसल वो चिठ्ठी पढ़ने के लिए किसी को ढूंढ रही‬
‭है । दर्शकों की तरफ मुख़ातिब होती है ]‬
‭बूढी मेहतरानी‬‭- मेरे राम की चिठ्ठी आई है , वो लाम पर से वापिस आ रहा है... मेरा एकलौता‬
‭पूत रामावतार लाम पर से ज़िंदा वापिस आ रहा है। ... भइया कोई चिठ्ठी तो बांच देव ...‬
‭[तभी अंदर से अब्बा मियाँ (पेशे से जज और घर के मालिक) मेहतरानी की आवाज़ सुनकर आते हैं।‬
‭इससे पहले घर की दो बेटियां , अम्मा बेगम और उनका हॉकी स्टिक लेकर घूमने वाला बीटा चिठ्ठी‬
‭पढ़ने से इंकार कर चले जा चुके हैं ]‬
‭अब्बा मियां‬‭- ला इधर दे ... जल्दी कर कोर्ट के लिए देर हो रही है। ... चिठ्ठी आ जाने से‬
‭ज़रूरी नहीं की रामअवतरवा आ ही जायेगा। पता नहीं उसकी छु ट्टी की अर्ज़ी मंज़ूर हुई भी‬
‭होगी की नहीं ... तीन साल में १३ चिट्ठियां आ चुकी है। सब में यही लिखा रहता है कि इस बार‬
‭आ रहा है।‬‭[अब्बा मियां चिट्ठी पढ़ते-पढ़ते बीच में दर्शकों से नज़र मिलाकर अपनी बात जोड़ते‬
‭जाते हैं। समान्तर इसके बूढी मेहतरानी भी दर्शकों से अपनी बात/संवाद बोलती रहती है ]‬
‭अब्बा मियां‬‭- जंग ख़त्म हो गयी है। इसलिए रामअवतरवा तीन साल बाद वापिस आ रहा है‬
‭बूढ़ी मेहतरानी‬‭- पचास बरस की हूँ, पर सत्तर की मालूम होती हूँ। दस-पंद्रह कच्चे-पक्के जने,‬
‭उन में से बस रामअवतरवा ही बड़ी मन्नतों-मुरादों से जिया था। आखरी बार जब वर्दी पहनकर‬
‭मेरे पैर छू ने आया था तो क्या शान थी उसकी...‬
‭अब्बा मियां‬‭- जैसे कर्नल ही हो गया था। रामअवतरवा के आने के बाद जो ड्रामा होने की‬
‭उम्मीद है सब उसी पर आस लगाए बैठे हैं। मुमकिन है वो गोरी की करतूत सुने और उसका‬
‭जवान ख़ून हतक से खौल न उठे । आन दे रामावतरवा को!‬

‭------------------अन्धकार ------------------‬

‭4‬
‭दृश्य ३ :-‬
‭[शागिर्द पेशे जैसे भिश्ती, हलवाई, धोभी, माली, बावर्ची, नाई, चपरासी, व अन्य लोग मंच पर नाच रहे ‬
‭हैं ... मस्ती-मज़ाक के मूड में तभी बायीं विंग्स से पायल या घुंघरू के छम-छम की आवाज़ आती है।‬
‭सभी शागिर्द पेशे के लोग ठिठक कर आवाज़ की दिशा की तरफ देखते हैं। छम-छम की गति बढ़ती‬
‭प्रतीत होती है , सभी आगे बढ़ते हैं तभी छम-छम पीछे यानि दाएं विंग से की तरफ से आने लगती है।‬
‭सभी सकपकाये हुए हैं की आवाज़ कहाँ से आ रही है। तभी हाथ में लम्बी झाड़ू और कमर या सर पर‬
‭मैले की टोकरी उठाये गोरी मेहतरानी (बूढ़ी मेहतरानी की पतोहू) मंच पर भूचाल मचती एं टर करती है ‬
‭... दुपट्टा छाती पर ना होकर सर पर घूँघट बनकर लटक रहा है। पीछे एक तरफ सभी शागिर्द पेशे के ‬
‭लोग अपने-अपने हाथों में साबुन, मसक, जलेबी (अपने विभाग के अनुसार) थामे गोरी को एक टक‬
‭घूरे जा रहे हैं ]‬
‭गोरी मेहतरानी‬‭-‬‭(दर्शकों से)‬‭ब्याह कर आई थी तो क्या मुस्मुसी थी मैं। रामअवतरवा... मेरा‬
‭ख़सम ... तौबा तौबा जब तक मेरे राम मेरे वो रहे तब तक मेरा घूंघट फु ट भर लम्बा रहा और‬
‭किसी ने मेरा चाँद सा मुखड़ा ना देखा। जब वो गया तो कै से बिलख-बिलख कर रोई... जैसे‬
‭मेरी मांग का सिंदू र हमेशा के लिए उड़ गया हो ... थोड़े दिन रोई-रोई आखें लिए, सर झुकाये‬
‭मैले की टोकरी धोती रही... फिर आहिस्ता-आहिस्ता मेरे घूंघट की लम्बाई कम होती गयी ...‬
‭[गोरी अपने चेहरे से घूँघट उठती है। शागिर्द पेशे से एक-एक कर गोरी को अलग-अलग अंदाज़ से‬
‭लुभाने की कोशिश करते हैं। जैसे हलवाई इमरती और जलेबी लेकर गोरी के पास आता है , भिश्ती‬
‭पानी का पाइप ही उठा लता है , चपरासी गोरी को यहाँ -वहां सफाई की हिदायत देता है लेकिन मैले‬
‭की टोकरी उठाये उसके पीछे -पीछे चलता रहता है , धोभी, माली, पनवाड़ी, आदि भी गोरी को छे ड़ते‬
‭हैं ... फिर गोरी से जुड़े संवाद भी बोलते जाते हैं ]‬
‭गोरी-‬‭कु छ लोगों का ख़्याल है यह सब बसंत ऋतू का किया धरा है। कु छ लोग कहते हैं की मैं‬
‭हूँ ही छिनाल।‬
‭चपरासी‬‭- राम अवतरवा के जाते ही क़यामत हो गई, कमभख़्त हर वक़्त ही-ही हमेशा‬
‭इठलाना।‬
‭गोरी-‬‭कू ल्हे पर मैले की टोकरी लेकर, कांसे के कड़े छनकती जिधर से निकल जाती लोग‬
‭बदहवास हो जाते।‬
‭धोबी-‬‭धोबी के हाथ से साबुन की पट्टी फिसलकर गिर जाती।‬

‭5‬
‭भिश्ती-‬‭भिश्ती की ढोल बाल्टी कु एं में डू बती चली जाती और रस्सी हाथ से छू ट जाती और‬
‭कभी-कभी पानी की पाइप में खुद ही उलझकर गिर जाता।‬
‭चपरासी-‬‭चपरासियों की बिल्ला लगी पगड़ियां ढीली हो कर गर्दन में झूलने लगती‬
‭बावर्ची-‬‭बावर्ची की नज़र तवे से सुलगती रोटी से उचट जाती‬
‭गोरी-‬‭जब ये सारे परलय लिए घूंघट में से गोलियां दागती तो शागिर्द पेशे लेकर मोहल्ले वाले‬
‭सभी एक बेजान लाश के तरह सकते में आ जाते।‬
‭[ सभी एक दू सरे पर ताना जनी करने लगते हैं ]‬
‭बावर्ची-‬‭(हलवाई से)‬‭क्यों बे ससुर के नाती। सारी उम्र गुड़ वाली चौटहिया जलेबी खा के ‬
‭कला-कला सीरा हगते रहे और गोरी को खिलाने चले थे चीनी वाली इमरती ... अगली बार‬
‭रसगुल्ला लेकर जाना हंडिया वाली ...‬
‭हलवाई-‬‭अबे वो खाकपड़े जनखे ... तेरी तीसरी बीवी पर हिस्टेरिया के दौरे पड़ते रहे हैं, वो‬
‭तो संभलता नहीं, चला था गोरी मेहतरानी की टोकरी का मैला चखने ...‬
‭[बाकि सब शागिर्द पेशे वाले हँसते हैं , अब उन पर बावर्ची, हलवाई, दोनों मिलकर तनाजनि की बौदार‬
‭कर देते हैं ]‬
‭बावर्ची-‬‭सुन बे वो सरकं डे ... रं गरे ज़ की नाजायज़ औलाद! क्रॉस ब्रीड धोबी का कु त्ता! तू भी‬
‭तो गया था गोरी को साबुन मलने, साले मसल के सर्फ़ का पाउडर बना दूंगा तुझे... समझा! न‬
‭घर का रहेगा न घाट का...‬
‭धोबी-‬‭अबे वो मुग़लिया खानसामों के हरम की पैदाइश! ज़्यादा चपड़-चपड़ की ना तो यहीं‬
‭साबुन की पट्टी ठू स दूंगा अभी ... सारी उम्र दस्त-पेचिस लिए सरकारी खैराती हस्पताल के ‬
‭संडास में पड़ा रहेगा।‬
‭चपरासी-‬‭दे ख बे चिकने! सर्कार को तो गली देयो मत‬
‭पनवाड़ी-‬‭और कभी-न-कभी संडास साफ़ करने आएगी ही गोरी!‬
‭(एक ठहाका लगता है )‬
‭चपरासी-‬‭सफाई अभियान सरकार ने ले रखी है।‬
‭भिश्ती-‬‭मतलब गोरी मेहतरानी क्या अब सरकारनी हो गयी है ?‬

‭6‬
‭[एक साम्मूहिक ठहाका उभरता है। एक औरत (प्रत्यात्मक) मंच पर आती है और तमाम शागिर्द पेशे‬
‭की बीवियों की नुमाइन्दगी के तौर पर संवाद बोलती ह। मंच पर सिर्फ औरत और गोरी ही रह जाते हैं ‬
‭बाकि सभी वहां से चले जाते हैं ]‬

‭औरत-‬‭... इन सबकी बीवियां जो गोरी को अपना सौतन ही तो मान बैठी हैं सारा गुस्सा अपने‬
‭बच्चों पर उतारती हैं। चपरासन छाती से चिमटे लौंडे को बेबात धमूके जड़ने लगती है। बावर्ची‬
‭की तीसरी बीवी पर हिस्टेरिया के दौरे पड़ने लग जाते हैं। धोबन मरे गुस्से के कलफ़ की कुं ण्डी‬
‭लौट देती। भिश्ती की बीवी मसक का सारा पानी रात के दो-दो बजे उठकर अपने ऊपर उंडेल‬
‭लेती है। पनवाड़ी की बीवी ने तो एक दिन गोरी के लिए बांधे बीड़े में सिन्दू र ही मिला दिया था।‬
‭लेकिन सांडनी गोरी पर कोई असर नहीं हुआ।‬‭[औरत चली‬‭जाती है ]‬

‭गोरी-‬‭नाम की गोरी हूँ। या कमभख़्त सियाही बनाने वाली कारखाना हूँ। जैसे उलटे तवे पर‬
‭किसी फु हड़िया ने पराठे तलकर उसे चमकता हुआ ही छोड़ दिया हो। चौड़ी फु कना सी नाक,‬
‭फै ला हुआ दहाना, दांत मांझने का तोह मेरी सात पुश्तों ने फै शन ही छोड़ दिया हो। आखों में‬
‭टनों काजल थोपने के बाद भी मेरी दायी आँख का भैंगापन छु पा नही। फिर भी टेढ़ी आँख से‬
‭ज़हरीले तीर अपने निशाने पर बैठ ही जाते हैं। कमर है की कमरा ... कु ठला है। लोगों के ‬
‭जूठन खा-खाकर दुम्बा हो रही हूँ। मेरे नाज़ुक़ चौड़े भैंस के से खुर, जिधर से निकल जाती हूँ‬
‭कड़वे तेल की सड़ांध छोड़ जाती हूँ। हाँ अलबत्ता मेरी आवाज़ में बाला की कू क है।‬
‭तीज-त्यौहार पर जब लेहक कर नौटंकी गाती हूँ तो मेरी आवाज़ ऊं ची लहराती चली जाती ...‬
‭[किसी नौटंकी की "बहरतवील" गाती है ]‬

‭------------------अन्धकार ------------------‬

‭7‬
‭दृश्य ४ :-‬
‭[शागिर्द पेशे की सभी औरतों से लेकर मोहल्ले की अन्य मर्दों की बीवियां यहाँ तक की घर की भावजों‬
‭का एक वफ़द अम्मा के दरबार में अपनी-अपनी शिकायतें लेकर हाज़िर हुई। सभी गोरी को कोसने दे ‬
‭रही हैं। "पति रक्षक कमेटी" बनाई जाये, पर विचार हुआ सारी औरतें स्तरानुसार ज़मीन, पीढ़ियों और‬
‭पलंग की अदवाइन पर बैठी, पान के टुकड़े तकसीम हुए और बुढ़िया को बुलाया गया, कु छ बीवियों ने‬
‭रो-रो कर बयान दे -देकर अपना दुखड़ा रोया]‬
‭औरत १-‬‭कछु कीजो अम्मा मालकिन! ये गोरी से हमें बचावो... मरखनी लम्बी-लम्बी सींघो‬
‭वाली बिजार है ...‬
‭औरत २-‬‭अरे नेवली है नेवली, छु ट्टा फिरती रहती है‬
‭औरत ३-‬‭नेवली भी है और नागिन भी ... कलमुही करै तिन कहीं की ...‬
‭भावज १-‬‭कु त्तिया पाखाना साफ़ करने आती है और हमारा खाना ख़राब करके चल देती है।‬
‭भावज २-‬‭जब तक कमरे में झाड़ू -बुहारू करती, हम अपने बच्चों को दू ध नहीं पीला सकते...‬
‭भागती हैं अंदर कमरे में बच्चे के मुंह से छाती छीनकर की कहीं यह डायन हमारे शौहरों पर‬
‭टोना-टोटका न कर रही हो।‬
‭[तभी दो औरतें सुर में रोना शुरू करती हैं। बाकायदा बयान दे -देकर...]‬
‭अम्मा-‬‭खामोश... बिलकु ल शोर नहीं। वो बावर्चिन! अपने बच्चे के मुंह में छाती ठू स... चुप‬
‭करवा उसे... हं ... तो अचानक इतनी लाड़ली मेहतरानी की बहु गोरी लोगों की आँखों का‬
‭काँ टा बन गयी। ...‬‭(बूढी मेहतरानी की ओर मुखातिब लेकर)‬‭क्यों री चुड़ैल, तूने कामुक बहु‬
‭को छू ट दे रखी है की वो हमारी छाती पर कोदो दलती फिरे ?‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭का करूँ बेगम साब‬
‭अम्मा-‬‭अरे इरादा क्या है तेरा? क्या मुंह कला करायेगी?‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭हरामखोर को चार चोट की मार भी दई मैं तो, पर रांड मेरे तो बस की नाय।‬
‭आज तो रोटी भी खाने को ना दई।‬
‭औरत १-‬‭अरे रोटी की क्या कमी है उसे... हमारे वो तो पहले गोरी देवी को भोग लगाकर ही‬
‭अन्न का दाना मुंह में डालते हैं।‬
‭औरत २-‬‭मालपुआ-रसमलाई उड़ावे है दिन भर... झाड़ू -बुहारू तो आता ही नई उसे, पता‬
‭नहीं कहाँ से उठा लाई...‬

‭8‬
‭औरत ३-‬‭बच्चन की गन्दगी से नाक-भौं सिकोड़ती है और उनके बापुओं को छाती तक से‬
‭लगाने में कोई गुरे ज़ नहीं...‬
‭अम्मा-‬‭सुन रही है रे ... गोरी के तो करतूत बहुत ही संगीन हैं। कु छ तो करना पड़ेगा ...‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭बेगम साब, आप जैसी बताओ वैसी करने में मोये ना थोड़ई, पर क्या करु,‬
‭क्या राँड का टेटुआ दबाये दऊँ ...‬
‭सब-‬‭दबा दे, दबा दे, पाप कटे ...‬
‭अम्मा-‬‭अरे नहीं अब इतना भी नहीं कि मुई को तो तू मैके फिकवा दे‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭बेगम साब, कहीं ऐसा हो सके है । अगर इसे मैके भेज दिया तो इसका बाप‬
‭फौरन दू सरे मेहतर के हाथ बेच देगा ।‬
‭अम्मा-‬‭ऐ…?‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭हां ! सारी उम्र की कमाई पूरे २०,००० झोके हैं तब मुश्टंडी हाथ आई है।‬
‭औरत १-‬‭अरे तो अब तू बेच दे इसको किसी लूले-लंगड़े के हाथ, बड़े पैसे होते हैं उनके पास‬
‭औरत २-‬‭हां हां, इतने पैसे में तो दो–चार गाय आ जायेगी, मज़े से भर कलसी दू ध और देंगी।‬
‭ये रांड तो दुलत्तीया ही देती होगी।‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭वो तो है दो हाथ वाली है पर चार आदमियों का काम निपटाती है। गोरी सिर्फ ‬
‭बेटे के बिस्तर ही नहीं सजाती है। राम अवतार के जाने के बाद मुझसे क्या इतना काम‬
‭संभलता?‬
‭अम्मा-‬‭अरी निगोड़ी राम अवतार को लाम पर गए २ साल हो गए हैं। मुहल्ले भर के बिस्तरों‬
‭की ज़ीनत ही तो बनी है गोरी।‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭राम अवतरवा का सारा तनख्वाह बनिये का उधार चुकाने में ही डू ब जाता है।‬
‭ब्याह पर जो खर्च किए थे, जजमान खिलाए थे, बिरादरी को राज़ी किया था, ये सब खर्च कहां‬
‭से आएगा।‬
‭अम्मा-‬‭भाड़ में जाए खर्चा खर्चा खर्चा दू सरी ले आ कहीं से‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭जी ऐसी मोटी ताज़ी बहु अब ४०,००० से कम में ना मिलेगी। ३०,००० का‬
‭माल-किसका दिल है फें क दे? पूरी कोठी के सफाई के बाद आस पास की चार कोठियों का‬
‭काम निपटाती है। रांड काम में चौकस है वैसे‬

‭9‬
‭अम्मा बेगम-‬‭फिर भी अगर इस लुच्ची का जल्द-अ-जल्द कु छ इंतज़ाम नहीं किया गया तो‬
‭तुझे कोठी के अहाते में रहने नहीं दिया जाएगा‬

‭[इस पर मारे गुस्से के बूढ़ी मेहतरानी गोरी का झोंटा पकड़ के लात घूंसे थप्पड़ जड़ती जाती है , तभी‬
‭घर का नौकर दीन मुहम्मद चिल्लाता हुआ आता है ]‬
‭गोरी-‬‭और मारो... ज़र ख़रीद जो हूं २०,००० जो खर्चे हैं मुझपर... धंधा और करवा लो कोठे ‬
‭पर बिठाकर... ऊं ऊं ‬
‭लड़की-‬‭और दू सरे दिन जो बवाल हुआ, सारे मामले की धज्जियां बिखेर दी गई... बावर्ची,‬
‭भिश्ती, धोबी, चपरासियों ने अपनी बीवियों की खूब मरम्मत की, यहां तक कि मेरी सभ्य‬
‭भाभियों और शरीफ भाइयों में खट पट। भाभियों के मैके तार जाने लगे। गरज बहु हरे –भरे ‬
‭खानदान के लिए सुई का कांटा बन गई...‬
‭दीन मुहम्मद-‬‭बीबी जी अम्मा! ये देखिए पिछवाड़े मेहंदी के तले मारके गाड़ दिया है इसने‬
‭अम्मा बेगम-‬‭क्या मेहंदी के तले? चल निकल अभी यहां से… देखता नहीं अभी यहां औरतों की‬
‭मीटिंग चल रही है‬
‭[सारा माहौल स्तबद्ध है , नुज़हत और सलमा दोनो बहने अम्मा से चिमट जाती हैं। दीन मुहम्मद चला‬
‭जाता है ]‬
‭अम्मा बेगम-‬‭आन दे रामावतरवा को!‬
‭------------------अन्धकार ------------------‬

‭10‬
‭दृश्य ५ :-‬
‭[दो बहने सलमा और नुज़हत डरी सहमी मंच पर आती हैं , सलमा कम बोलती है , वो कभी कभी खो‬
‭सी जाती है और आने वाले नतीजे से भयभीत और परे शान भी है ]‬
‭सलमा-‬‭तो आपा, फिर अब क्या होगा? अब्बा सुनेंगे तो बस अंधेर हो जायेगा‬
‭नुज़हत-‬‭तो तुम समझती हो ये बात छिपी रहेगी? अम्मा को तो कल ही शक हुआ था‬
‭सलमा-‬‭हां आपा छिपने वाली बात तो नही, गोरी की सास तो उसकी जान ही ले लेगी‬
‭नुज़हत-‬‭हां गोरी ने किसी को बताया भी तो नहीं कै सी पक्की है‬
‭सलमा-‬‭पिछली बार जब दीन मुहम्मद वाला किस्सा हुआ था, तो भी चुपके से तोप ताप दिया‬
‭था‬
‭नुज़हत‬‭- हां उस बेचारे की इतनी तो तनख्वाह है‬
‭सलमा‬‭- भाईजान पुलिस में दे देंगे गोरी को तो… छोड़ने वाले नहीं है… पुलिस के नाम से तो‬
‭मेरा जी कांपता है‬
‭नुज़हत‬‭- और क्या पुलिस किसी की नही होती तुम्हें याद है, नन्हू की बहु ने जब हंसुली चुराई‬
‭थी तो दोनो गए थे जेल खाने‬
‭सलमा‬‭- हथकड़ियां डालकर ले जाते हैं, क्यों आपा?‬
‭नुज़हत‬‭- हथकड़ियां और बेड़ियां‬
‭सलमा‬‭- लोहे की होती है न?‬
‭नुज़हत‬‭- पक्के फ़ौलादी लोहे की‬
‭सलमा‬‭- फिर कै से उतरती होंगी, मर जाते होंगे तभी उतरती होंगी।‬
‭नुज़हत‬‭- हं… क्या करे गी बेचारी गोरी?‬
‭सलमा‬‭- और क्या... बेचारी… मज़ाक थोड़ी ही है। उसने गाड़ा किस सफाई से बेचारे को...‬
‭हिम्मत तो देखो, हमें भी नहीं बताया‬
‭नुज़हत‬‭- उसने किसी को नहीं बताया‬
‭सलमा‬‭- कै सी बेरहम है, बेचारा बच्चा... क्या बहुत मुश्किल से जान निकली होगी आपा...‬
‭नुज़हत‬‭- एक उंगली के इशारे से बेचारा ख़त्म हो गया होगा‬
‭सलमा‬‭- हाय हाय उसका जी भी न दुखा... चलो चलते हैं, गोरी से ही पूछते हैं, कै से मारा‬
‭उसने?‬

‭11‬
‭[सलमा और नुज़हत मंच से निकलती हैं तभी एक लड़की दोनो को लगभग चीरती हुई मंच पर आती‬
‭है , तीनों की नज़र भी मिलती है , लड़की मुस्कु राती है लेकिन सलमा, नुज़हत की खास प्रतिक्रिया नहीं‬
‭होती है , दोनों एक दू सरे को लगभग खीचती हुई मंच से गायब हो जाती हैं। लड़की एक स्पॉट में आती‬
‭है जहां पहले से गोरी डरी सहमी अधमरी सी पड़ी है। लड़की संवाद बोलती है ]‬
‭लड़की‬‭- गोरी है तो नौकरानी, मेहतरानी, और मैं एक लड़की... पर बचपन से ही मेरी दोस्त‬
‭रही है। वो पूरी आज़ादी है और मैं आज़ाद भी नहीं... मज़े में तो वही है। वो पर्दा नहीं करती,‬
‭मज़े से दुपट्टा फें ककर आम के पेड़ पर चढ़ जाती और कू दती-फांदती... और हम मलमल की‬
‭ओढ़नियां संभालने में ही दिन भर busy रहते... बाहर कदम रखना तो जुर्म है... ये गोरी ही है‬
‭जो कभी कभी हम पर तरस खाकर कोयल मारी अमियां खिड़की से अंदर फें क देती। और‬
‭अब गोरी पर ये विपदा आ पड़ी है। कोयल सय्याद के कब्ज़े में है।‬
‭[लड़की मंच से चली जाती है और उसकी जगह सलमा और नुज़हत ले लेती हैं , गोरी उन्हें देखकर‬
‭सहम जाती है ]‬
‭सलमा‬‭- गोरी! ऐ गोरी कै सा है जी?‬
‭नुज़हत‬‭- दर्द अब भी है या गया? बुखार भी है ?‬
‭सलमा‬‭- अपनी सास से बोल के हकीम साहब के यहां से दवा क्यों नहीं मंगा लेती‬
‭गोरी‬‭- दवा, वो तो मुझे ज़हर भी लाकर देगी‬
‭नुज़हत‬‭- हां गरीब की लड़की मरती हो तो कोई भी दवा लाकर ना दे, हद है ज़ुल्म की‬
‭सलमा‬‭- मगर कब तक छिपायेगी, मिट्टी भी तो तूने ठीक से नहीं डाली‬
‭गोरी‬‭- क्या... तो क्या सबको मालूम हो गया? नुज़हत बी? हो हो हो (रोती है)‬
‭सलमा‬‭- अब बस हम से मत बनो, हमें सब मालूम है ।‬
‭नुज़हत‬‭- हम पिछवाड़े जाकर कल देख आए हैं‬
‭सलमा‬‭- और तुझे उस निगोड़े नौकर दीन मुहम्मद की कमीज़ मिली थी, कमीज़ का कोना‬
‭दिखाई दे रहा था।‬
‭नुज़हत‬‭- अरे किसी चीथड़े में लपेट दिया होता, मेरे तो रोंगटे खड़े हो गए थे, बेचारे बच्चे की‬
‭गर्दन टेढ़ी हो गई थी‬
‭गोरी-‬‭फिर सलमा बी! आपने के ह दिया होगा सब से? हाय मेरी अम्मा‬

‭12‬
‭नुज़हत-‬‭हम ऐसे छिछोरे नहीं हैं गोरी, तेरी शिकायत कै से कर देते, जबकि हमें मालूम है कि‬
‭तू अके ली कसूरवार नहीं है।‬
‭गोरी‬‭- क्या करू बीबी जी, मन करता है अपना गला घोट लूं‬
‭नुज़हत‬‭- हैं हैं, क्या बातें मुंह से निकालती है।‬
‭गोरी‬‭- बस बीजी, दादी बी की पिटारी से ज़रा सी अफ़ीम ला दीजिए, सच मुच खाकर सोई रहूं‬
‭नुज़हत‬‭- नहीं गोरी, खुदकु शी हराम है... लगता है बात दब दबा गई, किसी को पता नहीं‬
‭चलेगा और तू अच्छी हो जायेगी।‬
‭गोरी‬‭- क्या करू अच्छी होकर? दिन रात की जूतियों से तो मौत ही भली।‬
‭सलमा‬‭- मगर मैं पूछती हूं तूने मारा कै से? ऐ हे ज़रा सा था‬
‭गोरी‬‭- मैंने... हो... हो...‬‭(रोने लगती है )‬
‭नुज़हत‬‭- चुप कर सलमा, बेचारी का दिल दुखाती है। चुप चुप शायद अम्मा आ रही है।‬

‭[दोनो दरवाज़े के पीछे छु प जाती हैं। अम्मा बिना इधर उधर ध्यान दिए दू सरे विंग्स में निकल जाती है ]‬
‭नुज़हत‬‭- चल चल हम भी चलती हैं यहां से‬
‭[ तभी भाईजान हाथ में हॉकी स्टिक लिए अचानक प्रकट हो जाते हैं , जो बहुत देर से तीनों की बातें‬
‭सुन रहे थे]‬
‭सलमा-नुज़हत‬‭-‬‭(एक साथ चौंककर)‬‭भाईजान आप?‬
‭भाईजान‬‭- स्टिक में कड़वा तेल मलने आया था। क्यों?‬
‭सलमा‬‭- लाइए हम लगा देते हैं‬‭(जल्दी से सलमा हॉकी छीन लेती है )‬
‭भाईजान‬‭- ये लड़कियों के बस की बात नहीं है... मक्खन नहीं लगाना है परांठे पर‬
‭नुज़हत‬‭- अब ये क्या बात हुई भला... कभी दिखाना एक दिन रोटी बनाकर‬
‭भाईजान‬‭- वो‬‭(धमकाकर)‬‭सब सुन लिया है, क्या साजिशें हो रही हैं।‬
‭सलमा‬‭- क्या सुन लिया है भाईजान?‬
‭भाईजान‬‭- कु छ नहीं बस दीन मुहम्मद की कमीज़ गायब हो गई है, और, कमीज़ यहां गोदाम‬
‭में तो होगी नहीं‬
‭सलमा‬‭- हां और नहीं तो क्या‬

‭13‬
‭भाईजान‬‭- यहीं आ रहा था, वो तो मैने ही माना कर दिया, सोचा मैं खुद ही लगा लेता हूं तेल‬
‭अपनी स्टिक पर‬
‭नुज़हत‬‭- तो अब जाओ भाईजान‬
‭भाईजान‬‭- तो अब लाओ मेरी स्टिक‬‭(सलमा के कान में कु छ कहता है )‬
‭सलमा‬‭- क्या... तो क्या आप बहुत देर से खड़े थे?‬
‭भाईजान‬‭- दीन मुहम्मद की कमीज़... मेहंदी के पेड़ के नीचे... पिछवाड़े‬‭(अचानक धमकाते‬
‭हुए)‬‭दे खो सच सच बता दो वरना अभी अम्मी से जाकर कहता हूं... अम्मी...‬
‭सलमा‬‭- मेरे अच्छे भाईजान, ये गोरी बेचारी‬
‭भाईजान‬‭- बेचारी, सुअरनी है गोरी... मेरे सारे जूते पलंग के नीचे फें क देती है। इसका वश‬
‭चलता तो मेरे जूते ही गाड़ आती, वो तो... इसकी तो खाल खिंचवा लूंगा एक दिन‬
‭नुज़हत‬‭- नहीं भाईजान! आप कसम खाइए कि किसी से नहीं कहेंगे‬‭(प्यार से भाईजान के गले में‬
‭बाहें डाल देती है )‬
‭भाईजान‬‭- हटो... नहीं खाता कसम–वसम, मत बताओ हम सब जानते हैं, अभी से नहीं कई‬
‭दिन से...‬
‭गोरी‬‭- हाय मेरी अम्मा‬‭(फू ट कर रोने लगती है )‬
‭सलमा‬‭- भाईजान हमारा मरा मुंह देखें, जो किसी से कहें, हम सब बता देंगे। बात ये है… कल‬
‭शाम को… अब्बा जान क्लब गए थे और अम्मी सो रही थीं‬
‭भाईजान‬‭- हूं, तो अब क्या उन्हें पता नही चल जायेगा‬
‭सलमा‬‭- मगर आप ना कहिएगा, आपको रज़िया आपा की कसम‬
‭भाईजान‬‭- रज़िया, है दुष्ट , हटो! कौन रज़िया? हटो हम जा रहे हैं‬
‭नुज़हत‬‭- भाईजान लेकिन आप प्लीज किसी से कु छ नहीं कहेंगे‬
‭[भाईजान चले जाते हैं ]‬
‭सलमा‬‭- ये भाई किसी के नहीं होते, स्वैटर बुनवाये, बटन टकवाएं , वक्त बेवक्त अंडे तलवायें,‬
‭रुपया उधार ले जाये, और कभी भूल कर वापिस न करें ‬
‭[तभी बूढ़ी मेहतरानी झाड़ू लगाने आती है ]‬
‭नुज़हत‬‭- इसका तो बुखार उतरता ही नहीं, तुम कु छ करती क्यों नहीं?‬

‭14‬
‭बूढ़ी‬‭मेहतरानी‬‭- अरे बेटा क्या करू, हरामखोर ने तो मुझे कहीं का नहीं रखा, जहां जहां‬
‭नौकरी की इसी के गुणों से निकली गई... घड़ी भर को चैन नहीं‬
‭नुज़हत‬‭- मगर तुम चाहो कि ये मर जाए, तो तुम भी नहीं छू टोगी‬
‭बूढ़ी मेहतरानी‬‭- पाप ही कट जाए, कालमुही ने कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रखा...‬
‭थानेदारनी तो मुझे अब रखने को कहती है, पर इस कामिनी के मारे कहीं नहीं जा सकती ।‬
‭गोरी‬‭- तो ज़हर दे दे ना मुझे, हो हो हो‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭अरे मैं क्यों ज़हर दूंगी, जेल जायेगी और वहीं सड़-सड़ के मरे गी। हटो बीबी‬
‭मुझे झाड़ू लगाने दो... राम अवतरवा लाम पर घट रहा है और ये यहां छाती पर मूंग दल रही‬
‭है ।‬
‭[तभी अम्मा बी अचानक आ धमकती हैं। दोनो बेटियों को गोदाम में देखकर उनका माथा ठनक जाता‬
‭है , तभी नज़र गोरी पर पड़ती है ]‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭चलो हटो बी, झाड़ू लगाने दो‬
‭अम्मा‬‭बेगम‬‭-‬‭(सलमा, नुज़हत को डांटते हुए)‬‭ये क्या हो रहा है यहां, नुज़हत! कितनी दफा कहा‬
‭है शरीफ ज़ादिया रज़ीलों-कमीनों के पास नहीं उठती बैठती... जब देखो, सर जोड़े बातें हो‬
‭रहीं हैं, जब देखो दुखड़े रोए जा रहे हैं... चलो निकलो यहां से... उई इसे क्या हुआ? लाश‬
‭बनी पड़ी है बन्नो?‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭जी बुखार है कमबख्त को‬
‭अम्मा बेगम-‬‭बुखार तो नहीं मालूम होता, खासा तबाक सा चेहरा बना रखा है... काम निपटा‬
‭और निकल यहां से...‬‭(गोरी से)‬‭तू नहीं जायेगी किसी के कमरे में... समझी... अहाते तक‬
‭रहियो‬
‭[अम्मा और भी कई हिदायतें देकर चली जाती है तभी दीन मुहम्मद अपनी मां के साथ आ टपकता है।‬
‭दीन मुहम्मद की मां खास उस किस्म की नौकरानी है जो शागिर्द पेशे में क्या चल रहा है पर नज़र‬
‭रखती है और अम्मा बी जैसी बड़ी बेगमों से चुगली करती रहती है ]‬
‭दीन मुहम्मद-‬‭ये देखिये मेरी कमीज़ में लपेटकर पिछवाड़े मेहँदी के पीछे गाड़ आयी थी‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭चल झूठे जैसे खुद बड़ा मासूम है‬
‭दीन मुहम्मद‬‭- तो क्या मैंने मारा है... वाह और फिर अपनी ही कमीज़ में लपेट भी देता कि‬
‭झट पकड़ा जाऊं ... बीबी जी ये गोरी ने गाड़ा है‬

‭15‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭चल नामुराद, तुझे कै से मालूम मेरी बच्ची ने गाड़ा है? तेरी अम्मा-बहना ने‬
‭गाड़ा होगा... मेरी लौडिया के सर मढ़ रहा है‬
‭दीन मुहम्मद-‬‭मैं शर्त बद सकता हूँ, इसी का काम है ये , यह देखिये मेरी कमीज़ फाड़ भी‬
‭डाली... जाने दू सरी आस्तीन कहाँ गयी?‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭हरामखोर उसी का नाम लिए जाता है, परसो से तो वो पड़ी मर रही है ...‬
‭सारा काम तो मैं निपटा रही हूँ... मुआ काम है कि दम को लगा है‬
‭दीन मुहम्मद-‬‭इसलिए मक्कार साधे पड़ी है, डर के मारे नहीं तो क्या हमें मालूम नहीं मरज़‬
‭... चुपके से गाड़ आयी कि सरकार को मालूम हो गया तो जान की खैर नहीं‬
‭सलमा-‬‭सूअर कहीं का‬
‭बूढ़ी मेहतरानी‬‭- ख़ुदा की मार तुझपे ... बड़ा आया साहूकार का जना...‬
‭दीन मु की माँ-‬‭बस-बस! जब तक बोलती नहीं, चढ़ी जा रही है। गोरी तो है ही बड़ी‬
‭सैय्यदानी!‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭दे खो दीन मुहम्मद की माँ! तुम्हारा कोई बीच नहीं, ज़माने भर का लुच्चा मुआ‬
‭दीन मु की माँ‬‭- अच्छा... बड़ी नन्ही सी हैना गोरी!‬
‭गोरी‬‭- ऊँ ऊँ ... क़सम से बीबीजी। यह दीन मुहम्मद...‬
‭दीन मुहम्मद‬‭- लगा दे मेरे सर पर ... ये इसी की हरकत है बी!‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭चुपकर बे .. निगोड़मारा ...‬
‭दीन माँ-‬‭निगोड़ी गोरी नहीं? ... अभी जो घर के सारे पोल खोलई तो... फिर ना कहना की‬
‭नौकर होकर नौकर को उधड़ती हूँ... और नन्ही बनकर मेरे लौंडे को बदनाम किये जा रही है‬
‭जैसे हमसे कु छ छु पा है?‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭छु पा तो मुझसे भी कु छ नहीं है दीन मुहम्मद की माँ... पिछले जाड़ों में कै से‬
‭ऐसे ही झटपट कर दिया था तेरे लौंडे ने ... और तुम खुद छिपा गयी थी ...‬
‭दीन माँ-‬‭दे खिये बीबी जी ... अब ये बढ़ती ही चली जा रही है... कसाइन कहीं की ... माना‬
‭चटपट कर भी दिया था। तोह क्या... हो जाती है ग़लती जवान लौंडों से .. ज़रा सी फ़ितनि के ‬
‭गुन तो देखो...‬
‭[तभी अम्मा बेगम फिर आती हैं ]‬

‭16‬
‭अम्मा बेगम-‬‭बस-बस .. ये क्या कं जर खाना मचा रखा है। चलो अपना-अपना काम ख़त्म‬
‭करो.. भला बताओ तो सरकार को पता चला, तो अल्लाह जानता है क़यामत ही आ जाएगी।‬
‭टां ग बराबर छोकरी, क्या मार-मारके मज़े से ठिकाने लगा दिया। अंधेर है कि नहीं ...‬
‭[तभी भाईजान अब्बा मियां के साथ हॉकी पर तेल की मालिश करते हुए आते हैं ]‬
‭अब्बा मियां-‬‭चुप रहो रे ... क्या भटियारियों की तरह चीक रहे हो ..‬
‭दीन मुहम्मद-‬‭ये देखिये सरकार... मारके पिछवाड़े गाड़ आयी और अंदर बनी बैठी है।‬
‭बूढ़ी मेहतरानी‬‭- ओ मुर्दे! क्यों झूठे दोष मढ़ता है...‬
‭दीन की माँ-‬‭मुरदी होगी तेरी चहेती, जिसकी ये करतूत है ... लाडो के गुन तो देखो‬
‭अब्बा मियां-‬‭क्या रे गोरी... क्या किस्सा है...‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭सरकार उसका जी अच्छा नहीं है...‬
‭अब्बा मियां-‬‭जी-बी सब अच्छा है... क्या रे ..‬
‭[गोरी घुटी घुटी आहें भरने लगती है ]‬
‭दीन मुहम्मद-‬‭बन रही है सरकार‬
‭अब्बा मियां-‬‭बता रे ... किसका बच्चा था तेरे पेट में ..‬‭[पूरा माहौल सन्न है ]‬‭मार मूरके गाड़‬
‭दिया, ठीक है समझ में आया .. लेकिन करतूत किसकी है।‬
‭अम्मा बेगम-‬‭अजी सुनिए तो‬
‭अब्बा मियां-‬‭तुम खामोश रहो जी ... बुलाओ शागिर्द पेशे को... बावर्ची, भिश्ती, माली,‬
‭चपरासी...- पूरे खानदान को बुलाओ पता तो चले बच्चा आखिर था किसका...‬
‭अम्मा बेगम-‬‭सरकार सुनिए तो...‬
‭अब्बा मियां-‬‭नहीं ... मुझे उसी के मुंह से सुनना है।‬
‭[तभी शागिर्द पेशा, खानदान और मोहल्ले वाली मरद भी आते हैं ]‬
‭अब्बा मियां-‬‭क्या रे ... कु बूलते है कि नहीं?‬
‭व्यक्ति‬‭- नहीं मालिक... मेरा तो हो ही नहीं सकता.. मैंने तो सिर्फ एक बार गोरी का हाथ चूमा‬
‭था। ..और क्या हाथ चूमने से ...?‬
‭अब्बा मियां-‬‭इधर आ बे... तूने क्या चूमा है...‬
‭व्यक्ति‬‭- नहीं हुज़ूर.. एक बार मेरे दवाख़ाने आयी थी .. और मैंने सिर्फ उसे पलंग पर लिटाकर‬
‭उसका चेक-उप किया था लेकिन...‬

‭17‬
‭अब्बा मियां-‬‭गोरी तू ही साफ़-साफ़ बता दे .. वरना हम तुझे पोलिस में दे देंगे...‬‭[गोरी की‬
‭हिचकी बंध गयी]‬‭दे खो जिसका भी बच्चा है साफ़-साफ़ बता दे... वरना ठीक नहीं गोगा..‬
‭[अब्बा मियां एक रईसज़ादे नुमा युवक की ओर बढ़ता है ]‬‭क्यों साहबज़ादे!‬
‭व्यक्ति‬‭- चचाजान! क्या है ना की... एक बार मेरे कमरे में पोंछा लगाने आयी थी ... चूँकि‬
‭पोंछा बहुत गीला था तो उसे निचोड़कर गोरी के हाथों में देते हुए उसकी उँगलियाँ टच हो गयी‬
‭थी बस... इतना ही बस..‬
‭अब्बा मियां-‬‭हं .. इतना ही.. इतने से ही बच्चा आ गया ...‬
‭अम्मा बेगम-‬‭अजी .. क्यों गड़े मुर्दे उखाड़ रहे हो?‬
‭अब्बा मियां-‬‭चुप रहो बेगम... आज तो मुर्दे ज़िंदा भी हो जायेंगे। ... क्यों रे जाहिलों.. गोरी के ‬
‭आशिकों.. बोलो किसका बच्चा था..?‬
‭व्यक्ति १-‬‭माई-बाप .. एक बार ख़ता हो गयी थी... पर उसको तो साल भर से ज़्यादा हो गया‬
‭होगा...‬
‭अब्बा मियां-‬‭तो क्या गारं टी है की ख़ता दोबारा नहीं हुई हो...‬
‭व्यक्ति २-‬‭सरकार... गोरी से ही पूछ लो...‬
‭अब्बा मियां-‬‭वो तो ख़ैर पूछ ही लूँगा .. ज़रुरत पड़ी तो‬‭(झुंड की ओर देखकर)‬‭बको रे ‬
‭एक-एक कर... आज यहीं इजलास लगता हूँ.. बेगम चाय लेकर आओ...‬
‭[एक-एक कर दो-चार व्यक्ति आगे आते हैं और अपना जुर्म कु बूलते हैं लेकिन गुनाह सामने नहीं आ‬
‭पता है ]‬
‭व्यक्ति ३-‬‭हुज़ूर...- शर्म आ रही है.. और डर भी लग रहा है... सबके सामने... कान में‬
‭बताऊं गा‬
‭अब्बा मियां-‬‭क्यों बे कमीने .. उस वक़्त शर्म नहीं आई ..‬
‭व्यक्ति ३-‬‭नहीं मालिक.. वो बात नहीं है.. दरअसल वो मुझे जान से ही मार डालेगा..‬
‭अब्बा मियां-‬‭मतलब?‬
‭व्यक्ति ३-‬‭हुज़ूर.. मैं उसका नाम बताऊं गा जिसका बच्चा है... या हो सकता है..‬
‭[सभी शागिर्द पेशे के लोग इधर-उधर देखते हैं ... सन्न हैं .. खुसर-फु सर होने लगती है। व्यक्ति अब्बा‬
‭के कान में बताने के लिए धीरे धीरे बढ़ता है। सभी सन्न हैं ...]‬

‭18‬
‭अब्बा मियां-‬‭(कान में सुनकर)‬‭... उसकी ये मज़ाल ...‬‭(चिल्लाकर)‬‭... गोरी ...-‬‭[तभी अम्मा‬
‭चाय लेकर आती है .. चाय का कप उनके हाथ से छू ट जाता है ]‬‭... बदजात कु त्तिया.. बता तूने कै से‬
‭मारा..‬‭[गोरी हो-होकर रोती है ]‬‭पानी पीला इसको, इससे पहले की इसका हलक सूख जाए‬
‭[गोरी पानी पीने के बाद भी रोये जा रही है .. अब्बा मियां आपा खो चुके हैं .. वो दीन मुहम्मद की ओर‬
‭बढ़ते हैं ]‬‭क्यों बे दीन मुहम्मद... साले तू भी उतना ही कसूरवार‬‭है ..‬
‭दीन मुहम्मद-‬‭जी? मैं कै से, मैं तो उस दिन था भी नहीं... जिस दिन गाड़ा था बच्चा ..‬
‭अब्बा मियां-‬‭मालूम है.. लेकिन यहाँ अभी बस तू ही तो बचा है न..‬‭. (गोरी की ओर मुड़कर)‬
‭अरे क्या पूरा कु वा सूखने के बाद बोलेगी... जल्दी बता...‬
‭गोरी-‬‭सरकार!... ई..ई..हो..हो.. मैं डरबा बंद कर रही थी.. तो काली मुर्गी भागी ... मैंने‬
‭जल्दी से दरवाज़ा भेड़ा..तो… वो बच्चा पिच गया.. ओ..हो..हो.....‬
‭[सभी शागिर्द पेशे में हलचल मच जाती है कि "मुर्गी का बच्चा" ...?]‬
‭अब्बा मियां-‬‭च.. च.. च... क्या खूबसूरत चूज़ा था, तीन दिन पहले ही तो कानपुर से मंगवाया‬
‭था। ... दीन मुहम्मद आज से सिर्फ तू बन्द किया करे गा मुर्गियां ... सुनो... आन दे‬
‭रामअवतरवा को...‬
‭[अब्बा मियां , अम्मा बेगम, भाईजान, सलमा, नुज़हत सभी निकल जाते हैं। बाकि शागिर्द पेशा,‬
‭मोहल्ले-ख़ानदान के लोग वहीं मंच पर रह जाते हैं ]‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭जवनामर्ग... तुझे हैज़ा समेटे.. मेरी लौंडिया को हलकान कर दिया।‬
‭[दीन मुहम्मद को धमूके जड़ती है ... बीच में दीन की माँ आती है उसे शागिर्द पेशे के लोग अलग कर‬
‭दे ते हैं। वो बहार चली जाती है , मेहतरानी दीन मुहम्मद को पीटते-पीटते बहार ले जाती है , इधर लोग‬
‭गुस्से में गोरी की तरफ गुस्से और बदले की भावना से बढ़ते हैं , लगभग उसे दबोचने ही वाले होते हैं ‬
‭की मेहतरानी मंच पर वापिस आती है , लोग मसोस कर रह जाते हैं , बहार जाने लगते हैं तभी विंग्स से‬
‭"रतिराम" आता है , गोरी शर्माकर दू सरी तरफ चली जाती है , सर पर घूंघट तान लेती है ]‬
‭रतिराम-‬‭गोड़धरु काकी... पाय लागू गोरी भौजी... राम-राम भाई लोगों ...‬
‭[शागिर्द पेशे 'हुंह' करके निकल जाते हैं , मेहतरानी, गोरी और रतिराम एक फै मिली पोज़ में आते हैं ]‬

‭------------------अन्धकार ------------------‬

‭19‬
‭दृश्य ६ :-‬
‭[दृश्य वहीं से पुनः प्रारम्भ होता है जहाँ पिछले दृश्य में रतिराम, गोरी और बूढ़ी मेहतरानी एक फै मिली‬
‭पोज़ में खड़े थे]‬
‭रतिराम‬‭- मैं हूँ रतिराम.. अपने गाँव का हीरो नं वन , मेरा मतलब मेहतर नं वन... रामावतार‬
‭जंगी का भाई मैं रतिराम भंगी... रं गी गोरी भौजी की सास, मेरी ताई अब एकदम चंगी ...‬
‭अपने गांव में आवारा ही तो घूमता हूँ... मेरी बहु अभी नाबालिग है इसलिए गौना नहीं हुआ‬
‭है ... अपनी ताई से मिलने आया हूँ ..‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭दो-चार कोठियों का काम बढ़ गया है बेटा, कु छ दिन यहीं पड़ा रह...‬
‭रतिराम‬‭- अरे १०-२० कोठियों का काम और लेले ताई... मैं और गोरी भौजी मिलके समेट‬
‭लेंगे...‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭उसकी भली कहीं... इसके ही करम से तो और काम छू ट रहे हैं...‬
‭रतिराम‬‭- चिंता ना कर ताई... तू तो ये बता राम अवतार भइया कब तक आएं गे?‬
‭बूढ़ी‬‭मेहतरानी‬‭- पता नहीं... हर चिट्ठी में आता है वो तो..‬
‭रतिराम‬‭- तो लिखवा दे ताई.. कोई जल्दी नहीं है यहाँ... आराम से जंग लड़े.. मैं यहाँ आ गया‬
‭हूँ ...‬
‭बूढ़ी मेहतरानी‬‭- क्या रतिराम .. कै से बातें करता है? बेटे को देखे सालों हो गए हैं...‬
‭रतिराम‬‭- अरे तो! मैं क्या किसी बेटे से कम हूँ.. मैं भी तो हूँ तेरा बेटा नं २... एक बेटे ने देख‬
‭की सरहद संभाल कर रखी है... दू सरा बेटा संभाल लेगा तेरे घर की चौखट ताई...‬
‭रतिराम‬‭- मेरे आते ही मौसम एकदम लोट-पोटकर बिलकु ल ही बदल गया। जैसे काले बादल‬
‭हवा के झोंकों के साथ तितर-बितर हो गए ... गोरी के कहकहे खामोश हो गए... कांसे के ‬
‭कड़े गूंगे हो गए.. घूंघट झूलने लग गया- ऐसे जैसे गुब्बारे में से हवा निकल जाने पर वो लटक‬
‭जाता है। गोरी अब बिना नथ के बैल जैसे निहायत शर्मीली बन गयी।‬
‭गोरी‬‭- कोई मुझे छे ड़ता तो मैं अब छु ईमुई सी लज्जा जाती ..‬
‭रतिराम-‬‭और कोई जो ज़्यादा आँख दिखाता तो वो घूंघट से भैंगी आँख को तिरछा करके मेरी‬
‭तरफ़ देखती, तो मैं फौरन बाजू खुजलाता सामने आकर डट जाता‬

‭20‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭और मैं सकू न से चौखट पर बैठी अधखुली आखों से ये मज़ेदार डिरामा देखा‬
‭करती, और गुड़गुड़ी पिया करती... चारो तरफ ठं डा-ठं डा छा गया, जैसे फोड़े का मवाद‬
‭निकल गया हो। तमाम औरतों ने संतोष की सांस ली कि अब उनके मरद, खाबिन्द, शौहर का‬
‭पत्ता रतिराम ने काट दिया है... भला हो रतिराम का जो हमारे किले मेहफ़ू ज़ हो गए...‬
‭[तभी विंग्स से शागिर्द पेशे के लोग एक-एक करके या एक साथ आते हैं और गोरी को तरह-तर्ज से‬
‭परे शां करते हैं ]‬
‭बावर्ची‬‭- भैंस कहीं की... खूब खिलाया करता था परांठे तलकर... अब कूं ड़ी साफ़ करने के ‬
‭लिए कहता हूँ तो भाव खा रही है...‬
‭भिश्ती‬‭- अरे पाइप में पानी नहीं आता है तो कहाँ से छिड़काव करूँ ... तालाब खुदवाऊँ क्या‬
‭तेरे लिए... मारना है तो मार झाड़ू सूखी ज़मीन पर..‬
‭चपरासी‬‭- हररामज़ादी खाक उड़ाने आ जाती है, धुल-गर्दा क्यों उड़ा रही है...‬
‭धोबी‬‭- अरे मुई अंधी है क्या... भैंगी तो तू है ही... देखती नहीं कपड़ों पर कलफ लगा रखे‬
‭है ... झाड़ू मार रही है की ज़मीन खोद रही है..‬
‭[सभी एक साथ गोरी को कोसते हैं तभी रतिराम आ धमकता है ] \‬
‭रतिराम‬‭- तुम्हारी कबर खोद रही है, बोल के कर लेगा... खबरदार जो गोरी भौजी को कु छ भी‬
‭कहा तो... गरीब की हरजाई.. गांव भर की भौजाई... चलो हटो, अपना-अपना काम करो..‬
‭ससुर के नाती नहीं तो.. बावर्ची को देखो तो- पहले बात-बात पर खूब पराठे तलकर खिलाया‬
‭करता था अब देखो तो... चल भाग यहाँ से नहीं तो सारा आटा गीला कर दूंगा.. अबे वो‬
‭धोबिये.. पहले तो गोरी के अंदर-बाहर के कपड़ों पर मुर्गी छाप साबुन घिसते नहीं थकता था‬
‭अब कलफ ख़राब हो रहा है... क्यों बे पाँवड़िये तुझे भी कु छ ज़्यादा ही चर्बी चढ़ गयी है.. और‬
‭जमादार चपरासी .. पगड़ी संभाल अपनी वरना तेरी धोती भी नहीं संभाल पायेगा... समझा.. बै‬
‭भिश्ती पाइप में पानी नहीं है, कु एं से बाल्टी भर-भर के ला कर सहन में छिड़क .. फिर धुल‬
‭के पाउडर नहीं उड़ेंगे...‬

‭[सभी शागिर्द पेशे के लोग खिसियाकर चले जाते हैं ]‬


‭सभी‬‭- देख लेंगे तुझे तो... अपनी हद में रह रतिरमवा‬

‭21‬
‭[एक दृश्य जो रतिराम और गोरी के सम्बन्ध का उजागर करे और दरोगा देख ले... मेहरतरनी भी देख‬
‭ले और औपचारिकता भर गोरी को डांटती है ]‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭... आन दे रामअवतरवा को... कहांगी तोरी हड्डी पसली एक कर दैहे ...‬

‭------------------अन्धकार ------------------‬

‭दृश्य ७ :-‬
‭[दरोगा जी अम्मा बेगम के सामने बैठे कु छ इस तरह बता रहे हैं जो ये आभास देता है कि एक पुरुष‬
‭स्त्री को चूम रहा है .. तभी अब्बा मियां आते हैं , दोनों को देख कर ठिठक जाते हैं , घंघारते हैं तब‬
‭दरोगा भाग कर अब्बा मियां को उसी अंदाज़ में कु छ बताता है , लेकिन अबकी बार दो पुरुष खड़े हैं।‬
‭अब्बा चौंककर अम्मा के पास आते हैं , फिर गुस्से में एक तरफ बढ़ जाते हैं ]‬
‭अब्बा मियां-‬‭... आन दे रामअवतरवा को...‬

‭------------------अन्धकार ------------------‬

‭22‬
‭दृश्य ८ :-‬
‭[अम्मा अपने मसनद पर पीठ टिकाये बैठी हैं । महिलाओं की पूरी सभा मंच पर अपने-अपने जगह‬
‭चुपचाप बैठी हैं। ख़ामोशी है .. मेहतरानी और गोरी मौजूद हैं , प्रतीक दृश्य के कल्पनानुसार रतिराम भी‬
‭वहां हो सकता है , ये निर्देशक की इच्छा पर निर्भर करता है ]‬
‭अम्मा बेगम-‬‭अरी निगोड़ी, खबर भी है, तेरी ये कामुक बहु गोरी क्या गुल खिला रही है?‬
‭[मेहतरानी ऐसे चुंधरा कर देखा जैसे कु छ समझती ही नहीं]‬‭..चश्मदीद गवाहों का कहना है‬
‭की गोरी और रतिराम के ताल्लुक़ात नाजायज़ हद तक ख़राब हो चुके हैं...‬
‭औरत १-‬‭दोनों मिलकर बहुत ज़्यादा गन्दगी फै ला रहे हैं।‬
‭औरत २‬‭- देख, रतिराम का मुंह काला कर और इससे पहले रामावतार लौटकर आये बहु का‬
‭इलाज करवा डाल‬
‭औरत ३-‬‭तू तो खुद इस फ़न में माहिर है... दो दिन में सफाई हो सकती है..‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭बीबी जी, मेरे घुटनों में पहले से ज़्यादा ऐठन होव है... कोठियों में लोग बहुत‬
‭ही ज़्यादा बादी चीज़ें खाने लगे हैं, किसी न किसी कोठी में दस्त लगे रहते हैं...‬
‭अम्मा बेगम-‬‭ख़ाकपड़ी ... कोठियों के दस्त तोह बह-बूह के पखानों-नालों तक ही रह जायेंगे‬
‭लेकिन अगर तुझे बवासीर हो गया ना तो मोहल्ले के साथ-साथ पूरा जंगल बदबू से भर जायेगा‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭अब क्या करूँ ... वैद जी भी पूरी हरामी हैं, दवाई में खड़िया मिलकर देते‬
‭हैं ...‬
‭अम्मा बेगम-‬‭ये क्या ऑल-बॉल बक रही है... गोरी को दवा खिला..‬
‭औरत १-‬‭हाँ .. वैद जी के पास मत ही जइयो... बदनाम कर देंगे.. तुझे तो सारे नुस्खे पता‬
‭हैं .. अफीम, पपीते का बीज, धतूरा... और क्या मिलाया था पिछली बार जब बावर्चिन का...‬
‭अम्मा बेगम-‬‭(डांटकर)‬‭.. चुप कर री बै औरत जात.. कु छ तो पचा लिया कर.. पेट है की‬
‭रे डियो ...‬
‭औरत २-‬‭अम्मा बेगम.. पेट तो गोरी के हैं आजकल, कलमुंही पर नज़र क्यों नहीं जा रही‬
‭है ... पूरा लाउडस्पीकर लेकर घूम रही है‬
‭अम्मा बेगम-‬‭हाँ वही तो समझाने की कोशिश कर रहे हैं कबसे... माना कि गोरी औरत जात‬
‭है , नादान है, बड़ी-बड़ी शरीफज़ादियों से ख़ता हो जाती है लेकिन उनकी आला खानदान की‬
‭मोहज्जज़ सासें यु कानों में तेल डालकर नहीं बैठ जाती...‬

‭23‬
‭औरत ३-‬‭पर ये बुढ़िया जाने क्यों सठिया गयी है? जिस बला को बड़ी आसानी से कोठी के ‬
‭कू ड़े की तेह में दफ़न कर सकती है उसको आँखें मींचे पलने दे रही है।‬
‭अम्मा बेगम-‬‭दे ख... हम तेरे दुश्मन नहीं है.. तू हमारी खानदानी मेहतरानी है.. इज़्ज़त का‬
‭सवाल है... रतिराम और गोरी अब नाक़ाबिले बर्दाश्त दर्ज़े तक पहुंच चुके हैं।‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭अम्मा बेगम, आप लोग तो तोहमत पर तोहमत लगाए जात हैं... पता नहीं‬
‭मेरी मासूम बहु ने क्या बिगाड़ा है आप लोगों का? दिन रात रामअवतरवा की यार में आंसू‬
‭बहाती रहती है...‬
‭औरत १-‬‭...आंसू बहाती है.. हुंह.. तेसुवा बहाती है घड़ियाल का.. खून के आंसू रुलवायेगी‬
‭रामअवतरवा को... आन तो दे.. इसको कच्चा ना चबा गया तो कहना...‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭(थोड़ा उग्र होकर)‬‭..काम काज तो करती है ना जी तोड़कर.. फिर कै सी‬
‭शिकायत? अब तो ठिठोल भी नहीं करती किसी से ... नाहक ही दुश्मन बने पड़े हैं आप‬
‭लोग...‬
‭औरत २-‬‭अब ज़रूरत ही क्या है उसे किसी से ठिठोल करने की... घर में ही है अब तो‬
‭मजनू..‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭अररे ... तम सब तो गोरी की जान को ही लागू हो गए हो... आखिर मैंने और‬
‭मेरी बहु ने किसी का क्या बिगाड़ा है? न किसी के लेने में ना देने में... आज तक मैंने कसी का‬
‭भां डा नहीं फोड़ा तो किसी को क्या पड़ी है जो मेरे फटे में पैर घुसती फिरे ... अरे कोठियों के ‬
‭पिछवाड़े क्या नहीं होता? भंगन से किसी का मैला नहीं छु पा है... इन बूढ़े हाथों ने बड़े लोगों के ‬
‭कई गुनाह दफ़न किये हैं, यह दो हाथ चाहे तो रानियों के तख़्त पलट दे... पर नहीं , मुझे‬
‭किसी से कोई बैर नहीं... हाँ.. अगर मेरे गले पर छु री दबायी गयी तो शायद ग़लती हो जाए..‬
‭वैसे मैं किसी के राज़ अपने बूढ़े कलेजे से बाहर नहीं निकलने दूँगी... मत भूलो की गांव की‬
‭चौहद्दी पर गोरी की बहु उतराई वाली रस्म... मेरी बहु ने पूरे गांव को आग लगने से बचा लिया‬
‭था...‬
‭अम्मा बेगम-‬‭अरे मेहतरानी... तू तो नाहक ही चराग-पा हो रही है... हमरा शुक्रिया अदा‬
‭करने के बजाये हमपे ही ढे ला फ़ें क रही है...‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭अरे रै न देवो अम्मा बेगम... पता नहीं उन मासूमों को दुनिया में आने से पहले‬
‭ही पेट में गला देने पर क्यों नहीं लगती आग गाँव में..?‬

‭24‬
‭[तभी अचानक गोरी को लेबर पैन शुरू हो जाता है। सभी भौंचक होकर देखते हैं .. मेहतरानी भाग कर‬
‭गोरी के पास जाती है , रतिराम झाड़ू आड़ कर उस पर एक चादर तान देता है , गोरी कराह रही है ,‬
‭अम्मा बेगम को ये सब कतई नागवार लगता है की जंचगी उसके घर के अंदर नामुमकिन है ]‬
‭अम्मा बेगम-‬‭हैं .. हैं.. ये क्या सुअरनी यहीं पिल्ले जानेगी .. ले जा इसे यहाँ ...‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭इस हाल में कहाँ और कै से ले जाऊं बेगम... ज़रा एक भगोना पानी तो गर्म‬
‭कराओ, अभी हुआ जाता है चट-पट‬
‭अम्मा बेगम-‬‭हाँ -हाँ, काजू-बादाम वाला दू ध भी मंगवाती हूँ गरम-गरम...- मेरा घर कतई‬
‭नापाक नहीं होगा.. खबरदार जो...‬
‭बूढ़ी मेहतरानी-‬‭(बिफरकर)‬‭हे बेगम, ... कितनी दफा नापाक हो चूका है ये घर... यही पर‬
‭साल भर पहले इंसान का गोश्त.. यहीं पर अपने हाथों से घड़ा फोड़ा था मैंने...‬
‭[मेहतरानी भाग-भाग के परदे के पीछे आती-जाती बड़बड़ाती जा रही है , उधर गोरी के चीखने की‬
‭आवाज़ तीव्रत होती है , मेहतरानी बच्चे को लेकर चलने को होती है तभी सलमा दौड़कर आती है ,‬
‭अम्मा के कान में कु छ कहती है। अम्मा चिंता में है , तमाम महिलाओं को वहां से चले जाने को कहती‬
‭है , नुज़हत मंच पर करहाती हई आती है , मेहतरानी को इशारे में बच्चा गिराने को कहती है , मेहतरानी‬
‭मना कर देती है , अम्मा पहले तो गिड़गिड़ाती है फिर ज़बरदस्ती करती है , मेहतरानी को मजबूरन‬
‭बात माननी पड़ती है , अब नुज़हत और गोरी दोनों परदे के पीछे हैं , दोनों के करहाने की आवाज़ें फिज़ा‬
‭को देहला देती है , पर्दा गिर जाता है , गोरी, सास और रतिराम एक साथ बच्चे को लेकर चले जाते हैं ]‬
‭नुज़हत-‬‭...ये क्या अम्मा... क्यों मारा मेरे बच्चे को? जब गोरी पैदा कर सकती है तो मैं क्यों‬
‭नहीं...‬
‭[तभी अब्बा और भाईजान दीन मुहम्मद को धमकाते हुए मंच पर आते हैं , अम्मा और नुज़हत सन्न हो‬
‭जाते हैं। अब्बा मियां भाईजान को इशारा करते हैं , वो दीन मुहम्मद को मंच के बीचों-बीच ले आटा है ,‬
‭खम्भे से बांधता है , अम्मा को इशारा करते हैं की वो नुज़हत को लेकर अंदर चली जाए... भाईजान‬
‭हॉकी स्टिक खींचकर दीन मुहम्मद के सर पर दे मारते हैं वो ढेर हो जाता है , नेपथ्य से नुज़हत के ‬
‭चीखने की आवाज़ आती है। धीरे -धीरे अंधकार छा जाता है ]‬

‭------------------अन्धकार ------------------‬

‭25‬
‭दृश्य ९ :-‬
‭[रतिराम, गोरी, बूढ़ी मेहतरानी बच्चे के साथ एक फ्रे म में बैठे दिखाई देते हैं , तीनों बच्चे से खेल रहे हैं ,‬
‭इससे‬‭पहले कु छ‬‭प्रतीकात्मक बिम्ब हो सकते हैं ]‬
‭गोरी‬‭- लोगों को सख़्त कोफ्त हुई जब मैंने लौंडा जना... बजाए मुझे ज़हर देने के मेरी सास की‬
‭बां छे खिल गई‬
‭रतिराम‬‭- रामावतरवा के लाम पर जाने के दो साल बाद पोता हुआ था,, पर...‬
‭बूढ़ी‬‭मेहतरानी‬‭- तो... इसमें अचंभा कै सा? आसाढ़ में रामावतरवा लाम पर गया था, जब मैं‬
‭पीली कोठी के अंग्रेजी संडास में गिर पड़ी थी... और अब लग रहा है चैत... हां.. हां... चैत के ‬
‭महीने में मुझे लू लगी थी... है राम… बाल–बाल बच गई... नहीं तो पोते का मुंह कै से‬
‭दे खती... बड़े आए “लौंडा रामावतार का हो हो नहीं सकता” अरे ना सही, भगवान मालिक का‬
‭तो है ना...‬
‭गोरी‬‭- वो तो बच्चे के लिए घर–घर फटे पुराने कपड़े और बधाइयां समेटती फिरी‬
‭रतिराम‬‭- और फिर किसके दिमाग में इतना बूता था, कि वो बुढिया को समझा पाता जिसे ना‬
‭समझने का उसने फै सला कर लिया था…‬‭[बुढिया मेहतरानी एक कागज़ लिए दर्शकों से एक चिट्ठी‬
‭लिखने की दरख्वास्त करती है ]‬
‭बूढ़ी‬‭मेहतरानी‬‭- भैया एक चिट्ठी तो लिख देवो... रामावतरवा को बाद चुम्मा प्यार के मालूम हो‬
‭की यहां सब कु शल है और तुम्हारी कु शलता भगवान से नेक चाहते हैं… तुम्हारे घर में पूत पैदा‬
‭हुआ है, सो इस खत को तार समझो और जल्दी आ जाओ... थंकु ...‬
‭रतिराम‬‭- जंग खत्म हो गई है और रामावतार भाई साहब आने ही वाले हैं... मेरी ताई पोते को‬
‭घुटनों पर लिटाए खाट पर बैठी राज किया करती, भला इससे ज़्यादा हसीन बुढ़ापा और क्या‬
‭होगा कि सारी कोठियों का काम तुरत–फु रत हो रहा हो... महाजन का सूद पाबंदी से चुक रहा‬
‭हो, और घुटने पर पोता सो रहा हो...‬
‭[विंग्स से शागिर्द पेशे के लोग भड़के हुए अंदाज़ में आते हैं। मेहेतरानी परिवार गायब हो जाता है ]‬
‭व्यक्ति १‬‭- गोरी ने लौंडा नहीं जना है, अपनी मौत का समान पैदा किया है...‬
‭व्यक्ति‬‭२‬‭- और नहीं तो क्या जब रामावतरवा को असलियत पता चलेगा... तब देखना दो–चार‬
‭लाशें तो गिर ही जाएं गी...‬
‭व्यक्ति‬‭३‭-‬ आखिर सिपाही है, क्यों न ख़ून खौलेगा, जंग जीतकर आ रहा है...‬

‭26‬
‭व्यक्ति‬‭४-‬‭और रतिरमवा के मज़े हैं... पोंछ पांछ के साला भाग जाएगा अपने गांव... गौना‬
‭और होने वाला भड़ु वे का...‬
‭व्यक्ति‬‭१‬‭- एक काम करते हैं, सारा कच्चा चिट्ठा रामावतरवा को पहले ही डाक कर देते हैं‬
‭व्यक्ति २-‬‭नहीं नहीं मरद है, उसकी मरदानगी को झटका लग जायेगा... कहीं खुदकु शी‬
‭उदकु शी कर बैठा तो, आने दो पहले‬
‭व्यक्ति ३-‬‭क्या पते की बात की है, सही बात है कौन बर्दाश्त करे गा उसकी बीवी गैर के बच्चे‬
‭की अम्मा बने...‬
‭व्यक्ति‬‭४‬‭- लेकिन मरे गा तो ज़रूर वो, चाहे सबको ख़त्म करने के बाद ही मरे ...‬
‭व्यक्ति‬‭१‬‭- घंटा! मरने की क्या ज़रूरत है, एक बदजात जनानी की ख़ातिर... निकल दे भंगन‬
‭को लौंडे के साथ... किस्सा ख़त्म‬
‭व्यक्ति २‬‭- लेकिन रतिरमवा का तो मुंह काला करना ही पड़ेगा‬
‭व्यक्ति‬‭३‭-‬ सारे जड़ की फसाद तो वो है, बुढ़िया मेहतरानी... सोते में ही टेटुवा दबाई दे...‬
‭छु ट्टी!... अरे पहले ही भगा देती रतिरमवा को गांव से, बजती ही नहीं बांसुरी‬
‭व्यक्ति‬‭४- नाक कटा दी बिचारे रामअवतरवा की... इससे तो अच्छा है वहीं सरहद पर मर‬
‭मुरा जाए... शहीद तो कहलाएगा...‬
‭व्यक्ति‬‭१‬‭- अरे भाई काहे नाहक ख़ून जला रहे हो, तमाशा तो देखने को मिलेगा... डमरू‬
‭बाजेगा… खेल जमैगो...‬
‭एक‬‭साथ‬‭- आन दे रामअवतरवा को—‬

‭------------------अन्धकार ------------------‬

‭27‬
‭दृश्य १० :-‬
‭[रतिराम और गोरी प्रीमलिंग में हैं , बगल में बच्चा सोया है , तभी रामअवतरवा बूट को खट–खट करता‬
‭आता है , दोनो को आपत्तिजनक हाल में देख कर गुस्से में आ जाता है , पहले रतिराम को चाकू से गोद‬
‭डालता है , फिर गोरी का गला दबाकर हत्या कर देता है , तभी बच्चे के कु नमुनाने की आवाज़ आती है ,‬
‭उसे उठाकर पटकने ही वाला होता है कि शागिर्द पेशे के लोग जागकर बैठ जाते हैं , यह एक स्वप्न है ‬
‭जिसे सबने एक साथ देखा था। मज़े का इत्तेफाक यह है कि सबने स्वप्न भी एक ही देखा जो उनके ‬
‭मनोभाव, मनोदशा और मनशंका ज़ाहिर करता है , सभी शागिर्द पेशे के लोग तालियां बजती है , इकट्ठे ‬
‭होते हैं ]‬
‭युवक‬‭१‬‭- वाह वाह मज़ा आगया, क्या नज़ारा था‬
‭युवक‬‭२‬‭- शाबाश रामअवतार भाई... तुमसे यही उम्मीद थी‬
‭बावर्ची‬‭- लेकिन ससुरा वो बच्चा बच गया,, एन तभी नींद खुलनी थी मां की आंख‬
‭हलवाई‬‭- क्या बहादुरी दिखाई भाई रामअवतरवा ने‬
‭भिश्ती‬‭- बांका दिलेर निकला‬
‭पनवाड़ी‬‭- अब सपना था हकीकत भी वैसा ही होगा‬
‭व्यक्ति १‬‭- बिलकु ल होगा, सुबह–सुबह का सपना एकदम सच होता है‬
‭चपरासी‬‭- हे, बता बता तूने क्या देखा,,‬
‭पनवाड़ी‬‭- तू बता ना‬
‭भिश्ती‬‭- तू बता न तू अच्छा बताता है‬
‭बावर्ची‬‭- नहीं, लेकिन सपना तो तू अच्छा देखता है ना भाई‬
‭हलवाई‬‭- रामावतरवा...‬
‭चपरासी‬‭- अरे तमीज़ से... रामावतार भाई... खट–खट घर में घुसा...‬
‭युवक‬‭२‬‭- सालों वो बुढ़िया मेहतरानी बच गई...‬
‭युवक ३‬‭- अरे कोई बात नहीं... उसके पास मां तो है... बेचारा... अके ला...‬
‭भिश्ती‬‭- तूने भी वही देखा,,?‬
‭बावर्ची‬‭- जो मैंने देखा?‬
‭पनवाड़ी‬‭- हां, मैंने भी देखा...‬
‭नाई‬‭- अरे कमाल है हम सबने एक ही सपना देखा...‬

‭28‬
‭बावर्ची‬‭- अबे गधों सपना सच होने वाला है, आज ही तो आने वाला है रामावतारवा... पहली‬
‭गाड़ी से ही तो... चलो–चलो जल्दी जल्दी अपने काम निपटालो‬
‭व्यक्ति‬‭- आज कोई काम–धाम नहीं, आज तो जश्न होगा‬
‭बावर्ची‬‭- आज तो बावर्ची हांडी में पानी ही पानी झोंक मरे गा‬
‭धोबी‬‭- कोई कलफ नहीं लगेगा कपड़ों में‬
‭भिश्ती‬‭- मैं भी आज बाल्टी कु एं के मुंडेर पर ही रख दूंगा... उल्टा करके ... मज़ा आ जायेगा‬
‭जब धूल के साथ–साथ खून के छीटें भी उड़ेंगे...‬
‭हलवाई‬‭- आज जलेबी नहीं मिर्च के पकोड़े तलूंगा‬
‭पनवाड़ी‬‭- लौंग इलायची वाला पान की गिल्लौरी नहीं आज तो ज़हर का बीड़ा लगाऊं गा, और‬
‭मुफ़्त में ही दे दूंगा रामावतरवा को…‬‭[तभी कोई चिल्लाता हुआ मंच पर आता है ]‬
‭आदमी- अरे रामअवतारवा लाम पर से आ रहा है गांव की सरहद पर पहुंच गया है...‬ ‭[सभी‬
‭वहां से भागते हैं ]‬

‭------------------अन्धकार ------------------‬

‭29‬
‭दृश्य ११ :-‬
‭[लगभग पिछले दृश्य (स्वप्न) की पुरानावतारित होती है , रामावतार फौजी की चाल में खट–खट आता‬
‭जा रहा है , एक विंग्स से दू सरी विंग्स की ओर निकल जाता है , वातावरण में तूफान से पहले की‬
‭खामोशी है , शागिर्द पेशे के लोग यहां –वहां , खिड़की, दरवाज़े हर जगह से दम साधे झांक रहे हैं।‬
‭रामावतार घर में दाखिल होता है , रतिराम छिटककर एक ओर चला जाता है , गोरी शर्माकर घूंघट तान‬
‭लेती है , रामावतार बक्सा खोल लेता है , लाल मोजे, बनियान और खिलौने निकलता है। गोरी झट से‬
‭कां से के बर्तन में पानी लाती है , मोजे बूट उतारकर रामावतार के पांव धोती है , पीती है , तभी बूढ़ी‬
‭मेहतरानी आती है , बालाएं लेती है। पीछे से कर्क श आवाज़ आती है जो अब्बा मियां की है ]‬
‭अब्बा‬‭मियां‬‭- हत्तेरी की, साला सिपाही बनता है, हिजड़ा ज़माने भर का...‬ ‭[गोरी, मेहतरानी‬
‭बाहर चले जाते हैं , बच्चा रामावतार की गोद में है ]‬‭गावदी कहीं का! ताज्जुब है तेरे फौजी होने पर,‬
‭खैर तेरी गलती नहीं है, वहां भी तो मैला ही उठता है अफसरों का, कौनसा तोप बंदू क छोड़ने‬
‭गया था…‬‭[रामावतार खींसे काढ़े हंसता रहा]‬‭क्यों बे, तू तीन साल बाद लौटा है ना...‬
‭रामावतार‬‭- मालूम नहीं हुज़ूर, थोड़ा कम ज़्यादा, इत्ता ही रहा होगा‬
‭अब्बा‬‭मियां‬‭- काम कै से बे, नौ महीने का कोर्स तो रतिराम पूरा कर ही चुका है तेरे घर में‬
‭रामावतार‬‭- इत्ता ही लगै सरकार, पर बड़ा बदमाश है ससुरा‬
‭अब्बा‬‭मियां‬‭- अबे तू हिसाब लगा ले‬
‭रामावतार‬‭- जब... क्या हिसाब लगाऊं ...‬
‭अब्बा‬‭मियां‬‭- उल्लू के पट्ठे ये कै से हुआ?‬
‭रामावतार‬‭- अब जे मैं का जानूं सरकार, भगवान की देन है...‬
‭अब्बा मियां‬‭- हां आसमान से टपका है, भगवान को क्यों बदनाम कर रहा है बे, यह लौंडा‬
‭हरामी है...‬
‭रामावतार‬‭- अब का करूं सरकार... हरामज़ादी को लगाऊं गा खूब मार आज‬
‭अब्बा‬‭मियां‬‭- अबे जनखे, निकाल क्यों नहीं देता कमबख्त को‬
‭रामावतार‬‭- नहीं सरकार, कहीं ऐसा हो सके ‬
‭अब्बा‬‭मियां‬‭- क्यों बे‬
‭रामावतार‬‭- हुज़ूर दो–ढाई हज़ार दू सरी सगाई के लिए कहां से लाऊं गा, बिरादरी जिमाने में भी‬
‭तो उत्ता ही खर्च लगेगा... कहां से लाऊं गा‬
‭अब्बा‬‭मियां‬‭- क्यों बे गोरी की बदमाशी का ताबान तुझे क्यों देनी पड़ेगी?‬

‭30‬
‭रामावतार‬‭- जे मैं क्या जानूं सरकार, हमारे में तो ऐसो ही होवे...‬
‭अब्बा‬‭मियां‬‭- वो तो मैं देख ही रहा हूं, और क्या–क्या होता है तुम्हारे में, हद कर दी तूने तो‬
‭“मगर लौंडा तेरा नहीं है रामावतार” उस हरामी रतिराम का है‬
‭रामावतार‬‭- तो का हुआ सरकार, मेरा भाई होता है रतिराम... कोई गैर नहीं अपना ही ख़ून‬
‭है …‬‭[सन्न माहौला, अब्बा मियां को काटो तो ख़ून नहीं]‬‭“सरकार लौंडा बड़ा हो जावेगा, अपना‬
‭काम समेटेगा, दो हाथ लगाएगा सो अपना बुढ़ापा तैर हो जायेगा।”‬‭[रामावतरवा का सिर शर्म से‬
‭झुक गया, एक दम अब्बा मियां का सिर भी झुक गया]‬
‭“___ लाखों करोड़ों हाथ, ना हरामी है ना हलाली। ये तो बस जीते जागते हाथ हैं जो‬
‭दु निया के चेहरे से ग़ज़ालत दो रहे हैं, उसके बुढ़ापे का बोझ उठा रहे हैं___‬
‭___ये नन्हे–मुन्हे हाथ, मिट्टी, कू ड़ा, कचरा, मैले में लिथड़े हुए हाथ, दो हाथ... स्याह‬
‭हाथ धरती की मांग में सिंदू र सजा रहे हैं”‬
‭[निर्देशक अपनी सूझ-बूझ और कल्पनाशीलता से इस व्यक्तित्व को एक रचनात्मक दे सकता है ]‬

‭------------------समाप्त------------------‬

‭31‬

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