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नन्ही जान के दो हाथ - draft
नन्ही जान के दो हाथ - draft
पत्र:
री—मेहतरानी
गो
रामावतार—गोरी का पति
बूढ़ी मेहतरानी —गोरी की सास
रतिराम —रामावतार का भाई
अब्बा मिया —पेशे से जज, घर के मालिक
अम्मा बेगम—जज की पत्नी
नुजहत —घर की बड़ी बेटी
सलमा —घर की छोटी बेटी
भाईजान—घर का बेटा
दीन मुहम्मद —घर का नौकर
शागिर्द पेशा
गांव के लोग
भीड़
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दृश्य १ :-
[मंच प्रकाशित होते ही मधुर शहनाई की धुन बज रही है , मंच के एक तरफ से गोरी और रामावतार
प्रवेश करते हैं। आगे-आगे रामावतार पीछे -पीछे गोरी एक लम्बे डंडे वाले झाड़ू पालकी के मानिंद
अपने-अपने कं धे पर संभाले हुए मंच पर एं टर करते दिखाई देते हैं। राम अवतार दू ल्हे के जोड़े में होते
हुए भी मिलिट्री के यूनिफार्म भी पहने हुए है। गोरी एकदम दुल्हन के लिबास में है। जैसे ही उप स्टेज
के मध्यभाग में दोनों पहुंचते हैं कु छ लोग विंग्स से अचानक अवतरित होते हैं। ये गांव वाले (गोरी के
ससुराल) हैं जिस में से समाज के लगभग सभी जातियों, धर्मों, के नुमाइंदे हैं। स्त्री-पुरुष, बूढ़े -जवान
सभी हैं ]
भीड़- रुको रे ... कहाँ मुंह उठाये चले जा रहे हो?
युवक १- बे देखता नहीं की गांव की चौहद्दी आ गयी है। क्यों बे रामअवतरवा! तुझे तो पता है
न गांव के रीति-रिवाज़?
युवक २- करनैल जी! बताया नहीं आपनी बहू को सारा गांव भस्म हो जायेगा अगर वो पवित्तर
नहीं निकलेगी तो ...
चौधरी-(दहाड़ते हुए)... सुन री ... घूंघटा वाली! अगर तू अपने मायके में किसी मरद के संग
बियाह से पहिले मुंह काला किया होगा तो गाँव की सरहद पर पाँव रखते ही सारा गाँव भस्म हो
जाएगा ...
चौधराइन- और नाही तो उलटे पाँव लौट जाने में तेरी–मेरी भलाई है।
[रामावतार एक निगाह गोरी पर डालता है ]
गोरी-जी रिवाज़ तो मेरे गाँव का भी है एक...
चौधराइन- अच्छा !!! हम भी तो सुनें ...
गोरी- मुझे डोली से उतारने के लिए गाँव की वही कुं वारी लड़की आगे बढे़ जो पवित्तर हो ...
नहीं तो मुझे छू ते ही आपके गाँव में आग लग जाएगी ...
चौधरी- ज़बान संभाल के रे ... हमारी सभी लड़किया नेक पारसा हैं। ... कोई भी ये रस्म
निभा सकती है। ... बढ़ो रे कोई ... बहुतकाम है निपटाने को ... चलते हैं यहाँ से
[पर कोई नहीं लड़की आगे नहीं बढ़ती है ]
चौधराइन- क्या हुआ रे सावित्री ... सांप सूंघ गया के ... बोल रे अपनी छोरी को ... बहू
उतरायी का रस्म पूरी करे ... सारा दिन यहीं धुप में खड़े रहेंगे क्या ?
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[परन्तु कोई लड़की टस से मस नहीं होती। सभी पुरुष औरतें एक दू सरे से आँख बचाते हुए इधर-उधर
निकलने की कोशिश करते हैं ]
गोरी- चलिए अब मैं खुद ही आ जाती हूँ... मैं पवित्तर ना भी हूँ तो अब आप लोगों के गाँव में
आग नहीं लगेगी... काहे से की आपकी कोई लड़की पवत्तर नहीं है ... तो मैं आऊं ?
[सबकी नज़र नीची है ]
चौधरी- ठहर अभी ... नियम ये है की तू यहाँ से गाँव तक झाड़ू मारते-मारते ही जाएग।
समझी ...
गोरी-वो तो मेरा काम है ...
[ गोरी और रामावतार दोनों मंच के अध्भाग तक आते हैं। गोरी और रामावतार दोनों मिलिट्री बिस्तर
बंद पर बैठ जाते हैं। इश्क़-मुहब्बत करने ही वाले होते हैं की रामावतार की पुकार आ जाती है उसे
लाम पर जाना होगा ]
रामावतार- अभी मेरी शादी रचाये साल भर भी नहीं बीता था, मेरी पुकार आ गयी ... हलाकि
मैं लाम पर तोप-बन्दू क छोड़ने नहीं जा रहा हूँ। फिर भी सिपाहियों का मैला उठाते-उठाते मुझ
में भी कु छ सिपाहियाना आन-बान और अकड़ पैदा हो गयी है। मैं कोई कर्नल नहीं हूँ लेकिन
भूरी वर्दी डाटकर मैं किसी सिपाही से कम भी नहीं लगता हूँ।
[रामावतार अपने बैग-बिस्तर बंद उठता है और गोरी को मंच पर छोड़कर बायीं विंग में समां जाता है।
गोरी दुखी है ... रामावतार के पीछे -पीछे लपकती है ]
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दृश्य २ :-
[बूढी मेहतरानी (गोरी की सास) हाथ में एक चिठ्ठी लिए मंच पर आती है। काफी उत्साहित नज़र आ
रही है। लगभग सभी कोनों में फु दकती-फिरती है। दरअसल वो चिठ्ठी पढ़ने के लिए किसी को ढूंढ रही
है । दर्शकों की तरफ मुख़ातिब होती है ]
बूढी मेहतरानी- मेरे राम की चिठ्ठी आई है , वो लाम पर से वापिस आ रहा है... मेरा एकलौता
पूत रामावतार लाम पर से ज़िंदा वापिस आ रहा है। ... भइया कोई चिठ्ठी तो बांच देव ...
[तभी अंदर से अब्बा मियाँ (पेशे से जज और घर के मालिक) मेहतरानी की आवाज़ सुनकर आते हैं।
इससे पहले घर की दो बेटियां , अम्मा बेगम और उनका हॉकी स्टिक लेकर घूमने वाला बीटा चिठ्ठी
पढ़ने से इंकार कर चले जा चुके हैं ]
अब्बा मियां- ला इधर दे ... जल्दी कर कोर्ट के लिए देर हो रही है। ... चिठ्ठी आ जाने से
ज़रूरी नहीं की रामअवतरवा आ ही जायेगा। पता नहीं उसकी छु ट्टी की अर्ज़ी मंज़ूर हुई भी
होगी की नहीं ... तीन साल में १३ चिट्ठियां आ चुकी है। सब में यही लिखा रहता है कि इस बार
आ रहा है।[अब्बा मियां चिट्ठी पढ़ते-पढ़ते बीच में दर्शकों से नज़र मिलाकर अपनी बात जोड़ते
जाते हैं। समान्तर इसके बूढी मेहतरानी भी दर्शकों से अपनी बात/संवाद बोलती रहती है ]
अब्बा मियां- जंग ख़त्म हो गयी है। इसलिए रामअवतरवा तीन साल बाद वापिस आ रहा है
बूढ़ी मेहतरानी- पचास बरस की हूँ, पर सत्तर की मालूम होती हूँ। दस-पंद्रह कच्चे-पक्के जने,
उन में से बस रामअवतरवा ही बड़ी मन्नतों-मुरादों से जिया था। आखरी बार जब वर्दी पहनकर
मेरे पैर छू ने आया था तो क्या शान थी उसकी...
अब्बा मियां- जैसे कर्नल ही हो गया था। रामअवतरवा के आने के बाद जो ड्रामा होने की
उम्मीद है सब उसी पर आस लगाए बैठे हैं। मुमकिन है वो गोरी की करतूत सुने और उसका
जवान ख़ून हतक से खौल न उठे । आन दे रामावतरवा को!
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4
दृश्य ३ :-
[शागिर्द पेशे जैसे भिश्ती, हलवाई, धोभी, माली, बावर्ची, नाई, चपरासी, व अन्य लोग मंच पर नाच रहे
हैं ... मस्ती-मज़ाक के मूड में तभी बायीं विंग्स से पायल या घुंघरू के छम-छम की आवाज़ आती है।
सभी शागिर्द पेशे के लोग ठिठक कर आवाज़ की दिशा की तरफ देखते हैं। छम-छम की गति बढ़ती
प्रतीत होती है , सभी आगे बढ़ते हैं तभी छम-छम पीछे यानि दाएं विंग से की तरफ से आने लगती है।
सभी सकपकाये हुए हैं की आवाज़ कहाँ से आ रही है। तभी हाथ में लम्बी झाड़ू और कमर या सर पर
मैले की टोकरी उठाये गोरी मेहतरानी (बूढ़ी मेहतरानी की पतोहू) मंच पर भूचाल मचती एं टर करती है
... दुपट्टा छाती पर ना होकर सर पर घूँघट बनकर लटक रहा है। पीछे एक तरफ सभी शागिर्द पेशे के
लोग अपने-अपने हाथों में साबुन, मसक, जलेबी (अपने विभाग के अनुसार) थामे गोरी को एक टक
घूरे जा रहे हैं ]
गोरी मेहतरानी-(दर्शकों से)ब्याह कर आई थी तो क्या मुस्मुसी थी मैं। रामअवतरवा... मेरा
ख़सम ... तौबा तौबा जब तक मेरे राम मेरे वो रहे तब तक मेरा घूंघट फु ट भर लम्बा रहा और
किसी ने मेरा चाँद सा मुखड़ा ना देखा। जब वो गया तो कै से बिलख-बिलख कर रोई... जैसे
मेरी मांग का सिंदू र हमेशा के लिए उड़ गया हो ... थोड़े दिन रोई-रोई आखें लिए, सर झुकाये
मैले की टोकरी धोती रही... फिर आहिस्ता-आहिस्ता मेरे घूंघट की लम्बाई कम होती गयी ...
[गोरी अपने चेहरे से घूँघट उठती है। शागिर्द पेशे से एक-एक कर गोरी को अलग-अलग अंदाज़ से
लुभाने की कोशिश करते हैं। जैसे हलवाई इमरती और जलेबी लेकर गोरी के पास आता है , भिश्ती
पानी का पाइप ही उठा लता है , चपरासी गोरी को यहाँ -वहां सफाई की हिदायत देता है लेकिन मैले
की टोकरी उठाये उसके पीछे -पीछे चलता रहता है , धोभी, माली, पनवाड़ी, आदि भी गोरी को छे ड़ते
हैं ... फिर गोरी से जुड़े संवाद भी बोलते जाते हैं ]
गोरी-कु छ लोगों का ख़्याल है यह सब बसंत ऋतू का किया धरा है। कु छ लोग कहते हैं की मैं
हूँ ही छिनाल।
चपरासी- राम अवतरवा के जाते ही क़यामत हो गई, कमभख़्त हर वक़्त ही-ही हमेशा
इठलाना।
गोरी-कू ल्हे पर मैले की टोकरी लेकर, कांसे के कड़े छनकती जिधर से निकल जाती लोग
बदहवास हो जाते।
धोबी-धोबी के हाथ से साबुन की पट्टी फिसलकर गिर जाती।
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भिश्ती-भिश्ती की ढोल बाल्टी कु एं में डू बती चली जाती और रस्सी हाथ से छू ट जाती और
कभी-कभी पानी की पाइप में खुद ही उलझकर गिर जाता।
चपरासी-चपरासियों की बिल्ला लगी पगड़ियां ढीली हो कर गर्दन में झूलने लगती
बावर्ची-बावर्ची की नज़र तवे से सुलगती रोटी से उचट जाती
गोरी-जब ये सारे परलय लिए घूंघट में से गोलियां दागती तो शागिर्द पेशे लेकर मोहल्ले वाले
सभी एक बेजान लाश के तरह सकते में आ जाते।
[ सभी एक दू सरे पर ताना जनी करने लगते हैं ]
बावर्ची-(हलवाई से)क्यों बे ससुर के नाती। सारी उम्र गुड़ वाली चौटहिया जलेबी खा के
कला-कला सीरा हगते रहे और गोरी को खिलाने चले थे चीनी वाली इमरती ... अगली बार
रसगुल्ला लेकर जाना हंडिया वाली ...
हलवाई-अबे वो खाकपड़े जनखे ... तेरी तीसरी बीवी पर हिस्टेरिया के दौरे पड़ते रहे हैं, वो
तो संभलता नहीं, चला था गोरी मेहतरानी की टोकरी का मैला चखने ...
[बाकि सब शागिर्द पेशे वाले हँसते हैं , अब उन पर बावर्ची, हलवाई, दोनों मिलकर तनाजनि की बौदार
कर देते हैं ]
बावर्ची-सुन बे वो सरकं डे ... रं गरे ज़ की नाजायज़ औलाद! क्रॉस ब्रीड धोबी का कु त्ता! तू भी
तो गया था गोरी को साबुन मलने, साले मसल के सर्फ़ का पाउडर बना दूंगा तुझे... समझा! न
घर का रहेगा न घाट का...
धोबी-अबे वो मुग़लिया खानसामों के हरम की पैदाइश! ज़्यादा चपड़-चपड़ की ना तो यहीं
साबुन की पट्टी ठू स दूंगा अभी ... सारी उम्र दस्त-पेचिस लिए सरकारी खैराती हस्पताल के
संडास में पड़ा रहेगा।
चपरासी-दे ख बे चिकने! सर्कार को तो गली देयो मत
पनवाड़ी-और कभी-न-कभी संडास साफ़ करने आएगी ही गोरी!
(एक ठहाका लगता है )
चपरासी-सफाई अभियान सरकार ने ले रखी है।
भिश्ती-मतलब गोरी मेहतरानी क्या अब सरकारनी हो गयी है ?
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[एक साम्मूहिक ठहाका उभरता है। एक औरत (प्रत्यात्मक) मंच पर आती है और तमाम शागिर्द पेशे
की बीवियों की नुमाइन्दगी के तौर पर संवाद बोलती ह। मंच पर सिर्फ औरत और गोरी ही रह जाते हैं
बाकि सभी वहां से चले जाते हैं ]
औरत-... इन सबकी बीवियां जो गोरी को अपना सौतन ही तो मान बैठी हैं सारा गुस्सा अपने
बच्चों पर उतारती हैं। चपरासन छाती से चिमटे लौंडे को बेबात धमूके जड़ने लगती है। बावर्ची
की तीसरी बीवी पर हिस्टेरिया के दौरे पड़ने लग जाते हैं। धोबन मरे गुस्से के कलफ़ की कुं ण्डी
लौट देती। भिश्ती की बीवी मसक का सारा पानी रात के दो-दो बजे उठकर अपने ऊपर उंडेल
लेती है। पनवाड़ी की बीवी ने तो एक दिन गोरी के लिए बांधे बीड़े में सिन्दू र ही मिला दिया था।
लेकिन सांडनी गोरी पर कोई असर नहीं हुआ।[औरत चलीजाती है ]
गोरी-नाम की गोरी हूँ। या कमभख़्त सियाही बनाने वाली कारखाना हूँ। जैसे उलटे तवे पर
किसी फु हड़िया ने पराठे तलकर उसे चमकता हुआ ही छोड़ दिया हो। चौड़ी फु कना सी नाक,
फै ला हुआ दहाना, दांत मांझने का तोह मेरी सात पुश्तों ने फै शन ही छोड़ दिया हो। आखों में
टनों काजल थोपने के बाद भी मेरी दायी आँख का भैंगापन छु पा नही। फिर भी टेढ़ी आँख से
ज़हरीले तीर अपने निशाने पर बैठ ही जाते हैं। कमर है की कमरा ... कु ठला है। लोगों के
जूठन खा-खाकर दुम्बा हो रही हूँ। मेरे नाज़ुक़ चौड़े भैंस के से खुर, जिधर से निकल जाती हूँ
कड़वे तेल की सड़ांध छोड़ जाती हूँ। हाँ अलबत्ता मेरी आवाज़ में बाला की कू क है।
तीज-त्यौहार पर जब लेहक कर नौटंकी गाती हूँ तो मेरी आवाज़ ऊं ची लहराती चली जाती ...
[किसी नौटंकी की "बहरतवील" गाती है ]
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दृश्य ४ :-
[शागिर्द पेशे की सभी औरतों से लेकर मोहल्ले की अन्य मर्दों की बीवियां यहाँ तक की घर की भावजों
का एक वफ़द अम्मा के दरबार में अपनी-अपनी शिकायतें लेकर हाज़िर हुई। सभी गोरी को कोसने दे
रही हैं। "पति रक्षक कमेटी" बनाई जाये, पर विचार हुआ सारी औरतें स्तरानुसार ज़मीन, पीढ़ियों और
पलंग की अदवाइन पर बैठी, पान के टुकड़े तकसीम हुए और बुढ़िया को बुलाया गया, कु छ बीवियों ने
रो-रो कर बयान दे -देकर अपना दुखड़ा रोया]
औरत १-कछु कीजो अम्मा मालकिन! ये गोरी से हमें बचावो... मरखनी लम्बी-लम्बी सींघो
वाली बिजार है ...
औरत २-अरे नेवली है नेवली, छु ट्टा फिरती रहती है
औरत ३-नेवली भी है और नागिन भी ... कलमुही करै तिन कहीं की ...
भावज १-कु त्तिया पाखाना साफ़ करने आती है और हमारा खाना ख़राब करके चल देती है।
भावज २-जब तक कमरे में झाड़ू -बुहारू करती, हम अपने बच्चों को दू ध नहीं पीला सकते...
भागती हैं अंदर कमरे में बच्चे के मुंह से छाती छीनकर की कहीं यह डायन हमारे शौहरों पर
टोना-टोटका न कर रही हो।
[तभी दो औरतें सुर में रोना शुरू करती हैं। बाकायदा बयान दे -देकर...]
अम्मा-खामोश... बिलकु ल शोर नहीं। वो बावर्चिन! अपने बच्चे के मुंह में छाती ठू स... चुप
करवा उसे... हं ... तो अचानक इतनी लाड़ली मेहतरानी की बहु गोरी लोगों की आँखों का
काँ टा बन गयी। ...(बूढी मेहतरानी की ओर मुखातिब लेकर)क्यों री चुड़ैल, तूने कामुक बहु
को छू ट दे रखी है की वो हमारी छाती पर कोदो दलती फिरे ?
बूढ़ी मेहतरानी-का करूँ बेगम साब
अम्मा-अरे इरादा क्या है तेरा? क्या मुंह कला करायेगी?
बूढ़ी मेहतरानी-हरामखोर को चार चोट की मार भी दई मैं तो, पर रांड मेरे तो बस की नाय।
आज तो रोटी भी खाने को ना दई।
औरत १-अरे रोटी की क्या कमी है उसे... हमारे वो तो पहले गोरी देवी को भोग लगाकर ही
अन्न का दाना मुंह में डालते हैं।
औरत २-मालपुआ-रसमलाई उड़ावे है दिन भर... झाड़ू -बुहारू तो आता ही नई उसे, पता
नहीं कहाँ से उठा लाई...
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औरत ३-बच्चन की गन्दगी से नाक-भौं सिकोड़ती है और उनके बापुओं को छाती तक से
लगाने में कोई गुरे ज़ नहीं...
अम्मा-सुन रही है रे ... गोरी के तो करतूत बहुत ही संगीन हैं। कु छ तो करना पड़ेगा ...
बूढ़ी मेहतरानी-बेगम साब, आप जैसी बताओ वैसी करने में मोये ना थोड़ई, पर क्या करु,
क्या राँड का टेटुआ दबाये दऊँ ...
सब-दबा दे, दबा दे, पाप कटे ...
अम्मा-अरे नहीं अब इतना भी नहीं कि मुई को तो तू मैके फिकवा दे
बूढ़ी मेहतरानी-बेगम साब, कहीं ऐसा हो सके है । अगर इसे मैके भेज दिया तो इसका बाप
फौरन दू सरे मेहतर के हाथ बेच देगा ।
अम्मा-ऐ…?
बूढ़ी मेहतरानी-हां ! सारी उम्र की कमाई पूरे २०,००० झोके हैं तब मुश्टंडी हाथ आई है।
औरत १-अरे तो अब तू बेच दे इसको किसी लूले-लंगड़े के हाथ, बड़े पैसे होते हैं उनके पास
औरत २-हां हां, इतने पैसे में तो दो–चार गाय आ जायेगी, मज़े से भर कलसी दू ध और देंगी।
ये रांड तो दुलत्तीया ही देती होगी।
बूढ़ी मेहतरानी-वो तो है दो हाथ वाली है पर चार आदमियों का काम निपटाती है। गोरी सिर्फ
बेटे के बिस्तर ही नहीं सजाती है। राम अवतार के जाने के बाद मुझसे क्या इतना काम
संभलता?
अम्मा-अरी निगोड़ी राम अवतार को लाम पर गए २ साल हो गए हैं। मुहल्ले भर के बिस्तरों
की ज़ीनत ही तो बनी है गोरी।
बूढ़ी मेहतरानी-राम अवतरवा का सारा तनख्वाह बनिये का उधार चुकाने में ही डू ब जाता है।
ब्याह पर जो खर्च किए थे, जजमान खिलाए थे, बिरादरी को राज़ी किया था, ये सब खर्च कहां
से आएगा।
अम्मा-भाड़ में जाए खर्चा खर्चा खर्चा दू सरी ले आ कहीं से
बूढ़ी मेहतरानी-जी ऐसी मोटी ताज़ी बहु अब ४०,००० से कम में ना मिलेगी। ३०,००० का
माल-किसका दिल है फें क दे? पूरी कोठी के सफाई के बाद आस पास की चार कोठियों का
काम निपटाती है। रांड काम में चौकस है वैसे
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अम्मा बेगम-फिर भी अगर इस लुच्ची का जल्द-अ-जल्द कु छ इंतज़ाम नहीं किया गया तो
तुझे कोठी के अहाते में रहने नहीं दिया जाएगा
[इस पर मारे गुस्से के बूढ़ी मेहतरानी गोरी का झोंटा पकड़ के लात घूंसे थप्पड़ जड़ती जाती है , तभी
घर का नौकर दीन मुहम्मद चिल्लाता हुआ आता है ]
गोरी-और मारो... ज़र ख़रीद जो हूं २०,००० जो खर्चे हैं मुझपर... धंधा और करवा लो कोठे
पर बिठाकर... ऊं ऊं
लड़की-और दू सरे दिन जो बवाल हुआ, सारे मामले की धज्जियां बिखेर दी गई... बावर्ची,
भिश्ती, धोबी, चपरासियों ने अपनी बीवियों की खूब मरम्मत की, यहां तक कि मेरी सभ्य
भाभियों और शरीफ भाइयों में खट पट। भाभियों के मैके तार जाने लगे। गरज बहु हरे –भरे
खानदान के लिए सुई का कांटा बन गई...
दीन मुहम्मद-बीबी जी अम्मा! ये देखिए पिछवाड़े मेहंदी के तले मारके गाड़ दिया है इसने
अम्मा बेगम-क्या मेहंदी के तले? चल निकल अभी यहां से… देखता नहीं अभी यहां औरतों की
मीटिंग चल रही है
[सारा माहौल स्तबद्ध है , नुज़हत और सलमा दोनो बहने अम्मा से चिमट जाती हैं। दीन मुहम्मद चला
जाता है ]
अम्मा बेगम-आन दे रामावतरवा को!
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दृश्य ५ :-
[दो बहने सलमा और नुज़हत डरी सहमी मंच पर आती हैं , सलमा कम बोलती है , वो कभी कभी खो
सी जाती है और आने वाले नतीजे से भयभीत और परे शान भी है ]
सलमा-तो आपा, फिर अब क्या होगा? अब्बा सुनेंगे तो बस अंधेर हो जायेगा
नुज़हत-तो तुम समझती हो ये बात छिपी रहेगी? अम्मा को तो कल ही शक हुआ था
सलमा-हां आपा छिपने वाली बात तो नही, गोरी की सास तो उसकी जान ही ले लेगी
नुज़हत-हां गोरी ने किसी को बताया भी तो नहीं कै सी पक्की है
सलमा-पिछली बार जब दीन मुहम्मद वाला किस्सा हुआ था, तो भी चुपके से तोप ताप दिया
था
नुज़हत- हां उस बेचारे की इतनी तो तनख्वाह है
सलमा- भाईजान पुलिस में दे देंगे गोरी को तो… छोड़ने वाले नहीं है… पुलिस के नाम से तो
मेरा जी कांपता है
नुज़हत- और क्या पुलिस किसी की नही होती तुम्हें याद है, नन्हू की बहु ने जब हंसुली चुराई
थी तो दोनो गए थे जेल खाने
सलमा- हथकड़ियां डालकर ले जाते हैं, क्यों आपा?
नुज़हत- हथकड़ियां और बेड़ियां
सलमा- लोहे की होती है न?
नुज़हत- पक्के फ़ौलादी लोहे की
सलमा- फिर कै से उतरती होंगी, मर जाते होंगे तभी उतरती होंगी।
नुज़हत- हं… क्या करे गी बेचारी गोरी?
सलमा- और क्या... बेचारी… मज़ाक थोड़ी ही है। उसने गाड़ा किस सफाई से बेचारे को...
हिम्मत तो देखो, हमें भी नहीं बताया
नुज़हत- उसने किसी को नहीं बताया
सलमा- कै सी बेरहम है, बेचारा बच्चा... क्या बहुत मुश्किल से जान निकली होगी आपा...
नुज़हत- एक उंगली के इशारे से बेचारा ख़त्म हो गया होगा
सलमा- हाय हाय उसका जी भी न दुखा... चलो चलते हैं, गोरी से ही पूछते हैं, कै से मारा
उसने?
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[सलमा और नुज़हत मंच से निकलती हैं तभी एक लड़की दोनो को लगभग चीरती हुई मंच पर आती
है , तीनों की नज़र भी मिलती है , लड़की मुस्कु राती है लेकिन सलमा, नुज़हत की खास प्रतिक्रिया नहीं
होती है , दोनों एक दू सरे को लगभग खीचती हुई मंच से गायब हो जाती हैं। लड़की एक स्पॉट में आती
है जहां पहले से गोरी डरी सहमी अधमरी सी पड़ी है। लड़की संवाद बोलती है ]
लड़की- गोरी है तो नौकरानी, मेहतरानी, और मैं एक लड़की... पर बचपन से ही मेरी दोस्त
रही है। वो पूरी आज़ादी है और मैं आज़ाद भी नहीं... मज़े में तो वही है। वो पर्दा नहीं करती,
मज़े से दुपट्टा फें ककर आम के पेड़ पर चढ़ जाती और कू दती-फांदती... और हम मलमल की
ओढ़नियां संभालने में ही दिन भर busy रहते... बाहर कदम रखना तो जुर्म है... ये गोरी ही है
जो कभी कभी हम पर तरस खाकर कोयल मारी अमियां खिड़की से अंदर फें क देती। और
अब गोरी पर ये विपदा आ पड़ी है। कोयल सय्याद के कब्ज़े में है।
[लड़की मंच से चली जाती है और उसकी जगह सलमा और नुज़हत ले लेती हैं , गोरी उन्हें देखकर
सहम जाती है ]
सलमा- गोरी! ऐ गोरी कै सा है जी?
नुज़हत- दर्द अब भी है या गया? बुखार भी है ?
सलमा- अपनी सास से बोल के हकीम साहब के यहां से दवा क्यों नहीं मंगा लेती
गोरी- दवा, वो तो मुझे ज़हर भी लाकर देगी
नुज़हत- हां गरीब की लड़की मरती हो तो कोई भी दवा लाकर ना दे, हद है ज़ुल्म की
सलमा- मगर कब तक छिपायेगी, मिट्टी भी तो तूने ठीक से नहीं डाली
गोरी- क्या... तो क्या सबको मालूम हो गया? नुज़हत बी? हो हो हो (रोती है)
सलमा- अब बस हम से मत बनो, हमें सब मालूम है ।
नुज़हत- हम पिछवाड़े जाकर कल देख आए हैं
सलमा- और तुझे उस निगोड़े नौकर दीन मुहम्मद की कमीज़ मिली थी, कमीज़ का कोना
दिखाई दे रहा था।
नुज़हत- अरे किसी चीथड़े में लपेट दिया होता, मेरे तो रोंगटे खड़े हो गए थे, बेचारे बच्चे की
गर्दन टेढ़ी हो गई थी
गोरी-फिर सलमा बी! आपने के ह दिया होगा सब से? हाय मेरी अम्मा
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नुज़हत-हम ऐसे छिछोरे नहीं हैं गोरी, तेरी शिकायत कै से कर देते, जबकि हमें मालूम है कि
तू अके ली कसूरवार नहीं है।
गोरी- क्या करू बीबी जी, मन करता है अपना गला घोट लूं
नुज़हत- हैं हैं, क्या बातें मुंह से निकालती है।
गोरी- बस बीजी, दादी बी की पिटारी से ज़रा सी अफ़ीम ला दीजिए, सच मुच खाकर सोई रहूं
नुज़हत- नहीं गोरी, खुदकु शी हराम है... लगता है बात दब दबा गई, किसी को पता नहीं
चलेगा और तू अच्छी हो जायेगी।
गोरी- क्या करू अच्छी होकर? दिन रात की जूतियों से तो मौत ही भली।
सलमा- मगर मैं पूछती हूं तूने मारा कै से? ऐ हे ज़रा सा था
गोरी- मैंने... हो... हो...(रोने लगती है )
नुज़हत- चुप कर सलमा, बेचारी का दिल दुखाती है। चुप चुप शायद अम्मा आ रही है।
[दोनो दरवाज़े के पीछे छु प जाती हैं। अम्मा बिना इधर उधर ध्यान दिए दू सरे विंग्स में निकल जाती है ]
नुज़हत- चल चल हम भी चलती हैं यहां से
[ तभी भाईजान हाथ में हॉकी स्टिक लिए अचानक प्रकट हो जाते हैं , जो बहुत देर से तीनों की बातें
सुन रहे थे]
सलमा-नुज़हत-(एक साथ चौंककर)भाईजान आप?
भाईजान- स्टिक में कड़वा तेल मलने आया था। क्यों?
सलमा- लाइए हम लगा देते हैं(जल्दी से सलमा हॉकी छीन लेती है )
भाईजान- ये लड़कियों के बस की बात नहीं है... मक्खन नहीं लगाना है परांठे पर
नुज़हत- अब ये क्या बात हुई भला... कभी दिखाना एक दिन रोटी बनाकर
भाईजान- वो(धमकाकर)सब सुन लिया है, क्या साजिशें हो रही हैं।
सलमा- क्या सुन लिया है भाईजान?
भाईजान- कु छ नहीं बस दीन मुहम्मद की कमीज़ गायब हो गई है, और, कमीज़ यहां गोदाम
में तो होगी नहीं
सलमा- हां और नहीं तो क्या
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भाईजान- यहीं आ रहा था, वो तो मैने ही माना कर दिया, सोचा मैं खुद ही लगा लेता हूं तेल
अपनी स्टिक पर
नुज़हत- तो अब जाओ भाईजान
भाईजान- तो अब लाओ मेरी स्टिक(सलमा के कान में कु छ कहता है )
सलमा- क्या... तो क्या आप बहुत देर से खड़े थे?
भाईजान- दीन मुहम्मद की कमीज़... मेहंदी के पेड़ के नीचे... पिछवाड़े(अचानक धमकाते
हुए)दे खो सच सच बता दो वरना अभी अम्मी से जाकर कहता हूं... अम्मी...
सलमा- मेरे अच्छे भाईजान, ये गोरी बेचारी
भाईजान- बेचारी, सुअरनी है गोरी... मेरे सारे जूते पलंग के नीचे फें क देती है। इसका वश
चलता तो मेरे जूते ही गाड़ आती, वो तो... इसकी तो खाल खिंचवा लूंगा एक दिन
नुज़हत- नहीं भाईजान! आप कसम खाइए कि किसी से नहीं कहेंगे(प्यार से भाईजान के गले में
बाहें डाल देती है )
भाईजान- हटो... नहीं खाता कसम–वसम, मत बताओ हम सब जानते हैं, अभी से नहीं कई
दिन से...
गोरी- हाय मेरी अम्मा(फू ट कर रोने लगती है )
सलमा- भाईजान हमारा मरा मुंह देखें, जो किसी से कहें, हम सब बता देंगे। बात ये है… कल
शाम को… अब्बा जान क्लब गए थे और अम्मी सो रही थीं
भाईजान- हूं, तो अब क्या उन्हें पता नही चल जायेगा
सलमा- मगर आप ना कहिएगा, आपको रज़िया आपा की कसम
भाईजान- रज़िया, है दुष्ट , हटो! कौन रज़िया? हटो हम जा रहे हैं
नुज़हत- भाईजान लेकिन आप प्लीज किसी से कु छ नहीं कहेंगे
[भाईजान चले जाते हैं ]
सलमा- ये भाई किसी के नहीं होते, स्वैटर बुनवाये, बटन टकवाएं , वक्त बेवक्त अंडे तलवायें,
रुपया उधार ले जाये, और कभी भूल कर वापिस न करें
[तभी बूढ़ी मेहतरानी झाड़ू लगाने आती है ]
नुज़हत- इसका तो बुखार उतरता ही नहीं, तुम कु छ करती क्यों नहीं?
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बूढ़ीमेहतरानी- अरे बेटा क्या करू, हरामखोर ने तो मुझे कहीं का नहीं रखा, जहां जहां
नौकरी की इसी के गुणों से निकली गई... घड़ी भर को चैन नहीं
नुज़हत- मगर तुम चाहो कि ये मर जाए, तो तुम भी नहीं छू टोगी
बूढ़ी मेहतरानी- पाप ही कट जाए, कालमुही ने कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रखा...
थानेदारनी तो मुझे अब रखने को कहती है, पर इस कामिनी के मारे कहीं नहीं जा सकती ।
गोरी- तो ज़हर दे दे ना मुझे, हो हो हो
बूढ़ी मेहतरानी-अरे मैं क्यों ज़हर दूंगी, जेल जायेगी और वहीं सड़-सड़ के मरे गी। हटो बीबी
मुझे झाड़ू लगाने दो... राम अवतरवा लाम पर घट रहा है और ये यहां छाती पर मूंग दल रही
है ।
[तभी अम्मा बी अचानक आ धमकती हैं। दोनो बेटियों को गोदाम में देखकर उनका माथा ठनक जाता
है , तभी नज़र गोरी पर पड़ती है ]
बूढ़ी मेहतरानी-चलो हटो बी, झाड़ू लगाने दो
अम्माबेगम-(सलमा, नुज़हत को डांटते हुए)ये क्या हो रहा है यहां, नुज़हत! कितनी दफा कहा
है शरीफ ज़ादिया रज़ीलों-कमीनों के पास नहीं उठती बैठती... जब देखो, सर जोड़े बातें हो
रहीं हैं, जब देखो दुखड़े रोए जा रहे हैं... चलो निकलो यहां से... उई इसे क्या हुआ? लाश
बनी पड़ी है बन्नो?
बूढ़ी मेहतरानी-जी बुखार है कमबख्त को
अम्मा बेगम-बुखार तो नहीं मालूम होता, खासा तबाक सा चेहरा बना रखा है... काम निपटा
और निकल यहां से...(गोरी से)तू नहीं जायेगी किसी के कमरे में... समझी... अहाते तक
रहियो
[अम्मा और भी कई हिदायतें देकर चली जाती है तभी दीन मुहम्मद अपनी मां के साथ आ टपकता है।
दीन मुहम्मद की मां खास उस किस्म की नौकरानी है जो शागिर्द पेशे में क्या चल रहा है पर नज़र
रखती है और अम्मा बी जैसी बड़ी बेगमों से चुगली करती रहती है ]
दीन मुहम्मद-ये देखिये मेरी कमीज़ में लपेटकर पिछवाड़े मेहँदी के पीछे गाड़ आयी थी
बूढ़ी मेहतरानी-चल झूठे जैसे खुद बड़ा मासूम है
दीन मुहम्मद- तो क्या मैंने मारा है... वाह और फिर अपनी ही कमीज़ में लपेट भी देता कि
झट पकड़ा जाऊं ... बीबी जी ये गोरी ने गाड़ा है
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बूढ़ी मेहतरानी-चल नामुराद, तुझे कै से मालूम मेरी बच्ची ने गाड़ा है? तेरी अम्मा-बहना ने
गाड़ा होगा... मेरी लौडिया के सर मढ़ रहा है
दीन मुहम्मद-मैं शर्त बद सकता हूँ, इसी का काम है ये , यह देखिये मेरी कमीज़ फाड़ भी
डाली... जाने दू सरी आस्तीन कहाँ गयी?
बूढ़ी मेहतरानी-हरामखोर उसी का नाम लिए जाता है, परसो से तो वो पड़ी मर रही है ...
सारा काम तो मैं निपटा रही हूँ... मुआ काम है कि दम को लगा है
दीन मुहम्मद-इसलिए मक्कार साधे पड़ी है, डर के मारे नहीं तो क्या हमें मालूम नहीं मरज़
... चुपके से गाड़ आयी कि सरकार को मालूम हो गया तो जान की खैर नहीं
सलमा-सूअर कहीं का
बूढ़ी मेहतरानी- ख़ुदा की मार तुझपे ... बड़ा आया साहूकार का जना...
दीन मु की माँ-बस-बस! जब तक बोलती नहीं, चढ़ी जा रही है। गोरी तो है ही बड़ी
सैय्यदानी!
बूढ़ी मेहतरानी-दे खो दीन मुहम्मद की माँ! तुम्हारा कोई बीच नहीं, ज़माने भर का लुच्चा मुआ
दीन मु की माँ- अच्छा... बड़ी नन्ही सी हैना गोरी!
गोरी- ऊँ ऊँ ... क़सम से बीबीजी। यह दीन मुहम्मद...
दीन मुहम्मद- लगा दे मेरे सर पर ... ये इसी की हरकत है बी!
बूढ़ी मेहतरानी-चुपकर बे .. निगोड़मारा ...
दीन माँ-निगोड़ी गोरी नहीं? ... अभी जो घर के सारे पोल खोलई तो... फिर ना कहना की
नौकर होकर नौकर को उधड़ती हूँ... और नन्ही बनकर मेरे लौंडे को बदनाम किये जा रही है
जैसे हमसे कु छ छु पा है?
बूढ़ी मेहतरानी-छु पा तो मुझसे भी कु छ नहीं है दीन मुहम्मद की माँ... पिछले जाड़ों में कै से
ऐसे ही झटपट कर दिया था तेरे लौंडे ने ... और तुम खुद छिपा गयी थी ...
दीन माँ-दे खिये बीबी जी ... अब ये बढ़ती ही चली जा रही है... कसाइन कहीं की ... माना
चटपट कर भी दिया था। तोह क्या... हो जाती है ग़लती जवान लौंडों से .. ज़रा सी फ़ितनि के
गुन तो देखो...
[तभी अम्मा बेगम फिर आती हैं ]
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अम्मा बेगम-बस-बस .. ये क्या कं जर खाना मचा रखा है। चलो अपना-अपना काम ख़त्म
करो.. भला बताओ तो सरकार को पता चला, तो अल्लाह जानता है क़यामत ही आ जाएगी।
टां ग बराबर छोकरी, क्या मार-मारके मज़े से ठिकाने लगा दिया। अंधेर है कि नहीं ...
[तभी भाईजान अब्बा मियां के साथ हॉकी पर तेल की मालिश करते हुए आते हैं ]
अब्बा मियां-चुप रहो रे ... क्या भटियारियों की तरह चीक रहे हो ..
दीन मुहम्मद-ये देखिये सरकार... मारके पिछवाड़े गाड़ आयी और अंदर बनी बैठी है।
बूढ़ी मेहतरानी- ओ मुर्दे! क्यों झूठे दोष मढ़ता है...
दीन की माँ-मुरदी होगी तेरी चहेती, जिसकी ये करतूत है ... लाडो के गुन तो देखो
अब्बा मियां-क्या रे गोरी... क्या किस्सा है...
बूढ़ी मेहतरानी-सरकार उसका जी अच्छा नहीं है...
अब्बा मियां-जी-बी सब अच्छा है... क्या रे ..
[गोरी घुटी घुटी आहें भरने लगती है ]
दीन मुहम्मद-बन रही है सरकार
अब्बा मियां-बता रे ... किसका बच्चा था तेरे पेट में ..[पूरा माहौल सन्न है ]मार मूरके गाड़
दिया, ठीक है समझ में आया .. लेकिन करतूत किसकी है।
अम्मा बेगम-अजी सुनिए तो
अब्बा मियां-तुम खामोश रहो जी ... बुलाओ शागिर्द पेशे को... बावर्ची, भिश्ती, माली,
चपरासी...- पूरे खानदान को बुलाओ पता तो चले बच्चा आखिर था किसका...
अम्मा बेगम-सरकार सुनिए तो...
अब्बा मियां-नहीं ... मुझे उसी के मुंह से सुनना है।
[तभी शागिर्द पेशा, खानदान और मोहल्ले वाली मरद भी आते हैं ]
अब्बा मियां-क्या रे ... कु बूलते है कि नहीं?
व्यक्ति- नहीं मालिक... मेरा तो हो ही नहीं सकता.. मैंने तो सिर्फ एक बार गोरी का हाथ चूमा
था। ..और क्या हाथ चूमने से ...?
अब्बा मियां-इधर आ बे... तूने क्या चूमा है...
व्यक्ति- नहीं हुज़ूर.. एक बार मेरे दवाख़ाने आयी थी .. और मैंने सिर्फ उसे पलंग पर लिटाकर
उसका चेक-उप किया था लेकिन...
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अब्बा मियां-गोरी तू ही साफ़-साफ़ बता दे .. वरना हम तुझे पोलिस में दे देंगे...[गोरी की
हिचकी बंध गयी]दे खो जिसका भी बच्चा है साफ़-साफ़ बता दे... वरना ठीक नहीं गोगा..
[अब्बा मियां एक रईसज़ादे नुमा युवक की ओर बढ़ता है ]क्यों साहबज़ादे!
व्यक्ति- चचाजान! क्या है ना की... एक बार मेरे कमरे में पोंछा लगाने आयी थी ... चूँकि
पोंछा बहुत गीला था तो उसे निचोड़कर गोरी के हाथों में देते हुए उसकी उँगलियाँ टच हो गयी
थी बस... इतना ही बस..
अब्बा मियां-हं .. इतना ही.. इतने से ही बच्चा आ गया ...
अम्मा बेगम-अजी .. क्यों गड़े मुर्दे उखाड़ रहे हो?
अब्बा मियां-चुप रहो बेगम... आज तो मुर्दे ज़िंदा भी हो जायेंगे। ... क्यों रे जाहिलों.. गोरी के
आशिकों.. बोलो किसका बच्चा था..?
व्यक्ति १-माई-बाप .. एक बार ख़ता हो गयी थी... पर उसको तो साल भर से ज़्यादा हो गया
होगा...
अब्बा मियां-तो क्या गारं टी है की ख़ता दोबारा नहीं हुई हो...
व्यक्ति २-सरकार... गोरी से ही पूछ लो...
अब्बा मियां-वो तो ख़ैर पूछ ही लूँगा .. ज़रुरत पड़ी तो(झुंड की ओर देखकर)बको रे
एक-एक कर... आज यहीं इजलास लगता हूँ.. बेगम चाय लेकर आओ...
[एक-एक कर दो-चार व्यक्ति आगे आते हैं और अपना जुर्म कु बूलते हैं लेकिन गुनाह सामने नहीं आ
पता है ]
व्यक्ति ३-हुज़ूर...- शर्म आ रही है.. और डर भी लग रहा है... सबके सामने... कान में
बताऊं गा
अब्बा मियां-क्यों बे कमीने .. उस वक़्त शर्म नहीं आई ..
व्यक्ति ३-नहीं मालिक.. वो बात नहीं है.. दरअसल वो मुझे जान से ही मार डालेगा..
अब्बा मियां-मतलब?
व्यक्ति ३-हुज़ूर.. मैं उसका नाम बताऊं गा जिसका बच्चा है... या हो सकता है..
[सभी शागिर्द पेशे के लोग इधर-उधर देखते हैं ... सन्न हैं .. खुसर-फु सर होने लगती है। व्यक्ति अब्बा
के कान में बताने के लिए धीरे धीरे बढ़ता है। सभी सन्न हैं ...]
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अब्बा मियां-(कान में सुनकर)... उसकी ये मज़ाल ...(चिल्लाकर)... गोरी ...-[तभी अम्मा
चाय लेकर आती है .. चाय का कप उनके हाथ से छू ट जाता है ]... बदजात कु त्तिया.. बता तूने कै से
मारा..[गोरी हो-होकर रोती है ]पानी पीला इसको, इससे पहले की इसका हलक सूख जाए
[गोरी पानी पीने के बाद भी रोये जा रही है .. अब्बा मियां आपा खो चुके हैं .. वो दीन मुहम्मद की ओर
बढ़ते हैं ]क्यों बे दीन मुहम्मद... साले तू भी उतना ही कसूरवारहै ..
दीन मुहम्मद-जी? मैं कै से, मैं तो उस दिन था भी नहीं... जिस दिन गाड़ा था बच्चा ..
अब्बा मियां-मालूम है.. लेकिन यहाँ अभी बस तू ही तो बचा है न... (गोरी की ओर मुड़कर)
अरे क्या पूरा कु वा सूखने के बाद बोलेगी... जल्दी बता...
गोरी-सरकार!... ई..ई..हो..हो.. मैं डरबा बंद कर रही थी.. तो काली मुर्गी भागी ... मैंने
जल्दी से दरवाज़ा भेड़ा..तो… वो बच्चा पिच गया.. ओ..हो..हो.....
[सभी शागिर्द पेशे में हलचल मच जाती है कि "मुर्गी का बच्चा" ...?]
अब्बा मियां-च.. च.. च... क्या खूबसूरत चूज़ा था, तीन दिन पहले ही तो कानपुर से मंगवाया
था। ... दीन मुहम्मद आज से सिर्फ तू बन्द किया करे गा मुर्गियां ... सुनो... आन दे
रामअवतरवा को...
[अब्बा मियां , अम्मा बेगम, भाईजान, सलमा, नुज़हत सभी निकल जाते हैं। बाकि शागिर्द पेशा,
मोहल्ले-ख़ानदान के लोग वहीं मंच पर रह जाते हैं ]
बूढ़ी मेहतरानी-जवनामर्ग... तुझे हैज़ा समेटे.. मेरी लौंडिया को हलकान कर दिया।
[दीन मुहम्मद को धमूके जड़ती है ... बीच में दीन की माँ आती है उसे शागिर्द पेशे के लोग अलग कर
दे ते हैं। वो बहार चली जाती है , मेहतरानी दीन मुहम्मद को पीटते-पीटते बहार ले जाती है , इधर लोग
गुस्से में गोरी की तरफ गुस्से और बदले की भावना से बढ़ते हैं , लगभग उसे दबोचने ही वाले होते हैं
की मेहतरानी मंच पर वापिस आती है , लोग मसोस कर रह जाते हैं , बहार जाने लगते हैं तभी विंग्स से
"रतिराम" आता है , गोरी शर्माकर दू सरी तरफ चली जाती है , सर पर घूंघट तान लेती है ]
रतिराम-गोड़धरु काकी... पाय लागू गोरी भौजी... राम-राम भाई लोगों ...
[शागिर्द पेशे 'हुंह' करके निकल जाते हैं , मेहतरानी, गोरी और रतिराम एक फै मिली पोज़ में आते हैं ]
------------------अन्धकार ------------------
19
दृश्य ६ :-
[दृश्य वहीं से पुनः प्रारम्भ होता है जहाँ पिछले दृश्य में रतिराम, गोरी और बूढ़ी मेहतरानी एक फै मिली
पोज़ में खड़े थे]
रतिराम- मैं हूँ रतिराम.. अपने गाँव का हीरो नं वन , मेरा मतलब मेहतर नं वन... रामावतार
जंगी का भाई मैं रतिराम भंगी... रं गी गोरी भौजी की सास, मेरी ताई अब एकदम चंगी ...
अपने गांव में आवारा ही तो घूमता हूँ... मेरी बहु अभी नाबालिग है इसलिए गौना नहीं हुआ
है ... अपनी ताई से मिलने आया हूँ ..
बूढ़ी मेहतरानी-दो-चार कोठियों का काम बढ़ गया है बेटा, कु छ दिन यहीं पड़ा रह...
रतिराम- अरे १०-२० कोठियों का काम और लेले ताई... मैं और गोरी भौजी मिलके समेट
लेंगे...
बूढ़ी मेहतरानी-उसकी भली कहीं... इसके ही करम से तो और काम छू ट रहे हैं...
रतिराम- चिंता ना कर ताई... तू तो ये बता राम अवतार भइया कब तक आएं गे?
बूढ़ीमेहतरानी- पता नहीं... हर चिट्ठी में आता है वो तो..
रतिराम- तो लिखवा दे ताई.. कोई जल्दी नहीं है यहाँ... आराम से जंग लड़े.. मैं यहाँ आ गया
हूँ ...
बूढ़ी मेहतरानी- क्या रतिराम .. कै से बातें करता है? बेटे को देखे सालों हो गए हैं...
रतिराम- अरे तो! मैं क्या किसी बेटे से कम हूँ.. मैं भी तो हूँ तेरा बेटा नं २... एक बेटे ने देख
की सरहद संभाल कर रखी है... दू सरा बेटा संभाल लेगा तेरे घर की चौखट ताई...
रतिराम- मेरे आते ही मौसम एकदम लोट-पोटकर बिलकु ल ही बदल गया। जैसे काले बादल
हवा के झोंकों के साथ तितर-बितर हो गए ... गोरी के कहकहे खामोश हो गए... कांसे के
कड़े गूंगे हो गए.. घूंघट झूलने लग गया- ऐसे जैसे गुब्बारे में से हवा निकल जाने पर वो लटक
जाता है। गोरी अब बिना नथ के बैल जैसे निहायत शर्मीली बन गयी।
गोरी- कोई मुझे छे ड़ता तो मैं अब छु ईमुई सी लज्जा जाती ..
रतिराम-और कोई जो ज़्यादा आँख दिखाता तो वो घूंघट से भैंगी आँख को तिरछा करके मेरी
तरफ़ देखती, तो मैं फौरन बाजू खुजलाता सामने आकर डट जाता
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बूढ़ी मेहतरानी-और मैं सकू न से चौखट पर बैठी अधखुली आखों से ये मज़ेदार डिरामा देखा
करती, और गुड़गुड़ी पिया करती... चारो तरफ ठं डा-ठं डा छा गया, जैसे फोड़े का मवाद
निकल गया हो। तमाम औरतों ने संतोष की सांस ली कि अब उनके मरद, खाबिन्द, शौहर का
पत्ता रतिराम ने काट दिया है... भला हो रतिराम का जो हमारे किले मेहफ़ू ज़ हो गए...
[तभी विंग्स से शागिर्द पेशे के लोग एक-एक करके या एक साथ आते हैं और गोरी को तरह-तर्ज से
परे शां करते हैं ]
बावर्ची- भैंस कहीं की... खूब खिलाया करता था परांठे तलकर... अब कूं ड़ी साफ़ करने के
लिए कहता हूँ तो भाव खा रही है...
भिश्ती- अरे पाइप में पानी नहीं आता है तो कहाँ से छिड़काव करूँ ... तालाब खुदवाऊँ क्या
तेरे लिए... मारना है तो मार झाड़ू सूखी ज़मीन पर..
चपरासी- हररामज़ादी खाक उड़ाने आ जाती है, धुल-गर्दा क्यों उड़ा रही है...
धोबी- अरे मुई अंधी है क्या... भैंगी तो तू है ही... देखती नहीं कपड़ों पर कलफ लगा रखे
है ... झाड़ू मार रही है की ज़मीन खोद रही है..
[सभी एक साथ गोरी को कोसते हैं तभी रतिराम आ धमकता है ] \
रतिराम- तुम्हारी कबर खोद रही है, बोल के कर लेगा... खबरदार जो गोरी भौजी को कु छ भी
कहा तो... गरीब की हरजाई.. गांव भर की भौजाई... चलो हटो, अपना-अपना काम करो..
ससुर के नाती नहीं तो.. बावर्ची को देखो तो- पहले बात-बात पर खूब पराठे तलकर खिलाया
करता था अब देखो तो... चल भाग यहाँ से नहीं तो सारा आटा गीला कर दूंगा.. अबे वो
धोबिये.. पहले तो गोरी के अंदर-बाहर के कपड़ों पर मुर्गी छाप साबुन घिसते नहीं थकता था
अब कलफ ख़राब हो रहा है... क्यों बे पाँवड़िये तुझे भी कु छ ज़्यादा ही चर्बी चढ़ गयी है.. और
जमादार चपरासी .. पगड़ी संभाल अपनी वरना तेरी धोती भी नहीं संभाल पायेगा... समझा.. बै
भिश्ती पाइप में पानी नहीं है, कु एं से बाल्टी भर-भर के ला कर सहन में छिड़क .. फिर धुल
के पाउडर नहीं उड़ेंगे...
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[एक दृश्य जो रतिराम और गोरी के सम्बन्ध का उजागर करे और दरोगा देख ले... मेहरतरनी भी देख
ले और औपचारिकता भर गोरी को डांटती है ]
बूढ़ी मेहतरानी-... आन दे रामअवतरवा को... कहांगी तोरी हड्डी पसली एक कर दैहे ...
------------------अन्धकार ------------------
दृश्य ७ :-
[दरोगा जी अम्मा बेगम के सामने बैठे कु छ इस तरह बता रहे हैं जो ये आभास देता है कि एक पुरुष
स्त्री को चूम रहा है .. तभी अब्बा मियां आते हैं , दोनों को देख कर ठिठक जाते हैं , घंघारते हैं तब
दरोगा भाग कर अब्बा मियां को उसी अंदाज़ में कु छ बताता है , लेकिन अबकी बार दो पुरुष खड़े हैं।
अब्बा चौंककर अम्मा के पास आते हैं , फिर गुस्से में एक तरफ बढ़ जाते हैं ]
अब्बा मियां-... आन दे रामअवतरवा को...
------------------अन्धकार ------------------
22
दृश्य ८ :-
[अम्मा अपने मसनद पर पीठ टिकाये बैठी हैं । महिलाओं की पूरी सभा मंच पर अपने-अपने जगह
चुपचाप बैठी हैं। ख़ामोशी है .. मेहतरानी और गोरी मौजूद हैं , प्रतीक दृश्य के कल्पनानुसार रतिराम भी
वहां हो सकता है , ये निर्देशक की इच्छा पर निर्भर करता है ]
अम्मा बेगम-अरी निगोड़ी, खबर भी है, तेरी ये कामुक बहु गोरी क्या गुल खिला रही है?
[मेहतरानी ऐसे चुंधरा कर देखा जैसे कु छ समझती ही नहीं]..चश्मदीद गवाहों का कहना है
की गोरी और रतिराम के ताल्लुक़ात नाजायज़ हद तक ख़राब हो चुके हैं...
औरत १-दोनों मिलकर बहुत ज़्यादा गन्दगी फै ला रहे हैं।
औरत २- देख, रतिराम का मुंह काला कर और इससे पहले रामावतार लौटकर आये बहु का
इलाज करवा डाल
औरत ३-तू तो खुद इस फ़न में माहिर है... दो दिन में सफाई हो सकती है..
बूढ़ी मेहतरानी-बीबी जी, मेरे घुटनों में पहले से ज़्यादा ऐठन होव है... कोठियों में लोग बहुत
ही ज़्यादा बादी चीज़ें खाने लगे हैं, किसी न किसी कोठी में दस्त लगे रहते हैं...
अम्मा बेगम-ख़ाकपड़ी ... कोठियों के दस्त तोह बह-बूह के पखानों-नालों तक ही रह जायेंगे
लेकिन अगर तुझे बवासीर हो गया ना तो मोहल्ले के साथ-साथ पूरा जंगल बदबू से भर जायेगा
बूढ़ी मेहतरानी-अब क्या करूँ ... वैद जी भी पूरी हरामी हैं, दवाई में खड़िया मिलकर देते
हैं ...
अम्मा बेगम-ये क्या ऑल-बॉल बक रही है... गोरी को दवा खिला..
औरत १-हाँ .. वैद जी के पास मत ही जइयो... बदनाम कर देंगे.. तुझे तो सारे नुस्खे पता
हैं .. अफीम, पपीते का बीज, धतूरा... और क्या मिलाया था पिछली बार जब बावर्चिन का...
अम्मा बेगम-(डांटकर).. चुप कर री बै औरत जात.. कु छ तो पचा लिया कर.. पेट है की
रे डियो ...
औरत २-अम्मा बेगम.. पेट तो गोरी के हैं आजकल, कलमुंही पर नज़र क्यों नहीं जा रही
है ... पूरा लाउडस्पीकर लेकर घूम रही है
अम्मा बेगम-हाँ वही तो समझाने की कोशिश कर रहे हैं कबसे... माना कि गोरी औरत जात
है , नादान है, बड़ी-बड़ी शरीफज़ादियों से ख़ता हो जाती है लेकिन उनकी आला खानदान की
मोहज्जज़ सासें यु कानों में तेल डालकर नहीं बैठ जाती...
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औरत ३-पर ये बुढ़िया जाने क्यों सठिया गयी है? जिस बला को बड़ी आसानी से कोठी के
कू ड़े की तेह में दफ़न कर सकती है उसको आँखें मींचे पलने दे रही है।
अम्मा बेगम-दे ख... हम तेरे दुश्मन नहीं है.. तू हमारी खानदानी मेहतरानी है.. इज़्ज़त का
सवाल है... रतिराम और गोरी अब नाक़ाबिले बर्दाश्त दर्ज़े तक पहुंच चुके हैं।
बूढ़ी मेहतरानी-अम्मा बेगम, आप लोग तो तोहमत पर तोहमत लगाए जात हैं... पता नहीं
मेरी मासूम बहु ने क्या बिगाड़ा है आप लोगों का? दिन रात रामअवतरवा की यार में आंसू
बहाती रहती है...
औरत १-...आंसू बहाती है.. हुंह.. तेसुवा बहाती है घड़ियाल का.. खून के आंसू रुलवायेगी
रामअवतरवा को... आन तो दे.. इसको कच्चा ना चबा गया तो कहना...
बूढ़ी मेहतरानी-(थोड़ा उग्र होकर)..काम काज तो करती है ना जी तोड़कर.. फिर कै सी
शिकायत? अब तो ठिठोल भी नहीं करती किसी से ... नाहक ही दुश्मन बने पड़े हैं आप
लोग...
औरत २-अब ज़रूरत ही क्या है उसे किसी से ठिठोल करने की... घर में ही है अब तो
मजनू..
बूढ़ी मेहतरानी-अररे ... तम सब तो गोरी की जान को ही लागू हो गए हो... आखिर मैंने और
मेरी बहु ने किसी का क्या बिगाड़ा है? न किसी के लेने में ना देने में... आज तक मैंने कसी का
भां डा नहीं फोड़ा तो किसी को क्या पड़ी है जो मेरे फटे में पैर घुसती फिरे ... अरे कोठियों के
पिछवाड़े क्या नहीं होता? भंगन से किसी का मैला नहीं छु पा है... इन बूढ़े हाथों ने बड़े लोगों के
कई गुनाह दफ़न किये हैं, यह दो हाथ चाहे तो रानियों के तख़्त पलट दे... पर नहीं , मुझे
किसी से कोई बैर नहीं... हाँ.. अगर मेरे गले पर छु री दबायी गयी तो शायद ग़लती हो जाए..
वैसे मैं किसी के राज़ अपने बूढ़े कलेजे से बाहर नहीं निकलने दूँगी... मत भूलो की गांव की
चौहद्दी पर गोरी की बहु उतराई वाली रस्म... मेरी बहु ने पूरे गांव को आग लगने से बचा लिया
था...
अम्मा बेगम-अरे मेहतरानी... तू तो नाहक ही चराग-पा हो रही है... हमरा शुक्रिया अदा
करने के बजाये हमपे ही ढे ला फ़ें क रही है...
बूढ़ी मेहतरानी-अरे रै न देवो अम्मा बेगम... पता नहीं उन मासूमों को दुनिया में आने से पहले
ही पेट में गला देने पर क्यों नहीं लगती आग गाँव में..?
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[तभी अचानक गोरी को लेबर पैन शुरू हो जाता है। सभी भौंचक होकर देखते हैं .. मेहतरानी भाग कर
गोरी के पास जाती है , रतिराम झाड़ू आड़ कर उस पर एक चादर तान देता है , गोरी कराह रही है ,
अम्मा बेगम को ये सब कतई नागवार लगता है की जंचगी उसके घर के अंदर नामुमकिन है ]
अम्मा बेगम-हैं .. हैं.. ये क्या सुअरनी यहीं पिल्ले जानेगी .. ले जा इसे यहाँ ...
बूढ़ी मेहतरानी-इस हाल में कहाँ और कै से ले जाऊं बेगम... ज़रा एक भगोना पानी तो गर्म
कराओ, अभी हुआ जाता है चट-पट
अम्मा बेगम-हाँ -हाँ, काजू-बादाम वाला दू ध भी मंगवाती हूँ गरम-गरम...- मेरा घर कतई
नापाक नहीं होगा.. खबरदार जो...
बूढ़ी मेहतरानी-(बिफरकर)हे बेगम, ... कितनी दफा नापाक हो चूका है ये घर... यही पर
साल भर पहले इंसान का गोश्त.. यहीं पर अपने हाथों से घड़ा फोड़ा था मैंने...
[मेहतरानी भाग-भाग के परदे के पीछे आती-जाती बड़बड़ाती जा रही है , उधर गोरी के चीखने की
आवाज़ तीव्रत होती है , मेहतरानी बच्चे को लेकर चलने को होती है तभी सलमा दौड़कर आती है ,
अम्मा के कान में कु छ कहती है। अम्मा चिंता में है , तमाम महिलाओं को वहां से चले जाने को कहती
है , नुज़हत मंच पर करहाती हई आती है , मेहतरानी को इशारे में बच्चा गिराने को कहती है , मेहतरानी
मना कर देती है , अम्मा पहले तो गिड़गिड़ाती है फिर ज़बरदस्ती करती है , मेहतरानी को मजबूरन
बात माननी पड़ती है , अब नुज़हत और गोरी दोनों परदे के पीछे हैं , दोनों के करहाने की आवाज़ें फिज़ा
को देहला देती है , पर्दा गिर जाता है , गोरी, सास और रतिराम एक साथ बच्चे को लेकर चले जाते हैं ]
नुज़हत-...ये क्या अम्मा... क्यों मारा मेरे बच्चे को? जब गोरी पैदा कर सकती है तो मैं क्यों
नहीं...
[तभी अब्बा और भाईजान दीन मुहम्मद को धमकाते हुए मंच पर आते हैं , अम्मा और नुज़हत सन्न हो
जाते हैं। अब्बा मियां भाईजान को इशारा करते हैं , वो दीन मुहम्मद को मंच के बीचों-बीच ले आटा है ,
खम्भे से बांधता है , अम्मा को इशारा करते हैं की वो नुज़हत को लेकर अंदर चली जाए... भाईजान
हॉकी स्टिक खींचकर दीन मुहम्मद के सर पर दे मारते हैं वो ढेर हो जाता है , नेपथ्य से नुज़हत के
चीखने की आवाज़ आती है। धीरे -धीरे अंधकार छा जाता है ]
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दृश्य ९ :-
[रतिराम, गोरी, बूढ़ी मेहतरानी बच्चे के साथ एक फ्रे म में बैठे दिखाई देते हैं , तीनों बच्चे से खेल रहे हैं ,
इससेपहले कु छप्रतीकात्मक बिम्ब हो सकते हैं ]
गोरी- लोगों को सख़्त कोफ्त हुई जब मैंने लौंडा जना... बजाए मुझे ज़हर देने के मेरी सास की
बां छे खिल गई
रतिराम- रामावतरवा के लाम पर जाने के दो साल बाद पोता हुआ था,, पर...
बूढ़ीमेहतरानी- तो... इसमें अचंभा कै सा? आसाढ़ में रामावतरवा लाम पर गया था, जब मैं
पीली कोठी के अंग्रेजी संडास में गिर पड़ी थी... और अब लग रहा है चैत... हां.. हां... चैत के
महीने में मुझे लू लगी थी... है राम… बाल–बाल बच गई... नहीं तो पोते का मुंह कै से
दे खती... बड़े आए “लौंडा रामावतार का हो हो नहीं सकता” अरे ना सही, भगवान मालिक का
तो है ना...
गोरी- वो तो बच्चे के लिए घर–घर फटे पुराने कपड़े और बधाइयां समेटती फिरी
रतिराम- और फिर किसके दिमाग में इतना बूता था, कि वो बुढिया को समझा पाता जिसे ना
समझने का उसने फै सला कर लिया था…[बुढिया मेहतरानी एक कागज़ लिए दर्शकों से एक चिट्ठी
लिखने की दरख्वास्त करती है ]
बूढ़ीमेहतरानी- भैया एक चिट्ठी तो लिख देवो... रामावतरवा को बाद चुम्मा प्यार के मालूम हो
की यहां सब कु शल है और तुम्हारी कु शलता भगवान से नेक चाहते हैं… तुम्हारे घर में पूत पैदा
हुआ है, सो इस खत को तार समझो और जल्दी आ जाओ... थंकु ...
रतिराम- जंग खत्म हो गई है और रामावतार भाई साहब आने ही वाले हैं... मेरी ताई पोते को
घुटनों पर लिटाए खाट पर बैठी राज किया करती, भला इससे ज़्यादा हसीन बुढ़ापा और क्या
होगा कि सारी कोठियों का काम तुरत–फु रत हो रहा हो... महाजन का सूद पाबंदी से चुक रहा
हो, और घुटने पर पोता सो रहा हो...
[विंग्स से शागिर्द पेशे के लोग भड़के हुए अंदाज़ में आते हैं। मेहेतरानी परिवार गायब हो जाता है ]
व्यक्ति १- गोरी ने लौंडा नहीं जना है, अपनी मौत का समान पैदा किया है...
व्यक्ति२- और नहीं तो क्या जब रामावतरवा को असलियत पता चलेगा... तब देखना दो–चार
लाशें तो गिर ही जाएं गी...
व्यक्ति३- आखिर सिपाही है, क्यों न ख़ून खौलेगा, जंग जीतकर आ रहा है...
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व्यक्ति४-और रतिरमवा के मज़े हैं... पोंछ पांछ के साला भाग जाएगा अपने गांव... गौना
और होने वाला भड़ु वे का...
व्यक्ति१- एक काम करते हैं, सारा कच्चा चिट्ठा रामावतरवा को पहले ही डाक कर देते हैं
व्यक्ति २-नहीं नहीं मरद है, उसकी मरदानगी को झटका लग जायेगा... कहीं खुदकु शी
उदकु शी कर बैठा तो, आने दो पहले
व्यक्ति ३-क्या पते की बात की है, सही बात है कौन बर्दाश्त करे गा उसकी बीवी गैर के बच्चे
की अम्मा बने...
व्यक्ति४- लेकिन मरे गा तो ज़रूर वो, चाहे सबको ख़त्म करने के बाद ही मरे ...
व्यक्ति१- घंटा! मरने की क्या ज़रूरत है, एक बदजात जनानी की ख़ातिर... निकल दे भंगन
को लौंडे के साथ... किस्सा ख़त्म
व्यक्ति २- लेकिन रतिरमवा का तो मुंह काला करना ही पड़ेगा
व्यक्ति३- सारे जड़ की फसाद तो वो है, बुढ़िया मेहतरानी... सोते में ही टेटुवा दबाई दे...
छु ट्टी!... अरे पहले ही भगा देती रतिरमवा को गांव से, बजती ही नहीं बांसुरी
व्यक्ति४- नाक कटा दी बिचारे रामअवतरवा की... इससे तो अच्छा है वहीं सरहद पर मर
मुरा जाए... शहीद तो कहलाएगा...
व्यक्ति१- अरे भाई काहे नाहक ख़ून जला रहे हो, तमाशा तो देखने को मिलेगा... डमरू
बाजेगा… खेल जमैगो...
एकसाथ- आन दे रामअवतरवा को—
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दृश्य १० :-
[रतिराम और गोरी प्रीमलिंग में हैं , बगल में बच्चा सोया है , तभी रामअवतरवा बूट को खट–खट करता
आता है , दोनो को आपत्तिजनक हाल में देख कर गुस्से में आ जाता है , पहले रतिराम को चाकू से गोद
डालता है , फिर गोरी का गला दबाकर हत्या कर देता है , तभी बच्चे के कु नमुनाने की आवाज़ आती है ,
उसे उठाकर पटकने ही वाला होता है कि शागिर्द पेशे के लोग जागकर बैठ जाते हैं , यह एक स्वप्न है
जिसे सबने एक साथ देखा था। मज़े का इत्तेफाक यह है कि सबने स्वप्न भी एक ही देखा जो उनके
मनोभाव, मनोदशा और मनशंका ज़ाहिर करता है , सभी शागिर्द पेशे के लोग तालियां बजती है , इकट्ठे
होते हैं ]
युवक१- वाह वाह मज़ा आगया, क्या नज़ारा था
युवक२- शाबाश रामअवतार भाई... तुमसे यही उम्मीद थी
बावर्ची- लेकिन ससुरा वो बच्चा बच गया,, एन तभी नींद खुलनी थी मां की आंख
हलवाई- क्या बहादुरी दिखाई भाई रामअवतरवा ने
भिश्ती- बांका दिलेर निकला
पनवाड़ी- अब सपना था हकीकत भी वैसा ही होगा
व्यक्ति १- बिलकु ल होगा, सुबह–सुबह का सपना एकदम सच होता है
चपरासी- हे, बता बता तूने क्या देखा,,
पनवाड़ी- तू बता ना
भिश्ती- तू बता न तू अच्छा बताता है
बावर्ची- नहीं, लेकिन सपना तो तू अच्छा देखता है ना भाई
हलवाई- रामावतरवा...
चपरासी- अरे तमीज़ से... रामावतार भाई... खट–खट घर में घुसा...
युवक२- सालों वो बुढ़िया मेहतरानी बच गई...
युवक ३- अरे कोई बात नहीं... उसके पास मां तो है... बेचारा... अके ला...
भिश्ती- तूने भी वही देखा,,?
बावर्ची- जो मैंने देखा?
पनवाड़ी- हां, मैंने भी देखा...
नाई- अरे कमाल है हम सबने एक ही सपना देखा...
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बावर्ची- अबे गधों सपना सच होने वाला है, आज ही तो आने वाला है रामावतारवा... पहली
गाड़ी से ही तो... चलो–चलो जल्दी जल्दी अपने काम निपटालो
व्यक्ति- आज कोई काम–धाम नहीं, आज तो जश्न होगा
बावर्ची- आज तो बावर्ची हांडी में पानी ही पानी झोंक मरे गा
धोबी- कोई कलफ नहीं लगेगा कपड़ों में
भिश्ती- मैं भी आज बाल्टी कु एं के मुंडेर पर ही रख दूंगा... उल्टा करके ... मज़ा आ जायेगा
जब धूल के साथ–साथ खून के छीटें भी उड़ेंगे...
हलवाई- आज जलेबी नहीं मिर्च के पकोड़े तलूंगा
पनवाड़ी- लौंग इलायची वाला पान की गिल्लौरी नहीं आज तो ज़हर का बीड़ा लगाऊं गा, और
मुफ़्त में ही दे दूंगा रामावतरवा को…[तभी कोई चिल्लाता हुआ मंच पर आता है ]
आदमी- अरे रामअवतारवा लाम पर से आ रहा है गांव की सरहद पर पहुंच गया है... [सभी
वहां से भागते हैं ]
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दृश्य ११ :-
[लगभग पिछले दृश्य (स्वप्न) की पुरानावतारित होती है , रामावतार फौजी की चाल में खट–खट आता
जा रहा है , एक विंग्स से दू सरी विंग्स की ओर निकल जाता है , वातावरण में तूफान से पहले की
खामोशी है , शागिर्द पेशे के लोग यहां –वहां , खिड़की, दरवाज़े हर जगह से दम साधे झांक रहे हैं।
रामावतार घर में दाखिल होता है , रतिराम छिटककर एक ओर चला जाता है , गोरी शर्माकर घूंघट तान
लेती है , रामावतार बक्सा खोल लेता है , लाल मोजे, बनियान और खिलौने निकलता है। गोरी झट से
कां से के बर्तन में पानी लाती है , मोजे बूट उतारकर रामावतार के पांव धोती है , पीती है , तभी बूढ़ी
मेहतरानी आती है , बालाएं लेती है। पीछे से कर्क श आवाज़ आती है जो अब्बा मियां की है ]
अब्बामियां- हत्तेरी की, साला सिपाही बनता है, हिजड़ा ज़माने भर का... [गोरी, मेहतरानी
बाहर चले जाते हैं , बच्चा रामावतार की गोद में है ]गावदी कहीं का! ताज्जुब है तेरे फौजी होने पर,
खैर तेरी गलती नहीं है, वहां भी तो मैला ही उठता है अफसरों का, कौनसा तोप बंदू क छोड़ने
गया था…[रामावतार खींसे काढ़े हंसता रहा]क्यों बे, तू तीन साल बाद लौटा है ना...
रामावतार- मालूम नहीं हुज़ूर, थोड़ा कम ज़्यादा, इत्ता ही रहा होगा
अब्बामियां- काम कै से बे, नौ महीने का कोर्स तो रतिराम पूरा कर ही चुका है तेरे घर में
रामावतार- इत्ता ही लगै सरकार, पर बड़ा बदमाश है ससुरा
अब्बामियां- अबे तू हिसाब लगा ले
रामावतार- जब... क्या हिसाब लगाऊं ...
अब्बामियां- उल्लू के पट्ठे ये कै से हुआ?
रामावतार- अब जे मैं का जानूं सरकार, भगवान की देन है...
अब्बा मियां- हां आसमान से टपका है, भगवान को क्यों बदनाम कर रहा है बे, यह लौंडा
हरामी है...
रामावतार- अब का करूं सरकार... हरामज़ादी को लगाऊं गा खूब मार आज
अब्बामियां- अबे जनखे, निकाल क्यों नहीं देता कमबख्त को
रामावतार- नहीं सरकार, कहीं ऐसा हो सके
अब्बामियां- क्यों बे
रामावतार- हुज़ूर दो–ढाई हज़ार दू सरी सगाई के लिए कहां से लाऊं गा, बिरादरी जिमाने में भी
तो उत्ता ही खर्च लगेगा... कहां से लाऊं गा
अब्बामियां- क्यों बे गोरी की बदमाशी का ताबान तुझे क्यों देनी पड़ेगी?
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रामावतार- जे मैं क्या जानूं सरकार, हमारे में तो ऐसो ही होवे...
अब्बामियां- वो तो मैं देख ही रहा हूं, और क्या–क्या होता है तुम्हारे में, हद कर दी तूने तो
“मगर लौंडा तेरा नहीं है रामावतार” उस हरामी रतिराम का है
रामावतार- तो का हुआ सरकार, मेरा भाई होता है रतिराम... कोई गैर नहीं अपना ही ख़ून
है …[सन्न माहौला, अब्बा मियां को काटो तो ख़ून नहीं]“सरकार लौंडा बड़ा हो जावेगा, अपना
काम समेटेगा, दो हाथ लगाएगा सो अपना बुढ़ापा तैर हो जायेगा।”[रामावतरवा का सिर शर्म से
झुक गया, एक दम अब्बा मियां का सिर भी झुक गया]
“___ लाखों करोड़ों हाथ, ना हरामी है ना हलाली। ये तो बस जीते जागते हाथ हैं जो
दु निया के चेहरे से ग़ज़ालत दो रहे हैं, उसके बुढ़ापे का बोझ उठा रहे हैं___
___ये नन्हे–मुन्हे हाथ, मिट्टी, कू ड़ा, कचरा, मैले में लिथड़े हुए हाथ, दो हाथ... स्याह
हाथ धरती की मांग में सिंदू र सजा रहे हैं”
[निर्देशक अपनी सूझ-बूझ और कल्पनाशीलता से इस व्यक्तित्व को एक रचनात्मक दे सकता है ]
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