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कम िसि वच व ा त दी ा
यह िन चत है िक कम से बड़ा संसार म कोई त य नह है। बार-बार साधनाय स प कर हम अपने पूव ज म क अशु
कम को ही तो शु करने का यास करते ह। यिद भा य ही सब कछ होता तो मनु य को जीवन म साधना, पूजा, स कम, सि चार, पु य
कम, िम ता आिद की आव यकता ही य पड़ती? जब जो भा य म िलखा है वही होना है तो मनु य िकसी भी कार का कोई यास य
करे? वह प र म ही य करे?
कम िसि म स कम, पु यकम को जा त करने क िलये शारी रक, मानिसक और आ या मक तीन कम की आव यकता
पड़ती है। मानिसक और आ या मक कम क स ब ध म मनु य को एक उ तर की भावभूिम लानी पड़ती है और जब वह भाव आ
जाता है तो मनु य स कम की ओर वृ होता है। साथ ही िनर तर े ठ कम से जीवन की अमू य कमरािश, भा यरािश म प रवितत
होती है, िजससे हमारे जीवन म सुमंगलमय सु थितय का िव तार होता है।
पूव ज म क दोष को, पूव ज म क कम क भाव को, भा य क दोष को वतमान जीवन म िकये गये कम ारा सुधार सकते
ह। जीवन म लगे हुए कांट को भी कम ारा ही िनकाला जा सकता है। इसिलये हम जीवन म िनर तर कमरत रहना चािहये और
स गु देव जी सदैव कहते ह िक कम जीव त है तो आपका भा य सो नह सकता और सोये हुये भा य को भी कम क ारा जा त िकया
जा सकता है। कम क ारा ही दुभा य को सौभा य म प रवितत िकया जा सकता है।
अतः मो दा एकादशी यु त गीता जयंती क सुयोग पर स गु देव जी कम िसि वच व ा त दी ा दान करगे। िजसक
ारा य त अपने जीवन म जो भी कम करता है उसम सफलता ा त होती है और वह अपने प र म से अपनी इ छा को पूण कर
पाता है साथ ही उसे अपने कम का उिचत फल ा त होता है। यह कम िसि कवल गु कपा, आशीवाद से, े ठ ि या, े ठ िवचार
और े ठ वचन ारा ही ा त िकया जा सकता है। कम िसि वच व ा त दी ा यौछावर J 2600
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हम यह छोटी उ से िसखाया गया है िक ान बांटने से बढ़ता है और यह बात स य भी है िक ान व ेम बांटने से बढ़ता है,


अगर वह स ा व पिव हो। पर आज क युग म सभी ानी हो गये ह, सभी को ान तो देना है पर हण िकसी को नह करना और
जो ान िदया भी जा रहा है, वे भी िनरथक है। वा तिवक ान हम िववेक पूण बनाता है, हम एक चेतना देता है, िजससे हम वयं क
मन व शरीर का भरण-पोषण कर सक। वही पर बेकार-िनरथक ान हम हर अ छी चीज पर संदेह करने व यथ म ही तािकक
बनाता है, हमारे आस-पास ऐसे कई लोग होते ह जो हमेशा यथ म तक-िवतक करते रहते ह उ ह हर बात पर संदेह होता है। अतः
वे सदैव इस बात से िसत होते ह िक उनक आस-पास क लोग कोई षड़यं कर रहे ह, वे अनायास ही दुःख से अपने आप को घेर
लेते ह। वे कवल दुःख की नकारा मकता ही फलाते है।
जब आपक जीवन म क ट-दुःख-किठनाईयां आती है तो लोग आपको सहानुभूित िदखाने आते ह पर कोई भी आपक
क टो का भोग सहन को तैयार नह होता। सुख म तो सभी आते ह, हष मनाने, िमठाई खाने, दुःख का जहर पीने कोई नह आता तो
िफर य अपने दुःख का िढढोरा पीट, बोलने-सुनने म अ छा लगता है िक दुःख बांटने से कम होता है, पर वा तिवकता म दुःख
बांटोगे तो उपहास का कारण बनोगे। लोग आपक दुःख की गपशप करगे। अपने दुःख का या यान कवल अपने गु क
सामने करो, िजनम यह साम य है िक वे उन क ट को, उस िवष को पी कर आपका जीवन अमृतमय कर सक- आपको दुःख
को हराकर िवजय होने, सुखी होने का सामथ दान करे। सुख का चार करो दुःख का िन तारण।
इस दुिनया म ानी तो बहुत बैठ ह वे घी से िलपटी जोश से भरी बाते बोल चले जायगे। पर आपका गु आपको वो ान
दगे जो य है जो सा ात हो, जो आपक वा तिवक जीवन म काम आये, अिपतु वो नह जो आपको वा तिवकता से दूर ले जाये।
गु जो ान दान करते ह, िजससे मन शांत होता है अधीर नह ।
जीवन क इसी सतत ान की ा त व अपने दुःख क िन तारण क िलये आप सप रवार 1-2-3 िदस बर को
जग ाथ पुरी म चौसठ कला पूण योगे वर ीक ण जग ाथ साधना महो सव म अव य भाग ल।
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ENGLISH CORNER
b Rituals & Articles a
Lord Ram & Sita Sadhanas............ 52
Annapurna Siddhi 56
Demolish Your Enemies 58 22
All You Need Is Faith 60
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भु की तरफ पहुँचने क िलये यास तो गहरी चािहये, लेिकन अधैय नह । अभी सा तो पूण चािहये लेिकन ज दबाजी
नह । िजतनी बड़ी चीज को हम खोजने िनकले ह , उतना ही माग देखने की तैयारी चािहये और कभी भी घटना घट, ज द ही है,
य िक जो िमलता है उसे समय से नह तोला जा सकता। अनंत-अनंत ज म क बाद भी भु का िमलन हो, तो बहुत ज दी हो गया।
कभी भी देर नह है। य िक जो िमलता है, अगर उस पर यान द, तो अनंत-अनंत ज म की या ा भी कछ नह है।
िजतना बड़ा धैय, उतनी ही ज दी होती है घटना, िजतना ओछा धैय, उतनी ही देर लग जाती है। धैय का अथ है- अनंत
ती ा की मता और जो स य की खोज पर िनकला हो, जो भु की खोज पर िनकला हो, उनक िलये तो धैय क अित र त और
कोई सहारा भी नह है।
पर तु धैय तो हमारे भीतर जरा भी नह है और यही हमारी यूनता है, हम जीवन म असफल इसी कारण वश होते ह।
य िक हम ु क िलये तो ती ा कर लेते ह, पर तु स य क िलये, उस िवराट क िलये हम जरा भी ती ा नह करना चाहते ह।
इससे एक ही बात पता चलती है िक शायद हम खयाल ही नह है िक वह िवराट स ा या है। और हमारी चाह इतनी कम है िक हम
ती ा करने को तैयार ही नह । ु की हमारी चाह बहुत है, इसिलये हम ती ा करने को राजी नह ह।
एक य त थोड़ से पये कमाने क िलये िजंदगीभर दांव पर लगा सकता है और ती ा करता रहता है िक आज नह तो
कल, कल नह तो परस । चाह गहरी है धन को पाने की, इसिलये ती ा कर लेता है। परमा मा क िलये वह सोचता है िक एकाध
बैठक म ही उपल ध हो जाये और वह बैठक भी वह तब िनकालता है जब उसक पास अित र त समय हो, जो धन की खोज से बच
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जाता हो। छ ी का िदन हो, अवकाश का समय हो, तब वह बैठक करता है। और िफर वह चाहता है, बस ज दी िनपट जाये। वह
ज दी िनपट जाने की बात ही यह बताती है िक ऐसी कोई चाह नह है िक हम पूरा जीवन दांव पर लगा द।
िवराट तब तक उपल ध नह होता, जब तक कोई अपना सब कछ समिपत करने को तैयार नह होता और सब कछ
समिपत करना भी कोई सौदा नह है। नह तो कोई कहे िक मने सब कछ समिपत कर िदया, अभी नह िमला। अगर इतना भी सौदा
मन म है िक मने सब समिपत कर िदया तो मुझे भु िमलना चािहये, तो भी नह िमल सकगा। य िक हमारे पास है या िजससे
हम भु को खरीद सक? या छोड़गे आप? छोड़ने को है या आपक पास? आपका कछ है ही नह , िजसे आप छोड़ द। सभी
कछ उसी का है। उसी का उसी को देकर सौदा करगे?
है या हमारे पास? शरीर हमारा है, ान हमारा है, या है हमारे पास? और हो सकता है, धन भी हमारा हो, जमीन भी हमारी हो,
लेिकन आप अपने िब कल नह है। य िक यह जो भीतर दीया जल रहा है चेतना का, यह तो भु का ही िदया हुआ है। आपका
इसम कछ भी नह है। आप अपने िब कल नह है, इसिलये आप भु को दगे या?
धैय का अथ है, हमारे पास न दांव पर लगाने को कछ है, न परमा मा को यु र देने क िलये कछ है, न सौदा करने क िलये
कछ है, हमारे पास कछ भी नह है। और मांग हमारी है िक परमा मा िमले। ती ा तो करनी पड़गी। धैय तो रखना पड़गा अनंत
रखना पड़गा।
जमीन म बीज को बोकर भूल जाना चािहये, ती ा करनी चािहये। पानी डाल ज र, पर अब बीज को उखाड़-
उखाड़कर मत देखते रह- अभी तक बीज फटा नह । नह तो िफर कभी नह फटगा, बीज खराब ही हो जायेगा। इसीिलये ज दी
नह कर और बार-बार उखाड़कर नह देख। जब अंकर िनकलेगा तो पता चल जायेगा।
आतुरता से कछ भी ा त नह होने वाला। आतुरता िवचार ला देती है। ज दबाजी िवचार पैदा करवा देती है। अगर ती ा हो, तो
िवचार शांत हो जाते ह। ज दी कछ हो जाये, इसी से मन म तूफान उठते ह। कभी भी हो जाये, जब होना हो और न भी हो, तो भी
परमा मा पर छोड़ देने का नाम ती ा है।
िवचार एक बात है और िवचार की भीड़ िबलकल दूसरी बात है। अगर एक िवचार हो तो हाथ की लकड़ी बन सकता है,
और अगर बहुत िवचार ह , तो हाथ की लकड़ी नह बनता, िफर िसर पर लकड़ी का ग र बन जाता है। िफर वह सहारा नह रहता,
बोझ हो जाता है। जब िवचार अिधक हो जाते ह तो िववेक ीण हो जाता है।
जो य त समिपत होकर िवराट की खोज करता है वह अपनी चेतना क सम एक िवचार से यादा को एक साथ नह
आने देता है। य िक एक आये तो ही उसकी परी ा हो सकती है। एक िवचार को ही चेतना िनणय कर सकती है।
िवचार एक श त है- सोचने की, देखने की, िन प होने की, अपने ही िवचार क ित तट थ होने की। िवचार य त क िलये दंड
का काय करते ह, उस िवराट की खोज म सहारा बनते ह। िवचार की श त ही य त को स य को ा त करने म सहायक होती
है। जब य त अपने िवचार क ित तट थ हो जाता है, िफर उसम आतुरता नह रहती, वह ती ा करने म स म होता है। धैय
धारण करना उसक िलये सरल बात होती है।
धैय से बड़ी कोई मता नह है और जो स य की खोज म िनकले ह , उनक िलये तो धैय क अित र त और कोई सहारा
भी नह है। िजसक पास धैय है, उसक पास स य का धन त ण उपल ध हो जाता है। वह उस िवराट स ा तक पहुँच जाता है,
पर तु उसे पहचान नह पाता, य िक पहले वह कभी िमला नह था। इस अंितम ल य तक पहुंचने पर क दशन करने क
िलये हम गु की ज रत होती है। असल म गु की ज रत हम तभी पड़ती है, िजस िदन घटना घटती है।
य िक उस य त क िलये वह अप रिचत, अनजान, पहले तो कभी जाना हुआ नह है, उस लोक म वेश हो जाता है।
उसे पहचान नह होती िक जो हो गया है, वह या है। तो गु की ज रत पड़ती है ाथिमक चरण मे, वह बहुत साधारण है।
अंितम ण म गु की ज रत बहुत असाधारण है िक वह कह दे िक हां, हो गई वह बात िजसकी तलाश थी, उस दशन से
सा ा कार होने पर। िजसक सा ी गु होते ह।

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राम जानकी सव सुख- सौभा य ा त साधना


भगवान ीराम तथा माता सीता ने जगत को यह ान िजस कार िशव की श त अ पूणा ह और
िदया िक िकस कार पूण देव व को ा त िकया जा सकता है ीक ण की श त राधा, उसी कार माता सीता ीराम की
अथा सामा य य त िकस तरह से ान, बुि और कम से परा परा श त ह। सीता श त ह और ीराम श तमान ह।
पु ष से पु षो म बनने की ओर अ सर हो सकता है। ी च डी म जो महाकाली, महाल मी, महासर वती प म
वा तव म भगवती सीता सववेदमयी, सवलोकमयी, मूल असुर नािशनी ह, वही रामायण म असुरनािशनी कालराि ह,
कित व िपणी ह। इ छा, ि या तथा सा ा श त व पा रावण की सभा म हनुमान ने कहा था-
माता सीता ही ल मी, सवा यमयी ी श त ह। मानव जीवन यां सीते यिभजानािस येयं ित टित ते गृहे। कालराि ित तां
म िजस ी-सौभा य की सवािधक आव यकता होती है, िजस िवि सवलंकािवनािशनी ।।
पर स पूण संसार आि त होता है उ ह जग माया कमला का रावण! िज ह तुम सीता समझते हो, जो आज
एक अवतार माता सीता क प म हुआ। तु हारे घर म बंदी व प म थत ह। उनक व प से तुम
क द पुराण म विणत है िक- हे िव णो! आप जब- प रिचत नह हो वे कालराि ही सवलंका िवनािशनी ह।
जब, जो-जो अवतार वीकार करते ह, तब-तब भगवती भगवती सीता जैसी उ गुण से यु त, सुशील,
कमला अपनी स पूण कला क साथ आपकी संिगनी व प सौ दय क सभी अलंकार से पूण सव े ठ च र वाली ी इस
म अवत रत होती ह। संसार म दूसरी कोई नह है। यह अलग त य है िक राम को
माता सीता स पूण नारी जाित की ृंगार ह, इनक सामािजक अपवाद क कारण सीता का याग करना पड़ा।
जैसा यागी, शीलवान, सती व श त यु त, सहनशील, धैय, लेिकन यह भी स य है िक िजतना सीता राम क िवयोग म दु:खी,
पित त धम का पालन करने वाली, सभी कत य का िनवहन संत त थी, राम भी उतने ही दु:खी और संत त थे, िफर भी उ ह
करने वाली, ओज वी संतान की जननी, श त स प , पा रवा रक, सामािजक दबाव म सीता का याग करना पड़ा।
गृह थ जीवन की सभी िव ा म पारंगत अ य कोई श त सीता क िवयोग म राम का दय हर ण तड़फता रहा। यही
व पा नह हो सकती। कारण था िक सीता क वा मकी आ म जाने क बाद राम क

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चेहरे पर कभी भी स ता का भाव ना आ पाया। ि या म पारंगत होता है। साथ ही जीवन की आसुरी
सीता सती व तेज क साथ उ च र भूभवः वः श तय यु त बाधा , अड़चन , परेशािनय पर िवजय ा त
सव यािपनी चैत य प म सभी य म या त है। वह राम कर अपना वच व थािपत करने म सफल हो पाता है।
सभी पु ष म पु षो म चेतना, मयादा, आदश, कत य साथ ही इस साधना क मा यम से सािधकाय शील व प सुहाग
पालन, धम, सं कित, मानवीय मू य की र व चेतना क प सौभा य त व की ा त कर पाती ह और अिववािहत क याय
म िव मान ह। पु षो म समान पित का वरण करने म सफलता ा त करती
वतमान म गृह थ जीवन म िजस कार कलुषमय ह। इस साधना से यां सौभा य ल मी त व से आपू रत होती
थितयां िदखती ह। उसका मु य कारण एक-दूसरे क ित ह िजससे उ ह आ मक ेम, ेह, स मान, े ठ संतान
समपण क भाव म यूनता ही है। पा रवा रक-सामािजक सुख, धन-वैभव, ऐ वय और सव गृह थ सुख की ा त होती
अनेक थितयां ऐसी उ प होती ह, िजसक कारण घर ही है।
क े का मैदान बन जाता है। आजकल तो पित-प ी क िववाह पंचमी क चेतनामय िदवस पर सभी साधक-
र त म िनर तर मधुरता बनाये रखना दु कर होता जा रहा है। सािधका को यह साधना स प करनी ही चािहए, िजससे
ऐसे म प रवार क अ य सद य क साथ ताल-मेल बना पाना उनक जीवन म भी राम-सीता युगल द पि की तरह ेम,
असंभव सा िदखता है। नेह, स मान, समपण, सामंज य आिद सु थितय की ा त
आज का य त इतना अिधक वाथ , धूत हो गया है हो सक और वे अपने गृह थ जीवन का कशलता पूवक
िक वह वयं क वाथ िसि क िलये कछ भी करने को तैयार िनवहन कर सक।
रहता है। पित-प ी क म य राम-सीता जैसे भाव, िवचार साधना िवधान
मु कल से ही देखने को िमलते ह और ना ही राम-भरत जैसा िववाह पंचमी िदवस 17 िदस बर को ातः काल म ानािद से
भाईय क ित ेम कह देखने को िमलता है। िनवृ होकर व छ व धारण कर ललाट पर िस दूर का
अपने पा रवा रक जीवन को महािवनाश की गत से ितलक लगाय। अब अपने सामने चावल की ढ़री पर गृह थ
बचाने क िलये आव यक है, िक पु षो ममय चेतना श त सुख सौभा य यं थािपत कर द। यं क सामने राम-जानकी
य त क भीतर संचा रत हो और वह प रवार की सभी चेतना श त ा त जीवट एक ता पा म रख, प चा जीवट
िज मेदा रय म ताल-मेल बनाते हुए पा रवा रक मू य की र ा का धूप, दीप, अ त, पु प से पूजन कर और जीवन म तीन
कर सक। इसक साथ ही अपने संतान को सही िदशा दान मह वपूण सुख आरो यता, संतान सुख, सुहाग सौभा य
करने म सफल हो। ऐसा वही कर सकता है, जो वयं म ा त हेतु यं पर ककम से तीन िब दी लगाय।
पु षो म ऊजा श त से यु त हो। वही य त अपने जीवन म अब अपने गृह थ जीवन क सभी कलह- लेश,
सभी काय को पूणता से स पािदत कर सकता है। भगवान राम मतभेद, अभाव, हीनता की पूण समा त और सव गृह थ
की चेतना श त धारण कर ही उनक आदश, च र , गुण, सुख ा त हेतु संक प लेकर जल भूिम पर छोड़ द।
मयादा को अपनाया जा सकता है और प रवार-समाज म पद, िफर पु षो म श त माला से िन मं का पांच
ित ठा, पु षाथ, िवजय, बल, ओज, तेज से यु त हो सकते माला मं जप कर-
ह। ।। ऊ सव सौभा य श तये ी जानकी रामा यां
भगवान राम और माता सीता क समान जीवन ा त नमः ।।
क िलये येक साधक-सािधका को यास करना चािहये और उ त मं जप क प चा एक माला गु मं का जप कर, िफर
वह यास साधना माग का अवल बन लेकर ही शी ता से पूण राम चालीसा का पाठ कर गु आरती कर।
हो सकता है। इन दोन महाश तय की चेतना श त वयं म साधना पूण होने पर सभी साम ी िकसी नदी, जलाशय अथवा
धारण कर साधक-सािधका भौितक और आ या मक दोन म य तगत प से गु देव से िमलकर उनक चरण म अिपत
पूणता ा त कर सकते ह। कर आशीवाद ा त कर।
इस साधना से साधक क भीतर पु षो म श त का साधना साम ी व दी ा यौ 3100
संचार होता है और वह अपने जीवन म प रवार और समाज क
म य सामंज य थािपत कर प रवार क ित अपने कत य का
े ठता से िनवाहन और पालन-पोषण करने की सभी
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स य की
शरण से मु त

स -यह श द यापक है। असल म तो ‘स ’ श द पर िवचार स य भाषण-कपट, श द-चातुरी और कटनीित को


करने से यही सूझता है िक यह परमा मा का ही व प है, छोड़कर सरलता क साथ जैसा देखा, सुना और समझा हो, उसे
उ ह का नाम है। जो पु ष स क त व को जानता है, वह वैसा-का-वैसा न कम, न यादा कह देना स य-भाषण है।
परमा मा को जानता है। जो स है, वही िन य है- अमृत है। स य भाषण की इ छा रखने वाले पु ष को िन िलिखत बात
इसक त व का ाता मृ यु को जीत लेता है। शोक और मोह को पर िवशेष यान रखना चािहये-
लांघ कर िनभय होकर िन य परम धाम को जा पहुँचता है। वह 1. न कभी वयं झूठ बोलना चािहये और न िकसी को े रत
सदा क िलये अभय अमृत पद को ा त कर लेता है। उसी को करक बुलवाना चािहये। दूसर को े रत करक अथवा उस
लोग संसार म जीव मु त, ानी, महा मा आिद नाम से पर दबाव डालकर जो उससे झूठ बुलवाता है, वह वयं
पुकारते ह। उसकी सब म समबुि हो जाती है, य िक झूठ बोलने की अपे ा गु तर िम या भाषण करता है,
परमा मा सब म सम है और वह स म थत है, इसिलये य िक इससे झूठ का चार अिधक होता है। िकसी झूठ
उसम िवषमता का दोष नह रह सकता। वह कभी अस य नह बोलने वाले से सहमत भी नह होना चािहये। उस समय मौन
बोलता। उसक मन, वाणी और शरीर से होने वाले सभी कम साधे रहना भी एक कार से झूठ ही समझा जाता है। ता पय
स य होते ह। उसकी कोई भी ि या अस य न होने से उसक यह िक कत, का रत और अनुमोिदत, इनम से िकसी कार
ारा िकया हुआ येक आचरण स य समझा जाता है। वह जो का िम या भाषण नह होना चािहये।
आचरण करता या बतलाता है, वही लोक म ामािणक माना 2 जहां तक बन पड़ िकसी की िन दा- तुित नह करनी
जाता है- चािहये। िन दा- तुित करने वाला य त वाथ, काम, ोध,
य दाच रत े ठ त देवेतरो जनः। लोभ, मोह, भय एवं उ ेग आिद क वशीभूत होकर जोश म
स य माणं क ते लोक तदनुवतते।। आकर कम या अिधक िन दा- तुित करने लग जाता है। इन
ऐसे पु ष का अ तःकरण, शरीर और उसकी म िन दा करना तो सवथा ही अनुिचत है। िवशेष यो यता ा त
इ यां स य से पूण हो जाती है। उसक आहार- यवहार और होने पर यिद कह तुित करनी पड़ तो वहां भी बड़ी सावधानी
ि या म स य सा ा मूित धारण करक िवराजता है। ऐसे क साथ काम लेना चािहये, य िक जो अिधक तुित क यो य
नर-र का ज म संसार म ध य है, अतः हम लोग को यह हो और उसकी कम तुित की जाय अथानतर से वह तुित
त य समझकर स य की शरण लेनी चािहये अथा उसे दृढ़ता िन दा क तु य ही हो जाती है तथा जो कम तुित क यो य हो,
पूवक भलीभांित धारण करना चािहये। उसकी अिधक तुित हो जाये तो उससे जनता म म

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फलकर लाभ क बदले हािन होने की स भावना है। इस बोलने की चे टा करनी चािहये। िजस समय स य की ित ठा हो
कार की झूठी तुित से वयं अपनी और िजसकी तुित की जाती है, उस समय उपयु त दोष ायः न ट हो जाते ह। जब िक
जाय उसकी, लाभ क बदले हािन ही होती है, पर तु िकसी इनम से िकसी एक दोष क कारण भी मनु य स य से िवचिलत
बात का िनणय करने क िलये रा य म पंचायत म जो यथाथ हो जाता है तो िफर अिधक दोष क वश म होकर अस य-
बात कही जाय तो उसका नाम िन दा- तुित नह है। उसम भाषण करे तो आ चय ही या है?
यिद िकसी की िन दा- तुित क वा य कहने पड़ तो भी उसे स य बोलने वाले पु ष को िहंसा और कपट से
वा तव म व ता की नीयत क शु होने से उसे िन दा- तुित म अिधक सावधानी रखनी चािहये। िजस स य भाषण से िकसी की
प रगिणत नह करना चािहये। कोई य त यिद अपने दोष िहंसा होती है, वह स य व तुतः नह है। ऐसे अवसर पर स य
जानने क िलये पूछने का आ ह करे तो ेम पूवक शांित से भाषण की अपे ा मौन रहना अथवा न बतलाना ही स य है।
उसे उसका यथाथ दोष बतला देना भी िन दा नह है। अगर अपनी या दूसरे की ाण र ा क िलये झूठ बोलना पड़ तो
3 यथा सा य भिव य की ि या का योग नह करना चािहये। यह स य तो नह समझा जाता, पर तु उसम पाप भी नह माना
ऐसी ि या का योग िवशेष करने से उनका सवथा पालन गया है।
होना किठन है, अतः उनक िम या होने की स भावना पद-पद िजस स य म कपट होता है, वह स य, स य नह
पर बनी रहती है, जैसे िकसी को कह िदया िक ‘म कल समझा जाता। स य बोलने वाला मनु य जान बूझकर स य का
िन चय ही आप से िमलूंगा’, िक तु यिद िकसी कारणवश िजतना अंश श द से या भाव से िछपाता है, वह उतनी अंश की
वहां जाना न हो सका तो उसकी ित ा झूठी समझी जाती चोरी करता है। िहंसा और कपट ये दोन ही स य म कलंक
है। अतः ऐसे अवसर पर यही कहना उिचत है िक ‘ आपक लगाने वाले ह। इसिलये िजस स य म िहंसा और कपट का थोड़ा
घर पर कल मेरा आने का िवचार है या य क गा।’ भी अंश रहता है, वह स य श द से स य होने पर भी झूठ ही
4 िकसी को ाप या वर नह देना चािहये। इससे तप की हािन समझा जाता है।
होती है। ाप देने से तो पाप का भागी भी होना संभव है। इस ऐसे म िववेक-बुि क ारा वाथ को छोड़कर जो
कार क बुरे अ यास से वभाव क िबगड़ जाने पर स य की स य क पालन की िवशेष चे टा करते ह, उनक िलये इसका
हािन और आ मा का पतन होता है। पालन होना- इसकी ित ठा होना स भव है- असा य नह । जो
5 िकसी क साथ हंसी-मजाक नह करना चािहये। इसम स य का अ छी तरह अ यास कर लेता है अथात िजसकी स य
बहुदा िवनोद बुि से अस य श द का योग हो ही जाया म सवाग ित ठा हो जाती है, उसकी वाणी स य हो जाती है
करता है। िजसकी हम हंसी उड़ाते ह, वह बात उसक मन क अथात वह जो कछ कहता है, वह स य हो जाता है।
ितकल पड़ जाने पर उसक िच पर आघात पहुँच सकता है, स य बोलने वाला य त िनभय हो जाता है। जब
िजससे िहंसा आिद दोष क आ जाने की भी आशंका है। तक भय रहता है, तब तक यथाथ भाषण नह होता, भय क
6 यं य और कटा क वचन भी नह बोलने चािहये। इनम भी कारण कह -न-कह िम या भाषण हो ही जाता है। जो सवथा
झूठ-कपट और िहंसािद दोष आ सकते ह। स य को जीत लेता है, वही माशील होता है, वही ोध क
7 श द-चातुरी क वचन का योग नह करना चािहये। जैसे वशीभूत नह होता।
श द से तो कोई बात स य है, पर तु उसका आ त रक जब सवथा स य की ित ठा हो जाती है तो उस
अिभ ाय िवपरीत है। राजा युिध ठर ने अपने गु पु स यवादी म िकसी कार की इ छा या कामना नह रहती। भोग
अ व थामा की मृ यु क स ब ध म अ व थामा नामक हाथी की इ छा वाला मनु य भला या- या अनथ नह कर बैठता,
का आ य लेकर श द चातुय का योग िकया था। वह िम या य िक काम ही पाप का मूल है। इसिलये काम क वशीभूत
भाषण ही समझा गया। ऐसा अस य ‘अनृत’ कहा जाता है हुआ कामी पु ष झूठ, कपट, छल आिद दोष की खान बन
और वह अस य से बढ़कर पाप जनक होता है। जाता है। अतएव स य क स य पालन से काम, ोध, लोभ,
8 िमतभाषी बनना अथा ग भीरता क साथ िवचार कर मोह, ई या और अहंकार आिद दोष का नाश हो जाता है और
यथासा य बहुत कम बोलना चािहये, य िक अिधक श द का वह मनु य एक स य क ही पालन से दया, शांित, मा, समता,
योग करने से िवशेष िवचार क िलये समय न िमलने क िनभयता आिद स पूण गुण का भ डार बन जाता है। अतः
कारण भूल से अस य श द का योग हो सकता है। मनु य को स य-भाषण पर किट ब होकर िवशेष प से
स य क पालन करने वाले मनु य को काम, ोध, य करना चािहये।
‘स यमूल सब सुकत सोहये।’ lLusg vkidh ek¡
लोभ, मोह, भय, ेष, ई या और ेहािद दोष से बचकर
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जीवन की सभी थितय म आपकी पूण सहयोिगनी है


सकल िसि दा भैरवी साधना
भैरवी साधना साधक क जीवन का ृंगार है, पूणता है, सफलता है...
िसि दा भैरवी ा त हो जाय, तो जीवन म िफर िकसी कार की कोई यूनता या कमी नह रह पाती।
तुत लेख म िसि दा भैरवी क बारे म िव तार से िववेचन है...
आप वयं इस समु म गोता लगाइये, आप अनुभव कर सकगे, िक आप क हाथ मोितय से भरे ह।
एक मह वपूण और दुलभ लेख आप सभी साधक क िलय.े..
‘‘भैरवी साधना साधक क जीवन का ृंगार है, उसक जीवन उ व था ा त कर ही नह सकता...’’ ये श द अघोरी
की प रपूणता है, य िक िबना ’श त त व’ की साधना िकय,े असं ान द क थे, िज ह म चुपचाप बैठा सुन रहा था।
िबना श त त व को अपने अ दर आ मसात िकय,े य त वह मुझे अचानक ही िमल गये थे... गंगो ी क

PMY V 12 info@pmyv.net fnlEcj 2023


आसपास क जंगल म म िवचरण कर रहा था, िक उनसे भट हो
गई... यह जगह सौ दय की दृ ट से अपूव है। सारा वातावरण
यौवन क वेग म झूमता हुआ मन को एक असीम शांित एवं
अिनवचनीय आन द दान करता है।
‘‘पर...,’’ मने िझझकते हुये कहा, ‘‘पर भैरवी तो शायद
उ देवी है और सुना है उनकी साधना तलवार की धार
पर चलने क समान है... और अगर कोई भूल-चूक
हो जाये तो गए काम से...।’’
वह ‘‘हो-हो’’ कर हंस पड़ा। मेरी बात कतई
हा या पद नह थी, पर वह ऐसे हंस रहा था, मानो मने
कोई चटकला सुना िदया हो। एक बार तो मुझे लगा,
िक शायद वह....
‘‘अरे नह ... नह !’’ वह हंसी क बीच बड़ी मु कल से
बोला, ‘‘ये सब कहां से सीख िलया तूने, िकतनी बार
समझाया है, िक इन दो टक क साधु क पास मत
बैठा कर, जो चौबीस घ ट िचलम सुलगाते रहते ह।
ये बेचारे खुद भटक हुये ह, तुझको या रा ता
बताएंगे...?’’
‘‘पर िफर भी... है तो यह बात सच ही?’’
‘‘अरे नह , ये सब फालतू बात ह, लोग को गुमराह
करने क िलये और अपनी दुकान जमाने क िलय.े..।’’
‘‘अ छा अगर म तुझसे कहूं, िक भैरवी से यादा
सौ य देवी और कोई है ही नह और इसकी साधना
अ य त सुगम है तो?’’
मेरी आंख आ चय क साथ फल गई और उनम
स देह साफ-साफ झलक रहा था... असं ान द ने मेरी
मनो थित तुर त भांप ली।
‘‘ तेरा इस तरह से आ चय करना सही ही है, पर तु म
तुझसे दो टक स य कह रहा हूं, िक भैरवी साधना बहुत
सहज, सौ य एवं साधक क िलये सव पयोगी साधना है,
िजसक िबना उसका जीवन अथहीन, सामा य एवं
चेतनाहीन रहता है...’’
‘‘िशव की ‘िशवा’ पूण श त व पा माँ ह और उ ह क दस
अंश से दस महािव ा का ादुभाव होता है अथात अगर
हम दस महािव ा को सं िहत कर, तो जो िपंड ा त
होगा वही वा तव म िशव की आ श त कहलाती है।’’
‘‘इन दस महािव ा का िवभाजन करक ही च सठ
योिगिनय या भैरिवय की उ पित होती है, जो मूल प से
श त व पा ही ह...’’
वह कछ देर तक चुप रहा तािक उसकी बात मेरे गले उतर सक,
िफर उसने अपनी बात आगे बढ़ाई-
- ‘‘भैरवी तो मा उस सव यापी श त, उन महािव ा की
ही अंश व पा है और जब महािव ा की साधना करने म
कोई नुकसान नह , तो िफर भैरवी की साधना म ऐसा कसे
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छठ
स भवपूहैज
...ाऔर अगर अनुभव क आधार पर सच कहूं तो िकसी भी िवषय पर घ ट धारा वाह बोलना19 नव
उसक बर
िलये बाएं
भैरवी साधना अ य श त साधना से यादा उपयोगी एवं हाथ का काम होता है। इस तरह वह सम त िव समाज म
उन तक पहुंचने को थम सीढ़ी है...’’ पू यनीय होता है।
मेरी समझ म कछ भी नह आ रहा था... अब भैरवी साधना 7 उसका पा रवा रक जीवन अ यिधक सुखी एवं िचकर
महािव ा साधना से यादा उपयोगी कसे हो गई, जबिक वह होता है। उसे मनपसंद जीवन साथी की ा त क साथ-साथ
खुद ही महािव ा का अंश मा है... पु सुख भी ा त होता है।
असं ान द ने मेरे चेहरे पर उठते हयुे संशय क भाव 8 ऐसा य त बल श ुह ता होता है। दु मन उसक नाम से
को अनदेखा करते हुये अपनी बात आगे बढ़ाई, ‘‘जब कोई थर-थर कांपते ह और उसक सम आते ही तेजहीन हो जाते
य त पी.एच.डी. करना चाहता है तो उससे पूव उसे इ टर, ह।
ेजएट आिद करना पड़ता है। वे उसक िलये अ यिधक 9 भैरवी जहां य त को हर कार की भौितक सुख सुिवधाय
उपयोगी ह और पी.एच.डी क िलए थम सीढ़ी भी... तुम सीधे दान करती है, वह उसे आ या मक ऊचाईय की ओर भी
पी.एच.डी. नह कर सकते... बेशक कोिशश करक देख लो... अ सर करती रहती है और चूंिक भैरिवयां महािव ा की
उसी तरह तुम सीधे दस महािव ा की साधना नह सहचरी, सेिवकाय होती ह अतः इनकी सहायता से िफर
स प कर सकते, य िक उनक िलये अि तीय चेतना एवं महािव ा साधना म सफलता ा त करना साधक क िलये
तेज वता की आव यकता होती है तो कवल भैरवी साधना क सहज हो जाता है।
ारा ही ा त हो सकती है। जो लोग कहते ह, िक उ ह ये ऊपर कछ िब दु िदये ह जो इस िसि दा भैरवी की
महािव ा िस है उनम से 95 ितशत बकवास करते ह... साधना स प करने से य त क जीवन म वतः ही ा त
य िक इतनी ती एवं उ श त को अपने शरीर म थािपत होने लग जाते ह और वयं भैरवी भी चौबीस घ ट अदृ य प
करने क िलये िकसी गु अथवा िकसी भैरवी की सहायता म साधक क साथ रहती है।
आव यक है।’’ साधना िविध
असं ान द ने उस िदन भैरवी साधना से स ब धत यह साधना अ यिधक सुगम एवं सरल है और इसको ी-
न जाने िकतनी गूढ़ बात मुझे बताई। जब मने उनसे िकसी भैरवी पु ष, युवक-वृ कोई भी स प कर सकता है। इसम
साधना क िवषय म जानकारी चाही, तो उ हने िबना आनाकानी िन साम ी की आव यकता होती है-
िकये मुझे ‘सकल िसि दा भैरवी’ क िवषय म िविश ट 1 सकल िसि दा भैरवी यं , 2 सकल िसि दा भैरवी माला
जानकारी दी, उसकी साधना िविध समझाई और उससे ा त यह साधना 26 िदस बर को स प करे या िकसी
होने वाले िवशेष लाभ क बारे म भी मुझे बताया। वही जानकारी भी शु वार को राि काल म। साधक सफद व छ धोती पहन
म पाठक क लाभ हेतु इन पृ ठ पर तुत कर रहा हूं- कर वेत आसन पर दि णािभमुख होकर बैठ जाय और
1 सकल िसि दा भैरवी की साधना अ यिधक सो य है। अपने सामने सफद व से ढक बाजोट पर ‘सकल िसि दा
िसि दा भैरवी च सठ भैरिवय म से एक है और साधक को भैरवी यं ’ थािपत कर, उसका िविधवत पंचोपचार पूजन
योग े म अ सर करने क िलये सदैव त पर रहती है। स प कर। िफर यं पर लाल िस दूर अिपत करते हुय,े
2 भैरवी की साधना करने से य त को वतः ही धन लाभ चुर जीवन म सभी दृ टय से पूणता ा त करने की इ छा कह
मा ा म ा त होने लगता है। यापार, लॉटरी आिद मा यम कोई तथा कामना कर िक भैरवी िनर तर सहयोिगनी बनी रहे।
भी हो, पर ऐसे य त का घर सदैव धन-धा य से पूण रहता है। इसक उपरा त ‘सकल िसि दा भैरवी माला’ से
3 ऐसे य त का सारा य त व भैरवी क साहचय से अ यिधक िन मं की 21 माला मं जप कर।
स मोहक एवं आकषक हो जाता है। अगर वह वृ है तो पुनः मं
यौवनवान एवं फितवान हो जाता है। वह जीवन भर ।। ऊ ं ां ूं फ ।।
रोगरिहत हो कर व थ जीवन यतीत करता है।
साधना समा त क उपरा त सम त साधना सामि य को
4 ऐसे साधक से जो एक बार भी िमल लेता है, वह अनायास ही िकसी जलाशय म अिपत कर द। ऐसा करने से साधना
उसकी ओर आकिषत हो जाता है और उसकी हर आ ा का फलीभूत होती है तथा य त की सभी मनोकामनाय पूण होती है
पालन करने को त पर हो जाता है। और वह संसार म धन, मान, यश, ित ठा एवं वैभव ा त कर
5 भैरवी चूंिक वयं सम त िसि य की वािमनी होती है अतः सबक ारा पू यनीय होता है।
ऐसा य त वयं भी सम त िसि य को ह तगत कर लेता है साधना साम ी व दी ा यौ 2100
और िद य पु ष कहलाता है।
6 वह सब कार क ान-िव ान म अ णी हो जाता है तथा
PMY V 14 GurudevKailash fnlEcj 2023
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महाभारत एवं भागवत क क ण


भारतीय सं कित, धम-दशन, सािह य और कला क गीता म हो जाने से चार माण का आ य यथ है।
िविवध े म ीक ण की लीला-च रत का यापक भाव देखा जाता इसका उ र देते हुये व लभाचाय कहते ह, िक इन चार
है। ीम ागवत तो सम तः एक लीला परक ंथ ही है, िजसक माण म येक उ रवत माण अपने पूववत माण म उ प
मु य ितपा ीक ण ही ह। व लभ स दाय म इस ंथ को होने वाले संदेह का िनराकरण करने वाला है। जो इन चार माण क
थान चतु ठय मानने का आधार यही तीत होता है, िक इस ंथ म अिवरोधी ह, वे माण माने जा सकते ह, िक तु जो इन चार माण
उपिनष , सू तथा गीता क अभाव की पूित होती है। क िवरोधी ह, वे िकसी भी दशा म माण नह माने जा सकते ह। अतः
शंकराचाय, रामानुजाचाय तथा महवाचाय अपने िस ा त की व लभ स दाय म यह माना जाता है, िक वेद से उ प शंका
या या क िलये थानमयी को ही आधार मानते ह, िक तु व लभ का िनराकरण -सू से और सू की शंका का
स दाय म ीम ागवत को थानमयी क समक मानकर उसे िनराकरण ीक ण क वचन (गीता) से होता है, िक तु इन सबसे
चतुथ थान की सं ा दी गई है। उ प शंका का िनराकरण ीम ागवत से होता है।
व लभाचाय कहते हः वेद(उपिनष ), ीक ण क महाभारत तथा गीता एवं भागवत म ीक ण क व प
वचन(गीता), यास क सू ( सू ) और यास की समािध का िवकास उ रो र लि त होता है। महाभारत को एक ऐितहािसक
भाषा (भागवत)। ये चार ही माण ह। चार थान म एका मकता ंथ माना जाता है। इसक िविवध आ यान म भगवत व का
होने से वे ामािणक ान क ोत ह। िन पण हुआ है। यिद उन लोको र आ यान को अलग-अलग कर
यह शंका की जाती है, िक ितपा िवषय की पूणता वेद एवं िदया जाये, तो ीक ण का उसम मानवीय प ही अिधक भा वर प
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म हमारे सामने आता है, िक तु उन आ यान म िजस भागवत धम अिन का यूह भी मा य िकया गया है। गुणावतार म िव णु,
और त व का िन पण हुआ है, वह अ य त मह वपूण माना जाता है। ा और को भी मा य िकया गया है। इनक अित र त
गीता उसी भागवत धम और त व को वै ािनक प से सम वत म व तरावतार भी वीकार िकये गये ह, जो सभी चौदह म व तर म
करक तुत करती है। ीम ागवत म इ ह सबकी ताि वक देख जाते ह। भागवत का यह वैिश ही उसे अ य पुराणा तथा
या या की गई है। भागवत म विणत पृथु, ि य त, हलाद आिद महाभारत से अलग करता है।
भ त की कथाय तथा िन काम कम क वणन से यह प ट हो जाता है, भागवत म ीक ण को ऐसा अवतारी माना गया है, जो
िक महाभारत का नारायणीय धम और ीम ागवत का धम भ त क वश म होते ह। माता देवकी ीक ण की तुित करते हुये
आिदकाल म एक ही था, पर तु प रवत युग म दोन ंथ म िभ - कहती ह- ‘हे आ पु ष! आपक अंश का अंशांश यह कित है,
िभ िस ा त की धानता हो गई। उसी क स वािद गुण-भाग परमाणु ारा इस िव व की सृ ट,
शु ा ैत स दाय म मेय की तीन कोिटयां िन चत की थित और लयािद हुआ करते ह, म आपकी शरण हूं।’
गई ह- व प कोिट, कारण कोिट और काय कोिट ( व प कोिट म गीता म भी ऐसे भाव िमलते ह। ीक ण कहते ह- ‘म अपनी माया क
मेय ीक ण ह तथा उ ह ि या-िविश ट, ान-िविश ट तथा एक अंश मा से इस जगत को या त करक थत हूँ। अथवा- ‘हे
ान-ि या-िविश ट भेद से ि िवध माना गया है।) पूव मीमांसा म अजुन! इस िव व म मुझसे परे कछ भी नह है।’
ितपािदत कमका ड क ारा ‘ि या िविश ट ीक ण’ का, उ र इस तरह गीता तथा भागवत म ीक ण को ान, भ त, बल,
मीमांसा म ितपािदत ानका ड क ारा ‘ ान िविश ट ीक ण’ का ऐ वय, वीय और तेज- इन ष गुण से सदैव संयु त माना गया है।
तथा गीता और भागवत म ितपािदत कम और ान क ारा ‘कम- भागवत म क ती, ीक ण की तुित करते हुये कहती ह-
ान िविश ट ीक ण’ का िन पण होता है। ‘हे भगवान! कई लोग कहते ह, िक आपने पु य- लोक राजा यदु
महाभारत म ीक ण का प लोक-र क भी है और लोक- का यश बढ़ाने क िलये ही यदुवंश म ज म िलया है... जो लोग ेम
रञजक भी। िफर गीता म, जो महाभारत का ही अंश है, िस ा त की तथा भ त-भाव से आपकी अ त लीला को सुनते ह, सुनाते ह
या या की गई है। गीता और महाभारत म िन काम कमयु त वृि तथा वयं गाकर और मरण करक आन दत होते ह, वे शी ही
त व का िववेचन िकया गया है, िक तु उसम भ त का समावेश सांसा रक वाह से मु त होकर आपक ीचरण क दशन ा त
भागवत म ही हो सका है। भागवत की रचना का उ े य ही कम वृि करते ह।’
म भ त का िन पादन तीत होता है। भागवतकार क अनुसार भ त इस कार की अ य तुितय म ीक ण का पर व ही
क िबना िन काम कम स भव ही नह है। अतः भागवत का उ े य िस िकया गया है, जो भागवत का अपना वैिश ही कहा
िन काम भ त का ितपादन ही माना जाता है। जायेगा। तुलना मक दृ ट से महाभारत, गीता तथा भागवत म
गीता म ीक ण को कित और पु ष से परे एक सव यापक, ीक ण क तीन िभ प िदखलायी देते ह। भगवान क ‘वीर व
अ य त तथा अमृत-पद माना गया है और उ ह परम पु ष भी कहा िवधायक व प’ क दशन महाभारत म, ‘पर व प’ क
गया है। ीक ण क दो व प माने गये ह- ‘ य त’ और ‘अ य त’। गीता म तथा ‘रिसक वर व प’ क दशन भागवत म होते ह। य िप
अ य त क भी सगुण, सगुण-िनगुण तथा िनगुण तीन भेद िकये गये भागवत म ीक ण क सभी व प का प रदशन होता है, तथािपत
ह। ीक ण उस परम पु ष क मूितमान अवतार ह और इसी कारण धानता उनक रिसक वर व प की िदखलायी देती है। गीता क
से गीता म ीक ण ने अपने िवषय म पु षो म का िनदश थान- ‘‘प र ाणाय साधूनाम’’ की उ त कवल अवतार-दशन क प म
थान पर िकया है, िक अ य त की उपासना अिधक सहज है। है, जबिक उनक यावहा रक और ि या मक प का प टीकरण
महाभारत क शांित-पव म इसी कार भगवान ी क ण भागवत म ही ा त होता है।
ने नारद जी को अपना िव व- प िदखलाया है तथा भागवत क भी ीक ण की लीला को भागवत म सव एक कार की
एकािधक संग म िवरा -पु ष का वणन िकया गया है। इससे यह लोको र भूिमका दान की गई है। महाभारत म यह बात िदखलायी
ितपािदत िकया जाता है, िक िस ा ततः महाभारत, गीता और नह देती। भागवत क घटना धान थल पर अ य त िवल णता का
भागवत म पर को एक ही प म िदया है तथािप महाभारत और आभास होता है। जैसे गो वामी तुलसीदास मयादा पु षो म ीराम
उसक अंश गीता म अ तर यह है, िक महाभारत म ीक ण का क च र का अनुगायन करते हुये ‘रामच रत मानस’ म अपने
परमत व क प म तादा मय इतने यापक प म नह िमलता, धानसू भ त का कह याग नह करते और उसी भावना से
िजतना गीता और भागवत म देखा जाता है। अिभभूत होकर सव ीराम क च र म अलौिककता का समावेश
य िप महाभारत म भी ीक ण को िविश ट अवतार माना करते चलते ह, उसी कार भागवत म यासदेव ीक ण च रत का
गया है तथा िप ड और ा ड स ब धी ान क साथ आ मिव ा अनुगायन करते हुये भगवत त व का िन पण करते ह तथा भ त
क गूढ़ त व को समझाया गया है। तथािप भागवत म इन सबका रस का भी संचार करते ह तथा भगवान क िद य, मंगलमय व प
िन पण िवशेष प म करक भ त को सव प र मह व िदया गया है। को भी उ घािटत करते चलते है। ऐसे थल पर भागवतकार वयं
लीलापरक थ होने से भागवत म भगवान क ायः सभी अवतार का भगवान क व प म इतने त लीन हो जाते ह, िक अ य सम त भाव
वणन िकया गया है, िक तु ीक ण को िवशेष श तय से यु त सा ा ितरोभूत से हो जाते ह तथा दयानुभूित रागा मका वृि क साथ
पूण पु ष माना गया है। अवतार का भेद पु षावतार, गुणावतार तुितय एवं तो क प म क ण का पर त व वािहत होता
तथा लीलावतार क प म करते हुये वासुदेव, संकषण, ुमन तथा है।
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नववष सव साधना िसि


नववष का उ लास ही भारतीय साधना ंथ म एक पव क प ाचीन ह, िजनकी कोई गणना ही संभव नह । काल क
म विणत है। िजस िदवस को सामा य लोग लब और पािटय म अिव छ भाव म बहती ान की गंगा... िजसक िकनारे
िबताते ह, उसे हमारे पूवज और ऋिष-मुिन अपने आसन पर य -त िव ाम थल बने ह- साधना प पव और अवसर क,
बैठ, साधना स प कर मनाते थे, और बदले म ा त कर लेते िजनम क कर, य त ा त कर ले अपने जीवन क िलये
थे पूरे वष भर क िलये ऊजा का ऐसा सं ह, जो बन जाये, शीतलता और संतोष क जल का पान।
आधार, उनक भौितक और आ या मक जीवन की सफलता ई वी स क आर भ होने का समय भारतीय वष
का। पूरे वष भर का तेज, बल और आन द... प ित से पौष माह म घिटत होता है... स पूण प से एक अ त
ई वी सन तो अभी कवल लगभग 2000 वष ही पुराना िद य व चैत य माह, िजसका ाचीन भारतीय ऋिष-मुिन
है, जबिक भारतीय साधनाय और प ितयां तो इतनी अिधक सदुपयोग करते थे क डिलनी जागरण और योग की
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उ कोिट की साधनाएं करने क िलय।े जीवन की ऊचाई व िपतृ तपण और ऋिष तपण तो हमारी ाचीन शैली का एक
ान की े ठता तक ले जाने क िलये, अपने व को िवकिसत अिभ अंग रहा है। दैिनक जीवन का ारंभ ही इस कार से
करने क िलये तथा देवी-देवता को अपने जीवन म थान होता रहा है, और इसम कोई नूतन बात नह , िक तु पौष माह म
देने क िलये। यह तो एक िम या धारणा हमारे मन म त क म वे िजस कार से िवशेष प से ऋिष पूजन करते थे, वह अव य
बन गई है िक वे समाज से कट कर रहने वाले ऐका तक ही साधना जगत का दुलभ और गोपनीय रह य है। कवल स त
य त व सदैव तप या म ही लीन रहने वाले थे। स यता यह है िक ऋिषय - सनक, सन दन, सनातन, किपल, आसुरी, वोढ
उनका गृह थ जीवन, उनका सामािजक जीवन आज की और पंच िसख का ही आ ान और पूजन नह , वरन पुलह,
अपे ा हम से कह अिधक े ठ, कह अिधक प रपूण और पुल य, विश ठ, मरीिच, नारद, भृगु, अंिगरा, एवं इसी कोिट
कह अिधक स तु ट था, िजसकी पु ट होती है वेद एवं अ य क अ य उ आ मा का पूजन भी इसी िवशेष माह म करने
ाचीन ंथ से। का िवधान रखा गया है।
इसक मूल म रह य छपा था, उनक ारा येक इस वष का ारंभ अथात ई वी स 2024 का ार भ
अवसर की मह ा को समझते हुये उस अनु प साधना को िह दी ितिथ क अनुसार पौष क ण पंचमी से हो रहा है, इस दुलभ
स प करने म, और कवल इतना ही नह उ ह ने सदैव अवसर पर इस स तऋिष साधना का मह व सह गुिणत हो
िचंतनयु त रहकर जीवन क एक-एक ण की मह ा को गया है। यह भी स य है िक इस कार से आप जीवन का ारंभ
समझते हुय येक माह का िववेचन कर, उसक अनु प और कर, तो आपक जीवन म अनुकलता क साथ-साथ तेज और
अनुकल साधना प ित या तो ढढ िनकाली या उसे रच िदया। बल का आगमन होगा ही। जहां ऋिषय को तेज, जहां उनक
यह पौष माह भी उनक इ ह यास का एक अंग है। आशीवाद क प म उनकी तपः र मयां वािहत ह। उनकी
जब उ ह ने अनुभव िकया िक यह माह तो स पूण प से अ कट उप थित म वहां सम त देवी और देवता उप थत होने
देव वमय है, ऋिष मय है, और यिद इस माह म अपने कल क क िलये बा य ह ही, ऐसे िद य ऋिषय और तपः पूत क ारा
आिद पु ष , उन िविश ट ऋिषय की साधना की जाये िजनका उनक रोम-रोम से वतः उ ा रत होती मं विन, देवता को
नाम हम गो का उ ारण करते समय लेते है तो िफर जीवन म भी बा य कर देती है उनक पीछ आकिषत होकर ब होने क
अनोखी चैत यता और तेज वता आती ही है। उनक मन म नव िलये, य क तूरी मृग की सुग ध। ऋिषय और तपः पूत की
वष मनाने जैसी कोई धारणा नह थी, लेिकन इस बात का उ ह सू म उप थित ही मं क मौन संगीत का गुंजरण, तं का
पया त बोध हो गया था िक शीत ऋतु क प चा और भारतीय कटीकरण और सा ात यं का थापन है, और यही सही
पर परा क अुनसार वषार भ क म य का यह काल एक ऐसा अथ म नव वष की भावना है, नव वष का वागत है, जीवन को
चैत य और ऊजामय अवसर है, जबिक चै नवराि म की साजने व संवारने की ि या है। एक राि का उ सव, लब
जाने वाली श त साधना क िलये आव यक ऊजा सं िहत अथवा शराब की पािटय म िबताया गया समय, िकसी भी कार
की जा सकती है। वा तव म वे नवराि क पव, इस काल का से नव वष का उ सव नह दे सकता। िविच होता है यह चिलत
उपयोग अपने को पिव व उदा बनाने म करते थे। देव तपण, नव वष का वागत, जो अ राि की घोर कािलमा म और भी
अिधक कलंिकत ढग से मनाकर िकया जाता है और इसक

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िवप रत भारतीय शैली अपने येक िदन क आर भ को कर तथा िन मं उ ा रत कर-
भगवान सूय की र मय क पश क मा यम से नववष सव क ऋषयः स तु मे िन यं तसंपितका रणः पूजां गृ तु
समान ही मानती है। इसी से भारतीय िचंतन म नव वष जैसा कोई म ामृिष योऽ तु नमः।।
िवशेष िदन िनधा रत िकया ही नह गया, य िक हमारा तो येक मूल मं
िदवस उ सवमय है, येक िदवस आशा से प रपूण है, येक ।। ऊ सवकाय िस यथ नमः ।।
सायं काल ‘सं या’ क मा यम से ई वर को ध यवाद ािपत इसक उपरा त इस साधना क उपरो त मूल मं का 11
करने क िलये ढली हुई है, उसम तो िन य आन द है, िन य माला अथवा 21 माला या 51 माला जैसी आपकी िच हो,
उ सव है, िन य छलछलाहट है। िफर हम िकसी एक िवशेष ापूवक जप कर यिद 101 माला जप करते ह तो अ यिधक
िदन का अवल बन य ल, य हम उ माद म भरकर िविच अनुकल है। इस स पूण जप काल म घी का दीपक व सुग धत
ढग से आचरण कर? अगरब ी को अव य ही विलत रख। मं जप क उपरा त
इस एक िदवस की साधना को पाठक वयं स प िन तो का ा पूवक पाठ कर-
कर अनुभव कर सकता है िक आम िघसे-िपट ढग से पािटय ाचका यपो िव ः सनक च सन दनः, सन सनातनी
और लब म समय यतीत करने की अपे ा यिद साधना मक िव ी नारदः किपल तथा।
ढग से यह पव मनाया जाये तो कवल उस िदवस िवशेष पर ही
नह , वरन स पूण वष भर जीवन म इतना अिधक उ लास और म रिच अि ः पुलह पुल यो गौतमः तु, भृगुद ः चेता च
ऐसी ताजगी आ जाती है, िजसका िक पहले अनुभव ही न िकया वािश ठो विश ठो वा मकी तथा।
हो। भोग कवल रोग को ज म देता है, जबिक साधना देती है ैपायनी भर ाजः शु ो जेिमनीरेवच, िव रथः शुन शेफो
शरीर और मन को पु ट। पौष माह की यह साधना ऐसी ही जातु कण च रौरवः।।
पु टदायक साधना है औतः संवतकः शु ा सुराचाय बृह पितः च सूय बुधः
िदनांक 01-01-2024 को ातः सूय दय से काफी पूव उठकर ीमा य सू य थषु।
ही तैयार हो जाये और ान आिद करक शु वेत व धारण ित ठ तु मम वामांशे वाम क धे वहिनश ाधीः
कर, पूवािभमुख होकर बैठ, यिद व आसन सब नये ह तो देवताः सव य सू य देवता।।
अिधक उिचत माना गया है। मन को िवचार से शू य बनाय तथा इस कार यह एक िवशेष सा वक और मंगलदायक
आ मक शुि क िलये तीन बार ओऽ कार की विन कर। यिद साधना स प होती है। िजसका भाव साधक को पूरे वष भर
आपक पास गु चरण पादुका अथवा गु यं हो, तो उसे ता िमलता रहता है। आपने जीवन म अनेक देवी-देवता से
पा म थािपत कर, यान रख िक इस स पूण पूजन म काफी स ब धत साधना की होगी िक तु ऋिषय की अ यथना से
मा ा म िघसे हुय वेत चंदन व अ त तथा वेत पु प का ही स ब धत यह साधना तो अभी तक कवल पर परा से िश य को
िवशेष मह व है, अ य कोई पूजन साम ी आव यक नह है। िमलती रही है, और उ ह िश य को जो पहले एक िन चत
गु यं क सामने पांच चावल की ढ रयां बनाय तथा येक पर अविध तक, अपने गु की सेवा कर, उनको स तु ट कर देते
एक गोल सुपारी रख। गु यं एवं इन पांच ढ रय का पूजन थे, य िक जहां स त ऋिषय का तेज है, वहां तो जीवन की
ारंभ कर, येक व तु अिपत करते समय ‘गुं गु यो नमः’ स ता तो वयमेव उप थत होती ही है। उनकी सू म
मं का उ ारण कर, इन पांच ढ रय क आगे सात ढ रयां और उप थित से साधक का जीवन िनर तर इसी कार आ ािदत
बनाकर उनक ऊपर सात गुिटकाएं तथा स त ऋिष यं जो और मंगलमय रहता है, िजस कार कोई बालक अपने माता-
ता प पर अंिकत हो, थािपत कर, इनका पूजन भी उपरो त िपता की उप थित म िनभ क और िन चत रहता है।
कार से कर। इसक उपरांत फिटक माला से ऊ गं गणपतयै साधना क उपरा त स तिष यं को गु यं क समीप
नमः मं का एक माला मं जप कर तथा भगवान गणपित से ही थािपत रख और सम त गुिटका को एक रे मी थैली म
अपने पूरे वष भर िव हता बने रहने क िलये िवनीत भाव से बांधकर पिव ता पूवक रख। आगे जब ऋिष पंचमी का अवसर
ाथना कर, तथा पांच माला गु मं जप अव य कर, य िक हो तब इस साधना को पुनः स प िकया जा सकता है। इस
गु देव ही वह परम पु ष ह जो सम त ऋिषय ारा अिच य साधना का एक फल यह भी है िक इसको स प करने से
प से व दनीय ह। साधक क सम त िपतृ वग वतः ही स तु ट और तृ त हो जाते
इसक उपरा त एक पा म पहले से तैयार िकये गये ह, तथा िपतृ दोष आिद से थायी मु त िमल जाती है।
अ टांग अ य, िजसम दूब, अ त, पु प, कश, सरस , दही,
जौ व दूध हो, उसे अपने पू य गु देव एवं सम त ऋिषय व साधना साम ी व दी ा यौछावर J 2600
देविषय को अिपत करने की भावना करते हुये एक पा म तपण

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िबलासपुर (छ.ग) 29-30-31 िदस बर

नूतन वष महामाया सव िशव व


श त कबेर ी ल मी साधना महो सव
कालच क इस ख ड म पुनः नया वष आ रहा है और जगद बा ह, ा, िव णु और िशव इस आ ा पराश त से
येक मनु य को नववष का ार भ आन द, हष, उ लास क उ त हुये ह। ऋ वेद म श त का उ लेख है िक एक अजा से
साथ करना चािहये, लेिकन यह िवचार करने की आव यकता है अनेक जा की उ पि हुयी है, वह अजा यही आ ा श त
िक या बीता हुआ वष आन द पूवक यतीत हुआ? यिद बीते वष महामाया है। िव व की अिखल स ा, चेतना, ान, काश,
म अनेक किमयां रह गई है तो इसका या कारण है? इन किमय आन द, ि या, साम य आिद इसी श त क काय ह।
पर िवचार कर, इन यूनता को कसे समा त िकया जाये? कनोपिनष म वण-वणा उमा क कट होने पर
जीवन का आधार ही नवीनता है। यह नवीनता देह क देवता को ात हो गया िक उसी श त क भाव से उ ह ने
मा यम से नह आ सकती य िक मनु य जब पैदा होता है तो वह असुर पर िवजय पायी है तथा उनकी सम त श तयां उसी एक
घड़ी देखकर इस संसार म नह आता और जब वह जाता है तब भी परम श त से ा त हुयी है, वेद की माता गाय ी भी यही आ ा
घड़ी देख कर अपने ाण नह छोड़ता, ज म और मृ यु दो कीले ह श त है, जो भव-ब धन से ाण कर मु त दान करती है,
और इ ह कील क बीच मनु य क जीवन की डोर बंधी है। हर ण वेदा त और ान माग की ितपा िव ा िजससे अिव ा का नाश
प रवतनशील है और जीवन का येक ण बीते हुये ण से और की ा त होती है, वह भी यही आ ा श त ह। योग की
अलग है। ई वर ने हर ण की रचना मनु य क िलये इस कार मु य श त क डिलनी भी यही आ ा श त ह। उ र देश क बौ
की है िक वह येक ण का मू य समझे और येक ण को िजस तारा देवी की उपासना करते ह, वह भी आ ा श त ही ह।
िकस कार आन द ण म प रवितत कर सकते ह यही ि या पर तु जहां काश है, वहां साथ ही तम भी होता है। काश
‘गु िश य’ स ब ध कहलाती है। (Light) और तम (Shade) क अ त व को िव ान ने भी माना
यह जो सृ ट का प का आिद व प है, इसी को है। मानव क िवकास क िनिम इन दोन िव पदाथ की
आ ा श त महामाया कहते ह। इसी कारण वे जग जननी आव यकता होती है। इसी िनयम क अनुसार आ ा श त जो

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इसीिलये जीवन म िनर तर महामाया श त
की उपासना करनी पड़ती है, िजससे जीवन क
िवकार, अभाव, अवगुण, दुःख, क ट,
बाधा, धन हीनता का िनराकरण हो सक
और यह तभी संभव हो सकता है, जब
मनु य वयं को रजोगुण और तमोगुण की
चेतना को शु और सा वक कर सक।
यही कारण है िक हम अनेक बार एक ही
श त की उपासना करनी पड़ती है या ऐसा कह
िक जीवन पय त एक ही श त की उपासना
करना हमारी आव यकता है। य िक इसी एक ही
श त से ही संसार क सभी ि या-कलाप को पूण िकया
जा सकता है।
यिद े ठ मनोभाव से दैवीक आराधना की जाये, तो
महाल मी की कपा अव य ही ा त होती है। पराश त ही
महाल मी की बोधक है, य िक ाधािनक रह य म, जहां
ि मूित क उ व का िवचार िकया जाता है, वहां सव य आ ा
चैत य है, उनकी दृ ट से अपरा कित अथा नाम पा मक महाल मी िव मान होती ह, मिहषासुर का शमन करने क िलये
जड़ मूल- कित ि या प म दृ य हुयी और इन दोन श तय देव क तेज से कट अ ट भुजा वाली महाल मी का ही वणन
क संयोग से सृ ट की रचना हुयी। आता है। ये पराश त महाल मी कित पा है। ि मूित म प रणत
मूल कित अ ान मूलक है और परा कित चेतना प म ान महाल मी ाधािनक रह य म कहे हुये ी प े इ यािद पद म
मूलक है। जीवा मा तो ई वर का अंश है, उसकी थम उपािध उप थािपत ह। इ ह का तामस पमय महाकाली है, तथा
शरीर है, जो आन दमय है। उसका परा कित से स ब ध है, सा वक पमय महासर वती है। वे ि गुणा मक व प म
पर तु इसक अलावा दो और उपल धयां ह, जो ि गुणमयी व य यापक होकर थत ह।
अपरा कित क ह, वे सू म और थूल शरीर ह, इन दोन म तमो महामाया की ि गुणा मक व प की चेतना पूण पेण
गुण और रजो गुण की धानता है। आ मसात करने की ि या 29-30-31 िदस बर को परम पू य
मनु य जीवन का उ े य है िव ा श त क गुण क स गु देव कलाश ीमाली जी क सािन य म महामाया की
आ य से अिव ा क का नाश करना तथा रजो गुण और तमो तपोभूिम िबलासपुर (छ.ग.) म नूतन वष महामाया सव िशव व
गुण का िन ह करक उनको शु स व म प रणत कर पुनः श त कबेर ी ल मी साधना महो सव स प होगा।
ि गुणातीत अव था को ा त करना। इस कार ि गुणमयी यही पराश त महामाया का ही सृजन श त व प
कित क काय क साथ िव ा श त क आ य ारा जीवा मा म जो महाल मी, श ु क दमन प म महाकाली, ान, चेतना,
ई वर क िद य गुण, साम य आिद समािहत है, उ ह जा त कर बुि प म महासर वती है, इ ह श तय क आधार पर ही
वयं का तथा संसार क याण म ि यारत रहना ही मानव का गृह थ जीवन गितशील होता है, इसी हेतु 31 िदस बर की राि
कत य है। इस ि या क िबना मानव का क याण नह हो सकता। क बाद िजस ण नववष का अ युदय होगा, उसी ण से ऐसी
इसिलये ि गुणमयी महामाया क कित( वभाव) िन ा, ि गुणा मक श त को आ मसात करने की ि या िस ा म तेज
आल य, तृ णा (वासना), ा त (अ ान), मोह, ोध पुंज व प म स प की जायेगी, ऐसे तेजमय श त को नूतन
(मिहषासुर), काम (र तबीज) आिद को परा श त महामाया वष क ार भक ण म आ मसात करने से साधक का जीवन
क गुण स ि , बोध, ल ा, पु ट, तु ट, शांित, ा त, ा, पूणतः ऊजावान, चेतनावान, तेज पुंज व प सव मनोकामना,
का त, स ृि , धृित, उ म मृि , दया आिद क ारा िवजय धन, यश, बल, बुि , श ु संहार, अ य ल मी, पूण दीघायुमय
ा त करना है, कहने का ता पय यह है िक संसार की सभी वृि यां सौभा य श त से यु त होता है।
उसी महामाया परा श त से ही उ प हुयी, जहां काश है, वहां आपक आने से नारायण व प म स गु देवजी की कपा
तम का होना िन चत है, अथा अपने अवगुण, यूनता, अिव ा अव य ा त होगी और आपका नववष हर व प म
पर िवजय ा त कर ान, चेतना, श त और स गुण से यु त सुमंगलमय सुख-सौभा य यु त े ठमय बन सकगा।
होना है। िशिवर थल-ि वेणी भवन, यापार िवहार, िबलासपुर (छ.ग.)

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रिव तेजस साधना


या सूय क िबना जीवन की क पना की जा सकती है ? लेिकन सूय देव तो िन य- ित य होने वाले, साधक क सामने
सूय ही तो ऐसे य देव ह, जो जगत क ने ह, जो काल-च क ही थत ह, तो इनको य न िस िकया जाये ? सूय की साधना
णेता ह। सूय से ही िदन-राि , घडी, पल, मास आिद की गणना साधक क भीतर ान और ि याश त का उ ीपन करती है,
की जाती है, सूय से ही तो संसार काशमान है और सूय क चार यह तेज कभी शांत नह हो सकता, सूय की श त सं ा,
ओर ही तो सभी ह और यह पृ वी िनर तर प र मा करती है, क डिलनी जागरण की ि या का ार भ नह , अिपतु ार भ से
सूय से कािशत तेज क कारण ही तो इस संसार म ऊ मा और पूणता तक है।
तेज है, ता पय यह है, िक सूय ही जीवन, तेज, ओज, बल, यश, साइंस ने भी इस बात को वीकार िकया है, िक सूय की
ने , ोत, आ मा और मन क कारक ह और तीन लोक सूय क र मय ारा रोग ितरोधक मता मानव क शरीर म उ प
ही तो अंग ह। होती है, और सभी असा य बीमा रय म सूय की पूजा-उपासना
अ य देवता को तो साधना-उपासना ारा, उनक लाभ द िस होती है।
व प को भीतर ही भीतर भावना ारा ही समझा जा सकता है, िदन-रात, ऋतु प रवतन, पृ वी क सभी ि याकलाप सूय पर

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ही आधा रत होते ह। येक माह सूय एक रािश से दूसरी रािश शु जल म घोल कर, दोन ओर सूय िच बनाएं तथा पु पांजिल
पर सं मण करता है और उस रािश पर एक माह तक रहता है। अिपत करते हुये ाथना कर, िक-
इस कार येक माह सूय सं ा त आती है। इन सं ा तय म ‘हे आिद य! आप िस दूर वण य, तेज वी मुखम डल,
सव े ठ सं ा त ‘मकर सं ा त’ को माना गया है। इस कमलने व प वाले, ा, िव णु तथा सिहत स पूण
सं ा त िदवस पर ही िशिशर ऋतु, वस त ऋतु म प रवतन होता सृ ट क मूल कारक ह, आपको इस साधक का नम कार! आप
है तथा उ रायण सूय दि णायन हो जाते ह। मेरे ारा अिपत ककम, पु प, िस दूर एवं च दन यु त जल का
इन िवशेष ि या क फल व प ही सभी तांि क अ य हण कर।’
ंथ , उपिनषद , पुराण एवं शा म मकर सं ा त सूय इसक साथ ही ता पा से जल की धारा को, अपने दोन
साधना का िविश ट िसि दायक पव माना गया है। अतः इस हाथ म पा लेकर, सूय को तीन बार अ य द और इसक प चा
िवशेष िदवस पर सभी योगी, ऋिष, महिष, सं यासी तथा गृह थ ‘सूय मिणमा य’ धारण कर अपने पूजा- थान म थान हण
सूय की साधना, आराधना कर पूरे वष पय त अपने आप को रोग कर, पूव िदशा म सूय की ओर मुंह कर िन सूय मं का 15 िमनट
मु त व वा य यु त बनाये रखते ह। जप कर-
मकर सं ा त का साधना े म अि तीय मह व है, य िक यह मं
एक ऐसा समय है, जब सूय उस कोण पर आ जाता है, जहां से ।। ऊ सूयाय नमः ।।
वह अपनी पूण तेज वता मानव की देह म उतार सकता है। सूय साधना का यह योग यिद साधक ित िदन कर, तो अ य त
मनु य शरीर िविभ कार क राग- ेष, छल-कपट आिद से े ठ रहता है और उनकी सम त साधनाय तथा सम त इ छाय
भरा हुआ है, हमसे जाने-अनजाने िनर तर गलितयां होती ही पूण होती है।
रहती ह, और इसक फल व प उन दोष क समावेश से हम सूय तो आरो य क देव ह, इनक सामने िनबलता, रोग, जड़ता
साधना म सफलता नह िमल पाती। इसिलये िस ा म ने यह ठहर ही नह सकती, सूय का ता पय ही आयु, बल, आरो य है।
यव था की है िक यिद मकर सं ा त क अवसर पर ‘रिव िन य ित सूय नम कार और ाणायाम से शरीर का दूिषत र त
तेजस साधना’ स प कर ली जाय,े तो िन चय ही अ य सभी साफ होता है और इस पूजा क िनर तर अ यास से शरीर व थ,
साधना म सफलता ा त होती ही है। बिल ठ एवं दीघजीवी बनता है।
सूय पूजा-साधना क िनयम ‘गाय ी मं साधना’ मूल प से यही साधना ही है, िजसम सिवता
1 साधक कोई भी साधना करे, उसे ातः उठ कर सव थम सूय अथा सूय से बल, बुि , वीय, परा म, तेज तथा सब कार से
नम कार करना तो आव यक है। उ ित, गित की ाथना की गई है।
2 सूय दय होने से पूव ही साधक िन य ि या से िनवृत हो कर, ब ीस यं भी सूय का व प माना जाता है और इस यं
ान कर, शु व अव य धारण कर ले। को थािपत कर ितिदन ‘ऊ हंस’ बीज मं का आरो य
3 सूय की मूल पूजा उगते हुये सूय की पूजा ही है और यही व नी माला से जप कर, सूय को अ य देने से ने रोग क अलावा
फलकारक है, अतः सूय दय क प चा पूजन से कोई योजन पेट स ब धत एसीडीटी रोग, पीिलया, गिठया, शारी रक
िस ही नह होता। दुबलता दूर होती है।
4 सूय को लाल कनेर क पु प िवशेष ि य ह, अतः साधक यही लाल रंग की बोतल म जल भर कर, सूय क काश म िदन भर
पु प सूय को अिपत कर। रख कर वह जल हण करने से पेट स ब धत बीमा रयां दूर
5 सूय देव को सूय दय क समय पु प क साथ ता पा से तीन होती है।
बार अ य देकर णाम करना चािहय।े यह सूय ही है, िजसक ारा कित की सम त श तयां मनु य को
6 रोग तथा िनबलता से पीिड़त सूय-उपासक को रिववार क ा त होती ह। नव ह म ये थम देव ह, इनकी साधना-उपासना
िदन नमक व तेल रिहत भोजन कवल एक समय हण करना िवजय की साधना है।
चािहये । एक िदन ातः जरा उठ कर, उदय होते हयुे सूय की
साधना म पूजा कर, नम कार कर इस साधना का आन द तो ल, यह
मकर सं ा त क िदन इस साधना को ार भ करने आन द शरीर को ही नह मन को भी, क डिलनी जागरण क
हेतु ऊपर िलखे हुये िनयम का पालन करते हुए, साधक अपने िब दु को भी किपत कर आन द से ओत- ोत कर देने वाला
सामने ‘सूय यं ’ को थािपत कर, उस पर च दन, कसर, सुपारी होता है।
तथा लाल पु प अिपत कर, इसक साथ ही गुलाल तथा ककम क साधना साम ी व दी ा यौ J 2100
साथ-साथ िस दूर भी अिपत कर और अपने सामने िस दूर को

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नववष 1 जनवरी
शुभ-लाभ ल मी गणेश
सव काय िसि कवच
नूतन वष म वेश क पूव सभी साधक- िश य,
य तय की यही अिभलाषा रहती है, िक वह िवगत वष की सभी
यूनता, असफलता को नूतन वष की चेतनामय ताप म ° दी ा हण करने हेतु िनदश±
भ मीभूत कर सक और आने वाला वष हर दृ ट से सफलता
t दी ा हेतु नवीन फोटो भेज।
यु त धन-धा य, भौितक सुख से प रपूण बने।
t दी ाथ क फोटो पर कु छ न लख।
येक य त ऐसी ही े ठतम संक प श त क t दी ाथ का नाम व दी ा का नाम
साथ नूतन वष म वेश करने का मानस िचंतन बनाता है, पर तु
अव य लख।
उसकी सभी योजना धरी की धरी रह जाती है, जब िवगत वष की
t दी ा राशी क बक SLIP भेजना
Diksha
Apr 21, 2023

भांित ही अड़चने और बाधाय, उसक सामने आकर खड़ी हो जाती J x,xxx


अिनवाय है।
ह। योजना और संक प करना आव यक तो है ही, पर तु उसक
भी पूव हमारे जीवन म देव श तय की अनुक पा और चेतना की
आव यकता होती है, आ त रक ऊजा होने पर ही हम िकसी
संक प, योजना को मूत प देने म सफल हो सकते ह।
भगवान गणपित सभी िव का नाश करने क िलये
मुख प से चिलत ह, जो जीवन को िनिव प म गितशील
करते ह। वह माँ ल मी जीवन म अटट प से धन, ऐ वय,
समृि , सुख-सौभा य दान करती ह, िजनकी अ यथना
येक काय को ार भ करने से पूव की जाती है।
इसी हेतु नववष क ार भ काल म ही स गु देव जी
ारा शुभ-लाभ ल मी गणेश सव काय िसि कवच, नविनिध,
अ ट िसि , ी सू त मं से चैत य िकया गया है, िजसे धारण
°साम ी ा त करने हेतु िनदश±
कर नूतन वष म े ठ काय क फल व प जीवन की सभी
िवषम थितय , अभाव, अवगुण समा त होते ही ह और साधक t साम ी का पूरा नाम लख।

सफलता पूण जीवन यतीत करता है साथ ही साधक वष भर ऐसी t ा तकता के नाम के साथ, पूरा पता

ही िद यतम चेतना, ऊजा से आपू रत रहता है। व फोन न बर अव य लख। Samagri


Apr 21, 2023

J x,xxx

िवशेष प से नववष क शुभ अवसर पर इस अि तीय कवच को t दी ा राशी क बक SLIP भेजना

िविश ट मं से चेत य कर साधक को दान िकया जा रहा है। अिनवाय है।


अतः शी ही इस कवच को ा त कर।

शुभ-लाभ ल मी गणेश सव काय िसि कवच


rhu o"khZ; if=kdk lnL;rk U;kSNkoj J 1500
mDr jkf'k Hkstus ij lk/d dks vxys rhu
o"kksZa rd fujUrj if=kdk Hksth tkrh jgsxhA

PMY V 24 info@pmyv.net fnlEcj 2023


एही सबद म अमरत भ रया
पू यपाद स गु देव डॉ. नारायण द ीमाली अपनी बात को ठोस डक की चोट पर कहते थे इसीिलये उनक ारा उ रत येक
वचन सीधा िश य क दय म उतरता था, ि या योग जैसे गूढ़ िवषय को सरल प म समझाना कवल उनक ही बस की बात है, ि या योग
क रह य को प ट करता हुआ उनक महा वचन उनकी ही िचर प रिचत शैली म-
म ंिथय और ान ंिथयां जो हम जानते है, वे दस है ........ और िजनका हम पता नह वे 98 ान ंिथयां है।
‘‘नव ारा का िपंजरा जाम पंछी मौन’’
नौ ार तो हम मालूम है और दसवां-एक य त, ये दस जन चिलत इंि या है। इ ह इ य क मा यम से शरीर चलता है,
ये इ या कवल भोग क रा ते पर बढ़ा सकती है। ान क रा ते पर बढ़ाने क िलये उन 98 ंिथय को जागना पड़गा, इसिलये अभी हम
ान म िब कल कोरे है। अनुभव हम अव य हो सकता है, यिद आग क पास जाकर हाथ जल जाये, तो इस जलने का अनुभव हो सकता
है, पर तु ान क िलये तो उन ंिथय का जा त करना पड़गा, और इन ंिथय को जा त करने क िलये इस ि या योग क मूल तीन
आधार है। इन तीन आधार क मा यम से ि या योग ारा उन ंिथय को जा त िकया जा सकता है।
हम ि या योग को कसे ा त कर?
एक गु यिद ि या योग को समझाय, तो कस?े
इसक तीन चरण है-धारणा, यान और समािध।
सबसे पहले- धारणा।
दूसरी टज है- यान।
और तीसरी टज है-समािध।

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तीन े को पार करने पर वतः ही ि या योग पूण हो जाता है।
यहां उठता है, िक धारणा या चीज है?
‘धारयित सा धारणा’
अथा ‘‘िजसको हम धारणा करते है, वही धारणा है।’’ िकसको धारण कर? धारण करने यो य चीज या है? सापे ता म
धारणा हो, हम तेल म तेल िमला सकते है, पानी म पानी िमला सकते है, दूध म दूध िमला सकते है, पर पानी म तेल नह िमला सकते, वे
तो अलग-अलग ही रहगे। कबीर ने कहा है-
जल म क भ, क भ म जल है बाहर भीतर पानी।
फटा क भ जल जल ही समाना यह त य कहा गयानी।।
घड़ को नदी क अ दर डबोया गया है, उस घड़ म भी पानी है, घड़ क बाहर नदी म भी पानी है। नदी का पानी अलग है, जो बह रहा है,
और घड़ का पानी अलग है। जब घड़ को फोड़गे, तो उस घड़ का पानी नदी म िमलेगा...... और िमलना ही ान की चेतना है।
िश य भी घड़ा है, और गु नदी है, जो वाहशील है, पर दोन क बीच म एक िम ी की दीवार है। घड़ को पहले फोड़ना पड़गा
उसम जो का हुआ जल है, बासी पानी है उसे उस वाह म लीन करना पड़गा। अब घड़ा नदी क अ दर तो है और उस पानी की भी

PMY V 26 GurudevKailash fnlEcj 2023


इ छा हो रही है, िक म नदी म िमल जाऊ मगर बीच म एक रेखा है, बीच म पूरा
परदा है, िजसको माया कहते है।
और जब हम माया को समा त कर द, तब अपने आप ही पूण
ि या की ओर अ सर हो जायगे। उस माया क आवरण को तोड़ने क
िलये िजस ि या को धारण िकया जाता है, उसको ‘धारणा’ कहते
है....... और जब तक माया का परदा टटगा नह तब तक हम उस
जल म, जो वाहमान है, िमलगे नह । गु कहते है- म नदी हूं,
जो बह रही है िपछले दस हजार वष से बीच हजार वष से,
और इस नदी का वाह पूणता की ओर है, मेरा ही जल तुम
म भरा हुआ है, पर तु वह बासी हो गया है, उस जल म
अपने- आप म पूणता नह है, और इस घड़ का जल मुझ
म िमलना ज री है।
इसिलये शंकराचाय जी ने उ लेख िकया, िक िकस
सापे ता म वह जल और नदी का जल िमल सकता है,
इसीिलये धारण करने की ि या को इतना मह व िदया
गया है। देवता को शरीर म धारण नह कर सकते, वह
इसिलये िक जब बगलामुखी का दशन ही नह िकया तो
ामािणकता क साथ बगलामुखी का िच नह बना
सकते, जो िच उपल ध है, वे ामािणक है िक नह , कह
नह सकते, य िक िजसने देखा ही नह , वह िच नह
बना सकता, और यिद बनाता भी है, तो मा क पना से।
इसिलये राम का िच है, क ण का िच है, जो ामािणक
है िक नह कह नह सकते। हमने देखा नह , हमने सुना है,
और सुना है वह स य हो, यह आव यक नह । एक धारणा
क आधार पर हम इन देवता क ित नमन होते है,
लेिकन िजसको हमने देखा नह , उसको शरीर म हम धारण
नह कर सकते। धारण तो उसको कर सकते है, िजसको देखा
हो। इ लै ड म एक लड़की एिलस रहती है, आप उसको यार
कर सकते है, अगर जानते है तो, और जब उसको देखा ही नह , तो
आप उसको यार कसे करगे।
इसिलये जो कछ देखा है, वह धारण िकया जा सकता है। गु को
देखा है, इसिलये गु को धारण िकया जा सकता है। हम मालूम है, वह
िब कल हमारे जैसा ही है, एक जैसा ही पानी है, समानधम , उसका भी हमारे
जैसा ही शरीर है, अतः उसको धारण िकया जा सकता है। इस कार गु को धारण
करने की ि या को धारणा कहते है।
उस यान तक पहुंचने क िलये, समािध तक पहुंचने क िलये, उस सह ार तक पहुंचने क िलये गु को धारण करना
आव यक है, और धारण संसार म कवल गु को ही िकया जा सकता है.......... अ य सभी को यार िकया जा सकता है, उसक सुख-
दुःख म भाग िलया जा सकता है, पर धारण नह िकया जा सकता.......... और जब िश य, गु को धारण कर लेता है, तो उसक बीच की
माया की दीवार टट जाती है, य िक गु बता देते है, िक यह माया है, तु ह िच ता करने की ज रत नह है। माया अपना काम करेगी,
तुम अपना काम कर , म तु हारे पास हूं। नदी वाहशील है और नदी का उ गम कहां है, यह मुझे मालूम है। अब तुम इस नदी की
एक धारा बन गये हो, तु ह कहां पहुंचना है, गु जानते है। अब गु तु हारे साथ है, तुम िच ता मत कर ।
गु को धारण कर िलया, तो धारण करते ही िश य गु वाह क साथ हो जाता है। वे आपको पूरी बात समझा सकते है, एक
माया को रखते हुये भी एक माया क बीच म रहते हुये भी। गु ही बताएगे- नदी की दो धाराय है, और तु ह उनक बीच म बहना है। यिद
नह आता, तो म बता दूंगा, िक कसे बहा जाता है, य िक म िपछले प ीस हजार वष से बहता हुआ आया हूं।

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मगर वह मता, वह शान, वह िच तन तब आ सकता है, जब गु को धारण िकया जाये।
-और गु को इस शरीर म कहा धारण कर?
-आंख म तो कर नह सकते और हाथ - पैर म भी नह कर सकते। एक मा थान है ‘तीसरा ने ’ ‘थड आई’ िजसको हमारे
ऋिषय ने आ ा च कहा है, दोन भौह क म य म ........ भगवान िशव का िच देखगे, तो पूरे ने का िच बना हुआ है........... इसी क
ऊपर िसर म चोटी क पास छठी इंि य है। दोन भौितक आंख क बीच म जो थान है, उस थान पर गु को धारण करते है। यह ि या
योग का पहला िच तन है, पहला चरण है।
और गु को धारण िकया जाता है, गु क ित अटचमे ट पैदा करक। जो घड़ का जल है, वह यास करे, नदी तो यास
कर रही है, घड़ का जल भी उसम य कर, बीच की दीवार को तोड़ दे, ओर यिद नह टटता तो पांच सौ वष भी घड़ा, घड़ा ही रहेगा, और
तुम एक ही कला म रहोगे।
इस पहली कला से सीधा सोलहवी कला म छलांग लगाने क िलये यह ज री है, सबसे पहले पूरा शरीर बने, ि या योगमय
बने, और उसकी पहली शत धारण करना है, और धारण उनको करना है, जो तु हारे गु है। वे जो तु ह डांट भी सकते है, पुचकार भी
सकते है, तु ह गाली दे भी सकते है...... और ोध से लात भी मार सकते है, पर िकसी दूसरे को लात मारने नह दगे-वे ही गु
कहलाते है.......तुम अगर मेरे िश य हो, तो म तु ह डांट सकता हूं, भला-बुरा कह सकता हूं, पर कोई दूसरा तु ह भला बुरा कहेगा,
तो म उसकी आंख नोच लूंगा।
धारण हम उसको कर सकते है, िजससे हम प रिचत है, जो हमारे सामने आदश, जो हमसे महान है, हमारे मन म िजनक
ित सादर है और िजनसे हम एकीकत हो गये है और यह थित बनती है दो त व से ..........एक त य प ट कर रहा हूं, िक गु
कोई ‘स गु नारायण द ीमाली’ ही नह है, गु अपने आप म उस पर परा का एक सू है- जो आज से चालीस पीिढ़यां पहले
थी-आज म हूँ कल कोई और होगा..... गु तो एक तीक है, पर गु और िश य अपने आप म समा त नह हो सकते। काल कभी
समा त नह होता और य त भी कभी समा त नह होता, कवल शरीर और देह समा त होते है, और िफर यिद आप म ताकत है, तो
इस देह को भी आप अ ु ण रख सकते है। इस देह को भी अ यिधक साम यवान बना द, तो यह देह समा त नह होगी।
यह देह भी एक नवीन प धारण कर सकती है, यह किठन काय नह है। आव यकता इस बात की है, िक उस अमृत त व
को ा त करने क िलये हम गु को धारण कर......... और गु को धारण िकया जा सकता है वो तरीक से, उस तरीक को कहते है ‘सेवा’
और समपण’। कवल होठ से बोलने से या गु को िमठाई िखलाने से उ ह धारण नह कर सकते और गु पांच करोड़ पये देने से
भी नह आ सकते, इसक मा यम से गु धारण नह हो सकते।
गु वयं धारण होते ही नह है, गु को तो िश य धारण करता है-सेवा क ारा। िजस चीज की गु को आव यकता है,
उसकी पूित की जाय, वह सेवा कहलाती है। गु को यास लगी है और गुलाब जामुन की लेट रख द-गु जी लीिजए खाइए। बेशक
वे कीमती चीज है, पर इसकी उनको ज रत नह है, यिद उनको पानी की ज रत है तो, आप उनको पानी ही दे। गु को िकस बात
की आव यकता है, एक िश य का यही मूल िचंतन होना चािहये।
यिद गु म वाथ त व है, तो वे गु कहे ही नह जा सकते। अगर गु है, तो आप इस बात को यान रख, िक उनकी
आँख क नतन को आप समझे और सीखे, िक गु को िकस चीज की ज रत है। गु नह बोले...... हो सकता है संकोच-वश नह बोल।
एक गूढ त य है-पैर दबाना और यह अपने आप म सामा य ि या नह है। ऐसे सैकड़ साधु-सं यासी है, जो अपने पैरो
को पश नह करने देते।
य िक गु क पैर को पश करने का ता पय है, िक गु क पास जो भी श त है, जो भी तप या का अंश है, उसे ा त
करना। इसिलये वे अपनी तप या को अपने आप म पूंजीभूत रखने की वजह से अपने पैर को छने नह देते........और अगर श त
है, पर िव तृत न करे, तो वे गु हो ही नह सकते।
गु का अथ है-देना, सेवा ले और अपनी साम य और श त को दे। यिद गु आप से पानी का िगलास मंगाकर पीते है, तो
िन चय ही कछ तप या का अंश आपको ा त होता ही है, और इसिलये गु संकोचवश काम नह सौपते िश य को। पर तु िश य
उनकी आंख का नतन देख यिद समझ ले, िक गु को िकस बात की आव यकता है-उसकी पूित करने को सेवा कहते है।
म िब कल सरल और सामा य सी भाषा म उस ि या योग को समझा रहा हूँ। ा, माया, िच तन जैसे जिटल म
आपको नह उलझा रहा हूँ, य िक ि या योग को समझना अपने आप म अ य त जिटल है, िबना ि या क उतरे उसे कोई समझा भी
नह सकता और इस ि येा म उतार सकते है कवल गु ।
इसिलये पहले आव यक है-गु सेवा...........और सेवा ही आगे चलकर समपण बन जाती है जब सेवा करते-करते
य त की टज ऐसी आ जाती है, िक उसको अपना भान नह रहता, तो वही अपने आप म, गु को समिपत हो जाता है, उसका

PMY V 28 info@pmyv.net fnlEcj 2023


शरीर, उसका िचंतन, उसका िवचार, उसका धन, उसका मकान सभी कछ अपने आप म गु मय हो जाता है।
म भी उसी रा ते से बढ़ा हूं, िजसको म उ लेख कर रहा हूं। यिद म यह सलाह दे रहा हूं, तो मैने भी उस सेवा और समपण क माग
पर पांव रखा होगा। उस सेवा म मने भी प ीस कदम भरे ह गे, और िफर समपण म पचास कदम भर क ही धारणा तक पहुंचा
होऊगा। रा ता तो एक ही है और उस रा ते पर चलकर यिद मने धारण िकया है, तो वह िब कल ामािणक रा ता है, य िक वह
िब कल अनुभव ग य है और कवल इसी क मा यम से, िजसको हम िस ा म कहते है, वहां पहुंचा जा सकता है।
सेवा और समपण क मा यम से ही गु को धारण िकया जा सकता है। हां! समय अव य लग सकता है- कवल पांच घंट या
िफर पांच सौ वष। यह तो िनभर है इस पर, िक आपकी सेवा िकस तर की है- वाथमय सेवा है या पूण िनः वाथ सेवा है और जब गु
धारण हो जाता है तब य त अपने-आप म गु मय हो जाता है। िजस कार से शादी का तरीका अलग है, संतान पैदा करने का तरीका
एकदम अलग है, इस रा ते को अपनाना ही पड़गा, और यह इतना आसान है, िक इसक िलये यह भी कोई ज री नह है िक गु आपक
िनकट हो, यिद आप अपनी जगह पर है और गु क ित िचंतन है, तो यह भी सेवा है। गु क पांव दबाने से ही सेवा होती है, यह कोई
ज री नह । आप गु का िचंतन कर, आपको जो गु ने काम स पा है उसको कर, आप गु का मरण कर, आप गु की पूजा
कर, यान कर-यह सब कछ गु सेवा ही है। आप यिद िकसी काय को गु काय समझ कर करते है, तो अपने आप म गु की ही
सेवा है, और यही सेवा अपने आप म समपण म बदल जाती है।
यिद तुम पूण िन ठा, समपण से मेरे पास दो िदन भी रहते हो, तो दो िदन सौ वष क बराबर हो सकते है। यिद देने वाला सही
हो और लेने वाला सही हो, तो दो िदन भी बहुत बड़ी बात है।
वै ािनक ने बहुत मेहनत और मंथन करने क बाद म यह िन चय िकया, िक एक य त सही ढग से आठ घंट काम कर
सकता है, शरीर की एक िलिमटसन है, इसिलये सरकार ने आठ घंट की नौकरी रखी........ और यिद वह आठ घंट काम करेगा, तो

साठ साल तक बुढ़ा नह होगा।


मेरा उ े य सदा यही रहा है, िक अिधक से अिधक िश य को चेतना दान कर सक। इसिलये समय की कभी परवाह नह
की और लगातार वष से बीस-बीस घंट काम िकया है, तो इस समय म िहसाब लगाउ, िक बीस घंट काम करक, घंटो क िहसाब से सौ वष
का हो चुका हूं म। अब सौ साल का य त कसा होगा, आप क पना कर सकते है। उसम तकलीफ भी होगी, बैचेनी भी होगी,
सम याएं भी होगी। साधारणतः जब एक शरीर को बीस घंट काम करवाएंगे, तो ऐसी थित म एक ण ऐसा आता है जब शरीर खुद
खड़ा हो जाता है, सामने िव ोह करने क िलये-यह या है, ये कोई तरीका है। या? म आज तक तु हारी हर बात मानता आया हूं।
-मगर मेरे साथ ऐसी कोई बात नह । इसम तो कोई दो राय नह , िक जीवन क अ तम ण तक यह शरीर मेरे सामने िव ोह तो कर
ही नह सकता, यह तो गार टी है। म खुद िन य नह हूं, तो आपको भी िन य नह रख सकता। म पूण चेतना म हूं तो मेरे शरीर
को भी चेतनाव था म रहना ही पड़गा......... ओर चाहे इसक िलये मुझे रात-िदन जागना पड़, पर म अपने िश य म इस चेतना को
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वािहत करता ही रहुंगा।
-और अगर आप मेरे साथ रह सक, कछ पा सक, तो इस पं त को आप याद रख-
‘‘आने वाली पीिढ़यां इस बात का िव वास नह करेगी, िक आप कभी िनिखले वरान द क साथ रहे है।’’
-म आप लोग को बहुत आशीवाद दे रहा हूं, बता रहा हूं, िक शरीर की दृ ट से बेशक िनिखले वरान द का य त व
छोटा सा हो, मगर एक गु व की दृ ट से वे महान पु यदायक है। इसिलये िक वे उस थम कला से सोहलवी कला तक ध का देने
म समथ य त व है। बस कवल उस य त व से पश ा त करने की ज रत है। यह ज रत नह है, िक हम उनक साथ
रहे....... यह बहुत बड़ा िचंतन है, यह मामूली िचंतन नह है। आप अगर िश य है तो आप भी एहसास करगे और कहगे - यह मेरी
पूंजी है, िक म िनिखले वरान द जी क साथ रहा, दो साल रहा, दो महीना रहा, उनसे कछ सीखा।
-और घड़ा तो आपका है, उस घड़ को फोड़ने की आव यकता है। म भी वाह दे रहा हूं, वाह तु ह भी देना पड़गा। एक गु की
दृ ट से वा तव म ही म सौभा यशाली हूं इसिलये िक म अपने आप म ही सैकड हजारो प म िबखरा हुआ हूं। इस शरीर का इतना
मोह नह है, जो शरीर मेरे सामने है, वे सब मेरे हाथ है, पांव है, कान है, आंख है, नाक है, शरीर की
धड़कन है, िच तन है। तुम सभी िश य समूह को िमलाकर जो िप ड बनाया जाता है, उसी को
िनिखले वरान द कहते है।
-और जब तक यह िप ड व थ है, तब तक मेरा शरीर तो अ व थ हो ही
नह सकता, और जब तक यह िप ड सि य है िनिखले वरान द
िन य हो ही नह सकते।
म ि या योग जैसे गूढ़, दु कर और अपने आप म
अ यिधक किठन साधना को समझा रहा हूं, य िक तभी
मेरी मेहनत साथक होगी....... और म आपक
समझा सकगा, साधक क मा यम से मं क मा यम से,
तं क मा यम से और योग क मा यम से भी। यह
अपने आप म अ य त िवशाल और जिटल िवषय
है, पर मने आपको सं ेप म इस बात को
समझाया, िक ि या योग चीज या है? और ि या
योग को ा त करने क िलये करना या है?
-कोई किठन काय नह है, आव यकता
इस बात की है, िक हम उस य त व क साथ जुड़
सक, एक हो सक, िम स हो सक, जो इसका
पूण ान रखता हो। अगर िम स हो जायगे, तो आप
िफर घड़ का जल नह रहगे, नदी का जल हो
जायगे........ और जब नदी का जल हो जायगे, तो
नदी का एक िसरा ठठ वहां तक है, जहां प ीस हजार वष
पहले हमारे पीिढ़यां अव थत थी- ान क े म.... और
अगला िसरा ठठ सोलहव कला तक है। िफर कही आपको कोई
यवधान, कोई परेशानी, कोई िच ता या त नह होगी, लेिकन
आव यकता है- उसम िमलने की, और इसक िलए माया क आवरण को तोड़ना ही
पड़गा। िन चत प से एकाकार होकर अपने आप म उ ह धारण करना पड़गा, य िक
ि याशील आपको होना है, यह ि या प आपको करना ही है।
ि या योग आपको सीखना है, ि या मक प आपका है, तो आपको धारण करना पड़गा। गु जबरद ती आपक ने म
धारण नह हो सकते। आपको खुद ही इस बात क िलए बढ़ना पड़गा। समु अपनी जगह पर ही है, नदी खुद गंगो ी से तरंिगत होती
हुई दौड़ती हुई समु से जाकर िमलती है। समु जाकर नह िमलता, उस नदी को जाकर िमलना होता है, समु म एकाकार होना है
उसे। अपने िच तन म अपने िवचार म धारण करना है......... और गु िश य का यह जो स ब ध है, वह एक िपता और पु का
स ब ध है, एक दय और एक शरीर का स ब ध है।
शंकराचाय को बहुत प र म करना पड़ा था, अ यिधक तनाव उनको भोगना पड़ा था। उसक सामने िस ा म का एक माग,
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एक रा ता, एक मागदशन था। काम स पा गया था, शंकराचाय को, िश य को तैयार करने का ....... और मुझे भी उसी कार िश य
को तैयार करना पड़ रहा है और एक िपता क नाते मुझे अिधकार है अपने पु को आ ा देने का, य िक मुझे आपकी पूंजी मांगने
की आव यकता है नह , इसकी ज रत नह है, िक आप मुझे कछ द। मेरा अिधकार है.......... मैने कहा, िक म आपको डांट
सकता हूं, भला बुरा कह सकता हूं, मगर यह सब दूसर को नह करने दे सकता। इतनी िह मत तो मुझ म है, म व की तरह
आपक आगे खड़ा हूं, और मेरे होते हुये कोई आपका नुकसान नह कर सकता।
-और यिद गु हर ण आपक साथ है, तो आपको पूण ि या मक बनने से कोई कित, माया रोक नह सकती है।
भगवान बु ने अपने िश य को कहा म महािनवाण ले रहा हूं, तु ह पूरे भारत म फल जाना है, तो यह एक आदेश था।
-और म भी कह रहा हूं- यह एक सं मण काल है, वतमान स यता बहुत ही ह की है और हम पर हावी है, हमारे प रवार पर
हावी है, हमारे िदल िदमाग पर हावी है, उसको धोना पड़गा और उसे धोने क िलये तु ह पूरे भारतवष म फलना पड़गा, चुनौती क साथ
खड़ा होना पड़गा, चुनौती क साथ खड़ा होना पड़गा, उस स यता क साथ म।
जो तु ह यह कहते है- मं या होता है ? तं या होता है? योग या होता है? उनक बीच म दम ठोक क खड़ा होना पड़गा, िक म
बताता हूं...... और मेरे िश य जवाब देने क िलये स म है। इतनी मता आप म होनी चािहये और यह मता आप म है, य िक यिद
उनको आप जवाब नह दे सकगे, तो वे आप पर हावी ह गे, और कायरता क साथ िज दा रहना गीदड़ की िज दगी से यादा घिटया
है। कायरता क साथ िज दा नह रहना है..............िज दा रहना है दमखम क साथ, आंख म चुनौती क साथ, आंख म अंगारे
भरकर िज दा रहना है........ और आंखो म वे अंगारे, आंख म वह चेतना, आंख म सि यता कवल गु ही दान कर सकते है।
पूण शरीर की एक सौ आठ इंि य को जा त कर सक, यही जीवन की े ठता है.... और वे जा त हो सकती है- ान क
मा यम से, वे जा त हो सकती है-िवचार क मा यम से, वे जा त हो सकती है- िविश ट ि या क मा यम से, यह इस िविश ट
ि या .................ि या योग का पहला चरण है-धारण।
मने तो आपको कवल एक ंिथ क बारे म ही बताया है, जो बहुत ह की सी है और ंिथयां तो एक सौ आठ है और एक सौ
आठ ंिथय से या- या ा त हो सकता है, उसको तो एहसास िकया जा सकता है, िच तन िकया जा सकता है। म थल म भयंकर

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गम होती है, पर तु उससे भी यादा गम सोने को दी जाती है, अ यिधक आंच क अ दर उसे डाल िदया जाता है, िजससे िक वह खरा
बन सक। गु उस िविश ट आंच तक पहुंचाने क िलये अ यास करवाते है.... इससे भी यादा तेज आंच, गम , दुःख को मने एहसास
िकया है।
संगु फन ि या रह य
योग थमं मथ, ीित‘ प रतं पु षो वमायं।
ेम तां प रयोत परमेव ीयतं, ती यथ प सिवतं ि यमेव तु यं।।
-‘‘मेरा सारा जीवन जड़ता से भरा हुआ है। एक ऐसा जीवन जो अपने-आप म सि य और जीव त है- उमंग, जोश,
उ लास और आन द नह है। यह तो एक ऐसा जीवन है- िजसको कवल म ढो रहा हूं, ख च रहा हूं....... और िकसी न िकसी कार से
इस शरीर को अपने पांवो पर ढोता हुआ मृ यु की तरफ िनर तर अ सर हो रहा हूं, और इस त य को मुझे ान है, इसिलये म इससे
िवचिलत हूं, पर तु मुझे कोई रा ता नह िमल रहा है।’’
-‘‘मुझे इस बात का ान नह है, िक म इस जड़ शरीर को जीवन कसे बनाऊ? मुझे इस बात का भी ान नह है, िक म िनर तर मृ यु
की ओर कसे पहुंचू, मुझे इस बात का भी ान नह है।’’
-‘‘इसिलये हे जगद बा! हे भगवती! अब म तु हारी शरण म हूं। आप मुझे उस गु व से िमलाकर ि यमाण क रये, िजससे िक म
अपने जीवन क सारे उ े य को ा त कर सक।
भगवतपाद शंकराचाय का यह लोक, अनूठा लोक है, िजसम सारे अ र ‘प’ से ही शु होते है। उ ह ने बहुत ही मह वपूण
त य इस लोक ारा सामने रखे है। यह संसार कवल एक होने क िलये कोई थान नह है, यह जीवन कवल इस बात क िलये भी
नह है, िक तनाव म ही िघरे रहे और यह जीवन इस बात क िलये भी नह है, िक हम यून बने रह। यह जीवन तो अपने आप म
िनर तर चैत य होने का, िनर तर नतन करने का, ऐसा नृ य, िजससे सारा शरीर िथरकने लग जाये, हमारे शरीर क बा अंग तो
िथरक, हमारा अ तर भी नृ यमय हो जाये, साथ ही हमारी आंखे मु कराने लग जाये, ह ठ गुनगुनाने लग जाय, हमारी आवाज
मुख रत हो जाये, हमारा चेहरा सौ दयतम लगने लग जाये, हमारा सारा अंग- यंग नाचने लग जाये।
-और ऐसा तब हो सकता है, जब गु धारण ह ।
शंकराचाय न कहा है-‘‘मेरे पास अपने जीवन को परखने की कोई कसौटी ही नह है, कोई ान ही नह है, बस गु को
सही ढग से ढढ सक, उस गु को पिहचान सक।’’
यिद िश य गु को पिहचानने की मता उ प कर सकगा, तो ही वह पूण बन सकगा...... िक तु िश य म यह साम य
होता ही नह है, य िक कवल ान क तर से ही उस िद यता को पिहचाना जा सकता है।
-उस िश य ने............. शंकराचाय ने अपनी यथा य त की है।
जब ‘‘ वामी गोिव दापादाचाय जी क सामने शंकराचाय पहुंचे, तब वे ठीक उसी कार से थे, िजस कार से आप है, ऐसा ही
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उनका य त व था। कोई ार भ से ही तो महान य त व नह बन जाता।
यह बात अलग है, िक उनक िपछले जीवन की कछ कलाय अपने आप म जीव त रही होगी और उन कला की पूंजी
उस िदन वतः फट हो सक ।
- य िक जब कलाय जा त होने की अव था म आती है, तो सही गु िमल जाते है।
-िपछले जीवन की कलाय जब अपने-आप म चैत य होने लग जाती है, तो गु का सािन य िमल जाता है, गु का ान िमल जाता
है, गु क ान को ि यमाण करने का अवसर िमल जाता है.......ये सब कछ पुरानी पूंजी का याज ा त करने की ि या है। आप
एकदम से नये िसरे से सब कछ ा त नह कर सकते है, य िक आप नये िसरे से गु क पास नह आ सकते। आज अगर आप
गु क पास बैठ है, तो इसका मतलब यह नह है, िक आज आपने पहली बार कोई य िकया है, ज र िपछली पूंजी आपक पास
है, और उसक याज से ही आज आप गु क पास तक पहुंच सक है।
-और गु का ारा कोई नृ यशाला या रंगशाला नह है, आमोद- मोद का थान नह है। वहां पर आपको कोई यादा वागत
स कार या सुख-सुिवधाये दी जाय,े कवड़ा और गुलाब जल िछड़का जाय-े ऐसा कछ नह है ऐसा करने क िलये तो जीवन म सैकड़
थान है, जहां हम अपने ऊपर गुलाब जल और कवड़ िछड़कवा सकते है।
-ऐसे बहुत से थान है......... मगर वे जीवन की ऐसी पूंजी है, जो अगले जीवन म आपको तकलीफ दगी। आप जो कमा रह है, उसका
याज तो देना ही पड़गा आपको अगले जीवन मे। वह याज ‘‘भोग रोग भयं’’ भोग अपने -आप म रोग म ही प रवितत होता है......
यिद म बहुत यादा खाऊगा, तो अजीण होगा ही...... बहुत यादा चलूंगा, तो पैर म गांठ पड़गी ही..... उसम कोई बहुत कहने की
ज रत नह है। इसिलये अगर आप भोग म िल त है, तो भोग क मा यम से आप जो कछ भी ा त करगे, उसका फल आप जीवन
म भ गेगे ही, और इस जीवन म नह , तो अगले जीवन म, वह फल तो भोगना ही पड़गा।
जैसा िक मने बताया काल क टकड़ नह हो सकते, िजस समय क थान पर आपने द तक दी, जो काय िकया उसका
भाव लस या माइनस तो होगी ही, आपकी छोटी सी छोटी घटना भी रऐ शन करेगी ही।
एक छोटी सी गोली इतने बड़ शरीर म जाकर अपना भाव िदखाती है- ‘‘यिद म एक गोली लूं, और िसर का दद समा त हो
जायेगा, और यिद चार छः गोली एक साथ ले लूं, तो िसर का दद और बढ़ जायेगा, वह रऐ शन एक घंटा तकलीफ दे सकता है,
और चार घंटा भी तकलीफ दे सकता है, और न द की गोिलयां चालीस एक साथ ले लूं, तो म मर भी सकता हूं। वे गोिलयां एक बटन
िजतनी बड़ी होती है, कोई बहुत बड़ी नह होती, पर तु भाव अचूक होता है।’’
इसिलये यह शा स मत त य है, यह यावहा रक त य है िक हम जीवन म जो कछ भी कर रहे है, हमारी वैसी ही संतान
पैदा हो जायग े ी। संतान हमने पैदा की, हमारे ही पु और पुि यां है, और वे हमारा ही कहना नह मानते। हमारे िवपरीत रा ते पर
चलने लग जाते है। हमारा ही आदर स मान नह करते। हमारे वयं का शरीर िजसको हमने खूब साबुन लगा लगा करक िखला-
िपला करक तैयार िकया है और वह ही हमारा कहना नह मानता, थक जाता है, कमजोर हो जाता है, चल नह सकता, खा नह
सकता, पी नह सकता।
-इसिलये िक हमने जो कछ िकया है, उसका प रणाम हम सब भोग रहे है। िपछले जीवन म आपने जो कछ भी िकया होगा,
उसका फल आपक सामने िब कल य होगा ही पर तु िपछला जीवन तो आपको ात नह है, इसिलये सोचगे-आिखर मेरे
जीवन म इतनी िवड बनाय इतनी बेचैनी इतनी परेशािनयां, इतनी बाधाये य है?
चहरे पर आन द नह है, चेहरे पर उमंग नह है, आंखे जो एकदम से नृ यमय होनी चािहये, मु कराती हुई आंखे होनी चािहय,े आिखर
वह य नह है? चेहरे पर जो ओज होना चािहय,े जो दमक होनी चािहय.े....... वह य नह है?
आप घी खाते है, िब कट खाते है, उसक बावजूद भी आपका चहरा मुद की तरह यो है? इसम िकसी कार की कोई
हलचल य नह है? भु ने तो चेहरा ऐसा नह िदया। आप जब पैदा हुये, तो िखलिखला रहे थे, मु करा रहे थे, बहुत नृ य कर रहे थे
और आपकी आंख का नृ य देखकर आपक माँ बाप बहुत खुश हो रहे थे-रोते हुये चेहरे को देखकर नह , रोते हुये चेहरे को देखकर
वे उदास हो जाते है। उस समय आपक चेहरे म ज र कछ िवशेषता रही होगी, िजससे आपक मां-बाप, आस-पड़ौसी खुश थे- वह िखला
हुआ चेहरा िदया था, तो िफर आज वह या हो गया!
-आपने जो कछ कमाया, उसी का फल आपक सामने है और ये सब आपक िपछले जीवन की कमाई है............. यिद िपछले
ज म क कछ पु य शेष ह गे, तो य त को गु अव य िमलगे ही।
शंकराचाय ने कहा,-‘‘हे अ बे! म, जीवन म यही चाहता हूं, िक कोई ऐसे गु िमल जाये, जो यह समझा सक, िक जीवन
या है?’’
और यह वही समझा सकते है, जो खुद समझे हुये हो, जो खुद पूरे उपिनषद का ान रखते है, वे ही गु है।

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पढ़ना िलखना नह , पढ़ने िलखने से ान ा त नह हो सकता। उपिनषद को पढ़कर वयं मंथन कर, तो आप िमत हो जायगे, य िक
यिद तैित रयोपिनषद म एक बात कही गयी है तो आर यक उपिनषद म िवरोधी बात य कही?
इन उपिनषद म एक ही बात को िवरोधी भाव से य कहा गया?
आिखर इन दोन म स य कहा है?
िजस उपिनषदकार ने यह बात कही, इसक पीछ उनका म त य या था?
इन सभी का उिचत िन कष िनकाल कर, उसक अनुसार ान क पु ठज को लेकर, जो खड़ होते है, उनको गु
कहते है। भगवे कपड़ पिहनने से तो गु नह बना जा सकता। गु का अपने आप म कपड़ो से कोई स ब ध नह है। हमारे िपछले
जीवन क तो कोई गु ऐसे थे ही नह , जो भड़कीले कपड़ पिहनते थे करता था, वह भी खोल िदया, धोती भी खोल दी, उस लोक-लाज
वश एक लंगोट अव य लगा कर रखी, ऐसे थे वे याग वृितमय।
शंकराचाय ने कहा-म जीवन का उ े य चाहता हूं, म जीवन म आ या मकता क साथ ही साथ सभी भौितक दृ टय से भी
पूणता चाहता हूं।
सं यासी जीवन म यिद कोई भौितक दृ ट से पूणता चाहे, तो कोई दोष नह है। कोई गु यिद िमठाई खाय,े तो कोई पाप नह
है। यिद गु िसनेमा देख ले, तो कोई अधम नह है। म तो िसनेमा रोज देखता हूं-एक य त खड़ा होता है, अपनी प ी को गािलयां देता
है, लात मारता है, थ पड़ मारता है। देखता हूं िवलेन और हीरो क लड़ाई-झगड़ हो रहे है, और िफर हीर उसको बहकाता है और उसकी
लड़की क साथ भाग जाता है।
-ऐसे कस तो रोज मेरे पास आते है। म उनक चेहरे को देखता हूं, तो सोचता हूं, यह तो िफ म का ही एक पाट है, उनका जीवन एक
िफ म की भांित मेरे मन-च ु क सामने प ट हो जाता है-िदन रात ऐसी िफ म देखता हूं, तो िफर यिद तीन घंट की एक िफ म
देख भी लूंगा, उसम या दोष आ जायेगा।
मगर हमारी आंखे इतनी थूल हो गई है, िक हम कहते है-अरे!गु जी बेकार है, गु जी को िसनेमाघर म देखा था आज।
अरे!कमाल हो गया आज, मने उ ह िटकट लेकर िफ म देखते हुऐ देखा..... अब गु जी म ान ख म हो गया, अब तक तो उपिनषद का
ान गु जी म था, वह समा त हो गया। गु जी ने वेद पढ़ थे, वे ख म हो गय,े य िक गु जी ने िसनेमा देख िलया।
यह हमारी यूनता है, िक हम नह समझ पा रहे है। गु अपने आप म िसनेमा म देखने से, भगवे कपड़ पिहनने या नह
पिहनने से, करोड़पित होने से या िभखारी बनने से गु नह बन सकते-ये गु की प रभाषाय हमने गलत बना दी है। वा तव म ही
हम गु को पिहचान नह पा रहे, इसीिलये ढ गी और पाख डी गु बन गये और जब वे ढ गी और पाख ड गु अ ानवे ितशत बढ़
गय,े तो दो परसट जो गु थे-वे भी दब गय,े गु घंटाल पूरी तरह छा गय,े िजनक छाने से हमारे मन म यह संदेह पैदा हो गया, िक मं
बेकार होते है।
शंकराचाय ने कहा-म अपने शरीर को अ य त भार व प िलये ढोते हुये जी रहा हूं ऐसा लगता है, जैसे मुद को उठा कर मशान की

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ओर जा रहा हूं। मेरे जीवन म कछ भी नवीनता नह है। मने गृह थ जीवन भी जी करक देख िलया, वह कछ अलग से नह है।
उससे पहले तो य त सोच रहा था, िक य होगा, और ऐसा होगा, पर तु देखने क बाद मने एहसास कर िलया। शादी करने क
बाद भी जीवन म जो चेहरे पर उमंग, चैत यता और ओज होना चािहये था वह नह है। पैसा कमा कर भी देख िलया, मकान बनाकर भी
देख िलया, शहर म रहकर भी देख िलया, और संसार म घूम कर भी देख िलया, पर तु जीवन का जो वा तिवक आन द है वह मुझे
भोग म िमला ही नह । सं यासी बनकर भी देख िलया, भगवे कपड़ पिहन करक, और नमदा नदी म खड़ होकर भी देख िलया, आन द
उसम भी ा त नह हो सका-दोन ही अव था म म अपने शरीर को, अपने कधो पर
लेकर िनर तर मृ यु की ओर जा रहा हूं।
-और म चाहता हूं, िक मेरा जीवन नतनयु त बने, िथरकता हुआ बने, हंसता
िखलिखलाता और अपने आप म पूण आन द म पूण आन द व उमंग िलए हुये
हो, रोग रिहत हो।
और तीसरी बात उ ह ने यह कहा है, िक मने जीवन म जो
अधूरापन है, उसको पूणता की ओर जाना चाहता हूं।
जैसा िक मने बताया, िक येक य त अणु है, और वह अणु
अपने आप म महान हो सकता है और महान होता ही है, यिद अणु पूणता
तक पहुंचने की मता रखता हो-
खुद को कर बुल द इतना िक हर आगाज से पहले।
खुदा ब दे से खुद पूछ िक बता तेरी रजा या है?
ऐसा य त व ही सफल हो सकता है, जो जमीन पर खड़ा तो
हो, मगर उसम आसमान को छने की ताकत हो, आगे बढ़ने का संक प
हो, मता हो।
-और शंकराचाय क का उ र देते हुय उनक गु जो अपने-आप म
ान क िवराट पु ठज है, उ ह ने कहा-
पूण मदै पूण मदैव िस धुं ानेव पं प रमं देवं।
सः शकरं सिहत प मदैव तु यं, ि यायोग पं ि या योग पं।।
-और कोई दूसरा तरीका नह है तु हारे पास और िकसी दूसरे
तरीक से तुम जीवन की पूणता को ा त भी नह कर सकते-तुम भौितक
जीवन का भी आन द चाहते हो-तुम सं यास जीवन का भी आन द चाहते हो।
-तुम अपने जीवन को अणु प म भी देखना चाहते हो-तुम अपने जीवन को उस
महान पूणता क प म भी देखना चाहते हो-तुम इस जड़ शरीर को चैत य भी
करना चाहते हो-और तुम नतनयु त और िथरकन यु त भी बनना चाहते हो तो
कवल ि या योग क मा यम से ही जीवन की ये सभी थितयां ा त हो सकती
है, पर तु साथ ही साथ उ ह ने कहा-यह दुलभ है, बहुत किठन है, यह बहुत
पेचीदा है।
पेचीदा इसिलये, य िक इसको समझाना पेचीदा है.......
समझना पेचीदा नह है, पर तु यिद समझाने वाला सही िच तनयु त
नह है, तो नह समझा सकता, य िक वह कवल यह कहे, िक
‘‘काल पु ष व पी अणु को महान म जोड़कर क वम
लीन कर देने की ि या, िजस ि या से अपने आप-म अणु
महान’िवराटयु त बन जाता है, उसको ‘‘ ि या योग’’ कहते है।’’
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ी बलराम
भगवान ी क ण क अ ज ी बलराम को िव णु जी क आठव अवतार माना जाता है। भगवत पुराण, िव णु पुराण म
इ ह महािव णु क दशावतार म से एक माना गया है। ह रवंश पुराण म इ ह संकषण नाम से भगवान िव णु क आठव अवतार क
प म दशाया गया है। वह कई अ य िह दू पुराण म इ ह ी िव णु क शेषनाग िजस पर वे सदा िवराजमान रहते ह, उनका
अवतार माना गया है। ी बलराम अपने शारी रक बल एवं क य िन ठा क िलये अ य त चिलत ह। इ ह बलदेव, बलभ ,
हलधर आिद नाम से बोिधत िकया जाता है। ितवष इनकी जय ती को हलष ठी क प म मनाया जाता है।
महाभारत ंथ म ी बलराम क ज म का वणन करते हुये बताया गया है िक जब इ ािद देवता ने भगवान िव णु से
धरती पर र शासक कस की अनीित का अंत करने क िलये सहायता मांगी तब भगवान िव णु ने अपने िसर से एक सफद बाल व
एक काले वण का बाल िनकाल कर देवता को शी ही कस की अनीित का अंत करने क िलये आ व त िकया था।
इस कार पहले सफद कश क वणानुसार बलराम इसक प चा काले कश यािन िक भगवान क ण माता देवकी की
कोख म िव ट हुये। इसी कारण से बलराम जी गौर वण व ी क ण याम वण थे। भगवान बलराम क ज म की कथा भी अ त
एवं अलौिकक है। कस पहले ही माता देवकी की छः संतान की िनमम ह या कर चुका था। इसिलये जब बलराम जी उनक गभ म थे
तब ी िव णु क िनदश पर देवी योगमाया ने अपनी श त से उनका संकषण कर वासुदेव की दूसरी अधािगनी रोिहणी की कोख

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म थानांत रत कर िदया। माँ रोिहणी उस समय
गोकल म रह रही थी और उनक ारा उ प
संतान से कस क ाण को कोई खतरा नह था,
इसिलये उ ह कारागार म नह रखा गया था। इस
कार बलराम जी का ज म माँ रोिहणी ारा
अ य त शुभ मंगल बेला भा पद क ण प की
ष ठी ितिथ पर हुआ। ी क ण एवं अ य उ ह दाऊ
क नाम से बोिधत करते थे।
ी बलराम ने कई भीषण यु लड़। बहुत कम
उ म ही बलराम जी ने ी क ण क साथ िमलकर
धेनुकासुर का वध कर िदया था। मथुरा जाकर
बलराम जी एवं क ण जी ने िमलकर कस का अंत
िकया था। उसक प चात कस क िपता राजा
उ सेन को बंदीगृह से मु त कर पुनः मथुरा का
रा यपद उ ह सौप िदया था। भगवान बलराम
शौय एवं बल क तीक ह। अपने जीवनकाल म
इ ह ने एक आ ाकारी पु , आदश भाई,
आदश पित एवं आदशवादी पु ष का
उदाहरण तुत िकया। ये हम जीवन म
कत य िन ठा भाव से स य क माग पर िनडर
होकर चलने की ेरणा देते ह। साथ ही
सरलता से व स नता से जीवन माग पर
श त होने की िश ा देते है।
इनक दशन मु यतः बलदेव यु जी
म दर इ छापुर क दरापारा, उड़ीसा म,
दाऊजी म दर मथुरा म, अनंत वासुदेव
म दर भुवने वर म िकये जा सकते ह
जहां ये सात सप क मुकट धारण िकये हुये
ह। वह जग ाथ पुरी म भी भगवान
बलराम क दशन िकये जा सकते ह। इनक
दशन मा से ये अपने भ त को भयमु त
कर बल एवं परा म दान कर
अिभ े रत कर देते ह। जग ाथ की
रथया ा म इनका भी एक रथ होता है।
सांसा रक मनु य यिद रेवित न से
रोिहणी न क म य संक प क साथ
इनका िवशेष यान व पूजन करता है तो वह
भी जीवन सं ाम म ी बलराम की भांित
े ठता एवं श त स प बन जाता है।

fuf/ Jhekyh
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नववष 1 जनवरी

नूतन वष सुमंगलमय भा योदय ा त दी ा


जहां जीवन म आ या मक प मह वपूण है वह भौितक प की धानता को नकारा नह जा
सकता। िव वािम कहते ह, भौितक जीवन की प रपूणता से ही आ या मक ान जगत का माग िनकलता
है। गृह थ जीवन क भौितक जीवन की सभी मनोकामना , रस-िवलास, आन द त व का भोग करना
सम त मनु य का अिधकार है।
इस जीवन म आकां ा, इ छा क िबना कोई कम नह होता और िकसी भी कम का प रणाम िन चत
प से ा त होता ही है। कम करने से ही फल की ा त होती है तथा कम से पूव मन म फल क ित आस त
भाव भी रहता है। मनु य जीवन म सबसे बड़ी बाधा यह है िक वह कम क प रणाम से िकस कार से मु त रह।
वतमान जीवन म जो िन य ित की नवीन इ छा एवं भावना क फल व प मनु य कई कम
को स पािदत करता है। इनका फल त काल कछ समय बाद या अगले ज म म ा त होता है। वतमान जीवन
म इन कम को ि यमाण कम कहते ह।
य त कम करता है और उसक त काल फल की आशा करने लगता है, पर तु पूव कम क रहते
हुये उसक ि यमाण कम उतने फल द नह हो पाते िजतने की होने चािहय,े इस कारण वह िचंितत हो जाता है,
संशय त हो जाता है और अपने भा य को कोसता है। अतः इन सब का कारण हमारे पूव ज म क संिचत एवं
अिजत कम ह।
संिचत एवं अिजत कम को िजस रािश से जीवन क ऊ वगामी होने की ि या और य त का उ ित माग
अव हो जाता है, उ ह कम रािशय को समा त करने का नाम है सुमंगलमय भा योदय दी ा। इस दी ा क
प रणाम व प स गु देव िश य क जीवन म भा योदय की ि या स प करते ह। िजससे साधक क
वतमान सुकम पूण भावी होकर उसे सफलता क राजपथ पर व रत गित से अ सर कर देते ह। यह दी ा
साधक म एक नवीन ऊजा का फटन करती है, उसक अ दर उ साह, चेतना, उमंग, जोश, काय मता,
प र म और सफलता की संयु त िव ुत र मयां वािहत कर देती ह। िजससे आने वाला नूतन वष हर
व प म े ठमय बन सकगा। नूतन वष सुमंगलमय भा योदय ा त दी ा यौछावर J 2600

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PMY V 42 GurudevKailash fnlEcj 2023


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fnlEcj 2023 +91-99508-09666 PMY V 43
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ª उस पशु जीवन से कवल गु ही ऊपर उठा सकते ह। मनु य जीवन का या उ े य है, इसे देवता भी नह बता सकते, य िक
िज ह ने ज म िलया ही नह वे इस मम को नह समझ सकते। पर तु गु ने ज म िलया है और ज म लेकर पूणता तक
पहुँचे ह।
ª गु तु ह मा दी ा ही नह देता है, वह तु हारे र त को शु करता है, िजसम पीढ़ी दर पीढ़ी का छल, कपट, अस य,
यािभचार समाया हुआ है। गु तु ह एक िचंगारी देता है, एक ा त देता है, एक िव फोट देता है और अमृ यु की ओर ले
जाने की ि या देता है।
ª माँ-बाप ने ज म िदया, वह तो एक वाभािवक ि या थी, पर तु गु िश य को वापस नये िसरे से एक नया ज म देता है, उसे
चेतना दान करता है, इस नये जीवन का ल य होता है, धारणा होती है, एक आगे बढ़ने की ि या होती है।
ª मनु य की दुधष वृितयां वतः अपने आप ज म लेती है, उनको समा त करने क िलये िस ा म कछ िविश ट योिगय , कछ
िविश ट महा मा को संसार म भेजता है, जो अपनी पिव ता और िद यता क संदेश क मा यम से उन लोग म भौितक व
आ या मक चेतना पैदा करते ह।
ª समपण क पहले गु सैकड़ बार उसकी परी ा लेता है, जैसे सोने का मुकट बनाने से पहले सोने को सैकड़ बार तपाया जाता
है, उसे आग म झ का जाता है, कटा जाता है, बार-बार उसको तोड़ा जाता है, ख च कर तार बनाया जाता है, मगर िफर भी वह
सोना उफ भी नह करता है, य िक उसने समपण कर िदया है वणकार क हाथ । िफर वणकार उसे टच-टच कर मुकट
बना देता है, जो मनु य नह देवता क िसर पर शोभायमान होता है। स गु भी िश य को इसी तरह तपा कर कदन बना देते
ह।
ª अजुन, क ण को एक सामा य आदमी ही समझ रहा था। मगर क ण ने अजुन को जब यान थ चेतना दान की, तब
अजुन समझ सका िक ये सामा य मनु य नह है। इसी कार स गु यिद चाहे तो िकसी भी िश य या साधक को यान की
उस अव था तक पहुँचा सकते ह।
ª हजार -लाख य तय म से कोई एक िबरला य त ऐसा िनकल पाता है, जो स गु की उगली पकड़ कर आगे बढ़ने की
ि या ार भ करता है। हजार -लाख य तय म से िकसी एक म ही ऐसी चेतना ा त होती है, जो उनकी वाणी को समझ
सकता है। हजार -लाख य तय म से िकसी एक म ही भाव जा त होते ह, जब वह स गु क पास रह सकता है... उनक
साथ चलने की ि या ार भ करता है, वह पहचान लेता है, उसकी आँखे पहचान लेती है-िक य त व साधारण नह है।

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ª अगर वह िश य है तो िफर उसक दय म गु ही थािपत ह गे, चौबीस घंट, उसक मानस म गु श द ही होगा, मुंह से कछ
िनकलेगा तो कवल गु ही िनकलेगा और उसका जो भी खाली समय होगा, चाहे एक घंटा हो या दो घंट ह , वह गु क ित ही
समिपत ह गे।
ª िश य वह है जो िक गु की जो इ छा है उसम वह सहायक बने। गु क काय क ित उसक जीवन का येक ण समिपत
हो। िजस काय को करने से गु को स ता होगी वह काय िश य करे। उसक मन म तड़प होनी चािहये िक म आगे बढ़कर
गु सेवा का काय मांगू।
ª िश य वह है जो िक छाया की तरह गु क साथ रहे जैसे छाया, आदमी से अलग नह हो सकती, आप दो कदम चलगे तो छाया
भी साथ चलेगी। िश य भी ऐसा ही हो और जब भी गु आवाज दे वह सामने खड़ा हो। उसक अंदर हर समय गु क पास
रहने की तड़प हो। गु की र ा क िलय,े गु की सेवा क िलय,े गु क दद को बांटने क िलये वह हर समय त पर हो, तैयार
हो।
ª िश य पूण िन ठा और िव वास कवल और कवल अपने गु म रखे और उनक िलये अपना सब कछ यौछावर भी कर दे।
सब कछ यौछावर करने का अथ यह नह िक आप अपना मकान गु क नाम िलख दे। इसका तो अथ यह है िक हर ण
जीवन का गु सेवा म समिपत कर दे।
ª अगर वह िश य है तो पूण प से गु म समािहत हो जाय।े िफर वह गु से अलग अपने आपको अनुभव ही न करे। हर
ण उसे यही लगे िक वह गु से एकाकार हो गया है। गु और िश य म एक इंच का गैप भी दूरी बना देता है, िफर वह
िश य नह कहलाया जा सकता। िश य का अथ यही है, जो पूण प से गु म समा गया हो।
ª जो ेम की उ तम पराका ठा को दशाता है वह गु िश य का संबंध है। िश य िकसी वाथ वश गु से नह जुड़ता। गु क
ित उसकी भावना म कही कोई वाथ का त व नह होता। अगर होता है तो कवल िन छल ेम त व, समपण त व जैसा िक
राधा का क ण क ित था, मीरा का क ण क ित था।
ª िश य सभी कछ तो गु से ा त करता है- भौितक तर पर भी तथा आ या मक तर पर भी। पर तु उसक मन म िकसी
कार की कोई आकां ा नह होती- न तो भौितकी सफलता की, न ही िस ी या साधना की।

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ना रयल
( Coconut)

हम सभी ना रयल से बड़ी अ छी तरह वािकफ ह। कई सारे रोग म लाभकारी माना जाता है। इसम बहुत सारे
भारतीय िहंदु पौरािणक कथा म ना रयल को पिव फल पौ टक त व भी होते ह जैसे िवटािमन, िमनरल, आयरन,
माना गया है। यह ’कोकोस यूसीफरा’ का फल है, िजसक पोटिशयम आिद। खास कर मिहला क िलये सूखा ना रयल
पानी का इ तेमाल दशक से लगभग हर भारतीय अनु ठान म (Dry Coconut For Women) बहुत अ छा माना जाता है।
िकया जाता रहा है। इसक अलावा इसका उपयोग कई तरह क कई लोग हे दी और हाइ ट रहने क िलये ना रयल
यंजन को बनाने म भी िकया जाता है। यह हे दी फट, पानी का सेवन सबसे यादा करते ह। इसक अलावा तेल और
एंटीऑ सीडट और पोषक त व का बेहतरीन ोत है। इसक चटनी क प म भी ना रयल का उपयोग िकया जाता है।
साथ ही ना रयल म एंटीबै टी रयल और एंटीफगल गुण पाय ना रयल िवटािमन, िमनरल, काब इ ट और ोटीन से भरपूर
जाते ह। इसी वजह से यह हमारे वा य क िलये भी बहुत है, इसिलये यह शरीर को कई तरह से फायदा पहुँचाता है।
अ छा सािबत होता है। पोषक त व से भरपूर ना रयल का एक टकड़ा खाने से न िसफ
ना रयल पानी क साथ-साथ सूखे ना रयल का सेवन शरीर की रोग ितरोधक मता बढ़ती है, ब क या ा त म भी
करना काफी फायदेमंद होता है। यह खाने म तो वािद ट होता सुधार होता है। अगर आप वा य क िलये इसक लाभ को
ही है, साथ म हमारे वा थ क िलये भी काफी लाभदायक है। यह बढ़ाना चाहते ह, तो सोने से ठीक पहले क ा ना रयल खाना
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शु कर द। यह आपकी सेहत क िलये वरदान सािबत हो फाइबर क ज से बहुत ज दी छटकारा िदला सकता है।
सकता है। खून की कमी पूरी करे
वजन िनय त करने म शरीर म खून की कमी होना कई बार जानलेवा भी हो सकता है।
आजकल हर दूसरा य त वजन बढ़ने से परेशान ऐसे म सूखा ना रयल खाने से एनीिमया से राहत िमलती है।
है। शरीर की अित र त चब को कम करना एक चुनौती बन मिहला म अ सर मािसक धम क कारण खून की कमी देखी
गया है। लेिकन इसम ना रयल कारगार सािबत हो सकता है। जाती है। सूखे ना रयल म कई सारे पौ टक त व होते ह िजनमे
सोने से पहले क ा ना रयल खाय। इसम मौजूद फाइबर शरीर आयरन भी शािमल होता है जो खून क लेवल को ऊपर ले जाने
से ए ा फट को बन करने म बहुत मदद करता है। म लाभदायक होता है। इसिलये अगर िजन मिहला म खून
गिठया म लाभदायक की कमी है या िहमो लोिबन लेवल कम होता है उन मिहला
सूखे ना रयल म क शयम भी पाया जाता है जो हि य को को सूखे ना रयल को अपनी डाइट म शािमल करना चािहये।
मजबूत और व थ बनाने म लाभदायक माना जाता है। िजस इससे खून का लेवल बढ़ने म मदद िमलेगी। यिद हर रात सोने
िकसी को भी कमजोर हि य या घुटन आिद जैसे जोड़ क दद से पहले इसका एक टकड़ा खा िलया जाये, तो एनीिमया की
से पीिड़त है उनको अपनी डाइट म ना रयल को ज र एड कर सम या से बहुत ज दी छटकारा िमल सकता है।
ल। इससे उनको एनज भी िमलेगी और चलने और शारी रक गभकाल क दौरान खाय ना रयल
गितिविध करने का साहस भी महसूस होगा। सूखे ना रयल म फटी एिसड भी बहुत मा ा म पाये
िदल को व थ रखे जाते ह जो आपको तो एनज दगे ही साथ म आपक ब े को भी
रात म सोने से पहले ना रयल खाने से आपकी िदल की सेहत पोषण दान करगे जो उसे हे दी रखने म मदद करेगा।
दु त बनी रहती है। इसम मौजूद फट शरीर म अ छ इसिलये इसे गभवती होने क दौरान अपनी डाइट म शािमल
कोले ॉल म सुधार कर सकता है। यह खासतौर से फायदेमंद कर तािक आपकी मीठा खाने की इ छा भी शांत हो सक और
है, य िक अित र त पेट की चब आपक दय रोग और आपक ब े को पौ टक आहार भी िमल सक।
मधुमेह क खतरे को बढ़ाती है। यूरीन इंफ शन म भी है सहायक
बेहतर न द लाने म मदद करे मिहला को कभी न कभी यूरीन इंफ शन का
आज की भागदौड़ भरी िज दगी म न द न आने की सम या सामना भी करना ही पड़ता है। इस थित म डॉ टर से राय तो
आम हो गई है। अगर आप भी रातभर करवट लेनी ही चािहये लेिकन साथ म अपनी डाइट को
बदलते रहते ह, तो सोने से पहले क े भी हे दी और लीन रखना चािहये
ना रयल का सेवन कर ल। िनयिमत तािक आपको कम तकलीफ हो।
प से रात को सोने से पहले ना रयल इ फ शन वाले
ना रयल का एक टकड़ा बै टी रया को ख म
खाकर सो जाये। अ छी करने म सहायक है।
न द आने म मदद सूखे ना रयल का
िमलेगी। सेवन करने से
क ज को रोक बहुत सारे
क ा ना रयल खाना इ फ शन और
एक ाकितक उपचार यूटीआई आिद
है, जो क ज को रोकने क र क को कम
म बहुत मदद करता है। िकया जा सकता
िजन लोग को अ सर है।
ही क ज की सम या इसिलये
रहती है और सुबह क ना रयल वा य की
समय पेट ठीक से साफ नह दृ ट से बहुत ही अ छा
होता, तो उ ह रात म सोने से फल है इसिलये इसका
पहले क ा ना रयल का एक टकड़ा योग करना वा य की
खा लेना चािहये। ना रयल म मौजूद हाई दृ ट से अ छा रहता है।

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मनः भ त जागरण योग


22 िदस बर ,गीता जय ती व मो दा एकादशी
बा भ त दैिहक भ त होती है, मनः भ त आ त रक अज भ त होती है। यह साधना योग उस
ऊजा भ डार को जो देह क भीतर थत है, उसे जा त करता है। िजससे य त अपने काय को अपनी
इ छानुसार स प करने म समथ व सफल हो जाता है। साथ ही धम, अथ, काम व मो म पूणता
ा त हेतु यह योग े ठ है। मनः श त क जा त होने पर यान िसि की ि या सरल हो जाती है
तथा अ ा म की चेतना ा त होती है। क डिलनी जागरण का यह ार भक अ याय है।

द ा ेय णीत मनोकामना पूित योग


26 िदस बर,द ा ेय जय ती
येक य त की कछ ऐसी मनोकामनाय होती है, कछ ऐसी इ छाय होती ह,
िजनकी पूित करना उसकी ाथिमक आव यकता होती है, लेिकन िक ह कारणवश वह ऐसा करने म
स म नह हो पाता। पर तु साबर मं क णेता और नाथ योिगय क आिद गु भगवान द ा ेय णीत
इस अि तीय योग क मा यम से िकसी भी मनोकामना की पूित स भव है। साबर साधना म िसि
शी ही ा त होती ह और यह साधनाय सरल और सहज होती ह। अतः िकसी भी वग का य त इसे
स प कर सकता है।

ीिव ण-ुल मी गृह थ सुख समृि ा त योग


07 जनवरी, सफला एकादशी
गृह थ जीवन की सफलता जहां एक ओर ल मी की उप थित से ा त होती है, वह भगवान
ी िव णु की आराधना भी उतनी ही आव यक है, य िक ल मी का आधार होने क साथ-साथ पालन
कता ी िव णु ही तो ह। अतः गृह थ जीवन की कामना की पूित करने क िलये भगवान ी िव णु की
साधना से बढ़कर कोई अ य उपाय नह है। धन-धा य, पु -पौ , भू-गृह सभी कार क सुख की
ा त क िलये यह साधना सव े ठ है।

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cky fo'ks"k

सदसंगित
हम सभी हमेशा से ही एक PROVERB सुनते आये ह िक ''A MAN IS KNOWN BY THE COMPANY HE KEEPS '' यािन िक
एक य त की पहचान, उसकी आदत की पहचान, उसक साथ रहने वाले लोग कसे ह, उसी से हो जाती है। य िक हमारा
MINDSET, MENTAL LEVEL, APTITUDE, हमारे बातचीत करने का लहजा, हमारे शौक और HOBBIES हमारी संगत, दो त
या कोई COUSIN मतलब िजसक साथ हमारा यादातर समय बीतता है, उसी पर DEPEND करता है और इसिलये संगत हमेशा
अ छी रखो िजसे सदसंगित कहते ह। हमारी क पनी, दो त ऐसे होने चािहये िजनम कोई बुरी आदत या लत न हो साथ ही यह
बात हमारे वयं पर भी लागू होती है। TV, GAMES, मोबाइल फोन से ADDICTIONS ज द से-ज द याग देने चािहये। संगत ऐसी
होनी चािहये िक थोड़ी अ छी आदत हम अपने दो त से सीख और थोड़ी अ छी बात हम उ ह बताय और सीखाएं।
अ छी सोच वाले य त या दो त हमेशा हम आगे बढ़ने क िलये े रत करते ह, वह बुरी सोच वाले लोग हम पीछ खीच लेते ह
और बुरी आदत डाल देते ह। इसीिलये ऐसे लोग क साथ रह, उनक आसपास रह जो ो ेिसव ह और िजनकी जीवन क ित
POSITIVE APPROACH हो।

अ छी संगत से हम रोज कछ न कछ नया सीख पाते ह, हमारी अ छी HABITS होती है, िजससे हमारी GROWTH होती
है, PERSONALITY म िनखार आता है, जो जीवन पय त साथ रहती है और हमे एक सफल य त बनने म मदद करती है।
इसीिलये हमेशा सोच-समझकर दो त बनाये और पेर स का भी कहना मान।

PMY V 50 GurudevKailash fnlEcj 2023


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02%00 ls 04%24 05%12 ls 06%00
05%12 ls 06%00 04%24 ls 06%00
Js"B le; 07%36 ls 09%12 08%24 ls 11%36 08%24ls 11%36 06%48 l s10%48 10%00 ls 12%24 08%24 ls 10%48 08%24 ls 10%48
jkr 11%36 ls 02%00 02%00 ls 03%36 02%00 ls 03%36 02%00 ls 04%24 01%12 ls 02%00 12%24 ls 02%48
04%24 ls 06%00

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Vivah Panchami 17 Dec 2023

Lord Ram & Sita Sadhanas


Inculcate Virtues In Life
The seventh incarnation of Lord Vishu, we think in terms of practical implementations
Lord Ram, needs no introduction. He is lived a of these traits, the first name that appear before
phenomenal life that was full of challenges, us is none other than Lord Ram. Ramo
sacrifices, discipline & what not. If we look into Vigrahavaan Dharmah – i.e. Lord Ram is the
the history, we won't find any personality who manifestation of Dharma.
faced so many challenges in life. There is no Sage Valmiki accepted in Valmiki
social field where He has not set standards for an Ramayan that infinite virtues resides in Lord
ideal character. He is an unified symbol of Rama, still he listed some of those virtues so
ideology, virtues, moral values, power, & that human beings can follow those virtues to
humanly traits. He possessed an unrivaled attain the most perfect personality. Sage Valmiki
charisma. Vedas, Upanishads etc. have referred Lord Ram as Purushottam i.e. the best
mentioned the various norms of life which can among men or the perfect incarnation. Lord
be considered as an ideal behavior. However, if Ram's character portrays an ideal son, ideal

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brother, ideal husband, ideal friend & an doubt, we can reestablish the golden rein of Lord
ideal king. He is incredible in every aspect of his Ram again in the society.
life & his entire life is dedicated towards Today, Ram Raj, rein of Lord Ram, is a
uplifting the human beings. mere word & one can hardly find a person with
Goddess Sita plays a very important high moral values. The reason behind this
role in the morality of Lord Ram. It would not degradation in the society is our utter negligence
be an exaggeration to say that Goddess Sita is towards the core human values. We have
the prime force behind the virtuous nature of become so selfish that we don't bother about
Lord Ram. As an ideal wife, she always stood anyone. Couples today don't have any
by him in his good & bad times. When Lord compassion compared to what existed between
Ram was leaving for the fourteen years of exile, Lord Ram & Mother Sita. Neither can we find a
she joined him & left behind all the luxuries of loving relationship between brothers like
life. She accompanied Lord Ram during His Lord Ram and Bharat. On one hand where
pains & sufferings. She stayed loyal towards children never used to disobey their parents in
Her husband even after suffering a lot from this country, today these parents are blamed for
Ravana's escorts. She never lost faith in Her anything that goes wrong in child's life. These
husband even during the toughest hours. She parents are force to spend their old age lives in
continued to remember Lord Ram throughout old age homes. Today's generation gives little
Her entire stay at Lanka & didn't embrace or almost no respect to their parents which
Ravana's wishes. has led the parents think why they endured so
This is the reason why on one hand Lord much pain bringing up such a child.
Ram is considered as an ideal husband, To bring peace, harmony, love, brotherhood
Mother Goddess Sita is considered as an and social bonding, there is a dire need to
epitome of a woman. They are the one who has inculcate the moral values within the society
laid down the definition of an ideal society and to do so, we need to win over our
where not only a woman but a man too remains selfishness, ego, hatred just like Lord Ram
loyal towards his partner. If we start following won over his enemy, Ravana
the norms set by their example, without any

Lord Ram & Mother Sita – An ideal couple


A narration about the first discussion supremacy, if we start adjusting towards each
between Lord Ram & Mother Sita is other.
mentioned in Ramcharitmanas as – When It is very common to find a lot of ladies
Lord Ram first talked to Mother Sita after who don't give value to their husband's opinion
marriage, He promised Her that He will yet their expectations from husbands are
always remain loyal towards Her & no other increasing every day. It is very normal to see a
woman will ever come in His life. Mother Sita quarrelsome environment in a household
promised Him that She will remain His today. Within a family, there should be no space
faithful partner during all the joys & for dominance & the person should rather focus
sorrows. Thus, they pledged to remain faithful on fulfilling the responsibilities. The greater
& trustworthy towards one another. This is the the understanding that exists between the
reason why they didn't have any couple, the sweeter their life becomes.
misunderstanding between them & ego never There are many virtues from the life of
came in their relationship. Lord Ram & Mother Goddess Sita which should
Today, most of the relationships break be imbibed in one's life. Doing so ensures more
just because of self-dominant nature & egos of harmony in between the husband & wife making
the couples. No one is willing to bring a change the married life a blessing instead of a curse.
in their personalities in today's world. We can Life & achievements of Lord Ram remained
make our life peaceful, successful & happy if centered towards Navaratris too. During the
we remove this ego, if we remove our beginning of the year, as per the Hindu calendar,
dominating nature, if we get rid of our pride of comes the incarnation day of Lord Ram in the

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form of Ram Navmi. During the Shardiya life along with his or her life partner. Not only
Navratri, we celebrate Vijaydashmi to this, one can gain success in any Sadhana only
celebrate His victory over Ravana. after they imbibe & nurture the virtues of Lord
MarghSheersha Shukla Pakshyeeye Vivah Ram & Mother Goddess Sita. Thus, one who
panchmi is the anniversary date of Lord Ram seeks success in the field of Sadhanas, one who
& Mother Goddess Sita. Performing want to gain both spiritual as well as
Sadhanas & getting initiated with Diksha materialistic gains should perform these
during this day ensures assimilation of Lord Sadhanas. Provided below are four Sadhanas
Ram & Goddess Sita's virtues. This enables related to Goddess Sita & Lord Ram which
the Sadhak to win over the poverty, diseases, should be performed during this time to attain a
deceit, malpractices, etc. existing in the peaceful & blessed married life.
society. The Sadhak is able to live a contended

Gain Power and Knowledge


Lord Hanuman, who is the symbol of below mantra using Mahaveer rosary for next 3
power, wisdom & knowledge always remained days.
inclined to serve His Guru, Lord Ram. Lord Mantra
Ram is also the eradicator of pains &
sufferings & safeguards His worshipers from
| | Om Ayiem Hum Mama Bal Buddhi
any misfortunate event. Thus, worshiping Deh Saundarya Hreem Om Phat | |
Lord Ram not only provides good health, AA Å¡ ,sa gqa ee cy cqf) nsg
knowledge & power but it also creates a safety
aura around the Sadhak. lkSUn;Z âha Å¡ QV~AA
Sadhak can try this procedure on any Drop all the Sadhana articles in a pious
Monday. Take a bath early in the morning & sit river or pond after the completion of the
on a red mat facing east. Place a copper plate & Sadhana. Sadhana Articles K770/-
put Kleem Yantra & worship it with vermillion,
rice grains, flowers etc. Next chant 5 rounds of

PMY V 54 GurudevKailash fnlEcj 2023


Assimilate Divine Power
A life without power is an incomplete rice grains, flowers etc. & then chant 5 rounds
life. The Goddess of love & power is considered of below mantra for 5 days.
to be Lord Ram & Goddess Sita who is a form Mantra
of Goddess Gauri. It is the form of Goddess | | Om Gam Purushottamaye Shaktiye
Gauri which is filled with youth, love & positive Aagachchha Aagachchha Manoratha Siddhim
aura & without any doubt, love is the essence of Praapyarthe Namah | |
life.
The Sadhak must sit facing east on any AA Å¡ xa iq#”kksRre;s 'kfDr;s vkxPN
Saturday after taking a bath. Sit on a yellow mat
& worship Lord Ganpati & Guru first. Take a
vkxPN euksjFk flf)a izkI;FksZ ue%AA
copper plate & make a mound with rice grains in Drop all the Sadhana articles in a pious river or
it & place Purushottam Shakti Yantra over the pond after the completion of the Sadhana.
mound. Worship the Yantra with vermillion, Sadhana Articles K740/-

Wipe Out Misfortune


It is a fact that we get fewer Saubhagya Vriddhi rosary for next 6 days.
opportunities in life & only those people attain Mantra
success who are able to latch to that opportunity.
However, due to our sins & bad deeds, we are | | Om Ayiem Ayiem Shreem Hreem
not able to identify such golden opportunities Hreem Sarva Saubhagya
in life & then later on we keep repenting for the Aagachchha Aagachchha Namah | |
missed opportunity.
One should perform this Sadhana
AA Å¡ ,sa ,sa Jha âha âha loZ lkSHkkX;
procedure to overcome such misfortunes of vkxPN vkxPN ue% AA
life. Get up early on any Saturday & take a bath.
Get into fresh yellow cloth & sit on a yellow Drop all the Sadhana articles in a pious river
mat facing east. Take a copper plate & put it or pond after the completion of the Sadhana.
before you. Place Kaal Shakti Yantra in it &
chant 4 rounds of below mantra with Sadhana Articles K710/-

Gain Virtues
Attaining virtues of Lord Ram like Mantra
patience, tolerance, valor, love, hypnotism,
policy, moral values, good behavior & an | | Om Kleem Hum Shodasha
unquenchable faith can help a person emerge Kalaa Kalaayen Valbhaaya Phat | |
victorious in every aspect of life. AA Å¡ Dyha gqa “kksM”k
This Sadhana should be started in the
morning. Take a bath & get into fresh pink dyk dyk;sa oYHkk; QV~ AA
clothes. Sit on a red mat facing east. Take a Drop all the Sadhana articles in a pious river
copper plate & put Shodash Shakti Yantra in it or pond after the completion of the Sadhana.
& chant 5 rounds of below mantra for with Sadhana Articles J750/-
Shodash rosary for next 7 days.

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Annapurana Jayanti 26th Dec

Annapurna Siddhi
Gain Abundance In Life
Nityanandakari Varabhayakari Soundarya Ratnakari
Nirdhutakhila Ghora Paavanakari Pratyaksha Maheshwari
Praleyaachala Vamsa Paavanakari Kasi-Puradeeshwari
Bhiksham Dehi Krupavalambanakari Mata-
Annapurneshwari
Bestower of eternal happiness, one who grants boons as well as assures
fearlessness, the ocean of beauty, the one who can negate the most terrible sins
and gives purity, the manifested form of Goddess Maheshwari who puried the
lineage of snow lled mountain, the Goddess of the city of Kashi, be gracious on
me and grant me the blessings.
Lord Shiva & Goddess Parvati used Vishnu approached Shiva who told him
to play the game of dice. Once they were everything about what had happened. Lord
playing & the game became very interesting. Vishnu then told Shiva to play the game again.
They started betting. Parvati kept her jewels He told him that he will win back everything
& Shiva kept his trident. Shiva lost the game he had lost in the next game. Shiva took Lord
& thus he lost his trident. So, in the next game Vishnu's advice & went back to play the
he bet his snake to get back the trident. He lost game again.
in this game too. He played more & bet more Goddess Parvati became suspicious of
and kept on losing. Eventually he lost Shiva's sudden turn of fortunes that led him to
everything including his begging bowl. win back everything. She called him a cheat.
Shiva felt very humiliated & went to This led to an argument between the two of
Deodar forests to meet Lord Vishnu. Lord them. Finally, Lord Vishnu appeared as he
PMY V 56 info@pmyv.net fnlEcj 2023
could not take the fight anymore. He told them power to purchase it or by cooking it
that the dice in the game had moved according ourselves. In both the cases, the person can
to his wish & they were only under an illusion fulfill the desire.
that they had been playing. This Sadhana should be performed on
To this Shiva added that everything Annapurna Jayanti. If somehow you are
materialistic was just an illusion or Maya. unable to do so, one can also perform this
Everything that we possessed was an illusion. Sadhana during the Navaratri, Diwali, Holi
Even the food we ate was Maya. This made or any other auspicious day related.
Goddess Parvati angry. She did not agree that
food was an illusion. She said that calling food
Sadhana Procedure
an illusion was equivalent to calling her an One needs Annapurna Yantra &
illusion. So, to show Lord Shiva & the world Kamal Gatta rosary for this procedure. Take a
her importance she disappeared saying that she bath after 10 pm & wear clean yellow clothes.
wanted to see how the world would survive Sit on a yellow mat facing North & place a
without food. wooden plank before you. Cover the plank
Her disappearance meant that nature with a yellow cloth & place a picture of
came to a standstill. There were no changes in revered SadGurudev on it. Light a ghee lamp
seasons. Everything became barren. The which should continue to lit during the entire
lands became infertile. Nothing grew sadhana duration. Now worship Him with rice
anymore. This led to severe drought & a huge grains, vermillion and flowers and chant one
shortage of food. The Gods, humans & round of Guru Mantra. After this pray to
demons all kept praying for food. Goddess SadGurudev for success in the Sadhana.
Parvati heard the prayers & she could not see Next make a slightly big mound of rice
her children dying out of hunger. So, she grains on the plank & put some vermillion &
appeared in Kashi & started distributing food. flower petals on the mound and place the
Shiva realized his mistake & the fact Annapurna Yantra on it. Also place a picture
that he was incomplete without Shakti. So he of Goddess Lakshmi in front of you. Offer
appeared before Goddess Parvati in Kashi some food made with milk to the Mother
with a begging bowl in his hands. He said her Goddess.
that he had realized his mistake that food could Now take the Kamal Gatta rosary &
not be dismissed as an illusion & it was chant 11 rounds of the following mantra.
required to nourish the body as well as the Mantra
inner soul. Since then, Goddess Parvati is || Om Kreem Krum Krom Hoom Hoom Hoom Hreem
worshipped as the Goddess of food – Goddess Hreem Om Om Om Om Annpurnaayai Namah ||
Annapurna. ea=
It is a fact that we become what we eat.
There is a very famous saying, “A lamp eats AA Å¡ Øha Øwa Øksa âha âha Å¡ Å¡ Å¡ Å¡
darkness, but in turn produces lampblack.”
The essence of this saying is if the food we vUuiw.kkZ;S ue%AA
consume is not earned from righteous means, Chant one round of Guru Mantra
the food is going to harm us in all ways. If the again at the end of the Sadhana & then
food grain that we have bought from grocery consume the offerings made to the Goddess
store is not bought by the seller by fair means with full joy.
but is rather a theft commodity, the food Offer food to seven girls the next day.
consumed by such a grain is definitely going to It is observed that the person performing this
harm us. Thus, it is very important to sanitize Sadhana starts getting good financial gains by
the food from these evil karmas & that is the the end of this Sadhana. Also, the health of
reason why people first offer the food to God such a person starts to become better as the
or Guru. grains get detached from any sins that were
Annapurna Siddhi doesn't mean that done to procure or sell it. For even better
whatever we wish to eat should appear before results, one should chant the above mantra 51
us as a magic, but it means to gain the times daily in the morning before the Yantra.
capability in life to eat whatever we wish for. This helps the person to gain continuous health
If we wish to eat sweets in life, we should & wealth in life.
somehow get access to it – either by having the Sadhana Articles KRs 750/-
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ChhinnaMasta Sadhana 23rd December

Demolish Your Enemise


A sadhana that can bring your enemies to their knees . . .
one of the most secret sadhanas that is almost
impossible to obtain in life.

Any person who wishes to make a challenges in the field of Sadhanas.


mark in the field of Sadhanas keeps From the Sadhana point of view, a
Chhinnamasta Sadhana at the top of his list. person accomplishes Chhinnamasta
Chhinnamasta Sadhana is the top notch Sadhana to remove all the hurdles of life.
sadhana among all the MahaVidhyas Such an accomplished sadhak lives a
Sadhanas too. If an individual successfully contented life, his enemies can't stand in front
accomplishes this Sadhana, the person is able of him, as the person always remains ahead of
to eradicate all sorts of enemies from his life. the enemies.
Such a Sadhak then no longer faces any

PMY V 58 GurudevKailash fnlEcj 2023


This Sadhana is very challenging & an hunger & wait for some more time.
ordinary Guru can't grant this Sadhana to the After some time, the two again started
disciple. Even the great Gurus don't give such to plead to the Goddess, “Goddess! You are
a Sadhana to the disciples easily because this highly benevolent, and quickly listen to all
sadhana is very quick responding & highly the problems of your worshippers. Please
effective. Once a Sadhak gets success in this resolve our hunger.”
Sadhana, the Sadhak can very easily attain Listening this the Goddess cut off Her
success in all other sadhanas. And due to this head & Her friends fed on the blood that
reason, the Gurus don't share this secret emerged out of Her body. Three streams of
Sadhana very easily. They first test their blood emerged from Her body, the two were
disciples under extreme conditions & then drank by Jaya &Vijaya & the third one was
only this Sadhana is given to the chosen one. drank by Her severed head which She held in
After gaining success in the Sadhana, the Her arm.
chosen disciple then used to attain greatness
in life. On one hand where the Goddess
appears to be very fierce, She is extremely
However, our Gurudev wishes that all loving & caring on the other hand. She is cruel
His disciples should become as glorious as sun to the enemies of Her devotees & is extremely
in their lives & that is why we are sharing this caring towards Her devotees.
very secret sadhana before you. Gurudev
wishes that all His disciples must attain what Sadhana Procedure
all they wish, which can only be possible if we
gain success in this Sadhana. One needs Chhinnamasta Yantra
This Sadhana is specifically useful for & Black Hakeek rosary for this Sadhana.
the householders as the householders are the This is a one-day sadhana. Take a bath after
one who remain surrounded by millions of 9pm & get into fresh yellow clothes. Sit on a
troubles in life. They struggle in their day to yellow mat facing south. Take wooden plank
day activities in life from situations like & cover it with a fresh piece of yellow cloth.
shortage of money, diseases, quarrels in Place a picture of revered Gurudev &
house, loss in business, enemies & what not. worship Him with vermillion, rice grains,
The more a person tries to gain success in life, flowers etc. Light an oil lamp & an incense
the more the enemies emerge before him & the stick. Then chant one round of Guru Mantra
more these enemies try to pull down that with the Black Hakeek rosary & pray to
person. In such a case, life is nothing less than a Gurudev for success in sadhana.
battlefield for us. Next place the Yantra in front of
However, after successfully Gurudev's picture & worship it too with
accomplishing this Sadhana, no enemy can vermillion, rice grains & flowers. Speak out
ever dare to harm you. This sadhana is the your problem before the Yantra & pray to the
sadhana of the Goddess who has won over the Goddess to remove all the shortcomings from
entire universe & thus Her sadhakas remain your life. Now chant 11 rounds of the mantra
invincible in life because they are backed by below.
none other than Mother Goddess Mantra
Chhinnamasta Herself. || Om Hlaum Glaum Sarva Daaranaayai Phat ||
An incident that shows the || ÅWa ºykSa XykSa loZ nkj.kk;S QV~ ||
benevolence of Mother Chhinnamasta is
mentioned here. Once the Goddess & Her two Drop all the Sadhana articles in a river
friends, Jaya & Vijaya, went to take a bath. or pond the next day. This completes the
Her friends started to feel extreme hunger & sadhana procedure. You will start seeing the
thus prayed the Goddess to pacify their hunger. favorable outcome of this procedure from the
The Goddess asked them to wait for some, very next day & will be left astonished by the
however they again felt the urge for food & outcomes.
requested the Goddess again. Mother Goddess Sadhana Articles J740/-
again asked them to have control over their

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All You Need Is Faith!
Attain Anything in Life
Once one of the disciples of on increasing & it is just the firm faith that
Shri Chaitanya Mahaprabhu asked Him, attracts the grace of God.
“Gurudev, how long will it take for me to get The human life is full of wanderings.
a glimpse of Lord Shri Krishna?” When a person takes birth, he or she gets
Chaitanya Mahaprabhu replied, “This bounded into several relationship like
tree under which you are sitting, has many mother, father, uncles, aunts, grandfather
leaves on it. It will take as many births as etc. There is no control over these
there are leaves on the tree.” relationships by us. We have to accept them
The disciple heard the Guru's words as our relatives & grow up as per their
& started dancing with joy because it was expectations. These expectations get set the
confirmed that he would attain God after moment a child takes birth. The child is
having lived an infinite number of lives in the expected to become a doctor, engineer,
cycle of life & death. He was thrilled! architect etc. without even considering
Seeing his joy, Mahaprabhu said, “No, whether the child will really want to pursue
looks like I need to make a correction. You will that career or not.
get a glimpse of Lord Shri Krishna in this The child falls into this trap & tries to
life itself.” fulfill the desires of the parents right from the
The disciple was super delighted & he childhood. The child is expected to be good in
danced with more joy. Seeing his joy, studies, good in presenting oneself, good at
Chaitanya Mahaprabhu said further, “No, you sports & what not. The child under these
will get a glimpse of Lord Shri Krishna expectations starts feeling overburdened.
during this year itself.” However, there is no escape for the child as
The disciple's enthusiasm reached sky- there are lots of burden on his or her shoulders.
high & seeing this Chaitanya Mahaprabhu The child puts in best possible efforts to fulfill
said, “You will attain Lord Shri Krishna in the dreams of the parents. Few lucky ones are
this month.” able to accomplish the goal; and those not are
left to scolding throughout the life.
Tears started to flow out of the
disciples eyes & then Chaitanya Mahaprabhu The successful child then works day
said, “Here is Shree Krishna, you can see and night to get a degree with good academics
Him now.” history. Soon such bright child also gets a
good paying job & considers oneself to be the
The other devotees asked their Guru blessed one. Looking at their child's progress
the reason behind why He kept changing His in life, the parents propose marriage to the
words. Chaitanya Mahaprabhu replied that child saying that you are capable to look after
the disciple's firm faith to attain the goal kept your own family now & must get married. If

PMY V 60 info@pmyv.net fnlEcj 2023


one denies, then they say that it is a must in the oneself into the holy feet of a SadGuru, one
society & not doing so will raise several has to amalgamate oneself into the SadGuru to
questions. become someone like Him, to become
Now this grown up person once again complete in life. The person then doesn't
sacrifices the wish & soon gets married. After remain any common man or woman but is
marriage, the next expectation that gets set on blessed with the divine term called a disciple.
this person is to bring a new member into the Being a disciple is the best thing that can
family. Under parents & society's pressure, the happen in life as this phenomenon occurs in
newly wed couples plan for a baby & bring a live of very few people.
new member in the family. Now starts the real The SadGuru comes into the life of
struggle of life. The person who has now those people who really wish to make this life
become a father or a mother now starts to worthy. The SadGuru tests the disciple
work very hard just to give the best to their again and again to see if he or she is willing
family. This person now wants to give all the to go to that level in life or not. Sometimes He
pleasures into the family so that the family will give you siddhis related to Lakshmi or
lives a comfortable life. Goddess Kali just to ensure if the disciple
This person now starts to work day & really seeks nirvana or just want to become
night & soon drenches out all the energy. The more materialistic in life. A SadGuru can
more the person works, the more scarcity of provide both in life provided you are willing to
items he or she starts to feel in life. All the accept them both.
people in this world wishes to have everything Until & unless a person has become
in life, but doesn't consider what Sacrifice is he satisfied in this materialistic world, the person
or she is giving in return. The person then can't even imagine attaining spiritual
focuses entirely on earning more & more completeness. We are living in a world that
money in life as this is the only means to satisfy gives more value to money & things that can
oneself materialistically. This thought be bought with money than the virtues. How
process is itself a big killer of modern time. can a person earn respect in this world without
Most of the people around us want to become possessing these materialistic things in life?
super rich in life so that they can buy whatever Thus, until & unless a person can prove his or
they wish for in life & considers happiness as her worthiness in this world, attaining
buying new things & having a huge amount of spiritual enlightenment can't get completed in
cash. life.
Indeed, money is a must to survive our So, a SadGuru first nurtures the
daily needs but the bitter truth is that money is disciple to live a life of contentment where the
not the soul of life. Soon after earning a lot of disciple has everything in life & yet he or she
money or after living a luxurious life, the is no more inclined towards it. Once the
person now wonders what is he or she doing in SadGuru gets assured that the disciple is
life. What is the aim of life? For what is he or ready now, the SadGuru doesn't need any
she working so hard in life? Is it really worth special effort or time to take the disciple to that
it? What is he or she doing in this world? Why level where the disciple becomes an image of
has he or she been given a golden opportunity the SadGuru himself. It is just a firm faith in
to come to this world in human for? Guru that is required to attain such a feat in
And then for the blessed ones, for those life!
who have done enough pious deeds in their Na Guror Adhikam Tatwam
current & previous lives, comes a divine being Na Guror Adhikam Tapaha
called SadGuru. A SadGuru is like an oasis in
the middle of a desert. He is the divine being Tatwa Gyaannaat Param Naasti
been sent by the Almighty to guide the human Tasmai Sri Gurave Namaha.
beings, to show them the path to eternity, to There is no greater principle
take them to the destination called nirvana; than the Guru, there is no greater
after reaching which nothing remains penance than the Guru, there is no
unfulfilled in life. The life of the person
becomes complete after reaching to this level greater knowledge than
in life. meditation on the form of such a
However, reaching this state is not a Guru. I offer my gratitude towards
child's play. One has to completely immerse such a Guru.
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f'ko xkSjh rqjhZ/kke egkek;k dkfrZd SRI PURUSOTTAM MATH, Goura Baba Sahi,
Shivir Venue:
Water Tank, Near Sankaracharya Math PURI, ¼Orissa½
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PMY V 62 GurudevKailash fnlEcj 2023


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9415326751] v'kksd feÙky 6369488925] vt; xqIrk Nikhil Durugkar, Dharmendra Bagde, Prasad Bandre, Dr.
9450324589] lR;çdk'k oekZ 8081204471] MkW vt; oekZ Pramod Bodele, Dr. Rahul Nagral, Sandeep Satghare
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9198295051] vt; 'kqDyk 9956843555] eukst 'kekZ Madhuri Suryawanshi, Divya Bais, Uday Singh Thakur,
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Nilesh Asutkar, Swastik Fulzele, Kuldip Dhoke, Shila
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Surushe, Anil Sharma, Rupesh Thakur

PMY V 66 GurudevKailash fnlEcj 2023


मकर सं ा त 15 जनवरी

सयू सं ा त आरो यमय धन ल मी दी ा


मनु य का शरीर अपने आप म सृ ट क सारे म को समेट हयुे है और जब यह म िबगड़ जाता है, तो शरीर म दोष उ प होते ह,
िजसक कारण यािध, पीड़ा, बीमारी का आगमन होता है। इसक अित र त शरीर की आ त रक यव था क दोष क कारण मन क भीतर दोष
उ प होते ह, जो िक मानिसक श त, इ छा श त को हािन पहुँचाते ह। य त की सोचने-समझने की श त, बुि ीण हो जाती है। इन
सब दोष का नाश सूय त व को जा त कर िकया जा सकता है।
या कारण है िक एक मनु य उ ित क िशखर पर पहुँच जाता है और एक य त पूरे जीवन सामा य ही बना रहता है। दोन क
भेद शरीर क अ दर जा त सूय त व का है। साधारण मनु य म यह त व सु त होता है। सूय अन त श त का ोत है, अतः इस त व क
जा त होते ही साधारण मनु य भी अन त मानिसक श त का अिधकारी बन जाता है। जब यह त व जा त हो जाता है, तो बीमारी, पीड़ा,
बाधाय उस मनु य क पास आ ही नह सकती है।
समु मंथन क उपरा त चौदह र म से ल मी भी एक र थी। िज ह भगवान िव णु ने अपनी प ी क प से वीकार िकया था
और इसी िदवस को हम आज मकर सं ा त पव क प म मनाते ह।ै यह पव िवशेष कर भगवान सूय व माता ल मी को समिपत है। इस
िदवस पर सूय की आराधना करने से जहां एक ओर जीवन क दोष दूर होते ह, पीड़ा, यािध, बीमारी का िनवारण होता है, वह ल मी की
अ यथना से जीवन की द र ता, दुभा य, ऋण से मु त िमलती है और ल मी का थायी िनवास बन जाता है।
सांसा रक जीवन क सम त आन द, सुख, भोग की पूणता इस दी ा क मा यम से संभव है। मकर सं ा त क सु े ठ अवसर
पर सूय देव व ल मी की अ यथना स प कर दी ा हण करने से य त म तेज वता, आरो यता, मानिसक श त, कायाक प,
स मोहन श त ा त होती है और साथ ही जीवन सुख, सौभा य, यश, कीित, धन ल मी आिद सु थितय से प रपूण होता है।
सूय सं ा त आरो यमय धन ल मी दी ा यौछावर J 2600
nh{kk gsrq uwru iQksVks o U;kSNkoj jkf'k dSyk'k fl¼kJe tks/iqj (jkt-) 9950809666 HkstsaA
U;kSNkoj jkf'k KAILASH SHRIMALI State Bank Of India Main Branch Jodhpur
A/c No.: 10827454848 RTGS Code: SBIN0000649 Branch Code:659
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ln~xq:nso th ds lk/ukRed dk;ZØe GurudevKailash ILASH SIDDHASH M ij ns[ksA

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