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जीवन की प रभाषा का वणन सामा य प म यही कहा जा सकता है िक माँ क गभ से ज म लेकर िच ा तक की


या ा ही जीवन है य िक शेष जो इन छोर क बीच म िसमटा है- िश ा] िववाह] अथ पाजन] स तानो पि ] कलह] छल-कपट]
छीना-झपटी] बैर-वैमन य इ यािद वे तो जीवन क ि या-कलाप ह, वयं म जीवन नह ।
जीवन की यथाथ प रभाषा तो ये है िक जीवन म िजतना शी हो सक स गु देव जी की खोज करक उनक मा यम से
अपने जीवन का ल य समझ कर उसकी ा त म सचे ट हो जाना ही जीवन है। यह बात तो येक य त जानता है िक
ई वर म लीन हो जाना जीवन का परम ल य है िक तु यह ल य कसे ा त होगा, उस पथ पर चलने क िलये ऊजा कहां से
ा त होगी- स गु देव जी ही य त कर सकते ह।
मं -तं और यं क इस िवशाल समु म अवगाहन करने का योजन िसि होता है। यह िसि िकसी को शी तथा
िकसी को बहुत अिधक यास करने क बाद भी नह िमलती, वे साधना को म जाल ही मान लेते ह। पर तु यह स य नह है,
यिद िकसी को मंिजल नह िमलती तो इसका यह अथ नह है, िक मंिजल है ही नह । हां यह अव य स य है, िक मंिजल तक का
रा ता ल बा था और वहां तक पहुंचते-पहुंचते य त िनराश हो गया। दैवीय कपा अथवा दय भाव म देवत व जागरण नह
होने क कारण ऐसी थितयां आती ह। जो रा ता मंिजल तक जाता हो, वह िकसी कारण देव कपा से बंद पड़ा हो।
वा तव म येक य त अपनी ऊजा अनुसार अपने ल य को िस करने की िदशा म सचे ट रहता है, िक तु काल
या भिव य क एक अ ात भय से िघरा रहने क कारण उसकी ऊजा का एक बहुत बड़ा भाग कवल संक प-िवक प म ही
िनकल जाता है। इन क थितय क िनवारण क िलये अपने अ दर देव त व को जा त करना आव यक है।
िश य क मानस म ित ण स गु देव जी अिभ य त हो सक, इसे ही दी ा मक उपाय क प म देव त व जागरण
ल य भेदन िसि दी ा की सं ा दी गयी है। इस दी ा क फल व प देव त व की चेतना रोम-रोम आ लािवत होती है। िजससे
साधक क पूव ज मकत दोष, पाप-संताप, बाधाय, भय आिद िवषम प र थितयां समा त होती है। िजससे वह अपने जीवन क
ल य क माग की ओर सफलता पूवक अ सर होता है और शी ही सफलता अनुभूत होने लगती है।
देव त व जागरण ल य भेदन िसि दी ा यौछावर J2100
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जीवन म मनोकामना पूित क िलए तप, साधना, याग, मं जप, अनु ठान करने होते ह तब ही हम मन चाहा फल ा त
होता है, यह सब तभी स भव है, जब हम ान का वण कर, उस उ ान को अपने अ दर आ मसात करे उस ान को अपने
अ दर पनपने दे, िजस कार कित जलधारा से, निदय से, वषा से इस धरती का, माँ का अिभषेक करती है, जो इस धरा को और
सु दर हरा-भरा बना देता है, िजसका लाभ सभी जीव-जंतु लेते ह। उसी कार एक यो य साधक भी अपने गु क ान को वण
कर अपने जीवन क िवष को समा त करते ह, व गु क उस ान का अिभषेक करते है, िजससे साधक अपने पापो को धोकर
अपने जीवन को पावन व पाप रिहत बना सक।
सभी क जीवन म सुख, द र ता, िवष पूण थितयां आती है पर तु सही समय पर उनका उपचार व नाश न िकया जाय तो
स पूण जीवन नारकीय हो जाता है। इसी िलए ान का अिभषेक मन पर हो जो मन को शांत करे, दद को, सम या को, दूर कर।
हम एक यो य गु क िश य है हम अपनी सम या की समा त क िलए अिभषेक अपने आसु से नह अिपतु अपने गु क
ान से, मं जप से, तप से करना है। जो हम पूण बनाता है।
इस वष का सावन मास भी 59 िदन का होगा, जो एक वरदान व प है, जो हम अधनारी वर व प माँ पावती और
महादेव का यु म व प म अराधना करने का अवसर देता है। माँ ल मी का व प है वृि का व प है व महादेव ान का, तप
का व प है और दोन क योग से ही हमारा जीवन समृ व सुचा प से चल सकता है। जीवन की िवषमता को दूर करने व
अपने जीवन को िवष रिहत बनाने हेतु व अपनी मनोकामना की पूित का यह िविश ट अवसर हम नह खोना है, गु देव क
ान व तप ऊजा से प रपूण अधनारी वर व प पारद िशविलंग की थापना हर घर म हो व स भव हो तो सामुिहक अ यथा
येक साधक इस िविश ट िशविलंग पर अव य ही अिभषेक करे। साथ ही 17 से 20 जुलाई को कलाश िस ा म, जोधपुर म
गु सािन य म व अपने पूरे प रवार क साथ अिभषेक स प करे। पूण आ मीय भाव से िकया गया यह अिभषेक आपक जीवन
की िवषमता को समा त कर पूणता की ओर अ सर करेगा।
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ENGLISH CORNER
b Rituals & Articles a
Purushottam Kalpa Diksha 49
Shravan Month Sadhanas 52
For a Happy Married Life 54
23
For a Unending Wealth 56
For Removing Untimely Death 58 oj y{eh lk/uk
For Rise of Fortune 60
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जीवन या है? इस जीवन का रह य या है? मनु य य ज म लेता है? मृ यु क बाद वह कहा जाता है? ये कोई
मामूली नह है। िजस य त क जीवन म जागृित आ जाती है, जब उसम यथाथ का बोध होना आर भ हो जाता है, तब उसक
मानस म सव थम यही उठते ह। पर तु या वह इन क उ र खोज लेता है?
शायद नह । हां! इतना अव य है, िक वह िविभ धम गु क वचन से, महापु ष क संदेश से और वयं क थोड़-
बहुत अनुभव से वह मा अनुमान लगा लेता है, िक यह जीवन या हो सकता है। िज ह ने भी इन क उ र जानने-समझने
की कोिशश की, वे अपने आप म ही डबते चले गये और अपनी ही गहराइय म उ ह ने अन त को खोजा, अनेक स भावना को
ज म िदया। पर तु अ ततः वे भी इस बात को ठीक से प रभािषत नह कर सक, िक यह जीवन वा तव म है या?
मनु य की आ त रक खोज और बा खोज अथा आधुिनक िव ान की खोज, दोन से यह तो िस हो ही चुका है, िक
मृ यु क प चा भी मनु य का अ त व होता है और यिद मृ यु क बाद उसका अ त व है, तो ज म से पूव भी उसका अ त व
होना ही चािहये।
इस बात क सैकड़ माण िमलते भी है, िक अमुक ी या पु ष का पुनज म हुआ है या अमुक थान पर ज मा बालक
अपने पूव ज म की जानकारी दे रहा है। अनेक उदाहरण ऐसे भी ा त होते ह, िक िकसी ी या पु ष की मृ यु हो गई और मृ यु क
कछ समय बाद वह पुनज िवत हो उठा।
इन सब बात से यह तो प ट है, िक ज म और मृ यु से जीवन का ार भ और अ त नह है। इससे जीवन की अनेक
स भावना क ार खुलते ह और य त अपने म ही खो कर पूण आ या मक लाभ ा त करता है। य तो इस पृ वी पर सभी
जीव ज म लेते ह और मृ यु को ा त होते ह। यह म तो अन त से चल रहा है और चलता ही रहेगा। आज िजसने ज म िलया है,
वह कल समा त हो जायेगा। इस ज म लेने और समा त हो जाने क बीच क अ तराल म जीव िमत रहता है, वह सम त समा त
हो जाने वाली व तु पर अपना अिधकार समझ कर उनम अपने आपको उलझा देता है। पर तु जो इस न वरता को समझ लेता
है, वह िफर अिमट की खोज म चल देता है, वह अमृ यु की ओर कदम बढ़ा देता है।
यह जीवन की बदली धारणा ही उसका अन त से प रचय करा कर उसे से जोड़ देती है, वह जो न कभी समा त हुआ है
और न ही कभी समा त होगा, जो िचर शा वत है, िजसने सम त चराचर को अपना अ त व दान िकया है।
सामा यतः य त सांसा रक िवषय म ही फस कर रह जाता है, इसे तो जीवन का दुभा य ही समझना चािहये या िजस
काल तक मनु य ऐसी न द म रहता है, वह दुभा य काल है। दुभा य काल इसिलये, िक उस समय वह अपनी सम त चेतना खो कर
न वर व तु क ित आस त होता है और उ ह ही ा त करने क िलये सचे ट रहता है।

PMY V 06 GurudevKailash tqykbZ 2023


जबिक वा तिवकता यह है, िक सम त सांसा रक काय व मा ह, जो यथाथ स य न होते हुये भी स य होने का म
पैदा करते ह। िक ह पु य क जा त होने पर य त को इसका बोध होने लगता है और यह बोध होना ही सौभा य ा त की पहली
सीढ़ी है, जागृित है, जब जीवन अपनी गित को समझ कर सांसा रक िच तन से अलग हट कर िच तन करना ार भ करता है।
प रवतन तो इस सृ ट का शा वत स य है, इसे बदलना िकसी क भी साम य की बात नह है। जो ज म लेता है, उसे एक
िदन समा त होना ही पड़ता है। लेिकन जो जा त हो कर अमृ यु क पथ पर गितशील हो कर व को ा त करने की ओर
अ सर होते ह, वे उस परम पद को ा त भी कर लेते ह, िफर वह समाज म युग पु ष क नाम से पिहचाना जाता है, उसे अवतार
घोिषत कर अ य य त उसक पदिच ह पर चलना अपना सौभा य समझते ह।
जीवन क सम त कार क तनाव , िख ता और असफलता का एक ही मूल कारण िदखाई देता है और वह है भु
स ा को न वीकार करना। येक य त यही सोचता है, िक यहां येक काय मेरे ही अनुसार हो और मुझे अिधक से अिधक लाभ
पहुंचाने वाला हो। वह िन य दौड़-धूप कर परछाइय को पकड़ने की कोिशश करता रहता है और अपनी परछाई पर खड़ा हो कर
िवचार करने लगता है, िक मने इसे पकड़ िलया है।
मगर यह वा तिवकता नह है। परछाई क रह य को जानने क िलये काश को समझना आव यक है और काश ही

मूल त व नह है, काश की उ पि का भी कोई ोत होगा, ऐसा मान कर जीवन म अपने आपको यव थत करना चािहये। मानव
जीवन म िद य व एवं ई वर व को उतार कर ही अमृ यु क पथ पर अ सर होना स भव है। लेिकन इसक िलये आव यक है, िक
देह बोध से परे हट कर अ दर झांकने की कोिशश की जाये। शरीर से परे हटने क उपरा त ही उस परम चेतना क अ त व का
बोध होना स भव है, उसकी िनकटता का एहसास होना संभव है, उससे एकाकार होना संभव है, नर से नारायण बनने की ि या
स भव है।
जो एकमा परमा मा को ही अपना सहारा मान कर उसक सहारे अपने को छोड़ देता है, सम त िसि यां भी उसकी
चाकरी करने क िलये य शील होती ह और वह वयं िद यता क पथ पर अ सर होने लगता है।
अतः य त को इस न वर संसार से परे हो कर ई वर को अपना एकमा सहारा मान कर वयं की अतल गहराईय म उतरने
का यास करना चािहये, तभी जीवन क वा तिवक रह य का ान हो सकगा, तभी जीवन म सुवास का अनुभव ा त हो सकगा,
तभी जीवन अमृतमय बन कर अमृ यु की ओर अ सर हो सकगा।

tqykbZ 2023 +91-99508-09666 PMY V 07


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धन, यश एवं कीित का आगमन
जीवन शैशव से िनकल कर और यौवन की वह न तो आव यक होता है न सहज। बचपन, बचपन क
अठखेिलय से गुजर कर बहुत शी उस थान पर आ जाता बाद िकशोराव था, िकशोराव था क बाद यौवन और इसी
है जहां से िफर कत य और जीवनयापन की सम या सामने यौवन की थम सीढ़ी पर पांव रखते ही कत य का संसार भी
आकर खड़ी हो जाती है। यिद इस थित क िलये य त पहले ारंभ हो ही जाता है। वयं खुद क भरण-पोषण क साथ-साथ
से सतक न हो या कोई बंध न िकया हो, तो उसका सारा माता-िपता का दािय व, छोट भाई-बिहन का परो अथवा
जीवन अ त- य त हो कर रह जाता है। अपरो प से दािय व एवं वयं अपने प रवार की
जीवन म कत य आव यक हो सकते ह लेिकन िज मेदारी यही लगभग पहच र ितशत य तय क जीवन
िजस कार से कत य आकर जीवन को िसत कर लेते ह की कथा है। शेष प ीस ितशत म हो सकता है िक उ ह

PMY V 08 info@pmyv.net tqykbZ 2023


पैतृक स पदा िमली हो, पा रवा रक दािय व, िक ह अ य जीवन म कछ ठहराव आता है तब तक खुद की संतान बड़ी
सुिवधा से या तो न हो अथवा सीिमत हो, िक तु िफर भी हो गई लगती है। पता लगता ही नह िक यौवन की उस पहली
जीवन-या ा तो शेष रह ही जाती है। सीढ़ी क बाद कब 20-22 वष बीत गये और जीवन क उस
ायः 20-22 वष की अव था आते-आते य त को अपने चरण तक आने क बाद मन म उमंग बची हो या न बची ह ,
भिव य और भावी जीवन की िच ताये आकार घेर लेती ही है। जीवन म आशा शेष रह गयी हो या न रह गयी हो, कछ कहा
व. यवसाय अथवा नौकरी-इनम से िकसका चुनाव िकया नह जा सकता।
जाये, इस बात का ं ारंभ हो ही जाता है। कछ एक कार से देखा जाये तो ायः प ीस वष की
सौभा यशाली होते ह िज ह पैतृक प से जीवन-यापन का अव था म कध पर क य का जो जुआ लाकर रख िदया
माग िमल जाता है। घर का यवसाय या पैतृक स पि िमल जाता है वह िफर मृ यु क साथ ही उतरता है और उतरता
जाती है िक तु स पि ा त होना ही जीवन की पूणता और कहां है? य त आते-जाते अपनी संतान क कधे पर
सफलता नह मानी जा सकती, इसक बाद भी िववाह, खुद रखकर चला जाता है, उसका या कारण है, इसका या
का वा य, श -ु िनवारण, घर की शा त जैसे बहुत से प उपाय है, यह सोचने क अवसर जीवन म आते ही नह
शेष रह जाते ह। दूसरी ओर सामा य य त को तो ारंिभक य िक धन कमा कर कछ फसत पायी तो प ी की बीमारी
िब दु अथा धन क उपाजन से ही अपने जीवन का ारंभ सामने आकर खड़ी हो गयी, प ी व थ हुई हो तो बेटा
करना पड़ता है। पढ़ाई म कमजोर पड़ने लगा, उससे िनपट तो कह धन फस
जीवन क कत य और इन आव यक ाथिमक गया, य - य उसको भी िनबटाया तो खुद का वा य...
प को यिद ण भर क िलये परे रखकर देख तो य त की साधक पि का म विणत साधनाय पढ़ते ह, उनका लाभ भी
अपनी इ छा और भावना का भी संसार होता ा त करते ह िक तु उनक मन म एक शेष रह जाता है
है और वह संसार ही उसक िक जीवन पूरी तरह से य नह संवर रहा है? उ ह शंका
दैिनक जीवन म सरसता होती है िक मने अमुक-अमुक साधनाये की, दी ाय भी ली
तथा गित का आधार होता िक तु पूण प से लाभ नह िमल सका और एक कार से
है। लेिकन कब जीवन उनका सोचना गलत भी नह है य िक येक जाग क
कत य भावना और साधक अपनी ओर से अपनी मता भर यास करता ही है,
वा तिवकता क बीच इसम कमी कवल यह रह जाती है िक उनक जीवन म
गु -गु होकर बीत येक साधना आव यक होते हुये भी फल अपने िवशेष
जाता है इसका व प क अनुसार ही देती है, जबिक जीवन की सफलताय
पता ही नह अनेक प से िनिमत होती है।
चलता और जीवन क अनेक प और वे भी पूणता से, येक
जब तक साधना नह समेट सकती जबिक एक इ छा क बाद दूसरी
पता इ छा का ज म होता ही है, एक थित म सफलता िमलने
लगता क बाद दूसरी थित आती ही है और इनकी पूित करना
है, भी कोई दोष यु त काय नह है। जीवन क ऐसे िच तन
को लेकर योिगय ने वे सू ढढने चाहे जो जीवन क
आव यक सू ह और उनक साथ ही साथ कोई
ऐसी साधना भी ा त करनी चािहये जो
जीवन क सभी ारंिभक और
आव यक त व को अपने साथ
समेटती हो। उ ह ने अपने
िन कष म पाया िक जीवन क ऐसे
प कल 14 ह िजनम धन ा त,
वा य, पा रवा रक सुख, श ु
बाधा िनवारण, रा य स मान,
िवदेश या ा योग, पु सुख, इ यािद
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स मिलत िकये और यह िन कष िनकला िक जीवन म इन इस साधना म कवल तीन सामि य की
चौदह थितय का ा त होना ही जीवन की पूणता है िजसे आव यकता होती है- पारद ीयं , सौभा य शंख एवं
उ ह ने भा योदय क नाम से विणत िकया, िजसक ारा कमलग की माला इसक अित र त इस साधना म िकसी
जीवन की ारंिभक थितय को सुधारने क साथ ही साथ िवशेष िविध-िवधान या पूजन की आव यकता नह है। यिद
जीवन की भावी योजना की पूित भी हो सक। साधक क पास महाल मी का िच हो तो वह उसे मढ़वा कर
जीवन म साधनाय तो मह वपूण होती ही ह उनक थािपत कर दे अथवा महाल मी क िकसी भी व प का
साथ ही साथ वे िदवस भी मह वपूण होते ह िजनका तादा य ाण ित ठत िच ा त कर उसे साधना हेतु मढ़वा कर
साधना िवशेष से िकया जाय और जब ऐसा संभव हो सकता है थािपत कर ल।
अथात उिचत मुहूत का सम वय उिचत साधना से कर िदया साधना िदवस क िदन ातः 08:30 बजे से 11:30 बजे क
जाता है तब तो िवशेष कछ घिटत होता ही है। य तो जीवन म म य साधना म अव य बैठ जाये और समय को इस कार से
कोई भी साधना कभी भी स प की जा सकती है िक तु जो िन चत कर ल िक साधना बारह बजे क पहले-पहले अव य
साधनाय ारंभ की, आधार एवं एक कार से अंकरण की पूण हो जाये। महाल मी क िच क सामने घी का बड़ा दीपक
साधनाय होती ह उनक स दभ म मुहूत का मह व सबसे लगाये ककम, कसर, अ त, पु प की पंखुिड़यां एवं नैवे
अिधक होता है। ठीक यही बात उन साधना क स दभ म भी से उनका पूजन करने क उपरांत कसर से वा तक िच ह
कही जा सकती है जो स पूणता की साधनाय- इन दो दशा अंिकत कर उस पर सौभा य शंख थािपत कर और पहले से
म साधना िवशेष का मह व काल क िक ह िवशेष ण से ही चुनकर रखे चावल क 108 िबना टट दान को मं ो ार
पूणतः ब होता ही है। पूवक सौभा य शंख पर समिपत कर।
भा योदय साधना एक ऐसी ही िविश ट साधना है। मं
चातुमास का यह समय अ य त ही िवशेष है और इस देव ।। ऊ ल ल मीराग छाग छ
िसि मास म इस कार की उ कोिट की साधना स प मम मंिदरे ित ठ ित ठ वाहा ।।
करने क िलये सव े ठ समय है। जहां िस योगी इस िदवस Om Shreem Hreem Kleem Shreem
का उपयोग िकसी उ कोिट की साधना को स प करने म Lakshmiraagchhaagachh
करते ह वह गृह थ य त इस िदन का उपयोग भा योदय Mum Mandirae Tishtha Tishtha Swaha
साधना म कर सकते ह। उ कोिट की साधना म वेश इस पूजन क उपरा त कमलग की माला से ीयं पर
लेने से पूव, महािव ा साधना अथवा जगद बा साधना म पूण ाटक करते हुये िन मं की एक माला मं जप कर।
सफलता ा त करने हेतु भी भा योदय साधना स प मं
करना अित आव यक माना गया है। ।। ऊ ल िस ल यै नमः ।।
इस साधना की मूलश त माँ भगवती महाल मी है Om Shreem Hreem Kleem Shreem
और जहां कवल महाल मी साधना स प करने से साधक Siddha Lakshmayae Namah
को धन, ऐ वय की ा त होती है वह महाल मी को आधार मं जप क उपरा त भगवती महाल मी की आरती
बनाते हुये इन िदवस पर भा योदय साधना स प करने से कर और ाथना पूवक अपने थान को छोड। उस स पूण
उसे सविविध सौभा य ा त होता है। एक कार से िदवस पूजन साम ी को थािपत रहने द लेिकन यान रख
महाल मी अपने एक हजार आठ विणत व प क साथ िक चूहे आिद पूजा थान को अ यव थत न कर।
पूण कपालु हो जाती है और िवशेष यं क मा यम से िवशेष सायं काल गोधूिल क प चा उपरो त मं की एक माला जप
ि या क ारा उनको िचर थािय व िदया जा सकता है, पुनः कर तथा सौभा य शंख पर चढ़ाये गये चावल अथवा
िजससे साधक क जीवन म कदम-कदम पर बाधाये और पु प की पंखुिड़य को िकसी रेशमी कपड़ म बांध ल जो
अड़चने न आय।े आपक जीवन म थायी सौभा य क प म िव मान रहगे।
साधक को चािहये िक साधना स प करने क सौभा य शंख एवं कमलग की माला को अगले िदन ातः
िलये समय से बहुत पहले ही सचेत होकर इस साधना की िवसिजत कर द और ीयं को िकसी भी पिव थान पर
थािपत कर द। सौभा य ा त की यह िवशेष िस सफल
साम ी को ा त कर ल, य िक यह अवसर ऐसा िविश ट
साधना िकसी भी आयु वग का कोई भी साधक या सािधका
अवसर है जो वष म कवल एक बार ही घिटत होता है। अ य
स प कर सकती है।
साधनाये तो िक ह भी शुभ िदवस या न म की जा सकती
है िक तु भा योदय की यह साधना तो कवल िन चत िसि साधना साम ी यौ 800/- व दी ा य 2700/-
िदवस पर ही स प की जा सकती है।
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deZgh thou gS

यिद कोई य त फल की ा त क ित ही आस त होता है,


तो िन चत जािनये वह दुःख क माग पर चलता है।
स पूण दृ य जगत पर नजर डालते ही जीवन क कमयोग है। कमफल क ित आस त दूर करने क िलये
सम ेय और ेय पी दो िवरोधी माग की पगडिडयां प ट ीक ण का उपदेश है िक हे अजुन! तु हारा अिधकार कवल
झलकती है। ेय माग अपे ाकत सहज, सरल, सुगम और कम करने तक ही सीिमत है। फल सवथा तु हारे साम य से
भौितक दृ ट से आकषक तीत होता है। प रणाम म दु:खद परे की व तु है। गीता क इस िद य उपदेश म अनास त का
होने पर भी सामा यजन इसी का अनुसरण करते हुये घोर दुःख े ठतम ान िनिहत है। कता का संबंध कवल कम से ही है।
को ा त होते ह। ेय माग का अनुसरण करने वाले साधक कमफल क ित आस त एक तरह से लोभ का ही दूसरा प
िवरले होते ह। सधे मन वाले ही इस पथ का चयन कर पाते ह। है, जो कदािप उिचत नह है।
आिदकाल से ही भारतीय मनीिषय ने मो - ा त क ल य को कषक का अिधकार अपने े म प र म करने
सव प र मानकर ान, कम और भ त को मो ा त साधन तथा मनोनुकल बीज बोने तक सीिमत है। इ छानुकल फल
क प म वीकार िकया है। ा त का भाव अपने मन म न आने द, य िक फल ा त
ीम ागवत म अपने अंतरंग िम उ व को समझाते हुये कवल हमारे म पर ही िनभर न होकर दैिनक तथा भौितक
भगवान ीक ण ने तीन योग का वणन करते हुये कहा है िक श तय से संचािलत होती है। फल ा त का इ छक य त
ान, भ त, कम ही मानव क याण क साधन ह। अ य कोई अपने अभी ट की िसि म िवलंब या िवफलता देखकर काय
और साधन नह है। माया से उ प हुये स पूण गुण ही गुण िवमुख हो सकता है। अनेक साधक अपने कत य कम को दुःख
होते ह ऐसा मानकर मन, इंि य और शरीर ारा होने वाली समझकर उसका याग करने को त पर हो जाते ह। भगवान
स पूण ि या म कता क अिभमान से रिहत होकर सव यापी ीक ण ने अजुन से कहा िक तु ह कमफल का लोभ नह
सि दानंद म एकाकार थर रहने का नाम ान योग है। कम करना है, अिपतु िन काम भाव से कमठ बने रहना है।
योग-फल और आस त को यागकर, भगवान- ीम गव गीता क तृतीय अ याय म वे अजुन को
आ ानुसार कवल समथ बुि से कम करने का नाम िन काम कमयोग की दी ा देते ह िक मानव वभावतः दो कार की

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थित का होता है, अतंमुखी और बिहमुखी। अंतमुखी ितभा क मताये बड़ी िवल ण ह, पर जब वह कम करेगा तब ही
य त बा संसार से तथा भौितक सुख से िवर त रहते हुये मताये बाहर आयेगी। कम करने से ही म त क म
अपनी अंतरा मा क स यक िवकास क िलये य शील रहते रचना मक िवचार आते ह। िव व की जो भी गित हुई है कम
ह। इसी को ान योग िनवृि माग या सं यास िनवृि माग करने से ही हुई है, पर कम न करने वाले अपने जीवन की
कहते ह। बिहमुखी ितभा का य त भौितकता म आस त बहुमू य मता को यथ जाने देते ह और भा यवादी होकर
होकर िविवध सास ं ा रक काय म िल त रहता है, इसी को वृि अपने प रवार, समाज एवं रा को उस उपल ध से वंिचत
माग या कमयोगी कहते ह। यथाथ म ये दोन माग एक दूसरे क कर देते ह, जो वे दे सकते थे।
पूरक ह, य िक कोई भी मनु य न पूणतया अंतमुखी हो सकता तुलसीदास ने उिचत ही कहा है िक ‘कायर पु ष
है और न ही पूणतया बिहमुखी। भा य क सहारे बैठ रहते ह जबिक पु षाथ दुिनया बदल देते
भगवान ीक ण क अनुसार िन काम कम ान की ह।’ भगवान बु कहते ह, ‘‘पर अकम य य त जो करता
अपे ा ेय कर होने क साथ सरल भी है, य िक कम याग है वह िबना िकये ही रहता है। वह न नया कछ कर सकता है
कहने म िजतना सरल है, यवहार म उतना ही िवकट और और जो पहले से ा त होता है वह भी न ट हो जाता है।’’
असंभव सा तीत होता है। कोई य त णभर क िलये भी कम अकम य क पास काम न करने क कई बहाने होते ह, जैसे मेरे
िकये िबना नह रह िलये हर काम
सकता। कित क बहुत बड़ा है या
वाभािवक गुण से छोटा है। अभी
िववश होकर येक बहुत ज दी है या
को कछ न कछ कम अब बहुत देर हो
करना ही पड़ता है। गई है आिद। उसे
जीवन क रहते हुये चािहये िक
कम से बचना त काल आल य
असंभव है। और हीन भावना
- कम िबना मु त याग दे। अपना
नह ! ान और साम य
हमारे उपिनषद की बढ़ाते हुये
िव ा ‘स य’ की िनः वाथ भाव से
ा त क साथ-साथ जीवनपयत कम
यावहा रक ान का करते रहना
भी उपयोगी कोष है। ये हम जीवन को ितपल जीना िसखाते ह। चािहये। इसी म
उदाहरण क िलये ईशोपिनषद क इस मं को ल- जीवन की सफलता है।
कव ेवेह कमािण िजजीिवषेत शतं समा। एक बार एक वृ पेड़ लगा रहा था। राजा क यह
एवं विय ना यथेतोऽ त न कम िल यते नरे।। कहने पर िक इसम फल िनकलने तक तो तुम जीिवत ही नह
अथात कम करते हुये ही सौ वष क जीवन की कामना करनी रहोगे, वृ ने कहा िक ''मेरा काम कम करते रहना है फल
चािहये। िबना कम क एक िदन भी जीना वांछनीय नह है। िकसी न िकसी को अव य खाने को िमलगे।'' िनर तर कम
मनु य जब अपने कत य को िनः वाथ भाव से करता है तब करने वाला सूय क समान है, जो िबना मांगे सबको काश देता
उसे कोई दोष नह होता और न कम क शुभ या अशुभ फल है। जब मनु य समय पर अपने कत य करते रहते ह तब
उसे बंधन म डालते ह। जो ण बीत जाता है वह वापस नह समाज की यव था सुचा प से चलती है। सभी की उ ित
आता। अतः येक ण को बहुमू य मानकर े ठ कम से होती है। सभी स प होते ह एवं रा समृ होता है। गीता क
उसका सदुपयोग करना चािहये। आदेशानुसार, अकम यता से दूर रहते हुये कम पी ा त
अिधकार का योग करते हुये अपना एवं समाज का क याण
कम से ही प रवार, समाज एवं रा बनते ह, समृ करते रहना चािहये।
होते ह। कम से मनु य व थ, समृ एवं लोकि य बनता है
और स मान पाता है। अकम य का अपना प रवार ही अनादर
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करता है। कम करता हुआ मनु य और को भी कम करने की 'kksHkk Jhekyh
ेरणा देता है। मनु य ई वर की ित-कित कहा गया है िजसकी

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जीवन साफ य िसि दा


रोग शोक शमनः महारौ य बक चेतना
तुत है एक अचूक रोग शोक शमन योग िजसे जहां िशव ह वहां िसि है, जहां िशव ह वहां न
स प कर जीवन म पूण वा य ा त िकया जा सकता है। कोई रोग है, न शोक, न िवपि , न मृ यु भय, न बीमारी, न
जो रोग अ य मा यम से भी समा त नह हो पा रहे ह उ ह ह दोष, न रा य बाधा। साधना क े म ऐसा कोई य त
अचूक योग ारा जड़ से िमटाया जा सकता है। इस नह होगा जो िशव की साधना न करता हो, चाहे वह सं यासी
सारगिभत िवशेष योग से पाठक को लाभ अव य उठाना हो अथवा गृह थ। भगवान य बक जो देव क देव
चािहय।े कहे जाते ह, उनकी कपा िबना िसि असंभव है।

tqykbZ 2023 www.pmyv.net PMY V 13


भगवान भोलेनाथ अपनी कपा का अ य भ डार ऊ नमो भगवते वल वालामािलने ऊ िशरः वतं
अपने भ त पर लुटाते रहते ह, शी स हो कर भ त श तधा े वामदेवा मने अनािमका यां नमः।
को वर देते ह और यिद भ त संकट क समय उ ह मरण भी ऊ नमो भगवते वल वालामािलने ऊ वां र अतुलश त
कर लेता है तो उसका संकट दूर हो जाता है। धा े स ाजाता मने किन ठका यां नमः।
आगे की पं तय म िशव और श त दोन का ऊ नमो भगवते वल वालामािलने ऊ यं रं अनािद
स मिलत एक ऐसा िशव कवच िदया जा रहा है, जो िक सभी श तधा े सवा मने करतल-कर पृ ठा यां नमः।
कार की िवपि य क नाश और अकाल मृ यु-भय से यान
छटकारा िदलाने म समथ है। िकतना भी भयंकर रोग हो, यिद व ंद ि नयनं काल क ठम र दम ।
इस य बक कवच का पाठ कर जल रोगी को िपला िदया सह करम यु ं व दे श भुमुमापित ।।
जाये तो उसे अव य ही आराम ा त होता है। अथापरं सवपुराणगु मशेषपापोधहरं पिव ।
िवधान जय दंसविवप मोचनं व यािमशैवं कवचं िहतायते।।
अपने सामने सु दर िशव-िच तथा भगवती दुगा का िच मूल मं
थािपत कर एक ता पा म िशव य बक ऊ नमो भगवते सदािशवाय सकल त वा मकाय सव मं
महामृ युंजय यं थािपत कर शु घी का दीपक पाय सवय ािधिठताय सव त पाय सवत व िवदूराय
विलत कर। इस साधना म अपने पास जैसा भी िशविलंग ावता रणे नीलक ठाय पावती मनोहर ि याय सोम
हो, उसे भी अव य थािपत कर देना चािहये तथा हाथ म जल सूयाि लोचनाय भ मो लसत िव हाय महामिण मुकट
लेकर चार ओर घेरा बना लेना चािहय।े अब ा माला से धारणाय मािण य भूषणाय सृ ट थत लय काल
िशव का यान कर एक माला ‘ऊ नमः िशवाय’ मं का जप रौ ावताराय द ा वर वंसकाय महाकाल भेदनाय
कर त प चा हाथ म जल लेकर नीचे िलखा िविनयोग मं व मूलाधारैक नीलकाय, त वातीताय, गंगाधराय
यास तथा यान कर और उसी थान पर बैठ-बैठ एक माला सवदेवािधदेवाय षडा याय वेदा त साराय।
मूल मं का जप अव य कर, इसम समय अव य लगेगा सवतो र र मामु वलो वल, महामृ युभयं मृ युभयं
लेिकन मं जप पूण प से अव य करना है। नाशय नाशय, अ रभयमृ सादयो सादय िवषसवभयं शमय-
इस योग को िकसी भी सोमवार से अथवा पु य शमय, चौरा मारय मारय, मम श ूनु ाटयो ाटय,
न से ार भ िकया जा सकता है। ितिदन एक माला मं ि शूलेन िवदारय िवदारय, कठारेण िभ ध िभ ध, ख गेन
अनु ठान स प करते हुये 11 िदन िनरंतर यह योग िछ द िछ द।
करना है तथा पूजा थान म यं क आगे जो कलश जल से
भर कर रख वह जल हण कर ल तथा दूध का नैवे और ख वांगेनिवपोथय िवपोथय मूसलेन िन पेषय िनषनेषय,
फल पूजा साद व प हण कर। वाणैः स ताडय स ताडय र ांिस भीषय भीषय, अशेष
पूरे 11 िदन यह योग करते हुये एक समय भोजन कर। भूतािन िव ावय िव ावय, क मा ड वेताल, मारीगण,
िविनयोग रा सगणा स ासय स ासय, ममांभयं क क
अ य ी िशवकवच तो मं य िब तंमामा वासया वासय, नरकमहाभया मामु रो र
ऋिषः अनु ट छ दः। संजीवय संजीवय, ुतृड या मामान दयान दय।
ी सदािशव ो देवता श तः रं कीलक। िशव- कवचेन मामा छादय छादय मृ युंजयं यं बक
ी ल बीज । ी सदािशव ी यथ सदािशव नम ते।।
िशवकवच तो जपे िविनयोगः। िशव साधना का यह योग मं यिद ितिदन पांच
बार जप िकया जाये तो रोग तथा शोक साधक क पास फटक
यास
ही नह सकते। भगवान िशव की कपा से साधक अपने माग
ऊ नमो भगवते वल वालामािलने ऊ रां सवश त म आने वाली िवपि य को सरलता से दूर कर जीवन म पूण
धा े ईशाना मने अंगु ठा यां नमः। िशव व की ओर अ सर होता है तथा पूरे प रवार को सुख,
ऊ नमो भगवते वल वालामािलने ऊ ल सवश त सौभा य एवं शांित ा त होती है।
धा े वाय या मने तजनी यां नमः। साम ी यौ. 900/- व दी ा यौ. 2600/-
ऊ नमो भगवते वल वालामािलने ऊ मं
अनािदश त धा े अघोरा मने म यमा यां नमः।

PMY V 14 GurudevKailash tqykbZ 2023


या है शांित-कम?
शांित श द ‘श ’ धातु से बना है। िजसक अनेक परा दुःख व यं सुव।
अथ ह, जैसे- बुरा भाव हटाना, शमन करना, स िव वािन देव सिवतदु रतािन परा सुव।
होना, दूर करना आिद वेद म श धातु तथा इसक प य भ ं त आ सुव।।
अनेक थान पर यु त हुये ह िजनका अथ सुख, क याण, (ऋ वेद)
वा य या धन आिद से लगाया जाता है। अथव वेद म शांित अथा हे सिवता देव ! आज संतित से यु त क याण
श द 17 बार आया है। इसक मं म देव , ह , उ कापात , हमारे िलये उ प करो। हे सिवता देव! सभी पाप को दूर
न , राहु, धूमकतु, ऋिषय आिद की तुितयां सुख देने क करो तथा हम वह दो जो शुभ हो।
िलये की गयी ह। इन शांित-मं म यह ाथना की गयी है िक वैिदक शांितकम क िवषय म शांखायनगृ सू म
सम त दा ण, र, अशुभ और बुरे भाव दूर होकर शुभ, वणन है िक यिद कोई रोग त हो जाये तो उसे ऋ वेद क
स और सुख द ह । इसक अित र त तै रीय संिहता, मं , जो की तुित म कहे गये ह, क साथ अ की
वाजसनेयी, संिहता, शतपथ ा ण आिद अनक ंथ म आहुितयां देनी चािहय।े यिद घर म मधुम खयां छ ा बना ल
शांित-कम का उ लेख हुआ है। इससे यह प ट होता है िक तो 108 उदु बर टकड़ को दही, मधु एवं घी से यु त करक
शांित-कम का वैिदक संिहता म बहुत मह व है। य करना चािहय।े िकसी भी कार का दुः व देखने पर
ऋ वेद म कछ ऐसी अशुभ घटना का उ लेख िमलता है उपवास करक खीर की आहुितयां अि म देनी चािहय,े उसे
िज ह दूर करने क िलये य ारा देव को स या शांत राि सू त का पाठ करक ा ण को भोजन, दि णा आिद
करने की बात कही गयी है, यथा- देनी चािहय,े ऐसा करने से व का दु भाव समा त हो
अ ा नो देव सिवतः जाव सावीः सौभग । जाता है।
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अनेक ंथ म इस तरह क अनेक उ लेख ा त आंिगरसी शांित हािथय क िवकत होने पर तथा नैऋती
होते ह िजनसे प ट होता है िक शांितकम का योग न कवल िपशाच का भय होने पर की जाती है। या या मृ यु या
देव या श तय को शांत करने क िलय,े वर दुः व होने पर तथा कौबेरी धन की हािन म की जाती है।
दुः व , सूय-च - हण , पशु- पि य की अशुभ वृ की असामा य दशा पायी जाने पर पािथवी शांित और
बोिलयां आिद की शांित क िलये भी िकया जाता था। ये ठा एवं अनुराधा न म होने वाले उ पात क िलये
ऐ ी शांित की जाती है।
वैिदक काल क बाद म य काल म भी शांित-कम
का बड़ा मह व रहा। इस समय सूय आिद ह को स वेद म विणत अिधकांश शांित-कम वतमान म देखने म नह
करने क िलय,े शनै चर- त एवं शांित, पांच या अिधक ह आते, परंतु कछ शांितयां आज भी चिलत है, जैसे- गणपित-
क अशुभ योग , ह ान, वर या अ य रोग, न - पूजन या िवनायक शांित, व तु शांित, नव ह शांित,
शांित, नवजात िशशु क ज म क समय उ ह क िलय,े ािभषेक या लघु , मूल शांित, शतच डी या लखच डी
अशुभ योग या करणािद होने पर की जाने वाली, गिभणी क पाठ आिद। आज भी गांव-देहात म भा पद म गाय, माघ म
ूण की र ा हेतु, सरलता पूवक सव हेत,ु देव, िपतर , भस, वैशाख म ऊटनी, मागशीष म हिथनी, ये ठ म िब ली
देव आिद को स करने क िलय,े दु ट आ मा ारा तथा ावण म घोड़ी क ब ा होने पर अशुभ समझा जाता है
पकड़ जाने पर, पि य क मैथुनरत देखने पर, शरीर पर और इसकी शांित की जाती है। साथ ही, शरीर क िकसी अंग
िछपकली या िगरिगट िगरने पर, भूचाल, सं ांित एवं हण पर िछपकली या िगरिगट क िगरने या पश होने पर ान
क समय िकये जाने वाले शांित कम का वणन ा त होता है। िकया जाता है। ाचीन ंथ म उ लेख है िक ऐसा होने पर
ान करक पंचग य पीना चािहये तथा िछपकली या िगरिगट
इनक दु भाव को कम करने तथा सुख-शांित क िलये
की ितमा लाल व म लपेट कर दि णा सिहत दान करनी
िविभ पदाथ को िभ -िभ मं क साथ अि म अिपत
चािहय।े
करने क िवधान बताये गये ह। रामायण, महाभारत आिद
ंथ म भी ऐसे उ पात का वणन है जो अशुभ घटना क गणपित-पूजा तो आज भी िववाह एवं उपनयन-सं कार
सूचक होते थे। सिहत लगभग सभी काय क ारंभ म की जाती है। ाड
पुराण म वणन है िक गभाधान से लेकर जातकम आिद
म य पुराण, वराह पुराण, िव णु पुराण आिद म
सं कार , या ा, यापार, यु काल, देव-पूजा, संकट तथा
िविभ नाम वाली शांितय का उ लेख है। म य पुराण म
इ छा की िसि म गणपित की पूजा अव य की जानी
विणत मुख 18 शांितयां इस कार ह- अभय शांित तब की
चािहय।े इसी कार, िकसी ह क दोषयु त होने पर उस
जाती है जब राजा श ु से िघरा हो और वह िवजयी होना
ह से संबंिधत मं आिद से भी शांित की जाती है। ंथ म
चाहता हो। सौ य शांित तब की जाती है जब राजरोग हो
नव ह से संबंिधत मं , सिमधा तथा पूजन म काम आने
जाता है। वै णवी शांित की यव था भूकप, दुिभ ,
वाली िभ -िभ व तु का उ लेख ा त होता है िजनक
अितवृ ट आिद क समय की जाती है। रौ ी का योग
योग से उस ह की अनुकलता ा त होती है।
महामारी या भूत- ेत ारा बाधा उप थत होने पर िकया
जाता है। ा ी शांित का योग तब िकया जाता है जब इसक अित र त िकसी क असा य रोग िसत होने
ना तकता फलने का भय होता है या जब कपा को पर ािभषेक या महामृ युंजय जप कराया जाता है। इसी
तरह िकसी िवशेष कामना की पूित क िलये दुगा स तशती का
स मान िमलने लगता है। जब ती अंधड़-तूफान चलते ह
एक लाख बार पाठ िकया जाता है। आज भी कह वषा न होने
तब वायवी शांित की जाती है। वा णी शांित असामा य वषा
अथवा कोई ाकितक आपदा आने पर कछ लोग जनिहताथ
होने पर की जाती है। जाप य शांित असामा य जनन होने
पर की जाती है। वा टी शांित हिथयार की असामा य य ािद करते ह। इस कार, मूल प से इन शांितय का
दशा पर तथा कौमारी ब की कशलता क िलये की उ े य सम त दुःख-क ट का िनवारण करक सुख-शांित
जाती है। आ ेयी शांित अि क िलये तथा गा धव प ी या ा त करना ही है।
भृ य क नाश होने पर अथवा अ व क िलये की जाती है।
PMY V 16 info@pmyv.net tqykbZ 2023
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जीवन क िलये अ य त ज री ही नह , आव यक... आव यक ही नह , अिनवाय है यह योग इस िदन....


य िक ऐसा मुहूत, ऐसा योग कई वष बाद आया ह.ै ..

lkseorh vekoL;k lk/kuk


अमाव या को आ या मक एवं िद य अनुभूितय दूसरे म समािहत ह ग,े तो वह िदवस अमृत त व से पूण होगा
क िलये े ठ माना गया है... इस िदन चं , सूय क अ दर और उसका मह व एक िस िदवस क समान होगा।
िवलीन होता है, उसकी तरंग सूय की तरंग म समािहत होती तभी से आज तक सोमवती अमाव या को साधना
ह... च मा मन का देवता है एवं सूय आ मा का, अतः क िलये सव े ठ माना गया है, य िक इस िदन की जाने
अमाव या का अथ ही है ‘मन’ अथा ‘अह’ं का आ मा वाली साधना असफल नह होती... उसका सु भाव हर
अथा परमा मा म लीन होना... और इस थित म हालत म िमलता ही हे।
अमाव या आ या मक अनुभव क िलये अ यिधक े ठ वैसे तो सोमवती अमाव या सौभा य ा त करने का
है... और अगर अमाव या क साथ-साथ इसम अमृत त व िदवस है। सौभा य का अथ होता है- वे सम त उपल धयां,
का भी समावेश हो जाय,े तो इस िदन की गई साधना फलीभूत िज ह ा त कर हम अपने जीवन को आन दत और
होती ही है और िफर इससे उ म थित अ य हो ही नह तरंिगत बना सक। अतः इस अवसर पर उ कोिट क
सकती... ऐसी ही थित रहती है ‘सोमवती अमाव या’ को सं यािसय से ा त योग िदया जा रहे ह,िजसको स प
जो इस बार 17 जुलाई को है। कर लेने से य त हर कार की बाधा से मु त होकर
इसका ादुभा िकस कार से हुआ इस िवषय म सफलता की ओर ती गित से अ सर हो जाता है। ये योग
‘कम पुराण’ म एक रोचक कथा आती ह.ै .. जब आप सोमवती अमाव या को अव य ही स प कर, य िक
कमावतार, िव णु की पीठ पर मंदराचल पवत रखा गया यह एक अ य त दुलभ अवसर आया है, जब-
और वह थर नह हो रहा था, तो एक ओर से सूय ने और सोमोव या मघा चैव िसंह रा ये गतं शिशः।
दूसरी ओर से च ने सहारा देकर उसे संभाल िलया। समु दुलभ दुलभो योग ा य वं े ठतव नरः।।
मंथन क बाद कमावतार ने उन दोन को आशीवाद िदया और अथा ‘सोमवती अमाव या क अवसर पर यिद मघा न हो
कहा- ‘‘िजस कार से तुम दोन ने िमलकर लोकिहत क और िसंह रािश पर च हो, तो ऐसा योग दुलभ ही नह ,
िलये यह काय िकया है, उसी कार जब कभी तुम दोन एक-
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दुलभतम है और येक साधक को इस योग का उपयोग कर व तक िच ह बनाकर उ छ ट गणपित यं को थािपत
लेना चािहय।े’ कर।
िकसी कारणवश इस अवसर को चूक जाने पर इस दोन हाथ जोड़कर ाथना कर-
योग को िकसी भी माह की अमाव या को स प िकया जा ऊ गजाननं भूतगणािधसेिवतं किप थ
सकता है, िक तु, सोमवती अमाव या को ये योग स प ज बू फलचा भ णं।
करना े ठ है। उमासुतं शोकिवनाशकारक नमािम
तं दोष बाधा िनवारण योग िव े वर पाद पं डजम।।
िकसी घर या िकसी य त क ऊपर जब भी तं िफर िन मं का उ ारण करते हुये पूजन कर-
बाधा या योग होता है, तो उस य त क जीवन म
सवनाशकीय दशा सामने आती है। उससे भािवत य त ऊ गं मंगलमूतये नमः ानं समपयािम।
चाहे वह लखपित या करोड़पित ही य न हो दीन-हीन और ऊ गं एकद ताय नमः ितलक समपयािम।
द र बन जाता है। घर म तनाव, कलह, िववाद और ऊ गं सुमुखाय नमः अ तान समपयािम।
अशांित का वातावरण बना रहता है। मान- ित ठा, यश सभी ऊ गं ल बोदराय नमः धूपं दीपं आ ापयािम, दशयािम।
धूल म िमल जाती है। आज क युग म आप क व थ जीवन ऊ गं िव नाशाय नमः पु पं समपयािम।
से ई या करने वाले श ,ु िम या आस-पास क रहने वाले इसक बाद अ त और ककम िमलाकर िन मं
लोग कभी भी थोड़ से मन-मुटाव को कारण बना कर आप बोलते हुये यं पर चढाय-े
पर तं योग कर सकते ह। ये तांि क योग आप क जीवन ऊ लं नम ते नमः। ऊ वमेव त वमिस।
को तहस-नहस कर देने क िलये पया त होते ह और आपका ऊ वमेव कवलं क ािस। ऊ वमेव कवलं भतािस।
हंसता-खेलता जीवन बबाद होकर रह जाता है। ऊ वमेव कवलं हतािस। ऊ गणािधपतये नमः।
इसक िनवारण क िलये आप यह योग कर। इस एक आचमनी जल यं पर चढाय।े
योग क मा यम से आप तं बाधा से बच सकते ह। गणपित पूजन क बाद िन मं का मूंगा माला से 5 माला
आप ातः ान आिद िन य ि या क बाद अपने मं जप 11 िदन तक िनयिमत प से कर-
पूजा थान म पूव या उ र की ओर मुख करक बैठ। धूप और
दीप जला ल। अपने सामने पंचपा म जल भी ले ल। इन सभी मं
सामि य को आप चौकी पर रख िजस पर लाल व िबछा ।। ऊ गं हुं तं बाधा िनवारणाय गणेशाय वाहा ।।
हुआ हो। पहले ान, ितलक, अ त, धप, दीप, पु प आिद Om Gam Hum Tantra Badha Nivaranaya
से गु िच का संि त पूजन कर। उसक बाद गु मं की Shreem Ganeshaya Swaha
दो माला मं जप कर। योग समा त क बाद यं और माला को लाल व
गणपित पूजन म बांधकर िकसी नदी या तालाब म िवसिजत कर द।
िफर गु िच क सामने िकसी लेट पर ककम या कसर से साम ी यौ 600/- व दी ा यौ 2100/-

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भगवान िव णु का आशीवाद- पु षो म मास


जो साधना का सव े ठ क प है!
येक तीन वष क अंतराल म पड़ने वाले अिधक मास क संबंध म अ यिधक ांितयां फली हुई ह। इसे मल
मास अथवा अशु मास भी कहा जाने लगा। लेिकन वा तव म यह मास सूय, च एवं पृ वी की गित क संयोजन का
काल है और मनु य देह को पृ वी व प माना गया है, सूय तेज वता और खर य त व का व प है तथा च मा
जीवन म मन, मधुरता, आन द, शीतलता, भावना का व प है, इन त व का जीवन म सही समायोजन होने से ही
पु ष से पु षो म बनने की ि या ार भ होती है।
हर तीन वष क अंतराल म पड़ने वाले अित र त भय की भावना उ प कर पूजा दान इ यािद पर बल िदया
माह को शा म ‘पु षो म मास’ तथा अिधक मास कहा जाने लगा। इस मास म शुभ काय हो सकता है, इस मास म
गया है। काला तर म इसे ‘मल मास’ अथवा अशु मास शुभ काय नह हो सकता, इस मास म दान िवशेष करना
या ‘मिलमाछ’ क प म चा रत कर िदया गया। यह कहा चािहए।
जाने लगा िक इस मास म कोई शुभ, मांगिलक, िववाह, इस कार की कई ंितयां फलती गई और जब
गृह वेश, भवन िनमाण इ यािद नह हो सकते ह। शा धम म भय क आधार पर कोई काय होता है तो मनु य वह
क अनुसार इसे पु षो म मास कहा गया है और काय अपनी इ छा से नह करता। वह उसे एक प रपाटी
पु षो म भगवान िव णु का व प है। इस मास म दान, मानकर स प करने का यास करता है और जब िबना
धम, तीथ या ा, उपासना का िवशेष मह व है। वा तव म भावना क मनःश त क अभाव म काय िकया जाता है तो
यह तो िव णु और ल मी की साधना करने का उ म मास वह पूजा साधना भी सफल नह होती।
है। यादातर िवधान म यह वणन आता है िक अमुक
ाचीन शा िवलु त होते जा रहे ह और उनक पूजा नह करोगे तो देवता नाराज हो जायगे। यह बात
थान पर एक पीढ़ी ारा दूसरी पीढ़ी का कही गई बात को सुनने म ही िविच लगती है। देवता का काय मनु य क
आधार माना जाने लगा है। िपछले पांच-छः सौ वष म शा जीवन म उ ित देना है, मनु य शरीर म देवता का
की ओर यान ना देकर लोक कथा क प म जो िनवास है और कोई टोना-टोटका पी पूजा नह की गई तो
प रपाटी चली आ रही है उस पर यादा यान िदया जाने देवता, ई वर कसे नाराज हो सकते ह?
लगा तथा अ ान से यु त तथाकिथत पिड़त ने जो कह िजस कार हर िदन सूय उदय होता है उसी
िदया वही सामािजक स य माना जाने लगा। हमारे अनुभव कार हमारे जीवन म भी येक िदन एक नया अ याय
म यह आया है िक िपछले पांच-छः सौ वष म िह दू धम म ार भ होता है। येक िदन काय करने क िलये शुभ है,
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हमारे भीतर भावना ती एवं बलवती होनी चािहये िजससे वष म 365.2422 िदन होते ह। इस कार ित च वष
हम जीवन म िनर तर िनमाण की ओर अ सर हो सक। एवं सूय वष क बीच करीब 10.79 िदन का अंतर होता है।
यही स गु देव जी का आशीवाद है। इसीिलये इस अंतर को पूण करने क िलये करीब 32-33
अिधक मास योितषीय िववेचन महीन म ऋिषय ने एक अित र त मास की गणना की और
भारतीय योितष शा म चं पंचांग की मुखता वह अिधक मास कहलाता है।
है और चं पंचांग म हर तीन वष म एक मास अिधक हो अिधक मास की धािमक िवशेषता
जाता है। िजस कार च मास म अिधक मास होता है महिष हमाि क अनुसार अिधक मास म वह
उसी कार चं मास म कई बार एक मास कम भी हो जाता मता होती है िक मनु य उस समय पूजा, साधना, तप या
है। िजसम कवल 11 महीने ही होते ह। लेिकन ऐसा चं वष इ यािद स प कर अपने पूव ज म कत दोष का
िजसम कवल 11 महीने ह अपने आप म अनोखी घटना िनवारण कर सकता है तथा दान, दया, याग, तप इ यािद
की जाती है यह घटना कही जाती है यह घटना 140 साल म ारा जीवन म शारी रक एवं मानिसक शु ता ला सकता
अथवा 190 वष म एक बार घिटत होती है। लेिकन अिधक है। पुराण म विणत एक कथा क अनुसार राजा नहुष ने
मास हर तीसरे वष आ जाता है य िक सामा यतः 12 मल मास म साधना स प की िजससे वे सभी थितय से
महीन से एक मास बढ़ जाता है। इसिलये इसे अिधक मास मु त हो गये और देवता क अिधपित इ का िसंहासन
कहा जाता है। ा त कर िलया।
योितष शा क अनुसार िजस मास म सूय देवी भागवत क अनुसार मल मास म िविश ट
सं ा त नह आती वह मास अिधक बन जाता है। विश ट पूजा, धािमक काय, साधना इ यािद करने से िवशेष फल
िस ांत म प ट िकया गया है िक अिधक मास येक 32 ा त होता ही है। देवी भागवत म तो यहां तक िलखा है िक
महीने 16 िदन 11 घटी (1 घटी- 24 िमनट क बराबर िजस कार एक अणु िजतना बीज एक िवशाल वृ को
तथा 60 घटी 24 घंट क बराबर होती है।) से ार भ होता बना सकता है उसी कार अिधक मास म िकये गये थोड़
है। सूय िव ान क िस ा त क अनुसार येक सूय वष शुभ काय पूजा साधना भी महा फल देते ह। जैसा िक
365 िदन और 6 घंट का होता है और चं वष 354 िदन ऊपर िलखा है िक अिधक मास को पु षो म मास भी कहा
का होता है। इसका सीधा ता पय यह है िक हमारी पृ वी जाता है। इस स ब ध म भी पुराण म एक अ य त सु दर
365 िदन और 6 िमनट म सूय की 1 प र मा पूरी कर कथा आती है।
लेती है। इस कार सूय वष और चं वष म 11 िदन 1 घंटा च वष क अनुसार येक वष म 12 महीने
31 िमनट 12 सैक ड का अंतर होता है। ित वष यह
होते ह तथा येक महीना एक देव को समिपत है। लेिकन
अंतर बढ़ता जाता है और इस कार करीब 3 वष म चं वष और सूय वष की आपस म गित क संयोजन ना
(32-33 महीन)े म एक महीने क बराबर हो जाता है। होने क कारण से ऋिष मुिनय ने गणना की और एक
यह तो सब जानते ह िक चं मा पृ वी की प र मा अिधक मास का िनमाण िकया। येक महीने क एक
करता है तथा पृ वी की प र मा 27.3 िदन म पूरी करता अिधपित ा ने िन चत कर िलये। लेिकन अिधक मास
है। पृ वी 29.79 िक.मी. ित सैक ड की गित से चलती को कोई देव वरण करने हेतु तैयार नह हुआ य िक यह
हुई 365.2422 िदन म सूय की एक प र मा पूण करती हर तीन वष म एक बार आता है। इस पर अिधक मास
ह। पु ष प म दु:खी एवं स त त होकर भगवान िव णु क
चं गित और सूय गित पास पहुंचा और कहा िक मुझे िकसी भी देवता से संयु त
इसका मतलब है िक एक पूिणमा से अगली नह िकया गया है और मल मास, मिलमु छा क नाम से
पूिणमा तक चं मा को 2.2 िदन तक अित र त मण स बोिधत िकया जाता है। इन सब थितय से म अ य त
करना पड़ता है। इसका कारण है िक पृ वी अपनी व दु:खी और संत त हूं तथा आपकी शरण म आया हूं। आप
क ा म सूय क चार तरफ च कर लगाती है। च मा धरती ही जगत क पालक और सृ ट को चलाने वाले ह। आपसे
क चार तरफ एक पूण क ा मण 27.3 िदनो म करता िनवेदन है िक मेरे िलये कछ उिचत यव था कर।
है। पर तु धरती और सूय क साथ सीधी रेखा म आकर पूण इस थित को देख कर भगवान िव णु को बहुत
च मा बनाने क िलये चं मा को 29.531 िदन लगते ह। दया आई और कहा िक आज से अिधक मास का अिधपित
एक च महीने म 29.531 िदन होते ह िजससे 12 म वयं होऊगा और यह मास पु षो म मास कहा
महीन क च वष म 354.372 िदन होते ह। जबिक सूय जायेगा। इस मास की िवशेषता अ य सभी महीन से अिधक
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होगी। तथा इस मास म अ छ काय स प कर िवशेष भोजन, दूध, फल, वन पि य , फलाहार, ना रयल
िसि ा त की जा सकगी। पु षो म मास क स ब ध म इ यािद का सेवन करना चािहय।े
तो एक पूरा ंथ ही िलखा गया है िजसे पु षो म ंथ कहा भिव यो र पुराण म िलखा है िक भगवान ीक ण
जाता है िजसम इस माह की िवशेष या या धािमक, वयं कहते ह िक अिधक मास म कवल भगव साधना
आ या मक मह व का िववेचन िकया गया है। करने क उ े य से की साधना से लौिकक एवं
भिव यो र पुराण म यह िववेचन आया है िक परालौिकक दोन ही फल ा त होते ह। मनु य अपने
पु षो म मास म उपवास अथवा त शु ल प क थम जीवन म लौिकक दृ ट से िवशेष सफलता ा त करता है
िदन ार भ करना चािहये और क ण प क अ तम िदन तथा अपघात, दुघटना, आक मक मृ यु, दुःख, िचंता,
इसे पूण करना चािहय।े दुभा य का िनवारण होता है।
पुराण म तो अिधक मास क बारे म अ यिधक िव तार से जैसा िक इस बार ावण प म मास 19 वष क
िववेचन आया है। पुराण म िलखा है िक अिधक मास म पूजा बाद आया है। इस मास म साधक ारा ल मी पूजा, िव णु
करने से, मं जप करने से, इ छा रिहत शु भाव से पूजा, क ण पूजा अव य ही स प की जानी चािहय।े
ि या करने से, े ठ ंथ का अ ययन करने से फल िवशेष- ांित एक ऐसा त व है जो मनु य क जीवन म
ा त अव य ही होती है। अिधक मास िव णु एवं ल मी की त काल भाव डालती है और इ ह ा तय क कारण
पूजा का मास है। इस मास म मुहूत म उठ कर राधा मनु य ने मलमास को अनुिचत मान िलया है वा तव म तो
क ण, ल मी-नारायण का षोडशोपचार पूजन स प यह ह की गित का सामंज य है तथा चं मास है। अतः
करना चािहय।े यिद नजदीक म कोई मंिदर है तो वहां इस मास का लाभ अिधक से अिधक उठाय। और अपने
जाकर िविभ देवता की पूजा साधना अव य स प जीवन को उ ित क पथ पर अ सर कर।
करनी चािहय।े अिधक मास म सा वक भोजन, शाकाहारी

पूण पौ षता कामदेव श त दी ा


मनु य की दूिषत मनोवृितयां ही पु ष व क ास का कारण बनती है, िजसे वे संकोचवश कह भी नह पाते, िक तु
पु ष व ा त करने क िलये यासरत भी रहते ह। ‘पु ष’ और ‘पौ ष’ दोन श द एक-दूसरे क पयाय है। जब तक
मनु य म पु ष व नह होगा, ेम, सौ दय, माधुय आिद गुण नह ह गे, तब तक वह पूण पु ष बन ही नह सकता।
मनु य बा प से तो सौ दय की िवषय-व तु होता ही है, िक तु जब वैसा सौ दय, म ती, उमंग, जोश,
दमखम आंत रक प से न हो, तो य त को सोचने क िलये मजबूर होना ही पड़ता है। उसक म त क क सैकड़ सवाल
उसे यह िवचारने क िलये मजबूर कर देते ह, िक य ऐसा हो रहा है, आिखर या वजह है िक हमारी आंख म वह चमक,
चेहरे पर वह तेज, आकषण नह है, जो पौ षता की पहचान होती है। फल व प वह मानिसक प से दुबल होता जाता
है, असमय िचड़िचड़ाहट, अकारण ोध जैसे भाव क उ ेिलत होने क कारण वह खुल कर अपनी बात को िकसी से कह
भी नह पाता, उसकी यह वेदना, यह िनराशा क फल व प समय पूव ही चेहरे पर झु रयां, बाल म सफदी आना, चेहरे
पर कोई नूर या ताजगी न होना, न ही िकसी काय करने की इ छा या चेतना का भाव होना यह सब थितयां धीर-े धीरे
जीवन को दीमक की तरह खोखला कर देती है और जीवन िबना िकसी ल य या उ े य क पशुवत प म ही यतीत करता
रहता है। ये सब थितयां एक िदन उसे जीवन-लीला को समा त करने क िलये े रत करने लगती है।
ऐसे म िनराश होने की ज रत नह है, जब आप हर उपाय करक थक जाये और असफलता ही िमले,
साधना मक िच तन से िचंताये समा त होती है और इस दी ा को ा त कर पूण पौ ष व ा त िकया जा सकता है तथा
असमय पड़ गये बूढ़ मन म रस की, आन द की, ेम की भावना को जागृत िकया जा सकता है। शारी रक और आ मक
बल क साथ-साथ जीवन क सभी भोग-िवलास, गृह थ सुख और आन द को जीवन भर क िलये आ मसात िकया जा
सकता है। पूण पौ ष ा त दी ा क मा यम से जीवन अनेक रस से सरोबार हो जाता है। ी हो चाहे पु ष, दोन क िलये
यह एक आव यक त व है, अतः दोन ही इस दी ा क मा यम से पूण सौ दय को ा त कर पौ षवान बन सकते ह।
U;kSNkoj J 2100
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ावण मास
ावणमय िशव श त पारद मुि का
ावण मास क िद यतम पव पर उपहार
हमारे शा म पारद को पूण वशीकरण यु त
पदाथ माना है, यिद िकसी कार से पारद की अंगूठी बन
जाये और कोई य त इसे धारण कर ले, तो यह अपने ° दी ा हण करने हेतु िनदश±
आप म अलौिकक और मह वपूण घटना मानी जाती है। t दी ा हेतु नवीन फोटो भेज।
पारे को वयं ‘िशव’ कहा है और इस पारे से ब यिद t दी ाथ क फोटो पर कु छ न लख।
मुि का का िनमाण िकया जाय और उसे धारण िकया जाय t दी ाथ का नाम व दी ा का नाम
तो उसकी तुलना अ य िकसी भी देवी-देवता या यं आिद अव य लख।
से हो ही नह सकती। t दी ा राशी क बक SLIP भेजना
Diksha
Apr 21, 2023

पारद को रस, िशव, वण, रोगमु तकरण, अिनवाय है।


J x,xxx

अजर, अमर, गगनचारी और रसे कहा गया है,


शा म बताया गया है िक जो य त पारद धारण कर
उसका िन य दशन करता है या उसका भ तभाव से
मरण करता है, वह कई ज म क पाप से छट जाता है
और उसे परम पु य की ा त होती है।
जब पारद मुि का का िनमाण हो जाता है, तब
इसे िवशेष मं से मं िस कर, वशीकरण और
स मोहन मं से स पुिटत िकया जाता है और िफर
चैत य मं से इसे िस िकया जाता है। आज क युग म
यह अलौिकक त य है, यह अि तीय मुि का है, तं क
े म सव प र व तु है, िजससे हमारा जीवन, सहज,
°साम ी ा त करने हेतु िनदश±
सुगम, सरल और भायु त बन जाता है और वतः ही
t साम ी का पूरा नाम लख।
गु की चेतना उस साधक या िश य क दय म समािहत
t ा तकता के नाम के साथ, पूरा पता
होने लगती है और वह े ठता की ओर अ सर हो जाता
व फोन न बर अव य लख। Samagri
Apr 21, 2023

है। स गु देव जी ारा ावण मास क पावन पव पर J x,xxx


t दी ा राशी क बक SLIP भेजना
साधक क िलये चैत य कर यह ावणमय िशव श त
अिनवाय है।
पारद मुि का दान की जा रही है।

ावणमय िशव श त पारद मुि का


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mDr jkf'k Hkstus ij iQksVks nh{kk] ekyk o nh{kk çkIr
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PMY V 22 GurudevKailash tqykbZ 2023


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पु षोतम ावण म स प कर िव णु श त

वर ल मी साधना
कद पुराण म एक िवशेष िववरण आया ह,ै िजसम इससे यह प ट होता है िक जगत म मनु य क पंच त व,
वर ल मी की िवशेष साधना क स ब ध म भगवान आशुतोष पंच इ यां बा प से और आंत रक प से ल मी की
ने िवशेष उपदेश िदया है। भगवान िशव कहते ह िक जो कपा से ही ि याशील रहती है और ल मी क कारण से ही
य त ावण मास म ित सोमवार को पूजन करने क उसक जीवन म मधुरता आती है।
अलावा ावण मास म पूिणमा से पहले पड़ने वाले शु वार सामा य प से यह माना जाता है िक ल मी की
को वर ल मी की साधना करता है तो ल मी अ य त स आव यकता कवल गृह थ य तय को ही पड़ती है,
होकर भगवान िव णु क साथ भ त को अभी ट आशीवाद सं यासीय को ल मी की आव यकता नह है। वा तव म तो
दान करती ह। स यासीय को गृह थ य तय से अिधक ल मी की
जगत क पालन क ा भगवान िव णु ह और िव णु आव यकता पड़ती है। गृह थ य त ल मी क मा यम से
शु त व यु त िनराकार- साकार व प है और भगवती अपने घर-प रवार का पोषण करता है और व उ ित की
ल मी उनका माया व प ह,ै कित व प है। यह ल मी ओर अ सर होता है, जबिक े ठ योगी, सं यासी पूरे
ही है जो िक अपनी श त कित ारा संसार को इ छा समाज म चेतना देने का काय करते है। उ ह महा काय
मोहमाया भौितकता दान करती है। योिगय क िलये यह िव ा करने पड़ते ह और अपने काय का िव तार कवल एक थान
ल मी है जो उनम क डली जागरण की ि या दान करती पर नह अिपतु हजार थान पर करना होता है इसिलये
है। वह संसा रक य तय क िलये यह सौ दय, भा य, योिगय क िलय,े सं यासीय क िलये सर वती एवं ल मी दोन
े ठ दृ य, कित, माधुय, ेम, उ ित, संगीत, पंचत व की िवशेष आव यकता रहती है।
और उनका समायोजन, मन, ाण चेतना का व प है।
tqykbZ 2023 +91-99508-09666 PMY V 23
जग गु शंकराचाय ने तो अपने जीवन म अ प क कठ म वर-ल मी र ासू मा य पहना द, कलश क चार
आयु म ही पूण सफलता ा त करने हेतु तथा सनातन धम तरफ चार िब दी लगा द तथा षोडशोपचार पूजन से अथवा
की थापना क िलये देवी ि पुर सु दरी, ल मी और दैिनक साधना म दी गई िविध अनुसार कलश एवं यं का
सर वती की ही साधना पूरे जीवन स प की और उ ह पूजन कर। यं एवं कलश क सामने लाल-पीले पु प समिपत
की कपा से वे छोटी सी आयु म इतने महा काय स प कर कर तथा वर-ल मी का िन मं से िविनयोग कर। िविनयोग
सक। हेतु दािहने हाथ म जल लेकर संक प कर तथा िन मं का
ावण और पु षोतम मास म वर-ल मी उ ारण कर-
क द पुराण म विणत िववरण क अनुसार गृह थ ऊ अ य ीवरल मीम य िहर यगभ ऋिषः
पु ष- ी को यह साधना स प करनी चािहय।े ावण अनु ट छनदः ीवरल मीमहासर व यो देवताः
शु वार क िदन ही यह साधना स प की जाती है। इस बार बीजं, श तः, ल कीलक मम
दो ावण होने क कारण येक पूिणमा से पहले पड़ने वाले सव लेशषपीडाप रहाराथ सवदुःखदा र यनाशानाथ
शु वार को िवशेष मुहूत बन रहे ह। ये ितिथयां ह- 28 सवकायिस यथ च ीवर-ल मी-म जपे िविनयोगः।
जुलाई या 25 अग त। िविनयोग क प चा बाये हाथ म जल लेकर दािहने हाथ से
वर ल मी का ता पय है जो अपने भ त को वर जल को अपने म तक, ने , कठ, भुजा , व ः थल पर
दान कर। य क िलये वर ल मी का ता पय है उनका पश कराय तथा वर-ल मी की ाथना करते हुये िन
सौभा य अ ु ण रह,े पु ष क िलये वर-ल मी का ता पय है ल मी गाय ी मं का उ ारण ‘वर-ल मी र ासू मा य’ से
वे जो भी काय कर उसम िवशेष सफलता ा त हो और कर।
ल मी वर मु ा म उनक घर म सदैव थािपत रहे। मं
ल मी का ता पय कवल धन और सांसा रक स पि नह है। ।। ऊ महादे यै च िव हे िव णुप यै च
वर-ल मी धन क साथ-साथ मनु य को शु ान बुि , धीमिह त ल मी चोदया ।।
आ मक चेतना दान करती है। िव ा ल मी क प म वह
जग िपता िव णु से मनु य को जोड़ती है िजस कारण मनु य Om Mahadevayae Cha Vidmahe
Vishnupatnayae
अपने जीवन म पूणता ा त करता हुआ पु ष से पु षो म
Cha Dhimahi Tannaom Lakshmi
बनने की ि या करता है, धम क साथ काम और अथ को Prachodayat
भोगता हुआ मो ा त करता है। इस शुभ मुहूत 28 जुलाई या 25 अग त को इस
साधना िवधान मं की एक माला जप तो अिनवाय है अथात 108 बार तो मं
इस साधना म मूल प से एक ता कलश, ‘वर जप करना ही है इससे अिधक सं या म मं जप कर तो और
ल मी यं ’, ‘र ा सू मा य’ की आव यकता रहती है। यह अिधक े ठ है लेिकन मं जप एक माला, तीन माला, पांच
र ासू मा य अ य त मह वपूण है और कलश क चार ओर माला, सात माला, अथवा यारह माला होना चािहय।े
इसे लपेट कर रखने से घर म सदैव ल मी की र ा होती है मं जप क प चा ल मी की आरती स प कर
तथा यथ की धन हािन नह होती। तथा वर-ल मी को समिपत साद वयं हण कर तथा
ावण पूिणमा से पहले पड़ने वाले शु वार अथा 28 जुलाई प रवार क सद य म बांट द।
या 25 अग त सुबह ातः ज दी उठकर ान कर शु यह स पूण साम ी ावण पूिणमा क िदन पिव
व धारण कर। पु ष क िलये आव यक है िक वे वेत सरोवर जल म वयं िवसिजत करनी है और िवसजन करते
व धारण कर तथा यां पीला, कसरीया अथवा लाल समय यह ाथना करनी है िक हे वर-ल मी िजस कार आप
व धारण कर। अपने सामने एक बाजोट पर अ त से नौ जल म िव णु क साथ सदैव िवराजमान रही है उसी कार
खाने बना कर नव ह म डल बना द तथा उसक बीच -बीच मेरे घर म सदैव िवराजमान होकर मुझे अपनी कपा का वर
चावल से भर कर यह कलश थािपत कर द। कलश म ही दान करती रह।
चार प े रख कर उस पर ना रयल थािपत कर द। इस साम ी यौ 850/-व दी ा यौ 2100/-
कलश क सामने वर-ल मी यं थािपत कर द तथा कलश
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तं क संबंध म इतनी अिधक ांितया है िक सामा य य त तो तं क नाम से ही घबराता है वा तव म तं तो जीवन
सु यव थत करने की ि या है, जीवन म जो कमी है, उसे पूरा करने की ि या है। यही तं िव ान सारगिभत प से तुत है,
स गु की अमर ओज वी वाणी म-
दीघ वता पूण मदैव पं
तां ो त पं मपरं-च दैवं,
ा ड मेव विदतं सिहतं सदैव,
ानं वैदव विदतं सिहतं च तु यं
‘तं महाणव ंथ’ क इस लोक म तं की पूण या या की गई है। म तो एक लोक लेता हूं और उस एक लोक की
या या करता हूं। पूरे ंथ म तो सैकड़ , हजार लोक होते है और एक-एक लोक की या या अपने आप म एक स पूण अथ
होती है, एक-एक, दो-दो घंट का वचन िलये होती है।
तं महाणव अपने आप म एक अि तीय ंथ है। तं का अथ है िक िकसी भी काय को अ यंत यव थत तरीक से करने
की ि या, तं का मतलब इतना ही है। हम जातं म जीवत है, स 1947 से हम तं मय है। तो या हम कह खराब हो गये? पहले
राजतं चलता था, अब हम वतं है। तं कहा ख म हुआ?
या तो आप गुलाम रिहये या वतं बिनये और जहां तं है और वतं है तो इसका अथ है अपने आपको पूणता क साथ समझने की
ि या-पूणता क साथ, इसिलये वतं श द बना। एक काम यव थत तरीक से भी कर रहा हूं और यह भी हो सकता है िक आप
िशिवर म आये तो कोई लेटा हुआ है, कोई खड़ा है, म वचन कर रहा हूं और आप बोल रहे है, बात कर रहे है, कोई मूंगफली चबा
रहा है। पर तु, यिद आप पूण एका िचत होकर बैठ तो यह तं का तरीका है।
इसिलये तु हारे मानस म अगर यह है िक तं म तो अघोरी होते है, लाल आंखे होती है, शराब होती है, शराब पीते है और
पंचमकार होते है तो आपका यह िचंतन बेसलैस, िनराधार है। पूरे तांि क ंथ म कही पर भी इन सब चीज का उ लेख नह है और
शायद िजतना मने तं का अ ययन िकया है, उतना पृ वी पर िकसी ने तं का अ ययन िकया ही नह ।
यह तो गोरखनाथ क बाद म कछ म कार, ढ गी और पाखंडी लोग ने िजनको ान तो था नह , उ ह ने ये तं क िवषय म
ांितयां समाज म फला दी। वे कवल लोग को डरा धमका कर पैसा लूटना चाहते थे। जब सीधे सादे तरीक से हाथ जोड़कर कछ नह
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िमला और जब उनम ान नह रहा तो उन ढ गी साधु ने डराना शु कर िदया। सुलफा पीना शु कर िदया, आदत पड़ गई। अब
सुलफा पीने से अगर कोई महा बनता है तो सुलफा पीने वाले और बीड़ी, िसगरेट पीने वाले तो हजार है। इसका मतलब तो उ
कोिट क तांि क है जो चैन मोकर है। िफर तो एक शराबी अपने आप म सबसे बड़ा तांि क हो जायेगा। उन ढ िगय ने एक फज
लोक बना िदया-
म ं मांसं तथा मत यं मु ा मैथुन मेव च मकारं एंचवम यात स तांि क मच उ ते।
तांि क वही हो सकता है जो इनका योग करे। उ ह ने एक झूठा लोक बना िदया, एक प रपाटी बनाई। उ ह ने कहा
तांि क होने क िलये ज री है िक शराब पीय,े मांस खाय,े मत य-मछली खाय,े मु ा-पैसा एकि त करे और मौज करे, पर ी गमन
करे।
जो पांच मकार की साधना कर लेता है, वह तांि क है। उ ह ने यह झूठी प रपाटी बनाई और वे सुलफा पीते थे। सुलफा
पीने से आंखे लाल तो ह गी ही। लाल आंख होगी, शराब पीयगे तो गािलया िनकलगी ही मुंह से, उ ह ने गािलया िनकाली और आपने
हाथ जोड़ना शु कर िदये िक यह बहुत पहुँचे हुये साधु है। िजनक मुंह से गािलयां िनकलती है वह बहुत उ कोिट का साधु हो जाता
है।
वे िच लाते, गािलयां देते और आप हाथ जोड़ कर सामने खड़ हो जाते। वह कहता-जा यह ला मेरे िलय,े एक धोती ला और
आप सोचते िक यह तांि क कोई ाप दे देगा, मेरे बेट को मार देगा, चलो एक धोती दे दो।

और िफर वह कहता-चल अब पांच सौ पये लाकर दे। वरना नाश कर दगे तु हारा।
जो धोती मांग कर पहनता है वह या तांि क बनेगा, दूसर का या क याण करेगा? िजसम एक धोती कमाने की
मता नह है वह या तु हारा क याण करेगा? िजसम पांच सौ पये कमाने की मता नह है, जो भीख मांग रहा है तुमसे, वह
तु हारा गु या बन सकगा? कहां से तांि क बन सकगा? कौन सा ान दे सकगा? उससे कहां घबराने की ज रत है?
कोई तांि क आपक सामने आंख िनकाल कर खड़ा हो तो तुम खुद आंख िनकाल कर सामने खड़ हो जा । एक सैक ड
म उसकी आंख नीची हो जायेगी। तु हारी आंख से आंख िमलाने की िह मत ऐसे तांि क म हो ही नह सकती य िक तुम मेरे िश य हो,
मेरा िश य अपने आप म अि तीय है।
इन पाख डय से घबराने की ज रत नह है। वे तु हारा कछ अिहत नह कर सकते, अिहत करने की मता है ही नह ,
वरदान देने की मता भी उनम नह है।
तं क िवषय म आपको ान देने से पूव म आपको यह एक बात समझा रहा था। यह अलग बात है िक उसकी प ित
अलग है। प ित तो येक सं दाय की अलग-अलग है। शैव प ित अलग है, वै णव प ित अलग है, शा त प ित अलग है,
भैरव साधना प ित अलग है। प ित का कवल प िभ है, मूल म तो तं का वह ान एक ही है।
एक ही बेसन से प ीस तरह की िमठाईयां बनती है, इतनी अलग-अलग िमठाईयां है। मगर मूल म तो वही बेसन है। चीज
अव य प ीस अलग िदखाई देती है। मूल प से एक ही चीज है। आप िकसी भी प ित का चाहे आसरा ले, चाहे शा त प ित का
आसरा ले, चाहे वै णव प ित का आसरा ले। गृह थ भी तं प ित का आसरा लेता है तो कह दोष है ही नह , कोई नुकसान नह
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हो सकता।
तु हारे मन म कई बार आते है और िफर प आते है िक गु जी म ऐसा
कर रहा हूं और तांि क प ित से कर रहा हूं कही कछ िवपरीत हो गया तो या होगा?
िवपरीत हो ही नह सकता।
यह हो सकता है िक तुम सही नह करो तो फल नह िमल पायेगा। म िकसी
देवता को आवाज दूं, तो यह हो सकता है िक वह आये नह मगर ऐसा तो नह हो सकता
िक वह आये और मेरा गला काट दे।
तं अपने आप म आ म बल जा त करने और वतं होने की प ित है।
वतं होने का अथ है िक यिद य त को कहा है तो म हूं
िफर यह म िस करक िदखाऊ।
कवल कहने से िक म बहादुर हूँ, आप बहादुर बन नह
सकते। कवल बात करने से तु हारी बहादूरी नह िदखाई दे सकती।
मता, संक प श त, दृढ़ता, चेहरे पर एक ओज तु हारा
पौ ष, तु हारा व थल अपने आप इस बात को बता देगा िक तुम
मद आदमी हो। तु हारी आवाज इस बात की चेतना दे देगी िक
तुमम मता है-बोलने की भी, करने की भी और संक प श त
की भी।
तं अपने आप म पूण िन ठा क साथ, ताकत क
साथ, बलपूवक कोई काय करने की एक ि या है। जब म
बलपूवक श द योग कर रहा हूं तो मने कहा िक जीवन म भा य िलिप बदलने क िलये, अपनी भी तथा दूसर की भी, एक मता
चािहये। आप खुद जब मजबूत बनगे, िह मतवान बनगे तो ही ऐसा कर पायगे। मगर िह मतवान बने साधना मक प ित से ..........
कोई दंड पेलने से नह बन सकते। कोई बहुत यादा पहलवानी करने से महान नह बन सकते। गामा पहलवान पूरे
भारत म मशहूर था, उसने सैकड़ लड़ाईयां लड़ी, मगर बुढ़ापे म उसकी हालत यह थी िक खड़ा नह हो पा रहा था। उसको कोई रोग
नह था, बीमारी नह थी। बस शरीर म ताकत नह थी और वह एक नाली म िगरकर समा त हो गया य िक संक प श त थी नह ।
जब तक उसकी दंड बैठक चलती रही तब तक शरीर साथ रहा। जब संक प श त ख म हो गई उसक बाद पाव भर दूध पचाने की
िह मत नह रही। नाली म िगरा तो बाहर िनकलने िक िह मत नह थी और वह वह समा त हो गया।
इसिलये िबना दैवीय सहायता क मनु य अपनी भा य िलिप और दूसर की भा य िलिप को नह बदल सकता। और यह
दैवीय सहायता, देवता की सहायता चाहे जगदंबा हो, चाहे भैरव हो, चाहे भवानी हो, चाहे षोडशी हो, चाहे ि पुर सुंदरी हो- ा त
करने की प ित तं ा मक भी है और मं ा मक भी है। पर तं क मा यम से काम होता ही होता है, वह िफर क नह सकता, संभव
नह है। परंतु उसक िलये आपको मतावान होना पड़गा, ताकतवान होना पड़गा। कमजोर और कायर क साथ तं नह चल
सकता और कमजोर और कायर की प रभाषा मने तु ह गामा का उदाहरण देकर समझाई है िक बहुत मोटा ताजा होने से ही कोई
बहुत ताकतवान नह होता।
गांधी जी तो बहुत दुबले पतले थे, बयािलस िकलो क आदमी थे और उ ह ने, करोड़ो लोग को पीछ खड़ा कर िदया। अं ेज
से लोहा िलया और अं ेज को हरा िदया। कोई वजन ह नह था शरीर म। एक हि य का ढ़ांचा था, िबना लाठी क चल नह पा रहे थे,
पर सक प श त दृढ़ थी, आ थावान थे, एक चेतनावान थे।
हम चाहे तं साधना करे, या मं साधना कर- या तो हम िगड़िगड़ाते करे, हाथ जोड़ते हुये कर, जैसा आज तक करते आये
है या िफर दृढ़ता और संक प श त क साथ कर।
आपने शायद युजवद क मं को पढ़ा नह । पढ़ा तो अथ समझा नह । यजुवद म कोई बहुत महान घटनाय िछपी नह है।
कोई ऐसा अजूबा नह है यजुवद, अथववेद और ऋ वेद। उसम कहा है- हे इं ! तु मेरे खेत म वषा कर तो मेरे धान बहुत पैदा हो।
उ ह ने देवता से एक याचना की। हे अि देव! तू मेरा ऐसा काय कर, हे पवन!तू मेरी ऐसी सहायता कर। हे यम! तू
मुझे मृ यु से बचा। उन आय ने भी उन देवता की सहायता ली। िजन श द से उनका सहयोग िलया उनको मं कहा गया।
आपकी जेब म अगर पांच हजार पये है और जब पांच हजार पये है पांच पये की आपक िलये कोई वै यू नह है।
पांच पये तो आपक िलये बहुत छोटी सी चीज है और िभखारी िगड़िगड़ाता हुआ आया है, हाथ जोड़ता है िक आप बहुत दयालु है,
दानी है, कण है म तीन िदन से भूखा हूं मेरा ब ा बीमार है, आप मुझे पांच पये दे दीिजये।
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अब कोई ठका थोड़ ही है िक आप पांच पये दे ही दगे। उसक िलये पांच पये बहुत ज री है य िक ज रत है उसको
य िक उसे रोटी खानी है। उसक जीवन का यह अभाव है। हो सकता है िक िगड़िगड़ाने पर आप उसे पांच पये न द, मगर वह
अगर आपका गला पकड़ ले, तो आप कहगे-यह ले पांच पये और जान छोड़ मेरी।
यह दूसरा जो तरीका है, वह तं है। तं का अथ है देवता को बा य कर देना, िववश कर देना िक वे आपकी इ छा पूण
करे, जो आप मांगे वह द। मगर गलत चीज क िलये आप देवता को बा य नह कर सकते और गलत उ े य क िलये तं का
योग भी नह कर सकते। करगे तो कोई रज ट आपको नह िमलेगा। मगर सह उ े य क िलये तं का योग करते है तो
िन चय ही भाव पड़ता है- इसम दो राय नह ।
और आज क जीवन म तं ज री भी नह । य ज री है? य िक आज क आपाधापी क युग म साधक दस घंट रोज
बैठकर मं जप और साधना नह कर सकता। जीवन म भाग दौड़ है िजनक कारण य त सब कछ छोड़ कर लंबी साधनाय नह
कर सकता मगर िफर या कोई ऐसे उपाय है तं म, िजनक मा यम से वह अपने पूरे जीवन को आनंदायक बना सकता है।
और इसक िलये तं महाणव म बताया है िक पांच ऐसे योग है िजनक मा यम से जीवन म पूणता ा त की जा सकती है।
पहला है स मोहन योग-स मोहन का अथ है, हम िकसी को भी अपने अनुकल बना सक। ऑिफसर हो, लाल आंखे िकये हो और
यिद आप म स मोहन का ान है तो वह आप से आंख से आंख िमलाकर आपक सामने खड़ा नह हो सकता, यह संभव नह है।
स मोहन का ता पय है िकसी को अपने अनुकल बना लेना। िकसी को अपने अनुकल बना लेने की ि या को
स मोहन कहते ह।
और वशीकरण है िकसी को भी अपने वश म कर लेने की ि या। जहां िकसी को भी श द का योग िकया है वहा अथ है
िक हर िकसी को वशीकरण िकया जा सकता है, चाहे कोई देवता भी है या जगदंबा है। हम उसे भी अपने वश म करने की ि या
करनी है। हम उसे भी अपने अनुकल बनाना है। अगर हमम संक प श त है तो उसे हमारे सामने खड़ा होना पड़गा। वह देवता है,
कोई अजूबा नह है। अगर वे देवता है तो हम मनु य है। बात इतनी सी है।
यह बात है िक उनक पास हजार पये है और
हमारी जेब म पांच पये भी नह है। हजार
पये म से पांच पये देने से उनको कोई
फक पड़गा नह । हम उन पांच पय की
ज रत है। तो देवता का भी वशीकरण
करक बहुत कछ ा त िकया जा सकता है
तो श ु का भी िकया जा सकता है, िकसी
जज का िकया जा सकता है, वकील का
िकया जा सकता, ेमी का िकया जा सकता
है, ेिमका का िकया जा सकता है और
गु का भी िकया जा सकता है।
वशीकरण का ता पय है िक हम
ितकल प र थितय को अपने वश म
कर सक। जीवन म तो ितकल
प र थितयां आयेगी ही, आती ही है।
इसिलये तांि को ने एक योग रखा
वशीकरण िक हम प र थित को ही
अपने वश म कर ल। परंतु िकसी को
यथ तंग करने या िफर िकसी वशीकरण
को हािन पहुंचाने क िलये आप इसका
योग नह कर सकते। संभव ही नह है।
अपने िहत क िलये तो कर सकते है, मगर
उस आपक िहत से यिद िकसी का
नुकसान होता है तो यह योग फलदायी
नह होगा।

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अगला योग है उ ाटन। उ ाटन का अथ है िक एक य त और दूसरे िकसी य त क बीच िडफरस पैदा कर देना।
लड़ाई करा देना, मतभेद करा देना।
अब आप कहगे-हम ऐसा य कर गु जी?आप ऐसा य हम िसखा रहे है?
मगर म कहता हूँ िक कोई तु हारे सामने चाक लेकर खड़ा हो जाये तो उसक सामने िगड़िगडाने से कसे काम चलेगा? यह
एक नीित है, चाहे आप इसको राजनीित कहे, चाहे कटनीित कह। इस िडफरस पैदा करने देने की ि या या मतभेद पैदा करने की
ि या को िव ेषण भी कहते है।
िफर है मोहन..... और मोहन का अथ है सबको मोिहत कर देने की ि या-पूरी भीड़ को। एक अकले य त को नह ।
एक पूरे समूह को अपने अनुकल लेकर अपने िवचार क अनुकल लेकर चलने की ि या का नाम मोहन है।
..... और पांचवा तं का योग मारण बताया िक यिद कोई चारा रहे ही नही, तो मारण योग भी िकया जा सकता है। मगर मारण का
मतलब कोई चाक मारना नह है। मारण तो साधु लोग अपने ोध का कर देते है तं क ारा लोभ का मारण कर देते है। यह भी
मारण है। श ु का एकदम से पददिलत करना भी मारण योग है। श ु मदन ि या भी मारण है। मारण का यहां मतलब मृ यु नह
होता। मारण का अथ है वह पददिलत हो पराजयी हो।
ये पांच योग हमारे जीवन क, हमारे भौितक जीवन क आव यक अंग है िजनक मा यम से हम जीवन को यादा
सुखमय बना सकते है और जब तक जीवन सुखमय नह बनेगा जब तक तनाव रहेगा, तब तक हम साधना नह कर सकते,
जीवन म अ सर नह हो सकते, आ या मक धरातल पर पांव नह रख सकते।
इसिलये उ साधना की पृ ठभूिम क िलये इनका योग करना पड़गा। आपक जीवन म अगर कलह होगी, भय
होगा, तनाव होगा तो आप साधना म एका नह हो सकते।
आप पूछ सकते है िक िव ेषण जैसे योग की या आव यकता। अब मान ले आपकी लड़की िकसी से यार करने लग
गई और आप बहुत परेशान है, बड़ी बदनामी सी हो रही है, आपको समझ नह आ रहा या कर, समझाने से वह समझे नह , आप
िजतना समझाते है वह उतना ही िज करने लगती है, आप हाथ जोड़गे, समझायगे, इ त का वा ता दगे, तो वह तीसरे िदन घर से
भाग जायेगी। अब आप या करोगे?
ऐसे समय म अगर आपको लगता है िक वह लड़का ठीक नह है और आपकी लड़की का भिव य बबाद हो जायेगा तो
आप िव ेषण ारा दोन क बीच मतभेद कर सकते है। मगर तब, जब आपको इस लड़की से यादा ान है और आपको मालूम है
िक उसका जीवन असुरि त हो जायेगा। अभी इस लड़की को इतना िववेक नह है, भले-बुरे का ान नह है। ऐसी थित म
िव ेषण अपने आपम एक िववेकपूण साधना बन जायेगा।
ऐसी घटनाय तो सभी क जीवन म घिटत हो रही है। कोई श ु से पीिड़त है और िबना कारण क ई यावश श ु आपका
स यानाश करने पर तुले है और उनक सामने असहाय अनुभव कर रहे है तो िव ेषण ारा उनक बीच मतभेद पैदा करक उनको
कमजोर िकया जा सकता है या मारण ारा उनको परािजत िकया जा सकता है।
और य त ही नह , बीमारी का भी िव ेषण िकया जा सकता है, हटाया जा सकता है। यह िव ेषण एक ि या बन
सकती है रोगी म िव छद करने की।
यह हमारे जीवन म, दैिनक
जीवन म उपयोगी योग है। य तो तं म
उ कोिट क सैकड़ , अ टादश िसि
योग भी है। उन अ ारह िसि य क
योग को ा त करने क िलये, आप
आगे आये और आप मुझे छः महीने का
टाइम द और मेरे पास रह और अगर म
िसि नह दे पाया तो मेरा गु होना ही
यथ है।
मगर आप समय तो द,
संक प तो कर, आप आगे तो आय, जब
मैन आपको आवाज ही दे दी, िफर
कने की ज रत नह है। कवल पोथी
पढ़ने से कछ ा त नह हो सकता।
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जीवन को संवारने की तो एक ि या है और जहां तं क योग है तो उ ह िस करने क िलये साम ी भी आव यक है। अगर म
बोलूंगा तो माइक की आव यकता पड़गी ही पड़गी। म यु क गा तो मुझे तलवार, िप तौल चािहये गी। िबना साम ी तो साधना क
यु को नह जीता जा सकता, सफलता नह ा त हो सकती।
संक प श त तो ज री है ही, गु का मागदशन भी ज री है, पर साथ-साथ साधना साम ी भी उतनी ही ज री है। यह
सब है तो इन योग म आप सफलता ा त कर सकते है। मगर एक बात िफर दोहरा दूं िक ई यावश या िकसी को अकारण हािन
पहुंचाने या तंग करने की दृ ट से योग न कर, य िक अकारण आप इनका योग नह कर सकते। आपका िचंतन व थ हो,
कह मिलनता न हो। गलत उ े य से इन योग क ारा सफलता संभव नह है।
समाज म तं क िवषय म अनेक ांितयां है। ांितयां इसिलये है िक िकसी को ान ही नह है या अधूरा ान है या गलत
धारणाय ह।ै तं क ारा िकसी का अकारण अिहत नह िकया जा सकता। वाथ से लोभ से आप तं का योग नह कर सकते और
कछ ढ गी, पाखंडी वाथवश या लोभवश कछ करते भी है तो वह तं नह हो सकता। कछ भी हो सकता है पर तं तो होता ही नह
य िक तं का आधार दैिवक श त है और उसका योग गलत काय क िलये तो िकया ही नह जा सकता।
कई और भी ाितयां है जैसे िक देवी को बकरे की बिल चढ़ाना ज री है। ऐसा कही िकसी शा म कोई उ लेख नह
आता। अभी कछ समय पहले एक िश य ले गया अपने साथ एक मंिदर म और बोला-आप बस देखते रहना गु जी! बकरे क शरीर
म देवी कट होती है गु जी! मने सोचा-मेरे शरीर म देवी कभी कट हुई नह और यहां बकरे क शरीर म देवी कट हो रही है?
वह गांव था छोटा सा, एक मंिदर था
देवी का। सामने साल भर क बकरे क ब े को
लाकर खड़ा कर िदया य िक नवराि म
देवी को भट चढ़ाते है। यहां भी जोधपुर म
राजा भैसा चढ़ाते थे, कछ साल पहले बंद
हुआ। यहां चामु डा क मंिदर, जोधपुर म यहां
क महाराज कसे भसा चढ़ाते थे, शायद
आपको ान नह है। वे टीले क ऊपर भसे
को खड़ा कर देते थे और ध का दे देते थे। वह
लुढ़क करक ख म हो जाता था और चामु डा
की जय हो, चामु डा की जय हो......................
उस बकरे को खड़ा िकया तो एक तरफ हम
भी खड़ हो गये िक भई, देवी आये तो हम भी
दशन कर ले। उ ह ने उस बकरे क
ऊपर पानी डाला ान कराने क िलये,
वाभािवक है िक पानी डालगे तो वह
शरीर िहलायेगा ही, वह जैसे ही िहला, थोड़ा
कपाया तो सब बोले- देखो गु जी! देवी आ
गई, देवी आ गई।
और झट से उसकी गदन अलग कर दी। जहां पाखंड, वहां तो कवल उन पंिड़तो की खाने की ि या है। कहां तं म िलखा
है िक देवी क िलये बकरा काटा जायेगा या भैसे को काटा जाये?अब कछ साल से यहां भैसा नह चढ़ रहा तो या चामु डा िनज व हो
गई? अभी तक या जीिवत थी? जब मने यहा क महाराजा से पूछा िक अब या हो गया? जब भैसा नह चढ़ता, तो वे बोले-आप तो
गु जी िवपरीत बात करने लग गये। मने कहा-िवपरीत बाते कहां है? म तो पूछ रहा हूं िक फक या पड़ा?
ऐसा तं म कह मिलनता नह है, घिटयापन नह है। ओछापन नह है। े ठता है, सा वकता है, उ ता है, सफलता है।
पाखंडी और ढ गी और सुलफा पीने वाले और दम लगाने वाले, भांग पीने वाले तो कई िमल जायगे, पर उनसे ा त या होगा? ऐसे
आदमी तो एक थ पड़ मारो तो उसका सारा तं नीचे उतर जायेगा। तु हारा कह कोई अिहत नह हो सकता, यह तो म तु ह गांरटी क
साथ िलखकर दे सकता हूं।
ये सामा य से योग है और ये योग मने आपको य बताए?
इसिलये िक आप अपनी सम या क समाधान क िलये उन पंिडत क पास नह भागते िफर, िकसी अ य क पास नह
भागते िफर। उ ह प चीस पये देने से काम तु हारा नह बनेगा। उस जगदंबा क सामने और उन देिवय क सामने हाथ जोड़ने से
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काम नह चलेगा। आप खुद ऐसे योग गु से ा त करक अपनी सम या का समाधान कर सकते है। म तो आपकी खुद की
रोशनी आपक दय म िदखाना चाहता हूं इस ान क ारा।........ और इनक ारा आप अपनी भौितक जीवन की सम याय भी
दूर करे और आ या मक जीवन की सम याय भी दूर कर। अ या म म भी आप ऊचे उठगे तब, जब भौितक जीवन की सम याय
दूर हो पायेगी। ये सब भौितक जीवन की सम या को दूर करने क अचूक योग है। ये पांचो योग और इनक मं आप गु से
ा त कर सकते है और उनक ारा भौितक जीवन की सभी सम या को दूर कर सकते ह।
मगर ये तं योग है। तं की एक िवशेष ि या होती है। मं साधना म सब कछ चल सकता है मगर तं म नह चल
सकता। एक छोटा ब ा एकदम आकर मेरी गोद म बैठ जाये और पेशाब कर दे तो म उसे कोई थ पड़ नह मार दूंगा। उसको ान
ही नह है, छोटा सा ब ा है। मगर एक बीस साल का य त ऐसा करता है तो म थ पड़ मार दूंगा।
जब आपको पूरा मं म जाना ही है तो आपको िवशेष ि या अपनानी ही पड़गी। आपको मतावान होना पड़गा। अगर
तं म िलखा है िक राि का समय उपयु त है तो राि क समय ही कर। उसम जो साम ी की ज रत है उसका योग करे। स मोहन
म अलग माला का योग करना पड़ता है, वशीकरण म अलग माला का योग करना पड़ता है। जो माला बताई है वह तो योग
करनी ही पड़गी। मगर संसार की सव े ठ और अि तीय माला पारद माला बताई गई है। पारे से िनिमत माला। सामा य प से यह
नह बन सकती। इसी कार भगवान िशव को स करने क िलये ा माला सव े ठ है। य िक भगवान िशव का ा से
सीधा संबंध है- ा या की आंख, का ने , तीसरा ने ।
पारद का मतलब ही स मोहन और वशीकरण। उ कोिट का चेतनायु त बनने की ि या। वह भगवान िशव का पूण
स व है, वीय ह,ै पूरे शरीर का िनचोड़ है भगवान िशव का इसिलये पारे को ठोस करक उस पारद की अगर माला बनाई जाये तो वह
सव े ठ िसि दायक िस होती है।
यो तो और माला से भी काम चल सकता है, यह नह है िक पारद माला क िबना कछ िसि ा त हो ही नह सकती।
मगर वह पारद माला अपने आप म अि तीय चीज है, एक दुलभ व तु है जो सामा य प से उपल ध नह हो पाती। और न जाने
कब ज रत पड़ जाये। आज ज रत पड़ या छः महीने बाद एकदम से कोई साधु िमल जाये जो ऐसा योग बता दे और कहे, इसम
पारद माला की ही ज रत पड़गी............... और संसार की कोई साधना नह , चाहे ित बती साधना हो, चाहे औघड़ साधना हो िजसम
पारद माला से काम नह चल सक। कई अलग िवधान है, तरीक है, पारद माला को पहनने से ही स मोहन की ि या ार भ हो
जाती है, अपने आप म स मोिहत होने की ि या, अपने आप म पौ षता यु त होने की ि या, स दय यु त बनने की ि या। यिद
आपने रसायन िव ा जानी है तो आपको ात होगा िक पारा अपने आप म वण का ित प है। वण तो बहुत छोटा सा प है

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उसका, पारद तो पारस का प है। उ कोिट क योगी, उ कोिट क साधक, उ कोिट क य त उस पारद माला का उपयोग
करते है, पहनते है। िकसी से िमलने जाते है तो अंदर पहने रहते है, िफर हो ही नह सकता िक दूसरा आपकी बात को मना कर दे,
संभव ही नह है। आप चाह तो योग करे देखले। पूरे शरीर का ओज और बल उसको पहनने से इतना िवकिसत हो जाता है, आप
अनुभव कर सकते ह।
यह तो आप िजतना तं क े म जायगे उतना ही नया ान ा त होगा और मने आपको पांच योग तं क बताये है वे तो
अि तीय है ही मगर भूलकर भी उनका दु पयोग न कर। न हमारे जीवन का उ े य है िक हम िकसी को अिहत पहुचाये और न ही
हमारे जीवन का उ े य है िक हम िकसी को दुःखी करे। मगर हमारा उ े य है िक हम न दुःखी हो और न हमारा उ े य है िक
कोई हम अपमािनत कर। हम ऐसे साधु य त व नह बन सकते, बु बनने की ज रत नह है िक कोई तु ह कछ भी कहे, तुम
गािलयां खाते रहो। हम ऐसे कायर नह है। कायरता और अपमान से तो मौत यादा अ छी होती है। ऐसे िजंदा रहकर करगे भी या?
एक लकड़ी धू धू करती हुई दो महीने जलती रहे न रोशनी पैदा हो, न िचंगारी पैदा हो- ऐसी िजंदगी या काम की ?
इसकी अपे ा तो एक झड़ाक से जली लकड़ी और रोशनी पैदा की, वह अ छा है, चाहे एक सैक ड क िलये की। जीवन
ऐसा चािहये। काशवान, मतावान और यह सब इन साधना क मा यम से ही संभव ह। इसिलये संभव है य िक म तु ह पोिथय
की पढ़ी बात नह कर रहा हूं। इसिलये मेरे कहने म स ाई है और ामािणकता है।
और यह जो पांच योग है ये मूलतः दुगा से संबंिधत योग है। दुगा अपने आप म तांि क श त ही है। संसार का कोई
य त आकर िस कर दे िक दुगा स तशती अपने आप म मांि क ंथ है....... वह तो पूण प से तांि क ंथ है। पहले लोक से
लगाकर आिखरी लोक तक पूरा ही तं पर आधा रत ंथ है।
यो मां जयित सं ाम, यो मे दप
यो मे.....................समय भता भिव यित
दुगा खुद खड़ी होकर कहती है िक जो तं की ि या है जो तं की प ित है उसक ारा ही मुझे जाना जा सकता है। जो
तांि क है वह मुझे जान सकता है। जो वयं बिल ठ है कायर लोग उसक सामने नह खड़ हो सकते। जो तांि क है, जो िन ठावान
है, जो ानवान है, जो गु वान है, िजनक अंदर चेतना है, िजनक अंदर काश है, िजनक अंदर रोशनी है वे भगवती जगदंबा
का वशीकरण कर सकते है, सामने सा ा उप थत भी कर सकते है और अपने अनुकल करने की ि या कर सकते ह।
दुगा स तशती का कवल पाठ करने से कछ नह होगा, सैकड़ पंिडत ने पाठ िकया और िपछले 500 वष से पाठ होता ही
जा रहा है, उनको पूरा कठ थ है, उससे या होगा?
उसको समझने की ि या होनी चािहये, दुगास तशती क एक एक लोक म या या या है, अथ या है कौन सा
िचंतन है, यह जानना आव यक है।
जो मने आपको ये पांच योग बताय है ये ऐसे सामा य योग नह है, इनको मामूली समझने की ज रत नह है। ये बहुत
बहुमू य और उपयोगी है। जहां कील की ज रत है, वहां कील ही काम आयेगी, तलवार नह काम आयगी। आप चाहे िकतनी
ही लखपित या करोड़पित है, आप तलवार पर कता नह टांग सकते, उसक िलये तो कील ही लगानी पड़गी आपको और जहां यु
करना है वहां कील से काम नह चलेगा, वहां तलवार की ही ज रत पड़गी।
इसिलये िकसी भी ान का योग हम अपने िववेक से करे। वाथ से िकसी क पैस क लालच से या ित पधा या ई या से
हम िकसी का अिहत न कर और हम िकसी क ारा अपना अिहत भी न होने दे। म दोन बाते साथ-साथ जोड़ता रहता हूँ। कोई हमारे
सामने आंख तरेर कर बात न करे, इतनी िह मत दूसर म भी नह होनी चािहये। बोलगे तो हम बोलगे, मतावान बनगे तो हम
मतावान बनगे य िक अगर हम तं िस है, हमारे पास िसि है, हमारे पास मता है तो हम बोलने की मता भी रख सकगे,
उनक सामने चाहे ऑिफसर हो, चाहे उ अिधकारी हो, चाहे समाज का कोई भी य त हो, हमसे ऊचा िफर कोई नह है िजस िदन
आप अपनी खुद की रोशनी म खुद को देखने की ि या कर लोगे, जब आपकी रोशनी पैदा होगी तो आप मुझे भी पहचान लोगे,
अपने आपको भी पहचान लोगे, गु को भी पहचान लोगे, अपने ान को पहचान लोगे, अपनी चेतना को पहचान लोगे।
और ये जो पांच योग मैने बताये ह उनक मं दुगा स तशती म ही िछपे है। आप पूरे शा म ढढ लीिजये, आपको ये मं
कही नह िमलगे और आप दुगास तशती म भी ढढ लीिजये आपको िमलगे नह और म कह रहा हूं िक उसी म है। आप बस पाठ
करते रह, समझ म आया नह पहला अ याय, दूसरा अ याय पढ़ते रहे। उस पाठ को करते रहने से या होगा? दुगा बेचारी या
करेगी? पंिड़त जी आपक घर आकर पाठ करते है दुगा जहां खड़ी है। शाम को पंिड़त जी अपने पैसे लेकर घर चले गये, हुआ कछ
नह । आप आरती करते रहते है- जै दुगा मैया, जै दुगा मैया .............ओर रोज पाव भर घी जला देते है। इससे कछ नह होगा।
आप साधना करगे तो दुगा को सा ा आना ही पडगा। ये ऐसे मं है। ये दुगा स तशती क मं है। और दुगा स तशती म

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प ट प से िलखा है िक जब तक इन पांचो योग को य त िस नह कर लेता, तब तक वह िस पु ष बन भी नह सकता।
िसि पु ष बनने क िलये, जीवन को अनुकल बनाने क िलये, जीवन को सुखमय बनाने क िलये ज री है िक हम इन पांचो को
िस करक सफलता ा त कर सक।
..........और जहां भौितक जीवन म बाधा पर िवजय ा त करने क िलये ज री है हम इन पांचो योग को िस करे, वह जीवन
म िनधनता, दै यता को िमटाने क िलये ल मी साधना भी उतनी ही आव यक है और ल मी साधना भी तं क े का अिभ अंग
है।
ल मी का अथ है िक हम द र नह रहे। गृह थ को जहां ल मी की ज रत है वही साधु को भी ज रत है। स यासी को भी
ज रत है। वह भी शाम को आस लगाकर देखता है िक कोई खाना लेकर आये।
ये हमारे जीवन क सबसे यादा दुभा यशाली ण थे जब हम यह ान िदया गया िक िनधनता म महानता है। यह हमारा
दुभा य था। यह हमारे ंथो का दुभा य था, यह हमारे लोग का दुभा य था। बु ने कछ अिहत नह िकया, मगर बु ने कायर बना
िदया। हमारे साधु संतो ने हम बुजिदल बना िदया िक भूखे रहने से, एकादशी का त रखने से भगवान सामने आकर खड़ होते ह।
यह हमारी कमजोरी है िक हम कहते है, गरीबी म ही जीवन की पूणता है। यह कोई े ठता नह है। े ठता इसम है िक
हम अपने आप म ी स प बन। यिद आपक ऊपर कज है तो आपको तनाव होगा ही और िफर चाहे म िकतना भी चीखता रहूं,
आप साधना कर ही नह सकते........ कसे साधना करगे? आप माला लेकर बैठ रहगे और घर म लेश मचा रहेगा तो, कसे आप
साधना कर पाओगे? ऊपर कजा होगा तो रोज सुबह आपको पैदा होना पड़गा, रोज शाम को मरना पड़गा। सुबह पैदा हुये िक आज
िदन ठीक बीतेगा, दस बजे िफर दरवाजा िकसी ने खटखटाया िक भई, िकराये का या हुआ, िफर तीन बजे कोई और कजा मांगने
वाला आ जायेगा।
तो जहां वे पांच योग आव यक है ल मी योग भी उतना ही आव यक है। जहां ये तं क मा यम से उ तम योग है वह
तांि क िविध से उ कोिट की ल मी साधना भी है। हर साल आप दीवाली मनाते है। िपछली चालीस साल से मना रहे है और तेल क,
घी क दीपक लगाते है और ल मी का िच लगाते है, नैवे आई, न कजा दूर हुआ। और ऐसा आप िपछले चालीस साल से करते आ
रहे ह।
ऐसा िकसी गु ने समझाया ही नह िक कसे कजा दूर होगा? ऐसी कब तक िनधनता रहेगी? हमारे पास धन हो, खूब
धनवान हो, हां धन है, तो हम अ याश नह बन जाय। धन क मा यम से हम िकसी को नुकसान नह पहुंचा दे। मंिदर बनाय, दान दे,
िकसी े ठ सं था क िलये काय करे, अपने िलये काय कर, स प ता क साथ रह, और उसक बाद भी अनास त से भाव रह।
संप ता म भी रह, पर तु अनास त भाव से रह। सब कछ होते हुये भी मोह न कर। पहनगे तो चार कपड़ ही। मगर िनधनता अपने
आप म जीवन का एक अिभशाप है जो आप भोगते रहे है और आपने यिद इसे दूर नह
िकया तो आपकी आगे की पीढ़ी भी भोगेगी। तु हारी िपछली पीिढय ने भी िनधनता भोगी है।
मु ी भर लोग ही धनवान हो पाये और जो धनवान बन गये वे बीमार भी बन गये। उनक
पास सौ-सौ िचंताय है, टशन ह।
इसिलये धनवान बन पर धन क ित अनास त रह। अनास त रहगे तो तनाव
होगा ही नह और इससे भी ज री बात, धन का सही योग कर। म आपको साधना की वह
कजी दे देना चाहता हूँ िक िजसक मा यम से आप पूण ी स प बन सक।
िपछले दस साल क अपने जीवन को देखा है- मेहनत की है, प र म िकया है,
भाग दौड़ की है, यापार िकया है, नौकरी की है और नौकरी करने क बाद आपने एक
लाख बचाया या डढ़ लाख बचाया, दो लाख बचा िलय। मगर एक स प ता और ऐ वय,
पूण ऐ वय आप ा त नह कर पाये।
पूण ऐ वय, िजसे सह ल मी ऐ वय कहा जाता है, अ ट ल मी
कहा जाता है-धन, धा य, धरा, कीित, आयु, यश, जीवन, कीित हो,
स मान हो, रा य स मान हो, पु हो पौ हो, घर म शांित हो,
सुख सौभा य हो, ऐ वय हो इन सबसे िमलकर जो चीज
बनती है उसे ल मी कहते है। कागज क नोट को ल मी नह
कहते।
एक मन म गव हो, उ ता हो, े ठता है, कीित हो और पूण
वैभव हो और उसी दुगास तशती म एक अि तीय ल मी साधना
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दी गई है िजसक मा यम से आप ये सब ा त कर सकते है और
मािणकता क साथ ा त कर सकते है।
ये सब योग - पहले पांच और यह ल मी योग-भौितक
जीवन क िलये आव यक है। दोन का बैलस हो हमारे जीवन म-
भौितकता भी हो, आ या मकता भी हो और भौितकता क िलये
स प ता ज री है।
स प ता का अथ समझाया मने आपको। आपक पास पांच
पांच लाख पये है उसको ल मी नह कहते है। वह ल मी है ही नह ।
तु हारे घर म सुख-शांित, ऐ वय, सौभा य हो, कजा नह हो,
तु हारी यापार वृि हो, तु हारी नौकरी म मोशन हो, तु हारे पु
पौ आ ाकारी हो, तु हारी प ी सहयोगी हो, सब व थ हो, घर म
एक आनंदपूण वातावरण हो। ऐसा लगे िक म घर का मुिखया हूं और
घर म रह रहा हूं। और िफर समाज म स मान हो। येक य त
स मान चाहता है। स मान भी ल मी है िजसे स मान ल मी कहा गया है,
कीित ल मी कहा गया है, यश ल मी कहा गया है।
यश क िलये मंिदर बनाये जाते है, दीवारे बनाई जाती है, भवन बनाये
जाते है, पोिथयां िलखी जाती है। आपका जीवन म नाम हो। पूरा भारतवष
आपको पहचान सक, प रिचत हो सक। वह यश ल मी और कीित ल मी
क मा यम से ा त हो सकता है।
और िजस कार पारद िशविलंग संसार का अि तीय िव ह होता है।
उसका घर म थापन आने वाली पीिढ़य क िलये सौभा य िच बनता है।
ऐहसान मानगी आनी वाली पीिढ़यां िक मेरे पूवज को एक गु मं दे
सका, एक िविध दे सका।
............और आप योग करक देख। मुझसे ये योग ा त
कर और करक देख िक उन िच क मा यम से, िजनकी आप
पूजा करते आये है और उस पारद ल मी क मा यम से िकतना
एक िडफरस अगले छः महीने म आता है। अि तीय
िडफरस-स प ता म, े ठता म और उ ता म। ऐसा आपक जीवन म हो यही मेरी कामना है और आशीवाद है और आप वयं
अनुभव करक देख सकते है िक पारद ल मी िकतना अि तीय िव ह है जो कोई बना नह सकता, संभव नह है। एक िव ह हो,
पूण मं चेतना यु त हो और िफर वह ल मी मं हो जो ल मी मं दुगास तशती का मूल आधार है।
अथो मां पूव वैिचं यं
सा ल मी वदत उ ते।
माक डय ने कहा िक दुगा स तशती क सारभूत एक एक अ र को लेकर यिद उसकी माला िपरोई जाये तो उसक मूल म पारद
ल मी क िव ह की पूरी साधना है।
हम ीसू त पढ़ते है, ल मी सू पढ़ते है-यह या है?उसम भी पारद ल मी क िव ह का प ट िचंतन है िक हम कसे
पारद ल मी बनाय, कसे उसका थापन कर और कसे उसका पूजन कर आने वाली पीिढ़य को धरोहर देने क िलये।
आपक पूवज आपको या देकर चले गय?े एक दो लाख या दो चार ब े। आप भी या देकर चले जायगे? आप दे सकते है
ऐसी चीज जो उनकी आने वाली पीिढ़य क िलये भी सौभा यदायी होगी।
..............और आप गु से ये तं पर आधा रत सभी योग ा त कर सक, ऐसा आपका सौभा य हो और आप पूण
भौितक उ ता और े ठता ा त करते हुये आ या मकता क धरातल की ओर अ सर हो सक। ऐसा ही म आशीवाद देता हूं
क याण कामना करता हूं।
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भगवान िव णु ने ेता युग म देवता को दै य क आ मण से व वगलोक की र ा क िलये वामन क प म अवतार
िलया था। भा पद मास क शु ल प की ादशी ितिथ को वामन जयंती क प म मनाया जाता है। इस िदन भगवान वामन का
ापूवक पूजन कर यान करने से जीवन क दुःख एवं क ट दूर होते ह, आ मिव वास म बढ़ोतरी होती है।
भगव पुराण क अनुसार दै यराज बिल ने इ देव को परािजत कर वग पर अपना आिधप य थािपत कर िलया था।
राजा बिल दानवीर व वचनब था पर तु वह अिभमानी भी था, वह अपनी श त का
दु पयोग कर देवता एवं ा ण को डराता, धमकाता था।
वह अ य त परा मी और अजेय था, िजसक
कारण उसने तीन लोक का वािम व
हािसल कर िलया था और सभी
लोक म जीना दु कर कर िदया
था। इससे िच तत होकर इ
देव अ य सभी देवता क
साथ भगवान िव णु क पास
पहुँचे व अपनी पीड़ा बताते
हुये, सहायता करने की
ाथना की। भगवान िव णु ने
उ ह इस सम या का अ त
करने हेतु आ व त िकया
और तब माता अिदित एवं
ऋिष क यप क यहाँ वामन
पी अवतार िलया। वामन
अवतार भगवान िव णु का
छोट कद क चारी
ा ण का प है। उनक
मुख पर सदा तेज रहता है और
वे अपनी मु कान से सभी का
मन मोह लेते थे।
महिष क यप उनका ऋिषय
क साथ उपनयन सं कार करते
ह। वामन बटक को महिष पुलह
य ोपवीत, अग य मृगचम,
मरीिच पलाश का दंड, आंिगरस
व व सूय छ , भृगु
खड़ाऊ,बृह पित जनेऊ तथा
कमंडल, माता अिदित कोपीन,
सर वती ा की माला तथा
कबेर िभ ा पा दान करते
ह। सभी से कछ न कछ लेकर
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भगवान वामन एक बौने ा ण क वेश म िपता से आ ा लेते पूरा होते ही वामन भगवान का आकार बढने लगा और वे
ह और िफर दै यराज बिल क समीप जाते ह। ठीक उसी समय वामन से िवराट हो गये। उ ह ने पहले ही कदम म पूरा भूलोक
राजा बिल अपने गु शु ाचाय क िदशा-िनदशानुसार नमदा यािन िक पृ वी को नाप िलया, दूसरे कदम म स पूण देव लोक
नदी पर महाय स प कर रहा था, िजससे वग पर उसका यािन िक वग लोक नाप िलया, तीसरे कदम क िलये कोई भूिम
थायी अिधकार हो सक। वामनजी जब वहां पहुंचे तो उ ह देख नह बची, पर तु राजा बिल भी अपने वचन का प का था
राजा बिल दोनो हाथ जोड़ उनक सामने खड़ हो गया। वामन इसिलये तीसरे कदम क िलये उसने अपना िसर झुका कर कहा
भगवान क तेज से स पूण य शाला कािशत हो उठी। बिल ने िक भु तीसरा कदम यहां रख। वामन भगवान दै यराज बिल
उ ह एक उ म आसन पर िबठाकर उनका स कार िकया और की वचनब ता से अित स हुये, इसिलये वामन जी ने राजा
अ त म उनसे भट मांगने क िलये कहा। इस पर वामन चुप रहे। बिल को पाताल लोक देने का िन चय िकया और तीसरा कदम
लेिकन जब बिल ारा बहुत आ ह िकया गया तो उ ह ने बिल क िसर पर रखा िजसक फल व प बिल पाताल लोक
अपने कदम क बराबर तीन पग भूिम भट म मांगी। बिल को पहुंच गया और इस कार भगवान िव णु ने इ देव को पुनः
यह बहुत कम तीत हुआ, पर तु दै य गु शु ाचाय समझ वग लोक का वािम व ा त करवाया एवं सभी देवता को
गये थे िक ये भगवान िव णु ही है जो यहां देवता की र ा हेतु भयमु त िकया और तीन लोक म पुनः शांित थािपत कर दी।
आये ह, इसिलये, उ ह ने बिल को यह अ वीकार करने को वामनावतार क प म ी िव णु ने यह िसखाया िक
कहा। लेिकन राजा बिल वचनब एवं महादानी था उसने दंभ और अहंकार से जीवन म कछ हािसल नह होता है और
उनकी नह सुनी व वामन जी से और अिधक मांगने का आ ह धन-स पदा भी णभंगुर है इसीिलये कभी भी इस बात पर
िकया, लेिकन वामन देव ने इतना ही मांगा। इस पर बिल ने हाथ घमंड नह करना चािहये।
म जल लेकर तीन पग भूिम देने का संक प ले िलया। संक प

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कामदेव अनंग श त वृि दी ा


यह आव यक नह , िक जब य त की मृ यु हो तभी उसकी गित त भत हो। जीवन म जहां भी
और जब भी गित त भत हो जाये, उसी ण जीव की मृ यु ही तो हो जाती है। जब य त अपने भूतकाल व
भिव यकाल क दो अवरोध क बीच फस कर रह जाता है, तो उसकी कोई गित नह हो पाती। वह अपने थान
पर गितहीन सा बना बस क पत सा ही होता रह जाता है। वह अपने ल य एवं कत य का बोध नह कर पाता
है। वरन वह अपने िवगत की मृितय एवं भिव य की आशंका से त भी रहता है। साथ ही त भी रहता है
और उसका इस प म रहना िकसी भी योजन को िस नह करता। वह अपने भौितक व आ या मक
जीवन म िपछड़ता जाता है।
अत: इस थित से ऊपर उठने क िलये यह दी ा ा त करना अित आव यक बन जाता है। इस दी ा
को ा त करने क प चा िश य को इस बात का बोध होना ार भ हो जाता है, िक या उसक िलये लाभकारी है
और या अिहतकारी। साथ ही स गु देव जी अपने िश य क आ म प को अपनी िवराटता, चैत यता और
गु त व से संयु त करते हुये िश य क रोम ितरोम को चेत य जा त व ि याशील कर देते ह, िजससे उसक
जीवन की नपुसंकता समा त हो जाती है। वह िनर तर चेत यमय ऊजावान बना रहता है।
िश य जब सुखद सावनमय कामश त वृि चेतना से सरोबार होता है तब ही वह जीवन क सभी
भौितक सुख से यु त हो जाता है। साथ ही जीवन पूण आन दमय, अमृत व प ि याशील रहता है। जजरता
और वृ ाव था शी नह आती है। उसक अ दर ऊजा, जोश, पौ षता हर समय बनी रहती है, िजससे उसे
हर जगह िवजय ी िमलती है। साथ ही अपनी आ म श त से सरोबार रहता है। इस उ चकोिट की दी ा से
संयु त हो जाने पर, जीवन म स ता, वेग, सरसता की ऐसी ि वेणी वािहत हो जाती है, िक वत: ही साधक
का स पूण य त व चु बकीय बन जाता है।
सुखद सावनमय कामश त वृि दी ा यौछावर K 2100/-
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cuk;saxsA vki vkRe fo'ys"k.k dj lq/kj ls U;wurk vk;sxhA LokLF; lEcfU/r vki esa vlk/kj.k izfrHkk gS] vki
djus dk ç;kl djsaxsA fdlh lekjksg esa leL;k iqu% mcj dj lkeus vk;sxhA bldk mi;ksx vPNs dk;ksZ esa djds Js"B
fj'rsnkjksa ds lkFk ekSt eLrh djsaxsA ck/kvksa vkSj /u gkfu ls lqj{kk gsrq liQyrk izkIr dj ldrs gSaA
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07 ls 13 tqykbZ rd& xqIr 'k=kq lfØ; U;kSNkoj J2100 dk;ksZ dh lwph cuk;saxs vkSj ,d&,d dj
jgsaxs] ftlls ifr&iRuh ds chp 07 ls 13 tqykbZ rd& bl lIrkg vki iwjk djus dh dksf'k'k esa jgsaxsA ;qok oxZ
okn&fookn] >xM+k gks ldrk gSA dk;Z dksbZ vuqfpr dk;Z dj v'kkar jgsaxsA vius dk;ksZ dks ysdj ijs'kku jgsaxs rFkk
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MkaV lquuk iM+ ldrk gSA nso rRo dBksj ifjJe ds ckn gh liQyrk izkIr Hkkoqdrk vkidks uqdlku nsxhA fdlh
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djus ls xqIr 'k=kqvksa dks ijkLr dj lg;ksx izkIr gksxkA jgsxkA vki vius d"Vksa ds fuokj.k gsrq
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14 ls 20 tqykbZ rd&bl lIrkg ukSdjh izkIr gks ldrh gSA ljdkjh {ks=k esa 14 ls 20 tqykbZ rd& vki vius
vfookfgrksa ds fy;s fookg izLrko vkus vVds o yfEcr iM+s dke fdlh y{;ksa dh izkfIr ds fy;s iz;kljr jgsaxs
ds ;ksx cu jgs gSA esgekuksa dk izHkko'kkyh O;fDr dh enn ls vkxs vkSj 'kkafriw.kZ <ax ls viuk dk;Z djsaxsaA
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21 ls 31 tqykbZ rd& bl lIrkg vki udkjkRed fparu vf/d gksxkA ,dkar 21 ls 31 tqykbZ rd&vki ckgj ;k=kk
LokLF; ij fo'ks"k è;ku nsaxsA [kku&iku esa jgus dh bPNk gksxhA fdlh dke ls djrs le; lko/ku jgsaA dksbZ vugksuh
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PMY V 38 GurudevKailash tqykbZ 2023
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01 ls 06 tqykbZ rd&lIrkg dk vkjEHk 01ls 06 tqykbZ rd&ekg ds çkjEHk esa 01 ls 06 tqykbZ rd&lIrkg dh
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07 ls 13 tqykbZ rd&bl lIrkg ?kj esa ijs'kku jgsaxsA jkstxkj esa dksbZ cM+k vkMZj 07 ls 13 tqykbZ rd& bl lIrkg
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ds u;s }kjk [kqysaxsA vR;f/d ftEesnkfj;ksa Hksnu flf¼ nh{kk xzg.k djus ls leL;k ;k=kk djuh iM+ ldrh gSA vki dBksj
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eglwl djsaxsA firk&iq=k ds lEcU/ esa U;kSNkoj J2100 ifr&iRuh ds chp izse c<s+xkA
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dk ;ksx gSA jkstxkj esa dksbZ izeq[k fu.kZ; ysus ls igys izLkUurk ;qDr jgsxkA ldkjkRed n`f"V
14 ls 20 tqykbZ rd&O;kikj o vPNh rjg ls fopkj dj ysaA ifjokj esa j[ksa gj dk;Z esa liQyrk izkIr djsaxsA
dkedkt esa foLrkj dh ;kstuk cukus ds yksxksa ds chp e/qjrk c<+sxhA O;olk; esa Hkkx&nkSM+ ds dkj.k LokLF; esa deh vk
fy;s fcydqy mi;qDr le; gSA ukSdjh lq/kj gks ldrk gSA iqjkuk :dk gqvk dk;Z ldrh gSA vifjfpr O;fDr;ksa ds lkFk
baVjO;w vkfn esa liQyrk ds ;ksx rks gS] iw.kZ gksxkA vkids ldkjkRed fparu ds lko/ku jgsaA /u lEcfU/r ijs'kkuh
ijarq esgur dkiQh djuh iM+sxhA fdlh dkj.k dksbZ izeq[k O;fDr ls eqykdkr gks vk;sxh] O;; ij fu;a=k.k j[ksaA
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gS] vdkj.k gh fdlh ls okn&fookn gksxk 21 ls 31 tqykbZ rd&fdlh xqIr 'k=kq ds vkids dkS'ky o gquj o`f¼ ds fy;s
dksbZ v'kqHk lekpkj fey ldrk gSA /u "kM+;a=k esa iQal ldrs gS] lko/ku jgsaA lgk;d gksxkA fL=k;ksa ds LokLF; esa
gkfu ds izcy ;ksx cu jgsa gSaA nwljksa ds >xM+ksa esa gLr{ksi u djsa] [kqn dks fxjkoV vk;s x h] lko/kuh cjrs ]
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udkjkRedrk gkoh gksxhA fdlh rhFkZ esa vkidh :fp c<+sxhA fdlh ds cgdkosa lko/kuh cjrsa /ks[kk gks ldrk gSA fdlh
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mRlkfgr jgsaxsA vkfFkZd fLFkfr;ka [kjkc gks ldrh gSaA 'kqHk frfFk;ka 02]21]26]30
'kqHk frfFk;k¡ 04]09]11]15 'kqHk frfFk;ka 09]14]16]21
tqykbZ 2023 +91-99508-09666 PMY V 39
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01 ls 06 tqykbZ rd&ekg ds izFke 01 ls 06 tqykbZ rd&bl lIrkg u;s 01 ls 06 tqykbZ rd&bl ekg ekufld
lIrkg esa /u dk vkxeu gksxkA yksd dk;ZHkkj ;k ukSdjh ds bPNqd O;fDr;ksa :Ik ls vki iw.kZr;k larq"V jgsaxsA thou
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djuk] fe=k fj'rsnkjksa ds lkFk le; >xM+k&>a>V gks ldrk gSA vkidks dksbZ nwljs dh Hkkouk dks le> ik;saxsA
fcrkus esa larqf"V vuqHko djsaxsA lIrkg ,slk lekpkj izkIr gksxk] ftlls vkids vkidks vius gh yksxksa ls [krjk gSA vki
ds vUr esa tkus vatkus dksbZ cM+h xyrh iSjks rys tehu f[kld tk;sxhA vfLFkjrk fdlh eqlhcr esa iQal ldrs gS] viuh
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mBkuh iM+ ldrh gSA eku&lEeku esa Jko.ke; f'ko 'kfDr ikjn eqfædk ykHk mBk;s a ] lq [ kn lkoue;
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Hksnu flf¼ nh{kk izkIr djds fodV 07 ls 13 tqykbZ rd& vki rst xfr ls o`f¼ o liQyrk ds fy;s mi;qDr gSA
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U;kSNkoj J2100 iz;kl djsaxs] ftlesa vkidks dkiQh gn 07 ls 13 tqykbZ rd& bl lIrkg
07 ls 13 tqykbZ rd&bl lIrkg rd liQyrk feysxh] vkidk :>ku vkids yfEcr dk;Z iw.kZ gksaxs] vius
vkidks le; dh egÙkk le> esa vk;sxh] vè;kRe dh rjiQ c<+sxkA vki vius leku fopkj/kjk ds yksxksa ls lEidZ esa
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djsaxsA jktuhfr ds {ks=k esa cM+s yksxksa ls fdlh cM+h foifÙk esa iQal ldrs gSA vuqHko gksxkA LokLF; lEcfU/r fLFkfr
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cqf¼ dk lgh mi;ksx dj dfBu dk;Z rjg&rjg ds vk'kadk;sa jgsaxhA lsgr dh laHko gS o 'kjhj esa vkyL; dh fLFkfr
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j[krs gSA cnyrs ekSle ds dkj.k vkidks vusd ugha yxsxkA
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pDdj dkVus iM+ ldrs gSaA vf/d gSA inksUUkfr ds volj izkIr gksaxsA ifjofrZr dj nsaxsA
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'kqHk frfFk;k¡ 02]08]13]27 'kqHk frfFk;ka 04]06]08]31
PMY V 40 info@pmyv.net tqykbZ 2023
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izse&izlax esa leL;k;sa c<+sxhA dk ikB djuk vkids fy;s Js;Ldj esa vkSj vf/d è;ku nsus dh vko';drk
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gS] dke dk ncko jgsxkA larku i{k eu 07 ls 13 tqykbZ rd& bl lIrkg vki dk;kZy; esa iQalk;sxhA lq[k lkoue;
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fudyus ds fy;s fo".kq oSHko 'kfDr ikfjokfjd Dys'k lekIr dj thou esa O;kikj /heh xfr ls pysxkA LokLF; dks
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vkids 'k=kq fuLrst gksaxsA çkfIr nh{kk xzg.k djsaA gSA ftlls ifjokj esa fpark c<+sxhA
U;kSNkoj J2100 U;kSNkoj J2100 vkjksX;rk izkfIr gsrq Jko.ke; f'ko
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vius egÙoiw.kZ dk;ksZ dks LFkfxr gh j[ksa] jkg esa dksbZ vM+pu ;k :dkoV vk;sxh U;kSNkoj J1800
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djuh iM+sxhA ijs'kkuh dk lkeuk djuk euksdkeuk iw.kZ gksxhA ifjJe O;kikj esa o`f¼ djsxkA ifjokj ds
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vkids fy;s dkiQh vuqdwy jgsxk] izxfr ds iFk ij vkxs c<+sxsA ekrk&firk o 21 ls 31 tqykbZ rd&bl lIrkg
ifjokj o lekt ds yksx vki ls dkiQh cPpksa ls lkeatL; cukus esa liQy gksaxsA vkidh euksdkeuk iw.kZ gksxhA ftruk
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© तु हारा जीवन एक सामा य घटना नह है एक सामा य िचंतन नह है, तु ह यह मनु य देह अनायास ही ा त नह हो गई है,
िकतने ही संघष, गु क िकतने ही यास इसक पीछ है, अतः इस जीवन को सहज ही मत लेना। इसका मू य समझो तथा मूल
उदे् य को जानो।
© मुझे अ यिधक वेदना होती है जब तुम हमेशा एक िन ा की सी अव था म खोये रहते हो, तुम म म पड़ रहते हो तथा वे म तु ह
अपने मूल ल य की ओर बढ़ने से रोकते रहते है। मानव जीवन पाकर भी आप खोये हुये है यह आपका दुभा य ही है।
© अगर ऐसा है तो तुम मेरे िश य हो भी नह सकते, य िक अगर आप मेरे िश य है तो आपम वह मता होनी चािहये िक आप
पशुता से ऊपर उठकर मनु यता तथा मनु यता से भी ऊपर उठकर देवता क थान पर पहुंच पाय।
© िश य वही है जो भौितकता को भोगे, परंतु अपने मूल उदे् य से न डगमगाय।े उसकी दृ ट हमेशा अपने ल य पर िटकी रहे।
मेरी इ छा है िक तु ह उस उ तम थित पर थािपत कर दूं जहां भारत या, पूरे िव व म तु ह चैलज करने वाला कोई न हो।
© म तु हारी सभी किमय को ओढ़ने को तैयार हूं, म तु हारे िवष पी कम को पचाने क िलये तैयार हूं य िक तुम मेरे ि य हो।
तुम मेरे आ म हो, तुम मेरे अपने हो, तुम मेरे दय की धड़कन हो।
© दूसर की तरह कवल धन, वैभव, काम, ऐ वय म फसे हो तो या यह उिचत है? मैने तो हमेशा आपको संप देखना चाहा है
परंतु आ म उ थान की बिल देकर स प ता ा त करना मेरा उदे य नह , अगर तुम संप ता ा त कर भी लो और
आपकी आ या मक झोली फटी रह जाये तो सब यथ है।
© म तु ह आ या मक धरातल पर उ ता एवं े ठता की थित तक पहुंचाना चाहता हूं, म चाहता हूं िक िफर तुम जैसा दूसरा
कोई अ य न हो, तुम हो तो कवल तुम हो।
© परंतु यह थित तभी ा त हो पायेगी जब तुम पूण समपण कर दोगे, मुझम पूण प से एकाकार हो सकोगे, जब तु हारे और
मेरे बीच थोड़ी भी दूरी नह रहेगी, जब तु हारे कण-कण म गु का वास होगा, जब तु हारी हर वास म उसी का उ ारण
होगा।
© और यह थित ा त करने का सरलतम उपाय है गु मं । िनरंतर गु मं जप ारा उस थित को ा त कर सकते है
जबिक गु और िश य म इंच मा की भी दूरी नह रहती। ऐसा तुम कर पाओ यही मेरी कामना है।

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वं िविच ं भवतां वदै , देवाभवावोतु भवतं सदैव।
ानाथ मूल मपरं मिहतां िवहंिस, िश य व एव भवतां भगव नमािम।।
© इस लोक म बताया गया है िक जीवन का े ठ त व िश य होता है। स पूण ा ड म यिद सबसे उ कोिट का कोई श द
है तो वह श द िश य है। िश य का मतलब यह नह है िक वह गु से दी ा िलया हुआ य त हो, िश य का मतलब है िक जो
येक ण नवीन गुण का अनुभव करता हुआ अपने जीवन म उतारता हो वह िश य है। बालक भी िश य है, जो मां क गुण
को अपने जीवन म उतारता है, देख करक अनु प बनता है।
© गु चरण क अितर त िश य क िलये कोई तीथ नह होता, उसी भाव से वह गु चरणोदक को भी अमृत समझ कर पान
करता है।
© गु और गु काय को यागने वाले को कह शरण नह िमलती। इसिलये अपनी साम य अनुसार गु काय म भी मनोभाव से
सहयोगी बने रहे।
© िश यता का मतलब और एक मा अथ होता है तलवार की धार पर चलना।
© यथा संभव यथ की चचा म न पड़ कर गु देव का ही यान मनन कर। दूसरे की आलोचना अथवा िनंदा करने से िश य का
जो बहूमू य समय िजसे अपने क याण म लगाना चािहये, वह यथ हो जाता है, उसका भाव उसक ारा की गई साधना
पर भी पड़ता है।
© िश य को िन य एक िनयिमत समय पर िनयिमत सं या म गु मं का साधना प म जप अव य करना चािहये, यिद वह ऐसा
करता है, तो उसक ज म, ज मांतरीय दोष और पाप का य होता है तथा िच िनमल हो जाता है, िजससे ान और िसि की
भी ा त हो पाती है। िश य को यथासंभव अिधक से अिधक जब भी समय िमले, गु मं का जप करते ही रहना चािहये।
© िश य क जीवन म च र ही सफलता और असफलता का ोतक है। च र सफल है तो जीवन सफलता की ओर बढगा,
िकतु च र अगर असफलता की ओर अ सर है तो जीवन अव य पतन की ओर उ मुख होगा।
© िश य का मह व इसम नह िक वह िकतने वष जीिवत रहता है, अिपतु मह व तो इसका है िक तुम िकस कार से जीिवत रहे?
© यिद तु हारी साधना करने की ती उ क ठा है तो भगवान उसक पास स गु भेज देते है। स गु क िलये साधक को िचंता
करने की आव यकता नह पड़ती।
© स ा और वीर िश य तो इस संसार का बोझा उठाकर भी स गु की ओर स भाव से िनहारता है।
© जैसे दपण को व छ करने पर उसम मुंह िदखलाई देने लगता है, उसी कार दय क व छ होते ही उसम स गु का प
िदखलाई देने लगता है।

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kajaU (KAJU)
काजू एक कार का फल होता है जो सूखे मेवे म काजू का औषधीय गुण
शािमल होता है। काजू क गुण यािन पौ टक गुण इतने है िक काजू पौ टकता से भरपूर होता है और थोड़ा कड़वा,
आयुवद म काजू को कई तरह क बीमा रय क िलये योग म गम तथा वात-िप और कफ को कम करनेवाला होता है।
लाया जाता है। काजू दांत दद से लेकर द त, कमजोरी जैसे इसक अलावा काजू पेट क रोग, बुखार, किम, घाव, सफद
अनेक रोग से राहत िदलाने म मदद करता है। क ठ, सं हणी (इ रटबल बॉवल िसं ोम), पाइ स तथा भूख
काजू को यूं ही खाने से भी न िसफ इसक न लगने जैसी बीमा रय म लाभ द होता है। इसका जड़ ती
वा यव क गुण का लाभ िमलता है ब क काजू को यंजन िवरेचक (शरीर से अवांिछत पदाथ िनकलना) तथा कमजोरी
म डालने से यंजन का जायका बदलता है। इसका उपयोग दूर करने म सहायक होता है। काजू की बीज म ा पोषक,
कह मीठ पकवान, तो कह मसालेदार यंजन का जायका मृदुकारी तथा िवष को कम करने म मदद करती है।
बढ़ाने क िलये िकया जाता है। काजू का इ तेमाल िसफ खाने भर काजू क फायदे
तक सीिमत नह है, ब क इसका योग शरीर की कई 1. दय वा य क िलये काजू
सम या से िनजात िदलाने क िलये िकया जा सकता है। इसक काजू को न स की ेणी म रखा जाता है और न स
साथ ही काजू खाने से सेहत और सौ दय म भी िनखार आता है। शरीर को कई प म फायदा पहुंचाने का काम करते ह। दय
काजू एनज से भरपूर ोटीन और फट का बेहतरीन क वा य को बरकरार रखने क िलये भी न स मह वपूण
ोत है, यह तुरंत ऊजा दान कर सकता है। इसिलये, बढ़ती माने जाते ह। इनम बायोए टव मै ो यूि एं स मौजूद होते ह,
उ क ब और िखलािड़य को इसका सेवन ज र करना जो दय को व थ रखने का काम करते ह।
चािहये। काजू को एनज का पावर हाउस भी कहते ह। काजू 2. अ छ पाचन तं क िलये फायदे
ोटीन और ऊजा का ोत होने क साथ-साथ याददा त बढ़ाने, काजू खाने से पाचन-तं मजबूत होता है, य िक
सूजन कम करने और अथराइिटस का दद कम करने म इसम फाइबर की अ छी मा ा पाई जाती है। फाइबर पाचन को
मदद करता है। यह िजतना वािद ट है, उससे कह यादा यह ठीक रखकर क ज और अ सर जैसी सम या से छटकारा
सेहत क िलये फायदेमंद माना जाता है।
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िदलाने म मदद करता है। साथ ही इस बात का भी यान रखना काजू म कई पोषक त व पाये जाते ह, जो गभाव था म
चािहये िक काजू का अिधक मा ा म सेवन क ज और गैस की आव यक होते ह। इसम पाया जाने वाला क शयम और
सम या पैदा कर सकता है। िवशेषकर, िजनकी िफिजकल मै ीिशयम गभवती मिहला क वा थ क साथ ही ूण की
ए टिवटी ना क बराबर होती है, उ ह काजू का सेवन कम ही हि य क िवकास क िलये ज री होता है । मै ीिशयम ज म
करना चािहये। क समय िशशु क वजन म कमी और गभवती क र तचाप को
3. हि य क िवकास क िलये फायदे रोकने म मह वपूण भूिमका िनभाता है।
काजू म मै ीिशयम और क शयम की अ छी मा ा होती है। 7.. व थ मसूड़ और दांत क िलये फायदे
क शयम और मै ीिशयम हि य क िवकास क साथ ही दांत क िलये क शयम सबसे मह वपूण पोषक त व माना
उ ह मजबूती दान करने म मदद करते ह। काजू म मौजूद जाता है। क शयम दांत क िवकास और उनकी मजबूती
मै ीिशयम ऑ टयोपोरोिसस (OSTEOPOROSIS) जैसी बनाये रखने का काम करता है। शरीर म इस खास त व की
बीमा रय की रोकथाम म मदद कर सकता है। इस बीमारी क कमी दांत टटने से लेकर कई अ य सम या का कारण बन
कारण हि यां कमजोर और नाजुक हो जाती ह। सकती है। य िक काजू म क शयम की मा ा पाई जाती है।
4. व थ िदमाग क िलये फायदे 8. व थ वचा क िलये फायदे
मै ीिशयम म त क क र त वाह म सहायक होता है और काजू म ोटीन और िवटािमन-ई जैसे एंटीऑ सीडट होते ह,
साथ ही म त क की चोट को दूर करने म मै ीिशयम का जो वचा क वा य व स दय को बढ़ावा देने और वचा पर
मह वपूण काय होता है। इसक अलावा, मै ीिशयम म बढ़ती उ क असर को रोकने म लाभदायक होते ह। साथ ही ये
एंटीिड ेसट गुण होते ह, जो अवसाद को दूर करने म मदद वचा को झुर य और सूय की हािनकारक िकरण क भाव
कर सकते ह। इस कार काजू म मौजूद मै ीिशयम िदमाग से बचा सकते ह।
क वा थ क िलये भी लाभदायक होता है। ाई स हे थ क िलये काफी फायदेमंद होते ह।
5. र त को व थ रखता है इसिलये आपको भी अपनी डाइट म न स यानी ाई स को
काजू आयरन और कॉपर का अ छा ोत है। आयरन व थ ज र शािमल करना चािहये। ाई स म िवटािम स और
लाल र त कोिशका को बढ़ाने म मदद करता है, जो शरीर म िमनर स काफी अिधक मा ा म पाये जाते ह। काजू का सेवन
ऑ सीजन को पहुंचाने म मदद करता है। आयरन रेड लड करना लाभकारी हो सकता है। आप िनयिमत प से खाली पेट
से स क उ पादन को बढ़ाकर एनीिमया जैसे र त िवकार को काजू का सेवन कर सकते ह। एक िदन म एक य त 4 से 5
दूर करने का काम भी करता है। काजू का सेवन कर सकता है।
6. गभाव था क िलये फायदे

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ावणमय ऋि -िसि योग
06 जुलाई, गजानन संक टी चतुथ
िजस प रवार म गणपित क साथ ऋि -िसि की पूजा होती है, वह घर ही मंगलमय तथा आन द द बन
जाता है, ल मी की िनर तर कपा होती रहती है, कज क बोझ से मु त िमलती है, वह साधना म भी
सफलता ा त होती है। ऋि -िसि साधना करने से भूिम-लाभ, शी भवन िनमाण तथा प रवार म पूण
सुख-शांित ा त होने की ि या उसी िदन से शु हो जाती है। ावण यु त इस िदवस पर यह साधना स प
करने से सम त सुख की ा त होती है।

िशव िसि योग


10 जुलाई, ावण सोमवार ार भ
यह संसार भी िवष का सागर है, जो छल, झूठ, कपट, िहंसा, यािभचार, ई या पी िवष की बूंद से भरा हुआ है।
इस दुलभ संसार म रह कर भी य त उ साह, उमंग यु त हो सक इसक िलये जीवन म नृ य, आन द व वाह
होना आव यक है। यही तो म ती है, यही तो उ ता, े ठता, तेज वता, और स पूणता है जो आप पा सकते ह
इस योग को स प कर भगवान िशव की कपा ा त कर और गु भी िशव ही है इसिलये इस िशव योग को
अव य ही स प कर।

अमृतपान योग
18 जुलाई, अिधक मास ार भ
मा शरीर का बा वा य ही आव यक नह है, अपितु इसक साथ ही साथ आ त रक एवं बौि क प
से व थ एवं उ ितशील होना भी आव यक है... े ठ िवचार, े ठ ि या प ित, े ठ भावनाय,े े ठ
िच तन आिद ही े ठ य त व की पहचान ह। इन गुण को जीवन म उतार कर ही े ठता क माग पर
अ सर हुआ जा सकता है। यह योग इस दृ ट से अ य त े ठ एवं अि तीय है।

े ठमय संतान सुख ा त योग


29 जुलाई, पि नी एकादशी
अिधक मास की एकादशी का िवशेष मह व होता ह,ै िजसम पि नी एकादशी क िदन संतान ा त, प रवार
र ा, आयु वृि , सुख-समृि की मनोकामना की पूित क िलये मह वपूण है। ावण मास यु त एकादशी
पर इस योग को स प करने से व थ संतान की ा त, प रवार की बुरी श तय से र ा, सुख-शांित,
आरो यता, आ या मक िवकास, पूव ज मकत दोष से मु त आिद सुमंगलमय थितय की ा त होती है।

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PMY V 46 GurudevKailash tqykbZ 2023


cky fo'ks"k

सीखे
िसिवक से स !
हमने हमेशा से सुना है िक हम जहाँ रहते ह या िफर जहाँ क नाग रक ह और हम िजस देश, रा य, शहर या नगर म दी
जाने वाली सुख-सुिवधा या FACILITIES एवं AMENETIES का पूरा उपयोग एवं उपभोग कर रहे ह तो हमारी भी उस देश,
रा य, शहर या नगर क ित कछ DUTIES और RESPONSIBILITIES होती है िजसे पूरा करक हम एक अ छ CITIZEN बन
सकते ह और उस थान क िवकास म अपनी भागीदारी दे सकते ह और इस अ छी आदत को सीखना ही CIVIC SENSE है।
िसिवक से स क कछ उदाहरण िज ह हम सीखकर उ ह FOLLOW कर सकते ह-
© PUBLIC PLACE पर अ छा आचरण व POLITELY BEHAVE करना।
© GOLDEN WORDS जैसे लीज, थ यु, EXCUSE ME, SORRY जैसे श द उपयोग म लेकर।
© घर क आसपास, कह घूमने जाये वहाँ, कल आिद म कचरा नह फलाकर, अपनी ओर से सफाई एवं हाईजीन
MAINTAIN रखने क यास करक।
© बड़-बुजुग को PUBLIC TRANSPORT म SEAT देकर या कोई QUEQE म पहले जाने देकर।
© ट सी, बस या अ य कोई ाईवर से िश टता से यवहार कर क।
© TEACHERS, RELATIVES को आदर देकर।
© ाईिवंग पर जाते समय हेलमेट, सीट बे ट पहनकर।
© कह प लक गाडन म जाये तो फल, पौधे-पि यां न तोड़, वहां गंदगी नह फलाय।े
© कभी न, बस, Ýलाइट म जाये तो गंदगी न फलाय।े
© म मी-पापा से झूठ कभी नह बोल ना ही कछ बात छपाय।े
© कल म MORNING PRAYER, रा गान, NATIONAL FLAG को हमेशा RESPECT द।
© घर पर छोट-मोट काम म HELP कर क।
© गरीब, अनाथ, बेसहारा, HANDICAP क ित सहानुभूित रख।
© छोटी बात पर गु सा न होकर, धैय से POSITIVE सोच रख कर।
इन सरल व छोटी-छोटी बात को यान म रखकर हम देश क अ छ व जाग क नाग रक बनकर हमारे PARENTS को गव
महसूस करा सकते ह और एक अ छा EXAMPLE सेट कर सकते ह।
tqykbZ 2023 +91-99508-09666 PMY V 47
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Purushottam Month 18th July to 16th Aug

Purushottam
Kalpa Diksha
Ahamete Yatha Loke Prathitah Purusottamah।
Tathayamapi Lokssu Prathitah Purusōttamah।।
Just as I am known in the Vedas, world and scriptures as
Purushottam, similarly this Malmaas will also be famous by the name
Purushottam on the earth and I am now the owner of this month.
The month in which there is no The Moon takes 27.3 days to complete
Surya Sankranti is called Adhika month or an orbit around the earth. While the earth takes
Purushottam month. To understand this in 365.25 days to orbit around the Sun. Adhik
simple words, the month in which there is no Maas is an extension of the Lunar calendar, as
solstice of the Sun between one Amavasya to it differs from the Solar calendar with 32.5
another Amavasya is called Adhik Maas. months. According to Indian numerology, the
Sankranti means the entry of the Sun from one Lunar year consists of 354 days. In contrast,
zodiac to another. the solar year is 365 days as they have variations

tqykbZ 2023 www.pmyv.net PMY V 49


of 11 days. As a result of 3 years, it has the Yet, we worship him as God and the
expansion of a month. Thus, the distance reason behind this is He continued to struggle
between solar and lunar year is stabilized by throughout his life but never gave up. With each
Adhik Maas. challenge, his personality got further glorified
Purushottam Month is considered as a and he became more and more confident and
Holy month, and the benefits of this month are resilient in life.
innumerable. The Puranas also sing high praises Something true holds true for Lord
about Adhik Maas and indicate puja, readings of Krishna too. When he was a mere infant, Putna
scriptures etc. during this month. Selfless tried to kill him, then he faced Kaliya Nag,
actions, without any expectations of results are followed by it he had to face the wrath of Lord
to be performed during Purushottam Maas. It Indra and to save his people from heavy rain,
is believed that a person can be bestowed with all Lord Krishna picked entire Govardhan
the necessities of the life, as well as after leaving mountain and gave shelter to them. Later down
this world, he will be taken to the abode of Lord the life, he faced many warriors and demons
Vishnu. and defeated them. He was the one who helped
Our ancient texts have highly praised Pandavas win the battle of Mahabharat.
this holy month. Some of the significances of Even after five thousand years after his
Purushottam month are: birth, we still worship him. There were great
© Any religious activity and good karma warriors during the time of Mahabharat like
performed during this month brings Dronacharya, Bhishma, Karna, etc. but we
manifold auspicious results. don't worship them. The reason behind this is
© It is said that Lord Krishna gives most of Lord Krishna did something which others
his mercy and blessings during Purushottam couldn't. We remember Krishna, but we don't
month know about his grandsons or the grandsons of
© It is believed that who worships or offer Lord Ram. We can argue that Lord Ram and
prayers during Adhik Maas devotedly and Lord Krishna are the incarnation of Lord
selflessly attains moksha and all his past Vishnu, and that's why we worship them.
sins washes away Then what about Vivekanand,
© Prayers offered during this month brings Mahatma Gandhi, Martin Luther King &
most auspicious results than that done in any other great personalities of this world. We still
other month remember them, we offer our tribute to them and
Purushottam is a name of Lord Vishnu still follow their preaching. We don't consider
which means the best among all the beings. His them as an incarnation of any God, then why do
this name signifies that we all should try and we consider them great? The reason is, they
attain greater feat in life and make this life struggled in their life, they never bowed down
worthy. Irrespective of the fact that Lord Ram, to the challenges that came into their way and
Lord Krishna and other forms of Lord Vishnu that's why they were able to put themselves
were divine incarnation, each of them went among the few known personalities of their era.
through a lot of struggles and faced many There is a great myth among the people that
challenges during their life span. They struggled personality is how we look. Personality has
and emerged victorious because they never gave nothing to do with our appearance, our height, or
up, they continued to push themselves forward our looks. Gandhi Ji weighed merely 48
irrespective of what came in front of them. k i l o g r a m s , y e t h e p o s s e s s e d a g re a t
personality. People were willing to die on his
Lord Ram was a prince by birth and was one wish. On the contrary, probably we don't
blessed with all the worldly pleasures. Yet, he even have a single person who can just stand by
faced challenges at every step in his life. At a our side in life.
small age, he had to face the demoness Tarka
and defeated her after a battle. Later, he was sent Napoleon Bonaparte was just 5'6”
to forests due to Kaikai's wish where his wife, tall, yet he was one of the greatest warriors of
Sita, was kidnapped by Ravan. He had to fight his times. Once, Napoleon was trying to pull out
with Ravan and his great army and defeated a book from his library which was kept on the
them. After completing fourteen years of exile, higher racks. His general, seeing that Napoleon
when he returned back to Ayodhya, he had to get was finding it difficult to reach to the book said,
separated with his wife. He didn't even get the “My Lord, let me take that book out for you. I am
pleasure of enjoying the childhood of his sons. bigger than you.” Hearing this, Napoleon

PMY V 50 GurudevKailash tqykbZ 2023


replied, “Taller, not bigger general!” This life is of no use, it is as unworthy as living a life
incident show how much confident was of an insect.
Napoleon in his life. SadGurudev wants all his disciples to
Personality is something which defines become great in life, to attain something which
our characteristic. It is that confidence, that faith, can make us stand apart in life. Irrespective of
that positivity which speaks about the person. fact in whatever field we are, we need to excel in
Such a person need not speak about his traits, the that and attain greatness in our fields. Then only
aura of such a person speaks for him. One can we can become a true disciple, then only we can
come out victorious in any struggle by taking on bring a smile on the face of Gurudev, then only
the enemy or problem with one's entire force and we can create a mark in history and then only the
destroying it or rendering it harmless before it coming generations will remember us.
could harm one. When the war cry has been If we want to live like any Mr. Ramlal or
raised then peace messages can't work. Rather, Mrs. Sheela, then we really don't need a
one must accept the challenge with the spirit of SadGuru in life. A SadGuru is required by
do or die. One has to attack like a lion on the someone who wants to attain something great in
enemy or the situation. All heroic deeds in the life, who wants to make his entire family proud
world have been accomplished with this spirit. of him, who wants to inscribe his name in
The brave does not worry about how strong the history. And Gurudev will be granting
enemy is, rather they attack the foe with full Purushottam Kalpa Diksha to all those
force and fight with the determination to win. disciples who want to attain a great personality
A lion doesn't plan its next kill. Rather as in life, who wants to attain something worthy,
soon as it spots its prey, it attacks and brings it to who wants to live a life of happiness and
the ground with its sharp teeth and claws. Men prosperity, who wants to have enormous wealth
who display such courage and determination are along with great health in life during this
called Purushottam in life. Is a life where there Purushottam month.
are no challenges, where there are not enemies, Purushottam Kalpa Diksha 2100/-
where there are no struggle worth it? It is well
said that a person is alive only till the time he
continues to face struggles in life. A spineless

tqykbZ 2023 +91-99508-09666 PMY V 51


Lord Shiva and Goddess Parvati will fulll all
your wishes this Shravan Month.

SHRAVAN MONTH
SADHANAS
Na Janami Yogam Japam Naiva Pujam
Natoham Sada Sarvada Shamhutubhayam
Jarajanmadukhaugha Taarapyamanam
Prabho Pahi Aapannamamaisha Shambho
I don't know how to do yoga, mantra chanting or prayers. Still, I
bow continuously before you. O Shambhu, my lord, save me from
the sufferings of old age, rebirth, grief, sins, and troubles.
PMY V 52 info@pmyv.net tqykbZ 2023
Once there was a devotee of lord shiva, one hand, where everyone around us gets fed up
who was mad, but there was one good thing with the heat waves and hotness, the arrival of
about him, he used to love lord Shiva in most monsoon brings a new energy. Everything
pure manner, his dedication for lord Shiva was around us gets so lively, we can see children
very high. He used to think that lord Shiva is his dancing in the rain, we can see greenery all
son. around ourselves, we can see different birds
One day, he came back to his home with singing and dancing in the rain. It appears as if
some food collected from somewhere. He used the natured reboots itself for someone special!
to carry a Shivalinga with himself. He gave first And for whom this reboot is done. Yes,
slice of food to Shivalinga and said, “Eat it my the nature itself welcomes Lord Shiva and we
dear!”. He waited for a couple of minutes and human beings have learnt the same from nature.
when he saw nothing happened, he again gave We all know that this complete month is
order to Lord Shiva, “Eat your food”. dedicated to Lord Shiva, the Lord who
He warned Lord Shiva multiple times to continuously bestows boons upon all His
eat the food but nothing happened. He went Sadhaks and devotees.
furious and took a small stick and start beating Any Sadhana performed during
lord Shiva. Mother Parvati was seeing all this, Shraavan month provides success. Lord Shiva
she asked, “What kind of devotee he is and is the one who gets pleased even if His devotee
how you can tolerate this insult my Lord?” just piously remembers Him. If we look at the
Lord Shiva smiled and replied, “If my history, it has been Lord Shiva who has given
devotee is beating me out of love, I am ready the most numbers of boons. And what can be
to be beaten by him.” said about His devotees, the list is so huge that
This is the level of his kindness and love Gods, demons, humans, spirits or in other
towards his devotees! words, every creature of this nature gets a name
Lord Krinsha has explained about the in this list. Such is the simplicity of the great
greatness of Lord Shiva in Mahabharata. He Lord.
mentioned that learned people meditate on him It is also a fact that Kuber and Goddess
as the supreme and eternal truth. He is famous Lakshmi worshipped Lord Shiva during this
as the lord of attachment. He is supreme of the month and were able to attain such high stature.
supreme. He is the one without decay. He is the Thus, worshipping Lord Shiva during this
illustrious God who represents all that is true. month not only ensures a person gets blessed by
H e is w ith o u t b eg in n in g an d w ith o u t Lord Shiva and Goddess Parvati, but the
destruction. He is the one who knows about all person is also blessed by Goddess Lakshmi &
truth and ordinances. He is the lord who is the Lord Ganpati.
foremost Purusha. Shiv Gauri Ganapati Lakshmi Sawan
He is the one who created Brahma, the Diksha K2100/-
creator of the worlds, from his right flank. He is
the lord who created Vishnu, for the protection
of the worlds, from his left flank. When the end
of a yuga arrives, he is the lord who creates
Rudra from his limbs. Rudra destroys
everything in the universe, mobile and
immobile. He is the immensely energetic
Destroyer, the fire of destruction. This God,
Mahadeva, is the creator of everything in the
universe, mobile and immobile. At the end of a
Kalpa, it has been said that everything will be
withdrawn into him. You go everywhere. You
are the soul of all creatures. You are Bhava, the
creator who creates the creator of beings.
What else can be said about the great
Lord who has been praised by Lord Krishna.
And the favorite month of this lord is none other
than Shraavan month which is special. Doesn't
Shraavan month bring a new joy in our life? On
tqykbZ 2023 www.pmyv.net PMY V 53
Third Monday 24th July 2023

For a
HAPPY MARRIED LIFE
Nama Shivaabhyam Jagadeeswarabhyam,
Jagat Pathibhyabhyam, Jaya Vigrahabhyam,
Jambhari Mukhyair Abhi Vandidabhyam,
Namo Nama Sankara Parvatheebhyam
Salutations to Lord Shiva and Goddess Parvati, who are the lord and lady of the universe,
who are always victorious, and who are worshipped by Indra and his chiefs. Salutations
again to Lord Shiva and to Goddess Parvati.
Once Lord Shiva & Goddess Parvati were to worship Shiva Linga. As Her penance grew,
sitting on the Kailash Mountain & were talking Her complexion also started to become fairer.
casually. Suddenly Lord used the word Kali Soon, all Her body parts gained fair
(which means dark) for Goddess' complexion. complexion. Then Lord Shiva reached to the
The Goddess felt very bad listening to the word worship place and brought Goddess Parvati
Kali and started to remorse on Her complexion. along with Himself. He also said that whosoever
She then left towards Prabhas area and started will perform this Sadhana will get blessed with
PMY V 54 GurudevKailash tqykbZ 2023
beauty, good physique, hypnotic power,
wealth, fame & household pleasures.
This Sadhana of Lord Shiva can
be performed by both man and woman.
On one hand where a woman gains beauty
& charm, man gains great health &
physique, hypnotic power & command
in the society. Enormous amount of wealth
comes into the life of such a person. If a
person is jobless, soon a job comes to him
or her. If a person is a businessman & there
is no expected progress in the business,
then the business starts flourishing. Even
household life of such an individual
becomes a blessing. One can even create
the same bond of love that ever existed
between the couple who now desperately
want to get a divorced.
Sadhana Procedure:
Sadhak must take a bath. Get into
a fresh yellow cloth & sit on a yellow mat
facing East. Take a wooden plank &
cover it with a yellow cloth. Now place a
picture of revered Gurudev & worship
Him with vermillion, rice grains, flower
etc. Chant one round of Guru Mantra &
seek His divine blessings for success in
sadhana. Next place Ardhnarishwar
Shivling & worship it too.
Now take a plate and make a
symbol of Om (ÅWa) on it using vermillion.
Place SadaShiva Yantra at the center of
Om & place GauriShankar Rudraksha
on the “ÅWa” symbol of Om. Worship the
yantra & the Rudraksha with vermillion,
rice grains and sindur. Now chant 5
rounds of the below mantra with
HarGauri Rosary.
Mantra
|| Hreem Om Namah Shivaaya
Hreem ||
AA âha ÅWa ue% f'kok; âha AA
Keep all the sadhana articles in your
worship place for at least one week.
Drop all the sadhana articles in a river
or pond after that.
Sadhana Articles K1100/-
Shiv Shakti Kaya Kalp Diksha K2600/-

tqykbZ 2023 +91-99508-09666 PMY V 55


Fourth Monday 31st July 2023

For
UNENDING

WEALTH

Astadalopari Vestithalingam Sarvasmudva Karanalingam


Astadaridra Vinasana Lingam Tatpranamami Sadasivalingam
Suruguru Suravara Poojita Lingam Surapushpa SadarchitaLingam
Paramapadam Paramatmakalingam Tatpranamami Sadasivalingam

Salutations to Sada Shiva Lingam, which is enveloped with eight-fold petals, which
is the cause of all creation, and which destroys eight types of poverty. I salute that
eternal Shiva Lingam which is worshiped by the preceptor of Gods and the best of
the Gods, which is always worshiped by the owers from the celestial garden,
which is superior to the best and which is the greatest. I Salute that eternal
ShivaLinga.
PMY V 56 info@pmyv.net tqykbZ 2023
Obtaining wealth is one thing & retaining it another. We can see a lot of people around us
who earns a good income, however, by the end of the month, they are as good as any poor people.
No matter how hard they try, money creeps out of their pocket by one reason or another. Many a
times even if the person curbs their wishes to spend the money, some calamity comes into the life of
such a person and the money gets drained out.
The reason behind it is the nature of Goddess Lakshmi, She can't remain bounded. One has
to perform special procedures to keep Her bounded within the house and thus to ensure whatever
we earn is spent well and only when it is required. Presented below is one such sadhana which can
bring wonders in the life of a person and can help retain the hard earned money.
One needs “Jyotirlinga” and “Vidyut
rosary” for this sadhana. This sadhana
should be performed in the
morning. Take a bath and
get into fresh white cloth
and sit on a white mat
facing north. Place a
picture of revered
SadGurudev and
worship Him with
vermillion, rice grains,
flowers etc. Light a ghee
lamp and an incense
stick. Then chant one
round of Guru Mantra
with the Vidyut rosary
and pray to Gurudev for
success in sadhana.
Next place the
Jyotirlinga in a copper
plate and worship it with
vermillion, rice grains,
flowers and offer some
sweet made of milk. Now
chant 3 rounds of the
mantra below.
Mantra
|| Om Hreem
Shankaraaya Namah ||
|| ÅWa âha 'kadjk; ue%a ||
Drop all the
sadhana articles in a river
or pond the next day. This
completes the sadhana
procedure. You will be left
astonished to see how your
useless expenses are getting
restricted and your money
has started to stay with you.

Sadhana Articles K830/-


Shivoham Shreem Lakshmi Diksha K2600/-

tqykbZ 2023 www.pmyv.net PMY V 57


Fifth Monday 7th Aug 2023

FOR REMOVING
UNTIMELY DEATH
Om. Tryambakam Yajamahe Sugandhim
PushtiVardhanam
Urvarukamiva Bandhanan Mrityor Mukshiya Mamritat
We worship the Trinetra, which is fragrant and nourishes us. Just as the fruit is liberated
from the bondage of the tree, may we also be liberated from death and impermanence.
Mrityunjay is a divine form of Lord Shiva yellow cloth. Sit on a yellow mat facing East.
whose Sadhana helps one overcome mishap Cover a wooden seat with yellow cloth. On it
and the fear of untimely death in life. This place a picture of Gurudev and pray thus
Sadhana is also tried for riddance from incurable Yogeshwar Guroswaamin
diseases. One needs a Mahamrityunjay Yantra Deshikaswaratmanaapar,
and Rudraksh rosary for this Sadhana. Traahi Traahi Kripaa Sindho,
Early morning, have a bath and wear
PMY V 58 GurudevKailash tqykbZ 2023
Naaraayan Paratpar.
Twamev Mata Cha Pita Twamev…..
AA ÅWa âkSa Tkwa l% izlUu ikfjtkrk; Lokgk AA
 Worship Gurudev with vermillion, rice & pray for your good health. Now take the
grains, flower etc. Light an incense stick and a Rudraksh rosary & chant 3 rounds of below
ghee lamp. Chant one round of Guru Mantra mantra.
and seek Gurudev's divine blessing for success Mantra
in the Sadhana. || Om Hraum Joom Sah Bhoorbhuvah Swah Om
 Next pray to Lord Ganpati for Trayambakam Yajaamahe Sungandhim
removing any hurdle Pushitvardhanam, Urvaarukmiv
BandhanaanMrityormuksheeya Maamritaat.
Vigharaaj Namstestu Parvati Priyanandan, Swah Bhoorbhuvah Om. Sah Joom Hraum Om ||
Grihaanaarchaamimaam Dev
Gandhpushpaakshteih Sah. ea=
Om Gam Ganaapataye Namah. AA ÅWa âkSa Tkwa l% HkwHkqZo% Lo% ÅWa «;aCkde~
 Now take a steel plate and put it in front
of Gurudev's picture. Make a symbol of “Å” ¡ and ;tkegs lqxfU/ka iqf”Vo/kZue~ mokZ#d
swastika with vermillion on the plate. Place cU/kuku~ e`R;kseqZ{kh; eke`rkr~ ÅWa Lo% Hkqo% Hkq%
Mahamrityunjay Yantra over “Å”¡ & place any
Shivalinga on the swastika symbol. Take some l% Tkwa âkSa ÅWa AA
water in your right palm and pledge thus,  This is a very special & powerful
Om Mam Aatmanah Shruti Smriti Puraannokt mantra & one should try this ritual on every
Phal Praapti Nimittam Amukasya (speak out your Saturday falling in the the month of Shravan.
name) Shareere Sakal Rog Nivrittim Poorvakam Whenever you face any fear or someone gets ill
Aarogya Praapti Hetu Mahaamrityunjay Mantra in your family, just chant the mantra
Jap Karishye.
|| Om Joom Sah (name of patient) Paalay
 Let the water flow to the ground and then Paalay Sah Joom Om. ||
chant thus,
Mrityunjay Mahaadev AA ÅWa Tkwa l% ( jksxh dk uke ) iky; iky; l%
Sarvasaubhaagyadaayakam Traahi Maam
Jagataam Naath Jaraa Janam Layaadibhih.
Tkwa ÅWa AA
 Now take 108 Bel leaves & offer them Offer the Sadhana articles along with some
one by one on to the Yantra chanting the mantra money in Lord Shiva Temple after completing
the procedure on all the four Saturdays.
AA Om Hraum Joom Sah Prasann Sadhana Articles J780/-
Paarijaataay Swaha AA Kaal Nivaran Maha Mrituyanjay Diksha J2600/-

tqykbZ 2023 +91-99508-09666 PMY V 59


Sixth Monday 14th Aug 2023

For
RISE OF FORTUNE
Kalatkunnddalam Bhrusunetram Vishaalam
Prasannaananam Neelakannttham Dayaalam
MrgaAdhiishaKarmaambaram Munnddamaalam
Priyam Shangkaram Sarvanaatham Bhajaami
The beloved Lord of all, with shimmering pendants hanging from his ears, beautiful eyebrows
and large eyes, full of mercy with a cheerful countenance and a blue speck on his throat. I
worship Him who is beloved of his devotees, who is Shankara, the Lord of all.
Before the battle of Mahabharat, Lord said that performing the Paashupataastrey
Krishna advised Arjun to perform Sadhana is the greatest fortune of one's life. It is
Paashupataastrey Sadhana if he wanted to the best ritual to appease Lord Shiva & gaining
defeat the huge army of Kauravas, wanted to divine powers from Him. Following are the few
win over death and wished for good fortune in benefits of performing this Sadhana:
times ahead. According to Lord Krishna, there 1) If one is unable to attain success in sadhanas
is no better Sadhana for totality and absolute due to evil planets or past bad karmas, then by
success in life than Paashupataastrey the grace of Lord Paashupataastrey, one
Sadhana. attains quick success as the Lord neutralizes
The great sage Vishwamitra too has all the negative forces.
PMY V 60 info@pmyv.net tqykbZ 2023
2) Lord Shiva is bestower of totality and by the Haram Panch Vaktram Trinetram.
virtue of this sadhana, one makes good  Place a flower on your head and on
spiritual progress. before the Shivalinga. Then contemplating on
3) After trying this sadhana, one never has to the holy form of the Lord chant thus,
face failure in life. Pinnak Dhrik Ihaavah Ihaavah Ih Tishtta Ih
4) Lord Shiva rules luck and thus this sadhana is Tishtt Ih Sannidhehi Ih Sannidhehi, Ih
a boon for those who are unfortunate. Sannidhatsv, Yaavat Poojaam Karomyaham.
5) If accomplished with full devotion and faith, Sthaaneeyam Pashupataye Namah.
Lord Shiva appears before the sadhak and  Now chant 21 rounds of the below
blesses him. mantra with Rudraaksha rosary.
One needs Narmadeshwar Baanlinga Mantra
and Rudraaksha rosary for this sadhana. Early || Om Har, Maheshwar, Shoolpaani, Pinaak
morning, have a bath and wear yellow cloth. Sit Dhrik, Pashupati, Shiva, Mahadev, Ishaan
on a yellow mat facing East. Cover a wooden Namah Shivaay ||
seat with yellow cloth. On it place a picture of
Gurudev and worship Him with vermillion, rice ea=
grains, flower etc. Light an incense stick and a
ghee lamp. Chant one round of Guru Mantra
AA ÅWa gj egs'oj 'kwyikf.k fiukd /k`d
and seek Gurudev's divine blessing for success
in the sadhana.
Ik'kqifr f'ko egknso bZ'kku ue% f'kok; AA
Next take a Bel leaf and put it in front of This is a mantra that brings total
Gurudev's picture. Place the Narmadeshwar success and one can even attain divine powers
Baanling over the bel leaf and pray thus through it. It is known as Ashta Shiva Mantra in
Om Dhyaayenityam Mahesham Rajat Giri the ancient texts. Perform Shiva Aarti after
Nibham Chaaru Chandraavatansam, completing the mantra chanting. After
Ratnaakalpojjawallaangam Parashu Mrig completing the Sadhana procedure, place
Varaabheeti Hastam Prasannam. Narmadeshwar Baanling & Rudraaksha
Padmaaseenam Samantaat Stutatmamar rosary at your worship place.
Ganneirvyaaghra Vrittim Vasaanam, Sadhana Articles J770/-
Vishvaaghamvishva Vandhyamnikhil Bhay Bhagyouday Shiv Pashopatastra Shakti Diksha J 2600/-

tqykbZ 2023 www.pmyv.net PMY V 61


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PMY V 62 GurudevKailash tqykbZ 2023


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tqykbZ 2023 +91-99508-09666 PMY V 63


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Shiver Venus: Hotel CRN Canary, No 274 S
jkrkukM+k] tks/kiqj C Road, Gandhi Nagar, Majestic,
9950809666] 7568939648] 8769442398 BENGALURU
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egke`R;qat; iznkrk f'koRo x.kifr 9686270445] Hkjr mik/;k; 7895727019] 'kjuEek
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20 vxLr NAGPUR (M H.) dqekj 9918161088] mek 'kadj 9353042474] nhun;ky
Shivir Venue: GURUDEV SEWA MANDAL, tkVo 9632172538] vej iVsy 9535065690] C;qVh flag
AGYARAM DEVI CHOWK, 9686270445] tuknZu jsM~Mh 9148909997] ';ke dqekj
NEAR COTTON MARKET, NAGPUR (M H.) 9304317550] jkeukFk dq e kj 8083392706] jktu
Ameetsingh Gaur 9823153431, Soniya Singh mik/;k; 8709318992] ç'kka r 7676009633] vkj-
8806621721, Manoj Bais 9373118421, Rajat dEcjukFk 9573149784] tuknZu 9342659091] czts'k
A a n d e l ka r 7 2 7 6 1 0 3 0 4 4 , M a n i s h C h a u ra s i a dqekj 7903844491] jk/kkeksgu frokjh 9886608552] çse
9326969069, Saurabh Barke 8329898902, Nikhil çdk'k 7975646269] larks"k dqekj 9035050501] v:y
Durugkar, Dharmendra Bagde, Prasad Bandre, Dr.
9886701768] f'kojk.k ikfVy 7204744843
Pramod Bodele, Dr. Rahul Nagral, Sandeep Satghare
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
8806752959, Rajendra Pawar 9423402605,
Madhusudan Jopat 8421681497, Pawan Thakur, Anil egkek;k iw.kZrRo loZ thou j{kk /kunk
Pal, Archana Satghare 9284898673, Lakshmikant
Ninawe, Vishwanath Balapure, Karuna Bawne, o`f) lk/kuk egksRlo
Vishnu Jog, Pri Bharadwaj, Madhuri Suryawanshi, f'kfoj LFky% cluk N-x- 03 flrEcj
Divya Bais, Uday Singh Thakur, Anil Pandey, Meghraj
Jadhav, Gunwant Giradkar, Digambar Ninave, Manoj vk;kstd& jksfgr lko 9753178475] thou lko
Pandey, Ravi Bhake, Shantanu Shende, Aniket 982668858 8] flUèkq pkSèkjh 9399848182 oanuk MM+lsuk
Manghate, Rajendra Chandak, Prakash Nandwanshi, 7697179289] jktho lkxj 9111762093] ujsUæ lko
Vijay Mandle, Rudrakar, Sagar Ingole, Yash kolhe, 7697028268] v:.k jkt 8878270121] v'kksd flUgk
Dhiraj Satghare, Sangeeta Mohaje, Dhanraj, Aniket 8982811225]çseflag c?ksy 7798393630] jktdqekj iVok]
Kende, Varsha Raut, Mangesh Dahule, Naresh Kale, 'khrk xqIrk 9893323348] uohu lko 9977445510] larks"k
Nilesh Asutkar, Swas k Fulzele, Kuldip Dhoke, Shila lko 7049080733] dUgS;k flnkj] iq"ik uk;d
Baghel 9763026119, Suraj Dekate 9595814897, Ravi 6260742190] ca'khèkj iVsy 8226077831] x.ks'k Bkdqj
Thakre 9637226621, Ravi Wanjari, Ravi Channe, 9753904125] y{eh MM+lsuk] fp=ys[kk MM+lsuk] yfyr
Manik Poikar, Prashant Poinkar, Ramesh Dongarwar, iVs y ] xks j s y ky flnkj] ns o dq e kj lko] eks f gr MMls u k
Ashokji Aawle, Nikita Barke, Varsha Waghule, Palash 9770849821] jfrjke flnkj 9516104882] firka c j]
Bhaterao, Yash Kalbande, Harichandra, Tulsiram
eqDrs'oj] f'kojke] fnxacj] _f"kds'k] ds'ko] vys[k] cksèkjke]
Barke, Bande Guruji, Santosh Bhandekar, Ravi
iadt] jaHkk HkksbZ] enu flnkj 9753236829] jkefcgkjh ikaMs
Bhandekar, Kodape, Nisha Kodape, Bande sir, Sai
Bande, Kishore Lamkane, Manohar Kawale,
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Someshwar Raut, Girish Amgaokar, Umesh Pandey, fodkl] iw.kZpan] ca'khyky] {kek lko] ioZr usrke] lqjsUæ]
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tqykbZ 2023 www.pmyv.net PMY V 65


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PMY V 66 GurudevKailash tqykbZ 2023


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सांसा रक जीवन की ि या म यकायक िवषम थितयां या दु या क फल व प जीवन नारकीय बन जाता है
और य त समझ ही नह पाता िक य अचानक उसक प रवार म आिथक तंगी म वृि हो रही है। पूव ज म क दोष ,
पाप-संताप, अना था क िचंतन व प अनगल ि या क कारण जीवन क ट द हो जाता है। जो य त को याकल,
परेशान, तनाव त बना देता है।
मनु य क अथक यास करने क बाद भी वह अपनी इ छा को ा त कर नह पाता, तब वह या कर? यिद य त
अपने मानस म अपने इ छा को लेकर चल रहा है, उसे पूणता देने क िलये िन य यासरत है और अभी तक उसे साकार
प नह दे पा रहा है, तो इसका कारण कोई भी हो सकता है - साधन का अभाव, मागदशन का अभाव, आ म िव वास की
कमी, ित त या वयं क ही पूव ज माकत दोष, हमारे पाप, काय म सैकड़ कार की बाधाये उप थत होनी वाभािवक
है। यह बात तो येक मनु य जानता है िक जीवन की जिटल, िवषम थितय की िनवृि कवल इ ट गु , देवी-देवती की
कपा व मागदशन से ही संभव है।
भगवान िव णु सकल जगत को चलाने वाले आिददेव ह। उनकी साधना, उपासना करने से साधक को हर काय म
पूण सहायता िमलती है, य िक सम त काय मा भगवान िव णु की श त से ही गितशील ह। िकसी भी मनोकामना को लेकर
स प की गई भगवान िव णु की उपासना क मा यम से साधक क संक पत काय पूण होते ही ह।
इस दी ा को ा त करने से साधक का य त व भी आकषक हो जाता है, िजसक कारण उसे अनेक लाभ ा त
होते ह। भगवान िव णु यिद स हो जाय, तो उनकी सहचरी भगवती ल मी तो वतः ही िस हो जाती ह और इस कार
साधक क जीवन म द र ता का तो समापन होता ही है। यिद यापार है तो उसम बरकत होती है, यिद नौकरी पेशा ह तो
तर की होती है। यह दी ा जहां पूण भौितक उ ित का साधन है, बेरोजगार क िलये यवसाय का उपाय है, वह इस दी ा से
जीवन की सव इ छा क पूण होने का माग भी श त होता है।
िव णु वैभव श त nh{kk U;kSNkoj J2100
nh{kk gsrq uwru iQksVks o U;kSNkoj jkf'k dSyk'k fl¼kJe tks/iqj (jkt-) 9950809666 Hkstsa
U;kSNkoj jkf'k KAILASH SHRIMALI State Bank Of India Main Branch Jodhpur
A/c No.: 10827454848 RTGS Code: SBIN0000649 Branch Code:659
ubZ fnYyh E-1077 ljLorh fogkj]ihreiqjk Mob. +91-90138-59760 / +91-87507-57042
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