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पाठ योजना ननर्ााणकर्ाा : विजय कुमार हीर (टी0जी0टी0 कला ) कक्षा : दसिीं निषय : भगू ोल

सर्कालीन भारर् -2 ( भूगोल )


कक्षा- दसिीं
सर्कालीन भारर् -2 ( भूगोल ) र्ें पररयोजना काया बनिाने के नलए सुझाि :
1) पररयोजना कायय करने का उद्देश्य
2) आत्मकथा- वजन लोगों ने इस पररयोजना कायय करने में सहायता की उनका धन्यिाद करना
3) कायययोजना- ईस में छात्र यह बताएगा की ईस पररयोजना कायय में उसने कौन सा कायय वकस वदन
वकया
4) पररचय- वजस विषय पर कायय कर रहे हैं उसके बारे में बताना
5) विषयिस्त-ु विषय को 4-5 उप-विषयों में बाांटें और बच्चों से उन पर कायय काबयएन । ( वचत्रा सवहत
)
6) वनष्कषय ( अांत में विषय से प्राप्त वनष्कषय वनकालना )
7) सांदभय सचू ी :
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सत्र िार पाठ्यक्रर् का नििरण


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सत्र -1
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पाठ -1 सांसाधन एिम विकास


पाठ -2 िन एिम िन्य जीि सांसाधन
पाठ -3 जल ससां ाधन
पनु रािृवत
पररयोजना कायय पाठानसु ार दर्ायया गया है ।
पररयोजना कायय:

• सांसाधन एिम प्रादेवर्क विकास : के स अध्ययन गााँि /पांचायत /विला और राज्य ।


सत्र -2
पाठ -4 कृ वष
पाठ -5 खवनज तथा ऊजाय सांसाधन
पाठ -6 विवनमायण उद्योग
पनु रािृवत
पररयोजना कायय पाठानसु ार दर्ायया गया है ।
पररयोजना कायय:

• जैि विविधता सरांक्षण : के स अध्ययन गााँि /पांचायत /विला और राज्य ।


सत्र -3
पाठ -7 राष्रीय अथय व्यिस्था की जीिन रे खाएाँ
पररयोजना कायय पाठानसु ार दर्ायया गया है ।
पररयोजना कायय:
पाठ 1 से पाठ 7 तक की पनु रािृवत की जाएगी ।
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पाठ योजना ननर्ााणकर्ाा : विजय कुमार हीर (टी0जी0टी0 कला ) कक्षा : दसिीं निषय : भगू ोल
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पाठ्यपस्ु तक से सक्ष
ां ेप में वलखें
1. बहुिैकवपपक प्रश्न
(i) लौह अयस्क वकस प्रकार का ससां ाधन है?
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(क) निीकरण योग्य


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(ख) प्रिाह
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(ग) जैि
(घ) अनिीकरण योग्य
(ii) ज्िारीय ऊजाय वनम्नवलवखत में से वकस प्रकार का सांसाधन है?
(क) पनु ः पवू तय योग्य
(ख) अजैि
(ग) मानिकृ त
(घ) अचक्रीय
(iii) पांजाब में भवू म वनम्नीकरण का वनम्नवलवखत में से मुख्य कारण क्या है?
(क) गहन खेती
(ख) अवधक वसांचाई
(ग) िनोन्मल
ू न
(घ) अवत पर्चु ारण
(iv) वनम्नवलवखत में से वकस प्राांत में सीढीदार (सोपानी) खेती की जाती है?
(क) पांजाब
(ख) उत्तर प्रदेर् के मैदान
(ग) हररयाणा
(घ) उत्तराांचल
(v) इनमें से वकस राज्य में काली मृदा पाई जाती है?
(क) जम्मू और कश्मीर
(ख) राजस्थान
(ग) गुजरात
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(घ) झारखांड
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उत्तर (i) (घ) (ii) (क) (iii) (ख) (iv) (घ), (v) (घ)।
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2. वनम्नवलवखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 र्ब्दों में दीवजए


(i) तीन राज्यों के नाम बताएाँ जहााँ काली मृदा पाई जाती है। इस पर मख्ु य रूप से कौन-सी फसल उगाई जाती है?
उत्तर काली मृदा का रांग काला होता है। इन्हें रें गर मृदा भी कहते हैं। ये लािाजनक र्ैलों से बनती हैं। ये मृदाएाँ महाराष्र,
सौराष्र, मालिा, मध्य प्रदेर् और छत्तीसगढ के पठार पर पाई जाती हैं। काली मृदा कपास की खेती के वलए उवचत
समझी जाती है। इसे काली कपास मृदा के नाम से भी जाना जाता है।
(ii) पिू ी तट के नदी डेपटाओ ां पर वकस प्रकार की मृदा पाई जाती है? इस प्रकार की मृदा की तीन मख्ु य विर्ेषताएाँ क्या
हैं?
उत्तर पिू ी तट के नदी डेपटाओ ां पर जलोढ मृदा पाई जाती है। इस जलोढ मृदा की प्रमख
ु विर्ेषताएाँ वनम्नवलवखत हैं

• यह मृदा वहमालय के तीन महत्त्िपणू य नदी तत्रां ों- वसधां ,ु गगां ा और ब्रह्मपत्रु नवदयों द्वारा लाए गए वनक्षेपों से | बनी है।
• जलोढ मृदा में रे त, वसपट और मृवत्तका के विवभन्न अनपु ात पाए जाते हैं। जैसे-जैसे हम नदी के महु ाने से घाटी में ऊपर
की ओर जाते हैं, मृदा के कणों को आकार बढता चला जाता है।
• जलोढ मृदा बहुत उपजाऊ होती है। अवधकतर जलोढ मृदाएाँ पोटार्, फास्फोरस और चनू ायक्त
ु होती हैं जो इनको |
गन्ने, चािल, गेहाँ और अन्य अनाजों और दलहन फसलों की खेती के वलए उपयक्त
ु बनाती हैं। अवधक उपजाऊपन के
कारण जलोढ मृदा िाले क्षेत्रों में गहन कृ वष की जाती है।
(iii) पहाडी क्षेत्रों में मृदा अपरदन की रोकथाम के वलए क्या कदम उठाने चावहए?
उत्तर मृदा के कटाि और उसके बहाि की प्रवक्रया को मृदा अपरदन कहते हैं। विवभन्न मानिीय तथा प्राकृ वतक कारणों
से मृदा अपरदन होता रहता है। पहाडी क्षेत्रों में मृदा अपरदन की रोकथाम के वलए वनम्नवलवखत तरीके अपनाए जाने
चावहए

• पियतीय ढालों पर समोच्च रे खाओ ां के समानाांतर हल चलाने से ढाल के साथ जल बहाि की गवत घटती है। इसे |
समोच्च जतु ाई कहा जाता है।
• पियतीय ढालों पर सीढीदार खेत बनाकर अिनावलका अपरदन को रोका जा सकता है। पविमी और मध्य वहमालय में
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सोपान अथिा सीढीदार कृ वष काफी विकवसत है।


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• पियतीय क्षेत्रों में पट्टी कृ वष के द्वारा मृदा अपरदन को रोका जाता है। इसमें बडे खेतों को परट्टयों में बााँटा जाता | है।
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फसलों के बीच में घास की परट्टयााँ उगाई जाती हैं। ये पिनों द्वारा जवनत बल को कमजोर करती हैं।
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• पियतीय ढालों पर बााँध बनाकर जल प्रिाह को समवु चत ढांग से खेती के काम में लाया जा सकता है। मृदा रोधक बााँध
अिनावलकाओ ां के फै लाि को रोकते हैं।
(iv) जैि और अजैि सांसाधन क्या होते हैं? कुछ उदाहरण दें।
उत्तर जैि सांसाधन-िे सांसाधन वजनकी प्रावप्त जीिमांडल से होती है और वजनमें जीिन व्याप्त होता है, जैि सांसाधन
कहलाते हैं, जैस-े मनष्ु य, िनस्पवत जगत, प्राणी जगत, पर्धु न तथा मत्स्य जीिन आवद। अजैि सांसाधन-िे सारे
ससां ाधन जो वनजीि िस्तओ ु ां से बने हैं, अजैि ससां ाधन कहलाते हैं, जैस-े चट्टानें और धातएु ाँ ।
3. वनम्नवलवखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 र्ब्दों में दीवजए
(i) भारत में भवू म उपयोग प्रारूप का िणयन करें । िषय 1960-61 से िन के अांतगयत क्षेत्र में महत्त्िपणू य िृवि नहीं हुई,
इसका क्या कारण है?
उत्तर भारत में भवू म का उपयोग अलग-अलग प्रकार के कायों में वकया जाता है। कुल भूवम में से 93 प्रवतर्त भोग के ही
उपयोग के आाँकडे उपलब्ध हैं। कुल प्राप्त भवू म में से 46.6 प्रवतर्त भूवम र्ि
ु बोये गए क्षेत्र के अांतगयत आती है।
22.5 प्रवतर्त भवू म पर िन हैं। 13.8 प्रवतर्त भवू म बांजर और कृ वष अयोग्य भवू म है। 7.7 प्रवतर्त भवू म परती भवू म है।
4.8 प्रवतर्त भवू म पर चारागाह और बागान हैं। 4.6 प्रवतर्त बांजर भवू म है। िषय 1960-61 से िन के अांतगयत क्षेत्र में
िृवि तो हुई है वकांतु यह िृवि बहुत मामूली है। राष्रीय िन नीवत (1952) के अनसु ार 33 प्रवतर्त भवू म पर िन होने
चावहए वकांतु भारत में बढती जनसख्ां या, अवधक औद्योगीकरण आवद के कारण वनरांतर िनों के कटाि से िन भवू म में
अवधक िृवि नहीं हो पाई है। लगातार भू-उपयोग के कारण भ-ू सांसाधनों का वनम्नीकरण हो रहा है। अवधक िन
पयायिरण को सतां वु लत करते हैं, मृदा अपरदन को रोकते हैं तथा भवू म को वनम्नीकरण से बचाते हैं। इसवलए अवधक-से-
अवधक िृक्ष लगाकर िनों के प्रवतर्त को बढाना जरूरी है।
• भवू म, जल, िनस्पवत और खवनजों के रूप में प्राकृ वतक सम्पदा-Resources
• अनिीकरण योग्य ससां ाधन का एक प्रकार-Minerals
• उच्च नमी रखाि क्षमता िाली मृदा-Black soil
• मानसनू जलिायु में अत्यवधक वनक्षावलत मृदाएाँ-Laterite soil
• मृदा अपरदन की रोकथाम के वलए बृहत् स्तर पर पेड लगाना-Afforestation
• भारत के विर्ाल मैदान इन मृदाओ ां से बने हैं-Alluvial soil.
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पाठ योजना ननर्ााणकर्ाा : विजय कुमार हीर (टी0जी0टी0 कला ) कक्षा : दसिीं निषय : भगू ोल
ikB&2
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पाठ्यपस्ु तक से सांक्षेप में वलखें


1. बहुिैकवपपक प्रश्न
(i) इनमें से कौन-सी वटप्पणी प्राकृ वतक िनस्पवत जात और प्राणी जात के ह्रास का सही कारण नहीं है?
(क) कृ वष प्रसार
(ख) िृहत स्तरीय विकास पररयोजनाएाँ
(ग) पर्-ु चारण और ईधन
ां लकडी एकवत्रत करना
(घ) तीव्र औद्योगीकरण और र्हरीकरण
(ii) इनमें से कौन-सा सरां क्षण तरीका समदु ायों की सीधी भागीदारी नहीं करता?
(क) सांयक्त
ु िन प्रबांधन
(ख) वचपको आांदोलन
(ग) बीज बचाओ आांदोलन
(घ) िन्य जीि पर्ु विहार का पररसीमन
उत्तर (i) (ग) (ii) (घ)
2. वनम्नवलवखत प्रावणयों और पौधों को उनके अवस्तत्ि के िगय से मेल करें

उत्तर
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3. वनम्नवलवखत का मेल करें


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उत्तर

4. वनम्नवलवखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 र्ब्दों में दीवजए


(i) जैि विविधता क्या है? यह मानि जीिन के वलए क्यों महत्त्िपू णय है?
उत्तर जैि विविधता िन्य जीिन और कृ वष फसलों में विविधता का प्रतीक है। यह मानि जीिन के वलए महत्त्िपणू य है।
क्योंवक यह मानि की विवभन्न आिश्यकताओ ां की पवू तय करती है।
(ii) विस्तारपिू यक बताएाँ वक मानि वक्रयाएाँ वकस प्रकार प्राकृ वतक िनस्पवत जात और प्राणी जात के ह्रास के कारक हैं?
उत्तर मानिीय वक्रयाएाँ वनम्न प्रकार से प्राकृ वतक िनस्पवत जावत और प्राणी जावत के ह्रास का कारण बनती हैं
• मानि अपने स्िाथय के अधीन होकर कभी ईधन ां के वलए तो कभी कृ वष के वलए िनों को अधां ाधधांु काटता है। इससे
िन्य िनस्पवत तो नष्ट होती ही है साथ ही िन्य जीिों का प्राकृ वतक आिास भी वछन जाता है।
• जब उद्योगों खासकर रसायवनक उद्योगों का कुडा-कचरा खल
ु े स्थानों पर फें का जाता है तब भवू म प्रदषु ण होता है।
• िृक्षों के अांधाधांधु कटने से पयायिरण को भी नक
ु सान पहुचाँ ता है, जैसे िषाय का कम होना।
• पर्ओ
ु ां के अवत चारण से भी िनस्पवत जगत को नक
ु सान पहुचाँ ता है क्योंवक इससे प्राकृ वतक िनस्पवत पनप नहीं पाती
और िह स्थान धीरे -धीरे बजां र हो जाता है।
5. वनम्नवलवखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 र्ब्दों में दीवजए।
(i) भारत में विवभन्न समदु ायों ने वकस प्रकार िनों और िन्य जीि सांरक्षण और रक्षण में योगदान वकया है?
विस्तारपिू यक वििेचना करें ।
उत्तर भारत में िन्य जीि सांरक्षण और रक्षण में विवभन्न समदु ायों ने इस प्रकार योगदान वदया है
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• राजस्थान के लोगों ने ‘सररस्का बाघ ररजिय क्षेत्र में होने िाले खनन कायों का विरोध वकया और सफलता प्राप्त की।
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• वहमालय क्षेत्र में ‘‘वचपको आदां ोलन” के द्वारा िृक्षों की अवनयवां त्रत कटाई को रोकने का प्रयास वकया।
• राजस्थान के अलिर वजले के पााँच गााँिों ने वमलकर 1200 हैक्टेयर भवू म भैरोंदेि डाकि‘‘सेंचरु ी” बनाई है जहााँ पर
कडे काननू बनाकर वर्कार, िवजयत कर वदया गया है तथा बाहरी लोगों की घसु पैठ पर रोक लगाई गई है।
• भारतीय धावमयक मान्यताओ ां के अनसु ार विवभन्न िृक्षों और पौधों को पवित्र मानकर पजू ा जाता है, जैस पीपल, िट।
• भारतीय लोग विवभन्न पर्ओ ु ां को पवित्र मानकर पजू ते हैं क्योंवक िे इन्हें विवभन्न देिी-देिताओ ां के साथ जोडते हैं,
जैसे नाग को वर्ि के साथ, मोर को कृ ष्ण के साथ, लगां रू ि बदां र को हनमु ान जी के साथ है।
• भारत के विवभन्न आवदिासी और जनजावत क्षेत्रों में िनों को देिी-देिताओ ां को समवपयत करके उन्हें पजू ा जाता है।
राजस्थान में इस तरह के क्षेत्रों को ‘बणी’ कहा जाता है। |
(ii) िन और िन्य जीि सरां क्षण में सहयोगी रीवत-ररिाजों पर एक वनबधां वलवखए।
उत्तर भारत में िन और िन्य जीि सांरक्षण में सहयोगी रीवत-ररिाज इस प्रकार हैं
• भारत के जनजातीय लोग प्रकृ वत की पजू ा सवदयों से करते आ रहे हैं। उनके इन विश्वासों ने विवभन्न िनों को मल ू एिां
कौमय रूप में बचाकर रखा है, वजन्हें पवित्र पेडों के झरु मटु (देिी-देिताओ ां के िन) कहते हैं। िनों के इन भागों में या तो
िनों के ऐसे बडे भागों में न तो स्थानीय लोग घसु ते हैं तथा न ही वकसी और को छे डछाड करने देते।
• कुछ समाज कुछ विर्ेष पेडों की पजू ा करते हैं और आवदकाल से उनका सांरक्षण करते आ रहे हैं। छोटानागपरु क्षेत्र में
मांडु ा और सांथाल जन-जावतयााँ महुआ और कदबां के पेडों की पजू ा करते हैं। उडीसा और वबहार की जनजावतयााँ र्ादी
के समय इमली और आम के पेडों की पजू ा करते हैं।
• कई लोग पीपल और िट की पजू ा करते हैं।
• भारतीय समाज में अनेकों सांस्कृ वतयााँ हैं और प्रत्येक सांस्कृ वत में प्रकृ वत और इसकी कृ वतयों को सांरवक्षत करने के
अपने पारांपररक तरीके हैं। भारतीय झरनों, पहाडी चोवटयों, पेडों और पर्ओ ु ां को पवित्र मानकर उनका सरां क्षण करते हैं,
जैसे िे मांवदरों या अन्य स्थलों पर बांदरों को वखलाते हैं।
• राजस्थान के वबश्नोई गााँिों के आस-पास काले वहरण, वचांकारा, नीलगाय और मोरों के झडांु देखे जाते हैं जोवक इनके
समाज के अवभन्न अांग हैं और इन्हें कोई नक
ु सान नहीं पहुचाँ ा सकता।
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पाठ योजना ननर्ााणकर्ाा : विजय कुमार हीर (टी0जी0टी0 कला ) कक्षा : दसिीं निषय : भगू ोल
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बहुिैकवपपक प्रश्न
(i) नीचे दी गई सचू ना के आधार पर वस्थवतयों को जल की कमी से प्रभावित’ या ‘जल की कमी से अप्रभावित में
िगीकृ त कीवजए।
(क) अवधक िावषयक िषाय िाले क्षेत्र
(ख) अवधक िषाय और अवधक जनसख्ां या िाले क्षेत्र
(ग) अवधक िषाय िाले परांतु अत्यवधक प्रदवू षत जल क्षेत्र
(घ) कम िषाय और कम जनसांख्या िाले क्षेत्र
(ii) वनम्नवलवखत में से कौन-सा िक्तव्य बहुउद्देर्ीय नदी पररयोजनाओ ां के पक्ष में वदया गया तकय नहीं है?
(क) बहुउद्देर्ीय पररयोजनाएाँ उन क्षेत्रों में जल लाती हैं जहााँ जल की कमी होती है।
(ख) बहुउद्देर्ीय पररयोजनाएाँ जल बहाि को वनयवां त्रत करके बाढ पर काबू पाती हैं।
(ग) बहुउद्देर्ीय पररयोजनाओ ां से बृहत् स्तर पर विस्थापन होता है और आजीविका खत्म होती है।
(घ) बहुउद्देर्ीय पररयोजनाएाँ हमारे उद्योग और घरों के वलए विद्यतु पैदा करती हैं।
(iii) यहााँ कुछ गलत िक्तव्य वदए गए हैं। इसमें गलती पहचानें और दोबारा वलखें।
(क) र्हरों की बढती सांख्या, उनकी विर्ालता और सघन जनसांख्या तथा र्हरी जीिन-र्ैली ने जल सांसाधनों के सही
उपयोग में मदद की है।
(ख) नवदयों पर बााँध बनाने और उनको वनयांवत्रत करने से उनका प्राकृ वतक बहाि और तलछट बहाि प्रभावित नहीं
होता।
(ग) गुजरात में साबरमती बेवसन में सख
ू े के दौरान र्हरी क्षेत्रों में अवधक जल आपवू तय करने पर भी वकसान नहीं भडके ।
(घ) आज राजस्थान में इवां दरा गाांधी नहर से उपलब्ध पेयजल के बािजदू छत िषायजल सांग्रहण लोकवप्रय हो रहा है।
उत्तर
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(i) जल की कमी से प्रभावित क्षेत्र-(ख), (ग), (घ)। जल की कमी से अप्रभावित क्षेत्र-(क)


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(ii) बहुउद्देर्ीय पररयोजनाओ ां से बृहत् स्तर पर विस्थापन होता है और आजीविका खत्म होती है।
(iii) (क) र्हरों की बढती जनसांख्या, उनकी विर्ालता और सघन जनसांख्या तथा र्हरी जीिन-र्ैली से जल
सांसाधनों का अवतर्ोषण हो रहा है और इनकी कमी होती जा रही है।
(ख) नवदयों पर बााँध बनाने और उनको वनयांवत्रत करने से उनका प्राकृ वतक बहाि और तलछट बहाि अिरुि हो जाता
है।
(ग) गजु रात में साबरमती बेवसन में सख
ू े के दौरान र्हरी क्षेत्रों में अवधक जल आपवू तय देने पर परे र्ान वकसान उपद्रि
करने पर उतारू हो गए।
(घ) आज राजस्थान में इवां दरा गाांधी नहर से उपलब्ध पेयजल के कारण छत िषायजल सांग्रहण की रीवत कम होती। जा
रही है।
2. वनम्नवलवखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 र्ब्दों में दीवजए।
(i) व्याख्या करें वक जल वकस प्रकार निीकरण योग्य सांसाधन हैं?
उत्तर जल एक निीकरण योग्य ससां ाधन है क्योंवक जल एक बार प्रयोग करने पर समाप्त नहीं होता। हम इसका बार-बार
प्रयोग कर सकते हैं अथायत् इसकी पनु : पवू तय सांभि है। जैसे-जल का प्रयोग यवद उद्योगों में या घरे लू कामकाज में वकया
जाता है तो इससे जल दवू षत हो जाता है वकांतु समाप्त नहीं होता। इस जल को साफ करके वफर से इस्तेमाल करने योग्य
बनाया जा सकता है।
(ii) जल दल
ु यभता क्या है और इसके मुख्य कारण क्या हैं?
उत्तर जल के विर्ाल भांडार तथा निीकरणीय गणु ों के होते हुए भी यवद जल की कमी महससू की जाए तो उसे जल
दल
ु यभता कहते हैं। विवभन्न क्षेत्रों में जल की कमी या दल
ु यभता के वलए वनम्नवलवखत कारण उत्तरदायी हो सकते हैं

• बढती जनसांख्या-जल अवधक जनसांख्या के घरे लू उपयोग में ही नहीं बवपक अवधक अनाज उगाने के वलए भी
चावहए। अत: अनाज का उत्पादन बढाने के वलए जल सांसाधनों का अवतर्ोषण करके वसांवचत क्षेत्र को बढा वदया
जाता है।
• जल का असमान वितरण-भारत में बहुत से क्षेत्र ऐसे हैं जहााँ सख
ू ा पडता है। िषाय बहुत कम होती है। ऐसे
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क्षेत्रों में भी जल दल
ु यभता या जल की कमी देखी जा सकती है।
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• वनजी कुएाँ या नलकूप-बहुत से वकसान अपने खेतों में वनजी कुएाँ ि नलकूपों से वसांचाई करके उत्पादन बढा रहे हैं
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वकांतु इसके कारण लगातार भ-ू जल का स्तर नीचे वगर रहा है और लोगों के वलए जल की उपलब्धता में कमी हो
सकती है।
• औद्योगीकरण-स्ितत्रां ता के बाद हुए औद्योगीकरण के कारण भारत में अलिणीय जल ससां ाधनों पर दबाि बढ गया
है। उद्योगों को ऊजाय की आिश्यकता होती है वजसकी पवू तय जल विद्यतु से की जाती है। इस कारण भी जल की कमी
का सामना करना पडता है।
(iii) बहुउद्देर्ीय पररयोजनाओ ां से होने िाले लाभ और हावनयों की तल
ु ना करें ।
उत्तर नवदयों पर बााँध बनाकर एक साथ कई उद्देश्यों को परू ा वकया जाता है, जैस-े बाढ वनयांत्रण, वसांचाई, विद्यतु उत्पादन
तथा मत्स्य पालन । ऐसी योजनाओ ां को बहुउद्देर्ीय योजनाएाँ कहा जाता है। इस पररयोजना से कुछ लाभ होते हैं तो
कुछ हावनयााँ भी होती हैं।
लाभ- नवदयों पर बााँध बनाकर के िल वसचां ाई ही नहीं की जाती अवपतु इनको उद्देश्य विद्यतु उत्पादन, घरे लू और
औद्योवगक उत्पादन, जल आपवू तय, बाढ वनयांत्रण, मनोरांजन, आांतररक नौचालन और मछली पालन भी है। इसवलए
बााँधों को बहुउद्देर्ीय पररयोजनाएाँ भी कहा जाता है। यहााँ एकवत्रत जल के अनेक उपयोग समवन्ित होते हैं।
हावनयााँ-नवदयों पर बााँध बनाने और उनका बहाि वनयांवत्रत करने से उनका प्राकृ वतक बहाि अिरुि हो जाता है। वजसके
कारण तलछट बहाि कम हो जाता है। अत्यवधक तलछट जलार्य की तली पर जमा होता रहता है वजससे नदी का
तल अवधक चट्टानी हो जाता है। नदी जलीय जीि आिासों में भोजन की कमी हो जाती है। बााँध नवदयों को टुकडों में
बााँट देते हैं वजससे जलीय जीिों का नवदयों में स्थानाांतरण अिरुि हो जाता है। बाढ के मैदान में बने। जलार्यों से िहााँ
मौजदू िनस्पवत और वमरट्टयााँ जल में डूब जाती हैं। इन पररयोजनाओ ां के कारण स्थानीय लोगों को
अपनी जमीन, आजीविका और सांसाधनों से लगाि ि वनयांत्रण आवद को कुबायन करना पडता है।
3. वनम्नवलवखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 र्ब्दों में दीवजए
(i) राजस्थान के अधय-र्ष्ु क क्षेत्रों में िषाय जल सग्रां हण वकस प्रकार वकया जाता है? व्याख्या कीवजए।
उत्तर राजस्थान के अधय-र्ष्ु क और र्ष्ु क क्षेत्रों में विर्ेषकर बीकानेर, फलोदी और बाडमेर में पीने का जल एकत्र करने
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के वलए छत िषायजल सांग्रहण का तरीका आमतौर पर अपनाया जाता है। इस तकनीक में हर घर में पीने का पानी
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सांग्रवहत करने के वलए भवू मगत टैंक अथिा ‘टााँका’ हुआ करते हैं। इनका आकार एक बडे कमरे वजतना हो सकता है।
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इसे मुख्य घर या आाँगन में बनाया जाता है। ये घरों की ढलिााँ छतों से पाइप द्वारा जडु े होते हैं। छत से िषाय का पानी इन
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नलों से होकर भवू मगत टााँका तक पहुचाँ ता था जहााँ इसे एकवत्रत वकया जाता था। िषाय का पहला जल छत और नलों
को साफ करने में प्रयोग होता था और उसे सांग्रवहत नहीं वकया जाता था। इसके बाद होने िाली िषाय जल का सांग्रह
वकया जाता था।
टााँका में जल अगली िषाय ऋतु तक सांग्रहीत वकया जा सकता है। यह इसे जल की कमी िाली ग्रीष्म ऋतु तक पीने का
जल उपलब्ध करिाने िाला स्रोत बनाता है। िषाय जल को प्राकृ वतक जल का र्ि ु तम रूप माना जाता है। कुछ घरों में
टााँकों के साथ-साथ भवू मगत कमरे भी बनाए जाते हैं क्योंवक जल का यह स्रोत इन कमरों को भी ठांडा रखता था वजससे
ग्रीष्म ऋतु में गमी से राहत वमलती है।
आज राजस्थान में छत िषायजल सांग्रहण की रीवत इवां दरा गाांधी नहर से उपलब्ध बारहमासी पेयजल के कारण कम होती
जा रही है। हालााँवक कुछ घरों में टााँकों की सवु िधा अभी भी है क्योंवक उन्हें नल के पानी का स्िाद पसन्द
नहीं है।
(ii) परांपरागत िषाय जल सग्रां हण की पिवतयों को आधवु नक काल में अपनाकर जल सरां क्षण एिां भडां ारण वकस प्रकार
वकया जा रहा है?
उत्तर प्राचीन भारत में उत्कृ ष्ट जलीय वनमायणों के साथ-साथ जल सांग्रहण ढााँचे भी पाए जाते थे। लोगों को िषाय पिवत
और मृदा के गणु ों के बारे में गहरा ज्ञान था। उन्होंने स्थानीय पाररवस्थवतकीय पररवस्थवतयों और अपनी जल
आिश्यकतानसु ार िषाय जल, भौमजल, नदी जल और बाढ जल सांग्रहण के अनेक तरीके विकवसत कर वलए थे।
आधवु नक काल में भी भारत के कई राज्यों में इन परांपरागत विवधयों को अपनाकर जल सरां क्षण वकया जा रहा है। जैसे-
राजस्थान के बहुत से घरों में छत िषाय जल सांग्रहण के वलए भवू मगत ‘टााँकों’ का वनमायण वकया जाता है। इसमें िषाय के
जल को सांग्रवहत करके उपयोग में लाया जाता है। इसी प्रकार कनायटक के मैसरू वजले में वस्थत एक गााँि में ग्रामीणों ने
अपने घरों में जल आिश्यकता की पवू तय छत िषायजल सग्रां हण की व्यिस्था से की हुई है। मेघालय में नवदयों ि झरनों के
जल को बााँस द्वारा बने पाइप द्वारा एकवत्रत करने की 200 िषय परु ानी विवध प्रचवलत है। र्ष्ु क और अधय-र्ष्ु क क्षेत्रों में
खेतों में िषाय जल एकवत्रत करने के वलए गड्ढे बनाए जाते थे तावक मृदा को वसांवचत वकया जा सके । राजस्थान के
जैसलमेर वजले में ‘खदीन’ और अन्य क्षेत्रों में ‘जोहड’ इसके उदाहरण हैं। पहाडी और पियतीय क्षेत्रों में लोगों ने ‘गल ु ’
अथिा ‘कुल’ जैसी िावहकाएाँ, नदी की धारा का रास्ता बदलकर खेतों में वसांचाई के वलए लगाई हैं। पविम बांगाल में
बाढ के मैदान में लोग अपने खेतों की वसांचाई के वलए बाढ जल िावहकाएाँ बनाते थे। यही तरीका आधवु नक समय में
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भी अपनाया जाता है।


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इस प्रकार, हम देखते हैं वक देर् के विवभन्न क्षेत्रों में आधवु नक काल में भी परांपरागत िषाय जल सांग्रहण की पिवतयों
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को अपनाकर जल सरां क्षण एिां भडां ारण वकया जा रहा है।


पाठ योजना ननर्ााणकर्ाा : विजय कुमार हीर (टी0जी0टी0 कला ) कक्षा : दसिीं निषय : भगू ोल
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सांक्षेप में वलखें
1. बहुिैकवपपक प्रश्न
(i) वनम्नवलवखत में से कौन-सा उस कृ वष प्रणाली को दर्ायता है वजसमें एक ही फसल लांबे-चौडे क्षेत्र में उगाई जाती है?
(क) स्थानाांतरी कृ वष
(ख) रोपण कृ वष
(ग) बागिानी
(घ) गहन कृ वष
(ii) इनमें से कौन-सी रबी फसल है?
(क) चािल
(ख) मोटे अनाज
(ग) चना
(घ) कपास
(iii) इसमें से कौन-सी एक फलीदार फसल है?
(क) दालें
(ख) मोटे अनाज
(ग) ज्िार वतल
(घ) वतल
(iv) सरकार वनम्नवलवखत में से कौन-सी घोषणा फसलों को सहायता देने के वलए करती है?
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(क) अवधकतम सहायता मपू य


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(ख) न्यनू तम सहायता मपू य


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(ग) मध्यम सहायता मूपय


(घ) प्रभािी सहायता मूपय
उत्तर (i) (ख) (ii) (ग) (iii) (क) (iv) (ख)।
2. वनम्नवलवखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 र्ब्दों में दीवजएः
(i) एक पेय फसल का नाम बताएाँ तथा उसको उगाने के वलए अनक
ु ू ल भौगोवलक पररवस्थवतयों का वििरण दें।
उत्तर चाय एक महत्त्िपणू य पेय पदाथय की फसल है। चाय का पौधा उष्ण और उपोष्ण कवटबांधीय जलिाय,ु ह्यमु स और
जीिार्ां यक्त
ु गहरी वमट्टी तथा सगु म जल वनकास िाले ढलिााँ क्षेत्रों में उगाया जाता है। चाय की खेती के वलए िषय भर
कोष्ण, नम और पालारवहत जलिायु की आिश्यकता होती है। िषय भर समान रूप से होने िाली िषाय इसकी कोमल
पवत्तयों के विकास में सहायक होती है। भारत विश्व का अग्रणी चाय उत्पादक देर् है।
(ii) भारत की एक खाद्य फसल का नाम बताएाँ और जहााँ यह पैदा की जाती है उन क्षेत्रों का वििरण दें। गेहाँ भारत की
एक प्रमखु खाद्य फसल है। यह देर् के
उत्तर और उत्तर-पविमी भागों में पैदा की जाती है। देर् में | गेहाँ उगाने िाले दो मुख्य क्षेत्र हैं-उत्तर-पविम में गांगा-सतलुज
का मैदान और दक्कन का काली वमट्टी िाला प्रदेर्। पांजाब, हररयाणा, उत्तर प्रदेर्, वबहार, राजस्थान और मध्य प्रदेर्
के कुछ भाग गेहाँ पैदा करने िाले प्रमख
ु राज्य हैं।
(iii) सरकार द्वारा वकसानों के वहत में वकए गए सांस्थागत सधु ार काययक्रमों की सचू ी बनाएाँ।
उत्तर सरकार द्वारा वकसानों के वहत में वकए गए सांस्थागत सधु ार काययक्रम वनम्नवलवखत हैं
1. जोतों की चकबांदी।
2. जमींदारी प्रथा की समावप्त।
3. अवधक उपज देने िाले बीजों के द्वारा हररत क्राांवत।।
4. पर्ओ
ु ां की नस्ल में सधु ार कर दग्ु ध उत्पादन में श्वेत क्राांवत।
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5. बाढ, चक्रिात, आग तथा बीमारी के वलए फसल बीमा के प्रािधान ।।


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6. वकसानों को कम दर पर ऋण वदलाने के वलए ग्रामीण बैंकों, सहकारी सवमवतयों और बैंकों की स्थापना की गई।
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7. वकसानों के लाभ के वलए वकसान क्रेवडट काडय और व्यवक्तगत दघु यटना बीमा योजना र्रू
ु की गई।
8. आकार्िाणी और दरू दर्यन पर विर्ेष वकसान काययक्रम प्रसाररत वकए गए।
9. वकसानों को दलालों के र्ोषण से बचाने के वलए न्यनू तम सहायता मपू य की घोषणा सरकार करती है।
10. कुछ महत्त्िपणू य फसलों के लाभदायक खरीद मूपयों की घोषणा भी सरकार करती है।
(iv) वदन-प्रवतवदन कृ वष के अांतगयत भवू म कम हो रही है। क्या आप इसके पररणामों की कपपना कर सकते हैं?
उत्तर भारत में लगातार बढती जनसख्ां या के कारण कृ वष भवू म में कमी आई है। भवू म के आिासन इत्यावद गैर कृ वष
उपयोगों तथा कृ वष के बीच बढती भवू म की प्रवतस्पधाय के कारण कृ वष भवू म में कमी आई है। भारत की बढती जनसांख्या
के । साथ घटता खाद्य उत्पादन देर् की भविष्य की खाद्य सरु क्षा पर प्रश्नवचह्न लगाता है। कुछ अथयर्ावियों को मानना
है वक बढती जनसख्ां या के कारण घटते आकार के जोतों पर यवद खाद्यान्नों की खेती ही होती रही तो भारतीय वकसानों
का भविष्य अांधकारमय है। भारत में 60 करोड लोग लगभग 25 करोड हेक्टेयर भवू म पर वनभयर हैं। इस प्रकार एक
व्यवक्त के वहस्से में औसतन आधा हेक्टेयर से भी कम कृ वष भवू म आती है। इसवलए जनसांख्या वनयवां त्रत करने की
कोवर्र् करनी होगी नहीं तो खाद्य सांकट उत्पन्न हो जाएगा तथा वकसानों की वस्थवत दयनीय हो जाएगी।
3. वनम्नवलवखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 र्ब्दों में दीवजए
(i) कृ वष उत्पादन में िृवि सवु नवित करने के वलए सरकार द्वारा वकए गए उपाय सझु ाइए। |
उत्तर भारत एक कृ वष प्रधान देर् है। देर् के 60 प्रवतर्त से भी अवधक लोगों को आजीविका प्रदान करने िाली कृ वष में
कुछ सस्ां थागत तथा प्रौद्योवगक सधु ार वकए गए हैं जो वनम्नवलवखत हैं

• जमींदारी प्रथा का उन्मल


ू न-वकसानों के वलए जमींदारी प्रथा एक अवभर्ाप थी। इसवलए सरकार ने जमींदारी प्रथा को
समाप्त करके भवू महीन काश्तकारों को जमीन का मावलकाना हक दे वदया तथा जोतों की अवधकतम सीमा वनवित कर
दी गई।
• खेतों की चकबदां ी-पहले वकसानों के पास छोटे-छोटे खेत थे जो आवथयक रूप से गैर-लाभकारी होते थे। इसवलए छोटे
खेतों की चकबांदी कर दी गई।
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• हररत क्राांवत-सरकार ने वकसानों को अवधक उपज देने िाले बीज उपलब्ध करिाये वजससे कृ वष विर्ेषकर गेहाँ। | की
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कृ वष में क्राांवतकारी पररितयन आया। इसे हररत क्राांवत का नाम वदया गया।
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• प्रमख
ु वसांचाई पररयोजनाओ ां का वनमायण-वकसानों को पयायप्त वसांचाई सवु िधाएाँ उपलब्ध कराने के वलए कई छोटी-बडी
वसांचाई पररयोजनाएाँ र्रू
ु की गई।ां
• फसल बीमा-फसलें प्रायः सूखा, बाढ, आग आवद के कारण नष्ट हो जाती थीं। वजससे वकसानों को बहुत हावन |
उठानी पडती थी। इन आपदाओ ां से बचने के वलए फसल बीमा योजना र्ुरू की गई। इसके द्वारा फसल नष्ट हो जाने पर
वकसानों को परू ा मआ
ु िजा वमलने लगा वजससे उसे सरु क्षा प्राप्त हुई।
• सरकारी सांस्थाएाँ-वकसानों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराने के वलए ग्रामीण बैंकों, सहकारी सवमवतयों और
बैंकों की स्थापना की गई। ये सांस्थाएाँ वकसानों को महाजनों के चांगु ल से बचाती हैं। रे वडयो तथा दरू दर्यन द्वारा मौसम की
जानकारी तथा कृ वष सांबांधी काययक्रम प्रसाररत वकए जाते हैं।
• वकसानों के लाभ के वलए भारत सरकार ने वकसान क्रेवडट काडय’ और व्यवक्तगत दघु यटना बीमा योजना र्ुरू की है।
• वकसानों को वबचौवलयों के र्ोषण से बचाने के वलए न्यनू तम सहायता मपू य और कुछ महत्त्िपणू य फसलों के
लाभदायक खरीद मूपयों की सरकार घोषणा करती है।
• खेती में आधवु नक उपकरणों के प्रयोग पर बल वदया जाने लगा। इससे उत्पादन में िृवि हुई।
• भारतीय कृ वष में सधु ार के वलए भारतीय कृ वष अनसु धां ान पररषद ि कृ वष विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई। वजससे
कृ वष के उत्पादन में िृवि हो सके ।
(ii) भारतीय कृ वष पर िैश्वीकरण के प्रभाि पर वटप्पणी वलखें।
उत्तर िैश्वीकरण से हमारा तात्पयय है विश्व के अनेक देर्ों का आवथयक, राजनीवतक, सामावजक एिां साांस्कृ वतक क्षेत्र में
एक-दसू रे के वनकट आ जाना। िैश्वीकरण के कारण विवभन्न चीजें एक देर् से दसू रे देर् में आने-जाने लगीं वजससे
उच्चकोवट की चीजें ही बाजार में वटक सकी हैं। िैश्वीकरण के कृ वष पर कुछ अच्छे प्रभाि पडे, जो वनम्नवलवखत हैं

• भारत दसू रे देर्ों को अन्न का वनयायत कर अपनी जरूरत का अन्य सामान खरीदने लगा।
• विवभन्न फसलों की मााँग बढने से भारत में इन चीजों का अवधक उत्पादन होने लगा।
• अांतरायष्रीय बाजार में वटकने के वलए भारतीय वकसानों ने अपने उत्पादन का गणु ित्ता ि स्तर बढाने की | कोवर्र् की।
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• िैश्वीकरण के कारण अवधक उत्पावदत होने िाली चीजों को दसू रे देर्ों को बेचकर अच्छे दाम प्राप्त वकए जा सकते हैं।
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• कृ वष िैज्ञावनकों के सहयोग से बहुत-से देर्ों में नई-नई चीजों की पैदािार होने लगी जो पहले सम्भि नहीं था।
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िैश्वीकरण के कृ वष पर कुछ बरु े प्रभाि भी पडे, जो वनम्नवलवखत हैं

• विश्व के धनी देर्ों ने विवभन्न विकासर्ील देर्ों में अपना सस्ता अनाज और अन्य कृ वष से प्राप्त िस्तएु ाँ बडी मात्रा में
भरनी र्रूु कर दीं वजससे विकासर्ील देर्ों के वकसान उनका मक ु ाबला न कर सकें तथा कृ वष का काम छोडने पर
मजबरू हो गए।
• विश्व के धनी देर् वनधयन देर्ों से सस्ती दरों पर अनाज खरीदने की कोवर्र् करते हैं।
• कृ वष के िैश्वीकरण के कारण छोटे वकसानों को कृ वष कायय को छोडना पडा क्योंवक िे अांतरायष्रीय प्रवतस्पधाय में वटक
नहीं पाए।
• कृ वष के िैश्वीकरण ने व्यापाररक कृ वष को बढािा वदया। वकसानों ने िही िस्तु पैदा की वजसकी बाजार में मााँग थी, न
वक जनता की आिश्यकता परू ी करने िाली चीजों का उत्पादन वकया।
• कृ वष के िैश्वीकरण के कारण ही भारत को लबां े समय तक वब्रटेन का उपवनिेर् बनकर कृ वष पर अवतररक्त बोझ को
िहन करना पडा।
1990 के बाद, िैश्वीकरण के तहत भारतीय वकसानों को कई नई चनु ौवतयों का सामना करना पड रहा है। चािल,
कपास, रबड, चाय, कॉफी, जटू , मसालों का मख्ु य उत्पादक होने के बािजदू भारतीय कृ वष विश्व के विकवसत देर्ों से
स्पधाय करने में असमथय है। क्योंवक उन देर्ों में कृ वष को अत्यवधक सवब्सडी दी जाती है। यवद
भारतीय कृ वष को सक्षम बनाना है तो छोटे वकसानों की वस्थवत सधु ारनी होगी।
(iii) चािल की खेती के वलए उपयक्त
ु भौगोवलक पररवस्थवतयों का िणयन करें ।
उत्तर भारत में अवधकाांर् लोगों को खाद्यान्न चािल है। हमारा देर् चीन के बाद दसू रा सबसे बडा चािल उत्पादक देर्
है। यह एक खरीफ फसल है वजसे उगाने के वलए उच्च तापमान (25° सेवपसयस से ऊपर) और अवधक आद्रयता (100
से०मी० से अवधक िषाय) की आिश्यकता होती है। कम िषाय िाले क्षेत्रों में इसे वसांचाई करके उगाया जाता है। चािल
उत्तर और उत्तर-पिू ी मैदानों, तटीय क्षेत्रों और डेपटाई प्रदेर्ों में उगाया जाता है। नदी घावटयों और डेपटा प्रदेर्ों में पाई
जाने िाली जलोढ वमट्टी चािल के वलए आदर्य होती है। नहरों के जाल और नलकूपों की सघनता के कारण पांजाब,
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हररयाणा, पविमी उत्तर प्रदेर् और राजस्थान के कुछ कम िषाय िाले क्षेत्रों में चािल की फसल उगाना सांभि हो पाया
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है। चािल जनू -जल ु ाई में दवक्षण-पविमी मानसनू पिनों के र्रू ु होने पर उगाया जाता है और पतझड की ऋतु में काटा
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जाता है।
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पररयोजना कायय प्रश्न


1. वकसानों की साक्षरता विषय पर एक सामवू हक िाद-वििाद प्रवतयोवगता का आयोजन करें ।
उत्तर वनदेर्: विद्याथी वनम्न वबांदओ
ु ां को ध्यान में रखकर उपरोक्त विषय पर िाद-वििाद प्रवतयोवगता आयोवजत करें गे
• भारत में साक्षरता दर
• वकसानों में साक्षरता दर-इसके अांतगयत विद्याथी परुु षों एिां मवहलाओ ां में साक्षरता दर को अलग-अलग ज्ञात करें गे।
• साक्षरता दर में कमी के क्या कारण हो सकते हैं और कृ वष पर इसके क्या प्रभाि पड रहे हैं? प्रश्न
2. भारत के मानवचत्र में गेहाँ उत्पादन क्षेत्र दर्ायइए।
उत्तर: वर्क्षक इसे स्ियां हल करते हुए विद्यावथययों को भी हल बताएाँगे ।
वक्रयाकलाप
ऊपर-नीचे और दायें-बायें चलते हुए िगय पहेली को सल
ु झाएाँ और वछपे उत्तर हुदाँ ।ें
नोट: पहेली के उत्तर अग्रां ेजी के र्ब्दों में हैं। (पाठ्यपस्ु तक पृष्ठ सख्ां या 52 देखें)
उत्तर
• भारत की दो खाद्य फसलें-Rice, wheat
• यह भारत की ग्रीष्म फसल ऋतु है-Zaid
• अरहर, मगांू , चना, उडद जैसी दालों से वमलता है-Protein
• यह एक मोटा अनाज है-Maize
• भारत की दो महत्त्िपणू य पेय फसल हैं…-Tea, coffee
• काली वमट्टी पर उगाई जाने िाली चार रे र्ेदार फसलों में से एक-Cotton er
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पाठ योजना ननर्ााणकर्ाा : विजय कुमार हीर (टी0जी0टी0 कला ) कक्षा : दसिीं निषय : भगू ोल
पाठ -5 खननज और ऊजाा सस ं ाधन
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Curricular expectation Pedagogical Process Learning Indicator
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सक्ष
ां ेप में वलखें
1. बहुिैकवपपक प्रश्न
(i) वनम्नवलवखत में से कौन-सा खवनज अपक्षवयत पदाथय के अिवर्ष्ट भार को त्यागता हुआ चट्टानों के अपघटन से
बनता है?
(क) कोयला
(ख) बॉक्साइट
(ग) सोना
(घ) जस्ता
(ii) झारखांड में वस्थत कोडरमा वनम्नवलवखत में से वकस खवनज का अग्रणी उत्पादक है?
(क) बॉक्साइट
(ख) अभ्रक
(ग) लौह अयस्क
(घ) तााँबा
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(iii) वनम्नवलवखत चट्टानों में से वकस चट्टान के स्तरों में खवनजों का वनक्षेपण और सांचयन होता है?
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(क) तलछटी चट्टानें


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(ख) आग्नेय चट्टानें


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(ग) कायाांतररत चट्टानें ।


(घ) इनमें से कोई नहीं।
(iv) मोनाजाइट रे त में वनम्नवलवखत में से कौन-सा खवनज पाया जाता है?
(क) खवनज तेल
(ख) यरू े वनयम
(ग) थोररयम
(घ) कोयला।
उत्तर (i) ख, (ti) ख, (iii) क, (iv) ग।
2. वनम्नवलवखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 र्ब्दों में दीवजए।
(i) वनम्नवलवखत में अांतर 30 र्ब्दों में बताएां
(क) लौह और अलौह खवनज
(ख) परांपरागत तथा गैर परांपरागत ऊजाय ससां ाधन
उत्तर (क) लौह और अलौह खवनज-िे खवनज वजनमें लोहे का अर् ां अवधक होता है, लौह खवनज कहलाते हैं। जैसे-
लौह अयस्क, मैंगनीज, वनकल ि कोबापट आवद। वजन खवनजों में लोहे का अांर् नहीं होता या बहुत कम होता है
अलौह खवनज कहलाते हैं। जैसे–सोना, चााँदी, प्लेवटनम आवद।
(ख) परांपरागत और गैर परांपरागत ऊजाय ससां ाधन-कोयला, तेल और प्राकृ वतक गैस से उत्पन्न की गई ताप विद्यतु , जल
विद्यतु और परमाणु र्वक्त आवद ऊजाय के परांपरागत साधन हैं। इन साधनों का निीकरण नहीं वकया जा सकता। ये स्रोत
सीवमत तथा लगातार प्रयोग से समाप्त होने के कगार पर हैं। सयू य, िाय,ु ज्िार भाटे, जयोथवमयल, बायो गैस, खेतों और
पर्ओ ु ां का कूडा-करकट, मनष्ु य को मलमत्रू आवद ऊजाय के गैर परांपरागत साधन हैं। ये साधन निीकरण योग्य हैं। इनका
बार-बार प्रयोग वकया जा सकता है।
(ii) खवनज क्या हैं?
उत्तर खवनज उन प्राकृ वतक साधनों को कहते हैं जो र्ैलों से प्राप्त होते हैं। भ-ू िैज्ञावनकों के अनसु ार खवनज एक
प्राकृ वतक रूप से विद्यमान समरूप तत्ि है वजसकी एक वनवित आतां ररक सरां चना है। खवनज प्रकृ वत में अनेक रूपों में
पाए जाते हैं वजसमें कठोर, ठोस एिां नरम चनू ा तक र्ावमल है।
(iii) आग्नेय तथा कायाांतररत चट्टानों में खवनजों का वनमायण कै से होता है?
उत्तर आग्नेय तथा कायातां ररत चट्टानों में खवनज दरारों, जोडों, भ्रर्
ां ों ि वििरों में वमलते हैं। छोटे जमाि वर्राओ ां के रूप
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में और िृहत् जमाि परत के रूप में पाए जाते हैं। इनका वनमायण भी अवधकतर उस समय होता है जब ये तरल अथिा •
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गैसीय अिस्था में दरारों के सहारे भ-ू पृष्ठ की ओर धके ले जाते हैं। ऊपर आते हुए ये ठांडे होकर जम जाते हैं। मख्ु य
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धावत्िक खवनज जैस–े जस्ता, तााँबा, वजक ां और सीसा आवद इसी तरह वर्राओ ां ि जमािों के रूप में प्राप्त होते हैं।
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(iv) हमें खवनजों के सांरक्षण की क्यों आिश्यकता है?


उत्तर ितयमान औद्योवगक यगु में विवभन्न प्रकार के खवनजों का भारी प्रयोग वकया जाने लगा है। खवनज वनमायण की
भगू वभयक प्रवक्रयाएाँ इतनी धीमी हैं वक उनके ितयमान उपभोग की दर की तल ु ना में उनके पनु भयरण की दर अपररवमत रूप
से थोडी है। इसवलए खवनज सांसाधन सीवमत तथा अनिीकरण योग्य है। समृि खवनज वनक्षेप हमारे देर् की मपू यिान
सांपवत्त हैं लेवकन ये अपपजीिी हैं। अयस्कों के सतत् उत्खनन की गहराई बढने के साथ उनकी गणु ित्ता घटती जाती है।
इसवलए खवनजों के सांरक्षण की आिश्यकता है। इसके वलए खवनजों का सवु नयोवजत एिां सतत् पोषणीय ढांग से प्रयोग
करना होगा।
3. वनम्नवलवखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 र्ब्दों में दीवजए।
(i) भारत में कोयले के वितरण का िणयन कीवजए।
उत्तर मानि के विकास में कोयले का विर्ेष महत्त्ि है। कोयले के चार प्रकार हैं
1. पीट-इसमें कम काबयन, नमी की अवधक मात्रा ि वनम्न ताप क्षमता होती है।
2. वलग्नाइट-यह वनम्न कोवट का भरू ा कोयला होता है। यह मल ु ायम होने के साथ अवधक नमीयक्त ु होता है।
3. वबटुवमनस-गहराई में दबे तथा अवधक तापमान से प्रभावित कोयले को वबटुवमनस कोयला कहा जाता है।
4. एथां ेसाइट-यह सबसे उत्तम प्रकार का कोयला होता है वजसमें काबयन की मात्रा 80 प्रवतर्त से अवधक होती है। यह
ठोस काला ि कठोर होता है।
कोयले के भारत में विस्तृत भांडार हैं। भारत में कोयला दो प्रमख ु भगू वभयक यगु ों के र्ैल क्रम में पाया जाता है। एक
गोंडिाना वजसकी आयु 200 लाख िषय से कुछ अवधक हैं और दसू रा टरवर्यरी वनक्षेप जो लगभग 55 लाख िषय परु ाने
हैं। गोंडिाना कोयले, जो धातुर्ोधन कोयलें हैं, के प्रमुख सांसाधन दामोदर घाटी (प० बांगाल तथा झारखांड), झररया,
रानीगांज, बोकारो में वस्थत है जो महत्त्िपणू य कोयला क्षेत्र हैं। गोदािरी, महानदी, सोन ि िधाय नदी घावटयों में भी कोयले
के जमाि पाए जाते हैं। टरवर्यरी कोयला क्षेत्र उत्तर-पिू ी राज्यों मेघालय, असम, अरुणाचल प्रदेर् ि नागालैंड में पाया
जाता है। 1997-98 में भारत में कोई 32 करोड टन कोयले का उत्पादन हुआ जबवक 1951 ई० में के िल 3.23 करोड
टन कोयले का उत्पादन हुआ था। भारत में उत्पावदत होने िाले कोयले का दो-वतहाई से भी अवधक भाग वबजली पैदा
करने के काम आता है।
(ii) भारत में सौर ऊजाय का भविष्य उज्जिल है। क्यों?
उत्तर भारत में सौर ऊजाय का भविष्य बहुत उज्ज्िल है वजसके मख्ु य कारण वनम्नवलवखत हैं

• भारत एक उष्ण कवटबधां ीय देर् है। यहााँ सौर ऊजाय के दोहन की असीम सभां ािनाएाँ हैं। एक अनमु ान के अनसु ार यह
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लगभग 20 मेगािाट प्रवत िगय वकलामीटर प्रवत िषय है।


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• भारत में फोटोिोपटाइक तकनीक द्वारा धपू को सीधे विद्यतु में पररिवतयत वकया जाता है।
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• भारत का सबसे बडा सौर ऊजाय सयां त्रां भजु के वनकट माधोपरु में वस्थत है, जहााँ सौर ऊजाय से दधू के बडे बतयनों को
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कीटाणमु क्त
ु वकया जाता है।
• सयू य का प्रकार् प्रकृ वत का मफ्ु त उपहार है। इसवलए वनम्न िगय के लोग आसानी से सौर ऊजाय का लाभ उठा | सकते
हैं।
• कोयला, पेरोवलयम, प्राकृ वतक गैस आवद ऊजाय के ऐसे स्रोत हैं जो एक बार प्रयोग के बाद दोबारा प्रयोग में नहीं लाए
जा सकते, िहीं सौर ऊजाय निीकरणीय सांसाधन हैं। इसे बार-बार प्रयोग में लाया जा सकता है।
• ऐसी अपेक्षा है वक सौर ऊजाय के प्रयोग से घरों में उपलों तथा लकडी पर वनभयरता को न्यनू तम वकया जा सके गा।
फलस्िरूप यह पयायिरण सरां क्षण में योगदान देगा और कृ वष में भी खाद्य की पयायप्त आपवू तय होगी।
• सौर ऊजाय का प्रयोग हम अनेक प्रकार से कर सकते हैं। जैसे-खाना बनाने, पांप द्वारा जल वनकालने, पानी को गरम
करने, दधू को कीटाणु रवहत बनाने तथा सडकों पर रोर्नी करने आवद के वलए।
वक्रयाकलाप : नीचे दी गई िगय पहेली में उपयक्त ु खवनजों का नाम भरें
क्षैवतज
• एक लौह खवनज
• सीमेंट उद्योग में प्रयक्त
ु कच्चा माल
• चबांु कीय गणु ों िाला सियश्रेष्ठ लोहा
• उत्कृ ष्ट कोवट का कठोर कोयला आयु
• इस अयस्क से एपयवू मवनयम प्राप्त वकया जाता है।
• इस खवनज के वलए खेतरी खदानें प्रवसि हैं।
• िाष्पीकरण से वनवमयत
ऊध्िायधर
• प्लेसर वनक्षेपों से प्राप्त होता है।
• बेलावडला में खनन वकया जाने िाला लौह-अयस्क
• विद्यतु उद्योग में अपररहायय
• उत्तरी-पिू ी भारत में वमलने िाले कोयले की भगू वभयक
• वर्राओ ां तथा वर्रावनक्षेपों में वनवमयत
उत्तर क्षैवतजः 1. मैंगनीज 2. लाइमस्टोन 3. मैंग्नीटाइट 4. एन्रासाइट 5. बॉक्साइट 6. तााँबा 7. वजप्सम
ऊध्िायधरः 1. चट्टान 2. हेमेटाइट 3. कोयला 4. टरवर्यरी 5. वटन
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पाठ योजना ननर्ााणकर्ाा : विजय कुमार हीर (टी0जी0टी0 कला ) कक्षा : दसिीं निषय : भगू ोल
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सांक्षेप में वलखें


1. बहुिैकवपपक प्रश्न
(i) वनम्न में से कौन-सा उद्योग चनू ा पत्थर को कच्चे माल के रूप में प्रयक्त
ु करता है?
(क) एपयवू मवनयम
(ख) चीनी
(ग) सीमेंट
(घ) पटसन।
(ii) वनम्न में से कौन-सी एजेंसी साियजवनक क्षेत्र में स्टील को बाजार में उपलब्ध कराती है?
(क) हेल (HAIL)
(ख) सेल (SAIL)
(ग) टाटा स्टील (TATA STEEL)
(घ) एमएनसीसी (MNCC)
(iii) वनम्न में से कौन-सा उद्योग बॉक्साइट को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करता है?
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(क) एपयवू मवनयम


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(ख) सीमेंट
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(ग) पटसन ।
(घ) स्टील।
(iv) वनम्न में से कौन-सा उद्योग दरू भाष, कांप्यटू र आवद सांयांत्र वनवमयत करते हैं?
(क) स्टील
(ख) एपयवू मवनयम
(ग) इलेक्रॉवनक
(घ) सचू ना प्रौद्योवगकी।
उत्तर (i) (ग), (ii) (ख), (iii) (क), (iv) (घ)।
2. वनम्नवलवखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 र्ब्दों में दीवजए।
(i) विवनमायण क्या है?
उत्तर कच्चे पदाथय को मपू यिान उत्पाद में पररिवतयत कर अवधक मात्रा में िस्तओ
ु ां के उत्पादन को िस्तु वनमायण या
विवनमायण कहते हैं; जैस-े लकडी से कागज बनाना, गन्ने से चीनी बनाना तथा लौह अयस्क से लोहा इस्पात सांयत्रां
लगाना आवद। विवनमायण उद्योग वकसी भी देर् के विकास की रीढ माने जाते हैं, क्योंवक ये कृ वष के आधवु नकीकरण के
साथ-साथ अन्य उद्योगों के विकास में भी सहायक होते हैं। |
(ii) उद्योगों की अिवस्थवत को प्रभावित करने िाले तीन भौवतक कारक बताएाँ।
उत्तर उद्योगों की अिवस्थवत को प्रभावित करने िाले भौवतक कारक वनम्नवलवखत हैं

• कच्चे माल की उपलब्धता-अवधकार् ां उद्योग िहीं स्थावपत वकए जाते हैं जहााँ उनके वलए कच्चा माल आसानी से
उपलब्ध हो सके । जैसे-अवधकाांर् लोहा इस्पात उद्योग प्रायद्वीपीय भारत में ही हैं, क्योंवक िहााँ लोहे की खाने हैं और
कच्चा माल आसानी से प्राप्त हो जाता है।
• र्वक्त के विवभन्न साधन-जहााँ उद्योगों को चलाने के वलए र्वक्त के विवभन्न साधन प्राप्त हो जाएाँगे िहीं उद्योगों | की
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स्थापना की जाएगी।
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• जेल की सल ु भता-विवभन्न उद्योगों के वलए जल की आिश्यकता होती है। वजन क्षेत्रों में जल सल ु भता से प्राप्त होता है
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िहााँ उद्योग स्थावपत वकए जाते हैं। जैसे-प० बांगाल में जटू मीलें इसवलए स्थावपत हैं क्योंवक िहााँ हुगली नदी से पानी
वमल जाता है।
(iii) औद्योवगक अिवस्थवत को प्रभावित करने िाले तीन मानिीय कारक बताएाँ।
उत्तर औद्योवगक अिवस्थवत को प्रभावित करने िाले तीन मानिीय कारक वनम्नवलवखत हैं

• सस्ते श्रवमकों की उपलब्धता-जहााँ विवभन्न उद्योगों में काम करने के वलए सस्ते श्रवमक उपलब्ध होते हैं िहााँ ।
अवधकाांर् उद्योग स्थावपत वकए जाते हैं।
• सांचार एिां पररिहन के साधन-विवभन्न उद्योगों में कच्चा माल पहुचाँ ाने तथा तैयार माल बाजार तक ले जाने के वलए
सांचार एिां पररिहन के अच्छे साधन जरूरी हैं। जहााँ ये साधन अच्छे होंगे िहााँ अवधकाांर् उद्योग लगाए जाते हैं।
• पाँजू ी ि बैंक की सवु िधाएाँ-विवभन्न उद्योगों को लगाने के वलए बडी पाँजू ी की आिश्यकता होती है। वजन क्षेत्रों में
बैंवकांग सवु िधाएाँ अच्छी होती हैं िहााँ अवधकाांर् उद्योग खोले जाते हैं।
(iv) आधारभतू उद्योग क्या है? उदाहरण देकर बताएाँ।
उत्तर िे उद्योग जो के िल अपने वलए ही महत्त्िपणू य नहीं हैं बवपक बहुत से उद्योग इन उद्योगों पर वनभयर करते हैं। इसवलए,
ये महत्त्िपणू य हैं। ऐसे उद्योगों को आधारभतू उद्योग कहते हैं। जैसे-लोही इस्पात उद्योग एक आधारभतू उद्योग है, क्योंवक
अन्य सभी भारी, हपके और मध्यम उद्योग इनसे बनी मर्ीनरी पर वनभयर हैं। विवभन्न प्रकार के इजां ीवनयररांग सामान,
वनमायण सामग्री, रक्षा, वचवकत्सा, टेलीफोन, िैज्ञावनक उपकरण और विवभन्न प्रकार की उपभोक्ता िस्तओ ु ां के वनमायण के
वलए इस्पात की आिश्यकता होती है।
3. वनम्नवलवखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 र्ब्दों में दीवजए।
(i) सांकवलत इस्पात उद्योग वमनी इस्पात उद्योगों से कै से वभन्न है? इस उद्योग की क्या समस्याएाँ हैं? वकन सधु ारों के
अतां गयत इसकी उत्पादन क्षमता बढी है?
उत्तर लोहा तथा इस्पात उद्योग एक आधारभतू उद्योग है। ये दो प्रकार के होते हैं-सक ां वलत उद्योग तथा वमनी इस्पात
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उद्योग। भारत में 10 मुख्य सांकवलत उद्योग तथा बहुत से छोटे इस्पात सांयांत्र हैं। एक सांकवलत इस्पात सांयांत्र बडा सांयांत्र
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होता है वजसमें कच्चे माल को एक स्थान पर एकवत्रत करने से लेकर इस्पात बनाने, उसे ढालने और उसे आकार देने
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तक की प्रत्येक वक्रया की जाती है। वमनी इस्पात उद्योग छोटे सांयांत्र हैं वजनमें विद्युत भट्टी, रद्दी इस्पात ि स्पांज आयरन
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का प्रयोग होता है। इनमें रर-रोलसय होते हैं वजनमें इस्पात वसवपलयों का इस्तेमाल वकया जाता है। ये हपके स्टील या
वनधायररत अनपु ात के मृदु ि वमवश्रत इस्पात का उत्पादन करते हैं। लोहा इस्पात उद्योग के सामने कई समस्याएाँ रही हैं

• उच्च लागत तथा कोवकांग कोयले की सीवमत उपलब्धता


• कम श्रवमक उत्पादकता
• ऊजाय की अवनयवमत पवू तय
• अविकवसत अिसांरचना
इन समस्याओ ां को दरू करके उत्पादन क्षमता बढाने के वलए कुछ सधु ार करने की आिश्यकता है। वनजी क्षेत्र में
उद्यवमयों के प्रयत्न से तथा उदारीकरण ि प्रत्यक्ष विदेर्ी वनिेर् ने इस उद्योग को प्रोत्साहन वदया है। ईस्पात उद्योग को
अवधक स्पधायिान बनाने के वलए अनसु ांधान और विकास के सांसाधनों को वनयत करने की आिश्यकता है।
(ii) उद्योग पयायिरण को कै से प्रदवू षत करते हैं? ।
उत्तर यद्यवप उद्योगों की भारतीय अथयव्यिस्था की िृवि ि विकास में महत्त्िपूणय भवू मका है। उद्योगों ने बहुत-से लोगों
को काम वदया है और राष्रीय आय में िृवि की है तथावप इनके द्वारा बढते भवू म, िाय,ु जल तथा पयायिरण प्रदषू ण को
भी नकारा नहीं जा सकता। उद्योग चार प्रकार के प्रदषू ण के वलए उत्तरदायी हैं-

• िायु
• जल
• भवू म
• ध्िवन।
1. िायु प्रदषू ण – अवधक अनपु ात में अनचाही गैसों की उपवस्थवत जैसे-सपफर डाइऑक्साइड तथा काबयन
मोनोऑक्साइड िायु प्रदषू ण के कारण हैं। रसायन ि कागज उद्योग, ईटोंां के भट्ट, तेलर्ोधनर्ालाएाँ, प्रगलन उद्योग,
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जीिाश्म ईधन
ां दहन तथा छोटे-बडे कारखाने प्रदषू ण के वनयमों का उपलघां न करते हुए धआ
ांु वनष्कावसत करते हैं। इसका
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बहुत भयानक तथा दरू गामी प्रभाि हो सकता है। िायु प्रदषू ण, मानि स्िास््य, पर्ओ ु ,ां पौधों, इमारतों तथा परू े
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पयायिरण पर दष्ु प्रभाि डालते हैं।


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2. जल प्रदषू ण – उद्योगों द्वारा काबयवनक तथा अकाबयवनक अपवर्ष्ट पदाथों को नदी में छोडने से जल प्रदषू ण फै लता है।
जल प्रदषू ण के मुख्य कारक-कागज, लग्ु दी, रसायन, िि तथा रांगाई उद्योग, तेल र्ोधनर्ालाएाँ, चमडा उद्योग हैं जो
रांग, अपमाजयक, अम्ल, लिण तथा भारी धातएु ाँ; जैसे-सीसा, पारा, उियरक, काबयन तथा रबर सवहत कृ वत्रम रसायन जल
में िावहत करते हैं। इसकी िजह से पानी वकसी काम योग्य नहीं रहता तथा उसमें
पनपने िाले जीि भी खतरे में पड जाते हैं।
3. भवू म का क्षरण – कारखानों से वनकलने िाले विषैले द्रव्य पदाथय और धातयु क्त
ु कूडा कचरा भवू म और वमट्टी को भी
प्रदवू षत वकए वबना नहीं छोडते हैं। जब ऐसा विषैला पानी वकसी भी स्थान पर बहुत समय तक खडा रहता है तो िह
भवू म के क्षरण का एक बडा कारण वसि होता है।
4. ध्िवन प्रदषू ण – औद्योवगक तथा वनमायण कायय, कारखानों के उपकरण, जेनरे टर, लकडी चीरने के कारखाने, गैस
याांवत्रकी तथा विद्यतु विल ध्िवन-प्रदषू ण को फै लाते हैं। ध्िवन प्रदषू ण से श्रिण असक्षमता, हृदय गवत, रक्तचाप आवद
बीमाररयााँ फै लती हैं।
5. औद्योवगक बवस्तयों का पयायिरण पर प्रभाि – औद्योवगक क्रावां त के कारण गदां ी औद्योवगक बवस्तयों का वनमायण हो
जाता है वजससे सारा इलाका एक गांदी बस्ती में बदल जाता है। चारों तरफ प्रदषू ण फै ल जाता है और कई प्रकार की
महामाररयााँ फै ल जाती हैं।
(iii) उद्योगों द्वारा पयायिरण वनम्नीकरण को कम करने के वलए उठाए गए विवभन्न उपायों की चचाय करें ।
उत्तर उद्योगों द्वारा पयायिरण वनम्नीकरण को कम करने के वलए वनम्नवलवखत उपाय अपनाए गए हैं
• नवदयों ि तालाबों में गमय जल तथा अपवर्ष्ट पदाथों को प्रिावहत करने से पहले उनका र्ोधन करना चावहए
वजससे जल प्रदवू षत न हो।
• कोयले, लकडी या खवनज तेल से पैदा की गई वबजली जो हिा को प्रदवू षत करती है, के स्थान पर जल द्वारा पैदा |
की गई वबजली का प्रयोग करना चावहए। ऐसे में िातािरण र्ि
ु रहेगा।
• िायु प्रदषू ण को कम करने के वलए कारखानों में ऊाँ ची वचमवनयााँ, वचमवनयों में एलेक्रोस्टैवटक अिक्षेपण स्क्रबर
उपकरण तथा गैसीय प्रदषू क पदाथों को जडत्िीय रूप से पृथक करने के वलए उपकरण होना चावहए। कारखानों में
कोयले की अपेक्षा तेल ि गैस के प्रयोग से धांएु के वनष्कासन में कमी लायी जा सकती है।
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• ध्िवन प्रदषू ण को कम करने के वलए जेनरे टरों में साईलेंसर लगाया जा सकता है। ऐसी मर्ीनरी का प्रयोग तभी वकया
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जाए जो ऊजाय सक्षम हों तथा कम ध्िवन प्रदषू ण करें । ध्िवन अिर्ोवषत करने िाले उपकरणों के इस्तेमाल के साथ
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कानों पर र्ोर वनयांत्रण उपकरण भी पहनने चावहए।


• फै वक्रयों से वनकले प्रदवू षत जल को िहीं इकट्ठा करके रासायवनक प्रवक्रया द्वारा उसे साफ वकया जाए और बार बार
प्रयोग में लाया जाए। ऐसे में नवदयों और आस-पास की भवू म का प्रदषू ण काफी हद तक रुक जाएगा।
वक्रयाकलाप
उद्योगों के सांदभय में प्रत्येक के वलए एक र्ब्द दें ( साांकेवतक अक्षर सांख्या कोष्ठक में दी गई है तथा उत्तर अांग्रेजी के
र्ब्दों में हैं )
(i) मर्ीनरी चलाने में प्रयक्त

(ii) कारखानों में काम करने िाले व्यवक्त
(iii) उत्पाद को जहााँ बेचा जाता है।
(iv) िह व्यवक्त जो सामान बेचता है।
(v) िस्तु उत्पादन
(vi) वनमायण या उत्पादन
(vii) भवू म, जल तथा िायु अिनयन
(5) P…………………..
(6) W…………………
(6) M…………………
(8) R…………………..
(7) P…………………..
(11) M……………….
(9) P…………………..
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उत्तर (i) POWER


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(ii) WORKER
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(iii) MARKET
(iv) RETAILER
(v) PRODUCT
(vi) MANUFACTURE
(vii) POLLUTION
प्रोजेक्ट कायय
अपने क्षेत्र के एक कृ वष आधाररत तथा एक खवनज आधाररत उद्योग को चनु ें।
(i) ये कच्चे माल के रूप में क्या प्रयोग करते हैं?
(ii) विवनमायण प्रवक्रया में अन्य वनिेर् क्या हैं वजनसे पररिहन लागत बढती है?
(iii) क्या ये कारखाने पयायिरण वनयमों का पालन करते हैं?
उत्तर:- एक कृ वष-आधाररत उद्योग ।
• चीनी उद्योग
(i) गन्ना
(ii) श्रम, पांजू ी, वबजली, जल
(iii) कुछ हद तक ये कारखाने पयायिरण वनयमों का पालन करते हैं।
एक खवनज-आधाररत उद्योग
• सीमेंट उद्योग
(i) चनू ा, पत्थर, वसवलका, एपयवू मना और वजप्सम
(ii) श्रम, पांजू ी, वबजली
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(iii) ये कारखाने पयायिरण वनयमों का पालन वबपकुल नहीं करते हैं।


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वक्रयाकलाप: वनम्न िगय पहेली में क्षैवतज अथिा ऊध्िायधर अक्षरों को जोडते हुए वनम्न प्रश्नों के उत्तर दें।
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नोट: पहेली के उत्तर अांग्रेजी के र्ब्दों में हैं।


उत्तर1. AGRO-BASED
2. SUGARCANE
3. JUTE
4. IRON STEEL
5. BHILAI
6. VARANASI
पाठ योजना ननर्ााणकर्ाा : विजय कुमार हीर (टी0जी0टी0 कला ) कक्षा : दसिीं निषय : भगू ोल
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सांक्षेप में वलखें
1. बहुिैकवपपक प्रश्न
(i) वनम्न में से कौन-से दो दरू स्थ वस्थत स्थान पिू ी-पविमी गवलयारे से जडु े हैं?
(क) मांबु ई तथा नागपरु
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(ख) मबांु ई तथा कोलकाता


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(ग) वसलचर तथा पोरबांदर


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(घ) नागपरु तथा वसवलगडु ी।


(ii) वनम्नवलवखत में से पररिहन का कौन-सा साधन िहनाांतरण हावनयों तथा देरी को घटाता है?
(क) रे ल पररिहन
(ख) पाइपलाइन
(ग) सडक पररिहन
(घ) जल पररिहन।।
(iii) वनम्न में से कौन-सा राज्य हजीरा-विजयपरु -जगदीर्परु पाइपलाइन से नहीं जडु ा है?
(क) मध्य प्रदेर्
(ख) गजु रात
(ग) महाराष्र
(घ) उत्तर प्रदेर्।
(iv) इनमें से कौन-सा पत्तन पिू ी तट पर वस्थत है जो अांत:स्थलीय तथा अवधकतम गहराई का पत्तन है तथा पणू य ।
सरु वक्षत है?
(क) चेन्नई
(ख) तूतीकोररन
(ग) पारादीप
(घ) विर्ाखापटनम।्
(v) वनम्न में से कौन-सा पररिहन साधन भारत में प्रमख
ु साधन है?
(क) पाइपलाइन ।
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(ख) सडक पररिहन


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(ग) रे ल पररिहन
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(घ) िायु पररिहन।


(vi) वनम्न में से कौन-सा र्ब्द दो या अवधक देर्ों के व्यापार को दर्ायता है?
(क) आांतररक व्यापार
(ख) बाहरी व्यापार
(ग) अांतरायष्रीय व्यापार
(घ) स्थानीय व्यापार ।
उत्तर (i) (ग) (ii) (क) (iii) (ग) (iv) (घ) (v) (ग) (vi) (ग)
2. वनम्नवलवखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 र्ब्दों में दीवजए
(i) सडक पररिहन के तीन गणु बताएाँ। उत्तर भारत विश्व के सिायवधक सडक जाल िाले देर्ों में से एक है। सडक
पररिहन के कुछ प्रमख
ु गणु वनम्नवलवखत हैं
• सडक पररिहन, अन्य पररिहन साधनों के उपयोग में एक कडी के रूप में भी कायय करता है। जैसे-सडकें , रे लिे
स्टेर्न, िायु ि समद्रु ी पत्तनों को जोडती हैं।
• सडकों की वनमायण लागत कम होती है तथा यह ऊबड-खाबड भ-ू भागों पर भी बनाई जा सकती है।
• यह घर-घर सेिाएाँ उपलब्ध करिाता है तथा सामान चढाने ि उतारने की लागत भी अपेक्षाकृ त कम है।
(ii) रे ल पररिहन कहााँ पर अत्यवधक सवु िधाजनक पररिहन साधन है तथा क्यों?
उत्तर भारत में रे ल पररिहन िस्तओ ु ां तथा यावत्रओ ां के पररिहन का प्रमखु साधन है। रे ल पररिहन अनेक कायों में
सहायक है; जैस-े व्यापार, भ्रमण, तीथय यात्राएाँ ि लबां ी दरू ी तक सामान का पररिहन आवद। भारत के उत्तरी मैदानों में रे ल
पररिहन अत्यवधक सवु िधाजनक पररिहन है, क्योंवक उत्तरी मैदान अपनी विस्तृत समतल भवू म, सघन जनसांख्या
घनत्ि, सांपन्न कृ वष ि प्रचरु सांसाधनों के कारण रे ल पररिहन के विकास ि िृवि में सहायक रहा है।
(iii) सीमाांत सडकों का महत्त्ि बताएाँ।
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उत्तर भारत के सीमाांत क्षेत्र में सडकों के वनमायण ि देख-रे ख का कायय सीमा सडक सांगठन करता है। यह उत्तर-पिू ी क्षेत्रों
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में सामररक महत्त्ि की सडकों का विकास करता है। इन सडकों का महत्त्ि इस प्रकार है
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• ये सडकें सीमािती क्षेत्रों में रहने िाले लोगों विर्ेषकर चौवकयों की रखिाली करने िाले सैवनकों की प्रवतवदन की
आिश्यकताओ ां को परू ा करने में बडी सहायक वसि होती हैं।
• यि
ु के समय इन्हीं सडकों से फौवजयों को लडाई का सामान, खाद्य सामग्री तथा अन्य सहायता पहुचाँ ाई जाती है।
• इन सडकों से दगु यम क्षेत्रों में आना-जाना सरल हुआ है।
• ये सडकें इन क्षेत्रों के आवथयक विकास में भी सहायक हुई हैं।
(iv) व्यापार से आप क्या समझते हैं? स्थानीय ि अतां रायष्रीय व्यापार में अतां र स्पष्ट करें ।
उत्तर राज्यों ि देर्ों के बीच विवभन्न िस्तओ
ु ां का आदान-प्रदान व्यापार कहलाता है। स्थानीय ि अांतरायष्रीय व्यापार में
अांतर वनम्नवलवखत हैं
अतां रायष्रीय व्यापार- दो देर्ों के मध्य विवभन्न िस्तओ
ु ां का आदान-प्रदान अतां रायष्रीय व्यापार कहलाता है। यह समद्रु ी,
हिाई ि स्थलीय मागों द्वारा हो सकता है। वकसी देर् के अांतरायष्रीय व्यापार की प्रगवत उसके आवथयक विकास का
सचू क है।
स्थानीय व्यापार- एक देर् के अांदर विवभन्न िस्तओ
ु ां को आदान-प्रदान स्थानीय व्यापार कहलाता है। स्थानीय
व्यापार र्हरों, कस्बों ि गााँिों में होता है।
3. वनम्नवलवखत प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 र्ब्दों में दीवजए।
(i) पररिहन तथा सचां ार के साधन वकसी देर् की जीिन रे खा तथा अथयव्यिस्था क्यों कहे जाते हैं?
उत्तर िस्तओ ु ,ां सेिाओ ां तथा लोगों को एक स्थान से दसू रे स्थान तक ले जाना पररिहन कहलाता है। यह पररिहन तीन
महत्त्िपणू य क्षेत्रों से वकया जाता है-स्थल, जल तथा िायु ।
सच
ां ार के साधन िे साधन हैं वजनका प्रयोग एक स्थान से दसू रे स्थान तक सांदर्
े भेजने के वलए वकया जाता है। ये दोनों
ही वकसी देर् की जीिन रे खा कहे जाते हैं क्योंवक
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• एक देर् के विकास की गवत िस्तओ ु ां तथा सेिाओ ां के उत्पादन के साथ उनके एक स्थान से दसू रे स्थान तक िहन की
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सवु िधा पर भी वनभयर करता है। इसवलए सक्षम पररिहन के साधन तीव्र विकास हेतु पिू य अपेवक्षत हैं।
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• भारत अपने विर्ाल आकार, विविधताओ,ां भाषाई तथा सामावजक ि सास्ां कृ वतक बहुलताओ ां के बािजदू ससां ार के
सभी क्षेत्रों से सचु ारू रूप से जुडा है। इसका कारण अच्छे पररिहन तथा सांचार के साधन हैं।
• सक्षम ि तीव्र गवत िाले पररिहन से आज सांसार एक बडे गााँि में पररिवतयत हो गया है। पररिहन का यह विकास |
सांचार साधनों के विकास की सहायता से ही सांभि हो सका है।
• यि
ु के समय इन साधनों का महत्त्ि बहुत बढ जाता है। इनके द्वारा सारा देर् रक्षा सेनाओ ां की सहायता में कवटबि हो
जाता है। हवथयारों, गोला बारूद तथा रसद पहुचाँ ाने का काम आसान हो जाता है।
आधवु नक सांचार तथा पररिहन के साधन हमारे देर् और इसकी आधवु नक अथयव्यिस्था को सांचावलत करते हैं। अत:
यह स्पष्ट है वक सघन ि सक्षम पररिहन का जाल तथा सांचार के साधन आज विश्व राष्र ि स्थानीय व्यापार हेतु पिू य
अपेवक्षत है।
(ii) वपछले पांद्रह िषों में अांतरायष्रीय व्यापार की बदलती प्रिृवत्त पर एक लेख वलखें।
उत्तर दो देर्ों के मध्य व्यापार अतां रायष्रीय व्यापार कहलाता है। एक देर् के अतां रायष्रीय व्यापार की प्रगवत उसके
आवथयक व्यापार का सचू क है, इसवलए इसे राष्र का आवथयक बैरोमीटर भी कहा जाता है। स्ितांत्रता प्रावप्त के पिात्
औद्योवगक विकास के फलस्िरूप भारत के विदेर्ी व्यापार में भी प्रगवत हुई है। अांतरायष्रीय व्यापार में वपछले 15 िषों
में भारी बदलाि आया है। िस्तओ ु ां के आदान-प्रदान की अपेक्षा सचू नाओ,ां ज्ञान तथा प्रौद्योवगकी का आदान-प्रदान
बढा है। भारत अांतरायष्रीय स्तर पर एक सॉफ्टिेयर महार्वक्त के रूप में उभरा है तथा सचू ना प्रौद्योवगकी के माध्यम से
अत्यवधक विदेर्ी मद्रु ा अवजयत कर रहा है।
विश्व के सभी भौगोवलक प्रदेर्ों तथा सभी व्यापाररक खांडों के साथ भारत के व्यापाररक सांबांध हैं। वपछले कुछ िषों से
वनयायत िृवि िाली िस्तएु ाँ ये हैं-कृ वष सांबांवधत उत्पाद, खवनज ि अयस्क, रत्न ि जिाहरात, रसायन ि सांबांवधत उत्पाद,
इजां ीवनयररांग सामान तथा पेरोवलयम उत्पाद आवद।
भारत में आयावतत िस्तओ
ु ां में पेरोवलयम तथा पेरोवलयम उत्पाद, मोती ि बहुमपू य रत्न, अकाबयवनक रसायन,
कोयला, कोक तथा कोयले का गोला मर्ीनरी आवद र्ावमल हैं। भारी िस्तओ
ु ां के आयात में 39.09 प्रवतर्त की िृवि
हुई है।
हमें आयात की अपेक्षा वनयायत को बढाने की कोवर्र् करनी होगी वजससे विश्व बाजार में भारत सम्माननीय स्थान पा
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