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Bahen Ki Chudai Ki Yaden
Bahen Ki Chudai Ki Yaden
लेख़क- अज्ञात
दोस्तों, ये कहानी मैंने काफी समय पहले कही पढ़ी थी और मझ ु े बहुत पसंद आई थी। कहानी का लेखक कोई
और है मैं ससफफ इसे हहंदी में दे ने की कोसिि कर रहा हूँ।
***** *****
बात 1999 की है जब मैं 12वीं में पढ़ता था। हम एक छोटे से िहर में रहते थे और हमारा एक छोटा सा
पररवार था। मझ
ु े समलाकर घर में कुल 4 लोग थे। पहले घर के बड़े मेरी मम्मी, 48 साल; पापा, 55 साल; फफर
मेरी एकलौती बहन रश्मम, 19 साल; और सबसे छोटा मैं मोन, 16 साल।
मेरी बहन रश्मम बहुत ही खबसरत है । दीदी की हाईट 5’5”, श्स्लम, दधिया रं ग और जो मझ
ु े सबसे ज्यादा पसंद
है , उनके रे िमी लम्बे काले बाल जो उनकी कमर के नीचे तक आते हैं। कुल समलाकर रश्मम दीदी फकसी फफल्म
एक्ट्रे स से कम नहीं लगती थी। दीदी बी॰काम॰ कर रही थी और उनकी मैथ बहुत अच्छी थी और मझ
ु े वही मैथ
पढ़ाती थी।
10वीं के बाद मेरा स्कल बदल गया था। और इस नए स्कल में मेरे ज्यादा दोस्त नहीं थे, बस दो-तीन धगने चुने
दोस्त थे। उनहीं में से एक दोस्त है ररि। जब मैं नया-नया इस स्कल में आया था तो कुछ लड़कों ने मेरी रै धगंग
करने की कोसिि की थी, तब ररि ने मझ
ु े बचा सलया था। तब वो 12वीं में था और दो साल से फेल हो रहा
था। अब वो तीसरी बार फेल होकर मेरा क्ट्लासफेलो हो गया है ।
दरअसल ररि की माूँ और मेरी मम्मी परु ाने दोस्त हैं, मैं कासमनी आंटी (ररि की मम्मी) को तो अच्छे से
जानता हूँ क्ट्योंकी वो अक्ट्सर मेरे घर आती हैं और मम्मी और दीदी के साथ घंटों बातें करती रहती हैं। लेफकन
ररि कभी मेरे घर नहीं आया, पर उसने मझ
ु े फकसी फंक्ट्िन में मेरी मम्मी के साथ दे खा था तो वो मझ
ु े जानता
था, इसीसलए उसने मझ
ु े रै धगंग से बचा सलया था। क्ट्योंकी वो 5-6 साल से इसी स्कल में था और वो गड
ुं ागदी
ज्यादा करता था, पढ़ाई कम। इसीसलए सब उससे डरते थे। तभी से मैंने उससे दोस्ती कर ली ताकी मझ
ु े स्कल
में कोई परे िान न करे ।
मेरा स्कल एक सरकारी स्कल था, श्जसमें ससफफ लड़के पढ़ते थे। एक हदन लंच टाइम में ररि मेरे पास आया
और बोला- “अबे अकेले-अकेले क्ट्या खा रहा है?”
मैंने जल्दी-जल्दी खाना खाया और ररि से बोला- “हां भाई, क्ट्या चीज हदखानी थी?”
ररि मझ
ु े क्ट्लास के पीछे मैदान में ले गया जहां कोई और नहीं था और अपनी िटफ के अनदर से एक फकताब
ननकलकर मझ
ु े हदखाई। उस फकताब में नंगी लड़फकयों की फोटो बनी थी। ररि का चेहरा चमक रहा था और
पहली बार नंगी लड़की का फोटो दे खकर मेरा चेहरा उत्तेजना और िमफ से लाल हो गया था।
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मेरा चेहरा दे खकर ररि बोला- अबे चनतये क्ट्या हुआ? तेरी गाण्ड क्ट्यों फट रही है ?
मैंने कहा- ररि भाई, कोई दे ख लेगा। अगर फकसी ने पकड़ सलया तो बहुत पपटाई होगी।
दसरे पननों में लड़फकयों के साथ नंगे लड़कों की भी तस्वीरें थीं और कुछ तो चुदाई की भी थीं। श्जंदगी में पहली
बार मैंने ये सब दे खा था। मझ
ु े डर भी लग रहा था और दे खने की इच्छा भी हो रही थी। तभी बेल बजी और
हम दोनों वापस क्ट्लास में आ गये और मास्टर भी क्ट्लास में आ गए थे। पर मेरा मन अब भी बाकी की तस्वीरों
को दे खने का हो रहा था।
उस हदन जब मैं घर गया तो घर पर ससफफ मम्मी ही थीं। पापा िाम को 7:00 बजे तक आफफस से आते थे और
दीदी 4:00 बजे कालेज से आती थी। खैर, मैं खाना खाकर अपने कमरे में आराम करने चला गया। मैं आपको ये
बता दं की मेरा और दीदी का कमरा एक ही है , बस बेड अलग-अलग हैं।
तभी दीदी अपने बेड पर बैठ गई और अपने जड़े को खोल हदया और उनके सेक्ट्सी बाल उनके कंिों पर लहरा
गए और मेरे लण्ड ने एक झटका सलया।
मझ
ु े ऐसे लगा की मेरी चोरी पकड़ी गई है । घबराकर मैं बोला- “वो वो कुछ नहीं… आपके बाल…” मेरा गला सख
रहा था।
तभी दीदी हूँसते हुए मेरे बगल में आकर बैठ गई। मझ
ु े उनके बदन से डी॰ओ॰ की भीनी-भीनी खिु ब आ रही थी
और साथ ही डर भी लग रहा था की कहीं दीदी मेरे पैजामे की तरफ न दे ख ले। पर दीदी ने मेरे गाल पर एक
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प्यार भरी चपत लगाई और बाहर जाने लगी। उनके लम्बे बाल उनके कंिों पर बड़े ही सेक्ट्सी तरीके ले लहरा कर
मझ
ु े मूँह
ु धचढ़ा रहे थे।
अगले हदन ररि मझ ु े क्ट्लास में छे ड़ते हुए बोला- “अबे, वो फकताब कैसी लगी तझ
ु ?
े मजा आया था?” हम क्ट्लास
में पपछले डेस्क में बैठे थे।
ररि- “अबे चनतये, ससफफ फोटो दे खकर तेरा ये हाल है, तो अगर तझ
ु े फफल्म हदखा दी तो क्ट्या होगा? बोल दे खेगा
नंगी लड़फकयों की फफल्म?”
ये सन
ु कर मेरे लण्ड में हरकत होने लगी और न चाहते हुए भी मेरे मूँह
ु से ननकला- कऽकऽकहां दे खेंग?
े
ररि- “वो मझ
ु पर छोड़ दे , बस छुट्टी के बाद मेरे साथ चलना…” और छुट्टी के बाद वो मझ
ु े स्कल के पास वाले
साइबर कैफे में ले गया।
कैफे वाला ररि को पहचानता था उसने हमें कोने का एक केबबन दे हदया। कंप्यटर ररि आपरे ट कर रहा था।
दे खकर लग रहा था की वो काफी एक्ट्सपटफ है । तभी उसने एक साईट खोल करके एक सलंक पर श्क्ट्लक फकया
और कुछ सेकेंड बाद एक श्क्ट्लप चलने लगी, श्जसमें एक आदमी एक लड़की के ऊपर चढ़ा था, लड़की झुकी हुई
थी और वो आदमी जोर-जोर से िक्ट्के लगा रहा था।
ररि बोला- “इसको चुदाई कहते हैं, मेरे लाल। दे ख कैसे चोद रहा है लड़की की चत को?”
मै कुछ बोल नहीं रहा था बस कंप्यटर स्रीन को घरे जा रहा था। मेरा गला सख रहा था और हदल जोर-जोर से
िड़क रहा था। डर भी लग रहा था की कहीं कोई पकड़ न ले। अचानक मेरी आूँखें नीचे गईं तो मैंने दे खा की
ररि की पैंट का टें ट मेरे टें ट से काफी बड़ा था। मैंने फफर से कंप्यटर की तरफ दे खा अब एक दसरी श्क्ट्लप चल
रही थी, श्जसमें दो काले आदमी एक गोरी लड़की को बड़ी बेरहमी से चोद रहे थे। ये दे खकर मेरा लण्ड और
अकड़ गया। श्क्ट्लप छोटी-छोटी ही थी पर उनसे मेरे अनदर बड़ी-बड़ी उमंगें जाग गई थीं। हम लोग एक घंटे के
बाद अपने-अपने घर चले आये।
***** *****
“आह्ह… फक मी आह्ह…” लड़की धचल्ला रही थी। ये वोही लड़की थी श्जसे मैंने दोपहर को फफल्म में दे खा था
बस अंतर इतना था की काले आदमी की जगह अब उसे मैं चोद रहा था।
मेरे तो रोंगटे खड़े हो गए और मेरी नजरें उन उभारों पर जम गई और मेरे पैजामे में फफर से वोही हलचल होने
लगी। मझ
ु े समझ में नहीं आ रहा था की अपनी बहन को दे खकर क्ट्यों मझ
ु े ऐसा हो रहा है ।? मैं धगल्ट महसस
करने लगा और उठकर बाथरूम चला गया और लौटकर नाईट बल्ब बंद करके सो गया।
अगली सब
ु ह मेरी आूँख 8:00 बजे खुली तो मैंने दे खा की दीदी का बैग टे बल पर रखा है मतलब दीदी कालेज
नहीं गई थी। मैं फ्रेि हुआ और नीचे ड्राइंग रूम में चला गया। रश्मम दीदी सोफे पर बैठकर टीवी पर नयज दे ख
रही थीं। मझ
ु े फफर रात की बात याद आ गई और फफर से मझ ु े धगल्ट महसस होने लगा।
“लो कर लो बात। कहां हदमाग रहता है तेरा? अरे सनडे को कालेज कब से खुलने लगा भाई?”
“अरे हाूँ आज तो सनडे है । मम्मी और पापा कहां हैं?” मैंने पछा और मन में सोचा की ररि के साथ रहते हुए मैं
भी कैसा होता जा रहा हूँ।
“वो तो बआु के यहाूँ गए हैं, िाम तक आएंग… े ” दीदी टीवी दे खते हुए बोली। मम्मी नामता और खाना बनाकर
गई है । चाहहए तो मांगना मैं दे दूँ गी। मैंने भी अभी नामता नहीं फकया है ।
दीदी फकचेन में चली गई और मैं ररमोट लेकर चैनेल बदलने लगा, पर ररमोट के सेल वीक हो गए थे और कई
बार बटन दबाने के बाद बड़ी मश्ु मकल से एक चैनेल लगा श्जसमें जानवरों के बारे में बता रहे थे तो मैं वही
दे खने लगा। थोड़ी दे र में दीदी नामता ले आई और हम दोनों नामता करने लगे।
“त बड़ा होकर जरूर जानवरों का डाक्ट्टर बनेगा…” दीदी हूँसते हुए बोली।
“सारा हदन टीवी पर जानवरों को जो दे खता रहता है …” दीदी अपने रे िमी बालों को खोलकर अपने सीने पर
डालते हुए बोली।
मेरा तो बरु ा हाल हो गया। एक तो दीदी इतनी खबसरत और उसपर जब वो अपने बाल खोल लेती हैं तो
बालीवड
ु क्ट्या हालीवड
ु भी फेल हो जाता है ।
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“ला अपना बायीं है ण्ड दे मैं तेरा फ्यचर बताती हूँ…” कहते हुए दीदी ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले सलया।
क्ट्या मल
ु ायम हाथ था उनके हाथों में मेरा हाथ एकदम काला नजर आ रहा था।
“हाूँ तो त बड़ा होकर एक बहुत बड़ा… हाूँ जोकर बनेगा…” दीदी मेरा मजाक बनाकर हूँस रही थी। पर मैं उनकी
खबसरती को ननहार रहा था।
थोड़ा हूँसी मजाक के बाद हम फफर से टीवी दे खने लगे। फफर कुछ ऐसा हुआ की मेरी ही नहीं दीदी की भी हूँसी
रुक गई। दरअसल टीवी पर कुछ जेब्रा हदखाए जा रहे थे की अचानक एक मेल जेब्रा फीमेल जेब्रा को पीछे से
सघ
ं ने लगा और चाटने लगा। चैनेल के कैमरामैन का परा फोकस अब वहीं पर था। फफर कैमरे का फोकस जेब्रा
की टांगों की तरफ हुआ और अब उसका लण्ड परा लाल होकर पविालकाय रूप ले चुका था। उसका लण्ड दे खकर
ही हम दोनों की हूँसी रुक गई थी और आवाज बंद हो गई थी।
मैंने दीदी की तरफ दे खा वो बबना पलकें झपकाए एकटक टीवी दे ख रही थी। उनके सीने के उभार कुछ और तन
गए थे। उनकी सांस भी कुछ तेज चल रही थी। अचानक उनहोंने मझ
ु े दे खा और उनका चेहरा िमफ से लाल हो
गया और उनहोंने बबना कुछ बोले ररमोट उठाया और चैनेल चें ज करने की कोसिि करने लगी। पर बैटरी वीक
होने की वजह से चैनेल नहीं बदला और वो जेब्रा फीमेल जेब्रा पर चढ़ गया।
मेरा हाथ अभी भी दीदी के हाथ में था जो उनकी जांघ पर रखा था। उनकी कोमल त्वचा का एहसास मझ
ु े उनके
पैजामे के ऊपर से भी हो रहा था। तभी जेब्रा ने एक ही झटके में अपना पविाल लण्ड फीमेल जेब्रा की चत में
घस
ु ा हदया और दीदी ने उस पहले झटके के साथ ही मेरा हाथ कस के भींच सलया। मेरी हालत बहुत बरु ी हो गई
थी, ऐसा लग रहा था की मैं दीदी के साथ बैठकर ब्ल-फफल्म दे ख रहा हूँ। मेरा लण्ड परा खड़ा हो गया था और
उिर जेब्रा लगातार झटके मार रहा था।
मझ
ु पर सेक्ट्स का निा चढ़ता जा रहा था और अब दीदी भी चैनेल बदलने की कोसिि नहीं कर रही थी। कुछ
तो उन जानवरों का सेक्ट्स दे खकर और कुछ दीदी की नरम जांघ की गमी, मझ
ु से रहा नहीं गया और मैंने अपने
हाथों को थोड़ा खोला और दीदी की राईट जांघ, श्जस पर मेरा हाथ था, को कसकर दबा हदया। बस मेरे सलए
इतना ही काफी था और मेरे लण्ड ने पानी छोड़ हदया।
तभी फोन की ररंग बजी और दीदी जैसे नींद से जागी और फोन उठाने के सलए चली गई और मैं बाथरूम की
तरफ।
बस उस हदन और कुछ खास नहीं हुआ। बस हम दोनों के बीच ज्यादा बात नहीं हुई और िीरे -िीरे एक हफ्ता
बीत गया। मैं ररि के साथ एक दो बार साइबर कैफे भी हो आया और ररि के साथ अब मैं खुलकर सेक्ट्स के
बारे में बात करने लगा। उसकी सेक्ट्स की नालेज ससफफ बक
ु और फफल्म तक ही नहीं थी बश्ल्क उसकी बातों से
लगता था की उसने कई बार प्रैश्क्ट्टकल भी फकया था पर फकसके साथ? ये उसने मझ
ु े नहीं बताया।
कुछ हदनों बाद पापा दीदी के सलए घर में ही कंप्यटर ले आये थे और मैं अक्ट्सर उसपर गेम खेलता रहता था।
मेरे पेपर हो गए थे और हम ररजल्ट का इंतज
े ार कर रहे थे। गमी की छुट्हटया िरू
ु हो गई थी। उस हदन भी मैं
गेम खेल रहा था। फ्राइडे का हदन था।
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दीदी मेरे पास आकर बोली- चलो कंप्यटर बंद करो और मेरे साथ बैंक चलो।
अरे मझ
ु े एक फामफ के साथ ड्राफ्ट भी लगाना है जल्दी से तैयार हो जा।
जब मैं तैयार होकर नीचे पहुूँचा तो दीदी ने भी ड्रेस चें ज करके एक ग्रीन कलर का कुरता और ब्लैक चड़ीदार
पहन सलया था और अपने रे िमी बालों की एक लम्बी पोनी बनाई हुई थी।
“जल्दी कर मोन बैंक बंद होने वाला होगा। आज मेरे को ड्राफ्ट बनवाना ही है । कल फामफ भरने की लास्ट डेट
है …” बोलते-बोलते दीदी सैंडल पहनने के सलए झुकी तो उनके कुरते के अनदर कैद वो गोरे -गोरे उभार मझ
ु े नजर
आ गए। मेरा हदल फफर से डोल गया और हम बैंक की तरफ चल पड़े।
मैंने महसस फकया की लगभग हर उम्र का आदमी दीदी को हवस भरी नजरों से घर रहा था। पर दीदी उनपर
ध्यान न दे ते हुए चलती जा रही थी। मझु े अपने ऊपर बड़ा फख्र हुआ की मैं इतनी खबसरत लड़की के साथ चल
रहा था, भले ही वो मेरी बहन है । हम 15 समनट में बैंक पहुूँच गए, पर उस हदन बैंक में बहुत भीड़ थी। ड्राफ्ट
वाली लाइन एकदम कोने में थी और उसके आस-पास कोई और लाइन नहीं थी। िर
ु था की वहां ज्यादा भीड़
नहीं थी।
“मोन त यहाूँ बैठ जा और ये पेपर पकड़ ले मैं लाइन में लगती हूँ…” दीदी बैग से कुछ पेपर ननकलते हुए बोली।
मैं वहीं साइड पर रखी बेंच पर बैठ गया और दीदी कोने में जाकर लाइन में लग गई। मैं बैठा दे ख रहा था की
बैंक की ईमारत की हालत खस्ता थी। एक बड़ा हाल श्जसमें हम लोग बैठे थे। और बाकी तीन तरफ कुछ कमरे
बने थे। कुछ खुले थे कुछ में ताला लगा था। श्जस जगह मैं बैठा था उसके पीछे के कमरे में तो ससफफ टटा
फननफचर ही भरा था।
खैर, ये तो उस समय के हर सरकारी बैंक का हाल था। जहाूँ दीदी खड़ी थी उस जगह तो ट्यबलाइट भी नहीं
जल रही थी, अूँिेरा सा था। दीदी मेरी तरफ दे ख रही थी और मझ
ु से नजर समलने पर उनहोंने एक हल्की सी
नतरछी स्माइल दी जैसे कह रही हो ये कहा फूँस गए हम।
तभी दीदी के पीछे एक आदमी और लाइन में लग गया, श्जसकी उम्र करीब 35 साल होगी। वो गट
ु का खा रहा
था। उसने एकदम परु ाने नघसे हुए से कपड़े पहने थे। एकदम काले तवे जैसा उसका रं ग था। गमी भी काफी हो
रही थी।
तभी उसका फोन बजा मैं तो अचम्भे में पड़ गया की ऐसे आदमी के पास मोबाइल फोन कैसे आ गया? उस
वक़्त मोबाइल रखना एक बहुत बड़ी बात थी वो भी हमारे छोटे से िहर में । फोन उठाते ही वो सामने वाले को
गासलयां दे ने लगा- “बहन के लौड़े तेरी माूँ चोद दं गा वगैरह…”
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दीदी भी ये सब सन
ु रही थी पर क्ट्या कर सकती थी? उस आदमी को भी कोई िमफ नहीं थी की सामने लड़की है
वो और भी गसलयां हदए जा रहा था। मझ
ु े गस्
ु सा आ रहा था पर तभी उसने फोन काट हदया।
दीदी ने मेरी तरफ दे खा तो मैं दसरी तरफ दे खने लगा, श्जससे दीदी को लगा मैंने कुछ नहीं दे खा और दीदी थोड़ा
आगे हुई तो मैंने दे खा उस आदमी के पैंट में टें ट बना हुआ था। उसने अपने हाथ से अपना लण्ड एडजस्ट फकया,
इिर-उिर दे खा और फफर से आगे बढ़कर दीदी से धचपक गया। अब उसकी पैंट का पविाल उभार दीदी के उभरे
हुए चतड़ो के बीच में कहीं खो गया। दीदी का चेहरा लाल हो गया था श्जससे पता चल रहा था की दीदी के साथ
जो वो आदमी कर रहा था, उसको वो अच्छे से महसस कर रही थी। एक बार को मेरा मन हुआ की जाकर उस
आदमी को चांटा मार दं , पर पता नहीं क्ट्यों मैं वही बैठा रहा और चप
ु चाप दे खता रहा।
दीदी की तरफ से कोई पवरोि न होते दे खकर उस आदमी का हौसला बढ़ रहा था और वो दीदी से और ज्यादा
धचपक गया और उनके बालों में अपनी नाक लगाकर सघ
ं ने लगा। अब दीदी काफी परे िान सी हदख रही थी।
दीदी की चोटी उस आदमी के बदन से रगड़ खा रही थी। मेरी बेहद खबसरत बहन के साथ उस गंदे आदमी को
धचपके हुए दे खकर मेरा लण्ड खड़ा होने लगा। तभी उस आदमी ने अपना ननचला हहस्सा हहलाना िरू ु कर हदया
और उसका लण्ड पैंट के अनदर से दीदी के उभरे हुए चतरों पर रगड़ खाने लगा। ये हरकतें करते हुए वो आदमी
दीदी के चेहरे के बदलते हुए हाव भाव दे खने लगा।
उस जगह अूँिेरा होने का वो आदमी अब परा फायदा उठा रहा था वैसे भी इतनी सन
ु दर जवानी से भरपर लड़की
उसकी फकममत में कहाूँ थी? दीदी न जाने क्ट्यों उसे रोक नहीं रही थी और बीच-बीच में मझ
ु े भी दे ख रही थी की
कहीं मैं तो नहीं दे ख रहा हूँ? मैंने एक अखबार उठा सलया था और उसको पढ़ने के बहाने कनखखयों से दीदी को
दे ख रहा था। जब दीदी को लगा मैंने कुछ नहीं दे खा तो वो थोड़ी ररलैक्ट्स लगने लगी।
वो आदमी लगभग 10 समनट से दीदी के कपड़ों के ऊपर से ही खड़े-खड़े अपना लण्ड अनदर-बाहर कर रहा था।
तभी मझ
ु े लगा उस आदमी ने दीदी के कान में कुछ बोला, श्जसका दीदी ने कुछ जवाब नहीं हदया। फफर उस
आदमी ने अपना दीवार की तरफ वाला हाथ उठाकर िायद दीदी की चची को साइड दबा हदया और दीदी की
आूँखें 5 सेकंड के सलए बंद हो गई और उनके दानत उनके रसीले होंठों को काटने लगे।
मझ
ु े ठीक से समझ में नहीं आया पर िायद वो आदमी हवस के निे में दीदी की चची को ज्यादा ही जोर से
दबा गया था। जब तक दीदी का नंबर आ गया था तो काउं टर पर बैठा आदमी बोला- “मैडम लंच टाइम है…”
तभी उसने दीदी से फफर कुछ कहा इस बार दीदी ने भी उसको कुछ जवाब हदया तो वो कुछ पीछे होकर खड़ा हो
गया और दीदी ने मझ
ु े आवाज लगाई- “मोन जरा इिर तो आ…”
मैं उिर गया और अंजान बनकर दीदी से बोला- क्ट्या हुआ दीदी?
“सन
ु यहाूँ तो खाने का टाइम हो गया है , अगर मैं हटी तो कोई और लाइन में लग जायेगा तो मैं यही लाइन में
हूँ, त तब तक जाकर 10 रे वेन स्टै म्प ले आ। पापा ने मंगवाए थे…” और उनहोंने मझ
ु े 20 रूपये हदए- “जा जल्दी
से ले आ…”
मझ
ु े गस्
ु सा तो बहुत आया पर क्ट्या करता? जाना तो पड़ेगा ही। तो मैं पैसे लेकर जल्दी से पोस्ट आफफस की
तरफ भगा। बाहर जाकर मैंने मड़ु कर दे खा की वो आदमी फफर दीदी से कुछ कह रहा था। अब दीदी उसकी तरफ
दे ख रही थी और उनका चेहरा अभी भी लाल था। मैं जल्दी से स्टै म्प लेने के सलए दौड़ने लगा और सोचने लगा
की अब वो आदमी दीदी के साथ क्ट्या कर रहा होगा?
बैंक में भीड़ भी नहीं थी ज्यादातर लोग चले गए थे। तभी मैंने दे खा की वो टटे फुननफचर वाले रूम से वोही
आदमी ननकला और मैंने ध्यान से दे खा की उसके पैंट की श्जप खुली हुई थी। मझ
ु े लगा दीदी िायद घर वापस
चली गई होंगी, पर तभी उसी कमरे से दीदी भी अपने बाल ठीक करती हुई ननकली। मेरी हदल की िड़कनें
एकदम से तेज हो गईं। दीदी उस कमरे में उस आदमी के साथ अकेले? जब वो खल
ु े में इतना कुछ कर रहा था
तो अकेले में क्ट्या फकया होगा? इस सवाल ने मेरे लण्ड में खन का दौरा बढ़ा हदया।
“आप कहां चली गई थी? मैं आपको ढूँ ढ़ रहा था…” मैंने दीदी से कहा।
दीदी हल्का सा घबरा गई फफर ममु कुरा कर बोली- त स्टै म्प ले आया?
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“नहीं यार, वो क्ट्लकफ बोला की आपका अकाउं ट यहाूँ होना चाहहए ड्राफ्ट बनाने के सलए…” दीदी बोली। दीदी का
कुरता कई जगह से पिीने से तर-बतर था मतलब दीदी उस कमरे में काफी दे र रही थी।
दीदी मेरे सामने खड़ी थी। मैंने ध्यान से दे खा की उनके सट पर बहुत झुररफ यां पड़ी हुई हैं, खास करके उनकी
छानतयों पर। पर जब हम घर से चले थे तो दीदी ने प्रेस फकया हुआ कुरता पहना था। मैंने दीदी से सीिे पछ
सलया- “आप उस कमरे में क्ट्या कर रही थी?”
पर मझ
ु े लगता था ये काम उस गंदे आदमी के हाथों का है । मझ
ु े अब बहुत जलन सी हो रही थी उस गंदे
आदमी से और ऊपर से दीदी मझु से झठ बोल रही थी। मझ ु े लगा वो मेरे जाते ही काउं टर से हटकर उस टटे
फनीचर वाले अूँिेरे कमरे में चली गई थी, तभी ड्राफ्ट नहीं बना।
मेरा ये सब सोचकर बरु ा हाल था मेरा लण्ड भी बहुत अकड़ रहा था और मझ ु े बाथरूम जाना था। मैंने सोचा की
मैं भी वािरूम जाने को बोलता हूँ तो ये पता चल जायेगा की दीदी सच बोल रही है या नहीं? तो मैंने दीदी को
रुकने को बोला और उिर कमरे में चला गया। उस कमरे के एक कोने में लेडीज और दसरे कोने में जेंट्स
वािरूम थे मतलब दीदी सच बोल रही थी और वो आदमी भी हो सकता है की बाथरूम से ननकलकर आ रहा था
जब मैंने उसे दे खा। मैंने जल्दी से बाथरूम जाकर पेिाब की और बाहर आकर दे खा की दीदी अभी भी अपना सट
ठीक कर रही थी।
मैं अब ध्यान से कमरे को दे खने लगा। टटा परु ाना फनीचर सीलन से भरा हुआ कमरा था, ऊपर रोिनदान से
हल्की रोिनी आ रही थी, फिफ पर िल की मोटी परत जमी थी, श्जन पर लोगों के पैरों के ननिान बने थे। तब
मैंने दे खा की सब ननिान तो बाथरूम की तरफ जा रहे हैं पर ससफफ चार पैरों के ननिान कमरे के दसरे कोने की
तरफ जा रहे थे, जहाूँ कुछ टे बल्स एक के ऊपर एक रखी थी और उनके पीछे जाकर वो पैरों के ननिान आपस
में ऐसे समल रहे थे जैसे काफी खींचतान हुई हो। मैंने सोचा क्ट्या ये दीदी और उस आदमी के ननिान हैं? फफर मैं
जल्दी से रूम से ननकल आया।
फफर हम घर की तरफ चल पड़े। मैं यही सब सोच रहा था तो दीदी से थोड़ा पीछे हो गया। मैंने दे खा की उनकी
चोटी से भी काफी बाल बाहर आ गए थे और उनकी गदफ न पर एक पपंक ननिान भी था, जैसे फकसी ने काटा हो।
ररि के साथ वो सब गनदी फफल्में दे खने से मेरे मन में गंदे ख्याल आने लगे की पक्ट्का दीदी और उस आदमी
के बीच कुछ हुआ है? पर खड़े-खड़े 15-20 समनट में चद
ु ाई तो नहीं हो सकती।
हमारे घर पहुूँचने तक हममे कोई बात नहीं हुई। रात को भी मझ ु े नींद नहीं आ रही थी और रह-रहकर बैंक की
बातें मेरे हदमाग में घम रही थीं, और सबसे ज्यादा ये की दीदी ने उस आदमी को रोका क्ट्यों नहीं? ये सब
सोचते-सोचते मैंने सामने सोती हुई दीदी को दे खा और मेरा हाथ अपने खड़े हुए लण्ड पर चला गया। और मैं
जोर-जोर से अपना लण्ड हहलाने लगा, और थोड़ी दे र बाद मेरा पानी ननकल गया और मैं नींद के आगोि में डब
गया।
अगले हदन िाम को मैं ररि से कैफे में समला और फफर से कुछ ब्ल-फफल्म दे खी और वहां से ननकलकर मैं साथ
के सरकारी टायलेट में घस
ु गया और पेिाब करने लगा।
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तभी ररि भी अनदर घस
ु आया और बोला- “क्ट्यों बे मठ
ु मार रहा है क्ट्या?” और हूँसते हुए मेरे बगल में खड़ा
होकर मतने लगा- “आऽ आऽ आह्ह… यलगार…” वो अपना मूँह ु ऊपर करके बोला।
तभी मेरी नजर उसके लण्ड पर गई। बाप रे … फकतना बड़ा लण्ड था उसका? मैं उसका साइज अपने से कम्पेयर
करने लगा। हम दोनों के ही लण्ड खड़े थे अगर मेरा लण्ड 4½” इंच का था तो उसका कम से कम 7½” इंच का
रहा होगा और मोटा भी ज्यादा था। मझ ु े लगा इसका बैठा हुआ लण्ड मेरे खड़े लण्ड के बराबर होगा। फफर मैंने
सोचा की इसकी उम्र भी मझु से ज्यादा है िायद इसीसलए।
तभी ररि ने दे खा की मैं उसके लण्ड को घर रहा हूँ- “क्ट्यों कैसा लगा गानड?” वो मझ
ु े छे ड़ते हुए बोला- “मूँह
ु में
लेगा क्ट्या?”
मैंने कोई जवाब नहीं हदया और अपनी श्जप बंद करके बाहर आ गया।
“अबे बोल न बड़ा है न? साले इसी पर तो लड़फकयां मरती हैं…” वो भी बाहर आते हुआ बोला- इंडडया में कामन
साइज 5-6 इंच का होता है। मेरा स्पेिल साइज है समझा?” और हम घर की तरफ बढ़ गए।
हम थोड़ी दर ही गए थे तभी मझ
ु े लगा की कोई मझ
ु े बल
ु ा रहा है । मैंने पीछे दे खा की रश्मम दीदी मेरे तरफ आ
रही थी। उनहोंने आज आसमानी रं ग की जीनस और पैरेट कलर का टाप पहना हुआ था। हालांकी हमारे िहर में
उस वक़्त लड़फकयां जीनस बहुत कम पहनती थी, पर हमारे घर पर ऐसी कोई रोक टोक नहीं थी।
“क्ट्या बात है साले त तो छुपा रुस्तम ननकला? परे िहर में नहीं समलेगा ऐसा माल फूँसाया है बे…” ररि दीदी को
घरते हुए बोला।
मझ
ु े बड़ा गस्
ु सा आया ररि पर। मैंने धचढ़ते हुए बोला- “वो मेरी बड़ी बहन है । फालत बात मत करो…”
मेरे कुछ कहने से पहले ही ररि ने आगे होकर अपने हाथ बढ़ा हदया- “जी मेरा नाम ररि है, मैं इसका दोस्त हूँ
हम साथ ही पढ़ते हैं…”
10
मैंने दे खा ररि की नजरें सीिे दीदी की चधचयों पर गड़ी थी। टाप दीदी के बदन पर एकदम फफट था और उसमें
दीदी की गोलाईया बहुत आकर्फक लग रही थी। दीदी ने भी ररि को अपने बदन का मआ
ु एना करते हुए दे ख
सलया और वो थोड़ा िमाफ गई।
“दीदी मैं तो घर ही जा रहा था। बस यहाूँ ररि से समलने आया था…” मैं बोला।
“आप फफकर मत कररए, मैं खुद इसको घर छोड़ दं गा…” ररि दीदी की आूँखों में झांकता हुआ बोला और फफर से
हाथ आगे बढ़ा हदया।
दीदी ने अपना हाथ छुड़ाया और जाने लगी। पीछे से ररि उनके सड ु ोल और उभरे हुए चतरों को दे ख रहा था और
अपना लण्ड खज ु ा रहा था। ये दे खकर मेरे मन में एक कसक सी उठी, न जाने क्ट्यों?
फफर हम थोड़ी दे र इिर-उिर की बातें करते रहे और ररि कहने लगा- “चल तझ
ु े घर छोड़ आता हूँ…”
मैंने मना फकया तो वो पीछे लग गया। बोला- “मैंने दीदी से प्रासमस फकया है…”
दरअसल मैं जानता था की ररि एक बबगड़ा हुआ आवारा लड़का है, और मैं उसे अपना घर नहीं हदखाना चाहता
था। पर वो मझ
ु े घर तक छोड़ ही गया। वो तो अनदर भी आना चाहता था, पर मैंने उसे बहाने से टरका हदया।
मैं घर में घस
ु ा तो पापा ने कहा- “अरे तझ
ु े रश्मम पछ रही थी। पता नहीं क्ट्या काम है ? ऊपर रूम में गई है जा
दे ख…”
मैं तेल लाकर बेड के ऊपर बैठ गया। दीदी मेरे दोनों पैरों के बीच में आ गई। दीदी ने एक परु ानी टी-िटफ और
लोअर पहना हुआ था। मैंने अपने हाथों में तेल सलया और उनके रे िमी बालों में हाथ डाल हदए और हल्की-हल्की
मासलि करने लगा। तभी मेरा ध्यान दीदी के टी-िटफ के अगले हहस्से पर गया, श्जससे मझ ु े दीदी की चधचयां
साफ हदख रही थीं। दीदी ने ब्रा नहीं पहना था। पहली बार मैंने इतने करीब से दीदी की चधचयों को दे खा था।
जैसे-जैसे चम्पी करते-करते दीदी का ससर हहलता था, वैस-े वैसे ही उनकी चधचयां भी हहलती थीं। इस सबसे मेरा
लण्ड फफर से खड़ा हो गया और दीदी के ससर से छने लगा। इसी उत्तेजना में मैंने दीदी का ससर थोड़ा जोर से
रगड़ हदया।
11
“आह्ह… आराम से भैया…” दीदी बोली।
मझ
ु पर तो मानो निा सा हो गया, मझ
ु े याद आने लगा ररि दीदी को कैसे दे ख रहा था। मझ
ु े वो बैंक वाला
आदमी भी याद आ गया। मझ
ु पर वासना छाने लगी और मैंने दीदी के बालों को उठाकर अपने लण्ड पर डाल
सलया और एक हाथ से उनके बालों को अपने लण्ड से रगड़ने लगा और दसरे हाथ से उनका ससर सहलाता रहा।
“अरे दोनों हाथों से कर न…” दीदी अपनी बंद आूँखों को खोलते हुए बोली।
फफर मैंने उनके ससर को थोड़ा पीछे करके अपने लण्ड पर भी लगाया और मैं झड़ने ही वाला था की मम्मी रूम
में आ गई।
“सच में माूँ ये बहुत अच्छी मासलि कर रहा है …” दीदी हूँसते हुए बोली।
दीदी ने जड़ा बांि सलया और उठ गई। मैंने अपने पर कण्रोल फकया और दीदी के साथ नीचे चला गया। पपछले
कुछ हदनों से मेरा दीदी के सलए बदलता नजररया मझ
ु े बहुत परे िान कर रहा था। अब वो मझ ु े अपनी बहन नहीं,
एक जवान लड़की लगने लगी थी। यह सब बातें मेरी ग्लानी को बढ़ा रही थी। मझ ु े लगता था, ये पाप है । पर मैं
ये भी सोचता था की अगर दीदी के साथ कोई और ऐसा करे , श्जसका दीदी से ससफफ लण्ड चत का ररमता हो।
मझ
ु े वो बैंक वाला गनदा आदमी याद आ जाता था। ररि का दीदी को हवस से घरना याद आ जाता था।
मेरी तो छुट्हटया चल रही थी पर दीदी के पेपर होने वाले थे तो वो परा हदन अपने रूम में बैठकर पढ़ती रहती
थी।
एक हदन मैं घर का कुछ सामान लेने घर के सामने वाली दक ु ान पर गया था। लौटते हुए मैंने दे खा की एक
आदमी मेरे घर की दीवार पर पेिाब कर रहा है । इसको मैंने एक-दो हदन पहले भी यहाूँ पेिाब करते दे खा था।
मैंने सोचा जल्दी से ऊपर जाकर इसके ऊपर पानी फेंक दे ता हूँ। तभी मैंने दे खा वो बार-बार ऊपर दे ख रहा है ।
मेरी नजर ऊपर गई और मैंने दे खा की दीदी अपने रूम की खखड़की में से दे ख रही है ।
मैं जब ऊपर गया तो दीदी अपने रूम में नहीं थी और वो आदमी भी जा चुका था। मझ
ु े लगा क्ट्या ये आदमी
रोज यहाूँ आता है , और दीदी इसको खखड़की से दे खती है ?
अगले हदन मैं उसी टाइम पर िीरे से दीदी के रूम में गया और दरवाजे की ओट से मैंने दे खा की दीदी खखड़की
के पास खड़ी थी और टी-िटफ के ऊपर से अपनी एक चची को दबा रही थी और उनके दसरे हाथ में जो पेन था
उसे वो अपनी चत के पास गोल-गोल घम
ु ा रही थी और लगातार खखड़की से नीचे दे ख रही थी।
12
उनका चेहरा वासना से लाल हो गया था। फफर दीदी थोड़ा आगे की तरफ हुई और उनहोंने अपना ननचला हहस्सा
दीवार से रगड़ना िरू
ु कर हदया। ये सब दे खकर मैंने भी अपना लण्ड बाहर ननकाल सलया और मैं भी मठ
ु मारने
लगा। चूँ फक घर पर कोई और नहीं था तो मझ
ु े पकड़े जाने का डर नहीं था। दीदी भी जल्दी-जल्दी अपना ननचला
हहस्सा दीवार से रगड़ने लगी और अपनी कड़क हो चुकी चधचयों को जोर-जोर से दबाने लगी।
“आह्ह… आऽ इस्स…” दीदी की हल्की सी आवाज मेरे कानों में आई और मेरे लण्ड ने पानी ननकाल हदया। िायद
दीदी भी झड़ गई थी और वो आकर बेड पर लेट गई और मैं जल्दी से घर से बाहर आ गया। मैंने दे खा की वो
आदमी पेिाब करके जा रहा था। ये ससलससला कुछ हदन तक चला फफर उस आदमी ने वहा आना बंद कर हदया।
अब मेरा मन कहीं नहीं लगता था। हदमाग में ससफफ सेक्ट्स ही घमता रहता था। मैं चाहे श्जतनी भी कोसिि
करता हदमाग इन सबसे हटाने के सलए पर कही न कहीं से घमकर बात वहीं आ जाती थी और इसका एक बड़ा
कारण ररि भी था। उसी ने मेरे अनदर हवस का िैतान जगाया था।
रश्मम दीदी के बारे में मेरा नजररया और गनदा होता जा रहा था। मझ
ु को अब लगने लगा था की दीदी अपनी
मदमस्त जवानी लट
ु ाने को बेताब हैं। और इसी दौरान एक हदन दीदी ने मझ
ु से कहा की उनहें कालेज से एक
असाइनमें ट समला है, श्जसमें उनहें झोपड़-पट्टी वाले इलाके का एक सवे करना है, और उनहें साफ सफाई के बारे
में जागरूक करना है । उनकी पाटफ नर िहर के दसरे हहस्से के 50 घरों में जाएगी और हमारे घर के पास वाले
इलाके में दीदी को 50 घरों में जाना था। दीदी ने कहा तम
ु मेरे साथ चलना।
अगली सब
ु ह 9:00 बजे मैं और दीदी सवे के सलए ननकल पड़े। दीदी ने उस हदन ब्लैक रं ग का सट पहना था
और जड़ा बंिा हुआ था। काले रं ग के कपड़ों में दीदी का गोरा बदन कयामत बरपा रहा था। थोड़ी ही दे र में हम
स्लम एररया में पहुूँच गए। हर तरफ गंदगी फैली हुई थी। गनदी नासलयां, टटी सड़कें, हवा में बदब, ज्यादातर घर
खाली पड़े थे, उनमें रहने वाले लोग अपने-अपने काम पे चले गए थे। सड़क पर जो मदफ हदख रहे थे वो दीदी को
भखी नजरों से दे ख रहे थे।
एक आदमी जो सड़क के फकनारे चरस पी रहा था दीदी को दे खकर बोला- “अरे कहां जा रही है मेरी जान। मेरे
पास आ जा। बेहेनचोद रण्डी की क्ट्या गाण्ड है? अरे मस्त कर दं गा अपने लण्ड से…”
“दीदी फकतना घमना पड़ेगा। मैं थक गया हूँ…” मैं दीदी से बोला।
“ओह्ह… मोन मैं भी बहुत परे िान हो गई हूँ। ये लोग तो ठीक से बात ही नहीं करते…”
तभी मैंने जो दे खा तो मेरे पैरों के नीचे से जमीन खखसक गई। सामने से वही बैंक वाला गनदा आदमी चला आ
रहा था। हमारे पास आकर वो रुक गया, और दीदी की तरफ दे खकर ममु कुराते हुए बोला- “फकसी ने सही कहा है ,
जब ऊपरवाला दे ता है तो छप्पर फाड़कर दे ता है । आज जए
ु में 10000 रूपए जीता और अब आपसे मल ु ाकात हो
गई। पहचाना मैडम? कुछ याद आया। आप आज यहाूँ कैसे?”
13
रश्मम दीदी को तो साप सघ
ं गया वो कुछ बोल ही नहीं रही थी। तो मैं बोला- “हम यहाूँ सवे करने आये हैं…”
कैसा सवे?
“न-नहीं, हमारा काम परा हो गया अब हमें घर जाना है …” दीदी ने कांपती आवाज में बोला।
पर वो भी बड़ा हरामी आदमी था। वो इतना अच्छा मौका कैसे जाने दे ता? उसने फौरन दीदी का गोरा हाथ पकड़
सलया और बोला- “अरे ऐसे कैसे? आप तो मेरी मेहमान हैं। मझ
ु े भी सेवा का कुछ मौका दें …” और वो दीदी को
सामने वाले घर की तरफ ले जाने लगा।
दीदी तो काठ की गडु ड़या की तरह उसके साथ चल दी। मैं चाहता तो उनको रोक सकता था, पर मेरे अनदर का
हवस का िैतान मझ
ु े ऐसा करने से रोक रहा था। मैं भी उन दोनों के पीछे उस घर के अनदर आ गया। झोपड़े
जैसा घर था। एक कमरा आगे और एक पीछे बना था। एक कोने में िराब की कुछ खाली बोतलें पड़ी थीं।
सामान के नाम पर एक परु ानी चारपाई, एक मेज, एक बड़ा बक्ट्सा आगे वाले कमरे में था। उसने दीदी को
चारपाई पर बबठा हदया।
“दे खा मैडम हमारा हवा महल हाूँ हाूँ हाूँ…” वो अपनी जेब से एक क्ट्वाटर ननकालकर मेज पर रखता हुआ बोला।
वो आदमी अनदर चला गया और दो समनट बाद जब वो बाहर आया तो उसके हाथ में एक स्टल था और ससफफ
लग
ं ी में था। वो एकदम दब
ु ला पतला था। उसने बननयान भी नहीं पहनी थी।
“अरे मैडम मझ
ु े भी तो बताइए सफाई के फायदे ? दे खो मेरा घर फकतना गनदा है और मेरे घर में सफाई करने
वाली भी कोई नहीं है…” वो दीदी के बबल्कुल पास स्टल रखकर बैठ गया।
अब दीदी की सांसें कुछ तेज चलने लगीं। दीदी की घबराहट मैंने और उस आदमी ने भी नोट की।
दीदी ने कुछ संभलते हुए एक फामफ ननकाला और उससे कहा- पहले ये फामफ भर दो।
वो बोला- “मैडम मैं इतना पढ़ा सलखा होता तो मेरी ये हालत होती? मैं बोल दे ता हूँ आप ही भर दो…”
14
दीदी ने बैग से पेन ननकालते हुए पछा- तम्
ु हारा नाम?
“मेरा नाम सलमान है…” ये कहकर उसने अपना उल्टा हाथ दीदी की जांघ पर रख हदया।
दीदी को तो मानो 440 वाल्ट का करें ट लग गया और उनके बदन ने झटका सा सलया। दीदी ने कहा- “हम लेट
हो रहे हैं। हम कल आकर आपको बता दें ग…
े ” दीदी ने एक बार फफर से वहां से ननकलने की कोसिि की।
“अरे अभी तो दो ही बजे हैं, और बाहर फकतनी तेज िप है । थोड़ी दे र में चली जाना मैडम…” सलमान श्जसका
हाथ अभी भी दीदी की जांघ पर था, उससे दीदी की जांघ सहलाता हुआ बोला।
“जी पपला दीश्जये…” दीदी ने सोचा वो पानी लेने जायेगा तो हम भाग भी सकते हैं।
“तम
ु इतना क्ट्यों डर रही हो रश्मम? फामफ तो परा भर लो…” वो बोला और मैं मन मारकर पानी लेने अनदर चला
गया।
अब सलमान के साथ दीदी अकेले थी। अनदर के कमरे में टीवी वी॰सी॰आर॰ होम धथएटर जैसी चीजें एक कोने में
पड़ी थी, श्जसको दे खकर मझ
ु े लगा या तो सलमान मैकैननक है या फफर चोर। वरना इसके पास ये सामान कैसे
आया? फफर जैसे ही सामने अलमारी से पीतल का धगलास उठाया वैसे ही मेरे कानों में दीदी की हल्की सससकी
सन
ु ाई दी।
15
सलमान- “ऐसे कैसे जाने दं मेरी जान? मझ
ु े तो मेरी फकममत में यकीन नहीं हो रहा…”
दीदी- “अरे वो मेरा छोटा भाई साथ है । वो क्ट्या सोच रहा होगा? मेरी बड़ी बदनामी होगी। अआह्ह…”
सलमान- “उस हदन बैंक में 100 लोगों के बीच में तेरी बदनामी नहीं हुई थी, और आज तो यहाूँ कोई नहीं है।
साली तेरी िकल सोचकर मैंने फकतनी रं डडयों को चोदा है , और फकतना मठ ु मारा है तझ
ु े इस बात का जरा भी
इल्म है …”
तभी फफर मझ
ु े दीदी की सससकारी सन
ु ाई दी- “आह्ह… इमि… आह्ह… वो मेरा भाई तो यहाूँ है अनदर आह्ह…
प्लीज…”
सलमान- “अच्छा अब समझा त अपने भाई से डर रही है ? रुक मैं कुछ करता हूँ…”
मैं सोच में पड़ गया की क्ट्या वाकई दीदी मेरी वजह से हहचक रही है ? अगर मैं न होता तो क्ट्या वो वाकई चुदवा
लेती? मैं तरु ं त पानी लेकर बाहर आ गया। मझ
ु े दे खकर सलमान खड़ा हो गया और मैंने दे खा की दीदी का जड़ा
खल
ु चक
ु ा था और वो अपना दप
ु ट्टा सही कर रही थी।
सलमान अपनी लग
ं ी में खड़े लण्ड को मझ
ु से छुपाते हुए बोला- “अरे ये पानी तो इस गमी में बबल्कुल बेकार है ।
एक काम कर त जल्दी से दो ठनडे की बोतलें ले आ…” और उसने मझ ु े 100 रूपये का नोट दे हदया।
मझ
ु े बहुत गस्
ु सा आया क्ट्योंकी वो तो मझ
ु े एक नौकर की तरह रीट कर रहा था, पर उसका मकसद मैं समझ
गया था।
तभी दीदी बोली- “नहीं ये पानी ही ठीक है । इतनी िप में ये कहां जायेगा…”
“अरे जवान लड़का है । कुछ नहीं होता। जा बेटा जल्दी जा। अगर चौराहे वाली दक
ु ान बंद हो तो थोड़ा आगे
पानवाले के पास से ले आ। खब ठं डी दे खकर लाना…” सलमान ने दीदी की बात काटते हुए कहा।
फफर मैं बाहर आ गया और सलमान ने दरवाजा बंद कर हदया। पर मेरे हदमाग में कुछ और चल रहा था। मैं
घम के साइड में खखड़की के पास आ गया। अनदर क्ट्या हो रहा होगा ये सोचकर मैं पागल हुआ जा रहा था।
खखड़की की लकड़ी कई जगह से धचटकी थी। मैंने एक दरार में अपनी आूँख लगाकर अनदर दे खा।
सलमान ने रश्मम दीदी को अपनी बाूँहों में जकड़ा हुआ था और उसका हाथ दीदी की कमर और चतर को सहला
रहा था।
16
“अब तो िमफ छोड़ दो रश्मम। अब तो तेरा भाई भी चला गया मेरी जान…” सलमान दीदी की गाण्ड को दबाते हुए
बोला।
“प्लीज… सलमान मझ
ु े घर जाने दो प्लीज…” दीदी सलमान का हाथ अपनी गाण्ड से हटाती हुई बोली।
“तने उस हदन बैंक में भी मेरे साथ के॰एल॰पी॰डी॰ कर दी थी। आज तो जाने नहीं दं गा मेरी जान। आज तो तझ
ु े
जवानी का परा मजा दं गा…” सलमान दीदी के बालों में अपना मूँह
ु डालते हुए बोला। दीदी के बालों की खि
ु ब से
उसका लण्ड और ज्यादा तन गया। अब सलमान दीदी के बालों को अपने लण्ड से रगड़ने लगा।
दीदी के बाल खखंचने लगे तो दीदी कराहते हुए बोली- “आह्ह… ददफ होता है…”
मझ
ु े ये जानकर अच्छा लगा की उस हदन बैंक में उसने दीदी को चोदा नहीं था।
सलमान का जोि अब बढ़ता जा रहा था, और वो दीदी की जांघों को सहलाने लगा। दीदी भी थोड़ा बहकने लगी।
अब वो सलमान को रोक नहीं रही थी।
“पहले कभी लण्ड खाया है?” सलमान दीदी की गदफ न को अपनी खुरदरु ी जीभ से चाटता हुआ बोला।
सलमान की आूँखों में एक चमक आ गई जैसे उसे कुबेर का खजाना समल गया हो। उसने जल्दी से दीदी को
चारपाई पर पटका और अपनी लग
ं ी खोलकर परा नंगा हो गया। उसका लण्ड झटके ले रहा था। मेरा तो हलक
सख गया था, पता नहीं दीदी की क्ट्या हालत हुई होगी?
“हाथ में ले इसे…” सलमान ने दीदी का हाथ पकड़कर उसने अपने लण्ड पर रख हदया।
दीदी के नमफ हाथों का स्पिफ पाकर लण्ड ने फफर से जोर का झटका खाया और इस बार सससकी सलमान के मूँह
ु
से ननकली।- “आह्ह… साली क्ट्या नरम हाथ है रं डी तेरे आह्ह…”
17
अपनी बड़ी बहन को सलमान का लण्ड इस तरह से हहलाते दे खकर मझ
ु से कण्रोल नहीं हुआ और मैंने भी अपना
लण्ड बाहर ननकाल सलया।
दीदी की आूँखों में एक निा सा था वो बबना पलक झपकाए सलमान का लण्ड दे खे जा रही थी। दीदी ने इतने
पास से पहली बार लण्ड दे खा होगा िायद।
सलमान ने दीदी को खाट पर सलटा हदया और उनके पैजामे का नाड़ा खोलने लगा। जैसे ही नाड़ा खुला और वो
पैजामा नीचे खींचने लगा।
तभी दीदी ने उसे एक जोर का िक्ट्का हदया और वो जल्दी से खड़ी हो गई और अपने धगरते हुए पैजामे को दोनों
हाथों से पकड़ सलया। और जोर से धचल्लाई- “नहीं, मैं ये नहीं करने दूँ गी। जाने दो मझ
ु …
े ”
सलमान की आूँखें हवस के निे से लाल हो गई थी। वो बोला- “साली ये तेरी परु ानी आदत है अभी तो मजे ले
रही थी और एन मौके पे बबदक गई। उस हदन तने बैंक में भी यही फकया था। पर वहां तो बहुत लोग थे
इसीसलए तझ
ु े छोड़ हदया था। पर आज त नहीं बचेगी। तने क्ट्या सोचा के मैं तेरे जैसा कोरा जवान माल बबना
चोदे जाने दं गा?”
दीदी की ऐसी हालत दे खकर मैंने सोचा की आजकल लड़की का दीदी की तरह खबसरत होना एक गन
ु ाह है । अब
दीदी सलमान से काफी डर गई थी और वो िीरे -िीरे पीछे होने लगी।
पर सलमान ने आगे बढ़कर उनहें पकड़ सलया। उसने दीदी को दीवार से सटाकर खड़ा कर हदया और एक हाथ से
दीदी की चची को दबाने लगा और दसरे हाथ से दीदी का पैजामा नीचे करने की कोसिि करने लगा। हवस का
ये नंगा नाच दे खकर मेरा हाथ अपने लण्ड पर फफर से पहुूँच गया।
“बेहेनचोद… क्ट्या मल
ु ायम चधचयां है तेरी रानी। आज तक मैंने इतनी चधचयां दबाई हैं, लेफकन तेरी जैसी चची
नहीं दे खी, जो कड़क भी है और मल
ु ायम भी…” सलमान दीदी की चची दबाता हुआ बोला।
दीदी अपने को बचाने के सलए दीवार की तरफ घम गई। अब दीदी की पीठ सलमान की तरफ थी।
“मझु े छटपटाती लौंडडया बहुत पसंद है साली कुनतया… आज तो तेरी चत को चोद-चोदकर भोसड़ा न बनाया तो
मेरा नाम नहीं…” सलमान दीदी को अपनी धगरफ्त में लेता हुआ बड़बड़ाया।
मझ
ु े दीदी पर दया आने लगी और मैंने सोचा की अनदर जाकर दीदी को बचाऊूँ पर मेरी वासना मझ
ु े रोक रही
थी। मझ
ु े लग रहा था की मझ
ु े दीदी को परी नंगी दे खने का मौका समलने वाला है।
सलमान की जीभ दीदी के पपछवाड़े की दरार से होकर उनकी चत तक जा रही थी और दीदी मदहोि होकर
अपने चतड़ पीछे की तरफ िकेल रही थी। दीदी की कूँु वारी गाण्ड और चत चाट-चाटकर सलमान जोि से भर
गया। दीदी अब फफर से उसके काब में थी। अब उसने अपना तन हुआ 6” इंच का लौड़ा दीदी को झुका के उनकी
चत के मूँह
ु पे रखा।
तभी अचानक फटाक की आवाज हुई और मैं फफर से अनदर झाकने लगा। मैंने दे खा की सलमान जमीन पर पड़ा
था और दीदी के हाथ में एक टटी हुई बोतल थी जो िायद दीदी ने सलमान के ससर पर फोड़ दी थी। दीदी
फटाफट अपनी पैंटी और पैजामा पहनने लगी। सलमान बबल्कुल हहल नहीं रहा था। अब मैं भी घबरा गया था
और मैं भी घर के दरवाजे की तरफ भगा।
जैसे ही मैं वहां पंहुचा दीदी दरवाजा खोलकर बाहर आ गई और बोली- “मोन चल यहाूँ से। इसका सवे परा हो
गया…”
“तम
ु कुछ परे िान लग रही हो…” मम्मी ने पछा और तम्
ु हारी गदफ न पर ये ननिान कैसा है?
दीदी तो मनो सन
ु न पड़ गई, कहा- “जी वो लगता है फकसी कीड़े ने काट सलया। जहां हम आज गए थे काफी
गंदगी है वहां…” दीदी बात बनाते हुए बोली।
“भाई सन
ु ा है की मोन ने आज बड़ी मदद की अपनी बड़ी बहन की…” पापा ममु कुराते हुए बोले।
मैंने मन में सोचा- “हाूँ बहुत मदद की मैंने। उस िराबी को अपनी जवान बहन थाली में परोस कर दे दी।
बलात्कार होते होते बचा था आज दीदी का…”
19
दीदी भी खाना खाते हुए मझु े दे ख रही थी की मेरा क्ट्या जवाब होगा? जब से हम लौटे थे उनहोंने मझ
ु से कुछ
बात नहीं की थी। पर मैं ममु कुराकर बात टाल गया। दीदी खाना खाकर ऊपर चली गई। थोड़ी दे र बाद मैं भी
सोने ऊपर पहुूँच गया।
दीदी अभी जाग रही थी- “मोन एक बात पछं ? सच-सच बताना…” रूम की लाइट बंद थी और 11:00 बजे होंगे।
मझ
ु े लगा दीदी क्ट्या पछें गी?
मोन- जब तम
ु ने दरवाजा खोला था तभी। क्ट्यों?
दीदी- तने इतनी दे र क्ट्यों लगा दी और तेरे पास कोल्ड-डड्रंक भी तो नहीं थी।
दीदी को पवमवास हो गया की मझ ु े वो सब नहीं पता जो वहां हुआ था। दीदी बोली- “मैंने उसको 100 रूपये
वापस कर हदए थे। तम्
ु हें वहां जाने की जरूरत नहीं है …”
मझ
ु े लगा दीदी तना दे रही है या सच में कह रही है? खैर, मैं दीदी के नंगे चतरों को याद करते-करते सो गया।
फफर कुछ हदन नामफल थे कुछ खास नहीं हुआ। फफर हमारा ररजल्ट आ गया और मैं फस्टफ डडवीजन पास हो गया
था और इस बार ररि भी पास हो गया था। लगता था मेरी नकल करने का उसको फायदा हुआ था। कुछ हदनों
बाद मैं ररि के साथ कालेज में एडसमिन के सलए फामफ लेने गया था। पर उस हदन कोई छुट्टी थी इसीसलए मैं
जल्दी लौट आया। जब मैं घर पंहुचा तो मम्मी कहीं जा रही थी।
जैसे की आप जानते है की कासमनी ररि की माूँ है । पास के मोहल्ले में रहती है । उम्र यही कोई 38 साल। उनका
भी रूप रं ग कुछ कम नहीं था। दे खकर लगता नहीं था की दो बच्चों की माूँ है । लगता है जब वो 19-20 साल
की रही होगी तभी ररि पैदा हो गया होगा, और ररक्ट्की (ररि की छोटी बहन) उसके 3 साल बाद। ररि के पापा
फकसी बड़ी सरकारी नौकरी में है और आजकल उनकी पोश्स्टं ग हदल्ली में है । पर महीने में एक दो बार घर आ ही
जाते हैं। वो काफी हदन बाद आज हमारे घर आई थी। कमरे का दरवाजा हल्का सा खुला था तो मैं अनदर दे खते
हुए उनकी बातें सन
ु ने लगा।
“यहाूँ पर…” कासमनी आंटी ममु कुराई और उनहोंने दीदी की चत पर हाथ रखकर कहा।
दीदी को अपनी इज्जत पर अचानक हुए इस हमले से िाक लग गया। उनहोंने आंटी का हाथ हटाते हुए कहा-
“क्ट्या करती हो आंटी?”
कासमनी- अरे त डरती बहुत है । आज पहली बार तो अकेले समली है । अपने हदल की बात नहीं बताएगी अपनी
दोस्त को। या त मझ
ु े अपना दोस्त मानती ही नहीं?
कासमनी- तो खल
ु कर बात कर न? मेरे अलावा तो कोई सन
ु ने वाला नहीं है । जब मैं तेरी उम्र की थी तो सारे
मोहल्ले के लड़कों को अपनी उं गसलयों पर नचाती थी। अरे भरी जवानी ऐसे मत बबाफद कर रश्मम। अच्छा अपना
फफगर तो बता।
रश्मम- जी 34-26-36।
21
कासमनी- वाह वाह… तझ
ु े मेरा फफगर पता है ?
रश्मम- जी नहीं और मझ
ु े जानना भी नहीं है ।
कासमनी- “अरे त डरती क्ट्यों है ? मैं तेरी दोस्त ही नहीं, बड़ी बहन भी हूँ। मझ
ु से बातें िेयर नहीं करे गी तो फकससे
करे गी? तेरे इन मम्मों को फकसी ने दबा-दबाकर इनका रस पपया है?” आंटी ने अपने दोनों हाथ दीदी की छानतयों
पर रख हदए।
अपने खजाने की रक्षा करने के सलए उठते दीदी के हाथों को आंटी ने पकड़ सलया।
कासमनी- “अरे मझ
ु से क्ट्यों िमाफती है ।? बता न। अब ये मत बोलना की तने इनहें अभी तक मसलवाया नहीं है …”
दीदी कसमसा कर चुप हो गई। आंटी ने दीदी के दोनों हाथ अपने एक हाथ से पकड़े और दसरे हाथ से वो दीदी
की चधचयां सहलाने लगी।
कासमनी- “चल कोई बात नहीं। मैं तो हूँ न तेरी हे ल्प करने के सलए…” कहकर आंटी दीदी की चधचयों को िीरे -िीरे
मसलने लगी।
दीदी की आूँखें मस्ती में बंद होने लगी और वो कांपती आवाज में बोली- “आंटी बस करो। कुछ-कुछ हो रहा है …”
पर आंटी ने दीदी की बात पर कोई ध्यान नहीं हदया और दीदी के दोनों हाथ उठाकर अपने खरबजों के साइज
वाली चधचयों पर रख सलए, और कहा- “दबा इनहें …”
कासमनी- “अरे इन पर ही आदमी मरता है । औरत का पपछवाड़ा और चधचयां ही मदों को सबसे ज्यादा आकपर्फत
करती है …”
दीदी की चधचयां भी अब उत्तेजना के कारण एकदम कड़क हो गई थी। उनका िेप एकदम आम की तरह था।
आंटी ने मस्ती में दीदी की चधचयों को जोर से दबाया।
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चुदाई का नाम सन
ु ते ही दीदी के बदन में एक झुरझुरी दौड़ गई और उनकी चत पननयाने लगी- बताइए न?
दीदी की ये बात सन
ु ते ही कासमनी आंटी के चेहरे पर एक ममु कान आ गई और बोली- “परे गिे के श्जतना 8”
इंच का और उनहोंने अपनी मठ
ु ी में दीदी की चत को भर सलया…”
दीदी के मूँह
ु से सससकारी ननकल गई।
कासमनी- “तझ
ु े बताऊूँ वो मझ
ु े कैसे चोदता है ?” आंटी ने दीदी को खड़ा करके घोड़ी बना हदया और उनका बदन
ननहारने लगी।
दीदी घोड़ी बनी इतनी सेक्ट्सी लग रही थी की मेरा मन कर रहा था अभी अनदर जाकर अपना लण्ड उनके पीछे
पेल दं । घोड़ी बनना रश्मम दीदी को भी रोमांधचत कर रहा था और उनके ननप्पल खड़े होने लगे थे।
आंटी मन में खि
ु हो रही थी की उनहोंने रश्मम दीदी को अपने जाल में फंसा सलया है । आंटी अब अपनी चत को
सहला रही थी तो मझ
ु े लगा की दीदी का बदन मदफ के साथ-साथ औरतों को भी बहुत लभ
ु ाता है ।
दीदी मजे से आूँखें बंद फकये सोच रही थी की कासमनी की जगह राज उनकी कमर सहला रहा है । कहा- “आह्ह…
आंटी फफर क्ट्या करता है वो?”
कासमनी- “फफर वो मेरी चत को मसलता है…” और वो दीदी की चत की मसलने लगी और दबाने लगी- “और
पता है फफर वो क्ट्या करता है ?” कासमनी आंटी दीदी को तड़पाती हुई बोली।
“क्ट्या करता है आंटी बोलो न? आ आह्ह…” दीदी बदहवासी में अपने बदन को हहलाते हुए बोली।
“फफर वो मेरे साथ ऐसा करता है …” ये कहकर कासमनी आंटी अपनी चत को दीदी की गाण्ड से रगड़ने लगी।
23
रश्मम दीदी तो मस्ती में खोकर फकसी और दनु नयां में चली गई थी और कासमनी आंटी अब बेहहचक उनके बदन
से खेलने लगी।
“सच में रश्मम, त एक बार राज का लण्ड ले ले अपनी चत में । तेरी श्जनदगी बन जाएगी…” कहते हुए आंटी ने
दीदी के सीिा बेड पर सलटाया और उनके होंठ चमने लगी- “फफर वो मेरी चधचयों को कस-कस के दबाता है…”
और उनहोंने दीदी की टी-िटफ के अनदर हाथ डालकर चधचयां मसलकर रख दी।
“आह्ह… इस्स… आंटी उह्ह… उम्म… मर जाऊूँगी…” दीदी मस्ती से छलक उठी।
“हां आंटी मझ
ु े गनदी-गनदी गासलयां सन
ु ना अच्छा लगता है । गासलयां सन
ु कर मेरी चत में एक कसक सी उठती है
और उससे पानी आने लगता है …” रश्मम दीदी बोली।
दीदी के मूँह
ु से ऐसी बातें सन
ु कर मेरा तो लण्ड फटने लगा और मैं अपना लण्ड महु ठयाने लगा।
आंटी दीदी को ऐसे रगड़ रही थी की दीदी ‘आह्ह’ की आवाज करके झड़ गई और आूँख बंद करके ननढाल लेट
गई। पर आंटी का अभी नहीं हुआ था तो वो अभी भी लगी हुई थी। थोड़ी दे र में आंटी की फली हुई बरु ने भी
पानी छोड़ हदया और वो दीदी को दबोचकर उनके ऊपर धगर गई।
तभी मझ
ु े पायल की छम-छम सन
ु ाई दी, और मैं कुछ समझ पता तब तक बाथरूम का दरवाजा खुल गया। अब
दृमय कुछ ऐसा था की मैं नंगा खड़ा था, मेरे हाथ में मेरा मस्ती से फला लण्ड था और बाथरूम के दरवाजा पर
कासमनी आंटी थी।
पता नहीं मझ
ु में कहा से इतनी हहम्मत आ गई की मैंने आंटी का हाथ पकड़कर उनहें अनदर खींच सलया। आंटी
ने अपना दप
ु ट्टा दरवाजे के खंटे पर टांग हदया और दरवाजा अनदर से बंद कर सलया। मैंने बबना कुछ बोले
अपना हाथ आंटी की चधचयों पर रख हदया और आंटी ने अपना हाथ बढ़ाकर मेरा लण्ड पकड़ सलया। मैं तो
मस्ती से पागल हो गया और उनकी चधचयों को जोर से दबाने लगा।
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“थोड़ा िीरे । सबर नहीं है तझ
ु में? हाय रे फकतना गरम है तेरा पर छोटा है …” कासमनी आंटी मेरा लण्ड सहलाती
हुई बोली।
आंटी के नरम हाथ का स्पिफ अपने गरम लण्ड पर पाकर मैं बबल्कुल मस्त हो गया। आंटी अब झुक कर नीचे
बैठ गई। उनके लो-कट सट से मझ
ु े लाल ब्रा में कैद उनकी गोरी-गोरी चधचयां नजर आने लगीं।
“मझ
ु े अपनी बहन के बदन से खेलते दे खकर तझु े मजा आया। बड़ा हरामी है त…” आंटी मझ
ु े छे ड़ते हुए बोली
और दसरे हाथ से मेरे अनडों को भी सहलाने लगी।
अब मझ
ु से कंरोल नहीं हो रहा था। मैंने सोचा ऐसा मौका मझ
ु े कभी नहीं समलेगा, जब कासमनी जैसी मदमस्त
लण्डखोर औरत मेरे साथ बाथरूम में अकेली है । ये उसी ररि की माूँ है जो मेरी बहन को गनदी नजरों से दे ख
रहा था। मझ
ु े इसका फायदा उठाना चाहहए। मैंने आंटी को उनके बाल पकड़कर खड़ा फकया और िक्ट्का दे कर
दीवार के साथ लगाया और पागलों की तरह उनसे सलपटकर उनकी मोटी चधचयां दबाने लगा। आंटी के मूँह
ु में
मैंने अपनी जबान डाल दी और स्मच करने लगा।
आंटी जो मझ
ु े एक नादान िमीला लड़का समझकर छे ड़ रही थी, उनको ऐसा होने का बबल्कुल अंदाज नहीं था।
वो कुछ घबरा गई। मेरे अनदर उसके बेटे ने जो हवस का िैतान जगाया था वो उससे अंजान थी। सिकारी अब
खुद सिकार बनने की कगार पर था। वो अपने हाथों से मझ
ु े पीछे िक्ट्का दे ने की कोसिि कर रही थी, पर न
जाने मेरे अनदर कहां से इतने ताकत आ गई की वो मझ
ु े हहला भी नहीं पाई। ये श्जंदगी में पहली बार मैं फकसी
औरत के बदन के उतार चढ़ाड़ाव अपने हाथों से महसस कर रहा था।
हमारी किमकि में मेरा लण्ड कभी आंटी के पेट, कभी जांघों और कभी जांघों के बीच छुपी उनकी बरु पे लग
रहा था। मैंने कपड़े के ऊपर से ही उनकी एक चची अपने मूँह
ु में भर ली और चसने लगा। फफर मैंने उनको घम
ु ा
हदया और नीचे झुक कर उनके उभरे हुए चतरों को दबाने लगा। फफर मैंने उनकी जांघ पर जोर से काट सलया।
अब मैंने अपना लण्ड उनकी गाण्ड की दरार में लगाया और घस्से लगाने लगा। मझु े बहुत मजा आ रहा था
श्जतना कभी मठु मारने में भी नहीं आया था। मैं अपने हाथ आगे बढ़ाकर आंटी की गदराई चधचयों को मसलने
लगा।
तभी रश्मम दीदी की आवाज आई- “आंटी? आप कहाूँ हो?” दीदी नीचे आ गई थी।
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आवाज सन ु ते ही आंटी बहुत परे िान हो गई और बोली- “अरे मोन आअह्ह… कमीने छोड़ दे अब तो वरना दोनों
पकड़े जायेंगे। मेरा क्ट्या है ? पर तेरी बहन तेरे बारे में क्ट्या सोचेगी?”
पर मैं आंटी की बात को अनदे खा करता हुआ अपना लण्ड आंटी के नरम चतरों पर रगड़ता रहा।
“दे ख रश्मम अब इिर ही आयेगी। आह्ह… इमि… मान जा मोन…” आंटी फफर से बोली।
डर तो मझ
ु े भी था पर हवस डर से बड़ी थी। आंटी के उभरी हुई नरम गाण्ड पर लण्ड रगड़े जाने का मजा डर से
जीत गया और मैंने िक्ट्के तेज कर हदए। मैं जल्दी से अपना पानी ननकालना चाहता था।
“आंटी क्ट्या तम
ु बाथरूम में हो? रश्मम दीदी अब बाथरूम के दरवाजे पे आकर खड़ी हो गई थी- “जल्दी बाहर
आओ मझ
ु े भी बाथरूम जाना है …”
“आंटी क्ट्या कर रही हो? मेरी छट जाएगी जल्दी आओ…” बोलकर दीदी ड्राइंग रूम की तरफ चली गई।
“छोड़ दे मझ
ु े कुत्ते। आह्ह… ईस्स… रश्मम फफर से आ जाएगी…” आंटी बोली और उनहोंने अपने चतड़ थोड़े पीछे
फकये।
मेरे फले हुए लण्ड के सलए इतना बहुत था और मेरे लण्ड ने पानी छोड़ हदया। मैं पीछे से आंटी से धचपक गया।
िानदार ओगैज्म था।
मैं दरवाजा खोलकर िीरे से सरक गया और बगल वाले रूम में जाकर कपड़े पहनने लगा।
तभी कासमनी ने दरवाजा खोलकर कहा- “अरे मेरी सलवार पे पानी पड़ गया है वो ही सख
ु ा रही हूँ। आ जा त
मत ले अनदर आकर…”
26
“तम्
ु हारे सामने? पहले तम
ु बाहर जाओ…” दीदी ने कहा।
“अरे अब मझ
ु से कैसी िमफ। आ जा…” आंटी ने दीदी का हाथ पकड़कर अनदर खींचा। दीदी बाथरूम में घस
ु गई
और आंटी ने अनदर से दरवाजा बंद कर सलया।
“अभी-अभी आया दीदी। मम्मी की चाभी मेरे पास थी तो उसी से दरवाजा खोलकर आ गया…” मैंने आंटी की
तरफ दे खते हुए कहा जो अब मझ
ु े दे खकर फफर से ममु कुरा रही थी।
दीदी अपने रूम में ऊपर चली गई और मैं टीवी दे खने लगा।
इस बात को 10 हदन गज
ु र गए, पर कासमनी आंटी हमारे घर नहीं आई। हमारे बीच िमफ का पदाफ हटने से मझ
ु े
जो उम्मीद जगी थी वो अब िुंिली होने लगी। कई बार सोचा की खद
ु कासमनी आंटी के घर जाऊूँ पर फफर
ख्याल आता था एक तो मैं उनके घर कभी गया नहीं और दसरे वहां तो ररि भी होगा। अगर उसने पछा की घर
क्ट्यों आया? तो क्ट्या बोलूँ गा? क्ट्योंकी उससे तो मैं रोज कैफे में समलता था तो ये भी नहीं बोल सकता की तम
ु से
समलने आया हूँ। वैसे भी ररि ने कभी मझ
ु े अपने घर बल
ु ाया भी नहीं था।
इिर दीदी भी बआ
ु के घर चली गई थी, क्ट्योंकी उनकी छुट्हटया भी थी। मझ
ु े लग रहा था की अगर कासमनी
आंटी इस समय आ जायें, तो उस हदन का अिरा काम परा हो सकता है । मेरे घर में इंटरनेट तो नहीं था पर मैं
ररि से ब्ल-फफल्म की सी॰डी॰ ले आया था और रोज रात को दीदी के कंप्यटर पर दे खता था और आंटी के साथ
बबताये उन पलों को याद करके मैं मठ
ु मारता था। मेरी हवस हदनों हदन बढ़ती ही जा रही थी।
एक हदन मैं अपने कमरे में बैठा आंटी के बारे में सोच रहा था की मम्मी ने मझ
ु े नीचे बल
ु ाया और पछा-
“तम्
ु हारा कालेज कब से िरू
ु हो रहा है मोन?”
27
मम्मी- “अरे तम्
ु हारे पापा और मझ
ु े 5 तारीख को तम्
ु हारे मामा के घर जाना है । तम्
ु हारे नाना की प्रापटी का कुछ
काम है तो मेरे भी साइन होने हैं। तम्
ु हारी दीदी भी यहाूँ नहीं है । हमें 3-4 हदन लग सकते हैं। सेिन के िरू
ु में
तम्
ु हारी छुट्टी भी नहीं करा सकते, पर अकेले तम
ु कैसे रहोगे? तम्
ु हारा खाना पीना कैसे होगा?”
मोन- अरे आप कासमनी आंटी से कह दो न मैं 3-4 हदन उनके यहाूँ रुक जाऊूँगा।
थोड़ी दे र बाद मम्मी मेरे रूम में आई। उनके हाथ में एक पची थी- “तेरे पापा ने कासमनी के यहाूँ रुकने को मना
कर हदया है । उनहोंने तेरी बआ
ु को फोन कर हदया है, रश्मम 4 तक वापस आ जाएगी। अब त मेरा एक काम
कर। ड्राई-क्ट्लीनर से ये कपड़े उठाकर कासमनी के घर चला जा और वापस कर आ। उस हदन जब वो आई थी
तब मझ
ु े िमाफजी के घर की िादी में पहनने के सलए दे गई थी…”
मैंने जल्दी से दक
ु ान जाकर कपड़े उठाये और आंटी के घर की तरफ चल पड़ा। जैसे-जैसे आंटी का घर नजदीक
आ रहा था, वैस-े वैसे मेरे लण्ड में हलचल बढ़ती जा रही थी। बस मैं ये मना रहा था की ररि घर पर ना हो।
आंटी अकेले में समल जाये। मैं 10 समनट में वहां पहुूँच गया और मैंने बेल बजाई।
मझ
ु े उम्मीद थी की कासमनी आंटी ही दरवाजा खोलेंगी पर एक बढ़ी औरत ने दरवाजा खोला और पछा- कौन
हो? फकससे समलना है ?
“ररि भी बाहर गया है । ररक्ट्की की तबबयत नहीं ठीक है वो दवाई खाकर सो रही है । कहाूँ से आये हो?”
बहु ढ़या का सोना मेरे प्लान के सलए बहुत अच्छी बात थी तो मैं तरु ं त बोल- “जरूर। आप आराम से सो जाइये।
मैं कासमनी आंटी के आने तक इंतज े ार करूंगा…”
बहु ढ़या सोने के सलए अनदर कमरे में चली गई। थोड़ी दे र बाद मझ
ु े प्यास लगी थी तो मैं पानी पीने सामने रखे
फफ्रज की तरफ बढ़ गया। फफ्रज के बगल में एक कमरे का दरवाजा था। पानी पीते हुए मैंने कमरे के अनदर दे खा
की सामने बेड पर ररक्ट्की सो रही थी। उसके पैर कुछ इस तरह से रखे थे की उसकी स्कटफ के अनदर उसकी
लाल रं ग की पैंटी हदख रही थी। ये नजारा दे खकर मेरा लण्ड झटके खाने लगा।
मैंने मन में सोचा, माूँ न सही बेटी ही सही। थोड़ी सी हहम्मत हदखा मोन तो थोड़े मजे तो ले ही सकता है । मैंने
वापस जाकर दे खा बहु ढ़या आराम से सो रही थी। मैं हहम्मत जट
ु ा के उस रूम की तरफ बढ़ गया, जहाूँ ररक्ट्की
सो रही थी। अब ररक्ट्की ने करवट बदल ली थी और वो पेट के बल सो रही थी। मेरा हदल बहुत जोर से िड़क
रहा था। अब ररक्ट्की की गाण्ड काफी उभरी हुई लग रही थी।
मैंने िीरे से कांपते हाथों से उसकी स्कटफ को ऊपर उठाया। उफ्फ… उसके सफेद चतर लाल पैंटी में कयामत लग
रहे थे। मैं अपनी नाक िीरे से उसकी चत के पास ले गया और उसकी कूँु वारी चत की खि
ु ब को उसकी पैंटी के
ऊपर से सघ
ं ने लगा। उत्तेजना से मेरा लण्ड फटा जा रहा था। मैंने अपना पैंट खोलकर अंडरपवयर उतार हदया।
एक कूँु वारी लड़की के कमरे में नंगा होना मेरी उत्तेजना को और बढ़ा रहा था। मेरा डर अब िीरे -िीरे खत्म हो
रहा था। मैंने ररक्ट्की के चतरों को िीरे से फकस फकया। उसने कोई हरकत नहीं की।
मैंने िीरे से उसकी पैंटी कमर के पास से पकड़ी और नीचे खखसकाने की कोसिि की। आिी पैंटी तो आराम से
उतर गई पर फफर फूँसने लगी तो मैंने ज्यादा कोसिि नहीं की। मझ
ु े लगा कहीं वो जाग न जाये। मैंने उसके
आिे नंगे चतरों को िीरे से चाटा और फकस फकया। फफर िीरे से उसके पास बेड पर बैठकर एक हाथ मैंने उसकी
गाण्ड पर रख हदया और दसरे हाथ से अपना लण्ड महु ठयाने लगा।
अगर ररक्ट्की सीिी लेटी होती तो उसकी कच्चे आम जैसी चधचयों का भी थोड़ा मजा मझ
ु े समल जाता, पर आिा
घंटा बीत चक
ु ा था। अब कासमनी कभी भी आ सकती थी तो मैंने सोचा कम से कम इसके चतरों पर अपना
पानी ही धगरा ही दं और मैं खड़ा होकर मठ
ु मारने लगा।
ररि ने मेरी गदफ न पकड़ ली और िीरे से बोला- “बेहेनचोद, मेरी बहन का बलात्कार करने जा रहा था। कुत्ते अच्छा
हुआ मैं लौट आया, वरना पता नहीं त क्ट्या करता?”
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मोन- “नहीं ररि भाई। मझ
ु े माफ कर दो। प्लीज…”
ररि- साले मैं इस कैमरे में अभी रोल डलवा कर आ रहा हूँ और इससे मैंने तेरी फोटो ले ली है । सबको त बहुत
िरीफ लगता है न। जब मैं ये फोटो तेरे घर वालों को हदखाऊूँगा तो वो तझ
ु े घर से ननकल दें गे।
मोन- भाई मझ
ु े माफ कर दो। मैं बहक गया था। प्लीज भाई एक बार माफ कर दो।
थोड़ा सोचने के बाद वो फफर बोला- “अच्छा पहले ररक्ट्की के कपड़े ठीक कर और बाहर आ जा, फफर सोचता हूँ…”
ये कहकर ररि बाहर चला गया।
मैंने मन में सोचा साली फकममत ही खराब है । लगता है बहु ढ़या ने मेरे आने के बाद दरवाजा बंद नहीं फकया।
अगर ररि की जगह कासमनी होती तो फफर भी मैं संभाल लेता। साला खाया पपया कुछ नहीं धगलास तोडा बारह
आना। मैंने ररक्ट्की की पैंटी और स्कटफ ठीक की और डरते-डरते कमरे से बाहर आ गया।
ररि कैमरे से रील बाहर ननकाल रहा था। रील उसने अपनी जेब में रख ली।
ररि- “दे ख क्ट्या मस्त लौंडडया है । दे ख क्ट्या रं डी बनकर चुद रही है?” अचानक ररि ने अपना हाथ मेरी जांघ पर
रख हदया और बोला- “दे ख बेहेनचोद साली के हहलते हुए चचे दे ख। फकतने गोल-गोल हैं? पता है फकसकी तरह
लग रही है ?”
30
ररि ने िीरे -िीरे मेरी जांघ को सहलाना िरू
ु कर हदया और बोला- बोल न फकसकी तरह लग रही है ?
मझ
ु पर एक निा सा होने लगा और उसी निे में मैंने पछा- “फक-फकसकी… तरह… लग रही है ?”
“तेरी बड़ी बहन रश्मम की तरह। उसके भी ऐसे ही चचे हैं न? वो भी नंगी ऐसी ही लगेगी। है न? बोल
बहनचोद…” ररि मेरे चहे रे के भावों को पढ़ता हुआ बोला।
“अब उस लड़के का लण्ड दे खा है । बबल्कुल मेरे लण्ड जैसा लग रहा है न?” ररि अपने लण्ड की मसलता हुआ
बोला- “सोच की वो लड़का मैं हूँ और वो लड़की तेरी बहन रश्मम। आह्ह… दे ख कैसे चोद रहा हूँ मैं तेरी बहन को
तेरे सामने…” और ररि ने मेरे खड़े हो चुके लण्ड को पकड़कर दबा हदया।
मेरे मह
ूँु से डर और उत्तेजना से ननकल गया- “हाूँ। आह्ह… दे खना चाहता हूँ…”
कहकर ररि ने मेरे लण्ड को इतने जोर से दबाया की उत्तेजना में मेरे मूँह
ु से ननकला- “हाूँ दं गा। ररि भाई
आह्ह… इस्स… वादा करता हूँ…” और यह िब्द मेरे मूँह
ु से ननकलने के साथ ही मेरे लण्ड से पानी भी ननकल
गया।
मोन- क-फकसे?
ररि- “बहनचोद अभी वादा फकया और अभी भल गया? अबे तेरी बहन रश्मम को। त एक काम कर उसे मेरे एक
दोस्त के घर लेकर आ जा…”
मोन- न-नहीं। वो अभी िहर में नहीं है पर मैं क्ट्या बोलकर उसे लाऊूँगा? मैं बाद में तम्
ु हें फोन करके बताता हूँ।
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ररि- तेरे घर पर कंप्यटर है न?
ररि- “सन
ु गानड, तझ
ु पर भरोसा कर रहा हूँ। ये रील त रख ले श्जसमें तेरी फोटो है , पर अगर तने मझ
ु े िोखा
दे ने की कोसिि की तो दे ख साले श्जंदगी बबाफद कर दं गा तेरी। ऐसी गाण्ड मारूंगा की बस कालेज वालेज सब
िरा रह जायेगा। समझा? अब भाग यहाूँ से भोसड़ी के…”
मोन- “नहीं ररि भाई। भरोसा रखो मैं फोन करूंगा…” मैंने ररि से रील ले ली और आगे जाकर एक गटर में फेंक
दी। अब मझ
ु े कुछ चैन आया और मैं अपने घर आ गया।
पर दसरी तरफ मेरी हवस मझ ु से कह रही थी- “फकतना हसीन बदन है दीदी का… गोल-गोल चधचयां, खड़े हुए
ननप्पल, रस भरे होंठ, उभरे हुए चतड़, लम्बे रे िमी बाल, फकसी भी मदफ का खड़ा कर दें …”
एक तरफ मैं सोचता अब तो ररि के पास रील नहीं है तो वो कुछ नहीं कर सकता। पर दसरी तरफ सोचता
अगर सच में ररि दीदी को अपने लम्बे मोटे लण्ड से चोदे तो? ये ही सब सोचते हुए मैं सो गया और हदन
बीतने लगे। दीदी दो तारीख को ही वापस आ गई। मेरे हदमाग में टें िन था की कहीं ररि को पता न चल जाये
की दीदी वापस आ गई है तो मैंने उससे समलना बबल्कुल बंद कर हदया।
श्जस हदन मम्मी पापा मामा के घर गए उसी हदन रात को जब हम सोने जा रहे थे, तब दीदी के बेड पर एक
काकरोच आ गया और दीदी उछलकर मेरे बबस्तर पर आ गई।
मैंने चप्पल फेंक कर उसे मारने की कोसिि की पर वो उड़कर मेरे बेड पर आ गया और दीदी मझ
ु से आकर
सलपट गई। दीदी की तनी हुई चधचयां मेरे सीने में गड़ गईं, दीदी ने ब्रा नहीं पहनी थी। मैंने अपना हाथ दीदी की
कमर पर रख हदया। क्ट्या फीसलंग थी जो मैं बयान नहीं कर सकता। अचानक वो कोकरोच दीदी के टी-िटफ पर
आकर बैठ गया। दीदी मझ
ु से और कस के धचपक गई। मैंने भी दीदी को कस के धचपका सलया।
32
“मोन वो मेरी टी-िटफ में घस
ु रहा है …” दीदी धचल्लाई।
तब दीदी अलग होकर वापस अपने बेड पर चली गई। थोड़ी दे र बाद जब दीदी सो गई तो मैं नीचे आ गया और
बाथरूम में जाकर दीदी की नरम चधचयों को याद करके मठ
ु मारने लगा। मझ
ु े रह-रहकर ररि की वो बात याद
आ रही थी की दीदी नंगी होकर एकदम उस ब्ल-फफल्म वाली लड़की की तरह हदखें गी। येही सोचते-सोचते मेरा
वीयफ ननकला और सामने टं गे दीदी के सट पर जा धगरा।
मठ
ु मारकर मैं ड्राइंग रूम में आकर बैठ गया। मैं सोचने लगा क्ट्या सच में दीदी ररि को सेक्ट्स करने दें गी? वो
कई बार मझ
ु से बोल चक
ु ी थी की ररि उनहें ठीक लड़का नहीं लगता और मैं उससे दोस्ती न रखं। वो तो ररि
को बबल्कुल भाव नहीं दें गी, पर ररि तो उनहें चोदने के सलए मरा जा रहा है ।
पर मैं भी तो कासमनी और ररक्ट्की को चोदना चाहता हूँ। जब मैं उसकी माूँ चोदना चाहता हूँ तो वो मेरी बहन
चोदने की क्ट्यों नहीं सोच सकता? पर सोचने से क्ट्या होता है रश्मम दीदी कासमनी आंटी की तरह चाल नहीं है ।
फफर मैं अपने बेड पर आकर लेट गया। सामने दीदी सो रही थी। मेरा मन इसी किमकि में था की मैं क्ट्या
करूं? जब भी मैं दीदी और ररि के बारे में सोचता मेरे अनदर एक ससहरन दौड़ जाती पर क्ट्या दीदी ररि का
साथ दें गी?
मझ
ु े याद आ गया सलमान, जब मझ
ु े लगा की दीदी चुदवा लेंगी तब भी दीदी ने उसको कुछ करने नहीं हदया।
पर दीदी को दसरे आदमी के साथ दे खने से मेरे अनदर जो फीसलंग आती थी वो मैं िब्दों में बयान नहीं कर
सकता।
फफर मझ
ु े ररि का लण्ड याद आ गया। फकतना बड़ा और मोटा। जब उसका लण्ड सख्त होकर दीदी की कूँु वारी
चत का मंथन करे गा तो कैसा लगेगा? पर दीदी उसे हाथ नहीं रखने दे गी। ये ही सब सोचते-सोचते मझ
ु े कब
नींद आ गई, मझ
ु े पता ही नहीं चला।
सब
ु ह जब मैं उठा तो मैंने सोचा की मैं एक बार ररि को समझाने की कोसिि करके दे खता हूँ। करीब 9:00 बजे
मैंने ररि का नंबर डायल फकया। दो बार बेल बजी और ररक्ट्की ने फोन उठाया।
फफर ररक्ट्की ने उठाया और कहा- “भैया तो आपसे बात करके बाहर ननकल गए…”
तब तक दीदी की आवाज आई- “फकससे बात कर रहा था। कहीं जा रहा है क्ट्या?”
अब मैं उनहें क्ट्या बताता? कहा- “दीदी वो ररि आने के सलए बोल रहा था। उसकी एक बक
ु मेरे पास आ है वो
ही लेने आ रहा है…” मैं बात संभालता हुआ बोला।
“नहीं नहीं दीदी ररि हदल का अच्छा लड़का है । बस पढ़ाई में थोड़ा कमजोर होने की वजह से एक दो बार फेल
हो गया, वरना ऐसी उसमें कोई खराब बात नहीं है …” मैंने जवाब हदया।
“कुछ भी हो उसको जल्दी से चलता कर दे ना…” बोलकर दीदी फकचेन में चली गई।
इिर दीदी को ररि में कोई इंटरे स्ट नहीं है और उिर वो ऐसे आ रहा है जैसे की दीदी टांगें फैलाये चत पसारे
उसके लण्ड का इंतजार कर रही है । मझ
ु े अब उसके ऊपर गस्
ु सा भी आ रहा था की बबना मेरी बात सन
ु े वो मेरे
घर आने के सलए ननकल पड़ा। पता नहीं आगे क्ट्या होगा?
तब तक दीदी ने नामता लगा हदया था तो हम नामता करने लगे। फफर दीदी टीवी दे खने लगी और मैं ऊपर रूम
में आ गया।
घड़ी में 10 बजने में 10 समनट बाकी थे। जैस-े जैसे टाइम बीत रहा था मेरा गस्
ु सा नवफसनेस में बदलने लगा।
मेरे पिीने छटने लगे और हदल जोर से िड़कने लगा। तभी अचानक दरवाजा बेल बजी। मैं फौरन नीचे आने के
सलए सीहढ़यों पर आया तो मैंने नीचे दे खा की दीदी ने दरवाजा खोल हदया है और ररि घर के अनदर आ चुका
है ।
दीदी अभी भी अपनी नाईट ड्रेस में थी, यानी लस टी-िटफ और लोअर। ब्रा उनहोंने पहनी नहीं थी तो टी-िटफ में
उनके ननप्पल भी नजर आ रहे थे।
“नमस्ते दीदी, मोन कहां है ?” ररि दीदी की चधचयों को घरता हुआ बोला।
“नमस्ते…” दीदी उसे अपनी चधचयों को घरता दे खकर सकपका गई- “इिर से ऊपर चले जाओ। मोन ऊपर कमरे
में है …” दीदी ने जवाब हदया।
34
दीदी की बात सन
ु कर ररि के चेहरे के भाव बदल गए और वो ऊपर आ गया।
“तो तने उसे बता हदया की मैं उसे चोदने आ रहा हूँ?” ररि ममु कुराते हुए बोला।
ररि- “अब एक काम कर। ये ब्ल-फफल्म की सी॰डी॰ ले कंप्यटर में लगा और दफा हो जा और सन
ु दो बजे से
पहले मत लौटना…”
“चुप गानड। जल्दी कर वरना ऐसी गाण्ड मारूंगा की याद करे गा…” ररि ने मेरा धगरे बान पकड़ते हुए कहा।
मैंने चप
ु चाप ब्ल-फफल्म लगा दी। और नीचे चला आया।
मेरा हदमाग घम गया। और मैं वही दरवाजे के पास बैठ गया। मेरी समझ में नहीं आ रहा था मैं क्ट्या करूं? ररि
4 घंटे दीदी के साथ क्ट्या करना चाहता है जो मझ
ु े दो बजे तक ना आने के सलए कह रहा था। करीब 20-25
समनट ऐसे ही ननकल गए।
तभी मझ
ु े एक आईडडया आया और मैं घर के पीछे चला गया, जहां एक आम का पेड़ था। मैं उस पेड़ पर चढ़
गया और अपने कमरे की खखड़की पर आ गया। कमरे में ररि नहीं था। कंप्यटर भी बंद था। मैं िीरे से कमरे के
अनदर आ गया और नीचे झाकने लगा। ररि ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठा टीवी दे ख रहा था। दीदी कहीं नहीं हदख
रही थी। तभी बाथरूम का दरवाजा खल
ु ा और ररि बाथरूम की तरफ आ गया।
35
दीदी नहाकर ननकल आई थी। उनहोंने बादामी रं ग की स्कटफ और ब्लैक कलर की टी-िटफ पहनी थी। उनके बालों
से पानी टपक कर उनकी टी-िटफ और स्कटफ को सभगो रहा था। वो ररि को अचानक वहां दे खकर चौक गई
“अरे तम
ु … मोन कहां है?” दीदी ने पछा।
ररि- “जी जो बक
ु मैं लेने आया था वो उसने गलती से एक दसरे लड़के को दे दी। वो मझ
ु े इंतज
े ार करने को
बोलकर वो ही लेने गया है । आप नहा रही थी इसीसलए आपको नहीं बोला…”
रश्मम- “तो तम
ु भी उसके साथ चले जाते। बक
ु उसी लड़के के घर से ले लेत…
े ”
ररि- “आप सही कह रही है। ये बात तो मेरे हदमाग में आई ही नहीं। पर अब तो मोन चला गया और मैं उस
लड़के का घर नहीं जानता। तो आप कहें तो मैं यहीं इंतज
े ार कर ल?
ं ”
“आप कुछ नाराज सी लग रही है । िायद आपको मेरा आपके घर आना अच्छा नहीं लगा…” ररि दीदी के मासम
चेहरे को घरता हुआ बोला।
रश्मम- “नहीं नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं। आओ बैठकर बात करते हैं…” और दीदी जाकर ड्राइंग रूम में सोफे पर
बैठ गई। ररि भी उनकी साइड में जाकर बैठ गया। अब वो दोनों टीवी दे खते हुए कुछ बात करने लगे। दीदी
बीच-बीच में उसकी बातों पर हूँस भी दे ती थी।
दीदी की नजर टीवी पर थी और ररि दीदी की चधचयों को घर रहा था। और बीच-बीच में अपना लण्ड पैंट के
ऊपर से खुजा भी दे ता था। इसी बीच दीदी की नजर भी एक बार उसके पैंट में बने टें ट पर पड़ी। फफर उनहोंने
अपनी नजर टीवी में गड़ा ली पर िायद ररि के लम्बे लण्ड से ननकलती गमी अब दीदी का जवान बदन भी
महसस कर रहा था। इसीसलए उनहोंने पलटकर फफर उसके खड़े लण्ड के तरफ दे खा। फकसी ने सच ही कहा है की
मोटा और लम्बा लण्ड हर उम्र की औरत को दीवाना बना दे ता है ।
दीदी को अपने पैंट में बने तम्ब की तरफ ताकते दे खकर ररि का जोि दोगन
ु ा हो गया। अब वो दीदी की तरफ
दे खकर िीरे -िीरे उपने लण्ड को सहलाने लगा।
दीदी ने फफर से ननगाहें फेर ली। ररि फफर कुछ बोला और सरक कर एकदम दीदी के पास आ गया। दीदी के
चेहरे पर फफर से लाली छाने लगी और उनकी तनी चधचयां टी-िटफ में ऊपर-नीचे होने लगी। फफर ररि कुछ बोला
और दीदी फफर से हूँस पड़ी।
कमाल था की एक घंटे पहले दीदी ररि को खराब लड़का बता रही थी और अब हूँस-हूँसकर उसके साथ बात कर
रही है । क्ट्या ररि का प्लान कामयाब हो जायेगा? मैंने सोचा। मैंने मन ही मन ररि की दाद दी की क्ट्योंकी मझ
ु े
लगा की इतनी जल्दी उसने दीदी को अपने जाल में फूँसा सलया। पर मझ
ु े ऊपर उन दोनों की बातें सन
ु ाई नहीं दे
रही थीं, तो मैं िीरे से नीचे उतरकर ड्राइंग रूम के बगल वाले कमरे में नछप गया, वहां से वो मझ
ु े हदखाई तो
नहीं दे रहे थे, पर उनकी बात मैं सन
ु पा रहा था।
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ररि- सही कहा तम
ु ने। उम्र तो हमारी बराबर ही है पर मोन दीदी कहता है इसीसलए मैं भी कहता था पर अब से
नाम से ही बल
ु ाऊूँगा तम्
ु हें ।
ररि- अरे मझ
ु े तो बहुत चीजों में इंटरे स्ट है पर अगर बालों की बात हो तो ससफफ तम्
ु हारे । फकसी और लड़की के
नहीं।
ररि- “तम्
ु हारे बाल, तम्
ु हारी आूँखें, तम्
ु हारे ये सेक्ट्सी होंठ…”
ररि की आवाज सन
ु कर लगा जैसे वो निे में हो पर वो दीदी को नाम से बल
ु ा रहा था और उसने उनके होंठों को
सेक्ट्सी भी बोला पर दीदी ने उसे कुछ नहीं कहा। मैं सोच में पड़ गया।
तभी दीदी की आवाज आई- “आह्ह… ओह्ह… ररि मेरे बाल छोड़ो…”
“क्ट्यों मेरे हाथों में इनकी खबसरती कम तो नहीं हो जाएगी…” तभी उसके सांस खींचने की आवाज आई। िायद
वो दीदी के बाल सघ
ं रहा था- “क्ट्या खुिब है?” उसने कहा।
अब ररि त तेरे पर आ गया था पर िायद दीदी ने ध्यान नहीं हदया- “अरे तेरी चधचयों का साइज?” ररि बोला।
मझ
ु े तो अपने कानों पर पवमवास ही नहीं हुआ की वो दीदी से ऐसे बोल रहा था।
तभी ररि ने दीदी को अपनी बाूँहों में भर सलया और उनके होंठों को चसने लगा। दीदी अपने आपको छुड़ाने की
परी कोसिि कर रही थी पर ररि के कसरती बदन के आगे उनकी एक न चली। वो दीदी के होंठ ऐसे चस रहा
था की जैसे खा ही जायेगा। अचानक उसने दीदी की चधचयां भी दबानी िरू
ु कर दी।
दीदी के घट
ु ी हुई कराह से पता चल रहा था की ररि के पत्थर जैसे हाथ दीदी की मलु ायम चधचयों का बरु ा हाल
कर रहे थे। तभी दीदी ने ररि को िक्ट्का हदया और भागकर नीचे के बेडरूम में चली गई।
ररि ने अपनी टी-िटफ उतरकर सोफे पर फेंक दी और उनके पीछे चला गया।
अनदर से फफर दीदी की सससकारी आई- “आह्ह… आह्ह… ररि प्लीज… इतनी जोर से मत दबाओ आह्ह… माूँ
उह्ह… मम्मी…” दीदी की रोती सी आवाज आई।
मैं िीरे से बेडरूम की तरफ बढ़ा। मैंने दे खा की बेडरूम के दरवाजे पर दीदी की टी-िटफ पड़ी हुई थी। फफर दरवाजे
के फकनारे से मैंने अनदर दे खा। ररि ने दीदी को पीछे से पकड़ा हुआ है और दीदी की स्कटफ उनके पैरों में धगरी
हुई है और पैंटी उनके पैरों में फूँसी है ।
ररि की जीनस और अंडरपवयर बेड पर पड़ी थी। ररि ने अपना लण्ड पीछे से दीदी की चत पर लगाया हुआ था
और वो उनकी चधचयां दबाता हुआ उनहें गदफ न पर चम रहा था।
मझ
ु े लगा की अब रश्मम दीदी भी गरम हो गई है और ज्यादा पवरोि करने की श्स्थती में नहीं है ।
िायद ररि भी ये बात समझ गया था। अब ररि उनकी पीठ से अपना हाथ घम ु ाते हुए उसके ससर पर ले गया
और उसके बालों से खेलने लगा। ररि रश्मम दीदी के ससर पर हाथ फेर कर प्यार करने के साथ ही साथ ये भी
जता रहा था फक अब वो ही दीदी के खबसरत नंगे श्जमम का मासलक है ।
लगभग 3-4 समनट तक दीदी के होठ चसने के बाद ररि दीदी को बेड पर ले गया और अपनी गोद में बबठा
सलया। फफर उसने अपना दांया पांव ऊपर उठा सलया और उसका तफकया बनाकर रश्मम दीदी का ससर उसमें रख
हदया।
अब दीदी का ससर पीछे की तरफ लटक गया और उनके दोनों पविाल चचे आगे की ओर उभर आये। ररि हौले-
हौले दीदी की चधचयों को मसलना चाल कर दे ता है । रश्मम दीदी के मूँह
ु से एक हल्की सी आवाज ननकलती है
आआह्ह… ररि उनकी चधचयों को मसलना जारी रखता है । चधचयों को मसलते हुए वो अब दीदी के ननप्पलों को
भी मसलने लगता है । ननप्पल मसलने से एकदम कड़क हो जाती है ।
ररि जो बरु ी तरह से उत्तेश्जत हो चुका था और उसने दीदी की चधचयों को मसलना छोड़कर अब उसके ननप्पल
पर अपना मह
ूँु लगा हदया। अब दीदी की एक चची और उसकी ननप्पल ररि के मह
ूँु में था और वो उसे जोर-जोर
से चस रहा था और दसरा हाथ उनकी दसरी चची को बरु ी तरह से मसल रहे थे। ररि पागलों की तरह उसे चस
रहा था और इिर रश्मम दीदी की सांसें तेज होती जा रही थी। रश्मम दीदी ने अपने दोनों पैर जमीन पर फैला
हदये और उत्तेजना के मारे वो उसे इिर-उिर फेंकने लगी।
अब ररि ने उनकी चधचयों को मसलना बंद फकया और उसने अपना बांया हाथ दीदी के िरीर पर घम ु ाते हुए
उनकी चत पर रख हदया और छे द तलािने लगा। कुछ ही पलों में ररि ने अपनी उं गली दीदी की चत के छे द
पर रख दी और उसे मसलने लगा। रश्मम दीदी को मानो करें ट लग गया और वो बरु ी तरह से छटपटाने लगी।
महीनों से उनके अंदर दबी पड़ी कामवासना अब जागने लगी थी।
39
अब दीदी की बबना बालों वाली चत उभरकर ऊपर आ गई। ररि ने दीदी की टांगें उठाकर अपने कंिे पर रख ली
और अपना लण्ड दीदी की चत पर सेट फकया और एक झटका मारा। ररि का आिा लण्ड दीदी की चत का फांक
चीरता हुआ अनदर घस
ु गया। ये दे खकर मेरे हदल में एक अजीब सी फीसलंग हुई।
दीदी के मूँह
ु से सससकारी ननकलती है - “उफ्फ… आऽ उफ्फ्फ… मर गई…”
ररि ने अपने होंठ दीदी के होंठों पर रख हदये और एक िक्ट्का और हदया। उसका लण्ड अब जड़ तक दीदी की
चत में पैवस्त हो गया था। दीदी की आूँखों से आंस ननकल आये। मैंने सन
ु ा था की पहली बार चद
ु ने पर
लड़फकयों को ददफ होता है । आज दे ख भी सलया।
वैसे भी ररि का लण्ड 7½” इंच का 3” इंच मोटा था वो तो चुदी चुदाई औरत के आंस ननकलवाने के सलए काफी
था। अब ररि लय से दीदी को चोद रहा था। थप-थप की आवाजें कमरे में गज
ं ने लगी है । दीदी के मूँह
ु से ‘उफ्फ
आह्ह… अओच…’ आवाजें आ रही थी जो मझ
ु े बहुत सेक्ट्सी लग रही थीं।
ररि का बबना बालों वाला लण्ड दीदी के चत से ऐसे अनदर-बाहर हो रहा था जैसे पपस्टन इंजन से अनदर-बाहर
होता है । ये नजारा दे खकर मेरे को याद आया की मेरी श्जस बहन को उस हदन सलमान इतना करीब पहुूँचकर
भी न चोद पाया था ,उसे आज मेरे दोस्त ररि ने चोद हदया।
करीब 15 समनट की ताबड़तोड़ चुदाई के बाद ररि रश्मम दीदी की चत में ही झड़ गया। पक्ट्क की आवाज के
साथ उसका मरु झाया हुआ लण्ड दीदी की चत से बाहर ननकल आया और वो दीदी के बगल में लेट गया। दीदी
की आूँख से आंस और चत से ररि का सफेद गाढ़ा वीयफ बहकर बाहर आ रहा था।
ये नजारा दे खकर मेरे लण्ड ने पैंट में ही पानी छोड़ हदया। मेरे पैर कांपने लगे और मैं सोफे पर जाकर बैठ गया।
झड़ने के साथ ही मेरी वासना भी खतम हो गई और मझ
ु े एहसास हुआ की क्ट्या हो गया है ?
मैं भी उसके पीछे -पीछे फकचेन में गया। वो वहां पानी पी रहा था। मैंने बोला- “मेरी बहन कोई भखी वखी नहीं
थी। मैंने दे खा कैसे तम
ु ने उसके साथ जबरदस्ती की है और उसकी आूँख के आंस भी मैंने दे खे हैं। अब चुपचाप
चले जाओ यहाूँ से…”
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ररि हूँसने लगा और बोला- “अबे गिे, त लड़फकयों को नहीं समझ सकता। अरे वो तो खुिी के आंस थे क्ट्योंकी
आज तेरी बहन कली से फल बन गई। आज का हदन उसकी श्जंदगी का सबसे बड़ा हदन है । न मान तो जब
इतना दे खा तो थोड़ा और दे ख और सन
ु बे आज तो मैं रात भर यही रुकं गा। समझा।“ जा जाकर फफर घस
ु जा
श्जस बबल में छुपा था…” और वो फफर से रूम में चला गया।
अनदर जाकर उसने रश्मम दीदी को अपने दोनों हाथों में उठा सलया। मझ
ु े लगा वो फफर बाहर आयेगा तो मैं जल्दी
से सोफे के पीछे नछप गया और ररि दीदी को लेकर बाथरूम में घस
ु गया। उसने दीदी को ऐसे उठाया था फक
उनकी परी गाण्ड ररि के बांए हाथ में और उनका दाहहना स्तन ररि के दांये पंजे में था। वो उनहें उसी तरह
उठाकर बाथरूम में ले गया और िावर के नीचे खड़ी कर हदया और िावर खोल हदया। फफर उसने बाथरूम में ही
भीगती नंगी खड़ी रश्मम दीदी को ताबड़तोड़ चमना िरू
ु कर हदया।
रश्मम दीदी परी तरह से उसके कब्जे में थी। ररि नीचे बैठ गया और उनकी गाण्ड को चमने लगा, दीदी की
नरम-नरम उत्तेजक गाण्ड को चमने से दीदी उत्तेजना की नई उचांईयो, में पहुूँच गई। दीदी की गाण्ड को उसने
पपछले हदनों कई बार याद करके मठ
ु मारा था लेफकन उसकी मादकता का अहसास उसे आज पहली बार हो रहा
था। वो रश्मम दीदी की गाण्ड को चमता जा रहा था और बीच-बीच में उत्तेजना के कारण उसे अपने दांतों से काट
भी लेता था, साथ ही साथ दीदी की चत को पानी से िो भी रहा था। अब ररि दीदी की गाण्ड को चमना
छोड़कर परी तरह से अपना मूँह
ु नीचे फिफ तक ले गया और उनको नीचे चमना िरू
ु कर हदया।
पहले नंगी खड़ी दीदी की एंड़ी फफर टखने उसके बाद पपंडली, फफर जांघ, कमर और पीठ और आखखरी में दीदी
की गदफ न। उसने अब परी तरह से नंगी खड़ी दीदी के पीछे जाकर उनहें दबोच सलया। उसका लण्ड दीदी की गाण्ड
से धचपक गया और उसने अपने दोनों हाथ आगे की तरफ लेजाकर दीदी की पविाल चधचयों को पकड़ सलया।
अपना मूँह
ु दीदी के गालों से लगाकर ररि उनके गालों को चमने लगा और अपना एक हाथ दीदी की चत के
ऊपर ले गया और उसको मसलने लगा। अपने दसरे हाथ से वो दीदी की चची भी बरु ी तरह से मसलने लगा
और फफर उसने अपना लण्ड बड़ी जोर से दीदी की गाण्ड में दबा हदया। अब ररि ने ममु कुरा कर बाथरूम के
दरवाजे से बाहर उस तरफ दे खा जहां मैं नछपा हुआ था और एक आूँख दबाई, जैसे इिारे से मझ
ु े कह रहा हो की
आने वाला वक्ट्त बहुत तफानी होगा।
रश्मम दीदी को इस तरह अपने बदन को मसले जाने से उत्तेजना हो रही थी। वो कभी ददफ से रो पड़ती थी और
कभी आनंद से उनके मूँह
ु से सससफकयां ननकल पड़ती- “आह्ह्ह… आह्ह्ह… ओह्ह्ह… बस करो ररि…” दीदी की
ससश्स्कयां और आंस भी ररि की वासना की भख को और भी बढ़ा रहे थे। और वो पागलों की तरह से उसके परे
बदन को बेददी से मसलने लगा।
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फफर ररि दीदी को छोड़कर बाथरूम से बाहर आ गया। ररि परा भीगा हुआ है और उसका लण्ड आिा खड़ा था,
फफर भी वो काफी बड़ा लग रहा था। बाहर आकर उसने दीदी का भी हाथ पकड़कर उनहें बाहर खींच सलया।
दीदी बाथरूम से बाहर ननकल आई और वो भी परी गीली थी और बहुत सेक्ट्सी लग रही थी। ररि वापस उनहें
लेकर बेडरूम में ले गया और एक तौसलया लेकर दीदी को पोंछना िरू
ु फकया। मैं सोफे के पीछे से ननकलकर फफर
दरवाजे के पास आ गया। ररि दीदी को पोंछने के साथ उनहें फकस भी करता जा रहा था। जब उसने खद
ु को
और दीदी को पोंछ सलया फफर से उसने दीदी को सीने से लगा सलया और उसके बदन को मसलना चाल कर
हदया। कुछ दे र तक उसे इसी तरह से मसलने के बाद जब उसने दीदी को अलग फकया।
ररि ने दीदी की ठोड़ी पकड़कर उनका चेहरा ऊपर उठाया और होठों को चम सलया, और बोला- “डासलिंग अभी तो
ससफफ रे लर था, परी फफल्म तो अभी बाकी है …”
मैंने दे खा की ररि का लण्ड अब परी तरह खड़ा होकर उत्तेजना के मारे झटके मार रहा है ।
कुछ दे र तक रश्मम दीदी को अपने नंगे बदन से धचपकाकर रखने और उसकी नंगी काया की गमी का सख
ु लेने
के बाद ररि दीदी से अलग हुआ और खींचकर उनहें पलंग के पास ले आया। फफर एक हल्का सा िक्ट्का दे कर
उसने दीदी को पलंग पर बैठा हदया, दीदी के दोनों पैर पलंग पर लटक रहे थे और वो पलंग पर बैठ गई। पास
खड़े ररि ने अब दीदी का एक हाथ उठाया और अपने लण्ड पर रख हदया और मठ्
ु ठी को बंद कर हदया।
ररि ने दीदी को चोदने की तैयारी में िायद आज ही अपने लण्ड के बालों को साफ फकया था। उसका बबना बालों
का खड़ा लण्ड और भी पवकराल लगा रहा था। अपना लण्ड वो रश्मम दीदी की मठ्
ु ठी में दे कर उनके हाथों से
अपनी मठ्
ु ठ मरवाने लगा। ररि के लण्ड का पहाड़ी आल जैसा सप
ु ाड़ा एकदम सख
ु फ लाल हो गया था।
रश्मम दीदी के नरम-नरम हाथ जब ररि के लण्ड पर आगे पीछे सरक रहे थे तो उसे एक अजीब आनंद का
अनभ
ु व हो रहा था। उसे कभी गम
ु ान भी न था फक रश्मम के हाथों में ऐसा जाद नछपा है । ररि का लण्ड अब बरु ी
तरह से कड़क हो गया था और उसे नीचे करना संभव नहीं था इससलये दीदी अब उसके लण्ड को ऊपर से नीचे
की तरफ सहला रही थी।
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ररि अब बरु ी तरह से उत्तेश्जत हो चक
ु ा था और लण्ड में अत्यधिक तनाव के कारण अब वो दख
ु ने लगा था।
तनाव और उत्तेजना के कारण उस अब ऐसा लगने लगा था फक यहद इसे जल्द ही रश्मम की चत में ना डाला तो
ये अब फट जायेगा। उसने रश्मम दीदी के हाथों को अपने लण्ड से आजाद फकया और वो दीदी के और भी सामने
आकर खड़ा हो गया, अब ररि का लण्ड दीदी के एकदम मूँह
ु के सामने था। ररि ने अपना लण्ड दीदी के गालों
में लगाया और वहां उसे रगड़ने लगा। वो दीदी के परे श्जमम में अपना लण्ड रगड़ना चाहता था, अब वो अपना
लण्ड उसके गालों से हटाकर उसके परे चेहरे में घम
ु ाने लगा।
रश्मम दीदी बेहद िमफसार थी और आूँखें बंद फकये हुए ररि के अपने नंगे श्जमम के साथ खखलवाड़ को महसस कर
रही थी। ररि अब अपने लण्ड को दीदी के होठों पर घम ु ाने लगा, मानो वो अपने लण्ड से उनके होठों पर
सलपपश्स्टक लगा रहा हो।
पर ररि मंझा हुआ खखलाड़ी था। उसने अपने बांयें हाथ से रश्मम दीदी के जबड़ों को पकड़ा और उसे तननक
दबाया तो दीदी का मह
ूँु थोड़ा सा खल
ु गया और अब ररि उनके खल ु े मूँह
ु में अपना लण्ड डालने की कोसिि
करने लगा। लेफकन दीदी ने परी तरह से अपना मूँह
ु नहीं खोला था इससलये उसे अपना लण्ड दीदी के मूँह
ु में
डालने में परे िानी हो रही थी।
ररि ने अब दीदी के ससर को पीछे से पकड़ा और िीरे -िीरे अपनी कमर को हहलाने लगा और अपना लण्ड दीदी
के मूँह
ु में अंदर-बाहर करने लगा। रश्मम दीदी की आूँखें फटने लगी क्ट्योंकी ररि के िक्ट्कों से उसका लण्ड दीदी
के गले तक चला जा रहा था।
रश्मम दीदी के सलये हालांफक ये बबल्कुल नया खेल था जो उसने आज से पहले कभी नहीं खेला था इसीसलये
उनके मन में काफी गलतफहमी थी लेफकन आज ररि ने जबरन ही सही लेफकन जब उसके मूँह
ु में अपना लण्ड
डाल ही हदया तो िरु
ु आत में थोड़ी हहचफकचाहट के बाद अब उनको भी ररि के लण्ड का स्वाद अच्छा लगने लगा
था, और इस खेल में दीदी को भी मजा आने लगा था। अब अनजाने में ही कब उनका मूँह
ु थोड़ा और खल
ु गया
और ररि के लण्ड के सलये अपने मूँह
ु में और जगह कर दी, ताकी वो असानी से लण्ड अपने मूँह
ु में ले सके।
43
ररि ने इसको तरु ं त महसस कर सलया और उसने दीदी के ससर को हहलाना बंद कर हदया लेफकन दीदी का ससर
आगे पीछे हहलना बंद नहीं हुआ, वो उसी तरह अपने ससर को आूँखें बंद फकये हहलाती रही और उसके लण्ड को
चसती रही।
रश्मम दीदी की आूँखें बंद थी और उनहोंने अब इतनी जोर से उसके लण्ड को चसना िरू
ु कर हदया फक उनके मूँह
ु
पच-पच की आवाजें भी आने लगी। इतनी जोर से लण्ड को अपने मूँह
ु में भींच लेने के कारण उनके दोनों गालों
में गड्ढे पड़ने लगे थे। पच-पच की आवाज के बीच में उनके मूँह
ु से ‘उं ऽ उं ऽ आह्ह… आह्ह…’ की आवाजें ननकल
रही थी।
दीदी को कुछ दे र पहले श्जस लण्ड के होंठों पर लगने से उबकाई आ रही थी, उसी घोड़ेछाप लण्ड को अब वो
लोलीपाप की तरह स्वाद लेकर चस रही थी।
थोड़ी दे र बाद ररि ने रश्मम दीदी को कुनतया की तरह पलंग पर बैठा हदया और खद
ु पलंग के नीचे उनके सामने
खड़ा हो गया और अपना लण्ड दीदी के मूँह
ु में दे हदया। दीदी को दोनों चधचयां हवा में झल रही थी। ररि बीच-
बीच में अपने हाथों से उसकी पीठ को सहलाते हुए उनकी गाण्ड को सहलाने लगा और अपनी एक उं गली को
उसकी गाण्ड और उसकी चत के छे द में मसलने लगा।
ररि दीदी को इस तरह पड़े दे खकर पागल हो गया और वहीं पलंग के पास नीचे बैठ गया।
ररि अपने दोनों हाथ दीदी की गाण्ड के नीचे ले गया और थोड़ा जोर लगाकर उसने दीदी के चतरों को ऊपर उठा
हदया। अब दीदी की चत और भी असानी से उसके मूँह
ु में आ गई, ररि ने अपने मूँह
ु में ढे र सारा थक भरकर
रश्मम दीदी की चत में उड़ेल हदया श्जससे उनकी चत और भी धचकनी हो गई।
44
अब वो दीदी की धचकनी चत की फांकों पर अपनी जीभ रगड़ने लगा और चत के अंदर के गल
ु ाबी भाग को
अपनी जीभ से सहलाने लगा।
रश्मम दीदी मारे उत्तेजना के पागल हो गई और अपनी चत जोर-जोर से हहलाने लगी। अब ररि के सलये उसकी
चत में मूँह
ु लगाये रखना कहठन हो रहा था तो उसने और भी ताकत से अपना मूँह
ु दीदी की चत में लगा हदया
और अपनी जीभ दीदी की जवान चत के छे द में डालकर अंदर-बाहर करने लगा।
इस तरह जीभ के अंदर-बाहर होने से दीदी थरथराने लगी और वो बरु ी तरह से उत्तेश्जत हो गई। वो आूँखें बंद
फकये अपना ससर तेजी से इिर-उिर पटकने लगी। दीदी की बदहवासी ने ररि को और भी ज्यादा उत्तेश्जत कर
हदया। अब वो और भी अधिक जोि से दीदी की बरु को चसने लगा।
चत के इस बरु ी तरह से चसे जाने के कारण रश्मम दीदी का खुद से ननयंरण परी तरह से खतम हो गया था,
और उनकी चत से उत्तेजना के मारे धचकना पानी ननकलने लगा और दीदी झड़ गई। दीदी के बरु के मादक पानी
ने ररि की उत्तेजना को और भी अधिक बढ़ा हदया। उसके सलये अब अपना लण्ड रश्मम की चत से बाहर रखना
संभव नहीं था।
दीदी के संपणफ िरीर पर भरपर ननगाह डालने के बाद उसकी ननगाहें अब उनकी उभरी हुई चत पर जा हटकी।
बबना बालों वाली दीदी की धचकनी सलोनी चत श्जसे अभी कुछ ही क्षणों पहले ररि ने चस-चसकर मेरी बहन की
जवानी का रस पपया था, चसे जाने के कारण फलकर बाहर की तरफ उभर आई थी और उसकी दरार साफ हदख
रही थी। रश्मम दीदी की चत अभी भी गीली थी और उनके मन की कामवासना धचकने पानी के रूप में उसकी
चत से बाहर आ रही थी।
ररि ने जैसे ही चत चसना बंद फकया दीदी को अपनी चत में एक अजीब सा खालीपन महसस होने लगा। उनहें
महसस होने लगा फक मेरी चत में कुछ होना चाहहये, जो इस वक्ट्त नहीं है । चत के इस खालीपन को भरने के
सलये दीदी की चत में एक अजीब सी खुजली होने लगी और उसकी वजह से दीदी की चत अपने आप झटके
मारने लगी। रश्मम दीदी ने आूँखें खोलकर ररि की तरफ दे खा तो उसे अपनी चत को घरते हुए पाया, ररि को
इस तरह अपनी चत को घरते और अपनी चत के लगातार झटके मारने के कारण वो िमाफ गई।
अब ररि ने दीदी के बबस्तर पर फैले दोनों पैरों को अपने दोनों हाथों से पकड़ सलया और उसे उसे दांए बांए फैला
हदया अब मझ
ु े बाहर से भी दीदी की चत साफ हदखाई दे ने लगी। ररि अब अपनी कमर को दीदी की जांघों के
बीच में ले गया और अपना लण्ड दीदी की िड़कती चत पर रगड़ने लगा।
ररि का गरम लण्ड अपनी चत से टकराते ही दीदी के हदल की िड़कन तेज हो गई क्ट्योंकी उनहें फफर से ररि के
लण्ड का स्वाद जो समलने वाला था।
उसके बाद ररि उठा और फफर से अपना लण्ड दीदी की चत में रगड़ने लगा। उसका एक हाथ रश्मम दीदी की
जांघों और उनकी गाण्ड को सहला रहा था और दसरे हाथ से वो दीदी की छानतयों को मसल रहा था। अब ररि
की सहनिश्क्ट्त दे रही थी और उसने अपना लण्ड रश्मम दीदी की चत के मह
ु ाने में लगा हदया।
लण्ड के चत में लगते ही दीदी सतकफ हो गई और आगे होने वाली घटना का अनभ ु व करते हुए अपनी आूँखों
और होठों को बरु ी तरह से भींच सलया। इिर ररि भी बेहद उत्तेश्जत और खि
ु था आखखर पपछले कई महहनों की
उसकी हसरत आज परी जो हो गई थी। ररि ने अपने लण्ड में थोड़ा सा दबाव डालकर हल्का सा िक्ट्का हदया
और अपने लण्ड का सप
ु ाड़ा दीदी की चत में घस
ु ेड़ हदया।
लण्ड के अंदर जाते ही रश्मम दीदी की चत के अंदर एक खलबली मच गई और ददफ से उसके मूँह
ु से एक ‘आह्ह’
ननकल गई। अभी दीदी की चत में पहली चद
ु ाई का ददफ बरकरार था और ररि ने दब
ु ारा दीदी को चोदना िरू
ु कर
हदया।
फफर कुछ क्षणों तक दीदी को ददफ से कराहते दे खकर ररि ने उसका मजा सलया। फफर थोड़ा और िक्ट्का उसने
अपने लण्ड से लगाया तो लण्ड लगभग आिा दीदी की चत में चला गया।
लण्ड के आिा अंदर जाते ही रश्मम ददफ से बबलबबलाने लगी और कराहने लगी- “आह्ह्ह… उईई माूँ, मर गई मैं
तो, मांऽऽऽ, बस करो ररि सहन नहीं हो रहा है , प्लीज… छोड़ दो मझ
ु ,े ननकालो न उसे बाहर…”
दीदी को इस तरफ फड़फड़ाते हुए दे खकर ररि को मजा आ रहा था। कुछ क्षणों तक दीदी को इस तरह दे खने के
बाद अचानक ररि ने एक जोर का िक्ट्का लगाया और उसका परा का परा मोटा लण्ड दीदी की चत में समा
गया और रश्मम दीदी के मह
ूँु से एक चीख ननकल गई- “आईई मांऽऽऽ बचाओ मझ
ु …
े ” दीदी की आूँखों में ददफ के
मारे फफर से आंस आ गए।
46
लण्ड को परी तरह से रश्मम दीदी की चत में उतार दे ने के बाद ररि दीदी के नंगे श्जमम पर लढ़
ु क गया और
उनहें अपनी बाहों में जकड़कर अपना मूँह
ु दीदी के होठों पर लगा हदया। अब वो अपनी कमर को हौले-हौले हहलाने
लगा श्जससे उसका लण्ड दीदी की चत में अंदर-बाहर होने लगा।
मैं सोचने लगा- अब दीदी को इतना ददफ क्ट्यों हुआ जबकी थोड़ी दे र पहले एक बार तो वो चद
ु चुकी है?
ररि अपना लण्ड इतनी जोर-जोर से दीदी की चत में डाल रहा था फक चत और लण्ड की इस टक्ट्कर में फच-फच
की आवाजें कमरे में गज
ं ने लगी और हर झटके के साथ रश्मम दीदी के मूँह
ु के एक ‘आह्ह’ ननकल रही थी-
“आह्ह्ह… आह्ह्ह… उइईई माूँ बस्स ओफ़्फ़्फ़्फ़्फ…”
दीदी के मूँह
ु के से ननकलने वाली कराहों से ररि और भी ज्यादा उत्तेश्जत हो गया और वो परी मस्ती में झम
झम कर दीदी को चोदने लगा। दोनों की आखें बंद थी और दोनों एक दसरे से बरु ी तरह से सलपटे हुए थे, दोनों
के मह
ूँु से थोड़ी थोड़ी दे र में ‘उह्ह… आह्ह… ओफ़्फ़्फ…’ की हल्की सी आवाजें ननकल रही थी और कमरे के
वातावरण को कामक
ु बना रही थीं। दीदी का हाथ अब ररि के पीठ पर था और वो िीरे -िीरे उसकी पीठ पर
अपना हाथ घम
ु ाने लगी।
तभी ररि ने हौले से अपना ससर ऊपर उठाया और िीरे से अपनी आूँख खोलकर रश्मम दीदी की तरफ दे खा,
उसकी आूँखें काम की उत्तेजना के कारण लाल सख
ु फ थी। उसने दे खा फक दीदी हौले-हौले अपना ससर कभी दाएं तो
कभी बांए घम
ु ा रही है । वो बार-बार अपने होठों को अपने दातों से दबा लेती थी। उनके ऐसा करने का मतलब
साफ था फक वो भी चद
ु ाई के खेल का भरपर मजा ले रही थी।
रश्मम दीदी को इस तरह करते हुए दे खकर ररि ने उत्तेजना के आवेग में दो-तीन जोर के झटके उनकी चत में
लगा हदए तो दीदी के मूँह
ु से जोर से चीख ननकल गई- “आह्ह्ह…”
फफर ररि ने दीदी को जोर से भींचकर ताबड़तोड़ उनके गालों को चमना िरू
ु कर हदया। इस तरह चमने से दीदी
भी उत्तेश्जत हो गई और उनहोंने भी ररि को जोर से भींच सलया। वो और भी तेजी से उसकी पीठ पर हाथ घम
ु ाने
लगी।
कुछ दे र तक इसी तरह से दीदी को चोदने के बाद ररि थोड़ा ऊपर उठा और अपना बांया हाथ पलंग पर रखकर
उसी के सहारे थोड़ा ऊंचा हो गया। अब वो दीदी को असानी से हरकतें करते हुए दे ख रहा था। वो उसी अवस्था
में अपनी कमर लगातार हहला रहा था और अपना लण्ड दीदी की चत में अंदर-बाहर कर रहा था। अब वो अपना
एक हाथ दीदी के नंगे श्जमम पर घम
ु ाने लगा।
47
उसके हाथ अब दीदी के चेहरे पर घम रहे थे, कभी वो अपना हाथ उनके गालों पर घम
ु ाता तो कभी होठों पर, तो
कभी बालों में । इसी तरह अपने हाथों को घम
ु ाते हुए ररि ने अपना हाथ िीरे -िीरे दीदी की जवानी के रस से भरी
हुई छानतयों पर रख हदया और दीदी को दोनों चधचयों को बारी-बारी से मसलने लगा।
कभी ररि मेरी बहन की छाती के श्क्ट्लवेज दे खने के सपने दे खता था और आज उसी रश्मम की गदराई छानतयां
उसके सामने एकदम नंगी खुली पड़ी थी और वो उसे जोर-जोर से मसले जा रहा था। ज्यादा मसले जाने के
कारण रश्मम दीदी की छानतयां लाल हो गई थी और उसमें ररि की उं गसलयों के लाल ननिान साफ तौर पर हदख
रहे थे। अब ररि ने थोड़ा नीचे झक
ु ते हुए उनकी बाईं चची के ननप्पल को अपने मूँह
ु में ले सलया और उसे जोर-
जोर से चमने लगा और अपने दसरे हाथ से उनका दायां दि मसलने लगा और नीचे अपने लण्ड के िक्ट्के उसने
दीदी की चत में लगाने जारी रखे।
इस तरह चधचयां को दबाने और चसने और अपनी चत में लगातार लण्ड के झटके पड़ने से रश्मम दीदी भी काम
उत्तेजना में झम गई और अपनी कमर को हौले-हौले झटके दे ने लगी। एक दसरे की बाहों में नग्न रश्मम और
ररि लगातार अपनी कमर को झटके दे कर चद
ु ाई में इतने तल्लीन हो चुके थे फक फक वो दोनों ही अपनी सि
ु
बि
ु खो चक
ु े थे।
दीदी का चेहरा आनंद से खखल उठा। ररि की इस हरकत से उनहें इतना आनंद समला फक उसके मूँह
ु से-
“आह्ह्ह… आह्ह्ह… आह्ह्ह… आउच्च्च… ओफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़् फ…” की आवाज ननकलने लगी और वो वासना के समन
ु दर में
गोते लगाने लगी। ररि दब
ु ारा उनकी ऐसी चुदाई करे गा ऐसा दीदी ने सपने में भी नहीं सोचा था।
48
परी तरह से ननढाल हो चुकी दीदी के दोनों हाथ दाएं बाएं झलने लगे और वो ररि की गोद में समा गई। ररि
का लण्ड दीदी की चत से बाहर नहीं आया, और चंकी वो उसकी गोद में बैठी थी इससलये उनकी दोनों चधचयां
ररि के मूँह
ु के पास झल रही थी। ररि ने मारे उत्तेजना के दीदी की पविाल चधचयों को अपने मूँह
ु में भर सलया
और उसमें भरे जवानी के रस को पीने लगा।
ररि ने अब अपना एक हाथ दीदी की पीठ से हटाकर उनकी धचकनी गाण्ड पर रखा और उनहें हल्के-हल्के से
ऊपर उठाने और छोड़ने लगा।
दीदी अब उसकी गोद में ऊपर-नीचे होने लगी और ररि की गोद में बैठे हुए ही उससे चुदने लगी। रश्मम दीदी को
ये आभास भी नहीं था फक मदफ की गोद में बैठकर भी उसका लण्ड अपनी चत में सलया जा सकता है और वो
इस रोमांच का भरपर मजा ले रही थी उनहोंने अपने दोनों लटके हुए हाथ अब ररि के कंिों पर रख सलये और
वो खुद ही अपने पैरों के पंजों के सहारे ऊपर-नीचे होने लगी, इससे ररि के हाथ थोड़ी दे र के सलये खाली हो
गये।
अपनी गाण्ड के छे द पर ररि का हाथ लगते ही दीदी के िरीर में एक सनसनी दौड़ गई और उनहोंने जोर से ररि
के कंिों को पकड़ सलया। इिर ररि अब हौले-हौले दीदी की गाण्ड के छे द को अपनी उं गली से रगड़ने लगा।
अपने िरीर के दोनों छे दों पर एक साथ हमले से दीदी थरथरा गई। उनके श्जमम में ऐसी उत्तेजना होने लगी श्जसे
सहन करना अब उसके बस में नहीं था।
दीदी की गाण्ड मारने की ररि की बहुत इच्छा थी लेफकन पहले वो उसे अपने मोटे लण्ड के सलये तैयार करना
चाहता था। कुछ दे र तक उनकी गाण्ड के छे द में अपनी उं गली रगड़ने के बाद वो हौले से अपनी पहली उं गली
को थोड़ा सा िक्ट्का दे ते हुए दीदी की गाण्ड में घस
ु ा दे ता है और िीरे -िीरे अनदर-बाहर करने लगा।
गाण्ड में ररि की उं गली और चत में उसका लण्ड अपने दोनों छे दों की इस तरह से एक साथ हो रही चद
ु ाई से
दीदी एकदम बदहवास हो गई और उनहोंने ररि को जोर से भींच सलया। दीदी उसे ताबड़तोड़ चम रही थी उनहें
ऐसा लगा फक वो फफर से झड़ने वाली है ।
ररि अब तेजी से दीदी की गाण्ड में उं गली से अंदर-बाहर करने लगा। थोड़ी दे र तक इसी तरह अपनी उं गली
अनदर-बाहर करने के बाद उसने अपनी उं गली को थोड़ा और अंदर िक्ट्का हदया और अपनी आिी उं गली दीदी की
गाण्ड में घस
ु ा दी और गाण्ड में ही उसे हहलाने लगा। कुछ दे र तक अपनी आिी उं गली दीदी की गाण्ड में रखने
के बाद ररि ने एक और िक्ट्का दे ते हुए उसकी परी उं गली ही दीदी की गाण्ड में घस
ु ा दी।
परी उं गली गाण्ड में घसु ने से दीदी धचहुंक उठी, पर ररि ने इस पर ध्यान न हदया और अपनी परी की परी
उं गली गाण्ड में अंदर-बाहर करने लगा। रश्मम दीदी जैसे अपना आपा खो बैठी और अपनी कमर को जोर-जोर से
हहलाने लगी और उनहोंने ररि को बरु ी तरह से अपनी बाहों में जकड़ सलया।
49
ररि को लगा जैसे वो जननत की सैर कर रहा था। उसने सोचा की रश्मम की चत में उसका लण्ड, मूँह
ु में चची
और रश्मम की गाण्ड में उं गली। उसकी तो जैसे पांचो उं गसलयां घी में थी।
दस समनट तक रश्मम दीदी को इसी तरह से चोदने के बाद उसने फफर से उनको सलटा हदया और खद
ु उनके नंगे
श्जमम पर लढ़
ु क गया। ररि अपने श्जमम की हवस को दीदी के नंगे श्जमम से समटा रहा था, लेफकन उसके
हदमाग में भी वासना की हवस भरी हुई थी और इसीसलये वो अब दीदी के साथ कामक
ु बातें करना चाहता था।
रश्मम दीदी की चत में लण्ड डालने से उसके िरीर को आराम समल रहा था और उसके लण्ड की प्यास बझ
ु रही
थी। लेफकन कामक
ु बातें करने से उसके हदमाग को सक
ु ु न समलता।
लेफकन ररि अपनी बात कहना जारी रखता है- “अब रोज डालग
ं ा तेरे अंदर डासलफग, बोलो दोगी न रोज डालने के
सलये?
रश्मम- ऊउउउउउउं
रश्मम- हाूँ।
ररि- “अरे ऐसे नहीं बोलो ‘हाूँ मैं रोज डालने दं गी’ बोलो न ऐसा प्लीज…”
रश्मम- मझ
ु े िमफ आती है, मैं नहीं बोल सकती।
रश्मम- जो तम्
ु हारी इच्छा हो।
रश्मम उसकी पीठ पर चपत लगाती हुई तननक जोर से कहती है - “ऊउउउउउउउउं …”
रश्मम- मझ
ु े नहीं पता।
रश्मम- सच मझ
ु े नहीं पता इसका नाम।
ररि- “अच्छा। मैं बताता हं इसका नाम। इसे लण्ड कहते हैं मेरी जान, जो अभी तेरे अंदर मैंने डालकर रखा हुआ
है । अब बोल?”
रश्मम गस्
ु से से- “तम
ु भी न… मैं और नहीं बोलग
ं ी…”
ररि प्यार से- “बोल न प्लीज… अब ये मत बोलना तझ ु े ये भी नहीं पता की मैंने कहां डालकर रखा हुअ है? ले
मैं उसका भी नाम बता दे ता हं । उसको चत कहते हैं रश्मम रानी जहां मेरा लण्ड घसु ा हुआ है अभी…”
ररि मझ
ु े जो सन
ु ाना चाहता था वो सन
ु ा हदया। अब वो दीदी को और परे िान नहीं करता और उसको चमने
लगा। दरअसल वो ये भी चाहता था फक तन के साथ रश्मम दीदी उसके साथ मन से भी खुल जाय, तो उसे
चोदने में और भी मजा आयेगा। उसने फफर से अपने िक्ट्के तेज कर हदए और रश्मम की बरु में अपना लण्ड
पेलने लगा।
कुछ दे र तक ररि का लण्ड अपनी बरु में लेने के बाद अचानक दीदी जोर से ररि को पकड़ लेती है फफर एकदम
से ननढाल पड़ जाती है और अपने दोनों हाथों को ससर के ऊपर लेजाकर ढीला छोड़ दे ती है और अपना ससर एक
तरफ लढ़
ु का दे ती है । वो तीसरी बार झड़ गई थी पर उसकी आूँखों से आंस की बद
ं ें टपक जाती हैं। िायद आज
मन भर के चद
ु ने की अपनी इच्छा परी होने से खुिी के मारे दीदी की आूँखों से आंस ननकल आये थे।
कुछ ही क्षणों में दीदी ररि से कहने लगती है - “प्लीज… अब बस करो छोड़ दो मझ
ु …
े ”
पहली बार ररि भी आिे घंटे में झड़ गया था। पर पहली बार दीदी को चोदने के बाद जब वो फकचेन में पानी
पीने गया था तब उसने सेक्ट्स को बढ़ाने वाली गोली खा ली थी। उसी गोली ने ररि को िैतान बना हदया था।
ररि का लण्ड ददफ करने लगा था, पर वो झड़ने का नाम नहीं ले रहा था और दीदी 3 बार झड़ चक
ु ी थी।
ररि ने दीदी को अनसनु ा करते हुये उनको जोर से भींचकर अपने िक्ट्के तेज कर हदए और दीदी को और तेजी
से चोदने लगा। दीदी को अब बदाफमत नहीं हो रहा था। उनमें अब दम नहीं बचा था, बस वो पड़े-पड़े ‘अआह्ह…
ओह्ह…’ की आवाजें ननकाल रही थी।
करीब 10 समनट के बाद आखखरकार, ररि को लगा की उसका लण्ड कभी भी वीयफ बाहर ननकाल सकता है । ये
एहसास होते ही तरु ं त उसने अपना लण्ड दीदी की चत से बाहर ननकाल सलया और लण्ड दीदी के मूँह
ु में डाल
हदया। दीदी ने न चाहते हुए भी उसका लण्ड अपने मूँह
ु में ले सलया क्ट्योंकी अब उनमें बोलने की ताकत भी नहीं
बची थी।
ररि ने ममु कुराते हुए दीदी का हाथ पकड़कर अपना लण्ड उनके हाथ में रख हदया। उसके लण्ड ने फफर एक
झटका खाया। फफर ररि रश्मम दीदी के बगल में लेट गया और उनके नंगे बदन से सलपट गया। 15 समनट तक
दोनों उसी तरह से पलंग पर पड़े रहे । िायद दोनों ही इस लंबी चद
ु ाई के बाद बरी तरह से थक चक
ु े थे।
52
मझ
ु े लगा की दीदी की पहली चुदाई तो यूँ ही थी पर ये दसरी चद ु ाई काफी िमाकेदार हुई और इसमें दीदी भी
काफी एनजॉय कर रही थी। पहली बार तो दीदी बेमन से चद ु ी थी पर मदफ के कड़क लण्ड की ताकत का उनहें इस
बार ही अहसास हुआ था और िायद आज की इस चद
ु ाई के बाद दीदी को मदफ िब्द का अथफ भी समझ में आ
गया होगा।
15-20 समनट के बाद दीदी के िरीर में थोड़ी हरकत हुई। िायद उनके मूँह
ु में ररि के वीयफ के स्वाद ने उनहें
उठने पर मजबर कर हदया। उसने थोड़ा खड़ी होने का प्रयास फकया लेफकन ररि का दांयां पैर उनकी जांघों पर
पड़ा हुआ था और उसका एक हाथ में दीदी की चची थी और ररि ऐसे ही सो गया था। दीदी ने पहले ररि के
हाथ को अपने स्तन से हटाया और फफर उठकर बैठ गई। फफर उसने उसकी जांघों को अपने ऊपर से हटाया और
पलंग से उठ खड़ी हुई।
रश्मम दीदी परी तरह से नंगी थी और चुदाई के बाद बला की खबसरत लग रही थी। बाहर की तरफ ननकली हुई
गोल-गोल उभारों वाली उसकी गाण्ड और बड़े-बड़े पविाल स्तन उसे बेहद कामक
ु बना रहे थे। वो वैसे ही नंगी
चलती हुई बाथरूम की तरफ जाने लगी। मैं फफर से सोफे के पीछे चला गया। अचानक दीदी की नजर ड्राइंग रूम
के कोने में रखी ड़्रेससंग टे बल पर पड़ी और उसमें अपनी छाया दे खकर दीदी रुक गई।
दीदी िीिे के थोड़ा करीब गई और अपने नंगे श्जमम को ननहारने लगी। अपने नंगे श्जमम को दे खते हुए कभी तो
वो िमाफ जाती और कभी गौरव और अहं कार से उसका मन भर जाता फक मेरे इसी श्जमम को पाने के सलये लोग
इतना ललानयत रहते हैं।
अपने श्जमम पर घमंड करना हर स्री का स्वभाव होता है और उसे भोगने की इच्छा करना हर परु
ु र् का। औरत
इस बात से अनजान होती है फक आदमी का लक्ष्य तो औरत के श्जमम में बसी उसकी चत होती है , फफर िरीर
चाहे वो फकसी रश्मम का हो या फकसी चारू, रुची या अमत
ृ ा का।
कुछ दे र तक इसी तरह अपने श्जमम को आईने में ननहारने के बाद दीदी बाथरूम में चली गई। मझ
ु े लगा की
अब मैं घर से बाहर ननकल जाता हूँ। पर बाथरूम में पहुूँचकर दीदी ने दरवाजा ही बंद नहीं फकया और िावर
चाल करके अपने िरीर की सफाई करने लगी।
दोनों श्जस्मों के गत्ु थम गत्ु था होने से पैदा होने वाला पिीना और ररि के वीयफ ने दीदी के िरीर को धचपधचपा
बना हदया था और चद ु ाई के दौरान हुई कसरत ने उनको काफी थका हदया था। लेफकन पानी की बौछार िरीर में
लगने से उनहें काफी राहत महसस हुई और ताजगी का अहसास उसके िरीर में नवीन उजाफ का संचार करने
लगा।
लगभग 10 समनट तक नहाने के बाद रश्मम दीदी परी तरह ताजगी महसस करने लगी और अब उनहोंने िावर
बंद फकया और तौसलया लपेटे नंगी ही वापस कमरे में आ गई। अब दीदी को ररि से िमफ जैसी कोई बात नहीं
थी।
इिर ररि भी लगभग हल्की नींद परी करने के बाद जाग चुका था और काफी तरोतजा महसस कर रहा था।
उसने अपनी आूँखें खोली और पलंग पर ही पड़ा रहा। दीदी को बबस्तर पर ना पाकर उसकी ननगाहें रश्मम को
खोजने लगी।
53
नहाने के कारण रश्मम दीदी के बदन में एक अलग ही चमक हदखाई दे रही थी और उसका गोरा बदन नंगा होने
की वजह से और भी मादक लग रहा था। दीदी नहाकर कमरे में नंगी खड़ी थी, उसका एक पैर स्टल पर था और
दसरा पैर जमीन था और वो अब अपने पैरों को पोंछ रही थी। उसके बाल खुले हुए थे और उसकी कमर तक
लटक रहे थे।
अपनी खबसरत हसीना के धचकने नंगे बदन को दे खकर ररि के लण्ड में फफर हरकत होने लगी। दीदी की बड़ी-
बड़ी नंगी गाण्ड, मोटी जांघ और फकसी पवफत की तरह पविाल लटकते हुए स्तनों को दे खकर ररि का लण्ड फफर
अपने आकार में आने लगा और फफर से रश्मम की चत में जाने के सलये मचलने लगा। वो तरु ं त हरकत में आता
है और पलंग से खड़ा हो जाता है । उसका लण्ड अब फफर से बरी तरह से कड़क हो चक
ु ा था और वो उसी
अवस्था में रश्मम के पीछे जाकर खड़ा हो जाता है और उसके बदन को पीछे से कामक
ु नजरों से घरने लगता है ।
दीदी इस बात से बेखबर थी की ररि जाग चुका है और उनके एकदम पीछे आकर खड़ा है , वो अपनी ही िुन में
थी और परी तनमयता से अपने नंगे बदन को पोछे जा रही थी। वो ये सोच रही थी की अब कपड़े पहनने
चाहहए, क्ट्योंकी कभी भी मोन वापस आ सकता है । उसे क्ट्या पता की उसका भाई उसकी ये िमाकेदार चद
ु ाई
लाइव दे ख चुका है ।
लेफकन ररि तो सोचता है की दीदी को चोदने के सलए उसे मेरी परसमिन थी, इसीसलए उसे कोई भी जल्दी नहीं
थी। उसे तो कुछ और ही मंजर था। कुछ क्षणों तक रश्मम दीदी के नंगे बदन को घरने के बाद ररि ने उनको
पीछे से पकड़ सलया और अपना लण्ड दीदी की नंगी गाण्ड की दरारों में जोर से दबा हदया और उसने अपने दोनों
हाथों को आगे करके फफर से दीदी की चधचयों पर हमला बोल हदया।
ररि जानता है की मैं कहीं नछपा हुआ सब दे ख रहा हूँ। इसीसलए उस पर दीदी की इन बातों का कोई असर नहीं
हुआ और उसने दीदी को और भी जोर से को पकड़ सलया। अब उसने दीदी की गाण्ड पर अपने लण्ड का दबाव
और भी बढ़ा हदया और उनकी दोनों चधचयों को और भी ज्यादा जोरों से मसलने लगा। फफर ररि ने अपना लण्ड
िीरे -िीरे दीदी की गाण्ड में ऊपर-नीचे रगड़ना िरू
ु कर हदया।
रश्मम दीदी की नरम-नरम पविाल गद्दे दार गाण्ड में अपना लण्ड रगड़ने से उसे एक अलग ही सख
ु का अहसास
हो रहा था और उसकी उत्तेजना भी अपने चरम में पहुूँच जाती है ।
ररि दीदी की गाण्ड में अपने लण्ड को रगड़ते हुए ही दीदी के गालों को चमकर बोला- “अभी क्ट्या जल्दी है
जान? अभी तो 12:30 ही बजा है , और तम् ु हें तो मोन की बेकार फफकर हो रही है वो अभी नहीं आयेगा और आ
भी गया तो क्ट्या? उसके सामने ही उसकी बहन चोदं गा और वो अपना लण्ड हहलाएगा…”
54
रश्मम दीदी यह सन
ु कर चौंक गई पर वो कुछ कहने के सलये मूँह
ु खोलने कोसिि करती, इससे पहले ही ररि ने
अपने होंठ रश्मम के होठों से लगा हदए और उनकी मदमस्त जवानी का रस पीने लगा। ररि का लण्ड रश्मम दीदी
की गाण्ड में दस्तक दे रहा था और उसके दोनों हाथ दीदी की चधचयों को मसल रहे थे, साथ ही वो दीदी के
होठों से जवानी का रस चस रहा था।
दीदी चाह कर भी कुछ बोल नहीं बोल पाई और लगातार अपने बदन को मसले जाने के कारण वो भी िीरे -िीरे
गरम होने लगी और दीदी की वासना फफर उछाल मारने लगी।
अब ररि ने अपने दांये हाथ को दीदी की चची से हटाया और िीरे -िीरे उनके पेट से स्पिफ करते हुए उसने अपना
दांया हाथ दीदी की उभरी हुई जवान चत पर रख हदया। अपनी जवान चत पर ररि का हाथ लगते ही दीदी पर
एक मदहोिी सी छाने लगती है और वो ररि का लण्ड फफर से अपनी चत में लेने के सलये मचलने लगी।
ररि का हाथ अब रश्मम दीदी की चत की दरारों के ऊपर घम रहा था और दीदी का बदन फफर से उत्तेजना के
मारे थरथराने लगता है । कुछ दे र तक दीदी की चत को सहलाने के बाद ररि ने अपनी एक उं गली दीदी की चत
के अंदर डाल दी और उसे हौले-हौले अंदर-बाहर करने लगा।
रश्मम दीदी मारे उत्तेजना के गरम हो गई और उनकी चत से पानी ननकलने लगा। उनके पैरों की िश्क्ट्त अब
जवाब दे ने लगती है और अब खड़े रह पाना दीदी के सलये काफी कहठन हो गया।
दीदी की चत से ननकलने वाले पानी के अपने हाथों से लगते ही ररि समझ जाता है फक रश्मम अब फफर से गरम
हो चुकी है, और लण्ड लेने के सलए तैयार है । पर वो तय नहीं कर पा रहा की लण्ड फफर से दीदी की चत में
डाले या फफर उनकी गद्दे दार गाण्ड मारे ।? अब ररि और भी तेजी से उनकी चत से खेलने लगा और अपनी
उं गली दीदी की चत से और भी तेजी से रगड़ने लगा।
रश्मम दीदी को बेहद आनंद आ रहा था लेफकन कुछ ही दे र पहले वो ररि के लण्ड का स्वाद चख चक
ु ी थी,
इससलये अपनी चत में केवल एक छोटी सी उं गली से उनहें वो सख
ु और संतष्ु टी नहीं प्राप्त हो रही थी, जो उसे
कुछ दे र पहले ररि के लण्ड से समली थी।
दीदी बदहवासी में अपना परा जोर लगाकर गोल घमकर ररि से सलपट गई। ररि भी दीदी को अपने सीने से
धचपका कर उनके चेहरे को बेतहिा चमने लगा। रश्मम दीदी की पविाल चधचयां अब ररि की छाती से धचपकी हुई
थीं, और वो खद
ु उसकी बाहों में । ररि उनहें चमे जा रहा था और अपने हाथों से उसकी दोनों बड़ी गाण्ड को
मसलते जा रहा था। ररि ने कुछ दे र तक दीदी को अपनी बाहों में थामे रखा। ररि दीदी के बदन की गमी का
सख
ु लेता रहा और उनके नंगे श्जमम को सहलाते रहा। फफर उसने अपने पैरों को ढीला छोड़ हदया और घट
ु नों के
बल नीचे बैठ गया। उसने अपने दोनों हाथों से दीदी की गाण्ड को पकड़ सलया और अपना मूँह
ु उनकी चत में
लगा हदया।
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अब रश्मम दीदी बेजान सी खड़ी थी और ररि उनकी बरु चस रहा था। दीदी के हाथ ररि के ससर पर तेजी से
घम रहे थे, उनकी आूँखें बंद थी और मूँह
ु से सससफकयां ननकल रही थी। दीदी को दे खकर ऐसा लग रहा था फक
उनहें ररि का अपने श्जमम से खखलवाड़ बहुत पसंद आ रहा था और वो चाहती थी फक ररि उसके नंगे श्जमम से
जी भरकर खेले।
कुछ दे र तक खड़ी रहकर अपनी बरु चसवाने के बाद रश्मम दीदी का हौसला पस्त हो जाता है । उनके पैरों में
जान नहीं बची थी फक वो उनके गदराये बदन का भार उठा सके। अब दीदी भी नीचे बैठ गई और उनके नीचे
बैठते ही ररि ने हौले से िक्ट्का दे कर उनहें वहीं सलटा हदया।
जमीन पर बबछा कालीन अब बबस्तर का काम कर रहा था। ररि और रश्मम दीदी दोनों में अब वो िैयफ नहीं बचा
फक वो पलंग तक जायें, सलहाजा दीदी भी बबना फकसी पवरोि के कालीन पर पीठ के बल लेट गई। नंगी रश्मम
दीदी नीचे लेटकर कामवासना से अपने दोनों पैरों को ऊपर-नीचे करने लगी और अपनी दोनों चधचयों को अपने
ही हाथों से मसलने लगी।
थोड़ी-थोड़ी दे र में वो अपने होठों को अपने ही दातों से काट रही थी और दीदी के मूँह
ु से सससकाररयां ननकल रही
थी। दीदी का ये मौन ननमंरण पाकर पहले से ही उत्तेश्जत ररि और भी कामांि हो जाता है और फैसला करता है
की एक बार और चत लेने के बाद वो रश्मम की गाण्ड मारे गा।
ये सोचकर वो दीदी की दोनों जांघों को फैलाकर उसके बीच में बैठ गया और अपने लण्ड में मह
ूँु से थक ननकाल
कर लगाने लगा और अपने लण्ड को धचकना करने लगा। फफर उसने अपना लण्ड रश्मम दीदी की चत में लगाकर
एक हल्का सा िक्ट्का हदया श्जससे लण्ड आिा रश्मम दीदी की चत में घस
ु गया।
दीदी की चत जो दो बार चद
ु ने से काफी खुल चुकी थी, आराम से आिा लण्ड अपने अनदर ले लेती है । दीदी भी
अपनी बरु में होने वाली वासना की खज
ु ली से बचैन थी और इस बात का इंतजार कर रही थी फक ररि अब
उनके श्जमम से खेलना छोड़कर अपना लण्ड उनकी बरु में डाले और चोदना िरू
ु करे । ररि का लण्ड अपनी चत
में पाकर दीदी बेहद आनंद का अनभ
ु व करने लगी और अपनी चत को ऊपर उछाल-उछालकर वो ररि का परा
लण्ड अपनी चत में लेने की कोसिि करने लगी।
ररि दीदी की मंिा समझ गया और एक जोर के झटके के साथ अपना परा का परा लण्ड रश्मम दीदी की चत में
डाल हदया। लण्ड के झटके के साथ अंदर जाने के साथ ही दीदी के मूँह
ु से एक जोर की ‘आह्ह्ह’ ननकल गई।
उनकी आूँखें बंद हो गई और मूँह
ु खुल गया। फफर वो बार-बार अपनी जीभ अपने होठों पर फेरने लगी।
कामवासना के अनतरे क में उनका ससर कभी दाएं तो कभी बायें घम रहा था। पणफतः उनमक्ट्
ु त और नंगी दीदी ने
अपने श्जमम को परी तरह से ढीला करके ररि को समपपफत कर हदया और ररि के लण्ड के सलये अपनी चत में
प्रवेि को और भी असान बना हदया।
अब वो ररि के लण्ड को अपनी चत की गहराईयों तक महसस करना चाहती थी। नंगी रश्मम दीदी नाधगन की
तरह कमरे के कालीन में बल खाने लगी और उनके ऐसे बल खाने से वो और भी मादक लगने लगी और दीदी
ने ररि को अपनी चत में और तेजी से प्रहार करने के सलये मजबर कर हदया।
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ररि ने भी दीदी के श्जमम पर ऐसा अधिकार जमा सलया फक उनहें चोदने के सलये अब उसे दीदी की सहमनत की
भी जरूरत नहीं रह गई थी। ररि ने जबरन ही सही लेफकन जब दीदी को मजबर करके नंगी फकया और उनकी
बरु को चोदा तब दीदी को अपने बदन के जवान होने का अहसास हुआ और ये भी अहसास हुआ फक उनके
जवान श्जमम की जरूरतें ऐसी हैं श्जसे केवल एक मदफ ही परा कर सकता है ।
रश्मम दीदी की हालत ऐसी हो गई थी फक ररि का लण्ड ही उनकी एकलौती जरूरत बन गई थी और उस लण्ड
को लेने के सलए न तो उसे फकसी मखमली बबस्तर की जरूरत थी और ना ही पलंग की और इसीसलये ररि ने
जब उनहें कमरे के कालीन पर चोदने के सलये सलटाया तो वो बबना फकसी पवरोि के उसी जगह चुदने के सलये
तैयार हो गई।
रश्मम दीदी ररि से चुदने के बाद काफी हल्का महसस कर रही थी। अपने िरीर में उसे एक अजीब बेचैनी जो
महसस होती रहती थी, श्जसे वो समझ नहीं पाती थी, उसकी वो बेचैनी िांत हो गई थी। पहली बार की चुदाई ने
ही उसके मन और मश्स्तष्क को प्रसनन कर हदया और ये बोनस सेक्ट्स उनके सलये एक दवा का काम कर रहा
था। दीदी अपनी पहली चुदाई से खुि तो थी पर उस चुदाई ने उनकी चद
ु ने की भख को और बढ़ा हदया था और
दीदी और भी मादक हो गई थी।
ररि उनकी इस मादकता को अब महसस कर रहा था। नंगी रश्मम दीदी की मादक अदाओं ने ररि को उत्तेजना
की चरम ऊंचाईयों तक पहुूँचा हदया और उसका लण्ड और भी कड़क हो गया। अब वो और तेजी से रश्मम दीदी
की चत में प्रहार करने लगा। वो दीदी की दोनों पविाल चधचयां अपने हाथों पकड़कर जोर-जोर से मसलने लगा।
दीदी भी वासना के सागर में तैरने लगी और अपनी कमर को झटके मार-मारकर उछालने लगी और ररि के
लण्ड को अपनी चत की गहराईयों तक पहुूँचाने में उसका साथ दे ने लगी।
ररि एक तरफ तो दीदी की चत में तजी से अपना लण्ड अंदर-बाहर कर रहा था और दसरी तरफ उनकी चधचयों
को भी मसले जा रहा था। अब दीदी ने अपने हाथ उसके दोनों हाथ पर रख सलये और मसलने लगी। दीदी
अपनी छानतयों को और भी जोर मसलने के सलये ररि को उकसा रही थी। कुछ दे र के बाद दीदी ने अपने हाथ
उसके हाथों से हटाए और वो अपने हाथों से उसकी पीठ बाहों और ससर को सहलाने लगी।
रश्मम दीदी के नरम हाथों के अपने बदन में घमने से ररि को बेहद आनंद आ रहा था और अब मारे उत्तेजना के
उसने दीदी की दोनों चधचयों को छोड़ हदया और उनके श्जमम पर लढ़
ु क गया और दीदी को अपनी बाहों में भर
सलया। दोनों नंगे श्जमम एक बार फफर गत्ु थम गत्ु था हो गये और ररि ने दीदी के होठों पर अपने होंठ रख हदया
और चसने लगा। कुछ दे र तक दीदी के होठों को चसने के बाद ररि अपनी जीभ उनके होठों पर फफराने लगा
और फफर िीरे से उनके मूँह
ु के अंदर अपनी जीभ डाल दी और दीदी की श्जभ से रगड़ने लगा।
ररि की जीभ के अपनी श्जभ से टकराने से रश्मम दीदी को बेहद मजा आने लगता है और वो उसकी जीभ को
चसने लगती है । कुछ दे र तक अपनी जीभ दीदी के मूँह
ु रखने के बाद ररि ने उसे बाहर ननकाला और दीदी को
उनकी जीभ अपने मूँह
ु के अंदर डालने के सलये बोला। रश्मम दीदी ने अपनी जीभ उसके मूँह
ु में डाली तो ररि उसे
चसने लगा। दीदी की जीभ चसने से उसे ऐसा आनंद समला की वो सब कुछ भलकर उसी काम में लग गया।
रश्मम के मूँह
ु से ननकलने वाले रस से ररि सराबोर होकर वो उसे पीने लगा। दोनों ने एक दसरे को जोर से
भींचकर रखा हुआ था और बारी-बारी एक दसरे के मूँह
ु में अपनी जीभ डालते और एक दसरे को उसे चसने का
आनंद दे रहे थे।
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लगभग 15-20 समनट तक इस फरया को दोहराने से दोनों के िरीर में ऐसी गमी पैदा हो जाती है फक दोनों ही
पिीने से लथपथ हो जाते हैं। गमी इतनी बढ़ गई फक ररि को रश्मम को अपनी बाहों से छोड़ना पड़ा और वो
फफर से उकड़ बैठकर उसे चोदने लगा। ररि अपने हाथ अब कालीन पर रखकर दीदी की बरु में तजी से लण्ड
पेल रहा था। तभी रश्मम दीदी ररि के हाथ को उठाकर अपनी चची पर रखने का प्रयास करती है । ररि समझ
जाता है फक रश्मम अपनी चची को मसलवाना चाहती है।
लेफकन ररि अपने हाथ उसके चची पर नहीं रखता और उसे कहता है- “मेरी रांड़, जैसा त मेरे हाथों से इसे
मसलवाना चाहती है वैसे ही इनहें मसल तभी मझ
ु े समझ आयेगा फक तझ
ु े क्ट्या और कैसे मसलवाना पसंद है ?”
तब ररि कहता है- “मसलवाने में िमफ नहीं आती कुनतया तो फफर खुद मसलने में कैसी िमफ? जो मैं कहता हं वो
कर। तझ
ु को रं डडयों जैसे करते दे खकर मझ
ु े मजा आएगा और मैं तम्
ु हें और मजे से चोदं गा मेरी रांड़। अब और
मजे लेने हो तो नखरे मत कर, और वो करो जो मैं कहता हं कर। और सन
ु मेरे साथ सेक्ट्स करते समय आगे
से कभी िमफ वमफ की बात मत करना समझी? नहीं तो परा मजा कभी भी नहीं ले पायेगी…”
ररि लगातार दीदी की बरु में अपना लण्ड अंदर-बाहर कर रहा था। कुछ दे र तक ऐसे ही उनहें चोदने के बाद जब
ररि ने अपना लण्ड दीदी की चत से बाहर ननकाला तो रश्मम दीदी बेचैन हो गई और हवा में ही जोर-जोर से
अपनी कमर उछालने लगी। दरअसल दीदी कुछ और दे र तक उसके लण्ड का मजा लेना चाहती थी। वो बस
झड़ने ही वाली थी फक ररि ने अपना लण्ड उनकी चत से बाहर ननकाल सलया।
ररि अब दीदी को कुनतया बनाकर चोदना चाहता था और इसीसलये उसने अपना लण्ड बाहर ननकाला था। ररि ने
दीदी को पलटकर कुनतया बनने के सलये कहा।
दीदी की नंगी गाण्ड को दे खते ही ररि पागल हो गया और उसे जोरों से चमने लगा। फफर वो अपना लण्ड दीदी
की गाण्ड के पास ले गया और उनकी चत को तलािते हुए अपना लण्ड दीदी की चत में फफर से घस ु ा हदया और
रश्मम दीदी को कुत्ते की तरह पीछे से चोदने लगा। दीदी अब अपनी गाण्ड को हहला-हहलाकर उसका लण्ड अपनी
चत में ले रही थी और ररि भी बड़ी तेजी से अपना लण्ड उनकी चत में डाल रहा था।
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गाण्ड उठाकर चद
ु वाने के कारण ररि को दीदी की गाण्ड साफ हदखाई दे रही थी। ररि ने अपने मूँह
ु में थोड़ा सा
थक भरकर दीदी की गाण्ड के छे द में डाल हदया और दीदी की गाण्ड के छे द को अपनी अंगठे से दबाकर िीरे -
िीरे मसलने लगा।
अपनी चत में ररि का लण्ड और गाण्ड में अंगठा रगड़े जाने से दीदी और भी कामक
ु हो गई और अपने चतरों
को और भी जोरों से हहलाने लगी, श्जससे उनकी बड़ी-बड़ी चधचयां भी तेजी से हहलने लगीं। ये दे खकर ररि की
उत्तेजना और भी बढ़ गई। अब ररि ने उत्तेजना के मारे अपनी एक उं गली दीदी की गाण्ड में डाल दी और उसे
अंदर-बाहर करने लगा और अपने लण्ड से उनकी बरु चोदना भी जारी रखा।
अपने दोनों छे दों में लगातार प्रहार से रश्मम दीदी उत्तेजना के मारे पागल हो गई और थरथराने लगी। दीदी को
ऐसा लगा फक यहद थोड़ी दे र तक और उसके साथ ऐसा हुआ तो वो मारे उत्तेजना के बेहोि हो जायेगी। उसकी
सांसें उखड़ने लगती है और वो वो खद
ु पर पर काब नहीं रख पाती और कुछ ही क्षणों में- “आह्ह्ह… ओफ़्फ़्फ…
आई माूँऽऽऽ“ की आवाज ननकालते हुए झड़ गई।
झड़ते ही दीदी ने चैन की सांस ली और उनका िरीर ढीला पड़ गया। वो ननढाल होकर वहीं कालीन पर ही लेट
गई। लेफकन इिर ररि का माल अभी नहीं धगरा था इससलये उसने दीदी को फफर से खींचकर अपने पास फकया
और उनको पीछे से थोड़ा उठाकर अपनी जांघों के पास बैठाकर चत में लण्ड डालकर चोदने लगा।
ररि को पता है फक दीदी झड़ चुकी है तो इस बार वो भी तेजी से अपना लण्ड अंदर-बाहर करने लगा और कुछ
ही दे र में वो भी झड़ गया और जैसे उसका माल बाहर आया तो उसने अपना लण्ड दीदी की चत से बाहर
ननकालकर अपना परा माल दीदी की गाण्ड में उड़ेल हदया और वो रश्मम दीदी के ऊपर ही लेट गया।
दीदी को क्ट्या पता की मैं अभी थोड़ी दे र पहले दे खकर गया हूँ की मेरा दोस्त कैसे अपना लण्ड दीदी की चत में
बोर कर रहा था। पर दीदी मझ
ु से सारी बात छुपाना चाहती है ये सोचकर मैंने राहत की सांस ली।
मैंने भी उनकी कहानी को आगे बढ़ाते हुए कहा- “दीदी वो फकताब श्जस लड़के को दी थी उसी के घर गया था।
वो घर पर नहीं था तो उसका इंतज
े ार कर रहा था। पर वो वापस ही नहीं आया तो मैं लौट आया…” मैं दीदी की
तरफ दे खकर बोला। दीदी बबल्कुल नामफल लगने की कोसिि कर रही थी।
मेरे जाने के बाद िायद वो फफर से नहाई थी, क्ट्योंकी उनके बाल गीले थे- “अरे तम्
ु हारा दोस्त पता नहीं इतनी
दे र से ऊपर क्ट्या कर रहा है ? जाओ दे खो जाकर…” दीदी ने फफर सफेद झठ बोला। पर वो मझ
ु से और क्ट्या कहती
की तेरे जाने के बाद तेरे दोस्त ने चोद-चोदकर मेरी चत के चीथड़े कर हदए।
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खैर, मैं अपने कमरे में आ गया। वहां ररि बेड पर लेटा हुआ ममु कुरा रहा था। वो मझ
ु से बोला- “क्ट्यों बे परा िो
दे खा या बीच में ही खखसक गया था?”
तभी दीदी की आवाज आई- “नीचे आ जाओ। मैंने खाना लगा हदया है । अपने दोस्त को भी ले आना…”
हम दोनों नीचे जाकर डाइननंग टे बल पर बैठ गए। दीदी ने खाना लगा हदया और हम तीनों खाना खाने लगे।
ररि बोला- “ओके दीदी, ओह्ह… सारी रश्मम। अच्छा मैं सोच रहा था मोन की एक दो हदन तम्
ु हारे यहाूँ ही रुक
जाऊूँ। घर पर बड़ी बोररयत होती है । तम
ु से बातें करके टाइम भी कट जायेगा और थोड़ी पढ़ाई भी हो जाएगी…”
ररि ने मेरा पैर अपने पैर से दबाया।
मैं समझ गया की दीदी की चत की आग अभी िांत नहीं हुई है । अब मैं क्ट्या बोलता जब समयां बीवी राजी तो
क्ट्या करे गा काजी? खाना खाकर हम फफर से ऊपर आ गए।
“अबे अब वो मेरी रं डी है । अभी तो केवल चत मारी है तेरी बहन की, आज रात को गाण्ड मारूंगा रश्मम की…”
ररि बोला। अब मझ
ु े सोने दे रात भर चद
ु ाई करनी है तेरी बहन की।
“मैंने तम्
ु हारी बहन को थोड़ा दे खा ही था तो तम
ु ने मेरी गदफ न पकड़ ली थी और तम
ु मेरी बहन के साथ क्ट्या
करने को बोल रहे हो?” मैं फफर बोला।
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“अबे अगर तझ
ु में दम है तो ररक्ट्की को पटक के चोद ले मैं कुछ नहीं कहूँगा बस? अब हदमाग मत खराब कर।
सोने दे …” और ररि दीदी के बेड पर लेटकर सो गया।
और मैं ये सोचने लगा की इसको कुछ फरक नहीं पड़ता की इसकी बहन को कोई भी चोदे ? इसने तो बस मझ
ु े
डराने के सलए ड्रामा फकया था। मेरा मन उखड़ा-उखड़ा था तो मैं भी लेटकर सो गया। सपने में मैंने दे खा की मैं
परा नंगा बबस्तर पर लेटा हूँ और दीदी भी नंगी होकर मेरे खड़े लण्ड पर बैठ जाती है और उछल-उछलकर मेरा
लण्ड अपनी चत में लेने लगती है । ये सपना और परी हदन दीदी की चद
ु ाई दे खने की वजह से मैं नींद में ही झड़
गया, अचानक गीला-गीला लगने से मेरी नीद टट गई तो मैंने दे खा िाम के 7:00 बज गए थे। ररि अभी भी
सो रहा था।
ररि बोला- “अबे मैंने रश्मम को रं डी क्ट्या बोला, तने तो सीररयसली ले सलया। जैसे मैं बोलूँ गा और वो टांग
उठाकर तझ
ु े चत दे दे गी? अबे वो तेरी बहन है समझा मेरे कहने भर से तझ
ु े नहीं दे दे गी…” ररि मेरा मजाक
उड़ाता बोला।
मैंने मन में सोचा- साले जब मैं तेरी माूँ और बहन दोनों को चोदं गा तब दे खग
ूँ ा तेरी हीरोधगरी।
ररि उठकर नीचे चला गया और मैं भी पीछे -पीछे नीचे आ गया।
मझ
ु े बड़ा अजीब लगा की वो दीदी को नाम से बल
ु ा रहा है और दीदी एकदम नामफल बताफव कर रही है । खैर िीरे -
िीरे समय काटने लगा और हम लोग बबना ज्यादा बात फकये टीवी दे खते रहे । रात को 10:00 बजे हमने खाना
खाया।
मझ
ु े थोड़ी खुिी हुई की दीदी ने दरवाजा बंद कर सलया है । मझ
ु े नहीं लगता की अब वो ररि के सलए दरवाजा
खोलेगी। 10-15 समनट बाद ररि बोला- “जा बे सो जा जाकर…”
“पर क्ट्यों? मझ
ु े नींद नहीं आ रही है…” मैंने बोला।
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मैं चुपचाप उठकर ऊपर आ गया और नीचे दे खने लगा। 10 समनट तक ररि टीवी दे खता रहा। फफर उसने बेडरूम
का दरवाजा नाक फकया।
दीदी ने फौरन दरवाजा खोल हदया और ररि ने खींचकर दीदी को बाूँहों में ले सलया। ररि दीदी के नरम होंठों का
रस पीने लगा।
ररि ने दीदी को गोद में उठा सलया और दोनों कमरे में चले गए फफर उनहोंने दरवाजा अनदर से बंद कर सलया।
मैं वापस बबस्तर पर आकर लेट गया और सोचने लगा की मैंने बड़ी गलती की। दीदी तो परी चुदासी है अगर
मैंने कोसिि की होती तो इस समय ररि के बदले मैं ही उनकी जवानी का रस पी रहा होता। पर जो भी फकया
अब मझ ु े ररि से बहुत जलन हो रही थी की उसने मेरी कूँु वारी बड़ी बहन को चोद डाला था। मझ ु े लगा की अगर
दीदी को फकसी से चद ु ना ही था तो मझ
ु से क्ट्यों नहीं? अगर मैंने हहम्मत की होती तो जैसे वो आज ररि का
साथ दे रही है, वैसे ही मेरा भी तो दे सकती थी। यही सब सोचते हुए मैं कब सो गया मझ
ु े पता ही नहीं चला।
अचानक मेरी नींद खुली और मैंने घड़ी की तरफ दे खा रात के 3:00 बजे थे। मेरे बगल का बेड खाली पड़ा था
मतलब ररि को दीदी के साथ कमरे में घस
ु े 5 घंटे से ज्यादा हो गए थे पर वो बाहर नहीं आया था। मझ
ु े लगा
की वो नीचे हो सो गया था।
मैं घीरे से नीचे गया। कमरे का दरवाजा अनदर से बंद था और खखड़की पर पदाफ पड़ा हुआ था। मैं अनदर दे खने
का रास्ता ढूँ ढ़ने लगा।
पर तभी मझ
ु े दीदी की आवाज सन
ु ाई दी- “आह्ह… ददफ होता है । छोड़ो भी अब। तम्
ु हारा मन नहीं भरता क्ट्या?
आह्ह… इस्स्स…”
रश्मम- नहीं आह्ह… अब फफर से पीछे आअह्ह… नहीं ओह्ह्ह इस्ह… अभी भी ददफ हो रहा है आअह्ह्ह… ररिऊऊ
नहीं आअह्ह… आगे डालो ना आह्ह…”
62
ररि- जान जो मजा तम्
ु हारी गाण्ड में है वो चत में नहीं है । चत भी मारूंगा पर गाण्ड मारने के बाद। अभी तो
बहुत टाइम है अपने पास।
रश्मम दीदी ये सन
ु कर हूँसते हुए बोली- “अरे क्ट्या? आह्ह… सोने नहीं दोगे क्ट्या मझ
ु ?
े आह्ह… ओऊ… 3:00 तो
बज गए है आह्ह… सब ु ह 7-8 बजे तक जागना होगा ऊओह्ह… आअह्ह…”
मैंने फौरन एक स्टल सलया और दरवाजे के पास िीरे से रखकर उसके ऊपर खड़ा हो गया। दरवाजे के ऊपर
रोिनदान से अब मैं अनदर दे खने लगा। कमरे में जीरो वाट का बल्ब जल रहा था और उसकी लाल रोिनी में
मैंने दे खा की ररि बेड पर बैठा था और उसने दीदी को अपने आगोि में ले रखा था और उनके मम्मे नोंच रहा
था। दोनों के िरीर पर एक सत का िागा भी नहीं था।
ररि ने दीदी से कहा- “अब जल्दी से अपनी गाण्ड दे दो मेरी जान, वरना तम्
ु हारा रे प कर दं गा…”
दीदी ममु कुराते हुए बोली- “तो करो न रे प… कब से इच्छा थी की कोई मेरा रे प करे …”
ररि बोला- अच्छा तो चल आज तेरी ये इच्छा भी परी कर दे ता हूँ। हरामजादी कुनतया, श्जस गाण्ड को मटका
मटकाकर त दनु नयां की झांटें जलाती है आज उसी गाण्ड में लण्ड पेलकर तेरा घमंड तोडग ं ा रं डी। बहुत अकड़
हदखाती थी न… दे खा कैसे तेरी बरु का मैंने भोसड़ा बना हदया। अब तेरी गाण्ड से तेरी बची हुई अकड़ ननकालूँ गा।
रश्मम दीदी को गसलयां सनु कर बहुत मजा आने लगा। उनहें लगा की सच में ररि उनके रे प करने वाला है । वो
भी रोल-प्ले में उसका साथ दे ने लगी।
दीदी को थप्पड़ पड़ने से बहुत ददफ हुआ और वो बोली- “आह्ह… अरे ररि क्ट्या कर रहे हो?”
ररि- “तम्
ु हीं तो कह रही थी जान तम्
ु हारा रे प करने को। रे प कोई प्यार से थोड़ी फकया जाता होगा?” ररि
ममु कुराते हुए बोला।
ररि- “अब टाइम मत वेस्ट करो मेरी जान। जल्दी से गाण्ड ऊपर कर दो। वरना रात भर सोने नहीं दं गा…”
63
रश्मम दीदी अब समझ गई की ररि को मना करने का कोई फायदा नहीं। वो उनकी गाण्ड में अपना लण्ड पेले
बबना मानेगा नहीं। ये सोचकर दीदी ने अपनी गाण्ड ऊपर उठा दी और दोनों हाथों से तफकये को पकड़कर उसमें
अपना मूँह
ु दबा हदया। अपनी आूँखें बंद करके वो अपनी गाण्ड पर होने वाले जल्
ु म के सलए तैयार हो गई। ररि
ने दीदी की गाण्ड को थोड़ा और ऊपर उठाकर उनकी टांगें थोड़ा और खोल दी और उनके चतरों को मसलने
लगा। फफर उसने अपना लण्ड छड़ी की तरह दीदी की चत और गाण्ड पर मारना िरू
ु फकया।
दीदी ने ददफ की उम्मीद में अपने होंठों को अपने दांतों से काट सलया। थोड़ी दे र पहले मझ
ु े अफसोस हो रहा था
की मैं सो क्ट्यों गया, और दीदी की गाण्ड चद
ु ाई नहीं दे ख पाया। अब मेरा अफसोस गायब हो गया और उसकी
जगह उत्तेजना ने ले ली। अब मैं बेसब्री से इंतजार कर रहा था की ररि अपना हलब्बी लण्ड दीदी की गाण्ड के
छल्ले के पार कर दे ।
ररि ने दीदी के चतरों को पकड़कर फैलाया और अपना लण्ड दीदी की गाण्ड के छे द पर रख हदया। मेरा हदल
िक़् िक़् करने लगा और तो दीदी का क्ट्या हाल होगा? ररि ने दीदी की गाण्ड के छे द को फैलाते हुए अपना
लण्ड उनकी गाण्ड में ठं स हदया।
दीदी का मूँह
ु तफकया से दबा होने के बावजद उनके मूँह
ु से एक चीख ननकल गई- “उईई माूँ मरफ गईई…”
ररि ने अगले िक्ट्के के साथ ही अपने लण्ड को जड़ तक दीदी की गाण्ड में पेल हदया। दीदी का िरीर कांपने
लगा। ररि फफर से रे प वाले मड में आकर दीदी के बाल पकड़कर बोला- “बोल साली रं डी। हदखाएगी फफर से मझ
ु े
नखरे … हरामजादी, भोसड़ी वाली… कुनतया…” दीदी को गासलयां दे ने के साथ ही उसके िक्ट्कों का जोर बढ़ता जा
रहा था।
िरू
ु में तो दीदी के मूँह
ु से केवल चीखें ही ननकल रही थी पर िीरे -िीरे उनको भी मजा आने लगा। अब ररि ने
अपनी तीन उं गसलयां गचाक से दीदी के चत में पेल दी और उनकी गाण्ड में िक्ट्कों की स्पीड और बढ़ा दी। दीदी
के एक छे द में ररि की उं गसलयां और दसरे छे द में लण्ड अनदर-बाहर हो रहे थे। एक साथ दोनों छे द में ररि को
पाकर दीदी परी तरह मदमस्त हो गई और झड़ने लगी। ररि भी अब कगार पर था तो उसने अपने िक्ट्कों की
रफ़्फ़्तार और बढ़ा दी और दीदी की गाण्ड में ही झड़ गया।
64
ररि- रुको… मैं भी चलता हूँ। तम्
ु हें मतते दे खना मझ
ु े बहुत अच्छा लगता है ।
मैं समझ गया की दोनों बाहर आने वाले हैं तो मैं जल्दी से ऊपर आ गया और अपने कमरे में आकर लेट गया।
पर मेरी आूँखों में नींद नहीं थी।
करीब आिे घंटे बाद ररि भी कमरे में आया और मझ ु े जगा हुआ दे खकर बोला- “क्ट्यों बे गानड, सोया नहीं? हाूँ
वैसे भी श्जसकी बहन चदु रही हो उसे नींद कहां आती है । हा हा हा…”
ररि मेरा मजाक उड़ाता हुआ बोला- “पर एक बात तो है , मैंने आज तक श्जतनी भी लड़फकयां चोदी है रश्मम को
चोदने का मजा सबसे ज्यादा है । क्ट्या झटके दे ती है चद
ु ते हुए। तीन बार चत मारी और दो बार तेरी बहन की
कोरी गाण्ड… पर अभी भी इच्छा हो रही है की फफर से चट्टान पर रख चोद दं साली को…”
अब मेरे मूँह
ु से ननकल गया- “5 बार फकया तम
ु ने। सब
ु ह भी तो 3 बार फकया था। कैसे?”
ररि- “अबे दवाई खाई थी मैंने। आखखर मेरे यार की बहन है , पहली चद
ु ाई िमाकेदार होनी ही चाहहए थी। अब
सो जा और मझ
ु े भी सोने दे । बहुत थक गया हूँ…”
अगले हदन भी ररि ने दीदी को खब चोदा और उसके बाद जब भी उसे मौका समलता वो दीदी को अपने घर
लेजाकर या मेरे घर आकर चोदता था। जब घर पर कोई नहीं होता तो दीदी खुद उसे फोन करके बल
ु ा लेती थी
और घंटों चद
ु वाती थी। ररि जब भी दीदी को चोदता मझ
ु े परी चद
ु ाई डडटे ल में जरूर बताता, पर दीदी मेरे सामने
िरीफ बनी रहती थी।
मैंने कासमनी आंटी को एक दो बार चोदने का प्लान बनाया, पर कुछ हो पाता उससे पहले की ररि के पापा
अपनी पररवार को भी अपने साथ हदल्ली ले गए। मेरे अरमान हदल में ही रह गए, पर मझ
ु े लगा की चलो ररि
अब दीदी को नहीं चोद पायेगा।
मझ
ु े अब ररि से धचढ़ होती जा रही थी। उिर दीदी ने अब मझ
ु से बात करना काफी कम कर हदया था, िायद
इसकी एक वजह ये थी की वो समझ गई थी मेरी नजरों में उनके सलए फकफ आ गया है । इससलए मझ
ु े दीदी की
तरफ से भी कोई ऐसा मौका नहीं समला श्जसका मैं फायदा उठाता। दीदी हदन रात ररि के ख्याल में ही खोई
रहती थी।
65
ऐसे में एक हदन मम्मी ने मझ
ु े बल
ु ाया और कहा- “तेरी मौसी का फोन आया था, इस बार तेरे कश्जनस राखी पर
नहीं आएंग…
े ”
“हर साल तो वही लोग आते हैं मम्मी, क्ट्यों न इस बार मैं दीदी को लेकर वहां चला जाऊूँ?” मैंने तरु ं त मम्मी से
कहा। मझ
ु े लगा की जब हम यहाूँ नहीं होंगे तो ररि लण्ड हहलाता वापस चला जायेगा।
मम्मी ने पैसे दे कर मझ
ु े बोला जाकर रे न के हटकेट बक
ु करवा लाओ और मैं ररजवेिन करवाने चला गया। राखी
से एक हदन पहले की हटकेट आराम से समल गई और जब मैं लौट कर आया तब तक दीदी को भी मम्मी ने
बता हदया था। अब दीदी को तो पता नहीं था की उनका यार उनको चोदने के सलए उसी समय यहाूँ आने वाला
था, तो वो आराम से जाने के सलए तैयार हो गई। रे न में बैठते ही दीदी मझ
ु से पहले की तरह ही बातें करने
लगी और मझ
ु े लगा की हमारे लौटने तक सब नामफल हो जायेगा। सफर अच्छा रहा और हम रात होने से पहले
मौसी की कोठी पर पहुूँच गए।
जब हमने बेल बजाई तो मौसी का कुत्ता राकी हमारे स्वागत के सलए भौंकता हुआ बाहर आया। दीदी को राकी से
बहुत डर लगता था। राकी एक हट्टा-कट्टा जमफन िेफडफ था। वैसे दीदी को सभी कुत्तों से डर लगता था पर राकी
से वो कुछ ज्यादा ही डरती थी। तब तक मनीर् भी बाहर आ गया।
मैं आपको बता दं की मेरी मौसेरी बहन का नाम मोननका है । और उसकी भी उम्र 19 साल है और मेरा कश्जन
मनीर् उससे एक साल बड़ा है पर मेरी उससे अच्छी बनती है । हम दोस्तों की तरह ही रहते हैं। मेरे मौसी और
मौसा दोनों डाक्ट्टर हैं, और िहर का सबसे बड़ा नससिंग होम चलाते हैं। कुल समलाकर अच्छे पैसे वाले लोग हैं।
पर रश्मम दीदी बोली- “पहले राकी को बांि दो फफर मैं अनदर आऊूँगी…”
मनीर् हूँसते हुए राकी को पकड़कर अनदर ले गया और हम पीछे -पीछे अनदर आ गए। अनदर आकर हमने दे खा
की घर पर और कोई नहीं था। तब मनीर् ने बताया की मौसी, मौसा और मोननका हमारे मामा के घर चले गए
हैं, और घर पर केवल मनीर् ही है ।
66
फफर हम मनीर् के साथ डडनर करने चले गए और वापस आते आते 10:00 बज गया और रश्मम मोननका के
रूम में सोने चली गई और मैं मनीर् के रूम में उसके साथ सोने आ गया। मनीर् मझ
ु से बोला- “यार आज घर
पर कोई था नहीं, इसीसलए एक दोस्त से ब्ल-फफल्म लेकर आया था। दे खेगा?”
मैंने कहा- “पर अगर टीवी रूम में रममी दीदी आ गई तो?”
मनीर् बोला- यहीं रूम में कंप्यटर पर लगा लेते हैं…” और हम ब्ल-फफल्म दे खने लगे और उसने अलमारी से
श्हहस्की की बोतल ननकाली और बोला- “आज ऐि करवाता हूँ तझ
ु …
े ” और दो लाजफ पेग बना हदए।
मैंने इससे पहले बबयर ही पी थी, ये पहली बार मैं श्हहस्की पी रहा था और हम दोनों भाई पीते-पीते ब्ल-फफल्म
का मजा ले रहे थे। पर दोस्तों हर ब्ल-फफल्म की हीरोइन में मझ
ु े रश्मम दीदी नजर आ रही थी और उसको चोदने
वाला हर आदमी ररि। दे र रात तक हम पीते रहे, हमें काफी चढ़ भी गई थी और हम काफी गरम भी हो गए
थे।
मनीर्- “कहां यार, कुछ हदनों पहले एक दोस्त का घर कुछ हदनों के सलए खाली था तो उसने एक रात को रं डी
बल
ु ाई थी, तब हम दोनों ने उसको चोदा था। उसके बाद कभी मौका नहीं समला। गलफफ्रेंड है तो मगर ज्यादा कुछ
करने नहीं दे ती। उस रं डी की उम्र 35-38 साल की होगी फफर भी बहुत मजा आया था। सोचता हूँ कोई 18-20
साल का कड़क माल हो तो लेने में फकतना मजा आयेगा…”
मनीर्- यार लौंडडया तो यहीं है और बहुत करारी भी, मेरा तो बहुत हदनों से हदल है उसपर अगर तम
ु कहो तो मैं
उसको चोद लूँ ।
मोन- “अब इस वक़्त लौंडडया? मैं कहूँ तो चोदे गा मतलब? फकसकी बात कर रहा है ?”
67
मझ
ु े ये सन
ु कर बहुत गस्
ु सा आया की साला परी दनु नयां को चोदने के सलए मेरी ही बहन नजर आती है । मैंने तो
अभी तक उनको चोदा नहीं और ये साला पहले दीदी को चोद ले।
पर मैं उसके सामने खुलना नहीं चाहता था इसीसलए बोला- “या तो तम्ु हें ज्यादा चढ़ गई है या तम
ु बहुत बड़े
कमीने हो। साले बहन पर ऐसी नजर रखते हो? अगर मैं तम ु से कहूँ की मैं मोननका को चोदना चाहता हूँ तो
तम्
ु हें कैसा लगेगा? तम
ु को ज्यादा चढ़ गई है इसीसलए मैं तम
ु को माफ कर दे ता हूँ। अगर ये बात तम
ु ने होि में
की होती तो तम्
ु हें बहुत मारता…”
अनदर ही अनदर मेरे मन में आया की बेटा मेरी बहन तो चुद भी चुकी और क्ट्या पता तेरी बहन ने भी फकतने
लण्ड लीले होंगे। सबको लगता है की हमारी बहन तो बहुत भोली है पर जब से दीदी को ररि से चद
ु वाते दे खा
तब पता चला की हर जवान लड़की की जरूरत लण्ड है ।
मोन- मझ
ु े नहीं दे खनी यार कोई फफल्म। दीदी नहीं मानेगी।
मनीर् को क्ट्या पता था की मैं अपनी सगी बहन की लाइव ब्ल-फफल्म दे ख चुका हूँ और उससे ज्यादा दीदी को
चोदने को मरा जा रहा हूँ। कुछ श्हहस्की का असर कुछ मनीर् की बातों का मेरा लण्ड एकदम लोहे के राड की
तरह खड़ा हो गया। इसी निे में जब मेरे मूँह
ु से ननकला की दीदी नहीं मानेगी तो मनीर् समझ गया की मैं मान
गया हूँ।
मनीर् ने इसको महसस फकया और आग में घी डालते हुए बोला- “सोचो ऐसा सन ु ह
े रा मौका दब
ु ारा नहीं समलेगा
जब रश्मम और हम दोनों के ससवा घर में कोई नहीं है । अगर आज मैंने रममी को चोद सलया तो तम ु से भी चदु वा
दं गा। फफर श्जंदगी भर के सलए तम्
ु हारे सलए फ्री की चत का जुगाड़ हो जायेगा। कसम से कह रहा हूँ की अगर
ऐसा मौका मझ
ु े मोननका के साथ समलता तो परी रात नंगी करके चोदता और तम
ु से भी चुदवाता…”
मैंने सोचा फक ये कह तो सही रहा है और ररि ने कैसे बेददी से दीदी को चोदा था, पर फफर भी वो उससे
चुदवाने दौड़ी-दौड़ी जाती है । पर मैंने मनीर् से कहा- “दीदी ने अगर घर पर बोल हदया तो?”
68
मनीर् मझ
ु े तैयार होता दे खकर खुि हो गया और बोला- “यार तम
ु मेरे साथ तो चलो और मैं जो बोलं वो करते
रहना बस…”
मनीर् बोला- “यार डरो मत मेरे साथ आओ…” फफर वो मोननका के रूम की तरफ चला गया और मैं भी हहम्मत
करके उसके पीछे चल हदया।
दीदी ने रूम अनदर से लाक कर रखा था पर मनीर् के पास लाक की दसरी चाभी थी और उसने रूम का
दरवाजा खोला और हम दोनों अनदर आ गए। अनदर अूँिेरा था। मनीर् ने नाईट लैंप आन फकया। हल्की पीली
रोिनी कमरे में फैल गई। रश्मम दीदी बेड पर गहरी नींद में सो रही थी और उनहोंने मोननका की नाइटी पहनी
थी और वो बहुत सेक्ट्सी लग रही थी। मनीर् दीदी को हवस की नजरों से दे ख रहा था। उनके मम्मे जो ररि ने
दबा-दबाकर बड़े कर हदए थे एकदम कच्चे आम की तरह उभरे हुए थे।
अब रश्मम दीदी की गल
ु ाबी चत हमारी आूँखों के सामने थी। दीदी की चत को इतने पास से दे खकर एसी कमरे
में भी मेरा बदन गमी से जलने लगा। रश्मम दीदी की चत पावरोटी की तरह फली हुई थी और उसपर बहुत
हल्के-हल्के काले बाल थे। दीदी को िेव फकये 1-2 हदन ही हुए होंगे।
फफर मनीर् ने िीरे से नाइटी को भी बीच से काट हदया। दीदी ने सफेद कलर की ब्रा पहनी थी और उनका
धचकना पेट, नासभ, चत अब हमारे सामने नंगी थी। अब मनीर् से कण्रोल नहीं हुआ और उसने ब्रा के ऊपर से
ही रश्मम दीदी की चची को दबा हदया।
दीदी फौरन जाग गई और अपनी हालत और हम दोनों को कमरे में दे खकर चफकत हो गई। उसने मनीर् को
िक्ट्का हदया और बेड से खड़ी होकर गस्
ु से से बोली- “ये क्ट्या कर रहे हो तम
ु मनीर्? और मोन तम
ु खड़े होकर
दे ख रहे हो। मैं तम्
ु हारी बड़ी बहन हूँ…”
मझ
ु े समझ में नहीं आया की क्ट्या कहं ?
पर तभी मनीर् बोला- “रश्मम आज हम एक नया अटट ररमता बनायेंगे जो की दनु नयां का सबसे परु ाना ररमता है ।
आदमी और औरत के श्जमम का ररमता…”
मनीर्- तम्
ु हें चोदना चाहते हैं बहना।
मझ
ु े याद आ गया की दीदी पहले ररि से भी ऐसे ही कह रही थी पर बाद में मजे ले लेकर चुदवा रही थी।
दीदी समझ गई की अब हम नहीं मानेगे तो वो रूम से बाहर भागने लगी। तब मैंने उनको पकड़ सलया और
बोला- “दे खो दीदी हमारे साथ कोआपरे ट करो ताकी तीनों को ही मजा आये…”
पर वो नहीं मानी और छटने के सलए ताकत लगाने लगी। तब तक मनीर् परा नंगा हो चक
ु ा था और उसने रश्मम
दीदी की पैंटी दीदी के ही मह
ूँु में ठं स दी और नाइटी फाड़कर उसके हाथ बांि हदए। अब मेरी प्यारी बहना परी
तरह से उसके काब में आ गई थी।
फफर मनीर् ने दीदी की ब्रा भी फाड़ दी और उनको मादरजात नंगा कर हदया और पलंग पर पटक हदया। अब
मनीर् दीदी के मम्मे चसने लगा और मैं महीनों का प्यासा उनकी चत चाटने लगा। क्ट्या बताऊूँ आप लोगों को
उनकी चत का स्वाद। बस जननत का मजा आ गया। करीब 10 समनट तक चाटने के बाद दीदी ने पानी छोड़
हदया, और मैंने उसे परा पी सलया। अब मझ
ु से बदाफमत नहीं हो रहा था मेरा बहुत परु ाना ख्वाब अब परा होने
वाला था। मैंने अपना लण्ड दीदी की चत से रगड़ना िरूु फकया।
मैंने कहा- “मेरी सगी बहन है मेरा हक पहला है …” यह बोलकर मैंने रश्मम दीदी की एक टांग उठाकर अपने कंिे
पर रखी और अपना सप
ु ाड़ा उनकी चत पर लगाकर एक जोर का िाट लगाया। रश्मम दीदी मचल उठी और मेरा
लण्ड उसकी चत के अनदर चला गया। दोस्तों मझ ु े पवमवास नहीं हुआ की मेरा सबसे बड़ा ख्वाब आज परा हो
गया। मैंने मन ही मन मनीर् का िफु रया अदा फकया।
मेरी बात सन
ु ते ही दीदी समझ गई की उनकी िराफत के नाटक का पदाफफाि हो चुका है और उनहोंने अपना
िरीर ढीला छोड़ हदया। वो समझ चक
ु ी थी की मैं उनके और ररि के बारे में सब जानता हूँ। मझ
ु े लगा की अब
दीदी ने मझ
ु े स्वीकृनत दे दी है की जो करना हो करो तो मैंने उनके मूँह
ु से पैंटी बाहर ननकाल दी।
70
दीदी के मूँह
ु से एक हल्की सी सीत्कार ननकली- “उफ्फ्फ्फ आह्ह…”
अब मैं बेड पर लेट गया और मनीर् ने पोजीिन ले ली। मनीर् का लण्ड करीब 6” इंच का था पर काफी मोटा
था, फफर भी दीदी ने आराम से ले सलया। दीदी िीरे -िीरे ‘आह्ह… आह्ह…’ की आवाज ननकाल रही थी। 15 समनट
बाद िक्ट्के लगाने के बाद मनीर् भी झड़ गया। अब हम तीनों बेड पर चुपचाप लेट गए।
मैंने कहा- “यार क्ट्या कर रहे हो? जल्दी से दीदी को साफ करो। अभी तो कायदे से चोदना है दीदी को। हदल
नहीं भरा…”
तब मनीर् ने िावर खोला और दीदी को आराम से नीचे बैठाकर गमफ पानी से चत साफ करने लगा।
मनीर्- “अरे रश्मम, तेरी चत तो ऐसी थी फक उं गली जाने से भी ददफ करती। अब लौड़ा गया है तो थोड़ा तो
दख
ु ेगा ही। पर तझ
ु े अबकी बार ज्यादा मजा आएगा। दे ख लेना…”
मनीर्- “अरे तेरी जवानी तो ऐसी है फक लण्ड अपने आप इसे सलामी दे ने लगता है । पहली बार तो सब
जल्दबाजी में हुआ, तो ठीक से मैं तम्
ु हारे इन रसीले होंठों का मजा नहीं ले पाया। इन कच्चे आमों का रस नहीं
पी पाया। अब सक ु न से इनको चसकर मजा लूँ गा। तेरी महकती चत को चाटकर उसकी सजन कम करूूँगा…”
मनीर् की बातों से दीदी भी अब उत्तेश्जत होने लगी थी। वो बोली- “तो मैंने भी कहाूँ मजा सलया। तम
ु लोगों ने
मझ
ु े बाूँि जो हदया था। चलो बेडरूम में चलो…”
मनीर् ने फफर से दीदी को गोद में उठाया और हम वापस बेडरूम में आ गए। बेडरूम में आते ही मनीर् ने दीदी
को पलंग पर सलटा हदया और 69 की पोजीिन में आकर उनकी चत के होठों को कुरे दने लगा। अब रश्मम दीदी
के सलए भी खुद को संभालना मश्ु मकल हो चला था, और वो भी खुलकर चद
ु ाई के मड में आ गई और मेरे लण्ड
को चाटने लगी। उनहें हदक्ट्कत न हो इससलये मैं भी ससर दसरी तरफ करके लेट गया और मनीर् को दे खने
लगा।
रश्मम दीदी को इतना मजा आने लगा फक वो मस्ती में कराहती हुई और जोरों से मेरा लण्ड चसने लगी।
अचानक उनहोंने उत्तेजनावि मेरा लण्ड छोड़ हदया और मनीर् का लण्ड चसने लगी। मनीर् का लण्ड दीदी के
गल
ु ाबी होंठों के बीच फकसी मोटे बैगन सा नजर आ रहा था।
जैसे मनीर् की जीभ दीदी की चत में गहरी जाने लगी, वैसे ही रश्मम दीदी हम दोनों के लण्ड इकट्ठे मूँह
ु के
अनदर लेने की कोसिि करने लगी। लेफकन दोनों भाइयों के लण्ड दीदी के छोटे से मूँह
ु में नहीं समा पा रहे थे।
आखखर थक कर रश्मम दीदी ने इिारे से बताया फक अब उनहें चत में लण्ड डलवाना है और मनीर् बबस्तर से
उतरकर लण्ड पकड़कर नीचे खड़ा हो गया और हम दोनों ने समलकर अपनी बहन को कमर के बल लेटा हदया।
अब मनीर् उनकी हदलकि चत को सहलाने लगा और मैं िानदार चधचयां। रश्मम दीदी से सहन नहीं हुआ और
वह मनीर् का तना हुआ लण्ड पकड़कर अपनी चत से रगड़ने लगी। मनीर् आननद के अनतरे क से फटा जा रहा
था और उसने लण्ड को दीदी की गल
ु ाबी चत के मूँह
ु पर रखकर ननिाना लगा सलया।
मझ
ु े ये दे खते हुए इस समय अलौफकक आननद की अनभ ु नत हो रही थी। सच अपनी बहन को चद
ु ते दे खने का
सखु खद ु चोदने से कम नहीं है , श्जनहोंने दे खा है वो लोग जानते ही हैं।
मनीर् भी दीदी के होंठ चसने लगा। मैं इस समय अपने मौसेरे भाई से चत चुदाती हुई मेरी नछनाल दीदी के मूँह
ु
को चोदने में लगा था। मैं बीच-बीच में उनके चतड़ सहलाता हुआ उनकी चत के दाने को सहला रहा था और मेरे
हाथ से रगड़ खाता मनीर् का लण्ड मेरी बहन की चत का बाजा बजा रहा था।
मनीर् अचानक उतावला हो उठा और उसने झटके के साथ रश्मम दीदी की चत से अपना सप
ु ाड़ा बाहर ननकालकर
परा का परा अनदर घस
ु ेड़ हदया
“आआआ… मर गई। आई… तने मेरी चत फाड़ दी। ओए… आआऽऽ हाूँ ऐसे ठीक है । थोड़ा िीरे मारो। ऊऊऊओ…
हाूँ ऐसे…” चत पर हुए अचानक हमले से मेरी बहन रोआंसी सी हो आई।
लेफकन मनीर् ने खद
ु को सूँभालते हुए िीरे िक्ट्कों के साथ चदु ाई जारी रखते हुए श्स्थनत को संभाल सलया। अब
वो बबना जल्दी फकए िीरे -िीरे मेरी दीदी की नमफ-गलु ाबी चत को चोदने लगा और मेरी रश्मम दीदी वासना के सख ु
सागर में गोते लगाने लगी, उनके मख
ु से तेज सससकाररयां ननकलने लगी और उनकी मख
ु -मद्र
ु ा बता रही थी फक
उसके सख
ु की कोई सीमा नहीं थी
बैंगन जैसा मोटा और लोहे की राड जैसा सख्त मनीर् का लण्ड दीदी की अूँिेरी सरु ं ग की गहराइयों को नापने
लगा, जो खुद भी अपनी जीभ से उसे गमफजोिी से जवाब दे रही थी। वासना से कामांि होकर दोनों एक दसरे
को बरु ी तरह चाटने लगे। इस दौरान चद
ु ाई की स्पीड हर िक्ट्के के साथ बढ़ती जा रही थी और दीदी के गले से
ननकलने वाली आवाज हर िक्ट्के के साथ तेज होती जा रही थी।
रश्मम- ““ओए… आआ… हाूँ ऐसे ही… और जोर से। चलो चोदो जोर से… और थोड़ा जोर से… ओओओ… हाूँ ऐसे ही…
हाय फकतना मजा आया इस बार। हाय ऐसे ही चोदो ना फफर से… अपनी परी जीभ डाल दो मेरे मूँह
ु में…” मेरी
बहन ने बबना फकसी िमो-हया के मनीर् की जीभ को चसना िरू
ु कर हदया।
मनीर् मझ
ु े आमचयफचफकत करते हुए परी तरह से श्स्थनत को काब में करके बहुत मंझे हुए खखलाड़ी की तरह
अपनी मौसेरी बहन की नमफ-गल
ु ाबी चत को चोदे जा रहा था। उसका 6” इंच लम्बा फकसी कलाई जैसा मोटा लण्ड
मस्ती के साथ रश्मम दीदी की धचपधचपी हो चुकी चत में अनदर-बाहर हो रहा था।
दीदी आननद में डबकर छटपटा रही थी और फकसी जानवर जैसी आवाजें ननकाल रही थी और मनीर् के साथ
चुम्बन में हयस्त थी- “आआ… जरा और जोर से चोदो मझ
ु …
े हाय फकतना मजा आ रहा है… थोड़ा रगड़कर चोदो
जरा… फाड़ दो मेरी चत को। ओए मस्त मस्त… हाय फकतना मोटा लण्ड है तम्
ु हारा, बबल्कुल गिे के लण्ड जैसा…
हाय फकतना धचपधचपा हो गया है अनदर तो… लेफकन फकतना मस्त…” वासना में दीदी डब उतरा रही थी।
73
कुछ समनटों बाद अचानक मनीर् ने अपना लण्ड दीदी की चत से बाहर ननकाल सलया और दोनों अलग हो गए।
चुदासी दीदी ने अब मेरे लण्ड की तरफ दे खा। उनहोंने अपनी नमफ-गल
ु ाबी जीभ से मेरे लण्ड को चुभलाना िरू
ु कर
हदया और मैं जननत में पहुूँच गया।
उिर मनीर् जो अपना मसल लण्ड दीदी की गोरी गाण्ड के छे द से सभड़ाने में लगा हुआ था उसने अचानक एक
झटका मारकर लण्ड का सप
ु ाड़ा दीदी की गाण्ड के अनदर सरका हदया।
रश्मम- “आआह्ह… आआ… ओए… हाय फकतना ददफ हो गया… ननकाल ले, उई माूँ। बहनचोद तने तो मेरी गाण्ड भी
फाड़ डाली…” रश्मम दीदी अचानक मनीर् का सप
ु ाड़ा गाण्ड में जाने से हुए ददफ से धचल्लाने लगी- “ऊऊऊ… ननकाल
ले बाहर… मैं कह रही हूँ कुत्ते…”
थोड़ी दे र में रश्मम दीदी नामफल हो गई और िक्ट्कों में मनीर् का साथ दे ते हुए कहने लगी- “आऽऽ हे भगवान ़्…
फकतना ददफ हुआ था। बोलना तो चाहहए पहले। तने तो जैसे जलती हुई राड ही मेरी गाण्ड में घस ु ेड़ दी। भयानक
ददफ हुआ। उफ्फ… फकतना डरावना लण्ड है तम्
ु हारा। मझ
ु े तो ऐसा लगा मानो मेरी गाण्ड ही चीर दी हो। जा मोन
जरा तेल या रीम ले आ जल्दी से…”
मैं जल्दी से तेल आ गया। दीदी ने डडब्बे से थोड़ा तेल ननकालकर मनीर् के लण्ड को तर कर हदया और थोड़ा
तेल उसने अपनी गाण्ड पर मल हदया और बोली- “हाूँ भैया अब लगाओ िक्ट्का…”
इस बार जब मनीर् के गाण्ड पर हल्का सा दबाव लगाते ही उसका मसल लण्ड फफसलता हुआ रश्मम दीदी फक
गाण्ड में सरक गया और आसानी के साथ अनदर-बाहर होने लगा।
दीदी की इच्छा सन
ु कर मैं सातवें आसमान पर पहुूँच गया और एक आज्ञाकारी भाई की तरह दीदी के नीचे लेट
गया और ररि के लण्ड से भोसड़ा बन चुकी दीदी की प्यारी चत को चोदने लगा और मनीर् मेरी प्यारी सी दीदी
की गल
ु ाबी गाण्ड का कचमर ननकालने लगा।
जबकी मैं स्वयं भी ऐसा िानदार नजारा दे खकर उत्तेजना से फटा जा रहा था। आज मेरा दसरा सपना भी परा हो
रहा था। पहला दीदी को चोदना और दसरा 2-इन-1, मैं हमेिा से रश्मम दीदी के साथ डबल पेनेरेिन करना
चाहता था, और आज मेरी इच्छा परी ही रही थी।
74
पहले तो मनीर् िीरे -िीरे िक्ट्के लगाता हुआ मेरी दीदी की गाण्ड को रवां करता रहा और थोड़ी दे र बाद उसने
अपने िक्ट्कों में तेजी लाते हुए िुआि
ं ार रफ़्फ़्तार से मेरी कमससन बहन की गाण्ड कुटाई चाल कर दी। इस समय
मेरे लण्ड को रश्मम दीदी की चत के अनदर भी मनीर् के लण्ड का साफ एहसास हो रहा था और उसके लण्ड के
भरपर िक्ट्कों की चोट मेरे लण्ड को भी खब महसस हो रही थी।
फफर मनीर् लगातार अपने िक्ट्कों की रफ़्फ़्तार बढ़ता जा रहा था और रश्मम दीदी की चत में श्स्थत मेरे लण्ड को
उसकी गाण्ड में होने वाली कुटाई साफ महसस हो रही थी। वास्तव में तो मनीर् का लण्ड रश्मम दीदी की गाण्ड
मार रहा था, लेफकन चत में घस
ु े मेरे लण्ड को भी उसके भयानक नघस्से महसस हो रहे थे।
रश्मम- “आआआ… ओईई… और और और और तेज… आऽ ऊऊ… जोर से िक्ट्के मारो। आआआ… आईई… ऐसे ही
ऊऊऊ… आआआ… रगड़ के मारो मनीर्। आआईई… आह्ह… कैसी मस्ती आ गई। जैसे मजी चोदो मझ
ु े मनीर्,
और तम
ु भी मोन…”
हम दोनों भाइयों ने अपने औजार रश्मम दीदी की भट्हटयों से बाहर ननकाले और हमारी रानी बहना ने बबना दे र
फकये उनहें अपने दोनों हाथों की मट्
ु ठी में पकड़कर सहलाते हुए अपनी जीभ से उनकी मसाज करने लगी। हमारे
लण्ड परे तनाव के साथ खड़े हुए थे और उत्तेजना में झटके मार रहे थे।
हमारी बहन ने पहले बारी-बारी से दोनों लनडों को चसना आरं भ फकया, और फफर इकट्ठे ही मूँह
ु में डालने की
कोसिि करने लगी और वो इसमें कामयाब भी होने लगी थी।
मैं- “मझ
ु े लगता है फक हमारी प्यारी दीदी हमारे लौड़ों को एक साथ अपने सबसे छोटे छे द में भी ले सकती है …”
मेरे इतना कहते ही एक पल को तो सननाटा छा गया, लेफकन अगले ही पल मेरी बहन ने इस चैलेंज को
स्वीकार करते हुए ममु कुराहट के साथ अपना ससर हहलाकर सहमनत जताई। पहले मैंने रश्मम दीदी के नीचे से
ननकलकर मनीर् के सलए ज्यादा स्पेस बनाया, श्जससे की वो ज्यादा आजाद होकर अपने लण्ड को दीदी के
चतड़ों में पेल सके।
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मेरा सोचना बबल्कुल सही था और मेरे हटते ही मनीर् ने िहं िाही अंदाज में अपने रुस्तम लण्ड को मेरी दीदी के
चतड़ों में पेल हदया। सससकाररयां भरते हुए रश्मम दीदी ने अपने चतड़ श्स्थर रखते हुए मसल लण्ड के परा अनदर
घस
ु जाने का इंतजार फकया और फफर जब मनीर् ने हल्के-हल्के िक्ट्कों से िीरे -िीरे चोदना िरू
ु कर हदया तो मैंने
भी अपनी दीदी के चतड़ों के पीछे जाकर अपने लण्ड से दीदी की गाण्ड को कुरे दना िरू
ु फकया जो पहले से ही
मनीर् के लण्ड से परी तरह भरी थी।
काफी मिक्ट्कत के बाद आखखर मैंने भी अपने झटके मारते हुए लण्ड को मनीर् के लण्ड के समानतर रश्मम दीदी
की गाण्ड में घस
ु ेड़ हदया तो उनके मूँह
ु से एक गगनभेदी चीख ननकल गई। ददफ तो मझु े भी हुआ पर यह वाकई
गजब का अनभ
ु व था।
हम दोनों इस समय परे आवेि में आकर चोद रहे थे और दीदी की चीखें परे घर में गज
ं ने लगी थी। अब ये
मालम नहीं की ददफ से या मस्ती से।
25 समनट बरु ी तरह से दीदी की गाण्ड मारने के बाद हमने पोजीिन बदल दी और अब मनीर् ने कमर के बल
लेटते हुए दीदी की चत को अपने लण्ड पर पहना हदया और अपनी हथेसलयों को उसके ननतम्बों के नीचे रखकर
उसे ऊपर-नीचे झल ु ाने लगा।
तफान मेल की रफ़्फ़्तार िक्ट्के खाने पर मेरी बहन की चत से पानी के छीटें छट रहे थे और मैं अपने लण्ड को
हाथ में पकड़े हुए रश्मम दीदी की चत के सामने जगह बनाने लगा। कुछ कोसिि के बाद मैं भी अपने लण्ड को
दीदी की चत में फफट करने में कामयाब हो गया। और फफर जो चुदाई हमने िरू
ु की।
रश्मम दीदी ने अपना बायां पैर खम्भे की तरह आसमान में उठा हदया, और हम दोनों भाई जैसे 200 फकमी प्रनत
घंटा की रफ़्फ़्तार से अपने लनडों को दीदी की चत में पेलते गए।
रश्मम दीदी ने मरी हुई सी आवाज में अपनी हाहदफ क इच्छा का खुलासा कर हदया और मनीर् संग हम दोनों ने
उनको कसकर जकड़ सलया और ताबड़तोड़ िक्ट्के लगाने चाल कर हदए। हम दोनों ने उनकी गल ु ाबी चत को अपने
भयंकर िक्ट्कों से सख
ु फ लाल कर हदया था।
फफर अचानक मनीर् चीखने लगा और तेजी से िक्ट्के लगाता हुआ रश्मम दीदी की चत में अनदर गहरे उतरते हुए
उससे धचपक गया। अपने लण्ड पर मनीर् का गमफ वीयफ महसस होते ही उत्तेजना के चरम पर पहुूँचते हुए मैंने भी
फहवारा छोड़ हदया और खब माल ननकालते हुए रश्मम दीदी की दो लनडों से भरी हुई चत से धचपक गया।
76
हम करीब 5 समनट तक लनडों को रश्मम दीदी की चत में डाले हुए बदं -बद
ं झड़ते रहे । मेरे ख्याल से फकसी भी
हालत में आिा कप तो हम दोनों ने ननकाला ही होगा रश्मम दीदी की चत में ।
यह तो गजब हो गया।
हम दोनों ने न ससफफ दीदी की चत मारी, गाण्ड भी छे दी, फफर दो-दो लनडों को पहले गाण्ड में घस
ु ेड़ा, फफर भी
मन नहीं भरा तो चत में भी दो-दो लौड़ों को ठं सकर चद
ु ाई की। आज तो रश्मम दीदी ररि की चद
ु ाई को भी भल
गई होगी। मैंने खुद नहीं सोचा था की दीदी और हम इतना आगे बढ़ जायेंगे। ऐसा तो मैंने ब्ल-फफल्म में भी
नहीं दे खा था।
आिे घंटे हम वैसे ही पड़े रहे पर मनीर् का अभी मन नहीं भरा था। वो उठा और जाकर फकचेन से िहद ले
आया और रश्मम दीदी की चत में भर हदया और गाण्ड पर भी लगा हदया और चाटने लगा। दीदी पहले तो कुछ
बोली नहीं, पर 10 समनट बाद वो भी अब अपनी मस्ती में आ गई थी, मेरे लौड़े पर जीभ फेरने लगी। उनकी
चत फफर से लण्ड मांगने लगी थी।
दीदी- “बेहेनचोद अपनी बहन को चोद डाला और दीदी-दीदी करता है । खबरदार अगर चुदाई के वक़्त मझ
ु े दीदी
कहा तो?”
दीदी के मूँह
ु से गाली सनु कर न जाने क्ट्यों मझ
ु े बहुत अच्छा लगा। मैंने कहा- “वाह दीदी मजा आ गया तम्
ु हारे
मूँह
ु से ऐसी बात सन ु कर…”
रश्मम- “मोन, मझ
ु े पता चल चुका है की जो मजा नंगेपन में है , वो िराफात में नहीं। उफ्फ… तेरा ये गमफ लौड़ा
मझ ु े चसने में बहुत मजा आ रहा है । तम्
ु हारी ये बहन अब परी तरह तम ु दोनों की है । आ जाओ नोंच डालो मेरे
श्जमम को। कर दो मझ ु े अपने इस लौड़े से ठं डी। आह्ह… अब मेरा श्जमम जलने लगा है …”
दीदी सीिी होकर बाूँहें फैलाए बबस्तर पर लेट गई। मनीर् दीदी के पास लेट गया और उनके एक ननप्पल को
दबाने लगा। उसके होंठों को चसने लगा। मैंने दीदी के पैर मोड़े और टांगों के बीच लेट गया और उनकी पावरोटी
जैसी फली हुई चत पर िीरे से अपनी जीभ रख दी और मैं अपनी जीभ से उसकी चत की मासलि करने लगा।
अब हम तीनों एक-दसरे को चमने और चाटने में बबजी हो गए थे। मनीर् अब जोर-जोर से उनके मम्मों को
दबाने और चसने लग गया।
दीदी- “आह्ह… मनीर् उफ्फ… आराम से चसो आह्ह… सारा रस पी जाओ। आह्ह… मजा आ रहा है मोन। आह्ह…
आह्ह… स्स्स… आह्ह… मोन। ददफ हो रहा है आह्ह… प्यार से मासलि कर ना आह्ह… तेरी बहन हूँ आह्ह…
उफफ्फ…”
दस समनट तक हमारी मस्ती चलती रही। अब हम वासना की आग में जलने लगे थे। मनीर् का लौड़ा टपकने
लगा।
77
दीदी- “आह्ह… उह्ह…” मोन मजा आ रहा है । इस्स्स्स… आह्ह… खब चसो… और दबा के चसो। आह्ह… मजा आ
गया…”
अब मैं चची पीने ऊपर गया और मनीर् ने मेरी जगह ले ली। वो अब आइस्रीम की तरह चत को चाट रहा था।
दीदी की चत से रस टपकना िरू
ु हो गया था। वो अब तड़पने लग गई थी।
दीदी- “आह्ह… स्स्स्स…। मोन आह्ह… मेरी चत की आग बहुत बढ़ गई है । आह्ह… अब उफफ्फ… स्स्स्स… मोन
लौड़ा घसु ा दो। आह्ह… मझु े कुछ हो रहा है । आह्ह… प्लीज मोन आह्ह… फक मी… फक मी। स्स्स्स… आह्ह…”
मनीर् भी अब बहुत ज्यादा उत्तेश्जत हो गया था। उसके लौड़े से भी रस की बूँदें टपकने लगी थीं। मेरे बदले वो
बैठ गया और लौड़े को दीदी की चत पर हटकाकर िीरे से दबाने लगा।
दीदी- “आह्ह… अब चद
ु ाई िरू
ु कर दो। मझ
ु े ददफ नहीं हो रहा है । आह्ह… करो न… चोद दो मझ
ु े आह्ह… आज
मेरी सारी गमी ननकाल दो आह्ह…”
मनीर् स्पीड से लौड़े को अनदर-बाहर करने लगा। दीदी भी गाण्ड उठाकर उसका साथ दे ने लगी। चद
ु ाई जोरों से
िरू
ु हो गई। कमरे का तापमान बढ़ने लगा- “ठप-ठप, पछ फच्च आह्ह… उह्ह इस्स्स्स… आह्ह… उह्ह… उह्ह…”
की आवाजें कमरे में गज
ं ने लगीं।
दीदी- “आह्ह… हाूँ भैया आह्ह्ह। आह्ह… हाूँ… जोर सेई। आईईइ ओउ सस्स…”
मनीर्- “ले रश्मम। आह्ह… आज मेरा पावर दे ख। आह्ह… तेरी चत का चरमा बना दूँ गा मैं। आह्ह… आज के बाद
त जब भी चत को दे खेगी, मेरी याद आएगी तझ
ु े आह्ह…” दस समनट तक मनीर् स्पीड से दीदी को चोदता रहा।
साला मझ
ु से झठ बोला था की ससफफ एक बार लड़की चोदी है , मनीर् तो पक्ट्का चोद था। पहले दो बार झड़ चक
ु ा
था इससलए अबकी बार कहाूँ वो जल्दी झड़ने वाला था। अब तो उसका टाइम और बढ़ गया।
मगर दीदी… दीदी की चत लौड़े की चोट ज्यादा दे र सह ना पाई और उनके रस की िारा बहने को हयाकुल हो
गई- “आई… आई… आह्ह… जल्दी… मैं झड़ गई अआह्ह… आह्ह… आह्ह… जोर से पेलो। आह्ह… उह्ह… आह्ह…”
78
मगर मनीर् का अभी बाकी था। वो िीरे -िीरे कमर को हहला रहा था। दीदी अब िानत लेट गई थी। उनका सारा
जोि ठं डा हो गया था। तभी अचानक मनीर् ने लण्ड तेजी से अनदर-बाहर करना िरू
ु फकया और दीदी की चत में
झड़ गया। उसके बाद मनीर् एक तरफ लढ़
ु क गया।
और मैं घट
ु नों के बल बबस्तर पर खड़ा हो गया।
मोन- “आह्ह… आह्ह… बस दीदी। अब बन जा घोड़ी। आज तेरी सवारी करूूँगा। आह्ह… अब बदाफस्त नहीं होता
आह्ह… आह्ह…”
दीदी घट
ु नों के बल अच्छी तरह पैर फैलाकर घोड़ी बन गई। वैसे तो ररि ने उनको घोड़ी बना बनाकर एक्ट्सपटफ
कर हदया था, पर मेरे साथ तो पहली बार था। श्जस तरह वो घोड़ी बनी थी। मझ
ु को बहुत अच्छा लगा फक मेरी
बहन एकदम पफेक्ट्ट घोड़ी बनी है ।
मैंने कहा- “वाह… दीदी क्ट्या जबरदस्त घोड़ी बनी है त। अब ठुकाई का मजा आएगा। तेरी चत कैसे फली हुई है ?
उफफ्फ… साली ऐसी चत दे खकर लौड़े की भख ज्यादा बढ़ जाती है…” मैंने लौड़े को चत पर हटकाया और परा
एक साथ अनदर िकेल हदया
मोन- “अरे सारी यार। तेरी चत दे खकर बहक गया था। अब ख्याल करूूँगा…” मैं अब दीदी की कमर पकड़कर
चोदने लगा। मेरे हाथ दीदी की मल
ु ायम गाण्ड को भी सहला रहे थे। बीच-बीच में दीदी की गाण्ड के छे द में
उं गली भी घम
ु ा रहा था।
मैं अब तेजी से चोदने लगा। मेरा लौड़ा अब फलने लगा था। फकतना सह पाता वो चत की गमी को? आखखरकार,
मेरे लौड़े ने रस की िारा चत में मारनी िरू
ु कर दी। उसका अहसास पाकर दीदी की चत भी झड़ गई। दो
नहदयों के समलन के जैसे उनके कामरस का समलन हो गया।
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अब हम दोनों भी िानत पड़ गए। दीदी की कमर में ददफ हो गया। जैसे ही मैंने लौड़ा बाहर ननकाला। वो बबस्तर
पर कमर के बल लेट गई और लंबी साूँसें लेने लगी। मनीर् भी उसके पास ही लेट गया।
मोन- अब तो तम
ु को चद
ु ने की इतनी आदत हो गई है दीदी फफर बबना चुदे नींद कैसे आती है ?
दीदी के जवाब दे ने से पहले ही मनीर् ने फफर से रश्मम दीदी की चत में िहद लगा हदया।
सब
ु ह मेरी नींद थोड़ा जल्दी खुल गई मैंने दे खा की हम तीनों नंगे एक दसरे से गथ
ु े हुए सो रहे थे। मनीर् का
लण्ड सब
ु ह-सबु ह नींद में भी खड़ा है और रश्मम दीदी की चत से वो िहद बह रहा था, जो मनीर् ने रात में डाला
था। वो दोनों अभी भी गहरी नींद में सो रहे थे।
मैंने िहद की िीिी उठाई और उसे फकचेन में वापस रखने जाने लगा पर जैसे ही मैंने रूम का दरवाजा खोला
मनीर् का पालत जमफन िेफडफ राकी अनदर घस
ु गया। िायद मनीर् ने रात में उसे खोल हदया होगा।
अपने कुत्ते को हमारी बहन की चत चाटते दे खकर मनीर् का खड़ा लण्ड और सख्त हो गया। मनीर् बोला- “मोन,
हमारी बहन बड़ी निीब वाली है । 24 घंटे में 3 अलग-अलग लण्ड। रात भर हमसे मजे सलए और सब
ु ह-सब
ु ह कुत्ते
से चुदेगी। चल रश्मम जल्दी से कुनतया बन जा…”
मोन- अरे एक बार इसका मजा भी लेकर दे खो न दीदी। मैंने फफल्मो में दे खा है की लड़फकयां अपने कुत्तों से
चुदवाती है । प्लीज… मझ
ु े भी दे खना है की कैसे राकी आपके साथ करता है ? मान जाओ न दीदी।
तब मनीर् राकी को हटाने के सलए आगे बढ़ा तो राकी गरु ाफने लगा।
मनीर्- यार ये तो गरम हो गया है । दे खो कैसे गरु ाफ रहा है । यार रश्मम दे खो कहीं काट न ले।
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दीदी तो वैसे ही कुत्तों से डरती थी। राकी को गरु ाफता दे खकर दीदी की फट गई और उनहोंने मनीर् को रोक हदया।
राकी फफर से दीदी के चत चाटने लगा। हम दोनों के काफी बार कहने पर आखखर दीदी कुनतया की तरह खड़ी हो
गई और मनीर् ने राकी को उसके पीछे लाकर खड़ा फकया और मैंने उसका काला लण्ड पकड़कर रश्मम की चत
पर लगा हदया। राकी भी परी तरह गरम था उसने िक्ट्का मारकर अपना लण्ड दीदी की चत में डाल हदया और
झटके लगाने लगा।
दीदी की चीख ननकल गई और राकी उल्टा घम गया। मैंने मनीर् से कहा- “राकी को रोको दीदी की चत फट
जाएगी…”
मनीर् बोला- “अबे कुछ नहीं होगा याद नहीं हम दोनों का एक साथ ले सलया था रात में रश्मम ने, इसमें से परा
बच्चा ननकल आता है यार। ररलैक्ट्स, और अब वो घम गया है थोड़ी दे र में ही झड़ जायेगा। उससे पहले मैं तो
क्ट्या कोई भी उसको रोक नहीं सकता। अब वो झड़ने के बाद ही रश्मम को छोड़ेगा…”
मैं दे ख रहा था की कैसे राकी घमकर उल्टा होकर दीदी को चोद रहा था और दीदी की आूँखों से आंस धगर रहे
थे। करीब 10 समनट बाद राकी ने अपना लण्ड दीदी की चत से बाहर ननकाला और उनकी चत से उसका गाढ़ा
सफेद पानी बाहर बहने लगा।
दीदी उसका लण्ड ननकलते ही बबस्तर पर धगर पड़ी और बोली- “ये हदन मरते दम तक नहीं भलेगा। सालो सच
में कुनतया बना हदया अपनी बहन को…”
थोड़ी दे र दीदी ने आराम फकया फफर हम सब फ्रेि हुए और चाय पी। रश्मम दीदी बोली की मौसा मौसी के आने
से पहले नहाकर तैयार हो जाओ और हम तीनों एक साथ नहाने के सलए चले गए।
रश्मम दीदी नहाते हुए जाकर कमोड पर बैठने लगी तो मैंने कहा- दीदी क्ट्या कर रही हो?
दीदी ने कहा- “क्ट्या कर रहो हो मोन? हटो ऐसे मेरा पेिाब नहीं आयेगा…”
हमारा मन तो कर रहा था की दीदी को फफर से चोद दें । लेफकन मौसा मौसी के आने का टाइम हो गया था तो
हम लोगों ने थोड़ी मस्ती करके कपड़े पहन सलए। मैंने अब रश्मम दीदी को बता हदया की िायद ररि वहां आया
होगा तो रश्मम ने ररि के घर फोन फकया।
आिे घंटे बाद मौसी और मोननका आ गए। मौसा जी सीिे अपने नससिंग होम चले गए थे। मोननका और दीदी ने
हम दोनों को राखी बांिी फफर हम बस से अपने िहर लौट आये।
जब हम अपने िहर पहुूँचे तो रात काफी हो गई थी फफर दीदी बोली- “चलो ररि के घर चलो। हम कल अपने
घर जायेंगे…”
अब मझ
ु े ररि से कोई प्राब्लम नहीं थी क्ट्योंकी अब तो मैंने भी दीदी को चोद सलया था, तो हम दोनों ररि के
घर पहुूँच गए। वो दीदी का इंतजार कर रहा था। पर उसको पता नहीं था की मैं भी साथ में हूँ। वो मझ
ु े दे खकर
थोड़ा चौंक गया। तो दीदी ने उसके कान में कुछ कहा तो फफर वो दीदी को लेकर अपने कमरे में चला गया और
मझ
ु े दसरे कमरे में सोने भेज हदया।
82
रश्मम- “बाद की बात बाद में दे खेंगे पर आज तो ठीक है हम 7:30 बजे घर चलेंगे…” और ये कहकर वो वापस
ररि के कमरे में उससे चद
ु वाने चली गई।
मैंने सोचा चलो ठीक है आखखर उसका लण्ड भी तो बड़ा है पर अब तो हर रात मैं हो चोदं गा दीदी को। िाम को
हम घर पहुूँच गए और उसी रात से दीदी मेरी रात की बीवी बन गई। अब मैं लगभग रोज रात को दीदी को
चोदने लगा, ससवाय जब उनके पीररयड चल रहे होते थे। कहीं मैं मामा न बन जाऊूँ इसीसलए दीदी ने गोसलयां
लेना िरू
ु कर हदया था।
हदन ऐसे ही बहुत मजे मजे में कट रहे थे पर श्जसने अपनी सगी बहन को चोद सलया हो, उसको तो अब हर
जवान लड़की में एक चत ही नजर आती है । कुछ ऐसा ही हाल मेरा था। मैं श्जतना ज्यादा दीदी को चोदता,
उतना ही मझ
ु े नई चतों को चोदने की इच्छा बढ़ती जाती। अब तो कासमनी आंटी भी वापस आ गई थी। उनको
तो पहला मौका समलते ही मैं चोद ही सकता था। पर अब मैंने मन बना सलया था की मैं जैसे भी हो ररक्ट्की को
भी चोद डाल।ं
फकममत मेरा साथ दे रही थी। कुछ ही हदनों के बाद मम्मी पापा एक िादी में 5-6 हदनों के सलए हदल्ली चले
गए। घर खाली था और मैं रश्मम दीदी को सब
ु ह से ही चोद रहा था और बार-बार दीदी की गाण्ड में उं गली डाल
रहा था।
दीदी- तम
ु ये मेरी गाण्ड में उं गली क्ट्यों डाल रहे हो?
मोन- दीदी सच कहूँ। तेरी गाण्ड दे खकर मन बेचैन हो गया है । ऐसी मटकती गाण्ड… उफफ्फ… इसमें लौड़ा
जाएगा, तो मजा आ जाएगा। बस यही दे ख रहा था फक अबकी बार मैं तेरी गाण्ड ही मारूूँगा।
मोन- “अरे अभी कहाूँ थक गई यार। अभी तो बहुत पोज बाकी हैं। आज तो घर पर कोई नहीं है । यही मौका
समला है की तम्
ु हें आज अलग-अलग तरीके से चोदूँ और प्लीज दीदी आज गाण्ड मारने दो ना। उस हदन के बाद
तम
ु ने मझ
ु े कभी भी गाण्ड नहीं दी। प्लीज…”
मोन- “अरे दीदी मजाक कर रहा था पर याद करो की कैसे जब मैंने और मनीर् ने एक साथ चोदा था फकतना
मजा आया था…”
83
दीदी- मजा तो आया था। पर दो की बात और है । तीन-चार… न बाबा न। पर थ्री-सम में बड़ा मजा आता है । सन
ु
क्ट्यों न मनीर् को बल
ु ा ले दो-चार हदनों के सलए। बड़ा मजा आयेगा।
दीदी- क्ट्यों मझ
ु से हदल भर गया तेरा जो अब कासमनी आंटी को चोदना चाहता है।
मोन- “अरे दीदी इसको सारी बहनों से प्यार है पर अभी तो इसको तम्
ु हारी मल
ु ायम गाण्ड का मजा समलने वाला
है इसीसलए उछल रहा है…”
उसके बाद हम दोनों चमा-चाटी में लग गए। दोनों 69 के पोज में आ गए और एक-दसरे के चत और लण्ड को
चसकर मजा लेने लगे। मैंने दीदी के मूँह
ु पर लौड़ा लगा हदया और हाथ से उसके बाल पकड़कर लौड़ा उसके
गालों पर घम
ु ाने लगा।
84
दीदी- उफ्फ… मोन क्ट्या कर रहे हो? बाल क्ट्यों पकड़े हो मेरे? दख
ु ता है ना। पता नहीं आज मेरी गाण्ड का क्ट्या
हाल करोगे?
मोन- डर मत मेरी प्यारी रं डी। जब ररि का इतना बड़ा ले चुकी हो, दो एक साथ ले चुकी हो फफर भी मेरे से
क्ट्यों डरती हो? वैसे गाण्ड इतनी प्यारी है । इससे तो बड़े प्यार से खेलग
ं ा मैं। चल अब दे र मत कर बन जा मेरी
घोड़ी। ताकी मेरे लौड़े को भी सक
ु न आ जाए।
मैं खड़ा हुआ और तेल की बोतल ले आया। तब तक दीदी भी दोनों पैर फैलाकर जबरदस्त घोड़ी बन गई थी।
उसको दे खकर मैं खुि हो गया- “वाह्ह… मेरी रं डी क्ट्या पोज में आई हो, पैर भी फैला हदए। ताकी गाण्ड थोड़ी
और खुल जाए। त डर मत। अभी बस थोड़ी दे र की बात है …” इतना कहकर मैं बबस्तर पर आ गया और दीदी
की गाण्ड को सहलाने लगा।
मैंने थोड़ा तेल दीदी की गाण्ड के छे द पर डाला और उं गली से उसके छे द में लगाने लगा। कुछ तेल अपने लण्ड
पर भी लगा सलया, ताकी आराम से दीदी की गाण्ड में घस
ु जाए। मैं उं गली को गाण्ड के अनदर घस
ु ाकर तेल
लगाने लगा। तो दीदी को थोड़ा ददफ हुआ। मगर वो दाूँत भींचकर चुप रही। मैं बड़े प्यार से उं गली थोड़ी अनदर
डालकर गाण्ड में तेल लगा रहा था, और दीदी बस आने वाले पल के बारे में सोचकर डर रही थी।
मोन- “मेरी रानी, अब तेरी गाण्ड को धचकना बना हदया है । अब बस लौड़ा पेल रहा हूँ। आज से रोज गाण्ड
मारूंगा दीदी याद रखना…”
दीदी- मोन प्लीज… आराम से डालना। वरना कल से छने भी नहीं दूँ गी। त ये बात भलना मत।
मैंने लौड़े को दीदी की गाण्ड पर हटकाया और प्यार से छे द पर लौड़ा रगड़ने लगा- “अरे दीदी, डर मत। जानता हूँ
त मेरी बहन है । तझ
ु े ददफ होगा तो मझ
ु े भी तकलीफ होगी। त बस दे खती जा। बड़े प्यार से करूूँगा…”
मैंने दोनों हाथों से दीदी की गाण्ड को फैलाया और टोपे को छे द में फूँसाकर हल्का सा झटका मारा। तो लौड़ा
फफसलकर ऊपर ननकल गया। दीदी ने गाण्ड मरवाना बंद ही कर हदया था इसीसलए वो फफर से बहुत कस गई
थी। मैंने फफर से कोसिि की, मगर लौड़ा अनदर नहीं गया। तो मैंने एक हाथ से लौड़े को पकड़ा और छे द पर
रखकर दबाव बनाया। अबकी बार लौड़ा गाण्ड में घस
ु गया।
और एक ददफ की लहर दीदी की गाण्ड में होने लगी- “ऐइ… आईईइ… आह्ह… मोन बहुत ददफ हो रहा है । आह्ह…
आराम से करना। नहीं मेरी चीख ननकल जाएगी और बाहर कोई सन ु लेगा। उई माूँ… आज नहीं बचूँ गी…”
मैं हाथ से दबाव बनाता गया। एक इंच और अनदर गया और रुक गया। फफर दबाया तो और अनदर गया। वैसे
मैं बड़े प्यार से लौड़ा अनदर पेल रहा था। मगर दीदी की गाण्ड ने बहुत हदनों से लण्ड सलया नहीं था तो उनकी
तो जान ननकल रही थी। वो बस िीरे -िीरे कराह रही थी। कुछ दे र तक मैं िीरे -िीरे लौड़े को अनदर करता रहा।
मेरा आिा लण्ड अब दीदी की गाण्ड में जगह बना चक
ु ा था। अब मैं आिे लण्ड को ही अनदर-बाहर करने लगा।
दीदी- “आह्ह… आइ… आह्ह… अब ददफ कम है । आह्ह… चोदो… मजा आ रहा है । मोन सच्ची गाण्ड में मजा तो
बहुत आता है । आह्ह… उह्ह…”
मैं अब स्पीड से लौड़े को अनदर-बाहर कर रहा था और हर िक्ट्के के साथ लौड़ा थोड़ा और अनदर घस
ु ा दे ता।
लण्ड एकदम टाइट जा रहा था। ये तो तेल का कमाल था। नहीं तो मेरा लौड़ा नछल जाता। थोड़ी दे र बाद मैंने
लण्ड परा बाहर ननकाल सलया।
मोन- अरे नहीं मेरी रांड़। श्जतना तेल लगाया था। वो तेरी गाण्ड पी गई। अब थोड़ा और लगा के डालूँ गा।
मझ
ु े भी ये अहसास हो गया फक दीदी को इस बार ददफ हुआ होगा। क्ट्योंकी िरू
ु में तो वो प्यार से लौड़ा घस
ु ा रहा
था। मगर अचानक ही परा लौड़ा एक साथ गाण्ड में चला गया तो ददफ होना लाश्जमी है । मैं कुछ दे र वैसे ही दीदी
के ऊपर लेटा रहा।
जब दीदी का ददफ कम हुआ- “आऽ आह्ह… मोन, मेरी जान ननकाल दी तने। आह्ह… अब उठो भी। परा वजन मेरे
ऊपर पेल रखा है…”
86
मैं अपने हाथों और घट
ु नों पर जोर दे कर थोड़ा ऊपर हुआ और िीरे -िीरे लौड़ा अनदर-बाहर करने लगा।
दीदी- आह्ह… मोन, बहुत ददफ हो रहा है । प्लीज अब बस भी करो। आह्ह… ननकाल लो ना। आह्ह… मैं मर
जाऊूँगी।
मैं अब स्पीड से दीदी की गाण्ड मारने लगा। वो सससकाररयां लेती रही। कुछ दे र बाद लौड़ा “पक-पक” की आवाज
के साथ स्पीड से अनदर-बाहर होने लगा।
अब दीदी को ददफ भी कम महसस हो रहा था। वो झटकों के साथ उत्तेश्जत होने लगी थी। उसकी चत टपकना
िरू
ु हो गई थी। वो जोि में आ गई- “आऽ आह्ह… मोन अब ददफ कम है । अब जोर से करो… जल्दी आह्ह…
फास्ट ब्रो आह्ह… फास्ट…”
दीदी को अब मजा आने लगा था। वो हाथों पर जोर दे कर फफर से घोड़ी बन गई थी और मैं अब उनके कल्हे
पकड़कर ‘दे दनादन’ लौड़ा पेल रहा था। कुछ दे र बाद मैंने दीदी की गाण्ड में पपचकारी मारनी िरू
ु की। तो गमफ-
गमफ वीयफ से उनको बड़ा सक
ु न समला। दीदी बबस्तर पर धगर पड़ी और मैं दीदी के ऊपर ही लेट गया।
जब दीदी जाने लगी, मैंने कहा- “दीदी अगर मौका लगे तो कासमनी आंटी को कल रात के सलए घर बल
ु ा लेना…”
दीदी ने हूँसते हुए कहा- “कोसिि करूंगी पर ज्यादा लालच अच्छा नहीं है । पहले आज मोननका की चत तो मार
लो…”
87
मनीर् और मोननका दोनों रात को 10:00 बजे आ गए। रश्मम दीदी तो पहले ही चली गई थी तो घर में मैं
अकेला था।
मेरे रूम में मैंने पहले ही दीदी का और अपना बेड एक साथ जोड़कर दीवार से साथ लगा हदया था। हम सोने के
सलए मेरे रूम में आ गए। मैं दीवार की तरफ लेट गया।
मोननका को मेरे बगल में सोना थोड़ा अजीब तो लग रहा था पर उसने सोचा की मनीर् भी उसके बगल में सोया
है । मनीर् और मैंने पहले ही तय कर रखा था की मोननका को खब गरम कर हदया जाये तो वो चत दे ने से मना
नहीं करे गी, और वो दे ख चक
ु ा था की रश्मम भी पहले फकतना मना कर रही थी पर एक बार चत में लण्ड लेने के
बाद उसने चद
ु ाई में परा साथ हदया था।
करीब एक घंटे बाद मैंने हमारा प्लान स्टाटफ फकया। मैंने अपना लण्ड बाहर ननकाला और मोननका की गाण्ड पर
टच फकया। मोननका अभी सोई नहीं थी तो उसको एकदम झटका लगा। मेरा मोटा लण्ड उसे बहुत सख्ती से
महसस हो रहा था। फफर मैंने उसके पेट पर हाथ रखा, पर मोननका कुछ नहीं बोली। वैसे भी अगर वो बोलती भी
तो अब मैं कहाूँ रुकने वाला था।
अब मैंने िीरे से अपना हाथ मोननका के मम्मों पर फेरना चाल फकया। उसकी सांसें तेज होने से मझ
ु े पता चल
गया था की मोननका जाग रही है और अगर वो मेरे अगले कदम का साथ दे ती है तो आज की रात हमारी
श्जंदगी की यादगार रात होगी।
अब उसे क्ट्या पता मनीर् भी तो बड़ी बेसब्री से उसे चोदने के सलए जाग रहा था।
88
अब मैंने उसकी ब्रा का हुक भी पीछे खोल हदया और उसकी ब्रा उतार दी। मोननका अब भी कुछ नहीं बोली तो
अब मैं समझ गया की मोननका ने चद ु ने के सलए मौन स्वीकृत दे दी है । अब मैंने बेफफर होकर मोननका को
अपनी तरफ घम
ु ाया और उसके नंगे मम्मे को अपने मूँह
ु में भर सलया।
मोननका के मूँह
ु से एक सीत्कार ननकल गई श्जसे सन
ु कर मनीर् समझ गया की धचडड़या जाल में फूँस गई है।
मोननका उत्तेजना से पागल हुई जा रही थी पर अपनी आवाज को फकसी तरह रोकने की कोसिि कर रही थी और
मैं जंगसलयों की तरह उसके मम्मे चस रहा था, दबा रहा था और परी तरह ननचोड़ रहा था।
दरअसल मोननका बहुत िरीफ लड़की नहीं थी। उसका एक बायफ्रेंड था श्जससे वो कई बार चदु चकु ी थी। पर एक
साल पहले उसका ब्रेकअप हो गया था। उसका बायफ्रेंड उसके श्जमम की आग को हवा दे गया था और पपछले
एक साल से उसका मन चद
ु ने के सलए तड़प रहा था, और वो नया बायफ्रेंड बनाने के सलए कोसिि कर रही थी।
पर मेरी और मनीर् की फकममत की अभी तक उसको कोई दसरा लड़का नहीं समला था।
मेरे इस वाइल्ड रूप से उसे ऐसा मजा आ रहा था जो उसे कभी नहीं आया था। साथ ही ये ख्याल की बगल में
उसका सगा भाई भी सो रहा है उसकी उत्तेजना को और भी बढ़ा रहा था और उसकी चत परी तरह गीली हो गई
थी।
अब मैंने अपना हाथ नीचे लेजाकर मोननका का लोअर और पैंटी एक साथ नीचे कर हदए। मोननका ने भी मेरी
मदद करते हुए अपने पैरों से लोअर और पैंटी को नीचे उतार हदया। अब मोननका परी नंगी थी। मेरा लण्ड सीिे
उसके पेट में चुभ रहा था, श्जससे मोननका और गरम हो गई और उसने वापस मेरी तरफ अपनी पीठ कर ली।
मैंने भी तब तक अपने परे कपड़े उतार हदए थे। अब मैंने अपना लण्ड मोननका की गाण्ड पर रगड़ना िरू
ु फकया
और एक हाथ से उसकी चत सहलाने लगा।
मोननका भी अपनी गाण्ड को पीछे िक्ट्का दे रही थी। मैंने मोननका के पैर को हवा में उठाया और पीछे से ही
अपना लण्ड उसकी चत के छे द पर रख हदया। मोननका मेरे लण्ड के स्पिफ से ससहर उठी। तब तक मैंने एक जोर
का झटका मारा और मोननका के घट
ु ी हुई सी चीख ननकल गई।
ये सन
ु कर मनीर् ने मजे लेने के सलए पछा- क्ट्या हुआ, क्ट्यों धचल्ला रही हो?
तब तक मैंने एक झटका और मारा और अपना परा लण्ड मोननका की चत में उतार हदया।
89
मोननका- हाय रे उफ्फ… मर गई रे
मनीर् ममु कुराते हुए- क्ट्या हुआ क्ट्या ज्यादा ददफ हो रहा है ?
और मोननका को घबराता दे खकर हम दोनों हूँसने लगे। अब मोननका समझ गई की ये दोनों समले हुए हैं पर उसे
इससे कोई हदक्ट्कत नहीं थी क्ट्योंकी अब उसे अपने घर में भी अपने सलए एक लण्ड समल गया था। अब मनीर्
ने आगे बढ़कर उसके होंठों पर अपने होंठ रख हदए। मोननका ने भी उसके होंठ चसना िरू
ु कर हदया।
मैंने अपना लण्ड मोननका की चत से बाहर ननकाला और उसके गाण्ड के छे द पर रखकर एक िक्ट्का लगाया।
मोननका के रस से सराबोर मेरा लण्ड मोननका की गाण्ड में थोड़ा सा घस
ु गया।
मोननका को बहुत ददफ हुआ क्ट्योंकी वो चुदवा तो चकु ी थी पर उसने कभी गाण्ड नहीं मरवाई थी पर उसका मह
ूँु
तो मनीर् के होंठों से बंद था तो वो चीख नहीं पाई।
मनीर् का लण्ड बहुत दे र से खड़ा-खड़ा ददफ करने लगा था उसने उसे मोननका की चत में घस
ु ा हदया। अब मनीर्
आगे से िक्ट्के लगाने लगा और मैं पीछे से। मोननका को पहले तो थोड़ा ददफ हुआ फफर उसको जननत का मजा
आने लगा। उसकी जो सहे सलयां महा चुदक्ट्कड़ हैं उनहोंने भी आज तक दोनों छे दों में एक साथ लण्ड नहीं सलया
था। बस सपना ही दे खा था की काि कभी ऐसा मौका समले और आज मोननका के दोनों भाई उसे दोनों तरफ से
रगड़-रगड़कर चोद रहे थे।
मोन- अब तो श्जंदगी भर ऐसा ही मजा आयेगा मेरी जान। कल जब रश्मम भी हमारे साथ िासमल होगी तो ये
मजा दग
ु न
ु ा हो जाएगा।
90
उिर दीदी कासमनी आंटी के घर में ड्राइंग रूम में बैठी टीवी दे ख रही थी। ररि कनखखयों से दीदी को ताड़ रहा
था और दीदी भी उसे दे खकर ममु कुरा रही थी। ररक्ट्की अपने कमरे में पढ़ाई कर रही थी।
दीदी- आंटी अभी नींद नहीं आ रही। आप चलो, मैं थोड़ी दे र में आती हूँ।
आंटी के जाते ही ररि ने दीदी को पकड़ सलया और अपने होंठ दीदी के नरम होंठों पर रख हदए। पर दीदी ने उसे
मना फकया।
फफर दीदी आंटी के कमरे में चली गई। कमरे में आंटी बेड पर नंगी लेटी थी श्जसे दे खकर दीदी चौंक उठी, वो
ममु कुरा कर बोली- आंटी, लगता है फक आपको बहुत गमी लग रही है ।
आंटी दीदी के सामने बड़ी बेिमी से अपनी चत पर हाथ फेरते हुई बोली- “हाूँ डासलिंग, मेरी चत में बहुत गमी हो
रही है । आ थोड़ा सा इसे प्यार करके ठं डी तो कर दो…”
दीदी आंटी के पास बैठ गई और उनकी चत पर अपना हाथ फेरते हुए बोली- आंटी, यह आपको क्ट्या हो गया है ?
आंटी ने दीदी के हाथ की उं गली को सलया और उसे अपनी चत के अनदर डालते हुई बोली- “दे ख तो सही। मेरी
चत फकतनी गीली हो रही है?” यह कहते हुए आंटी ने दीदी को अपने ऊपर खींच सलया और उसके होंठों को
चमने लगी।
आंटी ने पीछे हाथ लेजाकर दीदी के पजामे को नीचे को खींचते हुए उनके चतड़ों को नंगा कर हदया। दीदी ने
थोड़ा ऊूँची होकर आंटी को उनका पजामा उतारने हदया और फफर अपनी नंगी चत को आंटी की चत के ऊपर
रगड़ने लगीअचानक से आंटी ने दीदी को पलटकर अपने नीचे कर सलया और खद
ु उसके ऊपर आकर उसके होंठों
को चमने लगी। दीदी तो घर से ही इस सबके सलए तैयार होकर आई थी। वो भी परी तरह से आंटी का साथ दे
रही थी। आंटी ने अपनी जब
ु ान दीदी के होंठों के अनदर डाली तो दीदी उनकी जुबान चसने लगी। दीदी के कुते के
अनदर हाथ डालकर आंटी ने उनकी गोल चधचयों को पकड़ सलया और उनको जोरों से दबाने लगी।
91
िीरे -िीरे आंटी नीचे को आते हुए दीदी की दोनों जाूँघों की बीच में आ गई और उनकी चत के ऊपर एक जोर का
चमा फकया। फफर आंटी ने अपनी जब ु ान की नोक को दीदी की चत के ऊपर-नीचे फेरना िरू
ु कर हदया। िीरे -िीरे
दीदी की चत ने पानी छोड़ना िरू
ु कर हदया।
दीदी की चत के दोनों लबों को खोलते हुए आंटी बोली- “क्ट्यों रश्मम। तेरी चत तो आज बहुत ज्यादा खुली हुई
लग रही है । जैसे फकसी के मोटे लण्ड से तम्
ु हारी चत की हदन रात चुदाई हुई हो। क्ट्यों फकसका लण्ड घोटा तेरी
मनु नया ने बता जल्दी?”
आंटी की बात सन
ु ते ही दीदी घबरा गई और बोली- क्ट्या मतलब आंटी? ऐसी तो कोई बात नहीं है ।
आंटी हूँसने लगी और बोली- “तेरी चत को दे खकर तो ऐसा नहीं लग रहा है …” फफर आंटी ने अपनी एक उं गली
को दीदी की चत के अनदर डाला और उनकी चत के दाने को चाटते हुए अपनी उं गली को अनदर-बाहर करने
लगी।
िीरे -िीरे दीदी की आूँखें बंद होने लगीं और आंटी की दो परी उं गसलयां उनकी चत के अनदर आ जा रही थी।
पर आंटी कहां छोड़ने वाली थी, बोली- “जल्दी बता न फकतने लण्ड घोंटे अब तक? चत दे खकर तो लगता है रोज
ही चुदाती है…”
दीदी ने अपनी आूँखें बंद कर लीं और उसके चेहरे पर िसमिंदगी और घबराहट के आसार साफ हदख रहे थे।
आंटी- अरे मझ
ु से िमाफ रही है बोल न।
आंटी- “मैंने भी तो तझ
ु े बता हदया था राज के बारे में, बोल न। फकसी से नहीं कहूँगी। कहीं अपने भाई से तो
नहीं चुदवा सलया तने, जो बताने में इतना िमाफ रही है?” आंटी दीदी को छे ड़ते हुए बोली।
आंटी- “अरे वो हदखने में श्जतना िरीफ है असल में उतना ही हरामी है । उस हदन जब हम दोनों कमरे में
कबड्डी खेल रहे थे तो साला बाहर से हमको नंगा दे खकर लण्ड हहला रहा था और बाद में मझ
ु े बाथरूम में भी
पकड़ सलया था। याद है उस हदन मेरी सलवार गीली हो गई थी। वो तेरे भाई की ही कारस्तानी थी। बोल उसी
का लण्ड तो नहीं ले सलया तने?
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दीदी- “नहीं आंटी। ये उसका काम नहीं है ये तो तम्
ु हारे … …” दीदी बोलते-बोलते रुक गई।
दीदी- गस्
ु सा तो नहीं होगी?
दीदी ने दे खा की जब आंटी नामफल है तो वो भी नामफल हो गई, कहा- “अरे आंटी, ररि भी बड़ा हो गया और
उसका लण्ड भी। दे खोगी तो राज का भल जाओगी। गिे-घोड़े भी पानी मांग लें तेरे बेटे के लण्ड के सामने…”
आंटी दीदी को चमते हुए बोली- बता तो सही। कैसे हुआ यह सब?
दीदी ने आंटी को सब कहानी बताई और आंटी दीदी के बदन से खेलती रही। हम्म्म तो तेरे हरामी भाई ने ही
ररि को मौका हदया तेरी सील खोलने का।
फफर दीदी के चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेकर आंटी बोली- “रश्मम सच बताना, त आज यहाूँ मझ
ु से समलने
आई है या ररि से?”
आंटी िीरे -िीरे दीदी की चत को सहलाते हुए बोली- “अरे पहले बोलना था न तो अब तक तेरा काम करवा दे ती।
मझ
ु से बात मत छुपाया कर मेरी रानी…”
93
दीदी- आंटी आपको इस बात पर कोई गस्
ु सा नहीं आया फक ररि ने मेरे साथ सेक्ट्स फकया है और पहली बार तो
लगभग जबरदस्ती ही फकया था?
आंटी ममु कुराई और दीदी के होंठों को चमकर बोली- “मेरी प्यारी रश्मम। ररि न होता तो कोई और होता। चत है
तो चुदेगी भी। ररि भी जवान लड़का है । मझ
ु े क्ट्यों ऐतराज होगा?”
यह कहते हुए आंटी सरक कर दीदी की दोनों टांगों के बीच में आ गई और उनकी प्यारी सी चत को चमने लगी-
“हाय… रश्मम हदल कर रहा है फक तेरी इस चत को चम-चमकर लाल कर दूँ । श्जसमें पहली-पहली बार मेरे बेटे
का लण्ड गया है और श्जस चत को ररि ने फाड़ा है । तझ
ु े एक कूँु वारी कली से खखलाकर फल बना हदया है …”
आंटी बातें सन
ु कर दीदी गरम होने लगी और उनका चेहरा लाल होने लगा। उनकी चत से हल्का-हल्का रसीला सा
पानी टपकना िरू
ु हो गया।
आंटी ने अपनी जुबान की नोक से दीदी की चत से बह रहे रस को छुआ और फफर आंटी ने मजे से उसे चाट
सलया। अब आंटी ने फफर से अपनी एक उं गली को िीरे -िीरे दीदी की चत के अनदर-बाहर करना िरू
ु कर हदया।
उनकी उं गली दीदी की चत के अनदर उसके धचकने पानी की वजह से बहुत आराम से फफसल रही थी। दीदी की
चत के पानी से गीली हो रही हुई अपनी उं गली को आंटी ने दीदी के होंठों पर रगड़ा और फफर अपनी उं गली दीदी
के मूँह
ु के अनदर डाल दी। दीदी ने अपनी ही चत का पानी चाट सलया। आंटी अब दीदी के ऊपर आ गई और
अपनी चत को उनके मूँह
ु के ऊपर ले आई।
दीदी ने आंटी की साफ और मलु ायम चत को दे खा तो उसपर अपना हाथ फेरते हुए बोली- “आंटी चत तो आपकी
भी बहुत धचकनी और मल ु ायम है । इससलए मोन हर वक़्त आपको चोदने के सलए मरा जा रहा है…”
जैसे ही दीदी की जब
ु ान आंटी की चत को छने लगी।, तो उनकी चत ने भी पानी छोड़ना िरू
ु कर हदया।
94
अब आंटी और दीदी दोनों ही एक-दसरे की चत की आग को ठं डा करने में लग गए। आंटी दीदी की चत में
अपनी उं गली मार रही थी और दीदी की उं गली आंटी की चत के अनदर-बाहर हो रही थी। दोनों चतें पानी छोड़ने
लगी और एक साथ ही दोनों अपनी मंश्जलों पर पहुूँच गईं।
फफर दोनों ननढाल होकर बबस्तर पर एक-दसरे की बाूँहों में लेट गईं। आंटी हौले-हौले दीदी की चधचयों के ननप्पलों
पर उं गली फेरने लगी।
दीदी िमाफ गई और बोली- “जैसा आपका मन हो…” और कपड़े पहनकर ररि के रूम की तरफ चली गई।
दरवाजे के कोने से आंटी उन दोनों को दे ख रही थी। अपने बेटे के लण्ड का साइज दे खकर उनका हलक सख
गया और चत पननया गई। उनको रश्मम दीदी से प्यार भरी इष्याफ सी हुई की इसके निीब का पहला लण्ड ही
इतना बड़ा, मोटा और कड़क है ।
ररि कई हदनों से भरा था। लण्ड चुसवाने के बाद वो दीदी को बबस्तर पर पटक कर उनकी भरपर चुदाई करने
लगा। इतनी मस्त चद
ु ाई दे खकर आंटी को आूँखों में लाल डोरे तैरने लगे और उनके हदल में ख्याल आया की
काि, रश्मम की जगह मैं ररि के मोटे लण्ड से चद
ु रही होती।
***** *****
उिर मैंने और मनीर् दोनों ने रात भर मोननका की भरपर चुदाई की। उसे हर पोज में चोदा। घर के हर कोने में
चोदा। जब सब
ु ह रश्मम लौट कर आई तो उसने दे खा की मनीर् मोननका को फकचेन स्लैब पर चोद रहा है । और
मोन सो रहा है । रश्मम को रात भर माूँ बेटे ने बहुत ननचोड़ा था पर फफर भी वो अपने कपड़े उतारकर उनके साथ
आ गई
मोननका को रश्मम ने आज पहली बार परा नंगा दे खा था। उसकी चची रश्मम से थोड़ी छोटी जरूर थी पर ऊपर
की तरफ तनी हुई थी। रश्मम के मूँह
ु में पानी सा आ गया। मन तो फकया की उनहें चसकर दे ख लूँ । मोननका की
चत पर एक भी बाल नहीं था। रश्मम को लगा की दोनों भाइयों ने रात को उसकी चत िेव की है । रश्मम दीदी के
ननप्पलस और भी ज्यादा बड़े होकर उसकी उत्तेजना को प्रकट करने लगे।
अब मनीर् ताबड़तोड़ िक्ट्के लगाने लगा था और उसने अपना माल मोननका के चत में खाली कर हदया था। रात
भर चुदने के बाद मोननका भी बेहद थक गई थी। मनीर् बोला- “मैं तो सोने जा रहा हूँ अब मोननका तम्
ु हारे
हवाले है रश्मम…” ये कहकर वो फकचेन से बाहर ननकल गया।
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अब रश्मम की नजर मोननका की रसीली चत पर गई। चत के ग्लासी होंठों पर चत का रस लगा हुआ था और
उसके अनदर से मनीर् का वीयफ बहकर बाहर आ रहा था। रश्मम ने मोननका का हाथ पकड़ा और उसे बाहर लाकर
सोफे पे बबठा हदया, और उसके सामने बैठकर अपने हाथ उसकी जांघों पर रख हदए।
रश्मम दीदी ने उसकी आूँखों में दे खा, और उसकी मोटी जांघ को उठाकर अपने कंिे पर रख सलया, और फफर
दसरी जांघ को भी उठाया और दसरे कंिे के ऊपर। और बाकी का बचा हुआ काम मोननका ने फकया। उसने
अपनी गाण्ड को सोफे पर खखसकाया, और रश्मम दीदी के मूँह
ु की तरफ िकेला। और फच्च से अपनी गीली चत
को दीदी के मूँह
ु के ऊपर दे मारा।
मोननका- “अह्ह्ह… रश्मम म्म्म्म… ओय… अह्ह्ह… हननन…” दीदी के बालों को जोर से पकड़कर उसने दीदी की
जीभ को अपनी गीली चत के अनदर तक उतार हदया।
दीदी का एक हाथ नीचे जाकर अपनी चत के ऊपर ही रगड़ दे ने लगा। मोननका की कमर हवा में थी, और वो
अपनी चत के बल पर रश्मम के मूँह
ु से सलपटी हुई थी।
मोननका ने अब मझ
ु े खींचकर फकस करना िरू
ु कर हदया और बोली- “तम
ु ने भी तो अपनी चत में मोन का लण्ड
सलया है न रश्मम?”
रश्मम दीदी ने मोननका से कहा- “रुको…” और अनदर जाकर मोन को जगा कर ले आई।
96
मैं बाहर आकर सोफे पर अपनी टांगें चौड़ौ करके बैठ गया और रश्मम दीदी अपनी चत की रगड़ाई करने लगी।
अब मोननका से और सहन नहीं हुआ। वो खड़ी हुई। और अपनी एक टांग उठाकर मेरे हाथ पर रख दी। और
अपनी चत को उसने मेरे मोटे लण्ड के ऊपर लगाकर दबा हदया।
मोननका- “अह्ह्ह… ओफ्फ्फ… साला, क्ट्या लण्ड है तेरे भाई का रश्मम उम्म्म…”
मैंने उसकी दसरी टांग को भी उठा सलया और अपनी गोद में उठाकर अपना परा का परा लौड़ा मोननका की चत
के अनदर पेल हदया। और हम दोनों पागलों की तरह से एक दसरे के होंठों को काटने लगे। परे कमरे में वासना
का तफान आ गया था।
रश्मम दीदी खड़ी होकर मेरी पीठ से आ लगी, और अपने हाथों से उसके कंिे पकड़कर अपना परा िरीर मेरी
कमर से रगड़ने लगी। मैं मोननका को सामने से चोदते हुए, अपने मूँह
ु को पीछे करके रश्मम दीदी के होंठों को
चसने और चाटने लगा।
मैं दोनों को अपने ऊपर उठाकर अनदर की तरफ चल हदया। मैंने अनदर मोननका को पीठ के बल पटक हदया।
और अपने लण्ड को बाहर ननकाले बबना उसे चोदने में लगा रहा।
दीदी तो बेताल की तरह मेरी पीठ से धचपकी हुई अपने चधचयों से मेरी मासलि करने में लगी हुई थी। उनकी
चत से ननकल रहा पानी, मेरी पीठ पर अपना गीलापन छोड़ रहा था। रश्मम दीदी श्जस अवस्था में थी, सामने
चुद रही मोननका के चेहरे के भाव को साफ दे ख पा रही थी।
उसकी आूँखें बंद थी, और हाथ ससर के ऊपर। और उसकी मोटी चची हर झटके से ऊपर की तरफ जाती और
फफर नीचे आती। और मूँह
ु परा खुला हुआ था। श्जसमें बंद जीभ की हर हरकत को रश्मम दीदी साफ दे ख पा रही
थी। और उसकी सससकाररयां और हल्की चीखें दीदी के चेहरे से टकरा कर अपनी कामकु ता बबखेर रही थी।
मेरा चेहरा नीचे था, और मेरे कंिे पर रखा हुआ रश्मम दीदी का ससर अब बबल्कुल मोननका के मूँह ु के ऊपर था।
दीदी ने मोननका के लरजते हुए होंठों को अपने मूँह
ु में दबाया, और उनहें जोर-जोर से चसते हुए उनमें बंद रस
अपने पेट में उतारने लगी। दोतरफा हमला मोननका के सलए सहन करना मश्ु मकल हो गया। और एक तेज चीख
के साथ वो अपने रस को मेरे लण्ड के नाम कुबाफन करके झड़ने लगी।
97
मोननका- “अयीईईइ… उम्म्म… तम
ु दोनों भाई बहन मेरी जान लोगे आज। अह्ह्ह… आई एम ़् कसमंनग…”
मोननका की चत से ननकलने वाले रस का बहाव इतना तेज था की मेरा लण्ड भी एक झटके में बाहर की तरफ
फफसल गया, और रश्मम भी उस झटके की वजह से फफसलन भरी पीठ को छोड़कर नीचे की तरफ धगर पड़ी।
मोननका की बगल में । और नीचे आते ही रश्मम ने अपने होंठ फफर से उसके मूँह
ु से लगा हदए। ताकी वो और न
चीख पाए।
मैंने अपने लण्ड को फफर से तैयार फकया और चत में डाल हदया। पर इस बार चत मोननका की नहीं, रश्मम दीदी
की थी।
दीदी की चत को रात भर ररि ने कटा था। मेरे लण्ड के अनदर जाते ही उनके मह
ूँु से एक चीख ननकल गई-
“आह्ह… अरे मोन आअह्ह्ह… आराम से ईईईआअ…”
अब मैं अहहस्ते-अहहस्ते दीदी की चत चोदने लगा और मोननका दीदी की चधचयों से खेलने लगी। 15 समनट तक
ऐसे ही िक्ट्के लगाने के बाद मैं और दीदी एक साथ झड़ गए। अब हम तीनों पस्त होकर सो गए।
मनीर्- सन
ु यार, मैं वापस जा रहा हूँ। कुछ जरूरी काम है । एक हफ्ते बाद आकर मोननका को ले जाऊूँगा।
मोन- अरे तम
ु ने बताया नहीं। तम
ु रुकते तो बड़ा मजा आता।
मनीर्- “मोननका को पता है की मैं उसे छोड़ने के सलए ही आया हूँ और वापस चला जाऊूँगा। पर थैंक्ट्य यार।
तम्
ु हारी वजह से मैंने मोननका को भी चोद सलया। जब मोननका को लेने आऊूँगा तो रश्मम और मोननका को एक
साथ चोदं गा। बोल दे ना दोनों को तैयार रहे । दरवाजा बंद कर ले। मैं जा रहा हूँ…”
मनीर् चला गया और मैं दरवाजा बंद करके फ्रेि होने चला गया। नहाकर मैंने दीदी और मोननका को भी जगा
हदया और उनको बता हदया की मनीर् चला गया है और अगले हफ्ते आयेगा। मोननका नहाने चली गई और मैं
दीदी की चधचयों को पीने लगा।
पर उस हदन िाम को बड़ा आंिी तफान आ गया और मसलािार बाररि होने लगी। कासमनी आंटी का फोन
आया की ऐसे में वो नहीं आ पायेगी और वो कल आयेगी। मझ ु े बहुत ज्यादा फरक नहीं पड़ा, क्ट्योंकी मेरे पास
तो अपने भाई से चदु वाने के सलए बेकरार दो-दो बहनें थी। पर उिर ररि और कासमनी ने जो प्लान बना रखा था
उसपर पानी पड़ गया था।
रात को कासमनी आंटी अपनी चत में उं गली डालकर पड़ी हुई थी और बार-बार उनको ररि का लण्ड याद आ रहा
था। राज जो आंटी की प्यास बझ
ु ाता था वो आंटी के हदल्ली जाने के बाद कहीं और नौकरी करने चला गया था,
तो आंटी काफी वक़्त से प्यासी थी।
ररि भी बरु ी तरह वासना में जल रहा था। उसने सोचा था की मम्मी के जाने के बाद वो परी रात रश्मम को
दौड़ा दौड़ा कर अलग-अलग पोज में चोदे गा और गाण्ड भी मारे गा, क्ट्योंकी ररक्ट्की भी अपनी एक सहे ली के घर
पाटी में गई थी। आज वो और रश्मम दीदी उसके घर पर अकेले होते पर तेज बाररि ने उनके अरमानों पर पानी
फेर हदया।
जब उं गली कर करके भी कासमनी आंटी को संतोर् नहीं समला तो उनहोंने अपनी श्जंदगी का एक बहुत बड़ा
फैसला फकया और वो बबस्तर से उठकर ररि के कमरे की तरफ चल दी। ररि को नींद नहीं आ रही थी और
रश्मम को याद करके उनका डंडा एकदम ससर उठाये खड़ा था, तो उसने अपनी पैंट उतार दी और अंडरपवयर से
अपना लण्ड बाहर ननकालकर सहलाने लगा। उसको नहीं पता था की दरवाजे की दरार से दो आूँखें उसको दे ख
रही थीं, और उसका लण्ड दे खते ही वो चमकने लगीं। वो आूँखें उसकी अपनी माूँ कासमनी की थी जो आज तय
कर चुकी थी की वो अपने श्जमम की आग अपने बेटे से ही बझ
ु वा लेगी।
अचानक कासमनी आंटी दरवाजा खोलकर अनदर आ गई और ररि ने हड़बड़ा कर लण्ड वापस अंडरपवयर में डाल
सलया।
99
कासमनी आंटी- नींद नहीं आ रही है, तेरे कमरे की लाइट जल रही थी तो सोचा तझ
ु से कुछ बात करूं।
कासमनी आंटी वही बैठकर ररि को ध्यान से दे खने लगी। ररि की अंडरपवयर के अनदर का टें ट दे खकर उनकी
चत बरु ी तरह पननया गई थी। बैठते समय उनका आंचल धगर गया और उनके ब्लाउर्ज फाड़कर बाहर आने को
बेताब पहाड़ों जैसे चचे ररि की ननगाहों के सामने आ गए थे। ररि ने पहले कभी अपनी माूँ कासमनी को इस
नजर से नहीं दे खा था, पर आज वो वासना से जल रहा था। अपनी माूँ के चचे दे खकर उनके हदल में टीस उठी।
कासमनी आंटी समझ गई थी की उनहें िमफ छोड़नी होगी, तभी वो आज संतष्ु ट हो पायेगी। ररि उठकर अपना पैंट
पहनने लगा।
पर उसे रोक कर कासमनी ने सीिे ही पछा- “जब मैं कमरे में आई तो फकसको याद करके लण्ड हहला रहे थे।
रश्मम को?”
कासमनी- कल मैंने खद
ु दे खा था की तम
ु ने इसी बबस्तर पर रश्मम की कैसे चद
ु ाई की। आज मेरी भी प्यास
बझ
ु ाओ बेटा।
ररि को तो भरोसा ही नहीं हो रहा था की ये सब सच में हो रहा है । आंटी ने ररि का ससर पकड़कर अपनी
छाती में गड़ा हदया और उसका लण्ड अंडरपवयर के ऊपर से ही महु ठयाने लगी। ररि ने सोचा अगर आज माूँ को
चोद सलया तो फफर तो उसकी चांदी है । वो कभी भी रश्मम या फकसी भी दसरी लड़की को घर लाकर चोद पायेगा।
माूँ मना नहीं कर पायेगी और जब माूँ खद
ु आगे बढ़कर दे रही है तो लेने में कोई बरु ाई नहीं।
ररि अब एक चची को अपने हाथ से दबाते हुए दसरी चची में मूँह
ु गड़ाये चसने चमने लगा। कासमनी आंटी कई
हदनों से वासना की आग में जल रही थी। आज इतने हदनों के बाद जब उनकी चधचयों को उनके बेटे ने अपने
हाथ और मूँह
ु से मसलना िरू
ु फकया तो आंटी के तन-बदन की आग और भड़क गई। उनके मूँह
ु से सससकाररयां
ननकलने लगी। वो अपनी जांघों को भींचती एंडड़यों को रगड़ती हुई उनहोंने ररि के ससर को अपनी चधचयों पर
और भींच सलया।
100
ब्लाउर्ज के ऊपर से चधचयों को चसने का बड़ा अनठा मजा था। गरम चधचयों को ब्लाउर्ज में लपेटकर बारी-बारी
से चसते हुए वो ननप्पल को अपने होठों के बीच दबाते हुए चबाने लगा। ननप्पल एकदम खड़े हो चक
ु े थे और
उनको अपने होठों के बीच दबाकर खींचते हुए जब ररि ने चसा तो कासमनी आंटी छटपटा गई।
ररि के ससर को और जोर से अपने सीने पर भींचती सससयायी- “इस्स्स… उफफ्फ़् … िीरे … आराम से चस…”
ररि दोनों चधचयों की चोंच को बारी-बारी से चसते हुए जीभ ननकालकर छाती और उनके बीच वाली घाटी को
चाटने लगा। फफर अपनी जीभ आगे बढ़ाते हुए उनकी गदफ न को चाटते हुए अपने होठों को उनके कानों तक ले
गया और अपने दोनों हाथों में दोनों चधचयों को थामकर फुसफुसाते हुए बोला- “बहुत मीठा है तेरा दि…”
कासमनी आंटी भी उसकी गदफ न में बांहें डाले अपने से धचपकाये फुसफुसाती हुई बोली- “हाये और चस बेटा
खोलकर चस…”
इतना सन
ु ना था की ररि ने कासमनी आंटी को बबस्तर पर सलटाते हुए जल्दी से ब्लाउर्ज के बटन चटकाते हुए
खोल हदये। ब्लाउर्ज के दोनों भागों को दो तरफ करते हुए उनकी काले रं ग की ब्रा को खोलने के सलये अपने दोनों
हाथों को कासमनी आंटी की पीठ के नीचे घस
ु ाया तो उनहोंने अपने आपको अपने चतड़ों और गदफ न के सहारे
बबस्तर से थोड़ा सा ऊपर उठा सलया।
कासमनी आंटी की दोनों चधचयां ररि की छाती में दब गई। चधचयों के कठोर ननप्पल ररि की छाती में चुभने लगे
तो ररि ने पीठ पर हाथों का दबाव बढ़ाकर कासमनी आंटी को और जोर से अपनी छाती से धचपका सलया और
उनकी कठोर चधचयों को अपनी छाती से पीसते हुए िीरे से ब्रा के हुक को खोल हदया। कसमसाती हुई कासमनी
आंटी ने उसे थोड़ा सा पीछे िकेला और ब्लाउर्ज उतार हदया। फफर तफकये पर लेटकर ररि की ओर दे खने लगी।
ररि कांपते हाथों से ब्रा उतारकर दोनों गदराई गठीली चधचयों को अपने हाथ में भर िीरे से बोला- “5-5 फकलो के
पपीते हैं। बड़े मस्त हैं माूँ…”
इतना कहकर ररि ने उनहें हल्के से दबाया तो गोरी चधचयों का रं ग लाल हो गया। ररि ने सपने में भी नहीं
सोचा था की उसकी माूँ की चधचयां इतनी सख्त और गद
ु ाज होंगी। रश्मम जैसी कमससन लड़की और अपनी माूँ
जैसी खेली खाई औरत का अंतर आज उसे पता चल गया।
कासमनी आंटी की आूँखें निे में डुबी लग रही थी। ररि ने उनके बगल में लेटते हुए उनहें अपनी तरफ घम ु ा सलया
और उनके रस भरे होठों को अपने होठों में भरकर नंगी पीठ पर हाथ फेरते हुए अपनी बाहों के घेरे में कस जोर
से धचपका सलया।
करीब पांच समनट तक दोनों माूँ-बेटे एक दसरे से धचपके हुए एक दसरे के मूँह
ु में जीभ ठे ल-ठे ल कर चुम्मा-चाटी
करते रहे । जब दोनों अलग हुए तो हांफ रहे थे और दोनों की आूँखों की िमफ अब िीरे -िीरे कम होने लगी थी।
ररि ने कासमनी आंटी की चधचयों को फफर से दोनों हाथों में थाम सलया और उनके ननप्पल को चट
ु की में
पकड़कर मसलते हुए एक चची के ननप्पल से अपनी जीभ को लड़ाने लगा। कासमनी आंटी भी अपने एक हाथ से
चची को पकड़कर ररि के मह ूँु में ठे लने की कोसिि करते हुए सससयाते हुए चसवा रही थी। बारी-बारी से दोनों
चधचयों को मसलते चसते हुए ररि ने दोनों चधचयों को लाल कर हदया।
101
ररि का जोि और चसने का तरीका कासमनी आंटी को पागल बना रहा था। रश्मम और दसरी लड़फकयों को
चोदकर ली हुई रे ननंग का फायदा उठाते हुए ररि कासमनी आंटी की चची चसते हुए उनहें और गरम कर रहा था।
कासमनी कभी ररि के ससर के बालों को सहलाती कभी उसकी पीठ को, कभी उसके चतड़ों तक हाथ फेरती बोली-
“अभी… आह्ह… अच्छे से चस… बेटा… हां ऐसे ओफ्फ्फ… हाूँ सम्भाल…”
तभी ररि ने अपने दांतों को उनकी चधचयों पर गड़ाते हुए ननप्पल को खींचा।
कासमनी तो ददफ से कराहती बोली- “कुत्ते… आराम से चस… उस रण्डी रश्मम का ऐसे चबाना… उफफ्फ… िीरे से
चस… चस… उफफ्फ… बेटा ननप्पल को होठों के बीच दबाकर िीरे से… नहीं तो छोड़ दे …”
कासमनी आंटी भी ममु कुराती हुई िीरे से बोली- “कमीना…” और दोनों हाथों में बेटे के चेहरे को भरती हुई उसके
होठों और गालों को बेतहािा चमती हुई उसके गाल पर अपने दांत गड़ा हदये।
हूँसती हुई कासमनी बोली- “बोल अब कैसा लगा? अपनी माूँ के साथ ऐसे करता है …”
ररि ने भी अपन गाल छुड़ाकर उनके गाल पर दांत काट सलया और बोला- “तम
ु भी तो अपने बेटे के साथ…”
दोनों अब बेिमफ हो चुके थे। ररि की खझझक अब जा चुकी थी। ररि अपने हाथ को चधचयों पर से हटाकर नीचे
जांघों पर ले गया और टटोलते हुए अपने हाथ को जांघों के बीच डाल हदया। चत पर पेटीकोट के ऊपर से हाथ
लगते ही कासमनी आंटी ने अपनी जांघों को भींचा तो ररि ने जबरदस्ती अपनी परी हथेली जांघों के बीच घस
ु ा दी
और चत को मठ्
ु ठी में भरकर पकड़ कर मसलते हुए बोला- “अपना भोसड़ा हदखा न…”
परी चत को मसले जाने पर कसमसा गई कासमनी आंटी फुसफुसाती हुई बोली- “अरे तो क्ट्या मादरचोद… बनेगा?
आह्ह्ह…”
ररि समझ गया की गनदी बातें करने में माूँ को मजा आ रहा है, कहा- “जब लण्ड डालूँ गा तब मादरचोद बनूँगा…
अभी तो केवल हदखाने के सलए कहा है । हदखा न…” ये कहते हुए ररि ने कासमनी आंटी की चत को पेटीकोट के
ऊपर से और जोर से मसला।
102
ररि कराहते हुए बोला- “आह्ह… जान लेगी क्ट्या? आह्ह… ओफ्फ्फ…”
लण्ड को हथेली में कसकर जकड़कर मरोड़ती हुई कासमनी बोली- गिे का लण्ड है क्ट्या?
ररि- “है तो… तेरे बेटे का… मगर गिे के… जैसा…” ररि चत की दरार में पेटीकोट के ऊपर से उं गली चलाते हुए
बोला- “तम्
ु हारी चत पानी फेंक रही है…”
कासमनी- जल्दी कर और खद
ु भी हो जा।
झट से बैठते हुए ररि ने अपनी अंडरपवयर उतारकर एक तरफ फेंकी तो उसका 8” इंच का तमतमाता हुआ लण्ड
कमरे की रोिनी में कासमनी आंटी की आूँखों को चौंधिया गया। उठकर बैठते हुए हाथ बढ़ाकर उसके लण्ड को
फफर से पकड़ सलया और चमड़ी खींचकर उसके पहाड़ी आल जैसे लाल सप
ु ाड़े को दे खती बोली- “हाय रश्मम ठीक
बोलती थी… त बहुत बड़ा हो गया है … तेरा केला तो… छे दफाड़ दे गा…”
ररि कासमनी आंटी की साड़ी तो पहले ही उतार चुका था। अब पेटीकोट के नाड़े को हाथ में पकड़कर झटके के
साथ खोलते हुए बोला- “फसवायेगी न मझ
ु से बोल न?”
कासमनी आंटी ने अपनी गाण्ड उठाकर पेटीकोट को गाण्ड के नीचे से सरकाते हुए ननकाल हदया। इस काम में
ररि ने भी उनकी मदद की और सरसराते हुए पेटीकोट को उनके पैरों से खींच हदया। कासमनी आंटी लेट गई और
अपनी दोनों टांगों को घट
ु नों के पास से मोड़कर फैला हदया। दोनों माूँ-बेटे में से कोई भी अब रुकना नहीं चाहता
था। कासमनी आंटी की चमचमाती जांघों को अपने हाथ से पकड़कर थोड़ा और फैलाते हुए ररि ने अपना मूँह
ु
लगाकर चमते हुए उनकी चत के ऊपर एक जोरदार चुम्मा सलया और बरु के दाने को मूँह
ु में भरकर खींचा तो
कासमनी आंटी लहरा गई। चत के दोनों होंठों ने अपने मूँह
ु खोल हदये।
दरार में जीभ चलने पर मजा तो आया था मगर आंटी को लण्ड लेने की जल्दी थी। जल्दी से ररि के ससर को
पीछे िकेलती बोली- “जल्दी से डाल दे …”
103
ररि ने पननयायी चत की दरार पर अपने सप
ु ाड़े की मनु डी पर लगा दी और अपने चमचमाते सप
ु ाड़े को कासमनी
आंटी को हदखाता बोला- “माूँ दे ख मेरा डण्डा… तेरे छे द में …”
कासमनी- “खबरदार जो चुदाई के वक़्त माूँ माूँ फकया… जल्दी से… पेल दे मेरे छे द में …”
अपने लण्ड के सप
ु ाड़े को चत के छे द पर लगाकर परी दरार पर ऊपर से नीचे तक चलाकर बरु के होठों पर लण्ड
रगड़ते हुए ररि बोला- “तो बोल रं डी पेल दं परा?”
कासमनी- “अरे क्ट्या स्टै म्प पेपर पर सलख कर दं ? अब और मत तड़पा डाल दे जल्दी से…”
कासमनी- बकचोदी छोड़। फड़वाने के सलये तो खोलकर तेरे नीचे लेटी हूँ जल्दी कर…” वासना के अनतरे क से
कांपती आवाज में कासमनी आंटी बोली।
लण्ड के लाल सप
ु ाड़े को अपनी माूँ की चत के गल
ु ाबी छे द पर लगाकर ररि ने कच्च से िक्ट्का मारा। सप
ु ाड़ा
चार इंच लण्ड के साथ चत के छे द को कुचलता हुआ अनदर घस
ु गया।
ररि के ससर के बालों में हाथ फेरती हुई उसको अपने से धचपकाकर भराई आवाज में आंटी बोली- “अरे इतने में
मेरा क्ट्या होगा? अआह्ह… परा डाल दे … बेटा चढ़ जा जल्दी…”
ररि ने अपनी कमर को थोड़ा ऊपर खींचते हुए फफर से अपने लण्ड को सपु ाड़े तक बाहर ननकालकर िक्ट्का मारा।
इस बार का िक्ट्का जोरदार था। कासमनी आंटी को मजा आ गया। इतने हदनों से उनहोंने लण्ड नहीं खाया था,
पर आज जब चत के अनदर जब तीन इंच मोटा और आठ इंच लम्बा लण्ड जड़ तक घस
ु ा तो उनके सीने में
ठण्ड पड़ गई। अपने होठों को भींचकर ददफ को पीने की कोसिि करते हुए आंटी ने अपने हाथों के नाखन ररि की
पीठ में गड़ा हदये।
ररि- “क्ट्या छे द है तेरा कुनतया… मजा आ गया…” ये कहते हुए उनने एक िक्ट्का और मारा और चत के पानी में
फफसलता हुआ परा लण्ड आंटी की चत में जड़ तक उतरता चला गया।
कासमनी- “इसी छे द से ननकला था त। आह्ह्ह… आज चोद रहा है इसे ओफ्फ्फ्फ… क्ट्या फकममत है तेरी अआह्ह…
बहुत बड़ा है तेरा… उफफफ़् … मेरे चचे चसते हुए िक्ट्के मार आह्ह…”
ररि ने एक चची को अपनी मठ् ु ठी में जकड़कर मसलते हुए दसरी चची पर मूँह
ु लगाकर चसते हुए िीरे -िीरे
एक-चौथाई लण्ड खींचकर िक्ट्के लगाता पछा- “फकससे फकससे पपलवाती थी बता?”
104
कासमनी- “हरामी कुत्ते, वो बोलता था और त सन
ु ता था? मैं कोई रं डी हूँ जो सबसे चुदं गी…” गस्
ु से से ररि के
चतड़ पर मक्ट्
ु का मारती हुई बोली।
“बात तो सन
ु सलया कर कुनतया…” झल्लाते हुए ररि चार-पांच तगड़े िक्ट्के लगाता हुआ बोला।
तगड़े िक्ट्कों ने कासमनी आंटी को परा हहला हदया। चधचयां थरथरा गईं, मोटी जांघों में कम्पन पैदा हो गया,
थोड़ा ददफ हुआ मगर मजा भी आया, क्ट्योंकी चत परी तरह से पननया गई थी और लण्ड गच-गच फफसलता हुआ
अनदर-बाहर हो रहा था। अपने पैरों को ररि की कमर से लपेटकर बोली- “उफफ्फ… सीईई हरामी दख
ु ा हदया ना…
हाूँ बोल…”
ररि कुछ नहीं बोला। लण्ड अब आराम से फफसलता हुआ अनदर-बाहर हो रहा था। इससलये वो अपनी माूँ की
टाइट गद्दे दार रसीली चत का रस अपने लण्ड की पाइप से चसते हुए गचा-गच िक्ट्के लगा रहा था।
कासमनी आंटी को भी अब परा मजा आ रहा था। लण्ड सीिा उनकी चत के अखखरी फकनारे तक पहुूँचकर ठोकर
मार रहा था। िीरे -िीरे गाण्ड उचकाते हुए सससयाती हुई बोली- “बोल ना जो बोल रहा था…”
ररि- “मैं तो… बोल रहा था की अच्छा हुआ… जो फकसी और से नहीं करवाया। नहीं तो मझ
ु े तेरे टाइट… छे द की
जगह… ढीला छे द…”
कासमनी- “चुप कर… कमीने… दसरे से करवाकर मैं बदनाम होती… साले घर की बात और है…” कासमनी बेटे के
सामने सती सापवरी बनती हुई बोली।
ररि- “हाूँ… घर की बात घर में रहे … फफर आठ इंच के हधथयार वाला बेटा फकस हदन काम आयेगा? ठीक फकया
तने… बचा कर रखा… मजा आ रहा है…”
कासमनी- “हाय… बहुत मजा आ रहा है, पेलता रह… वो हरामजादी रश्मम मजे लटे और मैं?”
ररि- “हाय मेरी रांड़ अब रश्मम को छोड़ दे …” गपा-गप लौड़ा पेलता हुआ ररि सससयाते हुए बोला।
ररि का लण्ड कासमनी आंटी की बरु की हदवारों को बरु ी तरह से कुचलता हुआ अनदर घस
ु ते समय चत के छे द
को परा चौड़ा कर दे ता था और फफर जब बाहर ननकलता था तो चत के होंठ अपने आप ससकुड़कर छे द को फफर
से छोटा बना दे ते थे। बड़े होठों वाली गद
ु ाज चत होने का यही फायदा था। हमेिा गद्दे दार और टाइट रहती थी।
ऊपर के रसीले होठों को चसते हुए नीचे के होठों में लौड़ा िंसाते हुए ररि तेजी से अपनी गाण्ड उछालकर
कासमनी आंटी के ऊपर कद रहा था।
105
कासमनी- “हाये तेरा केला भी… बहुत मजेदार है … मैंने आज तक इतना लम्बा डण्डा… सीसीसीईई… हाये डालता रह
ऐसे ही… उफफ्फ… मगर अब आराम से… हाय… अब फाड़ दे … डाल परा डाल कर चोद मादरचोद… बहुत पानी फेंक
रही है मेरी चत…” आंटी नीचे से गाण्ड उछालती ररि के चतड़ों को दोनों हाथों से पकड़कर अपनी चत के ऊपर
दबाती गप-गप लौड़ा खा रही थी।
कमरे में बाररि की आवाज के साथ कासमनी आंटी की चत के पानी में फच-फच करते हुए लौड़े के अनदर-बाहर
होने की आवाज भी गूँज रही थी। इस सह
ु ाने मौसम में दोनों माूँ-बेटे जवानी का मजा लट रहे थे। कहां तो ररि
मठ
ु मारते पकड़े जाने पर डर रहा था, वहीं अभी खुिी से गाण्ड उछालते हुए अपनी माूँ की टाइट पावरोटी जैसी
फली चत में लौड़ा पेल रहा था।
उिर कासमनी आंटी नंगी अपने बेटे के नीचे लेटकर उनके तीन इंच मोटे और आठ इंच लम्बे लौड़े को कच-कच
खाते हुए अपने बेटे के बबगड़ने की खुसियां मना रही थी। अखखरकार, हो भी क्ट्यों ना… अब वो घर के अनदर
श्जतनी मजी उतना चद ु वा सकती थी।
ररि- “हाय… बहुत मजेदार है तेरा छे द… उफफ्फ… हाय अब तो… हाय रं डी मजा आ रहा है अपने बेटे का डण्डा
खाकर… सीऽऽऽ हाये पहले ही बताया होता तो… अब तक फकतनी बार तेरा रस पी लेता। तेरा छे द पेल दे ता…
सीईई तेरी गाण्ड का छे द खोल दे ता… रण्डी खा अपने बेटे का लण्ड… हाये बहुत मजा हाय… अब बरदामत नहीं हो
रहा… मेरा तो ननकल जायेगा… सीईई… पानी फेंक दं तेरी… चऽत में ? सससयाते हुए ररि बोला।
नीचे से िक्ट्का मारती और ऊपर से िका-िक लौड़ा खाती कासमनी आंटी भी अब चरम-सीमा पर पहुूँच चक
ु ी थी।
गाण्ड उछालती हुई अपनी टांगों को ररि की कमर पर कसती धचल्लाई- “मार… मार ना भोसड़ीवाले… मेरे लाल
मार… अपनी रं डी की चत फाड़ दे … हाये… मेरा भी अब पानी फेंक दे गा… परा लण्ड डालकर चोद दे … अपनी
कुनतया की बरु … हाय… सीईई अपने घोड़े जैसे लौड़े का पानी डाल दे … पेल दे ऽऽ माूँ के लौड़े। बहनचोद… मेरी चऽत
में …” यही सब बकते हुए आंटी ने ररि को अपनी बाहों में कस सलया।
आिे घनटे बाद जब कासमनी आंटी को होि आया तो खुद को नंगी लेटी दे खकर हड़बड़ाकर उठ गई। चद
ु ाई का
निा उतरने के बाद होि आया तो अपने पर बड़ी िमफ आई। बगल में बेटा भी नंगा लेटा हुआ था। उसका लटका
हुआ लौड़ा और उसका लाल सप ु ाड़ा उनके मन में फफर से गद
ु गद
ु ी पैदा कर गया।
आहहस्ते से बबस्तर से उतरकर अपने पेटीकोट और ब्लाउर्ज को फफर से पहन सलया और ररि की अंडरपवयर
उसके ऊपर जैसे ही डालने को हुई की ररि की आूँखें खल
ु गई। अपने ऊपर रखी अंडरपवयर का अहसास ररि को
हुआ तो ममु कुराते हुए उसे पहन सलया।
106
कासमनी आंटी भी िमाफत-े सकुचाते थोड़ी दर बैठ गई। दोनों माूँ-बेटे एक दसरे से आूँख समलाने की हहम्मत जट
ु ा
रहे थे। चुदाई का निा उतरने के बाद जब हदल और हदमाग दोनों सही तरह से काम करने लगा तो अपने फकये
का अहसास हो रहा था। थोड़ी दे र तक तो दोनों में से कोई नहीं बोला, पर फफर ररि िीरे से सरक कर कासमनी
आंटी की ओर घम गया और उनके पेट पर हाथ रख हदया और िीरे -िीरे हाथ चलाकर सहलाने लगा।
कासमनी आंटी ममु कुराते हुए उसकी तरफ घम गई। ररि उनके पेट को हल्के-हल्के सहलाते हुए िीरे से उनके
पेटीकोट के लटके हुए नाड़े के साथ खेलने लगा। नाड़े से खेलते-खेलते ररि ने अपनी उं गसलयां िीरे से पेटीकोट
के नाड़े के गैप के अनदर सरका कर चलाई तो गद
ु गद
ु ी होने पर उसके हाथ को हटाती आंटी बोली- “क्ट्या करता
है , हाथ हटा…”
ररि ने हाथ वहां से हटाकर कमर पर रख हदया और थोड़ा और आगे सरक कर कासमनी आंटी की आूँखों में
झांकते हुए बोला- मजा आया?
ररि समझ गया की अभी पहली बार है थोड़ा तो िमाफयेगी ही। उनकी नाभी में उं गली चलाता हुआ बोला- “मझ
ु े
तो बहुत मजा आया… बताओ ना तम्
ु हें कैसा लगा?”
ररि- “क्ट्यों? बता ना माूँ…” कहते हुए उनके होठों को हल्के से चम सलया।
कासमनी आंटी उसको पीछे िकेलते हुए बोली- “हट बदमाि… तने अब तक फकतनों के साथ?”
ररि एक पल खामोि रहा फफर बोला- “क्ट्या माूँ? फकसी के साथ नहीं…”
कासमनी- “चल झठे , रश्मम के साथ तो मैंने ही दे खा है। सच-सच बता?” कहते हुए फफर उसके हाथ को अपने पेट
पर से हटाया।
ररि ने फफर से हाथ को पेट पर रख। उनकी कमर पकड़कर अपनी तरफ खींचते हुए कहा- सच बताऊूँ?
कासमनी- “हाये राम… इतनी सारी? कैसे फांसता है त इतनी लड़फकयों को?”
ररि- “मैं नहीं फांसता मेरा लण्ड फांसता है । फफर कुछ तो सच में रं डडया थीं। पैसे के सलए चद
ु वाती थीं…” कहते
हुए ररि ने कासमनी आंटी को कमर से पकड़कर कसकर भींचा। उसका खड़ा हो चुका लण्ड सीिा कासमनी आंटी
की जांघों के बीच दस्तक दे ने लगा।
ररि ने अपनी एक टांग उठाकर उनकी जांघों पर रखते हुए उनके पैरों को अपने दोनों पैरों के बीच करते हुए
लण्ड को पेटीकोट के ऊपर से चत पर सटाते हुए उनके होठों से अपने होठों को सटाकर आंटी का मूँहु बनद कर
हदया। रसीले होठों को अपने होठों के बीच दबोचकर चसते हुए अपनी जीभ को उनके मूँह
ु में ठे लकर उनके मूँह
ु
में चारों तरफ घम
ु ाते हुए चम्
ु मा लेने लगा।
कासमनी ररि के हाथों को अपनी चधचयों पर से हटाती हुई बोली- “इस्स्स… क्ट्या करता है ?”
लौड़े की गरमी पाकर कासमनी का हाथ अपने आप लण्ड पर कसता चला गया- “तेरा मन नहीं भरा क्ट्या?” लण्ड
को परी ताकत से मरोड़ती दांत पीसती आंटी बोली।
108
ररि जबरदस्ती उनके ऊपर आकर हाथ को उनकी जांघों के बीच ठे लता हुआ बोला- “बस एक बार और दे खो न
कैसे खड़ा है?”
कासमनी आंटी जब तक उसकी कलाई पकड़कर रोकने की कोसिि करती, तब तक ररि का हाथ उनकी जांघों के
बीच चत तक पहुूँच चुका था। चत की फांकों के बीच से रास्ता खोजते हुए चत के छे द में बीच वाली उं गली को
िकेला। कासमनी आंटी की चत पननया गई थी। थोड़ा सा ठे लने पर ही उं गली कच्च से बरु में घस ु गई। दो-तीन
बार कच-कच उं गली चलाता हुआ ररि बोला- “पननया गई है तेरी चत… आराम से जायेगा… इस बार धचकनी हो
गई है तेरी चत…”
ररि भी हूँस पड़ा और उनकी चची को पकड़कर कसकर दबाकर दांत पीसते बोला- “बस एक बार और…”
कासमनी- “नहीं सीईई… कमीने छोड़… घड़ी दे ख क्ट्या टाईम हुआ है?” कासमनी आंटी ररि के हटाते हुए बोली।
अगली सब
ु ह कासमनी आंटी को लगा की कोई उनकी चत चाट रहा है तो अचानक उनकी आूँख खुल गई तो
उनहोंने दे खा की ररि परा नंगा उनके बबस्तर पर बैठा बड़े मजे से उनकी चत चाट रहा है । आंटी की आूँखों के
सामने रात का परा नजारा घम गया और उनको िमफ सी महसस हुई, पर ररि श्जस तनमयता से चत चाट रहा
था उनका मन नहीं हुआ उसको हटाने का।
कासमनी- “अरे छोड़ न बेिमफ आह्ह… हट भी, बड़ा अच्छा तरीका ननकाला जगाने का… आह्ह…”
109
ररि ने दरवाजा खोला तो सामने ररक्ट्की खड़ी थी।
ररक्ट्की को दे खकर ररि का मड खराब हो गया, उसने पक्ट्का मन बनाया था की परे हदन कासमनी को नंगा करके
चोदे गा, इसीसलए वो सब
ु ह जल्दी उठकर नहा िोकर झांटें बनाकर तैयार हो गया था। वो धचढ़कर बोला- “अरे तेरी
सहे ली के भाई की िादी तो आज ही है न… तो त वापस कैसे आ गई?”
ररि भी पीछे -पीछे रूम में गया और बोला- “त उनहीं के साथ चली जा न श्जनके साथ आई है । मझ
ु े कुछ काम
है …”
ररक्ट्की अपने कपड़े पैक करती हुई बोली- “अब नखरे मत करो भैय्या। वो तो फकसी और काम से आगे चले
जायेंगे और िाम तक वापस आएंगे और मझ ु े दोपहर में रुची के साथ ब्यटी पालफर जाना है । अब जल्दी करो और
मझ
ु े छोड़ आओ…”
ररि मन मारकर बाइक की चाभी उठाता हुआ बोला- “मम्मी नहा रही है । मैं उनको बोलकर आता हूँ। त एक बार
ठीक से दे ख ले की कुछ और तो नहीं भली?”
ररि ने बाथरूम का दरवाजा खटखटाया तो कासमनी अनदर से बोली- कौन आया है ररि?
ररि- “ररक्ट्की है मम्मी। अपनी ड्रेस भल गई थी वोही लेने आई है । मैं उसे वापस छोड़ने जा रहा हूँ। एक काम
और भी है, वो करके लौटं गा। लौटते हुए िाम हो जाएगी…”
उिर ररि सोच रहा था की मम्मी कहाूँ जा रही है? ररक्ट्की को छोड़ने जब रुची के घर तक जा ही रहा हूँ तो
पास ही में रश्मम का घर भी है । वहां भी चांस ले लूँ गा। अगर मौका लगा तो एक दो राउं ड रश्मम की चद
ु ाई करके
ही वापस आऊूँगा। मम्मी के साथ तो परी रात बबतानी है ।
110
इससलए कासमनी केवल एक गाउन पहनकर बाहर आ गई। उनहोंने ब्रा और पैंटी नहीं पहनी थी और उनकी क्ट्लीन
िेहड चत और पपीते साइज की चधचयां साफ नजर आ रही थीं।
वासना की आग में जल रही आंटी को और कुछ समझ में नहीं आया तो उनहोंने अलमारी खोलकर अपने पनत
की िराब की बोतल ननकाल ली। इससे पहले उनहोंने कभी कभार अंकल का साथ दे ने के सलए एक आि ससप ही
सलया था, पर आज उनहोंने परा एक पेग बनाकर नीट ही गटक सलया। पर िराब उनके गले को जलाते हुए उनके
जलते हुए श्जमम में उतर गई।
पर इस िराब ने उनके बदन की आग को और भड़का हदया। आंटी जाकर अपने बेड पर लेट गई और अपनी
चधचयां दबाने लगी। जैस-े जैसे िराब का निा उनपर छाने लगा उनकी चद
ु ने की इच्छा और बढ़ती गई।
आखखरकार, वो बेड से उठी और उनहोंने फोन पर मेरे घर का नंबर घम
ु ाया और घंटी बजते ही रश्मम दीदी ने
फोन उठाया।
कासमनी- “उसे जल्दी से मेरे घर भेज दो। उसे कहो फौरन आ जाए। बहुत जरूरी काम है …” इतना कहकर आंटी
ने फोन रख हदया।
रश्मम दीदी ने मझ ु े बल
ु ाया और बोली- “मब
ु ारक हो। कासमनी आंटी के भोसड़े में बहुत आग लगी है, फौरन तम्
ु हें
बलु ाया है । जल्दी जाओ…”
रश्मम- “अरे जल्दी जा। चुदासी औरत को तड़पाना अच्छी बात नहीं है जा…” रश्मम दीदी ने लगभग िक्ट्के दे ते हुए
मझ ु को घर से बाहर ननकाल हदया। मोननका अचरज से दे ख रही थी की दीदी कैसे मझ ु े आंटी को चोदने के सलए
उकसा रही है ।
मैं आिे घंटे के अनदर कासमनी आंटी के घर के सामने खड़ा था। आज ररि की माूँ चोदने का मेरा सपना परा
होने वाला था। घंटी बजाते ही आंटी ने दरवाजा खोला। आंटी अभी भी ससफफ गाउन में ही थी। मेरा लण्ड पहले ही
इस ख्याल में अकड़ा था की िायद आज आंटी की फुद्दी समल जाये और सामने उनका गदराया बदन दे खकर
मेरा लण्ड एकदम सख्त हो गया।
111
उनकी बात सन
ु ते ही मैंने उत्तेजना से अपना हाथ आंटी की दाईं चची पर रखकर उसे कसकर दबा हदया। आंटी के
मूँह
ु से एक सीत्कार ननकल गई और मैंने आंटी को अपने आगोि में लेकर उनके होंठों पर अपने होंठ रख हदए।
मझु े बहुत अचम्भा हुआ क्ट्योंकी आंटी के मूँह
ु से िराब की महक आ रही थी। मैंने दे खा सामने टे बल पर एक
स्कॉच की बोतल सोडा और ग्लास रखा था।
कासमनी- “तने आने में इतनी दे र लगा दी और अनदर की आग जब बदाफमत नहीं हुई तो उसे बझ ु ाने के सलए एक
पेग मार ही सलया, पर इसने आग और भड़का दी। अब जल्दी से मझु े ठं डा करदे मेरे राजा। जल्दी…”
मैंने अपनी पैंट खोलकर सोफे पर बैठ गया और बोला- “क्ट्यों नहीं आंटी, इस हदन के सलए तो मैं भी बेकरार था।
आओ… चस लो मेरा लण्ड… ये कब से बेताब है…”
आंटी ने मझ
ु े बेडरूम में आने का इिारा फकया और हम दोनों बेडरूम में आ गए। आंटी बेड पर लेट गई और
अपनी चत में उं गली करने लगी और मैं आंटी की चधचयां चसने लगा। आंटी उत्तेजना से बेड पर मचलने लगी।
थोड़ी दे र बाद मैं उनकी चत चाटने लगा।
आंटी- “उं ह्ह… आअह्ह… मोन, बहुत मजा आ रहा है… जीभ अंदर डाल के करो ना आआह्ह्ह…”
आंटी और जोर से बेड पर तड़पने लगी- “आअह्ह… मैं एकदम तैयार हूँ, अब और इंतज
े ार नहीं होता… प्लीज…
अब लण्ड डालो ना…”
फफर मैंने आंटी को सीिा बेड पर सलटाया और उनके ऊपर चढ़ गया। अपना लण्ड हाथ में पकड़कर एक ही झटके
में परा अंदर घस
ु ा हदया। आंटी के मूँह
ु से सससकाररयां ननकलने लगीं, और मैं िीरे -िीरे लण्ड अंदर-बाहर करते हुए
उसे चोदने लगा। िीरे -िीरे मैं अपनी स्पीड बढ़ा रहा था।
और साथ ही आंटी की सससकाररयां भी तेज होती जा रही थीं- “आअह्ह… आआह्ह… ओह्ह… ऐसे ही, जोर से
चोदो… मेरी ले लो… मैं रं डी हूँ… मेरी मार लो… आआह्ह… मस्त लण्ड है तेरा… कुनतया की तरह, चोद मझ
ु …
े
आह्ह… फाड़ डाल… मैं झड़ रही हूँ… करते रहो ऐसे ही… आऽ आऽ आआह्ह्ह…”
मैं- साली, रं डी… कुनतया… ले और ले… आह्ह…” और फफर हम दोनों ने एक साथ चरम आनंद का अनभ
ु व फकया
और मैंने आंटी की चत के अंदर ही ननकाल हदया।
112
चुदाई के बाद थोड़ी दे र बाद आंटी उठी और बाहर जाकर उनहोंने एक पेग और बनाया। मैं भी उनके पीछे गया
और उनको दे खकर मेरा भी मन हुआ पीने का।
मैं बाथरूम के अंदर गया। अंदर आंटी िावर के नीचे नंगी खड़ी होकर िावर ले रही थी। उनहोंने एक बार नजर
उठाकर मेरी तरफ दे खा, एक हल्की सी स्माइल दी और फफर से आूँखें बंद करके िावर का मजा लेने लगी। मैं
जाकर िावर में आंटी के पीछे खड़ा हो गया और उनकी दोनों चधचयां पीछे से हाथ फैलाकर अपने दोनों हाथों में
भर ली और ननपल्स हल्के-हल्के मसलने लगा। मेरा लण्ड फफर से परा तन के खड़ा था और मैं अपने लण्ड को
आंटी की पविालकाय गाण्ड पर रगड़ रहा था।
आंटी- क्ट्या मेरी गाण्ड मारने का इरादा है? मोन हदल नहीं भरा क्ट्या अभी?
आंटी- “तम
ु इतना बेसब्र क्ट्यों हो रहे हो की मझ
ु े लेने बाथरूम में ही आ गये… अरे आआयययी… क्ट्या कर रहे हो,
मैं धगर जाऊूँगी…”
सीिा लेटकर आंटी ने अपनी टांगें मोड़ करके फैला दी। मैंने आगे बढ़कर अपने आपको कासमनी आंटी की टांगों
के बीच में पोजीिन फकया और अपने लण्ड की हटप को आंटी के उसी छे द पर रख हदया जहाूँ से ररि ननकलकर
इस दनु नयां में आया था और अपने दोनों हाथों को उनकी एक-एक चची पर रखकर उनको मसलते हुए और
113
अपनी बाडी का परा वजन आंटी की बाडी पर डालते हुए उनके ऊपर लेट गया और उसके होंठ और चेहरा चसने
लगा। मैंने आंटी के बदन को अपने हाथों रौंदते हुए अपना लण्ड फफर से आंटी की चत में घस
ु ा हदया। फफर मैंने
आंटी को िीरे -िीरे अंदर-बाहर करते हुए ठोंकना िरू
ु फकया।
इस बार मैं कुछ ज्यादा ही उतेश्ज्र्जत और बेददफ हो गया था। अपने दोनों हाथों को मैंने आंटी के सीने पर रखा
था और बाडी वेट और हाथों के प्रेिर से उनकी चधचयां रगड़ और मसल रहा था। उनके चेहरे और होंठों को जोर
से चस रहा था और बहुत ताकत से उसे चोद रहा था।
ऐसी हालत में आंटी को भी बहुत मजा आ रहा था और थोड़ा सा ददफ भी हो रहा था। वो ददफ और मजे की समली
जल
ु ी सससकाररयां, अपने मूँह
ु से ननकाल रही थी। थोड़ी दे र इस तरह ठोंकने के बाद में, आंटी के ऊपर से उठा
और आंटी को भी उठाया फफर उनहें डागी स्टाइल में पोजीिन फकया और उसकी कमर को पकड़कर ताकत से
पीछे खींचते हुए बहुत जोर से अपना परा लण्ड आंटी की चत में घस
ु ा हदया।
अब बेड पर मैं अपने घट ु नों पर खड़ा था और आंटी मेरे आगे कुनतया बनी हुई थी। मेरा लण्ड उनकी चत में था
और मैं उनको कमर से पकड़कर अपनी बाडी और लण्ड को श्स्थर रखकर उसकी बाडी आगे पीछे घसीटते हुए
चोद रहा था। थोड़ी दे र ऐसे चोदने के बाद मैंने फफर पोजीिन चें ज की और मैं सीिा लेट गया।
मैंने आंटी को अपने ऊपर लण्ड पर बबठाया और लण्ड उसकी चत में परा घस
ु ा हदया। अब आंटी मेरे ऊपर कद
रही थी और मैं उसकी चधचयां मसल रहा था। फफर से समिनरी पोजीिन में आकर मैंने आंटी को जोर-जोर से
ठोंकना िरू
ु फकया।
अब मैं भी झड़ने के करीब था तो मैंने लण्ड को आंटी की चत में से ननकाला और थोड़ा ऊपर की तरफ जाकर
उनके चेहरा पर रगड़ना िरू
ु फकया, कासमनी आंटी मेरी बाल्स चाट रही थी और मेरे लण्ड को पकड़कर रगड़ रही
थी। थोड़ी दे र में मेरे लण्ड ने भी पपचकारी छोड़ दी और मेरा वीयफ आंटी के परे चेहरे पर धगर गया।
कपड़े पहनकर आंटी बोली- “िरीर की भख िांत हो गई तो पेट की भख भड़क गई। चलो मोन कहीं चलकर कुछ
खाते हैं…”
मैं- “हाूँ चसलए न आंटी…” और हम दोनों बाहर खाने के सलए ननकल गए।
उिर दसरी तरफ जब ररि ररक्ट्की को लेकर रुची के घर को ननकला तो रास्ते का रै फफक और सड़क के गड्ढों से
उसे बार-बार बाइक के ब्रेक लगाने पड़ रहे थे। ब्रेक लगने से ररक्ट्की की चधचयां भी बार-बार उसकी पीठ में रगड़
रही थी। ररक्ट्की ने िायद ब्रा नहीं पहना था श्जससे उसकी नरम चधचयां ररि को साफ महसस हो रही थी। ररि
श्जसने रात भर अपनी माूँ कासमनी को नंगा करके चोदा था, अचानक उसके मन में ख्याल आया की काि मैं
ररक्ट्की को मम्मी के सामने परा नंगा करके चोदं तो।
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इस ख्याल से उसके लण्ड ने एक झटका खाया और वो िीरे -िीरे ऐंठने लगा। ररि के मन में फकसी तरह की
कोई दपु विा नहीं थी की ररक्ट्की उसकी छोटी बहन है । वो तो ससफफ चत और लण्ड का ररमता मानता था। उसे तो
आमचयफ हो रहा था की आज से पहले उसने इस बात पर ध्यान क्ट्यों नहीं हदया?
ररक्ट्की अपनी सहे ली के घर चली गई और ररि ने बाइक मेरे घर की तरफ मोड़ ली। वासना से उसका लण्ड
फटने को हो रहा था। उसने मेरे घर पहुूँचकर दरवाजा बेल बजाई। रश्मम दीदी ने सोचा की मैं बड़ी जल्दी वापस
आ गया। उनहोंने फौरन दरवाजा खोल हदया।
रश्मम- नहीं, पर तम
ु ?
इतना सन
ु ते ही ररि ने घर के अनदर आकर दरवाजा बंद फकया और रश्मम दीदी कुछ और बोल पाती इससे पहले
ही दीदी को बाूँहों में भरकर उनके होंठों पर अपने जलते हुए होंठ रख हदए। कौन आया है ये दे खने के सलए
मोननका भी कमरे से ननकलकर बाहर आ गई। ररि अचानक मोननका को दे खकर हड़बड़ा गया और उसने दीदी
को छोड़ हदया।
मोननका ने मन में सोचा की रश्मम तो परी रं डी है । न जाने फकतने यार बना रखे हैं इसने? और वो कमरे के
अनदर चली गई।
ररि- अरे मझ
ु े लगा कोई नहीं है घर में । ये कौन है ?
ररि- तम
ु ने मझ
ु े बताया नहीं। मस्त पटाखा है । मझ
ु े बजाना है यार। कुछ चक्ट्कर चलाओ न।
ररि रश्मम का हाथ अपने लण्ड पर रखते हुए- “अरे रात तक तो ये बेचारा भखा मर जायेगा। दे खो न फकतना
तड़प रहा है । तेरी कश्जन को कुछ समझा दे और बस आिे घंटे के सलए मेरे साथ ऊपर के कमरे में चल न…”
115
ररि- मेरी जान, अब अपने लण्ड की प्यास बझ
ु ाये बबना मैं कहीं नहीं जाने वाला।
रश्मम दरअसल मोननका के सामने अपने सारे पत्ते नहीं खोलना चाहती थी इसीसलए नाराज होते हुए बोली- “अरे
इतनी ही आग लगी थी तो फकसी कोठे पे चले जाते, या घर में अपनी माूँ बहन की चत से प्यास बझ ु ा लेत…
े ”
ररि- मेरी जान, माूँ को तो मैंने कल रात भर चोदा है और बहन घर पर नहीं थी वरना उसे भी नंगा करके
चोदता। और रही बात कोठे की तो त तो मेरी प्राइवेट रं डी है न। तो तेरा घर मेरे सलए तो कोठा ही है । चल
नखरे न कर। मैं ऊपर जा रहा हूँ, जल्दी से आ जा कुनतया।
मोननका- “तम
ु ज्यादा िरीफ बनने की कोसिि मत करो समझी? मैंने तम
ु दोनों की बातें सन
ु ली है । जाओ
जाकर मजे से उसका लण्ड खाओ। मेरे साथ एक ही बबस्तर पर अपने सगे भाई से चद
ु चक
ु ी हो फफर भी पता
नहीं क्ट्यों ये नाटक करती हो?”
रश्मम- वो मेरा बायफ्रेंड नहीं है । वो सच में मोन का दोस्त है । मेरे इसके साथ ररलेिन कैसे बने, वो लम्बी
कहानी है । पर इसकी चद
ु ाई करने का स्टाइल, इसका मोटा लम्बा लण्ड, इसका बदन है ही ऐसा की एक बार
चुदने के बाद बार-बार इससे चुदने का मन करता है । अगर त इसका लण्ड दे ख लेगी न तो मना नहीं कर
पायेगी। समझी।
रश्मम ने कुछ सोचा फफर वो बोली- “अरे मेरे साथ तो चल, अगर तेरा मन नहीं होगा तो ररि को तझ
ु े हाथ भी
नहीं लगाने दूँ गी, समझी?” और हूँसते हुए उसका हाथ पकड़कर ऊपर चल दी।
ररि- मदफ की जुबान है मोननका जी। आप बस दे खखये की रश्मम कैसे चुदेगी? रश्मम चल आ जा। दे ख मेरा लण्ड
कैसे फनफना रहा है? आकर िांत कर इसे। इिर आ, मेरे पास बैठ…”
रश्मम अपने कपड़े उतारकर िीरे से ररि की दोनों टांगों के बीच बैठकर हसरत से उसके काले लण्ड को ननहारती
है और अपना दायां हाथ आगे बढ़ाकर लण्ड को मठ्
ु ठी में भर लेती है । लण्ड को छते ही ररि और रश्मम दोनों
की सससकारी फट जाती है ।
रश्मम को अपनी चत में करें ट सा दौड़ता महसस होता है । उसके हाथ का दवाब ररि के लण्ड पर बढ़ जाता है ।
वह जोर-जोर से लण्ड को हहलाने लगती है । वो सोचती है ररि मोननका को चोदे बबना तो नहीं मानेगा पर दे खती
हूँ फक मोननका कैसे राजी होती है ? वह अभी यह सब सोच ही रही थी की ररि हाथ आगे बढ़ा रश्मम को बालों से
पकड़कर खींच लेता है और रश्मम उसके ऊपर लेट जाती है ।
मोननका पर भी ररि का हलब्बी लण्ड दे खकर एक निा सा हो जाता है वो रश्मम से बोली- “रश्मम चस ले न…
जल्दी कर…”
ररि- मोननका जी आप थोड़ी मदद कीश्जये न अपनी बहन की। मेरे लण्ड को पकड़कर इसके मूँह
ु में डासलए न।
ररि- अरे पकड़ने में क्ट्या होता है ? प्लीज मदद तो कीश्जये न रश्मम की।
ररि का लण्ड दे खकर मोननका की आूँखें तो वासना से लाल हो ही चुकी थीं। ररि और रश्मम ये दे ख रहे थे और
उसकी खझझक तोड़कर अपने साथ िासमल करना चाहते थे। ररि ने कभी थ्री-सम नहीं फकया था। आज वो मौका
जाने नहीं दे ना चाहता था।
उिर मोननका को भी लगा की ज्यादा िमफ की तो ये तगड़ा लण्ड हाथ से ननकल जायेगा। ये सोचकर मोननका
सरक कर ररि की जांघ के पास आती है , जैसे ही वह ररि के लण्ड को पकड़ने लगती है , ररि उसे रोक दे ता है ।
ररि- नहीं ऐसे नहीं मोननका जी। मैं और रश्मम एकदम नंगे हैं। ऐसे में आप अकेली कपड़े पहनकर बैठी हैं। मझ
ु े
बड़ा अजीब लग रहा है । क्ट्यों रश्मम, तझ
ु े भी अजीब लग रहा है न? एक काम कररये। अपने कपड़े उतार दीश्जये।
और फफर आकर मेरा लण्ड रश्मम के मूँह
ु में डासलए।
117
मोननका- अभी रहने दो कपड़े। दे खती हूँ थोड़ी दे र फफर उतार दूँ गी।
ररि समझ गया की उं गली टे ढ़ी फकये बबना घी नहीं ननकलेगा, वो बोला- “न न… ऐसे नहीं चलेगा। कपड़े तो
उतारने ही पड़ेंग…
े ” और उसने मोननका के कुते को हाथ बढ़ाकर गले से पकड़कर खींच सलया।
चरफ र की आवाज के साथ मोननका का कुताफ परा फट गया। मोननका ने ब्रा नहीं पहनी थी और वह केवल सट में
थी। कुताफ फटने से मोननका ऊपर से एकदम नंगी हो गई और उसकी चधचयां ररि के सामने छलकने लगती हैं।
मोननका अचानक कुताफ फटने से घबरा कर उठने लगती है ।
पर ररि उसे पकड़कर रश्मम से बोला- “रश्मम इसकी सलवार का नाड़ा खोल, नंगा कर इस कुनतया को। साली तेरी
चुदाई का मजा लेने वाली है ये। हमें भी तो कुछ दे खने को समलना चाहहए न?”
अब ररि मोननका के सलए भी गनदी जबान इमतेमाल कर रहा था। पर रश्मम तो ररि की बातों से मदहोि हो
चुकी थी। उसका लण्ड वो मूँह
ु में और चत में लेने को बेकरार थी। उसकी चत गीली होने लगी थी। हाथ बढ़ाकर
उसने मोननका की सलवार का नाड़ा खींच हदया।
मोननका चद
ु ने का मन तो बना चुकी थी पर ऐसे नहीं। उसको कुछ समझ नहीं आया की उसके साथ क्ट्या हो रहा
है ?
ररि- “चल सलवार उतार और जो कहा है वह कर…” ररि अब िीरे -िीरे अपने असली रं ग में आता जा रहा था।
ररि का यह रूप दे ख मोननका घबरा जाती है और एकदम से खड़ी हो जाती है । उसके खड़े होते ही सलवार सरफ र
करके उसके बदन का साथ छोड़ दे ती है । ररि उसे हाथ पकड़कर अपने पास खींचता है । मोननका जैसे ही उसके
पास आती है वह उसकी पैंटी को पकड़कर नीचे सरका दे ता है । अब तीनों एक दसरे के सामने जनमजात नंगे थे।
मोननका ने रश्मम के ससर को ररि के लण्ड पर जोर से दबा हदया। परा लण्ड रश्मम के मूँह
ु से होते हुए उसके
गले से टकरा गया। रश्मम के मूँह
ु से ग-ं गं की आवाज ननकलने लगी तो ररि ने मोननका को इिारा फकया की वो
रश्मम का ससर छोड़ दे । रश्मम भी उसके इिारे को समझकर लण्ड को अपने मूँह
ु में भरकर अंदर-बाहर करने लगी
और मोननका ने अपने हाथ रश्मम के ससर से हटा सलए और बैठकर फटी आूँखों से ररि के मसल लण्ड को रश्मम
के मूँह
ु की चद
ु ाई करते दे खने लगी।
118
मोननका के अपने बदन में भी अब वासना की चीहटंया रें गने लगी। उसकी चधचयां तन गई और उसका हाथ खुद-
ब-खद
ु अपनी चधचयों पर पहुूँच गया। ररि की नजर भी अब मोननका पर पड़ी और ररि ने उसके हाथों को
उसकी चधचयों से हटाया और अपने हाथों में भरकर जोर से दबा हदया। मोननका के मह
ूँु से एक जोर की
सससकारी ननकली तो रश्मम ने अपना चेहरा ऊपर उठाकर दोनों को दे खा।
ररि- “कुनतया त अपना काम करती रह। अगर एक पल के सलए भी मेरा लण्ड तेरे मूँह
ु से ननकला तो आज तेरी
चत में बांस डाल दं गा…”
रश्मम ममु कुराकर वापस लण्ड चुसाई में लग गई और परे जोर से लण्ड को मूँह
ु में भरकर अदं र बाहर करने लगी।
अब ररि मोननका की चधचयों के साथ खेलने लगा। कभी वो उसकी चधचयों को सहलाता कभी दबाता और कभी
नोचने लगता। मोननका भी अब जबरदस्ती के इस खेल का मजा लेने लगी थी। ररि ने अब अपनी गाण्ड उठाकर
रश्मम के मूँह
ु में िक्ट्के मारना चाल कर हदया और मोननका को खींचकर अपने ऊपर ले आया।
मोननका कई बार चद
ु चक
ु ी थी और यह बीता हफ्ता तो उसके सलए चद
ु ाई का एक तफान ले आया था श्जसमें वो
अपने सगे और मौसेरे भाई से एक साथ चुदी थी पर फफर भी उसके सलए यह जंगली अनभ
ु व एकदम नया और
असहनीय था। श्जस तरह ररि उसे इमतेमाल कर रहा था। मोननका के सलए यह सब बदाफमत से बाहर हो रहा था।
उसकी चत भट्टी की तरह जल रही थी और वह फकसी भी समय बहने वाली थी। उसकी चत में ऐसी आग पहले
कभी नहीं लगी थी। अब वह चुदना चाहती थी, अभी और इसी वक्ट्त, परी बेिमी और बेरहमी के साथ। हदमाग
पर श्जमम की गमी चढ़ चक
ु ी थी।
ररि बेड पर लेट जाता है और कहता है- “रश्मम त अपना काम चाल रख रं डी, फकतनी बार मेरा लण्ड खा चुकी
है , थोड़ा बहन का तो ख्याल कर। पर घबरा मत। दोनों को ही चोदं गा मैं लेफकन जो काम हदया है वह करती रह।
मोननका इिर आ डासलिंग, जरा अपनी चत मेरे मूँह
ु पर रख। दे खं जरा फकतनी आग लगी है तेरी इस चत में ?”
ररि के उसकी चधचयों को चसने से मोननका काम वासना से भर उठी थी। और ररि का इस तरह उसे हुक्ट्म
दे ना, उसकी गंदी गासलया मोननका को बहुत अच्छी लग रही थी। वो खेली खाई लड़की थी पर आज उसे कुछ
119
ज्यादा ही मजा आ रहा था। ररि की बात सन
ु कर मोननका एक झटके से उठ अपनी टांगों के सहारे ररि के चेहरे
के ऊपर बैठ गई और अपनी चत को उसके चेहरे पर रगड़ने लगी।
मोननका ने चुपचाप अपनी चत को ररि के होंठों पर रख हदया। ररि के होंठों का मोननका की चत के होंठों से
समलन होते ही मोननका के मूँह
ु से ससत्कार ननकल गई। रश्मम भी यह सब दे खकर और गमाफने लगी। एक हाथ से
ररि के लण्ड को पकड़कर वह मस्ती में भरकर ररि के लण्ड को कभी चमती, चाटती मूँह
ु में भरकर अंदर-बाहर
करने लगी।
ररि भी अब मस्ती में आ गया। रश्मम का कटीला बदन और मोननका का गदराया बदन दोनों उसके कब्जे में थे।
एक उसका लण्ड चस रही थी और दसरी उसके मूँह
ु पर बैठकर अपनी चत चुसवा रही थी। ररि अपना परा मूँह
ु
खोलकर मोननका की चत को मूँह
ु में भरकर चसने लगा।
और मोननका की आूँखें मस्ती में बंद हो गई। उसने एक हाथ से बेड का सहारा सलया और दसरे हाथ से अपनी
चधचयों को दबाने लगी। कमरे में चप-चप पच-पच की आवाजों के बीच-बीच मोननका की सससफकयां भी गज
ं ने
लगी और तीनों की वासना को और बढ़ाने लगी।
ररि- तो तझ
ु े पहले चुदना है कुनतया हाूँ, बोल हरामजादी?
ररि- तो ठीक है । रश्मम रं डी चल उठ अब लण्ड तेरी बहन चसेगी और मैं तेरी चत का स्वाद चखंगा। और
मोननका याद रखना कुनतया। अगर तझ
ु े चद
ु ना है तो चस के मेरे लण्ड का पानी ननकाल और पी। इसके बाद ही
चोदं गा। बोल मंजर है तझ
ु ?
े
रश्मम मोननका का यह रूप दे खकर है रान थी। ऐसा तो वो मोन और मनीर् के सामने नहीं कर रही थी। पर रश्मम
बबना कुछ बोले उठकर ररि के मूँह
ु पर उसी तरह बैठ गई जैसे कुछ दे र पहले मोननका बैठी थी। मोननका बबना
दे र फकए रश्मम वाली मद्र
ु ा में आ गई और बबना कुछ सोचे वह उस काले लण्ड के लाल सप
ु ाड़े को होंठों में लेकर
चसने लगी।
120
ररि अब रश्मम की चत को होंठों से चमने चाटने लगा। अब रश्मम की सससफकयां िरू
ु हो गई और वो अपने हाथों
से अपनी चधचयों को मसलने लगी। ररि अपनी जीभ को उसकी चत के होंठों से गाण्ड के छे द तक ले गया
श्जससे रश्मम के बदन में झरझराहट होने लगी। रश्मम ने दोनों हाथों को चत पर लेजाकर अपनी चत को फैलाया
और ररि ने भी बबना दे र फकए उसकी चत को चाटकर जीभ उसकी चत में अनदर तक घस
ु ा दी।
ररि को लगा की क्ट्या फकममत पाई है मैंने। रात भर कासमनी को चोदा और अब मोन की सगी और मौसेरी
बहनें एक साथ उससे चद
ु ने को बेताब थीं। एक तरफ मोन की बहन रश्मम परी बेिमी से अपनी चत में ररि की
जीभ का मजा ले रही थी, वहीं दसरी ओर मोन की मौसेरी बहन ररि के काले मसल लण्ड को परी इज्जत के
साथ अपने मूँह
ु में लेकर चस रही थी। बला की खबसरत और चेहरे से मासम सी हदखने वाली ये दोनों लड़फकयां
इस वक्ट्त फकसी पेिव
े र रं डडयों जैसी लग रही थी श्जनके सलए केवल एक ही िमफ है लण्ड।
मोननका की चत अब बेतरतीब बह रही थी, श्जसके कारण वो लण्ड को गहरे तक चस रही थी, ररि का लण्ड
मोननका के थक से सन गया था और मोननका के बढ़े वेग को ररि भी समझ गया। उसकी जीभ अब तेजी से
रश्मम की चत को गहरे तक चोदने में लग गई।
वह जल्दी से जल्दी रश्मम का चत रस पीना चाहता था श्जससे वो अपने हलब्बी लण्ड को इन दोनों की चत का
स्वाद दे सके। जीभ के गहरे तक चत में उतरने से रश्मम पगला सी जाती है , और अब उसके कल्हे हहलने लगते
हैं। चतड़ों को कसकर वह चत को ररि की जीभ पर घम
ु ाने लगती है । कुछ ही पलों में रश्मम का चतरस ररि की
जीभ से फफसलता हुआ उसके मूँह
ु में आ जाता है । ररि जीभ चत से ननकालकर चत को मूँह ु में भर लेता है और
उसके चत से बहते रस की एक-एक बद ं को परे स्वाद के साथ पी जाता है । रश्मम को काफी आराम समलता है
और वह उसके मूँह
ु से उठ जाती है ।
ररि अब उठकर बैठ जाता है और मोननका का चेहरा पकड़कर ऊपर करता है । उठकर जमीन पर खड़ा हो जाता
है । मोननका अब अपने घट
ु नों के बल बैठ जाती है । अब मोननका का चेहरा ठीक ररि के खड़े लण्ड के सामने था
श्जसे मोननका ललचाई ननगाहों से दे ख रही थी। वह समझ नहीं पा रही थी की ररि अब क्ट्या करने वाला है ।
ररि- तो रं डी तझ
ु े पहले चद
ु ना है ?
मोननका- “हाूँ, मेरे नीचे आग लगी है । अब तड़पाओ मत ररि प्लीज…” अपने होंठ को काटते हुए मोननका एक
हाथ से अपनी चची और दसरे हाथ से चत को रगड़ती है । इस वक्ट्त वह चुदने के सलए मरी जा रही थी।
ररि- तो जो बोलग
ं ा करे गी?
121
मोननका- “मैं ननकालग
ं ी, पपयग
ं ी और गाण्ड भी मरवाऊूँगी, पर मझ
ु े फौरन चोद दो। रं डी बना लो मझ
ु े अपनी।
आज इतना चोदो मझ
ु े की मेरी चत फट जाये, बबल्कुल वैसे जैसे गंदी फफल्मों में चोदते हैं…”
मोननका एकदम बबलबबला गई क्ट्योंकी न तो मनीर् का और न ही मोन का लण्ड इतना बड़ा था, पर चत की
आग के आगे वो बेबस थी। उसने मूँह
ु को और खोलकर ररि के लण्ड को ननगलने की कोसिि की। लेफकन ररि
का लण्ड इस वक्ट्त अपने परे आकार में आ चक
ु ा था, श्जससे मोननका की कोसिि नाकामयाब हो गई।
उिर ररि हवस में एकदम वहिी बन गया था। उसने मोननका के ससर को अपने लण्ड पर दबाकर लण्ड को एक
और जोरदार िक्ट्का मारा और इस बार के िक्ट्के के साथ ररि का परा लण्ड मोननका के मूँह
ु में घस
ु गया और
उसके गले पर टक्ट्कर मारने लगा।
मोननका इस िक्ट्के से परी तरह हहल गई। उसकी आूँखें बाहर ननकल आई और उसकी आूँखों में आंस आ गए।
उसने लण्ड को बाहर ननकालने के सलए ससर को पीछे करना चाहा लेफकन ररि की मजबत पकड़ ने उसे हहलने
भी नहीं हदया। कुछ पल रुकने के बाद ररि ने लण्ड को उसके मूँह
ु में हहलाया। मोननका को लगा की उसकी सांस
रुक सी गई है । मन ही मन वह अब पछता रही थी। इस तरह की बेरहमी की उसे उम्मीद नहीं थी। जब मोन
और मनीर् ने एक साथ उसे चोदा था तब भी उसे ऐसी तकलीफ नहीं दी थी। इतने में ररि ने लण्ड को वापपस
थोड़ा बाहर ननकाला श्जससे मोननका को थोड़ी राहत समली। लेफकन अगले ही पल ररि ने फफर से जोर का िक्ट्का
मारकर लण्ड को वापपस उसके मूँह
ु में पेल हदया।
रश्मम तो मन ही मन ररि के इस वहिीपन की मरु ीद थी, पर मोननका की हालत दे खकर उसे मजा आ रहा था।
उसे लगा काि इस वक़्त मनीर् यहाूँ होता तो अपनी बहन ही हालत दे खता।
अंडों पर होंठों का स्पिफ पाते ही ररि को उत्तेजना महसस होने लगी। वो समझ गया की अब वो फकसी भी वक़्त
झड़ जाएगा। यह महसस होते ही उसने दम लगाकर दो-तीन जोरदार िक्ट्के और लगाये और उसके लण्ड ने एक
जबरदस्त फहवारे के साथ परा वीयफ मोननका के मूँह
ु में झाड़ हदया। ररि का वीयफ मोननका के गले के नीचे उतर
गया। ररि ने अपना लण्ड जब मोननका के मूँह
ु से बाहर ननकाला तो कुछ वीयफ मोननका के मासम सद
ुं र चेहरे पर
भी बबखर गया।
ररि जब झड़ गया तो रश्मम उसके नीचे से हटकर खड़ी हो गई और मोननका के चेहरे पर ररि का वीयफ दे खकर
बबना दे री फकए मोननका के चेहरे पर धगरे ररि के वीयफ को चाटने लगी और पल भर में ही उसने उस वीयफ को
जीभ से चाटकर साफ कर हदया।
ररि उसे ऐसा करते दे ख ममु कुराते हुए बोला- “रश्मम, तने तो पेिव
े र रांड़ को भी मात दे दी है । क्ट्यं मोननका,
दे खी मेरी रे ननंग? त भी जब वापस अपने घर जाएगी तो ऐसी हो हो जाएगी। क्ट्यों मजा आया न तझ ु ?
े ”
मोननका- मनीर् मेरा सगा भाई, और मैं ही क्ट्या रश्मम भी तो मोन से चुदवा चुकी है ।
रश्मम- जब त चोद सकता है तो मेरा भाई क्ट्यों नहीं चोद सकता? साला खद
ु तो रात भर अपनी माूँ चोदी है और
मोन को हरामी बता रहा है।
ररि- काि मेरी बहन भी तेरे जैसी होती। पर कोई बात नहीं रात भर माूँ चोदी और मौका समलते ही बहन भी
चोद लेंगे। फफलहाल तो मोननका की चत की बारी है । रश्मम चल, मेरा लण्ड तैयार कर अपनी बहन के सलए।
इसके बाद तेरी चत का भी तो भोसड़ा बनाना है न, तब तेरी ये बहन मेरा लण्ड चसकर तेरी चत के सलए तैयार
करे गी।
रश्मम जल्दी से आगे बढ़कर ररि के लण्ड को सहलाने लगी फफर अपने घट
ु नों पर बैठकर उसके लण्ड को होंठों में
लेकर चसने लगी और कुछ दे र की मेहनत में ररि का लण्ड दोबारा अपने असली रूप में आ गया।
123
ररि ने अपना लण्ड रश्मम के मूँह
ु से ननकाला और मोननका को दे खा। वो एक हाथ से अपनी चधचयों को और
दसरे हाथ से अपनी चत को रगड़ रही थी।
ररि ने अब तक काफी औरतों को चोदा था। कुछ को फूँसाकर, कुछ को पैसे दे कर, और कुछ को रश्मम जैसे
जबरदस्ती भी। लेफकन पहली बार ही फकसी ने उसकी मदाफनगी को ललकारा था। मोननका की बातों ने ररि की
मदाफनगी के साथ-साथ उसके खड़े लण्ड को भी झकझोर हदया।
ताव में आकर वो मोननका की तरफ बढ़ा और उसकी दोनों टांगों के बीच आकर अपने लण्ड के सप
ु ाड़े को
मोननका की चत के होंठों पर रख हदया। ये समलन होते ही मोननका के लरजते होंठों से एक सीत्कार ननकली।
कुछ दे र अपना मसल लण्ड मोननका की चत पर रगड़ने के बाद ररि ने लण्ड बबना कोई चेतावनी हदए एक जोर
का झटका मारकर मोननका की चत में पेल हदया। आिा लण्ड चत की दीवारों से रगड़ खाता हुआ मोननका की
चत में उतर गया।
कहां मोननका की नाजुक चत और कहां ररि का मोटा मसल लण्ड। मोननका को अपनी चत फटती हुई महसस
होती है , जैसे फकसी ने जलती हुई लोहे की मोटी राड उसकी चत में घस
ु ा दी हो। असहनीय ददफ के मारे वह जोर
से चीख उठती है । उसे अपनी जान ननकलती महसस होती है ।
मोननका की आूँखों के आगे जैसे अंिेरा छा गया। उसने धचल्लाने के सलए जैसे ही मूँह
ु खोला वैसे ही रश्मम ने
पास आकर उसके मूँह
ु के ऊपर अपना मूँह
ु रख हदया और उसके होंठ चसने लगी।
उिर ररि ने फकसी वहिी की तरह मोननका की चत में लण्ड पेलना िरू
ु कर हदया। हर झटके के साथ मोननका
का कमनीय बदन कांप जाता था। कुछ ही झटकों में ररि का परा लंबा लण्ड मोननका की चत की गहराईयों में
गोते लगाने लगा। मोननका का बदन रह रहकर अकड़ने लगा। ररि के कुछ ही मदाफना झटकों से उसकी चत पानी
छोड़ दे ती है और वह ननढ़ाल होकर लेट जाती है । ददफ और कुछ कम हो जाता है , उिर ररि बबना रुके झटके पर
झटके दे रहा था। नई चत का जोि उसके ससर पर चढ़ा हुआ था।
लगातार 20 समनट तक मोननका की चत पर अपने लण्ड से जोरदार ठोंकरें मारने के बाद ररि ने अपने लण्ड का
परा वीयफ मोननका की चत में ही उगल हदया।
124
अपनी चत में गमफ-गमफ वीयफ को महसस करके मोननका का िरीर हरकत में आ गया। उसने आूँखें खोलकर ररि
को दे खा। ररि लण्ड को चत से ननकालकर ठीक उसके ऊपर खड़ा था और उसके लण्ड से वीयफ की कुछ बद
ं ें
टपक कर मोननका के पेट पर धगर गई।
ररि अब घट
ु नों के बल मोननका की टांगों के बीच बैठा था और उसने मोननका की गाण्ड के छे द पर एक उं गली
लगाई श्जससे मोननका थोड़ा बबदक गई।
उिर एक हाथ अपनी चत पर फफराते हुए रश्मम कहती है - “उसकी गाण्ड बाद में, पहले मझ
ु े चोद कमीने? दे ख
मेरी चत जल रही है । कहीं मोन न लौट आए…”
रश्मम ने आगे झक
ु कर ररि के लण्ड को अपने मूँह
ु में ले सलया। चुदाई के बाद ररि का लण्ड ढीला होने से
रश्मम ने उसका परा लण्ड बड़ी आसानी से अपने मह
ूँु में भर सलया और चाटकर साफ कर हदया।
ररि- चल, अब त मोननका की चत साफ कर और तेरी बहन को मेरा लण्ड चसने दे ताकी ये फफर से खड़ा हो
जाए तेरी चद
ु ाई के सलए।
रश्मम भी मोननका की चत में ररि के लण्ड की महक पाकर तड़प उठी और मोननका की टांगों को फैलाकर अपनी
जीभ उसकी चत में घस
ु ाकर चाटने लगी।
ररि ने मोननका के ससर को ऊपर उठाकर उसे अपना लण्ड चमने का इिारा फकया तो मोननका मूँह
ु खोलकर लण्ड
को मूँह
ु में लेकर चसने लगी। जीभ के स्पिफ से कुछ ही पलों में ररि के लण्ड में फफर से तनाव पैदा हो गया
और वो आकार लेने लगा। नीचे रश्मम मोननका के चत से बहते हुए ररि के वीयफ को परा चाट गई।
मोननका की चत का ददफ अब कुछ हल्का हो गया और वो परे मनोयोग से ररि के लण्ड को मूँह
ु में लेकर चसने
चाटने लगी और उसकी 10 समनट की मेहनत से ररि का लण्ड फफर से तनकर खड़ा हो गया और लण्ड का
सप
ु ाड़ा उसके गले को टक्ट्कर मारने लगा। अचकचा कर वो लण्ड को मूँह
ु से ननकाल दे ती है ।
125
मोननका- लो… हो गया तैयार रश्मम की चत कटने के सलए।
मोननका की बात सन
ु रश्मम झट से मोननका की बगल में अपनी टांगें फैलाकर लेट गई ओर ररि की तरफ दे खने
लगी। ररि मोननका के ऊपर से उठकर रश्मम की जांघों में बैठ गया। रश्मम की चत को ननहारते हुए वह एक हाथ
में अपने लण्ड को थामकर दसरे हाथ से वो रश्मम की चत को सहलाने लगा।
मोननका- ररि थोड़ा िीरे करो। मार डालोगे क्ट्या? दे खो वह बदाफमत नहीं कर पा रही।
ररि- अरे मड मत खराब कर। इसकी चधचयां दबा और इसके होंठ चस। जल्दी कर हरामजादी अब मैं इसकी चत
का भोसड़ा बनाकर इसकी चत को अपने लण्ड रस से भरने वाला हूँ।
ररि की बात सन ु कर मोननका तरुं त रश्मम की तनी हुई चधचयों को सहलाने लगी और अपने जलते हुए होंठ रश्मम
के होंठों पर रख हदये। ररि ने अपने जोरदार झटके मारना जारी रखा और लगातार 10-15 जोदरदार झटके और
मारते हुए ररि ने रश्मम की चत में अपना परा वीयफ भर हदया और रश्मम के बगल में लेट गया।
126
ररि ने तब तक मोननका को पकड़कर वापस बेड पर खींच सलया और बोला- “कहां चली कुनतया, भल गई अभी
तो तेरी गाण्ड भी फाड़नी है मझ
ु …
े ”
ररि- अरे रश्मम बहुत समझदार है । जो भी होगा वो उसे नीचे से ही टरका दे गी। वो जानती है की अभी तेरी
गाण्ड फटने वाली है ।
मोननका ये सोचकर बहुत परे िान थी की अगर ररि ने उसकी गाण्ड मारी तो पक्ट्का खन ननकाल दे गा। इतना
मोटा लण्ड गाण्ड में वो नहीं लेना चाहती थी। वैसे भी वो गाण्ड मरवाने में अभी एक्ट्सपटफ नहीं हुई थी और अपने
भाइयों को भी ज्यादा गाण्ड नहीं मारने दे ती थी। पर आज उसकी फकममत अच्छी थी क्ट्योंकी जब नीचे रश्मम ने
दरवाजा खोला तो सामने मोन कासमनी आंटी के साथ खड़ा था।
दरवाजा खोलते ही कासमनी आंटी दीदी से बोली- “त तो बड़ी रांड़ ननकली। हदन दहाड़े अपने यार से चुदवा रही
है । कहां है मेरा बेटा?” आंटी ने दीदी की चट
ु की ली। दरअसल उनका िराब का निा अभी परी तरह उतरा नहीं
था।
रश्मम- अरे आंटी वो तो ररि मोन से समलने आया है । ऊपर कमरे में है ।
पर तभी कासमनी आंटी हूँसने लगी और बोली- “हाूँ वो तो मोन से समलने ही आया होगा पर उसके लण्ड को
समली होगी तम्
ु हारी चत। मझ
ु से कहकर आया था की जरूरी काम है । ठीक भी है चद
ु ाई से ज्यादा जरूरी काम
क्ट्या हो सकता है? क्ट्यों मोन?”
मोन- अरे दीदी। हम लोग पास ही में लंच करने आये थे। मैं आंटी को वापस छोड़ने जा रहा था तो हमने दे खा
की ररि की बाइक बाहर खड़ी है तो आंटी बोली वो ररि के साथ ही वापस चली जाएंगी।
रश्मम- अच्छा तभी मैं कहूँ की आंटी को कैसे पता की ररि यहाूँ है ?
रश्मम- त तो उसे जानता ही है । तेरा ही तो दोस्त है । नई चत दे खने के बाद वो उसे छोड़ने वाला है क्ट्या? चोद
रहा है मोननका को।
127
मोन- “अरे आंटी दे ख लो, उसने रश्मम दीदी के साथ-साथ मोननका को भी चोद हदया। अब तो चाहे कुछ भी हो
मझ
ु े ररक्ट्की को चोदना ही है । अब तम
ु कुछ करो आंटी…”
रश्मम- “अरे छोटी वोटी कुछ नहीं है । दो-दो बायफ्रेंड बना रखे हैं उसने। एक अपनी दोस्त का भाई अंकुर और
दसरा उसकी ही क्ट्लास का लौंडा है जय। उसने खद
ु मझ
ु े बताया है की दोनों के साथ खब चमा चाटी की है
उसने। खब खचाफ करवाती है दोनों से। धगफ्ट ऐंठती है और बदले में चची दबवाती है , चत चटवाती है । यह बात
भी उसने मझ
ु े काफी पहले बताई थी। हो सकता है की चुदवा भी सलया हो अब तक?”
हम ये बात कर ही रहे थे की तभी मोननका नीचे आ गई। ररि ने उसे दे खने भेजा था की कौन आया है । वो
कासमनी आंटी को नहीं पहचानती थी। हमने उसे बताया की वो ररि की मम्मी है तो उसने आंटी को नमस्ते की।
मोननका को थोड़ा अजीब लगा की एक माूँ अपने बेटे के बारे में ऐसे बोल रही है । वो चप
ु हो गई।
कासमनी- “तम
ु दोनों रं डडयों ने तो मेरे बेटे का लण्ड खा सलया है , तो अब तम
ु दोनों यही रहो। आओ मोन हम
ऊपर चलें…” और आंटी मझ
ु े लेकर ऊपर के कमरे में चल दी।
ऊपर ररि बड़ी बेसब्री से मोननका और रश्मम दीदी का इंतजार कर रहा था और बेड पर नंगा लेटा अपना लण्ड
सहला रहा था। अचानक मझ
ु े और आंटी को दे खकर वो थोड़ा हड़बड़ा गया।
मैंने ममु कुराते हुए अपना लण्ड बाहर ननकाला और ररि ने आंटी को इिारा फकया।
128
कासमनी आंटी मेरे पास आई और नीचे झक
ु गई। आंटी ने मेरे लण्ड को मूँह
ु में भर सलया। मेरे बदन में एक
झनझनाहट सी हुई और आंटी ने एक ही झटके में परे लण्ड को लोलीपोप की तरह अनदर कर सलया।
ररि आंटी की गाण्ड को चाटने लगा। वो मेरे सामने अपनी माूँ की गाण्ड को जबान से ऐसे चाट रहा था जैसे
उसमें से मलाई ननकलने वाली हो, और फफर उसने अपनी उं गली को कासमनी आंटी की चत में डाल हदया। और
चत को मसलने लगा।
आंटी ने इिर मेरे लौड़े में आग लगा दी थी। परा चस-चस के लाल कर रखा था। मैंने आंटी का ब्लाउर्ज खोल
हदया और आंटी की चधचयों को पकड़ सलया। ननप्पल को मसलते ही आंटी के अनदर चद
ु ास का सैलाब सा आ
गया। आंटी ने मेरे लण्ड को मूँह
ु से ननकाला और बोली- “चल मोन डाल दे …”
यह सन
ु कर ररि साइड पर हो गया। मैं नीचे लेट गया और आंटी मेरे ऊपर आ गई। उसने मेरे लण्ड को अपने
हाथ में पकड़कर सेट फकया। मैंने आंटी को सीिा फकया और अपने लौड़े को झटका मारा। आंटी कराह उठी और
मेरा लण्ड उसकी चत की सीिी दरार में टे ढ़ा होकर घस
ु चुका था। ररि आंटी के पीछे था। उसने आंटी को कंिे
से पकड़कर ऊपर-नीचे होने में मदद की। वैसे आंटी को मदद की आवमयकता थी नहीं। वो मस्त ऊपर-नीचे होकर
मेरे लौड़े को अपनी चत में नचा रही थी। आंटी की चधचयों को मसल के मैं भी झटके मारने लगा था।
उिर ररि जो मोननका की गाण्ड नहीं मार पाया था उसने जब अपनी माूँ की गाण्ड को दे खा और उसके चहरे पर
उत्तेजना छा गई। उसने गाण्ड चोदने का मन बना रखा था, मोननका न सही उसकी अपनी माूँ ही सही। उसने
आंटी के कंिे को छोड़ हदया और अपने लण्ड को मसलने लगा।
आंटी ने मड़
ु कर उसे दे खा और आूँख मारी।
ररि ने अपनी दो उं गली पर ढे र सारा थक ननकाला और लौड़े को धचकना बना हदया। फफर उसने आंटी को पकड़
सलया। आंटी ने हहलना बंद कर हदया और मेरा लौड़ा उनकी चत में पाकफ हो गया। अब ररि ने पीछे से कासमनी
आंटी की गाण्ड पर लण्ड रखा और एक झटके में आिा लण्ड अनदर कर हदया।
ररि ने आंटी की गाण्ड पर एक जोर का चांटा लगाया और बोला- “साली रं डी ले मेरा लण्ड गाण्ड के अनदर…”
129
आंटी ने कहा- “मादरचोद आराम से डाल कुत्ते…”
“आह्ह… आह्ह… हाूँ हाूँ… उईई आह्ह्ह… ओह्ह्ह… आह्ह्ह… मर गई जोर से आह्ह्ह्ह…” जैसी आवाजों से कमरा
भर गया और नीचे रश्मम और मोननका की चतों में ये आवाजें आग लगा रही थीं।
मैंने लण्ड ननकाला तो आंटी फफर से ‘आह्ह’ कर बैठी। अब मैं पीछे से आंटी की गाण्ड मारने लगा और आगे से
ररि उसकी चत को पेल रहा था। पांच समनट और ऐसे ही चुदवाकर आंटी ने हमारे लण्ड के पानी को अपने छे द
में ले सलया।
फफर ररि पलंग पर लेटकर बोला- मोन मेरी माूँ की गाण्ड कैसी लगी?
ररि बोला- “सही कहा। टाइट है … आगे तो लण्ड ले लेकर भोसड़ा करवा सलया है लेफकन पीछे मजेदार है अभी
भी…”
ररि ने आंटी को पकड़कर अपनी ओर खखंच सलया और वो दोनों सलप-फकस करने लगे। आंटी की गाण्ड ऊपर उठी
और मैंने दे खा की पपछवाड़े से मेरे वीयफ की बद
ं ें उसकी गाण्ड से ननकल रही थीं। मैंने आंटी की गाण्ड सहलाते
हुए कहा- “अब तो ररक्ट्की के बारे में कुछ सोचो?”
कासमनी- “दोनों मरे जा रहे हैं ररक्ट्की के सलए। अरे सब चत एक जैसी ही होती है । खैर, तम
ु दोनों ने मेरी जो
सेवा की है ररि के पापा के आने से पहले ही कुछ करवा दूँ गी। वैसे भी रश्मम ने जो उसकी हरकतें बताई हैं,
उसका घर में चुदना ही अच्छा है , वरना बाहर के लड़के न जाने क्ट्या करें उसके साथ?”
130
चल ररि मझ
ु े घर छोड़ दे ।
कासमनी- “रुक तो जाती मोन पर रात को िादी के बाद ररक्ट्की घर वापस आ जाएगी और उसके पास घर की
चाभी भी नहीं है । और फफर यहाूँ रश्मम और मोननका की दो-दो चतें तो हैं ही। ररि त मझ
ु े घर छोड़कर वापस
लौट आना और दोनों समलकर अपनी बहनों को नंगा करके चोदना…”
हम तीनों ने कपड़े पहने और नीचे आ गए। रश्मम और मोननका ड्राइंग रूम में बैठे थे।
ररि मोननका से बोला- “मेरी जान। मम्मी को घर छोड़कर आिे घंटे में आता हूँ तब तक अपनी गाण्ड में तेल
लगाकर रखो…” और वो दोनों बाहर ननकल गए।
ररि कासमनी को घर के बाहर छोड़कर जल्दी से वापस आ गया, ताकी वो मोननका की गाण्ड मार सके।
ररक्ट्की अपने कमरे में सोने चली गई और कासमनी आंटी अपने बेडरूम में लौट आई। अब कासमनी ररक्ट्की को
एक अलग नजररए से दे ख रही थी। उस हदन दोपहर तक कासमनी सोचती थी फक उसकी बेटी बहुत ही सीिी-
सािी छोटी बच्ची है, पर रश्मम से उसकी अय्यासियों के फकस्से सन
ु कर उसे एहसास हुआ फक उसकी बेटी अब
काफी जवान हो गई है , और अपनी माूँ की तरह ही चद
ु क्ट्कड़ रांड़ बनने की तैय्यारी में है । ररक्ट्की के टाइट टी-
िटफ में उसकी बड़ी-बड़ी चधचयां दे खकर उसे ख्याल आया फक जरूर ररक्ट्की की चधचयां अंकुर और जय के मसलने
से इतनी बड़ी हो गई हैं।
कासमनी को एहसास हुआ की वो अपनी काम-वासना और हवस बझ ु ाने में इतनी मगन थी फक वो यह भी भल
गई फक उसकी बेटी और बेटा जवान हो गए हैं और उन दोनों की श्जस्मानी जरूरतें उनहें परे िान करती होंगी।
131
ररि ने तो अपनी जवानी का मजा ले सलया था, पर जवान बेटी को भी फकसी की जरूरत है यही बात सोचकर
कासमनी ने ररक्ट्की को चोदने के सलए मोन और ररि को अगले सनडे बल
ु ाने का फैसला फकया और बबस्तर पर
लेटकर सो गई।
उिर रात भर मोन और ररि ने मोननका और रश्मम को चोद-चोदकर दोनों की हालत खराब कर दी थी, और
सब
ु ह उठकर दोनों एक साथ मोननका पर चढ़ गए। ररि ने मोननका की गाण्ड में तो मोन ने उसकी बरु में अपना
लण्ड पेल हदया और उसे जोर-जोर से चोदने लगे। रश्मम भी मोननका की सससफकयों से जाग गई और हूँसते हुए
मोननका की चुदाई दे खने लगी।
तभी दरवाजे की घंटी बजी। ये घंटी मनीर् ने बजाई थी जो अपनी बहन मोननका को वापस लेने आया था। रश्मम
ने जल्दी से एक गाउन पहना और जाकर दरवाजा खोला।
मनीर् ने रश्मम को फकस करते हुए पछा- कहाूँ है मोननका? बहुत समस फकया ये 3 हदन मैंने उसे।
रश्मम ने उसे इिारे से अनदर कमरे में जाने के सलए कहा और खुद बाथरूम की तरफ चली गई।
अनदर का नजारा दे खकर मनीर् का लण्ड एक झटका खाकर ऐंठ गया। उसने दे खा की उसकी प्यारी बहन को
मोन और एक अनजान लड़का बेरहमी से चोद रहे हैं। मोननका के मूँह
ु से रह रहकर सससफकयां ननकल रही थी।
मनीर् ने जल्दी से अपने कपड़े उतारे और जाकर अपना मोटा लण्ड मोननका के मह
ूँु में ठं स हदया। अब मोननका
का मूँह
ु परी तरह से बंद हो गया।
ररि- “जरूर मनीर्, ये लो…” ये कहकर ररि ने अपना परा लण्ड बाहर ननकालकर एक ही झटके में वापस
मोननका की गाण्ड में पेल हदया।
मोननका को लगा जैसे उसकी गाण्ड फकसी ने गमफ चाक से चीर दी हो। वो जोर से चीखना चाहती थी पर मूँह
ु में
भाई का लण्ड होने की वजह से ससफफ ग-ं गं करके रह गई।
मोन को पता था की मनीर् मोननका को आज वापस ले जायेगा तो वो इस चुदाई को यादगार बनाना चाहता था।
उसने पोजीिन बदलते हुए मोननका की एक टांग उठाकर अपने कंिे पर रख ली, श्जससे उसकी चत थोड़ी और
खुल गई और एक जोर का झटका मारकर अपना लण्ड फफर से मोननका की चत में डाल हदया। उिर ररि अब
आगे आकर मोननका के मूँह
ु में अपनी जीभ डालकर फकस करने लगा और मनीर् के लण्ड ने ररि के लण्ड की
जगह ले ली और मोननका की गाण्ड में हलचल मचाने लगा।
132
करीब आिे घंटे बाद जब रश्मम वापस कमरे में आई तब तक उन तीनों ने मोननका का कचमर ननकाल हदया
था। बेड पर मोननका बेसि
ु पड़ी थी और उसका बदन तीनों के वीयफ से लथपथ था और वो तीनों भी बेड पर पड़े
हाूँफ रहे थे। रश्मम ने मोननका को सहारा दे कर उठाया और बाथरूम में लेजाकर िावर के नीचे खड़ा कर हदया।
िावर का ठं डा पानी पड़ने से मोननका की जान में जान आई।
फफर हम सबने साथ में नामता फकया और ररि वापस अपने घर चल हदया। रश्मम ने उससे जाने से पहले वादा
सलया की वो ररक्ट्की को मौका समलने पर भी अकेले नहीं चोदे गा।
ररि के जाने के बाद मनीर् ने रश्मम को फफर से एक बार चोदा और थोड़ी दे र आराम करके दोपहर को वो भी
मोननका को लेकर वापस चला गया।
इन दो-तीन हदनों ने मझ
ु े और दीदी को भी काफी थका हदया था, तो हम लोग भी जाकर सो गए। रात को ररि
फफर से मेरे घर आ गया और बोला- “मम्मी ने बोला है की इसी सनडे को हमें ररक्ट्की को चोदना है । सब
ु ह तम
ु
मेरे घर आ जाना…”
मैं ये सन
ु कर बहुत खुि हुआ और फफर हम दोनों ने समलकर दीदी की चत और गाण्ड फफर से मारी। अगले हदन
िाम को मम्मी पापा वापस आ गए और मैं और दीदी वापस अपने रूटीन पर आ गए। यानी हदन भर दीदी और
रात में बीवी।
दो हदन बाद जब हम लोग डडनर कर रहे थे तो पापा ने मेरे ससर पर एक बम फोड़ हदया। वो दीदी से बोले-
“रश्मम बेटा, िादी में हमें एक बहुत अच्छा लड़का समला था। वो हदल्ली में नौकरी करता है , पर वो लोग इसी
िहर के रहने वाले हैं, और हमें बहुत पसंद आये। अब मझ ु े और तम्
ु हारी मम्मी को लगता है की तम् ु हारी िादी
हो जानी चाहहए। बेटा अगर तम्
ु हारी नजर में कोई लड़का हो तो हमें अभी बता दो, वरना हम दोनों सनडे को
उनसे तम्
ु हारे ररमते की बात करने जायेंग…
े ”
मझु े लगा की ये क्ट्या हुआ? दीदी की िादी वो भी हदल्ली में । अभी तो लाइफ में मजा आना िरू
ु हुआ था अगर
दीदी हदल्ली चली गई तो मैं अपनी प्यारी दीदी की चत कैसे मारूंगा?
पर तभी मझु पर दसरा बम दीदी ने फोड़ हदया। दीदी िमाफते हुए पापा से बोली- “जी पापा, वो आप मयंक को
तो जानते ही हैं, वो मेरी दोस्त टीना का बड़ा भाई…”
दीदी- जी वो मझ
ु े बहुत पसंद करते हैं।
133
पापा- अच्छा और तम
ु बेटा?
दीदी- जी, उसके बाद उनहोंने एम॰बी॰ए॰ भी फकया है और आजकल बंगलोर में नौकरी कर रहे हैं।
मझ
ु े लगा की दीदी ने मझ
ु े इतना बड़ा िोखा हदया। दीदी का बायफ्रेंड था और उनहोंने मझ
ु े बताया भी नहीं। कहाूँ
तो मैं सोच रहा था की दीदी हदल्ली चली गई तो मेरा क्ट्या होगा? पर वो तो बंगलौर जाने का प्लान बनाकर
बैठी थी। हदल्ली तो फफर भी पास था, साल में तीन-चार बार तो हम समल ही सकते थे। पर बंगलौर जाने के
सलए तो मेरे िहर से सीिी रे न भी नहीं थी।
मैंने बड़े बेमन से खाना खाया और अपने कमरे में आ गया। थोड़ी दे र बाद दीदी भी कमरे में आ गई और
दरवाजा बंद करके मेरे बगल में आकर लेट गई पर मैंने गस्
ु से से करवट बदल ली।
रश्मम- अरे अब तझ
ु े क्ट्या हुआ?
मोन- तम
ु से क्ट्या मतलब? तम
ु तो िादी करके बंगलौर जाओ।
लण्ड पर दीदी का हाथ लगते ही मैं पपघल गया- “अरे मैं इससलए थोड़ी ही नाराज हूँ। मैं तो इससलए गस्
ु सा हूँ
क्ट्योंकी तम
ु ने मझ
ु े बताया नहीं की तम्
ु हारा कोई बायफ्रेंड भी है …”
रश्मम- तम
ु ने कभी पछा ही नहीं।
मोन- तम
ु बंगलोर चली जाओगी दीदी तो मेरा क्ट्या होगा? तम
ु इसी िहर में िादी करो न।
रश्मम- पागल है क्ट्या? इस िहर में फकससे िादी कर ल।ं तेरे उस कंजर दोस्त ररि से ताकी तम
ु दोनों मझ
ु े चोद
सको। अपना फ्यचर न दे ख?
ं
मोन- पर तम
ु तो ररि के लण्ड की दीवानी हो।
134
रश्मम- “हाूँ हूँ। तो क्ट्या हुआ? सेक्ट्स अपनी जगह और प्यार अपनी जगह। अरे पता है मयंक की महीने की
श्जतनी इनकम है न उतना लोग साल भर में नहीं कमाते और रही लण्ड की बात तो उसका लण्ड ररि से
इक्ट्कीस ही है उननीस नहीं। समझा…”
मोन- तो क्ट्या तम
ु उससे भी चुदवा चुकी हो?
रश्मम- “अरे नहीं यार, उसको फकस के आगे नहीं बढ़ने हदया कभी। वो चाहता तो बहुत था, पर मैंने उससे साफ
कह हदया की ये सब िादी के बाद। उसे मेरी िराफत पर परा भरोसा है । वैसे भी जहाूँ िादी करनी हो वहां िरीफ
बने रहना चाहहए। टीना ने एक बार बताया था उसका साइज…” कहते हुए दीदी ने मेरा लण्ड बाहर ननकालकर
मूँह
ु में ले सलया।
मोन- “आह्ह दीदी… ऐसे ही चसो। तो क्ट्या टीना भी अपने भाई से चुदवाती है जो उसे मयंक का साइज पता है ?”
रश्मम- “ओफ्फो… अरे उसने एक बार उसे नहाते हुए दे ख सलया था। मड खराब कर हदया तने तो, क्ट्या तो क्ट्या?
अरे चोदना है तो बोल वरना मैं जा रही हूँ अपने बेड पर?”
मैंने रश्मम दीदी को अपनी बाूँहों में भर सलया और उनकी चची दबाते हुए बोला- “कहा जा रही हो दीदी। जब तक
तम्
ु हारी िादी नहीं हो जाती, रोज चोदं गा। पर जब तम ु चली जाओगी तब पता नहीं मैं क्ट्या करूंगा?”
दीदी ने हूँसते हुए मेरा लण्ड पकड़ सलया और बोली- “अरे तब के सलए ररक्ट्की है न। अभी 5-6 साल उसकी िादी
नहीं होने वाली। त उससे काम चला लेना। अब जल्दी से मझ ु े चोद। फफर सनडे जाकर ररक्ट्की की चत फाड़ दे ना।
समझा…” और दीदी अपने कपड़े उतारने लगी।
मैंने भी अपने कपड़े उतारे और दीदी के ऊपर टट पड़ा। मैं बबस्तर पर आकर घट
ु नों के बल बैठ गया और दीदी
के बालों को पकड़ते हुए अपना लण्ड उनके मूँह
ु में दे हदया। दीदी ने भी लण्ड को हाथ से रगड़ते हुए चसना िरू
ु
कर हदया।
मैं- “आअह्ह… अह्ह… अह्ह… अह्ह… और जोर से दीदी। आऽ आऽ आऽ परा अंदर लो। उफफ्फ…” कहते हुए मैं
दीदी के मूँह
ु में अपना लण्ड आगे पीछे करने लगा, और बीच-बीच में अपना हाथ पीछे करते हुए दीदी की पीठ
सहलाने लगा।
फफर थोड़ी दे र बाद मैंने अपना लण्ड बाहर कर हदया। लण्ड पर दीदी का परा थक लगा हुआ था और चमक रहा
था। मैंने दीदी को घट
ु नों के बल बैठा हदया और दीदी के पीछे खुद घट
ु नों के बल बैठ गया और दीदी की चत में
लण्ड रगड़ने लगे।
दीदी- “आऽ आऽ आह्ह… आह्ह… आह्ह… आह्ह… आह्ह्ह… आअह्ह… आऽ आऽ” की आवाजें करने लगीं।
मैंने एकदम से दीदी की कमर पकड़ते हुए एक जोर का िक्ट्का हदया। दीदी के मूँह
ु से सससकाररयां ननकलने लगीं-
“आह्ह… आह्ह… आअह्ह्ह… मर गई इस्स्स्स… नहीं आईई… आईई… आइया आह्ह आह्ह…”
135
मेरा परा लण्ड एक ही बार में मेरी दीदी की चत के अंदर चला गया था। मैंने लण्ड को बाहर ननकाला और फफर
से िक्ट्का मारा। फफर मैं िीरे -िीरे लण्ड अंदर-बाहर करने लगा और अपने लण्ड को मेरी दीदी की चत में पेलने
लगा।
दीदी- “आअह्ह… आअह्ह… अह्ह… ओह्ह… मोन आह्ह… आह्ह… ओफफ्फ… ओफफ्फ माूँ आआ…”
मैंने िक्ट्का मारते हुए दीदी से पछा- क्ट्यों दीदी मजा आ रहा है ना?
फफर मैं रफ़्फ़्तार बढ़ाकर दीदी को जोर-जोर से चोदने लगा। बीच-बीच में मैं एक दो थप्पड़ मेरी दीदी के चतड़ पर
मारता जा रहा था। उनके चतड़ पर मेरे हाथ का ननिान छप गया था। दीदी की गाण्ड एकदम लाल हो चक
ु ी थी।
मेरे हर िक्ट्के से दीदी की चधचयां आगे पीछे हो रही थीं।
मैंने लगभग 15 समनट तक दीदी को ऐसे ही चोदा और उसके बाद दीदी की चत से अपना लण्ड बाहर ननकाल
सलया। फफर मैं दीदी की गाण्ड के पास आ गया और उनके छे द को फैला हदया और अपना लण्ड दीदी की गाण्ड
के छे द पर रख हदया, और कहा- “दीदी एक काम करो हाथ पीछे करके अपने चतड़ को फैला लो…”
दीदी ने अपने दोनों हाथ पीछे कर हदए और चतड़ को फैला सलया। उनकी गाण्ड का छे द परा खुल गया।
अब मैंने बोला- छे द को ढीला छोड़ दो दीदी। फफर मैंने दीदी के गाण्ड के छे द पर लण्ड सेट करके, हल्का झटका
हदया और टोपा दीदी की गाण्ड के छे द में “भच्च” से चला गया।
दीदी के मूँह
ु से ननकला- “आअह्ह… बहनचोद आराम से ओह्ह… इस्स्स्स…”
136
ठप-ठप ठप-ठप पट-पट पट-पट से परा कमरा गूँज रहा था। मैं जोर-जोर से बड़ी बेरहमी से दीदी की गाण्ड मार
रहा था। कुछ आिे घंटे के बाद मैंने अपना लण्ड बाहर ननकाला और ‘आअह्ह’ करते हुए दीदी की गाण्ड के अंदर
ही अपना सारा माल ननकाल हदया।
फफर मैं और रश्मम दीदी नंगे ही एक दसरे से धचपक के सो गए। अगले हदन सब
ु ह जब मेरी नींद खुली तो दीदी
कमरे में नहीं थी। मैंने कपड़े पहने और नीचे चला गया। दीदी नामता कर रही थी और पापा फोन पर फकसी से
बात कर रहे थे।
पापा ने फोन रखकर मम्मी को फकचेन में आवाज दी और बोला- “मयंक के पापा ने परसों हम दोनों को अपने
घर पर बल
ु ाया है । अरे मोन त बहुत दे र सोता रहा आज। जा जल्दी से नहाकर तैयार हो जा…”
आखखर सनडे आ ही गया। मम्मी और पापा दीदी की िादी की बात करने मयंक के घर चले गए और मैं ररि के
घर की तरफ ननकल पड़ा। हमने तय कर सलया था की कासमनी और ररि कुछ दे र के सलए ररक्ट्की को घर पर
अकेला छोड़ दें गे।
उिर ररि के घर ररि और ररक्ट्की टीवी दे ख रहे थे तभी कासमनी आंटी बाहर आ गई और ररि से बोली- “जल्दी
से कपड़े बदल लो ररि। मझ
ु े जरा मेरी दोस्त के घर छोड़ दो…”
कासमनी- मझ
ु े कुछ जरूरी काम है । ररि मझ
ु े छोड़कर एक घंटे में लौट आयेगा तब ये तम्
ु हें तम्
ु हारी दोस्त के घर
छोड़ आयेगा।
कासमनी- जैसे तम
ु चाहो।
ररि और कासमनी तैयार होकर जैसे ही बाहर ननकले उसी वक्ट्त मैं वहां पहुूँच गया।
मोन- हाूँ वो मझ
ु े समला था। उसने बोला की वो आंटी को छोड़कर जल्दी वापस आ जायेगा और मैं यहीं उसका
इंतज
े ार करूं।
ररक्ट्की ने मन मारकर मझ
ु े अंदर बल
ु ाकर दरवाजा बंद फकया और मझ
ु े बैठने के सलए कहा।
ररक्ट्की- “हाूँ भैय्या। वो एक दोस्त के पास जाना था। कोई बात नहीं ररि के आने के बाद चली जाऊूँगी…” कहकर
उसने अपनी ननगाहें टीवी पर गड़ा दी।
टीवी पर ममता कुलकणी की कोई फफल्म आ रही थी। मैंने उसके िरीर पे अपनी हवस भरी नजरें गड़ाते हुए
बोला- “बहुत सेक्ट्सी लग रही है …”
ररक्ट्की को यह सन
ु कर झटका सा लगा और वो बोली- “क्ट्या बोला भैया आपने?”
मोन- “अरे मैंने कहा ममता कुलकणी इस गाने में बहुत सेक्ट्सी लग रही है, तम्
ु हें नहीं पसंद क्ट्या ममता
कुलकणी?” मैंने ररक्ट्की के बदन पे नजरें गड़ाये हुए बोला।
ररक्ट्की समझ गई मेरी ननगाहें कहीं पर है और ननिाना कहीं पर, कहा- “मझ
ु े तो ये बबल्कुल नहीं पसंद…”
मोन- फकसी ने सही कहा है की एक खबसरत लड़की दसरी खबसरत लड़की की तारीफ नहीं कर सकती।
ररक्ट्की के साथ कभी मोन ने ऐसी बात नहीं की थी। उसे थोड़ा मजा आने लगा- “अच्छा तो मैं आपको सन
ु दर
लगती हूँ?”
मोन- “सन
ु दर… अरे तम
ु अगर फफल्मों में होती तो ये ममता वमता तम्
ु हारे सामने पानी भरती। तम
ु से ज्यादा
सेक्ट्सी तो कोई हहरोइन नहीं होती ररक्ट्की…”
मेरी इस हरकत से ररक्ट्की को एक पल के सलए झटका सा लगा तो मैंने अपना हाथ वापस हटा सलया। ररक्ट्की
चुपचाप टीवी दे खने लगी।
ररक्ट्की मेरी तरफ दे खते हुए बोली- “सारी भैया, पर मैं इन दोनों लड़को को ससफफ जानती हूँ, ये मेरे दोस्त नहीं
हैं…”
ररक्ट्की की चधचयों को ललचाई नजरों से दे खते हुए मैं बोला- “तम झठ बोल रही हो ररक्ट्की। मझ
ु े तम्
ु हारे बारे में
सब पता है । इससलए मैं ररि से आज सब बात बताकर ही जाऊूँगा…”
ररक्ट्की को मझ
ु पर बहुत गस्
ु सा आया और ररक्ट्की ने दे खा फक मेरी आूँखें उसकी चधचयों पे हटकी थीं। ररक्ट्की
मोन की ओर दे खते हुए बोली- “क्ट्या, क्ट्या पता है भैया? मझ
ु े कुछ समझ में नहीं आ रहा है…”
मोन ररक्ट्की को वासना भरी नजरों से दे खते हुए बोला- “ररक्ट्की तेरा चाल-चलन हदन-ब-हदन खराब हो रहा है, त
आवारा लड़कों के साथ घमती है । तेरी कम्पनी भी अच्छे लड़के लड़फकयों से नहीं है । इससलए मझ ु े ये सब बातें
ररि और कासमनी आंटी को बतानी होंगी…”
ररक्ट्की चौंक के मझु े दे खते हुए सोचने लगी मोन भैया को यह सब कैसे पता चला? वो डरते हुए मोन से बोली-
“माना मैं लेक्ट्चर बंक करती हूँ पर मेरा चाल-चलन क्ट्या खराब है? सहे सलयों के साथ कैनटीन में होती हूँ मैं। कहीं
घमने नहीं जाती। प्लीज भैया, इतनी छोटी सी बात के सलए ररि को क्ट्यों बोल रहे हो?”
मोन ने अब जरा गस् ु से से ररक्ट्की को दे खा और ररक्ट्की का हाथ पकड़कर उसे खींचते हुए अपने पास बबठाते हुआ
बोला- “इिर बैठ मेरे पास। ररक्ट्की मैं तेरे बारे में सब जानता हूँ, मेरे मूँह
ु से सन
ु ग
े ी अपनी कहानी?”
अचानक खखसकने से ररक्ट्की का स्कटफ उठ गया। उसने जल्दी से अपना स्कटफ ठीक फकया पर तब तक मझ
ु े
ररक्ट्की की गोरी जाूँघों का दिफन हो गया। ररक्ट्की ने अब घबराते हुए उठने की कोसिि करने लगी लेफकन मैंने
उसे उठने नहीं हदया।
ररक्ट्की अब जरा ऊंची आवाज में बोली- “वो अंकुर और जय की बात कर रहे हैं आप? यह अंकुर और जय की
बहनें मेरी सहे सलयां हैं। इससलए कई बार उनसे मल
ु ाकात होती है , बाकी जैसा आप सोच रहे हैं वैसा कुछ नहीं
है …"
139
मोन ररक्ट्की की कमर सहलाते हुए बोला- “अच्छा तो उन दोनों लड़कों की बहनें तेरी दोस्त हैं? अगर उनकी बहनें
तेरी दोस्त हैं तो त उन लड़कों के साथ कालेज कैनटीन के पीछे हर हदन अकेली क्ट्यों बैठी रहती है ? तेरी
सहे सलयां क्ट्यों नहीं होती तेरे साथ? क्ट्योंकी अंकुर या जय की बहनें है ही नहीं। त तो अंकुर और जय के साथ
जाकर अपनी जवानी लट
ु ाती है । क्ट्यों ररक्ट्की मैं सच कह रहा हूँ ना?”
ररक्ट्की को चुप दे खकर मैंने अपना हाथ उसकी टी-िटफ के अंदर डालकर उसके पेट को सहलाते हुए बोला- “ररक्ट्की
त बोल क्ट्या मैं झठ बोल रहा हूँ?”
ररक्ट्की मझ
ु से पवनती करने लगी- “नहीं भैया, पर प्लीज ररि को मत बोलना। वो मम्मी पापा को बता दे गा।
आज के बाद मैं उन दोनों से कभी नहीं समलूँ गी…”
ररक्ट्की- “जो ितफ आप कहें , मैं आपका कोई भी कहना मानने को तैयार हूँ लेफकन ररि और मम्मी को मत
बोलना प्लीज…”
मैंने ररक्ट्की का चेहरा हल्के से सहलाते हुए उसे खड़ा फकया और बोला- “ररक्ट्की साली बेवकफ त श्जतना अंकुर
और जय के सलए करती है उतना त मेरे सलए करे गी तो फकसी से कुछ नहीं कहूँगा…”
ररक्ट्की सब समझती थी लेफकन उसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। वो इतनी कनफ्यज हो गई फक उसने मेरा हाथ भी
अपनी चधचयों से नहीं हटाया।
मैं ररक्ट्की के पास आकर उसकी गदफ न पकड़कर उसे अपनी तरफ खींचकर उसके गाल चम सलए। फफर ररक्ट्की के
बदन को अपने से सटाता हुआ बोला- “साली तझ
ु े मेरे मूँह
ु से सन
ु ना है ना फक वो दोनों तेरे साथ क्ट्या-क्ट्या करते
हैं? चल अब बताता हूँ तझ
ु े सब बात…”
140
मैंने उसकी चधचयों पे हाथ रखते हुए बोला- “जरा स्कटफ उतार…”
ररक्ट्की चौंकते हुए बोली- “नहीं भैया प्लीज… यह क्ट्या कह रहे हैं आप? मेरी स्कटफ क्ट्यों उतारने को बोल रहे हैं
आप?”
मैंने ररक्ट्की की चधचयों को मसलना जारी रखा और बोला- “साली चुपचाप खड़ी रह। नाटक मत कर और अपनी
स्कटफ उतार…”
ररक्ट्की बबना कुछ जवाब हदए चुपचाप खड़ी रही। मैंने उसका टी-िटफ ऊपर फकया और ररक्ट्की के नंगे मम्मे
दे खकर बहुत उत्तेश्जत हो गया। ररक्ट्की के कच्चे आम जैसे कड़क मम्मे और ब्राउननि गल ु ाबी ननप्पल मझ ु े भा
गए। फफर मोन ने ही स्कटफ के हुक खोले तो ररक्ट्की का स्कटफ पैरों में धगर गया। ररक्ट्की आूँखें बूँद करके खड़ी थी
और मोन ने भी ररक्ट्की के बदन से उसका टी-िटफ हटा हदया। अब ररक्ट्की ससफफ एक लाल पैंटी और काले हाई
हील के सैंडल पहने िमाफते हुए खड़ी थी।
तभी अचानक ररि भी अपनी चाभी से घर का दरवाजा खोलकर अनदर आ गया, और कहा- “अरे ये क्ट्या कर रहे
हो तम
ु दोनों? ररक्ट्की त यहाूँ मोन के सामने नंगी क्ट्यों खड़ी है?”
ररक्ट्की ने अपने हाथों से अपना सीना छुपा सलया और बोली- दे खो ये मोन भैय्या मेरे साथ क्ट्या कर रहे हैं?
मोन- “आ जा ररि, बताता हूँ की मैं क्ट्या कर रहा था, और तेरी बहन क्ट्या करती है ?” कहकर मैंने ररक्ट्की के
दोनों हाथ पकड़कर उसकी छाती से हटा हदए और उसकी कच्चे आम जैसी चधचयों को ररि के सामने परा नंगा
कर हदया।
ररक्ट्की पहले ही मेरी हरकतों से गरम हो गई थी पर अब ररि के आ जाने से वो जरा नखरे करते हुए बोली-
“उम्म्म्म्म… भैया यह सब मत करो। मैं वैसी लड़की नहीं हूँ। आप बार-बार उन दोनों का नाम क्ट्यों ले रहे हैं?
मैंने कुछ नहीं फकया उनसे ऐसा वैसा। जैसा आप कह रहे हैं…”
141
मैं ररक्ट्की की गाण्ड पे लण्ड रगड़ते हुए गस्
ु से से बोला- “बहनचोद साली। अंकुर और जय तेरी चुदाई करते हैं।
तेरी यह चत, गाण्ड, मम्मे चोदते हैं, त उनका लण्ड चसती है और साली अब बोलती है फक त उनके साथ कुछ
नहीं करती। ररि, यह तेरी बहन ररक्ट्की साली अपने बदन की नम
ु ाइि करती है और मदों का लण्ड खड़ा करती
है । उन दोनों को भी अपने बदन के जलवे हदखा-हदखा के इसने ही उकसाया और उनसे चुदवाती है । और अब
हमसे अंजान बन रही है । बोल सच कह रहा हूँ ना मैं ररक्ट्की?”
ररि जो ररक्ट्की की चची अब िीरे -िीरे दबाने लगा था वो ररक्ट्की से बोला- “सच में त उन दोनों के साथ ऐसा
करती है ?”
ररक्ट्की ररि की तरफ दे खते हुए जरा नीची आवाज मैं बोली- “भैया फकसी ने आपसे झठ कहा है । मैं उस तरह की
लड़की नहीं हूँ। यह मोन मेरे बारे में कुछ भी बोलता है। अब वो लड़के मेरे पीछे पड़े हैं तो इसमें मेरा क्ट्या
कसर? और मोन त ऐसी गंदी-गंदी बातें मत कर। भैया दे खो ना यह मझ
ु े गासलयां दे रहा है और तम
ु कुछ नहीं
कह रहे …”
मैंने अब ररक्ट्की की पैंटी भी नीचे खींच दी और उसकी गाण्ड मसलते हुए बोला- “तेरी माूँ की चत साली। और
गासलयां दूँ गा तझु ,े वही तेरी औकात है । चुदक्ट्कड़ रांड़… दो-दो मदों से चुदवाती है और खद
ु को िरीफ समझती
है । तेरी गाण्ड मारूूँ रं डी साली…”
अब ररक्ट्की समझ गई फक ररि कुछ नहीं करने वाला और मोन उसे चोदे बबना नहीं छोड़ेगा। ररक्ट्की ने अपने
सीने से हाथ हटा हदए और अब ररक्ट्की ससफफ अपने हाई हील के सैंडल पहने बबल्कुल नंगी खड़ी थी और बहुत ही
सेक्ट्सी लग रही थी। उसकी चत पर हल्के से सन
ु हरे रोयें थे श्जससे उसकी चत बहुत खबसरत हदख रही थी।
ररि घटु नों पर बैठता हुआ बोला- “क्ट्यों ररक्ट्की, मोन सच कह रहा है क्ट्या? त उन दोनों से चद
ु वा चक
ु ी है क्ट्या?
मम्मी को पता चलेगा तो उनहें बहुत दःु ख होगा…”
अब ररक्ट्की भी बेिमफ होकर बोली- “भैया क्ट्यों ड्रामा कर रहे हो। मोन जो कह रहा है वो सही है या गलत है तम
ु
लोगों को उससे कोई फरक नहीं पड़ता। तम
ु लोगों को तो अपने मन की करनी है । वैसे मैं बता दं की उन दोनों
से मैंने ससफफ चमा चाटी की है और चधचयां दबवाई है । आज पहली बार तम
ु दोनों ने ही मझ
ु े परा नंगा दे खा है …”
ये सन
ु कर ररि ने अपना मह
ूँु ररक्ट्की की कमससन चत पर रख हदया और मैं उसके मम्मे मसलने लगा।
ररक्ट्की- “लेफकन प्लीज मैं आपका सब कहा मानूँगी। उउउउम्म्म्म्म ़्… प्लीज आराम से मसलो ना। मैं आप दोनों
के साथ सब करने को तैयार हूँ। लेफकन प्लीज आराम से करो ना आह्ह…”
मोन और ररि ररक्ट्की को छोड़कर जल्दी से खुद भी नंगे हो गये। उनके वो मोटे लम्बे लण्ड दे खकर ररक्ट्की को
डर भी लगा लेफकन खि
ु ी भी हुई।
142
मोन ररक्ट्की के ननप्पल से खेलते हुए बोला- “बहुत नाटक कर रही थी, और कुछ बाकी है?”
अब भी थोड़ी िमाफते हुए ररक्ट्की बोली- “नहीं भैया, अब मेरी तरफ से आपको कोई सिकायत नहीं होगी…”
तभी पीछे से ररि ररक्ट्की की गाण्ड के छे द को उं गली से सहलाते हुए बोला- “साली रं डी। चुदक्ट्कड़ नछनाल पहले
तझ
ु े जी भरके चोद लेने दे , समझी?”
जब मोन उसके ननप्पल चसने लगा तो ररक्ट्की भी बेिमफ होकर उसका मूँहु अपने मम्मों पे दबाते हुए आूँखें बूँद
करके सससकररयां लेने लगी। पीछे से ररि उसकी गाण्ड को उं गली से सहलाते हुए ररक्ट्की का हाथ अपने लौड़े पे
ले गया।
ररि अपनी उं गली थक से गीली करके िीरे -िीरे ररक्ट्की की कूँु वारी गाण्ड में घस ु ाते हुए बोला- “अब ज्यादा नाटक
मत कर मेरी रं डी बहना। दोस्तों के साथ ना जाने कहाूँ-कहाूँ चद ु वाती है चद
ु क्ट्कड़ साली और अब भी खुद को
अच्छी लड़की समझती है? साली त ससफफ अब एक अच्छी रांड़ है और कुछ नहीं। आज के बाद त ससफफ हमारी
रखैल बनकर रहे गी। हमें पता है फक त कैसी लड़की है समझी? इससलए चद
ु ासी रं डी अब अपनी नकली िमफ छोड़
और हदल खोलकर हमसे चद
ु वा ले और दे ख कैसे हम तझ
ु े उन चनतये लड़कों से ज्यादा मजा दे ते हैं…”
मोन के लण्ड को मठ ु मारती हुई ररक्ट्की बोली- “ऊफ्फ्फ्फ… ररि भैया फकतना अच्छा लग रहा है आपका हाथ मेरे
बदन पे। कैसा है मेरा बदन मोन भैया? ऊईई माूँ… भैया आपका लौड़ा तो अंकुर और जय के लनडों से भी बड़ा
है । मझ
ु े ददफ तो नहीं होगा ना? ररि भैया माूँ कब वापस आयेगी? मझ
ु े डर इस बात का है फक कहीं हमें इस
हालत में माूँ ना दे ख ले।
143
मोन ने उसके मम्मे मसलते हुए उसकी चत में उं गली डाल दी और पीछे से ररि अपना लण्ड ररक्ट्की की गाण्ड
पे रगड़ने लगा।
अपनी उं गली से ररक्ट्की की चत को चोदते हुए मोन बोला- “त बड़ी हसीन और सेक्ट्सी है । अंकुर और जय तो
क्ट्या। तेरा यह श्जमम दे खकर फकसी का भी ईमान डोल जाये। दे ख तेरी चची और चत और गाण्ड फकतनी
खबसरत है । साली मेरा लौड़ा दे खकर कैसे मसल रही है रं डी। मझ
ु े मालम है उन दोनों के लण्ड हमारे श्जतने
लम्बे-मोटे नहीं हैं। आज तझ
ु े असली लण्ड का मजा दें गे और सन
ु मेरी कमससन नछनाल, हमें कासमनी आंटी से
कोई डर नहीं है । उस कुनतया की चत हम दोनों बहुत बजा चुके हैं साली। तझ
ु े चोदते वक्ट्त अगर कासमनी आंटी
आ भी गई तो हम उसे भी चोद डालेंगे। ररि वैसे तेरी माूँ भी बहुत मस्त माल है क्ट्यों? और उसे तेरे साथ
चोदने में और मजा आयेगा ररक्ट्की?”
मोन के मूँह
ु से अपनी माूँ के सलए ऐसी बात सन
ु कर ररक्ट्की िमाफ गई। उसे अपनी माूँ के नाजायज सम्बंिों के
बारे में िक तो था पर उसे यह बबल्कुल नहीं पता था फक उसकी माूँ इतनी चुदासी है फक कहीं भी फकसी से भी
चुदवा सकती है ।
ररि उसके दोनों मम्मे चसते हुए बोला- “नछनाल… वो उसके बारे में बात करता है तो तझ
ु े िमफ आती है पर नंगी
होकर हमसे चुदवाने में िमफ नहीं आती। सनु माूँ आयेगी िाम तक, तब तक त बेिमफ होकर हमसे चद ु वा…” फफर
ररि ने ररक्ट्की को सोफे पे बबठाया और वो दोनों ररक्ट्की के हाथों में अपने लण्ड पकड़ाकर उसके सामने खड़े हो
गये।
ररक्ट्की दोनों के लण्ड सहलाते हुए बोली- “ऊफ्फ्फ्फ… भैया, आप दोनों के लण्ड काफी लम्बे और मोटे हैं। मझ ु े
ददफ होगा। लेफकन कोई बात नहीं। मैं यह ददफ सह लूँ गी। भैया आज मेरा निीब है फक दो-दो तगड़े मदफ मझ ु े
चोदने वाले हैं। लगता है फक आज मेरे बदन की खैर नहीं…”
मोन ररक्ट्की के मम्मे मसलते हुए अपना लण्ड ररक्ट्की के चेहरे पे रगड़ने लगा और बोला- “साली रं डी। आज त
दो-दो लण्ड से चदु वा के दे ख। अब हमेिा त दो लण्ड ही मांगेगी। त तो कमससन नछनाल है रांड़। आज हम दोनों
तझ
ु े रं डी की तरह चोदें गे। क्ट्यों ररि ठीक बोल रह हूँ ना मैं?”
ररक्ट्की ने बबना बोले मोन का लण्ड पकड़कर चमा और िीरे -िीरे मूँह
ु में लेकर चसने लगी। िीरे -िीरे करके ररक्ट्की
अब मोन का परा लण्ड चस रही थी। बीच-बीच में वो मोन की गोहटयां भी चस रही थी। मोन भी मस्ती में
ररक्ट्की का मूँह
ु चोदने लगा। तब ररक्ट्की दसरे हाथ से ररि का लण्ड हहलाने लगी और ररि उसके मम्मे मसलने
लगा।
144
मोन का लण्ड चसकर उसे और कड़क बनाकर ररक्ट्की बोली- “ओह्ह… भैया आज तक मैंने चुम्मा चाटी तो बहुत
की, चची भी दबवाई पर इस चत में आज तक उं गली के अलावा कुछ नहीं गया। आज मैं पहली बार आप दोनों
से चुदवाने जा रही हूँ। भैया अब आप दोनों अपने-अपने लौड़े मेरी चत, मूँह
ु और गाण्ड में डालकर मझ
ु े चोदो
और अपनी रं डी बनाओ…”
ररक्ट्की ददफ से बोली- “ररि भैया प्लीज… आराम से डालो मेरी गाण्ड में अपना लण्ड। उउफ्फ्फ्फ… ररि हाूँ। आराम
से… ददफ हो रहा है …”
ररि ने थोड़ी दे र तो िीरे -िीरे िक्ट्के लगाये पर जब लण्ड आराम से ररक्ट्की की गाण्ड में जाने लगा तो ररि ने
ररक्ट्की के ऊपर परा जोर डाल हदया और उसकी चधचयां मसलते हुए बोला- “ले कुनतया रांड़, तझ ु े मेरा लौड़ा
चाहहए था ना? अब दे ख कैसे तेरी गाण्ड मारता हूँ नछनाल। तेरी माूँ की चत। रं डी है साली त। मेरी रं डी है । मेरे
लण्ड की रखैल है समझी?”
ररक्ट्की को ररि के िक्ट्कों से श्जतना मजा आ रहा था उतना ही मजा उसके मूँह
ु से गासलयां सन
ु कर भी आ रहा
था। वो बेिमफ होकर बड़ी मस्ती से गाण्ड पीछे करके ररि का लण्ड ज्यादा से ज्यादा अपनी गाण्ड में लेने लगी।
अब ररि मस्ती से ररक्ट्की की गाण्ड मारने लगा।
तब ररक्ट्की मोन का लण्ड पकड़कर उसे सहलाते हुए एकदम रं डी की अदा से बोली- “मोन भैया अब आप भी कुछ
करो ना। आप जैसे चाहो वैसे आज मझु े चोदो। आप दोनों के खेल से मैं बड़ी चद
ु ासी हो गई हूँ …”
मोन ने ररक्ट्की के मम्मे मसलते हुए ररि को नीचे लेटने के सलए बोला तो ररि ररक्ट्की को अपने ऊपर लेकर
लेट गया।
145
मोन ने ररक्ट्की की टांगें फैलाकर अपने हाथों से ररक्ट्की की हल्के रोयें से ढकी हुई चत खोली। उसकी गीली
गल
ु ाबी चत दे खकर मोन खि ु हुआ और अपना मोटा लण्ड ररक्ट्की की कूँु वारी चत पे रखकर बेरहमी से ररक्ट्की के
मम्मे मसलते हुए अपना लण्ड ररक्ट्की की चत में घस
ु ाने लगा।
ररक्ट्की की चत में आज तक कभी लण्ड नहीं गया था। जब वो बहुत उत्तेश्जत होती थी तो कोई पतला बैगन
अपनी चत में घस ु ा लेती थी पर मोन का लण्ड बैगन के मक
ु ाबले बहुत मोटा था। मोन के बड़े और मोटे लण्ड से
ररक्ट्की को काफी तकलीफ हुई, पर मोन ने जबरदस्ती अपना आिा लण्ड उसकी चत में ठस हदया। श्जससे उसकी
चीख ननकल गई- “ईईइ आह्ह्ह… मोन भैयाऽऽ ननकाल लोऽऽ नहीं मार डाल्ला ओह्ह्ह्ह…”
ररि की बात सन
ु कर मोन ने अपने होठों से ररक्ट्की का मूँह
ु बंद कर हदया और उसकी चीख घट
ु के रह गई।
मोन िीरे -िीरे अपना लण्ड अनदर-बाहर करने लगा। ररक्ट्की के मम्मों के मसले जाने से और गाण्ड में लण्ड के
िक्ट्कों की वजह से थोड़ी दे र में उसका ददफ उसे ज्यादा महसस नहीं हो रहा था।
अब ररक्ट्की फफर से मस्ती में आवाजें करने लगी- “अआह्ह… हाूँ जोर से ररि भैया अआह्ह… चोदो मझ
ु …
े ”
दोनों दोस्त बड़ी बेरहमी से ररक्ट्की के बदन से खेलते हुए उसको चोद रहे थे। ररि तो जोरदार िक्ट्कों से ररक्ट्की
की गाण्ड मार रहा था। ररक्ट्की मोन के मूँह
ु से अपने सलए और अपनी माूँ के सलए गंदी गासलयां सन ु कर और
उत्तेश्जत हो गई।
अपनी कमर आगे पीछे करके चुदवाती हुई ररक्ट्की बोली- “आओ मोन भैया। अपनी इस चुदासी रांड़ की चत में
डालो अपना लौड़ा। उउफफ्फ… मोन हाूँ ऊूँऊूँऊूँऊूँ… और डालो राजाऽऽऽ फाड़ डालो मेरी चत और ररि भैया तम
ु भी
ऐसे ही मारो मेरी गाण्ड। भैया आप और ररि मझ
ु े श्जतनी चाहें उतनी गासलयां दो, लेफकन मेरी माूँ को क्ट्यों
गासलयां दे रहे हो?”
अब ररक्ट्की की गाण्ड में ररि का लम्बा लण्ड और चत में मोन मोटा लौड़ा कयामत ढा रहे थे। दोनों वहसियों की
तरह ररक्ट्की को अपने बदन के बीच रखकर बड़ी बेरहमी से एक रास्ते की रं डी जैसे चोद रहे थे। अब ररि नीचे
से ररक्ट्की की गाण्ड मारते-मारते उसके मम्मे बेरहमी से मसलते हुए बोला- “कुनतया रांड़। मोन और मैं जो
गासलयां चाहें गे वो दें गे। माूँ को आने दे तेरे सामने उसकी भी गाण्ड मारूगा नछनाल…”
146
मोन- तेरी माूँ को गिे के लण्ड से चद
ु वाऊूँगा कुनतया। त मत ससखा फक तझ
ु से कैसे बताफव करना है? ऐसे तगड़े
लण्ड समले हैं तो हमसे गासलयां खाकर चुदवा। हम तझ
ु े और तेरी माूँ को जो हदल में आये वो गासलयां दें गे
समझी रखैल?”
मोन अब चोदते-चोदते झड़ने के करीब था। इससलए उसने अपना लण्ड ररक्ट्की की चत से ननकाला और उसके
सीने पे बैठकर ररक्ट्की का मूँह
ु खोलकर अपना लण्ड उसमें घस
ु ाकर बोला- “हाय… सालीईई रांड़ तेरीईई माूँ की
चत… ये ले, चस मेरा लौड़ा नछनाल और ले पी मेरा पानी…”
मोन के झड़ने के बाद और उसका परा पानी पीने के बाद ररक्ट्की परी तरह गाण्ड खोलकर ररि से चुदवाने लगी।
हाथ पीछे डालकर वो ररि की कमर सहलाते हुए बोली- “ररि चोद साले हरामी मेरी गाण्ड। तेरी बहुत हदनों से
नजर थी ना मझु पे। साले मार मेरी गाण्ड। मोन भैया आप प्लीज मेरी चधचयों को मसलते हुए उनको चसो।
जब ररि मेरी गाण्ड में झड़ेगा तब मझ
ु े अपनी चधचयां आपके मूँह
ु में चाहहए। प्लीज आओ ना भैया…” ररक्ट्की ने
बेिमफ होकर अपने मम्मे उठाकर मोन की तरफ कर हदए।
मोन ने सोफे पर बैठकर ररक्ट्की को अपने पास आने को बोला तो ररि ररक्ट्की को खड़ी करके कुनतया के पोज में
उसकी गाण्ड मारने लगा। ररक्ट्की सोफे को पकड़कर झक
ु गई श्जससे उसके मम्मे मोन के मूँह
ु में अपने आप आ
गये और वो ररक्ट्की की चधचयां बारी-बारी मसलकर चसने लगा।
ररि अब बड़े जोरों से ररक्ट्की की गाण्ड चोदने लगा। िक्ट्कों पे िक्ट्के मारते-मारते वो तो जैसे ररक्ट्की की गाण्ड
को डड्रल करते हुए बोला- “तेरी माूँ की चत… हरामी रांड़। हमसे नखरा कर रही थी। साली जब से गाण्ड और चत
में हमारे लण्ड सलए तब से बड़ी मस्त हो रही है ना नछनाल? तेरी माूँ को चोदूँ साली। अब दे ख कैसे गाण्ड पीछे
करके मरवा रही है और मोन से नछनाल जैसी अपने मम्मे चुसवा रही है । कसम से ररक्ट्की आज से मैं तझ
ु े
अपनी रं डी बनाकर रखंगा। त है इतनी मस्त माल फक साली बार-बार तझ
ु े चोदने को हदल करता रहे गा। ये ले,
और ले… और ले मेरा लौड़ा अपनी गाण्ड में मादरचोद। आज तेरी गाण्ड को बताता हूँ फक तेरे भाई का लण्ड कैसे
चोदता है तेरी जैसी नछनाल बहन को…”
मोन ने ररक्ट्की के मम्मे चसते हुए उसकी चत में उं गली डाल दी और ररक्ट्की भी नछनाल जैसी मोन का लण्ड
सहलाती हुई बोली- “हाूँ साले ररि तेरे और मोन भैया के लण्ड में जो मजा आया वो कहीं नहीं होगा। तम्
ु हारे इन
मोटे लम्बे लनडों के सलए मैं हमेिा के सलए तम्
ु हारी रं डी बनने को तैयार हूँ। तम
ु दोनों जब जहाूँ और जैसे चाहो,
मझ
ु े चोदो। मैं खुिी-खुिी तम
ु से चुदवाउूँ गी मेरे राजा। आज के बाद मैं तम
ु दोनों की रांड़ बनके रहूँगी। ररि तझ
ु े
कैसा लगा मेरा यह बदन और मेरी गाण्ड राजा?”
ररक्ट्की की बातें सन
ु कर ररि उसकी गाण्ड पे थप्पड़ मारते हुए ररक्ट्की को चोदने लगा।
147
और मोन उसके ननप्पल चबाते हुए चसने लगा। ररक्ट्की ददफ और वासना से बेहाल होकर चुदवा रही थी। वो दोनों
गंदी-गंदी गासलयां दे ते हुए ररक्ट्की को नछनाल जैसे चोद रहे थे।
जब मोन ने जरा जोर से ररक्ट्की के ननप्पल को चबाया तो ददफ से ररक्ट्की बोली- “उउउफ्फ्फ्फ्फ… मोन साले
हरामीईई… आराम से चबा न मेरा ननप्पल। बहुत ददफ हो रहा है मझ
ु …
े ”
ररक्ट्की के मूँह
ु से अपने सलए गासलयां सन
ु कर मोन फफर से उसके ननप्पल चबाते-चबाते चसने लगा। ररि से
गाण्ड पे हो रहे लगातार हमले और मोन से बेरहमी से ननप्पल चसवाने से अब ररक्ट्की भी झड़ने के करीब थी।
वो सोफा जोर से पकड़कर ररि को और जोर से गाण्ड मारने के सलए बोली।
जब सबकी साूँसें सामानय हुई तो ररि ने ररक्ट्की की गाण्ड से अपना लण्ड ननकाला और उसके लण्ड का पानी
ररक्ट्की की गाण्ड से ननकलकर ररक्ट्की की जाूँघों से नीचे बहने लगा। ररक्ट्की ने खड़ी होकर एक अूँगड़ाई ली और
जाकर एक तौसलया लाई और बड़े प्यार से ररि का लण्ड साफ फकया। फफर ररि ने भी उसी तौसलया से ररक्ट्की
की चत और गाण्ड भी पोंछी।
हम तीनों ने ठं डा पानी पपया और फफर नंगे जमीन पे लेट गये। ये मेरी श्जनदगी की एक यादगार चद
ु ाई थी
क्ट्योंकी मैंने आज पहली बार एक अनचद
ु ी लड़की को चोदा था पर ररि के सलए ये और भी बड़ी बात थी की
आज उसने अपनी सगी बहन की गाण्ड मारकर उसे हमेिा चोदने का रास्ता खोल सलया था।
फफर ररक्ट्की िीरे से उठी और बाथरूम की तरफ चली गई। मैं भी उसके पीछे जाने लगा तो ररि ने मझ
ु े रोक
हदया- “अरे अभी रहने दे । आज पहली बार चद
ु ी है वो भी दो-दो लण्डों से…”
मोन- “साले जब रममी दीदी को चोदा था तने पहली बार तब का याद है, अब अपनी बहन की बारी आई तो मझ
ु े
रोक रहा है …”
ररि- “अबे गानड, रोक नहीं रहा हूँ थोड़ा िीरज रखने को बोल रहा हूँ। एक बार तो चोद सलया न तने अब उसे
थोड़ा टाइम दे । रश्मम को पहली बार मैंने अकेले ही चोदा था। ररक्ट्की ने दो लण्ड सलए हैं…”
तभी घंटी बजी और ररि ने जाकर दे खा तो बाहर कासमनी आंटी खड़ी थी। ररि ने दरवाजा खोल हदया और आंटी
अनदर आ गई।
148
हम दोनों को नंगा दे खकर कासमनी आंटी बोली- “तो आखखर चोद ही डाला मेरी फल सी बच्ची को तम
ु दोनों ने।
कहां है ररक्ट्की, हदखाई नहीं दे रही?”
मोन- अरे आंटी बस पछो मत। मजा आ गया। ररक्ट्की बाथरूम में है । अभी लेकर आता हूँ।
कासमनी- अरे तो त एक काम कर अपने घर पर फोन करके कह दे फक त आज रात मेरे घर पर रुकेगा। रात
भर आराम से चोदना ररक्ट्की को।
ररि- पर मम्मी?
कासमनी- अरे ररि, ररक्ट्की तो तेरा घर का माल है । कहाूँ भागी जा रही है? जब मन करे लण्ड पेल दे ना अपनी
बहन की चत में, जैसे मेरी चत में पेल दे ता है । आज इस मोन की इच्छा परी हो जाने दे । जा मोन फोन कर दे
अपने घर पर।
मोन खुिी-खुिी अपने घर फोन समलाने लगा। उिर से फोन रश्मम दीदी ने उठाया।
रश्मम- पर मैं मम्मी पापा से क्ट्या कहूँ? जब से मयंक के यहाूँ से वापस आये हैं तझ
ु े पछ रहे हैं।
ये सन
ु ते ही मझ
ु े कुछ अच्छा नहीं लगा, पर क्ट्या करता एक न एक हदन तो दीदी की िादी होनी ही थी। मोन ने
पछा- “अच्छा, कब की डेट है ?”
ररक्ट्की बाथरूम से ननकलकर कपड़े पहनने अपने रूम में चली गई थी। कासमनी को दे खकर पहले तो वो काफी
घबराई थी, पर जब आंटी ने उससे बात की तो वैसे तो नामफल हो गई थी पर आंटी के सामने वो काफी िमाफ रही
थी।
जब ररक्ट्की कपड़े पहनकर बाहर आई तो आंटी ने उसे बता हदया था की आज रात मैं उसके साथ रहूँगा। ररक्ट्की
ने भी मन में सोचा की आज वो एकदम बाजारू रं डी की तरह मझ
ु से चद
ु वायेगी।
ररि और मैं भी नहाने चले गए और तैयार होकर हमने थोड़ी दे र टीवी दे खा तब तक आंटी ने खाना लगा हदया
था। खाना खाकर आंटी और ररि कमरे में चले गए, पर ररक्ट्की ने मझ
ु से कहा की तम
ु 15 समनट बाद कमरे में
आना।
15 समनट बाद जब मैं कमरे में गया तो मजा आ गया, अंदर ररक्ट्की बहुत ही सेक्ट्सी टाप-स्कटफ में तैयार होकर
बैठी थी। ररक्ट्की ने टाप के ऊपर के चार बटन खोलकर नीचे से गाूँठ बानिी हुई थी और गजब का मेक-अप करा
हुआ था। मझ
ु े दे खकर ररक्ट्की खड़ी हो गई और अपने चतड़ हहलाने लगी। मैंने चप
ु चाप पीछे से जाकर उसकी
मचलती हुई चधचयों को पकड़ सलया और ररक्ट्की को घम ु ा सलया। फफर सीिा करके हमने एक दसरे को बाहों में
कस सलया और तड़ातड़ एक दसरे को चमने और चाटने लगे। ररक्ट्की बहुत ही सेक्ट्सी लग रही थी और अगर वो
ऐसे रूप में कहीं सड़क पर चली जाती तो जरूर उसकी चत का भोसड़ा बन जाता।
ररक्ट्की मेरी गदफ न में अपनी बाहें डालकर बोली- “मोन… मोन… आज जी भर के अपने दोस्त की बहन को चोद
लो…” और मझ
ु े बबस्तर पर बबठाकर मेरी अंडरपवयर में तननाए हुए लण्ड पर अपने चतड़ नघसने लगी।
मैंने उसकी टाप के बटन और बंिी हुई गाूँठ को खोलकर उतार हदया। ररक्ट्की ने एक मस्त काले रं ग की रे िमी
ब्रा पहनी थी। एकदम पतले स्रै प थे और ब्रा के कप ससफफ उसके आिे ननप्पल और नीचे की गोलाइयां छुपाये हुए
थे। रे िमी नेट के अंदर से उसकी दधिया चधचयों की साफ झलक समल रही थी।
150
मैंने उसे खड़ा होने को कहा और कुसी पर टाूँगें फैलाकर बैठ गया। फफर ररक्ट्की को बोला- “तम
ु अपनी टाूँगें मेरी
टाूँगों के दोनों तरफ करके अपनी पैंटी में कसी हुई चत मेरे लण्ड पर रखो और आराम से बैठ जाओ। तब तक मैं
तम्
ु हारी कसी हुई मस्त जवानी जमकर चसना और दबाना चाहता हूँ…”
ररक्ट्की बड़े ही कायदे से मेरे लण्ड के उठान पर बैठ गई और बहुत हल्के-हल्के ढूँ ग से अपनी पैंटी मेरे लण्ड से
उठी हुई मेरी अंडरपवयर पर नघसते हुए मेरी गदफ न में बाहें डालकर बोली- “मोन भैया मसल डालो मेरी इन
जवाननयों को। दे खो तो सही कैसे तनकर खड़ी हैं, तम
ु से चुसवाने के सलये…”
मैं भी अपने हाथ उसकी पीठ पर ले गया और उसकी ब्रा के हुक खोल हदये और बड़े प्यार से उसकी चधचयां
नंगी करी। उसकी चधचयां मेरे सामने तनकर खड़ी हुई थीं, और मैंने भी बबना वक्ट्त गूँवाये दोनों चधचयों पर
अपना मूँह
ु मारना िरू
ु कर हदया। मैं बहुत ही बेसब्रा होकर उसकी चधचयां मसल और चस रहा था श्जससे उसको
थोड़ा सा ददफ हो रहा था।
ररक्ट्की फफर भी मेरे ससर को अपनी चधचयों पर दबाते हुए कह रही थी- “भैया आराम से मजा लो, इतने उतावले
क्ट्यों हो रहे हो? आज तो हमारा हनीमन है । कहीं भागी थोड़ी जा रही हूँ। जम के चुसवाऊूँगी और मसलवाऊूँगी।
इनको इतना मसलो फक कालेज में मेरी चधचयां सबसे बड़ी हो जायें…”
मैंने उसे अपनी बाहों में उठाया और पलंग पर सलटा हदया। काले रं ग की पैंटी से ढका ररक्ट्की का गोरा बदन ऐसा
लग रहा था जैसे कोई अपसरा अपने कपड़े उतारकर सो रही हो और काला भूँवरा उसकी ताजी चत का रस चस
रहा हो। मैं करीब पाूँच समनट तक ररक्ट्की के नंगे बदन की िराब अपनी आूँखों से पीता रहा, और फफर बबस्तर
पर चढ़कर मैंने ररक्ट्की की कमर चसनी चाल फकया और चसते हुए अपना मूँह ु उसकी पैंटी पर लाया और पैंटी
का इलाश्स्टक अपने दाूँतों में दबाकर अपने मूँह
ु से उसकी पैंटी उतारने लगा।
ररक्ट्की ने भी अपने चतड़ हवा में उठा हदये थे, ताकी पैंटी उतारने में परे िानी ना हो। पर उसने इतनी टाइट पैंटी
पहनी थी फक मझ
ु े अपने हाथ भी लगाने ही पड़े। पैंटी उतारकर मैंने दे खा की जो हल्के रोयें ररक्ट्की की चत पर
थे अब वो भी उसने साफ कर सलए थे। ररक्ट्की चत चद
ु ने के सलये इतनी बेकरार थी फक चत से पानी टपक रहा
था।
ररक्ट्की बोली- “भैया मम्मी ने मेरी चत को रीम से साफ फकया है, मैंने नहीं…”
151
मैं भी चाहता था फक ररक्ट्की थोड़ा पानी और छोड़ दे ताकी उसकी चत थोड़ी धचकनी हो जाये। मैंने उसकी चत
का दाना चसते हुए अपनी जीभ से उसकी चदु ाई चाल कर दी और करीब पाूँच समनट बाद ही ररक्ट्की ने मेरा ससर
अपने दोनों हाथों से पकड़ सलया और कसकर अपनी परी ताकत से मेरा मह
ूँु अपनी चत पर दबा सलया और जोि
में काूँपते हुए चतड़ों के िक्ट्के दे ती हुई मेरे मूँह
ु में अपना रस दे ने लगी।
मैंने भी मन से उसकी जवान चत चसी और चत के लाल होंठों को अपने होंठों से चसा। फफर मैं घट
ु ने के बल
ररक्ट्की के सामने बैठ गया और बरु ी तरह अकड़ा हुआ अपना लण्ड उसके सामने कर हदया और ररक्ट्की की गदफ न
में हाथ डालकर उसका मूँह ु अपने लण्ड के पास लाया और बोला- “ररक्ट्की, मेरे लण्ड को अपने मूँह
ु में लेकर
अपनी चत बजाने के सलये तो कहो…”
ररक्ट्की को भी अपनी चत पर लण्ड नघसाई बहुत अच्छी लग रही थी। वोह ससफफ मस्ती में “ऊूँम्म… ऊूँम्म…” कर
सकी। एक दो समनट बाद मैंने दे खा फक ररक्ट्की पर मस्ती परी तरह से सवार हो चक
ु ी है , तो मैंने अपने लण्ड का
एक हल्का सा िाट हदया, श्जससे मेरा लण्ड ररक्ट्की की चत बहुत ज्यादा कसी होने के कारण से फफसल कर
बाहर आ गया। इससे पहले फक ररक्ट्की कुछ समझ पाती, मैंने एक हाथ से अपना लण्ड ररक्ट्की के चत के होंठों
को खोलकर उसके छे द पर रखा और अपने चतड़ों से कस के िक्ट्का लगा हदया, श्जससे मेरा लण्ड ररक्ट्की की
चत में घस
ु गया।
मैंने लण्ड थोड़ा बाहर ननकालकर एक िाट और लगाया और अब मेरा लण्ड जड़ तक ररक्ट्की की चत में समा
गया। ऐसा लग रहा था जैसे फकसी बोतल के छोटे छे द में अपना लण्ड घस
ु ा हदया हो और बोतल के मूँह
ु ने
कसकर मेरे लण्ड को पकड़ सलया हो।
ररक्ट्की बोली- “आह्ह… भैया इस्स्स्स… लगता है मैं जननत में हूँ। मेरे बदन से ऐसी मस्ती छट रही है फक क्ट्या
बताऊूँ। मोन भैया बहुत मजा आ रहा है । अब तम
ु जी भर के मझ
ु े चोदोऽऽऽ…”
मैंने ररक्ट्की की दोनों जाूँघें चौड़ी कर दीं और अपने हाथों से उसके पैरों के पंजे पकड़ सलए और खद
ु घट
ु ने के बल
बैठकर अपनी गाण्ड के दनादन िक्ट्के मारने लगा।
152
ररक्ट्की को अब भी तकलीफ हो रही थी, पर वो भी अब चद
ु ाई में परा साथ दे रही थी। वो ज्यादा मस्ती सहन
नहीं कर पायी और सससकारी भरती हुई अपनी चत का पानी मेरे लण्ड पर धगराने लगी और बड़बड़ा रही थी-
“आह्ह… आूँह्ह… मोन मजा आ गया। मझ ु े क्ट्या मालम था इतना मजा आएगा आह्ह… इसके सलये तो मैं अपनी
चत बार-बार तम
ु से फड़वाऊूँगी…”
मैंने भी लगातार आठ-दस िाट लगाये और उसकी चत में जड़ तक अपना लण्ड उतारकर झड़ गया। मैं ररक्ट्की
की चत को चोदकर मस्त हो गया था और आराम से उसके ऊपर लेटकर उसके होंठों को चस रहा था। थोड़ी दे र
बाद मैं उसके ऊपर से हटा और और उसका मूँह
ु पकड़कर अपने लण्ड पर लगा हदया और कहा- “बहन की लौड़ी
ररक्ट्की, जब तक मैं न कहूँ मेरा लण्ड चसती रहना, नहीं तो गाण्ड मार-मार के लाल कर दूँ गा…” और आराम से
अपनी पीठ हटकाकर बैठ लगा।
ररक्ट्की ने भी परी हहम्मत हदखायी और बबना वक्ट्त बबाफद करे मेरा लण्ड चसना चाल कर हदया। करीब दस-पूँद्रह
समनट की लगातार चुसाई से मेरा लण्ड फफर से तनना गया पर मैंने अपने आप पर परा कंरोल रखकर ररक्ट्की के
मूँह
ु में अपना लण्ड तबीयत से चस
ु वाता रहा। आज मैंने श्जतना ररि से सीखा था सब उसकी सगी बहन पर
आजमाना चाहता था।
मैंने कहा- “हाूँ मेरी कुनतया। लगता है बहुत ब्ल-फफल्में दे खी है तने… अरे जो ब्ल-फफल्मों में होता है वो सब
अससलयत में भी होता है समझी। पर ध्यान रहे लण्ड बाहर नहीं ननकलना चाहहए…”
ररक्ट्की मेरे लण्ड के दोनों तरफ पैर करके खड़ी हो गई और िीरे -िीरे नीचे बैठने लगी और एक हाथ से मेरा
तननाया हुआ लण्ड पकड़ा और एक हाथ की उं गसलयों से अपनी चत के होंठ खोले। जब मेरा लण्ड उसकी चत से
टकराया तो थोड़ा सा वो घबरायी। पर मैंने उसकी घबराहट दे खकर उसके चतड़ कमर के पास से कसकर पकड़
सलये और इससे पहले फक वो कुछ समझ पाती मैंने नीचे से अपने चतड़ एक झटके से उछाले और परा लण्ड
गप्प से उसकी चत में उतार हदया। ररक्ट्की बहुत छटपटाई पर मैंने भी उसकी कमर कसकर पकड़ी हुई थी।
दो तीन समनट बाद जब उसका ददफ कम हुआ तो मैंने उसको अपने ऊपर झुका सलया और बोला- “ररक्ट्की अब त
अपने चतड़ उछाल-उछालकर ऊपर-नीचे कर और लण्ड सवारी का मजा ले…” इतना कहकर मैंने उसका ससर
दबाकर उसके होंठ अपने होंठों में ले सलये और चसते हुए अपने दोनों हाथों से उसके पीछे से फैले हुए चतड़
पकड़ सलये और मसलने लगा।
इस समय मेरा गनना परी तरह से तननाया हुआ था। मैंने ररक्ट्की से कहा- “ररक्ट्की जब भी मैं या ररि तझ
ु े
चुदाई का मजा दें गे तो ये हमेिा याद रखना की तझ
ु े ये मजा समलने में कासमनी आंटी का बहुत बड़ा हाथ है
समझी…”
ररक्ट्की टपक से बोली- “य आर राइट भैया, आल थैंक्ट्स ट मम्मी। पर वैसे भी मैं अब ज्यादा इंतजार नहीं करने
वाली थी, अंकुर या जय की लाटरी कभी भी लगने वाली थी, पर अब बेचारे हाथ मलते रह जायेंग…
े ”
मैंने कहा- “कोई बात नहीं उनकी भी लाटरी लगवा दे ना। क्ट्या हदक्ट्कत है ?”
अब मेरा लण्ड फफर से ररक्ट्की की चत फाड़ने के सलए तैनात हो गया था। मैंने ररक्ट्की से कहा की त तैयार हो
जा तब तक मैं पानी पीकर आता हूँ।
मैं नंगा ही बाहर गया तो दे खा फक कासमनी आंटी ब्रा और पेटीकोट में बैठी हुई ससगरे ट और िराब पी रही थी।
मझ
ु े दे खकर बोली- “क्ट्या बात है मोन?” कासमनी आंटी की जुबान निे में बहुत लड़खड़ा रही थी और आूँखें भी
निे में भारी थीं।
मैंने कहा- “कुछ नहीं आंटी, पानी पीने आया था पर आप तो श्हहस्की पी रही है । ररि कहाूँ है?”
मैंने भी एक साूँस में परा पेग गटक सलया और बोला- “कहाूँ आंटी, ररक्ट्की अनदर रूम में है । लण्ड लेकर एकदम
मस्त चत हो गई है साली की। अभी तक दो बार लण्ड का पानी पी चक
ु ी है, और तीसरी बार चद
ु ाने को मचल
रही है । चुदाने के मामले में एकदम तम्
ु हारी बेटी है । साली की बहुत गरम चत है । इसको अगर दमदार मदफ नहीं
समला तो ये तो दसरे मदों से खब चद ु वायेगी…”
मैंने कहा- “कासमनी आंटी, आप भी चलो न अनदर। मेरी बड़ी इच्छा है फक तम्
ु हारी बेटी के सामने तम्
ु हें चोदूँ …”
154
मैंने कासमनी आंटी की एक न सन
ु ी और उनहें जबरदस्ती कमरे में ले आया।
मैंने कहा- “दे खो न… यहाूँ हम दोनों मजे ले रहे हैं, और श्जनकी वजह से मजे ले रहे हैं, वो बाहर उदास बैठी हैं।
इसीसलए इनको भी यहीं ले आया। पर ये िमाफ रही हैं…”
मैंने ररक्ट्की को कहा- “चलो ररक्ट्की अपनी मम्मी का पेटीकोट उतारो और अपनी मम्मी की चत नंगी करके मझ
ु े
हदखाओ…” कहकर मैंने कासमनी आंटी की ब्रा खोलकर उनकी चधचयां नंगी कर दीं।
ररक्ट्की ने भी कासमनी आंटी के सारे कपड़े उतार हदये और बोली- “लो मोन मेरी मम्मी की चत हाश्जर है …”
अब दोनों माूँ बेटी एक साथ बबल्कुल नंगी मेरे सामने थीं। मैंने भी नंगी कासमनी आंटी को अपनी बाहों में ले
सलया और फकस करने के बाद बोला- “कासमनी डासलिंग। आज तम्
ु हारी बेटी की चत खोली है तो आज मैं तम्
ु हारे
साथ भी हनीमन मनाऊूँगा तो डासलिंग तम्
ु हारी बेटी मेरा लण्ड चसकर मोटा करे गी और आज मैं तम्
ु हारी गाण्ड
मारूंगा। अपनी गाण्ड मरवाओगी ना कासमनी डासलिंग?”
कासमनी आंटी निे के कारण बहकी हुई आवाज में बोलीं- “मोन, साले त… तने मेरी चत मारी… मेरे मूँह
ु , गले में
मादरचोद अपना लण्ड चोदा और मेरी चधचयों के बीच में भी लण्ड नघस के चोदा और… और… यहाूँ तक की साले
तने मेरी गाण्ड को भी नहीं छोड़ा… बोल साले भोसड़ी के… तझ
ु े कभी मैंने ना कहा क्ट्या? हाूँ, तेरा मत भी पपया
है मैंने? तो इसके बाद क्ट्या पछता है? जैसे त मझ
ु े चोदना चाहता है वैसे चोद, गाण्ड मारनी है तो साले गाण्ड
मार ले…”
मैंने ररक्ट्की को बल
ु ाकर अपने सामने घट
ु ने पर बैठकर लण्ड चसने के सलये बोला और कहा- “लो ररक्ट्की, चस के
तैयार करो अपनी मम्मी के सलये। दे खो आज आपकी मम्मी कैसे निे में ित्त
ु होकर मेरा लण्ड अपनी गाण्ड में
लेगी। आंटी दे ख तेरी बेटी क्ट्या तबीयत से मेरा लण्ड चसकर मोटा कर रही है तेरी गाण्ड के सलये। ये तो आज
अपनी मम्मी की गाण्ड फड़वाकर ही मानेगी। दे ख तो सही साली एक हदन में ही क्ट्या रं डी की तरह चसने लग
गई है …” और मैं ररक्ट्की का मूँह
ु पकड़कर हल्के-हल्के िाट लगाने लगा।
इतनी दे र में कासमनी आंटी भी एक हाथ में बोतल पकड़कर पलंग पर जैसे मैंने कहा था वैसे ही कुनतया बन
गई।
मैंने कहा- “कुछ नहीं होगा। हम पहले भी आंटी की गाण्ड मार चुके हैं। आराम से खब रीम मलो। थोड़ी दे र बाद
जब गाण्ड का छे द ररलैक्ट्स हो जायेगा तब बड़े आराम से मेरा लण्ड अंदर जायेगा…”
मेरी बात सन
ु कर ररक्ट्की अपनी माूँ की गाण्ड पर परी लगन से रीम मलने लगी और कासमनी की गाण्ड को
लण्ड के सलये तैयार करने लगी। जब कासमनी तैयार हो गई तो मैं पलंग पर चढ़ा और अपना तननाया हुआ लण्ड
कासमनी आंटी के चतड़ों पर फेरने लगा और ररक्ट्की को बोला- “अब जरा मेरे लण्ड के ऊपर भी रीम लगाओ।
अब मैं तेरी मम्मी के भरे रं ग की गाण्ड के छे द को खोलूँ गा…”
ररक्ट्की ने बड़े ही प्यार से मेरे लण्ड पर रीम लगायी और एकदम धचकना कर हदया।
मैंने अपने हाथ से लण्ड पकड़ा और गाण्ड के छे द पर हटका हदया और दसरे हाथ की उं गसलयों से गाण्ड के छे द
को और चौड़ा फकया और लण्ड का सप
ु ाड़ा हटकाकर हल्के से झटका दे कर कासमनी आंटी की गाण्ड में सरका
हदया। रीम की धचकनाहट के कारण मेरा एक इंच लण्ड कासमनी आंटी की गाण्ड के छल्ले में जाकर फूँस गया।
ररक्ट्की ने भी मेरा कहना माना और मैंने अपने दोनों हाथों से कासमनी आंटी की कमर पकड़ ली। मैंने जोरदार
झटका मारा श्जससे धचकनाहट होने के कारण मेरा लण्ड सरकते हुए परा कासमनी आंटी की गाण्ड में समा गया।
कासमनी आंटी को तो जैसे बबजली का िाक लग गया हो। अगर ररक्ट्की ने उनके चतड़ और मैंने उनकी कमर
कसकर नहीं पकड़ी होती तो िायद कासमनी आंटी मेरा लण्ड ननकाल दे तीं पर बेचारी मजबर थी… ससवाये
कसमसाने के और गासलयां दे ने के अलावा वो कुछ भी नहीं कर सकती थीं।
मैंने भी बबना कुछ परवाह फकये बबना अपना पर लण्ड कासमनी आंटी की गाण्ड में उतारकर ही दम सलया और
हल्के-हल्के िाट दे ने लगा।
156
कासमनी आंटी तो ददफ के मारे पागल हो गई थी और बोले जा रही थीं- “अरे मादरचोद, भोसड़ी वाले मार डाला रे ।
तेरी माूँ का भोंसड़ा मादरचोद… बहनचोद मैं श्जंदगी भर तझ
ु से जैसे कहे गा वैसे ही चद
ु वाऊूँगी और चसूँगी। त
श्जसको बोलेगा मैं उसको चुदवा दूँ गी तेरे से। मझ
ु े छोड़ दे माूँ के लौड़े। हाय मेरी माूँ… फट गई मेरी गाण्ड।
मादरचोद सत्यानाि कर हदया तने आज मेरी गाण्ड का। आज तेरा लण्ड कुछ ज्यादा ही मोटा लग रहा है…”
कासमनी आंटी को भी अब अच्छा लगने लगा था क्ट्योंकी अब वो कह रही थीं- “मार ले मोन, मार ले अपनी आंटी
की गाण्ड। हाय हाय… िरू
ु -िरू
ु में तो बहुत ददफ हुआ पर बाद में बहुत मजा आता है । ररक्ट्की त भी मोन से
अपनी गाण्ड जरूर मरवाना…”
करीब बीस पच्चीस समनट तक कासमनी आंटी की गाण्ड मारने के बाद मैंने अपना रस कासमनी आंटी की गाण्ड
में ही ननकाल हदया। अब मैं भी काफी थक गया था और हम तीनों नंगे एक दसरे से सलपटकर सो गए।
सब
ु ह जब मेरी नींद खुली तो मैं अकेला ही सो रहा था। मैं कपड़े पहनकर बाहर आया तो दे खा कासमनी, ररि
और ररक्ट्की नामता कर रहे थे।
मेरे कुछ कहने से पहले ही ररक्ट्की बोली- “रात भर मेहनत भी तो बहुत की है मोन भैया ने…”
मैंने कहा- “नहीं आंटी अब घर जाकर ही फ्रेि होऊूँगा…” और मैं घर से बाहर आ गया।
मैं घर पंहुचा और नहा िोकर जब पापा के पास गया तो पापा बोले- “तेरी बहन की िादी तय हो गई है । अगले
महीने की 20 तारीख को बरात आयेगी। बहुत काम करने हैं। ससफफ 25 हदन बचे हैं। तो अब तम
ु फालत घमना
बंद करो और तैयारी में मेरा हाथ बटाओ…”
157
उस हदन के बाद कभी गेस्टहाउस की बफु कं ग, कभी काडफ छपवाने का चक्ट्कर, कभी काडफ बांटने का चक्ट्कर, कभी
िादी की िापपंग, कुल समलाकर टाइम ननकलता ही गया और मेरा और ररि का रश्मम दीदी और ररक्ट्की को एक
ही बबस्तर पर चोदने का प्लान कामयाब नहीं हो पाया। घर में काफी सारे मेहमान भी आ गए थे।
िादी से 3 हदन पहले मनीर् भी मोननका को लेकर आ गया। मौसा मौसी िादी वाले हदन ही सब
ु ह आने वाले थे।
मोननका भी चुद-चुद कर काफी गदरा गई थी। उसे दे खकर मूँह
ु में पानी आ गया। पर इतने सारे लोगों के घर में
रहते कुछ करना नामम
ु फकन था। सोचा की िादी के बाद मोननका और मनीर् को कुछ हदन रोक लूँ गा तभी कुछ
होगा।
रात को मनीर् और मैं छत पर बैठे थे तो मनीर् बोला- “यार दो हदन बाद रश्मम िादी करके बेंगलोर चली
जाएगी फफर पता नहीं कब समलना हो। यार कम से कम एक बार उसकी चत तो हदला दे …”
मैंने कहा- “भैया मैंने खुद एक महीने से दीदी की चत की िकल नहीं दे खी। दीदी की क्ट्या 25 हदन से फकसी की
चत नहीं दे खी पर क्ट्या करूं? कुछ होना संभव नहीं है क्ट्योंकी रश्मम दीदी अब फकसी तरह का ररस्क नहीं लेना
चाहती। ररि भी तो मरा जा रहा है । उसने दीदी को फोन करके अपने घर बल
ु ाया था पर दीदी ने साफ मना कर
हदया। कल मैं ररि के घर काडफ दे ने जाऊूँगा तब बात करूंगा। हो सकता है कुछ तो हो जाये।
मैंने कहा- “क्ट्या आंटी आपको तो सबसे पहले खबर दी थी पर क्ट्या करूं मझ
ु े ही सारे काडफ बाटने हैं। अभी भी
करीब 10 काडफ बचे हैं, जो आज बाटं गा। ररक्ट्की और ररि कहां हैं?”
कासमनी- ररि ररक्ट्की को हदल्ली छोड़ने गया है । कल वापस आ जायेगा। ररक्ट्की का एक पेपर है वहां 22 तारीख
को। पेपर दे कर 23 को वो अपने पापा के साथ वापस आ जाएगी।
आंटी को मैंने सारी बात बता दी की हम लोग रश्मम दीदी को िादी से पहले एक बार और चोदना चाहते हैं, पर
दीदी नहीं मान रही, इसीसलए ररि से बात करनी थी।
आंटी ने कहा- “दे खो अब रश्मम की िादी में दो हदन बचे हैं। वो अपनी जगह सही है । अगर कुछ गड़बड़ हो गया
तो? अब तम
ु लोगों को भी सब्र करना चाहहए…”
मोन- “पर आंटी दीदी दो हदन के बाद हनीमन के सलए ससंगापरु जा रही है और वहां से लौट कर बेंगलोर। अब
पता नहीं कब उनसे मल
ु ाकात होगी? क्ट्या पता िादी के बाद वो हमें भाव ही न दे । इसीसलए आखखरी याद के
तौर पर हम उनको चोदना चाहते हैं…”
158
कासमनी- “अच्छा… ररि तो कल रात तक वापस आयेगा। एक तरीका है की तम्
ु हारा काम भी हो जायेगा और
रश्मम भी मान जाएगी। सन
ु ो तम्
ु हारा गेस्टहाउस तो यहीं है मेरे घर के पीछे । परसों जब रश्मम ब्यटी पालफर जाये
तो तम
ु उसके साथ चले जाना और उसको तैयार करवा कर मेरे घर ले आना। पालफर वाली मेरी दोस्त है मैं उससे
कह दूँ गी वो तम्
ु हें 7:30 की जगह 6:30 पर एक घंटे पहले छोड़ दे गी। यहाूँ तम
ु और ररि एक घंटे में उसकी
चत मार लेना। अगर थोड़ा बहुत मेकअप बबगड़ा तो मैं ठीक कर दूँ गी और 8:00 बजे जयमाल तक हम
गेस्टहाउस पहुूँच जायेंग…
े ”
मैं खि
ु होकर बाकी के काडफ बांटने ननकल गया और िाम को घर पहुूँचकर मनीर् को सारा प्लान बताया। मनीर्
भी खुि हो गया। िादी वाले हदन करीब 3:00 बजे मैंने दीदी से कहा- “चलो तम्
ु हें पालफर ले चल…
ं ”
मैंने कहा- “पालफर वाली का फोन आया था उसने 3:00 बजे आने को कहा है…”
दीदी ने अपने कपड़े सलए और मेरे और मनीर् के साथ पालफर के सलए चल दी। मोननका भी साथ आना चाहती
थी पर हमने उसे टाल हदया। पालफर में दीदी अनदर चली गई और हम दोनों बाहर बैठ गए।
करीब 6:00 बजे ररि भी वहीं आ गया और बोला- “सब ठीक है न? मम्मी ने कहा की एक बार पछ लूँ की तम
ु
लोग रश्मम को लेकर आ रहे हो न?”
मनीर् ने ररि से कहा- “जाओ अपने लौड़े पर तेल लगाकर रखो हम दल्
ु हन को लेकर आ रहे हैं। ररि वापस
चला गया। 6:30 बज गए पर अभी तक दीदी तैयार नहीं हुई थी। हमें लगा की प्लान चौपट हो गया। मैंने
जाकर पछा।
तब पालफर वाली बोली- “ब्राइडल मेकअप में टाइम लगता है । फुल बाडी हे यर ररमवल, वैश्क्ट्संग, ब्लीधचंग,
फाउं डेिन इसी में फकतना टाइम लगता है । हे यर स्टाइल सेट हो रहा है बस फफर कपड़े ठीक करके भेज दें गे। 15-
20 समनट और लगेगा…”
खैर, 7:00 बजे दीदी तैयार होकर बाहर आई। मेरी और मनीर् की तो सांस ही रुक गई। हरे रं ग के लहं गे में
दीदी कयामत लग रही थी। खैर, हम जल्दी से दीदी को लेकर वहां से ननकले और गाड़ी में बैठ गए। मैंने मनीर्
से जल्दी गाड़ी चलाने को कहा।
159
दीदी बोली- “जल्दी फकस बात की अभी बहुत टाइम है…”
रश्मम- क्ट्यों?
मोन- तम्
ु हारी िादी से पहले आखखरी बार तम्
ु हें चोदने।
रश्मम- अरे अब टाइम कहाूँ है , पागल हुए हो क्ट्या? गेस्टहाउस भी बगल में है फकसी ने दे ख सलया तो मस
ु ीबत हो
जाएगी।
करीब 15 समनट में हम वहां पहुूँच गए। कार हमने घर के अनदर ही कर दी ताकी कोई दे खे न। ररि ने जल्दी
से दरवाजा खोल हदया और हम तीनों घर के अनदर घस ु गए। रश्मम दीदी काफी घबरा रही थी।
कासमनी- “काफी दे र कर दी तम
ु लोगों ने। अब आिे घंटे में जो करना है कर लो। फफर हम सब चलते हैं। रश्मम
त घबरा मत। फकसी को कुछ पता नहीं चलेगा। जा जल्दी से बेडरूम में । ररि ने गल
ु ाबों से बेड सजाया है तेरे
सलए। सन
ु ो, अब कोई भी रश्मम के कपड़े मत उतारना। रश्मम को घोड़ी बना दे ना और लहं गा उठाकर पैंटी
उतारकर चोद लेना। चलो जल्दी करो तब तक मैं भी कपड़े बदल लेती हूँ…”
कासमनी आंटी की बातों से दीदी की घबराहट दर हुई और वो कमरे में चली गई पीछे -पीछे हम तीनों भी अनदर
घस
ु गए।
दीदी ने हमसे कहा- “दे खो जल्दी-जल्दी कर लो, पर दे खना मेकअप और कपड़े न खराब हो। समझे…”
दीदी के इतना कहते ही हम तीनों उनपर टट पड़े। मैं दीदी की चधचयां उनकी चोली के ऊपर से दबा रहा था तो
ररि रश्मम दीदी का लहं गा उठाकर उनकी चत पर हाथ रगड़ रहा था, और मनीर् दीदी के चतड़ दबा रहा था।
ररि ने दोनों हाथों से खींचकर दीदी की पैंटी उतार दी। दीदी के गोरे चतड़ नंगे चमक रहे थे। लगता था की
चतड़ पर भी दीदी ने फाउं डेिन लगवाया था। दीदी के कपड़े तो हम नहीं उतार सकते थे पर हम तीनों ने जल्दी-
जल्दी अपने कपड़े उतार डाले और परे नंगे हो गए।
मैंने दीदी को घोड़ी बनाया और पीछे से अपना लण्ड दीदी की पानी छोड़ती बरु में पेल हदया। दीदी के मूँह
ु से एक
हल्की सी ‘आह्ह’ ननकल गई। तभी ररि ने दीदी के मह
ूँु में अपना लण्ड पेल हदया और दीदी उसे लालीपाप की
तरह चसने लगी।
मनीर् ने दीदी की चोली के बटन खोल हदए और ब्रा के ऊपर से ही उनकी चधचयां दबाने लगा। मैंने सामने िीिे
में दे खा की कैसे दीदी परी तरह से दल्
ु हन की तरह सजी हुई अपने भाई से चद
ु वा रही है । टाइम कम था तो मैंने
ताबड़तोड़ िक्ट्के मार-मारकर दीदी की चत में अपना वीयफ छोड़ हदया।
160
मेरे झड़ते ही ररि ने दीदी की चत में अपना लण्ड पेल हदया और मनीर् ने दीदी के मूँह
ु में । मैं कपड़े पहनकर
फफर से तैयार हो गया तब तक कासमनी आंटी भी तैयार होकर आ गई।
कासमनी- “अरे इतना टाइम नहीं है , 7:45 हो गए हैं। घर से कोई पालफर पछने जाये इससे पहले हमने वहां पहुूँच
जाना चाहहए…”
पर मनीर् बोला- “बस 5 समनट आंटी…” और उसने अपना तननाया हुआ लण्ड दीदी की वीयफ से भरी चत में पेल
हदया। दीदी भी अब तक एक बार झड़ चक ु ी थी।
कासमनी- “चल जब तक त इसको चोद मैं इसकी चोली वापस बाूँि दे ती हूँ। ररि त भी कपड़े पहनकर तैयार हो
जा…” फफर आंटी दीदी की चोली बांिकर उनकी सलपश्स्टक ठीक करने लगी, जो लण्ड मूँह
ु में लेने से थोड़ी फैल
गई थी।
आंटी ने दीदी के कपड़े ठीक फकये, पर दीदी की पैंटी नहीं समल रही थी।
आंटी ने दीदी को सीिा खड़ा फकया और उनका लहं गा नीचे कर हदया और बोली- “चल रश्मम जल्दी चल। बाद में
दसरी पैंटी पहन लेना अभी चल…”
हम सब जल्दी से जाकर कार में बैठे और दो समनट में गेस्टहाउस पहुूँच गए। सब लोग हमारा इंतज
े ार कर रहे
थे। हम सब जल्दी से अनदर पहुूँचे और दीदी को सीिे स्टे ज पर ले जाया गया। वहां मयंक दीदी का जयमाल के
सलए इंतजार कर रहा था। थोड़ी दे र तक दीदी और मयंक बैठे रहे फफर जब दीदी जयमाल के सलए खड़ी हुई तो
उनके बदन में एक ससहरन सी दौड़ गई, क्ट्योंकी जैसे ही मयंक ने उनके गले में वरमाला डाली उसी वक़्त उनकी
चत से मेरा, ररि और मनीर् का समला जल
ु ा वीयफ बहकर उनकी जांघों को धचपधचपा बनाने लगा।
161
फकसी तरह दीदी ने कंरोल फकया और जयमाल के बाद मौका समलते ही एक कमरे में जाकर फेरों से पहले अपने
कपड़े बदले और अपनी चत और पैरों को साफ फकया। दो हदन बाद रश्मम दीदी मयंक के साथ चली गई पर मेरे
हदल में उनकी चद
ु ाई की सन
ु हरी यादें हमेिा के सलए छोड़ गई।
162