You are on page 1of 67

घर में बालिबास औरत

संकिन और हिन्दी फान्ट - jaunpur

िेखक- अज्ञात 23-07-2015

शरियत में बालिबास औित का मतिब होता है पहिे से अंजान, अज्ञात औित।

दोस्तों, मैंने यहााँ बहुत सी कहाननयां पढ़ी हैं औि बहुत से दोस्त भी हैं मेिे। यहााँ सबसे बात किने के बाद आज
मैं भी आपके साथ कुछ शेयि किने जा िही हाँ। रिश्तों को बदिते दे ि नहीं िगती। कहते हैं कक चाहे जजतना भी
प्याि क्यों ना हो जजश्म इंसान को सब कुछ भिने पि मजबि कि दे ता है । ऐसे ही कुछ मेिे साथ भी हुआ औि
वही मैं आपको यहााँ पि बताऊाँगी औि कैसे ये सब हुआ? औि क्यों हुआ? इसकी वजह क्या थी? क्या ये होना
जरूिी था? काफी सवािात हैं जजसके जवाब तो आपको खुद कहानी पढ़ने के बाद पता चिेंगे। उम्मीद किती हाँ
कक आपको कहानी पसंद आएगी।

***** *****पात्र (ककिदाि) परिचय-


01॰ आलसफ़- उम्र 21 साि, क़द 5’8” अच्छी बाडी है । पढ़ाई छोड़ चक
ु ा है , बस हल्का फुल्का काम किता है ।

02॰ जाफ़ि- आलसफ़ का बाप, बबजनेसमैन, काम काफी अच्छा है, जजसकी वजह से आलसफ़ काम नहीं किता
ठीक से औि ना बाप के साथ जाता है ।

03॰ नगमा- आलसफ़ की मााँ, हाउसवाइफ, बहुत सेक्सी कफगि।

04॰ समिीन- आलसफ़ की छोटी बहन, 18 साि की है, एकदम पटाखा। अभी जवानी जोबन पि आने वािी है ।

04॰ सबा- आलसफ़ की बड़ी बहन। कहानी मख्


ु य पात्र, उम्र 23 साि, तािीफ जजतनी किो कम है ।

***** *****

1
यहााँ एक घि में एक चाच की परिवाि भी िहती है जजसमें चाच चाची हैं औि उनकी एक *** साि की बेटी है ।
बाकी कुछ औि िोग भी हैं। परिचय अगिे अपडेट में दं गा।

ये एक पाककस्तान की मजु स्िम परिवाि है जो कक अपने घि में ठीक-ठाक हैं। गाड़ी, घि, नोकि हि चीज है औि
मस
ु िमान होने के नाते हि तिह से पिहे ज भी ककया जाता है अपने आपको ढांप कि िखा जाता है । िेककन इसके
अंदि अब दे खना ये है कक कैसे इंसान के अंदि उसको उकसाता है बिु ाई की तिफ, औि कैसे वो बहकता हुआ
उस तिफ चिता जाता है ।

सबा- ये मख्
ु य पात्र है । घि की सबसे िड़िी औि खबसित होने के साथ-साथ, सबसे ज्यादा पिहेज किनेवािी
औि सबसे ज्यादा पदे में िहने वािी, आाँख उठाकि ककसी की तिफ नहीं दे खती। हमेशा नकाब में िहती है , पक्की
नमाजी, कोई नमाज नहीं छोड़ती। बाकी सब भी ऐसे ही हैं, िेककन ये सबसे ज्यादा है । अब हुआ क्या ये जानने
के लिये आपको इंतज
े ाि किना पड़ेगा।

सबा अपनी पढ़ाई खत्म कि चुकी थी। िेककन कुछ ददन तािीम के लिये अक्सि मदसे में जाया किती थी। सबा
का घि भी ठीक था, एक तिह से कोठीनम
ु ा था, जजसके दो दहस्से थे। मख्
ु य दिवाजे से अंदि जाते ही टीवी
िाउं ज औि साथ में नीचे 3 बेडरूम थे, एक इसकी अम्मी-अब्ब का था, एक छोटे भाई का औि एक छोटी बहन
का। ऊपि वािे दहस्से में उसके चाच िहते थे औि ऊपि भी बबल्कुि ऐसे ही था। सबा का रूम ऊपि ही था,
अपने चाच चाची के साथ औि एक रूम ऊपि खािी था। बाहि काफी बिा गाडेन टाइप एरिया था जजसमें काफी
पौधे िगे हुए थे, औि गाडेन से होते हुये पीछे जायें तो दो सवेंटस रूम थे। एक ड्राइवि के पास था जजसकी पिी
परिवाि िहती थी, औि एक ऐसे ही आदमी था जो कक घि का औि बाहि का काम ककया किता था। ये था इनका
सािा घि का माहौि।

अब कहानी की तिफ आती हाँ।

आज सनडे का ददन था, शाम के 6:00 बज िहे थे। एक-एक किके कुछ ही वक्त में सब िोग नीचे टीवी िाउं ज
में जमा हो चक
ु े थे। सब तैयाि थे। एक से बढ़कि एक खबसित चेहिा था। िेककन असि खबसिती आज भी
छुपी हुई थी। जी हााँ सबा। तैयाि होने के बाद भी नकाब औि अबया में थी। सबके िाख कहने के बाद भी सबा
ने कभी बबना बकु े के बाहि कदम नहीं िखा। इजाजत तो ककसी को भी नहीं थी, िेककन शादी वगैिा पि इजाजत
थी। इसलिये सब आज ऐसे ही थे, एक सबा को छोड़कि।

सब िोग तैयाि होकि जाने िगते हैं तो अचानक से चाची की तबीयत खिाब हो जाती है, औि वो नहीं जाती।
बाकी सब िोग शादी के लिये ननकि जाते हैं। शादी अटें ड किके सब िोग िात को वापपस आते हैं, औि सब
अपने-अपने रूम में चिे जाते हैं। सबा क्योंकी ऊपि सोती थी, इसलिये वो अपने रूम से ननकिती है औि चाची
का टाटा किने उनके रूम में जाती है, तो चाची सो िही थीं। ये दे खकि सबा वहााँ से ही वापपस आ जाती है औि
अपनी िात की कजा नमाज़ पढ़कि सोने के लिये िेट जाती है ।

सब
ु ह अपने टाइम से उठकि सबा नमाज पढ़ती है औि बाहि वाक किने चिी जाती है । अपने घि के ही िान में
सबा नंगे पांव चक्कि िगाती है । जब ददन का उजािा होने िगता है तो सबा अपने रूम में आ जाती, औि कफि
से वही नाश्ते का काम शरू
ु हो जाता है । सब कम खतम किके सबा तैयाि होती है औि अम्मी को बताती है कक

2
वो मदसे जा िही है औि बाहि आकि ड्राइवि को कहती है कक मझ
ु े छोड़ दें औि वहााँ पे सेदा मदसे के बाहि खड़ी
थी जो कक घि से 15 लमनट की दिी पि था। सबा वहााँ से मदसे में दाखखि होती है औि अंदि जाने िगती है ।

अंदि आज सािा हाि खािी था। िगता है आज मैं जल्दी आ गई हाँ। अभी तक तो कोई भी नहीं आया है ।
िेककन मौिवी सादहब की बाइक तो खड़ी थी बाहि, यहीं कहीं होंगी। मैं कुछ पढ़ती हाँ उतनी दे ि। ये बोिती हुई
सबा एक अिमािी खोिती है औि एक ककताब ननकािकि नीचे बबछी कािीन पि बैठकि पढ़ने िगती है । कुछ
िम्हों बाद सबा के कान में एक आवाज पड़ती है ।

“मौिवी साहब आिाम से…”

ये आवाज सन
ु ते ही सबा लसि घम
ु ाकि इधि उधि दे खती है । िेककन कहीं कोई नजि नहीं आता। ये आवाज कहााँ
से आई थी? यहााँ तो कोई भी नहीं है । िगता है खामोशी की वजह से मझ
ु े वहम हो िहा है । ये सोचकि कफि से
अपना ध्यान ककताब में िगा िेती है , कक तभी कफि से आवाज आती है ।

“हाईई ददद होता है, आिाम से…”

ये आवाज आते ही सबा का ध्यान वाशरूम की तिफ जाता है । वाशरूम से आ िही है आवाज। िेककन ककसकी
आवाज है? िगता है कोई तकिीफ में है । कहीं मौिवी साहब की तबीयत तो नहीं खिाब है ? ये सोचती हुई सबा
उठती है औि वाशरूम की तिफ जाने िगती है । वाशरूम इस रूम के अंदि ही था, आगे वािी साइड पि। सबा
आगे बढ़ते हुये उसी वाशरूम की िाइट जिती हुई नजि आती है , जो कक दिवाजा खि
ु ा होने से बाहि आ िही
थी।

अपने निम पांव कािीन पि िखते हुये सबा वाशरूम की तिफ जा िही थी। वाशरूम के आगे पहुाँचकि उसके
कदम एकदम वहीं जम जाते हैं, औि ददि तो जैसे चिना ही बंद हो जाता है । उसे घबिाहट होने िगती है , अंदि
का दृश्य दे खकि।

अंदि मौिवी साहब नंगे थे औि एक िड़का जो कक मौिवी साहब के पास पढ़ने आता था वो भी नंगा था।
िेककन चौंकाने वािी बात ये थी कक मौिवी साहब का िण्ड उसकी गाण्ड में था, औि मौिवी साहब उसे चोद िहे
थे। सबा के पांव वहााँ ही जम गये थे। क्योंकी उस िड़के औि मौिवी ने भी सबा को दे ख लिया था।

सबा पि नजि पड़ते ही मौिवी साहब हड़बड़ा के खड़े हो जाते हैं जजससे उनका िण्ड बाहि ननकि आता है , जजसे
सबा आाँखें खोिकि दे खती है । िड़का अपना लसि नीचे ककये वैसे ही घोड़ी बना हुआ थमैं। मौिवी साहब का एक
िं ग जाता था एक आता था। िं ग तो सबा का भी उड़ा हुआ था, हािांकी उसने तो चोिी नहीं की थी, बल्की चोिी
किते हुये पकड़ा था मौिवी साहब को।

सबा अपने आपको संभािती है , औि वहााँ से उल्टे कदम वापपस चिने िगती है औि एक तिह से भागती हुई
मदसे से बाहि आ जाती है । िेककन अब जाएगी कैसे वापपस? अचानक उसे रिक्शे का खयाि आता है औि वो
आटोरिक्शा िेकि घि पहुाँच जाती है ।

3
घि आते ही सबा का उड़ा हुआ िं ग दे खकि उसकी अम्मी उससे पछती है । िेककन वो कुछ नहीं कहकि अपने रूम
में चिी जाती है ।

सबा ददि अब पिा जोिों से धड़क िहा था ऐसे कक जैसे कोई ट्रे न चि िही हो। सबा अपने कपड़े औि अबया
उतािकि फेंक दे ती है औि नहाने घस
ु जाती है । पशीने से बिु ा हाि हो िहा था। बाि-बाि उसकी आाँखों के सामने
वो दृश्य आ िहा था। नहाकि ननकिकि वो थोड़ा रििैक्स होती है औि पानी पीकि िेट जाती है । िेककन जब भी
आाँखें बंद किती तो सामने मौिवी साहब का िण्ड आ जाता। आज से पहिे सबा ने कभी ककसी का िण्ड नहीं
दे खा था औि ना ही ऐसा दृश्य दे खा था।

उसे तो ये भी नहीं पता था कक ऐसा कुछ दो मदों के बीच होता भी है । वो लसफद ये जानती थी के सेक्स तो
िड़की िड़का किते हैं, ये उसे उसकी सहे लियों से पता चिा था। बाि-बाि वही दृश्य औि मौिवी का िण्ड सामने
आ जाता, औि सबा का ददि धड़कने िगता। ये मझ
ु े क्या हो गया है? क्या दे ख लिया मैंने? मझ
ु े वहााँ जाना ही
नहीं चादहए था। िेककन मौिवी साहब गित कि िहे थे ऐसा कैसे कि सकते हैं वो? भिा वो िड़के के साथ। छीीः
मझ
ु े क्या हो गया है? क्या सोचने िगी हाँ मैं? औि ये सोचकि अपने लसि को झटक कि उठकि अपनी चाची के
रूम में चिी जाती है ।

सबा अपने आपको सािा ददन ऐसे ही बबजी िखती है । क्योंकी जब भी वो फारिग बैठती थी तो उसकी आाँखों के
सामने वही दृश्य आ जाता था। बाि-बाि उसी दृश्य को सोचकि औि मौिवी के िण्ड को दे खकि याद कि-किके
सबा का ददमाग घमने िगा था। उसने तो कभी सोचा भी नहीं था कक उसे ऐसे कुछ कभी दे खने को लमिेगा।
ददन औि िात याँ ही काटकि सबा सब
ु ह उठकि कफि से अपनी रूटीन में नमाज पढ़ती है औि वाक किने के बाद
नाश्ते में िग जाती है ।

नाश्ता किने के बाद सबा अपने रूम में चिी जाती है औि सोचने िगती है कक वो क्या किे ? मदसे में जाए या
नहीं? अगि जाएगी तो मौिवी सादहब का सामना कैसे किे गी? औि अगि उन्होंने कुछ पछ लिया तो क्या जवाब
दे गी? िेककन पछना तो मझ
ु े चादहए उनसे कक वो ऐसे क्यों किते हैं? ये तो गित है औि वो भी एक िड़जे के
साथ ऐसे कैसे कि सकती हैं वो? िेककन क्या मैं ये उनसे पछ पाऊाँगी उनके सामने जाकि? कुछ समझ में नहीं
आ िहा कक मैं क्या करूं? वहााँ जाऊाँ के नहीं? औि अपना लसि पीछे कि के सबा कुछ दे ि सोचती है औि कफि
उठकि तैयाि होने िगती है औि कुछ ही दे ि में तैयाि होकि ननकिती है औि मदसे पहुाँच जाती है । िेककन अंदि
जाने की दहम्मत नहीं हो िही थी। टााँगें कांप िही थीं जैसे जान ही ना हो उनमें । ददि तो बबजिी की स्पीड के
जैसे तेज चि िहा था।

सबा दहम्मत किती है औि कांपते हुये पैिों के साथ आगे बढ़ने िगती है । अंदि सहन में अपने जोते उतािती है
औि अंदि मदसे के रूम की तिफ चिने िगती है । कुछ दे ि चिने के बाद सबा दिवाजे से अंदि जाती है औि
तब सामने मौिवी साहब बैठे थे औि कुछ बच्चे जो कक पढ़ िहे थे।

मौिवी की नजि सबा पि पड़ते ही मौिवी अपनी नजिें झक


ु ा िेता है औि बच्चों को पढ़ाने िगता है । सबा भी
चिती हुई आगे बढ़ती है, औि अिमािी से एक ककताब ननकािकि बच्चों के पास ही बैठ जाती है । कुछ दे ि याँ
ही गज
ु ािती है, कोई भी बात नहीं होती। मौिवी साहब बच्चों को सबक दे ते हैं।

4
मौिवी- “सबा बेटी, आप मेिे साथ आओ। आपसे कुछ जरूिी बात किनी है …” औि उठकि साथ वािे रूम में चिे
जाते हैं जो की मौिवी साहब का सोने वािा कमिा था।

सबा सब बच्चों की तिफ दे खती है तो उसकी नजि उस िड़के पि पड़ती है जो कक कि मौिवी साहब के साथ
वाशरूम में था। दोनों की आाँखें लमिती हैं तो वो िड़का अपनी आाँखें झक
ु ा िेता है । सबा उठती है औि रूम की
तिफ जाने िगती है । अब उसकी हाित कुछ बेहति थी शायद मौिवी साहब को डिा हुआ दे खकि उसे कुछ
सकन हुआ था। सबा चिते हुये रूम में जाती है तो मौिवी साहब बेड पि बैठ गये थे। सबा को दे खकि उसे पास
ही एक कुसी पि बैठने का कहते हैं, तो सबा बैठ जाती है ।

मौिवी- “सबा बेटी, कि वो त-तम


ु ने जो दे खा, ककसी से मत कहना। मेिे से गिती हो गई। मझ
ु े ऐसे नहीं किना
चादहए था। आइन्दा ऐसा नहीं करूंगा। बस तम
ु ककसी से कुछ मत कहना, विना मेिी िोजी खिाब हो जायेगी…”

सबा- “मौिवी साहब, ये तो आपको किने से पहिे सोचना चादहए था ना कक मैं क्या कि िहा हाँ। मझ
ु े तो यकीन
नहीं हो िहा कक आप ऐसा कि सकते हैं। मेिा उस्ताद ऐसा होगा मझ
ु े तो अभी तक यकीन नहीं आ िहा…" थोड़ा
गस्
ु से से सबा बोिती है औि चप
ु हो जाती है ।

मौिवी- “बेटी गिती हो गई। एक दफा मझ


ु े मफ कि दो। वादा किता हाँ आज के बाद ऐसा नहीं होगा। मैं तम्
ु हािे
पांव पड़ता हाँ प्िीज़्ज़… मझ
ु े माफ कि दो। मेिी जजंगगी बबादद हो जाएगी। मझ
ु े कहीं भी जगह नहीं लमिेगी…”
मौिवी साहब एक तिह से िोते हुये कहते हैं।

सबा जो कक पहिे ही बहुत सीधी औि साफ िड़की थी, मौिवी की ऐसी हाित दे खकि कहती है- “ठीक है । मैं
ककसी को नहीं बताऊाँगी। िेककन आप जैसे इंसान को ऐसे नहीं किना चादहए…” उसी दौिान उसकी नजि मौिवी
साहब की शिवाि में बने तंब पि पड़ती है तो वो है िान िह जाती है कक एक तिफ वो माफी मााँग िहे हैं औि
दसिी तिफ मझ
ु े ही दे खकि? ऐसा सोचकि सबा वहााँ से बाहि आ जाती है औि वापपस वहीं बैठ जाती है , औि
उस िड़के को एक नजि गस्
ु से से दे खकि पढ़ने िग जाती है ।

कुछ दे ि बाद मौिवी साहब बाहि आ जाते हैं औि सबा उनसे अपना आज का काम डडसकस किके वहााँ से
ननकिने िगती है । सबा कहती है - “मैं अब चिती हाँ…” औि उठकि जाने िगती है ।

तब मौिवी उसका शकु िया अदा किता है ।

घि आकि सबा को कुछ सकन लमिता है कक मौिवी साहब को अपनी गिती का एहसास हुआ है । चिो अच्छी
बात है । सबा वाशरूम में नहाने के लिये चिी जाती है, औि अपने कपड़े उतािकि नहाने िगती है । जजश्म पि
हाथ फेिते हुये जब वो अपनी आस मतिब गाण्ड औि चतिों पि साबन ु िगाती है तो अचानक उसे वही दृश्य
याद आ जाता है, औि उसका जजश्म एक झटका खाता है , जैसे किें ट िगा हो।

सबा- “आखखि क्यों मौिवी साहबने उस िड़के के यहााँ इस दहस्से में डािा था? क्या मजा है यहााँ पि जो यहााँ
डािकि वो कि िहे थे? वो भी एक िड़के के साथ?”

5
ये सोचती हुई सबा अपने चतिों पि हाथ फेिती है औि अपनी उं गलियां नीचे िेकि जाने िगती है, औि अपनी
सबसे बड़ी उं गिी नीचे िे जाते हुये अपनी गाण्ड के सिु ाख पि फेिती है । उं गिी के फेिते ही सबा के जजश्म में
मजे की एक िहि दौड़ जाती है औि वो एक झटके से अपनी उं गिी पीछे कि िेती है । उफफ्फफ़… ये मझ
ु े क्या हो
गया है ? मैं क्या किने िगी हाँ? औि दोबािा से नहाने िग जाती है ।

िेककन कहते हैं कक शैतान जब शिीि के अंदि घस


ु ता है तो सब कुछ बबादद कि दे ता है । वो शैतान जो की जजश्म
का शैतान होता है, वही शैतान सबा के अंदि घस
ु ने की कोलशश कि िहा था, औि सबा कहीं ना कहीं उसे िास्ता
भी दे िही थी। नहाते हुये वो अपने आपको कफि से शीशे के सामने िाती है औि अपने जजश्म को दे खने िगती
है । अपने जजश्म के हि दहस्से को दे खती है । ऐसा क्या है जो मौिवी साहब के माफी मगते हुये भी तंब बना
हुआ था?

फिि अपने जजश्म पि हाथ फेिते हुये कफि से शावि के नीचे आ जाती है औि अपने जजश्म को गीिा किने
िगती है । ये असि में गमी थी, जो सबा को चढ़ने िगी थी, जजसको ठं डा किने के लिये वो पानी के नीचे जा
िही थी बाि-बाि। िेककन वो नहीं जानती थी कक ये गिमी पानी डािने से नहीं, पानी ननकािने से ही ननकिती
है । पानी के नीचे खड़ी होकि सबा दोबािा से अपने चतिों पि हाथ फेिती है । दध के जैसे चट
ु ि थे सबा के।
कमाि की िगती थी बेदाग जजश्म कोई भी अगि एक दफा उसे दे ख िे तो उसका दीवाना हो जाए।

अपने गीिे हाथों को फेिते हुये सबा का हाथ कफि से उसकी गाण्ड के सिु ाख पि जाने िगता है, औि सबा बीच
वािी उं गिी अपने सिु ाख पि फेिती है । उं गिी फेिते ही सबा को कफि से झटका िगता है । िेककन वो अपनी
उं गिी नहीं हटती, औि आगे पीछे फेिती िहती है । कुछ दे ि याँ ही किने के बाद उसकी अपनी चत में कुछ
हिचि होने िगती है । ये मझ
ु े क्या हो गया है मैं क्या कि िही हाँ? औि यहााँ क्या हो िहा है मझ
ु ?
े यहां तो मैंने
हाथ भी नहीं िगाया औि अपनी गाण्ड से अपना हाथ हटा िेती है, औि नहाने िगती है ।

मैं ऐसा कैसे कि सकती हाँ? ये मेिी सोच को क्या होता जा िहा है? औि क्या कि िही हाँ मैं? छीीः… पता नहीं
ददमाग को क्या हो गया है मेिे? अब ऐसा नहीं करूाँगी मैं मझ
ु े माफ कि दे ना। गाण्ड में आगे से ऐसा नहीं
करूंगी, औि नहाकि बाहि आ जाती है । अपने कामों में बबजी हो जाती है । सािा ददन सबा को बाि-बाि मौिवी के
तंब औि उस दृश्य का खयाि आता िहता है, औि वो बाि-बाि माकफयां मांगती है । िात को नमाज पढ़कि सो
जाती है । सब
ु ह उठकि सबा अपने रूटीन के काम किती है औि नाश्ता किके अपनी अम्मी को बोिती है कक वो
मदसे जा िही है, औि बाहि जाने िगती है ।

अम्मी- “बेटी सब ठीक तो है ना?” सबा की अम्मी उसे पीछे से आवाज दे ती है ।

सबा- “जी अम्मी सब ठीक है । क्यों क्या हुआ, आप ऐसे क्यों पछ िही हैं?” नकाब औि अबाए में ही मड़
ु कि सबा
अपनी अम्मी को जवाब दे कि सवाि किती है ।

अम्मी- बेटी इसलिये पछ िही हाँ के तम


ु मदसे जा िही हो जबकक आज तो बध
ु वाि है , तम
ु तो बस दो ददन ही
जाती हो ना?”

6
अपनी अम्मी की बात सन
ु कि सबा को जैसे झटका िगता है औि उसको याद आता है कक आज तो उसे मदसे
नहीं जाना था। कफि वो क्यों तैयाि होकि जा िही है? औि उसी याद क्यों नहीं िहा? कहीं खोई हुई सबा के
जेहन में हजािों सवाि आ िही थे।

अम्मी- क्या हुआ बेटी, तम्


ु हािी तबीयत ठीक है ना? कहााँ गम
ु हो तम
ु ?

सबा अचानक से जैसे ककसी खयाि से बाहि आती है- “वो अम्मी, असि में कि का थोड़ा काम िहता था तो
मैंने सोचा वो खत्म कि आऊाँ औि साथ में थोड़ा टाइम ज्यादा दं ताकी मेिा कोसद जल्दी खतम हो जाए…” अटक-
अटक के सबा अपनी अम्मी को जवाब दे ती है- “अच्छा अम्मी मैं चिती हाँ…” औि बाहि ननकि जाती है ।

ड्राइवि सबा को िेकि ननकि जाता है । सबा की अम्मी एक दफा सबा पि हाँसती हैं औि कफि से अपने काम में
िग जाती हैं।

सबा- “ये मझ
ु े क्या हो गया है ? आज तो मझ
ु े नहीं जाना था मदसे में, कफि मैं क्यों आ गई आज भी? मझ
ु े याद
क्यों नहीं आया? कैसे भि सकती हाँ मैं? क्या ये सब मेिे साथ उस हादसे की वजह से हो िहा है ? क्यों मेिा
ध्यान उस तिफ जाने िगा है ? ये सब तो गित है । मैं ऐसी नहीं हाँ। मझ
ु े मदसे नहीं जाना चादहए। मौिवी
साहब को क्या कहं गी मैं औि वो क्या सोचें ग?
े क्यों आ गई आज मैं?” इन्हीं खयािों औि सवािों में गगिी हुई
थी सबा कक उसके कानों में आवाज आती है ।

“बीबीजी मदसाद आ गया…”

तब अचानक सबा खयािों से बाहि आती है- “हााँ अच्छा…” औि कफि गाड़ी से उति जाती है, औि मदसे की तिफ
चिते हुये अंदि चिी जाती है । अब सबा पिे शान थी कक वो क्या जवाब दे गी? उसे कुछ समझ अ नहीं आ िहा
था। रूम के बाहि वो अपनी जनतयां उतािती है औि अंदि दाखखि होती है । तो अंदि कोई भी बच्चा नहीं था।
सबा टाइम दे खती है तो उसे एक औि झटका िगता है , जब वो ये दे खती है कक वो तो टाइम से एक घंटा पहिे
ही आ गई है ।

रूम में कोई भी नहीं था। सबा चिती हुई रूम में आ जाती है, औि इधि उधि दे खने िगती है । िेककन मौिवी
साहब कहीं भी नजि नहीं आते। दे खते हुये सबा की नजि मौिवी साहब के रूम की तिफ पड़ती है तो वो खुिा
हुआ था हल्का सा, जजसमें से िाइट बाहि आ िही थी। सबा अपने नाजुक से पांव से चिती हुई रूम की तिफ
जाने िगती है । रूम के किीब जाते ही सबा के कान में एक आवाज पड़ती है , जो ककसी बबजिी से कम नहीं थी।

“ओह्ह… सबा तम
ु कमाि होओ उफफफ्फफ़…”

औि सबा के पांव दिवाजे के किीब ही जम जाते हैं। सबा लसि आगे को किके अंदि झााँकती है , तो अंदि का
दृश्य दे खकि सबा है िान िह जाती है ।

मौिवी साहब का हाथ उनके हगथयाि पि था जजसे बाहि ननकािकि वो मसि िहे थे, औि साथ में सबा को याद
किते हुये मठ िगा िहे थे। सबा के चेहिे पि एक िं ग आ िहा था औि एक जा िहा था। कुछ ही िम्हों के बाद
िण्ड से पानी ननकिने िगता है । मौिवी साहब की ‘गिु द -गिु द’ की आवाज आने िगती है ।
7
ये सब दे खकि सबा की हाित खिाब होने िगती है, औि उसके पशीने छटने िगते हैं। सबा को समझ में नहीं
आता औि अचानक से उसके हाथ में जो पसद था वो नीचे गगि जाता है । जजसके गगिती ही मौिवी साहब हड़बड़ा
के उठ जाते हैं औि इससे पहिे कक वो बाहि दे खते, सबा पीछे हो जाती है औि वापपस मड़
ु कि बाहि जाने िगती
है । औि अचानक रुक जाती है कक अगि भागी तो में चोि समझी जाऊाँगी। ये सोचकि अिमािी में से ककताब
िेती है औि पढ़ने के लिये िे हि के पास बैठ जाती, औि ककताब खोिकि पढ़ने िगती है ।

तभी मौिवी साहब रूम से बाहि आते हैं, औि सबा को बैठा दे खकि है िान हो जाते हैं। मौिवी पछता है- “बेटी
कोई आया था क्या यहााँ तम्
ु हािी अिवा?”

सबा मौिवी साहब की तिफ दे खती है औि ना में लसि दहिा दे ती है । मौिवी साहब अपने कपड़े िेते हैं औि
वाशरूम में नहाने चिे जाते हैं, औि नहाकि कपड़े बदि के बाहि आते हैं औि अपनी जगह पि बैठ जाते हैं,
िेककन शलमिंदगी से लसि ऊपि नहीं उठाते। कुछ दे ि याँ ही खामोशी िहती है ।

औि कफि सबा बोिती है - “मौिवी साहब, आप ये सब क्यों किते हैं? मेिा मतिब है के आप अंदि क्या कि िहे
थे? जो भी है ये ठीक नहीं है …” औि कफि चुप कि जाती है ।

मौिवी साहब जो ककज लसि झक


ु ाये बैठे थे। सबा को बोिता दे खकि उनके अंदि का शैतान जागता है औि वो
अपने ददमाग को सबा पि िगाना शरू
ु कि दे ते हैं- “सबा बेटी, अब तो मैंने तम्
ु हािे कहने पि वो काम छोड़ ददया
है , िेककन हाथ से किने में तो कोई बिु ाई नहीं है ना? क्योंकी ये ऐसा है कक जब भी अंदि एक्सट्रा जमा हो है
तो मदद को ननकािना पड़ता है , विना खुद ही ननकि जाता है …”

सबा- “तो आफ शादी कि िें। इस सबसे तो जान छट जाएगी ना आपकी…”

मौिवी- “शादी कैसे कि िं बेटी सबा? इतना आसान नहीं है । मैं अब तम्
ु हें कैसे समझाऊाँ?”

सबा- क्या पिे शानी है शादी में जो आप मना कि िहे हैं?

मौिवी- बेटी तम्


ु हािा मेिा रिश्ता ही ऐसा है कक मैं तम्
ु हें नहीं बता सकता। िेककन अगि तम
ु ने जरूि जााँना है तो
कफि हमें रिश्ता बदिना पड़ेगा, हमें दोस्ती किनी पड़ेगी, औि मैं जानता हाँ कक तम
ु ऐसा नहीं कि सकती।
इसीलिये मैं आज तक अपनी मजु श्कि ककसी को नहीं बता पाया औि ना ही उसका कोई हि ढाँ ढ़ पाया हाँ…”

सबा मौिवी की बातें सन


ु कि एक दफा सोच में पड़ जाती है । कफि कुछ दे ि खामोशी िहती है ।

मौिवी- “खैि छोड़ो ये सब। तम


ु आज ककसी कम से आई थी? पहिे तो बस दो ददन ही आती थी ना?”

ये सवाि सबा के ऊपि बाम्ब की तिह गगिता है- “वो… मैंने बस सोचा सीसी… कक थोड़ा टाइम ज्यादा दं ताकी
काम जल्दी खतम हो जाए…” इतना कहकि सबा कफि से चुप हो जाती है ।

8
असि बात जो कक मौिवी को खटक िही थी, वो ये थी कक सबा पपछिे दो ददन में जो हुआ उसकी वजह से
आई है, औि शायद अंदि कहीं ना कहीं कोई शोिा है जजसे भड़काया जा सकता है । िेककन बहुत बड़ा रिस्क है ये
सब किना। अपने ही खयािों में मौिवी सोच िहा था।

इधि सबा सोच िही थी- “क्या करूं मैं? क्या मझ


ु े हे ल्प किनी चादहए मौिवी साहब की? नहीं, मैं इसमें क्या
हे ल्प कि सकती हाँ भिा? हो सकता है कोई पैसों की बात हो? िेककन मैं क्यों हेल्प करूं? आखखिकाि, मेिा क्या
ताल्िक
ु इनसे? एक स्टडेंट होने के नाते तो मेिा फज़द बनता है वैसे। िेककन हे ल्प तो ठीक है । हे ल्प से पहिे
दोस्ती? नहीं नहीं ये ठीक नहीं है । एक दफा सबा पि शैतान हावी होता औि एक दफा इंसान। कुछ ही दे ि के
बाद सबा पि शैतान भािी पड़ता है औि वो फैसिा किती है कक अगि पैसों की बात हुई तो वो मौिवी साहब की
मदद जरूि किे गी…”

मौिवी साहब भी बैठे कोई चाि सोच िहे थे।

तभी अचानक सबा बोिती है - “मैं आपके साथ दोस्ती किती हाँ। आप मझ
ु े बताइये अपना मसिा। मैं हि किने
की औि आपकी हे ल्प किने की कोलशश करूंगी…” असि में सबा के अंदि जजश्म की आग जिने िगी थी, कहीं
ना कहीं। आज वो मौिवी साहब की उन्हीं हिकतों को दे खने आई थी। उसे उम्मीद थी कक ऐसा कुछ होगा।
अंजाने में ही उसका ददमाग ये सब किने पि मजबि कि िहा था। िेककन उसकी तबीयत अभी भी जजंदा थी औि
मयाददा में िहती थी। िेककन उसका जजश्म औि उसके अंदि उठता हुआ शैतान उसे अंजाने में ही ककसी औि तिफ
िे जा िहे थे।

दसिी तिफ मौिवी ये सन


ु ते ही अंदि से खुश हो जाता है । िेककन बाहि से अपना चेहिा ककसी मासम की तिह
ही िखता है । मौिवी कहता है - “दे खो सबा बेटी, मैं नहीं चाहता कक ऐसा हो। िेककन अगि तम
ु कह िही हो तो
कोलशश किके दे ख िो। िेककन मझ
ु े नहीं िगता कक हकीकत जानने के बाद तम
ु कि पाओगी ये सब। िेककन
मेिी तिफ से ना नहीं होगी…” ये कहकि मौिवी अपना हाथ सबा के आगे बढ़ाता है ।

सबा अपनी तिफ बढ़ा हुआ हाथ जजसे एक दफा बड़ी गौि से दे खती है औि उसका ददमाग एक दफा कफि उसे
मना किता है । िेककन अंदि का शैतान कहता है कक लमिा िो हाथ, इस हाथ में ही है सब कुछ। औि कुछ दे ि
सोचने के बाद सबा अपना हाथ बढ़ाकि मौिवी के हाथ से लमिाती है । सबा का हाथ मौिवी के हाथ से िगते ही
एक गिम सा एहसास होता है ।

जजंदगी में पहिी बाि ककसी पिाए मदद का हाथ उसने पकड़ा था, औि वो भी अपने ही उस्ताद का। उसके हाथों से
वहती हुई गमी औि इस नए एहसास को सबा ज्यादा दे ि बदादश्त नहीं किती औि उसकी चत से एक वहती बदं
ननकिती है औि उसकी शिवाि से िग जाती है । जजसे सबा महसस किते ही अपना हाथ पीछे कि िेती है , औि
अपनी नजिें झुका िेती है । सबा के लिये ऐसा ही था कक जैसे ये कतिा मौिवी साहब ने गगिते हुये दे ख लिया
है । नजिें झुकाए सबा नीचे बैठी िहती है ।

मौिवी साहब बड़ी ही खतिनाक अंदाज औि सोच से सबा को घि िहे थे।

ये मझ
ु े क्या हो गया है औि मैं तो ककस हाित में आ गई हाँ? ऐसे कैसे ये कतिा ननकि गया? ऐसा कैसे कि
सकती हाँ मैं? मेिा कंट्रोि क्यों नहीं िहा अपने आप पि? ये ककतना सकन लमिा है इसके ननकिने से। मझ
ु े
9
पहिे तो ऐसा कभी नहीं हुआ, ना ही ऐसा सकन आया है कभी। सबा अपनी हो सोचों में गम
ु थी, कक मौिवी
साहब के बोिने से खयािों से बाहि आती है ।

मौिवी- “तो सबा बेटी, हम आज से अच्छे दोस्त हुये ना?”

सबा- जी मौिवी साहब।

मौिवी- “तो कफि हम एक दसिे के तमाम मसिे हाि किने की कोलशश ककया किें गें।…”

सबा- “िेककन मझ
ु े तो कोई मसिा नहीं है । मैंने तो आपकी हेल्प के लिये आपसे दोस्ती की बस…”

मौिवी- “तो कफि तम


ु मेिी हे ल्प किोगी?”

सबा- “मम
ु ककन हुआ तो जरूि कोलशश करूंगी। आप बताइये क्या मसिा है? आप शादी क्यों नहीं किते?”

मौिवी कुछ दे ि चुप िहता है , औि कफि नजिें झुका के बोिता है - “बात ऐसी है सबा बेटी कक मझ
ु े ना असि में …
मेिाऽऽ मतिब्ब कक मेिा वो दहस्सा कटा नहीं है…” इतना कहते ही चुप हो जाता है । अंदि से वो सबा को पिा
हिामी नजिों से दे ख िहा था। िेककन ऊपि से वो अपने आपको पिा सेक्यि भी कि िहा था कक वो गित ना
िगे कहीं भी। इसलिये जानबज कि दहचककचा के बोि िहा था।

सबा- “क्या मतिब? मझ


ु े कुछ समझ में नही आ िहा। मौिवी साहब आप क्या बोि िहे हैं। ठीक से बतायें…”

मौिवी- “बचपन में जो बच्चों का खतना किती हैं ना… मेिा वो नहीं हुवा…” तेजी से मौिवी बोिकि एकदम चप

हो जाता है ।

सबा जो कक मौिवी साहब की तिफ दे ख िही थी। सन


ु ते ही अपनी नजिें झुका िेती है । मैं तो समझ िही थी कक
इनको पैसों की जरूित होगी। ये तो औि ही मसिा है । इसमें तो मैं कुछ नहीं कि सकं गी। कहााँ फाँस गई मैं
आज खद
ु ही? कुछ दे ि कफि खामोशी िहती है औि सबा बोिती है- “तो इससे आपकी शादी में क्या पिे शानी है ?”

मौिवी भी आज पिा तैयािी में था कक सबा को अपने जाि में फाँसाकि ही िहे गा।

सबा जो कक अपने जजश्म के शैतान के हाथों मजबि होती हुई मौिवी के जाि में उिझती जा िही थी। वो अपनी
दनु नयां से एक गित दनु नयां में जा िही थी। बेशक अंजाने में ही सही, वो बहक िही थी औि वो नहीं जानती थी
कक वो क्या कि िही है? औि इसका अंजाम क्या होने वािा है ?

मौिवी- इसके पीछे दो वजह हैं। एक तो ये की मेिा खतना नहीं है , तो मझ


ु े शमद आती है िड़की के समने जाते
हुये… औि दो िा ये कक मझ ु …
े सबा बेटी मझु …े तम
ु ने पहिे ददन जो दे खा था न… वाशरूम में… मझ
ु े उसका
ज्यादा शौक्क है । तो इसीलिये में शादी नहीं किता। तमु समझ िही हो ना मेिी बात को?” ये सब कुछ मौिवी
साहब नीचे को माँह
ु ककए हुये कह दे ते हैं।

10
सबा की हाित इस वक्त दे खने िायक थी। सांस ऐसे चि िही थी जैसे कोई ट्रे न हो। धड़कनों की आवाज बाहि
आ िही थी। आाँखें सख
ु द हो चक
ु ी थीं औि अपना लसि नीचे को झक
ु ाए कािीन को दे ख िही थी कक ये सब क्या हो
िहा है ? औि वो क्या सन
ु िही है ? वो तो ऐसी नहीं थी, ना ही ऐसी बात किती थी कभी, औि ना ही सन
ु ती थी।
कफि आज कैसे उसने ये सब सन
ु लिया? मि क्यों नहीं गई वो ये सब सन
ु ने से पहिे? उसका ददमाग उसकी
मिानत कि िहा था उसे कोस िहा था कक ये तम
ु ककस चक्कि में िगी हो?

मौिवी- “सबा बेटी क्या तम


ु अब मेिी हे ल्प किोगी?”

सबा लसि झुकाए बैठी सन


ु ती है ।

मौिवी- “बोिो सबा किोगी मदद मेिी?”

सबा कफि से खामोशी से बैठी िहती है । उसके अंदि की पाकीजा औित इतनी मजबत थी कक वो अभी भी सबा
को खुिने नहीं दे िही थी।

मौिवी- “मैं जानता था सबा बेटी कक नहीं कि पाओगी तम


ु मेिा सच जानने के बाद, क्योंकी मेिी ककश्मत ही
ऐसी है । मैंने तो इसलिये तम्
ु हें पहिे ही कहा था कक तम
ु मेिी मदद नहीं कि पाओगी…” औि मौिवी की आाँखों
से आाँस गगिने िगते हैं- “बोिो सबा अब क्यों चप
ु हो? अब जवाब दो?”

‘तड़ाक्क’ की आवाज आती है ।

सबा अपने पिे जोि से एक तमाचा मौिवी के माँह


ु पि मािती है औि उठकि खड़ी हो जाती है- “मौिवी साहब
शमद आनी चादहए आपको, अपनी बेटी की उमि की िड़की से ऐसे कहते हुये। अिे … उस्ताद हैं आप मेिे औि मेिे
साथ ये कैसी बातें कि िहे हैं आप? औि आपने सोचा भी कैसे कक मैं ये सब… उफफ्फफ़… मेिे ख़ुदा ये मझ
ु से क्या
हो गया? कैसे सन
ु लिया मैंने ये सब? मैं इतनी कैसे गगि गई? औि मौिवी साहब आप… यहााँ आपसे मैं कुछ
अच्छा सीखने आती हाँ, औि आप मझ ु े क्या बता िहे हैं?” गस्
ु से से बोिते हुये सबा अपना नकाब ठीक किती है
औि रूम से बाहि ननकि जाती है । कुछ ही िम्हों बाद आटो में वो घि थी औि अपने बबस्ति पि गगिी हुई अपने
आपको कोस िही थी।

अपने बेड पि उल्टी िेटी हुई सबा अपने आपको कोस िही थी। उसकी आाँखों में नमी थी औि वो अपने अल्िाह
से बाि-बाि अपने ककए की माफी मााँग िही थी। अपने आप पि मिानत कि िही थी। मैं वहााँ क्या सीखने जाती
हाँ औि ककस काम में िगी हाँ? मझ
ु े ये नहीं किना चादहए था। मेिी तबीयत औि शजख्सयत तो इजाजत नहीं दे ती
की मैं ऐसे करूं। कफि मैंने क्यों ककया ये सब। िाखों दफा अपने आप पि लशकवा किती है सबा औि याँ िेटे-िेटे
ही सो जाती है ।

जब आाँख खि
ु ती है तो दोपहि का टाइम हो िहा था। ये दे खकि सबा उठकि बैठ जाती है औि अपनी हाित
दे खकि उसे पता चिता है कक वो तो अबया पहने हुये ही सो गई थी, क्योंकी उसके पिा जजश्म पि पशीना था
औि अंदि से कपड़े भी गीिे हो चिे थे। उठकि सबा अपना अबया उतािकि अिमािी में से अपने कपड़े
ननकािती है औि वाशरूम में चिी जाती है । औि एक एक किके अपने सािे कपड़े ननकाि दे ती है । यहााँ तक कक
वो एकदम नंगी हो जाती है।
11
सबा को अपना जजश्म इस वक्त एक तंदि िग िहा था, ऐसे ताप िहा था उसका जजश्म। अपने जजश्म से
ननकिती हुई गमी को वो खुद भी महसस कि िही थी। कफि सबा शावि के नीचे जाकि शावि चिाती है औि
अपने जजश्म पि पानी बहाने िगती है । अपने जजश्म से ननकिती हुई गमी औि आग को ठं डा किने की कोलशश
किने िगती है । पानी बहता हुआ सबा के पेट से होता हुआ चत औि गाण्ड के सिु ाख को छकि नीचे को बहने
िगता है । सबा का जजश्म जो ककसी भी दाग से पाक था। अगि कोई भी सबा को इस हाित में दे ख िे तो
उसका िे प ककए बबना मजु श्कि ही वापपस जाएगा, चाहे कफि वो उसका कोई अपना ही क्यों ना हो। क्योंकी वो
बनी ही इतनी खबसिती से थी।

पानी बह-बह के नीचे को जा िहा था। िेककन सबा की पैदा होती हुई गमी पानी नहीं बझ
ु ा पा िहा था। कुछ दे ि
पानी के नीचे खड़ी िहने के बाद सबा अपने जजश्म पि साबन
ु मिने िगती है । साबनु िगाते हुये जब सबा
अपनी चत पि साबन
ु मिती है तो झटके से हाथ पीछे कि िेती है । ये यहााँ मझ
ु े क्या हो िहा है? पहिे तो कभी
ऐसा नहीं हुआ था, अब क्यों हो िहा है ? मैं ऐसा नहीं किना चाहती कफि क्यों हो िहा है ऐसा? औि दोबािा से
साबन
ु अपने जजश्म पि मिने िगती है । िेककन चत पि हाथ नहीं िगाती।

अपने सािे जजश्म पि साबन


ु मिने के बाद अपने चतिों पि िगाते हुई हाथ को जैसे ही गाण्ड के सिु ाख पि
िेकि जाती है तो सबा को कफि से वही एहसास होता है , औि मजे का एक जोिदाि झटका सबा को अंदि से
दहिा दे ता है । सबा अपने हाथ वहााँ से हटा दे ती है औि साबन
ु वापपस िखकि शीशे के सामने खड़ी होकि अपने
जजश्म पि हाथों से मिने िगती है ।

शीशे के सामने आते ही सबा को अपना जजश्म दे खकि एक ही सवाि जेहन में आता है । आखखि क्या हाँ मैं?
औि ऐसी क्यों हाँ? बाकी िड़क्यों की तिह हि चीज है मझ
ु में िेककन मैं ऐसी चीजों से क्यों दि भागती हाँ? सब
तो किती हैं ये। औि मेिी तो सहे लियां खद
ु अपने आपको किती हैं। िेककन मैं क्यों नहीं किती? मझ
ु में क्या
कमी है , जो मैं ऐसे नहीं किती? ऐसा क्या मजा है इसमें जो वो ककए बबना नहीं िह सकती? हािांकी खुद से
किने से तो ककसी को पता नहीं चिेगा ना। अपने ही खयािों में गम
ु सबा का हाथ कब नीचे पहुाँचता है ये उसे
तब पता चिता है जब अपनी उं गिी को वो अपनी चत के ऊपि एक दफा नीचे को फेिती है । औि मजे से
उसकी आाँखें बंद हो जाती हैं।

सबा शीशे के सामने खड़ी दायां हाथ चत पि औि बांयां हाथ बांईं चची पि था। लसि बांयें को झुकाते हुये आाँखें
बंद हैं औि एक हाथ से चत को मसिने िगती है, औि दसिे हाथ से अपने ननपल्स को मसिने िगती है ।
अपनी दो उं गलियों से चत के िबों को खोिकि सबा अपनी उं गलियों को उस िगह िगड़ने िगती है । आाँखें बंद
ककए हुये जब वो मजे की दनु नयां में पहुाँचती है तो बेसाखता ही उसका बांयां हाथ वहााँ से सीधा अपनी गाण्ड पि
िे जाती है, औि अपनी चत को फैिाते हुये गाण्ड के सिु ाख पि िख दे ती है । आअह्ह… ये कैसअ एहसास है ?
ऐसा एहसास तो कभी नहीं हुआ मझ
ु े। ओह्ह… ह्म्म्म्म… औि अपनी उं गिी गाण्ड के सिु ाख पि िखकि फेिने
िगती है ।

उं गिी के फेिते ही सबा जो कक आाँखें बंद ककए हुये अपनी चत औि गाण्ड से खेिकि मजा िे िही थी। उसे
मौिवी साहब का िण्ड अपनी आाँखों के सामने नजि अपने िगता है । जैस-े जैसे वो गाण्ड औि चत पि हाथ
फेिती जाती, वो उस िण्ड को िाख भी ननकिना चाह िही थी अपने खयाि से िेककन वो नहीं जाता। आआह्ह…

12
आआआ… मौिवी साहब ये मझ
ु े क्या कि ददया आपने? आपका वो ही ददखाई दे िहा है बाि-बाि उफफ्फफ़… औि
साथ ही अपनी उं गिी चत के अंदि हल्की सी पश
ु किती है ।

उं गिी के अंदि जाते ही सबा तो जैसे आसमान पि थी। आआह्ह्ह… ह्म्म्माआआ… ऐसा मजा कहााँ से है इसमें
ओह्ह… ये मझ
ु े क्या हो िहा है ? नहीं मौिवी साहब। आपने ये क्या कि ददया? आप तो उस्ताद हैं मेिे, ऐसा कैसे
कि सकते हैं आप? ओह्ह… हााँ… की एक चीख ननकिती है औि सबा अपनी चत औि गाण्ड से उं गिी हटा िेती
है । सबा की चत अपनी मजजि पा चक
ु ी थी। उं गिी के साथ ही सबा की चत से पानी फौवािे की तिह ननकिता
है । औि नीचे गगिने िगता है । पानी ननकािने के साथ-साथ सबा की टााँगें कााँपने िगती है औि वो एकदम से
नीचे फशद पि गगि जाती है । अपनी चत के आग ननकािकि जैसे ही सबा ठं डी होती है तो अपने हाि पि
मिानत किने िगती है, औि कफि से अपने आपको कोसने िगती है ।

िेककन अंदि कहीं ना कहीं वो खुश भी थी। क्योंकी हवस का कुछ दहस्सा तो ननकि गया था, िेककन वो ये नहीं
जानती थी कक ये जजतना ननकिता है उतना ही भिता भी है । कुछ दे ि बाद ही सबा उठकि कफि से शावि के
नीचे आ जाती है, औि अपने जजश्म पि िगे साबन
ु को उतािने िगती है । काफी दे ि सबा याँ ही शावि के नीचे
खड़ी िहती है । जब वो अपनी चत से ननकिा पानी साफ किती है तो उसे अजीब सा सकन लमिता है । नहाकि
जब वो बाहि ननकिती है तो उसके चेहिे पि खश
ु नम
ु ा ताजगी थी औि फ्रेशनेस थी। अपने आपको काफी हल्का
महसस कि िही थी। बाहि ननकिकि सबा अपने बाि खुश्क किती है औि अपने कपड़े ननकािती है, जो कक एक
सफेद सट था। ये सट सबा ने पहिे लसफद एक दफा पहना था, क्योंकी इसमें उसका जजश्म औि पोस्चि नम
ु ाया
होती थी िेककन आज ये सट पहनना उसकी जजंदगी की पहिी तब्दीिी थी। सफेद शिवाि औि सफेद कमीज
पहनकि सबा लसि पि एक िाइट पपंक किि का स्काफद िेती है औि अपनी नमाज पढ़ने िगती है । औि अपने
ककए की माफी मााँगकि खाने के लिये नीचे चिी जाती है ।

जहााँ उसकी अम्मी औि चाची ककचेन में खाने की तैयािी कि िही थीं। सबा का खखिा हुआ चेहिा दे खकि उसकी
चाची उसे छे ड़ते हुये कहती है - “आज चााँद कहााँ से ननकिा है ? आज तो अिग ही िग िही है हमािी शहजादी…”
औि उसके गािों को पकड़कि मश्ु कुिाती हुये कहती है।

सबा- चाची आप भी ना ऐसे ही शरू


ु हो जाती हो। मैं बस नहाकि आई हाँ।

चाची- अिे बाई ये सट औि ये चेहिे की ताजगी तो कुछ औि ही बता िही है कक काफी बजन हल्का हो गया है
हमािी शहजादी का…” औि हाँसने िगती है ।

सबा भी हाँस के बात को टाि दे ती है औि उनका हाथ बटाने िगती है । सबा भी समझ चक
ु ी थी कक उसकी चाची
ककस बजन की बात कि िही है । िेककन उसे ये समझ नहीं आई थी कक चाची कैसे जान सकती हैं। िगता है
मजाक ही कि िही होंगी। ये सोचती हुये सबा अपने काम में िग जाती है । तीनों लमिकि खाना बनाती हैं औि
कफि टे बि पि िगाने िगती हैं, जहााँ सब बैठे एन्तेजाि कि िहे थे।

आलसफ़- “क्या बात है आपी, आज तो चााँद कहीं औि से ही ननकिा है क्या?” सबा का भाई उसी दे खते हुये
कहता है ।

सबा- ऐसा क्या हो गया कक तम्


ु हें चााँद कहीं औि से ननकिा िग िहा है?
13
आलसफ़- “िग तो ऐसे ही िहा है औि कहीं से भी ननकिा हो। हमें तो चााँद दे खने से मतिब है , उसके ननकिने
से नहीं…” औि हाँसने िगता है ।

सबा अपने भाई की बात पि ज्यादा ध्यान नहीं दे ती औि बैठकि खाना खाने िगती है जहााँ सब बैठकि एकटटे
ही खा िहे थे। खाना खाते हुये अचानक सबा को ध्यान आता है कक आज दो बंदों ने उसे अिग सा कहा है । ऐसा
क्या है आज अिग सा जो इनको महसस हो िहा है ? कहीं मेिा कुछ नजि तो नहीं आ िहा? ये सोचकि वो
अपनी नजिें उठाकि अपने सामने बैठे भाई को दे खती है तो वो सबा की तिफ ही दे ख िहा था।

उसकी नजिों को पढ़ती हुई सबा जब वहााँ तक पहुाँचती है तो है िान िह जाती है । क्योंकी आलसफ़ की नजिें कहीं
औि नहीं बल्की सबा की चगचयां पि थीं, जो कक कफदटंग वािे सट की वजह से बहुत वाजेह हो िही थीं। िेककन
है ित के साथ उसकी आाँखें फटी की फटी िह जाती हैं, जब गौि किने पि उसे ये पता चिता है कक सट बािीक
होने की वजह से उसकी अंदि की ब्िैक ब्रा कुछ हद तक नजि आ िही है, औि आलसफ़ उसे ही घि िहा है । ये
सोच सबा के ददि में आते ही उसके अंदि एक अजीब सा एहसास होता है औि उसको एक है ित सी आती है ,
कक उसका अपना सगा भाई उसके दध को घि िहा है ।

अचानक से दोनों की नजिें लमिती हैं औि आलसफ़ अपनी गिती को पाकि नजिें झुकाए खाना खाने िगता है ।
सबा है ित से भिी हुई सोचते हुये खाना खा िही थी कक ये क्या हो िहा है मेिे साथ? या तो मझ
ु े कुछ हो गया
है , या कफि इन िोगों को कुछ हो गया है, जो मेिे साथ ऐसे कि िहे हैं। आखखिकाि, बात क्या है? पहिे तो ऐसे
कभी नहीं हुआ था। कभी भाई ने मझ
ु े ऐसे नहीं दे खा था औि ना ही कभी ऐसी बात की थी कक हमें चााँद से
मतिब है उसके ननकिने से नहीं।

िेककन इसमें भी मेिी ही गिती है । मैंने भी तो कभी आगे ऐसे कपड़े नहीं पहने थे। मैं तो िस कपड़े पहनती
थी। िेककन आज मैंने ऐसा क्यों ककया, ये सट क्यों पहन लिया मैंने? क्या मेिे अंदि भी एक औित की खावदहश
जाग िही है , जजसको मैंने अपने दीन के लिये माि ददया था। िेककन मैं तो नहीं चाहती कक ऐसा हो। िेककन ना
चाहकि भी मैं वो सब कि िही हाँ। पहिे मौिवी साहब को मोका ददया औि कफि अब ये कपड़े पहनना इस बात
का सबत है कक मेिे अंदि की औित मझ
ु े उस तिफ िे जाना चाहती है, औि मैं उसे जाने भी दे िही हाँ। मझ
ु े
इसे िोकना चादहए। ये ठीक नहीं है । औि कफि अपने ही घि के मदद मझ
ु े ऐसी नजिों से दे खने िगे हैं।
आखखिकाि, ऐसा है क्या मझ
ु में जो? औि मैं जैसी भी हाँ, मेिे अपने भाई को तो शमद आनी चादहए। कम से कम
वो तो ऐसे ना दे खे मझ
ु े।

खाना खाते हुये सबा बस इन्हीं सोचों में गम


ु िहती है , औि कफि बतदन उठाकि ककचेन में िख दे ती है औि अपने
रूम में जाकि कपड़े ननकािती है औि चें ज किने का फैसिा किती है । अभी कपड़े ननकाि ही िही थी कक
अचानक उसके जेहन में कुछ आता है औि वो कपड़े वापपस िख दे ती है, औि उन्हीं कपड़ों में बेड पि बैठकि
टीवी दे खने िगती है ।

याँ ही कुछ दे ि टीवी दे खने औि िेटने के बाद सबा उठती है औि टाइम दे खती है तो 8:00 बज िहे थे। सबा बेड
से उठकि सामने िखे ड्रेलसंग टे बि की तिफ जाती है । वो ड्रेलसंग टे बि के शीशी के सामने जाकि खड़ी हो जाती
है , जहााँ उसे अपना स्काफद िस हुआ ददखाई दे ता है । ये दे खकि सबा लसि के पीछे स्काफद में िगा सेफ्फटी पपन
खोिकि अपने होंठों में िखती है औि स्काफद को दोबािा से ठीक किने िगती है । स्काफद को ठीक से लसि पि
14
िपेटकि दोबािा सेफ्फटी पपन िगा दे ती है, औि हाथों से अपनी कमीज को ठीक किती है , तो उसकी नजि सामने
शीशे में खद
ु पि पड़ती है ।

सबा ने सफेद सिवाि कमीज पहना होता है । सफेद कमीज में ब्िैक ब्रा ऐसे ही थी कक जैसे उस दध को नजि
िगने से बचाया गया हो। अपनी ब्रा पि नजि पड़ते ही सबा के अंदि की गमी कफि से भड़कने िगती है । सबा
एक भिे हुए जजश्म वािी िड़की है जजसके जजश्म के जरूिी ननसवानी उभाि जैसा के मम्
ु मे, कल्हे औि जांघें
उसकी उमि यानी 23 साि की एक नामदि िड़की से थोिी ज्यादा ही बड़ी हैं। कफगि 36डी-29-38 है इसलिए
सबा ब्रा भी चौड़े स्ट्रक्चि के पहनती है ।

ब्रा के नीचे उसकी नजि जाती है तो पेट पि कमीज पिी तिह से कफदटंग में है औि उसकी नालभ साफ झिक
िही है । नाभी के नीचे शिवाि का बाँधा इजािबंद ददख िहा है थोड़ा-थोड़ा। सबा ये दे खते हुए खुद को सीधे हाथ
पि घमु ाती है तो साइड-व्य में सबसे पहिे उसकी नजि अपनी टाइट कफटे ड कमीज के िंबे से चाक पि पड़ती है ।
िंबे से चाक में से सबा की सेहतमंद जांघ पिी तिह से उबिकि बाहि आ िही होती है । िान के साथ सबा की
नजि उसके कल्हों के उभाि पि पड़ती है जो कक कमीज की कफदटंग की वजह से काफी नम
ु ाया उभिे हुए हैं।
कमि खतम होते ही गाण्ड तो ऐसे ही ददख िही थी की जैसे ककसी समति जमीन पि एक स्पीड ब्रेकि हो, उसके
बाहि को ननकिे हुये उभाि सबा के अंदि औि भी गमी पैदा कि िहे थे।

सबा सोचती है- “उफफ्फफ़… ये मझ


ु े क्या हो गया है? मैं ककन चक्किों में िगी हाँ? मझ
ु े ये सब नहीं किना
चादहए। ये सब मेिी शजख्सयत के मत
ु ाबबक नहीं है , ये तो गित है…” िेककन कफि वो सोचती है- “क्या मेिा
िड़की होना भी गित है? अगि मझ
ु े िड़की पैदा ककया गया है तो िड़क्योंकी एहसासात भी ददए गये हैं, औि
उन एहससात को महसस किना तो गित नहींम या उन्हें मजे से दे खना तो गित नहीं है …”

अब सबा की नजि कफि से अपने स्काफद में लिपटे मासम से बड़ी-बड़ी आाँखों वािे चेहिे पि पड़ती है । सबा के
बािे में एक चीज जो बहुत कम िोगों को पहिी बाि दे खने पि पता िगती है वो उसके चेहिे की मासलमयत के
साथ-साथ उसके चेहिे पि ददखता बचपना है । चेहिे के लिहाज से सबा एक छोटी बच्ची के जैसी ददखती है । इस
मासम स्काफद में लिपटे बच्ची जैसे चेहिे पि से सबा की नजि एक बाि कफि अपनी औित जैसे कल्हों के उभाि
पि जाती है । सबा इन दो डडफिें ट एक्सट्रीम्स को दे खकि खुद से ही शमाद सी जाती है । िेककन कफि ड्रेलसंग टे बि
से वाक किती हुई अपने कमिे की खि ु ी खखड़की की तिफ जाती है औि अंदि आती ठं डी हवा को महसस किते
हुए सोचती है कक क्यों ना इसी हाित में बाहि जाया जाए अब्ब की मोजदगी में । ये सोचते ही सबा का ददि
थोड़ा तेजी से धड़कना शरू
ु कि दे ता है ।

अपने ददमाग से जंग किती हुई सबा शीशे से हटकि चिती हुई खखड़की के पास जाती है औि अपने कमिे की
खखड़की खोि दे ती है । एक ठं डी हवा का झोंका सबा से टकिाकि अंदि दाखखि होता है औि सबा अपनी आाँखें बंद
किके उसे अपने अंदि खींचने िगती है , जैसे चत की गमी इसी से ही बझ
ु ग
े ी। कुछ दे ि हवा को महसस किके वो
अपनी आाँखें खोिकि बाहि दे खती है, जहााँ िात का नजािा भी ककतना हसीन था। सबा ऊपि आसमान में दे खते
हुये अपने ददमाग की कशमकश को बोिती है ।

सबा- “मैं उिझ सी गई हाँ, मेिी मदद कि औि मझ


ु े िास्ता ददखा। ऐसा ना हो कक मैं भटक जाऊाँ। मैं भटकना
नहीं चाहती…” ये कहकि ऊपि आसमान की तिफ दे खती िहती है ।

15
थोड़ी दे ि बाद सबा खखड़की पि खड़ी पीछे मड़
ु कि दे खती है । खखड़की के बबल्कुि आपोलसट दीवाि पि उसका
ड्रेलसंग टे बि है, जजसके शीशे में इस वक़्त सबा की पिी बैकसाइड पवजजबि है । सबा एक बाि कफि अपने स्काफद
में लिपटे चेहिे से शरू
ु किते हुए नजिें नीचे किती है तो उसकी नजि अपनी कमि पि ब्रा की चौड़ी पटदटयों पि
पड़ती है ।

सबा ददि ही ददि में सोचती है - “दे खो एक बच्ची ने औित का ब्रा पहना हुआ है …”

ये सोचते ही उसकी हाँसी ननकि पड़ती है , औि वो अपनी नजि कमि से नीचे किती है । नीचे सबा के दोनों कल्हे
काफी नम ु ाया उभिे हुए होते हैं। इस हद तक कक दोनों कल्हों के शेप का अंदाजा हो िहा होता है साफ-साफ।
क्योंकी सबा ने गमी की वजह से अंदि अंडिवेि नहीं पहना होता, तो कल्हों के बीच की िकीि इस बात की
ननशानदे ही कि िही होती है कक दोनों कल्हों के बीच ककतना गैप है । सबा ये दे खने के बाद एक बाि कफि सामने
खखड़की की तिफ माँह
ु मोड़ती है ।

सबा- “क्या इतनी हसीन जवानी है मेिी कक कोई भी दे ख िे तो पागि हो जाता है ? मेिी भी तो गिती है , ऐसे
कपड़े पहन के कफरूंगी तो ये काम ही होगा ना। िेककन कुछ रिश्ते तो ऐसे भी होते हैं कक नंगी पड़ी िड़की को
भी वो आाँख उठाकि नहीं दे खते। िेककन यहााँ तो मेिा भाई भी मझ
ु े दे ख िहा है । िेककन क्या बाप जैसा पाक
रिश्ता भी अपनी मजबती खो दे गा इस जजश्म के आगे? या वो अपनी मजबती बनाए िखेगा?”

खखड़की से ठं डी हवा के झोंके आ िहे होते हैं- “चिो आज इस रिश्ते का भी इजम्तहान िेते हैं, अभी दध का दध
औि पानी का पानी हो जाएगा…” ये सोचते हुए सबा चिती हुई वहााँ से अपने रूम की िाइटें बंद किती है औि
रूम से बाहि आ जाती है ।

वो जानती थी कक उसके अब्ब आ गये होंगे। रूम से बाहि आते ही टीवी िाउं ज में जाती है , जहााँ उसके अब्ब
जफ़ि साहब बैठे थे। अपने अब्ब को बैठा दे खकि औि इस खयाि को जेहन में िाते ही कक वो अपने आपको
एक जुमद किने की तिफ िे जा िही है, सबा के जजश्म में एक सनसनी सी दौड़ जाती है । क्योंकी आज से पहिे
कभी भी वो अपने अब्ब के सामने इस नीयत से औि इस हाित में नहीं आई थी। उसके जजश्म में अपने अब्ब
को िेकि उठती हुई िज़्ज़त औि मजा उसके दीन औि अमि से ज्यादा हावी हो िही थी, जो की सबा से ये सब
किवा िही थी। सबा एक िम्हे अपने खद
ु ा से माफी मााँग िही थी तो अगिे ही िम्हे शैतान के हाथ आकि वो
सब किने का सोच िही थी, जजससे उसने माफी मााँगी थी। सीधी चिती हुई वो टीवी िाउं ज में आती है ।

सबा- “असिम ओ अिकम अब्ब…”

उसके अब्ब जो कक बैठे टीवी दे ख िहे थे, बेटी के सिाम का जवाब दे ते हैं औि टीवी से नजिें हटाकि सबा की
तिफ दे खते हैं। सबा पि नजि पड़ते ही उसके अब्ब के चेहिे के तासित बदिने िगते हैं। उनकी आाँखों के सामने
सबा एक बािीक सी शिवाि कमीज में खड़ी थी, जजसमें से उसकी ब्िैक ब्रा का नजािा ऐसे नजि आ िहा था कक
बाहि कमीज तो जैसे है ही नहीं। जफ़ि साहब की आाँखें अपनी बेटी के बड़े-बड़े 36डी के मम्
ु मों को जो कक ब्रा में
ऐसे कैद थे कक जैसे जफ़ि साहब से कह िहे हों के हमें आजाद कि दें , उनको दे खकि जफ़ि साहब की नजिें वहीं
जम जाती हैं।

सबा- “अब्ब आप कब आए पता ही नहीं चिा…” अपने बाप की नजिों को पढ़ती हुये सबा सवाि किती है ।
16
सबा के सवाि से जफ़ि साहब अपनी नजिों को वहााँ से हटा िेते हैं औि जवाब में कहते हैं- “ओ बेटी अभी-अभी
आया हाँ कुछ दे ि पहिे। एक ग्िास पानी िाकि दो जिा…” ये कहकि जफ़ि साहब कफि से अपनी नजिें टीवी में
िगा िेते हैं।

सबा चिती हुई ककचेन में जाती है जहााँ उसकी अम्मी खाना बना िही थीं। सबा ग्िास िेकि पानी भिने िगती
है ।

बाहि टीवी िाउं ज में जफ़ि साहब अपनी सोचों में गम


ु हो जाते हैं- “ये आज मैं क्या दे ख िहा हाँ, सबा इस हाित
में ? ऐसा कैसे हो सकता है? नहीं नहीं मेिा वहम है , वो तो कभी भी ऐसे कपड़े नहीं पहन सकती। वो तो बहुत
शमदसाि, नेक खयािात वािी बच्ची है । मेिी नजिों को भी पता नहीं क्या हो जाता है ?” ये सोचते हुए जफ़ि
साहब अपने लसि को झटक कि कफि से टीवी दे खने िगते हैं।

दसिी तिफ सबा जो कक ग्िास िेकि किि से पानी भि िही थी औि ददमाग में सोच िही थी- “ऐसा कैसे हो
सकता है कक अब्ब भी ऐसे हैं? मेिे अपने सगे अब्ब मझ
ु े ऐसी नजिों से दे ख िहे थे, अपनी बेटी के जजश्म को?
नहीं नहीं मझ
ु े िगता है कक मैं गित समझी हाँ। मेिी सोच ही ऐसी हो गई है, इसलिए मझ
ु े ऐसा महसस हो िहा
है …” सबा अपनी आाँखों दे खी खेि को झठ कहती है औि तभी ग्िास भि के पानी बाहि गगिने िगता है ।

तं सबा को होश आता है- “आश भि गया…” औि एक झटके से सबा पीछे होती है जजस पि सबा की अम्मी
मड़
ु कि दे खती है अचानक।

सबा की अम्मी- सबा कहााँ गम


ु हो तम
ु , जो ग्िास इतना भि गया औि तम्
ु हें पता भी नहीं चिा? सािा पानी
नीचे गगिा ददया है…”

सबा- वो अम्मी ध्यान नहीं िहा। मैं अब्ब को दे आऊाँ कफि साफ कि दे ती हाँ…” ये कहकि सबा तेजी से ककचेन से
बाहि आ जाती है ।

बाहि आते ही उसकी नजि अपने अब्ब पि पड़ती है औि अब ध्यान दे ती है सबा के अब्ब की नजिें उसका वहम
थीं या हकीकत? सबा सोचती हुई ग्िास अपने अब्ब के आगे किती है- “अब्ब पानी…”

जफ़ि साहब ग्िास पकड़कि पानी पीने िगते हैं। पानी पीते हुये वो अपनी आाँखों को नतिछा किके कफि से वही
दृश्य नजािा दे खने िगते हैं। क्योंकी सबा उनके सामने खड़ी थी तो उसका फ्रंट का पिा नजािा उनको नजि आ
िहा था। सबा के मम्
ु मों को घिते हुए जफ़ि साहब पानी पी िहे थे औि सबा वहााँ खड़ी अपने अब्ब की नजिों का
पीछा किती है तो उसे एक झटका िगता है, क्योंकी उसने जो सोचा था वो गित था। उसके अब्ब उसके मम् ु मों
को घि िहे थे। औि अब जफ़ि की नजिें वहााँ से चिती हुई सबा की गहिी नालभ पि आ चुकी थेीं। ग्िास का
पानी खतम हो चक ु ा था िेककन जफ़ि साहे ब हवस में ऐसे खोए हुए थे अपनी सगी बेटी के जजश्म में कक उन्हें
कुछ होश ही नहीं था।

सबा- “अब्ब ग्िास…”

17
सबा की आवाज सन
ु कि जफ़ि साहब जैसे नींद से जागते हैं औि एक झटके से ग्िास सबा के आगे किते हैं।
सबा जो कक अब सच जान चक
ु ी थी, ग्िास िेकि कुछ गस्
ु से से भिे अंदाज में वहााँ से वापपस ककचेन में जाने
िगती है । जफ़ि साहब अब पीछे से सबा को घिने िगते हैं। पीछे से जब उनकी नजि सबा की ब्रा स्ट्रै प्स पि
पड़ती है तो उनके जेहन में खयाि आता है- “ककतनी बड़ी हो गई है सबा। पिा जवान हो गई औि ऐसी जवानी
तो इसकी मााँ भी नहीं थी…”

पीछे से सबा के जजश्म को घिते हुए जब जफ़ि साहब की नजि नीचे जाती है तो सबा के जजश्म पि उसकी चौड़ी
गाण्ड को दे खकि उसके अब्ब को एक औि झटका िगता है । इतने बड़े-बड़े 38” इंच के चति सबा के जो आपस
में िगड़ खा िहे थे एक दसिे के साथ जब सबा चि िही थी। जफ़ि साहब अभी भी सबा की गाण्ड में ही खोए
हुए थे कक उन्हें एहसास ही नहीं हुआ कक वो क्या कि िहे हैं? औि वो भी अपनी सगी बेटी के साथ।

तभी सबा ककचेन के दिवाजे से एकदम पीछे को मड़


ु कि दे खती है । वो जानती थी कक उसके अब्ब उसे घि िहे
होंगे। औि वही हुआ। जैसे ही सबा ने पीछे दे खा तो जफ़ि साहब को अपनी गिती का एहसास हुआ कक वो क्या
कि िहे हैं औि एकदम से अपनी नजिें टीवी की तिफ किके जफ़ि साहब टीवी दे खने िगते हैं। वो जान गये थे
कक सबा ने उनकी नजिों को पकड़ लिया है औि वो अपने आपको इस हिकत पि मिानत किने िगते हैं।

जफ़ि साहब सोच में पढ़ जाते हैं- “सबा ने आज ऐसे कपड़े क्याँ पहने हैं? कहीं वो भी बहक तो नहीं िही? नहीं
नहीं ऐसा नहीं हो सकता। वो तो ऐसी नहीं है, मेिी ही नजिों में हवस है अपनी ही सगी बेटी के लिये। उउफ्फफ…
माफ किना खुदा गिती हो गई मझ
ु से…”

दसिी तिफ सबा जो कक अपने अब्ब की हिकत से गस्


ु सा होकि ककचेन में जा चक
ु ी थी, पानी साफ किने िगती
है औि सोचती है- “अब्ब ऐसे नहीं थे। िेककन आज ऐसा क्याँ ककया उन्होंने? ये तो गित है , मैं सगी बेटी हाँ
उनकी। मेिे बािे में तो उनको ऐसा नहीं सोचना चादहए था। िेककन मेिी भी गिती है , मैं ऐसे कपड़े पहनकि जब
उनके सामने जाऊाँगी तो कफि यही होगा ना। िेककन एक बाप होने के नाते उनको ऐसा नहीं किना चादहए था। मैं
जो दे खना चाहती थी वही हुआ कफि, कक हि मदद ही मेिे पीछे है । पता नहीं ऐसा क्या बना ददया है मझ ु में खुदा
ने? ऐसा क्या है मेिे जजश्म में जो सब मेिे ऊपि ही कफदा हो िहे हैं? िेककन ये गित है , मैं ऐसा नहीं कि
सकती। ये तो गन
ु ाह है औि कफि अपने ही घि के मदों के साथ? नहीं नहीं ये तो गन
ु ाह-ए-कबीिा है । मझ
ु े ये
कपड़े बदिने होंगे औि अपने आपको संभािना होगा…”

पानी साफ किने के बाद सबा उठती है औि अपने रूम में जाकि अपने कपड़े उतािती है औि कपड़े चें ज किके
नमाज पढ़कि अपने गन
ु ाहों की माफी मांगती है, अपनी सोच को बदिने की दआ
ु किती है । कफि सबा अपना
खाना भी अपने रूम में ही खाती है औि खाना खाने के बाद सबा सो जाती है ।

अगिे दन सबा उठती है औि नमाज पढ़ती है । औि कफि वाक किने के लिये बाहि िान में आ जाती है । वाक
किते उसके ददमाग में वही घम िहा था जो पछिे कुछ ददनों से चि िहा था। उसकी जजंदगी में एक तब्दीिी आ
गई थी। औित क्या है ये एहसास पैदा होने िगा था उसके अंदि। िोग कहते हैं िड़की कमजोि होती है । पि
िोग ये नहीं समझते कक अगि िड़की अपनी ताकत ददखाने पि आए तो कोई भी मदद उसके सामने ना दटके,
बल्की गट
ु ने टे क कि उसका गि
ु ाम बनकि िहे । औि कफि मेिी जैसी औित जजसे कोई भी दे खकि पागि हो
जाता है , यहााँ तक के मेिा अपना सागा भाई औि मेिे अब्ब। है ित की बात है कक वो मेिे जजश्म को दे खकि
हमािे इस पाक रिश्ते को भि सकते हैं, तो कफि बाहि के िोग तो ऐसे ही किें गे ना। क्योंकी उनका तो हक
18
बनता है दे खने का औि उनको िोकेगा भी कोई नही। मझ
ु में आ िही तब्दीिी पता नहीं मझ
ु े कहााँ िे जाएगी? ये
मेिा अपना जजश्म ही मेिा साथ नहीं दे ता। ये ककसी के लिये भी तैयाि हो जाता है बाप, भाई, बाहि वािे, कोई
भी हो ये सबके नीचे िेटने के लिये तैयाि है । िेककन मेिा अंतीः मझ
ु े मिानत किता है कक मझ
ु जैसी िड़की को
ये सब शोभा नहीं दे ता। कभी मेिा जजश्म जीत जाता है औि कभी मेिा अंतीः जीत जाता है ।

ऐसे सवाि सबा के ददमाग में आ िहे थे जजसके जवाब भी वो खद ु ही अपने आप ही दे िही थी। वाक किती हुये
ये सोचते हुये उसे महसस होता है उसकी बातों ने कफि से उसके जजश्म पि कब्ज़ा कि लिया है । क्योंकी उसकी
अपनी शिवाि के अंदि छुपी शमदगाह में गीिापन महसस होता है , औि एक बाि कफि से सबा का जजश्म जीत
जाता है । सबा लसि उठाकि एक दफा आसमान को दे खती है । सबा जैसे सवाि कि िही हो कक मैं कौन सा िास्ता
चन
ु ?
ं मझ
ु े समझ में नहीं आ िही, औि कफि से वाक किने िगती है ।

कुछ दे ि याँ ही वाक किने औि सोचने के बाद सबा वापपस घि में दाखखि होती है , औि ककचेन में नाश्ते की
तैयािी किने िगती है । नाश्ता बनाकि वो सबको किवाती है औि कफि खुद भी किती है । औि अपने रूम में चिी
जाती है । सबा के कपड़े हल्के-हल्के पशीने से भीग िहे थे, तो वो कपड़े उतािकि तौलिया िेती है औि नहाने के
लिये वाशरूम की तिफ चि पड़ती है ।

िेककन गज
ु िते हुये जब उसकी नजि शीशे में पड़ती है तो वो वहीं रुक जाती है औि अपना नंगा जजश्म दे खकि
उसके अंग-अंग को घिने िगती है । अपने ही जजश्म को सबा मजे िेती हुई दे ख िही थी। कफि वो अपने लसि के
बाि खोिती है औि उनमें हाथ फेिने िगती है शीशे के सामने ही। औि कफि अपने आप पि हाँसते हुये वाशरूम
में घस
ु जाती है ।

अपने आपको अच्छे से साफ किके नहाकि सबा बाहि आती है औि नंगी ही खड़ी होकि कंघ किने िगती है । ये
आज से पहिे कभी नहीं हुआ था कक सबा याँ बबना कपड़ों के वाशरूम से बाहि आए। िेककन अब ये हो िहा था
औि यही तब्दीिी थी जो कक उसकी जजंदगी में आ चकु ी थी। जजसे वो चाहकि भी अपना नहीं िही थी। कंघी
किके वो अिमािी से कपड़े िेने िगती है । अिमािी खोिते ही उसकी नजि अपनी िटकी हुई अबया पि जाती
है , औि उसी वही पाक साफ सबा याद आ जाती है जो कक तैयाि होकि मदसे जाया किती थी।

ये खयाि आते ही उसके ददमाग में मौिवी साहब आते हैं। औि एक गस्
ु से की िहि भी चेहिे पि दौड़ जाती है ।
ये सब मौिवी साहब का ही ककया धिा है । आज जो भी मेिे साथ हो िहा है । अगि वो सब ना होता तो मैं भी
पहिे जैसी िहती। िेककन मेिा अपने आप पि काब तो होना चादहए। जब सब मदद एक जैसे हैं, तो मौिवी साहब
की इसमें कोई गिती नहीं। जब मेिा अपना भाई औि बाप मझ
ु े ऐसी नजिों से दे ख सकते हैं तो वो कफि भी
बाहि वािे हैं। ये सोचते ही सबा के ददि में मौिवी साहब के साथ उस ददन का बबहे व याद आने िगता है औि
वो अपने आपको गित समझते हुये बिु ा भिा कहने िगती है । मझ ु े उनको थप्पड़ नहीं मािना चादहए था। वो
मेिे उस्ताद थे, मेिे बाप की जगह थे। ये मैंने क्या कि ददया? औि कुछ ही िम्हों में फैसिा किके वो मौिवी
साहब से माफी मााँगने के लिये मदसे जाने का फैसिा किती है । औि कपड़े चें ज किके अपना अबया पहनकि
मदसे के लिये ननकि जाती है ।

गाड़ी जैस-े जैसे मदसे की तिफ बढ़ िही थी, सबा के ददि की धड़कन भी बढ़ती जा िही थी। मेिा वहााँ पि जाना
तो उनके हााँ में हााँ लमिाना है । मतिब की उनकी मदद किना है । नहीं नहीं मैंने बस उनसे माफी मााँगनी है औि
बस अपना सबक पढ़ं गी, क्योंकी मैंने अपने उस्ताद के साथ गित ककया है । मझ
ु े ऐसा नहीं किना चादहए था,
19
क्योंकी उन्होंने जो भी कहा मेिी मज़ी से कहा है । याँ ही सोचते-सोचते मदसाद आ जाता है औि सबा गाड़ी से
उतिकि अंदि जाने िगती है ।

सबा का ददि अभी भी फुि स्पीड से धड़क िहा था। चिती हुई सबा रूम में जता उतािकि दाखखि होती है । जैसे
ही अंदि जाती है तो मौिवी साहब पढ़ा िहे थे बच्चों को।

सबा सिाम किती है औि नजिें झक


ु ाए ही अपनी ककताब िेती है औि बच्चों के पास आकि बैठ जाती है । कुछ
दे ि बाद एक-एक किके बच्चे जाने िगते हैं। सबा भी इसी इंतज
े ाि में थी कक सब बच्चे चिे जाएं तो कफि ही वो
बात किे । कुछ ही दे ि में बस सबा औि मौिवी साहब वहााँ िह जाते हैं। सबा ऊपि दे खे बबना ही उठकि मौिवी
साहब के पास आकि आगे से कुछ पछती है सबक का िेककन ऊपि नहीं दे खती। सबक िेने के बाद वो अपनी
ककताब को वापपस अिमािी में िखती है औि कफि से मौिवी साहब के पास आकि बैठ जाती है ।

मौिवी साहब की समझ में कुछ नहीं आ िहा था कक सबा क्यों आई है? वो मान गई है या बस अपना कोसद पिा
किना चाहती है? क्योंकी मौिवी भी अब रिस्क नहीं िेना चाहते था इसलिये वो भी खामोश िहते हैं।

सबा मौिवी के सामने बैठकि नजिें झुकाए ही बोिती है - “मौिवी साहब मझ


ु माफ कि दें में उस ददन अंजाने में
आपके साथ बहुत गित ककया। मैं उस्ताद औि शागगदद का रिश्ता भी भि गई थी। इसलिये अपने ककए पि
शलमिंदा हाँ औि माफी मांगती हाँ। मझ
ु े माफ कि दें । आप जो सजा दें गे मझ
ु ,े मैं पिा करूंगी…” ये बोिकि सबा
चुप हो जाती है ।

औि अगिे ही िम्हे सबा का ददि कफि से स्पीड से धड़कने िगता है । ये मैंने क्या बोि ददया सजा का?
उफफ्फफ़… मझ
ु े ये सब नहीं कहना चादहए था। पागि हो गई हाँ मैं अब क्या होगा? कहीं मौिवी साहब? नहीं-नहीं
सबा त भी पागि है ये क्या काम कि ददया तने? सबा अपने आपको कोस िही थी।

तभी मौिवी साहब की आवाज आती है - “सबा बेटी मझ ु े अच्छा िगा कक तम्
ु हें हमािे रिश्ते का एहसास हुआ औि
तम
ु ने माफी भी मााँगी। िेककन सजा? बेटी सजा तो इसकी बनती है, औि वो वक्त आने पि ही दी जाएगी। अभी
तम
ु यहााँ से जाओ…” ये कहकि मौिवी साहब उठकि अपने रूम में चिे जाते हैं।

सबा कुछ दे ि वहीं बैठी अपने आपको मिानत किती है कक ये उसने क्या कि ददया? अपने ही पैिों पि कुल्हाड़ी
माि दी मैंने। सबा अपने ददि में अजीब सी कशमकश लिये खड़ी होती है, औि चिकि बाहि आ जाती है । गाड़ी
अभी तक नहीं आई थी वो रिक्शा िेती है औि घि की तिफ जाने िगती है ।

ददि में बेचैनी लिये सबा घि पहुाँचती है । अपने रूम में जाकि वो अपना अबया उतािती है औि पानी पीन के
लिये ककचेन में चिी जाती है । पानी पीकि वो वापपस अपने रूम में आती है औि बेड पि िेट जाती है । ये मैंने
क्या कि ददया? मझ
ु े ऐसे नहीं कहना चादहए था। मौिवी साहब ने अगि कोई गित सजा दे दी मझ
ु े तो? नहीं
नहीं वो अब ऐसा नहीं किें गे। क्योंकी मैंने जो उस ददन थप्पड़ उन्हें मािा था। उसका डि अभी भी होगा उनके
अंदि। िेककन मैंने गित ककया था उनके साथ। जो भी था, हैं तो मेिे उस्ताद ही ना।

सबा अपने आपसे बातें कि िही थी। िेटे-िेटे ही उसी नींद आ जाती है । वहीं बेड पि ही वो तकिीबन दो घंटे तक
सोती िहती है । कफि उठकि फ्रेश होती है औि अपनी स्काफद पहनकि बाहि ननकि जाती है । शाम होने के किीब
20
थी। सबा अपनी अम्मी के साथ खाना बनाने िगती है। खाना वगैिा बनाकि सबा कुछ दे ि टीवी दे खती है, औि
कफि खाना खाकि अपने रूम में चिी जाती है । नमाज अदा किके वो अपने कुछ काम किती है । इन कामों के
दौिान भी सबा का ध्यान बाि-बाि उसकी बदिती हुई जजंदगी की तिफ जा िहा था। औित को भी खद ु ा ने क्या
बना ददया है । कभी वो अपनी िाज को छुपाने के लिये अपने जजश्म को ऐसे ढांप िेती है कक जिाद बिाबि कुछ
नजि नहीं आता। औि कभी वो अपने आपको खुद ही इतना खोि दे ती है क।ज हि हद पि कि जाती है ।

बेड पि बैठे सबा टे क िगाए सोच िही थी। मझ


ु े क्या किना चादहए? ये मेिा जजश्म बहुत पाक है । मैं इसकी
पक्की नहीं खोना चाहती। िेककन औित होने का एहसास? वो भी तो है मेिे अंदि। उसका भी हक है मझ ु पि।
वो भी तो मेिे जजश्म का दहस्सा है । वो एहसास जो मैंने अपने उस दहस्से पि महसस ककया है, औि बबना हाथ
िगाए ही। मेिा याँ वो वहााँ से ननकि जाना। नहीं नहीं। कफि भी मझ
ु े सोचना चादहए। ये गित है । नहीं ये गित
नहीं है । ये मेिे जजश्म की िज्जत है औि मझ
ु े ये हालसि किनी चादहए औि में करूंगी भी जरूि। में अपने
एहसास को क्यों मारूं?

इन्हीं बातों को सोचते हुये सबा का हाथ अपने आप ही उसकी शिवाि के अंदि जा चुका था औि एक उं गिी से
सबा अपनी नाजक ु सी चत के दाने को हल्का-हल्का मसि िही थी। कुछ दे ि याँ ही मसिने के बाद सबा पि
गमी चढ़ने िगती है । वो अपना स्काफद उतािती है औि अपने कपड़े उतािकि एकदम नंगी हो जाती है । नंगी ही
वो बेड पि बैठकि अपनी टााँगें खोिकि कफि से उसी उं गिी को चत के अंदि किने िगती है । उं गिी के अंदि
जाते ही सबा अपने नीचे वािे होंठ को अपने दााँतों में दबाती है । एसस्स्स्स्स… की आवाज उसके माँह
ु से ननकिती
है औि उसकी आाँखें बंद हो जाती हैं। औि अगिे ही पि एक झटके से कफि से खि
ु जाती हैं क्योंकी आाँखें बंद
होती ही उसके सामने मौिवी साहब का िण्ड आता है।

सबा- “एसस्स्स्स्स… मौिवी साहब्ब्ब… ये आपने क्या कि ददया? आआह्ह… मैं तो ऐसी नहीं थी। मैं ए सब नहीं
किती थी। आपने क्या बना ददया मझ
ु ?
े एस्स्स्स्स… आअह्ह… अच्छा ककया आपने मौिवी साहब कक मेिी सोई
हुई औित को जगह ददया… एसस्स्स्स्स… मौिवी साहब मैं आऊाँगी… मैं जरूि आऊाँगी, अपनी सजा पाने के लिये…
हााँ कि आऊाँगी आपके पास। मझ
ु े मेिी सजा जरूि दे ना। आह्ह… मेिे उस्ताद… ओह्ह… हो गया है । ये ये हो गया
मेिे उस्ताद…”

सबा की चत पानी छोड़ने िगती है । उसकी उं गिी से बहता हुआ पानी बेड पि गगिने िगता है । सबा बेड पि ही
अपनी उं गिी जो कक बबल्कुि गीिी थी। उसको मिने िगती है औि चत से िगा हुआ पानी बेडशीट से िगा
दे ती है औि उसपि उं गिी मािने िगती है । सबा के जजश्म से जैसे जान खत्म हो िही थी। औि कफि वो वहीं
पीछे गगि जाती है । ऐसे ही पािी पािी उसी कब नींद आती है उसी कुछ खबि नहीं िहती। अपने जजश्म की भख
को कुछ हल्का महसस होने से सबा को बहुत सकन की नींद आती है औि बबना आाँख खोिे वो पिु सकन नींद
सोती है ।

िेककन ये आज पहिी दफा था कक सबा अलिफ की तिह नंगी बेड पि सो िही थी, अपने रूम में । उसे दनु नयां की
कोई कफकि नहीं थी। यहााँ तक कक उसे अपने घि वािों की भी कफकि नहीं थी। सोते हुये सबा के चेहिे पि एक
सकन था, जजसे आसानी से दे खा जा सकता था। िात अपने शबाब पि थी। अपने ठीक टाइम पि सबा की आाँख
खुिती है । उसे अपने जजश्म में कुछ खखंचाओ सा महसस होता है । वो आाँखें मिते हुये उठकि टे क िगाकि बैठ
जाती है ।

21
बैठे हुये भी सबा के ददमाग में िात में जो हुआ सब एक कफल्म की तिह िीवाइंड हो िहा था। उसे याद आता है
कक उसकी उं गिी पि भी िगा था वो सब औि उसके बेड पि भी औि कफि… वो तो उसी के ऊपि िेटकि सो गई
थी। ककतनी गंदी हो गई हाँ मैं? पता नहीं िड़ककयां कैसे किती हैं? िेककन मैंने भी तो ककया है । उस वक्त तो मैं
मजे में थी। शायद यहााँ थी ही नहीं मैं। क्या वो मैं ही थी? नहीं नही, वो मैं नहीं हो सकती। अगि वो मैं थी तो
ये कौन है ? जो अब खद
ु ा की आवाज कान में पड़ती ही उठ गई। अगि मेिा खद
ु ा मझ
ु े उस सबसे िोकना चाहता
है , तभी तो मझ
ु े उसने उठा दया। िेककन उसने मेिे अंदि वो मजा क्यों िखा है । वो खतम ही क्यों नहीं कि दे ता
मेिे अंदि के एहसास को? आखखि क्यों िखा है उसने, मेिे अंदि वो सब?

ख्यािों औि सवािों में सबा पिी तिह उिझती जा िही थी। कफि उसे याद आता है कक उसने तो फैसिा खुदा पि
छोड़ ददया है, वो जहााँ उसे िे जाएगा, जजस िास्ते पि चिाएगा वो चिती जाएगी। गित हो या सही वो मना
नहीं किे गी।

कफि सबा उठकि नहाने के लिये चिी जाती है औि गस


ु ि किती है, अपने जजश्म को साफ किती है अच्छे से।
फ्रेश होकि वो वापपस अपने पाकीजा लिबास में आ जाती है औि कफि नमाज अदा किती है । हि सजदे के साथ
माफी मांगती है औि सीधी िाह पि चिने की दआ
ु किती है । कुछ दे ि वाक किने के बाद सबा अपना नाश्ता
बनाती है । बाकी घि वािे भी सब उठ चुके थे। सबको नाश्ता किवाने के बाद सबा खुद भी नाश्ता किती है , औि
बतदन संभाि के अपने रूम में चिी जाती है । सबा अपना स्काफद उतािती है औि जो कपड़े पहने थे िाइट पपंक
किि की कमीज औि सफेड शिवाि। उसी के साथ का दप
ु टटा िेती है अपने लसि को ढकती है । सबा को िात
की बात बाि-बाि याद आ िही थी। जो उसने कहा था कक मैं आऊाँगी मौिवी साहब आपके पासजरूि आऊाँगी।
अंजाने में ही सही वो बोि तो गई िेककन अब उसे पिा नहीं कि पा िही थी। उसका जमीि उसे बाहि नहीं जाने
दे िहा था।

वो अपना ध्यान वहााँ से हटाने के लिये अपना दप


ु टटा िेकि अपनी चाची के रूम की तिफ चि पड़ती है । रूम
अंदि से खुिा ही था। सबा नाक किके अंदि चिी जाती है । रूम में कोई भी नहीं था। कफि सबा को शावि के
चिने की आवाज आती है , तो वो समझ जाती है कक चाची नहा िही हैं।

सबा वाशरूम के पास जाकि आवाज दे ती है- “चाची गडु ड़या कहााँ है ?”

चाची- अिी सबा तम


ु … अच्छा बैठो सबा मेिे पास ही है , उसे भी नहिा िही हाँ। तम
ु बैठो मैं आई बस।

सबा- “जी चाची…” औि सबा रूम में इधि उधि की चीजों को ठीक किने िगती है।

कोई दो लमनट बाद चाची की आवाज आती है- “सबाऽऽ…”

सबा- “जी चाची…” सबा वाशरूम की तिफ जाते हुये आवाज दे ती है ।

चाची- “सबा, गडु ड़या को पाकि िो। मैं भी नहा ि…


ं ”

सबा- “जी चाची िाइये मैं पकड़ती हाँ अपनी गडु ड़याआ को…”

22
कहती हुई सबा वाशरूं के डोि के पास जाती है । डोि खि ु ते ही सबा को एक औि झटका िगता है । उसकी आाँखें
कफि से सख
ु द होने िगती हैं। चाची दिवाजे में नंगी खड़ी थी औि गडु ड़या सबा को पकड़ा िही थीं। सबा अपने होश
खोए चाची के जजश्म को ऊपि से नीचे औि नीचे से ऊपि तक दे ख िही थी।

चाची- “सबा… सबाऽऽ क्या हुआ कहााँ खो गई हो?”

सबा- “नहीं चाची, कहीं नहीं िाइये मेिी गडु ड़या को। अिद ययी अिद ययी िोते नहीं बेटा। गडु ड़या ने मेिी प्यािी गडु ड़या
ने…” सबा िोटी हुई गडु ड़या को खखिाने िगती है औि चाची के वापसी होते ही वो कफि से चाची को दे खती है। तो
चाची की बैक उसे नजि आती है औि कफि डोि बंद हो जाता है ।

गडु ड़या को चुप किवाने के बाद सबा उसी बेड पि बैठकि उसके जजश्म से पानी साफ किती है औि कफि उसे
कपड़े पहनाती है । कपड़े पहनाती हुये सबा का ध्यान अभी भी चाची में ही था। सबा को है िानी इसलिये हुई कक
चाची तो शादीशद
ु ा हैं, इसलिये उनका जजश्म इतना कलशशवािा है िेककन मैं तो काँु वािी हाँ, मेिा जजश्म ऐसा क्यों
है , बबल्कुि चाची के जैसा? औि कफि शादी औि बच्चों से पहिे ही मेिे कल्हे औि गाण्ड बबल्कुि चाची के जैसे
बाहि को क्यों हैं। कहीं इसीलिये तो हि मदद मझ
ु े ऐसी नजि से तो नहीं दे खता औि इसीलिये ही तो मेिे ऊपि
मिने के लिये भी तैयाि हो जाते हैं, मेिे अपने खन के रिश्ते भी। खन के रिश्ते का खयाि आते ही सबा का
जजश्म एक दफा कांपता है, औि एक पशीने से भिी िहि उसकी चगचयां के बीच में से नीचे को जाती है औि
दोनों चगचयां के बीच जाकि रुक जाती है । क्योंकी चगचयां ब्रा में कसी होने की वजह से आपस में जड़
ु ी हुई थीं।

बहुत सािे सवाि सबा के मन में आ िहे थे। ये सब सोचकि उसे पशीना आ िहा था, जो उसके कपड़ों को गीिा
कि िहा था। औि ये गीिापन उसे औि गिम किने में पिा कामयाब हो चक ु ा था। सबा गडु ड़या को उठाते हुये
औि रूम से बाहि ननकि जाती है । अपनी गमी के हाथों तंग सबा सीदढ़यां उतािकि नीचे जाती है औि अपने
भाई के रूम का रुख किती है । ददि में हजािों सवाि, जजश्म औि कपड़े पशीने से भीगे हुये थे। धड़कते ददि के
साथ सबा अपने भाई के रूम का डोि खोिती है, औि अंदि जाती है ।

सबा का भाई जो िैपटाप िगाकि बैठा था, जल्दी से स्िीन को नीचे कि दे ता है, औि िैपटाप साइड में िख दे ता
है - “अिे आपी आप आओ ना। आज भाई की कैसे याद आ गई? आपको तो मदसाद ही िेकि बैठ गया है…"

िेककन सबा तो अपने भाई की हिकत को दे ख िही थी, िैपटाप बंद किने वािी। सबा अपने ददमाग को झटकती
है औि बेड पि बैठते ही उसे एहसास होता है कक जैसे उसके जिते हुये जजश्म पि कोई बिफ वािा पानी डाि
िहा हो। मड़
ु कि दे खती है तो एसी ओन कि ददया था उसके भाई ने औि ठं डी हवा सीधी सबा के जजश्म पि आ
िही थी।

भाई- “आपी आप तो भीगी हुई हो पशीने से। िाओ गडु ड़या को मझ


ु े दो औि आप अपना दप
ु टटा उतािकि ईजी
होकि बैठो…” औि सबा के बाज से गडु ड़या को िे िेता है ।

पि सबा अपना दप
ु टटा नहीं उतािती।

असि में सबा का भाई उस ददन वािा दृश्य आज कफि दे खना चाहता था।

23
आई तो सबा भी अपना जजशम ददखाने ही थी, िेककन खुद कैसे? भाई के दोबािा कहने पि सबा अपना दप
ु टटा
उतािकि साइड में बेड पि िख दे ती है । दप
ु टटा उतािते ही सबा का पशीने से भीगा हुआ जजश्म वाजेह होने िगता
है , औि आलसफ़ जो कक सबा के सामने बैठ चुका था, उसकी नजि सबा के कफदटंग वािे सट में कसे हुये जजश्म
पि जाती है । आलसफ़ जो कक पहिे से ही अपनी आपी के जजश्म की ताक में िगा हुआ था, ये दृश्य दे खकि
उसको महसस होता है कक उसका िण्ड जागने िगा है।

सबा का जजश्म पशीने से भीगा होने की वजह से उसकी ब्रा के स्ट्रै प्स के ऊपि नीचे बबल्कुि वाजेह एक गीिी
पटटी सी नजि आ िही थी, जो कक दे खने वािे को ये बता िही थी कक सबा की ब्रा कहााँ से शरू
ु हो िही है, औि
ककतनी चौड़ी है । आलसफ़ अपनी आपी के जजश्म को घि िहा था औि साथ-साथ गडु ड़या को खखिा िहा था। अंदि-
अंदि वो अपनी नजिें हटाकि गडु ड़या को दे खता औि कफि से आाँखें सबा के उभािों पि िगा िेता।

कुछ दे ि याँ ही खामोशी िहती है तो सबा उस खामोशी को महसस किते हुए कहती है - “आलसफ़, पढ़ाई कैसी जा
िही है तम्
ु हािी?”

आलसफ़- “जी आपी अच्छी चि िही है …” औि आलसफ़ उठकि खड़ा हो जाता है औि चिता हुआ गडु ड़या को बेड
पि िेटाने के लिये सबा के पीछे से गज
ु िकि बेड की दसिी साइड पि जाता है । सबा के पीछे जाते ही जो आलसफ़
ने सोचा था वही उसे नजि आता है । आलसफ़ को पशीने से भीगी कमीज पि ब्रा की चौड़ी पटटी नजि आती है ,
जजसका कुछ दहस्सा सख चक
ु ा था, औि कुछ अभी भी गीिा था।

आलसफ़ सोचता है - “ये तो िग िहा है अम्मी का ब्रा पहनी हुई है …” ये सोचते हुए आलसफ़ गडु ड़या को लिटाकि
वापपस मड़
ु ता है । उसका िण्ड अभी भी ट्राउजि में तंब बनाए हुए खड़ा था। आलसफ़ उसे जानबझ कि ऐसे ही
िहने दे ता है , औि वापपस अपनी जगह पि आकि सबा के सामने बैठ जाता है ।

आलसफ़ के बैठते हुए सबा की नजि उसके तंब बने हुये ट्राउजि पि जाती है, जजसे दे खते ही सबा, जो कक पहिे
से ही गिम थी अपनी चाची का जजश्म दे खकि, उसे कफि से खुमािी आने िगती है । सबा को अपनी आाँखों में
एक खुमािी भिा एक खखंचाओ महसस होने िगता है । उसके जजश्म का पशीना तो सख चक
ु ा था, िेककन जो
पशीना औि गमी उसके जजश्म के अंदि थी, वो तो औि बढ़ती ही जा िही थी। सबा की आाँखें सख
ु द हो िही थीं।
वो अपने भाई के तंब बने हुए िण्ड को चोि नजिों से दे ख िही थी। वो ये भी जानती थी कक उसके जजश्म को
दे खकि ही आलसफ़ का िण्ड खड़ा हुआ है । िेककन आलसफ़ की जवानी उसे अपने काब में किने की कोलशश कि
िही थी।

आलसफ़- “आपी आजकि आप कुछ पिे शान सी िग िही हैं, क्या बात है ? मैं कुछ हे ल्प कि सकता हाँ आपकी?”
आलसफ़ अपने हाथ को अपने तंब बने ट्राउजि के ऊपि से ही हाथ में पकड़कि मसिता हुआ सबा से सवाि
किता है ।

सबा आलसफ़ के इस सवाि पि चौंकती हुई अपनी नजिें उसके िण्ड से हटाकि उसकी आाँखों में दे खती है । दसिे
िम्हे कफि से सबा की नजिें आलसफ़ के हाथ पि पड़ जाती हैं जो कक कफि से िण्ड को मसि िहा था। एसी में
बैठे होने के बावजद सबा को ऐसा िग िहा था जैसे तंदि में बैठे हैं। ये सब दे खकि औि अपने भाई का सवाि
सन
ु कि सबा इतनी गिम हो चक
ु ी थी कक अपने आप ही उसकी चत से, उसके पाकीजा जजश्म को गंदा किता
हुआ पानी का एक कतिा ननकिता है औि नीचे की तिफ बहने िगता है, जो कक अंत में उसकी शिवाि पि गगि
24
कि अपनी जान दे दे ता है । वो एक कतिा भी इतना गिम था कक उसके ननकिते ही सबा एक िम्हे के लिए
अपनी आाँखें बंद किती है औि उसकी गमी को महसस किते ही कफि से खोि दे ती है । कफि से उसकी आाँखें
आलसफ़ की आाँखों से लमिती हैं। सबा एक झटकी से उठती है ।

सबा- नहीं आलसफ़ ऐसी कोई पिे शानी वािी बात नहीं है । मैं चिती हाँ, मझ
ु े अभी औि भी काम हैं। गडु ड़या उठे
तो उसे चाची को पकड़ा दे ना।

आलसफ़- “जी आपी, पकड़ा दं गा। िेककन कफि भी अगि कोई काम हो आपको तो मैं आपकी हे ल्प कि सकता हाँ …”

ये बात आलसफ़ ऐसे अंदाज में कहता है कक सबा को सीधा चत के अंदि जाकि िगती है , जो ये बात चीख-चीख
कि कह िही थी कक- “आऽऽ आ मेिे भाई औि डाि दे अपना डंडे जैसा िल्
ु िा मेिे अंदि औि मझ
ु े ठं डा कि दे ,
विना मैं इस गमी से ही मि जाऊाँगी…” सबा अपने खयाि को झटक कि मड़
ु ती है औि दिवाजा खोिकि बबना
जवाब ददए ही मड़
ु जाती है औि दिवाजा खोिकि बाहि चिी जाती है ।

आलसफ़ बाहि जाती हुई सबा को पीछे से दे खता है । उसकी नजिें सबा के दहिते हुए वजनदाि कल्हों पि होती हैं।
आलसफ़ के िण्ड को कफि से एक झटका िगता है औि बेसाखता उसके माँह ु से ननकिता है - “हाए मेिी बहना,
मेिी आपी तम
ु भटक िही हो। तम
ु क्या थी औि क्या बन गई। जो िड़की कभी स्काफद के बबना बाहि नहीं आती
थी, आज मेिे कहने पि दप
ु टटा कैसे उताि दया? कुछ तो गड़बड़ है आपी…” औि जोश से अपने िण्ड को मसिते
हुए आलसफ़ बेड पि गगि जाता है ।

सबा वहााँ से ननकिती है औि सीधा अपने कमिे में जाती है । उसकी बढ़ती हुई बैचेनी उसके सब
ु ह ककए हुए
फैसिे पि पानी फेि िही थी। आलसफ़ के कमिे से अपने कमिे में जाते-जाते सबा अपने ददमाग में ये फैसिा कि
चक
ु ी थी कक वो मदसे जाएगी। अपने कमिे में पहुाँचते ही वो तैयाि होने के लिए अपना एक सट ननकिती है ,
आफ सफेद िान का औि साथ में अबया पकड़ती है औि एकदम से अपने कपड़े उतािकि फेंकती है । दसिा सट
पहनती है औि कफि अबया पहनती है । महाित से लसि पि स्काफद िपेटती है औि नकाब किके बाहि ननकि
जाती है ।

सबा- “अम्मी, मैं मदसे जा िही हाँ…” ककचेन के दिवाजे पि सबा खड़ी होकि आवाज दे ती है अपनी अम्मी को
औि बबना आगे से जवाब सन
ु े ही बाहि ननकि जाती है , जैसे उसे ये डि हो कक कहीं उसे जाने से मना ना कि
ददया जाए।

तेजी के साथ चिते हुए सबा घि से बाहि ननकिती है औि ड्राइवि को आवाज दे ती है , जो कक गेट के साथ वािे
कमिे से बाहि ननकिता है औि सबा को दे खते ही समझ जाता है औि गाड़ी स्टाटद कि दे ता है । सबा गाड़ी में
बैठती है औि मदसे के िास्ते पि ननकि पड़ती है । कुछ ही फासिे पि जाकि सबा अपने हाथ में बाँधी घड़ी में
वक़्त दे खती है तो उसके ददमाग में आता है कक वो क्या किने जा िही है वहााँ। वो इतनी िेट हो गई है ।

सबा- “सब बच्चे तो पढ़कि चिे गये होंगे, अब क्या फायदा जाने का? नहीं नहीं मझ
ु े वहााँ नहीं जाना चादहए।
िेककन मैं वहााँ पढ़ने नहीं जा िही थी, मैं तो वहााँ मौिवी साहब को…”

25
इतना सोचकि जैसे उसका ददमाग सन्
ु न हो जाता है, नीचे िगी आग जो सबा को दटकने नहीं दे िही थी- “ये मैं
ककस िास्ते पि चि पड़ी हाँ? मैं जानती हाँ इसकी मंजजि बहुत खतिनाक है । कफि भी मैं ऐसा कैसे कि सकती
हाँ? नहीं नहीं, मझ
ु े वहााँ नहीं जाना चादहए। िेककन इसका क्या करूं? इसे कैसे काटकि फेंक दाँ में?”

ये सोचकि सबा अपनी टााँगें आपस में गचपकाकि बंद किती है तो उसे महसस होता है कक उसके अंदि बहुत
गीिा हो गया है - “उफफ्फफ़ ये मझ
ु े क्या हो गया है?”

सबा सोचते हुए ऊपि आसमान की तिफ एक सवाि भिी नजिों से दे खती है की तभी गाड़ी रुक जाती है औि
औि वो उतिकि अंदि मदसे में जाती है । चिते हुए अंदि रूम के पास पहुाँच कि अपनी सैंडि उतािती है औि
मदसे के हाि में दाखखि हो जाती है । उसकी सोच के मत
ु ाबबक सब बच्चे जा चक
ु े थे औि मौिवी साहब भी वहााँ
मौजद नहीं थे। िेककन मौिवी साहब के कमिे की िाइट जि िही थी। ये दे खकि सबा अपना नकाब उतािती हुई
अंदि रूम की तिफ चि पड़ती है ।

चिते हुए उसे यही खयाि आ िहा था कक वो यहााँ क्या किने आई है? औि क्याँ आई है वो यहााँ? “पढ़ने? नहीं
तो। बबल्कुि भी नहीं। मैं तो यहााँ अपनी चत को… नहीं नहीं, मौिवी साहब का वो दे खने आई हाँ…”

ये सोचते हुये सबा की बैचने ी बढ़ती जा िही थी औि वो अपना नकाब उताि चक ु ी थी औि कमिे के दिवाजे पि
पहुाँच चक
ु ी थी। कमिे के अंदि दाखखि होकि वो सिाम किती है, जजसे सन
ु ते ही मौिवी साहब जो कक चािपाई
पि बैठे अभी कोई ककताब खोि ही िहे थे, एक झटके से ऊपि दे खते हैं औि सबा को अपने कमिे में खड़ा
दे खकि चौंक जाते हैं।

सबा कफि से सिाम किती है तो मौिवी साहब खयाि से बाहि आकि जवाब दे ते हैं।

सबा- “मैं िाते हो गई आज मौिवी साहब…” अटके हुये िफ़्ज़ों में सबा बोि िही थी। वो जानती थी कक वो यहााँ
पढ़ने नहीं आई इसलिए िफ्फज़ तो ननकि ही नहीं िहे थे उसके मह ाँु से।

मौिवी साहब- अच्छा कोई बात नहीं, बैठो।

सबा मौिवी साहब का जवाब सन


ु कि अपना नकाब उनकी चािपाई पि फेंक दे ती है, जहााँ मौिवी साहब बैठे थे
औि कफि अपने अबया को अपने दोनों हाथों में िेकि सामने से बटन खोिने िगती है ।

जब स्काफद गगिता है तो मौिवी साहब लसि उठाकि सबा को दे खते हैं। िेककन जब सबा अपना अबया खोिने
िगती है तो मौिवी साहब का माँह
ु खुिा का खुिा िह जाता है , जैसे वो कुछ बोिना चाहते हों िेककन जुबान
साथ नहीं दे िही हो।

सबा अपने अबया के बटन खोिती है औि बाजओ ु ं को नीचे किती है, जजससे अबया सिकता हुआ उतिता हुआ
उसके हाथोंन तक आ जाता है । सबा पहिे एक बाज ननकािती है औि कफि दसिा बाज ननकािती है औि अबया
को सीधे हाथ से इकटठा किके मौिवी साहब की चािपाई पि पांव वािी साइड में फेंक दे ती है ।

26
अबया के उतिते ही जो नजािा मौिवी साहब को लमिता है , वो उनके लिए ककसी बबजिी के जोिदाि झटके से
कम नहीं था। सबा का बािीक िान का सट जो उसने पहना हुआ था, वो सबा के जजश्म को नम
ु ाया कि िहा था।
अगि सबा ने नीचे शमीज ना पहनी होती तो मौिवी साहब को आज उसका पिा जजश्म दे खने को लमि जाता।
मौिवी साहब की नजिें सबा के जजश्म के उभािों को घि िही थीं। इतने बड़े-बड़े औि इतने सफेद औि इतने
वाजेह उभाि उसने आज तक नहीं दे खे थे।

सबा अपने स्काफद से आजाद हुए बािों को ठीक किती है औि अपना दप ु टटा लसि पि िेती है औि कमिे से
बाहि ननकि जाती है । सबा के मड़
ु ते ही मौिवी साहब को दो िा झटका िगता है औि उनकी सााँस गिे में अटक
सी जाती है । इसकी वजह थी सबा की गाण्ड… जो कक बाहि को ननकिी हुई औि उसकी कमि का खं। चिती हुई
सबा कमिे से बाहि चिी जाती है ।

जाते हुए मौिवी साहब की नजि सबा के पीछे से ददखती ब्रा के स्ट्रै प्स पि जाती है तो मौिवी साहब के ददमाग
में एक ही सवाि आता है- “अपनी मााँ की ब्रा तो नहीं पहन आई कहीं? इतनी चौड़ी पटदटयां?”

सबा चिती हुई कमिे से बाहि चिी जाती है औि बाहि आकि अिमािी से ककताब दे खने िगती है । मौिवी
साहब कमिे के अंदि पागिों की तिह सोच िहे थे- “ये क्या हो िहा है? ये िड़की क्या चाहती है ? इसके जैसी
पिहे जगाि, ऐसा कैसे कि सकती है ?” कफि मौिवी साहब के जेहन में आता है कक “कहीं इसकी चत की भटटी तो
नहीं जिने िगी है ?”

अभी मौिवी साहब इन्ही खयािों में गम


ु थे कक सबा दोबािा कमिे में आती है औि मौिवी साहब के पास ही
पड़ी एक िकड़ी की चौकी टाइप होती है जो कक बहुत ऊाँची नहीं होती, उसपि बैठ जाती है ।

सबा के चौकी पि बैठते ही मौिवी साहब अपने खयाि से बाहि आते हैं औि जब सबा पि नजि डािते हैं तो
नजि सीधा सबा के गिे से बाहि आते हुए मोटे -मोटे मम्
ु मों पि जाती है । मौिवी साहब चािपाई पि ऊाँची जगह
पि थे औि सबा बबल्कुि एक तिह से जमीन पि थी, जजस वजह से सबा के मम्मों का ऊपिी दहस्सा मौिवी
साहब के सामने था।

सबा- “मौिवी साहब मझ


ु े आगे कुछ सबक समझा दें …”

मौिवी साहब जैसे ककसी सकते की कैकफयत से जागते हैं औि ििजती हुई आवाज में कहते हैं- “हााँन्न्न… प ्-प-
पछो सबा बेटी…” औि नजिें मम्
ु मों से हटाकि ककताब पि डािते हैं औि आगे सबक दे ने िगते हैं।

सबक दे ते हुए उनकी नजिें मस


ु िसि सबा के मम्
ु मों पि जा िही थीं, औि सबा इस बात से वाककफ थी। अपनी
चत की आग के हाथों वो क्या कुछ कि िही थी, उसे कुछ भी होश नहीं था। मौिवी साहब सबा को मजु श्कि से
ही सबक पिा किवाते हैं।

सबक पिा किवाकि मौिवी साहब अपनी वो टााँग जो सबा की साइड पि थी उसे हल्का सा ऊपि कि िेते हैं,
औि अपनी शिवाि का इजािबंद खोि दे ते हैं, जजससे शिवाि ढीिी हो जाती है औि फौिन अपना हाथ अंदि
िेजाकि अपने िण्ड को पकड़ िेते हैं, जो कक फटने के किीब ही था। िण्ड में इतना तनाओ था कक अकड़ने की
वजह से मौिवी साहब के िण्ड की नसों में काफी खखंचाओ महसस हो िहा था। िण्ड को पकड़ते ही मौिवी
27
साहब अपने हाथ पि उसकी गमादहट को महसस किके है िान हो जाते हैं औि धीिे -धीिे मसिने िगते हैं।
मसिते-मसिते चोि नजिों से सबा के उभािों को ऊपि से नंगा दे खकि अपने िण्ड की मठ िगाने िगते हैं।

सबा भी अंदि ही अंदि आाँखें ऊपि उठाकि दे खती है । िेककन मौिवी साहब की टााँग खड़ी होने की वजह से सबा
को वो कुछ नजि नहीं आता जो वो दे खने आई थी। वो खास चीज मौिवी साहब छुपाकि बैठे हुए थे। बाि-बाि
की कोलशश के बावजद सबा को कुछ नजि नहीं आया।

मौिवी साहब सबा के नंगे उभािों का ऊपिी दहस्सा दे खकि पिे जोश में मठ माि िहे थे औि झड़ने के किीब ही
थे कक अंजाने में उनका चािपाई पि दहिना इतना तेज हो गया कक उनको ये अंदाजा ही नहीं िहा कक उनकी
चािपाई बहुत दहि िही है औि साथ-साथ “तक-तक-तक” की आवाज भी कि िही है ।

सबा को ये आवाज आती है औि चािपाई के दहिने का एहसास होता है औि वो ऊपि मौिवी साहब की आाँखों में
दे खती है । मौिवी साहब की आाँखें ऐसी सख
ु द िग िही थीं जैसे कोई नशा ककया हुआ हो उन्होंने। सबा को समझ
आ चक ु ी थी कक क्या हो िहा है औि वो एकदम से उठती है ।

सबा- “अच्छा मौिवी साहब में चिती हाँ…” उठते ही सबा की नजि टााँग के उस तिफ जाती है जहााँ मौिवी साहब
अपना िण्ड हाथ में पकड़े दहिा िहे थे।

सबा के उठते ही मौिवी साहब का हाथ दहिना बंद हो जाता है । मौिवी साहब- “अच्छा सबा बेटी, तम
ु एक काम
कि दो जाने से पहिे। ये सामने अिमािी की ककताबें बच्चों ने आगे पीछे कि दी हैं इनको ठीक कि दो जिा…”

सबा मौिवी साहब की ये चाि समझ जाती है कक उनसे अब रुका नहीं जाएगा औि अब वो अपनी पसंदीदा चीज
मााँग िहे हैं। सबा एक छुपी हुई मश्ु कुिाहट के साथ चिती हुई अिमािी के पास जाकि एक दफा पीछे दे खती है
औि कफि अिमािी की तिफ माँह ु किके ककताबों को धीिे -धीिे ठीक किने िगती है ।

अब सबा की खम खाती हुई कमि, उसके उभिे हुए कल्हे मौिवी साहब के सामने थे, अपने पिे जोबन के साथ
थे। बािीक कमीज औि शिवाि में से काफी हद तक मौिवी साहब को ये तक ददख िहा था कक सबा ने शिवाि
के नीचे एक आफह्वाइट अंडिवेि भी पहना हुआ था। ये दे खकि मौिवी साहब कफि से हाथ चिाने िगते हैं औि
कुछ ही िम्हों में उनके हाथ को दहिने में तेजी आ जाती है औि चािपाई की “तक-तक-तक” की आवाज आने
िगती है ।

सबा के चेहिे की मश्ु कुिाहट ये आवाज सन


ु ते ही औि बढ़ जाती है औि वो अपनी गाण्ड को औि भी ज्यादा खम
में िाते हुए खड़ी होकि ककताबें ठीक किने िगती है । ये िम्हा सबा को बहुत गिम कि िहा था औि उसकी चत
में औि भी ज्यादा हिचि हो िही थी। मौिवी साहब, उसके उस्ताद अपनी होनहाि औि पिहे जगाि शिीफ शागगदद
की उभिी हुई गाण्ड को दे खकि मठ माि िहे थे। कुछ ही िम्हों में वो जैसे ही ककताबें ठीक किके मड़
ु ने िगती है
तो मौिवी साहब की उखड़ी-उखड़ी सी आवाज उसके कानों को छती है ।

मौिवी साहब- “ब ्-ब-बस एक लमनट रुको सबा बेटी…”

28
ये सन
ु ते ही सबा मौिवी साहब की तिफ मड़
ु ना िोक कि कफि से अपना माँह
ु अिमािी की तिफ किके एक बाि
कफि अपनी कमि के खम को ऊपि उठाते हुए गाण्ड को बाहि ननकािकि एक ककताब उठाकि खड़ी हो जाती है ।
थोड़ी दे ि बाद ही सबा के कानन में - “आह्ह… ओह्ह…” की आवाज के साथ मौिवी साहब की हांफते हुए बहुत
गहिी सााँस िेने की आवाज भी आती है । इसी के साथ चािपाई की “तक-तक-तक” की आवाज भी बंद हो जाती
है । सबा समझ जाती है कक मौिवी साहब झड़ चुके हैं।

सबा ये सोचते हुए ककताब को अिमािी में िख दे ती है औि अिमािी से दटक कि खड़ी होकि सोच-सोचकि इतनी
गिम हो जाती है कक बबना हाथ िगाए ही उसकी चत पानी छोड़ने िगती है । पीछे से दे खने पि सबा के कल्हे
पानी की हि िहि के साथ खुि-बंद खुि-बंद होने के साथ-साथ ऊपि-नीचे ऊपि-नीचे हो िहे थे। सबा कुछ ही
िम्हों में फारिघ ् हो जाती है औि संभिने के बाद पीछे मड़
ु कि जैसे ही पहिा कदम िेती है तो उसे अपना
अंडिवेि ऐसा िगता है जैसे ककसी ने पानी में लभगोकि पहनाया हो।

सबा ये महसस किते ही वहीं रुक जाती है औि कुछ मजीद िम्हे मौिवी साहब को दे खने में गज
ु ािती है जो कक
अपनी आाँखें बंद ककए अभी भी अपने िण्ड को मसि िहे थे। उनको दे खते हुए सबा की नजि मौिवी साहब के
सीने से होती हुई नीचे उनकी शिवाि पे आ जाती है जो कक िण्ड के टोपे से गीिी होकि िण्ड के साथ ही जैसे
जड़ी सी थी। सबा अपना अबया पहनती है औि अपना नकाब िेते हुए कमिे से बाहि ननकि जाती है । सबा की
आग कुछ हल्की होती है औि उसे अपने आपसे नघन आने िगती है, अपने आपसे नफित होने िगती है उसको,
औि चिती हुई सबा मदसे से ननकिती है तो मदसे के दिवाजे के सामने उसकी गाड़ी खड़ी होती है ।

सबा गाड़ी की तिफ बढ़ती है औि गाड़ी में तेजी के साथ बैठ जाती है । सबा को ऐसा महसस हो िहा था कक कहीं
उसकी चोिी कोई पकड़ ना िे। गाड़ी में बैठते ही वो ड्राइवि से घि चिने का कहती है ।

***** *****
घि पि आलसफ़ भी अपनी आपी के जजश्म को याद कि-किके पागि हो िहा था। बाि-बाि आपी के उभािों को
याद किके वो अपने िण्ड को मसि िहा था- “क्या बनाया है आपी को भी खुदा ने, ककसी को भी पागि कि दें ।
इसीलिए अबया नहीं उतिती थीं, क्योंकी अबया के अंदि तो एक भिे हुए जजश्म की पिी छुपी है । जजसके भी हाथ
आयेगी उसकी तो मौज ही हो जाएगी। काश मैं आपका भाई ना होता तो आपसे शादी किके िोज िगड़ता आपको
अपने नीचे दल्
ु हन बनाकि…”

ये सोचते हुए आलसफ़ कफि से एक दफा अपने िण्ड को मसि दे ता है । एक डंडे की तिह का आलसफ़ का खड़ा
िण्ड तो जैसे बैठने का नाम ही नहीं िे िहा था।

आसफ़
ु - “िेककन आलसफ़ बेटा सोचने की बात ये है कक सबा आपी ऐसी नहीं थीं कभी भी। घि में भी अबया औि
स्काफद के बबना नहीं िहती थी वो तो। अब ये अचानक ऐसा क्या हुआ कक आपी बािीक कपड़े, स्काफद भी बािीक
पहनती हैं, या कफि उताि ही दे ती हैं। औि हद तो ये हो गई है याि कक मेिे कहने पि अपना दप
ु टटा उताि ददया।
जब की आपी का जजश्म वाजेह नजि आ िहा था औि आपी इस बात से वाककफ थीं। ऐसा क्या हुआ है जो आपी
एकदम से इतना बदि गई हैं। कुछ तो गड़बड़ है, शायद आपी के कमिे से कुछ लमिे। नहीं वहााँ से क्या
लमिेगा? हो सकता है कोई चीज हाथ आ जाए चिकि दे खता हाँ…”

29
खुद से अपने ही आपसे बातें किता हुआ औि सोचता हुआ आलसफ़ बबस्ति से उठकि खड़ा होता है तो उसका
िण्ड अभी भी वैसे ही तना हुआ था औि ट्राउजि के अंदि बबल्कुि डंडे की तिह सीधा खड़ा था जैसे कोई बाँदक
फायि किने के लिए तैयाि हो।

“उफफ्फफ़ अब इसका क्या करूं?” आलसफ़ आह्ह… भिते हुये कहता है औि अपने ट्राउजि में हाथ डािकि िण्ड को
जोि से दबाता है औि उसकी गमी को महसस किता है - “उफफ्फफ़… मेिी बहना…”

औि कफि अपने खड़े िण्ड को ट्राउजि के ऊपि बेल्ट वािी जगह िगाकि ट्राउजि औि पेट के साथ गचपका दे ता
है ताकी उसके िण्ड के खड़े होने का पता ना चिे, औि अपने कमिे से ननकिकि ऊपि सबा के कमिे की तिफ
चि पड़ता है । सबा के कमिे के दिवाजे को हल्का सा धक्का दे ने पि दिवाजा खि
ु जाता है । आलसफ़ बबना शोि
ककए कमिे के अंदि आ जाता है औि कफि से दाविजे को धीिे से बंद कि दे ता है । वो शोि किना नहीं चाहता
था, क्योंकी उसकी चाची साथ वािे कमिे में ही थीं, औि वो नहीं चाहता था कक उन्हें एहसास हो ककसी की
मौजदगी का सबा के कमिे में ।

आलसफ़ कमिे में इधि-उधि दे खने िगता है कक वो कहााँ से शरू


ु किे , औि कैसे पता िगाए कक क्या मसिा हुआ
है ? आपी के अंदि एकदम से आ िहे इस बदिाओ की क्या वजह है ? कफि आलसफ़ सबा की अिमािी खोिकि
दे खने िगता है । कपड़ों में तिाश किता है कुछ, िेककन कुछ नहीं लमिता। कफि दिाज चेक किता है सािे । कुछ
दे ि इधि-उधि हाथ मािने के बाद थक कि बैठ जाता है अफसोसजदा सा माँह
ु बनाकि। जमीन पि बेड से टे क
िगाए आलसफ़ बैठा कुछ खयािों में ही सोच िहा था कक अचानक उसकी नजि सामने बाथरूम के खुिे हुये
दिवाजे पड़ जाती है । दिवाजा नीचे से बबल्कुि फशद के नीचे तक नहीं था। फशद औि दिवाजे के बीच कोई 2-3
इंच जजतना गैप होगा। ये दे खते ही आलसफ़ कुछ सोच में पड़ जाता है औि सोचते हुए उसके होंठों पि मश्ु कुिाहट
आने िगती है औि वो िें गता हुआ बाथरूम के दिवाजे तक जाता है औि दिवाजे को हाथ से पकड़कि बबल्कुि
बंद कि दे ता है औि कफि लसि को नीचे फशद पि िखकि अंदि झााँकता है ।

अंदि बाथरूम तकिीबन पिा नजि आ िहा था खासकि नहाने वािी जगह। खुशी से आलसफ़ वहीं िेट जाता है -
“िे बेटा आलसफ़ आज तेिी ईद है …”

अपने िण्ड को जोि से मसिते हुए आलसफ़ लसि उठाकि पीछे दीवाि पि िगी घड़ी दे खता है तो दो बजने वािे
थे। मतिब कक सबा आने वािी थी। आलसफ़ जानता था कक नमाज का टाइम है औि आपी आकि सबसे
पहिे ाँहायेंगी औि कफि नमाज पढ़ें गी। ये सोचकि आलसफ़ सबा के कमिे से बाहि ननकि जाता है औि टीवी
िाउं ज में बैठकि ही सबा के आने का इंतज
े ाि किने िगता है ।

मदसे से घि का सफि पिा किके सबा घि पहुाँच चुकी थी। गाड़ी से ननकिकि वो अपने नकाब में ही घि में
दाखखि होती है औि सीधा अपने कमिे की तिफ जाती है । सीदढ़यां चढ़ते हुए भी उसे अपना गीिा अंडिवेि
महसस होता है । वो जल्द से जल्द इसे अपने जजश्म से अिग किना चाहती थी। सीदढ़यों से अपने कमिे में
पहुाँचकि सबा तेजी से अपने जजश्म से चीजें उतािने िगती है । पहिे स्काफद, कफि अबया, कफि कमीज औि कफि
शिवाि। अब सबा अपनी ब्रा औि अंडिवेि में खड़ी थी। अपने हाथ कमि पि िेजाकि वो अपनी ब्रा के हुक
खोिती है तो पीछे पटदटयां फट की आवाज से खखंचती हुई खुिती हैं, औि ब्रा हाथों पि से कफसिती हुई आगे
की तिफ आ जाती है । सबा ब्रा उतािकि साइड में फेंक दे ती है औि झक
ु ते हुए अपने कल्हों को पीछे की तिफ
किते हुए अपने ही पानी से भीगे हुए अंडिवेि के ऊपिी ककनािे को अपने ककनािे के किीब अपने अंगठे से
30
खींचकि बहुत नजाकत से नीचे की तिफ िे जाती है औि अपने जजश्म से अिग कि दे ती है । अंडिवेि को
उतािकि सबा उसे फेंकने के बजाए ऊपि को उठती है ।

सबा- “उफफ्फफ़… ककतनी पानी ननकि गया है मेिा। अगि मौिवी साहब को पता चि जाता कक मैं वहााँ क्या
दे खने आई हाँ तो वो मझ
ु े वहीं चोद दे त।े अच्छा हुआ मैं वहााँ से भाग आई। ये तो गित बात है, औि इतना
पानी बबना हाथ िगाए ही ननकि िहा है । क्या इतनी गिम होने िगी हाँ मैं?”

सोचते-सोचते सबा अंडिवेि को बास्केट में फेंकती है, जजसमें औि भी धोने वािे कपड़े थे औि अिमािी में से एक
साफ तौलिया िेकि बाथरूम में नहाने चिी जाती है । सबा के बाथरूम का दिवाजा बंद होता है तो बाहि बैठा
हुआ आलसफ़ सोफे से खड़ा होता है औि ककसी चोि की तिह इधि-उधि दे खकि वो दबे पांव सबा के कमिे की
तिफ बढ़ने िगता है । सबा के कमिे के दिवाजे पि पहुाँचकि आलसफ़ बहुत ही आिाम से कमिे में दाखखि हो
जाता है । उसके ददि की हाित इस वक़्त ऐसी थी कक जैसे एक घोड़ा पिा तेजी से दौड़ता है औि धड़कन की
आवाज बबल्कुि घोड़े की टापों की आवाज की तिह बाहि आ िही थी।

दबे पांव ही वो कमिे का दिवाजा बंद किता है औि कुण्डी िगा दे ता है । अब बाथरूम के दिवाजे के पास
पहुाँचकि एक दफा मड़
ु कि पीछे दे खता है कक कमिे के दिवाजे की कुण्डी िगी है , औि यकीन होने पि वो पहिे
नीचे जमीन पि बैठ जाता है औि कफि टााँगें पीछे को फैिाता हुआ िेट जाता है । इस तिह िेटते ही उसका माँह

दिवाजे के उस खािी दहस्से के सामने आ जाता है जहााँ से वो अंदि झााँकना चाहता था। थोड़ा सा आगे को
खखसक कि आलसफ़ अपनी आाँखें घम
ु ाकि बाथरूम के ऊपिी दहस्से को दे खता है । आाँखें उठते ही आलसफ़ तो जैसे
पागि हो जाता है । सबा बबना कपड़ों के शावि के नीचे खड़ी थी। सबा की नंगी कमि आलसफ़ के सामने थी।
उसके बाहि को ननकिे हुये कल्हे, उभिे हुए कमाि ही िग िहे थे। आलसफ़ की आाँखें अपनी आपी के जजश्म पि
ही जम गई थीं। कभी वो उनके उभािों को दे खता तो कभी वो उनकी कमि के खम को दे खता।

नीचे से आलसफ़ का िण्ड अपनी बहन को नंगा दे खकि खड़ा होकि नीचे फशद के साथ जम चुका था औि अपनी
गमी को फशद पि िगड़कि ननकािने की कोलशश कि िहा था। आलसफ़ जो कक आज पहिी बाि ककसी िड़की के
जजश्म को नंगा दे ख िहा था, पिे जोश में आ चक
ु ा था।

इसी दौिान अंदि नहाती हुई सबा अचानक घमती है औि मम्मों वािी साइड आलसफ़ के सामने आ जाती है , औि
सबा अब अपने लसि को पीछे किके अपने बाि धोने िगती है । सबा का सामने वािा दहस्सा दे खना आलसफ़ से
बदादश्त नहीं होता औि वो िेटा हुआ ही अपना हाथ नीचे िे जाकि िण्ड को बाहि ननकाि िेता है औि फशद पि
िखकि िगड़ने िगता है । सबा अपने बाि धोती है औि कफि हाथों से अपने मम्मों पि िगा हुआ शैम्प हाथ से
िगड़-िगड़ के उतािने िगती है । दोनों हाथ एक एक मम्
ु मे पि िखकि सबा िगड़ िही थी।

इधि आलसफ़ नीचे िेता ये दे खकि फशद पि ही अपने िण्ड को िगड़ िहा था। अपनी ही बहन के नंगे जजश्म का
आज वो दीवाना हो गया था- “ओह्ह… आपी कमाि हो आप, कुदित का करिश्मा हो। काश आप मेिी हो जाओ
आपी, प्िीज़्ज़… आपी ओह्ह… क्या चत है आपकी। बहनचोद उफफ्फफ़… सािा अब तक सोया हुआ था मैं। अपने
ही घि में इतनी खबसित पिी है , औि मैं… मैं बाहि परियां ढाँ ढ़ िहा हाँ…”

आलसफ़ सबा की गि ु ाबी औि पानी में भीगी चत को घिते हुए दे खकि अपने िण्ड से जमीन को चोद िहा था।
कुछ ही िगड़ों के बाद आलसफ़ का िण्ड ढ़िने िगता है औि वो अपने िण्ड से अपने अंदि का िावा उं गिने
31
िगता है , जो कक उसके पेट औि नीचे जमीन पि िगता है । आलसफ़ की आाँखें अभी भी अपनी बहन के जजश्म
पि थीं औि वो चाहता था कक अभी उठे औि अपनी बहन को पकड़कि चोद दे । उसका िण्ड झड़ने के बाद अभी
भी नहीं सोया था। अभी भी उसमें तनाओ था।

आलसफ़ इन्हीं सोचों में गम


ु था कक अचानक सबा नीचे को झक
ु कि अपनी टांग पि साबन
ु िगाने िगती है तो
उसे कुछ महसस होता है । जैसे कक उसको कोई दे ख िहा है । क्योंकी आलसफ़ की नजिें भी अंदि ही थीं, इससे
पहिे कक सबा उसे दे खती वो िेटा हुआ ही साइड की तिफ सिकता है औि घमकि दिवाजे से पीछे हट जाता है ।
सबा को शक होता है कक कोई यहााँ था वो नीचे से दे खने की कोलशश किती है, िेककन कोई भी नहीं ददखता।
अपना वहम समझकि सबा कफि से नहाने िगती है ।

आलसफ़ की धड़कन एक दफा कफि से तेज हो चुकी थी, वो बड़े ही आिाम से उठता है औि दिवाजा खोिकि
बाहि ननकि जाता है । सबा अपने जजश्म को साफ किके औि अच्छी तिह नहाने के बाद तौलिया से साफ किती
है , औि तौलिया को िपेटकि बाथरूम का दिवाजा खोिती है । अभी उसका दसिा कदम ही था कमिे के फशद पि
कक तभी उसे अपने सीधे पांव के अंगठे के नीचे कुछ गिम-गिम सा, गचपका-गचपका सा महसस होता है । सबा ने
अपने जजश्म पि तौलिया बााँधा हुआ था। वो ऐसे खड़े खड़े ही नीचे दे खती है तो कोई लिजक्वड सा नजि आता है ,
जो कक उसके अंगठे औि उं गिी को िग चुका था। सबा को समझ में नहीं आती कक ये क्या है? वो वहीं बैठ
जाती है औि बहुत गौि से दे खने िगती है ।

सबा- “मैंने तो कुछ नहीं गगिाया यहााँ िेककन ये कहााँ से आया? औि पता नहीं क्या है गाढ़ा-गाढ़ा सा…” ये कहती
हुए वो अपने हाथ की एक उं गिी को हल्का सा जमीन पि पड़ी उस गाढ़ी चीज में िगती है औि कफि ऊपि िे
जाते हुए साँघती है । एक अजीब सी गंध थी जजससे सबा अजीब सा ददि खिाब होने वािा मह
ाँु बना िेती है । सबा
अजीब सा माँह
ु बनाकि उठकि बाथरूम जाने िगती है तो उसे अपने कमिे का दिवाजा खुिा हुआ नजि आता है
जजसे दे खकि वो कफि से वहीं रुक जाती है ।

सबा के ददमाग में कफि से उसी साए का खयाि आता है औि उसके ददमाग में एक कफल्म चिती है - “आलसफ़
ही घि पि है बस, कहीं वो यहााँ आया औि कफि मझ
ु े दे खा औि मझ
ु े दे खकि कहीं उसने अपना… नहीं नहीं मेिा
वहम है । आलसफ़ नहीं आ सकता ऐसे चोिी-चोिी, औि कफि मझ
ु े दे खने की दहम्मत नहीं कि सकता। ऐसा नहीं
हो सकता। अगि ऐसा नहीं है तो कफि ये क्या है?”

अपनी उं गिी पि िगे आलसफ़ के पानी को दे खती हुई अपने आपसे पछती है औि अब उसका शक यकीन में
बदिता जा िहा था। सबा ये कन्फमद किने के लिये जल्दी से कपड़े पहनती है औि नीचे आलसफ़ के कमिे में
चिी जाती है- “अगि आलसफ़ नहा िहा हुआ तो कफि वही आया है मेिे कमिे में , क्योंकी आलसफ़ आज तक ददन
के टाइम नहीं नहाया है कभी भी…”

सोचते-सोचते सबा आलसफ़ के कमिे का दिवाजा खोिती है औि अंदि दाखखि होती है , तो आलसफ़ कहीं नजि
नहीं आता। तभी उसके कानों में शावि की आवाज आती है औि सबा के ददि की धड़कन तेज होने िगती है ।
क्योंकी अंदि आलसफ़ नहा िहा था जो कक इस बात की ननशानी थी कक वही वहााँ ये सब किके आया है - “अपनी
सगी बहन के नंगे जजश्म को दे खकि, औि वो जो मेिे हाथ में था वो आलसफ़ का ननकािा हुआ था मतिब… …”

32
औि ये सोचते ही वो वापपस अपने कमिे में भागती है। कमिे में पहुाँचकि वो दिवाजा िाक किती है औि अपने
छोटे भाई के ननकािे हुये पानी के पास बैठ जाती है । सबा को तो सब सोच-सोचकि कफि से चत का कीड़ा तंग
किने िगा था। वो कफि से अपनी उं गिी में अपने भाई का पानी उठाती है औि उसे अपनी नाक के किीब
िेजाकि साँघती है । उसे कफि से अजीब सी गंध आती है तो वो अपनी उं गिी को पीछे कि िेती है । सबा अब
अपने भाई के बािे में सोच-सोचकि पागि हो िही थी।

वो उठकि अपनी शिवाि उतािती है , औि अपनी उं गिी जो कक आलसफ़ के पानी से भीगी थी उसे कफि से नीचे
आलसफ़ के पानी में फेिने िगती है औि अच्छी तिह फेिने के बाद सबा उं गिी को अपनी चत के ऊपि फेिने
िगती है , जजससे आलसफ़ के िण्ड का पानी सबा अपनी चत पि मिने िगती है । जब उं गिी साफ होती है तो
कफि से नीचे से उं गिी को पानी से भिती है औि इस दफा उं गिी को चत के अंदि डाि दे ती है ।

सबा- “सस्स्स्सी… आअह्ह… आलसफ्फफ़… ये क्या कि गये तम


ु यहााँ? मझ
ु ,े अपनी सगी बहन को दे खकि… हााँ कुछ
तो शमद की होती… आलसफ़ उफफ्फफ़…” औि कफि से उं गिी ननकािकि सबा आलसफ़ के पानी को िेकि चत में
अंदि किती है । लससकारियां िेती हुई सबा बाि-बाि उं गिी भीगो-भीगो के अंदि बाहि किती है औि लससकती हुई
अपनी चत से पानी बहाने िगती है - “ओह्ह… आलसफ्फफ़ मेिा भी पानी आऽऽ आऽऽ आआआ… गया है उफफ्फफ़…”

औि वहीं नीचे फशद पि िेटकि ढे ि हो जाती है हााँफती हुई। कुछ दे ि िेटने के बाद सबा कफि से उठती है औि
नहाने घस
ु जाती है । सबा एक बाि कफि से नहाकि साफ कपड़े पहनती है औि नमाज पड़ती है । कफि से अपने
लिए बेहतिी की दआु किती है । सबा जब भी ठं डी होकि अपने खुदा के सामने आती है तो उसे बहुत पछतावा
होता है िेककन उसके जजश्म की गमी कफि से उसे ऐसा किने पि मजबि कि दे ती है । नमाज पढ़कि सबा ककचेन
में काम किने िगती है ।

सबके साथ बैठकि खाना खाती है औि कफि कुछ दे ि अपने कमिे में िेटे-िेटे अपनी जजंदगी को सोचते हुए सो
जाती है ।

शाम के किीब उठती है, अपनी नमाज अदा किती है औि बाहि टीवी दे खने िगती है । सबा अभी टीवी दे ख ही
िही थी कक अचानक सबा की चाची ऊपि से आती हैं औि गडु ड़या को सबा की झोिी में डािकि ककचेन में चिी
जाती है । सबा भी गडु ड़या को पकड़कि खखिाने िगती है । कोई आधा घंटा ही गज
ु िता है कक तभी बाहि में
दिवाजे की बेि बजती है तो बाहि से ही गाडद दिवाजा खोिता है ।

कुछ दे ि में सबा के चाचा अंदि आते हैं। सबा उनको अंदि आता दे खती है औि चाचा को एक मश्ु कुिाहट पास
किती है । चाचा सिाम िेते हैं औि चिते हुये सबा की तिफ आते हैं औि हाथ आगे बढ़ाकि गडु ड़या को पकड़ने
िगते हैं। चाचा के गडु ड़या को पकड़ाते हुये सबा को एक झटका िगता है, क्योंकी उसकी झोिी से गडु ड़या को
उठाते हुए सबा के चाचा ने पहिे अपना उल्टा हाथ सबा के बांयें मम्
ु मे पि िखा औि कफि घम
ु ाकि गडु ड़या को
पकड़कि ऊपि उठा लिया।

सबा के मम्
ु मे पि हाथ िगते ही सबा को एक झटका िगता है तो वो अपनी नजिें उठाकि चाचा की तिफ
दे खती है जजनके चेहिे पि ऐसा कोई एक्सप्रेशन नहीं था कक कोई गड़बड़ हो। ये बात सबा के लिए है िान किने
वािी थी कक चाचा ने ऐसा क्यों ककया? कफि ये कक वो तो बबल्कुि नामदि हैं, जैसे कुछ हुआ ही नहीं है ।

33
सबा- “क्या मझ
ु े ही कुछ हो गया है या मेिी ही सोच इतनी गंदी हो गई है? नहीं नहीं। िेककन चाचा ने मेिे दध
को पकड़ा था। िेककन ये भी तो हो सकता है कक वैसे ही हाथ िग गया हो? सबा तेिा तो ददमाग ही खिाब हो
गया है , औि तम
ु पागि हो। हि मदद को गंदी नजि से दे खने िगी हो। चाचा का हाथ वैसे ही िग गया होगा,
कुछ तो अकि से काम िो, होश किो सबा तम्
ु हें क्या हो गया है ? अपने जजश्म की आग में तम
ु ककस दिदि में
फाँसती जा िही हो? नहीं नहीं। िेककन मैं एक औित भी तो हाँ ना, कफि इसमें दिदि कैसी? ओह्ह… मेिे खद
ु ा
मझ
ु े कहााँ िाकि खड़ा कि ददया है । मैं ना आगे जा सकती हाँ ना पीछे …”

चाचा- सबा क्या हुआ? कहााँ गम


ु हो गई हो? औि ये चाची कहााँ है तम्
ु हािी?

सबा- जी चाचा वो ककचेन में हैं।

अपने खयािों से बाहि आते हुए सबा जवाब दे ती है । सबा के चाचा ककचेन की तिफ चिे जाते हैं। सबा अभी भी
वहीं बैठे हुए अपने साथ हुए हादसे का सोच िही थी औि एक अजीब सी कशमकश में ही फाँसी हुई थी। अपने
आप पि मिानत किती हुई सबा वहााँ से उठती है । अपने रूम में आकि िेट जाती है औि सोने की कोलशश
किती है , िेककन नींद तो जैसे आज थी ही नहीं सबा की आाँखों में । अपने बेड पि िेटी सबा किवट ही बदिती
िहती है , बबल्कुि वैसे ही जैसे उसकी जजंदगी बदि िही है । तंग आकि सबा कफि से बाहि जाकि टीवी दे खने
िगती है । िात का वक्त गज
ु ािना सबा के लिये बहुत मजु श्कि हो िहा था। उसे ये समझ नहीं आ िही थी कक
उसे क्या हो िहा है?

असि चीज सबा को उसके अंदि की गमी जो हि ककसी बात से औि बढ़ती जा िही थी वो तंग कि िही थी।
जजससे अंजान सबा अपनी बेचैनी को समझ नहीं पा िही थी। याँ टीवी के सामने बैठे ही सबा वहीं सोफे पि िेट
जाती है औि वहीं सो जाती है । टीवी भी चि िहा था। सब
ु ह नमाज के टाइम पि जब उसकी आाँख खुिती है तो
अपने आपको टीवी के सामने सोया पाकि है िान हो जाती है ।

कफि सबा नमाज पढ़ती है औि वाक किने में िग जाती है । वाक किने के बाद वो बहुत हल्का महसस कि िही
थी औि सब कुछ उसके ददमाग से ननकि चुका था। जब ददन की िोशनी आती है तो सबा अंदि आ जाती है
औि नाश्ते में िग जाती है। नाश्ता सबको दे कि खद
ु भी किती है । आज तो टाइम से ही जाऊाँगी मदसे, बच्चों के
होते हुये ही औि टाइम से बच्चों के साथ ही वापपस आ जाऊाँगी ताकी कोई गड़बड़ ना हो। काश कक मेिा कोसद
खतम हो जाए जल्दी से। मैं अब्ब को क्या जवाब दं कक मैं क्यों नहीं जाती मदसे औि अगि जाऊाँ तो मौिवी
सादहब की मश
ु ीबत। सबा अपने खयाि को गित साइड पि नहीं जाने दे िही थी।

वो नाश्ता खतम किके अपने रूम में जाती है औि ठीक से तैयाि होकि अपने आपको ढक के मदसे की तिफ
ननकि पड़ती है । िास्ते में भी वो अपना ध्यान बाहि दे खने में ही िगाए िखती है । मदसे पहुाँचकि सबा टाइम
दे खती है । शकि है आज टाइम से आ गई हाँ। बच्चे अभी नहीं आये होंगे। ये सोचते हुये वो मदसे में एंटि होती
है । िेककन जैसे ही रूम के आगे पहुाँचती है तो उसे है ित होती है कक वहााँ ककसी भी बच्चे का जता नहीं है ।
जजससे साफ था कक बच्चे नहीं आए, या आकि चिे गये।

सबा है ित से जता उतािकि अंदि जाती है तो मौिवी साहब भी नहीं थे। िगता है अपने रूम में होंगे। ये
सोचकि सबा रूम की तिफ जाने िगती है । चिते हुये सबा रूम के पास पहुाँचती है तो उसे अंदि से आवाज
आती है- “कहााँ मि गई है ? आई क्यों नहीं अभी तक? वो आने वािी ही होगी…”
34
कफि खामोशी हो जाती है । ये सन
ु कि सबा के पांव वहीं जम जाते हैं। कुछ दे ि की खामोशी के बाद कफि से
मौिवी की आवाज आती है - “मैंने बच्चों को कब की छटी दे दी है । वो आने वािी है । अगि आज हमने लमस
कि ददया तो वो कभी हाथ नहीं आएगी औि ना ही हम कभी उसे यहााँ से िेकि जा सकेंगे। तम
ु मि कहााँ गई,
जो अभी तक नहीं पहुाँची…”

कफि खामोशी हो जाती है । सबा की टााँगें कााँपने िगती हैं। ये तो मौिवी साहब की आवाज थी औि ककसकी बात
कि िहे हैं? मेिी। नहीं नहीं मझ
ु े समझने में गित िग िहा है । भिा मझ
ु े कहााँ िेकि जाना होगा उन्होंने? अभी
सबा यही सोच िही थी कफि से आवाज आती है ।

“दे ख अगि आज सबा मेिे हाथ से ननकि गई ना तो मैं तझ


ु े नहीं छोड़ग
ं ा। मैंने बहुत मजु श्कि से उसे िाइन पि
िेकि आया हाँ। औि अब तेिी वजह से खेि खिाब होता हुआ नजि आ िहा है । जजतनी जल्दी हो सकता है यहााँ
पहुाँचो तब तक मैं सबा को बातों में िगाता हाँ…”

ये सन
ु कि सबा की लसटटी-पपटटी गम
ु हो जाती है, आाँखों के आगे अंधेिा छाने िगता है । एकदम से चक्कि आने
िगता हैं। ये सोचकि कक मौिवी साहब उसे कहााँ िे जा िहे हैं। नहीं नहीं, मझ
ु े यहााँ से जाना होगा। मझ
ु े भागना
होगा यहााँ से। ये सोचकि सबा वहााँ से उल्टे पांव ही भागती है औि अपना जता पहनकि बाहि आ जाती है।
बाहि सबा अब रिक्शे की तिाश में थी।

कोई भी रिक्शा खािी नहीं गज


ु ि िहा था। सबा की पिे शानी बढ़ती जा िही थी। अगि मौिवी साहब आ गए तो
वो मझ
ु े पकड़ िेंग,े औि पता नहीं कहााँ िे जाएंगे। औि कफि मेिे साथ पता नहीं क्या किें गे। नहीं नहीं मझ
ु े
भागना होगा यहााँ से… औि सबा पैदि ही चिने िगती है । िेककन चंद कदम चिने के बाद एक रिक्शे को हाथ
दे ती है औि वो रुक जाता है । सबा बबना कोई बात ककए उसमें बैठती है । भाई **** पि मझ
ु े छोड़ दो जल्दी
चिना।

“जी बाजी…” रिक्शेवािा बोिता है औि रिक्शा भागने िगता है ।

कुछ ही दे ि में सबा का रिक्शा घि के सामने था। सबा उसे पैसे दे ती है । घि में एंटि हो जाती है । अंदि आते ही
उसकी अम्मी उससे सवाि किती है - “सबा इतनी जल्दी आ गई क्या बात है सब ठीक तो है ना? बच्ची तम्
ु हािी
तबीयत तो ठीक है ना?”

“जी अम्मी ठीक है…” घबिाई हुई आवाज में चिते-चिते सबा जवाब दे ती है औि अपने रूम में ऊपि चिी जाती
है ।

सबा की सांस तो जैसे संभिने का नाम ही नहीं िे िही थी, औि पिा जजश्म पशीने से भीगा हुआ था। सबा
अपना अबया औि स्काफद उतािती है औि नहाने घस ु जाती है । अपने जजश्म को साफ किके वो शकु िाने के दो
िफ्फज अदा किती है ।

सबा- “आज तो मिने िगी थी सबा त। पता नहीं क्या किना था उस मौिवी ने तेिे साथ? अगि त उसके हाथ
आ जाती तो। बाि-बाि बच गई। कमीना कैसे मझ
ु े उड़ाने की बात कि िहा था। मैं क्या समझ बैठी थी औि ये
35
क्या ननकिा? मेिी भी तो गिती है ना। मझ ु े औित का चस्का िेने का जनन चढ़ा हुआ था ना…” अपने आपको
कोसती हुई सबा खद ु को ही मन में बिु ा भिा कह िही थी।

अभी इन्हीं खयािों में गम


ु थी सबा कक नीचे से उसकी अम्मी की आवाज आती है- “सबा…”

तो सबा उठकि नीचे चिी जाती है । नीचे पहुाँचते ही उसी झटका िगता है । सामने वही िड़का बैठा था जो उस
ददन मौिवी के साथ गाण्ड मिवा िहा था। सबा उसे दे खती ही गस्
ु से से पछती है- “तम
ु यहााँ क्या कि िहे हो?”

िड़का- “वो मौिवी साहब ने भेजा है आपको बि


ु ा िहे हैं आज कुछ बाहि से आिम आए हैं, उनसे कुछ सीखने
को लमिेगा। आपको आने को बोिा है…”

ये सब सन
ु ते ही सबा की अम्मी जो कक पास ही खड़ी थी, सबा को है ित से दे खतीं हैं। सबा की आाँखें उसकी
अम्मी से लमिती हैं, जजसमें िाखों सवाि थे कक अगि वो मदसे नहीं गई थी तो कहााँ गई थी? औि अगि मदसे
गई थी तो ये क्यों आया है िड़का पीछे ?

सबा बबना कुछ बोिे ही उस िड़के को बाज से पकड़ती है औि बाहि िे जाते हुये बोिती है - “मौिवी साहब से
कहना कक सबा जानती है कौन से आिम आए हैं औि वो क्या लसखायेंगे। औि तम ु यहााँ से दफा हो जाओ,
विना तम्
ु हािे साथ भी अच्छा नहीं होगा…” ये कहते हुये सबा उसे बाहि ननकाि दे ती है ।

िड़का चिता हुआ मे ेनगेट से भी बाहि चिा जाता है।

अम्मी- “सबा ये सब क्या है ? औि चि क्या िहा है ? ये तम


ु कुछ बताओगी मझ
ु ?
े ”

सबा के सामने सवाि आते ही उसका लसि नीचे को झुक जाता है । वो नहीं चाहती थी कक उसकी अम्मी को सब
पता चिे औि क्योंकी कफि अंदि उसका कसि भी ननकिेगा औि सबा के पापा मौिवी को वैसे ही मिवा दें गे।
इसलिये सबा लसि झुकाये सब सन
ु ती िहती है । कुछ नहीं बोिती। जब उसकी अम्मी चुप हो जाती हैं तो वो
चुपचाप चिती हुई अपने रूम में चिी जाती है, औि अंदि डोि को िाक किके जोि-जोि से िोने िगती है ।
दिवाजे को टे क िगाए वहााँ ही फशद पि सबा बैठकि िोती िहती है , यहााँ तक कक दहचकी िग जाती है ।

याँ ही कोई आधा घंटे सबा वहााँ बैठे िोती हुई अपने ककए पि अपने आपको कोसती िहती है । कफि उठकि बेड पि
िेटती है औि सो जाती है । पिे शान हाि सबा आज एक बड़े हादसे से बच गई थी। साथ ही आज उसी ये भी
एहसास हो गया था कक ये बाहि के िोग ककसी के सगे नहीं होते, जहााँ मोका लमिा वहााँ अपना काम ननकिकि
ननकािने वािी बनती है ।

सबा कुछ दे ि सोकि उठती है तो तबीयत कुछ फ्रेश सी िगती है । सबा फ्रेश होती है औि नीचे चिी जाती है ,
जहााँ उसकी अम्मी बैठी टीवी दे ख िही थीं। सबा को दे खकि उन्हें कुछ गस्
ु सा सा आता है । िेककन उन्हें अपना
गस्
ु सा पीना पड़ता है । क्योंकी वो सबा की इस हिकत की लशकायत नहीं कि सकती थी, क्योंकी घि का हि मदद
सबा पि कभी उं गिी नहीं उठता, बल्की सबा की अम्मी को ही कहा जाता कक तम्
ु हें गितफहमी हुई है ।

36
सबा ककचेन में चिी जाती है औि उसकी अम्मी दोबािा से टीवी दे खने िगती है । सबा कुछ फ्रटस िेकि बाहि
अपनी अम्मी के पास बैठ जाती है ।

सबा- “अम्मी आपसे एक बात किनी थी। आप जैसा सोच िही हैं वैसा कुछ नहीं है । मैं मदसे ही गई थी। िेककन
मौिवी साहब मझ
ु े ठीक से पढ़ा नहीं िहे तो मैंने वहााँ आने से मना किके मदसाद छोड़ने का कह आई इसलिये
उन्होंने वापपस भेजा था िड़के को मेिे पीछे । आपको जो िगा वैसा कुछ नहीं है । आपकी बेटी गित कैसे हो
सकती है ? आप भी मझ
ु े जानती हो, बचपन से पाि िही हो। कफि आपको कैसे िगा कक मैं कुछ गित करूंगी,
या मदसे का कहकि कहीं औि जाऊाँगी…”

सबा अपनी बातों से अपनी अम्मी को कायि कि िेती है । क्योंकी सबा का िहन सहन औि उसकी तबीयत
उसकी मााँ ने खुद की थी। इसलिये कुछ ही बातों से वो भी मान जाती है । कफि मााँ बेटी फ्रट खातीं हैं औि कुछ
दे ि टीवी दे खने के बाद सबा की अम्मी खाना बनाने में िग जाती हैं।

सबा अभी भी बैठे टीवी ही दे ख िही थी। कुछ दे ि बाद सबा का भाई बाहि से आता है औि सबा को बैठा दे खकि
सिाम किता औि कफि अपने रूम में चिा जाता है । सबा भी उठती है औि अपने रूम में जाने िगती है । अभी
पहिी ही सीढ़ी पि चढ़ी थी कक अचानक सबा को उस ददन की बात याद आती है कक उसका भाई उसे नंगी
नहाते हुये दे ख चक
ु ा है ।

ये खयाि आते ही सबा के जजश्म में एक गमी सी आती है , औि वो वहााँ से ऊपि का िास्ता छोड़कि आलसफ़ के
रूम की तिफ चि पड़ती है। रूम के आगे पहुाँचकि वो नाक किती है औि दिवाजा खोिकि अंदि चिी जाती है ।
रूम में आलसफ़ अपनी अिमािी में से कुछ ढाँ ढ़ िहा था। सबा को अंदि आता दे खकि वो सबा की तिफ मड़
ु कि
है ित से दे खने िगता है - “आपी आपको कुछ काम था…”

सबा- “नहीं। वो बस दे खने आई थी कक तम


ु क्या कि िहे हो? भाई तम्
ु हािी पास वो कंडीशनि है । मैं नहाने िगी
थी, तो सोचा कक आज मैं भी कि ि।ं तम
ु किते हो इसलिये िगा कक तम्
ु हािे पास होगा…”

आलसफ़ अपनी वही गंदी नजि से सबा को एक दफा दे खता है िेककन कपड़े ठीक पहने होने से आलसफ़ को कुछ
नजि नहीं आता। कफि दोनों की आाँखें लमिती हैं, तो आलसफ़ अपनी नजिों को फेिता हुआ बोिता है- “जी जी
आपी है…” औि अिमािी में से एक बोति ननकािकि सबा के आगे किता है ।

सबा बोति पकड़कि रूम से बाहि जाने िगती है ।

तभी आलसफ़ की आवाज आती है- “आपी वो… आप अभी नहाने िगी हो या कुछ दे ि ठहिकि?”

आलसफ़ के सवाि पि सबा एकदम से आाँखें खोिकि उसे दे खती है - “अभी ही नहाने िगी हाँ। क्यों क्या हुआ?”

आलसफ़- कुछ नहीं बस ऐसे ही पछा।

सबा- “अच्छा…” एक अजीब सी मश्ु कुिाहट से जवाब दे ती हुई बाहि से ननकि जाती है ।

37
असि बात थी कक आग दोनों तिफ ही िगी हुई थी। पहिे सबा का वहााँ जाकि कंडीशनि मााँगना ही एक पैगाम
था अपने भाई को ये बताना कक मझ
ु े आकि दे ख िे, मैं नहाने िगी हाँ। औि कफि उसके भाई का पछना उसका
जवाब था कक अभी आऊाँ या ठहिकि? दोनों ही एक दसिे को जानने की कोलशश कि िहे थे, कक अंदि क्या है
एक दसिे ?

सबा रूम से ननकि जाती है । अपने रूम में जाते हुये सबा को अचानक से आज सब
ु ह का हादसा याद आता है
औि औित के मजे का भत जैसे एकदम से उति जाता है । एक खौफ की िहि जजश्म में आती है । सबा सीदढ़यां
चढ़ती हुई ऊपि जा िही थी अपने रूम में, औि सोच िही थी कक मझ ु े ये सब नहीं किना चादहए। िेककन आलसफ़
तो मेिा भाई है , वो मेिे साथ ऐसा कुछ नहीं किे गा। नहीं नहीं सबा। वो है तो िड़का ही ना। एक मदद । औि मदद
तो सब एक जैसे ही होती हैं। िेककन आलसफ़ मेिा भाई भी तो है ना।

िेककन अब तो मैं खद
ु ही उसे एक तिह से ये कह आई हाँ कक आए औि मझ
ु े दे ख िे। औि तो औि वो भी
तैयाि है । क्योंकी उसका पछना इस बात को बयान किता है कक वो भी आएगा। उफफ्फफ़… ये मझ
ु े क्या होता जा
िहा है ? आज सब
ु ह एक चग
ुं ि से बचके आई हाँ औि कसम िी थी कक अब इस काम के नजदीक भी नहीं
जाऊाँगी। िेककन कफि आई, अब भाई के साथ। नहीं नहीं, कुछ नहीं होता। सबा दे ख तेिे जजश्म का हि कोई
दीवाना है । त भी तो इसका मजा चख के दे ख। औि आलसफ़ तेिा भाई है वो तेिे साथ ऐसा कुछ नहीं किे गा।
क्योंकी वो अपने ही घि की इजत खिाब नहीं किे गा।

कशमकश में सबा अपने रूम में पहुाँचती है । हाथ में कंडीशनि था। सबा अपने कपड़े उतािकि बेड पि िखती है
तौलिया िेती है औि अपने मखमिी जजश्म पि हाथ फेिते हुये वाशरूम में घस
ु जाती है । सबा नहाना शरू
ु किती
है । वो रूम का दिवाजा खि
ु ा छोड़ आई थी। क्योंकी वो जानती थी कक आलसफ़ जरूि आएगा उसे दे खने के लिये।

सबा जजश्म पि पानी बहती है औि कफि साबन


ु िगाने िगती है । अपने ऊपि के पिे जजश्म पि साबन
ु िगाने के
बाद सबा अपने हाथ अपने पीछे कमि पि िे जाती है । कमि से नीचे अपनी आस मतिब चतिों पि भी सबा
साबन
ु िगाती है । औि साबन
ु िगाते हुये जब वो अपना हाथ आस की दिाि में िे जाती है साबन ु िगाने के
लिये, तो सबा का हाथ उसके सिु ाख से टच होता है । जजससे अभी भी गमी ही ननकि िही थी। हाथ िगते ही
सबा का शैतान जागता है औि वो वही साबन
ु वािा हाथ ही सिु ाख पि मिने िगती है ।

सबा के सािे जजश्म से गमी ननकि िही थी। इतनी गमी कक सबा के जजश्म पि िगा हुआ साबन ु सखने िगा
था। खासतौि पि चगचयां के ऊपि िगा हुआ साबन ु तो खुश्क हो गया था। सबा शीशे के आगे आ जाती है , औि
अपने आपको दे खते हुये अपनी चत को िगड़ने िगती है । उसका मन हो िहा था कक यहााँ अंदि कुछ जाना
चादहए। कोई तो ऐसी चीज हो जो अंदि जाए औि उस चीज को बाहि ननकाि िाए जो तंग कि िही है ।

सबा कुछ दे ि चत को िगड़ती है । िेककन तसल्िी नहीं होती। तो कफि से शावि चिाकि नीचे खड़ी हो जाती है ।
औि ठं डा पानी जजश्म पि बहाने िगती है । कुछ ही िम्हों में वो अपने जजश्म को साफ किती है औि तौलिया
जजश्म पि िपेटकि वाशरूम का दिवाजा खोिती है । दिवाजा खि
ु ती ही सबा को 440 वोल्ट का झटका िगता
है । क्योंकी आलसफ़ वहीं पहिे वािी जगह नीचे िेटा हुआ था, उसी पोजीशन में ही।

सबा तो भि चक
ु ी थी कक आलसफ़ ने आना है । अपने जजश्म की आग में वो इतनी खो गई थी कक अपने भाई के
आने को भी भि गई। िेककन आलसफ़ को वहााँ नीचे िेटा दे खकि सबा है िान थी। दिवाजा खुिते ही आलसफ़ एक
38
झटके से खड़ा होता है । िेककन खड़ा होते ही उसका िोड के जैसे खड़ा िण्ड सामने आता है , जो कक अभी भी वैसे
ही खड़ा था।

“वो… वोओ… आपी मैं… वओ…” आलसफ़ के माँह


ु से कुछ नहीं ननकि िहा था।

िेककन सबा की आाँखें तो बस आलसफ़ के िण्ड पि ही जमी हुईं थीं। औि आलसफ़ की नजिें थीं सबा की नंगी
नजि आती गठीिी टााँगों पि। दोनों ही एक दसिे को है ित से दे ख िहे थे। आलसफ़ जल्दी से िण्ड को अंदि
किता है , ट्राउजि ठीक किता है । एक तिह से रूम में से भाग जाता है । सबा अभी भी दिवाजे में ही खड़ी थी,
है ित से माँह
ु खुिा हुआ था।

सबा के ददि की धड़कन एक दौड़ती हुई ट्रे न के जैसे चि िही थी। सबा वाशरूम से बाहि आती है औि रूम का
दिवाजा बंद किती है । भाई उफफ्फफ़… ये मैंने क्या दे ख लिया? भाई का वो… मझ
ु े पता था कक भाई आएगा कफि
मैं कैसे भि गई? ये मझ
ु े क्या हो गया है? कहााँ खो जाती हाँ मैं जो मझ
ु े बातें भिने िगी हैं? आलसफ़ मेिे से
छोटा है । िेककन उसका वो… वोओ ककतना बड़ा है? नई नहीं मझ
ु े ऐसा नहीं सोचना चादहए। आलसफ़ मेिा भाई है ।
अिी भाई है तभी तो वो तम्
ु हािा िाज भी िखेगा। िेककन क्या वो कि िेगा सब मेिे साथ? अिे तभी तो वो यहााँ
आया था मझ
ु े दे खने, औि मझ
ु े दे खकि अपना वो ननकािने के लिये? सबा पि उसका शैतान हावी हो चुका था,
वो अपने जजश्म को साफ किती है , कपड़े पहनती है , औि कंडीशनि उठाकि िे जाती है ।

सबा अपने पाक लिबास में आ चक


ु ी थी। बल्की अबया पहने औि लसि पि िे ड स्काफद लिये सबा चिती हुई नीचे
आती है औि अपने भाई के रूम की तिफ जाती है । रूम के अंदि आलसफ़ नहीं था। वो नहा िहा था। सबा बेड
पि कंडीशनि फेंकती है औि वापपस मड़
ु ने िगती है ।

तभी सबा की नजि सामने बेड पि पड़ी आलसफ़ के एक अंधिवेि पि जाती है । सबा बेड की तिफ बढ़ती है औि
बेड पि िेट जाती है, टााँगें नीचे को िटकाकि सबा अंडिवेि के बबल्कुि पास जाती है तो उसे उसमें से वही खुश्ब
आती है जो उस ददन उसके रूम में से आ िही थी, मतिब आलसफ़ के पानी की।

सबा- ये तो अंधिवेि ही खश
ु ब है , जैसी उस ददन उसमें से आ िही थी। मतिब वो भाई ही था। औि अभी उसका
इसपि कुछ ननकिा होगा तभी तो, इसमें से भी आ िही है । सबा अंडिवेि के औि किीब जाती है । आलसफ़ के प्री-
कम की आती हुई खश
ु ब जो कक उसका अपनी ही बहन को दे खते हुये ननकिा था। सबा उसे साँघने िगती है ।

सबा ने लसफद एक ही मदद के पानी को साँघा था औि वो था, उसका अपना भाई आलसफ़ औि आलसफ़ के िण्ड से
ननकिा हुआ पानी। सबा बेड पि उल्टी िेट जाती है, औि माँह
ु को बबल्कुि अंडिवेि के ऊपि िे आती है । अपने
माँह
ु को सबा उस प्री-कम वािी जगह के किीब से जैसे नशे की तिह हि सांस से साँघने िगती है । िंबी-िंबी
सांस िेते हुये। बबल्कुि ऐसे ही जैसे कोई नशा किता है ।

सबा भी अपने भाई के प्री-कम की खश


ु ब का नशा किने िगती है । सबा के जजश्म में कफि से गमी चढ़ने िगती
है । उसे अपने जजश्म पि पशीना महसस होता है । पशीने की बाँदें उसके जजश्म से बह-बहकि नीचे जाने िगती हैं।
जजसको सबा बखबी महसस कि िही थी। उसकी चत जो कक पशीने के साथ-साथ अपना जवानी का िस भी बहा
िही थी एक-एक वहती बद
ं की शकि में । उसकी आाँखें सख
ु द हो गईं थीं, बबल्कुि खन की तिह िाि। ऐसे कक

39
जैसे बहुत भख है इनमें । सबा अपने जजश्म की हाित का सोचकि बाथरूम की तिफ दे खती है । अभी भी शावि
का पानी चि िहा था।

सबा की दहम्मत बढ़ती जा िही थी। उसका ददि कि िहा था कक अभी वाशरूम के अंदि जाए औि भाई से कहे
कक मझ
ु े कुनतया बनाकि चोदो। िेककन उसका िहन सहन औि पाक रूप उसका दीन उसकी दनु नयां के सामने
शजख्सयत उसे ऐसा किने से बाि-बाि िोक िही थी। सबा अपने अंदि की आग पि काब पाती है । िेककन वहााँ से
नहीं जाती औि कफि से अंडिवेि पि अपनी उं गिी उस जगह जहााँ से वो गीिा था प्री-कम से, वहााँ फेिती है । औि
साथ ही नाक को नीचे िे जाते हुये साँघने िगती है ।

सबा का अंदि जि िहा था। उसे पता था कक ये बहुत गंदी चीज है औि ये खश


ु ब भी कोई अच्छी चीज नहीं है ।
िेककन उस खुशब का हि काश उसे िज्जत के एक नए आसमान पि िे जा िहा था। सबा इसी नशे में गम ु थी।
उसके कानों में आवाज पड़ती है ।

“अप्पीऽऽ… अगि आपका हो गया हो तो मझ


ु े अंडिवेि चादहए…” आलसफ़ वाशरूम के दिवाजे से हल्का सा माँह

बाहि को ननकािे वाशरूम के अंदि खड़ा था।

सबा के कानों में आवाज पड़ते ही जैसे उसपि शक्ती तिी हो जाती है । िेककन अब की दफा जो गमी सबा के
अंदि िगी हुई थी वो उस शक्ती से ज्यादा थी। उस गमी ने उसके अंदि इतनी दहम्मत पैदा कि दी थी। कक
सबा आलसफ़ की तिफ दे खती है , उसकी आाँखों में दे खते हुये अंडिवेि को हाथ में पकड़ती है औि बेड से उठकि
चिती हुई वाशरूम की तिफ जाने िगती है । अबया में लिपटी हुई सबा लसि पि स्काफद औि हाथ में भाई का
अंडिवेि जजस पि उसका प्री-कम िगा था, सबा अपने भाई का प्री-कम को साँघते हुये अपने ही भाई के हाथों
पकड़ी भी जा चुकी थी।

उसकी गमी ने उसको शदीद हद तक मजबि कि ददया था अपने आपको एक्सपोज किने के लिये। बाथरूम के
आगे पहुाँचकि सबा अपने भाई के माँह
ु की तिफ दे खते हुये अंडिवेि आगे को बढ़ाती है । सबा की आाँखों में एक
जनन नजि आ िहा था, जजसे आलसफ़ भााँप गया था। िेककन वो अभी खामोश था। क्योंकी सबा जैसी शिीफ
िड़की ऐसा किे गी, उसने कभी सोचा भी नहीं था। इस बात के साथ उसके अंदि एक डि था, वो ये कक कहीं
सबा के साथ ऐसा कुछ ककया तो वो घि में ककसी को बता ना दे । आलसफ़ को लसफद शक था कक सबा बदि िही
है , उसका सबत नहीं था। आज उसने खद
ु अपनी आाँखों से दे खा, सबा का अंडिवेि को साँघना औि कफि खद

िाकि अपने ही भाई के हाथ में पकड़ाना। आलसफ़ का ददमाग कन्फ्फयज हो गया था। वो आगे बढ़े या नहीं, ये
पीछे हट जाए? उसे कुछ समझ में नहीं आ िहा था।

दसिी तिफ सबा की बढ़ती हुई हवस उसे हि कदम पि मजबि कि िही थी कक पी िे िस अपने भाई का ही पी।
अब औि सहा नहीं जाता। अब बस अब भाई को ही ननचोड़ िे। सबा अपने अंदि उठती हुई हवस पि काब पाती
है औि अपना हाथ जजसमें आलसफ़ का अंडिवेि था आगे बढ़ाते हुए आलसफ़ के सामने किती है । सबा ने अपना
दसिा हाथ कमि के पीछे िपेटा हुआ था।

आलसफ़ अभी भी माँह


ु बाथरूम के दिवाजे से बाहि ननकािे सबा की तिफ दे ख िहा था। अब आलसफ़ औि सबा
की आाँखें लमिती हैं, औि आलसफ़ सबा के हाथ से अपना अंडिवेि उठाता है ।

40
सबा अपना लसि नीचे किती है । औि अगिे ही िम्हे अपना पीछे लिपटा हुआ दसिा हाथ एक झटकी से आगे
िाकि आलसफ़ के उस हाथ पि मट ु ठी बंद किके िखती है , जजस पि आलसफ़ का अंडिवेि था।

आलसफ़ नासमझी हुई नजिों से पहिे सबा की बंद मट ु ठी दे खता है औि कफि नजिें उठाकि सवालिया नजिों से
सबा की आाँखों में दे खता है। सबा कुछ कहे बगैि अपनी नजिें झुकती है औि धीिे से मटु ठी खोिकि आलसफ़ को
एक औि िे शमी कपड़ा पकड़ाती है , औि तेजी के साथ वापपस मड़
ु कि आलसफ़ के कमिे से बाहि भागती है । सबा
को भागते हुए अपने भािी जजश्म के दहिने का एहसास होता है औि पीछे से आलसफ़ अपनी आपी के बिु ी तिह
से दहिते, उछिते चति आपस में टकिाते हुए घि िहा होता है । कमिे से ननकिते हुए सबा के ददि की धड़कन
ककसी घोड़ी के पांव की तेजी से भी ज्यादा तेज चि िही थी। दौड़ती हुई सबा सीदढ़यां चढ़कि ऊपि अपने कमिे
में चिी जाती है ।

नीचे कमिे में बाथरूम के दिवाजे में खड़ा आलसफ़, जो कक है ित से अपने कमिे के खुिे दिवाजे की तिफ दे ख
िहा था, उसने अपने हाथ में िखे सफेद िे शमी कपड़े को उं गलियों से महसस ककया औि गौि से दे खा तो उसकी
आाँखें फटी की फटी िह गईं। वो सफेद िे शमी कपड़ा नहीं था, बल्की सबा का एक सफेद अंडिवेि था। सबा
आलसफ़ के कमिे में आते हुए अपना ये अंडिवेि साथ िे आई थी।

आलसफ़ सोचता है - “आपी ये मझ


ु े क्याँ दे कि गई हैं?”

आलसफ़ बाथरूम का दिवाजा बंद किता है औि नंगा ही बाहि आ जाता है औि बहुत एहनतयात से अपने कमिे
का दिवाजा भी िाक किता है । दिवाजा बंद किने के बाद आलसफ़ अपने कमिे के बीच में आकि खड़ा होता है ।
अब आलसफ़ सबा के अंडिवेि को अपने सामने दोनों हाथों उसके दोनों कोनों से पकड़ता है तो खुद-बा-खुद
अंडिवेि का बाकी का दहस्सा नीचे की तिफ िटक जाता है । अंडिवेि के खुिते ही आलसफ़ की आाँखें अपनी आपी
के अंडिवेि के साइज को दे खकि मजीद है ित से खि
ु जाती हैं।

आलसफ़- “उफफ्फफ़… आपीऽऽ आपकी गाण्ड ककतनी बड़ी है … इतने बड़े-बड़े चति हैं आपके। इस इतने बड़े औितों
वािे अंडिवेि को दे खकि मझ
ु े अंदाजा हो िहा है । काश आप मेिी आपी ना होती तो… ओह्ह… आपी बहुत
जबिदस्त माि हैं आप…”

आलसफ़ दोनों हाथों से अपनी आपी सबा का सफेद अंडिवेि खोिकि िटकाए हुए ऐसे दे ख िहा था कक जैसे बस
खा ही जाएगा। नीचे आलसफ़ का िल्ु िा पिा सख़्त होकि खड़ा हो चुका था। िल्
ु िा इतना टाइट हो चक
ु ा था कक
कुदिती तौि पि आलसफ़ के नंगे पेट से गचपक गया था सीधी ददशा में । आलसफ़ शिाित से सबा के अंडिवेि को
अपने िल्
ु िे पि िपेटता है औि िल्
ु िे को पेट से हटाकि नीचे की तिफ किता है धीिे -धीिे ।

आलसफ़- “उफफ्फफ़… मेिी पाक दामन आपी का सफेद िहशयमई अंडिवेि उनके सगे भाई के नंगे सख़्त िल्
ु िे को
कैसे नीचे कि िहा है …”

आलसफ़ इन्हीं सोचों में गम


ु सबा के अंडिवेि से बाि-बाि अपने िल्
ु िे को ऊपि-नीचे कि िहा होता है कक अचानक
िल्
ु िा “थक्क” की आवाज से अंडिवेि के चुंगि से ननकिकि एक जोिदाि झटके से आलसफ़ के नंगे पेट पि
िगता है । आलसफ़ ये दे खकि थोड़ा मश्ु कुिाता है औि सबा के अंडिवेि को अपने बेड के बीच में फैिाकि िखता है
औि नंगा ही अपने िल्
ु िे को अंडिवेि पि सेट किके िेट जाता है ।
41
अब आलसफ़ को अपने सख़्त गिम िल्
ु िे के नीचे अपनी आपी का निम िे शमी अंडिवेि महसस हो िहा होता है ।
आलसफ़ अपना मोबाइि उठाता है औि उसमें सबा की एक तस्वीि िगाता है जजसमें सबा एक परिवाि की दावत
में खड़ी होती है औि कमेिे की तिफ दे ख िही होती है । आलसफ़ सबा की तस्वीि को दे खते हुए धीिे -धीिे अपने
नंगे जजश्म को बबस्ति पि िगड़ना शरू
ु किता है, जजससे आलसफ़ का िल् ु िा सबा के अंडिवेि पि िगड़ना शरू ु कि
दे ता है ।

आलसफ़- “आपको ककतनी कफकि है मेिी आपी। आपने मझ


ु े खुद ही अपना अंडिवेि दे ददया। आप ककतनी अच्छी
हो मेिी प्यािी आपी। िेककन आप पहिे तो ऐसी नहीं थीं। आप तो मेिी बहुत पाक औि पिहे जगाि सी आपी थीं।
इन सब चीजों से बहुत दि एक मजहबी िड़की थीं आप तो। कफि ये सब कैसे हुआ आपी?”

आलसफ़ अपने िल् ु िे को मसिते हुए सामने मोबाइि के स्िीन पि सबा की तस्वीि में उसके स्काफद में लिपटे
हुए चेहिे को घि िहा होता है । तस्वीि को घिते हुए आलसफ़ को अचानक खयािों में महसस होता है कक मोबाइि
की स्िीन पि सबा लसफद स्काफद में उसकी तिफ कमि ककए खड़ी है , औि जजस अंडिवेि के कोने आलसफ़ ने
अपने दोनों हाथों में पकड़े हुए थे, अब वो अंडिवेि सबा की जजश्म पि है । अब आलसफ़ के सामने मोबाइि स्िीन
पि सबा के लसि पि एक सफेद स्काफद था, औि नीचे लसफद एक सफेद अंडिवेि। तस्साउि में ये दे खते ही आलसफ़
ने बहुत तेजी से अपने नंगे जजश्म को बबस्ति पि िगड़ना शरू
ु कि ददया। आलसफ़ को सबा के चति उस सफेद
अंडिवेि में से उबिते हुए ददख िहे थे।

आलसफ़- “ओह्ह… आपी आपका भाई आपका दीवाना हो गया है । आपका छोटा भाई, आपके अंडिवेि पि आज
अपनी गमी को ननकािेगा…” तकिीबन गगड़गगड़ाते हुए िहजे में खुद को तेजी से सबा के अंडिवेि पि िगड़ िहा
था। िल्
ु िे में अब तपपश इतनी बढ़ चुकी थी कक कुछ ही पिों में थोड़ा औि िगड़ने के बाद गिम िल्ु िे से एक
धाि ननकिती है औि आलसफ़ की आाँखों के सामने अंधेिा सा छा जाता है ।

आलसफ़- “आह्ह… आअह्ह… हााँन्न हााँन्न मेिी आपी… मेिी प्यािी आपी… आप्पीई…”

आलसफ़ के माँह
ु से ये आवाजें ननकिने िगती हैं औि उसकी सााँस तेज-तेज चिने िगती है । आलसफ़ अपना सािे
का सािा पानी सबा के अंडिवेि पि ननकाि दे ता है औि अंडिवेि के किीब ही बेड पि सीधा होकि िेट जाता है ।
कुछ दे ि बाद आलसफ़ उठता है औि कफि से नहाने के लिए चिा जाता है ।

नहाकि ननकिने के बाद वो सबा का अंडिवेि उठता है । अंडिवेि पिी तिह से आलसफ़ की मठ में भीगा हुआ था।
हाथ में अंडिवेि पकड़े वो अपने कमिे से ननकिकि सबा के कमिे की तिफ चिने िगता है । अब उसके अंदि
दहम्मत थी कक वो अपनी आपी का सामना कि सकता है । िेककन कफि भी एक अंजानी खझझक सी थी उसके
अंदि। सीदढ़यां चढ़ता हुआ वो सबा के कमिे के बाहि आ जाता है औि दिवाजा खटखटाता है । अंदि से कुछ
आवाज ना आने पि आलसफ़ कमिे के अंदि दाखखि होता है । अंदि का माहौि उसकी उम्मीद के बिखखिाफ होता
है क्योंकी सबा कमिे में नहीं होती। आलसफ़ इधि-उधि दे खता है, बाथरूम में भी कोई नहीं होता।

आलसफ़ हाथ में पकड़े हुए अंडिवेि को सबा के बेड पि तककये के पास िखता है औि कमिे में इधि-उधि दे खते
हुए वापपस चिा जाता है । अभी आलसफ़ अपने कमिे की तिफ जा ही िहा था कक उसे ककचेन से नग़मा बेगम की
आवाज आती है ।
42
नग़मा बेगम- “अलसफ्फफ़… आऽऽजस्सफ़…”

आलसफ़- “जी अम्मी…”

नग़मा बेगम- बेटा हमें बाजाि जाना है । ड्राइवि की तबीयत ठीक नहीं है तो तम
ु िेकि चिो।

आलसफ़ ककचेन के दिवाजे तक आ चुका था, वहााँ पहुाँचकि उसे सबा भी ककचेन में खड़ी नजि आई। िेककन
आलसफ़ उससे नजिें नहीं लमिाता औि सबा भी अपनी नजिें झक ु ाए बतदन िै क में िख िही होती है ।

आलसफ़- जी अम्मी, ककसने जाना है बाजाि?

नग़मा बेगम- मैंने औि सबा ने जाना है ।

आलसफ़ सबा का नाम सन ु कि एक दफा सबा को ऊपि से नीचे तक ििचाई हुई नजिों से दे खता है । कफि कहता
है - “अम्मी आपी ने क्या िेना है बाजाि से?”

नग़मा बेगम- उसने भी कुछ चीजें िेनी है , अबया िेना है । िेककन बखिुद दाि, ये तम
ु इतने सवाि कब से किने
िगे हो?

आलसफ़- वैसे ही अम्मी। मैं सोच िहा था का अगि लसफद आपी ने ही कुछ िेना है तो मैं उनको अकेिे ही िे
जाता हाँ। आप घि पि आिाम किें ।

आलसफ़ की ये बात सन
ु ते एकदम से लसि उठाकि आलसफ़ को दे खती है । सबा की बड़ी-बड़ी आाँखों में ना औि हााँ
के लमिे जुिे जज़्बात होते हैं। आलसफ़ की नजिें भी सबा की नजिों में खो जाती हैं औि चंद ही पिों में दोनों
बहन भाई की नजिें एक दसिे से बहुत कुछ कह जाती हैं।

सबा की नजिें - “आलसफ़, क्याँ कहा तम


ु ने ऐसे? अगि अम्मी के ददि में कोई शक आ गया तो?”

आलसफ़ की नजिें - “आपी आप कब तक ऐसे चुप िहें गी? कभी तो बबखिोगी ना मेिे आगे। कभी तो वो ददन
आएगा…”

दोनों बहन भाई इन्हीं सोचों में गम


ु थे कक तभी उनकी अम्मी की आवाज आती है- “नहीं मैंने भी कुछ चीजें
दे खनी हैं। मैं भी साथ चिग
ं ी…”

अम्मी की आवाज सन
ु कि दोनों की आाँखों का लमिाप टटता है । आलसफ़ कहता है- “अच्छा ठीक है अम्मी, आप
दोनों तैयाि हो जायें जल्दी कफि…”

आलसफ़ एक नजि काम किती हुई सबा की कमि को दे खता है, उसकी कमीज कफदटंग में थी जजससे सबा की
मोटी गाण्ड के उभाि को दे खकि आलसफ़ अपने िण्ड को मसिता हुआ वापपस मड़
ु ता है औि अपने कमिे में चिा
43
जाता है । सबा औि उसकी अम्मी भी जल्दी से अपना काम खतम किती हैं, औि तैयाि होने के लिए अपने-अपने
कमिे में चिी जाती हैं। सबा अपने कमिे में जाती है औि जल्दी से अिमािी खोिकि कपड़े चेक किने िगती
है । कुछ कपड़े दे खने के बाद वो एक सट सेिक्
े ट किके उसे बाहि ननकािती है ।

कुछ सोचते हुए सबा जल्दी से अपने कपड़े उतािती है औि दसिे सट की शमीज को पकड़कि पहनने िगती है ।
आधी ही शमीज जो कक अभी उसने गिे तक ही पहनी थी, सबा वहीं रुकती है औि कुछ सोचकि शमीज को
दब
ु ािा से उताि दे ती है औि िाइट ब्ि किि की कमीज जो उसने अभी ननकािी थी जजसकी शिवाि भी िाइट
ब्ि किि की थी दोनों को दे खती है । ये शिवाि कमीज काफी बािीक से थे, जजसको शमीज के बगैि पहनना
नामम
ु ककन सा था ककसी भी औित के लिए। िेककन सबा कमीज पहनती है बबना शमीज के ही औि शिवाि भी
बदि िेती है ।

कफि सबा ड्रेलसंग के आगे खड़ी होकि अपने बाि बााँधती है । अपनी बड़ी-बड़ी आाँखों में हल्का सा सिमा डािती है
औि अिमािी में से अपना अबया ननकािती है औि साथ में ब्िैक स्काफद ननकािकि पहन िेती है । अपना
लिबास पिा किके वो अपने कमिे से बाहि ननकिकि नीचे टीवी िाउं ज में आ जाती है । सबा के तैयाि होने के
दौिान एक दफा भी बेड पि पड़े उसके अंडिवेि पि सबा की नजि नहीं गई। सबा नीचे पहुाँचती है अभी अम्मी
तैयाि होकि नहीं आई थीं तो वो वहीं अम्मी औि आलसफ़ का इंतज
े ाि किने िगती है ।

कुछ ही दे ि में अम्मी औि आलसफ़ भी तैयाि होकि आ जाते हैं, औि तीनों िोग गाड़ी में बैठकि बाजाि की तिफ
िवाना हो जाते हैं। कुछ दे ि गाड़ी में हल्का म्यजजक सन ु ते हुए खामोशी के साथ ड्राइव किते हुए तीनों बाजाि
पहुाँच जाते हैं। गाड़ी पाकद किके बाजाि में एंटि हो जाते हैं। ये प्राइमरििी एक औितों का बाजाि था। तिह-तिह
की िड़ककयां औि औितें वहााँ पि आई हुई थीं। दसिे मदों की तिह आलसफ़ भी अपनी आाँखें ठं डी कि िहा था।
िेककन आपी औि अम्मी से बच किके, कहीं उनको उसकी हिकतों का अंदाजा ना हो जाए।

कुछ दे ि आलसफ़ की अम्मी कुछ घि का समान खिीदती हैं, औि साथ में अपने लिए कुछ कपड़े भी िे िेती हैं।
कफि सबा की बािी आती है तो सबा ने अबया िेना था। तीनों ही एक अबया की दक
ु ान में दाखखि हो जाते हैं।
दक
ु ान में हि तिफ मख़्
ु तलिफ डडजाइन्स के अबया िटक िहे होते हैं। सबा भी दे खना शरू
ु कि दे ती है बािी-बािी।
ब्िैक औि डाकद ग्रीन किि के दे खती है िेककन लसंपि ही होते हैं सब। दक
ु ानदाि एक अधेड़ उम्र का आदमी था,
क्िीन-शेव्ड। वो सबा को ददखा िहा था खोि-खोिकि जो भी डडजाइन सबा मांगती जा िही थी।

अबया दे खते हुए सबा की अम्मी नग़मा बेगम कहती हैं- “सबा तम
ु दे खकि पसंद कि िो, मैं जिा बाहि कुछ
औि कपड़े दे खती हाँ। िे िो कुछ तो बाहि ही आ जाना…”

सबा अबया दे खते हुए हााँ में लसि दहिा दे ती है । नग़मा बेगम दक
ु ान से बाहि जाने िगती हैं तो आलसफ़ की
नजि अपनी अम्मी की मोटी दहिती हुई गाण्ड पि पड़ती है ।

आलसफ़- “बबल्कुि आपी की तिह िग िही हैं चिते हुए। आपी एक इंच ही शायद कम हैं इनसे इस डडपाटद मेंट में
तो…” आलसफ़ ये सोचते हुए अम्मी की गाण्ड से नजि हटता है ।

44
पास खड़ी सबा कुछ डडजाइन दे खकि कफि से डडसप्िे पि नजि डािती है । सबा साथ बैठे हुए आलसफ़ को
मसु िसि इग्नोि कि िही थी। कुछ दे ि की तिाश के बाद सबा को एक अबया पसंद आ जाता है जो कक ब्िैक
किि का था िेककन कुछ डडजाइन वािा। सबा अबया उठाकि आलसफ़ के आगे िखती है ।

सबा- आलसफ़, ये कैसा है ? ये िे िाँ ?

आलसफ़- जी आपी ये ठीक है अच्छी क्वालिटी का है ।

सबा दक
ु ानदाि से पैसे फाइनि किवाती है औि पैक किने का कहती है । आलसफ़ ये दे खते हुए अचानक से
बोिता है - “आपी, आप ट्राई कि िो, साइज का मसिा ना बने बाद में । कफि दोबािा आना पड़ेगा…”

सबा- अिे नहीं बाबा, इसमें कौन सी कोई मजु श्कि है, ऊपि ही तो पहनना है ।

िेककन आलसफ़ इजन्सस्ट किने वािे िहजे में कफि से ट्राई किने का कहता है । आलसफ़ के बाि-बाि कहने पि
सबा आखखिकाि, दक
ु ानदाि से पछती है- “भाई, ट्राई रूम कहााँ है आपका?”

सबा के सवाि पि दक
ु ानदाि सामने िगे बड़े से िंबाई में िगे शीशे की तिफ इशािा किता है- “अिे बाजी, यहीं
चेक किती हैं सब बाजी। ऊपि ही से तो दे खना होता है कफदटंग वगैिा…”

सबा जैसी पिहे जगाि िड़की के लिए ये बात अनहोनी थी। वो आलसफ़ की तिफ दे खती है तो आलसफ़ उसको
नजिों से औि लसि दहिाकि इशािा किता है- “यहीं चेक कि िें, कुछ नहीं होता, मैं भी यहीं हाँ…”

आलसफ़ का इशािा दे खकि सबा एक दफा दक


ु ानदाि की तिफ दे खती है जो कक अबया ठीक कि िहा था। कफि
सबा अपना पहना हुआ अबया सामने से खोिती है । जब बटन खोिकि वो अबया उतािने िगती है ।

तभी सबा को अचानक याद आता है- “उफफ्फफ़… नहीं। मैं तो ये नहीं उताि सकती यहााँ इस तिह। मैंने तो कमीज
के नीचे शमीज नहीं पहनी, क्योंकी अबया पहन िग
ं ी ऊपि, ये सोचा हुआ था मैंने तो। औि अब अगि मैंने यहााँ
अबया उतािा तो मेिा सािा जजश्म पीछे से आलसफ़ औि इस दक ु ानदाि को चमकता हुआ नजि आने िगेगा। नहीं
नहीं। मझ
ु से नहीं होगा ये…” अभी सबा इन्हीं सोचों में गम
ु थी कक अचानक से उसके कानों में एक आवाज आती
है ।

आलसफ़- आपी जल्दी किें ना, इतना टाइम क्याँ िगा िही हैं?

आलसफ़ की इस आवाज से सबा औि भी कन्फ्फयज़्ड सी हो जाती है औि मजबि नजिों से सामने शीशे में दे खती
है । सामने शीशे में उसको एक तिफ आलसफ़ औि दसिी तिफ दक
ु ानदाि ददख िहा होता है । सबा कुछ पिों में ही
अबया उतािने का फैसिा कि िेती है ।

सबा- “उताि दे ती हाँ, दे खी जाएगी जो भी होगा अब…” ये सोचते हुए सबा अपने हाथों से अबया उतािती है औि
साथ िगे हुए कंु डे में िटका दे ती है । अबया िटका कि जैसे ही वो शीशे के सामने आती है तो पीछे से सबा की
कमि का नजािा दे खकि आलसफ़ तो दं ग ही िह जाता है । िेककन यहााँ आलसफ़ से ज्यादा बिु ा हाि दक
ु ानदाि का
45
हो जाता है । दक
ु ानदाि दसिे अबया की तह िगा िहा था, उस बेचािे के हाथ वहीं रुक जाते हैं, उसका माँह
ु खुिा
का खि
ु ा िह जाता है । बबल्कुि ऐसे जैसे कोई मीठी औि िज़्ज़त से भिपि चीज दे खने को लमि गई हो उसे।

सबा की िाइट ब्ि िं ग की कमीज जो कक उसके जजश्म के साथ बल् ु कुि गचपकी हुई थी, सबा के अध-नंगे जजश्म
का पिा नजािा दे िही थी। टाइट-कफटे ड कमीज के नीचे उसकी ब्िैक ब्रा की नम
ु ाया होती हुई चौड़ी चौड़ी पटदटयां
एक बहुत ही एिोदटक नजािा पेश कि िही थीं। आलसफ़ औि दक
ु ानदाि को इस नजािे ने बबल्कुि मदहोश सा
ककया हुआ था इस वक़्त।

अब सबा अबया को शाप में ननकािकि पहनने िगती है । अबया सबा के जजश्म पि आते ही दोनों मदों की नजिें
वहााँ से हट जाती हैं औि दोनों नीचे दे खने िगते हैं। आलसफ़ तो ददि ही ददि में एक ठं डी आह्ह… भिते हुए
अपने िण्ड को अपने ट्राउजि के ऊपि से ही मसिता है धीिे -धीिे । सबा अबया ट्राई किती है औि कफि से उताि
दे ती है औि पास िगे कंु डे में कफि से िटका दे ती है । अब कफि से आलसफ़ औि दक
ु ानदाि जो कक इसी इंनतजाि
में थे, वही नजािा दे खने िगते हैं।

सबा अपना पिु ाना अबया पकड़ती है औि जैसे ही शीशे के सामने आती है तो शीशे की रिफ्फिेक्सन में उसको
दक
ु ानदाि नजि आता है । सबा को हल्का सा एक झटका िगता है क्योंकी दक
ु ानदाि उसकी कमि को बहुत
िज़्ज़त भिी नजिों से घि िहा होता है ।

सबा मन में - “िगता है बेचािे को मेिी ब्रा की चौड़ी पटदटयों ने कशमकश में डाि ददया है । अिे पगिे कभी-कभी
काँु वािी िड़की भी चौड़ी पटदटयों वािे ब्रा पहनती हैं। मजबिी होती है हमािी…”

सबा थोड़ी शिाित से सोचते-सोचते एकदम से होश में आती है तो जल्दी से अपना अध-नंगा जजश्म अबया से
ढक िेती है । अब सबा पीछे घमती है तो आलसफ़ उसकी सोच के मत
ु ाबबक उसकी कमि औि गाण्ड को ही दे ख
िहा था। सबा ने नोट ककया कक आलसफ़ का एक हाथ धीिे -धीिे उसकी ट्राउजि पि िण्ड को दबा िहा था।

सबा से नजिें लमिते ही आलसफ़ झटके से घमता है औि दक


ु ानदाि की तिफ मह
ाँु कि िेता है । दक
ु ानदाि की
तिफ माँह
ु किते ही अब आलसफ़ को भी एक झटका िगता है क्योंकी दक
ु ानदाि भी अपना िण्ड अपने कपड़ों पि
से दबा िहा था। ये दे खकि आलसफ़ थोड़ा उखड़े हुए िहजे में दक
ु ानदाि से मख
ु ानतब होता है - “भाई साहब जिा
बबि जल्दी बना दो…”

आलसफ़ की आवाज सन ु कि दक
ु ानदाि जैसे नींद से जागता है औि झेंपते हुए बबि-बक
ु पि कुछ लिखने में िग
जाता है । सबा अपना अबया पहनकि वापपस काउं टि पि आती है तो दक ु ानदाि अबया पैक किके उसको दे दे ता
है । दोनों बहन भाई उस दक
ु ान से बाहि ननकि आते हैं औि बाहि ननकिते ही सामने की दक
ु ान पि उनको
अम्मी कुछ कपड़े दे खती ददखती हैं। कुछ दे ि नग़मा बेगम कपड़े औि दे खती हैं औि कफि दोनों से वापसी के लिए
ननकिने का कहती हैं ।

आलसफ़- “अम्मी आप िोग चिें मैं जिा ए॰टी॰एम॰ से कुछ कैश ननकिवा कि आता हाँ ऊपि की मंजजि से। थोड़ा
टाइम िगेगा मझ
ु …
े ”

46
आलसफ़ असि में बाथरूम जा िहा था, क्योंकी उसने ठान िी थी कक अभी कंट्रोि किना मजु श्कि है औि सबा
पि मठ िगाना िाजमी हो गया है । विना उससे गाड़ी नहीं चिनी है । सबा औि उसकी अम्मी बाहि गाड़ी की
तिफ चि पड़ते हैं। बाहि पाककिंग की तिफ जाते हुए नग़मा बेगम की नजि िोड के साइड पि िगे एक स्टाि पि
जाती है । स्टाि पि हि तिफ िेडीस के अंडिगामेंटस िटक िहे थे। नग़मा बेगम ये दे खकि सोचती हैं- “कब
सध
ु िे गा ये मल्
ु क? ककस तिह इतनी प्राइवेट चीजें सामने िटका िखी हैं। तौबा है…”

नग़मा बेगम- “सबा जिा आओ दे खें अगि कुछ लमि जाए। आलसफ़ को 5-10 लमनट िगें गे अभी…”

दोनों मााँ बेटी चिती हुई स्टाि पि पहुाँचती हैं।

नग़मा बेगम- “भाई जिा कुछ ददखायें नया। ब्रा 34डी सबा का साइज, औि 38डीडी नग़मा बेगम का साइज…”

स्टाि वािा- जी बाजी।

स्टाि वािा एक बढ़ा सा आदमी था जजसकी सफेद दाढ़ी थी औि लसि पि उसने नमाज की सफेद टोपी पहनी हुई
थी। वो कुछ ब्िैक, जस्कन औि सफेद िं ग की ब्रा ददखाता है दोनों साइजेस में । िेककन सबा औि उसकी अम्मी
को कुछ खास पसंद नहीं आता कुछ।

सबा- बाबा ये िहने दें । कोई अच्छे से अंडिवेि ददखा दें , सबसे बड़े साइज में ।

स्टाि वािे बाबा सबा की आवाज सन


ु कि एक िम्हे के लिए उसको दे खते हैं। सबा का ब्िैक स्काफद में पिहेजगाि
चेहिा औि उसके माँह
ु से अंडिवेि का सन
ु कि एक मश्ु कुिाहट से दे खते कुछ बड़े साइज के अंडिवेि नीचे डब्बे से
ननकािकि दोनों मााँ बेटी के सामने िख दे ते हैं। सबा एक जस्कन किि का बड़ा सा अंडिवेि उठाकि दोनों कोनों
से पकड़कि अपनी नजिों के सामने हाथ में िेकि दे खती है ।

सबा- अम्मी आपको ये इसकी कफदटंग कैसी आती है ?

नग़मा बेगम जो कक स्टाि पि ही कुछ औि चीजें दे ख िही थीं बगैि सबा को दे खे बेध्यानी से कहती हैं- “ह्म…
दे ख िो ओरिजजनि इफ्फग है तो बड़ा साइज तम्
ु हें भी ठीक ही आएगा…”

सबा ये सन
ु कि 1-2 अंडिवेि औि दे खती है ।

कुछ पिों बाद नग़मा बेगम भी उसके पास आ जाती हैं- “कुछ लमिा ढं ग का?”

सबा अपनी अम्मी को एक जस्कन औि एक ब्िैक अंडिवेि पकड़ा दे ती है । नग़मा बेगम दोनों अंडिवेि को दे खती
हैं अपने हाथ में िेकि। दोनों पि इफ्फग के िेबल्स को गौि से दे खती हैं- “हााँ ठीक हैं। िेककन सादे से हैं। औि
कुछ नहीं समझ में आया?”

सबा- नहीं औि कुछ तो नहीं ददख िहा यहााँ।

47
नग़मा बेगम स्टाि की तिफ नजिें किके कुछ औि दे खती हैं औि सामने िटका हुआ एक ब्िैक थोंग उतािकि
सबा को पकड़ाती हैं- “ये चेक किो…”

सबा थोंग को पकड़कि शमाद सी जाती है औि सिगोशी के िहजे में अम्मी से कहती है - “अम्मी ये क्या है? मैंने
नहीं िेना ऐसा कुछ…” कफि सबा थोंग की पीछे से पतिी सी जस्ट्रप पि हाथ फेिती है औि धीमे िहजे में शमादते
हुए अपनी अम्मी के सामने किती है थोंग को।

सबा- “इसका क्या फायदा होना है ? इतने से क्या होगा? मझ


ु े दे खा है आपने? मझ
ु े पहना िही हैं ये ऐसी चीज?”
सबा ने ये कहते हुए नजिों से इशािा ददया अपने बड़े-बड़े चतिों की तिफ।

नग़मा बेगम ने सबा की शमद को इग्नोि किते हुए एक ब्िैक औि एक ब्िि थोंग पैक किवाए औि सबा को बैग
पकड़ा ददया- “तम
ु आजकि की िड़ककयां भी ना मेिी समझ से बाहि हो। कहीं तो फेसबक ु , मोबाइि की जान
नहीं छोड़ती औि कहीं बबल्कुि ही जमाने से दि िहती हो…” ये कहते हुए नग़मा बेगम स्टाि से मड़
ु ती हैं।

तब सबा भी उनके साथ-साथ मड़


ु ती है तो अचानक दोनों के कदम वहीं जम से जाते हैं। पीछे आलसफ़ आकि ना
जाने कब से खड़ा हुआ था।

नग़मा बेगम- अिे बेटा तम


ु कब आए?

आलसफ़- “वो अम्मी जब… …”

आलसफ़ सबा की तिफ दे खते हुए बोिने िगता है, िेककन चुप हो जाता है ।

आलसफ़- चिें अगि आप िोग फारिघ हो गये हैं तो?

नग़मा बेगम- हााँ चिो, घि जाकि खाना भी बनाना है।

तीनों िोग गाड़ी में बैठकि घि की तिफ िवाना हो जाते हैं। वहााँ से वो िोग सीधा घि आते हैं। सभी थक चक
ु े
थे इसलिये अपने-अपने रूम में चिे जाते हैं।

सबा भी अपने रूम में चिी जाती है । अपना अबया उतािती है औि कपड़े चें ज किती है । कपड़े चें ज किके वो
फ्रेश होती है औि वज किती है औि शाम की नमाज अदा किती है । नमाज अदा किने के बाद सबा उठती है
औि अपना स्काफद उतािकि अिमािी में िखती है औि मड़ ु कि बेड की तिफ जाने िगती है । अंगड़ाई िेते हुये
सबा बेड पि बैठने िगती है । तभी उसकी नजि बेड पि पड़े अपने अंडिवेि पि पड़ती है । सबा को अचानक से
याद आता है । ये तो मैंने आलसफ़ को ददया था। इसका मतिब बाजाि जाने से पहिे ही वो इसे यहााँ िख गया
था। औि बाजाि में जब वो मेिी तिफ दे ख िहा था वो यही समझ िहा होगा कक मैंने अंडिवेि वापपस िे लिया है ।
िेककन मझ
ु े तो ये अब लमिा है ।

खद ु से बोिते हुये सबा अंडिवेि को उठाती है, औि उसे खोिती है । िेककन अंदि तो ऐसा था के जैसे जड़
ु ा हुआ
है । सबा दोनों हाथों से उस जुड़े औि अकड़े हुये अंडिवेि को खोिने िगती है । इसका मतिब कक भाई ने इस पि
48
अपना िस ननकािा है औि ननकािकि मझ
ु े वापपस कि गया है । वो कैसे समझ सकता है कक मझ
ु े ये चादहए था,
या मैंने इसी काम के लिये उसे ददया था? सोचते-सोचते उसके चेहिे पि एक स्माइि थी औि वो अंडिवेि को
खोि चक
ु ी थी। अंडिवेि पिा अकड़ा हुआ था। आलसफ़ के िण्ड से ननकिा हुआ पानी सख चक
ु ा था।

सबा बेड पि बैठ जाती है औि अंडिवेि को हाथों में िेकि उसे अपनी नाक के किीब िाती है , औि िंबी-िंबी सी
सांस िेते हुये उसे साँघने िगती है । साँघते ही सबा की आाँखें बंद हो जाती हैं। आलसफ़ के पानी की खुशब अभी
भी आ िही थी, िेककन खश्ु क होने की वजह से कम आ िही थी। दो तीन बाि साँघने के बाद सबा आाँखों को बंद
ककए हुये ही अपना मह ाँु खोिती है औि जुबान बाहि ननकािती है । अपने अंडिवेि पि जहााँ से वो अकड़ा हुआ था,
वहााँ जुबान फेिती है । जुबान के फेिती ही सबा के मह
ाँु में उसके भाई के पानी का टे स्ट आता है ।

नमकीन सा जायका आते ही सबा को खयाि आता है कक वो अपने भाई के िण्ड से ननकिा हुआ पानी चाट िही
है । ये सोच आते ही उसके ददि की धड़कन तेज हो जाती है । उसके अंदि नशा उठने िगता है । आाँखें सख
ु द होने
िगती हैं। खुमािी चढ़ने िगती है । सबा टााँगों के बीच वािे दहस्से में कुछ अजीब सी बेचैनी महसस किती है ,
औि कफि से अपनी जुबान को उसी जगह फेिने िगती है । बाि-बाि सबा अंडिवेि के उस दहस्से पि जुबान फेिती
है । हि बाि सबा के माँह
ु में उसके भाई का पानी जाता है । उस पानी की खश
ु ब औि जायके को सबा अपने अंदि
उतािने िगती है ।

जब
ु ान फेिने से अंडिवेि गीिा हो जाता है औि खश
ु ब तेज हो जाती है । सबा िंबी-िंबी सांस िेकि खश
ु ब को
साँघने िगती है , अपने अंदि उतािने िगती है, कभी चाटने िगती है । सबा इस सब में इतनी मगन हो चुकी थी
कक अपने इदद-गगदद के माहौि को भि चक ु ी थी। चाटते औि सघाँ ते हुये वो िेट जाती है , औि अपना अंधिवेि
अपने माँह
ु पि िख िेती है । जजसे वो बाि-बाि जुबान से गीिा किती है औि उससे उठती खुशब को साँघती है ।
कुछ ही दे ि औि ऐसा किने से सबा नीचे से अपने आपको गीिा महसस किती है । औि अपनी चत से कतिे बहा
दे ती है । प्री-कम की कुछ बद
ाँ ें ननकिकि सबा की टााँगों को गीिा किती हैं। याँ सबा कुछ आिाम महसस किती है ,
औि कुछ ही दे ि में ऐसे ही िेटे-िेटे सो जाती है । उसका अंडिवेि भाई के पानी से भिा अभी भी उसके माँह
ु पि
ही थी, औि सबा नींद की वाददयों में खो चक
ु ी थी।

सब
ु ह जब सबा की आाँख खि
ु ती है तो उसके मोबाइि का अिमद बज िहा था जो कक सब
ु ह की नमाज का था।
सबा अंगड़ाई िेकि उठती है, तो उसी याद आता है । वो अंडिवेि को इधि उधि दे खने िगती है, तो वो उसके
तककये के पास पड़ा नजि आता है । सबा उसे हाथ में लिये ही बाथरूम जाती है औि डािकि धो दे ती है । कफि
सबा वज किती है औि नमाज अदा किती है । नमाज के बाद वो अपनी रूटीन के मत
ु ाबबक वाक किने के लिये
चिी जाती है । कुछ दे ि टहिने औि तफिीह किने के बाद, जब ददन का उजािा होने िगता है तो सबा िान से
घि में एंटि हो जाती है ।

सबा सीधे ककचेन में जाती है औि नाश्ता बनाने िगती है । नाश्ता बनाकि वो खद
ु भी किती है औि सबको
किवाती है । नाश्ते से फारिग होकि सबा वापपस अपने रूम में आ जाती है । जहााँ अचानक उसे याद आता है कक
वो मदसे जाया किती थी। िेककन मौिवी साहब क्या किने िगे थे उसके साथ? िेककन मैं भी तो खद
ु ही इस
सब चक्कि में पड़ी थी ना। मैंने ही उन्हें उकसाया था, विना वो कभी इतनी दहम्मत नहीं किते। मैं ककतनी
अच्छी थी, दीन के इतने किीब थी। िेककन अब? अब मैं क्या बनती जा िही हाँ औि क्या कि िही हाँ? अपनी
हवस पि काब नहीं हो िहा मेिे से। आखखिकाि, ऐसी कौन सी चीज है मझ
ु में जो मझ
ु े दटकने नहीं दे ती?

49
अपने आपको कोसती हुई सबा नहाने िग जाती है, औि कफि फ्रेश होकि कपड़े बदिती है , औि दप ु टटा िेकि
वापपस नीचे आ जाती है । टाइम काफी हो चक
ु ा था। सब िोग अपने-अपने काम से ननकि चक ु े थे। सबा भी
अपना ध्यान बटाने के लिये अपने आपको इधि उधि घि के कामों में िगाये िखती है । सब
ु ह से दोपहि होती है ।
किीब 3:00 बजे आलसफ़ औि बाकी िोग भी आ जाते हैं, औि घि में कफि से शोि होने िगता है ।

आलसफ़ की जब भी आाँख सबा से लमिती, तो वो नजिें झुका िेता था। शायद वो खझझकता था अभी भी या
कफि उसे कोई डि था। क्योंकी आखखिकाि, सबा उसकी बड़ी बहन थी। वो अगि जिा सा भी शोि कि दे तो
आलसफ़ की पिा घि में शामत आ जाए। सब िोग खाना खाते हैं, औि वहीं बैठकि बातें किने िगते हैं। कुछ
िोग टीवी दे ख िहे थे। आलसफ़ औि सबा की आाँख लमचोिी भी चि िही थी। िेककन आलसफ़ अभी भी डि-डि के
आाँखें लमिाता था।

कुछ दे ि बाद सबा उठती है औि ककचेन में जाती है, एक छोटी सी प्िेट िेती है औि बाहि आकि आलसफ़ को
ददखाती है , औि सीधी आलसफ़ के रूम में चिी जाती है । आलसफ़ है िानी से दे ख िहा था। उसे समझ में नहीं
आता कक आपी प्िेट िेकि रूम में क्यों गई हैं? ये सोचते ही आलसफ़ भी उठता है औि अपने रूम की तिफ चि
पड़ता है । अभी वो रूम के किीब ही था कक सबा रूम से ननकिती है । दोनों एक दसिे के पास से गज
ु िते हैं।

सबा- “भाई प्यास िगी है…” पास से गज


ु िते हुये सबा आलसफ़ को धीिे से कहती है औि चिती हुई वहीं आकि
बैठ जाती है ।

आलसफ़ चिता हुआ रूम में चिा जाता है । रूम में जाते हुये यही सोच िहा था कक आपी को प्यास िगी है तो
ककचेन से पानी िेने की जगह प्िेट क्यों िी, औि वो मेिे रूम में िख दी? सामने बेड पि पड़ी प्िेट को दे खकि
आलसफ़ है िान था। अभी इसी सोच में गम
ु था कक उसके ददमाग में अपने िण्ड के पानी का खयाि आता है ,
औि सबा की बात का मतिब उसे सामने नजि आने िगता है । अच्छा तो आपी को इस पानी की प्यास िगी
है ? ये सोचकि आलसफ़ को अपना िास्ता साफ होता नजि आता है । आज सबा का अपने माँह
ु से कुछ मााँगना
आलसफ़ के लिये आगे बढ़ने का इशािा था।

ये सोचते ही आलसफ़ के चेहिे पि एक मश्ु कुिाहट आ जाती है , औि वो वापपस मड़


ु कि डोि को िाक किता है औि
अपना िण्ड ननकािकि मठ
ु िगाने िगता है । अपने िण्ड को अपनी बहन के जजश्म को खयाि में िाकि वो
मसिने िगता है । एक हाथ में प्िेट औि दसिे से िण्ड को मसिते हुये आलसफ़ अपनी आाँखें बंद ककए मठ
िगाता है , औि सािा पानी प्िेट में ननकाि दे ता है । प्िेट को वो वापपस बेड पि िखता है , औि खुद वाशरूम में
जाने िगता है । िेककन वो वापपस मड़
ु कि बाहि ननकि जाता है, औि बाहि बैठे हुये िोगों को कहता है

आलसफ़- “मैं नहाने जा िहा हाँ अब बाहि से दिवाजा कोई ना नाक किे …” असि में वो सबा को बताना चाहता था
कक उसका काम हो गया है । इतना कहकि वो एक दफा अपनी बहन को दे खता है । औि वापपस अपने रूम के
वाशरूम में चिा जाता है ।

सबा भी उसका इशािा समझती है । आलसफ़ के जाने के कुछ दे ि बाद वो चुपके से उठती है , सब िोग अपने-
अपने कम में िगे थे, औि आलसफ़ के रूम में जाती है । उसकी उम्मीद के मत
ु ाबबक बेड पि प्िेट में उसका
मनपसंद पानी मौजद था। सबा प्िेट को उठाती है औि दबे पांव ही बाहि ननकिकि ऊपि चिी जाती है । अपने
रूम में एंटि होते ही वो दिवाजा बंद किती है औि वहीं खड़े-खड़े ही उस प्िेट को नाक के पास िेजाकि एक नशे
50
के आदी की तिह से साँघती है । अपने भाई के िण्ड से ननकिे पानी की खुशब, उसके अंदि जाते ही सबा को
खम
ु ाि आने िगता है, हवस कफि से लसि उठाने िगती है । शैतान जागने िगता है।

अब सबा अपने लसि पि लिया हुआ दप ु टटा उतािती है, औि बेड पि फेंक दे ती है । प्िेट को भी बेड पि िखती है
औि खुद भी बेड पि बैठ जाती है । सबा अपने अंदि उठती हुई इस गमी को औि काब नहीं कि पाती औि प्िेट
के ऊपि झक
ु के एक दफा उसे कफि से साँघती है, औि साथ ही अपनी जुबान बाहि ननकािकि, अपने भाई के
पानी पि फेिती है । जब
ु ान के फेिती ही पानी का कुछ दहस्सा सबा की जब
ु ान से िगता है औि माँह
ु में चिा
जाता है ।

पानी के माँह
ु में जाते ही उसकी खश
ु ब औि जायका सबा अपने अंदि उतािने िगती है - “ऊह्ह… भाईई…” अपने
गिे में अपने भाई के पानी को उतािती हुई सबा बोिती है औि उसे गिे के नीचे िे जाती है । एक के एक बाद
सबा चाटकि औि लसप िे-िेकि अपने भाई का पानी पीने िगती है । उसे बबल्कुि भी बिु ा नहीं िगता। उसे
बबल्कुि भी खयाि नहीं आता कक ये तो पीने की चीज नहीं है । वो तो ऐसे पीती है कक जैसे पीने के लिये ही
बनी है , औि इसके जैसा टे स्ट औि ककसी चीज का नहीं हो सकता। थोड़ा-थोड़ा किके सबा अपने भाई का सािा
पानी पी जाती है, औि चाट-चाटकि प्िेट को भी साफ कि दे ती है ।

सबा का जनन इस हद तक चिा जाएगा ये वो भी नहीं जानती थी। अपनेी हिकत पि उसे खुद भी शमद आती
है । िेककन इस वक्त जो हवस उसके अंदि थी। प्िेट साफ किके सबा जब माँह
ु ऊपि किती है तो पानी का कुछ
दहस्सा उसकी नाक पि भी िगा था, जजसे वो अपनी जुबान से साफ किने की कोलशश किती है । िेककन िाख
कोलशश के बाद भी जब ु ान वहााँ नहीं पहुाँचती औि कफि सबा तंग आकि जब ु ान अंदि कि िेती है औि हाथ की
उं गिी से उस पानी को उठाती है औि वैसे ही उं गिी को माँह
ु में डाि िेती है । अपने भाई के िण्ड से ननकिा
सािा पानी सबा पी चुकी थी औि प्िेट भी साफ कि चुकी थी। िेककन उसकी हवस औि नशा बिकिाि था। सबा
अपने जजश्म की गमी को लिये हुये बेड पि िेट जाती है , औि कुछ दे ि आाँख िगाकि उठती है तो शाम हो चक ु ी
थी। कफि वो उठकि फ्रेश होती है । औि प्िेट िेकि बाहि चिी जाती है । बाहि कोई नहीं था। सबा की अम्मी
ककचेन में खाने की तैयािी कि िही थीं सबा भी ककचेन में चिी जाती है , औि प्िेट को धोने िगती है ।

अम्मी- “अिे बेटी ये साफ ही िग िही है इसे क्यों धो िही हो?”

ये सन
ु कि सबा को हाँसी आ जाती है औि हाँसते हुये ही वो कहती है- “अम्मी ये साफ िग िही है िेककन है
नही॰” औि प्िेट को धोकि िै क पि िखा दे ती है, औि अपनी अम्मी के साथ ही हं डडया पकाने में हे ल्प किने
िगती है ।

सबा अपनी अम्मी के साथ ही ककचेन में कुछ दे ि काम किवाती है । कफि सब िोग िात का खाना खाते हैं। कुछ
दे ि बैठकि बातें किने औि टीवी दे खने के बाद एक-एक किके अपने-अपने रूम में जाने िगते हैं। सबा भी अपने
रूम में जाती है औि अपनी जजंदगी को िेकि सोचती हुई, िेटी-िेटी ही सो जाती है ।

***** *****सबा का सपना


सब
ु ह पहिे जैसे ही सबा उठकि अपने सािे काम किती है । कफि नाश्ता बनाती है औि घि के कामों में अपने
आपको बबजी िखती है । ददन याँ ही गज
ु ि जाता है । सब िोग वापपस आ चक
ु े थे, स्कि से औि कािेज से।
आलसफ़ भी अपने रूम में ही था। सबा ककचेन में सब्ज़ी बना िही थी। कुछ दे ि बाद सबा के पापा की गाड़ी की
51
आवाज आती है । जजससे सब है िान हो जाते हैं कक इस वक्त कैसे आ गये घि? क्योंकी वो िात से पहिे कभी
घि नहीं आए थे।

अंदि आते ही वो सबा की अम्मी को आवाज दे ने िगते हैं- “अिद यी बेगम, जल्दी से कुछ खाने का इंतज
े ाम किो।
खान साहब औि उनकी वाइफ आ िहे हैं कुछ ही दे ि में पहुाँचते ही होंगे। मैं फ्रेश होकि आता हाँ…”

ये खान साहब औि उनके परिवाि से इनका काफी ताल्िक


ु था। थे तो दोस्त ही मगि अब काफी अच्छी दोस्ती
हो चुकी थी। सबा की अम्मी ये सन
ु ते ही ककचेन में खड़ी सबा को कुछ चाय वगैिा बनाने का कहकि खुद भी
अपने रूम में फ्रेश होने चिी जाती हैं। क्योंकी वो अपने इस रूप में उनके सामने नहीं जाना चाहतीं थीं।

सबा ककचेन का काम संभािने िगती है । कोई आधे घंटे बाद ही बाहि बेि होती है औि वो िोग अंदि आ जाते
हैं। सबा की अम्मी अब्ब उनको वेिकम किते हैं। औि सब िोग बाहि टीवी िाउं ज में बैठकि बातें किने िगते हैं
औि एक दसिे का हाि पछने िगते हैं। सब शोि सन
ु कि बाहि आ जाते हैं। आलसफ़ भी अपने रूम से बाहि आ
जाता है औि सिाम किके अपनी अम्मी के साथ सोफे पि बैठ जाता है । सबा अभी भी ककचेन में काम िगी हुई
थी, वो अभी बाहि नहीं आई थी। कुछ दे ि बाद जफ़ि साहब नग़मा को कुछ खाने के लिये िाने का कहते हैं।

नग़मा- बस सबा तैयाि कि िही है अभी कुछ दे ि में आ जाएगा।

जफ़ि- “अच्छा चिो तब तक पानी तो िा के िखो ना, पीने के लिये। आलसफ़ आप जाओ पानी औि ग्िास िेकि
आओ…”

आलसफ़ ये सन
ु ते ही एक दफा जफ़ि को औि एक दफा अपनी अम्मी को दे खता है, औि कफि एक तिह से गस्
ु से
से उठकि ककचेन की तिफ चिा जाता है- “एक मैं ही नजि आया हाँ इनको काम के लिये बाकी सब तो सेठ हैं…”
बड़बड़ाता हुआ आलसफ़ ककचेन में दाखखि होता है । जहााँ सबा पशीने में भीगी चाय वगऱिा तैयाि कि िही थी।
आलसफ़ को बड़बड़ाता दे खकि सबा मश्ु कुिाती है औि कफि से अपने काम में िग जाती है ।

िेककन आलसफ़ तो जहााँ खड़ा था दिवाजे पि वहीं जम गया था। क्योंकी सबा का पशीने में भीगा हुआ जजश्म
औि पीछे से नजि आती ब्रा के स्ट्रै प्स औि सबा का गठा हुआ जजश्म। आलसफ़ के िण्ड में तनाओ पैदा कि चक
ु ा
था। िण्ड के तनाओ से ट्राउजि में एक तंब बन चक
ु ा था। आलसफ़ वहााँ से दहि नहीं िहा था।

कुछ ही दे ि में जब आलसफ़ आगे नहीं आता तो सबा को एहसास होता है कक वो उसके जजश्म को ही घि िहा
होगा। वो बबना दहिे ही अपनी गदद न घम
ु ाकि पीछे को दे खती है, औि जो वो सोच िही थी आलसफ़ अपनी नजिें
जमाए सबा की आस औि कमि का नजािा कि िहा था। जैसे ही दोनों की नजिें लमिती हैं वो अपनी नजिें नीचे
झुका िेता है । तभी सबा की नजि ट्राउजि में बने तंब पि जाती है, औि एक झटका उसके जजश्म को िगता है ।
आलसफ़ का िण्ड पिी तिह से खड़ा हो चक ु ा था। आलसफ़ ऊपि दे खते हुये जैसे ही सबा की नजिें पढ़ता है तो वो
अपने हाथ से िण्ड को सीधा किते हुये आगे बढ़ता है, औि कैबबनेट खोिकि जग ननकािने िगता है । िण्ड को
वो ट्राउजि में सीधा कि चक
ु ा था।

िेककन सबा तो आलसफ़ का खड़ा िण्ड दे ख चक


ु ी थी, औि वो खड़ा िण्ड अपना शैतानी चिखा सबा के अंदि
चिा चुका था। सबा की हवस को जजंदा होते दे ि नहीं िगी औि वो अपने टांगों के बीच वािे दहस्से को दोनों
52
टााँगों में िेकि ही दबाने िगती है । िेककन इस से क्या होगा? कुछ भी नहीं। कुछ भी तो नहीं कि सकती मैं।
क्या हो जाता है मझ
ु ,े इसको दे खती ही? ऐसा क्या है इसमें ? आज दे ख ही िोन मैं। नहीं नहीं सबा पागि मत
बन, तेिा भाई है वो क्या सोचेगा? िेककन उसका वो मझ
ु े दे खकि ही तो खड़ा हुआ है ।

कफि भी सबा तम
ु एक पाक मजहबी िड़की हो ये सब ठीक नहीं है औि कफि वो भी अपने ही भाई के साथ नहीं
नहीं। सबा आज मोका ना जाने दे , आज िोहा गिम है वाि कि दे । हााँ मझ
ु े किना ही होगा औि कब तक ऐसे
ही जािग
ं ी मैं, मझ
ु े दहम्मत किनी होगी। एक भाई ही मझ
ु े वो सब दे सकता है , औि कोई नहीं। ये सोचती-
सोचती सबा आलसफ़ की तिफ दे खती है , जो कक एक हाथ से जग पकड़े पानी डाि िहा था औि दसिे हाथ से
अपने िण्ड को सीधा कि िहा था जो कक पिा हाडद होने की वजह से सीधा नहीं हो पा िहा था।

सबा मोके को समझती है औि बोिती है- “भाई क्या है यहााँ तेिे? क्या छुपा िहा? ददखा मझ
ु …
े ”

ये सन
ु ते ही आलसफ़ को जैसे कोई गोिी िगी हो। उसका लसि भािी होने िगता है। वो एक दफा बाहि दिवाजे
पि दे खता है, कक औि ककसी ने सन
ु ा तो नहीं? औि कफि से सबा की तिफ दे खता है - “वो वऊ… आपी कुछ… …”

“क्या वो… वो… कि िहा है?” ये कहते हुये सबा आलसफ़ का हाथ वहााँ से हटाती है , तो आलसफ़ अपने ट्राउजि में
हाथ डािे अपने िण्ड को मसि िहा था। सबा को ये बात समझ में आते ही उसके चेहिे पि एक कानति स्माइि
आती है उसके- “ननकि िहा है ना भाई?”

आलसफ़ सबा के मह
ाँु से ऐसी खि
ु ी-खि
ु ी बातें सन
ु कि हैित से उसे दे ख िहा था। सबा आगे बढ़ती है औि अपने
हाथ को सीधा आलसफ़ के ट्राउजि के अंदि घस
ु ाती है औि सीधा अपने हाथ में आलसफ़ का िण्ड पकड़ िेती है ।
जो कक सबा के हाथ में लसफद आधा ही आया था। िण्ड को हाथ में िेते ही सबा उसकी गमी को महसस किती
है ‘आआह्ह… भाई’ औि अपनी आाँखें बंद कि िेती है । िण्ड से गमी सबा के हाथ से होती हुई उसके अंदि
ट्रान्स्फि होने िगती है । आलसफ़ जो कक तब से खामोश खड़ा था अपने िण्ड पि सबा का हाथ महसस किते ही
आलसफ़ एकदम से बाहि के दिवाजे पि दे खता है औि कफि से सबा को, जो कक आाँखें बंद ककए आलसफ़ के िण्ड
को दबा िही थी।

सबा का हाथ आलसफ़ के िण्ड पि आगे पीछे होने िगता है । आलसफ़ डिा हुआ, सहमा हुआ खड़ा कभी सबा को
दे खता था, औि कभी दिवाजे को। चाहता तो वो भी यही था, िेककन वो जानता था कक अगि ककचेन में कोई आ
गया तो काम खिाब हो जाएगा- “आप्पीई आप क्या? छोड़ दो कोई आ जाएगा। नहीं किो आपी प्िीज़्ज़…”

िेककन सबा कहााँ सन


ु ने वािी थी। आलसफ़ की आाँखों में दे खती है- “नहीं कोई नहीं आएगा भाई ऊह्ह… आलसफ़
मेिा कुछ कि िे मेिे भाई। तेिा ये मझ
ु े हि पि माि िहा है …” आलसफ़ के िण्ड को जोि-जोि से सबा आगे को
खें चते हुये मसि िही थी।

उसकी खींचने की लशद्दत इतनी थी कक आलसफ़ को ददद होने िगी थी, औि छटने के किीब था- “आप्पी
प्िीज़्ज़… छोड़ दो… कोई आ जाएगा… औि मेिा आने वािा है आपीईई…”

िेककन सबा कहााँ मानने वािी थी- “आने दो भाई आने दो, यही तो चादहए मझ
ु …
े ”

53
आलसफ़ सबा का सख
ु द होता हुआ चेहिा दे खकि है िान था औि जो सबा कि िही थी वो उससे भी बढ़ के था।
आलसफ़ खद
ु भी यही चाहता था, िेककन उसे डि था कक अंदि कोई आ गया तो बहुत बड़ी मस ु ीबत खड़ी हो
जाएगी। आलसफ़ एक नजि कफि से बाहि दिवाजे की तिफ दे खता है । औि वो छटने के किीब ही था। उसे
महसस होने िगा था कक अब वो रुक नहीं पाएगा। वो अपने दोनों हाथों से अपना ट्राउजि नीचे कि दे ता है , औि
िण्ड बाहि ननकि आता है । आलसफ़ का फुि हाडद िण्ड फटने को था। सबा आलसफ़ की हिकत से उसे दे खती है ।
आलसफ़ की आाँखें बंद होने िगती हैं। उसका िं ग भी सख
ु द होने िगता है ।

सबा को समझ आ जाती है कक अब ननकािने वािा है । वो अपना दसिा हाथ िण्ड के आगे किती है । तब
आलसफ़ के िण्ड से एक के बाद एक पपचकािी ननकिती है औि सबा के हाथ पि गगिने िगती है । आलसफ़ के
िण्ड से सािा पानी ननकािकि सबा अपना हाथ पीछे कि िेती है, िेककन िण्ड नहीं छोड़ती। तभी आलसफ़ झटके
खाता है उसकी टााँगें कााँपने िगती हैं औि वो नीचे बैठ जाता है । आलसफ़ तेज-तेज सांस िे िहा था।

सबा अपने हाथ पि ननकािे हुये अपने भाई के पानी को दे ख िही थी। आलसफ़ का िण्ड उसने छोड़ ददया था। वो
पानी को माँह
ु के किीब िेजाकि एक दफा साँघती है, औि नशे को अपने अंदि उतािने िगती है ।

आलसफ़ है ित से ये सब दे ख िहा था। िेककन उसका माँह


ु फटा का फटा िह जाता है जब सबा अपने हाथ वािे
पानी को एकदम से माँह
ु में उं ड़ेि िेती है । आलसफ़ का माँह
ु अपने आप खुि जाता है । िेककन अगिे ही पि उसके
कानों में आवाज आती है- “आलसफफ्फफ़… पानी िे आओ…”

नग़मा की आवाज सन
ु कि आलसफ़ जैसे एक झटके से उठता है औि पानी का जग औि ग्िास िेकि बाहि ननकि
जाता है । सबा अपने माँह
ु में अपने भाई का पानी लिये पिे मजे से उसे माँह
ु में घम
ु ा िही थी। एक मश्ु कुिाहट औि
हवस औि नशे के लमिे-जि
ु े भाव थे सबा के चेहिे पि। अचानक उसी पता नहीं क्या सझती है, औि वो अपने
माँह
ु में भिा हुआ पानी चाय वािी केटिी में डाि दे ती है औि दहिाकि चल्
ु हा तेज किके चाय बनाती है औि कपों
में डािकि ट्रे में िखती है औि बाहि ननकि जाती है । चाय औि कुछ खाने पीने की चीजें सबके सामने िखकि
सबा अपने अम्मी के पास सोफे की ककनािे पि बैठ जाती है ।

सबा जानती थी कक वो चाय को क्या किके िाई है । इसलिये शैतान उसके ददि से नहीं जा िहा था। अचानक
उसे आलसफ़ याद आता है, िेककन वो वहााँ नहीं था। जैसे ही वो आलसफ़ के रूम पि नजि डािती है तो चाची
आलसफ़ के रूम से ही बाहि आ िही थीं। चाची को आलसफ़ के रूम से ननकिता दे खकि सबा को है ित होती है ।
चाची भी नग़मा के पास आकि बैठ जाती हैं।

सबा जो कक सोफे की टे क पि बैठी थी। उसकी भिी हुई टााँगें औि गीिी कमीज एक कयामतखेज मंजि दे िही
थी, जजसे खान साहब जो कक जफ़ि के हम-उम्र दोस्त थे, नजिें चुिा-चुिा के सबा के जजश्म को एंजाय कि िहे
थे। सबा ये बात जानती थी औि वो जानबझ कि अजीब-अजीब पोज बना िही थी, जजससे उसके चतड़ बाहि को
ननकि आते, औि टााँगें भी टाइट सिवाि की वजह से वाजेह होती थीं। सबा औि खान साहब की एक दो दफा
नजिें भी लमिीं िेककन खान साहब ने मोके को दे खकि एक दसिे को इग्नोि ककया। िेककन सबा खान साहब के
ताि छे ड़ चुकी थी।

पास बैठी नग़मा बेगम सबको चाय िेने को कहती है । कफि सब िोग एक-एक कप उठाकि चाय पीने िगते हैं।
सबा अपना कप नहीं िाई थी, औि ना ही चाची का। क्योंकी उसे आइडडया नहीं था कक चाची वहााँ होंगी।
54
नग़मा- “सबा जाओ चाची के लिये भी चाय िे आओ, औि हााँ खाने का इंतज
े ाम भी किो कुछ घि में बना िो
औि कुछ मंगवा िो बाहि से…”

सबा- “जी अम्मी…” औि उठकि ककचेन की तिफ जाने िगती है ।

चाची- “भाभी मैं भी सबा की हे ल्प किती हाँ…” औि उठकि सबा के पीछे आने िगती है । सबा चिते हुये खान
साहब की नजिों का पीछा किती है ।

सबा की सोच के मत
ु ाबबक तो वो उसकी गाण्ड को ही घि िहे थे। ये एहसास सबा को औि भी पागि कि िहा
था। सब मदद ही एक जैसे होते हैं, ये तो यकीन हो गया आज मझ
ु े। िेककन मैंने इनको जो चाय पपिा दी है ,
क्या वो गित नहीं कि ददया मैंने? मझ
ु े ऐसा नहीं किना चादहए था। कुछ दे ि के लिये सबा को पछतावा होता है
िेककन अपने आपको सही कहकि वो ककचेन में चिी जाती है औि उसकी चाची भी उसके पीछे ही ककचेन में
चिी जाती हैं।

चाची भी ककचेन में पीछे ही आ जाती है । ककचेन में एंटि होते ही सबा की चाची सबा को आवाज दे ती है । सबा
मड़
ु कि पीछे दे खती है, तो उसके दे खते-दे खते ही चाची सबा के किीब आती है औि अपने होंठ सबा के होंठों पि
िख दे ती है ।

“नहींऽऽ चाची…” एक चीख ननकिती है औि सबा उठकि बैठ जाती है । हमम्म… हमम्म्म… ह्म्म्म्म… सबा के मह
ाँु
से जोि-जोि से आवाज ननकि िही थी, पशीने से भीगी हुई सबा बेड पि बैठे अपने इस भयानक ख्वाब से घबिाई
हुई अपनी सााँसें संभािने की कोलशश कि िही थी। सबा का सािा जजश्म पशीने से भीगा हुआ था। अपने आपको
संभािने के बाद सबा जग से पानी पीती है औि बेड से टे क िगाकि अपना लसि दबाने िगती है । एक लशद्दत
से ददद की िहि उसके ददमाग में उठ िही थी।

***** ****सबा का सपना समाप्त


सबा- ये मझ ु े क्या होता जा िहा है ? कैसे कैसे ख्वाब दे ख िही हाँ मैं? पहिे तो ऐसा कभी नहीं हुआ था। शायद
मैं हि वक्त ऐसी चीजें सोचती िहती हाँ, इसलिये ऐसे हो िहा है । हााँ यही वजह है । विना मझ ु े पहिे कभी ऐसी
ख्वाब नहीं आई। ये ठीक नहीं है । सबा अपने आपको संभािो ऐसा ना हो कक वक्त इतना आगे ननकि जाए कक
पछताने का भी मोका ना लमिे। टाइम िात के दो बज िहे थे। सबा उठकि वाशरूम जाती है , फ्रेश होती है औि
अपने लिये चाय बनाने ककचेन में चिी जाती है ।

चाय बनाते हुये उसे वही ख्वाब बाि-बाि आता है । कैसे वो सब भाई के साथ औि कफि चाय औि कफि चाची नहीं
नहीं। सबा ये सब गित है , वो मेहमान औि वो खान अंकि, वो इतने अच्छे इंसान हैं। मेिी सोच ककतनी गंदी
हो गई है । अपने आपको कोसते हुये सबा चाय बनाती है , औि वापपस अपने रूम में चिी जाती है । चाय पीकि
सबा कुछ दे ि याँ ही बैठी िहती है । नींद उससे बहुत दि जा चक
ु ी थी। अभी भी उसके ददमाग में वो ख्वाब चि
िहा था। उसे यकीन नहीं आ िहा था। याँ ही वक्त गज
ु िता है औि अजान की आवाज आती है औि वो उठकि
वज किती है औि नमाज पढ़ती है , औि वाक किने बाहि चिी जाती है ।

55
वाक किते हुये उसे वही दृश्य याद आता है कक उसके ख्वाब की शरु
ु वात यहीं से हुई थी। एक अंजाना सा खौफ
सबा के अंदि उति चक ु ा था। वो वाक किने के बाद सीधा अपने कमिे में जाती है औि िेटकि सोने की कोलशश
किने िगती है । कुछ दे ि िेटे िहने के बाद उसकी आाँख िग जाती है । आज अपने इस ख्वाब के डि से सबा
नाश्ता बनाने की बजाए सो चुकी थी। उसे डि था कक कहीं वो ख्वाब सच ही ना हो। सबा की आाँख ऐसी िगती
है कक उसकी अम्मी के उठाने पि ही खुिती है ।

टाइम दे खकि सबा है िान थी कक वो ददन के 12:00 बजे तक सोती िही है । उसकी अम्मी उससे तबीयत का
पछकि नीचे चिी जाती हैं। सबा उठकि नहाकि कपड़े बदिती है औि नीचे चिी जाती है । सब िोग जा चक
ु े थे।
सबा नाश्ता किती है औि टीवी दे खने िगती है ।

उसकी अम्मी भी काम खतम किके वहीं आ जातीं हैं, औि कुछ ही दे ि बाद चाची भी वहीं आ जातीं हैं। चाची
को दे खते ही सबा की आाँखों के आगे कफि से वही दृश्य आने िगता है औि उसके जजश्म में एक गिमी सी
फैिने िगती है । आखखिकाि, एक िड़की दसिी िड़की के साथ कैसे? नहीं नहीं वो तो बस ख्वाब था हकीकत
नही। िड़की एक मदद के साथ तो कि सकती है बस। िेककन आखखिकाि, शैतान तो शैतान है । औि वो हावी होते
हुये दे ि नहीं किता। सबा की सोच कफिने िगती है । जहााँ वो िेजज़्बयन को गित कह िही थी, वहीं उसके बािे में
सोचने से उसे अपने अंदि एक अजीब सा मजा महसस होता है ।

सबा- “िेककन सेडक्सन की हद तक तो एक िड़की दसिी िड़की से। पि यहााँ ये सब गित है । मझ


ु े ये सब नहीं
सोचना चादहए। िेककन िड़की होना तो गित नहीं है ना? औि मैं िड़की हाँ इसमें मेिा क्या कसि? औि मझ
ु े
ऐसे खयाि आते हैं तो ये एक नेचिु ि चीज है । मैं खद
ु से नहीं िेकि आती ये सब अपने अंदि। अगि िड़की
होकि में ये सब नहीं करूंगी तो औि क्या करूं? कुछ समझ में नहीं आ िहा कहााँ जाऊाँ, क्या करूं? एक तिफ
मेिा जजश्म है जो मझ
ु े हि िम्हा िज़्ज़त की दनु नयां में िे जाना चाहता है औि एक तिफ मेिा खुदा जजसके
किीब मैं िहना चाहती हाँ।

िेककन िह नहीं पा िही। मेिी मदद कि। मेिे खद


ु ा मेिी मदद कि, मझ
ु े इस दिदि से ननकि दे , मझ
ु े िास्ता
ददखा। सबा अपने खुदा से ददि में दआ
ु मांगती है औि दोबािा से अपना ध्यान टीवी में िगा िेती है ।

कुछ दे ि सबा टीवी दे खती है औि कफि उठकि ककचेन में चिी जाती है । अपने लिये औि चाची के लिये चाय
बनाती है । जब बाहि आती है तो चाची वहााँ से जा चुकी थीं। सबा टीवी आफ किती है औि ऊपि चाची के रूम
की तिफ चि पड़ती है ।

चाय का कप लिये सबा अपनी चाची के रूम में पहुाँचती है औि अपने पांव से दिवाजे को नाक किती है, क्योंकी
उसके हाथ में तो कप थे। कुछ ही दे ि में चाची दिवाजा खोिती है औि सबा को अपने सामने हाथ में चाय लिये
खड़ी दे खकि चाची के चेहिे पि एक स्माइि सी आती है , औि वो सबा को अंदि आने का िास्ता दे तीं हैं। सबा
अंदि टे बि पि चाय िखती है ।

चाची- “बैठो सबा…”

दोनों बेड पि बैठ जाती हैं।

56
चाची- चाय का तो मैंने कहा नहीं था।

सबा- मैं अपने लिये बना िही थी तो सोचा आपके लिये भी बना ि,ं आपने भी पीनी होगी।

चाची- “हााँ ये तो है , ददि तो कि िहा था। अच्छा क्या मेिे लिये भी बना िी?” कफि दोनों कप उठाकि चाय पीने
िगती हैं। गडु ड़या पास ही िेटी सो िही थी।

चाय पीते हुये सबा अपनी चाची के जजश्म को घिती है । उस ददन वािा नंगा दृश्य सबा के सामने आ जाता है
जब चाची नंगी ही सबा के सामने आ गई थीं। चाची का जजश्म ककतना भिा हुआ है ।

चाची- क्या हुआ, कहााँ गम


ु हो?

सबा- कहीं नहीं चाची, बस्स… एसे ही।

चाची- क्या ऐसे ही? बताओ ना क्या सोच िही हो? दे खो सबा जब मैं शादी किके यहााँ आई थी तो मझ
ु े िगा था
कक सबा हमािी बहुत अच्छी दोस्ती होगी, क्योंकी हमािी उम्र में ज्यादा फकद नहीं है । िेककन जब मैं यहााँ आ गई
औि तम्
ु हािा िहन सहन दे खा औि तम्ु हािी तबीयत दे खी तो मझ ु े िगा कक तम ु में औि मझ ु में बहुत फकद है ,
इसलिये मैंने कभी तम्
ु हें दोस्ती का नहीं कहा।

सबा- फकद कैसा चाची? मैं समझी नहीं।

चाची- फकद हि चीज का। तम


ु घि में मशगि िहती हो, ककसी से बात नहीं किती, बाहि नहीं जाती। तम्
ु हािी
कोई सहे िी घि नहीं आती। जब कक मैं जब अपने घि में थी तो बबल्कुि इसके आपोलसट थी।

सबा- चाची मेिा ददि ही नहीं मानता इस सबके लिये, इसलिये कभी कोलशश भी नहीं की। वैसे हम दोस्त तो
बन सकते हैं। उसके लिये एक जैसा होना कोई जरूिी चीज तो नहीं?

चाची- हााँ ये तो है । अच्छा तम


ु ये सब छोड़ो। ये बताओ कक अभी मझ
ु े दे खते हुये क्या सोच िही थी?

सबा- वो चाची अब छोड़ो ना।

चाची- “दे खा… इसीलिये मैं कहती हाँ हमािी दोस्ती नहीं हो सकती…” नािाज होते हुये चाची कप टे बि पि िखतीं
हैं।

सबा चाची को नािाज होता दे खकि अपना कप टे बि पि िखती है - “अच्छा चाची बताती हाँ आप नािाज ना हों।
िेककन आप बिु ा तो नहीं मान जाओगी ना…”

चाची- बबल्कुि भी नहीं। तम


ु बताओ।

57
सबा- वो चाची मैं सोच िही थी क्कक… वो मेिे ददि में आया था कक आपकी बाडी पहिे से ऐसी है । काफी हेल्दी
हैं आप काश मैं भी आपके जैसी होती।

चाची- “हाहाहाहा… सबा तम


ु अभी भी बच्ची ही हो। बस जजश्म से ही भािी हो गई हो…”

चाची के हाँसने से सबा अपना माँह


ु नीचे कि िेती है । उसे समझ में नहीं आती कक उसने गित कहा है या ठीक
कहा है ।

चाची अपनी हाँसी िोकते हुये- “सबा जब में काँु वािी थी ना तो तम


ु से भी ज्यादा पतिी थी। िेककन बाद में ऐसी हो
गई। अब में ऐसी कैसे हो गई ये तम ु अपने चाच से पछना…” औि कफि से कहकहा िगाकि हाँसने िगती है ।

सबा अपनी चाची की बात सन


ु कि अपना माँह
ु नीचे कि िेती है । उसी कुछ हद तक बात समझ में आ गई थी।
कफि खामोशी हो जाती है । सबा अपने कप से चाय पीने िगती है औि चाची भी। सबा के मन में बहुत अजीब
सी बेचैनी हो िही थी। जैसे वो अपने अंदि से कुछ ननकािना चाहती हो, कुछ कहकि अपना ददि हल्का किना
चाहती हो, या कफि कुछ ननकािकि अपना जजश्म हल्का किना चाहती हो। िेककन वो चप
ु थी, क्योंकी चाची से
इतनी फ्रॅंकनेस नहीं थी।

दसिी तिफ सबा की चाची जो कक अपनी शादी से पहिे ही अपनी जवानी एंजाय कि चक
ु ी थी, औि शादी के
बाद भी कि िही थी। सबा का याँ उसके पास आना औि कफि ऐसे सवाि किना, चाची का ददमाग उसकी बात को
पकड़ चक
ु ा था औि वो जानती थी कक िोहा गिम है । जवानी फान पि है । िेककन क्योंकी सबा एक पिहेज
वािी िड़की है, इसलिये अभी तक संभिे हुये है । िेककन इसको मजा ददया जा सकता है । िेककन मझु े क्या
लमिेगा? िण्ड तो पहिे ही है मेिे पास। िेककन ये तो पता चिेगा ना कक सबा की जवानी ककतने उफान पि है ?

दोनों अपने ही खयािों में सोच िही थीं। सबा अपनी चाय खतम किती है औि चाची से भी कप िेती है औि
उठाकि बाहि की तिफ जाने िगती है ।

सबा से िहा नहीं जाता उसे एहसास था कक मेिे सामने चाची क्या थीं। एक जनन पैदा होता है । शैतान अपनी
पकड़ मजबत किता है, औि सबा वापपस मड़
ु ती है । चाय के दोनों कप एक हाथ में पकड़ते हुये अपना दायां हाथ
चाची के आगे किती है ।

सबा- “चाची क्या हम दोस्त बन सकती हैं?”

चाची सबा की तिफ दे खते हुये- “क्यों नहीं जरूि। िेककन दो िड़ककयों की दोस्ती है औि दोस्ती में बहुत कुछ
किना पड़ता है औि कफि मैं तो एक अिग ककस्म की िड़की हाँ। बाद में तम ु ये ना कहो कक मझ ु े भी खिाब कि
ददया चाची ने…”

सबा- “नहीं कहं गी। मैंने कुछ सोचकि ही हाथ बढ़या है …”

चाची भी अपना हाथ आगे बढ़ाती है औि बैठे हुये हाथ से हाथ लमिता है । चाची सबा का हाथ पकड़ती है तो उसे
एहसास होता है कक सबा के हाथ से ककतनी गमी ननकि िही थी। एक दफा आाँखें खोिकि वो सबा की तिफ
58
दे खती है, औि एक छे ड़ने वािे अंदाज में अपने हाथ से सबा के हाथ को मसिती है । कफि दोनों अपने हाथ पीछे
कि िेती हैं।

सबा चाची को थैंक य बोिती है औि बाहि ननकि जाती है । एक खुशी थी उसके अंदि, जैसे कुछ पा लिया हो
उसने।

चाची समझ गई थी- “सबा की गमी उसी तंग कि िही है । जैसे एक कुनतया चद
ु ने से पहिे अपनी खश
ु ब छोड़ती
है कुत्ते के लिये, वैसे ही सबा भी अपनी गमी छोड़ िही है । िेककन ये ककसके नीचे िेटेगी? औि इतनी आसानी से
तो िेटेगी भी नहीं ये…” बेड पि बैठे हुये ही चाची कुछ दे ि सोचतीं है औि कफि से बेबी को उठाकि अपने काम में
िग जाती हैं।

सबा भी अपने रूम में जाती है औि अपने कमिे को ठीक किने िगती है । ददन औि िात सबा याँ ही गज
ु ाि दे ती
है । सब
ु ह से कफि से अपनी रूटीन में आ जाती है । पहिे नमाज, कफि वाक औि कफि से नाश्ता। सब कुछ खत्म
किके सबा नहाती है औि फ्रेश होकि कपड़े पहनकि अपनी चाची के रूम में चिी जाती है । रूम में एंटि होती है
तो चाची बेड पि बैठे टीवी दे ख िही थी। सबा भी उनके पास जाकि बैठ जाती है।

चाची- सबा अब जब दोस्ती कि ही िी है तो कुछ बताओ मझ


ु े भी अपने सीिेटस। हमें भी तो पता चिे कक
बन्नो िानी कहााँ तक जवान हुई हैं?

सबा- चाची मेिी आदत का आपको पता ही है मेिे क्या सीिेटस होंगे। मैं तो काम के अिवा कभी घि से बाहि
नहीं गई।

चाची- अच्छा जी तो अभी तक घि में ही हो, बाहि की दनु नयां नहीं दे खी?

सबा बस ‘जी’ कहती है औि कफि से चुप हो जाती है ।

चाची- मेिी िाजदान बनोगी। मैं तम्


ु हें अपने सािे िाज बताती हाँ औि ये भी बताती हाँ कक मैंने कैसे अपनी जवानी
का ित्ु फ़ उठाया है ।

सबा कुछ दे ि खामोश िहती है । कफि कहती है- “चाची अब जब दोस्ती कि िी तो कफि क्या छुपाना? औि मैं
हमेशा आपकी िाजदान िहाँगी आप मझ
ु पि भिोसा कि सकती हैं…”

चाची- “सबा सब मैं तम्


ु हें डीटे ि में नहीं बताऊाँगी, संत्रप
े में ही सब बता दं गी। जब मैं तन
ु हिी उम्र में थी तो तब
मेिे अंदि से भी ऐसे ही गमी ननकिती थी। तम
ु जानती हो मैं खाते पीते घि से थी, ककसी चीज की िोक-टोक
नहीं थी। मैंने अपनी जवानी को पिा एंजाय ककया। मेिी एक सहे िी थी। उसने मझ
ु े सब बताया। वो मेिी इतनी
गहिी सहे िी थी कक हम एक जजश्म दो जान थे। अक्सि िातों को एकटठे सोना औि मजस्तयां किना। वहााँ से मैं
शरू
ु हुई थी। उसके बाद मेिी आग बढ़ती ही गई, मझ ु े सेक्स में बहुत इंटेिेस्ट था। मैं उसकी तिफ खखंचती चिी
गई। मेिी सहे िी ने मझ
ु े बताया कक वो सेक्स किती है, िेककन ककसके साथ? वो सन ु कि मैं है िान थी औि
पिे शान भी हुई। िेककन जब मैंने ककया तो, तब मझ
ु े पता चिा कक गित किके जो मजा आता है ठीक में वो
मजा नहीं है …”
59
सबा चाची की बात बड़े गौि से सन
ु िही थी।

चाची- “सबा अब मैं जो तम्


ु हें बताऊाँगी वो कभी ककसी से मत कहना, क्योंकी उससे मेिा घि उजड़ जाएगा। तम्
ु हें
इसलिये बता िही हाँ कक तम
ु ने मझ
ु े अपना समझकि कि मेिे आगे हाथ बढ़या था…”

सबा लसफद हााँ में लसि दहिा दे ती है औि अपनी टााँगों के गगदद बाज िपेटे घट
ु नों पि अपना लसि िखकि बात
सन
ु ने िगती है ।

चाची- सबा मेिी सहे िी अपने घि के ड्राइवि के साथ सेक्स किती थी। क्योंकी हम पक्की दोस्त थीं इस लिये
उसने मझ
ु े भी ये मजा चखने का कहा, औि मैंने दोस्ती पि पिा उतिने के लिये उसके कहने पि उसी के ड्राइवि
से चुदवाया। पहिे मझ
ु े भी िगा कक मैंने गित ककया है । िेककन बाद में जब उसका मजा िेने की आदत िगी
तो सब कुछ ठीक िगने िगा। सबा मैं हि िोज उसके घि जाती औि उसके ड्राइवि से चुदवाती। यहााँ तक कक
एक ददन उसके पापा को पता िग गया।

उसके पापा से माफी मााँग कि मेिे घि वािों को ना बताने का कहा। उसके बाद मेिी औि उसकी दोस्ती भी
खतम हो गई। िेककन मझ
ु े जो ित िग चुकी थी वो कैसे छटती। मैं अपनी आग ठं डी किने के लिये ककसी मदद
को ढाँ ढ़ने िगी जो मेिा िाजदान िहे , औि कफि मझ
ु े मेिे घि में ही एक ऐसा शख्स लमिा जो मझ
ु े ठं डा किता
िहा, औि वो हमािे घि का मल्िी बाबा था। उसने मझ
ु े अभी कोई दो महीने ही सेक्स ककया था मेिे साथ, औि
मेिे घि वािों को पता चि गया। उसके बाद उसको ननकि ददया गया औि ये रिश्ता दे खकि मेिी शादी कि दी।
िेककन मझ
ु े एक ित्ती भि भी दख
ु नहीं है । क्योंकी मैंने खब जी भि के िण्ड को एंजाय ककया, उसके साथ खेिा,
औि अब भी तम्
ु हािे चाच के साथ खेिती हाँ।

िेककन अिग-अिग िण्ड िेने का अपना ही मजा है सबा। अब मैं आजाद हाँ शादी के बाद। िेककन अभी तक
कंट्रोि ककए हुये हाँ, िेककन ज्यादा दे ि कि नहीं सकं गी। औि सबा सबसे हसीन ददन मेिी सहे िी के साथ िातें
गजु िना थीं। तम्
ु हें क्या बताऊाँ… ऐसे तो तम
ु महसस ही नहीं कि पाओगी सबा।

ये सब बातें सन
ु कि सबा गिम होकि पानी के कतिे भी बहा िही थी, उसकी आाँखों में नशा था। जजश्म की आग
से उसी पशीना आ िहा था। चाची भी ये सब सन
ु ाकि गिम हो चुकी थी। उसकी चत भी गीिी हो चुकी थी। सबा
को चाची में भी एक सबा नजि आ िही थी कक जैसे ये उसका आने वािा कि हो, या उसकी ही जजंदगी हो।

चाची- “सबा ये गमी उफफ्फफ़… औित की ये आग उसे कहीं दटकने नहीं दे ती…” बेड पि पीछे को टे क िगाकि
चाची सबा से कहतीं हैं।

सबा अब भी खामोश थी।

चाची- “अब बताओ सबा अब किोगी तम


ु मेिे साथ दोस्ती?

सबा खामोश िहती है ।

60
चाची- “सबा बहुत कुछ बदि जाता है, ये सब किने से। िेककन तम
ु इन सबसे दि िहना…”

सबा ये बात सन
ु कि एक दफा अपना सोचती है कक दि कैसे िहाँ? मैं तो बहुत आगे ननकि चक
ु ी हाँ।

चाची सीधी होकि सबा की तिफ दे खती है - किोगी दोस्ती?

सबा कुछ दे ि खामोश िहती है औि कफि बोिती है- “चाची अब आप जैसी भी हो दोस्ती तो मैं कि चक
ु ी हाँ तो ये
क्यों पछ िही हो आप?”

चाची- अच्छा कि चक
ु ी हो दोस्ती। चेक कि िं मैं?

सबा- “जी कि िो चेक…” औि सबा अपना हाथ कफि से आगे किती है ।

चाची अपना हाथ आगे िेजाकि सबा के हाथों की उं गलियों में अपनी उं गलियां डािती है । सबा को अंदाजा नहीं
था कक ऐसा होगा। हाथ में हाथ लिये चाची उसका हाथ मिती है जो पिा गिम हो िहा था औि कफि सबा की
तिफ उसके माँहु पि झक ु ती है । नीचे को आते हुये सबा चाची के माँह
ु को दे ख िही थी। वो समझ जाती है कक
अब क्या होने वािा है । चाची अपने होंठ नीचे को िे जाते हुये सबा के कांपते हुये होंठों पि िखती है । दोनों को
ऐसे महसस होता है जैसे कोयिे के साथ कोयिा िगा है । चाची होंठों के साथ होंठ लमिाती है औि हाथ को
मसिती हुई अपनी जुबान सबा के होंठों में घस
ु ाने िगती है ।

िेककन सबा चप
ु िहती है औि अपने होंठ नहीं खोिती। कुछ दे ि याँ ही चाची कोलशश किती है औि कुछ दे ि बाद
सबा अपने होंठ िस किती है , तो चाची सबा के नीचे वािे होंठ को अपने होंठों में िेती है औि चसने िगती है ।
शैतान हावी होता है सबा पि, िेककन वो खद
ु को िोकती है । उसके ददमाग में आता है कक वो गित कि िही है ।
वो एक झटके से पीछे होती है , औि अपना हाथ छुड़ा िेती है औि साथ ही होंठ भी अिग हो जाते हैं। सबा का
िं ग सख
ु द िाि हो िहा था आाँखें तो ऐसे थीं जैसे नशा ककया हुआ है ।

सबा- चाची ये सब गित है ये ठीक नहीं है । आप औि मैं ये सब नहीं कि सकती। ये सही नहीं है ।

चाची- “दे खा मैंने कहा था ना सबा कक हमािी दोस्ती नहीं हो सकेगी। तब तो बड़े वादे कि िही थी…” चाची गस्
ु से
में कहती हुई उठती है औि अपने कपड़े ठीक किती है औि अपना दप
ु टटा ढाँ ढ़ने िगती है । चाची पिा गस्
ु से में
थी।

सबा ये सब दे खकि है िान थी। उसकी दोस्ती को चिेंज ककया था चाची ने। वो कैसे मक
ु ि सकती है । सबा तम

वादे से नहीं कफि सकती। अब चाची चाहे जो भी किे औि दसिी बात तम
ु चाची के पास औि िेने क्या आई थी?
ना चाहते हुये भी तम
ु यही चाहती थी। सबा पि सेक्स की गमी छाई हुई थी। उसे अपनी गिती का एहसास
होता है , औि वो उठकि चाची का हाथ पकड़ती है- “चाची बात तो सन
ु ो…”

चाची- “मझ
ु े नहीं सन
ु ना कुछ भी…” औि सबा का हाथ झटक दे ती है औि अपना दप
ु टटा सोफे से उठाकि रूम से
बाहि जाने िगती है । अभी दिवाजे से पीछे ही थी।

61
तभी सबा तेजी से चिती हुई चाची का बाज पकड़ती है औि खींचकि दिवाजे के साथ दीवाि पि चाची को िगा
दे ती है औि अपने होंठ चाची के होंठों पि िखकि चसने औि चाटने िगती है । सबा अपने पिे जोश से चाची के
होंठों को चस िही थी, एक वहशीपन नजि आ िहा था चाची को। सबा की आाँखें बंद थीं िेककन चाची की आाँखें
खुिी हुई थीं, औि वो सबा के चेहिे के बदिते हुये जज़्बात को दे ख िही थी। सबा िगाताि होंठ चस िही थी,
कभी जुबान अंदि किती, कभी बाहि; कभी ऊपि वािा होंठ, तो कभी नीचे वािा होंठ।

चाची भी उसे पिा िे स्पान्स दे िही थी। सबा के दोनों हाथ चाची के लसि को पकड़े हुये थे औि अपने माँह
ु की
तिफ अपने होंठों पि दबाए हुये थे।

िगाताि सबा ककस किती जा िही थी। एक िम्हा भी नहीं रुक िही थी। दोनों के लिये सांस िेना भी मजु श्कि हो
गया था। सबा अब चाची के होंठों को काट िही थी। चाची की बस हो गई थी, िेककन सबा नहीं रुकी। कुछ
िम्हों बाद जब चाची से बदद शत नहीं हुआ तो चाची ने सबा को धक्का ददया, जजससे सबा बेड पि गगिती है , औि
तेज-तेज सांसें िेने िगती है । सबा की आाँखों से आाँस बह िहे थे।

सबा- “ये सब गित है , चाची गित है ये सब, मैं मि जाऊाँगी…” उसकी आाँखें खि
ु ती हैं तो चाची का बिु ा हाि
था। होंठों से पानी बह िहा था औि साथ में कहीं-कहीं खन की बद
ाँ ें भी थीं। सबा अपनी सांसें संभािती है औि
अपना दप
ु टटा उठाकि चाची को दे खते हुये रूम से बाहि चिी जाती है । सबा ये सब किना चाहती थी, िेककन
उसकी पिवरिश औि उसका पिहे जगाि होना उसे ये सब नहीं किने दे िहा था।

***** *****829 अपडेट 19


चाची के रूम से ननकिकि सबा सीधा अपने रूम में आती है औि बेड पि टे क िगाकि बैठ जाती है । उसके होंठ
अभी तक भीगे हुये थे, उसकी चाची के साथ ककलसंग की वजह से, औि उसी थक की वजह से चमक िही थे।
कुछ दे ि याँ बैठकि सबा अपनी सांस ठीक किती है ।

सबा- क्यों चिी गई मैं चाची से दोस्ती किने? क्यों आखखि क्यों ऐसी होती जा िही हाँ मैं? जबकी मेिा इस सब
चीजों से कोई वास्ता नहीं है । कफि क्यों मैं इसके पीछे भागने की कोलशश किती हाँ? आखखिकाि मेिा ये मकसद
नहीं है … इतना सोचकि सबा अपने होंठों को मिने िगती है । ककतनी गंदी हो गई हाँ मैं? अपनी ही चाची के
साथ? नहीं मैं ऐसी नहीं थी। ये क्या िग गया है मेिे होंठों को? दोनों हाथों से सबा अपने होंठ साफ किती है
जैसे कोई गंदगी िगी हो। कुछ दे ि अपने आप पि शलमिंदा होने के बाद सबा उठकि बाथरूम चिी जाती है औि
थोड़ा फ्रेश होकि बाहि आती है ।

फ्रेश होकि सबा नीचे अपनी अम्मी के साथ हे ल्प के लिये ककचेन में चिी जाती है । िात का खाना बनाकि सब
िोग खाते हैं। तब सबा की अम्मी बताती हैं कक आलसफ़ आज अपने दोस्तों के साथ बाहि से ही खाकि आएगा
औि थोड़ा िेट आएगा।

कफि सब िोग खाना खाकि अपने-अपने रूम में चिे जाते हैं। सबा दे ख िही थी कक उसकी चाची उसको िगाताि
घि िही थी। िेककन सबा ने एक दफा भी आाँख उठाकि उसकी तिफ नहीं दे खा। खाने के बतदन उठाकि सबा
ककचेन में िखकि कुछ दे ि टीवी िाउं ज में बैठती है । कफि कुछ दे ि बाद अपने रूम में चिी जाती है । अपने रूम
में पहुाँचकि सबा अपने कपड़े चें ज किती है ।

62
औि बेड पि बैठकि अपने पपछिे कुछ ददनों को िेकि सोचने िगती है कैसे हो गया ये सब? ककतना सकन था
मेिी जजंदगी में । कोई पिे शानी नहीं थी। िेककन अब ये कैसी तिब सी पैदा होने िगी है मेिे अंदि? कैसी घट
ु न
सी महसस होती है इस कमिे में ? कभी तो मैं सािा सािा ददन इस रूम से बाहि नहीं जाती थी िेककन अब?
आए मेिे खुदा ये मझ
ु े क्या होता जा िहा है? मझ
ु े इस दिदि से ननकाि दे । मझ
ु े सही िास्ता ददखा। ये मेिा
ककिदाि नहीं है औि ना ही मैं इसमें उतिना चाहती हाँ। इन्हीं खयािों में गम
ु थी सबा कक उसके रूम का दिवाजा
खुिता है औि चाची अंदि आती हैं।

चाची- “क्यों सबा बस इतनी ही दोस्ती थी? क्या ये है तम्


ु हािा साथ? क्या इतना ही चिना था तम
ु ने मेिे साथ?”
बेड के पास खड़ी चाची अपने हाथ अपनी चगचयां के नीचे बांधे बोिती है ।

सबा अपना लसि झुकाए अभी भी बेड पि ही बैठी चाची की बातें सनु िही थी। उसका लसि नीचे को झुका हुआ
था औि आाँखों में मिानत थी। वो नहीं जानती थी कक वो क्या जवाब दे ? अपने वादे से जो कफि गई थी सबा।
ये मैंने क्या कि ददया? क्यों अपनी चाची का ददि तोड़ ददया मैंने? िेककन मैं ऐसी नहीं हाँ, मैं ये सब नहीं कि
सकती। ये सब मेिे लिये ठीक नहीं। खुद से सबा सोचती है । तभी उसका ध्यान चाची की आवाज से टटता है ।

चाची- “दे खो सबा, मैं जानती हाँ कक ये सब तम्


ु हािे लिये मजु श्कि है । तम्
ु हािे जैसी िड़की ऐसा किने से पहिे सौ
दफा सोचेगी। मझ
ु े अब भी तम
ु से गगिा नहीं है । अभी मैं अगि यहााँ हाँ तो लसफद एक दोस्त होने के नाते क्योंकी
अगि मैं तम्
ु हािी चाची के नाते कहती तो यहााँ नहीं आती। आज िात मेिे रूम का डोि खि
ु ा होगा, औि अंदि जो
होगा वो तम्
ु हािे लिये फैसिा किना आसान कि दे गा। तम्
ु हें एक िड़की का नया रूप नजि आएगा। सबा शायद
तम
ु ने वो इससे पहिे दे खा नहीं होगा। फैसिा तो तम्
ु हें ही किना है औि ककसी को नहीं। िेककन मेिा दोस्त होने
के नाते यही मशविा है कक रूम की हाित दे खकि फैसिा किना। क्योंकी िड़की औि िड़के का ये रूप शायद
तम्
ु हें पसंद आ जाए…” इतना बोि चाची वहााँ से ही रूम से बाहि चिी जाती हैं।

सबा का लसि अभी भी नीचे को झक


ु ा हुआ था आाँस उसकी गोद में गगि िहे थे। कुछ दे ि िोकि सबा अपने
आपको हल्का किती है औि कफि से अपनी सोचों में गम
ु हो जाती है ।

सबा- क्या किे गी त सबा? चाची ने एक औि मोका ददया है । िेककन अगि तझ


ु े ये सब नहीं किना तो वहााँ मत
जा सबा। त ऐसी िड़की नहीं है । त तो एक पाक दामन औि अपने जजश्म को ढांप के िखने वािी िड़की है । त
कैसे ऐसी हो सकती है? मत जाना सबा वहााँ। सबा के अंदि की इंसानीयत बहुत मजबत थी। िेककन शैतान तो
आखखि शैतान है ना… वो भी तो पीछा नहीं छोड़ता।

िेककन सबा कि जब तेिी शादी होगी, क्या तब भी तम


ु अपने मदद के पास नहीं जाओगी? उसे क्या कहोगी? ये
िड़की होना क्या गन
ु ाह हो गया तम्
ु हािे लिये। नहीं नहीं सबा तम्
ु हें जाना होगा चाची के रूम में दे खने कक ऐसा
क्या है वहााँ? औि कफि चाची ने वादा भी ककया है कक वो िाजदान िहे गी, औि कफि वो भी तो एक औित ही हैं।
खब मजे से अपनी िाइफ गज
ु ि िही है । तो मैं क्यों नहीं? मझ
ु े क्या पिे शानी है? क्या करूं मैं कुछ समझ नहीं
आ िही। सबा के अंदि इंसान औि शैतान की जंग जािी थी। कभी इंसान जीत जाता तो कभी शैतान। याँ बैठे -ठे
ही काफी टाइम हो जाता है। अचानक सबा उठकि बेड से खड़ी हो जाती है औि अपने रूम के दिवाजे की तिफ
बढ़ने िगती है ।

63
उसके कदम कहते थे कक आगे मत जाओ। िेककन उसका ददि कहता था कक वो एक िड़की है औि ये हक उससे
कोई नहीं छीन सकता। अपने आपसे िड़ती हुई सबा रूम से बाहि ननकिती है औि चाची के रूम के आगे पहुाँच
जाती है । बाकी सब रूम बंद थे, इसलिये पिा हाि में अंधेिा था। सबा चाची के रूम के आगे जाती है तो उनका
दिवाजा खुिा हुआ था। औि िाइट भी ओन थी। सबा दिवाजे से अंदि को दे खती है तो उसी बेड पि अपने चाच
िेटे हुये नजि आते हैं। िेककन चाची वहााँ नहीं थी। िगता है मैं िेट हाँ। ये िोग अपना काम कि चक
ु े हैं। खद
ु से
सबा कहती है औि वापपस मड़
ु ने िगती है ।

तभी उसी डोि के खुिने औि बंद होने की आवाज आती है । सबा दोबािा से अंदि दे खती है तो उसकी चाची
वाशरूम से बाहि आ िही थीं। िेककन सबा का माँह
ु है ित से खुिा का खुिा िह जाता है । क्योंकी उसकी चाची
बबल्कुि नंगी थी, उनके जजश्म पि एक भी कपड़ा नहीं था। सबा अपनी चाची का भिा हुआ जजश्म दे खकि है िान
थी। एक कफट औित की तिह का जजश्म था सबा की चाची का। 36” साइज की चगचयां पिा गोि शेप में जजसके
ऊपि छोटी-छोटी िाइट ब्राउन ननपल्स थी, जो उसकी खबसिती को औि भी दोगन
ु ा कि िही थीं। पेट हल्का सा
बाहि था, जजसपि उसकी नालभ लशतम ढा िही थी। पेट से नीचे चाची की चत… बबल्कुि पाक साफ ककसी ककश्म
का कोई बाि नहीं था उसके ऊपि। चाची की गाण्ड 38” की थी जजसे दे खकि सबा है िान थी। िेककन वो ये भी
सोच िही थी कक वो चाची के जजश्म से ज्यादा पीछे नहीं है । तभी चाची के कदमों से उसका ध्यान टटता है तो
वो बेड की तिफ दे खती है ।

चाची चिती हुई बेड के पास आती हैं- “साजजद (साजजद सबा का चाच) चिो ना अब उठ भी जाओ सब िोग सो
गयेइ हैं। अब बदादश्त नहीं हो िहा मेिे से…” ये कहते हुये वो बेड पि बैठ जाती हैं औि… िेककन चाची का ध्यान
दिवाजे पि था औि उसका अंदाजा भी ठीक था। उसे सबा वहााँ खड़ी नजि आती है िेककन वो उसे इस चीज का
एहसास नहीं होने दे ती।

चाच- अच्छा जी तो जनाब को आग िगी जा िही है क्या अंदि?

चाची- “आग नहीं साजजद… आग का तफान है अंदि जो बाहि आना चाहता है । अब उठो औि इस तफान को
खतम किो…” ये कहते हुये चाची एक हाथ आगे बढ़ाकि साजजद के िण्ड पि िख दे ती है औि ट्राउजि के ऊपि से
ही मिने िगती है ।

साजजद उठकि खड़ा हो जाता है , औि अपना ट्राउजि नीचे को किते हुये बोिता है - “अिी इतनी आग िगी है कक
दिवाजा भी बंद नहीं ककया तम
ु ने? रुको मैं किके आता हाँ…”

इससे पहिे कक साजजद नीचे उतिता कफज़ा मतिब (सबा की चाची) साजजद का हाथ पाकि िेती है- “नहीं
साजजद, इसे बंद मत किो। आज खुिी हवा में किने को ददि कि िहा है इसलिये बंद नहीं ककया…”

साजजद- “खुिी हवा में किना है तो बाहि िान में ही कि िेते हैं…” औि हाँसते हुये साजजद अपने िण्ड को अपने
हाथ से मसिने िगता है । िण्ड को मसिते हुये साजजद कफज़ा की 36” की चगचयों को पकड़ िेता है औि एक-
एक किके मसिने िगता है । कफि साजजद नीचे बैठते हुये अपने दोनों हाथों में कफज़ा के ननपल्स को िेकि
मसिने िगता है ।

64
जजससे कफज़ा की लससकारियां ननकिने िगती हैं- “आअह्ह… साजजद इन्हें ननचोड़ दो साजजद प्िीज़्ज़… बहुत भि
गई हैं ये दध से। तम
ु इन्हें खािी कि दो ना प्िीज़्ज़… साजजद ऊह्ह… जोि दबाओ। ओह्ह… इसस्स्स्स्स…
ह्म्म्म्मम…” कफज़ा लससकती हुई अपनी चगचयां दबवा िही थी।

कफज़ा की चगचयां से कुछ बाँदें दध की ननकिती हैं औि उसके पेट पि गगिने िगती हैं। कफज़ा का ददि था कक
साजजद उसके ननपल्स को माँह
ु में िेकि चसे, िेककन वो ऐसा नहीं किता औि चगचयां को छोड़कि वो एक हाथ
चत पि िखकि जक्िट को छे ड़ने िगता है औि दसिा हाथ गदद न पि डािकि कफज़ा के माँह ु को आगे किते हुये
ककस किने िगता है । कुछ दे ि ककस किने के बाद साजजद खड़ा हो जाता है । कफज़ा समझ जाती है साजजद क्या
चाहता है ? कफि दोनों मश्ु कुिाते हैं औि कफज़ा बेड पि घट
ु नों के बि बैठकि अपने हाथ में साजजद का िण्ड िेती
है औि उसे सहिाने िगती है ।

बाहि खड़ी सबा है ित से ये सब दे ख िही थी। ककसी नंगे मदद को पहिी बाि औि ककसी नंगी िड़की को भी पहिी
बाि। उसका माँह
ु ऐसे खुिा था जैसे कक कोई आठवााँ अजबा दे ख लिया हो। िेककन असिी झटका उसे तब िगता
है , जब अंदि कफज़ा िण्ड को मसिते हुये उसके ऊपि थकती है, औि अपने होंठ खोिते हुये उसे माँह ु में िे िेती
है , औि जबु ान फेिते हुये चसने िगती है । कफज़ा साजजद के िण्ड को कभी अंदि किती है , कभी बाहि ननकािती
है । औि साथ-साथ अपना थक भी उसपि िगाती जाती है । कुछ ही िम्हों में साजजद के िण्ड की नशें फिने
िगती हैं, औि वो अपने पिा आकि में आकि सख़्त हो जाता है ।

कफज़ा िण्ड को चसते हुये आाँखें घम ु ा-घम


ु ाकि सबा को दे ख िही थी, जो कक दिवाजे के पीछे छुपी हुई बस अपनी
आाँखें बंद ककए हुये अंदि झााँक िही थी। कफज़ा जानती थी कक उसने जो ककया है, अगि वो कामयाब हो गई तो
उसकी िाटिी िग जाएगी। कुछ दे ि िण्ड चसने के बाद कफज़ा िौड़े को माँह
ु से बाहि ननकािती है औि बेड पि
िेट जाती है अपनी टााँगें फैिाकि। साजजद िण्ड को मसिते हुये घट
ु नों के बि बैठ जाता है औि अपने िण्ड को
कफज़ा की चत पि सेट किने िगता है ।

कफज़ा- “साजजद प्िीज़्ज़… एक दफा चस्सो ना… आखखि क्यों सीधा चद


ु ाई पि आ जाते हो तम
ु ?”

साजजद- “दे खो जान, मैंने तम


ु से पहिे भी कहा है के मझ
ु े चाटना पसंद नहीं है । औि मैं ये सब नहीं कि सकता
प्िीज़्ज़…” इतना बोिकि साजजद अपने िण्ड की टोपी को कफज़ा की चत पि दबाता है ।

िण्ड की टोपी अंदि जाते ही कफज़ा के माँह


ु से आह्ह की लससकािी ननकिती है औि वो बेडशीट को दोनों हाथों से
पकड़ िेती है । साजजद धीिे -धीिे िण्ड को अंदि किता है । पिा अंदि जाने के बाद साजजद िण्ड के बाहि
ननकािता है औि कफि से अंदि किने िगता है । दो या तीन दफा में ही साजजद का िण्ड गीिा हो जाता है औि
आसानी से अंदि बाहि होने िगता है । ये दे खकि साजजद कफज़ा के ऊपि झक
ु ता है औि उसके होंठों को अपने
होंठों में िेते हुये चसने िगता है औि नीचे से कमि को तेजी से आगे पीछे किने िगता है ।

बाहि खड़ी सबा ये सब नजािा दे खकि पागि होती जा िही थी। आज तक उसने सेक्स नहीं दे खा था, यहााँ तक
के मवी या पोनद भी नहीं। ये उसकी जजंदगी का पहिे शो था, वो भी िाइव… औि वो भी अपने ही चाच चाची
का। ये सोच-सोचकि सबा है ित से सख
ु द होती जा िही थी। उसके जजश्म की गमी उसकी आाँखों में आने िगी थी
क्योंकी आाँखें इस वक्त सख
ु द हो चक
ु ी थीं।

65
अंदि साजजद िगाताि कफज़ा को चोद िहा था। तभी साजजद सांस िेने के लिये ककस तोड़ता है िेककन चद
ु ाई नहीं
िोकता। ककस के टटते ही कफज़ा एक िंबी सांस छोड़ती है । जजसके बाद उसकी लससकारियां हवा में उड़ना शरू
ु हो
जाती हैं।

कफज़ा- “ओह्ह… साजजद ह्म्म्म्म… ह्म्म्म्म… हााँ ऐसे ही… रुकना मत साजजद… किते िहो ऐसे ही मेिा होने वािा
है । प्िीज़्ज़… तेज-तेज धक्के मािो ना। हााँ हााँ ऊऊह्ह… मेिे खापवंद ऐसे ही अपनी बीवी को चोदोओ। हााँन्न ् यहााँ
पि यहााँ पि तेज तेज औि तेज़्ज़्ज़्ज़। ओह्ह… हााँ मेिा होने िगा है साजजद। रुकना मत प्िीज़्ज़… ओह्ह… मैं
आईई मेिी फुद्दीऽऽ… साजजद पानी छोड़ ददया इसने… ह्म्म्म्मम… आआआ…” चीखते हुये कफज़ा झड़ने िगती है ।
कफज़ा की चत का पानी बह-बहकि साजजद के िण्ड से िगते हुये बाहि आने िगता है ।

बाहि दिवाजे पि खड़ी सबा ये सब दे खकि है िान थी। उसकी चाची कैसे अपने पनत से चुदाई किवा िही हैं। औि
ककतना एंजाय कि िही हैं। बेसाख्ता ही सबा अपना दायां हाथ अपने कपड़ों के ऊपि से ही अपनी चत पि िखकि
दबा दे ती है । चत के दबाती ही उसमें से कुछ कतिे पानी के ननकिकि सबा की शिवाि को िग जाते हैं। ये
दे खकि सबा है िान िह जाती है कक लसफद दे खने से ही उसका ये हाि हो गया है कक इतने ज्यादा कतिे ननकि
गये उसके। इन्हीं सोचों में गम
ु थी सबा कक अंदि की आवाज से उसका ध्यान कफि से अंदि जाता है ।

साजजद- कफज़ा जान्न ् मेिा होने वािा है ।

कफज़ा- “नहीं साजजद प्िीज़ अभी नहीं एक दफा औि मझ


ु े झाड़ दोओ प्िीज़्ज़… तम
ु दे ख नहीं िहे भाथी कैसी तपी
हुई है प्िीज़्ज़…”

साजजद- आिे मेिे से औि सहा नहीं जाएगा, तम्


ु हािी फुद्दी गिम ही इतनी है । मेिा िौदा औि बदादश्त नहीं कि
पाएगा प्िीज़्ज़… समझो बात को आआह्ह… मैं आया…” इतना बोिते हुये साजजद अपना पानी कफज़ा की फुद्दी में
छोड़ने िगता है , औि साथ ही साइड पि होकि िेट जाता है ।

कफज़ा- “साजजद कभी तो दो दफा पानी छुड़वाओ मेिा। ककतनी दफा कहा है कक गोिी ही खा लिया किो िेककन
तम्
ु हें कोई असि नहीं। ऐसा ना हो कक मैं अपनी आग के हाथों तंग आकि ककसी ददन ककसी औि मदद के नीचे
िेट जाऊाँ? कफि ना कहना कक ये तम
ु ने क्या ककया है?” गस्
ु से में कफज़ा बोिती है औि टााँगें सीधी किके बेड पि
िेट जाती है ।

साजजद- “तो चद
ु वा िो, मैंने कब तम्
ु हें मना ककया है? रुसवाई भी तो तम्
ु हािी ही होनी है ना चद
ु वाने से, मेिा
क्या जाएगा?” गस्
ु से से साजजद कहता है औि उठकि वाशरूम चिा जाता है ।

सबा बाहि खड़ी ये सब सन


ु िही थी। साजजद को उठता दे खकि वो वहााँ से पीछे को होती है औि तेजी से चिते
हुये अपने रूम में आ जाती है । अपने रूम में पहुाँचकि सबा दिवाजा बंद किती है औि अपनी सांस को संभािने
िगती है , जजसके फिने का अंदाजा उसे अपने रूम में पहुाँचकि ही हुआ था। अपने चाचा चाची को दे खते हुये तो
उसे पता नहीं चिा कक उसके अंदि क्या हो िहा है ? सबा पानी पी ी है औि कफि बेड पि गगिती हुई िेट जाती
है ।

66
कुछ दे ि गज
ु िने के बाद जब वो नामदि होती है तो उसकी आाँखों के सामने कफि से वही दृश्य आने िगता है।
बाि-बाि उसकी आाँखों के सामने कभी उसकी चाची का नंगा जजश्म आता है तो कभी चाच का नंगा जजश्म आता
है । कैसे चाची अपने जजश्म को नंगा िेकि चाच के सामने आ गईं औि वो सब शरू
ु कि ददया। औि चाच
जजनको मैं इतना मानती थी वो भी एकदम से नंगी हो गये। औि हों भी क्यों ना… वो अपनी बीवी के साथ वो
सब कि िहे थे। इसमें तो कोई गित बात भी नहीं है ।

ये इंसान के ककतने रूप होते हैं पदे के पीछे । कोई सोच भी नहीं सकता। सािा ददन चाच कैसे मासम से िहते हैं,
औि िात को कमिे में क्या तफान उठते हैं। क्या चाच लसफद चाची के साथ ही किते हैं। या चाची की तिह शादी
से पहिे वो भी ककसी से कि चुके हैं। क्या चाच मेिे साथ भी ये सब कि सकते हैं, अगि मैं याँ नंगी जाऊाँ उनके
सामने तो? नहीं वो ऐसा नहीं किें गे, वो बहुत अच्छे हैं मेिी बहुत इज्जत भी किते हैं। िेककन हाँ तो मैं भी एक
िड़की ही… नंगी उनके सामने जाऊाँगी तो वो मझ ु े भी पकड़ िेंगे औि ऐसे ही किें गे मेिे साथ।

सबा के ददमाग में िाखों सवाि आ िहे थे औि खुद ही वो उनके जवाब भी बनाती जा िही थी, औि चाची का याँ
खुिना… क्या चाची हि दफा सेक्स में ऐसे ही होती हैं? औि कैसे वो चाच का माँह
ु में िेकि चाटती िही थीं।
छीीः… ककतनी गंदी है चाची। औि ऊपि से चाच को भी कह िही थीं चाटने के लिये, चाची को क्या हो गया है ?
ऐसे भी भिा कोई किता है क्या? िेककन उनको बहुत मजा आ िहा था, तभी तो वो ऐसे गचल्िा िही थीं। क्या
वाकई इतना मजा आता है? मैं क्या करूं? मझ
ु े कुछ समझ में नहीं आ िही। चाची ने मझ
ु े क्यों ददखाया ये
सब? मैं तो पहिे से ही उिझी हुई हाँ। अब मजीद औि क्या करूं मैं। आज मझ
ु े फैसिा किना ही होगा। या तो
चाची को बबल्कुि जवाब दे दं गी, या कफि चाची की बात मानकि उनके साथ लमिकि चिग ं ी।

आज मझ
ु े फैसिा किना होगा। हााँ सबा तझ
ु े अब एक फैसिा िेना है । एक तिफ वो सबा है जजसकी सब इज्जत
किते हैं, जो पदे से बाहि नहीं आती, पिहे जगाि औि पाक साफ दामन वािी… औि दसिी तिफ वो सबा है जो
कुछ दे ि पहिे वहााँ दिवाजे पि खड़ी वो सब दे ख िही थी। मझ
ु े कुछ समझ में नहीं आ िही है कक मैं क्या करूं?
औि कैसे करूं? मझ
ु े एक सबा को मािना होगा। मािना होगा मझ
ु े एक सबा को।

अंततम अपडेट 30-01-2017 को पष्ृ ठ 083… पोस्ट 829 पर (अपडेट_19)

अधूरी

67

You might also like