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Salok Mahala 9 in Hindi


Lyrics – सलोक (महला 9)
 December 30, 2021  NitnemBani  1 Comment

Salok Mahala 9 in Hindi – सलोक (महला 9)

Salok Mahala 9 in Hindi : Salok Mahala 9 are


the saloks by the ninth Sikh Guru, Guru Tegh
Bahadur Ji which form the concluding portion of
the Guru Granth Sahib. They precede Guru
Arjan’s Mundavani and appear from page 1426
to 1429 of the Sikh holy Granth. This
composition consists of 57 (Mfty seven) saloks
and span just 4 pages of Gurbani.

These saloks form an important part of the


epilogue when bringing to a close the reading of
the Guru Granth Sahib (Bhog) on a religious or
social occasion and should thus be the most
familiar fragment of it, after the Japji Sahib, the
Sikhs’ morning prayer.

Each salok in Salok Mahala 9 is a couplet


consisting of 2 lines. This Bani was incorporated
into the Guru Granth Sahib by Guru Gobind
Singh Ji, the last human Guru of the Sikhs. As is
commonly believed, they were composed by
Guru Teg Bahadur while in the ‘Kotwali’ (prison)
at Chandni Chowk, Delhi, before he achieved
martyrdom.

Salok Mahalla 9 Lyrics In Hi…

Salok Mahala 9 in
Hindi
ੴ सितगुर प्रसािद ॥
सलोक महला ९ ॥
गुन गोिबं द गाइओ नही जनमु अकारथ कीनु ॥ कहु नानक हिर
भजु मना िजह िबिध जल कउ मीनु ॥१॥
िबिखअन िसउ काहे रिचओ िनमख न होिह उदासु ॥ कहु नानक
भजु हिर मना परै न जम की फास ॥२॥
तरनापो इउ ही गइओ लीओ जरा तनु जीित ॥ कहु नानक भजु
हिर मना अउध जातु है बीित ॥३॥
िबरिध भइओ सूझै नही कालु पहूिचओ आिन ॥ कहु नानक नर
बावरे िकउ न भजै भगवानु ॥४॥

धनु दारा स्मपित सगल िजिन अपुनी किर मािन ॥ इन मै कछु संगी
नही नानक साची जािन ॥५॥
पितत उधारन भै हरन हिर अनाथ के नाथ ॥ कहु नानक ितह
जानीऐ सदा बसतु तुम सािथ ॥६॥
तनु धनु िजह तो कउ दीओ तां िसउ नेहु न कीन ॥ कहु नानक नर
बावरे अब िकउ डोलत दीन ॥७॥
तनु धनु स्मपै सुख दीओ अरु िजह नीके धाम ॥ कहु नानक सुनु रे
मना िसमरत कािह न रामु ॥८॥

सभ सुख दाता रामु है दू सर नािहन कोइ ॥ कहु नानक सुिन रे मना


ितह िसमरत गित होइ ॥९॥
िजह िसमरत गित पाईऐ ितह भजु रे तै मीत ॥ कहु नानक सुनु रे
मना अउध घटत है नीत ॥१०॥
पांच तत को तनु रिचओ जानहु चतुर सुजान ॥ िजह ते उपिजओ
नानका लीन तािह मै मानु ॥११॥
घट घट मै हिर जू बसै संतन किहओ पुकािर ॥ कहु नानक ितह
भजु मना भउ िनिध उतरिह पािर ॥१२॥

सुखु दुखु िजह परसै नही लोभु मोहु अिभमानु ॥ कहु नानक सुनु रे
मना सो मूरित भगवान ॥१३॥
उसतित िनं िदआ नािह िजिह कंचन लोह समािन ॥ कहु नानक सुिन
रे मना मुकित तािह तै जािन ॥१४॥
हरखु सोगु जा कै नही बैरी मीत समािन ॥ कहु नानक सुिन रे मना
मुकित तािह तै जािन ॥१५॥
भै काहू कउ देत निह निह भै मानत आन ॥ कहु नानक सुिन रे मना
िगआनी तािह बखािन ॥१६॥

िजिह िबिखआ सगली तजी लीओ भेख बैराग ॥ कहु नानक सुनु रे
मना ितह नर माथै भागु ॥१७॥
िजिह माइआ ममता तजी सभ ते भइओ उदासु ॥ कहु नानक सुनु रे
मना ितह घिट ब्रहम िनवासु ॥१८॥
िजिह प्रानी हउमै तजी करता रामु पछािन ॥ कहु नानक वहु मुकित
नरु इह मन साची मानु ॥१९॥
भै नासन दुरमित हरन किल मै हिर को नामु ॥ िनिस िदनु जो
नानक भजै सफल होिह ितह काम ॥२०॥

िजहबा गुन गोिबं द भजहु करन सुनहु हिर नामु ॥ कहु नानक सुिन
रे मना परिह न जम कै धाम ॥२१॥
जो प्रानी ममता तजै लोभ मोह अहंकार ॥ कहु नानक आपन तरै
अउरन लेत उधार ॥२२॥
िजउ सुपना अरु पेखना ऐसे जग कउ जािन ॥ इन मै कछु साचो
नही नानक िबनु भगवान ॥२३॥
िनिस िदनु माइआ कारने प्रानी डोलत नीत ॥ कोटन मै नानक
कोऊ नाराइनु िजह चीित ॥२४॥

जैसे जल ते बुदबुदा उपजै िबनसै नीत ॥ जग रचना तैसे रची कहु


नानक सुिन मीत ॥२५॥
प्रानी कछू न चेतई मिद माइआ कै अंधु ॥ कहु नानक िबनु हिर
भजन परत तािह जम फंध ॥२६॥
जउ सुख कउ चाहै सदा सरिन राम की लेह ॥ कहु नानक सुिन रे
मना दुरलभ मानुख देह ॥२७॥
माइआ कारिन धावही मूरख लोग अजान ॥ कहु नानक िबनु हिर
भजन िबरथा जनमु िसरान ॥२८॥

जो प्रानी िनिस िदनु भजै रूप राम ितह जानु ॥ हिर जन हिर अंतरु
नही नानक साची मानु ॥२९॥
मनु माइआ मै फिध रिहओ िबसिरओ गोिबं द नामु ॥ कहु नानक
िबनु हिर भजन जीवन कउने काम ॥३०॥
प्रानी रामु न चेतई मिद माइआ कै अंधु ॥ कहु नानक हिर भजन
िबनु परत तािह जम फंध ॥३१॥
सुख मै बहु संगी भए दुख मै संिग न कोइ ॥ कहु नानक हिर भजु
मना अंित सहाई होइ ॥३२॥

जनम जनम भरमत िफिरओ िमिटओ न जम को त्रासु ॥ कहु


नानक हिर भजु मना िनरभै पाविह बासु ॥३३॥
जतन बहुतु मै किर रिहओ िमिटओ न मन को मानु ॥ दुरमित िसउ
नानक फिधओ रािख लेहु भगवान ॥३४॥
बाल जुआनी अरु िबरिध फुिन तीिन अवसथा जािन ॥ कहु नानक
हिर भजन िबनु िबरथा सभ ही मानु ॥३५॥
करणो हुतो सु ना कीओ पिरओ लोभ कै फंध ॥ नानक सिमओ
रिम गइओ अब िकउ रोवत अंध ॥३६॥

मनु माइआ मै रिम रिहओ िनकसत नािहन मीत ॥ नानक मूरित


िचत्र िजउ छािडत नािहन भीित ॥३७॥
नर चाहत कछु अउर अउरै की अउरै भई ॥ िचतवत रिहओ ठगउर
नानक फासी गिल परी ॥३८॥
जतन बहुत सुख के कीए दुख को कीओ न कोइ ॥ कहु नानक
सुिन रे मना हिर भावै सो होइ ॥३९॥
जगतु िभखारी िफरतु है सभ को दाता रामु ॥ कहु नानक मन
िसमरु ितह पूरन होविह काम ॥४०॥

झूठै मानु कहा करै जगु सुपने िजउ जानु ॥ इन मै कछु तेरो नही
नानक किहओ बखािन ॥४१॥
गरबु करतु है देह को िबनसै िछन मै मीत ॥ िजिह प्रानी हिर जसु
किहओ नानक ितिह जगु जीित ॥४२॥
िजह घिट िसमरनु राम को सो नरु मुकता जानु ॥ ितिह नर हिर
अंतरु नही नानक साची मानु ॥४३॥
एक भगित भगवान िजह प्रानी कै नािह मिन ॥ जैसे सूकर सुआन
नानक मानो तािह तनु ॥४४॥

सुआमी को िग्रहु िजउ सदा सुआन तजत नही िनत ॥ नानक इह


िबिध हिर भजउ इक मिन हुइ इक िचित ॥४५॥
तीरथ बरत अरु दान किर मन मै धरै गुमानु ॥ नानक िनहफल जात
ितह िजउ कुंचर इसनानु ॥४६॥
िसरु क्मिपओ पग डगमगे नैन जोित ते हीन ॥ कहु नानक इह
िबिध भई तऊ न हिर रिस लीन ॥४७॥
िनज किर देिखओ जगतु मै को काहू को नािह ॥ नानक िथरु हिर
भगित है ितह राखो मन मािह ॥४८॥

जग रचना सभ झूठ है जािन लेहु रे मीत ॥ किह नानक िथरु ना रहै


िजउ बालू की भीित ॥४९॥
रामु गइओ रावनु गइओ जा कउ बहु परवारु ॥ कहु नानक िथरु
कछु नही सुपने िजउ संसारु ॥५०॥
िचं ता ता की कीजीऐ जो अनहोनी होइ ॥ इहु मारगु संसार को
नानक िथरु नही कोइ ॥५१॥
जो उपिजओ सो िबनिस है परो आजु कै कािल ॥ नानक हिर गुन
गाइ ले छािड सगल जंजाल ॥५२॥

दोहरा ॥

बलु छु टिकओ बंधन परे कछू न होत उपाइ ॥ कहु नानक अब ओट


हिर गज िजउ होहु सहाइ ॥५३॥
बलु होआ बंधन छु टे सभु िकछु होत उपाइ ॥ नानक सभु िकछु
तुमरै हाथ मै तुम ही होत सहाइ ॥५४॥
संग सखा सिभ तिज गए कोऊ न िनबिहओ सािथ ॥ कहु नानक
इह िबपित मै टेक एक रघुनाथ ॥५५॥
नामु रिहओ साधू रिहओ रिहओ गुरु गोिबं दु ॥ कहु नानक इह
जगत मै िकन जिपओ गुर मंतु ॥५६॥
राम नामु उर मै गिहओ जा कै सम नही कोइ ॥ िजह िसमरत संकट
िमटै दरसु तुहारो होइ ॥५७॥१॥

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Salok Mahala 9 in Punjabi Translation – ਸਲੋ ਕ


ਮਹਲਾ ੯ →

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Sikhism or Sikhi (from Sikh, ‘disciple’, ‘seeker’, or


‘learner’) is a religion that originated in the Punjab
region of the Indian subcontinent around the end of
the 15th century CE. Sikhism is one of the youngest of
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Sikh is a follower of Guru Nanak Dev who has


embraced the Sikh religion of this paragon of truth,
and professes Guru Granth Sahib as his scripture, and
regards the ten Gurus as identical.

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