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आसन सिद्धि
आसन सिद्धि
ृ त्रयी कल्प(आसन
सिद्धि,अक्षत तंत्र,मेधातंत्र)२-आसन सिद्धि
सिद्ध विरूपाक्ष ने इस शब्द को नवीन अर्थ प्रदान किया है ...उन्होंने बताया की साधक को
किस माध्यम का किस तरह प्रयोग करना चाहिए..इसका ज्ञान अनिवार्य है ,इस पद्धति का
पर्ण
ू ज्ञान ना होने पर वह माध्यम मात्र माध्यम ही रह जाता है ,अब उसके प्रयोग से साधक
को उसके तंत्रकार्य में अनक ु ू लता मिलेगी ही ऐसा कोई प्रावधान नहीं है |
“पर्णू म पर्णै
ू सपरिपर्णू : आसन: दिव्यताम सिद्धि:” अर्थात आसन मात्र आसन न हो
अपितु उसमे पर्ण ू दिव्यता का संचार हो और वो दिव्यता से यक् ु त हो तभी उसके प्रयोग से
साधक की दे ह दिव्य भाव यक् ु त होती है और तब यदि उसका भाव या साधना पक्ष उसे
पर्ण
ू त्व के मार्ग पर सहजता से गतिशील करा दे ता है और साधक को पर्ण ू ता प्राप्त होती ही
है | यहाँ पर्ण
ू म का अर्थ भी यही है की माध्यम पर्ण
ू त्व गणु यक्
ु त हो तभी तो पर्ण ू त्व प्राप्त
होगा |
तंत्र शास्त्र कहता है की दिव्यता ही दिव्यता को आकर्षित कर सकती है |यदि साधक दिव्य
तत्वोव के सामीप्य का लाभ लेता है या संपर्क में रहता है तो उसकी दे ह में स्वतः दिव्यता
आने लगती है ,तब ऐसे में वातावरण में उपस्थित वे सभी नकारात्मक अपदे व शक्ति,
अदृश्य यक्ष,प्रेत आदि आपके मंत्र जप को आकर्षित नहीं कर पाते हैं और आपकी क्रिया का
पर्णू फल आपको प्राप्त होता ही है | हममे से बहुतरे े साधक ये नहीं जानते हैं की जब भी वे
किसी महत्वपर्ण ू दिवस पर साधना का संकल्प लेते हैं और जैसे जैसे साधना का समय
समीप आता है उनके मन में साधना और इष्ट के प्रति नकारात्मक विचार उत्पन्न होते
जाते हैं | या यदि कडा मन करके वे साधना संपन्न करने हे तु बैठ भी गए तो कुछ समय
बाद उन्हें ये लगने लगता है की बाहर मेरे मित्र अपने मनोरं जन में व्यस्त हैं और मैं मर्ख ू
यहाँ बैठा बैठा पता नहीं क्या कर रहा हूँ ?
क्या होगा ये सब करके ?
आज तक तो कुछ हुआ नहीं,अब क्या नया हो जाएगा ?
हमें ये ज्ञात नहीं है की आसन यदि पर्ण ू प्रतिष्ठा से यक्
ु त ना हो तो हम चाहे कितने भी
गद ु गद ु े आसन पर या गद्दे पर बैठ जाएँ,हम हिलते डुलते रहें गे और हमारे चित्त में बैचेनी
की तीव्रता बनी रहे गी | और इसका कारण हमारे शरीर का मजबत ू होना नहीं है अपितु
भमि ू के भीतर रहने वाली नकारात्मक शक्तियां सरु क्षा आवरण विहीन हमारी इस भौतिक
दे ह से सरलता से संपर्क कर लेती हैं और तब उनके दष्ु प्रभाव से हमारा चित्त भी बैचेन हो
जाता है और शरीर भी टूटने लगता है और वे सतत हमें साधना से विमख ु होने के भाव से
प्रभावित करते रहते हैं| और जब ऐसी स्थिति होगी,आप व्याकुल मन और अस्थिर शरीर
से कैसे साधना करोगे और कैसे आपको सफलता मिलेगी | और यदि आप आसन से अलग
हो जाते हो तो पन ु ःना सिर्फ आपका शरीर स्वस्थ हो जाता है बल्कि आपका चित्त भी
प्रसन्न हो जाता है |
तभी सदगरु ु दे व हमेशा कहते थे की इस धरा पर बहुत कम गिने चन ु े स्थान बचे हैं ,जहाँ पर
बैठकर उच्च स्तरीय साधना की जा सकती है ,ऐसी साधनाएं या तो सिद्धाश्रम की दिव्य
भमि ू पर संपन्न की जा सकती है या फिर शन् ु यआसन का प्रयोग कर,बाकी ऐसी कोई जगह
नहीं है जो दषि ू त ना हो | यहाँ तक की भी शमशान साधना में भी तब तक सफलता की
प्राप्ति संभव नहीं हो सकती जब तक की उस साधक को आसन खिलने की पद्धति का
भली भांति ज्ञान न हो | एक साधक के द्वारा प्रयक् ु त सभी साधना सामग्री का विशिष्ट
गण ु ों से यक्
ु त होना अनिवार्य है अन्यथा सामान्य सामग्रियों में यदि वो विशिष्टता उत्पन्न
ना कर दे तो उसके द्वारा संपन्न की गयी साधना क्रिया सामान्य ही रह जायेगी | यदि हम
स्वगरु ु या किन्ही सिद्ध विशेष का आवाहन करते हैं तो प्रत्यक्षतः उन्हें प्रदान किये गए
आसन भी पर्ण ू शद् ु धता के साथ और दिव्यता से यक्ु त होने चाहिए |
इसके लिए आप एक नया रं गबिरं गा ऊनी कम्बल ले सकते हैं और इसे सिद्ध करने के
पश्चात इसके ऊपर आप अपने वांछित रं ग का रे शमी या ऊनी वस्त्र भी बिछा सकते हैं |
मंगलवार की प्रातः पर्ण ू स्नान कर लाल वस्त्र धारण कर लाल आसन पर बैठकर भमि ू पर
तीन मैथन ु चक्र का निर्माण क्रम से कुमकुम के द्वारा कर ले | १ और ३ चक्र छोटे होंगे
और मध्य वाला आकार में थोडा बड़ा होगा | मध्य वाले चक्र के मध्य में बिंद ु का अंकन
किया जायेगा बाकी के दोनों चक्र में ये अंकन नहीं होगा | मध्य वाले चक्र में आप उस
कम्बल को मोड़कर रख दे और अपने बाए तरफ वाले चक्र के मध्य में तिल के तेल का
दीपक प्रज्वलित कर ले और दाहिने तरफ वाले चक्र में गौघत ृ का दीपक प्रज्वलित कर
ले,और हाँ दोनों दीपक चार चार बत्तियों वाले होने चाहिए | अब गरु ु पज ू न और गणपति
पज ू न के पश्चात पंचोपचार विधि से उन दोनों दीपकों का भी पज ू न करे ,नैवेद्य की जगह
कोई भी मौसमी फल अर्पित करे |
इसके बाद उस कम्बल का पंचोपचार पज ू न करे | तत्पश्चात कुमकुम मिले १०८-१०८
अक्षत को निम्न मंत्र क्रम से बोलते हुए उस कम्बल पर डाले |
ऐं (AING) ज्ञान शक्ति स्थापयामि नमः
तत्पश्चात निम्न ध्यान मंत्र का ७ बार उच्चारण करे और ध्यान के बाद जल के छींटे उस
वस्त्र पर छिडके –
ॐ पथ् ृ वी त्वया धत
ृ ा लोका दे वी त्वं विष्णन
ु ा धत
ृ ा|
त्वं च धारय माम दे वी: पवित्रं कुरु च आसनं ||
ॐ सिद्धासनाय नमः
ॐ कमलासनाय नमः
ॐ सिद्ध सिद्धासनाय नमः
इसके बाद निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए पष्ु प मिश्रित अक्षत को उस कम्बल या वस्त्र
पर ३२४ बार अर्पित करे |
ॐ ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं सप्तलोकं धात्रि अमक
ु ं आसने सिद्धिं भ:ू दे व्यै नमः ||