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विषय-हिंदी

परियोजना कार्य

भारत की पाँच आदर्श महिलाएँ

नाम- हृदयंगम कश्यप


कक्षा-9
रोल नंबर-10
INDEX…
क्रमिक संख्या शीर्षक पृष्ठ सं।

1. परिचय 3

2. मदर टेरेसा 4

3. प्रतिभा पाटिल 7

4. कल्पना चावला 10

5. किरण बेदी 13

6. आरती साहा 15
परिचय…..

जैसे की हम सभी जानते हैं हमारा देश भारत पुरुष प्रभुत्व वाला देश है जहां पुरुषों को महिलाओं की तुलना में ज्यादा माना
जाता है जो कि सही बात नहीं है। आज भी भारत में ज्यादातर जगह में है महिलाओं को पुरुषों की तरह काम करने नहीं दिया
जाता और उन्हें परिवार की देखभाल और घर से ना निकलने की हिदायत दी जाती है।

सामाजिक प्रगति में योगदान– संसार के विकसित देशों और विकासशील देशों में नारी का अपने   राष्ट्र निर्माण  में  महत्वपूर्ण
योगदान हैं। भारत में भी कु शल और उच्च शिक्षा प्राप्त महिलाओं का प्रतिशत बढ़ता जा रहा हैं. इस प्रकार कामकाजी महिलाओं
की संख्या तेजी से बढ़ रही हैं. राष्ट्र के निर्माण और विकास में उनका योगदान कम महत्व का नहीं हैं।
1.मदर टेरेसा
ऐसा माना जाता है कि दुनिया में लगभग सारे लोग सिर्फ अपने
लिए जीते हैं पर मानव इतिहास में ऐसे कई मनुष्यों के उदहारण
हैं जिन्होंने अपना तमाम जीवन परोपकार और दूसरों की सेवा
में अर्पित कर दिया। मदर टेरेसा भी ऐसे ही महान लोगों में एक
हैं जो सिर्फ दूसरों के लिए जीते हैं। मदर टेरेसा ऐसा नाम है
जिसका स्मरण होते ही हमारा ह्रदय श्रध्धा से भर उठता है
और चेहरे पर एक ख़ास आभा उमड़ जाती है।
मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कॉप्जे (अब
मसेदोनिया में) में हुआ। उनके पिता निकोला बोयाजू एक साधारण
व्यवसायी थे। मदर टेरेसा का वास्तविक नाम ‘अगनेस गोंझा
बोयाजिजू’ था। जब वह मात्र आठ साल की थीं तभी उनके पिता
परलोक सिधार गए,  जिसके बाद उनके लालन-पालन की सारी स्कॉप्जे (अब मसेदोनिया में)
जिम्मेदारी उनकी माता द्राना बोयाजू के ऊपर आ गयी। वह पांच
भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं। पढाई के साथ-साथ, गाना उन्हें
बेहद पसंद था। वह और उनकी बहन पास के गिरजाघर में मुख्य
गायिका थीं।

निकोला बोयाजू
शिक्षा :
मदर टेरेसा आयरलैंड गयीं जहाँ उन्होंने अंग्रेजी भाषा सीखी।
अंग्रेजी सीखना इसलिए जरुरी था क्योंकि ‘लोरेटो’ की सिस्टर्स
इसी माध्यम में बच्चों को भारत में पढ़ाती थीं।

उपलब्धि:
• नोबल पीस प्राइज -१९७९
• भारत रत्न -१९८०
• पद्मा श्री -१९६२
• स्वतंत्रता का राष्ट्रपति पदक- १९८५
2. प्रतिभा पाटिल
प्रतिभा देवीसिंह पाटिल (जन्म १९ दिसंबर १९३४) स्वतन्त्र
भारत के ६० साल के इतिहास में पहली महिला राष्ट्रपति तथा
क्रमानुसार १२वीं राष्ट्रपति रही हैं। राष्ट्रपति चुनाव में प्रतिभा
पाटिल ने अपने प्रतिद्वंदी भैरोंसिंह शेखावत को तीन लाख से
ज़्यादा मतों से हराया था।
स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल
का जन्म 19 दिसंबर, 1934 को महाराष्ट्र के जलगांव जिले में हुआ था.
इनके पिता का नाम नारायण राव था. टेबल टेनिस की बेहतरीन खिलाड़ी
प्रतिभा पाटिल एक समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता भी रही हैं. उन्होंने कई इंटर
कॉलेज प्रतियोगिताओं में टेबल टेनिस के खेल में अपने संस्थान का नाम भी
रोशन किया है. वह 1962 में कॉलेज क्वीन भी चुनी जा चुकी हैं. सन 1965
में प्रतिभा पाटिल का विवाह शिक्षाविद देवीसिंह रणसिंह शेखावत के साथ
संपन्न हुआ. भारतीय परंपराओं का निर्वाह करते हुए उन्होंने अपने पिता के
नाम को छोड़ अपने पति के नाम को अपना लिया और बाद में प्रतिभा देवीसिंह
पाटिल के रूप में विख्यात हुईं.
  शिक्षा :
प्रतिभा पाटिल के पिता सरकारी वकील थे, इस कारण परिवार में बेटी की शिक्षा के लिए अनुकू ल माहौल था।
प्रतिभा पाटिल ने आरम्भिक शिक्षा नगरपालिका की प्राथमिक कन्या पाठशाला से आरम्भ की थी। कक्षा चार तक
की पढ़ाई श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने उसी पाठशाला में की। फिर इन्होंने जलगाँव के नये अंग्रेज़ी स्कू ल में कक्षा पाँच
में दाखिला ले लिया। वर्तमान में उस स्कू ल को 'आर.आर. विद्यालय' के नाम से जाना जाता है।
विद्यालय स्तर की परीक्षा उत्तीर्ण करते हुए भी प्रतिभा पाटिल ने अपने व्यक्तित्व का विकास अन्य गतिविधियों में
लिप्त रहते हुए किया। भाषण, वाद-विवाद एवं खेलकू द की गतिविधियों में भी प्रतिभा पाटिल का वैशिष्ट्य भाव
उभरकर सामने आया। वह मात्र शैक्षिक पुस्तकों में ही लिप्त नहीं रहती थीं, वरन् व्यक्तित्व के सभी पहलुओं की
ओर उनका ध्यान था। प्रतिभा पाटिल को शास्त्रीय संगीत के प्रति भी गहरा लगाव था। टेबल टेनिस की भी वह
निपुण खिलाड़ी थीं।

उपलब्धि:

"ऑर्डेन मेक्सिकाना डेल अगुइला एज़्टेका" (ऑर्डर ऑफ़ एज़्टेक ईगल) - मेक्सिको का सर्वोच्च नागरिक
पुरस्कार विदेशियों को दिया गया
3. कल्पना चावला

कल्पना चावला का जन्म 17 मार्च, 1962 को


हरियाणा के करनाल जिले में हुआ था। वह अंतरिक्ष
में जाने वाली पहली भारतीय महिला और भारतीय
अमेरिकी हैं। भारत में अपने बचपन में, वह भारत की
पहली पायलट जे आर डी टाटा से प्रेरित थी और
वह हमेशा उड़ान भरने का सपना देखती थी। 
शिक्षा:

कल्पना चावला ने प्रारंभिक शिक्षा टैगोर पब्लिक स्कू ल करनाल से प्राप्त की। आगे की
शिक्षा वैमानिक अभियान्त्रिकी में पंजाब इंजिनियरिंग कॉलेज चंडीगढ़, भारत से करते हुए
1982 में अभियांत्रिकी स्नातक की उपाधि प्राप्त की। वे संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए
1982 में चली गईं और 1984 वैमानिक अभियान्त्रिकी में विज्ञान निष्णात की
उपाधि टेक्सास विश्वविद्यालय आर्लिंगटन से प्राप्त की। कल्पना जी ने 1986 में दूसरी
विज्ञान निष्णात की उपाधि पाई और 1988 में कोलोराडो विश्वविद्यालय बोल्डरसे
वैमानिक अभियंत्रिकी में विद्या वाचस्पति की उपाधि पाई। कल्पना जी को हवाईजहाज़ों,
ग्लाइडरों व व्यावसायिक विमानचालन के लाइसेंसों के लिए प्रमाणित उड़ान प्रशिक्षक का
दर्ज़ा हासिल था। उन्हें एकल व बहु इंजन वायुयानों के लिए व्यावसायिक विमानचालक के
लाइसेंस भी प्राप्त थे। अन्तरिक्ष यात्री बनने से पहले वो एक सुप्रसिद्ध नासा कि वैज्ञानिक थी।
• उपलब्धि:

• काँग्रेशनल अंतरिक्ष पदक के सम्मान


• नासा अंतरिक्ष उड़ान पदक
• नासा विशिष्ट सेवा पदक

नासा कार्यकाल:
कल्पना जी मार्च १९९५ में नासा के अंतरिक्ष यात्री कोर में शामिल हुईं और वे १९९८ में अपनी पहली उड़ान के लिए
चुनी गयीं थी। उनका पहला अंतरिक्ष मिशन १९ नवम्बर १९९७ को छह अंतरिक्ष यात्री दल के हिस्से के रूप में अंतरिक्ष
शटल कोलंबिया की उड़ान एसटीएस-८७ से शुरू हुआ। कल्पना जी अंतरिक्ष में उड़ने वाली प्रथम भारत में जन्मी
महिला थीं और अंतरिक्ष में उड़ाने वाली भारतीय मूल की दूसरी व्यक्ति थीं। राके श शर्मा ने १९८४ में सोवियत अंतरिक्ष
यान में एक उड़ान भरी थी। कल्पना जी अपने पहले मिशन में १.०४ करोड़ मील का सफ़र तय कर के पृथ्वी की २५२
परिक्रमाएँ कीं और अंतरिक्ष में ३६० से अधिक घंटे बिताए। एसटीएस-८७ के दौरान स्पार्टन उपग्रह को तैनात करने के
लिए भी ज़िम्मेदार थीं, इस खराब हुए उपग्रह को पकड़ने के लिए विंस्टन स्कॉट और तकाओ दोई को अंतरिक्ष में चलना
पड़ा था। पाँच महीने की तफ़्तीश के बाद नासा ने कल्पना चावला को इस मामले में पूर्णतया दोषमुक्त पाया, त्रुटियाँ
तंत्रांश अंतरापृष्ठों व यान कर्मचारियों तथा ज़मीनी नियंत्रकों के लिए परिभाषित विधियों में मिलीं।
4. डॉ॰ किरण बेदी
डॉ॰ किरण बेदी (जन्म : ९ जून १९४९) भारतीय पुलिस सेवा की
सेवानिवृत्त अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता, भूतपूर्व टेनिस खिलाड़ी एवं
राजनेता हैं। सम्प्रति वे पुदुचेरी की उपराज्यपाल हैं। सन १९७२ में
भारतीय पुलिस सेवा में सम्मिलित होने वाली वे प्रथम महिला अधिकारी
हैं। ३५ वर्ष तक सेवा में रहने के बाद सन २००७ में उन्होने स्वैच्छिक
सेवानिवृति ले ली।

उन्होंने विभिन्न पदों पर कार्य किया है। वे संयुक्त आयुक्त पुलिस प्रशिक्षण
तथा दिल्ली पुलिस स्पेशल आयुक्त (खुफिया) के पद पर कार्य कर चुकी हैं।
१९७०-७२ में किरण बेदी ने अपने अकादमिक करियर की शुरुआत खालसा महिला
कॉलेज, अमृतसर में राजनीति विज्ञान के व्याख्याता के तौर पर की। जुलाई, १९७२ में
वह भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हो गईं और ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला
बनीं।

उनके मानवीय एवं निडर दृष्टिकोण ने पुलिस कार्यप्रणाली एवं जेल सुधारों के लिए
अनेक आधुनिक आयाम जुटाने में महत्वपूर्ण योगदान किया है। निःस्वार्थ
कर्त्तव्यपरायणता के लिए उन्हें शौर्य पुरस्कार मिलने के अलावा अनेक कार्यों को सारी
दुनिया में मान्यता मिली है जिसके परिणामस्वरूप एशिया का नोबल पुरस्कार कहा जाने
वाला रमन मैगसेसे पुरस्कार से भी उन्हें नवाजा गया। उनको मिलने वाले अंतर्राष्ट्रीय
पुरस्कारों की श्रृंखला में शामिल हैं - जर्मन फाउंडे् शन का जोसफ ब्यूज पुरस्कार, नार्वे
के संगठन इंटशनेशनल ऑर्गेनाजेशन ऑफ गुड टेम्पलर्स का ड्र ग
5. आरती साहा

आरती साहा का जन्‍म 24 सितंबर 1940 में कोलकाता में हुआ था.
उन्‍होंने मात्र 5 साल की उम्र में तैराकी का अपना पहला गोल्‍ड मेडल
जीता था. साहा ने हुगली नदी के किनारे तैरना सीखा. बाद में उन्होंने
भारत के सर्वश्रेष्ठ प्रतिस्पर्धी तैराकों में से एक सचिन नाग की निगरानी में
प्रशिक्षण लिया.
आरती साहा का जन्‍म 24 सितंबर 1940 में कोलकाता में हुआ था. उन्‍होंने मात्र 5 साल की
उम्र में तैराकी का अपना पहला गोल्‍ड मेडल जीता था. साहा ने हुगली नदी के किनारे तैरना सीखा.
बाद में उन्होंने भारत के सर्वश्रेष्ठ प्रतिस्पर्धी तैराकों में से एक सचिन नाग की निगरानी में प्रशिक्षण
लिया
साहा 1952 में फिनलैंड के हेलसिंकी में आयोजित ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में नए स्वतंत्र भारत का
प्रतिनिधित्व करने वाली पहली टीम की सबसे कम उम्र की सदस्य थीं. तब उनकी उम्र मात्र 11
साल थी.
साहा ने 18 साल की उम्र में इंग्लिश चैनल को पार करने का पहला प्रयास किया. इस प्रयास में वे
सफल नहीं हुईं. हालांकि, उन्होंने हार नहीं मानी. इसके ठीक एक महीने बाद दूसरे प्रयास में 29
सितंबर 1959 को आरती साहा ने 16 घंटे 20 मिनट तक लहरों और पानी के तेज बहाव से
टक्कर लेने के बाद इंग्लिश चैनल को पार करने का कारनामा कर दिखाया.
आरती साहा को 1960 में पद्म श्री से सम्‍मानित किया गया. वह पद्म श्री पुरस्कार प्राप्त करने वाली
पहली महिला थीं. भारतीय डाक ने उनके जीवन से महिलाओं को प्रेरित करने के लिए साल
1998 में एक डाक टिकट भी जारी किया. आरती का निधन 53 साल की उम्र में 24 सितंबर
1994 को हुआ था. आज गूगल ने इसी महान शख्सियत की जयंती को अपना डू डल समर्पित
किया है.
मेरा अनुभव:

हमारे समाज में महिला अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक एक अहम किरदार निभाती है। अगर
हम महिलाओं की आज की अवस्था को पौराणिक समाज की स्थिति से तुलना करे तो यह
तो साफ़ दिखता है की हालात में कु छ तो सुधार हुआ है। महिलाएं नौकरी करने लगी है। घर
के खर्चों में योगदान देने लगी है। कई क्षेत्रों में तो महिला पुरुषों से आगे निकल गई है। दिन
प्रतिदिन लड़कियां ऐसे ऐसे कीर्तिमान बना रही है जिस पर न सिर्फ परिवार या समाज को
बल्कि पूरा देश गर्व महसूस कर रहा है। अतःमहिलायें समाज के विकास एवं तरक्की में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उनके बिना विकसित तथा समृद्ध समाज की कल्पना भी नहीं
की जा सकती।

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