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आई एन ए दादी

आदित्य अग्रवाल (१० बी)


“तुम्हारी दादी लड्डू बहुत बढ़िया बनाती हैं, लेकिन मैंने उन्हें कभी नहीं देखा!” सौरभ बोला। “हाँ वे यहाँ मुंबई आतीं ही नहीं। उन्हें गोवा की
शांति और हरियाली, मुंबई के धूल-प्रदूषण और शोर से ज्यादा अच्छी लगती है।” रोहन, सौरभ को एक डिब्बा देते हुए बोला “लेकिन वे हर दो
महीने में ये लड्डू भेजती हैं।” वे दोनों थोड़ी और बाते करने लगे जिसके बाद रोहन अपने घर कला गया|
19 वर्ष के रोहन ने हाल ही में गाड़ी चलाना सीखा था और वह अभी अपने मित्र, सौरभ के घर दादी के बनाए लड्डू देने आया था। रास्ते में
रोहन सोचने लगा- सौरभ गलत नहीं कह रहा था। मैं दादी से पिछली बार 10 साल पहले मिला था जब पूरा परिवार गोवा गया था। मैं तब 9
वर्ष का था और रिया तो सिर्फ 4 साल कि ही थी। रिया रोहन की छोटी बहन है।
घर पहुंच कर रोहन अपने पिताजी के पास गया। “पापा, आपने कहा था कि दादी हमारे घर नहीं आतीं क्योंकि उन्हें मुंबई जैसे बड़े शहर पसंद
नहीं। तो क्यूँ न हम दादी के पास जाएं? दस साल हो गए हमें दादी से मिले।” रोहन के पिताजी ने कहा “बेटा, जाना तो मुझे भी हैं लेकिन क्या
करें, मुझे और तुम्हारी माँ को काम इतना है, जाने का समय कहाँ से मिलेगा?” रोहन चुप-चाप अपने कमरे में चला गया।
उसी रात जब रोहन सोने वाला था, उसकी बहन रिया उसके कमरे में आ गयी “भईया, यह कैं सर के बारे में सुना है लेकिन यह स्टेज २ कैं सर
क्या होता है?” रोहन वही के वही रुक गया।
“क्यूँ? तुम्हें उससे क्या लेना देना? कैं सर किसे हुआ?”
“कु छ नहीं ऐसे ही पूछ रही थी।”
“झूठ मत बोलो। मैं समझ सकता हूँ कि तुम सच नहीं बोल रही हो”
रिया हिचकिचाई “स्टेज २ कैं सर दादी को हैं”
“क्या कहा तुमने?” रोहन आश्चर्यचकित रह गया “दादी को! यह तुम्हें किसने बताया?”
“किसी ने नहीं। मुझे माँ कि अलमारी में एक खत मिला।”
“खत? कै सा खत? दिखाना तो ज़रा”
रिया अपने कमरे में जाकर खत ले आई।
खत पढ़ते ही रोहन अपनी कु र्सी पर बैठ गया। दादी को कैं सर? इसके बारे में तो किसी ने कभी कु छ भी नहीं कहा।
“क्या माँ को पता है कि तुमने यह खत पढ़ा है?”
“नहीं मैंने उन्हें अभी तक नहीं बताया।”
“ठीक है।”
“लेकिन यह दादी को हुआ क्या है?”
रोहन रिया को डराना नहीं चाहता था “कैं सर की शुरुआत होने के बाद जब शरीर के कु छ और भाग में ये बीमारी फै लती है, तो उसे स्टेज २ का
कैं सर कहा जाता है।”
रोहन गहरी सोच में पड़ गया। आखिर में उसने कहा “यह बात न तो माँ को पता चलनी चाहिए न ही पापा को, कि हमे दादी के बारे में पता है।”
“ठीक है। लेकिन अब हम करेंगे क्या?”
रोहन मुस्कु राते हुए बोला “अपना बैग पैक करो। हम कल सुबह गोवा जा रहे हैं।”
अगले दिन, सुबह 5 बजे, रोहन रिया को उठाने गया “अरे, जल्दी उठ जाओ। गोवा नहीं जाना?”
“लेकिन अभी तो माँ और पापा भी उठे नहीं होंगे।”
“तभी तो मैं बोल रहा हूँ जल्दी उठो। इससे पहली कि वे उठ जाए।”
रिया अचानक उठ गई “मतलब हम उनके बिना ही जा रहें है?”
“और नहीं तो क्या? उन्होंने हम से इतनी बड़ी बात छिपाई है, पता नहीं वे हमसे और क्या-क्या छिपा रहे है? हमे खुद ही जाकर पता लगाना
होगा।”
“पर..”
“और वैसे भी, तुम्हें दादी से मिलना है ना?”
आधे घंटे बाद, रोहन और रिया दोनों अपने घर के बाहर अपने पिताजी की गाडी के सामने थे।
“मुझे अभी भी नहीं लगता कि यह सही है।” रिया बोली।
“तुम्हें नहीं आना तो मत आओ। मैं तो जा रहा हूँ।” यह कहकर रोहन ड्राइवर सीट पर बैठ गया।
रिया चुप चाप दूसरे सीट पर बैठ गई।
रोहन गाड़ी चलाने लगा और अगले 15 मिनट में हाईवे पर थे। अचानक रोहन का फोन बजने लगा। रोहन की माँ कॉल कर यही थी।
“अरे नहीं, लगता है माँ को पता चल गया कि हम घर पर नहीं हैं।” यह कहकर रोहन ने फोन को बंद कर दिया।
उन्हें इस 10 घंटे के सफर में 12 घंटे लग गए क्यूंकि रोहन सभी पुलिस और टोल से बच बच के चल रहा था। उसे डर था कि किसी को शक
न हो जाये और वे उसे जाने ना दे। और उनके माता पिता अभी तक पुलिस के पास तो जा चुके ही होंगे।
आखिर में जब उनका गोवा में प्रवेश हुआ, तो रोहन रिया को, जो सो रही थी, उठाते हुए बोला “हम गोवा पहुच गए।” लेकिन, अभी मुसीबत
यह थी कि वे गोवा तक तो फोन के नेविगेशन की मदद से आ गए, लेकिन अब उन्हें यह मालूम नहीं था कि दादी का घर कहा था।
रोहन ने इसके बारे में पहले से ही सोच लिया था। रोहन ने अपने जेब से दादी का खत निकाला और जो प्रेषक का पता लिखा था, उसके बारे में
पूछताछ करने लगे। आखिर में वे एक डाकघर पहुचे|
डाकघर के भीतर, एक आदमी कागजों पर कु छ लिख रहा था। रोहन और रिया को देखते ही वह उठ गया। उसने मुस्कु राते हुए कहा “नमस्ते,
मेरा नाम अमित है। मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ?”
रोहन वापिस मुस्कु राया “जी मैं इस खत के लेखक को ढूंढ रहा हूँ। क्या आप इसके लेखक को पहचान सकते हैं?” रोहन ने कह कर खत उस
आदमी को दे दिया। उस आदमी ने तुरंत खत को पहचान लिया।
“अरे, यह खत तो मैंने ही अनु जी के लिए लिखा था। उन्हें लिखना नहीं आता ना, इसीलिए मैं उनके परिवर को खत लिखने में उनकी मदद
करता हूँ। वैसे, बुरा ना माने तो क्या मैं पूछ सकता हूँ, यह खत आपको कै से मिला?” रोहन और रिया ने एक दूसरे को देखा। फिर रोहन ने
कहा “अनु शाह हमारी दादी हैं।” वह आदमी ने आश्चर्य में बोला “आपकी दादी! माफ करना, मुझे बिल्कु ल उम्मीद नहीं थी कि आप यहाँ
आओगे!”
रोहन मुस्कु राया “क्या आप को पता है वे किधर रहती है?” वह आदमी मुस्कु राया “जरूर। बल्कि, मैं खुद आपको वहां ले जाता हूँ बस 15
मिनट रुकिए। अपना काम समेटकर आता हूँ।” उसने दोनों को वहाँ रखी कु र्सियों पर बैठने का इशारा किया। दोनों कु र्सियों पर बैठ गए।
रोहन ने कमरे को छानते हुए पूछा “तो क्या वे अपने लड्डू के डब्बे इधर से ही भेजती हैं?”
“जी हाँ।”
अचानक, रिया बोली “तो दादी क्या हर बार लड्डू के साथ खत भी भेजती हैं?”
“हाँ।” फिर उसने अपना सिर उठाया और रिया को और फिर रोहन को देखा। एक मिनट, वह खत मैंने ही लिखा था, और मुझे याद है कि वह
खत तुम लोगों के लिए नहीं बल्कि, तुम्हारी माता जी के लिए थे। तुम्हारी माँ किधर है?”
रिया ने उत्तर दिया “माँ इधर नहीं है सिर्फ मैं और भईया ही है।” रोहन ने रिया को गुस्से से देखते हुए इशारों से बोला बताने की क्या जरूरत
थी? रिया ने अपना सिर झुका दिया। वह आदमी सोच रहा था कि अचानक एक बूढ़ी औरत, डाकघर मैं आई “अरे ओ अमित! मैं तुम्हें पिछले
हफ्ते खत और लड्डू भेजने के पैसे देना ही भूल गयी और तुम भी पैसे लेना भूल गए!”
अचानक रोहन और रिया दोनों ने एक साथ बोला “दादी?” उस औरत ने उनकी तरफ देखा, और हंस पड़ी “माफ करो बच्चों मैं तुम्हारी दादी
नहीं हो सकती। मैंने अपने पोते और पोती को दस साल से नहीं देखा| वैसे वो तुम्हारे जितने ही होंगे, पर इतने बड़े भी नहीं हुए हैं कि गोवा आ
जाएँ।” वह आदमी, जिसको रोहन और रिया अब अमित के नाम से जानते थे, बोला “नहीं आजी। ये दोनों आपके ही पोता और पोती है।”
“रोहन? रिया?”
“दादी!” दोनों रोहन और रिया तुरंत अपनी दादी के गले लग गए। ख़ुशी से दादी की आँखों से आंसू बहने लगे। “अरे! तुम दोनों कितने बड़े हो
गए हो। मुझे याद है, रोहन तुम तो सिर्फ 9 साल थे और रिया, सिर्फ एक नन्ही सी बच्ची!” सभी हंस पड़े।
अब रोहन और रिया दादी के घर में थें। दादी ने रोहन और रिया को आम खिलाए। इसके बाद रिया थोड़ी देर बाहर गई; ऐसी शांति, हरियाली
उसे मुंबई में कहाँ दिखती थी? रोहन को यह सही समय लगा। वो दादी के पास गया और उन्हे खत दे दिया। इससे पहले कि दादी कु छ बोल
पाए, रोहन ने पूछा “दादी, आपको कैं सर है?” “अरे बेटा । चिंता को कोई जरूरत नहीं! बस एक छोटी सी बीमारी ही तो है।” “नहीं दादी।
चिंता करने की जरूरत है। कैं सर बहुत खतरनाक बीमारी है। आप हमारे साथ मुंबई आ जाइए। वहां बड़े बड़े डॉक्टर है, जो आपका इलाज़ कर
सकते है।” “नहीं बेटा। मैं नहीं आ सकती।” “लेकिन क्यों?” “क्यूंकी...” दादी ने अलमारी से एक समाचारपत्र निकाला। रोहन उसे पढ़ने
लगा
लाल किले में आई एन ए का ट्रायल शुरू।
1945 में, लाल किले मैं आई एन ए के फौजियों का ट्रायल किया गया थे और बहुत से लोगों को जेल की सजा सुना दी गई थी
रोहन कु छ समझ नहीं पा रहा था| दादी उसके चेहरे पर असमंजस देख कर धीरे से बोली, “मैं भी एक आई एन ए सैनिक हूँ।”
रोहन हैरान हो गया “क्या!”
“हाँ। और जब ये ट्राइयल्स की बात होने लगी, मैं अपने घर न जा कर असम से सीधे गोवा आ गयी और यहाँ छिप कर रहने लगी. मेरे साथ
कु छ और भी सैनिक गोवा आ कर गुमनाम ज़िन्दगी जीने लगे| हमें यहाँ कोई खतरा नहीं था क्योंकि गोवा तब पुर्तगालियों का था और भारत
सरकार हमारा कु छ नहीं बिगाड़ सकती थी. 1962 में जब गोवा आज़ाद हुआ तब तक तो हम गोवा के हो चुके थे और अपने पिछले जीवन को
पूरी तरह दफ़न कर चुके थे. पर आज भी ये डर लगा रहता है कि कहीं हमारा सच उजागर न हो जाये।”
रोहन को समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोला जाए। थोड़ी देर बाद वह हंसने लगा। “अरे दादी! अब वो सब खत्म हो गया।”
“यह तुम्हारे लिए मज़ाक की बात हो सकती है। लेकिन मेरे लिए नहीं।” दादी संजीदा थीं।
अचानक, बाहर गाड़ी की आवाज आई। बाहर कु छ लोग बातें कर रहे थें। रोहन बाहर दौड़ा।
बाहर, उसने देखा कि एक टैक्सी खड़ी थी और उसके सामने रोहन के माता पिता थें। रोहन के पिता टैक्सी वाले को पैसे दे रहे थे और माता जी
ने रिया को कसकर गले लगा रखा था। उसे देखते ही मा चिल्लाईं “रोहन!” पिताजी मुड़े और रोहन को गले लगा लिया। फिर थोड़ा दूर होकर
रोहन को डांटा “तुम क्या सोच रहे थे? अगर कु छ हो जाता तो? तुम खुद तो भाग आये, और अपनी छोटी बहन को भी इसमे शामिल कर
लिया?”
“हाँ, अगर डाक खाने से अमित भैया हमें फ़ोन नहीं करते, तो हम कभी नहीं सोच पाते की तुम लोग यहाँ आ गए होंगे| आइंदा कभी ऐसा मत
करना, हम कितना डर गए थे,” मां गुस्से से बोलीं|
“माफ़ कर दिखिए मां, लेकिन आपने हमसे यह बात क्यू छपाई कि दादी को कैं सर है?”
“कैं सर?”
रोहन की माँ वही के वही रुक गई। रोहन के पिता दादी के पास गए “आपको कैं सर है?”
दादी धीरे के बोली “बेटा देखो। डरने की बात नहीं बस...”
पिता ने दादी को बात पूरी करने नहीं दी “आपको कैं सर है!” फिर वे रुके और सबको अंदर जाने के लिए बोले “रुको! अंदर चल कर बात
करते हैं।” फिर जैसे ही सब अंदर आए, उन्होंने दरवाजा बंद किया “यह आपने पहले क्यू नहीं बताया?”
अब रोहन की माँ बोली “उन्होंने बताया था। मुझे बताया था। लेकिन उन्होंने निवेदन किया था कि मैं आपको न बताऊँ । उन्हे और मुझे भी डर था
कि आपको यह बात ज्यादा परेशान कर देगी।”
दादी बोली “और बेटा, ऐसा नहीं है कि मुझे कोई मदद नहीं मिलती थी। बहु मुझे हर महीने पैसा और दवाइयां भेजती रहती है। वही हर महीने
डाक्टर को घर भेज देती है, मुझे कहीं नहीं जाना पड़ता |”
पिताजी ने माँ को देखा “तो तुम वह सब पैसे मम्मी के लिए लेती हो?”
अचानक रिया बोली “सब की शिकायतें हो गयी हो तो ये बताओ हम खाएंगे कहाँ और सोएंगे कहाँ? बहुत रात हो रही है और मैं बहुत थकी हुई
हूँ!”
दादी मुस्कु राई “अरे बेटी! तुम दादी के घर आई हो। दादी के घर ही सोना होगा और दादी के हाथ का खाना होगा! अब मैं चलती हूँ, भोजन
तैयार करना है।”
रोहन की माँ भी दादी के साथ चली “मैं भी आती हूँ आपकी मदद करने।”
अब रोहन पिताजी को घर के एक कोने में ले गया “पापा, आपको पता है, दादी आई एन ए फौजी हैं? और रोहन ने उन्हें सारा किस्सा कह
सुनाया|
पिताजी ने कहा “वैसे तो मैं समझता कि तुम मज़ाक कर रहे हो, लेकिन अभी तो सब कु छ यकीन करने के लिए तैयार हूँ।”
“दादी असम से यहाँ आई हैं।”
“यह तो मुझे पता है, लेकिन मुझे इसका कोई अंदाजा नहीं था कि वो आई एन ए के कारण था।”
“और इसकी वजह से उन्हे गोवा से निकलने में डर लगता है। उन्हे अभी भी लगता है कि उन्हे सजा सुनाई जा सकती है, जबकि मुझे लगता है
कि मामला उलटा है। हमारी सरकार अवश्य उनकी मदद करेगी।”
“तुम कह तो सही रहे हो। शायद उनके कैं सर के इलाज में भी सरकार मदद कर दे?”
 
कु छ महीनों बाद
 
“दादी अभी आतीं ही होगीं।” रोहन अपनी घड़ी देखते हुए बोला। तभी दरवाजे की घंटी बजी। रोहन तुरंत दरवाजा खोलने के लिए भागा।
रोहन और रिया दोनों बोले “दादी! कै सी हैं आप?” रोहन की माता जी ने भी पूछा “मम्मी जी, रिपोर्ट कै सी थी?”
रोहन के पिता जी ने बोला “सब कु छ बढ़िया है| हमारी भारत सरकार ने माँ का इलाज देश के सबसे अच्छे डॉक्टर से करवाया है।” वे फिर
दादी के तरफ मुड गए “माँ अब आप आराम कीजिये| आपका कैं सर ठीक हो गया लेकिन आप अभी कमजोर है।” दादी बोली “ठीक है में
आराम करने जाती हूँ।”
रिया दौड़ पड़ी “मैं दादी की भैया से ज्यादा सेवा करूं गी” रोहन हंसा और दादी का सामान उठाने के लिए दौड़ा “और मैं तुम्हारी मेहनत के
सारे दादी के लड्डू खा लूँगा!”

दादी की आँखों से संतुष्टि और प्रेम आंसू बन के बह निकला|


 
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~समाप्त~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

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