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कोष्ठ

Anamika
Srivastava
BAMS 2021
Roll no :07
Introduction to koshta

According to acharya Vagbhata


कोष्ठः क्रू रो मृदुर्मध्यो मध्यः स्यात्तैः समैरपि । (1/8)
दोषों के प्रबलता के अनुसार कोष्ठ (आमाशय) की भी स्थिति बदलती
रहती हैं वात की अधिकता से कोष्ठ क्रू र होता है, पित्त की अधिकता से
मृदु और कफ की अधिकता से मध्य तथा तीनों दोषों के साम्यावस्था में
कोष्ठ मध्य रहता है।
According to acharya Charaka
कोष्ठः पुनरुच्यते महास्रोतः शरीरमध्यंमहानिम्नमामपक्वाशयश्चेति | ( च सू 11/48)
Koshta is the digestive system that is महास्रोतः(great
channel), शरीरमध्यं (central body part), महानिम्न (greater
lower part), आमपक्वाशय (major organs of gastro-intestinal
tract). It is one of the internal pathway for disease
manifestation
According to acharya Sushrutha

स्थानान्यामाग्निपक्वानां मूत्रस्य रुधिरस्य च ।


हृदुण्डु कः फु फ्फु सश्च कोष्ठ इत्यभिधीयते ||(सु.चि. २/१२)

अर्थात् ‘कोष्ठ’ शब्द से आमाशय (Stomach), अग्न्याशय (Pancreas), पक्वाशय


(Large Intestine), मूत्राशय (Kidneys & Bladder), रुधिराशय (Liver
& Spleen), हृदय (Heart), उण्डु क (Caecum) और फु फ्फु स (Lungi) को
जाना जाता है।
Drugs used in assessment of koshta
गुडमिक्षुरसं मस्तु क्षीरमुल्लोडितं दधि | पायसं कृ शरां सर्पिः काश्मर्यत्रिफलारसम् ||६६|| द्राक्षारसं पीलुरसं जलमुष्णमथापि
वा मद्यं वा तरुणं पीत्वा मृदुकोष्ठो विरिच्यते ||६७|| (च सू 13/66-67)

• मृदुकोष्ठ का लक्षण – गुड़ ईख का रस, दही का पानी, दूध, मथा हुआ दही, खिचड़ी, घृत, गम्भार, त्रिफला,
मुनक्का और पीलु का रस या क्वाथ अथवा गरम जल या नूतन मदिरा पी लेने से ही मृदुकोष्ठ व्यक्ति को विरेचन होने
लगता है ।। ६६-६७।।
• क्रू रकोष्ठ का लक्षण—ये ऊपर बताये हुए गुड़, गन्ने का रस आदि द्रव्य क्रू रकोष्ठ वाले व्यक्तियों को कभी भी विरेचन
नहीं कराते हैं क्योंकि क्रू रकोष्ठ वाले पुरुष की ग्रहणी में वायु की अत्यन्त प्रधानता रहती है ।।

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