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गरजत बरसत
----उप यास यी का दस
ू रा भाग---- -
-असग़र वजाहत
..
पहला ख ड
----१----
मेरे रं ग-ढं ग से सबको यह अंदाज़ा लग चुका था क द ली ने
मेर कमर पर लात मार है और साल-डे ढ़ साल नौकर क
तलाश म मारा-मारा फरने के बाद म घर लौटा हूं। अपमािनत
होने का भाव कम करने के िलए म लगातार ऊपर वाले कमरे म पड़ा सोचा करता था या “जासूसी
दुिनया” पढ़ा करता था। दो-तीन दन बाद अतहर को पता चला क म आया हूं तो वह आ धमका
और उसके साथ म शाम को पहली बार िनकला था।
गुलशन ने त पर खाना लगा दया। अरहर क दाल जसम असली घी खूब तैर रहा है । आलू क
स ज़ी, िसरके म रखी गयी याज़, गुड़ क आधी भेली, मोट , गेहूं क लाल रो टयां। पता नह ं य
होराइज़न ुप के नीचे सरदार के ढाबे म खाये राजमा चावल क बात सोचने लगा। फर सरयू का
य़ाल आया। बेचारा वह ं होगा। कनाट लेस वाले ट -हाउस के सामने फट च पल घसीटता। म
खाने लगा। रहमत बताने लगा क गो त और हर स जी तो कम ह िमलती है यहां। वह कल
खुरजी जायेगा तो गो त लायेगा।
रात म दे र तक नींद नह ं आई। दस
ू रे तरफ के सायबान म गुलशन लेटते ह सो गया था। लालटे न
क रौशनी म काला सायबान कोई जीती-जागती चीज़ लग रहा था। सामने अंधेरे का महासागर। घर
के अंदर ज नात का म कन। सोचा कह ं ितलावते-क़ुरान क आवाज न आने लग। कोई बात नह ं
है , आय। लेटे-लेटे पता नह ं कैसे अहमद का य़ाल आया। कहां होगा? कलक ा म अपनी सुंदर प ी
इं दरानी के साथ या लंदन म िल टन क नौकर म? या टाटा ट गाड स म. . . .और म? चलो
अपने ऊपर हं सा जाये। ऊंह या बेवकूफ है . . .अहमद क सोच कतनी साफ है । कोई लाग-लपेट
नह ं पालता। क मत भी है । ख़ै़र क मत या है वह जस लास म पैदा हुआ उसके फायदे ह।
वैसे शक ल को नह ं ह। वह तो ब ती म अपने भाइय और अ याश अ बाजान के ष यं का
िशकार हो रहा होगा। सीधा है बेचारा। और अलीगढ़ म सब कैसे ह गे? जावेद कमाल? के.पी.?
कामरे ड लाल िसंह? एक फ म क तरह ले कन कुछ सेके ड म पछले दस साल आंख के सामने से
िनकल गये। अब म कहां हूं? उनसे कतना दरू ? इस उजाड़ वीरान गांव म संघष करता क कुछ
पाऊं. . कुछ कर सकूं. . .कुछ तो करना ह था यार। छ बीस- स ाइस साल क उ म ये तो नह ं
हो सकता क म कुछ न क ं ?
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धान कट चुका था और अब गेहूं बोना था। दो मह ने खुरजी के बजली ऑ फस म जूते िघसने के
बाद कने शन भी िमल गया था। बो रं ग होना थी मोटर बैठाना था। सो उ मीद थी क एक मह ने
म हो जायेगा। मतलब गेहूं को पहला पानी दे ने के व यूबवेल तैयार होगा। सोचना यह था क
या पूर चालीस बीघा खेती बटाईदार से ले ली जाये और खुद खेती करायी जाये? अगर खुद खेती
करायी जाये तो हल बैल और उसे यादा मसला था हलवाह का? वे कहां से आयगे? चालीस बीघा
खेती कराने के िलए कम से कम तीन जोड़ बैल और तीन हलवाहे चा हए थे। अब मु कल यह थी
क हलवाह को बड़े कसान ने पहले ह फंसा रखा था। रहमत ने बताया था क यादातर हलवाहे
ठाकुर के बंधुआ ह। कुछ तो कई-कई पी ढ़य से ह। बाक लोग हलवाह को उधर कजा दे कर
उलझाये रखते ह ता क उ ह ं का काम करते रह। ये सोचकर भी अजीब लगा क ऐसे हलवाहे ह
नह ं ह जो पैसा ल और काम कर। मतलब आपको एक “स वस” चा हए। आप पैसा द और स वस
ल। ले कन यहां तो हाल ह अजीब है । स वस आपको िमल ह नह ं सकती य क उस पर कुछ
लोग ने एकािधकार बना रखा है । आप उसे कैसे तोड़ सकते ह? पैसा दे कर? मान ली जए ठाकुर
रणवीर िसंह ने पांच सौ के कज म हलवाये को बंधुआ बनाया हुआ है और आप हलवाहे को पांच
सौ द और कह क तुम रणवीर िसंह के यहां से मु होकर हमारे यहां आ जाओ? रहमत ने बताया
क पहले तो हलवाहा न तैयार होगा। इतना डर और आतंक है रणवीर िसंह का। दस
ू रा हलवाहे मान
भी जाये तो रणवीर िसंह से हमेशा क अदावत हो जायेगी
“हां, जब तक कटाई चलती रह . . .वह अ मां के साथ जाती थी. . . फर वहां या था. . .वापस
आ गये। आप तो साल डे ढ़ साल बाद आये।”
“हां म जंगल म फंस गया था।”
वह हं सने लगी। दे ख तो नह ं पाया ले कन अनुमान लगा लेना आसान था क उसके दा हने गाल म
ह का-सा ग ढा पड़ा होगा। वह जब हं सती है तो यह होता है ।
द ली म या जंगल ह।”
“हां बड़ा भयानक जंगल है ।” म उसे धीरे -धीरे आप बीती सुनाने लगा जो कसी को नह ं सुनाई है ।
उसके हाथ क उं गिलयां मेरे सीने के बाल को सीधा करती रह ं। म सोचने लगा औरत से बड़ा
हमराज़ कोई नह ं हो सकता। अपने बारे म, वह चाहे जीत हो या हार हो, ेिमका को बताने और इस
तरह बताने क बातचीत का कोई गवाह न हो स चाई का अनोखा मज़ा है । वह सुनती रह और
खुलती रह । हम धीरे -धीरे एक दस
ू रे को महसूस करने लगे। मुझे लगा क यह संबंध कोई सतह
ह का या केवल से स संबंध नह ं हो सकता। इसम और भी बहुत कुछ है , या है ? म यह सोचकर
डर गया। वह पता नह ं या सोच रह थी। हाथ के पश ने डर को पीछे ढकेल दया। चार तरफ
अंधेर रात क चादर तनी थी और वह कह रह थी क तुम दोन को कोई नह ं दे ख रहा है । ये
च कर या है जो बात हम मान लेनी चा हए हम नह ं मानते? जो बात तय हो जानी चा हए हम
य नह ं करते? पहली बार उसके साथ लगा क यह ठ क नह ं है ले कन इस बीच उसक सांस तेज़
हो गयी थीं। म अपने को रोकना चाहता भी तो नह ं रोक सकता था।
रातभर हम एक सागर म उतरते तैरते और कनारे पर आते रहे । कनारे पर हमारे िलए सवाल थे।
इसिलए फर लहर के बीच चले जाते थे और आ दम इ छाओं के संसार म हम शरण िमल जाती
थी। वह साधारण नह ं है । तट पर आकर जो बात करती है वे अंदर तक उतर जाती ह। म तय नह ं
कर पा रहा था क उससे चलते समय या कहूंगा। कचहर के घ ड़याल ने चार का घ टा बजाया।
वह धीरे -धीरे कपड़े पहनने लगी। अ छा है क जाने से पहले उसने कुछ नह ं पूछा। शायद उसे
मालूम था क वह जो कुछ पूछेगी उसका जवाब मेरे पास नह ं है । वह मुझे शिम दा नह ं करना
चाहती थी।
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हालां क शहर म म नह ं रहता था ले कन आना-जाना लगा रहता था। जब भी आता तो पाट
से े टर आर.के. िम ा से मुलाकात हो जाती । उ नाव िनवासी िम ा जी दे खने-सुनने और यवहार
म खासे पं डत ह। म त ह, बातूनी है , खाने-पीने के शौक न ह, आनंद लेने के प धर ह काम को
बहुत सहजता से करते ह। गांव म घर ज़मीन है जहां से साल भर खाने लायक अनाज आ जाता
है । दस-बीस पये रोज़ वकालत म भी पीट लेते ह। िम ा जी कई-कई दन शेव नह ं कराते। ह े
दो ह े म नाई क दक
ु ान जाकर जब शेव बनवा लेते ह तो उनक श ल बगड़ जाती है । चेहरे पर
जब तक बाल क खूं टयां नह ं िनकल आतीं तब तक उनका य व मुख रत नह ं हो पाता।
िम ा जी के मा यम से दस
ू रे पाट सद य से भी प रचय होने लगा। पं डत द नानाथ से िमला।
पं डत जी थानीय पाट के व ा ह। पूरे शहर म मा सवाद क “सुर ा” करने क ज़ मेदार उ ह ं
पर रहती है । जब कोई कसी पान क दुकान पर मा सवाद पर हार करता है तो बचावप अंत म
यह कहता है क पं डत जी से बात करो। पं डत जी ं ा मक भौितकवाद पर हं द म एक कताब
िलखने क भी सोच रहे ह। सूरज चौहान पाट म ह, वकालत करते ह और कसान मोच पर स य
ह। बलीिसंह लकड़ का काम करते ह। पाट सद य ह। आ ामक क म का य व है । पैसे वाले
ह। पाट मी टं ग म चाय-पानी के खच का ज़ मेदार बनते ह। “आब ” रायबरे लवी भी पाट के
सद य ह। शहर मु और अिधका रय पर शायर करते ह। शहर के मुशायर म थानीय
शायर और क वय म सबसे व र माने जाते ह। इसके अलावा कुछ ामीण क म के सद य भी
ह जो कसी िगनती म नह ं आते। उ ह िम ा जी काम बांटा करते ह।
रहमत आ गया। वह खेत से पानी िनकालने के िलए मेड़े काटने जा रहा था। म उसके मना करने
के बाद भी उसके साथ बाहर िनकला। रा त म पानी भरा था। जूते हाथ म ले िलए पजामा उड़स
िलया और हम खेत क तरफ बढ़े । अब भी हलक -हलक बा रश हो रह थी। पौ फटने का उजास
फैल रहा था। खेत म पानी भरा था। गेहूं क लहलहाती फसल सीने तक पानी म डू बी हुई दे खकर
म घबरा गया।
कोई एक घंटे तक रहमत मेड़ को काटता रहा। ले कन चूं क यह ज़मीन धनह ं थी यहां धन लगाया
जाता था इसिलए पानी के िनकास का रा ता न था। खेत से िमला तालाब था और दस
ू र तरफ
ऊंची जमीन थीं दरू -दरू से पानी इधर आकर भर गया था। मुझे लगा क पानी रोकने के िलए मेड़
तो पहले बनाई जानी चा हए थी। रहमत का कहना था क चार पांच गांव का पानी यहां जमा हो
जाता है । मेड़ टू ट जाती। यहां तो एक बड़ा नाला होना चा हए जो इस पानी को आगे बड़े नाले तक
जोड़ दे और नाला बनवाना आसान नह ं है । पता नह ं कतने कसान क ज़मीन बीच म पड़ती है
और फर उस पर हज़ार पय का खच आयेगा सो अलग। बहरहाल, अब तो कुछ नह ं हो सकता।
म छ: मह ने क मेहनत, हज़ार पय और अनिगनत सपन को पानी म तैरते दे खता रहा।
“चौथा पानी न लगाया होता तब भी ठ क होता”, रहमत बोला।
“अब या हो सकता है . . .चलो वापस चल।”
“अब भइया तगड़ धूप िनकल आये और पानी क जाये तो कुछ बात बन सकती है ”, वह बोला।
पानी, धूप, पाला, क ड़ा. . .धूप िनकलने का या मह व है । कतनी ज़ र है धूप. . .और वह भी
आज ह िनकले। कह ं झड़ लगी रह तो या होगा?
कर ब यारह बजे झड़ क ले कन बादल छाये रहे । म यह अंदाज़ा लगाने क कोिशश करता रहा
क दस बीघे ज़मीन म लगाया गेहूं कतना बबाद हो गया। पैदावार कतनी होगी और आमदनी
कतनी होगी। कतने हज़ार क खाद, बीज, यूबवेल, डांगर क जोड़ , हलवाहा. . .कुछ त वीर साफ
नज़र नह ं आई।
इस बा रश से गांव के सब ह लोग दख
ु ी थे। सोचते थे क पानी बरसने के बाद क ड़ा लगने क
संभावना बढ़ जाती है । मुझे यह याल आया क यार म तो पहली बार इस तनाव को झेल रहा हूं
ले कन ये लोग तो जीवनभर झेलते ह। पीढ़ दर पीढ़ झेलते ह और अगर कभी िमलता भी है तो
या? यह ज़ा हर है इनके रहन-सहन से द ली म एक छोटे दक
ु ानदार का जीवन कतना शानदार
होता है उसक तुलना तो यहां बड़े से बड़े स प न कसान से नह ं हो सकती। यह गांव अकेला नह ं
है । पता नह ं सैकड़ , हज़ार , लाख ऐसे गांव ह, ऐसे लोग ह, ऐसा जीवन है । इनके साथ सम या या
है ? या पैदावार का सह दाम नह ं िमल पाता? या ये उस वशेष ण
े ी म नह ं आते ज ह “रा य”
संर ण दे ता है ? फर ये खेती य करते ह? और या कर सकते ह? और या जानते ह? मतलब
अगर कुछ और करने क सु वधा हो तो या ये लोग खेती नह ं करगे? या ये गांव छोड़ सकते ह?
या यहां के रहन-सहन से अलग हो सकते ह? शायद नह ं या शायद हां।
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तंग आकर शहर आ गया। अ बा को मेर परे शानी पता चली तो कहने लगे- “भई ये तो होता है ।
आज गरम तो कल नरम. . .खेती इसी का नाम है । दे खो अ लाह ने चाहा तो फायदा ह होगा।”
शहर म मेरे पहुंचते ह चौकड़ जमा हो गयी। िम ा जी के यवहार से ये सब दख
ु ी तो थे ले कन
संगठन म काम करने ओर उसक ताकत पहचानकर खुश भी थे। कामरे ड बली िसंह मछुआर का
संगठन बना रहे थे जसम उमाशंकर लग गया था। गर ब मछुआरे मछली पकड़ते थे और ठे केदार
उनसे कौ ड़य के भाव मछली खर दकर कलक ा भेज दे ता था। होता तो यह था क जब कलक ा
से ठे केदार को पैसा िमल जात था तब मछुआर का भुगतान होता था। मछुआर को भी कज, उधर
दे कर बंधुआ बनाने क था बढ़ रह थी।
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दाय और बाय ला ठयां िलए रहमत और गुलशन ह। बीच म म और कामरेड ह। गांव क गिलय म
खेलते ब चे और लंबे घूंघट िनकाले बहुएं हम ज ासा से दे ख रहे ह। कामरे ड ने काला च मा लगा
रखा है और हाथ म एक छोटा ीफकेस है ।
रात म ह कामरे ड ने कहा था क गांव के सवहारा से िमलना चाहते ह। इसिलए हम कंजड़ के डे रे
क तरफ जा रहे ह। डे रे म हम सीधे रामसेवक के घर के सामने आ गये। रामसेवक ने बाहर
चारपाई डाल द । आसपास के घर से दस
ू रे कंजड़ भी िनकल आये। हम दोन चारपाई पर बैठ गये।
कंजड़ सामने जमीन पर उकड़ू ं बैठ गये। कामरे ड के बहुत कहने पर भी कंजड़ चारपाई पर नह ं बैठे।
वे ज़मीन पर ह बैठे रहे । कामरे ड ने बातचीत शु करने से पहले कंजड़ से उनके हालचाल पूछे।
भूिमह न कंजड़ ने अपना पूरा दख
ु दद बताया। कामरे ड ने उनसे कहा क बना संग ठत हुए इन
सम याओं का समाधान नह ं हो सकता। रामसेवक बोला- “आप ब कुल ठ क कहते हो साहब. .
.अकेला आदमी या कर सकता है ?”
“तो आप लोग संगठन बनाने को तैयार ह?”
“हां जी ब कुल ह, कई आवाज़ आयी।”
“और दे खए संगठन को वचारधारा से लैस होना चा हए. . .मतलब आप जो कर वह सबके हत म
हो।”
“हां जी हां” कई आवाज आयी।
“एक बात और समझ लो दो त . . .हक मांगने से नह ं िमलता। उसके िलए संघष करना पड़ता है .
. .कुबािनयां दे नी पड़ती ह।”
“हां जी हां. . . वो तो है । हम तैयार ह।”
“आपक वचारधारा ांितकार होनी चा हए. ..समझौतावाद नह ं।”
“हां जी हां, साहब आप जैसा कहगे वैसा होगा।” रामसेवक ने कहा।
“संगठन बनाने के िलए कुछ जानना-समझना भी ज़ र होगा।”
“ बलकुल होगा जी. . .उसके बना कैसे काम चलेगा”, एक कंजड़ बोला।
“हम तो आपके पीछे ह साहब. . .जहां कहगे. . .जो कहगे. .करगे. . .हमार बरादर म बड़ एकता
है ”, दस
ू रे कंजड़ ने कहा।
“आप हम रा ता दखाओ साहब”, रामसेवक बोला।
“आप आ जाओ तो बस. . . सब हो जायेगा।”
अनौपचा रक बैठक कोई घंटेभर चलती रह । कामरे ड बहुत स न हो गये।
रात म खाने के बाद उ ह ने कहा “यार सा जद यहां तो काम करने क बड़ संभावना है ।”
“हां वो तो है ।”
“तो यार करो. . .काम।”
“कामरे ड मुझसे जो हो सकता है कर रहा हूं। कसान सभा के काम का मुझे तज बा नह ं है ।”
“करो यार. . .दे खो लोग म कतना उ साह है ।”
“तुम या समझते हो . .इन लोग ने जो तुमसे कहा वह सच है ? मतलब साफ बात क तुमसे?”
“हां. . . य ।”
“कामरे ड. . .ये लोग हमसे तुमसे यादा समझदार ह।”
“ या मतलब है तु हारा?”
“वे जानते ह तुम मुझसे िमलने पता नह ं कहां से आये हो। अब यहाँ पता नह ं तुम आओगे भी या
नह ं. . .वे तु हार बात य काटते? तु हार हां म हां िमलाने म उ ह या द कत हो सकती है ।
तु ह याद होगा क वे इस बात पर ज़ोर दे रहे थे क “आपके” पीछे -पीछे चलगे। अरे जब आप ह
यहां न ह गे तो कसके पीछे जायगे? और जा हर है तुम यहां आकर रहोगे नह ं. . .”
“तु हारा मतलब है वे झूठ बोल रहे थे?”
“झूठ और सच क बात म नह ं कर रहा हूं। म कर रहा हूं गर बी और अभाव ने इ ह बड़ा
यावहा रक बना दया है ।”
कुछ दे र तक बात होती रह ं फर कामरे ड के खराटे गूंजने लगे।
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पाट के सद यता अिभयान ज़ोर पर है । जन लोग ने पछले छ: सात मह ने काम कया है वे
सब मे बर बन रहे ह। मुझसे िम ा जी ने कहा क आप भी फाम भर द जए। म सोचता रहा।
इतने साल अलीगढ़ म मे बर नह ं बना। कामरे ड लाल िसंह का आ ह टालता रहा। अब बन जाऊं?
मेर उस धारणा का या होगा क पाट सद यता जकड़ लेती है आदमी को। काम करने के बजाये
गुटबंद होने लगती है । बहरहाल मने फाम भर दया। मे बर वाले फाम लखनऊ चले गये। िसलाई
मज़दरू यूिनयन और र शा यूिनयन के बाद उमाशंकर बीड़ मज़दरू यूिनयन बनाने म लग गया है ।
मु ार सहकार िसलाई दक
ु ान के च कर म द र के च कर लगा रहा है । मेरे आते ह रात क
पुिलया पर मह फल आबाद हो गयी ह। अब यादातर बातचीत राजनीित के बारे म होती ह। अतहर
को पाट या राजनीित म मज़ा नह ं आता। ले कन ुप के साथ वह भी खंचा- खंचा फरता है । इस
साल फर उसने इं टर का ाइवेट फाम भरा है ले कन पढ़ाई नह ं हो रह । मने उसे ऑफर दया है
क वह मेरे साथ चौरे म रहे । म उसे पढ़ा दया क ं गा। आइ डया अतहर को पंसद आया है ले कन
ा लम ये है क अ बा दक
ु ान पर अकेले रह जायगे। छोटा भाई दक
ु ान नह ं जाता। जब क अब वह
इतना छोटा नह ं रह गया है ।
घर म एक बुर ख़बर यह सुनने म आई क स लो क शाद कानपुर म तय हो गयी है । उसका
होने वाला पित र शा चलाता है । यह सुनकर म सकते म आ गया। कानपुर म र शा चलाता है ।
मने द ली म जामा म जद इलाके म र शे चलाने वाल के हाथ दे खे ह जनक खाल ऐड़ जैसी
स होती है । सीने घंस जाते ह और ज द ह ट .वी. का िशकार हो जाते ह। स लो क शाद
कसी र शेवाले से होगी इसे म हज़म नह ं कर पाया ले कन और या हो सकता है ? या स लो के
िलए म उसक बरादर का कोई लड़का खोज सकता हूं? ले कन अभी इतनी ज द या है ? स लो
मु कल से बीस-बाईस साल क है । पर ये भी है क इन लोग म लड़ कय क शाद इस उ म
नह ं होती तो फर बड़ मु कल होती है ।
स लो रात म मेरे पास आई। ले कन इस बार आना अजीब आना था। उसका चेहरा उतरा हुआ था।
वह मेरे पास लेटते ह फूट-फूट कर रोने लगी। म डरा क शायद उसके रोने क आवाज़ नीचे तक
न पहुंच जाये। वह लगातार रोये जा रह थी। उसके बाद दे र तक ब च क तरह िससकती रह । म
उसे सां वना दे ने के िलए उस पर हाथ फेरने लगा। उसने मेरा हाथ अलग कर दया और मेरे सीने
से िचमट कर लेट गयी। िसस कय और आंसुओं से मेरा कुता नम हो गया।
“हम अभी शाद नह ं करना चाहते ह”, वह बोली।
म या जवाब दे ता। धीरे-धीरे उसक िसस कयां कम होने लगीं।
“कानपुर म नह ं रहना चाहते”, वह फर बुदबुदायी।
“आप कुछ करते य नह ं।” वह बोली और मुझे लगा क ऊपर से नीचे तक मुझे तेज़ धारदार चीज़
से काट दया गया हो। वह ब कुल ठ क कह रह थी। पछले दो-तीन साल से वह रात म अ सर
मेरे पास आती है । म उसके साथ वह सब कुछ करता हूं जो संभव है । वह पूर तरह सम पत है ।
मेरे इशारे पर नाचती है । पता नह ं मन ह मन मुझे या मानती है । मेरे ऊपर व ास करती है ।
आज उसे मेर मदद क ज़ रत ह। म कुछ करता य नह ं? म या कर सकता हूं? स लो घर म
खाना वाली बुआ क भतीजी है । बुआ का भाई र शा चलाता है । ये लोग जाित के फक़ र ह। म
या कर सकता हूं? ये भी तो नह ं हो सकता क स लो को लेकर भाग जाऊं। भाग जाने का
मतलब खेती-बाड़ छोड़ना, घर छोड़ना और एक अनपढ़ लड़क से शाद करना है । म ये नह ं कर
सकता। तो फर ये मौज म ती. . . स लो के साथ चांदनी रात म रतजगा का या मतलब है ? वह
बेचार मुझसे यह आशा य लगाये है क म कुछ कर पाऊंगा।
“म तु हारे िमयां को कोई नौकर दला दं ग
ू ा या उसे केस रयापुर बुला लूंगा। वहां वह बटाई म खेती
कर सकता है , तुम वहां आराम से रह सकती हो”, मने अटक-अटक कर कहा।
“उससे शाद नह ं करना चाहती”, वह बोली।
कुछ दे र हम दोन ख़ामोश रहे ।
“ या तार ख तय कर द है ?” मने पूछा।
“हां रजब के मह ने म है ।”
वह फर रोने लगी। मुझसे और यादा कर ब आ गयी। उसके आंसू मेरे चेहरे पर िगरने लगे। मेरा
दल अंदर से घुमड़ने लगा। िसस कय से हलता उसका शर र मेरे अंदर क पन पैदा करने लगा। म
धीरे -धीरे उसे सहलाने लगा।
“नह ं, आज कुछ मत करना”, वह बोली।
“ य ?”
“बस. . .वैसे ह ।”
वह रातभर रोती रह और उसे दलासा दे ता रहा। यह साफ जा हर था क दोन से कुछ नह ं होगा।
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“भइया आपसे कौनो िमले आय है ”, गुलशन ने खिलहान म आकर बताया। म खिलहान म नीम के
पेड़ के नीचे चारपाई पर लेटा बैल का “लाख” के ऊपर चलना दे ख रहा था।
“कौन है ?”
“हम का जानी. . .मोटर से आये ह।”
“मोटर से।”
“हां सफेद मोटर है . . .एक जनानी भी साथ ह।”
ये कौन हो सकता है जो केस रयापुर गाड़ से आया है और उसके साथ एक “जनानी” भी है । म
तेज़-तेज़ कदम से चौरे क तरफ बढ़ा। अपने अंगौछे को िसर पर कस िलया। चौरे के सामने धूल
से अट ए बेसडर खड़ थी। म अंदर आया तो दरू से दे खा। एक चारपाई पर कोई लेटा है और दस
ू रे
पर कोई औरत बैठ है । औरत ने शायद लेटे हुए आदमी को बताया क म आ गया हूं। वह उठकर
बैठ गया। मेरे ऊपर है रत का पहाड़ टू ट पड़ा। अहमद. . .अहमद तो लंदन म है ।
अहमद आगे बढ़ा और मुझसे िलपट गया “दे खा यार तु ह तलाश कर ह िलया।”
इनसे िमलो राजी रतना है , बंबई म इनक “हासशू क स टसी” है . . .पदमजी र ा का नाम सुना
होगा तुमने. . .ये उनक लाडली ह।” अहमद ने इस तरह प रचय कराया क उसके और राजी र ा
के कर बी संबंध समझ म आ गये।
मने यान से राजी र ा क तरफ दे खा। पहली नजर म ह कोई बगै़र कसी शक और शु हे के कह
सकता है ग़जब क खूबसूरत बड़े -बड़ का िसर फुका दे ने वाली सुंदरता। दमकता रं ग, कताबी नाक
न शा, बड़ और ख़ूबसूरत आंख म ग़जब का आ म व ास। लंबा कद बहुत गठा हुआ और
का या मक अनुपात म ढला शर र. . .म उसे दे खता ह रह गया।
“म लंदन एच.सी. के िलए एक ोजे ट कर रहा हूं. . दरअसल है ये एम.ई.ए. का ोजे ट है ।
ले कन हमार इसम “क पोज़ीशन” पाटनर ह।” अहमद ने बताया। म कुछ समझ नह ं पाया।
एच.सी. या है ? एम.ई.ए. या है ? ोजे ट कैसा है ? ले कन कुछ पूछा नह ं। अहमद जो कपड़े पहने
था वे चीख-चीख़कर कह रहे थे क हम ह द ु तानी नह ं ह, वदे शी ह। अहमद का रं ग कुछ और
साफ हो गया था जसम ह क -सी लाली शािमल हो गयी थी, घुंघ रयाले बाल बढ़ रहे थे जससे
उसके चेहरे का “ ेमीभाव” और िनखर आया था। और म? गांव म रहते-रहते झुलस गया था। गाढ़े
का कुता, पैजामा पहने था जो अ छा खासा मैला हो चुका था। गले म दस पये वाला अंगौछा था।
बाल म ज़ र भूसे के कुछ टु कड़े रहे ह गे। पैर और च पल धूल म अटे थे।
गुलशन तीन िगलास म पानी ले आया। अहमद ने कहा “यार गाड़ के ड क से सामान िनकलवा
लो। मैडम हम सबके िलए
लखनऊ द ली से खाना पैक करा लाई ह और पानी क बोतल भी ह। तीन सूटकेस भी ह। गुलशन
ने पानी के िगलास क े त पर रख द और अहमद के साथ गाड़ से सामान िनकालने चला
गया।
“आप लोग द ली से आ रहे ह।”
“हां. . .मािनग “लाइट था. . .पहुंचा लखनऊ . . .” म समझ गया राजी र ा को हं द बोलने म
असु वधा हो रह है ।
“आपका वलेज सुद
ं र है ।”
“हां, थक यू. .. गांव के पीछे जहां तालाब, सरक डे के जंगल और आम के बाग ह वह इलाका बहुत
खूबसूरत है ।”
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शाम को चौरे क वशाल छत पर तीन चारपाइयां और उनके बीच एक चौक डाल द गयी। छत पर
से गांव का नज़ारा राजी और अहमद को बहुत अ छा लगा। अहमद अपना कैमरा ले आया जसका
लस बंदक
ू क नलक क तरह लंबा था। वह छत पर से गांव क त वीर लेने लगा। उसके बाद
उसने कैमरा राजी क तरफ मोड़ दया और लक लक क आवाज लगातार आने लगी। हर
लक क आवाज़ पर राज़ी नया पोज़ दे ने लगी। म उसक सुंदरता और शार रक सुंदरता पर मु ध
हो गया। मज़े क बात यह भी थी क वह शम और हया जैसे श द से अप रिचत लगी।
अंधेरा होते ह गुलशन ने चौक पर िम ट के िसकोर म ई लगा कर बनाये गये िचराग जला
दया। अहमद ने जॉनी वाकर लैक ले बल िनकाली। सोड़े क बोतल और बफ का थमस खोला।
िगलास म व क बनाने लगा। राजी के िलए उसने एक िगलास म “ जन” डाली और उसम टमाटर
का जूस िमला दया। अहमद इतनी तैयार से आया था क उसे यहां कसी चीज़ क ज़ रत ह न
पड़ । वह अ छ तरह जानता होगा क यहां कुछ न िमलेगा।
“यार बड़ तैयार से आये हो”, मने अहमद से कहा।
“दरअसल हम लोग खजुराहो जा रहे ह”, वह बोला।
“खजुराहो”, म उछल पड़ा।
“चलो तुम भी चलो।”
“म. . .?”
“हां. . .हां . . . गाड़ म कम से कम एक आदमी के िलए तो जगह है ह ।”
“यार गेहूं क मड़ाई हो रह है ।”
“दे ख लो यार।”
मने सोचा मेरे साथ हमेशा ह ऐसा य होता है । जब कुछ यादगार घटने वाला होता है और उसम
मेर िशरकत हो सकती है तो कोई न कोई काम िनकल आता है ।
“राजी ह दो तान म मं दर पर एक फोटो फ चर बनाने जा रह है । इसी के साथ एक “काफ टे बुल
बुक” छपेगी और हम लोग अपनी “रे कमे डे श स” “िमिन ऑफ टू र ” को दगे क मं दर टू र
को कैसे बढ़ावा दया जा सकता है । टू र डे वलपमे ट कारपोरे शन के साथ-साथ इस ोजे ट म
कई “िमिन ज़” भी लगी हुई ह। म इस ो ाम का कोआड नेटर हूं य क इसको मने ह
“क सीव” कया था और हमारे हाई किम र ने लंदन से ये नोट कैबिनट से े टर को भेजा था।
आजकल िम टर घोष कैबिनट से े टर है . . .वह जनक कोठ पर एक बार तुम िमलने आये थे?”
“हां-हां मुझे याद आ गया. . .इ दरानी के अं कल।”
“यस. . .वह अं कल ज ह गवनमे ट ऑफ इं डया के अलावा पूरा ह द ु तान पागल मानता है ।”
नशे का मजा थोड़ ह दे र म चढ़कर बोलने लगा। राजी र ा ने अपना िगलास खाली कर दया।
अहमद ने उसे दूसरा ं क बना दया। हम लोग का तीसरा ं क चल रहा था।
“यू आर िस टं ग टू फार ाम अस”, अहमद ने राजी से कहा। वह उठकर अहमद के पलंग पर उसके
साथ बैठ गयी। फर अहमद क पीठ के पीछे पलंग पर लेट गयी।
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वे बुझ-े बुझे बेमतलब दन थे। चुनाव म अपनी पूर ताकत झ क दे ने के बाद सब पता नह ं आराम
कर रहे थे या अपनी अपनी हार से समझौता करने क कोिशश कर रहे थे। म दन- दनभर घर पर
पड़ा रहता और “जासूसी दिु नया” म डू बा रहता। आ य करता क यार या लेखक है जो पूरा जगत
रच दे ता है । जब चाहता है िसफ कुछ श द के मा यम से जहां चाहता है वहां पहुंचा दे ता है और
इ छानुसार बाहर िनकाल कर पटक दे ता है । उसने एक ित संसार बनाया है जहां पाठक जीते और
मरते ह, खुश और द:ु खी होते ह। पा से ेम और घृणा करते ह।
एक दन दोपहर को तार आया। द ली से सरयू डोभाल ने तार भेजा था “द नेशन डे ली” के चीफ
रपोटर न मुल हसल से िमलो। वे तु ह नौकर दे सकते ह।” तार पढ़कर म सकते म आ गया।
“नेशन डे ली” अं ेजी का मुख अखबार है । म हं द म एम.ए. हूं। नौकर ? अख़बार और वह भी
अं ेज़ी के अख़बार म? म तार हाथ म िलए घंट सोचता रहा। अ बा ने तार पढ़ा। च मा उतारा।
मेर तरफ दे खा और बोले- बोलो? या सोचते हो? म या बोलता? खामोश रहा। केस रयापुर, चौरा,
खेती, रहमत और गुलशन। यहां पाट , दो त, आंदोलन. . . र शा यूिनयन, िसलाई कमचार यूिनयन,
बीड़ मज़दरू यूिनयन. . . मु ार, उमाशंकर और िम ा जी. . .म या बोलता।
अ बा समझ गये और बोले- “ज द या है सोच लो।”
एम.ए. कए हुए चार साल हो गये। अहमद लंदन हाई कमीशन म इं फारमेशन ऑफ सर है , शक ल
युवा कां ेस का अ य बन गया है । कसी भी चुनाव म टकट िमल सकता है । फैज़ी क शाद हो
गयी है ।
जावेद कमाल को नौकर करनी पड़ रह है । कामरे ड लाल िसंह शाद के च कर म है । सब कुछ
ग डम ड है । पता नह ं यहां या होगा? भ व य अिन त है । “नेशन डे ली” एक रा ीय अखबार है ।
उसके चपरासी क भी है िसयत होती है । म कम से कम चपरासी तो नह ं बनाया जाऊंगा। ले कन
समझ म आ नह ं रहा था क या कया जाये। अगर चला भी गया तो या म अं ेजी म काम
कर पाऊंगा या वहां से भी उसी तरह खाट खड़ होगी जैसे यहां से हो रह है । तब म या क ं गा?
ले कन अगर कोई जानते बूझते हुए हं द के एम.ए. को अं ेजी के अखबार म ले रहा है तो
ज मेदार उसक भी बनती है और अगर म चाहूं तो या अं ेजी सीख नह ं सकता? जो लोग
जानते ह वे आसमान से उतरे लोग तो नह ं ह।
“हम जानते थे कामरे ड क आप यहां टकोगे नह ं।” कामरे ड िम ा बोले और म कटकर रह गया-
“दे श का दभ
ु ा य यह है क पढ़े िलखे लोग के िलए छोटे शहर म रोजगार नह ं है ।”
“म तय नह ं कर पा रहा हूं क जाऊं या न जाऊं?”
“ज़ र जाओ. . .अगर म तु हार “पोजीशन” म होता तो ज र जाता”, वे ठ ड सांस लेकर बोले।
मेरे जाने के फैसले से अ बा और अ मां ह नह ं पूरा घर खुश था। खाला तैयार म जुट गयी थी।
स लो के चेहरे पर भी म खुशी क छाया दे खी। दो दन म तैयार पूर हो गयी। मु ार और
उमाशंकर को जब ये पता चला क म “नेशल डे ली” म नौकर करने जा रहा हूं तो उनके ऊपर
बजली-सी िगर । दो तरह क बजिलयां थीं पहली यह क म यहां सब कुछ छोड़ रहा हूं और दस
ू र
यह क म “नेशन डे ली” जैसे अखबार म जा रहा हूं।
े न के व के कोई एक घ टा पहले म टे शन पहुंच गया था। सामान कुछ यादा था। खाला ने
कई तरह के हलुए, नमक पारे , मीठ ट कयाँ, ल डू और न जाने या- या साथ कर दया था। रात
म खाने के िलए कबाब और पराठे थे। अ बा ने द ली म एक दो लोग के नाम ख़त दये थे।
अ बा टे शन आने पर तैयार थे ले कन मने उ ह बता दया था क मुझे सवार कराने बहुत लोग
ह गे और वो य तकलीफ करते ह और फर े न अ सर लेट हो जाती है । रात का यारह बारह
बज सकता है ।
टे शन पर उमाशंकर, मु ार, कलूट, अतहर के अलावा शमीम, करमान और दस
ू रे लड़के भी थे।
उमाशंकर और मु ार पये हुए थे। खासतौर पर मु ार बहुत चढ़ाये हुए लग रहा था। उसे दे खकर
मेरा मन भर आया। तीन साल पहले जब वह मुझसे पहली बार िमला था तो प का मु लम लीगी
ज़ेहिनयत का आदमी था। आज वह वामपंथी राजनीित म ह सीधा है । सीधी बात सोचता है ।
उमाशंकर कां ेसी हुआ करता था। इन दोन ने मेरे कहने, समझने और “क व स” करने से एक
सपना बुना था। पता नह ं म उस सपने के के म था या नह ं ले कन इतना तय है क उस सपने
म मेर एक मह वपूण थित थी। म इन लोग से आंख नह ं िमला पा रहा था। सामान को ट -
टाल पर रखवाकर हम टे शन के उस ह से म चले गये जहां अंधेरा था। म उ मीद कर रहा था
क अब ये लोग मुझ पर सवाल क बौछार कर दगे। ले कन वे खामोश थे। इधर-उधर क बात हो
रह थीं। द ली क बात “नेशन डे ली” क बात, हम जानबूझ कर इस बात से बच रहे थे क म
वापस द ली जा रहा हूं। उस शहर जा रहा हूं जसने मेरे चूतड़ पर लात मारकर मुझे बाहर कर
दया था. . . पूरे माहौल म एक तनाव था, लगता अगर ये बाहर आ गया तो संभालना मु कल हो
जायेगा।
े न जब दूर से आती दखाई दे ने लगी तो मु ार मुझसे िलपट कर रोने लगा। उमाशंकर ने उसे
डांटा- “अबे ये या. . . कोई सात सम दर पार तो जा नह ं रहे ह। रातभर का सफर है . . . द ली
यहां से कतनी दरू है ।” म सोचने लगा शायद यहां से द ली सात सम दर पार ह है और मु तार
का रोना वा जब है ।
सुबह द ली टे शन पर उतरा तो यान आया क जब यहां से जा रहा था और बाबा मुझे छोड़ने
आया था तो लेटफाम पर हमने शराब के
नशे म बहुत थूका था- दरअसल यह थूकना था द ली पर। तो म द ली पर थूककर गया था और
अब फर द ली आ गया। कोई आवाज़ आई- अपने थूके को चाटने आये हो तुम. . .तु हार इतनी
ह मत हो गयी थी क राजधानी पर थूक कर गये थे। दे खा अब तुम इसे चाट रहे हो।
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सरयू डोभाल के चेहरे पर मु कुराहट फैल गयी। उसक उदास और गहर आंख म पुराने संबंध क
झल कयां दखाई पड़ ।
“कब आये?”
“बस सीधा टे शन से चला आ रहा हूं।”
बाथ म से िनकलकर अिमत जोशी आ गया। उसका वभाव ब कुल अलग और बेलौस क म का
है ।
दोन लंबे समय से साथ-साथ रहते ह। छोट -छोट बात पर उनके बीच चलती रहती है । बड़ बात
पर कभी ववाद नह ं होता य क जीवन, जगत, राजनीित के बारे म उनक राय एक है । कचन म
पानी िगरा दे ने, बा ट म कपड़े िभगोकर छोड़ दे ने, च पल म क ल लगवाने, िछपाकर रखी गयी आधी
िसगरे ट पी जाने पर दोन म बहस हो जाती है जो सा ह य, कला और सं कृित का च कर लगाती
मनो व ान और राजनीित तक खंचती चली जाती है । फर दोन थक जाते ह और बाहर िनकल
पड़ते ह। दोन क वताएं िलखते ह, दोन न सलवाद के ित सम पत ह। अिमता तो कुछ यादा ह
लाल है । वह शायद पाट सद य है और कई बार गंभीरता से “आम ल” म शािमल होने के बारे
म सोच चुका है ।
“कहो खेती बाड़ कैसी चल रह है ?” अिमत ने पूछा।
“बस यार हो गया खेल खतम।”
“अरे य या हुआ?” सरयू बोला।
“बस या बताऊँ लंबी दा तान है . . .”
वे दोन चले गये। म सो गया। तय यह हुआ था क शाम को
धीरे -धीरे दस
ू रे लोग आते रहे और कुछ उठ-उठकर जाते रहे । बहस पता नह ं कैसे चा मजूमदार से
होती िलन पयाऊ पर आ गयी और फर इधर-उधर भटकती हुई एम.एफ. हुसैन क नयी दशनी
पर होने लगी।
वह प रिचत य, प रिचत लोग- या यह मेर दिु नया है? और वह जो छोड़ आया हूं? वह शहर?
वहां क धूल उड़ाती गिलयां, खुली हुई गंद नािलयां, हाड़-मांस का ढांचा शर र, बंधुआ मज़दरू , खेती म
जान खपाते रामसेवक और गोपाल? या वह मेरा यथाथ है ? मेरा ह य दे श का यथाथ है । फर
हम यहां य खुश ह? या “सात सम दर पार” एक ह दे श के अंदर ये न ल तान बनाये गये ह
इसिलए बनाये गये ह क हर वह आदमी जो “कुछ” कर सकता है अपने दल क भड़ास िनकालता
रहे । ख़ै़र छोड़ो अभी कल हसन साहब से िमलना है । पता नह ं कैसी नौकर है जो वे दे ना चाहते ह।
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“अ छा तो तु ह ये डर है क तुम हं द मे एम.ए. हो अं ेजी कैसे िलखोगे. . .जानते हो अख़बार
क जुबान म कतने ल ज होते ह? मु कल से हज़ार और कतने तरह के जुमले बनते ह? मु कल
चार क म के. . .भई ये कोई “िलटरे चर” तो है नह ं. . .तुम ये फ़ाइल ले लो और इधर बैठ जाओ.
. .वहां ड शन रयां रखी ह. . .आज कम से कम दो सौ नये ल ज़ सीख लो. . .और जुमले. .
.छपी हुई रपो स को पढ़ो. . .सब कुछ वैसे का वैसा ह जाता है । बस तार ख़ नाम, जगह बदल
जाती ह. . .समझे. . .” हसन साहब ने मेर े िनंग शु कर द थी और म तेज़ी से सीखने लगा।
एक ह ह ते म उ ह रपोट िलख कर दखाने लगा। मुझे मै यू साहब के साथ लगा दया गया।
मै यू एम.सी.ड . “कवर” करते ह। यारह बजे के बाद वे आते थे। म उनके साथ लग लेता था। वे
सीधे ेस लब आ जाते थे। वहां उनका लंच होता था जसके साथ दो बयर पीते थे। उसके बाद
मै यू फोन घुमाना शु करते थे। दस-बीस लोग से कारपोरे शन क खबर ले लेते थे। फर हम चाय
पीकर चार बजते-बजते द तर आ जाते थे। मै यू नो स मुझे दे दे ते थे। म यूज़ बनाता था। वे
िसगरे ट पर िसगरे ट फूंकते और दे श भर के अख़बार चाटते रहते थे। मेर यूज़ म कुछ फेर करने
के िलए वे टाइप राइटर पर बैठ जाते थे और बजली क तेजी से उनक उं गिलयां चलती थीं। आठ
बजे से पहले पहले यूज़ चीफ रपोटर हसन साहब क मेज़ पर पहुंच जाती थी। हसन साहब नौ
बजे के बाद आते थे। यानी म काफ हाउस का एक च कर लगा आता था और यारह बजते-बजते
रपो टग से लोग जाने लगते थे। सबसे बाद म जाने वाल म हसन साहब हुआ करते थे य क वे
डमी दे खकर ह जाते थे।
दब
ु ले, पतले, औसत कद, तीखा नाक न शा, तांबे क तरह चमकता रंग, घने सूखे और काले बाल।
हसन साहब म अब भी उस आग क िचंगा रयां ह जो एक ज़माना हुआ उनके अंदर लगी थी।
कभी-कभी मुझे अपने साथ घर ले जाते थे और काच व क क बोतल खोलकर बैठ जाते थे।
हालां क ऐसा बहुत कम होता था य क वे अपने काम म द वानगी क हद तक डू बे हुए थे और
रात दन यूज़ के अलावा उ ह कुछ और न सुझाई दे ता था ले कन जब अपने घर ले जाते थे तो
कभी-कभी रात के तीन बज जाया करते थे और मुझे वह ं सोफे पर सोना पड़ता था। हसन साहब ने
अपने बारे म जो बताया या बातचीत म पता चला वह कुछ ऐसा था।
हसन साहब के वािलद अरबी फारसी के व ान और मौलवी थे। पूर जंदगी वे राजा महमूदाबाद क
लाय ेर म फारसी और अरबी- पा डु िल पय के इं चाज रहे और राजा साहब के िलए नायाब
पा डु िल पयां जमा करते रहे । रटायर होकर वे अपने आबाई गांव हसुआ चले गये ओर वह ं
इं ितकाल हुआ। हसन साहब अपने वािलद के भाव म प के मज़हबी और क टर िशआ थे। लखनऊ
यूनीविसट से बी.ए. कर रहे थे। उसी ज़माने म उनक मुलाकात पं डत सुंदरलाल से हो गयी। पं डत
जी अपनी मशहू रे -ज़माना कताब “भारत म अं ेजी राज” िलख रहे थे। उ ह कसी लड़के क ज़ रत
थी जो उनक मदद कर दे । हसन साहब तैयार हो गये। पं डत जी का साथ उ ह ऐसा रास आया
क बी.ए. करने के बाद पं डत जी के साथ ह लगे रहे । उनके से े टर हो गये। इसी दौरान हसन
साहब आचाय नरे दे व, जेड़ अहमद और ज़ोय अंसार वगै़रा के स पक म आये। पं डत सुंदरलाल
उ ह लेकर है दराबाद गये। यह उथल-पुथल का ज़माना था। अँ ेज़ जा चुके थे। िनज़ाम पूर तरह
अपने धानमं ी कािसम रज़वी के िशकंजे म थे। कािसम रज़वी है दराबाद को आज़ाद मु लम दे श
बनाने के सपने दे ख रहा था। हिथयार मंगवाये जा रहे थे और राज़ाकार क “फौज तैयार हो रह
थी। इसके बाद दं ग वाले दन म भी हसन साहब पं डत जी के साथ रहे और फर एक दन पं डत
जी से कहा क वे जाना चाहते ह। पं डत जी जानते थे उ ह ने
मु करा कर कहा हां म जानता हूं मेरे आंगन का पछला दरवाजा कधर खुलता है ।
हसन साहब सी.पी.आई. के होल टाइमर हो गये। इस बीच ववाह कर िलया था। पाट ने उ ह
लखनऊ से द ली भेजा और उदू “लाल पैगा़म” का स पादक बना दया। अखबार का द र
द रयागंज म हुआ था और हसन साहब दस कलोमीटर दूर भोगल नाम के एक गांव म रहते थे।
हसन साहब ने बताया था क अ सर द र म इतनी दे र हो जाती थी क कोई सवार नह ं िमलती
थी और वे डबल माच कर दे ते थे। रा ते म छ: िसगरे ट पीते थे और रात यारह बजे तक घर
पहुंच जाते थे। फर रण दे व का ज़माना आया। पाट ने एक ऐसी छलांग लगाने क कोिशश क
जसम पैर ह टू टना था। ेस ज़ हो गया। द र पर ताले लग गये। हसन साहब के िलए आदे श
हुआ क तेलंगाना जाओ। छ: मह न तक रात को जागने और दन म िछपकर सोने म बीते।
अंधेर रात म गोिलय क तड़तड़ाहट, चीख़ , रौशनी, पुिलस का आतंक सब दे खा। आ खरकार
आंदोलन बखर गया तो फर वापस आये। पाट क लाइन बदल गयी थी। संसद य लोकतं को
पाट ने वीकार कर िलया था। हसन साहब ने कहा क जस दन ऐसा हुआ उसी दन मने पाट
से इ तीफा दे दया और समझ गया क अब ांित नह ं आयेगी। एक सपना जो एक दशक से
यादा उनक ेरणा का ोत था वह ख़ म हो गया था। उसके बाद कह ं न कह ं तो नौकर करनी
ह थी और प का रता के अलावा कुछ जानते न थे। इसिलए प कार हो गये।
पता नह ं य यह कहा जाता है क भूतपूव क युिन ट बहुत अ छा आदमी होता है या बहुत
खराब। उससे यह आशा नह ं क जा सकती क अ छाई और बुराई दोन का कुछ-कुछ लेकर
चलेगा। इस मा यता के अनुसार हसन साहब बहुत अ छे आदमी ह। ऐसा नह ं है क उ ह नापसंद
करने वाले कम ह। ऐसा भी नह ं क उनका कोई वरोध नह ं होता। ले कन वरोधी यह मानते ह
क पीछे से हमला नह ं करता। मानवीयता है । और जो दो त ह वे तो जान दे ने के िलए तैयार
रहते ह। अखबार क राजनीित के अखाड़े म वे िसफ अपने काम म बल पर जमे
हुए ह। जी.एम. उनक ताकत को पहचानता है । एड टर से आमतौर पर उनका कोई मतभेद इसिलए
नह ं होता क द ली रपो टग से एड टर यादा मतलब रखते भी नह ं। संवेदनशील “ े ” वशेष
संवाददाताओं को दए जाते ह जन पर एड टर क सीधी कमा ड होती है ।
ये मुझे बाद म पता चला क मै यू के बारे म लोग ने उड़ा रखी है क वह “होमोसे सुअल” है मुझे
हसन साहब ने जब मै यू के साथ लगाया था तो कई लोग के चेहरे बहुत ताज़ा नज़र आने लगे
थे। एड टं ग म भी कुछ लोग पूछते थे, तुम मै यू के साथ हो। मेर समझ म नह ं आता था क ये
ऑ फस क भ म हलाएं, सीिनयर लोग मुझे और मै यू को साथ दे खकर य मु कुराते ह। मै यू
पचास वष के ह, अ ववा हत ह, केरल के ह। कम बोलते ह। जब हं द म बात करते ह तो हर वा या
“साला” श द से शु होता है । उनक अं ेजी बहुत अ छ है । पर कहते ह “साला यूज़ पेपर म काम
करने से हमारा इं लश खराब हो गया।” उनके पास कभी साउथ और खासकर केरल के लड़के आते
ह ज ह दे खकर लोग आंख ह आंख म इशारे करते ह।
स बंग म एक लड़क सु या है जस पर यार लोग डोर डालते रहते ह। इसके अलावा े नी लड़ कय
को काम िसखाने के िलए भी छड़ म होड़ लगी रहती है । म य क सबसे जूिनयर हूं इसिलए म
कसी िगनती म नह ं हूं। म अपनी इस तरह क इ छाओं का इजहार भी नह ं कर सकता। रपो टग
म आठ लोग ह। यादातर “यंग” ह। हसन साहब कहते ह बूढ़े घोड़े रे स म नह ं दौड़ते। जवान घोड़
म भात सरकार और एन.पी. िसंह काफ चमकते ह। बाक बंसल और अिनल सेठ काम अ छा
करते ह ले कन कुछ ऐसे तीसमारखां नह ं ह। योित िनगम आट, क चर, फ म करती ह। कर ब
चालीस साल क योित िनगम ज़ र अपने ज़माने म “बहुत कुछ” रह होगी। अब भी आकषक ह
और चेन मोकर ह, पाट म एक-दो ं क ले लेती ह। हसन साहब योित िनगम को बहुत मानते
ह। कहते ह आट और फ म क ऐसी समझ जैसी ह रा म है , कम ह दे खने को िमलती है ।
छ: मह ने के अंदर म अपनी यूज़ सीधे हसन साहब को दे ने लगा।
भात सरकार ने कहा- “बॉस अब ये काम सीख गये ह। इसे मै यू साहब से अलग कर दो. . .नह ं
तो वे इसे और कुछ िसखा दगे तो परे शानी हो जायेगी।”
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2 Published till here on January 23
म िसगरे ट खर दकर मुड़ा ह था क मोहिसन टे ढ़े के द दार हो गये। द ली क बाज़ार म कोई
पुराना िमल जाये तो या कहने। मोहिसन टे ढ़े ने भी मुझे दे ख िलया था और उसके चेहरे पर
फुलझ ड़यां छुट रह थीं।
यार तुम कहां रहते हो. . .कसम खुदा क बड़ा गु सा आता है तु हारे ऊपर।” मोहिसन आकर िलपट
गया। सुना तो था. . .जै कह रहा था क तुम द ली ह म हो और “नेशन” म हो. . .
“तुम सुनाओ यार मोहिसन या हाल है ?”
“सब फ ट लास है ।”
“ या कर रहे हो?”
वह हं सने लगा। ऐसी हं सी जसम शिम दगी भी शािमल थी।
“यार म सुबह यह ं कनाट लेस आ जाता हूं। “बंकुरा” म लंच लेता हूं. . .एक च कर स कल का
लगाता हूं. . . फर अमर कन लाय ेर म बैठ जाता हूं. . .शाम को मै समुल र भवन म कोई फ म
दे ख लेता हूं. . रात दो पये वाली टै सी पकड़ कर आर.के.पुरम चला जात हूं।” वह फर शिम दगी
िमि त हं सी हं सने लगा।
मुझे यह सब सुनकर है रत नह ं हुई। मोहिसन टे ढ़े के बारे म हम सबको हॉ टल के दन से पता
था क वह अ छे खासे खाते-पीते जमींदार खानदान से ता लुक रखता है ।
म हॉ टल के कमरा नंबर तेईस म था और मोहिसन टे ढ़े चौबीस म था। मुझसे एक साल जूिनयर
होने क वजह से पहले तो डरा-डरा रहा करता था फर दो ती-सी हो गयी थी और अ सर शाम
“कैफे ड फूस” या “अमीरिनशां” म साथ-साथ गुजार लेते थे। बचपन म उसे पोिलयो का कुछ असर
हो गया जसक वजह से टाँग मे कुछ टे ढ़ापन आ गया था।
ले कन उसका नाम मोहिसन टे ढ़े िसफ टांग के टे ढ़ेपन क वजह से पड़ जाता तो बहुत मामूली बात
होती। उसम और कई तरह के टे ढ़े न थे और शायद अब भी ह गे। पहला टे ढ़ापन तो यह नजर
आया क उसने ीयूिनविसट लास तीन बार पास क । हर बार “क बीनेशन” बदल जाता था।
पहले साल फ ज स, कैिम , बाटनी से क , पास हो गया। ले कन अगले साल स जे ट बदल कर
ीयूिनविसट लास का इ तहान दया। तीसरे साल भी यह कया। हम लोग उसे ीयूिनविसट
मा टर कहने लगे थे और उसका ये रकाड बन गया क जतनी बार उसने ीयूिनविसट पास क
है उतनी बार कसी और ने नह ं क ह।
मोहिसन टे ढ़े ग़ज़ब का कंजूस था और कभी-कभी खूब पैसा उड़ाता था। उसे अपने ह र तेदार क
एक लड़क से इ क हो गया था। लड़क बहुत समझदार थी। मोहिसन टे ढ़े को इ क आगे बढ़ाने क
सलाह पूरा हॉ टल दया करता था। एक बार सभी लड़क ने तय कया क मोहिसन टे ढ़े को चा हए
कुछ महं गे क म के पर यूम लड़क को तोहफ़े म पेश करे । मोहिसन टे ढ़े पर यूम खर द द ली
चला गया था और कोई तीन-चार सौ के पर यूम ले आया था। ये लड़क को पेश कए गये थे
जसने इ ह कुबूल कर िलया था। उसके बाद हॉ टल ने राय द थी क अब मोहिसन टेढ़े को चा हए
क लड़क को फ म दखाने ले जाये और िसनेमा दे खने के दौरान से उसे शाद का ताव रख दे ।
मोहिसन टे ढ़े ने यह कया था ले कन लड़क ने न िसफ इं कार कया था ब क उस पर नाराज़ भी
हुई थी और उठकर चली गयी थी। इस पर हॉ टल क राय बनी थी क मोहिसन टे ढ़े कम से कम
अपने पर यूम तो वापस ले आय। मोहिसन टे ढ़े ने ऐसा ह कया था। पर यूम वापस लेकर वह
हॉ टल आया था तो उदास था। इ क म नाकाम लोग शराब पीते ह। यह सोचकर हॉ टल ने
मोहिसन टे ढ़े को हॉ टल ने शराब पीने क राय द थी। शराब ने नशे म उसे पता नह ं या सूझी
थी क उसने पर यूम क दोन बोतल हॉ टल के हर लड़के पर “ े” कर द थीं। और फर खाली
बोतल को बरामदे म तोड़ डाला था।
मोहिसन टे ढ़े ने तीन बार ी यूिनविसट करने के बाद इं जीिनय रं ग
म ड लोमा कर िलया था। ले कन ये तय था क वह वैसी नौकर नह ं करे गा जो ड लोमा करने के
बाद िमलती है । य क ज़मीन जायदाद आम और लीची के बाग से उसे हज़ार पये मह ने क
आमदनी होती थी और वह अकेला है । वािलद का इं ितकाल हो गया और उसक मां उसे अलीगढ़
इतना पैसा भेजा करती थीं क उससे पांच लोग पढ़ लेत।े
“तो मतलब वह कर रहे हो अलीगढ़ म कया करते थे।” मने कहा।
“नह ं यार . . . म सोचता हूं सी रयसली च पढ़ डालूं?” वह बोला।
“ य या यहां च क लास म लड़ कयां काफ आती है ।” मने सादगी से पूछा।
वह हं सने लगा, “हां यार बात तो यह है ।”
“ये बताओ, रहते कहां हो?”
“म जद म”, वह हं सकर बोला।
फर वह टे ढ़ापन. . .”अबे म जद म कौन रहता है ।”
“यार कसम खुदा क . . .आर.के. पुरम क म जद म रहता हूं।” वह हं सने लगा। “बड़े स ते म
कमरा िमला है । वो लोग मुसलमान को ह कमरा दे ते ह। बीस पये कराया दे ता हूं. . .पर एक
बात है यार।”
“ या?”
“म जद म दो ुप ह। दोन म मुक मा चल रहा है। मौलवी अफ़ताब ज ह ने मुझे कमरा दया है ,
उ ह ने गवाह दे ने का वायदा भी ले िलया है ।”
“तो फंसोगे झंझट म. . .”
“यार मौका आयेगा तो कमरा छोड़ दं ग
ू ा।” वह हं सकर बोला।
म उसक समझदार पर है रान रह गया ले कन उसके िलए इस तरह सोचना नया नह ं है । वह ऐसा
ह करता आया है ।
“चलो कमरे चलो. . .वह ं बैठकर बात करते ह”
“यार बस म इस व बड़ भीड़ होगी?”
“ कूटर से चलते ह।” मने कहा।
यार कराया तुम ह दे ना. . .आज मेरे पास पैसे नह ं ह।” उसने लाचार से कहा।
“हां. . .हां ठ क है . . .पैसे म ह दं ग
ू ा।” मुझे यह अ छ तरह मालूम है ब क यक न है क पैसे
उसके पास ह। ले कन वह अपने पैसे बचाना चाहता है । पता नह ं य उसे यह गहरा एहसास है क
पूर दिु नया उसके पैसे लूटने के च कर म है । और पैस को कसी भी तरह बचाकर रखना उसक
ज मेदार है । मुझे याद आया एक बार हॉ टल म पता नह ं कैसे कसी लड़के ने उसके पांच पये
उधर ले िलए थे और नह ं दे रहा था। मोहिसन टे ढ़े ने अपने पांच पये वसूल करने के िलए ज़मीन
आसमान एक कर दया था। वाडन से िशकायत क थी। सीिनयर लड़क के सामने रोया-गाया था
और आ खरकार इस पर भी तैयार हो गया था क लड़का एक पये मह ने के हसाब से पांच पये
वापस कर दे गा।
“तो ये है तु हारा घर?”
हां सदर दरवाज़ा. . .कभी बंद नह ं होता। ताला लगा ह रहता है ले कन पूरा का पूरा दरवाज़ा
चौखट समेत अलग हो जाता है । इधर बाथ म और कचन है । मेरे पीछे पता नह ं कौन-कौन
बाथ म का इ तेमाल कर जाता है । कचन म टोव और चाय का सामान है ।
“चाय पयोगे?”
“हां बनाओ।”
“दध
ू नह ं है ।”
“अरे तो फर चाय म या मज़ा आयेगा।”
“पड़ोसी से मांग लाऊं?”
म उठने ह वाला था क बशीर एक े म दो कप चाय लेकर आ गया।
“अरे तुम चाय ले आये?”
“आपा ने भेजी है ।” बशीर चाय दे कर चला गया तो मोहिसन टेढ़े ने अजीब टे ढ़ िनगाह से मेर
तरफ दे खा।
“ या मामला है सा जद।”
“यार पड़ोस म इकराम साहब रहते ह, ये उनका लड़का है
बशीर. . . ।”
“आपा के बारे म बताओ यार।”, वह हं सा।
“यार इकराम साहब क लड़क है । पता नह ं ये लोग कैसे ह। एक दन इकराम साहब आये. . .कोई
जान न पहचान. . .सौ पये उधार ले गये. . .ये लड़का आता रहता है . . .जब म घर म नह ं होता
तो आपा आकर कपड़े धो जाती है ।”
“ठाठ ह तु हारे ।”
“यार ठाठ तो नह ं ह. . .म तो कुछ घबरा रहा हूं।”
“आपा ह कैसी?”
“आज तक दे खा नह ं।”
“ य झूठ बोलते हो।”
“नह ं यार. . .झूठ य बोलूंगा।”
शाम होते-होते तय पाया क जामा म जद के इलाके म चलकर खाना खाया जायेगा। ो ाम तय
होने के बाद मोहिसन हसाब- कताब तय करने लगा। उसने कहा क कूटर का कराया तो वह दे
नह ं सकता। खाने का बल शेयर करे गा ले कन जो वह खायेगी उसी का पेमे ट करे गा। म अपना
पेमे ट खुद क ं । मने हं सकर कहा, चलो ठ क है । खाने का पेमे ट म ह कर दं ग
ू ा। इस पर वह
बोला क हां तु ह “द नेशन” म नौकर िमली चलो उसी को “सेली ेट” करते ह।
खाने के दौरान वह बताता रहा क उसके बहनोई क िनगाह उसक जायदाद पर है । सब उसे लूट
खाना चाहते ह। ले कन उसने यह तय कर कया है क धीरे -धीरे पूर जायदाद बेचकर पैसा खड़ा
कर लेगा और द ली िश ट हो जायेगा। म उसक हां म हां िमलाता। सोचा मुझ पर या फक
पड़ता है । जो चाहे करे ।
----९----
उसके चेहरे से जवानी के अ हड़ दन क छाया हट गयी है ले कन आकषण म कोई कमी नह ं
आयी है । बाल कुछ बढ़ा िलए ह और लंदन म रहने क वजह से रं ग कुछ यादा साफ हो गया है
ले कन दल वैसा ह है । िमज़ाज वैसा ह है । वह कल ह रात आया है , अकबर होटल म ठहरा है ।
सुबह-सुबह टै सी लेकर मेरे कमरे पहुंच गया था मुझे यहां पकड़ लाया है । कहता है द तर से आज
छु ट ले लो। चलो दनभर द ली म मौज करते ह। कर म म खाना खाते ह। कनाट लेस म
टहलते ह। कसी िसनेमा हाल म बैठ जायगे। शाम को कसी बार म खूब पयगे और रात म चलगे
मोती महल। कल राजी आ रह है इसिलए म “ बजी” हो जाऊंगा।
“ले ये दे खो तु हारे िलए लाया हूं।” उसने एक पैकेट मेर तरफ उछाल दया। दो कमीज, इले क
शेवर, दो टाइयां, चाकलेट. . .
“सुनो यार साले शक ल को फोन करके बुला लेते ह. . .मज़ा आयेगा. . .हम एक दन के िलए
अलीगढ़ भी जा सकते ह. . .पांच साल हो गये यार. . .अलीगढ़ छोड़े ”, अहमद बोला।
“लो फोन करो”, मने शक ल का नंबर दया। वह फोन िमलाने के िलए आपरे टर से बात करने लगा।
फोन िमला और लाइन पर शक ल आया तो वह िच लाया “अबे साले चूितया या कर रहा है . . .म.
. .म कौन हूं. .. अब म तेरा बाप हूं अहमद. . .कल ह लंदन से आया हूं. . .सा जद के साथ बैठा
हूं . . .तुम बेटा ये करो क आज रात क गाड़ पकड़ो और सीधे द ली आ जाओ. . .मी टं ग? अब
ऐसी मी टं गे बहुत हुआ करती ह. . .जानता हंू साले तुम नेता हो गये हो. . .न आये तो अ छा न
होगा. . .समझो।”
अहमद क वह आदत ह पैसा इस तरह ख़च करता है जैसे पानी बहा रहा हो। जो ो ाम बना लेता
है वह कसी भी तरह पूरा ह होना चा हए। शाम जब उसे चढ़ गयी तो बताने लगा क वह
इ दरानी को तलाक दे रहा है । म सकते म आ गया। ले कन “ य ” पूछने पर उसने बताया क वह
राजी रतना से यार करने लगा है । हो सकता है क यह बात मेर समझ म इसिलए न आई हो क
म पूर या से प रिचत नह ं था। मुझे यह पता था क आठ साल पहले म उसक शाद म
कलक ा गया था जहां इ दरानी से उसने समाज के अनुसार शाद क थी। मं अं ेज़ी म पढ़े
गये थे। उसके बाद लखनऊ म िनकाह हुआ था। द ली म िस वल मै रज हुई थी। वह इ दरानी पर
जान दया करता था। बीच म कोई दो साल पहले वह राजी रतना को लेकर केस रयापुर आया था
तो म यह समझा था, मौज म ती मार रहा है । ले कन यह तो सोच भी न सकता था क इ दरानी
को, जसने अपने चाचा के मा यम से उसके िलए वदे श मं ालय म नौकर दलाई है , उसे इतनी
आसानी से “टाटा” कर दे गा।
“ले कन हुआ या?”
“होना या था यार राजी के बना म नह ं रह सकता। मने यह बात साफ इ दरानी को बता द . .
.पहले तो वह बोली यह “फैचुएशन” है । पर साल भर बाद समझ गयी क म उसके साथ नह ं रहूंगा.
. .मने उसके साथ “सोना” बंद कर दया था।”
“उसने तु ह नौकर . . .वह भी भारत सरकार के वदे श. .”
“यार नौकर कोई न कोई कसी न कसी को दलाता ह है । इसका मतलब ग़ुलामी तो नह ं होता।”
“हां ये तो ठ क है . . .ले कन. . .।”
“ले कन या?”
“तु हारे बेटे का या होगा।”
“ओ. . . ंस चा स. . .हम लोग उसे ंस चा स कहते ह. . .वह हॉ टल म चला जायेगा. . .यहां
िशमला म बड़े अ छे बो डग ह वहां पढ़े गा”, वह हं सकर बोला।
कसी से कम भी नह ं है ।”
मने इधर-उधर दे खा। एक बड़ा-सा कमरा, पीछे बरामदा। कमरे के एक कोने पर बड़े से बेड पर
उसके दो ब चे सो रहे ह। दस
ू रे कोने पर िलखने क मेज के साथ एक त रखा है जस पर
शायद वह सोता है । द वार पर कैले डर और कुछ कला मक फ म के पो टर लगे ह।
“म आज जो भी हूं अपनी मां क वजह से हूं। तुम उसे दे ख लो ये कह ह नह ं सकती क इस
बेपढ़ िलखी, ब कुल गांव वाली म हला म इतनी ताकत होगी। उसके अंदर अपार श है । अब भी
वह दन म दस मील पैदल चल लेती है । यार वहां क जंदगी ह ऐसी है । इतनी कठोर, इतनी
िनमम, इतनी संघषशील क आदमी मेहनत कए बना रह ह नह ं सकता. . .ये बताओ खाने से
पहले कुछ पयोगे? मेरे पास िमिल क रम पड़ है ।”
“नेक और पूछ पूछ”, मने कहा।
वह रम क बोतल और िगलास लेकर आया। प ी से पानी मंगवाया और कुछ नमक न बना दे ने क
भी फरमाइश कर द । हम पीने लगे। धीरे -धीरे कमरे का नाक न शा बदलने लगा। रावत बना पए
ह काफ भावुक ढं ग से बोलता है । नशे के बाद उसक भावुकता और नाटक य और बढ़ गयी थी।
वह हर तरह भंिगमा से अपनी बात मा णक िस----कर रहा था।
“आज भी तुम वह घर जहां मां रहती है दे ख लो तो अचंभे म पड़ जाओगे. . .समझ लो इससे थोड़ा
बड़ा कमरा. . .कमरा भी या है . .कुछ प थर लगाकर द वार बनी ह। पछली द वार पहाड़ है ।
लकड़ के टु कड़े लगाकर दरवाज़ा बंद होता है । इसी म मेर मां और प चीस तीस मेडे रहती ह।”
“तु हारे वािलद गुज़र गये ह?” मने पूछा।
“हां उसे भे ड़ये खा गये थे. . .भे ड़ये. . .वह इतने जीवट का आदमी था क जंगली र छ से लड़
जाता था। एक बार उसने अपने भाले से जंगली र छ का सामना कया था. . .मां बताती है क
र छ भाग गया था।”
वह बोल रहा था। उसक बात म स चाई का ताप था। मुझे लगा रावत अब भी कई मायन म वह
है । उसी इलाके का रहने वाला, सीधा-साधा आदमी जो शहर हलचल के छल-कपट से दरू है । हमार
श दावली म उसे सीधा कहा जायेगा जसके कई अथ िनकाले जा सकते ह।
म पांच साल का था। मुझ सब याद है । मेरे पता ने जानवर के िलए एक बाड़ा बनाया था। रात
का समय था। अचानक बाड़ा टू टने क आवाज से पताजी जाग गये। उ ह ने मां से कहा क लगता
है भे डय ने बाड़ा तोड़ दया। इतनी ह दे र म भेड़ के िमिमयाने क आवाज़ आने लगी। कु े बुर
तरह भ कने लगे। पताजी लकड़ के त हटाकर दरवाज़ा खोलने लगे। मां ने कहा “बाहर मत
जाओ।” पताजी ने कहा, “मेरे जीते जी भे ड़ये उ ह खा जाय ?” वे अपना भाला लेकर बाहर िनकले,
उनके पीछे मां िनकली और मां के पीछे म िनकला। मुझे दे खकर पताजी ने कहा, “ये कहां आ रहा
है । इसे छत पर चढ़ा दे ।” मां ने मुझे छत पर उछाल दया। पताजी भे डय से िभड़ गये। लाल
लाल आंख चमक रह थी। भे ड़ये प चीस-तीस थे। उ ह ने पताजी पर हमला कर दया। उनके
सामने जो भे ड़या आ जाता था उसे भाले से गोद दे ते थे ले कन भे ड़ये पीछे से हमला करने म बड़े
होिशयार होते ह। मां उ ह मार रह थी क पताजी के पीछे न आ सके। पर भे ड़ये एक दो थे नह ं।
और फर उ ह भेड़ के र क सुगंध िमल गयी थी। मां ने जब दे खा क भे ड़ये भाग नह ं रहे ह
तो अंदर से एक लकड़ पर कपड़ा जलाकर बाहर आयी और आग से भे ड़ये भागने लगे। पर इस
बीच पताजी को भे डय ने बुर तरह काट िलया था। वे लेटे हांफ रहे थे। मां कपड़े से खून साफ
कर रह थी। पता ने उससे कहा क दे ख म नह ं बचूंगा. . .बचते भी कैसे. . .वहां से अ पताल
तक पहुँचने म दो दन लगते ह. . .तो पताजी ने कहा. . .म नह ं बचूंगा, मुझे एक वचन दे . . .तू
कसी भी तरह इसे पढ़ा दे गी. . .मां ने वचन दया था।”
गरम-गरम पकौड़े आ गये थे ले कन हम दोन ने उधर हाथ नह ं बढ़ाया। रावत क आंख म तो
आंसू आ गये थे। वह उ ह अपने हाथ
से प छ रहा था। म है रतज़दा बैठा दे ख रहा था क मेरे सामने एक ऐसा आदमी बैठा है जसक
जंदगी अ छ से अ छ कहानी को भी मात दे ती है । जो मुझे कसी दस
ू र दिु नया क बात लग
रह थीं।
“अब जहां हमारा घर था वहां कूल कहां? दस मील दरू एक ाइमर कूल था। घाट म उतरना
पड़ता था और फर पहाड़ पर चढ़ना पड़ता था। मां रोज मुझे वहां ले जाती थी. . .घाट म एक
पहाड़ नद पार करना पड़ती थी. . .वहां से मने पाँचवी क थी। हर साल कताब कापी खर दने के
िलए मां को भेड◌़ बेचना पड़ती थी। म जानता था क और कोई रा ता नह ं है ।”
“पकौड़े ठ डे हो रहे ह।” उसक प ी ने हम याद दलाया।
पाँचवी के बाद गांव के मु खया के साथ मां मुझे नैनीताल लाई। हम दो दन चलकर नैनीताल पहुंचे
थे। मु खया बकरम शाह को जानता था। बात यह तय हुई क म दक
ु ान, मकान क सफाई कया
क ं गा और बदले म वहां सो जाया क ं गा. . .माँ हर मह ने आया करती थी। अपने साथ खाने-पीने
का सामान लाती थी। वैसे मने एक साल बाद िसनेमा हाल म गेट क पर भी शु कर द थी। वहां
से पं ह पये मह ने िमल जाते थे. . .पर खाने-पीने का तो ठ क नह ं था. . .कभी जब एक दो
दन खाने को न िमलता था तो चेहरा िनकल आता था। दे खकर बकरम शाह कहते, लगता है , तुझे
कुछ िमला नह ं खाने को. . .जा अंदर खा ले।”
हम खाना खाने लगे। उसक प ी गरम-गरम फुलके दे रह थी। मेरा और रावत के बहुत कहने पर
भी हमारे साथ खाने पर नह ं बैठ । रावत ने बताया क अब हमारे खा लेने के बाद ह खायेगी।
खाने के बीच खामोशी रह । हां एक-एक िसगरे ट सुलगाने के अंधेरे म उड़ते जुगनू पकड़ने क
कोिशश करने लगा। म ब कुल खामोश था य क उस व म इससे बड़ा और कोई काम नह ं कर
सकता था।
“इसी तरह गाड़ चलती रह । हाई कूल कया कुछ नैनीताल क हवा लगी। कालेज म दा खला लेने
के िलए मां ने अपने चांद के गहने बेचे थे. . .और यार” वह कहते-कहते पहली बार झझका। लगा
कोई ऐसी बात कहने जा रहा है जसका उसे मलाल है , दख
ु है ।
पर यार उन दन मुझे अ छा नह ं लगता था क वह मुझसे िमलने आती है . . .यार सब लोग दे ख
कर . . .और फर वह दो दन पैद ल चलती हुई आती थी। यह नह ं पीठ पर लड़ कय का ग ठर
या भाड़े पर लाये जाने वाला समान भी लाद लेती थी ता क खाने-पीने के िलए कुछ हो जाये. .
.मने एक दन उससे कहा क वह न आया करे । वह समझदार भी थी मेरे कपड़े ल े और मेरे
दो त को दे खकर समझ गयी थी क म य मना कर रहा हूं। उसने मुझसे कहा क वह नह ं
आयेगी. . .पर यार वह आती थी। मुझे दरू से दे खती थी और वापस चली जाती थी।” रावत क
आवाज़ बहुत भार हो गयी और उसके आंसू तेजी से गाल पर ढरने लगे। म सटपटा गया।
----१०----
दो साल बाद घर पहुंचा तो दे खा पानी िसर से ऊंचा हो गया है। अ मां ने भूख हड़ताल कर द क
जब तक म शाद के िलए “हां” नह ं क ं गा वे खाना नह ं खायगी। अ बा ने तमाम तक दए क
लड़क म या बुराई है । बी.ए. कया है । लंदन म पली बढ़ है । जाना-बूझा खानदान ह नह ं है
हमारे दरू के अजीज भी ह। िमजा इ ा हम क अकेली लड़क है । िमजा साहब का बहुत बड़ा
कारोबार है । खाला ने भी समझाया क बेटा माशा अ लाह से अ ठाईस के हो गये हो। कब करोगे
शाद ? या हम तु हारे िसर पर सेहरा दे खने क हसरत म मर जाएंगे? खालू ने कहा- िमयां तु हारा
“सेहरा” पछले दस साल से िलखा पड़ा है । बस लड़क वाल के नाम डालने ह। अ मा “हां” करो तो
म “सेहरा” आगे बढ़ाऊं।
अ मां ने ये भी कहा क तुम कह ं करना चाहते हो। कसी से इ क मुह बत हो तो बता दो। म हं स
दया। ऐसा तो कुछ है नह ं। म कई खूबसूरत बहाने बनाकर मामले को टाल दया। सोचा यार अभी
से या फंसना शाद - याह के च कर म।
शाम चायखाने म हम सब जमा हो गये। उमाशंकर, अतहर, मु ार, कलूट के साथ ग प-श प होने
लगी। बातचीत म द ली छाई रह । वे यह जानना चाहते थे क द ली म या हो रहा है । दे श के
भ व य को िनधा रत करने वाले या कर रहे ह? म इन सवाल के जवाब दे रहा था और सोच रहा
था क पूरे दे श को यह बता दया गया है क दे खो तु हारे भ व य के बारे म फैसला द ली म
होता है । और द ली के बारे
म इतनी उ सुकता से जानकार लेने वाले अपने शहर के ित उदासीन ह। उनका मानना है यहां
कुछ नह ं हो सकता। पता नह ं यह कतना सच है ले कन दस प ह साल से जो सड़क खराब है वे
आज तक वैसी ह ह जैसी थीं। बजली क जो हालत है वह भी वैसी ह है जैसी थी। अ पताल के
सामने जो अराजकता है वह भी कायम है । मर ज़ क रे लपेल है और डॉ टर अपनी ाइवेट ै टस
करते ह। अदालत म भी र त का बोलबाला है । पुिलस अपना ता डव करती रहती है । अिधकार
मौज म ती म दन बताते ह ले कन लोग को िसफ िचंता द ली क है ।
शहर म कोई पाक नह ं है । सड़क ह नह ं ह तो फुटपाथ का सवाल नह ं पैदा होता। सड़क के नाम
पर ऊबड़-खाबड़, टू टे , ऐसे चौड़े रा ते ह जो कभी सड़क हुआ करते थे। लाय ेर बरस से बंद पड़ है
और अब ब कुल ह गायब हो गयी है । मनोरं जन के िलए दो िसनेमाहॉल ह जो अपनी ख ता
हालत पर रोते रहते ह। कूड़ा उठाने वाले शायद यहां ह ह नह ं। सड़क के कनारे कूड़े के अ बार
लगे ह और लोग वह ं रहते ह। दे खते ह ले कन फर भी नह ं दे खते। नगरपािलका के चुनाव बहुत
साल से हुए नह ं। जब भी नगरपािलका बनती है इतने झगड़े होते ह, इतनी मारपीट होती है , इतनी
िगरोहबंद रहती ह क कोई काम नह ं हो पाता और कल टर उसे भंग कर दे ता है । ऐसा नह ं है क
ज़ला शासन के पास आकर नगरपािलका म कोई काम होता हो। ाचार सीमाएं पार कर चुका है
ले कन जीवन चल रहा है । लोग रह रहे ह।
म आज के शहर क तुलना अपने बचपन के ज़माने के शहर से करता हूं और यह जानकर आ य
होता है क उस ज़माने म यानी सन ् ५६-५७ के आसपास यह शहर यादा साफ सुथरा था। सड़क
अ छ थीं। लाय ेर खुलती थी और लोग वहां जाकर पढ़ते थे। शहर म सफाई थी। गिमय के दन
म एक भसा गाड़ सड़क पर िछड़काव भी करती थी। आबाद कम थी और बजली पानी क
“आधुिनक सु वधाएं न होने के बावजूद जीवन आरामदे ह और अ छा था।
आज़ाद के बाद ऐसा या हो गया है क सब कुछ खराब हो गया
है । शहर के बाहर जो एक दो कारख़ाने या राइस िमल खुली थीं सब बंद हो गयी ह। मज़दरू के
नाम पर र शा चलाने के अलावा और कोई काम नह ं है ।
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सुबह ना ते पर पता चला क स लो को ट .वी. हो गयी है और वह कानपुर म है लट अ पताल म
भत है । इस ख़बर पर म सबके सामने या ित या दे सकता था। खामोश रहा और अफसोस का
इ ार कर दया ले कन बुआ से ये पूछना नह ं भूला क स लो कस वाड कस बेड पर है ।
दोपहर का खाना खाकर ऊपर कमरे म लेटा तो स लो क याद अपने आप आ गयी। यह तय कया
क कानपुर म उसे दे खता हुआ ह द ली वापस जाऊंगा। प ह िमनट तक म है लेट अ पताल के
गिलयार और वाड का च कर लगाता रहा। लोग और मर ज़ वाड के बेड पर ह नह ,ं फश पर
गिलयार म, सी ढ़य पर, पेड़ के नीचे, द वार के साये म, कूड़े के ढे र के पास पसरे पड़े थे। सब
साधारण गऱ ब लोग. . .सब मजबूर और बेसहारा लोग. . .यार लोग कुछ कहते य नह ?ं यह
सरकार अ पताल है । इसे सरकार ठ क से चलाती य नह ं? ये अ पताल कभी चुनाव का मु ा
य नह ं बनता? और ये अकेला अ पताल इस हालत म न होगा, ब क इस तरह के सकड़
अ पताल ह गे. . .चीख़, पुकार, रोना, िगड़िगड़ाना, कराहना और द गर आवाज़ के बीच आ खऱ वाड
क गैलर के एक कोने म मने स लो और उसक मां को पहचान िलया। लोग गैलर म से आ जा
रहे थे। ािलयां, मर ज़ के े चर के लोहे के पुराने प हय से आवाज आ रह थीं। लोग के पैर क
धूल उड़ रह थी और उसी गैलर के एक कोने म स लो दर पर लेट थी और उसक मां उसे पंखा
झल रह थी। यह दे खकर म गु से से पागल हो गया।
उ ह ने मुझे पहचान िलया। म सोच नह ं सकता था क स लो क यह हालत होगी। उसका िसर
बांस के ढांचे जैसा लग रहा था जस पर
झ ली चढ़ा द गयी हो। गाल क ह डयां उभरकर ऊपर आ गयी थीं। आंख अंदर धंस गयी थीं।
ठोढ़ बाहर को िनकल आयी थी और गदन सूखकर बांस जैसी हो गयी थी। उसके हाथ पैर जैसे
िनचोड़ दये गये थे। हाथ क नीली रग बहुत नुमाया हो गयी थीं। उसने मुझे दे खा और चेहरे पर
एक मु कुराहट आई जसक या या असंभव है । उसक मां खड़ हो गयी थी।
“ये यहां य पड़ है ?”
“भइया बेड़वा नह ं िमला।” वह लाचार से बोली।
“ठहर जाओ. .. अभी िमल जायेगा. . .यह रहना म अभी आता हूं।”
हॉ पटल सुपरे टडट के कमरे के बाहर बैठे चपरासी ने मुझे कने का इशारा कया ले कन म
इतना गु सा म था क उसे एक घुड़क दे कर कमरे म चला गया। सामने मोटा-ताजा, लाल-लाल
फूले गाल वाला एक िचकना चुपड़ा आदमी बैठा था। मने उसके सामने अपना व ज़ टं ग काड रख
दया। मेर तरफ दे खकर उसने व ज टं ग काड पढ़ा, एस. एस. अली, सीिनयर रपोटर, “द नेशन”
द ली, वह उठकर खड़ा हो गया। उसके चेहरे से अफराना रोब झड़ चुका था।
“बै ठये सर बै ठये।”
“म बैठूंगा नह ं. . .मेरा एक पेशे ट आपके वाड क गैलर म पड़ा है उसे “फौरन बेड द जए”, म
गु से से बोला।
“कहा कहां सर. . .वाड नंबर सर. . .” वह खड़ा होकर कसी का नाम लेकर िच लाने लगा।
---
स लो को बेड पर िलटा दया गया। बेड के पास दो कुिसयां रख द गयीं। डॉ टर ने स लो के
रकाड चाट पर मोटे अ र म कुछ िलखा और पूरे आ ासन दे कर चला गया।
म कुस पर बैठ गया। स लो क सांस तेज़-तेज़ चल रह थी। वह लगातार मुझे दे खे जा रह थी।
----११----
म रात म दस यारह बजे जब भी कमरे पर लौटकर आता तो कपड़े अलगनी पर सूखते िमलते,
कमरे म सफाई नज़र आती, कचन म दध
ू उबला रखा होता, खाना गम िमलता।
पास वाले घर म बशीर को पता नह ं कैसे पता चल जाता था क म आ गया हूं। वह सीधा मेरे
पास चला आता और जो भी चा हए उसका इं ितज़ाम कर दे त ा। हर सवाल के जवाब म बताता क
यह आपा ने कया, वो आपा ने कया है । आपा कह रह थीं वो ये भी कर सकती है , वो भी कर
सकती है । जाड़े आ रहे ह आपा रज़ाई ग े बना दे गी। गिमयां आ रह है आपा म छरदानी ले
आयगी। आपा ने आपके िलए अचार डाला है । आपा आपके िलए आंवले का मुर बा बना रह ह।
शु शु म तो पता नह ं शायद ये कुछ अ छा लगता होगा ले कन बाद म एक बोझ लगने लगा।
यह भी अंदाज़ा लगाया क आपा बहुत आगे क सोच रह ह।
आज खाना लेकर बशीर नह ं ब क आपा खुद आ गयीं। आपा को पहली बार दे खा। आपा ने खूब
तेल लगाकर दो चो टयाँ क हुई थीं। उनको दे खकर पता नह ं य मेरे आग लग गयी। अपने
हसाब से उ ह ने बेहतर न कपड़े पहने थे जो हं द क मु लम सोशल फ म म नाियकाएँ पहना
करती थीं ले कन इन कपड़ के िलए जस सुंदर और सुडौल ज म क ज रत होती है वह नदारद
था। चेहरे पर पाउडर थोपा हुआ था और होठ पर लाल िल प टक के कई लेप लगाये थे।
मने सोचा ये लड़क मुझसे शाद करना चाहती है । इसके वािलद कज मांगते रहते ह। भाई भी
फ़रमाइश कया करता है । कौन है ये लोग
और इसका इ ह या हक है? ले कन ये लड़क केस बना रह है ।
वह खाना रखकर चली गयी। मने बैठने के िलए नह ं कहा। खाना खाया तो बरतन लेने बशीर
आया। मने िसगरे ट का धुआं छोड़ते हुए उससे कहा, “सोचता हूं ये मकान छोड़ दं .ू . .ऑ फस से दरू
पड़ता है ।” बशीर ने है रत म मेर तरफ दे खा और बरतन लेकर चला गया। थोड़ दे र बाद आया और
बोला, “आपा कह रह ह दे खगे कैसे छोड़ते ह ये मकान।”
म स नाटे म आ गया। मतलब साफ था। मेरे मकान छोड़ने से पहले आपा ये शोर मचा दगी क
मने शाद का वायदा करके उसके साथ ज मानी र ता बना िलया है या मने आपा के साथ
बला कार कया है । चाहे कुछ हुआ या नह ं ले कन एक सीन एट हो जायेगा। म फंस भी सकता
हूं। इसिलए कुछ होिशयार से काम लेने क ज रत है । मने बशीर से कहा “अभी तय थोड़ है
मकान छोड़ना. . .दे खो या होता है ।”
अगले दन काफ हाउस म इस मसले पर मी टं ग बैठ गयी। रावत, नवीन जोशी, मोहिसन टे ढ़े के
अलावा िनगम साहब भी थे। सबने राय द क भागो. . . जतनी ज द हो सकता है भागो। ले कन
कैसे तरह-तरह क रणनीितयां बनने लगीं। आ खरकार तय पाया क म पहले मकान मािलक को
हसाब चुका दं ू उसके बाद रात बारह बजे के बाद अपना सामान समेटूं। साढ़े बारह बजे िनगम
साहब अपनी गाड़ मेन रोड पर खड़े ह गे। मोहिसन टे ढ़े उसके साथ होगा। म गाड़ म सामान
रखूग
ं ा और सीधे मोहिसन टे ढ़े के साथ म जद वाले कमरे म आ जाऊंगा। उसके बाद कह ं शर फ
के मोह ले म बरसाती वग़ैरा दे ख ली जायेगी।
इस आड़े व िनगम साहब ने जो मदद ऑफर क उससे म भा वत हो गया। िनगम साहब क
एडवरटाइ ज़ंग एजसी है । कुछ मकान ह जो कराये पर उठा रखे ह। उ हम लोग से पांच-सात
साल यादा ह होगी। कुछ पॉली ट स म भी दखल है । ऊंचे-ऊंचे लोग को जानते ह। हमारे िलए
क व ह। अपनी तरह क क वताएं िलखते ह जनका उनके पीछे अ छा खासा मज़ाक उड़ता है ।
जवानी म िनगम साहब को पहलवानी का शौक था। यह वजह है क अब पूरा ज म अजीब तर के
से फूला हुआ-सा लगता है । चेहरे पर िछतर हुई दाढ़ और सूखे बाल क व होने क गवाह दे ते ह।
घर वाल को टालते-टालते कई साल हो गए थे और अब ये लगने लगा क यादा टाल पाना
नामुम कन है । अ मा, खाला और खालू द ली आ गये। एजे डा यह था क कसी सूरत मुझे िमजा
इ ा हम क लड़क नूर इ ा हम से शाद पर रजामंद कर िलया जाये। कहा जाता है क शाद और
जायदाद के बारे म जो बहुत चाक चौबंद रहता है , हर-हर तरह से सौदे को दे खता परखता है उसे
कुछ नह ं हािसल होता। खालू ने सौ िमसाल दे कर समझाया क शाद कतनी ज र है । अ मा खूब
रोयीं और खाला क आंख म आंसू आ गये। अ मां ने कहा क हमारे कहने पर िमजा इ ा हम ने
दो साल इं ितज़ार कया है और हम उनसे नह ं नह ं कह सकते। अ मा ने नूर इ ा हम का पूरा
बायोडे टा याद कर िलया था। जो बार-बार मुझे सुनाया जाता था। नूर इ ा हम क त वीर भी
उ ह ने मंगा ली थी। मुझे दखाई गयी थी। अ छ खूबसूरत लड़क है , यह कोई त वीर दे खते ह
सकता था। बहरहाल मुझे हां करना पड़ । मेर हां होते ह अ मां ने खालू के साथ जाकर लंदन फोन
िमलवाया और इ ा हम साहब को र ता दे दया। उसके बाद तो हवा के घोड़े दौड़ने लगे।
िमजा इ ा हम के बारे म जो बताया गया उससे यह अंदाजा हुआ क वे कसी ना वल का करदार
हो सकते ह। उनक उ सोलह साल क थी वे घर से भागकर बंबई पहुंच गये। वहां एक मच ट
िशप म बतन धोने का काम िमल गया। यह जहाज जब लंदन पहुंचा तो िमजा इ ा हम लंदन म ह
रह गये। यहां छोटे -मोटे काम कए और पता नह ं कैसे लंदन क सबसे बड़ जौहर बाज़ार बा ड
ट क कसी दक
ु ान म नौकर िमल गयी। यहां जवाहे रात क पहचान भी होने लगी और शाम
क लास भी अटै ड करने लगे। दो-तीन साल म खुद छोट -मोट खर द करने लगे। इस बीच
ह द ु तान आये और है दराबाद से उ ह अक़ क क एक जोड़ िमली जसने उनक क मत बना द ।
उसी बाज़ार म जहां नौकर करते थे दक
ु ान खर द ली। उसके बाद तो िमजा साहब आगे ह आगे
चले। साउथ अ का से ह रे लाने लगे। लंदन शेयर माकट म खूब पैसा कमाया। रयल टे ट
बजनेस म आ गये। एक अमर क क पनी म खूब पैसा लगा दया जो सऊद अरब म तेल के
मैदान खोज रह थी। इस तरह पैसे से पैसा आता गया। ले कन िमजा इ ा हम न अपने को भूले
और न अपने दे श को भूले। यह वजह है क जब लड़क क शाद का मामला सामने आया तो
ह द ु तान म और वह भी बरादर म लड़का तलाश करने लगे।
ह ो एयरपोट से हाईगेट इलाके म िमजा इ ा हम के घर आने म पतालीस िमनट लगे ह गे। म
अपनी है रत को छुपाये उस दुि नया को दे ख रहा था जो कागज़ पर छपी हुई रं गीन त वीर जैसी
दुिनया है । सब कुछ साफ सब कुछ धुला हुआ, सब कुछ चमकता हुआ, सब कुछ यव थत, सब
कुछ वाब जैसा। नूर मुझे खास-खास जगह के बारे म बताती जा रह थी ले कन म ठ क से न
सुन पा रहा था न समझ पा रहा था। ले कन नूर के चेहरे पर ताज़गी और अपनी जानी-पहचानी
चीज़ के ित आ मीयता का भाव ज़ र मुझे भा वत कर रहा था। मेर समझ म नह ं आ रहा था
क म खुश हूं य क म लंदन आ गया हूं या म दख
ु ी हूं य क यहां जो कुछ चमक है वह एिशया
अ का क लूट का नतीजा है । म या क ं यह तय कर पाना ज र है य क म ऐसी थित म
यहां पं ह दन कैसे रहूंगा।
िमजा साहब और नूर क मां पहले ह वापस आ चुके थे। उन दोन ने हमारा वागत कया। िमजा
साहब के लंबे चौड़े चमकते हुए ाइं ग म म सबसे पहले खुलेपन का एहसास हुआ। दो तरफ शीश
क बड़ -बड़ खड़ कयां थीं जनम रौशनी अंदर आ रह थी और बाहर का बाग दखाई पड़ रहा था।
चमक, चमक और चमक म च िधया गया। दस
ू र मं जल के बेड म म जाकर हम बैठ गये। नूर के
चेहरे से नूर फटा पड़ा रहा था। वह बहुत खुश लग रह थी। मने सोचा ये शाद कह ं बहुत गलत तो
नह ं हो गयी है । नूर क जो दिु नया है वो मेर नह ं है । मेर दिु नया इससे कतनी अलग है , कतनी
अजीब और भ ड़ है , कतनी अधूर है ।
बॉबा का पूरा य व उनके चेहरे पर झलक आया है और सुंदर न होते हुए भी वे बहुत आकषक
लगते ह।
एयरपोट पर मुझे वदा करते समय नूर के साथ बॉब भी थोड़े भावुक हो गये थे। मेरे िलए यह थोड़ा
अटपटा-सा था, पर या कर सकता था।
----१२----
जनता बहुत ज द खुश होती है और बहुत दे र म नाराज़ होती है। आजकल दे श क जनता खुशी म
पागल है । जेलखान के फाटक खुल रहे ह और नेता बाहर आ रहे ह। ज मनाया जा रहा है । सरयू
भी िनकल आया है । ले कन वह काफ हाउस नह ं आया और न कसी से िमला। बताते ह वह बहुत
“ बटर” हो गया है । कहता है उससे कसी का कुछ लेना दे ना नह ं है । वह अकेला कमरे पर पड़ा
रहता है । अपने स पादक समरे श जी से भी िमलने नह ं गया जो लोकसभा म आ गये ह। व टर
डसूज़ा िस वल एवीएशेन िमिन टर हो गये ह। जो कुछ नह ं थे वे सब कुछ हो गये ह और जनता
मान रह है क यह सह है , इसिलए हष और उ लास म डू बी हुई है ले कन या म भी खुश हूं?
जनता तो अं ेज के जाने के बाद भी बहुत खुश थी, बहु त उ साह म थी, ज मनाये जा रहे थे,
गीत गाये जा रहे थे, पर हुआ या? और अब या होगा? पर जो हुआ अ छा हुआ य क यह पता
तो चला क धम और जाित के समीकरण के ऊपर भी कुछ है । आज बराद रय क हार हुई है ।
आज म चुनाव म खड़ा होता तो जीत जाता। घोसी भी मुझे वोट दे ते।
काफ हाउस म फर से लोग काफ पीने लगे ह। स नाटा भाग गया है । मह फले जाग उठ ह।
आज िनगम जी बहुत चहक रहे ह य क उनके कर बी नेता सीताराम के य मं ी म डल म आ
गये ह। उ ह पयटन मं ालय िमला है । रावत भी अब राजनीित पर गमागम बहस कर रहा है ।
नवीन जोशी ने खुशी म मेर एक िसगरे ट सुलगाई तो रावत ने कहा, “साले तुम िसगरे ट न पया
करो. . .एक फेफड़े के आदमी हो. .
“यार तुम या बात करते हो? चुनाव े है या? मु कल से पचास आदमी ह जनके हाथ म वोट
ह। उन पचास आदिमय को द ली बैठकर आसानी से साध जा सकता है । सबके साल के द ली
म काम पड़ते ह। कोई हज पर जाना चाहता है, कोई अपने लड़के को दब
ु ई म नौकर दलाना चाहता
है , कोई आल इ डया मे डकल इं ट यूट म ऑपरे शन कराना चाहता है . . .ये सब काम कहां होते
ह? द ली म? और फर े म मेर उप थित तो है ह है । मेरा घर है , मेरे बाग ह, मेरा पे ोल प प
है , मेरा को ड टोरे ज है , मेर माकट है . . .और या चा हए।”
“बेगम रहगी तु हार द ली।”
“अब ये उनक मरज़ी . . .लगता तो नह ं।”
“तो यहां मज़े करोगे।”
वह दबी-दबी सी हं सी हं सने लगा।
मेर हाथ म वाड नंबर और बेड नंबर क पच है जो मुझे कल ह बाबा ने द थी। उसे कसी ने मेरे
िलए मैसेज दया था क अलीगढ़ से जावेद कमाल द ली ले लाये गये ह और अ पताल म भत
है । होते हुआते आज चौथा दन है । सोचा जावेद कमाल बीमार ह। इलाज चल रहा है । उनके िलए
कुछ फल वग़ैरा ह लेता चलूं। आ म के चौराहे से फल खर दे और अ पताल आ गया। बेमौसम क
बा रश तो नह ं है ले कन छ ंटे पड़ रहे ह।
या आदमी है यार जावेद कमाल। मुझे अलीगढ़ म बताये दन याद आ गये। वे शाम याद आ
गयीं जब जावेद कमाल क कट न म मह फ़ल जमा करती थीं और वे अपने दो त पर पानी क
तरह पैसा बहाते थे। उनके शेर याद आ गये। उनक दावत याद आ गयीं। उनका फ क़ड़पन और
अकडू पन याद आ गया। रॉ िस क क शेरवानी, चौड़े पांयचे का पाजामा, सलीम शाह जूते, गेहुआँ
रं ग, लंबे सूखे बाल, बड़ बड़ रौशन आंख, हाथ म पान का ब डल और व स फ टर िसगरे ट क
दो ड बयां. . .उनक गिलयां. ..रामपुर के लतीफ़े. . . फर कट न का बंद होना. . .उ ह
पी.आर.ओ. आ फस म लक करते दे खना।
वाड के च कर लगाता रहा। पता नह ं सोलह नंबर का वाड कहां है । वैसे भी अ पताल मुझे नवस
कर दे ते ह और यह वशाल काय सरकार अ पताल जहां हर तरफ गंदगी है , जहां गैल रय म मर ज़
लेटे ह, जहां गर बी और भुखमर अपने चरम पर दखाई दे ती है , मुझे और यादा नवस कर रहे ह
ले कन वाड नंबर सोलह और बेड नंबर सात तक तो जाना ह है । वह ं िचर प रिचत मु कुराहट
आयेगी उनके चेहरे पर।
वाड के अंदर आ गया। लंबा चौड़ा हाल है जहां तीन तरफ मर ज भरे पड़े ह। बेड नंबर कहां िलखे
ह? शायद नह ं है ? या कसी ऐसी जगह िलखे ह जो अ पताल वाल को ह नज़र आते ह। बहरहाल
पूछता हुआ बेड नंबर सात पर पहुंचा दे खा बेड खाली है । लगता है कह ं और िश ट कर दया है । म
कुछ दे र खाली बेड को दे खता रहा। आसपास जो मर ज थे वे बता न सके क जावेद कमाल को
कस वाड म िश ट कया गया है । कुछ दे र बाद गुज़रती हुई नस से पूछा तो जवाब दे ने के िलए
क नह ,ं चलते चलते बोली- “ह ए सपायरड य टर डे ।”
म स नाटे म आ गया। जावेद कमाल कल मर गये। मर गये? कई बार अपने आपसे सवाल कया।
जवाब नह ं आया क मर गये। म खाली बेड को दे खता रहा। मर गये जावेद कमाल? मुझे दे र हो
गयी। म बेड को दे खता रहा। वहां कुछ न था। गंदे से ग े पर गंद सी चादर बछ थी जसम
इधर-उधर कई ध बे और छे द थे। म धीरे -धीरे आगे बढ़ा। हाथ म फल वाला बैग था उसे बेड के
नीचे िसरहाने क तरफ रख दया। इससे पहले क आसपास वाले मुझसे कुछ पूछते म तेज़ी से
बाहर िनकल गया। अब भी फुहार पड़ रह थी। पूरा शहर गीला-गीला हो रहा था। मेर आंख म◌ं
आंसू आ गये। म अपने आपको क वंस नह ं कर पाया क जावेद कमाल मर गये ह। यार जावेद
कमाल जैसा आदमी कैसे मर सकता है ? जो यार का यार हो, जो मनमौजी और म त हो, जो जंदगी
क हर खूबसूरत चीज़ से यार करता हो, जो लतीफ़ का बादशाह हो, जो गािलय का ए सपट हो वो
मर कैसे सकता है . . .मने आंख से आंसू प छे . . .नह ं, जावेद कमाल मरे नह ं. . .शायर कभी नह ं
मरते
नह ं हूं ले कन उनके अखबार का प कार था। डसूजा इसके मािलक थे। अमरे श जी धान संपादक
थे और इस अखबार के काम करने क वजह से ह िगर तार कया गया था। या पाट क यह
ज मेदार नह ं बनती थी क मेरा भी यान रखा जाये? सब जानते ह व टर के पास पैसे क कमी
नह ं है , साधन क कमी नह ं है ।”
“और अब तो वह िमिन टर है ।” रावत ने कहा।
“इन लोग क तरफ से म बहुत िनराश हुआ, दख
ु ी हुआ, अपमािनत महसूस कया मने. . .मुझे यार
आर.एस.एस. वाले तौिलया साबुन दया करते थे. . .यार. . .
“सरयू कह ं तुम आर.एस.एस. तो नह ं वाइन कर लोगे?” मने पूछ ह िलया।
“आर.एस.एस. वाइन करने क मेर उ िनकल गयी।” वह हं सकर बोला, दे ख िनजी तौर पर,
य गत तर पर मुझे वे अ छे लोग लगे। सामा जक तर पर, राजनैितक तर पर म उनसे
सहमत नह ं हो सकता. . .ब क हो सकता है म जेल के अनुभव के आधार पर आर.एस.एस. पर
कताब िलखूँ. . .वैसे मने ये कुछ क वताएं िलखी है कहो तो सुनाऊं।”
सरयू ने क वताएं सुना तो स नाटा गहरा हो गया। ब कुल अलग ढं ग क बड़ सश और
मािमक क वताएं िलखी थी उसने।
“इन क वताओं के छपते ह तुम हं द के मुख क वय म. . .” रावत ने कहा।
“अरे छोड़ो यार।”
“नह ं, क वताएं बहुत यादा अ छ ह. . .आज हं द म कोई ऐसा नह ं िलख रहा।” नवीन ने कहा।
इसके बाद नवीन ने भी अपनी कुछ नयी क वताएं सुनायीं। दे र तक हर सरयू के यहां बैठे रहे ।
सरयू ने बताया क उसक बात “नया भारत” म चल रह है , हो सकता है वहां नौकर लग जाये।
वापसी पर म मोहिसन टे ढ़े को अपने साथ लेता आया। ये हम दोन के िलए अ छा है । उसे घर का
पका खाना िमल जाता है । नूर उससे ग प श प कर लेती है । उसे मोहिसन टे ढ़े के कुछ अंदाज जैसे
छोट -छोट बात पर बेहद आ य य करना आ द पसंद आते ह य क वह उनके नकलीपन को
पहचान लेती है । मोहिसन टे ढ़ा उससे योरोप के बारे म सैकड़ सवाल करता है । नूर थोड़ बहुत च
भी जानती है और मोहिसन को गाइड करती रहती है क यहां से ड लोमा करने के बाद उसे ांस
क कस यूनीविसट म जाना चा हए।
मोहिसन टे ढ़ा नूर को अपनी जायदाद के झगड़ , अपने अकेले होने, जायदाद बेचकर द ली िश ट हो
जाने के इराद , अपनी पोिलयो क बीमार वगै़रा के बारे म बताता रहता है । नूर ह द ु तानी तेजी से
सीखी है और अब वह अं ेज़ी क बैसाखी के सहारे नह ं है । उसक सबसे बड़ ट चर है गुलशिनया
यानी गुलशन क बीवी जो हम लोग के साथ ह रहते ह। इस कोठ म आने के बाद अ बा ने गांव
से गुलशन को यहां भेज दया था।
म ये समझ रहा था क शायद नूर को द ली मम “एडज ट” करना मु कल होगा। ले कन वह बड़े
आराम से रहने लगी। प लक एडिमिन े शन सटर म उसे नौकर िमल गयी है । वहां अपने काम से
खुश है । सुबह म उसे आ फस छोड़ता हूं। शाम कभी-कभी जब मुझे कह ं जाना होता है तो कूटर
करके घर आ जाती है । ब कुल सीधी-साधी सामा य और िन ंत जंदगी जी रह है । दन म एक
बार लंदन फोन करना नह ं छुटा है । जब तक वह ममी से प ह िमनट बात नह ं कर लेती तब
तक खाना हज़म नह ं होता।
आ फस पहुंचा तो हसन साहब ने बताया क मेर तलबी हुई है । यूरो चीफ़ ने मुझे बुलाया है ।
“ या मामला हो सकता है हसन भाई, अब तो दस
ू र आजाद का ज भी मनाया जा चुका है ।”
“टोटल रे वो यूशन” आ गया है . . . फर भी हो सकता है कह ं दुम फंसी रह गयी हो. . .जाओ दे खो
या कहते ह”, वे बोले।
स सेना साहब के वशाल कमरे म पहुंचा तो पता चला क वे एड टर इन चीफ के पास ह और म
कुछ दे र बात आऊं। इधर-उधर दे खा तो स बंग म सु या दखाई दे गयी। म उसके पास आ गया।
उसके चेहरे पर वह उदासी थी। उसने बताया क उसके भाइय कोमल और सुकुमार का अभी तक
कोई पता नह ं चला है और वह कलक ा जा रह है । हम दोन कुछ दे र तक प म बंगाल के
आतंक क चचा करते रहे । थोड़ दे र बाद, उसे दलासा दे ने के बाद म उठा तो उसके हाथ पर मने
एक ण के िलए अपना हाथ रख दया। वह मु कुरा द । फ क सी मु कुराहट।
स सेना साहब ह तो यूरो चीफ ले कन माना जाता है क मनेजमे ट क नाक का बाल ह और
कभी-कभी एड टर-इन-चीफ के ऊपर भी हावी हो जाते ह। उ ह ने मुझसे बैठने के िलए और एक दो
काग़ज पर द तख़त करके बोले “ पछले साल तुमने अलीगढ़, संभल वगै़रा पर जो रपोट क थी वो
मने पढ़ ह।”
“जी।”
“काफ संवेदना है तु हारे लेखन म. . .इमोश स का भी अ छा इ तेमाल करते हो।”
म समझ नह ं पा रहा था क यह भूिमका य बांधी जा रह है । कुछ दे र के बाद वे नु े पर आ
गये। दे खो पािलयामट बंधुआ मज़दूर वाले मसले पर बहुत सी रयल है । हम पर यह इ जाम तो है
ह है क हम “अबन” ह। हमारे यहां गांव के बारे म कुछ नह ं छपता या कम छपता है . . .अब सारे
अखबार बंधुवा मज़दरू पर छाप ओर हम ख़ामोश रह यह भी नह ं हो सकता. . .तु ह इस तरह क
रपो टग म दलच पी भी है ”, वे बोलते-बोलते क गये। आदे श नह ं दे ना चाहते थे। पहले यह
जानना चाहते थे क मु े कतनी िच है ।
“ले कन हसन साहब. . .म तो. . .”
“उनसे बात हो गयी है . . .हम तु ह यूरो मे ले लगे. . .तु ह तो कोई. . .?”
“जी नह ,ं म तो ये काम खुशी खुशी क ं गा।”
मने “हां” कर द थी ले कन एक सवाल मेरे दमाग क द वार से टकराता रहा। अगर पािलयामे ट
म “कुलक लॉबी” और “उ ोग लॉबी” के बीच टकराव क थित न होती तो या बधुआ मज़दरू मु ा
आज भी उसी तरह दबा न पड़ा रहता जैसे आज़ाद के बाद से लेकर आज तक दबा पड़ा था? या
इसका मतलब यह हुआ क मु े भी “ दए” जाते ह? कौन दे ता है ? वे लोग जो स ा संघष म या स ा
बनाये रखने क कोिशश म लगे हुए ह? या इसका यह मतलब हुआ क मु े या तो वा त वक मु े
नह ं होते या उनको उठाने वाल का उ े य मु ा वशेष नह ं ब क कुछ और होता है । कभी-कभी
कुछ मु े इसिलए भी उठाये जाते ह क वा त वक मु से लोग का यान हटाना जा सका। ले कन
इतना तय है क बंधुआ मज़दरू का मु ा ामीण जीवन के शोषण क “हाईलाइट” करे गा।
स सेना साहब ने जो नाम और फोन नंबर दया था वहां फोन कया तो “फौरन डॉ. आर.एन. सागर
से बात हो गयी। उ ह ने बताया क “ रल इं ट यूट” क ट म अगले स ाह पू णया जा रह है और
म उस ट म के साथ जाना चाहूं तो जा सकता हूं। अगले दन म इं ट यूट पहुंच गया। यहां डॉ.
आर. एन. सागर से िमलना था। वे अभी तक आये नह ं थे। म इं ितज़ार करने लगा। कुछ दे र बाद
आये तो कई अथ म बहुत अजीब लगे। दन का यारह बजा था ले कन यह लगता था क डॉ.
सागर के िलए रात के आठ का समय है य क वे “महक” रहे थे। उसके वशाल िसर पर ढे र सारे
बाल और चेहरे पर काल मा स कट फहराती हुई दाढ़ थी। बंद गले का काला कोट और पतलून
पहने थे पर कपड़े उनके शर र पर ऐसे लग रहे थे जैसे यह शर र इस तरह के कपड़ के िलए बना
ह नह ं। कुछ ह दे र म उ ह ने बंधुआ मज़दरू सव ण के बारे म दल
ु भ जानका रयां द । यह सा बत
होते दे र नह ं लगी क डॉ. सागर न िसफ वषय के वशेष ह ब क बहुत पढ़े िलखे और सोचने
समझने वाले, मौिलक क म के आदमी ह। उ ह ने मुझे चाय पलाई और खुद पानी पीते रहे
य क जाड़े के इस मौसम म भी उ ह खूब पसीना आ रहा था और माल से अपना माथा पोछ
रहे थे।
एयरपोट पर ह पता चला क पू णया जाने वाली ट म म सरयू भी “नया भारत” क तरफ से जा
रहा है । अब चूं क मेरा काफ हाउस जाना छूट गया था इसिलए सरयू से मुलाकात ह न होती थी।
एयरपोट पर उसे दे खकर खुश हो गया य क इतने साल बाद उसके साथ कुछ समय बता सकूंगा
और अपने पुराने सा ह यक िम के बारे म जानका रयां िमलगीं। सरयू जब भी िमलता है यह
िशकायत करता है क मने कहािनयां िलखना य बंद कर दया है । मेरे पास इसका सवाल का
कोई जवाब नह ं है । प का रता का काम सोख लेता है ले कन दस
ू रे प कार भी तो िलखते ह? फर
भी शायद यह लगता है क म जैसा िलखना चाहता था वैसा िलख नह ं सकूंगा या लंबे अंतराल के
बाद आ म व ास डग जाता है या दस
ू रे तो कहां के कहां िनकल गये और म यह रह गया। म उस
दौड़ म या शािमल होऊं? बहरहाल सरयू ने एयरपोट पर चाय पीते हुए फर यह से बात शु क
और कहा क यार तुमने कहािनयां िलखनी य बंद कर दया है । मने सवाल को टालते हुए पुराना
जवाब दया क यार टाइम ह नह ं िमल पाता, ये अखबार का काम बड़ा जानलेवा होता है।
सरयू सागर साहब को पहले से जानता है । उसने जो जानका रयां द ं उनसे सागर साहब क
नामुक मल त वीर पूर हो गयी। सरयू ने बताया “दरअसल सागर साहब वयं एक बंधुआ मज़दरू
प रवार म पैदा हुए थे। सागर उ ह ने उपनाम रखा था क कसी ज़माने म क वताएं िलखा करते
थे। वे पता नह ं कैसे गांव के कूल म पहुंच गये थे। उसके बाद तो उ ह ने कभी पीछे नह ं दे खा।
सरयू ने बताया यार जीिनयस ह सागर साहब. . .तुम सोचो मूल जमन म “दास कै पटल” पर
इनक ट का बिलन व व ालय ने छापी है । इनके जैसा पढ़ा िलखा और मौिलक सोच रखने वाला
यार मने तो आजकल दे खा नह ं।”
कसी के बारे म कुछ सुनकर न भा वत होने वाली वृ के कारण मने इन बात का कोई नो टस
नह ं िलया और सोचा खुद ह पता चल जायेगा सागर साहब या है ?
यह “हा पंग” “लाइट है द ली से लखनऊ और फर पटना और फर रांची जहां हम दो दन कना
है ता क “र जनल रल डवल मट इं ट यूट” म “लै ड रे वे यु” रकाड दे ख ल। उसके बाद पू णया
जाना है । हा पंग “लाइट बड़े मज़े से लखनऊ म दो घ टे के िलए खड़ हो गयी। यह हरकत उसने
पटना म भी क । ले कन म और सरयू बे फ थे क साल बाद िमले ह और बातचीत करने का
मौका िमल रहा है ।
- “यार तु ह मालूम है अमरे श जी का या हुआ?”
- “कौन अमरे श जी?”
- “यार वह . .कभी कभी काफ हाउस भी आते थे. . .जाज मै यू के दो त. . .
- “हां हां याद आ गया। बताओ या हुआ?”
- “यार कुछ समय म नह ं आता या हो रहा है । अभी पछले मह ने मुझे अमरे श जी से िमलना
था। म उनसे िमले डफे स कालोनी ड -१३ म पहुंचा और सीधे सव ट वाटर पहुंच गया। य क
अमरे श जी इससे पहले को ठय के सव ट वाटर म ह कराये पर रहा करता थे। पर कोई हम
मु य कोठ म ले गया। यार अमरे श जी ने वह कोठ खर द ली है । या कोठ है यार. . .और
डयर या लाय ेर बनाई है . . .लाख पये क तो कताब ह. . .हर चीज़ “टाप” क है . . .
- “ये सब हुआ कैसे?”
- “यार बताते ह क कसी ड ल म जाज मै यू ने कई सौ करोड़ बनाये ह और इस ड ल म अमरे श
जी भी साथ थे. .अब बताओ यार म तो ये सब दे खकर भी यक़ न नह ं कर सकता।” वह बताते
बताते शरमाने लगा।
- “जाज मै यू क तो समाजवाद छ व है . . . े ड यूिनयन बैक ाउ ड है . . .
- “यह तो है रत है यार. . .”
- “है रत करने का ज़माना चला गया यारे . . .”
- “अ छा और सुनो. . .कामरे ड सी.सी. कनाडा म जाकर बस गये ह।”
- “ या अिमत के साथ वो भी गये?”
- “हां. . .कहते ह उ ह ने जेल म माफ मांग ली थी. . .उनके भाई कनाड़ा से आये थे और उ ह
अपने साथ ले गये।”
- “ओर सुनो भुवन पंत. . .उ र दे श के मु यमं ी का पी.एस. हो गया है ।”
- “वह जो सब को डांटता था और अपने को सबसे बड़ा ांितकार समझता था।”
- “हां वह ।”
- “तो यार तु हारे सब न सलवाद वाले ऐसे ह िनकले।”
- “नह ं यार. . .” वह बुरा मानकर बोला जो लोग काम करते ह वो तो जंगल म ह. . .उ ह या
मतलब है काफ हाउस या शहर से. . .ऐसे हज़ार ह. . .
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“रांची म ज़मीन खर द-फ़रो त के रकाड दे खए तो आपको हक़ कत का पता चल जायेगा।” सागर
साहब ने हम एक मोटा-पोथा थमा दया।
“ये जो आप रांची शहर दे ख रहे ह यह आ दवािसय क ज़मीन पर बसा है । आज यह करोड़ पये
क ज़मीन है . . .ले कन यह कस तरह, कतना पैसा दे कर खर द गयी है, ये रकाड बतायेगा. .
.कह ं कह ं . . .ज़मीन खर दने वाल के नाम नह ं दए गये ह. . य क वे लोग इतने असरदार. .
.इतने बड़े . . .इतने स मािनत ह क चोर क सूची म उनका नाम दज करने क ह मत यहां
कसी को नह ं है । ये दे खए. ..पांच एकड़ ज़मीन. . .सौ पये म बक . . .ये दे खए दो एकड़
जमीन. . .दस पये म. . .ये कहािनयां नह ं ह. . .लै ड रकाड है . . .अगर चाह तो मूल बैनामे भी
दे ख सकते ह।”
हम है रत से रकाड दे खने लगे। पता लगने लगा क दे श के अंदर कतने दे श ह। दे श कसका है
और वदे शी कौन है ?
- “हमने इन आ दवािसय के साथ वह कया है जो अमर क म “रे ड इ डय स” के साथ कया गया
था। पर इस दे श म कोई यह मानता नह ं य क जनके पास यह मानने का अिधकार है उ ह ने
ह यह
अपराध कया है । आज वे सब आ दवासी बंधुआ ह जनके पास कल तक ज़मीन थी। उ ह यह
सज़ा य िमली है ? या इसिलए क वे हमसे यादा चतुर नह ं ह?”
रांची म हमार मुलाकात लेबर किम र से हुई और एक और आ य का पहाड़ टू ट पड़ा।
कभी-कभी महज़ इ फ़ाक़ से कुछ ऐसे लोग ऐसी जगह पहुंच जाते ह क उ ह वहां दे खकर है रानी
होती है । लेबर किम र वनय ट डन भी ऐसे ह आदमी ह। उ ह दे खकर कोई यह नह ं कह सकता
क वे आई.ए.एस. ह गे। उलझे-उलझे से बेतरतीब बाल, लंबा पतला चेहरा, गहर आंख जन पर मोटा
च मा, बहुत मामूली सीधी-सीधी कमीज़ पै ट और पैर म स ती क म क च पल। हम बताया
गया क वनय टं डन “िसंिगल” है मतलब अ ववा हत ह। अपना खाना खुद पकाते ह और अपने
कपड़े भी खुद धोते ह। आ फस ठ क साढ़े नौ बजे आते ह और शाम छ: बजे जाते ह। सरकार
गाड़ िसफ द तर लाती ले जाती है । अपने िनजी आने-जाने के िलए वे र शे का सहारा लेते ह।
वनय ट डन को काफ लोग पागल कहते ह। कुछ िसड़ , सनक , द वाना कुछ घम ड और कुछ मूख
बताते ह।
सुबह हम लोग तीन जीप पर बंधुआ मज़दरू का पता लगाने िनकले। बहुत ज द ह डामर वाली
सड़क ख़ म हो गयी और क ची धूल उड़ाती पगड डय जैसी सड़क पर गाड़ आ गयी। दो ह एक
घंटे के अंदर पूरे चेहरे , हाथ और कपड़ पर धूल क एक गहर परत जम गयी। रा ते के धचक से
कमर क ऐसी तैसी हो गयी। दरअसल रा ते और े क द कत को छोड़कर हमारा काम आसान
था। हम खेितहर मज़दरू से यह पूछते थे क या उ ह एक जगह से काम छोड़कर दस
ू र जगह
काम करने क आज़ाद है ? य द उ र “हां” म िमलता था तो बंधुआ मज़दरू नह ं ह ओर नह ं म
िमलता था तो है । उसके बारे दस
ू रे सवाल भी थे। पूरा प रवार बंधुआ है ? कतने समय या कतनी
पी ढ़य से बंधुआ है । या पैसा िमलता है? कतना अनाज या जोतने के िलए ज़मीन िमलती है . .
.वगैऱा वगै़रा. . .हम यह भी बताया गया था क कोई
नाप कर कपड़ा दे ते थे। लंबाई चार गज़ और चौड़ाई एक गज़ इधर से . . .एक गज़ उधर से।
उ ह ने बताया क पटवार आ दवासी े म जाने वाला सबसे बड़ा अिधकार हुआ करता था। वह
मौका मुआयना करने इस तरह जाता था क चारपाई पर बैठ जाता था और आ दवासी चारपाई
अपने कंध पर उठाये-उठाये उसे खेत-खेत ले जाकर मौका मोआयना कराते थे। एक पटवार रे डयो
का शौक न था और अपने साथ रे डयो भी ले जाता था। चारपाई पर वह खुद बैठता था। एक
आदमी िसर पर रे डयो उठाता था। दस
ू रा बैटर उठाता था। दो लोग बांस म बंधे ए रयल उठाते थे
और इस तरह मौका मोआयना होता था। जब कभी पटवार का दल चाहता था वह रे डयो बजाने
लगता था। रात म पूरा गांव चंदा करके उसे अ छा-से-अ छा खाना खलाता थे। ले कन पटवार
कोई बहाना बनाकर खाना नह ं खाता था। जैसे रो टयां जल गयी ह या मुग म नमक यादा हो
गया है । उसके खाना न खाने से पूरा गांव डर जाया करता था और हाथ जोड़ता था क पटवार
खाना खा ल। पटवार के खाना न खाने से उ ह कतना नुकसान होगा इसक वे क पना भी नह ं
कर सकते थे। पटवार कहता था ठ क है म बीस पये लूग
ं ा तब खाना खाऊंगा। वे कसी न कसी
तरह उसे पये दे ते थे और तब वह खाना खाता था।
सागर साहब ने बताया क छोटा नागपुर के आ दवासी े म सूद पर पैसा दे ना संसार का सबसे
यादा मुनाफा दे ने वाला और सुर त यवसाय है । इतना याज संसार म और कहां िमल सकता
है । उ ह ने ने बताया क एक आ दवासी ने कसी तरह सूद समेत अपना सारा कजा चुका दया।
महाजन ने आ दवासी से कहा क आज तो तुम बड़े खुश ह गे क सारा कजा चुका दया है । उसने
कहा- “हां महाराज बहुत खुश हूं।” साहूकार बोला- “तो मुंह मीठा कराओ।” वह बोला- “महाराज अब
मेरे पास एक पैसा नह ं है ।” साहूकार ने कहा- “अ छा अगर तु हारे पास पैसा होता तो कतने पैसे
से मुंह मीठा करा दे ते।” उसने कहा- “महाराज चार आने से करा दे ता।” साहूकार ने कहा- “ठ क है . .
.चार आने तु हारे
नाम खाते म चढ़ाये लेता हूं।”
“आ दवािसय क दिु नया अलग है । इतना सहयोग है उस दिु नया म क आप उसक क पना नह ं
कर सकते। उनके ऊपर हमने अपनी दिु नया लाद द है । छल, कपट, लालच और हं सा क दिु नया के
नीचे ये पस गये ह अब न तो जंगल ह जो इनके पेट भरते थे, न न दय म पानी है जहां से
इनक सौ ज़ रत पूर होती थीं। वकास के नाम पर इ ह हम लालची और झूठा-म कार बना दया
है । भाई ये तो हर तरफ से मारे गये ह. . .अब शहर म जाकर मज़दरू के अलावा या चारा है ?
एक ज़माने के गव ले आ दवासी ज ह ने बड़े -बड़े स ाट के साथ यु कए थे आज िनर ह, कमज़ोर
और दया के पा बन गये ह। हमारे लोकतं ने इ ह यह दया है ।” सागर साहब ने खुलासा कया।
----१४----
“द नेशन” म बंधुआ मजदरू पर मेर रपोट छपने लगी तो हं गामा हो गया। पहली बार इतने बड़े
पैमाने पर, दे श के सबसे बड़े अख़बार म त वीर के साथ एक ऐसी जंदगी पेश होने लगी क पढ़कर
लोग के र गटे खड़े हो गये। आजाद िमले चौथाई सद बीत चुक है और हमारे दे श म लोग क
हालत जानवर से भी बदतर है । एड टर-इन-चीफ ने मुझे बुलाकर पीठ ठोक । स सेना साहब तो
मुझे अपनी खोज बता-बताकर नाम रोशन कर रहे थे। हसन साहब ने कहा- अ छा है , दे खे कब तक
चलता है ।” उनके इस कमे ट से म कुछ परे शान हो गया। सु या ने खासतौर पर काफ पलाई और
पूछती रह क वहां या या दे खा। नूर को भी रपोट पसंद आयीं। उसने उनक अं ेजी भी ठ क
क थी। इस तरह उनक भाषा भी मंझ गयी थी। कहा जा रहा है क पािलयामे ट के अगले स म
मेर इन रपोट के आधार पर वषय पर चचा का समय भी मांगा जायेगा।
सागर साहब बहुत खुश थे। एक दन शाम उ ह ने घर बुलाया था। कुछ दस
ू रे सोशल साइं ट ट भी
वहां थे। सागर साहब के यहां पीने पलाने का ो ाम हुआ था। ये कुछ है रत क बात थी क सागर
साहब ने अब तक अपने रहने का तर का ब कुल गांधीवाद रखा हुआ था। वे खुद एक कमरे म
दर पर बैठते थे। बाक लोग के िलए लकड़ क कुिसयां थीं। द वार पर कैले डर वो छोड़कर कुछ
नह ं था। म जैसे जैसे सागर साहब के बारे म जानता जा रहा था वैसे वैसे उनक वल ण ितभा
का कायल होता जा रहा था। उनका अ ययन बहुत यादा था। उनक समझ बहुत साफ थी। शराब
म उनक बहुत यादा दलच पी थी। हम लोग
अपने हसाब से पी रहे थे ले कन सागर साहब शराब का सागर पी रहे थे। इतना पीने के बाद भी
पूरे होशोहवास म थे। वे अपने इं ट यूट के नये ोजे ट क बात कर रहे थे जसे यू.एन.ड .पी.
सपोट कर रहा था। मुझे उ ह ने नयी ोजे ट साइट यानी छोटा नागपुर के एक आ दवासी गांव म
चलने क भी दावत द जसे मने कुबूल कर िलया। खूब पीने के बाद सागर साहब क दावत पर
हम सब एक ढाबे पर गये जहां तली मछली खाई गयी और रात कर ब साढ़े यारह बजे बखा त
हुई।
बंधुआ मज़दरू पर मेर रपोट अहमद ने मा को म पढ़ थी। जहां वह दत
ू ावास म फ ट से े टर
था। उसने फोन पर मुझे मुबारकबाद द थी और कहा था क यार अब िमजा इ ा हम क लड़क से
शाद के बाद तुम ये जनिल म वगैरा छोड़ो और बजनेस म आ जाओ। सो वयत यूिनयन बहुत बड़ा
माकट है म तु ह यहां बे हसाब बजनेस दला सकता हूं. . .अगर चाहो तो तुम और म साथ-साथ
भी कर सकते ह। उस इस ताव पर मने उसे गािलयां द थीं और अपनी दिु नया म चला आया
था।
इन रपोट के छपने के बाद पहली बार मुझे कुछ थोड़ा-सा संतोष हुआ था। दमाग म “कुछ करने”
के क ड़े ने मुझे कुरेदने क र तार कुछ कम कर द थी। म सोचता था चलो राजनीित म कुछ नह ं
कर सका, चुनाव हार गया, पाट होल टाइमर नह ं बन सका, लेखक नह ं बन सका तो या म कुछ
ऐसा कर रहा हूं जो गर ब और बेसहारा आदमी के हक म है । कुछ दो त खासतौर पर नवीन जोशी
और रावत ने कहा था क अं ेज़ी म आमतौर पर लोग ामीण े पर नह ं िलखते ह। तुमने
शु आत क है । अगर तुम दस-पांच साल इधर ह लगे रहे तो बड़ा “का यूशन” माना जायेगा। म
का यूशन से यादा अपने मन को समझाने और संतोष दे ने के च कर म था। सबसे बड़ बात
तो यह क आपको अ छा लगे क जो कर रहे ह वह “मीिनंगफुल” है ।
शक ल ने बसंत वहार म कोठ खर द ली है । हालां क आजकल द ली म उसके पास कोई काम
नह ं है ले कन यह ं रहता है । कभी-कभी पाट ऑ फस चला जाता है । एक दो नेताओं के घर के
च कर मार दे ता है । कहता है यार जन नेताओं के यहां पहले घुस नह ं सकता था उनसे इस दौरान
प का याराना हो गया है । दे खो यह फायदा होता है द ली म रहने का।
उसक अ सर शाम हमारे यहां गुजरती ह। नूर मुझसे अ सर पूछती रहती है क म शक ल जैसे
लोग के साथ कैसे “एडज ट” कर लेता हूं जो मुझसे ब कुल अलग ह। म इस बात का बहुत
तस लीब श जवाब दे नह ं पाता। आदमी क कैिम बड़ अजीब होती है और वह समझ म आ
जायेगी, यह दावा कोई आदमी खुद अपने बार म भी नह ं कर सकता। शक ल क राजनीित से म
सहमत नह ं हूं ले कन इतना पुराना “एसोिसएशन” है क हम बाक बात भूल जाते ह। मने नूर को
वह क सा सुनाया जब शक ल ने मुझे पहली बार शराब पलाई थी।
शक ल के बेटे कमाल का दाखला तो कसी तरह द ली प लक कूल म हो गया है ले कन उसका
दल द ली म ब कुल नह ं लगता। मौका िमलते ह घर भाग जाता है । वैसे भी उसके रं ग-ढं ग बड़े
लोग के बेट जैसे ह। शक ल के पास पैसा है और वह बेटे का द ली म पढ़ाने के च कर म
उसक वा़हेशात पूर करता रहता है ।
द ली से रांची वाली “लाइट पर सागर साहब ने मुझे गलहौट ोजे ट के बारे म बताना शु कया
था। ख़ासा दलच प ोजे ट लग रहा था। उ ह ने बताया “यू.एन.ड .पी. वाले कसी आ दवासी े
म वकास का एक मॉडल ोजे ट चलाना चाहते थे। इस िसलिसले म उ ह ने हमारे इं ट यूट से
स पक कया। म िम टर लेक से िमलने गया। मने साफ कह दया क पैसे से डवलपमट नह ं
होता। मतलब नािलयां बना दे ना, है डप प लगा दे ना, कज दे दे ना, खुशहाली क गारं ट दे दे ना
वकास नह ं है । इस पर लैक च के और पूछा फर डवलपमट या है ? मने कहा लोग को बदलना,
लोग को जाग क बनाना, उनके अंदर बदलाव क चेतना पैदा करना, उनके अंदर संगठन और
संयोजन क श य का वकास करना, उ ह सामू हकता से जोड़ना. . .ये वकास है यानी वकास
क पहली शत है ।”
फर?
“बड़ बहस होती रह । मने उनसे कहा क ोजे ट को म अपने तौर पर, अपनी प रक पना के
आधार पर क ं गा। पहले तो उ ह ने सोचने का व मांगा और मुझसे एक नोट बनाकर दे ने को
कहा। मने नोट दे दया और भूल गया। सोचा ये लोग जो खाँच म सोचते ह, जो िसफ आँकड़ म
बात करते ह उनक समझ म यह सब नह ं आयेगी।”
“इसके बाद?”
“तीन मह ने बाद उनका फोन आया क म जाकर िमलूं। म गया और बताया गया क ोजे ट
मंजूर हो गया है और ोजे ट म हम दस लाख पया दया गया है । फर वह सवाल सामने आ
गया। मने कहा, पैसे से वकास नह ं हो सकता। अगर हो सकता होता तो भारत सरकार कर चुक
होती।”
“ या भारत सरकार वकास करना चाहती ह?”
“ये और भी बुिनयाद सवाल है . . .दे खो हम कहते ह क हमारे दे श क जाित यव था म एक
सुपर जाित पैदा हो गयी है जो हर जाित से ऊंची है ।”
“म हं सने लगा, ये कौन सी जाित है सागर साहब?”
“इस जाित को कहते ह आई.ए.एस.” म ओर जोर से हं सने लगा।
“ य या म ग़लत हूं?”
“आप सौ फ सद सच कह रहे ह।”
“पूरे दे श पर यह जाित शासन कर रह है जैसे पहले मान लो ा ण कया करते थे।”
“हर मज क यह दवा है ।”
“इनका जाल इतना भयानक है क इ ह ने पूरे दे श को जकड़ रखा है । अरे भाई कहो, कल टर का
काम लगान वसूली है , शासन है , पर ये जाित वकास पर भी क जा करके बैठ गयी। बड़े से बड़े
और तकनीक से भी अिधक तकनीक सं थान पर छा गयी। कोई भी कारपोरे शन ले लो. . . यह
लोग जमे बैठे ह. . .और ये ह बुिनयाद तौर “नॉन किमटे ड” लोग। इनका धम वयं अपना और
अपनी जाित का भला करने के अलावा कुछ नह ं है ।”
बनवा लेना।
ज़ा हर है िसपाह पान वाले को पैसे तो न दे ता होगा। वह दरोगा जी का नाम लेता होगा जैसे माथुर
जी मेरा हवाला दे ते ह। उन दन माथुर जी क ये सब चाला कयां म टाल दया करता था यह िसफ
अनुभव ा करने के िलए कुछ नह ं कहता था। कुछ अंदाज़ा था क मेरे एक बार आने से माथुर
के दो चार मह ने ठ क गुज़र जाते ह गे।
मुझसे िमलने शहर के अद ब-शायर आ जाते ह कभी-कभी कुछ पुराने लोग और कभी अ बा के
जानने वाले भी आते ह। मेरे ज़माने के पाट वाले लोग म कर ब-कर ब सब ह। िम ा जी काफ
लटक गये ह। मेरे याल से स र से ऊपर है पर अभी भी पाट के जला सै े र है । कामरे ड बली
िसंह पूर तरह मछली के यापार म लग गये ह।
पछले साल जब म गया तो िमलने वाल म युवा लड़क का एक गुट जुड़ गया है जो शहर म
शै णक गित विधयां करते रहते ह। क ब से शहर आये लोग भी बढ़ गये ह और उनम से कुछ
आ जाते ह। म लू मं ज़ल कुछ दन के िलए गुलज़ार हो जाती है ।
शहर क हालत वह है । उतना ह गंदा, उतना ह उपे त, उतना ह ाचार, उतना ह उ पीड़न और
वह अदालत जहां म ज े ट मह न नह ं बैठते, अ पताल जहां डॉ टर नह ं बैठते, सरकार द तर
जहां बाबू नह ं बैठते।
नूर और उसके अ बा, अ मां क यह राय थी क ब चा लंदन के है वेट अ पताल म पैदा होना
चा हए। म जानता था क मामला द ली के कसी अ पताल म कुछ गड़बड़ हो गया तो बात मेरे
ऊपर आ जायेगी। मने नूर को लंदन भेज दया था। वहां उसने ह रा को ज म दया था। ह रा का
नाम उसके दादा ने रखा था। जा हर है ह रे जवाहे रात का यापार और या नाम रख सकता था।
नाम मुझे इसिलए पसंद आया क हं द ू मुसलमान नाम के खाँचे से बाहर का नाम है । बहरहाल
ह रा के पैदा होने के बाद कुछ मह ने नूर वह ं रह । फर द ली आ गयी। उस जमाने म म लू
मं जल आबाद थी। म नूर और ह रा को लेकर घर गया था। अ बा को ह रा का नाम कुछ पसंद
नह ं आया था। उ ह ने कुरान से उसका नाम
स जाद िनकाला था और अ मां अ बा जब तक जंदा रहे ह रा को स जाद के नाम से पुकारते थे।
गिमयां शु होने से पहले नूर ह रा को लेकर लंदन चली जाती थी। िमजा साहब ने अपने नवासे के
िलए लंदन से बाहर एसे स काउ ट के एक गांव म कसी लाड का महल खर द िलया था। इस
महल का नाम उ ह ने “ह रा पैलेस” रखा था। ये सब लोग गिमय म “ह रा पैलेस” चले जाते थे। म
भी एक आद ह ते के िलए वहां जाया करता था। ह रा पैलेस बीस एकड़ के क पाउ ड म एक दो
सौ साल पुराना महल है जसम चार बड़े हॉल, एक बड़ा डाइिनंग हाल, बिलयड म, मो कंग म,
काफ लाउं ज, प चर गैलर और बीस बेड म ह। मुझे यहां ठहरना अटपटा लगता था। य क
हमेशा ये एहसास होता रहता था क कसी यू जयम म रह रहे ह। िमजा साहब को यह पैलस
े इस
शत पर बेचा गया था क वहां रखी कोई चीज़ हटायगे नह ं और उसम कोई बड़ा प रवतन नह ं करा
सकते। इसिलए वहां के बाथ म म रखे ट ट वाले लोट के अलावा कुछ ऐसा नह ं था जसका
िमजा साहब से कोई ता लुक हो।
पैलेस क “ व जटस बुक” भी उतनी ह पुरानी थी जतना पुराना पैलेस था। मोटे चमड़े क लाल
ज द चढ़ इस कताब म टे न के तीन धानमं य के अलावा बटड रसेल के भी ह ता र और
रमा स िलखे थे। इस कताब म जब मुझसे कुछ िलखने और द तख़त करने को कहा गया तो
मुझे बड़ा मज़ा आया। लगा क मेरे ह ता र इस र ज टर का मज़ाक उड़ा दगे।
बुढ़ापे म िमजा इ माइल लाड का खताब हािसल करना चाहते थे और उसके िलए ज़ र था क वो
भावशाली अं ेज को एक शानदार महल म बुलाकर इं टरटे न कर। ऐसा करने के िलए ह उ ह ने
यह पैलेस खर दा था। एसे स काउ ट के शेरे गांव के बाहर एक पहाड़ चोट पर बना यह महल
काफ दरू से जंगल म खले फूल-सा लगता था।
एक बार गिमय म नूर ने ह रा का नाम लंदन के कसी मशहूर क डरगाडन कूल म िलखा दया।
म समझ गया क अब वे दोन वापस नह ं आयगे। ले कन इससे बड़ िचंता यह थी क म ह रा को
कुछ
नह ं िसखा पाऊंगा। म यह चाहता था क वह अवधी लोक गीत पर िसर धुन सके जैसा म करता
हूं। वह “मीर” और “गा़िलब” क शायर से ज़ंदगी का मतलब समझे। ले कन अब वह सब ाब हो
गया था। ले कन म नूर के वाब को चूर-चूर नह ं करना चाहता था। ले कन पता नह ं कैसे नूर ये
समझ गयी थी। वह ह रा को हं द पढ़ाती थी। पूरा घर उससे हं दु तानी म बातचीत करता था। नूर
और ह रा जाड़ म प ह दन के िलए द ली आते थे और म उन दन छु ट ले लेता था। हम
खूब घूमते थे और म ह रा के साथ यादा से यादा व गुज़ारता था। कूल पूरा करने के बाद
ह रा अब बी.ए. कर रहा है । उसे समाजशा म बेहद दलच पी है और इस बारे म हमार लंबी
बातचीत होती रहती है ।
नूर के लंदन चले जाने के बाद म सु या के नजद क आता गया। बंगाली और उ ड़या मां-बाप क
बेट सु या के चेहरे क सुद
ं रता म दख
ु क कतनी बड़ भूिमका है यह कसी से िछपा नह ं रह
सकता। उसक बड़ -बड़ ठहर हुई आंख से अगर उदासी का भाव गायब हो जाये तो शायद उनक
सुंदरता आधी रह जायेगी। उसम हाव-भाव म दख
ु क छाया म तपे हुए लगते ह। सु या के दोन
भाई कभी नह ं िमले और यह मान िलया गया क पुिलस ने जस बबरता से न सलवाद आंदोलन
को कुचला था, वे उसी म मारे गये ह। उनका कह ं कोई रकाड न था। कह ं कसी आसतीन पर खून
का िनशान न था ले कन दो जवान और समझदार लड़के मारे जा चुके थे।
सु या क मां उसके साथ रहती है । पताजी कलक ा म ह ह। उसक मां को शायद मेरे और
सु या के संबंध के बारे म पता है ले कन वह कुछ नह ं बोलती। दरअसल पूरे जीवन का संघष
और दो बेट के द:ु ख ने उसे यह मानने पर मजबूर कर दया है क कह ं से सुख क अगर कोई
परछाई भी आती हो तो उसे सहे ज लो. . .पता नह ं कल या हो। सु या और मेरे संबंध गहरे होते
चले गये। मने सोचा नूर को बता दं .ू . . फर सोचा नूर को पता होगा। वह जानती होगी म और नूर
साल म दो बार िमलते ह और उसके बाद साल के दस मह ने हम अलग रहते ह तो जा हर है . . .
सु या का संबंध चूं क राजनैितक प रवार से है इसिलए उससे म कुछ ऐसी बात भी कर सकता हूं
जो नूर से नह ं हो सकती। “द नेशन” म जब मेरे “पर कतरे ” जाते ह तो सु या के संग ह शांित
िमलती है । मेरे अंदर उठने वाले तूफ़ान को दख
ु से भरा-पूरा उसका य व शांत कर दे ता है ।
मेरे दो बहुत ाचीन िम अहमद और शक ल के मुकाबले के वे अ छ तरह समझती है क मेरे
सपने कस तरह छोटे होते जा रहे ह ओर सपन का लगातार छोटे होता जाना कैसे मेरे अंदर वराट
खालीपन पैदा कर रहा है जो ऊलजलूल हरकत करने से भी नह ं मरता।
कभी-कभी अपने अथह न होने का दौरा पड़ जाता है । लगता है मेरा होने या न होने का कोई
मतलब नह ं है । म पूर तरह “मीिनंगलेस” हूं। मेरे बस का कुछ नह ं है । म पचास साल का हो गया
हूं ले कन कुछ न कर सका और जब जंदगी कतनी बची है । मेरा “बे ट” जा चुका है । कहां गया,
या कया, इसका कोई हसाब नह ं है ।
म ऑ फस से चुपचाप िनकला था। िल ट न लेकर पीछे वाली सी ढ़याँ ली थीं और इमारत के बाहर
िनकल आया था। ऐसे मौक पर म सोचता हूं काश मेरा चेहरा बदल जाये और कोई मुझे पहचान
सके क म कौन हूं। म भी अपने को न पहचान सकूँ और एक “नॉन एन टट ” क तरह अपने को
आदिमय के समु म डु बो दं ।ू
पीछे से घूमकर मु य सड़क पर आ गया और कूटर र शा पकड़कर जामा म जद के इलाके
पहुंच गया। भीड़-भाड़, गंदगी, जहालत, गर बी, अराजकता, अ यव था क यहां कोई सीमा नह ं है । यहां
अपने आपको खो दे ना जतना सहज है उतना शायद और कह ं नह ं हो सकता। पेड़ क छाया म
र शेवाले अपने र श क सीट पर इस तरह आराम करते ह जैसे आरामदे ह बेड म म लेटे ह ।
आवाज, शोर, गािलयां, ध का, मछली बाजार, मुगा बाजार, उद ू बाजार, आदमी बाजार और हर गली का
अपना नाम ले कन कोई पहचान नह ं। म बेमकसद तंग गिलय म घूमता रहा। जामा म जद क
सी ढ़य पर बैठा रहा। नीचे उतरकर ये जानते हुए सीख के कबाब खा िलए क पेट खराब हो
जायेगा
----१६----
रात के दो बजे फोन क घ ट घनघना उठ । पता नह ं या हो गया है । सु या भी जाग गयी।
मने फोन उठा िलया, दस
ू र तरफ चीफ रपोटर खरे था, “सर! मं ी पु ारा फुटपाथ पर सोये लोग
को कुचल दए जाने क एक और यूज़ है । म द रयागंज थाने से बोल रहा हूं।”
कस मं ी का लड़का है ?”
“सर, शक ल अहमद अंसार के लड़के कमाल अहमद अंसार ।”
“ओहो. . .” म और कुछ न बोल सका।
“सर. . .ऑ फस म अिमताभ है . . .उससे कह द जए सर पेज वन पर दो कॉलम क खबर है . .
.हमारे पास पूर डटे स. . .”
“हां म फोन करता हूं।” मने कहा।
इससे पहले के म ऑ फस फोन करके नाइट िश ट म काम करने वाले अिमताभ को िनदश दे ता,
शक ल का फोन आ गया।
“तु ह यूज़ िमल गयी।” वह बोला।
“हां, अभी-अभी पता चला. . .कमाल कैसा है ?”
“वह तो ठ क है . . .हां उसके साथ जो लड़के थे उनम से एक लड़के को लोग ने काफ पीट दया
है . . .वह अ पताल म है ।”
कसका लड़का है ।”
“बी.एस.एफ. के डायरे टर जनरल का बेटा है र व।”
“दस
ू रे और कौन थे?”
“ह रयाणा के सी.एम. का लड़का था. . .”
“और?” मने पूछा।
“ये सब छाप दे ना।” वह बोला।
“हमारा चीफ रपोटर थाने म है . . .उससे अभी मेर बात हुई . . .पहले पेज पर दो कालम म खबर
जा रह है ।”
“यार हम तीस साल से दो त है ।” वह बोला।
“दो ती से कौन इं कार करता है ।”
“सा जद ये लोकल खबर है. . .तीसरे पेज पर जहां द ली क खबर लगती ह, वहां लगा दो।”
“दे खो ये लोकल ह खबर होती. . .इसम अगर यूिनयन पावर ए ड इनज िमिन टर शक ल अहमद
अंसार का लड़का न इनवा व होता।”
“सा जद ये तुम या कह रहे हो. . .यानी मुझे बदनाम. . .”
“ लीज शक ल. . .आई एम सॉर ।”
उसने फोन काट दया। मने यूट पर बैठे अिमताभ को इं शन दए। सु या ने चाय बना डाली
थी। वह जानती थी क अब चार बजे के बाद फर सोना कुछ मु कल होगा।
“म कमाल को बचपन से जानता हूं. . .तु ह पता है म शक ल और अहमद यूनीविसट के दन के
दो त ह. . .शायद मेरे ह कहने पर शक ल ने कमाल का एडमीशन द ली प लक कूल म कराया
था। ले कन शक ल के पास टाइम नह ं है . . .तु ह पता कमाल के िलए यू.एस. से एक पोट मोटर
साइ कल इ पोट करायी थी शक ल ने?”
“ओ हो. . .”
“हां, मेरे याल से पांच हज़ार डालर. . .के कर ब. . .”
“माई गॉड।”
“कमाल ने आज जो ए सीडट कया है वह पहला नह ं है. . इससे पहले अपने बाप के चुनाव े
म यह सब कर चुका है ।”
“ए ड ह वाज़ नॉट कॉट?”
“वो हम सब जानते ह।”
“कानून, याय, शासन, अदालत, गवाह, वक ल सब पैसे के यार ह . . .अगर दे ने के िलए करोड़ ह
तो कोई कुछ भी कर सकता
है . . .हमने इसी तरह समाज बनाया है . . . हमारे सारे आदश इस स चाई म दब गये ह।”
“ले कन शक ल कैन टे ल. . .”
“शक ल या कहे गा? तु ह पता है प चीस साल क उ म ह कमाल शक ल क सबसे बड़
पॉिल टकल पोट है . . .उसके चुनाव क बागडोर वह संभालता है और बड़ खूबी से “आरगनाइज़”
करता है य क यह सब बचपन से दे ख रहा है . . .अपने े से शक ल ग़ा फ़ल रहकर द ली क
उठापठक म आराम से लगा रहता है और कमाल े संभाले रहता है . . .आजकल चुनाव े
जागीर ह. . .बाप के बाद बेटे के ह से म आती है ।”
“कमाल ने पढ़ाई कहां तक क है ?”
“मेरे याल से बी.ए. नह ं कर पाया है या “ ासपा डे स” से कर डाला है । बहरहाल, पढ़ाई म वह
कभी अ छा नह ं रहा ले कन यवहा रक बु ग़ज़ब क है , जन स पक बहुत अ छे ह. . .मतलब
वह सब कुछ है जो एक राजनेता म होना चा हए।”
“वैसे या करता है ?”
“शक ल क कं शन कंपनी और “ रयल टे ट डव पमट कंपनी का काम दे खता है . . .अभी इन
लोग ने वे टन यू.पी. के कुछ शहर म कोई सौ करोड़ क ज़मीन खर द है . . दस कालोिनयां
डवलप करने जा रहे ह।”
“ओ माई गॉड इतना पैसा।”
“म उसका दो त हूं. . .मुझे पता है . . .दौ सौ करोड़ के उसके वस एकाउ स ह।”
“हजार करोड़।”
“हां. . .”
छोट उ म ह उसका कमाल का चेहरा प का हो गया है । उस का कद पांच दस होगा। काठ
अ छ है । कसरती बदन है । दे खने से ह स त जान लगता है । हाथ मज़बूत और पंजा चौड़ा है ।
आधी बांह क कमीज़ पहनता है तो बांह क मछिलयाँ फड़कती दखाई दे त ी रहती है ।
रं ग गहरा सांवला है । आंख छोट ह पर उनम ग़जब क स फ़ाक दखाई दे ती है । लगता है वह
अपने उ े य क पूित के िलए कुछ भी कर सकता है । उसम दया, सहानुभूित, हमदद जैसा कुछ
नह ं है । वह जब सीधा कसी क आंख म दे खता है तो लगता है आंख भेदती चली जा रह ह ।
एक कठोर भाव है जो अनुशासन यता से जाकर िमल जाता है ले कन अपनी जैसी करने और
अपनी बात मनवा लेने क साध भी आंख म दखाई पड़ती है । नाक खड़ और ह ठ पतले ह। गाल
के ऊपर उभर हुई ह डयां ह जो बताती ह क वह इरादे का प का और अटल है । जो तय कर
लेता है वह कए बना नह ं मानता।। कमाल क गदन मोट और मजबूत है जो िसर और शर र के
बीच एक मजबूत पुल जैसी लगती है । उसके चेहरे पर धैय और सहनशीलता का भाव भी है । पतले
और तीखे ह ठ उसके य व के अनछुए पहलुओं क तरफ इशारा करते ह। आंख शराब पीने क
वजह से थोड़ फूल गयी ह। ले कन उनका बुिनयाद भाव िनममता बना हुआ है । “द नेशन” के
ादे िशक ासपा डट बताते रहते ह क कमाल का आतंक एक जले तक सीिमत नह ं है । पूव उ र
दे श के आठ-दस जले और यहां तक क लखनऊ तक कमाल का नाम चलता है । वह इतना
शाितर है क अपनी अ छ प लक इमेज बनाये रखता है । कभी बाढ़ आ जाये, शीत लहर चल
जाये, गर ब क लड़क क शाद हो, बेसहारा को सताया जा रहा हो, कमाल वहां मौजूद पाया जाता
है ।
“सुनो, या हमारे नेता ऐसे ह होते रहगे?” सु या ने पूछा।
“ये रा ीय नेताओं क तीसर पीढ़ है। प लक कूल म पढ़ िलखी या अध पढ़ , अं ेजी बोलने
वाली और हं द म अं ेज़ी बोलने वाली इस पीढ़ का िस ांत, वचार, मयादा, पर परा से कोई लेना-
दे ना नह ं है . . .ये िसफ स ा चाहते ह. . .पावर चाहते ह ता क उसका अपने फायदे के िलए
इ तेमाल कर. . .ये चतुर चालाक लोग जानते ह क उनके पूवज ने यानी पछली पीढ़ के नेताओं
ने जनता को जा हल रखा है . . .जानबूझ कर जा हल रखा है ता क बना समझे वोट दे ती रहे ।
“जा हल कैसे रखा है ?”
----१७----
काफ हाउस य उजड़ा? ये कुछ उस तरह क पहे ली बन गयी है । जैसे “राजा य न नहाया, धोबन
य पट ?” पहे ली का उ र है । धोती न थी। मतलब राजा इसिलए नह ं नहाया क नहाने के बाद
पहनने के िलए दूसर धोती न थी और धोबन इसिलए पट क धोती न थी, यानी कपड़े न धोती
थी। तो “काफ हाउस य उजड़ा?” पहे ली का उ र हो सकता है । “स” न था। “स” से समय, “स” से
समझदार , “स” से सहयोग, “स” से सगे, “स” से स ा, “स” से सोना. . .सा ह य. . .
काफ हाउस उजड़ा इसिलए क वहां बसने वाले प र द ने नये घ सले बना िलये। मेर और यार
दो त क शा दयां हो गयीं। ब चे हो गये। सास-ससुर और साले सािलय क सेवा टहल और प ी
क फरमाइश के िलए व कहां से िनकलता? और फर कनाट लेस और काफ हाउस के नज़द क
कोई कहां रह सकता है ? इसिलए पटक दए गये काफ हाउस से दस-दस बीस-बीस मील दरू इलाक
म, वहां से कौन रोज़ रोज़ आता?
कुछ लोग हम लोग के बारे म कहते ह जब तक ये लोग संघष कर रहे थे काफ हाउस आते थे।
अब था पत हो गये ह। सोशल स कल बड़ा हो गया है । जोड़-तोड़, लेन-दे न के र ते बन गये ह।
जनम काफ हाउस के िलए कोई जगह नह ं है । पता नह ं ये कतना सच है ले कन कुछ न कुछ
सच म इसम हो सकता है ।
पछले डे ढ़ दशक म प ह बहार आयीं ह और पतझड़ गुज़रे ह। जेल से िनकलने के बाद सरयू
डोभाल का क वता सं ह “जेल क रोट ” छपा था और उसक िगनती हं द के े क वय म होने
लगी थी।
उसके बाद “पहाड़ के पीछे ” और “आवाज का बाना” उसके दो सं ह आ चुके ह। वह “दै िनक भात”
का सा ह य संपादक है और हं द ह नह ं भारत क अ य भाषाओं के ित त सा ह यकार म
उसका अमल-दखल है । उसक शाद इलाहाबाद म हुई है । प ी एन.ड .एम.सी. के कसी कूल म
पढ़ाती है । एक लड़का है जो बी.ए. कर रहा है । इसम शक नह ं क अब सरयू के पास काफ हाउस
म दो-दो तीन-तीन घ टे ग प मारने का व नह ं है । उसे अपने द तर म ह आठ-साढ़े आठ बजे
जाते ह। बाहर ाइवर खड़ा इं ितज़ार करता रहता है क साहब को ज द से ज द घर छोड़कर म
आजाद हो जाऊं। उसक प ी शीला खाने पर इंितज़ार करती है और बेटा अपनी सहज ज़ रत क
सूची थामे उसका “वेट” करता रहता है । ऐसे म सरयू काफ हाउस तो नह ं जा सकता न? और फर
ह ते म तीन चार शाम ऑफ िशयल क म के “ डनर” होते ह जहां जाना नौकर का ह सा है । कोई
कुछ कहता नह ं ले कन ऐसे “ डनर ” म ह नीितयां तय होती, फैसले िलए जाते ह, लॉबींग क जाती
है , समझौते होते ह, रा ते िनकलते ह। लखट कया से लेकर दस हज़ार इनाम तक क लॉबींग होती
है । सरयू को सा ह य क रा ीय प का िनकालनी है , सा ह यकार के बीच रहना है , उनका समथन
ा करना है , उनसे संबंध बनाना है इसिलए यह सब नौकर का आव यक ह सा बन जाता है ।
नवीन जोशी क शाद सुिम ानंदन पंत के प रवार म हुई है । शाद के बाद नवीन ने दो-तीन
नौक रयां बदलने के बाद एक बड़ प लक अंडरटे कंग म पी.आर.ओ. के पद पर पांव जमा िलए ह।
शाद से पहले उसका एक क वता सं ह “चुप का संगीत” छप चुका है । अब शाद , नौक रय और
बाल-ब च के झंझट म इं वाय करना सीख गया है । वह द ली के पहाड़ ा ण समाज का एक
ित त सद य है । ऐसा होना अ वाभा वक भी नह ं है य क उसके पताजी अं ेज के ज़माने के
से शन ऑफ सर थे, चाचा जी जज थे, छोटे चाचा इलाहाबाद यूनीविसट म अं ेजी के ोफेसर थे।
आज उसके प रवार म दो दजन आई.ए.एस. और ोफेसर ह। अखबार के स पादक ह, ट .वी.
चैनल के एंकर ह,
----१८----
मोहिसन टे ढ़े धड़ाधड़ अपनी जायदाद बेचकर पैसा खड़ा कर रहा है । अभी आम का बाग और वह
हवेली नह ं बेची है जहां उसक मां रहती है । मां से वह काफ परे शान है । कहता है अ मां द ली
आना नह ं चाहती। मोहिसन टे ढ़ा कसी भी तरह अब तक इसम कामयाब नह ं हो सका क अ मां
को द ली ले आये। हां, उसके बहनोई दलावर हुसन
ै एडवोकेट ने कहला दया है क पु तैनी
जायदाद म उनका मतलब उनक बीवी का भी ह सा है । मोहिसन टे ढ़े कसी भी तरह जायदाद का
एक ितनका अपनी बहन और बहनोई को नह ं दे ना चाहता।
सौ बीघा कलमी आम का बाग मोहिसन टे ढ़े के दादा ने लगवाया था और यह ज़ले के ह नह ं
प मी उ र दे श के बड़े बाग म िगना जाता है । बाग म चार कुएं ह, प क नािलयां ह, और हर
तरह से कलमी आम के पेड़ ह। मोहिसन टे ढ़े ने जब इस बाग का ाहक तय कया तो उसके
बहनोई दलावर हुसैन एडवोकेट ने उसे धमका दया और वह बयाना दे ने भी नह ं आया। मोहिसन
ने एक और खर दार को पटाया और उससे बयाना ले िलया। यह बात दलावर हुसैन को पता लग
गयी। उ ह ने मोहिसन को चैलज कया क वे तहसील म बाग क िलखा-पढ़ न करा सकगे। उनका
मतलब यह था क गु डे मोहिसन टे ढ़े को तहसील न पहुंचने दगे। ऐसे मौके पर मोहिसन टे ढ़े के
काम कौन आता िसवाय शक ल अहमद अंसार के। शक ल ने यह छोटा-सा काम करने क
ज मेदार अपने सुपु कमाल को स प द ।
कमाल ने मोहिसन को यक न दलाया क बैनामा हो जायेगा। दलावर हुसैन एडवोकेट कुछ नह ं
कर सकगे। मोहिसन को यह बड़ा
अ छा लगा। कमाल उ ह बताता रहता था क उसने अपने इलाके के इतने लोग बुला िलए ह, जले
के अफसर को साउ ड कर दया है क यह मं ी जी का काम है । सब मदद करने के िलए तैयार
ह। बैनामा अगले दन होना था।
रात शक ल के घर पर खाना-वाना खाने के बाद कमाल ने मोहिसन टे ढ़े से पूछा, “अं कल ये
बताइये. . .अगर अपनी िस टर को उनका शेयर आपको दे ना ह पड़ जाता तो वह कतना होता?”
इस सवाल पर मोहिसन टे ढ़े के हवास गुम हो गये। वह उड़ती िच ड़या के पर िगन गया।
“ य ?” उसने पूछा।
“मतलब अं कल आप जानते ह. . .हमने पचास लोग बुलाये ह जो हर तरह से लैस ह गे. .
.अिधका रय को उनका ह सा पहुंचा दया गया है । पुिलस को भी दया गया है य क पुिलस
कसी के र तेदार नह ं होती. . .”
मोहिसन टे ढ़े क अकल के सभी दरवाजे खुल गये। उसने सोचा, कल बैनामा होना है , अगर आज
कमाल कह दे क उसके आदमी वहां नह ं पहुंच पायगे , वह नह ं जा सकता तो या होगा।
कतना ख चा लग जायेगा।” मोहिसन टे ढ़े मर हुई आवाज़ म बोला।
पांच लाख।” कमाल ने कहा और मोहिसन टे ढ़ा कुस से उछल पड़ा, पांच लाख।”
“हां अं कल पांच लाख. . .ये कुछ नह ं है . . .आप अ सी लाख का बाग बेच रहे ह।”
“ठ क है ।”
मोहिसन टे ढ़ा यह समझ रहा था क कमाल शायद कसी काग़ज पर द तखत करायेगा। पर ऐसा
नह ं हुआ।
अगले दन जब बैनामा हो रहा था तो मोहिसन टे ढ़े को कमाल के पचास आदमी कह ं नह ं दखाई
दए। पुिलस भी नह ं थी। सब कुछ सामा य था। मोहिसन टे ढ़े ने कमाल से पूछा, तु हारे आदमी
कहां ह?”
“अं कल आप अपना काम क जए।” वह स ती से बोला था। काम हो गया था। जतना पैसा कैश
िमलना था वह सब कमाल ने िगनकर अपने पास रख िलया था। द ली आकर उसम से पांच लाख
बड़ ईमानदार से िगनकर बाक मोहिसन को लौटाते हुए कहा था, पापा को ये सब न बताइयेगा. .
.”
मोहिसन ने िसर हला दया।
सु या को यह पसंद नह ं क उसके रहते मेरे टे रस पर मह फल जम और यार लोग शराब कबाब
कर। अगर कभी ऐसा होने वाला होता है तो वह अपनी बरसाती म चली जाती है । ले कन आजकल
वह कलक ा गयी है इसिलए मेर टे रस आबाद हो गयी है ।
मसला जेरेबहस यह है क बलीिसंह रावत ने लोक सेवा आयोग ारा व ा पत डायरे टर मी डया
क पो ट पर अ लाई कर दया है । यह एस.ट . के िलए रजव पो ट है और रावत के पास एस.ट .
का माण-प है । आज वह जस वेतनमान पर काम कर रहा है उससे दग
ु ना वेतनमान इस पो ट
का है ।
सरयू , नवीन का कहना है क यह “गो डन अपार युिनट ” है रावत के िलए। म इससे सहमत हूं।
डायरे टर मी डया क पो ट सीधे मं ालय म है । या कहने?
रावत अपनी जानका रय , समझदार , फ म और सा ह य क सू म के बावजूद सीधा है । उसम
म यवग य छल कपट है । हम लोग ये जानते ह रावत को “खींचने” का काई मौका नह ं छोड़ते।
पता नह ं कैसे धीरे -धीरे हम लोग ने रावत को “क वंस” कर िलया क नौकर के िलए उसका जो
इं टर यू िलया जायेगा उसका पूवा यास करके दे खना चा हए।
कुछ ह दे र म “मॉक इं ट र यू” शु हो गया। कहावत है क दाई से पेट नह ं िछपाना चा हए। हम
सब दस-दस, प ह-प ह साल पुराने दो त, एक दस
ू रे के बारे म सच जानते ह। पूरे व ास से ऐसे
सवाल पूछने लगे जनका जवाब रावत नह ं दे सकता। चार पांच सवाल का
उ र रावत नह ं सके य क वे वैसे ह सवाल थे जनके उ र क उपे ा उनके नह ं हो सकती।
कुछ दे र म रावत िचढ़ गया और शायद समझ भी गया क उनके साथ खेल हो रहा है । वह बोला,
“अरे मादरचोदो, स यजीत रे पर सवाल पूछो, चाल चैपिलन पर पूछो, अ बादास क प टं ग पर पूछो,
रवी संगीत पर पूछो. . . फिल तीनी ितरोध क वता पर पूछो. . .”
हम सब हं सने लगे।
हम लोग ने पूरे संग को चाहे जतना “नॉन सी रयसली” िलया हो ले कन बलीिसंह रावत क
िनदे शक मी डया के पद पर िनयु हो गयी। हमने ज मनाया। रावत पर सब अपने-अपने दावे
पेश करने लगे। नवीन ने कहा यार मने तो तुझे सूट का कपड़ा खर दवाया और सूट िसलवाया था।
मने कहा, मने तु ह टाई बांधना िसखाई थी। बहरहाल रावत बहुत खुश था।
संबंध ऊबड़-खाबड़ रा त पर चल रहे ह। नूर अब पूरे साल लंदन म रहती ह। पहले जाड़ म ह रो
के साथ एक दो ह े के िलए आ जाती थी और ह रा का कॉिलज खुलने से पहले लौट जाती थी।
धीरे -धीरे साल म एक च कर लगना भी बंद हो गया और दो-तीन साल म एक बार आने लगी। म
भी लंदन जाते-जाते थक गया था। अब वहां सब कुछ नीरस था। म गिमय म ीनगर चला जाता
था।
धीरे -धीरे सु या ने नूर क जगह ले ली थी ले कन सु या के साथ भी संबंध म कोई प कापन न
था। हमेशा लगता था जब प ी ह अपनी न हुई तो ेिमका या होगी। ले कन सु या ने हमेशा
व ास बनाये रखा। कभी जब नूर को आना होता था तो बना मुझे बताये अपने कपड़े वग़ैरा लेकर
अपनी बरसाती म चली जाती थी और कभी नह ं कहती थी क ये संबंध कैसे ह? वह मेर कौन है ?
नूर कौन है ? म ये य कर रहा हूं। लगता है क सु या को अपार दख
ु ने सतह से उखाड़ दया है
वह अब जहां है वहां कोई सवाल जवाब नह ं होते।
लंदन और नूर से दरू होने के साथ-साथ म ह रा से भी दरू हो गया
हूं। मने उसे लेकर जो वाब पाले थे वे िछतरा गये ह। ले कन ह रा से मेर बातचीत होती रहती है ।
हो सकता है नूर से कसी मह ने बात न हो ले कन ह रा से होती ह है । वह चाहे जहां हो, म उसे
फोन करता हूं। हॉ टल म था तो वहां “काल” करता था। मेरे और उसके बीच सबसे बड़ा वषय
तीसर दिु नया के संघष ह। उसे राजनीित और अथशा म दलच पी है और म प कार होने के
नाते इन दोन वषय से बच नह ं सकता। “लंदन कूल ऑफ इकोनािम स” के रे ड कल ट चस
उसके “आइ डयल” ह। वह बराबर उनक कताब और लेख मुझे भेजता रहता है । वह जानता है क
म कभी वामपंथी राजनीित म था और भी उससे सहानुभूित रखता हूं। वह बताता रहता है
नवपूंजीवाद कस तरह संसार के गर ब दे श पर क ज़ा जमाना चाहता है । ह रा अपनी िश ा, प रवार
के उदार मानवीय वचार , बॉब से दो ती और रे डकल ट चस क संगित म काफ इ कलाबी बन
गया है । वह यूबा और चीन क या ा कर चुका है । िमजा साहब, उसके नाना लेबरपाट से अपने
पुराने और गहरे र ते क वजह से “गुलाबी” वचार को पसंद करते ह और उ ह लगता है क ह रा
जवानी के जोश म “अितलाल” है जो समय के साथ-साथ “गुलाबी” हो जायेगा।
सु या के साथ रहते हुए कभी-कभी यह य़ाल आता है क मुझे यहां सु या का सहारा िमल गया
है । नूर लंदन म या करती होगी? पता नह ं मुझे लगता है ले कन हो सकता है म ग त हूं क नूर
और बॉब क दो ती िसफ दो ती क हद तक कायम नह ं है । दोन कूल म साथ पढ़ते थे फर
कॉिलज म साथ आये। यूनीविसट साथ-साथ गये। अं ेज़ सं थान का माहौल “वीकली पकिनक”,
“नाइट आउट”, “पा टयां डांस”, “ ं स डनर” ऐसा कौन है जो इस माहौल म एक बहुत अ छे
आदमी और दो त के साथ गहरे और बहुत गहरे संबंध बनाने म हच कचायेगा? लंबे जाड़ और
बरफ ले तूफान के बाद जब कृित जागती है तो ऐसा लगता है जैसे वीनस क मूित चादर ओढ़े सो
रह थी और अचानक उसने चादर फककर एक अंगड़ाई ली है । ऐसे मौसम म युवक पागल हो जाते
ह और रं ग के तूफान म अपने को रं ग लेते ह। जाड़ा बीत जाने
के बाद सूखी-सी लगती टहिनय के ऊपर हरे रं ग क कोपल जैसी प यां िनकलती जनके रं ग हरे
होने से पहले कई चोले बदलते ह और प याँ हर चोले म मारक नज़र आती है । सड़क कनारे खड़
बेतरतीब झा ड़यां इस तरह फूल उठती है क उन पर से िनगाह हटाना मु कल होता है । लगता है
यह पृ वी, पेड़, फूल, रं ग, नीला पानी, नीला आसमान सब आज ह बना है । दरू तक फैली हर
पहा ड़य क गोद म बसे गांव म बसंत उ सव मनाये जाते ह। सेब के बाग म आक ा बजता है ,
नृ य होता है , बयर बहती है , “बारबी यु ” होता है और पूरा माहौल नयी जंदगी का तीक बन जाता
है । पता नह ं इस तरह के कतने वसंत उ सव म नूर और बॉब गये ह गे। पता कतनी बार हरे
पहाड़ के जंगली फूल के बीच ै कंग क होगी। पता नह ं टे स के कनारे कतनी दरू तक टहले
ह गे।
नूर और बॉब के र ते या उनके बीच शार रक संबंध क बात जब म सोचता हूं तो मुझे गु सा
नह ं आता। म मानता हूं अगर ऐसे संबंध ह गे तो नूर क इ छा बना न ह गे। और दस
ू र बात यह
क बॉब इतना अ छा आदमी है क उसे साधारण क प रभाषा म नह ं बाध जा सकता। अगर यह
संबंध है तो वशेष संबंध होगा. . . या यह म कसी और से भी कह सकता हूं।
बाग बेचने के बाद मोहिसन टे ढ़े ने शाद कर डाली। चूं क मोहिसन टे ढ़े नौकर वगै़रा तो करता न
था िसफ ज़मीन जायदाद का खेल था। वह भी तेजी से बेच रहा था इसिलए मोहिसन टे ढ़े के िलए
लड़क िमलना मु कल था। ये बात ज र है क इलाके वाल , र ते-नातेदार म अ छ साख थी।
लोग जानते और मानते थे ले कन अ छे घर से इं कार ह हो रहा था। आ खरकार एक मीर साहब
जो मेरठ कचहर म पेशकार थे, क चौथी लड़क के साथ मोहिसन टे ढ़े का र ता तय हुआ।
मोहिसन क शाद सीधी-साधी थी। दोन प को अ छ तरह मालूम था क “एडज टमट” य
कया जा रहा है । दहे ज वा जब वा जब िमला था। रसे शन वा जब वा जब था। लड़क इं टर तक
पढ़ थी। घरदार से अ छ वा क़फ़ थी। दे खने सुनने म वा जब वा जब थी। मोहिसन टे ढ़े जानता है
क इससे यादा इन हालात म कुछ नह ं हो सकता। शाद के बाद वह बीवी को लेकर सीधे द ली
आ गया। उसने कहा था, यार या फायदा पहले घर ले जाऊं? घर म है कौन अ मां ह, वो यह ं शाद
म आ गयी। बाक बहनोई साहब ने तो मुकदमा दायर कर दया है । दस
ू रे र तेदार से मेरा मतलब
ह नह ं है ।
द ली म उसने गुड़गांव के पास कसी से टर म मकान खर द िलया था। मने बहुत समझाया था
क यार इतनी दरू य जा रहे हो। पर वह नह ं माना था। उसका कहना था, “यार म र तेदार से
दरू रहना चाहता हूं. . .ये सब मुझे लूटना खाना चाहते ह। म गुड़गांव से टर तेरह म रहूंगा वहां
कोई साला या पहुंचेगा. . .और फर वहां स ता है और फर यार कौन-सा मुझे नौकर करनी है ।
ह ते म एक आद बार द ली चला आया क ं गा और वह सुकून से रहूंगा. . .तुम कभी वहां आकर
दे खो. . .बड़ पुर फ़ज़ा जगह है ।”
----१९----
“दे खो आदमी सच बोलने के िलए तरसता है । उसक ये समझ म नह ं आता क कहां सच बोला
जाये? मेर तो समझ म आ गया क सच कहां बोलना चा हए. . .यह ं बोलना चा हए, यह ं बोलना
चा हए और यह ं बोलना चा हए. . .” अहमद हं सने लगा।
टे रस पर चांदनी फैली है नीचे से चमेली क फूल क तेज़ महक आ रह है । मलिगजी चांदनी म
जामो-सुबू का इं ितज़ाम है । तीन पुराने दो त ज़ंदगी क दोपहर गुज़ारकर आमने सामने ह।
“ या कमजोर है तु हार ।” शक ल ने पूछा।
“यार तुम लोग पूछ रहे थे न क पहले मने इं दरानी को छोड़ा था, फर राजी रतना को छोड़ा। उसके
बाद एक सी लड़क के साथ रहने लगा. . .मा को से टो यो आ गया तो एक अमर क टकरा
गयी . . . म यार. . .” उसे कुछ नशा आ गया था और जबान लड़खड़ा रह थी।
“तु ह नशा यादा हो रहा है ।” मने कहा।
वह हं सने लगा हां, म जानता हूं और ये भी जानता हूं क कहां नशा होना चा हए और कहां नह .ं .
. ड लोमै टक पा टय म नशा होना जुम है . . .वहां हम वी.वी.आई.पी को नशे म लाते ह, उसे खुश
करते ह. . .उसके चले जाने के बाद अपने हाई किम र साहब को नशे म लाते ह। ये भी हमार
यूट होती है . . .जानते हो. . .एक बार मै सको म हमारे ए बै डर एक पेशल कोटे वाले आदमी
थे और लगता था उ ह उनके पूरे कै रयर “दस
ू रे तरह के लोग ने परे शान कया था। अब “टॉप
बॉस” हो जाने के बाद उनके अंद र बदला लेने क वा हश बहुत मज़बूत हो गयी थी. . .तो जब
उ ह चढ़ जाती थी तो “उन लोग ” म से कसी को बुलाकर दल क भड़ास िनकाला करता था. .
.गाली गलौज करता था और जवाब म हम सब यस सर, यस सर कहते रहते थे। सब जानते थे
दस-प ह िमनट म थककर चला जायेगा या. . .”
“जो बात शु क थी वो तो रह ह गयी।”
“हां सच ये है क औरत मेर कमज़ोर है . . .और ये भी मेर कमज़ोर है क म एक औरत के
साथ लंबे अरसे नह ं रह सकता. . .और . . .”
“इतनी बड़ और भयानक बात इतनी ज द एक साथ न बोलो।” मने उससे कहा। शक ल हं सने
लगा।
“ये बताओ क तुम राजदूत बन रहे हो न?” शक ल ने पूछा।
“टे ढ़ा सवाल है . . .दे खो हमार िमिन म जो सबसे पावरफुल लॉबी है वह चाहती है क अब मुझे
द ली म सड़ा दया जाये य क मेर जगह उनका एक आदमी राजदत
ू बन जायेगा। हमारे से े टर
उन लोग के दबाव म ह. . .अब अगर पी.एम.ओ. और कैबनेट से े टर दखल द तो बात बन
सकती है . . .मने शूज़ा चौहान से बात क है ।”
“वाह या तगड़ा सोस लगाया है . . .वह तो आजकल कैबनेट से े टर क गल े ड है ।”
“हां यह सोचकर उससे कहा है ।”
“ फर?”
“वह तो एम.ई.ए. म भी बात कर सकती है ।”
“नह ं उससे काम नह ं चलेगा. . .तुम लोग या और द स
ू रे लोग एम.ई.ए. के बारे म नह ं जानते. .
.वहां अजीब तरह से काम होता है . . . य क प लक ड िलंग नह ं है . . . ेस तक खबर कम ह
पहुंचती ह इसिलए अजीब माहौल है . . .”
“कुछ बताओ न?” मने कहा।
“नह ं यार तुम ेस वाले हो।”
“तो तुम ये समझते हो क म चाहूंगा तो टोर छप जायेगी? ऐसी बात नह ं है मेर जान. .
.सरकार के खलाफ हमारे यहां कुछ नह ं
या कम ह या नपा तुला छपता है ।”
“तब तो बता सकता हूं।” वह हं सकर बोला, “तुमने जमनीदास क कताब महाराजा पढ़ है ?”
“हां।”
“बस उसे भूल जाओगे।”
“नह ं यार।”
“छोड़ो यार छोड़ो. . .ये तुम लोग कहां से लेकर बैठ गये। दनभर यह सब सुनते-सुने कान पक
गये ह” शक ल ने उकता कर कहा।
“तो तु हारे मं ालय म भी. . .”
“मेरे भाई कहां नह ं ह. . .अमर का, टे न, ांस, जापान. . .कहां “कर शन” नह ं है ।
“तो उसके बारे म बात न क जाये?” मने कहा।
“ज र करो. . .म चलता हूं. . .यार यहां म इसिलए नह ं आया हूं।” शक ल बोला, “अहमद ने मुझे
आंख मार ।”
“कबाब ठ डे हो गये ह।” अहमद ने कहा।
मने हांक लगाई “गुलशन. . .”
“तो राजी रतना को तुमने छोड़ दया?” शक ल ने अहमद से पूछा।
“नह ं उसने मुझे छोड़ दया।”
“कैसे?”
“जब हम मा को म थे तो एक बड़ “ड ल” जो मेर वजह से ह िमली थी, राजी ने मुझे बाहर कर
दया था। पूरे पचास लाख का चूना लगाया था।” अहमद ने कहा।
मेरे अंदर ये सब सुनकर “वह त” बढ़ने लगी। यार म इस दिु नया म इसिलए हूं क शक ल और
अहमद जैसे लोग क बकवास सुनता रहूं? मने अपने ऊपर कतनी यादती क है । दिसय साल से
म इनक बकवास सुनता आया हूं। खामोश रहा हूं। पर और कर भी या सकता हूं? ले कन कम से
कम से म मजबूर तो नह ं हूं उनक बकवास सुनने
“नाम या रखा है ।”
“कुछ बताओ यार. . .अभी तक फाइनल नह ं कया है ।”
“इ ह ं दन क वता छपी है “चुप क आवाज़” यह रख दो सं ह का नाम।”
नीले सूट म एक अिधकार आया बोला, “सर आपको साहब के साथ ह जाना है ।” उसने कहा और
तेज़ी से चला गया। मेरे जवाब का इं ितज़ार भी नह ं कया।
“अब दे खो. . . ये बदतमीजी है या नह ?ं ” सरयू बोला।
“छोड़ो यार. . .ये लोग हम हमार जंदगी जीने ह नह ं दे ते। टालो. . .क वता सं ह के नाम क
बात हो रह थी।”
“हां, “चुप क आवाज” पर सोच भी रहा हूं. . .अ छा यार ब ढ़या खबर यह है क मेर क वताओं का
च अनुवाद पे रस से छप गया है ।” सरयू ने बताया।
“अरे वाह. . .अनुवाद कसने कया है ?”
“लातरे वाज़ीना. . .वहां हं द पढ़ाती है ।”
पाट अपने ज़ोर पर आ गयी थी ले कन शक ल को छोड़कर सभी मह वपूण लोग जा चुके थे।
शक ल अपने मं ालय के अिधका रय के सुर ा घेरे म अब भी लोग से िमल रहा था।
“रावत का या है ?”
“यार उसका मामला बड़ा अजीब हो गया है ?”
“कौन? उसके बॉस?”
“हां यह समझ लो. . .चार पांच बड़े खूसट, चंट और चालाक . . .ब क जाितवाद क म के
ा ण ने उसे घेर रखा है . . .म भी यार ा ण हूं. . .ले कन उस तरह के ा ण से भगवान
बचाये।”
“ या हुआ?”
“यार सब िमलकर उसके साथ खतरनाक क म का खेल खेल रहे ह . . .उस पर इतना काम लाद
दया है जसे चार आदमी भी नह ं कर सकते ह. . .जब काम पूरा नह ं हो पाता तो उस पर
िल खत आरोप
लगाते ह क आप “अयो य” ह. . .जब क वह नौ नौ बजे रात तक द तर म बैठा रहता है . .
..ज द म वह कोई काम कर दे ता है तो उसक ग ती पकड़ते ह और उसके िलए द तर डांट-
फटकार वगै़रा होने लगती है . . .
“यार रावत को चा हए था क इन साल को पटा लेता।”
“उसे तुम जानते हो. . .वह दो ह श द जानता है अ छा और बुरा. . .उसक नज़र म जो बुरा है
उसके साथ वह यार, मुह बत, स मान का ढ ग नह ं रचा सकता. . .।”
“नवीन का या हाल है ?”
“सरकार नौकर म रावत जतना “अन फट” है , नवीन उतना ह “ फट” है ।” सरयू हं सकर बोला।
“तुमसे मुलाकात होती है ?”
“हां कभी-कभी आ फस चला आता है . . .घ ट बैठा ग प मारता रहता है ।”
“कुछ िलख रहा है ।”
“प ह साल से उसने कुछ नह ं िलखा. . .अब तो िसफ जीभ के बल पर दनदनाता है । कतनी बार
कहा, यार नवीन कुछ िलखो। तुम इतनी अ छ फ म समी ाएँ करते थे, क वताएं िलखो. . .बस
हां-हां करके टाल दे ता है . . .ऑ फस के कायदे कानून का जानकार बन गया है , कहां से कतना
पैसा िमल सकता है , यह उसक उं गिलय पर रहता है ।”
कसी दन आ जाओ तुम लोग तो टे रस पाट रहे ।”
“तुम बताओ. . .तु हारा या हाल है ?”
“अखबार का तुम जानते ह हो. . .यहां मेरा होना न होना बराबर है . . .न तो वे लोग मुझसे काम
लेते ह न म करता हूं. . .बस यह सोचता रहता हंू क काम या कया, जीवन या जया. .
.बबाद कया. . .”
“नह ं यार तुम. . .” वह क गया। अहमद हमार तरफ आ रहा है ।
----२१----
इतने साल म मेरा शहर बहुत नह ं बदला है । हां, पुरानी म डली बखर गयी है । कलूट नह ं रहे ।
मु ार “एलकोहिलक” हो गया। सुबह डे ढ़ पाव दा पीकर चचा के होटल आ जाता है और दोपहर
तक अखबार पढ़ा करता है , दोपहर को खाना खाकर सो जाता है । शाम फर शराब शु हो जाती है ।
अब उसका पाट से कोई ता लुक नह ं है । यूिनयन सब ठ प हो गयी ह। अतहर क लखनऊ म
नौकर लग गयी है । वह यहां कम भी आता है । उमाशंकर ने आटा च क खोल ली है । पाट म अब
भी ह और जतना हो सकता है स य रहते ह। कामरे ड आर.के. िम ा अब भी पाट से े टर ह।
बूढ़े हो गये ह। दांत म बड़ तकलीफ रहती है । पं डत द नानाथ गांव जाकर रहने लगे ह। शहर
बहुत कम आते ह। सूरज चौहान ने पाट छोड़ द थी। कामरे ड बली िसंह का वा य बहुत िगर
गया है । दल के दो आपरे शन हो चुके ह। “आब ” बरे लवी केवल ै टस करते ह। सा दाियक पाट
ने ह द ू के नाम पर जाितवाद दल ने जाितय के नाम पर अपने वोट बक बना िलए ह।
म मकान क मर मत, दे खभाल, टै स के नाम पर इतना पैसा भेज दे ता हूँ। घर म खाना पकाने
वाला बुआ का लड़का भी म लू मं जल म आ गया था। मजीद अपनी प ी अमीना और आधा
दजन ब च के साथ रहता है ।
केस रयापुर वाले चौरे म रहमत का छोटा बेटा अशरफ रहता है । रहमत को गुजरे एक ज़माना हुआ।
वहां खेती बटाई पर ह होती है । पहले सारा अनाज घर आ जाया करता था और खाला वगै़रा के
काम आता था। अब बेच दया जाता है और अशरफ उसे पैसे से म लू मं जल क
मर मत वगै़रा करा दे ता है । गुलशन अ सर बड़बड़ाता रहता “अरे एक बोरा लाह तो आ ह सकती
है . . . दो मन अरहर आ जाये तो यहां साल भर चले।” म उसे कभी-कभी उसे केस रयापुर भेज भी
दे ता हूं और वह अपने हसाब से ग़ ला ले आता है ।
ऐसा नह ं है क अपने वतन म अब म ब कुल अजनबी हो गया हूं। जब जाता हूं पुराने प रिचत
और नये लड़के िमलने आ जाते ह। म भी कल े ट का एक च कर मार लेता हूं। पुराने लोग िमल
जाते ह। ताज़ा हालात क जानकार हो जाती है । चूं क शहर म सभी जानते ह क म “द नेशन” म
हूं इसिलए कभी-कभी छोटे -मोटे काम भी बता दे ते ह ज ह म कर दे ता हूं।
अगर म चाहूं तो वहां बराबर जा सकता हूं ले कन हर बार वहां जाकर तकलीफ होती है । गु सा
आता है । दख
ु होता है । िनराशा होती है । ऐसा नह ं है क इस तरह के छोटे शहर या क बे मने दे खे
नह ं ह। उ ह गुज़र रल रप टंग करते करते। दे श का शायद ह कोई ऐसा ामीण े हो जो
न दे खा हो। ले कन इस शहर म आकर दख
ु इसिलए होता है क मने चालीस साल पहले एक छोटा,
गर ब पर साफ-सुथरा शहर दे खा है जहां िस वल सोसाइट अपनी पूर भूिमका िनभाया करती थी।
आज यह एक गंदा, ऊबड़ खाबड़, सड़क पर कूड़े के ढ़े र और ग ढ़ वाला एक ऐसा शहर बन गया है
जहां िसफ प ती दखाई दे ती है । जो नयी इमारत बनी ह वे भी दस-प ह साल म बूढ़ और बेढंगी
लगने लगी ह। य क ठे केदार और सरकार कमचा रय ने इतना पैसा खाया है क जसक कोई
िमसाल नह ं द जा सकती। नगरपािलका क खूबसूरत इमारत के अहाते म सड़क क तरफ दक
ु ान
बना द गयी ह जसके कारण सौ साल पुरानी ऐितहािसक इमारत िछप गयी है । इस इमारत क भी
हालत खराब है । कहा जा रहा है इसे िगराने क बात चल रह है । जला अ पताल साफ-सुथरा हुआ
करता था अब वह गंदगी का अ डा है और मर ज़ क भीड़ लगातार डा टर क ती ा करती
रहती है जो ाइवेट लीिनक के काम करते ह। सरकार कूल क अं ेज़ के ज़माने म बनी
इमारत का हाल बेहद खराब है । रख रखाव क बात छोड़
चाहे “लूपहोल” ह , ले कन कुछ कया जाना चा हए। या? या कोई बना बनाया रा ता है ? कोई
राजनैितक दल, कोई वचारधारा?
---
“यार ये खेल तो तुम खतरनाक खेल रहे हो”, मने अहमद से कहा।
“खतरा तो कुछ नह ं. . .बस थोड़ द फ़त होती है ”, वह बोला और शक ल हं सने लगा।
“इससे संभल नह ं रह है ”, शक ल ने आंख मार ।
“बात सी रयस है यार. . .अबे तुझे मालूम है वह कैबनेट से े टर क गल े ड है ”, मने कहा।
“ये कौन नह ,ं पूर सरकार जानती है ”, अहमद ने कहा।
“उसे पता चल गया तो तु हारा या होगा ?”
“ या वो उसे सती-सा व ी मानता है ?”
“ फर वह बेतुक “ला जक”. . .अरे यार “इगो” भी तो होता है
“दे खो, मेरे सामने और कोई रा ता है नह ं. . .म ये मानता हूं क मेर ज़ंदगी म हमेशा औरत काम
आयी ह. . .और ये भी मानता हूं क अब मतलब पचपन साल का हो जाने के बाद. . .या समझो.
. . चार पांच साल बाद मेर यू.एस.पी. ख म हो जायेगी. . .समझे।”
हम तीन हं सने लगे।
“शक ल से कहो”, ये कुछ करेगा।”
“यार मेर िमिन क बात होती तो जो कहते कर दे ता. . .पर मामला एम.ई.ए. का है ”, वह
बोला।
“कह ं से दबाव डालो।”
“िमिन टर तो उ लू का प ठा है . . .से े टर के आगे उसके एक नह ं चलती. . . वह या करे गा?”
“दे खो. . .बात साफ है . . .शूज़ा द वान मेरे बारे म कैबनेट से े टर से बात करे गी. . .उनक बात
मेरा से े टर टाल नह ं सकता. .यार म “ए बे डर” हो जाऊंगा तो तुम लोग को भी ऐश करा दं ग
ू ा.
. .
वैसे इस सरकार का कोई भरोसा नह ं है . . .ज द करना चा हए।”
“सरकार क तुम फ न करो. . .चलेगी. . .”, शक ल बुरा मान कर बोला।
“ठ क है भई. . .
-”तो अब पोज़ीशन या है ?”
“म शूज़ा से िमलता हूं. . .अभी तो मने कुछ कहा नह ं है ।”
“कैसी है ?”
“अरे यार खूब खेली खाई है . . .अब तुम समझ लो. . .करोड़ क ापट बनाई है इसने. . .और
बस वैसे ह . . .इधर का माल उधर करने म।”
“तो आगे या करोगे?” मने पूछा।
“यार ये इस काम म मा हर ह. . .अपने आप सेट कर लेगा। ये चाहे तो कोई भी औरत इसके िलए
ख़ुदकुशी कर सकती है ”, शक ल ने कहा।
“ये न कहो यार. . .औरत ने ह इसे चूना लगाया है . . .”
“इसने भी तो चूना लगाया है . . .ब क इसने इ पोरटे ड चूना लगाया है ”, वह हं सने लगा।
“तीन साल का ट योर “पो टं ग” होती है न ए बे डर क ?”
“हां. . .तीन साल. . .”
“तुम लोग भी जस तरह “टै स पेयर” का पैसा बरबाद करते हो वह “ नल” है ”, मने अहमद से
कहा।
“अब तुम कहते रहो. . .उससे या होता है . . .ये तो साले तुम अपने अखबार म भी नह ं िलख
सकते” अहमद ने मेर दख
ु ती रग पर हाथ रख दया।
“हां जानता हूं. . .ये सब अखबार म नह ं िलख सकता. . .अखबार म ये भी नह ं िलख सकता क
रा पित तीन सौ कमरे के पैलेस म य रहता है ? हज़ार एकड़ उपजाऊ जमीन पर बड़े -बड़े लॉन
और मुग गाडन बनाने क या ज़ रत है . . .करोड़ लोग लगातार अकाल, बाढ़ और सूखे से मरते
रहते ह और राजधानी म बारह मह ने शहनाई बजती रहती है ”, मने कहा।
“ये रल रपो टग से तु हारा दमाग खराब हो गया है . . .जो तुम चाहते हो वो तो समाजवाद
दे श म भी होता है . . .दे खो यह तो दे श के गौरव का सवाल है , ित ा का सवाल है , स मान क
बात है . .हम इस संसार म रहना है तो यहां. . .”
म शक ल क बात काटकर बोला “ये बताओ ये दे श कसका है ?”
“सबका है ।”
“उसका भी है जो अकाल म मर रहा है . . .उसका भी जो बाढ़ म बह गया. . .उसका भी जो. . .
अगर यह दे श उनका भी है तो उ ह या िमल रहा है जनका दे श है. . .बहुसं यक जनता।”
“इन सब बहस से कुछ नह ं होगा। अहमद बोला “चलो . . .खाना लगवाओ।”
िश ा को मेरे स िनदश ह क जब भी कोई मुझसे िमलने आये, उसे आने दया जाये। लोग
जानका रय का ख़ज़ाना ह और पता नह ं कसके पास या िमल जाये। मने यह भी कह रखा है क
ये सवाल भी न कए जाय क या काम है ? और कहां से आये ह? मेरे याल से ये सवाल
मानवीय ग रमा के ितकूल ह। आदमी होना अपने आप म बहुत से सवाल का जवाब है ।
आ फस म म जब तक रहता हूं िमलने वाले लगातार आते रहते ह। दरू दराज इलाक से आये लोग
वहां के हालचाल बताते ह म जानता हूं क जस तरह म अखबार म सब कुछ नह ं िलख सकता
उसी तरह दस
ू रे अखबार भी बहुत कुछ नह ं छाप सकते। इसिलए आज भी जानकार व त
जानकार का सू मनु य ह है । संचार ांित के इस युग म आदमी से आदमी का िमलना उतना ह
ज़ र है जतना हज़ार साल पहले था।
दूरदराज़ इलाक से लोग, छा , वतं लेखन करने वाले प कार, एन.जी.ओ., राजनैितक कायकता,
संगठन और यूिनयन के लोग से िमलता रहता हूँ। अखबार के दूसरे व र लोग यह दे खकर मुंह
बनाते ह और ऐसी अटकल लगाते ह क मेरा बड़ा मनोरं जन होता है । कहते ह अली साब चुनाव
लड़ना चाहते ह या कोई कहता है अपनी पाट बनाना चाहते ह। एक अफवाह यह भी उड़ाई थी क
सरकार म कोई बड़ा पद ा करना चाहते ह। बहरहाल मने इनम से कसी बात का ख डन नह ं
कया।
जहां तक अखबार क राजनीित मतलब अ द नी उठा-पटक वाली राजनीित का सवाल है उससे म
बहुत दरू हूं। प क नौकर है कोई िनकाल सकता नह ं। तर क मुझे चा हए नह ं य क वह मेरे
याल से अथह न है । म अगर एसोिसएट स पादक के प म रटायर होता हूं या चीफ एड टर के
प म तो उससे या फ़क पड़ता है ? मानता हूं क अपना संतोष और अपने हसाब से अपनी
सांिगकता से बड़ कोई चीज़ नह ं है ।
“आपको कल धानमं ी के साथ ीनगर जाना है ”, िश ा ने ऑ फस म घुसते ह मुझे बग-बॉस का
आदे श सुना दया।
“ य या और कोई नह ं है ।”
“बड़े बॉस िमिन टर फॉर ए स नल अफेयस के साथ चीन गये ह, वेद जी छु ट पर ह।”
“हां तो अब म ह बचता हूं. . .ठ क है पी.एम. ऑ फस फोन करके ो ाम पूछ लो। घर फोन करके
गुलशन से कहो सामान पैक कर दे और ाइवर से कह दो क “लाइट टाइम पर घर जा जाये।”
“मने यह सब काम कर दए ह िम टर अली. . .ये दे खए ो ाम. . .”, वह बोली।
“ओ गॉड िश ा. . .इतनी माट नेस. . .तु ह मेरे जैसे आदमी क से े टर नह ं कसी म ट नेश नल
कारपोरे शन के सी.ई.ओ. क से े टर होना चा हए”, मने कहा और वह हं सने लगी। उसके सफेद दांत
“यार तुम पागल हो गये हो. . . मतलब म पड़ा पड़ा खाता रहूं।”
“तुम दरअसल “ रय ट ” को “फेस” नह ं करना चाहते”, अहमद बोला।
“दे खो तुम और हम लोग सभी पचास से ऊपर ह. . .अब इस उ म कोई “ ठया” न हुआ तो
मु कल हो जायेगी।”
“अहमद का या “ ठया” है?”
“यार म बस साल दो साल म ह कसी अ छ औरत से. . .”
“अरे छोड़ो. . .ये तुमने जं गीभर नह ं कया।”
अभी तो रात के तीन बजे ह। पता नह ं य डयरपाक से कसी मोर के बोलने क आवाज़ लगी।
म उठकर खड़क तक आया। अंधेरा है । रौशनी का इं ितज़ार बेकार है य क अभी उसम समय है ।
एक बजे जब वे दोन चले गये तो म टड म आ गया था। जब कभी उकताहट बढ़ती है और
“ ड ेशन” सा होने लगता है तो अपनी कताब दे ख लेता हूं. . .चार कताब. . .दे श के नामी
प लशस ने छापी है । चार ामीण और आ दवासी भारत क विभ न सम याओं पर आधा रत है ।
इन कताब पर सात “एवाड” िमले ह जो टड म सजे हुए ह। त वीर ह. . . .तो या जंदगी के
एक-एक पहल का हसाब दे ना पड़ता है ? कौन मांगता है यह हसाब? शायद हम अपने आपसे ह
मांगते ह। अपने को संतु करना बहुत मु कल काम है । म तो काम ब कुल नह ं कर पाता। म
सोचता हूं छोटा होते-होते, होते-होते अब ये “सपना” या रह गया? मर तो नह ं गया? म यह क पना
भी नह ं कर सकता क “सपने ” के बना भी म ज़ंदा हूं तो अब वह सपना या है ? म दिसय साल
दे श के गांव म घूमता रहा, िलखता रहा। “सपने ” क तलाश करता रहा। कभी बड़ हा या पद
ले कन आंख खोल दे ने वाली प र थितय से दो चार भी हुआ। एक बार बैतूल के एक आ दवासी
गांव म मुझे और मेरे साथ एक दो और जो लोग थे उ ह दे खकर गांव म भगदड़ मच गयी थी।
आदमी
अपना काम छोड़कर भागने लगे थे। औरत ब च को बग म दबाये भागने लगीं थीं। म है रान था
क यह या हो रहा है , य हो रहा है ? ये लोग हम या समझ रहे ह। तब साथ वाले एक थानीय
कायकता ने बताया था क ये लोग हम बक वाले समझ कर भाग रहे ह। मेर समझ म फर भी
बात नह ं आई थी। पहले तो कायकता ने आवाज़ दे कर इन लोग को रोका था और उनक भाषा म
ह कहा था क हम बक वाले नह ं ह। ये सुनकर कुछ लोग पास आये थे।
पता चला क कज लेना भी वकास क एक पहचान माना जाता है । इसके अंतगत एक बक ने
आ दवािसय को कज दे ने के िलए एक रािश िन त क थी। आ दवािसय को कज क कोई ज़ रत
न थी ओर न वे बक से कज लेना जानते थे और न इसके अ य त थे। इस कारण बक का ांच
मनेजर परे शान हो गया क “टारगेट” पूरा नह ं हो सकेगा तो उसक तर क म अड़चन आयेगी।
कसी ने सुझाया क गांव ह जाकर कज दे दो। वह ं कागज़ी कायवाह कर लो। वह दो तीन
बचौिलय के साथ आया और गांव के सबको पैसा दे दया। उनसे अंगूठा िनशान लगवा िलए। इन
लोग को कुछ पता नह ं था क यह कैसा पैसा है ? इसका या करना है ? यह कस तरह लौटाया
जायेगा? लौटाया भी जायेगा या नह ं। बक मनेजर कज दे कर चला गया। इन लोग ने पैसे क शराब
पी डाली। अनाप-शनाप ख़च कर दया। साल भर बाद दस
ू रा बक मनेजर कज क क त वसूल
करने आया। कज क क त वसूल हो जाना भी वकास क पहचान और बक मनेजर के “ ोमोशन”
के िलए आव यक माना जाता है । इस बक मनेजर ने जब दे खा क आ दवािसय के पास क त दे ने
के पैसे नह ं ह तो इससे उ ह और कज दे दया और उसम से क त के पैसे काट िलए। फर तो
यह रा ता ह िनकल आया। कई साल तक यह होता रहा। हर बक मनेजर अपना “कै रयर” बनाता
रहा है और आ दवासी भयानक कज म डू बने लगे। होते-होते थित थोड़ प होने लगी। कसी ने
इ ह बताया क तुम लोग के तो जानवर, खेत, घर बक सकते ह। ये समझ म आते ह ये डर गये
और अब बक वाल को आता दे खकर जंगल म भाग जाते ह।
वकास के िलए ेरणा दे ने वाले अटपटे क म के बोड अब भी ामीण े म दखाई पड़ते ह। म
सोचता हूं आ दवासी या पछड़े वग म गांव वाल को चा हए क एक बोड लगवाय जस पर िलखा
हो “कृपया हमारा वकास न क जए. . .हम जी वत रहने द जए।” ासद यह है क चालीस साल
तक वकास का वनाश चलता रहा और आज भी जार है ।
म सोचता हूं क िलखने से या होगा? इतना िलखा या हुआ? मेरा नाम हुआ। मेरा स मान कया
गया। मुझे “एवाड” िमले। मुझे पैसा िमला। ले कन उनका या हुआ जनके बारे म मने िलखा था।
फर या क ं ? सागर साहब क तरह उनके बीच रहकर काम क ं ? अब सुना है सागर साहब ने
नौकर छोड़ द है और अपनी प ी के साथ गलहौट गांव म ह बस गये ह। उनका काम गलहौट
के आसपास के गांव म भी फैल गया है । इसके साथ यह भी हुआ है थानीय मा फया उनसे बहुत
नाराज़ ह। उ ह कई बार मार डालने क धम कयां द जा चुक ह। या सागर साहब जैसा साहस
मुझम है ?. . .वाह ये तो अजीब बात है , साहस है नह ं और इ छाएं इतनी ह? दोन का कोई मेल भी
है ?
----२३----
अहमद ने मोचा मार िलया। शूजा के साथ पे रस म एक स ाह रहा। लौटकर आया तो शूजा ने
कैबनेट से े टर पर ज़ोर डाला क उसक िसफा रश कर और अनंत: वह राजदूत हो गया। कहता है
यार बड़ “मेहनत” करनी पड़ती है “ए बै डर” बनने के िलए।
यह भी मसला था क कन- कन दे श म वह भेजा जा सकता है और उसम से कौन-से दे श ऐसे ह
जहां वह जाना चाहे गा या जहां जाने से फ़ायदा होगा। म और शक ल ये समझ रहे थे क वह
योरोप के कसी सुंदर दे श को पसंद करे गा ले कन उसने कहा तुम लोग जानते नह ं योरोप म कहां
वे मज़े ह जो “िम डल ई ट” म ह. . .मतलब यार तीन साल मरगे तो कुछ कमा ल। जहां सोना
होगा- काला सोना वहां जाना चा हए. . .योरोप के छोटे मोटे दे श म या है , कुछ नह ,ं उसने बताया
था क एक “आडर” को वह इधर से उधर खसका दे गा तो करोड़ बन जायेगा। उसने राजदत
ू
के बड़े -बड़े क से सुनाये। एक राजदत
ू क प ी तो सुबह ना ते के िलए दध
ू , अ डे और ेड तक पर
अपना पैसा नह ं खच करती थी। उसने ाइवर को आदे श दे रखा था क वह ना ते का सामान लाया
करे और बदले म उसका “ओवर टाइम” मंजूर कर िलया जायेगा। ाइवर भी खुश रहता था य क
इसम उसे अ छा खासा बच जाता था।
हमने अहमद से कहा क यार ये काम राजदत
ू क प यां कर सकती ह। अफसोस तुम कुंवारे हो.
. .कैसे करोगे. ..उसने कहा था, यार इस तरह के टु चे काम तो म क ं गा भी नह ं। म तो बड़ा खेल
खेलना चाहता हूं. . .ऊंचा दांव लगाऊंगा।”
उमर साहब ने बताया क वे पास ह म रहते ह। तुग काबाद ए सटशन के पीछे उ ह ने मकान
बनवाया है । गाड़ लेकर चले तो पता चला क तुगलकाबाद से चार पांच कलोमीटर दरू कसी
“अनअथाराइज़” कालोनी म उमर साहब का मकान है । कालोनी तक पहुं चते-पहुंचते सड़क क ची हो
गयी और इतनी ऊबड़-खाबड़ हो गयी क गाड़ चलाना मु कल हो गया। कई गिलय म गाड़
मोड़ने के बाद उनके कहने पर मने जस गली म गाड़ मोड़ वह गली नह ं तालाब था। पूर गली म
पानी भरा था। दोन तरफ अधबने क चे, प के घर थे और गली म ब कुल अंधरे ा था।
मने उनसे कहा “भाई ये तालाब के अंदर से गाड़ कैसे िनकलेगी।”
-”यहां से गा ड़यां िनकलती है” उ ह ने कहा।
“म िनकाल दं ।ू पर अगर गाड़ फंस गयी तो या होगा? रात का दो बजा है . . .”
बात उनक समझ म आ गयी। बोले “मेरा घर यहां से यादा दरू नह ं है । म क बल और चाय
लेकर आता हूं। आप यह ं कए।”
उमर साहब के जाने के बाद पता नह ं कहां से इलाके के कर ब प चीस तीस कु ने गाड़ घेर ली
और लगातार भ कने लगे. एक टाच क रौशनी भी मेरे ऊपर पड़ । म कु क वजह से उतर नह ं
सकता था। लोग का शक हो रहा था क म कौन हूं और रात म दो बजे उनके घर के सामने गाड़
रोके य खड़ा हूं।
ख़ासी दे र के बाद उमर साहब आये और हम इमामबाड़े आ गये। रातभर हम लोग हसन साहब के
बारे म बातचीत करते रहे ।
अगले दन हसन साहब को द ऩ कर दया गया। उनके र तेदार सुबह ह पहुंच गये थे। हम दस-
प ह लोग थे क तान म कसी ने मेरे कान म कहा “वो ह मत से ज़ंदा रहे और ह मत से
मरे ।”
----२५----
“भई माफ करना. .. तु हार बात बड़ अनोखी ह. . .पहली बात तो ये क मुझे अजीब लगती ह. .
.दस
ू र यह क उन पर यक़ न नह ं होता. . .म यह सोच भी नह ं सकता क कोई द ली म पैदा
हुआ। पला बढ़ा िलखा और उसने लाल कला, जामा म जद नह ं दे खी”, मने अनु से कहा।
“अब हम आपको या बताय. . .पापा क छु ट इतवार को हुआ करती थी। कूल भी इतवार को
बंद होते थे. ..पापा कहते थे क ह े म एक दन तो छु ट का िमलता है आराम करने के िलए.
.. उसम भी बस के ध के खाय तो या फ़ायदा. . . फर कहते थे अरे घूमने फरने म पैसा ह तो
बबाद होगा न? उस पैसे से कुछ आ जायेगा तो पेट म जायेगा या घर म रहे गा. ..”
“और कूल वाले. . .”
“अली साहब. .. युिन पल कूल वाले पढ़ा दे ते ह यह बहुत है . . .वे ब च को पकिनक पर ले
जायगे?”
“दूसर लड़ कय के साथ।”
“वे भी हमार तरह थीं. . .छु ट म लड़ कयां गु टे खेलती थीं और हम ग णत के सवाल लगाते थे.
. .सब हम पागल समझते थे”, अनु हं सकर बोली।
“तो तुमने आज तक लाल कला और जामा म जद नह ं दे खी?”
“हां अंदर से. . .बाहर से रे लवे टे शन जाते हुए दे खी है ।”
“ या ये अपने आप म टोर नह ं है ?”
“हां यार. . .ये लोग ने अपने-अपने िनयम बना रखे ह. . . जतने भी िनयम कायदे बनाये जाते ह
सब लोग को परे शान करने के िलए, आदमी को सबसे यादा मज़ा शायद दस
ू रे आदमी को परे शान
करने म आता है ।”
वह हं सने लगी।
“आप कह रहे थे कुछ बतायगे म जद के बारे म।”
“सुनो एक मजे का क सा. . .शाहजहां चाहता था क म जद ज द से ज द बनकर तैयार हो
जाये। एक दन उसने दरबार म धानमं ी से पूछा क म जद बनकर तैयार हो गयी है या?”
धानमं ी ने कहा “जी हां हुजूर तैयार है ” इस पर स ाट ने कहा ठ क है अगले जुमे क नमाज़ म
वह ं पढ़ू ं गा। दरबार के बाद म जद के िनमाण काय के मु खया ने धानमं ी से कहा क आपने भी
ग़ज़ब कर दया। म जद तो तैयार है ले कन उसके चार तरफ जो मलबा फैला हुआ वह हटाना
मह न का काम है । उसे हटाये बगै़र स ाट कैसे म जद तक पहुंचगे? धानमं ी ने एक ण
सोचकर कहा “शहर म डु गी पटवा दो क म जद के आसपास जो कुछ पड़ा है उसे जो चाहे उठा
कर ले जाये।”
ये समझो क तीन दन म पूरा मलबा साफ हो गया।
वह हं सने लगी।
यह लड़क मुझे अ छ लगी है । म अब उसक सहजता का रह य समझ पाया हूं।
“और बताइये?”
“सुनो. . .जैसा क मने बताया शाहजहां चाहता था क म जद ज द से ज द बनकर तैयार हो
जाये. . .म जद का “बेस” और सी ढ़याँ बनाकर “चीफ आक टे ट” ग़ायब हो गया। काम क गया।
स ाट बहुत नाराज़ हो गया। सारे सा ा य म उसक तलाश क गयी। वह नह ं िमला. . .अचानक
एक दन दो साल बाद वह दरबार म हा जर हो गया। स ाट को बहुत ग़ु सा आया। वह बोला
“सरकार आप चाहते थे क म जद ज द से ज द बन जाये। ले कन मुझे मालूम था क इतनी
भार इमारत के “बेस” म जब तक दो बरसात का पानी नह ं भरे गा तब तक इमारत
मजबूती से टक नह ं रह पायेगी। अगर म यहां रहता तो आपका हु म मानना पड़ता और इमारत
कमज़ोर बनती। हु म न मानता तो मुझे सज़ा होती। इसिलए म गायब हो गया।”
“मेर भी अ छ कहानी है ”, वह बोली।
“म जद से जुड़ . . .कहािनयां तो दिसय ह. . .नीचे दे खो वहां सरमद का मज़ार है . . .कहते ह
औरं गजेब ने सरमद क खाल खंचवा कर उनक ह या करा द थी. . .मुझे पता नह ं यह बात
कतनी ऐितहािसक है ले कन क सा मज़ेदार है और लोग जानते ह। एक दन औरं गजेब क सवार
जा रह थी और रा ते म सरमद नंगा बैठा था। उसके पास ह एक क बल पड़ा था। औरं गजेब ने
उसे नंगा बैठा दे खकर कहा क क बल तु हारे पास है , तुम अपने नंगे ज म को उससे ढांक य
नह ं लेत?े ” सरमद ने कहा “मेरे ऊपर तो इससे कोई फ़क़ नह ं पड़ता। तु ह कोई परे शानी है तो
क बल मेरे ऊपर डाल दो।” खैर स ाट हाथी से उतरा। क बल जैसे ह उठाया वैसे ह रख उ टे पैर
लौटकर हाथी पर चढ़ गया।” सरमद हं सा और बोला “ य बादशाह, मेरे नंगा ज म िछपाना ज़ र
है या तु हारे पाप?” कहते ह औरं गजेब ने जब क बल उठाया था तो उसके नीचे उसे अपने भाइय
के कटे िसर दखाई दए थे जनक उसने ह या करा द थी. . .कहो कैसी लगी कहानी?”
उसने मेर तरफ दे खा। उसक उदास और गहर आंख म संवेदना के तार झलिमला रहे थे।
7 published up to here 3 February 2008
गरजत बरसत
उप यास
----उप यास यी का दस
ू रा भाग----
असगऱ वजाहत
◌ौ असगऱ वजाहत
काशक
काशक का नाम एवं पता
वतरक
वतरक का नाम एवं पता
िच एवं स जा : नाम
आवरण पारदश : नाम
सं करण : २००५
मू य : पए
टाइप सै टं ग : लीलाज़, इ ट यूट ऑफ क यूटर ाफ स
मु क : ट
ं र का नाम
नचदं लं◌े
।◌ेरंत ◌ॅ◌ंर ंज त ्◌ैण ् ०००००
समपण
ा कथन
◌ीर क
तीसरा ख ड
----२६----
तीन अकेल के मुकाबले एक अकेला यादा अकेला होता है। शक ल को लगा था क उसके े से
उसे उखाड़ फकने क कोिशश हो रह है . .. वह े म चला गया। द ली कभी-कभार ह आता है ।
अहमद राजदत
ू बनकर अपना “ऐजे डा” लागू कर रहा है । फोन करता रहता है ले कन व तार से
बात नह ं होती। बता रहा था उसके चाज लेते ह शूजा आ गयी थी। कर ब एक ह ते रह । उसको
रे िग तान बहुत पसंद नह ं आया य क वह अंदर के रे िग तान से बड़ा नह ं था, वापस चली गयी।
शाम क मह फल नह ं जम पातीं। वैसे तो जानने वाल , प रिचत , जान-पहचान वाले दो त क लंबी
फेह र त है ले कन जो मज़ा दो पुराने दो त के साथ “टे रस” पर बैठकर ग प-श प म आता था
वह कहां बचा? जससे िमलो, जसके पास जाओ, उसके पास एक “ऐजे डा” होता है , “हमसे तो छूट
मह फल।”
ह रा से लंबी बातचीत होती रहती है । वह एिशयाई दे श के वकास पर एक ोजे ट कर रहा है और
बां लादे श जाना चाहता है । त नो ने बजनेस को समेटकर पैसा “ लूिचप कंपिनय ” म “इनवे ट” कर
दया है । कहती है अब वह इतना काम नह ं कर सकती। उसने “प टं ग” करने का शौक चराया है
और “आ ट ट” से चेहरे बनाना सीख रह है । कसी होटल “चेन” को एसे स काउ ट वाला “ह रा
पैलेस” कराये पर दे दया है क वहां क दे खभाल पर जो खच आता था और जो “टै स” पड़ते थे,
वे लगातार बढ़ते जा रहे थे और िमजा साहब के ज़माने वाला “ए टव बजनेस” भी रह गया था
जसके िलए शानदार पा टयाँ ज़ र थी, जो वह द जाती थीं।
मुझे लगता था क अनु उसी तरह धीरे -धीरे ग़ायब हो जायेगी जैसे दस
ू रे समाचार दे ने वाले या कभी
अखबार म िच लेने वाले आते ह और चले जाते ह। ले कन कालम बंद होने के बाद भी वह चली
आती है । उसने साफ बताया है क वह शहर म बहुत कम लोग को जानती है । उसका कोई दो त
नह ं है । उसे मुझसे िमलना अ छा लगता है । वह उ दराज़ लोग को पसंद करती है य क उनम
ठहराव और संयम होता है । म उसक इस बात से सहमत हूं क उ चा हए। अ छे काम करने के
िलए नव-िस खए या अनाड़ तो भाग खड़े होते ह। नौजवान लोग के हाथ से र ते शीशे के याले
क तरह फसलकर टू ट जाते ह।
एक साल हो गया जब म उसे पहली बार जामा म जद ले गया था। इसके बाद द ली के कई
कोने, कई दबी और वशाल इमारत के बीच िछपी और ख डहर हो गयी ऐितहािसक धरोहर म उसे
दखा चुका हूं,। “टू र ट गाइड” बनना संतोषजनक काम है य क आप अपनी जानका रयां “शेयर”
करते ह और अगर यह लग जाये क जसके साथ “शेयर” कर रहे ह वह गंभीर है , िच ले रहा है ,
कृत ता भी दखा रहा है तो आपका उ साह बढ़ जाता है ।
खुशी, वन ता और सहजता अनु के वभाव के बुिनयाद ब दु ह। वह अपनी मताओं, यो यताओं
और उपल धय पर पता नह ं य कभी गव नह ं करती। ग णत के साथ-साथ वह क यूटर
सॉ टवेयर क भी चै पयन है ले कन उसे दे खकर, उसके हाव-भाव से यह लगता है क अपनी
यो यता, वल ण मता पर उसे व ास तो है ले कन गव नह ं है । मेरा िनजी पी.सी. उसके हवाले
है , तरह-तरह के ो ाम डालती रहती है और मुझे समझाती है । उसने गुलशन को भी क यूटर
चलना इतना िसखा दया है क खोल और बंद सकता है ।
पहले म सोचकर परे शान रहा करता था क वह ऐसा य करती है ? उसको या लाभ है ? वह
दरअसल चाहती या है ? म ती ा करता था क उसका असली च र नह ं ब क असली “ऐजे डा”
कब खुलता है । ले कन मुझे िनराशा ह हाथ लगी। म ती ा करता रहा। अब भी कर रहा हूं।
मुझे यह सब य अ छा लगता है ? गाड़ म बीिसय कलोमीटर का च कर काटकर उसे मेवात के
म यकालीन ख डहर य दखाता हूं? मुझे उसक आंख म ज ासा, कृत ता, सहमित और संतोष
का भाव आक षत करता है । लोग से सहज संबंध और क ठन प र थितय म संयम बनाये रखने
क आदत भी िनराली मालूम होती है य क आज कसके पास धैय है ? कसके पास संतोष है ?
मेवात के एक बीहड़ इलाके से गुजरते हुए अचानक अनु ने अपने पस म से भुने हुए चने िनकाल
िलए और मुझे ऑफर कर दए। हम यारह बजे चले थे और अब एक बज रहा था ले कन इन
क ची-प क पगड डय जैसे सड़क पर कोई ढाबा नह ं िमल पाया था जहां कुछ खा-पी सकते।
“अरे तुम चने लाई हो।”
“ये तो हम हमेशा अपने पास रखते ह।”
“अ छा? य ?”
“हम कभी-कभी तेज़ भूख लगती है . . .बस चने िनकाले खा िलए।”
“हूं” मने उसके कंधे पर हाथ रख दया। वह बुर तरह च क कर उछली। उसका िसर गाड़ क छत
पर टकराया। चने गाड़ म बखर गये। उसके चेहरे पर भय और आतंक छा गया, माथे पर पसीने
क बूंद उभर आयी और वह कांपने लगी।
मने गाड़ एक पेड़ के साये म खड़ कर द । कुछ समझ म नह ं आ रहा था क उसक ऐसी
ित या य हुई?
“ या बात है ?” मने पूछा।
“कुछ नह .ं . .कुछ नह ं. . .” वह माथे का पसीना प छती हुई बोली।
“कुछ तो है ?”
“नह ं. . .नह ं. . .”
“बताओ न? तुम पहली बार कुछ िछपा रह हो?”
उसने भयभीत िनगाह से मेर तरफ दे खा।
“और कौन?”
“यार म वहां से लगातार एम.पी. होता हूं. . .मं ी हूं. . .उसे कौन मना कर सकता है . . .”
---
शक ल सोच म डू ब गया फर बोला - और अब पॉली ट स म आना चाहते ह”
- ये कौन सा जुम है ” अहमद बोला ।
बुरा नह ं है . . . ले कन यार कम से कम बी.ए. तो कर ले. . . कोई काम धंधा पकड़ ले. . . ये
ऊपर टं गे रहना तो ठ क नह ं ह।”
- यार ये कैसी कोई ा लम तो नह ं लगती .” मने कहा ।
-कमाल तु हारे काम धंधे को दे खता है न? शायद तु ह वहाँ “ र जे ट” भी करता है ?”
- हाँ वो म चाहता नह ं . . . मने सुना है अब वो कुछ उन लोग से भी िमलने लगा है जो मेरे
साथ नह ं है ”
-”अरे ये य ?”
- पता नह ं . . . मने उससे कह रखा है क तुम बी.ए. कर लो म तु ह एम. एल. ए. का टकट
दला दँ ग
ू ा. . . म जानता हूँ वो अगर कसी और पाट के टकट पर खड़ा हो गया तो गज़ब हो
जायेगा।
-” या कुछ हो सकता है ?”
-सब कुछ हो सकता है ,” वह ल बी और गहर सांस लेकर बोला।
अलवर के आसपास जन ऐितहािसक इमारत क तलाश थी वे िमल गयी थी ले कन उ ह दे खने म
दे र हो गयी थी और सूरज हुआ इधर-उधर िछपने क जगह तलाश कर रहा था।
पयटनवाल के कॉ पले स म चाय पीते हुए मने अनु क तरफ दे खा। लंबा प रचय, अपे ाओं पर
खरे उतरने के कारण एक दूसरे के ित व ास, पसंद करने वाली भावना, य व का रह य मेरे
दे खने म या था।
“अब वापस द ली पहुंचने म रात हो जायेगी।” वह जानती है
क म रात म गाड़ नह ं चलाता था कुछ क ठनाई होती है ।
“हां रात तो हो जायेगी।”
“तो रात म यह “टू र ट रज़ाट” म क जाय?” इतने दन से अनु को दे ख रहा हूं। लुके िछपे
आकषण मह वपूण हो गये ह।
वह एक ण दे खती रह । इस एक ण म उसने एक या ा तय कर ली या शायद उस छलांग क
भूिमका पहले ह बन चुक थी।
“मुझे घर फोन करना पड़े गा।”
“कर दो”, मने रसे शन क तरफ इशारा कया।
पुराने फैशन के इस वशाल कमरे म एक तरफ क द वार पर ऊपर से नीचे तक शीशे क
खड़ कयां ह जो जंगल क तरफ खुलती ह। एक दरवाजा बॉलकनी म खुलता है । ऊंची छत, डबल
बेड, वाडरोब के अलावा पढ़ने क मेज़ और कुिसयां ह इस कमरे म।
“हम रात सोफे पर बैठे-बैठे बता दगे”, अनु ने कहा।
हम खाना खा चुके थे। रात का दस बज रहा था। मने खड़क के पद हटा दये थे और जंगल
कमरे के अंदर घुस आया था। जंगल क नीरवता पूर तरह चारद वार के बीच विनत हो रह थी।
“ठ क है , तु हारा जो जी चाहे करो. . .पर एक बात सुन लो. . .मेरे जीवन म बहुत कम म हलाएं
आयी ह. . .और वे सब अपनी मज से आई ह. . .मेरे िलए इससे बड़ा कोई अपराध हो ह नह ं
सकता क म कसी लड़क के साथ उसक मज के बना संबंध था पत क ं ।”
अनु कुस पर बैठ गयी। मने उससे पूछकर लाइट बंद कर द । कमरे के अंदर बाहर का जंगल
जीवंत हो गया।
“रात भर बैठे-बैठे थक नह ं जाओगी?”
“नह ं. . .मने इस तरह न जाने कतने रात गुज़ार ह।”
“ या मतलब?” मने त कए को दोहरा करके उस पर िसर रख िलया ता क अंधेरे म वह जतना
दख सकती तो दखे।
वह खामोश हो गयी। कुछ श द या वा य ख़ज़ाने क कुंजी जैसे होते ह। अनु का वा य ऐसा ह
था। म खामोश रहा। श द मानिसक अंत को बढ़ाते ह और खामोशी समतल बनाती है । द वार
पर घड़ क “ टक- टक” और बाहर से आती झींगुर क तेज़ आवाज़ के अलावा स नाटे का सा ा य
पसरा पड़ा था।
“हम कहां से शु कर”, उसक आवाज़ अतीत के अनुभव से टकरा कर मुझ तक आयी। वर और
लहजे म सपाटपन था।
“कह ं से भी. . .”
“बात लंबी है ।”
“पूर रात पड़ है . . .कहो तो म भी कुस पर बैठ जाऊं।”
“नह ं. . .”, वह हं सने लगी।
“हम उन बात को याद भी नह ं करना चाहते।”
“ठ क है . . .मत याद करो. . .ले कन बड़ा बोझ जतना बांटा जाता है , उतना ह का होता है ।”
फर वह खामोश हो गयी। स चाई वचिलत करती ह संतुलन बगाड़ दे ती है । एक ऐसे धरातल पर
ले आती है जहां चीज़ और य य को दे खने के नज रये बदल जाते ह ले कन आ खरकार स चाई
एक शांत नद क तरह बहने लगती है । इस या से गुज़रना आसान नह ं है ।
स चाई या आ म वीकृित शायद ऊंची आवाज़ म संभव नह ं है । वह उठ और ब तर पर आकर
लेट गयी।
-”हम आठवीं म थे। कूल से आने के बाद लाक के पाक म चले जाते थे. . .वहां खेलते थे।
लड़ कयां बैडिमंटन खेलती थीं और लड़के फुटबाल खेलते थे। शाम ढलने से पहले घर लौट आते थे.
. .एक दन हम खेल रहे थे। सी-४० वाली िमिसज़ वमा एक दो और आ टय के साथ उधर से
िनकली। मेर तरफ इशारा करके िमिसज़ वमा ने कहा “इस लड़क क शाद हो रह है ।” हम अपना
रै केट लेकर रोते हुए घर आ गये। म मी रसोई म खाना पका रह थी, हमने उनसे कहा क दे खा
िमिसज़ वमा ने हमारे बारे म ऐसा कहा है । म मी ने हं सकर कहा, “नह ं झूठ बोलती ह। तेर शाद
य होगी अभी से. . .पर म मी ने मुझसे झूठ बोला था. . .”
धीरे -धीरे क ा आठ म पढ़ने वाली लड़क क िसस कयां अंधेरे कमरे म इस तरह सुनाई दे ने लगी
जैसे संसार क सार औरत वलाप कर रह ह । म खामोश ह रहा। म जानता था क मेरा एक
श द इस सामू हक दन को तोड़ दे गा। म चुपचाप खामोशी से लेटा रहा। छत क तरफ दे खता
रहा। पंखा धीमी गित से चल रहा था और बाहर से आते मलिगजे उजाले म केवल उसके पर
दखाई दे रहे थे।
आठवीं क ा म पढ़ने वाली लड़क रो रह थी।
“हम पढ़ने म बहुत अ छे थे। कुछ लड़ कयां खासकर सरोज मुझसे बहुत जलती थी। उसने पूरे
कूल म ये बात फैला द . . .ट चर ने हम बुला कर पूछा। हमने मना कर दया. . .पर लड़ कयां
हम छे ड़ने लगीं. . .लड़के हमारे ऊपर हं सने लगे. . .हम बहुत गु सा आया। हम पढ़ नह ं पाये
कूल म. . .हमने ट फन भी नह ं खाया. . .भूखे रहे दनभर।”
िसस कयां फर जार हो गयी।
वह काफ दे र तक रोती रह , मने उसे चुप कराने क कोिशश नह ं है । लगता था अंदर इतना भरा
था अंदर इतना भरा हुआ है क उसे बाहर िनकल ह जाना चा हए।
रोते-रोते उसक हच कयाँ धीरे -धीरे बंद हो गयी।
मने उठकर एक िगलास पानी उसको दे दया। पानी पीने के बाद वह मेर तरफ पीठ करके लेट
गयी और धीरे -धीरे बोलने लगी -”जैसे -जैसे दन बीतते गये िचढ़ाने लगे हम सब से लड़ते थे घर
म म मी ने बताया क हमारा र ता तय हो गया । शाद अभी नह ं होगी, ले कन हम ये नह ं
चाहते थे क कोई शाद -वाद क बात करे . . . पर धीरे - धीरे घर बदल रहा था. . . सामान आ
रहा था. . . घर म पुताई हो रह थी. . . कोई मुझे साफ-साफ नह ं बताता था पर हम इन
तैया रय से हम डर गये . . . हमने खाना छोड़ दया. . . हम से कहा अब तुम शलवार -कमीज
पहना करो, दप
ु टा ओढ़ा करो. . . हमने कूल जाना बंद कर दया . . . हम सबसे लड़ नह ं सकते
है . . . ट चर हम दे खकर मु कुराती थी. . . हम खेलने भी नह ं जाते थे. . . हम भगवान जी से
माँगते थे क हम मर जाये. . . हम मर जाय. . .
बनाई है तो उसे कोई वाइं ट से े टर “हे ड” कर सकता है । मुझम या सुखा़ब के पर लगे ह?”
“तुमने से े टर से बात क ?”
“हां. . .वो कहते ह. . .कैबनेट डसीजन” है . . . हम कुछ नह ं कर सकते।”
“अरे कैबनेट ने तो “पॉिलसी डसीजन” िलया होगा. . .ये तो नह ं कहा होगा क तुम. . .”
“हां. . .इस तरफ के फैसल म नाम कहां होते ह।”
“ फर तु हारा नाम कैसे जुड़ गया इस फैसले म?”
“पहले तो म नह ं समझ पाया था. . .ले कन शूजा के फोन आने के बाद “ लयर” हो गया।”
“ या? शूजा।”
“हां।”
“तुम “ योर” हो. . .मुझे नह ं लगता सरकार म उसक इतनी चलती है ।”
“ये तुम नह ं जानते. . .उसक पहुंच कहां नह ं है ।”
“तो ये फैसला. . .”
मेर बात काटकर वह बोला “कई मह ने से मुझे फोन कर रह थी क कह ं िमलो. . .म टाल रहा
था. . .बराबर टाल रहा था. . .उसे ये आदत नह ं है क कोई उसक बात टाले. . . उसने ह ये
शगूफ़ा . . .
“ले कन यार समझ म नह ं आता?”
“मेर समझ म तो आ गया. . .सुबह उसका फोन आया था. . बड़ खुश थी क म द ली आ रहा
हूं।”
“तुमने या कहा?”
“म या कहता यार. . .ज़ा हर है क. . .तुम जानते ह हो. .”
एक ह े के अंदर-अंदर अहमद को द ली आना पड़ा। उसे साउथ लाक म ऑ फस िमल गया।
उसे एक ऐसी कोठ िमल गयी जो
उसके “रक” के कसी ऑफ सर को िमल ह नह ं सकती।
शाम वाली बैठक आबाद हो गयी ह। इस दौरान कभी अनु आ जाती है तो दे र हम लोग के साथ
बैठा दे खकर गुलशन के ब च को पढ़ाने चली जाती ह। वह जानती है क अहमद उसे पसंद नह ं
करता। अहमद दरअसल साधारण चीज़ , लोग , संबंध , जगह को बहुत नापसंद करता है । मुझसे कई
बार कह चुका क यार कह ं “कुछ” करना है तो अपने टै डड म जाओ. . .ये या तुम अनाड़
टाइप क लौ डय को मुह
ं लगाते हो। म उसे टाल जाता हूं य क कुछ बताने का मतलब पूर
राम कहानी सुनाना होगा जो म नह ं चाहता। और वह सुनेगा भी नह ं।
एक शाम अहमद कुछ दे र से आया। हम मालूम था क आज तक उसका बंगला सजाया जा रहा है
और यह काम शूजा ने अपने हाथ म ले िलया है और आजकल अहमद शूजा के साथ रह रहा है ।
दो “ ं क” लेने के बाद बोला “यार ये शूजा का मामला उलझता जा रहा है ।”
“हम तो समझ रहे थे क सीधा होता जा रहा है ”, शक ल ने दाढ़ खुजाते हुए कहा।
“नह ं यार. . .सच पूछो. . .तो. . .”
“बता यार बात या है ? शम आती है ।”
“नह ं शम क या बात. . .म उसक “ डमा स” पूर नह ं सकता।”
“ या मतलब?”
“यार वो. . .”िन फ़ो” है ।”
“आहो. . .”
“मत पूछो. . .मेरे िलए इस उ म. . . कतना मु कल होगा . . . वह मेरे िलए कुछ “ ांग प स”
ले आई है ।”
“यार ये तुम उसके हाथ म खलौना य बन गये हो।”
“नह ं नह ं ऐसी बात नह ं है ।”
“बात तो ऐसी ह है ”, मने कहा।
“ जंदगीभर इसने औरत को खींचा है और अब इसे एक औरत
“हां म जानता हूं. . .मेरे खलाफ ह. . .बात का बतंगड़ बनायगे. . .कहगे िश ा से “एड टो रयल”
िलखवाता है . . .बहस होगी . . .मी टं ग होगी. . .म यह तो चाहता हूं. . .यह . . .और जो
“ई डय स” “एड टो रयल” िलखते ह उनम और तुमम या फक है? तुम यादा “इं ट िलजट” हो।
वह हं सने लगी।
म उठकर खड़क के पास आ गया। दूर तक अं ेज़ क बनाई हुई द ली फैली है । सुखद है क
यह हर है । इस द ली म पेड़ ह। घास के मैदान है । हमने जो द ली बनाई वह बंजर द ली है ।
यह अं ेज ने नह ं बनाई। हम इसका “ े डट” या “ ड े डट” जाता है । यमुना जैसी सुद
ं र नद को
नाले म बदलने का काम भी अं ेज़ ने नह ं कया है । द ली के मा टर लान से खलवाड़ भी हमीं
ने कया है । शहर के चार तरफ बड़ मा ा म “सलम” भी हमने ह बनाये ह। हमने ह अपने लोग
को बजली और पानी के िलए तरसाया है ।
“ या कर रहे हो उ ताद।”
पीछे मुड़कर दे खा तो नवीन. . .नवीन जोशी।
“आओ बैठो।”
अब उसके चेहरे पर इतमीनान वाला भाव आ गया है । सहजता दखाई दे ती है । पता नह ं या होता
पर कोई न कोई “कैिम ” काम करती है , “ रटायर” आदमी के हाव-भाव, भाव भंिगमाएं, चलने
फरने का तर का, सुनने-सुनाने के अंदाज़ बदल जाते ह। “ रटायर” होने का एक अजीब क म का
असहजबोध चेहरे पर आ जाता है जसका मेरे याल से कोई औिच य नह ं है ।
“कहो या हाल है ?”
“अरे यार, या हाल ह गे. . .हम कौन पूछता है ?”
“मतलब. . .?”
“यार सरयू को फोन करता हूं, वो नह ं उठाता. . .वो तो अपना यार सा ह य क राजनीित म डू ब
चुका है . . . पछले साल नेशनल एवाड िलया, इस साल उसक जूर म आ गया है , अगले साल. . .
“शायद तु हारा नंबर आ जाये।” मने कहा और वह हं सने लगा।
“यार सा जद तु ह तो याद होगा।” वह कुछ ठहरकर बोला।
“हां यारे याद है . . . उस ज़माने म पूर म डली का काम तु हारे बना न चलता था. . .यार हम
सब तो द ली म बाहर से आये थे. . .तुम तो द ली म ह पैदा हुए थे. . .असली द ली वाले तो
तुम थे।”
“म हर मज क दवा हुआ करता था।” वह बोला।
“हां. . .ये तो है ह यार।”
चाय पीते हुए मने पूछा “और बताओ रावत का या हाल है?”
“यार दरअसल म आया ह रावत के बारे म बात करने था।”
“ या बात है ।”
“यार. . .भाभी का फोन आया था क ऑ फस से आठ-नौ बजे से पहले नह ं आते। उसके बाद पीने
बैठ जाते ह। इस बीच थोड़ सी बात भी मज के खलाफ़ हो जाये तो िच लाने लगते ह. . .रात को
सो नह ं पाते. . .उठ-उठकर टहलते ह. . .बड़े तनाव म. . .।”
“तो तुमने रावत से बात क ?”
“लाओ यार. . .ऑ फस का फोन दो।”
मने उसे घूरकर दे खा।
“साले कसी क ज़ंदगी का सवाल है और तुम अपना फोन का बल बचा रहे हो।”
“नह ं यार. . .दरअसल मोबाइल चाज नह ं कया है ।”
हम दोन ने रावत से लंबी बातचीत क । ऑ फस म होने क वजह से वह खुलकर बोल नह ं रहा
था। ले कन इतना तो पता चल रहा था क वह भयानक तनाव म है और कसी दस
ू रे से मदद लेना
अपमान समझता है । जतना हो सकता था हम लोग ने उसे समझाया और िमलने के ो ाम पर
बात ख़ म हो गयी।
- तुम या कर रहे हो? या सोचा है ?”
- यार दे खे नौकर तो बहुत कर ली . . . और फर सेहत भी
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“सलाम भइया!” मजीद ने मुझे सलाम कया। मजीद को दे खते ह बुआ क याद आयी जो जंदगी
पर म लू मं जल म खाना पकाती रह ं और यह मर ं। मजीद को म बचपन से दे ख रहा हूं। अब
उसक जवानी का उतार है ।
“सलाम।”
“कहां बैठगे. . .बाहर डाल द कुरसी मेज़।”
उसने कपड़े वाली फो डं ग कुिसयां बाहर सायबान म लगा द ं और म बैठ गया।
“दे खो सब कमरे खोल दो।”
“सब कमरे ?”
“हां सब कमरे , कोठ रयां. . .बावरचीखाना. . .ह माम सब खोलो. . . खड़ कयाँ भी खोल दे ना. .
.और सफाई तो कर द है न?”
“अतहर भइया ने जैसे बताया. . .आप आ रहे ह तो पूरे घर क सफाई करा द है ।”
“ पछला आंगन. . .”
“वहां बड़ घास थी भइया. . . मजूर लगा के कटा द है . . .अब साफ है ।”
“ऊपर वाला कोठा?”
“साफ है ।”
अ बा और अ मां के करने के बाद जानबूझकर घर म कोई बदलाव नह ं कए गये ह। जो चीज़
जैसी थी वैसी ह है और वह पर है । बैठक म वह पुरानी कपड़े क फो डं ग कुिसयां, बत का सोफा
सेट,
बीच म गोलमेज़ और एक तरफ त का चौका है । द वार पर भी वह ं तुगऱे ह। वह पुराना
कल डर है जो अ बा के इ तकाल के साल लगा था। पुराने ुप फोटो भी वह ं है । एक अ बा के
कािलजवाला ुप है । दस
ू र त वीर उनके कूल का ुप फोटो है । मेर एम.ए. क ड ी भी ेम क
लगी है । ताक म पुराने गुलदान है और कागज़ के नकली फूल ह। अ मा रयां भी पुराने रसाल और
कताब से पट पड़ ह। कुछ हटाया नह ं गया है । अंदर के कमरे म भी चारपाइयां ह, त ह,
नमाज़ क चौक है । मुह
ं हाथ धोने के िलए बड़े -बड़े टोट वाले लोटे ह, िघड़ ची है , घड़े ह,
बावरचीखाना भी वैसा ह है । बस गैस का चू हा ज़ र नया है ले कन चू हा हटाया नह ं गया है ।
बरतन वह पुराने ह। चीनी के बतन अ मा रय म बंद ह। फुंकनी, िचमटा, करछा, तवा सब कुछ
सलामत ह।
म पछले आंगन म आ गया। द वार पर हर काई और जमीन पर नयी कट घास के िनशान
दे खता उस तरफ बढ़ा जस कमरे क छत िगर गयी है । िध नय से पटे इन दो कमर और एक
कोठर क छत क ची है ।
“इनमा लैप डलवा दे व”, मजीद बोला।
“और यहां रहे गा कौन?” मने उससे पूछा।
“आप आके रहो।”
“हां. . .मुझे यह काम बचा है न?” कहने को तो म कह गया पर लगा सच नह ं बोल रहा हूं। फर
य़ाल आया य न इस पछले ह से म एक नये तरह का मकान बनवाया जाये। एक “आधुिनक
मकान। धीरे -धीरे मकान का न शा दमाग म उभरने लगा। ले कन मने उसे एक फटके के साथ
िनकाल फका। एक और मुसीबत खड़ करने से या फायदा।
मजीद को मालूम है क म जब साल बाद यहां आता हूं तो या होता है । उसने शाम होने से पहले
ह बैठक क सार कुिसयां और बत का सोफा झाड़ प छकर बाहर लगा दये ह। मेज़ बीच म रख
द है । मुझसे पैसे लेकर चाय क प ी, दध
ू , चीनी ले आया है ।
शहर छोड़ने के चालीस साल बाद भी अगर यहां लोग मुझसे िमलने और बात करने आते ह तो यह
मेरे िलए गव क नह ं संतोष क बात है क वे मुझे अपने से अब भी, मेरे कुछ न कए जाने के
बावजूद , मुझे अपना शुभिचंतक मानते ह और यह समझते ह क मुझसे जतना हो सकेगा म यहां
के लोग के िलए क ं गा। पुराने दो त के अलावा युवा प कार और छा आ जाते ह ज ह ने मेर
कताब या लेख पढ़े ह। कभी-कभी कोई छोटा-मोटा अिधकार भी आ टपकता है जसे प कार से
लगाव या थोड़ा भय होता है ।
यहां क मु य सम याएँ या है ? गर बी, गर बी और गर बी । य क रोजगार नह ं है । ाचार,
ाचार और ाचार। य क ाचार श शाली लोग करते ह और उन पर कोई उं गली नह ं उठा
सकता। जाितवाद और सा दायवाद- ये दोन हिथयार यहां के नेताओं को िमले हुए ह जससे वे
एकछ रा य करते ह। इन थितय म सामा य आदमी का जीवन नरक बना हुआ है और उसके
सामने कोई रा ता भी नह ं है ।
साधारण लोग इस अमानवीय जीवन को सहे जा रहे ह। कभी-कभी लगता है लोग का क सहने
और ब चे पैदा करने म कोई जवाब नह ं है । शायद संसार के कसी भी दस
ू रे दे श के लोग इतनी
सहजता और ढटाई से गर बी, अ याचार, अपयान, शोषण, हं सा, अराजकता नह ं बदा त कर पायगे
और साथ ह साथ इतने ब चे नह ं पैदा कर पायगे जतना यहां के लोग करते ह। संभवत: इन
दोन म भी र ता है । दोन एक दस
ू रे के पूरक ह।
“मेरे हाथ खून से रं गे हुए ह”, पटनायक ने व क का चौथा पैग खाली करके िगलास मेज़ पर रखते
हुए कहा “म तो आपसे वैसे भी िमलना चाहता था. . .मने आपक कताब “अकाल क राजनीित”
पढ़ है और चाहता था क कभी द ली म आपसे मुलाकात हो।”
म अपने शहर से वापसी के चरण म था। तीन-चार दन म मेरे पास इतने लोग के इतने काम
जमा हो गये थे क कल टर से िमलना ज़ र हो गया था। बताया गया था क िम टर पटनायक
बहुत पढ़े -िलखे और स जन कल टर ह। मने फोन कया था और उ ह ने रात के खाने पर बुला
िलया था।
शहर के बाहर खुले म पतली कोलतार वाली सड़क पर कल टर के वशाल बंगले म घुसते ह मुझे
कुछ नया लगा था। बंगला वह था, अं ेज़ के ज़माने का बनाया हुआ. . . वशाल गोल खंभ वाला
बरामदा. . .सी ढ़यां. . .बड़े -बड़े दरवाजे, पो टको. . .ले कन क पाउ ड म बायीं तरफ सागवान के
वशाल पेड़ गा़यब थे। मने िम टर पटनायक से पहला सवाल यह पूछा था और उ ह ने एक छोट -
सी कहानी सुनाई थी। कतनी अिधक कहािनयां बखर गयी ह हमारे चार तरफ।
िम टर पटनायक ने बताया था क एक कल टर साहब ने कुछ कागज़ और फाइल इस तरह चलाई
क सागवान के उन वशाल पेड़ को काटने क अनुमित िमल गयी। पेड़ नीलाम कए गये जसम
बोली कल टर साहब के ह एक आदमी के नाम छुट और फर. . .कहानी म कई मोड़ थे. . .अंत
यह था क लकड़ कतनी मंहगी बक और कल टर साहब आगरा म जो वशाल इमारत बनवा रहे
थे उसम कस तरह खपकर गायब हो गयी. . .
पटनायक मुझे उन दल
ु भ आई.ए.एस. अिधका रय जैसे लगे थे जनक अंतरा मा “बेशरम” और
इसिलए आज भी जं ा है ।
“हां तो म उससे कह रहा था अली साहब. . .मेरे हाथ ख़ून से रं गे हुए ह. . .सुिनए फ मी कहानी
न लग तो क हएगा. . .म ज़ले का कल टर था। नाम नह ं बताऊंगा. . .फ़क़ भी या पड़ता है ।
अकाल क सूरत पैदा हो गयी। कहा गया क तीन साल से बा रश नह ं हो रह है . . . के म मं ी
भी थे मुझसे कहा क केस तैयार करो, जले को “ ाट ोन ए रयाज़ ो ाम” के तहत राहत दलाना
है । म खुश हो गया। सोचा आ ख़रकार मं ी महोदय को अकल आ गयी है । रात- दन क क ठन
मेहनत के बाद फाइल तैयार हो गयी। मं ी जी अपने साथ ले गये। कई च कर लखनऊ और
द ली के काटे . . .आ खरकार ा ट िमल गयी. . .एक करोड़ से कुछ यादा. . .अब दो हज़ार
लाल काड बांटने थे. . . भा वत लोग को मु त राशन िमलने क योजना के तहत. . . मं ी जी ने
कहा “लाल काड उनके कायकताओं के हवाले कर दये जाय. . .वे बांटेगे? मने थोड़ा ना-नुकुर कया
तो मं ी जी ने साफ-साफ कहा मुझसे िभड़ोगे तो पछताओगे।” उसके बाद लाल काड बाजार म बक
गये। राशन का भुगतान हो गया. . .गांव से अकाल म मरने वाल क खबर आने लगीं ले कन मं ी
महोदय के ताप से कोई अखबार नह ं छाप रहा था. . .लगातार लोग मरते रहे . . .समझे आप.
.इसके अलावा सारे ठे के. . . ांसपोट का काम. . . योजना पर मं ी महोदय क जाित बरादर वाल
का क ज़ा हो गया। रलीफ के काम म जो मज़दरू भत कए गये वे मं ीजी क जाित के थे। काम
करते थे दिलत और उ ह चौथाई पैसा िमलता था. . .इस तरह. . .” पटनायक हांफने लगे। मने
उ ह दलासा दया और कहा क आप एक जगह क बात कर रहे ह. . .मने यह पूरे दे श म दे खा
है ।
कोठ के से ल हाल का फन चर पूर तरह “कालोिनयल टश टाइल” का था। ऊंची छत, ऊपर
रोशनदान और छत से लटकते लंब-े लंबे पंख।े इतने बड़े -बड़े सोफे क एक सोफे पर तीन आदमी बैठ
जाये। तरह-तरह क कुिसयां, कालीन, झाड़ और फानूस. . .ये अ छा था क कसी कल टर के
दमाग म इसे “आधुिनक बनाने का य़ाल नह ं आया था।
पटनायक मुझे कॉच व क पला रहे थे। कट लास के शानदार िगलास म दौर पर दौर चल रहे
थे। मेज़ तरह-तरह सूखे मेव , कबाब और पकौड़े से भर पड़ थी। दो नौकर लगातार गम कबाब
और पकौड़े ला रहे थे।
इस बातचीत के बीच एक दो बार ीमती पटनायक उड़ सा क बेशक मती साड़ म पधार थीं और
यह पूछकर क “ नै स” ठ क बने ह या नह ं चली गयी थीं। उ ह ने ब च के बारे म बताया था
बड़ा लड़का कह ं से “बायो-साइं स” म ड ी कर रहा था। छोट लड़क नैनीताल के कसी कूल म
थी।
“दे खए हमने आज़ाद के बाद या कया है ? जतने प लक
स वस “इं ट यूश स” थे सब चौपट हो गये ह, म. . .यहां के गवनमट इ टर कॉलेज म पढ़ा हूं. .
.आज उसक या हालत है ? यहां का अ पताल चरमरा कर टू ट गया है । नगरपािलका पर गुटबंद
िगरोह क ज़ा कर चुके ह. . .शहर म नाग रक सु वधाओं का अकाल है . . .”, मने उनसे कहा।
“शायद आज़ाद के बाद सबसे बड़े राजनैितक दल कां ेस के शासन संभाल लेने के बाद “िस वल
सोसाइट ” से उनक भूिमका ख म हो गयी. . .आज ाइिसस ये है क दे श के इस ह से म
िस वल सोसाइट नह ं है . . .” वे बोले ।
“इस बारे म ये भी कहना चाहूंगा क “एडिमिन ेशन” का रोल भी बदला या बगड़ा है . . . टश
ढांचा वह ं का वह ं है और उसम चुनाव क राजनीित का घालमेल हो गया है ।” “दे खए हम लोग. .
.तो बेपद के लौटे ह. . .हम तो राजनेता जधर चाह. . .आईमीन वी आर हे पलेस. . .”, पटनायक
बोले।
“ले कन “ए से शन” ह. . .और अगर आप लोग चाह तो “कर शन” के बारे म कुछ कर सकते ह।”
पटनायक ने आंख िसकोड़ और बहुत सफाई से बोले “हम कुछ नह ं कर सकते अली साहब. . .पूरा
िस टम पचास साल म “कर शन” क मशीन बन चुका है . . .पहले भी था. . .ले कन अपने आपको
मतलब “ टे ट” को “ डफ ट” दे ने वाला “कर शन” नह ं था। मतलब अं ेज़ अगर कोई सड़क बनना
चाहते थे तो सड़क बनती थी। कुछ परसट पैसा इधर-उधर होता था. . .आज तो “सड़क” ह नह ं
बनती. . .ये अपने “िस टम को डफ ट” दे ने वाला कर शन है ।”
“सड़क तो बनती ह िम टर पटनायक. . .ले कन द ली म”, मने कहा और पटनायक हं सने लगे।
“हां ये आपने ठ क कहा।”
“दरअसल एक अजीब तरह का “सा ा यवाद” चला रखा है हम लोग ने. . . कसक क मत पर
कौन आगे बढ़ रहा है , यह दे खने क बात है” म बोला।
“ये तो हो ना ह है यार. . .पहले पॉिल ट स के साथ पैसा जुड़ा, यानी करोड़ , खरब आ गये और
जा हर है जहां इतना पैसा होगा वहां “ ाइम” भी होगा ह . . .पैसा और ाइम का तो अटू ट र ता
है ।” अहमद ने कहा।
“ले कन शक ल दूसरे पॉिलट िशय स के मुकाबले काफ लीन माना जाता है ।”
“ये तो उसक खूबी है क ऐसी “इमेज” बना ली है . . .ले कन दे खो इले शन म कतनी बड़ “फौज
काम करती है ? उसका पेट कैसे और कौन भरता है ? उनक ज़ रत कौन पूर करता है . . . .अहमद
बोला।
“ले कन शु करो क बच गया।”
“मोजज़ा हुआ है . . .बचने के चांस तो ज़ीरो थे। तुम सोचो दोन तरफ से गाड़ पर गोिलय क
बौछार हो रह हो और कोई गाड़ के अंदर बच जाये।”
“ले कन ये साला ापर िस यो रट य नह ं लेता था?”
“ओवर का फ डे स. . .और या कहोगे।”
अ पताल म बड़ भीड़ थी। पुिलस भी बड़ तादाद म थी। हम कमाल िमल गया। वह सीधा हम
लेकर आई.सी.यू. म गया था। शक ल को डा टर ने सुला दया। यह बताया क अगर वह दो-तीन
घ टे सो ले तो अ छा है ।
हम कमाल के साथ स कट हाउस आ गये थे जहां शक ल क बीवी और दस
ू रे र तेदार ठहरे हुए थे।
कमाल को म बहुत साल से दे ख रहा हूँ। उसका चेहरा स हो गया था। ह क सी खसखसी दाढ़ ,
भर -भर -सी स फ़ाक आंख और पतले ह ठ ने उसके चेहरे को कठोर और ज़ आदमी का चेह रा
बना दया था। वह सफेद खड़खड़ाता कुता और पायजामा पहने था।
हमले के बारे म जब बातचीत हुई तो वह बोला “अ बा, अपने द ु मन को तरह दे जाते ह. . .यह
वजह है क द ु मन िसर पर चढ़ जाते ह. . .अब म दे खता हूं क इन सबको. . .इनसे तो म ह
िनपटू ं गा.
. .और कसी एक को नह ं छोड़ू ं गा. . .इ ह पता चल जायेगा अ बा पर हमला करने का नतीजा।”
वह चबा-चबाकर बोल रहा था। उसके लहजे म घृणा, हं सा और ताकत भर हुई थी। म उसे दे खकर
डर गया। अहमद का भी शायद यह हाल हुआ था।
हमारे समझाने पर वह बोला था “अं कल आप लोग नह ं जानते. . .ये लोकल पॉली ट स है . . .यहां
जो दबा वह मरा. . .म जानता हूं अ बा पर ये हमला कसने कराया है . . .पूरा शहर जानता है . .
.ले कन बोलेगा कोई कुछ नह ं. . .”
हम लगा कमाल गगवार क तैयार करना चाहता है । वह जानता है क एक दो या दस ह याएं कर
दे ने के बाद भी अपराधी पकड़ा नह ं जा सकता। बमु कल अगर पकड़ भी िलया गया तो बीिसय
साल मुकदमे चलगे। गवाह टू टगे. . .पैसा अपना खेल दखायेगा. . .ये सब होता रहे गा. . .और
द ु मन से छु ट िमल जायेगी। असली बात ये है कौन इस धरती पर बचता है , कौन जंदा रहता है
और कौन मरता है ।
कमाल के आसपास जन लोग को हमने दे खा वे भी अपनी दबंगई और “ िमनल रकाड” के खुद
गवाह लगे। उन लोग के बारे म हम बताया गया क ये लोग शक ल या हाजी शक ल अहमद
अंसार के ब कुल ख़ासमख़ास ह। मुझसे यादा अहमद च कत और परे शान था य क म तो
कसी न कसी प म इन इलाक से जुड़ा रहा हूं ले कन अहमद के िलए ये ब कुल नया था।
हम लोग अगले दन शक ल से िमले। वह पूरे होशो-हवास म था। उसके ज़ बहुत गहरे न थे।
बस एक गोली कमर से िनकाली गयी थी। ले कन शक ल हम बेह द डरा हुआ लगा। बेतरह डरा हुआ
नज़र आया। ये ठ क भी था। जस पर जानलेवा हमला हो चुका हो और बाल-बाल बचा हो उसका
डरना वा जब है ।
जले म शक ल का सबसे बड़ा द ु मन पाटा पहलवान है जसे अब हाजी पाटा कहा जाने लगा है ।
बीस साल पहले यह आदमी शक ल का ख़ासमख़ास हुआ करता था। इसका जग-ज़ा हर धंधे ने पाल
से हशीश क त कर था। इसके अलावा यह मुंबई म “शूटर” भेजने का काम भी करता था। इलाके
के छोटे -मोटे बदमाश के साथ िमलकर पाटा पहलवान ने एक “ ब डर हाउस” भी बनाया था जसका
काम गर ब क ज़मीन या सावजिनक ज़मीन पर क जा करके बेचना हुआ करता था। आज
हाजीपाटा के पास उ. . म सौ करोड़ ज़मीन ह और वह बहुत बड़े ब डर म िगना जाता है । कोई
पांच सात पहले पता नह ं य वह शक ल से अलग हो गया था और िनदलीय उ मीदवार के प म
वधानसभा पहुंच गया था। कयामत हाजी पाटा क तरफ ह इशारा करके कह रहा था क पूरा शहर
यह बात जानता है क शक ल पर कसने हमला कराया है ।
चलते व कमाल ने बड़े फ मी और नाटक य ढं ग से कहा था क उसे हम लोग क दआ
ु और
“ पोट” चा हए। उसने यह भी कहा था क अब शक ल का कोई बाल बांका नह ं कर सकता। इस
तरह उसने यह भी जता दया था क वह अपने अ बा से यादा स म और समथ है ।
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अनु अपनी दा तान का एक छोटा- सा ह सा सुनाकर सो जाया करती थी और म दे र तक जागता
रहता था। पता नह ं य मुझे और उसे साथ-साथ घूमना इतना रास आने लगा था क हम मह ने
म एक बार द ली से बाहर िनकल जाते थे। सड़क कनारे बने ढ़ाब म त दरू पराठा खाते, चाय
पीते. . . टे ट टू र म के होटल म खाना खाते और रात बताते हम आगे बढ़ते जाते और फर
सोमवार क सुबह लौट आते।
नैनीताल के “ यु लािसक होटल” के इस कमरे म जो बड़ खड़क है उससे झील दखाई पड़ती है ।
रात म झील पर चमकती बजली के खंभ क रौशनी और दरू ऊपर पहाड़ पर जाने वाली सड़क पर
जलती रौशिनयां कमरे म आ रह ह। कमरे म इतना अंधेरा है क चीज परछाइय के प म दखाई
पड़ती है । अनु मेरे बराबर लेट है , उसने चादर अपने ऊपर खींच रखी है । कुछ दे र पहले वह बता
चुक है क अब वह वह करती है जो उसे अ छा लगता है , बस, यह भी कह चुक है क वह दस
ू र
का कहा बहुत कर चुक है और हाथ या लगा?
. . .एक साल के बाद वे लोग हम लेने आये। हम सु न पड़ गये थे। हमारे साथ जो हो रहा था हम
पता नह ं चलता था। लगता था यह सब कसी और के साथ हो रहा है . . .हम रोते थे तो लगता
था कसी और के िलए रो रहे ह. . . वदाई के समय. . .म मी बहुत रोयी. . . पापा क आवाज़ भी
भरा गयी। ताईजी ने कहा “अब वह ं तु हारा सब कुछ है ।” वे लोग हम लेकर चले. . .हम प थर
जैसे हो गये. . .समझ म कुछ नह ं आ रहा था। न भूख लग रह थी. . .न यास लग रह थी, न
कुछ दे ख रहे थे, न सुन रहे थे. . .
. . .हम कुछ साफ-साफ याद नह ं. . .कुल दे वता क पूजा हुई थी. . .और हमारे साथ जो आदमी
बैठा था उसे भी हमने नह ं दे खा था। वह हमारा पित था। पूजा के बाद हम पूरा घर दखाया गया.
. .कमरे -कमरे म ले जाया गया. . . फर सब घरवाल , र तेदार को िच हाया गया। हम कुछ याद
नह ं. . .कौन-कौन था। हम पता नह ं चला था। फर हम रसोई म ले जाया गया। हमसे कहा गया
खाना छू दो। हमने खाना छू दया. . .बड़ आवाज आ रह थीं पर कुछ सुनाई नह ं पड़ रहा था. . .
“हम यास लग रह है ”, वह कहते-कहते ठहर गयी। म उठा जग से पानी िगलास म डाला। उसने
बैठकर पानी पया और फर लेट गयी। अंधेरे म थोड़ दे र के िलए उसक आंख चमक ं और फर
गा़यब हो गयीं। आधी रात बीत चुक थी और लगता था िनज व चीज भी सो गयी ह ।
. . .रात म हम एक बड़े कमरे म ले जाकर मसहर पर बैठा दया गया। जब सब चले गये तो हमने
दे खा, कमरे म दो तरफ खड़ कयां थी। खुली हुई अ मा रय म ड बे और शीिशयां रखी थीं। कुछ
अ मा रय म कताब भर हुई थीं। बड़ ताक म भगवान जी ने सामने बजली का छोटा-सा ब क
जल रहा था। द वार पर शीशा लगा था और कंघे, तेल क शीिशयां रखी थी। कमरे का रं ग गहरा
हरा था जो हम अ छा नह ं लगा। दो लोहे क बंद अ मा रयां भी थीं। कोने म दो कुस और एक
छोट मेज़ रखी थी। उसके पास दो मुगदर भी रखे थे। मुगदर हमने जीवन म पहली बार दे खे थे तो
हम पता न था क या है . . .बाहर से लगातार आवाज आ रह थीं. . .सब िमली-जुली आवाज. .
.हम नह ं समझ पा रहे थे क कौन या बोल रहा है . . .हम बैठे-बैठे पता नह ं कब सो गये. .
.पता नह ं कैसे? हम सोना तो ब कुल नह ं चाहते थे ले कन अपने ऊपर ज़ोर ह न चला. . .हम
सो गये. . .हम चीख मारकर जाग गये. . . कसी ने हमार बांह पकड़कर घसीटा था. . .हमने दे खा
एक आदमी हम घसीट रहा है . . .उनके लंबी-सी नाक थी. . .गाल क ह डयां उभर हुई थी। आंख
अंदर को धंसी-सी थी. . .रं ग ब कुल गोरा था. . .दब
ु ला-पतला था हम अपने को छुड़ाने लगे. .
.उसने हम जोर से घसीटा तो हम मसहर से िगर पड़े . . .
“सोने आई है यहां?” उसने कहा। हम उठने लगे। उसने कहा, “बड़े लाट साहब क बेट है न? दे ख
हम सब जानते ह. . .तेरे पताजी जैसे दो-चार सौ तो हमारे अ डर म ह गे जब हम आई.ए.एस हो
जायगे।”
हम कुछ नह ं मालूम था क आई.ए.एस. या होता है पर हमारे पापा को बुरा कहा तो ये हम
अ छा नह ं लगा। हम समझ गये क यह हमारा पित है ।
वह फर हमारा हाथ पकड़कर घसीटने लगा। हम छुड़ाने लगे। उसे गु सा आ गया बोला “ठ क है तू
सो जा. . .दे खे कब तक सोती है । जा उधर सो जा. . .कमरे के कोने म एक दर बछ थी. . .हम
दर पर जाकर बैठ गये वह जूते उतारने लगा।”
“दे ख यहां रहना है तो ढं ग से रहना पड़े गा. . .लाट साहबी नह ं चलेगी. . .हम बड़े टे ढ़े आदमी ह. .
.अ छे -अ छ को ठ क कर दया है . . .अब हमार सेवा करना ह तेरा धम है . . .समझी।”
हम सुनते रहे । वह उठा शीिशय वाली अ मार के पास गया। पता नह ं या- या दवा पीता रहा।
हम बैठे रहे । वह बोला “चल लेट जा वह ं. . . .समझी. . .” हम लेट गये। पता नह ं कब सो गये।
अनु बताये जा रह थी और म सुन रहा था, सोच रहा था, मेर
आंख के सामने अनु नह ं आठवीं-नवीं लास म पढ़ने वाली एक लड़क थी जसे तरह-तरह से
अपमािनत कया जा रहा था। जसका कोई न था. . .ये सब या है ? य है? ये आज़ाद और मु
क शता द है . . .
. . .एक बड़ा कमरा था जसम मेरे पित रामवीर िसंह रहते थे। पीछे एक तरफ गली थी। गली से
अंदर आने के िलए दरवाज़ा था। उसके बराबर बाथ म था। फर एक ट न क छत वाला बरामदा
था जहां सूखी लक ड़यां, फ वे, फावड़ा, र सी और न जाने या- या रखा रहता था। यह ं निमता
अपनी साइ कल खड़ करती थी। निमता हमार ननद थी। वह कामस म एम.ए. कर रह थी।
बड़े कमरे के सामने बरामदा था। फर िमली हुई दो कोठर जैसे कमरे थे। एक म सामान भरा
रहता था, दूसर म निमता और माताजी मतलब हमार सासजी रहते थे। बायीं तरफ आंगन था।
जहां मोटे तार क दो अलगिनयां बंधी थी। आंगन के एक कोने से सी ढ़यां ऊपर जाती थीं। यहां
हमारे जेठ जी डॉ. आर.एन. िसंह और उनक प ी डॉ. तुलसी िसंह रहते थे। इन लोग ने अपने
ह से म गमल म तरह-तरह के पौधे लगा रखे थे। बेल चढ़ाई हुई थी। एक भफूला भी लगा रखा
था। उनके कमरे म डबलबेड, सोफासेट, ट .वी. वगै़रा सब था। जेठ जी यूनीविसट म पढ़ाते थे।
जठानीजी नगरपािलका बािलका महा व ालय म पढ़ाती थी। उनका बेटा रो हत कसी इं लश कूल
म जाता था। ये दोन अपने बेटे से हमेशा अं ेज़ी म बात करते थे।
सबका खाना नीचे ह पकता था। मेरा एक काम यह भी था क म ऊपर जेठजी के यहां खाना
पहुंचाया क ं । म पूरा खाना और बतन ऊपर ले जाती थी। जेठ जी यार से बात करते थे। कभी
कुछ चा हए होता था तो अ छ तरह मांगते थे। जैसे कहते थे “बहू अगर नींबू िमल जाता तो मज़ा
आ जाता।” हम भागते हुए नीचे जाते थे और नींबू ले आते थे। जठानी जी यार से कुछ नह ं
कहती थीं, आडर दे ती थीं, जाके आम क चटनी पीस ला. . .” रो हत हमसे बात नह ं करता था। वह
हमेशा मुंह फुलाये रहता था और नख़रे दखाया करता था।
हम कभी-कभी शाम को जठानी जी के यहां िच हार दे खने चले जाते थे। पहली बार हम गये और
सोफे पर बैठ गये तो उ ह ने इशारा कया क वहां दर पर बैठो। हम बुरा लगा ले कन हम उठे
और दर पर बैठ गये। जेठजी होते तो शायद जठानी जी ऐसा न कहती। जेठ जी के बाल आधे
काले और आधे सफेद थे। उ चालीस के आसपास रह होगी। बहुत अ छे लगते थे। बहुत मीठा
बोलते थे. . .हम प क उ के लोग अ छे लगते ह. . .प क उ के लोग अ छे होते ह। हमारे
ससुर जी के बाल ब कुल सफेद थे। चेह रे पर बहुत सी लक र थीं। हमेशा कुता पजामा और वा कट
पहनते थे। दब
ु ला-पतला शर र था। महराजगंज के ड ी कॉिलज म हं द पढ़ाते थे। रहते वह ं थे।
मह ने म एक बार घर आ जाते थे। जब आते थे तो कुछ न कुछ ज़ र लाते थे। हमसे अ छ तरह
बात करते थे। एक बार हमने उनसे च वत क ग णत क कताब भी मंगवाई थी। दूसर कताब
भी दे ते थे। हमारे पढ़ने का भी यान रखते थे। कहते थे क ाइवेट बी.ए. तक करा दगे। जब वे
घर आते थे तो हम उनके िलए कढ़ ज़ र बनाते थे और उ ह लहसुन क चटनी बहुत पसंद थी. .
.हमारा बड़ा यान रखते थे। एक बार हमारे माथे पर चोट का िनशान दे ख िलया था तो बहुत दुखी
हो गये थे. . .
- चोट? हां, रामवीर ने हम मारा था।. . . पूरे दन म वह सबसे अ छा समय हुआ करता था जब
दोपहर के समय निमता दरवाज़े के बाहर से साइ कल क घंट बजाती थी क दरवाजा खोल दया
जाये। हम कचन म चाहे जो कर रहे ह , उठकर भागते हुए जाते थे और दरवाज़ा खोल दे ते थे।
निमता साइ कल अंदर ले आती थी. . .निमता से हमार प क दो ती थी और है . . .एक दन
हमने निमता से कहा था “हम तु हार साइ कल साफ कर दया कर?”
“हां. . .हां. . .”, वह समझ नह ं पाई थी।
“बस वैसे ह . . .हम अ छा लगता है . . .तुम कॉिलज जाती हो न? हम बहुत अ छा लगता है . .
.हम तु हार साइ कल साफ कर दया करगे. . .दे खना कल से चमकेगी तु हार साइ कल. . .”
हम निमता क साइ कल साफ करने लगे। वह हमारे िलए ग णत
क कताब ले आती थी। कहती थी तु हारा भी अजीब शौक है . . .लड़ कयां उप यास पढ़ती ह,
प काएं पढ़ती ह और तुम ग णत के सवाल हल करती हो।”
हम हं सते थे। भला हम या बता सकते थे क उसम हम य मज़ा आता है . . .रामवीर ने एक
कताब फाड़ डाली थी. . .उसके पैसे दे ने पड़े थे. . . फर निमता डर गयी थी और कताब लाना बंद
कर दया था। रामवीर मुझे निमता से बात करते दे ख लेते थे तो बहुत नाराज़ होते थे। कहते थे
उसके पास न फटका करो. . .कॉ जल-वािलज मुझे पसंद नह ं. . .कॉिलज क लड़ कयां तो. .
.निमता बहुत अ छ थी। मेरे िलए रोती थी. . .चुपचाप मुझे पेन दे दे ती थी। एक छोट -सी डायर
द थी मुझे. . .पर िछपकर. . .म यह सब िछपाकर रखती थी. . .अलमार के कागज़ के नीचे. .
. ब कुल नीचे. . .।
उसक आवाज़ म म होने लगी. . .वा य अधूरे छूटने लगे. . . “पाज़” लंबे होने लगे. . .वह धीरे -
धीरे सो गयी। रौशनी उसके चेहरे पर पड़ रह थी. . .सोते म चेहरे अपने ाकृितक प म आ जाते
ह. . .सब कुछ चेहर पर िसमट आता है . . .दख
ु और सुख क छाया. . .अतीत का दख
ु और
भ व य का भय. . .सब कुछ चेहरे पर नुमाया हो जाता है . . .उसके चेहरे पर शांित थी. . .म उसे
दे खता रहा. . .मेरे िलए उसका जीवन अब भी अ व सनीय था. . .
म धीरे से उठा। उसका हाथ अपने सीने के ऊपर से उठाया। च मा लगाया। आदतवश मोबाइल जेब
म रख िलया और काटे ज के बाहर आ गया। चार तरफ पेड़ का सा ा य था और अंधेरा उनसे
जूझ रहा था। आसमान पर तारे नह ं थे। कुछ मलिगजी-सी रौशनी थी। सामने झील का पानी चांद
हो गया था। घास पर नमी थी और हवा म थोड़ सद . . . अचानक मोबाइल बज उठा।
“म. . .यह ं हूं. . .बाहर. . .कॉटे ज के बाहर. . .”
“अंदर आइये. . .मुझे डर लग रहा है ।”
म अंदर आया। अनु पानी पी रह थी।
----३२----
जी.ट . रोड पर दोन तरफ धन के लहलहाते खेत दे खकर ऐसा लग रहा था जैसे पता नह ं इन खेत
से कतना पुराना र ता है जो ये ऐसी खुशी दे रहे ह। इमारत और आबा दयां आनंद से इस तरह
वभोर नह ं करते जैसा कृित करती है । वजह साफ है क कृित का कृित के ित आकषण है ।
मनु य कृित का एक शाहकार है और कृित क वराटता, सुंदरता और सौ यता म उसे साथकता
िमलती है ।
“तु ह द ली पहुंचने क कोई ज द तो नह ”ं , मने अहमद से कहा।
“म तो द ली पहुंचना ह नह ं चाहता”, अहमद दख
ु ी वर म बोला।
“अरे ऐसा या है ?”
“इतमीनान से बताऊंगा. . .तो तुम या रात म कह ं ठहरना चाहते हो?”
“यार यहां एक बड़ा शानदार मोटे ल है . . . ब कुल धान के खेत के बीच -बीच. . .सोच रहा हूं वहां
चले. . .शाम को बयर पय. . .कुछ अ छे से खाने का आडर कर. . .और रात म जम के सोय. .
.सुबह-सुबह यानी ै फक से पहले द ली पहुंच जाय।”
“आइ डया तो बुरा नह ं है । म ज़रा फोन कए दे ता हूं”, उसने मोबाइल िनकाला। वह शूजा को फोन
करके अपना ो ाम बताने लगा। बातचीत म मुझे अंदाज़ा हुआ क वह काफ उकताया हुआ है ।
चाहता है बात ज द से ज द ख़ म हो जाये ले कन उधर से सवाल पर सवाल हो रहे थे।
“तुम कहो तो सा जद से तु हार बता करा दं ”ू , वह िचढ़कर बोला।
समझने म दे र नह ं लगी क शूजा यह समझ रह है क अहमद कसी लड़क के साथ रात बताना
चाहता है ।
“ठ क है . . .तो कल सुबह आठ बजे तक।”
फोन बंद करके वह बाहर दे खने लगा।
“तु हारे ऊपर िनगाह रखी जाती है ?”
“हां यार. . .बड़ श क है शूजा।”
“और तुम बड़े मायूस हो. . .”, मने कहा और वह हं सने लगा।
“उसे यार रौशन वाली बात पता लग गयी है ।”
“रौशन. . .याद नह ं यूनीविसट म. . .”
“अ छा. . .अ छा जससे तु हारा बड़ा जबरद त इ क चला था और फर उसक शाद कसी
ड लोमैट के साथ हो गयी थी. . .”
“हां वह ।”
“तो या हुआ. . .यार ब कुल अचानक इतने साल बाद पछले मह ने वह “मौया शैरेटन” म िमल
गयी. . .”
“आहो।”
“कुछ दन के िलए द ली आयी हुई थी. . .उसके ह बे ड को मा को म जाकर चाज लेना था. . .”
“आजकल तो “ए बेसडर” होगा।”
“हां है ।”
“तो या हुआ।”
“यार दे खते ह िलपट गयी और रोने लगी. . .बुर तरह रोने लगी।”
“अ छा. . . फर. . .?”
“हम काफ शॉप आये. . .वह लगातार मेरे हाथ पकड़े थी बात कए जा रह थी. . .दो बार हमार
कॉफ ठ ड हो गयी. . .उसने सब बताया क कैसे उसे मजबूर कया गया क वह शाद कर ले. .
.यह भी बताया क वह मुझे अपना सब कुछ मान चुक थी. . .उसक जंदगी
म कसी और आदमी के िलए कोई जगह नह ं थी. . .ले कन शाद हो गयी. . .ब चे हो गये. .
.ले कन वह मुझे ह अपना सब कुछ मानती रह . . .”
“काफ रोमा टक. . .”
“सुनो यार. . .तुम सबको अपने च मे से य दे खते हो?” वह झ लाकर बोला।
“सॉर . . .बताओ।”
“रौशन ने कहा क म रात उसके कमरे आऊं. . .वह उस र ते को मुक मल करना चाहती है जसे
उसने जंदगी भर माना है . . .और आज भी मान रह है . . .म तैयार हो गया. . .अब सवाल ये था
क शूजा को या बताऊंगा. . .वह साथ रहती है . . .नह ं भी रहती तो मेरे हर ल हे क खबर
रखती है . . .उन लोग से बहाना बनाना बड़ा मु कल होता है जो आपको बहुत अ छ तरह जानते
ह. . .ख़ैर मने बहाना ये बनाया क लखनऊ से ज़माने का कोई बहुत पुराना और अज़ीज़ दो त
यूयॉक से आ रहा है और म उसे लेने एयरपोट जा रहा हूं।”
“झूठ तो बड़ा “सॉिलड” बोला”। मने कहा।
“नह ं यार. . .तुम शूजा को नह ं जानते. . .उसने इं टरनेशनल एयरपोट फोन करके पता लगा िलया
क यूयॉक से कोई “लाइट दो बजे रात को नह ं. . .मुझे मोबाइल पर फोन कया। म रौशन के
साथ कमरे म था और मोबाइल ऑफ था। शूजा लगातार फोन करती रह । रातभर फोन कए और
मोबाइल बंद रहा।”
“ फर या हुआ।”
“उसने पुिलस को मेर गाड़ का नंबर दे दया. . .पता चल गया क मौया शेरेटन क पा कग म
गाड़ खड़ है ।”
“अरे बाप रे बाप. . .इतनी धाकड़ है ।”
“सुबह जब घर पहुंचा था वहां शूजा मौजूद थी. . .मुझसे पूछने लगी. . .यार मने सब कुछ सच-
सच बता दया. . . या करता।”
“हां, ये सह कया।”
“ये भी कहा क ये एक ब कुल “ पेशल केस” था. . .ऐसा
नह ं है क अ याशी कर रहा था।”
“ फर?”
“ फर या. . .अभी जब मने कहा क कल सुबह आऊंगा तो शक करने लगी. . .तब ह मने कहा
क सा जद से बात करा दं ?ू ”
“यार ये बताओ. . .ये बैठे बठाये शूजा तु हार अ मां कैसे बन गयी?”
“म भी यह सोचता हूं. . .और यार अब उससे पीछा छुड़ाना ह पड़े गा।”
“हां तुम उ ताद आदमी हो कर लोगे।”
वह हं सने लगा।
“रौशन का या हुआ?”
“वह अगले दन चली गयी. . .मा को म होगी।”
“ या कह रह थी।”
“यार ये औरत भी अजीब होती ह।”
“ य ?”
“कह रह थी. . .अब तुम चाहे िमलो या न िमलो. . .मुझे कोई अफसोस नह ं होगा. . .म चाहती
थी क उस आदमी के साथ पूरे र ते बन जससे और िसफ जससे मने यार कया है . . .तो
र ता बन गया है . . .मुझे न तो शम है , न अफसोस है . . .काश म ये पूर दिु नया को बता
सकती।”
“हां मामला तो अजीब है ।”
“दो ब चे ह उसके। लड़क लंदन कूल ऑफ इकोनािम स म है . . .लड़का ऑ सफोड म है ।”
“तुम उससे फर िमलना चाहते हो?”
“कह नह ं सकता यार”, अहमद बोला।
एक बयर पी लेने के बाद अहमद अपनी गाँठ खोलने लगा। उसने बताया क शूजा ने पूर तरह
उस पर अपना क जा जमा रखा है । उसका पूरा ो ाम शूजा तय करती है । ह ते के हर दन का
ो ाम पहले से बना रहता है । बस उसी पर अमल करना पड़ता है । जैसे इतवार के दन सुबह
----३३----
“ऐ स” क पा कग म गाड़ खड़ करके हम दोन ाइवेट वाड क तरफ भागे थे। नवीन क सांस
फूलने लगी थी। मुझे एहसास हुआ तो मने र तार धीमी कर द । हम दोन खामोश थे। कुछ बोलना
कतना दख
ु दायी होगा इसक क पना भी नह ं कर सकते थे।
वाड के बाहर सरयू िमल गया। वह गैलर के एक कोने म गुमसुम खड़ा था। हम दे खकर आगे
आया।
“ या हाल है ?”
“वह हाल है . . .रात म दो बजे भत करया था. . .डॉ टर पूर कोिशश म लगे ह. . .”
हम अंदर आ गये। सामने बेड पर रावत लेटा था। उसक आंख बंद थी। चेहरा लाल था। सांस बहुत
तेज़ी से आ जा रह थी। सीना ध कनी क तरह चल रहा था। कुछ निलयां उसक नाक म लगी थीं।
पास उसक प ी बैठ थी। वह जड़ लग रह थी। मुझे रावत क बात याद आ गयी थी। उसने कहा
था क मेरा कोई नह ं है । न भाई, न चाचा, न मामा. . .म अकेला हूं. . . ब कुल अकेला।
रावत बेहोश है पर उसे दे खना मु कल है । इतनी तेज़, तकलीफ दे ह, और भर सांस ले रहा है क
मन िसहर उठता है ।
“िचंता मत करो भाभी जी. . .सब ठ क हो जायेगा।” नवीन ने रावत क प ी से कहा।
वह कुछ नह ं बोली। कुछ ल ह के िलए हमार तरफ दे खा और फर शू य म घूरने लगी।
मेरे पास एक बजे के कर ब भाभी का फोन आया था. . .म गाड़ लेकर कोई बीस िमनट म पहुंच
गया हूंगा। उस व हालत यादा खराब
थी और लग रहा था पता नह ं कब सांस का यह दबाव . . .यहां इमरजसी म ले गये. . .वह मज.
. .हाई लड ेशर. . .डॉ टर ने लड ेशर िलया तो? ? ? .िनकला तब से टमट चल रहा है . . .पर
अभी तक. . कोई सुधर. . .
तीन खामोश हो गये। अब रावत क आलोचना करने से भी कोई फायदा न था। अब या कहा जा
सकता है क ऐसा कर िलया होता तो ये न होता. . .ये हो जाता तो “वो” न होता ले कन बात
करने के कुछ तो चा हए ह होता है ।
“यार म तो शु से ह कह रहा था क सरकार नौकर इसके बस क बात नह ं।” नवीन ने कहा।
कोई कुछ नह ं बोला।
“भाभी से कहो घर चली जाय. . .हम लोग यहां ह।” मने कहा।
“म दस बार कह चुका हूं. . .नह ं जा रह ह. . न कुछ खा रह ह, न पी रह ह. . .म तो यार. . .”
सरयू ने कहा।
“ऐसा कैसे चलेगा?”
“तुम समझाकर दे खो।”
भाभी से कहा तो लगा क वे सुन ह नह ं रह ह वे ऐसी थित म पहुंच गयी थीं जहां आदमी
जी वत तो होता है पर सारे से स ख़ म हो जाते ह।
कई बार कहने पर से बोली -”नह ं. . .”
कतने हज़ार साल बाद एक घुमंतू कबीले से एक लड़का िनकलकर बाहर आता है . . .अपने आपम
कमाल क बात है . . . चम कार है . . . य क हम जानते ह क हमारा समाज कतना
यथा थितवाद है . . . जो जहां है , वहां रहे . . .आगे बढ़ना, पीछे हटना अपराध है . . .और. . .
हम गैलर म खड़े थे। भाभी जी ने ना ता करने से भी इं कार कर दया था। पता नह ं उनके मन म
कतना भय था।
नवीन मेर बात काटकर बोला, “मुझे तो लगता है यार सं कार।”
सरयू ने उसे घूरकर दे खा “कैसे सं कार. . .ये तू या उ ट सीधी बात करने लगा है बुढ़ापे म।”
“यार, पूर बात तो सुन लो।”
“सुनाओ।”
“रावत के म यवग य सं कार नह ं थे।”
“अरे भाई जब वह था ह नह ं म यवग का तो सं कार कैसे हो जायगे?”
“दे खो स चाई यह है क उनके ऑ फस के “पावरफुल लोग ” ने उसे सीधा जानकर उस पर िनशाना
साध है । वे नह ं चाहते क कोई “अ य” ऊंचे पद पर पहुंचे. . .”
“यार ये हर जगह तो नह ं होता।” नवीन बोला।
“ये कौन कहता है , हर जगह होता है ।”
रावत पचपन घ टे मौत से जूझता रहा। अगले दन सुबह चार बजे उसक हात बगड़ने लगी और
वह ख़ म हो गया।
उसक अथ पर मं ालय क ओर से फूल का बुके आया था। उ च अिधकार शमशान घाट म
मौजूद थे।
भे ड़य से संघष करते हुए एक बहादरु क मृ यु हो गयी थी।
रावत के न रहने ने हम हला दया था। यह वैसी मौत नह ं थी जो आसानी से भुलाई जा सकती
हो। मने लंदन फोन करके नूर को बताया था। ह रा को बताया था। मुझे याद है क नूर कहा करती
थी रावत म कुछ मौिलक है जो उसे दस
ू रे लोग से अलग करता है । भावनाओं क वह ताज़गी जो
रावत म है , कम ह दखाई पड़ती है ।
हम लोग मं ी महोदय से िमले थे। शक ल से फोन भी कराया था। मं ी महोदय ने तुरंत आदे श
दया था क रावत क वधवा को यो यता के अनुसार कोई उिचत पद दया जाये तथा जस
सरकार मकान म प रवार रहता है , उससे ने िलया जाये।
िमटे नािमय के िनशां कैसे कैसे
ज़मीं खा गयी आ मां कैसे कैसे
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पुराने दो त पु तैनी मकान जैसे होते ह। उनके कोने खतरे तक दे खे हुए होते ह। अलग-अलग
मौसम म मकान कैसा लगता है ? कौन-सी छत बरसात म टपकती है । कस तरफ जाड़ म धूप
आती है । जब पुरवा हवा चलती है तो कौन-सी खड़क खोलना चा हए। कस छत क कौन-सी
िध नयां बदली जायगी।
काफ हाउस वाली म डली िसमटते-िसमटते सरयू और नवीन क श म मेरे पास बची है । सरयू
उन बहुत कम लोग म ह जो जानते ह क तीस साल पहले म कहािनयां िलखा करता था।
तो पछले तीस-पतीस साल के गवाह से िमलना हमेशा अ छा रहता है य क श द क बचत
होती है । आप एक वा य बोलते ह और वे पूरा पैरा ाफ समझ लेते ह। आप एक श द बोलते ह तो
वे उससे वह अथ हण करते ह जो आप चाहते ह। उनके साथ आपको सतक रहने क भी ज़ रत
नह ं पड़ती य क वे आपको अंदर से बाहर तक जानते ह। यानी दाई से पेट नह ं िछपाया जा
सकता. . .और फर पुराने दो त से मुलाकात अपने आपसे मुलाकात का एक बहाना होती है ।
इसम अपनी अनगूंजे भी सुनाई दे ती ह।
हालां क रात यादा हो चुक थी ले कन हम अभी ये मानने के िलए तैयार नह ं थे। गुलशन खाना-
वाना मेज पर लगाकर जा चुका था। हो सकता है सो गया हो. . .हम दोन खाने क मेज़ से कुछ
उठा-उठाकर खा रहे थे, पी रहे थे और बातचीत कर रहे थे।
कमरे म रौशनी कम थी और दो कोने म जलते लै प के अलावा कोई ब ब नह ं जल रहा था
जसक वजह से कमरा बदला हुआ ओर चीज अजीब तरह क लग रह थीं। उनके आकार बदल
गये थे ये वह हो गये थे जो होने चा हए थे।
“तु ह सच बताऊं. . .म तो आज भी उसी उधेड़-बुन म लगा हूं. . .”, म बोला।
“कैसी उधेड़-बुन?”
“यार, तु ह याद होगा हम लोग जब जवान थे तो कुछ करना चाहते थे. . .कुछ ऐसा जो दे श को
बदल दे . . .लोग का बदल दे ।”
आजकल भी कहता है यार छोटे - मोटे पैसे से काम नह ं चलेगा. . . मोट रकम होनी चा हए. . . ।
नवीन आजकल पुराने दो त या जानकार के अवसरवार क भी बहुत चचा करता है - ये सब साले
कैसे ऊपर आये ह मुझे पता है । जोड़ तोड़ कए है . . . यार हमारे दो त ने तो मज़दरू आ दोलन
से व ासघात करके मैनेजमे ट का साथ दया है । एवाड पाने के िलए पापड़ बेले है . . . मन सब
जानता हूँ ।
खैर इसम तो शक नह ं क ह यारा युग हताशा, पराजय और िनराशा का युग है ।
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तूफानी बा रश थी और शीशे क बड़ खड़ कय पर मूसलाधार बा रश का पानी पूरे वेग के साथ
टकरा रहा था। छ ंटे उड़ रहे थे और पानी का गुबारा-सा उठ रहा था। बार-बार चमकती बजली और
बादल गरजने क आवाज़ के साथ पानी क बौछार का रं ग बदल जाता था। बाहर बड़ िनयान
लाइट क रौशनी बजली क चमक म फ क पड़ जाती थी और पानी का रं ग लाल हो जाता था।
हवा के थपेड़ से बाहर के पेड़ जूझ रहे थे और इतने टे ढ़े हो जाते थे क टू टने का डर पैदा हो जाता
था।
कमरे के अंदर का अंधेरा बजली क चमक म खल जाता था। हम दोन खामोश थे। अनु बोलते
बोलते थक गयी थी। उसने चादर खींच ली थी और सीधे छत क तरफ दे ख रह थी।
“तुम कुछ कह रह थीं?”
मने उसे याद दलाया और लगा वह घटनाओं के तार को जोड़ने क कोिशश कर रह है ।
. . .सब हमारे खलाफ हो गये थे। पापा और म मी तो कहते थे हमार सूरत नह ं दे खगे. . .ताऊजी
कहते थे म उसे मार डालूंगा अगर उसने तलाक लेने क बात मुंह से िनकाली। म सोचती थी इससे
अ छा या हो सकता है क ताऊजी मुझे मार डाले. . . जंदा रहने का कोई अथ भी नह ं था।
मामाजी, दरू -नजद क के र तेदार सब फोन करते थे। िच ठयां िलखते थे। म सोचती थी क ये
लोग उस समय कहां थे जब वह मुझे खड़ाऊ से पीटता था। मेरे बाल पकड़कर पूरे घर म घसीटता
था. . .मुझे िचमटे से जलाता था. . .तब ये कहां थे? . . .और वह सब
----३६----
“ज़रा सोचो क उस हमले म म अगर मर गया होता तो या होता?” शक ल ने बेचारगी से कहा।
“ या होता”, अहमद ने पूछा।
“हाजी पाटा. . .मेरा सबसे बड़ा द ु मन जेल चला जाता. . .उसके खलाफ़ अब भी नामज़द रपट
िलखाई गयी है . . .वह जमानत पर छूटा हुआ है. . .ले कन म अगर क ल हो जाता तो प लक का
इतना दबाव होता क शायद उसे ज़मानत भी न िमलती. . .और आने वाले इले शन म उसे वोट
न िमलते. . .और म अगर मार दया जाता तो मेरा टकट. . .” उसका गला सूखने लगा. . .उसने
एक िगलास पानी पया. . .उसक आंख म एक भयानक सूनापन और स नाटा था जो हमने पहले
नह ं दे खा था।
हम दोन दम साधे उसे दे ख रहे थे। वह जो कुछ कहने जा रहा था उसका अंदाज़ा हम हो गया था
और वह बात इतनी भयानक थी क उसे सोचते हुए डर लग रहा था।
कुछ दे र ह मत जुटाने के बाद वह बोला “मेरा टकट कमाल को िमलता।” ये कहकर वह बेदम-सा
हो गया और कुस पर पीठ से टककर हांफने लगा। चेहरे पर पसीने क बूद
ं उभर आयीं।
“ओ माई गॉड. . .”, अहमद क आंख फट गयी।
मने शक ल क तरफ दे खा। उतरा हुआ चेहरा। ऐसे आदमी का चेहरा जो सब कुछ हार गया हो. .
.एक भयानक पराजय।
“मने उसे या नह ं दया?” तुम दोन जानते हो. . .अ छे से अ छे कूल म एडमीशन कराया. .
.कभी स ती नह ं क . . .कभी पैस
के िलए तरसाया नह .ं . . टू डट यूिनयन का इले शन लड़ने के िलए पांच लाख दये. . .गाड़ ? अभी
पछले साल नयी गाड़ खर द कर द है . . .और ये सब जानते ह क मेरा पॉिल टकल जानशीन
वह है . . .उसक को ये सब िमलेगा. . .।
“आई.बी. क रपोट तुमने दे खी है ?” मने पूछा।
“पूर “इ वायर ” ह कवा द है मने. . .म उसे प लक नह ं करना चाहता. . .इसम मेरा हर तरह
से नुकसान है ”, वह बोला।
“अब या सूरतेहाल है ?”
“एक अजीब माहौल बनाया जा रहा है . . .उस हमले के बाद ये कहा जा रहा है क म अब
राजनीित से स यास ले लूं. . .मेर सेहत इस का बल नह ं है क “ए टव पॉली ट स” म रहूं. . .ये
भी क मेर जान को खतरा है . . .अब मुझे प लक म उतना नह ं जाना चा हए जतना जाया
करता था. . .”
“ये कौन कह रहा है ?”
“कोई कह नह ं रहा. . .बस ये सब हवा म लटकता और भूलता रहता है . . .बीवी क तो प क राय
है क म कोई ख़तरा न उठाऊं, र तेदार भी यह कहते ह।”
“कमाल या कहता है ?” अहमद ने पूछा।
“वो कुछ नह ं कहता. . .म जो कहता हूं. . .वह करता है . .वह मानता है ।”
“अगले साल इलै शन कनटे ट करोगे?”
“हां म तो करना चाहता हूं. . .चौथी बार पािलयामट म जाऊंगा, ये कम इ जत क बात नह ं है ।”
“तु हार “से यु रट ” बढ़ाई गयी।”
“हां. . .कुछ तो हुआ है . . .ले कन मेरे अपने आदमी भी. .”
“तु हारे आदमी या कमाल के आदमी?” अहमद ने पूछा।
शक ल के चेहरे का रं ग उड़ गया। मुझे लगा अहमद ने यह ग त सवाल पूछा है . . .
ऐजे सी है . . .तो ीमती जी ने चावला से बात करके पांच करोड़ का काम उसे दला दया. . .यार
पांच करोड़ कम से कम दो-ढाई का मार जन था. . .”
“ये य कया तु हार प ी ने?”
“अब म या कह सकता हूं।”
“कह तो तु ह ं सकते हो. . .ये बात दस
ू र है क शायद न कहना चाहो।”
“बात ये है क उसके खच बढ़ गये ह. . .हर व पैसा मांगती रहती थी. . .म हसाब से दे खा था.
. .चावला ने गं डा पकड़ा दया होगा।”
“अब सुनने म आ रहा है क मं ालय का पूरा काम चावला को ह िमलेगा।”
“ले कन सबसे खतरनाक बात तो यह है क उसने वक ल से नो टस भेज द है क कंपनी और
दूसर ापट म जो उसका शेयर है उसका हसाब दया जाये?”
“ये तो सीरियस बात है ।”
“बहु त सी रयस यार. . .और मं ी राजाराम चौधर ने उसे गृहमं ी से िमला दया है . . .बलवंत राव
ठाकुर. . .अब बताओ पुिलस उसक बात मानेगी या मेर ।”
म िनगम को दे खने लगा। उसक प ी मं म डल क प र मा कर रह है।
“अब बताओ यार. . . ेस इसम मेर मदद कर सकता है ?”
“ ेस या करे गा. . .कुछ नह ं. . . यादा से यादा कै डल बना दे गा।”
“उससे तो और नुकसान होगा. . . फर या कर।”
“तुम नैनीताल चले जाओ. . .वहां से ब च को ले आओ, वह ं तु ह मु दला सकते ह।”
उसक आंख खुशी से फटती-सी लगी।
जैसे-जैसे इले शन नजद क आने लगे वैस-े वैसे शक ल पर ये दबाव बढ़ने लगा क वह इस बार
इलै शन न लड़े य क उस पर जानलेव ा हमला हो चुका है , उसक जान खतरे म है और उसक
तबीयत भी खराब रहती है । पचपन साल तो “पाली टिशयन” के जवानी का दौर होता है । शक ल ये
नह ं चाहता था क इतनी ज द वह राजनीित से स यास ले ले। उसे यक़ न था क इस बार उसक
पाट क सरकार बनेगी और सीिनयरट के हसाब से वह गृह या वदे श मं ालय पर “ लेम” कर
सकता है ।
कमाल अपने वािलद से कुछ खुलकर तो नह ं कहता था य क जानता था क उसका असर उ टा
हो सकता है । वह इलाके के बड़े बूढ़ , म जद के बुजुग इमाम , खानदान के बुजुग से यह बात
शक ल तक पहुंचवाता रहता था। उसने अपनी अ मां को पूर तरह क वंस कर िलया था।
शक ल हम लोग से यह सब “ डसकस” करता था। उसे लगता था क इस अफवाह का असर उसके
इलै शन पर भी पड़ सकता है । इसिलए जतनी ज द हो यह साफ कर दया जाना चा हए वह
स यास नह ं रहा है ।
एक दन अचानक कमाल का फोन आया और उसने कहा क िमलना चाहता है । ये ब कुल साफ
था क य िमलना चाहता है ।
शाम को वह आया और इधर-उधर क बात के बाद असली मु े पर आ गया बोला “दरअसल
हालात कतने खराब हो गये ह, यह म बताना चाहता हूं. . .फैसला तो अ बा को ह करना है ।”
“ या है हालात?”
“हाजीपाटा. . .नेपाल से त कर कया करता था. . .असली धंधा “ स” का ह था. . . अ बा पर
हमला होने के बाद वो न िसफ िगर तार हुआ ब क बी.एस.एफ. वाल ने उस पर इतनी स ी
शु कर द है क उसका धंध ह बंद हो गया है ।”
“तो फर?”
“हाजीपाटा के िलं स मुंबई और दब
ु ई के अ डरव ड से ह. .
----३७----
“अपने हाथी के मुंह ग ने खाना, यह मुहावरा सुना है ।” मने सामने खड़ एन.जी.ओ. म हला से
पूछा?
वह अपनी सुंदर पलक झपकाने लगी और यह दशाया क पता नह ं म या पूछ रहा हूं।
सफेद संगेमरमर के वशाल सात िसतारा होटल के पीछे बड़े वीिमंग पूल के कनारे पाट हो रह
है । लंबी-चौड़ खड़ कय के पीछे ब वेट हाल के झाड़-फानूस क सुनहर रौशनी वीिमंग पूल के
नीले पानी म थरथरा जाती है । घास दिू धया रोशन म नहाई है और पौधे के अंदर िछपे ब ब
जुगनुओं जैसे दप-दप कर रहे ह।
यहां राजधानी के सव े वे लोग ह जो दे श को चलाते ह। राजनीित को कोयला पानी दे ते ह।
समथन और वरोध को संचािलत करते ह। वकास और वनाश को अपने प म इ तेमाल करना
जानते ह। संचार मा यम के मािलक ह। उ ोग, यापार और वा ण य के सरताज ह। इनक ग यां,
इनके िसंहासन, इनके तबे प के ह। चाहे कोई सरकार आये या कोई जाये, इन पर र ी बराबर फ़क़
नह ं पड़ता। ये अपना काम कराना जानते ह। सरकार , उ चािधका रय के दल तक पहुंचने के चोर
दरवाज़े ये बनाते ह। इनके पंख इतने बड़े ह जनम राजनीित और अथ यव था के अलावा सा ह य,
कला, सं कृित, मनोरं जन सब कुछ समा गया है।
“आप या पूछ रहे ह?” म हला ने पूछा।
“म आपसे कह रहा था. . .हमार डे मो े सी हाथी के मुंह ग ने खाने वाले मुहावरे से यादा समझ
म आती है ।”
“वो कैसे?”
“हम पूर छूट और अिधकार है क हम ग ना खाये। ले कन ग ने का दस
ू रा िसरा हाथी क सूंड म
है । हाथी के पास हमसे यादा ताकत है । ग ना उसक तरफ जा रहा है । हम ग ने के साथ-साथ
हाथी के मुंह क तरफ बढ़ रहे ह। घबराकर हम ग ना छोड़ दगे। ग ना हाथी के मुंह म चला
जायेगा।”
मने महसूस कया क म हला मेरे या यान के ऊब रह है इधर-उधर दे ख रह है । ये पा टयाँ संबंध
बनाने के सुनहरे अवसर दान करती है । वह माफ मांगकर एक ओर चली गयी। मने िगलास म
बची व क गले म डाल ली और कसी प रिचत क तलाश म एक तरफ बढ़ने लगा।
एक कोने म अहमद अकेला बैठा दखाई दया यह है रत के बात थी अहमद जैसा सोशल, तेज़ तरार
और जनस पक बनाने तथा उ ह हमेशा ताज़ी हवा दे ने वाला इस “हाई ोफाइल” पाट म अकेला
बैठा है ।
“अरे यार तुम यहां अकेले”, मने कहा।
“आओ बैठो।”
“कहो इतने उदास य लग रहे हो।”
“कुछ नह ं यार. . .शूजा से झगड़ा हो गया।”
“ कस बात पर?”
“वह पुरानी बात।”
“ या?”
“शाद ”
“शाद पर ज़ोर डाल रह है।”
“बहु त यादा. . .कल तो इतनी कहा-सुनी हो गयी क अपने घर चली गयी”, वह बोला।
“पाट म आई है ?”
“हां उधर है ।”
“साथ आये हो?”
“नह ं. . .म अकेला आया हूं।”
----३८----
स नाटे को अनु तोड़ती रहती है ले कन सेाचता हूं या यह काफ है ? या इससे म अपने को पूर
तरह खुश और संतु महसूस करता हूं? जवाब साफ आता है , नह ं. . .नह ं. . .नह ं. . .मतलब यह है
क तलाश करते रहना है ।
सीधी बात यह है क यहां मेरे चार तरफ जो जंदगी बखर हुई है वह दे श म रहने वाले लोग क
ज़ दगी नह ं है । अगर मुझे दे श के लोग के साथ जुड़ कर कुछ करना है या यह समझना है क
या कया जा सकता है तो इस “बनावट ” जीवन से अलग होना पड़े गा। सीधा-सा मतलब है द ली
छोड़नी पड़े गी. . .तीस साल पहले बाबा ने मुझसे यह कहा था। मने द ली छोड़ द थी ले कन
लौटकर फर द ली आ गया य क अपने गांव या शहर म जम न सका. . .अब या फर वह
कहानी दोहराई जायेगी? तीस साल पहले तो आसान था। म जवान था। अब? या होगा? या म
द ली को छोड़कर कह ं और रह सकता हूं? म य दे श के कसी ज़ले म? बहार के कसी अंचल
म? राज थान के कसी गांव म? हमाचल क कसी घाट म?
यहां एक साफ श फ़ाक़ जंदगी है । अ छ खासी बड़ कोठ । कार, नौकर , सामा जक स मान, तबा.
.. वदे श या ाएं. .. ऊंची कमे टय क सद यता. . .स ा के सबसे बड़े द र तक पहुंच. . .मान-
स मान पैसा और साथ-साथ अनु। शाम क पा टयां ह। “वीक ए ड” पर हमाचल था राज थान क
“ प” ह। सब कुछ जमा जमाया है । सब प का है । गिमय म योरोप क या ाएं ह। म लू मं ज़ल
म म कतना अकेला हो जाऊंगा?. ..इसिलए अपने पागलपन से छु ट पा जाओ और आराम से
बैठो। पचास पार कर चुके हो और तुमम “ र क” लेने या खतरे उठाने क आदत नह ं है । अपनी
जंदगी म रम चुके हो. . .कहां जाओगे? मान लो गये और फर वापस आ गये तो?
इसका मतलब तो ये है क जो जंदगी भर सोचता आया हूं वह ग त था और उसे म नह ं कर
सकता। मेरे दल म हमेशा यह कसक रहे गी क अपने छोटे से सपने को भी पूरा नह ं कर सका।
या इसी कसक के साथ म ं गा?. . .नह ं ये नह ं होना चा हए। दरअसल अब मेरे पास खोने के िलए
या है ? मने पद, ित ा, स मान और धन को कभी मह व नह ं दया. . .अब अगर उसे कनारे लगा
दे ता हूं तो या बुरा होगा? उसे कनारे लगाकर म लू मं ज़ल, अपने शहर चला जाता हूं तो या
नुकसान होगा? मेरे यहां रहने से या न रहने से या फ़क़ पड़े गा ले कन मेरे यहां से चले जाने और
अपने शहर म रहने से शायद कोई रा ता िनकलेगा. . .या रा ता िनकालने क कोिशश म लगा
रहूंगा. . .न िनकलेगा तो न िनकले. . .कम से कम अपनी िनगाह म िगरने से तो बच जाऊंगा। म
यह जानता हूं क मेरे दो त अहमद और शक ल मेर इस बात से सौ फ सद असहमत ह गे।
अहमद सब हं सेगा और मज़ाक उड़ायेगा. . .शक ल द ली के मह व और उपयोिगता क चचा
करे गा। उन दोन क दिु नया अलग है और मेर अलग है । शायद म दल म यह उ मीद पाले हुए हूं
क वह मेरा साथ दे गी ले कन कैसे? कस तरह? कस प म? ये सब आसान नह ं लगता।
“तुम जंदगीभर दस
ू र के बारे म खबर छापते रहे हो. . .ले कन इस बार ख़बर तु हारे बारे म
छपेगी क “द नेशन” के एसोिसएट एड टर एस.एस. अली पागल हो गये ह और वो नौकर छोड़कर
अपने वतन चले गये ह, म लू मं जल म रहने के िलए. . .” अहमद को मेरे ऊपर गु सा आ गया
था। वह यं य करने के बाद गंभीर होकर बोला “हम तुम जो चाहते ह वह सब नह ं कर पाते. .
.हमार “िलमीटे श स” ह. . तुम तीस-पतीस साल यहां रहने के बाद छोटे -से पछड़े हुए शहर म नह ं
रह सकते. . .”हना भी नह ं चा हए. . . य क तुमने जंदगीभर जो कुछ सीखा है वह तुम वहां नह ं
कर सकोगे? बताओ वहां से कौन-सा ऐसा
---
म और शक ल है रत क मूित बने बैठे थे। हमारे हाथ म अहमद और शूजा क शाद के काड थे।
हमने कई बार काड पढ़ा था। सब कुछ ब कुल साफ और दो टू क श द म िलखा था। िस वल
मै रज र ज टर पर दोन द तखत करगे। शाम को रे से शन है ।
“तुमने अहमद से बात क है ? ये सब हुआ कैसे?” शक ल ने पूछा।
“अभी आ रहा है . . .कुछ समझ म नह ं आता।”
“भई ये बबाद हो जायेगा. . .शाद पर तैयार ह य हुआ?”
“हम तु ह शायद मालूम नह ं क इसके पीछे या है । वह बतायेगा. . .आने दो।”
“शाद का काड दोन के नाम से छपा है ”, शक ल ने कहा।
“हां”
“मतलब दोन ह तैयार ह. . .”
“कुछ कह नह ं सकते. . .मने कहा।”
“ले कन ये होगा बहुत बुरा।”
कुछ दे र बाद अहमद आ गया। उसके चेहरे का उड़ा हुआ रं ग दे खकर ह हम समझ गये क मामला
संगीन है ।
“ये काड कैसे ह यार?”
वह कुछ नह ं बोला। शायद सांस द ु त कर रहा था।
“ये सब या है?”
“तुमने तो काड दे खा होगा?”
“हां, दो घ टे पहले दे खा।” अहमद बोला।
“दो घ टे ? मतलब?”
“शूजा ने छपवा िलए थे।”
“तु हार मज के बगै़र?”
“हां।”
“ये कैसे हो सकता है ?”
“तो अब होगा या? तुम शाद करोगे?”
“म करना तो नह ं चाहता. . . कसी क मत पर नह ं चाहता था ले कन लगता है अब करनी पड़े गी”,
अहमद हताशा से बोला।
“ य ?”
“ या मजबूर है?”
“शूजा कहती है वह मेरे ब चे क मां बनने वाली है ।”
हम दोन कुिसय से उछल पड़े ।
“नह ं।”
“हां”, अहमद बोला।
“हो सकता है , झूठ बोल रह हो।”
“मे डकल रपोट दखाती है ।”
“तो “एबारशन” नह ं कराएगी।”
“कहती है एबारशन नह ं कराएगी।”
“ य ?”
“बस. . .उसे ब चा चा हए।”
“ये बताओ यार. . .” ीकाश स” तो तुम लेते ह गे न? ये ब चा कहां से ठहर गया?” मने पूछा।
“भई वह “ प स” लेती थी. . .अब मुझे या पता चलता क उसने कब “ प स” लेनी बंद कर द है
या ले रह है ।”
“ये तो बड़ सोची समझी “ क म” लगती है ”, शक ल ने कहा।
“तो अब या करोगे?”
“लगता है शाद करना ह पड़े गी।”
“ य ?”
“कल रातभर हम इसी बात पर लड़ते रहे . . .सुबह होते-होते उसने बताया क वह “ ेगने ट” है . .
.सुबह आठ बजे उसने फोन करके अपने वक ल पी. राधा वामी को बुला िलया।”
“ओहो. . .बड़े टॉप के वक ल को बुलाया।”
“कहते ह कसी ज़माने म शूजा उनक गल े ड हुआ करती थी”, अहमद बोला।
“ फर या हुआ।”
“राधा वामी ने मुझसे कहा क म अगर शूजा के साथ शाद करने से इं कार करता हूं तो वह केस
कर दे गी . . .एफ.आई.आर. दज करा दे गी, वमेन कमीशन म चली जायेगी. . .और मुझे न िसफ
नौकर से िनकाल दया जायेगा ब क िगर तार भी हो जाऊंगा. . .केस चलेगा, ज़ा हर है मी डया
इसम पूर दलच पी लेगा और म कह ं का न रहूंगा, अभी चार साल नौकर के बचे ह”, अहमद
कहते-कहते हांफने लगा। उसके चेहरे पर पसीने क बूंदे उभर आयी। पहले घुंघ रयाले बाल िततर-
बतर हो गये।
“मतलब तु ह पूर तरह. . “
वह बात काटकर बोला “राधा वामी के जाने के बाद शूजा ने मुझे शाद का काड दखाया।”
“ओ गॉड. . .”
“ या औरत है यार।”
“अब?”
“अब दो ह रा ते ह”, वह बोला।
“ या?”
“शाद कर लूं या “सुसाइड” कर लूं”, वह जैसे सपने म बोला।
“ये या बेवकूफ क बात कर रहे हो?”
“नह ं ये सच है . . .वैसे दोन ह सूरत म म “सुसाइड” ह क ं गा।”
“नह ं यार. . .तुम. . .”, मने सां वना दे नी चाह पर श द नह ं िमले।
शक ल सोचते हुए बोला “दे खो अभी तो शायद कुछ नह ं कया जा सकता. . .पी. राधा वामी ने
तुमसे ठ क ह कहा है . . .दरअसल तु ह या हम लोग को भी ये अंदाज़ा नह ं था क शूजा ऐसी
होगी और तु ह फांसने के िलए “ मनल” तर के इ तेमाल करे गी. . .ले कन अब तो
तु ह मै रज र ज टर पर द त करने ह पड़गे।”
“हूं तुम ठ क कहते हो”, अहमद भर हुई आवाज म बोला।
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मेर नयी-नयी शाद हुई थी। त नो तीसर या चौथी बार म लू मं ज़ल आई थी। वैसे ह बात -बात
म त नो ने कहा था क उसने कभी गांव नह ं दे खे ह। गांव दे खना चाहती है । ये बड़ा आसान था
क उसे केस रयापुर ले जाते और दखा दे त,े पर मने सोचा, नह ं केस रयापुर नह ं ब क यमुना के
कनारे कसी बहुत बीहड़ और पछड़े हुए गांव म ले जाना चा हए तब उसे पता चलेगा क गांव
कैसे होते ह।
कामरे ड राम िसंह से बात क तो उ ह ने रघुपुरा का नाम बताया यह उ ह ं का गांव है जो यमुना के
कछार म है । चार तरफ खाइयां ह। बबूल के घने जंगल ह और पास यमुना बहती है ।
त नो के साथ एक दो र तेदार लड़ कयां और तैयार हो गयी थी। एक दो थानीय प कार भी टोली
म शािमल हो गये थे। उन दन मुझे फोटो ाफ का शौक था और कैमरा हर जगह जाता था।
जहां तब बस जाती थी वहां तक हम सब बस से गये थे उसके बाद एक टै पो कया था ले कन
बताया गया था क वह भी गांव तक नह ं पहुंच पायेगा और कम से कम चार-पांच कलोमीटर का
फासला पैदल तय करना पड़े गा। भड़भड़ाते हुए टे प म धूल खाते हम एक सीधी चढ़ाई के सामने
उतर गये थे। सब धूल म नहा चुके थे। यहां से पैदल या ा शु हुई थी। धूप तेज़ थी और त नो
का चेहरा ब कुल लाल हो गया था। घ टे भर बाद हम गांव पहुंचे थे। वहां चौपाल जैसी जगह म,
घने पेड़ के नीचे कर ब पचास-साठ लोग जमा थे। कामरे ड राम िसंह ने बताया था क ये लोग
आपका वागत करने और िमलने के िलए बैठे ह।
इनके चेहर से लगा क शता दय पुराने ह। इनक आंख म जो उदासी, दख
ु और भय है उसका
एक पूरा इितहास है । इनके जजर शर र लोहे के जैसे तपे हुए िशलाख ड ह। वह धैय से बैठे थे।
पता नह ं उनके
(समा )