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युगे-युगे क्रांति

तिष्णु प्रभरकर

इस नाटक के ले खक विष्णु प्रभाकर जी है इन्होंने कहानी, उपन्यास, नाटक, जीिनी,


वनबोंध, एों काकी, कविता आवि लगभग सौ कृवतयााँ वहन्दी सोंसार कह िी हैं ।
इस नाटक में पात्हों और घटनाओों के माध्यम से ळे खक बताना चाहता है वक हर युग में
लहगहों के विचारहों में मतभे ि हहता है । हर पीढी अपनी काल की व्यिस्थाओों से खुश नहीों रहती
तह और जब िह ना खुशी विद्रहह बनकर वनकलती है तह क्ाों वत बन जाती है । पहले युग में
क्ाों वत करने िाले आगे आने िाले युग में िवकयानूसी बन जाते हैं । इस नाटक कह पााँ च भागहों
में बााँ टा गया है ।
 सन् 1875 के आस-पास- रामकली ि कल्याणवसोंह- कल्याणवसोंह की परिा विरहध में
क्ाों वत।
 सन् 1901 के आस-पास – कल्याणवसोंह ि रामकली के बेटे प्यारे लाल का एक विधिा
से वििाह करने के वलए क्ाों वत।
 सन् 1920-21 के आस-पास – प्यारे लाल की बेटी शारिा का असहयहग आन्दहलन में
भाग ले ना ि विमल से प्रेम वििाह करना।
 सन् 1942 के आस-पास – शारिा ि विमल के बेटे प्रिीप का िू सरे धमम की लड़की
जैनेट से शािी करना।
 अवत आधु वनक काल – प्रिीप ि जैनेट की बे टी अन्विता का िीपक से प्रेम करना
परन्तु नेल्सन से शािी करना।
सन् 1875 के आस-पास
रामकली कल्याणवसोंह की पत्नी है । उस समय की सामावजक ि पराम्पररक व्यिस्था के अनुसार
पवत अपनी पत्नी से केिल रात में ही वमल सकता था और प्रकाश के वलए विए की व्यिस्था
हहती थी। कल्याणवसोंह अपनी पत्नी का चे हरा िे खना चाहता था। रहशनी की व्यिस्था अच्छी न
हहने के कारण िह अपनी कहता है वक ते ज रहशनी िाला विया जलाया करह। कल्याणवसोंह
परिे का विरहधी था। िह अपनी पत्नी से कहता है वक बाहर िालहों से परिा करह तह समझ
में आता है ले वकन घरिालहों से कैसा परिा। पवत-पत्नी िहनहों विन में एक-िू सरे कह िे खने की
यहजना बनाते हैं वक सीवढयहों पर एक-िू सरे से टकरा जाएों गे और एक-िू सरे कह िे ख लें गें।
उसकह वपता की नाराजगी का भी डर था। इस प्रकार िह अपनी पत्नी का चे हरा िे ख ले ता
है । िह परिा प्रथा का विरहध करके अपने युग में एक क्ाों वत कह जन्म िे ता है । इस परम्परा
कह तहड़ने पर कल्याणवसोंह कह उसके वपता ने मारा। काफी विनहों तक घर-पररिार तथा
अड़हस-पड़हस िाले भी उसे भला-बुरा कहते रहे ।
सन् 1901 के आस-परस
पच्चीस साल बाि कल्याणवसोंह और रामकली के बेटे ने एक विधिा से वििाह करने के
वलए क्ाों वत की। प्यारे लाल लाला सुगनचन्द की बेटी कलािती से शािी करना चाहता है । जब
यह बात उसके वपता कह पता चलती है तह िह बहुत नाराज़ हहते हैं । िह अपने बेटे के
विचारहों से परे शान रहते हैं । िह कहते हैं वक ते रे वलए क्या ठीक है क्या गलत मैं जानता हाँ
और इसका फैसला मैं ही कराँगा। तू अपनी मजी करके समाज में मे री बिनामी नहीों करिा
सकता परन्तु प्यारे लाल अपनी प्रवतज्ञा पर अटल है । िह विधिा वििाह का समथम क है । िह
अपनी मााँ से कहता है जब पुरष कह एक से अवधक शािी करने का अवधकार है तह नारी ने
ही कौन सा अपराध वकया है । यह समाज उसे िू सरा वििाह करने का अवधकार क्यहों नहीों
िे ता। रामकली भी प्यारे लाल की इन बातहों से बहुत परे शान हहती है । िह और कल्याणवसों ह
प्यारे लाल कह समझाने की बहुत कहवशश करते हैं परन्तु प्यारे लाल उनकी बात नहीों मानता।
कल्याणवसोंह बेटे की शािी रहकने के वलए उसे मारते -पीटते हैं तथा उसे घर से वनकल जाने
के वलए कहते हैं । प्यारे लाल घर छहड़कर चला जाता है । िह अपने सावथयहों की उपन्वस्थवत में
कलािती से वििाह करता है । कुछ लहग मों विर के बाहर खड़े हहकर इसका विरहध करते हैं ।
पोंवडत जी कहते हैं वक जब-जब भी सुधार और क्ाों वत का स्वर उठता है तह पाखोंण्डी लहग
इसी तरह बाधा उत्पन्न करते हैं । ये हमारा कुछ भी नहीों वबगाड़ सकते । इस तरह से
प्यारे लाल की शािी हह जाती है । इसके वलए उसे अपने पररिार िालहों ि समाज से क्ाों वत
करनी पड़ती है ।

सन् 1920-21 के आस-परस


प्यारे लाल ने एक विधिा से वििाह करके आिशम स्थावपत वकया वकन्तु जब उसकी बेटी
शारिा ने जब समय के साथ चलने की कहवशश की तह प्यारे लाल ने उसका साथ नहीों विया।
यह गााँ धी जी के असहयहग आों िहलन का आरों वभक समय था। सारा िे श आजािी की लड़ाई में
भाग ले रहा था। प्यारे लाल ि कलािती की बेटी शारिा भी इसमें भाग ले रही थी। िह धरने
पर बैठी थी और धरना िे ने िाली मवहलाओों कह भाषण िे रही थी वक नाररयहों कह भी पुरषहों
के साथ कोंधे से कोंधा वमलाकर िे श की आजािी में भाग ले ना चावहए। तभी िहााँ पर पुवलस
आ जाती है । िह शारिा सवहत सभी मवहलाओों कह वगरफ्तार कर ले ती है । जब यह बात
प्यारे लाल कह पता चलती है तह बहुत क्हवधत हहते है िह अपनी पत्नी से कहते हैं वक मैं ने
शारिा कह वकतना समझाया,पीटा, धमकाया परन्तु उसने मे री बात नहीों सुनी। न जाने अब
जेल में वकतने विन रहे गी। सभी जगह लहग हमारे बारे में बातें कर रहे हैं । कलािती समझाती
है परन्तु प्यारे लाल उसकी बात नहीों सुनता िह कहता है वक अब मैं उसे इस घर में आने
नहीों िू ाँ गा।
शारिा भी घर िावपस आना नहीों चाहती। िह विमल नाम के एक लड़के से प्रेम करती
है । विमल उससे वमलने जेल में आता है । िह विमल से कहती है वक मैं उस घुटन भरे
माहौल में नहीों रह सकती। मैं वकसी आश्रम में चली जाऊाँगी। विमल के वपता चन्द्रवकशहर
उनकी शािी के वलए सहमत थे । शारिा के वपता इस बात का विरहध करते हैं परन्तु शारिा
विमल से वििाह कर ले ती है । शारिा ने धरना विया, वििे शी कपड़ह की हहली जलाई, वपता
की मार खाई वकन्तु िह अटल रही। अपनी इच्छा से उसने विमल से प्रेम-वििाह वकय़ा। इस
तरह शारिा ने भी अपने पररिार ि समाज के न्वखलाफ जाकर क्ाों वत की।
सन् 1942 के आस-परस
शारिा ि विमल ने वििाह करके नये मू ल्य और आिशम स्थावपत वकए। विमल ि शारिा
के िह बच्चे हैं । सुरेखा ि प्रिीप। प्रिीप एक वक्वियन लड़की जैनेट से प्रेम करता है और
उससे शािी करना चाहता है परन्तु शारिा ि विमल इस बात के वलए तै यार नहीों हहते । जैनेट
एक िफ्तर में काम करती है । प्रिीप अपने माता-वपता के न्वखलाफ जाकर जैनेट से शािी कर
ले ता है । शारिा और विमल चाहते हैं वक जैनेट का नाम ि धमम पररितम न करा िे ने से सारे
िहष समाप्त हह जाएों गे। िह जैनेट का नाम बिलकर जाह्निी रखना चाहते हैं वकन्तु प्रिीप ि
जैनेट इसके वलए तै यार नहीों हहते । विमल भी अपने बेटे कह घर से वनकल जाने के वलए
कहते हैं । िह उसकह जायिाि से भी बेिखल करने के वलए करते हैं । प्रिीप कहता है मु झे
भी यह सब नहीों चावहए। उसी समय िहााँ सुरेखा आ जाती है । िह अपने माता-वपता कह
समझाने की कहवशश करती है । प्रिीप घर छहड़कर चला जाता है । समय वबतने के साथ-साथ
विमल का क्हध शाों त हह जाता है और प्रिीप घर िापस लौट कर आ जाता है ।
अति आधुतनक करल
प्रिीप और जैनेट के िह बच्चे हैं , अन्विता ि अवनरद्ध। अन्विता िीपक नाम के एक
लड़के से प्रेम करती है । िह उससे शािी भी करना चाहती है । जब िह शािी का वनमों त्ण
ले कर आती है तह उसमें िीपक की जगह ने ल्सन का नाम था। ने ल्सन एक वचत्कार था।
वनमों त्ण में नेल्सन का नाम िे खकर प्रिीप ि जैनेट परे शान हह जाते हैं । अन्विता कहती है वक
िह िीपक से प्रेम करती थी, परन्तु अब िह ने ल्सन से शािी करे गी। िू सरी ओर उनका बेटा
अवनरद्ध शािी के बन्धन कह व्यथम बताता है । उसके जीिन में कई लड़वकयााँ आती हैं । वजसके
साथ अच्छा लगता है उसके साथ रहता है जब अच्छा नहीों लगता तह छहड़ िे ता है । अन्विता
ि अवनरद्ध माता-वपता कह समझाते हैं वक समय के साथ आपकह बिलना चावहए। इस तरह
से प्रिीप ि जैनेट के विचारहों और बच्चहों के विचारहों में टकराि हहता है ।
अन्त
उपयुक्त घटनाओों से पता चलता है वक क्ाों वत का अन्त नहीों है । नाटक के अन्त में
िे िीप्रसाि की पत्नी बताती है उनकी बेटी ने वििाह कर वलया है । यह सु नकर िे िीप्रसाि कह
लगता है वक िह अपनी बेटी की शािी की वजम्मेिाररयहों से मु क्त हह गया है वकन्तु िू सरे ही
पल उसे लगता है वक उसकी बेटी ने उससे अनुमवत नहीों ली। उसे इस बात का िु ख है
और डर है वक कहीों मे री बेटी ने गलत जीिन-साथी तह नहीों चु न वलया।
इस नाटक में इवतहास अपने-आप कह बार-बार िहहरा रहा है । हर युग में नई पीढी
पुरानी पीढी की मान्यताओों कह तहड़ रही है ।
तिशेषिर
युगे-युगे क्ाों वत की प्रमु ख विशेषता यह है वक यह नाटक सामावजक, राष्ट्रीय समस्याओ की
तरफ ध्यान न्वखोंचता है । यह नाटक यह सोंिेश भी िे ता है वक मू ल्यहों कह तहड़ने के स्थान पर
थहड़ा बिल विया जाए तह सोंबोंधह में मधु रता बनी रहती है । समय की मााँ ग के अनुसार बिलना
आिश्यक है । अनुभिहों से सीख ले ना चावहए।
 युगे-युगे क्ाों वत नाट्य शैली में वलखा गया है ।
 इसकी भाषा सरल और प्रभािशाली है ।
III SEM
BCA
Uma
chaudhary

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