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Prem Chand
Prem Chand
मानसरोवर
भाग 3
ह द
िं ीकोश
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Manasarovar – Part 3
By Premchand
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has expired.
ह द
िं ीकोश
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Contents
ववश्वास ........................................................................................................ 4
नरक का मागग ............................................................................................ 25
स्त्री और पुरुष ............................................................................................ 34
उद्धार ......................................................................................................... 42
ननवागसन ..................................................................................................... 52
नैराश्य लीला .............................................................................................. 61
कौशल ....................................................................................................... 77
स्वगग की दे वी ............................................................................................. 83
आिार ....................................................................................................... 94
एक आिंच की कसर ................................................................................... 102
माता का ह्रदय.......................................................................................... 109
परीक्षा ...................................................................................................... 120
तें तर ........................................................................................................ 124
नैराश्य ..................................................................................................... 134
दिं ड .......................................................................................................... 148
धिक्कार (2) ............................................................................................. 165
विश्िास
एकाएक सशस्त्र मसपाह यों के दल में लचल पड गई। उनका अफसर ु क्म दे
र ा था—सभा भिंग कर दो, नेताओिं को पकड लो, कोई न जाने पाए। य
ववद्रो ात्मक व्याख्यान ै।
पमु लस ने डिंडे चलने शुरु ककये। और कई मसपाह यों के साथ जाकर अफसर ने
अपटे का धगरफ्तार कर मलया।
एक क्षण में सभा भिंग ो गयी और आपटे पमु लस की वालात में भेज हदए गये
‘लेककन सोधचए, में उसका ककतना मूल्य दे ना पडेगा। अभी ज्जस बात को धगने-
धगनाये लोग जानते ैं , व सारे सिंसार में फैलेगी और म क ीिं मुिं हदखाने
लायक न ीिं र ें गें। आप अखबारों में सिंवाददाताओिं की जबान तो न ीिं बिंद
कर सकते।’
‘कुछ भी ो मैं इसे जोल में सडाना चा ता ूिं । कुछ हदनों के मलए तो चैन की
नीिंद नसीब ोगी। बदनामी से डरना ी व्यथग ै। म प्रािंत के सारे समाचार-पत्रों
को अपने सदाचार का राग अलापने के मलए मोल ले सकते ैं। म प्रत्येक
लािंछन को झूठ साबबत कर सकते ैं, आपटे पर ममर्थया दोषारोपरण का
अपराि लगा सकते ैं।’
‘मैं इससे स ज उपाय बतला सकती ूिं । आप आपटे को मेरे ाथ में छोड
दीज्जए। मैं उससे ममलूिंगी और उन यिंत्रों से, ज्जनका प्रयोग करने में मारी
जानत मसद्ध स्त ै , उसके आिंतररक भावों और ववचारों की था लेकर आपके
सामने रख दिं ग
ू ी। मैं कसे प्रमाण खोज ननकालना चा ती ूिं ज्जनके उत्तर में
उसे मिंु खोलने का सा स न ो, और सिंसार की स ानभ
ु नू त उसके बदले मारे
साथ ो। चारों ओर से य ी आवाज आये कक य कपटी ओर िूतग था और
सरकर ने उसके साथ व ी व्यव ार ककया ै जो ोना चाह ए। मुझे ववश्वास ै
कक व षिंड्यिंत्रकाररयों को मुखखया ै और मैं इसे मसद्ध कर दे ना चा ती ूिं ।
मैं उसे जनता की दृज्ष्ट में दे वता न ीिं बनाना चा तीिं ूिं , उसको राक्षस के
रुप में हदखाना चा ती ूिं ।
‘कसा कोई पुरुष न ीिं ै , ज्जस पर युवती अपनी मोह नी न डाल सके।’
प्रात:काल ममस जोशी अपने भवन से ननकली, लेककन उसके वस्त्र ब ु त सािारण
थे और आभूषण के नाम शरीर पर एक िागा भी नथा। अलिंकार-वव ीन ो
कर उसकी छवव स्वच्छ, जल की भािंनत और भी ननखर गयी। उसने सडक पर
आकर एक तािंगा मलया और चली।
ममस जोशी—न ीिं, सिंसार इतना उदार न ीिं ु आ कक आप ज्जसे गािंमलयािं दें ,
व आपको िन्यवाद दे । आपको याद ै कक कल आपने अपने व्याख्यान में
मुझ पर क्या-क्या आक्षेप ककए थे? मैं आपसे जोर दे कर क ती ूिं ककवे
आक्षेप करके आपने मुझपर घोर अत्याचार ककया ै। आप जैसे सहृदय,
शीलवान, ववद्वान आदमी से मुझे कसी आशा न थी। मैं अबला ूिं , मेरी रक्षा करने
वाला कोई न ीिं ै ? क्या आपको उधचत था कक एक अबला पर ममर्थयारोपण
करें ? अगर मैं पुरुष ोती तो आपसे ड्यूल खेलने काक आग्र करती । अबला
ूिं , इसमलए आपकी सजजनता को स्पशग करना ी मेरे ाथ में ै । आपने मुझ
पर जो लािंछन लगाये ैं, वे सवगथा ननमल
ूग ैं।
आपटे —अगर न करूिं तो मुझसे बडा दरु ात्मा सिंसार में न ोगा।
ममस जोशी—आप मझ
ु पर ववश्वास करते ैं।
आपटे —जब मैं अपने अपराि पर लज्जजत ोकर आपसे क्षमा मािंग र ा ूिं , तो
मेरा अपराि र ा ी क ााँ, ज्जसका आप मुझसे बदला लें गी। इससे तो मुझे भय
ोता ै कक आपने मुझे क्षमा न ीिं ककया। लेककन यहद मैंने आपसे क्षमा न
मािंगी तो मुझसे तो बदला न ले सकतीिं। बदला लेने वाले की आिंखें यो सजल
न ीिं ो जाया करतीिं। मैं आपको कपट करने के अयोग्य समझता ूिं । आप
यहद कपट करना चा तीिं तो य ािं कभी न आतीिं।
आपटे —तो शौक से लीज्जए। मैं बतला चुका ूिं कक मैंने चोरी के अपराि में कैद
की सजा पायी थी। नामसक के जेल में रखा गया था। मेरा शरीर दब
ु ल
ग था, जेल
की कडी मे नत न ो सकती थी और अधिकारी लोग मझ
ु े कामचोर समझ
कर बेंतो से मारते थे। आखखर एक हदन मैं रात को जेल से भाग खडा ु आ।
आपटे —तो कफर मैं आपको अपना असल नाम भी बता दे ता ूिं । मेरा नाम
दामोदर मोदी ै। य नाम तो पमु लस से बचने के मलए रख छोडा ै।
बालक अब तक तो चप
ु चाप बैठा ु आ था। ममस जोशी के मिंु से पकडाने की
बात सन
ु कर व सजग ो गया। उन् ें डािंटकर बोला— माले दादा को कौन
पकडेगा?
ममस जोशी –मैं सब कुछ करुगीिं। मैं कडवी से कडवी दवा वपयूिंगी यहद आप
वपलायेंगे। कल आप मेरे घर आने की कृपा करें गे, शाम को?
ममस जोशी ने ववदा दे ते ु ए क ा—भूमलएगा न ीिं, मैं आपकी रा दे खती र ूिं गी।
अपने रक्षक को भी लाइएगा।
दस
ू रे हदन प्रात:काल ममस जोशी ने मे मानों के नाम दावती काडग भेजे और
उत्सव मनाने की तैयाररयािं करने लगी। ममस्टर आपटे के सम्मान में पाटी दी
जा र ी थी। ममस्टर जौ री ने काडग दे खा तो मुस्कराये। अब म ाशय इस जाल
से बचकर क ािं जायेगे। ममस जोशी ने ने उन् ें फसाने के मलए य अच्छी
तरकीब ननकाली। इस काम में ननपण
ु मालम
ू ोती ै । मैने सकझा था, आपटे
चालाक आदमी ोगा, मगर इन आन्दोलनकारी ववद्राह यों को बकवास करने के
मसवा और क्या सूझ सकती ै।
चार ी बजे मे मान लोग आने लगे। नगर के बडे-बडे अधिकारी, बडे-बडे
व्यापारी, बडे-बडे ववद्वान, समाचार-पत्रों के सम्पादक, अपनी-अपनी मह लाओिं के
साथ आने लगे। ममस जोशी ने आज अपने अच्छे -से-अच्छे वस्त्र और
आभष
ू ण ननकाले ु ए थे, ज्जिर ननकल जाती थी मालम
ू ोता था, अरुण प्रकाश
की छटा चली आर ी ै । भवन में चारों ओर सग
ु िंि की लपटे आ र ी थीिं और
मिुर सिंगीत की ध्वनन वा में गूिंज र ीिं थी।
ुए मस्
ु करा कर बोले—जी चा ता ै तम्
ु ारे ाथ चम
ू लिं।ू अब मझ
ु े ववश्वास
ो गया कक य म ाशय तुम् ारे पिंजे से न ीिं ननकल सकते।
ममस्टर भरुचा—ककसी यूननवमसगटी में मशक्षा ी न ीिं पायी, सभ्यता क ािं से आती?
स सा ममस जोशी अपने सोने के कमरे में गयी ओर अपने सारे वस्त्राभूषण
उतार फेंके। उसके मुख से शुभ्र सिंकल्प का तेज ननकल र ा था। नेंत्रो से दबी
जयोनत प्रस्फुहटत ो र ी थी, मानों ककसी दे वता ने उसे वरदान हदया ो।
उसने सजे ु ए कमरे को घण
ृ ा से दे खा, अपने आभष
ू णों को पैरों से ठुकरा हदया
और एक मोटी साफ साडी प नकर बा र ननकली। आज प्रात:काल ी उसने
य साडी मिंगा ली थी।
उसे इस नेय वेश में दे ख कर सब लोग चककत ो गये। कायापलट कैसी? स सा
ककसी की आिंखों को ववश्वास न आया; ककिं तु ममस्टर जौ री बगलें बजाने लगे।
ममस जोशी ने इसे फिंसाने के मलए य कोई नया स्वािंग रचा ै।
‘ममत्रों! आपको याद ै , परसों म ाशय आपटे ने मुझे ककतनी गािंमलयािं दी थी।
य म ाशय खडे ैं । आज मैं इन् ें उस दव्ु यगव ार का दण्ड दे ना चा ती ूिं । मैं
कल इनके मकान पर जाकर इनके जीवन के सारे गुप्त र स्यों को जान
आयी। य जो जनता की भीड गरजते कफरते ै , मेरे एक ी ननशाने पर धगर
पडे। मैं उन र स्यों के खोलने में अब ववलिंब न करुिं गी, आप लोग अिीर ो र े
ोगें । मैंने जो कुछ दे खा, व इतना भिंयकर ै कक उसका वत
ृ ािंत सुनकर शायद
आप लोगों को मूछाग आ जायेगी। अब मुझे लेशमात्र भी सिंदे न ीिं ै कक
य म ाशय पक्के दे शद्रो ी ै ....’
ममस जोशी—लेककन राज के द्रो ी न ीिं, अन्याय के द्रो ी, दमन के द्रो ी, अमभमान
के द्रो ी...
ममस जोशी—गुप्त रुप से शस्त्र जमा ककए ै और गुप्त रुप से त्याऍ िं की ैं...
ममस जोशी—लेककन ककस की त्या? द:ु ख की, दररद्रता की, प्रजा के कष्टों की,
ठिमी की ओर अपने स्वाथग की।
चारों ओर कफर सन्नाटा छा गया और लोग चककत ो- ो कर एक दस
ू रे की
ओर ताकने लगे, मानो उन् ें अपने कानों पर ववश्वास न ीिं ै।
य क ते-क ते व जाकर आपटे के चरणों में धगर पडी। सारी मण्डली स्तिंमभत
र गयी।
एक सप्ता गज
ु र चक
ु ा था। आपटे पमु लस की ह रासत में थे। उन पर चार
अमभयोग चलाने की तैयाररयािं चल र ीिं थी। सारे प्रािं त में लचल मची ु ई थी।
नगर में रोज सभाएिं ोती थीिं, पुमलस रोज दस-पािंच आदममयािं को पकडती थी।
समाचार-पत्रों में जोरों के साथ वाद-वववाद ो र ा था।
व सोच र े थे, इसने मेरे साथ कसी दगा की! मैंने इसके मलएक्या कुछ न ीिं
ककया? इसकी कौन-सी इच्छा थी, जो मैने पूरी न ीिं की इसी ने मुझसे बेवफाई
की। न ीिं, कभी न ीिं, मैं इसके बगैर ज्जिंदा न ीिं र सकता। दनु नया चा े मझ
ु े
बदनाम करे , त्यारा क े , चा े मझ
ु े पद से ाथ िोना पडे, लेककन आपटे को
न ीिं छोडूगािं। इस रोडे को रास्ते से टा दिं ग
ू ा, इस कािंटे को प लू से ननकाल
बा र करुिं गा।
स सा कमरे का दरवाजा खल
ु ा और ममस जाशी ने प्रवेश ककया। ममस्टर जौ री
कबका कर कुसी पर से उठ खडे ु ए, य सोच र े थे कक शायद ममस जोशी
ने ननराश ोकर मेरे पास आयी ैं , कुछ रुखे, लेककन नम्र भाव से बोले—आओ
बाला, तुम् ारी याद में बैठा था। तुम ककतनी ी बेवफाई करो, पर तुम् ारी याद
मेरे हदल से न ीिं ननकल सकती।
ममस जोशी—प्रेम प्रनतकार न ीिं करता, प्रेम में दरु ाग्र न ीिं ोता। आप मरे खून
के प्यासे ो र े ैं, उस पर भी आप क ते ैं , मैं तम्
ु ारी याद करता ूिं । आपने
मेरे स्वामी को ह रासत में डाल रखा ै, य प्रेम ै ! आखखर आप मझ
ु से क्या
चा ते ैं? अगर आप समझ र े ों कक इन सज्ख्तयों से डर कर मै आपकी
शरण आ जाऊिंगी तो आपका भ्रम ै । आपको अज्ख्तयार ै कक आपटे को काले
पानी भेज दें , फािंसी चढ़ा दें , लेककन इसका मुझ परकोई असर न ोगा।व मेरे
स्वमी ैं, मैं उनको अपना स्वामी समझती ूिं । उन् ोने अपनी ववशाल उदारता
से मेरा उद्धार ककया । आप मझ
ु े ववषय के फिंदो में फिंसाते थे, मेरी आत्मा को
कलुवषत करते थे। कभी आपको य खयाल आया कक इसकी आत्मा पर क्या
बीत र ी ोगी? आप मुझे आत्मशुन्य समझते थे। इस दे वपुरुष ने अपनी ननमगल
स्वच्छ आत्मा के आकषगण से मुझे प ली ी मुलाकात में खीिंच मलया। मैं
उसकी ो गयी और मरते दम तक उसी की र ूिं गी। उस मागग से अब आप टा
न ीिं सकते। मुझे एक सच्ची आत्मा की जरुरत थी , व मुझे ममल गयी।
उसे पाकर अब तीनों लोक की सम्पदा मेरी आिंखो में तच्
ु छ ै । मैं उनके ववयोग
में चा े प्राण दे दिं ,ू पर आपके काम न ीिं आ सकती।
ममस्टर जौ री—ममस जोशी । प्रेम उदार न ीिं ोता, क्षमाशील न ीिं ोता । मेरे
मलए तम
ु सवगस्व ो, जब तक मैं समझता ूिं कक तम
ु मेरी ो। अगर तम
ु मेरी
न ीिं ो सकती तो मझ
ु े इसकी क्या धचिंता ो सकती ै कक तम
ु ककस हदशा
में ो?
भगवान! मैं अपने मन को कैसे समझाऊिं! तुम अिंतयागमी ो, तुम मेरे रोम-रोम
का ाल जानते ो। मैं चा ती ुिं कक उन् ें अपना इष्ट समझूिं, उनके चरणों की
सेवा करुिं , उनके इशारे पर चलिंू, उन् ें मेरी ककसी बात से, ककसी व्यव ार से
नाममात्र, भी द:ु ख न ो। व ननदोष ैं, जो कुछ मेरे भाग्य में था व ु आ, न
उनका दोष ै , न माता-वपता का, सारा दोष मेरे नसीबों ी का ै । लेककन य
सब जानते ु ए भी जब उन् ें आते दे खती ूिं , तो मेरा हदल बैठ जाता ै , मु
पर मुरदनी सी-छा जाती ै , मसर भारी ो जाता ै , जी चा ता ै इनकी सूरत न
दे खिंू, बात तक करने को जी न ी चा ता; कदाधचत ् शत्रु को भी दे खकर ककसी
का मन इतना क्लािंत न ीिं ोता ोगा। उनके आने के समय हदल में िडकन
सी ोने लगती ै । दो-एक हदन के मलए क ीिं चले जाते ैं तो हदल पर से बोझ
उठ जाता ै। िं सती भी ूिं , बोलती भी ूिं , जीवन में कुछ आनिंद आने लगता ै
लेककन उनके आने का समाचार पाते ी कफर चारों ओर अिंिकार! धचत्त की
कसी दशा क्यों ै, य मैं न ीिं क सकती। मुझे तो कसा जान पडता ै
कक पव
ू ज
ग न्म में म दोनों में बैर था, उसी बैर का बदला लेने के मलए उन् ोंने
मझ
ु स
े े वववा ककया ै , व ी परु ाने सिंस्कार मारे मन में बने ु ए ैं। न ीिं तो
व मुझे दे ख-दे ख कर क्यों जलते और मैं उनकी सूरत से क्यों घण
ृ ा करती?
वववा करने का तो य मतलब न ीिं ु आ करता! मैं अपने घर क ीिं इससे
सुखी थी। कदाधचत ् मैं जीवन-पयगन्त अपने घर आनिंद से र सकती थी।
लेककन इस लोक-प्रथा का बुरा ो, जो अभाधगन कनयाओिं को ककसी-न-ककसी
परु
ु ष के गलें में बािंि दे ना अननवायग समझती ै। व क्या जानता ै कक
ककतनी युवनतयािं उसके नाम को रो र ी ै , ककतने अमभलाषाओिं से ल राते ु ए,
कोमल हृदय उसके पैरो तल रौंदे जा र े ै ? युवनत के मलए पनत कैसी-कैसी
मिुर कल्पनाओिं का स्रोत्र ोता ै , पुरुष में जो उत्तम ै , श्रेष्ठ ै , दशगनीय ै,
उसकी सजीव मूनतग इस शब्द के ध्यान में आते ी उसकी नजरों के सामने
आकर खडी ो जाती ै ।लेककन मेरे मलए य शब्द क्या ै । हृदय में उठने
वाला शूल, कलेजे में खटकनेवाला कािंटा, आिंखो में गडने वाली ककरककरी,
अिंत:करण को बेिने वाला व्यिंग बाण! सुशीला को मेशा िं सते दे खती ूिं । व
कभी अपनी दररद्रता का धगला न ीिं करती; ग ने न ीिं ैं , कपडे न ीिं ैं, भाडे के
नन् ें से मकान में र ती ै , अपने ाथों घर का सारा काम-काज करती ै ,
कफर भी उसे रोते न ीिं दे खती अगर अपने बस की बात ोती तो आज अपने
िन को उसकी दररद्रता से बदल लेती। अपने पनतदे व को मुस्कराते ु ए घर में
आते दे खकर उसका सारा द:ु ख दाररद्रय छूमिंतर ो जाता ै , छाती गज-भर की ो
जाती ै । उसके प्रेमामलिंगन में व सुख ै , ज्जस पर तीनों लोक का िन
न्योछावर कर दिं ।ू
3
आज मझ
ु से जब्त न ो सका। मैंने पछ
ू ा—तम
ु ने मझ
ु से ककसमलए वववा ककया
था? य प्रश्न म ीनों से मेरे मन में उठता था, पर मन को रोकती चली आती
थी। आज प्याला छलक पडा। य प्रश्न सुनकर कुछ बौखला-से गये, बगलें
झाकने लगे, खीसें ननकालकर बोले—घर सिंभालने के मलए, ग ृ स्थी का भार
उठाने के मलए, और न ीिं क्या भोग-ववलास के मलए? घरनी के बबना य आपको
भूत का डेरा-सा मालम
ू ोता था। नौकर-चाकर घर की सम्पनत उडाये दे ते थे।
जो चीज ज ािं पडी र ती थी, कोई उसको दे खने वाला न था। तो अब मालम
ू
मालूम न ीिं, इन् ें मुझ पर इतना सिंदे क्यो ोता ै । जब से नसीब इस घर में
लाया ैं, इन् ें बराबर सिंदे -मूलक कटाक्ष करते दे खती ूिं । क्या कारण ै ? जरा
बाल गुथवाकर बैठी और य ोठ चबाने लगे। क ीिं जाती न ीिं, क ीिं आती न ीिं,
ककसी से बोलती न ीिं, कफर भी इतना सिंदे ! य अपमान असह्य ै । क्या मुझे
अपनी आबरु प्यारी न ीिं? य मझ
ु े इतनी नछछोरी क्यों समझते ैं, इन् ें
मुझपर सिंदे करते लजजा भी न ीिं आती? काना आदमी ककसी को िं सते दे खता
ै तो समझता ै लोग मुझी पर ाँस र े ै । शायद इन् ें भी य ी ब म ो
गया ै कक मैं इन् ें धचढ़ाती ूिं । अपने अधिकार के बा र से बा र कोई काम
कर बैठने से कदाधचत ् मारे धचत्त की य ी वज्ृ त्त ो जाती ै। मभक्षुक
राजा की गद्दी पर बैठकर चैन की नीिंद न ीिं सो सकता। उसे अपने चारों तरफ
शुत्र हदखायी दें गें। मै समझती ूिं , सभी शादी करने वाले बुड्ढ़ो का य ी ाल
ै।
इतना सन
ु ते ी त्योररयािं चढ़ाकर बोले—तम्
ु ारे जाने की कुछ जरुरत न ीिं।
जो अपने पनत की सेवा न ीिं कर सकती, उसे दे वताओिं के दशगन से पुण्य के
बदले पाप ोता। मुझसे उडने चली ो । मैं औरतों की नस-नस प चानता ूिं ।
कसा क्रोि आया कक बस अब क्या क ूिं । उसी दम कपडे बदल डाले और प्रण कर
मलया कक अब कभ दशगन करने जाऊिंगी। इस अववश्वास का भी कुछ हठकाना
ै ! न जाने क्या सोचकर रुक गयी। उनकी बात का जवाब तो य ी था कक
उसी क्षण घरसे चल खडी ु ई ोती, कफर दे खती मेरा क्या कर लेत।े
तीन हदन से बीमार ैं। डाक्टर क ते ैं , बचने की कोई आशा न ीिं, ननमोननया ो
गया ै। पर मझ
ु े न जाने क्यों इनका गम न ीिं ै । मैं इनती वज्र-हृदय कभी
न थी।न जाने व मेरी कोमलता क ािं चली गयी। ककसी बीमार की सरू त
दे खकर मेरा हृदय करुणा से चिंचल ो जाता था, मैं ककसी का रोना न ीिं सुन
सकती थी। व ी मैं ूिं कक आज तीन हदन से उन् ें बगल के कमरे में पडे
करा ते सुनती ूिं और एक बार भी उन् ें दे खने न गयी, आिंखो में आिंसू का
ज्जक्र ी क्या। मुझे कसा मालम
ू ोता ै , इनसे मेरा कोई नाता ी न ीिं मुझे
चा े कोई वपशाचनी क े , चा े कुलटा, पर मझ
ु े तो य क ने में लेशमात्र भी
सिंकोच न ीिं ै कक इनकी बीमारी से मझ
ु े एक प्रकार का ईष्यागमय आनिंद आ
र ा ै । इन् ोने मुझे य ािं कारावास दे रखा था—मैं इसे वववा का पववत्र
नाम न ीिं दे ना चा ती---य कारावास ी ै । मैं इतनी उदार न ीिं ूिं कक ज्जसने
मुझे कैद मे डाल रखा ो उसकी पूजा करुिं , जो मुझे लात से मारे उसक पैरो
का चूिंमू। मुझे तो मालूम ो र ा था। ईश्वर इन् ें इस पाप का दण्ड दे र े ै।
मै ननस्सकोंच ोकर क ती ूिं कक मेरा इनसे वववा न ीिं ु आ ै । स्त्री ककसी के
गले बािंि हदये जाने से ी उसकी वववाह ता न ीिं ो जाती। व ी सिंयोग वववा
का पद पा सकता ै । ज्जिंसमे कम-से-कम एक बार तो हृदय प्रेम से
पुलककत ो जाय! सुनती ूिं , म ाशय अपने कमरे में पडे-पडे मुझे कोसा करते
ैं, अपनी बीमारी का सारा बुखार मुझ पर ननकालते ैं, लेककन य ािं इसकी
परवा न ीिं। ज्जसका जी चा े जायदाद ले , िन ले, मुझे इसकी जरुरत न ीिं!
6
एक हदन मैने सुशीला से क ा---अगर तेरे पनतदे व क ीिं परदे श चले जाए तो
रोत-रोते मर जाएगी!
सुशीला गिंभीर भाव से बोली—न ीिं ब न, मरुगीिं न ीिं , उनकी याद सदै व
प्रफुज्ल्लत करती र े गी, चा े उन् ें परदे श में बरसों लग जाएिं।
रात रोते-रोते ह चककयािं बिंि गयी। न-जाने क्यो हदल भर आता था। अपना
जीवन सामने एक बी ड मैदान की भािंनत फैला ु आ मालूम ोता था, ज ािं
बगूलों के मसवा ररयाली का नाम न ीिं। घर फाडे खाता था, धचत्त कसा चिंचल
ो र ा था कक क ीिं उड जाऊिं। आजकल भज्क्त के ग्रिंथो की ओर ताकने को
जी न ीिं चा ता, क ी सैर करने जाने की भी इच्छा न ीिं ोती, क्या चा ती ूिं
व मैं स्वयिं भी न ीिं जानती। लेककन मै जो जानती व मेरा एक-एक रोम-
रोम जानता ै , मैं अपनी भावनाओिं को सिंजीव मूनतग ैं, मेरा एक-एक अिंग
मेरी आिंतररक वेदना का आतगनाद ो र ा ै । मेरे धचत्त की चिंचलता उस अिंनतम
दशा को प िं च गयी ै , जब मनुष्य को ननिंदा की न लजजा र ती ै और न
भय। ज्जन लोभी, स्वाथी माता-वपता ने मझ
ु े कुएिं में ढकेला, ज्जस पाषाण-
हृदय प्राणी ने मेरी मािंग में सेंदरु डालने का स्वािंग ककया, उनके प्रनत मेरे मन में
बार-बार दष्ु कामनाएिं उठती ैं। मैं उन् े लज्जजत करना चा ती ूिं । मैं अपने मुिं
में कामलख लगा कर उनके मुख में कामलख लगाना चा ती ूिं मैअपने
प्राणदे कर उन् े प्राणदण्ड हदलाना चा ती ूिं ।मेरा नारीत्व लुप्त ो गया ै ,। मेरे
हृदय में प्रचिंड जवाला उठी ु ई ै।
मैने िं सकर क ा---अिंिेरे में भी तुम् ारी आिंखे इतनी तेज ैंकक नसीबों की
मलखावट पढ़ लेती ैं?
बुहढ़या---आिंखो से न ीिं पढती बेटी, अक्ल से पढ़ती ूिं , िूप में चूडे न ी सुफेद
ककये ैं। तुम् ारे हदन गये और अच्छे हदन आ र े ै। िं सो मत बेटी, य ी काम
करते इतनी उम्र गज
ु र गयी। इसी बहु ढ़या की बदौलत जो नदी में कूदने जा
र ी थीिं, वे आज फूलों की सेज पर सो र ी ै , जो ज र का प्याल पीने को
तैयार थीिं, वे आज दि
ू की कुज्ल्लयािं कर र ी ैं। इसीमलए इतनी रात गये
ननकलती ू कक अपने ाथों ककसी अभाधगन का उद्धार ो सके तो करुिं । ककसी से
कुछ न ीिं मािंगती, भगवान ् का हदया सब कुछ घर में ै, केवल य ी इच्छा ै
उन् े िन, ज्जन् े सिंतान की इच्छा ै उन् ें सिंतान, बस औरक्या क ूिं , व मिंत्र
बता दे ती ूिं कक ज्जसकी जो इच्छा जो व परू ी ो जाये।
लेककन मेरे अि:पतन का अपराि मेरे मसर न ीिं, मेरे माता-वपता और उस बढ़
ू े पर
ै जो मेरा स्वामी बनना चा ता था। मैं य पिंज्क्तयािं न मलखतीिं , लेककन इस
ववचार से मलख र ी ूिं कक मेरी आत्म-कथा पढ़कर लोगों की आिंखे खुलें; मैं
कफर क ती ूिं कक अब भी अपनी बामलकाओ के मलए मत दे खों िन, मत दे खों
जायदाद, मत दे खों कुलीनता, केवल वर दे खों। अगर उसके मलए जोडा का वर
न ीिं पा सकते तो लडकी को क्वारी रख छोडो, ज र दे कर मार डालो, गला घोंट
डालो, पर ककसी बढ़
ू े खूसट से मत ब्या ो। स्त्री सब-कुछ स सकती ै । दारुण
से दारुण द:ु ख, बडे से बडा सिंकट, अगर न ीिं स सकती तो अपने यौवन-
काल की उिं मगो का कुचला जाना।
र ी मैं, मेरे मलए अब इस जीवन में कोई आशा न ीिं । इस अिम दशा को भी
उस दशा से न बदलूिंगी, ज्जससे ननकल कर आयी ूिं ।
***
स्त्री और परु
ु ष
वववपन ो अपना जीवन नरक-सा जान पडता था। व अपने मािंमू से लडा।
ससुर को लिंबा खराग मलखकर फटकारा, मािं-बाप से ु जजत की और जब इससे
शािंनत न ु ई तो क ीिं भाग जाने की बात सोचने लगा। आशा पर उसे दया
अवश्य आती थी। व अपने का समझाता कक इसमें उस बेचारी का क्या
दोष ै , उसने जबरदस्ती तो मझ
ु से वववा ककया न ीिं। लेककन य दया और
य ववचार उस घण
ृ ा को न जीत सकता था जो आशा को दे खते ी उसके
रोम-रोम में व्याप्त ो जाती थी। आशा अपने अच्छे -से-अच्छे कपडे प नती;
तर -तर से बाल सिंवारती, घिंटो आइने के सामने खडी ोकर अपना श्रिंग
ृ ार
करती, लेकन वववपन को य शुतुरगमज-से मालूम ोते। व हदल से चा ती
थी कक उन् ें प्रसन्न करूाँ, उनकी सेवा करने के मलए अवसर खोजा करती थी;
लेककन वववपन उससे भागा-भागा कफरता था। अगर कभी भें ट ो जाती तो
कुछ कसी जली-कटी बातें करने लगता कक आशा रोती ु ई व ािं से चली जाती।
सबसे बुरी बात य थी कक उसका चररत्र भ्रष्ट ोने लगा। व य भूल जाने की
चेष्टा करने लगा कक मेरा वववा ो गया ै । कई-कई हदनों क आशा को
उसके दशगन भी न ोते। व उसके क -क े की आवाजे बा र से आती ु ई
सुनती, झरोखे से दे खती कक व दोस्तों के गले में ाथ डालें सैर करने जा र े ै
और तडप कर र े जाती।
एक हदन खाना खाते समय उसने क ा—अब तो आपके दशगन ी न ीिं ोतें । मेरे
कारण घर छोड दीज्जएगा क्या ?
आशा—ककसी डाक्टर से मेरी सूरत क्यों न ीिं बनवा दे ते? सुनती ूिं , आजकल सूरत
बनाने वाले डाक्टर पैदा ु ए ै।
ु जजत करती ो?
आशा य खझडकी सन
ु कर चली गयी। उसे मालम
ू ो गया कक इन् ोने मेरी ओर
से सदा के मलए ह्रदय कठोर कर मलया ै।
वववपन तो रोज सैर-सपाटे करते, कभी-कभी रात को गायब र ते। इिर आशा
धचिंता और नैराश्य से घल
ु ते-घल
ु ते बीमार पड गयी। लेककन वववपन भल
ू कर
भी उसे दे खने न आता, सेवा करना तो दरू र ा। इतना ी न ीिं, व हदल में
मानता था कक व मर जाती तो गला छुटता, अबकी खुब दे खभाल कर अपनी
पसिंद का वववा करता।
अब व और भी खल
ु खेला। प ले आशा से कुछ दबता था, कम-से-कम उसे य
िडका लगा र ता था कक कोई मेरी चाल-ढ़ाल पर ननगा रखने वाला भी ै।
अब व िडका छुट गया। कुवासनाओिं में कसा मलप्त ो गया कक मरदाने
कमरे में ी जमघटे ोने लगे। लेककन ववषय-भोग में िन ी का सवगनाश
ोता, इससे क ीिं अधिक बुवद्ध और बल का सवगनाश ोता ै । वववपन का चे रा
पीला लगा, दे भी क्षीण ोने लगी, पसमलयों की ड्डडयािं ननकल आयीिं आिंखों के
इदग -धगदग गढ़े पड गये। अब व प ले से क ीिं जयादा शोक करता, ननत्य तेल
लगता, बाल बनवाता, कपडे बदलता, ककन्तु मुख पर कािंनत न थी, रिं ग-रोगन से
क्या ो सकता?
एक हदन आशा बरामदे में चारपाई पर लेटी ु ई थी। इिर फ्तों से उसने वववपन
को न दे खा था। उन् े दे खने की इच्छा ु ई। उसे भय था कक व सन आयेंगे,
कफर भी व मन को न रोक सकी। वववपन को बुला भेजा। वववपन को भी
उस पर कुछ दया आ गयी आ गयी। आकार सामने खडे ो गये। आशा ने
उनके मुिं की ओर दे खा तो चौक पडी। व इतने दब
ु ल
ग ो गये थे कक प चनाना
मुमशकल था। बोली—तुम भी बीमार ो क्या? तुम तो मुझसे भी जयादा घुल
गये ो।
वववपन—उिं , ज्जिंदगी में रखा ी क्या ै ज्जसके मलए जीने की कफक्र करुिं !
वववपन चारपाई पर बैठते ु ए बोले—मेरी दवा अब मौत करे गी। मै तुम् ें जलाने
के मलए न ीिं क ता। ईश्वर जानता ै , मैं तुम् े चोट न ीिं प ुिं चाना चा ता। मै
अब जयादा हदनों तक न ज्जऊिंगा। मुझे ककसी भयिंकर रोग के लक्षण हदखाई दे
र े ै । डाक्टर नें भी व ी क ा ै । मझ
ु े इसका खेद ै कक मेरे ाथों तम्
ु े कष्ट
प ुिं चा पर क्षमा करना। कभी-कभी बैठे-बैठे मेरा हदल डूब हदल डूब जाता ै,
मूछाग-सी आ जाती ै।
फामलज के भयिंकर रोग में रोगी की सेवा करना आसान काम न ीिं ै । उस पर
आशा म ीनों से बीमार थी। लेककन उस रोग के सामने व पना रोग भूल
गई। 15 हदनों तक वववपन की ालत ब ुत नाजुक र ी। आशा हदन-के-हदन
और रात-की-रात उनके पास बैठी र ती। उनके मलए पर्थय बनाना, उन् ें गोद में
सम्भाल कर दवा वपलाना, उनके जरा-जरा से इशारों को समझाना उसी जैसी
िैयश
ग ाली स्त्री का काम था। अपना मसर ददग से फटा करता, जवर से दे तपा
करती, पर इसकी उसे जरा भी परवा न थी।
१५ हदनों बाद वववपन की ालत कुछ सिंभली। उनका दाह ना पैर तो लिंज
ु पड
गया था, पर तोतली भाषा में कुछ बोलने लगे थे। सबसे बरु ी गत उनके सन्
ु दर
मुख की ु ई थी। व इतना टे ढ़ा ो गया था जैसे कोई रबर के खखलौने को
खीिंच कर बढ़ा दें । बैटरी की मदद से जरा दे र के मलए बैठे या खडे तो ो जाते
थे; लेककन चलने−कफरने की ताकत न थी।
एक हदनों लेटे−लेटे उन् े क्या ख्याल आया। आईना उठा कर अपना मुिं दे खने
लगे। कसा कुरुप आदमी उन् ोने कभी न दे खा था। आह स्ता से बोले−−आशा,
ईश्वर ने मुझे गरुर की सजा दे दी। वास्तव में मुझे य उसी बुराई का
बदला ममला ै , जो मैने तम्
ु ारे साथ की। अब तम
ु अगर मेरा माँु दे खकर घण
ृ ा
से माँु फेर लो तो मझ
ु से उस दव्ु यगव ार का बदला लो, जो मैने, तम्
ु ारे साथ
ककए ै।
वववपन कमरे में बैठे ु ए थे। कई ममत्र जमा थे। ताश ो र ा था।
कमरे में एक खखडकी थी जो आिंगन में खल
ु ती थी। इस वक्त व बन्द थी। एक
ममत्र ने उसे चप
ु के से खोल हदया। एक ममत्र ने उसे चप
ु के हदया और शीशे से
झािंक कर वववपन से क ा−− आज तो तुम् ारे य ािं पररयों का अच्छा जमघट
ै।
वववपन−−बन्दा कर दो।
‘अजी जरा दे खो तो: कैसी−कैसी सूरतें ै ! तुम् े इन सबों में कौन सबसे अच्छी
मालम
ू ोती ै?
‘वा री आपकी ननगा ! क्या सूरत के साथ तुम् ारी ननगा भी बबगड गई? मुझे
तो व सबसे बदसूरत मालम
ू ोती ै ।’
‘जी ािं, य व ी दे वी ै।
***
उद्धार
ह द
िं ू समाज की वैवाह क प्रथा इतनी दवू षत, इतनी धचिंताजनक, इतनी भयिंकर ो
गयी ै कक कुछ समझ में न ीिं आता, उसका सुिार क्योंकर ो। बबरलें ी कसे
माता-वपता ोंगे ज्जनके सात पुत्रों के बाद एक भी कन्या उत्पन्न ो जाय तो
व स षग उसका स्वागत करें । कन्या का जन्म ोते ी उसके वववा की
धचिंता मसर पर सवार ो जाती ै और आदमी उसी में डुबककयााँ खाने लगता ै।
अवस्था इतनी ननराशमय और भयानक ो गई ै कक कसे माता-वपताओिं की
कमी न ीिं ै जो कन्या की मत्ृ यु पर ह्रदय से प्रसन्न ोते ै , मानों मसर से
बािा टली। इसका कारण केवल य ी ै कक दे ज की दर, हदन दन
ू ी रात
चौगुनी, पावस-काल के जल-गुजरे कक एक या दो जारों तक नौबत प ुिं च गई
ै । अभी ब ु त हदन न ीिं गज
ु रे कक एक या दो जार रुपये द ेज केवल बडे
घरों की बात थी, छोटी-छोटी शाहदयों पााँच सौ से एक जार तक तय ो
जाती थीिं; अब मामूली-मामूली वववा भी तीन-चार जार के नीचे तय न ीिं ोते
। खचग का तो य ाल ै और मशक्षक्षत समाज की ननिगनता और
दररद्रता हदन बढ़ती जाती ै । इसका अन्त क्या ोगा ईश्वर ी जाने। बेटे
एक दजगन भी ों तो माता-वपता का धचिंता न ीिं ोती। व अपने ऊपर
उनके वववा -भार का अननवायग न ीिं समझता, य उसके मलए ‘कम्पलसरी’
ववषय न ीिं, ‘आप्शनल’ ववषय ै। ोगा तों कर दे गें; न ी क दें गे--बेटा, खाओिं
कमाओिं, कमाई ो तो वववा कर लेना। बेटों की कुचररत्रता कलिंक की बात
न ीिं समझी जाती; लेककन कन्या का वववा तो करना ी पडेगा, उससे भागकर
क ािं जायेगें? अगर वववा में ववलम्ब ु आ और कन्या के पािंव क ीिं ऊाँचे नीचे
पड गये तो कफर कुटुम्ब की नाक कट गयी; व पनतत ो गया, टाट बा र
कर हदया गया। अगर व इस दघ
ु ट
ग ना को सफलता के साथ गप्ु त रख सका
तब तो कोई बात न ीिं; उसकों कलिंककत करने का ककसी का सा स न ीिं ;
लेककन अभाग्यवश यहद व इसे नछपा न सका, भिंडाफोड ो गया तो कफर
माता-वपता के मलए, भाई-बिंिुओिं के मलए सिंसार में मुिं हदखाने को न ीिं र ता।
कोई अपमान इससे दस्
ु स , कोई ववपज्त्त इससे भीषण न ीिं। ककसी भी व्याधि
की इससे भयिंकर कल्पना न ीिं की जा सकती। लत्ु फ तो य ै कक जो लोग
बेहटयों के वववा की कहठनाइयों को भोग चक
ु े ोते ै व ीिं अपने बेटों के
वववा के अवसर पर बबलकुल भूल जाते ै कक में ककतनी ठोकरें खानी पडी
थीिं, जरा भी स ानुभूनत न ी प्रकट करतें , बज्ल्क कन्या के वववा में जो
तावान उठाया था उसे चक्र-ववृ द्ध ब्याज के साथ बेटे के वववा में वसूल करने
पर कहटबद्ध ो जाते ैं। ककतने ी माता-वपता इसी धचिंता में ग्र ण करलेता ै,
कोई बढ़
ू े के गले कन्या का मढ़ कर अपना गला छुडाता ै , पात्र-कुपात्र के
ववचार करने का मौका क ािं, ठे लमठे ल ै।
मुिंशी गुलजारीलाल कसे ी तभागे वपताओिं में थे। यों उनकी ज्स्थनत बुरी न थी।
दो-ढ़ाई सौ रुपये म ीने वकालत से पीट लेते थे, पर खानदानी आदमी थे, उदार
ह्रदय, ब ु त ककफायत करने पर भी माकूल बचत न ो सकती थी। सिंबिंधियों
का आदर-सत्कार न करें तो न ीिं बनता, ममत्रों की खानतरदारी न करें तो न ी
बनता। कफर ईश्वर के हदये ुए दो पुत्र थे, उनका पालन-पोषण, मशक्षण का
भार था, क्या करते ! प ली कन्या का वववा टे ढ़ी खीर ो र ा था। य
आवश्यक था कक वववा अच्छे घराने में ो, अन्यथा लोग िं सेगे और अच्छे
घराने के मलए कम-से-कम पािंच जार का तखमीना था। उिर पत्र
ु ी सयानी
ोती जाती थी। व अनाज जो लडके खाते थे, व भी खाती थी; लेककन लडकों
को दे खो तो जैसे सूखों का रोग लगा ो और लडकी शुक्ल पक्ष का चािंद ो
र ी थी। ब ु त दौड-िूप करने पर बचारे को एक लडका ममला। बाप आबकारी के
ववभाग में ४०० रु० का नौकर था, लडका सुमशक्षक्षत। स्त्री से आकार बोले,
लडका तो ममला और घरबार-एक भी काटने योग्य न ीिं; पर कहठनाई य ी ै
कक लडका क ता ै , मैं अपना वववा न करुिं गा। बाप ने समझाया, मैने
ककतना समझाया, औरों ने समझाया, पर व टस से मस न ीिं ोता। क ता
ै , मै कभी वववा न करुिं गा। समझ में न ीिं आता, वववा से क्यों इतनी घण
ृ ा
करता ै । कोई कारण न ीिं बतलाता, बस य ी क ता ै , मेरी इच्छा। मािं बाप
का एकलौता लडका ै । उनकी परम इच्छा ै कक इसका वववा ो जाय, पर
करें क्या? यों उन् ोने फलदान तो रख मलया ै पर मुझसे क हदया ै कक
लडका स्वभाव का ठीला ै , अगर न मानेगा तो फलदान आपको लौटा हदया
जायेगा।
गुलजारीलाल--बुलाया था। बैठा रोता र ा, कफर उठकर चला गया। तुमसे क्या
क ूिं , उसके पैरों पर धगर पडा; लेककन बबना कुछ क े उठाकर चला गया।
गल
ु जारीलाल--कुछ न ीिं, आजकल के लौंडे सैलानी ोते ैं। अिंगरे जी पस्
ु तकों में
पढ़ते ै कक ववलायत में ककतने ी लोग अवववाह त र ना ी पसिंद करते ै ।
बस य ी सनक सवार ो जाती ै कक ननद्गवद्व र ने में ी जीवन की सुख
और शािंनत ै । ज्जतनी मुसीबतें ै व सब वववा ी में ै । मैं भी कालेज में
था तब सोचा करता था कक अकेला र ूिं गा और मजे से सैर-सपाटा करुिं गा।
‘पज
ू यवर,
सादर प्रणाम।
सेवक
‘ जारीलाल।’
पत्र पढ़कर गल
ु जारीलाल ने स्त्री की ओर दे खा और बोले--इस पत्र के ववषय में
तुम् ारा क्या ववचार ैं।
स्त्री--मुझे तो कसा मालूम ोता ै कक उसने ब ाना रचा ै।
गल
ु जारीलाल--बस-बस, ठीक य ी मेरा भी ववचार ै । उसने समझा ै कक
बीमारी का ब ाना कर दिं ग
ू ा तो आप ी ट जायेंगे। असल में बीमारी कुछ
न ीिं। मैने तो दे खा ी था, चे रा चमक र ा था। बीमार का मुिं नछपा न ीिं
र ता।
स्त्री--राम नाम ले के वववा करो, कोई ककसी का भाग्य थोडे ी पढ़े बैठा ै।
गल
ु जारीलाल--य ी तो मै सोच र ा ूिं ।
जारीलाल बडे िमग-सिंदे में था। उसके पैरों में जबरदस्ती वववा की बेडी डाली
जा र ी थी और व कुछ न कर सकता था। उसने ससुर का अपना कच्चा
धचट्ठा क सन
ु ाया; मगर ककसी ने उसकी बालों पर ववश्वास न ककया। मााँ-बाप
से अपनी बीमारी का ाल क ने का उसे सा स न ोता था। न जाने उनके
हदल पर क्या गुजरे , न जाने क्या कर बैठें? कभी सोचता ककसी डाक्टर की
श दत लेकर ससूर के पास भेज दिं ,ू मगर कफर ध्यान आता, यहद उन लोगों को
उस पर भी ववश्वास न आया, तो? आजकल डाक्टरी से सनद ले लेना कौन-सा
मज्ु श्कल काम ै । सोचें गे, ककसी डाक्टर को कुछ दे हदलाकर मलखा मलया ोगा।
शादी के मलए तो इतना आग्र ो र ा था, उिर डाक्टरों ने स्पष्ट क हदया
था कक अगर तुमने शादी की तो तुम् ारा जीवन-सुत्र और भी ननबगल ो जाएगा।
म ीनों की जग हदनों में वारा-न्यारा ो जाने की सम्भावाना ै।
लग्न आ चक
ु ी थी। वववा की तैयाररयािं ो र ी थीिं, मे मान आते-जाते थे और
जारीलाल घर से भागा-भागा कफरता था। क ािं चला जाऊिं? वववा की कल्पना ी
से उसके प्राण सूख जाते थे। आ ! उस अबला की क्या गनत ोगी ? जब उसे
य बात मालूम ोगी तो व मुझे अपने मन में क्या क े गी? कौन इस पाप
का प्रायज्श्चत करे गा ? न ीिं, उस अबला पर घोर अत्याचार न करुिं गा, उसे वैिव्य
की आग में न जलाऊिंगा। मेरी ज्जन्दगी ी क्या, आज न मरा कल मरुिं गा, कल
न ीिं तो परसों, तो क्यों न आज ी मर जाऊिं। आज ी जीवन का और उसके
साथ सारी धचिंताओिं को, सारी ववपज्त्तयों का अन्त कर दिं ।ू वपता जी रोयेंगे,
अम्मािं प्राण त्याग दें गी; लेककन एक बामलका का जीवन तो सफल ो जाएगा,
मेरे बाद कोई अभागा अनाथ तो न रोयेगा।
क्यों न चलकर वपताजी से क दिं ?ू व एक-दो हदन द:ु खी र ें गे, अम्मािं जी दो-
एक रोज शोक से ननरा ार र जायेगीिं, कोई धचिंता न ीिं। अगर माता-वपता के
इतने कष्ट से एक युवती की प्राण-रक्षा ो जाए तो क्या छोटी बात ै?
जारीलाल ने बडे ववनीत शब्दों में अपना आशय क ा, डाक्टरों की राय भी बयान
की और अन्त में बोलें --कसी दशा में मुझे पूरी आशा ै कक आप मुझे वववा
करने के मलए बाध्य न करें गें। दरबारीलाल ने पुत्र के मुख की और गौर से दे खा,
क े जदी का नाम न था, इस कथन पर ववश्वास न आया; पर अपना अववश्वास
नछपाने और अपना ाहदग क शोक प्रकट करने के मलए व कई ममनट तक
ग री धचिंता में मग्न र े । इसके बाद पीडडत किंठ से बोले --बेटा, इस इशा में तो
वववा करना और भी आवश्यक ै । ईश्वर न करें कक म व बुरा हदन दे खने
के मलए जीते र े , पर वववा ो जाने से तुम् ारी कोई ननशानी तो र जाएगी।
ईश्वर ने कोई सिंतान दे दी तो व ी मारे बुढ़ापे की लाठी ोगी, उसी का मुिं
दे खरे ख कर हदल को समझायेंगे, जीवन का कुछ आिार तो र े गा। कफर आगे
क्या ोगा, य कौन क सकता ै ? डाक्टर ककसी की कमग-रे खा तो न ीिं पढ़ते,
ईश्वर की लीला अपरम्पार ै , डाक्टर उसे न ीिं समझ सकते । तम
ु ननज्श्चिंत
ोकर बैठों, म जो कुछ करते ै , करने दो। भगवान चा ें गे तो सब कल्याण
ी ोगा।
जारीलाल ने इसका कोई उत्तर न ीिं हदया। आिंखे डबडबा आयीिं , किंठावरोि के
कारण मुिं तक न खोल सका। चुपके से आकर अपने कमरे मे लेट र ा।
तीन हदन और गज
ु र गये, पर जारीलाल कुछ ननश्चय न कर सका। वववा की
तैयाररयों में रखे जा चक
ु े थे। मिंत्रेयी की पज
ू ा ो चक
ू ी थी और द्वार पर बाजों
का शोर मचा ु आ था। मु ल्ले के लडके जमा ोकर बाजा सुनते थे और
उल्लास से इिर-उिर दौडते थे।
सिंध्या ो गयी थी। बरात आज रात की गाडी से जाने वाली थी। बरानतयों
ने अपने वस्त्राभूष्ण प नने शुरु ककये। कोई नाई से बाल बनवाता था और
चा ता था कक खत कसा साफ ो जाय मानों व ािं बाल कभी थे ी न ीिं , बुढ़े
अपने पके बाल को उखडवा कर जवान बनने की चेष्टा कर र े थे। तेल ,
साबुन, उबटन की लूट मची ु ई थी और जारीलाल बगीचे मे एक वक्ष
ृ के
नीचे उदास बैठा ु आ सोच र ा था, क्या करुिं ?
उसने सोचा मारे माता-वपता ककतने अदरू दशी ै , अपनी उमिंग में इन् े इतना
भी न ी सझ
ू ता कक विु पर क्या गज
ु रे गी। विू के माता-वपता ककतने अदरू दशी
ै , अपनी उमिंग मे भी इतने अन्िे ो र े ै कक दे खकर भी न ीिं दे खते , जान
कर न ीिं जानते।
क्या य वववा ै ? कदावप न ीिं। य तो लडकी का कुएिं में डालना ै , भाड मे
झोंकना ै , किंु द छुरे से रे तना ै । कोई यातना इतनी दस्
ु स , कर अपनी पत्र
ु ी का
वैिव्य के अज्ग्न-किंु ड में डाल दे ते ै। य माता-वपता ै ? कदावप न ीिं। य
लडकी के शत्रु ै , कसाई ै , बधिक ैं, त्यारे ै । क्या इनके मलए कोई दण्ड न ीिं
? जो जानबूझ कर अपनी वप्रय सिंतान के खून से अपने ाथ रिं गते ै , उसके
मलए कोई दिं ड न ीिं? समाज भी उन् े दिं ड न ीिं दे ता, कोई कुछ न ीिं क ता। ाय !
उस हदन से कफर ककसी ने जारीलाल की सूरत न ीिं दे खी। मालूम न ीिं जमीन
खा गई या आसमान। नाहदयों मे जाल डाले गए, कुओिं में बािंस पड गए, पमु लस
में ु मलया गया, समाचार-पत्रों मे ववज्ञज्प्त ननकाली गई, पर क ीिं पता न चला ।
अम्बा-- ााँ।
मयागदा—क्यों, क्या मझ
ु में कुछ छूत लग गई!
परशुराम—प ले य बताओिं तुम इतने हदनों से क ािं र ीिं, ककसके साथ र ीिं, ककस
तर र ीिं और कफर य ािं ककसके साथ आयीिं? तब, तब ववचार...दे खी जाएगी।
परशुराम— ािं, य ी बात ै । तुम स्नान करके नदी से तो मेरे साथ ी ननकली
थीिं। मेरे पीछे -पीछे कुछ दे र तक आयीिं भी; मै पीछे कफर-कफर कर तुम् ें दे खता
जाता था,कफर एकाएक तुम क ािं गायब ो गयीिं?
परशुराम –तो तम
ु उसके साथ ो लीिं?
परशुराम—तम
ु ने उसी वक्त अध्यक्ष से क्यों न क ा कक मझ
ु े प ुिं चा दीज्जए?
परशुराम—खैर, रात को तम
ु व ीिं र ी। यव
ु क बार-बार भीतर आते र े ोंगे?
मयागदा— ािं, व आते थे। पर द्वार पर से पूछ-पूछ कर लौट जाते थे। ािं, जब
एक मह ला के पेट में ददग ोने लगा था तो दो-तीन बार दवाएिं वपलाने आए थे।
परशुराम—ननकली न व ी बात! मै इन िूतों की नस-नस प चानता ूिं ।
ववशेषकर नतलक-मालािारी दहढ़यलों को मैं गुरू घिंटाल ी समझता ूिं । तो वे
म ाशय कई बार दवाई दे ने गये ? क्यों तुम् ारे पेट में तो ददग न ीिं ोने लगा
था?
परशुराम— ािं, व ािं सब दे वता ी दे वता जमा थे। खैर, तुम रात-भर व ािं र ीिं।
दस
ू रे हदन क्या ु आ?
मयागदा—दस
ू रे हदन भी व ीिं र ी। एक स्वयिंसेवक म सब ज्स्त्रयों को साथ में
लेकर मुख्य-मुख्य पववत्र स्थानो का दशगन कराने गया। दो प र को लौट कर
सबों ने भोजन ककया।
परशुराम—तो व ािं तुमने सैर-सपाटा भी खूब ककया, कोई कष्ट न ोने पाया।
भोजन के बाद गाना-बजाना ु आ ोगा?
परशुराम—मगर तम
ु तो आज सातवें हदन आ र ी ो और व भी अकेली?
मयागदा—स्टे शन पर एक दघ
ु ट
ग ना ो गयी।
मयागदा—क्या बतलाऊिं कौन था? मैं तो समझती ूिं , कोई दलाल था?
परशुराम—कोई आ र ा ै।
भाभी—वासद
ु े व को दे खने को जी चा ता था भैया, क्या सो गया?
मयागदा— ािं, उसने मुझे तािंगे पर बैठाया और एक तिंग गली में , एक छोटे - से
मकान के अन्दर ले जाकर बोला, तुम य ीिं बैठो, मुम् ारें बाबूजी य ीिं आयेंगे।
अब मुझे ववहदत ुआ कक मुझे िोखा हदया गया। रोने लगी। व आदमी
थोडी दे र बाद चला गया और एक बुहढया आ कर मुझे भािंनत-भािंनत के
प्रलोभन दे ने लगी। सारी रात रो-रोकर काटी दस
ू रे हदन दोनों कफर मझ
ु े समझाने
लगे कक रो-रो कर जान दे दोगी, मगर य ािं कोई तम्
ु ारी मदद को न आयेगा।
तुम् ाराएक घर डूट गया। म तुम् े उससे क ीिं अच्छा घर दें गें ज ािं तुम सोने
के कौर खाओगी और सोने से लद जाओगी। लब मैने दे खा ककक य ािं से
ककसी तर न ीिं ननकल सकती तो मैने कौशल करने का ननश्चय ककया।
परशुराम—खैर, सुन चुका। मैं तुम् ारा ी क ना मान लेता ूिं कक तुमने अपने
सतीत्व की रक्षा की, पर मेरा हृदय तुमसे घण
ृ ा करता ै , तुम मेरे मलए कफर व
न ीिं ननकल सकती जो प ले थीिं। इस घर में तुम् ारे मलए स्थान न ीिं ै।
परशुराम—मै य सब सोच चक
ु ा और ननश्चय कर चक
ु ा। आज छ: हदन से य
सोच र ा ूिं । तुम जानती ो कक मुझे समाज का भय न ीिं। छूत-ववचार को
मैंने प ले ी नतलािंजली दे दी, दे वी-दे वताओिं को प ले ी ववदा कर चुका:पर
ज्जस स्त्री पर दस
ू री ननगा ें पड चुकी, जो एक सप्ता तक न-जाने क ािं और
ककस दशा में र ी, उसे अिंगीकार करना मेरे मलए असम्भव ै। अगर अन्याय
ै तो ईश्वर की ओर से ै , मेरा दोष न ीिं।
परशुराम—तम्
ु ारा ककसी अन्य परू
ु ष के साथ क्षण-भर भी एकान्त में र ना
तुम् ारे पनतव्रत को नष्ट करने के मलए ब ु त ै। य ववधचत्र बिंिन ै , र े तो
जन्म-जन्मान्तर तक र े : टूटे तो क्षण-भर में टूट जाए। तुम् ीिं बताओिं, ककसी
मुसलमान ने जबरदस्ती मुझे अपना उज्च्छट भोलन खखला हदया ोता तो मुझे
स्वीकार करतीिं?
मयागदा—व .... व .. तो दस
ू री बात ै।
मयागदा—तो तम्
ु ारा य ीिं अनतमिं ननश्चय ै?
परशुराम—वासद
ु े व मेरा पत्र
ु ै।
***
नैराश्य लीला
दस
ू री दे वी ने आिंखें मटकाते ु ए क ा—अरे , तो य तो बदे की बात ै । सभी के
हदन िं सी-खुिंशी से कटें तो रोये कौन। य ािं तो सुब से शाम तक चक्की-चूल् े
से छुट्टी न ीिं ममलती: ककसी बच्चे को दस्त आ र ें तो ककसी को जवर चढा
इस पर एक वद्ध
ृ ा ने क ा—नौज कसा हदल: य भी कोई हदल ै कक घर में
चा े आग लग जाय, दनु नया में ककतना ी उप ास ो र ा ो, लेककन आदमी
अपने राग-रिं ग में मस्त र । व हदल ै कक पत्थर : म गहृ णी क लाती
ै , मारा काम ै अपनी ग ृ स्थी में रत र ना। आमोद-प्रमोद में हदन काटना
मारा काम न ीिं।
जागेश्वरी—तम्
ु ीिं कोई उपाय सोचो।
मािं-बेटी अब ककश्ती पर सैर करने के मलए गिंगा न जातीिं, बज्ल्क स्नान करने
के मलए। मिंहदरो में ननत्य जातीिं। दोनािं एकादशी का ननजगल व्रम रखने लगीिं।
कैलासी को गुरूजी ननत्य सिंध्या-समय िमोपदे श करते। कुछ हदनों तक तो
कैलासी को य ववचार-पररवगतन ब ुत कष्टजनक मालूम ु आ, पर िमगननष्ठा
नाररयों का स्वाभाववक गण
ु ै , थोडे ी हदनो में उसे िमग से रूची ो गयी। अब
उसे अपनी अवस्था का ज्ञान ोने लगा था। ववषय-वासना से धचत्त आप ी
आप खखिंचने लगा। पनत का यथाथग आशय समझ में आने लगा था। पनत ी
स्त्री का सच्चा पथ प्रदशगक और सच्चा स ायक ै । पनतवव ीन ोना ककसी
घोर पाप का प्रायज्श्चत ै। मैने पूव-ग जन्म में कोई अकमग ककया ोगा।
पनतदे व जीववत ोते तो मै कफर माया में फिंस जाती। प्रायज्श्चत कर अवसर
क ािं ममलता। गरू
ु जी का वचन सत्य ै कक परमात्मा ने तम्
ु ें पव
ू ग कमों के
प्रायज्श्चत का अवसर हदया ै । वैिव्य यातना न ीिं ै , जीवोद्धर का सािन ै।
मेरा उद्धार त्याग, ववराग, भज्क्त और उपासना से ोगा।
कुछ हदनों के बाद उसकी िाममगक वज्ृ त्त इतनी प्रबल ो गयी, कक अन्य प्राखणयों
से व पथ
ृ क् र ने लगी। ककसी को न छूती, म ररयों से दरू र ती, स े मलयों से
गले तक न ममलती, हदन में दो-दो तीन-तीन बार स्नान करती, मेशा कोई न
कोई िमग-ग्रन्थ पढा करती। सािु –म ात्माओिं के सेवा-सत्कार में उसे आज्त्मक
सुख प्राप्त ोता। ज ािं ककसी म ात्मा के आने की खबर पाती, उनके दशगनों
के मलए कवकल ो जाती। उनकी अमत
ृ वाणी सुनने से जी न भरता। मन सिंसार
से ववरक्त ोने लगा। तल्लीनता की अवस्था प्राप्त ो गयी। घिंटो ध्यान और
धचिंतन में मग्न र ती। समाज्जक बिंिनो से घण
ृ ो गयी। घिंटो ध्यान और
धचिंतन में मग्न र ती। हृदय स्वाधिनता के मलए लालानयत ो गया: य ािं
तक कक तीन ी बरसों में उसने सिंन्यास ग्र ण करने का ननश्चय कर मलया।
दस
ू रे हदन य बात मु ल्ले वालों के कानों में प ुिं च गयी। जब कोई अवस्था
असाध्य ो जाती ै तो म उस पर व्यिंग करने लगते ै । ‘य तो ोना ी था,
नयी बात क्या ु ई, लडडककयों को इस तर स्वछिं द न ीिं कर हदया जाता, फूले न
समाते थे कक लडकी ने कुल का नाम उजजवल कर हदया। पुराण पढती
ै , उपननषद् और वेदािंत का पाठ करती ै , िाममगक समस्याओिं पर कसी-कसी
दलीलें करती ै कक बडे-बडे ववद्वानों की जबान बिंद ो जाती ै तो अब क्यों
पछताते ै ?’
भद्र पुरूषों में कई हदनों तक य ी आलोचना ाती र ी। लेककन जैसे अपने बच्चे
के दौडते-दौडते –िम से धगर पडने पर म प ले क्रोि के आवेश में उसे
खझडककयािं सन
ु ाते ै , इसके बाद गोद में बबठाकर आिंसू पोछतें और फुसलाने
का लगते ै : उसी तर इन भद्र पुरूषों ने व्रग्य के बाद इस गुत्थी के
सुलझाने का उपाय सोचना शुरू ककया। कई सजजन हृदयनाथ के पास आये और
मसर झुकाकर बैठ गये। ववषय का आरम्भ कैसे ो?
दस
ू रो म ाश्य –समस्त जानत के मसर कह ए।
कैलास कुमारी की सेवा-प्रवज्ृ त्त हदनों-हदन तीव्र ोने लगी। हदन भर लडककयों
को मलए र ती: कभी पढाती, कभी उनके साथ खेलती, कभी सीना-वपरोना
मसखाती। पाठशाला ने पररवार का रूप िारण कर मलया। कोई लडकी बीमार ो
जाती तो तरु न्त उसके घर जाती, उसकी सेवा-सश्र
ु षू ा करती, गा कर या
क ाननयािं सन
ु ाकर उसका हदल ब लाती।
हृदयनाथ—जो रास्ता ननकालता ूिं व ी कुछ हदनों के बाद ककसी दलदल में फिंसा
दे ता ै। अब कफर बदनामी के समान ोते नजर आ र े ै । लोग क ें गें , लडकी
दस
ू रों के घर जाती ै और कई-कई हदन पडी र ती ै । क्या करूिं, क दिं ,ू
लडककयों को न पढाया करो?
ूिं कक पग-पग पर मुझ पर शिंका की जाए, ननत्य कोई चरवा ों की भािंनत मेरे
पीछे लाठी मलए घूमता र े कक ककसी खेत में न जाने बूडू। य दशा मेरे मलए
असह्य ैं।
पाठशाला तो दस
ू रे हदन बन्द ो गयी, ककन्तु उसी हदन कैलाशकुमारी को पुरूषों
से जलन ोने लगी। ज्जस सख
ु -भोग से प्रारब्ि में विंधचत कर दे ता ै उससे
मे द्वेष ो जाता ै। गरीब आदमी इसीलए तो अमीरों से जलता ै और
िन की ननन्दा करता ै। कैलाशी बार-बार झुिंझलाती कक स्त्री क्यों पुरूष पर
इतनी अवलज्म्बत ै ? पुरूशष क्यों स्त्री के भग्य का वविायक ै ? स्त्री क्यों
ननत्य पुरूषों का आश्रय चा े , उनका मुिं ताके? इसमलए न कक ज्स्त्रयों में
अमभमान न ीिं ै , आत्म सम्मान न ीिं ै । नारी हृदय के कोमल भाव, उसे कुत्ते
का दम
ु ह लाना मालम
ू ोने लगे। प्रेम कैसा। य सब ढोग ै , स्त्री परू
ु ष के
अधिन ै , उसकी खुशमद न करे , सेवा न करे , तो उसका ननवाग कैसे ो।
इसी तर एक हदन उसने रिं गीन रे शमी साडी प न ली। पडोमसनों में इस पर
खूब आलोचनाएाँ ु ईं।
उसने एकादशी का व्रत रखनाउ छोड हदया जो वपछले आठ वषों से रखमी आयीिं
थी। किंघी और आइने को व अब त्याजय न समझती थी।
स ालग के हदन आए। ननत्य प्रनत उसके द्वार पर से बरातें ननकलतीिं । मु ल्ले
की ज्स्त्रयााँ अपनी अटाररयों पर खडी ोकर दे खती। वर के रिं ग-रूप, आकर-
प्रकार पर हटकाएिं ोती, जागेश्वरी से भी बबना एक आख दे खे र ा न
जाता। लेककन कैलाशकुमारी कभी भूलकर भी इन जालूसो को न दे खती।
कोई बरात या वववा की बात चलाता तो व मु िं फेर लेती। उसकी दृज्ष्ट में
व वववा न ीिं, भोली-भाली कन्याओिं का मशकार था। बरातों को व
मशकाररयों के कुत्ते समझती। य वववा न ीिं बमलदान ै।
कैलाशकुमारी—मै अपना िमग न ीिं समझती। मेरे मलए अपनी आत्मा की रक्षा के
मसवा और कोई िमग न ीिं?
जागेश्वरी—कोई उपाय ै?
हृदयनाथ—बस एक ी उपाय ै , पर उसे जबान पर न ीिं ला सकता
***
कौशल
पिंडडत—दस
ू रे की चीज ना क मािंग लायी। क ीिं चोरी ो जाए तो ार तो
बनवाना ी पडे, उपर से बदनामी भी ो।
माया—मैं तो कसा ी ार लग
ू ी। २० तोले का ै।
पिंडडत—कफर व ी ज्जद।
माया—न ीिं,न ीिं, खपरै ल पर से उतरे ैं। मेरी नीदिं खुली तो कोई मेरे ऊपर
झुका ुआ था। ाय रे , य तो ार ी ले गया, प ने-प ने सो गई थी। मुए ने
गले से ननकाल मलया । ाय भगवान,
पडोसी लालटे न मलए आ प ुिं च।े घर में कोना –कोना दे खा। कररयािं दे खीिं, छत
पर चढकर दे खा, अगवाडे-वपछवाडे दे खा, शौच ग ृ में झाका, क ीिं चोर का पता न
था।
दस
ू रा पडोसी—बबना घर के भेहदये के कभी चोरी न ीिं ोती। और कुछ तो न ीिं
ले गया?
माया—क दिं ग
ू ी घर में चोरी ो गयी। क्या लेगी? अब उनके मलए कोई चोरी
थोडे ी करने जायेगा।
पिंडडत तुम् ारे घर से चीज गयी, तुम् ें दे नी पडेगी। उन् े इससे क्या प्रयोजन
कक चोर ले गया या तम
ु ने उठाकर रख मलया। पनतययेगी ी न ी।
पिंडडत—क ीिं न क ीिं से तो आयेंगे ी,न ीिं तो लाज कैसे र े गी: मगर की तुमने
बडी भूल ।
छ: म ीने तक उन् ोने हदन को हदन और रात को रात न ीिं जाना। दोप र
को सोना छोड हदया, रात को भी ब ु त दे र तक जागते। प ले केवल एक
पाठशाला में पढाया करते थे। इसके मसवा व ब्राह्मण के मलए खल
ु े ु ए एक
सौ एक व्यवसायों में सभी को ननिंदननय समझते थे। अब पाठशाला से आकर
सिंध्या एक जग ‘भगवत ्’ की कथा क ने जाते व ािं से लौट कर ११-१२ बजे
रात तक जन्म किंु डमलयािं, वषग-फल आहद बनाया करते। प्रात:काल मज्न्दर में
‘दग
ु ाग जी का पाठ करते । माया पिंडडत जी का अध्यवसाय दे खकर कभी-कभी
पछताती कक क ािं से मैने य ववपज्त्त मसर पर लीिं क ीिं बीमार पड जायें
तो लेने के दे ने पडे। उनका शरीर क्षीण ोते दे खकर उसे अब य धचनता
व्यधथत करने जगी। य ािं तक कक पािंच म ीने गुजर गये।
माया ने पडु डया खोली तो उसमें सोने का ार था, उसकी चमक-दमक, उसकी
सुन्दर बनावट दे खकर उसके अन्त:स्थल में गुदगदी –सी ोने लगी । मुख पर
आन्नद की आभा दौड गई। उसने कातर नेत्रों से दे खकर पूछा—खुश ो कर
दे र े ो या नाराज ोकर1.
माया—य ऋण न ीिं ै।
पिंडडत—सच?
पिंडडत—मेरी कसम?
माया- ािं?
***
स्त्िर्ग की दे िी
भाग्य की बात ! शादी वववा में आदमी का क्या अज्ख्तयार । ज्जससे ईश्वर
ने, या उनके नायबों –ब्रह्मण—ने तय कर दी, उससे ो गयी। बाबू भारतदास
ने लीला के मलए सुयोग्य वर खोजने में कोई बात उठा न ी रखी। लेककन जैसा
घर-घर चा ते थे, वैसा न पा सके। व लडकी को सख
ु ी दे खना चा ते थे,
जैसा र एक वपता का िमग ै ; ककिं तु इसके मलए उनकी समझ में सम्पज्त्त ी
सबसे जरूरी चीज थी। चररत्र या मशक्षा का स्थान गौण था। चररत्र तो ककसी के
माथे पर मलखा न ी र ता और मशक्षा का आजकल के जमाने में मूल्य ी क्या
? ािं, सम्पज्त्त के साथ मशक्षा भी ो तो क्या पूछना ! कसा घर ब ु त ढढा पर
न ममला तो अपनी ववरादरी के न थे। बबरादरी भी ममली, तो जायजा न ममला!;
जायजा भी ममला तो शते तय न ो सकी। इस तर मजबरू ोकर
भारतदास को लीला का वववा लाला सन्तसरन के लडके सीतासरन से करना
पडा। अपने बाप का इकलौता बेटा था, थोडी ब ु त मशक्षा भी पायी थी,
बातचीत सलीके से करता था, मामले-मुकदमें समझता था और जरा हदल का
रिं गीला भी था । सबसे बडी बात य थी कक रूपवान, बमलष्ठ, प्रसन्न मुख,
सा सी आदमी था ; मगर ववचार व ी बाबा आदम के जमाने के थे। पुरानी
ज्जतनी बाते ै , सब अच्छी ; नयी ज्जतनी बातें ै , सब खराब ै । जायदाद के
ववषय में जमीिंदार सा ब नये -नये दफों का व्यव ार करते थे, व ािं अपना कोई
अज्ख्तयार न था ; लेककन सामाज्जक प्रथाओिं के कटटर पक्षपाती थे। सीतासरन
अपने बाप को जो करते या क ते व ी खुद भी क ता था। उसमें खुद सोचने
की शज्क्त ी न थी। बुद्वव की मिंदता ब ु िा सामाज्जक अनुदारता के रूप में
प्रकट ोती ै।
लीला ने ज्जस हदन घर में व वॉँ रखा उसी हदन उसकी परीक्षा शुरू ु ई। वे सभी
काम, ज्जनकी उसके घर में तारीफ ोती थी य ािं वज्जगत थे। उसे बचपन से
ताजी वा पर जान दे ना मसखाया गया था, य ािं उसके सामने मिंु खोलना भी
पाप था। बचपन से मसखाया गया था रोशनी ी जीवन ै , य ािं रोशनी के
दशगन दभ
ु भ
ग थे। घर पर अह स
िं ा, क्षमा और दया ईश्वरीय गुण बताये गये थे,
य ािं इनका नाम लेने की भी स्वािीनता थी। सिंतसरन बडे तीखे , गुस्सेवर आदमी
थे, नाक पर मक्खी न बैठने दे त।े िूतत
ग ा और छल-कपट से ी उन् ोने
जायदाद पैदा की थी। और उसी को सफल जीवन का मिंत्र समझते थे। उनकी
पत्नी उनसे भी दो अिंगल
ु ऊिंची थीिं। मजाल क्या ै कक ब ू अपनी अिंिेरी
कोठरी के द्वार पर खडी ो जाय, या कभी छत पर ट ल सकें । प्रलय आ
जाता, आसमान मसर पर उठा लेती। उन् ें बकने का मजग था। दाल में नमक का
जरा तेज ो जाना उन् ें हदन भर बकने के मलए काफी ब ाना था । मोटी-
ताजी मह ला थी, छीिंट का घाघरे दार लिं गा प ने, पानदान बगल में रखे, ग नो
से लदी ु ई, सारे हदन बरोठे में माची पर बैठी र ती थी। क्या मजाल कक घर
में उनकी इच्छा के ववरूद्व एक पत्ता भी ह ल जाय ! ब ू की नयी-नयी आदतें
दे ख दे ख जला करती थी। अब का े की आबरू ोगी। मुिंडरे पर खडी ो कर
झािंकती ै । मेरी लडकी कसी दीदा-हदलेर ोती तो गला घोंट दे ती। न जाने
इसके दे श में कौन लोग बसते ै ! ग नें न ी प नती। जब दे खो निंगी-बुच्ची
बनी बैठी र ती ै। य भी कोई अच्छे लच्छन ै । लीला के पीछे सीतासरन पर
भी ॉँ
फटकार पडती। तुझे भी च दनी में सोना अच्छा लगता ै , क्यों ? तू भी
अपने को मदग क ता क े गा ? य मदग कैसा कक औरत उसके क ने में न र े ।
हदन-भर घर में घुसा र ता ै । मुिं में जबान न ी ै ? समझता क्यों न ी ?
बेटे के मुिं से कसी बातें सुन माता आग ो जाती और सारे हदन जलती; कभी
भाग्य को कोसती, कभी समय को।
सीतासरन माता के सामने तो कसी बातें करता ; लेककन लीला के सामने जाते
ी उसकी मनत बदल जाती थी। व व ी बातें करता था जो लीला को अच्छी
लगती। य ािं तक कक दोनों वद्
ृ वा की िं सी उडातें । लीला को इस में ओर
कोई सख
ु न था । व सारे हदन कुढती र ती। कभी चल्
ू े के सामने न बैठी
थी ; पर य ािं पसेररयों आटा थेपना पडता, मजूरों और ट लुओिं के मलए रोटी
पकानी पडती। कभी-कभी व चूल् े के सामने बैठी घिंटो रोती। य बात न थी
कक य लोग कोई म ाराज-रसोइया न रख सकते ो; पर घर की पुरानी प्रथा
य ी थी कक ब ू खाना पकाये और उस प्रथा का ननभाना जरूरी था। सीतासरन
को दे खकर लीला का सिंतप्त ह्रदय एक क्षण के मलए शान्त ो जाता था।
पािंच साल गज
ु र गये। लीला दो बच्चों की मािं ो गयी। एक लडका था, दस
ू री
लडकी । लडके का नाम जानकीसरन रखा गया और लडकी का नाम काममनी।
दोनो बच्चे घर को गुलजार ककये र ते थे। लडकी लडकी दादा से ह ली थी,
लडका दादी से । दोनों शोख और शरीर थें। गाली दे बैठ ना, मुिं धचढा दे ना तो
उनके मलए मामूली बात थी। हदन-भर खाते और आये हदन बीमार पडे र ते।
लीला ने खुद सभी कष्ट स मलये थे पर बच्चों में बुरी आदतों का पडना उसे
ब ुत बरु ा मालम
ू ोता था; ककन्तु उसकी कौन सन
ु ता था। बच्चों की माता
ोकर उसकी अब गणना ी न र ी थी। जो कुछ थे बच्चे थे, व कुछ न थी।
उसे ककसी बच्चे को डाटने का भी अधिकार न था, सािंस फाड खाती थी।
सबसे बडी आपज्त्त य थी कक उसका स्वास्र्थय अब और भी खराब ो गया था।
प्रसब काल में उसे वे भी अत्याचार स ने पडे जो अज्ञान, मख
ू त
ग ा और अिंि
ववश्वास ने सौर की रक्षा के मलए गढ रखे ै । उस काल-कोठरी में, ज ॉँ न
वा का गुजर था, न प्रकाश का, न सफाई का, चारों और दग
ु न्
ग ि, और सील
और गन्दगी भरी ु ई थी, उसका कोमल शरीर सूख गया। एक बार जो कसर
र गयी व दस
ू री बार पूरी ो गयी। चे रा पीला पड गया, आिंखे घिंस गयीिं। कसा
मालूम ोता, बदन में खन
ू ी न ी र ा। सरू त ी बदल गयी।
लीला—तुम जाओ अपनी म कफल मे बैठो, तुम् े मेरी क्या कफक्र पडी ै।
सीतासरन—क्या दनु नया में और ककसी के लडके न ी मरते ? तुम् ारे ी मसर पर
मुसीबत आयी ै ?
लीला ने कुतू ल से पनत को दे खा, मानो उसका आशय न ी समझी। कफर मुिं
फेर कर रोने लगी।
सीतासरन – मै अब इस मन ू सत का अन्त कर दे ना चा ता ूिं । अगर तम्
ु ारा
अपने हदल पर काबू न ी ै तो मेरा भी अपने हदल पर काबू न ी ै । मैं अब
ज्जिंदगी – भर मातम न ी मना सकता।
लीला—तम
ु रिं ग-राग मनाते ो, मैं तम्
ु ें मना तो न ी करती ! मैं रोती ूिं तो क्यिंू
न ी रोने दे त।े
सीतासरन—मेरा घर रोने के मलए न ी ै ?
ािं, मझ
ु ें अपना शोक भल
ू जाना ोगा। रोऊिंगी, रोना तो तकदीर में मलखा ी
ै —रोऊिंगी, लेककन िं स- िं स कर । अपने भाग्य से लडूग
िं ी। जो जाते र े उनके
नाम के मसवा और कर ी क्या सकती ूिं , लेककन जो ै उसे न जाने दिं ग
ू ी। आ, क
टूटे ु ए ह्रदय ! आज तेरे टुकडों को जमा करके एक समाधि बनाऊिं और अपने
शोक को उसके वाले कर दिं ।ू ओ रोने वाली आिंखों, आओ, मेरे आसिंओ
ु िं को अपनी
वव िं मसत छटा में नछपा लो। आओ, मेरे आभष
ू णों, मैंने ब ु त हदनों तक तम्
ु ारा
अपमान ककया ै , मेरा अपराि क्षमा करो। तुम मेरे भले हदनो के साक्षी ो,
तुमने मेरे साथ ब ु त वव ार ककए ै , अब इस सिंकट में मेरा साथ दो ; मगर
दे खो दगा न करना ; मेरे भेदों को नछपाए रखना।
सीतासरन का खम
ु ार शाम को टूटा । आखें खल
ु ीिं तो सामने लीला को खडे
मस्
ु कराते दे खा। उसकी अनोखी छवव आिंखों में समा गई। कसे खश
ु ु ए मानो
ब ु त हदनो के ववयोग के बाद उससे भें ट ु ई ो। उसे क्या मालूम था कक य
रुप भरने के मलए ककतने आिंसू ब ाये ै ; कैशों मे य फूल गूिंथने के प ले आिंखों
में ककतने मोती वपरोये ै । उन् ोनें एक नवीन प्रेमोत्सा से उठकर उसे गले
लगा मलया और मुस्कराकर बोले—आज तो तुमने बडे-बडे शास्त्र सजा रखे ै,
क ािं भागिंू ?
लीला—मझ
ु े डर ै क ीिं तम
ु चले न जाओ।
***
आधार
सारे ग वॉँ मे मथुरा का सा गठीला जवान न था। कोई बीस बरस की उमर थी ।
मसें भीग र ी थी। गउएिं चराता, दि
ू पीता, कसरत करता, कुश्ती लडता था और
सारे हदन बािंसुरी बजाता ाट मे ववचरता था। ब्या ो गया था, पर अभी
कोई बाल-बच्चा न था। घर में कई ल की खेती थी, कई छोटे -बडे भाई थे। वे
मथुरा को उनकी दशा पर दया आयी। बलवान मनुष्य प्राय: दयालु ोता ै।
बोला—अच्छा जाओ, म आज सािंड को भगा दें गे।
धचलधचलाती दोप री थी। मथुरा सािंड को भगाये मलए जाता था। दोंनो पसीने से
तर थे। सािंड बार-बार गािंव की ओर घूमने की चेष्टा करता, लेककन मथुरा उसका
इरादा ताडकर दरू ी से उसकी रा छें क लेता। सािंड क्रोि से उन्मत्त ोकर
कभी-कभी पीछे मड
ु कर मथरु ा पर तोड करना चा ता लेककन उस समय मथरु ा
सामाना बचाकर बगल से ताबड-तोड इतनी लाहठयािं जमाता कक सािंड को
कफर भागना पडता कभी दोनों अर र के खेतो में दौडते, कभी झाडडयों में ।
अर र की खूहटयों से मथुरा के पािंव ल ू -लु ान ो र े थे, झाडडयों में िोती फट
गई थी, पर उसे इस समय सािंड का पीछा करने के मसवा और कोई सुि न थी।
गािंव पर गािंव आते थे और ननकल जाते थे। मथुरा ने ननश्चय कर मलया कक
इसे नदी पार भगाये बबना दम न लिंग
ू ा। उसका किंठ सख
ू गया था और आिंखें
लाल ो गयी थी, रोम-रोम से धचनगाररयािं सी ननकल र ी थी, दम उखड गया
था ; लेककन व एक क्षण के मलए भी दम न लेता था। दो ढाई घिंटो के बाद
जाकर नदी आयी। य ी ार-जीत का फैसला ोने वाला था, य ी से दोनों
खखलाडडयों को अपने दािंव-पें च के जौ र हदखाने थे। सािंड सोचता था, अगर नदी
में उतर गया तो य मार ी डालेगा, एक बार जान लडा कर लौटने की कोमशश
करनी चाह ए। मथुरा सोचता था, अगर व लौट पडा तो इतनी मे नत व्यथग ो
जाएगी और गािंव के लोग मेरी िं सी उडायेगें। दोनों अपने – अपने घात में थे।
सािंड ने ब ु त चा ा कक तेज दौडकर आगे ननकल जाऊिं और व ािं से पीछे को
कफरूिं, पर मथुरा ने उसे मुडने का मौका न हदया। उसकी जान इस वक्त
सुई की नोक पर थी, एक ाथ भी चूका और प्राण भी गए, जरा पैर कफसला और
कफर उठना नशीब न ोगा। आखखर मनुष्य ने पशु पर ववजय पायी और सािंड
को नदी में घुसने के मसवाय और कोई उपाय न सूझा। मथुरा भी उसके पीछे
नदी मे पैठ गया और इतने डिंडे लगाये कक उसकी लाठी टूट गयी।
अब मथुरा को जोरो से प्यास लगी। उसने नदी में मुिं लगा हदया और इस तर
ौंक- ौंक कर पीने लगा मानो सारी नदी पी जाएगा। उसे अपने जीवन में
कभी पानी इतना अच्छा न लगा था और न कभी उसने इतना पानी पीया
था। मालूम न ी, पािंच सेर पी गया या दस सेर लेककन पानी गरम था, प्यास
न बुिंझी; जरा दे र में कफर नदी में मुिं लगा हदया और इतना पानी पीया कक
पेट में सािंस लेने की जग भी न र ी। तब गीली िोती किंिे पर डालकर घर
की ओर चल हदया।
लेककन दस की पािंच पग चला ोगा कक पेट में मीठा-मीठा ददग ोने लगा।
उसने सोचा, दौड कर पानी पीने से कसा ददग अकसर ो जाता ै , जरा दे र में दरू
ो जाएगा। लेककन ददग बढने लगा और मथुरा का आगे जाना कहठन ो
गया। व एक पेड के नीचे बैठ गया और ददग से बैचन
े ोकर जमीन पर
लोटने लगा। कभी पेट को दबाता, कभी खडा ो जाता कभी बैठ जाता, पर ददग
बढता ी जाता था। अन्त में उसने जोर-जोर से करा ना और रोना शुरू ककया;
पर व ािं कौन बैठा था जो, उसकी खबर लेता। दरू तक कोई गािंव न ी, न आदमी
न आदमजात। बेचारा दोप री के सन्नाटे में तडप-तडप कर मर गया। म
कडे से कडा घाव स सकते ै लेककन जरा सा-भी व्यनतक्रम न ी स सकते।
व ी दे व का सा जवान जो कोसो तक सािंड को भगाता चला आया था, तत्वों
के ववरोि का एक वार भी न स सका। कौन जानता था कक य दौड उसके
मलए मौत की दौड ोगी ! कौन जानता था कक मौत ी सािंड का रूप िरकर
उसे यों नचा र ी ै । कौरन जानता था कक जल ज्जसके बबना उसके प्राण
ओठों पर आ र े थे, उसके मलए ववष का काम करे गा।
सिंध्या समय उसके घरवाले उसे ढूिंढते ु ए आये। दे खा तो व अनिंत ववश्राम में
मग्न था।
एक म ीना गुजर गया। गािंववाले अपने काम-ििंिे में लगे । घरवालों ने रो-िो
कर सब्र ककया; पर अभाधगनी वविवा के आिंसू कैसे पिंछ
ु ते । व रदम रोती
र ती। आिंखे चािं े बन्द भी ो जाती, पर ह्रदय ननत्य रोता र ता था। इस घर
में अब कैसे ननवाग ोगा? ककस आिार पर ज्जऊिंगी? अपने मलए जीना या तो
म ात्माओिं को आता ै या लम्पटों ी को । अनूपा को य कला क्या मालूम?
उसके मलए तो जीवन का एक आिार चाह ए था, ज्जसे व अपना सवगस्व
समझे, ज्जसके मलए व मलये, ज्जस पर व घमिंड करे । घरवालों को य
गवारा न था कक व कोई दस
ू रा घर करे । इसमें बदनामी थी। इसके मसवाय
कसी सुशील, घर के कामों में कुशल, लेन-दे न के मामलो में इतनी चतुर और रिं ग
रूप की कसी सरा नीय स्त्री का ककसी दस
ू रे के घर पड जाना ी उन् ें
असह्रय था। उिर अनूपा के मैककवाले एक जग बातचीत पक्की कर र े थे।
जब सब बातें तय ो गयी, तो एक हदन अनूपा का भाई उसे ववदा कराने आ
प ुिं चा।
अब तो घर में खलबली मची। इिर क ा गया, म ववदा न करे गें । भाई ने
क ा, म बबना ववदा कराये मानेंगे न ी। गािंव के आदमी जमा ो गये , पिंचायत
ोने लगी। य ननश्चय ुआ कक अनूपा पर छोड हदया जाय, जी चा े र े ।
य ािं वालो को ववश्वास था कक अनूपा इतनी जल्द दस
ू रा घर करने को
राजी न ोगी, दो-चार बार कसा क भी चुकी थी। लेककन उस वक्त जो पूछा
गया तो व जाने को तैयार थी। आखखर उसकी ववदाई का सामान ोने लगा।
डोली आ गई। गािंव-भर की ज्स्त्रया उसे दे खने आयीिं। अनप
ू ा उठ कर अपनी
सािंस के पैरो में धगर पडी और ाथ जोडकर बोली—अम्मा, क ा-सन
ु ाद माफ
करना। जी में तो था कक इसी घर में पडी र ूिं , पर भगवान को मिंजूर न ी
ै।
सास करूणा से ववहृवल ो उठी। बोली—बेटी, ज ािं जाओिं व ािं सुखी र ो। मारे
भाग्य ी फूट गये न ी तो क्यों तम्
ु ें इस घर से जाना पडता। भगवान का
हदया और सब कुछ ै , पर उन् ोने जो न ी हदया उसमें अपना क्या बस ; बस
आज तुम् ारा दे वर सयाना ोता तो बबगडी बात बन जाती। तुम् ारे मन में
बैठे तो इसी को अपना समझो : पालो-पोसो बडा ो जायेगा तो सगाई कर
दिं ग
ू ी।
वासुदेव की उम्र पािंच साल से अधिक न थी। अबकी उसका ब्या ोने वाला था।
बातचीत ो चुकी थी। बोला—तब तो दस
ू रे के घर न जायगी न?
वासद
ु े व अनप
ू की गोद में जा बैठा और शरमाता ु आ बोला— मसे ब्या
करोगी?
सास—भगवान ् जानते ै !
गािंव के स्त्री-परू
ु ष उसकी य प्रेम तपस्या दे खते और दािंतो उिं गली दबाते। प ले
बबरले ी ककसी को उस पर ववश्वास था। लोग समझते थे , साल-दो-साल में
इसका जी ऊब जाएगा और ककसी तरफ का रास्ता लेगी; इस दि
ु मिंु े बालक
के नाम कब तक बैठी र े गी; लेककन य सारी आशिंकाएिं ननमल
ू ग ननकलीिं।
अनूपा को ककसी ने अपने व्रत से ववचमलत ोते न दे खा। ज्जस ह्रदय मे सेवा
को स्रोत ब र ा ो—स्वािीन सेवा का—उसमें वासनाओिं के मलए क ािं स्थान
? वासना का वार ननमगम, आशा ीन, आिार ीन प्राखणयों पर ी ोता ै चोर की
अिंिेरे में ी चलती ै , उजाले में न ी।
इस भााँनत १३ बरस गुजर गये। वासुदेव और अनूपा में सगाई की तैयारी ोने
लगीिं।
ूिं ।
अनप
ू ा—जो चा े क ें , ज्जनके नाम पर १४ वषग बैठी र ी उसी के नाम पर अब
भी बैठी र ूिं गी। मैंने समझा था मरद के बबना औरत से र ा न जाता ोगा।
मेरी तो भगवान ने इजजत आबरू ननबा दी। जब नयी उम्र के हदन कट गये
तो अब कौन धचन्ता ै ! वासुदेव की सगाई कोई लडकी खोजकर कर दो। जैसे
अब तक उसे पाला, उसी तर अब उसके बाल-बच्चों को पालूिंगी।
***
एक आंच की कसर
पािंचवें -खब
ू समझ र ा ूिं , आप लोग मझ
ु पर छीिंटे उडा र े ै।
दस
ू रे -सारा दोष ईश्वर का ज्जसने लडककयािं पैदा कीिं । क्यों?
चौथे- ािं, आपका य प्रश्न गौर करने लायक ै । मेरी समझ में तो कसी दशा में
लडकें के वपता से य मशकायत न ोनी चाह ए।
डाल-ग ने ने ले जाऊिंगा।
प ले---म ाशय आपकी बात ननराली ै । आप अपनी धगनती म दनु नयािं वालों के
साथ क्यों करते ैं ? आपका स्थान तो दे वताओिं के साथ ै।
दस
ू रा----20 जार की रकम छोड दी? क्या बात ै।
पर मैंने खद
ु कोई व्याख्यान न ी हदया, शायद कोई नोट तक न ी मलखा। ािं,
conference में इस प्रस्ताव को second कर चुका ूिं । मैं उसे तोडना भी चा ूिं तो
5 6
आत्मा न तोडने दे गी। मैं सत्य क ता ूिं , य रूपये लूिं तो मुझे इतनी मानमसक
वेदना ोगी कक शायद मैं इस आघात स बच ी न सकिंू ।
अन्याय ै।
इसकी परवा न ी।
थोथी दलील
1
मसद्धािंतों
2
िन
3
मूल्य
4
सभा
5
अनुमोदन
6
कतगव्य
7
कदर
8
इतने में खबर ु ई कक म ाशय स्वामीदयाल आ पिं ु चे । लोग उनका अमभवादन
करने को तैयार ु ए, उन् ें मसनद पर ला बबठाया और नतलक का सिंस्कार
आरिं म्भ ो गया। स्वामीदयाल ने एक ढाक के पत्तल पर नाररयल, सुपारी, चावल
पान आहद वस्तुएिं वर के सामने रखीिं। ब्राहृम्णों ने मिंत्र पढें वन ु आ और वर
के माथे पर नतलक लगा हदया गया। तुरन्त घर की ज्स्त्रयो ने मिंगलाचरण गाना
शुरू ककया। य ािं प कफल में म ाशय यशोदानन्द ने एक चौकी पर खडे ोकर
द े ज की कुप्रथा पर व्याख्यान दे ना शुरू ककया। व्याख्यान प ले से मलखकर
तैयार कर मलया गया था। उन् ोनें द े ज की कनत ामसक व्याख्या की थी।
पूवक
ग ाल में द े ज का नाम भी न थ। म ाशयों ! कोई जानता ी न था कक द े ज
या ठ रोनी ककस धचडडया का नाम ै । सत्य माननए, कोई जानता ी न था कक
ठ रौनी ै क्या चीज, पशु या पक्षी, आसमान में या जमीन में , खाने में या पीने
में । बादशा ी जमाने में इस प्रथा की बुिंननयाद पडी। मारे युवक सेनाओिं में
सज्म्ममलत ोने लगे । य वीर लोग थें , सेनाओिं में जाना गवग समझते थे।
माताएिं अपने दल
ु ारों को अपने ाथ से शस्त्रों से सजा कर रणक्षेत्र भेजती थीिं।
ॉँ युवकों की सिंख्या कम
इस भ नत ोने लगी और लडकों का मोल-तोल शुरू ु आ।
आज य नौवत आ गयी ै कक मेरी इस तच्
ु छ -म ातच्
ु छ सेवा पर पत्रों में
हटप्पखणयािं ो र ी ै मानों मैंने कोई असािारण काम ककया ै । मै क ता ूिं ;
अगर आप सिंसार में जीववत र ना चा ते ो तो इस प्रथा क तुरन्त अन्त
कीज्जए।
यशोदानन्द-अगर कसा ोता ै तो क्या पूछना था, लोगो को दिं ड ममल जाता और
वास्तव में कसा ोना चाह ए। य ईश्वर का अत्याचार ै कक कसे लोभी, िन पर
धगरने वाले, बुदाग-फरोश, अपनी सिंतान का ववक्रय करने वाले नरािम जीववत ै।
और समाज उनका नतरस्कार न ी करता । मगर व सब बुदग-फरोश ै ------
इत्याहद।
व्याख्यान ब ुिं तद लम्बा ओर ास्य भरा ु आ था। लोगों ने खब
ू वा -वा की ।
अपना वक्तव्य समाप्त करने के बाद उन् ोने अपने छोटे लडके परमानन्द को,
ज्जसकी अवस्था ७ वषग की थी, मिंच पर खडा ककया। उसे उन् ोनें एक छोटा-सा
व्याख्यान मलखकर दे रखा था। हदखाना चा ते थे कक इस कुल के छोटे बालक
भी ककतने कुशाग्र बुद्वव ै । सभा समाजों में बालकों से व्याख्यान हदलाने की
प्रथा ै ी, ककसी को कुतू ल न ु आ।बालक बडा सुन्दर, ोन ार, िं समुख था।
मस्
ु कराता ु आ मिंच पर आया और एक जेब से कागज ननकाल कर बडे गवग के
साथ उच्च स्वर में पढने लगा---
वप्रय बिंिुवर,
नमस्कार !
म ाशय श्योदानन्द घर में मे मानों के मलए भोजन परसने का आदे श करने गये
थे। ननकले तो य बाक्य उनके कानों में पडा-२५ में से ५ मेरे साथ न्याय ककया
कीज्जए ।‘ चे रा फक ो गया, झपट कर लडके के पास गये, कागज उसके ाथ
से छीन मलया और बौले--- नालायक, य क्या पढ र ा ै, य तो ककसी
मुवज्क्कल का खत ै जो उसने अपने मुकदमें के बारें में मलखा था। य तू क ािं
से उठा लाया, शैतान जा व कागज ला, जो तुझे मलखकर हदया गया था।
एक म ाशय-----पढने दीज्जए, इस त रीर में जो लत्ु फ ै, व ककसी दस
ू री तकरीर
में न ोगा।
दस
ू रे ---जाद ू व जो मसर चढ के बोलें !
यशोदानन्द---- व य कागज था कक सअ
ु र ! मैंने तो मेज के ऊपर ी रख
हदया था। तन
ू े ड्राअर में से क्यों य कागज ननकाला ?
प ले य आकाशवाणी ै।
दस
ू रे ----इस को लीडरी क ते ै कक अपना उल्लू सीिा करो और नेकनाम भी
बनो।
दस
ू रा--कसे-कसे िनी, मानी, ववद्वान लोग कसे पनतत ो सकते ै । मझ
ु े य ी
आश्चयग ै । लेना ै तो खल
ु े खजाने लो, कौन तम्
ु ारा ाथ पकडता ै; य क्या
कक माल चुपके-चुपके उडाओिं और यश भी कमाओिं !
तीसरा--मक्कार का मुिं काला !
***
माता का ह्रदय
दस
ू रो की सेवा करना भी अपराि ै ? ककसी अनतधथ को आश्रय दे ना भी अपराि
ै ?
इस युवक का नाम आत्मानिंद था। दभ
ु ागग्यवश उसमें वे सभी सद्गुण थे जो जेल
का द्वार खोल दे ते ै । व ननभीक था, स्पष्टवादी था, सा सी था, स्वदे श-प्रेमी था,
नन:स्वाथग था, कतगव्यपरायण था। जेलल जाने के मलए इन् ीिं गुणो की जरूरत ै।
स्वािीन प्राखणयों के मलए वे गण
ु स्वगग का द्वार खोल दे ते ै , परािीनो के मलए
नरक के ! आत्मानिंद के सेवा-कायग ने, उसकी वक्तत
ृ ताओिं ने और उसके
राजनीनतक लेखो ने उसे सरकारी कमगचाररयों की नजरों में चढा हदया था। सारा
पुमलस-ववभाग नीचे से ऊपर तक उससे सतगक र ता था, सबकी ननगा ें उस पर
लगीिं र ती थीिं। आखखर ज्जले में एक भयिंकर डाके ने उन् े इज्च्छत अवसर प्रदान
कर हदया।
सिंध्या का समय था। लखनऊ के एक सजे ु ए बिंगले में ममत्रों की म कफल जमी
गाना समाप्त ोने पर लोग भोजन करने बैठें। बेगार के मजदरू और पल्लेदार
जो बाजार से दावत और सजावट के सामान लाये थे , रोते या हदल में गामलयािं
दे ते चले गये थे; पर एक बुहढ़या अभी तक द्वार पर बैठी ु ई थी। और अन्य
मजदरू ों की तर व भूनभुना कर काम न करती थी। ु क्म पाते ी खुश-हदल
मजदरू की तर ु क्म बजा लाती थी। य मिवी थी, जो इस समय मजूरनी का
वेष िारण करके अपना घतक सिंकल्प पूरा करने आयी थी।
मे मान चले गये। म कफल उठ गयी। दावत का समान समेट हदया गया। चारों
ओर सन्नाटा छा गया; लेककन मािवी अभी तक व ीिं बैठी थी।
मािवी-क ािं जाऊिं सरकार , मेरा कोई घर-द्वार थोडे ी ै । ु कुम ो तो य ीिं पडी
र ूिं । पाव-भर आटे की परवस्ती ो जाय ु जरु ।
मािवी ने समझाया था, य ािं किंचन बरसता ोगा; लेककन उसे दे खकर ककतना
ववस्मय ु आ कक बडी मज्ु श्कल से म ीने का खचग परू ा पडता ै । नौकरों से एक-
एक पैसे का ह साब मलया जाता था और ब ु िा आवश्यक वस्तुएिं भी टाल दी
जाती थीिं। एक हदन मािवी ने क ा-बच्चे के मलए कोई तेज गाडी क्यों न ीिं
मिंगवा दे तीिं। गोद में उसकी बाढ़ मारी जाती ै।
ममसेज बागजी ने कुहठिं त ोकर क ा-क ािं से मगवािं दिं ?ू कम से कम ५०-६० रुपयिं
में आयेगी। इतने रुपये क ािं ै?
मािवी-मलककन, आप भी कसा क ती ै!
मािवी-घूस भी तो ममलती ै।
ममसेज बागची-बढ़
ू ी, कसी कमाई में बरकत न ीिं ोती। य ी क्यों सच पछ
ू ो तो
इसी घस
ू ने मारी य दग
ु त
ग ी कर रखी ै । क्या जाने औरों को कैसे जम ोती
ै । य ािं तो जब कसे रूपये आते ै तो कोई-न-कोई नुकसान भी अवश्य ो जाता
ै । एक आता ै तो दो लेकर जाता ै । बार-बार मना करती ूिं , राम की कौडी
घर मे न लाया करो, लेककन मेरी कौन सुनता ै।
बात य थी कक मािवी को बालक से स्ने ोता जाता था। उसके अमिंगल की
कल्पना भी व न कर सकती थी। व अब उसी की नीिंद सोती और उसी की
नीिंद जागती थी। अपने सवगनाश की बात याद करके एक क्षण के मलए बागची
पर क्रोि तो ो आता था और घाव कफर रा ो जाता था; पर मन पर कुज्त्सत
भावों का आधिपत्य न था। घाव भर र ा था, केवल ठे स लगने से ददग ो जाता
था। उसमें स्विंय टीस या जलन न थी। इस पररवार पर अब उसे दया आती थी।
सोचती, बेचारे य छीन-झपट न करें तो कैसे गुजर ो। लडककयों का वववा क ािं
से करे गें! स्त्री को जब दे खो बीमार ी र ती ै । उन पर बाबू जी को एक बोतल
शराब भी रोज चाह ए। य लोग स्वयिं अभागे ै । ज्जसके घर में ५-५क्वारी
कन्याएिं ों, बालक ो- ो कर मर जाते ों, घरनी दा बीमार र ती ो, स्वामी शराब
का तली ो, उस पर तो यों ी ईश्वर का कोप ै । इनसे तो मैं अभाधगन ी
अच्छी!
दब
ु ल
ग बलकों के मलए बरसात बुरी बला ै । कभी खािंसी ै , कभी जवर, कभी दस्त।
जब वा में ी शीत भरी ो तो कोई क ािं तक बचाये। मािवी एक हदन आपने
घर चली गयी थी। बच्चा रोने लगा तो मािं ने एक नौकर को हदया, इसे बा र
ब ला ला। नौकर ने बा र ले जाकर री- री घास पर बैठा हदया,। पानी बरस
कर ननकल गया था। भूमम गीली ो र ी थी। क ीिं-क ीिं पानी भी जमा ो गया
था। बालक को पानी में छपके लगाने से जयादा प्यारा और कौन खेल ो सकता
ै । खूब प्रेम से उमिंग-उमिंग कर पानी में लोटने लगािं नौकर बैठा और आदममयों
के साथ गप-शप करता घिंटो गुजर गये। बच्चे ने खूब सदी खायी। घर आया तो
उसकी नाक ब र ी थीिं रात को मािवी ने आकर दे खा तो बच्चा खािंस र ा
था। आिी रात के करीब उसके गले से खुरखुर की आवाज ननकलने लगी।
मािवी का कलेजा सन से ो गया। स्वाममनी को जगाकर बोली-दे खो तो बच्चे
को क्या ो गया ै । क्या सदी-वदी तो न ीिं लग गयी। ािं, सदी ी मालम
ू ोती
ै।
सारी रात दोंनो बालक को सेंकती र ीिं। ककसी तर सवेरा ु आ। ममस्टर बागची
को खबर ममली तो सीिे डाक्टर के य ािं दौडे। खैररयत इतनी थी कक जल्द
ए नतयात की गयी। तीन हदन में अच्छा ो गया; लेककन इतना दब
ु ल
ग ो गया
था कक उसे दे खकर डर लगता था। सच पछ
ू ों तो मािवी की तपस्या ने बालक
को बचायािं। माता-वपता सो जाता, ककिं तु मािवी की आिंखों में नीिंद न थी। खना-
पीना तक भूल गयी। दे वताओिं की मनौनतयािं करती थी, बच्चे की बलाएिं लेती थी,
बबल्कुल पागल ो गयी थी, य व ी मािवी ै जो अपने सवगनाश का बदला लेने
आयी थी। अपकार की जग उपकार कर र ी थी।ववष वपलाने आयी थी, सुिा
वपला र ी थी। मनुष्य में दे वता ककतना प्रबल ै!
प्रात:काल का समय था। ममस्टर बागची मशशु के झल
ू े के पास बैठे ु ए थे। स्त्री
के मसर में पीडा ो र ी थी। व ीिं चारपाई पर लेटी ु ई थी और मािवी समीप
बैठी बच्चे के मलए दि
ु गरम कर र ी थी। स सा बागची ने क ा-बूढ़ी, म जब
तक ज्जयेंगे तुम् ारा यश गयेंगे। तुमने बच्चे को ज्जला मलयािं
मािवी-ब ू जी, भगवान ् सब कुशल करे गें, क्यों जी इतना छोटा करती ो?
ममस्टर बागची-न ीिं-न ीिं बूढ़ी माता, इसमें कोई रज न ीिं ै । मै मज्स्तष्क से तो
इन बािंतो को ढकोसला ी समझता ूिं ; लेककन हृदय से इन् ें दरू न ीिं कर सकता।
मझ
ु े स्वयिं मेरी माता जीने एक िाबबन के ाथ बेच हदया था। मेरे तीन भाई मर
चुके थे। मै जो बच गया तो मािं-बाप ने समझा बेचने से ी इसकी जान बच
गयी। तुम इस मशशु को पालो-पासो। इसे अपना पुत्र समझो। खचग म बराबर
दे ते र ें गें। इसकी कोई धचिंता मत करना। कभी -कभी जब मारा जी चा े गा,
आकर दे ख मलया करे गें। में ववश्वास ै कक तुम इसकी रक्षा म लोंगों से क ीिं
अच्छी तर कर सकती ो। मैं कुकमी ूिं । ज्जस पेशे में ूिं , उसमें कुकमग ककये
बगैर काम न ीिं चल सकता। झठ
ू ी श ादतें बनानी ी पडती ै , ननरपरािों को
फिंसाना ी पडता ै । आत्मा इतनी दब
ु ल
ग ो गयी ै कक प्रलोभन में पड ी जाता
कु राम मच गया। मािं बच्चे को गले से लगाये रोती थी; पर उसे जमीन पर न
सुलाती थी। क्या बातें ो र ी र ी थीिं और क्या ो गया। मौत को िोखा दोने में
आन्नद आता ै। व उस वक्त कभी न ीिं आती जब लोग उसकी रा दे खते
ोते ैं। रोगी जब सिंभल जाता ै , जब व पर्थय लेने लगता ै , उठने-बैठने लगता
ै , घर-भर खमु शयािं मनाने लगता ै , सबकों ववश्वास ो जाता ै कक सिंकट टल
गया, उस वक्त घात में बैठी ु ई मौत मसर पर आ जाती ै । य ी उसकी ननठुर
लीला ै।
आशाओिं के बाग लगाने में म ककतने कुशल ैं। य ािं म रक्त के बीज बोकर
सुिा के फल खाते ैं। अज्ग्न से पौिों को सीिंचकर शीतल छािं में बैठते ैं। ािं,
मिंद बुवद्ध।
हदन भर मातम ोता र ा; बाप रोता था, मािं तडपती थी और मािवी बारी-बारी से
दोनो को समझाती थी।यहद अपने प्राण दे कर व बालक को ज्जला सकती तो
इस समया अपना िन्य भाग समझती। व अह त का सिंकल्प करके य ािं आयी
थी और आज जब उसकी मनोकामना पूरी ो गयी और उसे खुशी से फूला न
समाना चाह ए था, उस उससे क ीिं घोर पीडा ो र ी थी जो अपने पुत्र की जेल
यात्रा में ु ई थी। रूलाने आयी थी और खद
ु राती जा र ीिं थी। माता का हृदय
दया का आगार ै । उसे जलाओ तो उसमें दया की ी सग
ु ि
िं ननकलती ै , पीसो
तो दया का ी रस ननकलता ै। व दे वी ै । ववपज्त्त की क्रूर लीलाएिं भी उस
स्वच्छ ननमगल स्रोत को ममलन न ीिं कर सकतीिं।
***
परीक्षा
बेगमों ने य आज्ञा सन
ु ी तो तबवु द्ध-सी ो गयीिं। सारे रननवास में मातम-सा
छा गया। व च ल-प ल गायब ो गयीिं। सैकडो हृदयों से इस स ायता-याचक
लोचनों से दे खा, ककसी ने खुदा और रसूल का सुममरन ककया; पर कसी एक
मह ला भी न थी ज्जसकी ननगा कटार या तलवार की तरफ गयी ो। यद्यपी
इनमें ककतनी ी बेगमों की नसों में राजपूताननयों का रक्त प्रवाह त ो र ा था;
पर इिंहद्रयमलप्सा ने जौ र की पुरानी आग ठिं डी कर दी थी। सुख-भोग की लालसा
आत्म-सम्मान का सवगनाश कर दे ती ै । आपस में सला करके मयागदा की रक्षा
का कोई उपाया सोचने की मु लत न थी। एक-एक पल भाग्य का ननणगय कर
र ा था। ताश का ननणगय कर र ा था। ताश ोकर सभी ललपाओिं ने पापी के
सम्मुख जाने का ननश्चय ककया। आिंखों से आसूिं जारी थे, अश्रु-मसिंधचत नेत्रों में
सुरमा लगाया जा र ा था और शोक-व्यधथत हृदयािं पर सुगिंि का लेप ककया जा
र ा था। कोई केश गुिंथतीिं थी, कोई मािंगो में मोनतयों वपरोती थी। एक भी कसे
पक्के इरादे की स्त्री न थी, जो इश्वर पर अथवा अपनी टे क पर, इस आज्ञा का
उल्लिंघन करने का सा स कर सके।
स सा नाहदरशा कठोर शब्दों में बोला-क खुदा की बिंहदयो, मैने तुम् ारा इम्त ान
लेने के मलए बुलाया था और अफसोस के साथ क ना पडता ै कक तुम् ारी
ननसबत मेरा जो गुमान था, व फग-ब- फग सच ननकला। जब ककसी कौम की
औरतों में गैरत न ीिं र ती तो व कौम मरु दा ो जाती ै।
दे खना चा ता था कक तम
ु लोगों में अभी कुछ गैरत बाकी ै या न ीिं। इसमलए
मैने तुम् ें य ािं बुलाया था। मै तुम ारी बे ु रमली न ीिं करना चा ता था। मैं
इतना कश का बिंदा न ीिं ूिं , वरना आज भेडो के गल्ले चा ता ोता। न इतना
वसपरस्त ूिं , वरना आज फारस में सरोद और मसतार की तानें सुनाता ोता,
ज्जसका मजा मै ह द
िं स्
ु तानी गाने से क ीिं जयादा उठा सकता ूिं । मुझे मसफग
तम्
ु ारा इम्त ान लेना था। मझ
ु े य दे खकर सचा मलाल ो र ा ै कक तम
ु में
गैरत का जौ र बाकी न र ा। क्या य मम
ु ककन न था कक तम
ु मेरे ु क्म को
पैरों तले कुचल दे तीिं? जब तुम य ािं आ गयीिं तो मैने तुम् ें एक और मौका हदया।
मैने नीिंद का ब ाना ककया। क्या य मुमककन न था कक तुममें से कोई खुदा की
बिंदी इस कटार को उठाकर मेरे ज्जगर में चुभा दे ती। मै कलामेपाक की कसम
खाकर क ता ूिं कक तुममें से ककसी को कटार पर ाथ रखते दे खकर मुझे बे द
खश
ु ी ोती, मै उन नाजक
ु ाथों के सामने गरदन झक
ु ा दे ता! पर अफसोस ै कक
आज तैमरू ी खानदान की एक बेटी भी य ािं कसी न ीिं ननकली जो अपनी ु रमत
बबगाडने पर ाथ उठाती! अब य सल्लतनत ज्जिंदा न ीिं र सकती। इसकी
सती के हदन धगने ु ए ैं। इसका ननशान ब ु त जल्द दनु नया से ममट जाएगा।
तुम लोग जाओ और ो सके तो अब भी सल्तनत को बचाओ वरना इसी तर
वस की गुलामी करते ु ए दनु नया से रुखसत ो जाओगी।
***
तें तर
ु आ था, कक तीसरे बेटे की पीठ पर ोने वाली कन्या अभाधगनी ोती ै , या वपता
को लेती ै या वपता को, या अपने कों। उनकी वद्ध
ृ ा माता लगी नवजात कन्या
को पानी पी-पी कर कोसने, कलमुिं ी ै , कलमु ी! न जाने क्या करने आयी ैं
य ािं। ककसी बािंझ के घर जाती तो उसके हदन कफर जाते!
दामोदरदत्त हदल में तो घबराये ु ए थे, पर माता को समझाने लगे-अम्मा तें तर-
बेंतर कुछ न ीिं, भगवान ् की इच्छा ोती ै, व ी ोता ै । ईश्वर चा ें गे तो सब
कुशल ी ोगा; गानेवामलयों को बुला लो, न ीिं लोग क ें गे, तीन बेटे ु ए तो कैसे
फूली कफरती थीिं, एक बेटी ो गयी तो घर में कु राम मच गया।
माता-अरे बेटा, तुम क्या जानो इन बातों को, मेरे मसर तो बीत चुकी ैं, प्राण न ीिं
में समाया ु आ ैं तें तर ी के जन्म से तुम् ारे दादा का दे ािंत ु आ। तभी से
तें तर का नाम सन
ु ते ी मेरा कलेजा कािंप उठता ै।
दामोदरदत्त के तीनों लडके सािंवले थे, कुछ ववशेष रूपवान भी न थे। लडकी के
रूप का बखान सुनकर उनका धचत्त कुछ प्रसन्न ु आ। बोले-अम्मा जी, तुम
भगवान ् का नाम लेकर गानेवामलयों को बुला भेजों, गाना-बजाना ोने दो। भाग्य
में जो कुछ ैं, व तो ोगा ी।
माता-बल
ु ाये लेती ूिं बेटा, जो कुछ ोना था व तो ो गया। इतने में दाई ने
सौर में से पुकार कर क ा-ब ू जी क ती ैं गानावाना कराने का काम न ीिं ै।
माता-भला उनसे क ो चप
ु बैठी र े , बा र ननकलकर मनमानी करें गी, बार ी
हदन ैं ब ु त हदन न ीिं ै ; ब ु त इतराती कफरती थी-य न करूिंगी, व न करूिंगी,
दे वी क्या ैं, मरदों की बातें सन
ु कर व ी रट लगाने लगी थीिं, तो अब चुपके से
बैठती क्यो न ीिं। मैं तो तें तर को अशुभ न ीिं मानतीिं, और सब बातों में मेमों की
बराबरी करती ैं तो इस बात में भी करे ।
माता-लडकी तो ु ई ै।
लडके की उत्सक
ु ता न मानीिं। सौर के द्वार पर जाकर खडा ो गया और बोला-
अम्मा जरा बच्ची को मझ
ु े हदखा दो।
दाई ने कन्या उसे हदखा दी तो व ािं से दौडता ु आ अपने छोटे भाइयें के पास
प ुिं चा और उन् ें जगा-जगा कर खुशखबरी सुनायी।
बडा-बबलकुल नन् ीिं सी! जैसी बडी गुडडया! कसी गोरी ै कक क्या ककसी सा ब
की लडकी ोगी। य लडकी मैं लूिंगा।
बडा-दे खा कैसी ै!
मिंझला-कैसे आिंखें बिंद ककये पडी थी।
बडा-खूब द्वार पर बारात आयेगी, ाथी, घोडे, बाजे आतशबाजी। मिंझला और छोटा
कसे मग्न ो र े थे मानो व मनो र दृश्य आिंखो के सामने ै , उनके सरल नेत्र
मनोल्लास से चमक र े थे।
मगर दादी माता से क ीिं जयादा धचिंनतत थी। उसे भ्रम ोने लगा कक व बच्चे
को खब
ू दि
ू वपला र ी ैं, सािंप को पाल र ी ै । मशशु की ओर आिंख उठाकर भी
न दे खती। य ािं तक कक एक हदन क बैठी-लडकी का बडा छो करती ो? ािं
भाई, मािं ो कक न ीिं, तम
ु न छो करोगी, तो करे गा कौन?
‘अरे तो मैं मना थोडे ी करती ूिं , मुझे क्या गरज पडी ै कक मुफ्त में अपने
ऊपर पाप ल,िंू कुछ मेरे मसर तो जायेगी न ीिं।’
दामोदर-मैं जाकर ड क्टर सा ब को बुला लाऊिं न.? दे र करने से शायद रोग बढ़
जाय। अम्मा जी, अम्मा जी कैसी तबबयत ै?
माता ने आिंखे खोलीिं और करा ते ु ए बोली-बेटा तुम आ गये?
माता जी को केवल अपनी बात की मयागदा ननभानी थी, रूपये न खच्र कराने थे,
बोली-न ीिं बेटा, ड क्टर के पास जाकर क्या करोगे? अरे , व कोई ईश्वर ै । ड क्टर
के पास जाकर क्या करोगें ? अरे , व कोई ईश्वर ै । ड क्टर अमत
ृ वपला दे गा, दस-
बीस व भी ले जायेगा! ड क्टर-वैद्य से कुछ न ोगा। बेटा, तम
ु कपडे उतारो, मेरे
पास बैठकर भागवत पढ़ो। अब न बचूिंगी। अब न बचूिंगी, ाय राम!
माता-बेटा, बच्चों को आराम से रखना, भगवान तुम लोगों को सुखी रखें। अच्छा
ु आ मेरे ी मसर गयी, तुम लोगों के सामने मेरा परलोक ो जायेगा। क ीिं ककसी
दस
ू रे के मसर जाती तो क्या ोता राम! भगवान ् ने मेरी ववनती सुन ली। ाय!
ाय!!
दामोदरदत्त को ननश्चय ो गया कक अब अम्मा न बचें गी। बडा द:ु ख ु आ।
उनके मन की बात ोती तो व मािं के बदले तें तर को न स्वीकार करते। ज्जस
जननी ने जन्म हदया, नाना प्रकार के कष्ट झेलकर उनका पालन-पोषण ककया,
अकाल वैिव्य को प्राप्त ोकर भी उनकी मशक्षा का प्रबिंि ककया, उसके सामने
एक दि
ु मु ीिं बच्ची का कया मूल्य था, ज्जसके ाथ का एक धगलास पानी भी व
न जानते थे। शोकातुर ो कपडे उतारे और मािं के मसर ाने बैठकर भागवत की
कथा सन
ु ाने लगे।
रात को ब ू भोजन बनाने चली तो सास से बोली-अम्मा जी, तुम् ारे मलए थोडा
सा साबूदाना छोड दिं ?ू
दस
ू री बोली-मेरे तो तें तर का नाम सुनते ी रोयें खडे ो जाते ै । भगवान ् बािंझ
रखे पर तें तर का जन्म न दें ।
***
नैराश्य
व मिंगल का व्रत रखती थी, रवववार, ननजगला एकादसी और न जाने ककतने व्रत
करती थी। स्नान-पूजा तो ननत्य का ननयम था; पर ककसी अनुष्ठान से
मनोकामना न परू ी ोती थी। ननत्य अव े लना, नतरस्कार, उपेक्षा, अपमान स ते-
स ते उसका धचत्त सिंसार से ववरक्त ोता जाता था। ज ािं कान एक मीठी बात
के मलए, आिंखें एक प्रेम-दृज्ष्ट के मलए, हृदय एक आमलिंगन के मलए तरस कर र
जाये, घर में अपनी कोई बात न पूछे, व ािं जीवन से क्यों न अरुधच ो जाय?
एक हदन घोर ननराशा की दशा में उसने अपनी बडी भावज को एक पत्र मलखा।
एक-एक अक्षर से असह्य वेदना टपक र ी थी। भावज ने उत्तर हदया-तुम् ारे
भैया जल्द तुम् ें ववदा कराने जायेंगे। य ािं आजकल एक सच्चे म ात्मा आये ुए
ैं ज्जनका आशीवाद कभी ननष्फल न ीिं जाता। य ािं कई सिंतान ीन ज्स्त्रयािं उनक
आशीवाद से पत्र
ु वती ो गयीिं। पण
ू ग आशा ै कक तम्
ु ें भी उनका आशीवाद
कल्याणकारी ोगा।
ननरुपमा ने य पत्र पनत को हदखाया। बत्रपाठी जी उदासीन भाव से बोले -सज्ृ ष्ट-
रचना म ात्माओिं के ाथ का काम न ीिं, ईश्वर का काम ै।
घमिंडीलाल-चली जाना।
कई हदन बाद ननरुपमा अपने भाई के साथ मैके गयी। तीनों पबु त्रयािं भी साथ
थीिं। भाभी ने उन् ें प्रेम से गले लगाकर क ा, तम्
ु ारे घर के आदमी बडे ननदग यी
ैं। कसी गल
ु ाब -फूलों की-सी लडककयािं पाकर भी तकदीर को रोते ैं। ये तम्
ु ें
भारी ों तो मझ
ु े दे दो। जब ननद और भावज भोजन करके लेटीिं तो ननरुपमा ने
पूछा-व म ात्मा क ािं र ते ैं ?
ननरुपमा- ै नगीच ी न?
ननरुपमा-तो क्या तम
ु लोगों पर ब ु त प्रसन्न ैं?
ननरुपमा-जब घर ी में वैद्य तो मररये क्यों? आज मुझे उनके दशगन करा दे ना।
ननरुपमा-चलो, गाली दे ती ो।
ननरुपमा-चलो, गाली दे ती ो।
ननरुपमा-तम
ु तो यों बातें कर र ी ो मानो उनकी प्रनतननधि ो।
भावज- ािं, व य सब ववषय मेरे ी द्वारा तय ककया करते ैं। मैं भें ट लेती ूिं ।
मैं ी आशीवाद दे ती ूिं , मैं ी उनके ह ताथग भोजन कर लेती ूिं ।
ु ए और उन् ोंने मुझे वरदान हदया ै । ईश्वर ने चा ा तो उसी हदन से तुम् ारी
मान-प्रनतष्ठा ोने लगी। घमिंडी दौडे ु ए आयेंगे और तम् ारे ऊपर प्राण ननछावर
करें गे। कम-से-कम साल भर तो चैन की विंशी बजाना। इसके बाद दे खी जायेगी।
ननरुपमा-पनत से कपट करूिं तो पाप न लगेगा?
तीन चार म ीने के बाद ननरुपमा अपने घर आयी। घमिंडीलाल उसे ववदा कराने
गये थे। सल ज ने म ात्मा जी का रिं ग और भी चोखा कर हदया। बोली-कसा तो
ककसी को दे खा न ीिं कक इस म ात्मा जी ने वरदान हदया ो और व पूरा न ो
गया ो। ािं, ज्जसका भाग्य फूट जाये उसे कोई क्या कर सकता ै।
मीरमशकार-क्या ु आ?
वपता जी-लडकी ु ई ै?
य क ते-क ते व कमर थामकर बैठ गये मानो वज्र धगर पडा। घमिंडीलाल
कमरे से ननकल आये और बोले-जाकर लेडी डाक्टर से तो पछ
ू । अच्छी तर दे ख
न ले। दे खा सुना, चल खडी ु ई।
म री-बाबज
ू ी, मैंने तो आिंखों दे खा ै!
घमिंडीलाल-कन्या ी ै?
वपता- मारी तकदीर ी कसी ै बेटा! जाओ रे सब के सब! तुम सभी के भाग्य
में कुछ पाना न मलखा था तो क ािं से पाते। भाग जाओ। सैंकडों रुपये पर पानी
कफर गया, सारी तैयारी ममट्टी में ममल गयी।
घमिंडीलाल-इस म ात्मा से पूछना चाह ए। मैं आज डाक से जरा बचा की खबर
लेता ूिं ।
वपता-िूतग ै , िूत!ग
वपता और पत्र
ु में तो य बातें ोती र ीिं। पामर, मीरमशकार आहद ने अपने-अपने
डिंडे सिंभाले और अपनी रा चले। घर में मातम-सा छा गया, लेडी ड क्टर भी
ववदा कर दी गयी, सौर में जच्चा और दाई के मसवा कोई न र ा। वद्ध
ृ ा माता तो
इतनी ताश ु ई कक उसी वक्त अटवास-खटवास लेकर पड र ीिं।
घमिंडीलाल-उस पापी ित
ू ग ने बडा चकमा हदया।
ननरुपमा-अब क्या क ें , मेरे भाग्य ी में न ोगा, न ीिं तो व ािं ककतनी ी औरतें
बाबाजी को रात-हदन घेरे र ती थीिं। व ककसी से कुछ लेते तो क ती कक िूतग
ैं, कसम ले लो जो मैंने एक कौडी भी उन् ें दी ो।
सास-भाग्य ै और क्या?
सक
ु े शी-पािंच ब्राह्मणों को मिंगल के हदन भोजन कराती र ी?
सुकेशी-तुम् ारा मसर, मुझे खूब याद ै , मेरे सामने उन् ोंने ब ु त जोर दे कर क ा
था। तुमने सोचा ोगा, ब्राह्मणों को भोजन कराने से क्या ोता ै। य न
समझा कक कोई अनुष्ठान सफल न ीिं ोता जब तक ववधिवत ् उसका पालन न
ककया जाये।
सास-इसने कभी इसकी चचाग ी न ीिं की;न ीिं;पािंच क्या दस ब्राह्मणों को ज्जमा
दे ती। तुम् ारे िमग से कुछ कमी न ीिं ै।
सुकेशी-कुछ न ीिं, भूल ो गयी और क्या। रानी, बेटे का मुिं यों दे खना नसीब
न ीिं ोता। बडे-बडे जप-तप करने पडते ैं, तुम मिंगल के व्रत ी से घबरा गयीिं?
सास-अभाधगनी ै और क्या?
सक
ु े शी-बाबज
ू ी, आप ववद्वान समझदार ोकर इतना हदल छोटा करते ैं। अभी
आपककी उम्र क्या ै । ककतने पत्र
ु लीज्जएगा? नाकों दम न ो जाये तो कह एगा।
सास-बेटी, दि
ू -पूत से भी ककसी का मन भरा ै।
घमिंडीलाल-सन
ु ती ो म ारानी, अबकी कोई गोलमोल मत करना। अपनी भाभी से
सब ब्योरा अच्छी तर पूछ लेना।
सक
ु े शी-आप ननज्श्चिंत र ें , मैं याद करा दिं ग
ू ी; क्या भोजन करना ोगा, कैसे र ना
ोगा कैसे स्नान करना ोगा, य सब मलखा दिं ग
ू ी और अम्मा जी, आज से
अठार मास बाद आपसे कोई भारी इनाम लूिंगी।
सक
ु े शी एक सप्ता य ािं र ी और ननरुपमा को खब
ू मसखा-पढ़ा कर चली गयी।
ु ई, सास कफर उसे पान की भािंनत फेरने लगी, लोग उसका मुिं जो ने लगे।
हदन गज
ु रने लगे, ननरुपमा कभी क ती अम्मािं जी, आज मैंने स्वप्न दे खा कक वद्ध
ृ
स्त्री ने आकर मझ
ु े पक
ु ारा और एक नाररयल दे कर बोली, ‘य तम्
ु ें हदये जाती
ूिं ; कभी क ती,’अम्मािं जी, अबकी न जाने क्यों मेरे हदल में बडी-बडी उमिंगें पैदा
ो र ी ैं , जी चा ता ै खूब गाना सुनूिं, नदी में खूब स्नान करूिं, रदम नशा-सा
छाया र ता ै । सास सुनकर मुस्कराती और क ती-ब ू ये शुभ लक्षण ैं।
घमिंडीलाल खश
ु ोकर क ते-मालम
ू ोता ै , नशा चढ़ा ु आ ै । ये शुभ लक्षण ैं।
घमिंडीलाल अब ननत्य सोते समय उसे म ाभारत की वीर कथाएिं पढ़कर सुनाते,
कभी गुरु गोवविंदमसिं कीनतग का वणगन करते। अमभमन्यु की कथा से ननरुपमा को
बडा प्रेम था। वपता अपने आने वाले पत्र
ु को वीर-सिंस्कारों से पररपरू रत कर दे ना
चा ता था।
लेककन ननरुपमा का हदल प्रनतक्षण बैठा जाता था। अब क्या ोगा? तीन साल
ककसी तर कौशल से कट गये और मजे में कट गये, लेककन अब ववपज्त्त मसर
पर मिंडरा र ी ै। ाय! ननरपराि ोने पर भी य ी दिं ड! अगर भगवान ् की इच्छा
ै कक मेरे गभग से कोई पुत्र न जन्म ले तो मेरा क्या दोष! लेककन कौन सुनता
ै । मैं ी अभाधगनी ूिं मैं ी त्याजय ूिं मैं ी कलमुिं ी ूिं इसीमलए न कक परवश
ूिं ! क्या ोगा? अभी एक क्षण में य सारा आनिंदात्सव शोक में डूब जायेगा, मझ
ु
पर बौछारें पडने लगें गी, भीतर से बा र तक मझ
ु ी को कोसेंगे, सास-ससरु का भय
न ीिं, लेककन स्वामी जी शायद कफर मेरा मुिं न दे खें, शायद ननराश ोकर घर-बार
त्याग दें । चारों तरफ अमिंगल ी अमिंगल ैं मैं अपने घर की, अपनी सिंतान की
दद
ु ग शा दे खने के मलए क्यों जीववत ूिं । कौशल ब ु त ो चुका, अब उससे कोई
आशा न ीिं। मेरे हदल में कैसे-कैसे अरमान थे। अपनी प्यारी बज्च्चयों का लालन-
पालन करती, उन् ें ब्या ती, उनके बच्चों को दे खकर सख
ु ी ोती। पर आ ! य
सब अरमान झाक में ममले जाते ैं। भगवान ्! तुम् ी अब इनके वपता ो, तुम् ीिं
इनके रक्षक ो। मैं तो अब जाती ूिं ।
लेडी ड क्टर ने क ा-वेल! कफर लडकी ै।
***
दं ड
बूढ़ा—तो कोई पाप ककया ै ? अगर घर बेचकर न ीिं लडते तो कुछ बुरा करते ैं?
य ािं तो मुकदमा लडते-लडते उमर बीत गयी; लेककन घर का पैसा न ीिं खरचा।
ममयािं की जूती ममयािं का मसर करते ैं। दस भलेमानसों से मािंग कर एक को
दे हदया। चलो छुट्टी ु ई। गािंव भर नाम से कािंपता ै । ककसी ने जरा भी
हटर-वपर की और मैंने अदालत में दावा दायर ककया।
बूढ़ा—अजी, ककतने ी बडों को बडे घर मभजवा हदया, तूम ो ककस फेर में ।
ाई-कोटग तक जाता ूिं सीिा। कोई मेरे मुिं क्या आयेगा बेचारा! गािंव से तो
कौडी जाती न ीिं, कफर डरें क्यों? ज्जसकी चीज पर दािंत लगाये, अपना करके
छोडा। सीिे न हदया तो अदालत में घसीट लाये और रगेद -रगेद कर मारा,
अपना क्या बबगडता ै ? तो सा ब से उत्तला करते ो कक मैं ी पुकारूिं?
मसन ा—सरकार क्या मममसल बदल दें गे; या नया कानून गढ़ें गे? तुम गच्चा खा
गये। मैं कभी कानून के बा र न ीिं जाता। जानते ो न अपील से कभी मेरी
तजवीज रद्द न ीिं ोती?
जगत—बडा िरम ोगा सरकार! (मसन ा के पैरों पर धगज्न्नयों की एक
पोटली रखकर) बडा दख
ु ी ूिं सरकार!
मसन ा—(मुस्करा कर) य ािं भी अपनी चालबाजी से न ीिं चूकते? ननकालो अभी
और, ओस से प्यास न ीिं बझ
ु ती। भला द ाई तो परू ा करो।
मसन ा—डालो-डालो कमर में ाथ। भला कुछ मेरे नाम की लाज तो रखो।
जगत—लट
ु जाऊिंगा सरकार!
मसन ा—लुटें तुम् ारे दश्ु मन, जो इलाका बेचकर लडते ैं। तुम् ारे जजमानों का
भगवान भला करे , तुम् ें ककस बात की कमी ै।
जगत पािंडे के चले जाने के बाद, कोई 9 बजे रात को, जिंट सा ब के बिंगले
पर एक तािंगा आकर रुका और उस पर से पिंडडत सत्यदे व उतरे जो राजा सा ब
मशवपुर के मुख्तार थे।
जगत पािंडे को पूरा ववश्वास था कक मेरी जीत ोगी; लेककन तजबीज सुनी तो
ोश उड गये! दावा खाररज ो गया! उस पर खचग की चपत अलग। मेरे साथ
य चाल! अगर लाला सा ब को इसका मजा न चखा हदया, तो बाम् न
न ीिं। ैं ककस फेर में ? सारा रोब भल
ु ा दिं ग
ू ा। व ािं गाढ़ी कमाई के रुपये ैं। कौन
पचा सकता ै ? ाड फोड-फोड कर ननकलें गे। द्वार पर मसर पटक-पटक
कर मर जाऊिंगा।
इस तर चार हदन बीत गये और ममस्टर मसन ा के कानों में भी बात प ुिं ची।
अन्य ररश्वती कमगचाररयों की तर व भी े कड आदमी थे। कसे ननद्गविंद्व र ते
मानो उन् ें य बीमारी छू तक न ीिं गयी ै । जब व कानून से जौ-भर भी न
टलते थे तो उन पर ररश्वत का सिंदे ो ी क्योंकर सकता था, और कोई
करता भी तो उसकी मानता कौन! कसे चतुर खखलाडी के ववरुद्ध कोई जाब्ते की
कारग वाई कैसे ोती? ममस्टर मसन ा अपने अफसरों से भी खुशामद का व्यव ार
न करते। इससे ु क्काम भी उनका ब ु त आदर करते थे। मगर जगत पािंडे ने
व मिंत्र मारा था ज्जसका उनके पास कोई उत्तर न था। कसे बािंगड आदमी से
आज तक उन् ें साबबका न पडा था। अपने नौकरों से पछ
ू ते—बड्
ु ढा
क्या कर र ा ै । नौकर लोग अपनापन जताने के मलए झूठ के पुल बािंि दे त—
े
पत्नी—ताड जायेंगे ताड जायें, अब ककससे क ािं तक डरुिं । बदनामी अभी क्या
कम ो र ी ै ,जो और ो जायगी। सारी दनु नया जानती ै कक तुमने रुपये
मलए। यों ी कोई ककसी पर प्राण न ीिं दे ता। कफर अब व्यथग किंथ क्यों करो?
जगत—तम्
ु ारी य ी इच्छा ै तो मैं क्या करूिं?
मसन ा—मेरी तो य ी इच्छा न ीिं। ािं, तुम अलबत्ता मेरा सवगनाश करने पर तुले
ुए ो। आखखर मैंने तुम् ारे डेढ़ सौ रूपये ी तो मलए ैं। इतने ी रुपये के
मलए तम
ु इतना बडा अनष्ु ठान कर र े ो!
जगत—डेढ़ सौ रुपये की बात न ीिं ै । जो तुमने मुझे ममट्टी में ममला हदया।
मेरी डडग्री ो गयी ोती तो मुझे दस बीघे जमीन ममल जाती और सारे इलाके
में नाम ो जाता। तम
ु ने मेरे डेढ़ सौ न ीिं मलए, मेरे पािंच जार बबगाड हदये। परू े
पािंच जार; लेककन य घमिंड न र े गा, याद रखना क े दे ता ूिं , सत्यानाश ो
जायगा। इस अदालत में तुम् ारा राजय ै ; लेककन भगवान के दरवार में ववप्रों
ी का राजय ै । ववप्र का िन लेकर कोई सुखी न ीिं र सकता।
ममस्टर मसन ा—व ीिं से तो चला आ र ा ूिं । मुझे तुमसे जयादा कफक्र ै । अभी
आकर खडा ी ु आ था कक तुम आयी।
पत्नी—पािंच जार!
मसन ा—तो लाओ दे ता आऊिं; लेककन आदमी बडा चग्घड ै , क ीिं रुपये लेकर
सबको हदखाता कफरे तो?
पत्नी—इसको य ािं से इसी वक्त भागना ोगा।
जगत—पािंच जार में दो टोकरी भर जायगी! ( ाथों से बताकर) इतने सारे पािंच
जार!
जगत— ैं- ैं, परू े ैं परू े पािंच जार! तो अब जाऊिं, भाग जाऊिं?
पािंडे ने एक बार मिंु खोला जैसे मरी ु ई धचडडया मसर लटका चोंच खोल दे ती
ै । जीवन का अिंनतम िागा भी टूट गया। ओिंठ खल
ु े ु ए थे और नोटों का
पुमलिंदा छाती पर रखा ु आ था। इतने में पत्नी जी भी आ प ुिं ची और शव
को दे खकर चौंक पडीिं!
दस
ू रे हदन सारे श र में खबर मश ू र ो गयी—जगत पािंडे ने जिंट सा ब पर
जान दे दी। उसका शव उठा तो जारों आदमी साथ थे। ममस्टर मसन ा को
खल्
ु लम-खल्
ु ला गामलयािं दी जा र ी थीिं।
रसोइया— ु जूर, मझ
ु े तो लोग िमकाते ैं कक मज्न्दर में न घुसने पाओगे।
लेककन बबरादरी से वैर करना पानी में र कर मगर से वैर करने जैसे ै।
कोई-न-कोई कसा अवसर ी आ जाता ै , जब मको बबरादरी के सामने मसर
झुकाना पडता ै। ममस्टर मसन ा को भी साल के अन्दर ी कसा अवसर आ
पडा। य उनकी पुत्री का वववा था। य ी व समस्या ै जो बडे-बडे े कडों
का घमिंड चरू कर दे ती ै । आप ककसी के आने-जाने की परवा न करें ,
पत्नी—भगवान ्, अब ले चलो। य दद
ु ग शा न ीिं दे खी जाती। अिंगूर खाने का
जी चा ता ै , मिंगवाये ै कक न ीिं?
मसन ा—ककसके य ािं बताऊिं! मेरी समझ में तो अब कोई कसा आदमी न ीिं र
गया। कसी बबरादरी में र ने से तो य जार दरजा अच्छा ै कक बबरादरी के
बा र र ूिं । मैंने एक ब्राह्मण से ररश्वत ली। इससे मुझे इनकार न ीिं। लेककन
कौन ररश्वत न ीिं लेता? अपने गौं पर कोई न ीिं चक
ू ता। ब्राह्मण न ीिं खद
ु
ईश्वर ी क्यों न ों, ररश्वत खाने वाले उन् ें भी चस
ू लें गे। ररश्वत दे ने वाला
अगर कोई ननराश ोकर अपने प्राण दे ता ै तो मेरा क्या अपराि! अगर कोई
मेरे फैसले से नाराज ोकर ज र खा ले तो मैं क्या कर सकता ूिं । इस पर भी
मैं प्रायज्श्चत करने को तैयार ूिं । बबरादरी जो दिं ड दे , उसे स्वीकार करने को
तैयार ूिं । सबसे क चुका ूिं मुझसे जो प्रायज्श्चत चा ो करा लो पर कोई
न ीिं सन
ु ता। दिं ड अपराि के अनक
ु ूल ोना चाह ए, न ीिं तो य अन्याय ै।
अगर ककसी मस
ु लमान का छुआ भोजन खाने के मलए बबरादरी मझ
ु े काले पानी
भेजना चा े तो मैं उसे कभी न मानूिंगा। कफर अपराि अगर ै तो मेरा ै।
मेरी लडकी ने क्या अपराि ककया ै। मेरे अपराि के मलए लडकी को दिं ड
दे ना सरासर न्याय-ववरुद्ध ै।
मसन ा—डाक्टर को बल
ु ाऊिं?
पत्नी—तुम् ारा जी चा े बुला लो, लेककन मैं बचूिंगी न ीिं। जरा नतब्बो को
बुला लो, प्यार कर लूिं। जी डूबा जाता ै । मेरी बच्ची! ाय मेरी बच्ची!!
***
धधक्कार (2)
ईरान और यूनान में घोर सिंग्राम ो र ा था। ईरानी हदन-हदन बढ़ते जाते थे
और यूनान के मलए सिंकट का सामना था। दे श के सारे व्यवसाय बिंद ो गये
थे, ल की मुहठया पर ाथ रखने वाले ककसान तलवार की मुहठया पकडने
के मलए मजबरू ो गये, डिंडी तौलने वाले भाले तौलते थे। सारा दे श आत्म-
रक्षा के मलए तैयार ो गया था। कफर भी शत्रु के कदम हदन-हदन आगे ी बढ़ते
आते थे। ज्जस ईरान को यूनान कई बार कूचल चुका था, व ी ईरान आज क्रोि
के आवेग की भािंनत मसर पर चढ़ आता था। मदग तो रणक्षे त्र में मसर कटा र े
थे और ज्स्त्रयािं हदन-हदन की ननराशाजनक खबरें सुनकर सूखी जाती थीिं।
क्योंकर लाज की रक्षा ोगी? प्राण का भय न था, सम्पज्त्त का भय न था,
भय था मयागदा का। ववजेता गवग से मतवाले ोकर यन
ू ानी ललनाओिं को घरू ें गे,
उनके कोमल अिंगों को स्पशग करें गे, उनको कैद कर ले जायेंगे! उस ववपज्त्त की
कल्पना ी से इन लोगों के रोयें खडे ो जाते थे।
यूनाननयों ने द्रो ी की तलाश करनी शुरू की। ककसके घर में से रात को गाने
की आवाजें आती ैं। सारे श र में सिंध्या ोते स्यापा-सा छा जाता था। अगर
क ीिं आवाजें सन
ु ायी दे ती थीिं तो रोने की; िं सी और गाने की आवाज क ीिं
न सुनायी दे ती थी।
हदन को सग
ु िंि की लपटें ककस घर से आती ैं? लोग ज्जिर जाते थे, ककसे इतनी
फुरसत थी कक घर की सफाई करता, घर में सग
ु िंि जलाता; िोबबयों का अभाव था
अधिकािंश लडने के मलए चले गये थे, कपडे तक न िुलते थे; इत्र-फुलेल कौन
मलता!
ककसकी आिंखों में मद की लाली झलकती ै ? लाल आिंखें हदखाई दे ती थी; लेककन
य मद की लाली न थी, य आिंसुओिं की लाली थी। महदरा की दक
ु ानों पर
खाक उड र ी थी। इस जीवन ओर मत्ृ यु के सिंग्राम में ववलास की ककसे
सूझती! लोगों ने सारा श र छान मारा लेककन एक भी आिंख कसी नजर न
आयी जो मद से लाल ो।
आिी रात का समय था। श र में अिंिकार छाया ु आ था, मानो श्मशान ो।
ककसी की सूरत न हदखाई दे ती थी। ज्जन नाट्यशालाओिं में नतल रखने की
जग न ममलती थी, व ािं मसयार बोल र े थे। ज्जन बाजारों में मनचले
जवान अस्त्र-शस्त्र सजायें किंठते कफरते थे , व ािं उल्लू बोल र े थे। मिंहदरों में न
गाना ोता था न बजाना। प्रासादों में अिंिकार छाया ु आ था। एक बूढ़ा यूनानी
ज्जसका इकलौता लडका लडाई के मैदान में था, घर से ननकला और न-जाने
ककन ववचारों की तरिं ग में दे वी के मिंहदर की ओर चला। रास्ते में क ीिं प्रकाश न
था, कदम-कदम पर ठोकरें खाता था; पर आगे बढ़ता चला जाता। उसने ननश्चय
कर मलया कक या तो आज दे वी से ववजय का वरदान लिंग
ू ा या उनके चरणों पर
अपने को भें ट कर दिं ग
ू ा।
बढ़
ू े ने द्वार झािंका; एक सजे ु ए कमरे में मोमबज्त्तयािं झाडों में जल र ी थीिं,
साफ-सथ
ु रा फशग बबछा था और एक आदमी मेज पर बैठा ु आ गा र ा था। मेज
पर शराब की बोतल और प्यामलयािं रखी ु ई थीिं। दो गुलाम मेज के सामने
ाथ में भोजन के थाल खडे थे , ज्जसमें से मनो र सुगिंि की लपटें आ र ी
थीिं।
4
यन
ू ानी स्त्री-परू
ु षों के झिंड
ु -के-झिंड
ु उमड पडे और पासोननयस के द्वार पर खडे
ोकर धचल्लाने लगे-य ी दे शद्रा ी ै!
अब क्या ककया जाये? दे वी की शरण जाने वाले को अभय-दान ममल जाता था।
परम्परा से य ी प्रथा थी? मिंहदर में ककसी की त्या करना म ापाप था।
लेककन दे शद्रो ी को इसने सस्ते कौन छोडता? भािंनत-भािंनत के प्रस्ताव ोने लगे—
‘सूअर का ाथ पकडकर बा र खीिंच लो।’
‘ननकलता क्यों न ीिं रे कायर! व ािं क्या मुिं में कामलख लगाकर बैठा ु आ ै ?’
रात भर य ी शोर मचा र ा और पासोननयस न ननकला। आखखर य ननश्चय
5
प्रात:काल लोगों ने ककवाड खोले तो पासोननसय को भमू म पर पडे दे खा। मालम
ू
ोता था, उसका शरीर अकड गया ै । ब ु त चीखने-धचल्लाने पर उसने आखें
खोली; पर जग से ह ल न सका। ककतनी दयनीय दशा थी, ककिं तु ककसी को
उस पर दया न आयी। यूनान में दे शद्रो सबसे बडा अपराि था और द्रो ी के
मलए क ीिं क्षमा न थी, क ीिं दया न थी।
एक—अभी मरा ै?
दस
ू रा—द्रोह यों को मौत न ीिं आती!
चौथा—मक्र ककये ुए ै?
एक यन
ू ानी—दे खो-दे खो क्या क ता ै?
दस
ू रा—सच्चा आदमी मालूम ोता ै।
पािंचवा—दे खो, य न ीिं क ता कक मुझे छोड दो। मको बार-बार याद हदलाता
जाता ै
कक मझ
ु पर ववश्वास न करो!
ूिं , मैं ववश्वास के योग्य न ीिं ूिं । मैं द्रो ी ूिं । मुझे ईराननयों के ब ु त-से भेद
मालूम ैं, एक बार उनकी सेना में प ुिं च जाऊिं तो उनका ममत्र बनकर
सवगनाश कर दिं ,ू पर मुझे अपने ऊपर ववश्वास न ीिं ै । एक यूनानी—िोखेबाज
इतनी सच्ची बात न ीिं क सकता!
दस
ू रा—प ले स्वाथांि ो गया था; पर अब आिंखे खुली ैं!
तीसरा—दे खद्रो ी से भी अपने मतलब की बातें मालूम कर लेने में कोई ानन
न ीिं ै। अगर व अपने वचन पूरे करे तो में इसे छोड दे ना चाह ए।
दस
ू री— ािं- ािं, प ले चलकर उससे क्षमा मािंगो, मने उसके साथ जरूरत से जयादा
सख्ती की।
पासोननयस—आप लोगों ने पछ
ू ा ोता तो मैं कल ी कल ी सारी बातें आपको
बता दे ता, तब आपको मालम
ू ोता कक मझ
ु े मार डालना उधचत ै या जीता
रखना।
स सा एक वद्ध
ृ ा स्त्री ककसी तरफ से दौडती ु ई आयी और मिंहदर के सबसे ऊिंचे
जीने पर खडी ोकर बोली—तुम लोगों को क्या ो गया ै? यूनान के बेटे
आज इतने ज्ञानशून्य ो गये ैं कक झूठे और सच्चे में वववेक न ीिं कर सकते?
तम
ु पासोननयस पर ववश्वास करते ो? ज्जस पासोननयस ने सैकडों ज्स्त्रयों और
बालकों को अनाथ कर हदया, सैकडों घरों में कोई हदया जलाने वाला न छोडा,
मारे दे वताओिं का, मारे परू
ु षों का, घोर अपमान ककया, उसकी दो-चार धचकनी-
चुपडी बातों पर तुम इतने फूल उठे । याद रखो, अब की पासोननयस बा र
ननकला तो कफर तुम् ारी कुशल न ी। यूनान पर ईरान का राजय ोगा और
यूनानी ललनाएिं ईराननयों की कुदृज्ष्ट का मशकार बनेंगी। दे वी की आज्ञा ै कक
पासोननयस कफर बा र न ननकलने पाये। अगर तुम् ें अपना दे श प्यारा ै , अपनी
माताओिं और ब नों की आबरू प्यारी ै तो मिंहदर के द्वार को धचन दों।
ज्जससे दे शद्रो ी को कफर बा र न ननकलने और तम
ु लोगों को ब काने का
मौका न ममले। य दे खो, प ला पत्थर मैं अपने ाथों से रखती ूिं । लोगों ने
ववज्स्मत ोकर दे खा—य मिंहदर की पुजाररन और पासोननयस की माता थी। दम
के दम में पत्थरों के ढे र लग गये और मिंहदर का द्वार चुन हदया गया।
पासोननयस भीतर दािंत पीसता र गया।
***