You are on page 1of 2

॥ रुद्राष्टकं ( तुरसीदास ) ॥

॥ श्रीरुद्राष्टकभ ् ॥

नभाभीशभीशान ननर्ााणरूऩं वर्बुं व्माऩकं ब्रह्भर्ेदस्र्रूऩभ ् ।


ननजं ननगण
ुा ं ननवर्ाकल्ऩं ननयीहं चिदाकाशभाकाशर्ासं बजेऽहभ ् ॥ १॥

ननयाकायभोंकायभर
ू ं तुयीमं चगया ज्ञान गोतीतभीशं चगयीशभ ् ।
कयारं भहाकार कारं कृऩारं गण
ु ागाय संसायऩायं नतोऽहभ ् ॥ २॥

तुषायाद्रद्र संकाश गौयं गबीयं भनोबत


ू कोद्रटप्रबा श्री शयीयभ ् ।
स्पुयन्भौलर कल्रोलरनी िारु गङ्गा रसद्भारफारेन्द ु कण्ठे बज
ु ङ्गा ॥ ३॥

िरत्कुण्डरं भ्रू सन
ु ेत्रं वर्शारं प्रसन्नाननं नीरकण्ठं दमारभ ् ।
भग
ृ ाधीशिभााम्फयं भण्
ु डभारं वप्रमं शंकयं सर्ानाथं बजालभ ॥ ४॥

प्रिण्डं प्रकृष्टं प्रगल्बं ऩये शं अखण्डं अजं बानक


ु ोद्रटप्रकाशभ ् ।
त्रम् शर
ू ननभर
ूा नं शर
ू ऩाणणं बजेऽहं बर्ानीऩनतं बार्गम्मभ ् ॥ ५॥

करातीत कल्माण कल्ऩान्तकायी सदा सज्जनानन्ददाता ऩुयायी ।


चिदानन्द संदोह भोहाऩहायी प्रसीद प्रसीद प्रबो भन्भथायी ॥ ६॥

न मार्त ् उभानाथ ऩादायवर्न्दं बजन्तीह रोके ऩये र्ा नयाणाभ ् ।


न तार्त ् सख
ु ं शान्न्त सन्ताऩनाशं प्रसीद प्रबो सर्ाबत
ू ाचधर्ासभ ् ॥ ७॥

न जानालभ मोगं जऩं नैर् ऩज


ू ां नतोऽहं सदा सर्ादा शम्बु तभ्
ु मभ ् ।
जया जन्भ द्ु खौघ तातप्मभानं प्रबो ऩाद्रह आऩन्नभाभीश शम्बो ॥ ८॥
रुद्राष्टकलभदं प्रोक्तं वर्प्रेण हयतोषमे ।
मे ऩठन्न्त नया बक्त्मा तेषां शम्ब्ु प्रसीदनत ॥

॥ इनत श्रीगोस्र्ालभतुरसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्ऩूणभ


ा ् ॥

You might also like