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फरवरी 2019

     

कैसे लें भोजन का


असली आनं द?
अच्छी से हत के लिए
जानें भोजन के सू त्र

मं दिरों की भला
जरूरत क्या है ?
     

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2 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com
जीवन सूत्र

भोजन करते समय जरा ध्यान रखें!


ज ब आप जीवन के किसी दूसरे अं श को अपने अं दर डालते हैं, तो वह आपके शरीर में किस तरह
घुल-मिल जाता है और उस पर क्या असर डालता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि खाते
समय आप अपने भीतरी रसायन को किस तरह रखते हैं। आपको खाते समय किस तरह रहना चाहिए,
किस तरह बैठना चाहिए और किस तरह अपने अं दर भोजन का स्वागत करना चाहिए - इन बातों को
आजकल पूरी तरह से नज़रं दाज़ कर दिया गया है।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | फरवरी 2019 3


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February 2019 ज्योतिर्गमय
भोजन करते समय जरा ध्यान रखें! 03
़ रिया काव्यांश- आनं दित और सम्मोहित 09
ÂýÏæÙ â¢Âæη¤ Ñ ÇUæò. âÚUâ अनूठा नज
â¢Âæη¤ Ñ ¥ç¹Üðàæ ¥ÚUæðǸæU तीन तरीके अध्यात्म की राह पर 10
âãU â¢Âæη¤ Ñ ÇUæò. ⢻èÌæ
ȤæðÅUæð»ýæȤè Ñ §üàææ ȤæðÅUæð
मैं अभी भी सत्य से दूर थी 38 मं दिरों की भला ज़रूरत क्या है? 12
·¤Üæ Ñ §üàææ ÂçµÜ·ð¤àæÙ समय से पहले सोचना होगा 42 कर्ण और उसका भाग्य 36
ÂéÙèÌ Ù¢Îæ mæÚUæ §üàææ Ȥ橢UÇðUàæÙ
बुद्ध का अछू त शिष्य 57 क्या है लं दन की चकाचौंध का राज? 40
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मौन क्रांति ईशार्पण
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F-y, ÎêâÚUè ×¢çÁÜ, ÕæÜæÁè ¥ÂæÅüU×ð´ÅU खुल गया एक नया आकाश 46 सं पादकीय 06
y/{ ÚUæÁæÕÜ SÅþUèÅU ÅUèÙ»ÚU पोंगल महोत्सव का भव्य आयोजन 60 आपकी बात 07
¿ð‹Ù§ü-{®®®v|
ȤæðÙ Ñ ®yy-yz®vvvx| नव वर्ष पर सद् ‌गुरु दर्शन 62 भेंट के लिए क्या है श्रेष्ठ उपहार? 30
सद् ‌गुरु को लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड 62 रिश्ता बुद्धि और आनं द का 32
âÎSØÌæ ¥æñÚU çß™ææÂÙ ·ð¤ çÜ° â¢Â·ü ·¤Úð´UÑ हठ योग शिक्षक प्रशिक्षण का समापन समारोह 63 ईशा लहर प्रतियोगिता 44
ç´·¤Ü +~v-~yywv-w{®®®
×ÙæðãUÚU +~v-~yywv-~x|x{ उद्योग परिसं घ और नदी अभियान बोर्ड की मीटिंग 64 फेसबुक से 45
RNI No.: Delhi N/2012/46538
सप्तऋषि आरती 66 अनाहत - इसमें है सातों चक्रों का गुण 48
© copyright reserved: Isha Foundation काले चावल का मीठा दलिया 50
एक आसान तरीक ़ ा 52
ईशा योग कार्यक्रम 54
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27 ईशामृतम
14 कैसे लें भोजन का असली आनं द?
16 क्या खाना है - शरीर से पूछें, मन से नहीं
18 योग विज्ञान में भोजन के प्रकार
20 क्या खाएं से ज्यादा महत्वपूर्ण है कैसे खाएं
24 चं द्र-ग्रहण के दौरान भोजन क्यों न करें?
26 खान-पान के सात सूत्र
28 रसोई वैद्य, चमत्कारी इलाज

21
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भोजन: जीवन के स्रोत को छू ने की सं भावना

कु छ दशक पहले तक भोजन के प्रति इं सान का नजरिया काफी हद तक स्थानीय सं स्कृति, परंपराओ ं
और जलवायु के प्रभाव से निर्धारित होता था। तब स्थानीय पैदावार ही वहाँ के लोगों का सहज आहार
होती थी, पर अब हम ऐसे युग में आ गए हैं, जहां हमारी पहुं च दुनिया की हर चीज तक है। ऐसे में लोगों को
लग सकता है कि भोजन के बारे में उनकी समझ पहले से बेहतर हो गई है। मगर दुर्भाग्यवश यह सच नहीं
है। सच्चाई यह है कि सोशल मीडिया के जरिए हमारे सामने लगातार आने वाले अधूरे शोधों की जानकारियों
ने हमें असमं जस की स्थिति में खड़ ा कर दिया है। एक दिन किसी चीज को ‘फ ़ ायदे मंद’ बताया जाता है,
अगले ही दिन उसे ‘खतरनाक’ बताकर खारिज कर दिया जाता है। जिस खाद्य पदार्थ को एक अध्ययन में
पौष्टिक और गुणकारी बताया जाता है, दूसरे अध्ययन में उसे कैंसर पैदा करने वाला सिद्ध कर दिया जाता है।
तो ऐसे समय में आखिरकार हमारे शरीर के लिए सही आहार क्या है? अच्छे भोजन और बुरे भोजन में अं तर
कैसे करें?

आपने दे खा होगा कि कोई भी पशु सिर्फ़ अपने आहार को सूं घ कर जान जाता है कि यह उसके खाने योग्य
है या नहीं। उसे न तो उसके माता-पिता इसकी शिक्षा दे ते हैं, और न ही वह इस सं बं ध में किसी से परामर्श
करता है। प्रकृति ने हर जीव को यह क्षमता दी है कि वह सहजता से अपने आहार का चयन कर सके।
फिर मानव अपने आहार के मामले में इतना भ्रमित क्यों है? इसकी वजह है कि वह अपने मन के धरातल
पर इतना अधिक सक्रिय है, अपनी भावनाओ ं में इतना अधिक खोया है, अपने विचारों को इतना अधिक
महत्वपूर्ण समझने लगा है कि शरीर की बात वह सुन ही नहीं पा रहा है।

भोजन से जुड़े सवालों का जवाब आपको कहीं बाहर नहीं खोजना है, न ही किसी विशेषज्ञ से पूछना है।
क्योंकि इन सबका जवाब आपके शरीर के पास ही है। सद् ‌गुरु कहते हैं कि ‘बात जब भोजन की हो, तो
किसी और से मत पूछिए। आपको अपने शरीर से ही पूछनी और उसी की सुननी चाहिए। आपको वह खाना
चाहिए, जिसे खाकर आपका शरीर खुश होता है।’

योग परंपरा में, भोजन को जीव विज्ञान और रसायन विज्ञान से परे दे खा गया है। भोजन एक जीवित चीज
होती है, जिसका अपना एक गुण और प्राण होता है। खाए जाने पर इस भोजन के गुण हमारे शरीर और मन
के गुणों को प्रभावित करते हैं। अगर हम भोजन और शरीर के बीच के सूक्ष्म सं बं ध के प्रति जागरूकता पैदा
करें, तो हम सहजता से यह जान जाएं गे कि हमें क्या और कितना खाना चाहिए। इस जागरूकता से भोजन
करना, सामं जस्य व मधुरता पैदा करने की एक खूबसूरत प्रक्रिया में रूपां तरित हो सकता है। आपके भोजन
का वक्त सिर्फ खाना खाने के लिए ही नहीं होता, बल्कि इसको अपने भीतर जीवन के स्रोत को छू ने की एक
सं भावना के रूप में दे खा जाता है।

हमने इस अं क में भोजन से जुड़े अनेक पहलुओ ं को छू ने की कोशिश की है। भोजन के ज़रिए आप अपने
जीवन के स्रोत तक पहुँ च पाएँ , इसी कामना के साथ हम भेंट करते हैं यह अं क...।
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आपकी बात ÁÙßÚUè w®v~ | ×êËØ `z®

     

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परिवार और अध्यात्म – दो समानांतर रेखाएँ ç·¤ÌÙæ ×ãˆßÂê‡æü ãñ
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ऐसा माना जाता है कि परिवार और अध्यात्म की कभी बनती नहीं। अगर कोई पारिवारिक व्यवस्था में है तो
उसे अध्यात्म से कोसों दूर रहने की हिदायत भी दे दी जाती है। पारिवारिक जीवन में धार्मिक होना तो पूरी
तरह स्वीकृत है पर अध्यात्म का नाम लेना भी वर्जित माना जाता है। यह माना जाता है कि अध्यात्म का अर्थ
सं सार की सब मोह माया से दूर, घर और परिवारजनों के बन्धनों से परे रहना है। अध्यात्म और परिवार को दो
समानां तर रेखाओ ं की तरह दे खा जाता रहा है जो साथ चल तो सकती हैं पर इन दोनों का मेल सं भव नहीं।

ईशा लहर के जनवरी अं क में परिवार और अध्यात्म की इस कशमकश को सद् ‌गुरु के नजरिए से दे खने का
मौका था। अध्यात्म में जीवन समर्पित करके सां सारिक जीवन को छोड़ कर जाने वाले विरले होते हैं। पर यदि
हर एक मनुष्य में खुद को भीतर से आनं दित बनाए रखने की एक तकनीक हो तो क्या यह एक बेहद जरुरी
/SadhguruHindi
शिक्षा या क्षमता से लैस करना नहीं होगा? अध्यात्म कोई बाहरी दिखावा नहीं बल्कि एक आतं रिक अवस्था
है। अगर कोई व्यक्ति अपने मूल स्वभाव से ही प्रेममय और आनं दित रहे तो क्या यह उसके पारिवारिक जीवन
में सहायता नहीं करेगा? - शिखा विश्वकर्मा, सतना like us on facebook
facebook.com
़ रूरत है ऐसे विचारों को वाइरल करने की
ज /SadhguruHindi

जब मैं कॉलेज में पढ़ ता था, उन दिनों मेरे हाथ कुछ ऐसी किताबें लगीं जिन्होंने मेरे भीतर एक आध्यात्मिक Follow us on Twitter
कौतुहल जगा दिया था। मैं फिर एक गुरु की तलाश में जहाँ -तहाँ सतसं ग में जाने लगा। उन दिनों की मेरी twitter.com/IshaHindi
जिज्ञासा और आध्यात्मिक रुझान दे खकर मेरे घरवाले घबरा से गए थे। तब मेरी माँ के आँ सओ ़ दम रोक
ु ं ने मेरे क
दिए थे। दरअसल ग़लती उनकी भी नहीं थी, और कदाचित मेरी भी नहीं थी, क्योंकि बड़ े ही व्यापक पैमाने पर editor@ishalahar.com
हमारे समाज में यह धारणा बनी हुई है कि अध्यात्म और परिवार एक दूसरे के विरोधी हैं। अध्यात्म का मतलब
यही समझा जाता रहा है कि आपको अपने घर-परिवार त्यागने ही पड़ ेंगे। आज मुझे लगता है कि इस सोच ने
समाज का बहुत बड़ ा नुक ़ सान किया है।

़ ब
ईशा लहर का जनवरी 2019 अं क ऐसी कितनी ही भ्रां तियों को तोड़ ने वाला था। सद् ‌गुरु ने बड़ ी ही ख ू सूरती
से समझा दिया कि परिवार आपके जीवन की बाहरी व्यवस्था है, जबकि अध्यात्म एक भीतरी व्यवस्था है।
अध्यात्म आपके पारिवारिक जीवन में बाधक नहीं, बल्कि सहायक ही है। आज ज़रूरत है कि ऐसे विचारों को
समाज में वाइरल किया जाए ताकि अध्यात्म के प्रति गृहस्थों के मन में घर की हुई दूरी मिट सके।
- मयं क, झाँ सी

प्रिय पाठक गण,


आपके पत्र हमेशा से हमारे लिए प्रेरणा काही नहीं मार्गदर्शन का काम भी करते रहे हैं। इसलिए
आपसे अनुरोध है कि अपनी बेबाक राय व इस पत्रिका से अपनी अपेक्षाएं हमें बेहिचक बताते
रहें। आपकी अपेक्षाओ ं पर खरा उतरने की हम हर सं भव कोशिश करेंगे। अपनी राय आप हमें
ईमेल भी कर सकते हैं।मार्च अं क में हमारी चर्चा के मुख्य विषय होंगे आदियोगी शिव, उनकी
भव्यता, दिव्यता और मानव चेतना को जगाने में उनका योगदान।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | फरवरी 2019 7


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आनं दित और सम्मोहित


खुशबू - एक फूल की,
शीतलता – मौसमी बयार की
सौंदर्य – रात के स्याह गगन का
जो सजा हो अनगिनत तारों से
अनवरत चलने वाली दिल की धड़ कन,
और मं द गति-साँ सों की
ये सभी हानिरहित सरल घटनाएँ
बनाती हैं मुझे एक जीवित,
स्पं दनशील और प्रचं ड जीवन।

सिर्फ एक मन-रहित,
विचार-शून्य परम प्रज्ञा ही
रच सकती है ,
सरल और अतुल्य का
ये अद्भुत मेल।
यह बोध बना दे ता है मुझे
एक दास
एक जीवन
जिसमें नहीं है कोई व्यक्तित्व,
न ही हैं जिसकी कोई अपनी चाहतें।
एक जीवन जिस पर है
असीम इच्छा का पूरा अधिकार।

इस शाश्वत भट्ठी की ठं डी अग्नि


मुझे जलाती नहीं,
बल्कि कर दे ती है
आनं दित और सम्मोहित।

ईशा लहर | फरवरी 2019 9


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तीन तरीके अध्यात्म की राह पर


आध्यात्मिक प्रक्रिया को अपनाने के तीन तरीके हैं । एक तरीका है कि धीरे-धीरे सही
चीजें करते हुए कुछ जीवनकालों में आप लक्ष्य हासिल करें। दो और तरीके हैं ।

सी इं सान की कार्मिक सं रचना बुनियादी हुए, आप जो सबसे बेहतर कर सकते हों करते रहें,
तौर पर चक्रीय होती है। यह चक्र केवल खुद को खुला रखें और आध्यात्मिक प्रक्रिया के
एक जीवनकाल से दूसरे जीवनकाल तक का ही लिए खुद को हाजिर रखें। ऐसे में जीवन के अं तिम
नहीं होता। अगर आप चीजों को गौर से दे ख सकते पलों में हम सुनिश्चित करेंगे कि आपको लक्ष्य मिल
हैं, तो आप पाएं गे कि घटनाएं आमतौर पर सवा जाए। एक और तरीका है कि आप सब कुछ बस
बारह या साढ़ े बारह साल के चक्र में दोहराती हैं। अभी चाहते हैं - आप चीजों को अभी जानना चाहते
अगर आप और ज्यादा गौर से दे खग ें े तो पाएं गे हैं। ऐसे में आपको इस बात को लेकर चिंता नहीं
कि एक साल के समय में ही एक तरह की चीजें होनी चाहिए कि आपके आस-पास क्या हो रहा है,
बार-बार हो रही हैं। एक दिन के भीतर भी वही चक्र क्योंकि तब बहुत सारी चीजें ऐसी होंगी, जिन्हें कोई
अपने आपको कई बार दोहरा रहा होता है। वास्तव पसं द नहीं करेगा। समाज उन्हें स्वीकार नहीं करेगा,
में कर्मों का यह चक्र हर 40 मिनट के बाद सिर यहां तक कि आपका परिवार भी उन्हें स्वीकार नहीं
उठाता है। ऐसे में हर 40 मिनट में आपके पास इस करेगा। क्योंकि वो आपको एक खास तरह के इं सान
चक्र को तोड़ ने का मौका होता है। इन सब चीजों के रूप में ही जानते हैं। अगर आप दूसरी तरह के
पर गौर करना बड़ ा महत्वपूर्ण है। अगर आप दे ख इं सान हो गए तो वे आपको स्वीकार नहीं
पाएं कि आप हर 40 मिनट के बाद उन्हीं चीजों कर पाएं गे।
को दोहरा रहे हैं तो आपको दो दिन में इस बात का
अहसास हो जाएगा कि आपका जीवन मूर्खताओ ं से मान लीजिए आपने किसी से शादी की है। आप
भरे चक्रों का दोहराव भर है। अगर आप इस चक्र कैसे हैं, यह दे खकर और उसे स्वीकार करके ही
को 12 साल के अं तराल में दे खग ें े तो यह महसूस उन्होंने आपसे शादी की। अब अगर आप वैसे न रहें,
करने में आपको 24 से 48 साल का समय लग कुछ और हो जाएं , तो उनके लिए अजीब हो जाएं गे,
जाएगा कि यह सब ठीक नहीं हो रहा है। ठीक इसी भले ही आप पहले से बेहतर इं सान बने हों। अगर
तरह अगर आप पूरे जीवन काल में सिर्फ एक ही उनके भीतर इतनी समझ नहीं है कि वे आपके भीतर
बार इस चक्र को दे ख पाए, तो इसकी निरर्थकता खिलने वाली सं भावनाओ ं को दे ख सकें तो वे आपके
को महसूस करने में आपको कुछ और जीवनकाल साथ नहीं रह सकते। अगर आपके जीवनसाथी यह
लग जाएं गे। तो हर 40 मिनट के बाद आपके पास सोच पाएं कि ‘मेरा साथी काफी आगे निकल चुका
यह मौका है कि आप इस चक्र के प्रति जागरूक हो है, किसी ऐसे इं सान के साथ रहना शानदार बात है
जाएं और इसे तोड़ दें । जो आध्यात्मिक राह पर आगे बढ़ रहा है’ - तब तो
ठीक है। लेकिन इतनी समझ आने पर सं बं धों के
आध्यात्मिक प्रक्रिया को अपनाने के तीन तरीके हैं। आयाम बदल जाते हैं, ये पहले जैसे नहीं रह सकते।
एक तरीका है कि धीरे-धीरे सही चीजें करते हुए वह सं बं ध पति-पत्नी का हो या मां -बेटे का या
कुछ जीवनकालों में आप लक्ष्य हासिल करें। दूसरा फिर इस तरह का कोई भी और सं बं ध हो, वह वैसा
तरीका यह है कि आप अपने मौजूदा हालात में रहते नहीं रह जाएगा। एक तरह से दे खें तो जिस चीज

10 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com


को आप पहले महत्व दिया करते थे, वह खत्म हो धीरे-धीरे बढ़ ना मुझे पसं द नहीं।
जाएगी। दुनिया में ऐसे कितने लोग हैं, जो इस तरह
के बदलाव के लिए तैयार हैं? आपके और ईश्वरीय सत्ता के बीच कोई पहाड़ नहीं
मेरे भीतर धीरज नहीं है ।
है, अगर कोई बीच में अड़ ा है तो वह हैं खुद आप,
ऐसे में बहुत से लोगों के लिए पहले के दो विकल्प आपका मानसिक ढां चा। अगर आपको इसे तोड़ ना मैंने अपनी जिंदगी को
बेहतर हैं। आप सही चीजें करें, अपने गुरु के लिए है तो कुछ करना होगा। एक आसान सा काम है, जो हमेशा उतावलेपन के साथ
हाजिर रहें और जब अं तिम पल आएगा तो वे आप कर सकते हैं। किसी ऐसे इं सान के साथ टीम ही जिया है । लोग आमतौर
आपका ख्याल रखेंगे। या यह भी हो सकता है कि बनाइए, उसके साथ रहिए, जिसे आप पसं द नहीं
पर मुझे बेहद धैर्यवान
आप उनके लिए हाजिर नहीं रहना चाहते और कुछ करते। उसके साथ बहुत प्रेम और आनं द के साथ
छोटी-मोटी चीजें करने को इच्छु क हैं। फिर अपने वक्त बिताइए। बहुत सारी चीजें टू टें गी। लेकिन आप व्यक्ति के तौर पर दे खते
लिए किसी प्रक्रिया का अभ्यास कीजिए, जिससे हमेशा ऐसे शख्स के साथ रहना चाहते हैं, जिसे आप हैं । दरअसल मेरी स्वीकार
भविष्य में कभी कुछ घटित हो सके। लेकिन मैं ऐसा पसं द करते हैं - यह आपके लिए अच्छा नहीं है। करने की क्षमता को धैर्य
नहीं चाहता। या तो आप अपनी सीमाओ ं को अभी
के रूप में दे खा जाता है ,
तोड़ दें , नहीं तो कम से कम मौत के पलों में तो अगर आप कोई ऐसी चीज चुनते हैं जो आपको
ऐसा होना ही चाहिए। मेरे भीतर धीरज नहीं है। मैंने पसं द है, तो वह आपके व्यक्तित्व को मजबूत बनाती लेकिन मैं धैर्यवान नहीं
अपनी जिंदगी को हमेशा उतावलेपन के साथ ही है। ऐसी चीजें करने की कोशिश कीजिए, जो हूं । मुझे हर चीज तेजी से
जिया है। लोग आमतौर पर मुझे बेहद धैर्यवान व्यक्ति आपको पसं द न हों। ऐसे लोगों के साथ रहिए, जो चाहिए। धीरे-धीरे बढ़ ना
के तौर पर दे खते हैं। दरअसल मेरी स्वीकार करने आपको पसं द नहीं हों और इसके बावजूद प्रेम और
मुझे पसं द नहीं।
की क्षमता को धैर्य के रूप में दे खा जाता है, लेकिन आनं द से भरपूर जीवन बिताइए। ऐसा करने से ही
मैं धैर्यवान नहीं हूं । मुझे हर चीज तेजी से चाहिए। हर चीज टू टे गी।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | फरवरी 2019 11


§‘ÀUæ¥æð´ ·¤è ÕéçÙØæÎ

़ रूरत क्या है ?
मं दिरों की भला ज
शुरू में मं दिर, उस स्थान पर आने वाले लोगों में ऊर्जा का सं चार करने के लिए बनाए
गए। लेकिन कालां तर में सं भव है कि लोग ऊर्जा प्राप्त करने की विधि भूल गए हों या
फिर मं दिर अपनी शक्ति खो चु के हों।

आ ज मं दिरों में जाने वालों में अधिकतर वे


लोग होते हैं जो भय और इच्छाओ ं से
प्रेरित होकर वहाँ जाते हैं, वे किसी दिव्य शक्ति से
के बाद लौटा। ‘मैंने जिस पेड़ पर निशान लगाया है,
वहाँ तक पहुँ चने में आपको कम से कम कई महीनों
तक यात्रा करनी पड़ ेगी’ बं दर ने कहा। ‘कोई ज़रूरत
आकर्षित होकर वहाँ नहीं जाते। मं दिरों को बनाने नहीं है’ कहते हुए गुरु मुस्कराए। वे खुद जिस तख्ते
के पीछे एक अलग विज्ञान है। आप जिस जगत में पर बैठे थे उसे दिखाया। उस पर बं दर का बनाया
रहते हैं उसे समझने का साधन आपकी पां च इन्द्रियां निशान था। ब्रह्मांड में इं सान द्वारा की गई यात्रा भी
हैं। आकाश को दे खने पर आपको वह बहुत विशाल बस इतनी ही है। इससे परे की जो यात्रा है उसी के
लगेगा। सूर्य, नक्षत्र और अन्य ग्रह तो आपको लिए निर्मित हैं मं दिर। और भी सरल ढं ग से कहें तो
दिखते हैं, लेकिन उनके द्वारा भरे जाने के बाद इस मान लीजिए शून्य में, जहाँ कुछ भी नहीं है, कोई
ब्रह्मांड में फैला हुआ विशाल, असीम शून्य आपको दरी बिछी है। आप उसी दरी पर चल-फिरकर अपना
कभी दिखाई दिया है? उस असीम शून्य में, जिसे रूप काम कर रहे हैं। कुछ सिद्ध पुरुषों द्वारा उस दरी पर
और आकार से परिभाषित नहीं किया जा सकता, वैज्ञानिक तरीक ़ े से खड़ े किए गए द्वार ही मं दिर हैं।
उस महाशून्य में एक आनं दमय अनुभव है। उसे यदि आप उन द्वारों से होकर उस पार गिरेंगे तो उस
आप महसूस कर सकें, इसी मक ़ सद से बनाए गए तरफ के शून्य को, जहाँ कुछ भी नहीं है, अपने
हैं मं दिर। उसका अनुभव पाने के लिए आपकी पाँ चों अनुभव में समेट लेंगे। यही अनं त शून्य ही शिव है।
इं द्रियां काफी नहीं हैं। निराकार प्रकृति वाला शून्य जब कोई रूप लेता है,
तब सबसे पहले बनने वाला रूप ही लिंग है। जिस
किसी ज़न गुरु के पास एक बं दर आया। उसने ‘शून्य’ से सृष्टि ने रूप लिया, उस ‘शून्य’ की प्रकृति
प्रार्थना की, ‘मुझे अपना चेला बना लीजिए।’ उसने वाले शिव से एकाकार होने के लिए ही मं दिर बनाए
कहा, ‘मेरे पास ऐसी क्षमता है जो दूसरों में नहीं गए। प्राचीन युग में निर्मित हज़ारों मं दिर,एकदम
मिलेगी। एक ही छलाँ ग में मैं आठ सौ पेड़ों को लां घ आडं बरहीन, केवल लिंगों के साथ बनाए गए थे।
सकता हूँ ।’ बं दर के हाथ में गुरु ने एक चाकू दिया। किसी को भी आकर्षित करना उनका उद्दे श्य नहीं
बोले, ‘आज तुम जितनी दूर जा सकते हो, चले था। चूँ कि इं सान मं दिरों से सं बं धित विज्ञान को
जाना। वहाँ पर इस चाकू से एक निशान बनाकर सं भालने में दक्ष था, इसलिए उसने शक्ति के लिए
लौट आओ। उसके बाद मैं अपना निर्णय बताऊँ गा।’ एक देवता, धन व ऐश्वर्य देने के लिए एक अलग
बं दर ने अपने मन में इसे कोई मूर्खतापूर्ण चाल देवता, विद्या देने के लिए एक अलग देवता, पालन
समझी। फिर भी उसने तय कर लिया आज इस ज़न े और सुरक्षा के लिए एक अलग देवता, इस तरह
गुरु को पस्त करके ही छोड़ ना है। अपनी आदत अलग-अलग देवताओ ं के लिए मं दिर बनाया।
से भी ज़्यादा तेज़ी के साथ कूदते हुए चला। थक लेकिन आज? मं दिरों में जाने वाले अधिकां श लोग
जाने पर वहाँ किसी पेड़ पर चाकू से निशान बनाने वहाँ पर मौजूद ऊर्जा का अनुभव करने में असमर्थ

12 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com


होकर जड़ बन गए हैं। उनमें इस बात का अं तर में सं भव है कि लोग ऊर्जा प्राप्त करने की विधि भूल
करने की क्षमता नहीं है कि इनमें से किस मं दिर गए हों या फिर मं दिर अपनी शक्ति खो चुके हों।
में ऊर्जा है और किस में नहीं। महान योगियों द्वारा जो भी हो, धीरे-धीरे इं सान प्रकृति का सही उपयोग
जिस मंदिर के बारे में
बनाए गए भरपूर ऊर्जा वाले अनेक मं दिर हमारे करने की कला से भी अनजान हो गया। पहले लोग
दे श में दे ख-रेख के अभाव में नष्ट हो रहे हैं। इसका ़ रीबी सं बं ध रखते थे। अब कई लोग
मं दिरों से क विशेष रूप से विज्ञापन
कारण लोगों का अज्ञान ही है। मं दिरों को मनोरंजन का स्थान समझने लग गए हैं। किया जाता है कि वहाँ
बाज़ार में ख ़ रीदारी के लिए जाने पर जो खर्चा होगा
कृपा की वर्षा होती है ,
जिस मं दिर के बारे में विशेष रूप से विज्ञापन उससे भी कम खर्च में ईश्वर से सौदा निपटाने की
वह लोकप्रिय हो जाता है ।
किया जाता है कि वहाँ कृपा की वर्षा होती है, वह कोशिश करते हैं।
लोकप्रिय हो जाता है। दरअसल जो मं दिर आपको दरअसल जो मंदिर आपको
भावुक एवं सं वेदनशील बनाने की चाल से प्रेरित हैं, खास तौर से दक्षिण भारत में पहले मं दिर का निर्माण भावुक एवं सं वेदनशील
ऐसे मं दिर आपको पसं द हैं। लेकिन लोकप्रिय होने करने के बाद ही उसके चारों ओर एक बस्ती का बनाने की चाल से प्रेरित
मात्र से कोई मं दिर ऊर्जावान हो, यह ज़रूरी नहीं है। निर्माण किया जाता था। उस मं दिर की सं स्कृति
हैं , ऐसे मंदिर आपको
सृष्टि में आप जो कुछ दे खते हैं, वह सब शून्य से ही हर घर में मौजूद होती थी। आज भी यह सं भव है।
फूटकर निकला है, आज के वैज्ञानिक शोधों का भी किसी भी अवसर का उपयोग करना या न करना पसं द हैं । लेकिन लोकप्रिय
निष्कर्ष यही है। ‘शून्य’ से निकला सब कुछ अं त में आप ही के हाथों में है। मं दिरों के सं बं ध में भी होने मात्र से कोई मंदिर
उसी ‘शून्य’ में जाकर विलीन हो जाता है, इस ज्ञान यही बात सत्य है। इसीलिए ‘ध्यानलिंग’ को हमने ़ रूरी
ऊर्जावान हो, यह ज
को बाँ टने के लिए ही बनाए गए हैं सच्चे मं दिर। शुरू आम जनता के लिए खोल रखा है। यहाँ मं दिर की
नहीं है ।
में मं दिर, उस स्थान पर आने वाले लोगों में ऊर्जा का दे खभाल से लेकर हरेक काम में कोई भी इं सान पूर्ण
सं चार करने के लिए बनाए गए। लेकिन कालां तर रूप से हिस्सा लेकर लाभ उठा सकता है।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | फरवरी 2019 13


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कैसे लें भोजन का असली आनं द?


भोजन का असली आनं द तब है ,जब आप इस बात के प्रति पूरी तरह से
जागरूक हैं कि कोई दूसरा जीवन आपका हिस्सा बनना चाहता है , आपके
जीवन के साथ घुल-मिलकर एक हो जाना चाहता है ।

आ पका भोजन भी जीवन का ही एक


रूप है , जो अपना जीवन दे कर आपके
जीवन का पोषण करता है । अगर आप इतने
तब है ,जब आप इस बात के प्रति पूरी तरह से
जागरूक हैं कि कोई दूसरा जीवन आपका हिस्सा
बनना चाहता है , आपके जीवन के साथ घुल-
जागरूक हैं कि यह दे ख सकें कि अनेक जीवन मिलकर एक हो जाना चाहता है । किसी इं सान
खुद अपने जीवन की आहुति दे कर आपको के लिए सबसे बड़ ी खुशी यह होती है कि कोई
जीवित रखते हैं , तो आप अपने भोजन को पूरी चीज, जो ‘वह’ नहीं है ,उसका एक हिस्सा बनने
कृतज्ञता के साथ ग्रहण करेंगे। अगर आप पूरी की इच्छु क है । इसी को आप ‘प्रेम’ कहते हैं ।
कृतज्ञता के साथ भोजन करते हैं , तो स्वाभाविक इसी को लोग ‘भक्ति’ कहते हैं । यही आध्यात्मिक
रूप से आप उतना ही खाएंगे, जितना जरूरी प्रक्रिया का परम लक्ष्य है । चाहे वह कामुकता
होगा। फिर वह भोजन आपके शरीर में बिल्कु ल हो, दीवानगी हो, भक्ति हो, या आत्मज्ञान हो,
अलग तरह से बर्ताव करेगा। ध्यान रखें कि आप सब एक ही चीज है - फर्क बस स्तर का है ।
अपने भोजन के साथ जैसे पेश आते हैं , वह भी जब यह दो लोगों के बीच होता है , तो हम इसे
आपके साथ वैसे ही पेश आता है । दीवानगी कहते हैं , जब ऐसा एक बड़ े समूह के
साथ होता है , तो हम इसे प्रेम कहते हैं । जब
आपका भोजन आपके शरीर में कैसा व्यवहार यह बिना किसी पक्षपात के घटित होता है , तब
अगर आप पूरी कृतज्ञता करता है , यह आपकी जागरूकता पर निर्भर हम इसे करुणा कहते हैं और जब इसके लिए
के साथ भोजन करते हैं , करता है । उदाहरण के तौर पर, दो पूरी तरह आपको किसी रूप या आकार की भी जरूरत नहीं
से स्वस्थ इं सान समान पौष्टिकता वाला भोजन होती, तो इसे भक्ति कहते हैं । सबसे ऊँचे स्तर पर
तो स्वाभाविक रूप से आप
करते हैं और भोजन को पचाने की उनकी घटित होने पर हम इसे आत्मज्ञान कहते हैं ।
उतना ही खाएं गे, जितना
क्षमता भी लगभग बराबर है । लेकिन एक व्यक्ति
जरूरी होगा। फिर वह खुशी-खुशी भोजन करता है , जबकि दूसरा सारा अस्तित्व एक है – यह बात हर रोज आपके
भोजन आपके शरीर में बस अपनी भूख मिटाने के लिए खाता है । जो भोजन के समय जाहिर होती है । भोजन करना
व्यक्ति खुशी के साथ खाता है , उसे दूसरे व्यक्ति अस्तित्व के एकत्व को दर्शाता है । जो एक पौधा
बिल्कु ल अलग तरह से
के मुकाबले कम भोजन की जरूरत होगी और था, एक बीज था, एक पशु या मछली या एक
बर्ताव करेगा। ध्यान रखें
उसे बेहतर पोषण मिलेगा। इसे साबित करने पक्षी था, वह आपके साथ घुल-मिलकर इं सान
कि आप अपने भोजन के के लिए वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद हैं । एक इं सान बन जाता है , यह साफ तौर पर अस्तित्व के एक
साथ जैसे पेश आते हैं , वह जो जीवन के प्रति थोड़ ा भी सं वेदनशील है , होने का प्रमाण है । यह साबित करता है कि
यह बात जानता है । अगर आप कृतज्ञता और अस्तित्व की हर चीज में स्रष्टा का हाथ है । भोजन
भी आपके साथ वैसे ही
श्रद्धा के साथ भोजन करते हैं , तो आप दे खेंगे की इस सरल प्रक्रिया को स्रष्टा की मर्जी को पूरा
पेश आता है ।
कि आप जो भी खाएंगे, वह आपके ऊपर बहुत करने, और एकत्व के आनं द को अनुभव करने में
जबर्दस्त असर करेगा। भोजन का असली आनं द रूपांतरित कर दीजिए।

14 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com


isha.sadhguru.org ईशा लहर | फरवरी 2019 15
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क्या खाना है
शरीर से पूछें, मन से नहीं
अगर आप अपने शरीर की सु नें तो वह आपको साफ-साफ बता दे गा कि उसे किस तरह का
भोजन पसं द है , लेकिन अभी आप अपने मन की सु न रहे हैं । आपका मन हर वक्त आपसे
झूठ बोलता रहता है ।

आ प किस तरह का भोजन करते हैं, यह


इन बातों पर निर्भर नहीं होना चाहिए
कि भोजन के बारे में आपकी सोच क्या है, आपके
रहे हैं। आपका दिमाग हर वक्त आपसे झूठ बोलता
रहता है। याद कीजिए, क्या पहले कभी इसने झूठ
नहीं बोला? आज यह आपको बताता है कि यह सही
मूल्य और मान्यताएं क्या हैं। इसका फैसला इस है। इसी बात पर कल आपको यह ऐसा महसूस करा
आधार पर होना चाहिए कि आपके शरीर को क्या दे गा कि आप निरे मूर्ख हैं। इसलिए अपने मन के
चाहिए। भोजन का सं बं ध शरीर से है। भोजन के बारे हिसाब से मत चलिए। आपको बस अपने शरीर की
में फैसला लेने के लिए अपने डॉक्टर या न्यूट्रिशन सुननी है।
एक्सपर्ट से मत पूछिए क्योंकि ये लोग हर पां च साल
में अपनी राय बदलते रहते हैं। इसके बारे में अपने यदि आपने सही प्रकार की जागरुकता अपने अं दर
शरीर से पूछिए कि वह किस तरह के भोजन से खुश पैदा कर ली तो आप सिर्फ छू कर ही यह समझ
होगा। लेंगे कि खाने की किस चीज का आप पर कैसा
प्रभाव पड़ सकता है। यह बात हर प्राणी जानता
अलग-अलग तरह के भोजन आजमाइए और फिर है। आपने दे खा होगा कि कुत्ता सूं घकर ही यह जान
दे खिए कि आपका शरीर कैसा महसूस करता है। लेता है कि उसके सामने पड़ ा खाना उसके खाने
अगर आपका शरीर चुस्त, फुर्तीला और ऊर्जावान लायक है या नहीं। हर जानवर यह जानता है कि
महसूस करता है तो समझ लीजिए कि उस भोजन उसे क्या खाना चाहिए क्या नहीं। सिर्फ इं सान ही
को लेकर आपका शरीर सं तुष्ट है। लेकिन अगर शरीर इस मामले में नासमझ है, जबकि इं सान की प्रजाति
आलस महसूस करता है और उसे चलाने के लिए को इस धरती पर सबसे ज्यादा बुद्धिमान माना गया
आपको कैफीन या निकोटीन लेने की जरूरत पड़ ती है। ऐसा इसलिए क्योंकि वह खाने को अपने शरीर
है तो इसका मतलब है कि शरीर खुश और सं तुष्ट से समझने के बजाय अपने दिमाग से समझने की
नहीं है। आम तौर पर आप तरह-तरह के व्यं जन कोशिश करता है। जब आपका शरीर ख ़ ास तरीक
़े
स्वाद के सुख के लिए खाते हैं। स्वाद का पता से जागरूक हो जाएगा तब आप बड़ ी आसानी से
लगाने वाली स्वाद-ग्रंथियां जीभ के एक छोटे से यह समझ जाएं गे कि कौन-सी चीज खाई जाए और
भाग में ही होती हैं। आप इन थोड़ ी-सी स्वाद-ग्रंथियों कौन-सी नहीं। अपने शरीर की बात सुनने की कला
को सं तुष्ट करने के लिए अपने पूरे शरीर को कष्ट दे सीखने के लिए एक खास किस्म की जागरुकता और
रहे हैं। यह कोई बुद्धिमानी का काम तो नहीं है। ध्यान की जरूरत होती है। एक बार यह सीख गए तो
आपको पता चल जाता है कि आपको क्या खाना है
अगर आप अपने शरीर की सुनें तो वह आपको और क्या नहीं।
साफ-साफ बता दे गा कि उसे किस तरह का भोजन
पसं द है, लेकिन अभी आप अपने दिमाग की सुन आपके शरीर के भीतर किस तरह का भोजन जाना

16 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com


चाहिए, इस मामले में निश्चित रूप से शाकाहारी उतना ताजा और कच्चा भोजन करना चाहिए। एक आपने दे खा होगा कि कुत्ता
भोजन मां साहारी भोजन से बेहतर है। इस बात को जीवं त कोशिका में वह सब कुछ होता है जो जीवन
एक-दो बार सूं घकर ही
हम नैतिक दृष्टिकोण से नहीं कह रहे हैं। हम तो सिर्फ को पोषण देने के लिए जरूरी है। अगर आप किसी
यह दे ख रहे हैं कि क्या खाना शरीर के अनुकूल होता जीवं त कोशिका का सेवन करते हैं तो आपको जो यह जान लेता है कि उसके
है। हम वही भोजन लेने की कोशिश करते हैं, जो तन्दुरुस्ती महसूस होगी, वह पहले से बिल्कु ल अलग सामने पड़ ा खाना उसके
हमारे शरीर को आराम पहुंचाए। चाहे आपको अपना किस्म की होगी। जब हम भोजन पकाते हैं, तो इससे खाने लायक है या नहीं।
कारोबार सही तरीके से चलाना हो, चाहे पढ़ ाई करनी इसके भीतर का जीवन नष्ट हो जाता है। जब भोजन
हर जानवर यह जानता है
हो या कोई और काम करना हो, यह बड़ ा महत्वपूर्ण की जीवं तता नष्ट हो जाती है, तो वह उतनी मात्रा में
है कि आपका शरीर आराम की स्थिति में हो और जीवन ऊर्जा नहीं दे ता, लेकिन जब आप कच्चा और कि उसे क्या खाना चाहिए।
जो खाना आप खा रहे हैं, उससे पोषण लेने के लिए ताजा भोजन खाते हैं, तो आपके शरीर में एक अलग सिर्फ इं सान ही इस मामले
शरीर को सं घर्ष न करना पड़ े। हमें ऐसा ही भोजन स्तर की जीवं तता आती है। में नासमझ है , जबकि
करना चाहिए।
इं सान की प्रजाति को इस
अगर कोई भरपूर मात्रा में अं कुरित अनाज, फल,
कभी प्रयोग करके दे खिए कि जब आप ताजा और कच्ची सब्जियां खाए, भोजन का कम से कम 30 धरती पर सबसे ज्यादा
कच्चा शाकाहारी भोजन करते हैं, तो आपका शरीर से 40 फीसदी भाग कच्चा ही ले, तो उसके भीतर बुद्धिमान माना गया है ।
कितना उर्जावान महसूस करता है। जितना हो सके, जीवं तता भी जबर्दस्त तरीके से बनी रहेगी।

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योग विज्ञान में भोजन के प्रकार


योग-विज्ञान में भोजन का विभाजन उसके पोषक गुणों के आधार पर नहीं किया जाता
बल्कि उसकी प्राण-शक्ति के आधार पर किया जाता है – सकारात्मक प्राणिक आहार,
नकारात्मक प्राणिक आहार और शून्य प्राणिक आहार।

आ पको वैसा ही भोजन करना चाहिए जैसा


आपका शरीर पसं द करे, वैसा नहीं जैसा
आपके मन या ज़ब ु ान को पसं द हो। अगर आप
सफाई के लिए आपको तुरंत अस्पताल
भागना पड़ ेगा।

अपने शरीर को खुश नहीं रखेंगे तो आपका जीवन 2. प्याज: इसे खाना तो दूर, बस केवल यह दे ख
जीते-जी नर्क के समान हो जाएगा। इसलिए वैसा ही लीजिए कि आपका शरीर इसके लिए हां कह रहा है
भोजन कीजिए जो आपको प्राण-ऊर्जा दे । या ना। हमारा शरीर प्याज के लिए जरूर मना करता
है, वह उसे पसं द नहीं करता- आपकी आं खें जलने
भोजन के प्रकार लगती हैं और आं सू बहने लगते हैं।
योग-विज्ञान में भोजन का विभाजन उसके पोषक
गुणों के आधार पर नहीं किया जाता बल्कि उसकी 3. हींग: हींग भी एक नकारात्मक प्राणिक आहार है
प्राण-शक्ति के आधार पर किया जाता है। इन्हें लेकिन आम तौर पर खाने में इसको बहुत थोड़ ा सा
विटामिन, प्रोटीन आदि वर्गों में न बां टकर, तीन इस्तेमाल किया जाता है।
वर्गों में बाँ टा जाता है – सकारात्मक प्राणिक आहार,
नकारात्मक प्राणिक आहार और शून्य प्राणिक 4. बैंगन: सब्जियों में सिर्फ बैंगन ही एक ऐसी
आहार। सकारात्मक प्राणिक आहार वह है जिसे सब्जी है जिसमें सचमुच थोड़ ा जहर होता है। बैंगन
खाने से हमारे शरीर की प्राण-ऊर्जा बढ जाती है, में एक ऐसा एं जाइम होता है जिसमें मस्तिष्क के
जबकि नकारात्मक प्राणिक आहार लेने से हमारी हाइपोथैलमस को नुकसान पहुंचाने की क्षमता
प्राण-शून्य खाद्य पदार्थों प्राण-ऊर्जा का क्षय होता है। दरअसल नकारात्मक होती है। खास तौर से बच्चों को बैंगन नहीं खिलाना
के सेवन से आपको नींद प्राणिक आहार शरीर के स्नायु-तं त्रिकाओ ं को चाहिए।
अधिक आती है । इसलिए उत्जते ित करके प्राण-ऊर्जा को बाहर निकाल दे ते हैं।
शून्य प्राणिक आहार से न तो ऊर्जा मिलती है और 5. मिर्ची: आप एक प्रयोग कर के दे खिए, 30 दिन
आम तौर पर, हम छात्रों और
न ही कम होती है। हम इनको सिर्फ स्वाद और भूख तक मिर्च मत खाइए, उसके बाद एक दिन थोड़ ी सी
साधकों को इनका सेवन मिटाने के लिए खाते हैं। मिर्च खाकर दे खिए, आपको दस्त हो जाएगा। शरीर
न करने की सलाह दे ते हैं । इस मिर्च को बाहर फेंक देना चाहता है, वह उसको
छात्रों के लिए एक किताब नकारात्मक प्राणिक आहार जहर जैसा मानता है।
1. लहसुन: सही ढं ग से इस्तेमाल करने पर लहसुन
ही सुलाने के लिये काफी
निश्चित रूप से एक बहुत शक्तिशाली दवा है। लेकिन 6. कॉफी या चाय: ये तं त्रिकाओ ं को उत्जते ित करने
होती है । उसे खोलते ही वे अगर आप इसे हर दिन खाने में डालें तो आपको वाले बेहद शक्तिशाली पदार्थ हैं। ऐसे उत्ज
ते क पदार्थों
सो जाते हैं । बड़ ा नुकसान पहुंचा सकता है। अगर आप लहसुन का लगातार लं बे समय तक सेवन आपकी शक्ति
का तीस मि.ली. रस एक ही बार में पी लें तो पेट की और स्फू र्ति नष्ट कर दे ता है। खासकर आपका बुढ़ापा

18 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com


बहुत दुखदायी हो जाएगा। कहने की जरूरत नहीं कि सभी नशीली ़ से जुड़ी समस्या है तो आपको केले,
दमा है, साइनस या सां सों या कफ
दवाएं और तं त्रिका-उत्तेजक पदार्थ नकारात्मक प्राणिक आहार की श्ण
रे ी कटहल और पके हुए चुकंदर से परहेज करना चाहिए, इनसे कफ ़
मे आते हैं। बढ़ ता है।

शून्य प्राणिक आहार भावनात्मक अस्थिरता के पीछे भी आपके खाने का हाथ होता है।
कुछ ऐसे खाद्य पदार्थ होते हैं जो प्राण-शून्य होते हैं, जैसे आलू और अगर आप ऐसा भोजन करें जिसमें नकरात्मक प्राणिक आहार न हों
टमाटर। इन पदार्थों को स्वस्थ इं सान खा सकते हैं, पर उन लोगों को तो आपको भावनात्मक सं तुलन बनाए रखने में आसानी होगी। इन
इनका परहेज करना चाहिए जिन्हें जोड़ ों का दर्द या सूजन है। इनसे कुछ नकारात्मक या शून्य प्राणिक पदार्थों को छोड़कर आप बाकी सारे
जोड़ ों की समस्याएँ जैसे - गठिया की स्थिति बिगड़ सकती है। प्राण- खाद्य-पदार्थ खा सकते हैं। हर प्रकार की सब्जियां , फल, मेव,े अं कुरित
शून्य खाद्य पदार्थों के सेवन से आपको नींद अधिक आती है। इसलिए बीज आदि। लेकिन होता यह है कि मना की गई 6-7 चीजें ही आपको
आम तौर पर, हम छात्रों और साधकों को इनका सेवन न करने की अपनी तरफ खींचती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आपको इन
सलाह दे ते हैं। छात्रों के लिए एक किताब ही सुलाने के लिये काफी चीजों की आसानी से लत लग जाती है। आप तीन दिन तक लगातार
होती है। उसे खोलते ही वे सो जाते हैं। जो साधक अपनी आं खें बं द कॉफी पी लें तो चौथे दिन आपको सोचने की जरूरत ही नहीं पड़ ती।
करके पूरी तरह सजग बैठना चाहते हैं, उनके लिए नींद उनकी सबसे कॉफी खुद-ब-खुद आपको अपनी तरफ खींचेगी और पीने को मजबूर
बड़ ी दुश्मन है। तो ऐसे लोगों को आलू और टमाटर का सेवन कम कर करेगी। अच्छे काम करने के लिए आपको जागरूक होकर कोशिश
देना चाहिए। करनी होती है। लेकिन बुरे काम आप तक खुद पहुंच जाते हैं। जिंदगी
का यही दस्तूर है। फसल उगाने के लिए आपको कितनी मेहनत करनी
सकारात्मक प्राणिक आहार पड़ ती है, पर खर-पतवार बिना किसी मेहनत के अपने-आप पनपने
प्राण-शून्य और नकारत्मक प्राणिक पदार्थों को छोड़कर सभी सब्जियां , और फूलने-फलने लगते हैं, इसके लिए आपको कुछ नहीं करना
सूखे मेव,े अं कुर, फल इत्यादि सकारात्मक प्राण ऊर्जा वाले खाद्य पदार्थ पड़ ता। जीवन में सकारात्मक कार्य करने के लिए आपको जागरूक
हैं। कुछ ऐसे सकारात्मक प्राणिक खाद्य पदार्थ हैं जिनका सेवन कुछ होकर मेहनत करनी होगी।
ख़ ास बीमारियों से ग्रसित लोगों को नहीं करना चाहिए। अगर आपको

isha.sadhguru.org ईशा लहर | फरवरी 2019 19


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क्या खाएं से ज्यादा महत्वपूर्ण है कैसे खाएं


सिर्फ हमारे भोजन की गुणवत्ता ही अहम नहीं है , हम उसे कैसे खाते हैं , यह भी बहुत
मायने रखता है । क्या खाना चाहिए, इसके बारे में बहुत कुछ कहा जाता है , मगर कैसे
खाना चाहिए, इस पर लोगों को जागरूक करने के लिए शायद ही कोई सलाह दी जाती
है या कोशिश की जाती है ।

अमेरिकी फिजिशियन मार्क हाइमन ने, जो अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और उनकी
पत्नी हिलेरी क्लिंटन के चिकित्सा सलाहकार और न्यूयार्क टाइम्स के लेखक रहे हैं, सद् ‌गुरु से
बातचीत की थी। पेश है इस चर्चा के सं पादित अं श:

मार्क हाइमन: जब हम विश्व शां ति के लिए खतरों की बात करते


जब मैं विश्व शां ति के लिए सबसे बड़ े खतरे और हैं, तो हम सिर्फ आतं कवाद और मध्यपूर्व में स्थिरता
उसके समाधान के बारे में सोच रहा था, तो मुझे लगा की बात करते हैं। यह सच है कि ये भी गं भीर और
कि एक ऐसी चीज है, एक ऐसा उपकरण है जो महत्वपूर्ण समस्याएं हैं। मगर इस दूसरी समस्या के
आपकी जेब में समा सकता है, और अगर हमने इस बारे में कोई बात नहीं करता। आज इं सान के सामने
उपकरण का ठीक से इस्तेमाल किया, तो इसकी सबसे बड़ ी समस्या यह है कि हम एक सेहतमं द
मदद से हम स्थायी बीमारियों का उपचार कर सकते दुनिया कैसे बनाएं ? क्योंकि एक सेहतमं द दुनिया
हैं, जो दुनिया भर में तेजी से बढ़ रही हैं। हर साल ही एक शां तिमय दुनिया है। जिस दुनिया में हम
करीब पां च करोड़ लोगों की मौत उन बीमारियों से बीमार होते हैं और उन बीमारियों के इलाज के खर्च
होती है जो जीवन शैली से जुड़ी हैं, जिन्हें जीवन से बेदम होते हैं, वह बहुत ही अस्थिर, असुरक्षित
शैली में सुधार द्वारा आसानी से टाला जा सकता है। और अशां त दुनिया है। इसलिए हम इनमें से कुछ
जबकि हर साल सं क्रामक रोगों से मरने वाले लोगों मुद्दों की बात करेंगे। और हमें उम्मीद है कि हम
की सं ख्या लगभग दो करोड़ है। इसके कुछ समाधान भी बताएं गे।

आपको पता है कि यह उपकरण क्या है? यह मेरी सद् ‌गुरु:


जेब में है। यह है खाने का कां टा यानी ‘फोर्क ।’ यदि हम शां ति या हिंसा के सं दर्भ में भोजन की बात
इस कां टे से हम जो कुछ भी उठाते हैं, वह हमारी करें, तो बुनियादी तौर पर हम अपने शरीर के साथ
दुनिया के बारे में सब कुछ तय करता है। हमारी हिंसा करते हैं, हम हिंसात्मक तरीके से जीवन जीते
सेहत, जिस जमीन पर हम अपना भोजन उगाते हैं, हैं और फिर उम्मीद करते हैं कि दुनिया में शां ति हो।
जिस हवा में सां स लेते हैं और जिस पानी को पीते हैं, इं सानों के बिना यह दुनिया काफी शां तिपूर्ण है। हम
उन सबके बारे में यह सब कुछ तय करता है। यह इस धरती पर जिस तरह से रहते हैं, उससे हिंसा पैदा
दुनियाभर की सरकारों और समुदायों की स्थिरता होती है। जैसा कि मार्क ने कहा, धरती पर बहुत
और अस्थिरता का फैसला करता है। फिर भी कोई हिंसक, क्रूर स्थितियां होती हैं, जैसे लड़ ाइयां और
इसके बारे में बात नहीं करता। युद्ध। इसमें कोई दो राय नहीं है कि उन्हें सं भालने

20 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com


isha.sadhguru.org ईशा लहर | फरवरी 2019 21
और सुधारने की जरूरत है - मगर हम रोजाना जिस नहीं। एक मरीज था जो वजन कम करने के लिए
हिंसक तरीके से जीते हैं, उसे भी दे खने और उससे बहुत बेचन ै था, लेकिन वह बहुत व्यस्त था। उसने
निबटने की जरूरत है। हर साल हम 53 अरब कहा कि उसे रोज दोपहर के भोजन के लिए बर्गर
जानवरों को और लगभग दस करोड़ समुद्री जीवों किंग जाना पड़ता है, वह दो बड़ े बर्गर आर्डर करता
को मार रहे हैं। जब हम इतनी हिंसा करते हैं, तो है और जल्दी-जल्दी उन्हें खा लेता है। मैंने उससे
सेहतमं द रहना और शां ति से रहना कभी सं भव नहीं कहा, ‘मैं चाहता हूं कि आप हर कौर को ध्यानपूर्वक
होगा। सिर्फ हमारे भोजन की गुणवत्ता ही अहम नहीं खाएं , उसका स्वाद लें और उसका आनं द लेकर
है, हम उसे कैसे खाते हैं, निर्दयता से या जागरूकता खाएं ।’ कुछ सप्ताह बाद वह वापस आया और कहा,
से, यह भी बहुत मायने रखता है। क्या खाना ‘मैंने कोशिश की। वह बहुत खराब था। मैं उसे और
चाहिए, इसके बारे में बहुत कुछ कहा जाता है, नहीं खा पाया।’ चूं कि हम अक्सर बिना ध्यान दिए
मगर कैसे खाना चाहिए, इस पर लोगों को जागरूक खाते हैं, इसलिए हमें अपने शरीर पर पड़ ने वाले
करने के लिए शायद ही कोई सलाह दी जाती है असर का पता नहीं चलता। मेरे ख्याल से भोजन में
आप क्या खा रहे हैं , इसका या कोशिश की जाती है। मैंने कहीं पढ़ ा है कि बीस ऐसी शक्ति है कि वह रोग पैदा भी कर सकता है
निश्चित रूप से बहुत असर फीसदी अमेरिकी भोजन कार में किया जाता है। और रोग से मुक्ति भी दिला सकता है। हमारा खाना
पड़ ता है । लेकिन इसके कैसा है, यह तय करता है कि हमारी सेहत कैसी
पूरब में पारंपरिक तौर पर हमें हमेशा से यह सिखाया होगी और हम जितनी जागरूकता के साथ अपना
अलावा यह भी उतना ही
गया है कि जब भोजन हमारे शरीर के अं दर जाता भोजन करते हैं, उससे यह तय होता है कि हमारा
महत्वपूर्ण है कि आप उसे है, तो हमें उस समय किस स्थिति में होना चाहिए, शरीर उस भोजन को कैसे पचाएगा।
खाते कैसे हैं । जो चीज किस मुद्रा में होना चाहिए, उसके प्रति हमारा क्या
अपने आप में एक जीवन नजरिया होना चाहिए और उसे ग्रहण कैसे करना सद् ‌गुरु: आप अपनी जेब में कां टे के रूप में यह जो
चाहिए। ये बातें पूरब की सं स्कृति में बहुत महत्वपूर्ण शानदार उपकरण लेकर घूमते हैं, वह भी एक तरह
था, वह आपका हिस्सा
रही हैं। आप क्या खा रहे हैं, इसका निश्चित रूप से का अपराध ही है। अगर आप भोजन का स्पर्श नहीं
बन जाता है । एक जीवन बहुत असर पड़ता है। लेकिन इसके अलावा यह भी करेंगे तो आपको पता ही नहीं चलेगा कि वह है
खुद को दूसरे जीवन में उतना ही महत्वपूर्ण है कि आप उसे खाते कैसे हैं। क्या? अगर भोजन स्पर्श करने योग्य भी नहीं है तो
रूपांतरित कर रहा है - चाहे आप किसी जानवर को खाएं या सब्जी को, मुझे समझ में नहीं आता कि फिर यह खाने योग्य
या किसी भी चीज को, मुख्य रूप से हर भोजन, कैसे हो सकता है?
भोजन का मतलब यही है ।
जीवन का एक अं श है। जो चीज अपने आप में एक
जीवन था, वह आपका हिस्सा बन जाता है। एक मार्क हाइमन: तो इसका मतलब है कि हमें अपनी
जीवन खुद को दूसरे जीवन में रूपां तरित कर रहा है मां की बातों को नहीं सुनना चाहिए था। हमें खाना
- भोजन का मतलब यही है। यह सिर्फ पाचन नहीं खाते वक्त अपने हाथों व उं गलियों का इस्तेमाल
है, यह एक जीवन का दूसरे में विलीन हो जाना है। करना चाहिए, क्योंकि भोजन का स्पर्श करने से हम
फिलहाल, सारी लड़ ाई इसकी है कि खाना क्या है। भोजन से जुड़े हुए रहते हैं।
यह अपने आप में एक बड़ ी चुनौती है। मार्क इसके
बारे में कुछ बता रहे हैं। सद् ‌गुरु: आपके हाथों की सफाई पूरी तरह से
आपके हाथ में है। हो सकता है कि कां टे की सफाई
मार्क हाइमन: यह बिल्कु ल सच है। असल में लोग आपके हाथ में न हो। आपके हाथों का इस्तेमाल
आजकल जो खाते हैं, उसे अगर पूरी जागरूकता आपके अलावा किसी और ने नहीं किया, इसलिए
के साथ खाएं , तो शायद वे आगे से उसे खाएं गे ही आपके अलावा किसी दूसरे को नहीं पता होगा

22 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com


कि वह कितने साफ या गं दे हैं? जबकि कां टे को लेकर चाहिए। लोग कहते हैं कि मीठा व कार्बोहाइड्रेट अपने
आपको पता नहीं होता कि किसने इसे छु आ, किसने आप में गं भीर मुद्दा है। लेकिन मेरे हिसाब से सबसे बड़ ी
इसका इस्तेमाल किया, कैसे और किस काम के लिए चुनौती है - लोगों को मां साहार से दूर रखना। यह जीवन
इस्तेमाल किया। आम तौर पर इसे टिश्यू पेपर से पोंछ जीने का एक बेहद क्रूर तरीका है और यह आपके शरीर
दिया जाता है और यह साफ लगने लगता है। सबसे के सिस्टम पर भी गलत असर डालता है। बीमारी पहले
बड़ ी बात है कि जब आप खाते समय कां टे का इस्तेमाल स्तर की क्रूरता है। अगर आप बीमार हैं तो आप शां त
करते हैं तो आप भोजन के स्पर्श का अनुभव नहीं कर नहीं हो सकते, क्योंकि उस स्थिति में शरीर के स्तर पर
पाते। हम लोगों को खाने के बारे में जो चीज सबसे पहले लगातार आपका सं घर्ष चलता रहता है। गलत तरीके से
सिखाई गई थी,वह थी कि अगर आपके सामने खाना आए खाना और गलत मात्रा में खाना, भोजन से जुड़े दो अलग
तो सबसे पहले आप भोजन पर कुछ पल हाथ रखकर लेकिन अहम पहलू हैं। जिस तरह से लोग खाना खाते हैं,
महसूस करें कि खाना कैसा है। अगर मेरी थाली में कोई वह क्रूरता है और अगर हम इस शरीर का वजन जरुरत
खाने की चीज आती है तो मैं उसे चखे बिना सिर्फ महसूस से ज्यादा रखते हैं तो यह एक तरह से धरती का नुक ़ सान
करके ही समझ जाता हूं कि क्या खाना चाहिए और क्या है। आप अपने शरीर से जितनी भी फ ़ ालतू चर्बी घटाते
नहीं खाना चाहिए। सबसे पहले मेरे हाथ जान जाते हैं कि हैं, वह बाहर निकलकर आकाश में तो जाती नहीं, वह
भोजन कैसा है। इसी तरह से अगर आप किसी इं सान को सब वापस इसी धरती में मिलती है। आप वजन पर काबू
समझना चाहते हैं तो आप लोग एक दूसरे से हाथ मिलाते करके धरती के नुक ़ सान को रोक सकते हैं। हालां कि हम
हैं, लेकिन मैं आमतौर पर ऐसा करने से बचता हूं । अपनी इच्छानुसार वजन ढो सकते हैं, लेकिन हमें उस
सीमा से ज्यादा नहीं ढोना चाहिए, जहां हम इसे सं भाल
मार्क हाइमन: यह अपने आप में एक अच्छी रणनीति है। नहीं पाएं या जो हमारे लिए सुविधाजनक नहीं हो। जरूरत
से ज्यादा वजनदार होना भी अपने आप में एक समस्या
सद् ‌गुरु: खाने से पहले उस भोजन को जानना जरूरी है, और पीड़ ा है और जो लोग इस स्थिति में होते हैं, वे अपने
जो आपके शरीर का हिस्सा बनने जा रहा है। अगर आप हल्के होने, फुर्तीले होने और जीवं त होने का अहसास
भौतिक रूप से हाथ से इसका स्पर्श नहीं भी करते, फिर और मतलब दोनों ही खो चुके होते हैं। जैसा कि मैंने पहले
भी आप सचेत होकर साफ तौर पर जान सकते हैं कि कहा कि यह सिर्फ स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा नहीं है, और न
सामने आया भोजन कैसा है और इसका आपके शरीर पर ही सिर्फ इस बात से मतलब है कि कितने लोग मरते हैं,
कैसा असर होगा? कोई भी भोजन आपके भीतर जाना बल्कि सबसे बड़ ी समस्या है कि जितने लोग जिंदा हैं, वे
चाहिए या नहीं, इसका निर्णय बदलता रहता है। इसकी भी अपने जीवन को पूरी तरह से नहीं जी सकते।
वजह है कि आपका शरीर हर रोज, हर पल बदल रहा है।
अगर आप भोजन को महसूस कर सकें तो आपको तुरंत मार्क हाइमन: यह बिल्कु ल सच है। मसला सिर्फ यह नहीं
पता चल जाता है कि इस भोजन को आज आपके भीतर है कि लोग बीमारियों से बचे रहें। लोग जो खाना खाते
जाना चाहिए या नहीं। अगर लोगों में इतनी जागरूकता हैं, उससे जुड़ नहीं पाते, जो खाते हैं, उसे महसूस नहीं
आ जाए तो फिर हमें यह नहीं बताना होगा कि लोगों को कर पाते। यह सच है कि थोड़ े से वक्त में ही आप अपने
क्या खाना चाहिए और क्या नहीं? हर भोजन के समय वे खाने के तरीके को बदलकर वाकई अपनी सेहत में बड़ े
यह तय कर सकते हैं कि उन्हें इस समय क्या बदलाव ला सकते हैं। हमने कई बार इस चीज को दे खा
खाना चाहिए। है, यहां तक कि सिर्फ हफ्ते-दस दिन तक अपने भोजन
के तरीके में बदलाव लाने से लोगों में खासा बदलाव
ऐसा कोई एक तरीका या सूची नहीं है, कि आपको दिखा है।
बताया जा सके कि आपको पूरे जीवनभर क्या खाना

isha.sadhguru.org ईशा लहर | फरवरी 2019 23


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चं द्र-ग्रहण के दौरान भोजन क्यों न करें?


अगर आपको लगता है कि किसी किताब में लिखी गई बात ही सही होती है , तो इसका
मतलब है कि आप अं धविश्वासी व धार्मिक हैं । इसमें वैज्ञानिकता वाली कोई बात नहीं है ।
जाहिर सी बात है कि चं द्र ग्रहण का यह मतलब हर्गिज नहीं कि चां द अठ्ठाइस दिनों की यात्रा
कुछ ही घं टों में जल्दी से पूरी कर लेगा।

धविश्वास का मतलब है - किसी विषय के हैं। आज लोग ऐसा खाना खा रहे हैं, जो कई दिन
बारे में बिना राय या बोध के किसी नतीजे पर पहले, हफ्तों पहले या फिर महीनों पहले पका था।
पहुँ चना। जीवन की यही प्रकृति है। आपका बोध अगर उन्हें ताजे खाने और फ्रिज में रखे पुराने खाने
व अनुभव इस पर निर्भर करते हैं कि आप कितने में अं तर महसूस नहीं होता तो भला आप क्या कह
सं वेदनशील हैं। आपका बोध या ग्रहणशीलता सकते हैं। लेकिन इतना तो तय है कि उनके भीतर
इस बात पर निर्भर नहीं करती कि आपने कितनी उस तरह की सं वेदनशीलता नहीं है, जिसके बारे में
जानकारी इकट्ठी कर ली है। एक योगी के तौर पर, मैं बात कर रहा हूं । इसी से इं सान में जड़ता आती
जहां तक सं भव होगा, मैं डेढ़ घं टे से ज्यादा पहले है। हो सकता है कि वे दिन में आठ से दस घं टे सोते
पकाए हुए भोजन को नहीं खाऊंगा। हम आश्रम में हों, मेरे लिए यह मौत के समान है। दस घं टे की
भी क्यों एक खास तरीके से ही भोजन परोसते हैं? नींद का मतलब है कि हर दिन के लगभग चालीस
उसकी वजह सिर्फ इतनी है कि हम उम्मीद कर रहे प्रतिशत हिस्से की मौत। तो अगर आप इसी तरह
हैं कि लोग साधक से धीरे-धीरे योगी बनें। उन्हें जीना चाहते हैं, तो आप जो चाहें, खाएं ।
सिर्फ बदन को मोड़ ना, झुकाना नहीं है, बल्कि उस
सृष्टि के साथ अपने सं योग को भी महसूस करना न तो मैं कोई वैज्ञानिक हूं और न ही होना चाहता
मैं कह रहा हूं कि ग्रहण के है। ऐसा होने के लिए शरीर को सं वेदनशील होना हूं । न तो मैं कोई किताब पढ़ रहा हूं और न ही मैं
समय खाना मत बनाइए चाहिए और उसमें जड़ता का स्तर कम से कम होना किसी चीज को लेकर कोई शोध कर रहा हूं , और
चाहिए। अगर आप ऐसा खाना खाते हैं, जो किसी न ही मेरे घर के पिछवाड़ े में कोई प्रयोगशाला है। मैं
और न ही खाइए। उसके
न किसी रूप में खराब हुआ हो, हो सकता है कि यह सिर्फ अपनी इस मानवीय मशीन की प्रणाली पर गौर
पहले या उसके बाद भोजन सड़ ा हुआ न हो तो यह आपको मारेगा नहीं, सिर्फ करता हूं । मैं इसे खास तरीके से रखता हूं , जिसके
कीजिए। यह जीवन का इतना होगा कि यह आपके बोध को कम कर दे गा। लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। इतना ही नहीं,
विज्ञान है , इंटरनेट विज्ञान प्रकृति में जो कुछ भी घटित होता है, मैं नजर रखता
मेरा अनुभव यह कहता है कि बोध का कम होना हूं कि उसकी वजह से मेरे साथ क्या हो रहा है और
नहीं। यह एक सद् ‌गुरु का
मृत्यु जैसा है। कम से कम एक योगी के लिए मैं इसी को लेकर बात कर रहा था। पुष्टि के लिए मैं
कहना है , जो जीवन को तो मृत्यु ही है। हो सकता है कि एक आम इं सान अपने आसपास के जीवन पर भी गौर करता हूं । हर
भीतर से जानता है । मैं उन जिंदा रह जाए, लेकिन एक योगी अगर अपनी कीड़ ा, मकोड़ ा, पक्षी, जं तु व पेड़ यही चीज कर रहे
लोगों के लिए हूं, जिनकी सं वेदनशीलता व बोध खो दे गा तो वह मर जाएगा। हैं। अगर आप यही बात कई सालों बाद, कुछ खरब
अगर अपनी सं वदेनशीलता की मौत आपके लिए डॉलर खर्च करके, शोध के बाद जानना चाहते हैं तो
दिलचस्पी जीवन में है ।
कोई मायने नहीं रखती तो आप जो चाहें, खा सकते यह आपके ऊपर है।
हैं। आप बेकार भोजन खाकर भी जिंदा रह सकते

24 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com


अगर आपको लगता है कि किसी किताब में लिखी गई बात ही सही अज्ञानी नहीं हैं। जो भी चीज आपको पता नहीं है, उसका अस्तित्व
होती है, तो इसका मतलब है कि आप अं धविश्वासी व धार्मिक हैं। इसमें ही नहीं है, ऐसा सोचना तो अज्ञानता की पराकाष्ठा है। सारे इं टरनेट
वैज्ञानिकता वाली कोई बात नहीं है। जाहिर सी बात है कि चं द्र ग्रहण वैज्ञानिकों से मेरी गुजारिश है कि वे कुछ ताजा बना खाना खाएं , अपने
का यह मतलब हर्गिज नहीं कि चां द अठ्ठाइस दिनों की यात्रा कुछ ही को स्वस्थ रखें और जीवन के प्रति सचेतन बनें। अगर आप चाहते हैं
घं टों में जल्दी से पूरी कर लेगा। इस दौरान यह बस धरती द्वारा ढक तो ग्रहण के दौरान खाना खाइए, आप मरेंगे नहीं, बस आपमें जड़ ता
लिया जाता है। यह कुछ ऐसा ही है, जैसे जब हमारे लिए रात होती भरेगी। अगर आपको जड़ ता से कोई परहेज नहीं है तो शौक से खाइए।
है, तो उस वक्त भी सूरज तो मौजूद रहता ही है, बस हम धरती के जो लोग शराब व सिगरेट पीते हैं और हर तरह की चीजें खाते-पीते
उस हिस्से में होते हैं, जो सूर्य से दूर होता है। आपके अनुभव में रात हैं, उनके लिए हो सकता है कि इससे कोई फर्क न पड़ता हो। यह
होने का मतलब क्या सिर्फ प्रकाश की अनुपस्थिति ही है या फिर दिन कुछ उसी तरह की बात है कि आपने एक ऊँ ची क्षमता वाली कार ली
की अपेक्षा रात में जीवन के घटित होने में कोई बदलाव होता है? और उसमें कम क्षमता वाला पेट्रोल डाल दिया, ऐसे में आपकी कार
अगर आप हर कीड़ े, पक्षी, जानवर, पेड़ या पत्थर को दे खग ें े तो उसमें कुछ किलोमीटर चलकर रुक सकती है। ऊँ चे स्तर के प्रदर्शन के लिए
आपको बदलाव दिखाई दे गा। आपको विशेष पेट्रोल की जरूरत होती है। अगर आप ऊँ चे स्तर का
प्रदर्शन चाहते हैं तो आपको ध्यानपूर्वक यह दे खने की जरूरत है कि
अगर आप रात में थोड़ े खुले मन व विचारों के साथ बाहर बैठें तो आप आपके भीतर किस तरह का ईंधन जा रहा है। अगर आप एक जं क
जान पाएं गे कि रात का मतलब सिर्फ प्रकाश की गैरमौजूदगी ही नहीं मशीन हैं तो आप जो चाहें खाएं , जो चाहें पिएं , जैसे चाहें वैसे जिएं ।
होता। दिन व रात की गुणवत्ता में फर्क होता है। हो सकता है कि जीवन की प्रकृति ऐसी है कि पृथ्वी, सूर्य व चं द्रमा का हमारे सिस्टम पर
कोई कहे- ‘यह सब बेकार की बात है, रात में बस रोशनी नहीं होती।’ महत्वपूर्ण प्रभाव होता है। अगर आप उनके तरीकों के बारे में सचेत हैं
यही बात कुछ लोग ग्रहण के बारे में भी कहते हैं। इससे कोई फर्क तो आप इन प्राकृतिक शक्तियों की सवारी करके, उनकी मदद लेकर
नही पड़ता। मैं कह रहा हूं कि ग्रहण के समय खाना मत बनाइए और अपना जीवन बिना किसी खास कोशिश के आसान व सहज बना
न ही खाइए। उसके पहले या उसके बाद भोजन कीजिए। यह जीवन सकते हैं। अगर आप सचेत नहीं हैं तो यही चक्र आपको कुचल भी
का विज्ञान है, इं टरनेट विज्ञान नहीं। यह एक सद् ‌गुरु का कहना है, सकते हैं, तब आपके लिए हर चीज एक सं घर्ष होगी। अगले ग्रहण
जो जीवन को भीतर से जानता है। मैं उन लोगों के लिए हूं , जिनकी तक के लिए मेरी शुभकामनाएं । आप अपनी अज्ञानता से उपजे अहं
दिलचस्पी जीवन में है। सबसे बड़ ी अज्ञानता तो यह मानना है कि आप को जीवन की महानतम सं भावनाओ ं का ग्रहण मत बनने दीजिए।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | फरवरी 2019 25


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खान-पान के सात सू त्र


भारतीय सं स्कृति का हर पहलू एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है - चाहे आप बैठे हों, खड़ े हों या
कुछ और कर रहे हों। हमारी सं स्कृति में खाना खाने के लिए भी कुछ सरल नियम बताए
जाते हैं । सद्‌गुरु इन तरीकों और इनके पीछे के विज्ञान के बारे में बता रहे हैं :

1. कितनी बार खाएं 3. सही समय के लिए सही आहार


हमारा शरीर और दिमाग बेहतरीन रूप में तभी काम भारत में कब कौन सी वनस्पति उपलब्ध है और
करता है, जब पेट खाली हो। तीस साल से अधिक शरीर के लिए क्या उचित है, इसके मुताबिक
उम्र के लोगों को दिन में दो बार ही भोजन करना गरमियों में भोजन एक तरीके से, बरसात में दूसरे
चाहिए। सचेतन रहते हुए इस तरीके से खाएं कि तरीके से और सर्दियों में अलग तरीके से बनाया
ढाई घं टों के भीतर, भोजन पेट की थैली से बाहर जाता है। इस समझदारी को अपने जीवन में शामिल
हो जाए और बारह से अठारह घं टों में, वह पूरी तरह करना और शरीर की जरूरत तथा मौसम और
शरीर के बाहर हो। अगर आप यह सरल जागरुकता जलवायु के अनुसार खाना अच्छा होता है।
कायम रखें, तो आप ज्यादा ऊर्जा, फुर्ती और
सजगता महसूस करेंगे। उदाहरण के लिए, दिसं बर में तिल और गेहूं खाये
जाते हैं जो शरीर में गरमी लाते हैं। तिल शरीर को
2. चौबीस का मं त्र गरम और त्वचा को साफ रखता है। अगर शरीर में
योग में हम कहते हैं, ‘भोजन के एक ग्रास को काफी गरमी होगी, तो आपकी त्वचा खराब नहीं
चौबीस बार चबाना चाहिए।’ इसके पीछे काफ ़ ी होगी।
वैज्ञानिक आधार है, मगर मुख्य रूप से उसका एक
फ़ ायदा यह है कि आपका भोजन पहले ही आपके 4. सं तुलित आहार
मुं ह में लगभग पच जाता है, वह पाचन-पूर्व स्थिति आजकल डॉक्टरों का कहना है कि 8 करोड़
में पहुं च जाता है और आपके शरीर में सुस्ती नहीं भारतीय मधुमहे की बीमारी की ओर बढ़ रहे हैं।
पैदा करता। दूसरी चीज यह है कि अगर आप इसकी एक वजह यह है कि ज्यादातर भारतीयों के
चौबीस बार चबाएं गे, तो उस भोजन की सूचना आहार में एक ही अनाज शामिल है। पहले लोग
आपके शरीर में स्थापित हो जाती है और आपके हमेशा ढे र सारे चने, दालें, फलियां और दूसरी चीजें
शरीर की हर कोशिका यह तय कर सकती है कि खाते थे। आजकल लोग सिर्फ चावल या गेहूं खा
आपके लिए क्या सही है और क्या सही नहीं है - रहे हैं। यह निश्चित तौर पर बीमारियों की वजह बन
स्वाद के अर्थ में नहीं बल्कि इस सं बं ध में कि पूरे सकता है। अपने आहार में अलग-अलग अनाजों
शरीर के लिए क्या उचित है। को शामिल करना बहुत अहम है।

भोजन के दौरान पानी पीने से भी परहेज करना 5. भोजन के बीच का अं तराल


चाहिए। भोजन से कुछ मिनट पहले थोड़ ा सा पानी योग में कहा गया है कि एक भोजन कर लेने के
पिएं या भोजन करने के तीस से चालीस मिनट बाद बाद आपको आठ घं टे बाद ही दूसरा भोजन करना
पानी पिएं । चाहिए। ये तो बात हुई योग के नियम की, लेकिन

26 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com


सामान्य स्थिति में भी किसी इं सान को दो भोजनों के बीच कम से कम है लेकिन यह आप पर आपके शरीर की पकड़ को ढीला कर दे ती है।
5 घं टे का अं तर तो रखना ही चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि खाली पेट इससे यह अहसास होता है कि आप महज एक शरीर नहीं हैं। अपने
ही हमारा मल उत्सर्जन तं त्र अच्छे तरीके से काम कर पाता है। अं दर थोड़ ा सी जगह बनाएं अब आपको लगेगा कि आप उतने भूखे
नहीं हैं। भूख जहां की तहां है, आप भी वहीं हैं, पर फिर भी लगेगा
6. खाने से पहले जरा ठहरें मानो सब ठीक-ठाक है।
मान लें आप बहुत ज्यादा भूखे हैं और खाना आपके सामने रख दिया
जाए, तो क्या होता है? आप टू ट पड़ते हैं उस खाने पर। दरअसल, जब 7. भोजन की कोई अच्छी आदत नहीं होती!
आप बहुत ज्यादा भूखे होते हैं तो आपका पूरा शरीर बस एक ही चीज भोजन शरीर से जुड़ी चीज है और क्या खाना है, यह तय करने का
चाहता है, जल्दी से जल्दी खाना। लेकिन तब आप एक पल के लिए बेहतरीन तरीका शरीर से पूछकर खाना है। भोजन की आदतें बनाने से
रुकें। खाना शुरू करने से पहले हर उस शख्स और चीज के प्रति आभार हमें उसे बार-बार दोहराने की जरूरत पड़ती है, इसलिए बेहतर है कि
व्यक्त करें, जिसकी बदौलत यह खाना आप तक पहुं चा है। मसलन वह हम अपनी समझ का इस्तेमाल करते हुए सचेतन होकर अपने आहार
खेत, वह किसान, वह व्यक्ति जिसने खाना बनाया और वह भी जिसने को तय करें।
इसे परोसा।
कृपया इस बात पर ध्यान दें कि किसी खास बीमारी से पीडि़ त लोगों
इसके अलावा, उस खाने को भी धन्यवाद देना चाहिए, क्योंकि यह को आहार या भोजन की मात्रा में कोई बदलाव करने से पहले
आपको जीवन दे रहा है। दे खने में भले ही यह छोटी सी बात लग रही चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | फरवरी 2019 27


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रसोई वैद्य, चमत्कारी इलाज


अदरक – एक दवा नहीं, दवाखाना है
• अपच और पेट खराब होने की स्थितियों में यह बड़ ी लाभकारी है।
बच्चों में पेटदर्द की स्थिति में और बैक्टीरिया से होने वाले डायरिया
में भी यह बहुत लाभदायक है।

• उल्टियों और चक्कर आने की स्थितियों में अदरक बहुत फायदे मंद


है। यात्रा के दौरान उल्टी आना और यहां तक कि कीमोथेरेपी के
दौरान आने वाली उल्टी में भी अदरक बहुत अच्छा काम करती है।

• अदरक एक शानदार रोग प्रतिरोधक है। यह खां सी, जुकाम, साइनस,


गला खराब होने, ब्रॉन्काइटिस और दमा जैसी स्थितियों में भी
लाभकारी है।

• ध्यान रखें कि दो साल से कम उम्र के बच्चों को अदरक न दें ।


गर्भवती महिलाओ ं को एक दिन में 1 ग्राम से ज्यादा अदरक नहीं
लेनी चाहिए। किसी खास मर्ज में अगर अदरक का सेवन करना
चाहते हैं तो अपने डॉक्टर से इसके प्रयोग और दुष्परिणामों के बारे में
सलाह जरूर करें।

हल्दी - शुद्घिकरण के लिए


• यह शरीर, खून और ऊर्जा तं त्र की सफाई करती है। अगर आपका
शरीर अपने भीतर की कोशिकाओ ं में एक खास स्तर तक की ऊर्जा
को प्रवेश करने से रोकता है तो शरीर में जड़ता बढ़ ती है। नीम और
हल्दी का मिश्रण शरीर की कोशिकीय सं रचना को इस तरह से
फैलाता है, कि इसकी हर दरार और छिद्र में ऊर्जा भर सके।

• अपने नहाने की एक बाल्टी पानी में एक चुटकी हल्दी डालें और


इस पानी से नहाएं । आप पाएं गे कि आपका शरीर दमकने लगेगा।

• शहद युक्त हल्के गुनगुने पानी के साथ नीम और हल्दी का सेवन


एक शानदार तरीके से कोशिकीय स्तर पर सफाई करके उन्हें खोलने
का काम करता है, जिससे वे अपने भीतर अच्छी तरह से ऊर्जा सोख
सकें। जब आप साधना करते हैं तो कोशिकाओ ं का यह फैलाव
आपकी मां सपेशियों में लोच लाता है। यह लोच धीरे-धीरे आपके तं त्र
को एक शक्तिशाली सं भावना के रूप में तैयार करता है। जब आप

28 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com


विभिन्न तरह के आसन करते हैं तो आपको इसका अहसास होता • ध्यान रखें कि शहद को कभी भी उबलते पानी में न डालें और
है कि उस समय आपका शरीर अलग तरह की ऊर्जा से खिल न ही इसे पकाएं , क्योंकि एक खास तापमान पर पहुं चने के
रहा है। बाद शहद का कुछ हिस्सा जहरीला हो जाता है। इसलिए पानी
उबलता हुआ न होकर गुनगुना होना चाहिए।
शहद – इस्तेमाल करें, ज ़ रा ध्यान से
• खून की कमी की स्थिति में शहद काफी उपयोगी है। शहद एक नीम - लाख दुःखों की एक दवा
ऐसा पदार्थ है, जिसकी रासायनिक सं रचना काफी कुछ इं सान के • अगर आप अपने रोजमर्रा के जीवन में एक खास मात्रा में नीम
रक्त से मिलती-जुलती है। अगर आप रोजाना गुनगुने पानी के का सेवन करते हैं तो यह आपकी आं तों में मौजूद नुकसानदायक
साथ एक निश्चित मात्रा में शहद का सेवन करते हैं तो थोड़ े दिनों जीवाणुओ ं को नष्ट कर दे ता है और आपका मलाशय साफ व
में आप महसूस करेंगे कि आपके शरीर में लाल रक्त कणिकाओ ं सं क्रमण रहित रहता है।
की सं ख्या बढ़ गई है। चूँ कि महिलाओ ं में एनीमिया की सं भावना
पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा पाई जाती है, इसलिए शहद का सेवन • एक हठ योगी के लिए नीम बेहद उपयोगी और महत्वपूर्ण है,
उनके लिए काफी अच्छा है। क्योंकि यह शरीर को थोड़ ी उष्णता की ओर रखता है। उष्णता
यानी आपमें थोड़ ी गर्मी ज़्यादा भरी हुई है। जब आप शरीर को
• अगर आपको निम्न रक्तचाप की शिकायत है और आप नीचे आं शिक रूप से उष्ण अवस्था में रखेंगे तो आप चाहे बाहर घूम-ें
बैठे-बैठे अचानक उठने की कोशिश करते हैं तो आपको चक्कर फिरें या खाएं -पिएं , आपके भीतर की यह अतिरिक्त उष्मा इन
आ जाते हैं। इसी तरह से अगर आप अपना सिर नीचे करते हैं बाहरी प्रभावों से निबट लेगी।
और आपको चक्कर आते हैं तो इसका मतलब है कि आपको
उच्च रक्तचाप की समस्या है। शहद का सेवन हमारे शरीर के इन • ध्यान रखें कि नीम का अत्यधिक इस्तेमाल शुक्राणु कोशिकाओ ं
असं तुलनों को दूर करता है। को कम कर दे ता है। गर्भवती तथा गर्भधारण की इच्छु क
महिलाओ ं को नीम के सेवन से बचना चाहिए।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | फरवरी 2019 29


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भेंट के लिए क्या है श्रेष्ठ उपहार?


यहां ऐसा कुछ नहीं है , जिसे आप किसी को दे सकते हैं । यह जीवन मुफ्त में आपको मिला
है । जो खुद इस दुनिया में खाली हाथ आया हो, वह किसी और को क्या दे सकता है ?

दीपां करः का मजाक उड़ ा रहा है, हर कोई आप के बारे में


सद् ‌गुरु, कौन सा उपहार अच्छा है, जो हम लोगों को बात कर रहा है। अगर वहां आप जैसे और भी लोग
दे सकते हैं? हुए तो आपको और भी ज्यादा पीड़ ा उठानी होगी,
क्योंकि आप जानते हैं कि जब आप जैसे दस लोग
सद् ‌गुरुः होंगे तो क्या स्थिति होगी।
एक दिन एक सूअर एक गाय के पास गया और
बोला, ‘मैं जानता हूं कि तुम दूध दे ती हो, जबकि आप लोगों को वही दीजिए, जो आपके लिए
मैं मां स दे ता हूं । लेकिन ऐसा क्यों है कि लोग तुम्हें कीमती हो - इं सान के लिए सबसे कीमती चीज
इतना प्यार करते हैं और तुमसे इतना अच्छा व्यवहार क्या है? उसकी अपनी जिंदगी, वह खुद। तो खुद
करते हैं, जबकि मेरे साथ ऐसा नहीं होता?’ गाय को दीजिए, न कि वह जो आपकी जेब में है, न वह
ने सहानुभतू ि भरी नजरों से सूअर की ओर दे खा जो आपके शरीर में या मन में है। जो चीज आपके
और बोली, ‘मैं दूध तब दे ती हूं , जब मैं जिंदा होती लिए सबसे ज्यादा कीमती है, अगर आप जानते हैं
हूं ।’ अब यह आपकी पसं द है कि आप एक सूअर कि उसे साझा कैसे किया जाए, तो उसे दीजिए।
होना चाहते हैं या फिर दूध देने वाली एक गाय। हम लोगों के बारे में नहीं जानते, लेकिन आप लोगों
आप लोगों को तब देना चाहते हैं, जब आप जिंदा का ध्यान पाना चाहते हैं, आप लोगों का प्यार व
आप लोगों को वही दीजिए, हैं या फिर आप चाहते हैं कि लोग आपके मरने का अपनापन पाना चाहते हैं। दरअसल आप यह नहीं
जो आपके लिए कीमती इं तजार करें, ताकि वे आपसे वो सब कुछ ले सकें, जानते कि कैसे आप पेड़ों का प्रेम पा सकते हैं।
हो - इं सान के लिए सबसे जो आपके पास है। सवाल है कि मुझे लोगों को क्या आप यह नहीं जानते कि आप जिस घास पर चलते
देना चाहिए? मैं लोगों को यह नहीं बताना चाहता हैं वह बड़ ी कोमलता से न सिर्फ आपकी परवाह
कीमती चीज क्या है ?
कि उन्हें दूसरों को क्या देना चाहिए, लेकिन जो करती है, बल्कि आपको आशीर्वाद भी दे ती है।
उसकी अपनी जिंदगी, वह चीज आपके लिए बहुमूल्य है, वही देनी चाहिए। जो आप जिस हवा में सां स लेते हैं वह आपमें मिलकर
खुद। तो खुद को दीजिए, चीज आपके लिए बहुमूल्य नहीं है, या आपके लिए एक हो जाती है, जो भोजन आप करते हैं, उसमें
न कि वह जो आपकी जेब बेकार है, अगर आप उसे दे ते हैं तो फिर उसका कोई आपके भीतर समा जाने की व आप बनने की चाहत
महत्व नहीं है। यह तो चालाकी है, ऐसा करके आप होती है। हालां कि ये सारी चीजें पहले से ही हो रही
में है । जो चीज आपके लिए
अपने लिए स्वर्ग का टिकट खरीदने की कोशिश हैं, सवाल ये है कि ग्रहण करने के लिए आप वहां
सबसे ज्यादा कीमती है , कर रहे हैं। अगर आप इस मानसिकता के साथ आप मौजूद हैं या नहीं? क्या आप चीजों को सजगता से
अगर आप जानते हैं कि उसे स्वर्ग में जाएं गे भी, तो एक बात तय है कि वहां जाने ग्रहण करने के लिए तैयार हैं? अगर ऐसा है तो फिर
साझा कैसे किया जाए, तो पर आप का मजाक उड़ ेगा। मैंने हमेशा दे खा है कि आपके लिए हर सां स एक परमानं द की प्रक्रिया बन
अगर आपका मन बेकार की चीजों से भरा है, और जाती है और तब आपको न तो किसी के ध्यान और
उसे दीजिए।
अगर आप ऐसे लोगों के बीच में हैं, जो आपकी प्यार की जरूरत होती है और न ही आपको स्वर्ग के
तरह नहीं है तो ऐसा लगता है कि हर व्यक्ति आप टिकट की लाइन में खड़ े होने की।

30 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com


मैं चाहता हूं कि आप इसे समझें कि यहां
ऐसा कुछ नहीं है, जिसे आप किसी को
दे सकते हैं। यह जीवन मुफ्त में आपको
मिला है। जो खुद इस दुनिया में खाली
हाथ आया हो, वह किसी और को क्या
दे सकता है? लोगों ने हमेशा देने को
एक बड़ ी चीज बना दिया और उन्हें
लगता है कि वे दूसरों को कुछ दे रहे हैं।
अगर आप कोई चीज दे सकते हैं तो वह
चीज खुद आप हैं। बाकी सारी चीजें तो
आप इसी धरती से लेते हैं। किसी एक
चीज को यहां से लेकर वहां दे देना, क्या
देना कहा जाएगा? यह देना नहीं होता।
यह सिर्फ जीवन जीने का एक समझदारी
भरा तरीका है। अगर कोई एक चीज
आप औरों के साथ साझा कर सकते हैं
तो वह चीज सिर्फ आपके भीतर मौजूद
जीवन है।

यह सब सिर्फ शब्दों का खेलभर नहीं है,


यह एक योगी का अनुभव है। योगी का
मतलब उस इं सान से है, जो इस सृष्टि
को खुद अपने रूप में दे खता हो। उनके
बीच में एकत्व हो चुका है। इस एकत्व
को पाना ही योग का बुनियादी लक्ष्य है।
आप सहज रूप से यहां बैठ जाते हैं तो
हर चीज आपके साथ एक हो जाती है,
वह आपकी नहीं होती, बल्कि खुद आप
हो जाती है। अब आप दे सकते हैं। हर
चीज आपकी है। चलिए, हरेक को वह
ले लेने दीजिए, जो वह चाहता है। अब
हमें कोई डर नहीं है, वो इसका इस्तेमाल
कर सकते हैं और अं त में हर हाल में वे
इसे वापस करेंगे। कोई इसे सौम्यता के
साथ इस्तेमाल करेगा तो कोई अकड़ के
साथ इस्तेमाल करेगा, लेकिन अं त में वे
सब इसे वापस कर दें गे। कोई भी इसे
कहीं नहीं लेकर जाएगा।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | फरवरी 2019 31


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रिश्ता बुद्धि और आनं द का


जो इं सान अपनी बुद्धि का आनं द ले रहा है , उसके लिए किसी पब में
जाकर मजा करना या ऐसी चीजें कोई मायने नहीं रखतीं। क्योंकि वे
किसी और चीज का आनं द ले रहे हैं ।

सौम्याः का आनं द उठा पाते हैं। ऐसे लोग अगर उन चीजों


सद् ‌गुरु, अपने स्कू ल और कॉलेज के दिनों में मैंने का मजा नहीं ले रहे हैं, जिन्हें आप आनं द या मजा
दे खा कि ज्यादातर बहुत बुद्धिमान लोग खुद में ही मानते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि वे आनं द
सिमटे हुए रहते थे। ये लोग ऐसे कोई काम नहीं लेना नहीं जानते। मान लीजिए आप शतरंज खेल रहे
करते थे, जिन्हें आमतौर पर लोग खुश होने के लिए हैं, हो सकता है किसी दूसरे को यह खेल बेवकूफी
करते हैं। जैसे बाहर जाकर मस्ती करना, पार्टी करना लगे। वह सोचेगा कि आप तो पूरी जिंदगी बस मोहरे
आदि। वे बस अपना पूरा ध्यान अपने काम तक ही चलते रहते हैं। बहुत सारे लोग ऐसा सोचते होंगे।
सीमित रखते हैं। तो क्या बुद्धिमत्ता और खुशी किसी लेकिन आपको बड़ ी समझदारी से मोहरें चलाने में
तरह से आपस में जुड़ी हुई हैं? जबरदस्त आनं द आता होगा। जिस चीज में किसी
एक को आनं द आता है, दूसरे इं सान का आनं द
सद् ‌गुरुः उससे अलग हो सकता है, यह होना भी चाहिए।
दुनिया में कई तरह के आनं द है - भौतिक आनं द, अगर हरेक व्यक्ति एक ही चीज में लगा रहेगा तो यह
शारीरिक आनं द, बौद्धिक आनं द, गहन बुद्धिमत्ता समाज मूर्ख लगेगा।
का आनं द, भावनाओ ं का आनं द और चेतना का
परमानं द। जो इं सान अपनी बुद्धि का आनं द ले रहा आज लोगों को बेकार सी चीजें भी अच्छी लगती हैं,
मान लीजिए आप शतरं ज है, उसके लिए किसी पब में जाकर मजा करना या ऐसी बेकार सी चीजें, जिनके बारे में सामाजिक या
खेल रहे हैं , हो सकता है ऐसी चीजें कोई मायने नहीं रखतीं। क्योंकि वे किसी अं तर्राष्ट्रीय स्तर पर लोग सोचते हैं कि वे चीजें बहुत
और चीज का आनं द ले रहे हैं। सृष्टि के हर दूसरे महत्वपूर्ण हैं। दरअसल उन लोगों की समझदारी
किसी दूसरे को यह खेल
प्राणी के लिए उसकी बायोलॉजी उसके जीवन का कंु ठित और बुद्धि जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल हो चुकी
बेवकूफी लगे। जिस चीज में
सबसे महत्वपूर्ण व प्रभावशाली हिस्सा होती है। है। जब हम समझदारी की बात करते हैं, तो एक
किसी एक को आनं द आता लेकिन अगर एक बार आपने यहां मानव रूप में पौधा जो खुशबूदार फूल दे ता है, उसमें भी समझदारी
है , दूसरे इं सान का आनं द जन्म ले लिया तो फिर बायोलॉजी आपके जीवन का है जिसे आप अनदे खा कर रहे हैं। आपके दिमाग में
सबसे महत्वपूर्ण अं ग नहीं रह जाती। हो सकता है जितनी समझ है, उससे ज्यादा समझ आपके आस-
उससे अलग हो सकता है ,
कि 18 या 20 साल की उम्र के दौरान आपको यह पास मौजूद हवा में है। जी हां , आपके दिमाग में
यह होना भी चाहिए। अगर
महत्वपूर्ण लगे, लेकिन आगे चलकर आप दे खग ें े कि जितनी यादें हैं, उससे ज्यादा याद्दाश्त हवा में मौजूद
हरेक व्यक्ति एक ही चीज में ऐसा नहीं है। मानव रूप में जन्म लेने के बाद आपके है। आपके दिमाग से कहीं ज्यादा याद्दाश्त आपकी
लगा रहेगा तो यह समाज पास जबरदस्त बुद्धि होती है। बुद्धि, भावनाओ ं और त्वचा की कोशिकाओ ं में होती है। यह हकीकत है।
चेतना के दूसरे आयाम भी होते हैं। हां , कुछ लोग
मूर्ख लगेगा।
केवल भौतिक या शारीरिक चीजों का ही आनं द उठा मानव का अस्तित्व ही अपने आप में एक अभूतपूर्व
पाते हैं, जबकि कुछ लोग बौद्धिक या दूसरे आयामों समझदारी है। आपकी यहां मौजूदगी आपकी अपनी

32 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com


समझ की वजह से नहीं है। आप विचारों से अपनी सां स को नहीं चला समय के साथ आपने जो जानकारी इकट्ठी की है, उसी के आधार पर
सकते। आप अपने विचारों से अपने दिल को नहीं धड़का सकते। आप आप नतीजे निकालते हैं। बेशक आपने इस धरती पर मौजूद सारे
अपनी सोच से अपने लीवर और किडनी से काम नहीं करवा सकते। ये पुस्तकालयों की सभी किताबों को घोंटकर पी लिया हो, फिर भी
सारी चीजें आपकी सोच की प्रक्रिया से कहीं आगे हैं। इसीलिए मैं कह आपके पास मौजूद जानकारी की अगर इस सृष्टि से तुलना की जाए
रहा हूं कि आपकी सोच जीवन के केवल कुछ ही पहलुओ ं तक उपयोगी तो यह सिर्फ एक जर्रा भर होगी। इसलिए इस जानकारी के आधार पर
है। मुद्दा यह है कि आप इसे इसके दायरे से बाहर ले जाने की कोशिश आप किसी नतीजे पर पहुंचने की कोशिश मत कीजिए, क्योंकि इसे
कर रहे हैं, इसे मूर्ख दिखने पर मजबूर कर रहे हैं। यह मूर्ख नहीं है - यह गलत होना ही है। हो सकता है कि आपने किसी यूनिवर्सिटी से पीएचडी
अपने आप में एक शानदार प्रक्रिया है। की हो, लेकिन इसके आधार पर आप सत्य नहीं जान सकते, इस सृष्टि
की प्रकृति को नहीं समझ सकते। इसका सबसे आसान तरीका है कि
अगर इं सान की लं बाई नापनी है तो लं बाई नापने वाला फीता एक अपनी खिड़की खोल दीजिए और बाहर दे खिए। इस तरह से कम से
कारगर चीज है, लेकिन यह फीता महासागर नापने के काम नहीं कम आप जीवन के एक आयाम को उसी तरह से दे ख पाएं गे, जैसा वह
आएगा। तब यह मूर्खता लगेगी। लं बाई नापने वाले फीते में कोई बुराई है, न कि उस तरीके से जैसा कि आप सोचते हैं।
नहीं है, यह बेहद उपयोगी है। अगर आप एक टे लर हैं, अगर आप एक
मिस्त्री हैं, तो यह आपके लिए उपयोगी है। लेकिन अगर आप समुद्रवेत्ता
है तो आप इस फीते को लेकर समुद्र में मत जाइए, क्योंकि तब आप
अपना समय व जीवन दोनों बर्बाद करेंगे और गलत नतीजों के साथ
वापस लौटें गे।बात सिर्फ इतनी है कि आप अपनी बुद्धि का इस्तेमाल
उसके दायरे से बाहर जाकर करने की कोशिश रहे हैं। इस वजह से आप
समझने के बजाय नतीजों पर पहुंच रहे हैं और सोच रहे हैं कि यही सच
है। आप चाहे जो भी नतीजा निकाल लें, उसका वास्तविकता से कोई
लेना-देना नहीं है।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | फरवरी 2019 33


34 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com
“मैं धन-दौलत के खिलाफ नहीं हूं । मैं सुख-सुविधाओ ं का विरोधी
नहीं हूं । मैं बस गतिहीनता के खिलाफ हूं , क्योंकि जब आप गति खो
दे ते हैं , तो आप एक अधूरा जीवन बन कर रह जाते हैं ।

आध्यात्मिक प्रक्रिया मृत या मरते हुए लोगों के लिये नहीं है ; यह उन


लोगों के लिये है , जो जीवन के हर आयाम को पूरी जीवंतता के साथ
जीना चाहते हैं ।”
– सद्‌गुरु

isha.sadhguru.org ईशा लहर | फरवरी 2019 35


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लहरों पर बह रहा था
कर्ण और उसका भाग्य
कंु ती ने बच्चे को एक लकड़ ी के डिब्बे में रख दिया, और बिना उस बच्चे के भविष्य के
बारे में सोचे , उसे नदी में बहा दिया। उसे ऐसा करने में थोड़ ी हिचकिचाहट हुई, पर वो
कोई भी कार्य पक्के उद्दे श्य से करती थी।


इससे ख
चपन में कंु ती ने एक बार दुर्वासा ऋषि का
बहुत अच्छे से अतिथि सत्कार किया था।
़ शु होकर, दुर्वासा ने कंु ती को एक मन्त्र
सोने के कंु डल और उसके छाती पर एक प्राकृतिक
कवच था। वह अद्भुत दिखता था। राधा ने बहुत प्रेम
से उसका पालन-पोषण किया। अधिरथ खुद एक
दिया, जिससे वो किसी भी देवता को बुला सकती सारथी था, इसलिए वह कर्ण को भी रथ चलाना
थी। एक दिन कंु ती के मन में उस मन्त्र को आजमाने सिखाना चाहता था। पर कर्ण तो धनुर्विद्या सीखने
का ख्याल आया। वह बाहर निकली तो दे खा कि के लिए बेचन ै था। उन दिनों, सिर्फ क्षत्रियों को युद्ध
सूर्य अपनी पूरी भव्यता में चमक रहे थे। उनकी कला की शिक्षा पाने का अधिकार था। ये राजा की
भव्यता दे खकर वह बोल पड़ ी – ‘में चाहती हूं कि ताकत को सुरक्षित रखने का एक सरल तरीका था।
सूर्य देव आ जाएं ।’ सूर्य देव आए और कंु ती गर्भवती क्योंकि अगर हर कोई शस्त्रों का इस्तेमाल करना
हो गयी, और एक बालक का जन्म हुआ। वो सिर्फ सीख जाता, तो फिर सभी शस्त्रों का इस्तेमाल करने
चौदह साल की अविवाहित कन्या थी। उसे समझ लगते। कर्ण क्षत्रिय नहीं था, इसलिए उसे किसी भी
नहीं आया कि ऐसे में सामाजिक हालात से कैसे शिक्षक ने स्वीकार नहीं किया।
निपटा जाएगा। उसने बच्चे को एक लकड़ ी के
डिब्बे में रख दिया, और बिना उस बच्चे के भविष्य द्रोण को अपने शस्त्र देने से पहले, परशुराम ने ये
अधिरथ खुद एक सारथी के बारे में सोचे, उसे नदी में बहा दिया। उसे ऐसा शर्त रखी थी कि वो कभी भी किसी क्षत्रिय को इनके
था, इसलिए वह कर्ण को करने में थोड़ ी हिचकिचाहट हुई, पर वो कोई भी बारे में कुछ नहीं सिखाएं गे। द्रोण ने वचन तो दिया,
कार्य पक्के उद्दे श्य से करती थी। धृतराष्ट्र के महल पर वो सीधे हस्तिनापुर चले गए और क्षत्रियों को
भी रथ चलाना सिखाना
में काम करने वाला सारथी, अधिरथ, उस समय शस्त्र सिखाने के लिए राजदरबार में नौकरी कर ली।
चाहता था। पर कर्ण तो नदी के किनारे पर ही मौजूद था। उसकी नजर उस वे ऐसे ही थे – एक महत्वाकां क्षी व्यक्ति। उनमें रत्ती
धनुर्विद्या सीखने के लिए सुं दर डिब्बे पर पड़ ी तो उसने उसे उठा लिया। उसमें भर भी कोई नैतिक सं कोच नहीं था। वो एक महान
बेचैन था। उन दिनों, सिर्फ एक नन्हें से बच्चे को दे खकर वो आनं दित हो उठा, शिक्षक थे, पर एक चालाक और लालची इं सान भी
क्योंकि उसकी कोई सं तान नहीं थी। वो बच्चे को थे।द्रोण के हस्तिनापुर आने से पहले, पां डवों और
क्षत्रियों को युद्ध कला की
अपनी पत्नी राधा के पास ले गया। दोनों आनं द कौरवों को कृपाचार्य युद्ध-कौशल सिखा रहे थे। एक
शिक्षा पाने का अधिकार विभोर हो गए। उस डिब्बे की सुं दरता को दे खकर वे दिन सभी लड़ के गेंद से खेल रहे थे। उन दिनों गेंदें
था। ये राजा की ताकत समझ गए कि ये बच्चा किसी साधारण परिवार का रबड़ , चमड़ े या प्लास्टिक की नहीं बनी होतीं थीं।
को सुरक्षित रखने का एक नहीं हो सकता। वे ज्यादातर घास-फूस को अच्छे से बां धकर बनाई
जाती थीं। गेंद गलती से एक कुएं में गिर गयी।
सरल तरीका था।
उस बच्चे को बाद में कर्ण नाम से जाना गया। वह उन्होंने गेंद को कुएं में तैरता दे खा पर किसी को
एक अद्वितीय व्यक्ति था। जन्म से ही उसके कानों में समझ नहीं आ रहा था कि उसे बाहर कैसे निकाला

36 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com


जाए, क्योंकि कंु आ गहरा था। उसी समय द्रोण उधर से गुजरे और की कला को दे खकर हैरान हो गये। ये सब किसी जादू की तरह था।
स्थिति को दे खते हुए पूछा – ‘क्या तुम लोग क्षत्रिय नहीं हो?’ उन्होंने द्रोण से ये कला सिखाने के लिए कहा। द्रोण ने उनसे कहा कि
वो तब तक उन्हें नहीं सिखा सकते, जब तक कि वे उनको अपना गुरु
वे सब बोले – ‘हम क्षत्रिय ही हैं।’ स्वीकार नहीं कर लेत।े वे सभी लड़ के द्रोण को भीष्म पितामह के पास
ले गये। भीष्म पहचान गए कि वो कौन हैं – वे जानते थे कि द्रोण कौन
‘तो क्या तुम में से किसी को धनुर्विद्या नहीं आती।’ हैं और वे उनकी प्रतिभा के प्रशं सक थे। भीष्म ने उन्हें राजगुरु बना
दिया।
अर्जुन बोला – ‘हां , मैं एक धनुर्धर हूं , और मैं इस दुनिया का सर्वश्रेष्ठ
धनुर्धर बनना चाहता हूँ ।’ फिर द्रोणाचार्य के साथ शस्त्रों की शिक्षा शुरू हो गई, और इसके साथ
कौरवों और पां डवों के बीच प्रतिस्पर्धा भी शुरू हो गयी। कुछ ही सालों
द्रोण ने उसे ऊपर से नीचे तक दे खा और बोले – ‘अगर तुम धनुर्धर हो, के बाद, वे सभी महान योद्धा बन गए। भाले के साथ युद्ध लड़ ने में
तो तुम इस गेंद को बाहर क्यों नहीं निकाल पा रहे?’ युधिष्ठिर सबसे अच्छे थे। गदा युद्ध में भीम और दुर्योधन एक बराबर थे।
अर्जुन सबसे अच्छे धनुर्धर थे। नकुल और सहदेव तलवारबाज़ी और
उन्होंने पूछा – ‘तीरों का इस्तेमाल करके हम गेंद को कुएं से बाहर कैसे घुड़सवारी के महारथी थे।
निकाल सकते हैं?’
एक महान धनुर्धर बनने की इच्छा के साथ कर्ण द्रोण के पास गया।
द्रोण ने कहा – ‘मैं दिखाता हूं ।’ पर द्रोण ने उसे स्वीकार नहीं किया, और उसे सूतपुत्र कहकर पुकारा।
इस अपमान से कर्ण को बहुत ठे स पहुँ ची। भेदभाव और अपमान का
द्रोण ने घास के एक सीधे तिनके को उठाया और उसे गेंद की ओर बार-बार सामना करने की वजह से एक सीधा-सच्चा इं सान एक अधम
चला दिया। वो घास गेंद में घुस गई। उसके बाद द्रोण ने एक के बाद इं सान में बदल गया। द्रोण द्वारा क्षत्रिय न होने के कारण अस्वीकार
एक घास के टु कड़ े चलाए, जिनसे कि एक तार बन गया और उसका किये जाने पर, कर्ण ने परशुराम के पास जाने का फैसला किया।
इस्तेमाल करके द्रोण ने गेंद को बाहर निकाल दिया। वे लड़ के द्रोण परशुराम युद्ध कलाओ ं के सबसे महान शिक्षक थे। आगे जारी …

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मैं अभी भी सत्य से दूर थी


हालां कि पूरा जीवन मैं स्वयं को सत्य की साधक मानती आई थी लेकिन सच कहूं तो मैं
़ ुद के अस्तित्व की सरल-से-सरल सच्चाइयों को भी बूझ नहीं पाई थी ... पढ़ ें
अपने ख
शेरिल सिमोन की पुस्तक ‘मिडनाईट विद द मिसटिक’ के हिंदी अनुवाद की अगली कड़ ी:

सद् ‌गुरु की इतनी आभारी थी कि वे मेरे जीवन के बारे में सोचा जिसका कि मैं अं श हूं । किस प्रकार
में आए। विश्वास नहीं हो रहा था कि उनको हम सब निरंतर किसी चीज की खोज में लगे हुए हैं,
जानने के इस थोड़ े-से समय में इतनी जल्दी इतना- किसी चीज को पाने की कोशिश कर रहे हैं, बार-
कुछ बदल चुका है। जब मैं सद् ‌गुरु को सुन रही बार असफल हो रहे हैं और बार-बार कोशिश करते
थी तो वृक्षों पर सरसराती हवा की ध्वनि मेरे कानों जा रहे हैं। मैं यह समझने लगी थी कि यह सारी
में पड़ रही थी। ऊपर नजर दौड़ ाई तो घने बादल ललक स्वाभाविक परम तक पहुं चने की कोशिश
दिखाई पड़ े और लगने लगा कि किसी भी पल करते जीवन की अचेतन अभिव्यक्ति मात्र है। मैं आग
बारिश हो सकती है। की चटपटाती ध्वनि का बारीकी से अनुभव कर रही
थी। मुझे लग रहा था मानो लकड़ ी मेरे भ्रां तिपूर्ण
सद् ‌गुरु ने अपनी बात जारी रखी, ‘मैं जब ‘इनर विचारों की तरह जल रही है। मुझे मालूम था कि मैं
इं जिनियरिंग’ कहता हूं तो मैं आपके अं दर के सचमुच ज्यादा कुछ नहीं समझ पाई हूं । सच कहूं
मूल आनं द को बाहर लाना चाहता हूं , उसको तो जितना अधिक समय मैं सद् ‌गुरु के साथ बिता
अभिव्यक्ति देना चाहता हूं । उसको अभिव्यक्ति रही थी उतना ही मुझे अहसास हो रहा था कि मायने
इसलिए नहीं मिल पाई है, क्योंकि आपके भौतिक रखने वाली किसी भी चीज के बारे में मैं कितना
शरीर, मानसिक शरीर और ऊर्जा शरीर एक सीध कम जानती हूं । मैं समझ पा रही थी कि किस तरह
में अलाइं ड नहीं हो पाए हैं। जब ये तीनों ठीक तरह हममें से बहुतेरे अपने विचारों, मतों, धारणाओ ं और
अपनी शिशु अवस्था में से अलाइं ड हो जाएं गे तो आपके भीतरी आनं द को भावनाओ ं के साथ चिपके रहते हैं क्योंकि जीवन
घटी हर घटना मुझे याद स्वाभाविक रूप से अभिव्यक्ति मिल जाएगी। जब यह और प्रेम के यथार्थ का हमें बोध ही नहीं है। हालां कि
है । तीन से छह महीने की आपकी हरेक कोशिका में घुस जाएगी तब सेक्स, पूरा जीवन मैं स्वयं को सत्य की साधक मानती आई
प्रेम, महत्वाकां क्षा सब निरर्थक हो जाएं गे। आप इन थी लेकिन सच कहूं तो मैं अपने ख ़ दु के अस्तित्व
शैशवावस्था में मेरी दे खी
सबके लिए समर्थ हैं, लेकिन आपका अस्तित्व इन की सरल-से-सरल सच्चाइयों को भी बूझ नहीं पाई
घटनाओ ं और बातचीत को सबसे ऊपर है। आप अभी भी इस सं सार का अं श थी। अपनी असुविधा से मुक्ति पाने की कोशिश में मैं
जब मैं विस्तार से बताता हैं, पर आपको देवत्व ने स्पर्श किया है, जो आपको कुछ ऐसी बातों के बारे में अनेक गलत और निश्चित
था तो मेरी मां चौंक जाया उल्लास की अत्यं त ऊंची अवस्थाओ ं में पहुं चा दे गा। निष्कर्षों के साथ जी रही थी जो मेरे लिए बहुत
यही उल्लास आप खोज रही हैं जो आप धन-दौलत, महत्वपूर्ण होने के बावजूद अभी भी मेरे अनुभव और
करती थी। बचपन में भी
सत्ता, सेक्स, प्रेम और ईश्वर – जो भी आपका साधन समझ के बाहर थे।
मैं वैसा ही सोचता था जैसा हो - के जरिए ढूं ढ़ रही हैं। आप अपने जीवन के
आज सोचता हूं । अनुभव को उसकी चरम-सं भव ऊंचाइयों तक जब मैं जीवन-मृत्यु के अत्यं त गूढ़ आयामों के बारे
पहुं चाने की कोशिश कर रही हैं।’ उनके शब्दों के में सद् ‌गुरु के पैने विश्लेषण के सामने अपने स्वयं के
बाद की खामोशी में मैंने मानवता के विराट समुद्र बोध को रखकर सोचने लगी तो मैं उनसे पूछे बिना

38 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com


नहीं रह पाई कि उनकी दृष्टि में इतनी स्पष्टता कैसे किसने क्या कहा और कौन क्या पहने हुए था। तीन
आयी है? मैं जानना चाहती थी कि वे वहां कैसे पहुं चे से छह महीने की शैशवावस्था में मेरी दे खी घटनाओ ं
जहां वे अभी हैं। थोड़ ी दे र बाद मैंने उनसे अपने और बातचीत को जब मैं विस्तार से बताता था तो
वर्तमान जीवन की कहानी सुनाने को कहा और मेरी मां चौंक जाया करती थी। बचपन में भी मैं वैसा
जानना चाहा कि उन्हें अं तर्ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ। ही सोचता था जैसा आज सोचता हूं ।’
हालां कि मैंने इस कहानी के अं श पढ़ े थे लेकिन मैं
उनसे ही सुनने को बेचन ै थी। उन्होंने कहानी कुछ सद् ‌गुरु ने बताया कि किशोरावस्था में उनको ‘जग्गी’
ऐसे शुरू की, जैसे सब-कुछ बस कल ही हुआ हो। कहा जाता था, उनके जन्म के नाम ‘जगदीश’ का
मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ। मैं और दूसरे लोग छोटा रूप। कई वर्ष बाद उनका वह नाम पड़ ा जिससे
उनकी स्मरण शक्ति से चकित थे खास तौर से यह आज हम उन्हें जानते हैं। चुप्प प्रकृति का होने के
दे खकर कि वे अपनी याद्दाश्त कुरेदकर हजारों लोगों बावजूद वे प्रसन्नचित्त रहा करते थे। वे अत्यधिक
के नाम और उनकी जीवनगाथा बड़ ी आसानी से स्वतं त्र विचारों के थे। उन्हें लाड़ -प्यार पसं द नहीं था।
सुना दे ते थे। शैशवावस्था में उनके बड़ े भाई को कोई-न-कोई
गोद में उठाकर चलता था पर वे उनसे छोटे होकर
‘मैं अपने जीवन में कभी भी बच्चा नहीं रहा,’ उन्होंने भी अपने आप चलते थे। वे हमेशा अपनी उम्र से बड़ े
कहना शुरू किया। ‘मैं जब पीछे मुड़ कर दे खता हूं और बुद्धिमान लगा करते थे और उनके मित्र तथा
तो मेरे इर्द-गिर्द घटी सारी बातें मुझे बड़ ी आसानी परिवार के सदस्य अपनी समस्याएं लेकर उनके पास
से याद आ जाती हैं। अपनी शिशु अवस्था में घटी आते थे। उनकी मां भी उनको गोपनीय बातें बताती
हर घटना मुझे याद है। मुझे स्पष्ट रूप से याद है कि थीं और इस बात का अहसास होने पर वे उनसे
किस कमरे में कौन था, कमरा कैसा दिखता था, कहतीं, ‘मैं यह सब तुम्हें क्यों बता रही हूं ? तुम तो
अभी बच्चे हो।’ आगे जारी ॰ ॰ ॰

ईशा लहर | फरवरी 2019 39


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क्या है लं दन की चकाचौंध का राज?


लं दन की शानोशौकत दो सदियों तक इस दे श से लूटे गए पैसों की दे न है । हमें लगातार
दबाया और कुचला गया। तब न तो कोई शिक्षा थी, न पोषण। बड़ े व्यवस्थित ढं ग से
हमारा शोषण किया गया।
हमें अपने इतिहास को लेकर किसी के प्रति दुश्मनी में पड़ े भयं कर अकाल के दौरान सिर्फ तीन महीनों
की भावना नहीं रखनी चाहिए, लेकिन साथ ही सब में पैंतीस लाख लोग काल के गाल में समा गए,
कुछ भुलाकर इस तरह से व्यवहार भी नहीं करना क्योंकि अं ग्रेजों ने उनका सारा खाना द्वितीय विश्वयुद्ध
चाहिए मानो कभी कुछ हुआ ही न हो। आप पढ़ रहे में लगी सेना को भेज दिया था। 1860 में तब
हैं जानी मानी फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत के साथ तत्कालीन अं ग्रेज गवर्नर ने लिखा था - ‘भारत की
सद् ‌गुरु की बातचीत के सं पादित अं श। जमीन हथकरघा मजदूरों की हड्डियों से पट चुकी
पेश है अगली कड़ ीः है।’ दरअसल अं ग्रेजों ने हमारे हथकरघा उद्योग को
पूरी तरह से नष्ट कर दिया था। 1800-1860 के
कंगना रनौतः दौरान अं ग्रेजों ने महज साठ सालों में उस उद्योग को
पिछले दिनों मैं लं दन में थी और मेरे कुछ हिंदुस्तानी तहस-नहस कर दिया, जो यहां पिछले दस हजार
दोस्त हिंदुस्तान को भला बुरा कह रहे थे, ‘अरे वाह, सालों से चला आ रहा था। उन्होंने इस उद्योग को
लं दन तो इतना शानदार है। हम जहां रहते हैं, वह बर्बाद करके लाखों लोगों को मरने के लिए छोड़
तो एक कूड़ े का ढेर है।’ यह सब सुन-सुन कर मैं दिया। यह ब्रिटिश इतिहास में दर्ज है। इस बारे में जो
बेहद दुखी थी। मैं अपना कमरा पाने के लिए बेताब कुछ लिखा गया है, वह हमने नहीं, बल्कि उन्होंने
थी और जब मैं उस कमरे में गई तो मैं रो पड़ ी। ही लिखा है। हम तो कुछ लिखते ही नहीं। अगर हमें
कल सुबह का नाश्ता मिल जाए तो हम इसी में खुश
सद् ‌गुरुः हो जाते हैं। भारत के साथ सबसे बड़ ी दिक्कत यही
जिस शहर की शानोशौकत और बेहतरी की तारीफ है कि हमारे भीतर अपने इतिहास को लेकर कोई
आप कर रही हैं, वह दो सदियों तक इस दे श से भावना ही नहीं है।
लूटे गए पैसों से बना है। हमें अपने इतिहास को
लेकर किसी के प्रति दुश्मनी की भावना नहीं रखनी कंगना रनौत: इतिहास या बदला?
चाहिए, लेकिन साथ ही सब कुछ भुलाकर इस
तरह से व्यवहार भी नहीं करना चाहिए मानो कभी सद् ‌गुरुः नहीं-नहीं, बदले की जरूरत नहीं है,
कुछ हुआ ही न हो। यह भी मूर्खता होगी। इस दे श क्योंकि बदला लेने में फिर से आपकी ऊर्जा बर्बाद
में उन दो सौ सालों में जो कुछ भी हुआ, वह कोई होगी, आपका भविष्य बर्बाद होगा। सवाल है कि हम
छोटी बात नहीं थी। दुनिया में साठ लाख यहूदी उन जैसे क्यों नहीं हो सकते? हम लोग ऐसे क्यों हैं?
मारे गए, उन्होंने इसके बारे में जहां भी मौका मिला,
खूब लिखा। उन्होंने इसके बारे में फिल्में बनाईं। हो सकता है कि बहुत सारे हिंदुस्तानी इस बारे में
इस दुनिया में कोई भी ऐसी बातें भूलता नहीं है। जागरुक न हों, लेकिन जीवन के स्तर पर वे इसे
हर व्यक्ति रोज यह याद करता है कि उसके साथ जरूर जानते हैं कि उनका कल्याण, उनकी भलाई
अत्याचार हुए। आप तो जानते ही होंगे कि बं गाल बुनियादी रूप से खुद उनके अपने भीतर ही निहित

40 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com


है। बाहरी व्यवस्था को हम अपनी मर्जी से जैसा चाहे सामान को इस दे श से बाहर ले जाना चाहते थे।
वैसा बना सकते हैं, लेकिन खुश होना, शां तिमय, उस समय दे श में कोई आर्थिक ढां चा नहीं था। हां
प्रेममय और आनं दित होना सबसे जरूरी है। यही प्रशासनिक सेवा के रूप में प्रशासनिक ढां चा जरूर
वजह है कि मैं कहता रहा हूं कि इस दे श में निजी था। वह भी हिंदुस्तानियों पर लगाम कसने के लिए।
तौर पर हमने बहुत अच्छा काम किया है, सं गठन के तब स्थानीय प्रशासक को कलेक्टर कहा जाता था।
तौर पर भी हमने तब तक महान काम किया, जब अफसोस की बात है कि आज भी हम वही पदवी
तक कि बाहरी लोग यहां नहीं आए थे। उन बाहरी चला रहे हैं। कलेक्टर का मतलब - वे सिर्फ कर
लोगों ने हर चीज बड़ ी क्रूरता से खत्म कर दी। इकट्ठा करते थे। कई राज्यों में कृषि उत्पादों पर
लगभग सौ प्रतिशत तक कर वसूला जाता था। यह
उदाहरण के लिए, आप योग केंद्र में आए हैं। इस सिलसिला लगभग पूरे दो सौ सालों तक चला। अब
इलाके में एक पुलिस चौकी है, जिसमें तकरीबन हम इससे उबर रहे हैं। यह कोई छोटी बात नहीं है।
12-14 पुलिस वाले होंगे। इनमें से चार रात की हमें लगातार दबाया और कुचला गया। तब न तो
यहां लगभग ढाई लाख
ड्यूटी पर होते हैं, दो-तीन हमेशा छु ट्टी पर रहते हैं, कोई शिक्षा थी, न पोषण और न ही कोई आर्थिक
जिसका मतलब हुआ 8 या 9 लोग दिन में ड्यूटी ढां चा, सारे उद्योग-धं धे चौपट हो चुके थे। बड़ े लोग रहते हैं , फिर भी यहां
पर होते हैं। यहां लगभग ढाई लाख लोग रहते हैं, व्यवस्थित ढं ग से हमारा शोषण किया गया। कोई अपराध नहीं होता।
फिर भी यहां कोई अपराध नहीं होता। यही वह यही वह आध्यात्मिक
आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जिसके बारे में मैं बात तब हम सबकी एक ही समस्या थी कि इन हालातों
प्रक्रिया है , जिसके बारे
कर रहा था। आप न्यूयॉर्क से, लं दन से पुलिस से लड़ ने के लिए हमारे पास कोई सं गठन नहीं
हटा दीजिए और फिर दे खिए कि बस तीन घं टे में था। तब हमारे यहां छोटे -छोटे राज्य हुआ करते में मैं बात कर रहा था।
वहां क्या हालत होती है। अं ग्रेज जब इस दे श को थे, जिनके साथ अग्रेजों ने बड़ ी चालाकी से खेल आप न्यूयॉर्क से, लं दन से
छोड़ कर गए थे, उस समय जिंदा रहने की औसत खेला। हमारी ओर से यह एक ऐतिहासिक भूल थी। पुलिस हटा दीजिए और
उम्र 28 साल होती थी। उस समय तिरानवे प्रतिशत इसमें उन्हें भला-बुरा कहने का कोई मतलब नहीं
फिर दे खिए कि बस तीन
निरक्षरता थी। दे श में कोई उद्योग धं धा नहीं था, है। उन्होंने वही किया, जो उनके लिए सबसे अच्छा
किसी तरह का कोई इं फ़्रास्ट्रक्चर नहीं था। कुछ था। हम वो सब नहीं कर पाए, जो हमारे लिए सबसे घं टे में वहां क्या हालत
मूर्ख कहते हैं, ‘उन्होंने रेलवे बनाई।’ उन्होंने रेलवे अच्छा था। अब समय आ गया है कि हम वो करें, होती है ।
इसलिए बनाई, क्योंकि वे अपनी सेना और यहां के जो हमारे लिए सबसे अच्छा हो।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | फरवरी 2019 41


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समय से पहले सोचना होगा


कुछ न कुछ हर दिन बदल रहा है । आपको इसके साथ ही चलना होगा। आपको समय
से पहले यह सोचना होगा कि आगे क्या किया जा सकता है । आदर्श स्थिति तो कभी
आती नहीं है . . . आप पढ़ रहे हैं ‘इनसाइट’ कार्यक्रम के दौरान श्री के वी कामत, जो
आईसीआईसीआई बैंक के गैर कार्यकारी अध्यक्ष रह चु के हैं , की वार्ता का
सं पादित अं श।

ह म यह दे खने की कोशिश करते हैं कि आर्थिक


विकास दर हमें क्या मौके दे रही है और हम
2003 में हमने विकास के दूसरे आयाम यानी
ग्लोबलाइजेशन पर काम करना शुरु किया और
उनमें किस तरह फिट बैठते हैं, लेकिन मैं आपको हम आईसीआईसीआई बैंक को वैश्विक स्तर पर ले
कुछ और बातें भी बताना चाहता हूं । मैं आपको उन गए। हमारी मौजूदगी लगभग 19 - 20 दे शों में है,
चुनौतियों के बारे में बताना चाहता हूं , जो बैंक में कनाडा और यूके में दो बड़ ी सहायक कंपनियां हैं,
हमारे सामने पेश आईं और यह भी कि हमने उनसे पूरे हां गकां ग, सिंगापुर, बहरीन, दुबई समेत कई
कैसे पार पाया। पहली थी रिटे ल बैंकिंग। हमने जगहों पर हमारी शाखाएं हैं। हमारे 25 प्रतिशत खाते
विकास के एक आयाम के रूप में रिटे ल बैंकिंग का वैश्विक हैं और 75 प्रतिशत घरेलू हैं।
खाका तैयार किया और मुझे लगता है कि हमने
अच्छा काम किया।

42 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com


तो अगर आज आप होम-कंट्री बैंक नहीं हैं तो लगी हैं। पां च-छह साल पहले हमने जो सोचा था,
वैश्विक बाजार में आगे बढ़ ने के आपके सामने बेहद वह आज होने को है। तो तब हमें थोड़ ा पीछे हटना
सीमित मौके हैं। मुझे लगता है कि वैश्विक व्यापार पड़ ा, क्योंकि हमें इसे ग्रामीण रणनीति के साथ
का हमारा हिस्सा काफी बड़ ा होना चाहिए था। मिलाना था। लेकिन मुझे लगता है कि आने वाले
लेकिन यह तो तय था कि भारत वैश्वीकरण की सालों में हम उस मोर्चे पर भी तेजी के साथ आगे बढ़
तरफ बढ़ े गा ही। आप बिजनेस को दो साल का सकते हैं।
वक्त लेकर नहीं दे ख सकते। अगर आप पां च साल
का वक्त लेकर चलते हैं तो दे खना होगा कि पां च जब मैं पलटकर दे खता हूं , तो मुझे लगता है कि
साल में वैश्विक व्यापार के मामले में भारत कहां सबसे सही वे दां व रहे जो हमने टेक्नोलॉजी पर और
होगा, व्यापार की गति क्या होगी, कौन से बैंक अपने प्रोडक्ट की ब्रांडिंग पर लगाए थे। इसने हमें
व्यापार की इस गति को हथियाने वाले हैं। ये ही वे बेहतर जगह पहुं चाया। जब हमने टेक्नोलॉजी के
चीजें हैं, जिनके लिए हम बैंकों को तैयार कर रहे हैं। इस्तेमाल की शुरुआत की थी तो 95 फीसदी लेन-
इस तरह विकास के एक आयाम में हम आगे बढ़ े , देन ब्रां च में होता था। आज 10 फीसदी से भी कम
चुनौतियों का सामना किया गया, जिसके नतीजे लेन-देन ब्रां च से होता है। जब हमने शुरुआत की
के रूप में आपको इन क्षेत्रों में कम मुनाफा मिला। थी तो सोचा था कि कॉल सेंटर भविष्य में बड़ े चैनल
इसलिए आप दूसरे कारोबारों में अपने मुनाफे को बनने जा रहे हैं, लेकिन दूसरी तकनीकें कॉल सेंटरों
बढ़ ाना चाहते हैं और यह भविष्य के लिए एक तरह पर हावी हो गईं। दरअसल, उपभोक्ता अपने सवालों
का निवेश है। के जवाब कम से कम बात करके और कम से कम
बटन दबाकर सीधे हासिल करना चाहता है। अगर
विकास के एक और आयाम में हमने पां च-छह आप ऐसा हल दे सकते हैं, तो उपभोक्ता उस रास्ते जब मैं पलटकर दे खता हूं ,
साल पहले कदम बढ़ ाने की तैयारी की, जो वैश्विक को अपनाएगा। तो मुझे लगता है कि सबसे
आयाम से कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण था। यह आयाम सही वे दां व रहे जो हमने
पूरा का पूरा ग्रामीण क्षेत्र की ओर था। ‘आधार’ तो आठ-दस साल पहले जिसे आप एक चैनल
टे क्नोलॉजी पर और अपने
योजना लागू होने से बहुत पहले ही हमें लगने लगा समझ रहे थे, आपको पता चला कि नई तकनीकों
था कि भारत में सबको शामिल करने के अच्छे मौके ने उसे पीछे छोड़ दिया और फिर आपको उसके प्रोडक्ट की ब्रांडिंग पर
हैं। हमने इसी के लिए काम करना शुरू कर दिया। लिए नए समाधान ढूं ढने पड़ े। पिछले 15 साल ऐसे लगाए थे। इसने हमें बेहतर
पां च-छह साल पहले हमने पाया कि टेक्नोलॉजी रहे हैं जब आपके सारे समीकरण सही बैठे, लेकिन जगह पहुं चाया। जब हमने
गति नहीं पकड़ पा रही थी। वैसे तो टेक्नोलॉजी अब भी आप यह कह पाने की स्थिति में नहीं हैं कि
टे क्नोलॉजी के इस्तेमाल
हमेशा रफ्तार से ही चलती है, लेकिन यहां मेरे अब हम स्थायी स्थिति में आ गए हैं क्योंकि कुछ न
कहने का मतलब यह है कि उस वक्त टेक्नोलॉजी कुछ हर दिन बदल रहा है। आपको इसके साथ ही की शुरुआत की थी तो 95
पर आने वाले खर्च का समीकरण ठीक नहीं बैठ चलना होगा। आपको समय से पहले यह सोचना फीसदी लेन-दे न ब्रांच में
रहा था। बहुत सी ऐसी चीजें भी नहीं हो रही थी, होगा कि आगे क्या किया जा सकता है। आदर्श होता था। आज 10 फीसदी
जो एक आम उपभोक्ता के लिए जरूरी थीं। लेकिन स्थिति तो कभी आती नहीं है। आप चीजों को कैसे
से भी कम लेन-दे न ब्रांच से
आज ऐसा हो रहा है। लाभार्थी के खातों में सीधा ठीक करते हैं, मौकों को कैसे भुनाते हैं और माहौल
ट्रांसफर, सब्सिडी वाली योजनाओ ं के लिए कैश पर कैसे नजर रखते हैं, यही सब आपकी योजना का होता है ।
मिलना, इस तरह की चीजें आज ठीक तरह से होने महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | फरवरी 2019 43


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ईशा लहर प्रतियोगिता


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ह म आपके लिए एक ऐसा अवसर लेकर आए हैं जिससे आप ईशा लहर अगले एक वर्ष तक निःशुल्क
प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही आपको मिल सकता है एक आकर्षक इनाम भी। इसके लिए आपको नीचे
दिए गए तीन सवालों के जवाब हमें भेजने हैं। आपको यह भी बता दें कि इन सवालों के जवाब इसी अं क में
छिपे हैं। बस पढ़ि ए, ढूं ढ़ि ए और जीतिए इनाम।

प्रश्न 1) निम्न में से कौन सा नकरात्मक प्राणिक आहार है?


A) आलू B) टमाटर C) बैंगन

प्रश्न 2) मार्क हाइमन किस अमेरिकी राष्ट्रपति के चिकित्सा सलाहकार रहे हैं?
A) बिल क्लिंटन B) जार्ज बुश C) बारक ओबामा

प्रश्न 3) अधिरथ कौन था?


A) धृतराष्ट्र का सारथी B) धृतराष्ट्र का मं त्री C) धृतराष्ट्र का सेनापति

सही जवाब देने वालों में से दो भाग्यशाली विजेताओ ं को मिलेगी एक वर्ष तक ईशा लहर मुफ्त और सही
जवाब देने वाले पहले दस लोगों का नाम हम अप्रैल 2019 अं क में प्रकाशित करेंगे। इतना ही नहीं अगर
आपने लगातार छः महीनों तक सही जवाब दिया तो आपको मिल सकता है एक आकर्षक इनाम भी।

उत्तर देने के लिए टाइप करें ILP-FEB-19 और फिर स्पेस देकर क्रम से प्रश्न सं ख्या और उसके साथ ही अपने
उत्तर का क्रम टाइप करें। जैसे अगर आपके पहले प्रश्न का उत्तर A दूसरे का B और तीसरे का C है तो आप
टाइप करें ILF-FEB-19-1A 2B 3C और फिर अं त में अपना नाम और शहर का नाम लिखना न भूल,ें और
एस.एम.एस. करें 8005149226 पर या editor@ishalahar.com पर ई-मेल कर दें । उत्तर भेजने की
अं तिम तारीख है 1 मार्च 2019।
दिसं बर 2018 अं क के प्रश्नों के सही उत्तर हैं: 1-B, 2-C, 3-B
सही उत्तर देने वाले पहले दस लोगों के नाम हैं:
विकास मिश्रा, मुं बई सूर्य मिश्रा, भटिंडा बबिता कुमारी, उदयपुर
डा. मनोज चतुर्द वे ी, जयपुर डा. सुनील सिंघल, मुजफ्फरनगर डा. आभा चतुर्द वे ी, जयपुर
आकाश निमावत, राजकोट महिमा मिश्रा, मुं बई
दीपक धवले, भोपाल नीलम पां डे , मुं बई

लकी ड्रॉ से निकाले गए दो भाग्यशाली विजेता हैं ः


ऊषा अग्रवाल, वाराणसी और सौम्या तिवारी, हर्दा। आपको हार्दिक बधाई।

पिछले छः अं कों से लगातार सही उत्तर देने विजेता का नाम है:


सं जना संतूवाला, सूरत। आपको भी हार्दिक बधाई।

44 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com


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SadhguruHindi

तृप्ति की कंु जी मिल गई


़ े सबुक के मं च पर शब्दों
यहाँ हम उन विचारों को आपसे साझा करते हैं जिसे लोगों ने फ
में सहे जा है । पेश है कुछ विचार:

मेरी मंज़ि ल तक का रास्ता आप ही हैं - सद्दाम कबीर


''गुरूजी, मैं बां ग्लादे श से सद्दाम कबीर हूँ । मैं आपसे मिलने के लिए बहुत उत्सुक हूँ , पर मैं नहीं जानता कि वो
दिन कब आएगा। जब तक मैं आपके चरणों तक नहीं पहुँ च,ूं तब तक आप यहाँ से जाना मत। मैं बहुत समय
से सही राह ढू ँ ढने की कोशिश कर रहा हूँ , लेकिन सभी मेरी तरह ही अं धे हैं! मुझे मेरी मं ज़ि ल तक ले जाने वाला
एक मात्र रास्ता आप ही हैं। आप एक सच्चे योगी हैं।''

ये रूपांतरण है - अं कित कुमार निगम


''सबसे अद्भुत बात तब हुई जब सद् ‌गुरु ने सभी प्रतिभागियों को करीब तीस मिनट के लिए मौन रहने के लिए
कहा। मैंने अपने जीवन में पहली बार 8000 से ज़्यादा लोगों को इतनी दे र तक बिलकुल शां त दे खा। किसी
ने एक शब्द नहीं बोला। ये रूपां तरण है। (बैंगलोर में आयोजित हुए दो दिवसीय इनर इं जीनियरिंग मेगा प्रोग्राम
के सं दर्भ में।)''

तृप्ति की कंु जी मिल गई - यश शाह


''कल ही मैंने हमारे अहमदाबाद केंद्र में आयोजित देवी पूजा में हिस्सा लिया और स्वयं सेवा की। मुझे अहसास
हुआ कि पूरी इच्छा से कोई काम करना ही तृप्ति की कंु जी है। अब मैं अपनी माँ द्वारा दिए गए घर के छोटे -छोटे
काम भी अनमने तरीके से नहीं, बल्कि आनं द से कर पा रहा हूँ ।''

सब उनकी कृपा से हो जाएगा - करण कबीर


''आप बस स्पेस बनाइए, बाकी सब उनकी कृपा से हो जाएगा। बल्कि मुझे कहना चाहिए कि ये अभी हो रहा
है। जो भी ये पढ़ रहे हैं, उन्हें मेरी ओर से प्रेम, प्रार्थना और आलिंगन।''

isha.sadhguru.org ईशा लहर | फरवरी 2019 45


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खुल गया एक नया आकाश


मेरे सामने पूरी तरह से एक नया आकाश खुलकर सामने आ रहा है । मैं एक ऐसी नई
दुनिया से रूबरू हो रहा हूं , जिससे मैं लं बे समय तक अनजान था. . . पढ़ि ए एक नदीवीर
के अनुभव, जो दे श की नदियों को फिर से जीवित करने में अपना अमूल्य योगदान दे
रहे हैं ।

इ स आं दोलन का हिस्सा बनने के बाद मैं अपने


जीवन को दो हिस्सों में बां टकर दे खता हूं , एक
समय तक अनजान था, मसलन इस दे श की धरती,
यहां के जीव-जं तु, कीड़ े-मकोड़ े, यहां के पेड़,
आं दोलन का हिस्सा बनने से पहले का जीवन और वनस्पति और भी काफी कुछ। इस ट्रेनिंग के जरिए
दूसरा इसका हिस्सा बनने के बाद का। ‘नदीवीर’ मुझे नदियों के जीवन से जुड़े अनेक पहलुओ ं के बीच
बनने से पहले मैं बेंगलुरु में एक मल्टिनेशनल आपसी सं बं ध को समझने का मौका मिला। अब हम
कंपनी में काम कर रहा था। मैं भी जीवन की रफ्तार पूरी ट्रेनिंग ले चुके हैं और जमीन पर उतरकर काम
के साथ चला जा रहा था और सब कुछ ठीक-ठाक करने के लिए तैयार हैं।
था। मैं अच्छा कमा रहा था, अच्छा जीवन जी रहा
था, लेकिन कभी-कभी ऐसा लगता था जैसे मैं मैं 20 नदीवीरों की उस टीम का हिस्सा था जो
बिल्कु ल अकेला हूं । ऐसा लगता था जैसे मैं सिर्फ महाराष्ट्र गई थी। हमें शुरुआती आकलन करने थे
खुद को फायदा पहुं चाने के लिए काम कर रहा हूं । कि किस जगह पर और किन लोगों के साथ हमें
काम करना है। हम गां वों में रुके, करीब एक महीने
सितं बर में जो रैली हुई उस पर मेरी नजर थी और तक एनजीओ के साथ काम किया। इससे हमें गां वों
मैं उसका समर्थन भी कर रहा था। उन्हीं दिनों के लोगों के जीवन की मौजूदा स्थिति को समझने
सदगुरु ने ‘कॉल टु द यूथ’ नाम के एक कार्यक्रम में काफी मदद मिली। हमने पाया कि ग्रामीण लोग
की शुरुआत की। मुझे एक मौका दिखाई दिया कि प्रकृति के ज्यादा करीब होते हैं और अपने इर्द-गिर्द
इसके जरिए मैं भी किसी बड़ े मकसद में अपना की चीजों को लेकर ज्यादा जागरूक होते हैं। उन्हें
योगदान दे सकता हूं । मुझे कृषि के बारे में कोई और उनके हालात को नजदीक से जानकर हमें
जानकारी नहीं है, न ही मुझे नदियों की खस्ता हालत इस बात का अनुभव हुआ कि हमारी जिंदगी किस
के बारे में ज्यादा पता है। इसके बावजूद मैंने इस तरीके से पूरी तरह रूपां तरित होने जा रही है।
आं दोलन का हिस्सा बनने का फैसला कर लिया।
आज मैं कह सकता हूं कि यह मेरे लिए बड़ े सम्मान
पिछले चार महीने मैंने ईशा योग केंद्र में बिताए, जहां की बात है कि मैं एक ऐसे अभियान का हिस्सा बना
़ ॉर रिवर्स’ के लिए ट्रेनिंग ली। यह ट्रेनिंग
मैंने ‘रैली फ जो हमारी मौजूदा पीढ़ ी की भलाई की ही नहीं, आने
इथियापा दे रहे हैं, जो हमारे योजना सलाहकार भी वाली पीढ़ि यों की भी भलाई के लिए काम कर रहा
हैं। इथियापा के अलावा कई दूसरे तकनीकी और है। मैं उन सबको नमन करता हूं , जिन्होंने भी इस
गैर तकनीकी क्षेत्रों के विशेषज्ञ भी ट्रेनिंग देने का अभियान को कामयाब बनाया और नदियों को फिर
काम कर रहे हैं। इसके जरिए मेरे सामने पूरी तरह से से जीवित करने के साथ-साथ किसानों के विकास
एक नया आकाश खुलकर सामने आ रहा है। मैं एक के लिए काम किया।
ऐसी नई दुनिया से रूबरू हो रहा हूं , जिससे मैं लं बे

46 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com


हमने पाया कि ग्रामीण
लोग प्रकृति के ज्यादा
करीब होते हैं और अपने
इर्द-गिर्द की चीजों को
लेकर ज्यादा जागरूक
होते हैं । उन्हें और उनके
हालात को नजदीक से
जानकर हमें इस बात का
अनुभव हुआ कि हमारी
जिंदगी किस तरीके से
पूरी तरह रूपांतरित होने
जा रही है ।

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अनाहत - इसमें है सातों चक्रों का गुण


अनाहत चक्र का प्रतीक दर्शाता है कि हमारे शरीर में ऊपर और नीचे के तीन चक्र इस
बिंदु पर आकर मिल रहे हैं । इसका मतलब है कि सभी सातों चक्र यहां एक खास तरीके
से एक-दूसरे में मिल गए हैं ।

अ नाहत चक्र को दो त्रिभुजों के जरिए


दिखाया जाता है, जो एक-दूसरे को काट
रहे होते हैं, जिसके केंद्र में एक बिंदु होता है। इस
मिली, वह उसी के सहारे आगे बढ़ रहा है। उसकी
सीढ़ ी इस वक्त रुपया है। आप ऊर्जा को सीढ़ ी बना
सकते हैं, अनुभव को सीढ़ ी बना सकते हैं। किसी
तरह यह आकृति छह शीर्ष वाले एक सितारे की की सीढ़ ी उसकी भावनाएं हो सकती हैं। अलग-
तरह बन जाती है। यह प्रतीक दर्शाता है कि हमारे अलग लोग अलग-अलग साधनों का इस्तेमाल
शरीर में ऊपर और नीचे के तीन चक्र इस बिंदु पर कर सकते हैं, लेकिन हर कोई अपने तरीके से
आकर मिल रहे हैं। इसका मतलब है कि सभी ऊपर उठने की कोशिशों में लगा है। जीवन की
सातों चक्र यहां एक खास तरीके से एक-दूसरे प्रकृति यही है।
में मिल गए हैं। अलग-अलग सं स्कृतियां इन
प्रतीकों को अलग-अलग सं केतों के रूप में दे खती ऊपर उठने की यह ख्वाहिश इसलिए पैदा हुई है,
हैं, लेकिन मोटे तौर पर इन त्रिभुजों का मतलब क्योंकि आप ठहरे हुए हैं, आप एक ही जगह पर
यही है कि किसी न किसी रूप में हर प्राणी अपने अटके हुए हैं। चूं कि आप एक ही जगह पर अटके
हिसाब से ऊपर उठने की कोशिश कर रहा है। हैं, इसलिए आपको लगता है कि ऊपर की ओर
जाने वाली सभी दिशाएं अच्छी हैं। जो भी हो,
हो सकता है कि एक छोटा कीड़ ा पेड़ पर चढ़ ने लेकिन आपको कदम तो उठाने ही हैं, क्योंकि
की कोशिश करे, हो सकता है कोई चिड़िया आप एक ही जगह पर अटक गए हैं।
आकाश में उड़ ने की कोशिश करे, कोई इं सान
धनी, शक्तिशाली या मशहूर होने की दिशा में जिसे हम पूरी सृष्टि का स्रोत कह रहे हैं, उसका
काम करे या कोई इं सान आत्म-ज्ञान पाने की भी सं बं ध किसी स्थान विशेष से नहीं है। यह स्थिर
कोशिश करे। ये सब ऊपर उठने की दिशा में की नहीं है, इसलिए यह हर जगह है। यह हर चीज
गई कोशिशें ही हैं। यह इस सृष्टि की प्रकृति है कि में रिस जाता है। अगर आप स्थिर हैं, केवल तभी
हर प्राणी अपनी पूरी क्षमता तक पहुं चना चाहता आपके सामने आगे बढ़ ने के लिए एक दिशा
है। कुछ लोग इस काम को पूरी जागरूकता के होगी। अगर आप स्थिर नहीं हैं,तब तो आप हर
साथ करते हैं, कुछ लोग अनजाने में, लेकिन ऊपर जगह मौजूद हैं। आप हर चीज में रिसते रहते हैं,
उठने की कोशिश हर कोई कर रहा है। आपके इर्द-गिर्द जो भी है, आप उसे सोख लेते
हैं। इसी सं दर्भ में योगिक शब्दावली में इन दो
अगर कोई शख्स पैसे के पीछे भाग रहा है, तो हो त्रिभुजों का इस्तेमाल हुआ है। प्राणी ऊपर की ओर
सकता है कि आप सोचें ‘यह सही नहीं कर रहा बढ़ ने की कोशिश कर रहा है और स्रोत नीचे की
है।’ लेकिन नहीं, वह भी आगे बढ़ ने की कोशिश ओर उसमें समाने की कोशिश कर रहा है। स्रोत न
कर रहा है। उसे आगे बढ़ ने के लिए जो भी सीढ़ ी नीचे जाता है, न ऊपर जाता है, बस यह हर चीज

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के भीतर रिसता रहता है। जैसे हमारे वातावरण में है, वे लोग कुछ खास चीजों को चुन लेते हैं। बहुत
हवा मौजूद है। यह हवा हमारे कानों में भी घुसती से लोग ऐसे भी होते हैं, जो अं डरग्रेजुएट कोर्स में
है, त्वचा में घुसती है, नाक में भी जाती है और दाखिला लेते हैं, दो महीने एक विषय पढ़ ते हैं,
अगर आप अपना मुं ह खोल लें तो यह उसमें भी फिर कुछ और पढ़ ने लगते हैं और फिर दो महीने
प्रवेश कर जाती है। इसके पास कोई तय विकल्प बाद उसे भी बदल दे ते हैं। इसकी वजह यही
नहीं होता, इसे जहां कहीं जगह मिलती है, यह है कि सं भावनाएं बहुत ज्यादा हैं, लेकिन कोई
वहीं घुस जाती है। स्पष्टता नहीं है, जिसकी वजह से आप सही चुनाव
अगर कोई शख्स पैसे के
ही नहीं कर पाते। बहुत थोड़ े से लोगों को छोड़ कर
अनाहत एक ऐसी जगह है जहां प्राणी और ईश्वर मैं ज्यादातर लोगों को अनाहत साधना के मार्ग पर पीछे भाग रहा है , तो हो
एक-दूसरे में इस तरह से समाते हैं कि एक नहीं ले जाता, क्योंकि इसमें बहुत सारे विकल्प हैं, सकता है कि आप सोचें
छह कोण वाला सितारा बन जाता है, जिसके बहुत सारी उलझनें हैं। अनाहत साधना में उतरने ‘यह सही नहीं कर रहा है ।’
बीच में एक केंद्र बिंदु होता है। इसका मतलब के लिए दो चीजों की जरुरत है। एक है भावों की
लेकिन नहीं, वह भी आगे
क्या है? इसका मतलब है कि एक ही जगह मिठास और दूसरी है बुद्धि का पूर्ण सं तुलन। बुद्धि
पर इसमें अपार सं भावनाएं हैं। अगर किसी एक से मतलब है विवेक। यह विवेक होना चाहिए बढ़ ने की कोशिश कर रहा
ही जगह पर बहुत सारी सं भावनाएं हों, तो वहां कि वह समझ सके वास्तविक और अवास्तविक, है । उसे आगे बढ़ ने के लिए
ज्यादातर लोग किसी भी सं भावना को हासिल स्मृति और कल्पना, अनुभव और मनोवैज्ञानिक के जो भी सीढ़ ी मिली, वह
नहीं कर पाते। इसलिए हो सकता है कि लोगों बीच क्या अं तर है। अगर यह विवेक नहीं है, तो
उसी के सहारे आगे बढ़ रहा
को कुछ अनुभव ही न हो। भारत में भले ही ऐसा अनाहत की ओर नहीं जाना चाहिए। दरअसल,
न हो, लेकिन अमेरिका की यूनिवर्सिटीज अपने यह ऐसी जगह है जहां आपको चीजें इस तरह से है । उसकी सीढ़ ी इस वक्त
विद्यार्थियों को विषयों को चुनने की पूरी आजादी दिखाई और सुनाई दे ती हैं कि एक ठीक-ठाक रुपया है ।
दे ती हैं। जो लोग जानते हैं कि उन्हें क्या करना व्यक्ति भी पागल हो सकता है।

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50 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com
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काले चावल का मीठा दलिया


आ पने दलिया तो बहुत खाया होगा, लेकिन क्या कभी काले
चावल का दलिया खाया है? इस बार हम आपके लिए एक
ऐसी रेसिपी लेकर आए हैं, जिसमें काले चावल का इस्तेमाल किया
जाता है। काले चावल में भरपूर पोषण होता है क्योंकि इसमें कई तरह
के एमिनोएसिड, आयरन, जिंक, कॉपर, केरोटीन और कई महत्वपूर्ण
विटामिन होते हैं। यह अनाज फायबर से भी परिपूर्ण होता है और
इसका हल्का मेवे जैसा स्वाद होता है। इसे एं टी इन्फ्लेमेट्री (सूजन को
कम करने वाला) भी माना जाता है और ये एं टी ऑक्सीडेंट्स का भी
बढ़ि या स्रोत होता है। तो इस बार आज़माइए काले चावल का दलिया।

सामग्री:

काले चावल : आधा कप


घी : दो छोटे चम्मच
काजू : 10
किशमिश : 5
दूध : एक कप
नारियल का दूध : आधा कप
चीनी : स्वादानुसार
हरी इलाइची पाउडर : दो चुटकी

विधि:

चावल को धो लें और दो कप पानी में पूरी रात भिगोकर रखें। सुबह चावल
को छानकर निकाल लें और एक पैन में तीन कप ताजे पानी के साथ आं च
पर चढ़ ाएं और अच्छे से पका लें। इसी बीच एक छोटे पैन में घी गर्म करें।
इसमें काजू और किशमिश को भूनकर अलग रख लें। अब उबले चावल को
ग्राइं डर में डालकर दरदरा सा पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को एक पैन में डालें,
उसमें दूध, नारियल का दूध और चीनी मिलाएं । हल्की आं च पर इस मिश्रण
को 1 से 2 मिनट तक पकाएं मगर इसमें उबाल न आने दें । अं त में इसमें
इलायची पाउडर और ड्राई फ्रू ट् स मिलाएं और परोसें।

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खेल को जीतने का
़ ा
एक आसान तरीक
प्रतिद्वं दी कभी आपके लिए अजनबी नहीं होना चाहिए। आपको उसे परिचित बना लेना
चाहिए। वो खुद को जितना जानता है , आपको उसे उससे बेहतर जानना होगा। यह
सबसे जरूरी है ।

52 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com


आकाश: मैं आपको बताता हूं कि क्या हुआ था। बोरिस बेकर
जब भी मैं किसी अजनबी के साथ खेलता हूं , जिसे के रिटायर होने के बाद वे दोनों जर्मनी में मिले,
मैं नहीं जानता, तो मैं अक्सर अपनी पूरी क्षमता से जर्मनी में ‘अक्टू बर फेस्ट’ करके कुछ होता है, वे
खेलता हूं , और नतीजे की चिंता किए बिना खेलता वहां मिले। उस समय वे साथ में थे और आं द्रे अगासी
हूँ । लेकिन जब मैं किसी परिचित व्यक्ति के साथ ने सोचा कि ‘वैसे भी यह रिटायर हो चुका है, अब मैं
खेलता हूं , तो उसी क्षमता के साथ खेलना मुश्किल इसे बता सकता हूं ।’
हो जाता है। मैं इससे बाहर निकलने के लिए क्या
करूं सद् ‌गुरु? यह चीज बोरिस बेकर को बहुत परेशान कर रही
थी कि कोई उन्हें हरा नहीं पाता, और यह आदमी
सद् ‌गुरु: हावी हो रहा था। फिर आं द्रे आगासी ने उन्हें बताया,
परिचित व्यक्ति से आपका मतलब परिचित प्रतिद्वं दी ‘मैंने लगातार आपके वीडियो दे ख,े और मैंने पाया
से है या परिचित दोस्त? कि जब भी आप गेंद को बाउं ड्री लाइन की ओर सर्व
करते हैं...।’
आकाश: जिसे भी मैं अच्छे से जानता हूँ ।
बोरिस बेकर जब भी सर्व करते हैं, जब वह गेंद
सद् ‌गुरु: अगर आपका परिचित दोस्त है तो आपको ऊपर उछालकर हाथ घुमाते हैं, उनकी जीभ बाहर यह बात 1998-99 की है
दोस्त से जीतने की जरूरत नहीं है, चलता है। वैसे निकलती है, थोड़ ी सी।
- आं द्रे अगासी और बोरिस
भी, अगर आप किसी प्रतिद्वं दी के खिलाफ एक
गं भीर प्रतियोगिता की बात कर रहे हैं, तो आपको अगासी बोले, ‘जब भी आप बाउं ड्री लाइन की ओर बेकर ने तीन गेम खेले।
समझना चाहिए कि आपको जितना ज्यादा पता सर्व करते हैं, आपकी जीभ बाईं ओर जाती है। जब सभी में बोरिस बेकर ने आं द्रे
होगा, उसके खेलने के तरीके के बारे में, उस व्यक्ति आप सीधा सर्व करते हैं, वह सीधी निकलती है। मैं अगासी को हरा दिया। आं द्रे
को हराना आपके लिए उतना ही आसान होगा। ध्यान से दे खता था और जिस भी दिशा में आपकी
अगासी ने वापस जाकर
तो, प्रतिद्वं दी कभी भी अजनबी नहीं होना चाहिए। जीभ निकलती थी, मैं पहले से उधर जाकर गेंद
आज सभी खिलाड़ ी सैकड़ ों घं टे बिताते हैं, अपने खेल लेता था।’ बोरिस बेकर कुर्सी से गिरते-गिरते सैकड़ ों घं टे बोरिस बेकर की
प्रतिद्वंदियों के वीडियो दे खने में। बचे। उन्हें यकीन ही नहीं हुआ। वह बोले, ‘कई बार सर्विस को ध्यान से दे खने
मैंने मैच के बाद घर जाकर अपनी पत्नी से कहा में लगाए, फिर अगले तीन
यह बात 1998-99 की है - आं द्रे अगासी और कि लगता है, वह मेरा दिमाग पढ़ रहा है! लेकिन
सालों में दोनों के बीच ग्यारह
बोरिस बेकर ने तीन गेम खेल।े सभी में बोरिस बेकर तुम मेरी जीभ पढ़ रहे थे।’ तो... प्रतिद्वं दी कभी
ने आं द्रे अगासी को हरा दिया। बोरिस बेकर को आपके लिए अजनबी नहीं होना चाहिए। आपको गेम हुए और उन्होंने दस में
‘बूम बूम’ कहा जाता था, उनकी सर्विस के कारण। उसे परिचित बना लेना चाहिए। वो खुद को जितना उन्हें हरा दिया।
उनकी सर्विस इतनी शक्तिशाली थी वो बस सर्व पे जानता है, आपको उसे उससे बेहतर जानना होगा।
सर्व करते थे और खेल खत्म कर दे ते थे। कोई गेंद यह सबसे जरूरी है।
नहीं लौटा पाता था। आं द्रे अगासी ने वापस जाकर
सैकड़ ों घं टे बोरिस बेकर की सर्विस को ध्यान से
दे खने में लगाए, फिर उन्हें समझ आ गया। अगले
तीन सालों में दोनों के बीच ग्यारह गेम हुए और
उन्होंने दस में उन्हें हरा दिया।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | फरवरी 2019 53


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54 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com
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ßæÜè z çÎÙ ·¤è ·¤æØüàææÜæ ·Ô¤ çÜ° ÚUçÁSÅUÚU ·¤ÚU â·¤Ìð ãñ´Ð ÖôÁÙ ¥õÚU ¥æßæâ ·¤è ÃØßSÍæ §â
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isha.sadhguru.org ईशा लहर | फरवरी 2019 55


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बुद्ध का अछू त शिष्य
ए क दिन गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ अपने आश्रम में एकदम शां त बैठे हुए थे।
गौतम बुद्ध को इस तरह शां त बैठे हुए दे खकर उनके शिष्य चिंतित हुए कि कहीं वह
अस्वस्थ तो नहीं हैं। आख़िरकार एक शिष्य उनसे पूछ बैठा, ‘गुरुदेव, आज आप मौन क्यों बैठे
हैं? क्या हम शिष्यों से कोई गलती हो गई है?’ तभी एक दूसरा शिष्य पूछ बैठा, ‘कहीं आप
अस्वस्थ तो महसूस नहीं कर रहे हैं?’ लेकिन गौतम बुद्ध मौन ही रहे, उन्होंने कोई जवाब नहीं
दिया। इसी बीच थोड़ ी दूरी पर खड़ ा एक व्यक्ति जोर से चिल्लाया, ‘आज मुझे सभा में बैठने
की अनुमति क्यों नहीं दी गई?’ उसकी बात का कोई जवाब नहीं दे ते हुए गौतम बुद्ध आं खें
बं द करके ध्यान मग्न हो गए। बुद्ध से कोई जवाब न आता दे ख, वह व्यक्ति फिर से चिल्लाया,
‘आखिरकार मुझे प्रवेश की अनुमति क्यों नहीं मिली?’ एक उदार शिष्य ने उसका पक्ष लेते
हुए गौतम बुद्ध से कहा कि उसे सभा में आने की अनुमति प्रदान की जाए। इस बार बुद्ध ने
आं खें खोली और बोले, ‘नहीं वह अछू त है, उसे अनुमति नहीं दी जा सकती।’

56 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com


रास्ते अनिवार्यता हैं ...
गौतम बुद्ध की यह बात सुनकर शिष्यों को बड़ ा आश्चर्य हुआ। बुद्ध अपने शिष्यों के मन अँ धेरे से
का भाव समझ गए और बोले, ‘हां , तुम लोगों ने सही सुना वह अछू त है, इसलिए उसे अँ धेरे को जाने वाला रास्ता
सभा में बैठने की अनुमति नहीं दी जा सकती।’ गौतम बुद्ध के इस कथन पर एक शिष्य दुर्गम तो था, लेकिन निर्जन नहीं था,
बोल पड़ ा, ‘पर आपने तो हमें सिखाया है कि जात-पात का कोई भेद होता ही नहीं है, यही था,
फिर वह अछू त कैसे हो गया?’ अपने शिष्यों के मनोभावों को समझकर बुद्ध ने समझाते
सामूहिकता का बहुत बड़ ा सुख।
हुए कहा, ‘आज यह क्रोधित होकर आया है। क्रोध से जीवन की एकाग्रता भं ग होती
है। क्रोधी व्यक्ति अक्सर मानसिक हिंसा करता है। इसलिए कोई भी व्यक्ति जब तक
क्रोध में रहता है तब तक वह अछू त होता है। उससे हमें दूरी बनाकर रखनी चाहिए।
रास्ते पर
इसलिए जब तक यह क्रोध में है, तब तक इसे एकां त में ही खड़ े रहना चाहिए।’ सूखे हुए पत्तों की तरह
फैले हुए थे सपने
बुद्ध की बात से शिष्यों को समझ आ चुका था कि हिंसा केवल शारीरिक ही नहीं जो बुहारकर कूड़ े दान में फेंक दिए गए थे
मानसिक भी होती है, और उस स्तर पर भी हिंसा से दूर रहना चाहिए। साथ ही वे ये भी अशिष्ट था,
समझ गए थे कि इसके लिए क्रोधी इं सान से दूरी भी रखना आवश्यक है। उनका इधर उधर पड़ े हुए दिखना
- इं टरनेट से साभार सभ्यता के विरुद्ध था।

कविता का अँ धेरे से गहरा सं बं ध था


अँ धेरा
कविता से खेलता था गेंद की तरह
उछलता था
मारता था पैर से
और किलककर हँ स पड़ ता था,

कविता
अँ धेरे को
तलवार से चीरकर फेंकती नहीं है ,
उतार लेती है कंठ में
गरल की तरह,
फिर फूटती है शब्दों की किरणों में ढलकर।

रास्ते अनिवार्यता हैं ,


अपरिहार्य है
अँ धेरा
इसलिए निर्बाध है
चित्त के भीतर से कविता का फूटना।

शुक्र है ,
अँ धेरे से अँ धेरे को जाने वाला रास्ता
निर्जन नहीं है ।
- अशोक गुप्ता

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ईशा योग कार्यक्रम


हिंदी कार्यक्रम
भूत शुद्धि गाजियाबाद 10 फरवरी 9650092109
जयपुर 20 फरवरी 9632742300
भोपाल 24 फरवरी 7770906177
भस्त्रिका पूर्वी दिल्ली 3 फरवरी 7011164690
गाजियाबाद 10 फरवरी 9650092109
सूर्य क्रिया गाजियाबाद 7 -10 फरवरी 9650092109
भोपाल 22 -24 फरवरी 7770906177
योगासन गाजियाबाद 6 -10 फरवरी 9650092109

''योग अपने भीतर आनं द अं गमर्दन गाजियाबाद 6 - 10 फरवरी 9650092109


का रसायन पैदा करने का भोपाल 21 - 25 फरवरी 7770906177
एक तरीका है । एक बार जब 21 दिन हठ योग जयपुर 1 - 21 फरवरी 9632742300
आपका स्वभाव ही आनं दमय
अं ग्रेजी कार्यक्रम
हो जाता है , फिर आप बाहरी
परिस्थितियों को सहज ढंग से दिल्ली
सं भाल सकते हैं ।'' इनर इन्जिनीयरिंग - 4 दिन साउथ दिल्ली 7 - 10 फरवरी 9811337782
- सद्‌गुरु भूत शुद्धि पूर्वी दिल्ली 3 फरवरी 7011164690
मुं बई
भूत शुद्धि जुहू 10 फरवरी 9920019156
सूर्य क्रिया 9 - 10 फरवरी 9821020223
सूर्य क्रिया 23 - 24 फरवरी 9821020223
अं गमर्दन 4 - 8 फरवरी 9820810458
अं गमर्दन 24 - 28 फरवरी 9820810458
योगासन 3 - 8 फरवरी 9892690121
पुणे
इनर इन्जिनीयरिंग - 7 दिन 6 - 12 फरवरी 9765400390
ईशा योग केंद्र , कोयम्बतूर
समयमा 8 मार्च, 2019 15 मार्च, 2019

58 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com


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http://isha.sadhguru.org/5-min-practices/
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आश्रम में पोंगल का भव्य आयोजन

16 जनवरी, ईशा योग केंद्र, अदियोगी के प्रां गण में


तमिलनाडू पर्यटन विभाग, ट्रे वल एजेंट एसोसिएशन,
और तमिलनाडु ट्रे वल मार्ट ने संयुक्त रुप से पोंगल का शुभ त्यौहार
बहुत धूम-धाम से मनाया। सद् ‌गुरु की उपस्थिति में सां स्कृ तिक
कार्यक्रम व गौ-पूजा ने वातावरण को उत्साह और उल्लास से भर
दिया।

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isha.sadhguru.org ईशा लहर | फरवरी 2019 61
नव वर्ष पर सद्‌गरु
ु दर्शन
1 जनवरी, नए साल के अवसर पर सद् ‌गुरु दर्शन का यू.एस. आश्रम, टे नेसी, से सीधा प्रसारण किया गया।

सद्‌गुरु को लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड


25 दिसम्बर 2018, पुणे, महाराष्ट्र राज्य मराठी पत्रकार
संघ ने सद् ‌गुरु को राष्ट्रव्यापी आन्दोलन ‘नदी अभियान’
लिए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया। यह अवार्ड
केन्द्रीय मंत्री श्री नितिन गडकरी द्वारा प्रदान किया गया।

62 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com


हठ योग शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम समापन समारोह
22 दिसम्बर 2018, ईशा योग केंद्र, ईशा हठ योग शिक्षक
प्रशिक्षण कार्यक्रम में शिक्षकों के 7 वें बैच का समापन
समारोह आयोजित हुआ। 163 शिक्षकों का यह ग्रूप 21-सप्ताह
के कठिन प्रशिक्षण से गुजरा है , और अब इस सं भावना को दुनिया
को भेंट करने के लिए तैयार है ।

ईशा योग केंद्र में यन्त्र समारोह


22 दिसम्बर 2018, ईशा योग केंद्र, यन्त्र समारोह में दे श
विदे श के 411 प्रतिभागियों ने भाग लिया । स्पं दा
हॉल में आयोजित समारोह में सद् ‌गुरु ने सभी प्रतिभागियों और
स्वयं सेवकों को आशीर्वाद दिया।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | फरवरी 2019 63


सॉफ्ट पॉवर कां फ्रेंस में सद्‌गुरु
17 -19 दिसम्बर 2018, नई दिल्ली, सद् ‌गुरु को इंडिया
फाउंडे शन द्वारा आयोजित सॉफ्ट पॉवर कांफ्रेंस में
आमंत्रित किया गया, जहाँ ‘इन कन्वर्सेशन विद द मिस्टिक’ में
सद् ‌गुरु और सुभाष काक, जो ओक्लाहोमा स्टेट यूनिवर्सिटी,
यू.एस.ए, में प्रोफेसर हैं , के बीच सं वाद हुआ।

उद्योग परिसं घ और नदी अभियान बोर्ड की मीटिंग


23 दिसम्बर 2018, नई दिल्ली, नदी अभियान के बोर्ड
मेम्बरों ने भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के वरिष्ठ
अधिकारियों से मुलाकात की । नदियों को बचाने और भारत को
एक स्थायी और प्रगतिशील राष्ट्र बनाने के लिए अगले कदमों पर
इस मीटिंग में चर्चा की गई।

64 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com


अर्नब गोस्वामी और डे विड फ्राली के साथ सद्‌गुरु
18 दिसम्बर 2018, मुंबई, अर्नब गोस्वामी और डॉक्टर
डे विड फ्राली ने सदगुरु के साथ ‘विंग्स टू सर्ज’ नामक
चर्चा में बातचीत की। यह बातचीत रिपब्लिक समिट 2018 का
एक हिस्सा थी।

नदी-वरों द्वारा राष्ट्रीय युवा दिवस का आयोजन


7 -12 जनवरी, ईशा योग केंद्र, राष्ट्रीय युवा दिवस के
अवसर पर नदी-वीरों द्वारा इस पूरे हफ्ते के दौरान विशेष
कार्यक्रमों का आयोजन किया गया, जिनमें खेल-कूद, विविध
प्रतियोगिताएं , मैराथन व नाटक इत्यादि शामिल थे।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | फरवरी 2019 65


काशी के पुजारियों द्वारा सप्तऋषि आरती
26 दिसम्बर 2018, ईशा योग केंद्र, अगस्त्य जयंती के
अवसर पर काशी से आमंत्रित सात पुजारियों द्वारा
आदियोगी के सामने सप्तऋषि आरती की गयी। इस आरती में
आश्रम वासियों के साथ कई दूसरे शहरों व गां वों से आए सैकड़ ों
लोगों ने हिस्सा लिया।

66 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com


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68 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com
RNI No – Delhi N/2012/46538, Postal registration No-DL-SW-1/4172/13-15
Date of publishing - 1st x posted on 3rd x 4th of every month. Posted at - ND PSO

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