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मं दिरों की भला
जरूरत क्या है ?
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2 ईशा लहर | फरवरी 2019 ishalahar.com
जीवन सूत्र
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मौन क्रांति ईशार्पण
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F-y, ÎêâÚUè ×¢çÁÜ, ÕæÜæÁè ¥ÂæÅüU×ð´ÅU खुल गया एक नया आकाश 46 सं पादकीय 06
y/{ ÚUæÁæÕÜ SÅþUèÅU ÅUèÙ»ÚU पोंगल महोत्सव का भव्य आयोजन 60 आपकी बात 07
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ȤæðÙ Ñ ®yy-yz®vvvx| नव वर्ष पर सद् गुरु दर्शन 62 भेंट के लिए क्या है श्रेष्ठ उपहार? 30
सद् गुरु को लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड 62 रिश्ता बुद्धि और आनं द का 32
âÎSØÌæ ¥æñÚU çß™ææÂÙ ·ð¤ çÜ° â¢Â·ü ·¤Úð´UÑ हठ योग शिक्षक प्रशिक्षण का समापन समारोह 63 ईशा लहर प्रतियोगिता 44
ç´·¤Ü +~v-~yywv-w{®®®
×ÙæðãUÚU +~v-~yywv-~x|x{ उद्योग परिसं घ और नदी अभियान बोर्ड की मीटिंग 64 फेसबुक से 45
RNI No.: Delhi N/2012/46538
सप्तऋषि आरती 66 अनाहत - इसमें है सातों चक्रों का गुण 48
© copyright reserved: Isha Foundation काले चावल का मीठा दलिया 50
एक आसान तरीक ़ ा 52
ईशा योग कार्यक्रम 54
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27 ईशामृतम
14 कैसे लें भोजन का असली आनं द?
16 क्या खाना है - शरीर से पूछें, मन से नहीं
18 योग विज्ञान में भोजन के प्रकार
20 क्या खाएं से ज्यादा महत्वपूर्ण है कैसे खाएं
24 चं द्र-ग्रहण के दौरान भोजन क्यों न करें?
26 खान-पान के सात सूत्र
28 रसोई वैद्य, चमत्कारी इलाज
21
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कु छ दशक पहले तक भोजन के प्रति इं सान का नजरिया काफी हद तक स्थानीय सं स्कृति, परंपराओ ं
और जलवायु के प्रभाव से निर्धारित होता था। तब स्थानीय पैदावार ही वहाँ के लोगों का सहज आहार
होती थी, पर अब हम ऐसे युग में आ गए हैं, जहां हमारी पहुं च दुनिया की हर चीज तक है। ऐसे में लोगों को
लग सकता है कि भोजन के बारे में उनकी समझ पहले से बेहतर हो गई है। मगर दुर्भाग्यवश यह सच नहीं
है। सच्चाई यह है कि सोशल मीडिया के जरिए हमारे सामने लगातार आने वाले अधूरे शोधों की जानकारियों
ने हमें असमं जस की स्थिति में खड़ ा कर दिया है। एक दिन किसी चीज को ‘फ ़ ायदे मंद’ बताया जाता है,
अगले ही दिन उसे ‘खतरनाक’ बताकर खारिज कर दिया जाता है। जिस खाद्य पदार्थ को एक अध्ययन में
पौष्टिक और गुणकारी बताया जाता है, दूसरे अध्ययन में उसे कैंसर पैदा करने वाला सिद्ध कर दिया जाता है।
तो ऐसे समय में आखिरकार हमारे शरीर के लिए सही आहार क्या है? अच्छे भोजन और बुरे भोजन में अं तर
कैसे करें?
आपने दे खा होगा कि कोई भी पशु सिर्फ़ अपने आहार को सूं घ कर जान जाता है कि यह उसके खाने योग्य
है या नहीं। उसे न तो उसके माता-पिता इसकी शिक्षा दे ते हैं, और न ही वह इस सं बं ध में किसी से परामर्श
करता है। प्रकृति ने हर जीव को यह क्षमता दी है कि वह सहजता से अपने आहार का चयन कर सके।
फिर मानव अपने आहार के मामले में इतना भ्रमित क्यों है? इसकी वजह है कि वह अपने मन के धरातल
पर इतना अधिक सक्रिय है, अपनी भावनाओ ं में इतना अधिक खोया है, अपने विचारों को इतना अधिक
महत्वपूर्ण समझने लगा है कि शरीर की बात वह सुन ही नहीं पा रहा है।
भोजन से जुड़े सवालों का जवाब आपको कहीं बाहर नहीं खोजना है, न ही किसी विशेषज्ञ से पूछना है।
क्योंकि इन सबका जवाब आपके शरीर के पास ही है। सद् गुरु कहते हैं कि ‘बात जब भोजन की हो, तो
किसी और से मत पूछिए। आपको अपने शरीर से ही पूछनी और उसी की सुननी चाहिए। आपको वह खाना
चाहिए, जिसे खाकर आपका शरीर खुश होता है।’
योग परंपरा में, भोजन को जीव विज्ञान और रसायन विज्ञान से परे दे खा गया है। भोजन एक जीवित चीज
होती है, जिसका अपना एक गुण और प्राण होता है। खाए जाने पर इस भोजन के गुण हमारे शरीर और मन
के गुणों को प्रभावित करते हैं। अगर हम भोजन और शरीर के बीच के सूक्ष्म सं बं ध के प्रति जागरूकता पैदा
करें, तो हम सहजता से यह जान जाएं गे कि हमें क्या और कितना खाना चाहिए। इस जागरूकता से भोजन
करना, सामं जस्य व मधुरता पैदा करने की एक खूबसूरत प्रक्रिया में रूपां तरित हो सकता है। आपके भोजन
का वक्त सिर्फ खाना खाने के लिए ही नहीं होता, बल्कि इसको अपने भीतर जीवन के स्रोत को छू ने की एक
सं भावना के रूप में दे खा जाता है।
हमने इस अं क में भोजन से जुड़े अनेक पहलुओ ं को छू ने की कोशिश की है। भोजन के ज़रिए आप अपने
जीवन के स्रोत तक पहुँ च पाएँ , इसी कामना के साथ हम भेंट करते हैं यह अं क...।
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आपकी बात ÁÙßÚUè w®v~ | ×êËØ `z®
ऐसा माना जाता है कि परिवार और अध्यात्म की कभी बनती नहीं। अगर कोई पारिवारिक व्यवस्था में है तो
उसे अध्यात्म से कोसों दूर रहने की हिदायत भी दे दी जाती है। पारिवारिक जीवन में धार्मिक होना तो पूरी
तरह स्वीकृत है पर अध्यात्म का नाम लेना भी वर्जित माना जाता है। यह माना जाता है कि अध्यात्म का अर्थ
सं सार की सब मोह माया से दूर, घर और परिवारजनों के बन्धनों से परे रहना है। अध्यात्म और परिवार को दो
समानां तर रेखाओ ं की तरह दे खा जाता रहा है जो साथ चल तो सकती हैं पर इन दोनों का मेल सं भव नहीं।
ईशा लहर के जनवरी अं क में परिवार और अध्यात्म की इस कशमकश को सद् गुरु के नजरिए से दे खने का
मौका था। अध्यात्म में जीवन समर्पित करके सां सारिक जीवन को छोड़ कर जाने वाले विरले होते हैं। पर यदि
हर एक मनुष्य में खुद को भीतर से आनं दित बनाए रखने की एक तकनीक हो तो क्या यह एक बेहद जरुरी
/SadhguruHindi
शिक्षा या क्षमता से लैस करना नहीं होगा? अध्यात्म कोई बाहरी दिखावा नहीं बल्कि एक आतं रिक अवस्था
है। अगर कोई व्यक्ति अपने मूल स्वभाव से ही प्रेममय और आनं दित रहे तो क्या यह उसके पारिवारिक जीवन
में सहायता नहीं करेगा? - शिखा विश्वकर्मा, सतना like us on facebook
facebook.com
़ रूरत है ऐसे विचारों को वाइरल करने की
ज /SadhguruHindi
जब मैं कॉलेज में पढ़ ता था, उन दिनों मेरे हाथ कुछ ऐसी किताबें लगीं जिन्होंने मेरे भीतर एक आध्यात्मिक Follow us on Twitter
कौतुहल जगा दिया था। मैं फिर एक गुरु की तलाश में जहाँ -तहाँ सतसं ग में जाने लगा। उन दिनों की मेरी twitter.com/IshaHindi
जिज्ञासा और आध्यात्मिक रुझान दे खकर मेरे घरवाले घबरा से गए थे। तब मेरी माँ के आँ सओ ़ दम रोक
ु ं ने मेरे क
दिए थे। दरअसल ग़लती उनकी भी नहीं थी, और कदाचित मेरी भी नहीं थी, क्योंकि बड़ े ही व्यापक पैमाने पर editor@ishalahar.com
हमारे समाज में यह धारणा बनी हुई है कि अध्यात्म और परिवार एक दूसरे के विरोधी हैं। अध्यात्म का मतलब
यही समझा जाता रहा है कि आपको अपने घर-परिवार त्यागने ही पड़ ेंगे। आज मुझे लगता है कि इस सोच ने
समाज का बहुत बड़ ा नुक ़ सान किया है।
़ ब
ईशा लहर का जनवरी 2019 अं क ऐसी कितनी ही भ्रां तियों को तोड़ ने वाला था। सद् गुरु ने बड़ ी ही ख ू सूरती
से समझा दिया कि परिवार आपके जीवन की बाहरी व्यवस्था है, जबकि अध्यात्म एक भीतरी व्यवस्था है।
अध्यात्म आपके पारिवारिक जीवन में बाधक नहीं, बल्कि सहायक ही है। आज ज़रूरत है कि ऐसे विचारों को
समाज में वाइरल किया जाए ताकि अध्यात्म के प्रति गृहस्थों के मन में घर की हुई दूरी मिट सके।
- मयं क, झाँ सी
सिर्फ एक मन-रहित,
विचार-शून्य परम प्रज्ञा ही
रच सकती है ,
सरल और अतुल्य का
ये अद्भुत मेल।
यह बोध बना दे ता है मुझे
एक दास
एक जीवन
जिसमें नहीं है कोई व्यक्तित्व,
न ही हैं जिसकी कोई अपनी चाहतें।
एक जीवन जिस पर है
असीम इच्छा का पूरा अधिकार।
सी इं सान की कार्मिक सं रचना बुनियादी हुए, आप जो सबसे बेहतर कर सकते हों करते रहें,
तौर पर चक्रीय होती है। यह चक्र केवल खुद को खुला रखें और आध्यात्मिक प्रक्रिया के
एक जीवनकाल से दूसरे जीवनकाल तक का ही लिए खुद को हाजिर रखें। ऐसे में जीवन के अं तिम
नहीं होता। अगर आप चीजों को गौर से दे ख सकते पलों में हम सुनिश्चित करेंगे कि आपको लक्ष्य मिल
हैं, तो आप पाएं गे कि घटनाएं आमतौर पर सवा जाए। एक और तरीका है कि आप सब कुछ बस
बारह या साढ़ े बारह साल के चक्र में दोहराती हैं। अभी चाहते हैं - आप चीजों को अभी जानना चाहते
अगर आप और ज्यादा गौर से दे खग ें े तो पाएं गे हैं। ऐसे में आपको इस बात को लेकर चिंता नहीं
कि एक साल के समय में ही एक तरह की चीजें होनी चाहिए कि आपके आस-पास क्या हो रहा है,
बार-बार हो रही हैं। एक दिन के भीतर भी वही चक्र क्योंकि तब बहुत सारी चीजें ऐसी होंगी, जिन्हें कोई
अपने आपको कई बार दोहरा रहा होता है। वास्तव पसं द नहीं करेगा। समाज उन्हें स्वीकार नहीं करेगा,
में कर्मों का यह चक्र हर 40 मिनट के बाद सिर यहां तक कि आपका परिवार भी उन्हें स्वीकार नहीं
उठाता है। ऐसे में हर 40 मिनट में आपके पास इस करेगा। क्योंकि वो आपको एक खास तरह के इं सान
चक्र को तोड़ ने का मौका होता है। इन सब चीजों के रूप में ही जानते हैं। अगर आप दूसरी तरह के
पर गौर करना बड़ ा महत्वपूर्ण है। अगर आप दे ख इं सान हो गए तो वे आपको स्वीकार नहीं
पाएं कि आप हर 40 मिनट के बाद उन्हीं चीजों कर पाएं गे।
को दोहरा रहे हैं तो आपको दो दिन में इस बात का
अहसास हो जाएगा कि आपका जीवन मूर्खताओ ं से मान लीजिए आपने किसी से शादी की है। आप
भरे चक्रों का दोहराव भर है। अगर आप इस चक्र कैसे हैं, यह दे खकर और उसे स्वीकार करके ही
को 12 साल के अं तराल में दे खग ें े तो यह महसूस उन्होंने आपसे शादी की। अब अगर आप वैसे न रहें,
करने में आपको 24 से 48 साल का समय लग कुछ और हो जाएं , तो उनके लिए अजीब हो जाएं गे,
जाएगा कि यह सब ठीक नहीं हो रहा है। ठीक इसी भले ही आप पहले से बेहतर इं सान बने हों। अगर
तरह अगर आप पूरे जीवन काल में सिर्फ एक ही उनके भीतर इतनी समझ नहीं है कि वे आपके भीतर
बार इस चक्र को दे ख पाए, तो इसकी निरर्थकता खिलने वाली सं भावनाओ ं को दे ख सकें तो वे आपके
को महसूस करने में आपको कुछ और जीवनकाल साथ नहीं रह सकते। अगर आपके जीवनसाथी यह
लग जाएं गे। तो हर 40 मिनट के बाद आपके पास सोच पाएं कि ‘मेरा साथी काफी आगे निकल चुका
यह मौका है कि आप इस चक्र के प्रति जागरूक हो है, किसी ऐसे इं सान के साथ रहना शानदार बात है
जाएं और इसे तोड़ दें । जो आध्यात्मिक राह पर आगे बढ़ रहा है’ - तब तो
ठीक है। लेकिन इतनी समझ आने पर सं बं धों के
आध्यात्मिक प्रक्रिया को अपनाने के तीन तरीके हैं। आयाम बदल जाते हैं, ये पहले जैसे नहीं रह सकते।
एक तरीका है कि धीरे-धीरे सही चीजें करते हुए वह सं बं ध पति-पत्नी का हो या मां -बेटे का या
कुछ जीवनकालों में आप लक्ष्य हासिल करें। दूसरा फिर इस तरह का कोई भी और सं बं ध हो, वह वैसा
तरीका यह है कि आप अपने मौजूदा हालात में रहते नहीं रह जाएगा। एक तरह से दे खें तो जिस चीज
़ रूरत क्या है ?
मं दिरों की भला ज
शुरू में मं दिर, उस स्थान पर आने वाले लोगों में ऊर्जा का सं चार करने के लिए बनाए
गए। लेकिन कालां तर में सं भव है कि लोग ऊर्जा प्राप्त करने की विधि भूल गए हों या
फिर मं दिर अपनी शक्ति खो चु के हों।
क्या खाना है
शरीर से पूछें, मन से नहीं
अगर आप अपने शरीर की सु नें तो वह आपको साफ-साफ बता दे गा कि उसे किस तरह का
भोजन पसं द है , लेकिन अभी आप अपने मन की सु न रहे हैं । आपका मन हर वक्त आपसे
झूठ बोलता रहता है ।
अपने शरीर को खुश नहीं रखेंगे तो आपका जीवन 2. प्याज: इसे खाना तो दूर, बस केवल यह दे ख
जीते-जी नर्क के समान हो जाएगा। इसलिए वैसा ही लीजिए कि आपका शरीर इसके लिए हां कह रहा है
भोजन कीजिए जो आपको प्राण-ऊर्जा दे । या ना। हमारा शरीर प्याज के लिए जरूर मना करता
है, वह उसे पसं द नहीं करता- आपकी आं खें जलने
भोजन के प्रकार लगती हैं और आं सू बहने लगते हैं।
योग-विज्ञान में भोजन का विभाजन उसके पोषक
गुणों के आधार पर नहीं किया जाता बल्कि उसकी 3. हींग: हींग भी एक नकारात्मक प्राणिक आहार है
प्राण-शक्ति के आधार पर किया जाता है। इन्हें लेकिन आम तौर पर खाने में इसको बहुत थोड़ ा सा
विटामिन, प्रोटीन आदि वर्गों में न बां टकर, तीन इस्तेमाल किया जाता है।
वर्गों में बाँ टा जाता है – सकारात्मक प्राणिक आहार,
नकारात्मक प्राणिक आहार और शून्य प्राणिक 4. बैंगन: सब्जियों में सिर्फ बैंगन ही एक ऐसी
आहार। सकारात्मक प्राणिक आहार वह है जिसे सब्जी है जिसमें सचमुच थोड़ ा जहर होता है। बैंगन
खाने से हमारे शरीर की प्राण-ऊर्जा बढ जाती है, में एक ऐसा एं जाइम होता है जिसमें मस्तिष्क के
जबकि नकारात्मक प्राणिक आहार लेने से हमारी हाइपोथैलमस को नुकसान पहुंचाने की क्षमता
प्राण-शून्य खाद्य पदार्थों प्राण-ऊर्जा का क्षय होता है। दरअसल नकारात्मक होती है। खास तौर से बच्चों को बैंगन नहीं खिलाना
के सेवन से आपको नींद प्राणिक आहार शरीर के स्नायु-तं त्रिकाओ ं को चाहिए।
अधिक आती है । इसलिए उत्जते ित करके प्राण-ऊर्जा को बाहर निकाल दे ते हैं।
शून्य प्राणिक आहार से न तो ऊर्जा मिलती है और 5. मिर्ची: आप एक प्रयोग कर के दे खिए, 30 दिन
आम तौर पर, हम छात्रों और
न ही कम होती है। हम इनको सिर्फ स्वाद और भूख तक मिर्च मत खाइए, उसके बाद एक दिन थोड़ ी सी
साधकों को इनका सेवन मिटाने के लिए खाते हैं। मिर्च खाकर दे खिए, आपको दस्त हो जाएगा। शरीर
न करने की सलाह दे ते हैं । इस मिर्च को बाहर फेंक देना चाहता है, वह उसको
छात्रों के लिए एक किताब नकारात्मक प्राणिक आहार जहर जैसा मानता है।
1. लहसुन: सही ढं ग से इस्तेमाल करने पर लहसुन
ही सुलाने के लिये काफी
निश्चित रूप से एक बहुत शक्तिशाली दवा है। लेकिन 6. कॉफी या चाय: ये तं त्रिकाओ ं को उत्जते ित करने
होती है । उसे खोलते ही वे अगर आप इसे हर दिन खाने में डालें तो आपको वाले बेहद शक्तिशाली पदार्थ हैं। ऐसे उत्ज
ते क पदार्थों
सो जाते हैं । बड़ ा नुकसान पहुंचा सकता है। अगर आप लहसुन का लगातार लं बे समय तक सेवन आपकी शक्ति
का तीस मि.ली. रस एक ही बार में पी लें तो पेट की और स्फू र्ति नष्ट कर दे ता है। खासकर आपका बुढ़ापा
शून्य प्राणिक आहार भावनात्मक अस्थिरता के पीछे भी आपके खाने का हाथ होता है।
कुछ ऐसे खाद्य पदार्थ होते हैं जो प्राण-शून्य होते हैं, जैसे आलू और अगर आप ऐसा भोजन करें जिसमें नकरात्मक प्राणिक आहार न हों
टमाटर। इन पदार्थों को स्वस्थ इं सान खा सकते हैं, पर उन लोगों को तो आपको भावनात्मक सं तुलन बनाए रखने में आसानी होगी। इन
इनका परहेज करना चाहिए जिन्हें जोड़ ों का दर्द या सूजन है। इनसे कुछ नकारात्मक या शून्य प्राणिक पदार्थों को छोड़कर आप बाकी सारे
जोड़ ों की समस्याएँ जैसे - गठिया की स्थिति बिगड़ सकती है। प्राण- खाद्य-पदार्थ खा सकते हैं। हर प्रकार की सब्जियां , फल, मेव,े अं कुरित
शून्य खाद्य पदार्थों के सेवन से आपको नींद अधिक आती है। इसलिए बीज आदि। लेकिन होता यह है कि मना की गई 6-7 चीजें ही आपको
आम तौर पर, हम छात्रों और साधकों को इनका सेवन न करने की अपनी तरफ खींचती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आपको इन
सलाह दे ते हैं। छात्रों के लिए एक किताब ही सुलाने के लिये काफी चीजों की आसानी से लत लग जाती है। आप तीन दिन तक लगातार
होती है। उसे खोलते ही वे सो जाते हैं। जो साधक अपनी आं खें बं द कॉफी पी लें तो चौथे दिन आपको सोचने की जरूरत ही नहीं पड़ ती।
करके पूरी तरह सजग बैठना चाहते हैं, उनके लिए नींद उनकी सबसे कॉफी खुद-ब-खुद आपको अपनी तरफ खींचेगी और पीने को मजबूर
बड़ ी दुश्मन है। तो ऐसे लोगों को आलू और टमाटर का सेवन कम कर करेगी। अच्छे काम करने के लिए आपको जागरूक होकर कोशिश
देना चाहिए। करनी होती है। लेकिन बुरे काम आप तक खुद पहुंच जाते हैं। जिंदगी
का यही दस्तूर है। फसल उगाने के लिए आपको कितनी मेहनत करनी
सकारात्मक प्राणिक आहार पड़ ती है, पर खर-पतवार बिना किसी मेहनत के अपने-आप पनपने
प्राण-शून्य और नकारत्मक प्राणिक पदार्थों को छोड़कर सभी सब्जियां , और फूलने-फलने लगते हैं, इसके लिए आपको कुछ नहीं करना
सूखे मेव,े अं कुर, फल इत्यादि सकारात्मक प्राण ऊर्जा वाले खाद्य पदार्थ पड़ ता। जीवन में सकारात्मक कार्य करने के लिए आपको जागरूक
हैं। कुछ ऐसे सकारात्मक प्राणिक खाद्य पदार्थ हैं जिनका सेवन कुछ होकर मेहनत करनी होगी।
ख़ ास बीमारियों से ग्रसित लोगों को नहीं करना चाहिए। अगर आपको
अमेरिकी फिजिशियन मार्क हाइमन ने, जो अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और उनकी
पत्नी हिलेरी क्लिंटन के चिकित्सा सलाहकार और न्यूयार्क टाइम्स के लेखक रहे हैं, सद् गुरु से
बातचीत की थी। पेश है इस चर्चा के सं पादित अं श:
धविश्वास का मतलब है - किसी विषय के हैं। आज लोग ऐसा खाना खा रहे हैं, जो कई दिन
बारे में बिना राय या बोध के किसी नतीजे पर पहले, हफ्तों पहले या फिर महीनों पहले पका था।
पहुँ चना। जीवन की यही प्रकृति है। आपका बोध अगर उन्हें ताजे खाने और फ्रिज में रखे पुराने खाने
व अनुभव इस पर निर्भर करते हैं कि आप कितने में अं तर महसूस नहीं होता तो भला आप क्या कह
सं वेदनशील हैं। आपका बोध या ग्रहणशीलता सकते हैं। लेकिन इतना तो तय है कि उनके भीतर
इस बात पर निर्भर नहीं करती कि आपने कितनी उस तरह की सं वेदनशीलता नहीं है, जिसके बारे में
जानकारी इकट्ठी कर ली है। एक योगी के तौर पर, मैं बात कर रहा हूं । इसी से इं सान में जड़ता आती
जहां तक सं भव होगा, मैं डेढ़ घं टे से ज्यादा पहले है। हो सकता है कि वे दिन में आठ से दस घं टे सोते
पकाए हुए भोजन को नहीं खाऊंगा। हम आश्रम में हों, मेरे लिए यह मौत के समान है। दस घं टे की
भी क्यों एक खास तरीके से ही भोजन परोसते हैं? नींद का मतलब है कि हर दिन के लगभग चालीस
उसकी वजह सिर्फ इतनी है कि हम उम्मीद कर रहे प्रतिशत हिस्से की मौत। तो अगर आप इसी तरह
हैं कि लोग साधक से धीरे-धीरे योगी बनें। उन्हें जीना चाहते हैं, तो आप जो चाहें, खाएं ।
सिर्फ बदन को मोड़ ना, झुकाना नहीं है, बल्कि उस
सृष्टि के साथ अपने सं योग को भी महसूस करना न तो मैं कोई वैज्ञानिक हूं और न ही होना चाहता
मैं कह रहा हूं कि ग्रहण के है। ऐसा होने के लिए शरीर को सं वेदनशील होना हूं । न तो मैं कोई किताब पढ़ रहा हूं और न ही मैं
समय खाना मत बनाइए चाहिए और उसमें जड़ता का स्तर कम से कम होना किसी चीज को लेकर कोई शोध कर रहा हूं , और
चाहिए। अगर आप ऐसा खाना खाते हैं, जो किसी न ही मेरे घर के पिछवाड़ े में कोई प्रयोगशाला है। मैं
और न ही खाइए। उसके
न किसी रूप में खराब हुआ हो, हो सकता है कि यह सिर्फ अपनी इस मानवीय मशीन की प्रणाली पर गौर
पहले या उसके बाद भोजन सड़ ा हुआ न हो तो यह आपको मारेगा नहीं, सिर्फ करता हूं । मैं इसे खास तरीके से रखता हूं , जिसके
कीजिए। यह जीवन का इतना होगा कि यह आपके बोध को कम कर दे गा। लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। इतना ही नहीं,
विज्ञान है , इंटरनेट विज्ञान प्रकृति में जो कुछ भी घटित होता है, मैं नजर रखता
मेरा अनुभव यह कहता है कि बोध का कम होना हूं कि उसकी वजह से मेरे साथ क्या हो रहा है और
नहीं। यह एक सद् गुरु का
मृत्यु जैसा है। कम से कम एक योगी के लिए मैं इसी को लेकर बात कर रहा था। पुष्टि के लिए मैं
कहना है , जो जीवन को तो मृत्यु ही है। हो सकता है कि एक आम इं सान अपने आसपास के जीवन पर भी गौर करता हूं । हर
भीतर से जानता है । मैं उन जिंदा रह जाए, लेकिन एक योगी अगर अपनी कीड़ ा, मकोड़ ा, पक्षी, जं तु व पेड़ यही चीज कर रहे
लोगों के लिए हूं, जिनकी सं वेदनशीलता व बोध खो दे गा तो वह मर जाएगा। हैं। अगर आप यही बात कई सालों बाद, कुछ खरब
अगर अपनी सं वदेनशीलता की मौत आपके लिए डॉलर खर्च करके, शोध के बाद जानना चाहते हैं तो
दिलचस्पी जीवन में है ।
कोई मायने नहीं रखती तो आप जो चाहें, खा सकते यह आपके ऊपर है।
हैं। आप बेकार भोजन खाकर भी जिंदा रह सकते
लहरों पर बह रहा था
कर्ण और उसका भाग्य
कंु ती ने बच्चे को एक लकड़ ी के डिब्बे में रख दिया, और बिना उस बच्चे के भविष्य के
बारे में सोचे , उसे नदी में बहा दिया। उसे ऐसा करने में थोड़ ी हिचकिचाहट हुई, पर वो
कोई भी कार्य पक्के उद्दे श्य से करती थी।
ब
इससे ख
चपन में कंु ती ने एक बार दुर्वासा ऋषि का
बहुत अच्छे से अतिथि सत्कार किया था।
़ शु होकर, दुर्वासा ने कंु ती को एक मन्त्र
सोने के कंु डल और उसके छाती पर एक प्राकृतिक
कवच था। वह अद्भुत दिखता था। राधा ने बहुत प्रेम
से उसका पालन-पोषण किया। अधिरथ खुद एक
दिया, जिससे वो किसी भी देवता को बुला सकती सारथी था, इसलिए वह कर्ण को भी रथ चलाना
थी। एक दिन कंु ती के मन में उस मन्त्र को आजमाने सिखाना चाहता था। पर कर्ण तो धनुर्विद्या सीखने
का ख्याल आया। वह बाहर निकली तो दे खा कि के लिए बेचन ै था। उन दिनों, सिर्फ क्षत्रियों को युद्ध
सूर्य अपनी पूरी भव्यता में चमक रहे थे। उनकी कला की शिक्षा पाने का अधिकार था। ये राजा की
भव्यता दे खकर वह बोल पड़ ी – ‘में चाहती हूं कि ताकत को सुरक्षित रखने का एक सरल तरीका था।
सूर्य देव आ जाएं ।’ सूर्य देव आए और कंु ती गर्भवती क्योंकि अगर हर कोई शस्त्रों का इस्तेमाल करना
हो गयी, और एक बालक का जन्म हुआ। वो सिर्फ सीख जाता, तो फिर सभी शस्त्रों का इस्तेमाल करने
चौदह साल की अविवाहित कन्या थी। उसे समझ लगते। कर्ण क्षत्रिय नहीं था, इसलिए उसे किसी भी
नहीं आया कि ऐसे में सामाजिक हालात से कैसे शिक्षक ने स्वीकार नहीं किया।
निपटा जाएगा। उसने बच्चे को एक लकड़ ी के
डिब्बे में रख दिया, और बिना उस बच्चे के भविष्य द्रोण को अपने शस्त्र देने से पहले, परशुराम ने ये
अधिरथ खुद एक सारथी के बारे में सोचे, उसे नदी में बहा दिया। उसे ऐसा शर्त रखी थी कि वो कभी भी किसी क्षत्रिय को इनके
था, इसलिए वह कर्ण को करने में थोड़ ी हिचकिचाहट हुई, पर वो कोई भी बारे में कुछ नहीं सिखाएं गे। द्रोण ने वचन तो दिया,
कार्य पक्के उद्दे श्य से करती थी। धृतराष्ट्र के महल पर वो सीधे हस्तिनापुर चले गए और क्षत्रियों को
भी रथ चलाना सिखाना
में काम करने वाला सारथी, अधिरथ, उस समय शस्त्र सिखाने के लिए राजदरबार में नौकरी कर ली।
चाहता था। पर कर्ण तो नदी के किनारे पर ही मौजूद था। उसकी नजर उस वे ऐसे ही थे – एक महत्वाकां क्षी व्यक्ति। उनमें रत्ती
धनुर्विद्या सीखने के लिए सुं दर डिब्बे पर पड़ ी तो उसने उसे उठा लिया। उसमें भर भी कोई नैतिक सं कोच नहीं था। वो एक महान
बेचैन था। उन दिनों, सिर्फ एक नन्हें से बच्चे को दे खकर वो आनं दित हो उठा, शिक्षक थे, पर एक चालाक और लालची इं सान भी
क्योंकि उसकी कोई सं तान नहीं थी। वो बच्चे को थे।द्रोण के हस्तिनापुर आने से पहले, पां डवों और
क्षत्रियों को युद्ध कला की
अपनी पत्नी राधा के पास ले गया। दोनों आनं द कौरवों को कृपाचार्य युद्ध-कौशल सिखा रहे थे। एक
शिक्षा पाने का अधिकार विभोर हो गए। उस डिब्बे की सुं दरता को दे खकर वे दिन सभी लड़ के गेंद से खेल रहे थे। उन दिनों गेंदें
था। ये राजा की ताकत समझ गए कि ये बच्चा किसी साधारण परिवार का रबड़ , चमड़ े या प्लास्टिक की नहीं बनी होतीं थीं।
को सुरक्षित रखने का एक नहीं हो सकता। वे ज्यादातर घास-फूस को अच्छे से बां धकर बनाई
जाती थीं। गेंद गलती से एक कुएं में गिर गयी।
सरल तरीका था।
उस बच्चे को बाद में कर्ण नाम से जाना गया। वह उन्होंने गेंद को कुएं में तैरता दे खा पर किसी को
एक अद्वितीय व्यक्ति था। जन्म से ही उसके कानों में समझ नहीं आ रहा था कि उसे बाहर कैसे निकाला
सद् गुरु की इतनी आभारी थी कि वे मेरे जीवन के बारे में सोचा जिसका कि मैं अं श हूं । किस प्रकार
में आए। विश्वास नहीं हो रहा था कि उनको हम सब निरंतर किसी चीज की खोज में लगे हुए हैं,
जानने के इस थोड़ े-से समय में इतनी जल्दी इतना- किसी चीज को पाने की कोशिश कर रहे हैं, बार-
कुछ बदल चुका है। जब मैं सद् गुरु को सुन रही बार असफल हो रहे हैं और बार-बार कोशिश करते
थी तो वृक्षों पर सरसराती हवा की ध्वनि मेरे कानों जा रहे हैं। मैं यह समझने लगी थी कि यह सारी
में पड़ रही थी। ऊपर नजर दौड़ ाई तो घने बादल ललक स्वाभाविक परम तक पहुं चने की कोशिश
दिखाई पड़ े और लगने लगा कि किसी भी पल करते जीवन की अचेतन अभिव्यक्ति मात्र है। मैं आग
बारिश हो सकती है। की चटपटाती ध्वनि का बारीकी से अनुभव कर रही
थी। मुझे लग रहा था मानो लकड़ ी मेरे भ्रां तिपूर्ण
सद् गुरु ने अपनी बात जारी रखी, ‘मैं जब ‘इनर विचारों की तरह जल रही है। मुझे मालूम था कि मैं
इं जिनियरिंग’ कहता हूं तो मैं आपके अं दर के सचमुच ज्यादा कुछ नहीं समझ पाई हूं । सच कहूं
मूल आनं द को बाहर लाना चाहता हूं , उसको तो जितना अधिक समय मैं सद् गुरु के साथ बिता
अभिव्यक्ति देना चाहता हूं । उसको अभिव्यक्ति रही थी उतना ही मुझे अहसास हो रहा था कि मायने
इसलिए नहीं मिल पाई है, क्योंकि आपके भौतिक रखने वाली किसी भी चीज के बारे में मैं कितना
शरीर, मानसिक शरीर और ऊर्जा शरीर एक सीध कम जानती हूं । मैं समझ पा रही थी कि किस तरह
में अलाइं ड नहीं हो पाए हैं। जब ये तीनों ठीक तरह हममें से बहुतेरे अपने विचारों, मतों, धारणाओ ं और
अपनी शिशु अवस्था में से अलाइं ड हो जाएं गे तो आपके भीतरी आनं द को भावनाओ ं के साथ चिपके रहते हैं क्योंकि जीवन
घटी हर घटना मुझे याद स्वाभाविक रूप से अभिव्यक्ति मिल जाएगी। जब यह और प्रेम के यथार्थ का हमें बोध ही नहीं है। हालां कि
है । तीन से छह महीने की आपकी हरेक कोशिका में घुस जाएगी तब सेक्स, पूरा जीवन मैं स्वयं को सत्य की साधक मानती आई
प्रेम, महत्वाकां क्षा सब निरर्थक हो जाएं गे। आप इन थी लेकिन सच कहूं तो मैं अपने ख ़ दु के अस्तित्व
शैशवावस्था में मेरी दे खी
सबके लिए समर्थ हैं, लेकिन आपका अस्तित्व इन की सरल-से-सरल सच्चाइयों को भी बूझ नहीं पाई
घटनाओ ं और बातचीत को सबसे ऊपर है। आप अभी भी इस सं सार का अं श थी। अपनी असुविधा से मुक्ति पाने की कोशिश में मैं
जब मैं विस्तार से बताता हैं, पर आपको देवत्व ने स्पर्श किया है, जो आपको कुछ ऐसी बातों के बारे में अनेक गलत और निश्चित
था तो मेरी मां चौंक जाया उल्लास की अत्यं त ऊंची अवस्थाओ ं में पहुं चा दे गा। निष्कर्षों के साथ जी रही थी जो मेरे लिए बहुत
यही उल्लास आप खोज रही हैं जो आप धन-दौलत, महत्वपूर्ण होने के बावजूद अभी भी मेरे अनुभव और
करती थी। बचपन में भी
सत्ता, सेक्स, प्रेम और ईश्वर – जो भी आपका साधन समझ के बाहर थे।
मैं वैसा ही सोचता था जैसा हो - के जरिए ढूं ढ़ रही हैं। आप अपने जीवन के
आज सोचता हूं । अनुभव को उसकी चरम-सं भव ऊंचाइयों तक जब मैं जीवन-मृत्यु के अत्यं त गूढ़ आयामों के बारे
पहुं चाने की कोशिश कर रही हैं।’ उनके शब्दों के में सद् गुरु के पैने विश्लेषण के सामने अपने स्वयं के
बाद की खामोशी में मैंने मानवता के विराट समुद्र बोध को रखकर सोचने लगी तो मैं उनसे पूछे बिना
ह म आपके लिए एक ऐसा अवसर लेकर आए हैं जिससे आप ईशा लहर अगले एक वर्ष तक निःशुल्क
प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही आपको मिल सकता है एक आकर्षक इनाम भी। इसके लिए आपको नीचे
दिए गए तीन सवालों के जवाब हमें भेजने हैं। आपको यह भी बता दें कि इन सवालों के जवाब इसी अं क में
छिपे हैं। बस पढ़ि ए, ढूं ढ़ि ए और जीतिए इनाम।
प्रश्न 2) मार्क हाइमन किस अमेरिकी राष्ट्रपति के चिकित्सा सलाहकार रहे हैं?
A) बिल क्लिंटन B) जार्ज बुश C) बारक ओबामा
सही जवाब देने वालों में से दो भाग्यशाली विजेताओ ं को मिलेगी एक वर्ष तक ईशा लहर मुफ्त और सही
जवाब देने वाले पहले दस लोगों का नाम हम अप्रैल 2019 अं क में प्रकाशित करेंगे। इतना ही नहीं अगर
आपने लगातार छः महीनों तक सही जवाब दिया तो आपको मिल सकता है एक आकर्षक इनाम भी।
उत्तर देने के लिए टाइप करें ILP-FEB-19 और फिर स्पेस देकर क्रम से प्रश्न सं ख्या और उसके साथ ही अपने
उत्तर का क्रम टाइप करें। जैसे अगर आपके पहले प्रश्न का उत्तर A दूसरे का B और तीसरे का C है तो आप
टाइप करें ILF-FEB-19-1A 2B 3C और फिर अं त में अपना नाम और शहर का नाम लिखना न भूल,ें और
एस.एम.एस. करें 8005149226 पर या editor@ishalahar.com पर ई-मेल कर दें । उत्तर भेजने की
अं तिम तारीख है 1 मार्च 2019।
दिसं बर 2018 अं क के प्रश्नों के सही उत्तर हैं: 1-B, 2-C, 3-B
सही उत्तर देने वाले पहले दस लोगों के नाम हैं:
विकास मिश्रा, मुं बई सूर्य मिश्रा, भटिंडा बबिता कुमारी, उदयपुर
डा. मनोज चतुर्द वे ी, जयपुर डा. सुनील सिंघल, मुजफ्फरनगर डा. आभा चतुर्द वे ी, जयपुर
आकाश निमावत, राजकोट महिमा मिश्रा, मुं बई
दीपक धवले, भोपाल नीलम पां डे , मुं बई
SadhguruHindi
सामग्री:
विधि:
चावल को धो लें और दो कप पानी में पूरी रात भिगोकर रखें। सुबह चावल
को छानकर निकाल लें और एक पैन में तीन कप ताजे पानी के साथ आं च
पर चढ़ ाएं और अच्छे से पका लें। इसी बीच एक छोटे पैन में घी गर्म करें।
इसमें काजू और किशमिश को भूनकर अलग रख लें। अब उबले चावल को
ग्राइं डर में डालकर दरदरा सा पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को एक पैन में डालें,
उसमें दूध, नारियल का दूध और चीनी मिलाएं । हल्की आं च पर इस मिश्रण
को 1 से 2 मिनट तक पकाएं मगर इसमें उबाल न आने दें । अं त में इसमें
इलायची पाउडर और ड्राई फ्रू ट् स मिलाएं और परोसें।
खेल को जीतने का
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एक आसान तरीक
प्रतिद्वं दी कभी आपके लिए अजनबी नहीं होना चाहिए। आपको उसे परिचित बना लेना
चाहिए। वो खुद को जितना जानता है , आपको उसे उससे बेहतर जानना होगा। यह
सबसे जरूरी है ।
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कविता
अँ धेरे को
तलवार से चीरकर फेंकती नहीं है ,
उतार लेती है कंठ में
गरल की तरह,
फिर फूटती है शब्दों की किरणों में ढलकर।
शुक्र है ,
अँ धेरे से अँ धेरे को जाने वाला रास्ता
निर्जन नहीं है ।
- अशोक गुप्ता
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