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सस्ते जहाज का सपना (हास्य नाटक)

Posted by K M Mishra on अक्टूबर 15, 2008

Mera Apna Pushpak Viman

यह हास्य नाटक एक ऐसे इंसान की कहानी है जो चलता साइकिल पर है लेकिन सपने प्राइवेट
हवाई जहाज के दे खता है ।

(घर की छत के ऊपर से हवाई जहाज के उड़ने की आवाज, अखबार पलटने की आवाज।)

गें दा सिंह- अरे शकंु तला सन


ु ती हो । जरा इधर आना ।

शकंु तला – क्या है ? मैं किचन में बिजी हँ । वहीं से बता दीजिये ।

गें दा सिंह- अरे दो मिनट के लिये इधर तो आ जाओ । एक बड़ी बढ़िया खबर छपी है ।

शकंु तला – दे खिये अगर मैं सवेरे सवेरे अखबार पढ़ने ल्रगूंगी तो शिव शंकर को स्कूल जाने में दे र
हो जायेगी और आप भी आफिस लंच के समय ही पहुंचोगे ।

गें दा सिंह- अरे जरा इधर तो आओ । अखबार में ऐसी खबर छपी है कि अगर यह बात सच हो
जाये तो तत्ु हारा बचपन का सपना सच हो जाये ।

शकंु तला – (कमरे में आती है ) दे खिये मेरे बचपन के सपनों की तो आप बात मत ही कीजिये ।
जब से ब्याह कर आयी हँ एक भी सपना आपने सच नही किया, इसलिये अब न तो सपने दे खती
हँ और न ही पुराने सपनों को याद करती हूँ । हाँ एक सपना मैंने बहुत दिन तक दे खा था कि मैं
इंटर पास हो जाऊं । पर इस घर-गह ृ स्थी के चक्कर में मेरा वह सपना भी टूट गया । अब तो
मेरा यह सपना मेरा बेटा शिव शंकर ही पूरा करे गा । आप से तो कोई उम्मीद करना ही बेकार
है ।

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गें दा सिंह- अरे दे वी जी धीरे बोलो । क्यों तुम पड़ोसियों को मेरा बायो-डेटा बताने पर तुली हो ?
बड़ी मश्कि
ु ल से तो तीन बार में किसी तरह इंटर और पांच साल में बी.ए. पास की है । अब क्या
तम्
ु हारे लिये मैं फिर इंटर की परीक्षा में बैठूं ।

शकंु तला – अब जल्दी से अपनी बात बोलिये क्यों गडे मुर्दे उखाड़ रहे हैं । दाल चढ़ा कर आयी हँ
। जल गयी तो शिवू बिना खाये ही चला जायेगा ।

गें दा सिंह – दे खो अखबार में लिखा है कि लातविया के वैज्ञानिक एक टू सीटर हवाई जहाज बना
रहे हैं, जो हल्का और छोटा तो है ही, उसकी कीमत भी मात्र पांच लाख रूपये है ।

शकंु तला – कल से ये पेपर मंगाना बंद । पहली अप्रेल निकले दो महीने हो गये और ये लोग
अप्रेल फूल आज मना रहे हैं । मेरी सब्जी जल रही है । दाल भी जल गई तो शिवू बिना खाना
खाये ही चला जायेगा । आप फ्र् री फंड में बैठे हैं तो आप ही पढ़िये । दस मिनट बाद जब नल
चला जायेगा तब बैठ कर खाली बाल्टी झांकियेगा । मैं चली । (बड़बड़ाते हुये) मुंआ न जाने कैसा
इनका दफ्तर भी है , जो ग्यारह बजे के पहले खुलता भी नहीं । अभी वो ज्ञान चंद भी आ जायेगा
कचहरी जामने के लिये ।

गें दा सिंह – हुंह दसवीं पास । जब भी हवाई जहाज छत के ऊपर से गुजरता है तो आंगन में खड़ी
हो जाती है । बचपन का सपना है कि हवाई जहाज में बैठेंगी । अब जब हवाई जहाज इतना
सस्ता होने जा रहा है तो अखबार बंद कर दो ।

(डोर बेल बजने की आवाज और शकंु तला की किचन से आवाज)

शकंु तला – सुनिये, दरवाजा खोल दीजिये । ज्ञानजी आये होंगें ।

(दरवाजा खल
ु ने की आवाज)

गें दा सिंह- आओ भाई ज्ञान चंद । बिटिया को स्कूल छोड़ आये ।

ज्ञान चंद- हाँ । छोड़ आया । और क्या खबर है अखबार में ?

गें दा सिंह- अमां यार ये डेली धमाका अखबार रोज कोई न कोई धमाका करता रहता है । अब
बताओ भला पांच लाख रूपये में कहीं हवाई जहाज भी मिल सकता है । बैठे बैठे ख्याली पल
ु ाव
पकाते हैं और हम लोगों को खिलाते हैं ।

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ज्ञान चंद- क्या कह रहे हो गें दा सिंह । पांच लाख में हवाई जहाज ? कौन बना रहा है ? कहाँ
छपा है ? दिखाइये हम भी तो दे खें ।

गें दा सिंह- लो तुम भी पढ़ लो । ये सबसे ऊपर छपा है । ‘अब पांच लाख में मिलेंगे हवाई
जहाज‘ ।

( अखबार के पन्ने पलटने की आवाज)

ज्ञान चंद- अमां क्या खाक पढ़ूं । चश्मा तो घर पर ही भूल के आ रहा हूँ । तुम ने खबर पढ़ी
होगी तुम ही बता दो क्या लिखा है अखबार में ।

गें दा सिंह- तुम भी यार, भाभी को तो बिना चश्मे के भी एक किलोमीटर दरू से पहचान लेते हो
और अखबार पढ़ने के लिये चश्मा लगाते हो ।

ज्ञान चंद- तुम से कितनी बार कहा है कि मेरी दख


ु ती रग पर पांव मत रखा करो ।

गें दा सिंह- दख
ु ती रग पर हाथ रखा जाता है ज्ञान चंद, पैर नहीं । थोड़ा मुहावरों पर तो रहम
किया करो । ज्ञान चंद- वही यार, एक ही बात है । चाहे पैर रखो या हाथ । दर्द तो दख
ु ती रग को
ही होना है न, फिर पैर रखना मुहावरे की सुपरलेटिव डिग्री है । तो मैं कह रहा था कि शिकारी
शेर के शिकार के लिये जिस बकरी को चारे के लिये इस्तमाल करता है , उस बकरी को शेर की
गंध दरू से ही पता चल जाती है । मैं भी अपनी बीबी के सामने बकरी ही हँ । वो हर रोज मेरा
शिकार करती है ।

गें दा सिंह- चलो छोड़ो भी तम


ु तो खामखाह अच्छी भली भाभी को बदनाम करते फिरते हो । फिर
ताली एक हाथ से नहीं बजती है ।

ज्ञान चंद- छोड़ो ये सब बातें तुम तो वो हवाई जहाज की कहानी बताओ । इतना सस्ता जहाज
बना कौन रहा है ।

गें दा सिंह- हाँ तो सन


ु ो, लातविया एक दे श है । वहाँ के वैज्ञानिक लोग लगे हैं एक सस्ता, हल्का,
टिकाऊ और छोटा सा हवाई जहाज बनाने में । कीमत होगी मात्र नौ हजार डॉलर । यानि की
पचास से गुणा करने पर भारतीय रूपये में होगा साढ़े चार लाख रूपये । पचास हजार तुम टै क्स
वगैरह जोड़ लो । इस तरह से पांच लाख रूपये का इंतजाम करना पड़ेगा । बस ।

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ज्ञान चंद- हूँ! बात तो तुम ठीक कह रहे हो पर विश्वास नही होता है गें दा सिंह जी । इतना
सस्ता हवाई जहाज ?

गें दा सिंह- बात तो तुम्हारी भी ठीक है , पर ज्ञान चंद आज विज्ञान इतना तरक्की कर गया है कि
आज सब कुछ संभव है । फिर हमें थोड़े ही बनाना है जहाज । यह तो लातविया वालों का सिर
दर्द है । हमें तो बस पांच लाख रूपये इकट्ठे करने हैं और इंतजार करना है कि कब यह जहाज
बन कर तैयार होगा और कब भारत में बिकने के लिये आयेगा । यार जब से पढ़ा है सब्र नहीं
होता ।

ज्ञान चंद- गें दा सिंह जी और भी तो कुछ छपा होगा अखबार में जहाज के बारे में ।

गें दा सिंह- हाँ हाँ क्यों नहीं । ये जहाज बनेगा फाइबर और डयूरालोमिनियम से ।

ज्ञान चंद- कौन से मिलेनियम से ?

गें दा सिंह- अमां यार मिलेनियम से नहीं डयूरालोमिनियम से । इस जहाज को उड़ने के लिये एक
छोटी सी हवाई पट्टी की जरूरत पड़ेगी । सो इसके लिये अपनी छत से काम चल जायेगा ।
मकान मालिक माधो जी थोड़ा बड़बड़ायेगें पर उनको एकाध बार जहाज में घुमा दिया जायेगा तो
वो भी खुश हो जायेंगे । छत पर एक फूस की मड़ई है । अपना पुष्पक विमान रात में वही
विश्राम करे गा । इस जहाज में वैसे तो दो इंजन होंगे पर वह उड़ेगा एक से ही । बस टे क ऑफ
के समय दो इंजनों की जरूरत पड़ेगी ।

ज्ञान चंद- ये बढ़िया है । एक इंजन से उड़ेगा तो पेट्रोल की बचत भी होगी और पैसों की भी ।


कंबख्त पेट्रोल वैसे भी आज कल 54 रूपये लीटर चल रहा है । इसी बहाने हम लोग पेट्रोल पंप
का मुंह भी दे ख लेंगे क्योंकि अपनी मर्सडीज में तो सिर्फ बरसात बाद ही ऑयलिंग ग्रीसिंग होती
है ।

गें दा सिंह- ज्ञान चंद चप


ु कर । मझ
ु े पहले जहाज की खबर तो परू ी सन
ु ा लेने दे फिर अपना ज्ञान
बांचना । और साइकिल को मर्सडीज मत कहा कर । मर्सडीज वालों ने सुन लिया तो अपने सिर
के बाल नोंच डालेंगे ।

ज्ञान चंद- दे खिये गें दा सिंह जी मेरे लिये तो वह टुटही साइकिल मर्सडीज से कम नहीं है । आप
जहाज के बारे में आगे बताइये ।

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गें दा सिंह- इस जहाज में सुरक्षा के भी बेहतरीन इंतजाम होंगे । किसी भी दर्घ
ु टना के समय
इसकी सीट आपको पैराशट
ू के साथ बाहर फैं क दे गी ।

ज्ञान चंद- जहाज का बीमा तो होगा ही इसलिये नुकसान की भी चिंता नहीं होगी । क्या बात है !
आर्थिक और शारीरिक दोनों ही नुकसान से बचाव हो जायेगा ।

(हवाई जहाज की आवाज)

गें दा सिंह- अरे सक्कू आज तो जल्दी तैयार हो जाती । (बड़बड़ाता है ) ये औरतें भी तैयार होने में
इतना समय लगाती हैं कि इतने में चिड़िया खेत चुग कर अंडे भी दे दे गी । (तेज आवाज में ) अरे
तुम्हारा मेकअप नीचे से दिखाई नहीं दे गा । हम लोग शहर का एक चक्कर लगा कर लौट आयेंगे

शिव शंकर- पापा, पापा में तो तैयार हो गया ।

गें दा सिंह- ओये राजाबाबू, ये स्कूल का बस्ता क्यों पीठ पर लादे हुये है ? तेरे स्कूल में इत्ती जगह
नहीं की हमारा जहाज लैंड कर सके । आज तेरी छुट्टी है । जा कर अपनी माता जी को ले कर
आ ।

शकंु तला- गला फाड़ कर क्यों चिल्लाते रहते हो । एक तो वैसे ही कौन सा घुमाने ले जाते हो ।
साल में एकाध बार घुमाने ले जाते हैं तो क्या ढं ग के कपड़े भी न पहनूं । और सुनिये जरा
सश
ु ीला के घर भी होते चलियेगा, उसको पांचवा बच्चा हुआ है , उसका हाल चाल लेते चलेंगे ।

गें दा सिंह- सक्कू डार्लिंग, रिश्तेदारों को जलाने के लिये फिर कभी चले चलेंगे । आज तो इस
जहाज का फैमिली ट्रायल लिया जायेगा । शहर का एकाध चक्कर लगा कर घंटे भर में लौट
आयेंगे ।

शकंु तला- मैंने तो पिक्चर का भी प्लान बनाया था । प्लाजा में जय संतोषी माँ लगी है । शक्र
ु वार
का दिन है दे ख लेते तो बड़ा पुण्य होता ।

गें दा सिंह- सक्कू प्लाजा में कार पार्क करने की तो जगह है नहीं । लोग गली में खड़ी कर दे ते हैं
। अपना जंबो जेट वहाँ कहाँ खड़ा होगा । छत भी उस पिक्चर हॉल की टीन की बनी है कि वहीं
खड़ा कर दे ते । पिक्चर फिर दिखला दँ गा ।

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शकंु तला- बहाना मत बनाइये । जहाज ले कर आफिस चले जायेंगे और उस मई
ु सुलेखा को हर
दिन घर छोड़ते हुये आयेंगे । सब जानती हूं मैं ।

गें दा सिंह- अरे उस बिचारी सुलेखा ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है । मूड मत घराब करो मेरा, जल्दी से
जहाज में बैठा जाओ । आज पहली बार जहाज उड़ाने जा रहा हूँ, फे्रश मड
ू से जहाज उड़ाने दो
मुझे।

शकंु तला- हुंह ।

शिव शंकर- पापा मैं कहाँ बैठूं । यहाँ तो सिर्फ दो ही सीट है ।

गें दा सिंह- बेटा तू मम्मी की गोद में बैठ जा । कल तेरे वास्ते एक छोटी सी सीट इसमें लोहार
से बैल्ड करवा दं ग
ू ा ।

(जहाज के घुरघुराने की आवाज)

शकंु तला- क्यों जी ये स्टार्ट क्यों नहीं हो रहा है ।

गें दा सिंह- पता नहीं क्या बात है । कोशिश तो कर रहा हँ ।

शकंु तला- कंपनी वालों को पहले एकाध बार चला कर दिखाना चाहिये था । ट्रक पर लाद कर लाये
और क्रेन से उठा कर छत पर रख कर चले गये । दे खिये किताब में कुछ दिया होगा । कुछ
अंजर पंजर तो बने थे किताब में ।

शिव शंकर- पापा रिंकी के पापा का स्कूटर जब र्स्टाट नहीं होता तो वो उसको टे ढ़े कर के र्स्टाट
करते हैं।

गें दा सिंह- अरे हाँ । चोक लेना तो भूल ही गया था । लो अब र्स्टाट हो जायेगा ।

(जहाज के र्स्टाट होने की आवाज और उड़ने की आवाज)

शकंु तला- एजी सुनिये । आप बहुत तेज जहाज उड़ाते हैं । मुझे चक्कर आ रहा है । थोडा धीरे
उड़ाईये ।

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गें दा सिंह- अरे ये साइकिल नहीं है , पांच लाख का हवाई जहाज है । धीरे धीरे साइकिल चलती है
जहाज नहीं । …..वो दे खो तम्
ु हारा मायका आ गया । हमारे फादर इन लॉ निकर पहन कर छत
पर बैठे लाल मिर्च सख
ु ा रहे हैं । ऊपर से ही प्रणाम कर लो अपने पिता जी को ।

शिव शंकर- पापा मामाजी भी बैठे हैं दीवार के पीछे । नाना जी से छुप कर नावेल पढ़ रहे हैं ।

गें दा सिंह- कितनी बार मना किया है साले को की नॉवेल पढ़ना छोड़ कर कोर्स की किताब पढ़ा
कर । पर लगता है ये चौथी बार भी हाई स्कूल पास नहीं कर पायेगा ।

शकंु तला- आप को तो बहाना चाहिये मेरे भाई को डाटने का ।

गें दा सिंह- काम ही ऐसा करता है तो क्या करें ।

शकंु तला- सुनिये, सरिता दीदी के घर की तरफ चलिये न । जीजा जी भी घर पर होंगे ।

गें दा सिंह- चलेंगे, चलेंगे । अगले इतवार सबके यहाँ चलेंगे । आज इसका एवरे ज वगैरह तो नाप
लिया जाये, कि पता चला बीच रास्ते में पेट्रोल खत्म हो गया तो कहीं सड़क पर उतारना पड़
जायेगा।

शकंु तला- दे खते हैं आपको अगले इतवार तक याद रहता है कि नहीं ।

गें दा सिंह- अरे वो नीचे दे खो, ज्ञान चंद अपनी दादाजी की साइकिल पर सब्जी मंडी से सब्जी
खरीद कर आ रहा है । (चिल्ला कर) ओ ज्ञान । ज्ञान चंद ऊपर दे ख । ज्ञान… चंद.. ।

शकंु तला- अरे चप


ु भी रहिये । परू ा शहर दे ख रहा है आपको । ऐसे हलक फाड़ कर चिल्लायेंगे तो
शहर भर की चीलें जहाज के पास इक्कठी हो जायेंगी ।

गें दा सिंह- सलाह के लिये शुक्रिया ।

शिव शंकर- वो दे खिये पापा कितनी पतंगे उड़ रही हैं । एक पतंग तोड़ कर दीजिये न ।

गें दा सिंह- ना, ना । हाथ खिड़की से बाहर नहीं निकालते शिवू । हाथ अंदर करो । उड़ते जहाज में
से हाथ पैर बाहर नहीं निकालते । एक्सीडेंट हो जायेगा ।

शिव शंकर- पापा एक ठो पतंग लूट लेने दो । बस एक ठो ।

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गें दा सिंह- नहीं, नहीं । हाथ अंदर करो । नहीं, नहीं ।

(हवाई जहाज की आवाज)

ज्ञान चंद- अरे सिंह साहब क्या हो गया आपको । ये बैठे बैठे क्या नहीं नहीं करने लगे । जहाज
खरीदने का विचार त्याग दिया क्या आपने ।

गें दा सिंह- (संभल कर) हाँ, हाँ । क्या । कुछ नहीं । कुछ नहीं । क्या कह रहे थे ।

ज्ञान चंद- मैं कह रहा था कि जहाज का बीमा तो होगा ही ।

गें दा सिंह- हाँ, हाँ, क्यों नहीं होगा । साईकिल थोड़े ही है जो बीमा वाले छोड़ दें गे । बीमा तो
करवाना ही पड़ेगा ।

ज्ञान चंद- करवा लेंगे । बीमा भी करवा लेंगे । इतनी मंहगी चीज जो है । चोरी चकारी का भी
तो डर लगा रहता है ।

गें दा सिंह- लेकिन इस जहाज को लेकर हवाई प्रशासन थोड़ा परे शान है ।

ज्ञान चंद- वो किसलिए ।

गें दा सिंह- वो इसलिये, जहाज सस्ता हो जायेगा तो हर कोई मारूति 800 छोड़ कर जहाज पर ही
चलेगा । आसमान में ट्रै फिक जाम होगा, एक्सीडेंट होगा । ऊपर आसमान में टै र् फिक लाइटें और
सिग्नल लगाने पड़ेंगे । कोई आदमी टै र् फिक के नियम तोड़ कर भागेगा तो टै र् फिक पलि
ु स वाला
बल
ु ेट पर बैठ कर तो उसको चहे टेगा नहीं । उस को भी तो एक हवाई जहाज चाहिये कि नहीं,
दौड़ा कर पकड़ने के लिये ।

ज्ञान चंद- बरोबर बोलते हो गें दा सिंह जी । खर्च तो प्रशासन का भी बढ़ जायेगा । उनकी वो
जाने, मैंने तो अपने खर्च का हिसाब मन ही मन लगा लिया है ।

गें दा सिंह- कैसा हिसाब मन ही मन में लगा लिया हुजरू ने ।

ज्ञान चंद- दे खिये गें दा सिंह जी अगर कोई ऐसा जहाज बन कर मार्के ट में बिकने आता है तो मैंने
उसको खरीदने का निश्चय कर लिया है । पांच लाख होती क्या चीज है । आज कल तो छोटी

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मोटी कार पांच लाख की आती है । और फिर सरकार के लिये पांच लाख रूपये क्या मायने रखते
हैं ।

गें दा सिंह- क्या मतलब । आप सरकार के पैसों से जहाज खरीदना चाहते हैं । वह कैसे ?

ज्ञान चंद- आप तो जानते ही हैं कि मेरी मर्सडीज, जिसे आप साइकिल कहते हैं, वह मेरे दादाजी के
जामाने की है । एंटीक पीस है । परु ातत्व वाले हाथ धो कर उसके पीछे पड़े हुये हैं । उस
साइकिल का तो ऐतिहासिक महत्व भी है ।

गें दा सिंह- ऐतिहासिक महत्व भी है । वह कैसे ?

ज्ञान चंद- अरे आप को नहीं पता । पूरे मोहल्ले को पता है । सन 1939 के चुनाव में कांग्रेस के
कई बड़े नेताओं ने इसी साइकिल पर चढ़ कर कन्वेसिग
ं की थी । मेरे दादाजी भी कांग्रेस के
चवन्निया में म्बर थे । इस तरह से हुई न ऐतिहासिक साइकिल । मैं सरकार से दरख्वास्त करूंगा
कि इस राष्ट्रीय संपत्ति को अब मैं राष्ट्रीय संग्रहालय को सौंपना चाहता हँ और बदले में अगर
वो मुझको कोई मूल्य दे ना चाहती है तो मुझको कतई इंकार नहीं होगा । मैं दान दहे ज को गलत
मानता हूँ, इसलिये अपनी यह साइकिल राष्ट्रीय संग्रहालय को दान नहीं करूंगा । इससे सरकार
की भी बेइज्ज़ती होगी कि बताओ इत्ती बड़ी सरकार हो करके एक पुरानी कबाड़ साइकिल का
मूल्य भी नहीं चुका सकती । बस केवल दस लाख की ही तो बात है ।

गें दा सिंह- दस लाख रुपये ! इतने रूपयों का तम


ु क्या करोगे । जहाज तो पांच लाख में ही आ
जायेगा।

ज्ञान चंद- जहाज तो पांच लाख में तो आ जायेगा पर पेट्रोल भी तो भरवाना पड़ेगा । दो तीन
साल के पेट्रोल का भी तो इंतजाम करना पड़ेगा ।

गें दा सिंह- वाह भाई ज्ञान चंद तम्


ु हारा तो इंतजाम हो गया । पर मेरी साइकिल को कौन खरीदे गा
। वह तो अभी मात्र 32 साल ही परु ानी है । चन
ु ाव में तो नहीं, हाँ एक बार दं गे में फंस गई थी
सो 15 दिन थाने में पड़ी रही । पल
ु ीस वालों ने 15 दिन इस पर खूब सवारी ठोंकी । वापस आने
पर 200 रूपये ओवरहालिंग में लगे सो अलग ।

ज्ञान चंद- भाई गें दा सिंह जी आज कल इतने एक्सीडेंट होते हैं उसकी एक बड़ी वजह है कि लोग
बाग पी पा कर गाड़ी चलाते हैं । अब ऐसे ही जहाज भी उड़ाने लगे तो हो गया । अपना तो
मरें गे ही, जिसके सिर पर कूदें गे वो भी बेचारा गया काम से ।

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गें दा सिंह- हाँ ये तो है ही । … एक आइडिया आया है दिमाग में । विज्ञान इत्ता तरक्की कर
गया है तो एक मशीन ऐसी बनाये जो जहाज में हें डिल के पास फिट हो सके । वो मशीन
पायलट की नाक संघ
ू कर यह पक्का करे कि ड्राईवर पी पा कर तो नहीं आया है । जहाज का
कम्प्यट
ू र घस
ु ते ही चेतावनी दे -दे कि नशा पत्ती करने वाले, नशा उतरने के बाद ही जहाज पर
चढ़ें , नहीं तो मरे ।

ज्ञान चंद- ये आइडिया ठीक रहे गा ।

( शकंु तला का कमरे में प्रवेश )

शकंु तला- यात्रियों को सूचित किया जाता है कि हमारा जहाज भटिंडा पहुंच चुका हैं, कृपया अपनी
अपनी बेल्ट बांध लीजिये । बाहर का तापमान 25 डिग्री सेल्सीयस है और चाय का तापमान 98
डिग्री । लीजिये ज्ञान भइया गर्म गर्म चाय पीजिये । बहुत आसमान में उड़ चुके अब धरती पर
उतरिये । (गें दा सिंह से) शिव शंकर कब का बस्ता लटका कर तैयार बैठा है । उसको आज फिर
स्कूल के लिये दे री हो जायेगी । आपकी साइकिल उसने कपड़े से रगड़ कर चमका दी है । उसको
ही हवाई जहाज मान कर अब काम पर निकलिये ।

गें दा सिंह- अरे ! दस बज गये । आज फिर दे री हो गई । ये अखबार वाले भी कहाँ कहाँ की उड़ा
कर ले आते हैं और हम लोग भी हं स की चाल चल दे ते हैं ।

ज्ञान चंद- हाँ गें दा सिंह जी ऐसी खबरें तो हर दिन निकला करती हैं कि पानी से चलेंगी कारें , हवा
से चलेंगी गाड़ियां । पर जब तक चलेंगी हम लोग दादा-नाना बन चक
ु े होंगे ।

गें दा सिंह- और हम लोग अभी से ही ख्याली पल


ु ाव पका कर खाये जा रहे हैं । चल भइये ज्ञान
चंद तेरे को भी तो ऑफिस की दे र हो रही होगी ।

ज्ञान चंद- हाँ हाँ, चलता हूँ । जरा चाय तो पी लँ ू । आपके जहाज के चक्कर में मैं तो अपनी
मर्सडीज ही बेचने जा रहा था । उसका मक ु ाबला भला कोई हवाई जहाज क्या कर सकता है । न
पेट्रोल की जरूरत और न लाइसेंस की । …..वाह भाभी, आपकी चाय का भी जवाब नहीं । ऐसी
कड़क चाय तो दार्जलिंग वालों को भी नसीब नहीं होती होगी ।

(साइकिल की घंटी की आवाज)

शिव शंकर- पापा जल्दी चलिये । आज फिर स्कूल को दे री हो गई ।

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गें दा सिंह- ओये ठहर जा अपने बाप के पत्ु तर । मेरे कू तैयार तो हो लेने दे ।

(उड़ते हुये जहाज की आवाज )

समाप्त……………

मित्रों आप लोगों के निवेदन पर स्क्रिप्ट यहाँ रख रहा हूँ. इसे आप कॉपी कर इस्तेमाल कर सकते
हैं. बस इतना निवेदन है की लेखक के नाम का भी जिक्र करना मत भलि
ू एगा. यह नाटक
आकाशवाणी इलाहबाद के लिए मैंने लिखा था जो खूब पसंद किया गया. उम्मीद करता हूँ की
आप इसका सफल मंचन करें गे. ………… के एम मिश्र. (लेखक)

THE END

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